Top 10 Valentine Story in Hindi: ‘प्यार’ एक ऐसा एहसास है, जिसमे हर एक इंसान खुद को लोगों से अलग समझ कर जीता हैं. प्यार में हर चीज अच्छी लगती है. साथ ही दिल और दिमाग खुश रहता है. इसके अलावा जब कोई व्यक्ति प्यार में होता है, तो उसे अपने पार्टनर की हर एक खूबी व बुराई अच्छी लगती है.
कई लोगों को तो प्यार का इतना जुनून चढ़ जाता है कि वो अपने पार्टनर के प्यार के खातिर कुछ भी कर गुजर जाने को तैयार हो जाते हैं. ऐसी ही प्यार और रिश्ते से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां हम आपके लिए लेकर आए हैं. अगर आपको भी कहानिया पढ़ने का शौक, तो पढ़ें सरस सलिल.
1. वहां आकाश और है: आकाश और मानसी के बीच कौन-सा रिश्ता था
अचानक शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था. मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली. पेड़पौधों पर झरझर गिरता पानी उन का रूप संवार रहा था. इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तनमन भिगो ले.
मगर उस की दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा. मानो कह रही हो हमें छोड़ कर कहां चली. पहले हम से तो रूबरू हो लो.
रोज वही ढाक के तीन पात. मैं ऊब गई हूं इन सब से. सुबहशाम बंधन ही बंधन. कभी तन के, कभी मन के. जाओ मैं अभी नहीं मिलूंगी तुम से. मन ही मन निश्चय कर मानसी ने कामकाज छोड़ कर बारिश में भीगने का मन बना लिया.
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2. सच्चा प्यार : स्कूल में जब दो दिल मिले
मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’
‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’
‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’
धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.
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3. प्यार असफल है तुम नहीं रक्षित
विमी के यहां से लौटते ही अचला ने अपने 2 कमरों के फ्लैट का हर कोने से निरीक्षण कर डाला था.विमी का फ्लैट भी तो इतना ही बड़ा है पर कितना खूबसूरत और करीने का लगता है.
छोटी सी डाइनिंग टेबल, बेडरूम में सजा हुआ सनमाइका का डबलबेड, खिड़कियों पर झूलते भारी परदे कितने अच्छे लगते हैं. उसे भी अपने घर में कुछ तबदीली तो करनी ही होगी. फर्नीचर के नाम पर घर में पड़ी मामूली कुरसियां और खाने के लिए बरामदे में रखी तिपाई को देखते हुए उस ने निश्चय कर ही डाला था. चाहे अशोक कुछ भी कहे पर घर की आवश्यक वस्तुएं वह खुद खरीदेगी. लेकिन कैसे? यहीं पर उस के सारे मनसूबे टूट जाते थे.
तनख्वाह कटपिट कर मिली 1 हजार रुपए. उस में से 400 रुपए फ्लैट का किराया, दूध, राशन. सबकुछ इतना नपातुला कि 10-20 रुपए बचाना भी मुश्किल. क्या छोड़े, क्या जोड़े? अचला का सिर भारी हो चला था.
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4. तू आए न आए : शफीका का प्यार और इंतजार
मैं इंगलैंड से एमबीए करने के लिए श्रीनगर से फ्लाइट पकड़ने को घर से बाहर निकल रहा था तो मुझे विदा करने वालों के साथसाथ फूफीदादी की आंखों में आंसुओं का समंदर उतर आया. अम्मी की मौत के बाद फूफीदादी ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया था. 2 चाचा और 1 फूफी की जिम्मेदारी के साथसाथ दादाजान की पूरी गृहस्थी का बोझ भी फूफीदादी के नाजुक कंधों पर था. ममता का समंदर छलकाती उन की बड़ीबड़ी कंटीली आंखों में हमारे उज्ज्वल भविष्य की अनगिनत चिंताएं भी तैरती साफ दिखाई देती थीं. उन से जुदाई का खयाल ही मुझे भीतर तक द्रवित कर रहा था.
कार का दरवाजा बंद होते ही फूफीदादी ने मेरा माथा चूम लिया और मुट्ठी में एक परचा थमा दिया, ‘‘तुम्हारे फूफादादा का पता है. वहां जा कर उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश करना और अगर मिल जाएं तो बस, इतना कह देना, ‘‘जीतेजी एक बार अपनी अम्मी की कब्र पर फातेहा पढ़ने आ जाएं.’’
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5. गुड़िया कहां चली गई, क्या था आखिरी चिट्ठी का राज
मंदिर के फर्श पर एक खूबसूरत औरत पुजारिन के रूप में बैठी थी. मैं हैरानी से उस को देख रहा था. उस का चेहरा दूसरी तरफ था. जैसे ही उस ने अपना चेहरा मेरी तरफ घुमाया, मैं चौंक उठा था.
‘‘गुड़िया…’’ एकाएक मेरे होंठों से निकल पड़ा था.
मैं ने अपनी गुड़िया को जोर से पुकारा, ‘‘मेरी गुड़िया…’’
वह मुझे देखने लगी थी, लेकिन मुझ से ज्यादा देर तक नजरें नहीं मिला सकी. शायद उसे याद आया होगा मेरा वादा.
‘‘गुड़िया, मैं धर्म को नहीं मानता. मेरा धर्म और इनसानियत सिर्फ मेरा प्यार है,’’ मैं ने कहा.
वह मुझे नहीं देखना चाहती थी. वह फर्श पर समाधि की मुद्रा में बैठी थी. गेरुए रंग की साड़ी में वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. बाल बिखरे हुए थे. ललाट पर रोली व चंदन का टीका उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे.
मैं उसे अपलक देख रहा था. मांग में सिंदूर नहीं था. माथे पर बिंदिया नहीं थी, फिर भी वह काफी खूबसूरत लग रही थी.
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6. वादियों का प्यार: कैसे बन गई शक की दीवार
नैशनल कैडेट कोर यानी एनसीसी की लड़कियों के साथ जब मैं कालका से शिमला जाने के लिए टौय ट्रेन में सवार हुई तो मेरे मन में सहसा पिछली यादों की घटनाएं उमड़ने लगीं.
3 वर्षों पहले ही तो मैं साकेत के साथ शिमला आई थी. तब इस गाड़ी में बैठ कर शिमला पहुंचने तक की बात ही कुछ और थी. जीवन की नई डगर पर अपने मनचाहे मीत के साथ ऐसी सुखद यात्रा का आनंद ही और था.
पहाडि़यां काट कर बनाई गई सुरंगों के अंदर से जब गाड़ी निकलती थी तब कितना मजा आता था. पर अब ये अंधेरी सुरंगें लड़कियों की चीखों से गूंज रही हैं और मैं अपने जीवन की काली व अंधेरी सुरंग से निकल कर जल्द से जल्द रोशनी तलाश करने को बेताब हूं. मेरा जीवन भी तो इन सुरंगों जैसा ही है- काला और अंधकारमय.
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7. कंवल और केवर की प्रेम कहानी- भाग 1
जवाहर पातुर ने कई बार कंवल को चेताया… तू इस महल में नहीं आएगी. कोई बात होगी तो तभी बताना, जब मैं घर आ जाया करूं…’’ कंवल का रूपरंग भी अपनी मां से कहीं ज्यादा बढ़ कर था. जवाहर पातुर यह कभी नहीं चाहती थी कि उस की फूल सी बच्ची पर उस नामुराद महमूद शाह की काली छाया पड़े. उन दिनों बादशाह महमूद शाह के राजघराने में वेश्याओं का अच्छाखासा तांता लगा रहता था. बादशाह के हरम में हुस्न की कोई कमी न थी. उन्हीं में से एक रूपवती थी जवाहर पातुर. बादशाह महमूद शाह के साम्राज्य में वेश्या जवाहर पातुर की खूबसूरती का बोलबाला था.
सब ने यही सुना था कि बादशाह के हरम में कई आईं और गईं, पर एक जवाहर पातुर ही है, जिसे हरम में रानी के समान ही सारी सहूलियतें मुहैया थीं. जवाहर पातुर की बेटी कंवल भी कभीकभी अपनी मां से मिलने महल में आ जाया करती थी, पर पातुर को यह पसंद न था. वैसे अब तक ऐसा नहीं हुआ कि महमूद और कंवल ने एकदूसरे को आमनेसामने देखा हो, पर आज वह महमूद की नजरों से बच न सकी. महमूद ने इस से पहले ऐसी बला की खूबसूरती न देखी थी.
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8. बारिश की बूंद: उस रात आखिर क्या हुआ
मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’
‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’
‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’
धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.
एक दिन उस ने खूब सजधज कर चारबत्ती के पास मेरी साइकिल के अगले पहिए से अपनी साइकिल का पिछला पहिया भिड़ा दिया था. शायद वह मुझ से आगे निकलना चाहती थी.
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9. घरौंदा: कल्पना की ये कैसी उड़ान
विमी के यहां से लौटते ही अचला ने अपने 2 कमरों के फ्लैट का हर कोने से निरीक्षण कर डाला था.विमी का फ्लैट भी तो इतना ही बड़ा है पर कितना खूबसूरत और करीने का लगता है.
छोटी सी डाइनिंग टेबल, बेडरूम में सजा हुआ सनमाइका का डबलबेड, खिड़कियों पर झूलते भारी परदे कितने अच्छे लगते हैं. उसे भी अपने घर में कुछ तबदीली तो करनी ही होगी. फर्नीचर के नाम पर घर में पड़ी मामूली कुरसियां और खाने के लिए बरामदे में रखी तिपाई को देखते हुए उस ने निश्चय कर ही डाला था. चाहे अशोक कुछ भी कहे पर घर की आवश्यक वस्तुएं वह खुद खरीदेगी. लेकिन कैसे? यहीं पर उस के सारे मनसूबे टूट जाते थे.
तनख्वाह कटपिट कर मिली 1 हजार रुपए. उस में से 400 रुपए फ्लैट का किराया, दूध, राशन. सबकुछ इतना नपातुला कि 10-20 रुपए बचाना भी मुश्किल. क्या छोड़े, क्या जोड़े? अचला का सिर भारी हो चला था.
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10. वो नीली आंखों वाला : वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी – भाग 1
मधुमास के बाद लंबी प्रतीक्षा और सावनराजा के धरती पर कदम रखते ही हर जर्रा सोंधी सी सुगंध में सराबोर हो रहा है… मानो सब को सुंदर बूंदों की चुनरिया बना कर ओढ़ा दी हो. लेकिन अंबर के सीने से खुशी की फुलझड़ियां छूट रही हैं… जैसे वह अपने हृदय में उमड़ते अपार खुशी के सागर को आज ही धरती से जा आलिंगन करना चाहता है. बरखा रानी हवाई घोड़े पर सवार हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. ऐसे बरस रही हैं, जैसे अब के बाद फिर कभी उसे धरती का सीना तरबतर करने और समस्त धरा को अपने स्नेह का कोमल स्पर्श करने आना ही नहीं है. हर पत्ता, हर डाली, हर फूल खुद को वैजयंती माल समझ इतरा रहा हो और इस धरती के रैंप पर मानो कैटवाक कर रहा हो….
घर की दुछत्ती यह सारा मंजर आंखें फाड़फाड़ कर देख रही है मानो ईर्ष्या से दरार पड़ गई हो, और उस का रुदन मालिनी के दिल को भी छलनी कर रहा है, जैसे एक बहन दूसरे के दुख में पसीज रही हो.
ऐसी बारिश जबजब पड़ी, उस ने मालिनी को हर बार उन बीती यादों की सुरंग में पीछे ले जा कर धकेल दिया. उन यादों के खूबसूरत झूलों के झोटे तनमन में स्पंदन पैदा कर देते हैं.