500 टुकड़ो में बंटा दोस्त

मुंबई के विरार (पश्चिम) में स्थित है ग्लोबल सिटी. यहीं पर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट बने हुए हैं. जिन में सैकड़ों लोग रहते हैं. 20 जनवरी, 2019

को इस सोसाइटी में रहने वाले लोग जब नीचे आ जा रहे थे, तभी उन्हें तेज बदबू आती महसूस हुई. वैसे तो यह बदबू पिछले 2 दिनों से महसूस हो रही लेकिन उस दिन बदबू असहनीय थी.

कई दिन से बदबू की वजह से लोग नाक बंद कर चले जाते थे. उन्हें यह पता नहीं लग रहा था कि आखिर दुर्गंध आ कहां से रही है. सोसाइटी के गार्डों ने भी इधरउधर देखा कि कहीं कोई बिल्ली या कुत्ता तो नहीं मर गया, पर ऐसा कुछ नहीं मिला.

20 जनवरी को अपराह्न 11 बजे के करीब सोसाइटी के लोग इकट्ठा हुए और यह पता लगाने में जुट गए कि आखिर बदबू आ कहां से रही है. थोड़ी देर की कोशिश के बाद उन्हें पता चल गया कि बदबू और कहीं से नहीं बल्कि सेप्टिक टैंक के चैंबर से आ रही है. किस फ्लैट की टायलेट का पाइप बंद है, यह पता लगाने और उसे खुलवाने के लिए सोसाइटी के लोगों ने 2 सफाईकर्मियों को बुलवाया.

सफाई कर्मचारियों ने चैक करने के बाद पता लगा लिया कि सोसाइटी की सी विंग के फ्लैटों का जो पाइप सैप्टिक टैंक में आ रहा था, वह बंद है. सी विंग में 7 फ्लैट थे, उन्हीं का पाइप नीचे से बंद हो गया था. पाइप बंद होना आम बात होती है जो आए दिन फ्लैटों में देखने को मिलती रहती है.

सफाई कर्मियों ने जब वह पाइप खोलना शुरू किया तो उस में मांस के टुकड़े मिले. पाइप में मांस के टुकड़े फंसे हुए थे, जिन की सड़ांध वहां फैल रही थी.

सोसाइटी के लोगों को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि किसी ने मांस डस्टबिन में फेंकने के बजाए फ्लैट में क्यों डाला. जब पाइप में मांस ज्यादा मात्रा में निकलने लगा तो सफाईकर्मियों के अलावा सोसाइटी के लोगों को भी आश्चर्य हुआ. शक होने पर सोसाइटी के एक पदाधिकारी ने पुलिस को फोन कर इस की जानकारी दे दी.

सूचना मिलने पर अर्नाला थाने के इंसपेक्टर सुनील माने पैराडाइज सोसाइटी पहुंच गए. पाइप में फंसा मांस देख कर उन्हें भी आश्चर्य हुआ. उसी दौरान उन्हें उस मांस में इंसान के हाथ की 3 उंगलियां दिखीं.

उंगलियां देखते ही उन्हें माजरा समझते देर नहीं लगी. वह समझ गए कि किसी ने कत्ल कर के, लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के इस तरह ठिकाने लगाने की कोशिश की है. जल्दी ही यह बात पूरी सोसाइटी में फैल गई, जिस के चलते आदमियों के अलावा तमाम महिलाएं भी वहां जुटने लगीं.

मामला सनसनीखेज था इसलिए इंसपेक्टर माने ने फोन द्वारा इस की सूचना पालघर के एसपी गौरव सिंह और डीवाईएसपी जयंत बजबले के अलावा अपने थाने के सीनियर इंसपेक्टर घनश्याम आढाव को दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम में यह सूचना प्रसारित होने के बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने मांस के समस्त टुकड़े अपने कब्जे में लिए. पुलिस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि जिस की हत्या की गई है, वह इसी सोसाइटी का रहने वाला था या फिर कहीं बाहर का.

जिस पाइप में मांस के टुकड़े फंसे मिले थे वह पाइप सी विंग के फ्लैटों का था. इस से यह बात साफ हो गई थी कि कत्ल इस विंग के ही किसी फ्लैट में किया गया है. सी विंग में 7 फ्लैट थे. पुलिस ने उन फ्लैटों को चारों ओर से घेर लिया ताकि कोई भी वहां से पुलिस की मरजी के बिना कहीं न जा सके. फोरेंसिक एक्सपर्ट की टीम भी बुला ली गई थी.

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रहस्य फ्लैट नंबर 602 का

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने उन सभी फ्लैटों की तलाशी शुरू कर दी. तलाशी के लिए पुलिस फ्लैट नंबर 602 में पहुंची. वह फ्लैट बाहर से बंद था. लोगों ने बताया कि वैसे तो इस फ्लैट की मालिक पूनम टपरिया हैं लेकिन कुछ दिनों पहले उन्होंने यह फ्लैट किशन शर्मा उर्फ पिंटू नाम के एक आदमी को किराए पर दे दिया था. वही इस में रहता है.

किशन शर्मा उस समय वहां नहीं था इसलिए सोसाइटी के लोगों की मौजूदगी में पुलिस ने उस फ्लैट का ताला तोड़ कर तलाशी ली तो वहां इंसान की कुछ हड्डियां मिलीं. इस से इस बात की पुष्टि हो गई कि कत्ल इसी फ्लैट में किया गया था. कत्ल किस का किया गया था यह जानकारी किशन शर्मा से पूछताछ के बाद ही मिल सकती थी. बहरहाल, पुलिस ने मांस के टुकड़े, हड्डियां आदि अपने कब्जे में ली.

थोड़ी कोशिश कर के पुलिस को किशन शर्मा उर्फ पिंटू का फोन नंबर भी मिल गया था. वह कहीं फरार न हो जाए इसलिए पुलिस ने बड़े रेलवे स्टेशनों, बस अड्डे व हवाई अड्डे पर भी पुलिस टीमें भेज दीं.

इस के अलावा सीनियर पुलिस इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने किशन शर्मा का मोबाइल नंबर मिलाया. इत्तेफाक से उस का नंबर मिल गया. उन्होंने अपनी पहचान छिपाते हुए किसी बहाने से उसे एक जगह मिलने के लिए बुलाया. उस ने आने के लिए हां कर दी तो वहां पुलिस टीम भेज दी गई. वह आया तो सादा लिबास में मौजूद पुलिस कर्मियों ने उसे दबोच लिया.

40 वर्षीय किशन शर्मा को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट आई. एसपी गौरव सिंह की मौजूदगी में जब उस से उस के फ्लैट नंबर- 602 में मिली मानव हड्डियों और मांस के बारे में पूछताछ की गई तो थोड़ी सी सख्ती के बाद उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने 58 वर्षीय लंगोटिया यार गणेश विट्ठल कोलटकर की हत्या की थी.

पुलिस ने मृतक के शरीर के अन्य हिस्सों के बारे में पूछा तो किशन ने बताया कि उस ने गणेश की लाश के करीब 500 टुकड़े किए थे. कुछ टुकड़े टायलेट में फ्लश कर दिए और कुछ टुकड़े टे्रन से सफर के दौरान फेंक दिए थे. किशन के अनुसार, उस ने सिर तथा हड्डियां भायंदर की खाड़ी में फेंकी थीं.

गणेश विट्ठल किशन शर्मा का घनिष्ठ दोस्त था तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों के बीच दुश्मनी हो गई. दुश्मनी भी ऐसी कि किशन शर्मा ने उस की हत्या कर लाश का कीमा बना डाला. इस बारे में पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ की तो इस हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई—

किशन शर्मा मुंबई के सांताक्रुज इलाके की राजपूत चाल के कमरा नंबर 4/13 में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता था. उस ने मुंबई विश्वविद्यालय से मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान में सर्टिफिकेट कोर्स किया था.

लेकिन अपने कोर्स के मुताबिक उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो वह शेयर मार्केट में काम करने लगा. करीब 8 महीने पहले उस की मुलाकात थाणे जिले के मीरा रोड की आविष्कार सोसाइटी में रहने वाले गणेश विट्ठल कोलटकर से हुई जो बाद में गहरी दोस्ती में तब्दील हो गई थी. गणेश की अपनी छोटी सी प्रिंटिंग प्रैस थी.

एक दिन गणेश ने किशन शर्मा से कहा कि अगर वह प्रिंटिंग प्रैस के काम में एक लाख रुपए लगा दे तो पार्टनरशिप में प्रिंटिंग प्रैस का धंधा किया जा सकता है. किशन इस बात पर राजी हो गया और उस ने एक लाख रुपए अपने दोस्त गणेश को दे दिए. इस के बाद दोनों दोस्त मिल कर धंधा करने लगे. किशन मार्केट का काम देखता था.

कुछ दिनों तक तो दोनों की साझेदारी ईमानदारी से चलती रही पर जल्द ही गणेश के मन में लालच आ गया. वह हिसाब में हेराफेरी करने लगा. किशन को इस बात का आभास हुआ तो उस ने साझेदारी में काम करने से मना करते हुए गणेश से अपने एक लाख रुपए वापस मांगे. काफी कहने के बाद गणेश ने उस के 40 हजार रुपए तो वापस दे दिए लेकिन 60 हजार रुपए वह लौटाने का नाम नहीं ले रहा था.

किशन जब भी बाकी पैसे मांगता तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था. वह उसे लगातार टालता रहा. इसी दौरान किशन को सूचना मिली कि गणेश 56 साल की उम्र में शादी करने वाला है. इस बारे में किशन ने उस से बात की तो गणेश ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. पहले वह शादी करेगा. इस के बाद पैसों की व्यवस्था हो जाएगी तो दे देगा.

गणेश की यह बात किशन को बहुत बुरी लगी. वह समझ गया कि गणेश के पास पैसे तो हैं लेकिन वह देना नहीं चाहता. लिहाजा उस ने दोस्त को सबक सिखाने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह गणेश को ठिकाने लगाएगा.

योजना बनाने के बाद उस ने विरार क्षेत्र की पैराडाइज सोसाइटी में फ्लैट नंबर 602 किराए पर ले लिया. वह फ्लैट पूनम टपरिया नाम की महिला का था. किशन कभीकभी अकेला ही उस फ्लैट में सोने के लिए चला आता था.

योजना के अनुसार 16 जनवरी, 2019 को किशन शर्मा अपने दोस्त गणेश विट्ठल कोलटकर को ले कर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट में गया. फ्लैट में घुसते ही किशन ने उस से अपने 60 हजार रुपए मांगे. इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो गया. झगड़े के दौरान किशन ने कमरे में रखा डंडा गणेश के सिर पर मारा. एक ही प्रहार में गणेश फर्श पर गिर गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

गणेश की मौत हो जाने के बाद किशन के सामने सब से बड़ी समस्या उस की लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर अश्वनि बिदरे गोरे की हत्या से संबंधित जानकारियां इकट्ठा कीं, ताकि पुलिस को आसानी से गुमराह किया जा सके. उस ने यूट्यूब पर भी डैड बौडी को ठिकाने लगाने के वीडियो देखे. उन में से उसे एक वीडियो पसंद आया जिस में लाश को छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर उन्हें ठिकाने लगाने का तरीका बताया गया था.

यह तरीका उसे आसान भी लगा. क्योंकि वह मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान की पढ़ाई कर चुका था. इस के लिए तेजधार के चाकू की जरूरत थी. किशन शर्मा सांताकु्रज इलाके की एक दुकान से बड़ा सा चाकू और चाकू को तेज करने वाला पत्थर खरीद लाया.

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खरीद लाया मौत का सामान

फ्लैट पर पहुंच कर किशन शर्मा ने सब से पहले गणेश विट्ठल कोलटकर की लाश का सिर धड़ से अलग कर उसे एक पालीथीन में रख लिया. इस के बाद उस ने लाश के 500 से अधिक टुकड़े कर दिए. शरीर की हड्डियों और पसलियों को उस ने तोड़ कर अलग कर लिया था.

वह मांस के टुकड़ों को टायलेट की फ्लश में डालता रहा. सिर और हड्डियां उस ने भायंदर की खाड़ी में फेंक दीं. कुछ हड्डियां उस ने पालीथिन की थैली में भर कर ट्रेन से सफर के दौरान रास्ते में फेंक दी थी. उस का फोन भी उस ने तोड़ कर फेंक दिया था.

उधर गणेश विट्ठल कई दिनों से घर नहीं पहुंचा तो उस की बहन अनधा गोखले परेशान हो गई. उस ने भाई को फोन कर के बात करने की कोशिश की लेकिन उस का फोन बंद मिला. फिर वह 20 जनवरी को मीरा रोड के नया नगर थाने पहुंची और पिछले 4 दिनों से लापता चल रहे भाई गणेश विट्ठल की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ के बाद गणेश विट्ठल का सिर बरामद करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला. अंतत: जरूरी सबूत जुटाने के बाद हत्यारोपी किशन शर्मा को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

करें हर काम, माहवारी है आम

कुछ साल पहले मैं अपने परिवार के साथ जयपुर गया था. वहां टूरिस्ट बस हमें एक मंदिर तक ले गई थी. मेरे साथ वहीं का एक और परिवार भी था.

उस परिवार की एक महिला सदस्य उस मंदिर के अहाते तक तो गईं, पर जहां मूर्ति थी वहां जाने से उन्होंने मना कर दिया. मुझे लगा कि वे पहले कई बार यहां आ चुकी होंगी इसलिए नहीं जा रहीं लेकिन बाद में मेरी पत्नी ने बताया कि उन के ‘खास दिन’ चल रहे हैं इसलिए वे मंदिर में नहीं जाएंगी.

आप ‘खास दिनों’ से शायद समझ गए होंगे कि उस समय वे महिला माहवारी से गुजर रही थीं जिन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से तो मुश्किल माना जा सकता है पर अगर उन के नाम पर उन्हें दूसरे आम काम करने से रोका जाए तो यह उन के साथ नाइंसाफी ही कही जाएगी.

क्या है माहवारी

12 से 13 साल की उम्र में अमूमन हर लड़की के शरीर में कुछ ऐसे बदलाव होते हैं जब वह बच्ची से बड़ी दिखने लगती है. इन्हीं बदलावों में से एक बदलाव माहवारी आना भी है. इस में उन्हें हर महीने 4-5 दिन के लिए अंग से खून बहता है जो तकरीबन 50 साल की उम्र तक जारी रहता है.

माहवारी एक सामान्य प्रक्रिया है, पर भारतीय समाज में फैली नासमझी के चलते जब तक महिलाएं माहवारी के चक्र में रहती हैं तब तक उन्हें बहुत से कामों से दूर रखने के कुचक्रों में उलझाए रखा जाता है. कहींकहीं तो इन दिनों के बारे में किसी को बताने से भी परहेज किया जाता है जबकि दक्षिण भारत में तो जब कोई लड़की रजस्वला हासिल करती है तो उत्सव सा मनाया जाता है. रिश्तेदारों को यह खुशखबरी दी जाती है, डंके की चोट पर.

पर हर जगह ऐसा नहीं है तभी तो जब किसी बच्ची को माहवारी आना शुरू होती है तो सब से पहले मां यही कहती सुनी जा सकती है कि बेटी, तुझे इन दिनों मंदिर या रसोईघर में नहीं जाना है. अपनों से बड़ों को खाना बना कर नहीं देना है. अचार को नहीं छूना है. खेलनाकूदना नहीं है.

कुछ घरों में तो कोई सदस्य लड़की को छू नहीं सकता और न ही वह किसी सदस्य को छू सकती है. उन्हें सोने के लिए अलग जगह व अलग बिस्तर तक ऐसे दिया जाता है, जैसे वे उन 4-5 दिनों के लिए अछूत हो गई हैं. यह सब आज 21वीं सदी में भी चालू है.

यह तो माना जा सकता है कि माहवारी के चलते लड़की या औरत के बरताव में बड़ा बदलाव आ जाता है, पर यह कोई हौआ नहीं है या कोई बीमारी भी नहीं जो उन्हें दूसरों से अलग होने का फरमान सुना दिया जाता है. यह तो कुदरत की देन है.

हां, अगर किसी को माहवारी नहीं आती है तो परेशानी की बात होती है, डाक्टर के पास जाने की नौबत आ जाती है क्योंकि अगर माहवारी नहीं आएगी तो शादी के बाद बच्चा पैदा नहीं होगा.

