एक तीर कई शिकार: भाग 3

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कई सवालों की बेल मेरा सवाल था— ‘‘नताशा, यदि निरंजन मर चुका होता तो उस की पूरी संपत्ति तुम्हारी होती. क्योंकि उस की पहली बीवी का कोई अतापता नहीं है. तो अचानक निरंजन को जिंदा देख कर तुम्हें लगा नहीं कि मुसीबत वापस कैसे आई?

‘‘क्योंकि तुम तो यही जानती थी कि वह मर चुका था. जिस

किसी ने भी मारा हो, आखिर लाश तो पुलिस तुम्हारे घर से ले गई थी. दूसरे क्या तुम अब खुश हो कि तुम हत्या के आरोप से छूट सकती हो?’’

‘‘मैं ने किसी की भी हत्या तो की नहीं थी, इसलिए मेरे छूट जाने का मुझे पूरा विश्वास था. लेकिन उस के आने से मेरी पुरानी मुसीबत के दोहराव की पूरी संभावना न हो, इस का डर था.’’

‘‘कौन सी मुसीबत?’’

‘‘गुलामी.’’

मैं दूसरे सवाल पर आ गई, ‘‘नताशा क्या तुम जानती हो कि हम ने जान लिया है कि पिछले दिनों तुम ने ही उन खूनियों को निरंजन की इस कोठी में आसरा दिया और पुलिस को इस बारे में इत्तला भी नहीं दी? जबकि तुम जानती हो हत्या उस ने की है.’’

‘‘उसे पैसे और रहने के लिए सुरक्षित आसरा चाहिए था. वह आसानी से मुझे अपनी कोठी और दुकान नहीं देना चाहता था. वैसे भी इस के बिना 30 साल की जहरा भला उस के साथ कितने दिन रहती? फिर अली बाबर भी पैसे के लिए अपनी बीवी को निरंजन के हवाले करने से गुरेज नहीं करता था. तो इसे अली बाबर को भी पैसे देने होते थे.’’

‘‘उस ने तुम से संपर्क कब साधा?’’

‘‘आप के मुझ से बात कर के चले जाने के लगभग महीने भर बाद वह और जहरा आए थे. मैं बेतरह चौंक पड़ी थी, कहा उस के रहने के लिए उसे कोठी में बने सुसज्जित तहखाना दे दूं. जैसे मैं दुकान संभाल रही हूं, वैसे ही संभालती रहूं, कोठी में भी अपना आधा हिस्सा समझूं.

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‘‘बस जहरा के साथ मुझे उस के रिश्ते में परेशानी न हो और उसे कमाई का सारा हिसाब बताती रहूं साथ ही उस के डिमांड को पूरा करती रहूं. अगर इस बीच उसे धोखे में रख कर कोई कदम उठाया तो वह मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा.’’

‘‘तो तुम मान गई?’’

‘‘मेरे सामने वापसी का कोई चारा नहीं था. उधर मेरी मां मर चुकी थी. किराए का घर था जो हाथ से जा चुका था. इन की बात नहीं मानती तो ये दोनों मिल कर मेरा कत्ल कर देते.’’

पुलिस अब निरंजन से मुखातिब थी. उस से कहा, ‘‘चलो, अब तुम भी अली बाबर के कत्ल का किस्सा सुना ही दो.’’

मैं ने निरंजन को चौंकते देखा. पुलिस के अधिकारी उसे चौंकते देख भी अनजान से बने रहे. उन्होंने दोबारा दबाव बनाया, ‘‘क्या हुआ, बोलते क्यों नहीं बाबर को कैसे और क्यों मारा तुम दोनों ने?’’

‘‘हम ने उसे नहीं मारा.’’ निरंजन ने इसी में कुछ मौके तलाशने शुरू कर दिए ताकि पुलिस को बरगला कर फिलहाल केस लटकाया जा सके.

‘‘अली बाबर मरा नहीं है, चाहो तो उसे फोन कर लो. हम ही बात करवा सकते हैं.’’ कहते हुए निरंजन और जहरा के चेहरों पर उम्मीद  की लकीरें दिखने लगी थीं.

‘‘चलो, फोन लगाओ.’’ पुलिस के कहते ही निरंजन ने एक नंबर डायल किया और तुरंत उधर से हैलो की आवाज सुनाई पड़ी जैसे कोई तैयार ही बैठा था.

पुलिस के अधिकारी ने तुरंत फोन उस के हाथ से ले कर जैसे ही हैलो कहा, उस तरफ की आवाज लड़खड़ा गई.

‘‘क्यों गार्ड जी, मायके की याद आ रही थी जो कानून से खेल गए?’’ पुलिस के इतना कहते ही निरंजन और जहरा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘धोखा नहीं दे सकते जनाब, हम आप जैसों को रास्ते पर लाने के लिए ही पैदा हुए हैं, समझे. वो लाश तुम्हारी नहीं थी, ये तो फोरैंसिक विभाग ने पहले ही पता कर लिया था, मगर वो अली बाबर की भी नहीं थी. कहो क्यों?’’ पुलिस की बातें सुन निरंजन और जहरा आंखें चुराने की कोशिश करते दिखे.

‘‘अली बाबर पैसों का भूखा था और इस का फायदा उठा कर तुम ने उसे तस्करी के जाल में फांस कर यहां से दूर उत्तर प्रदेश के उस के गांव भेज रखा है. पहले तो उस से गांजे की तस्करी करवाते हो. उसे उस का थोड़ाबहुत हिस्सा दे कर भविष्य के स्वप्नजाल में उलझा कर उसे गांव में ही छिपे रहने को कहते हो. इधर गार्ड को अली बाबर बना कर पेश करते हो ताकि मनमरजी उस से कहला सको.

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‘‘अली बाबर हमारे कब्जे में है समझे. अब सीधे मुंह बता दो कि वह लाश किस की थी और तुम ने नताशा की आंखों में धूल झोंक कर उसे इस कत्ल में फांसा किस तरह?’’

‘‘नताशा से शादी के बाद मैं घर में मन रमाने को राजी नहीं था और न ही बच्चे पैदा करने में दिलचस्पी दिखाई. तब नताशा मेरे साथ लड़ाई करने लगी. अपनी आजादी में खलल पड़ता देख मैं परेशान हो गया. तब तक जहरा का जादू भी मुझ पर चलने लगा था. मैं ने अली बाबर को बिजनैस के सिलसिले में बाहर भेजने का प्लान बनाते हुए अपनी दुकान पर एक अच्छे हैंडसम लड़के को रख लिया.

‘‘बच्चे मुझे पसंद नहीं थे. बेकार समय खराब करते हैं, जिम्मेदारी बढ़ाते हैं सो नताशा को कहीं और व्यस्त करना जरूरी था ताकि वह मेरे अलावा भी कुछ सोच सके. मुझे ऐसे भी दूसरे बिजनैस संभालने पड़ते तो मैं ने उसे दुकान पर भेजना शुरू किया. अकेलेपन में उस की घनिष्ठता उस लड़के के साथ बढ़ती रही और इस में मेरी शह पा कर उन का डर खत्म हो गया.’’

अवाक थी मैं. ये कैसा इंसान था. उस ने आगे कहना जारी रखा, ‘‘अंतत: इन की दोस्ती शरीर के आखिरी पड़ाव में पहुंचने लगी और तब मैं बहुत बुरा महसूस करने लगा जब मेरी ब्याहता मेरे ही शह पर मेरी दुकान पर काम करने वाले लड़के से गर्भवती हो गई.

‘‘उस बच्चे की जिम्मेदारी मुझ पर सौंपने की कोशिश करने लगी. अगर वह चुपचाप बात यहीं खत्म कर लेती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन उस ने बच्चे के लिए सोचना शुरू कर दिया था, जबकि उस लड़के को इन बातों से कोई मतलब नहीं था. जो भी करना था, वही करती लेकिन बच्चे वाले पचड़े से मुझे दूर ही रखती.’’

इस बात पर उन तीनों के अलावा सब भौचक थे. हमारी गुत्थी अब आखिरी मंजिल पर लगभग पहुंचने वाली थी. सभी सांसें रोके उस की बात सुन रहे थे.

उस ने कहना जारी रखा, ‘‘हम उसे बहला कर जहर वाली शराब पिला कर अपने साथ लाए थे. तब नताशा आंखें बंद किए सोफे पर पड़ी थी. इस के पहले घर से निकलते वक्त नताशा के साथ महीने भर का गर्भ गिर जाने को ले कर काफी लड़ाई हुई थी. क्योंकि मैं ने उसे मिसकैरेज की दवा उस की गैरजानकारी में पिलाई थी.

मैं ने और जहरा ने मिल कर नताशा के नाक पर बेहोशी की दवा वाला रूमाल रखा. फिर हम ने उस अधमरे शख्स को सोफे पर लिटा कर चाकू से कई वार कर के खत्म किया, तेजाब से चेहरा जलाया और उस की मौत का यकीन हो जाने पर नताशा को फंसाने का सारा इंतजाम कर लिया.

‘‘मैं अपने गांव की तरफ भाग निकला और हमारे प्लान के मुताबिक जहरा ने यह सोच कर कत्ल का हल्ला किया कि इस से कभी मेरी खबर नहीं ली जाएगी और हम चुपचाप सब कुछ समेट कर विदेश चले जाएंगे, नताश केस में फंस जाएगी. अली बाबर से जहरा का संपर्क टूट जाएगा और उसे रुपए देने से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाएगी.’’

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‘‘वो शख्स आखिर कौन था, जिस की हत्या हुई?’’

हमारे वकील अब साफ शब्दों में सुनना चाह रहे थे.

‘‘वही लड़का, जिसे मैं ने दुकान पर रख कर नताशा के साथ मिलनेजुलने के मौके दिए.’’

पुलिस अधिकारियों की ओर देखते हुए वकील ने कहा, ‘‘इन का उद्देश्य एक साथ कई तीर मारना था. बीवी से ले कर उस के बौयफ्रैंड, इधर खुद के रंगरलियों पर खर्च के लिए गांजे की तस्करी और अय्याशी के लिए पार्टनर पति को दूर रखने की चालाकी, अपने खून का नाटक रच अय्याशी को छिपाने की कोशिश, बीवी को खून के इलजाम में अंदर कर खुद की संपत्ति को बीवी के नाम करने से बचाने की चेष्टा. एक साथ कितने स्वार्थ?’’

अब नताशा चुप नहीं रह पाई. मेरी ओर देख कर उस ने पूछा, ‘‘लेकिन आप ने अब तक नहीं बताया कि आप कौन हैं?’’

मेरे चेहरे पर मुसकान थी. खुद की कही बात का मैं ने लाज रखा था. अब परदा उठना ही चाहिए.

‘‘मैं निरंजन की पहली बीवी हूं और इस ने मेरे बेटे की पहली बलि ली थी. इसे याद होगा या नहीं, मुझे इस की वह बात हर पल याद रही जो इस ने मुझ से कहा था. याद है निरंजन, क्या कहा था तुम ने?

‘‘स्कूल से लौटने के बाद जब मैं ने अपने 3 साल के बेटे के कत्ल का दोषी पाया तुम्हें, तभी मैं ने बददुआ दी कि एक मां को रुला कर तुम ने अच्छा नहीं किया. इस ने मुझ से कहा था क्या कर लेगी तू, एक सरकारी स्कूल की मामूली सी टीचर.’’

निरंजन चौंका और मेरी ओर देखता रहा. मैं ने तुरंत अपने आधे ढंके चेहरे को सब के सामने अनावृत्त कर दिया. मेरे चेहरे के साथ अब सारे परदे अनावृत्त हो गए थे. हट गए थे.

पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘निरंजन की पहली बीवी पर्णा का साथ मिला तो हम इतने पेचीदे राज आसानी से सुलझा पाए, पर नताशा का अपराध छिपा कर अपराधी को पनाह देने के एवज में कुछ सजा तो स्वीकार करनी पड़ेगी.’’

बेमौत मरे एक शख्स की लाश के 2 गज जमीन के नीचे जितने भी राज दफन थे, उन का खुलासा होना और दोषियों का सजा पाना कानून की जीत थी. और इस जीत का जश्न मैं अपने बेटे की यादों में महसूस कर पा रही हूं.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

एक तीर कई शिकार: भाग 2

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निरंजन बिंदास किस्म का इंसान था. वह अपने अटल यौवन और शोख अंदाज का भरपूर लाभ उठाना चाहता था. स्त्रियां उस के डीलडौल और मस्ताने अंदाज पर दीवानी भी थीं. उस का पहला बच्चा 3 साल का  मेंटली रिटार्डेड बेटा था. उस की बड़ी जिम्मेदारी बन कर उभर रहा था.

