हिजाब : भाग 3 – क्या बंदिशों को तोड़ पाई चिलमन?

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मुझे एक दोस्त की बेहद जरूरत थी. नयनिका से मिलतेमिलाते सालभर होने को था. बचपन का सूत्र कहूं या हम दोनों की सोच की समानता दोनों ही एकदूसरे की दोस्ती में गहरे उतर रहे थे.

मैं जिस वक्त उस के घर गई वह अपनी पढ़ाई की तैयारी में व्यस्त थी. नयनिका कमर्शियल पायलट के लाइसैंस के लिए तैयारी कर रही थी. हम दोनों उस के बगीचे में आ गए थे. रंगबिरंगे फूलों के बीच जब हम जा बैठे तो कुछ और करीबियां हमारे पास सिमट आईं. उस की आंखों में छिपा दर्द शायद मुझे अपना हाल सुनाने को बेताब था. शायद मैं भी. बरदाश्त की वह लकीर जब तक अंगारा नहीं बन जाती, हम उसे पार करना नहीं चाहतीं, हम अपने प्रियजनों के खिलाफ जल्दी कुछ बुरा कहना-सुनना भी नहीं चाहते.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘उदास क्यों रहती हो हमेशा? तैयारी तो अच्छी चल रही न?’’

उस ने कहा, ‘‘कारण है, तभी तो उदास हूं… कमर्शियल पायलट बनने की कामयाबी मिल भी जाए तो हजारों रुपए लगेंगे इस की ट्रेनिंग में जाने को. बड़े भैया ने तो आदेश जारी कर दिया है कि बहुत हो गया, हवा में उड़ना… अब घरगृहस्थी में मन रमाओ.’’

‘‘हूं, दिक्कत तो है… फिर कर लो शादी.’’

‘‘क्यों, तुम मान रही हो वाकर से शादी और बुटीक की बात? वह तुम्हारे

हिसाब से, तुम्हारी मरजी से अलग है… अमेरिका में हर महीने लाखों कमाने वाले खूबसूरत इंजीनियर से शादी वैसे ही मेरी मंजिल नहीं. जो मैं बनना चाहती हूं, वह बनने न देना और सब की मरजी पर कुरबान हो जाना… यह इसलिए कि एक स्त्री की स्वतंत्रता मात्र उस के सिंदूर, कंगन और घूमनेफिरने के लिए दी गई छूट या रहने को मिली छत पर ही आ कर खत्म हो जाती है.’’

‘‘वाकई तुम प्लेन उड़ा लोगी,’’

मैं मुसकराई.

वह अब भी गंभीर थी. पूछा, ‘‘क्यों? अच्छेअच्छे उड़ जाएंगे, प्लेन क्या चीज है,’’ वह उदासी में भी मुसकरा पड़ी.

‘‘क्या करना चाहती हो आगे?’’

‘‘कमर्शियल पायलट का लाइसैंस मिल जाए तो मल्टीइंजिन ट्रैनिंग के लिए न्यूजीलैंड जाना चाहती हूं. पापा किसी तरह मान भी जाएं तो भैया यह नहीं होने देंगे.’’

‘‘क्यों, उन्हें इतनी भी क्या दिक्कत?’’

‘‘वे एक सामान्य इंजीनियर मैं कमर्शियल पायलट… एक स्त्री हो कर उन से ज्यादा डेयरिंग काम करूं… रिश्तेदारों और समाज में चर्चा का विषय बनूं? बड़ा भाई क्यों पायलट नहीं बन सका? आदि सवाल न उठ खड़े हों… दूसरी बात यह है कि अमेरिका में उन का दोस्त इंजीनियर है. अगर मैं उस दोस्त से शादी कर लूं तो वह अपनी पहचान से भैया को अमेरिका में अच्छी कंपनी में जौब दिलवाने में मदद करेगा. तीसरी बात यह है कि इन की बहन को मेरे भैया पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं, जो अभी अमेरिका में ही जौब कर रही है.’’

‘‘उफ, बड़ी टेढ़ी खीर है,’’ मैं बोल पड़ी.

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‘‘सब सधे लोग हैं… पक्के व्यवसायी… मैं तो उस दोस्त को पसंद भी नहीं करती और न ही वह मुझे.’’

‘‘हम ही नहीं सीख पा रहे दुनियादारी.’’

‘‘सीखना पड़ेगा चिलमन… लोग हम जैसों के सिर पर पैर रख सीढि़यां चढ़ते रहेंगे… हम आंसुओं पर लंबीलंबी शायरियां लिख उन पन्नों को रूह की आग में जलाते जाएंगे.’’

‘‘तुम्हें मिलाऊंगी अर्क से… आने ही वाला है… शाम को उस के साथ मुझे डिनर पर जाना पड़ेगा… भैया का आदेश है,’’ नयनिका उदास सी बोली जा रही थी.

मैं अब यहां से निकलने की जल्दी में थी. मेरी मोहलत भी खत्म होने को आई थी.

‘ये सख्श कौन? अर्क साहब तो नहीं? फुरसत से बनाया है बनाने वाले ने,’ मैं मन ही मन अनायास सोचती चली गई.

अर्क ही थे महाशय. 5 फुट 10 इंच लंबे, गेहुंए रंग में निखरे… वाकई खूबसूरत नौजवान. उन्हें देखते मैं पहली बार छुईमुई सी हया बन गई… न जाने क्यों उन से नजरें मिलीं नहीं कि चिलमन खुद आंखों में शरमा कर पलकों के अंदर सिमट गई.

अर्क साहब मेरे चेहरे पर नजर रख खड़े हो गए. फिर नयनिका की ओर मुखाबित हुए, ‘‘ये नई मुहतरमा कौन?’’

‘‘चिलमन, मेरी बचपन की सहेली.’’

अर्क साहब ने हाथ मिलाने को मेरी ओर हाथ बढ़ाया. मैं ने हाथ तो मिलाया, पर फिर घर वालों की याद आते ही मैं असहज हो गई. मैं ने जोर दे कर कहा, ‘‘मैं चलूंगी.’’

नयनिका समझ रही थी, बोली, ‘‘हां, तुम निकलो.’’

अर्क मुझ पर छा गए थे. मैं नयनिका से मन ही मन माफी मांग रही थी, लेकिन इस अनजाने से एहसास को जाने क्यों अब रोक पाना संभव नहीं था मेरे लिए.

कुछ दिनों बाद नयनिका ने खुशखबरी सुनाई. उस की लड़ाई कामयाब हुई थी… उसे मल्टी इंजिन ट्रेनिंग के लिए राज्य सरकार के खर्चे पर न्यूजीलैंड भेजा जाना था.

इस खुशी में उस ने मुझे रात होटल में डिनर पर बुलाया.

उस की इस खबर ने मुझ में न सिर्फ उम्मीद की किरण जगाई, बल्कि काफी हिम्मत भी दे गई. मैं ने भी आरपार की लड़ाई में उतर जाने को मन बना लिया.

होटल में अर्क को देख मैं अवाक थी और नहीं भी.

हलकेफुलके खुशीभरी माहौल में नयनिका ने मुझ से कहा, ‘‘तुम दोनों को यहां साथ बुलाने का मेरा एक मकसद है. अर्क और तुम्हारी बातों से मैं समझने लगी हूं कि यकीनन तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो वरना अर्क माफी मांगते हुए तुम्हारे मोबाइल नंबर मुझ से न मांगते… चिलमन, अर्क जानते हैं मैं किस मिट्टी की बनी हूं… यह घरगृहस्थी का तामझाम मेरे बस का नहीं है… सब लोग एक ही सांचे में नहीं ढल सकते… मैं अभी न्यूजीलैंड चली जाऊंगी, फिर आते ही पायलट के काम में समर्पण. चिलमन तुम अर्क से आज ही अपने मन की बात कह दो.’’

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अर्क खुशी से सुर्ख हो रहे थे. बोले, ‘‘अरे, ऐसा है क्या? मैं तो सोच रहा था कि मैं अकेला ही जी जला रहा हूं.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अर्क फिर बोले, ‘‘नयनिका के पास बड़े मकसद हैं.’’

मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘मेरे पास भी थे.’’

‘‘तो बताइए न मुझे.’’

नयनिका ने कहा, ‘‘जाओ उस कोने वाली टेबल पर और औपचारिकता छोड़ कर बातें कर लो.’’

अर्क ने पूरी सचाई के साथ मेरा हाथ थाम लिया था… विदेश जा कर मेरे कैरियर को नई ऊंचाई देने का मुझ से वादा किया.

इधर शादी के मामले में अर्क ने नयनिका के घर वालों का भी मोरचा संभाला.

अब थी मेरी बारी. अर्क का साथ मिल गया तो मुझे राह दिख गई.

घर से निकलते वक्त मन भारी जरूर था, लेकिन अब डर, बेचारगी की जंजीरों से अपने पैर छुड़ाने जरूरी हो गए थे.

कानपुर से दिल्ली की फ्लाइट पकड़ी हम ने. फिर वक्त से अमेरिकन एयरवेज में दाखिल हो गए.

साहिबा आपा को फोन से सूचना दे दी कि अर्क के साथ मैं अपनी नई जिंदगी शुरू करने अमेरिका जा रही हूं. वहां माइक्रोबायोलौजी ले कर काम करूंगी और अर्क को खुश रखूंगी.’’

साहिबा आपा जैसे आसमान से गिरी हों. हकला कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

हमारी आजादी हिजाब हटनेभर से नहीं है आपा… हमारी आजादी में एक उड़ान होनी चाहिए.

आपा के फोन रख देने भर से हमारी आजादी की नई दास्तां शुरू हो गई थी.

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सौतेली: भाग 3

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रवानगी से पहली रात को शेफाली के कमरे में वंदना आई तो वह बहुत गंभीर थी. उस की तरफ देख कर वंदना बोली, ‘‘जाने से पहले मैं तुम को कुछ समझाना चाहती हूं. मेरी बात पर अमल करना, न करना तुम्हारी मर्जी होगी. जीवन के सच से मुंह मोड़ना और हालात का सामना करने के बजाय उस से दूर भागना समझदारी नहीं. जिस को तुम ने देखा नहीं, जाना नहीं, उस के लिए नफरत क्यों? नफरत इसलिए क्योंकि उस के साथ ‘सौतेली’ शब्द जुड़ा है. प्यार और नफरत करने का तुम को हक है. किंतु तब तक नहीं जब तक तुम किसी को देख या जान न लो. अगर तुम्हारे पापा ने किसी दूसरी औरत से शादी कर के तुम्हारा दिल दुखाया है तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम अपने घर पर अपना हक छोड़ दो. तुम को परीक्षाएं देने के बाद अपने घर वापस जाना ही है. यह पक्का इरादा कर लो. अपनों पर नाराज हुआ जाता है, उन को छोड़ा नहीं जाता. रही बात तुम्हारे पापा के साथ शादी करने वाली दूसरी औरत, मेरा मतलब तुम्हारी सौतेली मां से है. एक बार उस को भी देख लेना. अगर वह सचमुच तुम्हारी सोच के मुताबिक बुरी हो तो उस को घर से बाहर का रास्ता दिखलाने का इंतजाम कर देना. इस के लिए तुम को अपने पापा से भी झगड़ना पडे़ तो कोई हर्ज नहीं.’’

जब वंदना अपनी बात कह रही थी तो शेफाली हैरानी से उस के चेहरे को देख रही थी. वंदना की बातों से उस को एक बल मिल रहा था.

शेफाली को लग रहा था वंदना ठीक कह रही है. वह अपना घर क्यों छोडे़. उस को हालात का सामना करना चाहिए था. फिर उस औरत से नफरत कैसी जिसे अभी उस ने देखा भी नहीं था.

अगले दिन सुबह वंदना चली गई.

कुछ भी नहीं होते हुए वंदना कुछ दिनों में ही अपनेपन का जो कोमल स्पर्श शेफाली को करवा गई थी उस को भूलना मुश्किल था. यही नहीं वह शेफाली की दिशाहीन जिंदगी को एक दिशा भी दे गई थी.

परीक्षाओं के शुरू होते ही शेफाली ने जानकी बूआ से घर जाने की बात कह दी और थोड़ाथोड़ा कर के अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.

परीक्षाएं खत्म होते ही शेफाली अपने घर को रवाना हुई तो जानकी बूआ खुद उस को अमृतसर जाने वाली बस में बैठाने के लिए बस अड्डे पर आई थीं.

बस जब चल पड़ी तो शेफाली के मन में कई सवाल बुलबुले बन कर उभरने लगे कि पापा उस का सामना कैसे करेंगे, उस का सौतेली मां से सामना कैसे होगा? वह कैसा व्यवहार करेंगी?

शेफाली जानती थी कि उस को बस में बैठाने के बाद बूआ ने फोन पर इस की सूचना पापा को दे दी होगी. शायद घर में उस के आने के इंतजार में होंगे सभी…

सामान का बैग हाथ में लिए घर के दरवाजे के अंदर दाखिल होते एक बार तो शेफाली को ऐसा लगा था कि किसी बेगानी जगह पर आ गई है.

पापा उस के इंतजार में ड्राइंगरूम में ही बैठे थे. उन के साथ मानसी और अंकुर भी थे जोकि दौड़ कर उस से लिपट गए.

उन को प्यार करते हुए शेफाली की नजरें पापा से मिलीं. चाह कर भी शेफाली मुसकरा नहीं सकी. उस ने केवल इतना ही कहा, ‘‘हैलो पापा, कैसे हैं आप?’’

‘‘अच्छा हूं. अपनी सुनाओ. सफर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’’

‘‘नहीं…और होती भी तो अब कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझ को कुछ समय से तकलीफें बरदाश्त करने की आदत पड़ चुकी है,’’ कोशिश करने पर भी अपने गुस्से और आक्रोश को छिपा नहीं सकी शेफाली.

इस पर पापा ने मानसी और अंकुर से कहा, ‘‘तुम दोनों जा कर जरा अपनी दीदी का कमरा ठीक करो, मैं तब तक इस से बातें करता हूं.’’

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पापा का इशारा समझ कर दोनों तुरंत वहां से चले गए.

‘‘मैं जानता हूं तुम मुझ से नाराज हो,’’ उन के जाने के बाद पापा ने कहा.

‘‘मुझ को बहाने के साथ घर से बाहर भेज कर मेरी ममी की जगह एक दूसरी ‘औरत’ को दे दी पापा और इस के बाद भी आप उम्मीद करते हैं कि मुझ को नाराज होने का भी हक नहीं?’’

‘‘यह मत भूलो कि वह ‘औरत’ अब तुम्हारी नई मां है,’’ पापा ने शेफाली को चेताया.

इस से शेफाली जैसे बिफर गई और बोली, ‘‘मैं इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करूंगी, पापा,’’

‘‘मैं इस के लिए तुम पर जोर भी नहीं डालूंगा, मगर तुम उस से एक बार मिल लो…शिष्टाचार के नाते. वह ऊपर कमरे में है,’’ पापा ने कहा.

‘‘मैं सफर की वजह से बहुत थकी हुई हूं, पापा. इस वक्त आराम करना चाहती हूं. इस बारे में बाद में बात करेंगे,’’ शेफाली ने अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए रूखी आवाज में कहा.

शेफाली कमरे में आई तो सबकुछ वैसे का वैसा ही था. किसी भी चीज को उस की जगह से हटाया नहीं गया था.

मानसी और अंकुर वहां उस के इंतजार में थे.

कोशिश करने पर भी शेफाली उन के चेहरों या आंखों में कोई मायूसी नहीं ढूंढ़ सकी. इस का अर्थ था कि उन्होंने मम्मी की जगह लेने वाली औरत को स्वीकार कर लिया था.

‘‘तुम दोनों की पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘एकदम फर्स्ट क्लास, दीदी,’’ मानसी ने जवाब दिया.

‘‘और तुम्हारी नई मम्मी कैसी हैं?’’ शेफाली ने टटोलने वाली नजरों से दोनों की ओर देख कर पूछा.

‘‘बहुत अच्छी. दीदी, तुम ने मां को नहीं देखा?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि मैं देखना ही नहीं चाहती,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘ऐसी भी क्या बेरुखी, दीदी. नई मम्मी तो रोज ही तुम्हारी बातें करती हैं. उन का कहना है कि तुम बेहद मासूम और अच्छी हो.’’

‘‘जब मैं ने कभी उन को देखा नहीं, कभी उन से मिली नहीं, तब उन्होंने मेरे अच्छे और मासूम होने की बात कैसे कह दी? ऐसी मीठी और चिकनीचुपड़ी बातों से कोई पापा को और तुम को खुश कर सकता है, मुझे नहीं,’’ शेफाली ने कहा.

शेफाली की बातें सुन कर मानसी और अंकुर एकदूसरे का चेहरा देखने लगे.

उन के चेहरे के भावों को देख कर शेफाली को ऐसा लगा था कि उन को उस की बातें ज्यादा अच्छी नहीं लगी थीं.

मानसी से चाय और साथ में कुछ खाने के लिए लाने को कह कर शेफाली हाथमुंह धोने और कपडे़ बदलने के लिए बाथरूम में चली गई.

