Manohar Kahaniya: जब थाना प्रभारी को मिला प्यार में धोखा- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

घटना से एकदो दिन पहले ही अस्पताल से डिस्चार्ज हुए थे. रूपा तिर्की से मुलाकात की बातें सरासर गलत हैं. पुलिस चाहे तो काल डिटेल निकलवा कर जांच करा सकती है.

भारी राजनैतिक दबाव पड़ने पर पुलिस ने मामले की तेज गति से जांच शुरू कर दी. एसपी ने इस के लिए डीएसपी (मुख्यालय) संजय कुमार के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया. एसआईटी में बरहड़वा एसडीपीओ पी.के. मिश्रा, इंसपेक्टर (राजमहल ) राजेश कुमार और 2 महिला पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया. जांच अधिकारी जिरवाबाड़ी थाने की एसआई स्नेहलता सुरीन को बनाया गया.

मौके के हालात देख कर पुलिस इसे आत्महत्या मान रही थी, लेकिन रूपा के परिवार वाले इसे हत्या बता रहे थे. सोशल मीडिया पर भी मामला बढ़ रहा था. 2 महिला सबइंसपेक्टरों और एक नेता पर लगे आरोपों को देखते हुए सभी बिंदुओं पर जांच करना जरूरी थी.

फोरैंसिक टीम ने 5 मई, 2021 को साहिबगंज पहुंच कर रूपा के क्वार्टर की जांचपड़ताल की और साक्ष्य जुटाए. मौके पर मिली पानी से भरी बोतल व गिलास से अंगुलियों के निशान लिए. कई दूसरी जगहों से भी फिंगरप्रिंट लिए.

पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी, इसी बीच एक औडियो वायरल हो गया. चर्चा रही कि इस औडियो में रूपा तिर्की के पिता और एक युवक की बातचीत थी. यह कोई और नहीं रूपा का बैचमेट एसआई शिवकुमार कनौजिया बताया गया.

यह औडियो सामने आने से पता चला कि रूपा का शिवकुमार से अफेयर चल रहा था. औडियो में रूपा के पिता उस युवक से रूपा की शादी के संबंध में बात कर रहे थे. युवक बाचतीत में रूपा को समझाने की बात कह रहा था ताकि वह कोई गलत कदम न उठा ले. औडियो सामने आने के बाद यह मामला ज्यादा उलझ गया.

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एक पुलिस एसआई की संदिग्ध मौत का मामला होने के कारण झारखंड पुलिस एसोसिएशन ने भी इस की जांच शुरू कर दी. रांची से एसोसिएशन के प्रांतीय उपाध्यक्ष अरविंद्र प्रसाद यादव, संताल परगना प्रक्षेत्र मंत्री हरेंद्र कुमार, रविंद्र कुमार, पप्पू सिंह, जिला उपाध्यक्ष सुखदेव महतो, सचिव सहमंत्री शमशाद अहमद आदि ने साहिबगंज पहुंच कर मामले की जांच की. इन पदाधिकारियों ने प्रताड़ना के आरोपों से घिरी रूपा की बैचमेट एसआई मनीषा कुमारी और ज्योत्सना से भी कई घंटे तक पूछताछ की.

सामने आया बौयफ्रैंड का नाम

पुलिस ने मामले की तह में जाने के लिए रूपा के मोबाइल फोन की जांच कर काल डिटेल्स निकलवाई और उस के वाट्सऐप मैसेज, चैटिंग, एसएमएस और वीडियो वगैरह देखे. इस में पता चला कि उस ने आखिरी बातचीत अपने बौयफ्रैंड शिवकुमार कनौजिया से की थी. रूपा ने शिवकुमार को कई मैसेज भी भेजे थे. शिवकुमार झारखंड के चाइबासा जिले में टोकलो पुलिस थाने में तैनात था.

शिवकुमार से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए एसआईटी ने उसे साहिबगंज बुलाया. इस बीच, रूपा के परिवार वालों की मांग पर जांच अधिकारी स्नेहलता सुरीन को बदल कर राजमहल इंसपेक्टर राजेश कुमार को इस मामले की जांच सौंप दी गई.

आदिवासी समाज की प्रतिभाशाली महिला पुलिस एसआई रूपा तिर्की की संदिग्ध मौत की उच्चस्तरीय जांच की मांग को ले कर पूरे झारखंड में लोग आंदोलन करने लगे. छात्र संगठन, महिला संगठन और आदिवासी संगठनों के अलावा सत्ताधारी दल कांग्रेस सहित विपक्षी दल भाजपा, जनता दल (यू) आजसू आदि ने इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग सरकार से की.

सत्ताधारी विधायकों ने कहा कि इस घटना से आदिवासी समुदाय में आक्रोश है. सोशल मीडिया पर रूपा को इंसाफ दिलाने के लिए अभियान चल रहे हैं. इस से सरकार की छवि धूमिल हो रही है. लोग हम से सवाल पूछ रहे हैं कि इस की जांच होगी या नहीं. ऐसी हालत में सरकार को सीबीआई जांच से पीछे नहीं हटना चाहिए.

झारखंड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश ने रांची के पास रातू गांव में रूपा के घर पहुंच कर पूरे मामले की जानकारी ली. बाद में उन्होंने कहा कि यह हाईप्रोफाइल मामला है. इस में मुख्यमंत्री के संरक्षण प्राप्त लोगों का हाथ है. इसलिए झारखंड पुलिस से न्याय की उम्मीद नहीं है.

रूपा होनहार लड़की थी, उसे धोखे में रख कर मार डाला गया. झारखंड में आगे किसी आदिवासी बेटी के साथ ऐसी घटना नहीं हो, इसलिए इस घटना से परदा उठना जरूरी है.

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आंदोलन बढ़ते जा रहे थे. रूपा को न्याय दिलाने के लिए महिलाएं प्रदर्शन कर रही थीं. कैंडल मार्च निकाल रही थीं. वहीं, पुलिस की जांच में नईनई बातें सामने आने से मामला उलझता जा रहा था. साहिबगंज पुलिस और झारखंड सरकार की बदनामी हो रही थी.

रूपा के बौयफ्रैंड शिवकुमार कनौजिया को 8 मई को साहिबगंज थाने बुला कर एसआईटी में शामिल अफसरों ने पूछताछ की. उस से रूपा से मुलाकात होने से ले कर अफेयर और शादी की बातों के बारे में सवाल पूछे. उस से रूपा से मुलाकातों और मोबाइल पर चैटिंग वगैरह के संबंध में भी पूछताछ की गई. करीब 8 घंटे तक पुलिस अधिकारी उस से लगातार पूछताछ करते रहे.

बौयफ्रैंड एसआई को भेजा जेल

शिवकुमार से पूछताछ के बाद एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट एसपी को सौंप दी. इस रिपोर्ट के आधार पर साहिबगंज पुलिस ने 9 मई को एसआई शिवकुमार कनौजिया को रूपा की खुदकुशी का जिम्मेदार मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.

जांच में सामने आए तथ्यों के आधार पर पुलिस ने पहले दर्ज किए केस को आत्महत्या के लिए उकसाने में परिवर्तित कर शिवकुमार कनौजिया के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. बाद में शिवकुमार को पुलिस ने उसी दिन अदालत के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया.

एसपी अनुरंजन किस्पोट्टा का कहना था कि एसआईटी ने जो जांच रिपोर्ट सौंपी, उस में कहा गया कि शिवकुमार ने रूपा की भावनाओं को आहत किया. इस कारण रूपा ने खुदकुशी की. जांच में पुलिस को एक औडियो भी मिला था. इस औडियो में रूपा तिर्की और उस के प्रेमी एसआई शिवकुमार कनौजिया के बीच बातचीत थी.

Manohar Kahaniya: चाची का आशिक- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

राजस्थान के अलवर जिले के भिवाड़ी शहर के थाना यूआईटी के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को 15 फरवरी, 2021 की सुबह फोन पर सूचना मिली कि सेक्टर  4 व 5 के बीच सड़क पर एक व्यक्ति का शव पड़ा है. सूचना पा कर थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

मौके पर उन्हें वास्तव में एक युवक का शव पड़ा मिला. उन्होंने जब शव की जांच की तो उस के दोनों पैरों के अंगूठों से चमड़ी उधड़ी हुई दिखी. प्रथमदृष्टया ऐसा लग रहा था मानो मृतक की हत्या कहीं और कर के शव यहां ला कर डाला गया हो.

