ओवरडोज : भाग 1

रामदीन मूलरूप से बस्ती जिले के रिउना गांव का रहने वाला था. बरसों पहले रोजीरोटी की तलाश में वह कानपुर शहर आया, तो फिर यहीं का हो कर रह गया. रामदीन रेलवे में संविदा कर्मचारी था.

वह परिवार सहित लोको कालोनी के पास रामलीला ग्राउंड के अंदर 2 कमरों वाले मकान में रहता था. उस का भरापूरा परिवार था. पत्नी कुसुम, 4 बेटे और 2 बेटियां. भारीभरकम परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी रामदीन की ही थी.

रामदीन की संतानों में विष्णु सब से बड़ा था. पहली संतान होने की वजह से उसे मांबाप का अधिक लाड़प्यार मिला, जिस से वह बिगड़ता गया. पढ़ाई छोड़ कर वह हमउम्र लड़कों के साथ आवारागर्दी करने लगा. उन के साथ वह नशा और चोरीचकारी भी करता था.

ये भी पढ़ें- मर्यादाओं का खून

किशोरावस्था पार कर के विष्णु युवा तो हो गया, पर उस ने अपने दायित्वोें को कभी नहीं समझा. काम में पिता का हाथ बंटाना तो उस ने सीखा ही नहीं था. घर वालों के लिए स्थिति तब बदतर हो गई, जब उसे शराबखोरी और जुआ खेलने की लत लग गई.

रामदीन विष्णु को ले कर चिंतित रहने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे कैसे सुधारे. ऐसे में हर मांबाप की तरह उस ने सोचा कि अगर उस की शादी कर दी जाए तो शायद वह सुधर जाए.

लेकिन रामदीन के तमाम प्रयासों के बावजूद कोई भी विष्णु जैसे नकारा युवक को अपनी बेटी देने को राजी नहीं हुआ. विष्णु को अपनी कमजोरी और मातापिता की परेशानियों का आभास था. पर वह अपनी आदतों से मजबूर था. लेकिन वक्त के साथ उसे अपने दायित्वों का बोध हुआ तो उस ने एकएक कर आवारा लड़कों का साथ छोड़ कर पिता के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया.

रामदीन को बेटे का सहयोग मिला तो वह रंगाईपुताई के बड़े ठेके लेने लगा. इस काम में बापबेटे मिल कर अच्छी कमाई कर लेते थे.

रामलीला ग्राउंड के बाहर जीटी रोड पर सड़क किनारे एक महिला पान मसाले की दुकान चलाती थी, नाम था जानकी. जानकी बाबूपुरवा क्षेत्र के मुंशीपुरवा में रहती थी. उस का पति मंगली प्रसाद एक रिक्शा कंपनी में रिक्शा मरम्मत का काम करता था. जिस दिन उस की कंपनी बंद रहती थी, उस दिन पान की दुकान पर मंगली प्रसाद बैठता था.

विष्णु जानकी की दुकान पर अकसर पान मसाला खाने आता था. पैसे कभी नकद तो कभी उधार. दोनों में अच्छी जानपहचान थी, सो वह उसे सामान देने को मना नहीं करती थी.

एक रोज विष्णु जानकी की दुकान पर पहुंचा तो उस की आंखें चुंधिया गईं. दुकान पर सजीसंवरी एक युवती बैठी थी. पहली ही नजर में वह विष्णु के मन भा गई. वह उसे एकटक देखने लगा.

युवती ने विष्णु को अपनी ओर टकटकी लगाए देखा तो टोका, ‘‘ ऐसे घूरघूर कर क्या देख रहे हो, क्या पहली बार किसी औरत को देखा है.’’

विष्णु झेंप कर बोला, ‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं तुम्हें घूर नहीं रहा था, बल्कि तुम्हारी खूबसूरती के बारे में सोच रहा था. वैसे मैं ने कभी तुम्हें दुकान पर बैठे नहीं देखा. जानकी चाची कहां गई? आप उन की रिश्तेदार हैं क्या?’’

‘‘नहीं, मैं उन की बेटी हूं, नाम है शालू. मां मुझे पूजा कह कर बुलाती है.’’ शालू मुस्कराते हुए बोली.

शालू और विष्णु अभी आपस में बात कर ही रहे थे तभी दुकान का सामान ले कर जानकी आ गई. विष्णु उसे उलाहना देते हुए बोला, ‘‘चाची, आप ने कभी बताया नहीं कि आप की एक खूबसूरत बेटी भी है.’’

जानकी बोली, ‘‘विष्णु बेटा, पूजा शक्ल से तो अच्छीभली है. लेकिन भाग्य की खोटी है. पता नहीं अपने भाग्य में क्या लिखा कर लाई है?’’

विष्णु ने अचकचा कर पूछा, ‘‘पूजा और भाग्य की खोटी. यह आप क्या कह रही हैं चाची?’’

‘‘मैं सही कह रही हूं. लगभग 2 साल पहले हम ने पूजा का विवाह हंसीखुशी से कन्नौज जिले के कस्बा गुरसहायगंज निवासी रामू के साथ किया था. लेकिन उस की पति से नहीं बनी. ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. इस ने पति से तलाक भी ले लिया है. समझ में नहीं आता, जवान बेटी का बोझ कैसे उठाऊं.’’ जानकी लंबी सांस लेते हुए बोली.

‘‘चाची, आप नाहक चिंता कर रही हो. आप की बेटी पूजा सुंदर भी है और जवान भी. उस के लिए लड़कों की क्या कमी, बस आप हां भर कह दो.’’ विष्णु पूजा की ओर देखते हुए मुसकरा कर बोला.

उस रात विष्णु को नींद नहीं आई. वह रात भर शालू के बारे में ही सोचता रहा. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह पूजा को अपना जीवनसाथी बना कर रहेगा.

विष्णु घर से काम के लिए निकलता तो उस की नजरें शालू की नजरों से टकरा जातीं. नजरें मिलते ही दोनों के चेहरे पर मुसकान बिखर जाती. जल्दी ही शालू ने उस के मन की बात भांप ली. शालू उर्फ पूजा विष्णु की बातचीत से प्रभावित थी, वह उसे अच्छा लगने लगा था. लेकिन वह अपने मन की बात उस से नहीं कह पा रही थी. दूसरी ओर विष्णु उस के आकर्षण में इस कदर डूब चुका था कि उसे शालू के बिना सब सूनासूना लगने लगा था.

जब विष्णु से नहीं रहा गया तो एक दिन दोपहर में वह दुकान पर पहुंचा पता चला शालू घर पर है. तब वह उस के घर पहुंच गया. उस ने दरवाजा खटखटाया तो शालू ने ही खोला. उसे देख कर वह घबरा गई. उस ने कहा, ‘‘घर में कोई नहीं है.’’

ये भी पढ़ें- मुकेश अंबानी के फेर में 65 लाख की ठगी

‘‘पता है, तभी तो आया हूं. मुझे किसी और से नहीं तुम से बात करनी है.’’ विष्णु ने कहा.

‘‘कहो क्या कहना है?’’ शालू सकुचाते हुए बोली.

‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं, बस यही कहने आया था.’’

‘‘तुम मुझ से प्यार करते हो, यह ठीक है, पर मैं एक तलाकशुदा महिला हूं. क्या तुम्हें यह बात पता है? तुम्हारे घरवाले तलाकशुदा से शादी करने को राजी हो जाएंगे?’’

‘‘तुम्हारी पिछली जिंदगी से मुझे कुछ लेनादेना नहीं. मैं तुम से प्यार करता हूं और अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. रही बात घर वालों की, तो वे मान जाएंगे.’’

इस तरह अपनी बात कह कर विष्णु ने शालू के तनमन में खुशी भर दी. अब वह हर समय इसी सोच में डूबी रहने लगी कि विष्णु के प्यार को स्वीकार करे या ठुकरा दे. काफी सोचविचार के बाद उस ने विष्णु को जीवनसाथी बनने का निर्णय कर लिया.

अपना निर्णय उस ने अपने मातापिता को भी बता दिया. जानकी तो रातदिन बेटी के भविष्य को ले कर चिंतित रहती थी, उस ने बेटी के निर्णय को मान लिया.

उधर विष्णु ने जब अपने मातापिता को शालू के बारे में बताया और उस से विवाह करने की बात कही तो वे राजी हो गए.

कुसुम अपनी बेटी प्रीति व नंदनी के साथ शालू से मिलने उस के घर गई और नेग दे कर शालू को पसंद कर लिया. दोनों तरफ की रजामंदी के बाद विष्णु ने एडवोकेट ताराचंद्र के माध्यम से 6 जनवरी, 2018 को कानपुर कोर्ट में शालू से कोर्टमैरिज कर ली.

शादी के बाद शालू पति विष्णु के साथ रामलीला ग्राउंड में बने मकान में रहने लगी. लगभग एक साल तक दोनों हंसीखुशी से रहे, फिर परिवार में झगड़ेझंझट शुरू हो गए.

दरअसल शालू को संयुक्त परिवार में रहना अच्छा नहीं लगता था. उसे सासससुर, देवर व ननदें कांटे की तरह चुभती थीं. भारीभरकम परिवार के लिए खाना बनाना भी उसे बोझ लगता था.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास का शिकार जज परिवार

कभी खाने को ले कर तो कभी साफसफाई को ले कर कभी सास कुसुम तो कभी ननद प्रीति व नंदनी से शालू का झगड़ा होने लगा. शालू ने पति को मुट्ठी में कर रखा था, सो वह कुछ बोल ही नहीं पाता था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

ओवरडोज : भाग 2

शालू अलग रहने की चेतावनी देने लगी थी. परिवार में कलह शुरू हुई तो बढ़ती ही गई. आखिर कलह से आजिज आ कर रामदीन ने परिवार के लिए चकेरी क्षेत्र के श्यामनगर में किराए पर एक मकान ले लिया. इस मकान में रामदीन की पत्नी कुसुम, 3 बेटे सूरज, शिवा, नंदी तथा 2 बेटियां प्रीति व नंदनी रहने लगी.

रामदीन परिवार के साथ इसलिए नहीं गया, क्योंकि उस के जाने से रामलीला ग्राउंड का सरकारी मकान उसे खाली करना पड़ता. अब रामलीला ग्राउंड वाले मकान में शालू, उस का पति विष्णु तथा ससुर रामदीन रह गए. बड़े वाले कमरे में शालू ने अपना सामान सजा लिया तथा छोटा कमरा ससुर को दे दिया.

अब शालू बनसंवर कर रहने लगी. उस ने पति से लड़झगड़ कर महंगा टचस्क्रीन मोबाइल फोन भी खरीदवा लिया. मोबाइल फोन को उस ने चलाना भी सीख लिया. शालू सप्ताह में एक दिन पति के साथ घूमने जरूर जाती थी. उस दिन वह खाना नहीं बनाती थी. पतिपत्नी स्वयं तो खापी कर आते, लेकिन रामदीन को भूखे पेट सोना पड़ता था.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास का शिकार जज परिवार

रामलीला ग्राउंड काफी बड़ा था. चारों ओर बाउंड्री वाल थी और अंदर आनेजाने के 2 बड़े तथा 2 छोटे गेट थे. रामलीला मंचन के लिए अंदर काफी बड़ा मंच बना था. इस ग्राउंड पर शाम को नशेबाजों का जमावड़ा शुरू हो जाता था. ये नशेबाज चरस, गांजा तथा शराब पीते और कभीकभी उपद्रव भी करते. कभी पुलिस का छापा पड़ता तो ये भाग जाते, लेकिन पुलिस के जाते ही फिर आ जाते.

विष्णु के कई दोस्त भी ग्राउंड पर आते थे. विष्णु कभीकभी उन के साथ नशेबाजी कर लेता था. जरूरत होती तो ये नशेड़ी दोस्त विष्णु के घर पर कभी गिलास तो कभी पानी मांगने आ जाते. ये नशेबाज विष्णु की पत्नी शालू को ललचाई नजरों से देखते थे. वह शालू को महंगा फोन चलाते देखते तो समझते कि शालू के पास बहुत पैसा है. शालू को दिखावे की लत थी. इस के चलते उसे बनसंवर कर फोन पर बतियाते हुए ग्राउंड में घूमना अच्छा लगता था. 2 अगस्त, 2020 की रात किन्हीं अज्ञात लोगों ने शालू और उस के पति विष्णु की हत्या कर दी. बेटेबहू की हत्या की खबर रामदीन ने थाना रेल बाजार पुलिस को दी तो थाने में हड़कंप मच गया.

रक्षाबंधन के दिन डबल मर्डर की सूचना पा कर पुलिस अधिकारी भी दहल उठे. अत: कुछ ही देर में एसएसपी डा. प्रीतिंदर सिंह, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल तथा एसपी (साउथ) दीपक भूकर रामलीला ग्राउंड पहुंच गए.

रेल बाजार थानाप्रभारी दधिबल तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहले से मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया था.

घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था, जिसे देख कर पुलिस अधिकारी सहम गए. घर के बाहर जमीन पर बिछे बिस्तर पर 24-25 वर्षीय विष्णु का शव पड़ा था. उस की हत्या सिर को ईंट से कूच कर की गई थी. पूरा बिस्तर खून से तरबतर था. पास ही खून से सनी 2 ईंटें पड़ी थीं. विष्णु के चेहरे पर भी जख्म थे.

कमरे के अंदर का दृश्य शर्मसार करने वाला था. अंदर शालू का शव नग्नावस्था में पड़ा था, उस की हत्या साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर की गई थी. देखने से ऐसा लग रहा था जैसे उस के साथ हत्या से पहले दुष्कर्म किया गया हो.

कमरे का सामान उलटपुलट पड़ा था. बक्सा भी खुला था, जिस से चोरी से भी इनकार नहीं किया जा सकता था. हालांकि मृतका कान में झुमकी तथा पैर में पायल पहने थी, उन्हें नहीं उतारा गया था.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर बारीकी से जांच की तथा साक्ष्य जुटाए. टीम ने ईंट तथा बिस्तर से फिंगरप्रिंट लिए और खून का नमूना सुरक्षित किया. टीम ने खून सनी ईंटों को भी साक्ष्य के तौर पर जाब्ते में शामिल किया गया.

डौग स्क्वायड टीम भी घटनास्थल पर मौजूद थी. टीम ने कुत्ता छोड़़ा तो वह घटनास्थल पर पड़े शव और खून को सूंघ कर भौंकता हुआ ग्राउंड के बाहर आया और जीटी रोड पर आ कर भटक गया. वह हत्या का कोई भी सबूत नहीं जुटा पाया.

घटनास्थल पर मृतक का पिता रामदीन तथा उस का पूरा परिवार मौजूद था. मृतक के बहनभाई रो रहे थे, मां कुसुम का भी रोरो कर बुरा हाल था. शालू की मां तथा पिता भी मौजूद थे. वह भी बेटी की मौत पर आंसू बहा रहे थे.

एसएसपी डा. प्रीतिंदर सिंह ने मृतक के पिता रामदीन से घटना के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि 3 अगस्त की सुबह जब वह सो कर उठा तो कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था. उस ने बेटेबहू को कई आवाजें दीं पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

ये भी पढ़ें- पुलिस की भूलभुलैया : भाग 3

उस ने दरवाजे पर जोर से दस्तक दी तो कुंडी सरक गई और दरवाजा खुल गया. वह कमरे से निकल कर बाहर आया तो सामने बिस्तर पर विष्णु की लाश पड़ी थी. वह घबरा गया और श्यामनगर में रह रहे अपने परिवार के पास पहुंचा. वहां उस ने विष्णु की हत्या की जानकारी दी. साथ ही संदेह भी जताया कि बहू शालू विष्णु की हत्या कर घर से भाग गई है. इस के बाद पूरा परिवार रोतापीटता रामलीला ग्राउंड स्थित मकान पर आ गया.

जब हम सब शालू के कमरे में पहुंचे तो सब की आंखें शर्म से झुक गईं. कमरे के अंदर शालू का शव नग्नावस्था में पड़ा था. हमें शक हुआ कि चोरबदमाश घर में घुसे, फिर शालू के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और विरोध करने पर शालू व विष्णु की हत्या कर फरार हो गए. वे नकदी, आभूषण के साथ शालू का कीमती मोबाइल फोन तथा विष्णु का मोबाइल भी ले गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण तथा पूछताछ के बाद विष्णु और शालू के शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिए. इस के बाद एसएसपी डा. प्रीतिंदर सिंह ने इस डबल मर्डर के खुलासे के लिए एक विशेष टीम का गठन किया, जिस की कमान एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल को सौंपी गई.

इस विशेष टीम में थाना रेलबाजार प्रभारी निरीक्षक दधिबल तिवारी, एसएसआई संतोष ओझा, एसओजी प्रभारी दिनेश कुमार तथा सर्विलांस प्रभारी सतीश सिंह को शामिल किया गया.

विशेष पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार विष्णु की मौत सिर फटने तथा अधिक रक्त होने से हुई थी. उस के सिर की हड्डियां टूटी पाई गईं, जबकि शालू की मौत गला घोंटने से हुई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइड भी बनाई गईं.

इस के बाद पुलिस टीम ने मृतक के पिता रामदीन तथा मृतका की मां जानकी से पूछताछ की. जिस से पता चला कि शालू ने पहले पति रामू से तलाक ले कर विष्णु से दूसरी शादी की थी. उस की अपने ससुराल वालों से नहीं पटती थी, जिस से वे लोग अलग मकान ले कर रहने लगे थे. यह भी पता चला कि शालू का पति विष्णु नशाखोर था. कई नशेबाज उस के दोस्त थे.

ये भी पढ़ें- मर्यादाओं का खून

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

मर्यादाओं का खून : भाग 3

मनीष कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘बात तो तुम सही कह रही हो, पर तुम्हें ले कर मैं अलग हुआ नहीं कि बाबूजी मुझे परिवार से अलग कर देंगे. तब हम खाएंगे क्या.’’

‘‘लालच छोड़ो और मेरी इज्जत के बारे में सोचो. हम मेहनतमजदूरी कर गुजारा कर लेंगे. भूखा भी रहना पड़ा तो रह लेंगे. पर इज्जत बचाने को घरगृहस्थी अलग कर लो.’’

पत्नी की बात मान कर मनीष ने अपनी गृहस्थी अलग करने की बात कही तो वंशलाल भड़क उठा, ‘‘बेशक तुम अलग रहो. पर मैं अपनी जमीन का एक इंच भी जोतनेबोने को नहीं दूंगा. तुम्हें खुद कमानाखाना पड़ेगा.’’

ये भी पढ़ें- मुकेश अंबानी के फेर में 65 लाख की ठगी

मनीष को पहले से यही उम्मीद थी. अत: उस ने पिता की धमकी की परवाह नहीं की और पिता के खाली पड़े मकान में अलग रहने लगा. उसे दहेज में जो सामान मिला था, उस से उस ने अपना घर सजा लिया और पत्नी के साथ रहने लगा.

जेठानी रमा को देवरानी का अलग होना खलने लगा. क्योंकि अब उसे ही घर के कामों के अलावा सास की सेवा करनी पड़ती थी. सास मायादेवी बीमार रहने लगी थी, जिस से उन की दवा आदि का विशेष खयाल रखना पड़ता था. विनीता को भी जब समय मिलता था, तो सास की सेवा में पहुंच जाती थी . इस बहाने देवरानीजेठानी बतिया लेती थी. रामादेवी उसे चोरीछिपे घरगृहस्थी का सामान भी दे देती थी.

वंशलाल बना हैवान

विनीता की मुश्किल तब बढ़ी जब मनीष जनवरी, 2019 में बीमार पड़ गया और उस का काम भी छूट गया. उस ने कुछ सप्ताह तो जैसेतैसे काटे और पति का इलाज भी कराया लेकिन जब आर्थिक परेशानी ज्यादा बढ़ी तो एक रोज उस ने ससुर वंशलाल को घर बुलाया और आर्थिक मदद की गुहार लगाई.

विनीता पर वंशलाल की गिद्ध दृष्टि पहले से ही थी. अत: लालच में उस ने विनीता की आर्थिक मदद कर दी. इलाज होने पर मनीष स्वस्थ हो गया और फिर से काम करने लगा.

वंशलाल हर हाल में बहू के जिस्म को हासिल करना चाहता था. अत: मदद के बहाने वह विनीता के घर आनेजाने लगा. ससुर होने के नाते विनीता कभी चाय को पूछ लेती तो कभी खाने को.

विनीता घूंघट की ओट से ही ससुर से बातें करती थी और चायपानी देती थी. इस बीच वंशलाल किसी प्रकार की अश्लील हरकत नहीं करता था, जिस से विनीता को लगने लगा था कि शायद वह सुधर गया है, पर यह उस की भूल थी.

एक शाम वंशलाल डयूटी से घर आया तो उसे पता चला कि उस का बेटा अपनी ससुराल नगरा गया है. यह पता चलते ही उस के जिस्म की भूख जाग उठी. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि आज वह अपनी भूख मिटा कर ही रहेगा.

रात 10 बजे जब गली में सन्नाटा पसर गया तो वह विनीता के घर पहुंचा और कुंडी खटखटाई. विनीता ने सोचा कि कहीं मनीष तो नहीं लौट आया. उस ने अलसाई आंखों से दरवाजा खोल दिया. सामने ससुर वंशलाल खड़ा था. इस से पहले कि विनीता कुछ पूछती, ससुर ने अंदर आ कर दरवाजा बंद किया और बहू विनीता को दबोच लिया. फिर वह उसे बिस्तर पर ले गया और मनमानी करने लगा.

विनीता ने ससुर की बांहों से छूटने का भरसक प्रयास किया, गिड़गिड़ाई, इज्जत की दुहाई दी, पर वंशलाल पर तो हवस का शैतान सवार था. हाथपांव चलाने के बावजूद उस ने विनीता को नहीं छोड़ा. शारीरिक भूख मिटाने के बाद ही वह विनीता के जिस्म से अलग हुआ. इस के बाद वह वापस चला गया.

विनीता चाहती तो चीखचिल्ला कर पूरे मोहल्ले को इकट्ठा कर लेती. पर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया.

इस की वजह यह थी कि लोग उसे ही दोषी ठहराते. पुलिस में जाती तो उस की कोई नहीं सुनता. क्योंकि वह बिंदकी थाने में ही ड्यूटी करता था. बाहर भी उस की सुनवाई नहीं होती. इसलिए इज्जत लुटाने के बावजूद वह चुप रही.

दूसरे रोज पति आया तो उस ने उसे भी कुछ नहीं बताया. क्योंकि बताने से बापबेटे में द्वंद होता फिर पूरे गांव में इज्जत नीलाम होती. इसलिए सारा जहर विनीता स्वयं ही पी गई.

इधर जब घर में कोई शोरशराबा या शिकवाशिकायत नहीं हुई तो वंशलाल का हौसला बढ़ गया. उसे लगा कि विनीता ने दिखावे के तौर पर विरोध किया, पर अंतर्मन से उस की भी रजामंदी है.

हौसला बढ़ते ही एक शाम वंशलाल, विनीता के घर आ पहुंचा. उस ने मदद के नाम पर विनीता की हथेली पर हजार रुपए रखे, फिर उसे बिस्तर पर ले गया और हवस मिटा कर चला गया. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. वंशलाल को जब भी मौका मिलता, बहू के साथ खेल लेता.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास का शिकार जज परिवार

परंतु गलत काम ज्यादा दिन छिपा नहीं रहता. वंशलाल के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस शाम वंशलाल बहू से मुंह काला कर के घर से निकल रहा था, तभी मनीष आ गया. मनीष ने बाप को घर से निकलते देखा तो उस का माथा ठनका. वह अंदर पहुंचा तो विनीता अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर बैठी सुबक रही थी.

विनीता को उस अवस्था में देख कर मनीष समझ गया कि चंद मिनट पहले ही ससुरबहू ने वासना का खेल खेला है. अत: उस ने गुस्से में विनीता की पिटाई की फिर उस का गला दबाते हुए बोला, ‘‘बता यह सब कब से चल रहा है?’’

विनीता ने किसी तरह अपना बचाव किया फिर बोली, ‘‘मेरा गला क्यों दबा रहे हो. दबाना ही है तो अपने बाप का दबाओ, जो मुझे जबरदस्ती हवस का शिकार बनाता है. मैं गिड़गिड़ाती रहती, पर हवस के उस दरिंदे को जरा भी दया नहीं आती.’’

मनीष ने रची बाप की हत्या की साजिश

मनीष ने पत्नी की बात पर सहज भरोसा कर लिया. फिर गुस्से से बोला, ‘‘अगर ऐसी बात है तो बाप को सबक सिखाना ही पड़ेगा. पर इस के लिए मुझे तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘मैं साथ देने को तैयार हूं,’’  विनीता ने वादा किया.

इस के बाद मनीष और विनीता ने वंशलाल की हत्या की योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे.

16 मार्च, 2020 की शाम 7 बजे होमगार्ड वंशलाल थाना बिंदकी से ड्यूटी पूरी कर घर लौटा. फिर शराब पीने बैठ गया.

रात 9 बजे उस ने खाना खाया और घर के बाहर बरामदे में आ कर वर्दी उतार कर खूंटी पर टांग दी और तख्त पर लेट गया. उसे लेटे हुए अभी चंद मिनट ही बीते थे कि उस के मोबाइल पर काल आई. उस ने मोबाइल नंबर देखा तो विनीता का था.

वंशलाल ने काल रिसीव की तो विनीता बोली, ‘‘बाबूजी, मनीष घर पर नहीं है. मैं घर पर अकेली हूं. डर लग रहा है. आप आ जाइए.’’

वंशलाल बहू की चाल को समझ नहीं पाया और बोला, ‘‘तुम डरो मत, मै तुरंत आ रहा हूं.’’

इस के बाद वह कच्छाबनियान पहने ही विनीता के घर पहुंच गया. घर पर मनीष घात लगाए बैठा ही था. वंशलाल के पहुंचते ही उस ने उसे दबोच लिया. पहले दोनों ने वंशलाल कोे लातघूंसों से पीटा, फिर अंगौछे से गला कस कर मार डाला.

इस बीच नफरत से भरी विनीता ने फुंकनी से ससुर के गुप्तांग पर चोट पहुंचाई और बुरी तरह कुचल डाला, जिस से खून बहने लगा. हत्या करने के बाद दोनों मिल कर शव को तख्त पर डाल गए फिर घर में ताला लगा कर फरार हो गए.

ये भी पढ़ें- पुलिस की भूलभुलैया

सुबह अनिल जब दिशामैदान को घर से निकला तो उस ने पिता का शव तख्त पर पड़ा देखा. अनिल ने शोर मचाया तो पड़ोसी आ गए. फिर अनिल थाना बिंदकी पहुंचा और बाप की हत्या की सूचना दी.

मनीष और उस की पत्नी विनीता से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 21 मार्च, 2020 को दोनों को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट बी.के. सहगल की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मर्यादाओं का खून : भाग 2

कुछ ही दिनों में विनीता ने अपने काम और व्यवहार से अपने पति, सासससुर को प्रभावित किया. विनीता का पति व जेठ सबेरा होते ही खेत पर चले जाते थे, जबकि ससुर वंशलाल ड्यूटी करने थाना बिंदकी जाता था. वह शाम को 7 बजे के बाद ही लौटता था. कभी वह शराब पी कर घर आता तो कभी घर पर बैठ कर पीता था.

विनीता को शराब से नफरत थी, पर वह मना भी नहीं कर सकती थी. वैसे भी पूरे घर पर ससुर का ही राज था. उस की इजाजत के बिना कोई कुछ काम नहीं कर सकता था. कृषि उपज का हिसाबकिताब तथा अन्य खर्चों का लेखाजोखा भी वही रखता था. अगर विनीता को जेब खर्च के लिए पैसे की जरूरत होती थी, तो वह भी ससुर से ही मांगती थी. बात उन दिनों की है, जब विनीता की जेठानी रमा मायके गई हुई थी. घर की साफसफाई से ले कर खाना पकाने तक की जिम्मेदारी विनीता पर थी.

इधर कुछ दिनों से विनीता घूंघट के भीतर से ही अनुभव कर रही थी कि ससुर वंशलाल जब खाना खाने बैठता है, तो उस की नजर उस के चेहरे पर ही जमी रहती है. वह उस के खाना पकाने की तारीफ करता, साथ ही ललचाई नजरों से उसे देखता भी था. विनीता समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ससुरजी के मन में चल क्या रहा है.

ये भी पढ़ें- पुलिस की भूलभुलैया

उन्हीं दिनों एक शाम विनीता रसोई में खाना पका रही थी कि ससुर वंशलाल आ पहुंचा. वह नशे में था. ससुर को देख कर विनीता ने सिर पर साड़ी का पल्लू डाल लिया और पूर्ववत अपने काम में लगी रही.