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सौतेली मां को ले कर शेफाली के अंदर कशमकश जारी थी. आखिर तो उस का सामना सौतेली मां से होना ही था. एक ही घर में रहते हुए ऐसा संभव नहीं था कि उस का सामना न हो.

मानसी चाय के साथ नमकीन और डबलरोटी के पीस पर मक्खन लगा कर ले आई थी.

भूख के साथ सफर की थकान थी सो थोड़ा खाने और चाय पीने के बाद शेफाली थकान मिटाने के लिए बिस्तर पर लेट गई.

मस्तिष्क में विचारों के चक्रवात के चलते शेफाली कब सो गई उस को इस का पता भी नहीं चला.

शेफाली ने सपने में देखा कि मम्मी अपना हाथ उस के माथे पर फेर रही हैं. नींद टूट गई पर बंद आंखों में इस बात का एहसास होते हुए भी कि? मम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं, शेफाली ने उस स्पर्श का सुख लिया.

फिर अचानक ही शेफाली को लगा कि हाथ का वह कोमल स्पर्श सपना नहीं यथार्थ है. कोई वास्तव में ही उस के माथे पर धीरेधीरे अपना कोमल हाथ फेर रहा था.

चौंकते हुए शेफाली ने अपनी बंद आंखें खोल दीं.

आंखें खोलते ही उस को जो चेहरा नजर आया वह विश्वास करने वाला नहीं था. वह अपनी आंखों को बारबार मलने को विवश हो गई.

थोड़ी देर में शेफाली को जब लगा कि उस की आंखें जो देख रही हैं वह सच है तो वह बोली, ‘‘आप?’’

दरअसल, शेफाली की आंखों के सामने वंदना का सौम्य और शांत चेहरा था. गंभीर, गहरी नजरें और अधरों पर मुसकराहट.

‘‘हां, मैं. बहुत हैरानी हो रही है न मुझ को देख कर. होनी भी चाहिए. किस रिश्ते से तुम्हारे सामने हूं यह जानने के बाद शायद इस हैरानी की जगह नफरत ले ले, वंदना ने कहा.

‘‘मैं आप से कैसे नफरत कर सकती हूं?’’ शेफाली ने कहा.

‘‘मुझ से नहीं, लेकिन अपनी मां की जगह लेने वाली एक बुरी औरत से तो नफरत कर सकती हो. वह बुरी औरत मैं ही हूं. मैं ही हूं तुम्हारी सौतेली मां जिस की शक्ल देखना भी तुम को गवारा नहीं. बिना देखे और जाने ही जिस से तुम नफरत करती रही हो. मैं आज वह नफरत तुम्हारी इन आंखों में देखना चाहती हूं.

‘‘हम जब पहले मिले थे उस समय तुम को मेरे साथ अपने रिश्ते की जानकारी नहीं थी. पर मैं सब जानती थी. तुम ने सौतेली मां के कारण घर आने से इनकार कर दिया था. किंतु सौतेली मां होने के बाद भी मैं अपनी इस रूठी हुई बेटी को देखे बिना नहीं रह सकती थी. इसलिए अपनी असली पहचान को छिपा कर मैं तुम को देखने चल पड़ी थी. तुम्हारे पापा, तुम्हारी बूआ ने भी मेरा पूरा साथ दिया. भाभी को सहेली के बेटी बता कर अपने घर में रखा. मैं अपनी बेटी के साथ रही, उस को यह बतलाए बगैर कि मैं ही उस की सौतेली मां हूं. वह मां जिस से वह नफरत करती है.

‘‘याद है तुम ने मुझ से कहा था कि मैं बहुत अच्छी हूं. तब तुम्हारी नजर में हमारा कोई रिश्ता नहीं था. रिश्ते तो प्यार के होते हैं. वह सगे और सौतेले कैसे हो सकते हैं? फिर भी इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि मैं मां जरूर हूं, लेकिन सौतेली हूं. तुम को मुझ से नफरत करने का हक है. सौतेली मांएं होती ही हैं नफरत और बदनामी झेलने के लिए,’’ वंदना की आवाज में उस के दिल का दर्द था.

‘‘नहीं, सौतेली आप नहीं. सौतेली तो मैं हूं जिस ने आप को जाने बिना ही आप को बुरा समझा, आप से नफरत की. मुझ को अपनेआप पर शर्म आ रही है. क्या आप अपनी इस नादान बेटी को माफ नहीं करेंगी?’’ आंखों में आंसू लिए वंदना की तरफ देखती हुई शेफाली ने कहा.

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‘‘धत, पगली कहीं की,’’ वंदना ने झिड़कने वाले अंदाज से कहा और शेफाली का सिर अपनी छाती से लगा लिया.

प्रेम के स्पर्श में सौतेलापन नहीं होता. यह शेफाली को अब महसूस हो रहा था. कोई भी रिश्ता हमेशा बुरा नहीं होता. बुरी होती है किसी रिश्ते को ले कर बनी परंपरागत भ्रांतियां.

नथनी : भाग 1

उन के मुल्क में जितनी भी सुविधाएं और तकनीकें हासिल थीं, सब पर प्रयास कर डाले गए थे, पर सफलता की कोई भी गुंजाइश न पा कर वहां के सभी डाक्टरों ने डेविड को आखिरी जवाब दे दिया था. डेविड ने भारी मन से यह सचाई जेनी को बताई थी. इस पर उस का भी दुखी होना स्वाभाविक ही था.

डेविड खुद अमेरिका के जानेमाने डाक्टरों में से एक थे. लिहाजा, उन से कोई डाक्टर झूठ बोले, सवाल ही नहीं उठता था. फिर सारी की सारी पैथालाजिकल रिपोट उन के सामने थीं. उन को सचाई का ज्ञान हो चुका था कि कमी किस में है और किस किस्म की है. पर उस का हल जब था ही नहीं तो क्या किया जा सकता था. नाम, सम्मान और आर्थिक रूप से काफी मजबूत होने के बावजूद उन के साथ यह एक ऐसी त्रासदी थी कि दोनों ही दुखी थे.

डेविड जेनी को बहुत ज्यादा प्यार करते थे. जब जेनी बच्चे की लालसा में आंखें नम कर लेती थी, डेविड तड़प उठते थे. पर इस खबर से पहले हमेशा उसे धीरज बंधाते रहते थे कि सही इलाज के बाद उन्हें संतानसुख अवश्य मिलेगा.

यह खबर ऐसी थी कि न तो छिपाई जा सकी और न ही उस के बाद जेनी को रोने से रोका ही जा सका था. वह लगातार रोए चली जा रही थी और डेविड उसे कंधे से लगाए ढाढ़स बंधाए जा रहे थे कि अभी भी एक रास्ता बचा है.

जब जेनी की सिसकियां कुछ थमीं और उस की सवालिया निगाहें उठीं तो डेविड ने कहा, ‘‘एक  ‘सेरोगेट मदर’ की जरूरत  होगी जो यहां अमेरिका में तो नहीं, पर हिंदुस्तान में बहुत आसानी से मिल जाएगी और फिर हम एक बच्चा आसानी से पा सकेंगे.’’

जेनी ने डेविड की आंखों में झांका जो पहले से ही उस के स्वागत में बिछी हुई थीं. जेनी की आंखों में चमक आ गई. उस ने डेविड को अपनी बांहों में कस लिया और कई चुंबन ले डाले.

डेविड ने अपने मुल्क की करेंसी में व हिंदुस्तान की करेंसी में मामूली सी तुलना करने के बाद बताया कि हिंदुस्तान में मात्र 2-3 लाख में ‘सेरोगेट मदर’ आसानी से मिल सकती है, जबकि इस से 10 गुनी कीमत पर भी अमेरिका में नहीं मिल सकती. जेनी पहले हिंदुस्तान को बड़ी हेयदृष्टि से देखा करती थी. उस के बारे में नए सिरे से सोचने को मजबूर हो गई.

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अब जेनी ने स्थानीय अखबारों में एक विज्ञापन दे डाला, ‘तुरंत आवश्यकता है एक दुभाषिये की, जिसे अंगरेजी और हिंदी का अच्छा ज्ञान हो’ और प्रत्याशियों का बेसब्री से इंतजार करने लगी. अपने यहां के अखबारों में हिंदुस्तान के बारे में जिन खबरों से खास चिढ़ थी, उन्हें ध्यान से पढ़ने लगी. मन एकाएक हिंदुस्तान के रंग में रंगा नजर आने लगा. जिस मुल्क को वह भिखारी और निरीह देश कहा करती थी, अब फरिश्ता नजर आने लगा था. वहां की सामाजिक व्यवस्था, राजनीति व संस्कृति आदि के बारे में जेनी कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जान लेने के लिए आतुर हो उठी.

एक अच्छे दुभाषिये के मिल जाने पर जेनी ने उस से पहली ही भेंट में तमाम सवाल कर डाले, ‘उस ने हिंदी क्यों सीखी? क्या वह कभी हिंदुस्तान गया था? क्या उसे हिंदुस्तानी रीतिरिवाजों का कुछ ज्ञान है? क्या वह कहीं से ऐसा साहित्य ला सकता है जो वहां के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दिला सके? क्या वह हिंदी के प्रचलित शब्दों और मुहावरों के बारे में जानता है आदि.’

यह सब जानने के बाद जेनी में इतना भी सब्र नहीं बचा कि वह डाक्टर डेविड को घर आने देती…उस ने फोन पर ही दुभाषिये के बारे में तमाम जानकारी उन्हें दे डाली. डेविड उस के दर्द से अच्छी तरह वाकिफ थे, इसलिए किसी प्रकार का एतराज न करते हुए उसे आश्वस्त किया कि वह जल्दी ही हिंदुस्तान चलेंगे.

जेनी की भावनाओं की कद्र करते हुए डेविड ने भी हिंदुस्तानी अखबारों में एक ‘सेरोगेट मदर’ की आवश्यकता वाला विज्ञापन भिजवा दिया और बेताबी से जवाब का इंतजार करने लगे. मियांबीवी में अकसर हिंदुस्तान के बारे में जम कर चर्चाएं होने लगीं. उन लोगों को यहां के वैवाहिक विज्ञापनों पर बड़ा कौतूहल हुआ करता था. वह अकसर प्रणय व परिणय के बारे में अपने मुल्क और हिंदुस्तान के बीच तुलना करने बैठ जाते थे.

जब जेनी यह बताती कि हिंदुओं में लड़की वाले, शादी के लिए लड़के वालों के वहां जाते हैं, डेविड यह बताना नहीं भूलते कि मुसलमानों में लड़के वाले लड़की वालों के घर जाते हैं. मुसलमानों में लड़कियों में शीन काफ यानी नाकनक्श खासकर देखे जाते हैं. अगर किसी लड़की के यहां कोई भी लड़के वाला न आया तो वह आजीवन कुंआरी भी रह सकती है, पर धर्म के मामले में वह इतनी कट्टर होती है कि बगावत करने की हिम्मत कम ही कर पाती है.

सलमा एक ऐसी ही हिंदुस्तानी मुसलमान परिवार की लड़की थी. वह बहुत ही खूबसूरत थी, पर उस की बड़ी बहन मामूली नाकनक्श होने के कारण हीनता की शिकार होती चली जा रही थी. गरीबी के चलते बड़ी तो मदरसे की मजहबी तालीम से आगे नहीं बढ़ पाई थी, हां, छोटी ने 10वीं कर ली थी. बाप सब्जी का ठेला लगाता था. मामूली कमाई में 4 लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो पाता था.

वैसे तो शहर में 20 साल की लड़की होना कोई माने नहीं रखता पर उस की खूबसूरती एक अच्छीखासी मुसीबत बन गई थी. दिन भर तमाम लड़के  उस की गली के चक्कर लगाने  लगे थे. बड़ी बहन के लिए कोई रिश्ता न आने से गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही थी. मांबाप की राय थी, पहले बड़ी लड़की निबटा दी जाए तब ही छोटी के बारे में सोचा जाए पर छोटी वाली के लिए तमाम नातेरिश्तेदारों के अलावा लोग टूटे पड़ रहे थे.

एक तो उम्र का तकाजा, उस पर गरीबी की मार. आखिर सलमा के कदम बहक ही गए. जिस घर में भरपेट रोटी नसीब न हो रही हो, उस घर की इज्जत क्या और ईमान क्या? सलमा एक हिंदू लड़के को दिल दे बैठी. क्यों का जवाब भी बड़ा अजीब था. वह जब अपनी हमउम्र सहेलियों को साजशृंगार किए देखती तो उस का मन भी ललचा जाता. काश, वह भी आने वाली ईद पर एक सोने की नथनी खरीद सकती.

यह बात कहीं से चल कर एक फल वाले नौजवान कमल तक पहुंच चुकी थी. उस ने सलमा से अकेले मिलने पर सोने की नथनी देने का वादा उस तक पहुंचवा दिया. पहले मिलन में ही कमल ने न जाने कौन सा जादू कर दिया कि दोनों ने न बिछड़ने की कसम ही खा डाली. नथनी की बात तो खैर काफी पीछे छूट गई.

दोनों का मामला धर्म के ठेकेदारों तक पहुंचा. उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि धर्म के ठेकेदार बड़े मामलों में ही हाथ डालते हैं, जिन से शोहरत व उन के निजी स्वार्थ सध सकें. एक मामूली सब्जी वाले की लड़की की इज्जत ही क्या होती है? ‘गरीबों में यह सब चलता है.’ कह कर कुछ लोगों ने टाल दिया, कुछ लोगों ने कुछ दिनों तक इस मुद्दे पर खूब चटखारे लगाए. मात्र एक रात का मातम मना कर मांबाप भी सामान्य हो गए. उन के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘एक तरह से ठीक ही हुआ.’’

कमल का चालचलन ठीक न होने के कारण उस के घर वाले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे. जब लड़की वाले राजी थे तो उन्होंने मजबूरी में हां कर दी थी पर शादी के बाद बेटे को घर से अलग कर दिया था.

शादी का बोझ बढ़ जाने के साथ ही घर से अलग होना कुछ ज्यादा ही महंगा पड़ा. जल्द ही एक नन्ही सी बेटी ने खर्च और बढ़ा दिया. 1-2 बार तो सलमा ने अपने बाप से पैसे मंगवा कर कमल की मदद भी की पर हालात बिगड़ने लगे तो सलमा ने अपनी पड़ोसिन रोमी से किसी काम के लिए राय मांगी तो उस ने सिलाईकढ़ाई का काम भी सिखाया और कमाई का जरिया भी बनवा दिया.

सलमा बहुत खुश थी कि अब वह गृहस्थी का बोझ संभालने में कमल की अच्छीखासी मदद कर सकेगी पर फिर भी ऐसा हो नहीं सका, क्योंकि जैसेजैसे सलमा ने आर्थिक स्थिति मजबूत करनी शुरू की कमल ने दारू पीना शुरू कर दिया.

सलमा ने जल्द ही महसूस किया कि उस ने कमल से शादी कर के बहुत बड़ी भूल कर डाली थी. जो आदमी एक मामूली सी नथनी का वादा पूरा नहीं कर सका वह जिंदगी भर का साथ कैसे निभा पाएगा. बजाय आमदनी बढ़ाने के उस ने दारू पीनी शुरू कर के एक और चिंता बढ़ा दी थी, मायके व ससुराल दोनों के रास्ते पहले ही बंद हो चुके थे.

सलमा का सहारा बनने के बजाय कमल उस पर और अधिक कमाने के लिए दबाव बनाने लगा.

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जैसेजैसे कमल पर दारू का नशा तेज होने लगा, सलमा के प्यार का नशा उतरने लगा. वह अधिक से अधिक कमाई करने की होड़ में अपनी सेहत और खूबसूरती खोने लगी. कमल दिन भर इधरउधर मटरगश्ती करता, देर रात आता और सुबह फिर कुछ पैसे ले कर ठेला लगाने का बहाना कर के गायब हो जाता.

पहली बेटी एक साल की मुश्किल से हुई होगी कि एक और हो गई. मुश्किलें और बढ़ गईं. सलमा ने कमल को कई बार विश्वास में ले कर समझाना चाहा पर वह एक ही बात कहता कि वह बड़े धंधे की कोशिश में लगा हुआ है. सलमा चुप हो जाती. फल का ठेला कम ही लग पाता. जो कमाई होती वह दारू के लिए कम पड़ जाती. मकान का किराया चढ़ने लगा. सलमा परेशान रहने लगी.

एक दिन सलमा घर पर बैठी यही सब सोच रही थी कि उस की पड़ोसिन रोमी ने उसे एक अजीब खबर दे कर उस का ध्यान बंटा दिया कि अखबार में ‘सेरोगेट मदर’ की मांग हुई है.

सलमा ने पूछा, ‘‘यह क्या होती है?’’

‘‘इस में किसी मियांबीवी के बच्चे को किसी अन्य औरत को अपने पेट में पालना होता है. बच्चा होने पर उस जोड़े को वह बच्चा देना होता है, इस के एवज में काफी पैसे मिल सकते हैं.’’

सलमा ने हंस कर पूछा, ‘‘रोमी, तू इस के लिए तैयार है?’’

