सौतेली मां का इश्क : लालाराम की दूसरी शादी

धरमपुर नामक गांव में लालाराम की पत्नी सुधा ने एक बेटे को जन्म दिया. सुधा को कैंसर था. कुछ दिन बाद वे मर गईं.

लालाराम अपने छोटे से बेटे चंदर को मांबाप दोनों का प्यार दिया करते थे. धीरेधीरे कुछ दिन बीत गए.

लालाराम के बहुत से सगेसंबंधियों के अलावा उन के खास दोस्त रामराज ने कहा, ‘‘लालाराम, तुम्हारे पास सौ एकड़ जमीन है और खुद का ट्यूबवैल है. तुम्हारे यहां इतना अनाज पैदा होता है कि एक साल में 5 लाख रुपए का फायदा होता है और इधर मकान तुम्हारा इतना बड़ा है कि तुम्हारे मकान जैसा पूरे गांव में किसी का मकान नहीं है. तुम बापबेटे इतने बड़े घर में कैसे रहते हो?

‘‘लालाराम, मेरी बात मानो, तो तुम जल्दी से दूसरी शादी कर लो. तुम्हें एक खूबसूरत बीवी मिल जाएगी और तुम्हारे बेटे को मां. तुम दोनों को बनाबनाया खाना मिल जाएगा और तुम्हारे घर की साफसफाई भी हो जाएगी.

‘‘हम लोगों ने एक लड़की देख रखी है. बस, तुम्हें एक बार हां कहनी है.’’

यह सुन कर लालाराम शादी करने को राजी हो गए. शादी हो गई. लड़की की उम्र 18 साल, जबकि लालाराम की उम्र 48 साल थी.

लड़की का नाम सरला था. शादी को तकरीबन 5 साल बीत गए. कुछ दिन बाद लालाराम भी मर गए.

चंदर व उस की मां सरला को काफी झटका लगा.

जब लालाराम की मौत हुई थी, तो चंदर की उम्र 14 साल थी. वह बहुत खूबसूरत था. उस का गोरा रंग व गठीला बदन था. उस की सौतेली मां सरला खाना पकाती, घर की साफसफाई करती और चंदर के कपड़े भी धोती थी.

चंदर धीरेधीरे बड़ा होने लगा.

एक दिन चंदर ने सरला से कहा, ‘‘मां, एक बात बोलूं?’’

सरला बोली, ‘‘बोलो बेटा.’’

चंदर बोला, ‘‘पिताजी इतना पैसा छोड़ कर चले गए. मैं रोज पढ़ाई की वजह से खेतों को सही से देख नहीं पाता. इसलिए सोच रहा हूं कि 2 हजार रुपए महीने पर एक आदमी खेतीबारी का काम संभालने के लिए रख दूं. वह खेतीबारी का काम मजदूरों से करा लेगा और कम से कम साल में 3-4 लाख रुपए का अनाज बेच लिया जाएगा.’’

सरला ने कहा, ‘‘बेटा, तुम ने तो अच्छी तरकीब सोची है. यह काम तुम तुरंत कर लो.’’

चंदर ने इस काम के लिए एक आदमी रख लिया. साल में चंदर 3-4 लाख रुपए का अनाज बेच लिया करता था. जिंदगी अच्छी तरह कट रही थी. मगर सरला दिनरात किसी नौजवान मर्द की तलाश में रहा करती थी, क्योंकि वह अपनी जवानी का मजा पूरी तरह नहीं लूट पाई थी.

एक दिन चंदर बीमार पड़ा. सिर में दर्द था और बहुत जोरों से उस का बदन टूट रहा था.

चंदर खेत से आया था. शाम को 6 बजे आ कर चारपाई पर वह लेट गया. इधर सरला खाना पका कर चंदर को बुलाने गई, तो देखा कि वह दर्द से कराह रहा था.

सरला ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ चंदर? तुम क्यों कराह रहे हो?’’

चंदर बोला, ‘‘मेरा सारा बदन टूट रहा है.’’

सरला ने पूछा, ‘‘मैं सरसों का कुनकुना तेल ले कर आ रही हूं. तुम्हारी मालिश कर देती हूं. कम से कम तुम्हारा बदन दर्द कम हो जाएगा.’’

चंदर ने कहा, ‘‘ठीक है मां.’’

सरला ने चंदर की मालिश करना शुरू किया. मालिश करतेकरते सरला की नीयत खराब होने लगी, लेकिन तब तक चंदर सो चुका था.

अगले दिन वह सोचने लगी कि कैसे चंदर के करीब जाऊं या चंदर मेरे करीब आए, ताकि मैं दिल की बात कह सकूं.

एक दिन सरला ने सोचा, ‘जैसे मैं ने चंदर की मालिश की थी, उसी तरह चंदर से मैं भी मालिश कराऊं, तो हो सकता है कि बात बन जाए.’

शाम हुई, खाना पका कर सरला चंदर का इंतजार कर रही थी. चंदर की मोटरसाइकिल की आवाज सुनते ही सरला चारपाई पर जा कर लेट गई और कराहने लगी.

चंदर ने घर में जैसे ही कदम रखा, तो देखा कि उस की मां चारपाई पर लेटी कराह रही थी.

चंदर बोला, ‘‘मां, क्या हुआ?’’

सरला बोली, ‘‘कुछ नहीं बेटा. मेरे हाथपैरों में बहुत दर्द है.’’

‘‘मां, जैसे तुम ने मुझे कुनकुने तेल की मालिश की थी, क्या मैं भी कर दूं, ताकि रात में अच्छी तरह नींद आ सके.’’

सरला धीरे से बोली, ‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी.’’

चंदर ने जब कुनकुने तेल की मालिश करना शुरू किया, तब सरला काफी खुश हुई.

चंदर ने भी सरला के बदन को देखा और छुआ, तो वह भी चढ़ती जवानी के जोश में पागल सा होने लगा.

सरला के सारे बदन की मालिश करने के बाद काफी रात गुजर गई. चंदर को नींद नहीं आ रही थी. उधर सरला की आंखों से नींद गायब थी. दोनों रातभर जागते रहे.

सरला ने कहा, ‘‘चंदर, मुझे डर सा लग रहा है. तुम यहीं आ कर सो जाओ.’’

यह सुन कर चंदर के मन में खुशी की लहर दौड़ गई. उस ने कहा, ‘‘ठीक है मां, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. मैं यहीं पर सो जाता हूं.’’

सरला ने धीरेधीरे अपने बदन के कपड़े हटाने शुरू किए.

सरला बोली, ‘‘मुझे बहुत गरमी लग रही है.’’

चंदर सरला की हरकत देख कर पागल हुआ जा रहा था. चंदर सरला के बदन की मालिश दोबारा करने लगा.

सरला ने कोई विरोध नहीं किया.

सरला व चंदर हरकत करतेकरते एकदूसरे में डूब गए. उस रात से ही वे दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

काफी दिनोें के बाद सरला पेट से हो गई. यह देख कर चंदर डर गया, तो सरला भी घबराने लगी कि क्या हो गया. गांव के लोग क्या कहेंगे. वे लोकलाज के बारे में सोचते रहे.

पेट से हुए 5 महीना पूरा हो गया. सरला ने घर के बाहर निकलना बंद कर दिया.

एक दिन लोकलाज के डर से सरला ने जहर खा लिया और उस की मौत हो गई. बाद में चंदर को पता चला कि सरला की मौत का जिम्मेदार वह खुद है. अगर वह समय रहते सरला के पेट में पल रहे बच्चे की सफाई करा देता, तो उस की मौत नहीं होती.

चंदर भी यह सदमा बरदाश्त नहीं कर सका और उस ने भी जहर खा कर मौत को गले लगा लिया.

Valentine’s Day 2024- तड़पते इश्क की गूंज: अवनी क्यों पागल हो गई थी

आगरा के पक्की सराय एरिया की कालोनी में 2 बैडरूम के छोटेछोटे घर. जिन लोगों के परिवार छोटे होते हैं, उन के लिए तो ऐसे घर सही हैं, लेकिन जिन के परिवार में 8-8 लोग हों, वे भला कैसे गुजारा करें… सब बड़ा घर भी तो नहीं ले सकते. इतनी महंगाई में घर का रोजमर्रा का खर्च चलाएं या बड़ा घर खरीदें?

यही हालत अविनाश की भी है. उस का एक भरापूरा परिवार है, जिस में दादादादी, मांपापा, भैयाभाभी, एक छोटी बहन और वह खुद यानी घर में रहने वाले पूरे 8 जने और बैडरूम हैं 2.

एक रूम पर भैयाभाभी का और दूसरे रूम पर मांपापा का कब्जा था. कौमन हाल में दादादादी और छोटी बहन सोते थे. अब रह गया अविनाश, पर उस के लिए तो जगह ही नहीं बचती थी. मांपापा कहते थे कि वह उन के रूम में आ जाए, पर भला जवान बेटा अपने मांपापा के कमरे कैसे आ सकता था?

खैर, एक दिन अविनाश वहां सोया तो रात को कुछ खुसुरफुसुर की आवाजें सुनाई दीं. उसे लगा कि मांपापा धीरेधीरे कुछ बात कर रहे हैं.

खैर, बात तो कोई भी हो सकती है, प्यार की या परिवार की, लेकिन उस के बाद अविनाश को अपने मांपापा के कमरे में सोना सही नहीं लगा और अगले ही दिन उस ने जीवन मंडी रोड पर बनी अपनी फैक्टरी के मालिक से बात कर ली कि वह भी रात को फैक्टरी में रुक जाया करेगा, ताकि उस का घर से आनेजाने का समय बच जाए और उस बचे हुए समय में वह और ज्यादा मेहनत कर के ज्यादा काम कर सके. मालिक ने हां कर दी.

लेकिन बात कुछ और भी थी. अविनाश फैक्टरी में मेनेजर की पोस्ट पर काम करने वाली अवनी से प्यार करता था, इसीलिए उसे अवनी के बराबर खुद को खड़ा करना था, तभी तो वह अवनी का रिश्ता मांगने की हिम्मत करता.

दरअसल, यह तब की बात है जब अवनी और अविनाश राधा वल्लभ कालेज में एक ही क्लास में पढ़ते थे. चलिए, अब आप को थोड़ा फ्लैशबैक में ले कर चलते हैं.

अवनी एक ठीकठाक अमीर परिवार से थी. थोड़ा हलका सा सांवला रंग, मोटेमोटे नैन, तीखी नाक, लंबी सुराहीदार गरदन, लंबेघने काले बाल, कद 5 फुट, 4 इंच, होंठ पतले जैसे गुलाब की पंखुड़ियां हों, बड़े उभार मर्दों को न्योता देते हुए, कमर ऐसे लचकती कि कहने ही क्या. कुलमिला कर अवनी किसी का भी दिल धड़काने के लिए काफी थी.

जैसे ही अवनी की कार कालेज के अंदर आती तो जवां दिलों की धड़कनें थम जातीं. कोई उस की कार का दरवाजा खोलने दौड़ता, तो कोई जहां होता वहीं बुत बना केवल उसे देखता रहता.

अवनी पर हजारों जवां दिल फिदा थे, मगर वह किसी की तरफ भी ध्यान नहीं देती थी. कार पार्क कर के सीधा अपनी क्लास में और क्लास के बाद कार में बैठ घर की तरफ चल देती थी.

अब जानिए हमारे हीरो अविनाश के बारे में. साफ रंग, कद 5 फुट, 8 इंच, घुंघराले बाल, माथे पर हमेशा एक बालों की लट झूलती रहती, चौड़ा सीना, मजबूत बांहें, चाल राजकुमारों सी, एकदम हीरो. मगर वह एक पुरानी सी स्कूटी पर कालेज आताजाता था. साधारण परिवार का जो था.

कालेज इश्क एक ऐसा अखाड़ा होता है जहां किसी न किसी का किसी न किसी से पेंच लड़ ही जाता है, मगर ये 2 महान हस्तियां ही ऐसी थीं, जिन्हें अभी तक किसी से प्यार नहीं हुआ था.

अवनी प्यारमुहब्बत के झमेले में पड़ना नहीं चाहती थी और अविनाश घर के हालात से मजबूर था. जब तक वह पढ़लिख कर कुछ बन न जाए, तब तक किसी लड़की के बारे में उसे सोचना भी नहीं.

लेकिन इश्क कहां छोड़ता है जनाब, यह तो वह आग है जो बिन तेल, बिन दीयाबाती जलती है. आखिर इन दोनों को भी इस आग ने पकड़ लिया.

