चाहत का संग्राम

चाहत का संग्राम : भाग 3

कहावत है कि अविवेक हमेशा अनर्थ की ओर ले जाता है. प्रतीक्षा व संग्राम सिंह की घनिष्ठता और यशवंत सिंह के पीछे उस के घर आनेजाने को ले कर यशवंत सिंह की मां कमला के मन में संदेह के बीज उगने लगे. कमला ने इस की शिकायत बेटे से की.

पहले तो यशवंत सिंह ने इस ओर ध्यान नहीं दिया परंतु जब मोहल्ले के लोग संग्राम और प्रतीक्षा के अवैध रिश्तों की चर्चा करने लगे तो यशवंत सिंह ने इस बाबत प्रतीक्षा से जवाब तलब किया.

लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘संग्राम से मैं हंसबोल क्या लेती हूं, मोहल्ले वालों ने उसे मेरी बदचलनी समझ लिया. हम से जलने वाले फिजूल की बातें फैला रहे हैं. रही बात मांजी की तो वह सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर लेती हैं.’’

यशवंत सिंह प्रतीक्षा पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करता था, सो उस ने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और मान लिया कि प्रतीक्षा बदचलन नहीं है. पर मां की बात और मोहल्ले में फैली अफवाह को वह सिरे से नहीं नकार सकता था. शक के आधार पर उस ने संग्राम सिंह को सख्ती से मना कर दिया कि वह उस की गैरहाजिरी में उस के घर न आया करे.

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प्रेम के पंछी जब मिलने को आतुर हों तो वे जमाने की परवाह नहीं करते. मना करने के बाद भी प्रतीक्षा और संग्राम सिंह चोरीछिपे मिलते रहे. जिस दिन मौका मिलता, प्रतीक्षा फोन कर संग्राम सिंह को बुला लेती थी. लेकिन बेहद सतर्कता के बावजूद एक दिन प्रतीक्षा और संग्राम सिंह रंगेहाथ पकड़े गए.

हुआ यह कि उस दिन यशवंत सिंह खाद की बोरी लेने हुसैनगंज बाजार जाने को कह कर घर से निकला. साइकिल से आधा सफर तय करने के बाद उसे याद आया कि वह किसान बही तो लाया ही नहीं. जिस में खाद की मात्रा और रुपयों की एंट्री होनी थी. इस भूल के चलते वह वापस घर जा पहुंचा.

घर का मुख्य दरवाजा बंद था. कुछ देर दरवाजा पीटने पर प्रतीक्षा ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल चुगली कर रहे थे कि वह किसी के साथ हमबिस्तर थी.

प्रतीक्षा को धकेल कर यशवंत घर के अंदर पहुंचा तो वहां संग्राम सिंह मौजूद था. वह जल्दीजल्दी कपडे़ पहन रहा था. चारपाई पर तुड़ामुड़ा बिस्तर कुछ देर पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. यह सब देख कर यशवंत सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह संग्राम सिंह को पकड़ने दौड़ा तो वह भाग गया.

संग्राम सिंह तो भाग गया, पर प्रतीक्षा कहां जाती. यशवंत सिंह बीवी की बेवफाई से इतना आहत हुआ कि उस ने उसे मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ देर बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो वह बड़े भाई रवींद्र के घर चला गया.

वहां उस का सामना मां से हुआ तो वह समझ गई कि जरूर कोई बात है. कमला ने उसे कुरेदा तो यशवंत पहले तो टाल गया लेकिन ज्यादा कुरेदने पर उस ने मां को सब कुछ बता दिया. कमला को बहू के चरित्र पर शक तो था, लेकिन बात यहां तक पहुंच गई होगी, उसे उम्मीद नहीं थी.

यशवंत सिंह के बड़े भाई रवींद्र सिंह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. इज्जत पर आंच आते देख कर वह संग्राम सिंह के मामा फूल सिंह से मिले और उन्हें संग्राम की हरकतों की जानकारी दी. फूल सिंह ने संग्राम की तरफ से माफी मांगते हुए उसे समझाने का भरोसा दिया. इस के बाद फूल सिंह ने संग्राम सिंह को फटकारा और समझाया. संग्राम सिंह ने मामा से वादा किया कि आइंदा वह प्रतीक्षा से नहीं मिलेगा.

लेकिन मामा से किया वादा संग्राम सिंह ज्यादा दिन निभा नहीं पाया. एक शाम जब वह प्रतीक्षा के घर के सामने से गुजर रहा था तो प्रतीक्षा दरवाजे पर दिख गई.

उस ने जब मुसकरा कर इशारे से उसे बुलाया तो संग्राम अपने कदमों को रोक नहीं पाया.

उस समय प्रतीक्षा घर में अकेली थी. पति खेत पर था और बच्चे ननिहाल में. प्रतीक्षा ने यार को उलाहना दिया, ‘‘तुम तो मुझे बिलकुल ही भुला बैठे. अपना सिम भी बदल दिया. मैं ने कितनी बार बात करने की कोशिश की, लेकिन नंबर नहीं लगा. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘ऐसा न कहो भाभी, भला मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. अगर निष्ठुर जमाना बीच में न आया होता तो मैं हमेशा के लिए तुम्हें अपनी बना लेता. रही बात सिम बदलने की तो मैं खुद परेशान हूं. मामा ने मेरा फोन तोड़ दिया था. अब मैं ने दूसरा फोन खरीद लिया है.’’

बातोंबातों में संग्राम और प्रतीक्षा मानव तन की कंदराओं तक पहुंच गए. बदकिस्मती से तभी यशवंत सिंह घर आ गया. उसे घर के अंदर किसी पुरुष के हंसने की आवाज सुनाई दी. गुस्से में दरवाजा धकेल कर वह अंदर घुस गया.

कमरे में संग्राम सिंह को देख कर वह उस पर टूट पड़ा. प्रतीक्षा ने रोकने की कोशिश की तो उस ने संग्राम को छोड़ कर प्रतीक्षा को पीटना शुरू कर दिया. मौका पाते ही संग्राम भाग निकला. उस रोज यशवंत सिंह ने प्रतीक्षा की इतनी पिटाई की कि उस के बदन पर स्याह निशान उभर आए. उस का चलनाफिरना भी दूभर हो गया.

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रोजरोज की टोकाटाकी और पति की बेरहम पिटाई से प्रतीक्षा यशवंत सिंह से नफरत करने लगी. उस ने घर का कामकाज भी छोड़ दिया. पतिपत्नी के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के लिए कमला ने बहूबेटे को समझाया, लेकिन वह दोनों के बीच का तनाव कम करने में नाकाम रही.

जब कई दिनों तक प्रतीक्षा घर से बाहर नहीं निकली तो एक रोज दोपहर के वक्त संग्राम सिंह प्रतीक्षा से मिलने उस के घर पहुंच गया.

उसे देखते ही प्रतीक्षा उस पर बरस पड़ी, ‘‘अब क्यों आए हो यहां? उस दिन मुझे पिटता देख नामर्दों की तरह भाग गए. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘भाभी, मैं क्या करता, तुम्हीं बताओ?’’

‘‘जो तुम्हारी चाहत को पीट रहा था, उस का टेंटुआ दबा देते.’’ प्रतीक्षा सिसक पड़ी, ‘‘जानते हो उस कमीने ने मेरे जिस्म पर कितने निशान बना दिए हैं. ये देखो.’’ कहते हुए प्रतीक्षा ने अपनी पीठ और जांघ उघाड़ दी. शरीर पर पिटाई के लाललाल निशान साफ दिख रहे थे.

प्रतीक्षा संग्राम से लिपट गई, ‘‘संग्राम, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम्हारी खातिर मुझे बहुत कुछ सुनना भी पड़ता है और पिटना भी पड़ता है. वह तुम्हें ठिकाने लगाने की सोच रहा है. इस से पहले कि दुश्मन वार करे, तुम उस पर वार कर दो. दिखा दो कि तुम असली मर्द हो.’’

प्रतीक्षा के आंसुओं ने संग्राम सिंह का दिल दहला दिया. उस ने आव देखा न ताव, प्रतीक्षा से वादा कर दिया कि वह उस की मांग से सिंदूर मिटा कर रहेगा. संग्राम के इस वादे से प्रतीक्षा उस के सीने से लग गई.

इस के बाद उसी रोज दोनों ने एक खतरनाक योजना बना ली. योजना के तहत संग्राम सिंह हुसैनगंज गया और बाजार से कीटनाशक पाउडर (जहरीला पदार्थ) खरीद लाया और प्रतीक्षा को थमा दिया.

21 मार्च, 2020 की रात 8 बजे प्रतीक्षा ने खाना बनाया. यशवंत सिंह खाना खाने बैठा तो प्रतीक्षा ने उस की दाल में जहरीला पाउडर मिला दिया. खाना खाने के कुछ देर बाद यशवंत सिंह मूर्छित हो कर चारपाई पर पसर गया. उस के बाद प्रतीक्षा ने फोन कर संग्राम सिंह को घर बुला लिया. योजना के तहत वह अपने साथ तेज धार वाली कुल्हाड़ी लाया था.

प्रतीक्षा और संग्राम सिंह उस कमरे में पहुंचे, जहां यशवंत सिंह बेसुध पड़ा था. संग्राम सिंह ने एक नजर यशवंत पर डाली और फिर उस की गरदन पर कुल्हाड़ी का भरपूर प्रहार कर दिया. पहले ही वार से उस की आधी गरदन कट गई. खून की धार बह निकली और वह छटपटाने लगा.

उसी समय प्रतीक्षा ने उस के पैर दबोच लिए और संग्राम ने उस के शरीर पर कुल्हाड़ी से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद वह मय कुल्हाड़ी वहां से फरार हो गया. अपना सुहाग मिटाने के बाद प्रतीक्षा ने रात 10 बजे शोर मचाया तो उस के जेठजेठानी, सास और पड़ोसी आ गए.