‘‘नहीं, यही तो गम है कि मेरे पति ने मना कर दिया है.’’

‘‘और मेरे पति मान जाएंगे?’’ सलमा ने उलाहना दिया.

‘‘देखो, यह मानने न मानने की बात नहीं है, हालात की बात है. तुम्हारे 2 बच्चे हो चुके हैं, तुम्हारी आर्थिक स्थिति खराब चल रही है. तुम्हारी उम्र भी कम है. अगर तुम तैयार हो जाओ तो वारेन्यारे हो सकते हैं. सारी मुसीबत एक झटके में ठीक हो सकती है.’’

‘‘कितने पैसे मिल सकते हैं कि वारेन्यारे हो जाएंगे?’’

‘‘मामला लाखों का है, 2-3 से बात शुरू होती है, तयतोड़ करने पर अधिक तक पहुंचा जा सकता है.’’

‘‘सच? तू मजाक तो नहीं कर रही है? किसी पराए आदमी के साथ हमबिस्तर तो नहीं होना पड़ता है?’’

‘‘कतई नहीं, ऐसा भी हो सकता है कि तुम उस आदमी को देख भी न पाओ.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि उस जोड़े के साथ एक वकील एक डाक्टर और कुछ नर्सें भी होंगी. डाक्टर तुम्हें सिर्फ एक इंजेक्शन देगा. वकील एक एग्रीमेंट लिखाएगा. उस के बाद 9 महीने तक नर्सें और डाक्टर तुम्हारी जांच करते रहेंगे, तुम्हें अच्छी से अच्छी खुराक और दवाएं भी मिला करेंगी. कुछ रुपए एडवांस भी मिलेंगे. शेष बच्चा उन को सौंपने पर मिलेंगे. एक गोद भरने का संतोष मिलेगा वह अलग से. उस की तो कीमत ही नहीं आंकी जा सकती.’’

सलमा बेसब्री से कमल के आने का इंतजार करने लगी. वह काफी दिनों से उदास भी चल रही थी पर रोमी के इस सुझाव ने उस की आंखों में चमक सी ला दी थी. उस के मन में एक बवंडर सा उठ खड़ा हुआ था. काश, 3 लाख का भी इंतजाम हो जाए तो अपना एक घर हो जाए. कमल को कोई अच्छा सा धंधा शुरू करवा दे, बेटियों के भविष्य के लिए कुछ पैसा जमा कर दे, थोड़ा सा पैसा बाप को भेज दे, क्योंकि उन्होंने भी आड़े वक्त में साथ दिया था.

सुबह राशन लाने को कह कर कमल दिनभर गायब रहा था. देर रात जब कमल आया तो नशे में धुत. उस ने देखा कि सलमा बच्चियों को सुला चुकी थी. उस ने धीरे से दरवाजा खोला, अंदर गया, कपड़े बदले और सलमा की चादर में जा पहुंचा. कमल के हाथ जब सलमा के शरीर पर रेंगने लगे तो वह सकपका कर जाग उठी, ‘‘कमल…खाना खा लिया…’’

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‘‘खा के आया हूं, इधर मुंह करो,’’ कमल ने उसे अपनी तरफ करवट लेने के लिए कहा.

‘‘कुछ राशन लाए हो क्या…’’ सलमा ने उस की ओर मुड़ते हुए सवाल दाग दिया.

कमल ने उस के सवाल का कोई जवाब न देते हुए उस की ओर से अपना मुंह दूसरी ओर कर लिया और चादर से मुंह को पूरी तरह से ढक लिया.

फिर सलमा को रात भर नींद नहीं आई. वह सारी रात अपने और अपनी बेटियों के भविष्य के बारे में सोचती रही.

(कहानी में आगे पढ़ें- क्या सलमा सेरोगेट मदर बन के अपनी बेटियों के भविष्य को रोशन कर पाएंगी या भविष्य के अंधकार में डूब जाएंगी…)

नथनी : भाग 2

सलमा ने किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, न ही सहमति और न विरोध.

सलमा के इस रुख से कमल आहत हुआ.

‘‘क्या बात है? बहुत गुस्से में दिखाई पड़ रही हो. कहीं मुझे छोड़ने तो नहीं जा रही हो? तुम्हारी कसम…दरिया में कूद कर जान दे दूंगा,’’ कहते हुए कमल ने चाय का कप उठा लिया.

‘‘बात बीच में मत काटना, पूरी सुन लेना तब जो कहोगे मैं मानूंगी,’’ कहते हुए सलमा ने रोमी की बात पूरी विस्तार से कमल को बताई तो उस की आंखों में चमक सी आ गई. उस ने सलमा को बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘मेरे खयाल से इस में कोई बुराई नहीं है, बल्कि मैं एक गलत धंधे में पड़ने वाला था. अच्छा हुआ तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. पर सुनो, तुम मेरे प्यार में कमी तो नहीं आने दोगी न?’’

‘‘तुम्हारे एक इशारे पर सबकुछ छोड़ दिया. बिना तुम को विश्वास में लिए मैं कोई काम नहीं करूंगी. यह भी तुम अच्छी तरह सोचसमझ लो. अगर मना कर दोगे तो नहीं करूंगी,’’ सलमा की आंखों में कुछ लाल डोरे से दिखाई पड़े.

बात आगे बढ़ी. न्यूजर्सी से चल कर जेनी और डेविड मय अपने वकील के हिंदुस्तान आए. कमल के साथ कई बैठकें हुईं. सारी शर्तें ठीक से समझाई गईं. रोमी उन सब में शामिल रही. तमाम शंकाओं के समाधान के बाद मामला 4 लाख पर तय हुआ. कमल व सलमा ने, समझौते पर अपने दस्तखत किए. वादे के अनुसार 50 हजार रुपए का भुगतान पहले कर दिया गया.

सलमा को केवल जेनी ने ही देखा, डेविड ने नहीं. 3  लाख 50 हजार बाद में देने का करार हुआ. यह 9 महीने के दौरान चेकअप, दवाओं व खुराक के खर्च के अलावा था. शहर के एक बड़े नर्सिंग होम पर यह जिम्मा छोड़ा गया कि वह एक फोन पर सेवाएं मुहैया कराया करेगा. 1 महीने बाद आने को कह कर डेविड और जेनी अमेरिका चले गए.

50 हजार रुपए के लिए दोनों मियांबीवी तमाम योजनाएं बना ही रहे थे कि तभी किसी साथी ने कमल को आवाज लगाई. कमल बाहर गया तो उस ने साथ चलने को कहा. कमल ने बिना कुछ सोचेसमझे उस के साथ जाने से मना कर दिया और साथ में यह भी साफ कर दिया कि अब वह अपने पैसों से नया धंधा शुरू करने जा रहा है.

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इस बात की भनक लगते ही उस के साथियों में खलबली मच गई कि कहीं कमल उन लोगों के बारे में पुलिस को न बतला दे. वे लोग उसे धमकी दे कर चले गए. उस ने सब से पहले 40 हजार रुपए की एक जर्मन पिस्तौल खरीद डाली और 5 हजार की एक बढि़या सी सोने की नथनी.

यह बात जब उस के गैंग वालों को पता चली तो उन्होंने खतरे को भांपते हुए कमल से मिल कर यह आश्वासन लेना चाहा कि वह धंधा छोड़ दे तो कोई बात नहीं, पर उन के राज किसी और को न बताए, वरना अंजाम सभी के लिए खराब होगा. कमल राजी हो गया. चलतेचलते किसी ने पलट कर यह कह दिया, ‘‘तुझ को अपनी बीवी सलमा का वास्ता है.’’

‘‘तुम सब को मालूम है कि मैं सलमा को कितना प्यार करता हूं. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि मैं तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगा, पर यह याद रखना कि तुम भी मेरा राज कभी किसी से नहीं खोलोगे,’’ कहते हुए कमल ने खुशीखुशी सब को विदा कर दिया पर पिस्तौल तो वह खरीद ही चुका था.

सलमा ने सोचा था कि उस पैसे से वह कमल को कोई धंधा करा देगी, पर यह सब जान कर उस को एक सदमा लगा और वह चुप रह गई.

सलमा अब उस नर्सिंग होम के संरक्षण में आ चुकी थी. उस के पेट में जेनी का बच्चा आ चुका था. उस के खानेपीने व दवाओं का बढि़या इंतजाम हो गया था. एक नर्स उस की दोनों बेटियों की देखरेख के लिए भी रख दी गई थी. पर कमल नहीं बदला.

5वें महीने जेनी ने खुशी से झूमते हुए डेविड को बताया, ‘‘मैं ने सलमा के पेट में अपने बच्चे के दिल की धड़कनें सुन ली हैं. मैं बता नहीं सकती, मैं कैसा महसूस कर रही हूं.’’

यह सुन कर डेविड से भी नहीं रहा गया. उन्होंने भी उन धड़कनों को सुनने की इच्छा जाहिर कर दी.

जेनी ने सलमा से पूछा, ‘‘अगर तुम्हें एतराज न हो तो डेविड भी अपने बच्चे के दिल की धड़कनें सुन लें.’’

सलमा पसोपेश में पड़ गई कि कहीं उस के इजाजत दे देने पर कमल बुरा न मान जाए. पर जेनी और डेविड को रोतेगिड़गिड़ाते देख वह भावुक हो उठी. उसे वह दिन याद आ गया जब कमल ने भी पहली बार अपने बच्चे की धड़कनें सुनने के लिए उस के पेट पर अपने कान लगा दिए थे. काफी देर इंतजार के बाद भी जब कमल नहीं आया तो वे दोनों काफी उदास हो गए और प्रस्ताव रखा कि इस इजाजत के वे 25 हजार रुपए और देंगे. सलमा लालच की गिरफ्त में आ गई और इजाजत दे दी.

सलमा की खूबसूरती देख डेविड दंग रह गए. फिर उन्होंने जैसे ही सलमा के पेट पर कान लगाए वैसे ही वहां कमल आ पहुंचा और यह नजारा देख कर वह आगबबूला हो गया. उस के मुंह से बरबस निकल पड़ा, ‘‘तो यह राज है इतने पैसे मिलने का. जो अपने मांबाप की न हुई, आदमी की क्या होगी?’’

मारे गुस्से के कमल का हाथ भरी पिस्तौल तक पहुंच गया और उस ने एक गोली डेविड पर दाग दी. डेविड को गिरते देख, कमल भाग लिया. गोली की आवाज सुन कर बगल के कमरे में बैठी नर्स कमरे की तरफ दौड़ी और उन्हें संभालने की कोशिश की. नर्सिंग होम को फोन किया गया. डेविड को वहां पहुंचाया गया.

सभी की गोटियां एकदूसरे से ऐसी फंसी थीं कि कोई भी कुछ करने से पहले काफी सोचसमझ लेना चाहता था. पुलिस केस होने पर कमल फंस रहा था, जिस का सीधा असर सलमा पर पड़ता और घुमाफिरा कर उस का असर होने वाले बच्चे पर पड़ता.

जेनी को वह शर्त याद आई कि सलमा को सिर्फ जेनी ही देखेगी, डेविड नहीं. यों पुलिस रिपोर्ट में डेविड भी फंस रहे थे. नर्सिंग होम वालों को इतना पैसा मिला कि उन्होंने इलाज तो चुपचाप शुरू कर दिया था पर फिर भी घबराए हुए थे. डेविड को खतरे से बाहर बताए जाने के बाद ही सारे लोगों की सांस में सांस आई.

सारा खुशी का माहौल गमगीन और तनावपूर्ण हो चुका था. कमल के आरोप पर सलमा तड़प उठी थी. उस ने ही खामोशी तोड़ी, ‘‘मुझे आप लोगों से कोई पैसेवैसे नहीं चाहिए, मुझे मेरा आदमी वापस चाहिए. मैं तो इस के लिए तैयार ही नहीं हो रही थी,’’ कहतेकहते वह रो पड़ी.

इस पर जेनी ने डेविड की आंखों में कुछ झांका और फिर सलमा से कहा, ‘‘डेविड कमल का दर्द समझते हैं. उन के दिल में बदले की कोई भावना नहीं है. कमल को किसी भी कीमत पर वापस लाया जाएगा.’’

तभी नर्सिंग होम से एक फोन आया, ‘‘देखिए, यह मामला कहीं से लीक हो चुका है, पुलिस केस होने जा रहा है, सतर्क रहें.’’

इस बात से सामान्य होता वातावरण फिर गरम हो उठा. खैर, जेनी की आंखों में काफी संतोष दिख रहा था, शायद वह हिंदुस्तान के बारे में सबकुछ जान गई थी कि यहां पैसे से सबकुछ मुमकिन हो जाता है. लिहाजा, सलमा को धीरज बंधाया और खुद अपने डाक्टर के साथ नर्सिंग होम जा पहुंची.

क ाफी पैसे खर्च करने के बावजूद मामला रफादफा करने में कई दिन लग गए पर जेनी को इस से बड़ा धक्का तब लगा जब उसे यह पता चला कि कमल चोरी की पिस्तौल खरीदने के मामले में कहीं पकड़ा जा चुका था. यह सभी के लिए बहुत खराब खबर थी. फिर भी जेनी ने सलमा को धीरज बंधाया कि उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं है. वह किसी भी हद तक और कितना भी पैसा खर्च करने को तैयार था.

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लेदे कर वह भी मामला निबटाया गया, तब जा कर सलमा सामान्य हो पाई. कमल की जमानत की काररवाई पूरी की गई. उसे जमानत पर छुड़वा कर लाया गया पर इस दौरान उसे पुलिस वालों को अपने पुराने साथियों के नाम बताने पड़े. उस के जमीर को इस से काफी धक्का लगा था. उसे एक बार तो यह लगा जैसे वह सलमा को खोने जा रहा हो.

लाख न चाहते हुए सलमा को इस कांड का काफी सदमा लगा था पर वह और डेविड दोनों ही अच्छे इलाज की बदौलत तेजी से सुधार की ओर अग्रसर थे. इस से भी बड़ी तसल्ली की बात यह थी कि कमल ने डेविड को अपनी मनोस्थिति बताते हुए माफी मांग ली थी.

समय कितनी तेजी से बीता, पता ही नहीं चला. जेनी और डेविड को, जिस सुखद घड़ी का बेसब्री से इंतजार था, वह आ ही गई. पर सलमा के लिए यह एक बड़े दुख का सबब था, क्योंकि उसे जो सुविधाएं, डेविड ने इस दौरान मुहैया कराई थीं, सब खत्म होने जा रही थीं. कमल पर चोरी की पिस्तौल के अलावा भी 2 मुकदमे दायर हो चुके थे. वह फिर बहुत उदास रहने लगी थी. भविष्य में आने वाली मुसीबतों के बारे में सोचसोच कर वह सहम सी उठती थी. उस का दिल बैठा जाता था.

अत: तमाम मेडिकल सुविधाओं के बावजूद आखिरी दिनों में उस का ब्लडप्रेशर काफी नीचे रहने लगा. प्रसव के समय वह काफी घबराई हुई सी लगी. बच्चे को जन्म देने के 12 घंटे बाद ही उस ने दम तोड़ दिया.

जेनी और डेविड जो एक तरफ बेहद खुश थे, दूसरी तरफ सलमा की मौत से इतने दुखी हुए कि अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए, बरबस रो पड़े. उन का मन था कि बच्चे की पहले 1 माह की परवरिश के लिए उसे सलमा के साथ ही रहने दिया जाता, पर नर्स ने उन्हें यह कह कर तसल्ली दिलानी चाही कि फिर मोह के कारण सलमा से उसे छुड़ाना अधिक दुखद हो जाता.

नर्सिंग होम से कमल जब सलमा का निष्प्राण शरीर ले कर निकला तो उस के परिवार के अलावा सलमा के परिवार के लोग भी आ चुके थे. पिता के कहने पर लाश को कमल अपने पिता के घर ले गया. इस दुखद और अकाल मौत पर जो सुनता दौड़ पड़ता. अंतिम संस्कार के लिए श्मशान तक जाने वाली विकराल भीड़ में जेनी और डेविड सब से आगे थे. कमल की छोटी बेटी तो नर्सिंग होम में नर्स के ही पास थी. बड़ी बेटी को कमल अपने सीने से चिपकाए दहाड़ें मारमार कर रोए जा रहा था.

जिन धर्म के ठेकेदारों ने इन की शादी के चक्कर में पड़ना उचित नहीं समझा था वे इस भीड़ को कैश कराने की गरज से वहां पहुंच चुके थे. सलमा की लाश पर राजनीति शुरू कर दी कि वह मुसलमान थी, इसलिए दफनाया जाना चाहिए. विरोधियों का कहना था कि वह हिंदू से शादी कर के हिंदू हो चुकी थी इसलिए जलाया जाना चाहिए. एक मत और उभर रहा था कि ईसाई बच्चे को जन्म देने के कारण उस को ईसाइयों के रीतिरिवाज से दफनाया जाए.

