जवाहर पातुर ने कई बार कंवल को चेताया… तू इस महल में नहीं आएगी. कोई बात होगी तो तभी बताना, जब मैं घर आ जाया करूं…’’ कंवल का रूपरंग भी अपनी मां से कहीं ज्यादा बढ़ कर था. जवाहर पातुर यह कभी नहीं चाहती थी कि उस की फूल सी बच्ची पर उस नामुराद महमूद शाह की काली छाया पड़े. उन दिनों बादशाह महमूद शाह के राजघराने में वेश्याओं का अच्छाखासा तांता लगा रहता था. बादशाह के हरम में हुस्न की कोई कमी न थी. उन्हीं में से एक रूपवती थी जवाहर पातुर. बादशाह महमूद शाह के साम्राज्य में वेश्या जवाहर पातुर की खूबसूरती का बोलबाला था.
सब ने यही सुना था कि बादशाह के हरम में कई आईं और गईं, पर एक जवाहर पातुर ही है, जिसे हरम में रानी के समान ही सारी सहूलियतें मुहैया थीं. जवाहर पातुर की बेटी कंवल भी कभीकभी अपनी मां से मिलने महल में आ जाया करती थी, पर पातुर को यह पसंद न था. वैसे अब तक ऐसा नहीं हुआ कि महमूद और कंवल ने एकदूसरे को आमनेसामने देखा हो, पर आज वह महमूद की नजरों से बच न सकी. महमूद ने इस से पहले ऐसी बला की खूबसूरती न देखी थी.
कंवल अपनी सहेली टुन्ना के साथ अपनी मां के कमरे में बैठ बाटिया के जागीर कुंवर केहर सिंह चौहान के मल्लयुद्ध में बड़ेबड़े पहलवानों को पस्त करने के दांवपेंचों का शब्दचित्र खींच कर अपनी मां को सुना ही रही थी कि उसी वक्त महमूद का मन पातुर के साथ समय बिताने को किया, तो वह दनदनाते हुए उस के कमरे में चला आया. उस दिन यह कंवल और महमूद शाह की पहली मुलाकात थी.
दोनों ने पहली बार एकदूसरे को आमनेसामने देखा था. महमूद ने बड़ी गर्मजोशी से कंवल का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘अरे पातुर, तुम ने आज तक बताया क्यों नहीं कि तुम्हारी बेटी इतनी बड़ी हो गई है और इन्हें महल भी इतने दिन बाद ले कर आई हो. कभी हम से तो मिलवाने के लिए ले आती.’’ ‘‘जी हुजूर, पर यह हाथ ही कहां आती है. दिनभर तो अपनी सहेलियों के साथ मटरगश्ती में लगी रहती है,’’ जवाहर पातुर ने चापलूसी वाली हंसी हंसते हुए टुन्ना की ओर देखते हुए कहा. ‘‘चलिए, कोई बात नहीं. अब आप को यहां आते रहना है. कभी किसी चीज की कमी हो, तो बे?ि?ाक बता देना. और तुम्हें हम से मिलने के लिए किसी की इजाजत लेने की भी जरूरत नहीं है,’’ महमूद ने कंवल की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा. कंवल हड़बड़ी में अपनी मां और महमूद से विदा ले कर अपनी सहेली टुन्ना के संग वहां से निकल गई. महमूद ने कंवल को थोड़ी देर और रोकना चाहा, पर फिर कुछ सोच कर रुक गया.
उस दिन सारी रात महमूद शाह किसी गहरी सोच में डूबा रहा. वह कभी इस ओर करवट लेता, तो कभी उस ओर. और कभी बारबार एक ?ाटके से उठ कर बैठ जाया करता. अगले दिन किसी अनमनी सी सोच में उल?ा महमूद फिर जवाहर पातुर के कमरे में गया और थोड़ी देर इधरउधर की बात करने के बाद उसे बाजुओं से पकड़ता हुआ बोला, ‘‘देखो पातुर, मैं तुम्हें कुछ बताने के लिए आया हूं…’’ मानो महमूद के मन में क्या है, उस का अंदाजा वह लगा पा रही हो, पर फिर भी अपने अंदेशे को अपने ही अंदर छिपाते हुए बोली, ‘‘हुजूर, कुछ कहना था तो मु?ो बुला लिया होता.