पुलिस ने इस नजर से भी जांच की कि मृतक कहीं दुर्घटना का शिकार तो नहीं हो गया. मगर मौकाएवारदात और शव को देखने से ऐसा नहीं लग रहा था. शव पर और किसी जगह चोट या रगड़ के निशान या खून निकला हुआ नहीं था. मामला सीधे हत्या का लग रहा था. मामला संदिग्ध लगा तो थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार ने मामले की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

भिवाड़ी एसपी राममूर्ति जोशी के संज्ञान में मामला आया तो उन्होंने एएसपी अरुण मच्या को घटनास्थल पर जा कर मामला देखने के निर्देश दिए. एएसपी अरुण मच्या और फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने एफएसएल टीम को भी वहां बुला कर साक्ष्य इकट्ठा करवाए. पुलिस अधिकारियों ने जांचपड़ताल के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. शव की शिनाख्त नहीं हुई थी. लेकिन जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती. तब तक पुलिस हाथ पर हाथ धर कर बैठने वाली नहीं थी. पुलिस ने अज्ञात शव मिलने का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस को सुलझाने के लिए एएसपी अरुण मच्या के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित की गई. इस टीम में यूआईटी थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार के साथ फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह सोलंकी, एसआई अखिलेश, हैडकांस्टेबल मुकेश कुमार, राकेश कुमार, मोहनलाल, कर्मवीर, रामप्रकाश, राजेंद्र, संतराम, सुरेश, ओमप्रकाश व ऊषा को शामिल किया गया.

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मृतक की हुई शिनाख्त

इस पुलिस टीम ने मृतक के फोटो एवं पैंफ्लेट बना कर भिवाड़ी में सार्वजनिक स्थानों पर लगवा कर लोगों से शव की शिनाख्त की अपील की. साथ ही पुलिस टीम ने 2 दिन में लगभग 800 घरों में संपर्क कर शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की. वहीं पुलिस टीम ने सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले.

सीसीटीवी फुटेज में एक बाइक पर एक युवक और महिला किसी व्यक्ति को बीच में बैठा कर ले जाते दिखे. पुलिस ने मृतक की शिनाख्त कर ली. मृतक का नाम कमल सिंह उर्फ कमल कुमार था. मृतक कमल निवासी उमराया, छाता, जिला मथुरा का रहने वाला था और इन दिनों भिवाड़ी की प्रधान कालोनी, सेक्टर-2 में रह रहा था.

पुलिस ने मृतक कमल के घर जा कर पूछताछ की तो मृतक की बीवी जमना देवी अपने पति की हत्या की बात सुन कर रोने लगी.

पुलिस ने उसे ढांढस बंधाया और पूछताछ की. जमना देवी ने बताया कि उस का पति कमल एटीएम से रुपए निकलवाने गया था. जबकि मृतक के बड़े भाई भीम सिंह ने पुलिस को बताया कि 14 फरवरी, 2021 की रात कमल सिंह की पत्नी जमना देवी उन के घर आई थी. वह उस से बाइक की चाबी यह कह कर मांग कर लाई थी कि कमल को बल्लभगढ़ जाना है.

भीम सिंह ने तब बाइक की चाबी जमना को दे दी थी. पुलिस को लगा कि मृतक की बीवी गुमराह कर रही है. तब पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ करने के साथ ही सीसीटीवी फुटेज जमना देवी को दिखाई. सीसीटीवी फुटेज में बाइक पर बैठी महिला के कपड़े एवं जमना के पहने कपड़े एक ही थे.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि कमल की हत्या में उस की पत्नी जमना का हाथ है. तब पुलिस ने जमना से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में जमना टूट गई. उस ने कबूल कर लिया कि अपने प्रेमी और भतीजे मदनमोहन के साथ मिल कर पति की हत्या की थी.

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तब पुलिस ने मृतक कमल सिंह की बुआ के पोते 19 वर्षीय मदनमोहन को फरीदाबाद, हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने मदनमोहन को मोबाइल की लोकेशन के आधार पर साइबर सेल एक्सपर्ट की मदद से धर दबोचा था.

पुलिस गिरफ्त में आते ही मदनमोहन समझ गया कि उस का भांडा फूट गया है. इसलिए उस ने भी कमल सिंह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. इस तरह 19 फरवरी, 2021 को पुलिस ने हत्या के इस मामले से परदा हटा दिया. मदनमोहन को यूआईटी थाना पुलिस थाने ले आई.

अगले भाग में पढ़ें-  मदन ने जमना से किया प्यार का इजहार

Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

राजीनामे में आ रही अड़चनों के बीच कुछ समय पहले अनुज ने डा. सुदीप को धमकी भी दी थी. इस पर डाक्टर ने अपने परिचित कुछ अधिकारियों और कानूनविदों से सलाहमशविरा भी किया था. इस में डाक्टर ने खुद पर और परिवार पर खतरे की आशंका जताई थी.

चूंकि यह कानूनी मामला था, इसलिए सभी ने उन्हें विवाद नहीं बढ़ाने और समझाइश से मामला शांत करने को कहा था. शायद इसीलिए डा. सुदीप ने अनुज के धमकी देने की लिखित शिकायत पुलिस में नहीं की थी. लगातार दबाव बनाने के बावजूद डाक्टर से पैसा नहीं मिलने के कारण वह अपनी बहन और भांजे के जलने के दृश्य याद कर बौखला जाता था. इसी बौखलाहट में उस ने बदला लेने के लिए डा. सुदीप और उस की पत्नी डा. सीमा की हत्या कर दी.

अब आप को डेढ़ साल पहले की उस खौफनाक मंजर की कहानी बताते हैं, जिस में दीपा और उस के 6 साल के बेटे शौर्य की मौत हो गई थी.

वह 7 नवंबर, 2019 का दिन था. भरतपुर शहर में जयपुर-आगरा हाईवे पर पौश कालोनी सूर्या सिटी में उस दिन शाम करीब 4 बजे डा. सीमा गुप्ता अपनी सास सुरेखा के साथ अपने पति डा. सुदीप की प्रेमिका दीपा के मकान पर पहुंची.

घर में दीपा और उस का बेटा शौर्य था. उन की दीपा से कहासुनी हुई. इस दौरान अचानक आवेश में आई डा. सीमा ने स्प्रिट की बोतल फरनीचर पर उड़ेल कर आग लगा दी. इस के बाद घर के बाहर की कुंडी लगा कर वह चली गई.

स्प्रिट ने तुरंत भयावह रूप दिखाया. पूरा मकान आग की लपटों से घिर गया. चारों तरफ आग से घिरी दीपा ने अपना और मासूम बेटे का जीवन बचाने के लिए पहले डा. सुदीप का फोन किया. सुदीप ने तुरंत पहुंचने की बात कही. इस बीच, दीपा ने अपने छोटे भाई अनुज से भी जान बचाने की गुहार की. अनुज भरतपुर शहर में ही नीम दा गेट इलाके में रहता था.

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दीपा की गुहार सुन कर अनुज बाइक ले कर तुरंत उस के मकान पर पहुंचा. वह बिना आवताव देखे मकान के बाहर लगी कुंडी खोल कर तेज लपटों के बीच अंदर घुस गया.

इतनी हिम्मत करने के बावजूद वह जान बचाने के लिए चीखतेचिल्लाते इधरउधर छिपते फिर रही बहन और भांजे को नहीं बचा सका. उस ने दोनों को जिंदा जलता देखा. चारों तरफ आग की लपटों से घिरने के कारण अनुज भी गंभीर रूप से झुलस गया था. बड़ी मुश्किल से वह बाहर निकल सका. बाद में उसे जयपुर ले जा कर अस्पताल में भरती कराया गया. कुछ दिनों बाद वह ठीक हो गया.

यह बताना भी जरूरी है कि डा. सीमा ने दीपा और उस के बेटे को क्यों जलाया?

यह कहानी सन 2017 में शुरू हुई थी. दीपा गुर्जर ने भरतपुर में श्रीराम गुप्ता मेमोरियल अस्पताल में बतौर रिसैप्शनिस्ट नौकरी शुरू की थी. यह अस्पताल प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. सीमा गुप्ता का था. डा. सीमा के पति डा. सुदीप भरतपुर के सरकारी अस्पताल आरबीएम में फिजिशियन थे. सरकारी ड्यूटी के बाद डा. सुदीप भी पत्नी के अस्पताल में कुछ समय बैठ जाते थे. वैसे भी उन्होंने अस्पताल के ऊपरी हिस्से में ही आवास बना रखा था.

दीपा का विवाह उत्तर प्रदेश के जगनेर गांव में हुआ था, लेकिन पारिवारिक विवाद के कारण उस का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा. उस के एक बेटा हुआ, जिस का नाम शौर्य रखा गया. बाद में वह ससुराल से अलग हो कर भरतपुर में अपने पीहर आ कर रहने लगी. बेटा शौर्य उसी के साथ रहता था. पति से उस का तलाक का केस चल रहा था.