आखिरी फैसला यह हुआ कि हिंदू रीति ही अपनाई जाए. इस फैसले पर हिंदू पंडों की बाछें खिल उठीं. भीड़ देख कर उन के भाव बढ़ गए. मुखाग्नि के वक्त बोले, ‘‘बिना स्वर्ण दान के आत्मा नहीं तरती है.’’ कमल ने वह नथनी जो सलमा को देने के लिए बहुत संभाल कर रखी हुई थी, आ

 

वक्त बदल रहा है : भाग 1

कालिज के दिनों से ही लीना और हरिनाक्षी दोनों के विचारों और व्यक्तित्व में जमीनआसमान का फर्क था. बरसों बाद स्थितियां बदल चुकी थीं. लीना लोकप्रिय पार्टी की सचिव बन चुकी थी और हरिनाक्षी एक ईमानदार अफसर. पात्र वही थे लेकिन पद बदल चुके थे. दोनों ही हमेशा की तरह एकदूसरे को चुनौती देने के लिए तैयार रहती थीं. पढि़ए राजीव रोहित की कहानी.

सुबहसुबह अखबार के पन्ने पलटते हुए लीना की नजर स्थानीय  समाचार वाले पन्ने पर छपी एक खबर पर पड़ी :

‘सुश्री हरिनाक्षी नारायण ने आज जिला कलक्टर व चेयरमैन, शहर विकास प्राधिकार समिति का पदभार ग्रहण किया.’

आगे पढ़ने की जरूरत नहीं थी क्योंकि लीना अपने कालिज और कक्षा की सहपाठी रह चुकी हरिनाक्षी के बारे में सबकुछ जानती थी.

यह अलग बात है कि दोनों की दोस्ती बहुत गहरी कभी नहीं रही थी. बस, एकदूसरे को वे पहचानती भर थीं और कभीकभी वे आपस में बातें कर लिया करती थीं.

मध्यवर्गीय दलित परिवार की हरिनाक्षी शुरू से ही पढ़ाई में काफी होशियार थी. उस के पिताजी डाकखाने में डाकिया के पद पर कार्यरत थे. मां एक साधारण गृहिणी थीं. एक बड़ा भाई बैंक में क्लर्क था. पिता और भाई दोनों की तमन्ना थी कि हरिनाक्षी अपने लक्ष्य को प्राप्त करे. अपनी महत्त्वाकांक्षा को प्राप्त करने के लिए वह जो भी सार्थक कदम उठाएगी, उस में वह पूरा सहयोग करेंगे. इसलिए जब भी वे दोनों बाजार में प्रतियोगिता संबंधी अच्छी पुस्तक या फिर कोई पत्रिका देखते, तुरंत खरीद लेते थे. यही वजह थी कि हरिनाक्षी का कमरा अच्छेखासे पुस्तकालय में बदल चुका था.

हरिनाक्षी भी अपने भाई और पिता को निराश नहीं करना चाहती थी. वह जीजान लगा कर अपनी पढ़ाई कर रही थी. कालिज में भी फुर्सत मिलते ही अपनी तैयारी में जुट जाती थी. लिहाजा, वह पूरे कालिज में ‘पढ़ाकू’ के नाम से मशहूर हो गई थी. उस की सहेलियां कभीकभी उस से चिढ़ जाती थीं क्योंकि हरिनाक्षी अकसर कालिज की किताबों के साथ प्रतियोगी परीक्षा संबंधी किताबें भी ले आती थी और अवकाश के क्षणों में पढ़ने बैठ जाया करती.

लीना, हरिनाक्षी से 1 साल सीनियर थी. कालिज की राजनीतिक गतिविधियों में खुल कर हिस्सा लेने के कारण वह सब से संपर्क बनाए रखती थी. वह विश्वविद्यालय छात्र संघ की सचिव थी. उस के पिता मुखराम चौधरी एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल ‘जनमत मोर्चा’ के अध्यक्ष थे. इस राजनीतिक पृष्ठभूमि का लाभ उठाने में लीना हमेशा आगे रहती थी. यही वजह थी कि कालिज में भी उस की दबंगता कायम थी.

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एकमात्र हरिनाक्षी थी जो उस के राजनीतिक रसूख से जरा भी प्रभावित नहीं होती थी. लीना ने उसे कई बार छात्र संघ की राजनीति में खींचने की कोशिश की थी. किंतु हर बार हरिनाक्षी ने उस का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. उसे केवल अपनी पढ़ाई से मतलब था. जलीभुनी लीना फिर ओछी हरकतों पर उतर आई और उस के सामने जातिगत फिकरे कसने लगी.

‘अरे, यह लोग तो सरकारी कोटे के मेहमान हैं. थोड़ा भी पढ़ लेगी तो अफसर…डाक्टर…इंजीनियर बन जाएगी. बेकार में आंख फोड़ती है.’

कभी कहती, ‘सरकार तो बस, इन्हें कुरसी देने के लिए बैठी है.’

हरिनाक्षी पर उस के इन फिकरों का जरा भी असर नहीं होता था. वह बस, मुसकरा कर रह जाती थी. तब लीना और भी चिढ़ जाती थी.

लीना के व्यंग्य बाणों से हरिनाक्षी का इरादा दिनोदिन और भी पक्का होता जाता था. कुछ कर दिखाने का जज्बा और भी मजबूत हो जाता.

हरिनाक्षी ने बी.ए. आनर्स की परीक्षा में सर्वोच्च श्रेणी में स्थान प्राप्त किया तो सब ने उसे बधाई दी. एक विशेष समारोह में विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने उस का सम्मान किया.

हरिनाक्षी ने उस समारोह में शायद पहली और आखिरी बार अपने उद्गार व्यक्त करते हुए परोक्ष रूप से लीना के कटाक्षों का उत्तर देने की कोशिश की थी :

‘शुक्र है, विश्वविद्यालय में और सब मामलों में भले ही कोटे का उपयोग किया जाता हो, मगर अंक देने के मामले में किसी भी कोटे का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.’ यह कहते हुए हरिनाक्षी की आंखों में नमी आ गई थी. सभागार में सन्नाटा छा गया था. सब से आगे बैठी लीना के चेहरे का रंग उड़ गया था.

उस दिन के बाद से लीना ने हरिनाक्षी से बात करना बंद कर दिया था.

इस बीच हरिनाक्षी की एक प्यारी सहेली अनुष्का का दिन दहाडे़ एक चलती कार में बलात्कार किया गया था. बलात्कारी एक प्रतिष्ठित व्यापारी का बिगडै़ल बेटा था. पुलिस उस के खिलाफ सुबूत जुटा नहीं पाई थी. लिहाजा, उसे जमानत मिल गई थी.

क्षुब्ध हरिनाक्षी पहली बार लीना के पास मदद के लिए आई कि बलात्कारी को सजा दिलाने के लिए वह अपने पिता के रसूख का इस्तेमाल करे ताकि उस दरिंदे को उस के किए की सजा मिल सके.

लीना ने साफसाफ उसे इस झमेले में न पड़ने की हिदायत दी थी, क्योंकि वह जानती थी कि उस के पिता उस व्यापारी से मोटी थैली वसूलते थे.

अनुष्का ने आत्महत्या कर ली थी. लीना बुरी तरह निराश हुई थी.

हरिनाक्षी उस के बाद ज्यादा दिनों तक कालिज में रुकी भी नहीं थी. एम.ए. प्रथम वर्ष में पढ़ते हुए ही उस ने ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ की परीक्षा दी थी और अपनी मेहनत व लगन के बल पर तमाम बाधाओं को पार करते हुए सफल प्रतियोगियों की सूची में देश भर में 7वां स्थान प्राप्त किया था. आरक्षण वृत्त की परिधि से कहीं ऊपर युवतियों के वर्ग में वह प्रथम नंबर पर थी.

उस के बाद लीना के पास हरिनाक्षी की यादों के नाम पर एक प्रतियोगिता पत्रिका के मुखपृष्ठ पर छपी उस की मुसकराती छवि ही रह गई थी. अपनी भविष्य की योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करती हुई लीना ने जाने क्या सोच कर उस पत्रिका को सहेज कर रखा था. एक भावना यह भी थी कि कभी तो यह दलित बाला उस की राजनीति की राहों में आएगी.

लीना के पिता अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में हर जगह बेटी को पेश करते थे. लीना की शादी भी उन्होंने एक व्यापारिक घराने में की थी. उस के पति का छोटा भाई वही बलात्कारी था जिस ने लीना के कालिज की लड़की अनुष्का से बलात्कार किया था और सुबूत न मिल पाने के कारण अदालत से बरी हो गया था.

लीना शुरू में इस रिश्ते को स्वीकार करने में थोड़ा हिचकिचाई थी, लेकिन पिता ने जब उसे विवाह और उस के राजनीतिक भविष्य के बारे में विस्तार से समझाया तो वह तैयार हो गई. लीना के पिता ने लड़के के पिता के सामने यह शर्त रख दी थी कि वह अपनी होने वाली बहू को राजनीति में आने से नहीं रोकेंगे.

लीना आज अपनी राष्ट्रीय पार्टी ‘जनमत मोर्चा’ की राज्य इकाई की सचिव है. पूरे शहर के लिए हरदम चर्चा में रहने वाला एक अच्छाखासा नाम है. आम जनता के साथसाथ ब्लाक स्तर से ले कर जिला स्तर तक सभी प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी उसे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं. अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल वह अपने पति के भवन निर्माण व्यवसाय की दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति के लिए बखूबी कर रही थी. इन दिनों उस के पति कमलनाथ अपने एक नए प्रोजेक्ट का काम शुरू करने से पहले कई तरह की अड़चनों का सामना कर रहे थे.

लीना को पूरी उम्मीद थी कि हरिनाक्षी पुरानी सहपाठी होने के नाते उस की मदद करेगी और अगर नहीं करेगी तो फिर खमियाजा भुगतने के लिए उसे तैयार रहना होगा. ऐसे दूरदराज के इलाके में तबादला करवा देगी कि फिर कभी कोई महिला दलित अधिकारी उस से पंगा नहीं लेगी. कमलनाथ लीना को बता चुके थे कि इस प्रोजेक्ट में उन के लाखों रुपए फंस चुके थे.

दरअसल, शहर के व्यस्त इलाके में एक पुराना जर्जर मकान था. इस के आसपास काफी खाली जमीन थी. मकान मालिक शिवचरण उस मकान और जमीन को किसी भी कीमत पर बेचने को तैयार नहीं हो रहे थे. अपने बापदादा की निशानी को वह खोना नहीं चाहते थे. उस मकान से उन की बेटी अनुष्का की ढेर सारी यादें जुड़ी हुई थीं.

कमलनाथ ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को अपने प्रोजेक्ट में यह कह कर हिस्सेदारी देने की पेशकश की थी कि वह शिवचरण को ‘येन केन प्रकारेण’ जमीन खाली करने पर या तो राजी कर लेंगे या फिर मजबूर कर देंगे.

उस पुलिस अधिकारी ने अपने रोबदाब का इस्तेमाल करना शुरू किया, लेकिन शिवचरण थे कि आसानी से हार मानने को तैयार नहीं हो रहे थे. पहले तो वह पुलिसिया रोब से भयभीत नहीं हुआ बल्कि वह अपनी शिकायत पुलिस थाने में दर्ज कराने जा पहुंचा. यहां उसे बेहद जिल्लत झेलनी पड़ी थी. भला पुलिस अपने ही किसी आला अधिकारी के खिलाफ कैसे मामला दर्ज कर सकती थी? उन्होंने लानतमलामत कर उसे भगा दिया.

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शिवचरण ने भी हार नहीं मानी और उन्हें पूरा विश्वास था कि एक न एक दिन उन की फरियाद जरूर सुनी जाएगी.

नई कलक्टर के कार्यभार संभालने की खबर ने उन के दिल में फिर से आस जगाई.

हर तरफ से निराश शिवचरण कलक्टर के दफ्तर पहुंचे.

आज कलक्टर साहिबा से वह मिल कर ही जाएंगे. चाहे कितना भी इंतजार क्यों न करना पडे़.

एक कागज पर शिवचरण ने अपना नाम लिखा और सचिव रामसेवक को दिया. रामसेवक ने कागज पर लिखा नाम पढ़ा तो उस के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं. एक सीनियर पुलिस अधिकारी के मामले में लिप्त होने के कारण उस का नाम जिले के सभी प्रशासनिक अधिकारी जानते थे.

‘‘काम क्या है?’’ रामसेवक ने रूखे स्वर में पूछा.

‘‘वह मैं कलक्टर साहिबा को ही बताऊंगा,’’ शिवचरण ने गंभीरता से उत्तर दिया.

‘‘बिना काम के वह नहीं मिलतीं,’’ रामसेवक ने फिर टालना चाहा.

‘‘आज उन से मिले बगैर मैं नहीं जाऊंगा,’’ शिवचरण की आवाज थोड़ी तेज हो गई.

कलक्टर साहिबा के केबिन के बाहर खड़ा चपरासी यह सब देख रहा था.

अंदर से घंटी बजी.

चपरासी केबिन के अंदर जा कर वापस आया.

‘‘आप अंदर जाइए. मैडम ने बुलाया है,’’ चपरासी ने शिवचरण से कहा.

कुछ ही क्षणों के बाद शिवचरण कलक्टर साहिबा हरिनाक्षी के सामने बैठे थे.

शिवचरण को देख कर कलक्टर साहिबा चौंक पड़ीं, ‘‘चाचाजी, आप अनुष्का के पिता हैं न?’’

‘‘आप अनुष्का को कैसे जानती हैं?’’ शिवचरण थोडे़ हैरान हुए.

‘‘मैं अनुष्का को कैसे भूल सकती हूं. उस के साथ मेरी गहरी दोस्ती थी. उस का कालिज से घर लौटते समय अपहरण कर लिया गया था. 3 दिन बाद उस की विकृत लाश नेशनल हाइवे पर मिली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दरिंदों ने उस के साथ बलात्कार किया था और फिर गला घोंट कर उस की हत्या कर दी थी. अफसोस इस बात का है कि अपराधी आज भी बेखौफ घूम रहे हैं. खैर, आप बताइए कि आप की समस्या क्या है?’’

शिवचरण की आंखें भर आईं. एक तो बेटी की यादों की कसक और दूसरा अपनी समस्या पूरी तरह खुल कर बताने का अवसर मिलना. वह तुरंत कुछ न कह पाए.

‘‘चाचाजी, आप कहां खो गए?’’ हरिनाक्षी ने उन की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘आप अपना आवेदनपत्र दीजिए.’’

शिवचरण ने अपना आवेदनपत्र हरिनाक्षी की तरफ बढ़ाया तो वह उसे ले कर ध्यानपूर्वक पढ़ने लगी.

शिवचरण ने पूरी बातें विस्तार से लिखी थीं.

कैसे कमलनाथ ने एक पुलिस अधिकारी से मिल कर उन का जीना हराम कर दिया था और पुलिस अधिकारी ने अपनी कुरसी का इस्तेमाल करते हुए उन्हें धमकाने की कोशिश की थी. पत्र में और भी कई नाम थे जिन्हें पढ़ कर हरिनाक्षी हैरान हो रही थी. अनुष्का के बलात्कार के आरोपी निर्मलनाथ का नाम पढ़ कर तो उस के गुस्से का ठिकाना न रहा और लीना का नाम पढ़ कर तो उस ने अविलंब काररवाई करने का फैसला कर लिया.

‘खादी की ताकत का घमंड बढ़ता ही गया है लीना देवी का,’ हरिनाक्षी ने सोचा.

‘‘चाचाजी, आप चिंता न करें. आप की अपनी इच्छा के खिलाफ कोई आप को उस जमीन से, उस घर से निकाल नहीं सकता. आप जाएं,’’ हरिनाक्षी ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘तुम्हारा उपकार मैं जीवन भर नहीं भूल सकता, बेटी,’’ शिवचरण ने भरे गले से कहा.

‘‘इस में उपकार जैसा कुछ भी नहीं, चाचाजी. बस, मैं अपना कर्तव्य निभाऊंगी,’’ हरिनाक्षी की आवाज में दृढ़ता थी.

उस ने घंटी बजाई. चपरासी अंदर आया तो हरिनाक्षी बोली, ‘‘ड्राइवर से कहो इन्हें घर तक छोड़ आए.’’

‘‘चलिए, सर,’’ चपरासी ने शिवचरण से कहा.

चपरासी के साथ शिवचरण को बाहर आता देख कर रामसेवक आश्चर्य- चकित हो उठा और तुरंत अपना मोबाइल निकाला और दोएक नंबरों पर बात की.

इस बीच, अंदर से घंटी बजी तो रामसेवक मोबाइल जेब में रख कर तुरंत उठ कर केबिन में आने के लिए तत्पर हुआ.

‘‘एस.पी. साहब से कहिए कि वह हम से जितनी जल्द हो सके संपर्क करें,’’ हरिनाक्षी ने कहा.

‘‘जी, मैडम,’’ रामसेवक ने तुरंत उत्तर दिया और बाहर आ कर एस.पी. शैलेश कुमार को फोन घुमाने लगा.

‘‘साहब, रामसेवक बोल रहा हूं. मैडम ने फौरन याद किया है.’’

‘‘ठीक है,’’ उधर से आवाज आई.

आधे घंटे बाद एस.पी. शैलेश कुमार हरिनाक्षी के सामने आ कर बैठे नजर आए.

