Family Story: आफत – सासू मां के आने से क्यों दुखी हो गई रितु?

Family Story, Writer- Neha Chachra

औफिस से घर पहुंचते ही मैं ने छेड़ने वाले अंदाज में रितु से कहा, ‘‘हम 2 से 3 होने जा रहे हैं, मैडम.’’

रितु फौरन मेरे गले में बांहों का हार डाल कर बोली, ‘‘ओह, सुमित, मेरी खुशियों को ध्यान में रखते हुए आखिरकार तुम ने उचित फैसला कर ही लिया न. मैं अभी सारी गर्भनिरोधक गोलियां कूड़े की टोकरी के हवाले करती हूं.’’

‘‘इतनी जल्दी भी न करो, स्वीटहार्ट,’’

मैं ने उस का हाथ पकड़ कर उसे शयनकक्ष में जाने से रोका, ‘‘हम 2 से 3 होने जा रहे हैं, क्योंकि तुम्हारी मम्मी कुछ दिनों के लिए हमारे पास रहने…’’

‘‘ओह नो…’’ रितु ने जोर से अपने माथे पर हाथ मारा.

‘‘अरे, वे तुम्हारी सगी मम्मी हैं, कोई सौतेली मां नहीं… उन के आने की खबर सुन कर जरा मुसकराओ, यार,’’ मैं ने उसे छेड़ना चालू रखा.

मुझे तो उन के आने की खबर ने खुश कर दिया है, यार

‘‘मेरी सगी मां किसी सौतेली मां से ज्यादा बड़ी आफत लगती हैं मुझे, यह तुम अच्छी तरह जानते हो न. उन का आना टालने के लिए कोई बहाना बना देते तो क्या बिगड़ जाता तुम्हारा?’’ यों शिकायत करते हुए वह मुझ से झगड़ने को तैयार हो गई.

‘‘अरे, मैं क्यों कोई झूठा बहाना बनाता? मुझे तो उन के आने की खबर ने खुश कर दिया है, यार.’’

‘‘मुझे पता है कि जब वे मेरी खटिया खड़ी करेंगी तो तुम्हें खुशी ही होगी. मेरी तबीयत वैसे ही ढीली चल रही है और अब ऊपर से नगर निगम की चेयरमैन मेरे घर में पधार रही हैं,’’ वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई.

‘‘अब ज्यादा नाटक मत करो और एक कप गरमगरम चाय पिला दो.’’

मैं ने हंसते हुए उसे बाजू से पकड़ कर उठाना चाहा तो उस ने मेरा हाथ जोर से झटका और तुनक कर बोली, ‘‘अब अपनी लाड़ली सासूमां के हाथ की बनी चाय ही पीना.’’

‘‘तुम गुस्से में बहुत प्यारी लगती हो,’’ मैं ने आंखें मटकाते हुए उस की तारीफ की तो वह मुंह बनाती हुई रसोई में मेरे लिए चाय बनाने चली गई.

मेरी सासूमां स्कूल टीचर हैं. पिछली गरमियों की छुट्टियों में वे हमारे पास 2 सप्ताह रह कर गई थीं. अब दशहरे की छुट्टियों में उन्होंने फिर से आने का कार्यक्रम बनाया है. मेरे मातापिता नहीं रहे हैं, इसलिए मुझे उन का आना अच्छा लगता है, लेकिन रितु की हालत पतली हो रही है.

‘‘मैं शादीशुदा हूं, पराए घर आ गई हूं पर अभी भी मम्मी के सामने पड़ते ही मन अजीब सा डर व घबराहट का शिकार हो जाता है. कोई गलती नहीं की है, लेकिन ऐसा लगता है कि किसी गलत काम को करने के बाद प्रिंसिपल के सामने पेशी हो रही है. मेरी इस दशा का फायदा उठा कर ही वे मुझ पर हिटलरी अंदाज में हुक्म चला लेती हैं,’’ रितु ने पिछली बार अपनी मम्मी के आने के अपने मनोभावों से मुझे  अवगत कराया.

मेरी सासूमां अनोखे व्यक्तित्व की मालकिन हैं. घर में अधिकतर जीन्स व टौप पहनती  हैं. नियम से ऐरोबिक्स करने की शौकीन हैं और पार्क में कभी भी घूमने जाने के लिए तैयार रहती हैं. उन्हें घर में गंदगी बिलकुल बरदाश्त नहीं. आलसी व लापरवाह इंसान उन्हें दुश्मन नजर आते हैं.

पिछली बार सासूमां आई थीं तो रितु को खूब खींच कर गई थीं. रितु आरामपसंद इंसान है पर अपनी मां के सामने डट कर काम करने को बेचारी मजबूर हो गई थी. उसे मेरी सासूमां ने शनिवारइतवार की छुट्टियों में 1 मिनट भी आराम नहीं करने दिया था.

वे सारे घर का कायापलट करा गई थीं. परदे, सोफे के कवर, चादरें, पंखे, खिड़कियां आदि सब की साफसफाई हुई थी. घर का फर्श सारे समय जगमगाता रहा था. रसोई में हर चीज अपनी जगह पर मिलने लगी थी. धूलमिट्टी ढूंढ़ने पर भी घर में कहीं नजर नहीं आती थी.

यह तो रही घर में आए बदलाव की बात, इस के अलावा उन्होंने आते ही अपनी बेटी को तंदुरुस्त करने की भी मुहिम छेड़ दी थी.

रितु की सेहत सुधारने का बीड़ा भी सासूमां ने उठा लिया था

‘‘शादी के बाद अगर तेरा वजन इसी स्पीड से बढ़ता रहा तो तू एकदम बेडौल हो जाएगी, रितु. फिर अगर अमित ने नई गर्लफ्रैंड बना ली तो क्या करेगी? नो, नो, ऐसी लापरवाही बिलकुल नहीं चलेगी. आज से ही अपनी फिटनैस ठीक करने को कमर कस ले,’’ सासूमां की आंखों में सख्ती के ऐसे भाव मौजूद थे कि रितु चूं भी नहीं कर पाई थी.

घर के सफाई अभियान के साथसाथ रितु की सेहत सुधारने का बीड़ा भी सासूमां ने उठा लिया था. रातदिन बेचारी का पसीना बहता रहता था. ऊपर से खाने में से सारी तलीभुनी चीजें भी गायब हो गई थीं. सासूमां खड़ी हो कर अपनी बेटी से सिंपल व पौष्टिक खाना बनवाती थीं.

मैं बहुत खुश था, अपने घर व रितु में आए परिवर्तन को देख कर. सासूमां की प्रशंसा करते हुए मेरी जबान नहीं थकती थी. ऐसे मौकों पर अपनी मां की नजरें बचा कर रितु मुझे यों घूरती थी मानो कच्चा चबा जाएगी, पर अपनी मां के सामने उस बेचारी की मुझ से लड़ने की हिम्मत नहीं होती थी.

अगले दिन रविवार की सुबह सासूमां 9 बजे के करीब हमारे घर आ पहुंचीं. मैं प्रसन्न था जबकि रितु कुछ बुझीबुझी सी नजर आ रही थी.

‘‘तेरी शक्ल पर क्यों 12 बज रहे हैं, गुडि़या?’’ मुझे ढेर सारे आशीर्वाद देने के बाद उन्होंने पहले अपनी बेटी का ऊपर से नीचे तक मुआयना किया और फिर माथे पर बल डाल कर यह सवाल पूछा.

‘‘आप के सुपरविजन में अब इसे जो ढेर सारे घर के काम करने पड़ेंगे, उन के बारे में सोचसोच कर ही इस बेचारी की जान निकल रही है, मम्मी,’’ मैं मजा लेते हुए बोला.

‘‘नहीं, दामादजी, इस बार तो यह मुझे बहुत कमजोर और उदास लग रही है. क्या तुम मेरी बेटी का ठीक से खयाल नहीं रख रहे हो?’’ वे अचानक मुझ से नाखुश नजर आने लगीं तो मैं हड़बड़ा गया.

‘‘ऐसी बात नहीं है, मम्मी. इस की तलाभुना खाने की आदत इसे स्वस्थ नहीं रहने…’’ मुझे आधी बात बोल कर चुप होना पड़ा, क्योंकि उन्होंने मुझ पर से ध्यान हटा लिया था.

सासूमां ने अपनी बेटी का हाथ पकड़ा और कोमल स्वर में बोलीं, ‘‘अपने मन की हर चिंता को तू मुझे खुल कर बताना, गुडि़या. इन 10 दिन में मैं तेरे चेहरे पर भरपूर रौनक देखना चाहती हूं.’’

‘‘जब ये परदे, सोफे के कवर वगैरह धुल जाएंगे और…’’

‘‘लगता है कि इस बार मुझे घर के बजाय तेरे व्यक्तित्व को निखारने पर ध्यान देना पड़ेगा.’’

‘‘और व्यक्तित्व निखारने के लिए सुबहशाम घूमने जाने से बढि़या तरीका और क्या हो सकता है, मम्मी?’’

‘‘तू थकीथकी सी लग रही है, बेटी. मैं जब तक यहां हूं, तू खूब आराम कर. कुछ दिनों की छुट्टी जरूर ले लेना. हमें अपने मनोरंजन के पक्ष को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘इंसान जितना ज्यादा प्रकृति के साथ रहेगा, उतना ज्यादा स्वस्थ…’’

‘‘जब 2-4 फिल्में देखेंगे, खूब घूमेंगेफिरेंगे, कुछ मनपसंद शौपिंग करेंगे तो देखना, तेरे मन की सारी उदासी छूमंतर हो जाएगी, मेरी गुडि़या.’’

मेरे जोश के गुब्बारे की हवा सासूमां की बातें सुन कर निकलती चली गई तो मैं ने अपना राग अलापना बंद कर दिया. मेरी समझ में बिलकुल नहीं आ रहा था कि वे इस बार ऐसी अजीबोगरीब बातें रितु से क्यों कर रही हैं.

‘‘ओह, मम्मी, यू आर गे्रट,’’ रितु उछल कर अपनी मां के गले लग गई और साथ ही मुझे जीभ चिढ़ाना भी नहीं भूली.

मैं कुछ बुझाबुझा सा हो गया तो सासूमां ने हंस कर कहा, ‘‘दामादजी, चिंता मत करो. हमारे साथ मौजमस्ती करने तुम भी साथ चलोगे. मैं तुम्हें अपनी बेटी से ज्यादा पसंद करती हूं, कम नहीं. लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है जैसे इस बार तुम्हारे घर में मेरा मन नहीं लगेगा.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही हैं आप?’’ मैं ने औपचारिकतावश पूछा.

‘‘अब बिना नाती या नातिन के घर सूना सा लगता है.’’

‘‘मम्मी, अभी तो हमारी शादी को साल भर ही हुआ है. जब 3 साल बीत जाएंगे, तब आप की यह इच्छा भी पूरी हो जाएगी.’’

‘‘हां, मुझे मालूम है कि आजकल की पीढ़ी पहले खूब धन जोड़ना चाहती है, जी भर कर मौजमस्ती करना चाहती है. उन की प्राथमिकताओं की सूची में बड़ा मकान, महंगी कार और तगड़े बैंक बैलैंस के बाद बच्चे पैदा करने का नंबर आता है.’’

‘‘यू आर राइट, मम्मी. जिस बात को आप इतनी आसानी से समझ गईं, उसे मैं रितु को आज तक नहीं समझा पाया हूं.’’

‘‘मम्मी, मैं ने 28 साल की उम्र में शादी की है, 22-23 की उम्र में नहीं. मेरा कहना है कि अगर मैं जितनी ज्यादा बड़ी उम्र में मां बनूंगी, बच्चा स्वस्थ न पैदा होने की संभावना उतनी ज्यादा बढ़ जाएगी. शादी के 3 साल बाद बच्चा पैदा करना चाहिए, ऐसा कोई नियम थोड़े ही है. इंसान के अंदर समझदारी नाम की भी तो कोई चीज होती है,’’ मौका मिलते ही रितु भड़की और मेरे साथ बहस शुरू करने के मूड में आ गई.

‘‘मम्मी, इस मामले में आप इस की तरफदारी मत करना, प्लीज,’’ मैं ने नाराजगी भरे अंदाज में एक बार रितु को घूरा और फिर ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चला आया.

मैं घर में मुंह फुला कर घूम रहा हूं, इस बात की मांबेटी को कोई चिंता ही नहीं हुई. दोनों नाश्ता करने के बाद तैयार हुईं और घूमने निकल गईं. मुझ से 2-3 बार साथ चलने को कहा मगर मैं ने नाराजगी भरे अंदाज में इनकार किया तो दोनों ने खास जोर नहीं डाला था.

लंच के नाम पर मेरे लिए रितु ने आलू के परांठे बना दिए. वे दोनों 12 बजे के करीब घूमने निकलीं और रात को 8 बजे लौटी थीं. इन 8 घंटों में मेरा कितना खून फुंका होगा, इस का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है.

उन के घर में घुसते ही मैं ने 2 बातें नोट की थीं. पहली तो यह कि वे दोनों 7-8 लिफाफे पकड़े घर लौटी थीं और दूसरी यह कि दोनों के चेहरे जरूरत से ज्यादा दमक रहे थे.

कुछ ही देर में मुझे पता लग गया कि उन दोनों ने 8 हजार की खरीदारी एक दिन में कर ही डाली. रही बात चेहरों पर नजर आते नूर की तो खरीदारी करने से पहले दोनों ब्यूटीपार्लर गई थीं. कुल मिला कर 10 हजार का खर्चा मांबेटी ने 1 दिन में ही कर डाला था.

‘‘देखा, दामादजी, इस वक्त रितु कितनी खुश और स्वस्थ दिख रही है. 10 दिन में तो देखना, यह फिल्मी हीरोइनों को मात करने लगेगी,’’ सासूमां अपनी बेटी को प्रशंसा भरी नजरों से निहार रही थीं.

‘‘मम्मी, 10 दिन में 10 हजार रोज के हिसाब से 1 लाख खर्च कर के अगर इस ने फिल्मी हीरोइनों को मात कर भी दिया तो मैं इस की तारीफ करने के लिए जिंदा कहां रहूंगा? सदमे से मेरी जीवनलीला समाप्त हो चुकी होगी न,’’ मैं दुखी अंदाज में मुसकराया तो सासूमां ठहाका मार कर हंस पड़ीं.

‘‘कभीकभी बड़ा अच्छा मजाक करते हो, दामादजी. अच्छा, तुम दोनों बैठ कर गपशप करो. मैं बढि़या सा पुलाव बनाने रसोई में जाती हूं,’’ सासूमां रसोई में चली गईं.

मेरे कुछ कहने से पहले ही रितु ने तीखे लहजे में सफाई देनी शुरू कर दी, ‘‘मैं ने तो मम्मी को बहुत मना किया, पर वे तो कुछ भी सुनने का तैयार नहीं थीं. कह रही थीं कि खरीदारी करने के कारण वे आप को नाराज नहीं होने देंगी. अब आप को जो भी कहना हो, उन्हीं से कहना. मैं तो पहले ही कह रही थी कि इन के यहां आने के कार्यक्रम को कोई बहाना बना कर टाल दो. आप ही अपनी लाड़ली सासूमां को बुलाने का भूत सवार था, अब भुगतो.’’

आगे की बहस से बचने के लिए उठ कर वह शयनकक्ष की तरफ चल दी. मैं ने नाराज स्वर में उसे हिदायत दी, ‘‘अब आगे से एक पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मम्मी तो कह रही हैं कि मैं उन के साथ घूमनेफिरने के लिए औफिस से हफ्ते भर की छुट्टियां ले लूं. अब इस बाबत जो कहना हो, आप उन से कहो. आप को पता तो है कि उन के सामने मुंह खोलने की मेरी हिम्मत नहीं होती है,’’ अपनेआप को साफ बचाती हुई रितु मेरी आंखों से ओझल हो गई.

मैं रितु को औफिस से छुट्टियां लेने से नहीं रोक सका. वे दोनों अगले दिन भी शौपिंग करने गईं और इस बार सासूमां ने रितु को 40 हजार की सोने की चेन खरीदवा दी.

‘‘मम्मी, आप क्या इस बार मुझे कंगाल करने का कार्यक्रम बना कर यहां आई हैं?’’ मैं ने दोनों हाथों से सिर थाम कर उन से यह सवाल पूछा तो वे उदास सी हंसी हंस पड़ीं.

‘‘दामादजी, आज सोने की चेन तो सचमुच मैं ने जबरदस्ती रितु को खरीदवाई है. मन सुबह से बड़ा उचाट था. रात को नींद भी अच्छी नहीं आई थी. सच बात तो यह है कि मन की उदासी दूर करने के चक्कर में ही मैं ने 40 हजार खर्च किए हैं. मन लग ही नहीं रहा है इस बार तुम्हारे यहां. अगर खेलने के लिए कोई नातीनातिन होती…’’

‘‘मम्मी, आप फालतू के खर्च को बंद कर मुझे कंगाल होने से बचाइए और मैं आप से वादा करता हूं कि बहुत जल्द ही आप का कोई नातीनातिन घर में नजर आएगा.’’

मेरे मुंह से इन शब्दों का निकलना था कि मांबेटी दोनों ने पहले खुशी से उछलते हुए तालियां बजानी शुरू कर दीं, फिर सासूमां ने उठ कर मुझे छाती से लगा लिया और रितु मेरा हाथ उठा कर उसे बारबार चूमे जा रही थी.

‘‘थैंक यू, दामादजी,’’ खुशी के मारे सासूमां का गला भर आया, ‘‘मुझे तुम ने इतना खुश कर दिया है कि कल और आज का सारा खर्चा मेरे खाते में गया.’’

‘‘सच?’’ मेरे मन की सारी चिंता पल भर में खत्म हो गई.

‘‘तुम ने जो मुझे नानी बनाने का वादा किया है, वह सच है न?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो मैं भी सच बोल रही हूं, दामादजी. अब लगे हाथ जल्दी पापा बनने की पेशगी मुबारकबाद भी कबूल कर लो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ सासूमां को रहस्यमय अंदाज में मुसकराते देख मैं चौंक पड़ा.

‘‘जल्द ही इस घर में नन्हेमुन्हे किलकारियां जो गूंजने वाली हैं.’’

‘‘क्या मम्मी सच कह रही हैं?’’ मैं ने रितु से पूछा.

