कसूर किस का था : तीसरा भाग

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राधिका राजन से मिलने होटल गई. बीच रास्ते में वह पुरानी यादों में खो गई कि कैसे 19 साल की उम्र में उस की शादी अमीर मेहुल से हो गई. मेहुल शराब पीता था, कभीकभी तो अपने बेटे के साथ बैठ कर भी. राधिका को यह पसंद नहीं था. उस की नजदीकियां राजन के साथ बढ़ने लगीं.
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एक दिन दोपहर को बंटी राधिका के मोबाइल फोन पर गेम खेल रहा था, तभी मोबाइल फोन की घंटी बजी.

राधिका बंटी के हाथ से मोबाइल फोन लेने गई, तो उस ने देने से मना कर दिया. प्यार से, फिर झल्ला कर छीनने गई, तो बोला, ‘‘आप एक नंबर की…’’

इस से आगे राधिका ने जो सुना, तो लगा जैसे किसी ने भरे बाजार में नंगा कर दिया. उस के सोचनेसमझने की ताकत खत्म हो गई. वह बहुत ही दुखी हो गई. उन्हीं नाजुक व कमजोर लमहों में वह राजन के और करीब आ गई.

‘‘क्या बात है राधिका, तुम इतनी चुपचुप और खाईखोई सी क्यों लग रही हो? किसी ने तुम्हें कुछ कहा क्या?’’

‘‘कुछ नहीं…’’ कहतेकहते भी राधिका का गला भर्रा गया. फिर वह हंसते हुए कहने लगी, ‘‘देखो, मैं एकदम ठीक तो हूं. मुझे क्या हुआ है?’’

‘‘मैं इस खोखली हंसी के पीछे के दर्द को साफसाफ महसूस कर रहा हूं. मुझे हैरानी होती है कि इतनी प्यारी और खूबसूरत आंखों में भी आंसुओं का इतना गहरा समंदर भी समा सकता है… क्या बात है? तुम्हारे इन आंसुओं से मुझे बहुत दर्द पहुंचता है. तुम मेरी जान हो, मेरी सबकुछ हो. मैं तुम्हें एक पल के लिए भी उदास नहीं देख सकता.’’

राधिका ने सुबकतेसुबकते राजन को दोपहर में घटी घटना के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया.

‘‘तो यह बात है… बच्चे जो देखतेसुनते हैं, वही सीखते हैं… दिल से मत लगाओ. बच्चा है यार…

‘‘तुम्हें पता है कि आज मैं ने तुम्हारे लिए यह गिफ्ट लिया है. जरा खोल कर तो देखो, कैसा है?’’

‘‘इस की क्या जरूरत थी? तुम से दिल की बातें कर के मन हलका हो जाता है. बस…’’

‘‘बस… और कुछ नहीं?’’ टेढ़ी आंखों से राजन ने कहा, तो राधिका शरमा गई.

‘‘क्या तुम मेरी प्रेमिका बनोगी राधिका?’’

राधिका ने चौंक कर राजन की ओर देखा, तो उस की आंखों में सिर्फ प्यार और प्यार ही नजर आ रहा था. अब राधिका हैरत से अपनी आंखों में भर आए आंसू पोंछने लगी. होंठ लरजने लगे.

बहुत मिन्नतें करने पर राधिका ने गिफ्ट का रैपर खोला. हीरे के 2 टौप्स थे.

‘‘बहुत ही खूबसूरत हैं.’’

गिफ्ट तो मेहुल भी ढेरों लाता था, पर उस में गरूर था. वह खुश हो कर कह बैठी, ‘‘राजन, मुझे इस घुटन से कहीं दूर ले चलो…’’

राजन भी उसे दूसरे शहर ले जाने को तैयार था. वह तुरंत बोला, ‘‘हां चलो, कब चलोगी राधिका? मैं तुम्हें अपने साथ हमेशा के लिए ले जाऊंगा…’’ कह कर उस ने राधिका को अपनी बांहों में भर लिया.

राधिका अब भी खोईर् हुई थी. बाहर तेज बारिश हो गई थी. अचानक बिजली कड़की और उस ने दोनों हाथों से कस कर राजन को जकड़ लिया.

जब 2 जवां दिल मिल रहे हों, तो सभी जगह बहार ही बहार दिखाई देती है. बारिश की धुन में प्यार का संगीत था. राजन उसे अपने सीने से लगा कर दीवानों की तरह चूमने लगा. एक पल के लिए वह सकुचाई, पर जब वह दिल ही हार चुकी, तो इनकार कैसा…?

एक शाम राधिका चुपचाप राजन के साथ मुंबई चली आई. आते वक्त राधिका एक चिट्ठी लिख कर छोड़ आई थी. लिखा था, ‘मैं इस घुटनभरी जिंदगी को जीतेजीते तंग आ गई हूं. अब मुझे आजादी से जीना है. सांस लेना है.’

उस वक्त राधिका ने अपने बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा. पर वह तो राजन के प्यार में पगलाई हुई थी. उसे उस वक्त जो ठीक लगा किया. यह भी नहीं सोचा कि मेहुल और घर वालों पर क्या बीतेगी.

राजन को पा कर राधिका को लगा कि सारे जहान की खुशियां मिल गई हों. उन लोगों ने 2-4 महीने विदेश में ही बिता दिए. वापस आ कर राजन अपना मुंबई का कारोबार संभालने में लग गया और राधिका अपने फ्लैट को सजानेसंवारने में जुट गई. दिनरात ख्वाबों जैसे बीत रहे थे.

राधिका को कभी बंटी की याद आती, तो दिल में कुछ चटक जाता, गले में कुछ फांस जैसा अटक जाता था, लेकिन वह अपने सिर को झटक देती और दिल को बच्चे की तरह झुनझुना पकड़ा कर समझा लेती थी.

राधिका व राजन अकसर होटलों में ही डिनर लेते थे. वहां जो भी राधिका को देखता, तो उसे बस देखता ही रह जाता.

राजन ने राधिका के लिए काफी मौडर्न कपड़े खरीदे थे. बहुत ही नानुकर के बाद वह उन्हें पहनती थी.

‘‘अरे बाबा, यही तो आजकल का फैशन है. चलो बेबी, पहनो. जल्दी से रैड ड्रैस पहन कर आओ. मैं बाहर कार में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. देखूं तो सही, मेरी जान इन कपड़ों में कैसी लगती है,’’ राजन कहता.

थोड़ा घबराते हुए राधिका ने वह ड्रैस पहनी. जब उस ने खुद को आईने में देखा, तो अपने बदले लुक और जंचते कपड़ों के साथ बढ़ती दोगुनी खूबसूरती पर यकीन नहीं हुआ.

देर होने पर राजन खुद ही बैडरूम में चला आया. जब राधिका को लाल रंग की ड्रैस में देखा, तो देखता ही रह गया, ‘‘हाय, स्वीट हार्ट. क्या हौट लग रही हो? अब तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा.’’

राधिका के गाल शर्र्म से और भी गुलाबी हो गए.

डिनर करते वक्त कितने लोगों ने पलटपलट कर ललचाई नजरों से देखा, तो राधिका घबराई सी उस ड्रैस में असहज हो उठी थी. पर धीरेधीरे उसे ऐसे कपड़े पहनने की आदत हो गई.

कोलकाता की राधिका और मुंबई की राधिका में जमीनआसमान का फर्क हो गया. मजे से जिंदगी गुजर रही थी. तभी एक दिन राजन दफ्तर से बहुत घबराया सा घर वापस आया.

‘‘गजब हो गया,’’ राजन बोला.

‘‘क्या हुआ?’’ राधिका ने पूछा.

(क्रमश:)

कसूर किस का था : आखिरी भाग

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:
मेहुल की शराब पीने की लत के चलते राधिका राजन के नजदीक आ गई. वह अपने पति का घर छोड़ कर उस के साथ रहने लगी. थोड़े दिन तक तो सब ठीक रहा, पर बाद में राजन का असली रूप सामने आया. वह उसे अपने काम के लिए दूसरों को परोसना चाहता था. इस तरह वह धीरेधीरे कालगर्ल बन गई. एक दिन राधिका किसी से मिलने होटल गई. वहां उस के सामने उस का बेटा आ गया. वह घबरा कर वापस हो ली.
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कसूर किस का था? (पहला भाग)

कसूर किस का था? (दूसरा भाग)

कसूर किस का था? (तीसरा भाग)

कसूर किस का था? (चौथा भाग)

‘‘ठीक है, उन्हें चाय वगैरह सर्व करो. मैडम अभी तैयार हो कर आ रही हैं,’’ कह कर राजन कमरे से बाहर आ गया.

राधिका ने जैसे ही ड्राइंगरूम में कदम रखा, सामने नजर पड़ते ही ऐसे तड़प उठी, जैसे भूल से जले तवे पर हाथ रख दिया हो.

वह घबरा कर वापस जाने लगी, तभी उस के कानों में अमृत घोलती

एक आवाज गूंजी, ‘‘मम्मी, मैं आप का बंटी… आप को कहांकहां नहीं ढूंढ़ा हम ने? आखिरकार आप मिल ही गईं,’’ इतना कह कर वह राधिका से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगा.

बंटी रोतेरोते ही कहने लगा, ‘‘मम्मी, आप के बगैर पापा ने भी अपनी कैसी हालत बना ली है, कितने साल बीत गए… आप के बगैर जीते हुए. अब मैं एक पल भी आप के बगैर नहीं रह सकता. प्लीज मम्मी, घर लौट चलो. आप को लिए बगैर मैं यहां से नहीं जाऊंगा.’’

जब होटल में राधिका ने बंटी को देखा, जो बिलकुल मेहुल की शक्ल पाए हुए था. उसे लगा कि उस ने ममता के रिश्ते में भी तेजाब घोल दिया. अगर उस की शक्ल हूबहू न होती, तो वह तो… उस के आगे वह नहीं सोच पाई.

उधर राधिका जब मेहुल को छोड़ कर चली गई थी, तब वह एकदम टूट सा गया था. वह उसे बहुत प्यार करता था. निराशा व हताशा से बेहाल मेहुल ने सारा कारोबार समेटा और बेंगलुरु की किसी अनाम जगह पर चला गया. अब वह अपने बेटे बंटी के लिए जी रहा था. सुबह उसे तैयार कर के स्कूल भेजता, फिर अपने दफ्तर जाता, जल्दी काम निबटा कर वह फिर घर लौटता.

धीरेधीरे सारे काम घर में मोबाइल फोन से ही करने लगा. बंटी को भी पापा का ढेर सारा प्यार पा कर लगा कि जैसे अपनी मम्मी को भूलने लगा है, पर वह भूला नहीं था.

कभीकभी बंटी पूछ ही बैठता, ‘पापा, मम्मी कहां गई हैं?’

तब मेहुल की बेबसी से आंखें भर आतीं, फिर मासूम बंटी को सीने से लगा कर रो पड़ता. उस ने सोचा कि ढूंढ़ा तो उसे जाता है, जो खो जाता है. जो खुद ही छिप गया हो, उसे ढूंढ़ कर क्यों परेशान करूं?

जैसे ही बंटी बड़ा हुआ, उस का भी एमबीए का कोर्स अभीअभी पूरा हुआ था. वह अपनी मम्मी की तलाश में लगा. वह पापा मेहुल को सैमिनार है बोल कर कोलकाता गया, जहां पहले मम्मीपापा के साथ रहता था बचपन में. वहीं से पता चला कि मम्मी मुंबई में हैं. शायद तभी से वह मुंबई में आ कर तलाश करने लगा.

एक दिन एक होटल में उस ने राजन के साथ राधिका को देखा. वहां से सारी जानकारी हासिल की. फिर अपनी मम्मी से मिलने का प्लान बनाया. और कुछ तो समझ में नहीं आया कि कैसे मिले?

वह राधिका को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था. और कोई चारा भी तो नहीं था उस के पास, लेकिन अफसोस, मेहुल का हमशक्ल होने से बाजी पलट गई. उस की सूरत देखते ही राधिका लौट गई. वह तुरंत पहचान जो गई थी.

‘‘मम्मी, मेरी सूरत देख कर आप मुझे तुरंत पहचान गईं और आप लौट गईं. मम्मी, मेरा इरादा आप को परेशान करने का नहीं था. पापा भी आप के जाने के बाद एकदम टूट से गए हैं. वे तिलतिल कर मर रहे हैं.

‘‘मैं उन्हें ऐसे घुटतेतड़पते नहीं देख सकता था. उन्हें भी अपनी गलतियों का एहसास हो गया है. वैसे, वे मुझ पर जताते नहीं हैं कि वे दुखी हैं, मैं जानता हूं कि पापा आप को बहुत प्यार करते हैं और आप के बगैर अकेले जी रहे हैं. वे भी मेरे साथ आए हैं, बाहर खड़े हैं.’’

एक ही जगह मूर्ति सी खड़ी राधिका किस मुंह से मेहुल के सामने जाती? उस से नजरें मिलाती? उस ने बेजान, थके हाथों से बंटी को अपने से अलग किया. उस की आंखें पथरा सी गई थीं. लग रहा था कि उन आंखों में भावनाएं नहीं हैं.

इतने में मेहुल भी भीतर आ गया. कितना बीमार, थकाथका, लाचार सा लग रहा था. राधिका के दिल में कुछ टूटने, पिघलने लगा. मन दर्द से भर उठा. मेहुल का क्या कुसूर? पर वह इस कलंकित देह के साथ कैसे आगे बढ़ती?

राजन तो मेहुल को देख कर शर्म से पानीपानी हुए जा रहा था. दोस्त हो कर पीठ में छुरा घोंपने का अपराध जो किया था, इसलिए नजरें न मिला कर एक ओर सिर झुकाए खड़ा रहा.

मेहुल थके कदमों से राधिका के करीब आया और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए. मेहुल ने कहा, ‘‘सच राधिका, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. मेरी ही नादानी की वजह से हमारा बच्चा हम दोनों की परवरिश नहीं पा सका, लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है.

‘‘हम दोनों मिल कर अब भी अपने बेटे बंटी को अच्छे संस्कार देंगे. उसे कारोबार में फलतफूलता देखेंगे. अभी तो उस की शादी करनी है. उन के प्यारेप्यारे बच्चों को गोद में खिलाना है.’’

‘‘नहीं मेहुल, यह अब कभी नहीं हो सकता… मैं चाह कर भी इस दलदल से बाहर नहीं आ सकती. मैं इस लायक ही नहीं रह गई हूं कि तुम्हारे साथ जा सकूं.’’

अपने भर आए गले को खंखारते हुए राधिका फिर बोली, ‘‘मेहुल, जब बदन का कोई अंग सड़ जाता है, तो उस को काट कर अलग कर दिया जाता है, नहीं तो पूरे जिस्म में जहर फैल जाता है. मैं अब वह दाग हूं, जिसे सिर्फ छिपाया और मिटाया जा सकता है, पर दिखाया नहीं जाता. प्लीज, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,’’ कहतेकहते वह बुरी तरह कांपने व रोने लगी थी.

तब मेहुल ने राधिका का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘राधिका, मैं ने कहा था कि मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मेरे ही रूखे बरताव के चलते तुम्हें घर छोड़ने जैसा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा. इस के लिए तुम अपनेआप को अकेले दोष मत दो. मुझे तुम मिल गईं, अब कोई मलाल नहीं.