‘‘शैलेशजी, क्या हम जिले के सभी पुलिस अधिकारियों की एक संयुक्त बैठक कल बुला सकते हैं?’’ हरिनाक्षी ने पूछा.

‘‘हां…हां…क्यों नहीं?’’ एस.पी. साहब ने तुरंत उत्तर दिया.

‘‘तो फिर कल ही सर्किट हाउस में यह बैठक रखें,’’ हरिनाक्षी ने आदेशात्मक स्वर में कहा.

‘‘जी, मैडम,’’ एस.पी. साहब ने हामी भरी.

कलक्टर हरिनाक्षी के आदेश के अनुसार संयुक्त बैठक का आयोजन हुआ. जिले के सभी पुलिस थानों के थानेदारों समेत सभी छोटेबडे़ पुलिस अधिकारी बैठक में शामिल हुए.

सभी उत्सुक थे कि प्रशासनिक सेवा में बडे़ ओहदे पर कार्यरत यह सुंदर दलित बाला कितनी कड़कदार बातें कह पाएगी.

हरिनाक्षी ने बोलना शुरू किया :

‘‘साथियो, जिले की कानून व्यवस्था को संतुलित बनाए रखना और आम जनता के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना 2 अलगअलग चीजें नहीं हैं. आप को यह वरदी आतंक फैलाने या दबंगता बढ़ाने के लिए नहीं दी गई बल्कि आम लोगों के इस विश्वास को जीतने के लिए दी गई है कि हम उन की हिफाजत के लिए हर वक्त तैयार रहें.

‘‘बड़े अफसोस की बात है कि हमारे पुलिस थानों में आम जनता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है. इसलिए आम जन पुलिस थाने में जाने से डरते हैं जबकि पैसे वाले और प्रभावशाली लोगों को तरजीह दी जाती है. मेरे पास कई ऐसी शिकायतें लिखित रूप में आई हैं जिन्हें पुलिस स्टेशन में दर्ज होना चाहिए था, लेकिन वहां उन की बात नहीं सुनी गई.

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‘‘मेरा सभी पुलिस अधिकारियों से यह आग्रह है कि मेरे पास आए ऐसे सभी आवेदनपत्रों के आधार पर केस संख्या दर्ज की जाए और संबंधित व्यक्तियों को बताया जाए और उन्हें आश्वस्त किया जाए कि उन की शिकायतों पर उचित काररवाई की जाएगी.’’

वक्त बदल रहा है : भाग 2

पूर्व कथा

सुबह अखबार पढ़ कर लीना चौंक जाती है कि हरिनाक्षी ने जिला कलक्टर का पद ग्रहण कर लिया है. यह खबर पढ़ते हुए वह अतीत में खोने लगती है. दलित परिवार की हरिनाक्षी और उस के बीच कभी गहरी दोस्ती नहीं रही.

एक दिन हरिनाक्षी की सहेली अनुष्का का बलात्कार हो जाता है. प्रतिष्ठित व्यापारी का बिगड़ैल बेटा होने के कारण बलात्कारी सुबूतों के अभाव में जमानत पर छूट जाता  है. कालिज की राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ी होने के कारण अनुष्का लीना के पास मदद के लिए जाती है, लेकिन वह मना कर देती है. उधर, अनुष्का आत्महत्या कर लेती है.

अपने उत्तराधिकारी के रूप में लीना के पिता उसे राजनीति में उतारते हैं और उस की शादी ऊंचे व्यापारिक घराने में कर देते हैं. उस का देवर ही अनुष्का का बलात्कारी था इसी वजह से लीना इस रिश्ते को स्वीकार करने में हिचकिचाती है. अंतत: शादी कर लेती है.

आज लीना एक लोकप्रिय राजनीतिक पार्टी की सचिव है. वह अपने राजनीतिक रुतबे का इस्तेमाल पति कमलनाथ के एक बहुत बड़े प्रोजेक्ट के लिए करती है. इस प्रोजेक्ट के लिए उसे हरिनाक्षी की मदद की जरूरत पड़ती है.

शहर के व्यस्ततम इलाके के एक पुराने मकान को कमलनाथ खाली करवाना चाहते हैं लेकिन मकान मालिक शिवचरण खाली नहीं करता क्योंकि इस मकान से उस की बेटी अनुष्का की यादें जुड़ी हैं. कमलनाथ पुलिस विभाग में अपने रौबदाब की वजह से मकान खाली करवाना चाहते हैं लेकिन शिवचरण अपनी फरियाद ले कर जिला कलक्टर हरिनाक्षी के पास जाते हैं तो वह शिवचरण को पहचान लेती है. अनुष्का के पिता होने के नाते वह उन की मदद करने का आश्वासन देती है. वह एस.पी. को बुला कर पुलिस अधिकारियों की बैठक बुलाती है और बैठक को संबोधित करने लगती है. अब आगे…

अंतिम भाग

गतांक से आगे…

हरिनाक्षी मीटिंग पूरी कर के चली गई. वह जानती थी कि उस की बात अब लीना, कमलनाथ और निर्मलनाथ के कानों तक जरूर पहुंचेगी और वे लोग भागेभागे उस के पास आएंगे और ऐसा हुआ भी.

शिवचरण के इलाके का थानेदार लीना के घर हाजिरी लगाने पहुंच गया.

‘‘क्या उस बुड्ढे का मकान खाली हो गया?’’ लीना ने पूछा.

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‘‘मैडम, मकान खाली कराना तो दूर की बात है अब तो आप पर मुकदमा दर्ज करना होगा,’’ थानेदार ने घिघियाते हुए कहा.

‘‘क्या बकते हो?’’ लीना बुरी तरह भड़क गई.

‘‘हां, मैडम. मैं मजबूर हूं. आज कलक्टर साहिबा ने सारे पुलिस वालों की मीटिंग बुलाई और साफ शब्दों में आदेश दिया कि किसी भी फरियादी को थाने से खाली हाथ लौटने न दिया जाए. लिहाजा, हमें भी शिवचरण की शिकायत पर काररवाई करनी होगी,’’ थानेदार की आवाज थोड़ी डरी हुई थी.

कमलनाथ का चेहरा उतर गया.

लीना भी परेशान हो गई.

‘‘डी.एस.पी. साहब ने कुछ नहीं कहा,’’ कमलनाथ की आवाज में बेचैनी झलक रही थी.

‘‘कहां साहब, मैडम के सामने सब की बोलती बंद थी,’’ थानेदार ने कहा.

‘‘अब क्या होगा?’’ कमलनाथ ने लीना की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘होगा क्या. चलो, मिलने चलते हैं. अपनी सहेली से और आप की साली साहिबा से,’’ लीना ने माहौल को हलका करने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘भाभी, मैं भी चलूंगा,’’ निर्मलनाथ ने कहा.

‘‘हां, हां, क्यों नहीं,’’ लीना बोली.

दूसरे ही दिन लीना, कमलनाथ और निर्मलनाथ कलक्टर साहिबा के बंगले पर पहुंच गए. मुलाकाती कक्ष में कई महिलापुरुष बैठे हुए थे. कई लोग लीना को पहचानते भी थे और सब की आंखों में एक सवाल भी था कि लीना जैसी हस्ती भी मिलने के लिए मुलाकाती कक्ष में बैठने पर मजबूर है.

लीना ने अपना कार्ड चपरासी को देते हुए कहा, ‘‘मैडम को दे दो.’’

चपरासी कार्ड ले कर अंदर चला गया और फिर तुरंत बाहर आ कर अपनी जगह खड़ा हो गया.

‘‘मैडम ने क्या कहा?’’ वह पूछे बगैर न रह सकी.

‘‘कुछ नहीं,’’ चपरासी ने टका सा जवाब दिया.

लीना ठंडी पड़ गई. लीना के साथसाथ कमलनाथ और निर्मलनाथ भी परेशान दिखाई दे रहे थे. उन्हें अपनी बारी का इंतजार करते हुए 2 घंटे हो गए.

‘‘चलिए, मैडम ने आप लोगों को अंदर बुलाया है,’’ चपरासी ने कहा तो तीनों के चेहरे पर थोड़ी राहत नजर आने लगी.

तीनों ने अंदर कमरे में प्रवेश किया.

लीना देख रही थी कि हरिनाक्षी आज भी सुंदर दिखाई दे रही है जैसा कालिज के जमाने में दिखाई देती थी. ऊंचे पद की गरिमा ने उस की आंखों की चमक और बढ़ा दी है.

‘‘आइए, बैठिए,’’ कुरसियों की तरफ इशारा करते हुए हरिनाक्षी ने कहा.

‘‘हरिनाक्षीजी, पहचाना आप ने? मैं लीना सिंह. हम सब सेंट जेवियर्स कालिज में साथ पढ़ते थे,’’ लीना ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे, आप को कैसे नहीं पहचान सकती…आप मुझ से सीनियर थीं और मुझ जैसी नई छात्राओं की बहुत मदद करती थीं,’’ हरिनाक्षी ने हंसते हुए उत्तर दिया.

लीना समेत सब की जान में जान आई.

‘‘आप के ही सहयोग के चलते मैं आज यहां पर बैठी हूं. खैर, बताइए क्या काम है?’’ हरिनाक्षी ने चुभते हुए स्वर में कहा.

‘‘यह मेरे पति हैं, कमलनाथ और साथ में इन के छोेटे भाई निर्मलनाथ हैं.’’

‘‘मैं इन्हें खूब पहचानती हूं. मेरी स्मरण शक्ति इतनी खराब नहीं है. बात क्या है? इस गरीब को कैसे याद किया?’’ हरिनाक्षी मुसकराई.

‘‘कुछ दिन हुए, एक मकान का सौदा किया था और मकान मालिक को इन्होंने मकान की आधी कीमत चुकाई थी. मगर आज इस बात को मकान मालिक मानने को तैयार ही नहीं हो रहा है. उलटे इन्हें गुंडों से धमकी दिलवा रहा है,’’ लीना और भी कुछ कहने जा रही थी मगर हरिनाक्षी ने बीच में ही कहना शुरू किया, ‘‘वह आदमी आप लोगों से कहीं ज्यादा पहुंच और पैसे वाला होगा. है न? गुंडे भी वरदी वाले होंगे. खादी हो या खाकी वरदी, क्या फर्क पड़ता है,’’ हरिनाक्षी ने कटाक्ष करते हुए कहा.

तीनों के चहेरों का रंग उड़ गया. उन्हें धरती घूमती नजर आने लगी.

‘‘बात यह है कि …’’ कमलनाथ ने कुछ कहने की कोशिश की.

‘‘सारे शहर को मालूम है कि शिवचरण की हैसियत में और आप लोगों की औकात में जमीनआसमान का अंतर है. फिर भी अगर आप को शिकायत दर्ज करानी है तो अपने निकट के थाने में उस के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करवाइए. प्रशासन से मदद चाहिए तो एक आवेदन- पत्र दीजिए. ध्यान रहे कि दस्तावेज पूरे होने चाहिए,’’ हरिनाक्षी ने ठंडे स्वर में कहा.

‘‘मैं तो यह सोच कर आई थी कि हमारी पुरानी दोस्ती का लिहाज करते हुए तुम हमारी मदद करोगी,’’ लीना ने अपने नेतागीरी वाले अंदाज में कहा.

‘‘हम कितने गहरे दोस्त थे यह बताने की शायद मुझे जरूरत नहीं. और मैं यह बता देना जरूरी समझती हूं कि मैं इस शहर में दोस्ती निभाने नहीं आई हूं. मेरा फर्ज यहां के आम नागरिकों के जानमाल की रक्षा करना है,’’ हरिनाक्षी ने बिना किसी लागलपेट के कहा.

लीना के अंदर छिपा हुआ राजनीतिज्ञ जोर मारने लगा. हरिनाक्षी से पहले आए जिला अधिकारियोें की नाक में दम कर देने वाली लीना अपनी खादी वरदी का असर देख चुकी थी.

‘यह हरिनाक्षी की बच्ची किस खेत की मूली है?’ लीना ने सोचा.

‘‘देखिए, हरिनाक्षीजी, अब तक हम सिर्फ एक आम नागरिक की तरह आप से प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन ऐसा लगता है कि अफसरी की वरदी ने आप के खून में कुछ ज्यादा ही उबाल ला दिया है,’’ लीना के तेवर अचानक ही बदल गए.

हरिनाक्षी उत्तर देने को तत्पर हुई कि इस बीच कमलनाथ बोल पड़ा, ‘‘आप को शायद दौलत और ‘पहुंच’ की ताकत का अंदाज लगाने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ है,’’ कमलनाथ के बोलने का अंदाज शतप्रतिशत धमकी भरा था.

‘‘अब मालूम हुआ कि आप सब यहां केवल धमकी देने और अपनी ताकत का बखान करने आए हैं. खैर, मैं ने सुन लिया. अब मेरी भी एक बात ध्यान से सुन लीजिए कि राजनेता और पूंजीपति कभी मेरे प्रिय पात्रों में से नहीं रहे. इसलिए मुझे उन से न तो कभी दोस्ती निभाने की जरूरत पड़ी और न कभी डरने की जरूरत समझी. आप लोग जो भी कदम उठाना चाहें बडे़ शौक से उठा सकते हैं. अब आप लोग जा सकते हैं,’’ हरिनाक्षी ने गंभीरतापूर्वक कहा.

लीना के चेहरे का रंग उड़ गया. उसे अंदाजा नहीं था कि हरिनाक्षी उस के राजनीतिक रसूख की धज्जियां उड़ा कर रख देगी. वह पिटी हुई सूरत ले कर बाहर निकली. उधर कमलनाथ का चेहरा भी उतर गया था. बाहर निकलते ही लीना  पति व देवर को दिलासा देते हुए बोली, ‘‘तुम घबराओ मत. मैं इसे जब तक अपनी हैसियत और इस की औकात न बता दूंगी तब तक चैन से नहीं बैठूंगी.’’

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इस के बाद लीना अपनी पार्टी के कई आला नेताओं से ले कर गृहमंत्री तक से मिली. आश्चर्यजनक था कि हर जगह उसे निराशा ही मिली.

चुनाव सामने आ रहे थे और कोई भी नेता इस समय किसी दलित अधिकारी को केवल किसी के कहने पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं था. सब को अपने दलित वोट बैंक का खाता खाली होने का डर सता रहा था.

लीना बुरी तरह निराश हो उठी. उसे अपने बुरे दिन नजदीक दिखाई देने लगे थे. वह अपने बंगले में बैठी आने वाले दिनों के बारे में सोच रही थी.

इधर हरिनाक्षी एक पत्रकार सम्मेलन को संबोधित कर रही थी.

‘‘मैडम, पुलिस और प्रशासन पर से जनता का विश्वास क्यों उठता जा रहा है?’’ एक बुजुर्ग पत्रकार ने पहला सवाल दागा.

‘‘दरअसल, लोगों को केवल अपनी पहुंच और पैसे पर भरोसा रह गया है और भरोसे का यह माध्यम हर वर्ग के लोगों पर अपनी पैठ कायम कर चुका है. कई बार यह महसूस कर काफी दुख होता है कि लोग पुलिस और कानून से बचना चाहते हैं. लोग सामने नहीं आते. इस में कोई दोराय नहीं कि ऐसी स्थिति के लिए हम भी कहीं न कहीं दोषी हैं. मैं पूरी कोशिश करूंगी कि लोगों का पुलिस और प्रशासन पर फिर से भरोसा कायम हो जाए,’’ हरिनाक्षी के स्वर में दृढ़ता थी.

‘‘इस शहर में महिलाएं भी खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं. छेड़खानी, बलात्कार जैसी घटनाएं आएदिन होती ही रहती हैं. अभी भी कई सारे अपराधी आरोपी होने के बावजूद खुलेआम घूम रहे हैं क्योंकि उन के पास खादी और खाकी दोनों की ताकत है. ऐसे अपराधियों के लिए प्रशासन क्या कदम उठाने जा रहा है?’’ यह एक महिला पत्रकार का सवाल था.

‘‘ऐसे सारे मामलों की फाइल दोबारा खोली जाएगी. मैं मीडिया को विश्वास दिलाती हूं कि अपराधी चाहे कितना भी रसूख वाला हो. उसे बख्शा नहीं जाएगा,’’ हरिनाक्षी ने जवाब दिया.

‘‘क्या आप खादी की ताकत से नहीं घबरातीं?’’ एक पत्रकार ने व्यंग्यात्मक स्वर में पूछा.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ हरिनाक्षी ने दो शब्दों में जवाब दिया.

‘‘क्या अनुष्का को न्याय मिलेगा, हरिनाक्षीजी?’’ एक गंभीर और उदास आवाज गूंजी. अपना नाम लिए जाने पर हरिनाक्षी चौंक उठी और उस पत्रकार की तरफ देखा. वह रवि था, जो अनुष्का से प्यार करता था.

अनुष्का ने रवि से उसे एकदो बार मिलाया था. रवि उन दिनों दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था जब अनुष्का के साथ वह दर्दनाक हादसा हुआ था.

‘‘रविजी, आप प्रशासन पर भरोसा रखें. आप के इस सवाल का जवाब बहुत जल्दी मिलेगा,’’ हरिनाक्षी ने गंभीरता से जवाब दिया.

‘‘मैं तो आप को देखते ही पहचान गया था. अब आप से उम्मीद लगा रहा हूं तो कुछ गलत तो नहीं कर रहा?’’ रवि ने पूछा.

‘‘नहीं. कतई नहीं,’’ हरिनाक्षी ने उत्तर दिया और पूछा, ‘‘अभी आप किस अखबार से जुडे़ हैं?’’

‘‘एक राष्ट्रीय अखबार ‘दैनिक प्रभात समाचार’ से जुड़ा हूं.’’

‘‘अनुष्का को आप अभी तक नहीं भूल पाए,’’ हरिनाक्षी ने जैसे रवि की दुखती रग पर हाथ रख दिया.

‘‘अनुष्का को मैं अपने मरने के बाद ही भूल पाऊंगा,’’ रवि का स्वर भीगा हुआ था.

‘‘क्षमा करें, मैं आप से व्यक्तिगत सवाल पूछ बैठी,’’ हरिनाक्षी अब धीरेधीरे औपचारिकता छोड़ रही थी.

‘‘आज आप को इस ओहदे पर देख कर मुझे कितनी खुशी हो रही है, आप अंदाजा नहीं लगा सकतीं,’’ रवि के स्वर में खुशी झलक रही थी. वह उठते हुए बोला, ‘‘आशा है, आप अनुष्का को इंसाफ जरूर दिलाएंगी.’’

‘‘हां, अनुष्का को भी और उस के पिता को भी. साथ ही शहर के उन सभी नागरिकों को जो चुप रहते हैं और शैतानों के डर से सामने नहीं आते.’’

उस के बाद हरिनाक्षी ने नंबर डायल करने शुरू किए.

दोचार दिनों के बाद शहर में जैसे एक हंगामा हुआ. नई जिलाधिकारी की चर्चा हर गलीचौराहों पर आम हो गई. स्थानीय अखबारों के साथसाथ राष्ट्रीय अखबारों में भी हरिनाक्षी सुर्खियों में छाने लगी. शहर के तमाम सफेदपोश परेशान हो उठे थे. उन के खाकी और खादी वरदी वाले दोस्त उन से दूरदूर रहने लगे थे.

पुरानी फाइलें खुल रही थीं. दोषियों को फौरन पकड़ा जा रहा था.

लीना भी बेहद परेशान थी. उसे ऐसा लग रहा था कि बस, पुलिस आज या कल उस के घर पर धावा बोलने ही वाली है. कमलनाथ और उन का बिगड़ा हुआ छोटा भाई निर्मलनाथ भी डरेडरे से रहते थे.

आज भी लीना अपने बंगले के लान में बैठी अखबार पलट रही थी. लगभग हर पन्ने में हरिनाक्षी का नाम पढ़ कर बुरी तरह चिढ़ रही थी.

उस ने सामने देखा तो घर का नौकर शंकर घबराया हुआ उन की तरफ दौड़ता आ रहा था.

‘‘मालकिन, पुलिस आई है. तिवारीजी आए हुए हैं,’’ शंकर की आवाज में अभी भी घबराहट थी.

इंस्पेक्टर तिवारी का नाम सुन कर लीना ने इत्मिनान की सांस ली, क्योंकि तिवारी तो उन का अपना आदमी था.

वह बरामदे में बैठे तिवारी के सामने पहुंची. उस के साथ 2-3 सिपाही भी बैठे थे.

‘‘क्या बात है, तिवारी?’’ लीला ने डरते हुए पूछा.

‘‘कमलबाबू और निर्मलबाबू के नाम से गिरफ्तारी वारंट है. शिवचरण ने इन दोनों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज कराई है. कलक्टर साहिबा ने फौरन काररवाई करने का आदेश दिया है,’’ इंस्पेक्टर तिवारी ने भरे हुए स्वर में कहा.

‘‘तो फिर?’’ लीना के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘इन्हें गिरफ्तार करना ही होगा,’’ इंस्पेक्टर तिवारी का स्वर थोड़ा बदला.

‘‘ठीक है,’’ लीना ठंडी पड़ गई.

फरार होने के बजाय दोनों भाई कमलनाथ व निर्मलनाथ नीचे आ गए तो इंस्पेक्टर तिवारी ने उन्हें हथकडि़यां पहना दीं.

कुछ ही पलों के बाद दोनों भाइयों को पुलिस जीप में बैठा कर थाने ले जाया गया. लीना यह सब बेबसी से देखती रही.

अब तो अदालत के चक्कर काटने होंगे. गवाह भी खुल कर सामने आएंगे. दोनों भाइयों को सजा होनी  निश्चित थी.

लीना को कालिज का वह जमाना याद आ रहा था जब वह हरिनाक्षी जैसी लड़कियों का खुल कर मजाक उड़ाया करती थी. हरिनाक्षी पर तो फुर्सत निकाल कर फिकरे कसने का दौर वह शुरू करती थी.

दलितों को कमजोर समझना एक भयंकर भूल होगी. देश भर के दलित अगर ऊंचे पदों पर बैठ गए तो ऊंची जाति वालों का क्या होगा?

उधर हरिनाक्षी को भी कमलनाथ और निर्मलनाथ की गिरफ्तारी की खबर मिली. उस ने संतोष की सांस ली. अब जब तक वह शहर में है. ऐसे लोगों को उन की औकात याद दिलाती रहेगी जो कानून और पुलिस को अपनी जेब में ले कर चलने का दावा करते हैं. चाहे वह किसी भी समुदाय से संबंध रखते हों. ऐसे सफेदपोशों को वह उन की सही जगह पहुंचाती रहेगी.

लीना अगर समझती है कि उस ने प्रतिशोध लिया है तो वह गलत समझती है. हां, उसे यह एहसास जरूर होना चाहिए कि वक्त बदल रहा है. अनुष्का जैसी मासूम लड़कियों को इनसाफ मिलना ही चाहिए.

शिवचरण जैसे असहाय बुजुर्गों या किसी भी नागरिक को उस के घर से बेदखल करने का किसी भूमाफिया को अधिकार नहीं है.

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कमलनाथ और निर्मलनाथ की गिरफ्तारी की खबर से रवि की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा.

उस ने तुरंत अपने मोबाइल पर संदेश लिखना शुरू किया.

‘‘इस शहर का चेहरा बदल रहा है और वक्त भी. अनुष्का और शिवचरण जैसे लोग सारे देश में फैले हुए हैं और इंसाफ की तलाश में भटक रहे हैं. उन्हें आप जैसे रहनुमा की खोज है.’’

हरिनाक्षी को यह संदेश मिला. वह सोच रही थी, ‘ऐसे लोग सामने आ रहे हैं. हमें आशावान होना चाहिए क्योंकि वक्त बदल रहा है.’ और यही संदेश उस ने अपने मोबाइल पर लिखना शुरू किया.

19 दिन 19 कहानियां : मां बेटी – कौन थे उन दोनों के जिस्म के प्यासे

मालती काम से लौटी थी… थकीमांदी. कुछ देर लेट कर आराम करने का मन कर रहा था, पर उस की जिंदगी में आराम नाम का शब्द नहीं था. छोटा वाला बेटा भूखाप्यासा था. वह 2 साल का हो गया था, पर अभी तक उस का दूध पीता था.

मालती के खोली में घुसते ही वह उस के पैरों से लिपट गया. उस ने उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ेखड़े ही छाती से लगा लिया. फिर बैठ कर वह उसे दूध पिलाने लगी थी.

सुबह मालती उसे खोली में छोड़ कर जाती थी. अपने 2 बड़े भाइयों के साथ खोली के अंदर या बाहर खेलता रहता था. तब भाइयों के साथ खेल में मस्त रहने से न तो उसे भूख लगती थी, न मां की याद आती थी.

दोपहर के बाद जब मालती काम से थकीमांदी घर लौटती, तो छोटे को अचानक ही भूख लग जाती थी और वह भी अपनी भूखप्यास की परवाह किए बिना या किसी और काम को हाथ लगाए बेटे को अपनी छाती का दूध पिलाने लगती थी.

तभी मालती की बड़ी लड़की पूजा काम से लौट कर घर आई. पूजा सहमते कदमों से खोली के अंदर घुसी थी. मां ने तब भी ध्यान नहीं दिया था. पूजा जैसे कोई चोरी कर रही थी. खोली के एक किनारे गई और हाथ में पकड़ी पोटली को कोने में रखी अलमारी के पीछे छिपा दिया.

मां ने छोटू को अपनी छाती से अलग किया और उठने को हुई, तभी उस की नजर बेटी की तरफ उठी और उसे ने पूजा को अलमारी के पीछे थैली रखते हुए देख लिया.

मालती ने सहज भाव से पूछा, ‘‘क्या छिपा रही है तू वहां?’’

पूजा चौंक गई और असहज आवाज में बोली, ‘‘कुछ नहीं मां.’’

मालती को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है वरना पूजा इस तरह क्यों घबराती.

मालती अपनी बेटी के पास गई और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘क्या है? तू इतनी घबराई हुई क्यों है? और यहां क्या छिपाया है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, कुछ नहीं…’’ पूजा की घबराहट और ज्यादा तेज हो गई. वह अलमारी से सट कर इस तरह खड़ी हो गई कि मालती पीछे न देख सके.

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मालती ने जोर से पकड़ कर उसे परे धकेला और तेजी से अलमारी के पीछे रखी पोटली उठा ली.

हड़बड़ाहट में मालती ने पोटली को खोला. पोटली का सामान अंदर से सांप की तरह फन काढ़े उसे डरा रहे थे… ब्रा, पैंटी, लिपस्टिक, क्रीम, पाउडर और तेल की शीशी…

मालती ने फिर अचकचा कर अपनी बेटी पूजा को गौर से देखा… उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस की बेटी जवान तो नहीं हुई थी, पर जवानी की दहलीज पर कदम रखने के लिए बेचैन हो रही थी.

मालती का दिल बेचैन हो गया. गरीबी में एक और मुसीबत… बेटी की जवानी सचमुच मांबाप के लिए एक मुसीबत बन कर ही आती है खासकर उस गरीब की बेटी की, जिस का बाप जिंदा न हो. मालती की सांसें कुछ ठीक हुईं, तो बेटी से पूछा, ‘‘किस ने दिया यह सामान तुझे?’’

मां की आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, बल्कि एक हताशा और बेचारगी भरी हुई थी.

पूजा को अपनी मां के ऊपर तरस आ गया. वह बहुत छोटी थी और अभी इतनी बड़ी या जवान नहीं हुई थी कि दुनिया की सारी तकलीफों के बारे में जान सके. फिर भी वह इतना समझ गई थी कि उस ने कुछ गलत किया था, जिस के चलते मां को इस तरह रोना पड़ रहा था. वह भी रोने लगी और मां के पास बैठ गई.

बेटी की रुलाई पर मालती थोड़ा संभली और उस ने अपने ममता भरे हाथ बेटी के सिर पर रख दिए.

दोनों का दर्द एक था, दोनों ही औरतें थीं और औरतों का दुख साझा होता है. भले ही, दोनों आपस में मांबेटी थीं, पर वे दोनों एकदूसरे के दर्द से न केवल वाकिफ थीं, बल्कि उसे महसूस भी कर रही थीं.

पूजा की सिसकियां कुछ थमीं, तो उस ने बताया, ‘‘मां, मैं ले नहीं रही थी, पर उस ने मुझे जबरदस्ती दिया.’’

‘‘किस ने…?’’ मालती ने बेचैनी से पूछा.

‘‘गोकुल सोसाइटी के 401 नंबर वाले साहब ने…’’

‘‘कांबले ने?’’ मालती ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां… मां, वह मुझ से रोज गंदीगंदी बातें करता है. मैं कुछ नहीं बोलती तो मुझे पकड़ कर चूम लेता है,’’ पूजा जैसे अपनी सफाई दे रही थी.

मालती ने गौर से पूजा को देखा. वह दुबलेपतले बदन की सांवले रंग की लड़की थी, कुल जमा 13 साल की… बदन में ऐसे अभी कोई उभार नहीं आए थे कि किसी मर्द की नजरें उस पर गड़ जाएं.

हाय रे जमाना… छोटीछोटी बच्चियां भी मर्दों की नजरों से महफूज नहीं हैं. पलक झपकते ही उन की हैवानियत और हवस की भूख का शिकार हो जाती हैं.

मालती को अपने दिन याद आ गए… बहुत कड़वे दिन. वह भी तब कितनी छोटी और भोली थी. उस के इसी भोलेपन का फायदा तो एक मर्द ने उठाया था और वह समझ नहीं पाई थी कि वह लुट रही थी, प्यार के नाम पर… पर प्यार कहां था वह… वह तो वासना का एक गंदा खेल था.

इस खेल में मालती अपनी पूरी मासूमियत के साथ शामिल हो गई थी. नासमझ उम्र का वह ऐसा खेल था, जिस में एक मर्द उस के अधपके बदन को लूट रहा था और वह समझ रही थी कि वह मर्दऔरत का प्यार था.

वह एक ऐसे मर्द द्वारा लुट रही थी, जो उस से उम्र में दोगुनातिगुना ही नहीं, बाप की उम्र से भी बड़ा था, पर औरतमर्द के रिश्ते में उम्र बेमानी हो जाती है और कभीकभी तो रिश्ते भी बदनाम हो जाते हैं.

तब मालती भी अपनी बेटी की तरह दुबलीपतली सांवली सी थी. आज जब वह पूजा को गौर से देखती है, तो लगता है जैसे वही पूजा के रूप में खड़ी है.

मालती बिलकुल उस का ही दूसरा रूप थी. जब वह अपनी बेटी की उम्र की थी, तब चोगले साहब के घर में काम करती थी. वह शादीशुदा था, 2 बच्चों का बाप, पर एक नंबर का लंपट… उस की नजरें हमेशा मालती के इर्दगिर्द नाचती रहती थीं.

चोगले की बीवी किसी स्कूल में पढ़ाती थी, सो वह सुबह जल्दी निकल जाती थी. साथ में उस के बच्चे भी चले जाते थे. बीवी और बच्चों के जाने के बाद मालती उस घर में काम करने जाती थी.

चोगले तब घर में अकेला होता था. पहले तो काफी दिनों तक उस ने मालती की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और कभी कोई ऐसी बात नहीं कही, जिस से लगे कि वह उस के बदन का भूखा था.

शायद वह उसे बच्ची समझता था. वह काम करती रहती थी और काम खत्म होने के बाद चुपचाप घर चली आती थी.

पर जब उस ने 13वें साल में कदम रखा और उस के सीने में कुछ नुकीला सा उभार आने लगा, तो अचानक ही एक दिन चोगले की नजर उस के शरीर पर पड़ गई. वह मैलेकुचैले कपड़ों में रहती थी.

झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की और कैसे रह सकती थी. कपड़े धोने के बाद तो वह खुद गीली हो जाती थी और तब बिना अंदरूनी कपड़ों के उस के बदन के अंग शीशे की तरह चमकने लगते थे.

ऐसे मौके पर चोगले की नजरों में एक प्यास उभर आती और उस के पास आ कर पूछता था, ‘‘मालती, तुम तो गीली हो गई हो, भीग गई हो. पंखे के नीचे बैठ कर कपड़े सुखा लो,’’ और वह पंखा चला देता.

मालती बैठती नहीं खड़ेखड़े ही अपने कपड़े सुखाती. चोगले उस के बिलकुल पास आ कर सट कर खड़ा हो जाता और अपने बदन से उसे ढकता हुआ कहता, ‘‘तुम्हारे कपड़े तो बिलकुल पुराने हो गए हैं.’’

‘‘जी…’’ वह संकोच से कहती.

‘‘अब तो तुम्हें कुछ और कपड़ों की भी जरूरत पड़ती होगी?’’ मालती उस का मतलब नहीं समझती. बस, वह उस को देखती रहती.

वह एक कुटिल हंसी हंस कर कहता, ‘‘संकोच मत करना, मैं तुम्हारे लिए नए कपड़े ला दूंगा. वे वाले भी…’’

मालती की समझ में फिर भी नहीं आता. वह अबोध भाव से पूछती, ‘‘कौन से कपड़े…’’

चोगले उस के कंधे पर हाथ रख कर कहता, ‘‘देखो, अब तुम छोटी नहीं रही, बड़ी और समझदार हो रही हो. ये जो कपड़े तुम ने ऊपर से पहन रखे हैं, इन के नीचे पहनने के लिए भी तुम्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, शायद जल्दी ही…’’ कहतेकहते उस का हाथ उस की गरदन से हो कर मालती के सीने की तरफ बढ़ता और वह शर्म और संकोच से सिमट जाती. इतनी समझदार तो वह हो ही गई थी.

चोगले की मेहनत रंग लाई. धीरेधीरे उस ने मालती को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया.

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चोगले की मीठीमीठी बातों और लालच में मालती बहुत जल्दी फंस गई. घर का सूनापन भी चोगले की मदद कर रहा था और मालती की चढ़ती हुई जवानी. उस की मासूमियत और भोलेपन ने ऐसा गुल खिलाया कि मालती जवानी के पहले ही प्यार के सारे रंगों से वाकिफ हो गई थी.