उस ने गरदन ऊपरनीचे हिला कर ‘हां’ कहा  और टैंशन भरी नजरों से मेरे चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘रितु तुम्हें यह खुशखबरी सुनाने से डर रही थी, दामादजी. यह बेवकूफ सोचती थी कि तुम 3 साल बाद बच्चा पैदा करने वाली अपनी जिद पर अड़ कर इस के ऊपर गर्भपात कराने के लिए दबाव डालोगे. तब इस की तसल्ली के लिए मुझे 50 हजार खर्च कर तुम्हारे मुंह से यह कहलवाना पड़ा कि तुम पापा बनने को तैयार हो. मेरे लिए तो यह बड़ा फायदेमंद सौदा रहा है. मैं बहुत खुश हूं, दामादजी,’’ सासूमां ने हम दोनों को इस बार एकसाथ गले लगा लिया.

मैं ने रितु की आंखों में प्यार से झांकते हुए भावुक लहजे में कहा, ‘‘रितु, मैं कंजूस

हूं. पैसे जोड़ने के लिए बहुत झिकझिक करता हूं, क्योंकि मातापिता के न रहने से

मेरा बचपन बहुत अभावों और दुखों से भरा हुआ था. असुरक्षा का एहसास मेरे मन में बहुत गहरे बैठा हुआ है और उसी के चलते मैं पहले अपनी आर्थिक जड़ें मजबूत कर लेना चाहता था. लेकिन मैं ऐसा पत्थरदिल इंसान नहीं हूं कि आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए तुम्हारी कोख में पल रहे अपने बच्चे को मारने का फैसला…’’

‘‘मैं ने आप को समझने में भारी भूल की है. मुझे माफ कर दीजिए, प्लीज,’’ मेरी आंखों में भर आए आंसुओं को देख रितु फफकफफक कर रोने लगी.

मेरे कुछ बोलने से पहले ही सासूमां शुरू हो गईं, ‘‘रितु, कल से घर की सफाई का काम शुरू हो जाएगा. सुमित, तुम परदे उतरवाने में मेरी हैल्प करना. कल से ही पार्क घूमने भी चला करेंगे हम सब. सेहत को ठीक रखना अब तो और ज्यादा जरूरी हो गया है तुम्हारे लिए, रितु. सिर्फ सप्ताह भर ही है मेरे पास और कितने सारे काम…’’

सासूमां अपनी पुरानी फौर्म में लौट आई हैं, यह देख कर रितु ने ऐसा मुंह बनाया मानो कोई बहुत कड़वी चीज मुंह में आ गई हो और फिर हम तीनों एकसाथ ठहाका मार कर हंसने लगे.

Family Story: अम्मां जैसा कोई नहीं

Family Story: अस्पताल के शांत वातावरण में वह न जाने कब तक सोती रहती, अगर नर्स की मधुर आवाज कानों में न गूंजती, ‘‘मैडमजी, ब्रश कर लो, चाय लाई हूं.’’

वह ब्रश करने को उठी तो उसे हलका सा चक्कर आ गया.

‘‘अरेअरे, मैडमजी, आप को बैड से उतरने की जरूरत नहीं. यहां बैठेबैठे ही ब्रश कर लीजिए.’’

साथ लाई ट्रौली खिसका कर नर्स ने उसे ब्रश कराया, तौलिए से मुंह पोंछा, बैड को पीछे से ऊपर किया. सहारे से बैठा कर चायबिस्कुट दिए. चाय पी कर वह पूरी तरह से चैतन्य हो गई. नर्स ने अखबार पकड़ाते हुए कहा, ‘‘किसी चीज की जरूरत हो तो बैड के साथ लगा बटन दबा दीजिएगा, मैं आ जाऊंगी.’’

50 वर्ष की उस की जिंदगी के ये सब से सुखद क्षण थे. इतने इतमीनान से सुबह की चाय पी कर अखबार पढ़ना उसे एक सपना सा लग रहा था. जब तक अखबार खत्म हुआ, नर्स नाश्ता व दूध ले कर हाजिर हो गई. साथ ही, वह कोई दवा भी खिला गई. उस के बाद वह फिर सो गई और तब उठी जब नर्स उसे खाना खाने के लिए जगाने आई. खाने में 2 सब्जियां, दाल, सलाद, दही, चावल, चपातियां और मिक्स फ्रूट्स थे. घर में तो दिन भर की भागदौड़ से थकने के बाद किसी तरह एक फुलका गले के नीचे उतरता था, लेकिन यहां वह सारा खाना बड़े इतमीनान से खा गई थी.

नर्स ने खिड़कियों के परदे खींच दिए थे. कमरे में अंधेरा हो गया था. एसी चल रहा था. निश्ंिचतता से लेटी वह सोच रही थी काश, सारी उम्र अस्पताल के इसी कमरे में गुजर जाए. कितनी शांति व सुकून है यहां. किंतु तभी चिंतित पति व असहाय अम्मां का चेहरा उस की आंखों के सामने घूमने लगा. उसे अपनी सोच पर ग्लानि होने लगी कि घर पर अम्मां बीमार हैं. 2 महीने से वे बिस्तर पर ही हैं.

2 दिन पहले तक तो वही उन्हें हर तरह से संभालती थी. पति निश्ंिचत भाव से अपना व्यवसाय संभाल रहे थे. अब न जाने घर की क्या हालत होगी. अम्मां उस के यानी अनु के अलावा किसी और की बात नहीं मानतीं.

किसी और से अम्मां अपना काम नहीं करवातीं

अम्मां चाय, दूध, जूस, नाश्ता, खाना सब उसी के हाथ से लेती थीं. किसी और से अम्मां अपना काम नहीं करवातीं. अम्मां की हलके हाथों से मालिश करना, उन्हें नहलानाधुलाना, उन के बाल बनाना सभी काम अनु ही करती थी. सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अम्मां के साथसाथ आनेजाने वाले रिश्तेदारों की सुबह से ले कर रात तक खातिरदारी भी उसे ही करनी पड़ती थी. उसे हाई ब्लडप्रैशर था.

अम्मां और रिश्तेदारों के बीच चक्करघिन्नी बनी आखिर वह एक रात अत्यधिक घबराहट व ब्लडप्रैशर की वजह से फोर्टिस अस्पताल में पहुंच गई थी. आननफानन उसे औक्सीजन लगाई गई. 2 दिन बाद ऐंजियोग्राफी भी की गई, लेकिन सब ठीक निकला. आर्टरीज में कोई ब्लौकेज नहीं था.

जब स्ट्रैचर पर डाल कर उसे ऐंजियोग्राफी के लिए ले जा रहे थे तब फीकी मुसकान लिए पति उस के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘चिंता मत करना आजकल तो ब्लौकेज का इलाज दवाओं से हो जाता है.’’

वह मुसकरा दी थी, ‘‘आप व्यर्थ ही चिंता करते हैं. मुझे कुछ नहीं है.’’

उस की मजबूत इच्छाशक्ति के पीछे अम्मां का बहुत बड़ा योगदान रहा है.

अम्मां के बारे में सोचते हुए वह पुरानी यादों में घिरने लगी थी. उस की मां तो उसे जन्म देते ही चल बसी थीं. भैया उस से 15 साल बड़े थे. लड़की की चाह में बड़ी उम्र में मां ने डाक्टर के मना करने के बाद भी बच्ची पैदा करने का जोखिम उठाया था और उस के पैदा होते ही वह चल बसी थीं. पिताजी ने अनु की वजह से तलाकशुदा युवती से पुन: विवाह किया था, लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनती गईं कि अंतत: नानानानी के घर ही उस का पालनपोषण हुआ था. भैया होस्टल में रह कर पलेबढ़े. सौतेली मां की वजह से पिता, भैया और वह एक ही परिवार के होते हुए भी 3 अलगअलग किनारे बन चुके थे.

वह 12वीं की परीक्षा दे रही थी कि तभी अचानक नानी गुजर गईं. नाना ने उसे अपने पास रखने में असमर्थता दिखा दी थी, ‘‘दामादजी, मैं अकेला अब अनु की देखभाल नहीं कर सकता. जवान बच्ची है, अब आप इसे अपने साथ ले जाओ. न चाहते हुए भी उसे पिता और दूसरी मां के साथ जाना पड़ा. दूसरी पत्नी से पिता की एक नकचढ़ी बेटी विभू हुई थी, जो उसे बहन के रूप में बिलकुल बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. घर में तनाव का वातावरण बना रहता था, जिस का हल नई मां ने उस की शादी के रूप में निकालना चाहा. वह अभी पढ़ना चाहती थी, मगर उस की मरजी कब चल पाई थी.

पिताजी ने चट मंगनी पट ब्याह किया

बचपन में जब पिता के साथ रहना चाहती थी, तब जबरन नानानानी के घर रहना पड़ा और जब वहां के वातावरण में रचबस गई तो अजनबी हो गए पिता के घर वापस आना पड़ा था. उन्हीं दिनों बड़ी बूआ की बेटी के विवाह में उसे भागदौड़ के साथ काम करते देख बूआ की देवरानी को अपने इकलौते बेटे दिनेश के लिए वह भा गई थी. अकेले में उन्होंने उस के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा तथा आश्वासन भी दिया कि वे उस की पढ़ाई जारी रखेंगी. पिताजी ने चट मंगनी पट ब्याह कर अपने सिर का बोझ उतार फेंका.

अनु की पसंदनापसंद का तो सवाल ही नहीं था. विवाह के समय छोटी बहन विभू जीजाजी के जूते छिपाने की जुगत में लगी थी, लेकिन जूते ननद ने पहले से ही एक थैली में डाल कर अपने पास रख लिए थे. मंडप में बैठी अम्मां यह सब देख मंदमंद मुसकरा रही थीं. तभी ननद के बच्चे ने कपड़े खराब कर दिए और वह जूतों की थैली अम्मां को पकड़ा कर उस के कपड़े बदलवाने चली गई. लौट कर आई तो अम्मां से थैली ले कर वह फिर मंडप में ही डटी रही.

विवाह संपन्न होने के बाद जब विभू ने जीजाजी से जूते छिपाई का नेग मांगा तो ननद झट से बोल पड़ी, ‘‘जूते तो हमारे पास हैं नेग किस बात का?’’

इसी के साथ उन्होंने थैली खोल कर झाड़ दी. लेकिन यह क्या, उस में तो जूतों की जगह चप्पलें थीं और वे भी अम्मां की. यह दृश्य देख कर ननद रानी भौचक्की रह गईं. उन्होंने शिकायती नजरों से अपनी अम्मां की ओर देखा, तो अम्मां ने शरारती मुसकान के साथ कंधे उचका दिए.

‘‘यह सब कैसे हुआ मुझे नहीं पता, लेकिन बेटा नेग तो अब देना ही पड़ेगा.’’

तब विभू ने इठलाते हुए जूते पेश किए और जीजाजी से नेग का लिफाफा लिया. इतनी प्यारी सास पा कर अनु के साथसाथ वहां उपस्थित सभी लोग भी हैरान हो उठे थे.

ससुराल पहुंचते ही अनु का जोरशोर से स्वागत हुआ, लेकिन उसी रात उस के ससुर को अस्थमा का दौरा पड़ा. उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा. रिश्तेदार फुसफुसाने लगे कि बहू के कदम पड़ते ही ससुर को अस्पताल में भरती होना पड़ा. अम्मां के कानों में जब ये शब्द पड़े तो उन्होंने दिलेरी से सब को समझा दिया कि इस बदलते मौसम में हमेशा ही बाबूजी को अस्थमा का दौरा पड़ जाता है. अकसर उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ता है. बहू के घर आने से इस का कोई सरोकार नहीं है. अम्मां की इस जवाबदेही पर अनु उन की कायल हो गई थी.

विवाह के 2 दिन बाद बाबूजी अस्पताल से ठीक हो कर घर आ गए थे और बहू से मीठा बनवाने की रस्म के तहत अनु ने खीर बनाई थी. खीर को ननद ने चखा तो एकदम चिल्ला दी, ‘‘यह क्या भाभी, आप तो खीर में मीठा डालना ही भूल गईं?’’

इस से पहले कि बात सभी रिश्तेदारों में फैलती, अम्मां ने खीर चखी और ननद को प्यार से झिड़कते हुए कहा, ‘‘बिट्टो, तुझे तो मीठा ज्यादा खाने की बीमारी हो गई है, खीर में तो बिलकुल सही मीठा डाला है.’’

ननद को बाहर भेज अम्मां ने तुरंत खीर में चीनी डाल कर उसे आंच पर चढ़ा दिया. सास के इस अपनेपन व समझदारी को देख कर अनु की आंखें नम हो आई थीं. किसी को कानोंकान खबर न हो पाई थी. अम्मां ने खीर की तारीफ में इतने पुल बांधे कि सभी रिश्तेदार भी अनु की तारीफ करने लगे थे.

विवाह को 2 माह ही बीते थे कि साथ रहने वाले पति के ताऊजी हृदयाघात से चल बसे. उन के अफसोस में शामिल होने आई मेरी मां फुसफुसा रही थीं, ‘‘इस के पैदा होते ही इस की मां चल बसी, यहां आते ही 2 माह में ताऊजी चल बसे. बड़ी अभागिन है ये.’’

तब अम्मां ने चंडी का सा रूप धर लिया था, ‘‘खबरदार समधनजी, मेरी बहू के लिए इस तरह की बातें कीं तो… आप पढ़ीलिखी हो कर किसी के जाने का दोष एक निर्दोष पर लगा रही हैं. भाई साहब (ताऊजी) हृदयरोग से पीडि़त थे, वे अपनी स्वाभाविक मौत मरे हैं. एक मां हो कर अपनी बेटी के लिए ऐसा कहना आप को शोभा नहीं देता.’’

दूसरी मां ने झगड़े की जो चिनगारी हमारे आंगन में गिरानी चाही थी, वह अम्मां की वजह से बारूद बन कर मांपिताजी के रिश्तों में फटी थी. पहली बार पिताजी ने मां को आड़े हाथों लिया था.

अम्मां के इसी तरह के स्पष्ट व निष्पक्ष विचार अनु के व्यक्तित्व का हिस्सा बनने लगे. ऐसी कई बातें थीं, जिन की वजह से अम्मां और उस का रिश्ता स्नेहप्रेम के अटूट बंधन में बंध गया. एक बहू को बेटी की तरह कालेज में भेज कर पढ़ाई कराना और क्याक्या नहीं किया उन्होंने. कभी लगा ही नहीं कि अम्मां ने उसे जन्म नहीं दिया या कि वे उस की सास हैं. एक के बाद दूसरी पोती होने पर भी अम्मां के चेहरे पर शिकन नहीं आई. धूमधाम से दोनों पोतियों के नामकरण किए व सभी नातेरिश्तेदारों को जबरन नेग दिए. बाद में दोनों बेटियां उच्च शिक्षा के लिए बाहर चली गई थीं. अम्मां हर सुखदुख में छाया की तरह अनु के साथ रहीं.

बाबूजी के गुजर जाने से अम्मां कुछ विचलित जरूर हुई थीं, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने को संभाल कर सब को खुश रहने की सलाह दे डाली थी. तब रिश्तेदार आपस में कह रहे थे, ‘‘अब अम्मां ज्यादा नहीं जिएंगी, हम ने देखा है, वृद्धावस्था में पतिपत्नी में से एक जना पहले चला जाए तो दूसरा ज्यादा दिन नहीं जी पाता.’’

सुन कर अनु सहम गई थी. लेकिन अम्मां ने दोनों पोतियों के साथ मिलजुल कर अपने घर में ही सुकून ढूंढ़ लिया था.

बाबूजी को गुजरे 10 साल बीत चुके थे. अम्मां बिलकुल स्वस्थ थीं. एक दिन गुसलखाने में नहातीं अम्मां का पैर फिसल गया और उन के पैरों में गहरे नील पड़ गए. जिंदगी में पहली बार अम्मां को इतना असहाय पाया था. दिन भर इधरउधर घूमने वाली अम्मां 24 घंटे बिस्तर पर लेटने को मजबूर हो गई थीं.

अम्मां को सांत्वना देती अनु ने कहा, ‘‘अम्मां चिंता मत करो, थोड़े दिनों में ठीक

हो जाओगी. यह शुक्र करो कि कोई हड्डी नहीं टूटी.’’

अम्मां ने सहमति में सिर हिला कर उसे सख्ती से कहा था, ‘‘बेटी, मेरी बीमारी की खबर कहीं मत करना, व्यर्थ ही दुनिया भर के रिश्तेदारों, मिलने वालों का आनाजाना शुरू हो जाएगा, तू खुद हाई ब्लडप्रैशर की मरीज है, सब को संभालना तेरे लिए मुश्किल हो जाएगा.’’

अम्मां की बात मान उस ने व दिनेश ने किसी रिश्तेदार को अम्मां के बारे में नहीं बताया. लेकिन एक दिन दूर के एक रिश्तेदार के घर आने पर उन के द्वारा बढ़ाचढ़ा कर अम्मां की बीमारी सभी जानकारों में ऐसी फैली कि आनेजाने वालों का तांता सा लग गया. फलस्वरूप, मेरा ध्यान अम्मां से ज्यादा रिश्तेदारों के चायनाश्ते व खाने पर जा अटका.

सभी बिना मांगी मुफ्त की रोग निवारण राय देते तो कभी अलगअलग डाक्टर से इलाज कराने के सुझाव देते. साथ ही, अम्मां के लिए नर्स रखने का सुझाव देते हुए कुछ जुमले उछालने लगे. मसलन, ‘‘अरी, तू क्यों मुसीबत मोल लेती है. किसी नर्स को इन की सेवा के लिए रख ले. तूने क्या जिंदगी भर का ठेका ले रखा है. फिर तेरा ब्लडप्रैशर इतना बढ़ा रहता है. अब इन की कितनी उम्र है, नर्स संभाल लेगी.’’

इधर अम्मां को भी न जाने क्या हो गया था. वे भी चिड़चिड़ी हो गई थीं. हर 5 मिनट में उसे आवाज दे दे कर बुलातीं. कभी कहतीं कि पंखा बंद कर दे, कभी कहतीं पंखा चला दे, कभी कहतीं पानी दे दे, कभी पौटी पर बैठाने की जिद करतीं. अकसर कहतीं कि मैं मर जाना चाहती हूं. अनु हैरान रह जाती.

रिश्तेदारों की खातिरदारी और अम्मां की बढ़ती जिद के बीच भागभाग कर वह परेशान हो गई थी. ब्लडप्रैशर इतना बढ़ गया कि उसे अस्पताल में भरती होना पड़ा.

3 दिन अस्पताल में रहने के बाद जब मैं घर आई तो देखा घर पर अम्मां की सेवा के लिए नर्स लगी हुई है. उस ने नर्स से पूछा, ‘‘अम्मां नाश्ताखाना आराम से खा रही हैं?’’

