19 दिन 19 कहानियां : दोस्ती पर ग्रहण

मंगलवार, 4 जून, 2019 को सूर्योदय हुए अभी कुछ ही समय हुआ था. राजस्थान के बाड़मेर जिले के हाथमा गांव के पास सोढो की ढाणी के पास कुछ लोगों ने सड़क किनारे एक युवक की लाश पड़ी देखी. लाश देखते ही उधर से गुजरने वाले लोग इकट्ठे हो गए. वहां रुके लोग उस युवक को पहचानने की कोशिश करने लगे. यह बात जब आसपास के गांव में फैली तो ग्रामीण भी वहां जुटने लगे.

गांव के किसी शख्स ने मरने वाले व्यक्ति की लाश पहचान ली. मृतक का नाम वीर सिंह था, जो पास के ही सोढो की ढाणी निवासी जोगराज सिंह का बेटा था. किसी ने यह खबर वीर सिंह के घर जा कर दी तो उस के घर में रोनापीटना शुरू हो गया. वीर सिंह की पत्नी दक्षा कंवर छाती पीटपीट कर रोने लगी. रोतेबिलखते हुए वह भी उसी जगह पहुंच गई, जहां उस के पति की लाश पड़ी थी.

मौके पर मौजूद लोगों ने आक्रोश में आ कर सड़क जाम कर दी. उसी समय कुछ लोग थाना रामसर पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी विक्रम सिंह सांदू को बताया कि साढो की ढाणी (हाथमा) निवासी 40 वर्षीय वीर सिंह कल दोपहर 2 बजे घर से कहीं जाने के लिए निकला था. आज उस का शव सड़क किनारे पड़ा मिला. किसी ने हत्या कर के लाश वहां फेंक दी है. इस घटना को ले कर लोगों में बहुत आक्रोश है इसलिए उन्होंने सड़क पर जाम लगा दिया है.

हत्या और सड़क जाम की खबर सुन कर थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ तुरंत साढो की ढाणी के पास वाली उस जगह पहुंच गए, जहां वीर सिंह की लाश पड़ी थी. पुलिस को देखते ही सड़क जाम कर रहे लोग पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. थानाप्रभारी ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन लोग एसपी को ही मौके पर बुलाने की मांग पर अडे़ रहे.

थानाप्रभारी विक्रम सिंह सांदू ने घटनास्थल का निरीक्षण कर बाड़मेर के एसपी राशि डोगरा डूडी एवं एएसपी खींव सिंह भाटी को हालात से अवगत कराया. साथ ही निवेदन भी किया कि लोग एसपी साहब को ही मौके पर बुलाने की मांग कर रहे हैं.

स्थिति की गंभीरता को समझते हुए एएसपी खींव सिंह भाटी तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. एएसपी खींव सिंह भाटी और थानाप्रभारी विक्रम सिंह सांदू ने लोगों को समझाया. एएसपी ने लोगों को आश्वस्त किया कि पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर लिया है.

मृतक वीर सिंह के सिर पर कई गहरे घाव थे, जो किसी धारदार हथियार के लग रहे थे. उस का सिर फटा हुआ था. वहां पैरों के या संघर्ष के निशान नहीं थे. शव पर लगा खून सूख चुका था. जिस स्थान पर शव पड़ा था वहां आसपास खून के धब्बे नहीं थे. इस से यही लग रहा था कि उस की हत्या कहीं और करने के बाद उस का शव यहां ला कर डाला गया था.

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पुलिस ने मृतक की पत्नी और अन्य लोगों ने प्रारंभिक पूछताछ कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. एएसपी भाटी ने लाश का पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से कराने की मांग की. 3 डाक्टरों के पैनल ने वीर सिंह के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पुलिस को पता चला कि वीर सिंह के सिर पर लाठी व धारदार हथियार से 4 वार किए गए थे. उस के हाथपैरों पर भी चोट के निशान पाए गए. यानी उस की काफी पिटाई की गई थी. हत्या के इस केस को सुलझाने के लिए एसपी राशि डोगरा डूडी ने एक स्पैशल पुलिस टीम बनाई.

पुलिस ने जोरशोर से शुरू की जांच

स्पैशल टीम में विक्रम सिंह सांदू, एएसआई रतनलाल, जेठाराम, कुंभाराम, मुकेश, मोती सिंह, राजेश, पर्वत सिंह के साथ साइबर सेल के एक्सपर्ट को भी शामिल किया गया. इस स्पैशल टीम ने अपने मुखबिरों को भी इस मामले से संबंधित जानकारी जुटाने को कहा.

टीम ने मृतक की पत्नी दक्षा कंवर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 3 जून को दोपहर के समय कहीं गए थे, अगली सुबह सड़क किनारे उन की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. दक्षा ने किसी से रंजिश होने की बात नकार दी.

इस पर पुलिस ने वीर सिंह और उस की पत्नी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. दक्षा की काल डिटेल्स  से पुलिस टीम को पता चला कि उस की एक फोन नंबर पर अकसर बातें होती रहती थीं. जांच में वह फोन नंबर जिला बाड़मेर के गांव आंशू निवासी महेंद्र सिंह का निकला.

उधर मुखबिर से पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि महेंद्र सिंह 3 जून को वीर सिंह के घर के आसपास दिखाई दिया था, लेकिन वारदात के बाद वह न तो वीर सिंह के घर आया और न ही वारदात की जगह दिखाई दिया, जहां वीर सिंह की लाश बरामद हुई थी. जबकि वहां आसपास के गांवों के सैकड़ों लोग मौजूद थे.

इन बातों से पुलिस को महेंद्र पर शक होने लगा. पुलिस ने महेंद्र के फोन की भी काल डिटेल्स निकलवाई. महेंद्र की काल डिटेल्स से इस बात पुष्टि हो गई कि दक्षा और महेंद्र के बीच नजदीकी संबंध थे, पुलिस महेंद्र की तलाश में उस के घर पहुंची तो जानकारी मिली कि 4 जून को वह अपनी नौकरी पर गुजरात चला गया है. उस के घर से गुजरात का पता लेने के बाद थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम महेंद्र सिंह को तलाशने के लिए गुजरात भेज दी. वहां वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. राजस्थान पुलिस महेंद्र को हिरासत में ले कर थाना रामसर ले आई.

उस से वीर सिंह की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वीर सिंह की हत्या में उस की पत्नी दक्षा कंवर भी शामिल थी. केस का खुलासा होने पर पुलिस ने चैन की सांस ली.

पूछताछ के लिए पुलिस वीर सिंह की पत्नी दक्षा कंवर को भी थाने ले आई. थाने में महेंद्र सिंह को देख कर दक्षा के चेहरे का रंग उड़ गया. उस से भी उस के पति की हत्या के बारे में पूछा गया. उस के सामने सच्चाई बताने के अलावा अब कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा उस ने अपने पति वीर सिंह की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने 48 घंटे के अंदर 6 जून, 2019 को केस का खुलासा कर दिया था.

पुलिस ने अगले दिन 7 जून को आरोपी महेंद्र और दक्षा कंवर को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के 3 दिन की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में दोनों से वीर सिंह की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी— वीर सिंह अपनी बीवी दक्षा कंवर को वह हर खुशी देना चाहता था, जो एक पत्नी चाहती है. वह खेतीकिसानी के अलावा मेहनत का हर काम कर के चार पैसे कमा कर बीवी को खुश रखना चाहता था. इसी वजह से वह अकसर गांव से बाहर रहता था. दिन में वह काम पर जाता और रात तक घर लौट आता था. घर पर पत्नी का प्यार पा कर उस की सारी थकान पल भर में काफूर हो जाती थी.

इस दंपति के दिन ऐसे ही हंसीखुशी से व्यतीत हो रहे थे. इसी दौरान महेंद्र सिंह के प्रवेश से उन दोनों के प्यार में बदलाव आ गया. घर का माहौल भी बदलने लगा. आंशू गांव निवासी महेंद्र सिंह वीर सिंह का हमउम्र दोस्त था. दोनों की अच्छीखासी दोस्ती थी. वीर सिंह महेंद्र को अपने भाई की तरह ही मानता था.

महेंद्र सिंह गुजरात में काम करता था. बाड़मेर ही नहीं, राजस्थान के हजारों लोग गुजरात के बड़ौदा, सूरत, अहमदाबाद, माणावदर, धौलका और अन्य शहरों में जिनिंग फैक्ट्रियों से ले कर कपड़े का कारोबार एवं हीरे की फर्मों में काम करते थे. महेंद्र भी हीरे की एक फर्म में काम करता था. जहां उसे अच्छे पैसे मिलते थे. बन संवर कर रहना महेंद्र का शौक था.

