लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी
डिनर करने के बाद, जल्द ही फिर मिलने को कह कर विहान वापस चला गया. उस रात वह विहान से कोई सवाल नहीं कर सकी थी, जितना विहान पूछता रहा, वह उतना ही जवाब देती गई. वह खोई रही, विहान को इतने दिनों बाद अपने करीब पा कर, जैसे जी उठी थी वह उस रात.
विहान एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था. 15 दिन बीत चुके थे, इन 15 दिनों में विहान और मिशी 2 ही बार मिले.
विहान का काम पूरा हो चुका था, एक दिन बाद उस को निकलना था. मिशी विहान को ले कर बहुत परेशान थी. आखिर उस ने निर्णय लिया कि विहान के जाने के पहले वह उस से बात करेगी, पूछेगी उस की बेरुखी का कारण. मिशी अभी इसी उधेड़बुन में थी, तभी मोबाइल बज उठा. विहान की कौल थी.
‘‘हैलो, मिशी औफिस के बाद तैयार रहना, बाहर चलना है, तुम्हें किसी से मिलवाना है.’’
‘‘किस से मिलवाना है, विहान?’’
‘‘शाम होने तो दो, पता चल जाएगा.’’
‘‘बताओ तो?’’
‘‘समझ लो, मेरी गर्लफ्रैंड है.’’
इतना सुनते ही मिशी चुप हो गई. 6 बजे विहान ने उसे पिक किया. मिशी बहुत उदास थी, दिल में हजारों सवाल उमड़ रहे थे. वह कहना चाहती थी कि विहान, तुम्हारी शादी पूजा दी से होने वाली है, यह क्या तमाशा है. पर नहीं कह सकी, चुपचाप बैठी रही.
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‘‘पूछोगी नहीं, कौन है? विहान ने कहा.
‘‘पूछ कर क्या करना है? मिल ही लूंगी कुछ देर में,’’ मिशी ने धीरे से कहा.
थोड़ी देर बाद वे समुद्र किनारे पहुंचे. विहान ने मिशी को एक जगह इंतजार करने को कहा, ‘‘तुम यहां रुको, मैं उस को ले कर आता हूं.’’
आसमान ?िलमिलाते तारों की सुंदर बूटियों से सजा था. समुद्र की लहरें प्रकृति का मनभावन संगीत फिजाओं में घोल रही थीं. हवा मंथर गति से बह रही थी. फिर भी मिशिका का मन उदासी के भंवर में फंसा जा रहा था.
‘विहान मुझ से दूर हो जाएगा, मेरा विहान’ सोचतेसोचते उस की उंगलिया खुदबखुद रेत पर विहान का नाम उकेरने लगीं.
‘‘विहान… मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,’’ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.
मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां है… कब आए तुम, कहां है वह?’’
मिशी की आंखें उस लड़की को ढूंढ़ रही थीं जिस से मिलवाने विहान उसे वहां ले कर आया था.
‘‘नाराज हो कर चली गई,’’ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.
‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?’’ मिशी ने पूछा.
‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की यदि देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,’’ विहान ने नाटकीय अंदाज में कहा.
‘‘मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,’’ मिशी सकपका कर बोली.
‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.’’
उस ने नजरें झका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी. फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने… मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.’’
‘‘अच्छा बाबा, नहीं लिखा,’’ विहान ने मुसकरा कर कहा.
मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि यह हो क्या रहा है.
‘‘और वह लड़की जिस से मिलवाने तुम मुझे यहां ले कर आए थे? सच बताओ न विहान.’’
‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस, वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा.
नजरें मिलते ही मिशी नजरें चुराने लगी.
‘‘मिशी, मत छिपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो,’’ विहान बोला.
मिशी की जबान खामोश थी पर आंखों में विहान के लिए प्यार साफ नजर आ रहा था, जिसे विहान ने पहले ही महसूस कर लिया था. पर वह मिशी से जानना चाहता था.
मिशी कुछ देर चुप रही, दूर समंदर में उठती लहरों के ज्वार को देखती रही. ऐसा ही भावनाओं का ज्वार अभी उस के दिल में मचल रहा था. फिर उस ने हिम्मत बटोर कर बोलने की कोशिश की, पर उस की आंखों में जज्बातों का समंदर तैर गया, कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘कहां चले गए थे विहान, मैं… मैं… तुम को कितना मिस कर रही थी,’’ इतना कह कर वह फिर शून्य में देखने लगी.
‘‘मिशी, आज भी चुप रहोगी? बह जाने दो अपने जज्बातों को, जो भी दिल में है कहो. तुम नहीं जानतीं मैं ने इस दिन का कितना इंतजार किया है. मिशी बताओ, प्यार करती हो मुझ से?’’
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मिशी विहान की तरफ मुड़ी. उस के मन की भावनाएं उस की आंखों में साफ नजर आ रही थीं. होंठ कंपकंपा रहे थे. ‘‘विहान, तुम जब नहीं थे, तब जाना कि मेरे जीवन में तुम क्या हो, तुम्हारे बिना जीना सिर्फ सांस लेना भर है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं किस दौर से गुजरी हूं. मेरी उदासी का थोड़ा भी खयाल नहीं आया तुम को,’’ कहतेकहते मिशी रो पड़ी.
विहान ने उस के आंसू पोंछे और मुसकराने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मिशी, तुम ने तो सिर्फ 10 महीने इंतजार किया, मैं ने वर्षों किया है. जिस तड़प से तुम कुछ दिन गुजरीं, वह मैं ने आज तक सही है. मिशी तुम मेरे लिए तब से खास हो जब मैं प्यार का मतलब भी नहीं समझता था. बचपन में खेलने के बाद जब तुम्हारे घर जाने का समय आता था तब अकसर तुम्हारी चप्पल कहीं खो जाती थी, तुम देर तक ढूंढ़ने के बाद मुझ से ही शिकायत करतीं और हम दोनों मिल कर अपने साथियों पर ही बरस पड़ते. पर मिशी वह मैं ही होता था, हर बार जो तुम्हें रोकने के लिए यह सब करता था. तुम कभी जान ही नहीं पाईं,’’ कहतेकहते विहान यादों में खो गया.