एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवक तेजी से सरपट दौड़ रही सफेद रंग की स्कौर्पियो कार का दूर से पीछा कर रहे थे. ओवरटेक कर के बाइक जैसे ही स्कौर्पियो के समानांतर आई, बाइक के पीछे बैठे नकाबपोश ने ड्राइवर को लक्ष्य बना कर उस के हाथ पर गोली मार दी.
गोली लगते ही स्कौर्पियो के ड्राइवर के हाथ से स्टीयरिंग छूट गया और कार लहराते हुए डिवाइडर से जा टकराई. तभी घायल ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोला. वह कार से निकल कर भागने ही वाला था कि तभी वह बाइक सवार बदमाश उस के करीब जा पहुंचे और उस से पूछा, ‘‘कार में पीछे बैठा बैंक मैनेजर शैलेंद्र ही है न?’’
दर्द से कराह रहे ड्राइवर ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. तभी हथियारबंद नकाबपोेश बदमाश ने कार में पिछली सीट पर बैठे बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा के पास पहुंच कर सिर में एक और सीने में 2 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह हवा में असलहा लहराते हुए आराम से निकल गए.
जिस समय यह घटना घटी थी, उस समय सुबह के 8 बजे थे. राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बावजूद सड़क पर सन्नाटा पसरा था.
सड़क पर खून से लथपथ युवक को दर्द से कराहता देख कर कुछ बाइक वाले वहां रुके तो ड्राइवर ने उन से मदद मांगी और 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को देने का अनुरोध किया.
ड्राइवर ने अपना नाम अनिल बताया और कहा कि बदमाशों ने कार में बैठे उस के मालिक को भी गोली मारी है.
यह घटना बिहार के नालंदा जिले की फतुहा थाना क्षेत्र के भिखुआचक राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 जून, 2021 को सुबह 8 बजे के करीब घटी थी.
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इस के बाद भीड़ में से एक व्यक्ति ने 100 नंबर पर फोन कर घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलते ही फतुहा थाने के थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.
कार चालक अनिल डिवाइडर के किनारे बैठा दर्द से कराह रहा था. उस के दाएं हाथ से खून लगातार बह रहा था. कार में पिछली सीट पर खून से लथपथ रिटायर्ड बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की लाश पड़ी हुई थी.
क्राइम सीन देख कर ऐसा लग रहा था कि बदमाश ने शैलेंद्र को करीब से गोली मारी थी. छानबीन में पुलिस को 7.65 एमएम का एक खोखा कार में से बरामद हुआ था.
साक्ष्य के तौर पर पुलिस ने खोखे को अपने कब्जे में ले लिया. इस बीच थानाप्रभारी मनोज कुमार ने एसपी (ग्रामीण) कांतेश कुमार मिश्र और एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा को इस घटना की जानकारी दे दी थी. घटना की जानकारी मिलते ही दोनों पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए.
एक बात पुलिस अधिकारियों को खटक रही थी कि बदमाशों ने चालक को क्यों छोड़ दिया? उस की हत्या क्यों नहीं की? कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं है?
गोली लगने से चालक अनिल की हालत बिगड़ती जा रही थी. इसलिए पुलिस ने उसे जल्द से जल्द जिला हौस्पिटल भेज दिया ताकि उस के जरिए बदमाशों तक आसानी से पहुंचा जा सके. शैलेंद्र कुमार की हत्या का वही एक चश्मदीद गवाह था.
बेहतर इलाज के बाद चालक अनिल के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ तो उसी शाम 3 बजे के करीब थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह बयान लेने जिला अस्पताल पहुंचे, जहां वह भरती था.
‘‘कैसे हो अनिल? अब कैसा फील कर रहे हो?’’ थानाप्रभारी मनोज कुमार ने मुसकराते हुए पूछा.
‘‘सर, पहले से बेहतर हूं और अच्छा महसूस कर रहा हूं.’’ अनिल ने बताया.
‘‘अच्छा बताओ कि यह कैसे और क्या हुआ था?’’