भारत में खासकर उत्तर भारत में माहवारी से जुड़े कई ऐसे अंधविश्वास हैं जिन्हें बिना किसी ठोस वजह के सच मान लिया जाता है. जैसे इन दिनों में उन्हें ज्यादा भागदौड़ या कसरत नहीं करनी चाहिए, जबकि यह सोच गलत है, क्योंकि बेवजह के ज्यादा आराम से शरीर में खून का दौरा अच्छे से नहीं हो पाता और दर्द भी ज्यादा महसूस होता है.

डाक्टर भी मानते हैं कि अगर माहवारी के समय महिलाएं खेलतीकूदती या कसरत करती हैं तो इस से उन के शरीर में खून और औक्सिजन का दौरा अच्छे ढंग से होता है जिस से पेट में दर्द और ऐंठन जैसी समस्याएं नहीं होती हैं.

इन दिनों में घर की बड़ी औरतें हमेशा कहती हैं कि अचार को मत छूना नहीं तो वह खराब हो जाएगा जबकि ऐसा नहीं होता है.

इस की खास वजह यह है कि और दिनों के मुकाबले ज्यादा साफसफाई रखने से माहवारी के दिनों में लड़की के शरीर या हाथों में जीवाणु, विषाणु या कीटाणु नहीं होते हैं तो अचार को छूने से वह खराब कैसे हो जाएगा? और अगर ऐसा होता तो फिर उन की छुई खाने की हर चीज ही जहर हो जानी चाहिए.

पंडितों ने जानबूझ कर औरतों को नीचा दिखाने के लिए माहवारी को पाप का नाम दे दिया और पहले लोगों को लूटने के लिए मंदिर बनवा दिया, फिर औरतों को खास दिनों में आने से बंद करवा कर ढिंढोरा पिटवा दिया कि वह गंदी है.

मतलब, हद है पोंगापंथ की. जिस मंदिर की गद्दी को पाने के लिए पंडेपुजारियों में खूनखच्चर तक हो जाता है या बेजबान पशुओं की बलि दे कर खून बहाया जाता है, वह इस खून से कैसे अपवित्र हो सकता है?

अगर हम मान लें कि कहीं भगवान है और यह दुनिया उसी ने बनाई है तो फिर उस ने ही तो औरतों को माहवारी का वरदान दिया है. फिर भगवान अपनी ही दी हुई चीज से अपवित्र कैसे हो सकता है?

इन ‘खास दिनों’ में एक बात और सुनने को मिलती है कि माहवारी में रसोईघर में जाने से वह अपवित्र हो जाता है. लेकिन यहां एक बात सोचने की है कि अगर उस परिवार में एक ही औरत या लड़की है और उसे माहवारी है तो खाना कौन बनाएगा? सारे घर को बता दिया जाता है कि वह तो इस समय गंदी है.

औरतों को चाहिए कि वे इस के खिलाफ खड़ी हों. माहवारी के दिनों को खराब न समझें. जैसे रोज शौच करने जाते हैं वैसे ही माहवारी है. घर वालों से लड़ें. पंडों से लड़ें. भगवान में विश्वास न करें, पर पंडों से कहें कि वे तो मंदिर में घुसेंगी. वहां पूजा न करें क्योंकि कोई मूर्ति इस लायक नहीं है जो औरतों को नीचा दिखाए.

माहवारी जवानी की निशानी है. इसे मस्ती से जीते हुए सिर ऊंचा कर के चलें.

लालची मामा का शिकार हुई एक भांजी

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले की सोहागपुर तहसील में जमीनों के दाम उम्मीद से कहीं ज्यादा बढ़े हैं, क्योंकि यह सैरसपाटे की मशहूर जगह पचमढ़ी के नजदीक है. इस के अलावा सोहागपुर से चंद किलोमीटर की दूरी पर एक और जगह मढ़ई तेजी से सैलानियों की पसंद बनती जा रही है. इस की वजह वाइल्ड लाइफ का रोमांच और यहां की कुदरती खूबसूरती है. सैलानियों की आवाजाही के चलते सोहागपुर में धड़ल्ले से होटल, रिसोर्ट और ढाबे खुलते जा रहे हैं.

दिल्ली के पौश इलाके वसंत विहार की रहने वाली 40 साला लीना शर्मा का सोहागपुर अकसर आनाजाना होता रहता था, क्योंकि यहां उस की 22 एकड़ जमीन थी, जो उस के नाना और मौसी मुन्नीबाई ने उस के नाम कर दी थी.

लीना शर्मा की इस जमीन की कीमत करोड़ों रुपए में थी, लेकिन इस में से 10 एकड़ जमीन उस के रिश्ते के मामा प्रदीप शर्मा ने दबा रखी थी. 21 अप्रैल, 2016 को लीना शर्मा खासतौर से अपनी जमीन की नपत के लिए भोपाल होते हुए सोहागपुर आई थी.

23 अप्रैल, 2016 को पटवारी और आरआई ने लीना शर्मा के हिस्से की जमीन नाप कर उसे मालिकाना हक सौंपा, तो उस ने तुरंत जमीन पर बाड़ लगाने का काम शुरू कर दिया.

दरअसल, लीना शर्मा 2 करोड़ रुपए में इस जमीन का सौदा कर चुकी थी और इस पैसे से दिल्ली में ही जायदाद खरीदने का मन बना चुकी थी. 29 अप्रैल, 2016 को बाड़ लगाने के दौरान प्रदीप शर्मा अपने 2 नौकरों राजेंद्र कुमरे और गोरे लाल के साथ आया और जमीन को ले कर उस से झगड़ना शुरू कर दिया.

प्रदीप सोहागपुर का रसूखदार शख्स था और सोहागपुर ब्लौक कांग्रेस का अध्यक्ष भी. झगड़ा इतना बढ़ा कि प्रदीप शर्मा और उस के नौकरों ने मिल कर लीना शर्मा की हत्या कर दी.

हत्या चूंकि सोचीसमझी साजिश के तहत नहीं की गई थी, इसलिए इन तीनों ने पहले तो लीना शर्मा को बेरहमी से लाठियों और पत्थरों से मारा और गुनाह छिपाने की गरज से उस की लाश को ट्रैक्टरट्रौली में डाल कर नया कूकरा गांव ले जा कर जंगल में गाड़ दिया.

लाश जल्दी गले, इसलिए इन दरिंदों ने उस के साथ नमक और यूरिया भी मिला दिया था. हत्या करने के बाद प्रदीप शर्मा सामान्य रहते हुए कसबे में ऐसे घूमता रहा, जैसे कुछ हुआ ही न हो. जाहिर है, वह यह मान कर चल रहा था कि लीना शर्मा के कत्ल की खबर किसी को नहीं लगेगी और जब उस की लाश सड़गल जाएगी, तब वह पुलिस में जा कर लीना शर्मा की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा देगा. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया.

लीना शर्मा की जिंदगी किसी अफसाने से कम नहीं कही जा सकती. जब वह बहुत छोटी थी, तभी उस के मांबाप चल बसे थे, इसलिए उस की व उस की बड़ी बहन हेमा की परवरिश मौसी ने की थी.

मरने से पहले ही मौसी ने अपनी जमीन इन दोनों बहनों के नाम कर दी थी. बाद में लीना शर्मा अपनी बहन हेमा के साथ भोपाल आ कर परी बाजार में रहने लगी थी.

लीना शर्मा खूबसूरत थी और होनहार भी. लिहाजा, उस ने फौरेन ट्रेड से स्नातक की डिगरी हासिल की और जल्द ही उस की नौकरी अमेरिकी अंबैसी में बतौर कंसलटैंट लग गई. लेकिन अपने पति से उस की पटरी नहीं बैठी, तो तलाक भी हो गया. जल्द ही अपना दुखद अतीत भुला कर वह दिल्ली में ही बस गई और अपनी खुद की कंसलटैंसी कंपनी चलाने लगी.

40 साल की हुई तो लीना शर्मा ने दोबारा शादी करने का फैसला कर लिया, लेकिन शादी के पहले वह सोहागपुर की जमीन के झंझट को निबटा लेना चाहती थी, पर रिश्ते के मामा प्रदीप शर्मा ने उस के मनसूबों पर पानी फेर दिया.

लीना शर्मा की हत्या एक राज ही बन कर रह जाती, अगर उस के दोस्त उसे नहीं ढूंढ़ते. जब लीना शर्मा तयशुदा वक्त पर नहीं लौटी और उस का मोबाइल फोन बंद रहने लगा, तो भोपाल में रह रही उस की सहेली रितु शुक्ला ने उस की गुमशुदगी की खबर पुलिस कंट्रोल रूम में दी.

पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदीप शर्मा से संपर्क किया, तो वह घबरा गया और भांजी के गुम होने की रिपोर्ट सोहागपुर थाने में लिखाई, जबकि वही बेहतर जानता था कि लीना शर्मा अब इस दुनिया में नहीं है. देर से रिपोर्ट लिखाए जाने से प्रदीप शर्मा शक के दायरे में आया और जमीन के झगड़े की बात सामने आई, तो पुलिस का शक यकीन में बदल गया.

मामूली सी पूछताछ में प्रदीप शर्मा ने अपना जुर्म कबूल कर लिया, लेकिन शक अब लीना शर्मा की बहन हेमा पर भी गहरा रहा है कि वह क्यों लीना शर्मा के गायब होने पर खामोश रही थी? कहीं उस की इस कलयुगी मामा से किसी तरह की मिलीभगत तो नहीं थी? इस तरफ भी पुलिस पड़ताल कर रही है, क्योंकि अब उस पर सच सामने लाने का दबाव बढ़ता जा रहा है.

लीना शर्मा के दिल्ली के दोस्त भी भोपाल आ कर पुलिस के आला अफसरों से मिले और सोहागपुर भी गए. हेमा के बारे में सोहागपुर के लोगों का कहना है कि वह एक निहायत ही झक्की औरत है, जिस की पागलों जैसी हरकतें किसी सुबूत की मुहताज नहीं. खुद उस का पति भी स्वीकार कर चुका है कि वह एक मानसिक रोगी है.

अब जबकि आरोपी प्रदीप शर्मा अपना जुर्म कबूल कर चुका है, तब कुछ और सवाल भी मुंहबाए खड़े हैं कि क्या लीना शर्मा का बलात्कार भी किया गया था, क्योंकि उस की लाश बिना कपड़ों में मिली थी और उस के जेवर अभी तक बरामद नहीं हुए हैं?

आरोपियों ने यह जरूर माना कि लीना शर्मा का मोबाइल फोन उन में से एक ने चलती ट्रेन से फेका था. लाश चूंकि 15 दिन पुरानी हो गई थी, इसलिए पोस्टमार्टम से भी बहुत सी बातें साफ नहीं हो पा रही थीं. दूसरे सवाल का ताल्लुक पुश्तैनी जायदाद के लालच का है कि कहीं इस वजह से तो लीना शर्मा की हत्या नहीं की गई है?

प्रदीप शर्मा ने अपनी भांजी के बारे में कुछ नहीं सोचा कि उस ने अपनी जिंदगी में कितने दुख उठाए हैं और परेशानियां भी बरदाश्त की हैं. लीना शर्मा अगर दूसरी शादी कर के अपना घर बसाना चाह रही थी तो यह उस का हक था, लेकिन उस की दुखभरी जिंदगी का खात्मा भी दुखद ही हुआ.

सैक्स के लालच में ठगी का शिकार होते लोग

Crime News in Hindi: आजकल हर उम्र के लोग सैक्स के मजे के लिए इतने ज्यादा उतावले रहते हैं कि लड़कियां उन्हें आसानी से अपने जाल में फंसा लेती हैं. कुछ दिन पहले एक 25 साला खूबसूरत लड़की रागिनी ने आगरा के एक 50 साला कारोबारी रामदास के 3 लाख रुपए लूट लिए थे. कारोबारी रामदास धौलपुर के कुछ दुकानदारों से अपने सामान की उधारी के 3 लाख रुपए की उगाही कर स्कूटर से आगरा जा रहे थे. धौलपुर के बसस्टैंड से कुछ ही दूर पहुंचे थे कि सड़क के किनारे खड़ी एक लड़की ने उन से लिफ्ट मांगी. उस लड़की ने अपना नाम रागिनी बताया. तरस खा कर रामदास ने उसे अपने स्कूटर पर बिठा लिया. रागिनी ने जब उन की कमर को पकड़ा, तो उस के हाथ की छुअन से उन्हें बड़ा मजा आने लगा था.

जब उन्होंने स्कूटर की रफ्तार तेज की, तो रागिनी मुसकराते हुए बोली, ‘‘जरा आराम से चलिए. आप के साथ चलने में मुझे बड़ा मजा आ रहा है.’’

‘‘वह क्यों?’’ रामदास ने मुसकराते हुए उस से पूछा, तो वह बोली, ‘‘आप अभी भी एकदम जवान लगते हैं.’’

यह सुन कर रामदास खुश हो कर उस से बोले, ‘‘अब भी मुझ में इतनी ताकत है कि आप की उम्र की लड़की से सैक्स करूं, तो उसे भी 1-2 बार में पेट से कर सकता हूं.’’

रागिनी हंसते हुए बोली, ‘‘फिर तो आप काम के आदमी हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सुन कर रामदास ने उस से पूछा, तो रागिनी बोली, ‘‘आगरा में मेरी एक सहेली है दीप्ति. 2 साल पहले उस की शादी हुई थी, मगर अभी तक उस के बच्चा नहीं हुआ है. उस का पति दिनरात उस से सैक्स करता है, मगर बच्चा ठहरता ही नहीं. अगर आप उस के साथ सैक्स कर के उसे पेट से कर दें, तो वह और मैं कभी आप का यह एहसान नहीं भूलेंगीं.’’

यह सुन कर कारोबारी रामदास चहकते हुए बोले, ‘‘अगर मैं तुम्हारी सहेली को पेट से कर दूं, तो इनाम में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘आप को इनाम में क्या चाहिए?’’ रागिनी ने पूछा.

रामदास बोले, ‘‘इनाम में मैं तुम्हारे साथ सैक्स करना चाहता हूं.’’

रागिनी कमर में प्यार से चपत लगाते हुए बोली, ‘‘मैं आप को मजे देने के लिए तैयार हूं.’’

रामदास ने बीच रास्ते में ही स्कूटर रोका और रागिनी को पेड़ों की ओट में ले गए और अपनी बांहों में ले कर उस के गालों को चूम लिया. उस समय वे इतने उतावले हो रहे थे कि वे उसे झाडि़यों की ओर ले जाने लगे, तो वह उन की ओर मुसकरा कर बोली, ‘‘यहां पर कुछ मजा नहीं आएगा. आनेजाने वाले लोगों के डर से ठीक से सैक्स नहीं हो पाएगा. हम आगरा पहुंच कर आज रात किसी होटल में रुक कर पूरी रात सैक्स के मजे लेंगे. मैं अपनी उस सहेली को भी वहां ले आऊंगी.

‘‘पर यह ध्यान रखना कि आप को मेरी सहेली को पेट से करना है, मुझे नहीं. क्योंकि अभी मेरी शादी नहीं हुई है.’’

जब वे आगरा के निकट पहुंचे, तो रागिनी मुसकराते हुए बोली, ‘‘आप जरा यहीं पर खड़े रहिए. मेरी सहेली का घर पास में ही है. मैं उसे आप के स्कूटर से 10-15 मिनट में ले कर आती हूं.’’

इतना कह कर रागिनी उन के स्कूटर को ले कर अपनी सहेली के यहां पर चली गई.

शाम तक रामदास वहीं खड़े हो कर रागिनी के आने के इंतजार में परेशान हो गए थे, मगर वह वापस नहीं लौटी थी. कुछ दूरी पर उन्हें अपना स्कूटर तो मिल गया था, मगर उस की डिग्गी में रखे 3 लाख रुपए गायब थे.

यह देख कर रामदास उस खूबसूरत लड़की और उस की सहेली के साथ सैक्स के मजे के लालच पर पछतावे के आंसू बहा रहे थे.

कुछ इसी तरह से कचरा बीनने वाली 2 लड़कियों ने एक अफसर के 20 साला लड़के को लूटा था. दोपहर का समय था. संदीप और उस का दोस्त सुरेश बंगले का गेट खोल मोबाइल फोन पर गाने सुन रहे थे. उन्हें वहां पर कचरा बीनने वाली 2 लड़कियां दिखाई दीं. उन दोनों लड़कियों ने उन से पानी मांगा, तो उन्होंने फ्रिज से बोतल निकाल कर उन्हें पानी पिलाया.

उन में से एक लड़की ने उन की ओर मुसकरा कर देखा, तो संदीप ने उस का हाथ पकड़ लिया.

वह लड़की उस से बोली, ‘‘हाथ पकड़ने से क्या होगा? अगर मजे लेने हैं, तो कुछ खर्चा करना पड़ेगा.’’

यह सुन कर संदीप ने उन दोनों लड़कियों को अंदर आने को कहा.

संदीप ने उन से पूछा, ‘‘मजे देने के लिए तुम्हें क्या चाहिए?’’

एक लड़की बोली, ‘‘हमें सोने का कोई जेवर चाहिए.’’

संदीप कुछ सोचने लगा, तभी उन दोनों लड़कियों ने अपनी कमीज के बटन खोल कर दिखाए, तो संदीप और सुरेश ने जोश में आ कर उन्हें अपनी बांहों में भर लिया.

यह देख कर एक लड़की उस से बोली, ‘‘अगर मजे चाहिए, तो पहले हमें सोने का एकएक जेवर दो. हम आप को ऐसे मजे देंगे, जैसे अब तक किसी ने नहीं दिए होंगे.’’

संदीप ने अलमारी खोल कर उस में से 2 सोने की चेनें निकाल कर उन्हें दीं, तो वे दोनों मजे देने के लिए उन के बैड पर लेट गई थीं. उन दोनों से मजे लेते हुए संदीप और उस का दोस्त सुरेश खुशी से मुसकरा रहे थे.

मजे ले कर जब वे लोग एकदूसरे से अलग हुए, तो संदीप उन से बोला, ‘‘क्या तुम दोनों आज रात यहां आ सकती हो? यहां पर तुम्हें अंगरेजी शराब के साथसाथ खाने में लजीज चिकन व तंदूरी रोटियां मिलेंगी. 2-2 हजार रुपए भी मिलेंगे.’’

यह सुन कर वे दोनों लड़कियां रात में आने की कह कर वहां से चली गईं.

संदीप और उस का दोस्त सुरेश रात होने का इंतजार करने लगे थे. रात को जब वे दोनों लड़कियां वहां आईं, तो लड़कियों ने चुपके से शराब में नशे की गोलियां मिला कर संदीप और सुरेश को बेहोश कर दिया.

दोपहर में जब संदीप ने अलमारी से निकाल कर उन्हें सोने की चेनें दी थीं, तभी उन लड़कियों ने चाबी रखने की जगह देख ली थी, इसलिए उन दोनों को बेहोश करने के बाद उन्होंने अलमारी से सोने के सभी जेवर और रुपए निकाले और वहां से चंपत हो गईं.

संदीप को जब पता चला कि वे लड़कियां उसे लूट चुकी हैं, तो मारे घबराहट के उस ने ट्रेन के आगे छलांग लगा कर खुदकुशी कर ली. कुछ पलों का सुख संदीप के लिए जानलेवा साबित हुआ.

प्यार का ऐसा नशा कि कर दी मां की हत्या

बलराम ने जल्दीजल्दी इंटरव्यू लैटर, नोट बुक, पैन आदि बैग में रख कर सोनिया को आवाज दी, ‘‘दीदी, जल्दी से मेरा नाश्ता लगा दीजिए, मुझे देर हो रही है.’’

‘‘आ कर नाश्ता कर लो, मैं ने तुम्हारा नाश्ता तैयार कर दिया है.’’ सोनिया ने रसोईघर से ही कहा.

बलराम ने जल्दीजल्दी नाश्ता किया और अपना बैग ले कर मां के पास पहुंचा. शकुंतला देवी चारपाई पर लेटी थीं. बेटे को देख कर उन्होंने कहा, ‘‘जाओ बेटा, सफल हो कर लौटो. लेकिन तुम ने यह तो बताया ही नहीं कि इंटरव्यू देने कहां जा रहे हो?’’

‘‘मां चंडीगढ़ जा रहा हूं, एक बहुत बड़ी कंपनी में. अगर यह नौकरी मिल गई तो जिंदगी सुधर जाएगी.’’

‘‘जैसी प्रभु की इच्छा.’’ शकुंतला देवी ने कहा.

मां के पैर छू कर बलराम घर से निकल गया. यह 5 जून, 2015 की बात है. इंटरव्यू देने के बाद वह शाम के 7, साढ़े 7 बजे घर लौटा तो सोनिया रात का खाना बना रही थी. बैग रख कर बलराम मां के कमरे में पहुंचा तो वहां मां नहीं थी. बाहर आ कर उस ने बहन से मां के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘शाम को कीर्तन करने की बात कह कर गई थीं, पर अभी तक लौटी नहीं हैं.’’

बलराम को पता था कि मां अकसर कीर्तन पर जाती थीं तो देर रात को लौटती थीं. पिताजी के घर छोड़ कर जाने के बाद मां ने खुद को भजनकीर्तन में लगा लिया था. मां की चिंता छोड़ कर उस ने हाथमुंह धोया तो बहन ने उस के लिए खाना परोस दिया.

खाना खा कर बलराम अपने कमरे में आराम करने चला गया. दिन भर का थका होने के कारण लेटते ही उसे नींद आ गई. रात के लगभग 1 बजे उस की आंख खुली तो उठ कर वह मां के कमरे में गया. मां वहां नहीं थी. समय देखा, रात के सवा बज रहे थे. वह बड़बड़ाया, ‘मां अभी तक नहीं आई?’

बलराम को चिंता हुई. उस के मन में बुरे विचार आने लगे. उस की चिंता यह थी कि पिताजी की तरह कहीं मां भी तो उसे छोड़ कर नहीं चली गईं?

पंजाब के जिला खन्ना के थाना जुलकां का एक गांव है मलकपुर कंबोआ. इसी गांव में लाल सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे और एक बेटी थी.

बड़ा बेटा सोहनलाल खेती करने के अलावा दूसरे राज्यों में जा कर कंबाइन मशीन से फसल काटने का काम करता था. उस से छोटी सोनिया थी, जो दसवीं तक पढ़ाई कर के अब घर में रहती थी. सब से छोटा बलराम बारहवीं पास कर के नौकरी की तलाश में था.

लाल सिंह के पास जो जमीन थी, उसी में मेहनत कर के जैसेतैसे तीनों बच्चों को पालापोसा और पढ़ायालिखाया था. बड़ा बेटा सोहन काम करने लगा तो उन्हें थोड़ी राहत मिली. अचानक न जाने ऐसा क्या हुआ कि लाल सिंह के ऊपर काफी कर्ज हो गया, जिस की वजह से उन्हें अपनी कुछ जमीन बेचनी पड़ी.

जमीन बेचने के बाद लाल सिंह गुमसुम रहने लगे. वह ना किसी से बात करते थे और ना किसी मामले में दखलंदाजी करते थे. ऐसे में ही एक दिन वह बिना किसी को कुछ बताए घर से निकले तो लौट कर नहीं आए. यह 5 साल पहले की बात है.

शकुंतला पति के इंतजार में दरवाजे की ओर टकटकी बांधे देखती रहती थी. उस दिन मां के कीर्तन से न लौटने पर बलराम चिंतित हो उठा. उस ने बहन को जगा कर कहा, ‘‘दीदी उठो, अभी तक मां लौट कर नहीं आई है.’’

‘‘क्या कहा, मां अभी तक लौट कर नहीं आई है?’’

‘‘हां दीदी, रात के 2 बज रहे हैं. इस समय कौन सा मंदिर खुला होगा, जो मां कीर्तन कर रही हैं?’’ रुआंसा हो कर बलराम बोला.

सोनिया घबरा कर उठी. उस ने चिंतित हो कर कहा, ‘‘बल्लू, इस समय हम मां को ढूंढने कहां चलेंगे?’’

बात सही भी थी. उस समय रात के 2 बज रहे थे. उतनी रात को वे कहां जाते. लेकिन मां के बारे में पता तो करना ही था. भाईबहन हिम्मत कर के घर से बाहर निकले. पूरे गांव में सन्नाटा पसरा था, सिर्फ कुत्ते भौंक रहे थे. दोनों मंदिर तक गए. वहां घुप्प अंधेरा था. गांव की हर गली में चक्कर लगाया कि शायद किसी के घर कथाकीर्तन हो रही हो, लेकिन गांव में ऐसा कुछ भी आयोजन नहीं था.

सवेरा होने पर बलराम ने मंदिर जा कर पूछा तो पता चला कि शकुंतला तो कल मंदिर आई ही नहीं थी. थोड़ी ही देर में शकुंतला के गायब होने की बात पूरे गांव में फैल गई. हर कोई अफसोस जता रहा था कि 5 साल पहले बच्चों का बाप गायब हो गया और अब मां गायब हो गई. गांव के कुछ लोग भी शकुंतला की तलाश में लग गए.

बलराम ने बड़े भाई सोहन को भी फोन कर के मां के गायब होने की बात बता दी. उस समय वह मध्य प्रदेश में कंबाइन मशीन ले कर फसल की कटाई कर रहा था. छोटे भाई को सांत्वना दे कर उस ने कहा कि वह तुरंत आ रहा है. अगले दिन दोपहर बाद सोहन घर पहुंचा तो कुछ रिश्तेदार एवं गांव वालों के साथ थाना जुलकां जा कर मां की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

शकुंतला का फोटो ले कर पुलिस ने इश्तेहार शोरेगोगा छपवा कर सभी थानों, बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों तथा प्रमुख स्थानों पर लगवा दिए, साथ ही वायरलैस द्वारा उस का हुलिया भी प्रसारित करवा दिया.

दिन, सप्ताह, महीने बीतने लगे, शकुंतला का कुछ पता नहीं चला. धीरेधीरे साल बीत गया. उस की गुमशुदगी के रहस्य से परदा नहीं उठ सका. सोनिया और सोहन ने तो संतोष कर लिया, पर बलराम, जो मां का चहेता भी था, वह मां के गायब होने के रहस्य को जानना चाहता था. इसलिए मार्च, 2016 में उस ने मां की गुमशुदगी की एक चिट्ठी लिखी और खन्ना जा कर एसपी (डी) जसकरण सिंह तेजा से मिला. उन से उस ने हाथ जोड़ कहा, ‘‘सर, मेरी मां को ढुंढवा दीजिए.’’

जसकरण सिंह तेजा ने बलराम के निवेदन को गंभीरता से लिया और डीएसपी (देहात) हरविंदर सिंह विर्क और डीएसपी (सिटी) हरवंत कौर को बलराम द्वारा दी गई चिट्टी दे कर सख्त आदेश दिया कि जल्द से जल्द वे इस मामले का खुलासा करें.

हरविंदर सिंह और हरवंत कौर ने शकुंतला का पता लगाने के लिए थाना जुलकां के थानाप्रभारी इंसपेक्टर रणवीर सिंह को नियुक्त किया. उन की मदद के लिए इंसपेक्टर जगजीत सिंह को लगा दिया गया.

शकुंतला की गुमशुदगी की फाइल को निकाल कर फिर से जांच शुरू हुई. पुलिस अधिकारियों ने अपने मुखबिरों को भी शकुंतला की गुमशुदगी का रहस्य पता करने को लगा दिया.

शकुंतला के दोनों बेटों, बेटी तथा रिश्तेदारों से भी पूछताछ की गई. सोहन उन दिनों मध्य प्रदेश में था. उस से छोटा बलराम इंटरव्यू देने चंडीगढ़ गया था. सिर्फ बेटी सोनिया ही घर में थी. पूछताछ में पुलिस ने देखा कि सोनिया बारबार बयान बदल रही है.

रणवीर सिंह ने यह बात डीएसपी हरवंत कौर को बताई तो उन्होंने कहा कि वह अपने मुखबिर सोनिया पर नजर रखने के लिए लगा दें, साथ ही उस के बारे में पता करें.

मुखबिरों से पुलिस को पता चला कि सोनिया के गांव के ही कुलविंदर से प्रेमसंबंध थे. जब से पुलिस दोबारा इस मामले की जांच कर रही है, तब से वह काफी बेचैन और परेशान रहती है. अकसर वह गांव से बाहर खेतों में कुलविंदर से सलाहमशविरा करती दिखाई देती है.

रणवीर सिंह और जगजीत सिंह ने समय न गंवाते हुए एएसआई सुरजीत सिंह से कहा कि वह शकुंतला के घर जा कर उस के बेटों सोहन, बलराम और बेटी सोनिया तथा नजदीकी रिश्तेदारों को थाने ले आएं. अगर वे थाने आने की वजह पूछें तो उन्हें बता देना कि शकुंतला का पता चल गया है. सुरजीत सभी को थाने ले आए. जैसा रणवीर सिंह ने सोचा था वैसा ही था.

सोनिया के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. उस के पैर कांप रहे थे. उन्होंने बड़े नाटकीय ढंग से कहा, ‘‘सोहन सिंह, तुम्हारी मां का पता चल गया है. यह मेरे अलावा तुम्हारी बहन सोनिया को भी पता है कि तुम्हारी मां कहां है? इसलिए तुम उस से पूछ लो कि वह कहां हैं, वरना मैं तो तुम्हारी मां से तुम्हें मिलवा ही दूंगा.’’

रणवीर की इस बात पर सोहन सिंह ने हैरानी से बहन की ओर देखा. वह खुद हैरानी से रणवीर सिंह को देख रही थी. उस का चेहरा एकदम सफेद पड़ा हुआ था. टांगें पहले से ज्यादा कांप रही थीं. सोहन सिंह ने जब उस से पूछा कि क्या वह जानती है कि मां कहां हैं तो वह कांपती आवाज में बोली, ‘‘नहीं भैया, मुझे नहीं पता कि मां कहां है.’’

‘‘बताओ न तुम्हारी मां कहां है?’’ रणवीर सिंह ने डांट कर कहा तो सोनिया ने सिर झुका लिया. उस के दोनों भाई और साथ आए रिश्तेदार उसे हैरानी से देख रहे थे.

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि जब सोनिया को मां के बारे में पता था तो उस ने अब तक बताया क्यों नहीं. रणवीर सिंह ने जब दोबारा डांट कर पूछा तो उस ने रोते हुए अपनी मां की लगभग 11 महीने की गुमशुदगी के रहस्य से परदा उठाते हुए कहा कि उस ने अपने प्रेमी कुलविंदर के साथ मिल कर उस की हत्या कर दी है.

इस के बाद उस ने शकुंतला की गुमशुदगी के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

सोनिया और कुलविंदर कभी साथसाथ पढ़ा करते थे. दसवीं पास कर के सोनिया ने पढ़ाई छोड़ दी तो दोनों अलग हो गए. सालों बाद युवा होने पर जब उन की मुलाकात हुई तो बचपन की यादें ताजा हो उठीं. युवा होने पर उन के शरीरों में जो बदलाव आया था, वह काफी आकर्षक था.

दोनों ही खूबसूरत तो थे ही, कुलविंदर का कसरती बदन काफी लुभावना था, जिस से दोनों ही एकदूसरे के आकर्षण में बंधते गए. परिणामस्वरूप दोनों गांव के बाहर खेतों में मिलने लगे. जब इस बात की जानकारी शकुंतला को हुई तो वह परेशान हो उठी.

उस ने कुलविंदर को देखा था. वैसे तो उस में कोई कमी नहीं थी, लेकिन वह नशा करता था. इस के अलावा वह दूसरी जाति का भी था, यही वजहें थीं कि शकुंतला ने बेटी को मर्यादा में रहने को कहा.

जबकि सोनिया पर तो कुलविंदर के प्यार का ऐसा नशा चढ़ा था कि उस ने मां की एक नहीं सुनी, बल्कि वह खुश थी कि मां को उस के और कुलविंदर के प्यार के बारे में पता चल गया था.

इस के बाद वह कुलविंदर को घर बुलाने लगी. अगर शकुंतला कुछ कहती तो वह कुलविंदर को ले कर अपने कमरे में चली जाती. गायब होने से 2 दिन पहले 3 जून, 2015 को शकुंतला गांव में किसी के यहां गई थी. मां के जाते ही सोनिया ने कुलविंदर को बुला लिया था.

