प्रेमी को…

भरी सभा में उसे गिन कर 50 जूते मारे गए. पीडि़त ब्रजेश कुमार का कुसूर यही था कि उस ने दूसरी जाति की एक लड़की से प्यार किया था. उस लड़की की शादी उस के मातापिता ने दूसरी जगह तय कर दी थी. शायद लड़के वालों को इस लड़केलड़की के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिल गई थी जिस की वजह से उन्होंने इस शादी से इनकार कर दिया था. यह मामला जब मुखिया के पास पहुंचा तो उस के दरवाजे पर ही पंचायत बिठाई गई जहां सैकड़ों लोगों के सामने प्रेमी को 50 जूते मारे गए और एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया, जिसे आरोपी और उस के पिता ने दबाव में आ कर स्वीकार भी कर लिया.

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इस घटना का किसी ने वीडियो बना लिया और सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. जब यह घटना प्रशासन की नजर में आई तो दोषी मुखिया समेत जूते मारने वाले रणजीत कुमार यादव को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. दूसरी घटना बिहार से ही जुड़े सीतामढ़ी जिले की है, जहां आलोक ने अनीता नाम की लड़की के साथ प्रेम विवाह किया. यह बात गांव वालों को रास नहीं आई और आलोक के मातापिता समेत उस जोड़े को मारपीट कर गांव से बाहर कर दिया. आलोक के पिता ने जिला प्रशासन समेत मुख्यमंत्री के ‘जनता दरबार’ तक में इंसाफ की गुहार लगाई लेकिन कामयाबी नहीं मिली. बाद में इस मामले पर कोर्ट ने संज्ञान लिया तब राहत मिली. लेकिन आज भी उस प्रेमी जोड़े का कहीं अतापता नहीं है. गुजरात के दाहोद जिले के एक गांव में एक 30 साल की औरत को अपने प्रेमी के साथ भागने की अजीबोगरीब सजा दी गई. पहले तो उस औरत की जम कर पिटाई की गई, उस के बाद बाल काट कर पति को कंधे पर बिठा कर नाचने के लिए कहा गया. वह औरत लोगों से माफी मांगती रही, लेकिन परिवार वालों ने एक न सुनी और उसे सरेआम नाचने के लिए मजबूर किया गया.

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इसी तरह बिहार के मुजफ्फरपुर के कटरा थाने के तहत एक प्रेमी जोड़े को बिजली के खंभे से बांध कर बेरहमी के साथ पिटाई की गई. इस से भी जब मन नहीं भरा तो दोनों को बतौर जुर्माना 51,000 रुपए देने का फरमान सुनाया गया. इस तरह के मामले पूरे देश से आते रहते हैं. कहीं प्रेमी जोड़ों की परिवार और समाज द्वारा हत्या कर दी जाती है तो कहीं बाल मूंड़ कर जूते की माला पहना कर पूरे गांव में घुमाया जाता है. पंचायतों में इस तरह के जो फैसले लिए जाते हैं, जिन के द्वारा ऐसे फैसले सुनाए जाते हैं, वे गांव के सब से ऊंचे कद के लोग होते हैं. उन की इज्जत पूरे गांव वालों द्वारा की जाती है, तभी तो उन की गिरी हुई बातों को भी पूरा समाज मान लेता है. लेकिन अगर आप गांव के इज्जतदार लोग हैं तो आप की सोच भी ऊंचे दर्जे की होनी चाहिए लेकिन अफसोस, ऐसा हो नहीं पाता है. हम आज भी जातपांत, धर्म की छोटी सोच से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं. प्रेम और विवाह करने के मामले में हमारी सोच अभी भी दकियानूसी है. सच तो यह है कि जब हमारे बच्चे इंजीनियरिंग, डाक्टरी और दूसरी पढ़ाई करने के लिए कालेजों, यूनिवर्सिटियों में जाएंगे तो वहां उन में दोस्ती और प्यार होना लाजिमी है. हम अपने लड़केलड़कियों के हर तरह के बदलाव, खानपान, रहनसहन, उन के बदलते संस्कार को जब स्वीकार कर रहे हैं तो उन के प्यार को भी स्वीकार करना पड़ेगा, तभी हम विकसित और मौडर्न समाज की कल्पना कर सकते हैं. –

विकलांगों के लिए काम के मौके

जो अपने हकों को जानते भी हैं और अपनी विकलांगता के मुताबिक नौकरी पा कर कमा भी रहे हैं. तीसरी श्रेणी उन विकलांगों की है जो न तो अनपढ़ हैं और न ही बहुत ज्यादा पढ़ेलिखे. वे अपने हकों से परिचित तो हैं, पर सरकारी नौकरी नहीं पा सकते हैं. वे कुछ करना तो चाहते हैं, पर लाचार हैं. सैंसस 2001 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी तरह की विकलांगता से पीडि़त हैं.

इन विकलांगों में 26 से 45 फीसदी अनपढ़ हैं. आमतौर पर अनपढ़ विकलांग वे होते हैं जिन्हें जन्म के बाद भीख मांगने के लिए सड़कों पर छोड़ दिया जाता है या मानव तस्करी के चलते उन्हें बचपन में ही विकलांग बना दिया जाता है. दूसरे गरीब बेसहारा परिवारों के विकलांग खुद के पैरों पर खड़े होने के बजाय उम्रभर सहारा ढूंढ़ने की कोशिश में जुटे रहते हैं. क्या सच में विकलांगों को सहारे की जरूरत है? क्या वे खुद ही हालात के मुताबिक अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते हैं? विकलांगों के हालात पर दिल्ली के जनकपुरी इलाके के ए ब्लौक की रहने वाली किरण ने एक किस्सा सुनाया, ‘‘मैं एक दिन जनकपुरी मैट्रो स्टेशन से बाहर निकली तो देखा कि थोड़ा अंधेरा हो गया था और इक्कादुक्का रिकशे वाले ही वहां खड़े थे. मैं अपने घर जाने के लिए किसी रिकशे वाले को ढूंढ़ ही रही थी कि एक आदमी मेरे सामने रिकशा ले कर आया और बैठने को कहा. ‘‘तभी मेरी नजर उस के पैरों पर पड़ी. उस का एक पैर बिलकुल बेजान था, पर दूसरा ठीक था. मुझे रिकशे पर बैठते हुए लग रहा था कि पता नहीं, यह ढंग से रिकशा चला भी पाएगा या नहीं. लेकिन फिर मैं उस के रिकशे पर जा कर बैठ गई, क्योंकि बाकी रिकशे वाले मेरे घर तक जाने को तैयार ही नहीं थे. ‘‘जब वह आदमी रिकशा ले कर आगे बढ़ा तो मुझे लगा कि यह इतनी मेहनत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर हट्टेकट्टे होते हुए भी कई लोग सड़कों पर भीख मांग रहे हैं.

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असल में यह अपने पैरों पर तो खड़ा है.’’ दिल्ली में ही करोलबाग की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले वीरेंद्र ने बताया, ‘‘एक बार मैं बस से अपने घर सुलतानपुरी जा रहा था, वहां मेरी एक नेत्रहीन से मुलाकात हुई. ऐसे ही जानकारी के लिए मैं ने उस से पूछा कि आप कहां रहते हैं और क्या करते हैं तो उस आदमी ने जवाब दिया, ‘एक समाजसेवी संगठन ने बेसहारा अंधों के लिए आश्रम बनाया हुआ है. मैं वहीं रहता हूं. अपनी रोजीरोटी और जेबखर्च के लिए मैं एक फैक्टरी में मोमबत्ती बनाने का काम करता हूं.’ ‘‘नेत्रहीन होने के बावजूद वह आदमी आश्रम में पड़े रहने से बेहतर काम करना पसंद करता था. यह बहुत बड़ी बात है.’’

मंजिल की ओर अब विकलांगों को ‘दिव्यांग’ कहा जाने लगा है जिस का मतलब है ‘दिव्य अंग’ होना. पर विकलांग को ‘दिव्यांग’ कहने से क्या उस की विकलांगता ठीक हो जाएगी या उसे आम आदमी की तरह रोजगार मिल जाएगा? क्या हमें विकलांग को ‘दिव्यांग’ का नया नाम दे कर उसे समाज से अलग दिखाना चाहिए? एक तरफ विकलांगों को आम आदमी की तरह मानने की बात की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ उन को उन्हीं की ही सचाई शहद में डुबो कर बताई जा रही है. यह ढोंग का कौन सा नया रूप है? क्यों न विकलांग खुद अपने हुनर का परिचय दें? क्यों न वे अपने हालात को लाचारी का नहीं, बल्कि हौसले का रूप दें? साधना ढांड, सुधा चंद्रन, गिरीश शर्मा, अरुणिमा सिन्हा और मालती कृष्णामूर्ति सभी विकलांगों के लिए मिसाल हैं, पर क्या वह रिकशे वाला और मोमबत्ती बनाने वाला विकलांग भी मिसाल नहीं हैं? काम जो ये कर सकें कोई हाथपैरों से विकलांग है, लेकिन ठीक से बोलसुन सकता है तो वह रेडियो जौकी या एंकर बनने की सोच सकता है. इस तरह के विकलांग काल सैंटर वगैरह में भी नौकरी पा सकते हैं.

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अगर किसी विकलांग शख्स को लिखनेपढ़ने का शौक है तो वह लेखक बन सकता है. वह घर बैठे फ्रीलांस काम कर सकता है और अपनी पसंद के विषयों पर भी लेख लिख सकता है. इस के अलावा अपनी खुद की छोटीमोटी दुकान खोली जा सकती है. 5वीं क्लास की एक किताब में एक लड़की ईला का जिक्र किया गया है जो हाथ न होने के बावजूद कशीदाकारी में माहिर हो जाती है. सुनने व बोलने में नाकाम विकलांग यह काम सीख सकते हैं. वे इसी तरह के दूसरे काम भी सीख कर रोजीरोटी कमा सकते हैं. थोड़ेबहुत पढ़ेलिखे विकलांग खासकर लड़कियां या औरतें किसी औफिस में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी पा सकती हैं. वैसे भी अगर कोई मन में किसी काम को करने की ठान लेता है तो हिमालय जैसा पहाड़ भी चढ़ जाता है, फिर उस की विकलांगता भी आड़े नहीं आती है. द्य

उधार के गहनों से करें तौबा

बड़े भाई ने उसे सोने के झुमके जो तोहफे में दिए थे. बरात दुलहन के घर गई, खूब नाचगाना हुआ, फेरे पड़े और फिर नईनई ननद बनी रचना अपनी भाभी को घर ले आई. शादी में रचना के झुमकों की भी खूब तारीफ हुई थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वे महंगे भी थे.

शादी की गहमागहमी कम हुई, तो रचना ने वे झुमके संभाल कर लोहे की अपनी अलमारी में रख दिए. कुछ दिनों के बाद रचना के पड़ोस की एक सहेली मेनका के मामा की बेटी की शादी थी. एक दिन वह रचना से बोली, ‘‘सुन, तू मुझे 2 दिन के लिए अपने नए झुमके उधार दे दे. शादी में उन्हें पहनूंगी तो लड़कों पर रोब पड़ेगा.’’ रचना का मन तो नहीं था, पर वह अपनी दोस्ती भी नहीं तोड़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां से पूछे बिना ही मेनका को झुमके दे दिए और संभाल कर रखने की भी हिदायत दी. रचना को जिस बात का डर था, वही हुआ. मेनका से वे झुमके खो गए. दरअसल, शादी के घर में एक दिन जब वह बाथरूम से नहा कर निकली तो वे झुमके वहीं भूल गई. फिर उन झुमकों पर किस ने हाथ साफ किया, पता ही नहीं चला. मेनका की तो जैसे जान सूख गई. मातापिता से खूब डांट खाई, लेकिन उस की असली समस्या तो यह थी कि रचना का सामना कैसे करेगी. और जब रचना को यह खबर लगी तो उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

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घर में पता चला तो सब को बहुत दुख हुआ, पर अब कर भी क्या सकते थे. मेनका से झुमकों के पैसे भी किस मुंह से मांगते. लेकिन उस दिन के बाद रचना और मेनका में पहले जैसी पक्की दोस्ती नहीं रही. यह कोई एक किस्सा नहीं है, बल्कि न जाने कितने सालों से हमारे देश में औरतों और लड़कियों में एकदूसरे के गहने उधार लेने का चलन सा रहा है. क्या वजह है कि औरतें या लड़कियां कुछ समय के लिए ही सही, इतनी आसानी से महंगे गहनों की उधारी कर लेती हैं? इस का सब से आसान जवाब उन का गहनों के प्रति प्रेम होता है. अगर वे महंगी धातु जैसे सोने या चांदी के हों तो यह मोह पूरी तरह उमड़ने लगता है. फिर मुफ्त का माल कौन नहीं चाहेगा, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे गहनों को संभाल कर रखेंगी. पर जब वे चोरी हो जाते हैं या उन में किसी तरह का दूसरा नुकसान हो जाता है तो फिर मचता है घमासान. मालती और राधा के मामले में गहनों की चोरी भी नहीं हुई थी, पर गहनों को ले कर उन की दोस्ती में खटास जरूर आ गई थी. हुआ यों था कि राधा ने मालती से उस का गहनों का एक नकली सैट कुछ दिनों के लिए उधार लिया था. सैट ज्यादा महंगा भी नहीं था, पर चूंकि नकली था तो इस्तेमाल करने पर उस की पौलिश थोड़ी उतर गई थी. जब राधा ने वह सैट वापस किया तो मालती को अपने सैट की हालत देख कर बुरा लगा. उस ने शिकायत की तो राधा ने गलती मानने के बजाय कहा कि सैट की पौलिश तो पहले से उतरी हुई थी. बस, इसी बात पर मामला इतना बिगड़ा कि आज वे दोनों एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करती हैं. पराए गहनों के लिए यह प्यार गांवदेहात की औरतों में भी खूब देखा जाता है. बड़े भाई की शादी हुई नहीं कि छोटी बहन भाभी के गहनों पर अपना हक समझने लगती है.

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गहने क्या वह तो उस की सिंगारदानी, चमकीले कपड़ों को अपनी बपौती मानने लगती है. भाभी थोड़ी चिंता जता दे या इशारों में मना करने की कोशिश करे तो पूरा ससुराल पक्ष ही उसे दुश्मन समझने लगता है. यहां पर दहेज के सामान को साझा इस्तेमाल करने का मनोविज्ञान ससुराल वालों पर हावी रहता है कि बाप ने बेटी को जो दिया, उस पर बहू की सास, ननद और भाभीदेवरानियों का हक बनता है. इस में गहनों के इस्तेमाल और उन के खोने या खराब होने पर मचे बवाल से ही कई बार घर बनने के बजाय बिगड़ते चले जाते हैं. रिश्ते की हमउम्र कुंआरी बहनों में गहनों की अदलाबदली की यह रीत ज्यादा दिखाई देती है.

चूंकि उन्हें गहने मातापिता या बड़े भाई बनवा कर देते हैं इसलिए उन्हें उन की कीमत का अंदाजा नहीं होता है. पर उन की इस उधारी के गहनों के नुकसान का खमियाजा कई बार उन के आपसी संबंधों को कमजोर कर देता है. लिहाजा, जो गहने आपसी रिश्तों में खटास लाएं, उन की उधारी नहीं करनी चाहिए. खुद के पास जैसे भी गहने हों असली या नकली, कम या ज्यादा, उन्हीं से काम चला लेना चाहिए. वैसे भी आजकल गांव हों या शहर, औरतों के साथ होने वाली लूट की वारदातों में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी हो गई है कि गहनों को मांग कर पहनने की सोच को ही दूर से सलाम कर देना चाहिए. सादगी से रहें, सुखी रहें.

5 टिप्स: बदमाश बच्चों को कैसे करें कंट्रोल

लेखक- गरिमा पंकज

बंगलुरु के जेपी नगर में रहने वाले 14 साल के रौनक बनर्जी को ऊंचाई से बहुत डर लगता था. वह बाल्डविन्स ( Baldwins ) बॉयज हाई स्कूल में कक्षा 9 का छात्र था. 29  जून 2016 को इसी रौनक ने अपने अपार्टमेंट के दसवें फ्लोर से कूद कर जान दे दी. मरने से पहले लिखे गए उस के सुसाइड नोट में इस बात का जिक्र था  कि वह अपने क्लासमेट्स द्वारा किए जा रहे बुलिंग से परेशान था. रौनक ने  पत्र में एक जगह लिखा था, “मेरे एक क्लासमेट ने मेरी बुलिंग की. यह मेरे  लिए बहुत ही ज्यादा शर्मनाक और असहनीय था. जिन्हें अपना दोस्त समझा  उन्होंने ही मुझे धोखा दिया. ”

पुलिस तहकीकात के मुताबिक रौनक की  क्लास का एक लड़का उस के फिजिकल अपीयरेंस को ले कर मजाक बनाता था और उस का अपमान करता था. जिस वक्त वह लड़का बुलिंग कर रहा होता बाकी सारे दोस्त रौनक  पर हंसते रहते. रौनक ने कई दफा उन्हें ऐसा करने से रोका. ड्राइवर से भी  शिकायत की मगर कोई परिणाम नहीं निकला. रौनक इस बुलिंग और अपमान से इतना आहत हो चुका था कि उस ने खुद को ही खत्म कर डाला. बाद में बुलिंग करने वाले उस लड़के को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत रिमांड पर स्टेट होम फॉर बॉयज भेज  दिया गया.