औपचारिकता के नाते उस ने पूछा, ‘‘बाबूजी, आप को किसी चीज की जरूरत है क्या?’’

‘‘विनीता, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है.’’ पीछे से वंशलाल ने विनीता के कंधे पर हाथ रखा और उसे धीमेधीमे दबाते हुए बोला, ‘‘खुशबू से भूख जाग गई है.’’

ससुर के इस व्यवहार से विनीता सकपका गई. पिता समान कोई ससुर ऐसे मस्ताने अंदाज में बहू का कंधा नहीं दबाता. विनीता के मन में यह खयाल भी सिर पटकने लगा कि ससुर का इशारा किस खुशबू की तरफ है, भोजन की खुशबू या उस के बदन की खुशबू. उस को कौन सी भूख जागी है, पेट की या कामनाओं की.

विनीता असहज हो चली थी वह अपने कंधे से उस का हाथ हटाना ही चाह रही थी कि वंशलाल ने खुद ही हाथ हटा लिया और एकदम से उस के सामने आ कर बोला, ‘‘बहू, जिन हाथों से तुम लजीज और खुशबूदार खाना बनाती हो, जी चाहता है उन हाथों को चूम लूं.’’

इसी के साथ वंशलाल ने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे होंठोें से लगा कर दनादन चूमने लगा.

विनीता हतप्रभ रह गई कि ससुर यह क्या कर रहा है. कहीं उस के मन में सचमुच पाप तो नहीं. विनीता के मस्तिष्क में विचारों की उथलपुथल चल ही रही थी कि वंशलाल ने खुद ही उस का हाथ छोड़ दिया. उस के बाद वह हंस कर बोला, ‘‘किसी दिन मैं फिर तुम्हारे हाथ के साथ होंठ भी चूमूंगा.’’

विनीता ने सोच लिया कि सब लोग इत्मीनान से खाना खा लेंगे तो वह सास माया को ससुर की करतूत बताएगी. लेकिन उस की यह इच्छा तब अधूरी रह गई, जब सास खाना खा कर चारपाई पर लेटी और थोड़ी ही देर में गहरी नींद के आगोश में समा गई.

सास की नसीहत

अगले दिन जब पति, जेठ व ससुर अपनेअपने काम पर चले गए, तब विनीता सास के पास जा बैठी, ‘‘अम्मा मुझे आप से एक जरूरी बात करनी है.’’

माया देवी हंसी, ‘‘एक नहीं चार बात करो बहू. मैं तो यही चाहती हूं कि तुम खूब बात करो. तुम्हारा मन बहल जाएगा और मेरा भी समय कट जाएगा.’’

‘‘अम्मा, मन बहलाने व समय काटने वाला मुद्दा नहीं है,’’ विनीता आहिस्ता से बोली, ‘‘मुझे जो कहना है, वह बात बहुत गंभीर है.’’

माया देवी भी संजीदा हो गई, ‘‘बोलो बहू, क्या बात है?’’

विनीता ने सिर झुका कर मर्यादित शब्दों में ससुर की करतूत कह डाली.

माया देवी ने पैनी निगाहों से बहू को देखा फिर बोली, ‘‘मनीष के बाबू ने नशे में कंधे पर हाथ धर दिया होगा और हाथ चूम लिया होगा. बस इतनी सी बात पर तुम शिकायत ले कर आ गई.’’

‘‘अम्मा…’’ विनीता के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई, ‘‘मेरा खयाल था कि इस शिकायत से आप बाबूजी को मर्यादा का पाठ पढ़ाओगी, लेकिन आप तो उन्हें शह दे रही हो.’’

‘‘चुपऽऽ’’ माया देवी ने विनीता को डांट दिया, ‘‘एक तो जिस के पैसे का खातीपहनती है, जिस के घर में रहती है, सुबहसुबह उस की बुराई करने बैठ गई और दूसरे अम्माअम्मा किए जा रही है. उठ यहां से और अपना काम कर.’’ माया देवी ने विनीता को हड़काया.

आंखों में आंसू लिए विनीता, सास के पास से उठ गई. उस की आंखें ही नहीं बरस रही थीं, दिल भी रो रहा था. सास की उदासीनता ने विनीता की घबराहट और बढ़ा दी थी.

वह सोचने लगी अपनी अस्मत की हिफाजत के लिए उसे खुद ही कुछ करना होगा. लगभग एक सप्ताह तक ससुर ने कोई हरकत नहीं की तो विनीता थोड़ा निश्चिंत हो गई. सोचा कि शायद उसे कोई गलतफहमी हो गई हो. ससुर के मन में पाप नहीं है. पाप होता तो चुप हो कर नहीं बैठता.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास का शिकार जज परिवार

किंतु दूसरे सप्ताह के शुरू में ही विनीता की गलतफहमी दूर हो गई.

हुआ यह कि रोज की तरह विनीता शाम को खाना पका चुकी तो वह अपने कमरे में आ कर बैड पर लेट गई. वह आंखें बंद किए हुए लेटी थी, तभी उसे किसी के आने की आहट हुई. विनीता ने झट से आंखें खोल दीं, देखा सामने ससुर वंशलाल खड़ा मुसकरा रहा था.

ससुर को देख कर विनीता घबरा गई और बैड से उठ कर खड़ी हो गई. उस ने सिर पर साड़ी का पल्लू डालते हुए पूछा,  ‘‘बाबूजी खाना लगा दूं क्या?’’

‘‘नहीं, मुझे पेट की नहीं शरीर की भूख सता रही है. आज मैं इस भूख को शांत करूंगा.’’ कहते हुए वंशलाल ने विनीता को अपनी बांहों में भर लिया.

इज्जत पर आए संकट को देख विनीता ने जोर लगा कर खुद को छुड़ाया और बोली, ‘‘बाबूजी, आप नशे में हैं, इसलिए समझ नहीं पा रहे हैं कि आप को मुझ से ऐसी शर्मनाक बात नहीं करनी चाहिए.’’

वंशलाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई, ‘‘विनीता, नशे में ही आदमी सच बोलता है.’’

विनीता जानती थी कि ससुर वंशलाल अपनी बेशर्मी से बाज नहीं आने वाला, लिहाजा उस ने उस के सामने से हट जाने में ही अपनी भलाई समझी. कन्नी काट कर वह दूसरे कमरे में जा पहुंची.

वहां वह सोचने लगी कि अब इस पूरे मामले को पति की जानकारी में लाना जरूरी हो गया है. वरना ससुर का हौसला इसी तरह बढ़ता रहा, तो वह उस की काया ही नहीं, आत्मा तक को मैली कर देगा.

पति को बता दी पूरी कहानी

रात को कमरा बंद कर के विनीता पति के साथ बिस्तर पर लेटी तो वह उदास थी. मनीष ने उदासी का कारण पूछा तो विनीता की आंखों से गंगाजमुना बह निकली. हिचकियां लेते हुए उस ने पूरी दास्तान सुना दी फिर मनीष के कंधे पर सिर टिका कर बोली, ‘‘बाबूजी के मन में पाप समाया है. मेरी इज्जत खतरे में है. यहां रही तो मेरे तन पर अमिट दाग लग जाएगा. तुम दूसरा मकान ले लो. अब हम अलग रहेंगे.’’

मनीष ने कंधे से विनीता का सिर हटा कर उस के आंसू पोंछे, ‘‘अब मेरी समझ में आया कि नशे की झोंक में बाबूजी तुम्हारी इतनी तारीफ क्यों किया करते थे, उन का मन डोला हुआ था तुम पर.’’

ये भी पढ़ें- मुकेश अंबानी के फेर में 65 लाख की ठगी

‘‘इसीलिए तो मैं तुम से कह रही हूं,’’ विनीता उत्साहित हो कर बोली, ‘‘बाबूजी मेरी इज्जत पर हाथ डालें, उस से पहले ही तुम अपनी घरगृहस्थी अलग कर लो.’’ वह बोली.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

मुकेश अंबानी के फेर में 65 लाख की ठगी

आज जब शिक्षा का प्रचार प्रसार अपने सबाब पर है और सोशल मीडिया में ठगी को लेकर के लगातार जागरूकता अभियान चलाया जा रहा हो, ऐसे में पुलिस विभाग में पदस्थ एक नगर सैनिक से कोई यह कह कर 65 लाख रुपए ठग ले कि मैं मुकेश अंबानी बोल रहा हूं और तुम्हें 2  करोड़ कीमत लकी लॉटरी का ईनाम मिलने वाला है तो आप क्या कहेंगे?

जी हां! यह कोई कपोल कल्पित कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है. छत्तीसगढ़ के न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर जिला मे यह वाकया घटित हुआ है और पुलिस मामले की जांच में लग गई है और आरोपियों को तलाश रही है.

जियो कंपनी का मालिक मुकेश अंबानी कहकर बिलासपुर जिले के नगर सैनिक से धीरे-धीरे करके 65 लाख रुपए  ठग लिए गए हैं.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास का शिकार जज परिवार

सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि बिलासपुर जिला में सप्ताह भर से बिलासपुर की पुलिस “साइबर क्राइम” रोकने और लोगों को इनके प्रति जागरूक करने का अभियान चला रही है. और एक नगर सैनिक का यह उदाहरण सनसनीखेज रूप में सामने आया है. जो बताता है कि आज के समाज में शिक्षित लोग   भी किस तरह ठगे जा सकते हैं.

इस मामले में ठग ने स्वयं को मुकेश अंबानी बताते हुए नगर सैनिक को पहले लक्की ड्रा में 25 लाख रुपए देने का वादा किया फिर  रजिस्ट्रेशन तो कभी जीएसटी के नाम पर  रुपए ठगते रहा. जब कथित मुकेश अंबानी ने देखा यह नगर सैनिक तो उसके जाल में फंस गया है तो मूलधन सहित और 2 करोड़ रुपए वापस करने का झांसा दिया जिसमें बिलासपुर पुलिस का एक वर्दीधारी नगर सैनिक चक्रव्यूह में फंसता चला गया और धीरे-धीरे 65 लाख रुपए अपने परिवार की जमा पूंजी गवा बैठा.

पूरी तरह लुटने के बाद आया होश!

जब घर परिवार की सारी पूंजी लुट गई तो नगर सैनिक को होश आया और पहुंच गया अपने ही थाने अपनी रिपोर्ट लिखाने.

पीड़ित की शिकायत पर सिटी कोतवाली बिलासपुर पुलिस ने धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.

यह सच्ची कहानी है बिलासपुर छत्तीसगढ़ के सीपत थाना क्षेत्र के ग्राम हरदाडीह निवासी जनकराम पटेल की.  24 जनवरी 2020 को उनके मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आया. कॉल करने वाले ने सबसे पहले उसे बधाई दी और बताया कि वह मुकेश अंबानी बोल रहा है  उसने कहा कि छत्तीसगढ़ से जियो के लकी कस्टमर होने की वजह से उसको 25 लाख रुपए का विजेता घोषित किया गया है. अब इस रकम को पाने के लिए नगर सैनिक ने 12 हजार रुपए ठग के बताए बैंक खाते में जमा कर दिए.ठगों ने किसी विराट सिंह नाम के व्यक्ति का खाता नम्बर दिया था. नगर सैनिक  जनक ने 1 फरवरी को नेहरू चौक के पास की एक दुकान से विराट सिंह के खाते में नेट बैंकिंग के माध्यम से पैसे ट्रांसफर कर दिए.इसके बाद अलग अलग नंबरों से वाट्सअप कॉल और सामान्य कॉल आते रहे और नगर सैनिक से लक्की ड्रा की रकम पाने के एवज में रकम जमा करने के लिए कहा जाता रहा. कुछ दिन बाद ठगों ने नगर सैनिक को अपनी बातों में फंसाकर 2 करोड़ रुपये दिलाने का वादा कर दिया. बातों में आकर नगर सौनिक ने किश्तों में कुल 65 लाख रुपए ठगों को सौप दिए.

ये भी पढ़ें- पुलिस की भूलभुलैया

समय व्यतीत होता चला गया, तब जाकर बुरी तरह लूट चुके जनक राम पटेल को होश आया. अब जब नगर सैनिक को इनाम की रकम मिलने का आसरा नहीं रहा  तो उन्हें संदेह हुआ और अपनी रकम वापस मांगी, लेकिन ठग गोलमोल जवाब देता रहा. यह भी कहा कि किसी से  कुछ कहा या ज्यादा सवाल किए तो उसे पैसे नही मिलेंगे. अब पुलिस सभी फोन नम्बर और खातों की जांच कर रही है.

लालच बुरी बला

पंचतंत्र हो या फिर हमारे समाज की कोई भी व्यावहारिक पाठशाला. जहां हमेशा यही बताया जाता है कि लालच बुरी बला होती है और इसमें समझदार व्यक्ति को कभी भी नहीं फंसना चाहिए. मगर इसके बावजूद आज के पढ़े लिखे नौजवान किस तरह सोशल मीडिया के संजाल में आकर छोटे-छोटे लालच में आकर अपने जीवन की परिवार की कमाई को लुटा बैठते हैं.

यह हम अक्सर देख रहे हैं. बिलासपुर की इस सनसनीखेज घटना मे भी यही सब हुआ है. पुलिस विभाग के अधिकारी विवेक शर्मा कहते हैं कि ठगी का शिकार कोई भी हो सकता है वह पुलिस वाला भी हो सकता है और कोई राजनेता भी, कोई वकील भी और कोई मीडिया कर्मी भी. ऐसे में आवश्यकता है सिर्फ और सिर्फ जागरूकता की और लालच के फंदे में नहीं फंसने के संकल्प की.

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार : भाग 1

मध्य प्रदेश का जिला बैतूल. बैतूल का जिला मुख्यालय कालापाठा. 27 जुलाई, 2020 को कालापाठा स्थित जज आवासीय कालोनी एक घर से रोनेधोने की चीखोपुकार से थर्रा उठी. रुदन ऐसा कि किसी का भी दिल दहल जाए.

रोने की आवाजें बैतूल के जिला न्यायालय में पदस्थ अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) महेंद्र कुमार त्रिपाठी के घर से आ रही थीं. लोग वहां पहुंचे तो पता चला महेंद्र त्रिपाठी और उन के जवान बेटे अभियान राज त्रिपाठी की अचानक मृत्यु हो गई थी.

खबर सनसनीखेज थी. जरा सी देर कालोनी में रहने वाले तमाम जज और मजिस्ट्रैट वहां आ गए.

सूचना मिली तो पुलिस अधिकारियों के अलावा प्रशासनिक अधिकारी भी जज साहब के घर पहुंच गए. यह खबर बड़ी तेजी से पूरे बैतूल में फैल गई.

ये भी पढ़ें- पुलिस की भूलभुलैया

जज साहब के परिवार में कुल 4 सदस्य थे. वह और उन की पत्नी भाग्य त्रिपाठी और 2 बेटे अभियान राज त्रिपाठी व आशीष राज त्रिपाठी. 4 में से अब 2 बचे थे पत्नी भाग्य त्रिपाठी और छोटा बेटा आशीष राज. पत्नी और बेटा महेंद्र त्रिपाठी और अभियान राज त्रिपाठी के शवों को देख बिलखबिलख कर रो रहे थे. महेंद्र त्रिपाठी व उन के बड़े बेटे के कफन में लिपटे शव देख कर उन की पत्नी की समझ नहीं आ रहा था कि अचानक उन की खुशियों को कौन सा ग्रहण लग गया कि देखते ही देखते हंसतीखेलती जिंदगी मातम में बदल गई.

घटनाक्रम की शुरुआत 20 जुलाई, 2020 को तब हुई थी, जब रात करीब साढ़े 10 बजे पूरे त्रिपाठी परिवार ने डाइनिंग टेबल पर एक साथ खाना खाया था. बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी की पत्नी अपने मायके इंदौर में थी.

खाना खाने के कुछ देर बाद छोटे बेटे आशीष को उल्टियां होने लगीं. थोड़ी देर बाद महेंद्र त्रिपाठी व उन के बड़़े बेटे अभियान के पेट में भी दर्द होने लगा. आशीष को 2-3 बार उल्टियां हुई. उस के बाद पिता व बड़े भाई के पेट में भी दर्द बढ़ता गया तो पूरा परिवार चिंता में डूब गया.

चिंता इस बात की थी कि कहीं खाने की वजह से कोई फूड पौइजनिंग हो गई हो. मिसेज त्रिपाठी ने कुल 6 चपाती बनाई थीं, जिस में से एक रोटी आशीष ने खाई थी. बाकी 5 चपातियां आधीआधी महेंद्र त्रिपाठी और उन के बड़े बेटे ने खा ली थीं. मिसेज त्रिपाठी ने दाल के साथ सुबह के रखे बासी चावल खाए थे. उन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई थी.

आमतौर पर घर में जब किसी को खाने के कारण फूड पौइजनिंग होती है या पेट दर्द होता है, तो लोग घरेलू उपचार पर ध्यान देते हैं. मिसेज त्रिपाठी ने भी ऐसा ही किया. उन्होंने पति और दोनों बेटों को गर्म पानी में हींग और नींबू घोल कर दे दिया. इस से छोटे बेटे आशीष की तबीयत में सुधार हुआ और उस की उल्टियां बंद हो गईं. लेकिन जज साहब और उन के बड़े बेटे का दर्द कुछ देर के लिए कम जरूर हुआ, मगर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ.

चूंकि शाम के खाने में इस्तेमाल सब्जी व दाल सुबह की बनी थी, जिन क ा इस्तेमाल सुबह के खाने में भी हुआ था. इसलिए उन से किसी तरह की फूड पौइजनिंग की संभावना कम ही थी, वैसे भी इन का इस्तेमाल शाम के खाने में मिसेज त्रिपाठी ने भी किया था और वे पूरी तरह ठीक थीं. लिहाजा सब्जी और दाल से कोई बीमारी हुई होगी, इस की आशंका कम ही थी. मिसेज त्रिपाठी ने रोटी ताजी बनाई थीं. घर में जितने भी लोग बीमारी हुए थे उन्होंने रोटी ही खाई थीं. रोटियां खाने के बाद ही सब की तबियत खराब हुई थी.

रात के करीब डेढ़ बजे जज साहब और बड़े बेटे की तबियत जब ज्यादा खराब होने लगी तो मिसेज त्रिपाठी ने डाक्टर को फोन कर के घर पर बुला लिया. 21 जुलाई की अलसुबह करीब 3 बजे डाक्टर घर आया और उस ने त्रिपाठी व उन के बेटों को देखा. खाने के बारे में पूछा तो मिसेज त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने क्या खाया था.

आशंका इसी बात की थी कि खाने से फूड पौइजनिंग हुई होगी. डाक्टर ने तीनों को दवा मिला कर लिक्विड पीने को दिया और उल्टी करवाई, जिस के बाद उन्हें दवाइयां दीं.

बिगड़ती गई दोनों की हालत

अगली दोपहर तक आशीष तो पूरी तरह ठीक हो गया. लेकिन जज साहब व उन के बड़े बेटे की तबियत वैसी ही बनी रही. इसी तरह 21 व 22 जुलाई का पूरा दिन व रात गुजर गए, सब का घर में ही इलाज चलता रहा. लेकिन 23 जुलाई को जज साहब व उन के बड़े बेटे की तबियत कुछ जयादा ही खराब होने लगी.

जिला चिकित्सालय के डा. आनंद मालवीय को घर बुला कर दिखाया तो उन्होंने उन दोनों को पाढर जिला अस्पताल, बैतूल में भरती करवा दिया. दोनों को ही आईसीयू में रखा गया. लेकिन इस के बावजूद जज साहब व उनके बेटे की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.

वैसे भी सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा उपकरणों की इतनी कमी होती है कि गंभीर बीमारियों को काबू में करने के लिए कभीकभी बहुत समस्या हो जाती है. पाढर जिला अस्पताल में भी यही हालत थी. जज साहब और उन के बड़े बेटे की स्थिति जिस तरह तेजी से बिगड़ रही थी, उसे देखते हुए डाक्टरों ने परिवार वालों को सलाह दी कि दोनों को नागपुर के प्रसिद्ध एलेक्सिस अस्पताल में भरती करवा दिया जाए.

ये भी पढ़ें- पुलिस का बदरंग

घर वालों ने डाक्टरों की बात मान कर 25 जुलाई को महेंद्र त्रिपाठी व अभियान को एंबुलेंस से ले जा कर नागपुर के एलेक्सिस अस्पताल में भरती करवा दिया, जहां दोनों के सभी तरह के टेस्ट शुरू हो गए. बापबेटे को गहन चिकित्सा कक्ष में रखा गया. लेकिन तब तक शायद देर हो चुकी थी. 25 जुलाई की शाम को पहले अभियान की मौत हो गई.

फिर 26 जुलाई को सुबह करीब साढ़े 4 बजे महेंद्र त्रिपाठी की भी मौत हो गई.

बापबेटे की एक साथ मौत त्रिपाठी परिवार पर वज्रपात था. चूंकि मामला एक जज और उन के बेटे की मौत से जुड़ा था. इसलिए अस्पताल की तरफ से एमएलसी बना कर नागपुर के मानकापुर पुलिस थाने को भेज दी गई. पुलिस ने अस्पताल में पहुंच कर आशीष त्रिपाठी के बयान दर्ज किए और आवश्यक काररवाई के बाद उन के इलाज के सभी दस्तावेज अपने कब्जे में ले लिए.

दोनों मृतक पितापुत्र का इंदिरा गांधी मैडिकल कालेज नागपुर में विधिवत पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक बोर्ड द्वारा किया गया. आवश्यक जांच के लिए बैतूल पुलिस के अनुरोध पर डाक्टरों ने विसरा तथा सिर के बाल और हाथ के नाखून सुरक्षित कर लिए.

नागपुर पुलिस ने यह प्रकरण अपराध संख्या शून्य पर अकाल मृत्यु की धारा 174 में दर्ज कर लिया . साथ ही दोनों की मौत से जुड़ी पुलिस डायरी तथा अन्य साक्ष्य व सैंपल बैतूल पुलिस को सौंप दिए. क्योंकि अपराध का न्यायिक क्षेत्र मध्य प्रदेश का बैतूल ही था.

दूसरी तरफ महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे के शव का पोस्टमार्टम करवा कर जिला प्रशासन ने शव परिजनों के सुपुर्द कर दिए. परिवार वाले शवों को पहले बैतूल में उन के सरकारी आवास पर ले गए, जहां उन की पहचान वालों ने शव के अंतिम दर्शन किए. इस के बाद परिवार वाले बापबेटे के शव को अंतिम संस्कार के लिए कटनी में उन के पैतृक गांव ले गए, जहां 26 जुलाई की शाम को उन का अंतिम संस्कार कर कर दिया गया.

लेकिन बापबेटे की मौत में सब से बड़ा पेंच ये था कि आखिर खाने में ऐसा क्या था कि जिसे खाने के बाद उन की तबियत खराब हो गई. चूंकि मामला एक जज और उन के बेटे की संदिग्ध परिस्थिति में हुई मौत से जुड़ा था, इसलिए बैतूल के एसपी सिमाला प्रसाद ने अपने मातहतों को बुला कर निर्देश दिया कि जांचपड़ताल और मामले की तह में जाने के लिए किसी तरह की कोताही न बरती जाए.

ये भी पढ़ें- तंत्र मंत्र का सुबहा, बहुत दूर से आए हत्यारे!

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार : भाग 4

अचानक संध्या सिंह के दिमाग में इन मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए एक साजिश कुलांचे मारने लगी. उस ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर एक ऐसी साजिश रची, जिस से वह महेंद्र त्रिपाठी से लिए गए पैसे लौटाने से भी बच सकती थी और उन के परिवार से उस का इंतकाम भी पूरा हो जाता.

इस साजिश को अंजाम देने के लिए उस ने अपने ड्राइवर संजू और संजू के फूफा देवीलाल निवासी काशीनगर, छिंदवाड़ा, मुबीन खान निवासी छिंदवाड़ा और कमल तथा बाबा उर्फ रामदयाल को तैयार कर लिया.

संध्या जानती थी कि महेंद्र त्रिपाठी तंत्रमंत्र और पंडितों पर बहुत विश्वास करते हैं. उस ने त्रिपाठीजी की इसी कमजोरी का लाभ उठाया. उस ने साथियों की मदद से सांप का विष हासिल कर लिया. फिर उस ने सर्प विष मिला आटा खिला कर महेंद्र त्रिपाठी व उन के परिवार को खत्म करने की योजना बनाई.

इस षडयंत्र को अंजाम देने के लिए संध्या कुछ दिन पहले बाबा उर्फ रामदयाल को ले कर छिंदवाडा से बैतूल पहुंची और वहां सर्किट हाउस में महेंद्र त्रिपाठी को मुलाकात के लिए बुलवाया. संध्या ने रामदयाल से महेंद्र त्रिपाठी का परिचय एक पहुंचे हुए तांत्रिक के रूप में कराया.

ये भी पढ़ें- तंत्र मंत्र का सुबहा, बहुत दूर से आए हत्यारे!

उस ने उन्हें बताया कि बाबा ऐसे तांत्रिक हैं, जो उन के घर की आबोहवा देख कर पहचान लेंगे कि घर में किस तरह की कलह है. फिर बाबा अपने तंत्रमंत्र से घर में होने वाली कलह को दूर कर देंगे.

एडीजे महेंद्र त्रिपाठी संध्या के झांसे में आ कर बाबा रामदयाल को अपने घर ले गए. जहां बाबा ने घर के हर कोने में जा कर कुछ मंत्र पढ़ने का नाटक किया और जज साहब से कहा कि वह अपने घर में रखा थोड़ा सा आटा एक पौलीथिन में ला कर उन्हें दें. जज साहब ने वैसा ही किया. उस आटे को ले कर बाबा चला गया और कहा कि वह उस आटे को अभिमंत्रित कर के जल्द ही उन को वापस भिजवा देगा.

महेंद्र त्रिपाठी थोड़ा धार्मिक प्रवृत्ति के थे. लिहाजा वे संध्या सिंह के झांसे में आ गए थे. बाबा रामदयाल ने उस आटे को ला कर संध्या सिंह को दे दिया, जो त्रिपाठीजी ने पौलीथिन में भर कर बाबा उर्फ रामदयाल को दिया था. 2 दिन उस आटे को अपने पास रख कर संध्या सिंह ने उस में सांप का विष मिला दिया.

20 जुलाई, 2020 को दोपहर में इसी आटे को ले कर संध्या सिंह अपने ड्राइवर संजू और कमल को ले कर बैतूल पहुंची. कमल को उस ने बैतूल में मुल्ला पैट्रोल पंप के पास उतार दिया. संध्या सिंह अपने ड्राइवर को ले कर कार से सर्किट हाउस बैतूल पहुंची, जहां पहले से एडीजे महेंद्र त्रिपाठी मौजूद थे.

वहां करीब एक घंटे तक संध्या महेंद्र त्रिपाठी के साथ एक बंद कमरे में रही. यहां संध्या सिंह ने उन्हें यह बात समझाने में सफलता हासिल कर ली कि उन का दिया हुआ ये आटा बाबा ने मंत्रपूरित किया है. बाबा की पूजा वाला ये आटा उन के सारे कष्टों का निवारण कर देगा. इतना ही नहीं परिवार में उन के संबंधों के कारण जो कलह हो रही थी, वह भी खत्म हो जाएगी. बस, उन्हें इस आटे को घर के आटे में मिलाना है और इस से बनी हुई रोटियां पूरे परिवार को खानी हैं.

संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी की यह आखिरी मुलाकात थी. उन्होंने घर आ कर आटा अपनी पत्नी को दिया और उन्हें उस आटे को घर के आटे में मिला कर रोटी बना कर सब को खिलाने के लिए कहा.

मंत्रपूरित आटे की रोटियां

बस उसी रात इसी आटे की रोटियां खाने के बाद एडीजे महेंद्र त्रिपाठी और उन के दोनों बेटों की तबियत खराब हो गई और बाद में महेंद्र त्रिपाठी तथा बड़े बेटे अभियान की मौत हो गई थी.

संध्या से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के चालक संजू, उस के फूफा देवीलाल, मुबीन खान और कमल को गिरफ्तार कर लिया . पुलिस बाबा उर्फ रामदयाल नाम के उस तथाकथित तांत्रिक की भी तलाश कर रही है, जिस ने झाड़फूंक कर जहरीला आटा संध्या को दिया था.

महेंद्र त्रिपाठी को न तो संध्या सिंह के इरादों का पता था और न ही यह कि उस कथित मंत्रपूरित आटे में जहर मिला है. हालांकि एडीजे त्रिपाठी और उन के बेटे की हत्या की मुख्य आरोपी संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी के संबंधों को ले कर पुलिस कुछ भी साफ कहने से बचती रही. पुलिस का यही कहना है कि दोनों की 10 साल से दोस्ती थी.

लेकिन एक न्यायिक अधिकारी की एक अकेली रहने वाली महिला से दोस्ती, उस से एकांत में होने वाली मुलाकातें, इस दोस्ती के कारण त्रिपाठी के अपने परिवार से कलह और अपने पद के प्रभाव से संध्या के एनजीओ को प्रोजैक्ट दिलवाने जैसी बातें साफ इशारा करती हैं कि दोनों के रिश्ते एकदूसरे के लिए कितने खास थे.

ये भी पढ़ें- प्रेमी के लिए दांव पर बेटा

एसपी सिमाला प्रसाद के मुताबिक, त्रिपाठी की फैमिली में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था और एडीजे दंपति में मनमुटाव था. संध्या ने इसी का फायदा उठाया. संध्या सिंह को पता था कि महेंद्र त्रिपाठी धर्मकर्म को बहुत मानते हैं और तंत्रमंत्र तथा पूजापाठ की बातों पर बहुत यकीन करते हैं इसीलिए उस ने उन के पूरे परिवार का खात्मा करने के लिए ऐसी चाल चली कि काम भी हो जाए और किसी को पता भी न चले कि इस काम को किस ने अंजाम दिया है.

लेकिन संयोग से इस हादसे में महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी जहां खाना नहीं खाने के कारण बच गईं, वहीं उन का छोटा बेटा कम खाने के कारण मामूली रूप से ही बीमार हुआ. इस साजिश की कडि़यां जुड़ती गईं और फूड पौइजनिंग का साधारण सा मामला हत्या की एक अनोखी कहानी में बदल गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने संध्या सिंह से बरामद कार की तलाशी ली तो उस में रखे कुछ बैग में तंत्रमंत्र की सामग्री मिली. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने सभी छहों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है.

कहानी पुलिस की जांच व आरोपियों तथा पीड़ित परिवार के बयानों पर आधारित

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार : भाग 3

मूलरूप से मध्य प्रदेश के सिंगरौली की रहने वाली संध्या सिंह की शादी रीवा के एक संपन्न परिवार के व्यक्ति संतोष सिंह से हुई थी. लेकिन स्वच्छंदता से जीवन व्यतीत करने वाली पढ़ीलिखी संध्या की अपनी ससुराल वालों और पति से अनबन रहने लगी. शादी के कुछ समय बाद वह अपने पति के साथ रीवा से छिंदवाड़ा आ गई. उस ने वहां दुर्गा महिला शिक्षा समिति नाम से एक एनजीओ संचालित करना शुरू कर दिया.

बाद में संध्या सिंह की महत्त्वाकांक्षाएं उड़ान भरने लगीं. वह देर रात तक पार्टियों में अपना वक्त बिताने लगी तो संतोष सिंह से उस का मनमुटाव शुरू हो गया और संतोष सिंह संध्या से अलग हो गए और अपने शहर वापस चले गए. इस के बाद संध्या सिंह खुला और एकाकी जीवन बसर करने लगी. इसी दौरान 10 साल पहले महेंद्र त्रिपाठी की नियुक्ति छिंदवाड़ा में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के पद पर हो गई. महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी भाग्य त्रिपाठी मध्य प्रदेश के एक सरकारी विभाग में नौकरी करती थीं. उन के दोनों बेटे भी उन्हीं के साथ भोपाल में रहते थे. कभी त्रिपाठी अपने परिवार से मिलने भोपाल चले जाते थे तो कभी उन का परिवार मिलने के लिए उन के पास आ जाता था. एक तरह से महेंद्र त्रिपाठी छिंदवाड़ा में अकेले रहते थे.

ये भी पढ़ें- पुलिस की भूलभुलैया

तैनाती के कुछ महीने बाद ही एक समारोह में संध्या सिंह की मुलाकात जज महेंद्र त्रिपाठी से हुई. त्रिपाठी और संध्या सिंह दोनों ही एकदूसरे से प्रभावित हुए और पहली ही मुलाकात में उन की दोस्ती हो गई. ये दोस्ती इस कदर आगे बढ़ी कि कुछ ही दिनों में उन के रिश्ते आत्मीय हो गए.

दरअसल संध्या सिंह को लगा कि न्यायिक अधिकारी होने के कारण उसे महेंद्र कुमार त्रिपाठी के बडे़ लोगों के साथ रसूख का लाभ मिल सकता है और उन के जरिए वह अपने एनजीओ के लिए बहुत से लाभ ले सकती है.

इंसान भले ही किसी भी पेशे से जुड़ा हो लेकिन प्रकृति का एक नियम है कि जब वह किसी महिला के आकर्षण या रूप जाल में फंस जाता है तो उस का विवेक काम करना बंद कर देता है. वह इस बात को भी भूल जाता है कि वह जिस पेशे से जुड़ा है, उस की मर्यादा क्या है.

संध्या के जाल में फंसे जज साहब

जैसे ही महेंद्र त्रिपाठी की संध्या सिंह के साथ आसक्ति बढ़ी तो संध्या की तरक्की भी होने लगी. उस ने अब त्रिपाठीजी को अपनी तरक्की की सीढ़ी बना कर पूरी तरह अपने आकर्षण के जाल में फंसा लिया था. उस ने त्रिपाठीजी से आर्थिक मदद ले कर कपड़ों का कारोबार भी शुरू कर दिया था.

संध्या सिंह ने दुर्गा महिला शिक्षा समिति के नाम से जो एनजीओ बना रखा था, उस के लिए वह त्रिपाठीजी के सहयोग से सरकारी प्रोजेक्ट भी हासिल करने लगी. चूंकि उस वक्त त्रिपाठीजी छिंदवाड़ा में सीजेएम जैसे महत्त्वपूर्ण ओहदे पर तैनात थे. संध्या सिंह ने छिंदवाड़ा की उसी हाउसिंग बोर्ड कालोनी में किराए का मकान भी ले कर अपना निवास बना लिया, जहां सीजेएम महेंद्र कुमार त्रिपाठी रहते थे.

उन दिनों नगर निगम छिंदवाड़ा ने त्रिपाठीजी के कहने पर संध्या सिंह को आजीविका मिशन के तहत प्रशिक्षण देने का लाखों रुपए का एक प्रोजेक्ट भी दिया था. इस के अलावा संध्या सिंह महेंद्र त्रिपाठी के रसूख का इस्तेमाल कर जम कर फायदे उठाने लगी.

संध्या सिंह और महेंद्र त्रिपाठी के बीच के दोस्ताना रिश्तों की भनक उन की पत्नी व परिवार के दूसरे सदस्यों को भी लग गई थी. जिस के कारण उन के घर में कलह रहने लगी. इसी दौरान 2 साल पहले महेंद्र त्रिपाठी की पदोन्नति हो गई और वे एडीजे बन कर छिंदवाड़ा से बैतूल आ गए.

महेंद्र त्रिपाठी के बैतूल आ जाने के बाद संध्या सिंह की मुश्किलें बढ़ गईं. उन के ज्यादा व्यस्त रहने की वजह से न तो आसानी से उस की उन से मुलाकात हो पाती थी और न ही वह उन से कोई फायदा ले पाती थी.

हां, इतना जरूर था कि वह महेंद्र त्रिपाठी से मिलने के लिए महीने में 1-2 बार बैतूल आती रहती थी. एडीजे त्रिपाठी उस के लिए सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था करा देते थे. जहां 1-2 दिन उन से मिलने के बाद वह वापस चली जाती थी.

लेकिन संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी के इस मेलजोल की खबर भी उन के परिवार तक पहुंचने लगी, जिस के कारण उन की अपनी पत्नी व बच्चों से कलह होती रहती थी. आखिरकार महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी ने अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए कुछ महीने पहले अपनी नौकरी से वीआरएस ले लिया और वे जज साहब के पास बैतूल आ कर रहने लगीं. इस दौरान बड़ा बेटा अभियान भी इंदौर से उन्हीं के पास बैतूल आ कर रहने लगा. वह बैतूल में नौकरी की तलाश कर रहा था. छोटा बेटा आशीष पहले से ही मां के पास रहता था.

ये भी पढ़ें- पुलिस का बदरंग

इधर 4 महीने से जब से महेंद्र त्रिपाठी का परिवार उन के पास आया था, तब से संध्या सिंह का न तो महेंद्र त्रिपाठी से मिलनाजुलना होता था, न ही त्रिपाठीजी उस की आर्थिक मदद करते थे. इतना ही नहीं, अब महेंद्र त्रिपाठी ने अपने बच्चों को सैटल करने के लिए संध्या सिंह से अपने दिए पैसों का हिसाबकिताब लेना भी शुरू कर दिया था. वे संध्या से अकसर कहते थे कि उन्हें अपने बच्चों को कामधंधा कराना है, इसलिए वह उन से लिए गए पैसे वापस करे.

पिछले 10 सालों में महेंद्र त्रिपाठी से संध्या सिंह की दोस्ती आत्मीयता की इस हद तक पहुंच गई थी कि 4 महीने की दूरी उसे सालों की दूरी सी लगने लगी. अब वह महेंद्र त्रिपाठी से कतई दूर नहीं रहना चाहती थी. जबकि महेंद्र त्रिपाठी उस से दूरी बनाना चाहते थे.

जब महेंद्र त्रिपाठी से उस ने कटेकटे रहने और दूरी बनाने का कारण पूछा तो उन्होंने साफ कह दिया कि उस की वजह से उन के परिवार में कलह रहने लगी है, लिहाजा अब वे एकदूसरे से दूर ही रहे तो अच्छा है, साथ ही उन्होंने संध्या से उन पैसों की मांग फिर से कर दी जो संध्या ने उन से लिए थे.

संध्या नहीं लौटाना चाहती थी जज साहब के पैसे

इन बातों से उपजे तनाव से संध्या सिंह को लगने लगा कि अगर उसे महेंद्र त्रिपाठी का पैसा लौटाना पड़ा तो कहां से इंतजाम करेगी. वैसे भी अब उसे महेंद्र त्रिपाठी से अपनी दोस्ती पहले जैसी होने की कोई उम्मीद नहीं बची थी.

ये भी पढ़ें- तंत्र मंत्र का सुबहा, बहुत दूर से आए हत्यारे!

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार : भाग 2

27 जुलाई को इस मामले में जिलाधिकारी बैतूल व जिला न्यायाधीश के आदेश पर एसपी सिमाला प्रसाद ने एक एसआईटी का गठन कर जांच का काम शुरू करवा दिया. विशेष जांच दल ने एडीशनल सेशन जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे की विषाक्त भोजन खाने से हुई मौत के मामले की जांच शुरू कर दी.

विशेष जांच दल ने घटना की शुरुआत से सारे साक्ष्यों को जोड़ने का काम शुरू कर दिया. बैतूल पुलिस को जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे के अस्पताल में भरती होने की पहली सूचना 24 जुलाई को पाढर अस्पताल बैतूल द्वारा मिली थी, जिस के बाद चौकी प्रभारी ने जज महेंद्र त्रिपाठी और उन के बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी के बयान लिए थे. दोनों ने आशंका जताई थी कि उन्हें रोटियां खाने से फूड पौइजनिंग हुई है. जिस आटे की रोटियां बनी थीं, उस में वह आटा भी शामिल था जो जज साहब को उन की एक महिला मित्र ने दिया था.

ये भी पढ़ें- तंत्र मंत्र का सुबहा, बहुत दूर से आए हत्यारे!

एसआईटी ने शुरू की जांच

विशेष जांच दल ने जज साहब व उन के बेटे द्वारा दिए गए बयान चौकी प्रभारी से ले लिए. साथ ही जांच दल ने नागपुर में हुए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी अपने कब्जे में ले ली, जिस में आशंका व्यक्त की गई थी कि दोनों की मौत खाने में तीक्ष्ण जहर मिला होने की वजह से हुई थी.

विशेष जांच दल ने जज महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी भाग्य त्रिपाठी और छोटे बेटे आशीष त्रिपाठी के बयान भी कलमबद्ध किए. उन दोनों ने यही बताया कि जज साहब की एक महिला मित्र संध्या सिंह ने किसी तांत्रिक से अभिमंत्रित करा कर ये आटा दिया था, जिसे संध्या के बताए अनुसार घर के आटे में मिला कर रोटियां बनाई गई थीं ताकि घर में सुखसमृद्धि आ सके.

‘‘क्या वो आटा अभी भी आप के पास है?’’ एसपी सिमाला प्रसाद ने जज महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी से पूछा.

‘‘जी हां, उस दिन खाने के बाद से हम ने उस आटे का इस्तेमाल ही नहीं किया है. सारा आटा ज्यों का त्यों रखा है.’’ मिसेज त्रिपाठी के बताने के बाद विशेष जांच दल ने उस आटे को अपने कब्जे में ले कर उसी दिन जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिया.

इसी दौरान जांच दल को पता चला कि 21 जुलाई को जब विषाक्त खाना खाने से जज महेंद्र त्रिपाठी की तबीयत खराब हुई थी, तब उन्होंने अपने कई जानकारों से फोन पर बात की थी.

पुलिस ने महेंद्र त्रिपाठी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर उन तमाम लोगों से बातचीत की तो उन्होंने भी यही बताया कि उन की एक दोस्त संध्या सिंह ने उन्हें जो आटा दिया था, घर के आटे में उस के मिश्रण से बनी रोटियां खाने के बाद ही उन की और उन के बेटों की तबियत खराब हुई थी.

पुलिस को काल डिटेल्स में संध्या सिंह नाम की एक महिला का नंबर भी मिला, जिसे इलाज के दौरान जज साहब ने कई बार काल की थी. लेकिन किसी भी काल पर बहुत लंबी बात नहीं हुई थी.

जज त्रिपाठी के छोटे बेटे आशीष राज ने भी पुलिस को बयान दिया कि जब उन के पिता व भाई को नागपुर के अस्पताल में शिफ्ट किया जा रहा था तो पिता ने रास्ते में उसे बताया था कि वह आटा उन की परिचित महिला संध्या सिंह ने दिया था, जिसे घर के आटे में मिला कर बनी रोटियां खाने से सब की तबियत खराब हुई थी. उन्होंने बताया था कि उस आटे की पूजा किसी पंडित ने की थी.

विशेष जांच दल को अब तक इस बात के पर्याप्त सुबूत मिल चुके थे कि एडीशनल सेशन जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे की मौत विषाक्त आटे से बनी रोटियां खाने से हुई थी. अभी तक की जांच में संध्या सिंह नाम की महिला मुख्य किरदार के रूप में सामने आई थी. विशेष जांच दल ने एसपी सिमाला सिंह के निर्देश पर बैतूल के थाना गंज में 27 जुलाई, 2020 की सुबह जज त्रिपाठी व उन के बेटे की अकाल मृत्यु के मामले को अपराध क्रमांक 26 / 2020 पर दर्ज कर लिया. लेकिन जब इस मामले में साक्ष्य एकत्र हो गए तो इसे हत्या की धारा 302, 323, 307, 120बी में पंजीकृत किया गया.

इस मामले में मुख्य किरदार संध्या सिंह थी, इसलिए विशेष जांच दल ने उस की जोरशोर से तलाश शुरू कर दी. पुलिस के लिए सब से बड़ी परेशानी यह थी कि महेंद्र त्रिपाठी न्यायिक अधिकारी थे, उन का परिवार भी संध्या सिंह के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं दे रहा था, मसलन वह कौन है, कहां रहती है और उस के दिए गए आटे को उन्होंने क्यों इस्तेमाल किया.

इस के अलावा पुलिस टीम यह भी नहीं समझ पा रही थी कि जज साहब के घर में आखिर ऐसी कौन सी कलह थी जिसे दूर करने के लिए वह पंडित या तांत्रिक का मंत्रपूरित आटा घर ले आए और उन्हें उस की बनी रोटियां खाने को विवश होना पड़ा.

सवाल अनेक थे, लेकिन उन का जवाब किसी के पास नहीं था इसलिए पुलिस ने सारा ध्यान संध्या सिंह पर फोकस कर दिया क्योंकि उस से पूछताछ करने के बाद ही इन सवालों का जवाब मिल सकता था.

ये भी पढ़ें- प्रेमी के लिए दांव पर बेटा

पुलिस लगातार संध्या सिंह के मोबाइल की लोकेशन ट्रेस करने में लगी थी क्योंकि वही एक जरिया था, जिस के माध्यम से उस तक पहुंचा जा सकता था. संध्या सिंह का मोबाइल लगातार बंद मिल रहा था. बीचबीच में वह औन होता और फिर बंद हो जाता था. पुलिस ने जब मोबाइल की लोकेशन की जांच की तो वह हाउसिंग बोर्ड कालोनी छिंदवाड़ा स्थित एक मकान की मिली. इस के बाद पुलिस टीम उस मकान पर पहुंची, तो वहां ताला लगा मिला.

मिल गई संध्या

पुलिस टीम संध्या सिंह तक पहुंचने के लिए लगातार काम करती रही. 30 जुलाई की शाम के समय संध्या सिंह के मोबाइल की लोकेशन रीवा में मिली. छिंदवाड़ा में भटक रही पुलिस टीम को तुरंत रीवा भेजा गया, जहां संयोग से संध्या अपने कुछ साथियों के साथ मौजूद थी. पुलिस उन सभी को हिरासत में ले कर बैतूल लौट आई. संध्या सिंह की टाटा इंडिगो कार एमपी28 सीबी-3302 भी पुलिस ने जब्त कर ली थी.

संध्या सिंह की उम्र करीब 50 साल थी. पहनावे और बातचीत से वह एक आधुनिक महिला लग रही थी. शुरुआती पूछताछ में संध्या सिंह एसपी सिमाला प्रसाद से ले कर पूरे जांच दल को इधरउधर की बातें बना कर समय खराब करती रही. उस ने पुलिस को बताया कि एडीजे त्रिपाठी से उस की जानपहचान जरूर थी, लेकिन उन की मौत से उस का कोई संबध नहीं है.

लेकिन पुलिस ने जब उस के सामने उस के खिलाफ मौजूद सारे सुबूत रखे तो उस ने कबूल कर लिया कि उसी ने सर्प विष मिला आटा एडीजे त्रिपाठी को दिया दिया था. संध्या सिंह ने बताया कि उस का इरादा पूरे त्रिपाठी परिवार को खत्म करने का था. संध्या सिंह के साथ जो 5 अन्य लोग पकड़े गए थे, वे भी हत्या की इस साजिश में शामिल थे.

संध्या सिंह कौन थी, जज साहब से उस की जानपहचान कैसे हुई तथा उस ने उन्हें परिवार के साथ मारने के लिए जहरीला आटा क्यों दिया, यह सब जानने के लिए पुलिस ने संध्या सिंह से सख्ती से पूछताछ की तो सारे सवालों का जवाब मिल गया.

ये भी पढ़ें- पुलिस की भूलभुलैया

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें