आजकल जाने क्यों महाभारत का एक पात्र, धृतराष्ट्र मेरे सपने में आता है . धृतराष्ट्र दुर्योधन का पिता- श्री सौ कौरवों का जन्माध पिता . मुनि वेदव्यास रचित दुनिया के एक महानतम धार्मिक ग्रंथ का अजब गजब पात्र . कभी-कभी ऐसा लगता है धृतराष्ट्र का व्यवहार हम स्वयं भी करते हैं. मगर धृतराष्ट्र को घृणा ही मिली .
मैं जैसे ही सोता हूं, थोड़ी देर बाद धृतराष्ट्र दिखने लगता है . हीरे, स्वर्ण जड़ित मुकुट, वस्त्रआभूषण, राज सिंहासन पर बैठा,मेरी ओर उन्मुख. मै डर जाता हूं भागता हूं और नींद टूटने से पहले उनकी आवाज कर्ण विवृत्त में गर्म शीशे की तरह प्रविष्ट होती है- देश की संसद स्थगित हो गई क्या, राज्य की विधानसभा स्थगित है क्या...नींद टूटते ही मैं मस्तिक पर आए पसीने को पोछता हूं . उठ कर बैठ जाता हूं और सपने का निहितार्थ मन ही मन ढूंढता हूं . सोचता हूं, आजाद हिंदुस्तान के 73 वर्ष व्यतीत हो गए हैं और मैं अपने मन की चैन की नींद भी नहीं सो पा रहा हूं . इस आजादी का क्या अभिप्राय है ? गांधी जी ने कहा था- स्वराज्य में हर आंख से आंसू पोछा जाएगा. मगर आंसू पोछने तो क्या कोई आता, गाल पर सूखकर पपड़ी में तब्दील हो गए हैं . इधर उधर की सोचता और मन को बहला कर फिर निंद्रा देवी की गोद में जाने बिस्तर पर लेट जाता हूं. यह सोचकर कि अब धृतराष्ट्र किसी और भारतीय के स्वपन में चला गया होगा और मर्माहत उसी से अपनी जिज्ञासा शांत कर रहा होगा . मैं तो मधुर नींद की झपकियों का आनंद ले लूंगा .
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