इस तरह की बुलिंग अक्सर स्कूली बच्चों को सहनी पड़ती  है. बच्चे अपना ज्यादातर समय स्कूल में बिताते हैं. यहाँ वे न सिर्फ अपने टीचर या किताबों से सीखते हैं बल्कि क्लास के दोस्तों से भी बहुत कुछ सीखते हैं. ऐसे में किसी बच्चे के साथ बुलिंग की घटना हो तो यह बहुत चिंताजनक बात है. बुलिंग अकेलापन ,डिप्रेशन और लो सेल्फ एस्टीम की वजह बनते हैं. जिस से व्यक्ति सुसाइड तक करने को मजबूर हो जाता है.

नॉन प्रॉफिट  टीचर फाउंडेशन द्वारा पूरे देश में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक बहुत से  विद्यार्थी अपमानित होने, बुली किये जाने या उपेक्षित महसूस करने को ले कर  तनावग्रस्त रहते हैं. कक्षा 4 से 8 तक के करीब 23% छात्रों और कक्षा 9 से 12 तक के करीब 14 % छात्रों ने स्वीकार किया कि लंच ब्रेक या प्ले टाइम के  समय वे उपेक्षित या छोड़ा हुआ महसूस करते हैं. कक्षा 4 से 8 तक के करीब 42 % छात्रों और कक्षा 9 से 12तक के करीब 36 % छात्रों ने स्वीकार किया कि  दूसरे बच्चे उन का मजाक बनाते हैं.

अच्छे पड़ोसी हैं जरूरी

यह सर्वे करीब 90  स्कूलों में किया गया. 850 शिक्षकों और 3,300 छात्रों से बात की गई. लड़के जहां फिजिकली   हैरेसमेंट के शिकार पाए गए तो वही लड़कियों को वर्बल आरगूमैंटस की परिस्थितियों को ज्यादा सहनी पड़ीं . वे इस बात से अधिक परेशान थी कि उन के पीठ पीछे बात की जाती है. अब्यूसिव वर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता है.

यूके बेस्ड फर्म कौमपेरीटेक द्वारा 28 देशों में किए गए एक सर्वे के मुताबिक 2018 में साइबर बुलिंग के विक्टिम छात्रों की संख्या भारत में सब से अधिक है.

37% अभिभावकों ने यह स्वीकार किया कि उन के बच्चे कम से कम एक बार साइबर बुलिंग के शिकार जरूर बने हैं जब कि 2016  में 15%अभिभावकों ने ही ऐसा स्वीकारा था.

नेशनल सेंटर फॉर एजुकेशनल स्टैटिस्टिक्स की एक  रिपोर्ट के मुताबिक 5 छात्रों में 1 छात्र से ज्यादा यानी करीब 20.8  छात्रों ने बुली का शिकार बनने की रिपोर्ट दर्ज कराई. ज्यादातर बुलिंग की  घटनाए मिडल स्कूल में होती हैं. वर्बल और सोशल बुलिंग ज्यादा किए जाते हैं.

सोशल मीडिया कुंठित लोगों का खतरनाक नशा

किंग्स  कॉलेज ऑफ़ लंदन में किये गए एक अध्ययन के मुताबिक जो बच्चे बारबार बुलिंग का शिकार होते हैं वे जीवन भर तनाव और घुटन में जीते हैं. वे कभी भी खुशहाल और संतुष्ट जीवन नहीं जी सकते.

बुलिंग करने वाले बच्चे को मारपीट करने के आरोप में सुधार गृह या फोस्टर होम्स भेजा जा सकता है. पर माइनर होने की वजह से उन पर आईपीसी की धाराएं नहीं लगाईं जा सकतीं.

क्या है बुलिंग

किसी ऐसे व्यक्ति को अपनी बातों,  गतिविधियों या  हरकतों से चोट पहुंचाना,  परेशान करना, धमकाना या नीचा दिखाना बुलिंग है जो कमजोर है और अपनी रक्षा  करने में सक्षम नहीं है. बुलिंग वर्बल ,फिजिकल,  साइकोलॉजिकल ,साइबर या सोशल  किसी भी तरह का हो सकता है. बच्चों के मामले में इसे चाइल्ड बुलिंग कहते हैं.

कोई भी अभिभावक नहीं चाहता कि उसे यह सुनने को मिले कि उस का  बच्चा दूसरे बच्चे को परेशान कर रहा है. पर अक्सर ऐसा हो जाता है. यह बात  हमेशा ध्यान में रखें कि यदि बच्चा बुलिंग कर रहा है तो जरूरी नहीं कि वह  बुरा ही है. कई बार दिमागी तौर पर तेज और घरवालों की केयर करने वाले बच्चे  भी ऐसी हरकतें करने लग जाते हैं.

बुजुर्गों की सेवा फायदे का सौदा

फैक्टर्स जो बच्चे को बुलिंग करने को प्रेरित करते हैं…

  1. हो सकता है बच्चे को अपने दोस्तों के ग्रुप में बने रहने के लिए यह कदम उठाना पड़ा हो. उस के दोस्त किसी की बुलिंग कर रहे हों तो आप के बच्चे कोभी उन का साथ देना होगा.
  2. संभव है कि आप का बच्चा खुद किसी के द्वारा  बुलिंग का शिकार हो रहा हो. बुली विक्टिम्स अक्सर अपना रोष व्यक्त करने और  ताकत दिखाने के लिए कमजोर बच्चों के साथ बुलिंग करने लगते हैं. .
  3. संभव है कि बच्चा इस तरह अपने शिक्षक,अभिभावक या क्लासमैट्स  का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहता हो क्यों कि वह अकेला महसूस कर रहा हो.
  4. क्रिमिनल बैकग्राउंड भी एक वजह हो सकती है. यदि बच्चे के अभिभावक या रिश्तेदार आपराधिक प्रवृत्ति के हैं तो बच्चे के जीन पर इस का असर पड़ता है . वह बचपन से ही ऐसे कार्यों को अंजाम देने लगेगा .स्वभाव से ही वह  डोमिनेटिंग और अग्रेसिव होगा .
  5. बायोलॉजिकल फैक्टर भी बच्चे के स्वभाव को प्रभावित करते हैं. कई दफा बच्चे का ब्रेन ओवर या अंडर डेवलप्डरहता है. दोनों ही स्थिति में बच्चा दूसरे बच्चों को डराने धमकाने या मारपीट करने की गतिविधियों में शामिल होने लगता है. ऐसी हालत में डॉक्टर से कंसल्ट करना जरुरी हो जाता है.
  6. वह समझ ही नहीं पा रहा हो कि उस के  व्यवहार से दूसरे बच्चों को चोट पहुंच रही है. खासकर छोटी उम्र के बच्चों  में प्रायः ऐसा देखा जाता है.
  7. कई बार बच्चे अपने अंदर की समस्याओं औरउलझनों को दबाने/छुपाने के लिए ऊपर से कठोर बन जाते हैं. बात फिजिकल  अपीयरेंस की हो, घरेलू परेशानियों की हो या पढ़ाई में कमजोर होना हो.  किसी  भी तरह से असुरक्षित और कमजोर महसूस कर रहे बच्चे अकसर सोशल स्ट्रक्चर में  अपनी जगह बनाए रखने और स्टेटस ऊंचा दिखाने की जद्दोजहद में बुलिंग का  सहारा लेने लगते हैं.

दिल्ली की मिसेज शोभा कहती हैं ,”मेरी दोस्त की बेटी अनुभा एक सकुचाई ,डरीसहमी सी रहने वाली लड़की थी. उस का आत्मविश्वास  काफी कमजोर था. पर जब उसे किसी और की बुलिंग करने का मौका मिला तो उस ने  ऐसा किया और अपने अंदर दूसरों को नियंत्रित करने,डरानेधमकाने की ताकत  महसूस की. उसे लगने लगा कि क्लास में किसी के द्वारा भी नोटिस न किए जाने  से अच्छा है एक गंदे बच्चे के तौर पर चर्चा का विषय बनना. ”

क्या मनुष्य पापात्मा है?

खासकर उन बच्चों के साथ अक्सर ऐसा होता है जो स्कूल /घर में तनाव, ट्रौमा या लो सेल्फ एस्टीम की समस्या से जूझ रहे होते हैं.

ध्यान  दें  कि क्या आप के बच्चे भी घर या स्कूल में किसी  तरह की परेशानी या दिक्कत महसूस कर रहे हैं. क्या उन्हें किसी तरह की एडजस्टमेंट प्रॉब्लम है , क्या वे अकेला महसूस करते हैं या हीन भावना का  शिकार है. यदि ऐसा है तो उस के साथ वक्त बिताएं और उस के मन से सारी  हीनभावनायें निकालने और परेशानियां दूर करने का प्रयास करें. ताकि उन के अंदर की तकलीफ बाहर किसी और रूप में निकल कर न आये.

यदि आप का बच्चा  भी किसी की बुलिंग कर रहा है तो आश्चर्य करने और उसे डांटनेफटकारने के बजाय बच्चे को समझने और इस समस्या से उबरने का प्रयास करें. बच्चे से बात  कर के उस के नजरिए को समझें. उसे सही दिशा देने का प्रयास करें.

रस्मों की मौजमस्ती धर्म में फंसाने का धंधा

  1. बात करें

जैसे ही आप को टीचर, दोस्त या किसी और अभिभावक द्वारा अपने बच्चे की इस हरकत का  खबर मिले तो सब से पहले बच्चे से बात करें. सीधे तौर पर उसे उस के विरुद्ध  आई शिकायत के बारे में सब कुछ बताएं और फिर शांति से बच्चे को अपना पक्ष  रखने दे. बच्चे से पूछे कि उस ने ऐसा क्यों किया. उसे डांटें नहीं बल्कि उस  के बंद एहसासों को खोलने का प्रयास करें.

  1. बंगलुरु के जेपी नगर में रहने वाले 14 साल के रौनक बनर्जी को ऊंचाई से बहुत डर लगता था. वह बाल्डविन्स ( Baldwins ) बॉयज हाई स्कूल में कक्षा 9 का छात्र था. 29  जून 2016 को इसी रौनक ने अपने अपार्टमेंट के दसवें फ्लोर से कूद कर जान दे दी. मरने से पहले लिखे गए उस के सुसाइड नोट में इस बात का जिक्र था  कि वह अपने क्लासमेट्स द्वारा किए जा रहे बुलिंग से परेशान था. रौनक ने  पत्र में एक जगह लिखा था, “मेरे एक क्लासमेट ने मेरी बुलिंग की. यह मेरे  लिए बहुत ही ज्यादा शर्मनाक और असहनीय था. जिन्हें अपना दोस्त समझा  उन्होंने ही मुझे धोखा दिया. “पुलिस तहकीकात के मुताबिक रौनक की  क्लास का एक लड़का उस के फिजिकल अपीयरेंस को ले कर मजाक बनाता था और उस का अपमान करता था. जिस वक्त वह लड़का बुलिंग कर रहा होता बाकी सारे दोस्त रौनक  पर हंसते रहते. रौनक ने कई दफा उन्हें ऐसा करने से रोका. ड्राइवर से भी  शिकायत की मगर कोई परिणाम नहीं निकला. रौनक इस बुलिंग और अपमान से इतना आहत हो चुका था कि उस ने खुद को ही खत्म कर डाला. बाद में बुलिंग करने वाले उस लड़के को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत रिमांड पर स्टेट होम फॉर बॉयज भेज  दिया गया.इस तरह की बुलिंग अक्सर स्कूली बच्चों को सहनी पड़ती  है. बच्चे अपना ज्यादातर समय स्कूल में बिताते हैं. यहाँ वे न सिर्फ अपने टीचर या किताबों से सीखते हैं बल्कि क्लास के दोस्तों से भी बहुत कुछ सीखते हैं. ऐसे में किसी बच्चे के साथ बुलिंग की घटना हो तो यह बहुत चिंताजनक बात है. बुलिंग अकेलापन ,डिप्रेशन और लो सेल्फ एस्टीम की वजह बनते हैं. जिस से व्यक्ति सुसाइड तक करने को मजबूर हो जाता है.धर्म के साए में पलते अधर्म

    नॉन प्रॉफिट टीचर फाउंडेशन द्वारा पूरे देश में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक बहुत से  विद्यार्थी अपमानित होने, बुली किये जाने या उपेक्षित महसूस करने को ले कर  तनावग्रस्त रहते हैं. कक्षा 4 से 8 तक के करीब 23% छात्रों और कक्षा 9 से 12 तक के करीब 14 % छात्रों ने स्वीकार किया कि लंच ब्रेक या प्ले टाइम के  समय वे उपेक्षित या छोड़ा हुआ महसूस करते हैं. कक्षा 4 से 8 तक के करीब 42 % छात्रों और कक्षा 9 से 12तक के करीब 36 % छात्रों ने स्वीकार किया कि  दूसरे बच्चे उन का मजाक बनाते हैं.

    यह सर्वे करीब 90  स्कूलों में किया गया. 850 शिक्षकों और 3,300 छात्रों से बात की गई. लड़के जहां फिजिकली   हैरेसमेंट के शिकार पाए गए तो वही लड़कियों को वर्बल आरगूमैंटस की परिस्थितियों को ज्यादा सहनी पड़ीं . वे इस बात से अधिक परेशान थी कि उन के पीठ पीछे बात की जाती है. अब्यूसिव वर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता है.

     

    यूके बेस्ड फर्म कौमपेरीटेक द्वारा 28 देशों में किए गए एक सर्वे के मुताबिक 2018 में साइबर बुलिंग के विक्टिम छात्रों की संख्या भारत में सब से अधिक है.

    37% अभिभावकों ने यह स्वीकार किया कि उन के बच्चे कम से कम एक बार साइबर बुलिंग के शिकार जरूर बने हैं जब कि 2016  में 15%अभिभावकों ने ही ऐसा स्वीकारा था.

     

    नेशनल सेंटर फॉर एजुकेशनल स्टैटिस्टिक्स की एक  रिपोर्ट के मुताबिक 5 छात्रों में 1 छात्र से ज्यादा यानी करीब 20.8  छात्रों ने बुली का शिकार बनने की रिपोर्ट दर्ज कराई. ज्यादातर बुलिंग की  घटनाए मिडल स्कूल में होती हैं. वर्बल और सोशल बुलिंग ज्यादा किए जाते हैं.

     

    किंग्स  कॉलेज ऑफ़ लंदन में किये गए एक अध्ययन के मुताबिक जो बच्चे बारबार बुलिंग का शिकार होते हैं वे जीवन भर तनाव और घुटन में जीते हैं. वे कभी भी खुशहाल और संतुष्ट जीवन नहीं जी सकते.

     

    बुलिंग करने वाले बच्चे को मारपीट करने के आरोप में सुधार गृह या फोस्टर होम्स भेजा जा सकता है. पर माइनर होने की वजह से उन पर आईपीसी की धाराएं नहीं लगाईं जा सकतीं.

     

    क्या है बुलिंग

    किसी ऐसे व्यक्ति को अपनी बातों,  गतिविधियों या  हरकतों से चोट पहुंचाना,  परेशान करना, धमकाना या नीचा दिखाना बुलिंग है जो कमजोर है और अपनी रक्षा  करने में सक्षम नहीं है. बुलिंग वर्बल ,फिजिकल,  साइकोलॉजिकल ,साइबर या सोशल  किसी भी तरह का हो सकता है. बच्चों के मामले में इसे चाइल्ड बुलिंग कहते हैं.

    कोई भी अभिभावक नहीं चाहता कि उसे यह सुनने को मिले कि उस का  बच्चा दूसरे बच्चे को परेशान कर रहा है. पर अक्सर ऐसा हो जाता है. यह बात  हमेशा ध्यान में रखें कि यदि बच्चा बुलिंग कर रहा है तो जरूरी नहीं कि वह  बुरा ही है. कई बार दिमागी तौर पर तेज और घरवालों की केयर करने वाले बच्चे  भी ऐसी हरकतें करने लग जाते हैं.

