दिल्ली की दोस्ती! वाया फेसबुक

देश की राजधानी दिल्ली के एक ऑटो चालक ने किस तरह एक युवती को फेसबुक के जरिए अपनी दोस्ती के जाल में फंसा कर उसकी अस्मत को लूट लिया. अक्सर यह कहा जाता है कि एक लड़का और लड़की अच्छे दोस्त क्यों नहीं हो सकते, एक दूसरे की मदद क्यों नहीं कर सकते. जमाना आज 21 वी शताब्दी का है तो क्यों नहीं दोनों साथ साथ कदम दर कदम मिलाकर के दोस्ती की एक नई इबारत नहीं लिख सकते.
जी हां! यह अपने आप में एक पक्ष है, दूसरा पक्ष अंधेरे वाला भी है. जहां फेसबुक पर दोस्ती के बाद लड़का लड़की को धोखा देता है. इसलिए  सावधान! आंख मूंदकर लड़कियों का किसी पर विश्वास करना भारी पड़ सकता है.

दिल्ली की सड़कों पर आवारा सा घूमने वाले एक ऑटो चालक ने झूठी कहानी गढ़ कर
छत्तीसगढ़ की अंबिकापुर शहर की एक युवती रजनी (काल्पनिक नाम) को फेसबुक पर दोस्ती कर फंसाया  . जैसा कि आजकल चलन है सोशल मीडिया फेसबुक की मित्रता अपने उफान पर है बड़े महानगरों के लड़कों पर लड़कियां विश्वास भी कर लेती हैं.

ऐसे में युवती की दोस्ती फेसबुक के माध्यम से  राजधानी दिल्ली के एक युवक आशीष से हो गई. जैसा कि अक्सर होता है शातिर युवक आशीष ने बड़ी-बड़ी बातें करके लड़की को अपने संजाल में फंसा लिया. जब रजनी ने कहा कि उसके सामने रोजी रोटी और भविष्य का सवाल है फिर तो मानो आशीष को मौका ही मिल गया वह बोला- अगर तुम दिल्ली आ जाओ तो मैं तुम्हें नौकरी भी दिलवा दूंगा और तुम एक हाई क्लास जिंदगी जी सकोगी. रजनी उसके मीठी चुपड़ी बातों में आ गई.

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मगर आगे देखिए! उसके साथ क्या हश्र हुआ.

और बना लिया “बंधक”!

ऑटो चालक आशीष गुप्ता ने लड़की को दिल्ली बुलाया और सामान्य रूप से कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि कोई युवक ऐसा दुस्साहस भी कर सकता है. जब फेसबुक मित्र आशीष के झांसे में आकर रजनी घर से झूठ बोलकर दिल्ली पहुंच गई तो वहां युवक ने उसे मीठी चुपड़ी बातें करके अपने घर ले जाकर  युवती को अपने कमरे में  बंधक बनाकर रखा मारपीट करता और उसके साथ अनाचार करता रहा. शायद युवक मानसिक विकृति लिए हुए था. इसलिए वह उसे सिगरेट से यदा-कदा  दागता भी था. प्रताड़ना के लंबे दौर से गुजरने के बाद  किसी तरह रजनी ने एक दिन आशीष के मोबाइल से ही नातेदारों से संपर्क किया.

परिजनों की जब दोबारा बातचीत बंद हो गई तो उन्होंने अंबिकापुर, पुलिस अधीक्षक के पास पहुंच शिकायत दर्ज कराई इस पर उन्होंने  कोतवाली पुलिस को जांच के निर्देश दिया.

पुलिस हरकत में आई मोबाइल ट्रेस कर दिल्ली पहुंची तो रजनी की एक एक बात सच निकली.  पुलिस ने दिल्ली पुलिस की मदद से आशीष को दिल्ली से गिरफ्तार कर रजनी को उसके कब्जे से मुक्त कराया. पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया बीस साल की रजनी  ( काल्पनिक नाम)  की पहचान फेसबुक के माध्यम से दिल्ली के आदित्य गुप्ता नामक युवक से हुई.

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युवक ने युवती से झूठ कहा कि  वह दिल्ली में एक कॉल सेंटर में काम करता है, यदि वह दिल्ली आएगी तो उसे भी बेहतर काम दिला देगा. दिल्ली राजधानी है यहां काम की कमी नहीं है और फिर छत्तीसगढ़ के जाने कितने लड़के लड़कियां यहां काम कर रहे हैं. इन बातों में आकर के रजनी अपने घर से दिल्ली की ओर  28 दिसंबर 2020 को युवती घर से निकल पड़ी. उसने घरवालों से कहा  वह परीक्षा देने जा रही है.  वहां पहुंचकर युवक से संपर्क किया तो वह लेने आ गया.

इसके बाद रजनी को वह अपने कमरे में ले गया और उसके साथ अनाचार अत्याचार करने लगा. रजनी का परिवार जनों से संपर्क टूट गया तो परेशान हो करके उन्होंने 31 दिसंबर2020 को अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. रजनी का मोबाइल भी तोड़ दिया गया था ताकि वह अपने परिजनों से बात न कर सके. 6 महीने10 दिन  युवक आशीष युवती से अनाचार करता रहा. उसके विरोध करने पर वह उसे सिगरेट से भी दाग देता था.

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अंबिकापुर के थाना प्रभारी ने हमारे संवाददाता को बताया- युवती सरगुजा क्षेत्र की रहने वाली है. युवक को गिरफ्तार करके उसका और युवती का बयान लिया गया पुलिस ने युवक पर सख्त कार्रवाई करते हुए जय जेल भेज दिया है.

Crime: फ्री का लॉलीपॉप, बड़ा लुभावना!

दरअसल, यह फ्री की जो मानसिकता है वह हमें अक्सर बड़ा  नुकसान पहुंचाती है. आजकल सोशल मीडिया में फ्री का लालच बड़े जोर शोर से प्रसारित हो रहा है और लोग छोटे से लालच में फंसकर के अपनी गाढ़ी कमाई को लूटा बैठते हैं. उन्हें यह समझ नहीं आता की आपके पास दो हाथ  है प्रकृति ने आपको बुद्धि दी है, इनका इस्तेमाल करिए निशुल्क फ्री के लालच में क्यों अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे हो.

आइए, देखें कुछ ऐसे मामले जो हमारी आंखें खोल सकते हैं-

पहला मामला-एक पढ़ें लिखे लोगों के  व्हाट्सएप ग्रुप में मैंने एक मैसेज देखा की जिओ, एयरटेल आदि 30 जून तक फ्री में रिचार्ज दे रहे हैं जल्दी से जल्दी इसका लाभ उठा ले.

नीचे लिंक दिया गया था वह पूरी तरीके से फर्जी था और लोगों को लूटने वाला मगर पढ़े लिखे माने जाने वाले भी झूठ के, ठगी के शिकार हो जाते हैं यह उसका बड़ा उदाहरण है.

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दूसरा मामला-

जैसे ही घरेलू महिला शालू ने यह देखा कि नि: शुल्क रिचार्ज मिलने वाला है उसने अपने सभी परिजनों को वह कथित लिंक भेज दिया. परिजनों ने देखा कि जब लिंक शालू ने भेजा है तो जरूर यह सही होगा. उन लोगों ने उसका उपयोग करके अपने आप को लुटा लिया.

तीसरा मामला-

अगर आपको पैसे चाहिए लोन चाहिए तो आपको 0% में हम रूपए देंगे बस आपको करना यह है कि इस लिंक का प्रयोग करें और लाभ उठा लो.

ऐसे ही न जाने कितने फर्जीवाड़ा आज सोशल मीडिया पर अपने सबाब पर है. हममें अगर थोड़ी भी समझ नहीं होगी और हम उसी को क्लिक करते हैं तो हमारे बैंक का सारा पैसा उड़ सकता है सावधान रहें और कभी भी किसी लालच के फंदे में न फंसे.

शिकारी आया,  दाने डालें

आप लोगों ने यह कहानी कभी न कभी पढ़ी होगी अथवा सुनी होगी कि शिकारी किस तरह पहले पंछियों के लिए दाने डालता है और जब पंछी धीरे-धीरे आकर के दाने चुगने लगते हैं तो शिकारी उन्हें फंसा लेता है.

यह बोध कथा हम पढ़ने सुनने के बाद भी जीवन में उतार नहीं पाते और गाहे-बगाहे ठगी का शिकार होते रहते हैं.पंचतंत्र में ऐसी ही कथाएं सैकड़ों साल पहले लिखी गई और लोगों को शिक्षित करने का प्रयास किया गया. इसका सीधा सा अर्थ है की यह ठगी की प्रवृत्ति हजारों साल से चली आ रही है और लोग ठगी का शिकार हो रहे हैं,यह  बस अपना रूप बदलती है. आजकल सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के बैंक खातों को साफ कर रही है. मजेदार यह कि जो लोग पढ़े लिखे और खुद को समझदार मानते हैं वह भी इस ठगी का शिकार हो रहे हैं. जिसमें पुलिस वाले, अधिवक्ता, इंजीनियर आदि भी शामिल है. इस रिपोर्ट के माध्यम से हम आपको एक बार पुनः आगाह करना चाहते हैं किसी भी शिकारी के दाने को चुगने से पहले सौ बार सोच ले.