‘‘साहब, मैं कार चला रहा था कि तभी साइड से आए एक बाइक वाले ने मुझे गोली मारी जो हाथ में लगी. गोली लगते ही कार की स्टीयरिंग मेरे हाथ से छूट गई और कार डिवाइडर से जा टकराई. फिर बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश बदमाश ने मुझ से पूछा कि कार में बैठा क्या शैलेंद्र यही है. मैं ने हां कह दिया. मेरे हां कहते ही उस बदमाश ने साहब को गोलियों से भून डाला और फरार हो गए.’’ अनिल बोला.
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‘‘ओह! बाइक पर कितने बदमाश थे.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.
‘‘साहब, 2.’’ उस ने बताया.
‘‘दोनों बदमाशों में से किसी का चेहरा याद है तुम्हें?’’ उन्होंने अगला सवाल किया.
‘‘नहीं, साहब. कैसे चेहरा देखता, जब दोनों के चेहरे नकाब से ढके थे.’’ अनिल बोला.
‘‘ओह!’’ थानेदार मनोज कुमार ने एक लंबी सांस छोड़ी, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम आ कहां से रहे थे?’’
‘‘नालंदा के गड़पर स्थित प्रोफेसर कालोनी से आ रहे थे. साहब के छोटे बेटे मनीष गुवाहाटी से पटना आ रहे थे. उन्हें ही रिसीव करने साहब को ले कर पटना जा रहा था कि…’’ कह कर अनिल रोने लगा.
‘‘तुम्हारे साहब के घर में कौनकौन रहता है और तुम्हारे यहां आने की जानकारी किस किस को थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.
‘‘साहब के साथ मेमसाहब और उन का बड़ा बेटा पीयूष रहते हैं. पीयूष दिव्यांग हैं. मेम साहब और पीयूष बाबा के अलावा किसी को भी इस की जानकारी नहीं थी.’’ उस ने बताया.
‘‘ठीक है. अभी तो मैं चलता हूं बाद में आ कर फिर तुम से मिलूंगा.’’
थानेदार मनोज कुमार सिंह ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र से पूछताछ कर वहां से थाने लौट आए थे. इधर शैलेंद्र कुमार की हत्या की जानकारी मिलते ही उन के घर में कोहराम छा गया था. मृतक शैलेंद्र कुमार की पत्नी सरिता देवी का रोरो कर बुरा हाल था.
ससुर की हत्या की जानकारी जैसे ही दामाद पवन कुमार को हुई, वह भागाभागा मोर्चरी पहुंचा, जहां पोस्टमार्टम के बाद लाश मोर्चरी में रखी हुई थी. गुवाहाटी से पटना आ रहे बेटे मनीष को रास्ते में ही फोन से पिता की हत्या की जानकारी दे दी गई थी, इसलिए वह भी सीधा मोर्चरी पहुंच गया था.
इस बीच में पुलिस ने मनीष की तरफ से 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.
बेटा, दामाद और रिश्तेदारों ने मिल कर शैलेंद्र कुमार का गंगा के किनारे श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया और अपनेअपने घरों को लौट आए. फिर मनीष जीजा पवन के साथ घर देर रात पहुंचा.
बेटे को देख कर मां की आंखें फफक पड़ीं तो मनीष भी खुद को रोक नहीं पाया. मां को रोता देख उस की आंखें बरस पड़ीं. रोतेरोते दोनों एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे.
पलभर के लिए वहां का माहौल एकदम से फिर गमगीन हो गया था. दामाद पवन कुमार कुछ देर वहां रुका. उस ने सास और साले को समझाया और फिर रामकृष्णनगर, पटना अपने किराए के कमरे पर वापस लौट गया.
अगले दिन थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह हत्या की गुत्थी सुलझाने और जानकारी लेने के लिए गड़पर प्रोफेसर कालोनी में स्थित मृतक शैलेंद्र कुमार के आवास पहुंचे. घर में वैसे ही मातम छाया हुआ था.
घर का गमगीन माहौल देख कर थानाप्रभारी का मन द्रवित हो गया. वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि बैंक मैनेजर की पत्नी से कैसे पूछताछ करें, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी होती है. उसे पूरा तो करना ही था.
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उन्होंने मृतक की पत्नी सरिता देवी से हत्या के संबंध में कुछ जरूरी सवाल पूछे. सरिता देवी के जवाब से इंसपेक्टर मनोज कुमार सिंह को ऐसा कहीं नहीं लगा कि उन की किसी से कोई दुश्मनी हो. उन के जवाब से एक बात साफ
हो गई थी कि पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी.
निश्चित ही उन का कोई ऐसा अपना था, जिसे उन की गतिविधियों के बारे में पलपल की जानकारी थी. उसी अपने ने बदमाशों के साथ मुखबिरी का खेल खेला और उन की जान ले ली.
सरिता देवी से पूछताछ करने के बाद विवेचनाधिकारी मनोज सिंह थाने वापस लौट आए थे.
रास्ते भर में वे यही सोच रहे थे कि आखिर वह कौन हो सकता है, जिस ने मुखबिर की भूमिका निभाई होगी और उन की हत्या से किस का क्या लाभ हुआ होगा?
हत्या की गुत्थी एकदम से उलझती चली जा रही थी. इस के सुलझाने का एक आखिरी रास्ता काल डिटेल्स ही बचा था.
7 जून को पुलिस को मृतक शैलेंद्र की काल डिटेल्स मिल गई थी. विवेचनाधिकारी सिंह ने काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो उस में एक नंबर ऐसा भी मिला, जिस से काफी बातचीत हुई थी. पुलिस ने मृतक की पत्नी से उस नंबर के बारे में जानकारी मांगी तो वह नंबर मृतक के दामाद पवन कुमार का निकला.
विवेचनाधिकारी सिंह की नजरों में पता नहीं क्यों पवन संदिग्ध रूप में चढ़ गया था. फिर उन्होंने पवन के बारे में सरिता देवी से जानकारी ली. सास सरिता देवी ने उन्हें दामाद पवन के बारे में जो जानकारी दी, सुन कर वह चौंक गए थे.
पता चला कि पवन ने अपनी पत्नी सृष्टि के होते हुए अपने बड़े साले पीयूष की पत्नी निभा से प्रेम विवाह कर लिया था. यही नहीं, एक मोटी रकम को ले कर ससुर शैलेंद्र और दामाद पवन के बीच कई महीनों से रस्साकशी चल रही थी.
दरअसल, बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन के पास एक 5 कट्ठे की जमीन थी. वह जमीन शैलेंद्र कुमार को पसंद आ गई थी. दामाद पवन ने उन्हें वह जमीन दिलवाने की हामी भी भर दी थी. दामाद के जरिए 60 लाख में जमीन का सौदा भी पक्का हो गया था.
जमीन मालिक को कुछ पैसे एडवांस दिए जा चुके थे और 17 जून को जमीन का बैनामा छोटे बेटे मनीष के नाम होना तय हो गया था. इसी दौरान शैलेंद्र की हत्या हो गई.
खैर, पुलिस ने पवन के मोबाइल नंबर को सर्विलांस में लगा दिया और मुखबिरों को भी उस के पीछे लगा दिया ताकि उस की गतिविधियों के बारे में सहीसही पता लग सके.
अंतत: पवन वह गलती कर ही बैठा, जिस की संभावना पुलिस को बनी हुई थी. उस गलती के बिना पर पुलिस ने पवन को उस के रामकृष्णनगर स्थित घर से धर दबोचा और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.
पुलिस ने पवन से कड़ाई से पूछताछ करनी शुरू की तो पवन एकदम से टूट गया और ससुर की हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए कहा, ‘‘हां सर, मैं ने ही सुपारी दे कर ससुर की हत्या कराई थी. मुझे माफ कर दीजिए सर, मैं पैसों के लालच में अंधा हो गया था.’’ कह कर वह रोने लगा.
‘‘तुम्हारे इस काम में और कौनकौन थे या फिर तुम ने यह सब अकेले ही किया?’’ विवेचनाधिकारी मनोज कुमार ने सवाल किया.
‘‘साहब, मेरे इस काम में मेरी दूसरी पत्नी निभा, छोटा भाई टिंकू और शूटर अमर शामिल थे.’’ उस ने बताया.
‘‘ठीक है तो ले चलो सभी गुनहगारों के पास.’’
इस के बाद पुलिस पवन को कस्टडी में ले कर रामकृष्णनगर पहुंची और उस की पत्नी निभा तथा छोटे भाई टिंकू को गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन कंकड़बाग के अशोकनगर कालोनी से शूटर अमर को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
तीनों आरोपियों ने भी अपने जुर्म कुबूल कर लिए. उस के बाद इस हत्या की जो कहानी सामने आई, बेहद चौंकाने वाली थी, जहां पैसों के लालच में अंधे हुए दामाद ने कई रिश्तों का कत्ल कर दिया था. पढ़ते हैं इस कहानी को—
60 वर्षीय शैलेंद्र कुमार सिन्हा मूलत: बिहार के नालंदा जिले के गड़पर प्रोफेसर कालोनी के रहने वाले थे. उन के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पत्नी सरिता देवी और 2 बेटे पीयूष व मनीष और एक बेटी सृष्टि. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.
भौतिक सुखसुविधाओं की ऐसी कोई चीज नहीं थी, जो उन के घर में मौजूद न हो. उस पर से वह खुद भारतीय स्टेट बैंक के मैनेजर थे. उन की अच्छीभली तनख्वाह थी, इसलिए जिंदगी बड़े मजे से कट रही थी.
शैलेंद्र का बड़ा बेटा पीयूष दिव्यांग था. वह पूरी तरह से चलफिर नहीं सकता था. बेटे की हालत देख कर उन के कलेजे में टीस उठती थी.
छोटा बेटा मनीष हृष्टपुष्ट और तंदुरुस्त था, शरीर से भी और दिमाग से भी. पढ़ने में वह अव्वल था. अपनी योग्यता और काबिलियत की बदौलत मनीष की बैंक में नौकरी लग गई थी और वह असम के गुवाहाटी में तैनात था.
शैलेंद्र ने समय रहते दोनों बेटों की शादी कर दी थी. जिम्मेदारी के तौर पर एक बेटी बची थी शादी करने के लिए, सो उस के लिए भी वह योग्य वर की तलाश कर रहे थे. उन्होंने रिश्तेदारों के बीच में बात चला दी कि बेटी के योग्य कोई अच्छा वर मिले तो बताएं. रिश्तेदारों के बीच से पटना का रहने वाला पवन कुमार का रिश्ता आया.
पवन राजधानी पटना की पौश कालोनी में कोचिंग सेंटर चलाता था. कोचिंग से उस की अच्छीखाई कमाई हो जाया करती थी. बैंक मैनेजर शैलेंद्र को यह रिश्ता पसंद आ गया. उन्होंने बेटी सृष्टि की शादी पवन से कर के अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर दिया.
पवन कुमार 2 भाई थे. दोनों भाइयों में पवन बड़ा था और टिंकू कुमार छोटा. दोनों में पवन सुंदर और बेहद समझदार था. वह कोचिंग से इतना कमा लेता था कि अपना खर्च निकालने के बाद कुछ बैंक बैलेंस बना लिया था.
खैर, शैलेंद्र को यह रिश्ता पसंद आ गया और उन्होंने बेटी सृष्टि की शादी पवन से कर दी. एक प्रकार से पवन के कंधों पर ससुराल की देखरेख की जिम्मेदारी भी आ गई थी.
वह ऐसे कि बड़ा साला पीयूष दिव्यांग था. छोटा साला मनीष परिवार ले कर नौकरी पर गुवाहाटी में रहता था.
घर पर बचे सासससुर. उन की देखरेख के लिए एक व्यक्ति की जरूरत रहती थी, सो दामाद पवन सास
और ससुर की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहता था.
दामाद के इस व्यवहार से सासससुर दोनों बहुत खुश रहते थे. वैसे भी बिहार की यह परंपरा है कि बेटी और दामाद घर के मालिक की तरह होते हैं. सास और ससुर बेटी और दामाद की सलाहमशविरा के बिना कोई काम नहीं करते थे.
कोई भी काम होता तो वे दामाद से रायमशविरा लिए बिना नहीं करते थे. बारबार ससुराल आनेजाने से बड़े साले पीयूष की पत्नी निभा, जो रिश्ते में पवन की सलहज लगती थी, दोनों के बीच खूब हंसीठिठोली होती थी.
हंसीठिठोली होती भी कैसे नहीं, उन का तो रिश्ता था ही मजाक का. मजाक का यह रिश्ता दोनों के बीच में कब प्रेम के रिश्ते में बदल गया, न तो पवन जान सका और न ही निभा.
यह रिश्ता प्रेम तक ही कायम नहीं रहा, बल्कि यह जिस्मानी रिश्ते में बदल गया था और पहली पत्नी के रहते पवन ने सलहज निभा से कोर्टमैरिज कर ली और उसे ले कर पटना में रहने लगा था.
दामाद की करतूतों की भनक जब सासससुर को लगी तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दामाद पवन ने काम ही ऐसा किया था. जिस थाली में उस ने खाया था, उसी में छेद कर दिया था. और तो और उस ने सृष्टि का जीवन भी बरबाद कर दिया था. बेटी की जिंदगी को ले कर मांबाप चिंता के अथाह सागर में डूब गए थे.
शैलेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का दामाद ऐसी करतूत करेगा कि उन का समाज में उठनाबैठना तक मुहाल हो जाएगा.
इतना होने के बावजूद उन्होंने बेटी को यही सीख दी कि कुछ भी हो जाए, अपने हक के लिए लड़ना. वहां से कायरों की तरह भागना मत. बेचारी सीधीसादी सृष्टि करती भी क्या, किस्मत पर रोने के सिवाय.
खैर, होनी को कौन टाल सकता है, जो होना है उसे हो कर रहना है. अपनी किस्मत की लकीर समझ कर सृष्टि ससुराल में जीवन काटने लगी थी. इधर पवन सलहज से पत्नी बनी निभा को साथ ले कर पटना में रहने लगा था.
अब पवन और निभा की नजरें ससुराल की करोड़ों की संपत्ति पर जम गई थीं. पवन और निभा दोनों को पता था कि इसी साल फरवरी में ससुर शैलेद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हो जाएंगे. रिटायरमेंट के दौरान उन्हें लाखों रुपए मिलने वाले हैं.
ससुर के जीवन भर की कमाई पर दोनों की गिद्ध दृष्टि जम गई थी और उन रुपयों को हासिल करना उन का मकसद बन गया था. कैसे और क्या करना है, यह उन्होंने पहले से ही योजना बना ली थी. इस योजना में पवन ने अपने छोटे भाई टिंकू को भी शामिल कर लिया था.
फरवरी, 2021 में बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हुए. उन्हें जीपीएफ, ग्रैच्युटी आदि के मिला कर 70-80 लाख रुपए मिले थे. उन रुपयों से वह छोटे बेटे के लिए किसी वीआईपी एरिया में जमीन खरीदना चाहते थे और जमीन की तलाश में वह जुट भी गए थे.
उसी दौरान कहीं से इस की जानकारी पवन को हो गई थी कि ससुरजी छोटे साले के लिए जमीन खरीदने की फिराक में हैं.
पवन ससुर शैलेंद्र से मिला और उन्हें भरोसा दिलाया कि बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन के पास एक अच्छी और कीमती जमीन है. वह कीमती जमीन उस के जानपहचान वाले की है. देखना चाहें तो उसे देख लें. जमीन पसंद आने पर बात आगे बढ़ाई जाएगी, नहीं तो कोई बात नहीं.
दामाद की बात उन्हें पसंद आ गई. उन्होंने दामाद से जमीन दिखाने की बात कही तो उस ने वह जमीन दिखा दी. वह जमीन उन्हें पसंद आ गई.
बातचीत भी हो गई. 60 लाख रुपयों में सौदा फाइनल हो गया और शैलेंद्र ने एकमुश्त रकम दामाद को दे दी. 60 लाख की रकम देख कर पवन की नीयत बदल गई.
शैलेंद्र ने पवन से कह दिया था कि जमीन की रजिस्ट्री छोटे बेटे मनीष के नाम होगी. ससुर को झांसे में रख पवन ने विश्वास दिया कि वह जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा. लेकिन इधर उस के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.
पवन जमीन मालिक को 60 लाख में से कुछ रुपए दे कर बाकी के रुपए डकार गया. शैलेंद्र रजिस्ट्री बेटे के नाम पर करने के लिए बारबार दामाद पर दबाव बना रहे थे जबकि वह ऐसा करने वाला नहीं था. वह तो रुपए डकार गया था.
ससुर शैलेंद्र के दबाव बनाने से पवन घबरा गया था. वह समझ गया था कि उसे छोड़ने वाले नहीं हैं अगर जमीन की रजिस्ट्री मनीष के नाम पर नहीं की तो. इस मुसीबत से छुटकारा पाने का एक ही रास्ता बचा है ससुर को रास्ते से हटाने का.
फिर क्या था उस के साथ दूसरी पत्नी निभा और उस का छोटा भाई टिंकू पहले से थे ही. सो उन्होंने इस खतरनाक योजना में साथ देने के लिए भी हामी भर दी.
इस बीच लौकडाउन लग गया. लौकडाउन लगने की वजह से सभी काम बंद पड़े थे. मई के महीने में थोड़ी ढील मिली तो ससुर ने फिर दबाव बढ़ाया कि जमीन की रजिस्ट्री जल्द से जल्द करा दे.
आखिरकार मामला 60 लाख रुपए का है. तो उस ने ससुर को बताया कि 17 जून को रजिस्ट्री होगी, समय से छोटे साले मनीष को बुला लीजिएगा.
इधर, पवन ने ससुर को रास्ते से हटाने के लिए अपने छोटे भाई टिंकू के जरिए कांट्रैक्ट किलर अमर को एक लाख रुपए की सुपारी दे दी. जिस में पेशगी के तौर 40 हजार रुपए शूटर अमर को दे दिए और बाकी रकम काम पूरा होने के बाद देनी तय हुई.
उस के बाद से टिंकू और अमर दोनों शैलेंद्र की रेकी करने लगे कि वह कब और कहां जाते हैं? किस से मिलते हैं? एक हफ्ते की रेकी में जारी जानकारी दोनों ने जमा कर ली. बस घटना को अंजाम देना शेष था.
5 जून, 2021 को छोटा बेटा मनीष गुवाहाटी से पटना आने वाला था. यह जानकारी पवन को हो गई थी. उस ने घटना को अंजाम देने के लिए इसी दिन को अच्छा समझा और इस की पूरी जानकारी शूटर अमर को दे दी.
5 जून, 2021 की सुबह करीब पौने 8 बजे शैलेंद्र बेटे को रिसीव करने अपनी स्कौर्पियो कार से पटना के लिए निकले. कार में वह पीछे बैठे थे और ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र कार चला रहा था.
कार जैसे ही फतुहा हाइवे पहुंची तो टिंकू शूटर अमर को अपनी बाइक पर पीछे बैठा कर कार का पीछा करने लगा और थोड़ी देर बाद उस ने कार को ओवरटेक कर के ड्राइवर अनिल के हाथ में गोली मार कर कार रोकवाई.
ड्राइवर से शैलेंद्र के बारे में कन्फर्म होने के बाद शूटर अमर ने 3 गोलियां मार कर पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की हत्या कर दी और मौके से दोनों फरार हो गए.
बहरहाल, पुलिस को शुरू से ही इस में करीबियों के शामिल होने का शक था और हुआ भी वही. पवन को हिरासत में ले कर जब पूछताछ हुई तो परदा उठ गया और चारों आरोपी पवन, निभा, टिंकू और अमर गिरफ्तार कर लिए गए.
पुलिस ने शूटर अमर की निशानदेही पर उस के पास से एक पिस्टल, एक जिंदा कारतूस, एक बाइक और एक स्कूटी, 3 मोबाइल फोन और सिम बरामद किए.
कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में बंद थे. पुलिस उन के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में जुटी थी. जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बाद पवन को अपने किए पर पश्चाताप हो रहा था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित