समस्या: ‘बूढ़ा’ के बगैर कैसे टूटेगी नक्सलियों की कमर

उम्र 80 साल. कई बीमारियों का शिकार. लकवा से पीडि़त. इस के बाद भी 4 राज्यों में नक्सली संगठनों की कमान. सिर पर एक करोड़ रुपए का इनाम. कई राज्यों में 200 से ज्यादा नक्सली वारदातों का आरोपी. हत्या के 100 से ज्यादा केस. 40 सालों से पुलिस को उस की तलाश.

प्रशांत बोस नाम का यह नक्सली कई सारे नामों से जाना जाता है. प्रशांत उर्फ किशन दा उर्फ मनीष उर्फ निर्भय मुखर्जी उर्फ काजल उर्फ महेश उर्फ बूढ़ा.

पिछले 40 सालों से पुलिस और 4 राज्यों की सरकार की नाक में दम करने वाला कुख्यात नक्सली प्रशांत बोस सैकड़ों नक्सली वारदातों का मास्टरमाइंड है. 12 नवंबर, 2021 को आखिरकार वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. झारखंड के जमशेदपुर जिला के कांद्रा नाका के पास से उसे स्कौर्पियो गाड़ी में दबोच लिया. उस के साथ उस की बीवी शीला मरांडी और 5 नक्सलियों को पकड़ा गया.

प्रशांत बोस भाकपा माओवादी नक्सली संगठन के पोलित ब्यूरो का सदस्य है और ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो का सचिव है. प्रशांत बोस ने कन्हाई चटर्जी के साथ मिल कर साल 1978 में माओवादी कम्यूनिस्ट सैंटर औफ इंडिया की बुनियाद रखी थी.

प्रशांत बोस के पास से पुलिस ने डेढ़ लाख रुपए नकद, एक पैन ड्राइव और

2 मैमोरी कार्ड बरामद किए थे. पुलिस ने पैन ड्राइव और मैमोरी कार्ड की जांच की, तो उस में कई नक्सलियों व नक्सली संगठनों के बारे में जानकारी के साथसाथ कई मीटिंगों की जानकारी भी मिली थी.

इस से पहले सीपीआई माओपादी संगठन के हार्डकोर नक्सली बैलून सरदार और सूरज सरदार ने रांची पुलिस के सामने सरैंडर किया था. उन्हीं से मिली जानकारी के आधार पर प्रशांत बोस को दबोचने में पुलिस को कामयाबी मिल सकी थी.

प्रशांत बोस नक्सली संगठन का थिंक टैंक है और पूरे देश के नक्सली संगठनों में उस की पैठ और अहमियत है. वह झारखंड के जंगलों और पहाडि़यों में ही रहता था. पुलिस को कई बार उस के हजारीबाग के जंगलों, बोकारो के झुमरा जंगल, सरांडा के जंगल और बूढ़ा पहाड़ में होने की जानकारी मिलती रही थी.

पुलिस ने घेराबंदी कर उसे पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन हर बार वह पुलिस को चकमा देने में कामयाब हो जाता था. सरांडा के जंगल में सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन से कई दफा उस की मुठभेड़ हुई, पर हर बार वह बच निकला.

प्रशांत बोस मूल रूप से पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के जादवपुर का रहने वाला है. उस की बीवी शीला मरांडी झारखंड के टुंडी ब्लौक के नावाटांड गांव की रहने वाली है.

प्रशांत बोस के पिता का नाम ज्योतिंद्र नाथ सन्याल था. प्रशांत बोस का मूल पता है 7/12 सी, विजयगढ़ कालोनी, जादवपुर, कोलकाता. उस की बीवी शीला मरांडी के पहले पति का नाम भादो हंसदा था. उस की मौत के बाद शीला ने प्रशांत बोस से शादी कर ली.

साल 1960 में प्रशांत बोस ने नक्सलियों से जुड़े एक मजदूर संगठन से जुड़ कर जमींदारों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. साल 1974 में वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया था और 1978 तक जेल की सलाखों के पीछे कैद रहा था.

रिहाई के कुछ समय बाद ही कन्हाई चटर्जी के साथ मिल कर उस ने एमसीसीआई (माओवादी कम्यूनिस्ट सैंटर औफ इंडिया) की बुनियाद रखी थी. उस के बाद उस ने गिरीडीह, धनबाद, हजारीबाग और बोकारो के जमींदारों के शोषण के खिलाफ आंदोलन तेज कर दिया था.

साल 2000 के आसपास प्रशांत बोस ने लोकल संथाल नेताओं के साथ मिल कर नक्सली संगठन को काफी मजबूत बना लिया था. साल 2004 में भाकपा माओवादी संगठन बनने के बाद प्रशांत बोस को केंद्रीय समिति और केंद्रीय सैन्य आयोग का सदस्य व पूर्वी क्षेत्रीय ब्यूरो का इंचार्ज बना दिया था.

साल 2007 में झारखंड मुक्ति मोरचा के महासचिव और जमशेदपुर के सांसद सुनील महतो की हत्या कर प्रशांत बोस ने सनसनी मचा दी थी. उस के अगले ही साल मंत्री रमेश मुंडा की हत्या कर एक बार फिर दहशत फैला दी थी. गृह रक्षा वाहिनी के शस्त्रागार को लूट कर उस ने पुलिस और सरकार को खुली चुनौती दे डाली थी. सरांडा के जंगल के 16 पुलिस वालों की हत्या का मास्टरमाइंड प्रशांत बोस ही था.

बिहार के जहानाबाद जेल बे्रक, महाराष्ट्र की कोकेगरांव हिंसा, छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में डेढ़ दर्जन जवानों की हत्या का सूत्रधार प्रशांत बोस ही था. ऐसे ही सैकड़ों मामलों में पुलिस उसे कई सालों से ढूंढ़ रही थी और हर बार पुलिस के जवानों की आंखों में धूल झोंकने में ‘बूढ़ा’ कामयाब हो जाता था.

मिली जानकारी के मुताबिक, प्रशांत बोस ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि 70 के दशक में वह पारसनाथ आया था. वहीं से वह लगातार नक्सली गतिविधियों का संचालन करता रहा. बीमारी और काफी उम्र हो जाने की वजह से उस ने कुछ दिन पहले ही फैसला लिया था कि जिंदगी का बाकी समय वह पारसनाथ की पहाडि़यों पर रह कर ही काटेगा.

प्रशांत बोस ने यह भी कहा कि सरांडा छोड़ने के बाद संगठन में फूट पड़ चुकी है. लोकल कैडर और नेतृत्व के बीच मतभेद काफी बढ़ चुका है. संगठन में मतभेद की वजह से ही पिछले कुछ महीनों में कई नक्सलियों ने सरैंडर किया है. नक्सलियों के लेवी वसूली में भी काफी कमी आ गई, जिस से संगठन चलाना बहुत ही मुश्किल हो गया है.

झारखंड के बड़े पुलिस अफसर कहते हैं कि तकरीबन 80 साल का प्रशांत बोस जिस्मानी तौर पर भले ही कमजोर हो चुका है, लेकिन दिमागी रूप से अभी भी बहुत शातिर है. अभी भी वह किसी का भी दिमाग घुमा कर नक्सली बना सकता है.

अंधविश्वास की शिकार औरतें

देश के एक समाचारपत्र समूह द्वारा किए गए सर्वे में यह बात निकल कर आई है कि हमारे देश में हर तीसरे दिन एक मौत जादूटोना और अंधविश्वास की वजह से होती है.

साल 2001 से साल 2014 तक की 14 साल की रिपोर्ट में यह देखा गया कि भारत में 2,290 औरतों की मौत की वजह जादूटोना और अंधविश्वास है. इन 14 सालों में मध्य प्रदेश में 234 मौतें दर्ज की गईं. इन मौतों की वजह भी समाज के सभी तबकों में फैला अंधविश्वास ही है.

एक ऐसा ही मामला जबलपुर शहर की एक पढ़ीलिखी औरत के साथ हुआ. जबलपुर के गढ़ापुरवा में भद्रकाली दरबार के बाबा संजय उपाध्याय के परचे पूरे जबलपुर शहर में बांटे जाते थे.

परचे में छपे इश्तिहार में दावा किया गया था कि दरबार में एक नारियल चढ़ा कर सभी तरह की समस्याओं का समाधान किया जाता है.

संजय बाबा के इसी गलत प्रचारप्रसार के झांसे में जबलपुर शहर की 52 साल की एक औरत अनीता (बदला नाम) भी आ गई. अनीता का अपने पति से अलगाव चल रहा था, जिस की वजह से वह मानसिक रूप से परेशान रहती थी. बाबा द्वारा किए जा रहे प्रचारप्रसार के चक्कर में आ कर वह नवंबर, 2019 में भद्रकाली दरबार में पहुंची थी.

दरबार के पंडे संजय उपाध्याय ने उन्हें बताया कि पूजापाठ और मंत्र जाप करने से तुम्हारा पति तुम्हारे वश में हो जाएगा. इस तरह हैरानपरेशान अनीता को तांत्रिक संजय बाबा ने अपने झांसे में ले लिया.

संजय बाबा द्वारा बताए गए दिन जब अनीता मंदिर पहुंची, तो पूजापाठ के बहाने संजय महाराज उसे दरबार के नीचे बने एक ऐसे कमरे में ले गया, जो एकांत में होने के साथ आलीशान सुखसुविधाओं से सजा हुआ था.

संजय बाबा ने पूजापाठ के पहले उसे  जल पीने के लिए दिया. जल में कुछ नशीली चीज मिली हुई थी, जिस के चलते वह बेहोशी की हालत में चली गई. उसी दौरान संजय बाबा ने उस के साथ दुराचार कर मोबाइल फोन से वीडियो भी बना लिया.

इस घटना के बाद संजय बाबा अनीता को वीडियो दिखा कर ब्लैकमेल करने लगा. इस के बाद तो बाबा का जब मन होता, वह अनीता को वीडियो वायरल करने की धमकी देते हुए उसे अपने पास बुला लेता.

संजय बाबा द्वारा अनीता का कई बार शारीरिक शोषण किया गया. इस दुराचार से परेशान हो कर वह गुमसुम रहने लगी. परिवार के लोगों ने जब उस से वजह पूछी, तो अनीता ने अपने साथ हुए गलत बरताव की पूरी कहानी बता दी.

