Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती- भाग 1

21जून, 2021 की दोपहर करीब साढ़े 3 बजे सचिन अपने घर पर सो रहा था, तभी उस के मोबाइल पर वाट्सऐप काल आई. सचिन उठा और जाने के लिए तैयार हुआ. लेकिन वह गया नहीं, कुछ देर बाद कपड़े उतार कर वह लेट गया. बिस्तर पर लेटे हुए वह कुछ सोचने लगा, तभी उसे भूख लगी तो उस ने मां अनीता से खाने के लिए कुछ देने को कहा. मां ने उसे सैंडविच बना कर दिया.

इसी बीच दोबारा फोन आया तो फोन पर बात करने के बाद वह टीशर्ट और लोअर में ही सैंडविच खाते हुए चप्पलें पहने ही घर से जाने लगा. मां ने कहा, ‘‘बेटा, तुम ने अभी नाश्ता भी नहीं किया है, कहां जा रहे हो, पहले नाश्ता तो कर लो?’’

‘‘मां, बस अभी लौट कर आता हूं.’’  सचिन ने कहा और वह घर से चला गया.

काफी देर तक जब सचिन नहीं लौटा तो मां को चिंता हुई. वह उसे लगातार उसे फोन कर रही थीं, लेकिन सचिन काल रिसीव करने के बजाय बारबार फोन काट देता था. अनीता समझ नहीं पा रही थीं कि सचिन ऐसा क्यों कर रहा है. उस के आने के इंतजार में रात भी हो गई.

रात 11.37 बजे सचिन के पिता सुरेश चौहान के फोन की घंटी बजी. लेकिन नींद में होने के कारण वह फोन उठा नहीं सके. तब अनीता ने देखा तो वह मिस्ड काल उन के बेटे सचिन की ही थी. तब उन्होंने 11.55 बजे कालबैक की. मगर सचिन की जगह कोई और फोन पर बात कर रहा था. अनीता ने पूछा कौन बोल रहे हो? इस पर उस ने कहा, ‘‘मैं सचिन का दोस्त हूं.’’

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‘‘सचिन कहां हैं?’’ अनीता ने पूछा.

‘‘उस ने शराब ज्यादा पी ली है, इसलिए वह सो रहा है. वैसे सचिन इस समय नोएडा में है.’’ उस ने बताया.

‘‘नोएडा…वह वहां कैसे पहुंचा?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘यह बात तो आप को सचिन ही बताएगा.’’

‘‘तुम मेरी सचिन से बात कराओ.’’

‘‘सचिन अभी बात करने की कंडीशन में नहीं है, आप सुबह बात कर लेना,’’ कहते हुए उस ने सचिन का फोन स्विच्ड औफ कर दिया.

उत्तर प्रदेश की ताजनगरी आगरा के थाना न्यू आगरा के दयालबाग क्षेत्र की जयराम बाग कालोनी निवासी कोल्ड स्टोरेज कारोबारी सुरेश चौहान के 25 वर्षीय इकलौते बेटे सचिन चौहान का घरवाले सारी रात बेचैनी से इंतजार करते रहे. लेकिन उस का फोन औन नहीं हुआ.

बेटे के बारे में कोई सुराग न मिलने पर दूसरे दिन मंगलवार को घर वालों ने आसपड़ोस के साथ ही रिश्तेदारी में तलाश किया. लेकिन सचिन का कोई सुराग नहीं मिला. पूरे दिन तलाश करने के बाद 22 जून की शाम तक जब सचिन नहीं लौटा और न उस का मोबाइल

औन हुआ, तब पिता सुरेश चौहान अपने पार्टनर लेखराज चौहान के साथ थाना न्यू आगरा पहुंचे.

उन्होंने थानाप्रभारी भूपेंद्र बालियान को बेटे के लापता होने के बारे में बताया. पुलिस ने उन की तहरीर पर सचिन की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने उन से फिरौती के लिए फोन आने के बारे में पूछा. सुरेश चौहान ने इस पर इनकार कर दिया. फिरौती के लिए फोन न आने की बात पर पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया. कह दिया कि यारदोस्तों के साथ कहीं चला गया होगा और 1-2 दिन में आ जाएगा.

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पुलिस के रवैए से असंतुष्ट सुरेश चौहान तब खुद ही अपने बेटे की तलाश में जुट गए. उन्होंने कालोनी में रहने वाले एक सेवानिवृत्त अधिकारी से भी मदद ली. उन्हें सीसीटीवी की एक फुटेज मिली, जिस में बाइक सवार 2 युवक नजर आ रहे थे. इन में से पीछे बैठा युवक भी हेलमेट लगाए था.

यह सचिन ही था. यह जानकारी उन्होंने पुलिस को दी. फुटेज देखने के बाद पुलिस ने कहा कि इस में अपहरण जैसी कोई बात नहीं है. इस में तो आप का बेटा सचिन खुद अपनी मरजी से बाइक पर बैठा नजर आ रहा है.

3 दिन तक जब सचिन का कोई सुराग नहीं मिला तो घर वाले परेशान हो गए. पुलिस भी उन से परिचितों व रिश्तेदारी में तलाश करने की बात कहती रही. सुरेश चौहान के बिजनैस पार्टनर लेखराज चौहान के एक रिश्तेदार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय में तैनात थे. लेखराज ने उन्हें फोन किया.

फिर मुख्यमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद मामला उत्तर प्रदेश की एसटीएफ के सुपुर्द किया गया. एसटीएफ ने 23 जून को इस मामले में छानबीन शुरू कर दी. सब से पहले एसटीएफ ने सीसीटीवी वाली फुटेज देखी. जिस में सचिन बाइक पर पीछे हेलमेट लगाए बैठा था.

एसटीएफ ने टेक्निकल रूप से जांच शुरू की. जांच शुरू की तो कड़ी से कड़ी जुड़ती चली गई और पुलिस केस के खुलासे के नजदीक पहुंच गई. पुलिस को पता चला कि सचिन का अपहरण कर लिया गया है.

27 जून की रात को पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि इस घटना में शामिल एक आरोपी वाटर वर्क्स चौराहे पर मौजूद है. समय पर पुलिस वहां पहुंच गई और एसटीएफ ने उसे धर दबोचा. पकड़ा गया आरोपी हैप्पी खन्ना था. पता चला कि वह फरजी दस्तावेज से सिम लेने की फिराक में था. लेकिन सिम लेने से पहले ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया था. उस ने बताया कि फरजी सिम से सचिन के पिता से 2 करोड़ की फिरौती मांगी जाती.

हैप्पी ने पुलिस को बताया कि सचिन अब इस दुनिया में नहीं है, उस की हत्या तो किडनैप करने वाले दिन ही कर दी थी. यह सुनते ही सनसनी फैल गई. पुलिस ने गुमशुदगी की सूचना को भादंवि की धारा 364ए, 302, 201, 420 में तरमीम कर दिया.

हैप्पी से पूछताछ के आधार पर अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए ताबड़तोड़ दबिशें दे कर पुलिस ने 4 अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन में मृतक के पिता के बिजनैस पार्टनर लेखराज चौहान का बेटा हर्ष चौहान के अलावा सुमित असवानी निवासी दयाल बाग,  मनोज बंसल उर्फ लंगड़ा व रिंकू  निवासी कमलानगर शामिल थे.

चौंकाने वाली बात यह निकली  कि अपने दोस्त सचिन की तलाश में पुलिस और एसटीएफ की मदद करने का दिखावा करने वाला हर्ष चौहान स्वयं भी इस साजिश में शामिल था.

अगले भाग में पढ़ें- रुपयों के लालच में हर्ष चौहान सुमित असवानी की बातों में आ गया

Satyakatha- सोनू पंजाबन: गोरी चमड़ी के धंधे की बड़ी खिलाड़ी- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- सुनील वर्मा  सोनू

सीमा आंटी ने करीब एक साल तक जबरन प्रीति से जिस्मफरोशी का धंधा कराने के बाद उसे एक दिन साउथ दिल्ली में रहने वाली सोनू पंजाबन के सुपुर्द कर दिया.

सोनू ने सीमा को कितने नोट दिए ये तो नहीं पता, लेकिन सोनू पंजाबन ने 3 महीने तक प्रीति को अपने कई ग्राहकों के पास भेजा और उस की मोटी कीमत वसूली. लेकिन 3 महीने बाद वह उसे अपने साथ लखनऊ ले गई. यहां उस ने लाला नाम के एक कालगर्ल सरगना के हवाले कर दिया.

लाला ने 2 साल तक न जाने कितने लोगों से उस के जिस्म का सौदा किया. लाला ने इस के बाद प्रीति को दिल्ली में रहने वाली मधु आंटी को बेच दिया.

वहीं पर प्रीति की मुलाकात हरियाणा के रहने वाले सतपाल व राजपाल हुई दोनों रिश्ते में सगे भाई थे. लेकिन दोनों ही जिस्मफरोशी के धंधे के दलाल थे.

एक दिन राजपाल उसे मधु आंटी के चंगुल से मुक्त कराने का झांसा दे कर अपने साथ अपने गांव पानीपत ले गया, जहां 60 साल के राजपाल ने उस से जबरन शादी कर के अपनी बीवी के रूप में घर में रख लिया.

राजपाल पहले से शादीशुदा था. परिवार में 3 बेटियां और 2 बेटे थे. एक बेटे और 2 बेटियों की शादी हो चुकी थी. इस बीच प्रीति गर्भवती हो गई तो राजपाल ने शहर ले जा कर उस का जबरन गर्भपात करवा दिया. अपने गर्भपात के बाद प्रीति के मन में राजपाल के लिए भी खटास भर गई.

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बस इसी के बाद एक दिन प्रीति राजपाल की गैरमौजूदगी में उस के घर से निकल भागी और पानीपत से दिल्ली जाने वाली बस में बैठ कर नजफगढ़ पहुंच गई. यह 28 अगस्त, 2014 की बात है जब नजफगढ़ पुलिस ने प्रीति को बदहाल हालत में बरामद किया और मदद करने के लिए उसे थाने ले आई.

वहीं पर प्रीति ने पुलिस को 3 साल में अपने साथ हुए उत्पीड़न की सारी कहानी सुनाई.

नजफगढ़ पुलिस ने प्रीति के बयान पर आईपीसी की धारा 363, 366, 342, 370, 370, 372, 373, 376, 34, 120बी और पोक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज कर लिया.

प्रीति के बयान मजिस्ट्रैट के सामने दर्ज कर पुलिस ने उसे वूमन शेल्टर होम भेज दिया, जहां उस की काउंसलिंग होने लगी. इधर प्रीति के बयान के आधार पर जब पुलिस पड़ताल शुरू हुई तो पता चला कि 2011 में पूर्वी दिल्ली के हर्ष विहार थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई गई थी.

सुराग लगातेलगाते पुलिस प्रीति के परिजनों तक पहुंच गई और बाद में उसे कोर्ट के आदेश से उस के मातापिता को सौंप दिया गया.

पिछले 4 सालों में प्रीति जिस्मफरोशी की दुनिया में रहने के कारण नशे की आदी हो चुकी थी. इसलिए परिवार के बीच आ कर बंदिशों में रहने के कारण जल्द ही उस का दम घुटने लगा. अगस्त, 2014 में ही एक दिन प्रीति अपने घर से किसी को बिना कुछ बताए फिर से गायब हो गई.

