कातिल कौन : भाग 2

लेखक- अहमद यार खान

मेरी इस बात से सलामत के चेहरे का रंग उड़ गया. उस ने सोचा भी नहीं होगा कि मैं इतना सब कुछ जान गया हूं. वह घबरा कर मेरी ओर देखने लगा. उस के चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा था. मैं ने उसे कमजोर पा कर और दबाव बनाया, ‘‘फिर तुम ने अपनी धमकी पर अमल कर दिया. अब्बास कैसे बच निकला?’’

‘‘वह तो…वह तो…’’ उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘मैं ने उसे डराने के लिए कहा था. अगर हत्या ही करनी होती तो मैं अब्बास की करता.’’

‘‘यह भी तो हो सकता है जब तुम वहां पहुंचे तब तक अब्बास आया ही न हो और शादो को अकेला पा कर तुम ने उस के साथ जबरदस्ती की हो. जब वह तुम्हारे काबू में नहीं आई तो तुम ने उसी के दुपट्टे से गला दबा कर उसे मार डाला, जिस से वह किसी को कुछ बता न सके.’’

मैं ने पुलिसिया लहजे में कहा तो वह कसमें खाखा कर मुझे यकीन दिलाने लगा कि हत्या उस ने नहीं की. लेकिन मैं उस की कसमों पर विश्वास नहीं कर सकता था.

मैं ने उस से पूछा कि घटना वाली रात वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर में ही था. मैं ने सलामत से कहा कि वह झूठ बोलने की कोशिश न करे, क्योंकि वह जो कुछ भी कहेगा, मैं उस की पुष्टि अपना आदमी भेज कर करा लूंगा.

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कांस्टेबल ने आ कर इशारे से बताया कि अब्बास आ गया है.

मैं ने कहा, ‘‘सलामत को ले जा कर लौकअप में बंद कर दो और उसे यहां भेज दो.’’

पूछताछ के दौरान अब्बास ने बताया कि हत्या वाली रात वह शादो के साथ ही था. उसे जरा भी अनुमान नहीं था कि वह मर जाएगी, नहीं तो वह उसे छोड़ कर नहीं आता.

अब्बास के अनुसार, शादो ने अपनी जिंदगी के अकेलेपन में उस पर भरोसा किया और उस से शादी भी करना चाहती थी. लेकिन उस के घर वाले उस की शादी अपनी जानपहचान में कराना चाहते थे. जबकि शादो को वह आदमी बिलकुल पसंद नहीं था. उस ने बहाना बनाया कि मैं अपने बेटे पर सौतेले बाप का साया नहीं पड़ने देना चाहती.

अब्बास उस से सच्चा प्रेम करता था. उस ने शादो से कई बार शादी के लिए कहा लेकिन उस ने मना कर दिया. शादो ने उसे बताया कि जिस आदमी से उस का रिश्ता उस के घर वाले चाहते थे, वह पहले से ही शादीशुदा था और उस के 2 बच्चे भी थे. साथ ही शादो की छोटी बहन की शादी उस आदमी के छोटे भाई से हुई थी. अगर शादो उस आदमी को छोड़ कर कहीं और शादी करती तो उस आदमी के घर वाले उस की बहन का घर बरबाद कर देते. इसलिए उस ने शादी न करने का फैसला कर लिया था.

जब कोई राह नहीं मिली तो शादो और अब्बास ने खुदा को गवाह बना कर एकदूसरे को पतिपत्नी मान लिया था. लेकिन उस की कानूनी और सामाजिक हैसियत कोई नहीं थी. वे दोनों खंडहर में मिला करते थे. उस रात भी वे दोनों साथ थे. अचानक पत्तों के चरमराने की आवाज सुन कर अब्बास ने शादो से कहा कि वह दूसरी ओर से निकल जाए. अब्बास भी खंडहर के दूसरी ओर से निकल कर गांव आ गया.

अगली सुबह पता लगा कि शादो की हत्या हो गई. यह दास्तां सुनाने के बाद अब्बास ने फिर से अफसोस जाहिर किया, ‘‘अगर उसे पता होता तो वह शादो को अकेला नहीं छोड़ता और कायरों की तरह गांव नहीं आता.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हें किसी पर शक है? सलामत ने तुम दोनों को मारने की धमकी दी थी.’’

लेकिन अब्बास ने यह कह कर सलामत को शक के दायरे से बाहर कर दिया कि उस रात जो आदमी आ रहा था, उस का साया छोटा था और सलामत कद में लंबा है.

उस के बयान से यह बात तो साफ हो गई कि सलामत निर्दोष है. मैं ने उस से बहुत से सवाल किए और यह कह कर उसे जाने दिया कि अगर इस मामले में उसे कुछ पता लगे तो हमें सूचित करे. मैं ने सलामत को भी जाने दिया.

अगले दिन सूचना मिली कि शादो के मांबाप और भाई रफीक अकसर उस से मिलने आया करते थे. जब उस के घर वालों को शादो और अब्बास के संबंधों का पता लगा तो रफीक ने शादो से सख्ती से पूछताछ की. शादो ने कसम खा कर उसे यकीन दिलाया कि उस के किसी से भी संबंध नहीं हैं.

हत्या से एक दिन पहले रफीक ने शादो से कहा था कि अगर उसे पता लगा कि लोग जो कुछ कहते हैं, वह सच है तो अपने हाथों से उस का गला घोंट देगा. और अगली ही रात शादो की गला घोंट कर हत्या कर दी गई.

शादो के घर वाले उस के क्रियाकर्म के लिए गांव में ही रुके हुए थे. मैं ने कांस्टेबल को भेज कर शादो के भाई रफीक को थाने बुलवा लिया.

पूछताछ के दौरान रफीक ने यह तो मान लिया कि उस का शादो से झगड़ा हुआ था. लेकिन उस की हत्या की बात से साफ इनकार करते हुए बोला कि वह उस दिन अपने एक दोस्त की शादी में गया हुआ था.

मुझे उस की बात में सच्चाई लग रही थी. मैं ने एक कांस्टेबल को शहर भेज कर सच्चाई पता करने के लिए कहा. उस के बाद मैं ने रफीक को इस ताकीद के साथ जाने दिया कि बिना इजाजत वह गांव छोड़ कर न जाए.

2 घंटे बाद कांस्टेबल लौट आया और उस ने रफीक की बात की पुष्टि कर दी. मैं सिर पकड़ कर बैठ गया. हत्या हुए 2 दिन हो गए थे, लेकिन मेरी जांच एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी थी.

अगली सुबह एक कांस्टेबल ने घर आ कर जो खबर सुनाई, उस ने मेरे होश उड़ा दिए. उस ने बताया कि नंबरदार खबर लाया है. शादो का बेटा सफदर घर में मरा पड़ा है. किसी ने उसे गला घोंट कर मार दिया है.

मैं तुरंत थाने पहुंचा. मैं ने नंबरदार से पूछा तो उस ने बताया कि शादो के क्रियाकर्म के बाद सब लोग अपनेअपने घर चले गए. सफदर के नानानानी और मामा ने उस से साथ शहर चलने के लिए कहा तो उस ने मना कर दिया कि वह कुछ दिन बाद आ जाएगा.

वह हर रोज सुबह को योगा करने जाता था. उस दिन सुबह को उस का एक दोस्त उसे बुलाने घर गया. सफदर घर में अकेला रहता था. उस ने दरवाजा खटखटाया. जब काफी देर तक कोई जवाब नहीं मिला तो उस ने दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा खुला हुआ था. उस ने अंदर जा कर देखा तो सफदर मरा पड़ा था.

वह डर गया और सीधा नंबरदार की हवेली जा कर उसे पूरी बात बताई. नंबरदार तुरंत उस के साथ आया और अंदर सफदर की लाश देखी. उस ने घर की कुंडी लगा दी और सीधा थाने आया. मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर घटनास्थल पर पहुंचा.

घर के अंदर जा कर लाश को देखा. जैसे मां को गला घोंट कर मारा गया था, उसी तरह बेटे को भी मारा गया था. सफदर अपने गले में एक गमछा डाले रखता था, उसी गमछे से पीछे की ओर खींच कर उस की हत्या की गई थी. मैं ने वहां कांच की चूडि़यों के टुकड़े बिखरे हुए देखे.

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उन टुकड़ों को मैं ने जेब में रख लिया. मैं ने लाश की बहुत बारीकी से जांच की. उस के शरीर पर कोई घाव नहीं था. कमरे का सामान भी ज्यों का त्यों था, कोई चीज बिखरी हुई नहीं थी.

इस का मतलब उसे अचानक ही मारा गया था. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद मैं ने सहन में जा कर देखा, वहां मुझे पैरों के निशान दिखाई दिए. वे निशान बिलकुल वैसे थे जो शादो की लाश के पास मिले थे. इस का मतलब यह था कि दोनों हत्याएं एक ही आदमी ने की थीं. अब इस हत्या में एक नई बात यह हुई कि इस में एक औरत भी शामिल हो गई थी, क्योंकि वहां से चूडि़यों के टुकड़े पाए गए थे.

मैं ने सफदर के दोस्त अरशद को अपने पास बिठा लिया. फिर उस से बड़े प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे दोस्त की हत्या का बड़ा दुख है. मैं उस के हत्यारे को पकड़ना चाहता हूं. मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. तुम्हारा दोस्त किसी लड़की के चक्कर में मारा गया है. यह बताओ उस का किसी लड़की के साथ संबंध था?’’

उस ने कहा, ‘‘यह मेरे और मेरे दोस्त के बीच का राज है. मैं किसी को बताना नहीं चाहता था, लेकिन अब जब मेरा यार ही नहीं रहा तो छिपाने से क्या फायदा. गांव की एक लड़की परवीन उस पर मरती थी और दोनों चोरीछिपे मिलते थे. सफदर उस लड़की के साथ सीरियस नहीं था, जबकि परवीन उस से शादी करना चाहती थी. सफदर उसे धोखा दे रहा था, उस के साथ प्रेम के नाम पर पाप का खेल खेल रहा था.’’

अरशद ने बताया कि सफदर ने उसे बताया था कि परवीन उस की वजह से कुंवारी मां बनने वाली है. वह सफदर से मिन्नतें करती थी कि जितनी जल्दी हो सके, उस से शादी कर ले, जिस से वह बदनामी से बच जाए. लेकिन सफदर उसे टालता रहा. उस का परवीन से शादी करने का कोई इरादा नहीं था.

अब देखिए मां भी प्रेम जाल में फंस कर मारी गई और बेटा भी उसी खेल में मारा गया. मैं ने अरशद से पूछा कि लड़की के घर वालों को पता था तो उस ने कहा पता नहीं. वैसे उस ने कहा कि सफदर रोज योगा करने जाया करता था. वहां एक नीची जाति के लड़के ने सफदर को कुछ कह दिया तो उस ने कहा, ‘‘छोटा मुंह, बड़ी बात न कर.’’

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जवाब में उस लड़के ने कहा, ‘‘हम गरीब जरूर हैं लेकिन बेशर्म नहीं हैं. इतने ही शर्मदार हो तो पहले अपनी मां और अब्बास को मारो, फिर हम से बात करना.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

कातिल कौन : भाग 1

लेखक- अहमद यार खान  

पंजाब के एक बड़े शहर से 5 किलोमीटर दूर एक दोहरा हत्याकांड हुआ था. वह इलाका मेरे थाने के अंदर आता था. एक दिन सुबह अंधेरे ही मुझे जगा कर बताया गया कि एक हत्या की सूचना आई है. मैं तुरंत तैयार हो कर थाने पहुंचा. वहां गांव का नंबरदार और एक आदमी बैठा हुआ था. उन्होंने बताया हमारे गांव की एक औरत शादो की लाश गांव में ईंटों के पुराने भट्ठे के पास पड़ी है.

‘‘लाश किस ने देखी थी,’’ मेरे पूछने पर नंबरदार ने उस आदमी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘यह अपने खेतों पर जा रहा था. इसने लाश पड़ी देखी.’’

मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर तुरंत घटनास्थल के लिए रवाना हो गया. रास्ते में नंबरदार से मृतका के बारे में पूछताछ करता रहा. उस ने बताया कि शादो पास के शहर से ब्याह कर गांव आई थी. शादी के 5 साल बाद उस के एक बेटा हुआ. जब बेटा 2 साल का हुआ तो उस का पति टाइफाइड की बीमारी से मर गया.

वह बहुत सुंदर थी, जवान थी. बहुत से लोगों ने इशारों में उस से शादी करने की बात की. कुछ ने लूट का माल समझ कर हड़पना चाहा, लेकिन उस ने सब को ठुकरा दिया. उस ने कहा कि वह अपने बेटे पर सौतेले बाप का साया नहीं पड़ने देगी.

अब उस का बेटा 18 साल का जवान हो गया है. लेकिन शादो की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई. वह 40 साल की उमर में भी आकर्षक लगती थी. कुछ लोग उस के बारे में कई तरह की बातें करते थे. इन बातों में 2 आदमियों का नाम अकसर लिया जाता था. एक तो जमींदार और दूसरा गांव का ही एक सब्जी का कारोबार करने वाला, जो गांव से शहर सब्जियां सप्लाई करता है.

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कुछ ही देर में हम घटनास्थल पर पहुंच गए. वह ईंटों का एक पुराना भट्ठा था, जो टूटफूट चुका था. उस भट्ठे के बीच में ईंट पकाने की जगह बनी थी. उस व्यक्ति ने वह जगह दिखाई. मैं लाश के पास पहुंचा. वहां एक औरत की लाश करवट के बल पड़ी थी. उस ने फूलदार कमीज पहन रखी थी और पैरों में चमड़े की कीमती जूती थी.

ऐसी जूती गांव की औरतें नहीं पहनती थीं, केवल शहरों में पहनी जाती थी. उस का दुपट्टा उस के गले में ऐसे लिपटा था, जिस से साफ जाहिर था कि उस को गला घोंट कर मारा गया है. मृतका की आंखें बाहर को निकली हुई थीं. दुपट्टे के कारण उस का मुंह खुल गया था और जुबान बाहर निकली हुई थी.

मैं ने लाश की बारीकी से जांच की. शरीर पर कहीं भी कोई चोट या घाव का निशान नहीं था. उस की हत्या दुपट्टे से गला घोंट कर की गई थी. आसपास की जमीन पर 3 जोड़ी जूतों के निशान थे. एक तो जनाना जूती जो मृतका की थी. 2 जोड़ी जूतों के निशान मरदाना था.

मरदाना जूते अलगअलग प्रकार के थे, जो साफ पहचाने जा रहे थे. एक निशान देसी जूती का था जो गांव में पहने जाते हैं और दूसरा शहरी जूते का था जो अकसर गांव में नहीं पहने जाते. ये तीनों निशान गांव की ओर से आए थे. इन में से एक निशान पिछली ओर को जा रहा था, दूसरा गांव की ही ओर से वापस आ रहा था.

मैं ने निशानों के मोल्ड बनवा लिए. नंबरदार गांव से चारपाई ले आया और लाश को गांव में ले आए. शादो की हत्या की खबर पूरे गांव में फैल गई थी. तभी एक जवान लड़का तेजी से वहां आया और लाश से लिपट कर रोने लगा. नंबरदार ने बताया यह शादो का बेटा है. वह भी अपनी मां की तरह आकर्षक था.

नंबरदार ने अपनी बैठक में हमारे बैठने का प्रबंध कर दिया. मैं ने हत्या के बारे में सोचना शुरू किया.

सब से पहले मैं ने नंबरदार से शादो के लड़के सफदर को बुलवाया. वह आ कर मेरे सामने बैठ गया. मैं ने देखा, उस के चेहरे पर अब ऐसा दुख दिखाई नहीं दे रहा था, जैसा मां की हत्या पर होना चाहिए था. अभी थोड़ी देर पहले तो वह दहाड़ें मार कर रो रहा था और अब ऐसा लग रहा था जैसे वह रोया ही न हो. मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से दुश्मनी तो नहीं थी?’’

उस ने कहा, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. हमारी किसी से कोई लड़ाईझगड़ा नहीं है.’’

‘‘जायदाद का कोई झगड़ा?’’ मेरे पूछने पर उस ने कहा, ‘‘हमारे बाप के कोई भाईबहन नहीं थे, इसलिए जायदाद का कोई झगड़ा नहीं है.’’

‘‘देखो सफदर, मुझे हत्यारे को पकड़ना है और मुझे तुम से तुम्हारी मां के बारे में कुछ ऐसे सवाल करने हैं, जो एक बेटा सहन नहीं कर सकता. लेकिन यह मेरी मजबूरी है. मुझे पता लगा है कि तुम्हारे पिता के मरने के बाद तुम्हारी मां से कुछ लोग शादी करना चाहते थे, लेकिन तुम्हारी मां ने सब को जवाब दे दिया था,’’ मैं सफदर के चेहरे पर आतेजाते भावों को गौर से देख रहा था.

कुछ रुक कर मैं ने कहा, ‘‘अब भी 2 आदमी ऐसे हैं जो तुम्हारी मां में रुचि रखते थे. क्या ऐसा नहीं हो सकता, उन में से किसी ने गुस्से में आ कर तुम्हारी मां की हत्या कर दी हो?’’

वह कुछ नहीं बोला. बस खालीखाली नजरों से मेरे मुंह को ताकता रहा. मैं ने फिर पूछा, ‘‘क्या तुम्हारी जानकारी में ऐसा कोई आदमी है?’’

‘‘यह सब बकवास है.’’ कह कर उस ने मुंह दूसरी ओर फेर लिया. वह मेरे से नजरें मिलाना नहीं चाहता था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मेरी ओर देख कर बात करो.’’

उस ने गरदन नीची कर के धीमी आवाज में कहा, ‘‘जैसा आप ने सुना है, वैसा मैं ने भी सुना है. लोग मेरी मां के बारे में उलटीसीधी बातें करते हैं.’’

‘‘कैसी बातें?’’

‘‘यही कि मेरी मां के अब्बास के साथ संबंध हैं. सब बकवास करते हैं.’’

अब्बास के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि वह मंडी में सब्जी फलों का काम करता है. मुझे याद आया, यह वही सब्जी वाला है जिस के बारे में नंबरदार ने बताया था. लेकिन अब्बास शादो की हत्या क्यों करेगा. एक सवाल और था, शादो ईंटों के भट्ठे पर अगर अब्बास से मिलने गई थी तो फिर दूसरा आदमी कौन था. शादो की हत्या अब्बास या उस दूसरे आदमी में से किसी ने की होगी, क्योंकि वहां 2 आदमियों के पैरों के निशान मिले थे.

मैं ने सफदर से 2-3 सवाल पूछने के बाद उसे भेज दिया और थाने आ गया. लाश को मैं ने पहले ही पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था.

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मैं ने अपने मुखबिरों को खबर लाने के लिए लगा दिया, जिन में 2 औरतें थीं जो अंदर तक का भेद निकाल लाती थीं. मुझे पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. साथ ही 2 आदमियों से तफ्तीश भी करनी थी. एक तो अब्बास और दूसरा जमींदार सलामत.

मैं ने अब्बास और सलामत को लाने के लिए एक कांस्टेबल को भेज दिया. लेकिन उस के आने से पहले ही 2 मुखबिर आ गए और उन्होंने जो रिपोर्ट दी, उस में अब्बास और सलामत पर शक किया गया था.

एक मुखबिर ने बताया शुरू में तो शादो अपने शादी न करने के निर्णय पर डटी रही और अपना पूरा ध्यान बेटे के पालनपोषण पर लगाती रही. इस बीच उस के चाहने वाले एकएक कर के खिसकते चले गए. लेकिन अब्बास और सलामत ने उम्मीद नहीं छोड़ी. वे शादो की सहायता के बहाने उस से संबंध बनाने की कोशिश में लगे रहे.

इन्हीं कोशिशों के दौरान अब्बास का शादो के घर आनाजाना शुरू हो गया. फिर वे बाहर भी एक साथ देखे जाने लगे. इस पर लोगों ने बातें बनानी शुरू कर दीं तो अब्बास ने यह कह कर उन्हें चुप कर दिया कि उस का शादो के साथ भाईबहन का संबंध है.

दूसरी ओर सलामत ने शादो से निराश हो कर अब्बास को धमकी देनी शुरू कर दी कि वह शादो से दूर रहे वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा. अब्बास ने भी उसी लहजे में जवाब दिया कि हमारे बीच में टांग अड़ाई तो टांगें तोड़ दूंगा.

मुखबिर ने यह भी बताया कि एक बार दोनों की तूतूमैंमैं भी हुई थी. तब सलामत ने अब्बास को धमकी दी थी कि वह और शादो गंदे कामों से दूर रहें, नहीं तो उन्हें रंगेहाथों पकड़ कर उन की हत्या कर देगा.  यह जानकारी देने के बाद दोनों मुखबिर चले गए.

एक कांस्टेबल सलामत को ले कर आ गया था. दूसरा अब्बास को लेने गया हुआ था. मैं ने उस से कह दिया था कि अगर वह अब्बास को ले कर आ जाए तो उस को अलग कमरे में बैठा दे. उसे यह पता नहीं चलना चाहिए कि सलामत यहां आया हुआ है.

सलामत मेरे सामने था. वह गठे शरीर का स्वस्थ जवान था. बस एक ही कमी थी कि उस के चेहरे पर चेचक के बड़ेबड़े निशान थे. शायद इसी वजह से शादो ने उस की बजाय अब्बास से दोस्ती की होगी. मैं ने उस से इधरउधर की बातें करने के बाद शादो का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘शादो के साथ बुरा हुआ.’’

वह बोला, ‘‘बुरे काम का अंत भी बुरा ही होता है.’’

मैं ने अनजान बनते हुए पूछा, ‘‘क्या मतलब?’’

उस ने कहा, ‘‘पूरे गांव को पता है, अब्बास और शादो गंदा काम करते थे.’’

‘‘सचसच बताओ, तुम्हारी अब्बास से क्या दुश्मनी है?’’ मैं ने उसे सोचने का मौका दिए बगैर सीधा सवाल किया तो उस ने यकीन से कहा, ‘‘मेरी उस से कोई दुमश्नी नहीं है.’’

‘‘फिर तुम ने उसे धमकी क्यों दी थी?’’

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‘‘कौन सी धमकी सरकार?’’

‘‘यही कि गंदे काम बंद करो नहीं तो दोनों को रंगेहाथों पकड़ कर दोनों की हत्या कर दूंगा. यही धमकी दी थी न तुम ने?’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

शौहर की साजिश : भाग 3

इशहाक की बड़ी बेटी नसरीन खूबसूरत थी. उस ने जब सोलह साल की उम्र पार कर ली तो उस का रूप रंग ओस में नहाई बूंदों की तरह दमकने लगा. बेटी सयानी हो गई तो इश्हाक ने उस की शादी रियाज अली से कर दी, उस का परिवार बहराइच जिले के इटकौरी गांव का रहने वाला था, पिता सादिक अली खेतीबाड़ी करते थे. सादिक का छोटा बेटा मेराज मुंबई में रह कर नौकरी करता था, जबकि रियाज अली खेतीकिसानी में हाथ बंटाता था.

गांवकस्बों की विडंबना यह है कि वहां की महिलाएं किसी भी बात को मुद्दा बना कर उलटीसीधी बातें करने लगती हैं. नसरीन के बारे में भी ऐसी ही बातें शुरू हो गईं. नसरीन की सास सायरा को ऐसी बातें सुनने को मिलती तो वह नसरीन से चिढ़ जाती. शायरा ने इस मुद्दे पर नसरीन से बात की तो उस ने कह दिया, ‘‘अम्मी बच्चा बातों से तो होने से रहा, जब अल्ला की मर्जी होगी हो जाएगा.’’