उस ने सहमति में सिर हिला दिया.

दोपहर को उस ने देखा कि अम्मां को परोसा गया खाना रसोई के डस्टबिन में पड़ा हुआ था.

नर्स से पूछा कि अम्मां ने खाना खा लिया है, तो उस ने स्वीकृति में सिर हिला दिया, यह देख कर वह परेशान हो उठी. इस का मतलब 3 दिन से अम्मां ने ढंग से खाना नहीं खाया है. नर्स को उस ने उस के कमरे में आराम करने भेज दिया और स्वयं अम्मां के पास चली गई.

अनु को देखते ही अम्मां की आंखों से आंसू बहने लगे. अवरुद्ध कंठ से वे बोलीं, ‘‘अनु बेटी, अगर मुझे नर्स के भरोसे छोड़ देगी तो रिश्तेदारों की कही बातें सच हो जाएंगी. मैं जल्द ही इस दुनिया से विदा हो जाऊंगी. वैसे ही सब रिश्तेदार कहते हैं कि अब मैं ज्यादा दिन नहीं जिऊंगी.’’

3 दिन में ही अम्मां की अस्तव्यस्त हालत देख कर अनु बेचैन हो उठी, ‘‘क्या कह रही हो अम्मां, आप से किस ने कहा? आप अभी खूब जिओगी. अभी दोनों बच्चों की शादी करनी है.’’

अम्मां बड़बड़ाईं, ‘‘क्या बताऊं बेटी, तेरे अस्पताल जाने के बाद आनेजाने वालों की सलाह व बातें सुन कर इतनी परेशान हो गई कि जिंदगी सच में एक बोझ सी लगने लगी. यह सब मेरी दी गई सलाह न मानने का नतीजा है. अब फिर से तुझ से वही कहती हूं, ध्यान से सुन…’’

अम्मां की बात सुन कर अनु ने उन के सिर पर स्नेह से हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘अम्मां, आप बिलकुल चिंता न करो, आप की सलाह मान कर अब मैं अपना व आप का खयाल रखूंगी.’’

उस के बाद अम्मां की दी गई सलाह पर अनु के पति ने रिश्तेदारों को समझा दिया कि डाक्टर ने अम्मां व अनु दोनों को ही पूर्ण आराम की सलाह दी है, इसलिए वे लोग बारबार यहां आ कर ज्यादा परेशानी न उठाएं. साथ ही, झूठी नर्स को भी निकाल बाहर किया.

इस का बुरा पक्ष यह रहा कि जो रिश्तेदार दिनेश व अनु से सहानुभूति रखते थे, अम्मां के लिए नर्स रखने की सलाह दिया करते थे, अब दिनेश को भलाबुरा कहने लगे थे, ‘‘कैसा बेटा है, बीमार मां के लिए नर्स तक नहीं रखी, हमारे आनेजाने पर भी रोक लगा दी.’’

लेकिन इस सब का उजला पक्ष यह रहा कि 2 महीने में ही अम्मां बिलकुल ठीक हो गईं और अनु का ब्लडप्रैशर भी छूमंतर हो गया. इस उम्र में भी आखिर, अम्मां की सलाह ही फायदेमंद साबित हुई थी. अनु सोच रही थी, सच मेरी अम्मां जैसा कोई नहीं.

Hindi Family Story: उपेक्षा – कैसे टूटा अनुभा का भ्रम?

Hindi Family Story: हमेशा सहेलियों की तरह रहने वाली मां और अनीषा चाची का व्यवहार अनुभा को आज पहली बार असहज लगा. अनीषा चाची कुछ परेशान लग रही थीं. मां के बहुत पूछने पर उन्होंने हिचकते हुए बताया, ‘‘मेरा चचेरा भाई सलिल यहां ट्रेनिंग पर आ रहा है शीतल भाभी. रहेगा तो कंपनी के गैस्टहाउस में, लेकिन छुट्टी के रोज तो आया ही करेगा.’’

‘‘नहीं आएगा तो गाड़ी भेज कर बुला लिया करेंगे,’’ शीतल उत्साह से बोली, ‘‘इस में परेशान होने की क्या बात है?’’

‘‘परेशान होने वाली बात तो है शीतल भाभी. मम्मी कहती हैं कि तेरे घर में जवान लड़की है, फिर उस की सहेलियां भी आतीजाती होंगी. ऐसे में सलिल का तेरे घर आनाजाना सही नहीं होगा.’’

‘‘उसे आने से रोकना सही होगा?’’

‘‘तभी तो परेशान हूं भाभी, सलिल को समझाऊंगी कि वह निक्की और गोलू का ही नहीं अनुभा और अजय का भी मामा है.’’

‘‘वह तो है ही, लेकिन आजकल के बच्चे ये सब नहीं मानते,’’ शीतल का स्वर चिंतित था.

‘‘इसीलिए जब आया करेगा तो अपने कमरे में ही बैठाया करूंगी.’’

‘‘जैसा तू ठीक समझे. बस न तो सलिल को बुरा लगे और न कोई ऊंचनीच हो,’’ शीतल के स्वर में अभी भी चिंता थी.

अनुभा ने मां और चाची को इतना परेशान देख कर सोचा कि वह स्वयं ही सलिल को घास नहीं डालेगी. उस के आने पर अपने कमरे में चली जाया करेगी ताकि चाची और मां उस के साथ सहज रह सकें.

सलिल को पहली बार अमित चाचा घर ले कर आए. सब से उस का परिचय करवाया, ‘‘है तो यह तेरा भी मामा अनु, लेकिन हमउम्र्र है, इसलिए तुम दोनों में दोस्ती ठीक रहेगी.’’

‘‘जी चाचा,’’ अनुभा ने हतप्रभ लग रहीं चाची और मां की ओर देख कर उस समय तो सलिल से हैलो के अलावा और बात नहीं की, लेकिन सलिल की आकर्षक छवि और मजेदार बातों को वह चाह कर भी दिल से नहीं निकाल सकी.

सलिल की मोटरसाइकिल की आवाज सुनते ही वह अपने कमरे में तो चली जाती थी, लेकिन कान बराबर चाची के कमरे से आने वाली ठहाकों की आवाजों पर लगे रहते थे और जब मां या चाची सलिल के सुनाए चुटकुले पापा और अमित चाचा को सुनाती थीं तो वह बड़े ध्यान से सुनती थी और फिर कालेज में अपनी सहेलियों को सुनाती थी.

कुछ दिन बाद अपनी सहेली माधवी की बहन की सगाई में उस के बड़े भाई मोहन के साथ खड़े सलिल को देख कर अनुभा चौंक पड़ी.

‘‘यह मेरा दोस्त सलिल है, अनु,’’ मोहन ने परिचय करवाया, ‘‘और यह माधवी की

खास सहेली…’’

‘‘जानता हूं यार, मामा हूं मैं इस का,’’ सलिल हंसा.

‘‘रियली? तब तो तू संभाल अपने मामा को अनु. यह पहली बार हमारे घर आया है. इस का परिचय करवा सब से. मैं दूसरे काम कर लेता हूं,’’ कह कर मोहन चला गया.

सलिल शरारत से मुसकराया, ‘‘मेरे एक सवाल का जवाब दोगी प्लीज? क्या मेरी शक्ल इतनी खराब है कि मेरे आने की आहट सुनते ही तुम अपने कमरे में छिप जाती हो? जानती हो इस से कितनी तकलीफ होती है मुझे?’’

‘‘तकलीफ तो मुझे भी बहुत होती है,’’ अनुभा के मुंह से बेसाख्ता निकला, ‘‘छिपने से नहीं बल्कि तुम्हें न देख पाने की वजह से.’’

‘‘तो फिर देखती क्यों नहीं?’’

अनुभा ने सही वजह बता दी.

‘‘ओह, तो यह बात है. मेरे यहां आने से पहले मेरे घर में भी यही टैंशन थी, लेकिन तुम्हारे चाचा ने तो मुझ से दोस्ती करने को कहा था, सामने न आने के लिए किस ने कहा?’’

‘‘किसी ने भी नहीं. चाचा की बात सुन कर मां और चाची इतनी परेशान लगीं कि मैं ने उन्हें और परेशान करने के बजाय खुद ही बेचैन होना बेहतर समझा.’’

सलिल कुछ सोचने लगा. फिर बोला, ‘‘तुम्हारे घर से और कोई नहीं आया?’’

‘‘मां और चाची आएंगी कुछ देर बाद.’’

‘‘उस से पहले अपनी सहेलियों से कहो कि वे सब भी मुझे मामा बुलाएं. मैं दीदी को विश्वास दिला दूंगा कि मैं रिश्तों की मान्यता में विश्वास रखता हूं ताकि मेरीतुम्हारी दोस्ती पर किसी को शक न हो.’’

लड़कियों को भला उसे मामा बुलाने में क्या ऐतराज होता? जब तक अनीषा और शीतल आईं, सलिल भागभाग कर काम कर के सब का चहेता और प्राय: छोटेबड़े सब का ही मामा बन चुका था.

‘‘ये सब क्या है भाई?’’ अनीषा ने पूछा.

‘‘दीदी के शहर में आने का प्रसाद,’’ सलिल ने मुंह लटका कर कहा, ‘‘यह सोच कर आया था कि कोई गर्लफ्रैंड बन जाएगी. मगर अनुभा की सारी सहेलियां भी तो मेरी भानजियां ही लगीं. भानजी को गर्लफ्रैंड बनाने के संस्कार तो आप ने दिए नहीं सो बस काम कर के और मामा बन कर आशीष बटोर रहा हूं.’’

शीतल तो भावविभोर होने के साथसाथ अभिभूत भी हो गई. सगाई की रस्म के बाद जब उन्होंने अनुभा से घर चलने को कहा तो माधवी ने कहा, ‘‘अनुभा अभी कैसे जाएगी? काम के चक्कर में हम ने कुछ खाया भी नहीं है. आप जाओ, अनुभा बाद में आएगी.’’

‘‘अकेली?’’

‘‘अकेली क्यों?’’ माधवी की मां ने पूछा, ‘‘इस का मामा है न, उस के साथ आ जाएगी.’’

‘‘क्यों सलिल, ले आओगे?’’ अनुभा की आशा के विपरीत शीतल ने पूछा.

‘‘जी बड़ी दीदी, मगर इन सब का खाने का ही नहीं नाचगाने का भी प्रोग्राम है जो देर तक चलेगा.’’

‘‘तुम जब तक चाहो रुकना, फिर भानजी को कान पकड़ कर ले आना. मामा हो तुम उस के,’’ शीतल ने हंसते हुए कहा.

शीतल की हरी झंडी दिखाने के बावजूद अनुभा सलिल के घर आने पर न अपने कमरे से बाहर निकलती थी और न ही उस के बारे में बात करती थी, मगर सलिल की छुट्टी के रोज माधवी के घर पढ़ने के बहाने चली जाती थी और वहां से सलिल के साथ घूमने. माधवी तक को शक नहीं होता था. इम्तिहान खत्म होते ही घर में उस की शादी की चर्चा होने लगी. उस ने सलिल को बताया.

‘‘मुझे भी दीदी ने अपने दोस्तों में तुम्हारे लिए उपयुक्त वर ढूंढ़ने को कहा है.’’

‘‘अपना नाम सुझाओ न.’’

‘‘पागल हूं क्या? मेरे यहां आने पर जो इतना बवाल मचा था. वह इसीलिए तो था कि अगर मैं ने तुम से शादी करनी चाही तो अनर्थ हो जाएगा. जिस घर में लड़की दी है उस घर से लड़की नहीं लेते.’’

‘‘तुम ये सब मानते हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं, लेकिन अपने परिवार की मान्यताओं और भावनाओं की कद्र करता हूं.’’

‘‘मगर मेरे प्यार की नहीं.’’

‘‘उस की भी कद्र करता हूं और तुम्हारे सिवा किसी और के साथ जिंदगी गुजारने की सोच भी नहीं सकता.’’

‘‘हो सकता है तुम्हारे घर वाले तुम्हारी शादी न करने की जिद मान लें, मगर मुझे तो शादी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘वह तो मैं भी करूंगा अनु.’’

अनुभा झुंझला गई. अजीब मसखरा आदमी है. मेरे सिवा किसी और के साथ जिंदगी गुजारने की सोच भी नहीं सकता, मगर शादी करेगा. सलिल तो जैसे उस का चेहरा खुली किताब की तरह पढ़ लेता था.

‘‘शादी किसी से भी हो, तसव्वुर में तो मेरे हमेशा तुम रहोगी और तुम्हारे तसव्वुर में मैं, बस अपने जीवनसाथी से यह सोच कर प्यार किया करेंगे कि हम एकदूसरे से कर रहे हैं.’’

‘‘अगर गलती से कभी मुंह से असली नाम निकल गया तो चोरी पकड़ी नहीं जाएगी?’’

अनुभा ने भी यह सोच कर सब्र कर लिया कि जैसे अभी वह सलिल के खयालों में जीती है, हमेशा जीती रहेगी और शादी के बाद मिलना भी आसान हो जाएगा, क्योंकि विवाहित मामाभानजी के मिलने पर किसी को ऐतराज नहीं होगा.

सलिल यह सुन कर खुशी से बोला, ‘‘अरे वाह, फिर तो चोरीछिपे नहीं सब के सामने तुम्हें गले लगाया करूंगा, कहीं घुमाने के बहाने बढि़या होटल में ले जाया करूंगा.’’

जल्द ही दुबई में बसे डाक्टर गिरीश से अनुभा का रिश्ता पक्का हो गया. देखने में गिरीश सलिल से 21 ही था और बहुत खुशमिजाज भी, लेकिन अनुभा ने उस में सलिल की छवि ही देखी. शादी में अनीषा का पूरा परिवार आया. मौका मिलते ही अनुभा ने सलिल से कहा कि वह अपने प्यार की निशानी के तौर पर कुछ भेंट तो दे.

‘‘देना तो चाहता था, लेकिन दीदी ने कहा कि अम्मां दे तो रही हैं, तुझे अलग से कुछ देने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘फिर भी कुछ तो दे दो, जिस के पास रहने से मुझे यह एहसास रहे कि तुम मेरे पास हो.’’

सलिल ने जेब से रूमाल निकाला और उसे चूम कर अनुभा को पकड़ा दिया. अनुभा ने उसे आंखों से लगाया.

‘‘यह मेरे जीवन की सब से अनमोल वस्तु होगी.’’

उस ने शुरू से ही गिरीश को सलिल समझा, इसलिए उसे कोई परेशानी नहीं हुई, बल्कि मजा ही आया और सोचा कि वह सलिल को मिलने पर बताएगी कि फौर्मूला कामयाब रहा. लेकिन मिलने का मौका ही नहीं मिला. नैनीताल में हनीमून मना कर लौटने पर सलिल की मोटरसाइकिल अजय को चलाते देख कर उस ने पूछा, ‘‘सलिल मामा की मोटरसाइकिल तुम्हारे पास कैसे?’’

‘‘सलिल मामा से पापा ने खरीद ली है यह मेरे लिए.’’

‘‘मगर सलिल मामा ने बेची क्यों?’’

‘‘क्योंकि वे कनाडा चले गए.’’

अनुभा बुरी तरह चौंक गई, ‘‘अचानक कनाडा कैसे चले गए?’’

‘‘यह तो मालूम नहीं.’’

अनुभा ने बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संयत किया. शाम को वह माधवी से मिलने के बहाने मोहन से सलिल के अचानक जाने की वजह पूछने गई.

‘‘सलिल मामा अचानक कनाडा कैसे चले गए?’’

‘‘पहली बार कोई भी अचानक विदेश नहीं जाता अनु, सलिल यहां हैड औफिस में कनाडा जाने से पहले खास प्रशिक्षण लेने आया था. प्रशिक्षण खत्म होते ही चला गया,’’ मोहन ने जैसे उस के कानों में गरम सीसा डाल दिया.

‘‘वह कनाडा से आप को फोन तो करते होंगे… मुझे उन का नंबर दे दीजिए प्लीज,’’ अनुभा ने मनुहार करी.

‘‘चंद महीनों के दोस्तों को न कोई इतनी दूर से फोन करता है और न ही याद रखता है. बेहतर रहेगा कि तुम भी सलिल को भूल कर अपनी नई जिंदगी में खुश रहो.’’

अनुभा को लगा कि मोहन जैसे उस पर तरस खा रहा है. वह नई जिंदगी का मजा तो ले रही थी, लेकिन सलिल को याद करते हुए, उस के दिए रूमाल को जबतब चूम कर.

अचानक एक रोज गिरीश ने उस के हाथ में वह रूमाल देख कर कहा, ‘‘इतना गंदा रूमाल एक डाक्टर की बीवी के हाथ में क्या कर रहा है? फेंको इसे.’’

अनुभा सिहर उठी. फेंकना तो दूर, सलिल के चूमे उस रूमाल को तो वह धो भी नहीं सकती थी. उस ने रूमाल को गिरीश से छिपा कर टिशू पेपर में सहेज दिया अकेले में चूमने के लिए.

गिरीश का परिवार कई वर्षों से दुबई में सैटल था. जुमेरा बीच के पास उन का बहुत बड़ा विला था और शहर में कई मैडिकल स्टोर और उन से जुड़े क्लीनिक्स की शृंखला थी. गिरीश भी एक क्लीनिक संभालता था. परिवार की सभी महिलाएं व्यवसाय के विभिन्न विभागों की देखरेख करती थीं.

अनुभा भी जेठानी वर्षा के साथ आधे दिन को औफिस जाती थी. अनुभा दुबई आ कर बहुत खुश थी. लेकिन न जाने क्यों सलिल की याद अब कुछ ज्यादा ही बेचैन करने लगी थी. जबतब उस का रूमाल चूम कर तसल्ली करनी पड़ती थी.

एक रोज वर्षा की कजिन लता ने फोन पर बताया कि उस के पति का भी दुबई में तबादला हो गया है, अभी तो होटल में रह रही है, घर और गाड़ी मिलने पर वर्षा से मिलने आएगी. लेकिन वर्षा उस से तुरंत मिलना चाहती थी. अनुभा ने सुझाया कि औफिस से लौटते हुए वे दोनों लता को उस के होटल से ले आएंगी. शाम को ड्राइवर उस के पति को औफिस से पिक कर लेगा और रात के खाने के बाद होटल छोड़ देगा. वर्षा का सुझाव अच्छा लगा पर घर के पुरुष तो देर से आते थे, तब तक लता का पति औरतों में बोर हो जाता. गिरीश हर बृहस्पति की शाम को क्लीनिक से जल्दी लौटता था. अत: अनुभा के कहने पर वर्षा ने लता को बृहस्पति को बुलाया. दोपहर को जेठानी देवरानी लता को लेने उस के होटल में गईं.

‘‘तू तो शादी के बाद अमेरिका या कनाडा गई थी, फिर यहां कैसे आ गई?’’ वर्षा ने पूछा.

‘‘मुझे बर्फ रास नहीं आई, इसलिए इन्होंने यहां तबादला करवा लिया,’’ लता दर्प से बोली.

‘‘अरे वाह, बड़ा दिलदार आदमी है भई, बीवी के लिए डौलर छोड़ कर दिरहम कमाना मान गया,’’ वर्षा ने चुहल करी.

‘‘मेरे लिए तो जांनिसार भी हैं दीदी,’’

लता इठलाई. वर्षा और अनुभा हंस पड़ी.

‘‘इस जांनिसर दिलदार से रिश्ता करवाया किस ने, चुन्नो चाची ने?’’ वर्षा ने पूछा.

लता हंसने लगी, ‘‘नहीं दीदी, चाची तो इस रिश्ते के बेहद खिलाफ थीं. उन का कहना था कि लड़का दिलफेंक और छोकरीबाज है. लेकिन चाचाजी ने कहा कि सभी लड़कों के शादी से पहले टाइम पास होते हैं, शादी के बाद सब ठीक हो जाते हैं.’’

‘‘आप के जांनिसार आप को किसी पुरानी टाइम पास के नाम से यानी किसी खास नाम से तो नहीं बुलाते?’’ अनुभा ने पूछा.

‘‘नहीं, लता ही पुकारते हैं.’’

‘‘फिर कोई फिक्र की बात नहीं है,’’ अनुभा बोली, ‘‘आप के जांनिसार सिर्फ आप के हैं.’’

शाम को गिरीश के आने के बाद वर्षा ने कहा, ‘‘गिरीश, मैं लता को जुमेरा बीच घुमाने ले जा रही हूं. लता के पति के आने पर तुम और अनुभा उन का स्वागत कर लेना.’’

कुछ देर के बाद गिरीश ने उत्साहित स्वर में अनुभा को पुकारा, ‘‘अनु, देखो तो लता के पति कौन हैं, तुम्हारे सलिल मामा.’’

उल्लासउत्साह से उफनती गिरतीपड़ती अनुभा ड्राइंगरूम में आई. हां, सलिल ही तो था, शरीर थोड़ा भर जाने से और भी आकर्षक लग रहा था.

‘‘लीजिए, आप की भानजी आ गई,’’ गिरीश बोला.

‘‘लेकिन मेरी बीवी कहां है?’’ सलिल ने अनुभा की उल्लसित किलकारी की ओर ध्यान दिए बगैर उतावली से पूछा.

‘‘भाभी के साथ समुद्र तट घूमने गई हैं, मैं बुला कर लाता हूं. तब तक आप अपनी भानजी के साथ बतियाइए.’’

‘‘बतियाने से पहले गले लगा कर आशीर्वाद तो दो मामा,’’ अनुभा मचली.

‘‘मामाजी की गोद में ही बैठ जाओ न,’’ गिरीश हंसा.

‘‘अभी तो गोद में लता को बैठा कर देखने को बेचैन हूं कि उस की आंखें ज्यादा गहरी हैं या समुद्र. आप वर्षा जीजी को घर ले आना प्लीज ताकि हम दोनों कुछ देर अकेले बैठ सकें, समुद्र के किनारे,’’ सलिल ने बेसब्री से कहा, ‘‘चलिए, गिरीशजी.’’

इतनी बेशर्मी, इतनी उपेक्षा. अनुभा सहन नहीं कर सकी, अपमान से तिलमिलाती हुई तेजी से अपने कमरे में गई, अकेले में रोने नहीं, बल्कि सलिल के दिए अनमोल रूमाल को फाड़ कर फेंकने के लिए.

Social Story: खुल गई पोल

Social Story, लेखक-  अनूप कुमार सिंह

किशना जब बलजीत प्रधान की चौपाल से उठ कर घर की ओर आ रहा था, तो उस के डगमगाते कदम भी मानो उस का साथ नहीं दे रहे थे, लेकिन वह अपनेआप को दुनिया का सब से खुशनसीब इनसान और बलजीत प्रधान को बड़ा दानदाता समझता था, जो किशना जैसे लोगों को मुफ्त में दारू पिलाता है.

घर पहुंच कर दुलारी को जागती देख कर किशना बोला, ‘‘तू अभी तक सोई नहीं है?’’

‘‘अब तो तेरा इंतजार करने की आदत सी पड़ गई है,’’ दुलारी ने सहज भाव से कहा, ‘‘खाना लगाऊं या खा कर आए हो?’’

‘‘अरे मेरी दुलारो, बलजीत प्रधान इतना खिलापिला देता है कि उस के बाद जरूरत ही नहीं पड़ती. एकदम हीरा आदमी है,’’ किशना ने तारीफ के अंदाज में कहा.

‘‘वह तुझे दारू नहीं जहर पिला रहा है. उस की नजर अपने खेत पर है,’’ तीखी लेकिन दबी आवाज में दुलारी  ने कहा.

‘‘अरे, अगर उसे खेत ही चाहिए तो आज किसी और का नहीं खरीद  सकता है. उस के पास कौन सा पैसे की कमी है,’’ किशना ने दुलारी को डांटते हुए कहा.

‘‘वह हमारा खेत इसलिए चाहता है, क्योंकि वह उस के ट्यूबवैल के पास है. तू इतनी सी बात नहीं समझता… एक न एक दिन मैं उस की नीयत की पोल खोल कर रहूंगी, तब देखना.’’

इस के बाद किशना और दुलारी की कोई बातचीत नहीं हुई. किशना पास बिछी चारपाई पर खर्राटे मारने लगा और दुलारी अतीत की उन यादों में खो गई, जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी.

तब कितनी खुशियां थीं यहां. सभी लोग खेतिहर मजदूर थे, पर इतना कमा लेते थे कि किसी के आगे हाथ फैलाने की कभी नौबत नहीं आती थी.

सुहागरात पर जब सभी दारू के नशे में मस्त थे, तब दुलारी ने शरमा कर किशना से पूछा था, ‘क्या तू भी इन लोगों की तरह दारू पिएगा?’

तब किशना ने दुलारी को अपनी बांहों में भर कर कहा था, ‘जब तुझ में ही इतना नशा है, तो मुझे पीने की क्या जरूरत.’

समय बीतने के साथ खुशी के रूप में जब उन की बेटी बन्नो इस दुनिया में आई, तो किशना को दुलारी की जगह दारू ज्यादा अच्छी लगने लगी, भले ही इस में बलदेव प्रधान का हाथ बहुत ज्यादा था.

भोर की सुबह जब दुलारी अपने खेत पर गई, तो गेहूं की फसल में पानी की जरूरत को देखते हुए वह बलदेव प्रधान के ट्यूबवैल पर चली गई.

उस समय बलदेव प्रधान चारपाई पर लेटा हुआ था और उस का चमचा शंभू उस के पैर दबा रहा था.

दुलारी ने पास पहुंच कर घूंघट की ओट से धीरे से पूछा, ‘‘प्रधानजी, पानी कब मिलेगा?’’

‘‘अरे दुलारी, पानी क्या पूरा ट्यूबवैल तेरा है… बस एक बार मेरी बात मान ले, कसम से तेरी जिंदगी बना दूंगा,’’ अंगड़ाई लेते हुए बलदेव प्रधान  ने कहा.

‘‘क्या ऐसी बातें सब के सामने की जाती हैं…’’ इठलाते हुए दुलारी ने कहा.

‘‘तू इस शंभू की चिंता मत कर. यह तो अपना ही आदमी है,’’ हवस में अधलेटा होते हुए बलदेव प्रधान ने कहा.

‘‘तो ठीक है, आज गहरी रात घर आ जाओ,’’ इतना कह कर हंसते हुए दुलारी वहां से जाने लगी.

‘‘सुनसुन… और तेरा मरद घर पर होगा,’’ बलदेव प्रधान का चमचा  शंभू होशयारी दिखाते हुए बीच में  बोल पड़ा.

इसी के साथ बलदेव प्रधान ने शंभू के सिर पर हलकी सी चपत जमाई और बोला, ‘‘तू इतने दिनों से हमारे साथ है. और इतना भी नहीं जानता कि किशना तो दारू का गुलाम है… दे देंगे दारू की बोतल तो पड़ा रहेगा कहीं भी.’’

घर आ कर दुलारी ने पूरी बात किशना को बताई और बोली, ‘‘मैं कहती थी न कि प्रधान बुरा आदमी है.’’

‘‘अगर ऐसी बात है दुलारी, तो मैं कभी उस के पास नहीं जाऊंगा और न ही दारू को हाथ लगाऊंगा,’’ पछताते हुए किशना ने कहा.

दुलारी चुप रही.

‘‘ठीक है दुलारी, उसे रात में आने दे, अगर लाठी मारमार कर उस को अधमरा न कर दिया तो कहना?’’

‘‘आज तू उस की चौपाल पर जरूर जाना, नहीं तो उस को शक हो जाएगा, लेकिन दारू कम पीना,’’ दुलारी ने समझाते हुए कहा.

आज बलदेव प्रधान किशना का ही इंतजार कर रहा था. उस को आया देख कर दारू की बोतल उस की ओर उछाल कर बोला, ‘‘ले किशना, आज जम कर ऐश कर.’’

पर, आज किशना से दारू गले के नीचे नहीं उतारी गई. वह बोला, ‘‘मैं घर जा कर पिऊंगा.’’

घर आ कर किशना ने बोतल एक ओर रख दी. आज उस के मन में दारू पीने की कोई कसक नहीं हो रही थी.

आज की रात गहराइयों में जा रही थी, लेकिन किशना और दुलारी की आंखों में नींद नहीं थी. तभी उन के मिट्टी से बने घर से ‘धपाक’ की आवाज आई. शायद दीवार की कुछ मिट्टी नीचे गिरी थी.

किशना आवाज की तरफ ‘चोरचोर’ की आवाज लगाता हुआ भागा और कंबल डाले हुए एक साए को कई डंडे धर दिए.

अचानक हुए हमले से साए को भी संभलने का मौका नहीं मिला. इधर दुलारी और किशना की आवाज सुन कर आसपास के लोग भी वहां आ गए.

कंबल डाले वह साया गली में भाग रहा था. किशना और महल्ले के लोग उसे खदेड़ रहे थे, तभी गली के उस छोर से बलदेव प्रधान का चमचा शंभू दारू के नशे में लड़खड़ाता हुआ चला आ रहा था. अपनी ओर आ रहे साए को देख कर वह बोला, ‘‘अरे प्रधानजी आप…’’

अब बलदेव प्रधान ने कंबल  एक ओर फेंक कर शंभू से कहा, ‘‘बुड़बक, तू ने तो सारी पोल खोल कर ही रख दी…’’

Hindi Short Story: सच्चा प्रेम

Hindi Short Story: 6 साल पहले की बात है. सोशल मीडिया ने पूरी रफ्तार से गति पकड़ ली थी. श्यामली ने भी फेसबुक पर अपना एकाउंट बना लिया था. उसी साल उस का ग्रैजुएशन पूरा हुआ था. ग्रैजुएशन पूरा होते ही उसे एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी.

स्वभाव से चंचल, शांत और हमेशा दूसरे के बारे में पहले सोचने वाली श्यामली औफिस का काम पूरा कर के फेसबुक लौगइन कर के बैठ जाती थी. श्यामली की प्रोफाइल में उस की एक फ्रैंड प्रियंका थी. प्रियंका और श्यामली अकसर फेसबुक पर कोई न कोई पोस्ट डालती रहती थीं. उस के बाद उन पर आए कमेंट्स और लाइक भी वे ध्यान से पढ़तीं और जरूरी होता तो जवाब भी देतीं. फेसबुक चलाने में उन्हें इतना मजा आता था कि वे उस की दीवानी बन गई थीं.

उस दिन औफिस से निकलते ही श्यामली ने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की. देखते ही देखते उस पर लाइक और कमेंट्स आने लगे. प्रियंका और श्यामली आने वाले कमेंट्स पर आपस में बातें कर रही थीं कि तभी प्रियंका के एक कौमन फ्रैंड ने भी उस पोस्ट पर कमेंट किया. उस का नाम था दुष्यंत. इस के बाद दुष्यंत, प्रियंका और श्यामली कमेंट बौक्स में ही बातें करने लगे थे.

2 दिन बाद जब श्यामली ने फेसबुक खोला तो उस में दुष्यंत की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई थी. 2 दिनों तक सोचनेविचारने के बाद श्यामली ने उस की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली. यहीं से शुरू हुई उस प्यार की शुरुआत, जो कभी श्यामली को मिल नहीं सका.

दुष्यंत ने कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की पढ़ाई अभी जल्दी ही पूरी की थी. स्वभाव से शांत और भावनात्मक दुष्यंत हमेशा सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहता था. सोशल मीडिया पर ही श्यामली से उस की मुलाकात हुई थी. श्यामली और दुष्यंत अब फेसबुक फ्रैंड बन गए थे. हायहैलो से शुरू हुआ यह संबंध अब पूरे जोश से आगे बढ़ रहा था.

मार्निंग शिफ्ट होने की वजह से दुष्यंत सुबह जल्दी 5 बजे ही उठ जाता था. और उठने के साथ ही वह श्यामली को गुडमौर्निंग का मैसेज भेजता था. यह उस का रोजाना का नियम बन गया था.  दुष्यंत की सुबह श्यामली को मैसेज भेजने के साथ ही शुरू होती थी. इस के बाद श्यामली के मैसेज के इंतजार में उस का आधा दिन बीत जाता. उसे श्यामली अच्छी लगने लगी थी. किसी न किसी बहाने वह उस से बात करने का मौका खोजता रहता था. वह यही सोचता रहता था कि श्यामली कब औनलाइन हो और वह उसे मैसेज करे.

दुष्यंत एक संस्कारी घर का युवक था, इसलिए श्यामली को उस पर विश्वास करने में ज्यादा समय नहीं लगा. विश्वास होने के बाद श्यामली ने दुष्यंत को अपना फोन नंबर दे दिया था. वैसे तो श्यामली आज के जमाने की आधुनिक लड़की थी. फिर भी वह खुद को इस आधुनिक जमाने से दूर रखती थी. क्योंकि उसे पता था कि सोशल मीडिया पर दुनिया भर के गलत काम भी होते हैं.

दुष्यंत को उस ने एक महीने तक परखा था, उस के बाद उस ने उसे दोस्त के रूप में दिल से स्वीकार किया था. बाकी तो उसे कोई लड़का पसंद ही नहीं आता था.

नंबर मिलने के बाद वाट्सऐप पर गुडमौर्निंग के आगे भी बात बढ़ गई थी. जबकि श्यामली अभी भी उसे अच्छा दोस्त ही मान रही थी. दुष्यंत तो श्यामली के ही सपनों में दिनरात खोया रहता था. इस के बावजूद दुष्यंत कभी श्यामली से अपने प्यार का इजहार नहीं कर सका था. दूसरी ओर दुष्यंत के स्वभाव से प्रभावित हो कर श्यामली के मन में भी उस के लिए प्रेम का बीज अंकुरित होने लगा था. पर कोई संस्कारी लड़की कहां जल्दी अपने प्यार का इजहार करती है. फिर श्यामली तो वैसे भी अपने मन की बात जल्दी किसी से कहने वाली नहीं थी.

उसी तरह दुष्यंत भी हमेशा सोचता रहता था कि वह अपने मन की बात कैसे श्यामली से कहे. प्यार की बात कहने पर कहीं श्यामली नाराज न हो जाए. पता नहीं वह उस के बारे में क्या सोचती होगी, क्या वह भी उसी की तरह उसे प्यार करती है या नहीं. अगर वह अपने मन की बात उस से कहेगा तो वह कहीं बुरा तो नहीं मानेगी?

यही सब सोचतेसोचते दिन बीत रहे थे. दुष्यंत हमेशा इसी सोच में डूबा रहता था कि आखिर वह करे तो क्या करे, किस तरह वह श्यामली से अपने मन की बात कहे.

आखिर एक दिन उस ने हिम्मत कर के श्यामली से मन की बात कह ही दी. श्यामली ने कहा, ‘‘अरे… अरे अभी रुको, अभी तो दूसरा अध्याय बाकी है.’’

दुष्यंत श्यामली से अपने मन की पूरी बात यानी प्रेम का इजहार तो नहीं कर पाया, पर इतना तो जता ही दिया कि वह उसे पसंद करता है. उस ने यह भी कह दिया था, ‘‘मैं तुम्हें तुम्हारे घर देखने आना चाहता हूं. तुम अपने मम्मीपापा से कह देना. मैं अपने मम्मीपापा के साथ आऊंगा.’’

इतना कह कर दुष्यंत सपनों की दुनिया में खो गया.

आखिर वह घड़ी आ ही गई, जब दुष्यंत जा कर श्यामली से आमनेसामने मिला. दोनों परिवारों में आपस में बातचीत हुई. श्यामली को भी दुष्यंत अच्छा लगा. पर बौडीगार्ड जैसा शरीर होने की वजह से श्यामली के पिता को दुष्यंत पसंद नहीं आया.

श्यामली एकदम स्लिम और ट्रिम थी. दूसरी ओर 90 किलोग्राम वजन वाले 25 साल के युवक दुष्यंत को श्यामली के पिता ने रिजेक्ट कर दिया. इस बात से दुष्यंत को लगा कि वह श्यामली को पसंद नहीं है, इसलिए श्यामली ने उस के साथ शादी से मना कर दिया है.

समय समुद्र की लहरों की तरह पूरे जोश से आगे बढ़ रहा था. अब श्यामली और दुष्यंत के बीच बातें कम होने लगी थीं. कुछ दिनों में श्यामली की भी शादी हो गई और दुष्यंत को भी जीवनसाथी मिल गई थी.

दोनों ही अपनीअपनी जिंदगी में बहुत खुश थे. फिर भी जब कभी दुष्यंत एकांत में होता, तो उसे श्यामली की याद आ ही जाती थी. उसे इस बात का हमेशा अफसोस रहता कि वह श्यामली से अपने दिल की बात खुल कर कह नहीं सका. किसी तरह अपने मन को मना कर उस का पहला प्रेम पूरा नहीं हुआ, इस दर्द को दिल में छिपा कर अतीत से वर्तमान में आ जाता.

पूरे 3 साल बाद अचानक एक मौल में दुष्यंत और श्यामली की मुलाकात हो गई. दोनों के बीच हायहैलो हुई. दुष्यंत ने पूछा, ‘‘कैसी हो श्यामली?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं. अपनी बताओ?’’ वह बोली.