बेटी के दोबारा गायब होने से परिवार परेशान हो गया. प्रीति के पिता ने नजफगढ़ पुलिस से संपर्क कर जब प्रीति के फिर से गायब होने व उस के किडनैप होने की आशंका जताई.

इस के बाद नजफगढ़ पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी. लेकिन पुलिस की तमाम कोशिशों के बाद भी प्रीति का कोई सुराग नहीं मिला.

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वक्त धीरेधीरे गुजरने लगा और प्रीति का रहस्यमय ढंग से गायब हो जाना एक मिस्ट्री बन गया. अगस्त 2017 में 3 साल बीत जाने के बाद तत्कालीन पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने इस मामले की जांच अपराध शाखा को सौंप दी.

जिस के बाद साइबर सेल के एसीपी संदीप लांबा की देखरेख में एक टीम बनाई गई. टीम में इंसपेक्टर उपेंद्र सिंह और लेडी सबइंसपेक्टर पंकज नेगी को शामिल किया गया.

इस टीम ने लंबी कवायद की और 23 नवंबर, 2017 को प्रीति को पानीपत के उस पार्लर से बरामद कर लिया, जहां वह नौकरी करती थी.

इस के बाद क्राइम ब्रांच ने एकएक कर उन लोगों को गिरफ्तार करने का सिलसिला शुरू किया जो प्रीति की जिंदगी को बरबाद करने के जिम्मेदार थे. पुलिस ने इस मामले में 2018 में सोनू पंजाबन के साथ संदीप बेदवाल को गिरफ्तार किया. उस के बाद राजपाल व सतपाल को गिरफ्तार किया.

बाद में लखनऊ से लाला नाम के दलाल की गिरफ्तारी की गई. इसी मामले में तेजी से सुनवाई करते हुए द्वारका कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सोनू पंजाबन को 24 साल की सजा सुनाई.

देरसबेर सोनू पंजाबन अपनी सजा के खिलाफ अपील के बाद अदालत से जमानत ले कर सलाखों से बाहर आ ही जाएगी, लेकिन उस के बाद जिस्मफरोशी के कारोबार में उस की क्या भूमिका होगी, यह देखना होगा.

लुधियाना के होटल में बिकता जिस्म

शहर में चल रहे जिस्मफरोशी के धंधे पर लगातार लुधियाना पुलिस शिकंजा कस रही है, लेकिन बारबार ऐसे मामले सामने आ ही जाते हैं. ऐसे ही एक मामले में एक मकान पर छापेमारी कर एक महिला को गिरफ्तार किया. वह ग्राहकों और लड़कियों को अपने घर पर ही बुलाती थी.

जबकि दूसरे मामले में 2 सितंबर, 2021 को पुलिस ने लुधियाना के बस स्टैंड के पास स्थित होटल पार्क ब्लू में रेड कर के वहां पर चल रहे देह व्यापार के अड्डे पर छापेमारी की. मौके पर पहुंची पुलिस पार्टी और सीआईए-2 टीम ने वहां पर ऐशपरस्ती कर रहे 6 युवक व 6 युवतियों को गिरफ्तार किया. मौका देख कर होटल का मालिक व मैनेजर पुलिस को गच्चा दे कर फरार हो गए.

घटना 2 सितंबर को शाम करीब पौने 8 बजे की है. थाना डिवीजन नंबर 5 व सीआईए-2 टीम बस स्टैंड के आस पास स्थित होटलों में रुटीन जांच करने पहुंची थी. उस दौरान पुलिस ने कई होटलों में जा कर चैकिंग की.

वहां रह रहे लोगों का रिकौर्ड चैक किया. इसी बीच पुलिस की टीम जब होटल पार्क ब्लू में पहुंची तो उस के अलगअलग कमरों में 6 जोड़े आपत्तिजनक स्थिति में पाए गए. जिन्हें साथ में आई महिला पुलिस ने हिरासत में ले लिया.

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करीब एक साल पहले भी इसी होटल में पुलिस ने दबिश दे कर वहां रंगरलियां मना रहे कई जोड़ों को गिरफ्तार किया था. लुधियाना ही नहीं पंजाब के जालंधर व अन्य शहरों में भी देह व्यापार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं.

लुधियाना पुलिस ऐसे मामलों में काफी तेजी से काररवाई कर रही है लेकिन जालंधर पुलिस ऐसे मामलों में ढीली साबित हो रही है. जालंधर में कई होटलों, गेस्ट हाउसों व अन्य स्थानों पर ऐसे गलत धंधे चल रहे हैं, पर पुलिस मूकदर्शक बनी तमाशा देखती रहती है.

Satyakatha: लॉकडाउन में इश्क का उफान- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

दिल्ली के करावल नगर की घटना एक ऐसे ही प्रेमी युगल की दास्तान है, जो वासना की भेंट चढ गया. करीब डेढ़ साल पहले दीपक दिल्ली में अपने चाचा रमेश के पास रहने गया था. वहां रह कर

वह कोई काम सीखना चाहता था, लेकिन इसी बीच मार्च 2020 में लौकडाउन लगने पर वह वापस अपने घर बागपत लौट आया था. इस साल मार्च में दोबारा दिल्ली जाने वाला ही था कि तभी दोबारा लौकडाउन लग गया.

अब वह यही सोच रहा था कि जितनी जल्द हो सके यह लौकडाउन खुले, जिस से वह दिल्ली जाए. जून में जब दिल्ली का लौकडाउन खुल गया तो वह दिल्ली जाने के लिए मां से जिद करने लगा, ‘‘मम्मी मैं दिल्ली जाऊंगा.’’

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‘‘क्यों बेटा अभी कोरोना खत्म नहीं हुआ है.’’ मां बोली.

‘‘लेकिन मम्मी, लौकाडाउन तो खत्म हो गया है.’’

‘‘वहां जा कर करेगा क्या?’’ मां ने पूछा.

‘‘कोई काम करूंगा. पैसे कमा कर लाऊंगा. वैसे भी यहां भी तो खाली हूं.’’

‘‘ठीक है, इस बारे में पहले मैं तेरे पापा से बात करूंगी,’’ मां बोली.

बागपत का रहने वाला दीपक अपनी मां से दिल्ली जाने की जिद पर अड़ा था. इस बारे में उस की मां ने अपने पति से बात की तो पहले तो उन्होंने मना किया, लेकिन मिन्नत करने पर वह  मान गए.

अपने मातापिता को मना कर दीपक 2 जुलाई, 2021 को दिल्ली के करावल नगर में रह रहे अपने चाचा रमेश के पास आ गया. उस के मातापिता भले ही समझ रहे थे कि उन का बेटा दिल्ली काम करने के लिए गया है, लेकिन उस के दिल्ली आने की वजह कुछ और ही थी.

रमेश करावल नगर में किराए के कमरे में अकेले रहते थे. उन के पास दीपक दिन में ही आ गया था. उस दिन वह अपने काम पर नहीं गए थे. क्योंकि उन की शिफ्ट बदल गई थी. अचानक दीपक को आया देख वह चौंक गए. परिवार में सब का हालचाल लिया, फिर सुबह जो कुछ खाना पकाया था, वह उसे खाने को दिया.

दीपक खाना खा कर अपने पुराने दोस्त से मिलने को कह कर निकल गया. उस के चाचा भी खानेपीने का सामान लाने बाजार चले गए.

दीपक सीधा अपनी प्रेमिका पूजा के पास गया. पूजा भी उसे अचानक आया देख चौंक गई. लंबे समय बाद दीपक को देख वह उस के गले लिपट गई. कुछ पलों बाद वह अलग हुई और अपना नया मोबाइल नंबर दीपक को देते हुए बोली, ‘‘दीपक, तुम अभी चले जाओ, अब शाम को मिलना. मैं फोन करूंगी. क्योंकि अभी पापा आने  वाले हैं.’’

‘‘ सब ठीक है न?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘ हांहां, मैं ठीक हूं. ये मास्क लो, लगा लेना नहीं तो फाइन भरना पड़ेगा.’’ पूजा ने मास्क दिया.

‘ पापा अभी भी नाराज हैं?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘ हां, लेकिन मैं उन्हें मना लूंगी. ये मोहल्ले वाले ही उन को हमेशा भड़काते रहते हैं.’’

‘‘ कोई बात नहीं, मैं अभी चलता हूं. फोन करूंगा. आज ही नया नंबर ले लूंगा.’’

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उस समय पूजा के पिता सत्यवीर सिंह घर पर नहीं थे. गलीमोहल्ले वाले दीपक को अच्छी तरह से पहचानते थे. वह उस के और पूजा के संबंधों के बारे में जानते थे. उन्हें यह भी पता था कि उस की वजह से पिछले साल गली में कितना हंगामा खड़ा हो गया था.

उस रोज भी दीपक का पूजा के घर जाना गली के अधिकतर लोगों ने देखा. उन्हीं में से एक ने सत्यवीर को दीपक के आने की जानकारी दे दी.

यह भी हिदायत दी कि उस की बेटी पूजा की करतूत अभी भी ठीक नहीं है. उसे संभालें, अच्छे से समझाएं. उस की हरकतों का असर उन के बच्चों पर भी पड़ेगा.

यह जान कर सत्यवीर अपनी बेटी पर आगबबूला हो गया था. उस ने पूजा को काफी डांटफटकार लगाई.

हालांकि सत्यवीर की डांट और चेतावनी का असर पूजा पर कुछ भी नहीं हुआ. इस का कारण भी था, वह दीपक से बेइंतहा प्यार करती थी. काफी समय से उस से मिलने को बेचैन थी. उस के मन में दीपक के लिए प्यार दबा हुआ था. उस के प्यार का उफान पिता की डांट से कहां थमने वाला था.

दीपक की हालत उस से कहीं अधिक बेचैनी वाली थी. अब जा कर उसे मिलने का मौका मिला था. उस ने तुरंत एक सैकंडहैंड स्मार्टफोन खरीदा और अपने चाचा की आईडी से नया सिम कार्ड ले लिया.

उस के एक्टिवेट होते ही सब से पहली काल उस ने प्रेमिका पूजा को कर के अपना नया नंबर सेव करने के लिए कहा.

उन की बातें फोन पर लगातार होने लगीं. पूजा ने फिलहाल उसे घर आने से मना किया था. इसी तरह 4-5 दिन निकल गए. दीपक पूजा से फिर मिलने को बेचैन हो गया था.

उसे लग रहा था कि पास आ कर भी वह पूजा से दूर क्यों है? दीपक के मन में पूजा के लिए दबी कुंठाएं अब दबने का नाम ही नहीं ले रही थीं. ऐसा ही हाल पूजा का भी था.

अगले भाग में पढ़ें-  दीपक को जरा भी आभास नहीं था कि वह इस बार पकड़ा जाएगा

Crime- डर्टी फिल्मो का ‘राज’: राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस- भाग 2

यही वजह रही कि कई बार पूछताछ के लिए बुलाने के बाद जब 19 जुलाई, 2021 को उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया तो क्राइम ब्रांच ने पर्याप्त सबूत होने के कारण राज कुंद्रा को गिरफ्तार कर लिया.

मुंबई क्राइम ब्रांच राज कुंद्रा पर बिना पुख्ता सबूत के हाथ नहीं डालना चाहती थी. इसलिए क्राइम ब्रांच ने राज कुंद्रा के खिलाफ मामला दर्ज करने के बाद पूरे मामलें की कडि़यों को एक दूसरे से जोड़ना शुरू किया.