अस्पताल में नौकरी करने के दौरान दीपा का डा. सीमा के पति डा. सुदीप से प्रेम प्रसंग शुरू हो गया. दीपा अकेली थी. डा. सुदीप का प्यार मिला, तो वह उन की बांहों में चली गई. पुरानी कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. डा. सुदीप और दीपा के मामले में भी यही हुआ.

अस्पताल में दोनों के प्यार के चर्चे होने लगे. डा. सीमा को भी पता चल गया. वह बहुत गुस्सा हुई. उस ने दीपा को नौकरी से निकाल दिया और हिदायत दी कि फिर कभी उन के पति डा. सुदीप से नहीं मिलना.

दीपा क्या करती, उसे नदी का किनारा मिल रहा था, वह भी छूट गया था. वह अपने पीहर में रह कर नए सिरे से जीवन शुरू करने की सोचने लगी.

उधर, दीपा को नौकरी से निकाले जाने से डा. सुदीप बेचैन हो गया. आग दोनों तरफ लगी हुई थी. आग के शोले भड़कने लगे, तो दोनों चोरीछिपे मिलने लगे. दोनों इस बात की सावधानी रखते थे कि डा. सीमा को इस बात का पता न चले. यह सिलसिला कई महीने तक चलता रहा.

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इस बीच, डा. सुदीप ने सूर्या सिटी का अपना मकान दीपा को रहने के लिए दे दिया. दीपा इस मकान में अपने बेटे शौर्य के साथ रहने लगी. यह मकान डा. सुदीप और उस की पत्नी ने कुछ साल पहले खरीदा था. मकान खाली पड़ा था. डा. सीमा को अपने कामकाज से इतनी फुरसत नहीं थी कि वह कभी जा कर अपने मकान को देखे.

इसी का फायदा उठा कर डा. सुदीप ने पत्नी डा. सीमा से कह दिया कि उस ने यह मकान किराए पर दे दिया है. इस मकान में दीपा और डा. सुदीप मिलनेजुलने लगे. डा. सुदीप ही उस का सारा खर्च उठाता था. दीपा के बेटे शौर्य की पढ़ाई का खर्च भी उठाता था. शौर्य भरतपुर के नामी और महंगे स्कूल में पढ़ता था.

दीपा और डा. सुदीप के फिर से पनपे प्रेम संबंधों की जानकारी डा. सीमा को उस समय हुई, जब शहर में आयशा सैलून एंड स्पा सेंटर खुलने के निमंत्रण पत्र बंटे. इस निमंत्रण पत्र में डा. सुदीप का नाम भी था. सूर्या सिटी में डा. सुदीप के मकान में दीपा ने पहली नवंबर 2019 को यह स्पा सेंटर खोला.

अगले भाग में पढ़ें- डा. सीमा ने गुस्से में लगाई आग

Satyakatha: मकान में दफन 3 लाशें- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

अहसान पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि वे गहरी नींद में गए हैं. फिर क्या था, यही सही मौका था उसे अपने मंसूबों को अंजाम देने का. उस ने पहले पत्नी नाजनीन, उस के बाद सोहेल और अंत में साजिद की गला घोंट कर हत्या कर दी और धारदार चाकू से तीनों का गला रेत दिया और एक कमरे में तीनों की लाशें रख कर दरवाजे पर बाहर से ताला जड़ दिया ताकि उस कमरे में कोई और न जा सके.

अगले दिन शहर से एक मजदूर बुला कर अहसान ने मकान के बाहरी दालान में सैफ्टी टैंक बनवाने के लिए एक बड़ा और गहरा गड्ढा खुदवाया. फिर रात में तीनों लाशें बारीबारी से उस में डाल दीं.

सबूत मिटाने के लिए उस ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल चाकू भी उसी गड्ढे में डाल दिया. उस के बाद ऊपर से मिट्टी डाल कर उन्हें दफना दिया. फिर मिट्टी के ऊपर सीमेंट का घोल फैला कर रातोंरात उस पर पक्का फर्श तैयार कर दिया और चैन की नींद सो गया.

पड़ोसी जब कभी अहसान से उस की पत्नी और बेटों के बारे में पूछते तो वह बहाना बना कर कर कह देता कि पत्नी बेटों के साथ जगदीश नगर में किराए के कमरे में रहती है. मैं भी कभीकभी रात में वहीं रुक जाया करता हूं.

नाजनीन और उस के दोनों बेटों सोहेल और साजिद की हत्या किए एक साल बीत गया था. साल 2017 में अहसान की पहली पत्नी नूरजहां छोटे बेटे शाकिर के साथ पानीपत एक रिश्तेदार के यहां शादी में आई तो पति से मिलने शिवनगर कालोनी भी आई.

जब उस ने पति से दूसरी पत्नी और उस के दोनों बेटों के बारे में पूछा तो अहसान सकपका गया और घबराहट के मारे उस के मुंह से सच्चाई बाहर निकल आई कि उस ने तीनों की हत्या कर दी है और लाशों को इसी घर में दफना दिया है.

उस ने पत्नी को लालच दिया, ‘‘नूरजहां, मुझे नाजनीन से काफी रुपए मिले हैं, उन पैसों से मैं तुम्हारे लिए एक प्लौट खरीदूंगा. इतना ही नहीं, मैं तुम्हें घर के सारे कीमती सामान जैसे फ्रिज, वाशिंग मशीन, कूलर, एलईडी, ट्राली बैग आदि भी खरीद कर दूंगा. तुम अब मौज करोगी. लेकिन तुम यह बात किसी से नहीं कहना.’’

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रुपए और सामान के लालच में पति के गुनाहों को नूरजहां ने अपने सीने में दफन कर लिया और किसी से कुछ नहीं बताया. सारे सबूत मिटाने के लिए अहसान ने नाजनीन की चैकबुक, पासबुक, एटीएम कार्ड, फोटो आदि दस्तावेज जला कर नष्ट कर दिए ताकि पुलिस उस तक किसी कीमत पर न पहुंच सके.

इस के बाद सन 2018 में अहसान ने शुगर मिल कालोनी के रहने वाले पवन कुमार को 5 लाख रुपए में वह मकान बेच दिया. फिर उन रुपयों से पहली पत्नी नूरजहां के लिए मुजफ्फरनगर में एक प्लौट खरीदा. उस के बाद वह मुजफ्फरनगर से भदोही चला गया और किराए का कमरा ले कर रहने लगा.

शादी डौटकौम के जरिए वह एक नए शिकार की तलाश में जुट गया. उसे जल्द ही एक लखपति बीवी फिर से मिल गई. उस ने उस से मंदिर में शादी कर ली और फिर उस के साथ मौज से जीवनयापन करने लगा.

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अहसान सैफी के अपराध का घड़ा भर गया था. जिस मकान में पवन रह रहा था, उस के दालान में बड़ी संख्या में चींटियां लग रही थीं. चींटियों से त्रस्त हो कर पवन ने जब दालान का फर्श तुड़वाया तो सालों से उस के नीचे दफन हत्या का राज खुल गया और शातिर अहसान जेल की सलाखों के पीछे जा पहुंचा.

उस ने कभी सोचा नहीं था कि उस की फूलप्रूफ योजना पर मामूली सी चींटी पानी फेर देगी और जीवन सलाखों के पीछे कटने के लिए विवश हो जाएगा. कथा लिखे जाने पुलिस ने नाजनीन के सारे सामान नूरजहां के घर (मुजफ्फरनगर) से बरामद कर लिए थे. इसी आधार पर पुलिस ने नूरजहां और उस के बेटे शाकिर को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

कथा लिखे जाने तक तिहरे हत्याकांड के तीनों आरोपी अहसान सैफी, पहली पत्नी नूरजहां और उस का बेटा शाकिर जेल की सलाखों के पीछे कैद थे. अब अहसान को अपने किए का पश्चाताप हो रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिल्ली की दोस्ती! वाया फेसबुक

देश की राजधानी दिल्ली के एक ऑटो चालक ने किस तरह एक युवती को फेसबुक के जरिए अपनी दोस्ती के जाल में फंसा कर उसकी अस्मत को लूट लिया. अक्सर यह कहा जाता है कि एक लड़का और लड़की अच्छे दोस्त क्यों नहीं हो सकते, एक दूसरे की मदद क्यों नहीं कर सकते. जमाना आज 21 वी शताब्दी का है तो क्यों नहीं दोनों साथ साथ कदम दर कदम मिलाकर के दोस्ती की एक नई इबारत नहीं लिख सकते.
जी हां! यह अपने आप में एक पक्ष है, दूसरा पक्ष अंधेरे वाला भी है. जहां फेसबुक पर दोस्ती के बाद लड़का लड़की को धोखा देता है. इसलिए  सावधान! आंख मूंदकर लड़कियों का किसी पर विश्वास करना भारी पड़ सकता है.

