Crime Story in Hindi: वह नीला परदा- भाग 2: आखिर ऐसा क्या देख लिया था जौन ने?

Writer- Kadambari Mehra

अंगरेज अपनी भावनाओं को बखूबी छिपा लेते हैं. जौन ने हैट को छू कर उस से सलाम किया और चाल को सहज कर के वह सीधा घर आ गया. रोवर के साथ होते हुए भी उसे लग रहा था कि जैसे कोई उस के पीछे आ रहा है. घर में घुसते ही उस ने दरवाजा इतनी जोर से बंद किया कि डोरा ऊपर से चिल्लाई, ‘‘कौन है?’’

जौन ने उत्तर नहीं दिया और सोफे पर बैठ गया. डोरा नीचे दौड़ी आई. जौन का चेहरा देख कर वह घबरा गई पर कुछ कहा नहीं. चुपचाप रोवर को बगीचे में भेज कर दरवाजा बंद करने लगी तो जौन ने कहा, ‘‘उसे बंधा रहने दो, नहीं तो जंगल में भाग जाएगा.’’

डोरा की समझ में कुछ नहीं आया. उस ने वैसा ही किया और रोज की तरह चाय बनाने लगी. चाय की केतली की चिरपरिचित सीटी की आवाज से जौन वापस अपनी दुनिया में लौट आया और उस ने पास ही रखे फोन पर सीधा 999 नंबर मिलाया. पुलिस को अपना पता दे कर जल्दी आने को कहा.

पुलिस 10 मिनट में ही पहुंच गई. जौन ने पुलिस वालों को बताया कि उसे शक है कि जंगल में एक गड्ढे में कीचड़ में डूबी कोई लाश है. पुलिस को समझते देर नहीं लगी. हवलदार ने उस से संग चल कर दिखाने के लिए कहा, तो जौन को उलटी आ गई.

हवलदार समझदार आदमी था. वह समझ गया कि 75 वर्षीय जौन, जो दफ्तर की कुरसी पर बैठता आया था, इतना कठोर न था कि इस तरह के हादसे को सहजता से पचा लेता.

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फिर भी उस ने कोशिश की. जौन से कहा, ‘‘कुछ दिशा, रास्ता आदि समझा सकते हो?’’

जौन को उगता सूरज याद आया, जिस से उस ने दिशा का अंदाजा लगाया. फिर कुकुरमुत्तों के झुरमुट याद आए और वह दुर्गंध जो पिछले 2 घंटे से उस के समूचे स्नायुतंत्र को जकड़े हुए थी और उसे बदहवास कर रही थी. फिर जौन को दोबारा उलटी आ गई.

हवलदार ने अंत में अपने एक सहायक सिपाही से कहा कि वह इंस्पैक्टर क्रिस्टी को ले कर आए, शायद यहां कोई हत्या का मामला है.

आननफानन हत्या परीक्षण दल अपने कुत्तों को ले कर आ पहुंचा. जौन थोड़ा संभल गया था. इंस्पैक्टर क्रिस्टी का स्वागत करते हुए उस ने सारी बात फिर से सुनाई.

क्रिस्टी ने पहला काम यह किया कि उस ने अपने कुत्ते को जौन के पास ले जा कर सुंघवाया. इस के बाद रोवर को भी अंदर लाया गया और पुलिस के कुत्ते ने उसे भी अच्छी तरह सूंघा, खासकर उस के अगले पंजों को. इस के बाद क्रिस्टी और उस का दल अपने कुत्ते को मार्गदर्शक बना कर जौन के बताए रास्ते पर निकल पड़े.

अगले 1 घंटे में ही पुलिस का एक भारी दस्ता अनेक उपकरण ले कर उस स्थान पर पहुंच गया और उस ने गड्ढे में से सड़ीगली एक स्त्री की लाश बरामद की, जिसे पता नहीं कितने महीनों पहले एक परदे में लपेट कर कोई वहां फेंक गया था. लाश का सिर गायब था और दोनों हाथ भी. परदे का रंग समुद्री नीला था, जो अब बिलकुल बदरंग हो गया था. कुत्तों की मदद से अधिकारियों ने जंगल का कोनाकोना छान मारा, मगर उस का सिर और हाथ नहीं मिले.

लाश को शव परीक्षण के लिए भेज दिया गया. जौन हफ्ता भर अस्पताल में रहा. स्थान बदलने की खातिर उसे पास के बड़े शहर वोकिंग में ले जाया गया. कुछ ही हफ्तों में उस ने वहीं दूसरा मकान ले लिया और रौक्सवुड छोड़ दिया.

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शव परीक्षण से जो तथ्य सामने आए उन से पता चला कि स्त्री की हत्या किसी आरी जैसी चीज से गला काट कर की गई थी. मरने वाली भारतीय या अन्य किसी एशियाई देश की थी. उस के पेट पर मातृत्व के निशान थे. मृतका की उम्र 30 से 40 वर्ष ठहराई गई.

क्रिस्टी ने फाइल को मेज पर रखते हुए आवाज दी, ‘‘मौयरा.’’

‘‘यस डेव.’’

‘‘पिछले 3 सालों की खोई हुई स्त्रियों की लिस्ट निकलवाओ. हमें एक एशियन या ग्रीक जाति की थोड़ी हलके रंग की चमड़ी वाली स्त्री की तलाश है. उस का कद 5 फुट 3 से 5 इंच का हो सकता है. न बहुत मोटी, न पतली.’’

करीब 45 साल की मौयरा पिछले 15 सालों से डेविड क्रिस्टी की सेक्रेटरी है. क्रिमिनल ला में उस ने स्नातक किया था.

पूरे दिन की छानबीन के बाद भी कोई सुराग नहीं मिला. देश भर की सभी पुलिस चौकियों को इत्तिला भेज दी गई, मगर परिणाम कुछ नहीं निकला.

क्या वह कोई टूरिस्ट थी या किसी की मेहमान? हो सकता है कि उसे लूटपाट कर मार डाला गया हो. एशियन स्त्रियां अकसर कीमती गहने पहनती हैं. बाहर से आए आगंतुकों की पूरी जानकारी पासपोर्ट चैक करते समय रजिस्टर में दर्ज होती है. हीथ्रो एअरपोर्ट की पुलिस से पूछताछ की गई. अनेक नाम, अनेक देश, अनेक ऐसी स्त्रियां पिछले 3 सालों में ग्रेट ब्रिटेन में आईं.

लिस्टें महीने व साल के हिसाब से मौयरा के पास पहुंचीं. पासपोर्ट के फोटो सिर्फ चेहरे के होते हैं बाकी शरीर के नहीं और इस केस में सिर तो गायब ही था. ऐसे में चेहरा कहां देखने को मिलता, जिसे पासपोर्ट फोटो के साथ मैच किया जाता. खोए हुए पासपोर्ट भी गंभीरता से ढूंढ़े गए, मगर कोई सूत्र हाथ नहीं आया.

क्रिस्टी ने कहा, ‘‘अगर मेहमान थी तो 6 महीने के बाद जरूर वापस गई होगी अपने देश. जो वापस चली गईं उन को छोड़ दो, मगर जो वापस नहीं गईं उन की लिस्ट जरूर वीजा औफिस में होगी, क्योंकि वे अवैध नागरिक बन कर यहीं टिक गई होंगी.’’

3-4 दिन बाद वीजा औफिस से जवाब आ गया. ऐसी स्त्रियों में कोई भी लाश से मिलतीजुलती नहीं मिली.

आखिर डेविड क्रिस्टी ने फाइल बंद कर दी.

उसी दिन शाम को जौन का फोन आया. पूछा, ‘‘मि. क्रिस्टी, आप की तहकीकात कैसी चल रही है?’’

‘‘कुछ खास नहीं, कपड़े सड़गल गए हैं. न केश, न नाखून, न फिंगरप्रिंट, न दांत. किस आधार पर तहकीकात करूं?’’

‘‘मैं ने तो और कुछ नहीं बस वह नीला परदा देखा था, जो उस के बदन को ढके हुए था.’’

‘‘जौन, तुम परेशान क्यों होते हो. इस देश में हर महीने एक लड़की की हत्या होती है. लड़कियों को आजादी तो दे दी, मगर हम क्या उन्हें सुरक्षा दे सके? शायद पिछड़ी हुई सभ्यताओं में ठीक ही करते हैं कि स्त्रियों को घर से बाहर ही नहीं जाने देते.’’

‘‘परेशानी मुझे नहीं तो और किसे होगी. जब भी घर के अंदर घुसता हूं, तो लगता है कि वह मेरे पीछे भागी आ रही है और मैं ने उस के मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया.’’

‘‘जौन, ऐसा है तो कुछ दिन किसी दूसरे देश में पत्नी के साथ हौलीडे मना कर आ जाओ और किसी अच्छे मनोरोगचिकित्सक को दिखा लो.’’

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‘‘मुझे लगता है कि वह हम से न्याय मांग रही है.’’

‘‘हां, तुम चर्च में जाने वाले धर्मभीरु इंसान हो, मगर याद रखो मर कर कोई वापस नहीं आया. शांतचित्त हो कर सोचो, साहसमंद बनो, अपना खयाल रखो. तुम अगर विचलित होगे तो डोरा का क्या होगा?’’ कहने को तो क्रिस्टी बोल गया, मगर उस के मन में वह नीला परदा कौंध गया. उस ने उस परदे की बारीकी से छानबीन की, तो अंदर की तरफ एक लेबल मिल गया जिस पर कंपनी का नाम था.

‘‘मौयरा, देखो इस परदे की मैन्युफैक्चर कंपनी का नाम.’’

‘‘उस से क्या होगा. कंपनी ने कोई एक परदा तो बनाया नहीं होगा.’’

‘‘चलो, कोशिश करने में क्या हरज है.’’

मौयरा ने परदे बनाने वाली कंपनी को पत्र लिखा तो उत्तर मिला कि यह परदा 20 वर्ष पहले बना था, उन की कंपनी में. रिटेल में बेचने वाली दुकान का नाम ऐक्सल हाउजलिनेन स्टोर था. पर इस स्टोर की बीसियों ब्रांचें पूरे देश में फैली हुई थीं. सहायता के तौर पर उन्होंने अपने बचेखुचे स्टौक में से ढूंढ़ कर वैसा ही एक परदा क्रिस्टी को भेज दिया. उस स्टोर की एक भी ब्रांच इस क्षेत्र में नहीं थी. एक ब्रांच 40 मील दूर पर मिल ही गई, तो उन्होंने अपने सब रिकौर्ड उलटेपलटे और बताया कि परदा करीब 15 साल पहले बिका होगा. इस के बाद उस की बिक्री बंद हो गई थी, क्योंकि सारा माल खत्म हो गया था.

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सौजन्य- सत्यकथा

घटना मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र की है. 17 मार्च, 2019 की दोपहर 2 बजे का समय था. इस समय अधिकांशत:

घरेलू महिलाएं आराम करती हैं. ग्वालियर के पुराने हाईकोर्ट इलाके में स्थित शांतिमोहन विला की तीसरी मंजिल पर रहने वाली मीनाक्षी माहेश्वरी काम निपटाने के बाद आराम करने जा रही थीं कि तभी किसी ने उन के फ्लैट की कालबेल बजाई. घंटी की आवाज सुन कर वह सोचने लगीं कि पता नहीं इस समय कौन आ गया है.

बैड से उठ कर जब उन्होंने दरवाजा खोला तो सामने घबराई हालत में खड़ी अपनी सहेली प्रीति को देख कर वह चौंक गईं. उन्होंने प्रीति से पूछा, ‘‘क्या हुआ, इतनी घबराई क्यों है?’’

‘‘उन का एक्सीडेंट हो गया है. काफी चोटें आई हैं.’’ प्रीति घबराते हुए बोली.‘‘यह तू क्या कह रही है? एक्सीडेंट कैसे हुआ और भाईसाहब कहां हैं?’’ मीनाक्षी ने पूछा.‘‘वह नीचे फ्लैट में हैं. तू जल्दी चल.’’ कह कर प्रीति मीनाक्षी को अपने साथ ले गई.

मीनाक्षी अपने साथ पड़ोस में रहने वाले डा. अनिल राजपूत को भी साथ लेती गईं. प्रीति जैन अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल पर स्थित फ्लैट नंबर 208 में अपने पति हेमंत जैन और 2 बच्चों के साथ रहती थी.

हेमंत जैन का शीतला माता साड़ी सैंटर के नाम से साडि़यों का थोक का कारोबार था. इस शाही अपार्टमेंट में वे लोग करीब साढ़े 3 महीने पहले ही रहने आए थे. इस से पहले वह केथ वाली गली में रहते थे. हेमंत जैन अकसर साडि़यां खरीदने के लिए गुजरात के सूरत शहर आतेजाते रहते थे. अभी भी वह 2 दिन पहले ही 15 मार्च को सूरत से वापस लौटे थे.

