Manohar Kahaniya: बच्चा चोर गैंग- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अलीगढ़ में महुआखेड़ा थाने के थानाप्रभारी विनोद कुमार पिछले कुछ महीने से इलाके में बच्चा चोरी या लापता होने की घटनाओं को लेकर काफी उलझन में थे. इस तरह की घटनाओं की शिकायतें दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं. गरीब परिवार के लोगों की अपने छोटे बच्चे के अचानक लापता होने की कई शिकायतें दर्ज थीं.

चिंता इस बात की थी कि न तो चोरी का बच्चा बरामद हो पा रहा था और न ही उस का कोई सुराग ही मिल रहा था. उन की रातों की नींद उड़ी हुई थी. हर पल आंखों के सामने बच्चे की तलाश में आने वाली रोतीबिलखती मांओं का चेहरा घूम जाता था.

आखिर कौन हैं बच्चे चुराने वाले? गायब बच्चे कहां होंगे? बच्चे की देखभाल कौन कर रहा होगा? उन की मां का क्या हाल होगा? आदि सवालों के इसी उधेड़बुन के साथ थानाप्रभारी 22 जून को अपने क्वार्टर थाने में स्थित औफिस आ रहे थे.

अभी वह औफिस के गेट तक ही पहुंचे थे कि एक औरत और एक आदमी को थाने में जमीन पर बैठे देखा. औरत की आंखों से आंसू टपक रहे थे. वह बारबार अपने दुपट्टे से आंसू पोछे जा रही थी. उस के साथ बैठा आदमी उसे ढांढस बंधा रहा था.

थानाप्रभारी विनोद कुमार ने उन्हें इशारे से अपने औफिस में बुलाया. आदर भाव से पूछा, ‘‘अरे, आप लोग जमीन पर क्यों बैठे हो, अंदर आओ.’’

बुरी तरह से बिलख रही महिला को शांत  करते हुए पूछा, ‘‘हांहां, बताइए क्या परेशानी है?’’

‘‘श्रीमान जी, मैं राजा हूं. ये मेरी घरवाली रेखा है. आज सुबह मेरी बच्ची को कोई उठा ले गया.’’ औरत के साथ बैठा आदमी बोला.

थानाप्रभारी फिर बच्चा चोरी की शिकायत सुन कर विचलित हो गए. उन्होंने उन से पूरी मामले की जानकारी ली. उस के बाद उन को बच्चे का पता जल्द पता लगा लिए जाने का आश्वासन देते हुए तसल्ली दी. बच्चा मिलने का भरोसा पा कर पतिपत्नी चले गए. किंतु विनोद कुमार के माथे पर शिकन और गहरा गई.

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कुछ समय में ही रामकरण नाम का एक मुखबिर आया. दूर से ही रामराम किया. वह एक फेरीवाला था. साइकिल पर स्कूलों के बाहर बच्चों के लिए खानेपीने का सामान बेचने का काम करता था. स्कूल बंद होने के कारण वह गलीमोहल्ले में घूमघूम कर सामान बेचने लगा था. थानाप्रभारी विनोद कुमार का वह पूर्व परिचित था.

‘‘साब जी, अभीअभी जो औरत आप से मिल कर गई है, उस पर मुझे शक है,’’ फेरीवाला बोला.

‘‘क्या कहते हो रामकरण! वह तो अपने बच्चे के चोरी होने की शिकायत ले कर आई थी,’’ थानाप्रभारी चौंक गए.

‘‘मैं सही कह रहा हूं साब जी, उस का तो कोई बच्चा है ही नहीं. उस के साथ जो आदमी था, वह उस का पति भी नहीं है,’’ रामकरण ने बताया. ‘‘तो फिर वे कौन लोग हैं?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘औरत तो अलीगढ़ की रहने वाली ही नहीं है. और रही बात उस के साथ आए आदमी की तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वह भी मेरी तरह फेरीवाला है. वह घूमघूम कर फलसब्जियां बेचता है. उसे मैं ने कई बार सुबह के समय में सब्जी मंडी में थोक में सब्जियां खरीदते हुए देखा है.’’ रामकरण बोला.

‘‘यदि वे दोनों पतिपत्नी नहीं हैं तो उन्होंने बच्चा चोरी की शिकायत क्यों दर्ज कराई?’’ थानाप्रभारी ने सवाल किया.

‘‘ताकि आप एक और बच्चा चोरी की तलाश में उलझ जाएं.’’ फेरीवाला रामकरण बोला.

‘‘ठीक है, तुम अब जाओ,’’ कहने के बाद थानाप्रभारी एक बार फिर सोच में पड़ गए.

घटनाक्रम का पेंच

मुखबिर रामकरण ने जो कुछ बताया अगर उस में जरा सी सच्चाई है, तो इस का मतलब है कि बच्चा चोरी की वारदातों में कोई गिरोह पूरी तरह से योजना बना कर काम कर रहा है.

इसे आधार बना कर थानाप्रभारी ने बच्चों के गुमशुदा मामलों की तहकीकात नए सिरे से शुरू करने की योजना बनाई.

उत्तर प्रदेश का जिला अलीगढ़ तरहतरह के ताले बनाने के लिए देशविदेश में प्रसिद्ध है. तालों की जरूरत तो कोठियों, बंगलों, आलीशान मकानों, दुकानों, गोदामों आदि की सुरक्षा के लिए होती है. किंतु सड़क के किनारे खानाबदोशों की जिंदगी उतनी ही असुरक्षित बनी रहती है. वे अपनी बैलगाड़ी के ऊपर और नीचे तंबू तान कर जैसेतैसे अपनी जिंदगी गुजारते हैं. वे बंजारे के नाम से जाने जाते हैं. उन के घरों में दरवाजे ही नहीं होते हैं. पूरा परिवार सड़कों या कहीं नालों के किनारे खाली पड़ी जगहों पर रहता है.

वहीं उन का खाना पकाना, खाना और नहानाधोना होता है. उन्हें तालों की जरूरत हो न हो, लेकिन उन के जानमाल की सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन की जरूरत बनी रहती है.

यही कारण है कि वहां के लोग अकसर पुलिस के पास अपनी तरहतरह की शिकायतें ले कर पहुंचते रहते हैं.

अलीगढ़ के इसी इलाके में बंजारों का एक परिवार क्वारसी बाईपास स्थित सरोज नगर की गली नंबर 6 के पास रहता था. वे पारंपरिक भट्ठी में लोहे को तपा कर सामान्य जरूरत के सामान छेनी, हथौड़ी, बाल्टी, कड़ाही आदि बनाते हैं. इस काम में दिमाग लगाने वाला काम पुरुष और हथौड़ा चलाने का काम अधिकतर औरतें करती रहती हैं.

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बात 21 जून, 2021 की है. रोज की तरह राजा भट्ठी पर लोहा तपा रहा था. तभी उस के सामने एक कार आ कर रुकी. उस में से 3 युवक निकल कर राजा के पास आए. उन से किसी बात को ले कर राजा से नोकझोंक हो गई. तभी उस की पत्नी रेखा भी आ गई. वह चीखती हुई बोली, ‘‘क्यों धमका रहे हो मेरे पति को?’’

‘‘तू क्या महारानी है?’’ एक युवक चिल्लाया और दूसरे ने राजा को पकड़ लिया. उन के आक्रामक तेवर देख वह घबरा गई.

‘‘बाबू हम गरीब लोग हैं, हमारे पति को माफ कर दो. आपलोग चले जाओ.’’ वह बोली.

ये सारी बातें थानाप्रभारी विनोद कुमार को रेखा ने तब बताईं, जब उसे रामकरण फेरीवाला के कहने पर दोबारा थाने बुला कर पूछा गया.

अगले भाग में पढ़ें- रेखा की बातों पर हुआ शक

Manohar Kahaniya: वीडियो में छिपा महंत नरेंद्र गिरि की मौत का रहस्य- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुने जाने के बाद नरेंद्र गिरि का कद तेजी से बढ़ने लगा. उन से मिलने वालों में नेताओं और अधिकारियों की लाइन लगने लगी. जिस निरंजनी अखाडे़ में वह हाशिए पर रहते थे, वहां भी उन का महत्त्व बढ़ गया था.

अखाड़े के तमाम प्रभावशाली लोग किनारे हो गए थे. ऐसे लोगों को नरेंद्र गिरि का बढ़ता कद अखरने लगा था. नरेंद्र गिरि ने तमाम ऐसे फैसले करने शुरू कर दिए, जो लोगों को नागवार गुजरने लगे थे. अखाड़ा परिषद का प्रमुख कार्य संतों के अलगअलग अखाड़ों को मान्यता देने का होता है. ऐसे में नरेंद्र गिरि ने 2017 में किन्नर और परी अखाडे़ को मान्यता देने से इंकार कर दिया था.

अखाड़ा परिषद में नरेंद्र गिरि की छवि कड़े फैसले लेने वाले अध्यक्ष की बन गई थी. महंत नरेंद्र गिरि ने फरजी संतों की एक लिस्ट जारी कर दी थी. इस में 19 संतों के नाम शामिल थे, जिस की वजह से वह काफी चर्चा में रहे थे.

मीडिया में यह सूची जारी करने के बाद उन पर दबाव पड़ रहा था कि वह इस सूची को वापस ले लें, लेकिन नरेंद्र गिरि सूची वापस लेने को तैयार नहीं थे. ऐसे में उन के खिलाफ विरोधियों की साजिश शुरू हो गई.

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नरेंद्र गिरि का एक वीडियो वायरल किया गया, जिस में वह एक शादी समारोह में डांस करने वाली लड़कियों पर नोट लुटा रहे थे.

नरेंद्र गिरि की तरफ से सफाई देते यह कहा गया था कि वह शादी रिश्तेदारी में थी, जिस में वह खुशीखुशी डांस करने वाली लड़कियों को नोट दे रहे थे. इस वीडियो के वायरल होने के बाद से नरेंद्र गिरि की छवि को काफी धक्का लगा था.

जायदाद और जमीन से जुडे़ विवाद

बाघंबरी गद्दी मठ और निरजंनी अखाड़े के पास अकूत धन और संपदा है. इसे ले कर साजिशों का दौर चल रहा था. प्रभावशाली लोग संतों के साथ मिल कर इस की जायदाद पर कब्जा करने का काम कर रहे थे. संतमहंत ही नहीं सेवादार भी अपने परिजनों के नाम जमीनें खरीद रहे थे.

इस तरह की बातों को ले कर ही नरेंद्र गिरि का अपने ही शिष्य आंनद गिरि के साथ विवाद शुरू हो गया. मठ मंदिर से जुडे़ लोग किसी न किसी तरह से ऐसे मसले तलाश करने लगे, जिस से वह नरेंद्र गिरि से अपनी बात मनवा सकें.

आनंद गिरि मूलरूप से उत्तराखंड के रहने वाले थे. किशोरावस्था में ही वह हरिद्वार के आश्रम में नरेंद्र गिरि को मिले थे. इस के बाद नरेंद्र गिरि उन को प्रयागराज ले आए थे. 2007 में आनंद गिरि निरजंनी अखाड़े से जुड़े और महंत भी बने. गुरु के करीबी होने के कारण लेटे हनुमान मंदिर के छोटे महंत के नाम से भी उन्हें जाना जाता था.

यह मंदिर भी बाघंबरी ट्रस्ट के द्वारा ही संचालित होता था. आनंद गिरि को योग गुरु के नाम से भी जाना जाता था. वह देशविदेश में योग सिखाने के लिए भी जाता था.

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महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि ने खुद को नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी भी घोषित कर लिया था. बाद में विवाद होने के बाद नरेंद्र गिरि ने इस का खंडन किया था.

आनंद गिरि ने गंगा सफाई के लिए गंगा सेना भी बनाई थी. वह हरिद्वार में एक आश्रम भी बना रहा था. इस के बाद नरेंद्र गिरि के साथ उन का विवाद बढ़ गया था.

दूसरे शिष्य भी खफा रहते थे आनंद गिरि से

महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि दूसरे शिष्यों की आंखों में खटकता था. ऐसे में उस को ले कर सभी इस कोशिश में रहते थे कि वह नरेंद्र गिरि से दूर हो जाए.