‘‘मुझे समाज, रिश्तेदार किसी की कोई परवाह नहीं. देखो, तुम्हारे बेटे बंटी को, जिसे तुम ने 8 साल का नन्हे बंटी के रूप में देखा था, आज वह पूरा गबरू नौजवान बन गया है. एमबीए की डिगरी भी हासिल कर ली है.

‘‘मैं ने इस का तुम्हारी गैरहाजिरी में ठीक से तो लालनपालन किया है कि नहीं? कोई शिकायत हो तो बोलो?’’

मेहुल का गला भर आया था. आंखें गीली हो गई थीं.

कितना बड़ा कलेजा था मेहुल का. राधिका, जो शर्म, अपराध के बोझ तले दबी जा रही थी, वह भी सारी लाज भूल कर मेहुल की बांहों में समा गई. कभी सोचा भी नहीं था कि मेहुल से नफरत की जगह माफी मिलेगी. उस के चेहरे पर एक दृढ़ विश्वास की चमक थी.

राजन लुटापिटा सा एक ओर खड़ा ताकता ही रह गया.

कसूर किस का था : चौथा भाग

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कसूर किस का था? (पहला भाग)

कसूर किस का था? (दूसरा भाग)

कसूर किस का था? (तीसरा भाग)

 

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मेहुल से शादी होने के बाद राधिका अमीर घराने की बहू तो बन गई, पर पति के शराब पीने की आदत से वह परेशान थी. मेहुल बेटे को भी बिगाड़ रहा था. इस तरह वह राजन के करीब आ गई और उस के साथ दूसरे शहर में रहने लगी. राजन ने उस को रानी बना कर रखा. एक दिन वह मुसीबत में फंस गया.

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‘‘मैं ने 10 करोड़ के प्रोजैक्ट के लिए बैंक से 5 करोड़ का लोन पास करवाया था, लेकिन पिछला टैंडर पास नहीं होने से बैंक का मैनेजर लोन पास नहीं कर रहा है. कोटेशन वगैरह सब भर दिए गए हैं… समझ में नहीं आता कि क्या करूं…?

‘‘अगर मेरा यह करोड़ों का प्रोजैक्ट इस बार क्लियर नहीं हुआ, तो हम सड़क पर आ जाएंगे. हमारा दफ्तर, घर, मिल सबकुछ चला जाएगा. प्लीज राधिका, कुछ सोचो… कुछ करो…’’

अब बेचारी राधिका क्या करे… वह तो सिर्फ दिलासा व हौसला ही देती रही, ‘‘सब ठीक हो जाएगा राजन, तुम जा कर एक बार मैनेजर से फिर मिल लो.’’

‘‘नहीं राधिका, अब मिलने से कुछ नहीं होगा. हां, अब ठीक केवल एक शर्त पर हो सकता है… सुना है कि वह मैनेजर राहुल थोड़ा शराब और शबाब का रसिया है. अगर एक चांस ले लें तो शायद.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘अगर तुम राहुल को शीशे में उतार सको, तो…’’ राजन कहतेकहते नजरें नहीं मिला पा रहा था.

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो राजन? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? तुम अपनी राधिका को सिर्फ एक लोन पास करने के लिए किसी पराए मर्द के बिस्तर में परोस रहे हो?’’ तकरीबन चिल्लाते हुए राधिका गुस्से से बोली,  ‘‘मुंबई में तो सैकड़ों कार्लगर्ल्स हैं. किसी को भी वहां भेज दो.’’

‘‘राधिका, मुझे माफ कर दो,’’ कह कर राजन ने राधिका की ओर प्यार से हाथ बढ़ाया, तो उस ने हिकारत भरी नजरों से घूर कर हाथ को छिटक दिया.

राजन अपनी सफाई में कह रहा था, ‘‘राधिका, मुझे यह कहना तो नहीं चाहिए था, पर मैं किसी कार्लगर्ल पर एकदम से भरोसा नहीं कर सकता. कब किस के सामने किस का राज फाश कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता.

‘‘मुझे यह सब कहते हुए बहुत शर्म महसूस हो रही है कि मैं अपनी जिंदगी को किसी और के बिस्तर पर सोने को मजबूर कर रहा हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर देना…

‘‘मेरे पास अब खुदकुशी के सिवा कोई चारा नहीं है. मैं दिवालिया हो कर नहीं जी सकता.’’

अब राधिका के सामने इधर कुआं उधर खाई वाली हालत हो गई. जिस्म का सौदा कर राजन के कारोबार को बचाए या फिर जिस्म को बचा कर उस को मरता देखे? फिर इतने बड़े मुंबई शहर में अकेली, कैसे और कहां रहेगी? सब गिद्धों की तरह नोच डालेंगे… मेहुल के पास वापस मैं लौट नहीं सकती. आखिरकार उस ने अपने जमीर को मार कर ही यह कदम उठाया.

बैंक मैनेजर राहुल तो राधिका का इतना मुरीद हुआ कि उस ने यहां तक कह दिया, ‘‘राजन, आज से आप मेरे फैमिली फ्रैंड हुए. अब आप को कभी भी कोई दिक्कत हो, तो बेहिचक मुझे कह दीजिएगा.’’

बस वहीं से राधिका का कालगर्ल बनने का सफर शुरू हो गया. हर रात लिपपुत कर किसकिस के गुलिस्तां को महकाती फिरती, अब उसे याद नहीं है. राजन तरक्की की सीढि़यों को पार करता रहा…

राधिका कभी नफरत से पूछती, ‘‘राजन, तुम ने ऐसा क्यों किया? किस जन्म का बैर निकाला है तुम ने?’’

राजन बड़ी बेशर्मी से हंसने लगता. राधिका कभी जाने को मना करती, तो वह हाथ भी उठा देता था. ऐसी दहशतभरी जिंदगी जीतेजीते… यों ही  15 साल बीत गए.

राधिका ने यह बात अब अच्छी तरह से समझ ली थी कि औरत केवल खिलौना है. कभी उसे पैरों तले रौंदा जाता है, तो कभी उसे हाथों द्वारा मसलाकुचला जाता रहा है. उस ने राजन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपना बसाबसाया घर उजाड़ दिया. कभी तनहाई में अपने बच्चे और मेहुल का अक्स उभरता, तो वह सिसक पड़ती.

राधिका अपनी यादों के दायरे से बाहर निकल आई. आज भी बाहर से कोई डैलिगेशन ग्रुप आया है, जिस में से एक को ‘ताज’ होटल में ठहराया गया है, जहां राधिका को अभी पहुंचना है.

ड्राइवर ने होटल ताज के सामने कार रोक दी. इठलाती, लहराती राधिका मैनेजर से रूम नंबर पूछ कर चल पड़ी. उस ने 205 नंबर रूम खटखटाया. अंदर से आवाज आई, ‘कम इन.’

दरवाजा बंद नहीं था, केवल ढलका हुआ था. हाथ लगते ही खुल गया. सामने फोन पर झुका कोई नौजवान रिसैप्शन में बात कर रहा था और एक 40-45 का रसिया किस्म का आदमी साथ खड़ा उसे समझा रहा था. हाथ के इशारे से सामने पड़े सोफे पर राधिका को बैठने को कहा और बोला, ‘‘आप जरा बैठिए… बंटी, रिसैप्शन में कुछ और्डर देना मेरे व मैडम के लिए. तुम तो कोल्ड ड्रिंक लेते हो, पर मैं और मैडम पनीरपकौड़ा और वैज कबाब लेंगे और व्हिस्की लेंगे. थैंक्स…’’

तभी वह नौजवान राधिका की तरफ मुड़ा. उसे देख कर राधिका कांप उठी. वह वहां एक पल भी रुक नहीं पाई, उलटे पैरों लौट गई… और वह आदमी ‘हैलो… हैलो, मैडम…’ कहता ही रह गया. वह नौजवान भी हैरान खड़ा रह गया.