मीनाक्षी माहेश्वरी डा. अनिल राजपूत को ले कर प्रीति के फ्लैट में पहुंची तो हेमंत की गंभीर हालत देख कर वह घबरा गईं. पलंग पर पड़े हेमंत के सिर से काफी खून बह रहा था. वे लोग हेमंत को तुरंत जेएएच ट्रामा सेंटर ले गए, जहां जांच के बाद डाक्टरों ने हेमंत को मृत घोषित कर दिया.

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पुलिस केस होने की वजह से अस्पताल प्रशासन द्वारा इस की सूचना इंदरगंज के टीआई को दे दी. इस दौरान प्रीति ने मीनाक्षी को बताया कि उसे एक्सीडेंट के बारे में कुछ नहीं पता कि कहां और कैसे हुआ.

प्रीति ने बताया कि वह अपने फ्लैट में ही थी. कुछ देर पहले हेमंत ने कालबेज बजाई. मैं ने दरवाजा खोला तो वह मेरे ऊपर ही गिर गए. उन्होंने बताया कि उन का एक्सीडेंट हो गया. कहां और कैसे हुआ, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं बताया और अचेत हो गए. हेमंत को देख कर मैं घबरा गई. फिर दौड़ कर मैं आप को बुला लाई.

अस्पताल से सूचना मिलते ही थाना इंदरगंज के टीआई मनीष डाबर मौके पर पहुंचे तो प्रीति जैन ने वही कहानी टीआई मनीष डाबर को सुनाई, जो उस ने मीनाक्षी को सुनाई थी.

एक्सीडेंट की कहानी पर संदेह

टीआई मनीष डाबर को लगा कि हेमंत की कहानी एक्सीडेंट की तो नहीं हो सकती. इस के बाद उन्होंने इस मामले से एसपी नवनीत भसीन को भी अवगत करा दिया. एसपी के निर्देश पर टीआई अस्पताल से सीधे हेमंत के फ्लैट पर जा पहुंचे.

उन्होंने हेमंत के फ्लैट की सूक्ष्मता से जांच की. जांच में उन्हें वहां की स्थिति काफी संदिग्ध नजर आई. प्रीति ने पुलिस को बताया था कि एक्सीडेंट से घायल हेमंत ने बाहर से आ कर फ्लैट की घंटी बजाई थी, लेकिन न तो अपार्टमेंट की सीढि़यों पर और न ही फ्लैट के दरवाजे पर धब्बे तो दूर खून का छींटा तक नहीं मिला. कमरे में जो भी खून था, वह उसी पलंग के आसपास था, जिस पर घायल अवस्था में हेमंत लेटे थे.

बकौल प्रीति हेमंत घायलावस्था में थे और दरवाजा खुलते ही उस के ऊपर गिर पड़े थे, लेकिन पुलिस को इस बात का आश्चर्य हुआ कि प्रीति के कपड़ों पर खून का एक दाग भी नहीं था.

टीआई मनीष डाबर ने इस जांच से एसपी नवनीत भसीन को अवगत कराया. इस के बाद एडीशनल एसपी सत्येंद्र तोमर तथा सीएसपी के.एम. गोस्वामी भी हेमंत के फ्लैट पर पहुंच गए. सभी पुलिस अधिकारियों को प्रीति द्वारा सुनाई गई कहानी बनावटी लग रही थी.

प्रीति के बयान की पुष्टि करने के लिए टीआई ने फ्लैट के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज अपने कब्जे में लिए. फुटेज की जांच में चौंकाने वाली बात सामने आई. पता चला कि घटना से करीब आधा घंटा पहले हेमंत के फ्लैट में 2 युवक आए थे. दोनों कुछ देर फ्लैट में रहने के बाद एकएक कर बाहर निकल गए थे.

उन युवकों के चले जाने के बाद प्रीति भी एक बार बाहर आ कर वापस अंदर गई और कपड़े बदल कर मीनाक्षी को बुलाने तीसरी मंजिल पर जाती दिखी.

मामला साफ था. सीसीटीवी फुटेज में घायल हेमंत घर के अंदर या बाहर आते नजर नहीं आए थे. अलबत्ता 2 युवक फ्लैट में आतेजाते जरूर दिखे थे. प्रीति ने इन युवकों के फ्लैट में आने के बारे में कुछ नहीं बताया था. जिस की वजह से प्रीति खुद शक के घेरे में आ गई.

जो 2 युवक हेमंत के फ्लैट से निकलते सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए थे, पुलिस ने उन की जांच शुरू कर दी. जांच में पता चला कि उन में से एक दानाखोली निवासी मृदुल गुप्ता और दूसरा सुमावली निवासी उस का दोस्त आदेश जैन था.

दोनों युवकों की पहचान हो जाने के बाद मृतक हेमंत की बहन ने भी पुलिस को बताया कि प्रीति के मृदुल गुप्ता के साथ अवैध संबंध थे. इस बात को ले कर प्रीति और हेमंत के बीच विवाद भी होता रहता था.

यह जानकारी मिलने के बाद टीआई मनीष डाबर ने मृदुल और आदेश जैन के ठिकानों पर दबिश दी लेकिन दोनों ही घर से लापता मिले. इतना ही नहीं, दोनों के मोबाइल फोन भी बंद थे. इस से दोनों पर पुलिस का शक गहराने लगा.

लेकिन रात लगभग डेढ़ बजे आदेश जैन अपने बडे़ भाई के साथ खुद ही इंदरगंज थाने आ गया. उस ने बताया कि मृदुल ने उस से कहा था कि हेमंत के घर पैसे लेने चलना है. वह वहां पहुंचा तो मृदुल और प्रीति सोफे के पास घुटने के बल बैठे थे जबकि हेमंत सोफे पर लेटा था.

इस से दाल में कुछ काला नजर आया, जिस से वह वहां से तुरंत वापस आ गया था. उस ने बताया कि वह हेमंत के घर में केवल डेढ़ मिनट रुका था. आदेश के द्वारा दी गई इस जानकारी से हेमंत की मौत का संदिग्ध मामला काफी कुछ साफ हो गया.

दूसरे दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. रिपोर्ट में बताया गया कि हेमंत के माथे पर धारदार हथियार के 5 और चेहरे पर 3 घाव पाए गए. उन के सिर पर पीछे की तरफ किसी भारी चीज से चोट पहुंचाई गई थी, जिस से उन की मृत्यु हुई थी.

इसी बीच पुलिस को पता चला कि मृतक की पत्नी प्रीति जैन रात के समय घर में आत्महत्या करने का नाटक करती रही थी. सुबह अंतिम संस्कार के बाद भी उस ने आग लगा कर जान देने की कोशिश की. पुलिस उसे हिरासत में थाने ले आई.

दूसरी तरफ दबाव बढ़ने पर मृदुल गुप्ता भी शाम को अपने वकील के साथ थाने में पेश हो गया. पुलिस ने प्रीति और मृदुल से पूछताछ की तो बड़ी आसानी से दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने स्वीकार कर लिया कि हेमंत की हत्या उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से की थी.

पूछताछ के बाद हेमंत की हत्या की कहानी इस तरह सामने आई—

हेमंत के बड़े भाई भागचंद जैन करीब 20 साल पहले ग्वालियर के खिड़की मोहल्लागंज में रहते थे. हेमंत का अपने बड़े भाई के घर काफी आनाजाना था. बड़े भाई के मकान के सामने एक शुक्ला परिवार रहता था. प्रीति उसी शुक्ला परिवार की बेटी थी. वह हेमंत की हमउम्र थी.

बड़े भाई और शुक्ला परिवार में काफी नजदीकियां थीं, जिस के चलते हेमंत का भी प्रीति के घर आनाजाना हो जाने से दोनों में प्यार हो गया. यह बात करीब 18 साल पहले की है. हेमंत और प्रीति के बीच बात यहां तक बढ़ी कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी नहीं थे. तब दोनों ने घर वालों की मरजी के खिलाफ प्रेम विवाह कर लिया था.

इस से शुक्ला परिवार ने बड़ी बेइज्जती महसूस की और वह अपना गंज का मकान बेच कर कहीं और रहने चले गए जबकि प्रीति पति के साथ कैथवाली गली में और फिर बाद में दानाओली के उसी मकान में आ कर रहने लगी, जिस की पहली मंजिल पर मृदुल गुप्ता अकेला रहता था. यहीं पर मृदुल की प्रीति के पति हेमंत से मुलाकात और दोस्ती हुई थी.

हेमंत ने साड़ी का थोक कारोबार शुरू कर दिया था, जिस में कुछ दिन तक प्रीति का भाई भी सहयोगी रहा. बाद में वह कानपुर चला गया. इधर हेमंत का काम देखते ही देखते काफी बढ़ गया और वह ग्वालियर के पहले 5 थोक साड़ी व्यापारियों में गिना जाने लगा. हेमंत को अकसर माल की खरीदारी के लिए गुजरात के सूरत शहर जाना पड़ता था.

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हेमंत का काम काफी बढ़ चुका था, जिस के चलते एक समय ऐसा भी आया जब महीने में उस के 20 दिन शहर से बाहर गुजरने लगे. इस दौरान प्रीति और दोनों बच्चे ग्वालियर में अकेले रह जाते थे. इसलिए उन की देखरेख की जिम्मेदारी हेमंत अपने सब से खास और भरोसेमंद दोस्त मृदुल को सौंप जाता था.

हेमंत मृदुल पर इतना भरोसा करता था कि कभी उसे बाहर से बड़ी रकम ग्वालियर भेजनी होती तो वह मृदुल के बैंक खाते में ही ट्रांसफर कर देता था. इस से हेमंत की गैरमौजूदगी में भी मृदुल का प्रीति के घर में लगातार आनाजाना बना रहने लगा था.

प्रीति की उम्र 35 पार कर चुकी थी. वह 2 बच्चों की मां भी बन चुकी थी लेकिन आर्थिक बेफिक्री और पति के अति भरोसे ने उसे बिंदास बना दिया था. इस से वह न केवल उम्र में काफी छोटी दिखती थी बल्कि उस का रहनसहन भी अविवाहित युवतियों जैसा था.

कहते हैं कि लगातार पास बने रहने वाले शख्स से अपनापन हो जाना स्वाभाविक होता है. यही प्रीति और मृदुल के बीच हुआ. दोनों एकदूसरे से काफी घुलेमिले तो थे ही, अब एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए थे. उन के बीच दोस्तों जैसी बातें होने लगी थीं, जिस के चलते एकदूसरे के प्रति उन का नजरिया भी बदल गया था. इस का नतीजा यह हुआ कि लगभग डेढ़ साल पहले उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

दोस्त बन गया दगाबाज

प्रीति का पति ज्यादातर बाहर रहता था और मृदुल अभी अविवाहित था. इसलिए दैहिक सुख की दोनों को जरूरत थी. उन्हें रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. क्योंकि खुद हेमंत ने ही मृदुल को प्रीति और बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रखी थी. इसलिए हेमंत के ग्वालियर में न रहने पर मृदुल की रातें प्रीति के साथ उस के घर में एक ही बिस्तर पर कटने लगीं.

दूसरी तरफ प्रीति के नजदीक बने रहने के लिए मृदुल जहां हेमंत के प्रति ज्यादा वफादारी दिखाने लगा, वहीं जवान प्रेमी को अपने पास बनाए रखने के लिए प्रीति न केवल उसे हर तरह से सुख देने की कोशिश करने लगी, बल्कि मृदुल पर पैसा भी लुटाने लगी थी.

इसी बीच करीब 6 महीने पहले एक रोज जब हेमंत ग्वालियर में ही बच्चों के साथ था, तब बच्चों ने बातोंबातों में बता दिया कि मम्मी तो मृदुल अंकल के साथ सोती हैं और वे दोनों दूसरे कमरे में अकेले सोते हैं.

बच्चे भला ऐसा झूठ क्यों बोलेंगे, इसलिए पलक झपकते ही हेमंत सब समझ गया कि उस के पीछे घर में क्या होता है. हेमंत ने मृदुल को अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया और उस के अपने यहां आनेजाने पर भी रोक लगा दी.

इस बात को ले कर उस का प्रीति के साथ विवाद भी हुआ. प्रीति ने सफाई देने की कोशिश भी की लेकिन हेमंत ने मृदुल को फिर घर में अंदर नहीं आने दिया. इस से प्रीति परेशान हो गई.

दोनों अकेलेपन का लाभ न उठा सकें, इसलिए हेमंत अपना घर छोड़ कर परिवार को ले कर अपनी बहन के साथ आ कर रहने लगा. ननद के घर में रहते हुए प्रीति और मृदुल की प्रेम कहानी पर ब्रेक लग गया.

लेकिन हेमंत कब तक अपना परिवार ले कर  बहन के घर रहता, सो उस ने 3 महीने पहले पुराना मकान बेच कर इंदरगंज में नया फ्लैट ले लिया. यहां आने के बाद प्रीति और मृदुल की कामलीला फिर शुरू हो गई.