एक तरह से उस की आजादी पर पहरा. उस की मां के नौकरी पर जाने और आया की जरा सी लापरवाही ने उसे अपने बच्चे को मार देने को उकसाया और वह कर गुजरा.

नौकरी से आ कर मरे हुए बच्चे को जब सीने से लगा कर उस मां ने कसम खाई कि निरंजन को बेमौत मरते देख कर ही उसे चैन मिलेगा, तब उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह कानून की नजर में निरंजन का अपराध साबित कर सके.

‘‘दीदी, अब आप ही बताइए कि मैं इस जाल से कैसे मुक्ति पाऊं? अभी हम लोग रात गए बच्चे के मिसकैरेज को ले कर लड़ ही रहे थे कि वह दनदनाता हुआ घर से निकल गया. इस के पहले मैं लोगों से सुन चुकी थी कि निरंजन भव्य निलय में रहने वाले एक दंपति के घर रोजाना जाने लगा है.’’

‘‘जहरा खातून और अली बाबर के घर?’’

‘‘हां, आप को कैसे मालूम?’’

बात बनाने वाली औरतें उसे खूब पसंद हैं. जहरा खातून इसी ढांचे की है, पति कमाता नहीं है अलबत्ता बीवी के कपड़े की दुकान में सेल्समैन जरूर है. जहरा ने निरंजन को तीरेनजर से आरपार कर रखा था. पान वाले होंठ, रसीले गुलाबी. पायल वाली ठुमकती एडि़यां और लचकती कमर से निरंजन बेकाबू था.

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वैसे तो वह कंजूस था, लेकिन मनपसंद औरतों पर लुटाने में उसे कोई गुरेज भी नहीं था. वह और जहरा इसी ताक में रहते कि कब अली बाबर घर से बाहर हो और उन्हें अकेले में मौका मिले. लेकिन मौके थे कि लंबे समय तक मिले नहीं. दोनों झल्लाए हुए थे.

‘‘दीदी, निरंजन के घर से बाहर हो जाने के बाद मैं सोफे पर पसरी पड़ी थी. मैं अंदर से मर चुकी थी. पत्नी के नाते उस से मेरा लगाव अब बिलकुल ही खत्म था. उस ने मेरी हैसियत जबरदस्ती गले पड़ी वाली कर रखी थी. अपनी जिंदगी वह अलग जीता था. मैं बस तड़पतड़प कर जी रही थी.

‘‘अभी मैं सोफे पर ही पड़ी थी कि वह धड़धड़ाते हुए अंदर आया और मुझे संभलने का मौका दिए बगैर मेरी नाक पर दवा लगा रुमाल रख दिया. जहां तक मुझे याद है, उस के साथ जहरा खातून भी थी.’’

‘‘यानी तुम तब बेहोश थी जब तुम्हारे घर कुछ खतरनाक खेल खेले गए?’’

‘‘जी.’’

‘‘इसलिए तुम पुलिस की पूछताछ का जवाब नहीं दे पा रही हो. और बेहोश करने के बाद काम आया कपड़ा बाद में लाश के पास पाया गया.’’

‘‘जी दीदी, मगर आप? आप प्लीज बताइए, आप हैं कौन? क्यों मेरी मदद कर रही हैं?’’

‘‘निरंजन के पास पैसा तो काफी था. क्या वह घर की तिजोरी में पैसे अब भी रखता था?’’

‘‘हां, कभी जरूरत पड़े तो.’’

‘‘सही फरमाया, काले कामों में सफेद पैसे जरूरत के वक्त काम नहीं आते. तो हम एक बढि़या वकील करते हैं और जरूरत हुई तो खुफिया एजेंसी की मदद लेंगे. रही बात मेरी, तो सही समय आने दो अभी तुक्का मत लगाना.’’

मैं ने उसे गहरी मुसकान से देखा और घर से निकल गई.

मेरी खुद की जांच अपने तरीके से चल रही थी. नताशा को सरकारी वकील दिया गया था लेकिन उस के लिए मेरे खुद के वकील लगाने के प्रस्ताव को कोर्ट से मंजूरी मिल गई.

हम ने अपने स्तर पर नए सिरे से पड़ताल शुरू की.

इधर जब से यह केस हुआ था, न जाने क्यों जहरा तो जहरा, उस का पति अली बाबर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उन का कारोबार घर में ही था और वह अच्छे खातेपीते लोग थे. अचानक घर में ताला लगा नजर आने लगा. लोगों के बीच कानाफूसी हुई, लेकिन मर्डर मिस्ट्री में कौन नाक डाले. वैसे भी जमाने में नाक ही ऐसी चीज है जिस की फिक्र में बड़ेबड़े संभले रहते हैं.

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लेकिन मुझे तसल्ली नहीं थी. मैं ने एक रात 12 बजे अपने डर और दायरों को दरकिनार करते हुए भव्य निलय का रुख किया.

जहरा के घर क्या वाकई ताला जड़ चुका है या कुछ और बाकी भी है.

भव्य निलय जाने से पहले मैं ने हिम्मत बटोरी, क्योंकि कई रिस्क लेने थे. और हां, ये लेने ही थे क्योंकि इस के बिना मैं खुद भी बेचैन थी.

मैं ने बुरका पहना, छोटी सी अटैची ली, भव्य निलय के फाटक पर पहुंची. यहां गार्ड को जवाब देना था, कहा, ‘‘जहरा आपा से मिलने आई हूं. उन की खाला की बेटी हूं.’’

‘‘पर मैडम, वे तो यहां नहीं हैं.’’

‘‘अरे, फिर मैं इतनी रात गए कहां रुकूंगी. मेरी ट्रेन लेट हो गई, अब तो कोई होटल भी नहीं मिलेगा, कुछ करो.’’ मैं ने गार्ड को 50 रुपए का नोट थमाया.

नोट की चोट सीधे दिमाग पर पड़ती है. बंदा ढीला पड़ गया. मुझे पीछे गली वाले दरवाजे की तरफ ले गया और बताया कि जहरा ने किसी को भी बताने को मना किया है. दरअसल पुलिस से पंगा है. इन की निगरानी की वजह से इन के घर के सामने दरवाजे पर ताला लगा है.

‘‘अच्छा है, आप उन का साथ दे रहे हैं वरना मेरी आपा का क्या होता.’’

मैं ने जहरा को फोन लगाने का नाटक किया और उसे लगे हाथ वहां से रवाना कर दिया. गार्ड के जाने के बाद मैं खिड़की से नजारे देखने की कोशिश करने लगी. आश्चर्य! यह निरंजन था जहरा के साथ. मेरा अंदेशा सही था. निरंजन और जहरा अपनी मनमानी पर थे, आजादी के जश्न में मग्न.

उन्हें इस तरह कैमरे में कैद कर और खुद को उन्हें देखते रहने की जिल्लत से बचा कर मैं निकलने को हुई. एक अच्छेखासे अभिनय के साथ मैं गार्ड के सामने से गुजरी. गार्ड कहता रह गया, ‘‘अरे मैडम, कहां जा रही हो?’’

मैं सिसकते हुए दौड़ती रही और कहती रही, ‘‘आपा के साथ पता नहीं कौन गैरमर्द है. मुझे घुसने ही नहीं दिया. जाने आपा कैसे बदल गईं.’’

इतनी देर में मैं काफी तेज भाग कर गली में आ चुकी थी और गार्ड के भौचक रह जाने से ले कर मेरे नदारद होने तक कई मिनट के फासले बड़ी सफाई से अंधरे में गुम हो चुके थे.

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मेरे दिमाग में गुत्थी लगभग सुलझ चुकी थी, लेकिन साबित कैसे किया जाए. ये लोग खर्च बचाने और सुरक्षित रहने के लिए खुद के ही घर में अय्याशी करते हैं लेकिन बाहर वालों की आंखों में धूल झोंके रखने के लिए बाहर ताला लगाते हैं.

यानी लगे हाथ यह भी बात है कि निरंजन अगर जिंदा है तो लाश किस की है? और अली बाबर के बाहर माल लेने जाने की बात भी कहां तक सच्ची है?

इन्हें रंगेहाथ पकड़ कर जिरह करनी पड़ेगी. मैं ने वकील से पहले अकेले में मिलना सही समझा. उन्हें वीडियो रिकौर्डिंग दिखाई और सारी बातें बताईं.

वकील ने कहा, ‘‘मैडम आप ने लगभग एंड गेम खेल लिया है समझो, खुफिया एजेंसी की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

बात साफ थी कि निरंजन और जहरा की अय्याशी की वजह से ये सारे खूनी तमाशे हुए और नताशा की सफाई कार्यक्रम के तहत उसे फंसाने की साजिश की गई. लेकिन सवाल यह था कि आखिर लाश किस की थी? कहीं जहरा के शौहर अली बाबर की तो नहीं? लाश को उन्होंने बुरी तरह गोद दिया था, चेहरा तेजाब से झुलसाया गया था. वे शायद इस खुशफहमी में थे कि निरंजन की अनुपस्थिति को उस का कत्ल मान लिए जाने में दिक्कत नहीं आएगी.

खून हुए महीना भर हो चुका था. जांच के पीछे से उन की रंगरलियां तो जहरा के घर में चल ही रही थीं लेकिन सवाल यह था कि उन की जिंदगी की गाड़ी चल कैसे रही थी? न तो निरंजन बिजनैस संभाल रहा था और न ही जहरा कपड़े बेच रही थी. जमापूंजी के लिए दिन में उन्हें बैंक भी तो जाना था. कौन था जो उन की मदद कर रहा था?’’

खैर, ढेरों सवालों के साथ वकील साहब और मैं पुलिसिया जांच के संपर्क में थे.

हम ने पुलिस को वीडियो दिखाया और दोनों को तब धर दबोचा गया, जब दोनों रात में जहरा के घर मौज में डूबे थे. निरंजन के चेहरे का पानी उतर चुका था. वह बदहवास सा पुलिस की गिरफ्त में था. उस ने सोचा नहीं था कि उस की चालाकी इस तरह पकड़ी जा सकेगी.

दरअसल, उसे उस सामान्य सी टीचर की असामान्य सी उपस्थिति का अंदाजा नहीं था. मैं ने पुलिस से अनुरोध किया था कि अगर परिणाम जल्द चाहते हैं, तो मुझे भी जिरह का मौका दिया जाए. प्लानिंग के अनुसार वकील, पुलिस और जज की उपस्थिति में शुरुआती जिरह के लिए निरंजन की कोठी का चयन किया गया.

नताशा के सामने निरंजन और जहरा को बिठाया गया. मैं ने सवाल पूछने की इजाजत मांगी. ये सवाल कायदे के अनुसार संबंधित अधिकारियों को पहले ही बताए जा चुके थे.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक तीर कई शिकार: भाग 1

दरअसल मैं इस कहानी में कोई नहीं हूं, न ही इस में मौजूद पात्रों से अब मेरा कोई रिश्ता है. कह सकते हैं कि मैं वह हूं जो इन सब के बीच न हो कर भी हो. वजूद सिर्फ दो जोड़ी आंखों का मानिए, जो हमेशा इन पात्रों के इर्दगिर्द मौजूद है.

कहानी के इन मुख्य चरित्रों के सामने दूर की एक बिल्डिंग में मेरा निवास है और सरकारी स्कूल में सामान्य सी टीचर हूं. वैसे सामान्य रह कर भी असामान्य हो जाने के गुर में मैं माहिर हूं. ये आप पर आगे की कडि़यों में जाहिर होगा.

तो चलिए हमारी इन दो आंखों के जरिए आप उन पात्रों के जीवन में प्रवेश करें जिन्होंने अपने स्वार्थ, छोटी सोच और छल की वजह से यह कहानी रची.

दूसरी मंजिल पर स्थित मेरे फ्लैट की खिड़की की सीध में एक 3 मंजिला बिल्डिंग है. इस में कुल 8 फ्लैट हैं. इन में से नीचे वाले पीछे के एक फ्लैट पर हमारी नजर रहेगी और ठीक इस बिल्डिंग के पीछे वाली बिल्डिंग में हमारी अदृश्य आवाजाही होगी.

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8 फ्लैटों के समूह वाली बिल्डिंग का नाम ‘भव्य निलय’ और पीछे वाली दुमंजिली बिल्डिंग का नाम ‘निरंजन कोठी’ है. निरंजन कोठी का मालिक निरंजन बत्रा 52 साल का एक हट्टाकट्टा अधेड़ है, जिस के चलनेफिरने और बात करने का लहजा मात्र 35 साल के व्यक्ति जैसा है.