अनीता के परिवार वालों ने उसे हिम्मत बंधाते हुए 22 जुलाई, 2020 की रात जबलपुर के कोतवाली पुलिस थाने ले जा कर पूरी कहानी बताई और उस के साथ संजय बाबा द्वारा किए गए दुराचार की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने सक्रियता से जब मामले की जांच की, तो संजय उपाध्याय की काली करतूत सामने आ गई. बाबा लेता था हर महीने पैसे जबलपुर के कोतवाली थाना प्रभारी के मुताबिक, तांत्रिक संजय उपाध्याय अनीता से हर महीने उस के पति को वीडियो भेजने की धमकी दे कर 20,000 रुपए रखवा लेता था. परेशान अनीता को वह अपने दरबार में काम के लिए भी घंटों बैठाए रखता था.

इस तांत्रिक के खिलाफ पहले भी कई औरतों ने शिकायत की थी और वीडियो भी वायरल हुए थे. इस के बाद भी तांत्रिक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. एक लड़की के मातापिता ने तो संजय उपाध्याय पर लिखित में भी गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन हर बार वह अपने संपर्कों का सहारा ले कर बच जाता था.

क्यों जाल में फंसती हैं

समाज में आज भी ऐसे बाबाओं, पीरफकीरों की कमी नहीं है, जो बीमारी के इलाज के नाम पर, तो कहीं औरतों की सूनी गोद भरने के नाम पर उन्हें बहलाफुसला कर अपनी हवस मिटाते हैं.

आखिर औरतों को यह बात समझ में क्यों नहीं आती है कि औलाद होने के लिए पतिपत्नी के बीच सैक्स संबंधों का होना जरूरी है? औरतों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि पति को प्यार और विश्वास से मना कर उस के दिल पर राज किया जा सकता है.

एक तरफ तो औरतें बाबाओं और तांत्रिकों को अपना सबकुछ सौंपने के लिए तैयार हो जाती हैं, पर पति और उस के परिवार की खुशियों के लिए अपने अहम को सब से ऊपर रख कर पति की बात मानने के लिए तैयार नहीं होती हैं.

इसी तरह शारीरिक और मानसिक परेशानियों का इलाज भी डाक्टरी सलाह और दवाओं से किया जा सकता है. लिहाजा, औरतों को सोचसमझ कर ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फंसने से बचना होगा.

नेता फैला रहे अंधविश्वास

देश के नेता मौजूदा दौर में अंधविश्वास को पनपने में मददगार बने हुए हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बारबार धार्मिक स्थलों पर जा कर साधुसंन्यासियों से मिलना तो यही दिखाता है.

महाकाल की नगरी उज्जैन में रात्रि विश्राम करने पर राजा का राजपाठ चले जाने का अंधविश्वास उन्हें कभी उज्जैन में रात को नहीं रुकने देता. कुरसी जाने के डर से वे अशोकनगर नहीं जाते हैं, तो नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक जाने के लिए वे हैलीकौप्टर से नदी पार नहीं करते हैं.

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह अपने धार्मिक गुरु से पूछे बिना कोई काम नहीं करते हैं. उन की पत्नी राजयोग सदा बने रहने के लिए सुहागिनों को सिंगार का सामान बांटती हैं.

मध्य प्रदेश की एक राज्यमंत्री ललिता यादव बुंदेलखंड में अच्छी बारिश के लिए मेढकमेढकी की शादी रचा कर अंधविश्वास फैलाने का काम करती हैं, तो मंत्री गोपाल भार्गव रोजाना नंगे पैर चल कर गणेश मंदिर में पूजापाठ करते हैं.

मंत्री नरोत्तम मिश्रा पीतंबरा देवी के दर्शन के बिना कोई काम नहीं करते हैं. कांग्रेस के दिग्विजय सिंह शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के चेला हैं. वे भी बिना साधुसंतों की सलाह के कोई कदम नहीं उठाते हैं.

परंपरा के नाम पर फैला अंधविश्वास आज भी समाज में अपनी जड़ें इतनी गहरी जमाए बैठा है कि 21वीं सदी का मौडर्न कहा जाने वाला इनसान इस के बुरे नतीजों से बच नहीं पा रहा है.

मध्य प्रदेश का गोटमार मेला और हिंगोट युद्ध इस की जीतीजागती मिसाल है, जिस में हर साल परंपरा के नाम पर सैकड़ों लोग घायल होते हैं और कभीकभी तो उन की जान पर भी बन आती है. ऐसे कार्यक्रमों में शराब के नशे में होश खो चुके लोग पत्थरबाजी के साथ हिंसक हो जाते हैं और प्रशासन मूकदर्शक बन कर हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है.

अंधविश्वास के प्रसारप्रचार में धर्म के ठेकेदारों की भूमिका काफी अहम रही है. अपनी दुकानदारी जमाने के लिए धार्मिक किताबों में लोगों को धर्म का डर दिखा कर कर्मकांड के नाम पर अंधभक्ति का बीज बोने वाले पंडेपुजारी आज अंधविश्वास की फसल काट कर उसे ही अपनी कमाई का जरीया बनाए हुए हैं.

हमारे देश में साक्षरता की दर बढ़ने और सामाजिक जीवन में विज्ञान के आविष्कारों के आने के बावजूद लोगों का मोह अंधविश्वासों से भंग नहीं हुआ है, बल्कि नएनए अंधविश्वास समाज में जन्म ले रहे हैं. विज्ञान के प्रयोग और सरकारी कार्यक्रम भी अंधविश्वास भगाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं.

देश के नेता मौजूदा दौर में अंधविश्वास को पनपने में सहायक बने हुए हैं. कुरसी पाने के लिए मठमंदिरों में मत्था टेकने और साधुसंतों की शरण में जाने वाले समाज के बड़े लोगों के आचरण आम जनता में अंधश्रद्घा फैलाने का काम कर रहे हैं. राजनीतिक पार्टियों के नेता ऐसे मठाधीशों, बाबाओं और प्रवचनकर्ताओं के साथ हैं, जिन के पीछे बड़ी तादाद में भक्तों की भीड़ हो.

जब इसरो के वैज्ञानिक चंद्रयान की कामयाबी के लिए नारियल फोड़ने और मंदिरों में पूजापाठ के भरोसे हों और धर्मनिरपेक्ष देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह राफेल लड़ाकू विमान को फ्रांस से लाने के बाद उस पर ‘ओम’ लिख कर, नारियल चढ़ा कर विमान के पहियों के नीचे नीबू रखते हों, तो जनता का तो अंधविश्वासी होना लाजिमी है.

जागरूकता: गर्भपात तुरंत कराएं, वजह चाहे जो भी हो

अगर किसी लड़की के सैक्स संबंध के चलते बच्चा ठहर जाए, तो गर्भपात तुरंत कराना चाहिए. कई वजहों से गर्भपात कराना पड़ जाता है. कई बार अनचाहे गर्भधारण के चलते भी ऐसे कदम उठाने पड़ जाते हैं.

वजह चाहे जो भी हो, गर्भपात कराने से लड़की पर मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से गहरा असर पड़ता है. बच्चे होने से अच्छा गर्भपात कराना ही सुरक्षित है. हर मामले में गर्भपात कराने के बाद लड़की राहत की सांस लेती है.

गर्भपात कराने के बाद शारीरिक साइड इफैक्ट्स से कहीं ज्यादा भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक

असर देखा गया है और इस में मामूली दुख से

ले कर डिप्रैशन तक जैसी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

गर्भपात कराने के बाद किसी ऐसी अनुभवी बड़ी लड़की से सभी खतरों के बारे में हर तरह की चर्चा कर लेना बहुत जरूरी है, जो आप के सभी सवालों और इन से जुड़े उसी का जवाब दे सके.

नकारात्मक, भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक असर से जुड़ा एक सब से बड़ा फैक्टर यह है कि आप के शरीर को यही लगता रहता है कि आप के अंदर अभी भी बच्चा पल रहा है.

कुछ लड़कियों में नैगेटिव फीलिंग ज्यादा होती है, क्योंकि गर्भधारण को ले कर उन का नजरिया बिलकुल अलग रहता है और वे सम?ाती हैं कि भ्रूण एक अविकसित जीव था, जो गया सो गया, पर कुछ लड़कियां गर्भपात कराने के बाद ज्यादा तनाव महसूस करती हैं.

खानपान में डिसऔर्डर, बेचैनी, गुस्सा, अपराधबोध, शर्म, आपसी संबंध की समस्याएं, अकेलापन या अलगथलग रहने का अहसास, आत्मविश्वास में कमी, अनिद्रा, आत्महत्या का विचार इस के साइड इफैक्ट्स में शामिल है.

गर्भपात कराने के बाद मुमकिन है कि किसी को भी अनचाहे भावनात्मक या मानसिक साइड इफैक्ट्स का अनुभव हो. आमतौर पर लड़कियों का अनुभव बताता है कि गर्भपात कराने को ले कर जितना वे उम्मीद कर रही थीं, उस से कहीं ज्यादा उन्हें इस प्रक्रिया से ?ोलना पड़ा.

जिन लड़कियों पर नैगेटिव भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक साइड इफैक्ट्स पड़ने की उम्मीद ज्यादा रहती है, उन में निम्न लड़कियां शामिल हैं :

* जो लड़कियां पहले से ही किसी दूसरी भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक परेशानी से जू?ा रही हैं.

* जो लड़कियां गर्भपात कराने

के लिए बहकाई गई हों और प्रेमी ने

शादी से इनकार कर दिया हो.

* गर्भपात को ले कर जिन लड़कियों की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हों.

* जिन लड़कियों को लगता हो कि गर्भपात कराना पाप या अनैतिक है.

* जिन लड़कियों को इस के लिए अपने पार्टनर का सहयोग नहीं मिल रहा हो.

लड़कियों के लिए सु?ाव

मदद लें : अनियोजित यानी शादी से पहले गर्भ से डर, विवाह के बाद जल्दी या दूसरेतीसरे बच्चों के चलते गर्भधारण की समस्या से निबटने के लिए शायद सब से जरूरी चीज होती है, ऐसे प्रशिक्षित प्रोफैशनल्स से सलाह देना, जो आप के सवालों का जवाब दे सके और आप की पर्स या पोजीशन पर चर्चा कर सके.