एक बात गांठ बांध लें की कोई भी चीज आप को निशुल्क नहीं मिल सकती अगर कोई आपको इस का झांसा दे रहा है तो वह बहुत बड़ा सफेद झूठ है और आप बहुत ही सज्जन व्यक्ति जो उसके जाल में फंसने ही वाले हैं. अतः कभी भी निशुल्क फ्री के संजाल में नहीं फंसना है.

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ठोकर खाकर गिरने से अच्छा है, यह पढ़ लें

अगर आपके पास सोशल मीडिया या सर्वसुलभ वॉट्सऐप के द्वारा “तीन महीने के फ्री रिचार्ज” का मैसेज आया है तो खुश मत होइए खुशी के मारे उछलिए मत!

वस्तुत: आप भूलकर भी उसपर विश्वास न करें क्योंकि ऐसा करना आपके लिए भारी पड़ सकता है. और आपका बड़ा नुकसान हो सकता है. इस मैसेज के आपको दर असल फंसाया जा रहा है और आपका अकाउंट भी खाली किया जा सकता है.

सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है जिसमें कहा जा रहा है कि Jio, Airtel या Vi यूजर्स को वर्क फ्रॉम होम के लिए तीन महीने का फ्री रिचार्ज दिया जा रहा है. इस मैसेज में दावा किया जा रहा है कि यह स्कीम सरकार द्वारा चलाई जा रही है.

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इस वायरल मैसेज में लिखा है- ”कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सरकार द्वारा Work From Home के लिए सभी भारतीय यूजर्स को 3 महीने का रिचार्ज फ्री में दिया जा रहा है.” और-

“अगर आपके पास Jio, Airtel या Vi का सिम हैं तो आप इस ऑफर का लाभ उठा सकते है .

नोट:- नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करके अपना फ़्री रीचार्ज प्राप्त करें.

कृपया ध्यान दे: यह ऑफर केवल फलां दिनांक तक ही सिमित है!जल्दी करें..!”

जैसे हमने इस रिपोर्ट में पहले ही बता दिया है इस लिंक पर आप इन लिंक्स पर कदापि क्लिक नहीं करें.

इसी तरह आनलाइन पढ़ाई को लेकर के एक मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल है. यह पुरी तरह एक फर्जी मैसेज है और  भारत सरकार का नाम लेकर के लोगों को ठगने का उच्च स्तर का प्रयास है, आपको यह समझना होगा कि सरकार ऐसी कोई भी निशुल्क योजना भला क्यों चलायेगी.

Crime Story- सोनिया और उमंग: परवान नहीं चढ़ पाया बेमेल इश्क

शत्रुघ्न सिन्हा और रीना राय पर फिल्माया गया यह गाना साल 1980 में आई फिल्म ‘ज्वालामुखी’ का है, जो खूब पसंद किया गया था.

प्यार में धोखा खाए आशिक और महबूब ब्रेकअप के बाद इस गाने को गुनगुना कर खुद को तसल्ली दे लिया करते थे, लेकिन इस से सीखते कुछ नहीं थे, बल्कि कुछ दिनों बाद ही नए प्यार और सहारे की तलाश में जुट  जाते थे.

आज भी ऐसा ही हो रहा है और पहले से ज्यादा हो रहा है, क्योंकि प्यार के माने बहुत बदल गए हैं. कैसे बदल गए हैं, इस की ताजा मिसाल भोपाल का चर्चित मामला है, जिस के शत्रुघ्न सिन्हा वन मंत्री रह चुके और धार जिले की गंधवानी सीट से युवा कांग्रेसी विधायक उमंग सिंघार और रीना राय सोनिया भारद्वाज हैं.

39 साला सोनिया किसी फिल्म हीरोइन की तरह उम्र को मात देती हुई लगती थी. वह सच में निहायत खूबसूरत औरत थी, जो कम उम्र लड़कियों

जैसी दिखती थी, क्योंकि वह खुद को फिट रखने के सारे गुर जानती थी और हाईप्रोफाइल जिंदगी जीने में भरोसा करती थी.

फैशनेबल सोनिया 20 साल के एक बेटे की मां भी थी, यह उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था. उस ने बीती 16 मई को भोपाल में फांसी का फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली.

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इन दिनों वह अपने नए आशिक और होने जा रहे तीसरे पति उमंग सिंघार के बंगले 238, बी सैक्टर शाहपुरा, भोपाल में रह रही थी. जाहिर है कि वे दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे थे और लौकडाउन का पूरा लुत्फ उठा रहे थे.

कोरोना के कहर के चलते भोपाल शहर में भी दहशत थी. इलाज और औक्सीजन के लिए तरसते लोग बेमौत मारे जा रहे थे. मारे डर के कोई बेवजह तो क्या वजह होने पर भी घर से  बाहर नहीं निकल रहा था. यही वे दोनों कर रहे थे.

रोजमर्रा की जरूरत का सारा सामान एक फोन पर बैठेबिठाए बंगले पर आ जाता था. खाना बनाने और सेवा करने के लिए उमंग के घरेलू भरोसेमंद नौकर गणेश और गायत्री आवाज देते ही हाजिर हो जाते थे.

किस ने किस को फांसा

हरियाणा के अंबाला की रहने वाली सोनिया भारद्वाज उमंग सिंघार के इस प्राइवेट बंगले और उन के बैडरूम से एक पत्नी की तरह ही वाकिफ थी और अपना हक भी उतना ही सम?ाती थी. अगर शादी हो पाती तो यह उस की तीसरी शादी होती, क्योंकि वह पहले भी  2 शादियां कर चुकी थी.

साल 2006 में जब सोनिया 24 साल की थी, तब उस के पहले पति संजीव कुमार ने उसे छोड़ दिया था. वजह थी सोनिया की लक्जरी लाइफ स्टाइल, जिस के खर्चे और नखरे वह नहीं उठा पा रहा था.  संजीव से उसे एक बेटा आर्यन भी हुआ था, जो अब 20 साल का हो चुका है और शिमला से होटल मैनेजमैंट का कोर्स कर रहा है.

सोनिया ने दूसरी शादी एक बंगाली नौजवान से की थी, जो जल्द ही उसे छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. उस की भी परेशानी वही थी, जो संजीव की थी. गुजरबसर करने और बेटे को कुछ बनाने की ख्वाहिश लिए सोनिया ने एक कौस्मैटिक कंपनी में नौकरी कर ली.

इस में कोई शक नहीं कि सोनिया एक अच्छी मैनेजर थी, लेकिन शक इस में भी नहीं कि खुद अपनी जिंदगी वह मैनेज नहीं कर पाई. शायद वह ऊबने लगी थी, क्योंकि उमंग भी वही तेवर और गुस्सा दिखाने लगे थे, जो पहले के 2 पति दिखा चुके थे.

सोनिया और उमंग की जानपहचान शादी कराने वाली एक एजेंसी के जरीए तकरीबन 3 साल पहले हुई थी. जल्द  ही दोनों दिल्ली में मिलनेजुलने लगे और फिर सोनिया उमंग से मिलने भोपाल आने लगी. लगता नहीं कि उन दोनों में कोई परदेदारी रह गई होगी.

बहरहाल, कटी पतंग की तरह लंबा समय काटने वाली सोनिया को उमंग में वह सबकुछ दिखा, जो उस के ख्वाब और ख्वाहिशें पूरा करने का माद्दा रखते थे.

उमंग जैसे अधेड़ आशिक अपनी माशूका पर खुले हाथ से पैसा खर्च  करते हैं, उन्हें घुमातेफिराते हैं, जी भर कर खरीदारी कराते हैं, महंगे होटलों में खाना खिलाते हैं, नाजनजरे उठाते हुए वे खुद को जवान आशिक सम?ाने लगते हैं, जिस का अपना अलग ही मजा और एहसास है. इस का हक हर किसी को है भी और यह कोई एतराज की बात नहीं है.

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एतराज और हर्ज की बात है कुछ दिनों बाद ही अनबन होने लगना और एकदूसरे से जी भरने लगना, लेकिन तब तक अलग हो जाना या पल्ला ?ाड़ लेना कोई आसान काम भी नहीं रह जाता. यही इन दोनों के साथ भी हो रहा था.

यह बात सोनिया के छोड़े सुसाइड नोट से साफ भी हुई, जिस में उस ने उमंग की तरफ इशारा करते हुए लिखा कि तुम्हारा गुस्सा बहुत तेज है… अब बरदाश्त नहीं होता… मैं तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती थी, लेकिन…

यही लेकिन सारे फसाद की जड़ है, जिस का कोई हल नहीं. सोनिया ने ग्रिल पर लटक कर जान दे दी. हादसे के एक दिन पहले वह रात का खाना खा कर इतमीनान से सोई थी, ऐसा नौकरानी गायत्री का कहना है, लेकिन हकीकत में वह सोई नहीं थी, बल्कि सुसाइड नोट लिख रही थी.

जाहिर है कि इस दौरान सोनिया ने यह भी सोचा होगा कि क्यों वह उमंग समेत पहले 2 पतियों की नहीं हो पाई या क्यों इन में से कोई उस का नहीं हो पाया. फिर उस ने ग्रिल पर कपड़ा बांधा और फंदा लगा लिया.