वीर सिंह ने फोन पर पत्नी और दोस्त को मिलाया

करीब डेढ़ साल पहले एक रोज महेंद्र सिंह के पास वीर सिंह की पत्नी दक्षा कंवर का फोन आया. दक्षा ने उस से अपना फोन रिचार्ज कराने को कहा.

दरअसल दक्षा को अपना फोन रिचार्ज कराना था. उस ने अपने पति वीर सिंह को फोन किया. वीर सिंह ने उस से कहा कि वह महेद्र को फोन कर के अपना फोन रिचार्ज कराने को कह दे. वह करा देगा. इसी के बाद दक्षा कंवर ने महेंद्र को फोन कर के अपना फोन रिचार्ज कराने को कहा.

महेंद्र ने कुछ ही देर में दक्षा कंवर का मोबाइल फोन रिचार्ज करवा दिया. फोन रिचार्ज कराने के बाद महेंद्र ने फोन कर के दक्षा कंवर से कहा, ‘‘भाभीजी, जब भी आप को फोन रिचार्ज करवाना हो बेझिझक बता देना क्योंकि आप लोग ढाणी में रहते हो और वहां रिचार्ज की दुकान नहीं है. इसलिए आप परेशान हो जाती होंगी. मैं सब समझता हूं. इस के अलावा आप को किसी भी चीज की जरूरत हो तो बताना.’’

‘‘जरूर बताएंगे. आप को हम अपना ही मानते हैं. वैसे मेरी वजह से आप को कष्ट हुआ हो तो क्षमा चाहती हूं.’’ दक्षा कंवर ने कहा.

‘‘कैसी बात कर रही हैं आप भाभीजी. अपने लोगों का काम करने से कष्ट नहीं होता. बल्कि खुशी होती है.’’

इस पहली बातचीत के बाद दक्षा कंवर और महेंद्र सिंह के बीच मोबाइल पर अकसर बातचीत होने लगी. थोड़े दिनों बाद यह हाल हो गया कि दिन में जब तक दक्षा और महेंद्र की बात नहीं हो जाती, उन्हें अच्छा नहीं लगता था. उन के बीच बातों का सिलसिला बढ़ता गया.

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फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब दोनों के बीच प्यार हो गया. प्यार हुआ तो इजहार होना भी स्वाभाविक ही था. जल्दी ही दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर लिया. उस दिन के बाद महेंद्र धोखेबाज यार बन गया, तो दक्षा विश्वासघाती पत्नी. दोनों के बीच अवैध संबंध बन चुके थे. महेंद्र और दक्षा छिपछप कर तनमन से मिलने लगे.

काफी दिनों तक दोनों ने मिलने में सावधानी बरती. लाख कोशिशों के बावजूद उन के प्यार की भनक आखिर दक्षा के पड़ोस में रहने वाली महिलाओं को पता लग ही गई.

उन औरतों ने वीर सिंह को बता दिया था कि आजकल उस की गैरमौजूदगी में महेंद्र उस की ढाणी आता है और दक्षा कंवर उस के आगेपीछे घूमती है. वीर सिंह समझ गया कि धुआं वहीं से उठता है, जहां आग लगती है, कहीं कुछ तो गड़बड़ है.

एक बार वीर सिंह के मन में शक उभरा तो फिर गहराता चला गया. इस के बाद वीर सिंह ने दोनों पर निगाह रखनी शुरू की. आखिर एक रोज वीर सिंह ने महेंद्र और दक्षा को रंगरलियां मनाते हुए पकड़ ही लिया. तब वीर सिंह ने महेंद्र को खूब खरीखोरी सुनाईं और भविष्य में उस के घर आने पर पाबंदी लगा दी.  महेंद्र के जाने के बाद उस ने पत्नी की पिटाई की.

वीर सिंह को बीवी की बेवफाई से गहरा आघात लगा. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस का दोस्त आस्तीन का सांप निकलेगा. वीर सिंह ने पत्नी को चेतावनी दी कि अगर महेंद्र के साथ फिर कभी बात करते देख भी लिया तो वह दोनों को जिंदा नहीं छोडे़गा.

पति की चेतावनी से दक्षा डर गई. उस ने पति से वादा किया कि भविष्य में वह कभी भी महेंद्र से नहीं मिलेगी. दक्षा ने पति से वादा जरूर कर लिया था, लेकिन वह अपने वादे पर कायम नहीं रही. वैसे भी वीर सिंह और दक्षा कंवर के रिश्ते में दरार पड़ चुकी थी, जो वक्त के साथ बढ़ती गई.

दक्षा ने कुछ दिन बाद महेंद्र से फोन पर बातचीत करनी शुरू कर दी. इस बात की जानकारी उस के पति वीर सिंह को मिल गई थी. इस बात को ले कर वीर सिंह अकसर दक्षा की पिटाई कर के उसे सुधारने की कोशिश करता था. पर पति की मारपीट से वह सुधरने के बजाए ढीठ होती गई.

पति की आए दिन की पिटाई से दक्षा परेशान हो गई थी. एक दिन दक्षा ने महेंद्र को सारी बातें बता कर कहा कि वीर सिंह उसे किसी रोज मार डालेगा.

अब वह उसे फूटी आंख नहीं देखना चाहती. इसलिए तय कर लिया है कि घर में पति रहेगा या फिर मैं. उस ने महेंद्र से कहा कि अब वह उसे कहीं दूर ऐसी जगह ले जाए, जहां उन दोनों के अलावा कोई न हो.

‘‘ठीक कह रही हो तुम, जब तक वीर सिंह जिंदा है, तब तक हम चैन से मिल भी नहीं सकते. इस बारे में कोई उपाय तो करना ही पड़ेगा.’’ महेंद्र बोला.

वीर सिंह के चौकस रहने की वजह से दक्षा कंवर और महेंद्र सिंह को मिलने का मौका नहीं मिल पाता था. आखिर 3 जून को उन्हें यह मौका मिल गया. वीर सिंह उस दिन कहीं गया था. दक्षा ने फोन कर के यह जानकारी महेंद्र को दे दी.

महेंद्र सिंह अपनी प्रेमिका दक्षा कंवर से मिलने उस के घर साढो की ढाणी जा पहुंचा. दोनों कई हफ्ते बाद मिले थे, लिहाजा दोनों बैठ कर बतियाने लगे. वे बातों में इतने मशगूल हो गए कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि वीर सिंह ढाणी में कब आ गया. जैसे ही दक्षा को आभास हुआ कि कोई ढाणी में है तो वह बदहवास सी आंगन में आ खड़ी हुई.

वीर सिंह कमरे की तरफ बढ़ गया. जहां से दक्षा बाहर आई थी. वीर सिंह को देख कर कमरे में मौजूद महेंद्र ने छिपने की कोशिश की, मगर वीर सिंह की नजरों से वह बच न सका.

महेंद्र पर नजर पड़ते ही वीर सिंह गुस्से से लाल हो कर बोला, ‘‘तुझे मैं ने घर आने से मना किया था, मगर तू नहीं माना. मैं आज तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’ कह कर वीर सिंह उस से भिड़ गया.

दोनों गुत्थमगुत्था हो गए तभी दक्षा कंवर  भी वहां आ गई. वह भी प्रेमी का पक्ष लेते हुए पति को पीटने लगी. महेंद्र ने वहां रखा पाइप और दक्षा कंवर ने कुल्हाड़ी उठा ली. दोनों वीर सिंह पर टूट पड़े. वीर सिंह सिर पर कुल्हाड़ी का वार झेल नहीं सका और बेहोश हो कर गिर पड़ा.

इस के बाद भी उन दोनों के हाथ नहीं रुके. कुल्हाड़ी के कई वार होने से वीर सिंह लहूलुहान हो गया और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

वीर सिंह के मरने के बाद दोनों डर गए. उन्होंने शव को घसीट कर अंदर छिपा दिया. फिर खून साफ किया. उस के बाद दोनों शव को छिपाने का उपाय खोजते रहे. आधी रात के बाद उन्होंने वीर सिंह का शव बैलगाड़ी में डाला और ढाणी से करीब एक किलोमीटर दूर सड़क किनारे यह सोच कर फेंक आए कि देखने वालों को लगेगा कि वीर सिंह की एक्सीडेंट में मौत हुई है.

शव फेंक कर महेंद्र और दक्षा वापस ढाणी आए और बैलगाड़ी पर रात में ही वार्निश कर दी ताकि खून के धब्बे दिखाई न दें.