प्रतीक्षा ने सब को बताया कि बदमाश घर में घुस आए और उन्होंने उस के पति यशवंत सिंह की हत्या कर दी. उस के बाद प्रतीक्षा ने अपने मोबाइल से डायल 112 को सूचना दी.

सूचना पाते ही पुलिस आ गई. चूंकि मामला हत्या का था तो डायल 112 पुलिस ने सूचना थाना हुसैनगंज पुलिस को दे दी.

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थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांचपड़ताल शुरू की तो अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

23 मार्च, 2020 को थाना हुसैनगंज पुलिस ने अभियुक्ता प्रतीक्षा सिंह और अभियुक्त संग्राम सिंह को फतेहपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाहत का संग्राम : भाग 2

शादी के बाद प्रतीक्षा यशवंत सिंह की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. आते ही उस ने घर संभाल लिया. यशवंत सिंह जहां सुंदर पत्नी पा कर खुश था, वहीं उस के मांबाप इस बात से खुश थे कि बेटे का घर बस गया. प्रतीक्षा और यशवंत सिंह का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीतने लगा. बीतते समय के साथ प्रतीक्षा 2 बेटों अजस और तेजस की मां बन गई.

प्रतीक्षा बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. विवाह के बाद उस के स्वभाव में कामुकता भी शामिल हो गई थी. जब तक यशवंत सिंह में जोश रहा, वह प्रतीक्षा की कामनाओं को दुलारता रहा. लेकिन जब बढ़ती उम्र के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं तो उस के जोश में भी कमी आ गई. जबकि प्रतीक्षा की कामुकता बेलगाम होने लगी थी.

अब यशवंत सिंह की भोगविलास में कोई खास रुचि नहीं रह गई थी. लिहाजा प्रतीक्षा ने भी हालात से समझौता कर लिया. बच्चों को संभालना, उन की देखभाल करना और घरगृहस्थी के कामों में जुटे रहना उस की दिनचर्या में शामिल हो गए.

पिछले कुछ समय से प्रतीक्षा महसूस कर रही थी कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है, उस का जीवन भी ठीक से बीत रहा है. लेकिन अंदर से वह उत्साहहीन हो गई है. मन में न कोई उमंग है न कोई तरंग. मस्ती नाम की चीज तो उस के जीवन में मानो बची ही नहीं थी.

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दूसरी ओर प्रतीक्षा जब मायके जाती और अपनी सहेली माया को देखती तो सोचती कि माया भी 2 बच्चों की मां है. घर के सारे काम भी उसे ही करने पड़ते हैं. फिर भी हर वक्त उस के होंठों पर मुसकान सजी रहती है. बढ़ती उम्र के साथ माया की खूबसूरती घटने के बजाए बढ़ती जा रही थी.

प्रतीक्षा ने एकाध बार माया से दिनोंदिन निखरती उस की खूबसूरती, सेहत और जवानी के बारे में पूछा भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती. लेकिन अगली बार जब वह मायके गई और माया से मिली तो उस ने अपनी चुस्तीफुरती का राज बता दिया.

बातचीत के दौरान माया ने बताया कि जिस औरत की जिस्म की भूख शांत नहीं होती, वह कांतिहीन हो जाती है. शायद तुम्हारी भी यही समस्या है. तुम्हारा पति तुम्हारा साथ नहीं देता क्या? मेरा पति भी तुम्हारे जैसा था, पर मैं उस के सहारे नहीं रही. मैं ने खुद ही अपना इंतजाम कर लिया, जिस से आज मैं बेहद खुश हूं.

माया प्रतीक्षा के गाल पर चिकोटी काटते हुए बोली, ‘‘प्रतीक्षा, मेरी सलाह है कि जिंदगी को अगर मस्ती से भरना है तो खुद ही कुछ करना होगा.

तुम्हारी ससुराल में मोहल्ले पड़ोस में कोई न कोई तो ऐसा होगा, जिस की नजर तुम पर, मेरा मतलब तुम्हारी कोमल काया पर हो. उसे देखो, परखो और उसी से दिल के तार जोड़ लो. तुम भी मस्त हो जाओगी.’’

माया की सलाह प्रतीक्षा को मन भाई. मायके से ससुराल लौट कर माया की बातें उस के दिलोदिमाग को मथती रहीं. रात को सोने के लिए प्रतीक्षा बिस्तर पर लेटती उस की आंखों में नींद उतरती थी. वह सोचने लगी, माया ठीक कहती है सेहत, जवानी और खूबसूरती का फार्मूला उसे भी अपने जीवन में अपनाना चाहिए, अन्यथा समय से पहले ही बूढ़ी हो जाएगी.

जीवन में उमंग भरने के लिए प्रतीक्षा का मन पतन की ओर अग्रसर हुआ तो उसे माया की यह बात भी याद आई कि मोहल्ले पड़ोस में कोई तो होगा, जो तुम पर दिल रखता होगा. प्रतीक्षा का मन इसी दिशा में सोचने लगा. इस के बाद उसे पहला व आखिरी नाम याद आया, वह संग्राम सिंह का था.

संग्राम सिंह मूलरूप से फतेहपुर जिले के थाना मलवां में आने वाले गांव नसीरपुर बेलवारा का रहने वाला था. बचपन से ही वह चांदपुर में अपने मामा के घर रहता था. मामा की कोई संतान नहीं थी.

संग्राम सिंह 25-26 साल का गबरू जवान था, उस की शादी नहीं हुई थी. उस का घर प्रतीक्षा के घर से कुछ ही दूरी पर था. संग्राम सिंह किसान तो था ही, ट्यूबवेल का मैकेनिक भी था.

जब कभी यशवंत सिंह का ट्यूबवेल खराब हो जाता था तब ठीक करने के लिए उसे ही बुलाया जाता था. मोहल्ले के नाते संग्राम सिंह यशवंत सिंह को भैया और प्रतीक्षा को भाभी कहता था.

संग्राम सिंह का प्रतीक्षा के घर आनाजाना था. वह आता तो था यशवंत सिंह से मिलने, लेकिन उस की नजरें प्रतीक्षा के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थीं. चायपानी देने के दौरान प्रतीक्षा की नजर संग्राम सिंह से टकराती तो वह मुसकरा देता था.

इस के अलावा वह प्रतीक्षा के घर के आसपास चक्कर भी लगाया करता था. प्रतीक्षा से आमनासामना होता तो वह कहता, ‘‘भाभी, कोई काम हो तो मुझे बताना.’’ पुरुष की नीयत को औरत बहुत जल्दी पढ़ लेती है. प्रतीक्षा ने भी संग्राम सिंह की आंखों में अजीब सी प्यास देखी थी. उस ने उस की हरकतों पर गौर किया तो उसे लगा कि संग्राम मन ही मन उसे चाहता है. संग्राम सिंह की अनकही चाहत से प्रतीक्षा को अजीब से सुख की अनुभूति हुई.

उसे लगा कि संग्राम कुंवारा है, मिल जाए तो उस के जीवन में बहार ला सकता है. अपने जीवन में बहार लाने के लिए प्रतीक्षा ने संग्राम को अपने प्रेम जाल में फंसाने का फैसला कर लिया.

संग्राम सिंह अकसर दोपहर के समय प्रतीक्षा के घर वाली गली का चक्कर लगाता था. दूसरे दिन प्रतीक्षा घर का कामकाज निपटा कर दरवाजे पर जा कर खड़ी हो गई. थोड़ी देर में संग्राम आता दिखाई दिया.

प्रतीक्षा को देख कर संग्राम के होंठ हिले तो प्रतीक्षा के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. संग्राम पास आया तो उस ने रोज की तरह पूछा, ‘‘भाभी, कोई काम तो नहीं है?’’

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‘‘है न,’’ प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘भीतर आओ तो बताऊं.’’

संग्राम प्रतीक्षा के पीछेपीछे भीतर आ कर चारपाई पर बैठ गया. प्रतीक्षा ने उस की आंखों में देखते हुए सवाल किया, ‘‘संग्राम, तुम मुझे देख कर मुसकराते रहते हो, क्यों?’’

संग्राम सिंह सकपका गया, मानो चोरी पकड़ी गई हो. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं भाभी, ऐसा तो कुछ नहीं है. आप को भ्रम हुआ होगा.’’

प्रतीक्षा चेहरे पर मुसकान बिखेरते हुए बोली, ‘‘प्यार करते हो और झूठ भी बोलते हो. अगर तुम यों ही झूठ बोलते रहे तो प्यार का सफर कैसे पूरा करोगे?’’

संग्राम की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘भाभी, क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘करती तो नहीं थी, पर अचानक ही प्यार हो गया.’’

‘‘ओह भाभी, आप कितनी अच्छी हो.’’ संग्राम ने चारपाई से उठ कर प्रतीक्षा को गले से लगा लिया.

संग्राम सिंह इतनी जल्दी मुट्ठी में आ जाएगा, प्रतीक्षा ने कल्पना तक नहीं की थी. वह जान गई कि संग्राम के मन में नारी तन की चाह है. प्रतीक्षा संग्राम से जिस्म की भूख मिटाना चाहती थी. उस से जिंदगी भर नाता जोड़े रखने का उस का कोई इरादा नहीं था.

मन की मुराद पूरी होते देख प्रतीक्षा मन ही मन खुश हुई. लेकिन उसे अपने से अलग करते हुए बोली, ‘‘संग्राम, यह क्या गजब कर रहे हो, दरवाजा खुला है. कोई आ गया तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. छोड़ो मुझे.’’

‘‘छोड़ दूंगा भाभी, लेकिन पहले वादा करो कि मेरी मुराद पूरी करोगी.’’