उस की पहचान में शायद ही कोई ऐसी युवती हो जो उस के शोख लहजों पर फिदा न हो. उस की एक खास विशेषता यह भी है कि वह अपना कारोबार बहुत बदलता है. कभी टूरिज्म ट्रैवल, कभी साइबर कैफे और मोबाइल शौप, कभी स्टेशनरी तो कभी ठेकेदारी, बंदा बड़ा अनप्रेडिक्टेबल है. कहूं तो रहस्यमय भी. वो अकेला जीना और अकेला राज करना चाहता है, लेकिन उसे स्त्रियों की कमी नहीं है. लिहाजा वह उन का उपयोग कर के फेंकने से नहीं कतराता.

निरंजन की फिलहाल एक बीवी है जिस की उम्र 24 साल है. हुआ यह था कि पहली शादी वाली पत्नी के चले जाने के बाद उस ने 9 साल बिना शादी के बिताए और लड़कियों से उस के संबंध जारी रहे. अभी ऐसे ही दिन निकल रहे थे कि वह 21 साल की एक लड़की से ब्याह कर बैठा.

यह लड़की उस के साइबर कैफे में अकसर ही आती थी. निरंजन लड़कियों को शीशे में उतारने की कला में माहिर था. इस लड़की के साइबर कैफे से उस के घर तक पहुंचने में ज्यादा दिन नहीं लगे.

रात भर की रंगीनियों के बाद जब सुबह लड़की की आंखें खुलीं तो उसे दिमाग कुछ ठिकाने पर महसूस हुआ. उसे घर में विधवा मां की याद आई. उस की बेचैनी की सुध हुई और वह घर वापस जाने के लिए तड़प उठी. लेकिन तब तक उस के अनजाने ही उस की जिंदगी पर निरंजन की पकड़ मजबूत हो गई थी.

निरंजन के सख्त रवैए से भयभीत हो लड़की घबरा गई. वह उस की हर शर्त को मानने के प्रस्ताव पर तुरंत राजी हो गई. निरंजन ने उसे उस की कोठी पर आते रहने का फरमान सुनाया. स्थिति कुछ ऐसी थी कि उसे लाचार हो कर मानना पड़ा.

यह सब 6 महीने चला और लड़की गर्भवती हो गई. रायता अब ज्यादा ही फैल चुका था. लड़की ने छिपे हुए बटन कैमरे से खुद निरंजन के साथ के अंतरंग क्षणों का वीडियो बना लिया. फिर वह वीडियो क्लिप निरंजन को भेज कर धमकी दी, ‘सारा बिजनैस ठप हो जाएगा अगर मैं ने यह वीडियो वायरल कर दी तो.

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‘‘मैं तो गरीब घर की लड़की हूं और क्या लुटेगा. बहुत हुआ तो शहर छोड़ दूंगी. लेकिन इस तरह लूट कर मुझे फेंकने नहीं दूंगी. मेरी मां को बेइज्जती से बचाने का एक ही रास्ता है कि तुम मुझे और मेरे होने वाले बच्चे को अपना लो. मुझ से शादी कर लो.’

समाज में निरंजन बड़े धौंस से रहता था. कोठी, गाड़ी, एक साथ कई बिजनैस, उस का डीलडौल सब उस की धौंस की वजह से थे. आखिर ऊंट आ ही गया पहाड़ के नीचे.

इस तरह लड़की नताशा उस की बीवी बन गई.

अभी 4 साल हुए थे उन की शादी को. फिर यूं अचानक निरंजन बत्रा की लाश रात गए उस की कोठी पर मिलना, पुलिस की रेड, नताशा को पुलिस कस्टडी में लिया जाना, जमानत पर सुबह तक उस का घर वापस आ जाना, माजरा आखिर क्या था?

रात से ले कर सुबह तक कोठी में अंदरबाहर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. मीडिया वाले भी थे, पुलिस सब को बाहर ठेल रही थी. नताशा काले ब्लाउज, नेट वाली जौर्जेट की वाइट साड़ी में उन्मुक्त केश आंखों में आंसू हौल के फर्श पर बिखरी सी बैठी थी. इस के बावजूद लोगों के आकर्षण का केंद्र थी.

उस की आंखों में खुद को निर्दोष साबित करने की पीड़ा थी या वियोग की पीड़ा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता था. हां, मेरे होंठों पर जरूर विद्रूप की एक हलकी रेखा फैल गई. मैं ने इसे खुद से छिपाते हुए भी तुरंत वहां से दूर हट जाना ही ठीक समझा.

4-5 दिनों तक निरंजन बत्रा के घर भीड़ लगी रही. मांबाप कोई थे नहीं और संतान अब तक उस ने होने नहीं दी थी. किसी भी तरह उस ने अपने आसपास परिवार पैदा नहीं होने दिया. उसे उस की स्वच्छंदता में खलल नहीं चाहिए थी. नताशा इस वक्त अकेली ही जूझ रही थी.

निरंजन की मौत के बाद चचेरे, ममेरे भाई आसपास मंडराते नजर आए. 4 साल निरंजन के साथ रह कर नताशा इतनी तो चतुर हो ही गई थी कि चील, बाज और गिद्धों को पहचान ले. उस ने बड़ी ही चतुराई से उन्हें नजरअंदाज करते हुए रफादफा किया.

नताशा अब कठघरे में थी. सारा शक उसी पर था. जांच जारी थी. यह बात भी सच थी कि रात के 11 बजे जब कत्ल का खुलासा हुआ, तब तक नताशा और निरंजन घर में अकेले थे और दोनों इस के पहले तक चीखचीख कर लड़ रहे थे, पड़ोसियों ने सुना था.

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पुलिस अपनी ओर से शिनाख्त में व्यस्त थी, लेकिन मैं नताशा से मिलने के लिए उतावली थी. क्या निरंजन जैसे सख्त जान आदमी नताशा जैसी साधारण डीलडौल वाली लड़की से मात खाया होगा.

रात के 10 बज रहे थे जब मैं ने नताशा का दरवाजा खटखटाया. घर में छोटा सा टेलरिंग शौप चलाने वाली विधवा मां की जिस मुरछाई सी बेटी के रूप में नताशा ने इस घर में अपनी उपस्थिति की मुहर लगाई थी, आज वह सिग्नेचर पूरी तरह बदल चुका था.

थकी बोझिल और चिंतित रहने के बावजूद वह अपनी शौर्ट्स और क्रौप टौप में गजब ढा रही थी. वैसे उस के चेहरे पर उलझन की लकीरें साफ थीं, मुझे देख कर अवाक रह गई. शायद इसलिए कि मुझे कभी देखा नहीं था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं पर्णा हूं, तुम्हारी मदद कर सकती हूं.’’

‘‘किस सिलसिले में?’’

‘‘मासूम क्यों बनती हो? मुझ से मदद लिए बिना तुम इस भंवर से पार नहीं पा सकती.’’

‘‘आइए, अंदर आइए. आप कौन हैं? कैसे मदद करेंगी मेरी?’’

सीआईडी की तरह पूरे हौल का नजरों से मुआयना करते हुए मैं ने पूछा, ‘‘कहां पड़ी थी लाश और किस हाल में थी?’’

सवाल पूछा तो सही लेकिन मेरा ध्यान कहीं और चला गया था.

कुछ भी तो नहीं बदला था. बस कुछ सामान इधर से उधर हुए थे और कुछ नए जुड़े थे.

नताशा ने जो कुछ कहा, उस का आधा हिस्सा ही कानों तक पहुंचा और बाकी मैं स्वयं ही देख कर समझने की कोशिश कर रही थी. नताशा कुछ उतावली हो रही थी, ‘‘आप किस तरह मदद करेंगी?’’

‘‘निरंजन के बारे में तुम कितना आश्वस्त हो? मैं जानती हूं वह चंचल मति था, नई लड़कियां उस की बहुत बड़ी कमजोरी थीं.’’

‘‘सच मानिए, मैं ने उसे नहीं मारा. मैं उसे मार भी नहीं सकती. खासकर चाकू घोंप कर तो कभी नहीं.’’ बेसहारा नताशा जैसे अंधेरे में ही तिनके को पकड़ने की कोशिश में लगी थी.

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‘‘लेकिन तुम ने पहले उसे शराब में जहर मिला कर पिलाया, तब चाकू से…’’

‘‘मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया, उलटा उसी ने…’’

‘‘उसी ने? क्या किया था उस ने?’’

‘‘मैं अभी हफ्ते भर पहले मिसकैरेज से निकली हूं. उस ने मुझ से छिपा कर दवा दे दी थी ताकि मेरा बच्चा खत्म हो जाए.’’

‘‘अच्छा, तो इस बार भी?’’

‘‘मतलब… इस बार भी मतलब?’’ मुझे पढ़ने की नाकाम कोशिश में उस का चेहरा लाल हो गया था, फिर उस ने आगे कुछ समझने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘हां, इस बार भी. शादी कर तो ली थी उस ने, लेकिन बाद में उसे लगा कि मेरे बच्चे के कारण वह जिम्मेदारियों में बंध जाएगा, इसलिए पहली बार भी मुझे मजबूर किया था उस ने.’’

नताशा का ध्यान खुद की तरफ ही था, ‘‘अच्छा ही है.’’ मैं ने बात बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कैसे पता कि उस ने दवा खिलाई थी?’’

‘‘उस ने शरबत में घोल कर दवा खिलाई थी. जब तक समझ पाती पी चुकी थी मैं. बेबी नष्ट करने को ले कर वह वैसे भी मुझ से लड़ता रहता था.’’

‘‘कहीं और अफेयर था उस का?’’

अचानक जैसे होश आया हो उसे. एक सहारे के फेर में कहीं उस ने राज तो जाया नहीं कर दिए? शायद उसे निरंजन के लड़ते रहने की बात जाहिर करने का अफसोस था क्योंकि इस से नताशा के कत्ल का अंदेशा पुख्ता होता था.

उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘आप हैं कौन? बताती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं जो कोई भी हूं, बस जानो कि तुम से सहानुभूति है और मुझे लगता है कि इस मामले में तुम निर्दोष हो.’’

‘‘दीदी. मैं आप को दीदी कह सकती हूं? बड़ी ही हैं आप मुझ से.’’

‘‘20 साल बड़ी हूं तो कह ही सकती हो. इतना जान लो निरंजन ने अपनी पहली बीवी के बच्चे को भी मारा था.’’

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‘‘क्या कहती हैं आप? आप को कैसे पता?’’

‘‘तुम मेरा परिचय ढूंढने की कोशिश मत करो, बस जानकारी जुटाओ.’’

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अंजाम: भाग 4

तीसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- अंजाम: भाग 3

पहले तो उन्होंने उस से शादी तोड़ लेने का विचार किया. पर तुरंत अपने विचार को दरकिनार कर उसे एक मौका देने का फैसला कर लिया. वह वाकई पत्नी को बहुत प्यार करते थे.

उन्होंने सुचित्रा से स्वामीजी के बाबत पूछा तो वह फफकफफक कर रोने लगी. उन्होंने उसे आश्वस्त किया तो बोली, ‘‘आप को सब कुछ बताना चाह रही थी, पर हिम्मत नहीं जुटा पाई. अब आप को सब कुछ पता चल ही गया है तो मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं. प्लीज मुझे माफ कर दीजिए.’’

फिर उस ने सब कुछ सचसच बता दिया.

दरअसल, सुचित्रा कंपनी का चेयरमैन बनना चाहती थी, पर वह बन नहीं सकी. उस से 2 साल जूनियर नमिता भट्टाचार्य चेयरमैन बन गई. वह किसी की सिफारिश पर बनी थी.

इस से वह दुखी थी और जौब से त्यागपत्र देने का मन बना लिया था.

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त्यागपत्र देती उस से पहले नमिता भट्टाचार्य ने उस से कहा, ‘‘जानती हूं, तुम चेयरमैन नहीं बन सकी इसलिए दुखी हो. तुम त्यागपत्र मत दो. मुझ पर भरोसा रखो. जल्दी ही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा दूंगी.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम्हारे जूनियर रहते हुए भी जिस ने मुझे अपने पावर से चेयरमैन बनवाया है, वही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा देंगे. 3-4 महीने बाद वाइस चेयरमैन का पद खाली होने वाला है.’’

‘‘कौन है वह?’’ सुचित्रा ने पूछा.