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प्रीति अपने युवा प्रेमी की ऐसी दीवानी थी कि उस ने मृदुल पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह उसे अपने साथ रख ले. इस पर जनवरी में मृदुल ने प्रीति से कहीं दूर भाग चलने को कहा लेकिन प्रीति बोली, ‘‘यह स्थाई हल नहीं है. पक्का हल तो यह है कि हम हेमंत को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दें.’’

मृदुल को भी अपनी इस अनुभवी प्रेमिका की लत लग चुकी थी, इसलिए वह इस बात पर राजी हो गया. जिस के बाद दोनों ने घर में ही हेमंत की हत्या करने की योजना बना कर 17 मार्च, 2019 को उस पर अमल भी कर दिया.

योजना के अनुसार उस रोज प्रीति ने पति की चाय में नींद की ज्यादा गोलियां डाल दीं, जिस से वह जल्द ही गहरी नींद में चला गया. फिर मृदुल के आने पर प्रीति ने गहरी नींद में सोए पति के पैर दबोचे और मृदुल ने हेमंत की गला दबा दिया.

इस दौरान हेमंत ने विरोध किया तो दोनों ने उसे उठा कर कई बार उस का सिर दीवार से टकराया, जिस से उस के सिर से खून बहने लगा और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

टीआई मनीष डाबर ने प्रीति और मृदुल से विस्तार से पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से प्रीति को जेल भेज दिया और मृदुल को 2 दिनों के रिमांड पर पुलिस को सौंप दिया ताकि उस से वह कपड़े बरामद हो सकें जो उस ने हत्या के समय पहन रखे थे.

कथा लिखने तक पुलिस मृदुल से पूछताछ कर रही थी. हेमंत की हत्या में आदेश जैन शामिल था या नहीं, इस की पुलिस जांच कर रही थी.

Manohar Kahaniya: जिद की भेंट चढ़ी डॉक्टर मंजू वर्मा- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

डा. मंजू वर्मा बेहद खूबसूरत थी. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की तारीफ की. डा. सुशील वर्मा जहां सुंदर पत्नी पा कर खुश था, वहीं डा. मंजू भी काबिल पति पा कर अपने भाग्य को सराह रही थी. कौशल्या देवी भी सुंदर बहू पा कर खुशी से इतरा उठी थीं.

डा. मंजू वर्मा कुछ दिन ससुराल में रही फिर पति सुशील वर्मा के साथ बिठूर (कानपुर) स्थित रुद्रा ग्रींस अपार्टमेंट की 8वीं मंजिल के फ्लैट नंबर 8ए में रहने लगी.

बड़े प्यार से दोनों ने जिंदगी की शुरुआत की. शादी के एक साल बाद डा. मंजू ने एक बेटे को जन्म दिया. उस का नाम रखा रुद्रांश. रुद्रांश के जन्म से उन की खुशियां दोगुनी बढ़ गईं.

एक रोज बातचीत के दौरान डा. सुशील ने मंजू को बताया कि जिस फ्लैट में वह रह रहे हैं, उसे उस ने 80 लाख रुपए में खरीद लिया है. इस पर उस ने 40 लाख रुपए का लोन लिया है जिसे तुम्हें चुकाना है.

पति की बात सुन कर डा. मंजू वर्मा चौंक पड़ी और बोली, ‘‘मैं 40 लाख रुपए का लोन कैसे चुकाऊंगी. मैं तो बच्चे की परवरिश के कारण प्रैक्टिस भी नहीं कर रही हूं.’’

‘‘यह सब मैं नहीं जानता. लोन तुम्हें ही चुकाना है. तुम्हारे पास पैसा नहीं है तो पिताजी से मांग लो. वह तुम्हें कभी मना नहीं करेंगे.’’

डा. मंजू वर्मा समझ गई कि पति लालची है. दहेज के रूप में मायके वालों से पैसा लेना चाहता है. फिर भी मंजू ने पति को समझाया कि पिता की हैसियत ऐसी नहीं है कि वह लाखों रुपए दे सकें.

इस के बाद तो अकसर लोन अदायगी को ले कर मंजू और सुशील वर्मा में तकरार होने लगी. एक रोज मंजू ने अपने पिता को फोन किया, ‘‘पिताजी, आप से दामाद चुनने में बड़ी भूल हो गई. आप का दामाद लालची है. उस ने 40 लाख रुपए का लोन लिया है. वह कहता है कि यह लोन मुझे चुकाना होगा.’’

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बेटी की बात सुन कर अर्जुन प्रसाद चिंतित हो उठे. फिर भी उन्होंने मंजू को समझाया कि वह इस बाबत दामादजी से बात करेंगे और उन्हें समझाएंगे. उन्होंने ऐसा किया भी. पर बात नहीं बनी.

अब तो दिन पर दिन लोन अदायगी को ले कर मंजू और सुशील में तकरार होने लगी. सुशील, मंजू को शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताडि़त करने लगा.

मंजू एमडी की पढ़ाई पूरा करना चाहती थी. इस के लिए उस ने प्रयास भी शुरू कर दिया था. लेकिन पति की प्रताड़ना और बच्चे की परवरिश के कारण वह टूट गई और पढ़ाई का इरादा बदल दिया. अब वह मानसिक तौर पर परेशान रहने लगी.

13 मई, 2021 को भी डा. मंजू वर्मा और डा. सुशील वर्मा के बीच लोन अदायगी को ले कर झगड़ा हुआ. झगड़ा इतना बढ़ा कि सुशील वर्मा ने मंजू की पिटाई कर दी.

पिटाई से आहत मंजू ने पिता से फोन पर बात की और अपनी व्यथा बताई. अर्जुन प्रसाद ने उसे समझाया कि वह कोई रास्ता निकालेंगे.

14 मई, 2021 की शाम को भी सुशील ने मंजू को प्रताडि़त किया. इस पर उस ने खाना नहीं बनाया. तब सुशील ने औनलाइन पिज्जा मंगाया और खाया भी. लेकिन तनाव व गुस्से में मंजू ने कुछ नहीं खाया.

रात 10 बजे मंजू अपने डेढ़ वर्षीय बेटे रुद्रांश के साथ कमरे में पड़े पलंग पर लेट गई तथा सुशील वर्मा दूसरे कमरे में जा कर लेट गया. कुछ देर बाद वह गहरी नींद सो गया.

डा. सुशील वर्मा तो सो गया. लेकिन गुस्से और तनाव में डा. मंजू वर्मा को नींद नहीं आई. इसी तनाव में मंजू कमरे से बाहर निकली और बालकनी में चहलकदमी करने लगी. लेकिन उस का तनाव फिर भी कम नहीं हुआ. इसी तनाव में डा. मंजू वर्मा ने बालकनी में रखी कुरसी पर चढ़ कर नीचे छलांग लगा दी. नीचे गिरते ही उस की मौत हो गई.

रुद्रा ग्रींस अपार्टमेंट के सिक्योरिटी गार्ड जगदीश ने किसी भारी वस्तु के गिरने की आवाज सुनी तो वह वहां पहुंचा और महिला की लाश देख कर शोर मचाया. शोर व बच्चे के रोने की आवाज सुन कर सुशील वर्मा की नींद खुली तो वह कमरे में आया.

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सिक्योरिटी गार्ड ने दी थी सूचना

कमरे में मंजू नहीं दिखी तो बालकनी पर पहुंचा. वहां से झांका तो उस के होश उड़ गये. नीचे आ कर देखा तो मंजू की लाश पड़ी थी. उस ने फोन से मंजू की मौत की सूचना बड़े भाई सुनील वर्मा तथा छोटे भाई सुधीर को दी. सुधीर ने मंजू के पिता अर्जुन प्रसाद को फोन पर सूचना दी. तब वह कानपुर पहुंचे.

इधर सिक्योरिटी गार्ड जगदीश की सूचना पर बिठूर थानाप्रभारी अमित मिश्रा रुद्रा ग्रींस अपार्टमेंट पहुंचे और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की.

जांच से पता चला कि मंजू वर्मा ने तनाव में 8वीं मंजिल से छलांग लगा कर जान दी है. लेकिन उन के पिता ने दहेज हत्या मे रिपोर्ट दर्ज कराई थी. अत: रिपोर्ट के आधार पर ही मंजू वर्मा के पति सुशील वर्मा को गिरफ्तार किया गया.

16 मई, 2021 को बिठूर पुलिस ने डा. सुशील वर्मा को चौबेपुर की अस्थाई जेल भेजा, जहां कोरोना जांच तथा अन्य औपचारिकताएं पूरी की गईं. इस के बाद 27 मई, 2021 को उन्हें कानपुर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

दूसरे आरोपी सुनील वर्मा, जो बेसिक शिक्षा अधिकारी है, को पुलिस ने कथा लिखने तक गिरफ्तार नहीं किया था. शासनप्रशासन की अनुमति के बाद ही उस की गिरफ्तारी संभव हो सकेगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story in Hindi- अधूरी मौत: भाग 4- क्यों शीतल ने अनल के साथ खतरनाक खेल खेला?

बंगले की गली से निकल कर जैसे ही वह मुख्य सड़क पर आने को हुई तो कार की हैडलाइट सामने खड़े बाइक सवार पर पड़ी. उस बाइक सवार की शक्ल हूबहू अनल के जैसी थी.

अनल…अनल कैसे हो सकता है. ओहो तो वीर ने उसे डराने के लिए यहां तक रच डाला कि अनल का हमशक्ल रास्ते में खड़ा कर दिया. अपने आप से बात करते हुए शीतल बोली,  ‘‘हद है कमीनेपन की.’’

‘‘जी मैडम, कुछ बोला आप ने?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘नहीं कुछ नहीं. चलते रहो.’’ शीतल बोली.

‘‘मैडम, मैं कल की छुट्टी लूंगा.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘क्यों?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को झाड़फूंक करवाने ले जाना है.’’ ड्राइवर बोला, ‘‘उस पर ऊपर की हवा का असर है.’’

‘‘अरे भूतप्रेत, चुड़ैल वगैरह कुछ नहीं होता. फालतू पैसा मत बरबाद करो.’’ शीतल ने सीख दी.

‘‘नहीं मैडम, अगर मरने वाले की कोई इच्छा अधूरी रह जाए तो वह इच्छापूर्ति के लिए भटकती रहती है. उसे भी मुक्त करा दिया जाना चाहिए.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘अधूरी इच्छा?’’ बोलने के साथ ही शीतल को याद आया कि अनल की मौत भी तो एक अधूरी इच्छा के साथ हुई है. तो अभी जो दिखाई पड़ा, वह अनल ही था? अनल ही साए के माध्यम से उसे अपने पास बुला रहा था? उस के प्राइवेट नंबर पर काल कर रहा था? पिछले 12 घंटों से जीने की हिम्मत बटोरने वाली शीतल पर एक बार फिर डर का साया छाने लगा था.

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क्लब की किसी भी एक्टिविटी में उस का दिल नहीं लगा. आज वह इस डर से क्लब से जल्दी निकल गई कि दिखाई देने वाला व्यक्ति कहीं सचमुच अनल तो नहीं. अभी कार क्लब के गेट के बाहर निकली ही थी कि शीतल की नजर एक बार फिर बाइक पर बैठे अनल पर पड़ी, जो उसे बायबाय करते हुए जा रहा था. लेकिन इस बार उस ने रंगीन नहीं एकदम सफेद कपड़े पहने थे.

‘‘ड्राइवर उस बाइक का पीछा करो.’’ पसीने में नहाई शीतल बोली. उस की आवाज अटक रही थी घबराहट के मारे.

‘‘बाइक? कौन सी बाइक मैडम?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘अरे, वही बाइक जो वह सफेद कपड़े पहने आदमी चला रहा है.’’ शीतल कुछ साहस बटोर कर बोली.

‘‘मैडम मुझे न तो कोई बाइक दिखाई पड़ रही है, न कोई इस तरह का आदमी. और जिस तरफ आप जाने का बोल रही हैं, वह रास्ता तो श्मशान की तरफ जाता है. आप तो जानती ही हैं, मैं अपने घर में इस तरह की एक परेशानी से जूझ रहा हूं. इसीलिए इस वक्त इतनी रात को मैं उधर जाने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

अब शीतल का डर और भी अधिक बढ़ गया. वह समझ चुकी थी, उसे जो दिखाई दे रहा है वह अनल का साया ही है. अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह पंक्तियों की आवाज भी अनल की ही थी. क्या चाहता है अनल का साया उस से?

शीतल अभी यह सब सोच ही रही थी कि कार बंगले के उस मोड़ पर आ गई, जहां उस ने जाते समय अनल को बाइक पर देखा था. उस ने गौर से देखा उस मोड़ पर अभी भी एक बाइक पर कोई खड़ा है. अबकी बार कार की हैडलाइट सीधे खड़े हुए आदमी के चेहरे पर पड़ी.