राधिका अपनी नजरों में तो गिर ही चुकी थी, आज वह सरेबाजार नंगी भी हो गई. उस के झूठे सपनों का महल तहसनहस हो गया. उस की ऐसी भयानक तसवीर देख राधिका ने अपने दोनों कानों पर हथेलियां रखीं.

राधिका बहुत जोर से चीखी, ‘‘नहीं…’’ उस की हिचकियां बंधने लगीं. घर पर आवाज सुन कर सभी नौकरनौकरानियां मैडम राधिका के कमरे में आ गए. देखा कि मैडम ने गुस्से में मेकअप का सारा सामान जमीन पर फेंक दिया है. ड्रैसिंग का आईना तोड़ दिया है. वे सब डर कर कमरे से बाहर चले गए.

राजन से उसे जितना प्यार था, आज… उस से भी ज्यादा नफरत हो रही थी.

उस के मासूम और खूबसूरत मुखड़े पर परेशानी की लकीरें खिंच गईं. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली.

कभी सोचा न था कि उस का अतीत ऐसे शर्मनाक रूप से वर्तमान में सामने आएगा. उस ने अपना सिर बैड के किनारे पर जोर से दे मारा. वह 2 मर्दों द्वारा छली गई. एक ने उस के वजूद को पैरों तले रौंदा, तो दूसरे ने उस के जिस्म को इस्तेमाल करने का जरीया बनाया. पहले अपने लिए, फिर पैसों के लिए खुद ने भी नोचाखसोटा और दूसरो से भी नुचवा ही रहा है.

आज राधिका शौवर में घंटों खड़े हो कर अपने को भिगोती रही. बरसों से मन पर पड़े मैल की परतों को साबुन से रगड़रगड़ कर साफ करती रही… उसे आईने में अपनेआप को देखने में भी डर लग रहा था.

राधिका ने उस रात अपनेआप को बैडरूम में कैद कर लिया. कितनी बार दरवाजे पर दस्तक हुई. राजन की आवाज आ रही थी, ‘‘जानू, दरवाजा खोलो… मैं तुम्हारा राजन… नींद आ गई होगी… शायद थकी हुई हो.’’

पर कोई आवाज न पा कर राजन ने सोचा, ‘लगता है, वह सो गई है. जब वह सुबह उठेगी, तब बात करूंगा.’

दरवाजे को जोरजोर से खटखटाने से राधिका की नींद टूटी. कब वह सोई, उसे उस का एहसास ही नहीं हुआ. हड़बड़ा कर वह उठी और दरवाजा खोला.

‘‘अरे, रात में कैसे बेसुध सो गई थीं तुम? तुम्हें मेरा भी खयाल नहीं आया? और तुम ने खाना भी नहीं खाया? डिनर के लिए कितना दरवाजा खटखटाया, पर तुम ने दरवाजा खोला ही नहीं…. क्या हुआ मेरी जान?’’

राजन ने राधिका को बांहों में लेने की कोशिश की, तो वह पीछे हट गई. नफरत भरी निगाहों से उसे घूरा, तो हंसते हुए राजन का चेहरा अचानक सफेद सा पड़ गया. उस के हिकारत भरे चेहरे को राजन बखूबी समझ रहा था, इसलिए शर्मिंदा व बौखलाया हुआ सा बगलें झांकने लगा.

तभी सिक्योरिटी गार्ड ने आ कर कहा, ‘‘कोई साहब आए हैं. मैडम को पूछ रहे हैं.’’

(क्रमश:)

 राधिका से मिलने कौन आया था? होटल में किसे देख कर राधिका डर कर भाग आई थी? पढ़िए अगले अंक में…

छोटी जात की लड़की: भाग 1

‘पजामा पार्टी के नाम पर घर को होस्टल बना कर रख दिया इन लड़कियों ने. रिया भी पता नहीं कब समझदार बनेगी. जब देखो तब ले आती है इन लड़कियों को. जरा भी नहीं सोचती कि मेरा सारा शेड्यूल गड़बड़ा जाता है. अपने कमरे को कूड़ाघर बना दिया. खुद तो सब चली गईं मूवी देखने और मां यहां इन के फैलाए कचरे को साफ करती रहे.’ बेटी रिया के बेतरतीब कमरे को देखते ही उषा की त्योरियां चढ़ आईं.

एक बारगी तो मन किया कि कमरे को जैसा है वैसा ही छोड़ दें, रिया से ही साफ करवाएं. तभी उसे एहसास होगा कि सफाई करना कितना मुश्किल काम है. मगर फिर बेटी पर स्वाभाविक ममता उमड़ आई, ‘पता नहीं और कितने दिन की मेहमान है. क्या पता कब ससुराल चली जाए. फिर वहां यह मौजमस्ती करने को मिले न मिले. काम तो जिंदगीभर करने ही हैं.’ यह सोचते हुए उषा ने दुपट्टा उतार कर कमरे के दरवाजे पर टांग दिया और फैले कमरे को व्यवस्थित करने में जुट गई.

2 दिन पहले ही रिया के फाइनल एग्जाम खत्म हुए हैं. कल रात से ही बेला, मान्यता और शालू ने रिया के कमरे में डेरा डाल रखा है. रातभर पता नहीं क्या करती रहीं ये लड़कियां कि सुबह 10 बजे तक बेसुध सो रही थीं. अब उठते ही तैयार हो कर सलमान खान की नई लगी मूवी देखने चल दीं. खानापीना सब बाहर ही होगा. पता नहीं क्या सैलिब्रेट करने में लगी हैं.

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अरे, एग्जाम ही तो खत्म हुए हैं, कोई लौटरी तो नहीं लगी. उषा बड़बड़ाती हुई एकएक सामान को सही तरीके से सैट कर के रखती जा रही थी कि अचानक शालू के बैग में से एक फोल्ड किया हुआ कागज का टुकड़ा नीचे गिरा. उषा उसे वापस शालू के बैग में रखने ही जा रही थी कि जिज्ञासावश खोल कर देख लिया. कागज के खुलते ही जैसे उसे बिच्छू ने काट लिया. उस फोल्ड किए हुए कागज के टुकड़े में इस्तेमाल किया हुआ कंडोम था. देख कर उषा के तो होश ही उड़ गए. उस में अब वहां खड़े रहने का भी साहस नहीं बचा था.

‘क्या हो गया आज की पीढ़ी को. शादी से पहले ही यह सब. इन के लिए संस्कारों का कोई मोल ही नहीं. कहीं मेरी रिया भी इस रास्ते पर तो नहीं चल रही. नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है. वह शालू की तरह चरित्रहीन नहीं हो सकती.’ हक्कीबक्की सी उषा किसी तरह अपनेआप को घसीट कर अपने कमरे तक लाई और धम्म से बिस्तर पर ढेर हो गई.

शाम को चारों लड़कियां चहकती हुई घर में घुसीं तो उन की हंसी से घर एक बार फिर गुलजार हो उठा. मगर थोड़ी ही देर में चुप्पी सी छा गई. उषा ने सोचा शायद लड़कियां चली गईं. उस ने अपनेआप पर काबू रखते हुए रिया को आवाज लगाई.

‘‘गईं क्या सब?’’ उषा ने पूछा.

‘‘बाकी दोनों तो चली गईं, शालू अभी यहीं है. वह आज रात और यहां रुकेगी,’’ रिया ने मां के पास बैठते हुए कहा.

‘‘रिया, तू शालू का साथ छोड़ दे, वह लड़की चरित्रहीन है. मैं नहीं चाहती कि उस के साथ रहने से लोग तेरे बारे में भी गलत धारणा बनाएं,’’ उषा ने रिया को समझाते हुए कहा.

‘‘यह आप कैसी बातें कर रही हो मां. आप उसे जानती ही कितना हो? और बिना किसी पुख्ता सुबूत के यों किसी पर आरोप लगाना आप को शोभा नहीं देता.’’

मां के मुंह से अचानक यह बातें सुन कर रिया कुछ समझी नहीं. मगर अपनी जिगरी दोस्त पर यह बेहूदा इलजाम सुन कर उसे अच्छा नहीं लगा.

‘‘यह रहा सुबूत. आज तुम्हारे रूम की सफाई करते समय मुझे शालू के बैग से मिला था,’’ कहते हुए उषा ने वह कागज का टुकड़ा रिया के सामने खोल कर रख दिया. एकबारगी तो रिया से कुछ भी बोलते नहीं बना, बस, इतना भर कहा, ‘‘मां, किसी के व्यक्तित्व का सिर्फ एक पहलू उस के चरित्र को नापने का पैमाना नहीं हो सकता. शालू के बैग से इस का मिलना यह कहां साबित करता है कि इस का इस्तेमाल भी शालू ने ही किया है. यह भी तो हो सकता है कि किसी ने उस के साथ जानबूझ कर यह शरारत की हो.’’

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‘‘शरारत, सिर्फ उसी के साथ क्यों? तुम्हारे या किसी और के साथ क्यों नहीं? तुम तो अपनी सहेली का पक्ष लोगी ही. मगर सुनो रिया, यह लड़की मेरी नजरों से उतर चुकी है. यह तुम्हारे आसपास रहे, यह मुझे पसंद नहीं,’’ उषा ने अपना दोटूक फैसला रिया को सुना दिया.

‘‘मां, शालू एक सुलझी हुई और समझदार लड़की है. वह अच्छी तरह जानती है कि उसे जिंदगी से क्या चाहिए. देखना, आप को एक दिन उस के बारे में अपनी राय बदलनी पड़ेगी.’’

‘‘हां, वह तो उस के लक्षणों से पता चल ही रहा है कि वह क्या चाहती है. पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हैं. अरे, ये छोटी जात की लड़कियां होती ही ऐसी हैं. ऊंचा उठने के लिए किसी भी हद तक नीचे गिर सकती हैं,’’ कहते हुए उषा ने मुंह बिचका दिया. रिया भी उठ कर चल दी.

कालेज तो खत्म हो चुके थे. अब कैरियर बनाने का वक्त था. रिया के पापा चाहते थे कि वह सरकारी नौकरी को चुने. मगर रिया किसी अच्छी मल्टीनैशनल कंपनी में जाना चाहती थी. जब तक कोई ढंग का औफर नहीं मिलता तब तक रिया ने अपने पापा का मन रखने के लिए एक कोचिंग में ऐडमिशन ले लिया ताकि पढ़ाई से जुड़ाव बना रहे.

उषा को बहुत बुरा लगा जब उसे पता चला कि शालू भी उसी कोचिंग में जा रही है. रिया को समझाने का कोई मतलब नहीं था, वह अपनी सहेली के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. उषा की नाराजगी से बेखबर शालू का उस के घर आनाजाना बदस्तूर जारी था. हां, उषा के व्यवहार का रूखापन वह साफसाफ महसूस कर रही थी. वह देख रही थी कि पहले की तरह अब आंटी उस से हंसहंस कर बात नहीं करतीं बल्कि उसे देखते ही अपने कमरे में घुस जाती हैं.

कभी आमनासामना हो भी जाए तो बातबेबात उसे टारगेट कर के ताने सुनाने लगती हैं. उस के लिए तो चायपानी भी रिया खुद ही बनाती है. शालू ने कई बार पूछना भी चाहा मगर रिया ने हमेशा यह कह कर टाल दिया, ‘छोड़ न, मां थक जाती होंगी. वैसे भी हमें अब अपने काम खुद करने की आदत डाल लेनी चाहिए.’ और दोनों मुसकरा कर चाय बनाने में जुट जाती थीं.

इधर उषा ने रिया पर कुछ ज्यादा ही कड़ाई से नजर रखनी शुरू कर दी. वह जबतब रिया का मोबाइल ले कर उस के मैसेज, व्हाट्सऐप, फेसबुक अकांउट, आदि चैक करने लगी. कभीकभी छिप कर उस की बातें भी सुनने की कोशिश करती.

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यह सब रिया को बहुत बुरा लगता था, मगर वह मां के मन की उथलपुथल को समझ रही थी. ऐसे में उस का कुछ भी बोलना उन्हें आहत कर सकता था. उन्हें डिप्रैशन में ले जा सकता था या फिर हो सकता था कि गुस्से में आ कर मां उस के बाहर आनेजाने पर ही रोक लगा दें. यही सोच कर रिया चुपचाप मां की हर बात सहन कर रही थी.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

छोटी जात की लड़की: भाग 2

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तभी बदहवास सी रिया ने घर में प्रवेश किया. उस की हालत देखते ही उषा का कलेजा कांप उठा. बिखरे हुए बाल, मिट्टी से सने हाथपांव, कंधे से फटा हुआ कुरता. ‘‘क्या हुआ? ऐक्सिडैंट हो गया था क्या? फोन तो कर देतीं,’’ उषा ने एक ही सांस में कई प्रश्न पूछ डाले.

‘‘हां, ऐक्सिडैंट ही कह सकती हो. कोचिंग के बाहर औटो का इंतजार कर रही थी कि अचानक कुछ लड़कों ने मुझे घेर लिया.’’ रिया सुबकते हुए अपने साथ हुए हादसे के बारे में बता ही रही थी कि उषा बीच में ही बोल पड़ी. ‘‘आखिर वही हुआ न जिस का मुझे डर था. अरे शालू जैसी छोटी जात की लड़की के साथ रहोगी तो यह दिन तो आना ही था. कितना समझाया था मैं ने कि उस से दूर रहो, मगर मेरी सुनता कौन है.’’

‘‘बस करो मां. आज शालू के कारण ही मैं सहीसलामत आप के सामने खड़ी हूं. उस ने वक्त पर आ कर मेरी मदद नहीं की होती तो आज मैं कहीं की न रहती. उसी छोटी जात की लड़की ने आज आप की लाडली के चरित्र पर दाग लगने से बचाया है,’’ रिया ने रोते हुए कहा और उषा को विचारों के जाल में उलझा छोड़ कर सुबकती हुई अपने कमरे में चली गई.

लगभग 6 महीने की कोचिंग में शालू और रिया ने कई प्रतियोगी परीक्षाएं दीं और आखिरकार छोटी जात के विशेष कोटे में शालू का चयन वन विभाग में सुपरवाइजर के पद पर हो गया. रिया का चयन न होने से उस के पापा काफी निराश हुए. मगर उषा बहुत खुश थी. वह सोच रही थी, ‘चलो, कैसे भी कर के आखिर उस शालू से पीछा तो छूटा.’

कुछ ही महीनों में रिया ने भी अच्छे औफर पर एक मल्टीनैशनल कंपनी जौइन कर ली. हालांकि अब दोनों सहेलियों का प्रत्यक्ष मिलना कम ही होता था मगर फिर भी फोन और सोशल मीडिया पर दोनों का साथ बराबर बना हुआ था. रोज रात को दोनों एकदूसरे से दिनभर की बातें शेयर किया करती थीं. कभीकभार शालू लंचटाइम में आ कर? उस से मिल जाया करती थी.

रिया की कंपनी अपनी शाखाओं का विस्तार गांवों और कसबों तक करना चाह रही थी. इसी सिलसिले में कंपनी के सीईओ ने उसे प्रोजैक्ट हेड बना कर एक छोटे कसबे में भेजने के आदेश दे दिए. हमेशा महानगर में रही रिया के लिए यह काम आसान नहीं था. उसे तो अपना कोई काम हाथ से करने की आदत ही नहीं थी.

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‘‘एक दिन की बात तो है नहीं, प्रोजैक्ट तो लंबा चलेगा. कसबों में रहनेखाने की कहां और कैसे व्यवस्था होगी. सोचसोच कर रिया परेशान थी. उषा ने तो सुनते ही उसे यह प्रोजैक्ट लेने से मना कर दिया और नौकरी छोड़ने तक की सलाह दे डाली, मगर रिया समझती थी कि उस का यह प्रोजैक्ट करना कितना जरूरी है क्योंकि इनकार करने का मतलब नईनई नौकरी से हाथ धोना तो है ही, साथ ही, यह उस की इमेज का भी सवाल था.

यों परेशानियों से घबरा कर अपने पांव पीछे हटाना उस के आगे के कैरियर पर भी सवाल खड़े कर सकता है. उस ने शालू से अपनी परेशानी का जिक्र किया तो शालू ने उसे हिम्मत से काम लेने को कहा. उसे समझाया कि जिंदगी में आने वाली परेशानियों से ही आगे बढ़ने के रास्ते खुलते हैं. फिर शालू ने उस कसबे में अपने विभागीय रैस्ट हाउस में रिया के रहने की व्यवस्था करवाई और साथ ही, वहां के अटेंडैंट को हिदायत दी कि रिया को किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.

रिया का नया प्रोजैक्ट मुंबई से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर था. छोटा कसबा होने के कारण यातायात के साधन सीमित थे और इंटरनैट की उपलब्धता न के बराबर ही थी. हां, फोन की कनैक्टिविटी ठीकठाक होने से उस की परेशानी कुछ कम जरूर हुई थी.

अभी रिया को वहां गए महीनाभर भी नहीं हुआ था कि उषा की तबीयत अचानक खराब हो गई. उसे हौस्पिटल में भरती करवाया गया तो जांच में पता चला कि उस के गर्भाशय में बड़ी गांठ है. गांठ को निकालने की कोशिश से उषा की जान को खतरा हो सकता है, इसलिए औपरेशन कर के गर्भाशय ही निकालना पड़ेगा. खबर मिलते ही रिया तुरंत छुट्टी ले कर मुंबई आ गई. उषा का औपरेशन सफल रहा और 10 दिनों तक औब्जर्वेशन में रखने के बाद उसे हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया.

उषा को एक महीना बैड रैस्ट की सलाह दी गई थी. चूंकि रिया का प्रोजैक्ट और नौकरी दोनों ही नए थे, इसलिए उसे ज्यादा छुट्टी नहीं मिली और अब उस के सामने 2 ही विकल्प थे- या तो वह नौकरी छोड़े या फिर मां को अकेले छोड़ कर जाए. रिया कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रही थी. शालू को जब यह बात पता चली तो उस ने तुरंत एक महीने की छुट्टी ली और अपना सामान ले कर रिया के घर पहुंच गई. पूरा एक महीना वह साए की तरह उषा के साथ बनी रही. उषा के खानेपीने से ले कर वक्त पर दवाएं देने और उस के नहानेधोने तक का शालू ने पूरा खयाल रखा.

उषा उस के इस दूसरे रूप को देख कर हैरान थी. एक छोटी जात की लड़की के बड़प्पन का यह दूसरा पहलू सचमुच उसे चौंकाने वाला था. कभी शालू को चरित्रहीन समझने वाली उषा को आज अपनी सोच पर बहुत पछतावा हो रहा था. मगर न जाने क्या था जो अब भी उसे शालू को गले लगाने और उसे अपनी देखभाल करने के लिए थैंक्यू कहने से रोक रहा था.

कल शालू की छुट्टी का आखिरी दिन था. उषा भी अब लगभग स्वस्थ हो चुकी थी. रात को खाना ले कर शालू उषा के कमरे में गई तो उस की आंखों में आंसू देख कर चौंक गई. ‘‘क्या हुआ आंटी? कुछ परेशानी है क्या?’’ शालू ने पूछा. उषा ने कोई जवाब नहीं दिया मगर दो बूंदों ने ढुलक कर उस के दिल का सारा हाल बयान कर दिया. शालू उस के पास गई. धीरे से उस का सिर अपने सीने से सटा लिया. उषा से अब अपनेआप को रोका नहीं गया और वह शालू से लिपट कर रो पड़ी.

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‘‘मुझे माफ कर देना शालू, मैं ने तुम्हारे बारे में बहुत ही गलत राय बना रखी थी. अपने बचकाना व्यवहार के लिए मैं तुम से बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘आप कैसी बातें करती हो आंटी? आप ने मेरे बारे में जैसी भी राय बनाई है, मैं ने तो हमेशा ही आप पर अपना अधिकार समझा है और इसी अधिकार के चलते मैं बेहिचक यहां आतीजाती रही हूं. सच कहूं, मुझे आप के तानों का जरा भी बुरा नहीं लगता था. कहीं न कहीं आप के दिल में मेरे लिए फिक्र ही तो थी जो आप को ऐसा करने के लिए मजबूर करती थी. इसलिए अब पिछली सारी कड़वी बातों को भूल जाइए. कल रिया आने वाली है न, हमसब मिल कर फिर से पहले की तरह मस्ती करेंगे,’’ शालू ने चहकते हुए कहा और उषा से लिपट गई.

उषा आज अपनी भूल पर बहुत पछता रही थी. वह शिद्दत से महसूस कर रही थी कि किसी व्यक्ति का सिर्फ एक ही पहलू देख कर उस के बारे में अपनी पुख्ता धारणा बना लेना कितना गलत हो सकता है. और यह भी कि यह फोर्थ जेनरेशन कितनी प्रैक्टिकल सोच रखने वाली पीढ़ी है. सचमुच वह कागज का टुकड़ा, जो उसे शालू के बैग से मिला था, उस के चरित्र का प्रमाणपत्र नहीं था.

चमत्कार: भाग 2

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रामबाबू ने प्रस्ताव रखा कि यदि वरपक्ष शांति बनाए रखने को तैयार हो तो वह कमरे के ताले खुलवा देंगे पर लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला. साथ ही सब को गोलियों से भून कर रख देने की धमकी भी मिली.

इसी ऊहापोह में शादी के फूल मुरझाने लगे. बड़े परिश्रम और मनोयोग से बनाया गया भोजन यों ही पड़ापड़ा खराब होने लगा.

‘जयमाला’ के लिए सजधज कर बैठी मोहिनी की आंखें पथरा गईं. कुछ देर पहले तक सुनहरे भविष्य के सपनों में डूबी मोहिनी को वही सपने दंश देने लगे थे.

काफी प्रतीक्षा के बाद वह भलीभांति समझ गई कि दुर्भाग्य ने उस का और उस के परिवार का साथ अभी तक नहीं छोड़ा है. मन हुआ कि गले में फांसी का फंदा लगा कर लटक जाए, पर रमन का विचार मन में आते ही सब भूल गई. किस तरह कठिन परिश्रम कर के रमन भैया ने पिता के बाद कर्णधार बन कर परिवार की नैया पार लगाई थी. वह पहले ही इस अप्रत्याशित परिस्थिति से जूझ रहा था और एक घाव दे कर वह उसे दुख देने की बात सोच भी नहीं सकती थी.

उधर काफी देर होहल्ला करने के बाद बराती शांत हो गए थे. बरात में आए बच्चे भूखप्यास से रोबिलख रहे थे. बरातियों ने भी इस अजीबोगरीब स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी.

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अत: जब मेयर रामबाबू ने फिर से कमरों के ताले खोलने का प्रस्ताव रखा, बशर्ते कि बराती शांति बनाए रखें तो वरपक्ष ने तुरंत स्वीकार कर लिया.

अब तक अधिकतर बरातियों का नशा उतर चुका था. पर रस्सी जलने पर भी ऐंठन नहीं गई थी. वर के पिता सुरेंद्रनाथ तथा अन्य संबंधियों ने बरात के वापस जाने का ऐलान कर दिया. रामबाबू भी कच्ची गोलियां नहीं खेले थे. उन के इशारा करते ही कालोनी के युवकों ने बरातियों को चारों ओर से घेर लिया था.

‘देखिए श्रीमान, मोहिनी केवल एक परिवार की नहीं सारी कालोनी की बेटी है. जो हुआ गलत हुआ पर उस में बरातियों का दोष भी कम नहीं था,’ रामबाबू ने बात सुलझानी चाही थी.

‘चलिए, मान लिया कि दोचार बरातियों ने नशे में हुड़दंग मचाया था तो क्या आप हम सब को सूली पर चढ़ा देंगे?’ वरपक्ष का एक वयोवद्ध व्यक्ति आपा खो बैठा था.

‘आप इसे केवल हुड़दंग कह रहे हैं? गोलियां चली हैं यहां. न जाने कितने घरातियों को चोटें आई हैं. आप के सम्मान की बात सोच कर ही कोई थानापुलिस के चक्कर में नहीं पड़ा,’ रमन के चाचाजी ने रामबाबू की हां में हां मिलाई थी.

‘तो आप हमें धमकी दे रहे हैं?’ वर के पिता पूछ बैठे थे.

‘धमकी क्यों देने लगे भला हम? हम तो केवल यह समझाना चाह रहे हैं कि आप बरात लौटा ले गए तो आप की कीर्ति तो बढ़ने से रही. जो लोग आप को उकसा रहे हैं, पीठ पीछे खिल्ली उड़ाएंगे.’

‘अजी छोडि़ए, इन सब बातों में क्या रखा है. अब तो विवाह का आनंद भी समाप्त हो गया और इच्छा भी,’ लड़के के पिता सुरेंद्रनाथ बोले थे.

‘आप हां तो कहिए, विवाह तो कभी भी हो सकता है,’ रामबाबू ने पुन: समझाया था.

काफी नानुकुर के बाद वरपक्ष ने विवाह के लिए सहमति दी थी.

‘इन के तैयार होने से क्या होता है. मैं तो तैयार नहीं हूं. यहां जो कुछ हुआ उस का बदला तो ये लोग मेरी बहन से ही लेंगे. आप ही कहिए कि उस की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा. माना हमारे सिर पर पिता का साया नहीं है पर हम इतने गएगुजरे भी नहीं हैं कि सबकुछ देखसमझ कर भी बहन को कुएं में झोंक दें,’ तभी रमन ने अपनी दोटूक बात कह कर सभी को चौंका दिया था और फूटफूट कर रोने लगा था.

कुछ क्षणों के लिए सभी स्तब्ध रह गए थे. रामबाबू से भी कुछ कहते नहीं बना था. पर तभी अप्रत्याशित सा कुछ घटित हो गया था. भावी वर राजीव स्वयं उठ कर रमन को सांत्वना देने लगा था, ‘मैं आप को आश्वासन देता हूं कि आप की बहन मोहिनी विवाह के बाद पूर्णतया सुरक्षित रहेगी. विवाह के बाद वह आप की बहन ही नहीं मेरी पत्नी भी होगी और उसे हमारे परिवार में वही सम्मान मिलेगा जो उसे मिलना चाहिए.’

‘ले, सुन ले रमन, अब तो आंसू पोंछ डाल. इस से बड़ी गारंटी और कोई क्या देगा,’ रामबाबू बोले थे.

धीरेधीरे असमंजस के काले मेघ छंटने लगे थे. नगाड़े बज उठे थे. बैंड वाले अपनी ही धुन पर थिरक रहे थे. रमन पुन: बरातियों के स्वागतसत्कार मेें जुट गया था.

रमन न जाने और कितनी देर अपने दिवास्वप्न में डूबा रहता कि तभी मोहिनी ने अपने दोनों हाथों से उस के नेत्र मूंद दिए थे.

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‘‘बूझो तो जानें,’’ वह अपने चिरपरिचित अंदाज में बोली थी.

रमन ने उसे गले से लगा लिया. सारा घर मेहमानों से भर गया था. सभी मोहिनी की एक झलक पाना चाहते थे.

मोहिनी भी सभी से मिल कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रही थी. तभी रामबाबू ने वहां पहुंच कर सब के आनंद को दोगुना कर दिया था. रमन कृतज्ञतावश उन के चरणों में झुक गया था.

‘‘काकाजी उस दिन आप ने बीचबचाव न किया होता तो न जाने क्या होता,’’ वह रुंधे गले से बोला था.

‘‘लो और सुनो, बीचबचाव कैसे न करते. मोहिनी क्या हमारी कुछ नहीं लगती. वैसे भी यह हमारे साथ ही दो परिवार के सम्मान का भी प्रश्न था,’’ रामबाबू मुसकराए फिर

राजीव से बोले, ‘‘एक बात की बड़ी उत्सुकता है हम सभी को कि वे लोग थे कौन जिन्होंने इतना उत्पात मचाया था? मुझे तो ऐसा लगा कि बरात में 3-4 युवक जानबूझ कर आग को हवा दे रहे थे.’’

‘‘आप ने ठीक समझा, चाचाजी,’’ राजीव बोला, ‘‘वे चारों हमारे दूर के संबंधी हैं. संपत्ति को ले कर हमारे दादाजी से उन का विवाद हो गया था. वह मुकदमा हम जीत गए, तब से उन्होंने मानो हमें नीचा दिखाने की ठान ली है. सामने तो बड़ा मीठा व्यवहार करते हैं पर पीठ पीछे छुरा भोंकते हैं,’’ राजीव ने स्पष्ट किया.

‘‘देखा, रमन, मैं न कहता था. वे तो विवाह रुकवाने के इरादे से ही बरात में आए थे, पर उस दिन राजीव, तुम ने जिस साहस और सयानेपन का परिचय दिया, मैं तो तुम्हारा कायल हो गया. मोहिनी बेटी के रूप में हीरा मिला है तुम्हें. संभाल कर रखना इसे,’’ रामबाबू ने राजीव की प्रशंसा के पुल बांध दिए थे.

राजीव और मोहिनी की निगाहें एक क्षण को मिली थीं. नजरों में बहते अथाह प्रेम के सागर को देख कर ही रमन तृप्त हो गया था, ‘‘आप ठीक कहते हैं, काका. ऐसे संबंधी बड़े भाग्य से मिलते हैं.’’

वह आश्वस्त था कि मोहिनी का भविष्य उस ने सक्षम हाथों में सौंपा था.

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सारा जहां अपना: भाग 1

लेखक- शिव अवतार पाल

मयंक बेचैनी से कमरे में चहल- कदमी कर रहा था. रात के 10 बज चुके थे. वह सोने जा रहा था कि दीप के स्कूल से आए प्रधानाचार्य के फोन ने उसे परेशान कर दिया. प्रधानाचार्य ने कहा था कि दीप बीमार है और आप को याद कर रहा है.

‘‘उसे हुआ क्या है?’’ घबरा कर मयंक ने पूछा.

‘‘वायरल फीवर है.’’

‘‘कब से?’’

‘‘सुस्त तो वह कल शाम से ही था, पर फीवर आज सुबह हुआ है,’’ प्रधानाचार्य ने बताया.

‘‘क्या बेहूदा मजाक है,’’ मयंक के स्वर में सख्ती घुल गई थी, ‘‘तुरंत आप ने चैकअप क्यों नहीं करवाया? बच्चों की ऐसी ही देखभाल करते हैं आप लोग? मेरे बेटे को कुछ हो गया तो…’’

‘‘आप बेवजह नाराज हो रहे हैं,’’ प्रधानाचार्य ने उस की बात बीच में काट कर विनम्रता से कहा था, ‘‘यहां रहने वाले सभी बच्चों का घर की तरह खयाल रखा जाता है, पर उन्हें जब मांबाप की याद आने लगे तो उदास हो जाते हैं. यद्यपि हम पूरी कोशिश करते हैं कि ऐसा न हो, पर नए बच्चों के साथ अकसर ऐसी समस्या आ जाती है.’’

‘‘दीप अब कैसा है?’’ प्रधानाचार्य की विनम्रता से प्रभावित हो कर मयंक सहजता से बोला था.

‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. डाक्टर के साथ मैं लगातार उस की देखभाल कर रहा हूं. आप सुबह आ कर उस से मिल लें तो बेहतर रहेगा.’’

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वह तो इसी वक्त जाना चाहता था पर पिछले 2 घंटे से तेज बारिश हो रही थी. अब तक तो पूरा शहर टापू बन चुका होगा. रास्ते में कहीं स्कूटर फंस गया तो मुसीबत और बढ़ जाएगी. फिलहाल जाने का विचार छोड़ कर वह सोफे पर पसर गया. सामने फे्रम में जड़ी अंजलि की मुसकराती तसवीर रखी थी. उस के बारे में सोच कर उस के मुंह का स्वाद कसैला हो गया.

अंजलि सिर्फ बौस, आफिस और अपने बारे में ही सोचती थी और किसी विषय में सोचनेसमझने का उस के पास समय ही नहीं था. उस पर तो हर पल काम, तरक्की और अधिक से अधिक पैसा कमाने की धुन सवार थी. मशीनी युग में वह मशीन बन गई थी, शायद इसीलिए उस के दिल में बेटे और पति के लिए कोई संवेदना नहीं थी. अब तो मयंक अकेला रहने का अभ्यस्त हो गया था. कभीकभी न चाहते हुए भी समझौता करना पड़ता है. यही तो जिंदगी है.

अचानक बिजली चली गई. कमरा घने अंधकार के आगोश में सिमट गया. वह यों ही निश्चल और निश्चेष्ट बैठा अपने जीवन के बारे में सोचता रहा. अब उस के भीतर और बाहर फैली स्याही में कोई फर्क नहीं था. कुछ देर बाद गरमी से घुटन होने पर वह उठा और दीवार का सहारा लेते हुए खिड़की खोली. ठंडी हवा के झोंकों से उस के तपते दिमाग को राहत मिली.

बाहर बारिश का तेज शोर शांति भंग कर रहा था. सहसा तेज ध्वनि के साथ बिजली चमक कर कहीं दूर गिरी. उसे लगा कि ऐसी ही बिजली उस के आंगन में भी गिरी है, जिस में उस का सुखचैन, अंजलि का प्रेम और दीप का चुलबुला बचपन राख हो चुका है. उस ने तो सहेजने की बहुत कोशिश की पर सबकुछ बिखरता चला गया.

6 साल का दीप पहले कितना शरारती था. उस के साथ घर का हर कोना खिलखिलाता था पर अब तो वह हंसना ही भूल गया था. उस के और अंजलि के बीच आएदिन होने वाले झगड़ों में दीप का मासूम बचपन खो चुका था. विवाद टालने के लिए वह कितना एडजस्ट करता था और अंजलि थी कि छोटी से छोटी बात पर आसमान सिर पर उठा लेती थी. उस का छोटा सा घर, जिसे उस ने बड़े प्यार से सींचा था, ज्वालामुखी बन चुका था, जिस की आंच में अब वह हर पल सुलगता था. मयंक की आंखों में आंसुओं के साथ बीती यादें चुपके से उतर कर तैरने लगीं.

वह अपने आफिस की ओर से जिस मल्टी नेशनल कंपनी में फाइनेंशियल डील के लिए गया था, अंजलि वहां अकाउंटेंट थी. हायहैलो के साथ शुरू हुई औपचारिक मुलाकात रेस्तरां में चाय की चुस्कियों के साथ दिल की गहराई तक जा पहुंची थी. 1 साल के भीतर दोनों विवाह के बंधन में बंध गए. मयंक हनीमून के लिए किसी हिल स्टेशन पर जाना चाहता था. उस ने आफिस में छुट्टी के लिए अर्जी दे दी थी, पर अंजलि तैयार नहीं हुई.

‘पहले कैरियर सैटल हो जाने दो, हनीमून के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है.’

‘अच्छीखासी तो नौकरी है,’ मयंक ने उसे समझाने का प्रयास किया, ‘मोटी तनख्वाह मिलती है, और क्या चाहिए?‘

‘जो मिल जाए उसी में संतुष्ट रहने से इनसान कभी तरक्की नहीं कर सकता,’ अंजलि ने परोक्ष रूप से उस पर कटाक्ष किया, ‘मिडिल क्लास की सोच सीमित दायरे में सिमटी रहती है, इसीलिए वह हाई सोसायटी में एडजस्ट नहीं हो पाता.’

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मयंक तिलमिला कर रह गया.

‘बड़ा आदमी बनने के लिए बड़े ख्वाब देखने पड़ते हैं और उन्हें साकार करने के लिए कड़ी मेहनत,’ अंजलि बोली, ‘अभी स्टेटस सिंबल के नाम पर हमारे पास क्या है? कार, बंगला, ए.सी. और नौकरचाकर कुछ भी तो नहीं. इस खटारा स्कूटर और 2 कमरे के फ्लैट में कब तक खटते रहेंगे?’

‘तुम्हें तो किसी अरबपति से शादी करनी चाहिए थी,’ मयंक कुढ़ कर बोला, ‘मेरे साथ यह सब नहीं मिल सकेगा.’

मयंक को मन मार कर छुट्टी कैंसिल करानी पड़ी. घर की सफाई और खाना बनाने के लिए बाई थी. कई जगह काम करने के कारण वह शाम को कभीकभार लेट हो जाती थी.

मयंक कभी चाय की फरमाइश करता तो अंजलि टीवी प्रोग्राम पर निगाह जमाए बेरुखी से जवाब देती, ‘तुम आफिस से आए हो तो मैं भी घर में नहीं बैठी थी. 2 कप चाय बनाने में थक नहीं जाओगे.’

‘ये तुम्हारा काम है.’

‘मेरा क्यों?’ वह चिढ़ जाती, ‘तुम्हारा क्यों नहीं? तुम से पहले आफिस जाती हूं और काम भी तुम से अधिक टिपिकल करती हूं. अकाउंट संभालना हंसीखेल नहीं है.’

इस के बाद तो मयंक के पास 2 ही रास्ते बचते थे, खुद चाय बनाए या बाई के आने का इंतजार करे. दूसरा विकल्प उसे ज्यादा मुफीद लगता था. वह नारीपुरुष समानता का विरोधी नहीं था. पर अंजलि को भी तो उस के बारे में कुछ सोचना चाहिए. जब वह शांत हो जाता तो अंजलि अपने लिए एक कप चाय बना कर टीवी देखने में मशगूल हो जाती और वह अपमान के घूंट पी कर रह जाता था. उस के वैवाहिक जीवन की नौका डोलने लगी थी.

मयंक ने सदा ऐसी पत्नी की कल्पना की थी जो उस के प्रति समर्पित रहे. केवल अहं की तुष्टि के लिए समानता की बात न करे, बल्कि सुखदुख में बराबर की भागीदार रहे. उस के मन को समझे, हृदय की गहराई से प्यार करे और जिस के आंचल की छांव तले वह दो पल सुखशांति से विश्राम कर सके. बाई के बनाए खाने से पेट तो भर जाता था, पर मन भूखा ही रह जाता था. काश, अंजलि कभी अपने हाथ से एक कौर ही खिला देती तो वह तृप्त हो जाता.

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