घर में लगे खून को साफ करने के बाद दक्षा ने आंगन गोबर से लीप दिया. दिन निकलने से पहले ही महेंद्र अपने गांव आंशू लौट गया. फिर उसी दिन गांव से गुजरात चला गया.

सुबह होने पर 4 जून को जब लोगों ने सड़क किनारे वीर सिंह की लाश देखी तो लोगों की भीड़ जमा हो गई. इस के बाद पुलिस को खबर दी गई. पुलिस ने महेंद्र और दक्षा कंवर की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी व पाइप भी बरामद कर लिया. साथ ही दोनों के खून सने कपड़े भी बरामद हो गए.

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उन दोनों की सोच थी कि वीर सिंह की मौत के बाद उन्हें कोई जुदा नहीं कर पाएगा. दोनों ऐशोआराम से जीवन गुजारेंगे. मगर उन की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने दक्षा कंवर और महेंद्र सिंह को पुन: बाड़मेर कोर्ट में पेश किया जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.    द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

कमली और कोरोना

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

“जब सब लोग अपने अपने घर म आराम से सो रहे होते ह तब हम लोग क सुबह होती है और जब सब लोग सुबह के  सूरज को सलाम कर रहे होते है, उस समय तक हम लोग थककर चूर हो जाते है “मुबई क एक सुनसान सड़क पर खड़ी ई कमली अपने आप से  ही बुदबुदा उठ थी “पता नह य ,आजकल सड़क पर इतना साटा य रहने लगा है ,पहले तो अपने को शाम आठ बजे से ही ाहक मलने शु हो जाते थे और रात के एक बजे तक तो म तीन चाराहक से धधा कर लेती थी पर अभी दस बजने को आये और एक भी ाहक नह आया ” ाहक के ना आने से झुंझुला रही थी कमली

“ऐ…तुम लोग को कुछ समझ म नह आता ….सारी नया  म बीमारी फ़ैल रही है ,लोग को घर से नकलने को मना कया गया है और तुम लोग को घर म भी चैन नह मल रहा है ….रात यी नह क नकल पड़ी सड़क पर” पीछे से मोटरसाइकल पर सवार दो पुलिसवाल में से एक ने चिल्लाकर कहा…

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“अरे….या साहब …हम लोग बाहर नह नकलगे तो  खाएंगे या ,कौन हमको बैठे बैठे खलायेगा .…हम लोग को तो रोज़ ही कुआं खोदना है और तभी अपुन लोग को पानी नसीब होता है साहब ” कमली ने तवाद कया “चलो….चलो …बक बक  मत करो अब ….बत देर यी ….अब भागो यहाँ से “एक पुलसवाला चलाते ए बोला “अरे …तुमको भी कुछ चाहए तो बोलो …और नह चाहए …तो आप अपने काम पर जाओ और मुझे अपना काम करने दो साहब ,अभी तक बोहनी भी नह ई है अपनी” कमली ने अपनी आवाज़ म मठास घोलते ए कहा जब कमली ने इस तरह से पुलस वाल से रकवेट करी तो वे भी मुकराते ए वहां से नकल गए और जाते जाते कमली को चेताया क थोड़ी देर के लए ही वे छूट दे रह है और उनक वापसी करने तक वह वापस चली जाए ,बदले म कमली ने भी सर झुकाकर उनक बात मान लेने का अभनय कया. सूनी आँख से अब भी सड़क को नहार रही थी कमली , जो सड़क रात को और अधक गुलज़ार रहती थी उन पर आज साटा है जसका कारण कोरोना वायरस ारा संमण का फैलना है जसके कारण ज़री कामो को छोड़कर बाक लोग को घर से नकलने को मना कया गया है ,पर कमली जैसी औरत जो धधा करती है अगर वो बाहर नह नकलेगी तो खायेगी या, उसके लए तो सड़क पर नकलना बत ज़री है. “आज भी खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ेगा ,कोई भी ाहक नह दख रहा …….”मायूस हो चुक थी कमली “सुनो..”कोई मदाना आवाज़ थी जो कमली के ठक पीछे से आयी थी कमली ने बड़ी ही आशा भरी नज़र से पीछे घूमकर देखा वह एक लंबा सा युवक था ,जसक उ करीब अड़तीस -चालीस के पास होगी , और देखने से काफ  पैसे वाला लग रहा था वह लगातार कमली को घूरे जा रहा था  उस युवक को अपनी और ऐसे घूरते देखकर कमली को लगा क कम से कम एक ाहक तो आया “ऐसे य घूरे जा रहे हो…..यहाँ घूरने का भी पैसा लगता है”कमली ने इठलाते ए कहा “नह ….मेरा काम सफ घूरने भर से नह होगा ….म तो तुहारे  साथ एजॉय करना चाहता हूं “उस युवक ने कमली के उत सीने पर नज़र टिका दे.

“वो…एजॉय तो ठक है पर …उसका पैसा देना होगा”कमली ने अपने खुले सीने को ढकते ए कहा “कतना पैसा लोगी तुम?बताओ तो सही” वह युवक बत हड़बड़ी म और थोड़ा घबराया आ सा लग रहा था “अब साहब ….वैसे तो म तीस हज़ार लेती ँ तुम बोहनी के समय आये हो इसलये थोड़ा कम दे दो म कुछ नह कँगी….”कमली ने अंगड़ाई लेते ए कहा “अरे …तुम तीस क बजाय पैतीस ले लेना….. बस तुम मुझे एक बार खुश कर दो…  जतना मांगो म उतना पैसा देने को तैयार ँ ” युवक के वर म उेजना थी ये बात उस युवक ने कुछ इस कार थी क कमली भी एक पल को कुछ सोचने लगी थी अगले ही पल कमली ने उस युवक से सवाल कया “पर ..अभी तक तुमने अपना नाम तो बताया ही नह”कमली ने पूछा ” अजीत …अजीत सह है मेरा नाम”जद से युवक ने अपना नाम बताया “हाँ तो ठक है अजीत बाबू …अपनी डील पक हो गयी है …तो चलो .कस होटल म  ले चलना है ….या फर अपनी गाड़ी म ही अपने अरमान पूरे करने का इरादा है”कहने के साथ ही कमली मादक ढंग से हँसने लगी थी “देखो सारे होटल तो बंद ह …और मेरे पास गाड़ी वगैरह भी नह है” अजीत ने कहा “ऐ…तो या यह सड़क पर नपटने का इरादा है या” कमली ने आँख तरेरी “नह …नह यहाँ नह…अगर हम दोन लोग तुहारे घर पर चलकर…. एजॉय कर तो तुहे कोई एतराज तो नह होगा” अजीत सकुचा रहा था “वह अजीत बाबू …एक ही मुलाकात म इतनी मोहबत कर बैठे क मेरा घर तक देख लेना चाहते हो ..पर बाबूजी म तुहे बता ँ क घर के नाम पर अपने पास एक खोली है …और वहां तक जाने के लए हम लोग को थोड़ा पैदल चलना होगा”  “हाँ…..हाँ ..म तैयार ँ  बताओ कधर चलना है “अजीत कमली क हर बात म राज़ी होता दख रहा था चौड़ी सड़क को छोड़कर वे दोन अब तंग गलय म आ गए थे.

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इन गलय म साफ़ सफाई क कोई वथा भी नह दख रही थी ,अचानक से अजीत सह को सूखी खांसी आने लगी  ,पहले तो उसक खांसी पर कमली का यान नह गया पर जब अजीत सह क खासी कुछ यादा ही बढ़ गयी तो कमली ठठक “या बात है तुहे तो लगातार खासी आ रही है?”कमली ने पूछा “हाँ ….वो ज़रा गले म कुछ फस गया था इसलए खासी आ गयी”अजीत ने सामाय दखने का यास कया “फर भी …ये मेरे पास खासी क गोली है …तुम इसे खा लो …तुहे आराम मल जायेगा” कमली ने अजीत को खासी क गोलयां देते ए कहा अजीत ने भी बना कोई वरोध कये वो खांसी के गोली चुपचाप खा ली. “तुहे पता है क आजकल पूरी नया म एक वायरस ने खौफ फैला रखा  है ,उस वायरस को कोरोना वायरस कहते ह और सुना है क जो  कोरोना वायरस से संमत होता है उसे भी मेरी तरह खासी आती है  ,और बुखार भी आता है और बाद म सांस लेने म भी दकत   होती है ,पर मुझे डरने क ज़रत नह है ये खासी वासी तो ऐसे भी आती ही रहती है “कहकर अजीत मुकुराने लगा था “वैसे तुहारा नाम या है”अजीत ने चलते ए पूछा “कमली” “बत सुंदर नाम है तुहारा ,पर सोचता ँ क अगर तुम धंधे वाली नह होती तो एक बत अछ डॉटर बन सकती थी” मुकुरा रहा था अजीत “अरे य मज़ाक करते हो साहब …म भला या डॉटर बन सकती थी”कमली शमा सी गयी “हाँ हाँ बलकुल …एक अछ डॉटर ..देख न तुहारे बैग म मेरे लए दवा भी मल गयी…अब तुमने दवा द है तो मुझे तुहारी फस भी तो देनी होगी ना” इतना कहते ए अजीत सह ने अपनी जेब म हाथ डाल कर दस बीस नोट कमली क तरफ बढ़ाए  पर वह  कोई वदेशी करसी  थी जसे देखकर कमली के मन म कुछ संदेह उ होने लगा तो अजीत सह उसक मनोभावना को समझते ए हँसने लगा और बोला  “अरे तुम घबराओ मत …बई क करसी के अलावा  भारत के नोट भी है …ये लो भारतीय नोट “कहकर अजीत सह ने 500 के ढेर सारे नोट कमली क तरफ बढ़ दये ढेर सारे नोट देखकर कमली क आँख म चमक आ गयी ,उसने लपकर पये ले लए और अपनी चोली म खस लए अभी भी दोन लोग तंग गलय से ही गुज़र रहे थे ,बीच बीच म अचानक कुो के भोकने क आवाज़ आने लगती तो कमली धत कहकर कु को खामोश कर देती एक खोली के बाहर पँच कर कमली क गयी थी ,हाँ यही तो थी उसक खोली ,अजीत सह ने उसक खोली देखकर राहत क सांस ली.

अब वे दोन खोली के अंदर थे ,अजीत सह ने कमली को अपनी बाह म जकड लया और बेतहाशा उसे चूमने लगा ,कमली भी उसका भरपूर साथ दे रही थी ,अजीत क साँसे फूल रही थी ,उसने कमली के जूड़े म लगा आ पन नकाल दया और उसक कैद जफ को आज़ाद कर दया , और बारी बारी कमली के कपड़ो को भी हटा दया वे दोन पैदायशी हालत म बतर पर पँच गए . अजीत सह बतर पर पचते ही लेट गया  “अछा …अजीत बाबू …मजा भी चाहए ..और मेहनत भी नह करना चाहते ..अब सब कुछ हम  को ही  करना पड़ेगा या?  अजीत क टांग के ऊपर बैठते ए कमली ने कहा  “हाँ…दरअसल …अपनी जदगी म म कभी भी अछा ाइवर नह रहा ँ ….इसीलये आज गाड़ी चलाने क ज़मेदारी तुहे दे द है ….गाड़ी तुम चलाना शु तो करो ….अगर मेरा मन करेगा तो बाद म ाइवग सीट पर म आ जाऊँगा” अजीत सह ने  कमली क कमर वाले हसे को दबाते हटे कहा रात के साटे म उन दोन क साँस क आवाज़ खोली म गूंज रही थी और जम दहक रहे थे ,अजीत के शरीर के ऊपर बैठ ई कमली अचानक से नढाल होकर एक और गर गयी और अजीत भी नढाल होकर कमली क पीठ से लपट गया.

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थोड़ी देर तक दोन इसी हालत म  पड़े रहे करीब दस मनट बाद अजीत ने कमली के कान पर पडी यी जुफ हटाकर  धीरे से कहा “कमली …मुझे भूख लगी है ….कुछ खाने को दे ना” अजीत क ये खाने वाली फरमाइश ने कमली को वच हालात म लाकर खड़ा कर दया था एक तो खोली म खाने क कोई चीज़ नह थी और सरी बात ये क आज तक जतने भी ाहक आये वे सब कमली के साथ सेस करने के बाद वहां से  चले गए पर ये पहली बार था क कसी ाहक ने उससे खाना माँगा था ये बात कमली को हैरान भी कर रही थी और कसी के ारा अपनेपन से खाना मांगने के कारण खुश भी हो रही थी.हालाँक कमली का शरीर आराम मांग रहा था और उसक पलक भारी हो रही थी लेकन वह खाना बनाने क गरज   से बतर छोड़कर उठ . खोली के एक कोने म ज़रत का सारा सामान जमा करके उसे कचन क सी शल दे द गयी थी ,एक गैस चूहा और कुछ बतन और कुछ सजयां और आटा ,चावल ,दाल के कुछ डबे म ही कमली खाना बनाने का उपम करने लगी. बतर  म लेटे लेटे ही अजीत ने कमली क और देखा कहा  “तुमने पैसा कमाने के लए कोई और काम य नह पकड़ा कमली”  कमली के लए ये सवाल कुछ नया नह था इससे पहले भी कई ाहक आते थे जो पहले कमली के जम से अपनी द ई पूरी कमत वसूलते और बाद म शराब के नशे  कुछ इसी तरह क बाते करके फालतू क हमदद दखाते अजीत क बात सुनकर हँस पडी थी कमली  “या अजीत बाबू ….पूछा भी तो या पूछा …वEही दल को खाने वाली कहानी ….वैसे म सबको  बताती भी नह पर तुम अछे आदमी दखते हो इसलये बताती ँ  महारा के एक छोटे से गांव म हमारा घर था ,घर म पैसे क बत कमी थी और बाबूजी को शराब क लत लग गयी थी ,घर म जब पैसे खम हो गए तो बाबू जी ने मुझे एक दलाल को बेच दया और फर उस दलाल ने मुझे एक कोठे पर पचा दया और फर या था मुझे एक वैया बनने म समय नह लगा फर एक दन अचानक कोठे पर रेड पड़ गयी और हम लोग को गरतार कर लया गया ,म नाबालग थी इसलए मुझे बाल सुधार गृह भेज दया गया  पर वहां भी नेता टाइप के लोग आते और हमारा शारीरक शोषण करते थे ,मुझे वहां का माहौल पसंद नह था इसलए म एक दन वहां से मौका देखकर भाग गयी  और वहां से बाहर आते ही इस नया म जदा रहने के लए मुझे पैसे क ज़रत थी ,जो क अपने शरीर को बेचकर आसानी से कमाया जा सकता था और …..बस तबसे लेकर आज तक मेरा सफर ऐसे ही चल रहा है”कमली ने अपनी कहानी बयां कर द “ओह काफ खभरी कहानी है तुहारी …पर एक बात बताओ ….लोग कहते ह क तुहारे जैसे सेसवकर संमण फैलाते है ,जससे लोग म बीमारी फैलती है ,एड्स जैसी बीमारी फ़ैलाने म तुम लोग का अहम् रोल रहता है”अजीत ने पूछा “हाँ साहब….गलत काम करने का इलज़ाम हमेशा से ही गरीब लोग पर लगता आया है अरे कंडोम का यूज़ करने से हर बीमारी र रहती है तो आप लोग को कंडोम यूज़ करने म मज़ा नह आता है और अगर बाद म अगर कुछ हो गया तो दोष हम लोग का आता है और तो और अजीत बाबू कंडोम तो आज तुमने भी नह उसे कया है ” इसलए हो सकता है क कह तुहे भी कोई बीमारी न लग जाए” कमली बोली खाने क लेट अजीत के हाथ म देकर कमली भी उसी के साथ खाना खाने लगी “वैसे भी आजकल देश म कोरोना को लेकर बत सती चल रही है  यक अभी तक कोरोना क कोई भी दवाई भी नह बन पायी है

दरअसल म भी अभी तीन दन पहले ही बई से लौटा ँ ,जब म भारत पंच तो हवाई अे पर मेरा गहन चेकअप आ और उसके बाद मुझे एक अलग कमरे म रख दया गया और मुझसे ऐसा वहार कया जाने लगा जैसे मुझे कोई छूत क बीमारी हो ,मुझे लगने लगा था क शायद म कोरोना से त हो गया ँ और बत मुमकन है क म जीवत न रँ इसलये बत ही सुरा होने के बावजूद म सबक नजर बचाकर वहां से भाग नकला  और सीधा तुहारे पास पंचा यक म मरने से पहले जी भरकर जी लेना चाहता था और मन ही मन म बत घबराया आ था यक सीसीटवी म मेरी तवीर आ चुक होगी और अगर म कसी भी बस अे या टेशन पर अपने घर जाने के लए जाता  भी  तो  हो सकता था क मेरी खासी या बुखार को चेक कया जाता और मुझे कोरोना से संमत पाये जाने पर फर से मुझे अकेले कमरे म डाल दया जाता ,जो क म बलकुल नह चाहता था”इतना कहने के बाद अजीत ने घड़ी पर नज़र डाली ,सुबह के पांच बजने वाले थे  “अब मुझे जाना होगा ,  सुबह होने वाली है और मुझे खांसी भी आ रही है ….तुम मुझे खासी क दवाई और दे दो ताक म ठक से अपने घर तक पँच जाऊँ”ये कहकर अजीत क खासी और तेज़ हो गई थी और बुखार के कारण उसके माथे से पसीना भी आने लगा था कमली फट नज़र से अजीत को देख रही थी ,उसने कांपते हाथ से खासी क दवा अजीत के हाथ म दे द  अजीत हांफता आ तेज़ी से कमली क खोली के बाहर नकल गया. कमली अंदर साटे म बैठ ई थी और अचानक से कमली का सर भारी होने लगा था.