दोनों ने एकदूसरे के बारे में पूछा. हालचाल जानने के बाद दोनों के बीच नौरमल बातें होने लगीं. बातचीत करते हुए दोनों अतीत में खो गए. उसी बातचीत में दुष्यंत ने हिम्मत कर के कह दिया कि वह उस से बहुत प्यार करता था, है और हमेशा करता रहेगा.

यह सुन कर श्यामली के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. यह बात तो वह 3 साल पहले सुनना चाहती थी. पर उस समय यह बात दुष्यंत नहीं कह सका था. उस समय श्यामली भी इस बात को नहीं समझ सकी थी. दोनों का यह अनकहा प्रेम 3 साल से हृदय में जीवंत रहा. पर दोनों ही अपने इस प्रेम को एकदूसरे से कह नहीं सके थे.

आज पूरे 3 साल बाद जब दोनों ने अकेले में बात की तो दुष्यंत ने अपने प्रेम का इकरार कर लिया. वह बहुत अच्छा दिन था. दोनों के ही मन में एकदूसरे के लिए अनहद प्रेम था.  पर समय उन के हाथ से निकल गया था. अब दोनों की ही शादी हो गई थी और दोनों ही उम्र से अधिक समझदार हो चुके थे.

दोनों ही अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. पर दोनों ने ही एकदूसरे को वचन दिया कि वे जीवन के अंत तक एकदूसरे के संपर्क में बने रहेंगे.

दुष्यंत और श्यामली आज भी एकदूसरे से बातें करते हैं, प्रेम व्यक्त करते हैं, एकदूसरे की भावनाओं को समझते हैं, पर दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी के प्रति पूरी तरह से वफादार बने हुए हैं. वे जीवनसाथी नहीं बन सके तो क्या हुआ, दोनों ही एकदूसरे से मन से जुड़ कर जीवन का आनंद ले रहे हैं.

तो क्या अपने पहले प्रेम से दिल से जुड़े रहना अपराध है? क्या शादी के बाद अपने जीवनसाथी के प्रति वफादारी दिखाते हुए मनपसंद आदमी से बात करना अपराध है?

अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहते हुए दो प्रेमी जब अपने अधूरे रह गए प्रेम को एकदूसरे से इकरार करते हैं तो लोग इस संबंध को खराब नजरों से देखते हैं. पर दुष्यंत और श्यामली का कहना है कि अगर एकदूसरे से बात करने से दुख कम होता हो और खुशी मिलती हो तो इस में गलत क्या है.

प्रेम तो प्रेम होता है. शादी के पहले करो या बाद में, उस में पवित्रता, विश्वास और बिना स्वार्थ का लगाव होना चाहिए, जो केवल हृदय के भाव को जानसमझ सके.

Hindi Story: एक हीरो की आत्मकथा

Hindi Story: आज जब मैं पलट कर पीछे देखता हूं तो पाता हूं कि क्याकुछ नहीं था मेरे पास. दादादादी, मम्मीपापा और इन सब के बीच में सब से छोटा मैं. मतलब, आप में से कुछ लोगों का पसंदीदा फिल्म स्टार चकमक. दादाजी बिजनैस करते थे और उस समय के लखपति थे. पिताजी ने इस कारोबार को दो कदम आगे बढ़ाया और करोड़पति कहलाने लगे.

दादाजी तो शुरू से ही प्रगतिशील विचारधारा के रहे हैं. इसी वजह से उस दौर में जब लोगों के यहां 4-5 बच्चे होते थे, तब सिर्फ 2 बच्चे मतलब पापा और बूआजी को पैदा कर दादाजी ने एक अलग हो मिसाल पेश की थी.

समय के साथ पापा ने भी देशहित में फैसला लेते हुए अपने परिवार को मेरे जन्म तक ही सीमित रखा.

17 साल का होतेहोते मुझ पर फिल्मों का भूत सवार हो गया. तकरीबन हर फिल्म पहले ही दिन मैं देखता था. धीरेधीरे यह जुनून सिर्फ देखने तक ही सीमित न हो कर फिल्मों में काम करने में बदल गया.

आखिरकार एक दिन पापा व दादाजी के सामने मैं ने अपनी मंशा जाहिर कर ही दी.

‘‘क्या…? पागल हो गया है क्या? इतना अच्छा जमाजमाया कारोबार छोड़ कर भांड़गीरी करेगा?’’ पापाजी चिल्लाए थे.

‘‘पापा, यह भी कला का एक रूप है. इस में नाम, पैसा, शोहरत, रुतबा सबकुछ है,’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम्हें जो दिखाई दे रहा है, वह बरसाती बिजली के जैसी पलभर की चमक है. इस के पीछे एक बड़ा गहरा तिलिस्म है, जिस को तोड़ना सब के लिए मुमकिन नहीं है,’’ पापा ने कहा.

‘‘आप ने और दादाजी ने अपनी मेहनत से यह मुकाम पाया है, मैं भी अपनी मेहनत से कुछ कर दिखाना चाहता हूं,’’ मैं ने कुछ मजबूत आवाज में कहा.

‘‘जमेजमाए कारोबार को छोड़ना बेवकूफी है. वहां के संघर्ष व शोषण के बारे में शायद तुम ने सुना नहीं है,’’ पापा बोले.

‘‘आग में तप कर ही कुंदन सोना बनता है,’’ मैं ने फिल्मी डायलौग मारा.

यहां पर दादाजी की प्रगतिशीलता काम आई और वे पापा से बोले, ‘‘सूरज, विवेक जैसा चाहता है करने दो इसे. समझो, यह भी एक तरह का इंवैस्टमैंट है. अगर विवेक में दम हुआ तो यह भी करोड़ों में खेलेगा, वरना हमारा बिजनैस तो संभालना ही है इसे.’’

‘‘मतलब, मैं इसे भेज दूं?’’ पिताजी ने हैरानी से पूछा.

‘‘विवेक को अपना हुनर दिखाने का मौका मिलना ही चाहिए, मगर कुछ शर्तों के साथ,’’ दादाजी ने कहा.

‘‘कैसी शर्तें दादाजी?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम्हें सिर्फ और सिर्फ 5 साल का समय मिलेगा. इस पीरियड में अगर तुम नाकाम रहे तो वापस आ कर अपना बिजनैस संभालना पड़ेगा,’’ दादाजी ने कहा.

‘‘ये 5 साल मेरी पहली फिल्म रिलीज होने से जोड़े जाएंगे और अगर इन 5 सालों में कोई फिल्म शुरू नहीं हो पाई, तो मैं खुद घर लौट आऊंगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘अपने संबंधों को देखो कहीं कोई काम का आदमी मिलता है तो उस के मारफत हम विवेक को फिल्मों में पहुंचाएंगे तो बुनियाद मजबूत रहेगी,’’ दादाजी ने कहा.

पापा ने अपने काम के लोग खोजने शुरू किए. आखिर एक आदमी मिल ही गया. यह पापा के दोस्त का छोटा भाई शैशव था, जो मशहूर निर्मातानिर्देशक सुभान भाई के यहां पीआरओ का काम देखता था.

सुभान भाई इंडस्ट्री का बड़ा नाम थे. उन का रिकौर्ड यह था कि पिछली 3 फिल्में उन्होंने नए कलाकारों को ले कर बनाई थीं और तीनों ही फिल्में सुपरहिट रही थीं. शैशव के जरीए पापा ने सुभान भाई से मिलने का जुगाड भिड़ा लिया.

‘‘देखिए, आप के बेटे का चेहरामोहरा तो ठीक है, लेकिन इंडस्ट्री चलती है हुनर के दम पर. इस ने स्कूल के स्टेज के अलावा कहीं काम नहीं किया है, कैमरा फेस करना भी सिखाना पड़ेगा,’’ सुभान भाई मेरी तरफ देखते हुए बोले.

‘‘अरे सुभान भाई, आप का हाथ तो पारस है, जो लोहे को भी सोना बना देता है…’’ शैशव खुशामद भरी आवाज में बोला, ‘‘इस लड़के पर भी हाथ रख दीजिए. यह भी कुछ बन जाएगा.’’

‘‘बनानाबिगड़ना हमारे हाथ में नहीं है. हम तो सिर्फ मेहनत कर सकते हैं,’’ सुभान भाई ने डिप्लोमैटिक अंदाज में कहा.

‘‘वही हम चाहते हैं. आप के साथ रह कर यह कुछ बन जाए. यही हम सब लोगों की इच्छा है,’’ पापा हाथ जोड़ कर बोले.

‘‘काफी मेहनत करनी पड़ेगी इस लड़के पर. छोटे शहर से यहां आने पर कल्चर से ले कर ऐक्टिंग तक सभी की ट्रेनिंग देनी पड़ती है. वैसे भी फिल्म मेंिंकग अपनेआप में बड़ा महंगा सौदा है,’’ सुभान भाई किसी कारोबारी अंदाज में बोले.

‘‘पैसों की आप चिंता मत कीजिए, सब इंतजाम हो जाएगा,’’ पापा बोले.

‘‘देखिए, मेरी अगली फिल्म तो फ्लोर पर आ चुकी है. इस की स्टारकास्ट अनाउंस भी हो चुकी है. इस फिल्म में तो जगह नहीं बन पाएगी. इसे पूरा होने में 8 से 10 महीने का समय लगेगा. तब तक यह लड़का मेरे बंगले पर रहेगा. मेरी पत्नी भी अच्छी हीरोइन रह चुकी है. वह खुद इसे तैयार करेगी.

‘‘जब तक फिल्म की रूपरेखा पूरे तौर पर तैयार नहीं हो जाती, तब तक इसे किसी से भी नहीं मिलना है, क्योंकि जैसे ही मार्केट में यह खबर आएगी कि सुभान भाई नए लड़के को तैयार कर रहे हैं तो कई छोटेछोटे निर्माता अपनी फिल्म में लेने का लालच दे कर उसे बुला सकते हैं.

‘‘उन की फिल्में शायद ही बनें और बनें तो शायद चलें. ऐसे में कैरियर बनने से पहले ही खत्म हो जाएगा,’’ सुभान भाई ने लंबा भाषण दिया.

‘‘नहीं, आप जैसा बोलें वैसा ही करेंगे,’’ पापा ने कहा.

‘‘ठीक है, मेरी अगली फिल्म की स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है. इस का हीरो घरेलू काम करने वाला एक नौकर है. तुम्हें इसी रोल की ट्रेनिंग मैडम से लेनी है. ठीक है?’’ सुभान भाई ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

‘‘जी, जैसा आप को उचित लगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘विवेक नाम कुछ ओल्ड फैशन का लगता है. इस कारण तुम्हारा नया नाम रखेंगे और यह नाम होगा चकमक,’’ सुभान भाई बोले.

‘‘आप की फीस कितनी होगी?’’ पापा ने पूछा.

‘‘वैसे तो 80 लाख रुपए होती है. अब आप शैशवजी के साथ आए हैं, तो जो आप को उचित लगे दे दीजिए,’’ सुभान भाई बेझिझक बोले.

‘‘यह 40 लाख रुपए का चैक अभी ले लीजिए, बाकी का 3-4 महीनों में इंतजाम कर के पहुंचाता हूं, बच्चे का ध्यान रखिए… आप के भरोसे है,’’ पापा ने फिर हाथ जोड़ लिए.

‘‘आप बेफिक्र रहिए. अब यह लड़का हमारी जवाबदारी है,’’ सुभान भाई बोले.

‘‘अरे, रौकी भाई को तो इन्होंने गलीकूचे से निकाल कर स्टार बना दिया, फिर यह तो अपने घर का बच्चा है. आप बेफिक्र रहिए,’’ शैशव बोला.

मैं सुभान भाई के साथ उन के घर चला गया. वे अपनी पत्नी सुहाना से मिलवाते हुए बोले, ‘‘यह चकमक है और अपनी अगली फिल्म का हीरो. इसे फिल्म में घरेलू नौकर का रोल करना है, इसलिए तुम इसे उस हिसाब से तैयार करो. बाजार से सब्जी लाने से झाड़ूपोंछा तक सभी कामों की ट्रेनिंग दो. मैं फिल्म में पूरी रियलिटी चाहता हूं. इस बात का ध्यान रखना.’’

‘‘जी, ठीक है,’’ सुहाना बोली. मैं ने इस ट्रेनिंग को पूरी शिद्दत के साथ करना शुरू कर दिया. सुबह 11 बजे सो कर उठने वाला लड़का अब सुबह 5 बजे उठ जाता था. झाड़ूपोंछा करने के बाद नाश्ते की तैयारी, खाना बनवाने में मदद, सब के नहाने के बाद कपड़े धोना और सब से बाद में झोला उठा कर सौदा लेने जाना.

एक दिन सुभान भाई ने अपनी पत्नी सुहाना को छोटे कपड़े सुखाते देख लिया, तो गुस्सा होते हुए बोले, ‘‘ये कपड़े क्यों नहीं धुलवाती हो चकमक से?’’

‘‘कैसी बातें करते हो आप, ये कपड़े मैं उस से धुलवाऊंगी?’’ सुहाना बोली.

‘‘अरे, कपड़ों की कोई जान होती है क्या. सब कपड़ों जैसे यह भी कपड़े हैं. सैट पर कोई ऐसा सीन करना हुआ और पूरे मन के साथ नहीं कर पाया तो कितनी बदनामी होगी,’’ सुभान भाई बिगड़ कर बोले.

‘‘ठीक है, यह भी धुलवा लूंगी,’’ सुहाना बोली.

‘‘कुछ डांस वगैरह आता है कि नहीं उसे?’’ एक दिन सुभान भाई ने अचानक पूछ लिया.

‘‘जी, थोड़ाबहुत डांस आता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘आज तुम्हें बनी पार्टी में जाना है,’’ सुभान भाई ने आदेश दिया.

‘‘बनी पार्टी क्या होती है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘बनी पार्टी नहीं मालूम तुम्हें, क्या आदमी हो तुम…’’ सुभान भाई बोले, ‘‘सुरेश समझा देगा तुम्हें, वह पहले जा चुका है.’’

‘‘जैसे कैबरे करती हुई लड़कियां बदन दिखाती हैं, उसी तरह बनी पार्टी में मर्दों को एकएक कर के अपने सभी कपड़े हटाने होते हैं. इस तरह के डांस को देखने वाली सिर्फ औरतें ही होती हैं और वे भी बेहद अमीर. यहां पर इनाम भी काफी मिलता है,’’ सुरेश ने बताया.

बनी पार्टी के बेहूदे और बेशर्मी भरे अनुभव को बयान कर पाना मुश्किल है. सपने में भी शायद कोई इतना नीचे गिर कर नहीं सोच सकता. यहां आने के बाद ही पता चला कि जिगोलो भी कुछ इसी तरह का प्रोग्राम है. यहीं पर यह भी पता चला कि गे नाम का भी कोई संबंध होता है. इतना सब करतेकरते 2 साल का समय यों ही गुजर गया. सुभान भाई की फ्लोर वाली फिल्म पूरी हो कर रिलीज हो गई और हिट भी.

मुझे विश्वास था कि अगली फिल्म मेरी होगी, पर ऐसा नहीं हुआ. अगली फिल्म के लिए मेरा नाम नहीं था.

एक दिन अचानक पापा आ गए और मुझे इस तरह का काम करते देख बहुत दुखी हुए और गुस्सा भी. चूंकि उन्होंने दोनों पेमेंट्स चैक से की थीं, इसलिए पैसे देने के सुबूत मौजूद थे.

कानूनी कार्यवाही की धमकी से डर कर सुभान भाई ने मेरे साथ फिल्म शुरू की. फिल्म साधारण रूप से हिट भी रही, पर सारा क्रेडिट सुभान भाई को ही मिला. फिल्म के बाद कुछ छोटीमोटी फिल्में जरूर मिलीं, पर वे चली नहीं.

5 साल होने वाले हैं और मैं पापा और दादाजी के बुलावे का इंतजार कर रहा हूं.

Social Story: मैं पवित्र हूं

Social Story, लेखक- बलविंदर ‘बालम’

‘‘साहब, लड़की बहुत ही खूबसूरत है. जिस्म की बनावट देखें. खिला हुआ ताजा गुलदाऊदी है जनाब. रंगरूप कितना चढ़ा हुआ है. जनाब, आप तो इस तरह की रसदार जिस्म वाली लड़कियां ही पसंद करते हो… जनाब उठा लें, फिर मौका नहीं मिलने वाला?’’

जीप से थोड़ी दूर ही हवलदार की नजर उस लड़की पर जा पड़ी थी. सूरज अंबर के घौंसले में जा छिपा था. रात खतरनाक रूप ले कर और गहरी होती जा रही थी.

एक नया शादीशुदा जोड़ा हाथ में एक छोटी सी अटैची उठाए, नाजुकनाजुक प्यारीप्यारी बातें करता पैदल ही अपने गांव जा रहा था. गांव की दूरी तकरीबन एक किलोमीटर ही होगी. वे दोनों बस से उतर कर थोड़ी ही दूर गए थे कि पुलिस की जीप आहिस्ता से उन के पास से गुजरी.

इंस्पैक्टर ने जोश में आ कर ड्राइवर को कहा, ‘‘जीप मोड़ ले…’’ और अपनी  बांहें ऊपर को खींच कर 2-3 अंगड़ाइयां तोड़ लीं.

ड्राइवर ने जीप उस जोड़े के आगे जा कर खड़ी कर दी. हवलदार और इंस्पैक्टर नीचे उतरे.

हवलदार ने उस लड़के से पूछा, ‘‘ओए, कहां जाना है तुझे?’’

‘‘अपनी ससुराल से आ रहा हूं जनाब और अपने गांव जा रहा हूं. जनाब, कुछ दिन पहले ही हमारी शादी हुई है?’’

‘‘ओए, तू तस्करी करता है… तू अफीम बेचता है… इतने अंधेरे में ससुराल से आ रहा है?’’

‘‘जनाब, इस अटैची में सिर्फ कपड़े हैं और कुछ भी नहीं है,’’ उस लड़के ने कहा.

‘‘ओए, तू थाने चल. वहां जा कर पता चलेगा कि इस में क्या है…’’

‘‘जनाब, मेरा कुसूर क्या है? मैं कोई अफीम नहीं बेचता, कोई तस्करी नहीं करता. जनाब, मेरी अटैची देख लें.’’

‘‘चुप कर. हमें अभीअभी वायरलैस से खबर आई है कि एक नया शादीशुदा जोड़ा आ रहा है. उस के पास अफीम है. उन्होंने सारा हुलिया तेरा बताया है कि तू अफीम बेचता है.’’