आनंद गिरि के विरोधियों को तब मौका मिल गया, जब आनंद गिरि 2016 और 2018 के पुराने मामलों में अपनी ही 2 शिष्याआें के साथ मारपीट और अभद्रता को ले कर 2019 में सुर्खियों में आया था.

मई, 2019 में उसे जेल भी जाना पड़ा था. इस के बाद सितंबर माह में सिडनी कोर्ट ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया था. इस के बाद उस का पासपोर्ट भी रिलीज कर दिया गया था. तब आनंद गिरि भारत आ गया.

आनंद गिरि का हवाई जहाज में शराब पीते हुए एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. आंनद गिरि ने इसे शराब नहीं जूस बताया था. आनंद गिरि शौकीन किस्म का था. महंगी कार, बाइक और ऐशोआराम का उसे शौक था.

नरेंद्र गिरि से पहले भी ऐसे ही विवादों के बीच ही मठ के 2 महंतों की संदिग्ध हालत में मौत हो चुकी है. नरेंद्र गिरि का अपने ही षिष्य आनंद गिरि के साथ विवाद की वजह 80 फीट चौड़ी और 120 फीट लंबी गौशाला की जमीन का टुकड़ा बना. आनंद गिरि के नाम यह जमीन लीज पर थी. यहां पर पेट्रोल पंप बनना था.

कुछ दिनों के बाद महंत नरेंद्र गिरि ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि यहां पर पेट्रोल पंप नहीं चल सकता. उन का कहना था कि यहां पर मार्केट बना दी जाए, जिस से मठ की आमदनी बढ़ेगी.

आनंद गिरि का कहना था कि नरेंद्र गिरि उस जमीन को बेचना चाहते हैं. इस कारण लीज कैंसिल कराई गई थी.

मठ की इस करोड़ों रुपए की जमीन को ले कर नरेंद्र गिरि और उन के शिष्य आनंद गिरि के बीच घमासान इस कदर बढ़ गया कि नरेंद्र गिरि ने आनंद गिरि को निरंजनी अखाड़े और मठ से निकाल दिया था. इस के बाद आंनद गिरि भाग कर हरिद्वार पहुंच गया था.

आनंद गिरि ने इस के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह के ऐसे वीडियो वायरल किए, जिन में नरेंद्र गिरि के शिष्यों के पास करोड़ों की संपत्ति होने का दावा किया गया था.

नरेंद्र गिरि ने इन मुद्दों पर सफाई देते कहा था कि ये आरोप बेबुनियाद हैं. उन की छवि को धूमिल करने के लिए यह काम किया गया है. कुछ समय के बाद आनंद गिरि ने अपने गुरु नरेंद्र गिरि से माफी मांग ली थी. माफी मांगने के वीडियो भी खूब वायरल हुए थे.

नरेंद्र गिरि का एक और विवाद लेटे हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी आद्या तिवारी और उस के बेटे संदीप तिवारी के साथ बताया जाता है. लेनेदेन के इस विवाद की वजह से दोनों के बीच बातचीत बंद थी.

जायदाद के ऐसे विवादों के अलावा भी नरेंद्र गिरि कई तरह के दूसरे विवादों में भी घिरे थे. नरेंद्र गिरि के करीबी रहे शिष्य और निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत आशीष गिरि ने 17 नवंबर, 2019 को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. आशीष गिरि ने जमीन बेचने का विरोध किया था.

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दारागंज स्थित अखाड़े के आश्रम में आशीष गिरि ने गोली मार कर आत्महत्या की थी. इस की वजह यह बताई जा रही थी कि 2011 और 2012 में बाघंबरी गद्दी की जमीन समाजवादी पार्टी के नेता को बेची जा रही थी. पुलिस ने आशीष गिरि की आत्महत्या का कारण डिप्रेशन बताया था.

वीडियो में छिपे राज

जानकार लोगों का मानना है कि नरेंद्र गिरि का कोई ऐसा वीडियो था, जिस के वायरल होने से उन को अपने मानसम्मान के धूमिल होने का डर लग रहा था. एक ऐसा ही वीडियो पहले भी वायरल हो चुका था, जिस में वह डांस करने वाली लड़कियों पर रुपए लुटा रहे थे.

यह माना जा रहा है कि उस की तरह का या उस से अधिक घातक वीडियो और भी हो सकता है. जिस की आड़ में उन को ब्लैकमेल किया जा रहा था. ऐसे में अपना मानसम्मान खोने के डर से नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या जैसा फैसला कर लिया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने नरेंद्र गिरि की मौत की जांच कराने के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. 18 सदस्यों वाली इस जांच टीम की निगरानी 4 अफसरों को सौंपी.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए आरोपी आनंद गिरि, आद्या तिवारी और उन के बेटे संदीप तिवारी को भादंवि की धारा 306 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर नैनी जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी.

नरेंद्र गिरि ने सुसाइड नोट लिखने के अलावा अपना बयान रिकौर्ड कर के भी मोबाइल में रखा है. मौत की वजह जायदाद और मठ के महंत पद का लालच है.

महंत नरेंद्र गिरि की मौत से पता चलता है कि मंदिर और मठ कितनी भी धर्म की बातें कर लें पर वहां भी लालच और एक दूसरे के खिलाफ षडयंत्र हावी रहता है, जिस की वजह से ऐसी घटनाएं घटती रहती है.

Crime Story: प्यार बना जहर

उत्तराखंड के जिला ऊधमसिंह नगर का एक उपनगर है जसपुर. 12 फरवरी, 2020 की शाम साढ़े 6 बजे किसी व्यक्ति ने जसपुर कोतवाली में फोन कर के बताया कि महुआ डाबरा, हरिपुर स्थित कालेज की ओर जाने वाली कच्ची सड़क किनारे गन्ने के खेत में एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह पौपुलर के जंगल के पास है.  फोन करने वाले ने सूचना दे कर फोन काट दिया. फोन लैंडलाइन पर आया था, इसलिए फोन करने वाले को कालबैक कर के कोई जानकारी नहीं ली जा सकती थी.

खबर मिलते ही कोतवाली प्रभारी उमेद सिंह दानू पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जब तक पुलिस टीम मौके पर पहुंची, तब तक अंधेरा हो चुका था. इस के बावजूद पुलिस ने जीप की रोशनी और टौर्च के सहारे लाश को खोज लिया. मृतका की लाश अर्द्धनग्न स्थिति में थी.

घटनास्थल का निरीक्षण करने पर पहली बार में ही यह बात समझ में आ गई कि मृतक की हत्या कहीं और कर के लाश को उस जगह ला कर फेंका गया है. लाश के पास ही एक लेडीज हैंड पर्स भी पड़ा था, जिस में कुछ दवाइयों के अलावा मेकअप का सामान, मोबाइल फोन, कुछ कंडोम्स वगैरह थे. लाश से कुछ दूरी पर लेडीज सैंडलनुमा जूती भी पड़ी मिली.

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घटनास्थल से सब चीजें और जानकारी जुटाने के बाद कोतवाल उमेद सिंह दानू ने महिला की लाश मिलने की सूचना काशीपुर के सीओ मनोज कुमार ठाकुर, एडीशनल एसपी राजेश भट्ट, एसएसपी बरिंदरजीत सिंह को दे दी. खबर पा कर उच्चाधिकारी घटनास्थल पर आ गए. घटनास्थल पर पुलिस का जमावड़ा लगते देख आसपास के गांवों के कुछ लोग भी एकत्र हो गए थे. पुलिस ने उन से मृतका की शिनाख्त कराई तो उस की पहचान हो गई. पता चला मृतका गांव सुआवाला, जिला बिजनौर की रहने वाली जसवीर कौर उर्फ सिमरनजीत थी. उस के पति का नाम हरविंदर सिंह है.

मृतका की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस अफसरों ने उस के घर वालों तक घटना की जानकारी पहुंचाने के लिए 2 सिपाहियों को भेज दिया. हरविंदर की हत्या की बात सुन कर उस के घर वाले तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

मौकाएवारदात पर पहुंचते ही मृतका के भाई राजेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि जसवीर कौर की हत्या उस के ससुराल वालों ने की है. उन्होंने ही लाश यहां ला कर डाली होगी. राजेंद्र ने पुलिस को बताया कि उस की बहन मामा के लड़के की शादी में आई थी, लेकिन 5 फरवरी को उस का ममेरा भाई सोनी उसे उस की ससुराल सुआवाला छोड़ आया था. उस के बाद उस की जसवीर से कोई बात नहीं हो पाई थी.

राजेंद्र ने पुलिस को बताया कि उस का बहनोई हैप्पी ड्रग्स का सेवन करता है, जिस की वजह से वह घर का कामकाज भी नहीं करता था. नशे की लत के चलते वह जसवीर को बिना किसी बात के मारतापीटता था. साथ ही वह दोनों बच्चों को भी उस से दूर रखता था. इसी कलह की वजह से जसवीर कौर ममेरे भाई की शादी में भी अकेली ही आई थी.

पुलिस पूछताछ में राजेंद्र ने पुलिस को जानकारी देते हुए बताया कि जसवीर और हरविंदर ने प्रेम विवाह किया था. लेकिन शादी के कुछ दिन बाद दोनों के बीच खटास पैदा हो गई थी. जिस की वजह से हरविंदर उसे बिना बात के प्रताडि़त करने लगा था.

25 सितंबर, 2019 को हरविंदर सिंह ने उस के साथ मारपीट की थी, जिस के बाद मामला थाने तक जा पहुंचा था. इस बारे में जसवीर ने थाना अफजलगढ़, जिला बिजनौर में मारपीट की एफआईआर दर्ज कराई थी. बाद में पुलिस ने हरविंदर सिंह को थाने बुलाया और समझाबुझा कर आपस में समझौता करा दिया था. इस के बाद वह जसवीर कौर को उस की ससुराल छोड़ आया था.

लेकिन पुलिस पूछताछ में जसविंदर कौर के ससुराल वालों का कहना था कि जब से वह अपने भाई की शादी में गई थी, घर वापस नहीं लौटी थी. उस की हत्या की सच्चाई जानने के लिए पुलिस को उस की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था.

मृतका के भाई राजेंद्र ने थाना कोतवाली में जसवीर के पति हरमिंदर सिंह उर्फ हैप्पी, ससुर चरणजीत सिंह, सास रानू व देवर हरजीत सिंह उर्फ भारू निवासी ग्राम बहादरपुर सुआवाला, थाना अफजलगढ़, जिला बिजनौर के विरुद्ध हत्या का मामला दर्ज करा दिया. लेकिन उन के विरुद्ध कोई सबूत न मिलने के कारण पुलिस कोई काररवाई नहीं कर सकी.

इस केस के खुलासे के लिए पुलिस ने मृतका के मोबाइल की काल डिटेल्स भी चैक कीं, जिस में 4 ऐसे लोगों के नंबर मिले, जिन पर मृतका ने काफी देर तक बात की थी. लेकिन उन नंबर धारकों से पूछताछ करने पर भी पुलिस इस केस से संबंधित कोई खास जानकारी नहीं जुटा पाई.

सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग

छानबीन में पुलिस ने उस क्षेत्र के अलगअलग स्थानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. साथ ही मृतका के मोबाइल को भी सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन इस सब से पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली. उसी दौरान पुलिस को ठाकुरद्वारा-भूतपुरी बस अड्डे पर लगे सीसीटीवी कैमरे से एक फुटेज मिली, जिस में 8 फरवरी, 2020 को सुबह के 11 बजे मृतका बस स्टौप पर खड़ी नजर आई.

इस से यह बात साफ हो गई कि ससुराल जाने के लिए मृतका वहां से बस में सवार हुई थी. कहा जा सकता था कि वह 8 फरवरी को अपनी ससुराल जरूर गई थी, जबकि उस के ससुराल वालों का कहना था कि अपने भाई की शादी में जाने के बाद वह घर वापस नहीं आई. ससुराल पक्ष के लोगों के बयान पुलिस के लिए छानबीन का अहम हिस्सा बनते जा रहे थे.

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इस केस की जांच में जुटी पुलिस टीमें मृतका के पति हरविंदर, उस के पिता चरनजीत सिंह और एक रिश्तेदार तरनवीर सिंह निवासी सुआवाला, जिला बिजनौर को पूछताछ के लिए जसपुर कोतवाली ले आई. कोतवाली में पुलिस ने तीनों से अलगअलग पूछताछ की.