यदि आप बेचैनी का अनुभव कर रही हैं, तो सलाह ले सकती हैं. एकांत में रहने से बचें. अगर आप अनियोजित गर्भधारण की समस्या से जू?ा रही हैं, तो हो सकता है कि आप इस समस्या को राज रखने के लिए दूसरों से कटने लगेंगी या अकेले ही इस समस्या का सामना करने की सोचेंगी.

हालांकि यह मुश्किल हो सकता है, लेकिन इस बारे में अपने परिवार वालों और दोस्तों को बताने की कोशिश करें, जो आप को सहयोग कर सकें. ऐसे हालात में खुद को अलगथलग रखने से आप डिप्रैशन की शिकार हो सकती हैं.

अपने हालात का जायजा लें : उन लड़कियों की समस्याओं पर गौर करें, जिन्हें एक या ज्यादा साइड इफैक्ट्स का अनुभव हुआ हो. अपनी समस्या के बारे में किसी ऐसे करीबी को बताएं, जो आप के नजरिए में आप का सहयोग कर सके और आप को सम?ा सके.

तनाव से बचें : ऐसे लोगों से बचें, जो आप पर इस तरह का दबाव बना रहे हों कि वे जो सोचते हैं, वही सब से अच्छा है. आप चाहे मां बनना चाहें, बच्चे गोद लेना चाहें या गर्भपात कराना चाहें, आप अपनी पसंद के साथ जीने के लिए आजाद हैं यानी कोई भी फैसला 100 फीसदी आप का ही होना चाहिए.

दूसरों से चर्चा करें : किसी ऐसी लड़की से मिलें, जो गर्भपात करा चुकी हो, ताकि पता चल सके कि कैसा अनुभव होता है.

गर्भपात के बाद लड़कियों में अलगअलग शारीरिक साइड इफैक्ट्स हो सकते हैं. गर्भपात के बाद संभावित विस्तृत साइड इफैक्ट्स के बारे में किसी अनुभवी हैल्थ प्रोफैशनल और डाक्टर से जानकारी पाना जरूरी है.

यह भी जरूरी है कि गर्भपात के 4-6 हफ्ते बाद आप की मासिक क्रिया सही हो जाए और गर्भपात कराने के बाद आप दोबारा मां बनने लायक हो जाएं. इंफैक्शन से बचने के लिए अपने डाक्टर की सलाह के मुताबिक ही दवाओं का सेवन करना जरूरी है.

एक बात याद रखें कि अगर आप ने गर्भपात कराया है तो भी होने वाले पति को कभी पता नहीं चलेगा कि आप उस से गुजर चुकी हैं, इसलिए शादी से पहले कराए गए गर्भपात के बारे में कभी पति को या पति के सामने डाक्टर को न बताएं.

शर्मनाक: पिटाई से दलित छात्र की मौत, घिनौना जातिवाद

राजस्थान से एक झकझोर देने वाली खबर आई है. वहां के जालोर जिले के सायला ब्लौक के गांव सुराणा में सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल की तीसरी जमात का 9 साल का एक दलित छात्र इंद्रकुमार मेघवाल भारत के जातिवाद की भेंट चढ़ गया.

इंद्रकुमार मेघवाल को पानी पीने की मटकी छूने के चलते बेरहमी से पीटा गया था. यह घटना 20 जुलाई, 2022 की है. तकरीबन 25 दिन के इलाज के बाद बच्चे ने अहमदाबाद में दम तोड़ दिया था. आरोपी शिक्षक छैल सिंह भौमिया को गिरफ्तार कर हिरासत में ले लिया गया.

‘एक टीचर ने बकाया फीस की वजह से पीटपीट कर बच्चे को मार डाला’, ‘एक शिक्षिका ने बच्चे के मुंह में डंडा घुसेड़ कर उसे अधमरा कर दिया’… इस तरह की आसपास हिंसा की ऐसी ही और भी वारदातें हो रही हैं.

दुख और शर्म की बात यह है कि यह देश सदियों से जाति और जैंडर आधारित हिंसा झेल रहा है और लोग जाति और धर्म का झूठा गौरवगान कर रहे हैं.

इंद्रकुमार मेघवाल की हत्या पर इंसाफ मांग रहे लोगों पर फिर दमन की लाठियां चलीं और कुछ दलितों का भी खून बहाया गया. मारे गए छात्र के शोक में डूबे परिवार वालों को भी लाठियों का शिकार होना पड़ा.

सिस्टम इतना असंवेदनशील है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के विधायक पानाचंद मेघवाल ने अपनी विधायकी से इस्तीफा देना उचित समझा.

आरोपी शिक्षक छैल सिंह भौमिया राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखता है. वह अपने एक पार्टनर के साथ इस स्कूल का संचालक और हैडमास्टर भी था.

गांव सुराणा के इस सरस्वती विद्या मंदिर में सभी जातियों के तकरीबन 350 छात्र पढ़ रहे हैं. यह गांव भौमिया राजपूत समुदाय की बहुलता वाला है, पर स्कूल में दलित विद्यार्थियों के साथसाथ दलित व आदिवासी शिक्षक भी नियुक्त हैं और इस स्कूल का एक पार्टनर तो जीनगर है, जो दलित समुदाय का ही है.

इंद्रकुमार मेघवाल ने स्कूल के हैडमास्टर छैल सिंह भौमिया के लिए रखी पानी पीने की मटकी से पानी पी

लिया था और इस से आगबबूला हैडमास्टर ने मासूम बच्चे के साथ मारपीट की. जिस से उस के दाएं कान और आंख पर गंभीर चोट आई और उस की नस फट गई.

शिक्षक छैल सिंह भौमिया के गिरफ्तार होते ही शिक्षक की जाति के लोग संगठित और सक्रिय हुए और उन्होंने यह कहते हुए कि ‘पानी की मटकी छूने और मारपीट करने की बात झूठ है’.

अब सोशल मीडिया पर जातिवादी संगठन अपने बचाव में तरहतरह की बातें लिख रहे हैं जैसे कि उस विद्यालय में कोई मटकी थी ही नहीं, सब लोग पानी की टंकी से ही पानी पीते थे. पानी की बात, मटकी की बात, छुआछूत की बात और यहां तक कि मारपीट की बात भी सच नहीं है. लड़का पहले से ही बीमार था, बच्चे आपस में झगड़े होंगे, जिस से उसे चोट लग गई होगी.

उसी स्कूल के एक अध्यापक गटाराम मेघवाल और कुछ विद्यार्थियों को मीडिया के सामने पेश किया गया कि पानी की मटकी की बात सही नहीं है. इस स्कूल में कोई भेदभाव नहीं है और न ही बच्चे के साथ मारपीट की गई.

जालोर के भाजपा विधायक जोगेश्वर गर्ग ने भी अपना सुर मिलाया और खुलेआम आरोपी शिक्षक को बचाने की कोशिश करते हुए वीडियो जारी किया. पुलिस ने भी बिना इंवैस्टिगेशन पूरा किए ही मीडिया को बयान दे दिया कि मटकी का एंगल नहीं लग रहा है.

इतने बड़े कांड को 23 दिन तक छिपा कर रख दिया गया. अगर दलित इंद्रकुमार की मौत नहीं होती, तो पूरा मामला मैनेज ही किया जा चुका होता.

‘मानवतावादी विश्व समाज’ के संरक्षक आईपीएस किशन सहाय ने इस मुद्दे पर कहा, ‘‘भारत सरकार और राज्य सरकारें आजादी के 75 साल पूरे होने पर आजादी का ‘अमृत महोत्सव’ मना  रही हैं, वहीं दूसरी तरफ दलितों को ऊंची जातियों के साथ पानी पीने तक का अधिकार नहीं है.

‘‘राजस्थान में ऊंची जाति के शिक्षक की मटकी से पानी पीने पर मौत की सजा इसलिए दी गई, क्योंकि वहां मनुवाद और पति की मौत पर सती बनने वाली फूलकुंवर की सोच अभी जिंदा है.

‘‘पौराणिक ग्रंथों की दकियानूसी मान्यताओं, शोषित  समाज की इज्जत के साथ खिलवाड़ और औरतों के आत्मसम्मान पर थोपी गई नैतिकता का रिवाज धर्म के आवरण में छिपा हुआ है. पापाचार, कुरीति, आडंबर और छुआछूत को कुचलने में कामयाबी इसलिए नहीं मिल पा रही है, क्योंकि कुछ राजनीतिक दलों के लिए मनुवाद ब्रह्मास्त्र की तरह है.’’

राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में 28 जुलाई, 1989 को उच्च न्यायिक सेवा एसोसिएशन ने लायंस क्लब के सहयोग से लगवाई गई मनु की प्रतिमा विवाद का जिक्र करते हुए किशन सहाय ने कहा, ‘‘मनु के विवादित स्टैच्यू को हटाने के लिए हाईकोर्ट ने निर्देश भी दिया, लेकिन भाजपा के अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद के नेता आचार्य धर्मेंद्र ने इस फैसले को चुनौती देते हुए इस पर अंतरिम रोक का आदेश हासिल कर लिया था. बाद में कोई भी सरकार मनु की प्रतिमा हटवाने की हिम्मत नहीं दिखा सकी.

‘‘साल 2015 में हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई तो हुई, लेकिन 3 दशक गुजर जाने के बावजूद जातिवाद और छुआछूत को बढ़ावा देने वाली मनु संस्कृति के कलंक को मिटाया नहीं जा सका.’’

बीते दिनों वाराणसी, उत्तर प्रदेश के एक गांव सुइलरा में विजय गौतम नामक दलित बच्चे पर 4 किलो चावल चुराने का झूठा इलजाम लगा कर दबंगों ने बुरी तरह पीटा था, जिस से उस की मौत हो गई थी, जबकि पुलिस ने आरोपियों पर ऐक्शन लेने के बजाय पीडि़त पक्ष के लोगों को ही धारा 151 में जेल भेज दिया था.