उसे देख कर शीतल का चेहरा पीला पड़ गया. उसे लगा जैसे उस का खून पानी हो गया है, शरीर ठंडा पड़ गया है. वह अनल ही था. वही सफेद कपड़े पहने हुए था.

‘‘देखो भैया, उस मोड़ पर बाइक पर एक आदमी खड़ा है सफेद कपड़े पहन कर.’’ डर से कांपती हुई शीतल बोली.

‘‘नहीं मैडम, जिसे आप सफेद कपड़ों में आदमी बता रहीं हैं वो वास्तव में एक बाइक वाली कंपनी के विज्ञापन का साइन बोर्ड है जो आज ही लगा है.’’ ड्राइवर ने कहा और गाड़ी बंगले की तरफ मोड़ दी.

ड्राइवर की बात सुन कर फुल स्पीड में चल रहे एयर कंडीशन के बावजूद शीतल को इतना पसीना आया कि उस के पैरों में कस कर बंधी सैंडल में से उस के पंजे फिसलने लगे, कदम लड़खड़ाने लगे.

वह लड़खड़ाते कदमों से ड्राइवर के सहारे बंगले में दाखिल हुई. और ड्राइंगरूम के सोफे  पर बैठ गई. वह सोच ही रही थी कि अपने बैडरूम में जाए या नहीं. तभी शीतल अचानक बजी डोरबेल की आवाज से डर गई. किसी अनहोनी की आशंका से पसीनेपसीने होने लगी.

शीतल उठ कर बाहर जाना नहीं चाहती थी. वह ड्राइंगरूम की खिड़की से देखने लगी.

चौकीदार ने मेन गेट पर बने स्लाइडिंग विंडो से देखने की कोशिश की, मगर उसे कोई दिखाई नहीं दिया. अत: वह छोटा गेट खोल कर बाहर देखने लगा. ज्यों ही उस ने गेट खोला शीतल को सामने के लैंपपोस्ट के नीचे खड़ा अनल दिखाई दिया. इस बार उस ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और वह दोनों बाहें फैलाए हुए था. चौकीदार उसे देखे बिना ही सड़क पर अपनी लाठी फटकारने लगा और जोरों से विसलिंग करने लगा.

इस का मतलब था कि चौकीदार को अनल दिखाई नहीं पड़ा. इसीलिए वह उस से बात न कर के जमीन पर लाठी फटकार कर अपनी ड्यूटी की खानापूर्ति कर रहा था.

शीतल सोचने लगी उस दिन अगर उस की इच्छापूर्ति कर देती तो शायद अनल इस रूप में नहीं आता और उसे इस तरह डर कर नहीं रहना पड़ता. कल ड्राइवर के साथ वह भी उस झाड़फूंक करने वाले ओझा के पास जाएगी. पुलिस से शिकायत करने से कुछ नहीं होगा.

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शीतल अभी पूरी तरह से निर्णय ले भी नहीं पाई थी कि मोबाइल पर आई काल की रिंग से डर कर वह दोहरी हो गई. उस के हाथपैर कांपने लगे. वह जानती थी कि इस समय फोन करने वाला कौन होगा.

उस ने हिम्मत कर के मोबाइल की स्क्रीन पर देखा. इस बार किसी का नंबर डिसप्ले हो रहा था. नंबर अनजाना जरूर था, मगर यह नंबर उस के लिए एक प्रमाण बन सकता है. यही सोच कर उस ने फोन उठा लिया. उसे विश्वास था कि उसे फिर वही पंक्तियां सुनने को मिलेंगी.

लेकिन उस का अनुमान गलत निकला.

‘‘हैलो शीतू?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क..क..कौन हो तुम?’’ शीतल बहुत हिम्मत कर के अपनी घबराहट पर नियंत्रण रखते हुए बोली.

‘‘तुम्हें शीतू कौन बुला सकता है. कमाल हो गया, तुम अपने पति की आवाज तक नहीं पहचान पा रही हो. अरे भई, मैं तुम्हारा पति अनल बोल रहा हूं.’’ उधर से आवाज आई.

‘‘तु..तु…तुम तो मर गए थे न?’’ शीतल ने हकलाते हुए पूछा.

‘‘हां, मगर मेरी वह अधूरी मौत थी, इट वाज जस्ट ऐन इनकंपलीट डेथ. क्योंकि मैं अपनी एक अधूरी इच्छा के साथ मर गया था. इस कारण मुझे तुम से मिलने वापस आना पड़ा.’’ अनल बोला.

‘‘तुम अपनी इच्छापूर्ति के लिए सीधे घर पर भी आ सकते थे. मुझे इस तरह परेशान करने की क्या जरूरत है?’’ शीतल सहमे हुए स्वर में बोली.

‘‘देखो शीतू, मैं अब आत्मा बन चुका हूं और आत्मा कभी भी उस जगह पर नहीं जाती, जहां पर भगवान रहते हैं. पिताजी ने बंगला बनवाते समय हर कमरे में भगवान की एकएक मूर्ति लगाई थी. यही मूर्तियां मुझे तुम से मिलने से रोकती हैं. लेकिन मैं तुम से आखिरी बार मिल कर जाना चाहता हूं. बस मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो.’’ उधर से अनल अनुरोध करता हुआ बोला.

‘‘मगर एक आत्मा और शरीर का मिलन कैसे होगा?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मैं एक शरीर धारण करूंगा, जो सिर्फ तुम को दिखाई देगा और किसी को नहीं. जैसे आज ड्राइवर व चौकीदार को दिखाई नहीं दिया.’’ अनल ने जवाब दिया.

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‘‘ठीक है, बताओ कहां मिलना है?’’ शीतल ने पूछा, ‘‘मैं भी इस डरडर के जीने वाली जिंदगी से परेशान हो गई हूं.’’ शीतल ने कहा.

‘‘शहर के बाहर सुनसान पहाड़ी पर जो टीला है, उसी पर मिलते हैं, आखिरी बार.’’ अनल बोला,  ‘‘दोपहर 12 बजे.’’

‘‘ठीक है मैं आती हूं.’’ शीतल बोली.

शीतल अब निश्चिंत हो गई. वह सोचने लगी, इस स्थिति से कैसे निपटा जाए. अगर वह सचमुच एक आत्मा हुई तो..? अरे उस ने खुद ने ही तो बता दिया है कि जहां भगवान होते हैं, वहां वह ठहर ही नहीं सकता. मतलब भगवान को साथ ले जाना होगा. और अगर वह खुद कोई फ्रौड हुआ, तो अपनी आत्मरक्षा के लिए रिवौल्वर साथ ले जाऊंगी. शीतल ने निर्णय लिया.

Crime Story in Hindi: बहुरुपिया- भाग 3: दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

फ्लैट पर आतेआते काफी रात हो चुकी थी. हर्ष बाहर से गुडबाय कह कर चला गया. मेरे मन में अजीब सी ऊहापोह मची थी. जानेअनजाने एक ऐसे रास्ते पर चल रही थी जिस पर चल कर मुझे कुछ भी हासिल नहीं होना था. इस रास्ते पर चलते हुए दूरदूर तक कोई मंजिल नजर नहीं आ रही थी. यह सफर तो शायद एक भूलभुलैया ही सिद्ध होना था, तो फिर क्या हो रहा था मेरे साथ? क्या यह रास्ता मेरी नियति था या फिर मेरी कमजोरी?

ढेरों बातें मनमस्तिष्क में प्रश्नचिह्न अंकित कर रही थीं. हर्ष और मेरी पहचान को अब करीबकरीब 2 साल हो चुके थे. क्या वह वाकई मेरी इबादत करता है? अगर हां तो यह किस तरह की इबादत है? क्या वह सचमुच ऐसा सोचता है कि मैं एक दिन कलाजगत के शिखर पर पहुंचूंगी और मुझे आगे बढ़ाने में सच्चे मित्र की तरह मेरी मदद करना चाहता है? यदि हां तो इन 2 सालों में उस ने मेरी प्रतिभा को आगे बढ़ाने के लिए कौन सा प्रयत्न किया है?

सवालों के बोझ से दबी हुई आखिर मैं नींद के आगोश में खो गई. दूसरे दिन भी मन उन्हीं सवालों के जवाब ढूंढ़ने में लगा रहा. मगर ये सारे सवाल बारबार बिना जवाब के ही रह जाते. पिछले 2 सालों में मैं हर्ष में इतनी मशगूल थी कि मेरे अन्य मित्र भी मुझ से दूर हो चुके थे. आज अकेले बैठेबैठे मुझे उन सब की बड़ी याद आ रही थी. अंत में मैं ने श्रेया के यहां जाने का फैसला किया.

‘‘बहुत दिनों के बाद आई हो बेटी? कहां गुम हो गई थीं इतने दिनों से? कोई खोजखबर ही नहीं थी तुम्हारी,’’ श्रेया के घर में घुसते ही उस की मां ने मुझे अपने गले से लगा कर पूछा. उन का प्यार भरा स्वर मेरी आंखों को नम कर गया.

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‘‘बस यों ही आंटी कुछ बड़े पेंटिंग्स प्रोजैक्ट्स पर काम कर रही थी, इसलिए जरा वक्त नहीं मिल पाया, पर विश्वास करिए ऐसा कोई दिन नहीं जब मैं ने आप को याद न किया हो,’’ मैं ने आंखों के कोरों को रूमाल से पोंछते हुए कहा.

‘‘चलो, यह सब छोड़ो और बताओ चाय लोगी या कौफी?’’आंटी ने मेरे दोनों कंधे पकड़ कर मुझे सोफे पर बैठाते हुए पूछा.

‘‘चायकौफी छोडि़ए आंटी, यह बताइए श्रेया कहां है… कहीं दिखाई नहीं दे रही.’’

‘‘इतने दिन बाद आई हो कुछ खाओपीओ तो सही तब तक श्रेया भी आ जाएगी. आज उस का सितारवादन का बहुत बड़ा मंच प्रदर्शन है. बड़ी उम्मीदें हैं उसे अपने प्रदर्शन से. कई महीनों से तैयारी में जुटी थी,’’ अपनी बेटी के बारे में बतातेबताते आंटी भावुक हो गई थीं.

‘मेरी सब से प्रिय मित्र का इतना बड़ा मौका है और मुझे इस बात की कोई खबर ही नहीं,’ सोचते हुए मन ही मन ग्लानि महसूस हो रही थी.

आंटी से गपशप करने में 1 घंटा पास हो चुका था. तभी घंटी बजी, आंटी के दरवाजा खोलते ही श्रेया आंधीतूफान की तरह घर में घुसती हुई अपनी मां से लिपट गई. उस का चेहरा उत्साह से दमक रहा था.

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‘‘मम्मीमम्मी पता है आज मेरे मंच प्रदर्शन के दौरान क्या हुआ?’’ श्रेया खुशी से चहक रही थी. मां के कुछ कहने के पहले ही वह फिर से चहकने लगी, ‘‘अपने शहर के एमएलए साहब अपने परिवार के साथ आए थे, वहां प्रमुख अतिथि बन कर. पता है उन का बेटा तो प्रदर्शन खत्म होने के बाद अलग से मुझ से मिलने आया था. हर्ष नाम है उस का. उस ने कहा मेरे सितारवादन में बहुत दम है, योर म्यूजिक इज द फूड औफ द सोल. इतना ही नहीं, उस ने यह भी कहा कि मैं एक दिन पंडित रविशंकर की तरह हिंदुस्तान की सब से मशहूर सितारवादक होऊंगी. वह अपने डैडी से भी बात करेगा मुझे कोई अच्छी स्कौलरशिप दिलवाने के लिए.’’

अचानक श्रेया की नजर मुझ पर पड़ी और वह खुशी से मेरी तरफ लपकी. मैं दूर बैठी अपने मन के भावों को छिपाने का प्रयास कर रही थी. श्रेया कुछ कह पाती. उस के पहले ही मैं खड़ी हो चुकी थी. मैं किसी से कुछ नहीं कहना चाहती थी, बस जल्दी से जल्दी अपने फ्लैट पर वापस जाना चाहती थी. अब मैं सिर्फ और सिर्फ, 2 साल से चल रही हर्ष और अपनी कहानी का सही अंत ढूंढ़ना चाहती थी.

‘‘श्रेया, प्लीज मुझे अभी अपने घर जाने दो. तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है. घर जा कर पूरी तरह से आराम करना चाहती हूं. जल्दी ही फिर किसी और दिन तुम से मिलने आऊंगी. तब जम कर गपशप करेंगी हम दोनों. मैं ने श्रेया के चेहरे को दोनों हाथों में लेते हुए कहा.’’

‘‘हां तुम्हारा चेहरा कुछ पीला सा लग रहा है. बेहतर होगा तुम अपने घर जा कर आराम करो. मैं तुम्हें जबरदस्ती नहीं रोकूंगी. अब श्रेया की आंखों में मेरे लिए चिंता साफ झलक रही थी.’’