     

    जानें अपने प्यार का सच

    फैक्टर्स जो बच्चे को बुलिंग करने को प्रेरित करते हैं;

     

    1. हो सकता है बच्चे को अपने दोस्तों के ग्रुप में बने रहने के लिए यह कदम उठाना पड़ा हो. उस के दोस्त किसी की बुलिंग कर रहे हों तो आप के बच्चे कोभी उन का साथ देना होगा.
    2. संभव है कि आप का बच्चा खुद किसी के द्वारा  बुलिंग का शिकार हो रहा हो. बुली विक्टिम्स अक्सर अपना रोष व्यक्त करने और  ताकत दिखाने के लिए कमजोर बच्चों के साथ बुलिंग करने लगते हैं. .
    3. संभव है कि बच्चा इस तरह अपने शिक्षक,अभिभावक या क्लासमैट्स  का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहता हो क्यों कि वह अकेला महसूस कर रहा हो.
    4. क्रिमिनल बैकग्राउंड भी एक वजह हो सकती है. यदि बच्चे के अभिभावक या रिश्तेदार आपराधिक प्रवृत्ति के हैं तो बच्चे के जीन पर इस का असर पड़ता है . वह बचपन से ही ऐसे कार्यों को अंजाम देने लगेगा .स्वभाव से ही वह  डोमिनेटिंग और अग्रेसिव होगा .
    5. बायोलॉजिकल फैक्टर भी बच्चे के स्वभाव को प्रभावित करते हैं. कई दफा बच्चे का ब्रेन ओवर या अंडर डेवलप्डरहता है. दोनों ही स्थिति में बच्चा दूसरे बच्चों को डराने धमकाने या मारपीट करने की गतिविधियों में शामिल होने लगता है. ऐसी हालत में डॉक्टर से कंसल्ट करना जरुरी हो जाता है.
    6. वह समझ ही नहीं पा रहा हो कि उस के  व्यवहार से दूसरे बच्चों को चोट पहुंच रही है. खासकर छोटी उम्र के बच्चों  में प्रायः ऐसा देखा जाता है.
    7. कई बार बच्चे अपने अंदर की समस्याओं औरउलझनों को दबाने/छुपाने के लिए ऊपर से कठोर बन जाते हैं. बात फिजिकल  अपीयरेंस की हो, घरेलू परेशानियों की हो या पढ़ाई में कमजोर होना हो.  किसी  भी तरह से असुरक्षित और कमजोर महसूस कर रहे बच्चे अकसर सोशल स्ट्रक्चर में  अपनी जगह बनाए रखने और स्टेटस ऊंचा दिखाने की जद्दोजहद में बुलिंग का  सहारा लेने लगते हैं.

    दिल्ली की मिसेज शोभा कहती हैं ,”मेरी दोस्त की बेटी अनुभा एक सकुचाई ,डरीसहमी सी रहने वाली लड़की थी. उस का आत्मविश्वास  काफी कमजोर था. पर जब उसे किसी और की बुलिंग करने का मौका मिला तो उस ने  ऐसा किया और अपने अंदर दूसरों को नियंत्रित करने,डरानेधमकाने की ताकत  महसूस की. उसे लगने लगा कि क्लास में किसी के द्वारा भी नोटिस न किए जाने  से अच्छा है एक गंदे बच्चे के तौर पर चर्चा का विषय बनना. ”

     

    खासकर उन बच्चों के साथ अक्सर ऐसा होता है जो स्कूल /घर में तनाव, ट्रौमा या लो सेल्फ एस्टीम की समस्या से जूझ रहे होते हैं.

     

    ध्यान  दें  कि क्या आप के बच्चे भी घर या स्कूल में किसी  तरह की परेशानी या दिक्कत महसूस कर रहे हैं. क्या उन्हें किसी तरह की एडजस्टमेंट प्रॉब्लम है , क्या वे अकेला महसूस करते हैं या हीन भावना का  शिकार है. यदि ऐसा है तो उस के साथ वक्त बिताएं और उस के मन से सारी  हीनभावनायें निकालने और परेशानियां दूर करने का प्रयास करें. ताकि उन के अंदर की तकलीफ बाहर किसी और रूप में निकल कर न आये.

     

    यदि आप का बच्चा  भी किसी की बुलिंग कर रहा है तो आश्चर्य करने और उसे डांटनेफटकारने के बजाय बच्चे को समझने और इस समस्या से उबरने का प्रयास करें. बच्चे से बात  कर के उस के नजरिए को समझें. उसे सही दिशा देने का प्रयास करें.

     

    1. बात करें

    जैसे ही आप को टीचर, दोस्त या किसी और अभिभावक द्वारा अपने बच्चे की इस हरकत का  खबर मिले तो सब से पहले बच्चे से बात करें. सीधे तौर पर उसे उस के विरुद्ध  आई शिकायत के बारे में सब कुछ बताएं और फिर शांति से बच्चे को अपना पक्ष  रखने दे. बच्चे से पूछे कि उस ने ऐसा क्यों किया. उसे डांटें नहीं बल्कि उस  के बंद एहसासों को खोलने का प्रयास करें.

     

    1. वजह पता लगाएं और लॉजिकल दंड दें

    पता  लगाइये कि आप का बच्चा ऐसा क्यों कर रहा है. बच्चे के टीचर या दोस्तों से बात कीजिये और इस व्यवहार के पीछे मौजूद सही वजह जानने का प्रयास करें. यदि बच्चा खुद बुली विक्टिम है तो उसे इस स्थिति से निकालने में मदद  करें. यदि वह स्कूल में लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसा कर रहा है तो आप  उस को स्वस्थ दोस्ती और सब को साथ ले कर चलने की अहमियत बताएं.

     

    यदि  आप का बच्चा कंप्यूटर और सेलफोन के सहारे साइबर बुलिंग में इंवॉल्व है तो  तुरंत उस से फ़ोन और कंप्यूटर छीन लें. वह किसी दोस्त के साथ मिल कर ऐसा  करता है तो उस दोस्त से उस का मिलनाजुलना बंद करा दें. इसी तरह यदि वह रिश्तेदारों और पड़ोसियों के बच्चों को खेलते समय तंग करता है तो आप उस का सोशल बायकोट करा दें. उस को फैमिली कार में घुमाना ,पार्टीज और सोशल  इवेंट्स में ले जाना ,सोशल मीडिया का प्रयोग करना वगैरह बंद करा दे. घर में  कभी भी उसे अकेला न छोड़ें.

     

    1. नजरिया बदलने का प्रयास करें

     

    एक  बार बच्चे की समस्या समझ लेने के बाद आप को उसे इन समस्याओं से निकालने का प्रयास करना पड़ेगा. उन परिस्थितियों को समझें जिन की वजह से वह दूसरे  बच्चों को परेशान करने का प्रयास कर रहा है. उस की सोच बदलने की कोशिश करें. यदि आप का बच्चा जानबूझ कर किसी को तकलीफ दे रहा है, अपने किसी  क्लासमेट को खेलकूद या सोशल एक्टिविटीज में हिस्सा लेने से रोक रहा है तो  उसे समझाएं कि यदि कोई उसे अपने साथ न खिलाए या अकेला छोड़ दे तो उसे कितना  बुरा लगेगा. इसलिए हमेशा दूसरों को साथ ले कर चलना चाहिए और अच्छा व्यवहार करना चाहिए. जब भी कोई बच्चा साथ खेलने के लिए पूछे तो तुरंत ग्रुप में शामिल कर लेना चाहिए.

     

    बहुत से बच्चों के लिए बुलिंग शक्ति और ताकत  दिखाने का जरिया होता है. वे अपना डोमिनेंस महसूस करते हैं. मगर याद रखें  कहीं न कहीं यह एक  गलत ,ओछा , क्रूर और दर्द से भरा हुआ जरिया है. यह बात  आप को ही अपने बच्चे को समझानी होगी कि ताकत सही रास्ते से दिखाई जाती है. आप उस की एनर्जी को सही रास्ता दिखाएं. उसे लीडर बनने को प्रेरित करें ताकि   वह दूसरों को अपने अधीन रखने की भूख मिटा सके और उस की जिंदगी में उस की  महत्वाकांक्षाओं को सही आधार भी मिल जाए.

     

    अक्षय तृतीया से जुड़े भ्रामक तथ्य

    1. खुद को भी देखें

    जब   बच्चे घर में मांबाप या दूसरे घरवालों को एकदूसरे के साथ लड़तेझगड़ते या बुरा व्यवहार करते देखते हैं तो वे वही बात स्कूल में दोहराने लगते हैं. अभिभावकों को इस बात का एहसास जरूर होना चाहिए कि उन का व्यवहार कैसे उन के  बच्चों को प्रभावित कर सकता है. वे अपने बच्चों और जीवनसाथी से कैसे बात करते हैं, अपने गुस्से को कैसे हैंडल करते हैं  इन सब का असर बच्चे के कोमल  मन और व्यवहार पर पड़ता है.

    अक्सर ऐसा होता है कि बुलिंग आप के घर में  आप के ही द्वारा होता है पर उस पर आप का ध्यान नहीं जाता. इस लिए सब से  पहले घर से शुरुआत करें. घर के प्रत्येक सदस्य को आगाह करें. एकदूसरे के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करें. घर में सकारात्मक वातावरण का निर्माण करें.

     

    1. बच्चे को शर्मिंदा न करें

    कुछ अभिभावक बुली चाइल्ड को सजा के तौर पर शर्मिंदा करने लगते हैं जैसे दूसरों   के आगे डांटना फटकारना ,कान पकड़ कर दरवाजे के बाहर खड़ा रखना वगैरह. इस  तरह उन के व्यवहार पर काबू नहीं पाया जा सकता. उलटा ऐसा करने पर वह  प्रतिशोध के साथ इस तरह की हरकतें ज्यादा करने लगते हैं.

    इसी तरह बच्चा  जब किसी का बुलिंग कर रहा होता है तो उस वक्त से बहुत अच्छा लगता है. मगर  यदि उसे विक्टिम से माफी मांगने को कहा जाए तो यह बात उसे बहुत ही अपमानजनक लगती है. शर्मिंदगी और गिल्ट की भावना उस के व्यक्तित्व पर बुरा असर डाल  सकती है. इसलिए यदि आप के बच्चे ने किसी की बुलिंग की यह जानने के बाद उसे डांटे फटकारें नहीं और माफी मांगने को भी विवश न करें. इस से बच्चा बहुत शर्मिंदगी महसूस करेगा. इस के विपरीत खूबसूरत तरीकों से भी रिश्ते में  सुधार लाया जा सकता है.

    अपने बच्चे से कहें कि जिसे उस ने परेशान किया है उसे लेटर लिख कर ,मैसेज कर या सामने जा कर माफी मांग लें ताकि  दोनों के बीच रिश्ते सुधर जाए.

    आप अपने बच्चे से पूरे क्लास के लिए कुकीज बनवा के ले जाने या क्लासमेट्स को सरप्राइज पार्टी देने जैसे काम  करवा सकते हैं. इस से बच्चे के मन में गिल्ट भी पैदा नहीं होगा और दूसरों  के साथ उस का रिश्ता भी सुधर जाएगा.

    पता  लगाइये कि आप का बच्चा ऐसा क्यों कर रहा है. बच्चे के टीचर या दोस्तों से बात कीजिये और इस व्यवहार के पीछे मौजूद सही वजह जानने का प्रयास करें. यदि बच्चा खुद बुली विक्टिम है तो उसे इस स्थिति से निकालने में मदद  करें. यदि वह स्कूल में लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसा कर रहा है तो आप  उस को स्वस्थ दोस्ती और सब को साथ ले कर चलने की अहमियत बताएं.

    समाधि की दुकानदारी कितना कमजोर धर्म

यदि  आप का बच्चा कंप्यूटर और सेलफोन के सहारे साइबर बुलिंग में इंवॉल्व है तो  तुरंत उस से फ़ोन और कंप्यूटर छीन लें. वह किसी दोस्त के साथ मिल कर ऐसा  करता है तो उस दोस्त से उस का मिलनाजुलना बंद करा दें. इसी तरह यदि वह रिश्तेदारों और पड़ोसियों के बच्चों को खेलते समय तंग करता है तो आप उस का सोशल बायकोट करा दें. उस को फैमिली कार में घुमाना ,पार्टीज और सोशल  इवेंट्स में ले जाना ,सोशल मीडिया का प्रयोग करना वगैरह बंद करा दे. घर में  कभी भी उसे अकेला न छोड़ें.

  1. नजरिया बदलने का प्रयास करें

एक  बार बच्चे की समस्या समझ लेने के बाद आप को उसे इन समस्याओं से निकालने का प्रयास करना पड़ेगा. उन परिस्थितियों को समझें जिन की वजह से वह दूसरे  बच्चों को परेशान करने का प्रयास कर रहा है. उस की सोच बदलने की कोशिश करें. यदि आप का बच्चा जानबूझ कर किसी को तकलीफ दे रहा है, अपने किसी  क्लासमेट को खेलकूद या सोशल एक्टिविटीज में हिस्सा लेने से रोक रहा है तो  उसे समझाएं कि यदि कोई उसे अपने साथ न खिलाए या अकेला छोड़ दे तो उसे कितना  बुरा लगेगा. इसलिए हमेशा दूसरों को साथ ले कर चलना चाहिए और अच्छा व्यवहार करना चाहिए. जब भी कोई बच्चा साथ खेलने के लिए पूछे तो तुरंत ग्रुप में शामिल कर लेना चाहिए.

बहुत से बच्चों के लिए बुलिंग शक्ति और ताकत  दिखाने का जरिया होता है. वे अपना डोमिनेंस महसूस करते हैं. मगर याद रखें  कहीं न कहीं यह एक  गलत ,ओछा , क्रूर और दर्द से भरा हुआ जरिया है. यह बात  आप को ही अपने बच्चे को समझानी होगी कि ताकत सही रास्ते से दिखाई जाती है. आप उस की एनर्जी को सही रास्ता दिखाएं. उसे लीडर बनने को प्रेरित करें ताकि   वह दूसरों को अपने अधीन रखने की भूख मिटा सके और उस की जिंदगी में उस की  महत्वाकांक्षाओं को सही आधार भी मिल जाए.

  1. खुद को भी देखें

जब बच्चे घर में मांबाप या दूसरे घरवालों को एकदूसरे के साथ लड़तेझगड़ते या बुरा व्यवहार करते देखते हैं तो वे वही बात स्कूल में दोहराने लगते हैं. अभिभावकों को इस बात का एहसास जरूर होना चाहिए कि उन का व्यवहार कैसे उन के  बच्चों को प्रभावित कर सकता है. वे अपने बच्चों और जीवनसाथी से कैसे बात करते हैं, अपने गुस्से को कैसे हैंडल करते हैं  इन सब का असर बच्चे के कोमल  मन और व्यवहार पर पड़ता है.

अक्सर ऐसा होता है कि बुलिंग आप के घर में  आप के ही द्वारा होता है पर उस पर आप का ध्यान नहीं जाता. इस लिए सब से  पहले घर से शुरुआत करें. घर के प्रत्येक सदस्य को आगाह करें. एकदूसरे के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करें. घर में सकारात्मक वातावरण का निर्माण करें.

  1. बच्चे को शर्मिंदा न करें

कुछ अभिभावक बुली चाइल्ड को सजा के तौर पर शर्मिंदा करने लगते हैं जैसे दूसरों   के आगे डांटना फटकारना ,कान पकड़ कर दरवाजे के बाहर खड़ा रखना वगैरह. इस  तरह उन के व्यवहार पर काबू नहीं पाया जा सकता. उलटा ऐसा करने पर वह  प्रतिशोध के साथ इस तरह की हरकतें ज्यादा करने लगते हैं.

इसी तरह बच्चा  जब किसी का बुलिंग कर रहा होता है तो उस वक्त से बहुत अच्छा लगता है. मगर  यदि उसे विक्टिम से माफी मांगने को कहा जाए तो यह बात उसे बहुत ही अपमानजनक लगती है. शर्मिंदगी और गिल्ट की भावना उस के व्यक्तित्व पर बुरा असर डाल  सकती है. इसलिए यदि आप के बच्चे ने किसी की बुलिंग की यह जानने के बाद उसे डांटे फटकारें नहीं और माफी मांगने को भी विवश न करें. इस से बच्चा बहुत शर्मिंदगी महसूस करेगा. इस के विपरीत खूबसूरत तरीकों से भी रिश्ते में  सुधार लाया जा सकता है.

समाधि की दुकानदारी कितना कमजोर धर्म

अपने बच्चे से कहें कि जिसे उस ने परेशान किया है उसे लेटर लिख कर ,मैसेज कर या सामने जा कर माफी मांग लें ताकि  दोनों के बीच रिश्ते सुधर जाए.

आप अपने बच्चे से पूरे क्लास के लिए कुकीज बनवा के ले जाने या क्लासमेट्स को सरप्राइज पार्टी देने जैसे काम  करवा सकते हैं. इस से बच्चे के मन में गिल्ट भी पैदा नहीं होगा और दूसरों  के साथ उस का रिश्ता भी सुधर जाएगा.