‘‘जनाब, ऐसी कोई बात नहीं है. आप को गलतफहमी हुई है. मेरे गांव से पूछ लें… मैं प्रीतम सिंह हूं जनाब. मैं रेहड़ा चलाता हूं जनाब. मेरे मातापिता, बहनभाई सब घर में हैं. आप गांव से पता कर लो.’’

‘‘यह तो थाने जा कर ही पता चलेगा. कैसे बकबक करता है. हम को गलत सूचना मिली है?’’ कहते हुए हवलदार ने 5-7 थप्पड़ प्रीतम सिंह के गाल पर जड़ दिए. उस की पगड़ी खुल कर नीचे गिर गई और वह खुद भी. उन्होंने लातोंबांहों से उस की खूब सेवा कर दी.

प्रीतम सिंह की पत्नी राज कौर ने बहुत गुजारिश की, पर इंस्पैक्टर पर तो हवस का भूत सवार हो चुका था. उस ने राज कौर पर 3-4 थप्पड़ जड़ दिए. वह भी नीचे गिर गई.

इंस्पैक्टर ने हवलदार और सिपाही को कहा, ‘‘उठा कर जीप में फेंक दो इन  दोनों को. थाने ले चलो, देखते हैं कैसे  नहीं मानता.’’

सिपाहियों ने उन दोनों को जीप में धकेल लिया.

राज कौर रोरो कर कह रही थी कि जनाब छोड़ दो हमें, हम बेकुसूर हैं, पर सिपाही उन को गंदीगंदी गालियां निकाले जा रहे थे.

थाने में ले जा कर इंस्पैक्टर ने दोनों को हवालात में बंद कर दिया. राज कौर का जूड़ा खुल चुका था, बाल बिखर चुके थे. उन दोनों का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.

इंस्पैक्टर ने हवलदार को तेज आवाज लगा कर कहा, ‘‘बड़ा सा पैग बना कर ला.’’

तकरीबन 55 साल के उस इंस्पैक्टर ने अपने सारे कपड़े ढीले कर लिए और गरम लहू में उबलता हुआ टांगें पसार कर कुरसी पर बैठ गया.

हवलदार बड़ा पैग बना कर ले आया और बोला, ‘‘जनाब, माल बहुत बढि़या है. ताजा गुलकंद है जनाब. खींच दो जनाब. यह मौका बारबार नहीं मिलेगा जनाब. पहले माल से यह माल अलग ही है, ताजातरीन है जनाब.’’

इंस्पैक्टर ने अपनी मूंछें अकड़ा कर एक ही सांस में पैग हलक के नीचे उतार लिया. उस की आंखों के डोरे तंदूर की तरह तपने लगे.

हवलदार ने कहा, ‘‘जनाब, एक पैग और ले आएं?’’

‘‘अभी नहीं, पहले उन की तसल्ली तो करवा दूं.’’

इंस्पैक्टर ने जाते ही प्रीतम सिंह के बाल पकड़ लिए और चिल्लाया, ‘‘कहां है तेरी अटैची ओए?’’

‘‘जनाब, आप के पास ही है. उस में कोई अफीम नहीं है.’’

हवलदार ने अटैची में अफीम रख दी थी.

‘‘जनाब, मैं बेकुसूर हूं. जाने दो जनाब. हमारे घर वाले इंतजार करते होंगे,’’ राज कौर ने इंस्पैक्टर के पैर पकड़ लिए. उस ने राज कौर का सुंदर मुखड़ा ऊपर उठा कर कामुकता से निहारा, जिस्म की गोलाइयां उस का नशा और तेज कर गईं.

राज कौर समझ गई थी कि कोई बुरा समय आने वाला है.

इंस्पैक्टर ने प्रीतम सिंह को नंगधड़ंग कर के उलटा लिटा कर खूब पिटाई लगाई. वह बेहोश हो गया.

राज कौर रोरो कर मिन्नतें कर रही थी.

इंस्पैक्टर ने हवलदार को इशारा किया, तो वह एक बड़ा पैग और बना कर ले आया. उस ने एक सांस में ही गटागट पूरा अंदर उतार लिया.

होंठों पर लगे पैग को उलटे हाथ से साफ करते हुए हवलदार को इशारे से समझाया.

हवलदार प्रीतम सिंह को बेहोशी की हालत में खींच कर दूसरे कमरे में ले गया.

राज कौर इंस्पैक्टर के पैर पकड़ रही थी, पर उस पर हवस का भूत सवार था. उस को महकमे का कोई डर नहीं था. उस के हाथ बहुत लंबे थे मिनिस्ट्री तक. उस की लगामें खुली थीं और आंखों का फैलाव कानों को छू रहा था.

इंस्पैक्टर ने नशे में कहा, ‘‘तेरे जैसा मखमल सा माल तो कभीकभार ही मिलता है. तेरे ऊपर केस नहीं डालूंगा, चिंता मत कर. तू किसी से बात मत करना. अगर किसी से बात की तो तेरे पति को जान से मरवा दूंगा…’’

इंस्पैक्टर ने राज कौर के जबरदस्ती कपड़े उतार फेंके और अपनी हवस की आग बुझाने की कोशिश की, पर गुत्थमगुत्था से आगे न जा सका और शांत हो कर अपने कमरे में चला गया.

राज कौर अपनी इज्जत के टुकड़ेटुकड़े समेटते हुए प्रीतम सिंह के पास जा कर रोए जा रही थी.

प्रीतम सिंह को पता चल गया था, पर क्या किया जा सकता था.

अगले दिन प्रीतम सिंह हवालात में था. राज कौर को डराधमका कर छोड़ दिया गया.

इंस्पैक्टर ने राज कौर से कहा, ‘‘अगर कोई भी बात जबान से बाहर निकाली तो तेरे पति को जेल में ही मरवा दूंगा. उस पर केस बनवा कर मार दूंगा. गांव में, घरबाहर किसी से कोई बात मत करना, अगर इस की जिंदगी चाहती?है तो… गांव में जा कर कहना कि इस से अफीम पकड़ी गई थी और पुलिस ने केस डाल कर जेल भेज दिया है.’’

राज कौर पहले ही इंस्पैक्टर की गुंडागर्दी व दहशत को जानती थी. उस ने कई लड़कियों की इज्जत से खिलवाड़ किया था और कई जायजनाजायज कत्ल करवाए थे.

राज कौर ने गांव में जा कर प्रीतम सिंह के मातापिता और भाईबहनों को बताया कि प्रीतम सिंह से अफीम पकड़ी गई?है. वह जेल में बंद है.

प्रीतम सिंह के भाइयों ने उस की जमानत करवा ली. खैर, केस के दौरान उस को कुछ महीनों की सजा हो गई. वह सजा काट कर आ गया था.

प्रीतम सिंह और राज कौर दोनों घर के कमरे में बैठे चुपचाप उस दिन को सोच कर रो रहे थे.

राज कौर पढ़ाई में बहुत होशियार थी. खूबसूरत जवान भरे बदन वाली. गरीब घर की होने के चलते वह मुश्किल से 10वीं जमात तक ही पढ़ पाई थी. मैट्रिक उस ने फर्स्ट डिविजन में पास की थी.

प्रीतम सिंह ने भी बारहवीं फर्स्ट डिविजन से पास की थी. बहुत पढ़नेलिखने में होशियार था, पर घर की तंगहाली के चलते वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया था.

प्रीतम सिंह अपने इलाके में घोड़े वाला रेहड़ा चलाता था. यह पुश्तैनी धंधा था उस का. वह सरल स्वभाव का लड़का था.

रात को सोते समय राज कौर ने मायूसी में प्रीतम सिंह को तसल्ली देते  हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा जी, आप दिल छोटा मत करें. जो होना था हो गया, कौन हमारी सुनेगा?

‘‘मैं चाहती तो खुदकुशी कर सकती थी. केवल अंजू के लिए जिंदा हूं. देखो, मैं बिलकुल पवित्र हूं, पवित्र रहूंगी. पर मैं पवित्र तब ही हो सकती हूं. अगर आप मेरा एक काम करेंगे तो…’’

प्रीतम सिंह ने कहा, ‘‘राज कौर, तू बेकुसूर है. मेरे लिए तो तू पवित्र ही है. तेरा बड़ा जिगरा है, अगर और कोई लड़की होती तो कब की खुदकुशी कर गई होती, पर तेरा जिगरा देख कर मुझे और ताकत मिली है. तू मुझे बता, मैं तेरी हर एक बात मानूंगा.’’

‘‘सरदारजी, मुझे केवल मक्खन (इंस्पैक्टर) का सिर चाहिए. जैसे भी हो कैसे भी. कोई ऐसी जुगत बनाई जाए कि हींग लगे न फिटकरी… मक्खन हम से ज्यादा नहीं पढ़ालिखा, वह सिपाही से इंस्पैक्टर बना है, बेकुसूर लड़कों को मारमार कर.’’

मैं आप को एक तरकीब बताती हूं. आप जेल में रहें. सारे गांव को पता था कि आप बेकुसूर हैं, पर किया क्या जा सकता था? मक्खन सिंह से सारा इलाका डरता है. उस की ओर कोई मुंह नहीं कर सकता.’’

दिन बीतते गए. प्रीतम सिंह ने सारा भेद अपने दिल में ही रखा. किसी से जिक्र नहीं किया.

राज कौर और प्रीतम सिंह ने कई दिनों के बाद एक योजना बना ली. इस योजना को अंजाम देने के लिए रास्ते ढूंढ़ने शुरू कर दिए.

मक्खन सिंह उन के गांव से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर वाले गांव का रहने वाला था. वह हर शनिवार की शाम को गांव आता था और सुबह तड़के ही अकेला सैर करने जाता था. मक्खन सिंह के घरपरिवार के बारे में सारी जानकारी 1-2 महीने में जमा कर ली थी.

प्रीतम सिंह ने अब एक ईंटभट्ठे से ईंटें लाने का काम शुरू कर लिया था. वह भट्ठे के और्डर के मुताबिक ही ईंटें गांवगांव पहुंचाता था.

मक्खन सिंह के गांव की ओर भी ईंटें छोड़ने जाना शुरू कर दिया था. उस ने मक्खन सिंह के आनेजाने की पूरी जानकारी हासिल कर ली थी. उस ने देखा कि वह हर शनिवार की रात को घर आता है और रविवार को दोपहर को जाता है. सुबह 5 बजे के आसपास अकेला ही सैर करता?है.

इस तरह कुछ महीने बीत गए. एक दिन प्रीतम सिंह ने पूरी जानकारी रखी. उस ने पता किया कि आज शनिवार की शाम को मक्खन सिंह घर आ चुका है. वह सुबह सैर पर जाएगा.

प्रीतम सिंह रात को ही रेहड़े पर ईंटें लाद कर घर ले आया. रात में उन दोनों ने रेहड़े के ऊपर लादी हुई ईंटों के बीच में से ईंटें इधरउधर कर के खाली जगह बना ली. 1-2 खाली बोरे तह लगा कर रख दिए और एक लंबी तीखी तलवार नीचे छिपा कर रख ली.

यह तलवार प्रीतम सिंह ने स्पैशल बनवाई थी. तलवार इतनी तेज धार वाली थी कि पेड़ के तने में मारे, तो एक बार में पेड़ को काट दे.

वे दोनों सुबह 4 बजे रेहड़े पर बैठ कर घर से निकल पड़े. पौने 5 बजे के आसपास मक्खन सिंह की कोठी से थोड़ी दूर जा कर अंधेरे में रेहड़ा खड़ा कर दिया और प्रीतम सिंह घोड़े की लगाम कसने लगा.

पूरे 5 बजे मक्खन सिंह अकेला ही घर से बाहर निकला. चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था. हाथ में स्टिक व सफेद कुरतापाजामा पहने मक्खन सिंह अपनी मस्त चाल में आराम से चलता जा  रहा था.

प्रीतम सिंह और राज कौर ने हिम्मत समेट कर रेहड़ा चला लिया. मक्खन सिंह अपनी मस्त चाल में चलता जा रहा था. गांव के बाहर थोड़ी दूर जा कर प्रीतम सिंह ने तलवार अपने दाएं हाथ की मुट्ठी में मजबूती से पकड़ ली.

राज कौर हिम्मत के साथ रेहड़े में बैठी रही. आहिस्ता से रेहड़ा नजदीक करते हुए प्रीतम सिंह ने ललकारा, ‘‘ओए, पापी तेरी ऐसी की तैसी…’’

जब मक्खन सिंह ने उस की ओर देखा, तो प्रीतम सिंह ने पूरी जान लगा कर इतनी तेजी से तलवार उस की गरदन पर दे मारी कि उस का सिर कट कर दूर जा पड़ा. उस की चीख भी निकलने नहीं दी.

प्रीतम सिंह ने जल्दीजल्दी उस का सिर बोरी में लपेट कर उठा लिया और ईंटों के बीच खाली जगह पर रख लिया.

रेहड़ा आसमान से बातें करने लगा. किसी को कोई खबर तक नहीं लगी.  5-6 किलोमीटर दूर जा कर नहर के किनारे राज कौर ने मक्खन सिंह का सिर निकाला और तलवार से उस के सिर के छोटेछोटे टुकड़े कर के नहर में फेंक दिए. इस के बाद वे दोनों घर आ गए.

राज कौर घर के अंदर चली गई और प्रीतम सिंह ईंटों का रेहड़ा ले कर किसी के घर पहुंचाने चला गया.

इलाके में खबर फैल गई कि मक्खन सिंह का कोई सिर काट कर ले गया है. उस के सिर काटने की खबर सुन कर इलाके में दहशत हो गई.

खुद पुलिस ने कोई बड़ी कार्यवाही नहीं की. केवल कानूनी दिखावे के लिए ही सारी कार्यवाही की गई.

पुलिस ने बहुत भागदौड़ की, पर कोई खोजखबर हाथ नहीं लगी. लोगों ने चैन की सांस ली.

कई लोग कहते सुने गए कि किसी मां के बहादुर बेटे ने यह काम किया है. इलाके का कलंक खत्म कर दिया. एक महाराक्षस का खात्मा कर दिया है.

शाम को प्रीतम सिंह रोजमर्रा की तरह रेहड़ा ले कर घर आता है. राज कौर नईनवेली दुलहन सी सजीसंवरी सी काम कर रही थी. उस के दिल में कोई डर नहीं था. अब बेशक उस को मौत भी आ जाए, कोई परवाह नहीं. बेशक फांसी ही क्यों न हो जाए, अब उस के चेहरे पर अलग किस्म का नूर था.

प्रीतम सिंह नहाधो कर अच्छे कपड़े पहन कर कमरे में दाखिल हुआ, तो राज कौर ने शरमा कर प्रीतम सिंह के गले में अपनी बांहें डालते हुए कहा, ‘‘सरदारजी, मैं पवित्र हूं.’’

प्रीतम सिंह ने राज कौर को जोर से छाती से लगा लिया.

Family Story: आखिरी खत – नैना की मां और शीलू का क्या रिश्ता था?

Family Story, लेखिका- अर्चना त्यागी

नैना बहुत खुश थी. उस की खास दोस्त नेहा की शादी जो आने वाली थी. यह शादी उस की दोस्त की ही नहीं थी बल्कि उस की बूआ की बेटी की भी थी. बचपन से ही दोनों के बीच बहनों से ज्यादा दोस्ती का रिश्ता था. पिछले 2 वर्षों में दोस्ती और भी गहरी हो गई थी. दोनों एक ही होस्टल में एक ही कमरे में रह रही थीं अपनी पढ़ाई के लिए. यही कारण था कि नैना कुछ अधिक ही उत्साहित थी शादी में जाने के लिए. वह आज ही जाने की जिद पर अड़ी थी जबकि उस के पिता चाहते थे कि हम सब साथ ही जाएं. उन की भी इकलौती बहन की बेटी की शादी थी. उन का उत्साह भी कुछ कम न था.

सुबह से दोनों इसी बात को ले कर उलझ रहे थे. मैं घर का काम खत्म करने में व्यस्त थी. जल्दी काम निबटे तो समान रखने का वक्त मिले. मांजी शादी में देने के लिए सामान बांधने में व्यस्त थीं.

जाने की तैयारी में 2 दिन और निकल गए. नैना को रोक पाना अब मुश्किल हो रहा था. वह अकेले जाने की जिद पर अड़ी थी. मैं ने पति को समझाया. ‘‘काम तो जीवनभर चलता रहेगा. शादीब्याह रोजरोज नहीं होते. फिर शादी के बाद नेहा भी अपनी ससुराल चली जाएगी तो पहले वाली बात नहीं रह जाएगी. नैना रोज उस से नहीं मिल पाएगी.’’

नैना के पिता सुनील ने पूरे एक हफ्ते की छुट्टी ले ली थी

वे पहले ही अपना मन बना चुके थे. बस, नैना को चकित करना चाहते थे. नैना, मैं और उस के पापा हम तीनों शादी से 4 दिन पहले ही दीदी के घर आ गए, शादी की सभी रस्में जो निभानी थीं. नैना के पिता यानी मेरे पति सुनील ने पूरे एक हफ्ते की छुट्टी ले ली थी शादी के बाद भी बचे हुए कामों में दीदी की सहायता करने के लिए. नेहा हमारी भी बेटी जैसी ही थी. बचपन से नैना के साथ ही रही थी तो उस से अपनापन भी कुछ ज्यादा ही था.

दीदी के घर अकसर हम कार से ही जाया करते थे. इस बार तो सामान अधिक था, सो कार से जाना ही सुविधाजनक था. मांजी और पिताजी बाद में ट्रेन से आने वाले थे. हम तीनों कार से ही दीदी के घर के लिए रवाना हो गए. 5-6 घंटे के रास्ते में नैना ने एक बार भी कार को रोकने नहीं दिया. उस का उतावलापन देखते ही बनता था. शाम को लगभग 5 बजे हम उन के घर पर थे.

शादी में 4 दिन अभी शेष थे, फिर भी नेहा ने अपनी नाराजगी जाहिर की. नैना से तो उस ने बात भी न की. उस की नाराजगी इस बात से थी कि वह इस बार अकेले क्यों नहीं आ पाई. हर बार तो आती थी. क्या शादी से पहले ही उसे पराया मान लिया गया है? नैना अपने तर्क दे रही थी. पिछले हफ्ते ही परीक्षा समाप्त हुई थी. कपड़े भी सिलाने थे. कुछ और भी तैयारी करनी थी. उस के सभी तर्क बेकार गए. उस दिन तो नेहा ने उस से बात न की.

अगले दिन मुझे हस्तक्षेप करना ही पड़ा, ‘‘अब तो आ गए हैं न, अब तो बात करो.’’ मैं ने जोर दे कर कहा तो उस की समझ में कुछ बात आई. 3 दिन कैसे निकले, पता ही न चला. अगले दिन नेहा की बरात आने वाली थी. मैं दीदी के साथ ही थी. नेहा के चले जाने की बात से वे बहुत उदास थीं. लड़का विदेश में था. कुछ महीनों बाद नेहा को भी उस के साथ जाना होगा. यही सोच कर उन की आंखें बारबार भर आती थीं.

मैं ने उन्हें दुनियादारी समझाने की पूरी कोशिश की. ‘‘इतने अच्छे घर में रिश्ता हुआ है. परिवार भी छोटा ही है. खुले दिमाग के लोग हैं. विदेश में रह कर भी अपनी सभ्यता नहीं भूले हैं. हमारी नेहा बहुत खुश रहेगी उन के घर. नेहा को नौकरी करने से भी मना नहीं कर रहे हैं. और तो और, अपने व्यवसाय में उसे जिम्मेदारी देने को तैयार हैं. और क्या चाहिए हमें?’’

शादी के दिन तक ये सभी बातें जाने कितनी बार मैं ने उन के सामने बोली थीं. इस से ज्यादा कुछ जानती भी न थी मैं नेहा की ससुराल वालों के बारे में. दीदी से पूछने की कोशिश भी की पर उन्हें उदास देख कर मन में ही रोक लिए थे अपने सभी प्रश्न.

आखिर वह घड़ी आ गई जिस का हम सब को इंतजार था. नेहा की बरात आ गई. दूल्हे का स्वागत करने दरवाजे पर जाना था दीदी को. साथ मैं भी थी. आरती की थाली हाथ में पकड़े दीदी आगे चल रही थीं. मैं शादी में आई दूसरी औरतों के साथ उन के पीछे चल रही थी. मन में बड़ा कुतूहल था दूल्हे को देखने का. तभी बरात घर के सामने आ कर रुकी. दूल्हे राजा घोड़ी से नीचे उतरे और दोस्तों, रिश्तेदारों के झुंड के साथ मुख्यद्वार के सामने रुक गए.

बैंडबाजे के साथ दूल्हे को तिलक लगा कर हम ने उस का स्वागत किया. स्वागत के बाद हम लोग घर की ओर मुड़ गए और बरात स्टेज की ओर बढ़ गई. नेहा को उस की सहेलियों ने घेर रखा था. हम लोग भी वहीं खड़े हो कर वरमाला का इंतजार करने लगे. नेहा आसमान से उतरी एक परी की तरह दिख रही थी. दुलहन के लिबास में उस का रंगरूप और भी निखर गया था. कुछ देर बाद वरमाला के लिए नेहा का बुलावा आ गया.

नेहा नैना और अपनी दूसरी सहेलियों के साथ स्टेज की ओर धीरेधीरे बढ़ रही थी. दीदी सहित हम सभी औरतें उन से थोड़ी दूरी पर चल रहे थे. मैं ने अपना चश्मा अब पहन लिया था. स्वागत के समय दूल्हे को ठीक से देख न पाई थी. नेहा ने वरमाला पहनाई. सभी लोगों ने तालियां बजाईं. अब दूल्हे की बारी थी. उस ने भी वरमाला नेहा के गले में पहना दी. एक बार वापस तालियों की गड़गड़ाहट फिर से गूंज उठी. वरमाला पहनाने की रस्म पूरी होते ही दूल्हादुलहन स्टेज पर बैठ गए. अब दोनों को सामने से देख सकते थे. दूल्हे का चेहरा जानापहचाना सा लग रहा था मुझे.

लगभग 2 बजे नेहा अंदर आ गई. फेरों की तैयारियां शुरू हो गईं. पंडितजी अपने आसन पर बैठ गए. दूल्हा फेरों के लिए बैठ चुका था. पंडितजी ने अपना काम प्रारंभ कर दिया. कुछ देर बाद नेहा को भी बुलवा लिया. अधिकतर मेहमान उस समय तक विदा हो चुके थे. घर के लोग और कुछ निजी रिश्तेदार ही रुके थे. निजी रिश्तेदारों में भी हमारा परिवार ही जाग रहा था. बाकी लोग खाना खा कर सो चुके थे. सभी को अगले दिन जाना ही था.

क्या नेहा ससुराल जाकर खुश हुई?

सुबह 4 बजे नेहा की विदाई हो गई. घर में गिनती के लोग रह गए थे. पूरा घर सूनासूना लग रहा था. नैना एक कमरे में उदास बैठी थी. मैं नाश्ते की व्यवस्था करने के लिए रसोईघर में थी. दीदी भी नैना के पास ही बैठी थीं. रातभर जागने के बाद भी किसी का सोने का मन नहीं था. घर में रौनक लड़कियों के कारण ही होती है, आज सभी यह महसूस कर रहे थे.

पग फिराई की रस्म के लिए नेहा कल घर वापस आने वाली थी. घर को व्यवस्थित भी करना था. सब का नाश्ता हुआ, तब तक नैना और दीदी ने मिल कर घर की सफाई कर ली. ऊपर वाला कमरा मेहमानों के विश्राम के लिए रखा था. 11 बजे वे लोग आ गए- नेहा, प्रतीक और एकदो रिश्तेदार. उन के आते ही सब लोग उन के स्वागत में जुट गए. लड़की की ससुराल से पहली बार मेहमान घर आए थे. चाव ही अलग था. हम लोग नेहा के साथ व्यस्त हो गए. नैना और उस के पापा प्रतीक और बाकी मेहमानों के साथ ऊपर वाले कमरे में चले गए. जीजाजी ने बहुत रोका परंतु दोपहर का खाना खा कर नेहा को ले कर वे लोग लगभग 4 बजे रवाना हो गए.

हम ने जाने के लिए कहा तो दीदी ने रोना शुरू कर दिया, ‘‘भाभी, मैं अकेली रह गई हूं अब. आप तो जानते हो नेहा भी अभी जल्दी नहीं आने वाली वापस. आप को कुछ और दिन रुकना ही होगा.’’

उन्होंने जिद पकड़ ली. नैना, उस के पापा और मांजी और पिताजी उसी दिन शाम को घर लौट गए. मैं दोचार दिन के लिए रुक गई. सब के जाने के बाद दीदी ने नेहा की ससुराल से आया सामान खोला. सभी के लिए कुछ न कुछ उपहार दिया था उस की ससुराल वालों ने. मेरे लिए भी. मेरा पैकेट हाथ में दे कर दीदी बोलीं, ‘‘भाभी, घर जा कर खोलना भैया और नैना के उपहार के साथ.’’ मुझे उन की बात ठीक लगी. मन में एक प्रश्न जरूर था, ‘लड़की की ससुराल से इतने उपहार?’ प्रश्न मन में रख कर पैकेट अपने सूटकेस में रख लिए.

जब रोकना चाहें तो समय पंख लगा कर उड़ता है. शनिवार को सुनील मुझे ले जाने के लिए आए. दीदी बहुत उदास थीं. परंतु अब रुकना संभव नहीं था. नैना को भी जाना था. उसे नौकरी मिल गई थी स्नातकोत्तर के अंतिम वर्ष में ही. नेहा की शादी के कारण उस ने जाने का समय कुछ दिन बाद रखा था. रविवार सुबह ही हम घर के लिए रवाना हो गए.

घर जा कर देखा तो मांजी घर पर अकेली थीं. टीवी देखते हुए सब्जी काट रही थीं. उन के चरण स्पर्श कर के मैं ने नैना के बारे में पूछा. उन्होंने थोड़ा रोष से जवाब दिया, ‘‘किसी दोस्त के घर पर गई होगी. तुम्हारे पीछे घर पर रुकती ही कहां है? आजकल की लड़कियां थोड़ा पढ़लिख जाएं तो नौकरी तलाश कर लेती हैं. घर के कामकाज तो छोड़ो, घर पर रहना ही उन्हें नहीं भाता है.’’

मेरे बोलने से पहले ही सुनील ने बात खत्म करने के उद्देश्य से कहा, ‘‘आ जाएगी मां. किसी काम से ही गई होगी. जब जिम्मेदारी सिर पर आती है, सब निभाना सीख जाते हैं.’’ इन की बात खत्म होते ही नैना आ गई.

‘‘लो दादी, तुम्हारी दवाइयां. बहुत दूर से मिलीं,’’ दवाई दादी के पास रख कर उस ने कहा और आ कर मुझ से लिपट गई.

‘‘तुम्हारे बिना घर पर मन ही नहीं लगता मां,’’ उस ने मुझ से लिपट कर कहा. फिर थोड़ा सामान्य हो कर बोली, ‘‘मेरा उपहार तो दो जो नेहा की ससुराल वालों ने दिया है. जल्दी दो न मां.’’

‘‘ठीक है, मुझे छोड़ो और मेरे पर्स से चाबी ले लो. सूटकेस खोल कर सब के पैकेट निकाल लो.’’

मैं ने उसे अपने से अलग करते हुए कहा, ‘‘मां, अपना पैकेट तुम खोलो. पापा का उन को देती हूं.’’

मेरा पैकेट दे कर नैना मांजी को अपना उपहार दिखाने चली गई. मैं पैकेट हाथ में ले कर कमरे की ओर बढ़ गई. कपड़े भी बदलने थे. पहले पैकेट खोल लेती हूं. बेचैन रहेगी तब तक यह लड़की. मैं ने मन में सोचा. खोला तो सब से पहले एक पत्र था. लिफाफे में था. परंतु पोस्ट नहीं किया गया था. सकुचाते हुए मैं ने लिफाफे से पत्र निकाला.

‘‘मां,

‘यह मेरा आखिरी खत है. इस के बाद तो मैं आप से मिलता ही रहूंगा. मैं ने नेहा से इसीलिए शादी की है कि आप के संपर्क में रह पाऊं. नेहा बहुत अच्छी लड़की है परंतु आप से झूठ नहीं बोल सकता हूं.

‘‘क्या आप को अपना शीलू याद है मां? मैं एक दिन भी आप को नहीं भूला हूं. दादादादी मुझे बहुत प्यार करते हैं. चाचाचाची ने मुझे अपने पास विदेश में रख कर काबिल बनाया. मुझे उन से कोई शिकायत नहीं है मां. बस, यह जानना चाहता हूं कि तुम मुझे छोड़ कर क्यों गईं? क्या मजबूरी थी मां? पापा के जाने के बाद मैं आप के साथ था. फिर आप ने मुझे क्यों छोड़ा, मां वह भी बिना बताए. अब तो आप को बताना ही पड़ेगा मां. मैं आप के जवाब का इंतजार करूंगा.

‘आप का राजा बेटा,

‘शीलू.’

मेरी आंखों से आंसू टपटप गिर रहे थे. पत्र पूरा भीग चुका था. ‘लू, मेरा बेटा’. मुंह से निकला और मैं फफकफफक कर रो पड़ी. सालों पुराने जख्म हरे हो चुके थे. कुछ देर के लिए चेतना शून्य हो गई थी मेरी. बस, बोलती जा रही थी, ‘मैं तुम्हें कैसे बताती बेटा, तुम बहुत छोटे थे. तुम्हारी दादी का ही निर्णय था यह. दुर्घटना में तुम्हारे पिता की मृत्यु के बाद भी मैं उन लोगों के साथ ही रहना चाहती थी, तुम्हें ले कर रह भी रही थी. एक दिन के लिए भी उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं गई. तुम्हारे नाना के घर भी नहीं. तुम्हारी दादी ने ही बुलाया था उन्हें.

‘घर बुला कर कहा था कि यदि अपनी बेटी का पुनर्विवाह नहीं कर सकते हो तो कोई लड़का देख कर हम ही कर देंगे. छोटे बेटे की शादी के बाद हम शीलू को ले कर उस के साथ विदेश चले जाएंगे. इसलिए शीलू की चिंता करने की जरूरत नहीं है. एक वाक्य में तुम्हें मुझ से अलग कर दिया था उन्होंने.’

तभी सुनील अंदर आए. उन्हें देख कर मैं फिर से रो पड़ी. ‘‘तुम तो सब जानते हो सुनील. तुम तो भैया के करीबी दोस्त थे न. शादी से ले कर खाली हाथ वापस घर आने तक सब तुम ने अपनी आंखों से देखा है, कानों से सुना है. किस तरह अपमानित कर के मुझे घर से निकाल दिया था उन्होंने. आखिरी बार शीलू से मिलने भी नहीं दिया था. देखो, यह चिट्ठी देखो.’’

‘‘अरे हां, देख रहा हूं भाई.’’ उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कुछ भी भूला नहीं हूं. अब उठो. वर्तमान में आओ. शीलू ने तुम्हें हमेशा के लिए ढूंढ़ लिया है. मैं नेहा की शादी से पहले से जानता हूं कि प्रतीक ही शीलू है.’’

मैं हतप्रभ उन्हें देख रही थी. नैना भी तब तक कमरे में आ चुकी थी, बोली, ‘‘मां, अगले हफ्ते नेहा और प्रतीक आ रहे हैं घर पर. हनीमून के लिए जाते हुए वे हम लोगों से मिलते हुए जाएंगे. उठो मां, बहुत सी तैयारियां करनी हैं उन के स्वागत की.’’

सब की आवाज सुन कर मांजी भी कमरे में आ गईं. मैं उठने लगी तो वे बोलीं, ‘‘बेटा, दोनों भाईबहनों ने मुझे मना किया था तुम्हें बताने के लिए. इसीलिए मैं चुप रही. मुझे माफ करना. पहले बता दिया होता तो तुम्हारा दिल तो नहीं दुखता.’’

मैं ने उठ कर उन के पैर पकड़ लिए, बोल पड़ी, ‘‘मां, तुम ने तो मेरा दिल हमेशा के लिए खुश कर दिया है. आज जिंदगी को फिर से देखा. एक वह मां थी. एक यह मां है. एक वह समय था जब शीलू को मुझ से मिलने ही नहीं दिया गया. एक यह समय है जब शीलू मुझ से मिलने आने वाला है.’’

‘शीलू से मिल कर, उसे अपने सीने से लगा कर, उस की सारी शिकायतें दूर कर दूंगी. मेरे बेटे, तू ने अपनी मां को आज जीवन की वे खुशियां दी हैं, जो मुझ से छीन ली गई थीं. शीलू, मेरे बेटे जल्दी आ,’ मेरा मन सोचते हुए खुशी से भरा जा रहा था.

Hindi Story: मरीचिका – वरूण को मिला प्रकृति और मानवता की सेवा का परिणाम

Hindi Story: सुबह के सूरज की लाली आसमान पर फैल रही थी और हमेशा की तरह अदरक वाली चाय की चुस्कियों का आनंद लिया जा रहा था कि एक वाक्य गूंजा- “सुनो मीनू, आज नाश्ता कर के मुझे मोहन के साथ उन के लिए नया मकान देखने जाना है.”

वरुण ने यह कहा ही था कि मीनू उस का चेहरा देखती ही रह गई. “मतलब, मकान देखने, क्यों, उन के पास है न घर जहां वे 10 वर्षों से रह रहे हैं?” मीनू ने आश्चर्य प्रकट करते पूछ लिया.

“हां मीनू, वह मकान पुराने समय का है. तब वे एक साधारण बीमा दलाल थे. पर अब तो वे एक सफल कारोबारी हो गए हैं. खूब रुपया बरस रहा है. अब उन के परिचय में नएनए लोग जुड़ रहे हैं. अपने जैसे ऊंचेऊंचे लोगों के साथ ठाठ से रोब जमाना है तो अब उन को घर भी बड़ा चाहिए. मीनू, आर्थिक सबलता आज एक जादुई ताकत बन गई है. यह हमारे जीवन को उस के सभी सिद्धांतों से परे ले जाती है जहां हम मन के भावों में बेपरवाह भिगोना चाहते हैं और उन में अपने मन जैसे ही किसी साथी को भागीदार बनाना चाहते हैं.”

“हूं, सही कहा. बिलकुल सही.”

वरुण ने आगे बताया कि वह जाना नहीं चाहता था पर फोन कर के उन्होंने निवेदन किया है.

“अच्छा, फिर तो जाना चाहिए,” मीनू यह जवाब दे कर मन ही मन सोचने लगी कि वह मोहन के परिवार को 10 वर्षों से बखूबी जानती थी. एक छोटा सा घर और साधारण जीवन, मगर कितना आनंद था उस जीवन में. वे सब हर रविवार को पिकनिक के लिए जाते, ‘अपना बाजार’ से खरीदारी कर के खुशीखुशी लौट आते. लेकिन पिछले 2 वर्ष ऐसे निकले कि मोहन के दर्शन ही दुर्लभ हो गए थे.

वे और उन की पत्नी दोनों ने मिल कर टैंट एंड डैकोरेटर्स का काम शुरू कर दिया था. अब दोनों हर समय रूपया जमा कर रहे थे, भड़कीली, शानदार दावतों में शामिल हो रहे थे और मंहगी दावतें दे भी रहे थे कभी शहर के मेयर को कभी कमिश्नर को तो कभी रेलवे और नगर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन को.

मीनू देख रही थी कि वे दोनों किस तरह इस कुटिल बाजार की धूर्तता का शिकार हो रहे थे. वे एक जाल में फंस रहे थे. उन का हर काम अब रुपएपैसे से जुड़ा था. उन की यही मजबूरी हो गई थी, इसीलिए अब उन के संपर्क में न तो सीधेसादे दोस्त थे न ही उन की दिनचर्या सहज व सरल थी.

वापस लौट कर वरुण ने मीनू को बताया, “बहुत ही पौश इलाके में घर फाइनल कर दिया है.” मीनू चकित थी कि वरुण का तो ऐसा रुझान ही नहीं है, तब भी उन्होंने वरुण को बुलाया. उसे और वरुण को तो महंगे घरों की जानकारी है ही नहीं. उस ने अपने मन में उठ रहा यह सवाल पूछ लिया तो वरुण ने जवाब दिया, “अरे, मुझे वे अपना लकी चार्म मानते हैं, इसलिए बुलाया. वहां पर दोचार नामचीन कारोबारी उन के साथ थे.”

“अच्छा,” मीनू को यह बात सही लगी. ऐसा पहले भी हुआ था जब मोहन ने अपना दफ्तर शुरू किया था.

“मीनू, उन का घर बिलकुल फिल्मी स्टाइल में तैयार किया गया है. एक चर्चित अभिनेत्री है न, बिलकुल उसी के घर की फोटोकौपी है.”

“अच्छा,” कह कर मीनू ने प्रतिक्रिया दी पर वह आगे और कुछ भी न बोली. बस, मन में सोचती रही कि हर इंसान की संरचना अलग है, दिमागी रसायन भी एकदूसरे से बिलकुल जुदा. ऐसे में लोकप्रिय अभिनेता का बाथरूम और बाथटब किसी अन्य के लिए कैसे मुफीद हो सकता है? अगर अभिनेत्री जैसा वार्डरोब नहीं होगा तो बाजार यह कहेगा कि आप को तो पहननेओढ़ने तक का सलीका नहीं मालूम.

वह अपनेआप से कहती रही कि घर तो हमारे सिर पर एक आशीष होता है. थके तनमन को एक कोमल सी थपकी कब पसंद नहीं. हम को बहुत सुकून देने वाले इस घर के साथ हमारी चुस्ती, खुमारी, गपशप, उपलब्धि, चहलपहल, बेचैनी, नींद, करवट, सपने आदि के खट्टेमीठे सारे ही अनुभव गूंजा करते हैं. हमारे मुंदे हुए 2 नैना और उन के सपनों का अथाह संसार हमेशा गहरी नींद में कहे गए कुछ साफ व धुंधले शब्द सब एक घर की स्मृतियों में हमेशाहमेशा सहेजे हुए रहते हैं. वहां नकल का क्या काम भला?  खैर, सब की अपनी सोच है.

“तो फिर, हम भी एक नया घर बुक करा लें?” वरुण ने उस की तरफ देख कर पूछा तो मीनू ने कहा, “वरुण, मेरे लिए तो यह घर पर्याप्त है. मुझे किसी भी तरह का कोई दिखावा या आडंबर नहीं करना है. हां, अगर तुम को यह घर असहज लगता हो तो वह अलग बात है.”

यह सुन कर वरुण जोर से हंस पड़ा और मुसकराते हुए बोला, “मीनू, इस का मतलब यह हुआ कि हम दोनों एक सी सोच रखते हैं. देखो न, तमाम कोशिश कर के, लोन जुटा कर और अपने

गाढे़पसीने की कमाई से हासिल यह घरौंदा हमारी हर रुचि को दिखाता है. तुम ने छत पर इतनी सुंदर नर्सरी बना रखी है कि बड़ेबड़े बंगले वाले तुम से प्रेरणा लेते हैं कि घर को कम जगह में भी शानदार कैसे बनाया जा सकता है. यही घर हम दोनों की वास्तविकता है.”

मीनू को यह सुन कर बहुत तसल्ली मिली और वह सीढ़ियां चढ़ कर छत पर चली गई. शाम को महाविद्यालय के कुछ शोध छात्र आ कर उस के पौधे देख अपनी रिपोर्ट तैयार करना चाहते थे.

मीनू इस तरह खूब व्यस्त रहती थी. रोजाना 4 घंटे का समय वह छत पर इन पौधों को दिया करती थी. पौधे भी ऐसे सुंदर और स्वस्थ थे कि देखते ही मन मोह लेते थे. उन्हें बारबार देख कर भी मन नहीं भरता था.

दिन यों ही सार्थक ढंग से गुजर रहे थे कि कुछ दिनों बाद मोहन ने फोन किया. उन के बेहद आग्रह पर मीनू और वरुण उन का आशियाना देखने गए. बहुत दुख हुआ कि उन के इतने अच्छे दोस्त अब एक अजीबोगरीब बनावटी घर में रहने लगे थे जो उन दोनों पर थोपा हुआ सा लगता था, उस पर तुर्रा यह कि वे दोनों, उस को मेरा आशियाना, मेरे सपनों का घर कहते हुए जरा सा भी न हिचक रहे, न अटक रहे थे.

मीनू और वरुण वहां अधिक देर तक नहीं रुके, जल्द वापस आ गए. जैसे ही घर पहुंचे, तो स्थानीय टीवी चैनल वाले गेट पर ही मिल गए. कालोनी वालों ने नई प्राकृतिक स्टोरी के लिए मीनू का नाम प्रस्तावित किया था. इसलिए वे मिलने आए थे और उस की छत पर जा कर नर्सरी का वीडियो बनाना चाहते थे.

उन की बात सुन कर मीनू दंग रह गई. उस का प्रकृतिप्रेम आज उस को कितनाकुछ दे रहा था. साथ ही, कालोनीवासियों का कितना लाड़प्यार था. वरना, वह तो ब्रेकिंग न्यूज, सनसनी खबर आदि से हमेशा दूर ही भागती थी.

मीनू ने टीवी चैनल की पूरी टीम को कुछ गमले उपहार में दिए. वे सब इतने खुश हो गए जैसे आज उन को सोनाचांदी ही मिल गया. वे जातेजाते यह बोलते गए कि “सच कहा जाए तो यह जीवन कुछ सीमित सांसों का एक खेल ही है जो कभी भी किसी समय भी खत्म हो सकता

है. इस खेल को अपने दिल की तरंगोंउमंगों के अनुसार खेला, तो शानदार है. और यही सही भी है. आप एक बेहतरीन जीवन जी रही हैं मीनू जी.”

यह सुन कर मीनू मन ही मन बहुत शरमा गई.

टीवी पर अपनी मां की स्टोरी देख कर बच्चे बहुत खुश हो गए. मीनू तो उन की नजर में एक हीरोइन हो गई थी.

वैसे भी, दोनों बच्चे अपने स्कूल में मां मीनू के कारण भी जाने जाते थे. एक बार भारी बारिश में पूरे शहर की नर्सरी बंद थीं. तब एक समारोह के लिए मीनू ने ही ताजे फूलों के गुलदस्ते बना कर दिए थे. उस दिन तो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भी बारबार उन फूलों को छू कर देख रहे थे.

फिर तो स्कूल प्रोजैक्ट वगैरह में उन के दोस्त भागभाग कर मीनू आंटी की छत पर आ जाते और वहां पर 200 गमलों से अपने लिए खजाना बटोर कर ले जाते. इसी तरह कुछ और दिन गुजर गए.

एक शाम मोहन सपत्नीक अचानक उन के घर पर आ गए. उन का उतरा हुआ चेहरा व उन की उदास आवाज से मीनू और वरुण चौंक गए कि आखिर माजरा क्या है? पता लगा कि उन को करोड़ों की चपत लग गई थी.

मामला यह था कि 3 अलगअलग विशाल सरकारी समारोह होने थे. उन आयोजनों मे किसी दलाल के भरोसे इन्होंने सप्ताहभर की सजावट का सामान भिजवाया और उस दलाल ने इन से बिल भी बनवा लिया यह कह कर कि भुगतान जल्दी करवा दूंगा. लंबाचौड़ा भुगतान होना था. पर अब भुगतान ले कर वह भूमिगत हो गया और इन की हालत पतली है. इन को करोड़ों की भारी चपत लग गई. उन का पिछला भी उसी दलाल के पास बहुत बकाया पड़ा था.

3 दिनों पहले ही मोहन ने मेयर की दावत में भी 2 लाख रुपए अपनी जेब से खर्च कर दिए थे यह सोच कर कि करोड़ रुपए का भुगतान आ ही रहा है. अब उन दोनों को कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि करें तो क्या करें.

उस समय वहां मीनू के बडे़ भाई भी शिमला से आए हुए थे. वे भी यह सब कहानी सुन कर भौचक्के रह गए. मीनू ने उन को मन शांत रखने की सलाह दी और पहले ठंडा पानी व फिर कड़क चाय भी पिलाई. उस के बाद मीनू के बडे़ भाई ने उन को विस्तार से बताया कि लगभग 30 वर्षों से वे भी टैंट तथा डैकोरेशन का कारोबार कर रहे हैं पर आज तक कोई गड़बड़ी नहीं हुई.

“अच्छा,”  मोहन उन को अचंभे से देखने लगे.

“जी हां, मैं सरकारी और्डर तब लेता हूं जब सरकारी विभाग से लिखित कागज मिल जाता है. इस तरह सब काम पारदर्शी होता है. दलाल वगैरह के लालच में बंधने को तत्पर हम अपने कारोबार के सिद्धांत का मौलिक रूप मिटा रहे होते हैं. कारोबार में इस तरह साख खराब हो जाती है. लोग भरोसा नहीं करते. और फिर, अपनेअपने विचार हैं. जल्दीजल्दी खूब रुपया कमाना तो मेरा शौक नहीं रहा मगर आप को हंसी आएगी कि 30 लोगों का स्टाफ है, फिर भी 20 लाख रुपए सालाना की आय है. और यह हमारी जरूरत से ज्यादा है. खूब बचत हो जाती है. और मुझे आज तक किसी तिकड़म में नहीं फंसना पडा़.”

“अच्छा,” कह कर वे दोनों चुप सुनते रहे. मीनू को यह दिल से महसूस हुआ कि उन के घर पर कुछ देर रुक कर उन दोनों का मन काफी हलका हो गया था.

कुछ क्षण चुप रहने के बाद “अच्छा, फिर मिलते हैं,” कह कर उन्होंने विदा ली.

मीनू ने साफ देखा कि वे दोनों उस के भाई को कितने आदर व प्रेम से नमस्कार कर रहे थे.

एक महीने बाद एक और खबर मिली. जिस कालोनी में मीनू और वरुण रहते थे वहां एक छोटा सा घर बिकाऊ था. पता लगा कि मोहन वहां रहने लगे थे. मीनू और वरुण दौड़ेदौड़े उन से मिलने गए, तो देख कर दंग रह गए कि वे दोनों खुद ही सारे काम कर रहे थे. इतने सादे और शालीन सजावट वाले घर में वे रहने लगे थे और दोनों के मुखडे़ भी दमक रहे थे.

मीनू और वरुण भी उन की सहायता करने लगे. गपशप भी होती रही. बातोंबातों में उन्होंने बताया कि टैंट वाला पूरा काम उन्होंने अब किसी को बेच दिया है, साथ ही, कीमती मकान भी बेच दिया है. अब उसी पूंजी से कुछ नई शुरुआत होगी. फिर जरा सा रुक कर वे बोले कि कुछ समय तक तो वे दोनों लंबी छुट्टी मनाना चाह रहे हैं.

“ओह, तो आप विदेश जा रहे हैं न,” मीनू ने सहज ही कहा.

“नहीं मीनू, अब वह सब हम को सुकून नहीं देता. फिलहाल तो सिर्फ अच्छी किताबें पढ़ कर और घर पर रह कर चिंतनमनन करना चाहते हैं. जल्द ही कुछ अच्छा होगा, नया काम शुरू करेंगे.”

“हां, हां, बिलकुल होगा,” मीनू उन के सुर में सुर मिला कर बोली.

मीनू मन ही मन उन दोनों के लिए मंगलकामना करने लगी.

एक महीने बाद बड़ा ही सुखद समाचार मिला. वरुण ने बताया कि उन दोनों ने 20 बीघा का खेत खरीद लिया है. उस में वे एक हर्बल बगीचा विकसित कर रहे हैं. जहां गिलोय, तुलसी, नीम आदि की पैदावार होगी.

यह सचमुच एक शानदार काम था प्रकृति की और मानवता की सेवा का. मीनू और वरुण ने मिल कर उन को बधाई दी. अपने उन दोस्तों पर अब उन दोनों को गर्व था.

Hindi Story: हिम्मत वाली लड़की

Hindi Story: ‘‘अरे राशिद, आज तो चांद जमीन पर उतर आया है,’’ मीना को सफेद कपड़ों में देख कर आफताब ने फबती कसी.

मीना सिर झुका कर आगे बढ़ गई. उस पर फबतियां कसना और इस प्रकार से छेड़ना, आफताब और उस के साथियों का रोज का काम हो गया था. लेकिन मीना सिर झुका कर उन के सामने से यों ही निकल जाया करती. उसे समझ नहीं आता कि वह क्या करे? आफताब के साथ हमेशा 5-6 मुस्टंडे होते, जिन्हें देख कर मीना मन ही मन घबरा जाती थी.

मीना जब सुबह 7 बजे ट्यूशन पढ़ने जाती तो आफताब उसे अपने साथियों के साथ वहीं खड़ा मिलता और जब वह 8 बजे वापस आती तब भी आफताब और उस के मुस्टंडे दोस्त वहीं खड़े मिलते. दिनोदिन आफताब की हरकतें बढ़ती ही जा रही थीं.

एक दिन हिम्मत कर के मीना ने आफताब की शिकायत अपने पापा से की. मीना की शिकायत सुन कर उस के पापा खुद उसे ट्यूशन छोड़ने जाने लगे. उस के पापा को इन गुंडों की पुलिस में शिकायत करने या उन से उलझने के बजाय यही रास्ता बेहतर लगा.

एक दिन मीना के पापा को सवेरे कहीं जाना था इसलिए उन्होंने उस के छोटे भाई मोहन को साथ भेज दिया. जैसे ही मीना और मोहन आफताब की आवारा टोली के सामने से गुजरे तो आफताब ने फबती कसी, ‘‘अरे, यार अब्दुल्ला, आज तो बेगम साले साहब को साथ ले कर आई हैं.’’

यह सुन कर मोहन का खून खौल गया. वह आफताब और उस के साथियों से भिड़ गया, पर वह अकेला 5 गुंडों से कैसे लड़ता. उन्होंने उस की जम कर पिटाई कर दी. महल्ले वाले भी चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे, क्योंकि कोई भी आफताब की आवारा मित्रमंडली से पंगा नहीं लेना चाहता था.

शाम को जब मीना के पापा को इस घटना का पता चला तो उन्होंने भी चुप रहना ही बेहतर समझा. मोहन ने अपने पापा से कहा, ‘‘पापा, यह जो हमारी बदनामी और बेइज्जती हुई है इस की वजह मीना दीदी हैं. आप इन की ट्यूशन छुड़वा दीजिए.’’

मोहन के मुंह से यह बात सुन मीना हतप्रभ रह गई. उसे यह बात चुभ गई कि इस बेइज्जती की वजह वह खुद है. उसे उन गुंडों के हाथों भाई के पिटने का बहुत दुख था. लेकिन भाई के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उस का कलेजा धक रह गया. वह सोच में पड़ गई कि वह क्या करे? सोचतेसोचते उसे लगा कि जैसे उस में हिम्मत आती जा रही है. सो, उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब उसे क्या करना है? उस ने उन आवारा टोली से निबटने की सारी तैयारी कर ली.

अगले दिन सवेरे अकेले ही मीना ट्यूशन के लिए निकली. उस ने न अपने भाई को साथ लिया और न ही पापा को. जैसे ही मीना आफताब की आवरा टोली के सामने से गुजरी उन्होंने अपनी आदत के अनुसार फबती कसते हुए कहा, ‘‘अरे, आज तो लाल गुलाब अंगारे बरसाता हुआ आ रहा है.’’

इतना सुनते ही मीना ने पूरी ताकत से एक तमाचा आफताब के गाल पर जड़ दिया. इस झन्नाटेदार तमाचे से आफताब के होश उड़ गए. उस के साथी भी एकाएक घटी इस घटना से ठगे रह गए. इस से पहले कि आफताब संभलता मीना ने दूसरा तमाचा उस की कनपटी पर जड़ दिया. तमाचा खा कर आफताब हक्काबक्का रह गया. वह उस पर हाथ उठाने ही वाला था कि तभी पास खड़े एक आदमी ने उस का हाथ पकड़ते हुए रोबीली आवाज में कहा, ‘‘खबरदार, अगर लड़की पर हाथ उठाया.’’

यह देख आफताब के साथी वहां से भागने की तैयारी करने लगे, तभी उन सभी को उस आदमी के इशारे पर उस के साथियों ने दबोच लिया.

आफताब इन लोगों से जोरआजमाइश करना चाहता था. तभी वह आदमी बोला, ‘‘अगर तुम में से किसी ने भी जोरआजमाइश करने की कोशिश की तो तुम सब की हवालात में खबर लूंगा. इस समय तुम सब पुलिस की गिरफ्त में हो और मैं हूं इंस्पेक्टर जतिन.’’

यह सुन कर उन आवारा लड़कों की पांव तले जमीन खिसक गई. उन के हाथपैर ढीले पड़ गए. इंस्पेक्टर जतिन ने मोबाइल से फोन कर मोड़ पर जीप लिए खड़े ड्राइवर को बुला लिया. फिर उन्हें पुलिस जीप में बैठा कर थाने लाया गया.

तब तक मीना के मम्मीपापा और भाई भी थाने पहुंच गए. इंस्पेक्टर जतिन उन्हें वहां ले गए जहां मीना अपनी सहेली सरिता के साथ बैठी हंसहंस कर बातें करती हुई नाश्ता कर रही थी.

इस से पहले कि मीना के मम्मीपापा उस से कुछ पूछते, इंस्पेक्टर जतिन खुद ही बोल पड़े, ‘‘देवेश बाबू, इस के पीछे मीना की हिम्मत और समझदारी है. कल मीना ने सरिता को फोन पर सारी घटना बताई. तब मैं ने मीना को यहां बुला कर योजना बनाई और बस, आफताब की आवारा टोली पकड़ में आ गई.

‘‘देवेश बाबू, एक बात मैं जरूर कहना चाहूंगा कि इस प्रकार के मामलों में कभी चुप नहीं बैठना चाहिए. इस की शिकायत आप को पहले ही दिन थाने में करनी चाहिए थी. लेकिन आप तो मोहन की पिटाई के बाद भी बुजदिल बने खामोश बैठे रहे. तभी तो इन गुंडों और समाज विरोधी तत्त्वों की हिम्मत बढ़ती है.’’

यह सुन कर मीना के मम्मीपापा को अफसोस हुआ. मोहन धीरे से बोला, ‘‘अंकल, सौरी.’’

‘‘मोहन बेटा, तुम भी उस दिन झगड़े के बाद सीधे पुलिस थाने आ जाते तो हम तुरंत कार्यवाही करते. पुलिस तो होती ही जनता की सुरक्षा के लिए है. उसे अपना मित्र समझना चाहिए.’’

इंस्पेक्टर जतिन की बातें सुन कर मीना के मम्मीपापा व भाई की उन की आंखें खुल गईं. वे मीना को ले कर घर आ गए. इस हिम्मतपूर्ण कार्य से मीना का मानसम्मान सब की नजरों में बढ़ गया. लोग कहते, ‘‘देखो भई, यही है वह हिम्मत वाली लड़की जिस ने गुंडों की पिटाई की.’’

अब मीना को छेड़ना तो दूर, आवारा लड़के उसे देख कर भाग खड़े होते. मीना के हौसले की चर्चा सारे शहर में थी अब वह सब के लिए एक उदाहरण बन गई थी.

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