‘‘रात को आ जाना, खेतों पर सिंचाई का काम चल रहा है. तुम्हारे भैया रात को ट्यूबवेल पर होंगे. अभी छोड़ो.’’

खुले दरवाजे से सचमुच कोई कभी भी आ सकता था. फिर प्रतीक्षा उसे रात को आने का निमंत्रण दे ही रही थी, इसलिए संग्राम ने उसे छोड़ दिया और मुसकराते हुए चला गया.

रात 10 बजे यशवंत सिंह सिंचाई के लिए खेतों पर चला गया. उस के जाने के बाद संग्राम सिंह आ गया. प्रतीक्षा उस का ही इंतजार कर रही थी. यशवंत सिंह था नहीं और बच्चे सो चुके थे. इसलिए प्रतीक्षा निश्चिंत थी. दरवाजे पर दस्तक सुनते ही उस ने दबे पांव उठ कर दरवाजा खोल दिया. संग्राम अंदर आ गया तो वह उसे दूसरे कमरे में ले गई.

देह मिलन के लिए दोनों ही बेताब थे. कमरे में पहुंचते ही दोनों एकदूसरे से लिपट गए. संग्राम सिंह ने प्रतीक्षा के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ शुरू की तो प्रतीक्षा की प्यासी देह कामनाओं की आंच से तप कर पिघलने लगी. उस के उत्साहवर्धन ने खेल को और भी रोमांचक बना दिया. बरसों बाद प्रतीक्षा का तनमन जम कर भीगा था. उस ने तय कर लिया कि अब संग्राम का दामन कभी नहीं छोड़ेगी.

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उस रात के बाद संग्राम और प्रतीक्षा एकदूसरे के पूरक बन गए. पहले तो प्रतीक्षा संग्राम को रात में ही बुलाती थी, लेकिन फिर वह दिन में भी आने लगा. जिस दिन यशवंत सिंह को बाजार से सामान लेने जाना होता, उस दिन प्रतीक्षा फोन कर संग्राम को घर बुला लेती. मिलन कर संग्राम चला जाता. बाजार से वह प्रतीक्षा का सामान भी ले आता था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

चाहत का संग्राम : भाग 1

21 मार्च, 2020 की रात. 11 बजे उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के थाना हुसैनगंज को सूचना मिली कि चांदपुर गांव में एक युवक की हत्या कर दी गई है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने वारदात की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी और पुलिस टीम के साथ चांदपुर पहुंच गए.

पता चला किसानी करने वाले बाबू सिंह के बेटे यशवंत सिंह की हत्या हुई है. जब पुलिस पहुंची तब बाबू सिंह के घर के बाहर भीड़ जमा थी.

राकेश कुमार भीड़ को हटा कर उस जगह पहुंचे, जहां यशवंत सिंह की लाश पड़ी थी. घर के अंदर मृतक की पत्नी प्रतीक्षा सिंह मौजूद थी और किचन में बरतन साफ कर रही थी. पुलिस को देख कर वह रोनेपीटने लगी.

थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो दहल उठे. यशवंत सिंह की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के गले को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. शरीर के अन्य हिस्सों पर भी घाव थे. मृतक के मुंह से झाग भी निकला था, जिस से लग रहा था कि हत्या से पहले उसे कोई जहरीला पदार्थ दिया गया होगा. मृतक की उम्र 40 साल के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट था.

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राकेश कुमार सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत वर्मा, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ (सिटी) कपिलदेव मिश्रा भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को बुलवा लिया और खुद घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम भी साक्ष्य जुटाने में लग गई.

घटना के समय मृतक की पत्नी प्रतीक्षा सिंह घर में मौजूद थी. एसपी प्रशांत वर्मा ने उस से पूछताछ की. प्रतीक्षा ने बताया कि रात 9 बजे के आसपास 2 बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में दाखिल हुए. एक बदमाश के हाथ में कुल्हाड़ी थी, दोनों मुंह ढके थे. पति ने लूटपाट का विरोध किया तो बदमाशों ने कुल्हाड़ी से वार कर पति को मौत के घाट उतार दिया.

हत्या करने के बाद दोनों भाग गए. उन के भाग जाने के बाद उस ने शोर मचाया तो घर के बाहर भीड़ जुट गई. इस के बाद उस ने मोबाइल से 112 नंबर पर फोन कर के पुलिस को सूचना दे दी थी.

घटनास्थल पर मृतक यशवंत सिंह का बड़ा भाई रवींद्र सिंह मौजूद था. पुलिस अधिकारियों ने उस से घटना के संबंध में जानकारी चाही तो वह फूटफूट कर रोते हुए बोला, ‘‘सर, मेरा छोटा भाई यशवंत सीधासादा किसान था. करीब 5 साल पहले उस ने प्रतीक्षा से शादी की थी.

‘‘प्रतीक्षा चरित्रहीन औरत है. उस के नाजायज संबंध संग्राम सिंह से हैं. संग्राम सिंह नसीरपुर बेलवारा गांव का रहने वाला है, लेकिन यहां चांदपुर में उस का ननिहाल है, इसलिए वह इसी गांव में रहता है और खेती करता है. यशवंत सिंह प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के नाजायज रिश्तों का विरोध करता था. शक है, प्रतीक्षा सिंह ने अपने प्रेमी संग्राम के साथ मिल कर यशवंत की हत्या कराई है.’’

बेटे के शव के पास मां कमला गुमसुम बैठी थीं. पुलिस अधिकारियों ने जब उसे कुरेदा तो दर्द आंसुओं के रूप में बह निकला, ‘‘साहब, बहू बदचलन है. मेरे बेटे को खा गई. यशवंत ने कई बार प्रतीक्षा की बदचलनी की शिकायत की थी, तब मैं ने उसे समझाया भी था. लेकिन वह नहीं मानी.’’

इन जानकारियों के बाद प्रतीक्षा सिंह संदेह के दायरे में आ गई. यशवंत सिंह की हत्या लूट के लिए नहीं हुई थी. क्योंकि घर का सारा सामान व्यवस्थित था. बक्सों के ताले भी नहीं टूटे थे. अगर हत्या लूट के इरादे से होती तो घर का सारा सामान बिखरा मिला होता, बक्सों के ताले टूटे पड़े होते, नकदी जेवर गायब होते.

पुलिस अधिकारी समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है. अत: उन्होंने संग्राम सिंह को पकड़ने के लिए उस के घर छापा मारा, लेकिन वह घर पर नहीं मिला.

उस की सुरागसी के लिए पुलिस अधिकारियों ने अपने मुखबिर लगा दिए. आला कत्ल (कुल्हाड़ी) बरामद करने के लिए सीओ कपिलदेव मिश्रा ने प्रतीक्षा सिंह के घर की तलाशी कराई.

तलाशी के दौरान पुलिस को रबड़ के दस्ताने मिले, जिन पर खून लगा था. ये दस्ताने वैसे ही थे, जिन्हें पहन कर डाक्टर औपरेशन करते हैं. उन्हें पुलिस ने सबूत के तौर पर सुरक्षित रख लिया.

सबूत हाथ लगते ही पुलिस अधिकारियों ने प्रतीक्षा सिंह को हिरासत में ले लिया. उस का मोबाइल फोन भी पुलिस ने ले लिया. इस के बाद यशवंत की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दी गई.

प्रतीक्षा सिंह को पुलिस कस्टडी में थाना हुसैनगंज लाया गया. एसपी प्रशांत वर्मा ने उस के मोबाइल फोन को खंगाला तो उस में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के कई अश्लील फोटो मिले. फोन में संग्राम सिंह का मोबाइल नंबर भी सेव था. उस ने घटना के पहले संग्राम सिंह से बात भी की थी. इन सबूतों से स्पष्ट हो गया कि संग्राम सिंह से प्रतीक्षा सिंह के नाजायज संबंध थे. दोनों ने मिल कर यशवंत की हत्या की थी.

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एसपी ने प्रतीक्षा सिंह से यशवंत सिंह की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गई. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गई और पति की हत्या कर जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद पुलिस ने प्रतीक्षा के माध्यम से संग्राम सिंह को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया.

प्रतीक्षा सिंह के मोबाइल में संग्राम सिंह का नंबर सेव था. प्रशांत वर्मा ने प्रतीक्षा की बात संग्राम सिंह से कराई, जिस से पता चला कि वह चांदपुर गांव के बाहर पंडितजी के ट्यूबवेल की कोठरी में छिपा है और सवेरा होते ही कहीं सुरक्षित जगह पर चला जाएगा.

यह पता चलते ही एसपी प्रशांत वर्मा के आदेश पर थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने सुबह 4 बजे छापा मारा और संग्राम सिंह को चांदपुर गांव के बाहर पंडितजी की ट्यूबवेल की कोठरी से मय आलाकत्ल गिरफ्तार कर लिया और उसे ले कर थाने लौट आए.

थाने पर एसपी प्रशांत वर्मा ने संग्राम सिंह से यशवंत सिंह की हत्या के संबंध में पूछा तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

संग्राम सिंह ने बताया कि यशवंत सिंह की पत्नी प्रतीक्षा के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उस का पति इस रिश्ते का विरोध करता था. प्रतीक्षा के उकसाने पर उस ने यशवंत सिंह की हत्या की थी.

चूंकि प्रतीक्षा सिंह और उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई थी. अत: थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने मृतक के भाई रवींद्र सिंह को वादी बना कर भादंसं की धारा 302, 120बी के तहत प्रतीक्षा सिंह और संग्राम सिंह के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में वासना में अंधी एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने खुद अपने हाथों से अपना सुहाग मिटा दिया.