‘‘2 दिन बाद उन के पास ले चलूंगी. सब कुछ जान जाओगी.’’

वाइस चेयरमैन का पद सुचित्रा को खराब नहीं लगा. 2 दिन बाद नमिता भट्टाचार्य उसे एक आश्रम में ले गई. स्वामीजी से पहली बार उस का परिचय हुआ. वहीं पर उसे पता चला कि वह सर्वशक्तिमान हैं. कुछ भी कर सकते हैं.

स्वामीजी 40-45 साल के थे. बड़े ही हैंडसम और स्मार्ट. वाकपटुता में दक्ष थे. सुचित्रा उन से बहुत प्रभावित हुई.

स्वामीजी ने उसे कहा, ‘‘3 महीने बाद मैं तुम्हें हर हाल में वाइस चेयरमैन बना दूंगा. पर याद रखना किसी को कभी भी बताना मत कि तुम्हें किस ने वाइस चेयरमैन बनवाया है. दूसरी बात यह कि इस के लिए तुम्हें 3 महीने तक रोज आश्रम में आ कर साधना करनी होगी. पर घर वालों को इस के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए.’’

सुचित्रा उन की बात मान गई. अगले दिन औफिस से छुट्टी होते ही आश्रम जा कर साधना करने लगी. इस के लिए उसे घर में तरहतरह के बहाने बनाने पड़ते थे.

2 महीने में ही वह स्वामीजी से घुलमिल गई. स्वामी उसे अच्छा और सच्चा इंसान लगा. लेकिन उन की सच्चाई जल्दी ही सामने आ गई.

हुआ यह कि एक दिन स्वामीजी ने चरणामृत के नाम पर उसे कुछ ऐसी चीज पिलाई कि अचेत हो गई.

एक घंटे बाद होश आया तो अपने आप को स्वामीजी के बिस्तर पर पाया.

वह चिंता में पड़ गई. सोचने लगी कि स्वामीजी ने कहीं उस की इज्जत तो नहीं लूट ली?

तभी स्वामीजी बोले, ‘‘तुम चिंता मत करो. तुम्हारी इज्जत सलामत है. हालांकि चाहता तो आराम से सब कुछ कर सकता था. लेकिन जो आनंद स्वेच्छा में है, वह जबरदस्ती या धोखे में नहीं.

‘‘यह सच है कि मैं तुम्हें पाना चाहता हूं लेकिन तुम्हें राजी कर के, जबरदस्ती नहीं. मैं तुम्हारा काम करूंगा तो क्या तुम मुझे खुश नहीं कर सकतीं? बेहतर यही है कि तुम मुझे खुश कर दो. वैसे भी ताली दोनों हाथों से बजती है.’’

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वह हर हाल में वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, अत: पतिव्रता धर्म को दरकिनार कर यह सोच कर अपने आप को स्वामीजी के हवाले कर दिया कि सिर्फ एक दिन की बात है.

पति से बेवफाई करते समय उसे बहुत बुरा लगा था. लेकिन स्वामीजी से अथाह सुख पा कर बेवफाई की भावना को मन से निकाल फेंका.

वैसा सुख उसे पति से कभी नहीं मिला था. इसलिए चाह कर भी स्वामीजी से नफरत नहीं कर सकी. उन के द्वारा दिए गए जिस्मानी सुख को दिल से लगा बैठी.

इसी कारण 2 दिन बाद स्वामीजी ने उसे फिर से बांहों में भरा तो सुचित्रा ने कोई विरोध नहीं किया. फिर तो सिलसिला बन गया.

स्वामीजी खिलाड़ी थे, औरतों के रसिया. उन्हें ऐसी मुद्राएं आती थीं, जिन्हें समझ पाना और अमल में लाना आम आदमी के वश की बात नहीं थी. उन की इस कला से औरतें खुश रहती थीं.

स्वामीजी से तरहतरह का सुख पा कर सुचित्रा आत्मविभोर हो उठती थी. इसी वजह से पति से विमुख हो कर उस ने पूरा ध्यान स्वामीजी पर केंद्रित कर दिया था.

वाइस चेयरमैन बनने के बाद स्वामीजी की सलाह पर वह प्रतिदिन औफिस से छूटते ही आश्रम में जा कर उन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

स्वामीजी से उस का भ्रम तब टूटा जब उन के साथ इटली में 10 दिनों तक भरपूर आनंद लेने के बाद कोलकाता आई.

बातोंबातों में उस ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप मेरी जिंदगी में नहीं आते तो कुएं का मेंढक ही बनी रहती. पता ही नहीं चलता कि समुद्र क्या होता है. उस की लहरें क्या होती हैं. लहरों से कितना सुख मिलता है. मैं आप को कभी नहीं भूल सकती. जरूरत पड़ी तो आप पर अपनी जान भी न्यौछावर कर दूंगी.’’

  ठीक मौका देख कर स्वामीजी ने कहा, ‘‘ऐसी बात है तो यह बताओ, अगर मैं कुछ मांगू तो दोगी?’’

‘‘क्यों नहीं दूंगी? मांग कर देखिए.’’

‘‘तुम्हारा फार्महाउस चाहिए. उस पर एक नया आश्रम बनाना चाहता हूं.’’

अब स्वामीजी की चाल उस की समझ में आ गई. इस में कोई शक नहीं था कि उसे उन से अथाह सुख मिला था. आगे भी मिलने रहने की संभावना थी. परंतु इस के लिए बच्चों का अधिकार किसी और को देना उसे मुनासिब नहीं लगा. नतीजतन उस ने स्वामीजी को फार्महाउस देने से मना कर दिया.

स्वामीजी ने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं मानी. तब उन्होंने अपने मोबाइल में ऐसा फोटो दिखाया कि उस के होश उड़ गए.

उस ने अब तक पति के अलावा सिर्फ स्वामीजी से संबंध बनाया था, जबकि फोटो में उसे अलगअलग 4 अजनबियों से 4 लोकेशन में संबंध बनाते हुए दिखाया गया था.

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उसे समझते देर नहीं लगी कि स्वामीजी ने यह सब उस का फार्महाउस लेने के लिए षडयंत्र के तहत किया था. वह उन के षडयंत्र में बुरी तरह फंस गई थी.

वह बहुत रोईगिड़गिड़ाई. लेकिन स्वामीजी पर कोई असर नहीं हुआ. अंतत: उस ने सोचने के लिए कुछ दिन का समय ले लिया.

4 दिन बीत गए, लेकिन उसे स्वामीजी के चक्रव्यूह से निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया तो उस ने सब कुछ पति को बता देने का निश्चय किया.

पति पर उसे भरोसा था कि माफ कर देंगे और स्वामीजी के चंगुल से निकलने का कोई रास्ता भी निकाल लेंगे.

सुचित्रा से सच जानने के बाद उन्होंने भी अपनी और रूना की बात बता कर माफी मांगी.

एकदूसरे को माफ करने के बाद दोनों ने मिल कर स्वामीजी और रूना को जेल भेजने की योजना बनाई.

सुचित्रा की सहेली का पति पुलिस में उच्च अधिकारी था. उन्हें सच्चाई बता कर मदद की गुहार की तो पुलिस की तरफ से भरपूर मदद मिल गई.

सादे लिबास में कुछ पुलिस वालों को रूना के घर के बाहर तैनात कर दिया गया. उन्हें बता दिया गया था कि घर के अंदर क्या होने वाला है और उन्हें अंदर कब आना है.

स्वामीजी और रूना को पुलिस गिरफ्तार कर ले गई तो पतिपत्नी दोनों अपनी योजना की सफलता पर खुश हो कर एकदूसरे से लिपट गए.

अपनों को छोड़ कर दूसरों में सुख ढूंढने के अंजाम से दोनों वाकिफ हो गए थे.

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अंजाम: भाग 3

दूसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- अंजाम: भाग 2

अगले दिन वह रूना के घर गए तो उस का रूप देख कर दंग रह गए. पहले तो उस ने 30 करोड़ रुपए मांगे. उन के गिड़गिड़ाने पर 25 करोड़ पर रुक गई, जबकि वह उसे 5 लाख से अधिक नहीं देना चाहते थे.

दोनों में बहुत देर तक गरमागरम बहस हुई. कोई समझौता नहीं हुआ तो रूना बोली, ‘‘आज एक सच बताती हूं. वह यह कि मैं किसी कंपनी में जौब नहीं करती. एक आश्रम के लिए काम करती हूं.

‘‘उस आश्रम के मालिक स्वामी सच्चिदानंद हैं. उन के कहने पर ही आप को अपने जाल में फंसा कर फोटो और वीडियो बनाया था. अंतिम फैसला स्वामीजी ही करेंगे.’’

उन्होंने आश्रम में जा कर स्वामीजी से बात की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वह 30 करोड़ से कम पर राजी नहीं हुए.

उन्होंने कैश न होने की बात की तो स्वामीजी ने कहा, ‘‘आप के पास कैश है कि नहीं, मैं नहीं जानता. पर इतना जानता हूं कि आप के पास एक पुश्तैनी मकान है जो आज की तारीख में 30-35 करोड़ का है. उसे आश्रम के नाम कर दीजिए. बात खत्म हो जाएगी.’’

वह समझ गए कि रोनेगिड़गिड़ाने से कोई फायदा नहीं होगा. इस के लिए कोई योजना बना कर उन के जाल से निकलना होगा.

सोचनेसमझने के नाम पर उन्होंने स्वामीजी  से 10 दिन का समय मांग लिया और घर आ कर उन्हें कानूनी चंगुल में फंसाने की योजना बनाई.

2 दिन बाद उन्होंने रूना को फोन पर कहा, ‘‘तुम से एक समझौता करना चाहता हूं, जिस में तुम्हें बहुत बड़ा फायदा होगा.’’

रूना ने अपने घर बुला लिया तो उन्होंने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘मुझे अपना मकान किसी को देना ही है तो स्वामीजी को क्यों दूं? तुम्हें क्यों न दूं? सुख तो मुझे तुम से मिला है.

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‘‘इस के बदले में तुम्हें मेरे मोबाइल में स्वामीजी के खिलाफ अपना बयान रिकौर्ड करा देना है. तुम्हें कुछ नहीं होगा, स्वामीजी जेल चले जाएंगे.’’

‘‘स्वामीजी को कानून के जाल में फंसाना इतना आसान नहीं है. आप मेरे बयान पर पुलिस की मदद लेंगे तो वह आप की पत्नी को अपना हथियार बना कर आप को सरेंडर करने पर मजबूर कर देंगे.’’

उन्होंने चौंक कर पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं. मेरे और स्वामीजी के बीच मेरी पत्नी कहां से आ गई?’’

‘‘बात यह है कि आप की पत्नी स्वामीजी पर फिदा है. वह साल भर से उन की गुलामी कर रही है. स्वामीजी ने आप की पत्नी की कई तरह की पोर्न फिल्में बना रखी हैं.

‘‘आप समझते हैं कि रात के 9 बजे तक वह औफिस में रहती है इसीलिए रात 10 बजे घर आती है. जबकि सच्चाई यह नहीं है. सच्चाई यह है कि रोज औफिस से शाम 5 बजे फ्री हो जाती है. फिर स्वामीजी के आश्रम जा कर स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करती है, फिर घर जाती है.

‘‘10 दिनों के लिए आप की पत्नी कंपनी के काम से इटली नहीं गई थी. वह स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करने इटली गई थी.’’

प्रमाणस्वरूप रूना ने अपने मोबाइल में उन की पत्नी और स्वामीजी का अंतरंग क्षणों का वीडियो दिखा कर कहा, ‘‘इसे मैं ने स्वामीजी से छिप कर इसलिए शूट किया था ताकि जरूरत पड़ने पर उन के खिलाफ इस्तेमाल कर सकूं.’’

सुन कर वह सकते में आ गए. जिस पत्नी को वह चरित्रवान समझ रहे थे, वह बदचलन निकली. बहुत देर बाद उन्होंने अपने आप को समझाया.

रूना से रिक्वेस्ट कर के उन्होंने अपने मोबाइल में वीडियो सेंड करवाया और यह कह कर चले गए कि 2-3 दिन में अच्छी योजना के साथ उस से मिलेंगे. उन्होंने उसे यह भी कहा कि वह हर हाल में अपना मकान उसे ही देंगे.

3 दिन बाद जबरदस्त योजना ले कर वह रूना के घर आ भी गए. योजना सुन कर वह खुशी से उछल पड़ी. वाकई जबरदस्त योजना थी.

‘‘मेरी जान भले चली जाए, लेकिन मैं आप की योजना सफल बना कर रहूंगी. मगर आप अपना मकान मेरे नाम कब करेंगे?’’ रूना ने पूछा.

‘‘मैं मकान के पेपर तैयार कर के साथ लाया हूं. योजना सफल होते ही उस पर दस्तखत कर दूंगा. इतना ही नहीं, मैं ने तुम से शादी करने का भी फैसला किया है.’’

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‘‘यह कैसे होगा? आप की पत्नी जो है?’’

‘‘अब मैं उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता. वह भी मुझे तलाक देने के लिए राजी है.’’

रूना खुशी के मारे उन से लिपट गई.

रूना को हर तरह से खुश करने के बाद उन्होंने सब से पहले पूरे कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगाए. उस के बाद स्वामीजी के खिलाफ रूना का बयान अपने मोबाइल में रिकौर्ड किया.

जरूरी काम कर के स्वामीजी को फोन किया, ‘‘आप के आश्रम के नाम मैं ने मकान के पेपर बनवा लिए हैं. शाम के 6 बजे रूना के घर आ जाइए. पेपर पर आप दोनों के सामने दस्तखत कर दूंगा.’’

स्वामीजी ने उन्हें पेपर ले कर आश्रम आने के लिए कहा. वह आश्रम में जाने के लिए राजी नहीं हुए तो स्वामी साढे़ 6 बजे अपने 2 सहयोगी के साथ रूना के घर आ गया.

आते ही स्वामी ने मकान के पेपर मांगे तो उन्होंने कहा, ‘‘पेपर तो दूंगा ही. पहले आप यह बताइए कि मेरी पत्नी पर आप ने कौन सा जादू कर रखा है कि आप की गुलाम बन गई है. खुशीखुशी अपना सर्वस्व तक सौंप देती है? उस से आप चाहते क्या हैं?’’

‘‘मेरी शिष्या नमिता जिस कंपनी में चेयरमैन है, उसी में आप की पत्नी है. नमिता से ही पता चला कि आप की पत्नी के पास एक फार्महाउस है और आप के पास पुश्तैनी मकान है.

‘‘नमिता को आप की पत्नी के पीछे लगा दिया. वह वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, सो मेरे इशारे पर चलने लगी. बाद में मैं ने रूना को आप के पीछे लगा दिया था.’’

स्वामीजी आगे कुछ कहते, उस से पहले दरवाजे की घंटी बजी. रूना ने दरवाजा खोला तो सुचित्रा थी.

वह कुछ कहती, उससे पहले सुचित्रा यह कहते हुए अंदर आ गई, ‘‘मैं जानती हूं, स्वामीजी और मेरे पति अंदर हैं. मुझे तुम लोगों के बारे में सब कुछ मालूम हो गया है. स्वामीजी से बात कर के चली जाऊंगी.’’

रूना दरवाजा बंद करने लगी तो सुचित्रा ने मना कर दिया. कहा, ‘‘2 मिनट में लौट जाऊंगी. दरवाजा बंद करने की जरूरत नहीं है.’’

सुचित्रा के आ जाने से सभी सकते में थे. रूना भी परेशान हो गई थी. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए.

सुचित्रा स्वामीजी से बोली, ‘‘आप को एक सच बताने आई हूं.’’

‘‘क्या?’’ स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मेरे पति रूना को प्यार करते हैं. मुझे तलाक दे कर उस से शादी करना चाहते हैं. अपना मकान भी उसी को देना चाहते हैं. इसलिए मैं ने भी अपना फार्महाउस आप के आश्रम को दे कर अपनी शेष जिंदगी आप के साथ बिताने का फैसला किया है.’’

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सुचित्रा के चुप होते ही स्वामीजी दहाड़ उठे, ‘‘तुम तो अपनी संपत्ति दोगी ही. तुम्हारे पति को भी देनी होगी. अपनी संपत्ति रूना को देने वाला वह कौन होता है. यदि वह मेरी बात नहीं मानेगा तो मेरे लोग यहीं पर उस का कत्ल कर देंगे.’’

स्वामीजी प्रोफेसर साहब से कुछ कहते, उस से पहले खुले दरवाजे से पुलिस आ गई.  स्वामीजी और उन के दोनों सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया. रूना को भी गिरफ्तार कर लिया.

इंसपेक्टर ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप पर बहुत दिनों से पुलिस की नजर थी. सबूत के अभाव में गिरफ्तार नहीं कर पा रहे थे. आज पक्का सबूत मिल गया. कमरे में आप लोगों के बीच जो बातें हुई हैं, वे सब सीसीटीवी कैमरे में कैद हो चुकी हैं.’’

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अंजाम: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- अंजाम: भाग 1

रूना आगे बोली, ‘‘रोजाना पार्क में वाक के लिए जाती थी, उस दिन के बाद आप को छिपछिप कर देखने लगी थी. आप से बात करने का मन होता था पर हिम्मत नहीं होती थी.

‘‘एक दिन पार्क में आप को कोई परिचित मिल गया था. उस के साथ आप की जो बात हुई, उस से पता चला कि आप प्रोफेसर हैं. शादीशुदा तो हैं ही, 2 बड़ेबड़े बच्चों के पिता भी हैं.

‘‘किस कालेज में पढ़ाते हैं और कहां रहते हैं, इस का पता भी चल गया था. इस के बावजूद आप के प्रति मेरा झुकाव कम नहीं हुआ.

‘‘आज इस पार्टी देने वाले की कृपा से आप से बात करने का मौका मिला है.यहां आते ही आप पर मेरी नजर पड़ी थी. मिलूं या न मिलूं, इसी उधेड़बुन में थी कि पत्नी से अपमानित हो कर आप इधर आ गए.

‘‘दुख में आप का साथ देना मुनासिब समझा और आप के पीछे आ गई. मेरी दोस्ती कबूल करें या न करें, पर जीवन भर आप को याद रखूंगी’’

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उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रूना उन के शानदार व्यक्तित्व की कायल है.

इसी तरह कालेज लाइफ में भी कई लड़कियां उन पर घायल थीं. कुछ ने शादी का प्रस्ताव भी दिया था. लेकिन उन्होंने किसी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था. उस समय कैरियर ही सब कुछ था.

शिक्षा क्षेत्र में जाना चाहते थे, इसीलिए एमए के बाद पीएचडी की. फिर थोड़े से प्रयास के बाद कालेज में नियुक्ति हो गई.

एक वर्ष बाद शादी की सोची तो सुचित्रा  से परिचय हुआ. शादी का प्रस्ताव उसी ने दिया था. वह उन से बहुत प्रभावित थी.

काफी सोचने के बाद सुचित्रा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था. कारण यह कि वह अपने मातापिता की एकलौती बेटी थी. उस के पिता शहर के नामी अमीरों में थे. उन का कई तरह का बिजनैस था. उस का बड़ा भाई राजनीति में था, बहुत रुतबे वाला. उस के परिवार के सामने उन की कोई हैसियत नहीं थी.

उन का परिवार सामान्य था. पिता शिक्षक थे. मां हाउसवाइफ थी. कुछ दिन पहले ही कुछ अंतराल पर दोनों का देहांत हुआ था.

संपत्ति के नाम पर पार्कस्ट्रीट पर 6 कट्ठा में बना 4 मंजिला मकान था. दूसरी मंजिल उन के पास थी. बाकी किराए पर दे रखा था. अच्छाखासा किराया आता था. कुछ बैंक बैलेंस भी था.

सुचित्रा सुंदर थी और स्मार्ट भी. सीए के बाद भी उस ने कई डिग्रियां हासिल की थीं. उस के घर वाले भी उन से प्रभावित थे. फलस्वरूप जल्दी ही धूमधाम से दोनों की शादी हो गई.

उन के मना करने पर भी सुचित्रा के पापा ने दोनों के नाम एक आलीशान मकान खरीद दिया तो उन्होंने अपना घर किराए पर दे दिया और सुचित्रा के साथ नए मकान में आ गए.

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सुचित्रा के पिता के पास बाकुड़ा और मिदनापुर में 3 फार्महाउस थे. मिदनापुर वाला फार्महाउस 20 एकड़ का था. उसे उन्होंने सुचित्रा को दे दिया था. जबकि सुचित्रा कोलकाता में ही रह कर जौब करना चाहती थी. इसलिए फार्महाउस में मैनेजर रख दिया गया.

शादी के कुछ महीने बाद सुचित्रा ने जौब करने की बात कही तो उन्होंने इजाजत दे दी. वह होनहार थी ही. जल्दी ही एक बड़ी मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर जौब मिल गया.

एकदूसरे की मोहब्बत से लबरेज जिंदगी समय की धारा के साथ दौड़ती चली गई. उन्हें लगा था कि सुचित्रा जीवन भर अपने प्यार के झूले पर झुलाती रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ. पिछले एक साल से न जाने क्यों वह उन से कतराने लगी थी.

कभी पराई स्त्री से संबंध बनाने के बारे में सोचना पड़ेगा, उन्होंने सोचा तक नहीं था. लेकिन सुचित्रा की अवहेलना से वह ऐसा करने पर मजबूर हो गए थे.

रूना से दोस्ती करने के बाद उस से बराबर मिलते रहे. उस के साथ मौल में 2 बार रोमांटिक मूवी भी देख आए थे. कालेज से छुट्टी ले कर पिकनिक भी मना चुके थे.

एक बार रूना उन्हें घर ले गई थी. बातोंबातों में वह अचानक उन से लिपट गई और बोली, ‘‘यदि आप की पत्नी नहीं होती तो आप से शादी कर लेती. आप को प्यार जो करने लगी हूं.’’

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उन्होंने भी रूना को एकाएक बांहों में कस लिया था. सीमाएं लांघ पाते, उस से पहले ही उन का विवेक लौट आया.

रूना को अपने से अलग कर के उन्होंने कहा, ‘‘दोस्ती की एक सीमा होती है. मैं हमेशा तुम्हें दोस्त बनाए रखना चाहता हूं.’’

फिर रूना के कुछ कहने से पहले ही वहां से चले गए थे.

इस के बावजूद रूना ने उन से मिलना बंद नहीं किया था. वह नियमित मिलती रही थी.

इस तरह 4 महीने में ही रूना ने उन के वजूद को कोहरे की चादर की तरह ढंक लिया था. इसीलिए सुचित्रा से बेवफाई करने का मन हुआ तो उस से ही संबंध बनाने का फैसला किया.

अगले दिन सुचित्रा सुबह 8 बजे एयरपोर्ट चली गई तो उन्होंने रूना को फोन किया. वह चहकती हुई बोली, ‘‘सुबहसुबह कैसे याद किया प्रोफेसर साहब? सब खैरियत है न?’’

‘‘खैरियत नहीं है. अकेला हूं और तनहाई में तुम्हारा साथ चाहता हूं.’’

‘‘मतलब?’’ रूना ने चौंक कर पूछा.

‘‘एक बार मैं ने मना कर दिया था. पर अब मैं तुम्हें पाने के लिए बेचैन हूं. तुम मिलोगी न?’’ उन्होंने बगैर कोई संकोच के अपने मन की बात कह दी.

‘‘आप को इतना प्यार करती हूं कि जान भी दे सकती हूं. शाम को कालेज से छुट्टी होते ही मेरे घर आ जाइए. पलकें बिछा कर आप की प्रतीक्षा करूंगी.’’

वह खुशी से झूम उठे. सारा दिन कैसे बीता, पता ही नहीं चला. रूना से मिलने की कल्पना से पुलकित होते रहे थे.

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छुट्टी हुई तो बिना देर किए उस के घर चले गए. रूना ने उन का भरपूर स्वागत किया.

रात के 11 बजे अपने घर वापस लौट रहे थे तो जैसे हवा में उड़ रहे थे. पहली बार महसूस किया कि कभीकभी अपनों से अधिक परायों से सुख मिलता है. रूना से उन्होंने भरपूर सुख महसूस किया था.

अचानक मोबाइल पर रूना का मैसेज आया, ‘‘आप को मैं अच्छी लगी तो जब जी चाहे, आ सकते हैं. आप मेरे रोमरोम में बस गए हैं. आप को नजरअंदाज कर जी नहीं सकती.’’

रूना का प्यार देख कर मन मयूर नाच उठा. फिर उन्होंने भी मैसेज किया, ‘‘तुम मेरी धड़कन बन चुकी हो. मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

अगले दिन से ही वह प्रतिदिन बेटी से कोई न कोई बहाना बना कर रूना के घर जाने लगे.

कहावत है कि सच्चाई जानते हुए भी आंखें मूंद लेने में दिल को बहुत सुकून मिलता है. उन्होंने भी ऐसा ही किया.

वह अच्छी तरह जानते थे कि जो हो रहा है, वह मृगतृष्णा है, जहां रेत को पानी समझ कर मीलों दौड़ते रहना पड़ता है.

इस के बावजूद शबनम की बूंदों सी बरसती प्यार की तपिश को महसूस करने के लिए उन्होंने शतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना मुंह छिपा लिया था.

जिस दिन सुचित्रा इटली से लौट कर आई, उस दिन वह रूना के घर नहीं गए. कुछ दिनों तक उस से न मिलने का फैसला लिया था.

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मुकुल रूना को अपना फैसला फोन पर बताने की सोच ही रहे थे कि उस का ही फोन आ गया, बोली, ‘‘जानती हूं, आप की पत्नी इटली से वापस आ गई है. अब आप नहीं आ पाएंगे. आएंगे भी तो कभीकभी. कोई बात नहीं. आप आएं या न आएं, मैं तो सदैव आप को याद रखूंगी.

‘‘आप भी मुझे हमेशा याद रखेंगे. इस के लिए कुछ उपाय मैं ने किए हैं. फोन पर भेज रही हूं. अच्छे से देख लीजिए और सोचसमझ कर कदम उठाइए.’’

फिर मोबाइल पर रूना के मैसेज पर मैसेज आने लगे. उन्होंने मैसेज खोलना शुरू किया तो दिल की धड़कन बेतरह बढ़ गई. आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

मैसेज में कई एक फोटो थे. सारे के सारे रूना और उन के अंतरंग क्षणों के थे. जाहिर था रूना ने कैमरा लगा रखा था या फिर उस के किसी साथी ने छिप कर फोटो खींचे थे.

उन की समझ में आ गया कि सारा कुछ सुनियोजित था. उन के हाथपैर कांपने लगे. घबराहट में भय से रुलाई छूट गई.

ऐसे फोटो देखने के बाद समाज में उन की इज्जत राईरत्ती भी नहीं रहती. पत्नी की नजर में भी सदैव के लिए गिर जाते. वह उन्हें तलाक भी दे सकती थी.

कुछ देर बाद अपने आप को काबू में कर रूना को फोन किया, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? तुम तो मुझे प्यार करती थी.’’

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‘‘प्यार तो अब भी करती हूं प्रोफेसर साहब, पर प्यार से पेट थोड़े भरता है. इस के लिए रुपए की जरूरत होती है. मांगने से तो देते नहीं, इसीलिए ऐसा करना पड़ा.

‘‘लेकिन आप डरिए मत. बेफिक्र हो कर मेरे घर आ जाइए. मेरी बात मान लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’

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अंजाम: भाग 1

रात के 2 बज गए थे. बहुत कोशिश के बाद भी प्रोफेसर मुकुल बनर्जी को नींद नहीं आई. पत्नी सुचित्रा नींद के आगोश में थी. मुकुल ने उसे नींद से जगा कर फिर से अनुनयविनय करने का विचार किया. उन्हें लग रहा था कि जब तक संबंध नहीं बनाएंगे, नींद नहीं आएगी. इस के लिए वह शाम से ही बेकल थे.

सोने से पहले उसे अपनी भावना से अवगत भी कराया था. लेकिन उस ने साफ मना कर दिया था.

बोली, ‘‘बहुत थकी हूं. आप को तो पता है कल कंपनी के काम से 10 दिन के लिए इटली जा रही हूं. सुबह 6 बजे तक नहीं उठूंगी तो फ्लाइट नहीं पकड़ पाऊंगी. प्लीज सोने दीजिए.’’

उन्होंने उसे समझाने और मनाने की कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं हुआ. वह सो गई. बाद में उन्होंने भी सोने की कोशिश की किंतु नींद नहीं आई.

26 वर्ष पहले जब उन्होंने सुचित्रा से विवाह किया था तो वह 24 वर्ष की थी. उन से 2 साल छोटी. तब वह ऐसी न थी. जब भी अपनी इच्छा बताते थे, झट से राजी हो जाती थी. उत्साह से साथ भी देती थी.

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उस के साथ हंसतेखेलते कैसे वर्षों गुजर गए, पता ही नहीं चला. इस बीच उन की जिंदगी में बेटा गौरांग और बेटी काकुली आए.

गौरांग 2 साल पहले पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया था. 4 साल का कोर्स था. काकुली उस से 4 वर्ष छोटी थी. मां को छोड़ कर कहीं नहीं गई, वह कोलकाता में ही पढ़ रही थी.

सुचित्रा में बदलाव साल भर पहले से शुरू हुआ था. तब तक वह कंपनी में वाइस प्रेसीडेंट बन चुकी थी.

वाइस प्रेसीडेंट बनने से पहले औफिस से शाम के 6 बजे तक घर आ जाती थी. अब रात के 10 बजे से पहले शायद ही कभी आई हो.

कपड़े चेंज करने के बाद बिस्तर पर ऐसे गिर पड़ती थी जैसे सारा रक्त निचुड़ गया हो.

ऐसी बात नहीं थी कि वह उसे सिर्फ रात में ही मनाने की कोशिश करते थे. छुट्टियों में दिन में भी राजी करने की कोशिश करते थे, पर वह बहाने बना कर बात खत्म कर देती थी.

कभी बेटी का भय दिखाती तो कभी नौकरानी का. कभीकभी कोई और बहाना बना देती थी.

ऐसे में कभीकभी उन्हें शक होता था कि उस ने कहीं औफिस में कोई सैक्स पार्टनर तो नहीं बना लिया है.

ऐसे विचार पर घिन भी आती थी. क्योंकि उस पर उन का पूरा भरोसा था.

कई बार यह खयाल भी आया कि सुचित्रा उन की पत्नी है. उस के साथ जबरदस्ती कर सकते हैं, लेकिन कभी ऐसा किया नहीं.

लेकिन आज उन की बेकरारी इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने सीमा लांघ जाने का मन बना लिया.

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उन्होंने सोचा, ‘एक बार फिर से मनाने की कोशिश करता हूं. इस बार भी राजी नहीं हुई तो जबरदस्ती पर उतर जाऊंगा.’

उन्होंने नींद में गाफिल सुचित्रा को झकझोर कर उठाया और कहा, ‘‘नींद नहीं आ रही है. प्लीज मान जाओ.’’

सुचित्रा को गुस्सा आया. दोचार सुनाने का मन किया. पर ऐसा करना ठीक नहीं लगा. उस ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘दिल पर काबू रखने की आदत डाल लीजिए, प्रोफेसर साहब. जबतब दिल का मचलना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हें पाने के लिए मेरा दिल हर पल उतावला रहता है तो मैं क्या करूं? ऐसा लगता है कि अब तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता…’’

‘‘यह आप का भ्रम है. सच यह है कि औफिस से आतेआते बुरी तरह थक जाती हूं.’’

‘‘रात के 10 बजे घर आओगी तो थकोगी ही. पहले की तरह शाम के 6 बजे तक क्यों नहीं आ जातीं?’’

‘‘आप समझते हैं कि मैं अपनी मरजी से देर से आती हूं. बात यह है कि पहले वाइस प्रेसीडेंट नहीं थी. इसलिए काम कम था. जब से यह जिम्मेदारी मिली है, काम बढ़ गया है.’’

‘‘जिंदगी भर ऐसा चलता रहेगा तो मैं कहां जाऊंगा. मेरे बारे में तो तुम्हें सोचना ही होगा.’’ उन की आवाज में झल्लाहट थी.

स्थिति खराब होते देख सुचित्रा ने झट से उन का हाथ अपने हाथ में लिया और प्यार से कहा, ‘‘नाराज मत होइए. वादा करती हूं कि इटली से लौट कर आऊंगी तो पहले आप की सुनूंगी, फिर औफिस जाऊंगी. फिलहाल आप सोने दीजिए.’’

सुचित्रा फिर सो गई. वह झुंझलाते हुए करवटें बदलने लगे. चाह कर भी जबरदस्ती न कर सके. जबरदस्ती करना उन के खून में था ही नहीं.

तन की ज्वाला शांत हुए बिना मन शांत होने वाला नहीं था. इसलिए उन्होंने सुचित्रा से बेवफाई करने का मन बना लिया.

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वह समझ गए थे कि कारण जो भी हो, सुचित्रा अब पहले की तरह साथ नहीं देगी. कुछ न कुछ बहाना बनाती रहेगी.

उन्होंने जब ऐसी स्त्रियों को याद किया जो बिना शर्त, बिना हिचक संबंध बना सकती थी तो पहला नाम रूना का आया.

उस से पहली मुलाकात शादी समारोह में हुई थी. 4 महीना पहले सुचित्रा की सहेली की बेटी की शादी थी. वह उस के साथ समारोह में गए थे.

पार्टी में काफी भीड़ थी. 10-15 मिनट बाद सुचित्रा बिछड़ गई. उस के बिना मन नहीं लगा तो बेचैन हो कर उसे ढूंढने लगे. 20-25 मिनट बाद मिली तो उन्होंने उलाहना दिया, ‘‘कहां चली गई थीं? ढूंढढूंढ कर परेशान हो गया हूं.’’

उस के साथ एक महिला भी थी. उस की परवाह किए बिना उन्हें झिड़कते हुए बोली, ‘‘मैं क्या 18-20 की हूं कि किसी के डोरे डालने पर उस के साथ चली जाऊंगी. आप भी अब 53 के हो गए हैं. इस उम्र में 18-20 वाली बेताबी मत दिखाइए, नहीं तो लोग हंसेंगे.’’

उस के बाद वह उस महिला के साथ चली गई. वह ठगे से खड़े रह गए. सुचित्रा ने उन के वजूद को उस ने पूरी तरह नकार दिया था.

अपनी बेइज्जती महसूस की तो वह भीड़ से अलग अकेले में जा कर बैठ गए. पत्नी से अपमानित होने के दर्द ने मन को भिगो दिया, आंखों से आंसू छलक आए.

आंसू पोंछने के लिए जेब से रुमाल निकालने की सोच ही रहे थे कि अचानक एक युवती अपना रुमाल बढ़ाती हुई बोली, ‘‘आंसू पोंछ लीजिए, प्रोफेसर साहब.’’

युवती की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. सलवार सूट से सुसज्जित लंबी कदकाठी थी. सुंदरता कूटकूट कर भरी थी.

उन्होंने कहा, ‘‘आप को तो मैं जानता तक नहीं. रुमाल कैसे ले लूं?’’

‘‘पहली बात यह कि मुझे आप मत कहिए. आप से छोटी हूं. दूसरी बात यह कि यह सच है कि आप मुझे नहीं जानते, पर मैं आप को खूब अच्छी तरह से जानती हूं.’’

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युवती ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘आप की पत्नी ने कुछ देर पहले आप के साथ जो व्यवहार किया था, वह किसी भी तरह से ठीक नहीं था. इस से पता चल गया कि प्यार तो दूर, वह आप की इज्जत भी नहीं करती.’’

उन्हें लगा कि वह 50 हजार के सूटबूट, 1 लाख की हीरे की अंगूठी, गले में सोने की कीमती चेन और विदेशी कलाई घड़ी से अवश्य सुसज्जित हैं, पर उस युवती की सूक्ष्म दृष्टि ने भांप लिया है कि वजूद का तमाम हिस्सा जहांतहां से रफू किया हुआ है.

युवती से किसी भी तरह की घनिष्ठता नहीं करना चाहते थे. इसलिए झटके से उठ कर खड़े हो गए.

भीड़ की तरफ बढ़ने को उद्यत ही हुए थे कि युवती ने हाथ पकड़ कर फिर से बैठा दिया और कहा, ‘‘आप का दर्द समझती हूं. पत्नी को बहुत प्यार करते हैं, इसीलिए उस की बुराई नहीं सुनना चाहते. पर सच तो सच होता है. देरसबेर सामना करना ही पड़ता है.’’

युवती की छुअन से 53 साल की उम्र में भी उन के दिल की घंटी बज उठी. युवती खुद उन से आकर्षित थी, अत: उस का दिल तोड़ना ठीक नहीं लगा. न चाहते हुए भी उन्होंने उस का परिचय पूछ ही लिया.

उस ने अपना नाम रूना बताया. मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती थी. ग्रैजुएट थी. अब तक अविवाहित थी.

मातापिता, भाईबहन गांव में रहते थे. शहर में अकेली रहती थी. पार्कस्ट्रीट में 2 कमरे का फ्लैट ले रखा था.

रूना ने बताया, ‘‘पहली बार आप को पार्क में मार्निंग वाक करते देखा था. आप की पर्सनैलिटी पर मुग्ध हुए बिना न रह सकी थी. लगा था कि आप अधिक से अधिक 40 के होंगे. आप की पत्नी ने आज आप को उम्र का अहसास कराया तो पता चला कि 53 के हैं. पर देखने में आप 40 से अधिक के नहीं लगते.’’

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फेसबुक से निकली मौत: भाग 1

22 जून, 2019 की सुबह पुणे शहर के पौश इलाके में स्थित मुढ़वा की रहने वाली 40 वर्षीय राधा अग्रवाल घर से अपनी स्कूटी ले कर निकली थी. उस ने घर पर बताया था कि वह अपनी सहेलियों के साथ साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में घर लौट आएगी. घर से निकलते समय वह अपने सारे गहने पहने हुई थी. जब वह 25 जून तक नहीं लौटी तो पति किशोरचंद्र अग्रवाल ने उस का फोन मिलाया. लेकिन राधा का फोन स्विच्ड औफ मिला.

राधा के 16 वर्षीय बेटे मानव अग्रवाल ने इस बारे में अपनी मां की सहेलियों से बात की तो उन्होंने बताया कि वह तो शिरडी गई ही नहीं थी, न ही उन्हें राधा के शिरडी जाने की कोई जानकारी है.

राधा की सहेलियों से यह जानकारी मिलने पर परिवार के लोग परेशान हो गए. चूंकि उस दिन राधा अग्रवाल गहने पहन कर गई थी, इसलिए उन की चिंता और भी बढ़ गई. 25 जून की शाम को ही मानव अग्रवाल अपने 3-4 सगेसंबंधियों के साथ थाना मुढ़वा पहुंच गया. उस ने वहां मौजूद थानाप्रभारी संपतराव भोसले को अपनी मां के लापता होने की विस्तार से जानकारी दे दी.

राधा अग्रवाल शहर के करोड़पति रियल एस्टेट कारोबारी किशोरचंद्र अग्रवाल की पत्नी थी. मानव अग्रवाल की बात सुन कर थानाप्रभारी भी आश्चर्य में पड़ गए कि आशा अग्रवाल आखिर अपनी मरजी से कहां चली गई.

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बहरहाल, उन्होंने राधा अग्रवाल की डिटेल्स लेने के बाद मानव को भरोसा दिया कि पुलिस उन्हें अपने स्तर से ढूंढने की कोशिश करेगी.

चूंकि मामला एक प्रतिष्ठित परिवार की महिला से जुड़ा था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. इस के बाद उन्होंने राधा अग्रवाल की गुमशुदगी की काररवाई शुरू कर दी. उन्होंने फोटो सहित उस का हुलिया पुणे शहर के सभी पुलिस थानों को भिजवा दिया. इस के अलावा उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने मामले की जांच के लिए एसआई अमोल गवली, स्वप्निल पाटील, हैडकांस्टेबल कैलाश चह्वाण, निलेश जगताप, श्रीनाथ जाधव, अमोल चह्वाण और एस.ए. काकड़े को शामिल कर एक टीम बनाई. पुलिस टीम अपने स्तर से राधा अग्रवाल को तलाशने लगी.

जांच में पता चला कि राधा अग्रवाल शादी के पहले से ही खुले विचारों वाली थी. वह किसी प्रकार के बंधनों को नहीं मानती थी. शादी के बाद उसे परिवार भी वैसा ही मिला था. घर में उसे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी. अभाव केवल एक यह था कि पति का ज्यादा संग नहीं मिल पाता था, क्योंकि पति किशोरचंद्र अग्रवाल अपने रियल एस्टेट कारोबार में ज्यादा व्यस्त रहते थे. एक बेटा था जो पढ़ाई कर रहा था.

सोशल मीडिया पर रहने का शौक

राधा के पास भले ही रुपएपैसों की कमी नहीं थी, लेकिन वह पति का साथ चाहती थी जो उसे नहीं मिल पाता था. वह कसे हुए बदन की सुंदर महिला थी. एक युवक की मां होने के बाद भी उस का शारीरिक आकर्षण बरकरार था. यही वजह थी कि राधा ने अपना मन बहलाने के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो कुछ ही दिनों में उस के हजारों फालोअर्स और सैकड़ों दोस्त बन गए थे.

राधा ने घूमने के लिए एक स्कूटी ले रखी थी, जिस से वह अपने दोस्तों और सहेलियों से मिलने जाया करती थी. वह तरहतरह के पोज में खींचे गए अपने फोटो फेसबुक पर डाल दिया करती थी, जिस से उसे काफी प्रशंसा मिलती थी. सोशल मीडिया से जुड़ने के बाद राधा अग्रवाल के चेहरे पर अकसर चमक दिखाई देती थी. वह अपनी इस जिंदगी से काफी खुश रहने लगी थी.

यह जानकारी मिलने के बाद जांच अधिकारी को इस बात का पूरा भरोसा हो गया कि राधा अग्रवाल की गुमशुदगी के पीछे कोई गहरा रहस्य है, जिस का परदा उठाना जरूरी है. पुलिस ने राधा अग्रवाल का मोबाइल नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो अंतिम लोकेशन पुणे के ही भोसले नगर, रेंज हिल इलाके की मिली.

पुलिस वहां पहुंच गई और इधरउधर खोजबीन करने लगी. वहां पर एक स्कूटी मिली, जो राधा अग्रवाल की ही थी. पुलिस ने स्कूटी की डिक्की खोल कर देखी तो उस में राधा का मोबाइल फोन मिला. फोन डिस्चार्ज हो चुका था.

जब मोबाइल को चार्ज कर औन किया किया तो वाट्सऐप और फेसबुक पर महिला और युवक दोस्तों की लंबी फेहरिस्त देख पुलिस टीम हैरान रह गई. राधा अग्रवाल के फोन पर जिस नंबर से आखिरी बार बातचीत हुई थी, पुलिस ने उस नंबर की जांच की तो वह नंबर आनंद निगम का निकला, जो कर्नाटक का रहने वाला था.

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पुलिस टीम उस के घर पहुंच गई लेकिन वह घर से फरार मिला. परिवार वालों से पूछताछ कर के आखिरकार पुलिस उस के पास पहुंच ही गई. आनंद निगम को हिरासत में ले कर पुलिस पुणे लौट आई.

आनंद निगम से थाने में पूछताछ की जानी थी, इसलिए सूचना पा कर डीसीपी सुहास बाबचे और एसीपी सुनील देशमुख भी थाना मुढ़वा पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के सामने थानाप्रभारी संपतराव भोसले ने आनंद निगम से राधा अग्रवाल के बारे में पूछताछ की तो पहले तो वह यही कहता रहा कि राधा अग्रवाल नाम की किसी महिला को नहीं जानता.

लेकिन पुलिस ने जब वाट्सऐप और फेसबुक पर उस की और राधा की चैटिंग दिखाई तो वह सहम गया. वह चाह कर भी अपना झूठ नहीं छिपा सका. सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने स्वीकार कर लिया कि वह राधा अग्रवाल की हत्या कर चुका है.

हत्या की बात सुनते ही पुलिस चौंक गई. आनंद से उस की लाश के बारे में पूछा गया तो उस ने बता दिया कि लाश ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में है. हत्या करने के बाद वह उस के सभी गहने और नकदी ले भागा था.

पुलिस को किसी भी तरह राधा अग्रवाल की बौडी बरामद करनी थी. उसे संशय था कि कहीं जंगली जानवरों ने शव को नष्ट न कर दिया हो. इसलिए पुलिस आनंद निगम को ले कर 12 जुलाई, 2019 को ताम्हिणी वर्षा घाट के जंगल में जा पहुंची.

लेकिन जंगल में राधा अग्रवाल के केवल अस्थिपंजर और कपड़े मिले. उस का मांस जंगली जानवर नोंचनोंच कर खा चुके थे. पुणे पुलिस ने स्थानीय पुलिस के सहयोग से कंकाल बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस आनंद निगम को ले कर पुणे लौट आई.

पूछताछ करने पर आनंद निगम ने राधा अग्रवाल की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी.

आनंद की अपनी कहानी

31 वर्षीय आनंद निगम मूलरूप से कर्नाटक का रहने वाला था. उस के पिता का नाम शिवाजी निगम था. परिवार में उस के मातापिता के अलावा एक छोटी बहन थी. परिवार की माली स्थिति साधारण थी.

जब उस के पिता का निधन हो गया तो घर की जिम्मेदारी आनंद पर आ गई. वह रोजीरोटी की तलाश में परिवार के साथ पुणे आ गया और वहां की वृंदावन कालोनी के तापकीर नगर में रहने लगा.

पुणे में रहते हुए उस की मां ने एक दूसरे आदमी का हाथ पकड़ लिया था. बहन जवान हुई तो उस ने भी लवमैरिज कर ली. इस के बाद आनंद ने भी अंतरजातीय विवाह कर अपना घर बसा लिया. समय गुजरता गया और वह 2 बच्चों का बाप बन गया.

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फेसबुक से निकली मौत: भाग 2

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अपनी रोजीरोटी के लिए उस ने एक पुरानी कार ले ली और लोगों को कार चलाना सिखाने लगा. उस के पास ड्राइविंग सीखने के लिए ज्यादातर महिलाएं आती थीं. व्यवहारकुशल होने के नाते अधिकतर महिलाएं उस के प्रभाव में आ जाती थीं, जो उस की दोस्त बन जाती थीं. वह उन से फेसबुक, वाट्सऐप के माध्यम से चैटिंग किया करता था, जिस का असर उस के व्यवसाय पर पड़ने लगा था.

यह बात जब उस की पत्नी को मालूम हुई तो उस ने उसे आड़ेहाथों लिया. विवाद इतना बढ़ा कि उसे अपना कार ड्राइविंग का धंधा बंद करना पड़ा. इस के बाद उसे परिवार चलाने के लिए कोई काम तो करना ही था. उस ने अपने जानपहचान वालों और दोस्तों से ब्याज पर पैसे ले कर भोसले नगर के रेंज हिल इलाके में एक टी-स्टाल शुरू कर दिया. स्टाल पर वह बीड़ीसिगरेट भी बेचता था.

इस काम में उस की मां भी मदद किया करती थी. पूरा दिन खपाने के बाद भी इस काम में कोई खास आमदनी नहीं हो पाती थी. घर का खर्च भी बमुश्किल चलता था. ऐसे में उसे कर्ज उतारना भी मुश्किल हो गया था. नतीजा यह हुआ कि उस का कर्ज बढ़तेबढ़ते 2 लाख के करीब पहुंच गया. वह इसी चिंता में रहता कि कर्ज कैसे उतारे.

आनंद सोशल साइट्स पर एक्टिव रहता था. एक दिन उस ने फेसबुक पर राधा अग्रवाल का प्रोफाइल देखा तो उस पर मोहित हो गया. उस ने बिना देर किए फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी. राधा अग्रवाल ने भी आनंद निगम का फोटो देखते ही उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

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हालांकि राधा अग्रवाल और आनंद निगम की उम्र में काफी अंतर था. राधा अग्रवाल आनंद निगम से करीब 10 साल बड़ी थी. लेकिन दोनों को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. कुछ दिनों की चैटिंग के दौरान दोनों में गहरी दोस्ती हो गई और धीरेधीरे वे एकदूसरे के करीब आने लगे.

राधा अग्रवाल के पास पैसों की कमी नहीं थी. खर्च करने के लिए उस के पास पैसा ही पैसा था. जबकि कहीं आनेजाने के लिए स्कूटी थी. वह आनंद निगम के संपर्क में आ कर कुछ इस प्रकार फिसली कि अपनी मर्यादा की लक्ष्मण रेखाओं को भी लांघ गई. जब भी मौका मिलता, दोनों पुणे शहर के किसी भी होटल में जा कर मौजमजे कर लेते थे.

समय अपनी गति से चल रहा था. राधा अग्रवाल अब पूरी तरह से आनंद निगम पर आंख मूंद कर भरोसा करने लगी थी. आनंद निगम उस से जो भी कहता, उसे वह तहेदिल से स्वीकार करती थी. आनंद निगम को जब इस बात का पूरा यकीन हो गया कि राधा पूरी तरह उस की दीवानी है, तो उस ने अपने ऊपर चढ़े कर्जे को उतारने की एक खतरनाक योजना तैयार कर ली.