सुरमुई शाम अब तक अंधेरे की चादर ओढ़ चुकी थी. मगर मेरे मन पर 2 बरसों से छाया अंधेरा खत्म हो चुका था. मैं अब हर्ष के व्यक्तित्व में छिपे बहुरुपिए को साफसाफ देख पा रही थी, जो व्यक्ति अपने घर में बैठी कालेज प्रवक्ता ब्याहता को बेवकूफ समझता हो, तो उस से किसी और स्त्री के सम्मान की उम्मीद कैसे की जा सकती है. कैसे कद्र कर सकता है वह किसी दूसरे की कला की? मैं ने अब तक जो भी थोड़ाबहुत नाम कमाया था वह अपनी खुद की मेहनत और प्रतिभा के बूते कमाया था. किसी अनपढ़ एमएलए के बिगड़ैल बेटे की सिफारिश से नहीं.

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मेरी और हर्ष की कहानी की शुरुआत ही गलत थी. वक्त के साथसाथ इस में जितने ज्यादा अध्याय जुड़ते जा रहे थे वह उतनी ही घटिया होती जा रही?थी. मेरे मन के दर्पण पर छाई धुंध साफ हो चुकी थी और इस में बसे हुए हर्ष के चेहरे की हकीकत खुल कर नजर आने लगी थी. वह मेरी जिंदगी में आया था मुझे पतन की फिसलन पर ले जाने के लिए, शोहरत की बुलंदियों पर ले जाने नहीं. इस से पहले कि यह कहानी घटिया से घिनौनी हो जाए इसे तुरंत खत्म कर देना जरूरी है. अत: मैं ने उसी समय उस से कभी न मिलने का पक्का फैसला कर लिया और फिर इसी निश्चय के साथ मैं ने हैंडबैग से अपना मोबाइल निकाला और हर्ष का फोन नंबर हमेशा के लिए ब्लौक कर दिया.

Manohar Kahaniya: पुलिस अधिकारी का हनीट्रैप गैंग- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

यह सुनीता ठाकुर के साथ मिला हुआ था. जय कुमार ने कोतवाली के 4 पुलिसकर्मियों के साथ मिल कर एक गैंग तैयार कर लिया था. इस गैंग का काम वसूली करना ही था. भोलेभाले लोगों को डराधमका कर ये रुपयों की वसूली करते थे.

होशंगाबाद थाने के एसआई जयकुमार नलवाया का भ्रष्टाचार व अन्य विवादित मामलों से पुराना नाता रहा है.

करीब एक साल पहले रेत की अवैध वसूली के आरोप भी उन पर आरोप लगे थे. तब इटारसी के रामपुर थाने से एसआई नलवाया को हटाया गया था.

अवैध वसूली को ले कर लोकायुक्त पुलिस ने रामपुर थाने के कुछ स्टाफ को रिश्वत लेते पकड़ा था. इस में जय नलवाया का नाम ले कर कुछ पुलिसकर्मी ढाबे वाले से रुपए वसूल रहे थे.

इस घटनाक्रम का वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो इस आधार पर जय कुमार नलवाया को रामपुर से हटा कर पुलिस लाइन में अटैच कर दिया था.

बाद में वह होशंगाबाद के सिटी थाने में तैनात किया गया. अभी भी लोकायुक्त भोपाल में केस का फैसला नहीं हुआ है.

बहनभाई दोनों पुलिसकर्मी थे इस गैंग में थाने की महिला हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी और कांस्टेबल मनोज वर्मा (मांझी) दोनों रिश्ते में भाईबहन हैं. लंबे समय से दोनों होशंगाबाद जिला मुख्यालय पर ही तैनात हैं.

ज्योति मांझी का पति अशोक मांझी भी पुलिस में है. हनीट्रैप गैंग में हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी आरोपी सुनीता ठाकुर के साथ मिली हुई थी. वह भी सुनीता की हर गतिविधि पर नजर रखती थी.

ज्योति की छवि होशंगाबाद में एक दबंग पुलिसकर्मी की बनी हुई थी. जब भी हनीट्रैप मामले में लोग फंसते दिखते थे, उन पर ज्योति दबाव बनाती थी. महिला पुलिसकर्मी देख कर हनीट्रैप के शिकार युवक डर जाते और मनमाने रुपए दे देते.

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कांस्टेबल मनोज वर्मा भी गैंग का सदस्य था. वह ज्यादातर पुरुषों को डराधमका कर रुपए वसूल करता था. जो रुपए मिलते थे, उन का आपस में वंटवारा होता था.

हैडकांसटेबल ताराचंद जाटव भी इस गैंग के लिए काम करता था, परंतु वह चतुराई के साथ सुनीता से दूरियां बना कर केवल हिस्से के माल से मतलब रखता था.

सुनीता ठाकुर की हनीट्रैप गैंग में 4 पुलिसकर्मियों के नाम सामने आने से पुलिस की छवि धूमिल हो गई. इस से पुलिस महकमे में हड़कंप मचा गया. आईजी, डीआईजी, एसपी तीनों अधिकारी इस हरकत से नाराज हो गए.

एसपी संतोष सिंह गौर ने हनीट्रैप मामले में पुलिसकर्मियों के शामिल होने की जांच करने का जिम्मा महिला सेल के प्रभारी डीएसपी आशुतोष पटेल को सौंप दिया. जांच कर रहे डीएसपी आशुतोष पटेल ने ब्लैकमेल हुए पीडि़त व चारों पुलिसकर्मियों के बयान लिए.

इस मामले की जांच के लिए सुनीता के दलाल रिशिपाल पीयूष राठौर, सतीश राजपूत, योगेश कैथवास, देहात पुलिस थाना के आरक्षक सतीश चैरे समेत लगभग 50 लोगों के बयान लिए गए.

सुनीता ठाकुर के बयान और मोबाइल फोन की काल डिटेल्स की बारीकी से जांच करने पर इस बात के पक्के सबूत मिल गए कि आरोपी पुलिसकर्मियों की शह पर ही सुनीता ठाकुर हनीट्रैप की घटनाओं को अंजाम दे रही थी.

होशंगाबाद में युवाओं के वीडियो, फोटो बना कर उन्हें ब्लैकमेल करने की गैंग थाने से ही एसआई जय नलवाया चला रहा था. इस में महिला हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी और कांस्टेबल मनोज वर्मा और एक महिला सुनीता शामिल थी.

पुलिस थाने की मोहर लगे उन 7 शिकायती पत्रों की भी जांच की, जो सुनीता ने टीआई को सौंपे थे. वह सब एक जैसे कागज पर लिखे थे. शिकायती पत्रों पर न तारीख का उल्लेख और न शिकायत करने वाले के ठीक तरह से हस्ताक्षर थे.

महिला ने जिन की शिकायत की, उन पर शोषण करने और रुपए न देने के आरोप लगाए थे. शिकायती पत्रों पर थाने की सील अंकित थी, लेकिन उन शिकायती पत्रों का रिकौर्ड थाने में नहीं मिला.

थाने के बाहर इन शिकायत पत्रों के माध्यम से ब्लैकमेलिंग गैंग की महिला और चारों पुलिसकर्मी युवाओं को डरा कर रुपए वसूलते थे.

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शिकायती पत्रों की जांच में यह बात खुल कर सामने आ गई कि सुनीता ठाकुर जाल में फंसे लोगों को ब्लैकमेल करने के लिए अपने हाथ से कागज पर लिख कर शिकायत करती थी. इन पर आरोपी पुलिसकर्मी रिसीव लिख कर और उन पर थाने की सील लगा कर सुनीता को दे देते थे. शिकायत पत्र की पावती को सुनीता उन लोगों को वाट्सऐप कर के धमकाती थी.

सभी पुलिसकर्मी किए बरखास्त

सुनीता के जाल में फंसे लोग पुलिस काररवाई के नाम पर डर जाते थे. इस का फायदा उठा कर पुलिस वाले उन लोगों से वसूली करते थे. वसूली के हिस्से से सुनीता को उस का हिस्सा मिल जता था.

होशंगाबाद में पुलिसकर्मियों के साथ मिल कर हनीट्रैप गैंग चला रही आरोपी ब्लैकमेलर सुनीता को 18 जून, 2021 की शाम को कोर्ट में पेश किया. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट हिमांशु कौशल ने महिला की जमानत निरस्त कर जेल भेजने के आदेश दिए.

ब्लैकमेलर महिला सुनीता ठाकुर कथा लिखे जाने तक होशंगाबाद जेल में थी. ब्लैकमेलिंग मामले में हनीट्रैप गैंग में एसआई सहित 3 पुलिसकर्मियों के नाम सामने आने के बाद भोपाल पुलिस हेडक्वार्टर से भी जल्द काररवाई का दबाव होशंगाबाद पुलिस पर बढ़ गया था.

इसी दौरान मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल के ट्वीट ने पुलिस अधिकारियों पर दबाब बढ़ा दिया. कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा, ‘‘जो भी पुलिसकर्मी इस में शामिल हैं उन के विरुद्ध काररवाई की जाएगी.

‘‘रक्षक ही जब भक्षक बन जाएं तो दुर्भाग्यपूर्ण है. जिन पुलिसकर्मियों का नाम मामले में सामने आया है, उन के विरुद्ध एफआईआर होनी चाहिए. इस के अलावा जो भी अधिकारी शामिल हैं उन के खिलाफ भी काररवाई होनी चाहिए. ऐसे लोग नौकरी करने के लायक नहीं हैं.’’

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हनीट्रैप को ले कर कृषि मंत्री का बयान सामने आने के बाद लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर रुपयों की उगाही करने और पुलिस महकमे को बदनाम करने वाले एसआई जयकुमार नलवाया, हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी, ताराचंद जाटव, कांस्टेबल मनोज वर्मा को नौकरी से बरखास्त कर दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

Manohar Kahaniya: पुलिस में भर्ती हुआ जीजा, नौकरी कर रहा साला!- भाग 3

वह जानता था कि सरकारी नौकरी में इतनी बड़ी हेराफेरी करना इतना आसान काम नहीं. फिर वैसे भी वह पुलिस की नौकरी करने के लिए अनट्रेंड था. ऐसे में उस से कहीं भी चूक हुई तो उसे सीधे जेल की हवा ही खानी पड़ेगी.

अपनी जगह साले को भेजा ड्यूटी पर

इस के बाद भी अनिल ने सुनील को साहस बंधाते हुए कहा, ‘‘तू इतना परेशान क्यों होता है. ड्यूटी कराने से पहले तुझे मैं इतनी ट्रेनिंग दे दूंगा कि कोई भी तुझे पकड़ नहीं पाएगा.’’

अनिल उस समय भी शिक्षा विभाग में नौकरी पाने की पूरी कोशिश में लगा हुआ था. उस ने बीएड करने के बाद यूपी टेट की परीक्षा भी पास कर ली थी. उसी दौरान बेसिक शिक्षा विभाग में प्राइमरी टीचर की जगह निकलीं तो अनिल ने आवेदन कर दिया.

आवेदन करने के बाद उस का जिला सीतापुर में प्राइमरी टीचर में नंबर आ गया. उस के बाद उस ने सीतापुर में ही काउंसलिंग भी करा दी थी.

अनिल की काउंसलिंग हो जाने के बाद उस ने मन में पूरी तरह से ठान लिया था कि चाहे जैसे भी हो वह पुलिस की नौकरी सुनील को ही दे देगा.

उस के बाद उस ने सुनील को किसी तरह से पुलिस की नौकरी करने के लिए तैयार कर लिया. उस ने उसे घर पर ही प्रशिक्षित करना शुरू किया. उस ने पुलिस में नौकरी करने वाले सारे हथकंडे सुनील को बता दिए. उस ने इस ट्रेनिंग में अफसरों को सैल्यूट करने का तरीका, हथियार पकड़ने और उसे चलाने की विधि के साथ ही साथ सारी कानून संबंधी जानकारियां उसे दीं.

जब अनिल को पूरा विश्वास हो गया कि सुनील पुलिस की नौकरी करने के लिए तैयार हो चुका है तो उस ने उसे अपनी जगह पर भेजने की स्क्रिप्ट भी तैयार कर ली थी.

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फरजी सिपाही बन कई साल की ड्यूटी

उसी वक्त अनिल की पोस्टिंग डायल 112 में थाना बिलारी में चलने वाली पीआरवी पर हो गई. अनिल को लगा कि इस से बढि़या मौका भविष्य में आने वाला नहीं. अनिल ने सुनील को हिम्मत बंधाते हुए अपने स्थान पर बिलारी के अंतर्गत संचालित पीआरवी पर भेज दिया.

अनिल ने सुनील को हिदायत दी कि आज के बाद यह बात अपने पल्लू से बांध लेना कि तू सुनील नहीं बल्कि अनिल है.

अनिल ने सुनील को अपनी जगह नौकरी पर लगाते हुए उसे समझाया था कि आज के बाद उसे इंटरनेट मीडिया से कोसों दूर रहना होगा. अनिल की जगह पर नौकरी कर रहा सुनील हर रोज अपने काम की जानकारी उसे देता रहता था.

जब सुनील को फरजी सिपाही की नौकरी करते हुए काफी टाइम हो गया तो अनिल ने राहत की सांस ली. हालांकि इस वक्त नौकरी सुनील कर रहा था. लेकिन सैलरी अनिल के खाते में ही आती थी.

सुनील की परेशानी को देखते हुए अनिल ने उसे खर्च के लिए हर महीने 8 हजार रुपए देने शुरू किए. अनिल ने सुनील से कहा था कि जब वह टीचर की नौकरी जौइन कर लेगा तो उस के महीने की सैलरी भी बढ़ा देगा.

सुनील को अनिल पर पूरा विश्वास था. सुनील यह भी जानता था कि वह शादी करेगा तो उस की बहन से ही. वर्ष 2017 में सुनील को अपनी जगह पर नौकरी देने के बाद से ही उस ने उस की बहन शालू से शादी करने वाली बात पर भी जोर डालना शुरू कर दिया था.

सुनील ने इस बारे में अपने परिवार वालों से बात की तो उस के परिवार वाले उस के साथ शालू की शादी करने के लिए तैयार हो गए. अनिल और शालू की इच्छानुसार ही वर्ष 2017 में सामाजिक रीतिरिवाज से शादी कर दी गई.

अनिल और शालू की शादी होने के बाद दोनों दोस्तों का रिश्ता भी बदल गया था. दोनों दोस्त अब जीजासाले बन गए थे.

पुलिस में कई साल तक नौकरी करने के बाद सुनील बेखौफ हो गया था. उसे लगने लगा था कि अब उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यही कारण था कि वह जब भी अपने गांव आता तो पुलिस की वरदी में ही आने लगा था.

वह पिछले कई सालों से पुलिस की वरदी का रौब दिखा कर मौज मार रहा था. जीजा साले का फरजीवाड़ा न जाने कब तक यूं ही चलता रहता. लेकिन सुनील की एक लापरवाही ने सारा खेल बिगाड़ दिया.

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ले डूबा प्रोफाइल स्टेटस

उसी दौरान गांव में अनिल का किसी से किसी बात पर विवाद हो गया. उस के गांव वालों के साथसाथ उस के कुछ रिश्तेदारों को पता था कि अनिल उत्तर प्रदेश पुलिस में भरती हो गया है.

लेकिन उन के लिए सब से हैरत वाली बात यह थी कि अनिल पुलिस में भरती होने के बावजूद भी अकसर घर पर ही रहता था. जबकि पुलिस विभाग में इतनी ज्यादा सामान्य छुट्टियां मिलती कहां हैं.

उस की यही बात किसी को हजम नहीं हो पा रही थी. कुछ दिन बाद ही सुनील ने अपनी वाट्सऐप प्रोफाइल पर अपना एक फोटो अपडेट कर दिया. उस की फोटो देख कर लोगों को लगने लगा था कि जरूर दाल में कुछ काला है.

इस फोटो में उस ने पुलिस वरदी के साथसाथ अपने हाथ में एक फिल्मी स्टाइल में पिस्टल ले रखी थी. उस की प्रोफाइल फोटो देख कर कुछ ही दिनों में किसी ने एसएसपी से उस की शिकायत कर दी.

शिकायत मिलते ही पुलिस विभाग में हलचल पैदा हो गई थी. एसएसपी पंकज कुमार ने सीओ (ठाकुरद्वारा) को इस मामले की सच्चाई का पता लगाने के निर्देश दिए. जिस के बाद जीजासाले का खेल सामने आ गया.

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इस सच्चाई के सामने आते ही पुलिस ने 19 जून, 2021 को भादंवि की धारा 109, 170, 171, 419, 120बी के तहत अनिल कुमार और सुनील कुमार को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेजने के आदेश दिए. लेकिन कोविड प्रोटोकाल के मद्देनजर अनिल और सुनील को मुरादाबाद की अस्थाई जेल में 15 दिन के लिए क्वारंटीन कर दिया गया था.

एसएसपी पंकज कुमार को शक है कि जीजासाले के इस इस बड़े फरजीवाड़े में किसी न किसी पुलिस अधिकारी की संलिप्तता जरूर रही होगी. उन्होंने इस के जांच के आदेश दिए हैं. उन्होंने कहा है कि इस मामले में जिस किसी की भी लापरवाही सामने आई, उस के खिलाफ काररवाई जरूर की जाएगी.

Satyakatha: बेटे की खौफनाक साजिश- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

इस दोहरे हत्याकांड की जांच की शुरुआत थानाप्रभारी ने रवि को थाने बुला कर की. उन्होंने उस से घर में चोरी हुए सामान के बारे में पूछा. लेकिन रवि बता नहीं सका कि घर में क्याक्या सामान चोरी हुआ है.

इस के बाद उन्होंने उस से उस की दिनचर्या के बारे में पूछा. तब रवि ने बताया, ‘‘सर, मैं एक कंपनी के लिए कलेक्शन एजेंट का काम करता हूं और साथ में हमारी परचून की दुकान भी है. मैं रोजाना सुबह 6 बजे से 9 बजे तक पहले अपनी दुकान खोलता हूं. उस के बाद वहीं से औफिस के लिए निकल जाता हूं.

‘‘दोपहर को एकदो घंटों के लिए मैं घर आता हूं. फिर शाम को कुछ देर दुकान खोले रखने के बाद रात को वापस घर आ जाता हूं.’’

कुछ देर बाद वह फिर बोला, ‘‘सर, मैं आज दोपहर को घर वापस नहीं आया था बल्कि औफिस से अपनी दुकान चला गया था. कुछ देर दुकान में बैठने के बाद मैं अपनी दुकान के ऊपर बने कमरे में चला गया, जहां मैं ने अपने दोस्तों के साथ ताश खेला और जब शाम को

6 बज गए तो मैं वहां से घर के लिए निकल गया.’’

थानाप्रभारी मदनपाल सिंह ने इस केस से जुड़े कुछ और सवाल रवि से पूछे फिर उसे थाने से घर भेज दिया. एक तरफ पुलिस की एक टीम रवि से पूछताछ कर रही थी तो वहीं दूसरी टीम रवि के घर के आसपास के लोगों से इस मामले में पता कर रही थी.

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पुलिस की तीसरी टीम रवि की दुकान के आसपास के लोगों से तहकीकात कर रही थी. इसी तरह से पुलिस की कई टीमें एक ही समय पर इस मामले को सुलझाने में लगी थीं.

रवि ने अपने बयान में यह कहा था कि वह दोपहर को औफिस से दुकान आ गया था, जब पुलिस ने दुकान के आसपास रहने वाले लोगों से इस बात की पुष्टि की तो उन्होंने दोपहर को दुकान के खुले होने से साफ इनकार कर दिया.

वहीं रवि के घर के आसपास के लोगों ने पुलिस को बताया कि रवि का अकसर अपने मातापिता के साथ झगड़ा होता रहता था, ये झगड़ा या तो पैसों को ले कर होता था या संपत्ति को ले कर या फिर रवि की पत्नी सुमन को ले कर होता था.

इस के अलावा पड़ोसियों से यह भी पता चला कि रवि अकसर शराब पी कर घर आता था, जो उस के माता पिता को बिलकुल भी पसंद नहीं था.

एएसपी इरज राजा ने सुरेंद्र सिंह ढाका और संतोष देवी के शव गौर से देखे तो उन्होंने पाया कि दोनों शव अकड़े हुए थे, जोकि सामान्य रूप से मृत्यु के 8 से 10 घंटों बाद ही होता है. उन्होंने फोरैंसिक टीम की सहायता से यह पता लगा लिया कि इस हत्या को सुबह 10 बजे के आस पास ही अंजाम दिया गया था.

उधर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हत्या का समय अनुमान किए गए समय के आसपास ही बताया गया था. यह सभी जानकारी पुलिस के लिए बहुत जरूरी साबित हुई और पुलिस के शक के रडार पर अब रवि आ गया था.

अगले दिन मृतकों के दाह संस्कार के बाद जब रवि अपने घर वापस पहुंचा ही था की उसे पुलिस ने फोन कर फिर से थाने आने के लिए कहा.

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वह जल्दी से नहाया और फटाफट कपड़े पहन कर अपने घर पर सभी कमरों में ताला लगा कर थाने जाने के लिए निकल गया.

थाने पहुंचने के बाद पुलिस ने उस के वारदात वाले दिन दुकान न खोलने, उस के घर पर उस के मातापिता के साथ झगड़ा होने, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतकों की हत्या का समय सुबह के समय

होने इत्यादि चीजों को ले कर उस से सवाल किए.

इन सवालों को सुन कर रवि बुरी तरह से हकला गया. वह डरते हुए और हकलाते हुए पुलिस के इन सवालों के जवाब देने लगा.

उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. जब थानाप्रभारी द्वारा उस पर दबाव बनाया गया तो रवि ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

हत्या का जुर्म स्वीकार करने के बाद पुलिस ने तसल्ली से उसे एक शांत कमरे में बैठाया और उस से हत्या करने की वजह और उस ने किस तरह से इस घटना को अंजाम दिया, उस के बारे में पूछताछ की.

इस के बाद उस ने अपने मातापिता की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

70 वर्षीय सुरेंद्र सिंह ढाका गाजियाबाद के लोनी में एक पौश इलाके बलराम नगर में रहते थे. मूलरूप से बागपत उत्तर प्रदेश के रहने वाले सुरेंद्र ढाका कई साल पहले ही गाजियाबाद में रहने लगे थे.

उन के साथ इस घर में उन की पत्नी संतोष देवी और 2 बेटों का परिवार रहता था. सुरेंद्र सिंह ढाका का परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था. सुरेंद्र सिंह की इलाके में परचून की दुकान थी और वह लोगों को ब्याज पर पैसा देने का काम

किया करते थे. उन की पत्नी संतोष देवी स्वास्थ्य विभाग में एएनएम के पद से रिटायर थीं.

बड़े बेटे रवि ढाका उर्फ नीलू की शादी साल 2009 में हो गई थी. लेकिन शादी के साल भर बाद ही रवि के साथ उस की पत्नी का अकसर झगड़ा होना शुरू हो गया था. कभी पैसों को ले कर तो कभी रिश्तों को ले कर.

रवि और उस की पत्नी के बीच झगड़े बढ़ने लगे. वे दोनों एकदूसरे के साथ किसी तरह से एडजस्ट कर के रह रहे थे. अंत में साल 2014 में रवि और उस की पहली पत्नी के बीच तलाक हो गया.

तलाक के बाद रवि की मुसीबतें बढ़ने लगीं. उस को अपनी जिंदगी बड़ी मुश्किल लगने लगी. और इसी बीच उस की मुलाकात सुमन देवी से हुई. सुमन रवि के गांव बागपत की ही रहने वाली थी. कुछ समय में एक दूसरे को जानने के बाद उन दोनों के बीच प्यार हो गया और रवि ने बिना अपने मातापिता को बताए सुमन से साल 2016 में शादी कर ली.

इस बात से रवि के मातापिता सुरेंद्र और संतोष देवी बड़े खफा हुए. उन की नाराजगी इस बात से ज्यादा थी कि रवि की दूसरी पत्नी सुमन देवी उन की बिरादरी की नहीं थी.

उसी दिन से रवि के मातापिता उस से खीझने लगे थे. वे उसे बातबात पर टोकते थे, छोटी से छोटी बात पर रवि और उस की पत्नी सुमन से झगड़े किया करते थे, वे उन्हें बातबात पर ताने दिया करते थे.

इस तरह से कुछ समय गुजरने के बाद साल 2019 में सुरेंद्र सिंह के छोटे बेटे गौरव ढाका की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. गौरव ढाका की शादी हो चुकी थी और उस के 2 बच्चे भी थे. इस मौत का भार ढाका परिवार के लिए सहन कर पाना बेहद मुश्किल था क्योंकि गौरव के दोनों बच्चे बेहद छोटे थे.

ऐसी स्थिति को देखते हुए रवि के माता पिता का झुकाव गौरव की पत्नी और उस के बच्चों के प्रति ज्यादा हो गया था, जिस का होना स्वाभाविक भी था. गौरव की पत्नी और बच्चों की देखभाल का जिम्मा उन्होंने उठा लिया था.

सुरेंद्र और संतोष देवी गौरव की पत्नी और बच्चों के लिए हमेशा तैयार रहते थे. लेकिन वहीं दूसरी ओर रवि, उस की पत्नी और उस के बच्चे को वे दरकिनार किया करते थे.

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ऐसे ही एक दिन जब रवि की बरदाश्त करने की क्षमता पार हो गई तो उस दिन उस का उस के पिता के साथ झगड़ा हो गया. उसी दौरान उस के पिता ने सभी घर वालों की मौजूदगी में ये ऐलान कर दिया कि उन की संपत्ति का पूरा हिस्सा वह गौरव की पत्नी और उस के बच्चों के नाम कर देंगे.