सामाजिक चिंतक भंवर मेघवंशी का कहना है, ‘‘सिर्फ राजस्थान में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में जाति के आधार पर शोषण के उदाहरण हर जगह देखने को मिल जाते हैं. समाज में ऊंचनीच की दरार अभी भी मौजूद है. चतुर लोगों ने जाति और वर्ण का भेद जानबूझ कर पैदा किया है. इस में वे लोग सब से आगे हैं, जो सुविधाभोगी हैं.

‘‘आजाद देश में हर कोई इज्जत के साथ जीना चाहता है, लेकिन मनुवाद के पोषक नहीं चाहते हैं कि उन के नाम के आगे जातिसूचक नाम लगा रहे. जब तक राष्ट्र में एक नियम, समान आर्थिक सुविधा, समान समाज नीति, एक भाषा का पालन नहीं कराया जाएगा, तब तक छुआछूत की दहशत बनी रहेगी.

‘‘इंद्रकुमार के मुद्दे पर दलित समाज गुस्सा हो कर आंदोलन की राह पकड़ रहा है, तो इस के लिए कोई और नहीं सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार है.’’

आज भी देश के ज्यादातर गांवों के दूसरे छोर पर अछूतों की बस्ती अपने बंधे हाथ और पिघलती आंखों से गूंगे की तरह अपने मालिकों के आदेश का पालन करने के लिए मजबूर है. अपने हक के लिए वे लोग अपनी आवाज नहीं उठा सकते हैं. अपनी हिफाजत के लिए अपनी भुजाओं का इस्तेमाल करना जैसे वे भूल गए.

दलितों को अस्पृश्य में बराबरी मानने पर संविधान व कानून में दंड का प्रावधान है. इस के बावजूद इंद्रकुमार मेघवाल जैसे तमाम मासूम रोज कहीं न कहीं अछूतपन और बेइज्जती के शिकार हो रहे हैं, पर क्या मजाल कि संविधान और उस का कानून अपने सजा देने के हक का इस्तेमाल कर सके.

दलित घरों में विधवा की शादी

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के रम्पुरा गांव में रहने वाली अनीता का कुसूर केवल इतना था कि वह एक ब्राह्मण के घर पैदा हुई थी. 18 साल की होते ही वह 12वीं जमात पास हुई, तो उस की शादी कर्मकांड करने वाले एक पंडित के बेटे से करा दी गई. पंडित होने की वजह से जन्म कुंडली का मिलान कर शुभ मुहूर्त में शादी की रस्में निभाई गईं.

अनीता ससुराल में कुल 4 महीने ही रह पाई थी कि उस के पति की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. ससुराल वाले उसे इस बात के लिए ताना देते कि उस के कदम घर में पड़ते ही उन का बेटा दुनिया छोड़ गया.

ससुराल वालों के तानों से परेशान हो कर अनीता अपने पिता के घर पर रहने लगी. उस की हालत देख कर मां के मन में कई बार अपनी लड़की की फिर से शादी करने का विचार आता, पर वे अनीता के पिता से कभी इस का जिक्र नहीं कर सकीं.

अनीता की मां जानती थीं कि जातिबिरादरी की दकियानूसी परंपराओं के चलते अनीता के पिता कभी उस की दोबारा शादी के लिए तैयार नहीं होंगे.

इस घटना को 20 साल हो चुके हैं. तब से ले कर अब तक अनीता अपने पिता के घर पर अपनी पहाड़ सी जिंदगी बिताने को मजबूर है. दिनभर वह नौकरों की तरह घर के काम में लगी रहती है और अपनी कोई ख्वाहिश किसी के सामने जाहिर नहीं होने देती.

अनीता जैसी न जाने कितनी विधवा लड़कियां हैं, जो सामाजिक रीतिरिवाजों के चलते जिंदगी की खुशियों से दूर हैं. ऊंची जातियों में फैली इन कुप्रथाओं को देख कर तो लगता है कि जिन जातियों को समाज में नीचा समझा जाता है, वे इन मामलों में कहीं बेहतर हैं.

हमारे देश में चल रही वर्ण व्यवस्था में ऊंची जाति के ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य भले ही दलितों को हिकारत की नजर से देखते हों, पर कम पढ़ेलिखे इन दलितों की सोच पढ़ेलिखे ऊंची जाति के ठेकेदारों से कहीं अच्छी है.

16 फरवरी, 2021 को संत रैदास जयंती पर दलित समाज के लोगों द्वारा  कराई गई एक शादी की चर्चा करना बेहद जरूरी है.

मध्य प्रदेश के गाडरवारा में रहने वाले छिदामी लाल अहिरवार की 26 साल की बेटी ज्योति के पति की मौत अप्रैल, 2021 में कोरोना की तीसरी लहर में हो गई थी.

ज्योति के पति राजन प्राइवेट स्कूल में टीचर थे. उन की मौत के बाद ज्योति अपने बेटे को ले कर अपने पिता के पास रहने लगी.

पिता छिदामी लाल पेशे से सरकारी स्कूल में चपरासी हैं, पर उन की सोच बड़ी है. उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की चिंता थी. उन्होंने सोचसमझ कर समाज के लोगों के बीच उस की दूसरी शादी की चर्चा की, तो शिक्षक वंशीलाल अहिरवार, मानक लाल मनु ने छिदामी लाल की इस पहल की तारीफ की.

समाज के लोगों के बीच हुई चर्चा में पता चला कि चीचली के पास हीरापुर गांव के शिवदास त्रिपालिया के 33 साल के बेटे हेमराज की पत्नी विनीता की मौत आज से 5 साल पहले हो चुकी थी. विनीता और उस के होने वाले बच्चे की मौत जचगी के दौरान ही हो गई थी.

हेमराज साइंस में ग्रेजुएट और कंप्यूटर में पीजीडीसीए की डिगरी ले कर एक निजी स्कूल में पढ़ाता है. दोनों पक्षों की रजामंदी से ज्योति और हेमराज की दूसरी शादी का फैसला हुआ और हेमराज ज्योति के बेटे के साथ उसे दुलहन बना कर अपने घर ले आया.

दलित समाज में होने वाला विधवा विवाह कोई नई बात नहीं है. दलित समाज में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है. विधवा या विधुर की दूसरी के लिए इस तबके के लोग पंडितपुरोहितों से इजाजत लेने के बजाय लड़कालड़की की रजामंदी को तवज्जुह देना ज्यादा जरूरी समझते हैं.

मनुवादी सोच भी जिम्मेदार

समाज में विधवा की बुरी हालत के लिए मनुवादी सोच और व्यवस्था भी कम जिम्मेदार नहीं है. ‘मनुस्मृति’ में विधवा की दूसरी शादी का कोई विधान नहीं लिखा गया है. मनुवादी विधवा को कठोर जीवन जीने का आदेश दे कर उन से पाकसाफ आचरण की उम्मीद रखते हैं.

‘मनु विधि संहिता’ के अनुसार, पति के मर जाने के बाद औरत पवित्र पुष्प, कंद और फल के आहार से शरीर को क्षीण कर और व्यभिचार की भावना से दूसरे मर्द का नाम भी न ले. एक पतिव्रता धर्म चाहने वाली औरत जिंदगीभर क्षमायुक्त नियम से रहने वाली और मदिरा, मांस और मधु को छोड़ कर ब्रह्मचर्य से जीवन बिताए.

मनुवादी पापपुण्य का डर दिखा कर केवल यह चाहते हैं कि पति के मरने के बाद औरत मन, वचन, कर्म से संयत जीवन जिएगी, तो सीधे स्वर्ग की टिकट की अधिकारी हो जाएगी.

आज भी गांवकसबों में किसी विधवा के साथ उस के परिवार के लोग गलत बरताव करते हैं. जिस घर में वह अपने पति के जीवित रहते घर की मालकिन हो कर रहती थी, वहां उसे अब एक नौकरानी की तरह जिंदगी जीने के लिए मजबूर किया जाता है.

यही नहीं, विधवा अपने बच्चों के अलावा और सभी के द्वारा अशुभ मानी जाती थी. उस होने भर से उस के चारों ओर उदासी छा जाती थी. वह घर के मांगलिक समारोहों में शामिल नहीं हो सकती थी.

मनुवादियों ने समाज में यह गलत धारणा फैला दी है कि विधवा सभी लोगों के लिए दुर्भाग्य की वजह बनती है. विधवा औरत को घर के नौकरचाकर तक भाग्यहीन मानते हैं. सामाजिक तौर पर विधवा औरत समाज के कड़वे तानों का शिकार होती है.

विधवा को इज्जत नहीं

आज के दौर में लोग इस बात की दुहाई देते हैं कि अब लड़कियां किसी से कम नहीं हैं. वे मर्दों की तरह ही सब काम करती हैं और आजाद हैं, लेकिन आएदिन जब रेप जैसी वारदात सामने आती हैं, तब ये सब बातें बेमानी सी लगती हैं. शादीशुदा हो या कुंआरी, उसे हमेशा मर्द के साथ की जरूरत महसूस करवाई जाती है और जब किसी वजह से मर्द का साथ उस से छूट जाता है, तो उन्हें जिन हालात का सामना करना पड़ता है, वे बदतर होते हैं.

औरतों को इज्जत दिलवाने की पैरवी तो की जाती है, लेकिन अगर वाकई ऐसा होता तो आज ‘विधवाएं’ किसी आश्रम में अपने मरने का इंतजार न करतीं. सच तो यह है कि उन्हें समाज द्वारा कड़े बंधनों में बांध कर रखा गया है. समाज ने उन के पहनावे से ले कर खानपान तक के नियम तय कर रखे हैं.

धर्म और शास्त्र हैं वजह

औरत की आजादी और तरक्की में सब से बड़ी बाधा हमारे धर्मग्रंथ हैं, जिन में लिखी बातें मर्दों को तमाम तरह की छूट देते हैं, पर औरतों की आजादी पर पहरा बिठाने की वकालत करते हैं. सादा रहना और सफेद साड़ी पहनना तो जैसे एक विधवा की पहचान बन गई है. यह शास्त्रों में लिखा गया नियम है, जिस के आधार पर जिस औरत के पति की मौत हो जाए, उसे अपने खानपान और पहनावे में बदलाव कर लेना चाहिए.