दिल्ली की सड़कों पर आवारा सा घूमने वाले एक ऑटो चालक ने झूठी कहानी गढ़ कर
छत्तीसगढ़ की अंबिकापुर शहर की एक युवती रजनी (काल्पनिक नाम) को फेसबुक पर दोस्ती कर फंसाया  . जैसा कि आजकल चलन है सोशल मीडिया फेसबुक की मित्रता अपने उफान पर है बड़े महानगरों के लड़कों पर लड़कियां विश्वास भी कर लेती हैं.

ऐसे में युवती की दोस्ती फेसबुक के माध्यम से  राजधानी दिल्ली के एक युवक आशीष से हो गई. जैसा कि अक्सर होता है शातिर युवक आशीष ने बड़ी-बड़ी बातें करके लड़की को अपने संजाल में फंसा लिया. जब रजनी ने कहा कि उसके सामने रोजी रोटी और भविष्य का सवाल है फिर तो मानो आशीष को मौका ही मिल गया वह बोला- अगर तुम दिल्ली आ जाओ तो मैं तुम्हें नौकरी भी दिलवा दूंगा और तुम एक हाई क्लास जिंदगी जी सकोगी. रजनी उसके मीठी चुपड़ी बातों में आ गई.

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मगर आगे देखिए! उसके साथ क्या हश्र हुआ.

और बना लिया “बंधक”!

ऑटो चालक आशीष गुप्ता ने लड़की को दिल्ली बुलाया और सामान्य रूप से कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि कोई युवक ऐसा दुस्साहस भी कर सकता है. जब फेसबुक मित्र आशीष के झांसे में आकर रजनी घर से झूठ बोलकर दिल्ली पहुंच गई तो वहां युवक ने उसे मीठी चुपड़ी बातें करके अपने घर ले जाकर  युवती को अपने कमरे में  बंधक बनाकर रखा मारपीट करता और उसके साथ अनाचार करता रहा. शायद युवक मानसिक विकृति लिए हुए था. इसलिए वह उसे सिगरेट से यदा-कदा  दागता भी था. प्रताड़ना के लंबे दौर से गुजरने के बाद  किसी तरह रजनी ने एक दिन आशीष के मोबाइल से ही नातेदारों से संपर्क किया.

परिजनों की जब दोबारा बातचीत बंद हो गई तो उन्होंने अंबिकापुर, पुलिस अधीक्षक के पास पहुंच शिकायत दर्ज कराई इस पर उन्होंने  कोतवाली पुलिस को जांच के निर्देश दिया.

पुलिस हरकत में आई मोबाइल ट्रेस कर दिल्ली पहुंची तो रजनी की एक एक बात सच निकली.  पुलिस ने दिल्ली पुलिस की मदद से आशीष को दिल्ली से गिरफ्तार कर रजनी को उसके कब्जे से मुक्त कराया. पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया बीस साल की रजनी  ( काल्पनिक नाम)  की पहचान फेसबुक के माध्यम से दिल्ली के आदित्य गुप्ता नामक युवक से हुई.

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युवक ने युवती से झूठ कहा कि  वह दिल्ली में एक कॉल सेंटर में काम करता है, यदि वह दिल्ली आएगी तो उसे भी बेहतर काम दिला देगा. दिल्ली राजधानी है यहां काम की कमी नहीं है और फिर छत्तीसगढ़ के जाने कितने लड़के लड़कियां यहां काम कर रहे हैं. इन बातों में आकर के रजनी अपने घर से दिल्ली की ओर  28 दिसंबर 2020 को युवती घर से निकल पड़ी. उसने घरवालों से कहा  वह परीक्षा देने जा रही है.  वहां पहुंचकर युवक से संपर्क किया तो वह लेने आ गया.

इसके बाद रजनी को वह अपने कमरे में ले गया और उसके साथ अनाचार अत्याचार करने लगा. रजनी का परिवार जनों से संपर्क टूट गया तो परेशान हो करके उन्होंने 31 दिसंबर2020 को अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. रजनी का मोबाइल भी तोड़ दिया गया था ताकि वह अपने परिजनों से बात न कर सके. 6 महीने10 दिन  युवक आशीष युवती से अनाचार करता रहा. उसके विरोध करने पर वह उसे सिगरेट से भी दाग देता था.

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अंबिकापुर के थाना प्रभारी ने हमारे संवाददाता को बताया- युवती सरगुजा क्षेत्र की रहने वाली है. युवक को गिरफ्तार करके उसका और युवती का बयान लिया गया पुलिस ने युवक पर सख्त कार्रवाई करते हुए जय जेल भेज दिया है.

Crime: फ्री का लॉलीपॉप, बड़ा लुभावना!

दरअसल, यह फ्री की जो मानसिकता है वह हमें अक्सर बड़ा  नुकसान पहुंचाती है. आजकल सोशल मीडिया में फ्री का लालच बड़े जोर शोर से प्रसारित हो रहा है और लोग छोटे से लालच में फंसकर के अपनी गाढ़ी कमाई को लूटा बैठते हैं. उन्हें यह समझ नहीं आता की आपके पास दो हाथ  है प्रकृति ने आपको बुद्धि दी है, इनका इस्तेमाल करिए निशुल्क फ्री के लालच में क्यों अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे हो.

आइए, देखें कुछ ऐसे मामले जो हमारी आंखें खोल सकते हैं-

पहला मामला-एक पढ़ें लिखे लोगों के  व्हाट्सएप ग्रुप में मैंने एक मैसेज देखा की जिओ, एयरटेल आदि 30 जून तक फ्री में रिचार्ज दे रहे हैं जल्दी से जल्दी इसका लाभ उठा ले.

नीचे लिंक दिया गया था वह पूरी तरीके से फर्जी था और लोगों को लूटने वाला मगर पढ़े लिखे माने जाने वाले भी झूठ के, ठगी के शिकार हो जाते हैं यह उसका बड़ा उदाहरण है.

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दूसरा मामला-

जैसे ही घरेलू महिला शालू ने यह देखा कि नि: शुल्क रिचार्ज मिलने वाला है उसने अपने सभी परिजनों को वह कथित लिंक भेज दिया. परिजनों ने देखा कि जब लिंक शालू ने भेजा है तो जरूर यह सही होगा. उन लोगों ने उसका उपयोग करके अपने आप को लुटा लिया.

तीसरा मामला-

अगर आपको पैसे चाहिए लोन चाहिए तो आपको 0% में हम रूपए देंगे बस आपको करना यह है कि इस लिंक का प्रयोग करें और लाभ उठा लो.

ऐसे ही न जाने कितने फर्जीवाड़ा आज सोशल मीडिया पर अपने सबाब पर है. हममें अगर थोड़ी भी समझ नहीं होगी और हम उसी को क्लिक करते हैं तो हमारे बैंक का सारा पैसा उड़ सकता है सावधान रहें और कभी भी किसी लालच के फंदे में न फंसे.

शिकारी आया,  दाने डालें

आप लोगों ने यह कहानी कभी न कभी पढ़ी होगी अथवा सुनी होगी कि शिकारी किस तरह पहले पंछियों के लिए दाने डालता है और जब पंछी धीरे-धीरे आकर के दाने चुगने लगते हैं तो शिकारी उन्हें फंसा लेता है.

यह बोध कथा हम पढ़ने सुनने के बाद भी जीवन में उतार नहीं पाते और गाहे-बगाहे ठगी का शिकार होते रहते हैं.पंचतंत्र में ऐसी ही कथाएं सैकड़ों साल पहले लिखी गई और लोगों को शिक्षित करने का प्रयास किया गया. इसका सीधा सा अर्थ है की यह ठगी की प्रवृत्ति हजारों साल से चली आ रही है और लोग ठगी का शिकार हो रहे हैं,यह  बस अपना रूप बदलती है. आजकल सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के बैंक खातों को साफ कर रही है. मजेदार यह कि जो लोग पढ़े लिखे और खुद को समझदार मानते हैं वह भी इस ठगी का शिकार हो रहे हैं. जिसमें पुलिस वाले, अधिवक्ता, इंजीनियर आदि भी शामिल है. इस रिपोर्ट के माध्यम से हम आपको एक बार पुनः आगाह करना चाहते हैं किसी भी शिकारी के दाने को चुगने से पहले सौ बार सोच ले.

एक बात गांठ बांध लें की कोई भी चीज आप को निशुल्क नहीं मिल सकती अगर कोई आपको इस का झांसा दे रहा है तो वह बहुत बड़ा सफेद झूठ है और आप बहुत ही सज्जन व्यक्ति जो उसके जाल में फंसने ही वाले हैं. अतः कभी भी निशुल्क फ्री के संजाल में नहीं फंसना है.