यह सुन कर रवि ने भी गुस्से और आवेश में अपने पिता से कह दिया कि यदि वह ऐसा करेंगे तो वह ऐसा हरगिज होने नहीं देगा.

अगले भाग में पढ़ें-  हत्या के एक दिन पहले रवि का फिर से अपने मांबाप के साथ झगड़ा हो गया 

Crime Story: कुटीर उद्दोग जैसा बन गया सेक्सटॉर्शन- भाग 4

टिंडर ऐप से भी चल रहा है सैक्सटौर्शन

दिलचस्प बात यह है कि इस रैकेट को चलाने वाली लड़की और उस के दोनों साथी सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. वे अपने महंगे शौक पूरा करने और लग्जरी लाइफ के लिए इस अपराध को अंजाम दे रहे थे.

ये लोग पहले सोशल मीडिया ऐप टिंडर के जरिए अमीर लोगों को लड़की के जाल में फंसाते. उस के बाद हनीट्रैप के खेल में फंसाने के बाद उन से मोटी रकम वसूली जाती थी.

दरअसल, हुआ यूं कि दिल्ली पुलिस को एक करोड़ रुपए की रंगदारी की शिकायत मिली थी, जिस में शिकायतकर्ता ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से एक अज्ञात व्यक्ति काल कर रहा था और उस से एक करोड़ रुपए की मांग कर रहा था. उस की अश्लील तसवीरें वायरल करने की धमकी भी दी जा रही थी.

इस शिकायत के आधार पर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने रंगदारी की एफआईआर दर्ज कर ली. इंसपेक्टर अरुण सिंधू और दिनेश कुमार के नेतृत्त्व में एक टीम बनाई गई. फोन की सर्विलांस और दूसरे टैक्नीकल तरीकों से जब पुलिस टीम ने काफी सारी जानकारी जुटा ली, तो उस के बाद छापेमारी की गई.

पुलिस टीम ने गुड़गांव से राजकिशोर सिंह को पकड़ लिया. उस ने सब कुछ उगल दिया और उस के बाद उस के 2 साथियों शालिनी और आर्यन को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

उन के पास से स्पाई कैम लगे 2 हैंडबैग, मेमोरी कार्ड्स, यूएसबी पैन ड्राइव, लैपटौप जिस में पीडि़तों की तसवीरें/वीडियो थे. इस के अलावा 6 मोबाइल फोन भी बरामद कर लिए गए.

पूछताछ में पता चला कि इस रैकेट का मास्टरमाइंड राजकिशोर सिंह है, जोकि पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर था. राजकिशोर सिंह सन 2012 में दिल्ली आया था.

वह रोजगार तलाश कर ही रहा था कि साल 2013 में कनाट प्लेस में एक लड़की को छेड़ने और धमकाने के आरोप में वह पुलिस के हत्थे चढ़ कर जेल चला गया.

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यहीं से उस की जिंदगी बदल गई. जेल से निकल कर उस ने तय कर लिया कि अब जिंदगी में शार्टकट रास्ते से बहुत दौलत कमानी है. बस ऐशभरी जिंदगी जीने और उस के लिए होने वाले खर्चों को पूरा करने के लिए वह बुरी संगत में पड़ गया. उस ने गुड़गांव में एक स्पा (बौडी मसाज) खोल कर अपने पेशे से अलग तरह का धंधा शुरू कर दिया.

इस काम के लिए कालगर्ल्स की भरती की. उस के बाद लड़कियों का इस्तेमाल एस्कौर्ट सर्विस के लिए करने लगा. बाद में उस ने लड़कियों का इस्तेमाल अमीर लोगों को हनीट्रैप में फंसाने के लिए करना शुरू कर दिया.

उस ने अपने गिरोह की कालगर्ल्स के जरिए कई कारोबारियों को झूठे रेप केस में फंसाने की धमकी दे कर बड़ी रकम ऐंठी थी.

गुड़गांव के सेक्टर-67 की रहने वाली शालिनी जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहती थी. आईटी के फील्ड में नौकरी करती थी. पिछले साल उसे प्रमोशन की उम्मीद थी, मगर अचानक कोविड-19 आ गया. पहले सैलरी कम हुई और फिर नौकरी चली गई.

पैसों के लिए परेशान रहने लगी तो उस ने अपनी परेशानी अपने दोस्त आर्यन दीक्षित (28) को सुनाई. बी-269, छतरपुर एनक्लेव- टू का रहने वाला आर्यन दीक्षित एमबीए है और वर्तमान में उस का अपना औनलाइन गारमेंट्स का व्यवसाय है.

शालिनी ने जब आर्यन से कहा कि यार कोई भी काम बताओ पैसों की बड़ी जरूरत है तो आर्यन ने उसे राजकिशोर से मिलवा दिया.

आर्यन ने एक बार राजकिशोर से स्पा की सर्विस ली थी. इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई थी. जल्द ही आर्यन भी राजकिशोर के धंधे में ही उतरने की योजना बनाने लगा.

जब शालिनी ने आर्यन से ईजी मनी कमाने का तरीका पूछा तो आर्यन ने राजकिशोर से शालिनी को मिलवा दिया. राजकिशोर ने बता दिया कि उस का धंधा थोड़ा टेढ़ा है, लेकिन इस में पैसा बहुत है.

राजकिशोर ने जब शालिनी को अपने धंधे के बारे में बताया तो थोड़ा हिचकने के बाद शालिनी मान गई और राजकिशोर ने उसे अपने गैंग में शामिल कर लिया.

शालिनी को 2-4 दिन तक धंधे की ट्रेनिंग और अमीरों को फंसाने के टिप्स दिए गए. उस के बाद शालिनी का टिंडर पर प्रोफाइल बना दिया गया. बस इस के बाद वह 40-50 साल की उम्र वाले बिजनैसमैन को राइट स्वैप करने लगी.

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होटल में बुला कर उन की तसवीरें उतार लेती. फिर आर्यन और राजकिशोर उस कारोबारी को धमका कर उस से पैसे वसूलने लगे. पैसा आना शुरू हुआ तो शालिनी के हौसले बुलंद हो गए.

वह टिंडर पर राइट स्वैप करने के बाद लोगों से चैट करती. कुछ दिनों बाद होटल में मुलाकात फिक्स हो जाती. उस के बाद होटल के कमरे में हैंडबैग या अन्य चीजों में छिपाए गए स्पाईकैम के जरिए अपने शिकार की आपत्तिजनक तसवीरें ले ली जातीं.

कुछ दिन बाद टारगेट से सोशल मीडिया पर संपर्क कर के शिकार को उस की न्यूड तसवीरें/वीडियो दिखाई जाती और 10 लाख से ले कर एक करोड़ रुपए तक की डिमांड की जाती. पैसा नहीं देने पर वीडियो पब्लिक करने या परिवार में किसी को भेजने की धमकी दी जाती. अपनी इज्जत बचाने के डर से अधिकतर पीडि़त सौदेबाजी के बाद पैसे दे कर मामला खत्म कर लेते थे. मगर उन के आखिरी टारगेट ने पुलिस में शिकायत कर दी.

जिस के बाद टिंडर ऐप से चल रहा सैक्सगटौर्शन का ये रैकेट पकड़ा गया. पुलिस ने राजकिशोर सिंह, शालिनी और आर्यन को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से जेल भेज दिया गया.

देश के हिंदीभाषी राज्यों में लगभग सभी जिलों में इस तरह के मामले कुछ महीनों में तेजी से बढ़े हैं. अनुमान है कि पिछले 6 महीनों के दौरान ही इन सभी जगहों पर पुलिस को 5 हजार से ज्यादा ऐसे मामलों की शिकायतें मिली हैं.

(कथा पुलिस सूत्रों, निजी शोध व पड़ताल तथा पीडि़तों से मिली जानकारी पर आधारित. कथा में जितेंद्र सिंह नाम परिवर्तित है)

ठगी से कैसे बचें और फंसने पर क्या करें

अपनी लोकेशन को शेयर करने की आदत छोड़ दें. इस से आप के विरोधियों को यह पता चल जाता है कि आप किस जगह पर हैं. ऐसे में वह अपनी सुविधा के अनुसार आप को ठग लेते हैं.

व्यक्तिगत बातें फेसबुक पर शेयर न करें. इस से आप की गोपनीयता भंग होती है.

फोटो शेयर करते समय यह समझ लें कि किन लोगों को आप फोटो दिखाना चाहते हैं और किस को नहीं. फेसबुक पर अनजान लोगों से बातचीत करते समय सावधान रहें.

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फेसबुक पर आने वाली हर पोस्ट सही नहीं होती. यह ध्यान रखें, बिना सोचेसमझे झांसे में न आएं. किसी भी अनजान महिला की फ्रैंड रिक्वेस्ट को जांचपरखने के बाद ही स्वीकार करें.

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल बताते हैं कि लौकडाउन साइबर क्रिमिनल के लिए गोल्डन एज रहा है. इस के अलावा सोशल मीडिया पर लोग अपनी प्रोफाइल की सुरक्षा को ले कर सजग नहीं हैं.

अपनी प्रोफाइल को लौक करें, जिस से उसे कोई सर्च न कर सके. यदि सैक्सटौर्शन का शिकार होते हैं तो सब से पहले उस अकाउंट का लिंक या नंबर सेव करें क्योंकि इस की मदद से पुलिस उस आईपी एड्रेस तक पहुंच सकती है, जहां से ब्लैकमेलर्स औपरेट कर रहे हैं.

सैक्सटौर्शन का शिकार होने पर तुरंत लोकल साइबर सेल या नजदीक के थाने में शिकायत दर्ज कराएं. राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर 155260 पर शिकायत कर सकते हैं.

ऐसे मामलों में शिकायत करने वालों की पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाती है. ब्लैकमेलर्स नंबर बदलबदल कर फोन करते हैं, तो इन सभी की पूरी जानकारी पुलिस  को दें. कई बार पुलिस पीडि़त से ही सवालजवाब करती है. ऐसे सवालों से परेशान न हों, अपनी एफआईआर दर्ज कराने पर जोर दें. ऐसे मामलों में आईटी एक्ट, धोखाधड़ी (धारा 420) और आईपीसी की कुछ अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाता है.

पुलिस से एफआईआर  की कौपी जरूर लें. अगर पुलिस की काररवाई में जरा सी भी ढील लगे तो तुरंत किसी वकील की मदद लें.

Best of Manohar Kahaniya: लिवइन पार्टनर की मौत का राज

सौजन्य-मनोहर कहानियां

9 सितंबर, 2019 को अनीता अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. अगले दिन अपराह्न 2 बजे जब वह दिल्ली के लाजपत नगर में स्थित अपने फ्लैट में पहुंची तो वहां का खौफनाक मंजर देखते ही उस के मुंह से चीख निकल गई. उस के पैर दरवाजे पर ही ठिठक गए.

उस के लिवइन पार्टनर सुनील तमांग की लहूलुहान लाश फर्श पर पड़ी थी. उस की गरदन से खून निकल कर पूरे फर्श पर फैल चुका था, जो अब जम चुका था. अनीता ने सब से पहले अपने फ्लैट के मालिक ए.के. दत्ता को फोन कर इस घटना की जानकारी दी. ए.के. दत्ता पास की ही एक दूसरी कालोनी में रहते थे. लिहाजा कुछ देर में वह अपने लाजपत नगर वाले फ्लैट पर पहुंचे, जहां बुरी तरह घबराई अनीता उन का इंतजार कर रही थी.

सुनील की खून से सनी लाश देखने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को दी तो कुछ ही देर के बाद थाना अमर कालोनी के थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और घटनास्थल की जांच में जुट गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

घटनास्थल की फोटोग्राफी और वहां पर मौजूद खून के धब्बों के नमूने एकत्र करने के बाद थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने तहकीकात शुरू की. मृतक सुनील की गरदन पर पीछे की तरफ से किसी तेज धारदार हथियार से जोरदार वार किया गया था, जिस से ढेर सारा खून निकल कर फर्श पर फैल गया था.

कमरे के सभी कीमती सामान अपनी जगह मौजूद थे, जिसे देख कर लगता था कि यह हत्या लूटपाट के लिए नहीं बल्कि रंजिशन की गई होगी. उन्होंने अनीता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह और सुनील पिछले एक साल से इस फ्लैट में लिवइन पार्टनर के रूप में रह रहे थे. वह एक ब्यूटीपार्लर में काम करती थी, जबकि सुनील एक रेस्टोरेंट में कुक था. लेकिन कई महीने पहले किसी वजह से उस की नौकरी छूट गई थी.

कल रात साढ़े 11 बजे किसी जरूरी काम से वह अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. रात को वह वहीं रुक गई थी. रात में उस ने फोन पर काफी देर तक सुनील से बातें की थीं.