धर्मशास्त्रों के अनुसार, पति की मौत के 9वें दिन सफेद वस्त्र धारण करने का नियम है, जिसे निभाना बहुत जरूरी माना गया है. स्त्री को उस के पति की मौत के कुछ सालों बाद तक केवल सफेद कपड़े ही पहनने होते हैं और उस के बाद अगर वह रंग बदलना चाहे तो भी बेहद हलका कपड़ा ही पहनना होगा.

शास्त्रों की मानें, तो एक विधवा को बिना लहसुनप्याज वाला भोजन करना चाहिए और साथ ही उन्हें मसूर की दाल, मूली व गाजर से भी परहेज रखना चाहिए. सिर्फ इतना ही नहीं, उन के लिए भोजन में मांसमछली परोसना घोर अपमान व पाप के समान है. उन का खाना पूरी तरह सात्विक होना चाहिए.

धर्म के ठेकेदारों की मनुवादी सोच साफतौर पर यह बात जाहिर करती है कि वे औरत का गुलाम बना कर रखने की वकालत करते हैं. धर्म की यह पितृ सत्तात्मक सोच औरतों की तरक्की में सब से बड़ी बाधा है.

इन्होंने की शुरुआत

आज से 165 साल पहले 1856 में 16 जुलाई के दिन भारत में विधवा की दूसरी शादी करने को कानूनी मंजूरी मिली थी. अंगरेज सरकार से इसे लागू करवाने में समाजसेवी ईश्वरचंद विद्यासागर का बड़ा योगदान था. उन्होंने विधवा विवाह को हिंदू समाज में जगह दिलवाने का काम शुरू किया था.

इस सामाजिक सुधार के प्रति उन की प्रबल इच्छाशक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुद विद्यासागर ने अपने बेटे की शादी भी एक विधवा से ही कराई थी.

इस के अलावा सावित्री बाई फुले ने भी अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ समाजसेवा करने का बीड़ा उठाया था. उन दोनों ने साल 1848 में पुणे में देश का पहला बालिका स्कूल खोला था और स्कूल में बालिकाओं को पढ़ाने वाली वे पहली महिला शिक्षका बनी थीं.

सावित्री बाई फुले जब पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थीं, तो विरोध में लोग उन पर कीचड़ और गोबर तक फेंक देते थे. ऐसे में वे एक साड़ी अपने थैले में रख कर स्कूल जाती थीं.

सावित्री बाई फुले ने औरतों को पढ़ाने के साथ ही विधवा विवाह, छुआछूत मिटाने, बाल विवाह, युवा विधवाओं के मुंडन के खिलाफ भी अपनी आवाज बुलंद की थी.

साल 1854 में उन्होंने एक आश्रय खोला था, जिस में उन लाचार औरतों और विधवाओं को आसरा मिला था, जिन्हें उन के परिवार वालों ने छोड़ दिया था.

सावित्री बाई ने ही विधवा की दूसरी शादी की परंपरा भी शुरू की थी और उन की संस्था के द्वारा ऐसी पहली शादी 25 दिसंबर, 1873 को कराई गई थी. सावित्री बाई ने एक विधवा के बेटे यशवंतराव को गोद भी लिया था.

आज देश में बड़ी आबादी दलित और तबके के लोगों की है, मगर ऊंची जातियों के दबंग उन पर रोब जमाते हैं और पंडेपुजारी उन्हें धर्म की घुट्टी पिलाते हैं.

मौजूदा दौर में पढ़ेलिखे दलित तबके के लोगों को संविधान में बनाए गए नियमकानूनों को जानसमझ कर सामाजिक कुप्रथाओं को रोकने के लिए आगे आना होगा, तभी औरतों को उन का वाजिब हक और इज्जत हासिल हो सकेगी.

लड़कियों की इज्जत पर भारी प्यार

एकसाथ 2 लोगों से प्यार होना बड़ी बात नहीं है. प्यार… दुनिया का सब से खूबसूरत शब्द है. जब यह होता है तो सबकुछ सुंदर और अच्छा लगने लगता है. और जब नहीं होता तो सबकुछ हो कर भी दुनिया उदास व बेरंग नजर आती है. यह स्थिति प्यार होने और न होने की है, लेकिन तब क्या होगा जब 2 लोगों से एकसाथ प्यार हो जाए और दोनों में से आप किसी से अलग नहीं होना चाहें? इस सवाल को सुन कर आप के मन में सवाल आया होगा कि क्या 2 लोगों से एकसाथ प्यार होना मुमकिन है? तो इस का जवाब हां है.

आज के दौर में लव ट्राएंगल के किस्से काफी बढ़ गए हैं. पिछले कुछ सालों में लव ट्राएंगल की लोकप्रियता बढ़ी है. यह तब होता है जब आप अपने वर्तमान पार्टनर से खुश नहीं होते और प्यार व इमोशनली सपोर्ट के लिए किसी और को खोजने लगते हैं. ऐसी स्थिति में आकर्षण होना लाजिमी है. जब यह होता है तो लव ट्राएंगल कहा जाता है, लेकिन इसी ट्राएंगल में लड़कियां बुरी तरह फंस जाती हैं.

कुछ दिनों पहले रोहतक में एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और उस के बाद उस की निर्ममता से जो हत्या हुई, उस की जैसेजैसे परतें खुल रही हैं वे बहुत ही भयानक हैं. बलात्कारी और हत्यारे कोई और नहीं बल्कि लड़की का पुराना प्रेमी और उस के दोस्त ही हैं, जिन्होंने सोनीपत से जबरदस्ती उस का अपहरण किया. उस के बाद उस के साथ सामूहिक बलात्कार, फिर उस की निर्ममता से हत्या कर दी.

उस के हर अंग को बुरी तरह से कुचल दिया. उस के बाद उस की बौडी को झाडि़यों में फेंक दिया. जहां उस को कुत्ते खाते रहे. लड़की को ईंट से बुरी तरह कुचला गया, उस को गाड़ी से भी कुचला गया. उस के गुप्तांग में लोहे की छड़ घुसेड़ दी गई. यह अमानवीयता की हद है. अब वह लड़का कहता है कि वह उस लड़की से बहुत प्यार करता था. उस से शादी करना चाहता था, लेकिन जब लड़की ने शादी से मना कर दिया तो उस ने ऐसा किया.

प्यार का जादू

ऐसा जरूरी नहीं कि जिसे हम प्यार करें वह भी बदले में हमें प्यार दे. हम जिसे प्यार करते हैं अगर  वह भी हमें प्यार करे तो वे दोनों लव कपल कहलाते हैं, पर ऐसा न हुआ तो इसे हम एकतरफा प्यार कहते हैं. दिल टूटना, सपने टूटना आदि एकतरफा प्यार की निशानियां हैं.

संसार में ऐसा कोई नहीं जो प्यार के जादू से वंचित हो. प्यार एक नशे की तरह है जिस के बिना जिंदगी संभव नहीं. प्यार का जादू सिर चढ़ कर बोलता है और हां, प्यार का नाम सुनते ही न जाने हमारे दिल को क्या हो जाता है कि वह बीते हुए कल की तरफ या फिर आने वाले कल को  हसीन पलों में संजोए रखता है.

आज आप उम्र के उस कगार पर खड़े हैं जब प्यार का नशा अपनेआप ही चढ़ जाता है. जी हां, 16 साल की उम्र ऐसी ही होती है. कोई भी अनजान अपना सा लगने लगता है, जिस को सिर्फ देख कर ही दिल को सुकून मिलता है.

लड़कों के साथ ऐसा कई बार होता है. वे जिस लड़की को पसंद करते हैं वह उन के बारे में वैसा नहीं सोचती है. जिस के कारण वह उन के प्यार को स्वीकार नहीं कर पाती है और लड़कों को उस की न का सामना करना पड़ता है. ऐसे में लड़कों के लिए इस स्थिति का सामना करना मुश्किल हो जाता है. कई बार वे कुछ गलत कदम भी उठा लेते हैं जो दोनों के लिए बहुत नुकसानदेह हो जाता है. ऐसे में लड़कों व लड़कियों दोनों को संयम से काम लेना चाहिए.

न सुनने के लिए भी रहें तैयार

आप जब किसी से अपने दिल की बात कहते हैं तो ‘हां’ की उम्मीद के साथसाथ उस की ‘न’ सुनने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. जब आप ने उसे अपनी भावनाओं के बारे में बता दिया तो आप का इजहार करने का काम खत्म हो गया. अब इस के आगे आप कुछ नहीं कर सकते. आप को हमेशा मानसिक रूप से तैयार रहना होगा कि अगर सामने वाला आप के प्यार को अस्वीकार भी कर देगा तो आप टूटेंगे नहीं.

आप किसी से प्यार करते हैं तो इस में बुराई नहीं है, लेकिन अपने प्यार का नकारात्मक प्रभाव अपनी पढ़ाई या कैरियर पर न पड़ने दें. यह आप के जीवन को बरबाद कर देगा. किसी के इनकार के बाद भी आप के जीवन में बहुतकुछ है जिसे आप पा सकते हैं. उस में आप की कोई गलती नहीं थी, इसलिए जितनी जल्दी हो सके उसे भूल जाएं, क्योंकि वह आप के बिना ज्यादा खुश है. वह आप को नहीं चाहती.

अगर आप उस की ‘न’ सुनने के बावजूद उस पर अपना प्यार थोपेंगे तो यह उस की भी खुशियां छीन लेगा. इसलिए उस के रास्ते से हट जाएं इस में ही आप दोनों खुश रहेंगे.

सही कदम उठाएं

किसी के बहकावे में आ कर कोई भी गलत कदम न उठाएं. इस से आप को कुछ हासिल नहीं होने वाला. इस से लोग आप पर हंसेंगे. आप के जीवन पर भी इस का बुरा प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए इस घनचक्कर से निकलने की कोशिश करें. प्यार के अलावा भी आप के जीवन में बहुतकुछ है. इन सब को भुलाने के लिए खुद को काम में, पढ़ाई में या दोस्तों के साथ व्यस्त रखें.

समय हर जख्म को भर देता है. कुछ समय के बाद आप जिंदगी में नई शुरुआत कर पाएंगे. जिसे आप पसंद करते हैं उस के प्रति अपने मन में कोई मैल न रखें, न ही उस से बदला लेने की सोचें और न ही उस की जिंदगी को बरबाद करने की कोशिश करें.

अकसर लड़के प्यार में ‘न’ सुनने के तुरंत बाद किसी से भी प्यार करने के चक्कर में पड़ जाते हैं. यह पूरी तरह से भावुकता में लिया गया गलत फैसला है. ऐसे में खुद को थोड़ा समय दें और सोचसमझ कर किसी नए रिश्ते की शुरुआत करें.

सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को अपना प्यार नहीं मिला, आप भी किसी और के साथ ऐसा करें, यह ठीक नहीं है. असल जिंदगी में फिल्मी तरीके न अपनाएं क्योंकि फिल्मों की कहानी काल्पनिक होती है जो जिंदगी की वास्तविकता से हमेशा मेल नहीं खाती है. गम दूर करने के नाम पर कभी नशे का सहारा न लें. यह आप की जिंदगी को बरबाद कर देगा.

त्रिकोणीय प्रेम से रहें दूर

दिल पर किसी का वश नहीं चलता. यह बहुत चंचल है, लेकिन कभीकभी यह चंचलता हमें ऐसी मुसीबत में डाल देती है जिसे हम जान कर भी अनदेखा कर देते हैं. त्रिकोणीय प्रेम का एक कारण यह भी होता है कि जब आप का अपने रिश्ते पर से भरोसा उठ जाता है और आप एक नए रिश्ते में बंधने की कोशिश करते हैं, जब ऐसे मुश्किल हालात सामने होते हैं तो यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि यह प्यार है या महज आकर्षण.

प्यार एक भावनात्मक रिश्ता

कोई कैसे अपने भावनात्मक रिश्तों के साथ खिलवाड़ कर सकता है. ऐसे ही रिश्तों की वजह से आज हमारे देश में लिवइन रिलेशन बढ़ता जा रहा है. सदियों से चली आ रही परंपराओं के अनुसार भी यह गलत है, क्योंकि एक रिश्ते के होते हुए दूसरा रिश्ता बनाना गुनाह है. भारत में इस तरह की परंपरा कभी नहीं रही, लेकिन अब यह हो रहा है. जिसे झुठलाया नहीं जा सकता.

यह मुमकिन है कि हम एक समय में 2 लोगों के प्रति एकजैसी भावनाएं महसूस करें, लेकिन जिंदगी भर दोनों रिश्तों का एकसाथ निभा पाना मुश्किल है. समय रहते अगर इसे सुलझाया नहीं गया तो आगे जा कर आप एक बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं. दरअसल, त्रिकोणीय प्रेम केवल एक आकर्षण के अलावा और कुछ भी नहीं है. इसलिए इस के चक्कर में न ही फंसे तो ज्यादा अच्छा है.

सोच बदलने की जरूरत

सवाल यह है कि अगर मामूली सा भी लड़के को किसी लड़की से कभी प्यार हो जाता है तो वह बलात्कार तो दूर की बात है, उस की मरजी के बिना उस को छूता भी नहीं है. हत्या करना तो दूर, उस को खरोंच भी नहीं आने देना चाहता. क्या कोई सच्चा प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ ऐसा करेगा. चाहे वह एकतरफा ही प्यार क्यों न हो, वह ऐसा कभी भी नहीं करेगा. अगर कोई भी सिरफिरा प्रेमी ऐसा करता है तो वह मानसिक रूप से बीमार है. उस का इलाज तो मनोचिकित्सक ही कर सकता है.

लेकिन ऐसी घटनाएं दिनोदिन क्यों बढ़ रही हैं, इस के पीछे कारण क्या है. इस का सब से बड़ा बुनियादी कारण है पुरुषवादी सोच जो महिला को दोयम दर्जे का मानती है. जो मानती है कि महिला पुरुष से कमजोर है, महिला का रक्षक पुरुष होता है, महिला को पतिव्रता होना चाहिए, महिला को पुरुष की सत्ता के अधीन रहना चाहिए, महिला को घर में चूल्हेचौके तक सीमित रहना चाहिए, बाहर निकलेगी तो ये घटनाएं होंगी ही.

पिछले दिनों राष्ट्रीय पार्टी के एक नेता ने बयान भी दिया था कि गाड़ी बाजार में आएगी तो ऐक्सीडैंट तो होगा ही. इसलिए तो 70 साल आजादी के बाद भी लड़कियां अपने को गुलाम महसूस कर रही हैं. इसी सोच को आज बदलने की जरूरत है.

प्यार की आखिरी मंजिल

यही प्रश्न हर प्रेमी से है, क्या प्यार की आखिरी मंजिल शादी है? अगर किसी कारण से शादी न हो तो आप उसे मार देंगे? आप उस से सामूहिक बलात्कार करेंगे? आप उस के चेहरे पर तेजाब डाल देंगे? अगर प्यार की आखिरी मंजिल सिर्फ शादी है तो आप उस से प्यार नहीं करते बल्कि उस पर कब्जा जमाना चाहते हैं. उसे आप अपना गुलाम बनाना चाहते हैं. उस पर आप अपना एकाधिकार चाहते हैं. वह किस से बात करे, कहां बैठे, कहां जाए, क्या खाए, क्या पहने, ये सब आप तय करना चाहते हैं.

यह प्यार नहीं गुलामी है. अगर वह आप की गुलामी का विरोध करे, आप के एकाधिकार का विरोध करे तो आप उस को सजा दोगे.

यह आप की दबंगई नहीं तो और क्या है. क्या अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेना अपराध है? इस में रूढि़वादी मातापिता भी साथ नहीं देते. अब तो हालात ये हैं कि अगर किसी लड़की ने प्यार करने की गलती की तो उस का अपने शरीर पर भी अधिकार नहीं रह जाता. उस का अपने दिमाग पर भी कोई अधिकार नहीं रहता. अगर वह अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेगी तो उस को इस की सजा भुगतनी पड़ेगी. यह सजा कभी मांबाप की तरफ से तो कभी प्रेमी की तरफ से मिलेगी. इसलिए अब प्रेम करना भी जान को जोखिम में डालना है.

प्यार का मतलब जानें

आज के युवक की नजर में प्यार का मतलब है कि वह लड़की सिर्फ उस के लिए बनी है. उस पर सिर्फ उन का हक है. उस को वह अच्छी लगती है. उस का चेहरा देखे बिना नींद नहीं आती है. उस का चेहरा दुनिया में सब से सुंदर है, लेकिन उस बेहतरीन जिस्म को, चेहरे को जब वह हासिल नहीं कर पाता तो वह उसे चाकू से गोद देता है, चेहरे को तेजाब से जला देता और उस के गुप्तांग में लोहे की छड़ घुसेड़ देता है.

ऐसा कैसे करते हैं युवक, कोई भी अपने सब से प्यारे व करीबी इंसान को ऐसे कैसे नष्ट कर सकता है. इस का मतलब वे प्यार नहीं करते. यह प्यार नहीं हवस है. आप प्यार करते समय तो एकदूसरे के लिए चांदतारे तोड़ने की बात करते हो, लेकिन लड़की ने एक इनकार क्या किया आप ने चांदतारों की जगह लड़की के शरीर को ही ईंटों से तोड़ दिया, गाड़ी से कुचल दिया.

वाह, क्या यही प्यार है. जिस ने आप को उस चर्मसुख की अनुभूति करवाई तुम ने उसी को लोहे की छड़ से गोद दिया. क्या किसी भी लड़की के इनकार की इतनी भयंकर सजा हो सकती है. अगर यही सजा वह लड़की तुम्हें दे तो कैसा रहेगा.

धर्म के नाम पर इस देश में सब चलता है

भागवत कथा और सत्संग के कार्यक्रम अकसर यहां वहां होते रहते हैं. इस तरह के कार्यक्रमों में लोगों की भारी तादाद को देख कर कई टैलीविजन चैनल सिर्फ इसी काम के लिए खुल चुके हैं. उन पर सुबह से ले कर शाम तक सिर्फ भक्ति से भरे कार्यक्रम ही दिखाए जाते हैं. मेरे मिलने वाले एक दोस्त के घर में उन की माताजी को इस तरह के कार्यक्रम देखने का बड़ा शौक है. जब मेरा उन के घर जाना हुआ, तो उस वक्त भी उन के यहां टीवी पर भागवत कथा का प्रसारण चल रहा था.

बड़ेबड़े गुच्छेदार बालों वाले एक बाबा भागवत कथा सुना रहे थे. उन का पूरा माथा हलदी और चंदन से बुरी तरह पुता हुआ था. साथ ही, गले में रुद्राक्ष की डिजाइनर माला भी. एक माला उन के हाथ में भी लिपटी हुई थी, जिसे वे अपने पैर छूने वाले भक्त के सिर पर छुआ देते थे.

मेरे दोस्त का पूरा परिवार एक जगह बैठ कर यह कार्यक्रम देख रहा था. देख क्या रहा था, बल्कि उन्हें दिखाया जा रहा था. उस की माताजी सब को जबरदस्ती बिठा कर कार्यक्रम दिखा रही थीं.

दरअसल, उन्हें एक दिन टैलीविजन पर ही किसी बाबा ने बता दिया था कि लोग अगर सत्संग और भागवत कथा अपनी आने वाली पीढ़ी को नहीं दिखाएंगे, तो हिंदू धर्म बरबाद हो जाएगा. साथ ही, यह धर्म दूसरे धर्मों का गुलाम हो जाएगा.

उसी दिन से दोस्त की माताजी ने पूरे परिवार को भागवत कथा दिखानी शुरू कर दी. सब देख रहे थे, तो मुझे भी वही देखना पड़ा. भागवत कथा कहने वाले बाबाजी का नाम बड़ा लंबा था. वे अपने प्रवचन में कह रहे थे, ‘‘देखिए, आज के लोगों का सोचना है कि ‘हम दो हमारे दो, बाकी हों तो कुएं में फेंक दो’. यानी आज के मांबाप एक या 2 बच्चों से ज्यादा करने के बारे में सोचते ही नहीं हैं. बच्चों को जन्म देने वाली मां भी ऐसा नहीं सोचती…’’

बाबाजी इतने पर ही नहीं रुके. वे आगे बोले, ‘‘सच्चा मां धर्म सिर्फ 1-2 बच्चों से नहीं, बल्कि कम से कम 10 बच्चों को जन्म देने से निभता है. है कोई ऐसी औरत, जिस के 10 बच्चे हों? अगर है, तो हाथ उठाए, हम उसे सम्मानित करेंगे.’’

बाबाजी बोल रहे थे और उन के सामने बैठी हजारों की भीड़ उन्हें सुन रही थी. टैलीविजन पर देख रहे लाखों लोग अलग से थे.

तभी भीड़ में से एक औरत ने अपना हाथ उठा दिया. बाबाजी ने खुशी के साथ प्रवचन दिया, ‘‘देख लो, हजारों की भीड़ में बस एक औरत है, जिस ने अपना मां होने का सच्चा धर्म निभाया है.‘‘आइए माई, आप मंच पर आइए. मैं खुद आप को शाल ओढ़ा कर सम्मानित करूंगा.’’बाबाजी ने खुद उठ कर उस औरत को शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया. भीड़ में बैठी औरतें अपनी तकदीर को कोस उठीं. सोच रही होंगी कि काश, आज उन के 10 बच्चे होते, तो बाबाजी ने उन्हें भी सम्मानित किया होता. वे देशभर में टैलीविजन पर दिखाई दे रही होतीं.

मेरे लिए यह एकदम से हैरानी की बात थी. जहां एक ओर आबादी पर लगाम लगाए जाने के लिए कोशिशें की जा रही हों, वहीं यह सब होना वाकई में हैरत में डालने वाला था. रोजाना टैलीविजन पर चलने वाले लाखोंकरोड़ों रुपए के इश्तिहार और जगहजगह पर बने परिवार नियोजन केंद्र तो ठीक बाबाजी के कहने का उलटा करते नजर आते हैं.

सरकार नसबंदी कराने पर हर आदमी को कुछ पैसे भी प्रोत्साहन के रूप देती है, जिस से आबादी काबू में रह सके. अगर हर एक औरत 10 बच्चों को जन्म देने लगे, तो आबादी का आंकड़ा क्या होगा?

बहरहाल, उस औरत को सम्मानित करने के बाद बाबाजी ने फिर से प्रवचन देना शुरू कर दिया. वे कह रहे थे, ‘‘आजकल एक और बात बड़े जोरों पर चलन में है कि घर में लोगों से पूछ कर खाना बनाया जाता है. उन से पूछा जाता है कि तुम आज कितनी रोटी खाओगे? यह प्रथा एकदम गलत है.

‘‘किसी भी घर में ऐसा नहीं होना चाहिए. हर घर में रोज खाने में कम से कम 8-10 रोटियां फालतू बनानी चाहिए, जिस से अगर कोई साधु या मेहमान आ जाए, तो उसे भोजन दिया जा सके.

इस तरह फालतू खाना बनाने से कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि बरकत होती है यानी कभी घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती.’’

भीड़ में बैठे सभी लोग इस बात से सहमत थे, क्योंकि यह बात उन के पूज्य बाबाजी ने कही थी. लेकिन वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा था कि खाना कम से कम बिगाड़ें, क्योंकि आंकड़ों के हिसाब से अकेले भारत में ही 20 करोड़ से ज्यादा लोग रोजाना भूखे पेट सो जाते हैं. कुपोषण के चलते भारत में तकरीबन 42 फीसदी बच्चे उम्र के हिसाब से सही वजन के नहीं हैं.

भुखमरी मापने वाले ग्लोबल हंगर इंडैक्स यानी जीएचआई ने साल 2011-13 की अपनी रिपोर्ट में भारत को 63वें नंबर पर रखा है, जबकि श्रीलंका 43वें, पाकिस्तान 57वें, बंगलादेश 58वें नंबर पर है. चीन छठे नंबर पर है.

भारत को इस इंडैक्स ने ‘अलार्मिंग कैटीगरी’ में रखा है. लिस्ट में भयानक गरीबी झेलने वाले इथियोपिया, सूडान, कांगो, नाइजर, चाड व दूसरे अफ्रीकी देश शामिल हैं.

दुनिया में भूख से पीडि़त लोगों की कुल तादाद 84 करोड़, 20 लाख है. इन में से 21 करोड़ यानी तकरीबन एकचौथाई लोग अकेले भारत में हैं. भारत की हालत पहले से भले ही बेहतर हुई है, लेकिन विकसित देशों की बात जाने भी दें, तो पाकिस्तान और बंगलादेश से ज्यादा भुखमरी हमारे देश में है.

कहने को तो हम चांद से भी आगे निकल कर मंगल तक की यात्रा तय करने के सपने देख रहे हैं, पर सचाई यह है कि आज भी पूरी दुनिया में 75 फीसदी लोगों के पास दो वक्त की रोटी और तन ढकने के लिए एक अदद कपड़ा नहीं है.

फिर बाबाजी क्यों ऐसी बातें कर रहे थे? वे अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में देश को किस दिशा में ले जाना चाहते थे? कम से कम धर्म के नाम पर तो ऐसा नहीं होना चाहिए.

लेकिन बाबाजी को इन सब बातों से क्या मतलब. वे न तो ज्यादा पढ़ेलिखे थे और न ही गरीबी से पीडि़त या भूखे. वे तो चाहते थे कि देश में गरीबी बनी रहे, जिस से उन के मानने वालों की ज्यादा से ज्यादा तादाद रहे, क्योंकि गरीब आदमी दुखों से उबरने के लिए ऐसे बाबाओं के पास ही भागता है और फिर वे ही अंधविश्वासों और धर्म का हवाला दे कर उसे और ज्यादा गरीबी, भुखमरी की ओर धकेल देते हैं.

तीर्थ दर्शन और पाखंड

पंडेपुजारी पुराणों के हवाले से कहते फिरते हैं कि तीर्थों के दर्शनों के बड़े फायदे है और उन के दर्शन से ही पाप धुल जाते हैं और आदमी औरत का मन साफ हो जाता है.

ऋषिकेश, मथुरा, वाराणसी, नासिक, उज्जैन, गुरुवयार जैसे तीर्थों में रहने वाले जानते हैं कि उन के शहरों में किस तरह लूटपाट होती है. जो भक्त दिमाग और आंख बंद कर के आते हैं वे अक्सर लूट का शिकार होते हैं.

इसी तरह के एक तीर्थ प्रयागराज जिस का पहले नाम इलाहाबाद था, एक पति ने अपनी पत्नी को हथौड़े से मार दिया और फिर शव को वहीं छोड़ कर खुद पुलिस थाने में जा कर अपने को हवाले कर दिया. मामला कोई छोटी बात थी, न दहेज की, न सासससुर की, न दूसरी प्रेमिका या दूसरे प्रेमी की. पत्नी की उम्र सिर्फ 24 साल थी और शादी 14 साल की उम्र में ही हो गई थी और 3 बच्चे भी थे.

छुटपन में शादी, एक नहीं 3 बच्चे, पैसे की कमी, गुस्सा क्या नहीं था इन दोनों में बिना यह सोचे की 3 छोटे बच्चों का क्या होगा, आदमी ने औरत पर हथौड़ा चला दिया. इलाहाबाद यानी प्रयागराज का वह उपदेशों से भरा माहौल किस काम का रहा है कि न तो 14 साल की उम्र में शादी रोक न पाया, न छोटी सी लडक़ी को 3-3 की मां बनने से रोक पाया.

इतने पंड़ो, कथावाचकों की भीड़ का क्या फायदा हुआ कि आगापीछा सोचे बिना छोटी सी बात पर हथौड़े चल गए. गंगा का पानी क्यों नहीं इन के मन को साफ कर पाया जिस का गुणगान रातदिन कथाओं में भी सुना जाता है और अब टीवी, मोबाइलों पर मौजूद है.

‘‘तीर्थराज्य प्रयाग ऐसे राज्य हैं जिन के दर्शन से चारों पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष मिलते हैं. बहुत पैसा मिलता है, घरपरिवार सुखी रहता है, बदन मजबूत व निरोगी रहता है.’’ इस तरह की बात प्रयागराज यानी इलाहाबाद के बारे में आज भी मोबाइल पर एकदम मिल जाती है. महाभारत, रामायण, रामचरितमानस और पुराणों का हवाला देकर बारबार कहा जाता है कि इलाहाबाद यानी प्रयागराज से बढ़ कर तीर्थ नहीं है. प्रयागराज की मिट्टी को छूने से ही पाप खत्म हो जाते है.

यह तो अचंभे की बात है न कि इसी इलाहाबाद में एक मर्द ने अपनी औरत को हथौड़े से मार डाला. प्रयागराज तीर्थ ने उस का दिमाग क्यों नहीं ठीक किया. और फिर वह थाने गया. आखिर प्रयागराज में थाने का क्या काम? इलाहाबाद तो मुसलमान नाम है, वहां तो सब खूनखराबा होते हो तो बड़ी बात नहीं पर नाम बदलने ही यह तीर्थ आखिर सारे गुनाहों से दूर क्यों नहीं हो गया कि पुलिस मौजूद रहती हैं.

असल में धर्म, पूजापाठ, रीतिरिवाज, दान किसी को सुधारते नहीं हैं. छोटीछोटी बातों पर झगड़े कराने में तो हर धर्म सब से अब्वल रहता है. हर धर्म एक तरफ भक्त से वसूलने में लगा रहता है और इसलिए वसूल पाने वालों को बचाता है तो दूसरी ओर भक्तों को बहकाता है. उसे बहकने में हथौड़े चलते हैं.

मासूम बेटियों की गुहार, बाबुल अभी न करना ब्याह

गीता की शादी जबरन एक अधेड़ आदमी के साथ की जा रही थी. गीता के मांबाप भी उस पर शादी का दबाव बना रहे थे. मांबाप ने 50 हजार रुपए में उस का सौदा उत्तर प्रदेश के एक अधेड़ कारोबारी से तय कर दिया था.

नवादा जिले के रजौली थाने के धमनी गांव की यह घटना है. इस बात की भनक लगने पर मुखिया और सरपंच गीता के घर पहुंच गए और उस के बाप को फटकार लगाने लगे.

विवाद बढ़ता देख कारोबारी अपने आदमियों के साथ भाग निकला. शिकायत मिलने के बाद भी पुलिस ने कारोबारी को पकड़ने में चुस्ती नहीं दिखाई. रजौली थाने के एसएचओ अवधेश कुमार ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि इस बारे में लिखित शिकायत मिलने पर ही कार्यवाही होगी.

गीता की मौसी उत्तर प्रदेश में रहती है और उसी ने अधेड़ कारोबारी को शादी के लिए तैयार किया था. 18 अप्रैल, 2017 को शादी कराने के लिए सभी लोग मंदिर की ओर निकलने की तैयारी में थे. इसी बीच मुखिया और सरपंच के हल्ला मचाने से गांव के तमाम लोग वहां जुट गए.

बिहार के नवादा जिले के कौवाकोल गांव की रहने वाली सुगंधा (बदला नाम) की शादी 13 साल की उम्र में कर दी गई थी. तब वह जानती भी नहीं थी कि शादी किस चिडि़या का नाम है.

आज 22 साल की सुगंधा का यह हाल है कि उस के 3 बच्चे हो गए हैं और वह जिस्मानी रूप से इतनी कमजोर है कि ठीक से चलफिर भी नहीं पाती है.

देशभर में बाल विवाह का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. बाल विवाह होने वाले देशों में भारत 11वें नंबर पर है. इस मामले में भारत बहुत पिछड़े अफ्रीकी देशों इथियोपिया व लीबिया के साथ खड़ा है.

भारत के तमाम राज्यों में बाल विवाह के मामलों में बिहार सब से आगे है. यह हैरानी की बात है कि राज्य की 69 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में ही कर दी जाती है.

बिहार के पश्चिमी चंपारण, कैमूर, रोहतास, मधेपुरा, गया, नवादा और वैशाली जिलों में सब से ज्यादा बाल विवाह हो रहे हैं.

राष्ट्रीय विवाह सैंपल सर्वे के मुताबिक, देशभर में 22 से 24 साल की उम्र वर्ग की 47.4 फीसदी औरतें ऐसी हैं, जिन की शादी 18 साल से कम उम्र में ही कर दी गई. इन में से 56 फीसदी औरतें गांवों की और 29 फीसदी औरतें शहरी इलाकों की हैं.

बिहार में 69 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में कर के मांबाप अपने बोझ को हटा डालते हैं. वहीं राजस्थान में 65.2 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 54.8 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 54 फीसदी, असम में 38.6 फीसदी, तमिलनाडु में 23.3 फीसदी व गोवा में 12.1 फीसदी लड़कियों की शादी बहुत छोटी उम्र में ही कर दी जाती है.

बिहार भले ही हर मामले में पिछड़ा हो, लेकिन बाल विवाह के मामले में देश के सारे राज्यों को पछाड़ दिया है. पश्चिमी चंपारण में 80 फीसदी लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है. नवादा में 73 फीसदी, रोहतास और कैमूर में 70 फीसदी, मधेपुरा में 66 फीसदी व वैशाली में 61.6 फीसदी लड़कियों को 18 साल से कम उम्र में ही ब्याह कर मांबाप अपनी जिम्मेदारी से नजात पा लेना मानते हैं. पटना जिले में 40 फीसदी लड़कियां बाल विवाह की शिकार बनती हैं.

बिहार की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा कहती हैं कि औरतों के पढ़नेलिखने और जागरूक होने से ही बाल विवाह पर रोक लग सकती है. इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए कानून से ज्यादा समाज के सहयोग की जरूरत है.

यह सही है कि समाज में बड़ी तादाद में बाल विवाह हो रहे हैं, लेकिन समय से उन की सूचना नहीं मिलने की वजह से कानून कुसूरवारों पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाता है.

डाक्टर किरण शरण बताती हैं कि कम उम्र में शादी होने से लड़कियां दिमागी और जिस्मानी रूप से कच्ची होती हैं. उन्हें न तो सैक्स के बारे में कुछ पता होता और न ही परिवार की जिम्मेदारियों की ही जानकारियां होती हैं. कम उम्र में मां बन जाने से जच्चा और बच्चा दोनों की जान के लिए खतरा होता है.

लड़कियों में जागरूकता के बगैर बाल विवाह पर रोक मुमकिन नहीं है. खुद को बाल विवाह की शिकार होने से बचाने वाली कुछ लड़कियां इस की जीतीजागती मिसाल हैं.

नेहरू युवा केंद्र से जुड़ी कटिहार की आरती, नारी शक्ति फाउंडेशन की सदस्य गया की राधिका, नवादा की रूबी और प्रमिला ने बताया कि उन्होंने किस तरह से खुद को बाल विवाह से बचाया.

राधिका ने बताया कि जब उस के पिता ने 15 साल की उम्र में ही उस की शादी तय कर दी, तो उस ने महिला संगठनों को बता दिया. इस से उस की शादी रुक गई.

प्रमिला ने बताया कि वह पढ़ना चाहती थी, पर उस के मांबाप उस की शादी करने पर उतारू थे. उस ने यह बात अपने स्कूल के मास्टर को बताई. मास्टर ने उस के मांबाप को समझाया और कानूनी कार्यवाही करने की चेतावनी दी. उस के बाद ही उस के पिता ने उस की शादी की जिद छोड़ी.

समाजसेवी आलोक कुमार कहते हैं कि बाल विवाह के मामलों में अकसर यही देखा गया है कि अनपढ़ और गरीब लोगों को कुछ रुपयों का लालच दे कर उन की लड़की से शादी कर उन्हें दूसरे राज्यों में ले जाया जाता है. उस के बाद उन का शोषण शुरू हो जाता है.

क्या हैं बाल विवाह रोकने के कानून

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा-2 के तहत 21 साल से कम उम्र के लड़के और 18 साल से कम उम्र की लड़की को नाबालिग माना गया है. इस कानून के तहत बाल विवाह को गैरकानूनी करार दिया गया है. बाल विवाह की इजाजत देने, शादी तय करने, शादी करवाने या शादी समारोह में हिस्सा लेने वालों को सजा दिए जाने का नियम है.

कानून की धारा-10 के मुताबिक, बाल विवाह कराने वाले को 2 साल तक साधारण कारावास या एक लाख रुपए के जुर्माने की सजा दी जा सकती है. वहीं धारा-11 कहती है कि बाल विवाह को बढ़ावा देने या उस की इजाजत देने वालों को 2 साल तक का कठोर कारावास और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा हो सकती है.

तेजस्वी यादव बिहारियों को देंगे नौकरी

महागठबंधन 2 की सरकार ने कहा है कि वह बिहार में 20 लाख नौकरियां देगी. तेजस्वी यादव का वादा कितना चलता है या चल सकता है, यह पूरे शक में है. बिहार की सरकार के पास 20 लाख और लोगों को नौकरियां देना नामुमकिन है क्योंकि सरकार के खजाने में इतना पैसा है ही नहीं. फक्कड़ सरकार तो वैसे ही भीख का कटोरा ले कर केंद्र सरकार के सामने खड़ी रहती है या बैंकों से उधार लेती रहती है.
असलियत यह है कि जनता को सम?ा दिया गया है कि नौकरी वह है जिस में ऊंचे पंडों, पादरियों की तरह काम करना न पड़े और बातों से ऐशोआराम मिल जाए.

यह सिर्फ सरकारी नौकरी में हो सकता है जहां वेतन पैंशन की तरह मिलता है और दिन पान खाने में, चुगली करने में, घूमनेफिरने या रिश्वतें बटोरने में बीतता है. काम होता है तो रुपए में 10 पैसे. बाकी 90 पैसे बटोरने के लिए जो मेहनत करनी पड़ती है, उसे नौकरी कहना चाहें तो कह लें पर है वह लूट ही.

तेजस्वी यादव अगर 20 लाख नौकरियां देने वाले हैं तो सम?ा लें कि 20 लाख और लुटेरों को बिहार के सिर पर बैठाया जाएगा. बिहारियों के लिए राज्य छोड़ कर जाना इसीलिए चालू रहेगा क्योंकि नौकरियां कुछ को मिल गईं तो दूसरों की जाएंगी.
सरकार कई बार कहती है कि उस ने खेतों से होती सीधी सड़क बना कर जौब क्रिएट की, नौकरियां दीं जिन्होंने सड़क बनाई. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. बस किसानों की जमीन हथियाई गई, सड़क के किनारों की जमीनें दिए मुआवजे से ज्यादा दाम पर बेची गईं, ठेकेदारों की चांदी हुई, टोल जमा करने वालों को मोटा कमीशन मिला और आम जनता को वह रास्ता भी नहीं मिला, जो उन की जमीन पर बना था.

जेसीबी के कारखाने ने हजारों नौकरियां दीं, यह अंगरेज प्राइम मिनिस्टर बोरिस जौनसन ने भारत आ कर जेसीबी फैक्टरी में कहा था पर यह जेसीबी भारत में जुल्म की निशानी बन चुकी है. आज इसे नफरत से देखा जाने लगा है. यह धौंस की निशानी है. जेसीबी नौकरियां नहीं देती, यह नौकरीपेशा लोगों के सिर से छत हटाने के लिए जानी जाने लगी है. देश की आनबानशान तिरंगे में जब किसी अपने का शव आए तो पता नहीं रहता कि तिरंगे को प्यार करें या उस से नफरत.

जौब देने के नाम पर हजारों तरह के टैक्स लगाए जाते हैं. कुछ राज्यों में नौकरियां शराब की बिक्री पर लगे टैक्स पर टिकी हैं. बढ़ते जीएसटी की वजह सरकारी नौकरी में लगे लोगों के सुख हैं. ईकौमर्स ने हजारों को नौकरियां दी हैं जो घरघर सामान पहुंचा रहे हैं पर लाखों छोटे दुकानदारों की दुकानें बंद करा दीं. यह कैसी नौकरी पैदा करने की खेती है? मंदिरों में पूजा के फूल उगाने के लिए गेहूं के खेत इस्तेमाल करना एकदम बेवकूफी और पागलपन है और सरकारें इसी में लगी हैं.

तेजस्वी यादव का वादा कोरा रह जाएगा यह तो पक्का है पर नरेंद्र मोदी के 2 करोड़ की नौकरियों के पक्के वादे से तो कम ही है. नरेंद्र मोदी तो वादों से मुकर जाने के लिए अब जाने जाते ही हैं. 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें