लैटर बौक्स: प्यार का खत

सीढ़ियों के नीचे लैटरबौक्स से अपनी डाक निकाल जैसे ही मैं मुड़ा, अचानक हड़बड़ा कर पीछे हट गया. मेरे बिलकुल पीछे एक नवयौवना अपने चकाचौंध करने वाले सौंदर्य के साथ खड़ी थी, जैसे चंद्रमा अपनी संपूर्ण कलाओं के साथ धरती पर अठखेलियां करने के लिए निकला हो. अचानक पीछे मुड़ने से मैं उस सौंदर्य की प्रतिमा से टकरातेटकराते बचा था, क्योंकि वह बिलकुल मेरे पीछे खड़ी थी. शायद वह भी अपनी डाक निकालने आई थी. मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैं ने आज पहली बार उसे देखा था. पता नहीं किस फ्लैट में रहती थी.

हड़बड़ा कर पीछे हटते ही मेरे मुंह से निकला, ‘‘सौरी, आप…’’

उस के चेहरे पर कोई शर्मिंदगी या आश्चर्य के भाव नहीं थे. बड़ी सहजता से मुसकराते हुए बोली, ‘‘इट्स ओके.’’

इस के बाद मैं सिमट कर उस की बगल से निकला, तो ऐसा लगा जैसे सुगंध की एक मधुर बयार मेरे शरीर से टकरा कर गुजर गई हो. बड़ी ही मदहोश कर देने वाली खुशबू थी. उस के शरीर की खुशबू को अपने नथुनों में भरता हुआ मैं सीढ़ी पर पहला कदम रखने वाला ही था कि उस की खनकती आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘सुनिए.’’

मैं पीछे मुड़ा. वह बोली, ‘‘आप 201 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘हां,’’ मैं ने उस के चेहरे की सुंदरता में खोते हुए कहा, मेरे फ्लैट का नंबर जानना उस के लिए मुश्किल नहीं था. मैं ने अभीअभी इसी नंबर के डब्बे से डाक निकाली थी और वह मेरे पीछे खड़ी देख रही थी.

‘‘मैं 202 नंबर फ्लैट में रहती हूं.’’ वह अभी भी मुसकरा रही थी, जैसे उस के चेहरे पर सदाबहार मुसकान खिली रहती हो.

‘‘अच्छा,’’ मैं ने हैरत से कहा, ‘‘कभी आप को देखा नहीं, जबकि हमारे फ्लैट तो आमनेसामने हैं?’’

‘‘मैं ने भी आप को नहीं देखा. मैं पुणे में रहती हूं, यहां दीदी के पास आई हूं.’’

‘‘तभी तो,’’ मेरे आश्चर्य का समाधान हो गया था, ‘‘ओके, मेरे यहां भी कभी आइएगा.’’ मैं ने उसे निमंत्रण दिया, फिर सीढि़यां चढ़ने लगा. वह भी मेरे पीछेपीछे आने लगी. मैं ने चलते हुए पूछा, ‘‘आप ने अपना लैटरबौक्स नहीं देखा?’’

‘‘मैं इस के लिए वहां नहीं रुकी थी. मैं तो यह देख रही थी कि मोबाइल,  कंप्यूटर और इंटरनैट के जमाने में आजकल पत्र कौन लिखता है? परंतु आप के पास तो बहुत सारे पत्र आते हैं?’’

‘‘हां, मैं कवि और लेखक हूं. मेरे पास पाठकों संपादकों के पत्रों के अलावा पत्र पत्रिकाएं आती रहती हैं.’’

‘‘अच्छा, तब तो आप दिलचस्प व्यक्ति होंगे,’’ उस की आवाज में किलकारी सी आ गई थी. मैं ने कुछ नहीं कहा. तब तक हम दूसरे फ्लोर पर पहुंच गए थे. अपने फ्लैट की घंटी बजाते हुए उस ने मुझ से कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में आप के पास आऊंगी, आप को एतराज तो नहीं?’’

मेरे अंदर खुशी की एक लहर दौड़ गई. इतनी सुंदर लड़की मुझ से मिलने के लिए मेरे घर आएगी, मुझे क्या एतराज हो सकता था. मैं ने हलकी मुसकान के साथ कहा, ‘‘ओह, श्योर, व्हाई नौट.’’

घर में घुसते ही मैं ने डाक देखनी शुरू कर दी. इस काम को मैं बाद के लिए नहीं छोड़ता था. तभी मेरी पत्नी नेहा ने पानी का गिलास ला कर मेज पर रख दिया. फिर मेरे सामने बैठ कर बोली, ‘‘चाय अभी बनाऊं, या बाद में?’’

‘‘रहने दो, अभी कोई मिलने के लिए आने वाला है.’’

नेहा ने कोई प्रश्न नहीं किया. वह जानती थी, मुझ से मिलने के लिए लेखक और पत्रकार आते ही रहते थे. परंतु कुछ देर बाद जब उस सुंदर लड़की ने मोहक मुसकान के साथ घर में प्रवेश किया तो नेहा अचंभित रह गई. आज के जमाने में युवावर्ग हिंदी साहित्य को न तो पढ़ता है, न पसंद करता है. युवतियां तो बिलकुल भी नहीं. फिर वह लड़की मेरे पास क्या करने आई थी, संभवतया नेहा यही सोच रही थी, परंतु उस ने खुले दिल से उस का स्वागत किया.

परिचय का आदानप्रदान हुआ. पता चला उस का नाम छवि था. सचमुच वह सौंदर्य की प्रतिमा थी. उस के चांद से दमकते चेहरे पर सौंदर्य जैसे हंसता सा लगता था. आंखें बड़ीबड़ी और चंचल थीं. होंठ कुदरती तौर पर लाल थे और उस के माथे पर बालों की एक छोटी सी लट जैसे उस की सुंदरता को काली निगाहों से बचाने के लिए स्वत: वहां लहरा रही थी.

नेहा के मन में स्त्रीजन्य ईर्ष्याभाव जाग्रत हुआ था. यह उस के चेहरे के भावों से स्पष्ट था. छवि भले ही इसे न भांप पाई हो, परंतु मैं नेहा का पति था. उस के स्वाभाविक गुणों का मुझे पता था. ईर्ष्याभाव होते हुए भी नेहा उस से हंसहंस कर बातें कर रही थी. फिर चाय बनाने के लिए चली गई.

तभी छवि ने कहा, ‘‘आप की पत्नी बहुत सुंदर और हंसमुख हैं.’’

‘‘आप से ज्यादा नही,’’ मैं ने खुले मन से उस की प्रशंसा की.

छवि के मुख पर एक शर्मीली मुसकान दौड़ गई. उस ने निगाहों को थोड़ा झुकाते हुए कहा, ‘‘आप मजाक कर रहे हैं.’’

‘‘नहीं, आप अपने मन से पूछ कर देख लीजिए. मेरी बात में एक अंश भी झूठ नहीं है,’’ मैं ने जोर देते हुए कहा.

‘‘ओके, मैं मान लेती हूं,’’ उस ने निगाहें उठा कर कहा, ‘‘आप का कोई बेबी नहीं है?’’

‘‘नहीं, अभी तक नहीं,’’ मैं ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘क्या शादी को ज्यादा दिन नहीं हुए?’’ वह बहुत व्यक्तिगत हो रही थी.

मैं ने एक बार किचन की तरफ देखा. नेहा चाय बनाने में व्यस्त थी. मैं ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, शादी को तो लगभग 5 साल हो गए हैं. परंतु हम अभी बच्चा नहीं चाहते.’’ यह कहतेकहते मेरी आवाज थोड़ी भारी हो गई.

छवि ने शायद मेरी आवाज का भारीपन महसूस किया. उस की आंखों में आश्चर्य के भाव प्रकट हो गए, फिर अचानक ही हंस पड़ी, ‘‘अच्छा, आप क्या लिखते हैं?’’ उस ने बहुत चालाकी से एक असहज करने वाले विषय को टाल दिया था.

साहित्य पर चर्चा चल रही थी. तभी नेहा चाय, बिस्कुट और नमकीन ले कर आ गई. चाय पीते हुए कई विषयों पर चर्चा चली. छवि  एक बुद्धिमान और जिज्ञासु लड़की थी. उस का सामान्यज्ञान भी काफी अच्छा था. जब खुल कर बातें हुईं तो नेहा के मन से छवि के प्रति पूर्वाग्रह समाप्त हो गया.

छवि अपनी गरमी की छुट्टियां मुंबई में बिताने वाली थी. उस की दीदी और जीजा, दोनों ही सरकारी नौकरी में थे. दिनभर छवि घर पर रहती थी और टीवी देखती थी. कभीकभी आसपास घूमने चली जाती थी. छुट्टी के दिन अपनी दीदी और जीजा के साथ घूमने जाती थी.

मुझ से मिलने के बाद अब वह कहानी, कविता और उपन्यास पढ़ने लगी. मुझ से कई सारी किताबें ले गई थी. दिन का काफी समय वह पढ़ने में बिताती, या मेरी पत्नी के साथ बैठ कर विभिन्न विषयों पर बातें करती. मैं स्वयं एक सरकारी दफ्तर में ग्रेड ‘बी’ अफसर था, इसलिए केवल छुट्टी के दिन छवि से खुल कर बात करने का मौका मिलता था. बाकी दिनों में हम सभी शाम की चाय अवश्य साथसाथ पीते थे.

छवि के चेहरे में अनोखा सम्मोहन था. ऐसा सम्मोहन, जो बरबस किसी को भी अपनी तरफ खींच लेता है. संभवतया हर स्त्री में यह गुण होता है, कुछ में कम, कुछ में ज्यादा, परंतु कुछ लड़कियां ऐसी होती हैं जो पुरुषों को चुंबक की तरह अपनी तरफ खींचती हैं. छवि ऐसी ही लड़की थी. वह युवा थी, पता नहीं उस का कोई प्रेमी था या नहीं, परंतु उसे देख कर मेरा मन मचलने लगता था.

सामाजिक दृष्टि से यह गलत था. मैं एक शादीशुदा व्यक्ति था, परिवार के प्रति मेरी कुछ जिम्मेदारियां थीं और मैं सामाजिक बंधनों में बंधा हुआ था. परंतु मन किसी बंधन को नहीं मानता और हृदय किसी के लिए भी मचल सकता है. प्यार के  मामले में यह बच्चे के समान होता है, जो हर सुंदर लड़की और स्त्री को पाने की लालसा सदा मन में पालता रहता है.

मैं नेहा को देखता तो हृदय में अपराधबोध पैदा होता, परंतु जैसे ही छवि को देखता तो अपराधबोध गायब हो जाता और खुशी की एक ऐसी लहर तनमन में दौड़ जाती कि जी चाहता, यह लहर कभी खत्म न हो, शरीर के अंगअंग में ऐसी लहरें उठती ही रहें और मैं उन लहरों में डूब जाऊं.

छवि सामान्य ढंग से मेरे घर आती, हमारे साथ बैठ कर बातें करती, चाय पीती और चली जाती. कभी पुस्तकें मांग कर ले जाती और पढ़ कर वापस कर देती. उस ने मेरी भी कहानियां पढ़ी थीं, परंतु उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी. मैं पूछता, तो बस इतना कहती, ‘ठीक हैं, अच्छी लगीं.’ बस, और कोई विश्ेष टिप्पणी नहीं.

उस की बातों से नहीं लगता था कि वह मेरे लेखन या व्यक्तित्व से प्रभावित थी. यदि वह मेरे किसी गुण की प्रशंसा करती तो मैं समझ सकता था कि उस के हृदय में मेरे लिए कोई स्थान था, फिर मैं उस के हृदय में प्रवेश करने का कोई न कोई रास्ता तलाश कर ही लेता. मेरी सब से बड़ी कमजोरी थी कि मैं शादीशुदा था. सीधेसीधे बात करता तो वह मुझे छिछोरा या लंपट समझती. मुझे मन मार कर अपनी भावनाओं को दबा कर रखना पड़ रहा था.

मेरे मन में उस से अकेले में मिलने की लालसा बलवती होती जा रही थी, परंतु मुझे कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था. इस तरह 15 दिन निकल गए. जैसजैसे उस के पुणे जाने के दिन कम हो रहे थे, वैसेवैसे मेरे मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

फिर एक दिन कुछ आश्चर्यजनक हुआ. मैं औफिस जाने के लिए सीढि़यों से उतर कर नीचे आया, तो देखा, नीचे छवि खड़ी थी. मैं ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘आप का इंतजार,’’ उस ने आंखों को मटकाते हुए कहा.

‘‘क्या?’’ मुझे हलका सा आश्चर्य हुआ. एक बार दिल भी धड़क कर रह गया. क्या उस के  दिल में मेरे लिए कुछ है? बता नहीं सकता था, क्योंकि लड़कियां अपनी भावनाओं को छिपाने में बहुत कुशल होती हैं.

‘‘हां, आप को औफिस के लिए देर तो नहीं होगी?’’

‘‘नहीं, बोलिए न.’’

‘‘मैं घर में सारा दिन पड़ेपड़े बोर हो जाती हूं. टीवी और किताबों से मन नहीं बहलता. कहीं घूमने जाने का मन है, क्या आप मेरे साथ कहीं घूमने चल सकते हैं?’’

उस का प्रस्ताव सुन कर मेरा मन बल्लियों उछलने लगा, परंतु फिर हृदय पर जैसे किसी ने पत्थर रख दिया. मैं शादीशुदा था और नेहा को घर में छोड़ कर मैं उसे घुमाने कैसे ले जा सकता था. नेहा को साथ ले जाता, तो छवि को घुमाने का क्या लाभ? मैं ने असमंजसभरी निगाहों से उसे देखते हुए कहा, ‘‘आप के दीदीजीजा तो रविवार को आप को घुमाने ले जाते हैं.’’

‘‘नहीं, मैं आप के साथ जाना चाहती हूं.’’

मेरा दिल फिर से धड़का, ‘‘परंतु नेहा साथ रहेगी?’’

‘‘छुट्टी के दिन नहीं,’’ उस ने निसंकोच कहा, ‘‘आप दफ्तर से एक दिन की छुट्टी ले लीजिए. फिर हम दोनों बाहर चलेंगे.’’

‘‘अच्छा, अपना मोबाइल नंबर दो. मैं दफ्तर जा कर फोन करूंगा.’’ उस ने अपना नंबर दिया और मैं खूबसूरत मंसूबे बांधता हुआ दफ्तर आया. मन में लड्डू फूट रहे थे. अपने केबिन में पहुंचते ही मैं ने छवि को फोन मिलाया. बड़े उत्साह से उस से मीठीमीठी बातें कीं, ताकि उस के मन का पता चल सके.. इस के बावजूद मैं अपने मन की बात उस से नहीं कह पाया. छवि की बातों से भी ऐसा नहीं लगा कि उस के मन में मेरे लिए कोई ऐसीवैसी बात है.

हम ने बाहर घूमने की बात तय कर ली. परंतु फोन रखने पर मेरा उत्साह खत्म हो चुका था. शायद मेरे साथ बाहर जाने का छवि का कोई विशेष उद्देश्य नहीं था, वह केवल घूमना ही चाहती थी.

मैरीन ड्राइव के चौड़े फुटपाथ पर धीमेधीमे कदमों से टहलते हुए एक जगह हम रुक गए और धूप में चांदी जैसी चमकती हुई समुद्र की लहरों को निहारने लगे. मेरे मन में भी समुद्र जैसी लहरें उफान मार रही थीं. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कह पा रहा था. लहरों को ताकते हुए छवि ने पूछा, ‘‘क्या आप इस बात पर विश्वास करते हैं कि प्रथम दृष्टि में प्यार हो सकता है.’’

मैं ने आश्चर्ययुक्त भाव से उस के मुखड़े को देखा. उस के चेहरे पर ऐसा कोई भाव दृष्टिमान नहीं था जिस से उस के मनोभावों का पता चलता. मैं ने अपनी दृष्टि को आसमान की तरफ टिकाते हुए कहा, ‘‘हां, हो सकता है, परंतु…’’

अब उस ने मेरी ओर हैरत से देखा और पूछा, ‘‘परंतु क्या?’’

‘‘परंतु…यानी ऐसा प्रेम संभव तो होता है परंतु इस में स्थायित्व कितना होता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों व्यक्ति कितने समय तक एकदूसरे के साथ रहते हैं.’’

छवि शायद मेरी बात का सही मतलब समझ गईर् थी. इसलिए आगे कुछ नहीं पूछा.

मैं ने छवि से कहीं बैठने के लिए कहा तो उस ने मना कर दिया. फिर हम टहलते हुए तारापुर एक्वेरियम तक गए. मैं ने उसे एक्वेरियम देखने के लिए कहा तो उस ने बताया कि वह देख चुकी थी. मुंबई देखने का उस का कोई इरादा भी नहीं था. उस ने बताया कि वह केवल मेरे साथ घूमना चाहती थी.

दोपहर तक हम लोग मैरीन ड्राइव में ही घूमते रहे… निरुद्देश्य. हम दोनों ने बहुत बातें की, परंतु मैं अपने मन की गांठ न खोल सका. उस की बातों से भी ऐसा कुछ

नहीं लगा कि उस के मन में मेरे प्रति कोई ऐसावैसा भाव है. मैं शादीशुदा था, इसलिए अपनी तरफ से कोईर् पहल नहीं करना चाहता था.

लगभग 2 बजे मैं ने उस से लंच करने के लिए कहा तो भी उस ने मना कर दिया. मुझे अजीब सा लगा, कैसी लड़की है, सुबह से मेरे साथ घूम रही है और खानेपीने का नाम तक न लिया. कब तक भूखी रहेगी. मैं उसे जबरदस्ती पास के एक रेस्तरां में ले गया और जबरदस्ती डोसा खिलाया. आधा डोसा मुझे ही खाना पड़ा.

रेस्तरां में बैठेबैठे मैं ने पहली बार महसूस किया कि वह कुछ उदास थी. क्यों थी, मैं ने नहीं पूछा. मैं चाहता था कि वह स्वयं बताए कि उस के मन में क्या घुमड़ रहा था.

रेस्तरां के बाहर आ कर मैं ने उस की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘अब?’’

‘‘कहीं चल कर बैठते हैं?’’ उस ने लापरवाही के भाव से कहा. आसपास कोई पार्क नहीं था. बस, समुद्र का किनारा था. मैं ने कहा, ‘‘जुहू चलें?’’

‘‘हां.’’

मैं ने टैक्सी की और जुहू पहुंच गए. बीच पर भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी, परंतु उस ने कहीं एकांत में चलने के लिए कहा. मुख्य बीच से दूर कुछ नारियल वाले अपना स्टौल लगाते हैं, जहां केवल प्रेमी जोड़े जा कर बैठते हैं. मैं ने एक ऐसा ही स्टौल चुना और एकएक नारियल ले कर आमनेसामने बैठ गए. यह इस बात का संकेत था कि हम दोनों के बीच प्रेम जैसा कोई भाव नहीं था. वरना हम अगलबगल बैठते और एक ही नारियल में एक ही स्ट्रौ से नारियल पानी सुड़कते.

‘‘आप कुछ उदास लग रही हैं?’’ नारियल पानी पीते हुए मैं ने पूछ ही लिया. मैं उस की मूक उदासी से खिन्न सा होने लगा था. उसी ने घूमने का प्रोग्राम बनाया था और वही इस से खुश नहीं थी. मेरा मकसद अलग था. उस के साथ घूमना मेरे लिए खुशी की बात थी, परंतु उस की नाखुशी में, मेरी खुशी कहां?

उस ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘क्या मेरा आप के साथ घूमना सही है?’’

मैं अचकचा गया. यह कैसा प्रश्न था? मैं उसे जबरदस्ती अपने साथ नहीं लाया था. फिर उस ने ऐसा क्यों कहा? शायद वह मेरी परेशानी भांप गई. तुरंत बोली, ‘‘मेरा मतलब है, अगर आप की पत्नी को पता चल गया कि मैं ने आप के साथ पूरा दिन बिताया है, तो उन्हें कैसा लगेगा? क्या वे इसे गलत नहीं समझेंगी?’’

मैं ने एक लंबी सांस ली. क्या सुबह से वह इसी बात को ले कर परेशान हो रही थी? मैं ने उस की तरफ झुकते हुए कहा, ‘‘पहले तो अपने मन से यह बात निकाल दो कि हम कुछ गलत कर रहे हैं. दूसरी बात, अगर हमारे बीच ऐसावैसा कुछ होता है, तो भी गलत नहीं है, क्योंकि जिस प्रेम को लोग गलत कहते हैं, वह केवल एक सामाजिक मान्यता के अनुरूप गलत होता है, परंतु प्राकृतिक रूप से नहीं. यह तो कभी भी , कहीं भी और किसी से भी हो सकता है.’’

‘‘क्या एकसाथ 2 या अधिक व्यक्तियों से प्रेम किया जा सकता है?’’ उस ने असमंजस से पूछा.

‘‘हां, क्यों नहीं? बिलकुल कर सकते हैं, परंतु उन की डिगरी में फर्क हो सकता है,’’ मैं ने बिना किसी संदर्भ के कहा. मुझे पता भी नहीं था कि छवि के पूछने का क्या तात्पर्य था, किस से संबंधित था, स्वयं से या किसी और से.

‘‘क्या शादीशुदा व्यक्ति भी?’’

मेरा दिल धड़का. मैं ने उस की आंखों में झांका. वहां कुतूहल और जिज्ञासा थी. वह उत्सुकता से मेरी तरफ देख रही थी. मैं ने जवाब दिया, ‘‘बिलकुल.’’ मैं ने चाहा कि कह दूं, ‘मैं भी तो तुम्हें प्यार करता हूं, जबकि मैं शादीशुदा हूं,’ परंतु कह न पाया. उस की आंखें झुक गईं. क्या उसे पता था कि मैं उसे प्यार करने लगा था. लड़कियां लड़कों के मनोभावों को शीघ्र समझ जाती हैं, जबकि वे बहुत जल्दी अपने हृदय को दूसरे के समक्ष नहीं खोलतीं.

फिर एक लंबी चुप्पी…और फिर निरुद्देश्य टहलना, अर्थहीन बातें करना, लहरों के शोर में अपने मन की बात एकदूसरे को कहने का प्रयास करना, कुछ खुल कर न कहना…यह हमारे पहले दिन का प्राप्य था. इस में सुख केवल इतना था कि वह मेरे साथ थी, परंतु दुख इतना लंबा कि रात सैकड़ों मील लंबी लगती. कटती ही न थी. पत्नी की बांहों में भी मुझे कोई सुख नहीं मिलता, क्योंकि मस्तिष्क और हृदय में छवि दौड़ रही थी, जहां उस के कदमों की धमधम थी. उस के सौंदर्य की आभा से चकाचौंध हो कर मैं पत्नी के प्रेमसुख का लाभ उठाने में असमर्थ था. जब मन कहीं और होता है तो तन उपेक्षित हो जाता है.

मेरे हृदय में घनीभूत पीड़ा थी. छवि बिलकुल मेरे पास थी. फिर भी कितनी दूर. मैं अपने मन की बात भी उस से नहीं कह पा रहा था. उस ने भी तो नहीं कहा था कुछ? मेरे साथ वह केवल घूमने के लिए नहीं गई थी, कुछ तो उस के मन में था, जिसे वह कहना चाह कर भी नहीं कह पा रही थी. मैं उसे समझ नहीं पा रहा था.

अगले दिन न तो वह मेरे घर आई, न मेरे मोबाइल पर संपर्क किया. मैं बेचैन हो गया. क्या बात है, सोचसोच कर मैं परेशान हो रहा था, परंतु मैं ने भी उसे फोन करने का प्रयत्न नहीं किया.

मैं नेहा से दुखी नहीं था. वह एक सुंदर स्त्री ही नहीं, अच्छी पत्नी भी थी. सारे काम कुशलता से करती थी. कभी मुझे शिकायत का मौका नहीं देती थी. थोड़ी नोकझोंक तो हर घर में होती थी. मनमुटाव हमारे बीच भी होता था, परंतु इस हद तक नहीं कि हम एकदूसरे को तलाक देने की बात सोचते.

छवि मेरे मन में ही नहीं, हृदय में भी बस चुकी थी, परंतु क्या उस के लिए मैं नेहा को छोड़ दूंगा? संभवतया ऐसा न हो. छवि के साथ मेरा प्यार अभी तक लगभग एकतरफा था. प्यार परवान नहीं चढ़ा था. परवान चढ़ता तो भी क्या मैं छवि के लिए नेहा को छोड़ देता? यह सोच कर मुझे तकलीफ होती है. अपने प्यार की सजा क्या मैं नेहा को दे सकता था. उस का जीवन बरबाद कर सकता था. इतनी हिम्मत नहीं थी.

फिर भी मैं छवि को अपने दिलोदिमाग से बाहर नहीं करना चाहता था.

औरतें पुरुषों की मनोस्थिति बहुत जल्दी भांप लेती हैं. जब से छवि मेरे हृदय में आ कर विराजमान हुई थी, मेरा व्यवहार असामान्य सा हो गया था. पढ़ने में मन न लगता, लिखने का तो सवाल ही नहीं उठता था. घर में ज्यादातर समय  मैं लेट कर गुजारता. ऐसी स्थिति में नेहा का मेरे ऊपर संदेह करना स्वाभाविक था.

उस ने पूछ लिया, ‘‘आजकल आप कुछ खिन्न से रहते हैं? क्या बात है, क्या औफिस में कोई परेशानी है?’’

मैं उसे अपने मन की स्थिति से कैसे अवगत कराता. बेजान सी मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘हां, आजकल औफिस में काम कुछ ज्यादा है, थक जाता हूं.’’

‘‘तो कुछ दिनों की छुट्टी ले लीजिए. कहीं बाहर घूम कर आते हैं.’’

‘‘यह तो और मुश्किल है. काम की अधिकता के कारण छुट्टी भी नहीं मिलेगी.’’

‘‘तो फिर छुट्टी के दिन बाहर चलेंगे, खंडाला या लोनावाला.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ मैं ने उस वक्त यह कह कर नेहा को संतुष्ट कर दिया.

तीसरे दिन छवि आई. उदास और थकीथकी सी लग रही थी. मेरे औफिस से आने के तुरंत बाद आ गई थी वह, जैसे वह मेरे आने का इंतजार ही कर रही थी. मैं उस का उदास चेहरा देख कर हैरान रह गया. मुझ से पहले नेहा ने पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ छवि, तुम बीमार थी क्या?’’

वह सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘हां दीदी.’’

‘‘हमें पता ही नहीं चला,’’ नेहा ने कहा, ‘‘बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’ वह चली गई तो मैं ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘आप ने बताया भी नहीं.’’

उस ने कुछ इस तरह मुझे देखा, जैसे कह रही हो, ‘मैं तो तुम्हारे सामने ही बीमार पड़ी थी, फिर देखा क्यों नहीं?’ फिर कहा, ‘‘क्या बताती, आप को स्वयं पता करना चाहिए था. मैं कोई दूर रहती हूं.’’ उस की शिकायत वाजिब थी. मैं शर्मिंदा था.

वह क्यों बताती कि वह बीमार थी. अगर मेरा उस से कोई वास्ता था, तो मुझे स्वयं उस का खयाल रखना चाहिए था.

‘‘क्या हुआ था?’’ मैं ने सरगोशी में पूछा, जैसे मैं कोई गुप्त बात पूछ रहा था. और मुझे डर था कि कोई हमारी बातचीत सुन लेगा.

‘‘मुझे खुद नहीं पता,’’ उस ने दीवार की तरफ देखते हुए कहा. उस की आवाज से लग रहा था, वह अपने बारे में बताना नहीं चाहती थी. मैं ने भी जोर नहीं दिया. उस की उदासी से मैं स्वयं दुखी हो गया, परंतु उस की उदासी दूर करने का मेरे पास कोई इलाज नहीं था.

‘‘डाक्टर को दिखाया था?’’ मैं और क्या पूछता.

‘‘नहीं,’’ उस ने ऐसे कहा, जैसे उस की बीमारी का इलाज किसी डाक्टर के पास नहीं था. कैसी अजीब लड़की है. बीमार थी, फिर भी डाक्टर को नहीं दिखाया था. यह भी उसे नहीं पता कि उसे हुआ क्या था? क्या वह बीमार नहीं थी. उस को कोई ऐसा दुख था, जिसे वह जानबूझ कर दूसरों से छिपाना चाहती थी. वह अंदर ही अंदर घुट रही थी, परंतु अपने हृदय की बात किसी को बता नहीं रही थी.

फिर एक लंबी चुप्पी…तब तक नेहा चाय ले कर आ गई. बातों की दिशा अचानक मुड़ गई. नेहा ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ क्या हुआ था?’’

छवि पहली बार मुसकराई, ‘‘कुछ खास नहीं, बस सर्दीजुकाम था. इसलिए 2 दिन आराम किया.’’ नेहा से वह बड़े सामान्य ढंग से बातें कर रही थी, परंतु मैं जानता था, उस के अंदर बहुतकुछ छिपा हुआ था. वह हम सब को ही नहीं, स्वयं को धोखा दे रही थी.

छवि के व्यवहार में विरोधाभास था. नेहा के साथ वह सामान्य व्यवहार करती थी, जबकि मेरे साथ बात करते समय वह चिड़चिड़ा जाती थी. इस का क्या कारण था, यह तो वही बता सकती थी. परंतु कोई न कोई बात उसे परेशान अवश्य कर रही थी.

इतवार का दिन था. नेहा ने अपनी सहेलियों के साथ वाशी में जा कर शौपिंग का प्रोग्राम बनाया था. वहां अभीअभी 2-3 मौल खुले थे. मैं ने सोचा था कि नेहा के जाने के बाद मैं कुछ लेखनकार्य करूंगा.

नेहा के जाने के बाद मेरा मन लेखनकार्य की तरफ प्रवृत्त तो नहीं हुआ, परंतु छवि की ओर दौड़ कर चला गया. मन हो रहा था, वह आए तो खुल कर उस से बातें कर सकूं. मेरे ऐसा सोचते ही दरवाजे की घंटी बजी. घंटी की तरह मेरा दिल धड़का और दिल के कोने से एक आवाज आई, वही होगी. सचमुच वही थी. मेरे दरवाजा खोलते ही तेजी से अंदर घुस आई और बिना दुआसलाम के पूछा, ‘‘दीदी कहीं गई हैं?’’

छवि को देखते ही मेरे अंदर खुशी की लहर दौड़ गई थी. मैं ने कहा, ‘‘वे वाशी गई हैं, शाम तक आएंगी.’’

‘‘ओह,’’ कह कर वह धम्म से लंबे सोफे पर बैठ गई. मैं उस की बगल में बैठ गया. उस ने मेरी तरफ नहीं देखा. मैं ने अपने दाएं पैर पर बायां पैर चढ़ा लिया और उस की तरफ घूम कर कहा, ‘‘छवि, मैं तुम्हें समझ नहीं पा रहा हूं. जिस दिन से हम दोनों घूमने गए हैं, उस दिन से मेरे प्रति तुम्हारा व्यवहार बदल गया है. मैं ने ऐसा क्या किया है जो तुम मुझ से नाराज हो.’’

उस ने एक पल घूरती नजरों से देखा फिर मुसकरा कर बोली, ‘‘नहीं, मैं आप से नाराज नहीं हूं.’’

‘‘फिर क्या बात है, मुझे नहीं बताओगी?’’

‘‘हूं. सोचती हूं बता ही दूं. आखिर घुटते रहने से क्या फायदा. शायद आप मेरी कुछ मदद कर सकें.’’ मुझे लगा वह मेरे प्रति अपने प्यारका इजहार करेगी. मैं धड़कते दिल से उसे देख रहा था. उस ने आगे कहा, ‘‘यह सही है कि मैं दुखी हूं, परंतु इतनी भी दुखी नहीं हूं कि रातभर रो कर तकिया गीला करूं. मन कभीकभी ऐसी चीज पर अटक जाता है जो उस की नहीं होती. तभी हम दुखी होते हैं.’’

मुझे लगा कि वह मेरे बारे में बात कर रही थी. मैं मन ही मन खुश हो रहा था. तभी उस ने अचानक पूछा, ‘‘क्या आप ने किसी को प्यार किया है?’’

मैं भौचक्का रह गया. उस का सवाल बहुत सीधा था, लेकिन मैं उस के प्रश्न का सीधा जवाब नहीं दे सका. लेकिन उस ने मेरे किस प्यार के बारे में पूछा था, शादी के पहले का, बाद का या अभी का. क्या उस ने भांप लिया था कि मैं उस से प्यार करने लगा था. अगर हां, तब भी मैं उस के सामने स्वीकार करने का साहस नहीं कर सकता था. मैं ने हैरानगी प्रकट करते हुए कहा, ‘‘कौन सा प्यार?’’

उस ने उपहासभरी दृष्टि से कहा, ‘‘आप सब समझते हैं कि मैं कौन से प्यार के बारे में पूछ रही हूं. चलिए, आप बताना नहीं चाहते, मत बताइए, प्यार के बारे में झूठ बोलना आम बात है. आप कुछ का कुछ बताएंगे और समझेंगे कि मैं ने मान लिया. इसलिए रहने दीजिए. ’’

‘‘तो आप ही बता दीजिए आप के मन में क्या है, यहां से दुखी हो कर जाएंगी तो मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा,’’ मैं ने तुरंत कहा.

‘‘मेरे दुखी होने से आप को क्या फर्क पड़ेगा,’’ उस ने उपेक्षा के भाव से कहा. उस की बात सुन कर मुझे दुख हुआ. क्या यह जानबूझ कर मेरे मन को दुख पहुंचा रही थी, ताकि उसे पता चल सके कि मैं उस के बारे में कितना चिंतित रहता हूं. किसी के बारे में सोचना, उस का खयाल रखना और उस को ले कर चिंतित होना प्यार के लक्षण हैं. वह शायद इन्हें ही जानना चाहती थी. उस के व्यवहार से मैं इतना तो समझ ही गया था कि वह मेरे बारे में सोचती है, परंतु किसी मजबूरी या कारणवश अपने हृदय को मेरे सामने खोलना नहीं चाहती थी. क्या इस का कारण मेरा शादीशुदा होना था?

‘‘मेरे दुख का तुम अंदाजा नहीं लगा सकती,’’ मैं ने बेचारगी के भाव से कहा.

‘‘15 दिनों के बाद जब मैं चली जाऊंगी, तब देखूंगी कि आप मुझ को ले कर कितना दुखी और चिंतित होते हैं,’’ उस ने लापरवाही से कहा.

‘‘तब तुम मेरा दुख किस प्रकार महसूस करोगी.’’

‘‘कर लूंगी, अपने हृदय से. कहते हैं न कि दिल से दिल की राह होती है. जब आप दुखी होंगे तब मेरे दिल को पता चल जाएगा.’’

कहतेकहते उस की आवाज नम सी हो गई थी. मैं ने देखा उस की आंखों में गीला सा कुछ चमक रहा था, वह अपने आंसुओं को रोकने का असफल प्रयास कर रही थी. अब मेरे मन में कोई शक नहीं था कि वह सचमुच मुझे प्यार करती थी, परंतु खुल कर हम दोनों ही इसे न तो कहना चाहते थे, न स्वीकार करना. मजबूरियां दोनों तरफ थीं और इन को तोड़ पाना लगभग असंभव था.

शाम तक हम दोनों इसी तरह एकदूसरे को बहलातेफुसलाते रहे, परंतु सीधी तरह से अपने मन की बात न कह सके.

15 दिन बहुत जल्दी बीत गए. इस बीच छवि से मेरी मुलाकात नहीं हुई. इस के लिए हम दोनों में से किसी ने प्रयास भी नहीं किया. पता नहीं हम दोनों क्यों एकदूसरे से डरने लगे थे. मैं अपने भय को समझ नहीं पा रहा था और छवि का भय मैं समझ सकता था.

जाने से एक दिन पहले की शाम…वह हंसती हुई हमारे यहां आई और नेहा के गले लगते हुए बोली, ‘‘दीदी, कल मैं जा रही हूं, आप को बहुत मिस करूंगी.’’ नेहा के कंधे पर सिर रखे हुए उस ने तिरछी नजर से मेरी तरफ देखा और हलके से बायीं आंख दबा दी. मैं उस का इशारा नहीं समझ सका.

गले मिलने के बाद दोनों आमनेसामने बैठ गए. नेहा ने पूछा, ‘‘बड़ी जल्दी तुम्हारी छुट्टियां बीत गईं, पता ही नहीं चला. फिर आना जल्दी.’’

मैं चुपचाप दोनों की बातें सुन रहा था. नेहा जैसे मेरे मन की बात कह रही थी. मुझे अपनी तरफ से कुछ कहने की जरूरत नहीं थी.

‘‘हां, जल्दी आऊंगी. अब तो आप लोगों के बिना मेरा मन भी नहीं लगेगा,’’ कहतेकहते एक बार फिर छवि ने मेरी तरफ देखा. जैसे उस के कहने का तात्पर्य मुझ से था. अर्थात मेरे बिना उस का मन नहीं लगेगा. क्या यह सच था? अगर हां, तो क्या वह मुझ से जुदा हो सकती थी.

अगले दिन वह चली गई. दिनभर मैं उदास रहा, लेकिन उस को याद कर के रोने का कोई फायदा नहीं था.

शाम को हर दिन की तरह मैं अपने लैटरबौक्स से चिट्ठियां निकाल रहा था. लिफाफों के बीच में एक विशेष तरह का लिफाफा देख कर मैं चौंका. यह किसी डाक से नहीं आया था, क्योंकि उस पर न तो कोई टिकट लगा था और न ही उस पर भेजने वाले का नामपता ही था. बस, पाने वाले की जगह पर मेरा नाम लिखा था. लिफाफे में एक खुशबू बसी हुई थी जो मुझे उसे तुरंत खोलने पर मजबूर कर रही थी. मैं ने धड़कते दिल से उसे खोला और बिजली की गति से मेरी आंखें लिफाफे के अंदर रखे कागज पर दौड़ने लगीं.

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं आप को क्या कह कर संबोधित करूं. मेरा आप का क्या संबंध है? मैं समझती हूं संबोधनहीन रहना ही हम दोनों के लिए श्रेष्ठ है. मेरा मानना है कि मेरे हृदय में आप का जो स्थान है उस के सामने सारे संबोधन बेमानी हो जाते हैं.

‘‘मैं ने कभी नहीं सोचा था कि मुंबई जा कर मैं इस चक्कर में पड़ जाऊंगी. परंतु मन क्या किसी के वश में होता है. आप में पता नहीं मुझे क्या अच्छा लगा, कि बस आप की हो कर रह गई. उस दिन जब मैं ने आप को लैटरबौक्स से चिट्ठियां निकालते देखा था तो अनायास मेरा दिल धड़क उठा. किसी अनजान आदमी को देख कर ऐसा क्यों होता है, यह तत्काल न समझ पाई, परंतु अब समझ गई हूं कि इस एहसास का क्या नाम होता है. मेरे हृदय के एहसास को नाम तो मिल गया, परंतु उस का अंजाम क्या होगा, यह अभी तक अनिश्चित है. इसलिए मैं खुल कर आप से कुछ न कह पाई और अपने एहसास के साथ मन ही मन घुटती रही.

‘‘मैं जानती हूं कि आप के हृदय में भी वही एहसास हैं, परंतु आप भी मुझ से खुल कर कुछ नहीं कह पाए. हम दोनों एकदूसरे से चोरी करते रहे. अच्छा होता हम दोनों में से कोई खुल कर अपनी बात कहता तो हो सकता है दोनों इतने कष्ट में इस तरह घुटते हुए अपने दिन न बिताते. हमारे मन के संकोच हमें आगे बढ़ने से रोकते रहे. मैं डरती थी कि आप का वैवाहिक जीवन न बिखर जाए और आप के मन में संभवतया यह डर बैठा हुआ था कि शादीशुदा हो कर कुंआरी लड़की से प्रेमनिवेदन कैसे करें और क्या वह आप को स्वीकार करेगी.

‘‘परंतु मैं समझ गई हूं कि प्रेम की न तो कोई सीमा होती है न कोई बंधन. प्रेम स्वच्छंद होता है. इसे न तो कोई मूल्य बांध सकता है, न नैतिकता इसे रोक सकती है क्योंकि यह नैसर्गिक होता है. मैं आज भले ही आप से दूर हूं और शारीरिक रूप से भले ही हम नहीं मिल पाएं हैं परंतु मैं जानती हूं कि हम दोनों कभी एकदूसरे से दूर नहीं हो सकते हैं. मैं फिर लौट कर आऊंगी और अगली बार जब मैं आप से मिलूंगी तब मेरे मन में कोई संकोच, कोई झिझक नहीं होगी. तब आप भी अपने बंधनों को तोड़ कर मेरे साथ प्यार की नैसर्गिक दुनिया में खो जाएंगे.

‘‘अब और ज्यादा नहीं, मैं अपने दिल को खोल कर आप के सामने रख रही हूं. आप इसे स्वीकार करेंगे या नहीं, यह तो भविष्य ही बताएगा, परंतु मैं आप की हूं, इतना अवश्य जानती हूं.’’

पत्र को पढ़ कर मैं पूरी तरह से रोमांचित हो उठा था. मेरा रोमरोम सिहर उठा. काश, थोड़ी सी और हिम्मत की होती तो हम दोनों इस तरह विरह के आंसू बहाते हुए न जुदा होते.

मैं ने पत्र को कई बार पढ़ा और बारबार उसे सूंघ कर देखता रहा. उस में छवि के हाथों की खुशबू थी. मैं ने उसे अंदर तक महसूस किया.

पत्र को हाथों में थामें हुए मुझे कई पल बीत गए. अचानक एक धमाके की तरह नेहा ने मेरे मन में प्रवेश किया. उस की मुसकान मेरे दिल को बरछी की तरह घायल कर गई. नेहा मेरी पत्नी थी. मुझे उस से कोई शिकायत नहीं थी. वह सुंदर थी, गृहकार्यों में कुशल थी. मुझे जीजान से प्यार करती थी, फिर मैं कौन सा प्यार पाने के लिए उस से दूर भाग रहा था? क्या मैं मृगतृष्णा का शिकार नहीं हो गया था? मानसिक और शारीरिक, दोनों ही प्यार मेरे पास उपलब्ध थे, फिर छवि में मैं कौन सा प्यार ढूंढ़ रहा था?

मेरे मन में चिनगारियां सी जलने लगीं. हृदय में जैसे विस्फोट से हो रहे थे. ऐसे विस्फोट जो मेरे जीवन को जला कर तहसनहस करने के लिए आमादा थे. मैं ने तुरंत मन में एक अडिग फैसला लिया. मैं जानता था, मुझे क्या करना था? मैं अब और अधिक भटकना नहीं चाहता था.

मैं ने छवि के पत्र को फाड़ कर वहीं पर फेंक दिया. उसे सहेज कर रखने का साहस मेरे पास नहीं था. मैं छवि की खूबसूरती और यौवन में खो कर कुछ दिनों के लिए भटक गया था. अच्छा हुआ, हम दोनों ने अपने हृदय को एकदूसरे के सामने नहीं खोला. खोल देते, तो पता नहीं हम वासना की किन अंधेरी गलियों में खो जाते.

छवि सुंदर और नौजवान है, कुंआरी है, उसे बहुत से लड़के मिल जाएंगे प्यार और शादी करने के लिए. मैं उस के घर का चिराग नहीं था. मैं एक भटकता हुआ तारा था. जो पलभर के लिए उस की राह में आ गया था और वह मेरी चमक से चकाचौंध हो गई थी.

मैं एक पारिवारिक व्यक्ति था, एक लेखक था. अपनी पत्नी के साथ मैं खुश था. हमारे संतान नहीं थी, तो क्या हुआ? आज नहीं तो कल, संतान भी होगी. नहीं भी होगी, तो क्या बिगड़ जाएगा? दुनिया में बहुत सारे संतानहीन दंपती हैं, और बहुत सारे संतान वाले दंपती अपनी संतानों के हाथों दुख उठाते हैं.

नेहा के अतिरिक्त मुझे किसी और के प्यार की दरकार नहीं. मुझे आशा है, अगली बार जब छवि मेरे यहां आएगी, मैं उसे नेहा की छोटी बहन के रूप में ही स्वीकार करूंगा. मैं उस का प्रेमी नहीं हो सकता.

शर्मिंदगी : उस औरत ने किसे नीचा दिखाया

औरत आगे बढ़ी और मेरे पैरों की ओर झुकी, तभी मैं पीछे हट कर बोला, ‘‘इस तरह बारबार मेरे पैरों को मत पकड़ो. यह ठीक नहीं है. रही बात तुम्हारे पति की तो वह निर्दोष होगा तो अदालत से छूट जाएगा.’’

‘‘साहब, पता नहीं अदालत कब छोड़ेगी. अगर आप चाहें तो 5 मिनट में छुड़वा सकते हैं.’’ लड़के ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘हमारे ऊपर दया करें साहब, हमारा और कोई नहीं है.’’

वह औरत इस लायक थी कि उसे औफिस बुलाया जा सकता था, वहां उस से इत्मीनान से बात भी की जा सकती थी. मैं ने अपना विजिटिंग कार्ड लड़के को देते हुए कहा, ‘‘यह मेरा कार्ड है. तुम इन्हें ले कर मेरे औफिस आ जाओ. शायद मैं तुम्हारा काम करा सकूं.’’

इस के बाद मैं औफिस चला गया. लेकिन उस दिन मेरा मन काम में नहीं लग रह था. फाइलों को देखते हुए मुझे बारबार उस औरत की याद आ रही थी. मुझे लग रहा था कि वह आती ही होगी. लेकिन उस दिन वह नहीं आई. घर आते हुए मैं उसी के ख्यालों में डूबा रहा. यही सोचता रहा कि पता नहीं वह क्यों नहीं आई.

अगले दिन मैं औफिस पहुंचा तो वह औरत और लड़का मुझे औफिस के गेट के सामने खड़े दिखाई दे गए. मैं जैसे ही कार से उतरा, दोनों मेरे पास आ गए. मैं ने उन्हें सवालिया नजरों से घूरते हुए कहा, ‘‘तुम्हें तो कल ही आना चाहिए था?’’

‘‘हम कल आए तो थे साहब, लेकिन आप के चपरासी ने कहा कि साहब बहुत व्यस्त हैं, इसलिए वह किसी से नहीं मिल सकते.’’ लड़के ने कहा.

‘‘तुम ने उसे मेरा कार्ड नहीं दिखाया?’’

‘‘दिखाया था साहब,’’ लड़के ने कहा, ‘‘चपरासी ने कार्ड देखा ही नहीं. कहा कि इसे जेब में रखो, फिर कभी आ जाना.’’

‘‘ठीक है, 10 मिनट बाद मेरी केबिन के सामने आओ, मैं तुम्हें बुलवाता हूं.’’ मैं ने औरत को नजर भर कर देखते हुए कहा.

10 मिनट बाद दोनों मेरे सामने बैठे थे. लड़के ने फिर वही कहानी दोहराई. मैं ने उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. जो हंगामा हुआ था, उस का मुझे पता था. यह भी पता था कि उस मामले में कोई असली अपराधी नहीं पकड़ा गया था.

मैं ने हंगामा होने वाले इलाके के थानाप्रभारी को फोन किया. जब उस ने बताया कि अभी महिला के पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं है तो मैं ने कहा, ‘‘जब तक मैं दोबारा फोन न करूं, उस के खिलाफ कोई काररवाई मत करना.’’

इतना कह कर मैं ने फोन काट दिया. वह औरत और लड़का मेरी तरफ ताक रहे थे. मेरे फोन रखते ही लड़के ने कहा, ‘‘साहब, उस ने कुछ नहीं किया.’’

‘‘तुम ने बाहर स्टेशनरी वाली दुकान देखी है?’’ मैं ने लड़के से पूछा.

‘‘जी, वह किताबों वाली दुकान.’’ लड़के ने कहा.

‘‘हां, तुम ऐसा करो,’’ मैं ने उसे 10 रुपए का नोट देते हुए कहा, ‘‘उस दुकान से एक दस्ता कागज ले आओ. उस के बाद बताऊंगा कि तुम्हें क्या करना है.’’

लड़का 10 रुपए का नोट लेने के बजाए बोला, ‘‘मेरे पास पैसे हैं साहब. मैं ले आता हूं कागज.’’

लड़का चला गया तो मैं ने औरत को चाहतभरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा काम तो हो जाएगा, लेकिन तुम्हें भी मेरा एक काम करना होगा.’’

मेरी इस बात का मतलब वह तुरंत समझ गई. मैं ने उस के चेहरे के बदलते रंग से इस बात का अंदाजा लगा लिया था. फिर औरतें तो नजरों से ही अंदाजा लगा लेती हैं कि मर्द क्या चाहता है. मैं ने अपनी इच्छा को शब्दों का रूप दे दिया. मैं ने कहा, ‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हारा पति कम से कम 3 सालों के लिए जेल चला जाएगा. पुलिस ने उसे हंगामे के मुकदमे में नामजद किया है.’’

यह कहते हुए मेरी नजरें औरत के चेहरे पर जमी रहीं और मैं उसे पढ़ने की कोशिश कर रहा था. मैं ने आगे कहा, ‘‘अगर तुम चाहती हो कि तुम्हारा पति घर आ जाए तो तुम आज 4 बजे अमर कालोनी के स्टौप पर मुझे मिल जाना. स्टौप से थोड़ा हट कर खड़ी होना, जिस से मैं तुम्हें आसानी से पहचान सकूं. अगर तुम नहीं आईं तो मैं यही समझूंगा कि तुम अपने शौहर की रिहाई नहीं कराना चाहती.’’

औरत सिर झुकाए बैठी रही. उस के होंठ कांप रहे थे. लेकिन शब्द नहीं निकल रहे थे. मैं उस के जवाब की प्रतीक्षा करता रहा. जब उस ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैं समझ गया कि चुप का मतलब रजामंदी है. मैं ने कहा, ‘‘तुम वहां अकेली ही आना. अगर कोई साथ होगा तो फिर तुम्हारा काम नहीं होगा.’’

उस ने सहमति में सिर हिला कर गर्दन झुका ली. लड़के के आने तक मैं उसे तसल्ली देता हुआ उस की खूबसूरती की तारीफें करता रहा. लेकिन उस ने मेरी तरफ देख कर जरा भी खुशी प्रकट नहीं की. वह मूर्ति की तरह बैठी मेरी बातें सुनती रही. लड़के के आने के बाद मैं ने उसे विदा करते हुए कहा, ‘‘मैं कोशिश करूंगा कि तुम्हारा पति कल तक छूट जाए.’’

दोनों के जाने के बाद मैं औफिस के कामों को निपटाने लगा, लेकिन मन में जो लड्डू फूट रहे थे, वे मुझे उलझाए हुए थे. ठीक 4 बजे मैं अपनी कार से अमर कालोनी के बसस्टौप पर पहुंच गया. दरवाजा खोल कर मैं बाहर निकलने ही वाला था कि उस औरत को अपनी ओर आते देखा. जालिम की चाल दिल में उतर जाने वाली थी.

थोड़ी देर में उस सुंदर चीज को पहलू में लिए मैं उस फ्लैट की ओर जा रहा था, जो मैं ने अपनी अय्याशियों के लिए ले रखा था. मेरी कार हवा से बातें कर रही थी. पूरे रास्ते न तो उस औरत ने होंठ खोले और न ही मैं ने कुछ कहा.

फ्लैट में पहुंच कर पहले मैं ने अपना हलक गीला किया, जिस से मजा दोगुना हो सके. जब अंदर का शैतान पूरी तरह से जाग उठा तो मैं ने उस की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मुझे कतई विश्वास नहीं था कि तुम इतनी आसानी से मान जाओगी, मेरा ख्याल है कि तुम्हें अपने पति से बहुत ज्यादा प्यार है. तुम अपने प्यार को जेल जाते नहीं देख सकती थी.’’

मैं अपनी बातें कह रहा था और वह किसी पत्थर की मूर्ति की भांति निश्चल बैठी फर्श को ताके जा रही थी. मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर अपनी ओर खींचा तो वह एकदम से बिस्तर पर गिर गई. गिरते ही उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. मुझे उस का यह अंदाज काफी पसंद आया.

अगले दिन शाम को 7 बजे के करीब जब मैं घर पहुंचा तो यह देख कर दंग रह गया कि वह औरत, एक आदमी और मेरी पत्नी लौन में बैठे चाय पी रहे थे. मुझे देखते ही वह आदमी उठ खड़ा हुआ और मेरे पास आ कर मेरे पैर छू लिए. मैं ने एक नजर औरत पर डाली. वह नजरें झुकाए खामोश बैठी थी.

मैं ने उस आदमी की ओर देखा तो उस की आंखों में मेरे प्रति आभार के भाव थे. वह मुझे बारबार धन्यवाद दे रहा था. वह कह रहा था, ‘‘साहब, आप बहुत बड़े आदमी हैं. यह एहसान मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा.’’

अब मेरे अंदर उस का सामना करने का साहस नहीं रह गया था. मैं उस से पीछा छुड़ा कर घर में जाना चाहता था. लेकिन पत्नी ने पीछे से कहा, ‘‘कहां जा रहे हैं, जरा इधर तो आइए. यह बेचारी कितनी देर से आप का इंतजार कर रही है. आप ने इस का काम करा कर बडे़ पुण्य का काम किया है. आप की वजह से मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो गया है. मैं बहुत खुश हूं.’’

मैं ने पलट कर एक नजर पत्नी की ओर देखा. वह सचमुच बहुत खुश दिख रही थी. मैं ने कहा, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं थोड़ा आराम करना चाहता हूं.’’ कह कर मैं तेजी से दरवाजे में घुस गया.

बैडरूम में पहुंच कर मैं बिस्तर पर ढेर हो गया. कुछ देर बाद पत्नी मेरे कमरे में आई और बैड पर बैठ कर मेरे बालों में अंगुलियां फेरते हुए बोली, ‘‘तुम्हें कुछ पता है, वह बेचारी गूंगी थी, इसीलिए वह हमें नहीं बता पा रही थी कि उस पर क्या जुल्म हुआ था. इसीलिए आभार व्यक्त करने के लिए वह पति को साथ लाई थी. वह कह रहा था कि अगर उसे जेल हो जाती तो यह बेचारी कहीं की नहीं रह जाती. कोई उसे सहारा देने वाला नहीं था.’’

अब मुझ में इस से अधिक सुनने की ताकत नहीं रह गई थी. मैं अपनी शर्मिंदगी छिपाने के लिए तेजी से उठा और बाथरूम में घुस गया.

और वक्त बदल गया : क्या हुआ नीरज के साथ

नीरज की परेशानी दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी. स्कूल के इम्तिहान खत्म हो चुके थे. ट्यूशन क्लासेज भी बंद हो गई थीं. अभी उस के सामने कई खर्चे खड़े थे- कमरे का किराया, घर का सामान. उस के पास इतने पैसे न थे कि सारे खर्च एकसाथ निबट जाते. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. नीरज को एकाएक खयाल आया कि मकानमालकिन मिसेज रेमन से बात की जाए, शायद कोई हल निकल आए. मिसेज रेमन उस 2 कमरों के मकान में अकेली ही रहती थीं. छत पर उस का कमरा था. वहां एक कमरा वाशरूम के साथ था. बरामदे को घेर कर छोटी सी रसोई बना दी थी. नीरज के लिए कमरा ठीकठीक था. उस की अच्छी गुजर हो रही थी. पिछले दिनों उस की बीमारी की वजह से पैसों की समस्या खड़ी हो गई थी. इलाज में पैसा खर्च हो गया और बचत न हो सकी.

शाम को वह मिसेज रेमन के दरवाजे की घंटी बजा रहा था. उन्होंने दरवाजा खोला और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘हैलो यंगमैन, कैसे हो?’’ उस के जवाब का इंतजार किए बगैर उन्होंने प्यार से उसे बिठाया. उस के न कहने के बावजूद वे चाय ले आईं. फिर पूछा, ‘‘बताओ, कैसे आना हुआ?’’

नीरज ने धीमे से कहा, ‘‘मैम, आप को तो पता है मैं एमई कर रहा हूं और ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता हूं. छुट्टियों में कोई काम कर लेता हूं पर इस बार बीमारी के इलाज में खर्च ज्यादा हो गया, इसलिए इस महीने का किराया वक्त पर नहीं दे पाऊंगा. मुझे थोड़ी मोहलत दे दीजिए.’’

इस से पहले कभी नीरज से मिसेज रेमन को कोई शिकायत न थी. बहुत शिष्ट और शालीन था वह. किराया हमेशा वक्त पर देता था. मिसेज रेमन अच्छी महिला थीं, बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, जब तुम्हें सहूलियत हो तब किराया दे देना. तुम स्टूडैंट हो और बहुत अच्छे लड़के हो. इतनी रियायत तो मैं तुम्हें दे सकती हूं.’’

नीरज खुश हो गया, बोला, ‘‘बहुतबहुत शुक्रिया मैम.’’

वे बोलीं, ‘‘नीरज मेरे पास तुम्हारे लिए एक औफर है. मेरा एक स्टोर है. उस को मेरे एक पुराने मित्र मिस्टर जैकब देखते हैं. वे भी काफी उम्र के हैं. हिसाबकिताब में उन्हें परेशानी होती है. अगर तुम शाम को थोड़ा वक्त निकाल कर हिसाबकिताब देख लो तो तुम्हारे किराए के रुपए भी उसी में से कट जाएंगे और कुछ रुपए तुम्हें मिल भी जाएंगे.’’

नीरज ने तुरंत कहा, ‘‘ठीक है मैम, मैं कल से यह काम शुरू कर दूंगा. इस से मुझे बहुत मदद मिल जाएगी. मैं आप का बहुत एहसानमंद हूं.’’

दूसरे दिन से नीरज 1-2 घंटे स्टोर पर हिसाबकिताब वगैरा देखने लगा. मिस्टर जैकब बहुत सुलझे हुए और सहयोग करने वाले इंसान थे. बड़े अच्छे से उस का काम चलने लगा. महीना पूरा होने पर किराए के पैसे काट कर उसे कुछ रकम भी मिल गई. नीरज के सैमेस्टर शुरू हो गए. परीक्षाएं खत्म होने पर उसे सुकून मिला.

उस दिन वह अच्छे मूड में नीचे गार्डन में बैठा था कि मिसेज रेमन आ गईं. उस की परीक्षाएं खत्म होने की बात सुन कर वे बहुत खुश हुईं. उसे रात के खाने पर आमंत्रित किया. बहुत अच्छे माहौल में खाना खाया गया. उन्होंने बिरयानी बहुत अच्छी बनाई थी. बरसों बाद उसे किसी ने इतने प्यार से खाना खिलाया था. मिसेज रेमन ने छुट्यों में उसे 1-2 जगह और काम दिलाने का भी वादा किया.

रात को जब वह बिस्तर पर लेटा तो मिसेज रेमन के बारे में सोच रहा था. पर पता नहीं कैसे एक खूबसूरत चेहरा उस के खयालों में उभर आया. उस हसीन चेहरे को वह भूल जाना चाहता था. अपने अतीत को अपने जेहन से खुरच कर फेंक देना चाहता था. पर न जाने क्यों वह चेहरा बारबार उस की यादों में चला आता था. न चाहते हुए भी वह अतीत में डूब गया…

उस समय वह करीब 6 साल का था. एक बहुत खूबसूरत औरत, जो उस की मम्मी थी, उसे प्यार करती, उस का खयाल रखती. उस के पापा भी बहुत हैंडसम और डैश्ंिग थे. वे उसे घुमाने ले जाते, खिलौने दिलाते. पर एक बात से वह बहुत परेशान रहता कि अकसर किसी न किसी बात पर उस के मातापिता के बीच लड़ाई हो जाती, खूब तकरार होती. वह सहम कर अपने कमरे में छिप जाता. उस का मासूम दिल यह समझ ही नहीं पाता कि उस के मम्मीपापा क्यों झगड़ते हैं. फिर घर में खाना नहीं पकता. पापा गुस्से से बाहर चले जाते और खूब देर से घर लौटते. वह दूध और डबलरोटी खा कर सो जाता. इसी तरह दिन गुजर रहे थे. एक दिन दोनों के बीच बड़ी जोरदार लड़ाई हुई. फिर पापा जोरजोर से चिल्ला कर पता नहीं क्याक्या बक कर बाहर चले गए. मम्मी भी देर तक चिल्लाती रहीं. उस रात को पापा घर वापस लौट कर नहीं आए. दूसरे दिन आए तो फिर दोनों में तकरार शुरू हो गई. बीचबीच में उस का नाम भी ले रहे थे. फिर पापा सूटकेस में अपना सामान भर कर चले गए और कभी लौट कर नहीं आए. मम्मी का मिजाज बिगड़ा रहता.

3 महीने इसी तरह गुजर गए, फिर मम्मी एकदम, खुश दिखने लगीं. एक दिन एक बैग में उस का सामान पैक किया, फिर उस की मम्मी, जिस का नाम सोनाली था, ने कहा, ‘नीरज, मुझे विदेश में जौब मिल गई है. अब तुम मेरी कजिन नीता आंटी के साथ रहोगे. वे तुम्हारा बहुत खयाल रखेंगी. बेटा, तुम भी उन को तंग न करना.’ दूसरे दिन सोनाली उसे नीता आंटी के यहां छोड़ने गई.

नीरज किसी भी हाल में मम्मी को छोड़ना नहीं चाहता था. रोरो कर उस की हिचकियां बंध गईं. मम्मी भी रो रही थीं पर फिर वे आंचल छुड़ा कर चली गईं. नीरज उदास सा, हालात से समझौता करने को मजबूर था. उस के पास और कोई रास्ता न था.

उस का ऐडमिशन दूसरे स्कूल में हो गया. नीता आंटी का व्यवहार उस से अच्छा था. वे उसे प्यार भी करती थीं. अंकल बहुत कम बोलते, उसे अलग कमरे में अकेले सोना होता था. रात में सोते समय वह कई बार डर कर उठ जाता, तकिया सीने से लगाए रोरो कर रात काट देता. कोई ऐसा न था जो उसे उन काली रातों में उसे सीने से लगा कर प्यार करता. उसे समझ नहीं आता था, मां उसे छोड़ कर क्यों चली गईं? पापा कहां चले गए? दिन बीतते रहे. 10-12 दिनों बाद मम्मी उस से मिलने आईं. खिलौने, चौकलेट, कपड़े लाई थीं. उसे खूब प्यार किया और फिर उसे रोताबिलखता छोड़ कर मलयेशिया चली गईं.

जिंदगी एक ढर्रे पर चलने लगी. नीता आंटी उस का बहुत खयाल रखतीं. आंटी के यहां रहते हुए उसे कई बातें पता चलीं. आंटी की शादी को 8 साल हो गए थे. उन के यहां औलाद न थी. इसलिए उन्होंने उसे गोद लिया था. जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उसे सारी बातें समझ में आती गईं. कुछ बातें उसे नीता आंटी से पता चलीं. कुछ बातें उन की पुरानी बूआ कमला से पता चलीं. उस के मांबाप की कहानी भी उन्हीं लोगों से मालूम पड़ीं.

उस की मम्मी सोनाली बहुत खूबसूरत, चंचल और जहीन थीं. जब वे एमएससी कर रही थीं, उन की मुलाकात उस के पापा रवि से हुई. पहले दोस्ती, फिर मुहब्बत. दोनों के धर्म में फर्क था. दोनों के घरों से शादी का इनकार ही था. पर इश्के जनून कहां रुकावटों से रुकता है. दोनों की पढ़ाई पूरी होते ही उन दोनों ने सोचसमझ कर आपसी सहमति से अपना शहर छोड़ दिया और इस शहर में आ कर बस गए. सोनाली और रवि दोनों ही नए जमाने के साथ चलने वाले, ऊंची उड़ान भरने वाले परिंदे सरीखे थे. पुराने रीतिरिवाजों के विरोधी, नई सोच नई डगर, आजाद खयालों के हामी, उन दोनों ने ‘लिवइन रिलेशन’ में एकसाथ रहना शुरू कर दिया. विवाह उन्हें एक बंधन लगा.

उन का एजुकेशनल रिकौर्ड काफी अच्छा था. जल्द ही उन्हें अच्छी नौकरी मिल गई. जल्द ही उन्होंने जीवन की सारी जरूरी सुविधाएं जुटा लीं. एक साल फूलों की महक की तरह हलकाफुलका खुशगवार गुजर गया. फिर उन की जिंदगी में नीरज आ गया. शुरूशुरू में दोनों ने खुशी से जिम्मेदारी उठाई. दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. सोनाली चंचल और आजाद रहने वाली लड़की थी. घर में सासससुर या कोई बड़ा होता तो कुछ दबाव होता, थोड़ा समझौता करने की आदत बनती. पर ऐसा कोई न था.

रवि बेहद महत्त्वाकांक्षी और थोड़ा स्वार्थी था. खर्च और काम बढ़ने से दोनों के बीच धीरेधीरे कलह होने लगी. पहले तो कभीकभार लड़ाई होती, फिर अंतराल घटने लगा. दोनों में बरदाश्त और सहनशीलता जरा न थी. फिर हर दूसरे, तीसरे दिन लड़ाई होने लगी. रवि के अपने मांबाप, परिवार से सारे संबंध टूट चुके थे और वे लोग उस से कोई संबंध रखना भी नहीं चाहते थे. उन के रवि के अलावा एक बेटा और एक बेटी थी. उन्हें डर था कि कहीं रवि के व्यवहार का दोनों बच्चों पर बुरा प्रभाव न पड़ जाए. जो लड़का प्यार की खातिर घरपरिवार छोड़ दे, उस से उम्मीद भी क्या रखी जा सकती है.

रिश्तेदारों से तो रवि पूरी तरह कट चुका था. कभी किसी दोस्त या सहयोगी के यहां कोई समारोह में शामिल होने का मौका मिलता, वहां भी कोई न कोई ऐसी बात हो जाती कि मन खराब हो जाता. कभी कोई इशारा कर के कहता, ‘यही हैं जो लिवइन रिलेशन में रह रहे हैं.’ या कोई कह देता, ‘इन लोगों की शादी नहीं हुई है, ऐसे ही साथ रहते हैं.’ उन दिनों लिवइन रिलेशन बहुत कम चलन में था. लोग इसे बहुत बुरा समझते थे. लोग खूब आलोचना भी करते थे.

रवि भी इस बात को महसूस करता था कि अगर समाज में घुलमिल कर रहना है तो समाज के बनाए उसूलों के अनुसार चलना जरूरी है. पर अब इन सब बातों के लिए बहुत देर हो चुकी थी. जो जैसा चल रहा था, वही अच्छा लगने लगा था.

सोनाली अपने परिवार की बड़ी बेटी थी. उस से छोटी 2 बहनें थीं. उस ने घर से भाग कर रवि के साथ रहना शुरू कर दिया. इन सब बातों की उस के मांबाप को खबर हो गई थी. बिना शादी के दोनों साथ रहते हैं, इस बात से उन्हें बहुत धक्का लगा. ऐसी खबरें तो पंख लगा कर उड़ती हैं. उन की 2 बेटियां कुंआरी थीं. कहीं सोनाली की कालीछाया उन दोनों के भविष्य को भी ग्रहण न लगा दे, यह सोच कर उन लोगों ने सोनाली से कोई संबंध नहीं रखा, न उस की कोई खोजखबर ली. वैसे भी, एक आजाद लड़की को क्या समझाना. इस तरह सोनाली भी अपने परिवार से अलग हो गई थी. उस की रिश्ते की एक बहन नीता इसी शहर में रहती थी. उस से मेलमुलाकात होती रहती थी. उस की शादी को 8 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद न थी. वह बच्चे के लिए तरसती रहती थी.

इधर, रवि और सोनाली के बीच अहं का टकराव होता रहता. दोनों पढ़ेलिखे, सुंदर और जहीन थे. कोई झुकना न चाहता था. एक बात और थी, दोनों ही अपने परिवारों से कटे हुए थे. इस बात का एहसास उन्हें खटकता तो था पर खुल कर इस को कभी स्वीकार नहीं करते थे क्योंकि उन की ही गलती नजर आती. फिर सोशललाइफ भी कुछ खास न थी. इसी घुटन और कुंठा ने दोनों को चिड़चिड़ा बना दिया था.

नीरज की जिम्मेदारी और खर्च दोनों को ही भारी पड़ता. दोनों को अपनाअपना पैसा बचाने की धुन सवार रहती. नतीजा निकला रोजरोज की लड़ाई और अंजाम, रवि घर, नीरज और सोनाली को छोड़ कर चला गया. न कोई बंधन था, न कोई दवाब, न कोई कानूनी रोक. बड़ी आसानी से वह सोनाली और बच्चे को छोड़ चला गया. किसी से पता चला कि वह दुबई चला गया.

इधर, सोनाली भी बहुत महत्त्वाकांक्षी थी. उस ने भी दौड़धूप व कोशिश की. उसे मलयेशिया में नौकरी मिल गई. अब सवाल उठा बच्चे का. उस का क्या किया जाए. सोनाली भी अकेले यह जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहती थी. अभी उस के सामने पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की कजिन नीता ने सुझाव दिया कि उस की कोई औलाद नहीं है, वह नीरज को अपने बेटे की तरह रखेगी. सोनाली ने नीरज को उसे दे दिया. एक मौखिक समझौते के तहत बच्चा उसे मिल गया. कोई कानूनी कार्यवाही की जरूरत ही नहीं समझी गई.

इस तरह मासूम नीरज, नीता आंटी के पास आ गया. बिना मांबाप के एक मांगे की जिंदगी गुजारने की खातिर. नीता आंटी उस का खूब खयाल रखती थीं, पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी. जो बच्चे बचपन में दुख उठाते हैं, तनहाई और महरूमी झेलते हैं, वे वक्त से पहले सयाने और समझदार हो जाते हैं. नीरज ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया. एक ही धुन थी उसे कि कुछ बन कर दिखाना है. मेहनत और लगन से उस का रिजल्ट भी खूब अच्छा आता था.

दुख और हादसे कह कर नहीं आते. नीता आंटी का रोड ऐक्सिडैंट हो गया. 4-5 दिन मौत से संघर्ष करने के बाद वे चल बसीं. नीरज की तो दुनिया उजड़ गई. अब बूआ एकमात्र सहारा थीं. वे उस का बहुत ध्यान रखतीं. अंकल पहले से ही कटेकटे से रहते थे. अब और तटस्थ हो गए. धीरेधीरे हालात सामान्य हो गए. उस वक्त वह 10वीं में पढ़ रहा था. एक साल गुजर गया. आंटी की कमी तो बहुत महसूस होती पर सहन करने के अलावा कोईर् रास्ता न था. पहले भी वह अकेला था अब और अकेला हो गया.

उस के सिर पर आसमान तो तब टूटा जब अंकल दूसरी शादी कर के दूसरी पत्नी को घर ले आए. दूसरी पत्नी रेनू 30-31 साल की स्मार्ट औरत थी. कुछ अरसे तक वह चुपचाप हालात देखती और समझती रही और जब उसे पता चला, नीरज गोद लिया बच्चा है, तो उस के व्यवहार में फर्क आने लगा.

नीरज ने अपनेआप को अपने कमरे तक सीमित कर लिया. खाने वगैरा का काम बूआ ही देखतीं. डेढ़ साल बाद जब रेनू का बेटा पैदा हुआ तो नीरज के लिए जिंदगी और तंग हो गई. अब तो रेनू उसे बातबेबात डांटनेफटकारने लगी थी. खानेपीने पर भी रोकटोक शुरू हो गई. बासी बचा खाना उस के लिए रखा जाता. वह तो गनीमत थी कि बूआ उसे बहुत प्यार करती थीं, छिपछिपा कर उसे खिला देतीं.

धीरेधीरे रेनू ने अंकल के कान भरने शुरू कर दिए. अब नीरज उन की नजरों में भी खटकने लगा. बेवजह के ताने व प्रताड़ना शुरू हो गई. उस दिन तो हद हो गई, उसे एक किताब की जरूरत थी, उस ने अंकल से पैसे मांगे. इस बात को ले कर इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया कि अतीत के सारे कालेपन्ने खोल कर उसे सुनाए गए. उस पर किए गए एहसान जताए गए, खर्च के हिसाब बताए गए. नीरज खामोश खड़ा सब सुनता रहा.  उस के पास कहने को क्या था? उस के मांबाप ने उसे ऐसी स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया था कि शरम से उस का सिर झुक जाता था. अच्छे मार्क्स लाने के बाद उस की न कोई कद्र थी, न कोई तारीफ. 10वीं में उस के 97 फीसदी नंबर आए थे. स्कौलरशिप मिल रही थी. पढ़ाई के सारे खर्चे उसी में से पूरे हो जाते. कभीकभार किताबें वगैरा के लिए कुछ पैसे मांगने पड़ते थे. उस पर भी हंगामा खड़ा हो जाता.

उस दिन वह अपने कमरे में आ कर बेतहाशा रोया. उस के मांबाप ने अपनी मुहब्बत व अपने ऐश, अपनी सहूलियतों, अपने स्वार्थ के लिए उस की जिंदगी बरबाद कर दी थी. अगर उन दोनों ने विधिवत शादी की होती, अपनी जिम्मेदारी समझी होती तो ननिहाल या ददिहाल में से कोई भी उसे रख लेता. उस की जिंदगी यों शर्मसार न हुई होती. उसी दिन रात को उस ने तय किया कि 12वीं पास होते ही वह यह घर छोड़ देगा. अपने बलबूते पर अपनी पढ़ाई पूरी करेगा.

12वीं उस ने मैरिट में उत्तीर्ण की. पर घर में कोई खुशी मनाने वाला न था. रूखीफीकी मुबारकबाद मिली. बस, बूआ ने बहुत प्यार किया. अपने पास से मिठाई मंगा कर उसे खिलाई. हां, उस के दोस्तों ने खूब सैलिब्रेट किया. 2-4 दिनों बाद उस ने घर छोड़ दिया. पढ़ाई के खर्चे की उसे कोई फिक्र न थी. स्कौलरशिप मिल रही थी. एक अच्छे स्टूडैंट के लिए कुछ मुश्किल नहीं होती.

उस की परफौर्मेंस बहुत अच्छी थी. उस का ऐडमिशन एक अच्छे कालेज में हो गया. उस ने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर कमरा किराए पर ले लिया और ट्यूशन कर के निजी खर्च निकालने लगा. उस का पढ़ाने का ढंग इतना अच्छा था कि उसे 10वीं के बच्चों की ट्यूशन

मिल गई. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. छुट्टियों में काम कर के कुछ और पैसे कमा लेता. बीई में उस ने पोजीशन ली. बीई के बाद उस के दोस्त ने जौब कर

ली और दूसरे शहर में चला गया. मकानमालिक को कमरे की जरूरत थी, उसे वह घर छोड़ना पड़ा. फिर थोड़ी कोशिश के बाद उसे मिसेज रेमन के यहां कमरा मिल गया. यह खूब पुरसुकून व अच्छी जगह थी. उस ने दुनिया के सारे शौक, सारे मजे छोड़ दिए थे. उस की जिंदगी का बस एक मकसद था, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई. यहां भी वह ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता था. अब स्टोर में भी काम मिल गया, ये सब पुरानी बातें सोचतेसोचते वह नींद की आगोश में चला गया.

नीरज का यह फाइनल सैमेस्टर था. कैंपस सिलैक्शन में उसे एक अच्छी कंपनी ने चुन लिया. जीभर कर उस ने खुशियां मनाई. फाइनल होने के बाद उस ने वही कंपनी जौइन कर ली. शानदार पैकेज, बहुत सी सहूलियतें जैसे उस की राह देख रही थीं. मिसेज रेमन और मिस्टर जैकब को भी उस ने बाहर डिनर कराया. उन दोनों ने भी उसे तोहफे व दुआएं दे कर उस का हौसला बढ़ाया. मिसेज रेमन ने एक मां की तरह प्यार किया. बूआ को साड़ी व पैसे दिए.

वक्त और हालात बदलते देर नहीं लगती. आज वह 6 साल का मजबूर व बेबस बच्चा न था, 24 साल का खूबसूरत, मजबूत और समृद्ध जवान था. एक शानदार घर में रह रहा था. दुनिया की सारी सुखसुविधाएं उस के पास थीं. पर फिर भी उस की आंखों में उदासी और जिंदगी में तनहाई थी. वह हर वीकैंड पर मिसेज रेमन से मिलने जाता. वही एकमात्र उस की दोस्त, साथी या रिश्तेदार थीं. अच्छा वक्त तो वैसे भी पंख लगा कर उड़ता है.

उस दिन शाम को वह लौन में बैठा चाय पी रहा था कि गेट पर एक टैक्सी आ कर रुकी. उस में से एक सांवली सी अधेड़ औरत उतरी और गेट खोल कर अंदर चली आई. नीरज उस महिला को पहचान न सका, फिर भी शिष्टाचार के नाते कहा, ‘‘बैठिए, आप कौन हैं?’’ उस औरत की आंखें गीली थीं. चेहरे पर बेपनाह मजबूरी और उदासी थी. उस ने धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘नीरज, तुम ने मुझे पहचाना नहीं. मैं सोनाली हूं, तुम्हारी मम्मी.’’

नीरज भौचक्का रह गया. कहां वह जवान और खूबसूरत औरत, कहां यह सांवली सी अधेड़ औरत. दोनों में बड़ा फर्क था. ‘मम्मी’ शब्द सुन कर नीरज के मन में कोई हलचल न हुई. उस की सारी कोमल भावनाएं बर्फ की तरह सर्द हो कर जम चुकी थीं. अब दिल पर इन बातों का कोई असर न होता था. उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘कहिए, कैसे आना हुआ? आप को मेरा पता कहां से मिला?’’

‘‘बेटा, मैं दूर जरूर थी पर तुम से बेखबर न थी. तुम्हारा रिजल्ट, तुम्हारी कामयाबी, नौकरी सब की खबर रखती थी. इंटरनैट से दुनिया बहुत छोटी हो गई है. जीजाजी से मिसेज रेमन का पता चला. उन से तुम्हारे बारे में मालूम हो गया. इस तरह तुम तक पहुंच गई. मैं जानती हूं, मेरा तुम से माफी मांगना व्यर्थ है क्योंकि जो कुछ मैं ने किया है उस की माफी नहीं हो सकती. तुम्हारा बचपन, तुम्हारा लड़कपन, मेरी नादानी और मेरे स्वार्थ की भेंट चढ़ गया. मैं ने जज्बात में आ कर गलत फैसला किया. न मैं खुश रह सकी न तुम्हें सुख दे सकी. मैं ने वह खिड़की खुद ही बंद कर दी जहां से ताजी हवा का झोंका, मुहब्बत की ठंडी फुहार मेरे तपते वजूद की तपिश कम कर सकती थी. मैं ने थोड़े से ऐश की खातिर उम्रभर के दुखों से सौदा कर लिया. अब सिर्फ पछतावा ही मेरी जिंदगी है.’’

‘‘ठीक है, सोनाली मैम, जो आप ने किया, सोचसमझ कर किया था. आज से 30-32 साल पहले ‘लिवइन रिलेशनशिप’ इतनी आम बात न थी. बहुत कम लोग यह कदम उठाते थे. आप उस समय इतनी बोल्ड थीं, आप ने यह कदम उठाया. फिर उस को निभाना था. एक बच्चे को जन्म दे कर आप ने उस की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया. न मेरा कोई ननिहाल रहा, न ददिहाल. मैं ने कैसे खुद को संभाला, यह मैं जानता हूं.

‘‘जिस उम्र में बच्चे मां के सीने पर सिर रख कर सोते हैं उस उम्र में मैं ने तकिए से लिपट कर रोरो कर रातें काटी हैं. आप ने और पापा ने सिर्फ अपने ऐश देखे. एक पल को भी, उस बच्चे के बारे में न सोचा जिसे दुनिया में लाने के आप दोनों जिम्मेदार थे. अब मेरी मासूमियत, मेरा बचपन, मेरी कोमल भावनाएं सब बेवक्त मर चुकी हैं.’’

‘‘नीरज, तुम जो भी कह रहे हो, एकदम सच है. मैं ने हर कदम सोचसमझ कर उठाया था. पर उस के अंजाम ने मुझे ऐसा सबक सिखाया है कि हर लमहा मैं खुद को बुराभला कहती हूं. मलयेशिया में मैं ने दूसरी शादी की थी. पर 6 साल तक मुझे औलाद न हुई तो उस ने मुझे तलाक दे दिया. उसे औलाद चाहिए थी और मैं मां न बन सकी. औलाद की बेकद्री की मुझे सजा मिल गई. मैं औलाद मांगती रही, मेरे बच्चा न हुआ. सारे इलाज कराए. यहां औलाद थी तो मैं ने दूसरों को दे दी. मेरे गुनाहों का अंत नहीं है.

‘‘मुझे कैंसर है. थोड़ा ही वक्त मेरे पास है. मैं अपने गुनाहों का, अपनी भूलों का प्रायश्चित्त करना चाहती हूं. अब मैं तुम्हारे पास रहना चाहती हूं. मैं तनहाई से तंग आ गई हूं. मुझे तुम्हारी तनहाई का भी एहसास है. पैसा है मेरे पास, पर उस से तनहाई कम नहीं होती. भले तुम मुझे खुदगर्ज समझो पर यह मेरी आखिरी ख्वाहिश है. एक बार मुझे मेरी गलतियां सुधारने का मौका दो. अपनी बेबस व मजबूर मां की इतनी बात रख लो.’’

नीरज सोच में पड़ गया. एक बार दिल हुआ, मां को माफ कर दे. दूसरे पल संघर्षभरे दिन, अकेले रोतेरोते गुजारी रातें याद आ गईं. उस ने धीमे से कहा, ‘‘सोनाली मैम, इतने सालों से मैं बिना रिश्तों के जीने का आदी हो गया हूं. रिश्ते मेरे लिए अजनबी हो गए हैं. मुझे थोड़ा वक्त दीजिए कि मैं अपने दिल को रिश्ते होने का यकीन दिला सकूं, अपनों के साथ जीने का तरीका अपना सकूं.

‘‘इतने सालों तक तपते रेगिस्तान में झुलसा हूं, अब एकदम से ठंडी फुहार बरदाश्त न कर सकूंगा. मुझे अपनेआप को ‘मां’ शब्द से मिलने का, समझने का मौका दीजिए. अभी मुझे नए तरीकों को अपनाने में थोड़ी हिचकिचाहट है. जैसे ही मुझे लगेगा कि मैं ने मां को पहचान लिया है, मैं आप को खबर कर के लेने आ जाऊंगा. आप अपना फोन नंबर और पता मुझे दे जाइए.’’

सोनाली ने एक उम्मीदभरी नजर से बेटे को देखा. उस की आंखें डबडबा गईं. वह थकेथके कदमों से गेट की तरफ मुड़ गई.

हनीमून : क्या था मुग्धा का प्लान

आशीष को परेशान करने के लिए वह जल्दीजल्दी अपनी मां के पास जाने की जिद करती, परंतु वह बिना किसी नानुकुर के उस की फ्लाइट की टिकट बुक करवा देता. उस की उपेक्षा और तिरस्कार का आशीष पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता. वह तो अपनी पत्नी की सुंदरता पर मुग्धभाव से मुसकराता रहता. हर क्षण उस की प्रसन्नता के लिए प्रयास करता रहता.

वह उसे अंटशंट बोलती व प्रताडि़त करने के अवसर खोजती रहती. खाली समय में अपने एहसान के खयालों में खोई रहती. सुधाकर को मुग्धा का जल्दीजल्दी आना अच्छा नहीं लगा था. एक दिन वे पत्नी से बोले थे, ‘अपनी लाड़ली को समझाओ, पति के घर रहने की आदत डाले. ‘वह तो हम लोगों का समय अच्छा है कि हमें इतना अच्छा दामाद मिला है, जो उस की हर इच्छा को पूरी करता है.

‘मैं तो यही चाहता हूं कि वह आशीष के प्यार को समझे.’

‘आप ने अपनी बेटी के प्यार को समझा था? आप को उस की हर बात से परेशानी होती है. पहले आप ने बिना उस की रजामंदी के शादी करवा दी. अब आप चाहते हैं कि वह तुरंत उसे अपना ले जबकि आप अच्छी तरह जानते हैं कि बचपन से ही काले रंग के लोगों से वह नफरत करती है. आप को याद नहीं है, पहले मैं भी तो जल्दीजल्दी मायके जाने की जिद करती थी. उस को समय दीजिए, वह आशीष के प्यार की कद्र करने लगेगी.’

‘मैं भी तो यही चाहता हूं कि वह पति के प्यार को समझे, उसे इज्जत दे और उसे प्यार भी करे,’ वे नाराज हो उठे थे, ‘ठीक है, तुम उसे शह देती रहो. जब शादी टूट जाए और दोनों के बीच तलाक हो जाए तो मेरे कंधे पर सिर रख कर मत रोना कि अब क्या करूं? समाज में सब के सामने, मेरी इज्जत खराब हो गई. तुम्हीं तो उस दिन कह रही थीं कि गीता भाभी कह रही थीं कि क्या बात है, मुग्धा की पति से बनती नहीं है क्या?’

‘ऐसा नहीं होगा. लोगों की तो आदत होती है दूसरों के फटे में हाथ डालने की.’

मुग्धा कमरे के बाहर से सब बातें सुन रही थी. वह तमक कर बोली थी, ‘पापा, आप ने मेरी शादी करवा कर समाज में अपनी इज्जत जरूर बचा ली परंतु आप ने कभी यह नहीं सोचा कि काले, बदसूरत और नापसंद आदमी के साथ एक घर में रह कर वह रोज कितनी तकलीफ से गुजरती होगी.

‘आप ने हमेशा अपने बारे में सोचा, समाज क्या कहेगा, यह सोचा. मेरे प्यार, मेरी चाहत और मेरे जख्मों के बारे में कभी नहीं सोच पाए. आप स्वार्थी हैं. यदि मेरे बारबार आने से आप की समाज में बदनामी होती है तो अब मैं नहीं आया करूंगी. आज से मैं आप से रिश्ता तोड़ती हूं.’ वह नाराज हो कर चली गई थी. उस के बाद से मुग्धा न तो कभी उन के पास आई और न ही अपने पापा से कभी फोन पर बात की.

उस का जीवन निरुद्देश्य था. वह टीवी सीरियल्स से सिर फोड़ती या अपने फोन पर उंगलियां चलाती और सब से थकहार कर वह  आशीष को कोसना शुरू कर देती. ‘उफ, मुझे इस आबनूसी अफ्रीकन से मुक्त कर दो,’ वह मन ही मन सोचती रहती, ‘इस का ऐक्सिडैंट क्यों नहीं हो जाता, यह मर क्यों नहीं जाता.’

आशीष सुंदर पत्नी के प्रेम में पागल औफिस से बारबार उसे फोन करता रहता. उस का दिल हर समय डरता रहता कि जब वह औफिस से शाम को घर लौटे तो कहीं वह घर से नदारद हो कर अपने प्रेमी की बांहों में न पहुंच चुकी हो.

जब कभी वह औफिस से रात में देर से घर आता तो वह पूछ लेता, ‘मुग्धा, मैं देर से आता हूं तो तुम परेशान हो जाती होगी?’ हमेशा वह तपाक से बोलती, ‘भला, मैं क्यों परेशान होंगी? जाना चाहो तो हमेशा के लिए जा सकते हो.’

वह हर क्षण उस के अहं पर चोट पहुंचाती कि वह अब नाराज होगा. परंतु वह अपना हौसला नहीं छोड़ता. उस के चेहरे पर हर पल मुसकराहट बनी रहती. कुछ दिनों बाद एक दिन वह बोला, ‘मुग्धा, तुम दिनभर घर में बोर होती होगी, इसलिए तुम्हारे लिए मैं ने एक जौब की बात की है. तुम घर से निकलोगी तो वहां चार लोगों से मिलनाजुलना होगा तो तुम्हें अच्छा लगेगा. तुम्हें दिनभर की बोरियत से छुटकारा मिलेगा.’

आज एक पल को वह सोचने को मजबूर हो गई थी कि यह आदमी उस के बारे में कितना सोचता रहता है. वह बचपन से ही शिक्षाकार्य से जुड़ने का सपना देखती रहती थी. परंतु दिखाने के लिए एहसान जताते हुए वह बोली थी, ‘अब आप ने बात कर ली है तो ठीक है, चलिए, मैं इंटरव्यू दे दूंगी. केवल आप की इच्छा पूरी करने के लिए.’

आज वह एक अरसे बाद ढंग से तैयार हुई थी. आईने में अपने ही अक्स को देख कर वह अपनी सुंदरता पर रीझ उठी थी. परंतु अपने साथ आशीष को देखते ही उस का मूड खराब हो गया था.

आशीष भी अपने को नहीं रोक पाया था और हिचकिचाहट के साथ उस के माथे पर प्यार की मुहर लगाते हुए बोला था, ‘मुग्धा, तुम सच में मुझे मुग्ध कर देती हो.’ आज वह नाराज होने की जगह शरमा गई थी. शादी का एक साल पूरा हो चुका था. उसे अब आशीष की आदतें भाने लगी थीं. वह कालेज जाने लगी थी. वहां जा कर वह खुश रहने लगी थी. वह आशीष के साथ हंस कर बातें भी करने लगी थी.

एक शाम वह बिना बताए उसे लेने के लिए कालेज पहुंच गया था. उस समय वह अपने साथियों के साथ किसी बात पर जोरजोर से ठहाके लगा रही थी. उस को देखते ही वह गंभीर हो उठी थी और बुरा सा मुंह बना कर बोली थी, ‘क्यों, मुझे चैक करने आए थे?’

‘ऐसा क्यों कह रही हो?’

‘आज तुम्हारा बर्थडे है न, इसलिए सुबह ही तो शौपिंग की बात हुई थी. आज खाना भी बाहर ही खा लेंगे.’

‘ओके, ओके.’

शौपिंग के नाम से उस की आंखें चमक उठी थीं. बहुत दिनों बाद आज उस ने कई सारी ब्रैंडेड ड्रैसेज पसंद कर ली थीं. वह ट्रायलरूम से पहनपहन कर आशीष को दिखा कर पूछ भी रही थी, ‘कैसी लग रही हूं.’

फिर वह बोली थी, ‘बिल ज्यादा हो गया हो तो मैं ड्रैसेज कम कर दूं.’

प्रसन्नता से अभिभूत आशीष बोला था, ‘नहींनहीं, 2-4 और लेनी हो तो ले सकती हो. एक लाल रंग की सुंदर सी ड्रैस हाथ में उठा कर वह बोला था, यह वाली तुम पर बहुत फबेगी. यह मेरी ओर से ले लो.’ वह खुश हो कर बोली थी, ‘अरे, इस पर तो मेरी नजर ही नहीं पड़ी थी. सच में, यह तो सब से अधिक सुंदर ड्रैस है.’ आज पहली बार उस ने आशीष को प्यारभरी नजरों से देखा था.

‘मुग्धा इसी तरह मुसकराती और खुश रहा करो तो तुम बहुत सुंदर लगती हो.’

समय के अंतराल से दोनों के बीच की दूरियां कम होने लगी थीं. अब वह आशीष को स्वीकार करने लगी थी. दोनों के बीच पनपते हुए रिश्ते का फल मुग्धा के जीवन में अंकुरित होने लगा था. नवजीवन की सांसों की अनुभूति से आशीष के प्रति वह समर्पित अनुभव करने लगी थी. उस के  प्रति क्रोध और नफरत के स्थान पर प्यार पनपने लगा था.

आशीष पापा बनने वाला है, यह जान कर चमत्कृत था. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस ने तो मुग्धा के पांवों तले फूल बिछा दिए थे. उस की दीवानगी ने सारी सीमाएं पार कर दी थीं. उस समय उस ने मीरा को उस की देखभाल के लिए बुलाया था.

मीरा बेटी के पास आईं तो आशीष की मुग्धा के  लिए दीवानगी और प्यार देख कर गदगद हो उठी थीं. उन्होंने मुग्धा को बताया था कि एहसान शादी कर के अपने जीवन में आगे बढ़ चुका है, इसलिए अब उसे भी कसम खानी पड़ेगी कि वह भी आशीष के साथ प्यार व इज्जत के साथ रहेगी. यद्यपि कि वह भी आशीष से प्यार करने लगी थी परंतु आदत के अनुसार, पति के सामने आते उस की जबान कड़वाहट उगलने लगती थी.

एक दिन अंतरंग क्षणों में वह मुग्धा से बोला था, ‘मुझे तो बेटी चाहिए और वह भी तुम्हारी तरह सुंदर और प्यारी सी. यदि बेटा हो गया, वह भी मेरी तरह शक्लसूरत और काले रंग का तब तो तुम्हारे लिए बेटा भी दंडस्वरूप हो जाएगा क्योंकि अभी तो तुम्हें एक ही काले, बदसूरत आशीष को अपने इर्दगिर्द देखना पड़ता है. यदि बेटा भी ऐसा हो जाएगा तब तुम्हारे चारों तरफ बदशक्ल कुरूपों का जमावड़ा हो जाएगा और तुम्हारे लिए इस से बड़ी सजा अन्य कुछ हो ही नहीं सकती.’

मुग्धा द्रवित हो उठी थी. उस ने उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया था, ‘प्लीज, मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ कर दो.’ समयानुसार उस की गोद में उस की हमशक्ल परी सी बेटी आ गई थी. मीरा बेटी को समझाबुझा कर लौट गई थीं.

एक दिन आशीष को बहुत जोर का बुखार आ गया था. वह बेहोशी में भी मुग्धामुग्धा पुकार रहा था. उस की बिगड़ती हालत देख आज वह पहली बार अपने को असहाय अनुभव कर रही थी. वह डाक्टर को फोन करते ही आशीष के लंबे जीवन व स्वास्थ्य की कामना करने लगी थी.

अब वह आशीष को दिल से चाहने लगी थी. जिस काले, बदशक्ल व्यक्ति से वह नफरत करती थी, वही अब उस का सर्वस्व बन चुका था. औफिस से आने पर उसे जरा भी देर होती तो वह पलपल में उसे फोन करती रहती. एक दिन वह आशीष से बोली थी, ‘आशीष, मैं ने तुम्हारा हनीमून बरबाद कर दिया था और उस के बाद भी मैं ने तुम्हें बहुत परेशान किया है, इसलिए मैं अब दोबारा उन्हीं पलों को उन्हीं जगहों पर जी कर एक नई शुरुआत करना चाहती हूं.’

‘ओके डियर, आप अपनी छुट्टी के लिए अप्लाई कर दीजिएगा.’

‘मैं ने आप को सरप्राइज देने के लिए सब बुकिंग करवा ली हैं.’

हर्षातिरेक में आशीष उसे बांहों में भर अपने प्यार की मुहर लगा कर हनीमून के बारे में सोचते हुए तेजी से औफिस के लिए निकल गया था. उसी रात हुए इस हादसे से मुग्धा की मनोस्थिति जड़वत हो गई थी. वह निरुद्देश्य, निराधार आईसीयू के बाहर चहलकदमी कर रही थी.

सुधाकर और मां मीरा को देखते ही वह अपने पापा के कंधे से लिपट कर बिलखबिलख कर रोने लगी थी. वह अस्फुट शब्दों में बोली, ‘‘पापा, प्लीज मेरे आशीष को बचा लीजिए. अभी तो मैं ने उसे प्यार करना शुरू ही किया है. मुझे उस के साथ हनीमून पर जाना है.’’

सुधाकर स्वयं को संभाल नहीं पा रहे थे. वे भी रोतेरोते बोले थे, ‘‘कुछ नहीं होगा तेरे आशीष को, तेरा प्यार जो उस के साथ है.’’ सिसकियों के साथ संज्ञाशून्य होतेहोते उस के मुंह से ‘हनीमून पर जाना है,’ निकल रहा था. वहां खड़े सभी लोगों की आंखों से बरबस आंसू निकल पड़े थे.

फेयरवैल : क्या था श्वेता का वो खास गिफ्ट

शनाया को नए पीजी में कुछ दिन तो थोड़ा अजीब लगा पर अब उसे काफी अच्छा लगने लगा था. चारों लड़कियों प्रीति, रुचि, रागिनी और आईना के साथ उस की बहुत अच्छी बनती थी. बस, श्वेता थोड़ा मूडी थी. वह कभी तो बहुत अच्छा व्यवहार करती, लेकिन कभीकभी बिना वजह छोटी सी बात का बतंगड़ बना देती. रुचि के पास एक कार थी. कभीकभी सभी सहेलियां उसी कार से रात को डिस्को चली जाती थीं.

आज भी अचानक ऐसे ही प्लान बन गया. शनाया पहले कभी रात को घर से बाहर नहीं निकलती थी. मम्मी ने उसे सख्ती से मना किया था. बस, पीजी से औफिस और औफिस से पीजी आनाजाना ही होता था. यही शनाया का रूटीन था, पर इस नए पीजी में आने के बाद शनाया में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने लुक्स और पहनावे को ले कर सजग हो रही थी.

वह नएनए डांस स्टैप्स भी सीख रही थी. उस ने सभी लड़कियों को नईनई पत्रिकाएं पढ़ने का शौक लगा दिया था. आज श्वेता का मूड भी काफी अच्छा था. डिस्को जाने के लिए वह हमेशा तैयार रहती थी. डिस्को में बार भी था, जहां श्वेता ने पांचों के लिए बियर और्डर की.

शनाया ने साफ मना कर दिया. बहुत जोर देने पर रुचि और प्रीति ने श्वेता का साथ दिया, पर श्वेता ने थोड़ी देर में एक के बाद एक कई पैग चढ़ा लिए. बड़ी मुश्किल से श्वेता को घर वापस लौटने के लिए मनाया गया.

ये सब शनाया और रागिनी को बिलकुल पसंद नहीं आया. रागिनी ने प्रीति और रुचि को भी समझाया कि अलकोहल लेना गलत है. आगे से ऐसी गलती न करे. अगर श्वेता जिद करती है तो ना कहना सीखे.

ये बातें श्वेता के कानों में भी पड़ीं और इस पर बुरी तरह बहस हुई. श्वेता ने पांचों को खूब बुराभला कहा. खैर, कुछ ही दिन में सब सामान्य हो गया. शनाया ने श्वेता को किसी से फोन पर बात करते हुए सुना था, ‘तुम मेरे लिए एक अच्छा फ्लैट ढूंढ़ दो. यहां तो कंपनी ही बेकार है. पांचों लड़कियां जाहिल हैं.’

शनाया ने बात को बढ़ाना उचित नहीं समझा पर उस की फैमिली के बारे में जरूर पूछा. प्रीति ने बताया कि उस के पिता विधायक हैं. इस से ज्यादा कोई भी नहीं जानता था. वह प्रौपर्टी डीलर के जरिए आ पाई थी. ‘मकानमालिक ने वैरिफिकेशन तो कराया ही होगा,’ पता नहीं क्यों शनाया गहराई से सोच रही थी.

मकानमालिक ने वैसे तो सीसीटीवी कैमरे लगा रखे थे, लेकिन वह लड़कियों को कुछ कहते नहीं थे. वे रहते भी काफी दूर थे. बस, महीने बाद किराया वसूलने आते थे.

एक दिन खुशगवार मौसम देख कर श्वेता ने कुछ निकाला. पैकेट देख कर शनाया समझ गई कि यह ड्रग्स है, ‘‘किसी को ट्राई करना हो तो कर सकता है,’’ श्वेता ने रुचि को कहा.

‘‘यार, यह तो गैरकानूनी है. दिस इस वैरी बैड,’’ शनाया ने कह ही दिया. बस, श्वेता को चुप कराना मुश्किल हो गया. अगले दिन पांचों लड़कियों ने श्वेता से साफसाफ कह दिया, ‘‘देखो श्वेता, अलकोहल तक तो ठीक है लेकिन ये सब हम बरदाश्त नहीं करेंगे. आगे से ऐसा मत करना वरना कहीं और रहने का इंतजाम कर लो.’’

श्वेता ने नया फ्लैट देख लिया था. जाने से पहले पांचों ने श्वेता को फेयरवैल देने की योजना बनाई. केक काटने के बाद सब जम कर नाचे. श्वेता की जिद पर सब ने हलकेहलके पैग लिए. खूब मस्ती कर सब सो गए. अगली सुबह श्वेता अपना सामान ले कर चली गई. मांगने पर भी उस ने उन को एड्रैस नहीं बताया.

अब सबकुछ सामान्य था. शनाया भी काफी खुश रहती थी. अचानक एक दिन एक छोटा सा वीडियो शनाया को किसी ने भेजा. वीडियो देख कर वह स्तब्ध रह गई. वे पांचों हाथों में गिलास ले कर नाच रही थीं. उन के कपड़े भी बेहद अस्तव्यस्त थे. वैसे भी लड़कियों के फ्लैट में कपड़ों का खयाल रखता कौन है. उन के अंग साफ दिख रहे थे.

श्वेता जाहिर है, वीडियो शूट कर रही थी. पांचों लड़कियां जैसे गश खा कर गिरीं लगभग 10-15 दिन रोनेधोने के बाद उन्होंने श्वेता को खोज लिया.

‘‘देखो, किसी फ्रैंड ने यह अपलोड किया है. तुम लोग चाहो तो खुशी से साइबर पुलिस से शिकायत करो,’’ श्वेता बोली. वह बेहद चालाक थी. उस ने साइबर पुलिस को भी बताया कि वह वीडियोज फ्रैंड्स को शेयर करती रहती है. उस का फोन भी हरवक्त उस के पास नहीं रहता. इसलिए कैसे, क्या हुआ, वह नहीं बता कती.

श्वेता तो साफ बच निकली पर इन पांचों को फेयरवैल का गिफ्ट जरूर दे गई. खैर, पांचों ने इस शहर को छोड़ कर अन्य किसी शहर में नौकरी करने में ही अपनी भलाई समझी.

तलाक के बाद शादी : क्या साधना की हसरत हुई पूरी

न्यायाधीश ने चौथी पेशी में अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘आप दोनों का तलाक मंजूर किया जाता है.’’ देव और साधना अलग हो चुके थे. इस अलगाव में अहम भूमिका दोनों पक्षों के मातापिता, जीजा की थी. दोनों के मातापिता इस विवाह से खफा थे. दोनों अपने बच्चों को कोसते रहे विवाह की खबर मिलने से तलाक के पहले तक. दूसरी जाति में शादी. घरपरिवार, समाज, रिश्तेदारों में नाक कटा कर रख दी. कितने लाड़प्यार से पालपोस कर बड़ा किया था. कितने सपने संजोए थे. लेकिन प्रेम में पगलाए कहां सुनते हैं किसी की. देव और साधना दोनों बालिग थे और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करते थे साथसाथ. एकदूसरे से मिलते, एकदूसरे को देखते कब प्रेम हो गया, उन्हें पता ही न चला.

फिर दोनों छिपछिप कर मिलने लगे. प्रेम बढ़ा और बढ़ता ही गया. बात यहां तक आ गई कि एकदूसरे के बिना जीना मुश्किल होने लगा. वे जानते थे कि मध्यवर्गीय परिवार में दूसरी जाति में विवाह निषेध है. बहुत सोचसमझ कर दोनों ने कोर्टमैरिज करने का फैसला किया और अपने कुछेक दोस्तों को बतौर गवाह ले कर रजिस्ट्रार औफिस पहुंच गए. शादीशुदा दोस्त तो बदला लेने के लिए सहायता करते हैं और कुंआरे दोस्त यह सोच कर मदद करते हैं मानो कोई भलाई का कार्य कर रहे हों. ठीक एक माह बाद विवाह हो गया. उन दोनों के वकील ने पतिपत्नी और गवाहों को अपना कार्ड देते हुए कहा, ‘यह मेरा कार्ड. कभी जरूरत पड़े तो याद कीजिए.’

‘क्यों?’ देव ने पूछा था.

वकील ने हंसते हुए कहा था, ‘नहीं, अकसर पड़ती है कुंआरों को भी और शादीशुदा को भी. मैं शादी और तलाक दोनों का स्पैशलिस्ट हूं.’ वकील की बात सुन कर खूब हंसे थे दोनों. लेकिन उन्हें क्या पता था कि वकील अनुभवी है. कुछ दिन हंसतेगाते बीते. फिर शुरू हुई असली शादी., जिस में एकदूसरे को एकदूसरे की जलीकटी बातें सुननी पड़ती हैं. सहना पड़ता है. एकदूसरे की कमियों की अनदेखी करनी पड़ती है. दुनिया भुला कर जैसे प्रेम किया जाता है वैसे ही विवाह को तपोभूमि मान कर पूरी निष्ठा के साथ एकदूसरे में एकाकार होना पड़ता है. प्रेम करना और बात है. लेकिन प्रेम निभाने को शादी कहते हैं. प्रेम तो कोई भी कर लेता है. लेकिन प्रेम निभाना जिम्मेदारीभरा काम है.

दोनों ने प्रेम किया. शादी की, लेकिन शादी निभा नहीं पाए. छोटीछोटी बातों को ले कर दोनों में तकरार होने लगी. साधना गुस्से में कह रही थी, ‘शादी के पहले तो चांदसितारों की सैर कराने की बात करते थे, अब बाजार से जरूरी सामान लाना तक भूल जाते हो. शादी हुई या कैद. दिनभर औफिस में खटते रहो और औफिस के बाद घर के कामों में लगे रहो. यह नहीं कि कोई मदद ही कर दो. साहब घर आते ही बिस्तर पर फैल कर टीवी देखने बैठ जाते हैं और हुक्म देना शुरू पानी लाओ, चाय लाओ, भूख लगी है. जल्दी खाना बनाओ वगैरा.’ देव प्रतिउत्तर में कहता, ‘मैं भी तो औफिस से आ रहा हूं. घर का काम करना पत्नी की जिम्मेदारी है. तुम्हें तकलीफ हो तो नौकरी छोड़ दो.’

‘लोगों को मुश्किल से नौकरी मिलती है और मैं लगीलगाई नौकरी छोड़ दूं?’ ‘तो फिर घर के कामों का रोना मुझे मत सुनाया करो.’

‘इतना भी नहीं होता कि छुट्टी के दिन कहीं घुमाने ले जाएं. सिनेमा, पार्टी, पिकनिक सब बंद हो गया है. ऐसी शादी से तो कुंआरे ही अच्छे थे.’ ‘तो तलाक ले लो,’ देव के मुंह से आवेश में निकल तो गया लेकिन अपनी फिसलती जबान को कोस कर चुप हो गया.

तलाक का शब्द सुनते ही साधना को रोना आ गया. अचानक से मां का फोन और अपनी रुलाई रोकने की कोशिश करते हुए बात करने से मां भांप गईं कि बेटी सुखी नहीं है. साधना की मां दूसरे ही दिन बेटी के पास पहुंच गई. मां के आने से साधना ने अवकाश ले लिया. देव काम पर चला गया. मां ने कहा, ‘मैं तुम्हारी मां हूं. फोन पर आवाज से ही समझ गई थी. अपने हाथ से अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है तुम ने. अगर दुखी है तो अपने घर चल. अभी मातापिता जिंदा हैं तुम्हारे. दिखने में सुंदर हो, खुद कमाती हो. लड़कों की कोई कमी नहीं है जातसमाज में. अपनी बड़ी बहन को देखो, कितनी सुखी है. पति साल में 4 बार मायके ले कर आता है और आगेपीछे घूमता है. एक तुम हो. तुम्हें परिवार से अलग कर के शादी के नाम पर सिवा दुख के क्या मिला.’

पति की बेरुखी और तलाक शब्द से दुखी पत्नी को जब मां की सांत्वना मिली तो वह फूटफूट कर रोने लगी. मां ने उसे सीने से लगा कर कहा, ‘2 वर्ष से अपना मायका नहीं देखा. अपने पिता और बहन से नहीं मिली. चलो, घर चलने की तैयारी करो.’ साधना ने कहा, ‘मां, लेकिन देव को बताए बिना कैसे आ सकती हूं. शाम को जब मैं घर पर नहीं मिलूंगी तो वे क्या सोचेंगे.’

मां ने गुस्से में कहा, ‘जिस आदमी ने कभी तुम्हारी खुशी के बारे में नहीं सोचा उस के बारे में अब भी इतना सोच रही हो. पत्नी हो, गुलाम नहीं. फोन कर के बता देना.’ साधना अपनी मां के साथ मायके आ गई. शाम को जब देव औफिस से लौटा तो घर पर ताला लगा पाया. दूसरी चाबी उस के पास रहती थी. ताला खोल कर फोन लगाया तो पता चला कि साधना अपने मायके से बोल रही है.

देव ने गुस्से में कहा, ‘ तुम बिना बताए चली गई. तुम ने बताना भी जरूरी नहीं समझा.’ ‘मां के कहने पर अचानक प्रोग्राम बन गया,’ साधना ने कहा.

देव ने गुस्से में न जाने क्याक्या कह दिया. उसे खुद ही समझ नहीं आया कहते वक्त. बस, क्रोध में बोलता गया. ‘ठीक है. वहीं रहना. अब यहां आने की जरूरत नहीं. मेरा तुम्हारा रिश्ता खत्म. आज से तुम मेरे लिए मर…’ उधर से रोते हुए साधना की आवाज आई, ‘अपने मायके ही तो आई हूं. वह भी मां के साथ. उस में…’ तभी साधना की मां ने उस से फोन झपटते हुए कहा, ‘बहुत रुला लिया मेरी लड़की को. यह मत समझना कि मेरी बेटी अकेली है. अभी उस के मातापिता जिंदा हैं. एक रिपोर्ट में सारी अकड़ भूल जाओगे.’

देव ने गुस्से में फोन पटक दिया और उदास हो कर सोचने लगा, ‘जिस लड़की के प्यार में अपने मातापिता, भाईबहन, समाज, रिश्तेदार सब छोड़ दिए, आज वही मुझे बिना बताए चली गई. उस पर उस की मां कोर्टकचहरी की धमकी दे रही है. अगर उस का परिवार है तो मैं भी तो कोई अकेला नहीं हूं.’

देव भी अपने घर चला गया. उस के परिवार के लोगों ने भी यही कहा, ‘तुम ने गैरजात की लड़की से शादी कर के जीवन की सब से बड़ी भूल की है. तलाक लो. फुरसत पाओ. हम समाज की किसी अच्छी लड़की से शादी करवा देंगे. शादी 2 परिवारों का मिलन है. जो गलती हो गई उसे भूल जाओ. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? अच्छे दिखते हो. अच्छी कमाई है. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. अच्छा हुआ कि कोई बालबच्चा नहीं हुआ वरना फंस गए थे बुरी तरह. पूरा जीवन बरबाद हो जाता. फिर तुम्हारे बच्चों की शादी किस जात में होती.’

प्रेम तभी सार्थक है जब वह निभ जाए. यदि बीच में टूट जाए तो उसे अपने पराए सब गलती कहते हैं. यदि यही शादी जाति में होती तो मातापिता समझाबुझा कर बच्चों को सलाह देते. विवाह कोई मजाक नहीं है. थोड़ाबहुत सुनना पड़ता है. स्त्री का धर्म है कि जहां से डोली उठे, वहीं से जनाजा. फिर दामादजी से क्षमायाचना की जाती है. बहू को भी प्रेम से समझाबुझा कर लाने की सलाह दी जाती है. लेकिन मातापिता की मरजी के विरुद्ध अंतरजातीय विवाह में तो जैसे दोनों पक्षों के परिवार वाले इस प्रयास में ही रहते हैं. यह शादी ही नहीं थी, धोखा था. लड़केलड़की को बहलाफुसला कर प्रेम जाल में फंसा लिया गया था. उन की बेटाबेटी तो सीधासादा था. अब तलाक ही एकमात्र विकल्प है. यह शादी टूट जाए तो ही सब का भला है. ऐसे में जीजा नाम के प्राणी को घर का सम्मानित व्यक्ति समझ सलाह ली जाती है और जीजा वही कहता है जो सासससुर, समाज कहता है. इस गठबंधन के बंध तोड़ने का काम जीजा को आगे बढ़ा कर किया जाता है.

जब देव साधना से और साधना देव से बात करना चाहते तो दोनों तरफ से माता या पिता फोन उठा कर खरीखोटी सुना कर तलाक की बात पर अड़ जाते और बच्चों के कान में उलटेसीधे मंत्र फूंक कर एकदूसरे के खिलाफ घृणा भरते.

तलाक की पहली पेशी में भी पतिपत्नी आपस में बात न कर पाए इस उद्देश्य से घर से समझाबुझा कर लाया गया था कोर्ट में और साथ में मातापिता, जीजा हरदम बने रहते कि कहीं कोई बात न हो जाए. इस बीच साधना औफिस नहीं गई. उस ने भोपाल तबादला करवा लिया या कहें करवा दिया गया. मजिस्ट्रेट के पूछने पर दोनों पक्षों ने तलाक के लिए रजामंदी दिखाई. फिर दूसरी पेशी में उन के वकीलों ने दलीलें दीं. तीसरी पेशी में पत्नी और पति को साथ में थोड़े समय के लिए छोड़ा गया. कुछ झिझक, कुछ गुस्सा, कुछ दबाव के चलते कोई निर्णय नहीं हो पाया. चौथी पेशी में तलाक मंजूर कर लिया गया.

इस बीच 3 वर्ष गुजर गए. जिस जोरशोर से परिवार के लोगों ने दोनों का तलाक करवाया था, उसी तरह विवाह की कोशिश भी की, लेकिन जो उत्तर उन्हें मिलते उन उत्तरों से खीज कर वे अपने बच्चों को ही दोषी ठहराते. तलाकशुदा से कौन शादी करेगा? 30 साल बड़ा 2 बच्चों का पिता चलेगा जो विधुर है.

घर से भाग कर पराई जात के लड़के से शादी, फिर तलाक. एक व्यक्ति है तो लेकिन अपाहिज है. एक और है लेकिन सजायाफ्ता है लड़की से जबरदस्ती के केस में. मां ने गुस्से में कह दिया, ‘‘बेटी, तुम भाग कर शादी करने की गलती न करती तो मजाल थी ऐसे रिश्ते लाने वालों की. समाज माफ नहीं करता.’’ फिर मां ने समझाते हुए कहा, ‘‘ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो बिना शादी के ही परिवार की देखरेख में जीवन गुजार देती हैं. तुम भोपाल में भाईभाभी के साथ रहो. अपने भतीजेभतीजियों की बूआ बन कर उन की देखरेख करो.’’

साधना ने भाभी को भी धीरे से भैया से कहते सुन लिया था कि दीदी की अच्छी तनख्वाह है, हमारे बच्चों को सपोर्ट हो जाएगा. मन मार कर वह भाईभाभी के साथ रहने लगी. भाभी के हाथ में किचन था. भैया ड्राइंगरूम में अपने दोस्तों के साथ गपें लड़ाते, टीवी देखते रहते और वह दिनभर थकीहारी औफिस से आती तो दोनों भतीजे उसे पढ़ाने या उस के साथ खेलने की जिद करते उस के कमरे में आ कर. कुछ ऐसा ही देव के साथ हुआ तलाक के बाद. शादी की जहां भी बात चलती तो लड़का तलाकशुदा है. कोई गरीब ही अपनी लड़की मजबूरी में दे सकता है. कौन जाने कोई बच्चा भी हो. फिर तलाश की गई लड़की की उम्र बहुत कम होती या उसे बिलकुल पसंद न आती.

पिता गुस्से में कहते, ‘‘दामन पर दाग लगा है, फिर भी पसंदनापसंद बता रहे हो. फिर भी तुम्हारे जीवन को सुखी बनाने के लिए कर रहे हैं तो दस कमियां निकाल रहे हैं जनाब. पढ़ीलिखी नहीं है. बहुत कम उम्र की है. दिखने में ठीकठाक नहीं है.’’ परिवार के व्यंग्य से तंग आ कर देव ने कई बार तबादला कराने की सोची. लेकिन सफलता नहीं मिली. इन 3 वर्षों में वह सब सुनता रहा और एक दिन उसे प्रमोशन मिल गया और उस का तबादला भोपाल हो गया. उसे मंगलवार तक औफिस जौइन करना था. रविवार को उस ने कंपनी से मिले नौकर की मदद से कंपनी के क्वार्टर में सारी सामग्री जुटा ली. सोमवार को उस ने बाकी छोटामोटा घरेलू उपयोग का समान लिया और मन बहलाने के लिए 6 बजे के शो का टिकट ले कर पिक्चर देखने चला गया. ठीक 9 बजे फिल्म छूटी. वह एमपी नगर से हो कर निकला जहां उस का औफिस था. सोचा, औफिस देख लूं ताकि कल आने में आसानी हो. एमपी नगर से औफिस पर नजर डालते हुए वह अंदर की गलियों से मुख्य रोड पर पहुंचने का रास्ता तलाश रहा था.

दिसंबर की ठंड भरी रात. गलियां सुनसान थीं. उसे अपने से थोड़ी दूर एक महिला आगे की ओर तेज कदमों से जाती हुई दिखाई पड़ी. देव को लगा, शायद यह किसी दफ्तर से काम कर के मुख्य रोड पर जा रही हो, जहां से आटो, टैक्सी या सिटीबस मिलती हैं. वह उस के पीछे हो लिया. तभी उस महिला के पीछे 3 मवाली जैसे लड़कों ने चल कर भद्दे इशारे, व्यंग्य करने शुरू कर दिए.

‘‘ओ मैडम, इतनी रात को कहां? घर छोड़ दें या कहीं और?’’ फिर तीनों ने उसे घेर कर उस का रास्ता रोक लिया. महिला चीखी. देव तब तक और नजदीक आ चुका था. एक मवाली ने उसे थप्पड़ मार कर चुप रहने को कहा. महिला फिर चीखी. उसे चीख जानीपहचानी लगी. उस के दिल में कुछ हुआ. पास आया तो वह उस महिला को देख कर आश्चर्य में पड़ गया. यह तो साधना है. वह चीखा, ‘‘क्या हो रहा है, शर्म नहीं आती?’’

एक मवाली हंस कर बोला, ‘‘लो, हीरो भी आ गया.’’ उस ने चाकू निकाल लिया. साधना भी देव को पहचान कर उन बदमाशों से छूट कर दौड़ कर देव से लिपट गई. वह डर के मारे कांप रही थी. देव उसे तसल्ली दे रहा था, ‘‘कुछ नहीं होगा, मैं हूं न.’’ इस से पहले मवाली आगे बढ़ता, तभी पुलिस की एक जीप रुकी सायरन के साथ. पुलिस ने तीनों को घेर लिया. पुलिस अधिकारी ने पूछा, ‘‘आप लोग इतनी रात यहां कैसे?’’

‘‘जी, औफिस में लेट हो गई थी.’’ ‘‘और आप?’’

‘‘मैं भी इसी औफिस में हूं. थोड़ा आगेपीछे हो गए थे.’’ साधना जिस तरह देव के साथ सिमटी थी, उसे देख कर पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘आप पतिपत्नी को साथसाथ चलना चाहिए.’’

तभी 3 में से 1 मवाली ने कहा, ‘‘वही तो साब, अकेली औरत, सुनसान सड़क. हम ने सोचा कि…’’ इस से पहले कि उस की बात पूरी हो पाती, थानेदार ने एक थप्पड़ जड़ते हुए कहा, ‘‘कहां लिखा है कानून में कि अकेली औरत, सुनसान सड़क और रात में नहीं घूम सकती है. और घूमती दिखाई दे तो क्या तुम्हें जोरजबरदस्ती का अधिकार मिल जाता है.’’

थानेदार ने कहा, ‘‘आप लोग जाइए. ये हवालात की हवा खाएंगे.’’ ‘‘तुम यहां कैसे?’’ साधना ने पूछा.

‘‘प्रमोशन पर,’’ देव ने कहा. ‘‘और परिवार,’’ साधना ने पूछा.

‘‘अकेला हूं. तुम्हारा परिवार?’’ ‘‘अकेली हूं. भाईभाभी के साथ रहती हूं.’’

‘‘शादी नहीं की?’’ ‘‘हुई नहीं.’’

‘‘और तुम ने?’’ ‘‘ऐसा ही मेरे साथ समझ लो.’’

‘‘औफिस में तो दिखे नहीं?’’ ‘‘कल से जौइन करना है.’’

फिर थोड़ी चुप्पी छाई रही. देव ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘खुश हो तलाक ले कर?’’ वह चुप रही और फिर उस ने पूछा, ‘‘और तुम?’’ ‘‘दूर रहने पर ही अपनों की जरूरत का एहसास होता है. उन की कमी खलती है. याद आती है.’’

‘‘लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है.’’ ‘‘क्यों, क्या हम दोनों में से कोई मर गया है जो देर हो

चुकी है?’’ साधना ने देव के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन.’’

उ न दोनों ने पास के एक शानदार रैस्टोरैंट में खाना खाया. ‘‘घर

चलोगी मेरे साथ? कंपनी का क्वार्टर है.’’ ‘‘अब हम पतिपत्नी नहीं रहे कानून की दृष्टि में.’’

‘‘और दिल की नजर में? क्या कहता है तुम्हारा दिल.’’ ‘‘शादी करोगे?’’

‘‘फिर से?’’ ‘‘कानून, समाज के लिए.’’

‘‘शादी ही करनी थी तो छोड़ कर क्यों गई थी,’’ देव ने कहा. ‘‘औरत की यही कमजोरी है जहां स्नेह, प्यार मिलता है, खिंची चली जाती है. तुम्हारी बेरुखी और मां की प्रेमभरी बातों में चली

गई थी.’’ ‘‘कुछ मेरी भी गलती थी, मुझे तुम्हारा ध्यान रखना चाहिए था, लेकिन अब फिर कभी झगड़ा हुआ तो छोड़ कर तो नहीं चली जाओगी?’’ देव ने पूछा.

‘‘तोबातोबा, एक गलती एक बार. काफी सह लिया. बाहर वालों की सुनने से अच्छा है पतिपत्नी आपस में लड़ लें, सुन लें. एकदूसरे की.’’ अगले दिन औफिस के बाद वे दोनों एक वकील के पास बैठे थे. वकील दोस्त था देव का. वह अचरज में था,

‘‘यार, मैं ने कई शादियां करवाईं है और तलाक भी. लेकिन यह पहली शादी होगी जिस से तलाक हुआ उसी से फिर शादी. जल्दी हो तो आर्य समाज में शादी करवा देते हैं?’’ ‘‘वैसे भी बहुत देर हो चुकी है, अब और देर क्या करनी. आर्य समाज से ही करवा दो.’’

‘‘कल ही करवा देता हूं,’’ वकील ने कहा. शादी संपन्न हुई. इस बात की साधना ने अपनी मां को पहले खबर दी. मां ने कहा, ‘‘हम लोग ध्यान नहीं रख रहे थे क्या?’’

साधना ने कहा, ‘‘मां, लड़की प्रेमविवाह करे या परिवार की मरजी से, पति का घर ही असली घर है स्त्री के लिए.’’ देव ने अपने पिता को सूचना दी. उन्होंने कहा, ‘‘शादी दिल तय करता है अन्यथा तलाक के बाद उसी लड़की से शादी कहां हो पाती है. सदा खुश रहो.’’ और इस तरह शादी, फिर तलाक और फिर शादी.

अनकहा प्यार: एक दूजे के लिए

मुक्ता और महत्त्व की मुलाकात औफिस जाने के दौरान एक बस में हुई थी, फिर उन का मेलजोल बढ़ने लगा. एक दिन तेज बारिश के समय महत्त्व ने मुक्ता को औफिस न जाने को कहा और अपनी बाइक पर उसे घुमाने ले गया. आगे क्या हुआ? कालेकाले बादलों ने आसमान में डेरा डाल दिया. मुक्ता तेजी से लौन की तरफ दौड़ी सूखे हुए कपड़ों को हटाने के लिए. बूंदों ने झमाझम बरसना शुरू कर दिया.

कपड़े उतारतेउतारते मुक्ता काफी भीग चुकी थी. अंदर आते ही उस ने छींकना शुरू कर दिया.

मां बड़बड़ाते हुए बोलीं, ‘‘मुक्ता, मैं ने तुझ से कितनी बार कहा है कि भीगा मत कर, लेकिन तू मानती ही नहीं.’’ मुक्ता ने शांत भाव से कहा, ‘‘मां, आप सो रही थीं, इसलिए मैं खुद ही चली गई. मां, अगर आप जातीं, तो आप भी तो भीग जातीं न.’’ मां दुलारते हुए बोलीं, ‘‘मेरी बेटी मां को इतना प्यार करती है…’’

‘‘हुं…’’ मुक्ता ने सिर हिलाते हुए कहा और मां के कांधे से लिपट गई.

‘‘तू पूरी तरह से भीग गई है. जा कर तौलिए से बाल सुखा ले और कपड़े बदल ले. मैं तेरे लिए अदरक वाली चाय बना कर लाती हूं,’’ कहते हुए मां चाय बनाने चली गईं. मुक्ता खिड़की से बारिश की बूंदों को गिरते हुए देखने लगी. देखतेदेखते वह पुरानी यादों में खो गई.

औफिस जाने के लिए मुक्ता बस स्टौप पर बस का इंतजार कर रही थी कि तभी एक नौजवान उस के बगल में आ कर खड़ा हो गया. अच्छी कदकाठी का महत्त्व औफिस के लिए लेट हो रहा था. आज उस की बाइक खराब हो गई थी.

महत्त्व रहरह कर कभी अपने हाथ की घड़ी को, तो कभी बस को देख रहा था. तभी एक बस आ कर खड़ी हुई. सब लोग बस में जल्दीजल्दी चढ़ने लगे. मुक्ता और महत्त्व ने भी बस में चढ़ने के लिए बस के दरवाजे को पकड़ लिया. महत्त्व का हाथ मुक्ता के हाथ पर रखा गया. महत्त्व ने ध्यान नहीं दिया, पर मुक्ता सहम सी गई और बस से उतर कर दूर जा कर खड़ी हो गई.

महत्त्व जल्दी से बस में चढ़ गया. बस कुछ दूर निकल गई. महत्त्व ने बस में चारों तरफ नजरें दौड़ाईं, पर उसे मुक्ता कहीं भी नहीं दिखाई दी. महत्त्व को कुछ अटपटा सा महसूस हुआ और वह भी बस से उतर गया. मुक्ता बस स्टौप पर खड़ी दूसरी बस का इंतजार कर रही थी. महत्त्व ने मुक्ता के पास आ कर पूछा, ‘‘आप बस में क्यों नहीं चढ़ीं?’’

मुक्ता ने बहुत ही अदब से कहा, ‘‘जी, बस यों ही… भीड़ बहुत ज्यादा थी इसलिए…’’

तभी दूसरी बस आ कर खड़ी हो गई. मुक्ता बस में चढ़ गई. फिर महत्त्व भी बस में चढ़ गया.

शाम को औफिस की छुट्टी के बाद वे दोनों इत्तिफाक से एक ही बस में चढ़ गए. उन दोनों ने एकदूसरे को देखा और हलकी सी स्माइल दी.

अब दोनों का रोजाना एक ही बस से आनाजाना होने लगा. यह सिलसिला सालभर चलता रहा. ये मुलाकातें एकदूसरे से बोले बिना ही कब प्यार में बदल गईं, पता ही नहीं चला.

एक दिन महत्त्व और मुक्ता बस स्टौप पर खड़े थे. काले बादलों ने घुमड़घुमड़ कर शोर मचाना शुरू कर दिया.

महत्त्व ने मुक्ता से कहा, ‘‘मौसम कितना सुहाना है… क्यों न कहीं घूमने चलें?’’

मुक्ता ने झिझकते हुए कहा, ‘‘लेकिन, औफिस…?’’

‘‘आज औफिस को गोली मारो… मैं बाइक ले कर आता हूं… बाइक से घूमने चलेंगे. तुम मेरा यहीं इंतजार करना. मैं बस 2 मिनट में आया…’’ कह कर महत्त्व बाइक लेने चला गया. थोड़ी देर में महत्त्व बाइक ले कर आ गया. उस ने अपना हाथ मुक्ता की तरफ बढ़ाया. मुक्ता ने अपना हाथ महत्त्व को थमा दिया और बाइक पर बैठ गई. जब बहुत देर हो गई, तब मुक्ता ने कहा, ‘‘काले बादल घने होते जा रहे हैं, और अंधेरा भी बढ़ रहा है. अब हमें यहां से चलना चाहिए.’’

महत्त्व ने बाइक स्टार्ट की. मुक्ता पीछे बैठ गई. दोनों चहकते हुए चले जा रहे थे. काले बादलों ने झमाझम बरसना शुरू कर दिया. मुक्ता ने दोनों हाथों से महत्त्व को कस कर पकड़ लिया. आगे गड्ढा था, जिस में पानी भरा हुआ था. महत्त्व ने ध्यान नहीं दिया. बाइक गड्ढे में जा गिरी, जिस से महत्त्व और मुक्ता बुरी तरह जख्मी हो गए.

महत्त्व की अस्पताल पहुंचते ही मौत हो गई. मुक्ता बेहोश थी. जब उसे होश आया, तब उसे महत्त्व की मौत का पता चला. महत्त्व की मौत से मुक्ता अंदर से टूट गई. मुक्ता सोचने लगी, ‘अनकहा प्यार अनकहा ही रह गया…’

‘‘मुक्ता… ओ मुक्ता… किन यादों में खो गई… देख, तेरी चाय ठंडी हो गई. चल छोड़, मैं दूसरी बना कर लाती हूं…’’ मां ने कहा और थोड़ी देर बाद वे दोनों साथ चाय पीने लगीं.

मां ने पूछा, ‘‘मुक्ता, महत्त्व को याद कर रही थी न?’’ मुक्ता ने लंबी गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां, मां… बस आप ही समझ सकती हो कि महत्त्व का मेरी जिंदगी में क्या महत्त्व था.

‘‘मम्मी, पापा के चले जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली हो गई थी, फिर महत्त्व मेरी जिंदगी में आया तो मेरी दुनिया ही बदल गई थी, लेकिन वह भी मुझे छोड़ कर चला गया. मैं बिलकुल टूट कर बिखर गई. महत्त्व के चले जाने के बाद आप ने मुझे संभाला. आप महत्त्व की ही मां नहीं हो… आप मेरी भी मां हो. अब आप मेरी जिम्मेदारी हो. मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.

निगाहों से आजादी कहां : क्या थी रामकली की मजबूरी

‘‘अरे रामकली, कहां से आ रही है?’’ सामने से आती हुई चंपा ने जब उस का रास्ता रोक कर पूछा तब रामकली ने देखा कि यह तो वही चंपा है जो किसी जमाने में उस की पक्की सहेली थी. दोनों ने ही साथसाथ तगारी उठाई थी. सुखदुख की साथी थीं. फुरसत के पलों में घंटों घरगृहस्थी की बातें किया करती थीं.

ठेकेदार की जिस साइट पर भी वे काम करने जाती थीं, साथसाथ जाती थीं. उन की दोस्ती देख कर वहां की दूसरी मजदूर औरतें जला करती थीं, मगर एक दिन उस ने काम छोड़ दिया. तब उन की दोस्ती टूट गई. एक समय ऐसा आया जब उन का मिलना छूट गया.

रामकली को चुप देख कर चंपा फिर बोली, ‘‘अरे, तेरा ध्यान किधर है रामकली? मैं पूछ रही हूं कि तू कहां से आ रही है? आजकल तू मिलती क्यों नहीं?’’

रामकली ने सवाल का जवाब न देते हुए चंपा से सवाल पूछते हुए कहा, ‘‘पहले तू बता, क्या कर रही है?’’

‘‘मैं तो घरों में बरतन मांजने का काम कर रही हूं. और तू क्या कर रही है?’’

‘‘वही मेहनतमजदूरी.’’

‘‘धत तेरे की, आखिर पुराना धंधा छूटा नहीं.’’

‘‘कैसे छोड़ सकती हूं, अब तो ये हाथ लोहे के हो गए हैं.’’

‘‘मगर, इस वक्त तू कहां से आ रही है?’’

‘‘कहां से आऊंगी, मजदूरी कर के आ रही हूं.’’

‘‘कोई दूसरा काम क्यों नहीं पकड़ लेती?’’

‘‘कौन सा काम पकड़ूं, कोई मिले तब न.’’

‘‘मैं तुझे काम दिलवा सकती हूं.’’

‘‘कौन सा काम?’’

‘‘मेहरी का काम कर सकेगी?’’

‘‘नेकी और पूछपूछ.’’

‘‘तो चल तहसीलदार के बंगले पर. वहां उन की मेमसाहब को किसी बाई की जरूरत थी. मुझ से उस ने कहा भी था.’’

‘‘तो चल,’’ कह कर रामकली चंपा के साथ हो ली. वैसे भी वह अब मजदूरी करना नहीं चाहती थी. एक तो यह हड्डीतोड़ काम था. फिर न जाने कितने मर्दों की काम वासना का शिकार बनो. कई मजदूर तो तगारी देते समय उस का हाथ छू लेते हैं, फिर गंदी नजरों से देखते हैं. कई ठेकेदार ऐसे भी हैं जो उसे हमबिस्तर बनाना चाहते हैं.

एक अकेली औरत की जिंदगी में कई तरह के झंझंट हैं. उस का पति कन्हैया कमजोर है. जहां भी वह काम करता है, वहां से छोड़ देता है. भूखे मरने की नौबत आ गई तब मजबूरी में आकर उसे मजदूरी करनी पड़ी.

जब पहली बार रामकली उस ठेकेदार के पास मजदूरी मांगने गई थी, तब वह वासना भरी आंखों से बोला था, ‘‘तुझे मजदूरी करने की क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘ठेकेदार साहब, पेट का राक्षस रोज खाना मांगता है?’’ गुजारिश करते हुए वह बोली थी.

‘‘इस के लिए मजदूरी करने की क्या जरूरत है?’’

‘‘जरूरत है तभी तो आप के पास आई हूं.’’

‘‘यहां हड्डीतोड़ काम करना पड़ेगा. कर लोगी?’’

‘‘मंजूर है ठेकेदार साहब. काम पर रख लो?’’

‘‘अरे, तुझे तो यह हड्डीतोड़ काम करने की जरूरत भी नहीं है,’’ सलाह देते हुए ठेकेदार बोला था, ‘‘तेरे पास वह चीज है, मजदूरी से ज्यादा कमा सकती है.’’

‘‘आप क्या कहना चाहते हैं ठेकेदार साहब.’’

‘‘मैं यह कहना चाहता हूं कि अभी तुम्हारी जवानी है, किसी कोठे पर बैठ जाओ, बिना मेहनत के पैसा ही पैसा मिलेगा,’’ कह कर ठेकेदार ने भद्दी

हंसी हंस कर उसे वासना भरी आंखों से देखा था.

तब वह नाराज हो कर बोली थी, ‘‘काम देना नहीं चाहते हो तो मत दो. मगर लाचार औरत का मजाक तो मत उड़ाओ,’’ इतना कह कर वह ठेकेदार पर थूक कर चली आई थी.

फिर कहांकहां न भटकी. जो भी ठेकेदार मिला, उस के साथ वह और चंपा काम करती थीं. दोनों का काम अच्छा था, इसलिए दोनों का रोब था. तब कोई मर्द उन की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा करता था.

मगर जैसे ही चंपा ने काम पर आना बंद किया, फिर काम करते हुए उस के आसपास मर्द मंडराने लगे. वह भी उन से हंस कर बात करने लगी. कोई मजदूर तगारी पकड़ाते हुए उस का हाथ पकड़ लेता, तब वह भी कुछ नहीं कहती है. किसी से हंस कर बात कर लेती है तब वह समझता है कि रामकली उस के पास आ रही है.

कई बार रामकली ने सोचा कि यह हाड़तोड़ मजदूरी छोड़ कर कोई दूसरा काम करे. मगर सब तरफ से हाथपैर मारने के बाद भी उसे ऐसा कोई काम नहीं मिला. जहां भी उस ने काम किया, वहां मर्दों की वहशी निगाहों से वह बच नहीं पाई थी. खुद को किसी के आगे सौंपा तो नहीं, मगर वह उसी माहौल में ढल गई.

‘‘ऐ रामकली, कहां खो गई?’’ जब चंपा ने बोल कर उस का ध्यान भंग किया तब वह पुरानी यादों से वर्तमान में लौटी. चंपा आगे बोली, ‘‘तू कहां खो गई थी?’’

‘‘देख रामवती, तहसीलदार का बंगला आ गया. मेमसाहब के सामने मुंह लटकाए मत खड़ी रहना. जो वे पूछें, फटाफट जवाब दे देना,’’ समझाते हुए चंपा बोली.

रामकली ने गरदन हिला कर हामी भर दी.

दोनों गेट पार कर लौन में पहुंचीं. मेमसाहब बगीचे में पानी देते हुए मिल गईं. चंपा को देख कर वे बोलीं, ‘‘कहो चंपा, किसलिए आई हो?’’

‘‘मेमसाहब, आप ने कहा था, घर का काम करने के लिए बाई की जरूरत थी. इस रामकली को लेकर आई हूं,’’ कह कर रामकली की तरफ इशारा करते हुए चंपा बोली.

मेमसाहब ने रामकली को देखा. रामकली भी उन्हें देख कर मुसकराई.

‘‘तुम ईमानदारी से काम करोगी?’’ मेमसाहब ने पूछा.

‘‘हां, मेमसाहब.’’

‘‘रोज आएगी?’’

‘‘हां, मेमसाहब.’’

‘‘कोई चीज चुरा कर तो नहीं भागोगी?’’

‘‘नहीं मेमसाहब. पापी पेट का सवाल है, चोरी का काम कैसे कर सकूंगी…’’

‘‘फिर भी नीयत बदलने में देर नहीं लगती है.’’

‘‘नहीं मेमसाहब, हम गरीब जरूर हैं मगर चोर नहीं हैं.’’

चंपा मोरचा संभालते हुए बोली, ‘‘आप अपने मन से यह डर निकाल दीजिए.’’

‘‘ठीक है चंपा. इसे तू लाई है इसलिए तेरी सिफारिश पर इसे रख रही हूं,’’ मेमसाहब पिघलते हुए बोलीं, ‘‘मगर, किसी तरह की कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए.’’

‘‘आप को जरा सी भी शिकायत नहीं मिलेगी,’’ हाथ जोड़ते हुए रामकली बोली, ‘‘आप मुझ पर भरोसा रखें.’’

फिर पैसों का खुलासा कर उसे काम बता दिया गया. मगर 8 दिन का काम देख कर मेमसाहब उस पर खुश हो गईं. वह रोजाना आने लगी. उस ने मेमसाहब का विश्वास जीत लिया.

मेमसाहब के बंगले में आने के बाद उसे लगा, उस ने कई मर्दों की निगाहों से छुटकारा पा लिया है. मगर यह केवल रामकली का भरम था. यहां भी उसे मर्द की निगाह से छुटकारा नहीं मिला. तहसीलदार की वासना भरी आंखें यहां भी उस का पीछा नहीं छोड़ रही थीं.

मर्द चाहे मजदूर हो या अफसर, औरत के प्रति वही वासना की निगाह हर समय उस पर लगी रहती थी. बस फर्क इतना था जहां मजदूर खुला निमंत्रण देते थे, वहां तहसीलदार अपने पद का ध्यान रखते हुए खामोश रह कर निमंत्रण देते थे.

ऐसे ही उस दिन तहसीलदार मेमसाहब के सामने उस की तारीफ करते हुए बोले, ‘‘रामकली बहुत अच्छी मेहरी मिली है, काम भी ईमानदारी से करती है और समय भी ज्यादा देती है,’’ कह कर तहसीलदार साहब ने वासना भरी नजर से उस की तरफ देखा.

तब मेमसाहब बोलीं, ‘‘हां, रामकली बहुत मेहनती है.’’

‘‘हां, बहुत मेहनत करती है,’’ तहसीलदार भी हां में हां मिलाते हुए बोले, ‘‘अब हमें छोड़ कर तो नहीं जाओगी रामकली?’’

‘‘साहब, पापी पेट का सवाल है, मगर…’’

‘‘मगर, क्या रामकली?’’ रामकली को रुकते देख तहसीलदार साहब बोले.

‘‘आप चले जाओगे तब आप जैसे साहब और मेमसाहब कहां मिलेंगे.’’

‘‘अरे, हम कहां जाएंगे. हम यहीं रहेंगे,’’ तहसीलदार साहब बोले.

‘‘अरे, आप ट्रांसफर हो कर दूसरे शहर में चले जाएंगे,’’ रामकली ने जब तहसीलदार पर नजर गड़ाई, तो देखा कि उन की नजरें ब्लाउज से झांकते उभार पर थीं. कभीकभी ऐसे में जान कर के वह अपना आंचल गिरा देती ताकि उस के उभारों को वे जी भर कर देख लें.

तब तहसीलदार साहब बोले, ‘‘ठीक कहती हो रामकली, मेरा प्रमोशन होने वाला है.’’

उस दिन बात आईगई हो गई. तहसीलदार साहब उस से बात करने

का मौका ढूंढ़ते रहते हैं. मगर कभी उस पर हाथ नहीं लगाते हैं. रामकली को तो बस इसी बात का संतोष है कि औरत को मर्दों की निगाहों से छुटकारा नहीं मिलता है. मगर वह तब तक ही महफूज है, जब तक तहसीलदार की नौकरी इस शहर में है.

अधूरा सा दिल : विरेश के दिल में क्या चुभ रहा था

‘‘आप को ऐक्साइटमैंट नहीं हो रही है क्या, मम्मा? मुझे तो आजकल नींद नहीं आ रही है, आय एम सो सुपर ऐक्साइटेड,’’ आरुषि बेहद उत्साहित थी. करुणा के मन में भी हलचल थी. हां, हलचल ही सही शब्द है इस भावना हेतु, उत्साह नहीं. एक धुकुरपुकुर सी लगी थी उस के भीतर. एक साधारण मध्यवर्गीय गृहिणी, जिस ने सारी उम्र पति की एक आमदनी में अपनी गृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने में गुजार दी हो, आज सपरिवार विदेशयात्रा पर जा रही थी.

पिछले 8 महीनों से बेटा आरव विदेश में पढ़ रहा था. जीमैट में अच्छे स्कोर लाने के फलस्वरूप उस का दाखिला स्विट्जरलैंड के ग्लायन इंस्टिट्यूट औफ हायर एजुकेशन में हो गया था. शुरू से ही आरव की इच्छा थी कि वह एक रैस्तरां खोले. स्वादिष्ठ और नएनए तरह के व्यंजन खाने का शौक सभी को होता है, आरव को तो खाना बनाने में भी आनंद आता था.

आरव जब पढ़ाई कर थक जाता और कुछ देर का ब्रेक लेता, तब रसोई में अपनी मां का हाथ बंटाने लगता, कहता, ‘खाना बनाना मेरे लिए स्ट्रैसबस्टर है, मम्मा.’ फिर आगे की योजना बनाने लगता, ‘आजकल स्टार्टअप का जमाना है. मैं अपना रैस्तरां खोलूंगा.’

ग्लायन एक ऐसा शिक्षा संस्थान है जो होटल मैनेजमैंट में एमबीए तथा एमएससी की दोहरी डिगरी देता है. साथ ही, दूसरे वर्ष में इंटर्नशिप या नौकरी दिलवा देता है. जीमैट के परिणाम आने के बाद पूरे परिवार को होटल मैनेजमैंट की अच्छी शिक्षा के लिए संस्थानों में ग्लायन ही सब से अच्छा लगा और आरव चला गया था दूर देश अपने भविष्यनिर्माण की नींव रखने.

अगले वर्ष आरव अपनी इंटर्नशिप में व्यस्त होने वाला था. सो, उस ने जिद कर पूरे परिवार से कहा कि एक बार सब आ कर यहां घूम जाओ, यह एक अलग ही दुनिया है. यहां का विकास देख आप लोग हैरान हो जाओगे. उस के कथन ने आरुषि को कुछ ज्यादा ही उत्साहित कर दिया था.

रात को भोजन करने के बाद चहलकदमी करने निकले करुणा और विरेश इसी विषय पर बात करने लगे, ‘‘ठीक कह रहा है आरव, मौका मिल रहा है तो घूम आते हैं सभी.’’

‘‘पर इतना खर्च? आप अकेले कमाने वाले, उस पर अभी आरव की पढ़ाई, आरुषि की पढ़ाई और फिर शादियां…’’ करुणा जोड़गुना कर रही थी.

‘‘रहने का इंतजाम आरव के कमरे में हो जाएगा और फिर अधिक दिनों के लिए नहीं जाएंगे. आनाजाना समेत एक हफ्ते का ट्रिप बना लेते हैं. तुम चिंता मत करो, सब हो जाएगा,’’ विरेश ने कहा.

आज सब स्विट्जरलैंड के लिए रवाना होने वाले थे. कम करतेकरते भी बहुत सारा सामान हो गया था. क्या करते, वहां गरम कपड़े पूरे चाहिए, दवा बिना डाक्टर के परचे के वहां खरीदना आसान नहीं. सो, वह रखना भी जरूरी है. फिर बेटे के लिए कुछ न कुछ बना कर ले जाने का मन है. जो भी ले जाने की इजाजत है, वही सब रखा था ताकि एयरपोर्ट पर कोई टोकाटाकी न हो और वे बिना किसी अड़चन के पहुंच जाएं.

हवाईजहाज में खिड़की वाली सीट आरुषि ने लपक ली. उस के पास वाली सीट पर बैठी करुणा अफगानिस्तान के सुदूर फैले रेतीले पहाड़मैदान देखती रही. कभी बादलों का झुरमुट आ जाता तो लगता रुई में से गुजर रहे हैं, कभी धरती के आखिर तक फैले विशाल समुद्र को देख उसे लगता, हां, वाकईर् पृथ्वी गोल है. विरेश अकसर झपकी ले रहे थे, किंतु आरुषि सीट के सामने लगी स्क्रीन पर पिक्चर देखने में मगन थी. घंटों का सफर तय कर आखिर वो अपनी मंजिल पर पहुंच गए. ग्रीन चैनल से पार होते हुए वे अपने बेटे से मिले जो उन के इंतजार में बाहर खड़ा था. पूरे 8 महीनों बाद पूरा परिवार इकट्ठा हुआ था.

आरव का इंस्टिट्यूट कैंपस देख मन खुश हो गया. ग्लायन नामक गांव के बीच में इंस्टिट्यूट की शानदार इमारत पहाड़ की चोटी पर खड़ी थी. पहाड़ के नीचे बसा था मोंट्रियू शहर जहां सैलानी सालभर कुदरती छटा बटोरने आते रहते हैं. सच, यहां कुदरत की अदा जितनी मनमोहक थी, मौसम उतना ही सुहावना. वहीं फैली थी जिनीवा झील. उस का गहरा नीला पानी शांत बह रहा था. झील के उस पार स्विस तथा फ्रांसीसी एल्प्स के पहाड़ खड़े थे. घनी, हरी चादर ओढ़े ये पहाड़, बादलों के फीते अपनी चोटियों में बांधे हुए थे. इतना खूबसूरत नजारा देख मन एकबारगी धक सा कर गया.

हलकी धूप भी खिली हुई थी पर फिर भी विरेश, करुणा और आरुषि को ठंड लग रही थी. हालांकि यहां के निवासियों के लिए अभी पूरी सर्दी शुरू होने को थी. ‘‘आप को यहां ठंड लगेगी, दिन में 4-5 और रात में 5 डिगरी तक पारा जाने लगा है,’’ आरव ने बताया. फिर वह सब को कुछ खिलाने के लिए कैफेटेरिया ले गया. फ्रैश नाम के कैफेटेरिया में लंबी व सफेद मेजों पर बड़बड़े हरे व लाल कृत्रिम सेबों से सजावट की हुई थी. भोजन कर सब कमरे में आ गए. ‘‘वाह भैया, स्विट्जरलैंड की हौट चौकलेट खा व पेय पी कर मजा आ गया,’’ आरुषि चहक कर कहने लगी.

अगली सुबह सब घूमने निकल गए. आज कुछ समय मोंट्रियू में बिताया. साफसुथरीचौड़ी सड़कें, न गाडि़यों की भीड़ और न पोंपों का शोर. सड़क के दोनों ओर मकानों व होटलों की एकसार लाइन. कहीं छोटे फौआरे तो कहीं खूबसूरत नक्काशी किए हुए मकान, जगहजगह फोटो ख्ंिचवाते सब स्टेशन पहुंच गए.

‘‘स्विट्जरलैंड आए हो तो ट्रेन में बैठना तो बनता ही है,’’ हंसते हुए आरव सब को ट्रेन में इंटरलाकेन शहर ले जा रहा था. स्टेशन पहुंचते ही आरुषि पोज देने लगी, ‘‘भैया, वो ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ वाले टे्रन पोज में मेरी फोटो खींचो न.’’ ट्रेन के अंदर प्रवेश करने पर दरवाजे खुद ही बंद हो गए. अंदर बहुत सफाई थी, आरामदेह कुशनदार सीटें थीं, किंतु यात्री एक भी न था. केवल यही परिवार पूरे कोच में बैठा था. कारण पूछने पर आरव ने बताया, ‘‘यही तो इन विकसित देशों की बात है. पूरा विकास है, किंतु भोगने के लिए लोग कम हैं.’’

रास्तेभर सब यूरोप की अनोखी वादियों के नजारे देखते आए. एकसार कटी हरी घास पूरे दिमाग में ताजा रंग भर रही थी. वादियों में दूरदूर बसा एकएक  घर, और हर घर तक पहुंचती सड़क. अकसर घरों के बाहर लकडि़यों के मोटेमोटे लट्ठों का अंबार लगा था और घर वालों की आवाजाही के लिए ट्रकनुमा गाडि़यां खड़ी थीं. ऊंचेऊंचे पहाड़ों पर गायबकरियां और भेड़ें हरीघास चर रही थीं.

यहां की गाय और भेंड़ों की सेहत देखते ही बनती है. दूर से ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने पूरे पहाड़ पर सफेद रंग के गुब्बारे बिखरा दिए हों, पर पास आने पर मालूम होता है कि ये भेंड़ें हैं जो घास चरने में मगन हैं. रास्ते में कई सुरंगें भी आईं. उन की लंबाई देख सभी हैरान रह गए. कुछ सुरंगें तो 11 किलोमीटर तक लंबी थीं.

ढाई घंटे का रेलसफर तय कर सब इंटरलाकेन पहुंचे. स्टेशन पर उतरते ही देखा कि मुख्य चौक के एक बड़े चबूतरे पर स्विस झंडे के साथ भारतीय झंडा भी लहरा रहा है. सभी के चेहरे राष्ट्रप्रेम से खिल उठे. सड़क पर आगे बढ़े तो आरव ने बताया कि यहां पार्क में बौलीवुड के एक फिल्म निर्मातानिर्देशक यश चोपड़ा की एक मूर्ति है. यश चोपड़ा को यहां का ब्रैंड ऐंबैसेडर बनाया गया था. उन्होंने यहां कई फिल्मों की शूटिंग की जिस से यहां के पर्यटन को काफी फायदा हुआ.

सड़क पर खुलेआम सैक्स शौप्स भी थीं. दुकानों के बाहर नग्न बालाओं की तसवीरें लगी थीं. परिवार साथ होने के कारण किसी ने भी उन की ओर सीधी नजर नहीं डाली, मगर तिरछी नजरों से सभी ने उस तरफ देखा. अंदर क्या था, इस का केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. दोनों संस्कृतियों में कितना फर्क है. भारतीय संस्कृति में तो खुल कर सैक्स की बात भी नहीं कर सकते, जबकि वहां खुलेआम सैक्स शौप्स मौजूद हैं.

दोपहर में सब ने हूटर्स पब में खाना खाने का कार्यक्रम बनाया. यह पब अपनी सुंदर वेट्रैस और उन के आकर्षक नारंगी परिधानों के लिए विश्वप्रसिद्ध है. सब ने अपनीअपनी पसंद बता दी किंतु करुणा कहने लगी, ‘‘मैं ने तो नाश्ता ही इतना भरपेट किया था कि खास भूख नहीं है.’’

अगले दिन सभी गृंडेलवाल्ड शहर को निकल गए. ऐल्प्स पर्वतों की बर्फीली चोटियों में बसा, कहीं पिघली बर्फ के पानी से बनी नीली पारदर्शी झीलें तो कहीं ऊंचे ऐल्पाइन के पेड़ों से ढके पहाड़ों का मनोरम दृश्य, स्विट्जरलैंड वाकई यूरोप का अनोखा देश है.

गृंडेलवाल्ड एक बेहद शांत शहर है. सड़क के दोनों ओर दुकानें, दुकानों में सुसज्जित चमड़े की भारीभरकम जैकेट, दस्ताने, मफलर व कैप आदि. एक दुकान में तो भालू का संरक्षित शव खड़ा था. शहर में कई स्थानों पर गाय की मूर्तियां लगी हैं. सभी ने जगहजगह फोटो खिंचवाईं. फिर एक छोटे से मैदान में स्कीइंग करते पितापुत्र की मूर्ति देखी. उस के नीचे लिखा था, ‘गृंडेलवाल्ड को सर्दियों के खेल की विश्व की राजधानी कहा जाता है.’

भारत लौटने से एक दिन पहले आरव ने कोऔपरेटिव डिपार्टमैंटल स्टोर ले जा कर सभी को शौपिंग करवाई. आरुषि ने अपने और अपने मित्रों के लिए काफी सामान खरीद लिया, मसलन अपने लिए मेकअप किट व स्कार्फ, दोस्तों के लिए चौकलेट, आदि. विरेश ने अपने लिए कुछ टीशर्ट्स और दफ्तर में बांटने के लिए यहां के खास टी बिस्कुट, मफिन आदि ले लिए. करुणा ने केवल गृहस्थी में काम आने वाली चीजें लीं, जैसे आरुषि को पसंद आने वाला हौट चौकलेट पाउडर का पैकेट, यहां की प्रसिद्ध चीज का डब्बा, बढि़या क्वालिटी का मेवा, घर में आनेजाने वालों के लिए चौकलेट के पैकेट इत्यादि.

‘‘तुम ने अपने लिए तो कुछ लिया ही नहीं, लिपस्टिक या ब्लश ले लो या फिर कोई परफ्यूम,’’ विरेश के कहने पर करुणा कहने लगी, ‘‘मेरे पास सबकुछ है. अब केवल नाम के लिए क्या लूं?’’

शौपिंग में जितना मजा आता है, उतनी थकावट भी होती है. सो, सब एक कैफे की ओर चल दिए. इस बार यहां के पिज्जा खाने का प्रोग्राम था. आरव और आरुषि ने अपनी पसंद के पिज्जा और्डर कर दिए. करुणा की फिर वही घिसीपिटी प्रतिक्रिया थी कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. शायद उसे यह आभास था कि उस की छोटीछोटी बचतों से उस की गृहस्थी थोड़ी और मजबूत हो पाएगी.

अकसर गृहिणियों को अपनी इच्छा की कटौती कर के लगता है कि उन्होंने भी बिना कमाए अपनी गृहस्थी में योगदान दिया. करुणा भी इसी मानसिकता में उलझी अकसर अपनी फरमाइशों का गला घोंटती आई थी. परंतु इस बार उस की यह बात विरेश को अखर गई. आखिर सब छुट्टी मनाने आए थे, सभी अपनी इच्छापूर्ति करने में लगे थे, तो ऐसे में केवल करुणा खुद की लगाम क्यों खींच रही है?

‘‘करुणा, हम यहां इतनी दूर जिंदगी में पहली बार सपरिवार विदेश छुट्टी मनाने आए हैं. जैसे हम सब के लिए यह एक यादगार अनुभव होगा वैसे ही तुम्हारे लिए भी होना चाहिए. मैं समझता हूं कि तुम अपनी छोटीछोटी कटौतियों से हमारी गृहस्थी का खर्च कुछ कम करना चाहती हो. पर प्लीज, ऐसा त्याग मत करो. मैं चाहता हूं कि तुम्हारी जिंदगी भी उतनी ही खुशहाल, उतनी ही आनंदमयी हो जितनी हम सब की है. हमारी गृहस्थी को केवल तुम्हारे ही त्याग की जरूरत नहीं है. अकसर अपनी इच्छाओं का गला रेतती औरतें मिजाज में कड़वी हो जाती हैं. मेरी तमन्ना है कि तुम पूरे दिल से जिंदगी को जियो. मुझे एक खुशमिजाज पत्नी चाहिए, न कि चिकचिक करती बीवी,’’ विरेश की ये बातें सीधे करुणा के दिल में दर्ज हो गईं.

‘‘ठीक ही तो कह रहे हैं,’’ अनचाहे ही उस के दिमाग में अपने परिवार की वृद्धाओं की यादें घूमने लगीं. सच, कटौती ने उन्हें चिड़चिड़ा बना छोड़ा था. फिर जब संतानें पैसों को अपनी इच्छापूर्ति में लगातीं तब वे कसमसा उठतीं

उन का जोड़ा हुआ पाईपाई पैसा ये फुजूलखर्ची में उड़ा रहे हैं. उस पर ज्यादती तो तब होती जब आगे वाली पीढि़यां पलट कर जवाब देतीं कि किस ने कहा था कटौती करने के लिए.

जिस काम में पूरा परिवार खुश हो रहा है, उस में बचत का पैबंद लगाना कहां उचित है? आज विरेश ने करुणा के दिल से कटौती और बेवजह के त्याग का भारी पत्थर सरका फेंका था.

लौटते समय भारतीय एयरपोर्ट पहुंच कर करुणा ने हौले से विरेश के कान में कहा, ‘‘सोच रही हूं ड्यूटीफ्री से एक पश्मीना शौल खरीद लूं अपने लिए.’’

‘‘ये हुई न बात,’’ विरेश के ठहाके पर आगे चल रहे दंपतियों का मुड़ कर देखना स्वाभाविक था.

नहले पर देहला : किस ने उछाला भाभी पर कीचड़

साक्षी ने जैसे ही दरवाजा खोला, वह चौंक कर दो कदम पीछे हट गई. सामने खड़ा टोनी बगैर कुछ कहे मुसकराता हुआ अंदर दाखिल हो गया.

‘‘तुम यहां पर…’’ साक्षी चौंकते हुए बोली.

‘‘क्या भूल गई अपने आशिक को?’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

‘‘भूल जाओ उन बातों को. मेरी जिंदगी में जहर मत घोलो,’’ साक्षी रोंआसी हो कर बोली.

‘‘चिंता मत करो, मैं तुम्हें ज्यादा तंग नहीं करूंगा. लो यह देखो,’’ टोनी ने एक लिफाफा साक्षी को देते हुए कहा.

साक्षी ने लिफाफे से तसवीरें निकाल कर देखीं, तो उसे लगा मानो आसमान टूट पड़ा हो. उन तसवीरों में साक्षी और टोनी के सैक्सी पोज थे. यह अलग बात थी कि साक्षी ने टोनी के साथ कभी भी ऐसावैसा कुछ नहीं किया था.

‘‘यह सब क्या है?’’ साक्षी घबरा गई और डर कर बोली.

‘‘बस छोटा सा नजराना.’’

‘‘क्या चाहते हो तुम?’’ साक्षी ने कांपते हुए पूछा.

‘‘ज्यादा नहीं, बस एक लाख रुपए दे दो, फिर तुम्हारी छुट्टी,’’ टोनी बेशर्मी से बोला.

‘‘लेकिन ये फोटो तो   झूठे हैं. ऐसा तो मैं ने कभी नहीं किया था.’’

‘‘जानेमन, ये फोटो देख कर कोई भी इन्हें   झूठा नहीं बता सकता.’’

‘‘तुम इतने नीच होगे, यह मैं ने कभी नहीं सोचा था.’’

‘‘आजकल सिर्फ पैसे का जमाना है, जिस के लिए लोग अपना ईमान भी बेच देते हैं,’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

साक्षी बुरी तरह घबरा गई. उसे यह भी डर था कि कहीं कोई आ न जाए. लेकिन वे दोनों यह नहीं जानते थे कि दो आंखें बराबर उन पर टिकी थीं.

साक्षी ने टोनी को भलाबुरा कह कर एक महीने का समय ले लिया. टोनी दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

एकाएक साक्षी की रुलाई फूट पड़ी. वह लिफाफा अब भी उस के हाथ में था.

सहसा उन दो आंखों का मालिक दीपक कमरे में दाखिल हुआ और चुपचाप साक्षी के सामने जा खड़ा हुआ. उस ने हाथ बढ़ा कर वह लिफाफा ले लिया.

‘‘देवरजी, तुम…’’ साक्षी एकाएक उछल पड़ी.

‘‘जी…’’

‘‘यह लिफाफा मुझे दे दो प्लीज,’’ साक्षी कांप कर बोली.

‘‘चिंता मत करो भाभी, मैं सबकुछ जान चुका हूं.’’

‘‘लेकिन, ये तसवीरें झूठी हैं.’’

दीपक ने वे फोटो बिना देखे ही टुकड़ेटुकड़े कर दिए.

‘‘मैं सच कह रही हूं, यह सब   झूठ है,’’ साक्षी बोली.

‘‘कौन था वह कमीना, जिस ने हमारी भाभी पर कीचड़ उछालने की कोशिश की है?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘लेकिन…’’

‘‘चिंता मत कीजिए भाभी. अगर उस कुत्ते से लड़ना होता तो उसे यहीं पकड़ लेता. लेकिन मैं नहीं चाहता कि आप की जरा भी बदनामी हो.’’

दीपक का सहारा पा कर साक्षी ने उसे हिचकते हुए बताया, ‘‘उस का नाम टोनी है. वह मेरी क्लास में पढ़ता था. उस से थोड़ीबहुत बोलचाल थी, लेकिन प्यार कतई नहीं था.’’

‘‘उस का पता भी बता दीजिए.’’

‘‘लेकिन तुम करना क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं अपनी भाभी को बदनामी से बचाना चाहता हूं.’’

‘‘तुम उस का क्या करोगे?’’

‘‘उस का मुरब्बा तो बना नहीं सकता, लेकिन उस नीच का अचार जरूर बना डालूंगा.’’

‘‘तुम उस बदमाश के चक्कर में मत पड़ो. मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो.’’

लेकिन दीपक के दबाव डालने पर साक्षी को टोनी का पता बताना ही पड़ा.

पता जानने के बाद दीपक तेज कदमों से बाहर निकल गया.

दीपक को टोनी का घर ढूंढ़ने में ज्यादा समय नहीं लगा. घर में ही टोनी की छोटी सी फोटोग्राफी की दुकान थी. दीपक ने पता किया कि टोनी की 3 बहनें हैं और मां विधवा हैं.

दीपक ने फोटो खिंचवाने के बहाने टोनी से दोस्ती कर ली और दिल खोल कर खर्च करने लगा. उस ने टोनी की एक बहन ज्योति को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया.

एक दिन मौका पा कर दीपक और ज्योति पार्क में मिले और शाम तक मस्ती करते रहे.

उस दिन टोनी अपनी दुकान में अकेला बैठा था. तभी दीपक की मोटरसाइकिल वहां आ कर रुकी.

दीपक को देखते ही टोनी का चेहरा खिल उठा. उस ने खुश होते हुए कहा. ‘‘आओ दीपक, मैं तुम्हीं को याद कर रहा था.’’

‘‘तुम ने याद किया और हम हाजिर हैं. हुक्म करो,’’ दीपक ने स्टाइल से कहा.

‘‘बैठो यार, क्या कहूं शर्म आती है.’’

‘‘बेहिचक बोलो, क्या बात है?’’

‘‘क्या तुम मेरी कुछ मदद कर सकते हो?’’

‘‘बोलो तो सही, बात क्या?है?’’

‘‘मुझे 5 हजार रुपए की जरूरत है. कुछ खास काम है,’’ टोनी हिचकते हुए बोला.

‘‘बस इतनी सी बात, अभी ले कर आता हूं,’’ दीपक बोला और एक घंटे में ही उस ने 5 हजार की गड्डी ला कर टोनी को थमा दिया. टोनी दीपक के एहसान तले दब गया.

कुछ दिनों बाद ज्योति की हालत खराब होने लगी. उसे उलटियां होने लगीं. जांच करने के बाद डाक्टर ने बताया कि वह मां बनने वाली है.

यह सुन कर सब हैरान रह गए. ज्योति की मां ने रोना शुरू कर दिया. लेकिन टोनी गुस्से में ज्योति को मारने दौड़ पड़ा. ज्योति लपक कर बड़ी बहन के पीछे छिप गई.

‘‘बता कौन है वह कमीना, जिस के साथ तू ने मुंह काला किया?’’ टोनी ने सख्त लहजे में पूछा.

ज्योति सुबक रही थी. उस की मां और बहनें रोए जा रही थीं और टोनी गुस्से में न जाने क्याक्या बके जा रहा था. काफी दबाव डालने पर ज्योति ने दीपक का नाम बता दिया.

यह सुन कर सब हैरान रह गए. टोनी भी एकाएक ढीला पड़ गया.

दीपक को घर बुला कर बात की गई, लेकिन वह साफ मुकर गया और उस ने शादी करने से इनकार कर दिया.

एक पल के लिए टोनी को गुस्सा आ गया और वह गुर्रा कर बोला, ‘‘अगर मेरी बहन को बरबाद किया तो मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा.’’

‘‘तुम्हारा क्या खयाल है कि मैं ने चूडि़यां पहन रखी हैं?’’ दीपक सख्त लहजे में बोला.

‘‘तुम ने हम से किस जन्म का बदला लिया है,’’ टोनी की मां रोते हुए बोलीं.

‘‘आप जरा चुप रहिए मांजी, पहले इस खलीफा से निबट लूं,’’ दीपक ने कहा और टोनी को घूरने लगा.

टोनी ने पैतरा बदला और हाथbजोड़ कर बोला, ‘‘मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं दीपक, मेरी बहन को बरबाद मत करो.’’

‘‘तुम किस गलतफहमी के शिकार हो रहे हो,’’ दीपक बोला.

‘‘देखो दीपक, मेरी बहन से शादी कर लो. तुम जो कहोगे, मैं करने के लिए तैयार हूं,’’ टोनी हार कर बोला.

‘‘तुम क्या कर सकते हो भला?’’

‘‘तुम जो कहोगे मैं वही करूंगा,’’ टोनी गिड़गिड़ा कर बोला.

‘‘अपनी इज्जत पर आंच आई तो कितना तड़प रहे हो. क्या दूसरों की इज्जत, इज्जत नहीं होती?’’ दीपक शांत हो कर बोला.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ टोनी बुरी तरह चौंका.

‘‘अपने गरीबान में झांक कर देखो टोनी, सब मालूम हो जाएगा,’’ एकाएक दीपक का लहजा बदल गया.

टोनी सबकुछ सम  झ गया. उस ने मां और बहनों को बाहर भेजना चाहा, लेकिन दीपक उन्हें रोक कर बोला, ‘‘अब डर क्यों रहे हो, घर के सभी लोगों को बताओ कि तुम कितनी मासूमों का बसाबसाया घर तबाह करने पर तुले हो.’’

‘‘तुम कौन हो?’’ टोनी हैरत से बोला.

‘‘तुम मेरी बात का फटाफट जवाब दो, वरना मैं चला,’’ दीपक जाने के लिए लपका.

‘‘लेकिन मैं ने किसी की जिंदगी बरबाद तो नहीं की,’’ टोनी अटकते हुए बोला.

‘‘मगर करने पर तो तुले हो.’’

‘‘यह सच है, लेकिन तुम ने आज मेरी आंखें खोल दीं दोस्त. आज मु  झे एहसास हुआ कि पैसे से कहीं ज्यादा इज्जत की अहमियत है,’’ टोनी बु  झी आवाज में बोला.

दीपक के होंठों पर मुसकराहट नाच उठी. ज्योति भी मुसकराने लगी.

‘‘अब क्या इरादा है प्यारे?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘वह सब झूठ था. मैं कसम खाता हूं कि सारे फोटो और निगेटिव जला दूंगा,’’ टोनी ने कहा.

‘‘यह अच्छा काम अभी और सब के सामने करो,’’ दीपक ने कहा.

टोनी ने पैट्रोल डाल कर सारे गंदे फोटो और निगेटिव जला डाले और दीपक से बोला, ‘‘माफ करना दोस्त, मैं ने लालच में पड़ कर लखपति बनने का यह तरीका अपना लिया था.’’

‘‘माफी मुझ से नहीं पहले अपनी मां से मांगो, फिर मेरी मां से मांगना.’’

‘‘तुम्हारी मां…’’

‘‘हां, साक्षी यानी मेरी भाभी मां. वह माफ कर देंगी तो मैं भी तुम्हें माफ कर दूंगा,’’ दीपक बोला.

‘‘मंजूर है, लेकिन मेरी बहन?’’

‘‘इस का फैसला भी भाभी ही करेंगी.’’

साक्षी के पैर पकड़ कर माफी मांगते हुए टोनी बोला, ‘‘आज से आप मेरी बड़ी दीदी हैं. चला तो था चाल चलने, लेकिन आप के इस होशियार देवर ने ऐसी चाल चली कि नहले पे दहला मार कर मु  झे चित कर दिया. क्या इस नालायक को माफ कर सकेंगी?’’

साक्षी ने गर्व से देवर की ओर देखा और टोनी से कहा, ‘‘फिर कभी ऐसी जलील हरकत मत करना.’’

माफी मिलने के बाद टोनी ने साक्षी को अपनी बहन व दीपक का मामला बताया तो साक्षी ने दीपक को घूरते हुए पूछा, ‘‘दीपक, यह सब क्या?है?’’

‘‘यह भी एक नाटक है भाभी. आप ज्योति से ही पूछिए,’’ दीपक हंस कर बोला.

‘‘ज्योति, आखिर किस्सा क्या है?’’ टोनी ने पूछा.

‘‘भैया, मैं भी सबकुछ जान गई थी. आप को सही रास्ते पर लाने के लिए ही मैं ने व दीपक ने नाटक किया था और उस में डाक्टर को भी शामिल कर लिया था,’’ ज्योति ने हंसते हुए बताया.

‘‘चल, तू ने छोटी हो कर भी मुझे राह दिखा कर अच्छा किया. मैं तेरी शादी दीपक जैसे भले लड़के से करने के लिए तैयार हूं.’’nदीपक ने इजाजत मांगने के अंदाज में भाभी की ओर देखा.

साक्षी ने ज्योति को खींच कर अपने गले से लगा लिया. ज्योति की मां भी इस रिश्ते से बहुत खुश थीं.

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