आज दोपहर को वह यहां पहुंची तो देखा फ्लैट का दरवाजा खुला था और अंदर प्रवेश करते ही उस की नजर सुनील की लाश पर पड़ी थी. इस के बाद उस ने अपने मकान मालिक को फोन कर इस घटना के बारे में बताया तो उन्होंने यहां पहुंचने के बाद इस घटना की सूचना पुलिस को दी.

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थानाप्रभारी ने मकान मालिक ए.के. दत्ता से भी पूछताछ की तो उन्होंने भी वही बातें बताईं जो अनीता ने बताई थीं.

सारी काररवाई से निपटने के बाद थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और थाने लौट कर सुनील की हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस की गुत्थी सुलझाने के लिए दक्षिणपूर्वी दिल्ली के डीसीपी चिन्मय बिस्वाल ने कालकाजी के एसीपी गोविंद शर्मा की देखरेख में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन, एसआई अभिषेक शर्मा, ईश्वर, आर.एस. डागर, एएसआई जगदीश, कांस्टेबल राजेश राय, मनोज, सज्जन आदि शामिल थे.

विरोधाभासी बयानों से हुआ शक

अगले दिन थानाप्रभारी ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई, ताकि वारदात की रात फ्लैट के आसपास घटने वाली सभी गतिविधियों की बारीकी से जांच की जा सके. साथ ही मृतक सुनील तमांग और अनीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स और सीसीटीवी फुटेज की बारीकी से जांचपड़ताल करने के बाद थानाप्रभारी ने गौर किया कि अनीता के बयान विरोधाभासी थे. इसलिए अनीता को पुन: पूछताछ के लिए अमर कालोनी थाने बुलाया गया. उस से सघन पूछताछ की गई तो अनीता यही कहती रही कि वह रात साढ़े 11 बजे अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी, लेकिन वह वहां देर रात को क्यों गई, इस की वजह नहीं बता पाई.

पुलिस को लग रहा था कि वह झूठ पर झूठ बोल रही है. उस ने उस रात जिनजिन नंबरों पर बात की थी, उन के बारे में भी वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी. लिहाजा उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई और सुनील तमांग की हत्या में खुद के शामिल होने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि इस हत्याकांड में उस का भाई विजय छेत्री तथा जीजा राजेंद्र छेत्री भी शामिल थे. ये दोनों पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग शहर के रहने वाले थे. अनीता द्वारा अपने लिवइन पार्टनर की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

बाकी आरोपियों विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने एसआई अभिषेक शर्मा के नेतृत्व में एक टीम गठित की. यह टीम 13 सितंबर, 2019 को वेस्ट बंगाल के कालिंपोंग शहर पहुंच गई. स्थानीय पुलिस के सहयोग से दिल्ली पुलिस ने विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से जब सुनील तमांग की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन दोनों ने पुलिस को बरगलाने की काफी कोशिश की लेकिन बाद में जब उन्हें बताया गया कि अनीता गिरफ्तार हो चुकी है और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है, तो उन दोनों ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

वेस्ट बंगाल की स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद दिल्ली पुलिस दोनों आरोपियों को ट्रांजिट रिमांड पर ले कर दिल्ली लौट आई.

अनीता, विजय और राजेंद्र से की गई पूछताछ तथा पुलिस की जांच के आधार पर इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है –

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अनीता मूलरूप से पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग की रहने वाली थी. करीब 5 साल पहले वह अपने पति से अनबन होने पर उसे छोड़ कर अपने सपनों को पंख लगाने के मकसद से दिल्ली आ गई थी. यहां उस की एक सहेली थी, जो बहुत शानोशौकत से रहती थी. वह सहेली जरूरत पड़ने पर उस की मदद भी कर दिया करती थी.

दरअसल, अनीता स्कूली दिनों से ही खुले विचारों वाली एक बिंदास लड़की थी. वह जिंदगी को अपनी ही शर्तों पर जीना चाहती थी, जबकि उस का पति एक सीधासादा युवक था. उसे अनीता का ज्यादा फैशनेबल होना तथा लड़कों से ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं था.

विपरीत स्वभाव होने के कारण शादी के थोड़े दिनों बाद ही वे एकदूसरे को नापसंद करने लगे थे. बाद में जब बात काफी बढ़ गई तो एक दिन अनीता ने पति को छोड़ दिया और वापस अपने मायके चली आई. कुछ दिन तो वह मायके में रही, फिर बाद में उस ने अपने पैरों पर खडे़ होने का फैसला कर लिया. और वह दिल्ली आ गई.

वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, महज 8वीं पास थी. छोटे शहर की होने और कम शिक्षित होने के बावजूद उस का रहने का स्टाइल ऐसा था, जिसे देख कर लगता था कि वह काफी मौडर्न है.

दिल्ली पहुंचने के बाद अनीता ने अपनी उसी सहेली की मदद से ब्यूटीशियन की ट्रेनिंग ली. इस के बाद वह एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी करने लगी. नौकरी करने से उस की माली हालत अच्छी हो गई और जिंदगी पटरी पर आ गई.

इसी दौरान एक दिन उस की मुलाकात सुनील तमांग नाम के युवक से हुई जो नेपाल का रहने वाला था. उस की मां कुल्लू हिमाचल प्रदेश की थी. 28 वर्षीय सुनील दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित एक रेस्टोरेंट में कुक था.

दोनों एकदूसरे को चाहने लगे

कुछ दिनों तक दोस्ती के बाद वह सुनील को अपना दिल दे बैठी. सुनील अनीता की खूबसूरती पर पहले से ही फिदा था. एक दिन सुनील ने अनीता को अपने दिल की बात बता दी और कहा कि वह उसे दिलोजान से प्यार करता है. इतना ही नहीं, वह उस से शादी रचाना चाहता है.

अनीता उस के दिल की बात जान कर खुशी से झूम उठी. उस ने सुनील से कहा कि पहले कुछ दिनों तक हम लोग साथ रह लेते हैं. फिर घर वालों की रजामंदी से शादी कर लेंगे. इस की एक वजह यह भी थी कि अभी पहले पति से अनीता का तलाक नहीं हुआ था. तलाक के बाद ही दूसरी शादी संभव हो सकती थी.

कोई 4 साल पहले अनीता ने सुनील तमांग के साथ चिराग दिल्ली में किराए का मकान ले कर रहना शुरू कर दिया. दोनों एकदूसरे को पा कर बेहद खुश थे. सुनील अनीता का काफी खयाल रखता था. अनीता भी सुनील के साथ लिवइन में रह कर खुद को भाग्यशाली समझती थी.

सुनील न केवल देखने में स्मार्ट था, बल्कि एक अच्छे पार्टनर की तरह उस की प्रत्येक छोटीछोटी बात का विशेष ध्यान रखता था. अनीता भी सुनील की खुशियों का खूब खयाल रखती थी. वह अपनी तरफ से कोई ऐसा काम नहीं करती थी, जिस से सुनील की कोई भावना आहत हो.

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अनीता और सुनील 3 सालों तक चिराग दिल्ली स्थित इस मकान में रहे. इस बीच जब अनीता की पगार अच्छी हो गई तो वह चिराग दिल्ली से लाजपत नगर आ गई. यहां वह ए.के. दत्ता के फ्लैट में किराए पर रहने लगी. यहां उस का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था.

इतने दिनों तक लिवइन रिलेशन में रहने के कारण दोनों के परिवार वाले भी उन के संबंधों से परिचित हो गए थे. अनीता का भाई विजय छेत्री जबतब कालिंपोंग से दिल्ली में उस के पास आता रहता था. उसे सुनील का व्यवहार पसंद नहीं था.

विजय ने अनीता की पसंद पर ऐतराज तो नहीं जताया लेकिन एक दिन उस ने सुनील की गैरमौजूदगी में अपने मन की बात अनीता को बता दी. चूंकि अनीता सुनील से प्यार करती थी, इसलिए उस ने भाई से सुनील का पक्ष लेते हुए कहा कि सुनील दिल का बुरा नहीं है लेकिन फिर भी अगर सुनील की कोई बात उसे अच्छी नहीं लगती है तो वह उसे कह कर इस में सुधार लाने का प्रयास करेगी.

विजय ने जब देखा कि उस की बहन ने उस की बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है तो उस ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी. सुनील और अनीता को विजय की बातों से जरा भी फर्क नहीं पड़ा था.

लेकिन कहते हैं कि हर आदमी का वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता है. सुनील तमांग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. किसी बात को ले कर सुनील की रेस्टोरेंट से नौकरी छूट गई. नौकरी छूट जाने की वजह से वह परेशान तो हुआ लेकिन अनीता अच्छा कमा रही थी, इसलिए घर का खर्च आराम से चल जाता था.

हालांकि कुछ दिन बाद अनीता सुनील को समझाबुझा कर जल्दी कहीं नौकरी खोजने का दबाव बना रही थी, मगर 6 महीने तक सुनील को उस के मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली.

धीरेधीरे अनीता को ऐसा लगने लगा जैसे सुनील जानबूझ कर नौकरी नहीं करना चाहता है और अब वह उस के ही पैसों पर मौज करना चाहता है. ऐसा विचार मन में आते ही उस ने एक दिन तीखे स्वर में सुनील से कहा, ‘‘सुनील, या तो तुम जल्दी कहीं पर नौकरी ढूंढ लो अन्यथा मेरा साथ छोड़ कर यहां से कहीं और चले जाओ.’’

हालांकि अनीता ने यह बात सुनील को समझाने के लिए कही थी, लेकिन उस दिन के बाद सुनील के तेवर बदल गए. उस ने अनीता से कहा कि वह उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा और फिर भी अगर वह उसे जबरन खुद से दूर करने की कोशिश करेगी तो उस के पास अंतरंग क्षणों के कई फोटो मोबाइल पर पड़े हैं, जिन्हें वह उस के सगेसंबंधियों के मोबाइल पर भेज देगा, जिस के बाद वह कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

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रुपयों की तंगी तथा सुनील की धमकी को सुन कर अनीता कांप उठी. इस घटना के कुछ दिनों बाद तक अनीता ने सुनील को नौकरी ढूंढने पर जोर देती रही, लेकिन सुनील पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

अंत में अनीता ने कालिंपोंग स्थित अपने भाई विजय को अपनी मुसीबत के बारे में बताया तो विजय गुस्से से भर उठा. उस ने अनीता से कहा कि वह जल्द ही सुनील नाम के इस कांटे को उस की जिंदगी से निकाल फेंकेगा.

भाई ने बनाया हत्या का प्लान

भाई की बात सुन कर अनीता को राहत महसूस हुई. विजय को सुनील पहले से नापसंद था. अब जब अनीता खुद ही उस से छुटकारा पाना चाहती थी तो उस ने अपने रिश्ते के बहनोई राजेंद्र के साथ मिल कर सुनील को मौत की नींद सुलाने की योजना तैयार कर ली. इस के बाद उस ने अनीता को अपनी योजना के बारे में बताया तो अनीता ने दोनों को दिल्ली पहुंचने के लिए कह दिया.

7 सितंबर, 2019 को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग से नई दिल्ली पहुंचे और पहाड़गंज के एक होटल में रुके. अनीता फोन से बराबर भाई के संपर्क में थी. लेकिन सुनील अनीता और विजय के षडयंत्र से अनजान था. उसे सपने में भी गुमान नहीं था कि अनीता उस की ज्यादतियों से तंग आ कर उस का कत्ल भी करवा सकती है.

9 सितंबर को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पूर्वनियोजित योजना के अनुसार रात के 10 बजे अनीता के फ्लैट पर पहुंचे. अनीता दोनों से ऐसे मिली जैसे उन्हें पहली बार देखा हो. सुनील भी उन से घुलमिल कर बातें करने लगा.

साढ़े 11 बजे उस ने अचानक सब को बताया कि उसे अभी इसी वक्त अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा जाना है. इस के बाद वह तैयार हो कर फ्लैट से बाहर निकल गई.  रात में अनीता सुनील के मोबाइल पर काल कर के उस से 2-3 घंटे तक मीठीमीठी बातें करती रही.

तड़के करीब 4 बजे जैसे ही सुनील सोया, तभी विजय ने राजेंद्र के साथ मिल कर उस की गरदन पर चाकू से वार किया. थोड़ी देर तड़पने के बाद जब उस का शरीर ठंडा पड़ गया तो दोनों वहां से आनंद विहार के लिए निकल गए, क्योंकि वहां से उन्हें कालिंपोंग के लिए ट्रेन पकड़नी थी.

आनंद विहार जाने के दौरान रास्ते में विजय ने खून से सना चाकू एक सुनसान जगह पर फेंक दिया. आनंद विहार स्टेशन से रेलगाड़ी द्वारा वे कालिंपोंग पहुंच गए.

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इन से विस्तार से पूछताछ करने के बाद अगले दिन 16 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने सुनील तमांग की हत्या के आरोप में उस की लिवइन पार्टनर अनीता, विजय छेत्री तथा राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

मामले की जांच थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन कर रहे थे.

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