फतेहपुर शहर के थाना सदर कोतवाली के क्षेत्र में एक मोहल्ला है हरिहरगंज. चंद्रभान सिंह इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां थीं प्रतीक्षा, अंजू और एक बेटा रूपेश. चंद्रभान सिंह बिजली विभाग में काम करता था. उस के मासिक वेतन से परिवार का भरणपोषण होता था. वह सीधासादा मेहनतकश इंसान था. चंद्रभान की बड़ी बेटी प्रतीक्षा 20 साल की हो चुकी थी. वैसे तो प्रतीक्षा के चाहने वाले कई थे, पर जिस पर उस की नजर थी वह पड़ोस में रहने वाला युवक था.

एक रोज जब पड़ोसी युवक ने प्रतीक्षा से प्यार का इजहार किया तो प्रतीक्षा ने उस की चाहत स्वीकार कर ली. फलस्वरूप प्रतीक्षा और वह युवक प्यार की कश्ती में सवार हो गए. चंद्रभान को जब बेटी की करतूत पता चली तो उस ने उस के बहकते कदमों को रोकने के लिए उस की शादी कर देने का फैसला कर लिया.

चंद्रभान सिंह ने प्रतीक्षा के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी. उस की तलाश यशवंत सिंह पर जा कर खत्म हुई. यशवंत सिंह के पिता बाबू सिंह फतेहपुर जिले के हुसैनगंज थानाक्षेत्र के गांव चांदपुर के रहने वाले थे.

बाबू सिंह के परिवार में पत्नी कमला के अलावा 2 बेटे रवींद्र सिंह और यशवंत सिंह थे. उन के दोनों बेटों की शादियां हो चुकी थीं और दोनों भाई अलगअलग मकान में रहते थे.

दोनों के बीच जमीनजायदाद का बंटवारा भी हो चुका था. लेकिन शादी के 3 साल बाद यशवंत सिंह की पत्नी का निधन हो गया था. बाबू सिंह किसी तरह बेटे का घर बसाना चाहते थे. चंद्रभान जब अपनी बेटी का रिश्ता ले कर आए तो उन्होंने खुशीखुशी रिश्ता स्वीकार कर लिया.

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एक तो यशवंत सिंह दुहेजवा था, दूसरे वह प्रतीक्षा से 8 साल बड़ा भी था, लेकिन शरीर से गठीला और दिखने में स्मार्ट था. चंद्रभान ने यशवंत सिंह को अपनी बेटी प्रतीक्षा के लिए पसंद कर लिया. रिश्ता तय होने के बाद सन 2015 के जनवरी माह की 5 तारीख को प्रतीक्षा का विवाह यशवंत सिंह के साथ हो गया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर

नशे की लत ने बनाया हत्यारा

समाज में फैली क‌ई बुराइयों की लत लोगों में इस कदर हावी है कि उन्हें अच्छे बुरे कामों में अंतर नहीं दिखता. जुआं,सट्टा और लाटरी का खेल हो या शराब, गांजा, स्मैक का नशा हो, इनकी लत जिसे पड़ जाए, उसे इंसान से शैतान बनने में देर नहीं लगती. नशे के आदी हो चुके लोगों को यदि नशा करने नहीं मिलता,तो उसे पाने के लिए वे किसी भी हद तक चले जाते हैं. नशे की लत का शिकार हुए लोगों को अपने घर परिवार या रिश्तों की  कोई फ़िक्र नहीं होती.नशे के लिए अपने घर के वर्तन और बहु वेटियों की इज्जत तक नीलाम कर देते हैं.

एक यैसी ही घटना हाल ही में मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में  हुई है, जिसमें नशे की आदत के चलते कर्ज में डूबे एक जीजा ने अपने सगे साले का कत्ल कर दिया.

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नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर  छोटे से गांव भैंसा पाला में रहने वाले किसान सुरेश पटेल के पास भी 20 एकड़ ज़मीन है. अपनी जमीन पर गन्ना,धान और गेहूं जैसी फसलों का उत्पादन करने वाले सुरेश की माली हालत भी अच्छी है. सुरेश के छोटे से परिवार में  28 साल का  एक लड़का विनय और एक 25 साल की वेटी का बिबाह आज से 4 साल पहले पास के ही नबलगांव के प्रदीप कुमार लोधी के साथ हुआ था. 30 साल का प्रदीप ग्राम पंचायत में मनरेगा योजना के तहत  रोजगार सहायक की नौकरी करता था.लेकिन शराब पीने ,  और जुआं खेलने के शौक की वजह से अपनी महिने भर की पगार उसे कम पड़ने लगी थी.  प्रदीप के जब बच्चे  हो गये तो यैसे में उसकी पत्नी उसे शराब छोड़ने और दो पैसे बचाकर रखने की नसीहत देने लगी .,लेकिन प्रदीप शराब और कबाब को छोड़ने तैयार नहीं था.

गरीब मजदूरों को काम देने के लिए चलने वाली मनरेगा योजना की निगरानी के लिए नियुक्त प्रदीप ने करीब एक साल पहले फर्जी अगूंठा लगाकर मजदूरों की लाखों रुपए की मजदूरी हड़प ली थी . गांव के मजदूरों ने  इसकी शिकायत जनपद और जिला पंचायत में कर दी .जिला पंचायत के अधिकारियों ने जांच में प्रदीप को सरकारी रकम के गबन के आरोप में नौकरी से निकाल दिया. सरकारी नौकरी से निकाले जाने के बाद वह परेशान रहने लगा.

भैंसा पाला  गांव से महज 5 किमी दूर नबलगांव में रहने वाले प्रदीप लोधी के पिता एक छोटे से किसान है,जिनके पास 5-6 एकड़ जमीन  है.रोजगार सहायक के पद पर कार्यरत प्रदीप लोधी पर गबन का मामला कायम होने से जब नौकरी हाथ से चली गयी तो शराब और जुआं का शौकीन प्रदीप गांव के लोगों से कर्ज लेकर अपने शौक पूरे करने लगा. नौकरी से बहाली के लिए गबन की रकम भरने के लिए लाखों रुपए की उसे जरूरत थी. वह रात दिन इसी उधेड़बुन में लगा रहता कि  पैसों का इंतजाम किस तरह करे और नौकरी से बहाल हो जाए. एक दिन अपने दोस्त पवन के साथ शराब पी रहे प्रदीप  के शातिर दिमाग में एक आइडिया आया.

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प्रदीप का साला विनय ग्राम भैसा से लगी करीव 20 एकड कृषि भूमि का अकेला मालिक था. जिसकी कीमत आज करोड़ों रुपए है. प्रदीप ने सोचा कि यदि विनय को रास्ते से हटा दिया जाए, तो  ससुराल की 20 एकड़ जमीन में से आधा हिस्से की 10 एकड़ जमीन उसकी पत्नी को मिल  जाएगी और उसकी तंगहाली हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जायेगी. प्रदीप ने इस काम में मदद के लिए अपने मित्र पवन को तैयार कर लिया . पवन नबलगांव में ही एक छोटी सी दुकान चलाता था. लेकिन मंहगे मोबाइल और शराब ,कबाब के शौकीन पवन के शौक उस दुकान की आमदनी से पूरे नहीं हो रहे थे. प्रदीप ने  पवन सेन को 20 लाख रूपये देने का लालच दिया तो वह इस काम के लिए जल्द ही तैयार हो गया. दोनों ने उसी रात विनय की  हत्या करने की प्लानिंग बनाई. पहले तो पवन ने अपने एक परिचित से  एक देशी कट्टा (पिस्टल)का जुगाड  किया.फिर 22 जुलाई 2020 को अचानक प्रदीप ने साले विनय को फोन करके बताया कि आज   पार्टी होगी ,तुम अपने खेत पर मिलना . चूंकि इसके पहले भी इस तरह की पार्टियां होती रहती थी, इसलिए विनय ने भी जीजा की खातिरदारी के लिए हामी भर दी.घटना वाले दिन शाम को प्रदीप और पवन मोटरसाइकिल पर सवार होकर नरसिंहपुर गये, जहां  शराब की दुकान से दो  बोतल और मीट मार्केट से मटन लेकर सीधे विनय के खेत पर बने नलकूप पर पहुंच गये.

योजना के अनुसार वहां   शराब  पीने और मीट खाने के बाद बातों के दौरान ही प्रदीप ने पहले से लोड किये गये देशी कट्टे से  गोली चला दी,जो विनय को नाक और आंख के बीच लगी.

गोली लगते ही कुछ समय वह तड़फड़ाता रहा. जब दोनों को यकीन हो गया कि विनय की मौत हो चुकी है,तो दोनों रात के अंधेरे में  ही मोटर साइकिल से अपने गांव बापस आ गये.

सुबह जब विनय की मौत की खबर ससुराल से मिली तो पत्नी को लेकर ससुराल पहुंच गया. प्रदीप ससुराल में विनय की मौत पर दुखी होने का ढोंग करता रहा और पोस्ट मार्टम से लेकर अंतिम क्रिया कर्म में शामिल रहकर पुलिस की गतिविधियों पर नजर भी रखता रहा.

कहते हैं कि कानून के लंबे हाथ अपराधी को पकड़ ही लेते हैं , इसलिए प्रदीप भी पुलिस की निगाह से बच न सका.पुलिस को गांव वालों से पूछताछ में पता चला कि वह घटना वाले दिन विनय के खेत पर दिखा था.

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विनय की मौत के बाद  प्रदीप अपनी पत्नी के साथ अपनी ससुराल में ही मौजूद था.इसलिए पुलिस ने जब उससे पूछताछ की तो पहले तो वह पूरी घटना से अनजान बना रहा.लेकिन  पुलिस थाने में बुलाकर  जब प्रदीप और पवन से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने विनय की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया . जमीन हड़पने और रूपए पैसों के लालच में अपने इकलौते साले  विनय की हत्या  का मास्टर माइंड विनय की बहिन का सुहाग प्रदीप लोधी ही निकला. जिसने  भी इस खुलासे को सुना, वह अबाक  रह गया.  एक भाई ने जिस बहिन को हंसी खुशी  बैंण्ड-बाजों के साथ अपने पति के घर विदा किया था, उसी पति ने अपनी पत्नी के भाई को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला कर  दिया.