उन तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास था. इस से ससुराल पक्ष शक के दायरे में आ गया. पुलिस ने मृतका के पति हरविंदर को एकांत में ले जा कर सख्ती से पूछताछ की तो वह पुलिस के सामने टूट गया.

उस ने अपना जुर्म कबूलते हुए बताया कि 8 फरवरी को जसवीर कौर घर आई तो किसी बात को ले कर उस से नोंकझोंक हो गई. दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि गुस्से के आवेग में उस ने चादर से उस का मुंह बंद कर उस की हत्या कर दी.

पुलिस ने मृतका के पर्स से मेकअप का कुछ सामान व कंडोम बरामद किए थे, जिन को ले कर पुलिस संशय में थी. घटनास्थल पर मृतका का शव अर्द्धनग्न हालत में मिला था, जिसे देख कर लग रहा था कि उस के साथ पहले रेप हुआ होगा, बाद में दरिंदों ने उस की हत्या कर दी होगी.

इसी वजह से पुलिस प्रथमदृष्टया इस केस को रेप से जोड़ कर देख रही थी, लेकिन जब केस का खुलासा हुआ तो पुलिस भी हैरत में रह गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई. दरअसल, यह करतूत जसवीर कौर के ससुराल वालों की थी. उस से छुटकारा पाने के लिए उन लोगों ने इस हत्याकांड को बड़े ही शातिराना ढंग से अंजाम दिया था.

गांव मलपुरी जसपुर से कोई 6 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है. 32 वर्षीया जसवीर कौर इसी गांव के स्व. अमरजीत सिंह की बेटी थी. 15 साल पहले जसवीर कौर की शादी हरविंदर सिंह से हुई थी. हरविंदर सिंह जसपुर से लभग 7 किलोमीटर दूर भूतपुरी रोड पर गांव सुआवाला में रहता था.

शादी के समय हरविंदर प्राइवेट बस का ड्राइवर था. उस के पास जुतासे की भी कुछ जमीन थी. तहकीकात के दौरान पुलिस के सामने यह बात भी खुल कर सामने आई कि 15 साल पहले जसवीर कौर का हरविंदर से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस के चलते दोनों ने स्वेच्छा से विवाह कर लिया था.

शादी के कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीकठाक चलता रहा, लेकिन फिर दोनों के बीच दूरियां बढ़ीं और गृहस्थी में खटास आनी शुरू हो गई. दोनों के बीच मनमुटाव का कारण बनी हरविंदर सिंह की मां राणो कौर. हालांकि हरविंदर सिंह ने जसविंदर के साथ अपनी मरजी से कोर्टमैरिज की थी, लेकिन उस की मां राणो कौर को जसविंदर मन नहीं भाई थी.

इसी के चलते उस ने दोनों के संबंधों में विष घोलना शुरू कर दिया था. हालांकि हरविंदर जसवीर कौर से उम्र में काफी बड़ा था, लेकिन फिर भी जसवीर कौर उसे बहुत प्यार करती थी.

समय के साथ जसवीर कौर 2 बच्चों की मां बन गई. लेकिन इस के बाद भी न तो उसे पति हरविंदर सिंह ने मानसम्मान दिया और न ही उस के परिवार के अन्य लोगों ने. 2 बच्चों की मां बन जाने के बाद भी जसवीर कौर को उस के बच्चों से अलग रखा जाता था.

हरविंदर सिंह खुद भी दोनों बच्चों के साथ अपनी मां राणो के कमरे में सोता था. इसी मनमुटाव के चलते जब दोनों के बीच विवाद ज्यादा बढ़ा तो रिश्तेदारों के सहयोग से हरविंदर सिंह को परिवार से अलग कर दिया गया.

उस के बाद उस का छोटा भाई हरजीत सिंह अपनी मां के साथ खानेपीने लगा. जबकि हरविंदर अपनी पत्नी जसवीर कौर के साथ गुजरबसर कर रहा था. लेकिन यह सब भी ज्यादा दिन तक नहीं चल सका. कुछ ही दिनों बाद हरविंदर अपनी मां के गुणगान करने लगा और जसवीर कौर की ओर से लापरवाह हो गया.

नशे का गुलाम था हरविंदर

हरविंदर राशन वगैरह जरूरी सामान भी नहीं ला कर देता था. वह खुद तो अपनी मां के साथ खाना खा लेता था, लेकिन जसवीर कौर को खाने के लाले पड़ने लगे थे. उस के पास 2 बच्चे थे, जिन की गुजरबसर करना उस के लिए मुश्किल हो गया था. ऊपर से पति आए दिन उस के साथ मारपीट करता था.

हरविंदर पहले तो केवल शराब का ही नशा करता था, लेकिन बाद में अपना कामधंधा सब छोड़ कर भांग, अफीम आदि का भी सेवन करने लगा था. जसवीर कौर जब कभी उसे समझाने वाली बात करती तो वह उसे बुरी तरह मारतापीटता था. वह उसे घर पर चैन से नहीं रहने देता था.

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अगर वह किसी काम से बाहर जाती तो हरविंदर उस पर चरित्रहीनता का लांछन लगाता था. इस सब से जसवीर कौर की जिंदगी नरक बन गई थी. जसवीर कौर के पास अपना मोबाइल था. जब कभी उस के फोन पर किसी की काल आती तो वह उसे शक की निगाहों से देखता. हरविंदर सिंह उसे किसी से भी फोन पर बात नहीं करने देता था. इस सब के चलते दोनों के संबंधों में कड़वाहट भरती गई.

25 सितंबर, 2019 को हरविंदर सिंह ने जसवीर कौर के साथ मारपीट की, जिस के बाद मामला थाने तक पहुंच गया. नतीजतन जसवीर कौर ने थाना अफजलगढ़, जिला बिजनौर में मारपीट की एफआईआर दर्ज कराई. लेकिन पुलिस ने दोनों को समझाबुझा कर घर भेज दिया था.

थाने में हुए समझौते के बाद भी हरविंदर अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. वह फिर से उसे प्रताडि़त करने लगा. 3 फरवरी, 2020 को जसवीर कौर अपने मामा के लड़के की शादी में गई थी. वहां से वह 6 फरवरी को वापस लौट आई. फिर 7 फरवरी को वह दिन में 12 बजे घर से निकल गई. उस दिन वह घर न आ कर अगले दिन लौटी. उसी रात झगड़े के बाद हरविंदर ने उस का मोबाइल छीन कर रख लिया.

इसी को ले कर दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि हरविंदर सिंह ने गुस्से के आवेग में चादर से जसवीर का मुंह दबा दिया. जिस से उस की सांस अवरुद्ध हो गई और वह बेहोश हो कर गिर गई. फिर कुछ ही पलों में उस की सांस रुक गई.

जसवीर कौर को मरा देख हरविंदर सिंह बुरी तरह घबरा गया. उस ने यह जानकारी अपने पिता चरनजीत सिंह, मां राणो कौर को दी. इस से परिवार में दहशत फैल गई.

किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि उस की लाश का क्या किया जाए. हरविंदर ने अपने दोस्त तरनवीर सिंह को फोन कर अपने घर बुला लिया. चारों ने मिल कर रायमशविरा कर के उस की लाश को कहीं दूर फेंकने की योजना बनाई.

हत्या के बाद घिनौना षडयंत्र

तरनवीर अपनी बाइक बजाज पल्सर यूपी20पी 7585 ले कर आया था. चारों ने योजना बनाई कि जसवीर की लाश को ऐसी हालत में फेंका जाए ताकि लोग उसे देख कर रेप केस समझें और उस की हत्या का शक घर वालों पर न आने पाए.

इस योजना को अमलीजामा पहनाने हेतु चारों आरोपी जसवीर की लाश को पल्सर बाइक पर रख कर महुआडाबरा की ओर चल दिए. बाइक को तरनवीर चला रहा था. पीछे हरविंदर का छोटा भाई हरजीत सिंह जसवीर कौर की लाश को पकड़ कर बैठा था, जबकि दूसरी बाइक टीवीएस स्टार सिटी यूपी20क्यू 6491 को हरविंदर चला रहा था और उस के पीछे उस के पिता चरनजीत सिंह बैठे थे.

महुआडाबरा आते ही दोनों बाइक एक कच्चे रास्ते की तरफ बढ़ गईं. वहीं एक सुनसान जगह देख कर उन्होंने लाश गन्ने के खेत में फेंक दी. इस मामले को एक नया रूप देने के लिए पूर्व नियोजित योजनानुसार जसवीर के पर्स में मेकअप के सामान के साथ कंडोम के पैकेट भी रख दिए गए.

जसवीर कौर की लाश को गन्ने के खेत में डालने के बाद इन लोगों ने उस की सलवार को घुटनों तक खिसका दिया, ताकि देखने वाले यही समझें कि किसी ने उस के साथ रेप कर उस की हत्या की है.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद चारों अपने गांव सुआवाला लौट आए. लाश की स्थिति देख कर पुलिस भी यही अंदाजा लगा रही थी कि किसी ने बलात्कार कर उस की हत्या कर डाली. लेकिन जब पुलिस ने इस केस की गहराई से छानबीन की तो जांच के दौरान मिले साक्ष्यों के आधार पर केस की कड़ी से कड़ी जुड़ती गई.

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पुलिस ने इस मामले में मृतका जसवीर कौर के पति हरविंदर सिंह, उस के पिता चरनजीत सिंह, दोस्त तरनवीर सिंह व हरविंदर के छोटे भाई हरजीत सिंह को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. मृतका जसवीर कौर के बच्चों 10 वर्षीय किरन व 13 वर्षीय प्रीत को उस का मामा राजू अपने साथ ले गया था.

Crime: दोस्ती, अश्लील फोटो वाला ब्लैक मेलिंग!

आज समय है सावधान रहने का! सावधानी चाहे वह युवती हों, पुरुष हों या उम्रदराज महिलाएं अगर आपकी मित्रता… फ्रेंडशिप जिसका आज कल बड़ा चलन में है, थोड़ी भी चुक नहीं हुई कि सामने वाला भयादोहन या फिर ब्लेक मेलिंग पर उतर आता है.

इसलिए आपको सावधान करते हुए एक ऐसी रिपोर्ट हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं जो आपको सचेत करती है और बताती है कि कैसे आजकल समाज में ब्लैक मेलिंग का खेल धड़ल्ले से चल रहा है. अक्सर लोग इतने सफल हो जाते हैं. कुछ ही मामले ऐसे होते हैं जिनमें ब्लैकमेल करने वाले पुलिस गिरफ्त में आ पाते हैं.

पहला घटनाक्रम-

एक ब्लैकमेलर ने पहले महिला पर चिकनी चुपड़ी बातों से प्रेम जाल फेंका. जब महिला प्रेम जाल में फंसी गई, तो दोनों अक्सर बातचीत करने लगे. आरोपी ने मौका देखकर महिला को ब्लैकमेल किया. महिला से तकरीबन साढ़े 5 लाख रुपये ठग लिया. महिला ने तंग आकर राजहरा थाने में शिकायत दर्ज कराई.

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दूसरा घटनाक्रम-

छत्तीसगढ़ के न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर में एक महिला ने पुरुष से संबंध बनाएं और वीडियो बनाकर अपने साथियों के साथ भयादोहन पर उतर आई.शिकायत के पश्चात पुलिस ने जांच की और दोषी पाया.

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तीसरा घटनाक्रम-

छत्तीसगढ़ के जिला अंबिकापुर में एक युवक ने कई लड़कियों से दोस्ती गांठी और लड़कियों के अश्लील वीडियो, फोटो बनाएं लाखों रुपए की ब्लेक मेलिंग की अंततः जेल की सलाखों में पहुंच गया.
इस तरह अनेक घटनाएं हमारे आसपास घटित हो रही हैं. दरकार है समझदारी और विवेक की . अगर हम और हमारे आस-पास कोई मित्र, संबंधी जरा भी भटका नहीं की, ब्लैक मेलिंग का शिकार हुआ समझिए.