जिन लोगों के नाम सामने आते रहे उन के खिलाफ साक्ष्य एकत्र कर के पुलिस बारीबारी से उन्हें गिरफ्तार करती रही. ये साफ हो चुका था कि अश्लील फिल्मों का ये रैकेट एक पोर्न फिल्म प्रोडक्शन कंपनी की आड़ में चलाया जा रहा था. जहां फिल्मों में ब्रेक देने के बहाने युवा और जरूरतमंद लड़कियों के अश्लील वीडियो बनाए जाते थे.

क्राइम ब्रांच इस केस में 2 अभिनेता, एक लाइटमैन और 2 महिला फोटोग्राफर, वीडियोग्राफर, ग्राफिक डिजाइनर समेत कई लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी.

लेकिन इस मामले में उमेश कामत नाम के एक शख्स की गिरफ्तारी के बाद क्राइम ब्रांच के पास पहली बार ऐसे साक्ष्य हाथ लगे, जिस से राज कुंद्रा पर हाथ डाला जा सकता था.

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दरअसल, उमेश कामत यूके बेस्ड कंपनी केनरिन प्रोडक्शन हाउस का भारत में प्रतिनिधि था. उमेश कामत भारत में एक्ट्रेस गहना वशिष्ठ के साथ मिल कर अश्लील फिल्में बनाता था.

इन पोर्न फिल्मों की शूटिंग के बाद तैयार किए गए वीडियो भारतीय एजेंसियों से बचने के लिए एक एप्लिकेशन के जरिए यूके में केनरिन प्रोडक्शन हाउस भेजे जाते थे.

एडिटिंग के बाद पोर्न फिल्मों को हौट शौट एप्लिकेशन पर अपलोड किया जाता था. यूके में पोर्न फिल्मों पर कोई प्रतिबंध नहीं है, इसलिए ये काम यूके से किया जाता था.

उमेश की गिरफ्तारी के बाद क्राइम ब्रांच की पड़ताल और तेज हो गई. राज कुंद्रा से कई बार पूछताछ की गई. क्राइम ब्रांच की टीम पोर्न फिल्में बनाने वाले इस गैंग से राज कुंद्रा के सबंधों के सबूत जुटाने का भी काम करती रही.

उमेश कामत से पूछताछ में पता चला कि वह राज कुंद्रा के यूके में रहने वाले बहनोई प्रदीप बख्शी के साथ काम करता है. प्रदीप बख्शी यूके बेस्ड कंपनी केनरिन प्रोडक्शन हाउस का डायरेक्टर है.

केनरिन लिमिटेड़ कंपनी 16 साल से वजूद में है. इस में केवल एक एक्टिव डायरेक्टर है, वो हैं प्रदीप बख्शी. उन्हें पहली नवंबर 2008 को इस फर्म के डायरेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया था. इस कंपनी में 10 से भी कम कर्मचारी हैं और इस कंपनी का टर्नओवर 2 मिलियन पाउंड है.

ये फर्म वीडियो प्रोडक्शन एक्टिविटीज और टेलिविजन प्रोग्रामिंग से जुड़ी थी. उमेश कामत से पता चला कि राज कुंद्रा इस कंपनी में प्रदीप बख्शी के साथ अप्रत्यक्ष तौर पर बिजनैस पार्टनर और निवेशक है.

उमेश कामत ने क्राइम ब्रांच को बताया कि केनरिन प्रोडक्शन हाउस भारत में मौजूद अलगअलग एजेंटों के जरिए पोर्नोग्राफी और पोर्नोग्राफी फंडिंग का भी बिजनैस करता था.

एडवांस पेमेंट मिलने के बाद गहना और कामत अश्लील फिल्में बनाने का काम करते थे और फिर ऐसे कंटेंट को कैनरिन प्रोडक्शन हाउस को भेजते थे.

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इसी बीच जांच के दौरान क्राइम ब्रांच को एक वाट्सऐप ग्रुप के बारे में भी पता चला. उस वाट्सऐप ग्रुप में पोर्न फिल्मों से जुड़े पूरे बिजनैस को ले कर चर्चा होती थी. उस वाट्सऐप ग्रुप का नाम ‘एच अकाउंट’ था, जिस में राज कुंद्रा समेत कुल 5 लोग शामिल थे.

इस ग्रुप का एडमिन भी राज कुंद्रा ही था. ग्रुप के सभी लोग पोर्नोग्राफिक कंटेंट बनाने के इस बिजनैस में शामिल थे.

जो वाट्सऐप चैट पुलिस को मिली उस में राज कुंद्रा इस बिजनैस की मार्केटिंग, सेल्स और मौडल्स की पेमेंट से जुड़े मसलों पर बात कर रहा था.

साथ ही किस तरह रेवेन्यू पर फोकस किया जाए, मौडल को कैसे पेमेंट दी गई है और किस तरह बिजनैस रेवेन्यू को बढ़ाया जाए. यही चैट होता था.

पुलिस की साइबर सेल राज कुंद्रा के उस ऐप का भी पता लगा चुकी थी, जिस पर पोर्न फिल्में अपलोड की जाती थी. ‘हौट हिट मूवी’ नाम के इस ऐप पर मूवी देखने वाले को ऐप डाउनलोड कर 200 रुपए का पेमेंट करना होता है.

कुल मिला कर पुलिस के सामने जब यह साफ हो गया कि मुंबई और इस के उपनगरों में पोर्न फिल्म बनाने का जो कारोबार चल रहा है, उस में राज कुंद्रा प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा है, तब 19 जुलाई की रात 9 बजे क्राइम ब्रांच ने पूछताछ के लिए उसे बुलाया. कुछ देर पूछताछ के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

हालांकि राज कुंद्रा ने किसी भी ऐप और पोर्नोग्राफी फिल्मों के रैकेट से अपना संबध होने से साफ इंकार कर दिया. उस ने कहा कि वह सिर्फ इरोटिक फिल्में बनाते हैं. लेकिन पुलिस का दावा है कि कुंद्रा ही अश्लील फिल्मों के कारोबार का मास्टरमाइंड था.

कुंद्रा को गिरफ्तार कर उसे 7 दिन की रिमांड पर लिया. इस दौरान पुलिस ने कुंद्रा के औफिस पर छापेमारी की तो वहां छिपा कर रखी गई 51 आपत्तिजनक वीडियो बरामद हुईं.

गिरफ्तारी के बाद ही पुलिस ने राज कुंद्रा के मोबाइल फोन को जब्त कर लिया. जिसे साक्ष्य एकत्र करने के लिए फोरैंसिक लैब भेजा गया. इस के अलावा पुलिस ने कई ऐसे सबूत एकत्र किए जाने का दावा किया है, जिस के बाद जल्द ही इस केस में गहना वशिष्ठ की गिरफ्तारी हो सकती है.

चूंकि ब्रिटेन में पोर्नोग्राफी के खिलाफ कोई कानून नहीं है, इसलिए पुलिस यूके बेस्ड कंपनी केनरिन प्रोडक्शन हाउस के खिलाफ काररवाई को ले कर कानूनी राय ले रही है.

पुलिस का कहना है कि जिस ‘हौट हिट मूवी’ ऐप पर पोर्न फिल्में अपलोड की जाती थीं, उसे मेंटेन करने के लिए प्रतिकेश और ईश्वर नाम के 2 कर्मचारियों को विआन इंडस्ट्रीज लिमिटेड में पेरोल पर रखा था.

केनरिन कंपनी के ‘हौटशौट’ ऐप को मैनेज और मेंटेन करने के लिए ‘विआन इंडस्ट्रीज लिमिटेड’ यानी राज की कंपनी हर महीने 3-4 लाख रुपए चार्ज करती थी. जांच में सामने आया है कि इस ऐप के जरिए राज कुंद्रा को एक दिन में कई बार 10 लाख से ज्यादा की कमाई भी होती थी.

लेकिन जो राज कुंद्रा आज केवल पोर्न फिल्मों के बिजनैस से 10 लाख रुपए प्रतिदिन कमाता है और अपने दूसरे कारोबार से 2700 करोड़ की संपत्ति का मालिक बन गया है, एक समय था जब वह दुबई से, नेपाल से पश्मीना शाल ला कर लंदन में बेचता था.

राज कुंद्रा का जीवन भी एक फिल्मी कहानी की तरह है. राज कुंद्रा का असली नाम है रिपुसूदन कुंद्रा. कुंद्रा के पिता बाल कृष्ण कुंद्रा लुधियाना के रहने वाले थे. लेकिन शादी के बाद वह युवावस्था में ही पत्नी को ले कर लंदन चले गए.

लंदन में पहले उन्होंने एक कौटन मिल में नौकरी की. उस के बाद वह बस में कंडक्टर के तौर पर नौकरी करने लगे. बाल कृष्ण न तो ज्यादा पढ़ेलिखे थे, न धंधा शुरू करने के लिए उन के पास बड़ी पूंजी थी.

अगले भाग में पढ़ें- 2005 में राज कुंद्रा की शादी कविता नाम की युवती से हुई थी

Manohar Kahaniya: नशा मुक्ति केंद्र में चढ़ा सेक्स का नशा- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कहते हैं कि जो व्यक्ति जैसा होता है, उसे वैसे ही लोग मिलने लगते हैं. विद्यादत्त के साथ भी यही हुआ. नशा मुक्ति केंद्र में उस की मुलाकात विभा सिंह से हुई. विभा सिंह उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर की विष्णुपुरी कालोनी की रहने वाली थी. उसे भी शराब की लत थी. अपनी इस लत के कारण ही नशा मुक्ति केंद्र में भरती हुई थी.

विद्यादत्त और विभा के बीच अच्छी जानपहचान हो गई. एक दिन दोनों बैठे हुए थे तभी विद्यादत्त ने कहा, ‘‘मैं ने एक प्लान किया है.’’

‘‘क्या?’’ विभा ने पूछा.

‘‘हम दोनों अपना नशा मुक्ति केंद्र खोल लें तो कमाई अच्छी हो सकती है.’’

विद्यादत्त का आइडिया विभा को जम गया. उस ने तपाक से कहा, ‘‘चाहती तो मैं भी यहीं हूं, लेकिन क्या यह इतना आसान है.’’

‘‘बिलकुल हम दोनों कोशिश करेंगे तो हो जाएगा, वैसे हमें खुद रह कर इतना तो पता चल ही गया है कि नशा मुक्ति केंद्र कैसे चलाया जाता है. इस में कमाई भी अच्छी है.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ विद्या ने सहमति जताई.

संचालक और डायरेक्टर खुद भी थे नशेड़ी

इस के बाद दोनों बाहर आए और अपनी तैयारियों में जुट गए. उन्होंने प्रकृति विहार में एक कोठी किराए पर ली और जरूरी तैयारियां कर के फरवरी, 2021 में नशा मुक्ति केंद्र खोल कर उस का प्रचारप्रसार शुरू कर दिया.

विद्यादत्त खुद संचालक बना और विभा को डायरेक्टर बना दिया. समाज में कितने ही लोग अपने बच्चों के नशा करने से परेशान रहते हैं. ऐसे लोगों की ही दोनों को तलाश थी. जल्द ही उन के यहां लड़केलड़कियां आने शुरू हो गए. नशे के लती युवाओं के रहनेखाने की व्यवस्था कोठी में ही की गई थी.

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कोठी के एक हिस्से में लड़कियों को रखा जाता था जबकि दूसरे हिस्से में लड़कों को. निर्धारित समय पर उन की घरवालों से बात भी कराई जाती थी.