अचानक शकुंतला आ गई और उस ने सोनिया और कुलविंदर को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया. कुलविंदर तो डर के मारे भाग गया, बेटी को शकुंतला ने खूब खरीखोटी सुनाई. चुप रहने के बजाय सोनिया विद्रोह कर बैठी. उस ने मां को धमकाते हुए कहा, ‘‘सुन मां, अगर मेरे और कुलविंदर के बीच कोई आया तो मैं उसे छोड़ूंगी नहीं.’’

फिर उसी दिन शाम को सोनिया ने कुलविंदर के साथ मिल कर मां को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उस ने यह योजना कुलविंदर को समझा दी. 5 जून को सोनिया ने दोपहर को खाना बनाया और मां के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. खाना खाने के कुछ देर बाद ही शकुंतला गहरी नींद में सो गई थी. सोनिया ने मां को हिलाडुला कर देखा. जब देखा कि मां होश खो बैठी है तो उस ने फोन कर के कुलविंदर को बुला लिया. कुलविंदर के आने पर सोनिया ने उसे फावड़ा दे कर आंगन में गड्ढा खोदवाया और शकुंतला की गला दबा कर हत्या कर दी.

इस के बाद लाश को उसी गड्ढे में डाल कर मिट्टी भर दी. ऊपर से गोबर का लेप लगा दिया, ताकि किसी को संदेह न हो. सारे काम निपटा कर दोनों ने शकुंतला के कमरे में उसी के बिस्तर पर इच्छा पूरी की. इस के बाद क्या हुआ आप पढ़ ही चुके हैं. सोनिया के अपराध स्वीकार करने के बाद शकुंतला की गुमशुदगी को हत्या में तब्दील कर सोनिया और कुलविंदर को दोषी बनाया गया.

सोनिया की निशानदेही पर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट बहादुर सिंह, एसपी (डी) जसकरण सिंह तेजा, डीएसपी (देहात) हरविंदर सिंह विर्क, डीएसपी (सिटी) हरवंत कौर, थाना जुलकां के प्रभारी रणवीर सिंह एवं जगजीत सिंह, सोहन, बलराम और गांव के सरपंच की मौजूदगी में आंगन में गड्ढा खोद कर शकुंतला की लाश बरामद की गई, जो कंकाल बन चुकी थी.

लाश का पंचनामा तैयार कर फौरैंसिक लैब भेजा गया. इस के बाद सोनिया को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. चूंकि कुलविंदर फरार हो चुका था, इसलिए रिमांड खत्म होने पर सोनिया को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस कुलविंदर की तलाश कर रही है.

जिस्म के दलालों के बीच बिकती गई एक लड़की

राजस्थान के कंजर समुदाय के बारे में लोगों की राय अच्छी नहीं है. धारणा यह है कि कंजर आमतौर पर अपराधी होते हैं. इस जाति का हालांकि अपना एक अलग इतिहास है, पर उस से वास्ता न रखते हुए लोग यही मानते हैं कि अपराधी प्रवृत्ति के कंजर मेहनत के बजाय लूटपाट कर के गुजारा करते हैं. इस जाति के पुरुष नशे में धुत रहते हैं और औरतें बांछड़ा जाति की तरह देहव्यापार करती हैं. ये लोग असभ्य, अशिक्षित और जंगली हैं, इसलिए सभ्य समाज इन से दूर ही रहता है.

हालांकि यह पूरा सच नहीं है, लेकिन एक हद तक बात में दम इस लिहाज से है कि कंजरों को कभी आदमी समझा ही नहीं पाया और न ही इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की कोई उल्लेखनीय कोशिश ही की गई.

राजस्थान के जिला बूंदी के एक गांव शंकरपुरा में जन्मी कंजर युवती पिंकी की दास्तान दुखद और फिल्मी सी है. पिंकी बेइंतहा खूबसूरत थी, पर उस की बदकिस्मती यह थी कि जब वह 15 साल की हुई तो मांबाप का साया सिर से उठ गया. लेकिन वह लावारिस कहलाने से इसलिए बच गई, क्योंकि उस के पिता ने 2 शादियां की थीं. जब सगे मांबाप की मौत हो गई तो सौतेली मां ने उसे सहारा दिया.

सौतेली मां के पास भी स्थाई आमदनी का कोई जरिया नहीं था, इसलिए वह पिंकी को साथ ले कर शंकरपुरा में ही रहने वाले अपने भाई राजा उर्फ ठेला के घर ले गई. इस तरह पिंकी को छत तो मिल गई, पर प्यार नहीं मिला. सौतेले मामा राजा के घर की भी माली हालत ठीक नहीं थी. जैसेतैसे खींचतान कर तीनों का गुजारा होता था. कई बार तो फांकों की भी नौबत आ जाती थी.

15 साल की पिंकी पर यौवन कुछ इस तरह मेहरबान हो गया था कि जो भी उसे देखता, बस देखता ही रह जाता. कंजरों में उस की जितनी खूबसूरत लड़कियां कम ही होती हैं. वह लोगों की चुभती निगाहों से नावाकिफ नहीं थी. हालांकि पिंकी कहने भर को पढ़ीलिखी थी, पर समझ उस में जमाने भर की आ गई थी.

सौतेले मामा के घर का माहौल पिंकी को रास नहीं आ रहा था, इसलिए अकसर उसे अपने मांबाप की याद आती रहती थी, जिन्होंने उसे ले कर ढेरों सपने संजोए थे. खुशी क्या होती है, यह पिंकी सौतेले मामा के घर आ कर भूल सी चुकी थी. जहां अभाव था, रोज की जरूरतों को ले कर मारामारी थी और उन्हें पूरा करने के लिए ढेर सारे समझौते करने पड़ते थे. एकलौती अच्छी बात यह थी कि सौतेली मां और मामा उस पर अत्याचार नहीं करते थे.

कुछ दिनों की तंगहाली के बाद पिंकी ने महसूस किया कि अब घर में पैसा आने लगा है. इस का मतलब यह नहीं था कि पैसा बरसने लगा था, बल्कि यह था कि अभाव कम हो चले थे और जरूरतें पूरी होने लगी थीं. अब किसी चीज के लिए तरसना नहीं पड़ता था.

पैसा कहां से और कैसे आ रहा है, यह पता करने के लिए पिंकी को कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. गांव और आसपास के कुछ रसूखदार पैसे वाले लोगों का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया था.

उन लोगों के आते ही सौतेली मां उन के साथ एक कमरे में बंद हो जाती और 4-6 घंटे बाद जब उन के जाने पर बाहर निकलती तो उस का जिस्म भले ही निढाल होता, पर चेहरे पर रौनक होती थी. यह रौनक उन पैसों की देन थी, जो उसे शरीर बेच कर मिलते थे. पिंकी अब पहले सी नासमझ और मासूम नहीं रह गई थी. वह इस सब का मतलब समझने लगी थी.

अब कभीकभी बड़ीबड़ी कारें भी सौतेली मां को लेने आती थीं. 3-4 दिन बाहर रह कर वह लौटती तो उस के पास नोटों की गड्डियां होती थीं. इस पर पिंकी को गुस्सा और तरस दोनों आता था कि क्या जरूरत है देह बेचने की, तीनों मिल कर मेहनतमजदूरी कर के इतना कमा सकते हैं कि इज्जत से गुजारा कर सकें. उसे इस माहौल में घुटन सी होने लगी थी. अब वह कोठेनुमा इस घर से आजाद होने की सोचने लगी थी. पर यह आसान काम नहीं था. शंकरपुरा के बाहर की दुनिया इस से जुदा नहीं होगी, यह भी पिंकी की समझ में आने लगा था. कहीं भाग जाना या चले जाना उस के वश की बात नहीं थी.

आनेजाने वाले ग्राहकों की नजरें पिंकी के खिलते यौवन पर पड़ने लगी थीं. इस से वह और घबरा जाती थी कि कहीं ऐसा न हो कि उसे भी देहधंधे की दलदल में धकेल दिया जाए. हालांकि अभी तक मां या मामा की तरफ से इस तरह की कोई बात नहीं की गई थी, पर उस का डर अपनी जगह स्वाभाविक था क्योंकि अकसर मामा खुद मां के लिए ग्राहक ढूंढ कर लाता था.

कोई 3 साल पहले एक दिन राजा ने बताया कि अब उसे ग्वालियर के रेशमपुर,जो बदरपुरा के नाम से जाना जाता है, में रहने वाले मौसा के यहां जाना है, जो उसे वहां कोई अच्छा काम दिला देंगे. मुद्दत से आजादी के लिए छटपटा रही पिंकी ने जब यह खबर सुनी तो खुशी से झूम उठी कि चलो अब जिंदगी रास्ते पर आ जाएगी. वह ग्वालियर में मेहनत कर के कमाएगी, इसलिए वह झट से राजी हो गई. जल्द ही मामा ने उसे मौसा के पास ग्वालियर पहुंचा दिया.

ग्वालियर में 4 दिन भी चैन से नहीं गुजरे थे कि मौसा, जिस का नाम पान सिंह उर्फ पप्पू था, ने अपना असली रूप दिखा दिया. अपनी बेटी समान पिंकी से यह कहते उसे कतई शरम नहीं आई कि अब उसे यहां रह कर धंधा करना होगा.

अब पिंकी को समझ में आया कि क्यों कुछ दिनों से मामा उस से नरमी से पेश आ रहा था. लेकिन जब धंधा ही करवाना था तो उसे यहां ला कर क्यों छोड़ा गया. यह काम तो वह गांव में भी करवा सकता था. यह बात पिंकी की समझ में तुरंत नहीं आई. चूंकि वह इस पेशे में नहीं आना चाहती थी, इसलिए वह पान सिंह के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाई कि उस से यह पाप न करवाया जाए.

उस के गिड़गिड़ाने का पान सिंह पर कोई असर नहीं हुआ, उलटे उस ने पिंकी को बताया कि उस का मामा उसे 9 लाख रुपए में बेच गया है. यह सुन कर पिंकी के होश फाख्ता हो गए. अब उस की समझ में आ गया कि सौतेली मां और मामा ने किस्तों में पैसा कमाने के बजाय एकमुश्त मोटी रकम कमा ली है. अपनी किस्मत पर वह खूब रोई.

भागने या बचने का कोई रास्ता उसे दिखाई नहीं दिया, इसलिए वह पान सिंह के इशारों पर नाचने लगी. रोज ग्राहक आते थे, जिन से पान सिंह अच्छे पैसे वसूल कर के उसे उन के साथ कमरे में बंद कर देता था. ग्राहक उसे तबीयत से नोचतेखसोटते थे और पूरी कीमत वसूल कर चलते बनते थे. धीरेधीरे पिंकी को पता चला कि उस इलाके के ज्यादातर मकानों में यही काम होता है.

पिंकी को अहसास हो गया कि उस की जिंदगी की यही नियति है. गांव में रहते वह सपने देखा करती थी कि उस की शादी हो गई है और उस का एक अच्छाखासा देवता समान पति है, जिस के लिए वह सुबहशाम खाना बनाती है, उस के कपड़े प्रैस करती है और उस का खूब ध्यान रखती है. वह भी उसे खूब प्यार करता है.

लेकिन यहां रोज एक नए मर्द से उस की शादी होती थी, जो प्यार के नाम पर 2-4 घंटे में अपनी जिस्मानी प्यास बुझा कर चलता बनता था. कभीकभी पिंकी को अपने जिस्म से घिन आती थी. शरीर ही नहीं, बल्कि उसे तो अपनी आत्मा से भी घिन आने लगी थी, पर वह कुछ कर नहीं सकती थी.

पान सिंह के लिए वह टकसाल या नोट छापने की मशीन थी, जो रोज हजारों रुपए उगलती थी. एवज में उसे अच्छा खानापानी, कपड़े और कौस्मेटिक का सामान मिलता था. वह एक ऐसी कठपुतली थी, जिस की डोर रिश्ते के इस मौसा पान सिंह की अंगुलियों में बंधी थी.

ग्वालियर में रहते पिंकी ने हजारों ग्राहकों को निपटाया. कुछ ही महीनों में वह एक माहिर कालगर्ल या वेश्या बन गई. उस के भीतर की भोलीभाली अल्हड़ लड़की वक्त से पहले ही एक तजुर्बेकार औरत में तब्दील हो गई. वह खुद इस बदलाव को महसूस कर रही थी, पर दिल की बात साझा करने के लिए कोई साथी नहीं था. एक ऐसे मर्द की चाहत उसे हमेशा रहती थी, जो ग्राहक न हो, शरीर से परे उसे एक औरत समझे. पर इस धंधे में आमतौर पर ऐसा नहीं होता इसलिए वह ऐसी बातें सोचने से भी घबराने लगी थी.

लेकिन पिंकी की यह गलतफहमी गलत साबित हुई कि 16-17 साल की उम्र में ही उस ने दुनिया देख ली है. एक दिन पान सिंह ने उसे नागपुर की 2 मशहूर तवायफों बंटी और परवीन के हाथों 15 लाख रुपए में बेच दिया. यह सौदा कब और कैसे हो गया, पिंकी को इस की हवा भी नहीं लगी. देहव्यापार के जिस धंधे की महज साल भर में ही वह खुद को प्रोफेसर समझने लगी थी, वह उस की नर्सरी क्लास था.

चूंकि पिंकी जवान थी और शरीर अभी तक कसा हुआ था, इसलिए परवीन ने ठोकबजा कर पान सिंह को 15 लाख रुपए दे दिए. पान सिंह ने उसे बेच कर 6 लाख रुपए का मुनाफा तो कमाया ही, इस से भी ज्यादा उस ने साल भर में उस से ग्राहकों के जरिए कमा लिए थे.

इस तरह पिंकी औरेंज सिटी के नाम से मशहूर नागपुर चली गई. ग्वालियर से नागपुर के रास्ते भर में उस की समझ में आ गया था कि एक तवायफ की जिंदगी में न कोई अहसास होता है न जज्बात. वह दलालों की जायदाद होती है, इस से आगे या ज्यादा कुछ नहीं.

नागपुर की गंगाजमुना गली देहव्यापार के लिए उसी तरह जानी जाती है, जैसे मुंबई का रेडलाइट इलाका कमाठीपुरा. परवीन वहां की जानीमानी तवायफ थी. उस की जानपहचान देश भर की देहमंडियों के कारोबारियों और दलालों से थी. इस गली में दाखिल होते ही पिंकी को अहसास हो गया कि उमराव जान जैसी फिल्मों में कुछ गलत नहीं दिखाया गया था. जो कुछ बदलाव आए हैं, वे लोगों को दिखते नहीं या लोग जानबूझ कर उन से वास्ता नहीं रखते. ये एक ही सिक्के के  2 पहलू हैं.

नागपुर आ कर पिंकी को लगा कि इस से बेहतर तो ग्वालियर ही था, क्योंकि परवीन की सरपरस्ती में उसे कई बार लगातार 20 ग्राहकों को निपटाना पड़ता था. परवीन जल्द से जल्द पान सिंह को दिए 15 लाख रुपए उस की चमड़ी से वसूल लेना चाहती थी. यहां की कालगर्ल्स के बीच भद्दे हंसीमजाक होते थे, जिन से शुरू में तो पिंकी परहेज करती रही, लेकिन बाद में उसे लगा कि एकाकीपन से बचने के लिए इसी माहौल का हिस्सा बन जाना बेहतर है.

परवीन की उम्र और जिस्म दोनों ढलान पर थे, फिर भी वह जितना हो सकता था, अपना शरीर बेचती थी. पर बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए वह अब लड़कियों की खरीदफरोख्त भी करने लगी थी. एक तरह से उस का रोल कोठों की मौसियों सरीखा था, जो लड़कियों से जरूरत के मुताबिक नरमी और सख्ती दोनों से पेश आना जानती हैं.

परवीन के यहां सुबह से ही ग्राहक आने लगते थे. यहां देश के हर इलाके के लोग आते थे, जिन में से कुछ शौकिया तो कुछ आदी थे. इन लोगों और दलालों की भाषा में पिंकी नया माल थी, इसलिए उस की पूछपरख और कीमत ज्यादा थी. वह एक मशीन की तरह उठती थी और बुत की तरह जब वक्त मिलता, सो जाती थी.