सुसाइड नोट में उस ने अपने बेटे आर्यन को लिखा, ‘मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाई. आई लव यू’… जाहिर है कि वह आर्यन को बहुत चाहती थी.

सुबह 11 बजे तक जब सोनिया का कमरा नहीं खुला, तो यह बात गायत्री ने गणेश को और गणेश ने फोन पर उमंग को बताई, जो 4 दिन पहले ही अपने विधानसभा क्षेत्र गंधवानी में कोरोना पीडि़तों की सुध लेने गए थे.

उमंग ने भोपाल में अपनी जानपहचान वालों को माजरा देखने के लिए कहा, तब पता चला कि सोनिया ने खुदकुशी कर ली है.

हंगामा बढ़ा था

47 साला उमंग सिंघार मध्य प्रदेश की राजनीति में कोई मामूली नाम नहीं हैं. लिहाजा, उम्मीद के मुताबिक हंगामा मचा.

कुछ साल पहले तक उमंग की पहचान अपनी बूआ जमुना देवी की वजह से हुआ करती थी, जो आदिवासी समुदाय की धाकड़ कांग्रेसी नेता हुआ करती थीं. वे प्रदेश की उपमुख्यमंत्री भी रही थीं और कांग्रेस आलाकमान ने विधानसभा में उन्हें विपक्ष का नेता भी बनाया था.

शायद यही बात थी, जिस के चलते मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह से उन का छत्तीस का आंकड़ा था. जमुना देवी उन इनेगिने कांग्रेसी नेताओं में से एक थीं, जिन्होंने कभी दिग्विजय सिंह की बादशाहत के आगे सिर नहीं ?ाकाया.

उन की मौत के बाद उमंग ने भी सिर नहीं ?ाकाया, उलटे वे एक कदम आगे चलते हुए दिग्विजय सिंह से पंगा लेने में भी नहीं हिचकिचाए.

जमुना देवी की मौत के बाद उमंग ने अपने दम पर सियासत शुरू की और कामयाब भी रहे. उन्हें अपनी ताकत का एहसास था कि निमाड़ के आदिवासी उन के साथ हैं और कांग्रेस उन की मुहताज है. इसी वजह और युवा होने के चलते उमंग को राहुल गांधी की नजदीकियां भी हासिल थीं.

उमंग की काबिलीयत को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें ?ारखंड विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी थी, जिस में वे खरे भी उतरे थे.

मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन ने रांची में एक इंटरव्यू के दौरान इस प्रतिनिधि से उमंग की तारीफ की थी और दूसरे दिग्गज कांग्रेसियों ने भी कांग्रेस ?ामुमो के गठबंधन की जीत में उन के रोल को असरदार बताया था.

पिछले साल मार्च के महीने में ही जब ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने  22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे, तब उमंग के भी उन के साथ जाने की चर्चा थी, लेकिन उन के ऐसा न करने की वजह भी है.

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छोड़ेगी नहीं भाजपा

वजह यह है कि उमंग सिंघार हिंदुत्व के कट्टर विरोधी हैं और आदिवासियों को हिंदू नहीं मानते. कुछ दिन पहले तो उन्होंने आदिवासी इलाकों में रामलीला होने का भी विरोध किया था. इस पर भाजपा बुरी तरह भड़की थी, पर उमंग की सेहत पर इस का कोई असर नहीं हुआ था.

अब सोनिया की खुदकुशी के बाद भाजपा नेताओं को मौका मिल गया है. मंत्री रह चुकी रंजना बघेल कहती हैं कि उमंग की पहले से ही 2 पत्नियां हैं और पहले भी वे कई औरतों का शोषण कर चुके हैं. लिहाजा, उन के खिलाफ कड़ी जांच और कार्यवाही होनी चाहिए.

गौरतलब है कि उमंग की पहली शादी विनीता सिंघार से हुई थी, जिस से उन्हें 2 बच्चे भी हैं. इन तीनों के बारे में कोई खास कुछ नहीं जानता.

शाहपुरा पुलिस ने उमंग के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने वाली आईपीसी की धारा 306 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू भी कर दी है. हैरानी नहीं होनी चाहिए, अगर जल्द ही उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया जाए.

17 मई को जब सोनिया का अंतिम संस्कार उस की मां की मौजूदगी में बेटे आर्यन ने किया, तो उमंग भी श्मशान घाट में मौजूद थे और सोनिया के परिवार वालों को गले लगा कर उन का दुख बांट रहे थे.

यह एक तरह का डर भी था कि कहीं ये लोग ऐसा कोई बयान न दे दें, जो उन्हें और फंसा दे. खुद उन के नौकरों और आर्यन ने अपने बयान में पुलिस को बताया कि उन दोनों में नोक?ांक होती रहती थी, लेकिन खुदकुशी की वजह क्या है, यह उन्हें नहीं मालूम.

उमंग ने माना कि वे सोनिया से शादी करने वाले थे. वह उन की अच्छी दोस्त थी, लेकिन उस की खुदकुशी पर उन्हें हैरानी हो रही है.

यह ठीक है कि सोनिया ने अपनी खुदकुशी का जिम्मेदार उमंग को नहीं ठहराया है, लेकिन इस से वे बच नहीं सकते कि वह चिट्ठी में उन्हीं का जिक्र कर रही थी.

बेमेल इश्क से बचें

अब भले ही उमंग सिंघार यह कहते रहें कि पुलिस सोनिया के घर वालों के बारबार बयान ले कर उन्हें परेशान कर रही है, लेकिन हकीकत सामने है कि दोनों ने अपनीअपनी जरूरतें एकदूसरे से पूरी कीं और फिर चाह कर भी सीधेसीधे अलग नहीं हो पाए.

आएदिन के ऐसे हादसे बताते हैं  कि बेमेल इश्क का अंजाम आमतौर  पर अच्छा नहीं होता, इसलिए बहुत सोचसम कर कदम उठाना चाहिए और शादी का फैसला और वादा तभी करना चाहिए, जब इसे निभा सकें.

प्रेमिका अपने प्रेमी से सिक्योरिटी और पैसों समेत हर तरह की बेफिक्री चाहती है, तो प्रेमी को उस के एवज में सैक्स सुख और भावनात्मक सहारा चाहिए रहता है. दोनों ही हर्ज की बात नहीं, बशर्ते यह सौदा न हो कर वाकई प्यार के तहत हो.

Satyakatha: दो नावों की सवारी- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

राहुल अस्के और नवीन अस्के ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था. इंदौर पुलिस दोनों आरोपितों को जबलपुर से ले कर इंदौर पहुंची. यहां पुलिस ने रामदुलारी अपार्टमेंट में दबिश दे कर जितेंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

खैर, पूजा अस्के उर्फ जाह्नवी हत्याकांड में तीनों आरोपियों जितेंद्र अस्के, जितेंद्र के भाई राहुल अस्के और नवीन अस्के को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था.

तीनों आरोपियों से की गई गहन पूछताछ में पूजा हत्याकांड की कहानी ऐसे सामने आई—

35 वर्षीय जितेंद्र अस्के मूलरूप से जबलपुर के धार इलाके का रहने वाला था. मांबाप के अलावा उस के परिवार में एक भाई और एक बहन थी. इन में जितेंद्र सब से बड़ा था. बचपन से ही उसे पुलिस की नौकरी अच्छी लगती थी. बड़ा हो कर वह फौज में भरती होना चाहता था.

जितेंद्र को पता था कि फौज में भरती होने के लिए मजबूत और कसरती बदन का होना जरूरी है. अपने धुन का पक्का जितेंद्र पुलिस में भरती होने के लिए अपने खानपान और शरीर पर विशेष ध्यान देता था और उस ने खुद को पुलिस में भरती होने वाला मजबूत और गठीला जिस्म बना लिया था. आखिरकार वह मध्य प्रदेश पुलिस में भरती हो गया. वर्तमान में वह कंपनी कमांडर था.

जितेंद्र एक बड़ा पुलिस अफसर बन गया था. उस की शादी के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे. घर वालों ने धार के रिश्ते को अपनी मंजूरी दे अन्नू के संग रिश्ता जोड़ कर उस की गृहस्थी बसा दी थी. पढ़ीलिखी, गुणी और संस्कारी अन्नू को पत्नी के रूप में पा कर वह बेहद खुश था.

जितेंद्र और अन्नू की गृहस्थी बड़े मजे और खुशहाली से कट रही थी. उस के घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. मजे से दोनों के दिन कट रहे थे. समय से 2 बच्चे भी पैदा हुए. बच्चों की किलकारियों से जितेंद्र के आंगन का कोनाकोना महक उठा था.

इसी बीच जितेंद्र अस्के ट्रांसफर हो कर इंदौर आ गया था. मांबाप के साथ पत्नी और बच्चे धार में ही रहते थे. इंदौर के आनंद बाजार में किराए का एक कमरा ले कर वह रहने लगा था. घर से ड्यूटी और ड्यूटी से घर, यही उस की दिनचर्या थी. वह कभीकभार आनंद बाजार जाता था.

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एक दिन की बात है. जितेंद्र आनंद बाजार कुछ खरीदारी के लिए आया था. जिस दुकान से वह अपने लिए सामान खरीद रहा था, उसी के बगल में एक बेहद खूबसूरत युवती खड़ी सामान खरीद रही थी. अनजाने में उस युवती की कलाई कंपनी कमांडर जितेंद्र के हाथ से छू गई थी. उस युवती की कलाई के स्पर्श से जितेंद्र के जिस्म में अजीब सी लहर दौड़ गई थी.

उस के बाद जितेंद्र ने पलट कर उस युवती की ओर देखा. गोरी रंगत वाली उस युवती कोे देख वह उस पर मुग्ध सा हो गया था. पलभर के लिए उस की नजरें उस के सुंदर चेहरे पर जा टिकी थीं. अपलक उसे देखते युवती भी मुसकरा पड़ी. सामान ले कर वह युवती वहां से चली गई. जितेंद्र उसे तब तक निहारता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

बाद में जितेंद्र ने अपने स्तर से पता लगा ही लिया कि उस युवती का नाम पूजा उर्फ जाह्नवी है और वह इसी आनंद बाजार मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहती थी. यह घटना से करीब 3 साल पहले की बात थी.

खैर, उस दिन के बाद एक दिन बाजार में फिर से पूजा से उस की मुलाकात हो गई. इस के बाद तो अकसर दोनों की मुलाकात बाजार में हो जाया करती थी. धीरेधीरे यह मुलाकात दोस्ती के जरिए प्यार में बदल गई. कंपनी कमांडर जितेंद्र अस्के और पूजा प्यार की डोर में बंध गए थे. पुलिस अफसर जितेंद्र के मन में इश्क की ऐसी लगन लगी थी कि उस का तन और मन धधक रहा था.

बाद में वे दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे. पूजा को उस ने अपने आनंद बाजार वाले किराए के कमरे में रखा था. उस ने अपनी शादीशुदा जिंदगी को पूजा से छिपा लिया था. जितेंद्र ने खुद को कुंवारा बताया था.

जितेंद्र के कुंवारा होने से पूजा के घर वाले बेहद खुश थे कि उस की लाडली बेटी ने अपने लिए कितना बढि़या वर चुना है.

पूजा के घर वाले बेटी के ऐसे लिवइन रिलेशन के रिश्ते से खुश नहीं थे. वे चाहते थे कि दोनों शादी कर के रहें, जिस से कोई उन की बेटी के चरित्र पर अंगुली न उठाए. पूजा के घर वालों के दबाव से जितेंद्र कोर्ट मैरिज करने के लिए तैयार नहीं हुआ, अलबत्ता मंदिर में जा कर उस ने पूजा से विवाह कर लिया और उसे साथ ले कर रहने लगा.

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जितेंद्र कानून का जानकार था. वह जानता था कि अगर पूजा को उस की पहली शादी वाली बात पता चल गई तो कोर्ट मैरिज सर्टिफिकेट को आधार बना कर वह उस के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है, इसीलिए उस ने रजिस्टर्ड विवाह के बजाय मंदिर में शादी की थी, ताकि इस मैरिज का उस के पास कोई सबूत न बचे.

पूजा से शादी रचाने के बाद जितेंद्र ने आनंद बाजार वाला किराए का कमरा छोड़ दिया. उस ने मल्हारगंज इलाके के रामदुलारी अपार्टमेंट में 3 कमरों वाला फ्लैट किराए पर ले लिया और ठाठ से वहां पूजा के साथ रहने लगा था.

अगले भाग में पढ़ें- जितेंद्र ने दिया पूज को धोखा

Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

बालकराम के घर आतेजाते संतराम कब सुशीला की तरफ आकर्षित हो गया, उसे पता ही नहीं चला. बात तब बढ़नी शुरू हुई, जब सुशीला ने उस के कुंआरेपन को ले कर 1-2 बार ऐसे मजाक कर डाले जो एक औरत की मर्यादा से बाहर के थे.

जाहिर है जब सुशीला खुली तो संतराम ने उसी खुलेपन से उस के साथ हंसीमजाक शुरू कर दिया. इस दौरान दोनों एकदूसरे की तरफ इस कदर आकर्षित हो गए कि बालकराम की गैरमौजूदगी में भी संतराम उस के घर आनेजाने लगा और सुशीला के साथ उस के नाजायज संबध बन गए.

गांवदेहात में ऐसी बातें किसी से छिपती नहीं हैं. लिहाजा जल्द ही गांव में दोनों के संबधों की चर्चा चौपाल तक पर होने लगी. बालकराम को इस की भनक लगी तो उस ने सुशीला के साथ मारपीट की और संतराम का अपने घर आनाजाना बंद करा दिया.

कहते हैं कुंआरे इंसान को एक बार औरत के शरीर की गंध लग जाए तो फिर वह बहुत दिनों तक उस का स्वाद चखे बिना रह नहीं पाता. संतराम ने अब चोरीछिपे सुशीला से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. लेकिन यह बात भी जल्द ही बालकराम को पता चल गई. इस के बाद तो उस के घर में आए दिन का क्लेश रहने लगा.

सुशीला चंचल स्वभाव ही नहीं, जिस्मानी रूप से एक मर्द से खुश रहने वाली औरत नहीं थी. 5 बच्चे पैदा करने के बाद उस ने ख्वाहिशों की उड़ान भरनी नहीं छोड़ी.

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संतराम भी अब उस के प्यार में बुरी तरह पागल हो चुका था. लिहाजा सुशीला व संतराम ने फैसला किया कि वह बालकराम को छोड़ कर बच्चों को ले कर संतराम के साथ शाहजहांपुर से चली जाएगी.

आए दिन के झगड़ों से तंग आ कर जब बालकराम ने सुशीला से इस झगड़े के समाधान का उपाय पूछा तो सुशीला ने साफ कह दिया कि अब वह संतराम के साथ रहना चाहती है. लिहाजा यह तय हुआ कि बालकराम का बड़ा बेटा उसी के पास रहेगा जबकि बाकी के 4 बच्चों को ले कर सुशीला गांव से संतराम के साथ चली जाएगी.

यह बात करीब 18 साल पहले की है. संतराम सुशीला व उस के 4 बच्चों को ले कर नोएडा आ गया. यहां आ कर उस ने राजमिस्त्री का काम शुरू कर दिया. संयोग से यहां उसे अच्छी आमदनी होने लगी. कुछ साल बाद उस ने सुशीला की बड़ी बेटी मंजू की शादी कर दी. जिस की उम्र इस वक्त करीब 32 साल है और वह 2 बच्चों की मां है.

बाद में संतराम ने सुशीला के बड़े बेटे राजू की भी शादी कर दी, जो शादी के बाद अपनी पत्नी व छोटे बहनभाई के साथ गाजियाबाद में रहने लगा. राजू भी राजमिस्त्री  का काम करता है. पिछले 5 साल से संतराम सुशीला के साथ ककराला गांव में किराए का मकान ले कर रहता था. अब वह राजमिस्त्री के काम के साथ मकानों को बनाने के लिए छोटेमोटे ठेके भी लेने लगा था.

संतराम व सुशीला की कुंडली खंगालने के बाद पुलिस को अब तक जो जानकारी मिली थी, उस से यह बात तो साफ थी कि सुशीला एक चंचल स्वभाव की महिला थी, जिस के चरित्र पर भरोसा नहीं किया जा सकता था. वैसे भी पहले ही दिन से पुलिस की नजर में वह संदिग्ध थी.

गांव में सक्रिय मुखबिरों के जरिए 2 अहम जानकारी जांच अधिकारी उपाध्याय को लगीं. पहली यह कि संतराम के पड़ोस में रहने वाला मनोज, जो अपने भाई आकाश व राजेश के साथ किराए पर रहता था, संतराम की हत्या के अगले ही दिन अपना कमरा छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चला गया. वह कहां है, इस का किसी को कुछ नहीं पता.

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दूसरे यह कि मनोज का संतराम के घर जरूरत से ज्यादा आनाजाना था. उस के घर में आने को ले कर अकसर सुशीला व संतराम के बीच झगड़ा होता था. कई बार संतराम ने सुशीला के साथ मारपीट भी की थी.

दोनों ही जानकारियां बेहद काम की थीं. पुलिस ने सुशीला के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर जब उस की पड़ताल की तो उस में एक ऐसा नंबर था, जिस पर सब से अधिक काल होती थी. उस नंबर को खंगाला गया तो पता चला कि वह मनोज का नंबर है. पुलिस ने उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

सर्विलांस की मदद से आखिरकार 27 मई, 2021 को पुलिस टीम ने दादरी कट के पास छापा मार कर मनोज, उस के भाई आकाश व उस के रिश्तेदार राजेश को हिरासत में ले लिया. वे तीनों शहर छोड़ कर भागने की तैयारी कर रहे थे. दादरी कट के पास उन्होंने किराए की एक कार मंगाई थी, लेकिन कार के आने से पहले ही पुलिस ने उन्हें दबोच लिया.

थाने ला कर जब पुलिसिया अंदाज में मनोज से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया. मनोज कोई शातिर अपराधी तो था नहीं, इसलिए थोड़ी सख्ती के बाद ही उस ने संतराम की हत्या का गुनाह कबूल कर लिया और हत्याकांड की पूरी कहानी सुनाता चला गया.

मनोज मूलरूप से गुलाबगंज गनपाई थाना कादरचौक, जिला बदायूं, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. 23 साल का मनोज अपने छोटे भाई आकाश व मौसेरे भाई राजेश के साथ पिछले 2 साल से गौतमबुद्ध नगर के ककराला गांव में रहता था.

अगले भाग में पढ़ें- क्या मनोज ने हत्याकांड की जानकारी दी?

Manohar Kahaniya: पूर्व उपमुख्यमंत्री के घर हुआ खूनी तांडव, रास न आई दौलत- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

ऐसे में कांग्रेस के इस खेमे से हरीश कंवर की दूरी बनती चली गई और हरीश कंवर खुल कर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रहे अजीत कुमार जोगी के स्थानीय झंडाबरदार बन गए. दूसरे खेमे ने हरीश कंवर को तवज्जो देनी बंद कर दी. आगे चल कर जब अजीत जोगी ने ‘जनता कांग्रेस जोगी’ पार्टी का गठन किया तो हरीश कंवर इस पार्टी में ग्रामीण अध्यक्ष, कोरबा बन कर शामिल हो गए और क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने लगे.

पूरे परिवार की धमक थी राजनीति में

दूसरी तरफ प्यारेलाल कंवर के अनुज श्यामलाल कंवर जो पुलिस में डीएसपी पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे, वह कांग्रेस नेता डा. चरणदास महंत के क्षेत्रीय खेमे से जुड़ गए थे. इस तरह परिवार में भी खेमेबाजी सामने आ चुकी थी.

श्यामलाल कंवर सन 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से विधायक निर्वाचित हुए थे. इधर हरीश कंवर अजीत जोगी के पक्ष में चले गए और उन्होंने उन का झंडा थाम लिया था.

सन 2018 के विधानसभा चुनाव में श्यामलाल कंवर को फिर विधानसभा का प्रत्याशी कांग्रेस पार्टी ने बनाया. दूसरी तरफ अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने भी अपना प्रत्याशी फूल सिंह राठिया को खड़ा कर दिया. कांग्रेस के इस झंझावात में श्यामलाल कंवर चारों खाने चित हो गए और तीसरे नंबर में आ कर ठहर गए.

प्यारेलाल कंवर का परिवार राजनीति से अब दूर हो चुका था और सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा था. अजीत कुमार जोगी की पार्टी के धराशाई होने के बाद हरीश कंवर राजनीति के हाशिए पर आ गए थे और अपने गांव भैंसमा में उन्होंने खाद, बीज की एक दुकान खोल ली थी.

मूलरूप से काश्तकार परिवार प्यारेलाल कंवर के वंशज अपना जीवनयापन शांतिपूर्वक कर रहे थे. इसी बीच भैंसमा में एक ऐसा नृशंस हत्याकांड हुआ, जिसे कोरबा के इतिहास में कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा.

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धनकंवर को थी धन की लालसा

दरअसल, हरभजन कंवर की पत्नी धनकंवर ने जब सुना कि हरीश कंवर ने पैतृक संपत्ति पर लगभग अपना कब्जा स्थापित कर लिया है तो उस ने पति हरभजन के कान भरने शुरू कर दिए.

एक दिन वह मौका देख कर बोली, ‘‘ऐसे कैसे चलेगा, तुम क्या सब कुछ छोटे (हरीश) को दे दोगे, क्या हमारा उस पर कोई हक नहीं है.’’

हरभजन ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हें किस बात की कमी है, मैं तो किसान हूं. हमें चाहिए क्या, 2 वक्त की रोटी मिल ही जाती है. हमारे 2 बेटे हैं, फिर हमें क्या चिंता है.’’

पत्नी ने यह सुन कर कहा, ‘‘आप बहुत भोलेभाले हो. भोपाल की, यहां की करोड़ों रुपए की संपत्ति क्या अकेले हरीश की हो जाएगी, हमारा भी तो उस पर अधिकार है.’’

हरभजन ने समझाया, ‘‘अभी संपत्ति का कोई बंटवारा तो पिताजी ने किया नहीं था, सब कुछ हरीश की देखरेख में है, कहां कुछ कोई ले जाएगा.’’

पत्नी धनकंवर तड़प कर बोली, ‘‘ सचमुच आप बहुत ही भोले हो. वह सारी धान की  पैदावार को भी बेच देता है. लाखों रुपए का बोनस अपनी तिजोरी में भर रहा है और तुम भोलेभंडारी बन कर बैठे रहो. एक दिन हम लोगों को यह हरीश धक्के मार के घर से भी निकाल देगा, तब तुम पछताओगे.’’

यह सुन कर हरभजन ने नाराज होते हुए कहा, ‘‘तो मैं क्या करूं, तुम ही बताओ, हम ने उसे गोद में खिलाया है, मेरा सगा भाई है वह. उसे मैं क्या बोलूं और कैसे बोलूं.’’

पत्नी धनकुंवर ने कहा, ‘‘पैसों और जमीन जायजाद के मामले में मैं ने देखा है कि कोई किसी का नहीं होता, बड़े भैया के निधन के बाद क्या उन के परिवार वालों को मानसम्मान की जिंदगी मिल रही है? तुम खुद देखो हरीश सिर्फ अपने बीवीबच्चों की खुशी में ही लगा रहता है.

अगर उसे अपने भाई के परिवार के प्रति जरा भी संवेदना होती तो क्या उस के परिवार की हालत इतनी खराब होती? अभी भी समय है बंटवारा कर लो…’’

‘‘मैं क्या छोटे को बंटवारे के बारे में कहूंगा. उस का रंगढंग तो तुम जानती ही हो, वह किसी की बात कहां सुनता है और सुन कर दूसरे कान से निकाल देता है.’’ हरभजन कंवर ने कहा.

‘‘मगर यह कैसे चल सकता है, मैं यह सब बरदाश्त नहीं कर सकती,’’ उफनती नदी की धारा की तरह कहती धनकुंवर अपने रोजाना के कामकाज में लग गई.

इधर रोजरोज के वादविवाद से त्रस्त  अंतत: हरभजन कंवर ने हथियार डाल दिए और कहा, ‘‘ठीक है, तुम्हें जैसा अच्छा लगे बताओ.’’

धनकंवर ने अपने भाई परमेश्वर कंवर, जोकि पास ही के गांव फत्तेगंज में रहता था और अकसर भैंसमा आया करता था, से धीरेधीरे बातचीत कर के उसे अपने मन मुताबिक बना लिया.

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भाई के साथ रची साजिश

धनकंवर ने एक दिन उस से कहा, ‘‘भाई, तुम बहन की कोई मदद नहीं कर रहे, ऐसा भाई भी किस काम का.’’

इस पर परमेश्वर ने कहा, ‘‘बहन आखिर तुम क्या चाहती हो, मुझे बताओ.’’

परमेश्वर की जानकारी में जमीनजायदाद का विवाद पहले ही आ चुका था. उसे लगता था कि जरूर यही कोई बात होगी जो बहन कहने वाली है.

…और हुआ भी यही. बहन धनकुंवर ने कहा, ‘‘छोटे (हरीश) ने सारी संपत्ति पर अधिकार जमा लिया है. क्या कुछ ऐसा करें कि बात बन जाए. तुम कोई ऐसा वकील देखो, जो हमें न्याय दिला सके.’’

परमेश्वर ने कहा, ‘‘वकील और कोर्ट कचहरी के चक्कर में तो न जाने कितना समय लग जाएगा. क्यों न हम…’’ कह कर परमेश्वर चुप हो गया. बहन धनकंवर ने परमेश्वर के मौन होने पर कहा, ‘‘चुप क्यों हो गए? क्या कहना चाहते हो?’’

अगले भाग में पढ़ें- बेरहमी से किए 3 कत्ल

Manohar Kahaniya: जब थाना प्रभारी को मिला प्यार में धोखा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

पुलिस अफसरों ने मौकामुआयना किया. रूपा ने फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली थी. अफसरों ने कमरे की तलाशी ली. चीजों को उलटपुलट कर देखा, ताकि कुछ पता चल सके कि रूपा ने यह कदम क्यों उठाया, लेकिन न तो कोई सुसाइड नोट मिला और न ही ऐसी कोई बात पता चली, जिस से रूपा के आत्महत्या करने के कारणों पर कोई रोशनी पड़ती. पुलिस अफसर समझ नहीं पाए कि ऐसा क्या कारण रहा कि रूपा ने खुदकुशी कर ली? अविवाहित रूपा 2018 बैच की तेजतर्रार महिला सबइंसपेक्टर थी.

अफसरों ने रूपा के परिवार वालों को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. रूपा के परिजन झारखंड की राजधानी रांची के पास रातू गांव के कांटीटांड में रहते थे. रूपा के फांसी लगाने की बात सुन कर उस के मातापिता अवाक रह गए.

रात ज्यादा हो गई थी. पुलिस ने रूपा का शव फांसी के फंदे से उतरवा कर पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल भिजवा दिया.

दूसरे दिन 4 मई को रूपा के परिवार वाले साहिबगंज पहुंच गए. रूपा की मां पद्मावती उराइन ने पुलिस को बताया कि 3 मई को दोपहर करीब 3 बजे रूपा से उन की बात हुई थी. तब रूपा ने कहा था कि वह जो पानी पी रही है, वह दवा जैसा कड़वा लग रहा है. बेटी की इस बात पर मां ने उस से तबीयत के बारे में पूछा. रूपा ने मां को बताया कि उस की तबीयत ठीक है. इस पर मां ने उसे आराम करने की सलाह दी थी.

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महिला थानाप्रभारी बनने पर रूपा को जब पुलिस की सरकारी गाड़ी मिली तो दोनों उसे ज्यादा टार्चर करने लगी थीं. दोनों ने कुछ दिन पहले रूपा को किसी हाईप्रोफाइल केस को मैनेज करने के लिए एक नेता पंकज मिश्रा के पास भी भेजा था. पंकज मिश्रा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नजदीकी रहा है.

परिवार वालों ने कहा कि रूपा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. मां ने बेटी की हत्या का आरोप लगाते हुए साहिबगंज एसपी को तहरीर दी. उन्होंने इस मामले में कमेटी गठित कर पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की. उन्होंने कहा कि उस की बेटी के क्वार्टर के सामने रहने वाली एसआई मनीषा कुमारी और ज्योत्सना महतो हमेशा रूपा को टार्चर करती थीं. वे उस से जलती थीं और हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश करती थीं.

एक तेजतर्रार पुलिस अफसर के तथाकथित रूप से आत्महत्या करने की बात रूपा के गांव में किसी के गले नहीं उतर रही थी. उस के पिता सीआईएसएफ जवान देवानंद उरांव और मां पद्मावती सहित सभी घर वालों का आरोप था कि रूपा की हत्या किसी साजिश के तहत की गई है और इसे आत्महत्या का नाम दिया जा रहा है.

रूपा 2018 में पुलिस एसआई बनने से पहले बैंक औफ इंडिया में काम करती थी. उस ने रांची के सेंट जेवियर कालेज से पढ़ाई पूरी की थी. उसे नवंबर 2020 में ही साहिबगंज में महिला थानाप्रभारी बनाया गया था. उस ने यह जिम्मेदारी संभालने के बाद महिला उत्पीड़न रोकने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए थे.

मामला गंभीर था. रूपा की 2 बैचमेट महिला सबइंसपेक्टरों और मुख्यमंत्री के करीबी नेता पंकज मिश्रा पर आरोप लग रहे थे. रूपा की मौत को हत्या मानते हुए लोगों ने सोशल मीडिया पर ‘जस्टिस फौर रूपा’ शुरू कर दिया.

रूपा के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए झारखंड के कई प्रमुख नेता भी आगे आ गए. भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने रूपा की मौत को मर्डर मिस्ट्री बताते हुए इस की सीबीआई से जांच कराने की मांग की. उन्होंने कहा कि रूपा के परिवार वालों के आरोप से यह मामला संदेहास्पद है. मरांडी ने कहा कि ऐसे राजनीतिक प्रभावशाली व्यक्ति पर आरोप लगे हैं, जो मौजूदा सरकार में कुख्यात रहा है.

प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा ने भी सीबीआई जांच की मांग करते हुए राज्यपाल को औनलाइन ज्ञापन भेजा. मांडर के विधायक बंधु तिर्की ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर कहा कि रूपा किसी बड़ी साजिश की शिकार हुई है. इसलिए इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए.

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बोरियो से सत्तारूढ़ गठबंधन के झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक लोबिन हेंब्रम ने भी इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग उठाई. राज्यसभा सांसद समीर उरांव ने कहा कि मामले में आरोपी पंकज मिश्रा पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का हाथ है. मिश्रा साहिबगंज में सब तरह के वैधअवैध काम करता है.

एसआईटी को सौंपी जांच

मामला तूल पकड़ता जा रहा था. जिस पंकज मिश्रा पर आरोप लगाए गए, वह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साहिबगंज में प्रतिनिधि है. आरोपों से घिरने पर सफाई देते हुए मिश्रा ने कहा कि वह पिछले महीने मधुपुर चुनाव में व्यस्त था. इस के बाद कोरोना पौजिटिव होने पर रांची के मेदांता अस्पताल में भरती थे.

अगले भाग में पढ़ेंमां ने लगाया हत्या का आरोप

Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 4

सौजन्य- सत्यकथा

डा. सीमा को जब यह बात पता चली तो उसे अपना वैवाहिक जीवन हिचकोले खाता नजर आया. उसे यह भी पता चला कि दीपा डा. सुदीप पर सूर्या विला वाला बंगला अपने नाम कराने और सुदीप से औपचारिक रूप से शादी करने का दबाव डाल रही है. कहीं डा. सुदीप दीपा की यह बात भी न मान जाए, इसलिए डा. सीमा ने अपनी सास सुरेखा को यह बात बताई. सुरेखा ने बेटे डा. सुदीप से बात की. सुदीप ने अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से मां को यह कह कर संतुष्ट कर दिया कि मां ऐसी कोई बात नहीं है.

सुरेखा ने बेटे से हुई बातें बहू डा. सीमा को बताईं तो उस ने दीपा के स्पा सेंटर का निमंत्रण पत्र उन के सामने रख दिया. सुरेखा क्या कर सकती थी, उसे अपने 44-45 साल के बेटे की करतूतों पर गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन बुढ़ापे और असाध्य बीमारी के कारण वह मजबूर थी. वह अपने बेटेबहू का गृहस्थ जीवन बचाए रखना चाहती थी.

डा. सीमा ने अपने तरीके से पता कराया, तो मालूम हुआ कि दीपा ने स्पा सेंटर की साजसज्जा और उपकरणों पर लाखों रुपए खर्च किए थे. यह तय था कि यह सारा पैसा डा. सुदीप की जेब से ही निकला था.

अपनी अय्याशी पर एक पराई औरत पर लाखों रुपए इस तरह उड़ाने पर सीमा को बहुत गुस्सा आया. उसे यह उम्मीद नहीं थी कि उस के पति डा. सुदीप आसानी से मान जाएंगे और दीपा का पीछा छोड़ देंगे. इसलिए उस ने दीपा को ही सबक सिखाने का फैसला किया.

इसी योजना के तहत 7 नवंबर, 2019 को डा. सीमा अपनी सास सुरेखा के साथ दोपहर में दीपा के मकान पर पहुंची. उस समय दीपा का मकान बंद था. वे दोनों आसपास छिप कर इंतजार करती रहीं.

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इस बीच डा. सुदीप भी दीपा के मकान पर आया, लेकिन ताला बंद देख कर वापस चला गया. इस दौरान डा. सुदीप ने अपनी पत्नी और मां को नहीं देखा. इस से डा. सीमा को अपने पति की करतूतों पर पूरा यकीन हो गया.

बाद में दीपा का बेटा शौर्य भी स्कूल से आया. घर बंद मिलने पर वह पड़ोस में खेलने चला गया. शाम करीब 4 बजे दीपा मकान पर पहुंची. कुछ देर बाद शौर्य भी आ गया. इस के बाद डा. सीमा और सुरेखा उस मकान में गईं. वहां उन की दीपा से काफी गरमागरमी हुई.

इसी गरमागरमी के बीच डा. सीमा ने गुस्से में अपने पर्स में से स्प्रिट की बोतल निकाली और फरनीचर पर छिड़क कर आग लगा दी. इस के बाद यह कहते हुए बाहर निकल कर कुंडी लगा दी कि अब देखती हूं कि तुझे कौन बचाता है.

स्प्रिट के कारण तुरंत आग फैल गई. चारों तरफ आग की लपटों से घिरी दीपा ने डा. सुदीप और अपने भाई अनुज को बारीबारी से फोन कर बचाने की गुहार की. अनुज पहले पहुंच कर जलती लपटों के बीच मकान में घुस गया. बाद में डा. सुदीप भी पहुंच गया था, लेकिन वह अंदर नहीं घुसा. बदले की इस आग में दीपा और उस का 6 साल का बेटा शौर्य जिंदा जल गए थे.

दीपा की बहन राधा उर्फ राधिका ने इस मामले में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. बाद में पुलिस ने डा. सीमा, डा. सुदीप और उस की मां सुरेखा को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने जांच पूरी कर अदालत में तीनों के खिलाफ आरोपपत्र पेश कर दिया. अभी यह मामला अदालत में विचाराधीन है.

इसी मामले में राजीनामे की बात चल रही थी. बात सिरे नहीं चढ़ी तो बदले की आग में जल रहे अनुज ने इंसाफ मिलने से पहले ही इस मामले का फैसला करने का निश्चय किया. उस ने खुद ही डा. सुदीप और डा. सीमा की खौफनाक मौत की साजिश रच डाली.

अनुज ने इस काम में अपने दोस्त धौलपुर के महेश को साथ लिया. दौलत के मकान पर साजिश रची. इस के बाद दौलत की बाइक ले कर महेश और अनुज भरतपुर आ गए. अनुज तो भरतपुर में ही रहता था. उसे डाक्टर दंपति की हर गतिविधि की एकएक बात पता थी. फिर भी उस ने अपनी साजिश को अंजाम देने के लिए 2-4 दिन रैकी की.

जब उसे यकीन हो गया कि डाक्टर दंपति रोजाना शाम साढ़े 4-पौने 5 बजे के आसपास मंदिर के लिए जाते हैं तो उस ने 28 मई को अपने दोस्त महेश के साथ बाइक पर जा कर उन की कार रोक ली और पिस्तौल से दोनों को गोलियों से ठंडा कर अपनी बहन व भांजे की हत्या का बदला ले लिया. उस ने खून का बदला खून कर ले लिया.

पुलिस ने पहली जून को एक अभियुक्त महेश को करौली से गिरफ्तार कर लिया. महेश ही वह शख्स है जो घटना के समय मोटरसाइकिल चला रहा था. लेकिन गोली चलाने वाला अनुज कथा लिखे जाने तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया.

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बहरहाल, भरतपुर उस दिन गोलियों की आवाज से बदलापुर बन गया. बदले की आग ने 2 परिवारों को खत्म कर दिया. दीपा के हंसतेखेलते जीवन को डा. सीमा ने खत्म कर दिया. डेढ़ साल बाद अनुज ने डाक्टर दंपति का परिवार उजाड़ दिया.

अब डाक्टर दंपति के 18 साल के बेटे और 15 साल की बेटी के सिर से मांबाप का साया उठ गया. डा. सुदीप की मां सुरेखा की बुढ़ापे की दोनों लाठियां टूट गईं. डाक्टर दंपति का अस्पताल चलाने वाला भी अभी फिलहाल कोई नहीं है. उन के बेटे और बेटी पर भी खतरा मंडरा रहा है.

दीपा और उस के बेटे की मौत का जिम्मेदार कौन था, यह फैसला अदालत को करना था. इस से पहले ही अनुज ने खुद फैसला कर दिया. कानूनविदों का कहना है कि डा. सुदीप और डा. सीमा की मौत होने के कारण उन के खिलाफ अदालत में केस बंद हो जाएगा. सुरेखा के खिलाफ मुकदमा चलता रहेगा.

दूसरी ओर, डाक्टर दंपति की हत्या करने और सहयोग करने वालों पर पुलिस की जांच पूरी होने और अदालत में चालान पेश किए जाने के बाद नया मुकदमा चलेगा.

Manohar Kahaniya: बबिता का खूनी रोहन- भाग 1

10 मार्च, 2021 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. दक्षिणी दिल्ली के एंड्रयूजगंज इलाके में हर रोज की तरह उस वक्त भी चहलपहल काफी बढ़ गई थी.

उस दिन बुधवार होने के कारण वर्किंग डे था, इसलिए सरकारी और निजी औफिसों में काम करने वाले लोगों का आवागमन शुरू हो चुका था. धंधा करने वाले लोग भी अपने कारोबारी ठिकानों की तरफ निकल रहे थे.

सिलवर टेन कलर की एक वैगनआर कार सड़क पर भीड़ के कारण रेंगते हुए चल रही थी, जिस की ड्राइविंग सीट पर बैठा चालक गाड़ी में इकलौता सवार था. अचानक वैगनआर गाड़ी की ड्राइविंग सीट के बगल की तरफ एक बाइक पीछे से तेजी के साथ आ कर धीमी हो गई, उस पर भी हेलमेट लगाए इकलौता सवार था. वैगनआर के चालक ने अचानक बगल में आ कर धीमी हुई बाइक के सवार की तरफ देखा तो उस के मुंह से निकला, ‘अबे साले तू यहां?’

वैगनआर चालक के आगे के शब्द हलक में ही फंसे रह गए, क्योंकि तब तक बाइक सवार ने हाथ में लिए हुए पिस्तौल से उस के ऊपर बेहद नजदीक से फायर कर दिया था. गोली वैगनआर चालक की गरदन में लगी और अचानक उस के पैर खुदबखुद गाड़ी के ब्रेक पर जाम हो गए. गोली चलने की आवाज और अचानक वैगनआर का तेजी से ब्रेक लगना दोनों ऐसी घटनाएं थीं, जिन्होंने सड़क पर चल रहे हर राहगीर का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लिया.

एक पल के लिए लोग हतप्रभ रह गए, लेकिन अगले ही पल लोग वैगनआर की तरफ दौड़ पड़े. लेकिन तब तक वैगनआर चालक पर फायर झोंकने वाला बाइक सवार हवा से बात करते हुए भीड़ के बावजूद बाइक लहराते हुए नौ दो ग्यारह हो चुका था.

वारदात दिल्ली के बेहद पौश इलाके में हुई थी. वक्त भी ऐसा था कि उस वक्त सड़कों पर भीड़भाड़ भी काफी रहती है. बाइक सवार ने वैगनआर चालक से किसी तरह की लूटपाट का प्रयास भी नहीं किया था, साफ था कि बाइक सवार हमलावर का मकसद केवल कार चालक की जान लेना था.

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राहगीरों में से किसी ने उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर दिया. अगले 10 मिनट में पुलिस कंट्रोल की जिप्सी मौके पर पहुंच गई. पीसीआर के जवानों ने देखा कि वैगनआर में ड्राइविंग सीट पर गोली लगने के बाद खून से लथपथ अचेत पड़े चालक की सांसें अभी चल रही थीं.

लिहाजा उन जवानों ने चालक को वैगनआर से निकाल कर अपनी गाड़ी में डाला . पीसीआर के 2 जवान कागजी खानापूर्ति करने के लिए मौके पर ही रुक गए और बाकी स्टाफ वैगनआर के घायल चालक को ले कर एम्स अस्पताल की तरफ रवाना हो गया.

पीसीआर ने तत्काल इस घटना की सूचना डिफेंस कालोनी थाने को दी. क्योंकि गोली चलने की वारदात जिस जगह हुई थी, वह इलाका दक्षिणी दिल्ली के डिफेंस कालोनी थाना क्षेत्र में पड़ता है.

सुबह के 9 बजे का समय दिल्ली में पुलिस थानों में सब से अधिक व्यस्तता का समय होता है. क्योंकि उस समय नाइट ड्यूटी पर तैनात स्टाफ के रिलीव होने और डे ड्यूटी करने वालों के थाने में आगमन का समय होता है. थानों में तैनात वरिष्ठ अधिकारी भी उसी समय पहुंच कर स्टाफ की ब्रीफिंग लेने की तैयारी में जुटे होते हैं.

डिफेंस कालोनी थाने के ड्यूटी औफिसर को जैसे ही एंड्रयूजगंज में वैगनआर चालक को गोली मारे जाने की सूचना पीसीआर से मिली. ड्यूटी औफिसर ने तत्काल डिफेंस कालोनी थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र मलिक को उन के आरामकक्ष में जा कर सूचना से अवगत कराया.

मलिक वरदी पहन कर कुछ देर पहले ही तैयार हुए थे और अपनी डेली डायरी में पूरे दिन के शेड्यूल पर सरसरी नजर डाल रहे थे.

इलाके में सरेराह किसी को गोली मार देने की घटना किसी थानाप्रभारी के लिए गंभीर वारदात होती है. लिहाजा थानाप्रभारी जितेंद्र मलिक अपने सहयोगी इंसपेक्टर पंकज पांडेय, एसआई वेद कौशिक, प्रमोद कुमार तथा दूसरे स्टाफ को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पीसीआर की दूसरी गाडि़यां भी पहुंच गई थीं. वैगनआर गाड़ी के इर्दगिर्द राहगीरों का जमघट लग चुका था. पुलिस ने घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीद राहगीरों से पूछताछ और जानकारी एकत्र करने का काम शुरू कर दिया.

दूसरी तरफ इंसपेक्टर पंकज पांडेय पुलिस की एक टीम को ले कर तत्काल एम्स  अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. वहां जाने के बाद पता चला कि घायल वैगनआर चालक की गरदन में गोली लगी है और उस की हालत चिंताजनक है. डाक्टर इमरजेंसी आईसीयू में उस का औपरेशन कर गोली निकालने की कोशिश में जुटे थे. डाक्टरों ने वैगनआर चालक की जेब से जो पर्स तथा दूसरे दस्तावेज बरामद किए थे, वे सभी पुलिस को सौंप दिए.

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घायल व्यक्ति की हुई शिनाख्त

दस्तावेजों को देखने के बाद पता चला कि जिस शख्स को गोली लगी है, उस का नाम भीमराज (45) है और वह चिराग दिल्ली गांव का रहने वाला है. बीएसईएस में संविदा पर ड्राइवर की नौकरी करने वाला भीमराज कहां जा रहा था, उसे गोली किस ने और क्यों  मारी? इस का तो तत्काल पता नहीं चल सका, लेकिन पुलिस को यह पता चल चुका था कि वह कहां का रहने वाला है.

लिहाजा उस के परिवार वालों से संपर्क कर उन्हें सूचना देने का काम आसान हो गया था. दूसरी तरफ भीमराज का मोबाइल फोन पुलिस ने उस की गाड़ी से ही बरामद कर लिया था, जिस में उस की पत्नी का नंबर था. पुलिस ने उस नंबर पर काल कर के भीमराज की पत्नी  को सूचना दे दी.

थोड़ी ही देर में भीमराज की पत्नी बबीता अस्पताल पहुंच गई. सूचना पा कर उस के अन्य रिश्तेदारों व जानपहचान वालों का भी अस्पताल में हुजूम जमा हो गया.

इधर, थानाप्रभारी मलिक ने इस घटना के बारे में डीसीपी अतुल ठाकुर व डिफेंस कालोनी के एसीपी कुलबीर सिंह को सूचना दे दी थी. सूचना मिलने के बाद दोनों सीनियर अफसर भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलवा लिया. आसपास के थानों की पुलिस भी मौके पर पहुंच गई.

भीमराज का इलाज करने वाले डाक्टरों ने यह बात साफ कर दी थी कि उस के बचने की उम्मीद बेहद कम है क्योंकि गरदन में जो गोली लगी थी, उस से सांस की नली पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है, जिस कारण उसे सांस लेने में बेहद तकलीफ हो रही है, जिस से उसे वैंटीलेटर पर रखा गया है.

बहरहाल, पुलिस को तत्काल भीमराज से बयान ले कर उस के हमलावर तक पहुंचने की कोई उम्मीद नहीं दिखी तो इंसपेक्टर पंकज पांडेय टीम के साथ वापस घटनास्थल पर पहुंच गए, जहां डीसीपी अतुल ठाकुर ने आसपास के थानों की पुलिस के अलावा जिले के तेजतर्रार पुलिस अफसरों को भी बुलवा लिया था.

आसपास मौजूद चश्मदीद लोगों से पूछताछ के बाद यह बात साफ हो गई कि भीमराज पर गोली चलाने वाला शख्स एक बाइक पर सवार था और उस ने हेलमेट लगा रखा था.

चश्मदीदों से पूछताछ और घटनास्थल के निरीक्षण से पुलिस को तत्काल ऐसा कोई सुराग नहीं मिल रहा था, जिस से पुलिस हमलावर तक पहुंच सके. लिहाजा डीसीपी अतुल ठाकुर ने डिफेंस कालोनी थाने पहुंच कर तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की 6 टीमों का गठन कर दिया. पहली टीम में डिफेंस कालोनी थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र मलिक तथा एसआई प्रमोद को रखा गया. जबकि दूसरी टीम में इंसपेक्टर पंकज पांडेय और एसआई वेद कौशिक को शामिल किया गया.

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6 टीमों ने शुरू की जांच

मैदान गढ़ी थाने के थानाप्रभारी जतन सिंह के नेतृत्व में तीसरी टीम बनाई गई. दक्षिणी जिले के स्पैशल स्टाफ इंसपेक्टर गिरीश भाटी को चौथी टीम का नेतृत्व सौंपा गया. एंटी नारकोटिक्स सेल के इंसपेक्टर प्रफुल्ल झा पांचवी टीम का नेतृत्व कर रहे थे और कोटला मुबारकपुर थाने के थानाप्रभारी विनय त्यागी के नेतृत्व में छठी टीम गठित कर के सभी टीमों को अलगअलग बिंदुओं पर जांच करते हुए काम बांट दिए गए.

भीमराज को गोली मारने वाला हमलावर बाइक पर सवार हो कर आया था. पुलिस को चश्मदीदों से इस बात की जानकारी तो मिल गई थी, लेकिन कोई भी बाइक का नंबर नहीं बता सका था. इसलिए पुलिस टीमों ने सब से पहले हमलावर की बाइक को ट्रेस करने का काम शुरू किया.

पुलिस की टीमों ने घटनास्थल के आसपास की सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू की तो अगले कुछ ही घंटों में पुलिस को सफलता मिलती दिखने लगी. जिस स्थान पर घटना हुई थी, वहां एक सीसीटीवी फुटेज में हमलावर बाइक सवार कैमरे में कैद हो गया था. लेकिन इस फुटेज में बाइक का नंबर स्पष्ट नहीं हो सका.

क्योंकि हमलावर ने बड़ी चालाकी से आगे और पीछे की दोनों नंबर प्लेटों को मोड़ रखा था. जिस कारण बाइक का नंबर स्पष्ट दिखाई नहीं पड़ रहा था. पुलिस को जो नंबर दिखाई पड़ रहे थे, उसी के आधार पर अलगअलग सीरीज बना कर नंबरों को जोड़ कर यह पता लगाने का काम शुरू कर दिया कि उन बाइक नंबर के मालिक कौन लोग हैं.

पुलिस की एक दूसरी टीम ने सीसीटीवी खंगालने का काम जारी रखा. भीमराज का हमलावर जिस दिशा में बाइक ले कर भागा था, उसी दिशा में बढ़ते हुए पुलिस ने जितने भी रास्ते गए, वहां से करीब 5 किलोमीटर तक एकएक कर 200 सीसीटीवी फुटेज की जांचपड़ताल कर डाली.

अगले भाग में पढ़ें- जांच में आए नए तथ्य

Crime- टोनही प्रथा: आत्महत्या के बाद!

जाने कब से चली आ रही  प्रथा छत्तीसगढ़ स्थापना के 20 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी आज  नासूर बनी हुई है. परिणाम स्वरूप जाने कितनी महिलाएं गांव में आत्महत्या कर लेती हैं, अथवा बीच चौराहे पर मार दी जाती हैं.कभी यह घटनाक्रम प्रकाश में आता है और कभी छुपा दिया जाता है.

ऐसे ही एक अत्यंत संवेदनशील मामले में न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर की कोनी थाना पुलिस ने महिला को टोनही कहकर प्रताड़ित कर आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने की आरोपी महिला सहित 5 लोगों को गिरफ्तार कर यह संदेश प्रसारित कर दिया है कि ऐसे अनर्गल और महिलाओं को परेशान करने वाले मसले पर छत्तीसगढ़ पुलिस कठोर मुड़ में है.

कोनी थाना क्षेत्र के ग्राम पौंसरा में बजरंग चौक निवासी राशि सिंह ने 9 जून 2021 को अपने ऊपर मिट्टी तेल डालकर आग लगा ली थी. गंभीर रूप से झुलसी अवस्था मे उसे सिम्स में भर्ती किया गया. पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि  पड़ोसी उसे टोनही कहकर प्रताड़ित करते  रहे है. और उसने, उनकी प्रताड़ना से परेशान होकर आग लगाकर खुदकुशी का प्रयास करने की बात अपने इकबालिया बयान में कही.

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पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवाल ने महिला संबंधी इस गंभीर अपराध को संज्ञान में लेते हुए त्वरित करवाई का निर्देश दिया. परिणाम स्वरूप यह मामला कहीं फाइलों में छुप जाता, बाहर आ गया. और कोनी पुलिस ने  करवाई कर  10 जून को आरोपी राजू सिंह पिता सुखनंदन , सती बाई पति बलराम ठाकुर , भरत सिंह पिता विजय सिंह , जागेश्वर सिंह पिता सुखनंदन सिंह , करतार सिंह पिता सुखनंदन सिंह  को गिरफ्तार कर टोनही प्रताड़ना एक्ट के तहत न्यायालय में पेश कर दिया.

आवश्यकता है जागरूकता की

छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है जहां बस्तर जैसा बीहड़ अंचल है तो सरगुजा और रायगढ़ जैसा अत्यधिक वनों से परिपूर्ण और आदिवासी बाहुल्य जिले. शिक्षा और जन जागरूकता के अभाव में यहां कई दशकों से सामाजिक कुरीतियां लोगों के जीवन को दुभर  बनाती रही हैं. महिलाओं को लेकर  सबसे बड़ी अंधविश्वास और उत्पीड़न की हथियार है टोनही कह कर के महिलाओं को बात बात परेशान करना और यहां तक कि सामूहिक रूप से हमला करके घायल कर देना, अथवा मार देना.

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जाने कितनी महिलाएं इस क्रूर व्यवस्था के कारण मार दी जाती हैं और अपमान झेलती रहती है. यह भी सच है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने टोनही निवारण अधिनियम लागू किया हुआ है मगर इसके बावजूद जन जागरूकता के अभाव में आज भी ग्रामीण अंचल में टोनही कह कर  लोगों को प्रताड़ित किया  जाता है और आगे चलकर ऐसे घटनाक्रमों में कई दर्दनाक हादसे घटित होते रहते हैं. सरकार को इसे हेतु सतत प्रयास करना होगा. शिक्षाविद एल एन दिवेदी के मुताबिक  ग्रामीण अंचल में मैंने यह अनुभव किया है कि यह प्रथा बहुत भीतर तक है, इसके लिए ग्राम पंचायत स्तर पर सरकार को मुहिम चलानी चाहिए कि किसी को भी टोनही कहना संज्ञेय अपराध है और यह एक ऐसा उत्पीड़न है जिसमें कभी भी किसी भी परिवार की महिला को उत्पीड़ित किया जा सकता है.

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 अतः हमें इससे बचना चाहिए गांव-गांव में यह संदेश पहुंचाना चाहिए.

सामाजिक कार्यकर्ता कमल सरविदया टोनही उत्पीड़न पर अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि बिहार, झारखंड, उड़ीसा जैसे प्रांतों में भी यह प्रथा कुछ अलग नाम स्वरूप में विद्यमान है, इसके लिए जहां सरकार को पहल करनी चाहिए वही समाजिक संस्थाओं को भी निरंतर प्रयास करना होगा. शिक्षा के आज के 21 वी शताब्दी के समय में ऐसी घटनाएं यह बताती है कि आज भी हमारा देश किस तरह पिछड़ा हुआ है और कानून कैसे बेबस होकर देखता रह जाता है.

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