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#coronavirus: कोरोना: मै धृतराष्ट्र हूं 

आजकल जाने क्यों महाभारत का एक पात्र, धृतराष्ट्र मेरे सपने में आता है . धृतराष्ट्र दुर्योधन का पिता- श्री सौ कौरवों का जन्माध पिता . मुनि वेदव्यास रचित दुनिया के एक महानतम धार्मिक ग्रंथ का अजब गजब पात्र . कभी-कभी ऐसा लगता है धृतराष्ट्र का व्यवहार हम स्वयं भी करते हैं. मगर धृतराष्ट्र को घृणा ही मिली .

मैं जैसे  ही सोता हूं, थोड़ी देर बाद धृतराष्ट्र दिखने लगता है . हीरे, स्वर्ण जड़ित मुकुट, वस्त्रआभूषण, राज सिंहासन पर बैठा,मेरी ओर उन्मुख. मै डर जाता हूं भागता हूं और नींद टूटने से पहले उनकी आवाज कर्ण  विवृत्त में गर्म शीशे की तरह प्रविष्ट होती है- देश की संसद स्थगित हो गई क्या, राज्य की विधानसभा स्थगित है क्या…नींद टूटते ही मैं मस्तिक पर आए पसीने को पोछता हूं . उठ कर बैठ जाता हूं और सपने का निहितार्थ मन ही मन ढूंढता हूं . सोचता हूं, आजाद हिंदुस्तान के 73 वर्ष व्यतीत हो गए हैं और मैं अपने मन की चैन की नींद भी नहीं सो पा रहा हूं . इस आजादी का क्या अभिप्राय है ? गांधी जी ने कहा था-  स्वराज्य में हर आंख से आंसू पोछा जाएगा. मगर आंसू पोछने तो क्या कोई आता, गाल पर सूखकर पपड़ी में तब्दील  हो गए हैं . इधर उधर की सोचता  और मन को बहला कर फिर निंद्रा देवी की गोद में जाने बिस्तर पर लेट जाता हूं. यह सोचकर कि अब धृतराष्ट्र किसी और भारतीय के स्वपन में चला गया होगा और मर्माहत  उसी से अपनी जिज्ञासा शांत कर रहा होगा . मैं तो मधुर नींद की झपकियों का आनंद ले लूंगा .

मैं सो गया . स्वपन में क्या देखता हूं, धृतराष्ट्र पुनः  सामने खड़े हैं . मैं घबराया . पीछे मुड़ा और भागने का प्रयत्न करने लगा . मगर धृतराष्ट्र कोई छोटी मोटी हस्ती तो थी नहीं . महाराज ! के इशारों पर सैनिकों ने भालों की नोक पर मुझे पकड़ महाराज के समक्ष पेश किया .मेरे चेहरे से हवाइयां उड़ रही थी- महाराज ! क्षमा . मैं क्षमा चाहता हूं, एक बार गलती मुआफ करें .

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‘मूर्ख ! उनका शेर की मानिंद स्वर गूंजा- ‘तू बार-बार धोखा देकर भाग जाता था . लोग हमारे बुलावे का इंतजार करते हैं, महाराज धृतराष्ट्र बुलाएं ! और तुम भाग जाते हो, क्यों ? क्या हम हस्तिनापुर के महाराज !  इतने गए गुजरे हैं….

‘ मैं अज्ञानी हूं महाराज ! सोचा कहीं आप से सामना हुआ और मैं प्रोटोकॉल के मुताबिक सम्मान ना दे सका . कुछ बहकी बहकी कह गया तो आपके एक ही इशारे पर मेरा सर कही धड़… कहीं- सो मैं भयभीत हो गया .

‘ देखो चतुराई पूर्ण बातें सुनने के हम आदी नहीं हैं . हमें साफ-साफ जो पूछे दुनिया का हाल बताओ . बस यही हमारा आदेश है . धृतराष्ट्र ने राजदंड को हाथों में घुमाते हुए कहा .

अब तो मैं फंस गया था . सोचता, क्या यह स्वपन है या सच ! अगर सब सच है तो फंस गया! मैंने हाथ जोड़कर परिस्थिति के अनुरूप कहा- ‘महाराज ! दुनिया का हालो हवाल भला मैं अज्ञानी क्या बताऊंगा .

‘ हमे संसद का हाल सुनाओ.. कोरोना  का सच्चा हाल बताओ . बताओ कोरोना के भय का क्या होगा ? कोरोना से विधानसभा  मे क्या  कठिनाइयां आ रही हैं ? प्रदेश के नेता  इतना घबराये हुए  काहे है ? ऐसे ही छोटे-छोटे प्रश्न हैं बस…. धृतराष्ट्र ने मिठास भरे स्वर में पूछा .

‘ महाराज मैंने हाथ जोड़कर कहा –  ‘ महाराज ! आप यह सब कुछ संजय से क्यों नहीं पूछते ? महाभारत में तो युद्ध के समय उन्होंने एक-एक पल की खबर आपको दी थी . उनको क्या हो गया है ?

‘ मूर्ख ! हमारा एक एक मिनट कीमती है . उनके चेहरे पर क्रोध था और स्वर में खींझ- तू क्या अपने को क्या समझता है… संजय होता तो क्या मैं तुझे परेशान करता . इतने बड़े महा युद्ध के समय उसने मुझे एक-एक क्षण की जानकारी दी थी तो क्या आज खबरें नहीं देता . तो महाराज ! एक अदद टीवी ऑन कर बैठ जाइए न राष्ट्रीय हो या लोकल टीवी पर तो सब कुछ दिखाया जा रहा है … सब कुछ दिखाया जा रहा है महाराज ! आप को बड़ी सुविधा रहेगी . मैं ने गिड़गिड़ा कर कहा- लेकिन हम तुम्हारे मुख से पल-पल की जानकारी सुनना चाहते हैं लोकल टीवी या नेशनल टीवी सब हमारे लिए बेकार हैं . जब हम देख ही नहीं सकते तो टेलीविजन के समक्ष क्यों बैठे .

मैं हक्का-बक्का धृतराष्ट्र की ओर आंखें फाड़ कर देख रहा था . उनके प्रश्न की काट नहीं थी मेरे पास मगर हठ पूर्वक कहा- टीवी नही तो समाचार पत्र मंगा कर पढ़ लीजिए .

धृतराष्ट्र ने आत्मभिमान के साथ घूर कर देखा .

‘ फिर बकवास ! तुम्हें पता नहीं हम जन्माध हैं . कैसे समाचार पत्र पढेंगे .

‘ महाराज ! मैं तो…जो आपको सत्य जानकारी टीवी और समाचार पत्रों से मिलेगी वह मैं कहां दे पाऊंगा . मैं ने गिड़गिड़ा कर चेहरे पर मासूमियत का भाव चिपका कर कहा .

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‘ तुम आखिर यह क्या नौकरी कर रहे हो . हमारा… हमारा आदेश मानने से इनकार ? इतना साहस ? क्या हमारे क्रोध से नावाकिफ हो या हमारे अत्याचार के संदर्भ में तुम्हें खबर नहीं है .

‘ महाराज ! शायद आपको पता नहीं, हमारे भारतवर्ष में आजकल क्या हो रहा है ?

‘ क्या हो रहा है मूर्ख . उन्होंने दहाड़ कर पूछा .

‘ महाराज मै, हमारा राष्ट्र आपको आदर्श मानकर धृतराष्ट्र बना हुआ है महाराज ! जुबान तालू से चिपक गई है . इसलिए मैं कुछ देखता हूं ना सुनता हूं . मैं स्वयं धृतराष्ट्र बन गया हूं .

‘ तो यह मेरी बढ़ाई है या बुराई वत्स ! धृतराष्ट्र ने चिंतित स्वर में अपने राज सिंहासन पर बैठते हुए कहा .

‘ महाराज ! यह तो समय तय करेगा मगर मैं इतना बता सकता हूं संसद, विधानसभा, मीडिया, अफसर, सरकार सभी आप को आदर्श मानते हैं . ‘तभी मोबाइल की कर्कश ध्वनि ने निंद्रा तोड़ी में स्वप्न से बाहर आ गया . सोचने लगा धृतराष्ट्र की मूर्ति चौराहे पर लगनी चाहिए .

प्रेम तर्पण भाग 2 : कृतिका को था किसका इंतजार

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- प्रेम तर्पण भाग 1 : कृतिका को था किसका इंतजार

पूर्णिमा ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया, कृतिका को देख कर गिरतेगिरते बची. सौंदर्य की अनुपम कृति कृतिका आज सूखे मरते शरीर के साथ पड़ी थी. पूर्णिमा खुद को संभालते हुए कृतिका की बगल में स्टूल पर जा कर बैठ गई. उस की ठंडी पड़ती हथेली को अपने हाथ से रगड़ कर उसे जीवन की गरमाहट देने की कोशिश करने लगी.

उस ने उस के माथे पर हाथ फेरा और कहा, ‘‘कृति, यह क्या कर लिया तूने? कौन सा दर्द तुझे खा गया? बता मुझे कौन सी पीड़ा है जो तुझे न तो जीने दे रही है न मरने. सबकुछ तेरे सामने है, तेरा परिवार जिस के लिए तू कुछ भी करने को तैयार रहती थी, तेरा उन का सगा न होना यही तेरे लिए दर्द का कारण हुआ करता था, लेकिन आज तेरे लिए वे किसी सगे से ज्यादा बिलख रहे हैं. इतने समझदार पति हैं फिर कौन सी वेदना तुझे विरक्त नहीं होने देती.’’

कृति की पथराई आंखें बस दरवाजे पर टिकी थीं, उस ने कोई उत्तर नहीं दिया.

पूर्णिमा कृति के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी, कुछ देर उस की आंखों में उस की पीड़ा खोजते हुए पूर्णिमा ने धीरे से कहा, ‘‘शेखर, कृति की पथराई आंख से आंसू का एक कतरा गिरा और निढाल हाथों की उंगलियां पूर्णिमा की हथेली को छू गईं.

पूर्णिमा ठिठक गई, अपना हाथ कृतिका के सिर पर रख कर बिलख पड़ी, तू कौन है कृतिका, यह कैसी अराधना है तेरी जो मृत्यु शैय्या पर भी नहीं छोड़ती, यह कौन सा रूप है प्रेम का जो तेरी आत्मा तक को छलनी किए डालता है.’’

तभी आवाज आई, ‘‘मैडम, आप का मिलने का समय खत्म हो गया है, मरीज को आराम करने दीजिए.’’

पूर्णिमा कृतिका के हाथों को उम्मीदों से सहला कर बाहर आ गई और पीछे कृतिका की आंखें अपनी इस अंतिम पीड़ा के निवारण की गुहार लगा रही थीं. उस की पुतलियों पर गुजरा कल एकएक कर के नाचने लगा था.

कृतिका नाम मौसी ने यह कह कर रखा था कि इस मासूम की हम सब माताएं हैं कृतिकाओं की तरह, इसलिए इस का नाम कृतिका रखते हैं. कृतिका की मां उसे जन्म देते ही इस दुनिया से चल बसी थीं. मौसी उस 2 दिन की बच्ची को अपने साथ ले आई थीं, नानी, मामी, मौसी सब ने देखभाल कर कृतिका का पालन किया था. जैसेजैसे कृतिका बड़ी हुई तो लोगों की सहानुभूति भरी नजरों और बच्चों के आपसी झगड़ों ने उसे बता दिया था कि उस के मांबाप नहीं हैं.

परिवार में प्राय: उसे ले कर मनमुटाव रहता था. कई बार यह बड़े झगड़े में भी तबदील हो जाता, जिस के परिणामस्वरूप मासूम छोटी सी कृतिका संकोची, डरी, सहमी सी रहने लगी. वह लोगों के सामने आने से डरती, अकसर चिड़चिड़ाया करती, लोगों की दया भरी दलीलों ने उस के भीतर साधारण हंसनेबोलने वाली लड़की को मार डाला था.

कभी उसे बच्चे चिढ़ाते कि अरे, इस की तो मम्मी ही नहीं है ये बेचारी किस से कहेगी. मासूम बचपन यह सुन कर सहम कर रह जाता. यह सबकुछ उसे व्यग्र बनाता चला गया. बस, हर वक्त उस की पीड़ा यही रहती कि मैं क्यों इस परिवार की सगी नहीं हुई, धीरेधीरे वह खुद को दया का पात्र समझने लगी थी, अपने दिल की बेचैनी को दबाए अकसर सिसकसिसक कर ही रोया करती.

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युवावस्था में न अन्य युवतियों की तरह सजनेसंवरने के शौक, न हंसीठिठोली, बस, एक बेजान गुडि़या सी वह सारे काम करती रहती. उस के दोस्तों में सिर्फ पूर्णिमा ही थी जो उसे समझती और उस की अनकही बातों को भी बूझ लिया करती थी. कृतिका को पूर्णिमा से कभी कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. पूर्णिमा उसे समझाती, दुलारती और डांटती सबकुछ करती, लेकिन कृतिका का जीवन रेगिस्तान की रेत की तरह ही था.

कृतिका के घर के पास एक लड़का रोज उसे देखा करता था, कृतिका उसे नजरअंदाज करती रहती, लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें बारबार कृतिका को अपनी ओर खींचा करतीं, कभी किसी की ओर न देखने वाली कृतिका उस की ओर खिंची चली जा रही थी.

उस की आंखों में उसे खिलखिलाती, नाचती, झूमती जिंदगी दिखने लगी थी, क्योंकि एक वही आंखें थीं जिन में सिर्फ कृतिका थी, उस की पहचान के लिए कोई सवाल नहीं था, कोई सहानुभूति नहीं थी. कृतिका के कालेज में ही पढ़ने आया था शेखर.

कृतिका अब सजनेसंवरने लगी थी, हंसने लगी थी. वह शेखर से बात करती तो खिल उठती. शेखर ने उसे जीने का नया हौसला और पहचान से परे जीना सिखाया था. पूर्णिमा ने शेखर के बारे में घर में बताया तो एक नई कलह सामने आई. कृतिका चुपचाप सब सुनती रही. अब उस के जीवन से शेखर को निकाल दिया गया.

कृतिका फिर बिखर गई, इस बार संभलना मुश्किल था, क्योंकि कच्ची माटी को आकार देना सहज होता है.

कृतिका में अब शेखर ही था, महीनों कृतिका अंधेरे कमरे में पड़ी रही न खाती न पीती बस, रोती ही रहती. एक दिन नौकरी के लिए कौल लैटर आया तो परिवार वालों ने भेजने से इनकार कर दिया, लेकिन इस बार कृतिका अपने संकोच को तिलांजलि दे चुकी थी, उस ने खुद को काम में इस कदर झोंक दिया कि उसे अब खुद का होश नहीं रहता.

परिवार की ओर से अब लगातार शादी का दबाव बढ़ रहा था, परिणामस्वरूप सेहत बिगड़ने लगी. उस के लिए जीवन कठिन हो गया था, पीड़ा ने तो उसे जैसे गोद ले लिया हो, रातभर रोती रहती. सपने में शेखर की छाया को देख कर चौंक कर उठ बैठती, उस की पागलों की सी स्थिति होती जा रही थी.

अब कृतिका ने निर्णय ले लिया था कि वह अपना जीवन खत्म कर देगी, कृतिका ने पूर्णिमा को फोन किया और बिलखबिलख कर रो पड़ी, ‘पूर्णिमा, मुझ से नहीं जीया जाता, मैं सोना चाहती हूं.’

पूर्णिमा ने झल्ला कर कहा, ‘हां, मर जा और उन लोगों को कलंकित कर जा जिन्होंने तुझे उस वक्त जीवन दिया था जब तेरे ऊपर किसी का साया नहीं था, इतनी स्वार्थी कैसे और कब हो गई तू? तू ने जीवन भर उस परिवार के लिए क्याक्या नहीं किया, आज तू यह कलंक देगी उपहार में?’

कृतिका ने बिलखते हुए कहा, ‘मैं क्या करूं पूर्णिमा, शेखर मेरे मन में बसता है, मैं कैसे स्वीकार करूं कि वह मेरा नहीं, मैं तो जिंदगी जानती ही नहीं थी वही तो मुझे इस जीवन में खींच कर लाया था. आज उसे जरा सी भी तकलीफ होती है तो मुझे एहसास हो जाया करता है, मुझे अनाम वेदना छलनी कर जाती है, मैं तो उस से नफरत भी नहीं कर पा रही हूं, वह मेरे रोमरोम में बस रहा है.’

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पूर्णिमा बोली, ‘कृतिका जरूरी तो नहीं जिस से हम प्रेम करें उसे अपने गले का हार बना कर रखें, वह हर पल हमारे साथ रहे, प्रेम का अर्थ केवल साथ रहना तो नहीं. तुझे जीना होगा यदि शेखर के बिना नहीं जी सकती तो उस की वेदना को अपनी जिंदगी बना ले, उस की पीड़ा के दुशाले से अपने मन को ढक ले, शेखर खुद ब खुद तुझ में बस जाएगा. तुझ से उसे प्रेम करने का अधिकार कोई नहीं छीन सकता.

कृतिका को अपने प्रेम को जीने का नया मार्ग मिल गया था, शेखर उस की आत्मा बन चुका था, शेखर की पीड़ा कृतिका को दर्द देती थी, लेकिन कृतिका जीती गई, सब के लिए परिवार की खुशी के लिए माधव से कृतिका का विवाह हो गया.

माधव एक अच्छे जीवनसाथी की तरह उस के साथ चलता रहा, कृतिका भी अपने सारे दायित्वों को निभाती चली गई, लेकिन उस की आत्मा में बसी वेदना उस के जीवन को धीरेधीरे खा रही थी और वही पीड़ा उसे आज मृत्यु शैय्या तक ले आई थी, उसे ब्रेन हैमरेज हो गया था.

रात हो चली थी. नर्स ने आईसीयू के तेज प्रकाश को मद्धम कर दिया और कृतिका की आंखों में नाचता अतीत फिर वर्तमान के दुशाले में दुबक गया.

पूर्णिमा ने माधव से कहा कि कृतिका को आप उस के घर ले चलिए मैं भी चलूंगी, मैं थोड़ी देर में आती हूं. पूर्णिमा ने घर आ कर तमाम किताबों, डायरियों की खोजबीन कर शेखर का फोन नंबर ढूंढ़ा और फोन लगाया, सामने से एक भारी सी आवाज आई, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘हैलो, शेखर?’’

‘‘जी, मैं शेखर बोल रहा हूं.’’

‘‘शेखर, मैं पूर्णिमा, कृतिका की दोस्त.’’

कुछ देर चुप्पी छाई रही, शेखर की आंखों में कृतिका तैर गई. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘पूर्णिमा… कृतिका… कृतिका कैसी है?’’

पूर्णिमा रो पड़ी, ‘‘मर रही है, उस की सांसें उसी शेखर के लिए अटकी हैं जिस ने उसे जीना सिखाया था, क्या तुम उस के घर आ सकोगे कल?’’

शेखर सोफे पर बेसुध सा गिर पड़ा मुंह से बस यही कह सका, ‘‘हां.’’

कृतिका को ऐंबुलैंस से घर ले आया गया. घर के सामने लोगों की भीड़ जमा हो गई, सब की आंखों में उस माटी में खेलने वाली वह गुडि़या उतर आई, दरवाजे के पीछे छिप जाने वाली मासूम कृति आज अपनी वेदनाओं को साकार कर इस मिट्टी में छिपने आई थी.

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दरवाजे पर लगी कृतिका की आंखों से अश्रुधार बह निकली, शेखर ने देहरी पर पांव रख दिया था, कृतिका की पुतलियों में जैसे ही शेखर का प्रतिबिंब उभरा उस की अंतिम सांसों के पुष्प शेखर के कदमों में बिखर गए और शेखर की आंखों से बहती गंगा ने प्रेम तर्पण कर कृतिका को मुक्त कर दिया.

प्रेम तर्पण भाग 1 : कृतिका को था किसका इंतजार

डाक्टर ने जवाब दे दिया था, ‘‘माधव, हम से जितना बन पड़ा हम कर रहे हैं, लेकिन कृतिकाजी के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो रहा है. एक दोस्त होने के नाते मेरी तुम्हें सलाह है कि अब इन्हें घर ले जाओ और इन की सेवा करो, क्योंकि समय नहीं है कृतिकाजी के पास. हमारे हाथ में जितना था हम कर चुके हैं.’’

डा. सुकेतु की बातें सुन कर माधव के पीले पड़े मुख पर बेचैनी छा गई. सबकुछ सुन्न सा समझने न समझने की अवस्था से परे माधव दीवार के सहारे टिक गया. डा. सुकेतु ने माधव के कंधे पर हाथ रख कर तसल्ली देते हुए फिर कहा, ‘‘हिम्मत रखो माधव, मेरी मानो तो अपने सगेसंबंधियों को बुला लो.’’

माधव बिना कुछ कहे बस आईसीयू के दरवाजे को घूरता रहा. कुछ देर बाद माधव को स्थिति का भान हुआ. उस ने अपनी डबडबाई आंखों को पोंछते हुए अपने सभी सगेसंबंधियों को कृतिका की स्थिति के बारे में सूचित कर दिया.

इधर, कृतिका की एकएक सांस हजारहजार बार टूटटूट कर बिखर रही थी. बची धड़कनें कृतिका के हृदय में आखिरी दस्तक दे कर जा रही थीं. पथराई आंखें और पीला पड़ता शरीर कृतिका की अंतिम वेला को धीरेधीरे उस तक सरका रहा था.

कृतिका के भाई, भाभी, मौसी सभी परिवारजन रात तक दिल्ली पहुंच गए. कृतिका की हालत देख सभी का बुरा हाल था. माधव को ढाड़स बंधाते हुए कृतिका के भाई कुणाल ने कहा, ‘‘जीजाजी, हिम्मत रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’’

तभी कृतिका को देखने डाक्टर विजिट पर आए. कुणाल और माधव भी वेटिंगरूम से कृतिका के आईसीयू वार्ड पहुंच गए. डा. सुकेतु ने कृतिका को देखा और माधव से कहा, ‘‘कोई सुधार नहीं है. स्थिति अब और गंभीर हो चली है, क्या सोचा माधव तुम ने?’’

‘‘नहींनहीं सुकेतु, मैं एक छोटी सी किरण को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता. तुम्हीं बताओ, मैं कैसे मान लूं कि कृतिका की सांसें खत्म हो रही हैं, वह मर रही है, नहीं वह यहीं रहेगी और उसे तुम्हें ठीक करना ही होगा. यदि तुम से न हो पा रहा हो तो हम दूसरे किसी बड़े अस्पताल में ले जाएंगे, लेकिन यह मत कहो कि कृतिका को घर ले जाओ, हम उसे मरने के लिए नहीं छोड़ सकते.’’

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सुकेतु ने माधव के कंधे को सहलाते हुए कहा, ‘‘धीरज रखो, यहां जो इलाज हो रहा है वह बैस्ट है. कहीं भी ले जाओ, इस से बैस्ट कोई ट्रीटमैंट नहीं है और तुम चाहते हो कि कृतिकाजी यहीं रहेंगी, तो मैं एक डाक्टर होने के नाते नहीं, तुम्हारा दोस्त होने के नाते यह सलाह दे रहा हूं. डोंट वरी, टेक केयर, वी विल डू आवर बैस्ट.’’

माधव को कुणाल ने सहारा दिया और कहा, ‘‘जीजाजी, सब ठीक हो जाएगा, आप हिम्मत मत हारिए,’’ माधव निर्लिप्त सा जमीन पर मुंह गड़ाए बैठा रहा.

3 दिन हो गए, कृतिका की हालत जस की तस बनी हुई थी, सारे रिश्तेदार इकट्ठा हो चुके थे. सभी बुजुर्ग कृतिका के बीते दिनों को याद करते उस के स्वस्थ होने की कामना कर रहे थे कि अभी इस बच्ची की उम्र ही क्या है, इस को ठीक कर दो. देखो तो जिन के जाने की उम्र है वे भलेचंगे बैठे हैं और जिस के जीने के दिन हैं वह मौत की शैय्या पर पड़ी है.

कृतिका की मौसी ने हिम्मत करते हुए माधव के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘बेटा, दिल कड़ा करो, कृतिका को और कष्ट मत दो, उसे घर ले चलो.

‘‘माधव ने मौसी को तरेरते हुए कहा, ‘‘कैसी बातें करती हो मौसी, मैं उम्मीद कैसे छोड़ दूं.’’

तभी माधव की मां ने गुस्से में आ कर कहा, ‘‘क्यों मरे जाते हो मधु बेटा, जिसे जाना है जाने दो. वैसे भी कौन से सुख दिए हैं तुम्हें कृतिका ने जो तुम इतना दुख मना रहे हो,’’ वे धीरे से फुसफुसाते हुए बोलीं, ‘‘एक संतान तक तो दे न सकी.’’

माधव खीज पड़ा, ‘‘बस करो अम्मां, समझ भी रही हो कि क्या कह रही हो. वह कृतिका ही है जिस के कारण आज मैं यहां खड़ा हूं, सफल हूं, हर परेशानी को अपने सिर ओढ़ कर वह खड़ी रही मेरे लिए. मैं आप को ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता इसलिए आप चुप ही रहो बस.’’

कृतिका की मौसी यह सब देख कर सुबकते हुए बोलीं, ‘‘न जाने किस में प्राण अटके पड़े हैं, क्यों तेरी ये सांसों की डोर नहीं टूटती, देख तो लिया सब को और किस की अभिलाषा ने तेरी आत्मा को बंदी बना रखा है. अब खुद भी मुक्त हो बेटा और दूसरों को भी मुक्त कर, जा बेटा कृतिका जा.’’

माधव मौसी की बात सुन कर बाहर निकल गया. वह खुद से प्रश्न कर रहा था, ‘क्या सच में कृतिका के प्राण कहीं अटके हैं, उस की सांसें किसी का इंतजार कर रही हैं. अपनी अपलक खुली आंखों से वह किसे देखना चाहती है, सब तो यहीं हैं. क्या ऐसा हो सकता है?

‘हो सकता है, क्यों नहीं, उस के चेहरे पर मैं ने सदैव उदासी ही तो देखी है. एक ऐसा दर्द उस की आंखों से छलकता था जिसे मैं ने कभी देखा ही नहीं, न ही कभी जानने की कोशिश ही की कि आखिर ये कैसी उदासी उस के मुख पर सदैव सोई रहती है, कौन से दर्द की हरारत उस की आंखों को पीला करती जा रही है, लेकिन कोईर् तो उस की इस पीड़ा का साझा होगा, मुझे जानना होगा,’ सोचता हुआ माधव गाड़ी उठा कर घर की ओर चल पड़ा.

घर पहुंचते ही कृतिका के सारे कागजपत्र उलटपलट कर देख डाले, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. कुछ देर बैठा तो उसे कृतिका की वह डायरी याद आई जो उस ने कई बार कृतिका के पास देखी थी, एक पुराने बकसे में कृतिका की वह डायरी मिली. माधव का दिल जोरजोर से धड़क रहा था.

कृतिका का न जाने कौन सा दर्द उस के सामने आने वाला था. अपने डर को पीछे धकेल माधव ने थरथराते हाथों से डायरी खोली तो एक पन्ना उस के हाथों से आ चिपका. माधव ने पन्ने को पढ़ा तो सन्न रह गया. यह पत्र तो कृतिका ने उसी के लिए लिखा था :

‘प्रिय माधव,

‘मैं जानती हूं कि मैं तुम्हारे लिए अबूझ पहेली ही रही. मैं ने कभी तुम्हें कोई सुख नहीं दिया, न प्रेम, न संतान और न जीवन. मैं तुम्हारे लायक तो कभी थी ही नहीं, लेकिन तुम जैसे अच्छे पुरुष ने मुझे स्वीकार किया. मुझे तुम्हारा सान्निध्य मिला यह मेरे जन्मों का ही फल है, लेकिन मुझे दुख है कि मैं कभी तुम्हारा मान नहीं कर पाई, तुम्हारे जीवन को सार्थक नहीं कर पाई. तुम्हारी दोस्त, पत्नी तो बन गई लेकिन आत्मांगी नहीं बन पाई. मेरा अपराध क्षम्य तो नहीं लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे क्षमा कर देना माधव, तुम जैसे महापुरुष का जीवन मैं ने नष्ट कर दिया, आज तुम्हारा कोई तुम्हें अपना कहने वाला नहीं, सिर्फ मेरे कारण.

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‘मैं जानती हूं तुम ने मेरी कोई बात कभी नहीं टाली इसलिए एक आखिरी याचना इस पत्र के माध्यम से कर रही हूं. माधव, जब मेरी अंतिम विदाईर् का समय हो तो मुझे उसी माटी में मिश्रित कर देना जिस माटी ने मेरा निर्माण किया, जिस की छाती पर गिरगिर कर मैं ने चलना सीखा. जहां की दीवारों पर मैं ने पहली बार अक्षरों को बुनना सीखा. जिस माटी का स्वाद मेरे बालमुख में कितनी बार जीवन का आनंद घोलता रहा. मुझे उसी आंगन में ले चलना जहां मेरी जिंदगी बिखरी है.

‘मैं समझती हूं कि यह तुम्हारे लिए मुश्किल होगा, लेकिन मेरी विनती है कि मुझे उसी मिट्टी की गोद में सुलाना जिस में मैं ने आंखें खोली थीं. तुम ने अपने सारे दायित्व निभाए, लेकिन मैं तुम्हारे प्रेम को आत्मसात न कर सकी. इस डायरी के पन्नों में मेरी पूरी जिंदगी कैद थी, लेकिन मैं ने उस का पहले ही अंतिम संस्कार कर दिया, अब मेरी बारी है, हो सके तो मुझे क्षमा करना.

‘तुम्हारी कृतिका.’

माधव सहम गया, डायरी के कोरे पन्नों के सिवा कुछ नहीं था, कृतिका यह क्या कर गई अपने जीवन की उस पूजा पर परदा डाल कर चली गई, जिस में तुम्हारी जिंदगी अटकी है. आज अस्पताल में हरेक सांस तुम्हें हजारहजार मौत दे रही है और हम सब देख रहे हैं. माधव ने डायरी के अंतिम पृष्ठ पर एक नंबर लिखा पाया, वह पूर्णिमा का नंबर था. पूर्णिमा कृतिका की बचपन की एकमात्र दोस्त थी.

माधव ने खुद से प्रश्न किया कि मैं इसे कैसे भूल गया. माधव ने डायरी के लिखा नंबर डायल किया.

‘‘हैलो, क्या मैं पूर्णिमाजी से बात कर रहा हूं, मैं उन की दोस्त कृतिका का पति बोल रहा हूं,‘‘

दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘नहीं मैं उन की भाभी हूं. दीदी अब दिल्ली में रहती हैं.’’

माधव ने पूर्णिमा का दिल्ली का नंबर लिया और फौरन पूर्णिमा को फोन किया, ‘‘नमस्कार, क्या आप पूर्णिमाजी बोली रही हैं.’‘

‘‘जी, बोल रही हूं, आप कौन?’’

‘‘जी, मैं माधव, कृतिका का हसबैंड.’’

पूर्णिमा उछल पड़ी, ‘‘कृतिका. कहां है, वह तो मेरी जान थी, कैसी है वह? कब से उस से कोई मुलाकात ही नहीं हुई. उस से कहिएगा नाराज हूं बहुत, कहां गई कुछ बताया ही नहीं,’’ एकसाथ पूर्णिमा ने शिकायतों और सवालों की झड़ी लगा दी.

माधव ने बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘कृतिका अस्पताल में है, उस की हालत ठीक नहीं है. क्या आप आ सकती हैं मिलने?’’

पूर्णिमा धम्म से सोफे पर गिर पड़ी, कुछ देर दोनों ओर चुप्पी छाई रही. माधव ने पूर्णिमा को अस्पताल का पता बताया.

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‘‘अभी पहुंचती हूं,’’ कह कर पूर्णिमा ने फोन काट दिया और आननफानन में अस्पताल के लिए निकल गई.

माधव निर्णयों की गठरी बना कर अस्पताल पहुंच गया. कुछ ही देर बाद पूर्णिमा भी वहां पहुंच गई. डा. सुकेतु की अनुमति से पूर्णिमा को कृतिका से मिलने की आज्ञा मिल गई.

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हनीमून : क्या था मुग्धा का दूसरा हनीमून प्लान

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