पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था
राधिका राजन से मिलने होटल गई. बीच रास्ते में वह पुरानी यादों में खो गई कि कैसे 19 साल की उम्र में उस की शादी अमीर मेहुल से हो गई. मेहुल शराब पीता था, कभीकभी तो अपने बेटे के साथ बैठ कर भी. राधिका को यह पसंद नहीं था. उस की नजदीकियां राजन के साथ बढ़ने लगीं.
अब पढि़ए आगे…
एक दिन दोपहर को बंटी राधिका के मोबाइल फोन पर गेम खेल रहा था, तभी मोबाइल फोन की घंटी बजी.
राधिका बंटी के हाथ से मोबाइल फोन लेने गई, तो उस ने देने से मना कर दिया. प्यार से, फिर झल्ला कर छीनने गई, तो बोला, ‘‘आप एक नंबर की…’’
इस से आगे राधिका ने जो सुना, तो लगा जैसे किसी ने भरे बाजार में नंगा कर दिया. उस के सोचनेसमझने की ताकत खत्म हो गई. वह बहुत ही दुखी हो गई. उन्हीं नाजुक व कमजोर लमहों में वह राजन के और करीब आ गई.
‘‘क्या बात है राधिका, तुम इतनी चुपचुप और खाईखोई सी क्यों लग रही हो? किसी ने तुम्हें कुछ कहा क्या?’’
‘‘कुछ नहीं…’’ कहतेकहते भी राधिका का गला भर्रा गया. फिर वह हंसते हुए कहने लगी, ‘‘देखो, मैं एकदम ठीक तो हूं. मुझे क्या हुआ है?’’
‘‘मैं इस खोखली हंसी के पीछे के दर्द को साफसाफ महसूस कर रहा हूं. मुझे हैरानी होती है कि इतनी प्यारी और खूबसूरत आंखों में भी आंसुओं का इतना गहरा समंदर भी समा सकता है… क्या बात है? तुम्हारे इन आंसुओं से मुझे बहुत दर्द पहुंचता है. तुम मेरी जान हो, मेरी सबकुछ हो. मैं तुम्हें एक पल के लिए भी उदास नहीं देख सकता.’’
राधिका ने सुबकतेसुबकते राजन को दोपहर में घटी घटना के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया.
‘‘तो यह बात है… बच्चे जो देखतेसुनते हैं, वही सीखते हैं… दिल से मत लगाओ. बच्चा है यार…
‘‘तुम्हें पता है कि आज मैं ने तुम्हारे लिए यह गिफ्ट लिया है. जरा खोल कर तो देखो, कैसा है?’’
‘‘इस की क्या जरूरत थी? तुम से दिल की बातें कर के मन हलका हो जाता है. बस…’’
‘‘बस… और कुछ नहीं?’’ टेढ़ी आंखों से राजन ने कहा, तो राधिका शरमा गई.
‘‘क्या तुम मेरी प्रेमिका बनोगी राधिका?’’
राधिका ने चौंक कर राजन की ओर देखा, तो उस की आंखों में सिर्फ प्यार और प्यार ही नजर आ रहा था. अब राधिका हैरत से अपनी आंखों में भर आए आंसू पोंछने लगी. होंठ लरजने लगे.
बहुत मिन्नतें करने पर राधिका ने गिफ्ट का रैपर खोला. हीरे के 2 टौप्स थे.
‘‘बहुत ही खूबसूरत हैं.’’
गिफ्ट तो मेहुल भी ढेरों लाता था, पर उस में गरूर था. वह खुश हो कर कह बैठी, ‘‘राजन, मुझे इस घुटन से कहीं दूर ले चलो…’’
राजन भी उसे दूसरे शहर ले जाने को तैयार था. वह तुरंत बोला, ‘‘हां चलो, कब चलोगी राधिका? मैं तुम्हें अपने साथ हमेशा के लिए ले जाऊंगा…’’ कह कर उस ने राधिका को अपनी बांहों में भर लिया.