यह कहानी बताती है कि शराब और कबाब के शौक ने किस तरह दो युवकों को अपराधी बना दिया.      एक  शराबी पति के द्वारा  अपने ससुराल की जमीन पाने के लिए अपने इकलौते साले की हत्या कर दी ग‌ई .वह भी उस समय जब कि महज कुछ दिन बाद भाई बहिन के पवित्र रिश्ते को रेशम की डोर से कई जन्मों तक बांधे रखने के लिए बहिन अपनी रक्षा की कामना भाई से करते हुऐ उसे राखी बांधती है और इस रेशम की डोर से अपनी रक्षा की दीवार को मजबूत करने का भरोसा भाई से रखती है. लेकिन रक्षाबंधन आने के पहले ही लोभ की सारी हदें पार करते हुए अपनी गंदी हसरतों, नशा की लतों को पूरा करने के लिए खुद अपनी ही पत्नी के इकलौते भाई  का ही खून कर दिया.

आज भी समाज का एक बड़ा तबका दिन रात हाड़ तोड़ मेहनत,मजदूरी करके रूपए तो कमाता है, लेकिन घर पहुंचने के पहले आधे रूपयों की शराब पी जाता है. घर में बीबी , बच्चे इंतजार करते हैं कि परिवार का मुखिया राशन पानी लेकर आयेगा, लेकिन नशे में धुत ये मुखिया घर जाकर बीबी , बच्चों के साथ मारपीट करता है. नशे की लत में पड़े हुए यैसे लोग जघन्य अपराध करके जेल पहुंच जाते हैं और बीबी बच्चों को यतीम होकर रहना पड़ता है.

दरअसल यैसे लोगों को नशा परोसने में सरकार चलाने वाले नेताओं का योगदान कम नहीं है. चुनाव के बक्त वोट हासिल करने के लिए इन्हें मुफ्त में शराब , कबाब और रूपए बांटने वाले नेता ही इन्हें आगे के लिए मुफ्त खोरी की लत लगा देते हैं.

आज भी समाज में कुछ लोग जो नशे की लत से दूर हैं,वे अपना जीवन खुशियों के संग जी रहे हैं.नशे का जहर पूरे परिवार के जीवन को तहस नहस कर देता है और पूरी उम्र रुपए पैसों की तंगहाली झेलना पड़ती है.

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एक डीएसपी की कलंक कथा

एक डीएसपी की कलंक कथा : भाग 3

जांच एजेंसियां उस की संपत्तियों का पूरा ब्यौरा जुटा रही हैं. इस से जुड़े दस्तावेज भी खंगाल रही हैं. आईबी, रा और मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) देविंदर सिंह से सघन पूछताछ कर आतंकियों के साथ उस के कनेक्शन की तह में जाने का प्रयास कर रही हैं.

माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में आतंकियों के साथ गठजोड़ के उस के कई राज सामने आ सकते हैं. पुलिस अब यह पता लगाने की कोशिश में है कि जब आतंकी नावीद ने प्रवासी मजदूरों की हत्या की थी तो क्या देविंदर को इस की जानकारी थी. चूंकि पुलवामा हमले के आसपास भी देविंदर पुलवामा में तैनात था, ऐसे में जांच एजेंसियां अब इन मामलों में भी उस की भूमिका का पता लगाने में जुट गई हैं.

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देविंदर सिंह की गिरफ्तारी से खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी भी सामने आ रही है. दरअसल, सवाल उठ रहे हैं कि जब नौकरी के शुरुआती दौर से ही देविंदर सिंह आपराधिक और संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाया गया था तो वह लगातार नौकरी क्यों करता रहा और कैसे वह प्रमोशन पा कर डीएसपी जैसे ओहदे तक पहुंच गया. सब से बड़ी चौंकाने वाली बात तो यह है कि करीब 18 साल पहले संसद पर हमले के आरोपी आतंकी अफजल गुरु ने जब डीएसपी  देविंदर सिंह का नाम लिया था, तो देश की किसी भी जांच एजेंसी ने देविंदर के साथ अफजल गुरु के कनेक्शन की जांच क्यों नहीं की?

दिल्ली में संसद पर 13 दिसंबर 2001 को आतंकी हमला हुआ था. इस हमले को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के खूंखार आतंकियों ने अंजाम दिया था. इस आतंकी हमले में कुल 14 लोगों की जान गई थी. हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी की सजा दी गई थी.

संसद हमले के आरोप में फांसी की सजा पाए अफजल गुरु फांसी दिए जाने से पहले 2013 में अपने वकील सुशील कुमार को एक लंबा पत्र लिखा था, जिस में उस ने देविंदर सिंह पर गंभीर आरोप लगा कर उसे आतंकवादियों का संरक्षक बताया था. खत में अफजल ने लिखा था कि जम्मूकश्मीर पुलिस के स्पैशल टास्क फोर्स के डीएसपी देविंदर सिंह के कहने पर ही उस ने संसद पर हुए हमले के आरोपी आतंकी मोहम्मद की मदद की थी, जो हमले के दौरान मारा गया था.

अफजल गुरु ने अपने ट्रायल के दौरान हमेशा माना कि वह मोहम्मद के संपर्क में था. एक फोन के जरिए जो मोहम्मद के शरीर के साथ मिला था. अफजल गुरु ने कहा था कि वह फोन भी स्पैशल टास्क फोर्स ने ही दिया था. अपने वकील को लिखे खत में अफजल गुरु ने लिखा था कि जम्मूकश्मीर के डीएसपी देविंदर सिंह ने उस का टौर्चर किया, उस से पैसे वसूले और संसद हमले में शामिल एक आतंकी मोहम्मद से उस की जानपहचान करवाई. अफजल गुरु ने खत में लिखा था कि देविंदर सिंह के कहने पर ही उस ने आतंकियों के लिए दिल्ली में किराए पर घर लिया और कार का इंतजाम करवाया.

लेकिन हैरानी की बात है कि उस वक्त देविंदर सिंह के ऊपर जांच नहीं बिठाई गई. लेकिन अब जबकि देविंदर सिंह आतंकवादियों को पनाह देने के आरोप में गिरफ्तार हुआ है तो खुफिया एजेंसियों के लिए अफजल गुरु का यह खत महत्त्वपूर्ण हो गया है, जो अफजल गुरु ने अपने अपने वकील को लिखा था. इस खत में अफजल गुरु ने देविंदर सिंह को द्रविंदर सिंह के नाम से संबोधित किया था.

हालांकि अफजल गुरु के दावों की पुष्टि नहीं की जा सकती. लेकिन 2013 में भी जब अफजल गुरु ने अपने वकील को खत लिखा था,  तो उस के तथ्यों की जांच क्यों नहीं हुई, ये गंभीर प्रश्न है? उस वक्त पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने अफजल की बात को देविंदर के खिलाफ साजिश मान कर खारिज क्यों कर दिया था? अफजल गुरु ने डीएसपी देविंदर सिंह पर सनसनीखेज आरोप लगाए थे. अगर जांच हो जाती तो शायद आस्तीन में पल रहे एक सांप का फन 16 साल पहले ही कुचल दिया जाता.

अफजल गुरु ने जो खत लिखा था, उस के बारे में जानना बेहद जरूरी है. मीडिया की सुर्खियां बन चुके इस खत में अफजल ने लिखा था, ‘एक दिन मैं अपने स्कूटर से 10 बजे के करीब कहीं जा रहा था. वह स्कूटर मैंने 2 महीने पहले ही खरीदा था. पैहल्लन कैंप के पास एसटीएफ के जवानों ने अपनी बुलेटप्रूफ जिप्सी में मेरी तलाशी ली और थाने ले गए, वहां मुझे टौर्चर किया गया, मुझ पर ठंडा पानी डाला गया, बिजली के करंट लगाए गए, पैट्रोल और मिर्ची से मेरा टौर्चर हुआ. उन लोगों का कहना था कि मैं अपने पास हथियार रखता हूं. लेकिन शाम तक एक इंसपेक्टर ने मुझे कहा कि अगर मैं 10 लाख रुपए डीएसपी साहब को दे देता हूं तो मैं छूट सकता हूं. अगर मैं पैसे नहीं देता हूं तो ये लोग मुझे मार डालेंगे.’

अफजल ने खत में आगे लिखा, ‘उस के बाद ये लोग मुझे ले कर हुमहमा एसटीएफ कैंप गए. वहां डीएसपी देविंदर सिंह ने भी मेरा टौर्चर किया. टौर्चर करने वाले एक इंसपेक्टर शैंटी सिंह ने 3 घंटे तक उसे नंगा रखा और बिजली के करंट लगाता रहा. इलैक्ट्रिक शाक देते वक्त वे लोग मुझे एक टेलीफोन इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए पानी पिलाते रहे. आखिरकार मैं उन्हें 10 लाख रुपए देने को राजी हुआ.

‘इन पैसों के लिए मेरे परिवार ने मेरी बीबी के गहने बेच दिए. लेकिन इस के बाद भी सिर्फ 80 हजार की रकम जमा हो पाई. परिवार ने मेरा वो स्कूटर भी बेच दिया, जिसे मैंने 2 महीने पहले ही 24 हजार रुपए में खरीदा था. एक लाख रुपए ले कर उन लोगों ने मुझे छोड़ दिया. लेकिन तब तक मैं टूट चुका था.’

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अफजल के खत के मुताबिक, ‘हुमहमा एसटीएफ कैंप में ही तारिक नाम का एक पीडि़त बंद था, उस ने मुझे सलाह दी कि मैं हमेशा एसटीएफ के साथ सहयोग करता रहूं . अगर मैं ने ऐसा नहीं किया तो ये लोग मुझे आम जिंदगी जीने नहीं देंगे. हमेशा प्रताडि़त करते रहेंगे.’

खत में देविंदर पर कुछ और सनसनीखेज आरोप लगाते हुए अफजल गुरु ने लिखा था, ‘मैं 1990 से ले कर 1996 तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ चुका था. मैं कई कोचिंग संस्थानों में पढ़ाता था और बच्चों को होम ट्यूशन भी देता था. इस बात की जानकारी एक शख्स अल्ताफ हुसैन को हुई. अल्ताफ हुसैन बडगाम के एसएसपी अशफाक हुसैन का रिश्तेदार था. अल्ताफ हुसैन ही हमारे परिवार और डीएसपी देविंदर सिंह के बीच मीडिएटर का काम कर रहा था.

‘एक बार अल्ताफ ने मुझ से अपने बच्चों को ट्यूशन देने के लिए कहा. उस के 2 बच्चों में से एक 12वीं और एक 10वीं में पढ़ रहा था. अल्ताफ ने कहा कि आतंकियों के डर की वजह से वो उन्हें पढ़ने बाहर नहीं भेज सकता. इस दौरान मैं और अल्ताफ काफी करीब आ गए.’

एक दिन अल्ताफ मुझे ले कर डीएसपी देविंदर सिंह के पास गया. उस ने कहा था कि डीएसपी साहब को मुझ से छोटा सा काम है. डीएसपी देविंदर सिंह ने कहा कि मुझे एक आदमी को ले कर दिल्ली जाना होगा. चूंकि मैं दिल्ली से अच्छी तरह वाकिफ था, इसलिए मुझे उस आदमी के लिए किराए के मकान का इंतजाम करना था. मैं उस आदमी को नहीं जानता था. लेकिन उस की बातचीत से लग रहा था कि वो कश्मीरी नहीं है. लेकिन देविंदर सिंह के कहने पर मुझे उसे ले कर दिल्ली आना पड़ा.

‘एक दिन देविंदर सिंह ने मुझ से कहा कि वह एक कार खरीदना चाहता है. मैं उसे ले कर करोल बाग गया. वहां से उस ने कार खरीदी. इस दौरान हम दिल्ली में कई लोगों से मिलते रहे. इस दौरान मेरे और उस शख्स के पास देविंदर सिंह के काल आते रहे. एक दिन उस शख्स ने मुझ से कहा कि अगर मैं कश्मीर लौटना चाहता हूं तो लौट सकता हूं. उस ने मुझे 35 हजार रुपए भी दिए और कहा कि ये उस की तरफ से गिफ्ट है.

‘संसद पर हमले से 6 या 8 दिन पहले मैं ने इंदिरा विहार में अपने परिवार के लिए किराए पर घर लिया था. मैं अपने परिवार के साथ वहीं रहना चाहता था, क्योंकि मैं अपनी मौजूदा जिंदगी से खुश नहीं था. मैं ने अपने घर की चाबी अपने मकान मालकिन को दी और उन्हें कहा कि ईद मनाने के बाद मैं वापस लौट आऊंगा.

‘मैं ने श्रीनगर में तारिक को फोन किया. शाम को उस ने पूछा कि मैं दिल्ली से कब वापस आया. मैं ने कहा कि एक घंटे पहले. अगली सुबह जब मैं सोपोर जाने के लिए निकलने वाला था, श्रीनगर पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस मुझे पकड़ कर परमपोरा पुलिस स्टेशन गई. वहां तारिक भी मौजूद था. उन्होंने मेरे 35 हजार रुपए ले लिए, बुरी तरह से पीटा और वहां से सीधे एसटीएफ हेडक्वार्टर ले गए. वहां से मुझे दिल्ली लाया गया.’

यह उस खत का मजमून है जो अफजल गुरु ने अपने वकील को लिखा था और मीडिया की सुर्खी बनने के बावजूद इस की जांच नहीं हुई. हो सकता है कि जांच एजेंसियों की कोई मजबूरी रही हो लेकिन जम्मूकश्मीर पुलिस इस खत के आधार पर अंदरूनी जांच कर के हकीकत का पता तो लगा ही सकती थी, ताकि आज खाकी की जो बदनामी हुई है, उस से बचा जा सकता था.

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अफजल गुरु के खत की जांच नहीं होने और देविंदर सिंह पर अब तक लगे सभी आरोपों को नजरअंदाज करने से एक बात यह भी साफ है कि राज्य की पुलिस या केंद्रीय स्तर पर कोई ऐसा अधिकारी जरूर था, जो देविंदर सिंह को लगातार बचा रहा था. सवाल यह भी है कि क्या देविंदर सिंह के आका का नाम जांच एजेंसियों के सामने आएगा या एक बार फिर इन तमाम सवालों पर धूल पड़ जाएगी?

एक डीएसपी की कलंक कथा : भाग 2

पूछताछ में पता चला कि नावीद खान, इरफान व आसिफ को सुरक्षित जम्मू पहुंचाने के लिए देविंदर सिंह ने उन से 12 लाख रुपए की रकम ली थी. दरअसल, नावीद बाबू की मां और उस का भाई फिलहाल जम्मू में हैं और वह शायद जवाहर टनल के जरिए सुरक्षित जम्मू जाने और वहां कुछ दिन बिताने के लिए सिंह को पैसे देता था. नावीद ने पुलिस को बताया कि उस का एक दूसरा भाई पंजाब में पढ़ाई करता है.

पैसे ले कर डीएसपी आतंकियों को देता था संरक्षण

देविंदर सिंह ने यह भी कबूल कर लिया कि पिछले साल भी इन आतंकियों को ले कर जम्मू गया था. इसीलिए वे एकदूसरे पर भरोसा करते थे. पिछले साल की घटना के बारे में संभवत: किसी को भनक नहीं लग पाई. मीर नाम का व्यक्ति इस डील में बिचौलिए के तौर पर उन से जुड़ा था. पूछताछ में खुलासा हुआ कि देविंदर सिंह इस से पहले पुलवामा में तैनात था, जहां नावीद और वह एकदूसरे के संपर्क में आए थे.

इसी के बाद से समयसमय पर डीएसपी देविंदर सिंह उसे व उस के साथियों को पैसा ले कर सरंक्षण देने लगा. पुलिस के लिए देविंदर सिंह से जुड़ा यह खुलासा इसलिए चौंकाने वाला था क्योंकि उस के पकड़े जाने से एक सप्ताह पहले ही केंद्रशासित प्रदेश जम्मूकश्मीर के दौरे पर कुछ विदेशी राजदूतों का एक डेलीगेशन आया था. उन्हें रिसीव करने वाले पुलिस अधिकारियों के समूह में देविंदर सिंह भी शामिल था.

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एक डीएसपी के आतंकी कनेक्शन की भनक जैसे ही मीडिया को लगी तो पूरे देश में हंगामा मच गया. आईबी, रा और एनआईए के अधिकारी उस से अलगअलग पूछताछ करने में जुट गए. देविंदर सिंह की अब तक की तमाम नियुक्तियों और उस के गुडवर्क की फाइलों से धूल हटा कर उन्हें  दोबारा खंगाला जाने लगा तो देविंदर सिंह का संसद हमले में आतंकी अफजल गुरु से भी कनेक्शन सामने आया.

जांच एजेंसियों को यह भी पता चला कि एक अजीब संयोग रहा कि जहांजहां भी देविंदर सिंह की नियुक्ति रही थी, उन तमाम जगहों पर कोई न कोई बड़ा आतंकी हमला जरूर हुआ था.

जांच एजेंसियों ने पूछताछ के साथ जब देविंदर सिंह की कुंडली खंगालनी शुरू की तो उस के काले अतीत की तमाम परतें उधड़ती चली गईं.

नौकरी के शुरुआती दौर में ही आ गया था शक के दायरे में

देविंदर सिंह रैना मूलरूप से आतंकवादियों के गढ़ के रूप में विख्यात पुलवामा जिले के त्राल कस्बे का रहने वाला है. देविंदर सिंह 1990 में जम्मूकश्मीर पुलिस में सबइंस्पेक्टर के रूप में भरती हुआ था. नौकरी के शुरुआती दौर में ही देविंदर व एक अन्य एसआई के खिलाफ अंदरूनी जांच हुई थी. उन्होंने एक व्यक्ति को भारी मात्रा में अफीम के साथ गिरफ्तार किया था, लेकिन उस मादक पदार्थ तस्कर को पैसे ले कर छोड़ दिया गया.

इस के बाद उन्होेंने बरामद हुई अफीम को भी बेच दिया और मोटा पैसा कमाया. इस मामले का कुछ समय बाद खुलासा हुआ तो जांच शुरू हुई और देविंदर सिंह को नौकरी से बर्खास्त करने का फैसला लिया गया, लेकिन इसी बीच आईजी स्तर के एक अधिकारी ने मानवीय आधार का वास्ता  दे कर इस फैसले को रुकवा कर मामले को रफादफा कराया था. लेकिन देविंदर और दूसरे एसआई का वहां से ट्रांसफर कर दिया गया.

लेकिन देविंदर सिंह की हरकतें नहीं रुकीं. 1997 में बडगाम में तैनाती के दौरान भी फिरौती मांगे जाने की शिकायत हुई थी, जिस पर उसे पुलिस लाइन में भेज दिया गया था.

इस के बाद उस की तैनाती स्पैशल औपरेशन ग्रुप यानी एसओजी  में हुई. वहां से कुछ महीनों बाद देविंदर सिंह का तबादला ट्रैफिक पुलिस में कर दिया गया था. इस के बाद देविंदर सिंह 2003 में कोसोवो गए शांति मिशन दल का भी हिस्सा बना. वापस आने के बाद वह आतंकवाद निरोधी दस्ते में शामिल हो गया.