विद्यादत्त शातिरदिमाग व्यक्ति था. वह खुद नशेबाज था, इसलिए नशा करने वालों की तलब और उन की कमजोरियों को बखूबी जानता था. उस ने अपने यहां नशे का उपचार कराने के लिए रहने वाली लड़कियों को ही अपना शिकार बनाने की ठान ली.

उस ने सोचा था कि नशे के लालच में लड़कियां किसी से शिकायत नहीं करेंगी और यदि वह ऐसा करेंगी भी तो उन के परिवार वाले भरोसा नहीं करेंगे. हालांकि विद्यादत्त खुद 3 बेटियों का पिता था. उस का परिवार पौढ़ी गढ़वाल में रहता था. परिवार के पास वह आताजाता रहता था.

जो खुद भी बेटियों का पिता हो, वैसे तो उसे ऐसी बात सोचते हुए भी शर्म आनी चाहिए थी, लेकिन उस के दिमाग में बेशर्मी हावी हो चुकी थी. वह मौका देख कर लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने लगा.

लड़कियां विरोध करतीं, तो वह उन के साथ मारपीट करता था. एक लड़की नशे के लिए ज्यादा बेचैन हो जाती थी. वह ड्रग्स लेती थी. विद्यादत्त ने उसे ही अपना सौफ्ट टारगेट बनाने का मन बना लिया.

एक दिन उस ने काउंसलिंग के बहाने उसे अपने पास बुलवाया और बड़े प्यार से कहा, ‘‘देखो, मैं तुम्हारी परेशानी जानता हूं, नशे की आदतें एकदम नहीं छूटतीं.’’

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‘‘हां सर, बहुत बेचैनी होती है.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे लिए कुछ इंतजाम करता हूं.’’ इस के बाद विद्यादत्त ने उस लड़की के लिए नशे की पुडि़या का इंतजाम कर दिया. इस से लड़की खुश हो गई.

मन ही मन विद्यादत्त भी खुश हो रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि लड़की की नशे की लिए बेचैनी और भी बढ़ गई.

एक दिन उस ने ज्यादा जिद की तो विद्यादत्त उसे अपने कमरे में ले गया और उस के सामने पुडि़या रखते हुए बोला, ‘‘यह तुम्हारी है, लेकिन तुम्हें एक शर्त माननी होगी.’’

‘‘क्या सर?’’ वह चौंकते हुए बोली.

‘‘मैं तुम्हें यह देता रहूंगा. बस, तुम्हें मुझे खुश करना होगा.’’ कहने के साथ ही बिना लड़की का जवाब सुने, वह उस पर हावी हो गया. लड़की ने विरोध किया, लेकिन विद्यादत्त मनमानी कर के ही माना. विद्यादत्त का असली रूप सामने आ चुका था. लड़की को उस से घृणा हो गई और उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली. उस ने डायरेक्टर विभा से इस हरकत की शिकायत की तो विभा ने लड़की की ही पिटाई कर दी.

विद्यादत्त ने अपनी मनमानी को एक सिलसिला बना लिया. अन्य लड़कियों के साथ भी उस ने छेड़छाड़ की. विद्यादत्त वास्तव में लड़कियों की जिंदगी को बरबाद कर रहा था.

नशा मुक्ति केंद्र के अंदर क्या हो रहा था, बाहर इस बारे में किसी को कुछ नहीं पता था. उस का शिकार लड़की अपने घर फोन करती थी तो विद्यादत्त और विभा डंडा ले कर उस के पास खड़े हो जाते थे.

पिटाई के डर से वह कुछ बोल नहीं पाती थी. इस मजबूरी में वह कुछ बता नहीं पाती थी. मातापिता खुश होते थे कि उन की बेटी का नशा छूट जाएगा, लेकिन वहां दूसरा ही खेल चल रहा था.

सभी लड़कियां विद्यादत्त से परेशान थीं. अपनी इज्जत का उन्हें खतरा सताने लगा था. उन्हें नशा मुक्ति केंद्र से छुटकारा पाना भी मुश्किल लग रहा था. दुष्कर्म का शिकार हुई लड़की के लिए जिंदगी बोझिल सी हो गई. उस के दिल में आत्महत्या का खयाल भी आता था. जिस के बाद उन्होंने वहां से भागने की प्लानिंग की.

5 अगस्त को 4 लड़कियों को मौका मिल गया और वहां से भाग कर वह एक होटल में जा कर छिप गईं. जहां से पुलिस ने उन्हें बरामद किया.

विद्यादत्त की करतूत ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या नशा मुक्ति केंद्रों में यह सब भी होता है. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि नशा मुक्ति केंद्र में

कोई एक्सपर्ट डाक्टर भी नहीं था, जो वहां भरती युवकयुवतियों की काउंसलिंग कर सके.

विद्यादत्त और विभा खुद ही एक्सपर्ट बन जाया करते थे जबकि वह खुद नशे के आदी रहे थे. वैसे उन का अतीत कोई जानता भी नहीं था. उन का मकसद केवल पैसा कमाना था. वह मारपीट के जरिए युवाओं को सुधारना चाहते थे.

संचालक हो गया अंडरग्राउंड

लड़कियों के भागते ही विद्यादत्त तनाव में आ गया. उसे यही डर था कि लड़कियां उस की हरकतों के बारे में किसी को बता न दें. जब अगले दिन उसे यह पता लगा कि उन लड़कियों को पुलिस ने बरामद कर लिया है, तो लग गया कि उस की पोल खुलेगी और फिर पुलिस उसे नहीं छोड़ेगी.

इस से बचने के लिए उस ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर दिया और होटल में जा कर छिप गया, लेकिन वह बच नहीं सका. प्रकरण सामने आने के बाद मातापिता लड़केलड़कियों को नशा मुक्ति केंद्र से अपने घर ले गए. प्रिया व नवीन की बेटी निधि भी इन में से एक थी.

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नशा छुड़ाने के चक्कर में उन की बेटी कलंक से बच गई. निधि अब खुद भी सबक ले कर सुधार की तरफ है.

पुलिस ने मुख्य आरोपी विद्यादत्त रतूड़ी को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. कथा लिखने तक पुलिस मामले की और भी बारीकी से जांच कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं

छाया : विनोद पुंडीर

Satyakatha: रिश्तों का कत्ल- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

दामाद की करतूतों की भनक जब सासससुर को लगी तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दामाद पवन ने काम ही ऐसा किया था. जिस थाली में उस ने खाया था, उसी में छेद कर दिया था. और तो और उस ने सृष्टि का जीवन भी बरबाद कर दिया था. बेटी की जिंदगी को ले कर मांबाप चिंता के अथाह सागर में डूब गए थे.

शैलेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का दामाद ऐसी करतूत करेगा कि उन का समाज में उठनाबैठना तक मुहाल हो जाएगा.

इतना होने के बावजूद उन्होंने बेटी को यही सीख दी कि कुछ भी हो जाए, अपने हक के लिए लड़ना. वहां से कायरों की तरह भागना मत. बेचारी सीधीसादी सृष्टि करती भी क्या, किस्मत पर रोने के सिवाय.

खैर, होनी को कौन टाल सकता है, जो होना है उसे हो कर रहना है. अपनी किस्मत की लकीर समझ कर सृष्टि ससुराल में जीवन काटने लगी थी. इधर पवन सलहज से पत्नी बनी निभा को साथ ले कर पटना में रहने लगा था.

अब पवन और निभा की नजरें ससुराल की करोड़ों की संपत्ति पर जम गई थीं. पवन और निभा दोनों को पता था कि इसी साल फरवरी में ससुर शैलेद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हो जाएंगे. रिटायरमेंट के दौरान उन्हें लाखों रुपए मिलने वाले हैं.

ससुर के जीवन भर की कमाई पर दोनों की गिद्ध दृष्टि जम गई थी और उन रुपयों को हासिल करना उन का मकसद बन गया था. कैसे और क्या करना है, यह उन्होंने पहले से ही योजना बना ली थी. इस योजना में पवन ने अपने छोटे भाई टिंकू को भी शामिल कर लिया था.

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फरवरी, 2021 में बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हुए. उन्हें जीपीएफ, ग्रैच्युटी आदि के मिला कर 70-80 लाख रुपए मिले थे. उन रुपयों से वह छोटे बेटे के लिए किसी वीआईपी एरिया में जमीन खरीदना चाहते थे और जमीन की तलाश में वह जुट भी गए थे.

उसी दौरान कहीं से इस की जानकारी पवन को हो गई थी कि ससुरजी छोटे साले के लिए जमीन खरीदने की फिराक में हैं.

पवन ससुर शैलेंद्र से मिला और उन्हें भरोसा दिलाया कि बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन के पास एक अच्छी और कीमती जमीन है. वह कीमती जमीन उस के जानपहचान वाले की है. देखना चाहें तो उसे देख लें. जमीन पसंद आने पर बात आगे बढ़ाई जाएगी, नहीं तो कोई बात नहीं.

दामाद की बात उन्हें पसंद आ गई. उन्होंने दामाद से जमीन दिखाने की बात कही तो उस ने वह जमीन दिखा दी. वह जमीन उन्हें पसंद आ गई.

बातचीत भी हो गई. 60 लाख रुपयों में सौदा फाइनल हो गया और शैलेंद्र ने एकमुश्त रकम दामाद को दे दी. 60 लाख की रकम देख कर पवन की नीयत बदल गई.

शैलेंद्र ने पवन से कह दिया था कि जमीन की रजिस्ट्री छोटे बेटे मनीष के नाम होगी. ससुर को झांसे में रख पवन ने विश्वास दिया कि वह जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा. लेकिन इधर उस के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.

पवन जमीन मालिक को 60 लाख में से कुछ रुपए दे कर बाकी के रुपए डकार गया. शैलेंद्र रजिस्ट्री बेटे के नाम पर करने के लिए बारबार दामाद पर दबाव बना रहे थे जबकि वह ऐसा करने वाला नहीं था. वह तो रुपए डकार गया था.

ससुर शैलेंद्र के दबाव बनाने से पवन घबरा गया था. वह समझ गया था कि उसे छोड़ने वाले नहीं हैं अगर जमीन की रजिस्ट्री मनीष के नाम पर नहीं की तो. इस मुसीबत से छुटकारा पाने का

एक ही रास्ता बचा है ससुर को रास्ते से हटाने का. फिर क्या था उस के साथ दूसरी पत्नी निभा और उस का छोटा भाई टिंकू पहले से थे ही. सो उन्होंने इस खतरनाक योजना में साथ देने के लिए भी हामी भर दी.

इस बीच लौकडाउन लग गया. लौकडाउन लगने की वजह से सभी काम बंद पड़े थे. मई के महीने में थोड़ी ढील मिली तो ससुर ने फिर दबाव बढ़ाया कि जमीन की रजिस्ट्री जल्द से जल्द करा दे.

आखिरकार मामला 60 लाख रुपए का है. तो उस ने ससुर को बताया कि 17 जून को रजिस्ट्री होगी, समय से छोटे साले मनीष को बुला लीजिएगा.

इधर, पवन ने ससुर को रास्ते से हटाने के लिए अपने छोटे भाई टिंकू के जरिए कांट्रैक्ट किलर अमर को एक लाख रुपए की सुपारी दे दी. जिस में पेशगी के तौर 40 हजार रुपए शूटर अमर को दे दिए और बाकी रकम काम पूरा होने के बाद देनी तय हुई.

