राजस्थान से एक झकझोर देने वाली खबर आई है. वहां के जालोर जिले के सायला ब्लौक के गांव सुराणा में सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल की तीसरी जमात का 9 साल का एक दलित छात्र इंद्रकुमार मेघवाल भारत के जातिवाद की भेंट चढ़ गया.
इंद्रकुमार मेघवाल को पानी पीने की मटकी छूने के चलते बेरहमी से पीटा गया था. यह घटना 20 जुलाई, 2022 की है. तकरीबन 25 दिन के इलाज के बाद बच्चे ने अहमदाबाद में दम तोड़ दिया था. आरोपी शिक्षक छैल सिंह भौमिया को गिरफ्तार कर हिरासत में ले लिया गया.
‘एक टीचर ने बकाया फीस की वजह से पीटपीट कर बच्चे को मार डाला’, ‘एक शिक्षिका ने बच्चे के मुंह में डंडा घुसेड़ कर उसे अधमरा कर दिया’… इस तरह की आसपास हिंसा की ऐसी ही और भी वारदातें हो रही हैं.
दुख और शर्म की बात यह है कि यह देश सदियों से जाति और जैंडर आधारित हिंसा झेल रहा है और लोग जाति और धर्म का झूठा गौरवगान कर रहे हैं.
इंद्रकुमार मेघवाल की हत्या पर इंसाफ मांग रहे लोगों पर फिर दमन की लाठियां चलीं और कुछ दलितों का भी खून बहाया गया. मारे गए छात्र के शोक में डूबे परिवार वालों को भी लाठियों का शिकार होना पड़ा.
सिस्टम इतना असंवेदनशील है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के विधायक पानाचंद मेघवाल ने अपनी विधायकी से इस्तीफा देना उचित समझा.
आरोपी शिक्षक छैल सिंह भौमिया राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखता है. वह अपने एक पार्टनर के साथ इस स्कूल का संचालक और हैडमास्टर भी था.
गांव सुराणा के इस सरस्वती विद्या मंदिर में सभी जातियों के तकरीबन 350 छात्र पढ़ रहे हैं. यह गांव भौमिया राजपूत समुदाय की बहुलता वाला है, पर स्कूल में दलित विद्यार्थियों के साथसाथ दलित व आदिवासी शिक्षक भी नियुक्त हैं और इस स्कूल का एक पार्टनर तो जीनगर है, जो दलित समुदाय का ही है.
इंद्रकुमार मेघवाल ने स्कूल के हैडमास्टर छैल सिंह भौमिया के लिए रखी पानी पीने की मटकी से पानी पी
लिया था और इस से आगबबूला हैडमास्टर ने मासूम बच्चे के साथ मारपीट की. जिस से उस के दाएं कान और आंख पर गंभीर चोट आई और उस की नस फट गई.
शिक्षक छैल सिंह भौमिया के गिरफ्तार होते ही शिक्षक की जाति के लोग संगठित और सक्रिय हुए और उन्होंने यह कहते हुए कि ‘पानी की मटकी छूने और मारपीट करने की बात झूठ है’.
अब सोशल मीडिया पर जातिवादी संगठन अपने बचाव में तरहतरह की बातें लिख रहे हैं जैसे कि उस विद्यालय में कोई मटकी थी ही नहीं, सब लोग पानी की टंकी से ही पानी पीते थे. पानी की बात, मटकी की बात, छुआछूत की बात और यहां तक कि मारपीट की बात भी सच नहीं है. लड़का पहले से ही बीमार था, बच्चे आपस में झगड़े होंगे, जिस से उसे चोट लग गई होगी.
उसी स्कूल के एक अध्यापक गटाराम मेघवाल और कुछ विद्यार्थियों को मीडिया के सामने पेश किया गया कि पानी की मटकी की बात सही नहीं है. इस स्कूल में कोई भेदभाव नहीं है और न ही बच्चे के साथ मारपीट की गई.
जालोर के भाजपा विधायक जोगेश्वर गर्ग ने भी अपना सुर मिलाया और खुलेआम आरोपी शिक्षक को बचाने की कोशिश करते हुए वीडियो जारी किया. पुलिस ने भी बिना इंवैस्टिगेशन पूरा किए ही मीडिया को बयान दे दिया कि मटकी का एंगल नहीं लग रहा है.
इतने बड़े कांड को 23 दिन तक छिपा कर रख दिया गया. अगर दलित इंद्रकुमार की मौत नहीं होती, तो पूरा मामला मैनेज ही किया जा चुका होता.
‘मानवतावादी विश्व समाज’ के संरक्षक आईपीएस किशन सहाय ने इस मुद्दे पर कहा, ‘‘भारत सरकार और राज्य सरकारें आजादी के 75 साल पूरे होने पर आजादी का ‘अमृत महोत्सव’ मना रही हैं, वहीं दूसरी तरफ दलितों को ऊंची जातियों के साथ पानी पीने तक का अधिकार नहीं है.
‘‘राजस्थान में ऊंची जाति के शिक्षक की मटकी से पानी पीने पर मौत की सजा इसलिए दी गई, क्योंकि वहां मनुवाद और पति की मौत पर सती बनने वाली फूलकुंवर की सोच अभी जिंदा है.
‘‘पौराणिक ग्रंथों की दकियानूसी मान्यताओं, शोषित समाज की इज्जत के साथ खिलवाड़ और औरतों के आत्मसम्मान पर थोपी गई नैतिकता का रिवाज धर्म के आवरण में छिपा हुआ है. पापाचार, कुरीति, आडंबर और छुआछूत को कुचलने में कामयाबी इसलिए नहीं मिल पा रही है, क्योंकि कुछ राजनीतिक दलों के लिए मनुवाद ब्रह्मास्त्र की तरह है.’’
राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में 28 जुलाई, 1989 को उच्च न्यायिक सेवा एसोसिएशन ने लायंस क्लब के सहयोग से लगवाई गई मनु की प्रतिमा विवाद का जिक्र करते हुए किशन सहाय ने कहा, ‘‘मनु के विवादित स्टैच्यू को हटाने के लिए हाईकोर्ट ने निर्देश भी दिया, लेकिन भाजपा के अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद के नेता आचार्य धर्मेंद्र ने इस फैसले को चुनौती देते हुए इस पर अंतरिम रोक का आदेश हासिल कर लिया था. बाद में कोई भी सरकार मनु की प्रतिमा हटवाने की हिम्मत नहीं दिखा सकी.
‘‘साल 2015 में हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई तो हुई, लेकिन 3 दशक गुजर जाने के बावजूद जातिवाद और छुआछूत को बढ़ावा देने वाली मनु संस्कृति के कलंक को मिटाया नहीं जा सका.’’
बीते दिनों वाराणसी, उत्तर प्रदेश के एक गांव सुइलरा में विजय गौतम नामक दलित बच्चे पर 4 किलो चावल चुराने का झूठा इलजाम लगा कर दबंगों ने बुरी तरह पीटा था, जिस से उस की मौत हो गई थी, जबकि पुलिस ने आरोपियों पर ऐक्शन लेने के बजाय पीडि़त पक्ष के लोगों को ही धारा 151 में जेल भेज दिया था.
सामाजिक चिंतक भंवर मेघवंशी का कहना है, ‘‘सिर्फ राजस्थान में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में जाति के आधार पर शोषण के उदाहरण हर जगह देखने को मिल जाते हैं. समाज में ऊंचनीच की दरार अभी भी मौजूद है. चतुर लोगों ने जाति और वर्ण का भेद जानबूझ कर पैदा किया है. इस में वे लोग सब से आगे हैं, जो सुविधाभोगी हैं.
‘‘आजाद देश में हर कोई इज्जत के साथ जीना चाहता है, लेकिन मनुवाद के पोषक नहीं चाहते हैं कि उन के नाम के आगे जातिसूचक नाम लगा रहे. जब तक राष्ट्र में एक नियम, समान आर्थिक सुविधा, समान समाज नीति, एक भाषा का पालन नहीं कराया जाएगा, तब तक छुआछूत की दहशत बनी रहेगी.
‘‘इंद्रकुमार के मुद्दे पर दलित समाज गुस्सा हो कर आंदोलन की राह पकड़ रहा है, तो इस के लिए कोई और नहीं सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार है.’’
आज भी देश के ज्यादातर गांवों के दूसरे छोर पर अछूतों की बस्ती अपने बंधे हाथ और पिघलती आंखों से गूंगे की तरह अपने मालिकों के आदेश का पालन करने के लिए मजबूर है. अपने हक के लिए वे लोग अपनी आवाज नहीं उठा सकते हैं. अपनी हिफाजत के लिए अपनी भुजाओं का इस्तेमाल करना जैसे वे भूल गए.
दलितों को अस्पृश्य में बराबरी मानने पर संविधान व कानून में दंड का प्रावधान है. इस के बावजूद इंद्रकुमार मेघवाल जैसे तमाम मासूम रोज कहीं न कहीं अछूतपन और बेइज्जती के शिकार हो रहे हैं, पर क्या मजाल कि संविधान और उस का कानून अपने सजा देने के हक का इस्तेमाल कर सके.