वीडियो कॉल बना, ब्लैक मेलिंग का जरिया…

छत्तीसगढ़ के राजहरा में घटित एक सनसनीखेज घटना इन दिनों चर्चा में है. यहां एक युवक ने एक युवती से मित्रता की फिर उसका एक वीडियो कॉल के दरमियान अश्लील फोटो बना लिया और शुरू हो गया ब्लैकमेल करने.

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आरोपी आकाश जायसवाल उर्फ गोल्डी ने पहले बीमार होने का बहाना किया. फिर महिला से 3 लाख 60 हजार रुपये ले लिया. कुछ दिनों के बाद महिला ने रकम वापस मांगी. तो आरोपी ने महिला की अश्लील तस्वीर उसके सामने रखकर “सोशल मीडिया” पर वायरल करने की धमकी देने लगा. यही नहीं कथित आरोपी ने फिर 1 लाख 90 हजार रुपये महिला से वसूल लिया. कुल मिलाकर आरोपी ने साढ़े 5 लाख रुपये और जेवरात ठग लिया.

आरोपी ने महिला से लिए सोने के जेवरात को 50 हजार रुपये में एक बैंक में गिरवी रख दिया था, जिसे पुलिस ने बैंक के लॉकर से बरामद किया है. वही आरोपी ने महिला से मिली रकम से एक अदद कार भी खरीदी थी, जिसकी कीमत 4 लाख 50 हजार रुपये बताई जा रही है.

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यहां सबसे सनसनीखेज तथ्य यह सामने आया है

महिला की आरोपी ने वीडियो कॉल के दौरान अश्लील फोटो ले ली थी. यानी महिला को पता ही नहीं चला और वह शिकार बन गई.आगे आरोपी फोटो वायरल करने की बार-बार धमकी दे कर जान से मारने की धमकी भी देता था.

Manohar Kahaniya- राम रहीम: डेरा सच्चा सौदा के पाखंडी को फिर मिली सजा- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

हनीप्रीत के पूर्व पति विश्वास गुप्ता ने बाबा की गिरफ्तारी के बाद मीडिया को बताया था कि शादी के 2 या 3 दिन बाद बाबा राम रहीम ने उसे हनीप्रीत के साथ डेरे में मुलाकात के लिए बुलाया था. तब बाबा ने कहा था कि तुम हमारे साथ बाहर यात्राओं पर जाती हो, अगर बच्चा हुआ तो उस के स्कूल जाने और लालनपालन के चलते हमारी सेवा नहीं कर पाओगी, इसलिए बच्चा पैदा न करो.

बाबा ने कहा था कि हम तुम्हें बेटा मानते हैं, उसी तरह हनीप्रीत भी हमारी बेटी है. हम उसे भी उतना ही प्यार देंगे.

विश्वास गुप्ता ने आरोप लगाया था कि बाबा हर सप्ताह हनीप्रीत और उसे डेरे में बुलाने लगा. वह गुफा के अंदर बने बैडरूम में हनीप्रीत को बुलाता था और उसे लिविंग रूम में ही बैठने को कहता था.

पूछने पर बाबा कहता था कि बेटी अकेले में ससुराल के हर सुखदुख बता सके, इसलिए उस से अकेले में हालचाल पूछता हूं. विश्वास गुप्ता ने आरोप लगाए थे कि राम रहीम और हनीप्रीत की सभी मुलाकातें हर बार एक से डेढ़ घंटे तक होती थीं. इस दौरान बाबा के चेले और दूसरे सेवादार विश्वास गुप्ता को बातों और कुछ कामों में उलझाए रखते थे. बाद में बाबा ने विश्वास गुप्ता को सप्ताह में 2 दिन पत्नी के साथ गुफा में रहने का आदेश दिया.

बताते हैं कि उसी दौरान एक रात जब  विश्वास गुप्ता डेरे में बाबा की गुफा के लिविंग रूम में सो रहा था तो उस ने रात के वक्त बाबा के बैडरूम में अपनी पत्नी हनीप्रीत व बाबा को कामक्रीड़ा करते देखा. बस इसी के बाद से बाबा और हनीप्रीत से उस का मोहभंग हो गया.

बाद में हनीप्रीत और विश्वास गुप्ता के संबध बिगड़ने लगे तथा दोनों में अकसर तकरार होने लगी.

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विश्वास गुप्ता और हनीप्रीत का रिश्ता केवल 11 साल चला. बाबा राम रहीम ने साल 2009 में हनीप्रीत को बेटी के रूप में गोद ले लिया. जिस के बाद हनीप्रीत बाबा के साथ डेरे की गुफा में ही रहने लगी. हनीप्रीत को गोद लेने के बाद गुप्ता से हनी के मतभेद और गहरे हो गए.

गुप्ता ने जब हनीप्रीत पर घर वापस चलने का दबाव डाला तो उस के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया गया, जिस में उसे जेल की हवा खानी पड़ी. बाद में जेल से रिहा होने पर  साल 2011 में विश्वास गुप्ता ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में मुकदमा दायर कर राम रहीम के कब्जे से अपनी पत्नी यानी हनीप्रीत को मुक्त कराने की मांग की थी. अदालत में दी गई याचिका में विश्वास गुप्ता ने राम रहीम पर हनीप्रीत के साथ अवैध संबंध होने का भी आरोप लगाया था.

डेरे के सारे फैसले लेने लगी हनीप्रीत

बताते हैं कि बाद में डेरे के कुछ प्रभावशाली लोगों के दबाव के कारण विश्वास गुप्ता के परिवार वालों ने हनीप्रीत से उस का तलाक करवा दिया. लेकिन इस दौरान गुप्ता परिवार को बाबा के ऊंचे रसूख के कारण कई तरह की प्रताड़नाओं का शिकार होना पड़ा.

विश्वास गुप्ता से तलाक के बाद हनीप्रीत पूरी तरह बाबा के लिए समर्पित हो गई.

हनीप्रीत डेरा के हर महत्त्वपूर्ण फैसले लेने लगी. बाबा राम रहीम के साथ वह साए की तरह चौबीसों घंटे रहने लगी. बाबा हर फैसला हनीप्रीत से सलाह ले कर ही करता था.

इतना ही नहीं, बाबा ने हनीप्रीत की फिल्मों में काम करने की ख्वाहिश को देखते हुए ‘एमएसजी’ नाम से एक फिल्म कंपनी बनाई जिस के तहत बनी फिल्म ‘एमएसजी’, ‘जट्टू इंजीनियर’, ‘द वारियर लायन हार्ट’ समेत दूसरी और भी फिल्मों का निर्देशन हनीप्रीत ने ही किया. एमएसजी नाम की फिल्म में तो बाबा ने खुद हीरो के रूप में काम भी किया.

बाबा की बेबी हनीप्रीत इतनी ताकतवर हो चुकी थी कि उसी के हाथ में डेरे की सभी चाबियां रहती थीं. पैसे से ले कर हर वो फैसला जो डेरे से संबंधित होता था, वह हनीप्रीत ही करती थी.

हनीप्रीत भले ही दिखावे के लिए बाबा की बेबी रही हो, लेकिन लोग अब खुली जुबान से कहते हैं कि वह बाबा की हनी थी. शायद यही वजह थी कि गुरमीत राम रहीम की अपनी बीवी और बेटेबहू से दूरियां रहती थीं.

राम रहीम को अपने तौरतरीकों से चलाने वाली हनीप्रीत जेल जाने तक उस के साथ नजर आई थी और बाद में उसी ने डेरे का प्रबंध अपने हाथों में लिया.

गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद 600 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाले उस के एमएसजी प्रोडक्ट्स की कमान भी बाद में हनीप्रीत के हाथों में आ गई. एमएसजी के सिरसा में 5 बड़े शोरूम थे, जिन में करीब 150 से ज्यादा प्रोडक्ट्स बेचे जाते थे.

हालांकि बाबा की गिरफ्तारी के बाद एमएसजी का यह कारोबार आर्थिक संकट का शिकार हो कर बंद हो गया, जिस से इस में निवेश करने वाले लगभग 10 हजार लोगों की रकम भी डूब गई.

साध्वियों के साथ रामचंद्र छत्रपति के परिवार को इंसाफ मिल चुका था, लेकिन राम रहीम के दामन पर लगे डेरा प्रेमी रणजीत सिंह की हत्या के दागों का इंसाफ होना अभी बाकी था.

18 अक्तूबर, 2021 को रणजीत सिंह हत्याकांड में पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत के जज सुशील कुमार ने राम रहीम समेत 5 लोगों को दोषी ठहरा कर उम्रकैद की सजा सुनाई. 19 साल तक अदालत में चले इस मामले की 250 पेशी हुई और 61 गवाही के बाद अदालत ने 5 आरोपियों को दोषी माना.

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रणजीत सिंह एक समय राम रहीम के डेरे का मैनेजर और उस का भक्त हुआ करता था, लेकिन 10 जुलाई, 2002 को अचानक रणजीत सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. हत्या का रहस्य बहुत गहरा था. हत्या के आरोप में राम रहीम के साथ उस का सहयोगी कृष्ण लाल भी फंसा था.

रणजीत सिंह हत्याकांड में 3 गवाह महत्त्वपूर्ण थे. इन में 2 चश्मदीद गवाह सुखदेव सिंह और जोगिंद्र सिंह थे. इन का कहना था कि उन्होंने आरोपियों को रंजीत सिंह पर गोली चलाते हुए देखा था.

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Satyakatha: फौजी की सनक का कहर- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

राय सिंह को उस के अनैतिक रिश्ते की गंध समझते देर नहीं लगी. उस का शक विश्वास में बदल गया कि सुनीता के कृष्णकांत के साथ मधुर संबंध हैं. उस समय उसे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन शांत बने रहा.

यह घटना तो घट गई थी, लेकिन राव राय सिंह के मन में उठने वाले सवाल उसे रात को सोने नहीं दे रहे थे. वह लगातार चिंतित रहने लगा. उसे यह भी चिंता सताने लगी कि कहीं सुनीता उस के बेटे को धोखा न दे दे.

सुनीता और कृष्णकांत के बीच कोई अनैतिक रिश्ता तो नहीं? इस घटना के बाद वह अपनी बहू और कृष्णकांत को शक की नजरों से देखने लगा.

हालांकि उस ने इस का जिक्र किसी से नहीं किया था. अपनी पत्नी तक को नहीं बताया था. जबकि राय सिंह मन ही मन यह सब सोच कर कुढ़ता रहता था. वह सुनीता के मिजाज को अच्छी तरह जानता था, इसलिए उस पर दबाव नहीं बना पा रहा था. उसे पता था कि उस के खिलाफ कुछ भी बोलने का मतलब बेइज्जत होना है.

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उसी बीच फरवरी, 2021 में सुनीता फिर अपने मायके चली गई. एक महीने बाद कोरोना की दूसरी लहर ऐसी आई कि लौकडाउन और कर्फ्यू के चलते लोगों का कहीं आनाजाना मुहाल हो गया.

मई, 2021 में कृष्णकांत के गांव से उन के पिता के बीमार होने का फोन आया. उन्हें सपरिवार आननफानन अपने गांव जाना पड़ा. गांव से वह वापस गुरुग्राम आ तो गए लेकिन उन की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी थी.

एक तरफ उन की नौकरी छूट गई थी, दूसरी तरफ मकान का किराया 7 महीने का बाकी हो गया था. किराए को ले कर राय सिंह से कृष्णकांत की कई बार बहस भी हो चुकी थी.

गांव में अपने पिता की देखभाल करने के 3 महीने बाद अगस्त में रक्षाबंधन के ठीक 5 दिन पहले लौटे थे. राय सिंह ने तब किराया न देने पर उन्हें खूब खरीखोटी सुनाई थी.

वह पहले से ही अपनी बहू को ले कर परेशान था. उस ने सोचा कि किराए के बहाने कमरा खाली करवा लेने पर कृष्णकांत से उस की बहू का संबंध खत्म हो जाएगा. कृष्णकांत ने कुछ समय की मोहलत मांगी.

उसी बीच 19 अगस्त को सुनीता भी मायके से गुड़गांव लौट आई. राय सिंह के किराया मांगने पर उस ने कृष्णकांत और परिवार की तरफदारी की. उस ने कहा वह खराब हालत में कहां जाएंगे.