यहीं पर आतंक से जुड़े दहशतगर्दों से उस की जानपहचान हो गई और वह उन्हें संरक्षण देने के लिए पैसा कमाने लगा. 2015 में तत्कालीन डीजीपी के. राजेंद्रा ने उस की तैनाती शोपियां तथा पुलवामा जिला मुख्यालय में की. पुलवामा में गड़बड़ी की शिकायत पर तत्कालीन डीजीपी डा. एस.पी. वैद ने अगस्त, 2018 में उसे एंटी हाइजैकिंग स्क्वायड में भेज दिया. हांलाकि इस की जांच भी हुई थी.

तेजी से मिले प्रमोशन

आतंकवाद निरोधी दस्ते में तैनाती के समय उसे आतंकियों के खिलाफ काररवाई करने के लिए पुलिस मेडल से सम्मानित किया गया था. इसी दौरान उसे तेजी से प्रमोशन मिले और वह डीएसपी पद तक जा पहुंचा. पुलवामा हमले के वक्त वह वहां का डीएसपी था. वर्तमान में वह श्रीनगर एयरपोर्ट सुरक्षा इंचार्ज के तौर पर काम कर रहा था.

रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके देविंदर सिंह की उम्र इस वक्त 57 साल की है. उस की एक संपत्ति श्रीनगर में दूसरी जम्मू में है. इस का परिवार त्राल कस्बे में रहता है और यहां उस का सेब का बागान है.

देविंदर के मातापिता दिल्ली में उस के भाई के पास रहते हैं. देविंदर सिंह की पत्नी शिक्षक है और इस के 3 बच्चे हैं. 2 बेटियां बांग्लादेश में डाक्टरी पढ़ रही हैं, जबकि बेटा स्कूल जाता है.

देविंदर 10 जनवरी, 2020 को बादामी बाग में इंदिरा नगर स्थित अपने आवास में नावीद व उस के दोनों साथियों को ले कर आया. यहां से वह 11 जनवरी की सुबह अपनी कार में उन्हें बैठा कर जम्मू के लिए रवाना हुआ. देविंदर सिंह का इंदिरा नगर में जो नया आलीशान बंगला बन रहा है, उस का निर्माण कार्य 2017 से चल रहा है.

यह घर श्रीनगर के सब से सुरक्षित और वीआईपी इलाके में है क्योंकि बंगला एकदम कश्मीर में भारतीय सेना के 15वीं कोर के मुख्यालय से सटा है. इसलिए किसी को शक भी नहीं होता था कि यहां एक पुलिस अधिकारी के घर में आतंकवादियों की पनाहगाह है. देविंदर सिंह खुद व उस का परिवार इन दिनों कुछ ही दूरी पर एक रिश्तेदार के घर को किराए पर ले कर रह रहा था.

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पूछताछ में जो खुलासा हुआ है, उस के मुताबिक डीएसपी देविंदर सिंह लंबे समय तक सुरक्षा एजेंसियों की आंखों में धूल झोंकता रहा. इस के खिलाफ कई बार जांच हुई, लेकिन हालात ऐसे रहे कि वह हर बार बच गया. लेकिन देविंदर सिंह इस बार जब श्रीनगर से आतंकियों को ले कर चला तो उस का गुडलक खत्म हो चुका था और वह कानून के शिकंजे में फंस गया.

किसी और की जांच करने के दौरान आ गया पुलिस रडार पर

दरअसल देविंदर सिंह के कानून के शिकंजे में फंसने की कहानी भी काफी रोचक है. वह 2 महीने से पुलिस के रडार पर था. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी को तब अंजाम दिया, जब वह आतंकवादियों के साथ खुद मौजूद था. हुआ यूं था कि शोपियां के डीएसपी संदीप चौधरी के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम कुछ आतंकवादियों के फोन ट्रैक कर रही थी. तभी एक ऐसा नंबर ट्रेस हुआ जो देविंदर सिंह का था.

इस काल में मौजूद सनसनीखेज जानकारियां जब संदीप चौधरी ने सीनियर पुलिस अफसरों को दीं, तो सब चौंक गए. इस के बाद से ही 57 साल के डीएसपी देविंदर सिंह की हर हरकत पर विशेष निगाह रखी जाने लगी. उन की हर काल रिकौर्ड की जाने लगी. आईजी विजय कुमार ने दक्षिण कश्मीर रेंज के डीआईजी अतुल कुमार को देविंदर सिंह को रंगेहाथ पकड़ने के चलाए गए औपरेशन की जिम्मेदारी सौंपी.

अतुल कुमार ने एक पूरी टीम को इस काम पर लगा दिया. उस के फोन ट्रैक किए जाने लगे. 10 जनवरी को देविंदर सिंह ने जब हिज्बुल के जिला कमांडर नावीद बाबू से बात की तो पुलिस की टीमें एक्टिव हो गईं. उन्हें  पूरे प्लान की जानकारी हो गई. पुलिस की टीम को पता था कि पूरी रात दोनों आतंकवादी  डीएसपी देविंदर सिंह के घर में ही शरण लिए हुए हैं, लेकिन पुलिस टीम उसे ऐसी जगह पकड़ना चाहती थी जहां सार्वजनिक जगह हो.

पुलिस ने योजनाबद्ध तरीके से किया गिरफ्तार

अगले दिन यानी 11 जनवरी को देविंदर सिंह जैसे ही उन्हें अपनी कार से श्रीनगर से ले कर जम्मू के लिए रवाना हुआ तो कुलगाम के मीर बाजार इलाके में उसे घेर लिया गया. सादे लिबास में कुलगाम पुलिस की 2 टीमें लगातार देविंदर की गाड़ी का पीछा कर रही थीं, जो उच्चाधिकारियों को पलपल की जानकारी दे रही थीं. देविंदर से पूछताछ में पता चला कि आतंकी नावीद बाबू को श्रीनगर से जम्मू ले जाने के लिए उस ने ड्यूटी से छुट्टी ले रखी थी.

फिलहाल हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर नावीद बाबू के साथ गिरफ्तार डीएसपी देविंदर सिंह को जम्मूकश्मीर सरकार ने निलंबित कर दिया है. उसे दिया गया वीरता पदक भी वापस ले लिया गया है. कुलगाम पुलिस ने देविंदर सिंह व उस के 3 अन्य साथियों के खिलाफ अपराध संख्या 5/2020 पर आर्म्स एक्ट की धारा 7/25, विस्फोटक अधिनियम की धारा 3/4 और गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम की धारा 18, 19, 20, 39, 29 के तहत मुकदमा पंजीकृत किया है, जिस की जांच नैशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी यानी एनआईए को सौंप दी गई है.

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अब तक मामले की जांच कर रही सुरक्षा एजेंसियों ने डीएसपी के बैंक खाते और अन्य संपत्तियों की जांच भी शुरू कर दी है, जिस से यह खुलासा हुआ है कि देविंदर सिंह कुछ विदेशी एजेंसियों के संपर्क में था. उस के खातों में विदेशों से कुछ रकम जमा हुई है. माना जा रहा कि डीएसपी कश्मीर पुलिस की वरदी में आईएसआई एजेंट के रूप में डबल एजेंट का रोल निभा रहा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक डीएसपी की कलंक कथा : भाग 1

कश्मीर के किसी भी हिस्से में पुलिस और सुरक्षा बलों की भारी संख्या  में मौजूदगी वैसे तो कोई नई बात नहीं है. लेकिन दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में 11 जनवरी, 2020 की सुबह से ही पुलिस की गहमागहमी अन्य  दिनों से कुछ ज्यादा ही थी. जगहजगह बैरीकेड लगे थे, जहां सीआरपीएफ के जवानों के साथ स्थानीय पुलिस की मौजूदगी बता रही थी कि पुलिस किसी खास शख्स की तलाश में है.

जिले में हर बैरीकेड पर तमाम वाहनों की सघनता से जांच हो रही थी. हर आनेजाने वाले वाहन और उस में सवार लोगों की पहचान के साथ तलाशी ली जा रही थी. हर नाके पर जम्मूकश्मीर पुलिस का कोई न कोई बड़ा अफसर मौजूद था.

करीब सवा 1 बजे का वक्त था, जब काजीकुंड के पास मीर बाजार में तेजी से आ रही एक सफेद रंग की आई-10 कार को सुरक्षा बलों ने रुकने पर मजबूर कर दिया. दरअसल, सुरक्षा बलों ने बैरीकेड कुछ इस तरह लगा रखा था कि तेजी से दौड़ रही कार के ड्राइवर को न चाहते हुए भी कार रोकनी पड़ी.

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‘‘सर, क्या बात है बड़ी तेजी से गाड़ी चला रहे थे, कोई गड़बड़ है क्या?’’ ड्राइविंग सीट के समीप पहुंचे एक सुरक्षाकर्मी ने पूछा.

‘‘कोई गड़बड़ नहीं है डियर, डिपार्टमेंट का आदमी हूं जरा जल्दी  में था, यहां इतना बड़ा नाका… कोई खास बात है क्या?’’ ड्राइविंग सीट पर बैठे सिख ने थोड़ा रूआब झाड़ते हुए कहा.

‘‘डिपार्टमेंट के आदमी हैं तो आप को पता ही होगा कि कश्मीर में कुछ खास न भी हो तो भी इतनी सिक्युरिटी जरूरी है.’’ सरदारजी से मुखातिब हुए जम्मूकश्मीर पुलिस के उस अधिकारी ने कहा और बोला,  ‘‘आप जरा नीचे आइए, गाड़ी की तलाशी लेनी है और गाड़ी में ये तीनों जनाब कौन हैं?’’