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ठोकर खाकर गिरने से अच्छा है, यह पढ़ लें

अगर आपके पास सोशल मीडिया या सर्वसुलभ वॉट्सऐप के द्वारा “तीन महीने के फ्री रिचार्ज” का मैसेज आया है तो खुश मत होइए खुशी के मारे उछलिए मत!

वस्तुत: आप भूलकर भी उसपर विश्वास न करें क्योंकि ऐसा करना आपके लिए भारी पड़ सकता है. और आपका बड़ा नुकसान हो सकता है. इस मैसेज के आपको दर असल फंसाया जा रहा है और आपका अकाउंट भी खाली किया जा सकता है.

सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है जिसमें कहा जा रहा है कि Jio, Airtel या Vi यूजर्स को वर्क फ्रॉम होम के लिए तीन महीने का फ्री रिचार्ज दिया जा रहा है. इस मैसेज में दावा किया जा रहा है कि यह स्कीम सरकार द्वारा चलाई जा रही है.

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इस वायरल मैसेज में लिखा है- ”कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सरकार द्वारा Work From Home के लिए सभी भारतीय यूजर्स को 3 महीने का रिचार्ज फ्री में दिया जा रहा है.” और-

“अगर आपके पास Jio, Airtel या Vi का सिम हैं तो आप इस ऑफर का लाभ उठा सकते है .

नोट:- नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करके अपना फ़्री रीचार्ज प्राप्त करें.

कृपया ध्यान दे: यह ऑफर केवल फलां दिनांक तक ही सिमित है!जल्दी करें..!”

जैसे हमने इस रिपोर्ट में पहले ही बता दिया है इस लिंक पर आप इन लिंक्स पर कदापि क्लिक नहीं करें.

इसी तरह आनलाइन पढ़ाई को लेकर के एक मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल है. यह पुरी तरह एक फर्जी मैसेज है और  भारत सरकार का नाम लेकर के लोगों को ठगने का उच्च स्तर का प्रयास है, आपको यह समझना होगा कि सरकार ऐसी कोई भी निशुल्क योजना भला क्यों चलायेगी.

Crime Story- सोनिया और उमंग: परवान नहीं चढ़ पाया बेमेल इश्क

शत्रुघ्न सिन्हा और रीना राय पर फिल्माया गया यह गाना साल 1980 में आई फिल्म ‘ज्वालामुखी’ का है, जो खूब पसंद किया गया था.

प्यार में धोखा खाए आशिक और महबूब ब्रेकअप के बाद इस गाने को गुनगुना कर खुद को तसल्ली दे लिया करते थे, लेकिन इस से सीखते कुछ नहीं थे, बल्कि कुछ दिनों बाद ही नए प्यार और सहारे की तलाश में जुट  जाते थे.

आज भी ऐसा ही हो रहा है और पहले से ज्यादा हो रहा है, क्योंकि प्यार के माने बहुत बदल गए हैं. कैसे बदल गए हैं, इस की ताजा मिसाल भोपाल का चर्चित मामला है, जिस के शत्रुघ्न सिन्हा वन मंत्री रह चुके और धार जिले की गंधवानी सीट से युवा कांग्रेसी विधायक उमंग सिंघार और रीना राय सोनिया भारद्वाज हैं.

39 साला सोनिया किसी फिल्म हीरोइन की तरह उम्र को मात देती हुई लगती थी. वह सच में निहायत खूबसूरत औरत थी, जो कम उम्र लड़कियों

जैसी दिखती थी, क्योंकि वह खुद को फिट रखने के सारे गुर जानती थी और हाईप्रोफाइल जिंदगी जीने में भरोसा करती थी.

फैशनेबल सोनिया 20 साल के एक बेटे की मां भी थी, यह उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था. उस ने बीती 16 मई को भोपाल में फांसी का फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली.

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इन दिनों वह अपने नए आशिक और होने जा रहे तीसरे पति उमंग सिंघार के बंगले 238, बी सैक्टर शाहपुरा, भोपाल में रह रही थी. जाहिर है कि वे दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे थे और लौकडाउन का पूरा लुत्फ उठा रहे थे.

कोरोना के कहर के चलते भोपाल शहर में भी दहशत थी. इलाज और औक्सीजन के लिए तरसते लोग बेमौत मारे जा रहे थे. मारे डर के कोई बेवजह तो क्या वजह होने पर भी घर से  बाहर नहीं निकल रहा था. यही वे दोनों कर रहे थे.

रोजमर्रा की जरूरत का सारा सामान एक फोन पर बैठेबिठाए बंगले पर आ जाता था. खाना बनाने और सेवा करने के लिए उमंग के घरेलू भरोसेमंद नौकर गणेश और गायत्री आवाज देते ही हाजिर हो जाते थे.

किस ने किस को फांसा

हरियाणा के अंबाला की रहने वाली सोनिया भारद्वाज उमंग सिंघार के इस प्राइवेट बंगले और उन के बैडरूम से एक पत्नी की तरह ही वाकिफ थी और अपना हक भी उतना ही सम?ाती थी. अगर शादी हो पाती तो यह उस की तीसरी शादी होती, क्योंकि वह पहले भी  2 शादियां कर चुकी थी.

साल 2006 में जब सोनिया 24 साल की थी, तब उस के पहले पति संजीव कुमार ने उसे छोड़ दिया था. वजह थी सोनिया की लक्जरी लाइफ स्टाइल, जिस के खर्चे और नखरे वह नहीं उठा पा रहा था.  संजीव से उसे एक बेटा आर्यन भी हुआ था, जो अब 20 साल का हो चुका है और शिमला से होटल मैनेजमैंट का कोर्स कर रहा है.

सोनिया ने दूसरी शादी एक बंगाली नौजवान से की थी, जो जल्द ही उसे छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. उस की भी परेशानी वही थी, जो संजीव की थी. गुजरबसर करने और बेटे को कुछ बनाने की ख्वाहिश लिए सोनिया ने एक कौस्मैटिक कंपनी में नौकरी कर ली.

इस में कोई शक नहीं कि सोनिया एक अच्छी मैनेजर थी, लेकिन शक इस में भी नहीं कि खुद अपनी जिंदगी वह मैनेज नहीं कर पाई. शायद वह ऊबने लगी थी, क्योंकि उमंग भी वही तेवर और गुस्सा दिखाने लगे थे, जो पहले के 2 पति दिखा चुके थे.

सोनिया और उमंग की जानपहचान शादी कराने वाली एक एजेंसी के जरीए तकरीबन 3 साल पहले हुई थी. जल्द  ही दोनों दिल्ली में मिलनेजुलने लगे और फिर सोनिया उमंग से मिलने भोपाल आने लगी. लगता नहीं कि उन दोनों में कोई परदेदारी रह गई होगी.

बहरहाल, कटी पतंग की तरह लंबा समय काटने वाली सोनिया को उमंग में वह सबकुछ दिखा, जो उस के ख्वाब और ख्वाहिशें पूरा करने का माद्दा रखते थे.

उमंग जैसे अधेड़ आशिक अपनी माशूका पर खुले हाथ से पैसा खर्च  करते हैं, उन्हें घुमातेफिराते हैं, जी भर कर खरीदारी कराते हैं, महंगे होटलों में खाना खिलाते हैं, नाजनजरे उठाते हुए वे खुद को जवान आशिक सम?ाने लगते हैं, जिस का अपना अलग ही मजा और एहसास है. इस का हक हर किसी को है भी और यह कोई एतराज की बात नहीं है.

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एतराज और हर्ज की बात है कुछ दिनों बाद ही अनबन होने लगना और एकदूसरे से जी भरने लगना, लेकिन तब तक अलग हो जाना या पल्ला ?ाड़ लेना कोई आसान काम भी नहीं रह जाता. यही इन दोनों के साथ भी हो रहा था.

यह बात सोनिया के छोड़े सुसाइड नोट से साफ भी हुई, जिस में उस ने उमंग की तरफ इशारा करते हुए लिखा कि तुम्हारा गुस्सा बहुत तेज है… अब बरदाश्त नहीं होता… मैं तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती थी, लेकिन…

यही लेकिन सारे फसाद की जड़ है, जिस का कोई हल नहीं. सोनिया ने ग्रिल पर लटक कर जान दे दी. हादसे के एक दिन पहले वह रात का खाना खा कर इतमीनान से सोई थी, ऐसा नौकरानी गायत्री का कहना है, लेकिन हकीकत में वह सोई नहीं थी, बल्कि सुसाइड नोट लिख रही थी.

जाहिर है कि इस दौरान सोनिया ने यह भी सोचा होगा कि क्यों वह उमंग समेत पहले 2 पतियों की नहीं हो पाई या क्यों इन में से कोई उस का नहीं हो पाया. फिर उस ने ग्रिल पर कपड़ा बांधा और फंदा लगा लिया.

सुसाइड नोट में उस ने अपने बेटे आर्यन को लिखा, ‘मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाई. आई लव यू’… जाहिर है कि वह आर्यन को बहुत चाहती थी.

सुबह 11 बजे तक जब सोनिया का कमरा नहीं खुला, तो यह बात गायत्री ने गणेश को और गणेश ने फोन पर उमंग को बताई, जो 4 दिन पहले ही अपने विधानसभा क्षेत्र गंधवानी में कोरोना पीडि़तों की सुध लेने गए थे.

उमंग ने भोपाल में अपनी जानपहचान वालों को माजरा देखने के लिए कहा, तब पता चला कि सोनिया ने खुदकुशी कर ली है.

हंगामा बढ़ा था

47 साला उमंग सिंघार मध्य प्रदेश की राजनीति में कोई मामूली नाम नहीं हैं. लिहाजा, उम्मीद के मुताबिक हंगामा मचा.

कुछ साल पहले तक उमंग की पहचान अपनी बूआ जमुना देवी की वजह से हुआ करती थी, जो आदिवासी समुदाय की धाकड़ कांग्रेसी नेता हुआ करती थीं. वे प्रदेश की उपमुख्यमंत्री भी रही थीं और कांग्रेस आलाकमान ने विधानसभा में उन्हें विपक्ष का नेता भी बनाया था.

शायद यही बात थी, जिस के चलते मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह से उन का छत्तीस का आंकड़ा था. जमुना देवी उन इनेगिने कांग्रेसी नेताओं में से एक थीं, जिन्होंने कभी दिग्विजय सिंह की बादशाहत के आगे सिर नहीं ?ाकाया.

उन की मौत के बाद उमंग ने भी सिर नहीं ?ाकाया, उलटे वे एक कदम आगे चलते हुए दिग्विजय सिंह से पंगा लेने में भी नहीं हिचकिचाए.

जमुना देवी की मौत के बाद उमंग ने अपने दम पर सियासत शुरू की और कामयाब भी रहे. उन्हें अपनी ताकत का एहसास था कि निमाड़ के आदिवासी उन के साथ हैं और कांग्रेस उन की मुहताज है. इसी वजह और युवा होने के चलते उमंग को राहुल गांधी की नजदीकियां भी हासिल थीं.

उमंग की काबिलीयत को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें ?ारखंड विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी थी, जिस में वे खरे भी उतरे थे.

मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन ने रांची में एक इंटरव्यू के दौरान इस प्रतिनिधि से उमंग की तारीफ की थी और दूसरे दिग्गज कांग्रेसियों ने भी कांग्रेस ?ामुमो के गठबंधन की जीत में उन के रोल को असरदार बताया था.

पिछले साल मार्च के महीने में ही जब ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने  22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे, तब उमंग के भी उन के साथ जाने की चर्चा थी, लेकिन उन के ऐसा न करने की वजह भी है.

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छोड़ेगी नहीं भाजपा

वजह यह है कि उमंग सिंघार हिंदुत्व के कट्टर विरोधी हैं और आदिवासियों को हिंदू नहीं मानते. कुछ दिन पहले तो उन्होंने आदिवासी इलाकों में रामलीला होने का भी विरोध किया था. इस पर भाजपा बुरी तरह भड़की थी, पर उमंग की सेहत पर इस का कोई असर नहीं हुआ था.

अब सोनिया की खुदकुशी के बाद भाजपा नेताओं को मौका मिल गया है. मंत्री रह चुकी रंजना बघेल कहती हैं कि उमंग की पहले से ही 2 पत्नियां हैं और पहले भी वे कई औरतों का शोषण कर चुके हैं. लिहाजा, उन के खिलाफ कड़ी जांच और कार्यवाही होनी चाहिए.

गौरतलब है कि उमंग की पहली शादी विनीता सिंघार से हुई थी, जिस से उन्हें 2 बच्चे भी हैं. इन तीनों के बारे में कोई खास कुछ नहीं जानता.

शाहपुरा पुलिस ने उमंग के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने वाली आईपीसी की धारा 306 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू भी कर दी है. हैरानी नहीं होनी चाहिए, अगर जल्द ही उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया जाए.

17 मई को जब सोनिया का अंतिम संस्कार उस की मां की मौजूदगी में बेटे आर्यन ने किया, तो उमंग भी श्मशान घाट में मौजूद थे और सोनिया के परिवार वालों को गले लगा कर उन का दुख बांट रहे थे.

यह एक तरह का डर भी था कि कहीं ये लोग ऐसा कोई बयान न दे दें, जो उन्हें और फंसा दे. खुद उन के नौकरों और आर्यन ने अपने बयान में पुलिस को बताया कि उन दोनों में नोक?ांक होती रहती थी, लेकिन खुदकुशी की वजह क्या है, यह उन्हें नहीं मालूम.

उमंग ने माना कि वे सोनिया से शादी करने वाले थे. वह उन की अच्छी दोस्त थी, लेकिन उस की खुदकुशी पर उन्हें हैरानी हो रही है.

यह ठीक है कि सोनिया ने अपनी खुदकुशी का जिम्मेदार उमंग को नहीं ठहराया है, लेकिन इस से वे बच नहीं सकते कि वह चिट्ठी में उन्हीं का जिक्र कर रही थी.

बेमेल इश्क से बचें

अब भले ही उमंग सिंघार यह कहते रहें कि पुलिस सोनिया के घर वालों के बारबार बयान ले कर उन्हें परेशान कर रही है, लेकिन हकीकत सामने है कि दोनों ने अपनीअपनी जरूरतें एकदूसरे से पूरी कीं और फिर चाह कर भी सीधेसीधे अलग नहीं हो पाए.

आएदिन के ऐसे हादसे बताते हैं  कि बेमेल इश्क का अंजाम आमतौर  पर अच्छा नहीं होता, इसलिए बहुत सोचसम कर कदम उठाना चाहिए और शादी का फैसला और वादा तभी करना चाहिए, जब इसे निभा सकें.

प्रेमिका अपने प्रेमी से सिक्योरिटी और पैसों समेत हर तरह की बेफिक्री चाहती है, तो प्रेमी को उस के एवज में सैक्स सुख और भावनात्मक सहारा चाहिए रहता है. दोनों ही हर्ज की बात नहीं, बशर्ते यह सौदा न हो कर वाकई प्यार के तहत हो.

Satyakatha: दो नावों की सवारी- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

राहुल अस्के और नवीन अस्के ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था. इंदौर पुलिस दोनों आरोपितों को जबलपुर से ले कर इंदौर पहुंची. यहां पुलिस ने रामदुलारी अपार्टमेंट में दबिश दे कर जितेंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

खैर, पूजा अस्के उर्फ जाह्नवी हत्याकांड में तीनों आरोपियों जितेंद्र अस्के, जितेंद्र के भाई राहुल अस्के और नवीन अस्के को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था.

तीनों आरोपियों से की गई गहन पूछताछ में पूजा हत्याकांड की कहानी ऐसे सामने आई—

35 वर्षीय जितेंद्र अस्के मूलरूप से जबलपुर के धार इलाके का रहने वाला था. मांबाप के अलावा उस के परिवार में एक भाई और एक बहन थी. इन में जितेंद्र सब से बड़ा था. बचपन से ही उसे पुलिस की नौकरी अच्छी लगती थी. बड़ा हो कर वह फौज में भरती होना चाहता था.

जितेंद्र को पता था कि फौज में भरती होने के लिए मजबूत और कसरती बदन का होना जरूरी है. अपने धुन का पक्का जितेंद्र पुलिस में भरती होने के लिए अपने खानपान और शरीर पर विशेष ध्यान देता था और उस ने खुद को पुलिस में भरती होने वाला मजबूत और गठीला जिस्म बना लिया था. आखिरकार वह मध्य प्रदेश पुलिस में भरती हो गया. वर्तमान में वह कंपनी कमांडर था.

जितेंद्र एक बड़ा पुलिस अफसर बन गया था. उस की शादी के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे. घर वालों ने धार के रिश्ते को अपनी मंजूरी दे अन्नू के संग रिश्ता जोड़ कर उस की गृहस्थी बसा दी थी. पढ़ीलिखी, गुणी और संस्कारी अन्नू को पत्नी के रूप में पा कर वह बेहद खुश था.

जितेंद्र और अन्नू की गृहस्थी बड़े मजे और खुशहाली से कट रही थी. उस के घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. मजे से दोनों के दिन कट रहे थे. समय से 2 बच्चे भी पैदा हुए. बच्चों की किलकारियों से जितेंद्र के आंगन का कोनाकोना महक उठा था.