सुनीता की बातों से राय सिंह के दिल को ठेस लगी. उस ने कृष्णकांत के सामने ही यह बात कही थी, जिस से उस ने बेइज्जती महसूस की थी. उस वक्त तो राय सिंह खून का घूंट पी कर रह गया, लेकिन मन ही मन में एक संकल्प भी ले लिया.

सुनीता द्वारा कृष्णकांत का पक्ष लिए जाने का कारण वह समझ रहा था. उन के रिश्तों को ले कर पहले से ही शक का कीड़ा मन में कुलबुला रहा था. सुनीता की तरफदारी से कीड़ा रेंगने लगा था.

एक दिन रात को अचानक उन की नींद खुल गई और पेड़पौधों की कटाईछंटाई करने वाले गंडासे की धार तेज करने लगा. पत्नी ने रात को ऐसा करते देख कर पूछा तब उस ने बहाना बनाते हुए कहा कि उसे कई पेड़ों की छंटाई करनी है. गंडासा की धार तेज करने का सिलसिला 19 अगस्त से 23 अगस्त तक चला.

23 तारीख की शाम को 7 बजे राव सिंह का बेटा आनंद यादव अपने कुछ दोस्तों के साथ खाटू श्याम मंदिर में दर्शन करने के लिए चला गया था. राय सिंह ने उसी रात अपनी योजना को अंजाम देने का मन बना लिया.

रात के 12 बजे के बाद राय सिंह पहले की तरह उठा और गंडासा निकाल कर छत की सीढि़यां चढ़ने लगे. उस की पत्नी विमलेश की नींद खुल गई, लेकिन उस ने समझा वे गंडासे की धार तेज करने गए होंगे. किंतु मोबाइल की रोशनी से घड़ी देखी तो ढाई बजे का समय देख कर चौंक गई.

उस के मन में कुछ आशंका हुई और दबेपांव छत पर जाने लगी. सीढि़यों पर अंधेरा था, जिस से वापस लौट कर अपने कमरे में आ कर लेट गई. उधर राय सिंह ने पहली मंजिल पर पहुंच कर अपनी बहू का कमरा खटखटाया.

2-3 बार दरवाजा खटखटाने के बाद अंदर से सुनीता ने गहरी नींद में दरवाजा खोला. इस से पहले कि सुनीता को कुछ पता चलता, राय सिंह ने उस के सिर पर गंडासे से जोरदार वार कर दिया.

सुनीता वहीं चीख कर गिर पड़ी. उस के गिरते ही राय सिंह ने दनादन शरीर पर कई वार कर दिए. उस के सिर से ले कर शरीर के कई हिस्से से खून बहने लगा.

नीचे राय सिंह की पत्नी विमलेश सुनीता की चीख सुन कर भागीभागी पहली मंजिल पर जा पहुंची. वहां पति के हाथ में खून से सने गंडासे को देख कर डर गई और उल्टे पांव अपने कमरे में आ कर लेट गई.

सुनीता को मौत के घाट उतारने के बाद वह सीधे दूसरी मंजिल पर जा पहुंचा. संयोग से कृष्णकांत ने अंदर से कुंडी बंद नहीं की थी. अंधेरे में हलकी फैली हुई रोशनी में राव सिंह ने कृष्णकांत और उस के पूरे परिवार को नीचे जमीन पर ही लेटे पाया.

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समय बरबाद नहीं करते हुए सब से पहले कृष्णकांत के सिर पर गंडासे से वार किया. पहला हमला ही इतना जोरदार था कि कृष्णकांत पहले ही वार से अपनी गहरी नींद से जाग ही नहीं पाए. वह बेसुध हो गए.

राव सिंह ने कृष्णकांत पर अपना आपा खोते हुए करीब 7 वार लगातार किए. कृष्णकांत की मौके पर ही मौत हो गई. तब तक थोड़ी दूरी पर सोई अनामिका नींद से जाग गई थी. जख्मी पति को देख कर उस ओर जैसे ही आने की कोशिश की, राय सिंह ने उस के सिर पर भी गंडासे का एक जोरदार वार कर दिया.

तब तक बच्चे जाग गए थे. वे अपने मांबाप को बेसुध हालत में देख कर कहने लगे, ‘‘अंकल माफ कर दीजिए. इन्हें मत मारिए. इन्हें छोड़ दीजिए.’’

तब तक राय सिंह अपना आपा खो चुका था. अनामिका पर एक के बाद एक कई वार करने के बाद बच्चों पर भी गंडासे से हमला बोल दिया और फिर अपने कमरे में आ कर बाथरूम में घुस गया.

इस जघन्य हत्याकांड के बाद राव सिंह बाथरूम में घुस कर नहाया. अपने कमरे में वह पंखे के नीचे बैठा. नए कपड़े पहने और करीब साढ़े 4 बजे उठ कर डेली रूटीन में व्यस्त हो गया. मूकदर्शक बनी जड़वत पत्नी विमलेश को ठहर कर देखा और पार्क की ओर सैर पर निकल पड़ा.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 6 बजे जब वह पार्क से अपने घर लौटा और दोबारा लाशों को जा कर देख आया. फिर हाथ में गंडासा लहराते हुए थाने चला गया. इस बात की पुष्टि बाद में इलाके के 3 सीसीटीवी कैमरों में कैद हो चुकी फुटेज से हुई.

उस के कपड़े और उस औजार पर खून के छींटों की जांच के बाद उस के द्वारा हत्या किए जाने की भी पुष्टि हो गई.

इस हत्याकांड की सुनीता के भाई अशोक यादव ने भी राजेंद्र पार्क पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई. उन्होंने रिपोर्ट में राव राय सिंह के परिवार पर सुनीता से पैसों की मांग का आरोप लगाया. इस कारण वह अकसर सासससुर से झगड़ कर मायके आ जाती थी.

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कथा लिखे जाने तक केस को सुलझाने के लिए गुरुग्राम की राजेंद्र पार्क पुलिस ने हर पहलू को ध्यान में रखते हुए परिवार के सभी सदस्यों के बयान ले लिए थे.

आरोपी राव राय सिंह को न्यायिक हिरासत में ले लिया गया था. इस पूरे हत्याकांड में एकमात्र बची हुई पीडि़त 6 साल की विधि तिवारी की हालत में लिखे जाने तक सुधार हो रहा था. उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती करवाया गया था.

Manohar Kahaniya- किडनैपिंग: चंबल से ऐसे छूटा अपहृत डॉक्टर- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कार रुकते ही युवती अंजलि कार से उतर गई. 4 युवक दनदनाते हुए कार में घुस आए. उन्होंने डाक्टर को 2 थप्पड़ मारे और उन को कार की पिछली सीट पर बैठा दिया. 2 बदमाश आगे बैठ गए, जबकि 2 बदमाशों ने डाक्टर को पीछे की सीट पर बीच में बैठा लिया.

उन का मोबाइल बदमाशों ने गाड़ी में ही छीन कर बंद कर दिया. उस समय रात के साढ़े 8 बज रहे थे. अंजलि के साथी डाक्टर को ले गए थे चंबल के बीहड़ में उस के साथ ही बदमाशों ने उन की आंखों पर पट्टी बांध दी. डाक्टर इस घटना से बेहद घबरा गए. वे समझ गए कि उन का अपहरण हो गया है. इस बीच अंजलि 2 साथियों के साथ बाइक पर बैठ कर चली गई. रास्ते में एक बदमाश उतर कर चला गया.

बदमाश सैयां से गांव के रास्ते होते हुए 2 घंटे तक गाड़ी चलाते रहे. वे सैयां टोल क्रौस को छोड़ कर इरादत नगर से होते हुए धौलपुर इलाके में चले ले गए. डाक्टर को कार से उतार लिया. बदमाशों के पास हथियार भी थे. डर के कारण डाक्टर जैसा बदमाश कहते रहे, वैसा वे करते रहे.

रात में उन्हें बाइक से एक जगह ले जा कर उन्हें खाना खिलाया. फिर 3-4 किलोमीटर पैदल चलने के बाद बीहड़ में ले आए. डाक्टर को धौलपुर के दिहोली क्षेत्र में चंबल नदी के पास रात भर एक खेत में हाथपैर बांध कर रखा.

डाक्टर को कार से उतारने के बाद बदमाश ने अपने साथी पवन को कार ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी, लेकिन वह पुलिस चैकिंग में पकड़ा गया.

डाक्टर को दिन में बीहड़ में ले जा कर ऊंचे चबूतरे पर हाथ बांध कर बैठा दिया. बदमाशों ने डाक्टर से 5 करोड़ रुपए की फिरौती देने को कहा, वरना उस की मौत निश्चित है.

60 वर्षीय डाक्टर ने बदमाशों से कहा कि वह बीमार हैं, उन का हार्ट का औपरेशन हो चुका है. इतनी रकम उन के पास नहीं है. फिर भी बदमाश धमकाते रहे.

डाक्टर ने कहा कि वह बिना दवा खाए बीमार हो जाएंगे. बाजार से दवा लाने के लिए दवाओं के नाम भी बताए. लेकिन बदमाशों ने दवा ला कर नहीं दी. मांगने पर खाना और पानी दिया. बदमाशों के पास मोबाइल नहीं थे.

वहां की स्थिति देख कर डाक्टर को नहीं लग रहा था कि उन्हें बदमाशों से छुटकारा मिल पाएगा. बदमाश उन्हें लगातार धमका रहे थे. डाक्टर के बहुत कहने पर एक बदमाश दवाई लाने चला गया, जबकि 2 खाने के इंतजाम में पास के गांव में चले गए.

संयोग से एक डाक्टर को छोड़ कर शौच के लिए गया ही था कि तब तक पुलिस अकेले निढाल पड़े डाक्टर को अपने कब्जे में ले कर निकलने में सफल रही.

डाक्टर को अपने प्रेमजाल में फंसाने वाली युवती अंजलि का असली नाम मंगला पाटीदार है. वह महाराष्ट्र के गोंदिया जिले की रहने वाली है.

उस की 16 साल पहले शादी हुई थी. पति और 14 साल के बेटे के साथ भोपाल में रहती थी. वहीं धागा फैक्ट्री में काम करती थी. एक साल पहले हादसे में पति की मौत हो गई. इस के बाद वह महाराष्ट्र चली गई.

बदन सिंह गैंग ने कराया था अपहरण

भोपाल में जिस फैक्ट्री में वह काम करती थी, उसी में मथुरा की एक महिला भी काम करती थी. उस ने काम दिलाने के लिए 4 महीने पहले मथुरा बुलाया था. बेटे को वह मां के पास छोड़ आई थी. मथुरा आने पर सहेली ने बदन सिंह तोमर से उस का परिचय कराया.

बदन सिंह काम दिलाने के नाम पर आगरा लिवा लाया. लगभग एक महीना पहले उस ने आगरा के सदर में नैनाना जाट में किराए पर घर लिया. तब से वह बदन सिंह के साथ यहीं रह रही थी.

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बदन सिंह ने उसे लालच दिया कि वह काम क्या करेगी, एक बार में ही उसे इतने रुपए दिलवा देगा कि जिंदगी आराम से कट जाएगी. वह उस के लालच में फंस गई और डाक्टर के अपहरण की सूत्रधार बन गई. वह गैंग के सरगना बदन सिंह तोमर के लिए काम कर रही थी. उसे इस काम के लिए 25 हजार रुपए देने की बात कही गई थी.

अपहरण के बाद युवती को गैंग ने ठिकाने लगाने की साजिश रच रखी थी. संयोग से पुलिस ने उसे पकड़ लिया. इस से अंजान युवती बदमाश के साथ बाइक पर सवार हो चल दी थी. यह बात तब सामने आई, जब धौलपुर पुलिस के सिपाही दयालचंद ने युवती को पकड़ा. युवती का बाइक सवार साथी भाग गया, लेकिन उस का मोबाइल गिर गया. मोबाइल पर कुछ देर बाद फोन आया. सिपाही ने आवाज बदल कर बात की.

काल करने वाला बोला, ‘‘कहां रह गया, जल्दी आ जा. लड़की को बीहड़ में ले कर आना. उसे ठिकाने भी लगाना है. रात में ही ये काम करना है.’’

हनीट्रैप में डा. उमाकांत गुप्ता को फंसा कर उन का अपहरण करने वाले गैंग का सरगना बदन सिंह तोमर पुलिस के हाथ नहीं आ रहा था. उस की गिरफ्तारी के लिए पुलिस चंबल के किनारे स्थित गांवों में दबिश दे रही थी.

इसी दौरान पुलिस की मेहनत रंग लाई और 21 जुलाई की रात को एक लाख के ईनामी बदमाश बदन सिंह तोमर और उस के साथी अक्षय उर्फ चंकी पांडे को पुलिस ने गांव कछूपुरा में मुठभेड़ में मार गिराया.

पकड़े गए साथी पवन के अनुसार बदन सिंह तोमर उस का दोस्त था. बदन सिंह तोमर ने डा. गुप्ता का अपहरण पूरी तैयारी के साथ कराया था. वहीं डकैत केशव गुर्जर अपहरण करने के लिए कुख्यात है. कहने को धौलपुर पुलिस उसे 2 बार गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है. लेकिन पिछले 4 साल से वह धौलपुर व आगरा की पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है.

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2017 में डा. निखिल का अपहरण बदन सिंह तोमर ने ही किया था. यह पकड़ केशव गुर्जर को सौंप दी थी. उस ने ही फिरौती वसूली थी. डा. निखिल के अपहरण के मामले में बदन सिंह जेल गया था. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

Satyakatha: खूंखार प्यार- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

सभी पहलुओं पर जांच करने के बाद कई  पेचीदा तथ्य सामने आते चले गए. सब से महत्त्वपूर्ण था दीप्ति सोनी के पिता कृष्ण कुमार सोनी का बयान. उन्होंने पुलिस को बताया कि वह वर्तमान में बिलासपुर के निवासी हैं और कोरबा जिले के भारत अल्युमिनियम कंपनी में कार्यरत थे. दीप्ति उन की दूसरे नंबर की बेटी थी, जिस का प्रेम विवाह देवेंद्र सोनी से हुआ था.

उन्होंने कहा कि विवाह के बाद देवेंद्र दीप्ति को अकसर प्रताडि़त किया करता था और मायके के लोगों से भी मिलने नहीं देता था. उस ने साफसाफ यह लकीर खींच दी थी कि अपने मायके वालों से उसे कोई संबंध नहीं रखना है.

दीप्ति ने उस के इस अत्याचार को भी एक तरह से स्वीकार कर लिया था और लंबे समय से मायके वालों से कोई संबंध नहीं रख रही थी. यहां तक कि अपनी बड़ी बहन सीमा और जीजा राजेश से भी कभी भी बात नहीं करती थी. क्योंकि देवेंद्र इस से नाराज हो जाता और उस ने बंदिशें लगा रखी थीं.

उन्होंने अपने बयान में यह शक जाहिर किया कि हो सकता है देवेंद्र का दीप्ति की हत्या में हाथ हो. कृष्ण कुमार सोनी ने जांच अधिकारियों से आग्रह किया कि मामले की निष्पक्ष जांच की जाए और आरोपियों को किसी भी हालत में न छोड़ा जाए.

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इस महत्त्वपूर्ण बयान के बाद पुलिस की निगाह में देवेंद्र सोनी संदिग्ध के रूप में सामने आ गया. पुलिस ने इस दृष्टिकोण से जांचपड़ताल शुरू की. साथ ही देवेंद्र के दिए गए बयान की सूक्ष्म पड़ताल की गई.

देवेंद्र ने थानाप्रभारी को जो बयान दिया था, उस में कहा था कि घटना के समय 2 लोगों ने अचानक हमला किया था, वह लघुशंका के लिए कुछ कदम आगे चला गया था. इसी दरमियान गाड़ी में लूटपाट की घटना हुई और उन लोगों ने दीप्ति के गले में रस्सी डाल कर के हत्या कर दी.

जब वह पास आया था तो उस के भी हाथ बांध दिए गए थे, मगर उस ने एक लात मार कर भाग कर अपनी जान बचाई थी.

देवेंद्र ने यह भी बताया था कि किसी एक ने उस की कनपटी पर पिस्टल रख कर के धमकी भी दी थी. इन सारी

बातों की विवेचना जब पुलिस ने की तो देवेंद्र सोनी की बातों में विरोधाभास दिखा.

सब से बड़ा सवाल यह था कि जब लूटपाट करने वालों के पास पिस्टल थी तो उन्होंने दीप्ति को नायलोन की रस्सी से क्यों मारा? और मोबाइल के सिम को क्यों निकाला था?

पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि देवेंद्र अपने बयान में कहीं झूठ बोल रहा है और उस की बातों की सत्यता जानने के लिए अब पुलिस को देवेंद्र से पूछताछ करनी थी. पुलिस ने पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए उसे रात को घर भेज दिया गया था, साथ ही यह निर्देश भी दिए कि जरूरत पड़ने पर बयान के लिए फिर से थाने आना होगा.

दीप्ति के अंतिम संस्कार के बाद अगले दिन 16 जून को जब देवेंद्र को जांच अधिकारी अविनाश कुमार श्रीवास ने फोन लगाया तो उस का फोन दिन भर बंद  मिला. देवेंद्र का फोन बंद हो जाने से पुलिस का शक और भी गहरा  गया.

अंतत: बिलासपुर जिला पुलिस के सहयोग से थाना पंतोरा और बलौदा की पुलिस टीम ने देर शाम को देवेंद्र सोनी का मोबाइल ट्रैक कर के उसे बिलासपुर से हिरासत में ले लिया.

जांजगीर ला कर उस से पूछताछ शुरू की गई तो पहले तो वह कुछ भी कहने से गुरेज करता रहा. पुलिस ने जब उस के मोबाइल की जांच की तो पता चला कि घटना के कुछ समय पहले वह लगातार शालू सोनी नाम की एक महिला से बात करता रहा था.

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पुलिस ने उस से शालू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि प्रदीप सोनी उस के रिश्तेदार के यहां नौकर है और शालू प्रदीप की पत्नी है.

पुलिस ने दूसरे दिन प्रदीप सोनी और उस की पत्नी शालू सोनी, जो अपने घर से गायब थे, को जिला मुंगेली के एक मकान से हिरासत में लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए.

प्रदीप ने पुलिस के समक्ष घबरा कर अपना  अपराध स्वीकार कर लिया और दोनों पतिपत्नी ने जो कहानी बताई, उस से दीप्ति हत्याकांड से परदा उठता चला गया.

अपनेअपने इकबालिया बयान में दोनों ने बताया कि वे सरकंडा बंगाली पारा में झोपड़ी में रहते हैं और देवेंद्र सोनी ने उन्हें डेढ़ लाख रुपए देने की बात कह कर के इस हत्याकांड में शामिल किया था.

शालू ने बताया देवेंद्र अकसर उस के साथ हंसीमजाक किया करता था और एक दिन बातोंबातों में कहने लगा, ‘‘तुम लोग आखिर कब तक इस तरह नौकरी करते रहोगे. कुछ अपना भविष्य भी बनाओगे कि नहीं.’’

इस पर शालू सोनी ने कहा, ‘‘भैया, इन की तबीयत तो हमेशा खराब रहती है. आखिर हमारा क्या होगा यह

पता नहीं.’’

इस पर देवेंद्र ने मासूमियत से कहा, ‘‘देखो, तुम चाहो तो अपनी तकदीर खुद बना सकती हो. कहो तो मैं तुम्हें एक तरकीब बताऊं, तुम्हें एकडेढ़ लाख रुपए तो यूं ही मिल जाएगा.’’

देवेंद्र ने उन से कहा, ‘‘बस, तुम्हें किसी भी तरीके से मेरी पत्नी दीप्ति को मेरे रास्ते से हटाना है.’’

पहले तो शालू और प्रदीप ने इंकार कर दिया, मगर जब डेढ़ लाख रुपए की एक बड़ी रकम उन की आंखों के आगे झूलने लगी तो वे लालच के फंदे में फंस गए और दीप्ति हत्याकांड की पटकथा बुनी जाने लगी.

एक दिन देवेंद्र ने ही कहा कि सोमवार, 14 जून की रात को दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर की तरफ आऊंगा. इस रास्ते में जिला जांजगीर चांपा का घनघोर छाता जंगल पड़ता है. जहां हम दीप्ति का काम तमाम कर  सकते हैं.

इस तरह देवेंद्र ने पूरी हत्याकांड की पटकथा बनाई. 3 दिन पहले ही पंतोरा के वन बैरियर के पास रैकी कर के घटना को अंजाम देने की प्लानिंग कर ली गई थी. जिसे उन्होंने 14 जून की रात को अंजाम दे दिया था.

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जब प्रदीप और शालू सोनी से पुलिस ने देवेंद्र का सामना कराया तो देवेंद्र टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि हत्या उसी ने करवाई है क्योंकि अकसर उन का झगड़ा होता रहता था.

उस ने पुलिस को बताया कि दीप्ति हमेशा उस पर शक किया करती थी. दूसरी तरफ उसे दीप्ति पर शक था और एक बार उस ने दीप्ति को किसी गैरमर्द के साथ रंगेहाथों पकड़ भी लिया था. मगर इस का कोई सबूत देवेंद्र पुलिस को नहीं दे सका.

पुलिस ने जांच के बाद दोनों मोबाइल फोन, जो प्रदीप सोनी ने फेंक दिए थे, बरामद कर लिए. लैपटौप देवेंद्र सोनी के घर से ही बरामद कर लिया गया. आरोपी प्रदीप सोनी और शालू ने जिस स्कूटी को घटना के लिए इस्तेमाल किया था, उसे भी पुलिस ने जब्त कर लिया गया.

घटना के खुलासे के बाद जिला चांपा जांजगीर की एसपी पारुल माथुर ने देर शाम एक पत्रकारवार्ता आयोजित कर वारदात का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने थाना पंतोरा में भादंवि की धारा 397, 302 के  तहत मुख्य आरोपी देवेंद्र सोनी, प्रदीप सोनी तथा शालू सोनी को 17 जून, 2021 को गिरफ्तार कर चांपा जांजगीर के प्रथम न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: जब उतरा प्यार का नशा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मिली जानकारी के अनुसार सुरेंद्र सिंह नेमावर में एक अच्छे धमकदार परिवार का था. उस के दादा होकम सिंह के अलावा उस के पिता लक्ष्मण सिंह भी नामदार रहे हैं. कुछ साल पहले इस परिवार की जमीन हाइवे निर्माण के लिए शासन ने अधिग्रहीत कर ली थी. बदले में परिवार को मुआवजे की मोटी रकम मिली थी.

पैसा आने पर सुरेंद्र और उस के छोटे भाई वीरेंद्र का समाज में रौबरुतबा बढ़ गया था. दोनों भाई शराब की लत के लिए भी चर्चित हो गए थे.

पुलिस सुरेंद्र के बारे में हर स्तर की जानकारियां जुटाने में लगी हुई थी, जबकि लापता रूपाली, ममता, दिव्या, पवन और पूजा का डेढ़ महीने से अधिक समय गुजर जाने के बावजूद कुछ नहीं पता चल पाया था.

इंस्टाग्राम की पोस्ट ने बढ़ाया शक

एक दिन सुरेंद्र के बारे में एक नई जानकारी मिली. वह जानकारी सोशल मीडिया की तरफ से मिली थी. इंस्टाग्राम पर सुरेंद्र की मंगेतर को ले कर एक पोस्ट किया गया था. उस के जरिए रूपाली द्वारा आपत्ति जताई गई थी.

यह पोस्ट सुरेंद्र की शादी नसरूलागंज निवासी एक युवती के साथ तय होने के जवाब के तौर पर की गई थी. इस से स्पष्ट था कि सुरेंद्र के रूपाली से संबंध टूट गए थे.

इस जानकारी के आधार पर इंसपेक्टर शिवमुराद यादव ने रूपाली के लापता होने के मामले को सुरेंद्र की सगाई से जोड़ कर देखा. उन्होंने अपने सहकर्मियों को पता लगाने के लिए कहा कि जिस रोज रूपाली और उस के परिवार के दूसरे 4 सदस्य लापता हुए, उस रोज सुरेंद्र कहां था?

संयोग से उसी दौरान एक ऐसी घटना घटी, जिस से मामले में पूरी तरह से सुरेंद्र का हाथ होने का शक और मजबूत हो गया.

पुलिस ने पाया कि भारती और संतोष के मोबाइल पर बारबार रूपाली के मोबाइल से आने वाले मैसेज जांच की दिशा भटकाने के लिए किए जा रहे थे. 40 दिन बाद आए मैसेज को टारगेट कर इंसपेक्टर यादव ने मोबाइल की लोकेशन मालूम की, जो चोरल डैम के इलाके की थी.

चोरल डैम नेमावर से बहुत नजदीक नहीं तो बहुत दूर भी नहीं है. लोग वहां घूमने जाते हैं. पुलिस ने अब पूरा मामला एक बड़ी साजिश में उलझा हुआ महसूस किया. उस दिशा में नेमावर पुलिस ने अपनी जांच और भी तेज कर दी.

कुछ दिनों बाद ही पुलिस को एक ढाबे पर कुछ लोगों के द्वारा रूपाली के परिवार के गायब होने की बात करने की जानकारी मिली. उन में 2 लोग सुरेंद्र के खेत पर काम करते थे.

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पुलिस संदेह के आधार पर उन्हें थाने लाई. उन से पूछताछ के क्रम में सुरेंद्र के 2 करीबी दोस्तों विवेक तिवारी और राकेश के बारे में भी जानकारी मिली. उन्हें भी थाने बुलवा लिया गया. आखिर में पुलिस सुरेंद्र और उस के भाई वीरेंद्र को भी पूछताछ के लिए थाने ले आई.

इंसपेक्टर यादव ने दोनों भाइयों से अलगअलग पूछताछ की और उन के दोस्तों के बयान के साथ तार जोड़ा, तब यह समझते देर नहीं लगी कि लापता परिवार के पीछे इन्हीं लोगों का हाथ है.

उन पर जब सख्ती बरती गई और सच छिपाने एवं झूठे बयान देने की भी सजा का डर दिखाया गया, तब वे टूट गए.

उन से मिली अहम जानकारियों के आधार पर पुलिस के आला अधिकारी जेसीबी मशीन ले कर सुरेंद्र के खेत पर जा पहुंचे. तब तक गांव वालों की काफी भीड़ वहां जमा हो गई थी. कुछ ही देर में खेत की खुदाई शुरू की गई.

जैसेजैसे बड़े गड्ढे से मिट्टी निकलती गई, वैसेवैसे अपराधियों का कृत्य सामने आता चला गया. कुछ देर में ही जो मंजर सामने आया, सब की रूह कांप उठी. खेत में से एक के बाद एक कर सड़ेगले 5 लाशों के कंकाल निकाले गए.

उन की पहचान ममता, रूपाली, दिव्या, पूजा और पवन के रूप में हुई. पुलिस को हैरत हुई कि जिस के मोबाइल से लगातार मैसेज आ रहे थे, उस की मौत हो चुकी थी.

इस नृशंस हत्याकांड को ले कर पूरे मध्य प्रदेश में सनसनी फैल गई. सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों ने इसे दलित अत्याचार का रंग देने की कोशिश की.

हालांकि मामला कैसे अलग तरह का था, इस का खुलासा आरोपियों ने गहन पूछताछ के बाद किया. इस दिल दहला देने वाले सनसनीखेज हत्याकांड की कहानी इस प्रकार सामने आई—

रूपाली के पिता मूलरूप से खंडवा स्थित खलावा के रहने वाले थे. लेकिन पूरा परिवार काम की तलाश में देवास जिले के नेमावर के वार्ड नंबर 10 में आ कर बस गया था.

रूपाली के घर के बिलकुल नजदीक सुरेंद्र सिंह का मकान था. रूपाली के भाई संतोष से उस की दोस्ती थी. दोनों एक ही उम्र के थे. दोस्ती होने के कारण सुरेंद्र का रूपाली के घर आनाजाना लगा रहता था.

रूपाली किशोरावस्था की उम्र लांघ चुकी थी. वह काफी आकर्षक और सुंदर दिखने लगी थी. उस की सुंदरता को देख कर सुरेंद्र दंग था. मन ही मन वह उसे अपना दिल दे बैठा था. किसी न किसी बहाने से वह संतोष के घर जाने लगा था.

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कुछ समय बाद रूपाली की बड़ी बहन भारती, पिता और संतोष खराब आर्थिक स्थिति के चलते रोजगार के सिलसिले में पीथमपुर जा कर रहने लगे. जबकि रूपाली अपनी मां और बहन के साथ वहीं नेमावर में ही रहती थी.

सुरेंद्र के साथ लिवइन में रहने लगी रूपाली

संतोष के जाने के बाद सुरेंद्र ही एक तरह से उन की देखभाल करने वाला बन गया था. वह छोटीमोटी मदद भी कर दिया करता था

रूपाली भी सुरेंद्र के हावभाव को समझ गई थी. ऊपर से वह पैसे वाला संपन्न परिवार से था. रूपाली ने महसूस किया कि उस की मनमांगी मुराद पूरी होने वाली है.

अगले भाग में पढ़ें- सुरेंद्र को बदनाम करने लगी  रूपाली 

Crime Story: नई दुल्हन का खूनी खेल

लेखक- अशोक शर्मा

थाणे जिले का एक प्रमुख रेलवे जंक्शन है कल्याण. उत्तर और दक्षिण को जाने वाली सभी रेलगाडि़यां यहां हो कर आतीजाती

हैं. कल्याण का एक उपनगर है विट्ठलवाड़ी, जिस के परिसर में दुर्गा का मंदिर है. मंदिर के ठीक सामने यशवंत अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 9 में जगदीश सालुंखे अपने बड़े भाई कांचन सांलुखे के परिवार के साथ रहता था.

जगदीश अंबरनाथ की एक फार्मास्युटिकल कंपनी में नौकरी करता था. उस की शादी एक चंचल शोख हसीना और महत्त्वाकांक्षी युवती वृशाली ठाकरे से हुई थी. शादी के बाद जगदीश सालुंखे ने अपने भाई का घर छोड़ दिया और उसी सोसायटी में किराए का एक फ्लैट ले कर पत्नी के साथ रहने लगा.

जगदीश सालुंखे और वृशाली की शादी को अभी 3 महीने भी नहीं हुए थे कि जगदीश की मौत हो गई. 6 मार्च, 2019 को रात के लगभग 11 बजे वृशाली ने वहीं पास में रहने वाले जगदीश सालुंखे के मामा नंदलाल सौदाणे को फोन किया. वह घबराई हुई लग रही थी.

फोन नई बहू वृशाली ने किया था, फोन सुन कर नंदलाल के होश उड़ गए. वृशाली उन से मदद मांगते हुए कह रही थी कि मामाजी यहां घर में बहुत बड़ी चोरी हुई है. चोरों ने जगदीश को मार दिया है. प्लीज मामाजी, आप जल्दी घर पर आ जाएं.

यह सारी बातें वृशाली ने रोते हुए एक ही सांस में नंदलाल को बता दी थीं. नंदलाल ने वृशाली को धीरज बंधाते हुए कहा कि वह तुरंत उस के घर पहुंच रहे हैं. जगदीश के घर के पास ही उस का बड़ा भांजा यानी जगदीश का बड़ा भाई कांचन सालुंखे रहता था. नंदलाल ने यह जानकारी कांचन को भी दे दी. वह भी अपने मामा के साथ तत्काल घटनास्थल पहुंच गया.

थोड़ी सी देर में यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. आसपड़ोस के लोगों के साथसाथ जगदीश सालुंखे के जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों की भीड़ एकत्र हो गई.

उन की नजर घर के अंदर गई तो उन्होंने देखा कि जगदीश सालुंखे बैड पर पड़ा था. घर का सारा सामान इधरउधर बिखरा हुआ था. जगदीश सालुंखे की पत्नी वृशाली पति के शरीर से लिपट कर रो रही थी.

जगदीश सालुंखे के घर पहुंच कर उस के भाई कांचन सालुंखे और मामा नंदलाल सौदाणे ने पड़ोसियों की मदद से वृशाली को जगदीश से अलग किया और एक आटो की मदद से पास ही गुलाबराव पाटिल के दवाखाने ले कर गए, जहां से उन्हें किसी दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए कहा गया.

इस पर वे जगदीश सालुंखे को डा. भुजबल के अस्पताल ले कर गए. लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी. वहां डाक्टरों ने जगदीश सालुंखे की स्थिति देख कर उसे रुक्मिणी बाई अस्पताल रैफर कर दिया. वहां के डाक्टरों ने जगदीश को देखते ही मृत घोषित कर दिया. इस के साथ ही साथ अस्पताल की ओर से इस मामले की जानकारी स्थानीय पुलिस थाने के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी गई.

जिला अस्पताल से सूचना मिलते ही थाना कोलसेवाड़ी में रात्रि ड्यूटी पर मौजूद एसआई एस.एस. तड़वी 2 कांस्टेबलों के साथ जिला अस्पताल पहुंच गए. इस की जानकारी उन्होंने सीनियर पीआई शाहूराजे सालवे को दे दी थी.

अस्पताल पहुंच कर वह अभी मृतक के परिवार से पूछताछ कर ही रहे थे कि उसी समय थाणे के डीसीपी संजय शिंदे, एसीपी पवार, सीनियर पीआई शाहूराजे सालवे, पीआई मधुकर भोंगे, एपीआई सुनीता राजपूत, एसआई नलावड़े, हेडकांस्टेबल हनुमंत शिर्के, अभिनाश काले, प्रकाश मुंडे के साथ अस्पताल पहुंच गए.

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मामला चोरी का नहीं था

डाक्टरों से बात करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने सरसरी निगाह से मृतक जगदीश सालुंखे के शव का निरीक्षण किया. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के चले जाने के बाद सीनियर पीआई शाहूराजे सावले ने अस्पताल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर जगदीश सालुंखे का शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

इस के बाद वह सीधे घटनास्थल पर गए. घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद वह थाने लौट गए.

थाने लौट कर जब उन्होंने अपने सहायकों  के साथ इस मामले पर गंभीरता से विचार किया तो उन्हें चोरी और जगदीश सालुंखे की हत्या की कडि़यों में कई पेंच नजर आए. मामला वैसा नहीं था जैसा कि बताया जा रहा था. मामले की तह में जाने के लिए जगदीश सालुंखे की पत्नी वृशाली का बयान जरूरी था.

लेकिन उस समय वृशाली बयान देने की स्थिति में नहीं थी. इसलिए सीनियर पीआई शाहूराजे ने पूछताछ करने के लिए वृशाली को दूसरे दिन थाने बुलाया और मामले की तफ्तीश पीआई मधुकर भोंगे और एपीआई सुनीता राजपूत को सौंप दी.

वृशाली ने अपने बयान में बताया कि घर में सागसब्जी नहीं थी. उस ने पति जगदीश सालुंखे को फोन पर इस बात की जानकारी दी. लेकिन वह काम से लौटते समय खाली हाथ आ गए. इस पर वह सीधे बाजार चली गई. बाजार से लौट कर जब वह घर आई तो घर की स्थित देख कर उस के होश उड़ गए. भाग कर जब वह पति जगदीश के पास पहुंची तो वह बेहोश पड़े थे.

यह देख कर वह बुरी तरह डर गई. उस की शादी के सारे जेवर चोर ले गए थे. उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने पति के मामा नंदलाल सौदाणे को फोन पर सारी जानकारी दे दी.

हालांकि पुलिस ने वृशाली सालुंखे के बयान पर भादंवि की धारा 174 के तहत अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी. लेकिन जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पुलिस का शक वृशाली पर गया. वह सीधेसीधे पुलिस के राडार पर आ गई. जगदीश सालुंखे के परिवार वालों ने उस की मौत को गहरी साजिश बताया था.

परिवार वालों के बयान के अनुसार वृशाली जगदीश के साथ हुई अपनी शादी से खुश नहीं थी. शादी के पहले वह 2 बार जगदीश सालुंखे से शादी करने के लिए मना कर चुकी थी. यह शादी उसे उस के घर वालों के भारी दबाव के कारण करनी पड़ी थी.

पुलिस टीम ने जब इन सब बातों की सच्चाई जानने के लिए वृशाली से पूछताछ की तो पहले तो उस ने पुलिस को घुमाने की कोशिश की. लेकिन पुलिस के सवालों के चक्रव्यूह में वह कुछ इस तरह फंसी कि उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

23 वर्षीय जगदीश सालुंखे सुंदर स्वस्थ युवक था. वह मूलरूप से जनपद जलगांव के तालुका रावेर का रहने वाला था. उस के पिता गोकुल सालुंखे सीधेसादे व्यक्ति थे. गांव में उन की थोड़ीबहुत काश्तकारी थी. इस के अलावा रावेर में उन की हेयरकटिंग की दुकान भी थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा सिर्फ 2 बेटे थे. बडे बेटे कांचन सालुंखे की शादी हो चुकी थी. वह अपनी पत्नी के साथ कल्याण के उपनगर कोलसेवाड़ी में रहता था.

जबकि छोटा बेटा जगदीश सालुंखे पढ़ाई कर रहा था. गोकुल सालुंखे अपनी काश्तकारी और दुकान से परिवार की गाड़ी पूरी जिम्मेदारी से चला रहे थे. जगदीश को ले कर मातापिता का सपना था कि उन का छोटा बेटा उन के साथ रह कर घर की पूरी जिम्मेदारियां संभाले. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

पढ़ाई पूरी करने के बाद जगदीश का मन गांव में नहीं लगा तो उस ने शहर की राह पकड़ ली. शहर आ कर वह अपने बड़े भाई कांचन सालुंखे और भाभी के साथ रहने लगा. जल्दी ही उसे अंबरनाथ स्थित एक फार्मास्युटिकल कंपनी में नौकरी मिल गई. जगदीश सालुंखे जब नौकरी करने लगा तो परिवार वाले उस की शादी की सोचने लगे.

गोकुल सालुंखे ने जब बेटे की शादी की बात अपने नातेरिश्तेदारों और जानपहचान वालों के बीच चलाई तो जगदीश के लिए मलाड के रहने वाले ठाकरे परिवार की वृशाली ठाकरे का रिश्ता आया.

22 वर्षीय वृशाली ठाकरे अपने परिवार की इकलौती बेटी थी. उस के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. घर में एक भाई सतीश ठाकरे और मां थी. घर की पूरी जिम्मेदारी सतीश ठाकरे के कंधों पर थी. इसलिए उस ने अभी तक शादी नहीं की थी. वृशाली जितनी सुंदर थी उतनी ही वह चंचल और हंसमुख भी थी. जगदीश सालुंखे को वह पहली नजर में भा गई.

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वृशाली ने घर वालों को यह रिश्ता बहुत पसंद आया. ऊपर से उन का पुराना पारिवारिक रिश्ता भी निकल आया. इसलिए ठाकरे परिवार वृशाली की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहता था. जगदीश सालुंखे और वृशाली के देखादेखी के बाद दोनों परिवार और उन के नातेरिश्तेदारों ने मिल कर वृशाली और जगदीश सालुंखे की सगाई कर दी और साथ ही शादी की तारीख भी तय हो गई.

आज के जमाने में लोग सगाई को आधी शादी मानते हैं. और अपने बच्चों को खुली छूट दे देते हैं. लड़का और लड़की दोनों बातचीत के साथसाथ मिलनेजुलने और घूमनेफिरने लगते हैं. ऐसा ही कुछ वृशाली और जगदीश सालुंखे के साथ भी हुआ था.

वृशाली और जगदीश सालुंखे भी एकदूसरे से मिलनेजुलने और बातचीत करने लगे थे. उन का यह सिलसिला लगभग 6 महीने तक चलता रहा. जगदीश सालुंखे वृशाली से शादी तय होने से खुश था. दूसरी तरफ आधुनिक विचारों वाली वृशाली 6 महीने में ही जगदीश सालुंखे से बोर हो गई थी.

सीधेसादे नहीं, हीरो या मौडल

जैसे पति की दरकार

वृशाली को एक सीधासादा नहीं हीरो, मौडल जैसा स्मार्ट पति चाहिए था, जो उस के इशारों पर चले और उस की सारी इच्छाएं पूरी करे. शादी के 20 दिन पहले वृशाली ने जगदीश सालुंखे को फोन कर मुंबई के दादर रेलवे स्टेशन पर बुलाया और बुझे मन से कहा कि वह उस के साथ शादी जैसे पवित्र बंधन में नहीं बंधना चाहती. क्योंकि दोनों के आचारविचार एकदूसरे से नहीं मिलते. अगर दोनों की शादी हो गई तो वह खुश नहीं रह पाएगी. इस से अच्छा है कि वह शादी से इनकार कर दे.

वृशाली ठाकरे की इस बात से जगदीश सालुंखे के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. वजह यह कि उस के घर वालों ने शादी की पूरी तैयारी कर ली थी. सारे नातेरिश्तेदारों को शादी के कार्ड भी भेज दिए गए थे. जगदीश ने जब यह बात वृशाली को समझाने की कोशिश की. लेकिन उस ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि अगर उस की शादी जबरन की गई तो वह जहर खा कर आत्महत्या कर लेगी. तब उस का क्या अंजाम होगा, वह सोच ले. वृशाली की इस धमकी से जगदीश सालुंखे बुरी तरह डर गया. उस ने वृशाली की सारी बातें अपने परिवार वालों को बता दीं.

इस बात की खबर जब वृशाली के घर वालों को लगी तो वे भी सकते में आ गए. उन्होंने वृशाली को आड़े हाथों लिया. अपने परिवार के दबाव में वृशाली ने अपनी गलती मानी और जगदीश से शादी करने के लिए तैयार हो गई. लेकिन जगदीश सालुंखे के परिवार वालों को वृशाली की बातों पर यकीन नहीं था.

वह वृशाली के परिवार वालों की विनती पर शादी के लिए तैयार हो गए. लेकिन उन्होंने साफ कह दिया कि अगर भविष्य में वृशाली ने कोई गलत कदम उठाया तो जिम्मेदारी उन की नहीं होगी, इस के लिए उन्होंने अलग से गारंटी और माफी पत्र लिखवा कर अपने पास रख लिया. इस के बाद वह शादी की तैयारी में जुट गए.

घर परिवार वालों के दबाव में आ कर आखिर वृशाली जगदीश सालुंखे से शादी के लिए तैयार हो गई. लेकिन उस के मन में जगदीश सालुंखे को ले कर असमंजस की स्थिति थी. जगदीश सालुंखे को वह पति के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही थी. यही कारण था कि वह अपनी शादी के लिए टालमटोल कर रही थी.

शादी के सप्ताह भर पहले वृशाली ने जगदीश सालुंखे को एक होटल में बुलाया और वही पुरानी बातें दोहराते हुए कहा कि वह इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहती. उसे ब्यूटीशियन का कोर्स करना है. कोर्स कर के पहले अपना कैरियर बनाएगी. फिर शादीविवाह के बारे में सोचेगी. तब तक के लिए वह शादी की तारीखों को आगे बढ़वा दे. जब कैरियर बन जाएगा तो शादीविवाह तो कभी भी कर सकते हैं.

इस बार जगदीश सालुंखे ने वृशाली को समझाने की कोशिश नहीं की. बल्कि उस ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘यह बात तुम अपने परिवार वालों से क्यों नहीं कहती हो. मुझ से यह सब नहीं होगा.’’ इतना कह कर जगदीश सालुंखे गुस्से में वहां से उठ कर चला गया.

जगदीश सालुंखे के इस रवैये से वृशाली जलभुन गई थी. इस समस्या से निपटने के लिए अब उसे ही कुछ करना था. वह सोचने लगी कि ऐसा क्या करे कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

घर जाने के बाद वह सारी रात अपनी समस्या को ले कर सोचती रही, करवटें बदलती रही. और सुबह तक उस ने समस्या का जो हल निकला, वह काफी खतरनाक था. दूसरी ओर दोनों परिवार वृशाली और जगदीश सालुंखे की शादी को ले कर उत्साहित थे.

वृशाली का पहला अटैक

वृशाली की शादी हो रही थी. इस बात को ले कर उस की सहेलियों और दोस्तों में खुशी की लहर थी. वह सब वृशाली से शादी की बैचलर पार्टी की मांग कर रहे थे. जिसे वृशाली आजकल कह कर टाल रही थी. वृशाली ने शादी के 2-4 दिन पहले अपने घर में छोटी सी पार्टी रखी और इस से खासतौर पर जगदीश को भी बुलाया था.

वृशाली के बुलाने पर जगदीश पार्टी में आया तो जरूर था पर उस ने पार्टी में एंजौय नहीं किया. घर लौटते समय वृशाली ने बड़े प्यार से जगदीश के लिए खाने का टिफिन तैयार किया और उसे घर पहुंच कर खाने के लिए कह दिया.

लेकिन जगदीश ने टीफिन का खाना नहीं खाया. घर जाने के बाद उस ने टिफिन खोला तो उस में से एक अजीब सी गंध आई, जिस की वजह से जगदीश ने खाना फेंक दिया. उस खाने में वृशाली ने बड़ी चालाकी से जहर डाला था.

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अंतत: 29 दिसंबर, 2018 को बड़ी धूमधाम से वृशाली ठाकरे और जगदीश सालुंखे की शादी हो गई. शादी के बाद वे दोनों घूमने के लिए हिल स्टेशन चले गए. इस शादी से जगदीश सालुंखे तो बहुत खुश था और वृशाली के सारे गिलेशिकवे भूल गया था. लेकिन वृशाली शादी से खुश नहीं थी.

शादी के नाम पर उस ने सिर्फ एक समझौता किया था. जैसेजैसे समय बीत रहा था वैसेवैसे वृशाली के व्यवहार में परिवर्तन आता जा रहा था. वह बातबात पर जगदीश और उस के परिवार वालों से लड़ाई करने लगी थी. इस से तंग आ कर जगदीश सालुंखे के परिवार वालों ने उसे कहीं अलग रहने की सलाह दी. अंतत: जगदीश उसी परिसर में किराए का एक फ्लैट ले कर वृशाली के साथ रहने लगा.

वृशाली को घरगृहस्थी नहीं चाहिए थी

वृशाली यही चाहती भी थी कि कोई उसे रोकनेटोकने वाला न हो. नए घर में आने के बाद वह पूरी तरह से आजाद हो गई. वह सारासारा दिन मोबाइल फोन से चिपकी रहती थी. जगदीश जब इस पर ऐतराज करता, तो वह उस से उलझ जाती थी. बात आगे न बढ़े इस के लिए जगदीश सालुंखे खुद ही चुप हो जाता था.

लोग शादी के बाद अपने दांपत्य जीवन की गाड़ी हंसीखुशी के साथ चलाते हैं. लेकिन जिस दांपत्य जीवन की नींव रेत पर खड़ी हो वह भला कितने दिनों तक चल सकता है. और यही जगदीश सालुंखे के साथ भी हुआ. उस की शादी को अभी 3 महीने भी पूरे नहीं हुए थे कि अपनी आजादी के लिए वृशाली सालुंखे ने जो रास्ता चुना, वह सीधा जेल में जा कर खुलता था.

घटना के दिन वृशाली काफी खुश थी. उस ने काम से लौट कर आए जगदीश सालुंखे से प्यार भरी बातें कीं और अपनी योजना के अनुसार उस के खाने में चूहे मारने की दवा मिला दी.

खाना खाने के बाद जगदीश जब सोने के लिए अपने बैड पर गया तो उस का मन व्याकुल होने लगा. इस के पहले कि वह उठ कर बाथरूम में जाता, वृशाली ने उस के गले में नायलोन की रस्सी डाल कर पूरी ताकत से उस का गला घोंट दिया. वृशाली को जब इस बात का पूरा यकीन हो गया कि पति मर गया है. तब उस ने ड्रामा करते हुए जगदीश के मामा नंदलाल सौदाणे को फोन कर दिया.

वृशाली ने परिवार वालों और पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की. लेकिन वह सफल नहीं हो पाई. शादी से आजादी पाने के चक्कर में वह एक ऐसी खाई में जा गिरी, जहां से उस का निकलना संभव नहीं था.

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पीआई मधुकर भोंगे और उन की टीम ने वृशाली सालुंखे से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया गया. कथा लिखे जाने तक वृशाली सालुंखे जेल में थी. पीआई मधुकर भोंगे और उन की टीम इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही है कि मामला सिर्फ पति के न पसंद होने का था या फिर हकीकत कुछ और थी.द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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