‘‘आप को सीनियर से बात करने की तमीज नहीं है क्या… मैं ने बताया ना कि डिपार्टमेंट का आदमी हूं, ये है मेरा कार्ड डिप्टी एसपी फ्राम एंटी हाइजैकिंग स्क्वायड.’’ नाके पर खड़े पुलिस अफसर ने जब गाड़ी चला रहे सरदारजी की गाड़ी की तलाशी लेने की बात की तो वे भड़क गए और मजबूरी में उन्हें अपना परिचय देना पड़ा और विश्वास दिलाने के लिए पुलिस विभाग का अपना परिचय पत्र भी दिखाया.

सरदारजी की गाड़ी रुकवाने वाले कश्मीर पुलिस के अफसर से वाकई ओहदे में बड़े अफसर निकले, लिहाजा उस ने कार्ड देखने के बाद एक कदम पीछे हटते हुए जोरदार सैल्यूट मारा, ‘‘सौरी सर, लेकिन आप को थोडा कष्ट होगा. ऊपर से और्डर है कि हर गाड़ी की तलाशी लेनी है.’’

पूरा सम्मान देने के बावजूद उस बावर्दी अफसर ने जब गाड़ी की तलाशी लेने की जिद की तो सरदारजी का पारा हाई हो गया. वे ड्राइविंग सीट छोड़ कर बाहर निकल आए और चिल्लाते हुए पूछा, ‘‘कौन है वो ऊपर वाला जिस ने ये और्डर दिया है? आप लोगों को डिपार्टमेंट का भी लिहाज नहीं है.’’

‘‘हम ने दिया है ये और्डर, आप को कोई ऐतराज है.’’ चंद कदम की दूरी पर कुछ सुरक्षाकर्मियों के साथ बातचीत कर रहे दक्षिण कश्मीर के डीआईजी अतुल कुमार गोयल ने सरदारजी को अपने स्टाफ से बहस और ऊंची आवाज में बात करते देखा तो उन्होंने वहां पहुंचते ही कहा.

सामने खड़े अधिकारी की वरदी पर लगे सितारे देख कर खुद को डीएसपी बताने वाले सरदारजी अचानक सकपका गए और बोले ‘‘नो.. सर, नो.. सर.’’ कहते हुए उन्होंने डीआईजी साहब को जोरदार सैल्यूट मारा.

‘‘कहां पोस्टिंग है आप की?’’ डीआईजी अतुल गोयल ने पूछा तो खुद को डीएसपी बताने वाले सरदार ने बताया कि उस का नाम देविंदर सिंह है और वह श्रीनगर में इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर जम्मूकश्मीर पुलिस के एंटी हाईजैकिंग स्क्वायड में डीएसपी है. डीएसपी देविंदर सिंह ने बताया कि इस समय वह छुट्टी पर है और अपनी पहचान वाले दोस्तों  के साथ जम्मू  जा रहे थे. डीएसपी देविंदर सिंह की गाड़ी के अगले शीशे पर जम्मूकश्मीर पुलिस अफसरों को मिलने वाला स्टीकर भी लगा था.

‘‘सौरी डीएसपी, हमें गाड़ी की तलाशी लेनी है.’’ डीआईजी अतुल ने पूरा परिचय जानने के बाद भी जब देविंदर सिंह से कहा तो देविंदर सिंह बोला, ‘‘सर, मैं एक औपरेशन पर हूं आप ये सब कर के मेरा सारा खेल खराब कर दोगे.’’

जब तक डीएसपी देविंदर सिंह डीआईजी अतुल गोयल से ये सब बात कर ही रहे थे कि तभी वहां तेजी से 2 बड़ी प्राइवेट गाडि़यां आ कर रुकीं, जिन में से एक के बाद एक सादे लिबास में हथियारबंद कई लोग उतरे और उन्होंने डीएसपी देविंदर सिंह की गाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया.

गाड़ी में से उतरे एक शख्स ने डीआईजी अतुल गोयल को सैल्यूट किया और फिर उन के पास जा कर कान में धीमे से कुछ फुसफुसाया. जिस के बाद अचानक डीआईजी अतुल गोयल के तेवर कड़क हो गए, ‘‘बाहर निकालो सब को.’’

डीएसपी की कार में मिले आतंकी

डीआईजी का इतना बोलना था कि बिजली की गति से सुरक्षाकर्मियों ने डीएसपी देविंदर सिंह की गाड़ी में सवार तीनों लोगों को तेजी से खिड़की खोल कर बाहर निकाल लिया. उन के चेहरे पर ढके गर्म मफलर व सिर पर पहनी टोपियां हटवाईं तो वहां खड़े हर सुरक्षाकर्मी तथा पुलिस वालों के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं.

क्योंकि उन में सें एक शख्स का चेहरा काफी हद तक नावीद बाबू से मिलताजुलता था. नावीद बाबू कोई ऐरागैरा शख्स नहीं था, बल्कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का कश्मीर का कमांडर था. कई संगीन हत्याकांडों और आतंकवादी घटनाओं में पुलिस को उस की तलाश थी और उस की गिरफ्तारी पर सुरक्षा एजेंसियों ने 20 लाख रुपए का ईनाम भी घोषित किया हुआ था.

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गाड़ी की तलाशी ली गई तो उस में से एक हैंडग्रेनेड, एक एके 47 राइफल भी मिली. देविंदर सिंह की गाड़ी में बैठे तीनों लोगों से उन की पहचान से जुड़े दस्तावेज मांगे गए, तो उन की पहचान सैय्यद नवीद अहमद उर्फ नावीद बाबू, उन के सहयोगी आसिफ राथेर और इरफान के रूप में हुई.

‘‘तुम एक आतंकवादी को अपनी गाड़ी में साथ ले कर घूम रहे हो. शर्म नहीं आती… आखिर तुम्हारे इरादे क्या हैं? किस गेम को खेल रहे हो तुम?’’ नावीद अहमद को पहचानते ही डीआईजी अतुल गोयल का पारा चढ़ गया. उन्होंने उसी समय डीएसपी देविंदर सिंह को एक जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया.

डीआईजी अतुल कुमार के इशारे पर डीएसपी देविंदर सिंह और उस के साथ कार में मौजूद तीनों लोगों की तलाशी लेने के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने उन की गाड़ी भी कब्जे में ले ली. सभी को कुलगाम की मीर बाजार कोतवाली में ले जाया गया.

थाने में लाते ही डीएसपी देविंदर सिंह समेत हिरासत में लिए गए तीनों लोगों से पूछताछ शुरू हो गई. कई घंटे की पूछताछ के बाद जो सनसनीखेज खुलासा हुआ, उस ने सभी के पांव के नीचे से जमीन जैसे खिसका दी. किसी को पता भी नहीं था कि जम्मूकश्मीर पुलिस की आस्तीन में एक ऐसा सांप पल रहा है, जो आतंकवादियों से मिला हुआ है.

डीआईजी अतुल गोयल ने देविंदर सिंह और उस के साथ गाड़ी में साथ मौजूद दोनों आतंकवादियों से हुई पूछताछ की जानकारी तत्काल कश्मीर जोन के आईजी विजय कुमार को दी. जिन्होंने तत्काल जम्मूकश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह को इस की सूचना दी. डीजीपी के निर्देश पर पुलिस की एक टीम ने श्रीनगर के बादामी बाग इलाके के इंदिरानगर में रहने वाले डीएसपी देविंदर सिंह के निर्माणाधीन बंगले पर छापा मारा.

देविंदर सिंह के घर से मिले हथियार और नकदी

वहां से 2 एके 47 राइफलें और 2 पिस्तौलों के साथ कुछ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज भी जब्त किए गए . इस से साफ हो गया कि देविंदर सिंह का आतंकवादियों के साथ न सिर्फ गठजोड़ है बल्कि वह उन्हें  पनाह देने का काम भी करता है.

तलाशी में सेना की 15वीं कोर का पूरा नक्शा, साढ़े 7 लाख रुपए नकद भी बरामद किए गए . देविंदर सिंह के निमार्णाधीन मकान की तलाशी में जो दस्तावेज बरामद किए गए, उस से आतंकवादियों के उस के यहां पनाह लेने के पर्याप्त सबूत थे.

इधर कुलगाम पुलिस को अब तक हुई पूछताछ में पता चल चुका था कि देविंदर सिंह के साथ कार में जो 3 लोग सवार थे, उन में से एक नावीद अहमद शाह उर्फ नावीद बाबू दक्षिणी कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के सब से वांछित कमांडरों में से एक था. पुलिस को काफी समय से उस की तलाश थी. खासतौर से 2018 में सेब बागानों में काम करने वाले गैरकश्मीरी लोगों की हत्या में उस का नाम आने के बाद से पुलिस व सुरक्षाबल सरगर्मी से उस की तलाश में जुटे थे और इसी मामले में उस पर 20 लाख का ईनाम घोषित किया गया था.

बताया जाता है कि नावीद अहमद उर्फ नावीद बाबू पहले जम्मूकश्मीर पुलिस में कांस्टेबल था, लेकिन 2017 में वह पुलिस के 4 हथियार ले कर भाग गया था और जा कर हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल हो गया था.

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देविंदर सिंह के साथ मौजूद दूसरा आतंकी आसिफ भी आतंक के काम से जुड़ा था. उसे लोगों को फरजी कागजातों के आधार पर पाकिस्तान ले जाने में महारत हासिल थी. आसिफ को दस्तावेज तैयार करने थे, जिस के जरिए वह कानूनी तरीके से पाकिस्तान जाने की तैयारी में था. जबकि तीसरे शख्स का नाम इरफान अहमद था, जो हिज्बुल का कश्मीर में ग्राउंड वर्कर और पेशे से वकील था.

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