प्रीति ने चश्मा साफ कर के दोबारा बालकनी से नीचे झांका और सोचने लगी, ‘नहीं, यह सपना नहीं है. रेणु सयानी हो गई है. अब वह दुनियादारी समझने लगी है. रोनित भी तो अच्छा लड़का है. इस में गलत भी क्या है, दोनों एक ही दफ्तर में हैं, साथसाथ तरक्की करते जाएंगे, बिना किसी कोशिश के ही मेरी इतनी बड़ी चिंता खत्म हो गई.’

रात को खाने के बाद प्रीति दूध देने के बहाने रेणु के कमरे में जा कर बैठ गई और बात शुरू की, ‘‘बेटी, रोनित के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?’’

रेणु ने चौंक कर मां की तरफ देखा तो प्रीति शरारतभरी मुसकान बिखेर कर बोली, ‘‘भई, हमें तो रोनित बहुत पसंद है. हां, तुम्हारी राय जानना चाहते हैं.’’

‘‘राय, लेकिन किस बारे में, मां?’’ रेणु ने हैरानी से पूछा.

‘‘वह तुम्हारा दोस्त है. अच्छा, योग्य लड़का है. तुम ने उस के बारे में कुछ सोचा नहीं?’’

‘‘मां, ऐसी भी कोई खास बात नहीं है उस में,’’ रेणु अपने नाखूनों पर उंगलियां फेरती हुई बोली, फिर वह चुपचाप दूध के घूंट भरने लगी.

लेकिन रेणु के इन शब्दों ने जैसे प्रीति को आसमान से जमीन पर ला पटका था, वह सोचने लगी, ‘क्या वक्त अपनेआप को सदा दोहराता रहता है? यही शब्द तो मैं ने भी अपनी मां से कहे थे. विजय मुझे कितना चाहता था, लेकिन तब हम दोनों क्लर्क थे...’

प्रीति तेज रफ्तार जिंदगी के साथ दौड़ना चाहती थी. विजय से ज्यादा उसे अपने बौस चंदन के पास बैठना अच्छा लगता था. वह सोचती थी कि अगर चंदन साहब खुश हो गए तो उस की पदोन्नति हो जाएगी.

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