इसी बीच जितेंद्र अस्के ट्रांसफर हो कर इंदौर आ गया था. मांबाप के साथ पत्नी और बच्चे धार में ही रहते थे. इंदौर के आनंद बाजार में किराए का एक कमरा ले कर वह रहने लगा था. घर से ड्यूटी और ड्यूटी से घर, यही उस की दिनचर्या थी. वह कभीकभार आनंद बाजार जाता था.

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एक दिन की बात है. जितेंद्र आनंद बाजार कुछ खरीदारी के लिए आया था. जिस दुकान से वह अपने लिए सामान खरीद रहा था, उसी के बगल में एक बेहद खूबसूरत युवती खड़ी सामान खरीद रही थी. अनजाने में उस युवती की कलाई कंपनी कमांडर जितेंद्र के हाथ से छू गई थी. उस युवती की कलाई के स्पर्श से जितेंद्र के जिस्म में अजीब सी लहर दौड़ गई थी.

उस के बाद जितेंद्र ने पलट कर उस युवती की ओर देखा. गोरी रंगत वाली उस युवती कोे देख वह उस पर मुग्ध सा हो गया था. पलभर के लिए उस की नजरें उस के सुंदर चेहरे पर जा टिकी थीं. अपलक उसे देखते युवती भी मुसकरा पड़ी. सामान ले कर वह युवती वहां से चली गई. जितेंद्र उसे तब तक निहारता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

बाद में जितेंद्र ने अपने स्तर से पता लगा ही लिया कि उस युवती का नाम पूजा उर्फ जाह्नवी है और वह इसी आनंद बाजार मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहती थी. यह घटना से करीब 3 साल पहले की बात थी.

खैर, उस दिन के बाद एक दिन बाजार में फिर से पूजा से उस की मुलाकात हो गई. इस के बाद तो अकसर दोनों की मुलाकात बाजार में हो जाया करती थी. धीरेधीरे यह मुलाकात दोस्ती के जरिए प्यार में बदल गई. कंपनी कमांडर जितेंद्र अस्के और पूजा प्यार की डोर में बंध गए थे. पुलिस अफसर जितेंद्र के मन में इश्क की ऐसी लगन लगी थी कि उस का तन और मन धधक रहा था.

बाद में वे दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे. पूजा को उस ने अपने आनंद बाजार वाले किराए के कमरे में रखा था. उस ने अपनी शादीशुदा जिंदगी को पूजा से छिपा लिया था. जितेंद्र ने खुद को कुंवारा बताया था.

जितेंद्र के कुंवारा होने से पूजा के घर वाले बेहद खुश थे कि उस की लाडली बेटी ने अपने लिए कितना बढि़या वर चुना है.

पूजा के घर वाले बेटी के ऐसे लिवइन रिलेशन के रिश्ते से खुश नहीं थे. वे चाहते थे कि दोनों शादी कर के रहें, जिस से कोई उन की बेटी के चरित्र पर अंगुली न उठाए. पूजा के घर वालों के दबाव से जितेंद्र कोर्ट मैरिज करने के लिए तैयार नहीं हुआ, अलबत्ता मंदिर में जा कर उस ने पूजा से विवाह कर लिया और उसे साथ ले कर रहने लगा.

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जितेंद्र कानून का जानकार था. वह जानता था कि अगर पूजा को उस की पहली शादी वाली बात पता चल गई तो कोर्ट मैरिज सर्टिफिकेट को आधार बना कर वह उस के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है, इसीलिए उस ने रजिस्टर्ड विवाह के बजाय मंदिर में शादी की थी, ताकि इस मैरिज का उस के पास कोई सबूत न बचे.

पूजा से शादी रचाने के बाद जितेंद्र ने आनंद बाजार वाला किराए का कमरा छोड़ दिया. उस ने मल्हारगंज इलाके के रामदुलारी अपार्टमेंट में 3 कमरों वाला फ्लैट किराए पर ले लिया और ठाठ से वहां पूजा के साथ रहने लगा था.

अगले भाग में पढ़ें- जितेंद्र ने दिया पूज को धोखा

Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

बालकराम के घर आतेजाते संतराम कब सुशीला की तरफ आकर्षित हो गया, उसे पता ही नहीं चला. बात तब बढ़नी शुरू हुई, जब सुशीला ने उस के कुंआरेपन को ले कर 1-2 बार ऐसे मजाक कर डाले जो एक औरत की मर्यादा से बाहर के थे.

जाहिर है जब सुशीला खुली तो संतराम ने उसी खुलेपन से उस के साथ हंसीमजाक शुरू कर दिया. इस दौरान दोनों एकदूसरे की तरफ इस कदर आकर्षित हो गए कि बालकराम की गैरमौजूदगी में भी संतराम उस के घर आनेजाने लगा और सुशीला के साथ उस के नाजायज संबध बन गए.

गांवदेहात में ऐसी बातें किसी से छिपती नहीं हैं. लिहाजा जल्द ही गांव में दोनों के संबधों की चर्चा चौपाल तक पर होने लगी. बालकराम को इस की भनक लगी तो उस ने सुशीला के साथ मारपीट की और संतराम का अपने घर आनाजाना बंद करा दिया.

कहते हैं कुंआरे इंसान को एक बार औरत के शरीर की गंध लग जाए तो फिर वह बहुत दिनों तक उस का स्वाद चखे बिना रह नहीं पाता. संतराम ने अब चोरीछिपे सुशीला से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. लेकिन यह बात भी जल्द ही बालकराम को पता चल गई. इस के बाद तो उस के घर में आए दिन का क्लेश रहने लगा.

सुशीला चंचल स्वभाव ही नहीं, जिस्मानी रूप से एक मर्द से खुश रहने वाली औरत नहीं थी. 5 बच्चे पैदा करने के बाद उस ने ख्वाहिशों की उड़ान भरनी नहीं छोड़ी.

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संतराम भी अब उस के प्यार में बुरी तरह पागल हो चुका था. लिहाजा सुशीला व संतराम ने फैसला किया कि वह बालकराम को छोड़ कर बच्चों को ले कर संतराम के साथ शाहजहांपुर से चली जाएगी.

आए दिन के झगड़ों से तंग आ कर जब बालकराम ने सुशीला से इस झगड़े के समाधान का उपाय पूछा तो सुशीला ने साफ कह दिया कि अब वह संतराम के साथ रहना चाहती है. लिहाजा यह तय हुआ कि बालकराम का बड़ा बेटा उसी के पास रहेगा जबकि बाकी के 4 बच्चों को ले कर सुशीला गांव से संतराम के साथ चली जाएगी.

यह बात करीब 18 साल पहले की है. संतराम सुशीला व उस के 4 बच्चों को ले कर नोएडा आ गया. यहां आ कर उस ने राजमिस्त्री का काम शुरू कर दिया. संयोग से यहां उसे अच्छी आमदनी होने लगी. कुछ साल बाद उस ने सुशीला की बड़ी बेटी मंजू की शादी कर दी. जिस की उम्र इस वक्त करीब 32 साल है और वह 2 बच्चों की मां है.

बाद में संतराम ने सुशीला के बड़े बेटे राजू की भी शादी कर दी, जो शादी के बाद अपनी पत्नी व छोटे बहनभाई के साथ गाजियाबाद में रहने लगा. राजू भी राजमिस्त्री  का काम करता है. पिछले 5 साल से संतराम सुशीला के साथ ककराला गांव में किराए का मकान ले कर रहता था. अब वह राजमिस्त्री के काम के साथ मकानों को बनाने के लिए छोटेमोटे ठेके भी लेने लगा था.

संतराम व सुशीला की कुंडली खंगालने के बाद पुलिस को अब तक जो जानकारी मिली थी, उस से यह बात तो साफ थी कि सुशीला एक चंचल स्वभाव की महिला थी, जिस के चरित्र पर भरोसा नहीं किया जा सकता था. वैसे भी पहले ही दिन से पुलिस की नजर में वह संदिग्ध थी.

गांव में सक्रिय मुखबिरों के जरिए 2 अहम जानकारी जांच अधिकारी उपाध्याय को लगीं. पहली यह कि संतराम के पड़ोस में रहने वाला मनोज, जो अपने भाई आकाश व राजेश के साथ किराए पर रहता था, संतराम की हत्या के अगले ही दिन अपना कमरा छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चला गया. वह कहां है, इस का किसी को कुछ नहीं पता.

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दूसरे यह कि मनोज का संतराम के घर जरूरत से ज्यादा आनाजाना था. उस के घर में आने को ले कर अकसर सुशीला व संतराम के बीच झगड़ा होता था. कई बार संतराम ने सुशीला के साथ मारपीट भी की थी.

दोनों ही जानकारियां बेहद काम की थीं. पुलिस ने सुशीला के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर जब उस की पड़ताल की तो उस में एक ऐसा नंबर था, जिस पर सब से अधिक काल होती थी. उस नंबर को खंगाला गया तो पता चला कि वह मनोज का नंबर है. पुलिस ने उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

सर्विलांस की मदद से आखिरकार 27 मई, 2021 को पुलिस टीम ने दादरी कट के पास छापा मार कर मनोज, उस के भाई आकाश व उस के रिश्तेदार राजेश को हिरासत में ले लिया. वे तीनों शहर छोड़ कर भागने की तैयारी कर रहे थे. दादरी कट के पास उन्होंने किराए की एक कार मंगाई थी, लेकिन कार के आने से पहले ही पुलिस ने उन्हें दबोच लिया.

थाने ला कर जब पुलिसिया अंदाज में मनोज से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया. मनोज कोई शातिर अपराधी तो था नहीं, इसलिए थोड़ी सख्ती के बाद ही उस ने संतराम की हत्या का गुनाह कबूल कर लिया और हत्याकांड की पूरी कहानी सुनाता चला गया.

मनोज मूलरूप से गुलाबगंज गनपाई थाना कादरचौक, जिला बदायूं, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. 23 साल का मनोज अपने छोटे भाई आकाश व मौसेरे भाई राजेश के साथ पिछले 2 साल से गौतमबुद्ध नगर के ककराला गांव में रहता था.

अगले भाग में पढ़ें- क्या मनोज ने हत्याकांड की जानकारी दी?

Manohar Kahaniya: पूर्व उपमुख्यमंत्री के घर हुआ खूनी तांडव, रास न आई दौलत- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

ऐसे में कांग्रेस के इस खेमे से हरीश कंवर की दूरी बनती चली गई और हरीश कंवर खुल कर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रहे अजीत कुमार जोगी के स्थानीय झंडाबरदार बन गए. दूसरे खेमे ने हरीश कंवर को तवज्जो देनी बंद कर दी. आगे चल कर जब अजीत जोगी ने ‘जनता कांग्रेस जोगी’ पार्टी का गठन किया तो हरीश कंवर इस पार्टी में ग्रामीण अध्यक्ष, कोरबा बन कर शामिल हो गए और क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने लगे.

पूरे परिवार की धमक थी राजनीति में

दूसरी तरफ प्यारेलाल कंवर के अनुज श्यामलाल कंवर जो पुलिस में डीएसपी पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे, वह कांग्रेस नेता डा. चरणदास महंत के क्षेत्रीय खेमे से जुड़ गए थे. इस तरह परिवार में भी खेमेबाजी सामने आ चुकी थी.

श्यामलाल कंवर सन 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से विधायक निर्वाचित हुए थे. इधर हरीश कंवर अजीत जोगी के पक्ष में चले गए और उन्होंने उन का झंडा थाम लिया था.

सन 2018 के विधानसभा चुनाव में श्यामलाल कंवर को फिर विधानसभा का प्रत्याशी कांग्रेस पार्टी ने बनाया. दूसरी तरफ अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने भी अपना प्रत्याशी फूल सिंह राठिया को खड़ा कर दिया. कांग्रेस के इस झंझावात में श्यामलाल कंवर चारों खाने चित हो गए और तीसरे नंबर में आ कर ठहर गए.

प्यारेलाल कंवर का परिवार राजनीति से अब दूर हो चुका था और सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा था. अजीत कुमार जोगी की पार्टी के धराशाई होने के बाद हरीश कंवर राजनीति के हाशिए पर आ गए थे और अपने गांव भैंसमा में उन्होंने खाद, बीज की एक दुकान खोल ली थी.

मूलरूप से काश्तकार परिवार प्यारेलाल कंवर के वंशज अपना जीवनयापन शांतिपूर्वक कर रहे थे. इसी बीच भैंसमा में एक ऐसा नृशंस हत्याकांड हुआ, जिसे कोरबा के इतिहास में कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा.

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धनकंवर को थी धन की लालसा

दरअसल, हरभजन कंवर की पत्नी धनकंवर ने जब सुना कि हरीश कंवर ने पैतृक संपत्ति पर लगभग अपना कब्जा स्थापित कर लिया है तो उस ने पति हरभजन के कान भरने शुरू कर दिए.

एक दिन वह मौका देख कर बोली, ‘‘ऐसे कैसे चलेगा, तुम क्या सब कुछ छोटे (हरीश) को दे दोगे, क्या हमारा उस पर कोई हक नहीं है.’’

हरभजन ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हें किस बात की कमी है, मैं तो किसान हूं. हमें चाहिए क्या, 2 वक्त की रोटी मिल ही जाती है. हमारे 2 बेटे हैं, फिर हमें क्या चिंता है.’’

पत्नी ने यह सुन कर कहा, ‘‘आप बहुत भोलेभाले हो. भोपाल की, यहां की करोड़ों रुपए की संपत्ति क्या अकेले हरीश की हो जाएगी, हमारा भी तो उस पर अधिकार है.’’

हरभजन ने समझाया, ‘‘अभी संपत्ति का कोई बंटवारा तो पिताजी ने किया नहीं था, सब कुछ हरीश की देखरेख में है, कहां कुछ कोई ले जाएगा.’’

पत्नी धनकंवर तड़प कर बोली, ‘‘ सचमुच आप बहुत ही भोले हो. वह सारी धान की  पैदावार को भी बेच देता है. लाखों रुपए का बोनस अपनी तिजोरी में भर रहा है और तुम भोलेभंडारी बन कर बैठे रहो. एक दिन हम लोगों को यह हरीश धक्के मार के घर से भी निकाल देगा, तब तुम पछताओगे.’’

यह सुन कर हरभजन ने नाराज होते हुए कहा, ‘‘तो मैं क्या करूं, तुम ही बताओ, हम ने उसे गोद में खिलाया है, मेरा सगा भाई है वह. उसे मैं क्या बोलूं और कैसे बोलूं.’’

पत्नी धनकुंवर ने कहा, ‘‘पैसों और जमीन जायजाद के मामले में मैं ने देखा है कि कोई किसी का नहीं होता, बड़े भैया के निधन के बाद क्या उन के परिवार वालों को मानसम्मान की जिंदगी मिल रही है? तुम खुद देखो हरीश सिर्फ अपने बीवीबच्चों की खुशी में ही लगा रहता है.

अगर उसे अपने भाई के परिवार के प्रति जरा भी संवेदना होती तो क्या उस के परिवार की हालत इतनी खराब होती? अभी भी समय है बंटवारा कर लो…’’

‘‘मैं क्या छोटे को बंटवारे के बारे में कहूंगा. उस का रंगढंग तो तुम जानती ही हो, वह किसी की बात कहां सुनता है और सुन कर दूसरे कान से निकाल देता है.’’ हरभजन कंवर ने कहा.

‘‘मगर यह कैसे चल सकता है, मैं यह सब बरदाश्त नहीं कर सकती,’’ उफनती नदी की धारा की तरह कहती धनकुंवर अपने रोजाना के कामकाज में लग गई.

इधर रोजरोज के वादविवाद से त्रस्त  अंतत: हरभजन कंवर ने हथियार डाल दिए और कहा, ‘‘ठीक है, तुम्हें जैसा अच्छा लगे बताओ.’’

धनकंवर ने अपने भाई परमेश्वर कंवर, जोकि पास ही के गांव फत्तेगंज में रहता था और अकसर भैंसमा आया करता था, से धीरेधीरे बातचीत कर के उसे अपने मन मुताबिक बना लिया.

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भाई के साथ रची साजिश

धनकंवर ने एक दिन उस से कहा, ‘‘भाई, तुम बहन की कोई मदद नहीं कर रहे, ऐसा भाई भी किस काम का.’’

इस पर परमेश्वर ने कहा, ‘‘बहन आखिर तुम क्या चाहती हो, मुझे बताओ.’’

परमेश्वर की जानकारी में जमीनजायदाद का विवाद पहले ही आ चुका था. उसे लगता था कि जरूर यही कोई बात होगी जो बहन कहने वाली है.

…और हुआ भी यही. बहन धनकुंवर ने कहा, ‘‘छोटे (हरीश) ने सारी संपत्ति पर अधिकार जमा लिया है. क्या कुछ ऐसा करें कि बात बन जाए. तुम कोई ऐसा वकील देखो, जो हमें न्याय दिला सके.’’

परमेश्वर ने कहा, ‘‘वकील और कोर्ट कचहरी के चक्कर में तो न जाने कितना समय लग जाएगा. क्यों न हम…’’ कह कर परमेश्वर चुप हो गया. बहन धनकंवर ने परमेश्वर के मौन होने पर कहा, ‘‘चुप क्यों हो गए? क्या कहना चाहते हो?’’

अगले भाग में पढ़ें- बेरहमी से किए 3 कत्ल

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