लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

"जब सब लोग अपने अपने घर म आराम से सो रहे होते ह तब हम लोग क सुबह होती है और जब सब लोग सुबह के  सूरज को सलाम कर रहे होते है, उस समय तक हम लोग थककर चूर हो जाते है "मुबई क एक सुनसान सड़क पर खड़ी ई कमली अपने आप से  ही बुदबुदा उठ थी "पता नह य ,आजकल सड़क पर इतना साटा य रहने लगा है ,पहले तो अपने को शाम आठ बजे से ही ाहक मलने शु हो जाते थे और रात के एक बजे तक तो म तीन चाराहक से धधा कर लेती थी पर अभी दस बजने को आये और एक भी ाहक नह आया " ाहक के ना आने से झुंझुला रही थी कमली

"ऐ...तुम लोग को कुछ समझ म नह आता ....सारी नया  म बीमारी फ़ैल रही है ,लोग को घर से नकलने को मना कया गया है और तुम लोग को घर म भी चैन नह मल रहा है ....रात यी नह क नकल पड़ी सड़क पर" पीछे से मोटरसाइकल पर सवार दो पुलिसवाल में से एक ने चिल्लाकर कहा...

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"अरे....या साहब ...हम लोग बाहर नह नकलगे तो  खाएंगे या ,कौन हमको बैठे बैठे खलायेगा .…हम लोग को तो रोज़ ही कुआं खोदना है और तभी अपुन लोग को पानी नसीब होता है साहब " कमली ने तवाद कया "चलो....चलो ...बक बक  मत करो अब ....बत देर यी ....अब भागो यहाँ से "एक पुलसवाला चलाते ए बोला "अरे ...तुमको भी कुछ चाहए तो बोलो ...और नह चाहए ...तो आप अपने काम पर जाओ और मुझे अपना काम करने दो साहब ,अभी तक बोहनी भी नह ई है अपनी" कमली ने अपनी आवाज़ म मठास घोलते ए कहा जब कमली ने इस तरह से पुलस वाल से रकवेट करी तो वे भी मुकराते ए वहां से नकल गए और जाते जाते कमली को चेताया क थोड़ी देर के लए ही वे छूट दे रह है और उनक वापसी करने तक वह वापस चली जाए ,बदले म कमली ने भी सर झुकाकर उनक बात मान लेने का अभनय कया. सूनी आँख से अब भी सड़क को नहार रही थी कमली , जो सड़क रात को और अधक गुलज़ार रहती थी उन पर आज साटा है जसका कारण कोरोना वायरस ारा संमण का फैलना है जसके कारण ज़री कामो को छोड़कर बाक लोग को घर से नकलने को मना कया गया है ,पर कमली जैसी औरत जो धधा करती है अगर वो बाहर नह नकलेगी तो खायेगी या, उसके लए तो सड़क पर नकलना बत ज़री है. "आज भी खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ेगा ,कोई भी ाहक नह दख रहा ......."मायूस हो चुक थी कमली "सुनो.."कोई मदाना आवाज़ थी जो कमली के ठक पीछे से आयी थी कमली ने बड़ी ही आशा भरी नज़र से पीछे घूमकर देखा वह एक लंबा सा युवक था ,जसक उ करीब अड़तीस -चालीस के पास होगी , और देखने से काफ  पैसे वाला लग रहा था वह लगातार कमली को घूरे जा रहा था  उस युवक को अपनी और ऐसे घूरते देखकर कमली को लगा क कम से कम एक ाहक तो आया "ऐसे य घूरे जा रहे हो.....यहाँ घूरने का भी पैसा लगता है"कमली ने इठलाते ए कहा "नह ....मेरा काम सफ घूरने भर से नह होगा ....म तो तुहारे  साथ एजॉय करना चाहता हूं "उस युवक ने कमली के उत सीने पर नज़र टिका दे.

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