तब मालती की मां ने उस में होने वाले बदलाव के प्रति उसे सावधान नहीं किया था, न उसे दुनियादारी समझाई थी, न मर्द के वेष में छिपे भेडि़यों के बारे में उसे किसी ने कुछ बताया था.

भेद तब खुला था जब उस का पेट बढ़ने लगा. सब से पहले उस की मां को पता चला था. वह उलटियां करती तो मां को शक होता, पर वह इतनी छोटी थी कि मां को अपने शक पर भी यकीन नहीं होता था. यकीन तो तब हुआ जब उस का पेट तन कर बड़ा हो गया.

मां ने मारपीट कर पूछा, तब बड़ी मुश्किल से उस ने चोगले का नाम बताया. बड़े लोगों की करतूत सामने आई, पर तब चोगले ने भी उस की मदद नहीं की थी और दुत्कार कर उसे अपने घर से भगा दिया था. बाद में एक नर्सिंगहोम में ले जा कर मां ने उस का पेट गिरवाया था.

अपना बुरा समय याद कर के मालती रो पड़ी. डर से उस का दिल कांप उठा. क्या समय उस की बेटी के साथ भी वही खिलवाड़ करने जा रहा था, जो उस के साथ हुआ था? गरीब लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि वे अपना बचपन भी ठीक से नहीं बिता पातीं और जवानी के तमाम कहर उन के ऊपर टूट पड़ते हैं?

मालती ने अपनी बेटी पूजा को गले से लगा लिया. जोकुछ उस के साथ हुआ था, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी. अपनी जवानी में तो उस ने बदनामी का दाग झेला था, मांबाप को परेशानियां दी थीं. यह तो केवल वह या उस के मांबाप ही जानते थे कि किस तरह उस का पेट गिरवाया गया था. किस तरह गांव जा कर उस की शादी की गई थी.  फिर कई साल बाद कैसे वह अपने मर्द के साथ वापस मुंबई आई थी और अपने मांबाप के बगल की खोली में किराए पर रहने लगी थी.

आज उस का मर्द इस दुनिया में नहीं था. 4 बच्चे उस की और उस की बड़ी बेटी की कमाई पर जिंदा थे. पूजा के बाद 3 बेटे हुए थे, पर तीनों अभी बहुत छोटे थे. पिछले साल तक उस का मर्द फैक्टरी में हुए एक हादसे में जाता रहा.

पति की मौत के बाद ही मालती ने अपनी बेटी को घरों में काम करने के लिए भेजना शुरू किया था. उसे क्या पता था कि जो कुछ उस के साथ हुआ था, एक दिन उस की बेटी के साथ भी होगा.

जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं, पर उन के चेहरे और चरित्र कभी नहीं बदलते. कल चोगले था, तो आज कांबले… कल कोई और आ जाएगा. औरत के जिस्म के भूखे भेडि़यों की इस दुनिया में कहां कमी थी. असली शेर और भेडि़ए धीरेधीरे इस दुनिया से खत्म होते जा रहे थे, पर इनसानी शेर और भेडि़ए दोगुनी तादाद में पैदा होते जा रहे थे.

मालती के पास आमदनी का कोई और जरीया नहीं था. मांबेटी की कमाई से 5 लोगों का पेट भरता था. क्या करे वह? पूजा का काम करना छुड़वा दे, तो आमदनी आधी रह जाएगी. एक अकेली औरत की कमाई से किस तरह 5 पेट पल सकते थे?

मालती अच्छी तरह जानती थी कि वह अपनी बेटी की जवानी को किसी तरह भी इनसानी भेडि़यों के जबड़ों से नहीं बचा सकती थी. न घर में, न बाहर… फिर भी उस ने पूजा को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, अगर तू मेरी बात समझ सकती है तो ठीक से सुन… हम गरीब लोग हैं, हमारे जिस्म को भोगने के लिए यह अमीर लोग हमेशा घात लगाए रहते हैं. इस के लिए वे तमाम तरह के लालच देते हैं. हम लालच में आ कर फंस जाते हैं और उन को अपना बदन सौंप देते हैं.

‘‘गरीबी हमारी मजबूरी है तो लालच हमारा शाप. इस की वजह से हम दुख और तकलीफें उठाते हैं.

‘‘हम गरीबों के पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं होता. अगर मैं तुझे काम पर न भेजूं और घर पर ही रखूं तब भी तो खतरा टल नहीं सकता. चाल में भी तो आवाराटपोरी लड़के घूमते रहते हैं.

‘‘अमीरों से तो मैं तुझे बचा लूंगी. पर इस खोली में रह कर इन गली के आवारा कुत्तों से तू नहीं बच पाएगी. खतरा सब जगह है. बता, तुझे दुनिया की गंदी नजरों से बचाने के लिए मैं क्या करूं?’’ और वह जोर से रोने लगी.

पूजा ने अपने आंसुओं को पोंछ लिया और मां का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, तुम चिंता मत करो. अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी. किसी का दिया हुआ कुछ नहीं लूंगी. केवल अपने काम से काम रखूंगी.

‘‘हां, कल से मैं कांबले के घर काम करने नहीं जाऊंगी. कोई और घर पकड़ लूंगी.’’

‘‘देख, हमारे पास कुछ नहीं है, पर समझदारी ही हमारी तकलीफों को कुछ हद तक कम कर सकती है. अब तू सयानी हो रही है. मेरी बात समझ गई है. मुझे यकीन है कि अब तू किसी के बहकावे में नहीं आएगी.’’

पूजा ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मैं अब समझदार हो गई हूं.’

मालती अच्छी तरह जानती थी कि ये केवल दिलासा देने वाली बातें थीं और पूजा भी इतना तो जानती थी कि अभी तो वह जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. पता नहीं, आगे क्या होगा? बरसात का पानी और लड़की की जवानी कब बहक जाए और कब किधर से किधर निकल जाए, किसी को पता नहीं चलता.

पूजा अभी छोटी थी. जवानी तक आतेआते न जाने कितने रास्तों से उसे गुजरना पड़ेगा… ऐसे रास्तों से जहां बाढ़ का पानी भरा हुआ है और वह अपनी पूरी होशियारी और सावधानी के साथ भी न जाने कब किस गड्ढे में गिर जाए.

वे दोनों ही जानती थीं कि जो वे सोच रही थीं, वही सच नहीं था या जैसा वे चाह रही हैं, उसी के मुताबिक जिंदगी चलती रहेगी, ऐसा भी नहीं होने वाला था.

दिन बीतते रहे. मालती अपनी बेटी की तरफ से होशियार थी, उस की एकएक हरकत पर नजर रखती. उन दोनों के बीच में बात करने का सिलसिला कम था, पर बिना बोले ही वे दोनों एकदूसरे की भावनाओं को जानने और समझने की कोशिश करतीं.

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पर जैसेजैसे बेटी बड़ी हो रही थी, वह और ज्यादा समझदार होती जा रही थी. अब वह बड़े सलीके से रहने लगी थी और उसे अपने भावों को छिपाना भी आ गया था.

इधर काफी दिनों से पूजा के रंगढंग में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने बननेसंवरने में ज्यादा ध्यान देती, पर इस के साथ ही उस में एक अजीब गंभीरता भी आ गई थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किन्हीं विचारों में खोई रहती हो. घर के काम में मन नहीं लगता था.

मालती ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, मुझे डर लग रहा है. कहीं तेरे साथ कुछ हो तो नहीं गया?’’

पूजा जैसे सोते हुए चौंक गई हो, ‘‘क्या… क्या… नहीं तो…’’

‘‘मतलब, कुछ न कुछ तो है,’’ उस ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर कहा.

पूजा के मुंह से बोल न फूटे. उस ने अपना सिर झुका लिया. मालती समझ गई, ‘‘अब कुछ बताने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गई हूं, पर एक बात तू बता, जिस से तू प्यार करती है, वह तेरे साथ शादी करेगा?’’

पूजा की आंखों में एक अनजाना सा डर तैर गया. उस ने फटी आंखों से अपनी मां को देखा. मालती उस की आंखों में फैले डर को देख कर खुद सहम गई. उसे लगा, कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है.

डरतेडरते मालती ने पूछा, ‘‘कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’

पूजा ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे जबरदस्ती कोई पकड़ कर उस का सिर हिला रहा हो. अब आगे कहने के लिए क्या बचा था.

मालती ने अपना माथा पीट लिया. न वह चीख सकती थी, न रो सकती थी, न बेटी को मार सकती थी. उस की बेबसी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.

जो मालती नहीं चाहती थी, वही हुआ. उस की जिंदगी में जो हो चुका था उसी से बेटी को आगाह किया था. ध्यान रखती थी कि बेटी नरक में न गिर जाए. बेटी ने भी उसे भरोसा दिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी, पर जवानी की आग को दबा कर रख पाना शायद उस के लिए मुमकिन नहीं था.

मरी हुई आवाज में उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘किस का है यह पाप…?’’

पूजा ने पहले तो नहीं बताया, जैसा कि आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है. जवानी में किए गए पाप को वे छिपा नहीं पातीं, पर अपने प्रेमी का नाम छिपाने की कोशिश जरूर करती हैं. हालांकि इस में भी वे कामयाब नहीं होती हैं, मांबाप किसी न किसी तरीके से पूछ ही लेते हैं.

पूजा ने जब उस का नाम बताया, तो मालती को यकीन नहीं हुआ. उस ने चीख कर पूछा, ‘‘तू तो कह रही थी कि कांबले के यहां काम छोड़ देगी?’’

‘‘मां, मैं ने तुम से झूठ बोला था. मैं ने उस के यहां काम करना नहीं छोड़ा था. मैं उस की मीठीमीठी और प्यारी बातों में पूरी तरह भटक गई थी. मैं किसी और घर में भी काम नहीं करती थी, केवल उसी के घर जाती थी.

‘‘वह मुझे खूब पैसे देता था, जो मैं तुम्हें ला कर देती थी कि मैं दूसरे घरों में काम कर के ला रही हूं, ताकि तुम्हें शक न हो.’’

‘‘फिर तू सारा दिन उस के साथ रहती थी?’’

पूजा ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. ‘‘मरी, हैजा हो आए, तू जवानी की आग बुझाने के लिए इतना गिर गई. अरे, मेरी बात समझ जाती और तू उस के यहां काम छोड़ कर दूसरों के घरों में काम करती रहती, तो शायद किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता कि कोई तेरे बदन से खिलवाड़ कर के तुझे लूट ले जाता. काम में मन लगा रहता है, तो इस काम की तरफ लड़की का ध्यान कम जाता है. पर तू तो बड़ी शातिर निकली… मुझ से ही झूठ बोल गई.’’

पूजा अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ी और सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘मां, मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, मुझे माफ कर दो. एक बार, बस एक बार… मुझे इस पाप से बचा लो.’’

मालती गुस्से में बोली, ‘‘जा न उसी के पास, वह कुछ न कुछ करेगा. उस को ले कर डाक्टर के पास जा और अपने पेट के पाप को गिरवा कर आ…’’

‘‘मां, उस ने मना कर दिया है. उस ने कहा है कि वह पैसे दे देगा, पर डाक्टर के पास नहीं जाएगा. समाज में उस की इज्जत है, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा, इस बात से वह डरता है.’’

‘‘वाह री इज्जत… एक कुंआरी लड़की की इज्जत से खेलते हुए इन की इज्जत कहां चली जाती है? मैं क्या करूं, कहां मर जाऊं, कुछ समझ में नहीं आता,’’ मालती बोली.

मालती ने गुस्से और नफरत के बावजूद भी पूजा को परे नहीं किया, उसे दुत्कारा नहीं. बस, गले से लगा लिया और रोने लगी. पूजा भी रोती जा रही थी.

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दोनों के दर्द को समझने वाला वहां कोई नहीं था… उन्हें खुद ही हालात से निबटना था और उस के नतीजों को झेलना था.

मन थोड़ा शांत हुआ, तो मालती उठी और कपड़ेलत्ते व दूसरा जरूरी सामान समेट कर फटेपुराने बैग में भरने लगी. बेटी ने उसे हैरानी से देखा. मां ने उस की तरफ देखे बिना कहा, ‘‘तू भी तैयार हो जा और बच्चों को तैयार कर ले. गांव चलना है. यहां तो तेरा कुछ हो नहीं सकता. इस पाप से छुटकारा पाना है. इस के बाद गांव में रह कर ही किसी लड़के से तेरा ब्याह कर देंगे.’’

19 दिन 19 कहानियां : दोस्ती पर ग्रहण

मंगलवार, 4 जून, 2019 को सूर्योदय हुए अभी कुछ ही समय हुआ था. राजस्थान के बाड़मेर जिले के हाथमा गांव के पास सोढो की ढाणी के पास कुछ लोगों ने सड़क किनारे एक युवक की लाश पड़ी देखी. लाश देखते ही उधर से गुजरने वाले लोग इकट्ठे हो गए. वहां रुके लोग उस युवक को पहचानने की कोशिश करने लगे. यह बात जब आसपास के गांव में फैली तो ग्रामीण भी वहां जुटने लगे.

गांव के किसी शख्स ने मरने वाले व्यक्ति की लाश पहचान ली. मृतक का नाम वीर सिंह था, जो पास के ही सोढो की ढाणी निवासी जोगराज सिंह का बेटा था. किसी ने यह खबर वीर सिंह के घर जा कर दी तो उस के घर में रोनापीटना शुरू हो गया. वीर सिंह की पत्नी दक्षा कंवर छाती पीटपीट कर रोने लगी. रोतेबिलखते हुए वह भी उसी जगह पहुंच गई, जहां उस के पति की लाश पड़ी थी.

मौके पर मौजूद लोगों ने आक्रोश में आ कर सड़क जाम कर दी. उसी समय कुछ लोग थाना रामसर पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी विक्रम सिंह सांदू को बताया कि साढो की ढाणी (हाथमा) निवासी 40 वर्षीय वीर सिंह कल दोपहर 2 बजे घर से कहीं जाने के लिए निकला था. आज उस का शव सड़क किनारे पड़ा मिला. किसी ने हत्या कर के लाश वहां फेंक दी है. इस घटना को ले कर लोगों में बहुत आक्रोश है इसलिए उन्होंने सड़क पर जाम लगा दिया है.

हत्या और सड़क जाम की खबर सुन कर थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ तुरंत साढो की ढाणी के पास वाली उस जगह पहुंच गए, जहां वीर सिंह की लाश पड़ी थी. पुलिस को देखते ही सड़क जाम कर रहे लोग पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. थानाप्रभारी ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन लोग एसपी को ही मौके पर बुलाने की मांग पर अडे़ रहे.

थानाप्रभारी विक्रम सिंह सांदू ने घटनास्थल का निरीक्षण कर बाड़मेर के एसपी राशि डोगरा डूडी एवं एएसपी खींव सिंह भाटी को हालात से अवगत कराया. साथ ही निवेदन भी किया कि लोग एसपी साहब को ही मौके पर बुलाने की मांग कर रहे हैं.

स्थिति की गंभीरता को समझते हुए एएसपी खींव सिंह भाटी तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. एएसपी खींव सिंह भाटी और थानाप्रभारी विक्रम सिंह सांदू ने लोगों को समझाया. एएसपी ने लोगों को आश्वस्त किया कि पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर लिया है.

मृतक वीर सिंह के सिर पर कई गहरे घाव थे, जो किसी धारदार हथियार के लग रहे थे. उस का सिर फटा हुआ था. वहां पैरों के या संघर्ष के निशान नहीं थे. शव पर लगा खून सूख चुका था. जिस स्थान पर शव पड़ा था वहां आसपास खून के धब्बे नहीं थे. इस से यही लग रहा था कि उस की हत्या कहीं और करने के बाद उस का शव यहां ला कर डाला गया था.

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पुलिस ने मृतक की पत्नी और अन्य लोगों ने प्रारंभिक पूछताछ कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. एएसपी भाटी ने लाश का पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से कराने की मांग की. 3 डाक्टरों के पैनल ने वीर सिंह के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पुलिस को पता चला कि वीर सिंह के सिर पर लाठी व धारदार हथियार से 4 वार किए गए थे. उस के हाथपैरों पर भी चोट के निशान पाए गए. यानी उस की काफी पिटाई की गई थी. हत्या के इस केस को सुलझाने के लिए एसपी राशि डोगरा डूडी ने एक स्पैशल पुलिस टीम बनाई.

पुलिस ने जोरशोर से शुरू की जांच

स्पैशल टीम में विक्रम सिंह सांदू, एएसआई रतनलाल, जेठाराम, कुंभाराम, मुकेश, मोती सिंह, राजेश, पर्वत सिंह के साथ साइबर सेल के एक्सपर्ट को भी शामिल किया गया. इस स्पैशल टीम ने अपने मुखबिरों को भी इस मामले से संबंधित जानकारी जुटाने को कहा.

टीम ने मृतक की पत्नी दक्षा कंवर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 3 जून को दोपहर के समय कहीं गए थे, अगली सुबह सड़क किनारे उन की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. दक्षा ने किसी से रंजिश होने की बात नकार दी.

इस पर पुलिस ने वीर सिंह और उस की पत्नी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. दक्षा की काल डिटेल्स  से पुलिस टीम को पता चला कि उस की एक फोन नंबर पर अकसर बातें होती रहती थीं. जांच में वह फोन नंबर जिला बाड़मेर के गांव आंशू निवासी महेंद्र सिंह का निकला.

उधर मुखबिर से पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि महेंद्र सिंह 3 जून को वीर सिंह के घर के आसपास दिखाई दिया था, लेकिन वारदात के बाद वह न तो वीर सिंह के घर आया और न ही वारदात की जगह दिखाई दिया, जहां वीर सिंह की लाश बरामद हुई थी. जबकि वहां आसपास के गांवों के सैकड़ों लोग मौजूद थे.

इन बातों से पुलिस को महेंद्र पर शक होने लगा. पुलिस ने महेंद्र के फोन की भी काल डिटेल्स निकलवाई. महेंद्र की काल डिटेल्स से इस बात पुष्टि हो गई कि दक्षा और महेंद्र के बीच नजदीकी संबंध थे, पुलिस महेंद्र की तलाश में उस के घर पहुंची तो जानकारी मिली कि 4 जून को वह अपनी नौकरी पर गुजरात चला गया है. उस के घर से गुजरात का पता लेने के बाद थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम महेंद्र सिंह को तलाशने के लिए गुजरात भेज दी. वहां वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. राजस्थान पुलिस महेंद्र को हिरासत में ले कर थाना रामसर ले आई.

उस से वीर सिंह की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वीर सिंह की हत्या में उस की पत्नी दक्षा कंवर भी शामिल थी. केस का खुलासा होने पर पुलिस ने चैन की सांस ली.

पूछताछ के लिए पुलिस वीर सिंह की पत्नी दक्षा कंवर को भी थाने ले आई. थाने में महेंद्र सिंह को देख कर दक्षा के चेहरे का रंग उड़ गया. उस से भी उस के पति की हत्या के बारे में पूछा गया. उस के सामने सच्चाई बताने के अलावा अब कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा उस ने अपने पति वीर सिंह की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने 48 घंटे के अंदर 6 जून, 2019 को केस का खुलासा कर दिया था.

पुलिस ने अगले दिन 7 जून को आरोपी महेंद्र और दक्षा कंवर को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के 3 दिन की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में दोनों से वीर सिंह की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी— वीर सिंह अपनी बीवी दक्षा कंवर को वह हर खुशी देना चाहता था, जो एक पत्नी चाहती है. वह खेतीकिसानी के अलावा मेहनत का हर काम कर के चार पैसे कमा कर बीवी को खुश रखना चाहता था. इसी वजह से वह अकसर गांव से बाहर रहता था. दिन में वह काम पर जाता और रात तक घर लौट आता था. घर पर पत्नी का प्यार पा कर उस की सारी थकान पल भर में काफूर हो जाती थी.

इस दंपति के दिन ऐसे ही हंसीखुशी से व्यतीत हो रहे थे. इसी दौरान महेंद्र सिंह के प्रवेश से उन दोनों के प्यार में बदलाव आ गया. घर का माहौल भी बदलने लगा. आंशू गांव निवासी महेंद्र सिंह वीर सिंह का हमउम्र दोस्त था. दोनों की अच्छीखासी दोस्ती थी. वीर सिंह महेंद्र को अपने भाई की तरह ही मानता था.

महेंद्र सिंह गुजरात में काम करता था. बाड़मेर ही नहीं, राजस्थान के हजारों लोग गुजरात के बड़ौदा, सूरत, अहमदाबाद, माणावदर, धौलका और अन्य शहरों में जिनिंग फैक्ट्रियों से ले कर कपड़े का कारोबार एवं हीरे की फर्मों में काम करते थे. महेंद्र भी हीरे की एक फर्म में काम करता था. जहां उसे अच्छे पैसे मिलते थे. बन संवर कर रहना महेंद्र का शौक था.

वीर सिंह ने फोन पर पत्नी और दोस्त को मिलाया

करीब डेढ़ साल पहले एक रोज महेंद्र सिंह के पास वीर सिंह की पत्नी दक्षा कंवर का फोन आया. दक्षा ने उस से अपना फोन रिचार्ज कराने को कहा.

दरअसल दक्षा को अपना फोन रिचार्ज कराना था. उस ने अपने पति वीर सिंह को फोन किया. वीर सिंह ने उस से कहा कि वह महेद्र को फोन कर के अपना फोन रिचार्ज कराने को कह दे. वह करा देगा. इसी के बाद दक्षा कंवर ने महेंद्र को फोन कर के अपना फोन रिचार्ज कराने को कहा.

महेंद्र ने कुछ ही देर में दक्षा कंवर का मोबाइल फोन रिचार्ज करवा दिया. फोन रिचार्ज कराने के बाद महेंद्र ने फोन कर के दक्षा कंवर से कहा, ‘‘भाभीजी, जब भी आप को फोन रिचार्ज करवाना हो बेझिझक बता देना क्योंकि आप लोग ढाणी में रहते हो और वहां रिचार्ज की दुकान नहीं है. इसलिए आप परेशान हो जाती होंगी. मैं सब समझता हूं. इस के अलावा आप को किसी भी चीज की जरूरत हो तो बताना.’’

‘‘जरूर बताएंगे. आप को हम अपना ही मानते हैं. वैसे मेरी वजह से आप को कष्ट हुआ हो तो क्षमा चाहती हूं.’’ दक्षा कंवर ने कहा.

‘‘कैसी बात कर रही हैं आप भाभीजी. अपने लोगों का काम करने से कष्ट नहीं होता. बल्कि खुशी होती है.’’

इस पहली बातचीत के बाद दक्षा कंवर और महेंद्र सिंह के बीच मोबाइल पर अकसर बातचीत होने लगी. थोड़े दिनों बाद यह हाल हो गया कि दिन में जब तक दक्षा और महेंद्र की बात नहीं हो जाती, उन्हें अच्छा नहीं लगता था. उन के बीच बातों का सिलसिला बढ़ता गया.

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फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब दोनों के बीच प्यार हो गया. प्यार हुआ तो इजहार होना भी स्वाभाविक ही था. जल्दी ही दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर लिया. उस दिन के बाद महेंद्र धोखेबाज यार बन गया, तो दक्षा विश्वासघाती पत्नी. दोनों के बीच अवैध संबंध बन चुके थे. महेंद्र और दक्षा छिपछप कर तनमन से मिलने लगे.

काफी दिनों तक दोनों ने मिलने में सावधानी बरती. लाख कोशिशों के बावजूद उन के प्यार की भनक आखिर दक्षा के पड़ोस में रहने वाली महिलाओं को पता लग ही गई.

उन औरतों ने वीर सिंह को बता दिया था कि आजकल उस की गैरमौजूदगी में महेंद्र उस की ढाणी आता है और दक्षा कंवर उस के आगेपीछे घूमती है. वीर सिंह समझ गया कि धुआं वहीं से उठता है, जहां आग लगती है, कहीं कुछ तो गड़बड़ है.

एक बार वीर सिंह के मन में शक उभरा तो फिर गहराता चला गया. इस के बाद वीर सिंह ने दोनों पर निगाह रखनी शुरू की. आखिर एक रोज वीर सिंह ने महेंद्र और दक्षा को रंगरलियां मनाते हुए पकड़ ही लिया. तब वीर सिंह ने महेंद्र को खूब खरीखोरी सुनाईं और भविष्य में उस के घर आने पर पाबंदी लगा दी.  महेंद्र के जाने के बाद उस ने पत्नी की पिटाई की.

वीर सिंह को बीवी की बेवफाई से गहरा आघात लगा. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस का दोस्त आस्तीन का सांप निकलेगा. वीर सिंह ने पत्नी को चेतावनी दी कि अगर महेंद्र के साथ फिर कभी बात करते देख भी लिया तो वह दोनों को जिंदा नहीं छोडे़गा.

पति की चेतावनी से दक्षा डर गई. उस ने पति से वादा किया कि भविष्य में वह कभी भी महेंद्र से नहीं मिलेगी. दक्षा ने पति से वादा जरूर कर लिया था, लेकिन वह अपने वादे पर कायम नहीं रही. वैसे भी वीर सिंह और दक्षा कंवर के रिश्ते में दरार पड़ चुकी थी, जो वक्त के साथ बढ़ती गई.

दक्षा ने कुछ दिन बाद महेंद्र से फोन पर बातचीत करनी शुरू कर दी. इस बात की जानकारी उस के पति वीर सिंह को मिल गई थी. इस बात को ले कर वीर सिंह अकसर दक्षा की पिटाई कर के उसे सुधारने की कोशिश करता था. पर पति की मारपीट से वह सुधरने के बजाए ढीठ होती गई.

पति की आए दिन की पिटाई से दक्षा परेशान हो गई थी. एक दिन दक्षा ने महेंद्र को सारी बातें बता कर कहा कि वीर सिंह उसे किसी रोज मार डालेगा.

अब वह उसे फूटी आंख नहीं देखना चाहती. इसलिए तय कर लिया है कि घर में पति रहेगा या फिर मैं. उस ने महेंद्र से कहा कि अब वह उसे कहीं दूर ऐसी जगह ले जाए, जहां उन दोनों के अलावा कोई न हो.

‘‘ठीक कह रही हो तुम, जब तक वीर सिंह जिंदा है, तब तक हम चैन से मिल भी नहीं सकते. इस बारे में कोई उपाय तो करना ही पड़ेगा.’’ महेंद्र बोला.

वीर सिंह के चौकस रहने की वजह से दक्षा कंवर और महेंद्र सिंह को मिलने का मौका नहीं मिल पाता था. आखिर 3 जून को उन्हें यह मौका मिल गया. वीर सिंह उस दिन कहीं गया था. दक्षा ने फोन कर के यह जानकारी महेंद्र को दे दी.

महेंद्र सिंह अपनी प्रेमिका दक्षा कंवर से मिलने उस के घर साढो की ढाणी जा पहुंचा. दोनों कई हफ्ते बाद मिले थे, लिहाजा दोनों बैठ कर बतियाने लगे. वे बातों में इतने मशगूल हो गए कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि वीर सिंह ढाणी में कब आ गया. जैसे ही दक्षा को आभास हुआ कि कोई ढाणी में है तो वह बदहवास सी आंगन में आ खड़ी हुई.

वीर सिंह कमरे की तरफ बढ़ गया. जहां से दक्षा बाहर आई थी. वीर सिंह को देख कर कमरे में मौजूद महेंद्र ने छिपने की कोशिश की, मगर वीर सिंह की नजरों से वह बच न सका.

महेंद्र पर नजर पड़ते ही वीर सिंह गुस्से से लाल हो कर बोला, ‘‘तुझे मैं ने घर आने से मना किया था, मगर तू नहीं माना. मैं आज तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’ कह कर वीर सिंह उस से भिड़ गया.

दोनों गुत्थमगुत्था हो गए तभी दक्षा कंवर  भी वहां आ गई. वह भी प्रेमी का पक्ष लेते हुए पति को पीटने लगी. महेंद्र ने वहां रखा पाइप और दक्षा कंवर ने कुल्हाड़ी उठा ली. दोनों वीर सिंह पर टूट पड़े. वीर सिंह सिर पर कुल्हाड़ी का वार झेल नहीं सका और बेहोश हो कर गिर पड़ा.

इस के बाद भी उन दोनों के हाथ नहीं रुके. कुल्हाड़ी के कई वार होने से वीर सिंह लहूलुहान हो गया और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

वीर सिंह के मरने के बाद दोनों डर गए. उन्होंने शव को घसीट कर अंदर छिपा दिया. फिर खून साफ किया. उस के बाद दोनों शव को छिपाने का उपाय खोजते रहे. आधी रात के बाद उन्होंने वीर सिंह का शव बैलगाड़ी में डाला और ढाणी से करीब एक किलोमीटर दूर सड़क किनारे यह सोच कर फेंक आए कि देखने वालों को लगेगा कि वीर सिंह की एक्सीडेंट में मौत हुई है.

शव फेंक कर महेंद्र और दक्षा वापस ढाणी आए और बैलगाड़ी पर रात में ही वार्निश कर दी ताकि खून के धब्बे दिखाई न दें.

घर में लगे खून को साफ करने के बाद दक्षा ने आंगन गोबर से लीप दिया. दिन निकलने से पहले ही महेंद्र अपने गांव आंशू लौट गया. फिर उसी दिन गांव से गुजरात चला गया.

सुबह होने पर 4 जून को जब लोगों ने सड़क किनारे वीर सिंह की लाश देखी तो लोगों की भीड़ जमा हो गई. इस के बाद पुलिस को खबर दी गई. पुलिस ने महेंद्र और दक्षा कंवर की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी व पाइप भी बरामद कर लिया. साथ ही दोनों के खून सने कपड़े भी बरामद हो गए.

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उन दोनों की सोच थी कि वीर सिंह की मौत के बाद उन्हें कोई जुदा नहीं कर पाएगा. दोनों ऐशोआराम से जीवन गुजारेंगे. मगर उन की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने दक्षा कंवर और महेंद्र सिंह को पुन: बाड़मेर कोर्ट में पेश किया जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.    द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

जो खाए लिट्टी-चोखा वह कभी न खाए धोखा

जब से मोदीजी का लिट्टी-चोखा खाते हुए फोटो वायरल हुआ है, बिहार के नेता लोगन खासा बौरा गए हैं खासकर विपक्ष. एक नेता ने तो खिसिया कर बोल ही दिया, “बिहार चुनाव खातिर ई मोदीजी के नया ड्रामा हौ.”

अब अचानक मोदीजी को बिहारी लिट्टी-चोखा क्यों पसंद आया. यह तो नहीं मालूम पर इस साल दिसंबर में बिहार विधानसभा का चुनाव जरूर है जहां एक बार फिर भाजपा और जदयू एक साथ चुनाव लड़ेगी.

बिहारी भाई लोगन को खुश करने के लिए हालांकि दिल्ली चुनाव में भी जदयू को 2 सीट दी गई थी पर लोग कहते हैं, “खुद मनोज भैया (मनोज तिवारी) ने ही ई चुनाव हरवा दिया है. टिकटे नहीं बांट पाए कायदे से.”

वैसे बिहार में एक कहावत है कि जो खाए लिट्टी-चोखा, वह कभी न खाए धोखा मगर यह कहावत सच नहीं है बिहार में. सच तो यह है कि लिट्टी-चोखा खाने में इतना स्वादिष्ठ होता है कि इस का स्वाद बड़े-बड़े तीसमार खां को भी चकमा दे दे.

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एक सच यह भी है कि नीतीश बाबू मोदीजी को खाने का न्यौता दे कर धोखा न दिए होते तो मोदीजी को राजपथ पर हुनर हाट में खुद ही लिट्टी-चोखा न खाना पड़ता.

बिहार के सीएम नीतीश कुमार को वहां की राजनीति में भले ही ‘सुशासन बाबू’ के नाम से जाना जाता है लेकिन वहां के लोग अब दबी जबान से कहना नहीं छोङते कि कोई ऐसा सगा नहीं जिस को नीतीश बाबू ने ठगा नहीं. तभी तो ठगी के शिकार मोदीजी खुद भी हुए बिहार में. पहली बार भोज के नाम पर और दूसरी बार बिहार बाढ़ राहत कोष में गुजरात सरकार का चेक वापस पा कर.

राजनीति के समझदार लोग कहते हैं कि मोदीजी इस बार फूंक-फूंक कर चलेंगे वहां. इस अर्थ में गिरगिटिया टाइप की राजनीति से दूर ही रहेंगे क्योंकि समय रहते चेते नहीं तो महाराष्ट्र जैसा कांड हो जाएगा, जब शिवसेना ने खूब चमकाया था. तब तो गुड़ गोबर हो जाएगा.

फिलहाल तो सब का ध्यान अब बिहार चुनाव पर ही है क्योंकि एकएक कर मोदीजी के हाथ से राज्य की राजनीति फिसलती जा रही है. अभी हाल ही में दिल्ली चुनाव क्रिकेट मैच सरीखा लगा जिस में केजरीवाल आस्ट्रेलिया जैसे खेले. पर आश्चर्य देखिए कि इस हार का श्रेय भोजपुरी सिनेमा के गायक-अभिनेता से नेता बने मनोज तिवारी ने ले लिया.

दिल्ली भाजपा के लोग भी कहां चूकने वाले थे, सो दबी जबान से वे भी नहीं चाहते कि मनोज तिवारी भाजपा दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष रहें. मगर बिहार चुनाव की बात अलग है और यह फैसला करना कि मोदीजी और नीतीश बाबा में कौन है लिट्टी और कौन है चोखा थोड़ा कठिन जरूर है.

वैसे नीतीश बाबू खुद भी नहीं चाहेंगे कि मोदीजी बिहार में सारी लिट्टी खुद ही चांप लें और उन के हाथ में सिर्फ चोखा ही रह जाए.

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