राधिका अब भी खोईर् हुई थी. बाहर तेज बारिश हो गई थी. अचानक बिजली कड़की और उस ने दोनों हाथों से कस कर राजन को जकड़ लिया.
जब 2 जवां दिल मिल रहे हों, तो सभी जगह बहार ही बहार दिखाई देती है. बारिश की धुन में प्यार का संगीत था. राजन उसे अपने सीने से लगा कर दीवानों की तरह चूमने लगा. एक पल के लिए वह सकुचाई, पर जब वह दिल ही हार चुकी, तो इनकार कैसा…?
एक शाम राधिका चुपचाप राजन के साथ मुंबई चली आई. आते वक्त राधिका एक चिट्ठी लिख कर छोड़ आई थी. लिखा था, ‘मैं इस घुटनभरी जिंदगी को जीतेजीते तंग आ गई हूं. अब मुझे आजादी से जीना है. सांस लेना है.’
उस वक्त राधिका ने अपने बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा. पर वह तो राजन के प्यार में पगलाई हुई थी. उसे उस वक्त जो ठीक लगा किया. यह भी नहीं सोचा कि मेहुल और घर वालों पर क्या बीतेगी.
राजन को पा कर राधिका को लगा कि सारे जहान की खुशियां मिल गई हों. उन लोगों ने 2-4 महीने विदेश में ही बिता दिए. वापस आ कर राजन अपना मुंबई का कारोबार संभालने में लग गया और राधिका अपने फ्लैट को सजानेसंवारने में जुट गई. दिनरात ख्वाबों जैसे बीत रहे थे.
राधिका को कभी बंटी की याद आती, तो दिल में कुछ चटक जाता, गले में कुछ फांस जैसा अटक जाता था, लेकिन वह अपने सिर को झटक देती और दिल को बच्चे की तरह झुनझुना पकड़ा कर समझा लेती थी.
राधिका व राजन अकसर होटलों में ही डिनर लेते थे. वहां जो भी राधिका को देखता, तो उसे बस देखता ही रह जाता.
राजन ने राधिका के लिए काफी मौडर्न कपड़े खरीदे थे. बहुत ही नानुकर के बाद वह उन्हें पहनती थी.
‘‘अरे बाबा, यही तो आजकल का फैशन है. चलो बेबी, पहनो. जल्दी से रैड ड्रैस पहन कर आओ. मैं बाहर कार में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. देखूं तो सही, मेरी जान इन कपड़ों में कैसी लगती है,’’ राजन कहता.
थोड़ा घबराते हुए राधिका ने वह ड्रैस पहनी. जब उस ने खुद को आईने में देखा, तो अपने बदले लुक और जंचते कपड़ों के साथ बढ़ती दोगुनी खूबसूरती पर यकीन नहीं हुआ.
देर होने पर राजन खुद ही बैडरूम में चला आया. जब राधिका को लाल रंग की ड्रैस में देखा, तो देखता ही रह गया, ‘‘हाय, स्वीट हार्ट. क्या हौट लग रही हो? अब तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा.’’
राधिका के गाल शर्र्म से और भी गुलाबी हो गए.
डिनर करते वक्त कितने लोगों ने पलटपलट कर ललचाई नजरों से देखा, तो राधिका घबराई सी उस ड्रैस में असहज हो उठी थी. पर धीरेधीरे उसे ऐसे कपड़े पहनने की आदत हो गई.
कोलकाता की राधिका और मुंबई की राधिका में जमीनआसमान का फर्क हो गया. मजे से जिंदगी गुजर रही थी. तभी एक दिन राजन दफ्तर से बहुत घबराया सा घर वापस आया.
‘‘गजब हो गया,’’ राजन बोला.
‘‘क्या हुआ?’’ राधिका ने पूछा.
(क्रमश:)