Crime- डर्टी फिल्मों का ‘राज’: राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस- भाग 1

20जुलाई, 2021 की सुबह का सूरज ठीक से उदय भी नहीं हुआ था, उस से पहले ही दिन फिल्म इंडस्ट्री  की पटाखा गर्ल कही जाने वाली अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के मुंबई में सब से पौश इलाके जुहू बीच पर बने आलीशान बंगले के बाहर मीडिया का जमावड़ा होना शुरू हो चुका था.

हर कोई बीती रात की कहानी के बारे में शिल्पा की प्रतिक्रिया लेना चाहता था. शिल्पा शेट्टी और उन के पति राज कुंद्रा अपने दोनों बच्चों बेटा विहान राज कुंद्रा और बेटी शमिषा कुंद्रा  के साथ समुद्र किनारे बने बंगले में रहते थे. समुद्र किनारे बने ‘किनारा’ नाम के इस बंगले के बाहर उस दिन मीडिया के लोगों की जो भीड़ उमड़ी थी उस ने शिल्पा शेट्टी को असहज कर दिया था. क्योंकि एक दिन पहले यानी 19 जुलाई की रात को शिल्पा के पति राज कुंद्रा को मुंबई के भायखला से क्राइम ब्रांच की टीम ने गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल क्राइम ब्रांच की साइबर सेल की टीम अश्लील फिल्में बनाने वाले गैंग की जांच कर रही थी. जिस की जांच करते हुए खुलासा हुआ कि इस गैंग का मास्टरमाइंड राज कुंद्रा ही था. पूरी मुंबई और बौलीवुड हस्तियों तक रात में ही राज कुंद्रा की गिरफ्तारी की खबर जंगल की आग की तरह फैलते हुए पहुंच गई. इसी का नतीजा था कि अगली सुबह शिल्पा और राज कुंद्रा के बंगले के बाहर मीडिया के लोगों की भारी भीड जमा थी.

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राज कुंद्रा को जिस मामले में गिरफ्तार किया गया था, उस में लगे आरोप इतने घिनौने और संगीन थे कि शिल्पा शेट्टी के लिए उन आरोपों से जुड़े सवालों का जवाब देना मुमकिन नहीं था. इसलिए उन्होंने मीडिया से दूरी बना ली.

दरअसल, राज कुंद्रा की गिरफ्तारी की पटकथा इसी साल फरवरी में लिखी गई थी. मुंबई क्राइम ब्रांच की प्रौपर्टी सेल को एक गुप्त सूचना मिली थी कि मलाड वेस्ट के मडगांव में एक किराए के आलीशान बंगले में अश्लील फिल्म की शूटिंग चल रही है.  इसी सूचना के आधार पर सेल के एपीआई लक्ष्मीकांत सालुंखे ने अपनी टीम के साथ उस बंगले पर छापेमारी की.

टीम ने मौके पर देखा कि एक न्यूड वीडियो की शूटिंग चल रही थी. वहां 2 लड़कियों समेत कुल 5 लोग थे, जिन्हें  हिरासत में ले लिया गया.

पूछताछ व छानबीन शुरू हुई तो पता चला कि यह शूटिंग मोबाइल एप्लिकेशन के लिए की जा रही थी, जिस पर अश्लील वीडियो अपलोड किए जाते हैं. इन वीडियोज को देखने के लिए पैसा दे कर मोबाइल एप्लिकेशन की सदस्यता लेनी पड़ती है.

जिस लड़की की अश्लील फिल्म  शूट की जा रही थी, उस के साथ पुलिस ने रौनक नाम के कास्टिंग डायरेक्टर, रोवा नाम की एक महिला वीडियोग्राफर तथा इस अश्लील फिल्म में काम कर रहे लीड एक्टर भानु और रोवा की दोस्त प्रतिभा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

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जांच में पता चला है ये गिरोह मोबाइल एप्लिकेशन के अलावा कुछ ओटीटी प्लेटफार्म के लिए भी ओटीटी फिल्म बनाते हैं. ऐप के बारे में पड़ताल शुरू हुई तो राज कुंद्रा का नाम भी सामने आया.

जब मुंबई क्राइम ब्रांच ने इस मामले का खुलासा किया तो सामने आया कि इस गिरोह से जुड़े आरोपी अश्लील वीडियो बना कर उन के ट्रेलर इंस्टाग्राम, ट्विटर, टेलीग्राम, वाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया साइटों पर भी जारी करते थे.

इस खुलासे के बाद 4 फरवरी 2021 को मुंबई के क्राइम ब्रांच ने  मालवानी थाने में राज कुंद्रा समेत गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 103/2021 दर्ज  कराया था.

जिस में उन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 292, 293, 420, 34 और आईटी एक्ट की धारा 67, 67ए व अन्य संबंधित धाराएं भी एफआईआर में लगाई थीं.

मुकदमा तो फरवरी में दर्ज हो गया था, लेकिन मुंबई क्राइम ब्रांच को तलाश थी एक ऐसे पुख्ता सबूत की, जो राज कुंद्रा को बेनकाब कर सके. क्योंकि उन पर अश्लील फिल्में बनवाने से ले कर कुछ ऐप्स के जरिए उन्हें प्रसारित और शेयर करने का इलजाम था.

छानबीन में मुंबई क्राइम ब्रांच को जो सबूत हाथ लगे वो राज कुंद्रा की तरफ मुख्य साजिशकर्ता होने का इशारा कर रहे थे.

अगले भाग में पढ़ें- एडवांस पेमेंट मिलने के बाद गहना और कामत अश्लील फिल्में बनाने का काम करते थे 

Satyakatha: रिश्तों का कत्ल- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवक तेजी से सरपट दौड़ रही सफेद रंग की स्कौर्पियो कार का दूर से पीछा कर रहे थे. ओवरटेक कर के बाइक जैसे ही स्कौर्पियो के समानांतर आई, बाइक के पीछे बैठे नकाबपोश ने ड्राइवर को लक्ष्य बना कर उस के हाथ पर गोली मार दी.

गोली लगते ही स्कौर्पियो के ड्राइवर के हाथ से स्टीयरिंग छूट गया और कार लहराते हुए डिवाइडर से जा टकराई. तभी घायल ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोला. वह कार से निकल कर भागने ही वाला था कि तभी वह बाइक सवार बदमाश उस के करीब जा पहुंचे और उस से पूछा, ‘‘कार में पीछे बैठा बैंक मैनेजर शैलेंद्र ही है न?’’

दर्द से कराह रहे ड्राइवर ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. तभी हथियारबंद नकाबपोेश बदमाश ने कार में पिछली सीट पर बैठे बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा के पास पहुंच कर सिर में एक और सीने में 2 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह हवा में असलहा लहराते हुए आराम से निकल गए.

जिस समय यह घटना घटी थी, उस समय सुबह के 8 बजे थे. राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बावजूद सड़क पर सन्नाटा पसरा था.

सड़क पर खून से लथपथ युवक को दर्द से कराहता देख कर कुछ बाइक वाले वहां रुके तो ड्राइवर ने उन से मदद मांगी और 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को देने का अनुरोध किया.

ड्राइवर ने अपना नाम अनिल बताया और कहा कि बदमाशों ने कार में बैठे उस के मालिक को भी गोली मारी है.

यह घटना बिहार के नालंदा जिले की फतुहा थाना क्षेत्र के भिखुआचक राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 जून, 2021 को सुबह 8 बजे के करीब घटी थी.

इस के बाद भीड़ में से एक व्यक्ति ने 100 नंबर पर फोन कर घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलते ही फतुहा थाने के थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.

कार चालक अनिल डिवाइडर के किनारे बैठा दर्द से कराह रहा था. उस के दाएं हाथ से खून लगातार बह रहा था. कार में पिछली सीट पर खून से लथपथ रिटायर्ड बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की लाश पड़ी हुई थी.

क्राइम सीन देख कर ऐसा लग रहा था कि बदमाश ने शैलेंद्र को करीब से गोली मारी थी. छानबीन में पुलिस को 7.65 एमएम का एक खोखा कार में से बरामद हुआ था.

साक्ष्य के तौर पर पुलिस ने खोखे को अपने कब्जे में ले लिया. इस बीच थानाप्रभारी मनोज कुमार ने एसपी (ग्रामीण) कांतेश कुमार मिश्र और एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा को इस घटना की जानकारी दे दी थी. घटना की जानकारी मिलते ही दोनों  पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए.

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एक बात पुलिस अधिकारियों को खटक रही थी कि बदमाशों ने चालक को क्यों छोड़ दिया? उस की हत्या क्यों नहीं की? कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं है?

गोली लगने से चालक अनिल की हालत बिगड़ती जा रही थी. इसलिए पुलिस ने उसे जल्द से जल्द जिला हौस्पिटल भेज दिया ताकि उस के जरिए बदमाशों तक आसानी से पहुंचा जा सके. शैलेंद्र कुमार की हत्या का वही एक चश्मदीद गवाह था.

बेहतर इलाज के बाद चालक अनिल के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ तो उसी शाम 3 बजे के करीब थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह बयान लेने जिला अस्पताल पहुंचे, जहां वह भरती था.

‘‘कैसे हो अनिल? अब कैसा फील कर रहे हो?’’ थानाप्रभारी मनोज कुमार ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सर, पहले से बेहतर हूं और अच्छा महसूस कर रहा हूं.’’ अनिल ने बताया.

‘‘अच्छा बताओ कि यह कैसे और क्या हुआ था?’’

‘‘साहब, मैं कार चला रहा था कि तभी साइड से आए एक बाइक वाले ने मुझे गोली मारी जो हाथ में लगी. गोली लगते ही कार की स्टीयरिंग मेरे हाथ से छूट गई और कार डिवाइडर से जा टकराई. फिर बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश बदमाश ने मुझ से पूछा कि कार में बैठा क्या शैलेंद्र यही है. मैं ने हां कह दिया. मेरे हां कहते ही उस बदमाश ने साहब को गोलियों से भून डाला और फरार हो गए.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह! बाइक पर कितने बदमाश थे.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, 2.’’ उस ने बताया.

‘‘दोनों बदमाशों में से किसी का चेहरा याद है तुम्हें?’’ उन्होंने अगला सवाल किया.

‘‘नहीं, साहब. कैसे चेहरा देखता, जब दोनों के चेहरे नकाब से ढके थे.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह!’’ थानेदार मनोज कुमार ने एक लंबी सांस छोड़ी, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम आ कहां से रहे थे?’’

‘‘नालंदा के गड़पर स्थित प्रोफेसर कालोनी से आ रहे थे. साहब के छोटे बेटे मनीष गुवाहाटी से पटना आ रहे थे. उन्हें ही रिसीव करने साहब को ले कर पटना जा रहा था कि…’’ कह कर अनिल रोने लगा.

‘‘तुम्हारे साहब के घर में कौनकौन रहता है और तुम्हारे यहां आने की जानकारी किस किस को थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब के साथ मेमसाहब और उन का बड़ा बेटा पीयूष रहते हैं. पीयूष दिव्यांग हैं. मेम साहब और पीयूष बाबा के अलावा किसी को भी इस की जानकारी नहीं थी.’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है. अभी तो मैं चलता हूं बाद में आ कर फिर तुम से मिलूंगा.’’

थानेदार मनोज कुमार सिंह ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र से पूछताछ कर वहां से थाने लौट आए थे. इधर शैलेंद्र कुमार की हत्या की जानकारी मिलते ही उन के घर में कोहराम छा गया था. मृतक शैलेंद्र कुमार की पत्नी सरिता देवी का रोरो कर बुरा हाल था.

ससुर की हत्या की जानकारी जैसे ही दामाद पवन कुमार को हुई, वह भागाभागा मोर्चरी पहुंचा, जहां पोस्टमार्टम के बाद लाश मोर्चरी में रखी हुई थी. गुवाहाटी से पटना आ रहे बेटे मनीष को रास्ते में ही फोन से पिता की हत्या की जानकारी दे दी गई थी, इसलिए वह भी सीधा मोर्चरी पहुंच गया था.

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इस बीच में पुलिस ने मनीष की तरफ से 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. बेटा, दामाद और रिश्तेदारों ने मिल कर शैलेंद्र कुमार का गंगा के किनारे श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया और अपनेअपने घरों को लौट आए. फिर मनीष जीजा पवन के साथ घर देर रात पहुंचा.

बेटे को देख कर मां की आंखें फफक पड़ीं तो मनीष भी खुद को रोक नहीं पाया. मां को रोता देख उस की आंखें बरस पड़ीं. रोतेरोते दोनों एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे.

पलभर के लिए वहां का माहौल एकदम से फिर गमगीन हो गया था. दामाद पवन कुमार कुछ देर वहां रुका. उस ने सास और साले को समझाया और फिर रामकृष्णनगर, पटना अपने किराए के कमरे पर वापस लौट गया.

अगले दिन थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह हत्या की गुत्थी सुलझाने और जानकारी लेने के लिए गड़पर प्रोफेसर कालोनी में स्थित मृतक शैलेंद्र कुमार के आवास पहुंचे. घर में वैसे ही मातम छाया हुआ था.

घर का गमगीन माहौल देख कर थानाप्रभारी का मन द्रवित हो गया. वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि बैंक मैनेजर की पत्नी से कैसे पूछताछ करें, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी होती है. उसे पूरा तो करना ही था.

उन्होंने मृतक की पत्नी सरिता देवी से हत्या के संबंध में कुछ जरूरी सवाल पूछे. सरिता देवी के जवाब से इंसपेक्टर मनोज कुमार सिंह को ऐसा कहीं नहीं लगा कि उन की किसी से कोई दुश्मनी हो. उन के जवाब से एक बात साफ हो गई थी कि पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी.

निश्चित ही उन का कोई ऐसा अपना था, जिसे उन की गतिविधियों के बारे में पलपल की जानकारी थी. उसी अपने ने बदमाशों के साथ मुखबिरी का खेल खेला और उन की जान ले ली.

सरिता देवी से पूछताछ करने के बाद विवेचनाधिकारी मनोज सिंह थाने वापस लौट आए थे.

रास्ते भर में वे यही सोच रहे थे कि आखिर वह कौन हो सकता है, जिस ने मुखबिर की भूमिका निभाई होगी और उन की हत्या से किस का क्या लाभ हुआ होगा?

हत्या की गुत्थी एकदम से उलझती चली जा रही थी. इस के सुलझाने का एक आखिरी रास्ता काल डिटेल्स ही बचा था.

अगले भाग में पढ़ें- तीनों आरोपियों ने भी अपने जुर्म कुबूल कर लिए

Manohar Kahaniya: किसी को न मिले ऐसी मां- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

एसआईटी ने अपना काम शुरू कर दिया. इस बार जब दोबारा जांच शुरू हुई तो एसआईटी को हरन व जश्न के अपहरण व हत्याकांड की जांच में एक के बाद एक कई ऐसे क्लू मिलने शुरू हो गए, जिस से इस बहुचर्चित केस की कडि़यां एक साथ जुड़ती चली गईं. आखिर 4 मार्च, 2021 को पुलिस ने जांच का पटाक्षेप करते हुए दीदार सिंह की पत्नी व हरन व जश्न की मां मंजीत कौर तथा दीदार सिंह के मौसेरे भाई बलजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से पूछताछ के बाद 2 मासूम बच्चों के बहुचर्चित व सनसनीखेज हत्याकांड की ऐसी हैरतअंगेज कहानी सामने आई, जिसे सुन कर हर किसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली और लोग कहने को मजबूर हो गए कि ऐसी मां किसी को न दे.

घटनास्थल से पलटी हत्याकांड की थ्यौरी

दरअसल, कोरोना महामारी के दौरान लौकडाउन लगने के बाद जब पुलिस की जांचपड़ताल और गतिविधियां धीमी पड़ गईं तो दीदार सिंह की पत्नी मंजीत कौर अचानक अपने पति का घर छोड़ कर शहर में अपनी बहन के पास रहने के लिए पटियाला चली गई थी. इस के बाद एक के बाद एक ऐसे घटनाक्रम हुए, जिस ने दोनों बच्चों के अपहरण व हत्याकांड की थ्यौरी ही पलट दी.

हुआ यूं कि कई महीने गुजर जाने के बाद भी जब पुलिस और परिवार वालों को दोनों बच्चों के कातिल का कोई सुराग नहीं मिला तो दीदार सिंह ने गंभीरता से सोचना शुरू किया कि ऐसा कौन शख्स हो सकता है जो बिना किसी लाभ के दोनों बच्चों को अगवा कर के उन की हत्या कर सकता है.

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इन्हीं सब बातों को सोचतेसोचते अचानक दीदार सिंह को अपने मौसेरे भाई बलजीत का खयाल आया. क्योंकि जब से उस के दोनों बेटे लापता हुए और बाद में उन की लाशें मिली थीं, तब से दोस्तों और रिश्तेदारों में एक ही इंसान था, जो न तो उस के पास हमदर्दी के दो बोल बोलने के लिए आया और न ही उस ने फोन कर के इस दुख में अपना शोक व्यक्त किया था.

इस के बाद नंवबर 2020 में वह हरन व जश्न की हत्या का राज खोलने के लिए बनी एसआईटी के हैड डीएसपी जसविंदर सिंह टिवाणा के पास पहुंचा और बोला, ‘‘सर अभी तक मुझे किसी पर शक नहीं था, लेकिन अब मैं दावा करता हूं कि अगर आप बलजीत को बुला कर सख्ती से पूछताछ करेंगे तो मेरे बच्चों की मौत का राज पता चल जाएगा.’’

‘‘इस की कोई खास वजह?’’ डीएसपी जसविंदर सिंह ने दीदार सिंह को हैरतभरी नजरों से देखते हुए पूछा.

मौसेरा भाई बलजीत आया शक के दायरे में

इस के बाद दीदार ने एक के बाद एक वह सारा घटनाक्रम बयान कर दिया, जिस के चलते उसे बलजीत सिंह पर शक हुआ था. सारी बात सुनने के बाद डीएसपी टिवाणा ने कहा, ‘‘दीदार सिंह, तुम ने देर से ही सही मगर बड़े काम की जानकारी हमें दी है. अगर पहले ये सब बातें बताई होतीं तो शायद अब तक हम तुम्हारे बच्चों  के कातिल तक पहुंच चुके होते.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘लेकिन तुम्हारी बात सुन कर मुझे लगता है कि हो न हो अगर बलजीत का इस मामले में हाथ है तो तुम्हारी बीवी मंजीत कौर का भी इस में जरूर हाथ रहा होगा.’’

‘‘नहीं साहब नहीं.. रब न करे आप की बात में सच्चाई हो… क्योंकि कोई मां अपने बच्चों का कत्ल करा सकती है, ये बात मेरे गले से नहीं उतर रही.’’ दीदार सिंह ने हैरत से खुले अपने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘रब न करे ऐसा हो, लेकिन दीदार तुम ने जो हालात बयान किए हैं, उस में ऐसा संभव हो सकता है.’’ डीएसपी बोले.

इस के बाद डीएसपी टिवाणा ने एसएसपी विक्रमजीत दुग्गल को दीदार सिंह के बच्चों के केस में आए इस नए इस खुलासे से अवगत कराया तो उन्होंने कहा कि जो भी संदिग्ध लगे, उस से पूछताछ करो. लेकिन अब मुझे इस केस का जल्द से जल्द खुलासा चाहिए.

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इस के बाद डीएसपी टिवाणा ने एसआईटी की मीटिंग बुलाई और बलजीत को बुला कर पूछताछ करने की रणनीति तय की. बलजीत को बुलाया गया. सवालों की एक लंबी फेहरिस्त पुलिस के पास थी, जिन का बलजीत ने बेखौफ हो कर जवाब दिया.

चूंकि पुलिस के पास न तो बलजीत के खिलाफ ठोस सबूत था और न ही कोई गवाह, लिहाजा जब उसे छुड़ाने के लिए कुछ लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाना शुरू किया तो बलजीत को मजबूरन छोड़ना पड़ा.

बलजीत के बाद पुलिस ने दीदार सिंह की पत्नी मंजीत कौर को भी पूछताछ के लिए बुलाया. मंजीत कौर ने शक जताया कि उस के पति का घर से बाहर किसी औरत से संबध है, वह चाहता है कि बच्चों को खत्म करने के बाद मुझ से छुटकारा मिल जाए और वह दूसरी शादी कर ले.

मंजीत कौर से पूछताछ के बाद तो थ्यौरी ही बदल गई

पुलिस ने अगले एक महीने में 2-3 बार बलजीत और मंजीत कौर को पूछताछ के लिए बुलाया. पूछताछ में पुलिस को हत्यारों का सुराग तो नहीं मिला, लेकिन उन्होंने हर बार दीदार सिंह पर उलटे ऐसेऐसे इलजाम लगाए कि इस से दोनों बच्चोें की हत्या की गुत्थी और ज्यादा उलझ गई.

एसएसपी के निर्देश पर डीएसपी टिवाणा ने दिसंबर 2020 में पटियाला की जिला अदालत में दीदार सिंह, मंजीत कौर तथा बलजीत कौर के लाई डिटेक्टर टेस्ट के लिए अरजी लगा दी.

मार्च के पहले हफ्ते में सब से पहले पुलिस ने दीदार सिंह का लाई डिटेक्टर टेस्ट कराया, उस के बाद एकएक कर के बलजीत सिंह और मंजीत कौर के लाई डिटेक्टर टेस्ट कराए गए.

पुलिस के पास इन से पूछने के लिए सवालों की एक लंबी फेहरिस्त पहले से तैयार थी. इस टेस्ट का परिणाम सामने आया तो पता चला कि दीदार सिंह ने सभी सवालों के जवाब एकदम सही दिए थे. जबकि मंजीत कौर तथा बलजीत ने ज्यादातर सवालों के जवाब में झूठ बोला था.

टेस्ट के बाद यह साफ हो गया कि हरनजीत सिंह व जश्नजीत सिंह के अपहरण व हत्याकांड को उन दोनों ने ही अंजाम दिया था.

लेकिन इस वारदात को क्यों और कैसे अंजाम दिया गया, इस का खुलासा होना बाकी था. लाई डिटेक्टर का परिणाम आने के बाद डीएसपी टिवाणा ने एसएसपी दुग्गल व एसआईटी के सभी अधिकारियों के समक्ष जब मंजीत कौर व बलजीत सिंह से पूछताछ की तो उन के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था. दोनों ने अपनेअपने गुनाह की कहानी कबूल कर ली.

दीदार सिंह पटियाला में जिस ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता था, वह ज्यादातर वहीं रहता था. महीने में 3-4 बार ही वह परिवार से मिलने आता था.

पति से रहने वाली यही दूरी मंजीत के लिए गैरमर्द के करीब जाने का सबब बन गई. दीदार सिंह की मौसी का लड़का बलजीत अकसर ही दीदार सिंह के घर आताजाता था.

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लेकिन करीब 3 साल पहले जब बलजीत दीदार की पत्नी मंजीत कौर की तरफ आकर्षित हुआ तो उस का घर में आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. दोनों के बीच पैदा हुआ आकर्षण जल्द ही नाजायज रिश्तों में बदल गया.

दीदार सिंह ने अपनी पत्नी मंजीत कौर को गांव में ही मनियारी की दुकान (सौंदर्य प्रसाधनों और कौस्मेटिक के सामान) खुलवा रखी थी. मंजीत पढ़ीलिखी और तेजतर्रार महिला थी. मनियारी की दुकान के कारण उस का समय भी व्यतीत हो जाता था और इस से होने वाली आमदनी में दीदार सिंह का हाथ भी बंटा देती थी.

बलजीत खेड़ी गंडियां से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित गांव महमा का रहने वाला था. अपने गांव के बाहर ही राजपुरा रोड पर उस ने गाडि़यों की डेंटिंगपेंटिग की वर्कशौप खोल रखी थी.

जब तक बलजीत के मंजीत कौर से नाजायज संबध नहीं बने थे, तब तक वह अकसर दीदार सिंह जब भी गांव आता तो उस के साथ शराब पीने की बैठकबाजी होती रहती थी. लेकिन अचानक बलजीत ने दीदार के साथ ऐसी शराब की बैठक करना बंद कर दी.

इधर, अब बलजीत अपनी वर्कशौप छोड़ कर रोजाना ही मंजीत की दुकान पर आने लगा और दिन भर वहीं पर पड़ा रहता था. कुछ दिन तो लोगों ने इसे नजरअंदाज किया लेकिन जल्द ही दोनों के संबधों को ले कर गांव में चर्चा फैलने लगी.

अगले भाग में पढ़ें- मंजीत ने रची थी साजिश

Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 4

उधर सीबीआई अपने कानों में तेल डाल कर अपनी जांच प्रक्रिया में जुटी रही. सीबीआई के 9 महीने के अथक प्रयास के बाद हलाइला जंगल से एक लकड़ी काटने वाले राजू नाम के संदिग्ध को पकड़ा और उस से कड़ाई से पूछताछ की.

खुद को निर्दोष बताते हुए राजू ने सीबीआई अधिकारी गुरम को बताया कि 5 जुलाई के दिन जंगल में अनिल उर्फ नीलू परेशान हाल में देखा गया था. उस के बाद से वह कहीं नहीं दिखाई दिया. वह मंडी जिला के बटोर का रहने वाला है और यहां पर एक ठेकेदार के पास लकड़ी चिरान का काम करता था.

राजू के बयान के बाद एसपी गुरम ने उसे छोड़ दिया और मुखबिर के जरिए नीलू का पकड़ने के लिए जाल फैला दिया. 13 अप्रैल, 2018 को सीबीआई ने आखिरकार शिमला के हाटकोटी इलाके से अनिल उर्फ नीलू समय गिरफ्तार कर लिया जब वह शिमला छोड़ कर कहीं भागने की फिराक में जुटा था.

एसपी एस.एस. गुरम गिरफ्तार नीलू को सीधे सीबीआई मुख्यालय दिल्ली ले आए और यहां उस से कड़ाई से पूछताछ की.

आखिरकार सीबीआई के सवालों की बौछार के आगे नीलू टूट ही गया और अपना जुर्म कुबूलते हुए गुडि़या रेपमर्डर केस को खुद अंजाम देने की बात कुबूल ली. फिर उस ने आगे की पूरी कहानी रट्टू रोते की तरह उगल दी, जो कुछ ऐसे सामने आई—

28 वर्षीय अनिल उर्फ नीलू उर्फ कमलेश उर्फ चरानी मूलरूप से मंडी जिले के बटोर का रहने वाला था. शिमला के कोटखाई थाने के महासू में किराए का कमरा लेकर अकेला रहता था. हलाइला गांव के पास तांदी के जंगल में एक ठेकेदार के यहां वह लकड़ी चीरने का काम करता था.

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अनिल उर्फ नीलू अविवाहित था. इकहरे बदन का दुबलापतला नीलू देखने में तो एकदम मरियल सा था, लेकिन था अव्वल दरजे का इश्कबाज रोमियो. राह गुजरती किसी महिला को देखता तो उस के मुंह से वासना की लार टपकने लगती थी. यहीं नहीं उसे खा जाने वाली नजरों से तब तक घूरता था, जब तक वह उस की नजरों से ओझल नहीं हो जाती थी.

अनिल उर्फ नीलू की हो गई नीयत खराब

गुडि़या तांदी के जंगल के रास्ते हो कर रोजाना घर से स्कूल और स्कूल से घर जाया करती थी. नीलू की गुडि़या पर कई दिनों से नजर गड़ी हुई थी. गुडि़या थी तो नाबालिग, लेकिन स्वस्थ देह में उस का अंगअंग विकसित हो चुका था. उस के बदन पर जब भी नीलू की नजरें पड़ती थीं, उस की रगों में वासना के गंदे कीड़े कुलबुलाने लगते थे. लेकिन मन मसोस कर रह जाता था.

गुडि़या नीलू की आंखों के रास्ते उस के दिल में उतर चुकी थी. उस ने सोच लिया था कि गुडि़या के जिस्म को जब तक वह मन के मुताबिक नहीं भोग लेगा, तब तक उसे संतुष्टि नहीं होगी.

बात जुलाई, 2017 की है. उन दिनों बारिश की वजह से जंगल में चिरान का काम बंद चल रहा था लेकिन नीलू ठेके पर रोजाना पहुंचता था. उधर गुडि़या का स्कूल खुल चुका था. वह 10वीं कक्षा में पढ़ती थी. वह रोज समय से स्कूल जाया करती थी. उसे तांदी के जंगल के रास्ते से हो कर ही जाना पड़ता था.

4 जुलाई, 2017 को शाम साढ़े 4 बजे स्कूल से छुट्टी हुई तो वह जंगल के रास्ते घर निकल पड़ी. इधर नीलू जंगल में घात लगा कर उस के आने का इंतजार करने लगा कि आज वह अपनी हसरतें पूरी कर के ही रहेगा.

नीलू ने गुडि़या को जंगल की ओर जैसे ही आते देखा, वह सतर्क हो गया और उस ने शिकारी भेडि़ए की तरह पीछे से मुंह पर हाथ रख उसे दबोच लिया. अचानक हुए हमले से गुडि़या डर गई. और नीलू के मजबूत हाथों से छूटने की कोशिश करने लगी, लेकिन उस के चंगुल से निकल नहीं पाई.

वहशी दरिंदा नीलू घसीटता हुआ उसे जंगल के बीच ले गया और उस के साथ जबरदस्ती कर डाली. जब वासना की आग ठंडी हुई तो उस के सामने जेल की सलाखें नजर आने लगीं कि अगर इसे जिंदा छोड़ दिया तो यह अपने घर वालों को जा कर बता देगी.

फिर क्या था? ये सवाल दिमाग में आते ही नीलू गुडि़या पर फिर से टूट पड़ा और फिर एक बार और उस के साथ अपना मुंह काला किया और गला घोंट कर मौत के हवाले झोंक दिया.

उस की पहचान मिटाने के लिए उस के स्कूल के कपड़े, जूतेमोजे, स्कूल बैग सब जला दिए और फरार हो गया. जहां 2 दिनों बाद उस की नग्नावस्था में लाश बरामद हुई.

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सीबीआई पर भी अंगुली उठा रहे हैं लोग

बहरहाल, फिर शुरू हुआ एसआईटी और सीबीआई का खेल. एसआईटी ने जिन 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया था, जिन में एक आरोपी सूरज सिंह की हिरासत में मौत हो चुकी थी, उन आरोपियों को सीबीआई ने दोषी नहीं माना और उन्हें जमानत पर छोड़ दिया.

सीबीआई ने गुडि़या रेप मर्डर केस में जिस एक आरोपी कमलेश उर्फ अनिल उर्फ नीलू उर्फ चरानी को आरोपी बनाया है, उस की जांच से न तो गुडि़या के घरवाले खुश हैं और न ही मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा.

सामाजिक संस्था के चेयरमैन विकास थाप्टा का कहना है, ‘‘मैं इस बात से कतई इंकार नहीं करता कि नीलू दोषी नहीं है, लेकिन मैं इस बात को भी नहीं स्वीकार करता कि एक अकेला नीलू ही इस घटना को अंजाम दे सकता है. नीलू के अलावा भी इस केस में और भी दोषी हैं, जिन्हें बचाया गया है. उन दोषियों को सजा दिलाने तक संस्था चुप नहीं बैठेगी, संघर्ष करती रहेगी.’’

इस के बाद इसी संस्था की ओर से हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में गुडि़या दुष्कर्म मामले की जांच दोबारा करवाए जाने की मांग को ले कर न्यायाधीश त्रिलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सी.बी. बारोवलिया के समक्ष एक याचिका दायर की. याचिका पर सुनवाई करने वाले न्यायाधीश त्रिलोक सिंह चौहान ने सुनवाई करने वाली बेंच से खुद को अलग कर लिया.

Manohar Kahaniya: जिद की भेंट चढ़ी डॉक्टर मंजू वर्मा

खैर, गुडि़या को न्याय दिलाने के लिए मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा, उन की सहयोगी तनुजा थाप्टा और ट्रस्ट के वकील भूपेंद्र चौहान ने एड़ीचोटी एक कर दी थी. आखिरकार उन की मेहनत रंग ले आई और गुडि़या का कातिल नीलू अपने कुकर्मों की सजा मृत्यु होने तक जेल में काटता रहेगा.

सीबीआई ने आईजी और एसपी सहित जिन 9 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया था, कथा लिखने तक उन में से आईजी जहूर हैदर जैदी और एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी जमानत पर जेल से बाहर आ चुके हैं.

इन के केस में कोर्ट से अभी फैसला नहीं हुआ है. अब देखना यह है कि रस्सी को सांप बनाने में माहिर इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ अदालत क्या सजा सुनाती है.

(कथा में मृतका का नाम और स्थान परिवर्तित है. कथा दस्तावेजों और पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Crime Story- रिश्तों की हद की पार: ससुर और बहू दोनों जिम्मेदार

एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवक तेजी से सरपट दौड़ रही सफेद रंग की स्कौर्पियो कार का दूर से पीछा कर रहे थे. ओवरटेक कर के बाइक जैसे ही स्कौर्पियो के समानांतर आई, बाइक के पीछे बैठे नकाबपोश ने ड्राइवर को लक्ष्य बना कर उस के हाथ पर गोली मार दी.

गोली लगते ही स्कौर्पियो के ड्राइवर के हाथ से स्टीयरिंग छूट गया और कार लहराते हुए डिवाइडर से जा टकराई. तभी घायल ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोला. वह कार से निकल कर भागने ही वाला था कि तभी वह बाइक सवार बदमाश उस के करीब जा पहुंचे और उस से पूछा, ‘‘कार में पीछे बैठा बैंक मैनेजर शैलेंद्र ही है न?’’

दर्द से कराह रहे ड्राइवर ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. तभी हथियारबंद नकाबपोेश बदमाश ने कार में पिछली सीट पर बैठे बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा के पास पहुंच कर सिर में एक और सीने में 2 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह हवा में असलहा लहराते हुए आराम से निकल गए.

जिस समय यह घटना घटी थी, उस समय सुबह के 8 बजे थे. राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बावजूद सड़क पर सन्नाटा पसरा था.

सड़क पर खून से लथपथ युवक को दर्द से कराहता देख कर कुछ बाइक वाले वहां रुके तो ड्राइवर ने उन से मदद मांगी और 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को देने का अनुरोध किया.

ड्राइवर ने अपना नाम अनिल बताया और कहा कि बदमाशों ने कार में बैठे उस के मालिक को भी गोली मारी है.

यह घटना बिहार के नालंदा जिले की फतुहा थाना क्षेत्र के भिखुआचक राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 जून, 2021 को सुबह 8 बजे के करीब घटी थी.

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इस के बाद भीड़ में से एक व्यक्ति ने 100 नंबर पर फोन कर घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलते ही फतुहा थाने के थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.

कार चालक अनिल डिवाइडर के किनारे बैठा दर्द से कराह रहा था. उस के दाएं हाथ से खून लगातार बह रहा था. कार में पिछली सीट पर खून से लथपथ रिटायर्ड बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की लाश पड़ी हुई थी.

क्राइम सीन देख कर ऐसा लग रहा था कि बदमाश ने शैलेंद्र को करीब से गोली मारी थी. छानबीन में पुलिस को 7.65 एमएम का एक खोखा कार में से बरामद हुआ था.

साक्ष्य के तौर पर पुलिस ने खोखे को अपने कब्जे में ले लिया. इस बीच थानाप्रभारी मनोज कुमार ने एसपी (ग्रामीण) कांतेश कुमार मिश्र और एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा को इस घटना की जानकारी दे दी थी. घटना की जानकारी मिलते ही दोनों  पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए.

एक बात पुलिस अधिकारियों को खटक रही थी कि बदमाशों ने चालक को क्यों छोड़ दिया? उस की हत्या क्यों नहीं की? कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं है?

गोली लगने से चालक अनिल की हालत बिगड़ती जा रही थी. इसलिए पुलिस ने उसे जल्द से जल्द जिला हौस्पिटल भेज दिया ताकि उस के जरिए बदमाशों तक आसानी से पहुंचा जा सके. शैलेंद्र कुमार की हत्या का वही एक चश्मदीद गवाह था.

बेहतर इलाज के बाद चालक अनिल के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ तो उसी शाम 3 बजे के करीब थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह बयान लेने जिला अस्पताल पहुंचे, जहां वह भरती था.

‘‘कैसे हो अनिल? अब कैसा फील कर रहे हो?’’ थानाप्रभारी मनोज कुमार ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सर, पहले से बेहतर हूं और अच्छा महसूस कर रहा हूं.’’ अनिल ने बताया.

‘‘अच्छा बताओ कि यह कैसे और क्या हुआ था?’’

‘‘साहब, मैं कार चला रहा था कि तभी साइड से आए एक बाइक वाले ने मुझे गोली मारी जो हाथ में लगी. गोली लगते ही कार की स्टीयरिंग मेरे हाथ से छूट गई और कार डिवाइडर से जा टकराई. फिर बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश बदमाश ने मुझ से पूछा कि कार में बैठा क्या शैलेंद्र यही है. मैं ने हां कह दिया. मेरे हां कहते ही उस बदमाश ने साहब को गोलियों से भून डाला और फरार हो गए.’’ अनिल बोला.

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‘‘ओह! बाइक पर कितने बदमाश थे.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, 2.’’ उस ने बताया.

‘‘दोनों बदमाशों में से किसी का चेहरा याद है तुम्हें?’’ उन्होंने अगला सवाल किया.

‘‘नहीं, साहब. कैसे चेहरा देखता, जब दोनों के चेहरे नकाब से ढके थे.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह!’’ थानेदार मनोज कुमार ने एक लंबी सांस छोड़ी, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम आ कहां से रहे थे?’’

‘‘नालंदा के गड़पर स्थित प्रोफेसर कालोनी से आ रहे थे. साहब के छोटे बेटे मनीष गुवाहाटी से पटना आ रहे थे. उन्हें ही रिसीव करने साहब को ले कर पटना जा रहा था कि…’’ कह कर अनिल रोने लगा.

‘‘तुम्हारे साहब के घर में कौनकौन रहता है और तुम्हारे यहां आने की जानकारी किस किस को थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब के साथ मेमसाहब और उन का बड़ा बेटा पीयूष रहते हैं. पीयूष दिव्यांग हैं. मेम साहब और पीयूष बाबा के अलावा किसी को भी इस की जानकारी नहीं थी.’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है. अभी तो मैं चलता हूं बाद में आ कर फिर तुम से मिलूंगा.’’

थानेदार मनोज कुमार सिंह ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र से पूछताछ कर वहां से थाने लौट आए थे. इधर शैलेंद्र कुमार की हत्या की जानकारी मिलते ही उन के घर में कोहराम छा गया था. मृतक शैलेंद्र कुमार की पत्नी सरिता देवी का रोरो कर बुरा हाल था.

ससुर की हत्या की जानकारी जैसे ही दामाद पवन कुमार को हुई, वह भागाभागा मोर्चरी पहुंचा, जहां पोस्टमार्टम के बाद लाश मोर्चरी में रखी हुई थी. गुवाहाटी से पटना आ रहे बेटे मनीष को रास्ते में ही फोन से पिता की हत्या की जानकारी दे दी गई थी, इसलिए वह भी सीधा मोर्चरी पहुंच गया था.

इस बीच में पुलिस ने मनीष की तरफ से 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

बेटा, दामाद और रिश्तेदारों ने मिल कर शैलेंद्र कुमार का गंगा के किनारे श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया और अपनेअपने घरों को लौट आए. फिर मनीष जीजा पवन के साथ घर देर रात पहुंचा.

बेटे को देख कर मां की आंखें फफक पड़ीं तो मनीष भी खुद को रोक नहीं पाया. मां को रोता देख उस की आंखें बरस पड़ीं. रोतेरोते दोनों एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे.

पलभर के लिए वहां का माहौल एकदम से फिर गमगीन हो गया था. दामाद पवन कुमार कुछ देर वहां रुका. उस ने सास और साले को समझाया और फिर रामकृष्णनगर, पटना अपने किराए के कमरे पर वापस लौट गया.

अगले दिन थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह हत्या की गुत्थी सुलझाने और जानकारी लेने के लिए गड़पर प्रोफेसर कालोनी में स्थित मृतक शैलेंद्र कुमार के आवास पहुंचे. घर में वैसे ही मातम छाया हुआ था.

घर का गमगीन माहौल देख कर थानाप्रभारी का मन द्रवित हो गया. वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि बैंक मैनेजर की पत्नी से कैसे पूछताछ करें, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी होती है. उसे पूरा तो करना ही था.

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उन्होंने मृतक की पत्नी सरिता देवी से हत्या के संबंध में कुछ जरूरी सवाल पूछे. सरिता देवी के जवाब से इंसपेक्टर मनोज कुमार सिंह को ऐसा कहीं नहीं लगा कि उन की किसी से कोई दुश्मनी हो. उन के जवाब से एक बात साफ

हो गई थी कि पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी.

निश्चित ही उन का कोई ऐसा अपना था, जिसे उन की गतिविधियों के बारे में पलपल की जानकारी थी. उसी अपने ने बदमाशों के साथ मुखबिरी का खेल खेला और उन की जान ले ली.

सरिता देवी से पूछताछ करने के बाद विवेचनाधिकारी मनोज सिंह थाने वापस लौट आए थे.

रास्ते भर में वे यही सोच रहे थे कि आखिर वह कौन हो सकता है, जिस ने मुखबिर की भूमिका निभाई होगी और उन की हत्या से किस का क्या लाभ हुआ होगा?

हत्या की गुत्थी एकदम से उलझती चली जा रही थी. इस के सुलझाने का एक आखिरी रास्ता काल डिटेल्स ही बचा था.

7 जून को पुलिस को मृतक शैलेंद्र की काल डिटेल्स मिल गई थी. विवेचनाधिकारी सिंह ने काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो उस में एक नंबर ऐसा भी मिला, जिस से काफी बातचीत हुई थी. पुलिस ने मृतक की पत्नी से उस नंबर के बारे में जानकारी मांगी तो वह नंबर मृतक के दामाद पवन कुमार का निकला.

विवेचनाधिकारी सिंह की नजरों में पता नहीं क्यों पवन संदिग्ध रूप में चढ़ गया था. फिर उन्होंने पवन के बारे में सरिता देवी से जानकारी ली. सास सरिता देवी ने उन्हें दामाद पवन के बारे में जो जानकारी दी, सुन कर वह चौंक गए थे.

पता चला कि पवन ने अपनी पत्नी सृष्टि के होते हुए अपने बड़े साले पीयूष की पत्नी निभा से प्रेम विवाह कर लिया था. यही नहीं, एक मोटी रकम को ले कर ससुर शैलेंद्र और दामाद पवन के बीच कई महीनों से रस्साकशी चल रही थी.

दरअसल, बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन के पास एक 5 कट्ठे की जमीन थी. वह जमीन शैलेंद्र कुमार को पसंद आ गई थी. दामाद पवन ने उन्हें वह जमीन दिलवाने की हामी भी भर दी थी. दामाद के जरिए 60 लाख में जमीन का सौदा भी पक्का हो गया था.

जमीन मालिक को कुछ पैसे एडवांस दिए जा चुके थे और 17 जून को जमीन का बैनामा छोटे बेटे मनीष के नाम होना तय हो गया था. इसी दौरान शैलेंद्र की हत्या हो गई.

खैर, पुलिस ने पवन के मोबाइल नंबर को सर्विलांस में लगा दिया और मुखबिरों को भी उस के पीछे लगा दिया ताकि उस की गतिविधियों के बारे में सहीसही पता लग सके.

अंतत: पवन वह गलती कर ही बैठा, जिस की संभावना पुलिस को बनी हुई थी. उस गलती के बिना पर पुलिस ने पवन को उस के रामकृष्णनगर स्थित घर से धर दबोचा और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.

पुलिस ने पवन से कड़ाई से पूछताछ करनी शुरू की तो पवन एकदम से टूट गया और ससुर की हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए कहा, ‘‘हां सर, मैं ने ही सुपारी दे कर ससुर की हत्या कराई थी. मुझे माफ कर दीजिए सर, मैं पैसों के लालच में अंधा हो गया था.’’ कह कर वह रोने लगा.

‘‘तुम्हारे इस काम में और कौनकौन थे या फिर तुम ने यह सब अकेले ही किया?’’ विवेचनाधिकारी मनोज कुमार ने सवाल किया.

‘‘साहब, मेरे इस काम में मेरी दूसरी पत्नी निभा, छोटा भाई टिंकू और शूटर अमर शामिल थे.’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है तो ले चलो सभी गुनहगारों के पास.’’

इस के बाद पुलिस पवन को कस्टडी में ले कर रामकृष्णनगर पहुंची और उस की पत्नी निभा तथा छोटे भाई टिंकू को गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन कंकड़बाग के अशोकनगर कालोनी से शूटर अमर को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

तीनों आरोपियों ने भी अपने जुर्म कुबूल कर लिए. उस के बाद इस हत्या की जो कहानी सामने आई, बेहद चौंकाने वाली थी, जहां पैसों के लालच में अंधे हुए दामाद ने कई रिश्तों का कत्ल कर दिया था. पढ़ते हैं इस कहानी को—

60 वर्षीय शैलेंद्र कुमार सिन्हा मूलत: बिहार के नालंदा जिले के गड़पर प्रोफेसर कालोनी के रहने वाले थे. उन के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पत्नी सरिता देवी और 2 बेटे पीयूष व मनीष और एक बेटी सृष्टि. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.

भौतिक सुखसुविधाओं की ऐसी कोई चीज नहीं थी, जो उन के घर में मौजूद न हो. उस पर से वह खुद भारतीय स्टेट बैंक के मैनेजर थे. उन की अच्छीभली तनख्वाह थी, इसलिए जिंदगी बड़े मजे से कट रही थी.

शैलेंद्र का बड़ा बेटा पीयूष दिव्यांग था. वह पूरी तरह से चलफिर नहीं सकता था. बेटे की हालत देख कर उन के कलेजे में टीस उठती थी.

छोटा बेटा मनीष हृष्टपुष्ट और तंदुरुस्त था, शरीर से भी और दिमाग से भी. पढ़ने में वह अव्वल था. अपनी योग्यता और काबिलियत की बदौलत मनीष की बैंक में नौकरी लग गई थी और वह असम के गुवाहाटी में तैनात था.

शैलेंद्र ने समय रहते दोनों बेटों की शादी कर दी थी. जिम्मेदारी के तौर पर एक बेटी बची थी शादी करने के लिए, सो उस के लिए भी वह योग्य वर की तलाश कर रहे थे. उन्होंने रिश्तेदारों के बीच में बात चला दी कि बेटी के योग्य कोई अच्छा वर मिले तो बताएं. रिश्तेदारों के बीच से पटना का रहने वाला पवन कुमार का रिश्ता आया.

पवन राजधानी पटना की पौश कालोनी में कोचिंग सेंटर चलाता था. कोचिंग से उस की अच्छीखाई कमाई हो जाया करती थी. बैंक मैनेजर शैलेंद्र को यह रिश्ता पसंद आ गया. उन्होंने बेटी सृष्टि की शादी पवन से कर के अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर दिया.

पवन कुमार 2 भाई थे. दोनों भाइयों में पवन बड़ा था और टिंकू कुमार छोटा. दोनों में पवन सुंदर और बेहद समझदार था. वह कोचिंग से इतना कमा लेता था कि अपना खर्च निकालने के बाद कुछ बैंक बैलेंस बना लिया था.

खैर, शैलेंद्र को यह रिश्ता पसंद आ गया और उन्होंने बेटी सृष्टि की शादी पवन से कर दी. एक प्रकार से पवन के कंधों पर ससुराल की देखरेख की जिम्मेदारी भी आ गई थी.

वह ऐसे कि बड़ा साला पीयूष दिव्यांग था. छोटा साला मनीष परिवार ले कर नौकरी पर गुवाहाटी में रहता था.

घर पर बचे सासससुर. उन की देखरेख के लिए एक व्यक्ति की जरूरत रहती थी, सो दामाद पवन सास

और ससुर की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहता था.

दामाद के इस व्यवहार से सासससुर दोनों बहुत खुश रहते थे. वैसे भी बिहार की यह परंपरा है कि बेटी और दामाद घर के मालिक की तरह होते हैं. सास और ससुर बेटी और दामाद की सलाहमशविरा के बिना कोई काम नहीं करते थे.

कोई भी काम होता तो वे दामाद से रायमशविरा लिए बिना नहीं करते थे. बारबार ससुराल आनेजाने से बड़े साले पीयूष की पत्नी निभा, जो रिश्ते में पवन की सलहज लगती थी, दोनों के बीच खूब हंसीठिठोली होती थी.

हंसीठिठोली होती भी कैसे नहीं, उन का तो रिश्ता था ही मजाक का. मजाक का यह रिश्ता दोनों के बीच में कब प्रेम के रिश्ते में बदल गया, न तो पवन जान सका और न ही निभा.

यह रिश्ता प्रेम तक ही कायम नहीं रहा, बल्कि यह जिस्मानी रिश्ते में बदल गया था और पहली पत्नी के रहते पवन ने सलहज निभा से कोर्टमैरिज कर ली और उसे ले कर पटना में रहने लगा था.

दामाद की करतूतों की भनक जब सासससुर को लगी तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दामाद पवन ने काम ही ऐसा किया था. जिस थाली में उस ने खाया था, उसी में छेद कर दिया था. और तो और उस ने सृष्टि का जीवन भी बरबाद कर दिया था. बेटी की जिंदगी को ले कर मांबाप चिंता के अथाह सागर में डूब गए थे.

शैलेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का दामाद ऐसी करतूत करेगा कि उन का समाज में उठनाबैठना तक मुहाल हो जाएगा.

इतना होने के बावजूद उन्होंने बेटी को यही सीख दी कि कुछ भी हो जाए, अपने हक के लिए लड़ना. वहां से कायरों की तरह भागना मत. बेचारी सीधीसादी सृष्टि करती भी क्या, किस्मत पर रोने के सिवाय.

खैर, होनी को कौन टाल सकता है, जो होना है उसे हो कर रहना है. अपनी किस्मत की लकीर समझ कर सृष्टि ससुराल में जीवन काटने लगी थी. इधर पवन सलहज से पत्नी बनी निभा को साथ ले कर पटना में रहने लगा था.

अब पवन और निभा की नजरें ससुराल की करोड़ों की संपत्ति पर जम गई थीं. पवन और निभा दोनों को पता था कि इसी साल फरवरी में ससुर शैलेद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हो जाएंगे. रिटायरमेंट के दौरान उन्हें लाखों रुपए मिलने वाले हैं.

ससुर के जीवन भर की कमाई पर दोनों की गिद्ध दृष्टि जम गई थी और उन रुपयों को हासिल करना उन का मकसद बन गया था. कैसे और क्या करना है, यह उन्होंने पहले से ही योजना बना ली थी. इस योजना में पवन ने अपने छोटे भाई टिंकू को भी शामिल कर लिया था.

फरवरी, 2021 में बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हुए. उन्हें जीपीएफ, ग्रैच्युटी आदि के मिला कर 70-80 लाख रुपए मिले थे. उन रुपयों से वह छोटे बेटे के लिए किसी वीआईपी एरिया में जमीन खरीदना चाहते थे और जमीन की तलाश में वह जुट भी गए थे.

उसी दौरान कहीं से इस की जानकारी पवन को हो गई थी कि ससुरजी छोटे साले के लिए जमीन खरीदने की फिराक में हैं.

पवन ससुर शैलेंद्र से मिला और उन्हें भरोसा दिलाया कि बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन के पास एक अच्छी और कीमती जमीन है. वह कीमती जमीन उस के जानपहचान वाले की है. देखना चाहें तो उसे देख लें. जमीन पसंद आने पर बात आगे बढ़ाई जाएगी, नहीं तो कोई बात नहीं.

दामाद की बात उन्हें पसंद आ गई. उन्होंने दामाद से जमीन दिखाने की बात कही तो उस ने वह जमीन दिखा दी. वह जमीन उन्हें पसंद आ गई.

बातचीत भी हो गई. 60 लाख रुपयों में सौदा फाइनल हो गया और शैलेंद्र ने एकमुश्त रकम दामाद को दे दी. 60 लाख की रकम देख कर पवन की नीयत बदल गई.

शैलेंद्र ने पवन से कह दिया था कि जमीन की रजिस्ट्री छोटे बेटे मनीष के नाम होगी. ससुर को झांसे में रख पवन ने विश्वास दिया कि वह जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा. लेकिन इधर उस के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.

पवन जमीन मालिक को 60 लाख में से कुछ रुपए दे कर बाकी के रुपए डकार गया. शैलेंद्र रजिस्ट्री बेटे के नाम पर करने के लिए बारबार दामाद पर दबाव बना रहे थे जबकि वह ऐसा करने वाला नहीं था. वह तो रुपए डकार गया था.

ससुर शैलेंद्र के दबाव बनाने से पवन घबरा गया था. वह समझ गया था कि उसे छोड़ने वाले नहीं हैं अगर जमीन की रजिस्ट्री मनीष के नाम पर नहीं की तो. इस मुसीबत से छुटकारा पाने का एक ही रास्ता बचा है ससुर को रास्ते से हटाने का.

फिर क्या था उस के साथ दूसरी पत्नी निभा और उस का छोटा भाई टिंकू पहले से थे ही. सो उन्होंने इस खतरनाक योजना में साथ देने के लिए भी हामी भर दी.

इस बीच लौकडाउन लग गया. लौकडाउन लगने की वजह से सभी काम बंद पड़े थे. मई के महीने में थोड़ी ढील मिली तो ससुर ने फिर दबाव बढ़ाया कि जमीन की रजिस्ट्री जल्द से जल्द करा दे.

आखिरकार मामला 60 लाख रुपए का है. तो उस ने ससुर को बताया कि 17 जून को रजिस्ट्री होगी, समय से छोटे साले मनीष को बुला लीजिएगा.

इधर, पवन ने ससुर को रास्ते से हटाने के लिए अपने छोटे भाई टिंकू के जरिए कांट्रैक्ट किलर अमर को एक लाख रुपए की सुपारी दे दी. जिस में पेशगी के तौर 40 हजार रुपए शूटर अमर को दे दिए और बाकी रकम काम पूरा होने के बाद देनी तय हुई.

उस के बाद से टिंकू और अमर दोनों शैलेंद्र की रेकी करने लगे कि वह कब और कहां जाते हैं? किस से मिलते हैं? एक हफ्ते की रेकी में जारी जानकारी दोनों ने जमा कर ली. बस घटना को अंजाम देना शेष था.

5 जून, 2021 को छोटा बेटा मनीष गुवाहाटी से पटना आने वाला था. यह जानकारी पवन को हो गई थी. उस ने घटना को अंजाम देने के लिए इसी दिन को अच्छा समझा और इस की पूरी जानकारी शूटर अमर को दे दी.

5 जून, 2021 की सुबह करीब पौने 8 बजे शैलेंद्र बेटे को रिसीव करने अपनी स्कौर्पियो कार से पटना के लिए निकले. कार में वह पीछे बैठे थे और ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र कार चला रहा था.

कार जैसे ही फतुहा हाइवे पहुंची तो टिंकू शूटर अमर को अपनी बाइक पर पीछे बैठा कर कार का पीछा करने लगा और थोड़ी देर बाद उस ने कार को ओवरटेक कर के ड्राइवर अनिल के हाथ में गोली मार कर कार रोकवाई.

ड्राइवर से शैलेंद्र के बारे में कन्फर्म होने के बाद शूटर अमर ने 3 गोलियां मार कर पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की हत्या कर दी और मौके से दोनों फरार हो गए.

बहरहाल, पुलिस को शुरू से ही इस में करीबियों के शामिल होने का शक था और हुआ भी वही. पवन को हिरासत में ले कर जब पूछताछ हुई तो परदा उठ गया और चारों आरोपी पवन, निभा, टिंकू और अमर गिरफ्तार कर लिए गए.

पुलिस ने शूटर अमर की निशानदेही पर उस के पास से एक पिस्टल, एक जिंदा कारतूस, एक बाइक और एक स्कूटी, 3 मोबाइल फोन और सिम बरामद किए.

कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में बंद थे. पुलिस उन के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में जुटी थी. जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बाद पवन को अपने किए पर पश्चाताप हो रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story: पुलिस वाले की खूनी मोहब्बत- भाग 2

अधिकारियों ने इस एंगल पर भी विचार किया कि स्वीटी का किसी दूसरे व्यक्ति से कोई प्रेम प्रसंग तो नहीं था. इस के लिए अजय सहित उस के मकान के आसपास के लोगों और रिश्तेदारों से पूछताछ की गई, लेकिन इस बात में कोई दम नजर नहीं आया.

पुलिस अपने तरीके से स्वीटी की तलाश में जुटी हुई थी. इस दौरान जुलाई के दूसरे सप्ताह में वडोदरा से कुछ दूर भरूच जिले के अटाली गांव के पास एक अधूरी पड़ी निर्माणाधीन बिल्डिंग के पिछवाड़े पुलिस को कुछ जली हुई हड्डियां मिलीं.

पुलिस ने फोरैंसिक विशेषज्ञों से उन हड्डियों की जांच कराई तो पता चला कि वह हड्डियां किसी इंसान की थीं.

जली हुई इंसानी हड्डियां मिलने पर स्वीटी के लापता होने में पुलिस अधिकारियों का शक इंसपेक्टर अजय पर गहरा गया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई, लेकिन वह अपनी पत्नी के लापता होने की बात ही कहता रहा.

आखिर पुलिस अधिकारियों ने अजय के सच और झूठ बोलने का पता लगाने के लिए विभिन्न परीक्षण कराने का फैसला किया. इस के अलावा जली हुई हड्डियों का पता लगाने के लिए डीएनए टेस्ट कराने का भी निर्णय लिया गया.

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पुलिस ने सब से पहले गांधीनगर की विधि विज्ञान प्रयोगशाला में अजय की सीडीएस जांच कराई. इजरायल की विशेष रूप से स्थापित तकनीक सीडीएस जांच के जरिए विभिन्न सवालों के जरिए संदिग्ध व्यक्ति के पसीने और शरीर के तापमान के आधार पर सच्चाई का पता लगाया जाता है.

इस के बाद पुलिस ने उस के पौलीग्राफ टेस्ट और नारको टेस्ट के लिए अदालत से अनुमति मांगी.

स्वीटी के 2 साल के बेटे अंश का डीएनए टेस्ट कराया गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि बरामद हुई हड्डियां स्वीटी की हैं या नहीं.

इंसपेक्टर अजय का कराया पौलीग्राफ टेस्ट

बाद में अदालत से अनुमति मिलने पर पुलिस ने अजय का पौलीग्राफ टेस्ट भी कराया. पौलीग्राफ टेस्ट की प्रक्रिया 2 दिन तक चलती रही.

इस बीच, पुलिस को यह बात पता चली कि स्वीटी अपने बेटे से मिलने के लिए आस्ट्रेलिया जा सकती है. इस संभावना को देखते हुए पुलिस ने स्वीटी के पहले पति हेतस पांड्या और बेटे से औनलाइन पूछताछ की.

पुलिस ने हेतस पांड्या से स्वीटी के संपर्क में आने और इस के बाद दोनों के अलग होने के बारे में जानकारी ली.

इस पूछताछ में यह बात सामने आई कि स्वीटी ने अपने बेटे रिदम से कुछ महीने पहले आस्ट्रेलिया आ कर मिलने की बात कही थी, लेकिन स्वीटी आस्ट्रेलिया गई नहीं थी. हेतस पांड्या ने पूछताछ में यह भी बताया कि संभवत: स्वीटी के पासपोर्ट का नवीनीकरण नहीं हुआ है.

स्वीटी के लापता होने के बाद से उस के पहले बेटे रिदम ने आस्ट्रेलिया से ही सोशल मीडिया के जरिए अपनी मां की तलाश का अभियान छेड़ दिया था. तमाम तरह की तकनीकी और एफएसएल जांच कराने के बावजूद कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया था. कैलेंडर की तारीखें रोजाना बदलती जा रही थीं.

स्वीटी को लापता हुए करीब डेढ़ महीने का समय बीत गया था, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला था. यह भी पता नहीं चल सका था कि वह जीवित है या मर चुकी.

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क्राइम ब्रांच ने संभाली जांच

पुलिस की लगातार हो रही आलोचनाओं को देखते हुए गुजरात सरकार ने जुलाई के तीसरे सप्ताह में इस मामले की जांच अहमदाबाद क्राइम ब्रांच को सौंप दी. क्राइम ब्रांच के अफसरों ने नए सिरे से मामले की जांचपड़ताल शुरू की.

पुलिस अफसरों ने मीटिंग कर इस मामले में अब तक की जांच पर गहराई से विचारविमर्श किया. इस में यही बात सामने आई कि यह घरेलू मामला है. इस का राज उस के पति पुलिस इंसपेक्टर अजय से पूछताछ में ही निकल सकता है.

इस के लिए अजय की नारको टेस्ट कराने की अदालत से अनुमति मिल गई, लेकिन अजय ने अपनी मानसिक और शारीरिक स्थिति ठीक नहीं बताते हुए नारको टेस्ट देने में सक्षम नहीं बताया.

दरअसल, अजय पुलिस इंसपेक्टर था. उसे कानून की खामियां और पुलिस की

सीमा रेखा भी पता थी. पुलिस नारको टेस्ट के लिए उस से जबरदस्ती नहीं कर सकती थी और न ही उस से सख्ती से पूछताछ कर सकती थी.

अजय की ओर से नारको टेस्ट कराने से इनकार करने पर क्राइम ब्रांच के अफसरों का शक उस पर गहरा गया. उन्होंने उस के शहर छोड़ कर जाने पर रोक लगा दी गई.

इस के साथ ही क्राइम ब्रांच के अफसरों ने अजय के मकान से जांच शुरू करने और अटाली गांव में एक बिल्डिंग के पीछे जहां इंसानी हड्डियां मिली थीं, वहां का मौकामुआयना करने का निर्णय किया.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने 23 जुलाई को अजय के प्रयोशा सोसायटी स्थित फ्लैट की जांचपड़ताल की.

इस में एक पुराने पुलिस वाले ने अपने अनुभव के आधार पर बाथरूम को कैमिकल से सफाई करवा कर देखा तो वहां खून के कुछ धब्बे मिले. इस के बाद पुलिस ने अपनी जांचपड़ताल तेज कर दी और कुछ जरूरी सबूत जुटाने के लिए अजय से फिर पूछताछ की.

आखिर पुलिस ने 49वें दिन स्वीटी के गायब होने की गुत्थी सुलझा कर 24 जुलाई, 2021 को इस मामले का परदाफाश कर दिया. स्वीटी पटेल की हत्या हो चुकी थी.

पुलिस ने स्वीटी की हत्या के मामले में उस के पति पुलिस इंसपेक्टर अजय देसाई और उस के दोस्त कांग्रेस नेता किरीट सिंह जडेजा को गिरफ्तार कर लिया. किरीट सिंह ने कांग्रेस टिकट पर पिछला विधानसभा चुनाव लड़ा था.

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अजय देसाई और किरीट सिंह जड़ेजा से पूछताछ और पुलिस की जांचपड़ताल में स्वीटी की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

अजय देसाई से प्रेम विवाह करने के बाद स्वीटी खुश थी. किसी बात की कोई परेशानी नहीं थी. अजय से उस के एक बेटा भी हो गया था. वह पति और बेटे के साथ मौज की जिंदगी गुजार रही थी.

स्वीटी ने भले ही अपने पहले पति हेतस पांड्या से तलाक ले लिया था, लेकिन वह अपने पहले बेटे रिदम से बहुत प्यार करती थी. आस्ट्रेलिया में अपने पापा के साथ रहने वाले रिदम से स्वीटी लगभग रोजाना फोन पर बात करती थी. हेतस को इस में कोई ऐतराज नहीं था. हेतस के मन में स्वीटी के प्रति भी कोई कटुता नहीं थी.

इंसपेक्टर अजय ने कर ली थी दूसरी शादी

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. पति अजय पुलिस इंसपेक्टर था. उस का अपना रौबदाब था. इसलिए स्वीटी को अजय पर फख्र भी था.

स्वीटी से प्रेम विवाह के कुछ दिनों बाद ही अजय ने अपने समाज की एक युवती पूजा से विधिवत शादी कर ली. अजय ने स्वीटी को यह बात नहीं बताई. स्वीटी को भी इस बात का पता नहीं चला. अजय ने अपनी दूसरी पत्नी पूजा को दूसरी जगह मकान दिलवा दिया.

अगले भाग में पढ़ें- गला घोंट कर की थी स्वीटी की हत्या

Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती- भाग 1

21जून, 2021 की दोपहर करीब साढ़े 3 बजे सचिन अपने घर पर सो रहा था, तभी उस के मोबाइल पर वाट्सऐप काल आई. सचिन उठा और जाने के लिए तैयार हुआ. लेकिन वह गया नहीं, कुछ देर बाद कपड़े उतार कर वह लेट गया. बिस्तर पर लेटे हुए वह कुछ सोचने लगा, तभी उसे भूख लगी तो उस ने मां अनीता से खाने के लिए कुछ देने को कहा. मां ने उसे सैंडविच बना कर दिया.

इसी बीच दोबारा फोन आया तो फोन पर बात करने के बाद वह टीशर्ट और लोअर में ही सैंडविच खाते हुए चप्पलें पहने ही घर से जाने लगा. मां ने कहा, ‘‘बेटा, तुम ने अभी नाश्ता भी नहीं किया है, कहां जा रहे हो, पहले नाश्ता तो कर लो?’’

‘‘मां, बस अभी लौट कर आता हूं.’’  सचिन ने कहा और वह घर से चला गया.

काफी देर तक जब सचिन नहीं लौटा तो मां को चिंता हुई. वह उसे लगातार उसे फोन कर रही थीं, लेकिन सचिन काल रिसीव करने के बजाय बारबार फोन काट देता था. अनीता समझ नहीं पा रही थीं कि सचिन ऐसा क्यों कर रहा है. उस के आने के इंतजार में रात भी हो गई.

रात 11.37 बजे सचिन के पिता सुरेश चौहान के फोन की घंटी बजी. लेकिन नींद में होने के कारण वह फोन उठा नहीं सके. तब अनीता ने देखा तो वह मिस्ड काल उन के बेटे सचिन की ही थी. तब उन्होंने 11.55 बजे कालबैक की. मगर सचिन की जगह कोई और फोन पर बात कर रहा था. अनीता ने पूछा कौन बोल रहे हो? इस पर उस ने कहा, ‘‘मैं सचिन का दोस्त हूं.’’

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‘‘सचिन कहां हैं?’’ अनीता ने पूछा.

‘‘उस ने शराब ज्यादा पी ली है, इसलिए वह सो रहा है. वैसे सचिन इस समय नोएडा में है.’’ उस ने बताया.

‘‘नोएडा…वह वहां कैसे पहुंचा?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘यह बात तो आप को सचिन ही बताएगा.’’

‘‘तुम मेरी सचिन से बात कराओ.’’

‘‘सचिन अभी बात करने की कंडीशन में नहीं है, आप सुबह बात कर लेना,’’ कहते हुए उस ने सचिन का फोन स्विच्ड औफ कर दिया.

उत्तर प्रदेश की ताजनगरी आगरा के थाना न्यू आगरा के दयालबाग क्षेत्र की जयराम बाग कालोनी निवासी कोल्ड स्टोरेज कारोबारी सुरेश चौहान के 25 वर्षीय इकलौते बेटे सचिन चौहान का घरवाले सारी रात बेचैनी से इंतजार करते रहे. लेकिन उस का फोन औन नहीं हुआ.

बेटे के बारे में कोई सुराग न मिलने पर दूसरे दिन मंगलवार को घर वालों ने आसपड़ोस के साथ ही रिश्तेदारी में तलाश किया. लेकिन सचिन का कोई सुराग नहीं मिला. पूरे दिन तलाश करने के बाद 22 जून की शाम तक जब सचिन नहीं लौटा और न उस का मोबाइल

औन हुआ, तब पिता सुरेश चौहान अपने पार्टनर लेखराज चौहान के साथ थाना न्यू आगरा पहुंचे.

उन्होंने थानाप्रभारी भूपेंद्र बालियान को बेटे के लापता होने के बारे में बताया. पुलिस ने उन की तहरीर पर सचिन की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने उन से फिरौती के लिए फोन आने के बारे में पूछा. सुरेश चौहान ने इस पर इनकार कर दिया. फिरौती के लिए फोन न आने की बात पर पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया. कह दिया कि यारदोस्तों के साथ कहीं चला गया होगा और 1-2 दिन में आ जाएगा.

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पुलिस के रवैए से असंतुष्ट सुरेश चौहान तब खुद ही अपने बेटे की तलाश में जुट गए. उन्होंने कालोनी में रहने वाले एक सेवानिवृत्त अधिकारी से भी मदद ली. उन्हें सीसीटीवी की एक फुटेज मिली, जिस में बाइक सवार 2 युवक नजर आ रहे थे. इन में से पीछे बैठा युवक भी हेलमेट लगाए था.

यह सचिन ही था. यह जानकारी उन्होंने पुलिस को दी. फुटेज देखने के बाद पुलिस ने कहा कि इस में अपहरण जैसी कोई बात नहीं है. इस में तो आप का बेटा सचिन खुद अपनी मरजी से बाइक पर बैठा नजर आ रहा है.

3 दिन तक जब सचिन का कोई सुराग नहीं मिला तो घर वाले परेशान हो गए. पुलिस भी उन से परिचितों व रिश्तेदारी में तलाश करने की बात कहती रही. सुरेश चौहान के बिजनैस पार्टनर लेखराज चौहान के एक रिश्तेदार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय में तैनात थे. लेखराज ने उन्हें फोन किया.

फिर मुख्यमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद मामला उत्तर प्रदेश की एसटीएफ के सुपुर्द किया गया. एसटीएफ ने 23 जून को इस मामले में छानबीन शुरू कर दी. सब से पहले एसटीएफ ने सीसीटीवी वाली फुटेज देखी. जिस में सचिन बाइक पर पीछे हेलमेट लगाए बैठा था.

एसटीएफ ने टेक्निकल रूप से जांच शुरू की. जांच शुरू की तो कड़ी से कड़ी जुड़ती चली गई और पुलिस केस के खुलासे के नजदीक पहुंच गई. पुलिस को पता चला कि सचिन का अपहरण कर लिया गया है.

27 जून की रात को पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि इस घटना में शामिल एक आरोपी वाटर वर्क्स चौराहे पर मौजूद है. समय पर पुलिस वहां पहुंच गई और एसटीएफ ने उसे धर दबोचा. पकड़ा गया आरोपी हैप्पी खन्ना था. पता चला कि वह फरजी दस्तावेज से सिम लेने की फिराक में था. लेकिन सिम लेने से पहले ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया था. उस ने बताया कि फरजी सिम से सचिन के पिता से 2 करोड़ की फिरौती मांगी जाती.

हैप्पी ने पुलिस को बताया कि सचिन अब इस दुनिया में नहीं है, उस की हत्या तो किडनैप करने वाले दिन ही कर दी थी. यह सुनते ही सनसनी फैल गई. पुलिस ने गुमशुदगी की सूचना को भादंवि की धारा 364ए, 302, 201, 420 में तरमीम कर दिया.

हैप्पी से पूछताछ के आधार पर अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए ताबड़तोड़ दबिशें दे कर पुलिस ने 4 अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन में मृतक के पिता के बिजनैस पार्टनर लेखराज चौहान का बेटा हर्ष चौहान के अलावा सुमित असवानी निवासी दयाल बाग,  मनोज बंसल उर्फ लंगड़ा व रिंकू  निवासी कमलानगर शामिल थे.

चौंकाने वाली बात यह निकली  कि अपने दोस्त सचिन की तलाश में पुलिस और एसटीएफ की मदद करने का दिखावा करने वाला हर्ष चौहान स्वयं भी इस साजिश में शामिल था.

अगले भाग में पढ़ें- रुपयों के लालच में हर्ष चौहान सुमित असवानी की बातों में आ गया

Satyakatha- सोनू पंजाबन: गोरी चमड़ी के धंधे की बड़ी खिलाड़ी- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- सुनील वर्मा  सोनू

सीमा आंटी ने करीब एक साल तक जबरन प्रीति से जिस्मफरोशी का धंधा कराने के बाद उसे एक दिन साउथ दिल्ली में रहने वाली सोनू पंजाबन के सुपुर्द कर दिया.

सोनू ने सीमा को कितने नोट दिए ये तो नहीं पता, लेकिन सोनू पंजाबन ने 3 महीने तक प्रीति को अपने कई ग्राहकों के पास भेजा और उस की मोटी कीमत वसूली. लेकिन 3 महीने बाद वह उसे अपने साथ लखनऊ ले गई. यहां उस ने लाला नाम के एक कालगर्ल सरगना के हवाले कर दिया.

लाला ने 2 साल तक न जाने कितने लोगों से उस के जिस्म का सौदा किया. लाला ने इस के बाद प्रीति को दिल्ली में रहने वाली मधु आंटी को बेच दिया.

वहीं पर प्रीति की मुलाकात हरियाणा के रहने वाले सतपाल व राजपाल हुई दोनों रिश्ते में सगे भाई थे. लेकिन दोनों ही जिस्मफरोशी के धंधे के दलाल थे.

एक दिन राजपाल उसे मधु आंटी के चंगुल से मुक्त कराने का झांसा दे कर अपने साथ अपने गांव पानीपत ले गया, जहां 60 साल के राजपाल ने उस से जबरन शादी कर के अपनी बीवी के रूप में घर में रख लिया.

राजपाल पहले से शादीशुदा था. परिवार में 3 बेटियां और 2 बेटे थे. एक बेटे और 2 बेटियों की शादी हो चुकी थी. इस बीच प्रीति गर्भवती हो गई तो राजपाल ने शहर ले जा कर उस का जबरन गर्भपात करवा दिया. अपने गर्भपात के बाद प्रीति के मन में राजपाल के लिए भी खटास भर गई.

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बस इसी के बाद एक दिन प्रीति राजपाल की गैरमौजूदगी में उस के घर से निकल भागी और पानीपत से दिल्ली जाने वाली बस में बैठ कर नजफगढ़ पहुंच गई. यह 28 अगस्त, 2014 की बात है जब नजफगढ़ पुलिस ने प्रीति को बदहाल हालत में बरामद किया और मदद करने के लिए उसे थाने ले आई.

वहीं पर प्रीति ने पुलिस को 3 साल में अपने साथ हुए उत्पीड़न की सारी कहानी सुनाई.

नजफगढ़ पुलिस ने प्रीति के बयान पर आईपीसी की धारा 363, 366, 342, 370, 370, 372, 373, 376, 34, 120बी और पोक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज कर लिया.

प्रीति के बयान मजिस्ट्रैट के सामने दर्ज कर पुलिस ने उसे वूमन शेल्टर होम भेज दिया, जहां उस की काउंसलिंग होने लगी. इधर प्रीति के बयान के आधार पर जब पुलिस पड़ताल शुरू हुई तो पता चला कि 2011 में पूर्वी दिल्ली के हर्ष विहार थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई गई थी.

सुराग लगातेलगाते पुलिस प्रीति के परिजनों तक पहुंच गई और बाद में उसे कोर्ट के आदेश से उस के मातापिता को सौंप दिया गया.

पिछले 4 सालों में प्रीति जिस्मफरोशी की दुनिया में रहने के कारण नशे की आदी हो चुकी थी. इसलिए परिवार के बीच आ कर बंदिशों में रहने के कारण जल्द ही उस का दम घुटने लगा. अगस्त, 2014 में ही एक दिन प्रीति अपने घर से किसी को बिना कुछ बताए फिर से गायब हो गई.

बेटी के दोबारा गायब होने से परिवार परेशान हो गया. प्रीति के पिता ने नजफगढ़ पुलिस से संपर्क कर जब प्रीति के फिर से गायब होने व उस के किडनैप होने की आशंका जताई.

इस के बाद नजफगढ़ पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी. लेकिन पुलिस की तमाम कोशिशों के बाद भी प्रीति का कोई सुराग नहीं मिला.

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वक्त धीरेधीरे गुजरने लगा और प्रीति का रहस्यमय ढंग से गायब हो जाना एक मिस्ट्री बन गया. अगस्त 2017 में 3 साल बीत जाने के बाद तत्कालीन पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने इस मामले की जांच अपराध शाखा को सौंप दी.

जिस के बाद साइबर सेल के एसीपी संदीप लांबा की देखरेख में एक टीम बनाई गई. टीम में इंसपेक्टर उपेंद्र सिंह और लेडी सबइंसपेक्टर पंकज नेगी को शामिल किया गया.

इस टीम ने लंबी कवायद की और 23 नवंबर, 2017 को प्रीति को पानीपत के उस पार्लर से बरामद कर लिया, जहां वह नौकरी करती थी.

इस के बाद क्राइम ब्रांच ने एकएक कर उन लोगों को गिरफ्तार करने का सिलसिला शुरू किया जो प्रीति की जिंदगी को बरबाद करने के जिम्मेदार थे. पुलिस ने इस मामले में 2018 में सोनू पंजाबन के साथ संदीप बेदवाल को गिरफ्तार किया. उस के बाद राजपाल व सतपाल को गिरफ्तार किया.

बाद में लखनऊ से लाला नाम के दलाल की गिरफ्तारी की गई. इसी मामले में तेजी से सुनवाई करते हुए द्वारका कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सोनू पंजाबन को 24 साल की सजा सुनाई.

देरसबेर सोनू पंजाबन अपनी सजा के खिलाफ अपील के बाद अदालत से जमानत ले कर सलाखों से बाहर आ ही जाएगी, लेकिन उस के बाद जिस्मफरोशी के कारोबार में उस की क्या भूमिका होगी, यह देखना होगा.

लुधियाना के होटल में बिकता जिस्म

शहर में चल रहे जिस्मफरोशी के धंधे पर लगातार लुधियाना पुलिस शिकंजा कस रही है, लेकिन बारबार ऐसे मामले सामने आ ही जाते हैं. ऐसे ही एक मामले में एक मकान पर छापेमारी कर एक महिला को गिरफ्तार किया. वह ग्राहकों और लड़कियों को अपने घर पर ही बुलाती थी.

जबकि दूसरे मामले में 2 सितंबर, 2021 को पुलिस ने लुधियाना के बस स्टैंड के पास स्थित होटल पार्क ब्लू में रेड कर के वहां पर चल रहे देह व्यापार के अड्डे पर छापेमारी की. मौके पर पहुंची पुलिस पार्टी और सीआईए-2 टीम ने वहां पर ऐशपरस्ती कर रहे 6 युवक व 6 युवतियों को गिरफ्तार किया. मौका देख कर होटल का मालिक व मैनेजर पुलिस को गच्चा दे कर फरार हो गए.

घटना 2 सितंबर को शाम करीब पौने 8 बजे की है. थाना डिवीजन नंबर 5 व सीआईए-2 टीम बस स्टैंड के आस पास स्थित होटलों में रुटीन जांच करने पहुंची थी. उस दौरान पुलिस ने कई होटलों में जा कर चैकिंग की.

वहां रह रहे लोगों का रिकौर्ड चैक किया. इसी बीच पुलिस की टीम जब होटल पार्क ब्लू में पहुंची तो उस के अलगअलग कमरों में 6 जोड़े आपत्तिजनक स्थिति में पाए गए. जिन्हें साथ में आई महिला पुलिस ने हिरासत में ले लिया.

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करीब एक साल पहले भी इसी होटल में पुलिस ने दबिश दे कर वहां रंगरलियां मना रहे कई जोड़ों को गिरफ्तार किया था. लुधियाना ही नहीं पंजाब के जालंधर व अन्य शहरों में भी देह व्यापार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं.

लुधियाना पुलिस ऐसे मामलों में काफी तेजी से काररवाई कर रही है लेकिन जालंधर पुलिस ऐसे मामलों में ढीली साबित हो रही है. जालंधर में कई होटलों, गेस्ट हाउसों व अन्य स्थानों पर ऐसे गलत धंधे चल रहे हैं, पर पुलिस मूकदर्शक बनी तमाशा देखती रहती है.

Satyakatha: लॉकडाउन में इश्क का उफान- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

दिल्ली के करावल नगर की घटना एक ऐसे ही प्रेमी युगल की दास्तान है, जो वासना की भेंट चढ गया. करीब डेढ़ साल पहले दीपक दिल्ली में अपने चाचा रमेश के पास रहने गया था. वहां रह कर

वह कोई काम सीखना चाहता था, लेकिन इसी बीच मार्च 2020 में लौकडाउन लगने पर वह वापस अपने घर बागपत लौट आया था. इस साल मार्च में दोबारा दिल्ली जाने वाला ही था कि तभी दोबारा लौकडाउन लग गया.

अब वह यही सोच रहा था कि जितनी जल्द हो सके यह लौकडाउन खुले, जिस से वह दिल्ली जाए. जून में जब दिल्ली का लौकडाउन खुल गया तो वह दिल्ली जाने के लिए मां से जिद करने लगा, ‘‘मम्मी मैं दिल्ली जाऊंगा.’’

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‘‘क्यों बेटा अभी कोरोना खत्म नहीं हुआ है.’’ मां बोली.

‘‘लेकिन मम्मी, लौकाडाउन तो खत्म हो गया है.’’

‘‘वहां जा कर करेगा क्या?’’ मां ने पूछा.

‘‘कोई काम करूंगा. पैसे कमा कर लाऊंगा. वैसे भी यहां भी तो खाली हूं.’’

‘‘ठीक है, इस बारे में पहले मैं तेरे पापा से बात करूंगी,’’ मां बोली.

बागपत का रहने वाला दीपक अपनी मां से दिल्ली जाने की जिद पर अड़ा था. इस बारे में उस की मां ने अपने पति से बात की तो पहले तो उन्होंने मना किया, लेकिन मिन्नत करने पर वह  मान गए.

अपने मातापिता को मना कर दीपक 2 जुलाई, 2021 को दिल्ली के करावल नगर में रह रहे अपने चाचा रमेश के पास आ गया. उस के मातापिता भले ही समझ रहे थे कि उन का बेटा दिल्ली काम करने के लिए गया है, लेकिन उस के दिल्ली आने की वजह कुछ और ही थी.

रमेश करावल नगर में किराए के कमरे में अकेले रहते थे. उन के पास दीपक दिन में ही आ गया था. उस दिन वह अपने काम पर नहीं गए थे. क्योंकि उन की शिफ्ट बदल गई थी. अचानक दीपक को आया देख वह चौंक गए. परिवार में सब का हालचाल लिया, फिर सुबह जो कुछ खाना पकाया था, वह उसे खाने को दिया.

दीपक खाना खा कर अपने पुराने दोस्त से मिलने को कह कर निकल गया. उस के चाचा भी खानेपीने का सामान लाने बाजार चले गए.

दीपक सीधा अपनी प्रेमिका पूजा के पास गया. पूजा भी उसे अचानक आया देख चौंक गई. लंबे समय बाद दीपक को देख वह उस के गले लिपट गई. कुछ पलों बाद वह अलग हुई और अपना नया मोबाइल नंबर दीपक को देते हुए बोली, ‘‘दीपक, तुम अभी चले जाओ, अब शाम को मिलना. मैं फोन करूंगी. क्योंकि अभी पापा आने  वाले हैं.’’

‘‘ सब ठीक है न?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘ हांहां, मैं ठीक हूं. ये मास्क लो, लगा लेना नहीं तो फाइन भरना पड़ेगा.’’ पूजा ने मास्क दिया.

‘ पापा अभी भी नाराज हैं?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘ हां, लेकिन मैं उन्हें मना लूंगी. ये मोहल्ले वाले ही उन को हमेशा भड़काते रहते हैं.’’

‘‘ कोई बात नहीं, मैं अभी चलता हूं. फोन करूंगा. आज ही नया नंबर ले लूंगा.’’

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उस समय पूजा के पिता सत्यवीर सिंह घर पर नहीं थे. गलीमोहल्ले वाले दीपक को अच्छी तरह से पहचानते थे. वह उस के और पूजा के संबंधों के बारे में जानते थे. उन्हें यह भी पता था कि उस की वजह से पिछले साल गली में कितना हंगामा खड़ा हो गया था.

उस रोज भी दीपक का पूजा के घर जाना गली के अधिकतर लोगों ने देखा. उन्हीं में से एक ने सत्यवीर को दीपक के आने की जानकारी दे दी.

यह भी हिदायत दी कि उस की बेटी पूजा की करतूत अभी भी ठीक नहीं है. उसे संभालें, अच्छे से समझाएं. उस की हरकतों का असर उन के बच्चों पर भी पड़ेगा.

यह जान कर सत्यवीर अपनी बेटी पर आगबबूला हो गया था. उस ने पूजा को काफी डांटफटकार लगाई.

हालांकि सत्यवीर की डांट और चेतावनी का असर पूजा पर कुछ भी नहीं हुआ. इस का कारण भी था, वह दीपक से बेइंतहा प्यार करती थी. काफी समय से उस से मिलने को बेचैन थी. उस के मन में दीपक के लिए प्यार दबा हुआ था. उस के प्यार का उफान पिता की डांट से कहां थमने वाला था.

दीपक की हालत उस से कहीं अधिक बेचैनी वाली थी. अब जा कर उसे मिलने का मौका मिला था. उस ने तुरंत एक सैकंडहैंड स्मार्टफोन खरीदा और अपने चाचा की आईडी से नया सिम कार्ड ले लिया.

उस के एक्टिवेट होते ही सब से पहली काल उस ने प्रेमिका पूजा को कर के अपना नया नंबर सेव करने के लिए कहा.

उन की बातें फोन पर लगातार होने लगीं. पूजा ने फिलहाल उसे घर आने से मना किया था. इसी तरह 4-5 दिन निकल गए. दीपक पूजा से फिर मिलने को बेचैन हो गया था.

उसे लग रहा था कि पास आ कर भी वह पूजा से दूर क्यों है? दीपक के मन में पूजा के लिए दबी कुंठाएं अब दबने का नाम ही नहीं ले रही थीं. ऐसा ही हाल पूजा का भी था.

अगले भाग में पढ़ें-  दीपक को जरा भी आभास नहीं था कि वह इस बार पकड़ा जाएगा

Crime- डर्टी फिल्मो का ‘राज’: राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस- भाग 2

यही वजह रही कि कई बार पूछताछ के लिए बुलाने के बाद जब 19 जुलाई, 2021 को उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया तो क्राइम ब्रांच ने पर्याप्त सबूत होने के कारण राज कुंद्रा को गिरफ्तार कर लिया.

मुंबई क्राइम ब्रांच राज कुंद्रा पर बिना पुख्ता सबूत के हाथ नहीं डालना चाहती थी. इसलिए क्राइम ब्रांच ने राज कुंद्रा के खिलाफ मामला दर्ज करने के बाद पूरे मामलें की कडि़यों को एक दूसरे से जोड़ना शुरू किया.

जिन लोगों के नाम सामने आते रहे उन के खिलाफ साक्ष्य एकत्र कर के पुलिस बारीबारी से उन्हें गिरफ्तार करती रही. ये साफ हो चुका था कि अश्लील फिल्मों का ये रैकेट एक पोर्न फिल्म प्रोडक्शन कंपनी की आड़ में चलाया जा रहा था. जहां फिल्मों में ब्रेक देने के बहाने युवा और जरूरतमंद लड़कियों के अश्लील वीडियो बनाए जाते थे.

क्राइम ब्रांच इस केस में 2 अभिनेता, एक लाइटमैन और 2 महिला फोटोग्राफर, वीडियोग्राफर, ग्राफिक डिजाइनर समेत कई लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी.

लेकिन इस मामले में उमेश कामत नाम के एक शख्स की गिरफ्तारी के बाद क्राइम ब्रांच के पास पहली बार ऐसे साक्ष्य हाथ लगे, जिस से राज कुंद्रा पर हाथ डाला जा सकता था.

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दरअसल, उमेश कामत यूके बेस्ड कंपनी केनरिन प्रोडक्शन हाउस का भारत में प्रतिनिधि था. उमेश कामत भारत में एक्ट्रेस गहना वशिष्ठ के साथ मिल कर अश्लील फिल्में बनाता था.

इन पोर्न फिल्मों की शूटिंग के बाद तैयार किए गए वीडियो भारतीय एजेंसियों से बचने के लिए एक एप्लिकेशन के जरिए यूके में केनरिन प्रोडक्शन हाउस भेजे जाते थे.

एडिटिंग के बाद पोर्न फिल्मों को हौट शौट एप्लिकेशन पर अपलोड किया जाता था. यूके में पोर्न फिल्मों पर कोई प्रतिबंध नहीं है, इसलिए ये काम यूके से किया जाता था.

उमेश की गिरफ्तारी के बाद क्राइम ब्रांच की पड़ताल और तेज हो गई. राज कुंद्रा से कई बार पूछताछ की गई. क्राइम ब्रांच की टीम पोर्न फिल्में बनाने वाले इस गैंग से राज कुंद्रा के सबंधों के सबूत जुटाने का भी काम करती रही.

उमेश कामत से पूछताछ में पता चला कि वह राज कुंद्रा के यूके में रहने वाले बहनोई प्रदीप बख्शी के साथ काम करता है. प्रदीप बख्शी यूके बेस्ड कंपनी केनरिन प्रोडक्शन हाउस का डायरेक्टर है.

केनरिन लिमिटेड़ कंपनी 16 साल से वजूद में है. इस में केवल एक एक्टिव डायरेक्टर है, वो हैं प्रदीप बख्शी. उन्हें पहली नवंबर 2008 को इस फर्म के डायरेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया था. इस कंपनी में 10 से भी कम कर्मचारी हैं और इस कंपनी का टर्नओवर 2 मिलियन पाउंड है.

ये फर्म वीडियो प्रोडक्शन एक्टिविटीज और टेलिविजन प्रोग्रामिंग से जुड़ी थी. उमेश कामत से पता चला कि राज कुंद्रा इस कंपनी में प्रदीप बख्शी के साथ अप्रत्यक्ष तौर पर बिजनैस पार्टनर और निवेशक है.

उमेश कामत ने क्राइम ब्रांच को बताया कि केनरिन प्रोडक्शन हाउस भारत में मौजूद अलगअलग एजेंटों के जरिए पोर्नोग्राफी और पोर्नोग्राफी फंडिंग का भी बिजनैस करता था.

एडवांस पेमेंट मिलने के बाद गहना और कामत अश्लील फिल्में बनाने का काम करते थे और फिर ऐसे कंटेंट को कैनरिन प्रोडक्शन हाउस को भेजते थे.

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इसी बीच जांच के दौरान क्राइम ब्रांच को एक वाट्सऐप ग्रुप के बारे में भी पता चला. उस वाट्सऐप ग्रुप में पोर्न फिल्मों से जुड़े पूरे बिजनैस को ले कर चर्चा होती थी. उस वाट्सऐप ग्रुप का नाम ‘एच अकाउंट’ था, जिस में राज कुंद्रा समेत कुल 5 लोग शामिल थे.

इस ग्रुप का एडमिन भी राज कुंद्रा ही था. ग्रुप के सभी लोग पोर्नोग्राफिक कंटेंट बनाने के इस बिजनैस में शामिल थे.

जो वाट्सऐप चैट पुलिस को मिली उस में राज कुंद्रा इस बिजनैस की मार्केटिंग, सेल्स और मौडल्स की पेमेंट से जुड़े मसलों पर बात कर रहा था.

साथ ही किस तरह रेवेन्यू पर फोकस किया जाए, मौडल को कैसे पेमेंट दी गई है और किस तरह बिजनैस रेवेन्यू को बढ़ाया जाए. यही चैट होता था.

पुलिस की साइबर सेल राज कुंद्रा के उस ऐप का भी पता लगा चुकी थी, जिस पर पोर्न फिल्में अपलोड की जाती थी. ‘हौट हिट मूवी’ नाम के इस ऐप पर मूवी देखने वाले को ऐप डाउनलोड कर 200 रुपए का पेमेंट करना होता है.

कुल मिला कर पुलिस के सामने जब यह साफ हो गया कि मुंबई और इस के उपनगरों में पोर्न फिल्म बनाने का जो कारोबार चल रहा है, उस में राज कुंद्रा प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा है, तब 19 जुलाई की रात 9 बजे क्राइम ब्रांच ने पूछताछ के लिए उसे बुलाया. कुछ देर पूछताछ के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

हालांकि राज कुंद्रा ने किसी भी ऐप और पोर्नोग्राफी फिल्मों के रैकेट से अपना संबध होने से साफ इंकार कर दिया. उस ने कहा कि वह सिर्फ इरोटिक फिल्में बनाते हैं. लेकिन पुलिस का दावा है कि कुंद्रा ही अश्लील फिल्मों के कारोबार का मास्टरमाइंड था.

कुंद्रा को गिरफ्तार कर उसे 7 दिन की रिमांड पर लिया. इस दौरान पुलिस ने कुंद्रा के औफिस पर छापेमारी की तो वहां छिपा कर रखी गई 51 आपत्तिजनक वीडियो बरामद हुईं.

गिरफ्तारी के बाद ही पुलिस ने राज कुंद्रा के मोबाइल फोन को जब्त कर लिया. जिसे साक्ष्य एकत्र करने के लिए फोरैंसिक लैब भेजा गया. इस के अलावा पुलिस ने कई ऐसे सबूत एकत्र किए जाने का दावा किया है, जिस के बाद जल्द ही इस केस में गहना वशिष्ठ की गिरफ्तारी हो सकती है.

चूंकि ब्रिटेन में पोर्नोग्राफी के खिलाफ कोई कानून नहीं है, इसलिए पुलिस यूके बेस्ड कंपनी केनरिन प्रोडक्शन हाउस के खिलाफ काररवाई को ले कर कानूनी राय ले रही है.

पुलिस का कहना है कि जिस ‘हौट हिट मूवी’ ऐप पर पोर्न फिल्में अपलोड की जाती थीं, उसे मेंटेन करने के लिए प्रतिकेश और ईश्वर नाम के 2 कर्मचारियों को विआन इंडस्ट्रीज लिमिटेड में पेरोल पर रखा था.

केनरिन कंपनी के ‘हौटशौट’ ऐप को मैनेज और मेंटेन करने के लिए ‘विआन इंडस्ट्रीज लिमिटेड’ यानी राज की कंपनी हर महीने 3-4 लाख रुपए चार्ज करती थी. जांच में सामने आया है कि इस ऐप के जरिए राज कुंद्रा को एक दिन में कई बार 10 लाख से ज्यादा की कमाई भी होती थी.

लेकिन जो राज कुंद्रा आज केवल पोर्न फिल्मों के बिजनैस से 10 लाख रुपए प्रतिदिन कमाता है और अपने दूसरे कारोबार से 2700 करोड़ की संपत्ति का मालिक बन गया है, एक समय था जब वह दुबई से, नेपाल से पश्मीना शाल ला कर लंदन में बेचता था.

राज कुंद्रा का जीवन भी एक फिल्मी कहानी की तरह है. राज कुंद्रा का असली नाम है रिपुसूदन कुंद्रा. कुंद्रा के पिता बाल कृष्ण कुंद्रा लुधियाना के रहने वाले थे. लेकिन शादी के बाद वह युवावस्था में ही पत्नी को ले कर लंदन चले गए.

लंदन में पहले उन्होंने एक कौटन मिल में नौकरी की. उस के बाद वह बस में कंडक्टर के तौर पर नौकरी करने लगे. बाल कृष्ण न तो ज्यादा पढ़ेलिखे थे, न धंधा शुरू करने के लिए उन के पास बड़ी पूंजी थी.

अगले भाग में पढ़ें- 2005 में राज कुंद्रा की शादी कविता नाम की युवती से हुई थी

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