अब बादशाह को किसी को कुछ कहने के लिए उस के पास जाना पड़े, यह तो कोई बात नहीं हुई.’’ ‘‘तुम वह सब छोड़ो पातुर और यह बताओ कि क्या तुम अपनी बेटी कंवल को मेरी रानी बनाना चाहोगी?’’ पातुर मानो यही सुनने के लिए रुकी थी. उसे मालूम था कि कल जिस तरह से महमूद ने उस की बेटी की पीठ को हाथ से सहलाया था, वह उस का दिखावा मात्र था.
वह बोली, ‘‘लेकिन हुजूर, वह अभी काफी छोटी है. उस के लिए अभी भी राजपाठ ऐशोआराम से कहीं ज्यादा बढ़ कर अपनी सहेलियां और दोस्त हैं. उसे अभी इस हरम में न डालिए.
मैं आप को मना नहीं कर रही हूं, बस थोड़ा रुकने को कह रही हूं.’’ जवाहर पातुर को जो अंदेशा था, ठीक वही हुआ. वह कल ही सम?ा चुकी थी कि महमूद की आवारा नजर उस की बेटी पर पड़ चुकी है और कभी भी महमूद की यह मांग हो सकती है कि उसे अब कंवल से निकाह करना है. ‘‘देखो, मां को अपने बच्चे हमेशा छोटे ही लगते हैं, पर किसी और से पूछो तो वह बताएगा कि कंवल अब कितनी बड़ी हो चुकी है. तुम समाज के बारे में सोचो… दिनभर तुम यहां रहती हो, उधर वह पूरे दिन क्या करती है, किस से मिलती है, कौन जानता है. इधर एक रानी की हैसियत से इस महल में रहेगी, तो तुम सोच ही सकती हो कि क्या शान होगी तुम लोगों की. ‘‘खैर, चलो छोड़ो. अभी फिलहाल उस से कहना कि बादशाह ने उसे 2 लाख रुपए सालाना जागीर देने का फैसला किया है,’’ महमूद घेरने में माहिर था. वह अपना काम निकलवाने के लिए अपनी जबान का इस्तेमाल करना बखूबी जानता था.
2 लाख रुपयों का लालच पातुर की आन को तोड़ने लगा था. उस ने बादशाह से कहा, ‘‘ठीक है हुजूर, मैं बात करूंगी कंवल से.’’ ‘‘मैं जानता हूं पातुर कि तुम मेरी ख्वाहिश पूरी करने में जान लगा दोगी. आज तक तुम ने यही तो किया है,’’ कहते हुए बादशाह पातुर के कमरे से बाहर आ गया.
उधर सूरज को आसमान में चढ़े थोड़ी ही देर हुई थी कि कंवल अपनी सखी टुन्ना के संग घोड़ों पर सवार हो कर गुजरात की छोटी सी जागीर बारिया के मालिक कुंवर केवर सिंह चौहान के बाहुबल का कारनामा देखने उन की जागीर में जा रही थी.
आज केवर सिंह की हुक्काम से कुश्ती की प्रतियोगिता थी. यह जागीर बादशाह महमूद शाह के साम्राज्य के अधीन ही थी. कंवल को महल पहुंचने में थोड़ी देर हो गई थी. उधर कुश्ती का खेल शुरू हो चुका था. कंवल और उस की सहेली टुन्ना को आता देख कुंवर केवर सिंह के दोस्त सां?ा ने उन्हें दर्शकों की भीड़ में रास्ता बना कर आगे की ओर ला कर अलग जगह पर बैठा दिया, जहां से सिर्फ राजघराने के लोगों को ही कार्यक्रम देखने की इजाजत थी.
केवर सिंह को हुक्काम सिंह पर भारी पड़ते देख कंवल खुशी के मारे सभी के साथ जोर से शोर मचाती, तालियां पीटती. उस की सहेली टुन्ना और सां?ा कंवल की यह बचकानी हरकत को देख उस पर ठहाके लगाते और उस का मजाक बनाते. खेल के मिजाज से यह साफ जाहिर था कि आज केवर सिंह का दिन ठीक नहीं है.