एक वर्ष और बीत गया. लेकिन नसरीन मां नहीं बन सकी तो सायरा का नजरिया बदल गया. वह नसरीन को बांझ समझ कर उसे प्रताडि़त करने लगी. अब वह नसरीन के हर काम में नुक्ताचीनी करने लगी थी. बातबेबात नसरीन से उलझने लगी. नसरीन कुछ कह देती तो वह उस पर हाथ भी उठा देती थी. वह शौहर रियाज अली से शिकायत करती तो वह मां का ही पक्ष लेता.

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उन्हीं दिनों रियाज अली रिश्तेदारी की एक खूबसूरत लड़की पर रीझ गया. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. उस लड़की का घर आनाजाना शुरू हो गया. नसरीन की सास सायरा भी उसे तवज्जों देने लगी. नसरीन को इस बढ़ती प्रेम कहानी की जानकारी हुई तो वह विरोध करने लगी. इस पर रियाज उसे पीटता और कभीकभी रात में ही उसे मारपीट कर घर से भी निकाल देता. तब नसरीन घर के बाहर पेड़ के नीचे रात गुजारती.

एक दिन किसी बात को ले कर सासबहू में झगड़ा हुआ तो सायरा ने साफसाफ कह दिया, ‘‘कान खोल कर सुन ले नसरीन. तू बांझ है, इसलिए मैं रियाज की दूसरी शादी करूंगी. तू या तो मेरे बेटे का पीछा छोड़ दे या फिर मायके चली जा. अब मैं और मेरा बेटा तुझे घर में नहीं रख सकते.’’

सास की बात सुन कर नसरीन सन्न रह गई. उस ने इस शादी का विरोध किया तो उस की जम कर पिटाई हुई. उस ने अपने ऊपर हो रहे अत्याचार की जानकारी मातापिता को दी तो इशहाक आया और रियाज और उस की मां से बात की. लेकिन उस की बातों का मांबेटे पर कोई असर नहीं हुआ.

तब तक रियाज का बाप सादिक अली भी नसरीन के विरोध में खड़ा हो गया.

जब रियाज अली को लगा कि घर वाले उस की दूसरी शादी को राजी हैं तब उस ने उस लड़की से निकाह की बात की. लेकिन उस ने यह कहकर इनकार कर दिया कि जब तक उस की पत्नी घर में हैं, वह निकाह के बारे में सोच भी नहीं सकती. उस की इस बात से रियाज दुखी हो गया.

सउदी अरब चला गया रियाज

रियाज की शादी उस लड़की से हो पाती उस के पहले ही रियाज का पासपोर्ट बन गया और वह नौकरी के लिए सउदी अरब चला गया. शौहर के परदेश जाने के बाद नसरीन कभी मायके में रहती तो कभी ससुराल में. जब नसरीन ससुराल में होती तो सासससुर उसे प्रताडि़त करते, भूखाप्यासा रखते. देवर मेराज का भी रवैया बदल गया था. अब वह जब भी मुंबई से घर आता तो नसरीन से बात नहीं करता था. वह उसे नफरत की नजरों से देखता.

लेकिन ससुराल वालों की नफरत के बावजूद नसरीन ने न ससुराल छोड़ी और न ही शौहर का साथ. रियाज अली जब भी परदेश से बात करता तब वह नसरीन को धमकाता कि वह उस का घर छोड़ कर चली जाए. लेकिन नसरीन इनकार कर देती.

वर्ष 2019 के जनवरी माह में रियाज जब परदेश से घर आया तो उस ने नसरीन को खूब मारापीटा, कईकई दिन तक भूखाप्यासा रखा. लेकिन नसरीन न घर छोड़ने को तैयार हुई और न ही उस का साथ. कुछ दिन रहने के बाद रियाज अली वापस सउदी अरब चला गया. उस के जाने के कुछ माह बाद नसरीन भी मायके आ गई.

रियाज अली अब तक जान चुका था कि नसरीन उस का पीछा नहीं छोड़ेगी और उस के रहते वह दूसरी शादी नहीं कर पाएगा. अत: उस ने नसरीन से पीछा छुड़ाने के लिए परदेश में ही उस की हत्या की साजिश रची. साजिश के तहत उस ने मोबाइल फोन पर नसरीन से मीठीमीठी बातें करना शुरू कर दिया. यही नहीं वह उसे खर्चा भी भेजने लगा. नसरीन उस की मीठी बातों में उलझ गई और उस पर यकीन करने लगी.

2 मार्च, 2020 को रियाज अली ने अपने भाई मेराज से मोबाइल फोन पर बात  कर के नसरीन की हत्या की योजना बनाई. मेराज एक सप्ताह पहले ही मुंबई से अपने गांव इटकौरी आया था. भाई के कहने पर मेराज ने अपने मातापिता तथा फुफेरे भाई नन्हे उर्फ सलमान को हत्या की योजना में शामिल कर लिया.

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नन्हे बहराइच के राम गांव थाने के शेखनपुर का रहने वाला था. योजना के तहत मेराज ने फरवरपुर बाजार से एक तेजधार वाला चाकू तथा रस्सी खरीदी और मोटर साइकिल की साइड में लगी डिक्की में रख ली फिर यह बात सउदी अरब में बैठै भाई को बता दी.

5 मार्च, 2020 की सुबह रियाज अली ने सउदी अरब से मोबाइल फोन से नसरीन से बात कर के बताया कि उस के अब्बू की तबीयत ज्यादा खराब है.

वह उसे लाने के लिए छोटे भाई मेराज को भेज रहा है. तुरंत चली आओ. ससुर की तबीयत खराब होने की जानकारी पा कर नसरीन ने ससुराल जाने की हामी भर ली. फिर वह तैयारी में जुट गई.

दोपहर बाद मेराज नसरीन को लेने उस के गांव आ गया. योजना के तहत मेराज के साथ उस का पिता सादिक अली तथा फुफेरा भाई नन्हे उर्फ सलमान भी आया था. उन दोनों को वह अड़गोड़वा गांव के बाहर छोड़ आया था.

नसरीन सजसंवर कर मेराज की मोटर साइकिल पर बैठ गई. वह 2 घंटे तक इधरउधर घुमाता रहा. शाम 5 बजे उस ने रूपईडीहा थाने के गांव अड़गोड़वा के बाहर चक रोड़ पर मोटर साइकिल रोकी और बोला, ‘‘भाभी, तुम अपने घर फोन कर दो कि हम लोग घर पहुंच गए. वरना तुम्हारे घर वाले परेशान होंगे.’’

जाल में फंसी नसरीन

देवर की बात मान कर नसरीन ने अपनी बहन राजदा खातून को फोन पर बता दिया कि वह ससुराल पहुंच गई है. तब तक आसमान पर काले बादल छा गए थे, जिस से अंधेरा घिरने लगा था.

नसरीन और मेराज बात में मशगूल थे तभी इशारा पा कर कुछ दूरी पर घात लगाए बैठे सादिक और नन्हे आ गए. उन दोनों ने नसरीन को दबोच लिया और पास वाले अरहर के खेत में घसीट ले गए. पीछे से मेराज रस्सी और चाकू ले कर आ गया. मेराज और नन्हे ने मिल कर नसरीन के हाथ पैर बांधें. इस बीच सादिक अली खेत के बाहर रखवाली करने लगा. नसरीन को जब लगा कि उस की जान को खतरा है तो उस ने देवर से जान बख्श देने की गुहार लगाई. इस पर मेराज बोला, ‘‘भाई का आदेश है. मैं कुछ नहीं कर सकता.’’

इस के बाद मेराज और नन्हे ने मिल कर नसरीन के शरीर से सारे गहने उतारे और फिर मेराज ने चाकू से नसरीन का सिर धड़ से अलग कर दिया. नसरीन का शरीर कुछ क्षण तड़पा फिर ठंडा हो गया. मेराज ने कटे सिर को प्लास्टिक की बोरी में रखा, फिर तीनों मोटर साइकिल पर सवार हो कर कुछ दूर बह रही सरयू नदी के किनारे पहुंचे और सिर बहती नदीं में फेंक दिया.

इस के बाद मेराज घर आया उस ने गहने और चाकू भूसे की कोठरी में छिपा दिए. खून सनी शर्ट पुराने कपड़ों के बीच छुपा दी. फिर उस ने नसरीन की हत्या की सूचना भाई रियाज को दे दी और परिवार सहित फरार हो गया.

दूसरे दिन अज्ञात महिला की सिर कटी लाश की सूचना रूपईडीहा पुलिस को मिली तो थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय मौके पर पहुंचे. बाद में उस लाश की शिनाख्त नसरीन के रूप में हुई. पुलिस ने जांच शुरू की तो परदेश में बैठे शौहर की साजिश का पर्दाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए. 15 मार्च, 2020 को थाना रूपईडीहा पुलिस ने अभियुक्त सादिक अली, मेराज तथा नन्हे उर्फ सलमान को बहराइच की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन सब को जेल भेज दिया गया.

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सायरा फरार थी. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के प्रयास में जुटी थी. रियाज अली विदेश में है. उस की गिरफ्तारी इंटरपोल की मदद से की जाएगी.

– (कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

शौहर की साजिश : भाग 2

इशहाक ने पुलिस अधीक्षक विपिन कुमार मिश्रा को बताया कि उस ने अपनी बेटी नसरीन की शादी रिसिया थाने के गांव ईटकौरी निवासी सादिक अली के बेटे रियाज अली के साथ की थी. रियाज अली और उस का परिवार मेरी बेटी को बहुत परेशान करता था. उस को मारतेपीटते भी थे और भूखाप्यासा भी रखते थे. कभीकभी वह उसे मारपीट कर घर से बाहर निकाल देते थे. यह सब रियाज इसलिए करता था ताकि नसरीन से उस का पीछा छूट जाए.

दरअसल रियाज अली किसी दूसरी युवती से मोहब्बत करने लगा था. वह नसरीन से पीछा छुड़ा कर उस से शादी करना चाहता था. लेकिन नसरीन यातना सहने के बावजूद शौहर का साथ नहीं छोड़ना चाहती थी.

पिछले 3 साल से रियाज अली सउदी अरब में नौकरी कर रहा है. वह जब भी आता है नसरीन को मारतापीटता है और तलाक देने को कहता है. लेकिन नसरीन इस के लिए राजी नहीं थी. नसरीन की सास साजिया और ससुर सादिक अली अपने बेटे का ही साथ देते थे और नसरीन को प्रताडि़त करते थे. नसरीन कभी मायके में तो कभी ससुराल में रहती.

5 मार्च की सुबह रियाज अली का सउदी अरब से फोन आया कि अब्बा जान की तबीयत खराब है. मेराज को भेज रहा हूं, फौरन उस के साथ चली आओ. फोन पर बात होने के बाद नसरीन ससुराल जाने को तैयार हो गई. दोपहर बाद मेराज आया और नसरीन को मोटर साइकिल पर बैठा कर अपने साथ ले गया.

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लगभग 5 बजे नसरीन ने अपनी छोटी बहन राजदा खातून को फोन पर बताया कि वह ससुराल पहुंच गई है.

यह जान कर राजदा निश्चिंत हो गई. लेकिन कुछ देर बाद सउदी अरब से रियाज का फिर फोन आया. उस ने बताया कि नसरीन अभी तक घर नहीं पहुंची है.

इस पर राजदा खातून ने कहा, ‘‘तुम अपनी रिश्तेदारी में पता करो हम अपनी रिश्तेदारी में पता करते हैं. हम ने नसरीन की हर संभावित जगह पर खोज की लेकिन नसरीन का कुछ पता न चला.’’ राजदा ने आगे बताया कि दूसरे रोज जब अखबार में अज्ञात महिला की सिर कटी लाश की फोटो छपी तब हमें शक हुआ और शिनाख्त करने के लिए आ गए.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है, जिस ने तुम्हारी बेटी की हत्या की है.’’ एस.पी. विपिन कुमार मिश्रा ने इशहाक से पूछा, ‘‘हां हुजूर, मुझे बेटी के शौहर रियाज अली और उस के परिवार पर शक है.’’

‘‘वह कैसे?’’ एस.पी. विपिन कुमार मिश्रा ने मृतका के पिता से पूछा.

‘‘हुजूर, रियाज अली दूसरी शादी करने की कोशिश में था. लेकिन मेरी बेटी नसरीन उस के रास्ते की बाधा थी. इस बाधा को दूर करने के लिए रियाज अली ने विदेश में साजिश रची और अपने भाई मेराज और मांबाप के सहयोग से मेरी बेटी की हत्या करा दी.

शव पहचान में न आए इसलिए उन्होंने सिर काट कर गायब कर दिया और शरीर से जेवर उतार लिए. हुजूर आप मेरी रिपोर्ट दर्ज कर मेरी बेटी के गुनहगारों को सजा दिलाएं. हमें और किसी चीज की चाह नहीं है.’’

इशहाक की व्यथा सुनने के बाद एस.पी. विपिन कुमार मिश्रा ने रूपईडीहा थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय को आदेश दिया कि वह इशहाक की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज करें और मुल्जिमों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर के कटा हुआ सिर बरामद करें. काररवाई में कोई बाधा पहुंचाए तो उसे भी गिरफ्तार कर लें.

शुरू हुईं गिरफ्तारियां

आदेश मिलते ही थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय इशहाक को थाना रूपईडीहा ले आए. फिर उस की तहरीर पर भा.दं.वि. की धारा 302/ 201 के तहत मृतका के शौहर रियाज अली, ससुर सादिक अली, सास सायरा, देवर मेराज तथा फुफेरे देवर नन्हे उर्फ सलमान के खिलाफ रिर्पोट दर्ज कर ली. तत्काल नामजद आरोपियों की तलाश शुरू कर दी गई.

पुलिस अधीक्षक विपिन कुमार मिश्रा को बहराइच जिले का चार्ज संभाले अभी 20 दिन ही हुए थे कि उन्हें कई हत्याओं का खुलासा करने की चुनौती स्वीकार करनी पड़ी. इन में नसरीन की हत्या खास थी. नसरीन के गुनहगारों को पकड़ने के लिए उन्होंने ए.एस.पी रवींद्र सिंह की निगरानी में एक पुलिस टीम गठित कर दी. टीम में रूपईडीहा थाना प्रभारी मनीष कुमार शर्मा, सब इंस्पेक्टर ए.के. सिंह, सी.ओ. जंग बहादुर सिंह तथा एस. ओ.जी. प्रभारी मधुप नाथ मिश्रा को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटना स्थल का मुआयना किया. साथ ही कटा सिर खोजने का प्रयास भी किया. इस टीम ने मृतका के पिता इशहाक, बहन राजदा खातून तथा खेत मालिक सुरेंद्र प्रताप सिंह का बयान भी दर्ज किया. अब तक पुलिस टीम को मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक मृतका के साथ दुराचार नहीं हुआ था. न ही उस के साथ मारपीट की गई थी. उस की मौत गला रेतने से हुई थी.

पुलिस टीम के लिए मृतका के शौहर रियाज अली को गिरफ्तार करना आसान नहीं था क्योंकि वह सउदी अरब में था. पुलिस टीम ने अन्य नामजद अभियुक्तों को पकड़ने के लिए जाल बिछाया और 11 मार्च को रात 10 बजे रिसिया थाने की पुलिस के साथ इटकौरी गांव में सादिक अली के घर पहुंची, लेकिन उस के घर के दरवाजे पर ताला पड़ा था.

सादिक अली अपनी पत्नी सायरा तथा पुत्र मेराज के साथ फरार था. पुलिस टीम खाली हाथ लौट आई. इस के बाद पुलिस टीम ने अन्य हत्याभियुक्तों को पकड़ने के लिए कई संभावित जगहों पर छापा मारा, लेकिन वह पुलिस गिरफ्त में नहीं आए. इस के बाद एस.ओ.जी. प्रभारी मधुप नाथ मिश्रा ने हत्यारोपियों को पकड़ने के लिए अपने खास मुखविरों का जाल बिछाया.

13 मार्च 2020 की रात 8 बजे एस.ओ.जी. प्रभारी मधुप नाथ मिश्रा को उन के खास मुखविर द्वारा सूचना मिली कि नसरीन की हत्या के नामजद आरोपी पीर मड़ंग बाबा की मजार पर मौजूद है.

मुखविर की सूचना पर विश्वास कर पुलिस टीम सादे कपड़ों में मजार पर पहुंची और नाटकीय ढंग से सादिक अली, उस के पुत्र मेराज और भांजे नन्हे उर्फ सलमान को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन सादिक अली की पत्नी सायरा नकाब डाल कर पुलिस को चकमा दे गई. उन तीनों को बंदी बना कर थाना रूपईडीहा लाया गया.

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पुलिस टीम ने मेराज, सादिक अली तथा नन्हे उर्फ सलमान से जब नसरीन की हत्या के बारे में पूछा, तो वे तीनों मुकर गए जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती दिखाई तो वे टूट गए और नसरीन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

मेराज ने बताया कि भाभी नसरीन की हत्या की साजिश उस के शौहर रियाज अली ने सउदी अरब में रची थी. इस योजना में उस ने मातापिता के अलावा फुफेरे भाई नन्हे उर्फ सलमान को भी शामिल कर लिया.

‘‘तुम लोगों ने नसरीन का कटा सिर, आभूषण और आला कत्ल कहां छुपाया है?’’ एस.ओ.जी. प्रभारी मधुप नाथ मिश्रा ने पूछा. तो मेराज बोला, ‘‘साहब, नसरीन का कटा सिर हम ने सरयू नदी में फेंक दिया था और गहने और आला कत्ल घर में छुपा रखा है.’’

यह पता चलते ही पुलिस टीम मेराज को साथ ले कर रात में ही उस के गांव इटकौरी स्थित उस के घर पहुंची.

मेराज की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से आला कत्ल चाकू और पायल, बाली, मांग टीका, हाथ फूल, अंगूठी, नाक की कील आदि चीजों के साथसाथ मोबाइल फोन, वोटर कार्ड और  आधार कार्ड भी बरामद किया. इस के अलावा खून लगी शर्ट, हत्या में इस्तेमाल मोटर साइकिल भी बरामद कर ली. बरामद सामान को जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिया गया.

14 मार्च, 2020 की सुबह पुलिस हत्यारोपियों को साथ ले कर उस स्थान पर पहुंची जहां उन्होंने मृतका नसरीन का कटा सिर सरयू नदी में फेंका था. पुलिस ने कई गोताखोरों को नदी में उतारा, लेकिन गोताखोर कटा सिर नहीं खोज पाए. हताश हो कर पुलिस टीम थाने लौट आई. पुलिस ने फरार सायरा को भी पकड़ने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन वह गिरफ्त में नहीं आई.

नहीं मिला सिर

थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय ने नसरीन के हत्यारों को पकड़ने तथा आला कत्ल बरामद करने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो वह थाना रूपईडीहा आ गए. पुलिस अधिकारियों ने कातिलों से विस्तृत पूछताछ की, फिर पुलिस कप्तान विपिन कुमार मिश्रा ने प्रैस में कातिलों को मीडिया के सामने पेश कर केस का खुलासा कर दिया.

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बहराइच जिले के फरवरपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है, औसान पुरवा. मुस्लिम बाहुल्य इस गांव में इशहाक अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी साजिया के अलावा 2 बेटियां नसरीन और राजदा खातून थीं. इशहाक के पास जमीन नाममात्र की थी. वह दूसरों की जमीन पर काम कर अपने परिवार का भरणपोषण करता था. इशहाक गरीब जरूर था, लेकिन दिल का पाक साफ था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

शौहर की साजिश : भाग 1

उस दिन मार्च 2020 की 6 तारीख थी. सुबह के 9 बज चुके थे. अड़गोड़वां गांव का रहने वाला सुरेंद्र प्रताप सिंह ओलावृष्टि से फसल को हुए नुकसान का आकलन करने अपने खेत पर पहुंचा. पहले उस ने गेहूं की बरबाद हुई फसल को देख कर माथा पीटा फिर अरहर के खेत पर पहुंचा. जब वह अरहर के खेत में घुसा तो उस के मुंह से चीख निकल गई.

खेत के अंदर एक महिला की सिर कटी लाश पड़़ी थी. सिर विहीन लाश देख कर सुरेंद्र प्रताप नुकसान का आंकलन करना भूल गया. वह बदहवास हालत में गांव की ओर भागा. गांव पहुंच कर उस ने लोगों को लाश के बारे में जानकारी दी. 8-10 लोग उस के साथ खेत पर पहुंचे.

लाश की हालत देख कर सब की आंखें फटी रह गईं. गांव के चौकीदार जिमींदार को सिर विहीन महिला की लाश पाए जाने की खबर लगी तो वह भी वहां पहुंच गया. उस ने वहां मौजूद खेत मालिक सुरेंद्र प्रताप सिंह तथा अन्य लोगों से जानकारी हासिल की.

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उस ने सिर विहीन महिला की लाश को गौर से देखा, फिर कर्तव्य का पालन करते हुए सूचना देने थाना रूपईडीहा जा पहुंचा.

जिस समय जिमींदार थाने पहुंचा उस वक्त सुबह के 11 बज रहे थे. जिला बहराइच के थाना रूपईडीहा के प्रभारी निरीक्षक मनीष कुमार पांडेय थाने में ही मौजूद थे. पहरे पर तैनात सिपाही ने उन के कक्ष में आ कर खबर दी, ‘सर अड़गोड़वां गांव का चौकीदार आया है. आप से मिलना चाहता हैं.’

‘‘ठीक है, उसे भेज दो’’ मनीष कुमार पांडेय ने कहा, वह चौकीदार से परिचित थे.

जिमींदार ने थाना प्रभारी के कक्ष में पहुंच कर सलाम किया. पांडेय ने उसे गौर से देखा फिर पूछा, ‘‘चौकीदार कोई खास बात है क्या साफसाफ बताओ.’’

‘‘हां, साहब, खास बात है, तभी भाग कर थाने आया हूं. हमारे गांव अड़गोड़वा में सुरेंद्र प्रताप सिंह के अरहर के खेत में एक महिला की सिर विहीन लाश पड़ी हैं. महिला हमारे गांव या आसपास के गांवों की नहीं है.

भीड़ जुटी है, लेकिन कोई उसे पहचान नही पा रहा है.’’

महिला की सिर विहीन लाश पड़ी होने की सूचना से मनीष कुमार पांडेय विचलित हो उठे. उन्होंने चौकीदार की सूचना से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया फिर सिपाहियों और एक सब इंस्पेक्टर को साथ ले कर घटना स्थल की ओर रवाना हो गए. चौकीदार जिमींदार भी उन के साथ था.

पुलिस जब घटना स्थल पर पहुंची तो वहां भीड़ जुटी थी. थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय भीड़ को परे हटा कर अरहर के खेत में पहुंचे, जहां महिला की सिर कटी लाश पडं़ी थी. लाश देख कर पांडेय सिहर उठे. हत्यारों ने महिला का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया था. हत्या से पूर्व उन्होंने महिला के हाथपैर रस्सी से बांधें थे. फिर पूरी बरबरता के साथ किसी तेज धारदार हथियार से सिर को धड़ से अलग कर दिया था. सिर को काट कर वह अपने साथ ले गए थे.

मृतका के हाथों में हरे रंग की चूडि़यां और लाल रंग के कंगन थे. वह हरा सलवार जंफर पहने थी और उस का काले रंग का नकाब वहीं पड़ा था. लग रहा था कि मृतका मुस्लिम है. सिर न होने से उस की उम्र का सही अंदाजा लगाना तो कठिन था, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह विवाहित थी और उस की उम्र 30 वर्ष से कम थी.

मृतक मुस्लिम समाज की थी

थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक विपिन कुमार मिश्रा, ए.एस.पी. रविंद्र सिंह और सी.ओ. जंगबहादुर सिंह आ गए. पुलिस अधिकारियों ने भी युवती के शव को हर नजरिए से देखा.

पुलिस ने मृतका के कटे सिर की तलाश अरहर, गेहूं व लाही के खेतों में कराई पर सिर नहीं मिला. पहनावे और काले नकाब से पुलिस अधिकारियों का मानना था कि मृतका  मुस्लिम समुदाय की है. वह खूबसूरत और जवान थी. पानी और ओला वृष्टि के कारण खेत के बाहर चक रोड की मिट्टी गीली थी, जिस पर किसी 2 पहिया वाहन के पहियों के निशान थे.

लगता था युवती को हत्या के इरादे से मोटर साइकिल पर बिठा कर खेत तक लाया गया था. पुलिस अधीक्षक विपिन कुमार मिश्रा ने घटना स्थल का निरीक्षण करने के बाद मृतका के रस्सी से बंधे हाथ पैर खुलवाए, फिर विभिन्न कोणों सें उस के फोटो खिचवाए. युवती की शिनाख्त के लिए उन्होंने घटना स्थल पर मौजूद महिलाओं और युवकों को बुला कर उस की पहचान करवाने की कोशिश की, लेकिन उस की पहचान नहीं हो सकी. घटनास्थल की कार्रवाई पूरी कर के शव पोस्टमार्टम के लिए बहराइच के जिला अस्पताल भेज दिया गया.

अगले दिन 7 मार्च, 2020 को सभी समाचार पत्रो में रूपईडीहा थाना क्षेत्र में युवती का सिर विहीन शव मिलने का समाचार सुर्खियों में प्रकाशित हुआ. इस समाचार को जब राजदा खातून ने पढ़ा तो उस का माथा ठनका. राजदा खातून बहराइच जिले के फरवरपुर थाना क्षेत्र के औसान पुरवां गांव की रहने वाली थी.

उस की बड़ी बहन का नाम नसरीन था. 5 मार्च को नसरीन का देवर मेराज उसे यह कह कर विदा करा कर ले गया था कि उस के अब्बू बीमार हैं. लेकिन वह अपनी सुसराल इटकौरी नहीं पहुंची थी. समाचारपत्रों में शव की जो पहचान छपी थी. हरी चूडियां, लाल कंगन , हरा सलवार जंफर, काला नकाब. यही सब पहनओढ़ कर उस की बहन ससुराल रवाना हुई थी.

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राजदा खातून ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, लेकिन थी तेज तर्रार और व होशियार. उस ने समाचार पत्र में छपी खबर कई बार पढ़ी और सिर विहीन छपी फोटो देखी तो उसे लगा फोटो उस की बहन नसरीन की ही है. उस ने यह सारी जानकारी अपने पिता इशहाक व परिवार के अन्य लोगों को दी, फिर शिनाख्त के लिए थाना रूपईडीहा जाने का निश्चय कर लिया.

होली के एक दिन पहले 8 मार्च को राजदा खातून अपने पिता इशहाक व परिवार के अन्य लोगों के साथ थाना रूपईडीहा जा पहुंची. थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय उस वक्त थाने में थे.

उन्होंने इशहाक से थाने आने का कारण पूछा तो इशहाक ने बताया, ‘‘मेरी बेटी नसरीन 5 मार्च से लापता है. मैं बेहद परेशान हूं. हर जगह उस की खोज की, लेकिन कुछ पता न चला. उसे उस का देवर मेराज अपने वालिद की तबियत खराब बता कर साथ ले गया था.

उस के बाद उन दोनों का पता नहीं है. कल अखबार में मेरी छोटी बेटी ने खबर पढ़ी तब हम शव के बारे में जानकारी लेने आए हैं.

इशहाक के बगल में ही राजदा खातून खड़ी थी. थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय उस की और मुखातिब हुए, ‘‘राजदा खातून, तुम यह यकीन के साथ कैसे कह सकती हो कि अखबार में छपी  फोटो तुम्हारी बहन नसरीन की है?’’

‘‘हुजूर, अखबार में शव का जो हुलिया, पहनावा, वेशभूषा छपा है, वह सब मेरी बहन नसरीन से मेल खाता है. दूसरी बात ससुराल विदाई से पहले मैं ने ही उस का साजश्रृंगार किया था. मैं ने ही हरी चूडि़या, लाल कंगन उस की कलाई में पहनाए थे. हरा सलवार और जंफर भी उस ने मेरी ही पसंद का पहना था. इसलिए मैं यकीन के साथ कह सकती हूं कि अखबार में छपी शव की तस्वीर नसरीन की ही है.

हो गई शिनाख्त

थाना प्रभारी मनीष कुमार को लगा कि शायद अज्ञात शव की पहचान हो जाएगी. अत: वह इशहाक तथा उस की बेटी राजदा खातून को साथ ले कर पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए.

युवती के शव के करीब पहुंचते ही इशहाक थोड़ा सहम गया. मृतका के शरीर पर हरे रंग का सलवार जंफर देख कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने तेजी से युवती के शव पर ढकी चादर हटाई तो सिर विहीन बेटी का शव देख उन के मुंह से चीख निकल गई.

वह उन की बेटी नसरीन ही थी. इशहाक फफक कर रो पड़े. बहन के शव की शिनाख्त राजदा खातून ने भी की. वह भी दहाड़ मार कर रो पड़ी. परिवार के अन्य लोगों ने भी शव की पहचान नसरीन के रूप में की. परिवार के लोग अपने आंसू नही रोक पा रहे थे. जैसेतैसे मनीष कुमार पांडेय ने उन लोगों को धैर्य बंधाया फिर शिनाख्त करवा कर इशहाक को पुलिस अधीक्षक कार्यालय ले गए, जहां उस से एस.पी. विपिन कुमार मिश्रा ने पूछताछ की. जो भी जानकारी इशहाक को थी, वह उस ने एस.पी. के सामने बयां कर दी.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

जीत: बसंती से कैसे बच पाया रमेश

रमेश चंद की पुलिस महकमे में पूरी धाक थी. आम लोग उसे बहुत इज्जत देते थे, पर थाने का मुंशी अमीर चंद मन ही मन उस से रंजिश रखता था, क्योंकि उस की ऊपरी कमाई के रास्ते जो बंद हो गए थे. वह रमेश चंद को सबक सिखाना चाहता था.

25 साला रमेश चंद गोरे, लंबे कद का जवान था. उस के पापा सोमनाथ कर्नल के पद से रिटायर हुए थे, जबकि मम्मी पार्वती एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं.

रमेश चंद के पापा चाहते थे कि उन का बेटा भी सेना में भरती हो कर लगन व मेहनत से अपना मुकाम हासिल करे. पर उस की मम्मी चाहती थीं कि वह उन की नजरों के सामने रह कर अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन पर खेतीबारी करे.

रमेश चंद ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपने मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए पुलिस में भरती होगा और जहां कहीं भी उसे भ्रष्टाचार की गंध मिलेगी, उस को मिटा देने के लिए जीजान लगा देगा.

रमेश चंद की पुलिस महकमे में हवलदार के पद पर बेलापुर थाने में बहाली हो गई थी. जहां पर अमीर चंद सालों से मुंशी के पद पर तैनात था. रमेश चंद की पारखी नजरों ने भांप लिया था कि थाने में सब ठीक नहीं है.

रमेश चंद जब भी अपनी मोटरसाइकिल पर शहर का चक्कर लगाता, तो सभी दुकानदारों से कहता कि वे लोग बेखौफ हो कर कामधंधा करें. वे न तो पुलिस के खौफ से डरें और न ही उन की सेवा करें.

एक दिन रमेश चंद मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था. उस ने देखा कि एक आदमी उस की मोटरसाइकिल देख कर अपनी कार को बेतहाशा दौड़ाने लगा था.

रमेश चंद ने उस कार का पीछा किया और कार को ओवरटेक कर के एक जगह पर उसे रोकने की कोशिश की. पर कार वाला रुकने के बजाय मोटरसाइकिल वाले को ही अपना निशाना बनाने लगा था. पर इसे रमेश चंद की होशियारी समझो कि कुछ दूरी पर जा कर कार रुक गई थी.

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रमेश चंद ने कार में बैठे 2 लोगों को धुन डाला था और एक लड़की को कार के अंदर से महफूज बाहर निकाल लिया.

दरअसल, दोनों लोग अजय और निशांत थे, जो कालेज में पढ़ने वाली शुभलता को उस समय अगवा कर के ले गए थे, जब वह बारिश से बचने के लिए बस स्टैंड पर खड़ी घर जाने वाली बस का इंतजार कर रही थी.

निशांत शुभलता को जानता था और उस ने कहा था कि वह भी उस ओर ही जा रहा है, इसलिए वह उसे उस के घर छोड़ देगा.

शुभलता की आंखें तब डर से बंद होने लगी थीं, जब उस ने देखा कि निशांत तो गाड़ी को जंगली रास्ते वाली सड़क पर ले जा रहा था. उस ने गुस्से से पूछा था कि वह गाड़ी कहां ले जा रहा है, तो उस के गाल पर अजय ने जोरदार तमाचा जड़ते हुए कहा था, ‘तू चुपचाप गाड़ी में बैठी रह, नहीं तो इस चाकू से तेरे जिस्म के टुकड़ेटुकड़े कर दूंगा.’

तब निशांत ने अजय से कहा था, ‘पहले हम बारीबारी से इसे भोगेंगे, फिर इस के जिस्म को इतने घाव देंगे कि कोई इसे पहचान भी नहीं सकेगा.’

पर रमेश चंद के अचानक पीछा करने से न केवल उन दोनों की धुनाई हुई थी, बल्कि एक कागज पर उन के दस्तखत भी करवा लिए थे, जिस पर लिखा था कि भविष्य में अगर शहर के बीच उन्होंने किसी की इज्जत पर हाथ डाला या कोई बखेड़ा खड़ा किया, तो दफा 376 का केस बना कर उन को सजा दिलाई जाए.

शुभलता की दास्तान सुन कर रमेश चंद ने उसे दुनिया की ऊंचनीच समझाई और अपनी मोटरसाइकिल पर उसे उस के घर तक छोड़ आया.

शुभलता के पापा विशंभर एक दबंग किस्म के नेता थे. उन के कई विरोधी भी थे, जो इस ताक में रहते थे कि कब कोई मुद्दा उन के हाथ आ जाए और वे उन के खिलाफ मोरचा खोलें.

विशंभर विधायक बने, फिर धीरेधीरे अपनी राजनीतिक इच्छाओं के बलबूते पर चंद ही सालों में मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ गए.

सिर्फ मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता ही इस बात को जानती थीं कि उन की बेटी शुभलता को बलात्कारियों के चंगुल से रमेश चंद ने बचाया था.

बेलापुर थाने में नया थानेदार रुलदू राम आ गया था. उस ने अपने सभी मातहत मुलाजिमों को निर्देश दिया था कि वे अपना काम बड़ी मुस्तैदी से करें, ताकि आम लोगों की शिकायतों की सही ढंग से जांच हो सके.

थोड़ी देर के बाद मुंशी अमीर चंद ने थानेदार के केबिन में दाखिल होते ही उसे सैल्यूट किया, फिर प्लेट में काजू, बरफी व चाय सर्व की.

थानेदार रुलदू राम चाय व बरफी देख कर खुश होते हुए कहने लगा, ‘‘वाह मुंशीजी, वाह, बड़े मौके पर चाय लाए हो. इस समय मुझे चाय की तलब लग रही थी…

‘‘मुंशीजी, इस थाने का रिकौर्ड अच्छा है न. कहीं गड़बड़ तो नहीं है,’’ थानेदार रुलदू राम ने चाय पीते हुए पूछा.

‘‘सर, वैसे तो इस थाने में सबकुछ अच्छा है, पर रमेश चंद हवलदार की वजह से यह थाना फलफूल नहीं रहा है,’’ मुंशी अमीर चंद ने नमकमिर्च लगाते हुए रमेश चंद के खिलाफ थानेदार को उकसाने की कोशिश की.

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थानेदार रुलदू राम ने मुंशी से पूछा, ‘‘इस समय वह हवलदार कहां है?’’

‘‘जनाब, उस की ड्यूटी इन दिनों ट्रैफिक पुलिस में लगी हुई है.’’

‘‘इस का मतलब यह कि वह अच्छी कमाई करता होगा?’’ थानेदार ने मुंशी से पूछा.

‘‘नहीं सर, वह तो पुश्तैनी अमीर है और ईमानदारी तो उस की रगरग में बसी है. कानून तोड़ने वालों की तो वह खूब खबर लेता है. कोई कितनी भी तगड़ी सिफारिश वाला क्यों न हो, वह चालान करते हुए जरा भी नहीं डरता.’’

इतना सुन कर थानेदार रुलदू राम ने कहा, ‘‘यह आदमी तो बड़ा दिलचस्प लगता है.’’

‘‘नहीं जनाब, यह रमेश चंद अपने से ऊपर किसी को कुछ नहीं समझता है. कई बार तो ऐसा लगता है कि या तो इस का ट्रांसफर यहां से हो जाए या हम ही यहां से चले जाएं,’’ मुंशी अमीर चंद ने रोनी सूरत बनाते हुए थानेदार से कहा.

‘‘अच्छा तो यह बात है. आज उस को यहां आने दो, फिर उसे बताऊंगा कि इस थाने की थानेदारी किस की है… उस की या मेरी?’’

तभी थाने के कंपाउंड में एक मोटरसाइकिल रुकी. मुंशी अमीर चंद दबे कदमों से थानेदार के केबिन में दाखिल होते हुए कहने लगा, ‘‘जनाब, हवलदार रमेश चंद आ गया है.’’

अर्दली ने आ कर रमेश चंद से कहा, ‘‘नए थानेदार साहब आप को इसी वक्त बुला रहे हैं.’’

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार रुलदू राम को सैल्यूट मारा.

‘‘आज कितना कमाया?’’ थानेदार रुलदू राम ने हवलदार रमेश चंद से पूछा.

‘‘सर, मैं अपने फर्ज को अंजाम देना जानता हूं. ऊपर की कमाई करना मेरे जमीर में शामिल नहीं है,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

थानेदार ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘यह थाना है. इस में ज्यादा ईमानदारी रख कर काम करोगे, तो कभी न कभी तुम्हारे गरीबान पर कोई हाथ डाल कर तुम्हें सलाखों तक पहुंचा देगा. अभी तुम जवान हो, संभल जाओ.’’

‘‘सर, फर्ज निभातेनिभाते अगर मेरी जान भी चली जाए, तो कोई परवाह नहीं,’’ हवलदार रमेश चंद थानेदार रुलदू राम से बोला.

‘‘अच्छाअच्छा, तुम्हारे ये प्रवचन सुनने के लिए मैं ने तुम्हें यहां नहीं बुलाया था,’’ थानेदार रुलदू राम की आवाज में तल्खी उभर आई थी.

दरवाजे की ओट में मुंशी अमीर चंद खड़ा हो कर ये सब बातें सुन रहा था. वह मन ही मन खुश हो रहा था कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे.

हवलदार रमेश चंद के बाहर जाते ही मुंशी अमीर चंद थानेदार से कहने लगा, ‘‘साहब, छोटे लोगों को मुंह नहीं लगाना चाहिए. आप ने हवलदार को उस की औकात बता दी.’’

‘‘चलो जनाब, हम बाजार का एक चक्कर लगा लें. इसी बहाने आप की शहर के दुकानदारों से भी मुलाकात हो जाएगी और कुछ खरीदारी भी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं जरा क्वार्टर जा कर अपनी पत्नी से पूछ लूं कि बाजार से कुछ लाना तो नहीं है?’’ थानेदार ने मुंशी से कहा.

क्वार्टर पहुंच कर थानेदार रुलदू राम ने देखा कि उस की पत्नी सुरेखा व 2 महिला कांस्टेबलों ने क्वार्टर को सजा दिया था. उस ने सुरेखा से कहा, ‘‘मैं बाजार का मुआयना करने जा रहा हूं. वहां से कुछ लाना तो नहीं है?’’

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‘‘बच्चों के लिए खिलौने व फलसब्जी वगैरह देख लेना,’’ सुरेखा ने कहा.

मुंशी अमीर चंद पहले की तरह आज भी जिस दुकान पर गया, वहां नए थानेदार का परिचय कराया, फिर उन से जरूरत का सामान ‘मुफ्त’ में लिया और आगे चल दिया. वापसी में आते वक्त सामान के 2 थैले भर गए थे.

मुंशी अमीर चंद ने बड़े रोब के साथ एक आटोरिकशा वाले को बुलाया और उस से थाने तक चलने को कहा.

थानेदार को मुंशी अमीर चंद का रसूख अच्छा लगा. उस ने एक कौड़ी भी खर्च किए बिना ढेर सारा सामान ले लिया था.

अगले दिन थानेदार के जेहन में रहरह कर यह बात कौंध रही थी कि अगर समय रहते हवलदार रमेश चंद के पर नहीं कतरे गए, तो वह उन सब की राह में रोड़ा बन जाएगा.

अभी थानेदार रुलदू राम अपने ही खयालों में डूबा था कि तभी एक औरत बसंती रोतीचिल्लाती वहां आई.

उस औरत ने थानेदार से कहा, ‘‘साहब, थाने से थोड़ी दूरी पर ही मेरा घर है, जहां पर बदमाशों ने रात को न केवल मेरे मर्द करमू को पीटा, बल्कि घर में जो गहनेकपड़े थे, उन पर भी हाथ साफ कर गए. जब मैं ने अपने पति का बचाव करना चाहा, तो उन्होंने मुझे धक्का दे दिया. इस से मुझे भी चोट लग गई.’’

थानेदार ने उस औरत को देखा, जो माथे पर उभर आई चोटों के निशान दिखाने की कोशिश कर रही थी.

थानेदार ने उस औरत को ऐसे घूरा, मानो वह थाने में ही उसे दबोच लेगा. भले ही बसंती गरीब घर की थी, पर उस की जवानी की मादकता देख कर थानेदार की लार टपकने लगी थी.

अचानक मुंशी अमीर चंद केबिन में घुसा. उस ने बसंती से कहा, ‘‘साहब ने अभी थाने में जौइन किया है. हम तुम्हें बदमाशों से भी बचाएंगे और जो कुछ वे लूट कर ले गए हैं, उसे भी वापस दिलाएंगे. पर इस के बदले में तुम्हें हमारा एक छोटा सा काम करना होगा.’’

‘‘कौन सा काम, साहबजी?’’ बसंती ने हैरान हो कर मुंशी अमीर चंद से पूछा.

‘‘हम अभी तुम्हारे घर जांचपड़ताल करने आएंगे, वहीं पर तुम्हें सबकुछ बता देंगे.’’

‘‘जी साहब,’’ बसंती उठते हुए बोली.

थानेदार ने मुंशी से फुसफुसाते हुए पूछा, ‘‘बसंती से क्या बात करनी है?’’

मुंशी ने कहा, ‘‘हुजूर, पुलिस वालों के लिए मरे हुए को जिंदा करना और जिंदा को मरा हुआ साबित करना बाएं हाथ का खेल होता है. बस, अब आप आगे का तमाशा देखते जाओ.’’

आननफानन थानेदार व मुंशी मौका ए वारदात पर पहुंचे, फिर चुपके से बसंती व उस के मर्द को सारी प्लानिंग बताई. इस के बाद मुंशी अमीर चंद ने कुछ लोगों के बयान लिए और तुरंत थाने लौट आए.

इधर हवलदार रमेश चंद को कानोंकान खबर तक नहीं थी कि उस के खिलाफ मुंशी कैसी साजिश रच रहा था. थानेदार ने अर्दली भेज कर रमेश चंद को थाने बुलाया.

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार को सैल्यूट मारने के बाद पूछा, ‘‘सर, आप ने मुझे याद किया?’’

‘‘देखो रमेश, आज सुबह बसंती के घर में कोई हंगामा हो गया था. मुंशीजी अमीर चंद को इस बाबत वहां भेजना था, पर मैं चाहता हूं कि तुम वहां मौका ए वारदात पर पहुंच कर कार्यवाही करो. वैसे, हम भी थोड़ी देर में वहां पहुंचेंगे.’’

‘‘ठीक है सर,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

जैसे ही रमेश चंद बसंती के घर पहुंचा, तभी उस का पति करमू रोते हुए कहने लगा, ‘‘हुजूर, उन गुंडों ने मारमार कर मेरा हुलिया बिगाड़ दिया. मुझे ऐसा लगता है कि रात को आप भी उन गुंडों के साथ थे.’’

करमू के मुंह से यह बात सुन कर रमेश चंद आगबबूला हो गया और उस ने 3-4 थप्पड़ उसे जड़ दिए.

तभी बसंती बीचबचाव करते हुए कहने लगी, ‘‘हजूर, इसे शराब पीने के बाद होश नहीं रहता. इस की गुस्ताखी के लिए मैं आप के पैर पड़ कर माफी मांगती हूं. इस ने मुझे पूरी उम्र आंसू ही आंसू दिए हैं. कभीकभी तो ऐसा मन करता है कि इसे छोड़ कर भाग जाऊं, पर भाग कर जाऊंगी भी कहां. मुझे सहारा देने वाला भी कोई नहीं है…’’

‘‘आप मेरी खातिर गुस्सा थूक दीजिए और शांत हो जाइए. मैं अभी चायनाश्ते का बंदोबस्त करती हूं.’’

बसंती ने उस समय ऐसे कपड़े पहने हुए थे कि उस के उभार नजर आ रहे थे.

शरबत पीते हुए रमेश की नजरें आज पहली दफा किसी औरत के जिस्म पर फिसली थीं और वह औरत बसंती ही थी.

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रमेश चंद बसंती से कह रहा था, ‘‘देख बसंती, तेरी वजह से मैं ने तेरे मर्द को छोड़ दिया, नहीं तो मैं इस की वह गत बनाता कि इसे चारों ओर मौत ही मौत नजर आती.’’

यह बोलते हुए रमेश चंद को नहीं मालूम था कि उस के शरबत में तो बसंती ने नशे की गोलियां मिलाई हुई थीं. उस की मदहोश आंखों में अब न जाने कितनी बसंतियां तैर रही थीं.

ऐन मौके पर थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद वहां पहुंचे. बसंती ने अपने कपड़े फाड़े और जानबूझ कर रमेश चंद की बगल में लेट गई. उन दोनों ने उन के फोटो खींचे. वहां पर शराब की 2 बोतलें भी रख दी गई थीं. कुछ शराब रमेश चंद के मुंह में भी उड़ेल दी थी.

मुंशी अमीर चंद ने तुरंत हैडक्वार्टर में डीएसपी को इस सारे कांड के बारे में सूचित कर दिया था. डीएसपी साहब ने रिपोर्ट देखी कि मौका ए वारदात पर पहुंच कर हवलदार रमेश चंद ने रिपोर्ट लिखवाने वाली औरत के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी.

डीएसपी साहब ने तुरंत हवलदार रमेश चंद को नौकरी से सस्पैंड कर दिया. अब सारा माजरा उस की समझ में अच्छी तरह आ गया था, पर सारे सुबूत उस के खिलाफ थे.

अगले दिन अखबारों में खबर छपी थी कि नए थानेदार ने थाने का कार्यभार संभालते ही एक बेशर्म हवलदार को अपने थाने से सस्पैंड करवा कर नई मिसाल कायम की.

रमेश चंद हवालात में बंद था. उस पर बलात्कार करने का आरोप लगा था. इधर जब मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता को इस बारे में पता लगा कि रमेश चंद को बलात्कार के आरोप में हवालात में बंद कर दिया गया है, तो उस का खून खौल उठा. उस ने सुबह होते ही थाने का रुख किया और रमेश चंद की जमानत दे कर रिहा कराया.

रमेश चंद ने कहा, ‘‘मैडम, आप ने मेरी नीयत पर शक नहीं किया है और मेरी जमानत करा दी. मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

चंद्रकांता बोली, ‘‘उस वक्त तुम ने मेरी बेटी को बचाया था, तब यह बात सिर्फ मुझे, मेरी बेटी व तुम्हें ही मालूम थी. अगर तुम मेरी बेटी को उन वहशी दरिंदों से न बचाते, तो न जाने क्या होता? और हमें कितनी बदनामी झेलनी पड़ती. आज हमारी बेटी शादी के बाद बड़ी खुशी से अपनी जिंदगी गुजार रही है.

‘‘जिन लोगों ने तुम्हारे खिलाफ साजिश रची है, उन के मनसूबों को नाकाम कर के तुम आगे बढ़ो,’’ चंद्रकांता ने रमेश चंद को धीरज बंधाते हुए कहा.

‘‘मैं आज ही मुख्यमंत्रीजी से इस मामले में बात करूंगी, ताकि जिस सच के रास्ते पर चल कर अपना वजूद तुम ने कायम किया है, वह मिट्टी में न मिल जाए.’’

अगले दिन ही बेलापुर थाने की उस घटना की जांच शुरू हो गई थी. अब तो स्थानीय दुकानदारों ने भी अपनीअपनी शिकायतें लिखित रूप में दे दी थीं. थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद अब जेल की सलाखों में थे. रमेश चंद भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जीत गया था.

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शौहर की साजिश

मीठी अब लौट आओ

मीठी अब लौट आओ: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- मीठी अब लौट आओ: भाग 1

लेखक- अशोक कुमार

चौथे दिन शर्मिला मुझे पास के भारत-म्यांमार की सीमा पर स्थित 2 शहरों, मोरे और तामू में ले गई. दोनों सटे शहर हैं. मोरे भारत की सीमा में है तो तामू म्यांमार की सीमा में. इसलिए यहां आने के लिए सरकार से अनुमति की आवश्यकता नहीं थी. वहां उस ने मुझे तामू का छोटा सा बाजार दिखाया था. बाजार चीनी सामानों से पटा हुआ था और सारी वस्तुएं बहुत खूबसूरत और कम दाम में उपलब्ध थीं. शर्मिला ने बातचीत प्रारंभ की :

‘‘आप को इन सामानों को देख कर क्या लगता है?’’

‘‘लगता है कि चीन ने बहुत तरक्की कर ली है, तभी तो इतनी तरह की वस्तुएं, इतनी अच्छी और कम दाम में यहां पर उपलब्ध हैं. दिल्ली और मुंबई के बाजारों में भी चीनी सामान की भरमार है.’’

‘‘क्या आप को नहीं लगता कि चीन की सरकार ने लोगों के लिए ऐसा जीवन दिया है जिस में आदमी अपनी समस्त सृजन क्षमताओं का पूरा उपयोग कर सके?’’

‘‘हां, लगता तो है.’’

‘‘क्या हम लोग अपने लोगों को ऐसी जिंदगी नहीं दे सकते कि हमारे लोग भी अपनी क्षमताओं का उपयोग कर दुनिया के लिए एक उदाहरण बन सकें, विश्व की एक महाशक्ति बन सकें?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. यह तो संभव है पर लगता है कि हम लोगों में स्थितियों को बदलने की इच्छाशक्ति नहीं है.’’

‘‘वह तो है ही नहीं क्योंकि हम प्रगति की वह गति पकड़ ही नहीं पाए जो चीन ने पकड़ ली और अब आगे ही बढ़ता जा रहा है. हम से 2 साल बाद आजाद हुआ चीन आज कहां है और हम कहां हैं.’’

इसी तरह बाकी के 3 दिन भी शर्मिला के साथ अलगअलग क्षेत्रों का दौरा करते हुए बीत गए. इन 7 दिनों में मैं ने  सभी पोलिंग स्टेशनों को देखने का काम शर्मिला के साथ ही किया था और सच तो यह है कि मैं उस के मोहक व्यक्तित्व में खोया रहता था और बिना उस के कहीं जाने की कल्पना नहीं कर पाता था. वह उम्र में मुझ से लगभग 15 साल छोटी थी इसलिए उस के लिए मेरे मन में सदैव स्नेह रहता था, पर मैं उस के गुणों से बेहद प्रभावित था.

अंतिम दिन शर्मिला मुझ से विदा लेने आई. वह अकेली थी तथा उस ने मुझ से अपने पास से सभी को हटाने का अनुरोध किया था. उस की इस बात को मान कर मैं ने सभी को वहां से हटाया था. लोगों के हटने के बाद हम ने कुछ औपचारिक बातें शुरू की थीं.

‘‘शर्मिला, तो तुम आज के बाद नहीं आओगी?’’

‘‘हां, मैं जा रही हूं. मुझे म्यांमार जाना है, कुछ जरूरी काम है. वहां मेरे कुछ सहयोगी रहते हैं.’’

‘‘तुम्हारे ऐसे कौन से सहयोगी हैं जिन के लिए तुम देश के बाहर जा रही हो?’’

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‘‘हम लोग वहां से लोकतंत्र की बहाली के लिए युद्ध लड़ रहे हैं. छोडि़ए, आप नहीं समझेंगे इसे. आप लोग दिल्ली में बैठ कर नहीं महसूस कर पाते कि यहां के अंधेरों में आदमी का जीवन कैसा है? किस प्रकार पुलिस निर्दोष लड़केलड़कियों को मात्र शक के आधार पर पकड़ ले जाती है और तरहतरह की यातनाएं देती है. कैसे बच्चे पढ़लिख नहीं पाते और उन्हें आजादी के इतने साल बाद भी अच्छी जिंदगी नहीं मिलती…कैसे कारखाने बंद रहते हैं और मजदूर भूखों जीवन गुजारते हैं…आप को क्याक्या बताऊं? आप को इसलिए मैं सब कुछ दिखाना चाहती थी ताकि आप महसूस कर सकें कि असली जिंदगी होती क्या है.’’

शर्मिला की बातें सुन कर मुझे अजीब सा लगने लगा था. उस के सवालों का क्या उत्तर था मेरे पास? मैं चुपचाप उस की ओर देखता रह गया था.

थोड़ी देर बाद उस से पूछा था, ‘‘शर्मिला, तो तुम दिल्ली वालों को अपना, अपने समाज का दुश्मन समझती हो?’’

इस पर उस ने कहा था, ‘‘सर, आप का मुझ पर बहुत अधिकार है. अगर आप मेरे सिर पर सौगंध खा कर मुझे वचन दें कि मैं जो कुछ आप को बताने वाली हूं वह आप किसी और को नहीं बताएंगे तो मैं आप को सबकुछ बता सकती हूं.’’

उस के इस कथन पर मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर उसे आश्वासन दिया था. उस ने मेरे पैर छू कर कहा था, ‘‘आप जानना चाहते हैं कि मैं कौन हूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं एक आतंकवादी हूं और मेरा काम अपने समाज के लोगों का अहित चाहने वालों को जान से मार देना है. मुझे आप को मारने के काम पर मेरे संगठन ने लगाया था.’’

शर्मिला की बात सुन कर मैं अवाक्रह गया पर पता नहीं क्यों उस से मुझे डर नहीं लगा.

मैं ने कहा, ‘‘शर्मिला, मैं भी दूसरों की तरह यहां दिल्ली के प्रतिनिधि के रूप में ही हूं और तुम लोगों की दृष्टि में मैं भी तुम्हारा दुश्मन हूं. आर्म्ड फोर्सेस, स्पेशल पावर एक्ट का सहारा ले कर तुम लोगों पर एक तरह से शासन ही करने आया हूं. यह सब जानते हुए भी और अनेक मौकों के होते हुए भी तुम ने मुझे नहीं मारा, आखिर क्यों?’’

‘‘क्योंकि आप मेरे अंशू जीजाजी हैं. जीजाजी, मैं तनुश्री दीदी की छोटी बहन हूं. आप को याद होगा, आप तनु दीदी, जो आप के साथ दिल्ली में पढ़ती थी, की शादी में शिलांग आए थे . उन की मौसी की 2 छोटी लड़कियां थीं. एक 12 साल की और दूसरी 10 साल की. आप उन्हें बहुत प्यार करते थे और उन्हें खट्टीमीठी कहते थे. आप खट्टीमीठी को भूल गए होंगे पर हम लोग आप को कभी नहीं भूले.’’

‘‘मैं आप की मीठी हूं जीजाजी. मैं अपने जीजाजी को कैसे मार सकती थी, जिन का दिया हुआ नाम आज 25 वर्ष बाद भी मेरा परिवार और मैं प्रयोग करते हैं? मैं अपने उस आदर्श जीजाजी को कैसे मार देती जिन के जैसा मैं खुद बनना चाहती थी?’’

इतना कहतेकहते मीठी की आंखों में आंसुओं की अविरल धार बहने लगी थी. वह बहुत देर बाद चुप हुई थी. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मीठी से क्या बोलूं. बहुत संयत हो कर बोला था, ‘‘मीठी, मेरी बच्ची, तुम कहां जा रही हो. लौट आओ न.’’

वह संयत हो कर बोली थी, ‘‘जीजाजी, आप की तैनाती 5 वर्ष के लिए योजना आयोग में है. यदि आप इन 5 वर्षों में मेरे प्रदेश के लोगों को नई जिंदगी दे देंगे तो मैं जरूर लौट आऊंगी पर यदि ऐसा नहीं हुआ तो मैं नहीं जानती कि मैं क्या कर बैठूंगी.’’

इतना कह कर मीठी चली गई थी और मैं अवाक् सा उसे जाते देखता रह गया था.

दिल्ली वापस आ कर मैं ने मणिपुर के विकास की योजनाओं की समीक्षा की तो पाया कि इस प्रदेश के लिए धनराशि देने में हर स्तर पर आनाकानी की जाती है. धनराशि देने के लिए तो सब से बड़ी प्राथमिकता सांसदों के क्षेत्र विकास की योजना होती है जिस में हर सांसद को हर साल उन के क्षेत्र के विकास के लिए 2 करोड़ रुपए की धनराशि दी जाती है और इस प्रकार एक पंचवर्षीय योजना में 8,500 करोड़ रुपए सांसदों को दे दिए जाते हैं पर इस से क्षेत्र का कितना विकास होता है यह तो वहां की जनता और सांसद ही बता सकते हैं.

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मैं ने प्रयास कर मणिपुर की जरूरी सुविधाओं के विकास के लिए लगभग 5 हजार करोड़ रुपए की योजनाएं शर्मिला के सहयोग से बनवाईं और उन के लिए धनराशि की मांग की तो हर स्तर से मुझे न सुनने को मिला. सोचता रहा कि यदि सांसद निधि जैसी धनराशि का एकचौथाई हिस्सा भी किसी छोटे प्रदेश में अवस्थापना सुविधाएं बनाने में व्यय कर दिया जाए तो यह प्रदेश स्वर्ग बन सकता है पर वह प्राथमिकता में नहीं है न.

अंत में मजबूर हो कर मैं ने यह योजना विश्व बैंक से सहयोग के लिए भेजी तो वहां यह योजना स्वीकार कर ली गई. इन सभी योजनाओं को पूरा कराने में शर्मिला का अथक प्रयास था. उस ने खुद सभी योजनाओं का सर्वे किया था और हर स्तर पर दिनरात लग कर उस ने यह योजनाएं बनवाई थीं. अंतत: हम सफल हुए थे और योजनाएं चालू हो गई थीं.

6 साल बाद मुझे फिर मणिपुर में भारत म्यांमार सीमा से संबंधित एक बैठक में भाग लेने के लिए इंफाल आना पड़ा. उत्सुकतावश मैं ने इस प्रदेश के कई मुख्य मार्गों पर लगभग 1 हजार कि.मी. यात्रा की और अनेक स्कूल, अस्पताल, सड़कें, कागज और चाय के कारखाने देखे.

मैं यह देख कर आश्चर्यचकित था कि सभी मुख्य सड़कें अब डबल लेन हो गई थीं, नए पुल बन गए थे, स्कूल भवन नए थे, जहां शिक्षा दी जा रही थी, नए अस्पताल, नए बिजलीघर बन गए थे और चालू थे तथा पहले के बंद कारखाने चल रहे थे. जगहजगह सड़क पर वाहनों की गति जीवन की गति की तरह तेज हो गई थी और प्रदेश से आतंकवाद खत्म हो गया था. छात्रछात्राएं पढ़ाई में व्यस्त थे. नए इंजीनियरिंग कालिज, मेडिकल कालिज, महिला पालिटेक्निक और कंप्यूटर केंद्र खुल गए थे और चल रहे थे. मुझे वहां की हर अवस्थापना में शर्मिला की छाया दिखाई पड़ रही थी. मेरे इंफाल प्रवास के दौरान वह मुझ से मिलने आई थी और बोली थी.

‘जीजाजी, हम जीत गए न.’

मैं ने कहा था, ‘हां बेटी, हम जीत गए पर अभी रास्ता लंबा है. बहुत कुछ पाना है.’

वह बोली थी, ‘जीजाजी, आप ने मुझ से कहा था कि मैं लौट आऊं और मैं लौट आई न जीजाजी… आप ने जो रास्ता दिखाया, एक आज्ञाकारी बेटी की तरह उसी रास्ते पर चल रही हूं.’

मैं ने कहा था, ‘बेटी, मैं यह तो नहीं कहूंगा कि जिस रास्ते पर तुम चल रही थीं वह रास्ता गलत था पर इतना अवश्य कहूंगा कि समस्याओं के समाधान के अलगअलग रास्ते होते हैं पर हिंसा से समाधान ढूंढ़ने के रास्ते कभी सफल नहीं होते. मेरा कहा याद रखोगी न?’

‘आप मेरे पिता हैं न जीजाजी और क्या कोई बेटी पिता का अनादर कर या उस की बात टाल कर कभी खुश रह सकती है?’

इतना कह कर वह हंसती ही गई. मुझे ऐसा लगा जैसे कि उस की हंसी ब्रह्मपुत्र नदी की तरह विशाल और अपरिमेय है, जो सभी को जीवन और खुशियां बांटती है. मीठी जैसी बेटियां समाज को नया जीवन देती हैं.

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Short Story : बदला जारी है

सुशांत रोजाना की तरह कोरियर की डिलीवरी देने जा रहा था कि तभी उस का मोबाइल फोन बज उठा. उस ने झल्ला कर मोटरसाइकिल रोकी, लेकिन नंबर देखते ही उस की आंखों में चमक आ गई. उस की मंगेतर सोनी का फोन था. उस ने जल्दी से रिसीव किया, ‘‘कैसी हो मेरी जान?’’

‘तुम्हारे इंतजार में पागल हूं…’ दूसरी ओर से आवाज आई.

उन दोनों के बीच प्यारभरी बातें होने लगीं, पर सुशांत को जल्दी से जल्दी अगले कस्टमर के यहां पहुंचना था, इसलिए उस ने यह बात सोनी को बता कर फोन काट दिया.

दिए गए पते पर जा कर सुशांत ने डोरबैल बजाई. थोड़ी देर में एक औरत ने दरवाजा खोला.

‘‘मानसीजी का घर यही है मैडम?’’ सुशांत ने पूछा.

‘‘हां, मैं ही हूं. अंदर आ जाओ,’’ उस औरत ने कहा.

सुशांत ड्राइंगरूम में बैठ कर अपने कागजात तैयार करने लगा. मानसी भीतर चली गई.

अपने दोस्तों के बीच माइक्रोस्कोप नाम से मशहूर सुशांत ने इतनी ही देर में अंदाजा लगा लिया कि वह औरत उम्र में तकरीबन 40-41 साल की होगी. उस के बदन की बनावट तो खैर मस्त थी ही.

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सुशांत ने कागजात तैयार कर लिए. तब तक मानसी भी आ गई. उस के हाथ में कोई डब्बा था.

सुशांत ने कागजपैन उस की ओर बढ़ाया और बोला, ‘‘मैडम, यहां दस्तखत कर दीजिए.’’

‘‘हां कर दूंगी, मगर पहले यह देखो…’’ मानसी ने वह डब्बा सुशांत को दे कर कहा, ‘‘यह मोबाइल फोन मैं ने इसी कंपनी से मंगाया था. अब इस में बारबार हैंग होने की समस्या आ रही है.’’

सुशांत चाहता तो मानसी को वह मोबाइल फोन रिटर्न करने की सलाह दे सकता था, उस की नौकरी के लिहाज से उसे करना भी यही चाहिए था, लेकिन अपना असर जमाने के मकसद से उस ने मोबाइल फोन ले कर छानबीन सी शुरू कर दी, ‘‘यह आप ने कब मंगाया था मैडम?’’

‘‘15 दिन हुए होंगे.’’

उन दोनों के बीच इसी तरह की बातें होने लगीं. सुशांत कनखियों से मानसी के बड़े गले के ब्लाउज के खुले हिस्सों को देख रहा था. उसे देर लगती देख कर मानसी चाय बनाने अंदर रसोईघर में चली गई.

सुशांत को यकीन हो गया था कि घर में मानसी के अलावा कोई और नहीं है. लड़कियों से छेड़छाड़ के कई मामलों में थाने में बैठ चुके 25 साला सुशांत की आदत अपना रिश्ता तय होने के बाद भी नहीं बदल सकी थी. उसे एक तरह से लत थी. ऐसी कोई हरकत करना, फिर उस पर बवाल होना, पुलिस थानों के चक्कर लगाना…

सुशांत ने बाहर आसपास देखा और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर अंदर की ओर बढ़ गया. खुले नल और बरतनों की आवाज को पकड़ते हुए वह रसोईघर तक आसानी से चला गया.

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मानसी उसे देख कर चौंक उठी, ‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो?’’

कोई जवाब देने के बजाय सुशांत ने मानसी का हाथ पकड़ कर उसे खींचा और गले से लगा लिया.

मानसी ने उस की आंखों में देखा और धीरे से बोली, ‘‘देखो, मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

मानसी की इस बात ने तो जैसे सुशांत को उस की मनमानी का टिकट दिला दिया. उस के होंठ मानसी की गरदन पर चिपक गए. नाम के लिए मानसी का नानुकर करना किसी रजामंदी से कम नहीं था.

कुछ पल वहां बिताने के बाद सुशांत मानसी को गोद में उठा कर पास के कमरे में ले आया और बिस्तर पर धकेल दिया.

मानसी अपने हटते परदों से बेपरवाह सी बस सुशांत को घूरघूर कर देखे जा रही थी. सुशांत को महसूस हो गया था कि शायद मानसी का कहना सही है कि उस की तबीयत ठीक नहीं है, क्योंकि उस का शरीर थोड़ा गरम था. लेकिन उस ने इस की फिक्र नहीं की.

थोड़ी देर में चादर के बननेबिगड़ने का दौर शुरू हो गया. रसोईघर में चढ़ी चाय उफनतेउफनते सूख गई. खुले नल ने टंकी का सारा पानी बहा दिया. घंटाभर कैसे गुजर गया, शायद दीवार पर लगी घड़ी भी नहीं जान सकी.

कमरे में उठा तूफान जब थमा तो पसीने से लथपथ 2 जिस्म एकदूसरे के बगल में निढाल पड़े हांफ रहे थे. तभी कमरे में रखा वायरलैस फोन बज उठा.

मानसी ने काल रिसीव की, ‘‘हां बेटा, आज भी बुखार हो गया है… डाक्टर शाम को आएंगे… जरा अपनी नानी को फोन देना…’’

मानसी ने कुछ देर तक बातें करने के बाद फोन काट दिया. सुशांत आराम से लेटा सीलिंग फैन को ताक रहा था.

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‘‘कपड़े पहनो और निकलो यहां से अब… धंधे वाली का कोठा नहीं है जो काम खत्म कर के आराम से पसर गए,’’ मानसी ने अपनी पैंटी पहनते हुए थोड़ा गुस्से में कहा और पलंग से उतर कर अपने बाकी कपड़े उठाने लगी.

सुशांत ने उसे आंख मारी और बोला, ‘‘एक बार और पास आ जाता तो अच्छा होता.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं. तुम्हारे लिए एक बार ही बहुत है,’’ मानसी ने अजीब से लहजे में कहा.

यह सुन कर सुशांत मुसकरा कर उठा और अपने कपड़े पहनने लगा.

‘‘अगले महीने मेरी भी शादी होने वाली है, लेकिन जिंदगी बस एक के ही साथ रोज जिस्म घिसने में बरबाद हो जाती है, इसलिए बस यह सब कभीकभार…’’ सुशांत ने कहा.

सुशांत की बात सुन कर मानसी का चेहरा नफरत से भर उठा. वह अपने पूरे कपड़े पहन चुकी थी. उस ने आंचल सीने पर डाला और बैठक में से कोरियर के कागजात दस्तखत कर के ले आई.

‘‘ये रहे तुम्हारे कागजात…’’ मानसी सुशांत से बोली, ‘‘जानते हो, कुछ मर्द तुम्हारी ही तरह घटिया होते हैं. मेरे पति भी बिलकुल ऐसे ही थे.’’

अब तक सबकुछ ठीकठाक देख रहे सुशांत का चेहरा अपने लिए घटिया शब्द सुन कर असहज हो गया.

मानसी ताना मारते हुए कह पड़ी, ‘‘क्या हुआ? बुरा लगा तुम्हें? जिस लड़की से शादी रचाने जा रहा है, उस की वफा को ऐसे बेशर्म बन कर मेरे साथ अपने नीचे से बहाने में बुरा नहीं लगा क्या? पर मुझ से घटिया शब्द सुन कर बुरा लग रहा है?’’

‘‘देखिए मैडम, आप ने भी तो…’’ सुशांत ने अपनी बात रखनी चाही.

इस पर मानसी गुर्रा उठी, ‘‘हांहां, मैं सो गई तेरे नीचे. तुझे अपने नीचे भी दबा लिया, लेकिन बस इसलिए क्योंकि मुझ को तुझे भी वही देना था जो मेरा पति मुझे दे गया था… मरने से पहले…’’

सुशांत अब हैरान सा उसे देखे जा रहा था.

मानसी जैसे किसी अजीब से जोश में कहती रही, ‘‘मेरा पति अपने औफिस की औरतों के साथ सोता था. वह मुझे धोखा देता था. उस ने मुझे एड्स दे दिया और आज वही मैं ने तुझे भी… जा, खूब सो नईनई औरतों के साथ… तू भी मरना सड़सड़ कर, जैसे मैं मरूंगी…

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‘‘मैं अब किसी भी मर्द को अपनी टांगों के बीच आने से मना नहीं करती… धोखेबाज मर्दों से यह मेरा बदला है जो हमेशा जारी रहेगा,’’ कहतेकहते मानसी फूटफूट कर रोने लगी.

सुशांत के कानों में जैसे धमाके होते चले गए. वह सन्न खड़ा रह गया, लेकिन अब क्या हो सकता था…

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