वैसे तो राधा अग्रवाल लाख दो लाख रुपए उसे ऐसे ही दे सकती थी. लेकिन आनंद अपने ऊपर किसी प्रकार का बोझ नहीं रखना चाहता था. इस से रिश्ता खराब होने पर राधा अग्रवाल भी उस से अपना पैसा मांग सकती थी. यही सब सोच कर वह सिर्फ अपनी योजना पर ध्यान देने लगा.

योजना को अंजाम देने के लिए एक दिन उस ने राधा से कहा, ‘‘राधा, तुम इतनी खूबसूरत हो कि अगर किसी मैगजीन में तुम्हारे फोटो भेजे जाएं तो वे कवर पेज पर छप सकते हैं.’’

यह सुन कर खुश होते हुए राधा बोली, ‘‘सच!’’

‘‘हां, क्या तुम ने अपने फोटोजेनिक चेहरे को कभी गौर से नहीं देखा?’’ आनंद बोला,  ‘‘देखो, मैं चाहता हूं कि किसी नैचुरल जगह पर तुम्हारा फोटोशूट कर के फोटो मैगजीन वगैरह में भेजे जाएं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस के लिए तैयार हूं.’’ राधा बोली.

‘‘तो ठीक है, तुम कल अपने सारे गहने पहन कर आ जाओ. हम पुणे से कहीं दूर चलेंगे.’’

राधा उस पर आंखें मूंद कर भरोसा करती ही थी. इसलिए 22 जून की सुबह अपने सारे गहने पहन कर घर से निकली. घर वालों से उस ने कह दिया कि वह अपनी सहेलियों के साथ स्कूटी से साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में लौट आएगी.

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इस के बाद वह स्कूटी ले कर आनंद द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गई. आनंद वहां पहले ही खड़ा था. वहां से आनंद ने राधा की स्कूटी संभाली और राधा उस के पीछे चिपक कर बैठ गई.

राधा छली गई ग्लैमर के चक्कर में

दोनों आपस में हंसीमजाक करते हुए कब पुणे से 80 किलोमीटर दूर निकल गए, पता ही नहीं चला. और जब पता चला तो वह ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में पहुंच गए थे. आनंद निगम को अपनी योजना के अनुसार वह जगह उपयुक्त लगी. उस ने स्कूटी एक तरफ खड़ी कर दी. इस के बाद उस ने राधा से फोटो सेशन के लिए तैयार होने को कहा.

राधा अग्रवाल खुशीखुशी अपना फोटो सेशन कराने के लिए तैयार हो गई. सड़क से कुछ दूर जंगल में जा कर आनंद अलगअलग ऐंगल से उस के फोटो खींचने लगा. फिर आनंद ने राधा से एकदो हौरर फोटो खींचने के लिए अनुरोध किया. हौरर फोटो सेशन करने के लिए आनंद ने राधा की सहमति से पहले उस की आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथपैर बांध कर फोटो खिंचवाने को कहा.

राधा उस के कहने के अनुसार करती रही. हाथपैर बांधने के बाद आनंद ने उस के सारे गहने उतार कर अपने पास रख लिए. इस के बाद उस ने साथ छिपा कर लाए गए तेज धारदार चाकू से राधा अग्रवाल का गला रेत दिया. राधा अग्रवाल की एक मार्मिक चीख निकल कर निर्जन जंगल में खो गई.

राधा अग्रवाल की हत्या करने के बाद आनंद निगम ने उस का मोबाइल फोन स्कूटी की डिक्की में रख दिया. उस के हैंडबैग से नोटों से भरा पर्स निकाल लिया और स्कूटी ले कर पुणे की तरफ लौट पड़ा था. ताम्हिणी वर्षा घाट से कुछ दूर आनंद ने पर्स से सारे पैसे निकालने के बाद उसे भी फेंक दिया.

इस के बाद वह घोरपेड़ फाटक पर आ कर एक पान की दुकान पर रुका. वहां पर उस ने एक सिगरेट पी.

वहां से आनंद निगम अपने घर न जा कर सीधे अपने टी-स्टाल पर पहुंचा. उस समय रात का एक बजा था. चारों तरफ सन्नाटा था. उस ने राधा की स्कूटी अपने टी-स्टाल के पीछे खड़ी कर चाकू टी-स्टाल के अंदर छिपा दिया. फिर वह निश्चिंत हो कर अपने घर चला गया.

2 दिन निकल जाने के बाद राधा अग्रवाल के लूटे गए गहनों में से 7 तोले सोने के गहनों को वह अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपा कर रख आया. बाकी बचे गहनों को ज्वैलर्स के यहां बेच कर अपना कर्ज उतार दिया. इतना करने के बाद वह पुणे शहर को छोड़ कर कर्नाटक में अपने गांव निकल गया.

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आनंद निगम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू और राधा अग्रवाल के गहने बरामद कर लिए. उसे भादंवि की धारा 302, 201, 363, 364(ए) के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे पुणे की यरवडा जेल भेज दिया गया.

-कथा में किशोरचंद्र और मानक नाम परिवर्तित हैं.

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इश्क की फरियाद: भाग 1

लेखक- अलंकृत कश्यप

25 अप्रैल, 2019 को कोराना गांव के लोगों ने बाकनाला पुल के नीचे एक युवक का शव पड़ा देखा.

कोराना गांव लखनऊ के थाना मोहनलालगंज के अंतर्गत आता है, जो  लखनऊ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर है. ग्रामीणों ने जब नजदीक जा कर देखा तो उन्होंने मृतक को पहचान लिया.

वह 45 वर्षीय आशाराम रावत का शव था, जो डलोना गांव का रहने वाला था. वह मोहनलालगंज में राजकुमार का टैंपो किराए पर चलाता था. उसी समय किसी ने इस की सूचना थाना मोनहलालगंज पुलिस को दे दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी गऊदीन शुक्ल एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल राजकुमार व लाखन सिंह को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस दल जब घटनास्थल पर पहुंचा तो उन्होंने शव देखते ही पहचान लिया क्योंकि वह टैंपो चालक आशाराम रावत का था. उस के हाथपैर लाल रंग के अंगौछे से बंधे थे और गला कटा हुआ था. उस के रोजाना मोहनलालगंज क्षेत्र में सवारी टैंपो चलाने के कारण पुलिस वाले भी उस से परिचित थे.

वहां से एक किलोमीटर दूरी पर स्थित अवस्थी फार्महाउस के पास एक टैंपो लावारिस हालत में मिला. टैंपो की तलाशी लेने पर जो कागज बरामद हुए, उस से पता चला कि वह टैंपो इंद्रजीत खेड़ा के रहने वाले राजकुमार का है. लोगों ने बताया कि यह वही टैंपो है, जिसे आशाराम चलाता था.

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यह हत्या का मामला था. यह भी लग रहा था कि आशाराम की हत्या किसी अन्य स्थान पर कर के उस का शव यहां फेंका गया था. क्योंकि वहां पर खून भी नहीं था.

पुलिस ने मृतक के घर सूचना भिजवाई तो उस की पत्नी रामदुलारी उर्फ निरूपमा रोतीबिलखती मौके पर आ गई. उस ने उस की पहचान अपने पति आशाराम रावत के रूप में की. वह रोजाना की तरह कल सुबह करीब 8 बजे टैंपो ले कर घर से निकले थे.

देर रात तक जब वह घर न लौटे तो बड़े बेटे 16 वर्षीय सौरभ ने उन्हें फोन लगाया तो आशाराम ने कुछ देर बाद लौटने को कहा था. काफी देर बाद भी जब वह घर नहीं आया तो निरूपमा ने भी पति को फोन कर के जानना चाहा कि वह कहां हैं. किंतु फोन बंद होने के कारण बात नहीं हो सकी. तब रात में ही मोहनलालगंज और निकटतम पीजीआई थाने जा कर निरूपमा ने पति के बारे में मालूमात की लेकिन कुछ पता न चलने पर वह निराश हो कर घर लौट आई थी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. निरूपमा की तरफ से पुलिस ने गांव के दबंग मोहित साहू, उस के भाई अंजनी साहू, दोस्त अतुल रैदास निवासी जिला कटनी, मध्य प्रदेश और अब्दुल हसन निवासी सीतापुर के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 506 और 3(2)(5) एससी/एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मामला एससी/एसटी उत्पीड़न का था, इसलिए इस की जांच एसपी द्वारा सीओ राजकुमार शुक्ला को सौंपी गई. रिपोर्ट नामजद थी इसलिए पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर दबिश डाली. लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. तब पुलिस ने मुखबिरों को सतर्क कर दिया.

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आरोपी लिए हिरासत में

पुलिस ने आरोपियों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया तो उस से उन सब के 24 अप्रैल की रात के एक साथ होने की पुष्टि मिली. इसी बीच 26 अप्रैल को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर मोहित साहू और उस के भाई अंजनी साहू को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों भाइयों से आशाराम रावत की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने उस की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

लखनऊ-रायबरेली राजमार्ग पर शहर की व्यस्ततम कालोनी के बाहर लखनऊ एवं उन्नाव की सीमा पर थाना पीजीआई है. इसी थाने के अंतर्गत गांव डलोना है. इसी गांव में आशाराम रावत का परिवार रहता है. आशाराम का विवाह करीब 9 साल पहले डलोना गांव के ही प्रीतमलाल की सब से बड़ी बेटी रामदुलारी उर्फ निरूपमा के साथ सामाजिक रीतिरिवाज के साथ हुआ था.

रामदुलारी का जीवन ससुराल में हंसीखुशी के साथ अपने पति के साथ बीत रहा था. धीरेधीरे वह 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. इस समय बड़े बेटे सौरभ की उम्र लगभग 16 साल है. हालांकि आशाराम मूलरूप से लखनऊ के थाना गोसाईगंज के गांव कमालपुर का रहने वाला था, किंतु कामधंधे की तलाश में वह डलोना आ कर रहने लगा. यहां वह टैंपो चलाने लगा.

निरूपमा गोरे रंग की स्लिम शरीर वाली युवती थी. उस के चेहरे पर आकर्षण था. आशाराम टैंपो चालक होने के कारण व्यस्त रहता था. इसलिए घर के सारे काम वह ही करती थी, जिस की वजह से उसे घर से बाहर आनाजाना पड़ता था. तब गांव के कुछ लड़कों की नजरें निरूपमा को चुभती हुई महसूस होती थीं. लेकिन वह उन की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती थी.

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निरूपमा के पीछे पड़ गया था मोहित

उन्हीं लड़कों में से एक मोहित साहू तो जैसे उस के पीछे पड़ गया था. मोहित की दूध डेयरी थी. दूध देने के बहाने वह निरूपमा के पास जाया करता था. इस से पहले निरूपमा ने उस की डेयरी पर करीब डेढ़ साल तक काम भी किया था. उसी दौरान वह निरूपमा के प्रति आकर्षित हो गया था. वह उसे मन ही मन प्यार करने लगा था. फिर एक दिन उस ने अपने मन की बात निरूपमा से कह भी दी.

निरूपमा ने उसे झिड़कते हुए कहा कि तुम ने मुझे समझ क्या रखा है. आइंदा मेरे रास्ते में आने की कोशिश मत करना वरना अंजाम बुरा होगा. निरूपमा की इस बेरुखी पर वह काफी आहत हुआ. लेकिन इस के बावजूद मोहित ने उस का पीछा करना नहीं छोड़ा. उसे देख कर निरूपमा आगबबूला हो उठती थी.

अकसर मोहित के द्वारा फब्तियां कसने पर निरूपमा ने कई बार उस की पिटाई कर दी थी किंतु इश्क में अंधे मोहित पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

निरूपमा उस से तंग आ चुकी थी. एक दिन उस ने अपने पति आशाराम को मोहित की हरकतों से अवगत कराया तो आशाराम ने निरूपमा को ही चुप रहने की सलाह दी. उस ने कहा कि वह आतेजाते मोहित को समझा देगा कि गांवघर की बहूबेटियों की इज्जत पर इस तरह कीचड़ उछालना अच्छा नहीं है.

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एक दिन आशाराम ने मोहित से बात की और अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए कहा कि आइंदा वह ऐसा न करे.

कुछ दिन तक तो मोहित शांत रहा किंतु वह अपनी आदतों से मजबूर था. उस का बस एक ही मकसद था कि किसी भी तरह निरूपमा को पाना. कामधंधा छोड़ कर वह दीवानगी में इधरउधर निरूपमा की तलाश में लगा रहता. अंतत: उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया.

कहानी सौजन्य – मनोहर कहानियां

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