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उस के बाद से टिंकू और अमर दोनों शैलेंद्र की रेकी करने लगे कि वह कब और कहां जाते हैं? किस से मिलते हैं? एक हफ्ते की रेकी में जारी जानकारी दोनों ने जमा कर ली. बस घटना को अंजाम देना शेष था.

5 जून, 2021 को छोटा बेटा मनीष गुवाहाटी से पटना आने वाला था. यह जानकारी पवन को हो गई थी. उस ने घटना को अंजाम देने के लिए इसी दिन को अच्छा समझा और इस की पूरी जानकारी शूटर अमर को दे दी.

5 जून, 2021 की सुबह करीब पौने 8 बजे शैलेंद्र बेटे को रिसीव करने अपनी स्कौर्पियो कार से पटना के लिए

निकले. कार में वह पीछे बैठे थे और ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र कार चला रहा था.

कार जैसे ही फतुहा हाइवे पहुंची तो टिंकू शूटर अमर को अपनी बाइक पर पीछे बैठा कर कार का पीछा करने लगा और थोड़ी देर बाद उस ने कार को ओवरटेक कर के ड्राइवर अनिल के हाथ में गोली मार कर कार रोकवाई.

ड्राइवर से शैलेंद्र के बारे में कन्फर्म होने के बाद शूटर अमर ने 3 गोलियां मार कर पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की हत्या कर दी और मौके से दोनों फरार हो गए.

बहरहाल, पुलिस को शुरू से ही इस में करीबियों के शामिल होने का शक था और हुआ भी वही. पवन को हिरासत में ले कर जब पूछताछ हुई तो परदा उठ गया और चारों आरोपी पवन, निभा, टिंकू और अमर गिरफ्तार कर लिए गए.

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पुलिस ने शूटर अमर की निशानदेही पर उस के पास से एक पिस्टल, एक जिंदा कारतूस, एक बाइक और एक स्कूटी, 3 मोबाइल फोन और सिम बरामद किए.

कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में बंद थे. पुलिस उन के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में जुटी थी. जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बाद पवन को अपने किए पर पश्चाताप हो रहा था.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: किसी को न मिले ऐसी मां- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

दीदार सिंह जब अपने काम से वापस गांव आता तो यह चर्चा उसे भी सुनने का मिलने लगी. शुरुआत में तो दीदार सिंह ने नजरअंदाज कर दिया, क्योेंकि एक तो उसे अपनी पत्नी मंजीत पर पूरा विश्वास था. दूसरे बलजीत उस के लिए सगे भाई से भी ज्यादा भरोसेमंद था.

लेकिन जब बारबार ऐसा होने लगा तो दीदार सिंह के मन में भी शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा, जिस के बाद उस ने अपनी पत्नी की गतिविधियों पर भी नजर रखनी शुरू कर दी.

एक दिन उस ने खुद भी बलजीत को मंजीत की दुकान में उस के साथ संदिग्ध स्थिति में पकड़ लिया. दरअसल, दोनों दुकान का शटर गिरा कर एकदूसरे के साथ आलिंगनबद्ध थे.

उस दिन दीदार ने बलजीत को जम कर खरीखोटी सुनाई और उस की खूब बेइज्जती की. साथ ही उस ने बलजीत को यह भी हिदायत दी कि आज के बाद वह उस के घर और परिवार के किसी भी सदस्य से मिलने की कोशिश न करे.

दीदार ने उस दिन घर आ कर खूब शराब पी और शराब के नशे में मंजीत कौर पर बदचलनी का तोहमत लगा कर मारपीट भी कर दी.

दीदार सिंह का मन नहीं भरा तो अगले दिन वह अपनी मौसी के घर भी चला गया और वहां पूरे परिवार को ये बात बता दी कि किस तरह बलजीत ने उस की भोलीभाली पत्नी को अपने जाल में फंसा कर भाई की पीठ में छुरा घोंपा है और रिश्तों को कलंकित किया है.

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मंजीत ने रची थी साजिश

परिवार के बीच जब ये खुलासा हुआ तो वहां भी बलजीत को परिजनों ने खूब लानतमलामत दी, जिस के बाद बलजीत के मन में दीदार सिंह के लिए नफरत और जहर भर गया. उस ने मन बना लिया कि अपने इस अपमान का बदला वह दीदार सिंह से ले कर रहेगा.

दीदार सिंह अब अकसर रोज ही काम से अपने घर लौट आता था. इधर, मंजीत के ऊपर भी वह पूरी निगरानी रखता था. इसलिए मंजीत और बलजीत के मिलनेजुलने में अड़चनें पैदा होने लगीं.

आशिक और माशूक की इस दूरी ने दोनों के दिलों में धीरेधीरे दीदार सिंह के लिए घृणा का भाव पैदा कर दिया. दोनों ही इस बात पर विचार करने लगे कि किस तरह दीदार को सबक सिखाया जाए.

दरअसल, मंजीत की घृणा का एक कारण यह भी था कि दीदार सिंह ने उस के मायके में जा कर बलजीत के साथ उस के संबधों की बात बता दी थी और कहा था कि वह केवल अपने दोनों बच्चों के कारण उसे पत्नी के रूप में अपने साथ रख रहा है अन्यथा उसे ऐसी हरकत करने के कारण कभी का छोड़ देता.

दीदार अपने दोनों बच्चों को बेहद प्यार करता था. मंजीत और बलजीत ने फैसला किया कि दीदार सिंह को अगर चोट पहुंचानी है तो क्यों न उस के बच्चों को ही खत्म कर दिया जाए. क्योंकि अगर उस के बच्चे खत्म हो जाएंगे तो कुछ दिन बाद मंजीत भी बहाना बना कर अपने मायके चली जाएगी और बाद में बलजीत के साथ रहना शुरू कर देगी.

बस, एक बार मंजीत के दिमाग में यह कुविचार आया तो इस के बाद यह और ज्यादा पुख्ता होता चला गया.

बलजीत ने दीदार को सबक सिखाने की पूरी योजना बना ली थी. उसी योजना के तहत मंजीत कौर ने अपने प्रेमी बलजीत सिंह के साथ मिल कर 22 जुलाई, 2019 की रात साढ़े 8 बजे इसे अंजाम देने का काम शुरू किया. संयोग से उस शाम दीदार सिंह भी जल्दी घर आ गया था.

घर में दीदार की भांजी आई हुई थी, जिसे छोड़ने के लिए वह राजपुरा रोड गया हुआ था. उसी बीच मंजीत ने अपने दोनों बच्चों हरन व जश्न को गुरुद्वारा साहिब से कोल्डड्रिंक लाने को यह कहते हुए भेजा कि आप के चाचा बलजीत सिंह वहां खड़े आप का इंतजार कर रहे हैं. वह आप को कोल्डड्रिंक पिलाएंगे.

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बच्चे आमतौर पर खानेपीने की किसी चीज का लालच मिलने पर किसी भी परिचित से मिलने चले ही जाते हैं. दोनों बच्चे जब वहां पहुंचे तो बलजीत सिंह पहले ही वहां स्कूटी लिए खड़ा था. मंजीत से उस की पहले ही फोन पर बातचीत हो चुकी थी.

वह अपने गांव के दोस्त से स्कूटी मांग कर लाया था. उस दिन मंजीत ने अपने चेहरे को कपड़े से इस तरह लपेट रखा था कि कोई अनजान व्यक्ति उसे पहचान न सके.

वह दोनों बच्चों को एक लंबे रास्ते से गुरुद्वारा साहिब से होते हुए भाखड़ा नहर तक स्कूटी पर बैठा कर ले गया. उस ने बच्चों से कहा था कि वहां उन्हेें कोल्डड्रिंक के साथ एक बहुत अच्छी चीज दिखाएगा.

नहर पर ला कर उस ने दोनों बच्चों को नहर दिखाने के बहाने नहर की पटरी पर खड़ा कर दिया गया और फिर नहर में धकेल दिया. इस के बाद उस ने मंजीत कौर को फोन कर के बच्चों को खत्म करने की बात बता दी, जिस के बाद मंजीत कौर ने बच्चोें के गुम होने का नाटक शुरू कर दिया. बाद में उस ने धीरेधीरे यह अफवाह फैला दी कि उन के बच्चों का किसी ने अपहरण कर लिया है.

जांच में पुलिस को पता चला कि बलजीत ने अपने नाम से एक सिम कार्ड खरीद कर मंजीत कौर को दे रखा था, जिस पर बातचीत करते हुए उन्होंने इस पूरी साजिश को अंजाम दिया.

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बलजीत सिंह ने पूछताछ में बताया कि वह उसी रात घटना को अंजाम देने के बाद फोन बंद कर दिया गया था. रात करीब 11 बजे बलजीत चोरीछिपे मंजीत के घर के पास आया था और मंजीत से मोबाइल भी ले कर चला गया था. उस ने मोबाइल का सिम निकाल कर उसे तोड़ कर फेंक दिया था.

जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने मंजीत व बलजीत को 8 मार्च, 2021 तक पुलिस रिमांड पर ले लिया. पुलिस ने इस दौरान उन के वारदात में शामिल होने के साक्ष्य जुटाए. पुलिस ने उस फोन को भी बरामद कर लिया, जो बलजीत सिंह ने मंजीत कौर को दिया था. इसी फोन पर दोनों के बीच बातचीत होती थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश कर के 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

Manohar Kahaniya: 10 साल में सुलझी सुहागरात की गुत्थी- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अगले दिन सुबह ही रवि शकुंतला को ले कर दिल्ली में अपने घर समालखा चला गया. इस दौरान कमल ने शकुंतला को अपनी साजिश समझा दी.

जिस के तहत 22 मार्च की दोपहर में शकुंतला अपनी सास से जिद कर के रवि को अपनी बहन के घर जाने के लिए साथ ले गई. कमलेश का घर करीब 3 किलोमीटर दूर था.

घर से निकल कर जैसे ही रवि शकुंतला को ले कर मेनरोड पर किसी सवारी को बुलाने के लिए आगे बढ़ा तो वहां उस से पहले

ही सामने अपनी सफेद सैंट्रो कार का बोनट खोल कर कमल अपने ड्राइवर गणेश के साथ खड़ा मिला.

उस ने रवि और शकुंतला को देख कर चौंकने का अभिनय करते हुए कहा कि वह किसी काम से समालखा आया था, लेकिन गाड़ी बंद हो गई जो उसी वक्त ही ठीक हुई थी.

कमल ने साजिश के तहत जिद कर के रवि और शकुंतला को गाड़ी में बैठा लिया और बोला कि वह उन्हें कमलेश के घर छोड़ता हुआ निकल जाएगा.

संकोचवश रवि कुछ नहीं बोला. दरअसल, कमल सोचीसमझी साजिश के तहत वहां बोनट खोल कर उन्हीं दोनों के आने का इंतजार कर रहा था.

इस के बाद कमल ने गाड़ी में रवि को अपनी बातों के जाल में फंसा कर शकुंतला को कमलेश के घर के पास छोड़ने के लिए मना लिया. कमल ने रवि से कहा कि वह उस के साथ समालखा में एक परिचित के घर चले, जहां से कुछ पैसे लेने हैं. रवि इनकार नहीं कर सका.

कमलेश के घर से कुछ दूर शकुंतला को छोड़ कर वे गाड़ी को आगे बढ़ा ले गए. गणेश गाड़ी चला रहा था. कमल व रवि पीछे बैठे थे.

कुछ दूर जाने के बाद प्यास का बहाना कर के कमल ने डिक्की से कोल्डड्रिंक की 2 बोतलें निकलवा कर एक खुद पी, दूसरी रवि को पिलाई. लेकिन कोल्डड्रिंक पीते ही रवि का सिर चकराने लगा था और उस पर बेहोशी छा गई.

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थोड़ी ही देर में रवि पूरी तरह बेहोश हो गया. कमल ने गाड़ी में बेहोश पडे़ रवि की गला दबा कर हत्या कर दी. उस ने रवि के मोबाइल फोन को बंद कर दिया और रास्ते में फोन की बैटरी, सिमकार्ड व दूसरे हिस्से तोड़ कर फेंक दिए.

ड्राइवर गणेश कमल के आदेश पर गाड़ी अलवर ले आया. वहां पहुंच कर कमल ने बिल्डिंग मटीरियल के अपने गोदाम में पड़ी रोड़ी हटाई और रवि के शव को 5 फुट गहरा गड्ढा खोद कर उस में दबा दिया और उस पर फिर से रोड़ी डाल दी. कमल वारदात वाले दिन अपना मोबाइल दिल्ली नहीं ले गया था.

इधर, रवि के घर नहीं पहुंचने पर शकुंतला ने उस के परिवार वालों को वही कहानी सुना दी, जो कमल ने उसे पढ़ाई थी. पुलिस को पूछताछ में न तो शकुंतला ने और न ही उस के किसी ससुराल वालों ने ये बात बताई थी कि शकुंतला के पास मोबाइल फोन भी है.

शकुंतला ने पुलिस को बताया कि शादी से पहले उस के पास एक फोन था, लेकिन वह उसे जब दोबारा आई तो अपने भाई को दे आई थी.

इसलिए शुरू से ही पुलिस ने इस केस में शकुंतला के मोबाइल फोन की भी काल डिटेल्स निकालने की जरूरत महसूस नहीं की.

मृतक रवि के मोबाइल की जो काल डिटेल्स पुलिस ने निकलवाई, उस में भी कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला था. इसलिए भी पुलिस ने मोबाइल डिटेल्स की थ्यौरी पर ज्यादा काम नहीं किया.

लेकिन जब कमल से पूछताछ हुई तो खुलासा हुआ कि साजिश के तौर पर शकुंतला अपना मोबाइल फोन छिपा कर साथ लाई थी, लेकिन उसे साइलेंट कर के उस ने पर्स में छिपा कर रखा था ताकि जरूरत पड़ने पर कमल से बात हो सके.

22 मार्च, 2011 की दोपहर को शकुंतला कमल के ड्राइवर के मोबाइल से आए एक मैसेज के बाद ही वह घर से पति रवि को ले कर निकली थी, जिस में उस ने बताया था कि वह सड़क पर उन का इंतजार कर रहा है.

शकुंतला जब तक अपनी ससुराल में रही, उस ने किसी को भी यह पता नहीं चलने दिया कि वह मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रही है. इस दौरान वह न सिर्फ छिपछिप कर कमल से बातें करती रही, बल्कि उसे वहां होने वाली हर गतिविधि की जानकारी दे कर उस से लाश ठिकाने लगा देने की जानकारी भी लेती रही.

क्राइम ब्रांच ने जब जयभगवान के शक के आधार पर कमल सिंगला को नोटिस दे कर पूछताछ के लिए बुलाया तो उसे पकड़े जाने का डर सताने लगा. लिहाजा उस ने पूछताछ के लिए जाने से पहले एक दिन औनेपौने दाम में खाली प्लौट में पड़ी रोड़ी को बेच कर ड्राइवर गणेश के साथ उस के नीचे पड़ी जमीन की खुदाई की.

वहां कई फुट की खुदाई के बाद उसे रवि का शव मिल गया. 5 महीने में शव हड्डियों का ढांचा बन चुका था. कमल ने हड्डियों के ढांचे को गड्ढे से निकाल कर प्लास्टिक की बोरी में भरा. अस्थिपंजर बटोरना बेहद मुश्किल था. लेकिन उस ने सावधानी से अस्थियों को बटोर कर हड्डियों से भरी बोरी को अपने एक ट्रक में रखवाया और उस की छत पर खुद बैठ गया.

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अलवर से रेवाड़ी के रास्ते में 70 किलोमीटर के रास्ते पर एकएक हड्डी को बोरी से निकाल कर जंगल की तरफ फेंकता चला गया. रवि की हड्डियों को ठिकाने लगाने के बाद कमल ने अपने ड्राइवर गणेश को 70 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि अब वह अपने गांव चला जाए और कभी वापस न आए. क्योंकि हो सकता है पुलिस उसे पकड़ ले. डर कर गणेश अपने गांव चला गया.

इस दौरान शकुंतला भी अलवर में आ चुकी थी. कुछ दिन तक तो कमल उस से छिपछिप कर ही मिलता रहा. लेकिन बाद में उस ने उस के परिवार से हमदर्दी का दिखावा कर के कहा कि उस का एक ड्राइवर है, जो कुंआरा है. वह शकुंतला की शादी उस के साथ करवा देगा.

कमल ने बेहद शातिराना ढंग से अपने ड्राइवर बबली के साथ शकुंतला की शादी का ढोंग रचा और उस के बाद टपूकड़ा में ही एक दूसरे इलाके में मकान ले कर दे दिया. लेकिन वहां बबली की जगह वह खुद शकुंतला के साथ पति की तरह रहता था.

पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि कमल और शकुंतला का एक बच्चा भी हो चुका है. हालांकि समाज के सामने कमल शकुंतला को बबली की ही बीवी बताता था.

जब कमल का ब्रेन मैपिंग टेस्ट हुआ और उस से शकुंतला के साथ उस के संबंधों को ले कर सवालजवाब हुए तो पुलिस को पहली बार उन के नाजायज संबंधों पर शक हुआ था. इसी टेस्ट की रिपोर्ट के बाद से वह पुलिस की नजर में चढ़ गया था.

ब्रेन मैपिंग टेस्ट के बाद से ही शकुंतला और कमल पकड़े जाने के डर से फरार हो गए, जिस से पुलिस का शक यकीन में बदल गया. वे किसी भी स्थान पर कुछ दिन से ज्यादा नहीं रुकते थे. महीनों से कमल व शकुंतला लगातार अपने फोन नंबर बदल रहे थे.

क्राइम ब्रांच ने कड़ी मशक्कत के बाद कमल के खाली प्लौट की खुदाई करवा कर उस की रीढ़, कूल्हे और कमर के हिस्से की हड्डियां और पसलियों के 25 टुकड़े बरामद कर लिए. जिन का टेस्ट कराया गया तो वे उस के पिता के डीएनए से मैच कर गईं.

क्राइम ब्रांच ने इस मामले में अपहरण की धारा 364 के साथ हत्या की धारा 302, सबूत नष्ट करने की धारा 201 व साजिश रचने की धारा 120बी जोड़ कर कमल व गणेश को जेल भेज दिया.

इधर शंकुतला ने अपनी गिरफ्तारी पर कोर्ट से स्टे ले लिया. लेकिन जब अदालत में रवि के अपहरण व हत्या के मामले में शकुंतला के शामिल होने के साक्ष्य पेश किए तो अदालत ने उस का स्टे खारिज कर गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए.

शकुंतला को जब इस की भनक लगी तो एक बार फिर उस ने दिल्ली पुलिस के साथ लुकाछिपी का खेल शुरू कर दिया. पुलिस छापे मारती रही, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगी तो दिल्ली पुलिस आयुक्त ने उस की गिरफ्तारी पर भी 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

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ईनाम घोषित होने के बाद क्राइम ब्रांच की कई टीमें महीनों से शकुंतला की गिरफ्तारी के प्रयास में लगी थीं. 17 जुलाई को क्राइम ब्रांच के स्पैशल औपरेशन स्क्वायड-2 में तैनात एएसआई प्रदीप गोदारा को अपने एक मुखबिर से शकुंतला के अलवर में ही एक स्थान पर छिपे होने की जानकारी मिली. प्रदीप गोदारा ने अपने इंसपेक्टर राजीव रंजन को सारी बात बताई.

राजीव रंजन ने जब इस बारे में अपने एसीपी डा. विकास शौकंद को बताया तो उन्होंने राजीव रंजन और प्रदीप गोदारा के साथ एएसआई कुलभूषण, नरेश, कांस्टेबल राजेंद्र आर्य, दिनेश, हिमांशु, विनोद महिला कांस्टेबल ममता को अलवर रवाना कर दिया.

संयोग से बताए गए स्थान पर शकुंतला मिल गई और पुलिस उसे गिरफ्तार कर दिल्ली ले आई. अदालत में पेश कर उसे 2 दिन के लिए पुलिस रिमांड में जब पूछताछ की गई तो उस ने भी रवि के अपहरण व हत्याकांड की वही कहानी सुनाई, जो कमल पहले ही बता चुका था.

शकुंतला की गिरफ्तारी के बाद 10 साल पहले हुए रवि कुमार हत्याकांड का पटाक्षेप हो गया.

(कथा पुलिस की जांच, रवि के परिजनों से बातचीत और आरोपियों से पूछताछ पर आधारित)

Satyakatha: बेटे की खौफनाक साजिश- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

11जून, 2021 की शाम करीब सवा 6 बजे गाजियाबाद के लोनी में बलराम नगर के डी- ब्लौक में रहने वाला रवि ढाका अपनी दुकान से घर लौटा. उस ने गली में मकान के आगे अपनी बाइक खड़ी की. उस ने बाइक की चाबी निकाली. और चाबी के छल्ले में अपने दाएं हाथ की तर्जनी उंगली डाल कर छल्ला घुमाते हुए अपने घर के मेन गेट से अंदर आगे बढा. उस ने महसूस किया कि घर एकदम शांत और सुनसान पड़ा था.

वैसे अकसर जब वह इसी समय पर घर वापस आया करता था तो उस के पिता सुरेंद्र सिंह ढाका टीवी पर तेज आवाज में न्यूज देखते हुए मिला करते थे. टीवी की आवाज मेन गेट तक सुनाई देती थी. लेकिन उस दिन न तो कोई टीवी की आवाज आ रही थी और न ही उस के मातापिता के बात करने की कोई गूंज सुनाई दे रही थी.

इन सब चीजों के बारे में अपने मन में सवाल उठाते हुए, वह बेफिक्र अंदाज में ग्राउंड फ्लोर पर उस कमरे की ओर आगे बढ़ा, जहां उस के मातापिता रहते थे. कमरे में घुसने से पहले ही उसे टीवी का रिमोट दरवाजे के बाहर नीचे जमीन पर टूटा पड़ा मिला. जिस की बैटरियां वहीं पड़ी थीं.

यह देख कर रवि ने सोचा कि शायद मम्मी पापा के बीच कुछ नोकझोंक हुई है. तभी तो इतना सन्नाटा पसरा हुआ है. उस ने वह रिमोट और बैटरियां उठाईं और उस रिमोट में बैटरियां सेट करते हुए कमरे की दहलीज पर ही पहुंचा था कि तभी उस की नजर कमरे में पहुंची. और उस कमरे का दृश्य देख कर वह सन्न रह गया.

कमरे का सारा सामान अस्तव्यस्त था. कमरे की अलमारी खुली हुई थी और उस के पिता सुरेंद्र सिंह ढाका पलंग और जमीन के सहारे पड़े थे.

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‘बाबा’ कहते हुए उस की चीख निकली. अपने पिता को इस हालत में देख कर रवि इतनी जोर से चिल्लाया कि गली के अन्य लोगों तक उस की आवाज पहुंच गई. जिस से कुछ ही देर में उस के घर के बाहर कई लोग पहुंच गए.

रवि को मां दिखाई नहीं दे रही थीं, इसलिए वह बिना देरी के ग्राउंड फ्लोर से निकल कर कमरे से सटी सीढि़यों से भागता हुआ पहली मंजिल पर मौजूद कमरे में पहुंचा. वहां उस की मां संतोष देवी की लाश बिस्तर पर पड़ी मिली.

उन के गले में फोन चार्जर का तार लपेटा हुआ था. मां की लाश देख रवि एकदम से हैरान रह गया. उस की आंखों से आंसुओं की धार बहनी शुरू हो गई.

रोतेबिलखते हुए उस ने मां के गले में लिपटे हुए चार्जर के तार को निकाला. इस के बाद वह रोता हुआ सीढि़यां उतर कर घर के बाहर निकल गया. घर के मेन गेट पर लोगों की भीड़ रवि की चीख सुन कर पहले से ही जमा थी.

रवि को इस हाल में देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘रवि क्या हुआ जो तुम रो रहे हो?’’

रवि के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. मोहल्ले के लोगों के सवालों का जवाब देते हुए वह रोते हुए बोला, ‘‘मेरे मांबाबा को किसी ने मार दिया. घर का सामान सारा बिखरा पड़ा है. ये कैसे हो गया.’’

यह सुनते ही कुछ लोग रवि के घर में उत्सुकतावश घुसे कि आखिर यह कैसे हो गया. घर में उन्होंने भी जब सुरेंद्र सिंह और उन की पत्नी को मृत अवस्था में देखा तो वह भी आश्चर्यचकित रह गए. फिर उन्हीं में से एक व्यक्ति ने इस की सूचना लोनी बौर्डर थाने में फोन कर के दे दी.

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सूचना पा कर थोड़ी देर में थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई.

मौकाएवारदात को पुलिस ने बारीकी से परखा. ग्राउंड फ्लोर पर रवि ढाका के पिता सुरेंद्र सिंह ढाका की लाश थी और पहली मंजिल पर उस की मां संतोष देवी की लाश पड़ी थी. दोनों ही कमरों में घर का सामान बिखरा हुआ था. दोनों ही कमरों की अलमारियों के दरवाजे खुले थे. देख कर लग रहा था कि हत्याएं लूट के मकसद से की गई हैं.

थानाप्रभारी ने इस बारे में रवि व अन्य लोगों से पूछताछ की. इस के बाद लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अगले भाग में पढ़ें- किन सवालों को सुन कर रवि बुरी तरह से हकला गया

Satyakatha: 10 साल बाद सर चढ़कर बोला अपराध

सौजन्य- सत्यकथा

पूरे 10 साल बाद संतोष यादव अपने ननिहाल आया था. साल 2021 में मार्च महीने से ही लौकडाउन का दौर चल रहा था.

जून की 10 तरीख थी. उस का ननिहाल रायपुर जिले में खरोरा थानांतर्गत फरहदा गांव में था. गांव में बहुत कुछ बदल गया था. कच्चे मकान पक्के बन चुके थे. सड़कें पहले से अच्छी बन गई थी.

गांव में लोगों को कोरोना का डर तो था, लेकिन उन पर लौकडाउन का कोई खास असर नहीं दिख रहा था. अधिकतर लोगों का आनाजाना पहले की तरह ही बगैर मास्क के सामान्य बना हुआ था.

हां, कुछ लोग मास्क लगा कर, या फिर गमछे, रुमाल आदि से नाकमुंह ढंके हुए थे. इस कारण संतोष को उन्हें पहचानने में थोड़ी दिक्कत आ रही थी.

वैसे भी संतोष गांव के अधिकतर लोगों को नहीं पहचानता था. गांव वालों के लिए भी वह अधिक पहचाना हुआ व्यक्ति नहीं था.

गांव की एक पतली सड़क पर टहलता हुआ संतोष अपने पूर्व चिरपरिचित स्थान तालाब के पास जा पहुंचा. गांव के एक छोर पर बने बड़े तालाब के निकट सड़क की पुलिया के पास उस के पैर ठिठक गए.

तालाब को दूर तक देखता हुआ बीती यादों में खो गया. अचानक उस की आंखों के सामने खूबसूरत रानी का मुसकराता चेहरा घूम गया. रानी की ठेठ ग्रामीण छवि, दाईं आंख के आगे और गालों पर लटकती लटें, अल्हड़पन की चाल और बातूनी अदाएं बरबस याद हो आ आईं.

तभी उसे किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रख दिया. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो देखता ही रह गया. उस का पुराना यार रमेश खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘अरे यार, तू कब आया? पहचाना मुझे, मैं रमेश.’’ वह बोला.

‘‘त..त…त…तुम रमेश…’’ बोलते हुए संतोष ने उस का हाथ पकड़ लिया.

रमेश को देख संतोष बहुत खुश हुआ. खुशी में दोनों गले लग गए. वे 10 साल बाद मिल रहे थे. उसे निहारते हुए संतोष चुटकी ले कर बोला, ‘‘मोटा हो गया है रे तू. तुझे तो तेरी आवाज से ही पहचान पाया.’’ संतोष ने कहा.

‘‘हां यार, क्या करूं 4 महीने से घर में पड़ेपड़े खाखा कर मोटा हो गया हूं. कहीं आनाजाना नहीं होता. बस, एक बार शाम के वक्त मन बहलाने के लिए तालाब का चक्कर लगा लेता हूं.’’ रमेश बोला.

‘‘आओ न कहीं बैठते हैं.’’ संतोष ने कहा.

‘‘यहां नहीं, चलो न मेरे घर पर ही चलते हैं. शाम ढलने वाली है. आज मेरे घर पर ही खाना खा लेना. वहीं खूब बातें करेंगे. पुरानी यादें भी ताजा करेंगे.

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थोड़ी देर में संतोष अपने लंगोटिया यार रमेश के घर पर था. उन के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों सालों से मन में दबी अनगिनत यादों के गुबार को निकाल देना चाहते थे बातोंबातों में संतोष ने पूछा, ‘‘यार, रानी कहां होगी, उस का क्या हालचाल है?’’

संतोष के इस सवाल पर रमेश पहले थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘कौन रानी? साहूकार की बेटी? उस का पास के ही गांव में ब्याह हो गया है. वह अब 3 बच्चों की मां बन चुकी है.’’

यह सुन कर संतोष बोला, ‘‘लेकिन भाई, क्या तुम मुझे उस से मिलवा सकते हो? वो आज भी मेरे मन में बसी हुई है.’’

‘‘क्या बात करते हो यार, उस की शादी हो गई है, उस का अपना परिवार है, ससुराल में सुखी जीवन गुजार रही है, तुम उसे भूल जाओ.’’ रमेश ने सलाह दी.

‘‘मैं उसे भला कैसे भूल सकता हूं, उस के कारण मैं ने क्या नहीं किया. अब मैं तुम्हें क्या बताऊं?’’

‘‘क्या कह रहे हो, कुछ समझा नहीं,’’ रमेश बोला.

‘‘उस की वजह से जेल चला जाता, किसी तरह किस्मत से बच गया.’’ संतोष ने कहा.

‘‘क्या कह रहे हो? साफसाफ बताओ, उस ने क्या किया था तुम्हारे साथ?’’ रमेश ने उत्सुकता दिखाई.

‘‘अब मैं और क्या कहूं. रानी ने मेरे साथ कुछ गलत नहीं किया, बल्कि उस के कारण मेरे हाथों एक अपराध हो गया था.’’ संतोष बोला.

‘‘अपराधऽऽ कैसा अपराध? क्या किया तुम ने? कैसा कांड किया?’’ रमेश उत्सुकता से सवाल पर सवाल पूछता चला गया, लेकिन संतोष निरुत्तर बना रहा.

रमेश ने विस्तार से जानने की जिज्ञासा जताई, ‘‘यार, खुल कर बताओ आखिर बात क्या है?’’ इस का जवाब संतोष ने नहीं दिया. उस ने गोलमोल बातें करते हुए रानी से जुड़ी बातें टाल दीं. कुछ समय बाद संतोष वापस अपने घर लौट आया.

अगले दिन शाम के वक्त तालाब के पास दोनों की फिर मुलाकात हुई. वे पास की पुलिया पर बैठ गए. वहां से तालाब का नजारा काफी दूर तक दिखता था. संतोष और रमेश के बीचें बातों का सिलसिला फिर शुरू हो गया.

संतोष ने कहा, ‘‘यार, 10 साल पहले इसी तालाब के पास झाडि़यों से एक आदमी की लाश बरामद हुई थी. उस का क्या हुआ? उन दिनों मैं यहीं था, लेकिन उसी रोज अपने गांव चला गया था.’’

कुछ सोचता हुआ रमेश बोला, ‘‘हां हां, याद आया, तुम शायद लेखराम सेन की बात कर रहे हो. उस का तो पता ही नहीं चला कि उस के साथ आखिर हुआ क्या था? उस ने आत्महत्या कर ली थी या फिर अधिक शराब पीने के कारण उस की मौत हो गई थी.

‘‘कुछ लोग बताते हैं कि उस ने जहर खाया था और कुछ लोग बताते हैं कि वह तेंदुए का शिकार हो गया था. याद होगा उन दिनों गांव में तेंदुए का आतंक था.’’

रमेश की बातें सुन कर संतोष हंसने लगा. फिर बोला, ‘‘यार, तुम्हें एक हैरत की बात बताऊं, लेकिन किसी से मत बताना.’’

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‘‘यार दोस्ती में क्या तुम मुझ पर इतना भी विश्वास नहीं करोगे.’’

‘‘तुम पर तो पूरा भरोसा है, तभी तो मैं ने उस के बारे में पूछा.’’ संतोष बोला.

सहजता दिखाते हुए रमेश भी बोला, ‘‘ठीक है बताओ, तुम क्या बताना चाहते हो?’’

संतोष ने रहस्यमयी मुसकराहट के साथ बताया, ‘‘लेखराम ने न तो खुदकुशी की थी और न ही वह किसी तेंदुए का शिकार हुआ था. उसे तो मैं ने अपनी बेल्ट से गला घोंट कर मार डाला था और यहीं खेत के किनारे की झाडि़यों में फेंक दिया था.’’

‘‘नहींनहीं तुम क्यों मारोगे?’’ रमेश ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘अरे भाई, उस ने मुझे रानी के साथ देख लिया था और धमकी देने लगा था कि वह गांव वालों को बता देगा. बस, इसी बात पर मैं ने उसे मार डाला.’’

‘‘क्या तुम सच कह रहे हो, इस में कुछ झूठ तो नहीं है?’’ रमेश ने सवाल किया.

‘‘मैं झूठ क्यों बोलूंगा? अब इतने साल बाद मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा? अब तो मामला भी खत्म हो गया है.’’

‘‘हां, यह बात तो सही है कि कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. उस समय के पुलिस वाले भी अब नहीं हैं. जांच कौन करेगा?’’

संतोष हत्या की बातें बता कर अपने सिर पर से किसी बोझ के उतरने जैसा बेहद हल्का महसूस कर रहा था, जबकि रमेश उस की रहस्यमयी बातें सुन कर चिंता में पड़ गया था.

अपने दोस्त के आचरण और कृत्य के बारे में जान कर उस का मन बोझिल हो गया था. थोड़ी देर तक संतोष और रमेश के बीच शून्यता जैसी स्थिति बन गई थी. वे एकदूसरे को शांत भाव से देखने लगे. अंत में संतोष फिर मिलने का वादा कर खड़ा हुआ और चला गया. रमेश भी उस के पीछेपीछे होता हुआ अपने घर आ गया.

रमेश घर आ कर सोच में पड़ गया कि वह गांव के जिस व्यक्ति की मौत को आत्महत्या समझ रहा था, वास्तव में उस की हत्या हुई थी. और हत्यारा भी खुद उस के सामने अपना गुनाह कबूल चुका था. उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस अंतरद्वंद्व में पूरी रात करवटें बदलता रहा. किसी तरह से सुबह के करीब 5 बजे उस की आंख लग गई.

रमेश सुबह 8 बजे तक सोता रहा. फटाफट नहानेधोने का काम किया और नाश्ता कर सीधा खरोरा पुलिस थाने जा पहुंचा. उस के साथ यहां तक तो सब कुछ मशीन की तरह होता रहा, किंतु थाने के गेट पर आ कर उस के पैर ठिठक गए.

रमेश वापस लौट आया, लेकिन उस ने निर्णय लिया कि संतोष के अपराध की सूचना वह पुलिस को जरूर देगा. उस के बारे में फोन से बताएगा, जिस से उस का चेहरा किसी के सामने नहीं आएगा.

थाने से कुछ दूर हट कर उस ने पुलिस मुख्यालय को फोन लगा कर कहा, ‘‘मुझे किसी पुलिस अधिकारी से बात करनी है.’’ उधर से कारण पूछने पर बताया कि उसे एक हत्या के आरोपी के खिलाफ जानकारी देनी है. यह कहने पर पर रमेश की बात राजधानी रायपुर के एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल से करवाई गई.

रमेश ने पूरी जानकारी एसपी साहब को दे दी. इस सिलसिले में रमेश ने बताया कि 10 साल पहले गांव के लेखराम सेन की हत्या गला घोंट कर कर दी गई थी. इन दिनों हत्यारा उस के गांव में निश्चिंत हो ठहरा हुआ है.

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तरकेश्वर पटेल ने कहा, ‘‘तुम फोन पर नहीं, सामने आओ. मुझ से मिलो. घबराओ नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा, बल्कि पुरस्कार भी दिया जाएगा.’’

‘‘सर, मुझे कोई ईनाम नहीं चाहिए. मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि हत्यारे को सजा मिले, ताकि उस जैसे अपराधी कभी छिपने की कोशिश न करें. वैसे लोगों का यह घमंड भी टूटना चाहिए कि कानून उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है.’’

रमेश की बातें सुन कर एडिशनल एसपी बहुत खुश हुए और उन्होंने एसएसपी अजय यादव से समुचित दिशानिर्देश ले कर लेखराम सेन हत्याकांड की फाइल खुलवाई.

साथ ही एसडीओपी राहुल देव शर्मा और खरोरा थानाप्रभारी तीरथ सिंह ठाकुर को एक पुलिस टीम बनाने के निर्देश दिए.

पुलिस टीम ने संतोष यादव को 24 जून, 2021 को उस के गांव जरौद से हिरासत में ले लिया गया. संतोष पहले तो अचानक हुई गिरफ्तारी से घबराया बाद में उस ने पुलिस के सामने इधरउधर की बातें करते हुए फरहाद गांव में कभी भी जाने तक से इनकार कर दिया.

पुलिस ने जब उस का काला चिट्ठा खोलते हुए उस के ननिहाल में सभी दोस्तों और प्रेमिका के नाम लिए तब वह टूट गया. विवश हो कर उस ने यह स्वीकार कर लिया कि 14 जनवरी, 2011 की रात को उस ने किस तरह से अपने चचेरे भाई लोकेश यादव के साथ मिल कर लेखराम सेन की हत्या कर दी थी.

संतोष यादव ने उस रात की घटना के साथसाथ बारबार अपने ननिहाल और वहां रानी के साथ मौजमस्ती की बातें इस प्रकार बताईं—

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गांव जरौद थाना मंदिर हसौदा निवासी संतोष यादव उर्फ घनश्याम रमेश यादव का बेटा है. करीब 20 साल की उम्र में उस का अपने ननिहाल फरहदा गांव अकसर आनाजाना होता था. वहां हमउम्र युवाओं के साथ उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी.

वहीं उस की जानपहचान 17 साल की रानी से भी हो गई थी. वह रानी को दिल से चाहने लगा था. उसी वजह से वह अपने ननिहाल में हफ्तों तक पड़ा रहता था और इधरउधर मटरगस्ती भी किया करता था. इस मौजमस्ती में उस ने अपने चचेरे भाई लोकेश यादव को भी शामिल कर लिया था.

बात 14 जनवरी, 2011 की है. संतोष रात के 9 बजे के करीब लोकेश के साथ रानी का इंतजार कर रहा था. लोकेश कुछ दिन पहले ही वहां आया था. रमेश ने उसे भी किसी लड़की के साथ संपर्क करवाने का वादा किया था.

उधर रानी अपनी सहेली मधु के साथ घर से शौच के लिए निकली थी. उस ने मधु को फुसलाते हुए तालाब के पास चलने के लिए कहा. मधु के इनकार करने पर उसे अच्छी सहेली होने का हवाला दिया और फिर दोनों तालाब के पास जा पहुंचे.

वहां संतोष पहले से मौजूद था. मधु पहले से 2 लड़कों को देख कर सकपका गई और वहीं सड़क के किनारे बनी पुलिया के पास रुक गई.

रानी तेज कदमों से संतोष के पास चली गई. उसे साथ ले कर मधु के पास आई और उस का परिचय करवाया.

साथ में संतोष के भाई लोकेश का परिचय भी करवाती हुई उस से बोली, ‘‘तुम दोनों यहीं बातें करो.’’

तभी संतोष ने रानी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम से कुछ कहना है.’’

‘‘बोलो,’’ रानी बोली.

‘‘यहां नहीं उधर चलते हैं.’’ झाडि़यों की ओर इशारा करते हुए संतोष रानी का हाथ खींचने लगा. रानी भी उस का साथ देती हुई साथ चल पड़ी. मधु और लोकेश वहीं रुक गए. झाडि़यों के पास हल्का अंधेरा था. रानी और संतोष उन के पीछे एकदूसरे के प्यार में खो गए.

मधु और लोकेश परिचय के बाद वहीं पुलिया पर बैठ गए. मधु रानी के वापस आने का इंतजार करने लगी.

कुछ समय में मधु को गांव में सैलून की दुकान चलाने वाले लेखराम सेन के गाना गाने की आवाज सुनाई दी. वह घबरा गई. कारण लेखराम उस के पड़ोस में रहता था, उसे अच्छी तरह से पहचानता था.

मधु ने उस से कहा, ‘‘मैं घर जा रही हूं, रानी को बता देना.’’

यह कह कर मधु वहां से चली गई.

लेखराम लोकेश के पास आ कर रुक गया. लड़खड़ाती आवाज में पूछा. ‘‘कौन है भाई? यहां क्या कर रहा है?’’

लोकेश ने कुछ जवाब नहीं दिया. लेखराम ने दोबारा पूछा, ‘‘बोलता क्यों नहीं, तू तो इस गांव का नहीं लगता है.’’

लोकेश अभी कुछ बोलने वाला ही था कि लेखराम की नजर झाडि़यों की ओर घूम गई. वहां से कुछ हलचल दिखी. वह लोकेश से हट कर उस ओर जाने लगा. लेकिन लोकेश ने उधर जाने से रोका, ‘‘बाबूजी, उधर मत जाइए.’’

‘‘क्यों, उधर क्यों नहीं जाऊं? तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ लेखराम बोला.

‘‘बाबूजी, आप अपने घर जाइए न. नशे में हैं, गिरपड़ जाएंगे.’’ लोकेश ने समझाया.

‘‘तू कौन होता है मुझे रोकने वाला. आज का लौंडा है, तुम्हारी इतनी हिम्मत.’’ लेखराम कहता हुआ झाडि़यों के पास चला गया. वहां का दृश्य देख कर चीखता हुआ बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. यहां मौज की जा रही है.’’

लेखराम ने संतोष का हाथ पकड़ कर झाडि़यों में से खींच निकाला. रानी ने अपने कपड़े सहेजते हुए उस की ओर अपनी पीठ कर ली.

‘‘कौन है रे लड़की तू? गांव की इज्जत मिट्टी में मिलाने चली है.’’ लेखराम डांटते हुए बोला. इस बीच संतोष ने उस से हाथ छुटा कर उसे धक्का दिया. लेखराम गिर पड़ा. संतोष ने उसे पीछे से दबोच लिया. उसी समय लोकेश भी वहां पहुंच गया.

‘‘हमारे गांव में यह सब नहीं चलता है. तुम गलत कर रहे हो.’’ लेखराम ने चिल्लाते हुए धमकी दी कि उन्हें गांव में सब के सामने उस की करतूत बताएगा.’’

अब लोकेश ने भी उसे पकड़ लिया. 40 की उम्र का लेखराम जल्द ही असहाय हो गया. तभी उस ने हल्के अंधेरे में लड़की का चेहरा देख लिया. चिल्लाया, ‘‘अरे तू तो साहूकार की बेटी है. चल, मैं तेरे बाप को तुम्हारी करतूत बताता हूं.’’ लेखराम शिकायती लहजे में बोला.

रानी घबरा कर चेहरा हाथों से छिपाती हुई वहां से भाग गई. रानी को जाते देख संतोष और भी तिलमिला गया. उस ने तुरंत अपने पैंट से बेल्ट निकाली और देदनादन लेखराम पर बरसानी शुरू कर दी.

नशे की हालत में लेखराम उठ नहीं पाया. वह एकदम अधमरा हो गया. तब संतोष जाने लगा. इस पर लोकेश ने कहा कि भैया यह तो चोट खाया सांप बन गया है. कभी भी डंस लेगा.

यह सुन कर संतोष बोला, ‘‘ऐसा है क्या, चलो इस का काम ही तमाम कर देते हैं.’’

उस के बाद संतोष ने बेल्ट से ही उस का गला घोंट दिया’’ कुछ समय में ही लेखराम की मौत हो गई.

लेखराम की हत्या से बचने के लिए संतोष और रमेश ने उस की लाश वहां से थोड़ी दूर अंधेरे में फेंक दी. फिर वे तालाब में नहाधो कर अपने नानी के घर आ गए. वहां से एकदम सवेरेसवेरे दोनों अपने गांव लौट आए.

पुलिस की जांच और उस के पकड़े जाने पर संतोष को काफी हैरत हुई. पुलिस ने 10 साल पुरानी लाश के संबंध में जांच का दोबारा विश्लेषण करने के लिए नई फाइल बनाई. उस में संतोष द्वारा सभी इकरारनामे को दर्ज किया.

साथ में उस के दोस्त रमेश के बयान भी गवाही के तौर शामिल कर लिए गए. पुलिस ने 32 वर्षीय लोकश यादव को भी हिरासत में ले लिया और उस के बयान लिए.

इस आधार पर दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 201 और 34 के तहत मामला दर्ज कर आरोप पत्र तैयार कर लिया गया. दोनों को रायपुर की अदालत में पेश करने के बाद न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्र के आधार पर और इसमें रानी और मधु के नाम काल्पनिक रखे गए हैं

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