दरअसल, जहां से अविनाश के घर का रास्ता था, वहीं कहीं रास्ते में ही अवनी का घर भी था और वे दोनों कालेज से अमूमन एक ही समय पर निकलते थे.

एक दिन अचानक रास्ते में अवनी की कार खराब हो गई. उस पर बारिश का मौसम भी बना हुआ था. लाख रोकने पर कोई बस या आटोरिकशा नहीं रुका. इतने में अविनाश, जो अपनी स्कूटी से आ रहा था, उसे देख रुक गया और पूछा, “अवनी, क्या हुआ? आप यहां बीच रास्ते में… गाड़ी में कुछ प्रौब्लम आ गई क्या?”

“हां, मेरी कार अचानक बंद हो गई है और कोई बस या आटोरिकशा भी नहीं  रुक रहा.”

“परेशान न हों. मैं आप को घर छोड़ देता हूं, क्योंकि मौसम भी खराब है. लगता है कि थोड़ी देर में बारिश भी होने वाली है और यहां आसपास कोई कार मेकैनिक भी नहीं है. अगर आप को एतराज न हो तो आप मेरी स्कूटी पर बैठ जाएं.”

अवनी को कोई और रास्ता भी नजर नहीं आ रहा था, इसलिए वह अविनाश के पीछे स्कूटी पर बैठ गई. मगर जैसे ही उस ने अविनाश को पकड़ा, मानो दोनों ने किसी बिजली के तार को छू लिया हो. सनसनी सी बन कर एक लहर दौड़ गई बदन में, उस पर बारिश भी शुरू हो गई थी.

एक तो बारिश से भीगने पर बदन में कंपकंपाहट, उस पर आग और घी का मिलन, ज्वाला तो भड़कनी ही थी. तब से दोनों के दिलों में इश्क ने बसेरा कर लिया था, मगर मूक इश्क ने. न अवनी जबां से कुछ कह सकी, न अविनाश इश्क कुबूल कर सका.

इत्तिफाक देखिए, पढ़ाई खत्म होने के बाद दोनों की नौकरी एक ही जूता फैक्टरी में लग गई. हुआ यों कि अवनी के पापा की जीवन मंडी रोड एक जूता फैक्टरी के मालिक लवेश से अच्छी जानपहचान थी और इस वजह से उन की बेटी अवनी को मैनेजर का पद मिल गया था.

इधर अविनाश को बहुत मेहनत के बाद किसी जानकार की सिफारिश से जीवन मंडी रोड की उसी फैक्टरी में काम मिल गया. उस ने आते ही अवनी को देखा तो हैरान रह गया. एकदूसरे को सामने देख कर दोनों का प्यार दोबारा हिलोरें लेने लगा.

एक दिन अविनाश जब फैक्टरी से छुट्टी के बाद घर जा रहा था, तो रास्ते में देखा कि अवनी कार रोके खड़ी थी.

“मैडम, क्या हुआ? कार खराब हो गई क्या? क्या मैं आप की कुछ मदद कर सकता हूं?”

इतना सुनते ही अवनी कार से निकली और अविनाश के गले लग कर खूब रोई.

“अरे अवनी, क्या हुआ? सब ठीक तो है न? जल्दी बताओ, मुझे चिंता हो रही है,” अविनाश ने पूछा.

“अविनाश, तुम्हें अगर मेरी जरा भी परवाह होती तो इतने पत्थरदिल न बनते, मेरे प्यार से अनजान न रहते. क्या तुम्हारा मेरा रिश्ता इस एक नौकरी की वजह से इतना बदल गया कि तुम मुझे औफिस के बाहर भी मैडम ही कहो. क्या मैं तुम्हारे लायक नहीं…”

“नहीं अवनी तुम नहीं, बल्कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं, इसी वजह से मैं तुम से दूर रहता हूं. मैं जानता हूं कि हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं, मगर हमारा मिलन मुमकिन नहीं है. तुम एशोआराम में पली हो और मैं एक मामूली सा इनसान. तुम्हारे परिवार वाले इस रिश्ते के लिए नहीं मानेंगे.”

“लेकिन मैं तो तुम्हें अपना मान चुकी हूं,” यह कहते हुए अवनी ने अविनाश के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. उस छुअन की आग से दोनों के तन जल उठे, मगर जल्दी ही वे संभल गए, क्योंकि दोनों को यह भी डर था कहीं कोई देख न ले. पर अगले दिन वे दोनों फैक्टरी से जल्दी छुट्टी ले कर ताजमहल देखने गए.

“हम इस प्यार की अनमिट निशानी के सामने एकदूसरे को अपनाते हैं और कसम खाते हैं कि जीएंगे तो साथसाथ, मरेंगे तो साथसाथ,” अविनाश ने ताजमहल को देखते हुए अवनी से कहा.

दोनों के जवां दिल धड़क रहे थे, मिलन को तड़प रहे थे. अब दूर रहना मुहाल हो रहा था. वे दोनों वहां से बाहर आए और किसी सुनसान जगह की ओर चल दिए. ज्वालामुखी जो अंदर दहक रहा था, वह न जाने उन्हें किस ओर ले जा रहा था, उन्हें खुद इस बात का अंदाजा नहीं था.

एक जगह पर अवनी ने जैसे ही गाड़ी रोकी, अविनाश पिघल पड़ा उस पर मोम के जैसे और लपेट लिया उसे अपने अंदर. अवनी भी अविनाश की बांहों की गिरफ्त में आने को छटपटा रही थी.

बस, एक जलजला काफी था दोनों को इश्क के दरिया में डुबाने के लिए और वे डूब भी गए. एक कुंआरी ने अपना कुंआरापन न्योछावर कर दिया अपने प्यार पर. मन से तो पहले ही उस के सामने बिछी हुई थी, आज तन से भी बिछ गई.

जब सब बह गया तब होश आया. दोनों सोचने लगे कि अब आगे न जाने क्या होगा, क्योंकि यह तो अवनी भी जानती थी कि उस के पिता इस रिश्ते के लिए नहीं मानेंगे.

अविनाश‌ ने अवनी को भरोसा दिलाया कि जब तक वह कुछ बन नहीं जाता है, तब तक वे नहीं मिलेंगे.

अवनी ने अगले ही दिन नौकरी छोड़ दी. अविनाश फैक्टरी में नए से नए डिजाइन के जूते बनाता था और वे काफी पसंद भी किए जाते थे. अब उस ने और ज्यादा लगन और मेहनत से काम करना शुरू कर दिया था.

एक दिन अविनाश रात को फैक्टरी में ही कोई नया डिजाइन सोच रहा था कि उसे हाजत ‌हुई, मगर जैसे ही वह बाहर निकला, तो देखा कि फैक्टरी में चारों ओर धुआं ही धुआं था. उस ने जल्दी से दूसरे कमरे में सोए हुए मजदूर और चौकीदार को आवाज लगाई, पर दरवाजा अंदर से बंद होने की वजह से इतनी जल्दी आग के फैल गई कि उन का बाहर निकलना मुश्किल हो गया.

शोर मचाने पर आसपास के लोग आए और दमकल की गाड़ियां भी बुलाई गईं, मगर अंदर जाना मुश्किल था, इसलिए फैक्टरी की दीवार तोड़ कर ही दमकल की गाड़ियां अंदर जा सकीं. मगर जब तक गाड़ियां अंदर गईं तब तक सबकुछ जल कर राख हो चुका था. उन तीनों की लाशें भी कंकाल के रूप में मिलीं.

अवनी ने यह सुना तो पागल सी हो गई. बहुत इलाज करवाया मगर वह अविनाश को भूल नहीं पाई. उस ने आगरा के पागलखाने में दीवारों पर ‘अविनाशअविनाश’ लिखा हुआ था. पागलखाने की दीवारों में इश्क की तड़प की गूंज सुनाई देती थी. अकसर रातों को अवनी के चीखने की आवाजें आती थीं, “कोई मेरे अविनाश को बचा लो या मुझे भी उसी आग में जला दो…”

 

Valentine Special: गुड़िया कहां चली गई, क्या था आखिरी चिट्ठी का राज

मंदिर के फर्श पर एक खूबसूरत औरत पुजारिन के रूप में बैठी थी. मैं हैरानी से उस को देख रहा था. उस का चेहरा दूसरी तरफ था. जैसे ही उस ने अपना चेहरा मेरी तरफ घुमाया, मैं चौंक उठा था.

‘‘गुड़िया…’’ एकाएक मेरे होंठों से निकल पड़ा था.

मैं ने अपनी गुड़िया को जोर से पुकारा, ‘‘मेरी गुड़िया…’’

वह मुझे देखने लगी थी, लेकिन मुझ से ज्यादा देर तक नजरें नहीं मिला सकी. शायद उसे याद आया होगा मेरा वादा.

‘‘गुड़िया, मैं धर्म को नहीं मानता. मेरा धर्म और इनसानियत सिर्फ मेरा प्यार है,’’ मैं ने कहा.

वह मुझे नहीं देखना चाहती थी. वह फर्श पर समाधि की मुद्रा में बैठी थी. गेरुए रंग की साड़ी में वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. बाल बिखरे हुए थे. ललाट पर रोली व चंदन का टीका उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे.

मैं उसे अपलक देख रहा था. मांग में सिंदूर नहीं था. माथे पर बिंदिया नहीं थी, फिर भी वह काफी खूबसूरत लग रही थी.

जी चाहा कि मैं गुड़िया को अपनी बांहों में भर लूं. मेरे कदम बढ़ने लगे थे. मैं ने जैसे ही उस के नजदीक जाने की कोशिश की, मेरी नींद खुल गई थी.

अरे, यह कैसा सपना था. मैं अपने गांव से हजारों मील दूर अनजान शहर में छोटे से किराए के कमरे में था. उफ, कैसेकैसे सपने आते हैं.

मैं बिस्तर से उठ कर बैठ गया था. कमरे के चारों तरफ नजर घुमाई तो पाया कि कमरे का नाइट बल्ब जल रहा था. मैं ने अपने दिल पर हाथ रखा. दिल तेजी से धड़क रहा था. ऐसा लग रहा था, जैसे मैं मीलों दौड़ लगा कर आया हूं.

गुजरात के अहमदाबाद शहर में आए हुए मुझे एक साल से भी ज्यादा का समय हो चुका था. काफी भागदौड़ करने के बाद मुझे कपड़ा मिल में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई थी.

फैक्टरी में मजदूरों के साथ मैं रोजाना 12 घंटे काम करता हूं. काम करतेकरते मैं थक जाता हूं. रात में बिस्तर पर पहुंचते ही नींद बांहों में जकड़ लेती है. कभीकभी नींद इतनी तेज आती है कि बिना अलार्म के नींद खुलती भी नहीं.

मैं हर इतवार को गुड़िया को चिट्ठी लिखता था. चिट्ठी मिलने पर जवाब भी दिया करता था. शुरू में यह सिलसिला बेनागा होता था. बाद में काम के दबाव के चलते कम हो गया था. फिर कुछ दिन बाद उस की चिट्ठी आना कम हो गई थी.

मैं सोच रहा था कि गुड़िया तो हमेशा चिट्ठी लिखती रहती है, लेकिन इन दिनों शायद उस को मेरा खयाल नहीं रहता है. अब वह चिट्ठी लिखना भी बंद कर चुकी थी.

हां, आने की बात वह पिछली कई चिट्ठियों में कर चुकी थी. आखिरी चिट्ठी में उस ने लिखा था कि मांबाबूजी अलग खाना पका रहे हैं. वजह नहीं लिखी थी.

इधर, मैं 2 चिट्ठी लिख चुका था. वह अभी तक दोनों चिट्ठियों का जवाब नहीं दे पाई थी. आज ऐसा सपना आया तो मुझे नींद नहीं आ रही थी. अभी 4 बज रहे थे.

मैं रोजाना 5 बजे सुबह जाग जाता हूं. काम पर जाने के लिए सवेरे जाग कर मुझे जाने की तैयारी करनी पड़ती है. खुद से खाना पकाना पड़ता है और फिर खुद से ही टिफिन में भोजन पैक कर ड्यूटी जाना पड़ता है. मैं बिस्तर पर लेट कर उस की यादों में खोने लगा था.

मैं पंडित कालीचरण मिश्र का एकलौता बेटा आकाश था. मेरा जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था. फिर भी मैं धर्म, जाति, मंदिरमसजिद आदि के पचड़े में नहीं पड़ता था. मैं जातपांत का पक्का विरोधी था. ये सब मुझे आडंबर लगते थे.

उन दिनों कालेज में वादविवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. विषय था, ‘धर्म और जाति’. मेरे अंदर धर्म और जाति जैसे भेदभाव को ले कर आग पल रही थी. मेरे लिए यह वादविवाद दिल की भड़ास निकालने के लिए काफी था.

उस दिन मैं तय समय पर कालेज पहुंच गया था. वादविवाद प्रतियोगिता शुरू हुई. बारीबारी से प्रतिभागी अपनेअपने विचार दे रहे थे. मेरी ही क्लास में गुडि़या नाम की लड़की थी. उस का वास्ता दलित जाति से था. वह देखने में बेहद खूबसूरत थी. वह पढ़ने में भी तेज थी. उस ने भी वादविवाद में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था.

जब मेरी बारी आई, तो मैं ने भी धर्म और धर्मांधता को ले कर काफी लच्छेदार भाषण दिया था. मेरा कहना था कि धर्म ने समाज में बुराई फैलाने के अलावा कुछ भी नहीं किया है. धर्म के चलते लोग एकदूसरे से नफरत व जलन के भाव रखने लगे हैं. समाज में अलगाव की भावना पनप रही है.

मैं ने ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मणों का पुरजोर विरोध किया था. धर्म और जाति के नाम पर कुछ लोगों के लिए भले ही पूरियां तोड़ने का साधन मात्र है, लेकिन उन का असली मकसद तो केवल धंधा करना है. जातपांत और धर्म के नाम पर बनाए गए मकड़जाल से हम सब को बाहर निकलना होगा, तभी समाज का भला होगा. मैं ने जता दिया था कि मैं जातपांत का पक्का विरोधी हूं.

एक ब्राह्मण लड़के से ब्राह्मणवाद का विरोध करना आसान नहीं था. लोगों ने जब मेरी बातें सुनीं, तो खूब तालियां बजाईं और मुझे वाहवाही मिली थी. इतना ही नहीं, मुझे वादविवाद प्रतियोगिता में सर्टिफिकेट भी मिला था.

इस का असर लोगों पर कितना हुआ, मुझे नहीं मालूम. लेकिन मेरी तरफ आकर्षित होने का पहला जादू गुडि़या पर चल चुका था. जिस पर मैं क्या, पूरे कालेज के लड़के फिदा रहते थे. लेकिन, वह किसी को घास नहीं डालने देती थी.

दूसरे दिन गुडि़या फूलों के बुके के साथ मेरे सामने कालेज के आडिटोरियम में बधाई देने के लिए वहां थी, क्योंकि मुझे वादविवाद प्रतियोगिता में पहला नंबर हासिल हुआ था, जबकि उसे तीसरा नंबर मिला था.

आज गुडि़या मुझे बधाई देने के लिए खड़ी थी, सिर्फ खड़ी ही नहीं थी, बल्कि मुझे अपलक देख रही थी. उस के इस तरह के अजीब बरताव के चलते मैं झोंप सा गया था.

गुडि़या की बड़ीबड़ी आंखों में शरारत थी. वह मेरे ऊपर जादू चला चुकी थी. उस के ठीक अगले दिन वह मुझे रंगीन लिफाफा पकड़ा गई थी.

मैं स्कूल के फुलवारी के बीच पहुंच कर लिफाफा खोल कर पढ़ने लगा था :

‘प्रिय आकाश,

‘मैं कहां से लिखना शुरू करूं. मुझे प्रेमपत्र लिखने की तहजीब नहीं है. मैं वादविवाद प्रतियोगिता हाल से ही शुरू कर रही हूं, जहां से मेरे दिल के उमड़ते वेग ने ही मुझे परेशान कर दिया था और मैं चाह कर भी सचाई के प्रति वह सब नहीं बोल सकी थी, जो मेरे दिल में बर्फ की परत की तरह पहले से ही जम चुके थे. लेकिन, तुम्हारी बेबाक बातों ने जमी हुई बर्फ की परत को पिघला कर मेरे दिल को ठंडक पहुंचा दी है. इतनी ठंडक कि मैं अपनेआप को बहुत सुकून में महसूस कर रही हूं. लेकिन दूसरी तरफ बेचैनी और बेकरारी बढ़ गई है.

‘मैं तुम्हें दिल से चाहने लगी हूं. सिर्फ इंतजार है तुम्हारा. मैं अगले दिन कालेज की फुलवारी में तुम्हारा इंतजार करूंगी.

‘सिर्फ तुम्हारी,

‘गुडि़या.’

मैं भला इस प्रेम निवेदन को कैसे ठुकरा सकता था. मुझे मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. मैं अगले दिन कालेज की उसी फुलवारी में पहुंच चुका था.

गुडि़या मेरे इंतजार में पहले से ही वहां चहलकदमी कर रही थी. वहां जाते ही मैं ने उसे अपनी बांहों में भर लिया था. वह भी प्यासे की तरह मुझ से लिपट चुकी थी. कुछ पलों के लिए दोनों एकदूसरे में खो गए थे. दोनों की आंखें बंद हो चुकी थीं, जैसे सागर में नदी समा जाना चाहती थी.

जब मेरी आंख खुली, तो आकाश में बादल छाए हुए थे. मंदमंद ठंडी हवा बह रही थी. मैं ने उस को छेड़ा, ‘‘गुडि़या, तुम ने तो लिखा था बेहद ठंडा महसूस कर रही हूं, लेकिन तुम्हारी सांसों में काफी गरमी है,’’ क्योंकि मैं उस की सांसों को करीब से महसूस कर रहा था.

वह मेरे मुंह से ‘गुडि़या’ नाम सुन कर तपाक से पूछ बैठी थी, ‘‘खेलने की गुडि़या या…‘‘

उस के होंठों पर उंगली रख मैं बीच में ही बोल पड़ा था, ‘‘नहीं, प्यार को महसूस करने का नाम ‘गुडि़या’.’’

फिर क्या था, कालेज के दिन मजे से गुजरने लगे थे. प्रेम परवान चढ़ चुका था. दोनों जीनेमरने की कसमें खा चुके थे. पर भला इश्क और मुश्क कब छिपाए छिपता है. जब यह बात मेरे मांबाबूजी को पता चली, तो वे लोग हम दोनों के दुश्मन बन गए. गुडि़या ने अपने मातापिता को समझबुझा कर राजी कर लिया था.

लेकिन, जब मैं ने अपने मांबाबूजी से बात की, तो वे दोनों आपे से बाहर हो गए. इतना ही नहीं, पिताजी गुडि़या और उस के खानदान के खिलाफ बोलने लगे, ‘‘तुम ऐसी जाति से ब्याह करोगे, जिस का छुआ हम लोग पानी तक नहीं पीते. मेरे खानदान में कोई दलित जाति में शादी करे, उस की इतनी हिम्मत?

‘‘क्या तुम्हें अपनी इज्जत का भी खयाल नहीं है? यह सब सोचने से पहले तुम हम दोनों के लिए जहर क्यों नहीं ले आए थे, ताकि ऐसे दिन देखने से पहले हम दोनों मर जाते…’’

मातापिता को सम?ाना जंग जीतने से कम नहीं था. मैं ने उन को बहुत सम?ाया, घरबार छोड़ने की धमकी दी. भला उन्हें यह कैसे बरदाश्त होता कि उन का एकलौता बेटा, जो एकमात्र खानदान का चिराग है, घर छोड़ कर चला जाए. दोनों बेमन से ही सही, कुछकुछ रजामंदी की मुहर लग गई थी.

हम दोनों ने कालेज के कुछ दोस्तों के साथ कोर्ट में जा कर शादी कर ली थी. न बरात गई, न ही मेरे सगेसंबंधी आए. हम दोनों ने ही शादी का पूरा खर्चा उठाया. खर्च भी क्या था, 2 मालाएं, सिंदूर की डब्बी और यारदोस्तों से उधार लिए हुए गुडि़या के लिए एक जोड़ी कपड़े.

शादी के बाद रिश्तेदारों का आनाजाना बंद हो गया था. मेरी पत्नी के आ जाने के बाद बाबूजी कम बोलते थे. लेकिन मां थीं, जो कभीकभी मुझे हिम्मत देती थीं. शायद वे जानती थीं कि मेरा बेटा काफी जिद्दी है. अगर घर छोड़ देगा तो फिर कभी लौट कर नहीं आएगा. बेटे से भी हाथ धोना पड़ेगा, लेकिन मेरी खुशियों का खयाल दोनों में से किसी को नहीं था.

शादी हो जाने के बाद से ही अड़ोसपड़ोस की औरतें और आदमी हमारे घर का रास्ता भूलने लगे थे, क्योंकि यह छूत की बीमारी उन के घरों में न लग जाए, इस का डर था, इसलिए मैं ने मां से कहा, ‘‘मां, मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं.’’

ल्ेकिन, वे अपनी कसम दे कर घर से दूर जाने से मना कर देतीं. शादी के बाद हम दोनों घर में ही सिमट कर रह गए. दिनभर घर के छोटेमोटे काम करता और शाम होतेहोते लोगों के बदले रवैए पर चिंता जाहिर करता. मेरा सब्र उसे बांध कर रखे हुए था.

मैं उस से कहता, ‘‘गुडि़या, मेरा धर्म और ईमान सिर्फ प्यार है. मैं लोगों की तरह धार्मिक नहीं हूं. धर्म ने मुझे बहुत डरायाधमकाया है. मैं धर्म अपनाने से डरता हूं, इसलिए मेरी दिली इच्छा है कि तुम मेरा साथ दो.’’

धीरेधीरे घर का माहौल ठीक होने लगा था. पर अड़ोसपड़ोस वालों का रवैया नहीं बदला था. वे आतेजाते ताना मारते कि जब शादी कर ली, तो घर में रह कर उस की सूरत देखने से पेट तो नहीं भर जाएगा न. बूढ़े मांबाप का सहारा बनो. अपनी मरजी से कमानेधमाने कहीं बाहर जाओ.

मैं मन ही मन जलभुन गया था. अभी शादी हुए 6 महीने भी नहीं हुए थे और नौकरी करने के लिए घर छोड़ना पड़ेगा.

मैं ने गुड़िया को अपना फैसला सुनाया. नौकरी के लिए मुझे गुजरात जाना पड़ेगा. मैं ने अपने यारदोस्तों से बात कर ली है. अब घर में बैठने से तो हमारी जरूरत पूरी नहीं होगी. आज नहीं तो कल, कभी न कभी कमाने जाना ही पड़ेगा. दोनों एकदूसरे को समझ बुझ कर राजी हो गए थे.

मैं ने उसे बताया था कि जब तक कुछ कमा नहीं लेता, तब तक घर लौट कर नहीं आऊंगा. बस, अब हम दोनों चिट्ठियों से संतोष करेंगे.

न चाहते हुए भी अलग होने के लिए वह राजी हो गई थी, क्योंकि पड़ोसियों की अनदेखी का अहसास उसे भी था. जाने से पहले वह पूरी रात लिपट कर आंसू बहाती रही. कुछ पलों के लिए मैं भी परेशान हो गया था.

‘‘गुड़िया, मत रोओ. जिंदगी रोने का नाम नहीं है,’’ घर से निकलते हुए कंधे पर अपना बैग रखते हुए मैं ने उसे दिलासा दी. यह तो सच है कि पेट के लिए कमाना जरूरत है. बिना कमाए भोजन मिलना मुमकिन नहीं है. अपनी खेतीबारी औरों की तरह नहीं है, जो घर में रह कर अनाज पैदा करें और अपनी जरूरतें पूरी करें, इसलिए बाहर जा कर नौकरी ढूंढ़ना जरूरी है.

जाते समय गुड़िया ने मेरे दोनों गालों को चूम लिया था और अपने आंसू पोंछते हुए हिदायत दी थी कि हर हफ्ते चिट्ठी जरूर लिखना. मैं इंतजार करूंगी.

गुजरात आते ही अपने गांव के कुछ लोगों की मदद से कपड़ा मिल में मुझे सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई थी. कुछ दिन तक तो मैं अपने दोस्तों के कमरे में साथ रहा. बाद में मैं ने अपना कमरा अलग से ले लिया था.

जल्दी ही मैं ने गुडि़या को चिट्ठी लिखी थी और उस का जवाब मुझे मिला था. दूर रहने पर, कागज पर लिखे शब्दों की क्या अहमियत होती है, यह मैं अब अनुभव कर चुका था. उस ने लिखा था कि जब तुम चले गए थे, तो मैं ठीक से खा भी नहीं पाती थी. जब तुम्हारी चिट्ठी मिली, तो मैं भरपेट भोजन कर रही हूं.

मैं उस की चिट्ठियों को कई बार पढ़ता. मुझे भी ऐसा ही महसूस होता. उन दिनों मैं भी ठीक से भोजन नहीं कर पाता था. एक तो थका देने वाला काम और अजनबी शहर में अपना कहलाने वाला कोई नहीं होता. खाली वक्त में गुड़िया के साथ बिताए पल याद आते थे. मन उदासी से भर जाता था.

उन पलों में मैं उस की भेजी हुई चिट्ठियों को दुहराता था. चिट्ठी फैक्टरी के पते पर ही आती थी. जिस दिन चिट्ठी मिलती, फैक्टरी से घर पहुंचने की जल्दी होती, क्योंकि वहां चिट्ठी पढ़ने का समय ठीक से नहीं मिल पाता था.

किंतु धीरेधीरे काम में इतना उलझता चला गया कि अब चिट्ठी मिले या न मिले, कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. इधर कई महीने से गुडि़या की चिट्ठी नहीं मिली थी, अब वह भावनाओं में बह कर नहीं लिखती थी. चिट्ठी औपचारिक होती थी.

हालांकि लंबी जुदाई के चलते मिलने के लिए मन बेचैन हो उठता था. आज जब इस तरह के सपने आए, तो मेरा मन यहां बिलकुल नहीं लग पा रहा था.

मैं फैक्टरी से छुट्टी ले कर अपने गांव चल दिया था. मेरे मन में गुड़िया को ले कर तरहतरह के खयाल आ रहे थे. मैं उस से मिलने के लिए रोमांचित था. उस के लिए साड़ी और जरूरी सामान खरीद लिया था. मांबाबूजी के लिए भी कपड़े खरीद कर ट्रेन पकड़ ली थी.

मैं घर में दाखिल हुआ. मांबाबूजी  को प्रणाम कर मेरी आंखें गुड़िया को ढूंढ़ने लगी थीं, पर वह घर में कहीं नजर नहीं आई.

मांबाबूजी का उदास चेहरा देख कर मैं कुछ डर सा गया था, इसलिए मैं ने मां से पूछा, ‘‘गुड़िया कहां है?’’

मांबाबूजी इस तरह के सवालों से बचने की कोशिश कर रहे थे. कुछ देर जवाब के इंतजार में मैं उन की तरफ देखता रहा. मांबाबूजी एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे.

मैं ने मां से दोबारा वही सवाल दोहराया, ‘‘गुड़िया कहां गई है मां?’’

मां अपना गला साफ करते हुए बोलीं, ‘‘बेटा, 3 दिन पहले वह घर छोड़ कर चली गई. मैं तो तुम्हारे पास तार भी भेज चुकी हूं.’’

‘‘मां, लेकिन तार तो मुझे मिला नहीं. मैं तो यों ही गाड़ी पकड़ कर आया था, क्योंकि मेरा दिल धड़क रहा था.’’

किसी अनहोनी के डर से मैं घबरा रहा था. मैं ने चीखते हुए मां से सवाल किया, ‘‘कहां चली गई और क्यों?’’

‘‘बेटा, यह तो उस ने नहीं बताया. वह चुपके से पौ फटने के पहले ही निकल चुकी थी. हम दोनों ने काफी ढूंढ़ा, कहीं पता नहीं चल पाया. तब थकहार कर तुम्हारे पास तार भेजा था. वह तुम्हारे नाम एक लिफाफा और पैकेट छोड़ गई है.’’

मां घर के अंदर से लिफाफा और पैकेट निकाल कर मेरे हाथों में थमा दी थी. लिफाफा खोल कर मैं चिट्ठी पढ़ने लगा था,

‘प्रिय आकाश,

‘मैं यह घर छोड़ कर जा रही हूं. तुम घर छोड़ने की वजह जानना चाहोगे. जब से तुम यहां से गए हो, पड़ोस का कोई ऐसा नहीं था, जिस ने मुझे नफरत से न देखा हो. कई लोग मेरे मुंह पर उलाहना दे कर चले जाते थे.

‘मैं किसी को जवाब नहीं दे पाती थी. किसी ने मुझे नहीं स्वीकारा. न घर के लोग और न पड़ोस वाले. मांबाबूजी अलग से खाना पकाने लगे. तुम्हारे जाने के बाद उन्होंने घर के शुद्धीकरण के लिए पूजापाठ तक करवाया. मैं अलगथलग पड़ गई थी.

‘मैं यही सोचती रही कि मेरे चलते तुम्हारे परिवार को भी काफीकुछ झेलना पड़ा है. मैं खुद को बहुत कुसूरवार मानने लगी थी. ऐसा लग रहा था, मेरा आत्मसम्मान गिरवी रख दिया गया है. मैं इस माहौल में जिंदा नहीं थी. आखिर तुम इस मरे हुए शरीर को क्या करते, इसलिए मुझे खुद फैसला लेना पड़ा.

‘शायद तुम्हारे आने से पहले मैं इस दुनिया से बहुत दूर चली जाऊंगी. मैं तुम्हारी दी हुई साड़ी, सिंदूर की डब्बी और मंगलसूत्र छोड़ रही हूं. तुम इसे अपने हाथों से गंगा में बहा देना, ताकि इस अभागिन का उद्धार हो सके.

‘तुम्हारी,

‘गुड़िया.’

चिट्ठी पढ़ कर मैं फफकफफक कर रोने लगा था. कई घंटे तक उन चीजों को अपने से चिपका कर मैं गुड़िया को महसूस करने की कोशिश किया था. अगले दिन भारी मन से उन चीजों को गंगा नदी में बहा दिया था.

 

Valentine’s Day 2024: कंवल और केवर की प्रेम कहानी

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Valentine’s Day 2024 – वादियों का प्यार: कैसे बन गई शक की दीवार

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Valentine’s Day 2024: इस वेलेंटाइन को बनाएं खास, पढ़ें Top 10 Love Stories

Top 10 Valentine Story in Hindi: ‘प्यार’ एक ऐसा एहसास है, जिसमे हर एक इंसान खुद को लोगों से अलग समझ कर जीता हैं. प्यार में हर चीज अच्छी लगती है. साथ ही दिल और दिमाग खुश रहता है. इसके अलावा जब कोई व्यक्ति प्यार में होता है, तो उसे अपने पार्टनर की हर एक खूबी व बुराई अच्छी लगती है.

कई लोगों को तो प्यार का इतना जुनून चढ़ जाता है कि वो अपने पार्टनर के प्यार के खातिर कुछ भी कर गुजर जाने को तैयार हो जाते हैं. ऐसी ही प्यार और रिश्ते से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां हम आपके लिए लेकर आए हैं. अगर आपको भी कहानिया पढ़ने का शौक, तो पढ़ें सरस सलिल.

1. वहां आकाश और है: आकाश और मानसी के बीच कौन-सा रिश्ता था 

Romantic Story

अचानक शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था. मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली. पेड़पौधों पर झरझर गिरता पानी उन का रूप संवार रहा था. इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तनमन भिगो ले.

मगर उस की दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा. मानो कह रही हो हमें छोड़ कर कहां चली. पहले हम से तो रूबरू हो लो.

रोज वही ढाक के तीन पात. मैं ऊब गई हूं इन सब से. सुबहशाम बंधन ही बंधन. कभी तन के, कभी मन के. जाओ मैं अभी नहीं मिलूंगी तुम से. मन ही मन निश्चय कर मानसी ने कामकाज छोड़ कर बारिश में भीगने का मन बना लिया.

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2.  सच्चा प्यार : स्कूल में जब दो दिल मिलेRoamntic Story

मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’

‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’

‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’

धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.

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3. प्यार असफल है तुम नहीं रक्षित Romantic Story

विमी के यहां से लौटते ही अचला ने अपने 2 कमरों के फ्लैट का हर कोने से निरीक्षण कर डाला था.विमी का फ्लैट भी तो इतना ही बड़ा है पर कितना खूबसूरत और करीने का लगता है.

छोटी सी डाइनिंग टेबल, बेडरूम में सजा हुआ सनमाइका का डबलबेड, खिड़कियों पर झूलते भारी परदे कितने अच्छे लगते हैं. उसे भी अपने घर में कुछ तबदीली तो करनी ही होगी. फर्नीचर के नाम पर घर में पड़ी मामूली कुरसियां और खाने के लिए बरामदे में रखी तिपाई को देखते हुए उस ने निश्चय कर ही डाला था. चाहे अशोक कुछ भी कहे पर घर की आवश्यक वस्तुएं वह खुद खरीदेगी. लेकिन कैसे? यहीं पर उस के सारे मनसूबे टूट जाते थे.

तनख्वाह कटपिट कर मिली 1 हजार रुपए. उस में से 400 रुपए फ्लैट का किराया, दूध, राशन. सबकुछ इतना नपातुला कि 10-20 रुपए बचाना भी मुश्किल. क्या छोड़े, क्या जोड़े? अचला का सिर भारी हो चला था.

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4. तू आए न आए : शफीका का प्यार और इंतजार Romantic Story

मैं इंगलैंड से एमबीए करने के लिए श्रीनगर से फ्लाइट पकड़ने को घर से बाहर निकल रहा था तो मुझे विदा करने वालों के साथसाथ फूफीदादी की आंखों में आंसुओं का समंदर उतर आया. अम्मी की मौत के बाद फूफीदादी ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया था. 2 चाचा और 1 फूफी की जिम्मेदारी के साथसाथ दादाजान की पूरी गृहस्थी का बोझ भी फूफीदादी के नाजुक कंधों पर था. ममता का समंदर छलकाती उन की बड़ीबड़ी कंटीली आंखों में हमारे उज्ज्वल भविष्य की अनगिनत चिंताएं भी तैरती साफ दिखाई देती थीं. उन से जुदाई का खयाल ही मुझे भीतर तक द्रवित कर रहा था.

कार का दरवाजा बंद होते ही फूफीदादी ने मेरा माथा चूम लिया और मुट्ठी में एक परचा थमा दिया, ‘‘तुम्हारे फूफादादा का पता है. वहां जा कर उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश करना और अगर मिल जाएं तो बस, इतना कह देना, ‘‘जीतेजी एक बार अपनी अम्मी की कब्र पर फातेहा पढ़ने आ जाएं.’’

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5. गुड़िया कहां चली गई, क्या था आखिरी चिट्ठी का राजRomantic Story

मंदिर के फर्श पर एक खूबसूरत औरत पुजारिन के रूप में बैठी थी. मैं हैरानी से उस को देख रहा था. उस का चेहरा दूसरी तरफ था. जैसे ही उस ने अपना चेहरा मेरी तरफ घुमाया, मैं चौंक उठा था.

‘‘गुड़िया…’’ एकाएक मेरे होंठों से निकल पड़ा था.

मैं ने अपनी गुड़िया को जोर से पुकारा, ‘‘मेरी गुड़िया…’’

वह मुझे देखने लगी थी, लेकिन मुझ से ज्यादा देर तक नजरें नहीं मिला सकी. शायद उसे याद आया होगा मेरा वादा.

‘‘गुड़िया, मैं धर्म को नहीं मानता. मेरा धर्म और इनसानियत सिर्फ मेरा प्यार है,’’ मैं ने कहा.

वह मुझे नहीं देखना चाहती थी. वह फर्श पर समाधि की मुद्रा में बैठी थी. गेरुए रंग की साड़ी में वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. बाल बिखरे हुए थे. ललाट पर रोली व चंदन का टीका उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे.

मैं उसे अपलक देख रहा था. मांग में सिंदूर नहीं था. माथे पर बिंदिया नहीं थी, फिर भी वह काफी खूबसूरत लग रही थी.

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6. वादियों का प्यार: कैसे बन गई शक की दीवार Romantic Story

नैशनल कैडेट कोर यानी एनसीसी की लड़कियों के साथ जब मैं कालका से शिमला जाने के लिए टौय ट्रेन में सवार हुई तो मेरे मन में सहसा पिछली यादों की घटनाएं उमड़ने लगीं.

3 वर्षों पहले ही तो मैं साकेत के साथ शिमला आई थी. तब इस गाड़ी में बैठ कर शिमला पहुंचने तक की बात ही कुछ और थी. जीवन की नई डगर पर अपने मनचाहे मीत के साथ ऐसी सुखद यात्रा का आनंद ही और था.

पहाडि़यां काट कर बनाई गई सुरंगों के अंदर से जब गाड़ी निकलती थी तब कितना मजा आता था. पर अब ये अंधेरी सुरंगें लड़कियों की चीखों से गूंज रही हैं और मैं अपने जीवन की काली व अंधेरी सुरंग से निकल कर जल्द से जल्द रोशनी तलाश करने को बेताब हूं. मेरा जीवन भी तो इन सुरंगों जैसा ही है- काला और अंधकारमय.

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7. कंवल और केवर की प्रेम कहानी- भाग 1 Romantic Story

जवाहर पातुर ने कई बार कंवल को चेताया… तू इस महल में नहीं आएगी. कोई बात होगी तो तभी बताना, जब मैं घर आ जाया करूं…’’ कंवल का रूपरंग भी अपनी मां से कहीं ज्यादा बढ़ कर था. जवाहर पातुर यह कभी नहीं चाहती थी कि उस की फूल सी बच्ची पर उस नामुराद महमूद शाह की काली छाया पड़े. उन दिनों बादशाह महमूद शाह के राजघराने में वेश्याओं का अच्छाखासा तांता लगा रहता था. बादशाह के हरम में हुस्न की कोई कमी न थी. उन्हीं में से एक रूपवती थी जवाहर पातुर. बादशाह महमूद शाह के साम्राज्य में वेश्या जवाहर पातुर की खूबसूरती का बोलबाला था.

सब ने यही सुना था कि बादशाह के हरम में कई आईं और गईं, पर एक जवाहर पातुर ही है, जिसे हरम में रानी के समान ही सारी सहूलियतें मुहैया थीं. जवाहर पातुर की बेटी कंवल भी कभीकभी अपनी मां से मिलने महल में आ जाया करती थी, पर पातुर को यह पसंद न था. वैसे अब तक ऐसा नहीं हुआ कि महमूद और कंवल ने एकदूसरे को आमनेसामने देखा हो, पर आज वह महमूद की नजरों से बच न सकी. महमूद ने इस से पहले ऐसी बला की खूबसूरती न देखी थी.

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8. बारिश की बूंद: उस रात आखिर क्या हुआ Romantic Story

मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’

‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’

‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’

धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.

एक दिन उस ने खूब सजधज कर चारबत्ती के पास मेरी साइकिल के अगले पहिए से अपनी साइकिल का पिछला पहिया भिड़ा दिया था. शायद वह मुझ से आगे निकलना चाहती थी.

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9. घरौंदा: कल्पना की ये कैसी उड़ान Romantic Story

विमी के यहां से लौटते ही अचला ने अपने 2 कमरों के फ्लैट का हर कोने से निरीक्षण कर डाला था.विमी का फ्लैट भी तो इतना ही बड़ा है पर कितना खूबसूरत और करीने का लगता है.

छोटी सी डाइनिंग टेबल, बेडरूम में सजा हुआ सनमाइका का डबलबेड, खिड़कियों पर झूलते भारी परदे कितने अच्छे लगते हैं. उसे भी अपने घर में कुछ तबदीली तो करनी ही होगी. फर्नीचर के नाम पर घर में पड़ी मामूली कुरसियां और खाने के लिए बरामदे में रखी तिपाई को देखते हुए उस ने निश्चय कर ही डाला था. चाहे अशोक कुछ भी कहे पर घर की आवश्यक वस्तुएं वह खुद खरीदेगी. लेकिन कैसे? यहीं पर उस के सारे मनसूबे टूट जाते थे.

तनख्वाह कटपिट कर मिली 1 हजार रुपए. उस में से 400 रुपए फ्लैट का किराया, दूध, राशन. सबकुछ इतना नपातुला कि 10-20 रुपए बचाना भी मुश्किल. क्या छोड़े, क्या जोड़े? अचला का सिर भारी हो चला था.

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10. वो नीली आंखों वाला : वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी – भाग 1 Romantic Story

मधुमास के बाद लंबी प्रतीक्षा और सावनराजा के धरती पर कदम रखते ही हर जर्रा सोंधी सी सुगंध में सराबोर हो रहा है… मानो सब को सुंदर बूंदों की चुनरिया बना कर ओढ़ा दी हो. लेकिन अंबर के सीने से खुशी की फुलझड़ियां छूट रही हैं… जैसे वह अपने हृदय में उमड़ते अपार खुशी के सागर को आज ही धरती से जा आलिंगन करना चाहता है. बरखा रानी हवाई घोड़े पर सवार हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. ऐसे बरस रही हैं, जैसे अब के बाद फिर कभी उसे धरती का सीना तरबतर करने और समस्त धरा को अपने स्नेह का कोमल स्पर्श करने आना ही नहीं है. हर पत्ता, हर डाली, हर फूल खुद को वैजयंती माल समझ इतरा रहा हो और इस धरती के रैंप पर मानो कैटवाक कर रहा हो….

घर की दुछत्ती यह सारा मंजर आंखें फाड़फाड़ कर देख रही है मानो ईर्ष्या से दरार पड़ गई हो, और उस का रुदन मालिनी के दिल को भी छलनी कर रहा है, जैसे एक बहन दूसरे के दुख में पसीज रही हो.

ऐसी बारिश जबजब पड़ी, उस ने मालिनी को हर बार उन बीती यादों की सुरंग में पीछे ले जा कर धकेल दिया. उन यादों के खूबसूरत झूलों के झोटे तनमन में स्पंदन पैदा कर देते हैं.

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Valentine’s Day 2024- बारिश की बूंद: उस रात आखिर क्या हुआ

मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’

‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’

‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’

धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.

एक दिन उस ने खूब सजधज कर चारबत्ती के पास मेरी साइकिल के अगले पहिए से अपनी साइकिल का पिछला पहिया भिड़ा दिया था. शायद वह मुझ से आगे निकलना चाहती थी.

उस ने अपनी साइकिल एक ओर खड़ी की और मेरे पास आ कर बोली, ‘माफ कीजिए, मुझ से गलती हो गई.’

यह सुन कर मेरे दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं, मानो ब्लडप्रैशर बढ़ गया हो. फिर उस ने जब अपनी गोरी हथेली से मेरी कलाई को पकड़ा, तो मैं उस में खोता चला गया.

दूसरे दिन वह दोबारा मुझे चौराहे पर मिली. उस ने अपना नाम अंबाली बताया. मेरा दिल अब उस की ओर खिंचता जा रहा था.

प्यार की आग जलती है, तो दोनों ओर बराबर लग जाती है. धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. इस बीच हमारी मुहब्बत रंग लाई.

एक दिन हम दोनों एक ही साइकिल पर शहर से दूर मस्ती में झूमते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे. आकाश में बादलों की दौड़ शुरू हो चुकी थी. मौसम सुहावना था. हर जगह हरियाली बिछी थी.

अचानक आसमान में काले बादल उमड़ने लगे, जिसे देख कर मैं परेशान होने लगा.

मुझे अपनी उतनी फिक्र नहीं थी, जितना मैं अंबाली के लिए परेशान हो उठा था, क्योंकि कभी भी तेज बारिश शुरू हो सकती थी.

मैं ने अंबाली से कहा, ‘‘आओ, अब घर लौट चलें.’’

‘‘जल्दी क्या है? बारिश हो गई, तो भीगने में ज्यादा मजा आएगा.’’

‘‘अगर बारिश हो गई, तो इस कच्ची और सुनसान सड़क पर कहीं रुकने का ठिकाना नहीं मिलेगा.’’

‘‘पास में ही एक गांव दिखाई पड़ रहा है. चलो, वहीं चल कर रुकते हैं.’’

‘‘गांव देखने में नजदीक जरूर है, लेकिन उधर जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. पतली पगडंडी पर पैदल चलना होगा.’’

‘‘अब तो जो परेशानियां सामने आएंगी, बरदाश्त करनी ही पड़ेंगी,’’ अंबाली ने हंसते हुए कहा.

हम ने अपनी चाल तेज तो कर दी, लेकिन गांव की पतली पगडंडी पर चलना उतना आसान न था. अभी हम लोग सोच ही रहे थे कि एकाएक मूसलाधार बारिश होने लगी.

कुछ दूरी पर घासफूस की एक झोंपड़ी दिखाई दी. हम लोग उस ओर दौड़ पड़े. वहां पहुंचने पर उस में एक टूटाफूटा तख्त दिखाई पड़ा, लेकिन वहां कोई नहीं था.

हम दोनों भीग चुके थे. झोंपड़ी में शरण ले कर सोचा कि कुछ आराम मिलेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

अंबाली ठंड से बुरी तरह कांपने लगी. जब उस के दांत किटकिटाने लगे, तो वह बोली, ‘‘मैं इस ठंड को बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे अपने आगोश में ले लो. अपने सीने में छिपा लो, तुम्हारे जिस्म की गरमी से कुछ राहत मिलेगी,’’ अंबाली ने कहा.

‘‘अंबाली, हमारा प्यार अपनी जगह है, जिस पर मैं धब्बा नहीं लगने दूंगा, लेकिन तुम्हारी हिफाजत तो करनी होगी,’’ कह कर मैं ने अपनी कमीज उतार दी और उसे अपने सीने से चिपका लिया.

जब अंबाली मेरी मजबूत बांहों और चौड़े सीने में जकड़ गई, तो उस के होंठ जैसे मेरे होंठों से मिलने के लिए बेताब होने लगे थे.

मैं ने उस के पीछे अपनी दोनों हथेलियों को एकदूसरे पर रगड़ कर गरम किया और उस की पीठ सहलाने लगा, ताकि उस का पूरा बदन गरमी महसूस करे. तब मुझे ऐसा लगा, जैसे गुलाब की कोमल पंखुडि़यों पर ओस गिरी हो. मेरी उंगलियां फिसलने लगी थीं.

आधे घंटे के बाद बारिश कम होने लगी थी.

अंबाली मेरी बांहों में पूरी तरह नींद के आगोश में जा चुकी थी. मैं ने उसे जगाना ठीक नहीं समझा.

एक घंटे बाद मैं ने उसे जगाया, तब तक बारिश बंद हो चुकी थी.

अंबाली ने अलग हो कर अपने कुरते की चेन चढ़ाई और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘तुम ने मेरे साथ कोई शैतानी तो नहीं की?’’

मैं हंसा और बोला, ‘‘हां, मैं ने तुम्हारे होंठों पर पड़ी बारिश की बूंदों को चूम कर सुखा दिया था.’’

‘‘धत्त…’’ थोड़ा रुक कर वह कहने लगी, ‘‘तुम्हारा सहारा पा कर मुझे नई जिंदगी मिली. ऐसा मन हो रहा था कि जिंदगीभर इसी तरह तुम्हारे सीने से लगी रहूं.’’

‘‘हमारा प्यार अभी बड़ी नाजुक हालत में है. अगर हमारे प्यार की जरा सी भी भनक किसी के कान में पड़ गई, तो हमारी मुहब्बत खतरे में तो पड़ ही जाएगी और हमारी जिंदगी भी दूभर हो जाएगी,’’ मैं ने कहा.

‘‘जानते हो, मैं तुम्हारे आगोश में सुधबुध भूल कर सपनों की दुनिया में पहुंच गई थी. मेरी शादी धूमधाम से तुम्हारे साथ हुई और विदाई के बाद मैं तुम्हारे घर पहुंची. वहां भी खूब सजावट थी.

‘‘रात हुई. मुझे फूलों से सजे हुए कमरे में पलंग पर बैठा दिया गया. तुम अंदर आए, दरवाजा बंद किया और मेरे पास बैठे.

‘‘हम दोनों ने वह पूरी रात बातें करते हुए और प्यार करने में गुजार दी,’’ इतना कह कर वह खामोश हो गई.

‘‘फिर क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हवा का एक बवंडर आया और मेरा सपना टूट गया. मैं ने महसूस किया कि मैं तुम्हारी बांहों में हूं. मेरा जिस्म तुम्हारे सीने में समाया था,’’ इतना कहतेकहते वह मुझ से चिपक गई.

‘‘अंबाली, बारिश बंद हो चुकी है. अंधेरा घिरने लगा है. अब हमें अपने घर पहुंचने में बहुत देर हो जाएगी. तुम्हारे घर वाले चिंता कर रहे होंगे. कहीं हमारा राज न खुल जाए.’’

‘‘तुम ठीक कहते हो. हमें चलना ही होगा.’’

कुछ दिन कई वजहों से हम दोनों नहीं मिल सके. लेकिन एक शाम अंबाली मेरे पास सहमी हुई आई. मैं ने उस के चेहरे को देखते हुए पूछा, ‘‘आज तुम बहुत उदास हो?’’

‘‘आज मेरा मन बहुत भारी है. मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूंगी, कहीं मैं खुदकुशी न कर बैठूं, क्योंकि उस के सिवा कोई रास्ता नहीं सूझता,’’ कह कर अंबाली रो पड़ी.

‘‘ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘मेरे घर वालों को हमारे प्यार के बारे में मालूम हो गया. अब मेरी शादी तय हो चुकी है. लड़का पढ़ालिखा रईस घराने का है. अगले महीने की तारीख भी तय कर ली गई. अब मुझे बाहर निकलने की इजाजत भी नहीं मिलेगी,’’ अंबाली रोते हुए बोली.

‘‘तुम्हारे घर वाले जो कर रहे हैं, वह तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक होगा. मेरा तुम्हारा कोई मुकाबला नहीं. उन के अरमानों पर जुल्म मत करना. हमारा प्यार आज तक पवित्र है, जिस में कोई दाग नहीं लगा. समझ लो कि हम दोनों ने कोई सपना देखा था.’’

‘‘यह कैसे होगा?’’

‘‘अपनेआप को एडजस्ट करना ही पड़ेगा.’’

‘‘मेरे लिए कई रिश्ते आए, पर मैं ने किसी को पसंद नहीं किया. उस के बाद मैं तुम्हें अपना दिल दे बैठी, अब तुम मुझे भूल जाने के लिए कहते हो. मैं तुम्हें बेहद प्यार करती हूं, मेरा प्यार मत छीनो. मैं तुम्हें भुला नहीं पाऊंगी. क्या तुम मुझे तड़पते देखते रहोगे? मैं तुम्हें हर कीमत पर हासिल करना चाहूंगी.’’

कुछ दिन हम लोग अपना दुखी मन ले कर समय बिताते रहे. किसी काम को करने की इच्छा नहीं होती थी. अंबाली की मां से उस की हालत देखी नहीं गई. वह एकलौती लाडली थी. उन्होंने अपने पति को बहुत समझाया.

अंबाली के पिता ने एक दिन हमारे यहां संदेशा भेजा, ‘आप लोग किसी दूसरे किराए के मकान में दूर चले जाइए, ताकि दोनों लड़केलड़की का भविष्य खराब न हो.’

हमें दूसरे मकान में शिफ्ट होना पड़ा. 3 महीने तक हम एकदूसरे से नहीं मिले. चौथे महीने अंबाली के पिता मेरे पिता से मिलने आए और साथ में मिठाई भी लाए थे.

बाद में उन्होंने कहा, ‘‘रिश्ता वहीं होगा, जहां अंबाली चाहेगी, इसलिए 2 साल में उस की पढ़ाई पूरी हो जाने पर विचार होगा. आप लोग दूर चले आए. हम दोनों की इज्जत नीलाम होने से बच गई, वरना ये आजकल के लड़केलड़की मांबाप की नाक कटा देते हैं.’’

मेरे पिता ने उन की बातों को सुना और हंस कर टाल दिया.

एक साल बीत जाने पर मेरा चुनाव एक सरकारी पद पर हो गया और मेरी बहाली दूसरे शहर में हो गई. मेरी शादी के कई रिश्ते आने लगे और मैं बहाने बना कर टालता रहा.

आखिर में मेरे पिता ने झुंझला कर कहा, ‘‘अब हम लोग खुद लड़की देखेंगे, क्योंकि तुम्हें कोई लड़की पसंद नहीं आती. अगर तुम ने हमारी पसंद को ठुकरा दिया, तो हम लोग तुम्हें अकेला छोड़ कर चले जाएंगे.’’

मुझे उन के सामने झुकना पड़ा और कहा, ‘‘आप लोग जैसा ठीक समझें, वैसा करें. मुझे कोई एतराज नहीं होगा.’’

शादी की जोरशोर से तैयारियां होने लगीं, लेकिन मुझे कोई दिलचस्पी न थी.

बरात धूमधाम से एक बड़े होटल में घुसी, जहां बताया गया कि लड़की के पिता बीमार होने के चलते द्वारचार पर नहीं पहुंच सके. उन के भाई बरात का स्वागत करेंगे.

लड़की को लाल घाघराचोली में सजा कर स्टेज तक लाया गया, पर उस के चेहरे से आंचल नहीं हटाया गया था.

लड़की ने मेरे गले में जयमाल डाली और मैं ने उस के गले में. तब लोग शोर करने लगे, ‘अब तो लड़की का घूंघट खोल दिया जाए, ताकि लोग उस की खूबसूरती देख सकें.’

लड़की का घूंघट हटाया गया, जिसे देख कर मैं हैरान रह गया. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, मानो उसे जबरदस्ती बांधा गया था.

मैं ने एक उंगली से उस की ठुड्डी को ऊपर किया. उस की नजरें मुझ से टकराईं, तो वह बेहोश होतेहोते बची.

सुहागरात में अंबाली ने मेरे आगोश में समा कर अपनी खुशी का इजहार किया. उस का प्यार जिंदा रह गया. मैं ने उस के गुलाबी गाल पर अपने होंठ रख कर प्यार से कहा, ‘‘अंबाली, तुम्हारे गालों पर अभी तक बारिश की बूंदें मोतियों जैसी चमक रही हैं. थोड़ा मुझे अपने होंठों से चूम लेने दो.’’

यह सुन कर अंबाली खिलखिला कर हंस पड़ी, जैसे वह कली से फूल बन गई हो.

Valentine’s Day 2024 – वहां आकाश और है: आकाश और मानसी के बीच कौन-सा रिश्ता था

अचानक शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था. मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली. पेड़पौधों पर झरझर गिरता पानी उन का रूप संवार रहा था. इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तनमन भिगो ले.

मगर उस की दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा. मानो कह रही हो हमें छोड़ कर कहां चली. पहले हम से तो रूबरू हो लो.

रोज वही ढाक के तीन पात. मैं ऊब गई हूं इन सब से. सुबहशाम बंधन ही बंधन. कभी तन के, कभी मन के. जाओ मैं अभी नहीं मिलूंगी तुम से. मन ही मन निश्चय कर मानसी ने कामकाज छोड़ कर बारिश में भीगने का मन बना लिया.

क्षितिज औफिस जा चुका था और मानसी घर में अकेली थी. जब तक क्षितिज घर पर रहता था वह कुछ न कुछ हलचल मचाए रखता था और अपने साथसाथ मानसी को भी उसी में उलझाए रखता था. हालांकि मानसी को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी और वह सहर्ष क्षितिज का साथ निभाती थी. फिर भी वह क्षितिज के औफिस जाते ही स्वयं को बंधनमुक्त महसूस करती थी और मनमानी करने को मचल उठती थी.

इस समय भी मानसी एक स्वच्छंद पंछी की तरह उड़ने को तैयार थी. उस ने बालों से कल्चर निकाल उन्हें खुला लहराने के लिए छोड़ दिया जो क्षितिज को बिलकुल पसंद नहीं था. अपने मोबाइल को स्पीकर से अटैच कर मनपसंद फिल्मी संगीत लगा दिया जो क्षितिज की नजरों में बिलकुल बेकार और फूहड़ था.

अत: जब तक वह घर में रहता था, नहीं बजाया जा सकता था. यानी अब मानसी अपनी आजादी के सुख को पूरी तरह भोग रही थी.

अब बारी थी मौसम का आनंद उठाने की. उस के लिए वह बारिश में भीगने के लिए आंगन में जाने ही वाली थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

इस भरी बरसात में कौन हो सकता है. पोस्टमैन के आने में तो अभी देरी है. धोबी नहीं हो सकता. दूध वाला भी नहीं. तो फिर कौन है? सोचतीसोचती मानसी दरवाजे तक जा पहुंची.

दरवाजे पर वह व्यक्ति था जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

‘‘आइए,’’ उस ने दरवाजा खोलते हुए कुछ संकोच से कहा और फिर जैसे ही वह आगंतुक अंदर आने को हुआ बोली, ‘‘पर वे तो औफिस चले गए हैं.’’

‘‘हां, मुझे पता है. मैं ने उन की गाड़ी निकलते देख ली थी,’’ आगंतुक जोकि उन के महल्ले का ही था ने अंदर आ कर सोफे पर बैठते हुए कहा.

यह सुन कर मानसी मन ही मन बड़बड़ाई कि जब देख ही लिया था तो फिर क्यों चले आए हो… वह मन ही मन आकाश के बेवक्त यहां आने पर कु्रद्ध थी, क्योंकि उन के आने से उस का बारिश में भीगने का बनाबनाया प्रोग्राम चौपट हो रहा था. मगर मन मार कर वह भी वहीं सोफे पर बैठ गई.

शिष्टाचारवश मानसी ने बातचीत का सिलसिला शुरू किया, ‘‘कैसे हैं आप? काफी दिनों बाद नजर आए.’’

‘‘जैसा कि आप देख ही रहीं… बिलकुल ठीक हूं. काम पर जाने के लिए निकला ही था कि बरसात शुरू हो गई. सोचा यहीं रुक जाऊं. इस बहाने आप से मुलाकात भी हो जाएगी.’’

‘‘ठीक किया जो चले आए. अपना ही घर है. चायकौफी क्या लेंगे आप?’’

‘‘जो भी आप पिला दें. आप का साथ और आप के हाथ हर चीज मंजूर है,’’ आकाश ने मुसकरा कर कहा तो मानसी का बिगड़ा मूड कुछ हद तक सामान्य हो गया, क्योंकि उस मुस्कराहट में अपनापन था.

मानसी जल्दी 2 कप चाय बना लाई. चाय के दौरान भी कुछ औपचारिक बातें होती रहीं. इसी बीच बूंदाबांदी कम हो गई.

‘‘आप की इजाजत हो तो अब मैं चलूं?’’ फिर आकाश के चेहरे पर वही मुसकराहट थी.

‘‘जी,’’ मानसी ने कहा, ‘‘फिर कभी फुरसत से आइएगा भाभीजी के साथ.’’

‘‘अवश्य यदि वह आना चाहेगी तो उसे भी ले आऊंगा. आप तो जानती ही हैं कि उसे कहीं आनाजाना पसंद नहीं,’’ कहतेकहते आकाश के चेहरे पर उदासी छा गई.

मानसी को लगा कि उस ने आकाश की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो, क्योंकि वह जानती थी कि आकाश की पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और इसी कारण लोगों से बात करने में हिचकिचाती है.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अगले दिन भी जब उसी मुसकराहट के साथ आकाश ने पूछा तो जवाब में मानसी भी मुसकरा दी और दरवाजा खोल दिया.

‘‘चाय या कौफी?’’

‘‘कुछ नहीं… औपचारिकता करने की आवश्यकता नहीं. आज भी तुम से दो घड़ी बात करने की इच्छा हुई तो फिर चला आया.’’

‘‘अच्छा किया. मैं भी बोर ही हो रही थी,’’ मानसी जानती थी कि उन्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं थी कि क्षितिज कहां है, क्योंकि निश्चय ही वे जानते थे कि वे घर पर नहीं हैं.

इस तरह आकाश के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया वरना इस महल्ले में किसी के घर आनेजाने का रिवाज कम ही था. यहां अधिकांश स्त्रियां नौकरीपेशा थीं या फिर छोटे बालबच्चों वाली. एक वही अपवाद थी जो न तो कोई जौब करती थी और न ही छोटे बच्चों वाली थी.

मानसी का एकमात्र बेटा 10वीं कक्षा में बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था. अपने अकेलेपन से जूझती मानसी को अकसर अपने लिए एक मित्र की आवश्यकता महसूस होती थी और अब वह आवश्यकता आकाश के आने से पूरी होने लगी थी, क्योंकि वे घरगृहस्थी की बातों से ले कर फिल्मों, राजनीति, साहित्य सभी तरह की चर्चा कर लेते थे.

आकाश लगभग रोज ही आफिस जाने से पूर्व मानसी से मिलते हुए जाते थे और अब स्थिति यह थी कि मानसी क्षितिज के जाते ही आकाश के आने का इंतजार करने लग जाती थी.

एक दिन जब आकाश नहीं आए तो अगले दिन उन के आते ही मानसी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कल क्यों नहीं आए? मैं ने कितना इंतजार किया.’’

आकाश ने हैरानी से मानसी की ओर देखा और फिर बोले, ‘‘क्या मतलब? मैं ने रोज आने का वादा ही कब किया है?’’

‘‘सभी वादे किए नहीं जाते… कुछ स्वयं ही हो जाते हैं. अब मुझे आप के रोज आने की आदत जो हो गई है.’’

‘‘आदत या मुहब्बत?’’ आकाश ने मुसकरा कर पूछा तो मानसी चौंकी, उस ने देखा कि आज उन की मुसकराहट अन्य दिनों से कुछ अलग है.

मानसी सकपका गई. पर फिर उसे लगा कि शायद वे मजाक कर रहे हैं. अपनी सकपकाहट से अनभिज्ञता का उपक्रम करते हुए वह सदा की भांति बोली, ‘‘बैठिए, आज क्षितिज का जन्मदिन है. मैं ने केक बनाया है. अभी ले कर आती हूं.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया.’’ आकाश फिर बोले तो उसे बात की गंभीरता का एहसास हुआ.

‘‘क्या जवाब देती.’’

‘‘कह दो कि तुम मेरा इंतजार इसलिए करती हो कि तुम मुझे पसंद करती हो.’’

‘‘हां दोनों ही बातें सही हैं.’’

‘‘यानी मुहब्बत है.’’

‘‘नहीं, मित्रता.’’

‘‘एक ही बात है. स्त्री और पुरुष की मित्रता को यही नाम दिया जाता है,’’ आकाश ने मानसी की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘हां दिया जाता है,’’ मानसी ने हाथ को हटाते हुए कहा, ‘‘क्योंकि साधारण स्त्रीपुरुष मित्रता का अर्थ इसी रूप में जानते हैं और मित्रता के नाम पर वही करते हैं जो मुहब्बत में होता है.’’

‘‘हम भी तो साधारण स्त्रीपुरुष ही हैं.’’

‘‘हां हैं, परंतु मेरी सोच कुछ अलग है.’’

‘‘सोच या डर?’’

‘‘डर किस बात का?’’

‘‘क्षितिज का. तुम डरती हो कि कहीं उसे पता चल गया तो?’’

‘‘नहीं, प्यार, वफा और समर्पण को डर नहीं कहते. सच तो यह है कि क्षितिज तो अपने काम में इतना व्यस्त है कि मैं उस के पीछे क्या करती हूं, वह नहीं जानता और यदि मैं न चाहूं तो वह कभी जान भी नहीं पाएगा.’’

‘‘फिर अड़चन क्या है?’’

‘‘अड़चन मानसिकता की है, विचारधारा की है.’’

‘‘मानसिकता बदली जा सकती है.’’

‘‘हां, यदि आवश्यकता हो तो… परंतु मैं इस की आवश्यकता नहीं समझती.’’

‘‘इस में बुराई ही क्या है?’’

‘‘बुराई है… आकाश, आप नहीं जानते हमारे समाज में स्त्रीपुरुष की दोस्ती को उपेक्षा की दृष्टि से देखने का यही मुख्य कारण है. जानते हो एक स्त्री और पुरुष बहुत अच्छे मित्र हो सकते हैं, क्योंकि उन के सोचने का दृष्टिकोण अलग होता है. इस से विचारों में विभिन्नता आती है. ऐसे में बातचीत का आनंद आता है, परंतु ऐसा नहीं होता.’’

‘‘अकसर एक स्त्री और पुरुष अच्छे मित्र बनने के बजाय प्रेमी बन कर रह जाते हैं और फिर कई बार हालात के वशीभूत हो कर एक ऐसी अंतहीन दिशा में बहने लगते हैं जिस की कोई मंजिल नहीं होती.’’

‘‘परंतु यह स्वाभाविक है, प्राकृतिक है, इसे क्यों और कैसे रोका जाए?’’

‘‘अपने हित के लिए ठीक उसी प्रकार जैसे हम ने अन्य प्राकृतिक चीजों, जिन से हमें नुकसान हो सकता है, पर नियंत्रण पा लिया है.’’

‘‘यानी तुम्हारा इनकार है,’’ ऐसा लगता था आकाश कुछ बुझ से गए थे.

‘‘इस में इनकार या इकरार का प्रश्न ही कहां है? मुझे आप की मित्रता पर अभी भी कोई आपति नहीं है बशर्ते आप मुझ से अन्य कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘दोनों बातों का समानांतर चलना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘जानती हूं फिर भी कोशिश कीजिएगा.’’

‘‘चलता हूं.’’

‘‘कल आओगे?’’

‘‘कुछ कह नहीं सकता.’’

सुबह के 10 बजे हैं. क्षितिज औफिस चला गया है पर आकाश अभी तक नहीं आए. मानसी को फिर से अकेलापन महसूस होने लगा है.

‘लगता है आकाश आज नहीं आएंगे. शायद मेरा व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था, उन्हें मेरी बातें अवश्य बुरी लगी होंगी. काश वे मुझे समझ पाते,’ सोच मानसी ने म्यूजिक औन कर दिया और फिर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगीं.

सहसा किसी ने दरवाजा खटखटाया. मानसी दरवाजे की ओर लपकी. देखा दरवाजे पर सदा की तरह मुसकराते हुए आकाश ही थे. मानसी ने भी मुसकरा कर दरवाजा खोल दिया. उस ने आकाश की ओर देखा. आज उन की वही पुरानी चिरपरिचित मुसकान फिर लौट आई थी.

इसी के साथ आज मानसी को विश्वास हो गया कि अब समाज में स्त्रीपुरुष के रिश्ते की उड़ान को नई दिशाएं अवश्य मिल जाएंगी, क्योंकि उन्हें वहां एक आकाश और मिल गया है.

इतना बहुत है: जिंदगी के पन्ने पलटती एक औरत

घर के कामों से फारिग होने के बाद आराम से बैठ कर मैं ने नई पत्रिका के कुछ पन्ने ही पलटे थे कि मन सुखद आश्चर्य से पुलकित हो उठा. दरअसल, मेरी कहानी छपी थी. अब तक मेरी कई कहानियां  छप चुकी थीं, लेकिन आज भी पत्रिका में अपना नाम और कहानी देख कर मन उतना ही खुश होता है जितना पहली  रचना के छपने पर हुआ था. अपने हाथ से लिखी, जानीपहचानी रचना को किसी पत्रिका में छपी हुई पढ़ने में क्या और कैसा अकथनीय सुख मिलता है, समझा नहीं पाऊंगी. हमेशा की तरह मेरा मन हुआ कि मेरे पति आलोक, औफिस से आ कर इसे पढ़ें और अपनी राय दें. घर से बाहर बहुत से लोग मेरी रचनाओं की तारीफ करते नहीं थकते, लेकिन मेरा मन और कान तो अपने जीवन के सब से महत्त्वपूर्ण व्यक्ति और रिश्ते के मुंह से तारीफ सुनने के लिए तरसते हैं.

पर आलोक को साहित्य में रुचि नहीं है. शुरू में कई बार मेरे आग्रह करने पर उन्होंने कभी कोई रचना पढ़ी भी है तो राय इतनी बचकानी दी कि मैं मन ही मन बहुत आहत हो कर झुंझलाई थी, मन हुआ था कि उन के हाथ से रचना छीन लूं और कहूं, ‘तुम रहने ही दो, साहित्य पढ़ना और समझना तुम्हारे वश के बाहर की बात है.’

यह जीवन की एक विडंबना ही तो है कि कभीकभी जो बात अपने नहीं समझ पाते, पराए लोग उसी बात को कितनी आसानी से समझ लेते हैं. मेरा साहित्यप्रेमी मन आलोक की इस साहित्य की समझ पर जबतब आहत होता रहा है और अब मैं इस विषय पर उन से कोई आशा नहीं रखती.

कौन्वैंट में पढ़ेलिखे मेरे युवा बच्चे तनु और राहुल की भी सोच कुछ अलग ही है. पर हां, तनु ने हमेशा मेरे लेखन को प्रोत्साहित किया है. कई बार उस ने कहानियां लिखने का आइडिया भी दिया है. शुरूशुरू में तनु मेरा लिखा पढ़ा करती थी पर अब व्यस्त है. राहुल का साफसाफ कहना है, ‘मौम, आप की हिंदी मुझे ज्यादा समझ नहीं आती. मुझे हिंदी पढ़ने में ज्यादा समय लगता है.’ मैं कहती हूं, ‘ठीक है, कोई बात नहीं,’ पर दिल में कुछ तो चुभता ही है न.

10 साल हो गए हैं लिखते हुए. कोरियर से आई, टेबल पर रखी हुई पत्रिका को देख कर ज्यादा से ज्यादा कभी कोई आतेजाते नजर डाल कर बस इतना ही पूछ लेता है, ‘कुछ छपा है क्या?’ मैं ‘हां’ में सिर हिलाती हूं. ‘गुड’ कह कर बात वहीं खत्म हो जाती है. आलोक को रुचि नहीं है, बच्चों को हिंदी मुश्किल लगती है. मैं किस मन से वह पत्रिका अपने बुकश्ैल्फ  में रखती हूं, किसे बताऊं. हर बार सोचती हूं उम्मीदें इंसान को दुखी ही तो करती हैं लेकिन अपनों की प्रतिक्रिया पर उदास होने का सिलसिला जारी है.

मैं ने पत्रिका पढ़ कर रखी ही थी कि याद आया, परसों मेरा जन्मदिन है. मैं हैरान हुई जब दिल में जरा भी उत्साह महसूस नहीं हुआ. ऐसा क्यों हुआ, मैं तो अपने जन्मदिन पर बच्चों की तरह खुश होती रहती हूं. अपने विचारों में डूबतीउतरती मैं फिर दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गई. जन्मदिन भी आ गया और दिन इस बार रविवार ही था. सुबह तीनों ने मुझे बधाई दी. गिफ्ट्स दिए. फिर हम लंच करने बाहर गए. 3 बजे के करीब हम घर वापस आए. मैं जैसे ही कपड़े बदलने लगी, आलोक ने कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो, अभी चेंज मत करो.’’

‘‘थोड़ा लेटने का मन है, शाम को फिर बदल लूंगी.’’

‘‘नहीं मौम, आज नो रैस्ट,’’ तनु और राहुल भी शुरू हो गए.

मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, फिर कौफी बना लेती हूं.’’

तनु ने फौरन कहा, ‘‘अभी तो लंच किया है मौम, थोड़ी देर बाद पीना.’’

मैं हैरान हुई. पर चुप रही. तनु और राहुल थोड़ा बिखरा हुआ घर ठीक करने लगे. मैं और हैरान हुई, पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ कोई कुछ नहीं बोला. फिर दरवाजे की घंटी बजी तो राहुल ने कहा, ‘‘मौम, हम देख लेंगे, आप बैडरूम में जाओ प्लीज.’’

अब, मैं सरप्राइज का कुछ अंदाजा लगाते हुए बैडरूम में चली गई. आलोक आ कर कहने लगे, ‘‘अब इस रूम से तभी निकलना जब बच्चे आवाज दें.’’

मैं ‘अच्छा’ कह कर चुपचाप तकिए का सहारा ले कर अधलेटी सी अंदाजे लगाती रही. थोड़ीथोड़ी देर में दरवाजे की घंटी बजती रही. बाहर से कोई आवाज नहीं आ रही थी. 4 बजे बच्चों ने आवाज दी, ‘‘मौम, बाहर आ जाओ.’’

मैं ड्राइंगरूम में पहुंची. मेरी घनिष्ठ सहेलियां नीरा, मंजू, नेहा, प्रीति और अनीता सजीधजी चुपचाप सोफे पर बैठी मुसकरा रही थीं. सभी ने मुझे गले लगाते हुए बधाई दी. उन से गले मिलते हुए मेरी नजर डाइनिंग टेबल पर ट्रे में सजे नाश्ते की प्लेटों पर भी पड़ी.

‘‘अच्छा सरप्राइज है,’’ मेरे यह कहने पर तनु ने कहा, ‘‘मौम, सरप्राइज तो यह है’’ और मेरा चेहरा सैंटर टेबल पर रखे हुए केक की तरफ किया और अब तक के अपने जीवन के सब से खूबसूरत उपहार को देख कर मिश्रित भाव लिए मेरी आंखों से आंसू झरझर बहते चले गए. मेरे मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकली. भावनाओं के अतिरेक से मेरा गला रुंध गया. मैं तनु के गले लग कर खुशी के मारे रो पड़ी.

केक पर एक तरफ 10 साल पहले छपी मेरी पहली कहानी और दूसरी तरफ लेटेस्ट कहानी का प्रिंट वाला फौंडेंट था, बीच में डायरी और पैन का फौंडेंट था. कहानी के शीर्षक और पन्ने में छपे अक्षर इतने स्पष्ट थे कि आंखें केक से हट ही नहीं रही थीं. मैं सुधबुध खो कर केक निहारने में व्यस्त थी. मेरी सहेलियां मेरे परिवार के इस भावपूर्ण उपहार को देख कर वाहवाह कर उठीं. प्रीति ने कहा भी, ‘‘कितनी मेहनत से तैयार करवाया है आप लोगों ने यह केक, मेरी फैमिली तो कभी यह सब सोच भी नहीं सकती.’’ सब ने खुलेदिल से तारीफ की, और केक कैसे, कहां बना, पूछती रहीं. फूडफूड चैनल के एक स्टार शैफ को और्डर दिया गया था.

मैं भर्राए गले से बोली, ‘‘यह मेरे जीवन का सब से खूबसूरत गिफ्ट है.’’  अनीता ने कहा, ‘‘अब आंसू पोंछो और केक काटो.’’

‘‘इस केक को काटने का तो मन ही नहीं हो रहा है, कैसे काटूं?’’

नीरा ने कहा, ‘‘रुको, पहले इस केक की फोटो ले लूं. घर में सब को दिखाना है. क्या पता मेरे बच्चे भी कुछ ऐसा आइडिया सोच लें.’’

सब हंसने लगे, जितनी फोटो केक की खींची गईं, उन से आधी ही लोगों की नहीं खींची गईं.

केक काट कर सब को खिलाते हुए मेरे मन में तो यही चल रहा था, कितना मुश्किल रहा होगा मेरी अलमारी से पहली और लेटेस्ट कहानी ढूंढ़ना? इस का मतलब तीनों को पता था कि सब से बाद में कौन सी पत्रिका आई थी. और पहली कहानी का नाम भी याद था. मेरे लिए तो यही बहुत बड़ी बात थी.

मैं क्यों कुछ दिनों से उलझीउलझी थी, अपराधबोध सा भर गया मेरे मन में. आज अपने पति और बच्चों का यह प्रयास मेरे दिल को छू गया था. क्या हुआ अगर घर में कोई मेरे शब्दों, कहानियों को नहीं समझ पाता पर तीनों मुझे प्यार तो करते हैं न. आज उन के इस उपहार की उष्मा ने मेरे मन में कई दिनों से छाई उदासी को दूर कर दिया था. तीनों मुझे समझते हैं, प्यार करते हैं, यही प्यारभरी सचाई है और मेरे लिए इतना बहुत है.

हवस में अंधा : सूरज की कहानी क्या रंग लाई

‘‘सूरज को आइसोलेशन में रखने का इंतजाम करो और उस से दूरी बना कर रखा करो,’’ जेलर ने हवलदार से कहा.

‘‘जी जनाब, पर कोई खास बात?’’ हवलदार ने पूछा.

‘‘वह कोरोना पौजिटिव है. उस की रिपोर्ट आ गई है. उस ने काम ही ऐसा किया है. पापी कहीं का,’’ जेलर ने बड़ी नफरत से सूरज की ओर देख कर कहा.

सूरज सारी बातें सुन रहा था. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. हवस में अंधा हो कर उस ने जो गलत कदम उठाया था, उस का ही यह नतीजा है. उस की आंखों से आंसू छलक पड़े. उस के जेहन में कुछ दिनों पहले की घटना फिल्म की तरह कौंध गई.

सूरज चिरायु अस्पताल में वार्डबौय था. उन दिनों कोरोना वायरस का बड़ा खौफ था. एक ही दिन में कईकई मरीज आ जाते थे. वह मरीजों की सेवा करता था. उन में से कुछ महिला मरीजों को देख कर उस का दिल फिसल जाता था. कई बार वह लड़कियों और औरतों से छेड़खानी किया करता था.

चूंकि मरीजों के बिस्तर के चारों ओर परदा लगाने का इंतजाम होता था और मरीज की निजता के लिए परदा लगाया जा सकता था, इसलिए सूरज परदा लगा कर छेड़खानी कर लिया करता था.

गांवदेहात से आई औरतें तो ज्यादा विरोध भी नहीं करती थीं. कई मरीजों के साथ आए लोग ही मरीज से उस की सिफारिश कर देते थे, ‘‘कोई खास जरूरत हो, तो सूरज भैया से कह देना.’’

जब कोरोना का कहर नहीं था, तो एक बार गांव की एक लड़की का अपैंडिक्स का आपरेशन हुआ था. आपरेशन के बाद वह कुछ दिनों तक अस्पताल में थी. वैसे तो वार्डगर्ल ही औरतों के पास जाती थीं, पर सफाई वगैरह के नाम से सूरज भी चला जाता था. वह परदा गिराने के बाद उस लड़की के साथ जम कर छेड़खानी करता था. वह उस का हाथ हटाती जरूर थी, पर कुछ कहती नहीं थी.

दिन में उस लड़की की मां विजिटिंग आवर में उसे देखने आई थीं, तो उस से कहा था कि कोई जरूरत पड़े तो सूरज भैया से कहना.

वह लड़की गौर से सूरज को देखती रही. उस के चेहरे पर नफरत के भाव आ गए. पलभर को सूरज को लगा कि वह लड़की अपनी मां को सारी बात बता देगी, पर उस ने ऐसा किया नहीं. मां ने भी उस लड़की के चेहरे पर आई परेशानी के भाव को देख कर सोचा कि आपरेशन के असर से ऐसा है.

ऐसी कई घटनाएं हुई थीं और सूरज बचाता आया था. इस से उस की हिम्मत बढ़ती जा रही थी. उसे उकसाने के लिए एक सफाई मुलाजिम रामू था. वह खुद तो ऐसा कुछ नहीं करता था, लेकिन उसे जरूर भड़काता था.

पर आखिर एक दिन पाप का घड़ा भरना ही था. कोरोना काल की बात है. एक दिन एक मरीज औरत को देख कर सूरज का दिल बड़े जोर से मचला. वह तकरीबन 30-35 साल की रही होगी. कोरोना पौजिटिव होने के चलते उसे अस्पताल में भरती कराया गया था. उस का नाम सपना था.

सपना सचमुच एक सपने की तरह ही थी. वह गजब की खूबसूरत थी. बीमार होने पर भी बड़ी आकर्षक लग रही थी. उस की बड़ीबड़ी आंखों में भी गजब का नशा था. उस का गोरा रंग खिलते हुए गुलाब की तरह लग रहा था. जब बीमारी में वह इतनी सैक्सी लग रही थी, तो ठीक रहने पर कितनी आकर्षक लगती होगी.

जब से सपना आई थी, सूरज के जेहन में बस वही बसी थी. सेवा तो वह सभी मरीजों की कर रहा था, पर बारबार उस के इर्दगिर्द घूमता रहता था. किसी न किसी बहाने से उस से बातें करने की कोशिश करता था. सपना भी उस से बातें कर लेती थी.

आग में घी डालने का काम किया रामू ने, ‘‘बैड नंबर 405 की पेशेंट को देखा भाई. एक बार मिल जाए तो जन्नत का सुख मिल जाए,’’ रामू ने फुसफुसा कर कहा.

‘‘तो जा लेले जन्नत का सुख, मना किस ने किया है,’’ सूरज ने उसे घुड़का.

‘‘कहां भाई, मैं तो सफाई करने वाला हूं. सफाई करना ही मेरा काम है. आप तो बहुतकुछ कर सकते हो. आप ही मजे लो,’’ रामू ने सूरज को चढ़ाया.

चूंकि वह कोविड वार्ड था, इसलिए किसी तीमारदार को रहने की इजाजत नहीं थी. अस्पताल के स्टाफ के अलावा दूसरा कोई वहां नहीं रह सकता था.

रात के 10 बज रहे होंगे. सूरज सपना के बैड के पास खड़ा उसे ताड़ रहा था. आसपास के सभी मरीज सो रहे थे. नर्सिंग स्टाफ भी ऊंघ रहा था.

सूरज सपना के सपनों में खोया उसे सिर से पैर तक निहार रहा था. शांत पड़ी सपना को देख उसे लगा कि शायद वह सो रही है. टोह लेने के लिए उस ने सपना के पैर के पास चादर ठीक करने का नाटक किया. सपना नहीं हिली. फिर सूरज उस के ऊपरी हिस्से की ओर पहुंचा और चादर ठीक करने के बहाने उस के उभार को छू दिया.

‘‘क्या हुआ भैया…?’’ अचानक कमजोर आवाज में सपना ने पूछा.

आवाज सुन कर सूरज सकपका गया और बोला, ‘‘कुछ नहीं. चादर ठीक कर रहा था,’’ और वहां से हट गया.

सुबह होने पर ड्यूटी खत्म होने पर सूरज घर चला गया. दिनभर उस के जेहन में सपना ही आती रही. उसे अफसोस भी होता रहा कि डर के चलते वह उस के शरीर का सुख नहीं भोग सका. फिर दूसरा विचार भी उस के मन में आया कि कोरोना तो संक्रमण की बीमारी है. कहीं सपना के नजदीक जाने से वह भी संक्रमित न हो जाए.

पर सूरज हवस में अंधा हो चुका था. उस के दिल ने कहा कि वह तो दिनरात कोरोना मरीजों के बीच ही रहता है. अगर उसे संक्रमित होना होगा तो हो ही जाएगा. क्यों नहीं इस मौके का फायदा उठाया जाए. आज रात वह अपने अरमान जरूर पूरे करेगा. शायद कल सपना के टोकने के बाद भी वह कोशिश करता, तो वह राजी हो जाती.

शाम को ड्यूटी जौइन करते ही सूरज सब से पहले सपना के पास पहुंचा और पूछा, ‘‘कैसी हो मैडम?’’

‘मैडम’ तो उस ने बोला था, पर मन ही मन वह उसे ‘मेरी जान’ कह रहा था.

सपना मुसकरा कर कमजोर आवाज में बोली, ‘‘ठीक हूं.’’

सूरज वैसे तो अपना हर काम कर रहा था, पर उस के जेहन में बारबार यही खयाल आ रहा था कि कब वह अपना मनसूबा पूरा करे.

रात को जब सन्नाटा हो गया, तो सूरज ने ज्यादा इंतजार करना उचित नहीं समझा. वह सपना के बैड के पास पहुंच गया और चारों ओर से परदा खींच दिया.

सपना आंखें बंद किए लेटी हुई थी. सूरज अपना हाथ सपना के उभार के पास ले गया. सपना को जब अपने शरीर पर छुअन महसूस हुई, तो उस ने आंखें खोल दीं. सूरज तुरंत हट गया.

सपना को लगा कि सूरज किसी काम से वहां आया है. उस ने फिर से अपनी आंखें बंद कर लीं. सूरज थोड़ी देर कुछ दूर खड़ा हो इंतजार करता

रहा. जब उस ने देखा कि सपना आंखें बंद किए लेटी पड़ी है, तो वह धीरेधीरे उस के करीब गया. उस के चेहरे के पास वह अपना चेहरा लाया.

सपना की सांसों को साफ महसूस कर रहा था. इस बार उस ने धीरे से अपना हाथ सपना के उभार के ऊपर रखा.

सपना ने चौंक कर आंखें खोल दीं. अभी तक वह सम झ रही थी कि सूरज किसी काम से उस के बैड के करीब आया था, पर उस की हरकतों से साफ था कि उस के इरादे कुछ और हैं.

सपना ने सूरज का हाथ पकड़ कर जोर से  झटक दिया. पर सूरज तो हवस में अंधा हो चुका था. उस ने अपने होंठ सपना के होंठों पर रख दिए और बोला, ‘‘चुपचाप लेटी रहो. यहां कोई नहीं है, जो तुम्हें बचाएगा. मजे लो और मुझे भी मजे लेने दो.’’

इस के बाद सूरज के हाथ सपना के सारे शरीर पर फिरने लगे थे. उस की हरकत भी काफी बढ़ गई थी. ऐसा लग रहा था कि वह किसी भी हालत में अपनी मंशा पूरी किए बिना नहीं मानेगा.

सपना ने पूरी ताकत से सूरज को परे धकेल दिया, फिर बिना किसी देरी के इमर्जैंसी बटन दबा दिया. सायरन की आवाज सुन वहां तैनात पुलिस पहुंच गई.

‘‘क्या बात है…?’’ एक सिपाही ने सपना से पूछा.

‘‘यह मेरे साथ गंदी हरकत कर रहा था,’’ सपना ने सूरज की ओर इशारा कर के कहा.

इस बीच सूरज वहां से भागने की कोशिश करने लगा, पर सिपाही ने उसे दबोच लिया. इस के बाद न सिर्फ वह पुलिस की गिरफ्त में था, बल्कि कोरोना की गिरफ्त में भी आ चुका था.

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