पिंकी की समझ में अच्छी तरह आ गया था कि उस की हालत जहाज के उस पंछी जैसी है, जो बीच समुद्र में है. जहाज से उड़ कर पंछी कितनी भी दूर चला जाए, कोई ठौरठिकाना न मिलने पर उसे झख मार कर जहाज पर ही वापस आना है.

अब सब कुछ उस के सामने खुली किताब की तरह था. जिस दिन परवीन अपने 15 के 50 लाख बना लेगी, उस दिन उसे 10-20 लाख रुपए में किसी और के हाथ बेच देगी. यह किस्मत की बात होगी कि तब वह कहां जाएगी, हैदराबाद, मुंबई, पुणे या फिर कोलकाता. जल्दी ही वह गंगाजमुना गली की ऐसी रौनक बन गई थी, जिस की खुद की जिंदगी स्याह थी.

भागने का खयाल भी इन बदनाम गलियों में किसी गुनाह से कम नहीं होता. इसलिए पिंकी आजादी के सपने नहीं देखती थी. पर उस का एक राजकुमार वाला सपना अभी भी टूटा नहीं था. शायद कालगर्ल्स की जिंदगी का सहारा यही सपना होता है, मकसद भी, जिस के बारे में वही बेहतर जानती हैं.

ऐसी फिल्मी और किताबी बातें सोचतेसोचते वे बूढ़ी हो जाती हैं और फिर खुद की जैसी दूसरी मजबूर और वक्त की मारी लड़कियों को इस दलदल में धकेल कर धंधा करवाने लगती हैं, जिस से बुढ़ापा चैनसुकून और आराम से कट सके. उन के इस लालच या स्वार्थ से कितनी लड़कियों का सुकून और चैन छिन जाता है, वे उस से कोई वास्ता नहीं रखतीं.

नागपुर आने के बाद पिंकी ने साफ महसूस किया था कि उस पर कई मर्दानी नजरों का सख्त पहरा रहता है. वे नजरें सीसीटीवी कैमरों की तरह हैं, जो खुद मुश्किल से दिखते हैं, पर उन की नजर दूर तक रहती है. वहां से भागने की कोशिश करने वाली लड़कियों का कितना बुरा हश्र हुआ, इस के किस्से इतने डरावने तरीके से सुनाए जाते थे कि कोई लड़की ऐसा सोच भी रही हो तो वह खयाल दिलोदिमाग से निकालने में ही अपनी भलाई समझे.

कुछ ही दिनों में पिंकी ने परवीन का इतना भरोसा जीत लिया था. अब उस की निगरानी पहले जैसी नहीं होती थी. उसे नियमित और भरोसेबंद ग्राहकों के साथ अकेला छोड़ा जाने लगा था. लेकिन ग्राहक के साथ कहीं बाहर जाने की इजाजत अभी भी उसे नहीं थी.

एक दिन विपिन पांडे नाम का ग्राहक उस के पास आया तो पिंकी को वह वही शख्स लगा, जिस के सपने वह ग्वालियर आने के पहले से देख रही थी. विपिन में कई बातें ऐसी थीं, जो पिंकी को भा गई थीं. वह आम ग्राहकों की तरह उस पर टूट नहीं पड़ा था. उस ने कोई जल्दबाजी भी नहीं दिखाई थी. पहली बार में ही दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई, जिस से पिंकी को लगा कि विपिन का औरतों को देखने का नजरिया दूसरों से अलग है. उस दिन पहली बार पिंकी का दिन किसी 22 साल की लड़की की तरह धड़का तो वह सिर से ले कर पांव तक सिहर उठी. उस की समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है.

विपिन जाने लगा तो पिंकी मायूस हो उठी. वह अपने मजबूर दिल को संभाल नहीं पाई. उस ने विपिन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘फिर आना.’’

पेशे से ड्राइवर विपिन छिंदवाड़ा के एक प्रतिष्ठित परिवार का बेटा था. छिंदवाड़ा से नागपुर तक का कोई 2 घंटे का रास्ता है, जिसे अब विपिन पिंकी के लिए नापने लगा था. वह अकसर पिंकी के पास जाने लगा तो पिंकी ने उसे अपनी जिंदगी की कहानी विस्तार से सुना दी, जो राजस्थान के बूंदी जिले के गांव शंकरपुरा से ग्वालियर होते हुए नागपुर के बदनाम इलाके गंगाजमुना गली के उस कोठे पर आ कर खत्म होती थी.

प्यार अकेली पिंकी को ही नहीं हुआ था, बल्कि विपिन भी उस से प्यार करने लगा था. यह प्यार ठीक वैसा ही था, जो सन 1991 में प्रदर्शित महेश भट्ट की देहव्यापार पर बनी फिल्म ‘सड़क’ में दिखाया गया था. इस फिल्म में नायक संजय दत्त टैक्सी ड्राइवर होता है और मजबूरी की मारी एक कालगर्ल पूजा भट्ट से प्यार कर बैठता है. इस फिल्म में महारानी वाली भूमिका सदाशिव अमरापुरकर ने निभाई थी,जो खूब चर्चित रही थी.

यहां तो कदमकदम पर महारानियां थीं, लेकिन प्यार भी कहां आसानी से हार मानता है. पिंकी और विपिन ने तय कर लिया था कि भाग कर शादी कर लेंगे और कहीं भी बस जाएंगे. अच्छी बात यह थी कि विपिन हिम्मत वाला युवक था, जो दूसरों की तरह बदनाम गलियों और इलाकों के गुंडों और दलालों से नहीं डरता था.

विपिन के प्यार में डूबी पिंकी भूल गई थी कि तवायफ को प्यार करने की इजाजत न बाजार देता है और न समाज. फिर किसी से शादी कर के गृहस्थी बसाना तो कालगर्ल्स के लिए ख्वाब जैसी बात होती है.

पिंकी जानती थी कि रसूख वाली परवीन के हाथ बहुत लंबे हैं और उस के संबंध कुछ रसूखदार लोगों से भी हैं. गुंडे और दलाल पालना तो कोठों की परंपरा है, जिन का काम यही होता है कि कोई लड़की कोठों की परंपरा को तोड़ कर भागने की कोशिश न करे और करे तो उस का इतना बुरा हाल करो कि वह दूसरी लड़कियों के लिए सबक बन कर रह जाए.

नागपुर में सालों से कोठा चला रही परवीन सिर्फ एक बार ही पीटा एक्ट के तहत गिरफ्तार हुई थी. इस से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह इस कारोबार की कितनी सधी हुई खिलाड़ी थी. कई पुलिस वालों से उस के दोस्ताना संबंध थे.

एक दिन परवीन का सारा सयानापन और तजुरबा धरा रह गया, जब उस के पिंजरे से पिंकी नाम की एक मैना अपने तोते विपिन के साथ भाग निकली. वह 3 मार्च की दोपहर थी, जब हमेशा की तरह विपिन ग्राहक बन कर आया. वह समय परवीन के नहाने का होता था, इसलिए वह विपिन और पिंकी को कमरे में छोड़ कर नहाने चली गई.

दरअसल, भागने की योजना पिंकी और विपिन पहले ही बना चुके थे. पिंकी ने विपिन को बताया था कि गहमागहमी और दलालोंगुंडों की मौजूदगी के चलते रात में भागना कतई मुमकिन नहीं है, इसलिए दिन का समय इस के लिए ठीक रहेगा. उस समय बाजार के ज्यादातर लोग और लड़कियां सोई रहती हैं.

पिंकी भागी तो परवीन तिलमिला उठी. न केवल परवीन, बल्कि देहव्यापार से जुड़े तमाम लोग हैरान रह गए. चंद घंटों में ही पिंकी के भागने की खबर आग की तरह देहव्यापार के राष्ट्रीय बाजार में फैल गई. फिर तो परवीन के गुर्गों ने उसे शिकारी कुत्तों की तरह ढूंढना शुरू कर दिया.

2 दिलों में प्यार का जज्बा एक बार पैदा हो जाए तो उसे रोका नहीं जा सकता. यही पिंकी और विपिन के साथ हुआ था. दोनों ज्यादा दूर नहीं भागे. उन्होंने नागपुर से 100 किलोमीटर दूर मुलताई के कोर्ट में शादी कर ली. मुलताई बैतूल जिले की तहसील है, आदिवासी बाहुल्य यह शहर ताप्ती नदी के किनारे बसा है.

मुद्दत बाद पिंकी को नरक से छुटकारा मिला था. वह तो हार मार चुकी थी, लेकिन विपिन की मर्दानगी और मोहब्बत ने उसे नई जिंदगी दी, इसलिए वह उसे दिल ही दिल में देवता का दरजा दे चुकी थी. किसी तवायफ को जीवनसंगिनी बनाने का फैसला भी कोई आम आदमी नहीं कर सकता.

दूसरी ओर परवीन घायल शेरनी की तरह अपनी शिकस्त और लापरवाही पर तिलमिला रही थी. उस ने ग्वालियर में बैठे पान सिंह की भी खिंचाई की और देश भर के नएपुराने अड्डों पर खबर पहुंचा दी कि पिंकी कहीं दिखाई दे तो तुरंत इस की सूचना नागपुर दी जाए. परवीन की टीम ढूंढती भी रही और हाथ भी मलती रही कि आखिरकार दोनों को जमीन निगल गई या आसमान खा गया.

मुलताई में शादी करने के बाद विपिन पिंकी को भोपाल ले आया. भोपाल के पौश इलाके शिवाजीनगर में उस के मौसा प्रकाश शर्मा रहते हैं, जो सीआईडी के एडीजी कैलाश मकवान के स्टाफ में दारोगा हैं.

विपिन जब पिंकी को ले कर उन के घर पहुंचा तो वह चौंके कि यह कैसी शादी है. इस पर विपिन ने उन्हें बताया कि उस ने नागपुर की रहने वाली पिंकी से लवमैरिज की है. चूंकि मातापिता पिंकी को सहज स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए वह उन दोनों को पनाह दे दें. कुछ दिनों बाद हालात ठीक हो जाएंगे तो वह खुद छिंदवाड़ा जा कर मांबाप को सच बता देगा.

विपिन ने प्रकाश को यह नहीं बताया था कि पिंकी कौन है. प्रकाश शर्मा को पत्नी के भांजे पर दया आ गई और कुछ सोच कर उन्होंने दोनों को अपने घर रहने की इजाजत दे दी. मौसा के इस फैसले से दोनों खुशी से झूम उठे कि उन की अभी तक की कवायद बेकार नहीं गई. चूंकि इन का प्यार सच्चा है, इसलिए मौसाजी भी आसानी से मान गए. जल्द ही विपिन ने खुद के लिए किराए का मकान ढूंढ लिया.

प्रकाश शर्मा के घर उन की पत्नी कविता और बेटा गौरव रहते थे. उन की बेटी रूपाली की शादी हो चुकी है. गौरव भोपाल के कैरियर कालेज से ग्रैजुएशन कर रहा था. जब ठिकाना मिल गया तो जुगाड़ू विपिन ने खुद के लिए एक ट्रैवल एजेंसी में नौकरी भी ढूंढ ली. शिवाजीनगर में सरकारी क्वार्टरों और बंगलों की भरमार है, लिहाजा वहां का माहौल आमतौर पर शांत ही रहता है. पिंकी यह सब देख कर हैरान थी कि दुनिया इतनी अच्छी है, जिस में इतने अच्छे लोग भी रहते हैं.

2 हफ्ते में ही पिंकी ने अपने मौसेरे सासससुर का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सिर पर पल्लू रखे वह आदर्श बहू की तरह रहती थी और कोशिश करती थी कि घर के सारे कामकाज खुद निपटा डाले. यह वह जिंदगी थी, जो पिंकी का सपना थी.

घरगृहस्थी पिंकी ने पहली बार देखी थी. देवर गौरव भाभी के इर्दगिर्द मंडराता रहता था. हालांकि पिंकी को परवीन का खौफ सताता रहता था, पर प्रकाश शर्मा के पुलिस में होने की वजह से वह खुद को महफूज समझ रही थी. इस के अलावा यहां मिल रहे लाड़प्यार के चलते वह अपनी पुरानी जिंदगी को भी भूलने लगी थी.

23 मार्च की सुबह रोजाना की तरह प्रकाश शर्मा अपने औफिस चले गए. विपिन भी अपनी ड्यूटी पर जा चुका था. जिस ट्रैवल एजेंसी में उसे नौकरी मिली थी, उस ने उस की ड्यूटी प्रदेश के रसूखदार मंत्री रामपाल सिंह के बंगले पर लगा रखी थी. वह भी शिवाजीनगर में ही रहते थे.

कालेज जाने को तैयार बैठे गौरव का टिफिन किचन में तैयार कर रही पिंकी उस समय चौंकी, जब उसे बाहर गाडि़यों के रुकने की आवाज सुनाई दी. वह कुछ सोचसमझ पाती, उस के पहले ही ड्राइंगरूम से मौसिया सास कविता और देवर गौरव के चीखने की आवाजें उसे सुनाई दीं.

पिंकी को समझते देर नहीं लगी कि परवीन के गुर्गे उसे सूंघते हुए यहां तक आ पहुंचे हैं. लिहाजा वह दूसरे दरवाजे से भाग निकली. उस घर में जहां वह 20 दिनों तक एक आदर्श बहू की तरह रही, में क्या हो रहा है यह उसे कुंछ घंटों बाद पता चला.

वहां एक भयानक हादसा अंजाम ले चुका था. पिंकी का यह अंदाजा गलत साबित हुआ कि देहव्यापार की दुनिया के दलाल और खतरनाक गुंडे उसे ढूंढ नहीं पाएंगे. अगर जैसेतैसे ढूंढ भी लिया तो मौसा ससुर प्रकाश शर्मा के पुलिसकर्मी होने के चलते कुछ नहीं कर पाएंगे.

उस दिन एक टवेरा और एक स्कौर्पियो प्रकाश शर्मा के घर के बाहर आ कर रुकी. एकदम फिल्मी स्टाइल में धड़ाधड़ 14 लोग उन में से निकले, जिन में 4 महिलाएं भी थीं. सभी सीधे उन के घर में दाखिल हो गए. वे लोग विपिन और पिंकी को ढूंढ रहे थे. एकाएक कुछ लोगों को आया देख कविता और गौरव हकबका गए कि ये लोग कौन हैं और क्या चाहते हैं.

पिंकी के बारे में उन से पूछा गया, जिस का मतलब दोनों समझ नहीं पाए. आगंतुकों ने पूरा घर छान मारा, पर पिंकी नहीं मिली. वे गौरव और कविता को मारने लगे. दोनों चिल्लाए तो आसपड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए. माजरा क्या है, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था. आखिर इतनी सुबहसुबह शिवाजीनगर जैसे शांत इलाके में कुछ गुंडेबदमाश एक पुलिस वाले के घर घुस कर गदर क्यों मचा रहे हैं.

बदमाशों ने गौरव को काबू कर के गाड़ी में बिठाया और जातेजाते कविता को धमकी दे गए कि विपिन को भेज कर अपने बेटे को ले आना. उन के जाते ही न केवल शिवाजीनगर, बल्कि पूरे भोपाल में कोहराम मच गया कि दिनदहाड़े एक पुलिस वाले का बेटा अगवा कर लिया गया.

मामला खुद के विभाग के मुलाजिम का था, इसलिए पुलिस तुरंत हरकत में आ गई. गाडि़यों के नंबर चूंकि एक किशोर ने नोट कर लिए थे, इसलिए उस का काम एक हद तक आसान हो गया था. भोपाल के चारों तरफ नाकाबंदी कर दी गई. जल्दबाजी में बदमाश गौरव के मोबाइल से बेखबर थे, इसलिए उस के जरिए पुलिस को उन की लोकेशन मिल रही थी.

घर पर हुए इस हादसे की खबर मिलते ही प्रकाश और विपिन अपनी ड्यूटी छोड़ कर आ गए. इस के बाद विपिन के सच बताने पर सारी कहानी सामने आई कि उन बदमाशों का मकसद क्या था. मामला वाकई गंभीर था, जिस में बदमाश गौरव को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा सकते थे. इसलिए पुलिस के सामने यह चुनौती पेश आ गई कि कैसे भी गौरव को सकुशल उन के चंगुल से छुड़ाया जाए.

गौरव के मोबाइल की लोकेशन से पता चला कि बदमाशों की गाडि़यां नरसिंहगढ़ और कुरावरमंडी की ओर जा रही हैं. यह रास्ता राजगढ़ होते हुए राजस्थान की तरफ जाता है. पुलिस वालों ने फुरती दिखाते हुए कुछ ही घंटों में नरसिंहगढ़ और कुरावर के बीच मलावर थाने के पास बदमाशों की गाडि़यों को घेर लिया, जो बदमाशों के लिए अप्रत्याशित था.

खुद को घिरा देख कर बदमाशों ने गौरव को गाड़ी से धकेल कर भागने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. गौरव को पुलिस ने अपनी गाड़ी में बिठाया और कुछ दूर जा कर बदमाशों को समर्पण करने पर मजबूर कर दिया.

गिरफ्तार हुए अपराधियों में पिंकी के मौसा पान सिंह के अलावा रामसिंह, हर्ष, राहुल, चेन सिंह, मंगल सिंह और हरीश ग्वालियर के थे. जबकि आशा, मौसमी और विचाराम राजस्थान के थे. नागपुर के जो लोग पकड़े गए थे, उन के नाम मोहम्मद सादिक, जगन, कविता और प्रवीण थे.

जाहिर है देहव्यापार से जुड़े 3 राज्यों के दलाल एकजुट हो कर पिंकी और विपिन को पागल कुत्तों की तरह ढूंढ रहे थे. आखिर उन्होंने देश भर में फैले नेटवर्क के जरिए विपिन के बारे में सारी जानकारियां जुटा ही ली थीं.

पकड़े गए लोगों को भोपाल ला कर पुलिस ने इन की मेहमाननवाजी की तो पूरा सच सामने आ गया. गौरव पर उन्होंने अपना गुस्सा गाड़ी में बैठाते ही निकालना शुरू कर दिया था. उसे खूब मारा गया था. जब उस ने विरोध करने की कोशिश की तो उसे जान से मारने की धमकी दी गई.

गौरव की समझ में सिर्फ इतना ही आया कि वे विपिन भैया और पिंकी भाभी के बारे में बातें कर रहे थे. गौरव को कोई गंभीर चोट नहीं आई थी, फिर भी ऐहतियातन उस का मैडिकल कराया गया, जो कानूनन भी जरूरी था.

जब सब कुछ साफ हो गया तो सुनने वाले हैरत में पड़ गए. यह एक अलग तरह की प्रेमकथा थी, जिस के चलते प्रकाश शर्मा के परिवार पर खतरे के बादल मंडराए थे. लेकिन अंत भला तो सब भला की तर्ज पर बात आईगई हो गई. आखिर बदमाशों को जेल में ठूंस दिया गया. इस के बाद पुलिस टीमें नागपुर, ग्वालियर और राजस्थान गईं.

विपिन के बयान और मंशा से सामने आया कि उस ने एक मजबूर लड़की को गंदगी के दलदल से निकाल कर अपनाया था. वह उस से प्यार करता है और करता रहेगा. समाज के कुछ कहनेसुनने की परवाह उसे नहीं है. विपिन ने माना कि वे लोग बहुत खतरनाक हैं और उस की व पिंकी की जान भी ले सकते हैं. पर अब वह किसी से नहीं डरेगा.

विपिन की मंशा पिंकी को समाज में सम्मान दिलाने की है. इस में वह कितना कामयाब होगा, कह पाना मुश्किल है, क्योंकि कोई भी समाज तवायफ को नहीं अपनाता. उस के प्रति नजरिया कैसा होता है, यह हर कोई जानता है. फिर भी कई लोग विपिन की पहल का स्वागत कर रहे हैं, इसलिए वह अभी भी पिंकी का हाथ मजबूती से थामे हुए है.

निश्चित रूप से विपिन सच्चा मर्द है और शाबाशी का हकदार भी, जिस ने पिंकी को गृहिणी बना कर जीने का सपना पूरा किया और अभी भी आने वाली दिक्कतों से दृढ़ता से जूझ रहा है.

फेसबुक फ्रैंड की घर में घुस कर की बेरहमी से हत्या

रोज की तरह 27 सितंबर, 2016 की सुबह भी किरण रावत उठ कर अपने कामकाज में लग गई थीं. कोई 6 बजे उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उन्हें हैरानी हुई कि इतने सवेरे किस ने फोन कर दिया. लेकिन जब स्क्रीन पर नंबर देखा तो वह चौंकी भी और परेशान भी हुईं कि कैसा कम्बख्त और बेशर्म लड़का है, जो हाथ धो कर पीछे पड़ गया है. फोन रिसीव न करना और काट देना उन्हें ठीक नहीं लगा, क्योंकि वह जानती थीं कि लड़का दोबारा ही नहीं, न उठाने तक फोन करता रहेगा. लिहाजा मन मार कर उन्होंने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘आंटी, मैं अमित बोल रहा हूं और अभीअभी गूजरखेड़ा से आया हूं. प्लीज एक बार आप मुझे प्रिया से 5 मिनट बातें कर लेने दें, उस के बाद मैं कभी उसे या आप को फोन नहीं करूंगा.’’ किरण पसोपेश में पड़ गईं कि क्या करें? अमित के फोन सुन कर वह खुद भी तंग आ चुकी थीं. हर बार घिसे हुए रिकार्ड की तरह गिड़गिड़ा कर वह एक ही बात की रट लगाए रहता था. अमित के बारे में वह उतना ही जानती थीं, जितना उन की बेटी प्रिया ने उन्हें बताया था.

17 साल की प्रिया होनहार छात्रा थी. इन दिनों वह आईआईटी की तैयारी कर रही थी. उस ने अमित के बारे में मां से कुछ भी नहीं छिपाया था. वह उस का फेसबुक फ्रैंड जरूर था, लेकिन फ्रौड था. उस ने प्रियांशी के नाम से अपना फेसबुक एकाउंट बना कर उसे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी. उस ने अमित को प्रियांशी नाम की लड़की समझ कर उस की फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली थी. प्रिया अमित को लड़की समझ कर उस से कुछ महीनों तक चैटिंग भी करती रही. उसी बीच उस ने खुद का और मां का मोबाइल नंबर उसे दे दिया था. लेकिन जब उसे प्रियांशी यानी अमित की हकीकत पता चली तो उस ने उसे ब्लौक कर दिया. ब्लौक किए जाने के बाद अमित उसे मोबाइल पर फोन ही नहीं करने लगा, बल्कि प्यार का इजहार भी कर दिया.

प्रिया के लिए यह परेशानी वाली बात थी. वह इस बात पर खार खाए बैठी थी कि पहले तो अमित ने फेक एकाउंट के माध्यम से उस से दोस्ती गांठी और जब वास्तविकता सामने आई तो फोन पर प्यार का इजहार करने लगा. अमित के इस दुस्साहस से नाराज प्रिया ने उसे जम कर लताड़ा और आइंदा कभी फोन न करने की हिदायत दी. अमित नहीं माना और फोन न उठाने पर मैसेज करने लगा. इस से प्रिया को लगा कि यह सिरफिरा मानने वाला नहीं है, इसलिए उस ने उस पर ध्यान देना बंद कर दिया और पढ़ाई में मन लगाने लगी. जब प्रिया अनदेखी करने लगी तो अमित उस की मां किरण को फोन करने लगा.

उन से उस ने अपनी मनोस्थिति बताई कि जब से प्रिया ने उस से फोन पर बात करना बंद कर दिया है, तब से वह काफी तनाव में रहता है. उस तनाव में उस का सिर फटने लगता है. अगर वह एक बार आमनेसामने बैठा कर प्रिया से बात करा दें तो शायद उस की परेशानी दूर हो जाए. शुरूशुरू में तो सख्ती दिखाते हुए किरण ने बात कराने से मना कर दिया था, पर जब अमित के फोन बारबार आने लगे तो उन्हें लगा कि यह लड़का एकतरफा प्यार और गलतफहमी का शिकार हो गया है. ऐसे में अगर उस की इच्छा या जिद पूरी नहीं की गई तो वह इसी तरह प्रिया को ही नहीं, उन्हें भी परेशान करता रहेगा. 27 सितंबर, 2016 की सुबह जब अमित का फोन आया तो किरण ने सोचा कि आखिर इस अमित नाम की गले पड़ी मुसीबत से एक बार बात करने में हर्ज ही क्या है? लिहाजा उन्होंने उसे घर आने की इजाजत इस शर्त के साथ दे दी कि उसे जो भी बात करनी है, वह खिड़की से होगी. अमित इस पर भी तैयार हो गया और ठीक साढ़े 10 बजे उन के घर पहुंच गया.

किरण पेशे से ब्यूटीशियन हैं और उन के पति श्यामबिहारी एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते हैं. प्रिया इन दोनों की एकलौती बेटी थी. वह काफी होशियार और समझदार थी. उस का पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई और कैरियर पर रहता था. इंजीनियर बनने की अपनी तमन्ना पूरी करने के लिए वह एलेन कोचिंग इंस्टीट्यूट से कोचिंग भी ले रही थी. गीतानगर इंदौर का रिहायशी इलाका है. इस के कृष्णानगर अपार्टमेंट के थर्ड फ्लोर पर 3 सदस्यों वाला यह रावत परिवार सुकून से रह रहा था. हंसमुख और सुंदर प्रिया का ज्यादातर समय पढ़ाई में बीतता था. दिन में कुछ वक्त वह सोशल मीडिया, उस में भी फेसबुक पर बिता लेती थी.

फेसबुक इस्तेमाल करते समय क्याक्या सावधानियां रखी जानी चाहिए, उन्हें वह जानती थी. इसलिए अंजान लोगों और लड़कों से वह दोस्ती नहीं करती थी. पर वह अमित को प्रियांशी समझने की भूल कर बैठी, जिसे समय रहते उस ने अपने हिसाब से सुधार भी लिया था. लेकिन अमित से चैटिंग के दौरान प्रिया ने कुछ अंतरंग बातें कर ली थीं, जो स्वाभाविक भी थीं, क्योंकि वह तो उसे प्रियांशी नाम की लड़की और सहेली समझ रही थी. साढ़े 10 बजे कालबैल बजी तो किरण को समझते देर नहीं लगी कि अमित आ गया है. उन्होंने दरवाजा खोला और उसे देख कर रूखी आवाज में कहा, ‘‘जो भी बात करनी है, बाहर से और जल्दी करो.’’ पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर 24 साल के अमित को इतना तो पता था कि जिस विनम्रता से वह अपनी प्रेमिका के घर के दरवाजे तक आ पहुंचा है, उसी का सहारा ले कर वह अंदर भी जा सकता है और ऐसा हुआ भी. उस ने गिड़गिड़ाते हुए गुजारिश की कि ज्यादा नहीं, वह सिर्फ 5 मिनट लेगा, इसलिए उसे अंदर आ कर इत्मीनान से बात कर लेने दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा.

किरण चूंकि अपने घर में थीं, इसलिए उन्हें किसी तरह का खतरा अमित से महसूस नहीं हुआ. क्योंकि वह देखने में ठीकठाक यानी शरीफ लग रहा था. उन का सोचना था कि एक बार यह प्रिया से बात कर लेगा तो इस की गलतफहमी या जिज्ञासा, जो भी है, खत्म हो जाएगी, इस के बाद हमेशा के लिए उस का इस बला से पिंड छूट जाएगा. यही सोच कर उन्होंने अमित को अंदर आने दिया. तब उन्हें कतई इस बात का अहसास नहीं था कि इस मासूम से चेहरे के पीछे हैवानियत और वहशीपन छिपा है. वह उन का घर उजाड़ने की मंशा से आया है. उस की मंशा कुछ और है. अंदर आ कर खुद को बेचैन दिखाते हुए अमित ने बाथरूम जाने की बात कही तो भी किरण को उस के खतरनाक मंसूबे का पता नहीं चला कि उन्होंने महज शिष्टाचार निभाते हुए कितनी बड़ी आफत मोल ले ली. इजाजत पा कर अमित बाथरूम की तरफ लगभग भागा तो वह ड्राइंगरूम में उस के वापस आने का इंतजार करने लगीं कि वह आए और अपनी बात कह कर जाए.

फ्लैट के भूगोल से अंजान अमित जाने कैसे प्रिया के कमरे तक पहुंच गया. उस समय वह स्कूल जाने के लिए अपना बैग तैयार कर रही थी. वह दबे पांव प्रिया के पीछे पहुंचा और साथ लाया चाकू निकाल कर उस के ऊपर हमला कर दिया. अचानक हुए हमले से प्रिया चीखी तो उस की चीख सुन कर किसी अनहोनी की आशंका से घबराईं किरण उस के कमरे की तरफ भागीं. अंदर अमित प्रिया पर चाकू से ताबड़तोड़ वार कर रहा था. उस हालत में यह सोचने का समय नहीं था कि क्या किया जाए, इसलिए बगैर समय गंवाए किरण ने बेटी को बचाने की कोशिश की तो अमित ने उन पर भी हमला कर दिया. मां के आने पर मौका मिला तो प्रिया खुद को बचाने के लिए बाथरूम में घुस गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

किरण और प्रिया की चीखें सुन कर अपार्टमेंट के लोग उन के फ्लैट की तरफ भागे तो उन्होंने देखा कि एक लड़का हाथ में चाकू लिए भाग रहा है. अमित अभी सैकेंड फ्लोर तक ही आ पाया था कि उसे नीचे से भी लोग आते दिखे. उसे लगा कि लोगों ने उसे देख लिया है. अगर वह भीड़ के हत्थे चढ़ गया तो खासी धुनाई होगी. लिहाजा बचने की गरज से उस ने दूसरी मंजिल से छलांग लगा दी. पड़ोसी जब किरण के फ्लैट पर पहुंचे तो जल्द ही वहां की स्थिति उन की समझ में आ गई. किरण के इशारे पर वे बाथरूम की तरफ भागे और दरवाजा तोड़ा तो प्रिया मरणासन्न हालत में पड़ी थी. उस के शरीर का काफी खून बह गया था. लोग उसे कार में डाल कर अस्पताल के लिए भागे. इसी बीच किसी ने फोन से इस घटना की खबर पुलिस को कर दी थी. इंदौर के सुयश अस्पताल में प्रिया का इलाज शुरू हुआ. लेकिन इलाज के दौरान ही उस ने दम तोड़ दिया. अमित ने उस की पीठ, पेट, आंख, कान, गले और सीने पर लगभग दर्जन भर वार किए थे. श्यामबिहारी को जब एकलौती बेटी की हत्या की सूचना मिली तो वह बेहोश हो गए.

अमित दूसरी मंजिल से कूदा तो फिर उठ नहीं सका. उस के हाथपैर में फ्रैक्चर हो गया. उसे गिरफ्तार कर के एम.वाय. अस्पताल में इलाज के लिए भरती कराया गया. वह पूरे होश में था. उस के चेहरे पर डर या पछतावा जैसी कोई चीज नहीं थी. लगता था, वह यही करना चाहता था. प्रिया की हत्या ही उस का मकसद था. गूजरखेड़ा गांव के रहने वाले अमित की फ्रैंडसर्किल कोई बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन सोशल मीडिया की उस की दुनिया काफी बड़ी थी. वह दिनरात स्मार्टफोन से चिपके हुए चैटिंग करता रहता था. लड़कियों से दोस्ती करने की गरज से उस ने प्रियांशी के नाम से एकाउंट बना कर तमाम लड़कियों से दोस्ती कर ली थी. प्रिया से दोस्ती की जगह प्यार हो गया तो उस ने उस से दिल की बात कह डाली. लेकिन प्रिया ने उस धोखेबाज को झिड़क दिया तो एकतरफा प्यार की गिरफ्त में आए इस सिरफिरे ने उसे दुनिया से ही विदा कर दिया.

पूछताछ में अपने बचाव के मकसद से अमित गोलमोल जवाब देता रहा. वह अपने पिता सुनील यादव से झूठ बोल कर निकला था कि इंटरव्यू देने जा रहा है. वह पुलिस से यह कह कर उसे भ्रमित करने की कोशिश कर रहा था कि जब वह प्रिया के कमरे में पहुंचा तो वह उस पर ज्यादती का आरोप लगाने लगी. जबकि फोरैंसिक रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि प्रिया ने खुद पर कोई वार नहीं किया था. अमित का कहना था कि प्रिया ने उस का चाकू छीन कर खुद पर वार किए थे. एक दूसरा बयान उस ने यह भी दिया था कि उसे आशंका थी कि प्रिया के घर जाने पर उस के साथ कोई भी अनहोनी हो सकती है, इसलिए उस ने ही खुद पुलिस को 100 नंबर पर फोन कर के बुलाया था.

