‘‘यह नया पंछी कहां से आया है?’’ जैम की शीशियां गत्ते के बड़े डब्बे में पैक करते हुए सुरेश ने सामने कुरसी पर बैठे अखिलेश की तरफ देखते हुए अपने साथी रमेश से पूछा.
‘‘उत्तर प्रदेश का है,’’ रमेश ने कहा.
‘‘शहर?’’ सुरेश ने फिर पूछा.
‘‘पता नहीं,’’ रमेश ने जवाब दिया.
‘‘शक्ल से तो मास्टरजी लगता है,’’ अखिलेश की आंखों पर चश्मे को देख हलकी हंसी हंसते हुए सुरेश ने कहा.
‘‘खाताबही बनाना मास्टरजी का ही काम होता है,’’ रमेश बोला.
फलोें और सब्जियों को प्रोसैस कर के जूस, अचारमुरब्बा और जैम बनाने की इस फैक्टरी में दर्जनों मुलाजिम काम करते थे.
सुरेश, रमेश और कई दूसरे पुराने लोग धीरेधीरे काम सीखतेसीखते अब ट्रेंड लेबर में गिने जाते थे. फैक्टरी में सामान्य शिफ्ट के साथ दोहरी शिफ्ट में भी काम होता था, जिस के लिए ओवर टाइम मिलता था. इस का लेखाजोखा अकाउंटैंट रखता था.
अखिलेश एमए पास था. वह इस फैक्टरी में अकाउंटैंट और क्लर्क भरती हुआ था. मुलाजिमों के कामकाज के घंटे और दूसरे मामलों का हिसाबकिताब दर्ज करना और बिल पास करना इस के हाथ में था.
अपने फायदे के लिए फैक्टरी के सभी मुलाजिम अकाउंटैंट से मेलजोल बना कर रखते थे.
‘‘पहले वाला बाबू कहां गया?’’ रामचरण ने पूछा.
‘‘उस का तबादला कंपनी की दूसरी ब्रांच में हो गया है.’’
‘‘ये सब बाबू लोग ऊपर से सीधेसादे होते हैं, पर अंदर से पूरे चसकेबाज होते हैं,’’ रमेश ने धीमी आवाज में कहा.
‘‘इन का चसकेबाज होने में अपना फायदा है. सारे बिल फटाफट पास हो जाते हैं.’’
शाम को शिफ्ट खत्म हुई. दूसरे सब चले गए, पर सुरेश, रमेश और रामचरण एक तरफ खड़े हो गए.
अखिलेश उन को देख कर चौंका.
‘‘सलाम बाबूजी,’’ सुरेश ने कहा.
‘‘सलाम, क्या बात है?’’ अखिलेश ने पूछा.
‘‘कुछ नहीं, आप से दुआसलाम करनी थी. आप कहां से हो?’’
अखिलेश ने गांव के बारे में बताया.
‘‘साहब, एकएक कप चाय हो जाए?’’ रमेश ने जोर दिया.
अखिलेश उन के साथ फैक्टरी की कैंटीन में चला आया. चाय के दौरान हलकीफुलकी बातें हुईं. कुछ दिनों तक यह सिलसिला चला, फिर धीरेधीरे मेलजोल बढ़ता गया.
‘‘साहब, आज कुछ अलग हो जाए…’’ एक शाम सुरेश ने मुसकराते हुए अखिलेश से कहा.
‘‘अलग… मतलब?’’ अखिलेश ने हैरानी से पूछा.
सुरेश ने अंगूठा मोड़ कर मुंह की तरफ शराब पीने का इशारा किया.
‘‘नहीं भाई, मैं शराब नहीं पीता,’’ अखिलेश ने कहा.
‘‘साहब, थोड़ी चख कर तो देखो.’’
उस शाम सुरेश के कमरे में शराब का दौर चला. नया पंछी धीरेधीरे लाइन पर आ रहा था.
कुछ दिन के बाद सुरेश ने अखिलेश से पूछा, ‘‘साहब, आप ने सवारी की है?’’
‘‘सवारी…?’’
‘‘मतलब, कभी सैक्स किया है?’’
‘‘नहीं भाई, अभी तो मैं कुंआरा हूं. मेरी पिछले महीने ही मंगनी हुई है,’’ अखिलेश ने कहा.
‘‘सुहागरात को अगर आप चुक गए, तो सारी उम्र आप की बीवी आप का रोब नहीं मानेगी,’’ रामचरण बोला.
इस पर अखिलेश सोच में पड़ गया. वह 25 साल का था, लेकिन अभी तक किसी लड़की से सैक्स नहीं किया था.
‘‘साहब, आज आप को जन्नत की सैर कराते हैं,’’ सुरेश ने कहा.
इस सोच के साथ कि सुहागरात को वह ‘अनाड़ी’ या ‘नामर्द’ साबित न हो जाए, अखिलेश सहमत हो कर उन के साथ चल पड़ा.
वे चारों एक सुनसान दिखती गली में पहुंचे. गली के मुहाने पर ही एक पान वाले की दुकान थी.
‘‘4 पलंगतोड़ पान बनाना,’’ एक सौ रुपए का नोट थमाते हुए सुरेश ने कहा. पान बंधवा कर वे सब आगे चले.
‘‘यह पलंगतोड़ पान क्या होता है?’’ अखिलेश ने पूछा.
‘‘साहब, यह बदन में जोश भर देता है. औरत भी ‘हायहाय’ करने लगती है. अभी आप भी आजमाना,’’ रामशरण ने समझाते हुए कहा.
एक दोमंजिला मकान के बाहर रुक कर सुरेश ने कालबैल बजाई. एक औरत ने खिड़की से बाहर झांका. अपने पक्के ग्राहकों को देख कर उस औरत ने राहत की सांस ली.
दरवाजा खुला. सभी अंदर चले गए. एक बड़े से कमरे में 3-4 पलंग बिछे थे. कई छोटीबड़ी उम्र की लड़कियां, जिन में से कई नेपाली लगती थीं, मुंह पर पाउडर पोते, होंठों पर लिपस्टिक लगाए बैठी थीं.
‘‘सोफिया नजर नहीं आ रही?’’ अपनी पसंदीदा लड़की को न देख सुरेश कोठे की आंटी से पूछ बैठा.
‘‘बाहर गई है वह.’’
‘‘इस को सब से ज्यादा ‘मस्त’ वही नजर आती है,’’ रामचरण बोला.
‘‘नए साहब आए हैं. इन को खुश करो,’’ आंटी ने लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा.
सभी लड़कियां एक कतार में खड़ी हो गईं. कइयों ने अपनेअपने उभारों को यों तान दिया, जैसे फौज में आया जवान अपनी छाती फुला कर दिखाता है.
‘‘साहब, आप को कौन सी जंच रही है?’’ रामचरण ने अखिलेश से पूछा.
अखिलेश के लिए यह नया तजरबा था. सैक्स के लिए उस को एक लड़की छांटनी थी, जबकि उस को तो ठेले पर सब्जी छांटनी नहीं आती थी. आंटी तजरबेकार थी. वह समझ गई थी कि नया चश्माधारी बाबू अनाड़ी है. उस ने लड़कियों की कतार में खड़ी मीनाक्षी की तरफ इशारा किया.
मीनाक्षी अखिलेश की कमर में बांहें डाल कर बोली, ‘‘आओ, अंदर चलें.’’
इस के बाद वह अखिलेश को एक छोटे केबिननुमा कमरे में ले गई.
बाकी तीनों भी अपनीअपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअलग केबिनों में चले गए. कमरे की सिटकिनी बंद कर लड़की ने अपने नए ग्राहक की तरफ देखा. अखिलेश ने भी उसे देखा. नेपाली मूल की उस लड़की का कद औसत से छोटा था. उस के मुंह पर ढेरों पाउडर पुता था. होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक थी.
लड़की ने एकएक कर के सारे कपड़े उतार दिए, फिर अखिलेश के पास आ कर खड़ी हो गई.
अखिलेश ने चश्मे में से ही उस की तरफ देखा. उस के उभार ब्लाउज उतर जाने के बाद ढीलेढाले से लटके थे. उभारों, बांहों, जांघों पर दांतों के काटने के निशान थे.
उसे देख कर अखिलेश को जोश की जगह तरस आने लगा था.
‘‘अरे बाबू, क्या हुआ? सैक्स नहीं करोगे?’’ उस लड़की ने पूछा.
‘‘नहीं, मुझे जोश नहीं आ रहा,’’ अखिलेश ने कहा.
‘‘कपड़े उतार दो, जोश अपनेआप आ जाएगा,’’ वह लड़की बोली.
‘‘मुझ से नहीं होगा.’’
‘‘पनवाड़ी से पान तो लाए होगे?’’
‘‘हां है. तुम खा लो,’’ पान की पुड़िया उसे थमाते हुए अखिलेश ने कहा.
‘‘आप खा लो… गरमी आ जाएगी.’’
‘‘तुम खा लो.’’
लड़की ने पान चबाया. अखिलेश पछता रहा था कि वह यहां क्यों आया.
‘‘तुम्हें कितने पैसे मिलते हैं?’’
‘‘यह आंटी को पता है.’’
‘‘मुझ से क्या लोगी?’’
‘‘यह भी आंटी बताएगी. तुम कुछ करोगे?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘मैं कपड़े पहन लूं?’’
अखिलेश चुप रहा. लड़की ने कपड़े पहने और बाहर चली गई. अखिलेश भी बाहर चला आया.
इतनी जल्दी ग्राहक निबट गया था. आंटी ने टेढ़ी नजरों से उस की तरफ देखा. मीनाक्षी ने भद्दा इशारा किया. पलंग पर बैठी सभी लड़कियां हंस पड़ीं.
आधेपौने घंटे बाद बाकी तीनों भी बाहर आ गए.
अखिलेश को बाहर आया देख वे सभी चौंके.
‘‘क्या बात है साहब?’’ सुरेश बोला.
‘‘मुझ से नहीं हुआ,’’ अखिलेश ने बताया.
‘‘पहली बार आए हो न साहब. धीरेधीरे सीख जाओगे.’’
आंटी को पैसे थमा कर वे सब बाहर चले आए.
अगले कई दिनों तक उन तीनों ने अखिलेश को उकसाने की कोशिश की, मगर उस ने वहां जाने से मना कर दिया. एक शाम मौसम सुहावना था. शराब के 2 पैग पीने के बाद अखिलेश घूमने निकल पड़ा.
अचानक ही अखिलेश के कदम उस गली की तरफ मुड़ गए. चश्माधारी बाबूजी को देख आंटी पहले चौंकी, फिर हंसते हुए बोली, ‘‘आओ बाबूजी.’’
मीनाक्षी भी मुसकराई. वह उस को अपने केबिन में ले गई.
‘‘आप फिर आ गए?’’
‘‘मौसम ले आया.’’
‘‘अकेले?’’
‘‘हां.’’
‘‘मैं अपने कपड़े उतारूं?’’
अखिलेश खामोश रहा. लड़की ने कपड़े उतार दिए. पहले की तरह अखिलेश ने उस के बदन को देखा.
‘‘अब आप भी अपने कपड़े उतारो,’’ लड़की बोली.
अखिलेश ने भी अपने कपड़े उतारे और उस के करीब आया. उसे अपनी बांहों भरा और चूमा, फिर बिस्तर पर खींच लिया. लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी अखिलेश में जोश नहीं आया.
आखिरकार तंग आ कर मीनाक्षी ने पूछा, ‘‘क्या तुम ने पहले कभी सैक्स किया है?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘फिर तुम यहां क्यों आए हो?’’
‘‘अगले महीने मेरी शादी है. वहां खिलाड़ी साबित करने के लिए मैं यहां आया हूं.’’
यह सुन कर मीनाक्षी खिलखिला कर हंस पड़ी.
‘‘तुम से कुछ नहीं हो सकता. तुम चले जाओ.’’
कपड़े पहन कर अखिलेश बाहर जाने को हुआ, तभी मीनाक्षी बोली, ‘‘अपना पर्स, घड़ी और अंगूठी उतार कर मुझे दे दो,’’
‘‘क्यों?’’ अखिलेश ने पूछा.
तभी एक कद्दावर गुंडे ने वहां आ कर चाकू तान दिया.
अखिलेश ने अपने पर्स की सारी नकदी, अंगूठी और घड़ी उतार कर पलंग पर रख दी और चुपचाप बाहर चला आया. आते वक्त भी मौसम खुशगवार था, लौटते वक्त भी. मगर आते समय अखिलेश शराब के नशे में था, लौटते समय उस का नशा उतर चुका था.