मोहब्बत के खूनी अंत की हैरतअंगेज कहानी

मध्य प्रदेश के इंदौर के थाना चंदननगर के रहने वाले 21 साल के सलमान शेख के अचानक लापता हो जाने से उस के घर वाले काफी परेशान थे. वह फैब्रिकेशन का काम करता था. घर से काम के लिए निकला सलमान घर नहीं लौटा तो 9 जनवरी, 2017 को उस के बड़े भाई तौकीर शेख ने थाना चंदननगर में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. गुमशुदगी दर्ज कराते समय उस ने अपने घर के सामने रहने वाले रऊफ खान और उस के ड्राइवर सद्दाम पर भाई के गायब करने का शक जाहिर किया था.

रऊफ खान बड़ीबड़ी बिल्डिंगों की मरम्मत एवं रंगाईपोताई का ठेका लेता था. उस के यहां पचासों मजदूर काम करते थे. सलमान भी पहले उस के यहां नौकरी करता था. लेकिन साल भर पहले उस ने सलमान को अपने यहां से नौकरी से निकाल दिया था.

रऊफ खान संपन्न आदमी था. वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुका था. उस की पहुंच भी ऊंची थी, इसलिए बिना किसी ठोस सबूत के पुलिस उस पर हाथ डालने से कतरा रही थी.

पुलिस ने लापता सलमान शेख के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में चौंकाने वाली जानकारी यह मिली कि सलमान की सब से ज्यादा और लंबीलंबी बातें रऊफ की पत्नी शबनम से हुई थीं. रऊफ के नौकरी से निकाल देने के बाद भी उस की शबनम से बातें होती रही थीं. इन बातों से थाना चंदननगर पुलिस को लगा कि शायद इसी वजह से सलमान के घर वाले रऊफ खान पर शक जाहिर कर रहे थे.

उन्होंने सलमान के भाई तौकीर से रऊफ और उस के रिश्तेदारों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस के कई नजदीकी रिश्तेदार धार जिले के धरमपुरी में रहते हैं. तौकीर की इस बात पर उन्हें 5 दिनों पहले धरमपुरी में मिली लाश की बात याद आ गई.

दरअसल, 10 जनवरी, 2017 को धार जिला के थाना धरमपुरी के थानाप्रभारी के.एस. साहू को फोन द्वारा बेंट संस्थान के जंगल में लाश पड़ी होने की खबर मिली थी. अधिकारियों को सूचना दे कर वह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. वहां एक लाश पड़ी थी, जिस का सिर काफी क्षतविक्षत था. शायद जंगली जानवरों ने उसे नोचखसोट डाला था. उस का गुप्तांग भी कटा हुआ था. लाश की स्थिति देख कर थानाप्रभारी को लगा कि यह हत्या प्रेमप्रसंग में की गई है. क्योंकि प्रेमप्रसंग में अकसर इसी तरह हत्याएं की जाती हैं.

पुलिस ने लाश की शिनाख्त के लिए जब मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब से एक पर्स मिला, जिस में एक लड़के और लड़की की तसवीर के अलावा हिसाब की एक डायरी और तंबाकू की एक पुडि़या मिली. उस में कुछ ऐसा नहीं था, जिस से मृतक की पहचान हो सकती.

मृतक के गले में तुलसी की एक माला पड़ी थी, जिस से अंदाजा लगाया गया कि लाश किसी हिंदू की है. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो के.एस. साहू ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस के बाद लाश की शिनाख्त के लिए इस की जानकारी अपने जिले में ही नहीं, आसपास के जिलों में भी दे दी थी. उसी जानकारी के आधार पर थाना चंदननगर के थानाप्रभारी को जब पता चला कि रऊफ की रिश्तेदारी धरमपुरी में है तो उन्हें लगा था कि वह लाश सलमान शेख की हो सकती है.

उन्होंने तत्काल लापता सलमान शेख के घर वालों को थाना धरमपुरी जाने की सलाह दी. तौकीर पिता के साथ थाने पहुंचा तो पता चला कि लाश तो दफना दी गई है. थानाप्रभारी के.एस. साहू ने लाश के सामान को दिखाया तो उन्होंने उस में रखी एक अंगूठी देख कर कहा कि वह लाश सलमान शेख की थी, पर यह तुलसी की माला उन का बेटा क्यों पहनेगा?

के.एस. साहू तुरंत समझ गए कि हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए उसे तुलसी की माला पहना कर उस का गुप्तांग काट दिया था. पुलिस को भ्रमित करने के लिए ही हत्यारों ने जेब में लड़की और लड़के की फोटो भी रखी थी. हत्यारों ने गलती यह की थी कि वे सलमान शेख की अंगूठी निकालना भूल गए थे. अंगूठी से ही उस की लाश की पहचान हो गई थी.

लाश की पहचान होने के बाद अगले दिन उपजिलाधिकारी के आदेश पर सलमान शेख का शव निकलवा कर उस के घर वालों को सौंप दिया गया था. घर वालों ने सलमान की लाश ला कर इंदौर के एक कब्रिस्तान में दफना दिया था. सलमान की लाश मिलने की सूचना पा कर उस के परिचितों और दोस्तों ने थाना चंदननगर में धरना दे कर हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की थी.

एक ओर जहां मृतक सलमान शेख के घर वालों और परिचितों ने पुलिस पर हत्यारों को गिरफ्तार करने का दबाव बना रखा था, वहीं मुखबिर से मिली जानकारी ने थानाप्रभारी को चौंका दिया था. मुखबिर ने बताया था कि सलमान को आखिरी बार रऊफ खान के ड्राइवर सद्दाम के साथ देखा गया था.

इस के बाद थाना चंदननगर पुलिस ने शबनम और सद्दाम को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन दोनों ही कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे. चूंकि पुलिस के पास दोनों के खिलाफ ठोस सबूत थे, इसलिए पुलिस ने दोनों से थोड़ी सख्ती की और उन्हें काल डिटेल्स दिखाई तो दोनों ने ही असलियत उगल दी.

सद्दाम ने स्वीकार कर लिया कि शबनम भाभी से सलमान शेख के संबंध थे, जिस से नाराज हो कर रऊफ खान ने सलमान की हत्या की योजना बनाई थी. इस योजना में उस के अलावा रऊफ के भतीजे गोलू उर्फ जफर और जावेद भी शामिल थे.

इस के बाद उस ने सलमान शेख की हत्या की जो कहानी सुनाई, उस के अनुसार थाना चंदननगर पुलिस ने जावेद, रऊफ खान, गोलू उर्फ जफर के अलावा थाना धरमपुरी पुलिस की मदद से धरमपुरी के रहने वाले रऊफ के एक रिश्तेदार को भी गिरफ्तार किया था. बाद में इन सब को भी थाना धरमपुरी पुलिस को सौंप दिया गया था, जहां इन सब से की गई पूछताछ में सलमान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

इंदौर के थाना चंदननगर में रहने वाला 21 साल का सलमान अब्दुल लतीफ शेख का बेटा था. उस के घर के सामने ही रऊफ खान का घर था, जो बिल्डिंगों की मरम्मत और पुताई का ठेका लेता था. इस के लिए उस के पास तमाम मजदूर काम करते थे. सलमान पढ़लिख कर कमाने लायक हुआ तो अब्दुल लतीफ शेख के कहने पर रऊफ खान ने उसे भी अपने यहां काम पर रख लिया था.

सलमान रऊफ का पड़ोसी था ही, इसलिए उस का रऊफ के घर पहले से ही आनाजाना था. लेकिन जब वह उस के यहां काम करने लगा तो उस का आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया. जिस की वजह से रऊफ की पत्नी शबनम से उस की कुछ ज्यादा ही पटने लगी. उन का रिश्ता भी कुछ ऐसा था. सलमान शबनम को भाभी कहता था, इसलिए खुल कर हंसीमजाक होता था.

रऊफ खान का काम बड़ा था, इसलिए उस का दिन भागदौड़ में ही बीत जाता था. चूंकि सलमान पड़ोसी था, इसलिए घर के कामों के लिए वह ज्यादातर उसे ही भेजता था. घर के कामों के साथसाथ सलमान शबनम के छोटेमोटे निजी काम भी कर दिया करता था. शबनम खूबसूरत भी थी और उम्र में भी रऊफ खान से छोटी थी. सलमान उस के हमउम्र था. इसी आनेजाने में ही युवा सलमान की नजरें शबनम के गदराए यौवन पर जम गईं. फिर तो जब भी उसे मौका मिलता, वह शबनम से ऐसा मजाक करता कि वह शरम से लाल हो उठती. औरतों को मर्दों की नजरें पहचानने में देर नहीं लगती. शबनम ने भी सलमान की नजरों से उस का इरादा भांप लिया.

पहले तो शबनम ने उस की नजरों से बचने की कोशिश की, लेकिन खुद से भी कमउम्र के आशिक की दीवानगी ने उसे बचने नहीं दिया, उस की दीवानगी उसे अच्छी लगने लगी तो वह उस के सामने अपने छिपे अंगों को इस तरह दिखाने लगी, जैसे सलमान जो देख रहा है, उस से वह अंजान है.

सलमान ने जो कुछ अब तक नहीं देखा था, शबनम से वह देखने को मिला तो वह ज्यादा से ज्यादा उस के करीब रहने की कोशिश करने लगा. सलमान की चाहत की आग में शबनम कुछ ज्यादा ही पिघलने लगी और धीरेधीरे खुद ही उस की होती चली गई. उस बीच रऊफ खान विधानसभा का चुनाव लड़ रहा था. इसलिए वह चुनाव में इस कदर व्यस्त हो गया कि न उसे काम का खयाल रहा और न पत्नीबच्चों का.

उस ने सभी कर्मचारियों को चुनाव प्रचार में लगा रखा था. ऐसे में उस ने सलमान को घर के कामों की जिम्मेदारी सौंप दी थी. इस बीच उस ने रातदिन शबनम भाभी की सेवा की. उस सेवा के फलस्वरूप एक दिन सलमान ने उसे बांहों में भर लिया. शबनम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम तो बड़े दिलेर निकले, तुम्हारी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी. मुझे बांहों में भरते हुए तुम्हें डर नहीं लगा. तुम्हारे भाईजान ने देख लिया तो सीधे सूली पर चढ़ा देंगे.’’

‘‘भाभीजान, मैं ने तुम से मोहब्बत की है. मोहब्बत करने वाले किसी से नहीं डरते.’’

‘‘तुम भाईजान के गुस्से को तो जानते ही हो, एक ही बार में सारा इश्क उतार देंगे.’’

‘‘भाभीजान, क्यों मोहब्बत के मूड को बिगाड़ रही हो.’’

‘‘मैं तो मजाक कर रही थी.’’ शबनम ने कहा और सलमान से लिपट गई. इस के बाद दोनों तभी अलग हुए, जब उन के तनमन की आग ठंडी हो गई. इस के बाद दोनों को जब भी मौका मिलता, तन की आग के दरिया में डूब कर आपस में सुख बांट लेते.

सलमान को अब शबनम की जुदाई पल भर के लिए भी बरदाश्त नहीं होती थी. वह चाहता कि शबनम हमेशा उस की आंखों के सामने रहे. लेकिन यह संभव नहीं था. फिर भी वह हर पल उसी की यादों में खोया रहता और उस से मिलने का मौका ढूंढता रहता. अकसर वह दोपहर में काम छोड़ कर शबनम से मिलने उस के घर पहुंच जाता.

सलमान के इस तरह काम छोड़ कर जाने से रऊफ को उस पर शक हुआ तो उस ने कर्मचारियों से उस के बारे में पूछा. पता चला कि सलमान उस की पत्नी से फोन पर घंटों बातें करता है, अकसर दोपहर में उसी से मिलने भी जाता है. रऊफ ने जब इस बात पर ध्यान दिया तो पता चला कि सलमान और शबनम के बीच कुछ चल रहा है. इस के बाद वह दोनों पर नजर रखने लगा. आखिर एक दिन उस ने सलमान को पत्नी से फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उस ने सलमान की पिटाई कर के काम से निकाल दिया.

सलमान को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. वह रऊफ के घर के ठीक सामने ही रहता था. मौका निकाल कर वह शबनम से मिल ही लेता था. फोन पर उन की बातें होती ही रहती थीं. जब रऊफ को पता चला कि अब भी सलमान और शबनम मिलते हैं तो उसे डर सताने लगा कि अगर शबनम सलमान के साथ भाग गई तो समाज में वह मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा, क्योंकि एक तरह से सलमान उस का नौकर था. उस के पास पैसा था और ऊंची राजनीतिक पहुंच भी. इसलिए उस ने सलमान को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

रऊफ ने सलमान को इंदौर से करीब 150 किलोमीटर दूर ले जा कर धार जिले के धरमपुरी इलाके के जंगल में हत्या करने की योजना बनाई, ताकि पुलिस किसी कीमत पर उस की लाश को न पा सके. अपनी इस योजना में उस ने अपने ड्राइवर सद्दाम, भतीजे गोलू उर्फ जफर और जावेद को शामिल किया.

योजना तो बन गई, लेकिन अब सलमान को धरमपुरी के जंगल तक ले कैसे जाया जाए, इस पर विचार किया गया. वह आसानी से जाने वाला नहीं था. आखिर एक तरकीब निकाली गई और इस काम के लिए ड्राइवर सद्दाम को तैयार किया गया. उस ने सद्दाम से कहा कि वह सलमान को शबनम से मिलाने के बहाने धरमपुरी के जंगल तक ले चले.

योजना के अनुसार, 8 जनवरी, 2017 को सद्दाम सलमान से मिला. सद्दाम ने उस से शबनम से मिलाने की बात कही तो वह फौरन तैयार हो गया. क्योंकि पिछले कई सप्ताह से वह शबनम से मिल नहीं पाया था. सद्दाम सलमान को अपने साथ ले कर चला तो कई लोगों ने सलमान को उस के साथ जाते देख लिया था. धरमपुरी के जंगल में पहुंच कर सलमान ने शबनम के बजाए गोलू, जावेद और रऊफ खान को देखा तो समझ गया कि उस के साथ धोखा हुआ है.

वह कुछ कहता या भाग पाता, उस से पहले ही सभी ने उसे पकड़ लिया और उस की पिटाई शुरू कर दी. पिटाई करने के बाद उस के गले में रस्सी डाल कर कस दिया तो उस की मौत हो गई. इस के बाद पहचान छिपाने के लिए उस का चेहरा ईंट से कुचल दिया गया. उस के कपड़े उतार कर गुप्तांग काट दिया गया, ताकि उस के धर्म का पता न चल सके.

गले में तुलसी की माला डाल कर उस की पैंट की जेब में एक लड़के और लड़की की फोटो भी डाल दी. उन्होंने पुलिस को गुमराह करने के लिए किया तो बहुत कुछ, लेकिन उन का अपराध छिप न सका और वे पकडे़ गए.

सलमान की हत्या करने के बाद रऊफ ने गोलू और सद्दाम को रात में ही इंदौर भेज दिया था, जबकि खुद जावेद के साथ अपनी बहन के यहां धरमपुरी में रुक गया था, ताकि किसी को शंका न हो. वह अगले दिन इंदौर आ गया और अपने काम में लग गया.

रऊफ और उस के साथियों को पूरा भरोसा था कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन पुलिस उन तक पहुंच ही गई. इस तरह उन की उम्मीदों पर पानी फिर गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक शबनम, रऊफ खान, सद्दाम, जावेद और गोलू जेल में थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कुछ इस तरह से रंग बदलता देह व्यापार

सारी जानकारियां भोपाल के थाना निशातपुरा के टीआई मनीष मिश्रा की मेज पर थीं, जो उन्हें मुखबिरों से मिली थीं. इस के लिए उन्होंने अपने मुखबिरों का जाल काफी पहले से फैला रखा था. शहर का किनारा होने की वजह से थाना निशातपुरा में आए दिन हर तरह के अपराध हुआ करते थे, जिस की वजह से यहां के पुलिसकर्मियों की किस्मत में सुकून नाम की चीज नहीं थी. मनीष मिश्रा को जानकारी यह मिली थी कि इलाके की हाउसिंग बोर्ड कालोनी के डुप्लेक्स नंबर 55, जो त्रिवेदी हाइट्स के पीछे था, में धड़ल्ले से देहव्यापार हो रहा है. सूचना चूंकि भरोसेमंद मुखबिर ने दी थी, इसलिए किसी तरह का शक करने की कोई वजह नहीं थी. लेकिन जरूरी यह था कि कालगर्ल्स और ग्राहकों को रंगेहाथों पकड़ा जाए, क्योंकि छापों में पकड़ी गई कालगर्ल्स और ग्राहक अकसर सबूतों के अभाव में छूट जाते हैं, जिस से छिछालेदर पुलिस वालों की होती है.

मनीष मिश्रा ने मुखबिरों से मिली जानकारी सीएसपी लोकेश सिन्हा को दी तो उन्होंने आरोपियों को रंगेहाथों पकड़ने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस में महिला थाने की थानाप्रभारी शिखा बैस को भी शामिल किया. टीम ने छापे की पूरी तैयारी कर के देहव्यापार के धंधे के उस अड्डे पर 10 फरवरी को छापा मारने का निर्णय लिया.

छापा मारने से पहले एक युवा हवलदार रमाकांत (बदला हुआ नाम) को ग्राहक बना कर हाउसिंग बोर्ड कालोनी के डुप्लेक्स नंबर 55 पर भेजा गया. रमाकांत इस बात से काफी रोमांचित और उत्साहित था कि उसे यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी. जबकि सहकर्मी मजाक में कह रहे थे, ‘देख भाई, संभल कर रहना और याद रखना तू फरजी ग्राहक बन कर जा रहा है. सुंदर लड़की देख कर कहीं सचमुच का ग्राहक मत बन जाना.’

बात हंसीमजाक की थी, इसलिए रमाकांत भी मुसकरा दिया था, पर वह मन ही मन रिहर्सल कर रहा था कि ग्राहक कैसे कालगर्ल्स के पास जाते हैं, कैसे सौदेबाजी करते हैं और कैसे माल यानी लड़कियां छांटते हैं.

10 फरवरी की रात जब वह बताए गए अड्डे पर पहुंचा तो नीचे के कमरे में उस की मुलाकात एक उम्रदराज महिला कामिनी (बदला हुआ नाम) और उस के पति सोनू से हुई. नीचे की मंजिल के उस हालनुमा कमरे में पहले से ही कोई 8 युवक लाइन लगाए बैठे थे. ऐसा लग रहा था, जैसे यह आधुनिक कोठा नहीं, बल्कि कोई सैलून है, जहां लोग हजामत बनवाने आए हैं और अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.

कामिनी और सोनू ने रमाकांत से कुछ सवाल पूछे, जिन के जवाब वह पहले से ही रट कर आया था. दोनों को जब विश्वास हो गया कि ग्राहक गड़बड़ नहीं है तो उन्होंने उसे लाइन में बैठने के लिए कह दिया. रमाकांत को असमंजस में देख कर सोनू ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. तुम्हारा नंबर आधे घंटे में आ जाएगा. अंदर 4 लड़कियां सर्विस दे रही हैं.’’

इतना कह कर सोनू ने पैसे के लिए इशारा किया तो रमाकांत ने पूछा, ‘‘कितने देने होंगे?’’

जवाब में सोनू ने बड़ी बेशरमी से कहा, ‘‘पंजाब से 4 आइटम आए हैं, जो एकदम कड़क और दमदार हैं. नेचुरली करोगे तो 15 सौ रुपए लगेंगे और अननेचुरली करोगे तो ढाई हजार रुपए देने होंगे.’’

‘‘हजार रुपए में बात बनती हो तो बोलो.’’ रमाकांत ने अपनी भूमिका में जान डालते हुए कहा, ‘‘मैं तो नेचुरल करूंगा.’’

‘‘पठानकोट की सवारी 1500 रुपए से एक पैसे कम में नहीं होगी,’’ सोनू ने कहा, ‘‘तुम एक काम करो, उज्जैन की मेहंदी ले लो, हजार रुपए में काम बन जाएगा.’’

इतना कह कर सोनू ने एक लड़की की फोटो रमाकांत को दिखाई. रमाकांत ने सरसरी तौर पर फोटो देख कर कहा, ‘‘मैं तो पठानकोट की ही सवारी करूंगा. ये लो रुपए.’’

कह कर रमाकांत ने जेब से 1500 रुपए निकाल कर सोनू को थमा दिए. इस तरह उस की बुकिंग कनफर्म हो गई. कुरसी पर बैठ कर रमाकांत मौके का जायजा ले रहा था. इंतजार कर रहे लोग कुरसियों और सोफे पर चुपचाप बैठे थे. जाहिर है, वे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. एकदूसरे से खुद को बचाए रखने के लिए वे एकदूसरे की तरफ नजर उठा कर नहीं देख रहे थे.

थोड़ी देर बाद एक युवक कमरे से निकला और सिर झुकाए चुपचाप इस तरह बाहर चला गया, मानो बाहर सब कुछ नश्वर और मिथ्या हो. अंदर से वह सच का साक्षात्कार कर के आ रहा हो. उसे गए 5 मिनट बीते होंगे कि सोनू ने वेटिंग लिस्ट के हिसाब से लाइन में बैठे एक युवक को अंदर जाने का इशारा किया तो वह रौकेट की भांति कमरे की ओर भागा. ऊपर की मंजिल पर भी लड़कियां और ग्राहक हैं, अब तक रमाकांत को इस का अंदाजा हो गया था.

उस माहौल में रमाकांत खुद को सहज महसूस करने लगा तो तयशुदा प्लान के मुताबिक उस ने पुलिस टीम को छापा मारने का इशारा कर दिया. जल्दी ही मनीष मिश्रा और शिखा बैस सहित पूरी टीम मकान में दाखिल हुई तो सोनू, कामिनी और उन का एक साथी एकदम से घबरा गए कि यह क्या हो गया.

अंदर आते ही पुलिस ने कमरे में घुस कर कालगर्ल्स और उन के ग्राहकों को आपत्तिजनक स्थिति में दबोच लिया. उन के पास से शराब की बोतलों के अलावा इस्तेमाल और बिना इस्तेमाल हुए कुछ कंडोम भी जब्त किए गए. इस के बाद सभी को थाने ला कर पूछताछ शुरू कर दी गई.

पूछताछ में पता चला कि 4 में से 3 लड़कियां पंजाब की थीं और एक उज्जैन की, जिस का जिक्र सोनू ने रमाकांत से उज्जैन की मेहंदी कह कर किया था. सभी को कपड़े पहनने का मौका दिया गया. इस बीच तलाशी में पुलिस को 22 हजार रुपए नकद और करीब 2 दर्जन मोबाइल फोन मिले.

पुलिस के लिए कामिनी का चेहरा, नाम और कारनामा नया नहीं था. पहले भी वह कई बार सैक्स रैकेट चलाने के आरोप में पकड़ी जा चुकी थी. कुछ दिनों पहले ही वह जेल से छूटी थी. इस के पहले वह भोपाल के ही कोलार इलाके में देहव्यापार का अड्डा चलाने के आरोप में पकड़ी गई थी. पता चला कि वह मुंबई में भी एक बार पकड़ी गई थी.

सोनू उर्फ विजय प्रताप सिंह उस का पति था. वह भी इस धंधे में शामिल था. छापे में पकड़ा गया इन का साथी शुभम दुबे मिसरोद के शुभालय परिसर का रहने वाला था.

छापे में पकड़े गए 8 ग्राहकों की हालत देखने लायक थी, उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं. थोड़ी देर पहले जो कमरों में बंद हो कर जन्नत की सैर कर रहे थे, अब उन्हें जेल का दरवाजा नजर आ रहा था. पुलिस टीम उन के नामपते दर्ज कर के थाने ले आई.

अलबत्ता पकड़ी गई लड़कियों के चेहरों पर जरा भी शिकन नहीं थी. जाहिर है, इस स्थिति का अच्छाखासा तजुर्बा था. उन्हें पूरा भरोसा था कि पुलिस या उस के इस छापे से उन का कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं था. इस धंधे में तो इस तरह होता रहता है. कामिनी मैडम को इस स्थिति से निकलने का अच्छाखासा अनुभव था.

लिखापढ़ी के दौरान ग्राहकों के चेहरों पर उस सर्दी में भी पसीना छलक रहा था. वे पुलिस वालों के सामने छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे. लेकिन अब राहत की कोई गुंजाइश नहीं थी. क्योंकि एक बड़ी प्लानिंग के तहत काफी मेहनत के बाद पुलिस ने इस सैक्स रैकेट का परदाफाश किया था. इस में दिलचस्प बात कालगर्ल्स का पंजाब का होना था.

पूछताछ में जो कहानी सामने आई थी, उस के अनुसार सोनू और शुभम ग्राहकों को मैनेज करने के साथ सौदा तय करते थे. जबकि कामिनी लड़कियों को ग्राहकों के सामने पेश करने के साथ उन का ध्यान रखती थी. लड़कियों को रोजाना 5 हजार रुपए दिए जाते थे. इस मेहनताने के एवज में उन्हें एक दिन में 25 से 30 ग्राहकों को सर्विस देनी पड़ती थी. देखा जाए तो तीनों एक लड़की से रोजाना कमा तो 40-50 हजार रुपए थे, पर उस का बहुत छोटा हिस्सा उन्हें दे रहे थे.

ग्राहकों को लुभाने के लिए कामिनी और सोनू ने वाट्सऐप ग्रुप भी बना रखे थे, जिन पर लड़कियों की फोटो दिखाई जाती थी. ज्यादा पैसे झटकने की गरज से ग्राहकों को लालच दिया जाता था कि ये लड़कियां अननेचुरल सैक्स भी करवाती हैं, पर इस की फीस ज्यादा होती है.

इस छापे की कहानी तो खत्म हो गई, पर छापे में पकड़ी गई 22 साल की सिमरन (बदला हुआ नाम) ने जो बताया, वह छापे से भी ज्यादा दिलचस्प है और देहव्यापार के नए तौरतरीकों को उजागर करता है.

सिमरन पंजाब के जिला जालंधर की कालेज गर्ल थी और वह पैसों के लिए इस धंधे में आई थी. इस के लिए उसे न कोई शरम थी और न पछतावा. उस का अंगअंग सांचे में ढला था. उस का गदराया जिस्म किसी का भी ईमान बिगाड़ने की कूव्वत रखता था.

बहुत कम उम्र में सिमरन सैक्स की खिलाड़ी बन गई थी, जो पुरुषों की कमजोरी पकड़ कर रखती थी. ठीकठाक संख्या तो उसे याद नहीं, पर उस ने पूरे आत्मविश्वास से इतना जरूर बताया कि अब तक वह 5 हजार से भी ज्यादा मर्दों को सर्विस दे चुकी थी.

सिमरन और उस की जैसी लड़कियों की बातों पर गौर करें तो यह जान कर हैरानी होती है कि आजकल कालगर्ल्स दूसरे शहरों और राज्यों में जा कर धंधा करना ज्यादा पसंद करती हैं. इस की वजह यह है कि उन के पहचाने जाने का खतरा और पकड़े जाने का जोखिम कम रहता है. देहव्यापार के धंधे से जुड़े गिरोह एकदूसरे के संपर्क में रहते हैं और जरूरत पड़ने पर लड़कियों की अदलाबदली तक कर लेते हैं.

भोपाल के शौकीन ग्राहक पंजाब या केरल नहीं जा सकते. हां, अगर वे वहां की लड़कियां चाहते हैं तो उन की यह इच्छा पूरी करने के लिए लड़कियां भोपाल ही बुलवा ली जाती हैं. आमतौर पर डेढ़, 2 हजार रुपए दे सकने वाले ग्राहकों को अड्डे पर बुला लिया जाता है.

अगर कोई ग्राहक 15-20 हजार रुपए दे सकता है और विश्वसनीय होता है तो लड़की उस की बताई जगह, जो अकसर कोई महंगा होटल, फार्महाउस या फ्लैट होता है, वहां भेज दी जाती है.

ग्राहक हर तरह के हैं व्यापारी, अफसर, छात्र और नेता भी. इसी तरह कालगर्ल्स बनी लड़कियां भी हर तरह की हैं छात्राएं, बेरोजगार, परित्यक्ता और विधवाएं. कुछ शादीशुदा युवतियां भी देह बेच कर घरगृहस्थी चला रही हैं. सब की अपनी अलगअलग कहानी है.

इन दुलहनों की जिंदगी से एक रात या कुछ घंटे का ताल्लुक रखने वाला एक सच यह भी है कि इन्हें अपने पेशे पर किसी तरह का मलाल, पछतावा या ग्लानि नहीं है. ये पूरी तरह लग्जरी लाइफ जीती हैं. अगर पंजाब से दिल्ली जा कर सर्विस देना है तो ये हवाईजहाज से आतीजाती हैं. वहां के सारे इंतजाम मसलन ठहरने, खानेपीने और ग्राहक ढूंढने की जिम्मेदारी कामिनी और सोनू जैसे गार्जियन की होती है.

धंधा कराने वाले ग्राहक से चाहे जितना पैसा वसूलें, इस पर लड़कियों को कोई ऐतराज नहीं होता, क्योंकि वे अपनी फीस 5 हजार रुपए प्रतिदिन या फिर लाख, डेढ़ लाख रुपए महीना वेतन की तरह लेती हैं. इस अनुबंध के तहत दोनों एकदूसरे के काम में दखल नहीं देते. अगर सौदा यह हुआ है कि सर्विसगर्ल एक दिन में 20 ग्राहक निपटाएगी तो वह ईमानदारी से इस का पालन करती है.

इस से कम ग्राहक आएं तो उसे मिलने वाली फीस में लोकल गार्जियन कोई कटौती नहीं कर सकता और न ही दूसरे दिन 20 से ज्यादा ग्राहकों को सर्विस देने को मजबूर कर सकता है. रहने और खानेपीने का खर्च लोकल गार्जियन ही उठाते हैं. शौपिंग वगैरह के शौक ये लड़कियां, जो आजकल खुद को सर्विस गर्ल्स कहने लगी हैं, खुद उठाती हैं. जबकि शराब और सिगरेट का खर्च ग्राहक उठाता है.

इन सर्विस गर्ल्स की मानें तो ग्राहक सिर्फ 2 तरह के होते हैं. पहले वे, जो आ कर भूखे भेडि़ए की तरह एकदम झपट्टा सा मारते हैं और बगैर कुछ कहेसुने जिस्म को टटोलने लगते हैं. इस तरह के अधिकांश ग्राहक नौसिखिए और मुद्दत से औरत के सुख से वंचित होते हैं. दूसरे तरह के ग्राहकों को जल्दी नहीं होती. वे इत्मीनान से अपनी प्यास पहले शराब से बुझाना पसंद करते हैं, उस के बाद सधे हुए खिलाडि़यों की तरह कुदरती खेल खेलते हैं.

सिमरन जैसी सर्विस गर्ल्स की एक बड़ी दिक्कत नौजवान कस्टमर होते हैं, जो उन के पास शक्तिवर्धक दवाएं खा कर आते हैं. जाहिर है, उन में आत्मविश्वास की कमी होती है और वे लंबा वक्त फारिग होने में लेते हैं. कई नौजवान फिल्मी स्टाइल में टूटा दिल ले कर आते हैं. इस तरह के देवदासों से निपटना सिमरन जैसी लड़कियों के लिए दिक्कत वाला काम होता है, क्योंकि वे चाहते हैं कि सर्विस गर्ल्स इन की कहानी भी सुने.

आजकल अधेड़ ग्राहकों की संख्या भी बढ़ रही है. वे अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं होते और काफी घबराए हुए होते हैं, क्योंकि वे घरगृहस्थी वाले होते हैं. ऐसे लोगों की समाज में इज्जत भी होती है. अकसर ऐसे लोग अपनी सुरक्षा के लिए 3-4 लोगों के साथ अड्डे पर आते हैं या फिर खुद की चुनी जगह पर सर्विस गर्ल्स को मुंहमांगा पैसा दे कर बुलाते हैं.

छापे में पकड़ी गई हर एक सर्विस गर्ल की अपनी एक अलग कहानी होती है, जिसे ये आमतौर पर जल्दी साझा नहीं करतीं. हां, जोर देने पर कुछ हिस्सा कांटछांट कर जरूर बता देती हैं.

एक दिन यानी 7-8 घंटे में 20-25 पुरुषों को सर्विस देना उन के लिए उतना तकलीफदेह नहीं होता, जितना अप्राकृतिक सैक्स की मांग पूरी करने पर होता है. इस आदिम कारोबार में यौन बीमारियों से बचने के लिए कुछ ग्राहक अननेचुरल सैक्स ही चाहते हैं, जो तय है कि उन्हें अपनी पत्नी या प्रेमिका से नहीं मिलता. यह चलन वीडियो फिल्मों से बढ़ा है, जो अब स्मार्टफोन में मौजूद है.

सिमरन देश के लगभग सभी बड़े शहरों में सर्विस दे चुकी है और हर तरह के ग्राहकों और माहौल से उस का पाला पड़ चुका है. मुंबई को अभी भी वह देहव्यापार का सब से बड़ा केंद्र मानती है, जहां यह धंधा झुग्गीझोपडि़यों से ले कर पांचसितारा होटलों तक में चलता है. वहां हर राज्य और क्षेत्र की लड़कियों की मांग और उपलब्धता रहती है.

अकसर यह व्यापार पुलिस की छत्रछाया में चलता है. इस के लिए दलाल या लोकल गार्जियन नजराना भी खूब देते हैं. इस के बाद भी अगर छापा पड़ता है तो इसे उन की बदकिस्मती या फिर ऊपरी दबाव माना जा सकता है. कई बार इस में राजनेता भी शामिल पाए गए हैं.

ज्यादा पैसे उन सर्विस गर्ल्स को मिलते हैं, जो थर्ड ग्रेड की फिल्मों की हीरोइन या टीवी कलाकार होती हैं अथवा जिन्होंने किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में कोई छोटामोटा खिताब जीता होता है. उन्हें ग्राहक के सामने न केवल अलग तरह से पेश किया जाता है, बल्कि फीस के अलावा अन्य खर्चे भी ग्राहक को उठाने पड़ते हैं. इन के ग्राहक भी हाईप्रोफाइल होते हैं. अगर एक बार भरोसा जम जाए तो कस्टमर इन से सीधे संपर्क कर के इन्हें दूसरे शहर भी ले जा सकता है.

कोई भी सर्विस गर्ल अगर सीधे कस्टमर से डील करने लगती है तो इस से नुकसान लोकल गार्जियन यानी दलालों का होता है. इसलिए वे आजकल वेतन भी देने लगे हैं और ज्यादा से ज्यादा पैसा वसूलने के लिए इन्हें किसी भी दिन खाली नहीं छोड़ते. ग्राहक आजकल सोशल मीडिया के जरिए ज्यादा ढूंढे जाते हैं. फेसबुक और वाट्सऐप इस का बड़ा माध्यम है, जिन पर आमतौर पर सर्विस गर्ल्स की फोटो भी होती है और उन का रेट भी लिखा होता है.

कुछ सैक्सी और सुंदर सर्विस गर्ल्स केवल विदेशी ग्राहकों को ही सर्विस देती हैं, पर ऐसा अधिकतर पर्यटनस्थलों पर ही होता है. आगरा, जयपुर, बनारस और खजुराहो में विदेशी पर्यटक ज्यादा आते हैं, जो मुंहमांगे पैसे देते हैं और सुरक्षा कारणों मसलन पुलिस के छापों से बचने के लिए दिन में ही सर्विस लेना पसंद करते हैं.

ये लोग महंगे होटलों में ठहरते हैं, जहां कोई ज्यादा पूछताछ नहीं करता. कुछ ऐसे भी विदेशी पर्यटक होते हैं, जो सर्विस गर्ल्स को हफ्ते भर या इस से भी ज्यादा दिनों के लिए हायर करते हैं.

खूबसूरत सर्विस गर्ल्स केलिए यह पार्टटाइम काम होता है, क्योंकि उन की तगड़ी कमाई होती है. हालांकि कमाई सिमरन जैसी सर्विस गर्ल्स की भी अच्छी होती है लेकिन ये ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा कर रख लेना चाहती हैं, क्योंकि ये जानती हैं कि जैसेजैसे उम्र ढलती जाएगी, वैसेवैसे उन की कीमत भी घटती जाएगी.

घरगृहस्थी बसाना इन सर्विस गर्ल्स का सपना कम ही होता है. हालांकि कई बार भावुक और अकेले रहने वाले ग्राहक शादी की पेशकश भी कर देते हैं, लेकिन बंधन इन सर्विस गर्ल्स को रास नहीं आता. इन का मकसद सिर्फ पैसा कमाना होता है.

भोपाल में पकड़ी गई सिमरन छूटने के बाद पहले वापस अपने घर जालंधर जाएगी. कुछ दिन आराम करने के बाद पंजाब के आसपास ही सर्विस देगी. वह जानती है कि एकाध बार पेशी पर उसे भोपाल भी आना पड़ेगा, क्योंकि आजकल पहचान छिपाना मुश्किल होगया है और कभी भी वारंट तामील हो सकते हैं.

बाकी पेशियां कामिनी और सोनू संभाल लेंगे, जो हवालात में खुद को बेगुनाह बताते हुए अदालत में अपने बचाव की रिहर्सल कर रहे थे. ये लोग पांचवीं बार पकड़े गए हैं, लेकिन बेफिक्र हैं. जाहिर है, इन्हें पता है कि देहव्यापार के आरोप अदालत में साबित कर पाना मुश्किल काम होता है और आरोप साबित हो भी जाएं तो मामूली सजा और जुरमाने के बाद वे छूट कर फिर से इसी धंधे में लग जाएंगे.

सिर्फ बदन चाहिए प्यार नहीं

मैं एक ट्रांसजैंडर सैक्स वर्कर हूं. यह मेरी अपनी खुद की कहानी है. 12 जून, 1992 को आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के एक मिडिल क्लास परिवार में मेरा जन्म हुआ. हमारा बड़ा सा परिवार था. प्यार करने वाली मां और रोब दिखाने वाले पिता. चाचा, ताऊ, बूआ और ढेर सारे भाईबहन.

मैं पैदा हुआ तो सब ने यही समझा कि घर में लड़का पैदा हुआ है. मुझे लड़कों की तरह पाला गया, लड़कों जैसे बाल कटवाए, लड़कों जैसे कपड़े पहनाए, बहनों ने भाई मान कर ही राखियां बांधीं और मां ने बेटा समझ कर हमेशा बेटियों से ज्यादा प्यार दिया.

हमारे घरों में ऐसा ही होता है. बेटा आंखों का तारा होता है और बेटी आंख की किरकिरी.

सबकुछ ठीक ही चल रहा था कि अचानक एक दिन ऐसा हुआ कि कुछ भी ठीक नहीं रहा. मैं जैसेजैसे बड़ा हो रहा था, वैसेवैसे मेरे भीतर एक दूसरी दुनिया जन्म ले रही थी.

घर में ढेर सारी बहनें थीं. बहनें सजतींसंवरतीं, लड़कियों वाले काम करतीं तो मैं भी उन की नकल करता. चुपके से बहन की लिपस्टिक लगाता, उस का दुपट्टा ओढ़ कर नाचता.

मेरा मन करता कि मैं भी उन की ही तरह सजूं, उन की ही तरह दिखूं, उन की तरह रहूं. लेकिन हर बार एक मजबूत थप्पड़ मेरी ओर बढ़ता.

छोटा था तो बचपना समझ कर माफ कर दिया जाता. थोड़ा बड़ा हुआ तो कभी थप्पड़ पड़ जाता तो कभी बहनें मार खाने से बचा लेतीं. बहनें सब के सामने बचातीं और अकेले में समझातीं कि मैं लड़का हूं. मुझे लड़कों के बीच रहना चाहिए, घर से बाहर जा कर उन के साथ खेलना चाहिए.

लेकिन मुझे तो बहनों के बीच रहना अच्छा लगता था. बाहर मैदान में जहां सारे लड़के खेलते थे, वहां जाने में मुझे बहुत डर लगता. पता नहीं, क्यों वे भी मुझे अजीब नजरों से देखते और तंग करते थे. उन की अजीब नजरें वक्त के साथसाथ और भी डरावनी होती गईं.

मैं स्कूल में ही था, जब वह घटना घटी. दिसंबर की शाम थी. अंधेरा घिर रहा था. तभी उस दिन स्कूल के पास एक खाली मैदान में कुछ लड़कों ने मुझे घेर लिया. उन्हें लगता था कि मैं लड़की हूं. वे जबरदस्ती मुझे पकड़ रहे थे और मैं रो रहा था.

मैं खुद को छुड़ाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था. उन्होंने जबरदस्ती मेरे कपड़े उतारे और यह देख कर छोड़ दिया कि मेरे शरीर का निचला हिस्सा तो लड़कों जैसा ही था.

इस हाथापाई में मेरे पेट में एक सरिया लग गया. मेरी पैंट खुली थी और पेट से खून बह रहा था. वे लड़के मुझे उसी हालत में अंधेरे में छोड़ कर भाग गए.

मैं पता नहीं, कितनी देर तक वहां पड़ा रहा. फिर किसी तरह हिम्मत जुटा कर घर आया. मैं ने किसी को कुछ नहीं बताया. चोट के लिए कुछ बहाना बना दिया. घर वाले मुझे अस्पताल ले गए. मैं ठीक हो कर घर आ गया.

दुनिया से अलग मेरे भीतर जो दुनिया बन रही थी, वह वक्त के साथ और गहरी होती चली गई. मेरी दुनिया में मैं अकेला था. सब से अपना सच छिपाता, कई बार तो अपनेआप से भी. मैं अंदर से डरा हुआ था और बाहर से जिद्दी होता जा रहा था.

घर में सब मुझे प्यार करते थे, मां और बहन सब से ज्यादा. लेकिन जब बड़ा हो रहा था तो लगा कि उन का प्यार काफी नहीं है. स्कूल में एक लड़का था सनी. वह मेरा पहला बौयफ्रैंड था, मेरा पहला प्यार.

लेकिन बचपन का प्यार बचपन के साथ ही गुम हो गया. जैसेजैसे हम बड़े होते हैं, दुनिया देखते हैं, हमें लगता है कि हम इस से ज्यादा के हकदार हैं, इस से ज्यादा पैसे के, इस से ज्यादा खुशी के, इस से ज्यादा प्यार के. जब साइकिल थी तो मैं उस में ही खुश था. स्कूटी आई तो लगा कि स्कूटी की खुशी इस के आगे कुछ नहीं. साइकिल से मैं कुछ ही किलोमीटर जाता था और स्कूटी से दसियों किलोमीटर. लगा कि आगे भी रास्ते में और प्यार मिलेगा और खुशी.

मैं दौड़ता चला गया. लेकिन जब आंख खुली तो देखा कि रास्ता तो बहुत तय कर लिया था, पर न तो प्यार मिला, न खुशी. मेरे 9 बौयफ्रैंड रहे. हर बार मुझे लगता था कि यह प्यार ही मेरी मंजिल है, लेकिन हर बार मंजिल साथ छोड़ देती. सब ने मेरा इस्तेमाल किया, शरीर से, पैसों से, मन से. लेकिन हाथ किसी ने नहीं थामा.

सब को मुझ से सिर्फ सैक्स चाहिए था. सब ने शरीर को छुआ, मन को नहीं. सब ने कमर में हाथ डाला, सिर पर किसी ने नहीं रखा.

फिर एक दिन मैं ने फैसला किया कि अगर यही करना है तो पैसे ले कर ही क्यों न किया जाए.

मैं बाकी लड़कों की तरह पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था, अपना कैरियर बनाना चाहता था. मैं ने कानपुर यूनिवर्सिटी से एमकौम किया और सीए का इम्तिहान भी दिया.

अब तक जिंदगी उस मुकाम पर पहुंच चुकी थी कि मैं घर वालों और आसपास के लोगों के लिए शर्मिंदगी का सबब बन गया था. मैं समाज में, कालेज में मिसफिट था.

मैं लड़का था, लेकिन लड़कियों जैसा दिखता था. मर्द था, लेकिन औरत जैसा महसूस करता था. मेरा दिल औरत का था, लेकिन उस में बहुत सारी कड़वाहट भर गई थी.

प्यार की तलाश मुझे जिंदगी के सब से अंधेरे कोनों में ले गई. बदले में मिली कड़वाहट और गुस्सा.

अपनी पहचान छिपाने के लिए मैं दिल्ली आ गया. नौकरी ढूंढ़ने की कोशिश की, लेकिन मिली नहीं. शायद उस के लिए भी डिगरी से ज्यादा यह पहचान जरूरी थी कि तुम औरत हो या मर्द. मुझे यह खुद भी नहीं पता कि मैं क्या था.

यहां मैं कुछ ऐसे लोगों से मिला, जो मेरे जैसे थे. उन्हें भी नहीं पता था कि वे औरत हैं या मर्द. अजनबी शहर में रास्ता भूल गए मुसाफिर को मानो एक नया घर मिल गया.

कोई तो मिला, जिसे पता है कि मेरे जैसा होने का मतलब क्या होता है. कोई तो मिला, जो सैक्स नहीं करना चाहता था, लेकिन उस ने सिर पर हाथ रखा. थोड़ी करुणा मिली तो मन की सारी कड़वाहट आंखों के रास्ते बह निकली.

इन नए दोस्तों ने मुझे खुद को स्वीकार करना सिखाया, शर्म से नहीं सिर उठा कर. मैं ने उन के साथ एनजीओ में काम किया, अपने जैसे लोगों की काउंसिलिंग की, उन के मांबाप की काउंसिलिंग की.

सबकुछ ठीक होने लगा था. लेकिन दिल के किसी कोने में अब भी कोई कांटा चुभा था. प्यार की तलाश अब भी जारी थी. कुछ था, जिसे सिर्फ दोस्त नहीं भर सकते थे.

प्यार किया, फिर धोखा खाया. जिस को भी चाहा, वह रात के अंधेरे में प्यार करता और दिन की रोशनी में पहचानने से इनकार कर देता. और फिर मैं ने तय किया कि यह काम अब मैं पैसों के लिए करूंगा. शरीर लो और पैसे दो.

मुझे आज भी याद है मेरा पहला काम. एक सैक्स साइट पर तन्मय राजपूत के नाम से मेरा प्रोफाइल बना था. उसी के जरीए मुझे पहला काम मिला. नोएडा सैक्टर 11 में मैट्रो अस्पताल के ठीक सामने वाली गली में मैं एक आदमी के पास गया. वह आदमी मुझ से सिर्फ 4-5 साल बड़ा था.

मैं ने पहली बार पैसों के लिए सैक्स किया. उन की भाषा में इसे सैक्स नहीं, सर्विस कहते हैं. मैं ने उसे सर्विस दी, उस ने मुझे 1,500 रुपए. तब मेरी उम्र 22 साल थी.

उस दिन वे 1,500 रुपए हाथ में ले कर मैं सोच रहा था कि जेरी, तू ने जो रास्ता चुना है, उस में हो सकता है तुझे बदनामी मिले, लेकिन पैसा खूब मिलेगा. लेकिन हुआ यह कि बदनामी और गंदगी तो मिली, लेकिन पैसा नहीं.

इस रास्ते से कमाए गए पैसों का कोई हिसाब नहीं होता. यह जैसे आता है, वैसे ही चला जाता है. यह सिर उठा कर की गई कमाई नहीं होती, सिर छिपा कर अंधेरे में की गई कमाई होती है.

एक बार जो मैं उस रास्ते पर चल पड़ा तो पीछे लौटने के सारे रास्ते बंद हो गए. अब हर रात यही मेरी जिंदगी है. एक शादीशुदा आदमी की जिंदगी में कुछ दिनों या हफ्तों का अंतराल हो सकता है, लेकिन मेरी जिंदगी में नहीं. हर रात हमें तैयार रहना होता है. 15 ग्राहक हैं मेरे. कोई न कोई तो मुझे बुलाता ही है.

आप को लगता है कि सैक्स बहुत सुंदर चीज है, जैसे फिल्मों में दिखाते हैं. लेकिन मेरे लिए वह प्यार नहीं, सर्विस है. और सर्विस मेहनत और तकलीफ का काम है. हमारी लाइन में सैक्स ऐसे होता है कि जो पैसे दे रहा है, उस के लिए वह खुशी है और जो पैसे ले रहा है, उस के लिए तकलीफ.

ग्राहक जो डिमांड करे, हमें पूरी करनी होती है. जितना ज्यादा पैसा, उतनी ज्यादा तकलीफ. लोग वाइल्ड सैक्स करते हैं, डर्टी सैक्स करते हैं, मारते हैं, कट लगाते हैं. लोगों की अजीबअजीब फैंटैसी हैं. किसी को तकलीफ पहुंचा कर ही मजा मिलता है. किसी को तब तक मजा नहीं आता, जब तक सामने वाले के शरीर से खून न निकल जाए.

मैं यह सबकुछ बिना किसी नशे के पूरे होशोहवास में करता हूं. जो कर रहा हूं, उस से मेरे शरीर को काफी नुकसान हो रहा है. अगर नशा करूंगा, तो मैं अच्छी सर्विस नहीं दे पाऊंगा.

ग्राहक नशा करते हैं और मैडिकल स्टोर से सैक्स पावर बढ़ाने की दवा ले कर आते हैं और मैं पूरे होश में होता हूं. कई बार पूरीपूरी रात यह सब चलता है.

दिन के उजाले में शहर की सड़कों पर बड़ीबड़ी गाडि़यों में जो इज्जतदार चेहरे घूम रहे हैं, कोई नहीं जानता कि रात के अंधेरे में वही हमारे ग्राहक होते हैं. बड़ेबड़े अफसर, नेता, पुलिस वाले… मैं नाम गिनाने लग जाऊं तो आप की आंखें फटी की फटी रह जाएं.

क्या पता कि आप के हाईफाई दफ्तर में घूमने वाली कुरसी पर बैठा सूटबूट वाला आदती रात के अंधेरे में हमारा ग्राहक हो.

एक बार मैं कनाट प्लेस में एक औफिस में इंटरव्यू देने गया. वह एक वक्त था, जब मैं इस जिंदगी से बाहर आना चाहता था. वहां जो आदमी मेरा इंटरव्यू लेने के लिए बैठा था, वह मेरा क्लाइंट रह चुका था.

उस ने कहा, ‘‘इंटरव्यू छोड़ो, यह बताओ, फिर कब मिल रहे हो?’’

मैं कोई जवाब नहीं दे पाया. पता नहीं, मुझे क्यों इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई थी. मैं उस का सामना नहीं कर पाया या अपना. मैं बिना इंटरव्यू दिए ही वापस लौट आया.

मेरी नजर में सैक्स शरीर की भूख है. प्यार कुछ नहीं होता. जहां प्यार हो, सैक्स जरूरी नहीं. दुनिया में जो प्यार का खेल चलता है, उस का सच कभी हमारी दुनिया में आ कर देखिए. अच्छेखासे शादीशुदा इज्जतदार लोग आते हैं हमारे पास अपनी भूख मिटाने.

एक बार एक आदमी मेरे पास आया और बोला, ‘‘मेरी बीवी पेट से है. मुझे रिलीज होना है.’’

मैं ने उस आदमी के साथ ओरल सैक्स किया था. यह सब क्या है? एक औरत जो तुम्हारी पत्नी है, उस के पेट में तुम्हारा ही बच्चा पल रहा है, वह तुम्हें सैक्स नहीं दे सकती तो तुम सैक्स वर्कर के पास जाओगे?

ज्यादातर मर्दों के लिए औरत के सिर्फ 2 ही काम हैं कि वह उन के साथ सोए और उन के मां बाप की सेवा करे. 90 फीसदी मर्दों की यही हकीकत है. ज्यादातर लोग अपनी बीवी से प्यार नहीं करते हैं.

नादान मोहब्बत का नतीजा

उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के थाना छत्ता की गली कचहरी घाट में रामअवतार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की वह शादी कर चुका था, मंझली के लिए लड़का ढूंढ रहा था. सब से छोटी शिल्पी हाईस्कूल में पढ़ रही थी.

शिल्पी की उम्र  भले ही कम थी, पर उस की शोखी और चंचलता से रामअवतार और उस की पत्नी चिंतित रहते थे. पतिपत्नी उसे समझाते रहते थे, पर 15 साल की शिल्पी कभीकभी बेबाक हो जाती थी. इस के बावजूद रामअवतार ने कभी यह नहीं सोचा था कि उन की यह बेटी एक दिन ऐसा काम करेगी कि वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

कचहरी घाट से कुछ दूरी पर जिमखाना गली है. वहीं रहता था शब्बीर. उस का बेटा था इरफान, जो एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. इरफान के अलावा शब्बीर के 2 बेटे और थे.

शिल्पी जिमखाना हो कर ही स्कूल आतीजाती थी. वह जब स्कूल जाती तो इरफान अकसर उसे गली में मिल जाता. आतेजाते दोनों की निगाहें टकरातीं तो इरफान के चेहरे पर चमक सी आ जाती. इस से शिल्पी को लगने लगा कि इरफान शायद उसी के लिए गली में खड़ा रहता है.

शिल्पी का सोचना सही भी था. दरअसल शिल्पी इरफान को अच्छी लगने लगी थी. यही वजह थी, वह उसे देखने के लिए गली में खड़ा रहता था. कुछ दिनों बाद वह शिल्पी से बात करने का बहाना तलाशने लगा. इस के लिए वह कभीकभी उस के पीछेपीछे कालोनी के गेट तक चला जाता, पर उस से बात करने की हिम्मत नहीं कर पाता. जब उसे लगा कि इस तरह काम नहीं चलेगा तो एक दिन उस के सामने जा कर उस ने कहा, ‘‘मैं कोई गुंडालफंगा नहीं हूं. मैं तुम्हारा पीछा किसी गलत नीयत से नहीं करता. मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

CRIME

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ शिल्पी ने पूछा.

‘‘बात सिर्फ इतनी है कि मैं तुम से दोस्ती करना चाहता हूं.’’ इरफान ने कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम से दोस्ती नहीं करना चाहती. मम्मीपापा कहते हैं कि लड़कों से दोस्ती ठीक नहीं.’’ शिल्पी ने कहा और मुसकरा कर आगे बढ़ गई.

इरफान उस की मुसकराहट का मतलब समझ गया. हिम्मत कर के उस ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है, तुम सोचसमझ लेना. मैं तुम्हें सोचने का समय दे रहा हूं.’’

‘‘कोई देख लेगा.’’ कह कर शिल्पी ने अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई. किसी लड़के ने उसे पहली बार ऐसे छुआ था. उस के शरीर में बिजली सी दौड़ गई थी. शिल्पी उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी जहां आसानी से फिसलने का डर रहता है. इरफान पहला लड़का था, जिस ने उस से दोस्ती की बात कही थी, पर मांबाप और समाज का डर आड़े आ रहा था.

इरफान के बारे में शिल्पी ज्यादा कुछ नहीं जानती थी. बस इतना जानती थी कि वह जिमखाना गली में रहता है. उसे उस का नाम भी पता नहीं था. धीरेधीरे इरफान ने उस के दिल में जगह बना ली. मिलने पर इरफान उस से थोड़ीबहुत बात भी कर लेता. पर उसे प्यार के इजहार का मौका नहीं मिल रहा था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘चलो, ताजमहल देखने चलते हैं. वहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

शिल्पी ने हां कर दी तो दोनों औटो से ताजमहल पहुंच गए. वहां शिल्पी को जब पता चला कि उस का नाम इरफान है तो उस ने कहा, ‘‘ओह तो तुम मुसलमान हो?’’

‘‘हां, मुसलमान हूं तो क्या हुआ? क्या मुसलमान प्यार नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, ठीकठाक कमाता भी हूं. और मैं वादा करता हूं कि जीवन भर तुम्हारा बनकर रहूंगा. तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.’’

इरफान देखने में अच्छाखासा था और ठीकठाक कमाई भी कर रहा था, केवल एक ही बात थी कि वह मुसलमान था. पर आज के जमाने में तमाम अंतरजातीय विवाह होते हैं. यह सब सोच कर शिल्पी ने इरफान की मोहब्बत स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद वह अकसर उस के साथ घूमनेफिरने लगी.

मोहल्ले वालों ने जब शिल्पी को इरफान के साथ देखा तो तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने रामअवतार को बताया कि वह अपनी बेटी को संभाले. वह एक मुसलमान लड़के के साथ घूमतीफिरती है. कहीं उस की वजह से कोई बवाल न हो जाए.

बेटी के बारे में सुन कर रामअवतार के कान खड़े हो गए. दोपहर में जब वह घर पहुंचा तो पता चला कि शिल्पी अभी तक घर नहीं आई है. पत्नी ने बताया कि वह रोज देर से आती है. कहती है कि एक्स्ट्रा क्लास चल रही है.

रामअवतार दुकान पर लौट गया. कुछ देर बाद पत्नी का फोन आया कि शिल्पी आ गई है तो वह घर आ गया. उस ने शिल्पी से पूछताछ की तो उस ने कहा कि वह किसी लड़के से नहीं मिलती. छुट्टी के बाद मैडम क्लास लेती हैं. इसलिए देर हो जाती है.

रामअवतार जानता था कि शिल्पी झूठ बोल रही है. वह खुद उसे पकड़ना चाहता था, इसलिए उस ने उस से कुछ नहीं कहा. कुछ दिनों तक शिल्पी से कोई टोकाटाकी नहीं हुई तो वह निश्ंिचत हो गई. वह इरफान के साथ घूमनेफिरने लगी. फिर एक दिन रामअवतार ने उसे इरफान के साथ देख लिया. उस ने शिल्पी को डांटाफटकारा ही नहीं, उस का स्कूल जाना भी बंद करा दिया.

बंदिश लगने से शिल्पी का प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया. वह उस से मिलने के लिए बेचैन रहने लगी, जिस से उसे अपने ही घर वाले दुश्मन नजर आने लगे. अब घर उसे कैदखाना लगने लगा था. उस का मन कर रहा था कि किसी तरह वह इस चारदीवारी को तोड़ कर अपने प्रेमी के पास चली जाए. एक दिन उसे वह मौका मिला तो वह इरफान के साथ भाग गई.

हिंदू लड़की को मुसलमान लड़का भगा कर ले गया था. इस बात पर इलाके में तनाव फैल गया. थाना छत्ता में 28 अगस्त, 2010 को रामअवतार की तरफ से शिल्पी को भगाने वाले इरफान के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया. इस के बाद पुलिस सक्रिय हो गई. जल्दी ही पुलिस ने दोनों को ढूंढ निकाला. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया. चूंकि शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए अदालत ने उसे उस के पिता को सौंप दिया और इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी के जेल जाने से शिल्पी बहुत दुखी थी. वह अपने पिता के खिलाफ खड़ी हो गई. मांबाप और रिश्तेदारों ने शिल्पी को लाख समझाने की कोशिश की, पर उस के दिलोदिमाग से इरफान नहीं निकला. शिल्पी की उम्र भले ही कमसिन थी, पर उस की मोहब्बत तूफानी थी. जबकि समाज और कानून की नजर में उस की मोहब्बत बेमानी थी, क्योंकि वह नाबालिग थी.

इरफान 3 महीने बाद जेल से बाहर आ गया. उस के जेल से बाहर आने पर शिल्पी बहुत खुश हुई. दोनों के बीच चोरीछिपे मोबाइल से बातचीत होने लगी. शिल्पी पर नजरों का सख्त पहरा था. उसे घर से निकलने की इजाजत नहीं थी. वह अपने प्रेमी से मिलने के लिए छटपटा रही थी, पर रामअवतार और उस की पत्नी माया सतर्क थे.

शिल्पी और इरफान साथसाथ रहने का मन बना चुके थे. मांबाप की लाख निगरानी के बावजूद एक दिन रात में शिल्पी प्रेमी के पास पहुंच गई. इरफान इस बार उसे ले कर इलाहाबाद चला गया. इरफान ने लव मैरिज के लिए हाईकोर्ट के वकीलों से बात की, लेकिन शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए कोई मदद नहीं कर सका.

इस के बाद इरफान ने एक काजी की मदद से शिल्पी से निकाह कर लिया. शिल्पी दोबारा घर से भागी थी. इस बार किसी ने विरोध नहीं किया, पर रामअवतार परेशान था. वह मदद के लिए पुलिस के पास पहुंचा तो पुलिस ने इरफान के घर वालों पर दबाव डाला. करीब एक महीने बाद इरफान शिल्पी के साथ वापस आ गया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, शिल्पी अभी भी नाबालिग थी, लेकिन इस बार उस ने पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया. तब अदालत ने उसे नारी निकेतन तो इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी युगल को कानून ने एक बार फिर जुदा कर दिया. लेकिन उन की मोहब्बत जुनूनी हो गई थी. शिल्पी अब अपने बालिग होने का इंतजार कर रही थी. इस से तय हो गया कि बाहर आने के बाद दोनों साथसाथ रहेंगे. तब साथ रहने का उन के पास कानूनी अधिकार होगा.

14 महीने बाद जब शिल्पी नारी निकेतन से बाहर आई, तब तक इरफान भी जेल से छूट चुका था. हालांकि नारी निकेतन के दरवाजे पर शिल्पी के मांबाप मौजूद थे, लेकिन शिल्पी ने साफ कहा कि वह अपने शौहर के साथ जाएगी. बेबस मांबाप देखते ही रह गए और बेटी प्रेमी के साथ चली गई. क्योंकि अब वह बालिग थी और अपनी मरजी की मालिक थी.

मांबाप के प्रति उस के मन में प्यार नहीं, नफरत थी. जिन के कारण उसे नारी निकेतन में रहना पड़ा तो प्रेमी को जेल में. शिल्पी जब नहीं मानी तो मांबाप ने भी उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. अब वह इस दर्द को भूलना चाहते थे कि बेटी ने समाज में उन्हें कितना जलील किया था.

शिल्पी ने अपनी दुनिया प्रेमी के साथ बसा ली थी. उस ने कभी भी नहीं जानना चाहा कि उस के कारण मांबाप का क्या हाल हुआ. किस तरह से वो अपनी तारतार हुई इज्जत के साथ जी रहे थे.

धीरेधीरे प्यार का नशा उतरने लगा और शिल्पी को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन वह पिता के घर पहुंच गई. मां का दिल पिघल गया, उस ने उसे गले से लगा लिया. उस दिन के बाद शिल्पी चोरीछिपे पिता के घर जाने लगी.

CRIME

इरफान का काफी पैसा पुलिसकचहरी और इधरउधर की भागदौड़ में खर्च हो गया था. उस ने फिर से जूता फैक्ट्री में काम शुरू कर दिया था, लेकिन शिल्पी की ख्वाहिशें बढ़ रही थीं. उस का खयाल था कि शादी के बाद शौहर उसे एक रंगीन दुनिया में ले जाएगा, पर उस ने महसूस किया कि जिंदगी उतनी रंगीन नहीं है, जैसा कि उस ने सोचा था. उस की चाहतों की उड़ान बहुत ऊंची थी. उसे लग रहा था कि इरफान ने जो खुशियां देने का वादा किया था, वह पूरा नहीं कर पा रहा है.

एक दिन उस ने इरफान से कहा, ‘‘जब तक तुम प्रेमी थे, तब तक मोहब्बत से लबरेज थे. लेकिन अब जब शौहर हो गए हो तो लगता है कि तुम्हारी मोहब्बत भी ठंडी पड़ गई है.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारी मोहब्बत में मैं 2-2 बार जेल गया हूं. पुलिस के जुल्म सहे हैं. अब तुम मुझे ही ताने दे रही हो.’’ इरफान ने कहा.

‘‘मैं भी तो तुम्हारी खातिर नारी निकेतन में रही. मांबाप का घर छोड़ा, आज भी उन की उपेक्षा सह रही हूं.’’ शिल्पी ने तुनक कर कहा.

इसी तरह के छोटेछोटे झगड़ों में एक दिन इरफान ने उसे 2 तमाचे जड़ दिए तो शिल्पी हैरान रह गई पहले तो वह कहता था कि उसे फूलों की तरह रखेगा, उस ने उस पर हाथ उठा दिया. उस ने कहा कि अगर उसे पता होता कि उस की मोहब्बत इतनी कमजोर होगी तो वह उसे कभी स्वीकार न करती.

शिल्पी को लगा कि उस ने गलती कर दी है. लेकिन अब उसे जिंदगी इरफान के साथ ही गुजारनी थी. आखिर हिम्मत कर के वह मायके गई और रोरो कर मां को अपना दुख सुनाया. उस ने कहा कि इरफान पर काफी कर्जा हो गया, जिस से वह तनाव में रहता है. मां ने बेटी का दुख सुना और उसे माफ भी कर दिया. लेकिन जब रामअवतार को पता चला कि बेटी घर आई थी तो वह गुस्से से भर उठा. उस ने पत्नी से साफ कह दिया कि जिस आदमी को उस ने दामाद माना ही नहीं, वह उस की मदद कतई नहीं कर सकता.

घर में अब आए दिन झगड़े होने लगे थे. ससुराल में शिल्पी का कोई हमदर्द नहीं था. मायके वाले भी नहीं अपनाएंगे, शिल्पी यह भी जानती थी. वह तनाव में रहने लगी. उसे लगने लगा कि जिंदगी कैद के सिवाय कुछ नहीं है.

इरफान की समझ में आ गया कि मोहब्बत का खेल बहुत हो चुका है. उसे जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए पैसे की जरूरत थी, जिस के लिए मेहनत जरूरी थी. बेटी ने भले ही परिवार को दर्द दिया था, पर ममता मरी नहीं थी. मांबाप बेटी के लिए परेशान थे, पर वह उसे अपनाना नहीं चाहते थे.

12 दिसंबर, 2016 को रामअवतार को किसी ने फोन कर के बताया कि शिल्पी को मार दिया गया है. बेटी की मौत की खबर से रामअवतार सदमे में आ गया. उस ने तुरंत माया को यह खबर सुनाई और पत्नी के साथ शब्बीर के घर पहुंच गया, जहां मकान की ऊपरी मंजिल पर बेटी का शव पलंग पर पड़ा था. उस के गले पर जो निशान थे, उस से साफ लग रहा था कि उसे गला घोंट कर मारा गया है. बेटी की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगा.

पुलिस को भी खबर मिल गई थी. थाना छत्ता के थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह मय फोर्स के घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने रामअवतार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि करीब सवा महीने पहले बेटी को फोन कर के बताया था कि इरफान उसे मारतापीटता है और मायके से पैसा लाने को कहता है.

बेटी ने परिवार को बड़ा जख्म दिया था, इस कारण वह बेटी से नाराज था. इसलिए उस समय उसने उस से ज्यादा बात नहीं की थी. वह यह नहीं जानता था कि इरफान उसे जान से ही मार डालेगा.

इरफान और उस के घर वाले फरार हो चुके थे. पुलिस ने रामअवतार और मोहल्ले वालों की मौजूदगी में घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

रामअवतार की तरफ से थाना छत्ता में शब्बीर और उस के बेटों इरफान, जमीर, फुरकान व शाहनवाज के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि शिल्पी की मौत दम घुटने से हुई थी. इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि यह हत्या का मामला था. पुलिस अब आरोपियों के पीछे लग गई. पुलिस ने आरोपियों के कई ठिकानों पर छापे मारे, लेकिन कोई भी हाथ नहीं लगा.

घटना के हफ्ते भर बाद शब्बीर पुलिस की गिरफ्त में आ गया. इस के बाद धीरेधीरे सभी आरोपी पकड़े गए. शब्बीर ने बताया था कि उस ने बहू को नहीं मारा. अगर उसे कोई परेशानी होती तो वह बेटे का विवाह हिंदू लड़की से न होने देता. उस ने उसे सम्मान के साथ घर में रहने की जगह दी.

शब्बीर के अनुसार शिल्पी की मौत में उस का कोई हाथ नहीं है. इरफान शिल्पी के साथ ऊपर के कमरे में रहता था. जबकि अन्य लोग नीचे रहते थे. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज कराई गई थी, इसलिए पुलिस ने उस का बयान ले कर उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने एकएक कर के सभी को जेल भेज दिया.

सिर्फ इरफान पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस ने उस की भी सरगर्मी से तलाश शुरू की तो जून, 2017 में उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन उस ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया. उस का कहना था कि वह शिल्पी से मोहब्बत करता था. शिल्पी को खुश रखने के लिए वह मेहनत कर के पैसा कमा रहा था. उस ने खुद ही फांसी लगा कर जान दी है.

इरफान भी जेल चला गया. शिल्पी मोहब्बत में इस कदर बागी हुई कि अपनों के मानसम्मान की भी परवाह नहीं की, पर उस को यह नहीं मालूम था कि समाज के नियमों को तोड़ने वालों को समाज माफ नहीं करता.

रामअवतार भले बेटी से नाराज था, पर अपनी गुमराह बेटी को उस की मौत के बाद माफ कर चुका है, अब वह बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है. वह नादान बेटी को गुमराह करने वालों को माफ नहीं करना चाहता बल्कि उन्हें सजा दिलाना चाहता है.

जिस्म की आग में मां बेटी ने खेला खूनी खेल

8 नवंबर, 2016 को किसी ने राजस्थान के बाड़मेर जिले के थाना पचपदरा पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि मंडापुरा साजियाली फांटा के पास सड़क किनारे झाडि़यों में एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी जयकिशन सोनी पुलिस टीम के साथ सूचना में बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां बबूल की झाडि़यों में 25-26 साल के एक युवक की लाश पड़ी थी. उस के गले में रस्सी का फंदा लगा था. इस से यही लग रहा था कि उस की हत्या रस्सी से गला घोंट कर की गई थी. लाश के पास किसी आदमी के पैरों के निशान के साथ मोटरसाइकिल के टायरों के भी निशान थे.

पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, पर मृतक को कोई भी पहचान नहीं सका. थानाप्रभारी ने अज्ञात युवक की लाश मिलने की सूचना बाड़मेर के एसपी डा. गगनदीप सिंगला और बालोतरा के एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू को भी दे दी थी.

कुछ ही देर में एसपी और एडिशनल एसपी भी मौके पर पहुंच गए. लाश का निरीक्षण कर उन्होंने भी वहां मौजूद लोगों से बात की. इस के बाद दोनों पुलिस अधिकारी थानाप्रभारी जयकिशन सोनी को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए बालोतरा के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सलाहमशविरा कर के लाश के फोटो वाट्सएप ग्रुप में शेयर कर लोगों से शिनाख्त की अपील की. पुलिस की यह तरकीब काम कर गई और किसी ने उस की शिनाख्त कर दी. उस का नाम गोमाराम था और वह थाना धोरीमन्ना के गांव कोठाला के रहने वाले गुमानाराम का बेटा था.

जयकिशन सोनी ने गुमानाराम को बुलवाया तो उन्होंने बालोतरा अस्पताल जा कर लाश देखी और उस की शिनाख्त अपने बेटे गोमाराम के रूप में कर दी. शिनाख्त हो गई तो पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों को सौंप दी गई. घर वालों ने पुलिस को बताया कि गोमाराम की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. इस से मामला और पेचीदा हो गया. पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी.

एसपी डा. गगनदीप सिंगला ने इस केस को सुलझाने के लिए 2 पुलिस टीमें बनाई. पहली टीम में थाना नागाणा के थानाप्रभारी देवीचंद ढाका, एसपी (स्पेशल टीम) कार्यालय से भूपेंद्र सिंह तथा ओमप्रकाश और दूसरी टीम में कल्याणपुर के थानाप्रभारी चंद्र सिंह व उन के थाने के तेजतर्रार सिपाहियों को शामिल किया.

दोनों टीमों का निर्देशन एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू कर रहे थे. पुलिस ने मृतक के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि बाटाड़ू गांव का एक लड़का मृतक के साथ आताजाता रहता था. 2 महीने पहले वह गांव लुखू स्थित मृतक की ससुराल भी गया था.

उस युवक की पहचान गंगाराम निवासी दुर्गाणियों का तला, थाना लुंदाड़ा गिड़ा, के रूप में हुई. पुलिस ने 13 नवंबर, 2016 को उसे जोधपुर से धर दबोचा. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो सारा सच सामने आ गया.

उस ने बताया कि गोमाराम की हत्या में उस की पत्नी वीरो और सास जीतो भी शामिल थीं. पुलिस ने 14 नवंबर की सुबह उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से पूछताछ के बाद गोमाराम की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजस्थान का बाड़मेर जिला जाट बाहुल्य है. यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेतीकिसानी है. पहले राजस्थान में बालविवाह का प्रचलन था. दादादादी अथवा नानानानी की मौत होने पर मौसर (मृत्युभोज) की कड़ाही पर नन्हें बच्चों का बालविवाह करने की परंपरा थी.

अक्षय तृतीया को भी हजारों की संख्या में बालविवाह किए जाते थे. इसी जिले के गांव कोठाला के रहने वाले गोमाराम का भी 15-16 साल पहले लुखू गांव के श्रवणराम चौधरी की बेटी के साथ बालविवाह हुआ था. उस समय वीरो की उम्र 4 साल थी, जबकि गोमाराम 10 साल का था.

घर वालों ने गुड्डेगुडि़यों के खेल की तरह छोटी सी उम्र में इन दोनों की शादी कर दी थी. इस से पहले गोमाराम की शादी अपनी ही बिरादरी की एक लड़की के साथ हो गई थी, पर गौना होने से पहले ही उस की बीवी टांके में डूब कर मर गई थी. राजस्थान में अंडरग्राउंड बने पानी के टैंक को टांका कहते हैं.

वक्त के साथ गोमाराम और वीरो जवान हो गए. दोनों ने घर वालों से सुन रखा था कि उन की बचपन में ही शादी हो चुकी है. गोमाराम ने स्कूली पढ़ाई के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, जबकि वीरो जब 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तभी उस का गौना गोमाराम से कर दिया गया था.

वीरो ने अपने वैवाहिक जीवन को ले कर कई रंगीन ख्वाब देखे थे, मगर गौने के बाद जब गोमराम से उस का सामना हुआ तो उस के ख्वाब टूट गए. किसी सुंदरस्वस्थ युवक के बजाय उस का पति दुबलापतला और शराबी था. चूंकि उस के साथ उस की शादी हो चुकी थी, इसलिए निभाना उस की मजबूरी थी.

गोमाराम हर समय शराब के नशे में डूबा रहता था. पत्नी से जैसे उसे कोई लगाव ही नहीं था. वह तो केवल शराब को अपनी जरूरत समझता था. नईनवेली दुलहन का दुखसुख पूछना तो दूर, वह उस से रात में भी बात नहीं करता था. शराब पी कर वह बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क जाता था.

गौने के कुछ दिनों बाद ससुराल से वीरो जब मायके आई तो उस ने अपना दुखड़ा अपनी मां जीयो से कह सुनाया. उस ने साफसाफ कहा कि ऐसे शराबी के साथ वह जिंदगी कैसे गुजारेगी. बेटी की व्यथा सुन कर जीयो को भी महसूस हुआ कि बचपन में गोमाराम के साथ बेटी की शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी.

मां ने उसे दिलासा दी कि वक्त के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा. गौने के बाद वीरो स्कूल की गर्मियों की छुट्टियों में ससुराल गई. मगर पति की शराब की आदत में कोई सुधार नहीं आया. गौने के डेढ़ साल तक वह ससुराल में रही. उस ने अपने प्यार से पति का दिल जीतना चाहा, पर पति पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

वीरो ने मायके आ कर मां को सारी बातें बताईं तो बेटी का दुख देख कर जीयो को बड़ा झटका लगा. गोमाराम जोधपुर शहर की एक फैक्ट्री में नौकरी करता था. उस के साथ गंगाराम और उस का भाई चूनाराम भी काम करते थे. तीनों आपस में अच्छे दोस्त थे.

गोमाराम अपनी ज्यादातर कमाई शराब पर उड़ा देता था. वहीं गंगाराम और चूनाराम शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे. वे अपनी तनख्वाह बचा कर रखते थे.  गोमाराम की बीवी वीरो पिछले 6 महीने से मायके में थी. गोमाराम कभीकभी उस से फोन पर बातें कर लेता था. वह उस से आने को कहती तो वह पैसे न होने का बहना कर देता. उस के पास पैसे होते भी कहां से, क्योंकि वह सारे पैसे शराब में उड़ा देता था.

एक बार पैसे न होने पर गोमाराम ने अपना मोबाइल चूनाराम को बेच दिया. चूनाराम ने वह मोबाइल अपने भाई गंगाराम को दे दिया. वीरो को यह बात पता नहीं थी, इसलिए जब उस ने पति को फोन किया तो फोन गंगाराम ने रिसीव किया. वीरो ने पूछा, ‘‘कैसे हो?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं. तुम कैसी हो?’’ गंगा ने पूछा.

उस की आवाज सुन कर वीरो चौंकी, क्योंकि एक तो वह आवाज उस के पति की नहीं थी, दूसरे पति ने कभी उस से इतनी तमीज से बात नहीं की थी. उस ने कहा, ‘‘यह नंबर तो गोमाराम का है, आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं गोमाराम का दोस्त गंगाराम बोल रह हूं. उन का फोन मैं ने ले लिया है. आप इसी नंबर पर फोन करना, मैं गोमा से बात करा दूंगा.’’

‘‘बात क्या करनी है, उन्हें तो शराब पीने से ही फुरसत नहीं है. उन के लिए कोई मरे या जिए, उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है.’’ वीरो ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘आप सही कह रही हैं, उसे सचमुच किसी की परवाह नहीं है. आप को मायके गए कितने दिन हो गए, मिलने तक नहीं जाता. पता नहीं कैसा आदमी है. दिनरात शराब में मस्त रहता है.’’

‘‘बिलकुल सही कह रहे हैं आप.’’ वीरों ने लंबी सांस ले कर कहा.

इस बातचीत से गंगाराम समझ गया कि वीरो अपने पति से खुश नहीं है. इसलिए जब भी वीरो उस से बात करती, वह उस से बड़ी तहजीब से बातें करता.

गंगाराम की यही आदत वीरो को भा गई. वह अकसर उस से मोबाइल पर बातें करने लगी. उसे गंगारम ने बताया कि उस का बचपन में बालविवाह हुआ था. वीरो जब भी गंगाराम से बातें करती, उसे अपनेपन का अहसास होता.

थोड़े दिनों तक फोन पर होने वाली बातों से दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. वीरों ने अपनी मां जीयो को भी गंगाराम के बारे में बता दिया. जीयो ने भी गंगाराम से बात की. उसे भी गंगाराम का व्यवहार सही लगा. इस के बाद जीयो ने गंगाराम से कहा कि गोमाराम के साथ उस की बेटी खुश नहीं है. अगर वीरो का उस से तलाक हो जाए तो नाताप्रथा के तहत वह बेटी का ब्याह उस के साथ कर देगी.

इस बात से गंगाराम का दिल बागबाग हो उठा. वीरो ने भी गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम का दोस्त है, उसे तलाक के लिए मनाए. एक दिन गोमा जब शराब के नशे में धुत था तो गंगाराम ने उस से कहा, ‘‘तुम वीरो का जीवन क्यों बरबाद कर रहे हो. उसे तलाक दे दो.’’

‘‘तलाक… मैं उसे इस जनम में तो तलाक नहीं दूंगा. वह अपने आप को बहुत सुंदर और होशियार समझती है. मुझे शराबी, निकम्मा और न जाने क्याक्या कहती है. इसलिए जीते जी मैं उसे तलाक नहीं दे सकता. वह शादीशुदा हो कर भी विधवा की तरह जीती रहे. बस मैं यही चाहता हूं?’’ गोमाराम ने कहा.

गंगाराम ने यह बात जब वीरो को बताई तो उस ने अपनी मां से बात की. इस के बाद उन्होंने गंगाराम को अपने गांव लुखू बुलाया. यह 2 महीने पहले की बात है. गंगाराम अपनी प्रेमिका वीरो से मिलने लुखू पहुंच गया. वहां पर गंगाराम और वीरो ने एकदूसरे को देखा.

दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया. बस फिर क्या था, मांबेटी ने गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम से वीरो का तलाक करवा दे. अगर वह तलाक के लिए राजी न हो तो उसे रास्ते से हटा दे. गंगाराम को भी उन की बात पसंद आ गई.

गंगाराम गोमाराम को रास्ते से हटाने का मौका तलाशने लगा. वीरो और उस की मां की गंगाराम से अकसर मोबाइल पर बातें होती रहती थीं. दोनों उसे उकसाती रहती थीं कि जल्द से जल्द गोमाराम का पत्ता साफ करे. गंगाराम भी इसी धुन में था, मगर मौका नहीं मिल रहा था.

गोमाराम ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की बीवी और सास उस की हत्या का तानाबाना बुन रही हैं. वह तो अपनी मस्ती में मस्त था. आखिर 7 नवंबर, 2016 को गंगाराम को उस समय मौका मिल गया, जब दिन में ही गोमाराम उसे शराब के नशे में धुत मिल गया. इस मौके को भला वह हाथ से क्यों जाने देता.

उस ने रात होने का इंतजार किया. रात करीब 8 बजे गंगाराम ने अपनी मोटरसाइकिल पर गोमाराम को बिठाया और गांव चलने को कहा. गोमाराम उस मना नहीं कर सका. बालोतरा रोड पर मोटरसाइकिल पहुंची तो रास्ते में भांडू गांव के ठेके से गंगाराम ने शराब की बोतल खरीद कर गोमाराम को दी. एक जगह बैठ कर वह उसे पी गया. इस के बाद दोनों ने कल्याणपुर के एक ढाबे पर खाना खाया.

गंगाराम को लग रहा था कि गोमाराम अभी भी होश में है. उस ने पचपदरा में जोधपुर रोड पर उसे फिर शराब पिलाई. इस से उसे गहरा नशा हो गया. मोटरसाइकिल के पीछे बैठ कर वह लहराने लगा. गंगाराम इसी मौके की ताक में था. वह गोमा को मोटरसाइकिल से उतार कर बबूल की झाडि़यों के बीच ले गया और वहीं उस का गला दबा कर मार डाला. लाश को वहीं पड़ी छोड़ कर वह मोटरसाइकिल से जोधपुर चला गया.

गंगाराम ने गोमाराम की हत्या करने की बात वीरो तथा जीयो को बता दी थी. वीरो खुश थी कि अब गंगाराम से वह नाता के तहत ब्याह कर लेगी. गंगाराम भी यही सोच रहा था. मगर पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेरते हुए 5 दिनों में इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 16 नवंबर, 2016 को तीनों को पचपदरा की कोर्ट में पेश किया, जहां से वीरो और जीयो को केंद्रीय कारागार जोधपुर और गंगाराम को बालोतरा जेल भेज दिया गया. क्योंकि बालोतरा जेल में महिलाओं को रखने की जगह नहीं है. इस मामले में भी वही हुआ, जो ऐसे मामलों में होता है. थानाप्रभारी जयकिशन सोनी इस मामले की जांच कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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