किरण पर हमले की बात से मुकरते हुए उस ने कहा कि भागते हुए जब वह बीच में आ गईं तो हाथ में पकड़े चाकू से उन्हें जख्म हो गया. जबकि हकीकत यह थी कि अमित प्रिया से एकतरफा प्यार करने लगा था और उस के मना करने पर जलभुन गया था. फेसबुक की दोस्ती पर ऐसे अपराध अब आम हो चले हैं, जिन का शिकार प्रिया जैसी लड़कियां हो रही हैं. ऐसे में उन्हें और संभल कर रहने की जरूरत है. प्रिया उस का पहला प्यार था और उस के ठुकरा देने से वह उस से नफरत करने लगा था, जिस की वजह से उस ने एक हंसताखेलता घर उजाड़ दिया.

Crime: गुमनामी में मरा अरबपति

ऐसा कर के अपने धन, एकाउंट या महत्त्वपूर्ण चीजों को सुरक्षित तो किया जा सकता है, लेकिन फिजिकली एक्सेस करने वाले के न रहने पर लौक खोलना आसान नहीं होता. इसी चक्कर में कनाडा के अरबपति जेराल्ड की 1359 करोड़ रुपए की करेंसी फंस गई…  शक नाडा की सब से बड़ी क्रिप्टो करेंसी एक्सचेंज कंपनी क्वाड्रिगा सीएक्स के सीईओ जेराल्ड कौटेन की जयपुर के एक निजी अस्पताल में गुमनाम मौत हो गई. इस कंपनी के संस्थापक जेराल्ड 30 साल के थे. बीते 9 दिसंबर को हुई जेराल्ड की मौत का कारण आंत की गंभीर बीमारी बताया जा रहा है. वे भारत में अनाथालय खोलने आए थे और जयपुर में जगह तलाश रहे थे. जेराल्ड की मौत के बाद उन की कंपनी क्वाड्रिगा सीएक्स की 19 करोड़ डौलर यानी करीब 1359 करोड़ रुपए कीमत की करेंसी फंस गई है.

यह क्रिप्टो करेंसी जेराल्ड के लैपटौप में बंद है और उस का पासवर्ड किसी को पता नहीं है. इतने अमीर आदमी की मौत का किसी को पता नहीं चल सका तो इस की वजह यह थी कि जयपुर में उन्हें कोई नहीं जानता था. 31 जनवरी को जेराल्ड की पत्नी जेनिफर रौबर्टसन और कंपनी ने कनाडा की अदालत में क्रेडिट अपील दायर की कि वे जेराल्ड के एनक्रिप्टेड एकाउंट को अनलौक नहीं कर पा रहे हैं. इस के बाद ही दुनिया को जेराल्ड की मौत का पता चला.

जयपुर प्रवास के दौरान जेराल्ड की एक होटल में अचानक तबीयत बिगड़ गई थी. इस के बाद उन्हें मालवीय नगर स्थित निजी अस्पताल ले जाया गया. जहां 2 घंटे बाद ही उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. वह गंभीर स्थिति में अस्पताल पहुंचे थे. यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में चल रहा है. इसलिए अस्पताल के अधिकारी आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कह रहे हैं. दूसरी ओर राजस्थान सरकार ने जेराल्ड का मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किया है.

इस मामले में जवाहर सर्किल थानाप्रभारी अनूप सिंह का कहना है कि विदेशी जेराल्ड की मौत की जानकारी निजी अस्पताल से आई थी. मौत बीमारी के कारण हुई थी, इसलिए केस दर्ज नहीं किया गया.

जेराल्ड की पत्नी जेनिफर की ओर से अदालत में दिए गए हलफनामे के अनुसार, क्वाड्रिगा सीएक्स कंपनी के दुनिया भर में 3 लाख 63 हजार यूजर्स हैं. जेराल्ड के मुख्य कंप्यूटर में क्रिप्टो करेंसी का एक कोल्ड वौलेट था, जिसे केवल फिजिकली एक्सेस किया जा सकता है. यह औनलाइन नहीं है. जेराल्ड ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिन के पास इस कंपनी के वौलेट के पासवर्ड थे. जेराल्ड के निधन के कारण क्रिप्टो करेंसी लौक हो गई है.

इस बीच कुछ लोग सोशल मीडिया पर जेराल्ड की मौत पर संदेह जता रहे हैं. यह धोखाधड़ी का मामला होने की भी आशंका जताई जा रही है. सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर बीमारी थी तो जेराल्ड भारत क्यों आए? उन्होंने अपना इलाज कनाडा में क्यों नहीं कराया?

हालांकि जेराल्ड की पत्नी जेनिफर ने कहा कि जेराल्ड की मौत स्वाभाविक है. दूसरी ओर कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा है कि जेराड की मौत के कारण हम कंपनी के पास जमा बिटकौइन व अन्य डिजिटल करेंसी को एक्सेस नहीं कर पा रहे हैं.

जेराल्ड का लैपटाप, ईमेल एड्रैस व मैसेजिंग सिस्टम सब कुछ एनक्रिप्टेड है. इसलिए पासवर्ड हासिल कर पाना लगभग असंभव हो रहा है. कंपनी इस वित्तीय संकट से निकलने का रास्ता तलाश रही है. कंपनी ने कहा कि उसे ब्रिटिश कोलंबिया स्थित नोवा स्कोटिया सुप्रीम कोर्ट में क्रेडिटर प्रोटेक्शन मिल गया है. यानी उस के खिलाफ फिलहाल कानूनी काररवाई नहीं की जा सकती.

क्रिप्टो करेंसी एक्सचेंज कंपनी क्वाड्रिगा के पास करीब 7 करोड़ कैनेडियन डौलर यानी करीब 380 करोड़ रुपए का कैश है, लेकिन बैंकिंग मुश्किलों के कारण क्रिप्टो करेंसी के एवज में इसे नहीं दिया जा सकता. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक क्वाड्रिगा के 3 लाख 63 हजार रजिस्टर्ड यूजर में से 92 हजार के एकाउंट में या तो क्रिप्टो करेंसी या फिर कैश के रूप में बैलेंस है.

वैसे जेराल्ड ने 27 नवंबर, 2018 को ही अपनी वसीयत पर दस्तखत किए थे, जिस में उन्होंने अपनी 96 लाख डौलर की कुल संपत्ति का वारिस पत्नी को ही बनाया था. वसीयत होने के 2 सप्ताह बाद ही जेराल्ड की मृत्यु होने पर संदेह पैदा होना स्वाभाविक है.

जेराल्ड की पत्नी जेनिफर ने कहा कि भारत स्थित कनाडाई उच्चायोग ने जेराल्ड की मौत की पुष्टि की है. मैं पासवर्ड या रिकवरी-की नहीं जानती हूं. घर में भी कई बार तलाशी ली लेकिन पासवर्ड कहीं पर भी लिखा नहीं मिला.

एक्सचेंज ने कई टेक एक्सपर्ट्स को जेराल्ड का लैपटाप हैक करने के लिए हायर किया है. लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली. कंपनी दूसरे एक्सचेंज की मदद से अपने यूजर्स की क्रिप्टो करेंसी को अनलौक करने की कोशिश भी कर रही है.

दरअसल, हैकिंग से बचने के लिए कोल्ड वौलेट में बिटकौइन जैसी मुद्रा को औफलाइन नेटवर्क पर रखा जाता है. इसे क्यूआर कोड से सुरक्षित करते हैं. हाल ही में एक जापानी कंपनी के बिटकौइन चोरी होने के बाद इस का प्रयोग बढ़ गया है. इस का एक्सेस सीमित होता है. कोल्ड वौलेट को यूएसपी ड्राइव में भी सिक्योर किया जा सकता है.

क्रिप्टो करेंसी के जानकारों का कहना है कि यह अपनी तरह का पहला मामला है, जहां कोल्ड वौलेट में इतने यूजर्स की करेंसी को लौक किया गया. वैसे कंपनियां यूजर्स के खाते में ही करेंसी अपलोड करती हैं.

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रोक के बावजूद क्रिप्टो करेंसी में भारतीयों ने करीब 13 हजार करोड़ रुपए का निवेश कर रखा है. रिजर्व बैंक के अनुसार क्रिप्टो करेंसी के लेनदेन को भारत में मान्यता नहीं दी गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजाना करीब ढाई हजार लोग इस में निवेश करते हैं.

क्रिप्टो करेंसी एक तरह की डिजिटल या आभासी मुद्रा होती है, जिस का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता. इस मुद्रा को कई देशों ने मान्यता दे रखी है.

इस तरह की करेंसी को बेहद जटिल कोड से तैयार किया जाता है और इसे बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है. जैसे रुपए, डौलर या पौंड मीडियम औफ ट्रांजैक्शन की तरह इस्तेमाल किए जाते हैं, वैसे ही क्रिप्टो करेंसी को भी इस्तेमाल किया जा सकता है.द्य

 

Crime: सोशल मीडिया : महिलाएं और झूठ के धंधे का फंदा

Crime in Hindi: आज देश में शहर से गांव गलियों तक विस्तारित सोशल मीडिया के चंगुल में महिलाएं किस तरह फंस रही हैं. यह एक सोचनीय विषय बनकर हमारे सामने आ रहा है, देश में जाने कितनी ऐसी घटनाएं घटित हो चुकी हैं जिसमें पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं सोशल मीडिया के संजाल में फंस कर अपनी अस्मत, अपने गाढ़ी कमाई के लाखों रूपए दोनों हाथों से लूटा चुकी हैं. आज प्रश्न यही है कि आमतौर पर महिलाएं सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म फेसबुक, व्हाट्सएप आदि पर अपेक्षाकृत अधिक क्यों फंसकर अपना सर्वस्व लुटा रही है. ऐसे क्या कारण है कि महिला फेसबुक में मित्रता करती है और आने वाले समय में बर्बाद हो जाती है. आखिर इस लूट का मनोविज्ञान क्या है?

क्या महिलाएं इसके लिए दोषी हैं… क्या महिलाएं इतनी भोली भाली एवं सहज हैं कि फेसबुक की सामान्य सी मित्रता में अपना सब कुछ दांव पर लगा देती हैं. आज सोचने वाला मसला यही है कि यह भयंकर दानव सदृश्य सोशल मीडिया क्यों और कैसे महिलाओं को अपना ग्रास बना रहा है. इसके लिए महिलाएं कैसे अपनी सुरक्षा करें. जैसा की सर्वविदित है फेसबुक एवं सोशल मीडिया का प्लेटफार्म सभी को अपनी और आकर्षित कर रहा है.

जहां यह मंच अपने आप में एक आकर्षण का विषय है, जहां यह हमें एक नई ऊर्जा प्रदान करता है. वहीं यह भी सच है कि छोटी सी चूक आप को बर्बाद कर सकती है इसी का उदाहरण है महिलाओं का सतत सोशल मीडिया के मंच पर शोषण एवं ठगी का शिकार बनना. आइए, आज इस गंभीर मसले पर एक विमर्श को समझे.

विदेशी ठगों की शिकार महिलाएं

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में फेसबुक के जरिए महिलाओं को फंसाकर ठगी करने वाले विदेशी को पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है. आरोपी ने पार्सल से रकम के साथ जूते, बैग भेजने की बात कहते हुए प्रार्थियों से कुल 5 लाख 10 हजार रुपए की ठगी की थी.प्रार्थिया महिला ने थाना सिविल लाइन में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि अगस्त 2019 में प्रार्थिया की दोस्ती फेसबुक के जरिए एलेक्स एंटोनी नामक व्यक्ति से हुई थी.

इसके बाद से दोनों के बीच बातचीत होती रहती थी. इसी दौरान एलेक्स एंटोनी ने प्रार्थिया को फोन पर कुछ आयटम जैसे- जूते, बैग और कुछ पैसे पार्सल करने की बात कही. इसके बाद पार्सल के क्लियरेंस के नाम पर, एंटी टेरेरिस्ट सर्टिफिकेट के नाम पर और फाइनेंस मिनिस्ट्री में टैक्स देने के नाम पर प्रार्थिया से कुल 5,10,000 की ठगी कर ली थी. इसके बाद भी रकम मांगे जाने पर प्रार्थिया को ठगी का अहसास हुआ. उसने आरोपियों के विरूद्ध थाना सिविल लाइन में अपराध पंजीबद्ध कराया.पुलिस ने धारा 420, 34 भादवि. का अपराध पंजीबद्ध मामले की जांच शुरू की.

जांच के लिए गठित पुलिस की विशेष टीम ने पूर्व में इसी तरह के घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए नाइजीरियन गिरोह पर फोकस किया. आरोपियों एवं प्रार्थिया के मध्य फेसबुक के जिस आईडी व मैसेज तथा मोबाइल नंबरों के माध्यम से बातचीत हुई थी, उसका तकनीकी विश्लेषण करने के बाद आरोपी के लोकेशन का पता लगाया और थाना डाबरी क्षेत्र में निवास करने वाले नाइजीरियन नागरिक आरोपी क्रिस्टोफर को पकड़कर कड़ाई से पूछताछ की, जिसमें उसने प्रार्थिया को अपने झांसे में लेकर प्रलोभन देकर पैसे लेने की बात स्वीकार की. पुलिस ने आरोपियों को जेल भेज दिया है. वहीं यह भी तथ्य है कि छत्तीसगढ़ में ही ऐसी अनेक घटनाएं घटी हैं. हाल ही में राजनांदगांव में में भी एक पुलिस अधिकारी की पत्नी से लगभग 45 लाख रुपए की ठगी की घटना घटित हुई है.

महिला वर्ग: सावधान

फेसबुक सोशल मीडिया के मंच पर महिलाएं जिस कदर ठगी जा रही हैं. यह एक दुश्चिंता का विषय बना हुआ है.अक्सर यह खबरें आ रही हैं कि महिलाओं को फेसबुक पर लुभावने वादे करके ठगा जा रहा है दूसरी तरफ सोशल मीडिया में मित्रता करके महिलाओं के साथ उनके दैहिक शोषण की घटनाओं में भी अचानक वृद्धि हो गई है.

इस संदर्भ में पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह कहते हैं -इसका सहज सरल कारण है महिलाओं का भोलापन, वे मीठी- मीठी बातों में पुरुषों की अपेक्षा जल्दी आ फंसती हैं. उन्होंने इस संदर्भ में सुझाव देते हुए उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया में मित्रता चैटिंग सिर्फ और सिर्फ चिर परिचित लोगों से ही किए जाने पर महिलाएं सुरक्षित रह सकती हैं. अनजान व्यक्तियों से मित्रता उन्हें धोखा देने का पूरा सबब बन सकता है.

झूठ का कारोबार ज्यादा….

राजधानी रायपुर में पदस्थ पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा ने इस मसले पर बातचीत करने पर बताया- सोशल मीडिया एक आकर्षक स्थान है जहां महिलाएं युवतियां निरंतर ठगी जा रही है और पुलिस के पास इसकी अनेक शिकायतें आती रहती हैं. अगर महिलाएं इससे बचना चाहें तो इसका सीधा सा सरल तरीका है ऐसे किसी भी मसले पर जब उन्हें आर्थिक प्रलोभन दिया जाता है वह अपने परिजनों से अवश्य चर्चा करें. इस हेतु शासन द्वारा बनाए गए परामर्श केंद्रों से भी महिलाएं परामर्श ले सकती हैं.

सबसे अहम मसला यह है कि फेसबुक को महिलाएं अंतिम सत्य मान लेती है,जबकि यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां झूठ का कारोबार ज्यादा होता है. महिला थोड़ी भी बुद्धिमानी विवेक से काम ले तो वह इस ठगी से बच सकती है हम आज इस लेख के माध्यम से महिलाओं को आगाह करते हुए कहना चाहते हैं कि किसी भी आर्थिक मसले पर एक बार अवश्य सोचें और अपने आंख कान खुले रखें ऐसी स्थिति में वे कदापि ठगी नहीं जाएंगी.

भाई ने ही छीन लिया बहन का सुहाग

मध्य महाराष्ट्र की कृष्णा नदी की सहायक नदियों के किनारे निचली पहाड़ियों की लंबी शृंखला है. इन की घाटियों में बसे बीड शहर की अपनी एक अलग पहचान है. पहले यह शहर चंपावती के नाम से जाना जाता था. बीड में अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतें हैं. इस के अलावा यहां शैक्षणिक संस्थान और कालेज भी हैं, जहां आसपास के शहरों से हजारों लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते हैं.

घटना 19 दिसंबर, 2018 की है. उस समय शाम के यही कोई पौने 6 बजे का समय था. बीड के जानेमाने आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में सेमेस्टर परीक्षा का अंतिम पेपर चल रहा था, हजारों की संख्या में युवकयुवतियां परीक्षा दे रहे थे. इन्हीं में भाग्यश्री और सुमित वाघमारे भी थे. ये दोनों पतिपत्नी थे.

निर्धारित समय पर जब पेपर खत्म हुआ तो अन्य छात्रछात्राओं के साथ ये दोनों भी कालेज से बाहर आ गए. इन दोनों के चेहरों पर खुशी की चमक थी. मतलब उन का पेपर काफी अच्छा हुआ था, जिस की खुशी वह अपने सहपाठियों में बांट रहे थे.

लेकिन कौन जानता था कि उन के खिले चेहरों की खुशी सिर्फ कुछ देर की मेहमान है. परीक्षा के परिणाम आने के पहले ही उन की जिंदगी में जो परिणाम आने वाला था. वह काफी भयानक था. 15-20 मिनट अपने सहपाठियों से मिलनेजुलने के बाद दोनों पार्किंग में पहुंचे, जहां उन की स्कूटी खड़ी थी.

सुमित वाघमारे ने पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाली और दोनों उस पर बैठ कर घर जाने के लिए निकल गए. 10 मिनट में वह नालवाड़ी रोड गांधीनगर चौक पर पहुंच गए. तभी उन की स्कूटी के सामने अचानक एक मारुति कार आ कर रुकी. उस वक्त सड़क कालेज के सैकड़ों छात्रों और भीड़भाड़ से भरी थी. मारुति कार उन की स्कूटी के सामने कुछ इस तरह आ कर रुकी थी कि वे दोनों रोड पर गिरतेगिरते बचे थे. इस के पहले कि वे संभल कर कुछ कहते, कार से 2 युवक निकल कर बाहर आ गए.

उन्हें देख कर भाग्यश्री और सुमित वाघमारे के होश उड़ गए. क्योंकि उन में से एकभाग्यश्री का भाई बालाजी लांडगे और दूसरा उस का दोस्त संकेत था. उन के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.

बालाजी लांडगे सुमित को खा जाने वाली नजरों से घूरे जा रहा था. भाग्यश्री अपने भाई के गुस्से को समझ रही थी. संभावना को देखते हुए भाग्यश्री अपने पति की रक्षा के लिए झट से पति के सामने आ खड़ी हुई. इस के बावजूद भी बालाजी लांडगे ने बहन को धक्का दे कर सुमित के सामने से हटाया और अपने दोस्त संकेत वाघ की तरफ इशारा कर के सुमित को पकड़ने के लिए कहा.

संकेत ने सुमित का कौलर पकड़ लिया. यह देख बालाजी बोला, ‘‘क्यों बे, मैं ने कहा था न कि मेरी बहन से दूर रहना, नहीं तो नतीजा बुरा होगा. लेकिन मेरी बातों का तुझ पर कोई असर नहीं हुआ. इस की सजा तुझे जरूर मिलेगी.’’

गुस्से में चाकू बना तलवार

इस के पहले कि सुमित कुछ कहता या संभल पाता, बालाजी लांडगे ने अपनी जेब से चाकू निकाला और सुमित पर हमला कर दिया. पति पर हमला होता देख भाग्यश्री चीखते हुए बोली, ‘‘भैया, सुमित को छोड़ दो. उस की कोई गलती नहीं है. सजा देनी है तो मुझे दो. मैं ने उसे प्यार और शादी के लिए मजबूर किया था. तुम्हें मेरी कसम है भैया. दया करो, बहन पर.’’

‘‘कैसी बहन, मेरी बहन तो उसी दिन मर गई थी, जब घर से भाग कर तूने इस से शादी की थी. जानती है तेरी इस करतूत से समाज और बिरादरी में हमारी कितनी बदनामी हुई. तूने परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा. लेकिन मैं भी इसे नहीं छोड़ूंगा.’’ वह बोला.

अगले ही पल बालाजी लांडगे ने चाकू सुमित वाघमारे के पेट में उतार दिया. इस हमले से सुमित वाघमारे की मार्मिक चीख निकली और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. इस के बाद भी बालाजी लांडगे का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह सुमित वाघमारे पर तब तक वार करता रहा, जब तक कि उस की मौत न हो गई.

इस दौरान भाग्यश्री रहम की भीख मांगती रही. पति की जान बचाने के लिए वह मदद के लिए चीखतीचिल्लाती रही. लेकिन उस की सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया. सुमित वाघमारे की हत्या करने के बाद बालाजी और उस का दोस्त संकेत दोनों वहां से चले गए.

अचानक घटी इस घटना को जिस ने भी देखा, स्तब्ध रह गया. शहर के बीचोबीच भीड़भाड़ भरे इलाके में घटी इस घटना से पूरे बीड शहर में सनसनी फैल गई. भाग्यश्री पति के शरीर से लिपट कर बुरी तरह चीखचिल्ला कर लोगों से सहायता मांग रही थी कि उस के पति को अस्पताल ले जाने में मदद करें. लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया.

काफी हाथपैर जोड़ने के बाद आखिरकार एक आटो वाले को दया आई और वह सुमित वाघमारे को अपने आटो से जिला अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने सुमित को मृत घोषित कर दिया.

यह सुन कर भाग्यश्री अस्पताल में ही फिर से रोने लगी. अस्पताल स्टाफ ने उसे सांत्वना दी. पुलिस केस था, लिहाजा अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. भाग्यश्री ने अस्पताल से ही सुमित के घर वालों को फोन कर के उस की हत्या की खबर दे दी थी.

अस्पताल पहुंचे थाना विलपेठ के पीआई ने भाग्यश्री से बात की तो उस ने बता दिया कि उस के पति की हत्या उस के सगे भाई बालाजी लांडगे और उस के दोस्त संकेत ने की है. थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

कुछ ही देर में बीड शहर के एसपी जी. श्रीधर, एडीशनल एसपी वैभव कलुबर्मे, डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर, पीआई घनश्याम पालवदे, एपीआई दिलीप तेजनकर, अमोल धंस, पंकज उदावत के साथ अस्पताल आ गए. उन्होंने मृतक के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के शरीर पर तेज धार वाले हथियार के कई वार थे.

अस्पताल से पूछताछ करने के बाद पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई फिर से अस्पताल गए. उन्होंने सुमित की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

औनरकिलिंग के चक्कर में हुई हत्या

भाग्यश्री ने अपने भाई बालाजी लांडगे और संकेत वाघ के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करवाने के बाद पुलिस को बताया कि जब से उस ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज की थी, तब से उस के परिवार वाले अकसर सुमित को धमकियां देते आ रहे थे, जिस की उन्होंने करीब एक महीने पहले शिवाजी नगर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी. लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो बालाजी के हौसले बुलंद हो गए.

पुलिस को मामला औनरकिलिंग का लग रहा था. दिनदहाड़े हत्या होने की खबर जब शहर में फैली तो एसपी जी. श्रीधर ने लोगों को भरोसा दिया कि हत्यारों को जल्द पकड़ लिया जाएगा. उन्होंने उसी समय इस केस की जांच पुलिस डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर को सौंप दी.

खिरडकर ने जांच का जिम्मा लेते ही स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच की कई टीमें बना कर तेजी से जांच शुरू कर दी. पुलिस ने सब से पहले शहर की नाकेबंदी कर के अभियुक्तों के बारे में अलर्ट जारी कर दिया.

घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो इस बात की पुष्टि हो गई कि वारदात को बालाजी लांडगे और संकेत वाघ ने ही अंजाम दिया था. लिहाजा पुलिस ने दोनों के फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही मुखबिरों को भी सजग कर दिया. लेकिन 3 दिनों तक पुलिस और क्राइम ब्रांच को कोई सफलता नहीं मिली.

जांच के दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि सुमित वाघमारे की हत्या में बालाजी लांडगे के दोस्त कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बालाजी और उस का दोस्त संकेत फरार हो चुके थे. लिहाजा पुलिस टीम ने दबिश दे कर कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर को गिरफ्तार कर लिया.

कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर ने क्राइम ब्रांच को बताया कि बालाजी लांडगे और संकेत वाघ पुणे होते हुए औरंगाबाद में एक मंत्री के घर गए हैं. यह सूचना मिलते ही क्राइम ब्रांच की टीम पुणे में उस मंत्री के घर पहुंच गई. पता चला कि टीम के आने के कुछ घंटे पहले ही दोनों वहां से अमरावती के लिए निकल गए थे.

आरोपी अमरावती शहर से बाहर न जा सकें, इस के लिए एसपी जी. श्रीधर ने अमरावती के पुलिस कमिश्नर से अभियुक्तों की गिरफ्तारी में मदद करने को कहा. तब पुलिस कमिश्नर ने अमरावती शहर की पुलिस के साथ जीआरपी को भी सतर्क कर दिया. जीआरपी ने बालाजी लांडगे और संकेत वाघ को अमरावती के बडनेरा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उन्होंने दोनों अभियुक्त क्राइम ब्रांच की जांच टीम को सौंप दिए.

क्राइम ब्रांच औफिस में बालाजी लांडगे से पूछताछ की तो उस ने आसानी से अपना गुनाह स्वीकार करते हुए अपनी बहन के सुहाग की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

25 वर्षीय सुमित वाघमारे महत्त्वाकांक्षी युवक था. मूलरूप से बीड तालखेड़ा, तालुका मांजल, गांव हमुनगोवा का रहने वाला था. उस के पिता शिवाजी वाघमारे गांव के जानेमाने किसान थे. गांव में उन की काफी प्रतिष्ठा थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटी और बेटा सुमित वाघमारे थे.

शिवाजी वाघमारे उसे उच्चशिक्षा दिला कर कामयाब इंसान बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सुमित का एडमिशन बीड शहर के आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में करवाया. उस के रहने की व्यवस्था उन्होंने बीड शहर में ही रहने वाली अपनी साली के यहां कर दी थी. अपनी मौसी के घर रह कर सुमित इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा.

इसी कालेज से भाग्यश्री लांडगे भी इंजीनियरिंग कर रही थी. दोनों एक ही कक्षा में थे, जिस से उन की अच्छी दोस्ती हो गई. उन की दोस्ती प्यार तक कब पहुंच गई, उन्हें पता ही नहीं चला.

दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर फूटे तो वे एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हों.

पहले दोस्ती, फिर प्यार, बाद में शादी समय धीरधीरे सरक रहा था. कालेज की पढ़ाई और परीक्षा में सिर्फ 6 महीने रह गए थे. दोनों ने फाइनल परीक्षा के बाद शादी करने का फैसला किया था, लेकिन इस के पहले ही भाग्यश्री के परिवार वालों को उस के और सुमित के बीच चल रहे प्यार की जानकारी हो गई, जिसे जान कर वे सन्न रह गए. उन्होंने भाग्यश्री के लिए जो सपना देखा था, वह टूट कर बिखरते हुए नजर आया.

मामला काफी नाजुक था. भाग्यश्री का फैसला उन की मानमर्यादा के खिलाफ था. लेकिन भाग्यश्री सुमित वाघमारे के प्यार में अंधी हो चुकी थी. फिर भी उन्होंने मौका देख कर भाग्यश्री को समझाने की काफी कोशिश की. उस के भाई बालाजी लांडगे को तो सुमित जरा भी पसंद नहीं था.

वह न तो उन की बराबरी का था और न ही उन की बिरादरी का. उस ने भाग्यश्री को न केवल डांटाफटकारा बल्कि बुरे अंजाम की चेतावनी भी दी. साथ ही यह भी कहा कि अगर उस ने अपनी राह और रवैया नहीं बदला तो उस का कालेज जाना बंद करा देगा.

घर और परिवार का माहौल बिगड़ते देख भाग्यश्री समझ गई कि घर वाले उस की शादी में जरूर व्यवधान डालेंगे. इसलिए किसी भी नतीजे की परवाह किए बगैर कालेज की परीक्षा के 3 महीने पहले उस ने अपने प्रेमी सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज कर ली. इतना ही नहीं, कुछ दिनों के लिए वह पति सुमित के साथ भूमिगत हो गई.

भाग्यश्री के अचानक गायब हो जाने के बाद उस के घर वालों की काफी बदनामी हुई. इतना ही नहीं, जब उन्हें पता चला कि उस ने सुमित से शादी कर ली है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया. घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. जब वे नहीं मिले तो सुमित वाघमारे को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने शिवाजी नगर थाने में सुमित के खिलाफ भाग्यश्री के अपहरण की शिकायत दर्ज करा दी.

पुलिस ने मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी काररवाई शुरू कर दी. इसी बीच भाग्यश्री को पता चल गया कि पुलिस उन्हें तलाश रही है. लिहाजा अपनी शादी के एक महीने बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे दोनों पुलिस के सामने हाजिर हो गए. दोनों ने अपने बालिग होने और शादी करने का प्रमाणपत्र पुलिस को दे दिया. साथ ही अपनी सुरक्षा की भी गुहार लगाई.

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने भाग्यश्री के परिवार वालों को समझा दिया कि दोनों बालिग हैं, इसलिए उन की शादी कानूनन वैध है. इसलिए उन्हें किसी भी तरह तंग न किया जाए. अगर भाग्यश्री या उस के पति ने थाने में अपनी सुरक्षा आदि को ले कर कोई शिकायत की तो पुलिस को काररवाई करनी पड़ेगी.

लेकिन पुलिस की चेतावनी के बाद भी भाग्यश्री के परिवार वालों का रवैया नहीं बदला. उन के अंदर प्रतिशोध की चिंगारी सुलगती रही. भाग्यश्री के भाई बालाजी लांडगे ने भाग्यश्री और सुमित वाघमारे को घटना के एक महीने पहले सबक सिखाने की धमकी दी थी, जिस की शिकायत उन्होंने थाने में भी की थी.

प्रेमी युगल की शिकायतके बावजूद कुछ नहीं हुआ

पुलिस में की गई इस शिकायत का भी बालाजी पर कोई असर नहीं हुआ. वह अपने परिवार की बेइज्जती पर भाग्यश्री को सबक सिखाना चाहता था. इस के लिए उस ने एक खतरनाक योजना तैयार की, जिस में उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ, कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर की मदद ली. उन्हें उन का काम समझा कर वह मौके की तलाश में रहने लगा था.

19 दिसंबर, 2018 को कृष्णा क्षीरसागर ने बालाजी लांडगे को बताया कि भाग्यश्री और सुमित वाघमारे अपनी परीक्षा देने के लिए कालेज आएंगे. खबर पाते ही बालाजी लांडगे अपनी योजना की तैयारी में लग गया. उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ को उस की कार के साथ लिया और कालेज के पास आ कर परीक्षा खत्म होने का इंतजार करने लगा.

परीक्षा खत्म होने के बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे जब अपनी स्कूटी से कालेज से घर के लिए निकले तो बालाजी लांडगे ने उन का रास्ता रोक लिया और देखते ही देखते बहन के सिंदूर को रक्त के कफन में लपेट दिया.

सुमित वाघमारे की हत्या के बाद संकेत वाघ और बालाजी लांडगे ने कार ले जा कर मित्रनगर छोड़ दी. वहां से वह गजानंद क्षीरसागर की स्कूटी से वाडा रेलवे स्टेशन गए, वहां से वे पुणे, औरंगाबाद और अमरावती पहुंचे, जहां वे रेलवे पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे.

चारों गिरफ्तार अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद बीड क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उन्हें विलपेठ पुलिस थाने के अधिकारियों को सौंप दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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