Manohar Kahaniya: पत्नी की मौत की सुपारी- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उस दिन मई 2021 की 18 तारीख थी. रात के 8 बज रहे थे. बिधनू थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह इलाके में गश्त पर निकलने वाले थे, तभी उन के मोबाइल फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो फोनकर्ता ने चौंकाने वाली सूचना दी. उस ने बताया कि करसुई पुल के पास जो हनुमान मंदिर है, वहां एक महिला की लाश पड़ी है. उस की हत्या गोली मार कर की गई है.

चूंकि मामला महिला की हत्या का था, अत: थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने गश्त पर जाने के बजाय उस जगह जाना जरूरी समझा जहां महिला की लाश पड़े होने की उन्हें सूचना मिली थी. इस से पहले उन्होंने घटना की खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी.

फिर पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए. थाना बिधनू से करसुई नहर पुल की दूरी करीब 3 किलोमीटर थी. इसलिए पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा.

घटनास्थल पर उस समय कुछ लोग खड़े थे. उन्होंने महिला की लाश का मुआयना किया. मृतक महिला की उम्र 35 साल के आसपास थी. गोली मार कर उस की हत्या की गई थी. पीठ पर 2 तथा सीने पर एक गोली दागी गई थी.

महिला जींस व कमीज पहने थी. उस की मांग में सिंदूर तथा पैरों में बिछिया थे. स्पष्ट था कि वह विवाहित थी. शव के पास ही सड़क किनारे उस की स्कूटी लुड़की पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी78 जीएफ 3398 था. वहीं पर मृतका का पर्स व मोबाइल फोन पड़ा था, जिसे पुलिस ने सुरक्षित कर लिया.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रसाद सिंह तथा डीएसपी विकास पांडेय घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और वहां मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की.

वहां मौजूद एक युवक ने पुलिस को बताया कि वह मंदिर में हनुमानजी के दर्शन करने आया था. तभी उसे फायर की आवाज सुनाई दी. वह वहां पहुंचा तो महिला मृत पड़ी थी. उस ने 2 हत्यारों को मोटरसाइकिल से भागते हुए देखा था. दोनों हेलमेट लगाए थे. उस ने ही पुलिस को सूचना दी थी.

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अब तक महिला के शव को अनेक लोग देख चुके थे, लेकिन कोई उसे पहचान न सका था. तब पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. महिला की स्कूटी भी थाने भिजवा दी.

घटनास्थल से मृत महिला का पर्स व मोबाइल फोन बरामद हुआ था. इस मोबाइल फोन को थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने खंगाला तो उस में उस के पिता का फोन नंबर सेव था. थानाप्रभारी ने उस नंबर पर बात की तो पता चला कि वह नंबर बिरला नगर ग्वालियर के रहने वाले अनिल कुमार शर्मा का है. उन्होंने अनिल से पूछा कि जिस मोबाइल नंबर से वह बात कर रहे हैं, वह किस का है?

‘‘यह नंबर मेरी बेटी आरती शर्मा का है. लेकिन आप कौन है? मेरी बेटी का मोबाइल फोन आप के पास कैसे आया?’’ अनिल शर्मा ने घबराते हुए पूछा.

‘‘देखो शर्माजी, मैं कानपुर नगर के थाना बिधनू से इंसपेक्टर विनोद कुमार सिंह बोल रहा हूं. एक महिला के शव के पास से मुझे यह मोबाइल फोन मिला था. आप जल्दी से थाना बिधनू आ जाइए. तब शव की शिनाख्त भी हो सकेगी.’’

19 मई की सुबह 8 बजे अनिल कुमार शर्मा अपने साढू मनोज के साथ थाना विधनू पहुंच गए. इस के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह उन्हें पोस्टमार्टम हाउस ले गए. यहां महिला की लाश देख कर अनिल शर्मा फफक कर रो पड़े. उन्होंने बताया कि लाश उन की बेटी आरती की है.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अनिल कुमार शर्मा को धैर्य बंधाया और फिर पूछताछ की. अनिल कुमार ने बताया कि उन्होंने कई साल पहले आरती की शादी हमीरपुर जिले के भरुआ सुमेरपुर कस्बा निवासी श्यामशरण शर्मा के साथ की थी.

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लेकिन दामाद और बेटी में पटरी नहीं खाती थी सो दोनों के बीच अकसर झगड़ा होता था. श्यामशरण को शक था कि आरती का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. इसी को ले कर वह आरती को प्रताडि़त करता था.

अनिल शर्मा ने नामजद लिखाई रिपोर्ट

अनबन होने पर आरती मायके में रहने लगी थी. दिसंबर 2020 में दोनों के बीच समझौता कराने का प्रयास किया था. लेकिन असफल रहा. समझौते के दौरान ही दोनों झगड़ा करने लगे थे. उसी समय गुस्से में श्यामशरण ने आरती का सिर फोड़ दिया था. लोकलाज के कारण हम ने दामाद के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई थी.

इस झगड़े के बाद आरती कानपुर के नौबस्ता थाना अंतर्गत सागरपुरी, गल्लामंडी में किराए का मकान ले कर रहने लगी थी. जिस मकान में वह रहती थी, उसी में उस ने एक आइसक्रीम फैक्ट्री शुरू कर दी थी. शादियों के सीजन में आइसक्रीम की डिमांड खूब हो रही थी.

आरती पति से अलग जरूर रहती थी, लेकिन पति श्यामशरण उस पर निगरानी रखता था. फोन पर वह उसे धमकाता भी था. अनिल ने आरोप लगाया कि उस की बेटी आरती की हत्या उस के पति श्यामशरण तथा जेठ रामशरण ने की है.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अनिल कुमार शर्मा की तरफ से भादंवि धारा 302 आईपीसी के तहत श्यामशरण शर्मा व रामशरण के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और जांच में जुट गए.

इधर महिला उद्यमी आरती हत्याकांड की खबर अखबारों में छपी तो आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी भानु भास्कर ने मामले को गंभीरता से लिया और घटनास्थल का निरीक्षण कर मृतका के पिता अनिल शर्मा से पारिवारिक जानकारी हासिल की.

इस के बाद उन्होंने एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रसाद की देखरेख में पुलिस टीम गठित कर दी. केस का खुलासा करने वाली टीम को 50 हजार रुपए का पुरस्कार भी घोषित कर दिया.

गठित पुलिस टीम ने 3 बिंदुओं पर जांच शुरू की. पहली अवैध संबंधों की, दूसरी पति से अनबन तथा तीसरी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा.

टीम ने सब से पहले आरती शर्मा के पति श्यामशरण तथा जेठ रामशरण को भरुआ सुमेरपुर कस्बा में स्थित उन के घर से उठाया फिर दोनों को बिधनू थाने ला कर पूछताछ की. लेकिन दोनों ने जुबान नहीं खोली.

पुलिस टीम ने आरती शर्मा के मोबाइल फोन को खंगाला तो उस में एक ऐसा वीडियो मिला, जिस में वह दोस्तों के साथ ड्रिंक कर रही थी और अश्लील हंसीमजाक कर रही थी.

टीम को समझते देर नहीं लगी कि आरती रंगीनमिजाज महिला थी. इसी मोबाइल में एक ऐसा नंबर भी था, जिस पर आरती की घटना से पहले बात हुई थी. इस नंबर को खंगाला गया तो पता चला कि यह नंबर प्रतापगढ़ के भौलपुर गांव निवासी जितेंद्र का है.

पुलिस टीम ने जितेंद्र को उस के गांव से हिरासत में ले लिया और बिधनू थाने लाई. यहां उस से कड़ाई से पूछताछ हुई तो उस ने बताया कि उस का मोबाइल खो गया था. किसी ने गलत इस्तेमाल किया है. पुलिस को भी लगा कि जितेंद्र निर्दोष है, अत: उसे थाने से जाने दिया.

पुलिस टीम को पक्का यकीन था कि आरती की हत्या का रहस्य उस के पति के पेट में ही छिपा है. अत: टीम ने श्यामशरण शर्मा से कड़ाई से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती से श्यामशरण टूट गया. उस ने बताया कि आरती की हत्या उस ने शूटरों से कराई थी. मौत का सौदा उस ने 3 लाख 20 हजार रुपए में किया था, जिस में से 1 लाख 40 हजार शूटरों के खाते में ट्रांसफर कर दिए थे.

श्यामशरण ने शूटरों के नाम शाहरुख खान निवासी इमलिया बाड़ा कस्बा भरुआ सुमेरपुर तथा नईम उर्फ भोलू निवासी ईदगाह कस्बा भरुआ सुमेरपुर जिला हमीरपुर बताया.

20 मई, 2021 को पुलिस टीम ने भरुआ सुमेरपुर थाना पुलिस की मदद से शाहरुख खान के घर पर छापा मारा. लेकिन वह घर से फरार था. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने उस की पत्नी रूबी, मां परवीन खातून तथा बहन रुखसार को हिरासत में ले लिया.

आरोपियों के घरवालों से की पूछताछ

इस के बाद पुलिस ने ईदगाह निवासी नईम उर्फ भोलू के घर छापा मारा. वह भी घर से फरार था. पुलिस ने भोलू की मां शमीम, बहन रोजी तथा एक अन्य को हिरासत में ले लिया.

सभी को थाना बिधनू लाया गया. दबाव बना कर पुलिस अधिकारियों के समक्ष उन से पूछताछ की गई और शाहरुख तथा नईम के ठिकानों की जानकारी जुटाई गई. पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया.

23 मई को थानाप्रभारी वी.पी. सिंह को खबरी के जरिए पता चला कि शाहरुख खान अपनी पत्नी रूबी से मिलने घर आया है. इस पर उन्होंने दबिश दे कर शाहरुख को उस के घर से दबोच लिया और थाने ले आए. इस के बाद उन्होंने उसे बिधनू पुलिस को सौंप दिया.

अगले भाग में पढ़ें- आरती दोस्तों के साथ करती थी मौजमस्ती

Satyakatha- केरला: अजब प्रेम की गजब कहानी- भाग 3

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

यह सुन कर साजिता को धक्का तो लगा लेकिन उस ने रहमान के साथ रहने के लिए पहले से ही खुद को तैयार कर लिया था. अब वह पीछे मुड़ कर वापस अपने घर पर नहीं जाना चाहती थी.

ऐसे में उसी रात रहमान साजिता को अपने घर ले आया और अपने कमरे में साजिता को छिपा लिया.

वह रात किसी तरह से गुजर गई लेकिन अगली सुबह साजिता के परिवार वालों को साजिता अपने कमरे में नहीं मिली तो वे परेशान हो गए. सुबह तक साजिता के गुम हो जाने की खबर पूरे गांव में फैल चुकी थी.

साजिता के पिता वेलायुधन और मां शांता दोनों साजिता को पागलों की तरह इधरउधर ढूंढने लगे. समय बीतने के साथसाथ साजिता के घर वालों ने नेम्मारा थाने में उस की गुमशुदगी की सूचना भी लिखवाई.

साजिता को ढूंढने के लिए पुलिस ने भी एड़ीचोटी का जोर लगा दिया लेकिन साजिता का कहीं नामोनिशान नहीं मिला.

इधर रहमान ने भी साजिता को छिपाने का पूरा बंदोबस्त कर के रखा था. इलैक्ट्रीशियन होने की वजह से उस ने अपने कमरे के दरवाजे पर एक ऐसा सर्किट लगा दिया था, जिस से उस के कमरे में घुसने वाले हर इंसान को बिजली के हलके वोल्ट के झटके लगते थे.

रहमान की खुराक अचानक से बढ़ गई थी, जोकि जाहिर सी बात है वह साजिता के लिए खाना लिया करता था. यहां तक कि जो रहमान पहले अपने परिवार के साथ बैठ कर खाना खाया करता था, वह अब थाली ले कर अपने कमरे में घुस जाया करता और खाना खा कर थाली धो कर लौटता था.

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रहमान ने जानबूझ कर अपने मिजाज में बदलाव कर लिया था, उस ने अचानक से परिवार वालों के प्रति अपने व्यवहार को बदल लिया था. वह सिर्फ इसलिए कि उस के घर वाले उसे मानसिक रूप से बीमार समझें और उस पर ज्यादा ध्यान न दें.

रहमान ज्यादा से ज्यादा समय अपने कमरे में बिताने लगा था, उस ने अपने कमरे में एक पुराना टीवी भी लगवा लिया था. जब रहमान घर पर नहीं रहता तब कमरे में साजिता टीवी देख कर या फिर फोन में गेम्स खेल कर अपना टाइम पास किया करती थी.

इसी तरह से एक साल, 2 साल नहीं बल्कि 11 साल बीत गए. इस बीच रहमान अपनी कमाई का एक हिस्सा अपने घर देता तो वहीं पाईपाई कर के उस ने अपने और साजिता के लिए पैसे जोड़ने भी शुरू कर दिए थे.

साजिता को भी अब उस चारदीवारी में रहने की आदत हो गई थी. वह शौच करने के लिए सिर्फ रात को निकलती जब रहमान के घर वाले सो जाते थे. यही नहीं, 11 सालों के दौरान साजिता एक बार भी बीमार नहीं पड़ी. यहां तक कि उसे एक छींक तक नहीं आई.

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इसी तरह से 11 साल बीत गए और मार्च 2021 में जब रहमान और साजिता दोनों को लगा कि उन के पास इतने पैसे इकट्ठे हो गए हैं कि शहर में जा कर वे कुछ समय तक किराए के कमरे में बिना काम किए रह सकते हैं तो 8 मार्च, 2021 की रात को रहमान अपने साथ साजिता को ले कर पास के शहर विथानासेरी चला गया.

जिस के बाद अचानक से रहमान अपने घर से एक दिन लापता हो गया और 3 महीने बाद बड़े भाई बशीर को उस जगह पर दिखाई दिया, जहां से वह बाइक चलाते हुए अपने कमरे पर लौट रहा था.

यह पूरी कहानी सुनने के बाद माननीय न्यायाधीश ने रहमान और साजिता को साथ में रहने की इजाजत दे दी है. अब रहमान और साजिता दोनों के घर वालों ने उन के रिश्ते को मंजूरी दे दी है और अब रहमान पत्नी साजिता के साथ हंसीखुशी से अपने घर रह रहा है.

Manohar Kahaniya: वीडियो में छिपा महंत नरेंद्र गिरि की मौत का रहस्य- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

महंत नरेंद्र गिरि का शिष्य आनंद गिरि बेहद शातिर था. उस की नजर मठ बाघंबरी गद्दी के साथसाथ मठ की करोड़ों की संपत्ति पर थी. तभी तो वह अपने गुरु महंत नरेंद्र गिरि को मानसिक रूप से प्रताडि़त करता रहता था. लेकिन अब उस के पास अपने गुरु का ऐसा कौन सा वीडियो था, जिस के वायरल होने से पहले ही महंत नरेंद्र गिरि ने दुनिया ही छोड़ दी.

शिष्यों और महंतों के बीच तिकड़म को ले कर अयोध्या में एक संत ने कविता लिखी थी, ‘पैर दबा कर

संत बने और गला दबाए महंत’. उन की कविता शिष्यों और महंतों के बीच आए दिन होने वाले विवादों पर पूरी तरह से खरी उतरती है.

मंदिर हो, मठ हो या आश्रम, सभी जगहों पर जमीन, जायदाद और सैक्स को ले कर षडयंत्र चलते रहते हैं. महंत नरेंद्र गिरि को डर था कि किसी लड़की के साथ उन की फोटो लगा कर बदनाम किया जा सकता है.

इस के पहले भी वह डांस करने वाली लड़कियों पर पैसे लुटाते चर्चा में आ चुके थे. मानसम्मान का डर महंत की मौत का कारण बना. धर्म के नाम पर जहां जनता अपनी मेहनत का पैसा चढ़ावे में चढ़ाती है, वहां के लोग उस का किस तरह से भोग करते हैं, महंत की मौत के पीछे की कहानी से इसे समझा जा सकता है.

‘‘प्रकाश, महंतजी अभी अपने कमरे से बाहर नहीं आए. देख तो क्या बात है,’’ बाघंबरी मठ के सेवादार बबलू ने अपने साथी से कहा.

बाघंबरी मठ प्रयागराज के अल्लापुर में स्थित है. यह प्रयागराज का सब से प्रभावशाली मठ है. प्रकाश और बबलू यहां सेवादार के रूप में काम करते हैं. ये दोनों अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और 75 वर्षीय महंत नरेंद्र गिरि के बारे में बात कर रहे थे. यह 20 सितंबर, 2021 के शाम लगभग 5 बजे की बात है.

‘‘बबलू, मैं कमरे के पास गया और आवाज दी. पर महंतजी ने कमरा नहीं खोला, न ही अंदर से कोई आवाज आ रही है.’’ प्रकाश वापस आ कर बोला.

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इस के बाद प्रकाश और बबलू अपने कुछ और सेवादार साथियों से इस बात को ले कर बात करने लगे.

सेवादार साथी सोच रहे थे कि एसी की आवाज में महंतजी बाहर की आवाजें नहीं सुन पा रहे होंगे. इन लोगों ने सोचा कि यदि कमरे का एसी बंद कर दिया जाए तो शायद महंतजी उठ सकते हैं.

यही सोच कर उन्होंने महंतजी के कमरे का एसी बाहर से बंद कर दिया. इस के बाद भी जब कोई हलचल कमरे के अंदर से नहीं हुई तो एक शिष्य बोला, ‘‘मंहतजी के मोबाइल पर काल करो.’’

‘‘नहीं, ऐसा मत करो, क्योंकि महंतजी ने फोन करने से मना किया था.’’ दूसरा साथी बोला.

‘‘कोई बात नहीं, अब उन के मोबाइल पर फोन कर के ही उन्हें जगाने का रास्ता बचता है. कहीं महंतजी किसी दिक्कतपरेशानी में न हों.’’ कह कर एक शिष्य ने उन के मोबाइल पर काल की. इस के बाद भी कोई जवाब नहीं मिला. ऐसे में अब शिष्यों के लिए धैर्य रखना संभव नहीं था.

महंत नरेंद्र गिरि हर दोपहर करीब 12 बजे अपने शिष्यों के साथ पंगत करते थे. इस के बाद वह आश्रम में जाते थे. शाम 5 बजे वह वापस आते थे. 20 सितंबर, 2021 को भी यही सब हुआ था. शिष्यों  के साथ पंगत के बाद नरेंद्र गिरि अपने आश्रम में गए.

वहां उन्होंने कुछ कागज लिए. अपने शिष्यों से कहा कि उन से मिलने कोई गेस्टहाउस में आ रहा है. इसलिए उन्हें फोन कर के परेशान न किया जाए.

दोपहर में सभी को लगा कि वह आराम कर रहे होंगे. जब शाम करीब 5 बजे तक उन का कोई हाल नहीं मिला तो मंदिर में खलबली मचने लगी. फोन करने पर कोई जवाब नहीं मिला. पहले शिष्यों ने दरवाजा खटखटाया. बाहर से एसी बंद कर दिया.

इस के बाद भी जब वह बाहर नहीं निकले तो कमरे के दरवाजे को धक्का दे कर खोल दिया गया. कमरे का दृश्य देख कर शिष्यों की चीख निकल गई.

कमरे के अंदर छत में लगे हुक में रस्सी के सहारे महंतजी लटके हुए थे. थोड़ी देर में वहां सन्नाटा छा गया. शिष्य बदहवास हालत में इधर से उधर भागने लगे. शिष्यों ने महंतजी के शव को शीघ्र ही उतार कर जमीन पर लिटा दिया, ताकि उन के जीवित बचने की संभावना तलाशी जा सके.

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इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. करीब साढ़े 5 बजे वहां भारी संख्या में पुलिस पहुंच गई. आश्रम का मुख्यद्वार बंद कर दिया गया. महंत नरेंद्र गिरि के गले में फांसी के फंदे का निशान था.

डीएम और एसएसपी ने पंचनामा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. जार्जटाउन थाने के इंसपेक्टर महेश सिंह ने बताया कि मठ से सूचना मिलने पर पुलिस आई.

शव के पास ही पुलिस को सल्फास की गोलियां रखी मिलीं. उसे खोला नहीं गया था. शव के पास ही 13 पन्ने का एक सुसाइड नोट वसीयत की तरह लिखा मिला, जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

महंत नरेंद्र गिरि बहुत पंहुच वाले व्यक्ति थे. ऐसे में आईजी के.पी. सिंह, डीआईजी सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी और डीएम संजय खत्री भी वहां पहुंच गए थे. 6 बजे तक पूरे शहर और शहर के बाहर यह सूचना फैल गई थी.

वहां डेढ़ घंटे तक पुलिस ने छानबीन की. सुसाइड नोट के बारे में पुलिस ने बताया कि इस में महंतजी ने अपने सम्मान से जीने की बात कही है. महंत नरेंद्र गिरि का सुसाइड नोट मीडिया में वायरल हो गया.

वसीयतनुमा सुसाइड नोट

महंत नरेंद्र गिरि का यह सुसाइड नोट अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के लेटरहैड पर लिखा गया था. पहले 13 सितंबर, 2021 की तारीख लेटरहैड पर पड़ी थी. बाद में इसे काट कर नीचे 20 सितंबर किया गया था. टूटीफूटी हिंदी में यह लिखा गया था. इस में कई जगहों पर कटिंग भी हुई थी.

अपने सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरि ने लिखा, ‘मैं महंत नरेंद्र गिरि मठ बाघंबरी गद्दी, बड़े हनुमान मंदिर (लेटे हनुमानजी) वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अपने होशोहवास में बगैर किसी दबाव के यह पत्र लिख रहा हूं.

‘जब से आंनद गिरि ने मेरे ऊपर असत्य, मिथ्या और मनगढं़त आरोप लगाए हैं, तब से मैं मानसिक दबाव में जी रहा हूं. जब भी मैं एकांत में रहता हूं, मर जाने की इच्छा होती है. आनंद गिरि, आद्या तिवारी और उन के बेटे संदीप तिवारी ने मिल कर मेरे साथ विश्वासघात किया है.

‘सोशल मीडिया, फेसबुक और समाचार पत्रों में आनंद गिरि ने मेरे चरित्र पर मनगढं़त आरोप लगाए हैं. मैं मरने जा रहा हूं. सत्य बोलूंगा. मेरा घर से कोई संबंध नहीं है. मैं ने एक भी पैसा घर पर नहीं दिया है. मैं ने एकएक पैसा मंदिर और मठ में लगाया है. 2004 में मैं महंत बना. 2004 से अब तक मंदिर मठ का जो विकास किया, सभी भक्त जानते हैं.

अगले भाग में पढ़ें- जायदाद और जमीन से जुडे़ विवाद

Manohar Kahaniya: 2 महिलाओं की बलि देकर बच्चा पाने का ऑनलाइन अनुष्ठान- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

रात एक बजे बलि देने से पहले तांत्रिक के बताए अनुसार पूजा करने के बाद सभी को दूधदही मिश्रित प्रसाद खिलाया गया, जिसे पहले से ही तैयार कर सब के सामने रख दिया गया था. आरती के सामने रखे प्रसाद में नशीला पदार्थ मिला दिया गया था. प्रसाद का सेवन पहले ममता और बेटू ने किया था, उस के कुछ समय बाद आरती ने प्रसाद खाया.

पूजा का आयोजन करीबकरीब खत्म होने को था. मीरा और नीरज सभी के लिए खाना परोसने की तैयारी करने लगे.

आरती बाथरूम के लिए उठने लगी, लेकिन उस ने सिर चकराने की शिकायत की. मीरा तुरंत बोली, ‘‘अधिक समय तक भूखे बैठने से ऐसा हुआ होगा. अभी ठीक हो जाएगा.’’

उस के बाद आरती खड़ी होते ही धड़ाम से गिर गई. सभी पहले से उस के बेहोश होने के इंतजार में थे. उन्होंने समय गंवाए बगैर उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट डाला.

उधर तांत्रिक का मंत्रजाप मोबाइल पर जारी था, इधर आरती के प्राण निकल रहे थे. उस की छटपटाने की आवाज मंत्रजाप के साथ मिल गई थी.

तांत्रिक ने मोबाइल पर विधिवत मंत्र पढ़ने के बाद भरोसा दिलाया कि बलि देने से हत्या के जुर्म में नहीं पकडे़ जाएंगे. क्योंकि उस के मंत्र की शक्तियां बलि देने के बाद जागृत हो जाएंगी. उन से ही उन की रक्षा मिलेगी.

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बाइक से सड़क पर गिर गई लाश

आरती की बलि का कार्य संपन्न होने के बाद अब उस के शव को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए बेटू और नीरज आरती की लाश को बीच में बिठा कर तांत्रिक के पास ले जाने के लिए घर से निकले. दुर्भाग्य से ट्रिपल आईटीएम कालेज के निकट बाइक फिसल गई और आरती की लाश सड़क किनारे गिर गई.

सड़क पर वाहनों की आवाजाही होने के कारण वे दोबारा आरती को बाइक पर नहीं लाद पाए. उन्होंने उसे वहीं छोड़ कर जाना ही सही समझा. उन्होंने तांत्रिक को इस नई समस्या के बारे में बताया.

तांत्रिक ने उपाय के तौर पर लाश की तसवीर मंगवाई, ताकि बाकी का अनुष्ठान पूरा किया जा सके. नीरज ने वैसा ही किया और आरती की लाश की फोटो मोबाइल से खींच कर तांत्रिक को वाट्सऐप पर भेज दी. लाश को छोड़ कर वे लोग घर आ गए.

हजीरा पुलिस की पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि उन्होंने ‘मर्डर 2’ फिल्म देखी. उसी आधार पर अकेली रहने वाली कालगर्ल आरती को बलि के लिए चुना. इस की बलि देने के बाद उन को पकड़े जाने का जोखिम नहीं होने का भरोसा था.

एडिशनल एसपी हितिका वासल की मौजूदगी में थानाप्रभारी आलोक सिंह परिहार  ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए नीरज और बेटू भदौरिया से विस्तार से पूछताछ की तो नीरज ने बताया कि उन्होंने एक नहीं  बल्कि 2 महिलाओं की बलि दी थी.

यह सुन कर पुलिस अधिकारी भी चौंक गए. तब नीरज ने बताया कि उन्होंने पहले बलि चढ़ाने के लिए कालगर्ल नीरू को चुना था. नीरू की बलि देने के लिए उसे 5000 रुपए का लालच दे कर बुलवाया था.

फिर योजना के अनुसार उसी दिन 14 अक्तूबर, 2021 को अष्टमी के दिन उसे मुरैना जिले के थाना सरायछोला के अंतर्गत आने वाली पीपलखाड़ी की बड़ी नहर के निकट सुनसान स्थान पर ले जा कर उसे जम कर शराब पिलाई.

जब नीरू पर कुछ ज्यादा ही नशा हो गया तब तांत्रिक गिरवर यादव के बताए अनुसार नीरज ने पूजापाठ करने के बाद उस के साथ शारीरिक संबंध बनाए फिर उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट कर हत्या कर दी थी और उस की लाश को वहीं पड़ा छोड़ कर ग्वालियर लौट आया था.

उस के बाद तांत्रिक को नीरू की बलि देने का फोटो उस के मोबाइल पर भेजने के साथ ही उसे शराब पिला कर उस की जान लेने की बात भी बताई थी.

इस पर तांत्रिक ने  कहा, ‘‘तुम ने नीरू की बलि उसे शराब पिला कर दी है, इसलिए पूजा विधि पूरी नहीं हुई है. यदि तुम्हें पूजा पूरी करनी है तो शरद पूर्णिमा के दिन एक और महिला की बलि देनी पड़ेगी.’’

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नीरज ने बताया कि दूसरी महिला को तलाश करना आसान नहीं था.

तांत्रिक द्वारा बताई पूजा विधि को सुरक्षित ढंग से अंजाम देने के लिए वह और मीरा ऐसी दूसरी महिला की तलाश में लग गए और जल्दी ही उन की मेहनत रंग लाई. फिर रोशनी नाम की महिला ने उन्हें कालगर्ल आरती से मिलवा दिया.

इस के बाद नीरज ने आरती को भी मोटी रकम देने का प्रलोभन दे कर पूजा में बैठने के लिए राजी कर लिया. अपने जाल में फंसा कर उस ने आरती को भी मौत के घाट उतार दिया.

संतान की चाहत में तांत्रिक के कहने पर 2 महिलाओं की बलि देने के मामले का 36 घंटे के भीतर पुलिस ने खुलासा कर दिया.

नीरज ने कालगर्ल नीरू की हत्या मुरैना जिले के थाना सराय छोला क्षेत्र में की थी, इसलिए पुलिस ने सराय छोला थाना पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि उन्होंने एक अज्ञात महिला की लाश बरामद की थी.

पुलिस नीरज और गांव के कुछ लोगों को ले कर मुरैना पहुंची तो उन लोगों ने कपड़े आदि देख कर बताया कि ये नीरू के ही हैं. जरूरी काररवाई कर के ग्वालियर पुलिस मुरैना से लौट आई.

चूंकि उन्होंने नीरू की लाश बरामद करने के साथ आरोपी ननद, भाभी, भाई प्रेमी सहित तांत्रिक को धर दबोचा था, इसलिए हजीरा थाना पुलिस की टीम को ग्वालियर के एसपी अमित सांघी ने इनाम देने की घोषणा की.

इस पूरे मामले को सुनने के बाद पुलिस ने आरती और नीरू की बलि देने के जुर्म में मीरा राजावत, नीरज कुमार, ममता भदौरिया, बेटू भदौरिया के अलावा तांत्रिक गिरवर यादव को गिरफ्तार कर लिया.

सभी आरोपियों को अदालत में पेश करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya- गोरखपुर: मोहब्बत के दुश्मन- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज

इस बात की जानकारी अनीश को लग चुकी थी कि दीप्ति को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उन के बीच बातचीत अचानक से खत्म हो गई थी. दीप्ति जब अपने कौड़ीराम ब्लौक औफिस पहुंचती तो वहां मौजूद अन्य कर्मचारियों के फोन से अनीश को फोन करती और उसे अपने साथ हो रहे जुल्मोसितम के बारे में बताती.

शुरुआत में तो अनीश ने दीप्ति को धैर्य रख कर काम करने के लिए कहा, लेकिन कुछ दिनों के बाद जब दीप्ति को अनीश से दूरी बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने अनीश को उस से शादी कर लेने के लिए कहा.

घर वालों की मरजी के बिना कर ली शादी

एक दिन फोन पर बात करते हुए दीप्ति ने अनीश से कहा, ‘‘देखो अनीश, मुझे पता है कि मेरे घरवाले हम दोनों के इस रिश्ते से खुश नहीं हैं, लेकिन मुझे यह जरूर पता है कि वह अपनी मुझ से बहुत प्यार करते हैं. हो सकता है कि ये कुछ समय की नाराजगी हो लेकिन ये नाराजगी जल्द ही खत्म हो जाएगी.’’

अनीश ने दीप्ति की बातों को बड़े ध्यान से सुना और कहा, ‘‘तुम कह तो ठीक रही हो लेकिन अगर तुम्हारे घरवालों ने हमारी शादी के बाद हमारे रिश्ते को नहीं माना तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी.’’

‘‘नहीं ऐसा नहीं होगा. एक बार हम ने शादी कर ली तो थोड़ी देर ही सही लेकिन वो हमारे इस रिश्ते को मंजूरी दे ही देंगे. और इस के अलावा हमारी शादी हो गई तो कानूनी तरीके से मेरे घरवाले मेरी कहीं और शादी नहीं कर सकते.’’ दीप्ति ने जवाब दिया.

यह सुन कर अनीश को दीप्ति की बातों में दम नजर आया. उस ने कुछ देर सोचा और दीप्ति की शादी की बात को मंजूरी दे दी. इस के कुछ दिनों बाद दीप्ति ने योजना के मुताबिक अपने घरवालों को चकमा दे कर 12 मई, 2019 को अनीश से कोर्टमैरिज कर ली.

कोर्ट मैरिज के बाद दोनों ने चैन की सांस तो ली. लेकिन उन्हें नहीं पता था कि उन का सुखचैन शादी के बाद छिनने वाला है. 9 दिसंबर, 2019 को अदालत ने दीप्ति और अनीश की शादी को मंजूरी दे दी.

इस का मतलब यह था कि अब दीप्ति और अनीश कानूनी तरीके से एकदूसरे से पतिपत्नी के बंधन में बंध चुके थे.

अदालत की मंजूरी के बाद दीप्ति के घर वालों को उन की शादी के कुछ दिनों के बाद ही उन की कोर्ट मैरिज का पता लग गया था. जिस के बाद उसके घरवालों ने दीप्ति को मानसिक रूप से प्रताडि़त करना शुरूकर दिया.

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शादी के बाद मिश्र परिवार ने दीप्ति को अनीश की जान की धमकियां देने लगे थे. वह दीप्ति से कहते, ‘‘तूने जो गलती कर ली सो कर ली, अभी भी समय है उसे तलाक दे और इस रिश्ते से छुटकारा पा ले, वरना हम ही तुझे इस रिश्ते से छुटकारा दिला देंगे.’’

यह सुन कर दीप्ति खौफ के साए में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हो गई थी. हालांकि वह हर दिन औफिस जाती लेकिन उस के मन में अनीश को ले कर डर हमेशा रहने लगा था.

दीप्ति के घर वालों ने दी धमकी

अनीश भी दीप्ति को ले कर हर समय चिंता करने लगा था. अनीश को इस बात का डर सताने लगा था कि दीप्ति के घर वाले उस के साथ कुछ गलत न कर दें. वे दोनों एकदूसरे की चिंता में खोने लगे थे, जिस का असर उन के काम पर भी पड़ने लगा था. वे हर समय एकदूसरे के बारे में सोचते और एकदूसरे के करीब आना चाहते थे.

शादी का पता लगने के बाद दीप्ति को उस के घरवालों द्वारा काफी प्रताडि़त किया जाने लगा. ये प्रताड़ना अकसर मानसिक हुआ करती थी. कभी उस की मां जानकी देवी बीमार होने का नाटक करती तो कभी उस के पिता. उस के पिता अकसर उस के सामने दिल का अटैक आने की नाटक नौटंकी करते और अनीश से तलाक ले लेने को कहते थे. जब दीप्ति अपने घरवालों की बात नहीं मानती तो वे अनीश को जान से मार देने की धमकियां देते थे. दीप्ति के घर वाले उसे दलित समुदाय के लड़के से शादी करने के चलते दीप्ति को कलंक समझते थे.

वह दीप्ति को अकसर कहते थे, ‘‘तूने हमारे परिवार की, खानदान की, ब्राह्मणों की नाक कटा दी है. तुझ जैसी कलंक का पहले पता होता तो तुझे हम ने कोख में ही मार दिया होता.’’

इसी बीच फरवरी, 2021 की शुरुआत में नलिन मिश्र ने अनीश पर अपनी बेटी के बलात्कार करने का आरोप लगाया. यह जान कर दीप्ति को इतना आश्चर्य हुआ कि उस के पिता अपनी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं. लेकिन उन दिनों दीप्ति के घरवालों ने उस को इतना प्रताडि़त किया, उस पर इतना दबाव बनाया कि दीप्ति को अनीश के खिलाफ बयान देना पड़ा.

फिर दीप्ति चली गई अनीश के घर

लेकिन जब अनीश की गिरफ्तारी की नौबत आई तो 20 फरवरी, 2021 को दीप्ति एक बार फिर से अपने घर वालों को चकमा दे कर अनीश के साथ रहने के लिए उस के घर आ गई. दीप्ति के घरवालों ने फिर भी हार नहीं मानी.

उन्होंने स्थानीय पुलिस को अनीश के खिलाफ दीप्ति का अपहरण करने की रिपोर्ट दर्ज करवाई. जिस के बाद अनीश और दीप्ति दोनों ने मिल कर सोशल मीडिया पर एक वीडियो बना कर पोस्ट भी किया, जो वायरल हो गया.

उस वीडियो में दीप्ति ने बताया कि उस का अपहरण नहीं हुआ है और वह अपनी मरजी से अनीश के साथ रह रही है और दोनों ने शादी कर ली है.

कुछ महीनों तक दोनों ने जिंदगी साथ में गुजारी. साथ में काम पर जाते, साथ में काम से वापस आते. लेकिन दोनों के मन से डर का साया कम नहीं हुआ था. इस को ध्यान में रखते हुए अनीश के पिता ने दोनों को सार्वजनिक रूप से शादी करने का उपाय बताया.

उन्होंने उन से कहा कि अगर वे सार्वजनिक तरीके से शादी कर लेंगे तो हो सकता है कि वो लोग उन की शादी को स्वीकार कर लें. उन की बातों का सम्मान करते हुए दोनों ने 28 मई, 2021 के दिन गोरखपुर के महादेव झारखंडी मंदिर में शादी कर ली.

मंदिर में शादी करने के बाद अनीश के घरवालों ने दोनों के लिए गोरखपुर में अवंतिका होटल में एक बड़ा रिसैप्शन भी रखा. इस रिसैप्शन में सिर्फ अनीश के घरवाले और रिश्तेदार ही मौजूद थे. दीप्ति के घर से न तो मंदिर में शादी के समय कोई आया और न ही रिसैप्शन में कोई आया.

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शादी और रिसैप्शन के बाद कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए. दीप्ति के घरवालों की तरफ से अब न तो धमकी भरे फोन आते थे और न ही वे दीप्ति को परेशान करते थे.

लेकिन यह बड़ा तूफान आने से पहले की शांति थी. शादी के बाद अनीश के दिलोदिमाग से डर धीरेधीरे कम होने लगा. अनीश पहले के मुकाबले लापरवाह हो गया और बेफिक्री के साथ घूमनेफिरने लगा.

इस चीज को ले कर दीप्ति ने अनीश को कई बार आगाह भी किया था लेकिन अनीश पर उस की इन बातों का असर नहीं होता था. अनीश को लगता था कि यह अपना ही इलाका है तो यहां कोई खतरा नहीं है, लेकिन यह लापरवाही भारी पड़ी.

अनीश पर किया हमला

24 जुलाई, 2021 के दिन अनीश और उस के चाचा देवी दयाल, जोकि उरूवा ब्लौक में ही तैनात ग्राम विकास अधिकारी थे, दोनों दोपहर को गोला थाना क्षेत्र के गोपलापुर चौराहा स्थित पंकज ट्रेडर्स हार्डवेयर की दुकान पर हिसाब करने निकले थे.

दरअसल, अनीश पर दुकान का कुछ उधार बकाया था. वही उधार चुकता करने हार्डवेयर की दुकान पर दोनों आए थे. दुकान मालिक हिसाब अभी तैयार कर ही रहा था तभी अनीश के मोबाइल पर एक काल आ गई.

अगले भाग में पढ़ें- दीप्ति ने अपने ही घर वालों के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

Manohar Kahaniya: खोखले निकले मोहब्बत के वादे- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद का वसुंधरा इलाका नवधनाढ्यों का ऐसा इलाका है, जहां देश के सभी प्रांतों एवं धर्मों के लोग रहते हैं. दिल्ली व आसपास के इलाकों में सरकारी, गैरसरकारी संस्थानों में काम करने वालों से ले कर कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों से ले कर छोटेबड़े कारोबारी तक इस इलाके में रहते हैं.

मूलरूप से ओडिशा के जगतसिंहपुर के गांव अछिंदा का रहने वाला मनोज उर्फ मनोरंजन 1999 में नई विकसित वसुंधरा कालोनी में रोजीरोटी की तलाश में आया था.

वसुंधरा इलाके में ओडिशा के कुछ लोग पहले से रहते थे. मनोरंजन फोटोग्राफी का काम जानता था. इसलिए उस ने अपने परिचितों की मदद से एक फोटोग्राफर की दुकान पर नौकरी कर ली.

कुछ महीनों में जब वह काम में पारंगत हो गया तो इलाके में कुछ लोगों से उस की जानपहचान हो गई तो उस ने वसुंधरा के सेक्टर-15 में एक दुकान किराए पर ले कर फोटो स्टूडियो खोल लिया.

संयोग से काम भी ठीक चलने लगा. चेहरे पर भोली मुसकान और बातचीत में बेहद सरल और विनम्र स्वभाव के मनोरंजन का काम उस की मेहनत और लगन के कारण जल्द ही चल निकला. मनोरंजन उर्फ मनोज तिवारी जाति से ही ब्राह्मण नहीं था, बल्कि कर्म से भी वह ब्राह्मण ही था. माथे पर तिलक सदकर्मों के कारण क्षेत्र के लोग उसे पंडितजी के नाम से पुकारने लगे.

मनोरंजन के पिता भी ओडिशा में पंडिताई का काम करते हैं. बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी. गांव में अब मातापिता ही रहते हैं. 3-4 साल में उस का कामधंधा ठीकठाक चलने लगा. खूब पैसा कमाने लगा था. वसुंधरा सैक्टर 15 में ही मनोरंजन ने रहने के लिए एक अच्छा फ्लैट भी किराए पर ले लिया.

इसी तरह वक्त तेजी से गुजरने लगा. मनोरजंन के पास अब सब कुछ था. किराए का ही सही एक अच्छा घर था, जिस में सुखसुविधा का हर सामान मौजूद था.

फोटोग्राफी का अच्छा कारोबार चल रहा था, जिस से हर महीने डेढ़ से 2 लाख रुपए कमा लेता था. लेकिन ऐसा कोई नहीं था, जो उस का सुखदुख बांट सके. जिंदगी में कमी थी तो एक जीवनसाथी की, जो उस की तनहा जिंदगी का अकेलापन दूर कर सके. मातापिता ने गांव से बिरादरी की कई लड़कियों की तसवीरें भेजी थीं, लेकिन पता नहीं क्यों कोई भी उस की आंखों को पसंद नहीं आई.

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गाजियाबाद में रहने वाले ओडिशा के परिचितों ने भी मनोरंजन को शादी करने के लिए कई रिश्ते बताए, लेकिन संयोग से यहां भी कोई लड़की उसे पसंद नहीं आई.

दरअसल, मनोरंजन बेहद संवेदनशील और भावुक किस्म का इंसान था. जिंदगी में वही काम करता था, जिस के लिए दिल कहता. अभी तक उस ने जिन लड़कियों को भी देखा था, उन में से कोई भी ऐसी नहीं थी जिसे देख कर उसके दिल में कोई उमंग या खुशी की भावना जगी हो.

इसलिए उसे एक ऐसी लड़की का इंतजार था, जिसे देख कर पहली ही नजर में दिल से आवाज निकले कि हां ये सिर्फ मेरे लिए बनी है.

वक्त तेजी से गुजरता गया. लेकिन 2006 में अचानक एक ऐसा भी दिन आया जब एक लड़की को देख कर उस के दिल से वो आवाज निकली, जिस का उसे इंतजार था.

हुआ यूं कि एक दिन एक लड़की, जिस का नाम गीता यादव था. वह उस के स्टूडियो में फोटो खिंचवाने आई. करीब 20 साल की अल्हड़ उम्र थी और चेहरे पर चंचल मासूमियत देख कर पता नहीं मनोरजन का दिल पहली बार एक अजीब से अहसास के साथ धड़का.

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गीता जब खिलखिला कर हंसती तो उस के गालों के बीच पड़ने वाले डिंपल किसी भी इंसान को उस का दीवाना बना देने के लिए काफी थे.

मूलरूप से इटावा की रहने वाली गीता यादव पिछले 10 सालों से अपने परिवार के साथ किराए के मकान में कनावनी गांव में रहती थी. परिवार में मां शांति के अलावा एक बड़ा भाई था राजेश यादव. भाई एक फैक्ट्री में नौकरी कर के अपनी पत्नी, बच्चे के साथ मां और बहन का पेट पालता था.

अगले भाग में पढ़ें- पहली मुलाकात में हो गया था दीवाना

Manohar Kahaniya: जुर्म की दुनिया की लेडी डॉन- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

शक्लसूरत से भले ही वह बहुत ज्यादा खूबसूरत नहीं है लेकिन वह है बहुत आकर्षक. कंधे तक झूलते बाल उस के सांवले लंबे चेहरे पर खूब फबते हैं.

उस की नाजुक कलाइयों में शायद ही कभी किसी ने चूडि़यां देखी हों, लेकिन एके 47 को वह खिलौना गन की तरह चलाती थी. नाम है उस का अनुराधा सिंह चौधरी. वह अकसर लोगों को पैंटशर्ट या टीशर्ट जींस जैसे वेस्टर्न लुक में नजर आई. साड़ी सरीखा कोई परंपरागत भारतीय परिधान पहने भी उसे किसी ने शायद नहीं देखा.

लंबी, दुबलीपतली, छरहरी 36 वर्षीय इस महिला के चेहरे से दुनिया भर की मासूमियत टपकती थी. लेकिन वह थी कितनी खूंखार, इस का अंदाजा उस के गुनाहों की लिस्ट देख कर लगाया जा सकता है.

राजस्थान के सीकर के गांव अलफसर के एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में जन्मी अनुराधा का घर का नाम मिंटू रखा गया था. जब वह बहुत छोटी थी तभी उस की मां चल बसी. पिता रामदेव की कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह दिल्ली आ गए. मिंटू जैसेजैसे बड़ी और समझदार होती गई, उसे यह एहसास होता गया कि जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो पढ़ाईलिखाई बहुत जरूरी है. लिहाजा उस ने दिल लगा कर पढ़ाई की और वक्त रहते बीसीए और फिर एमबीए की भी डिग्री ले ली.

पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह स्थाई रूप से सीकर वापस आई तो वही हुआ जो इस उम्र में लड़कियों के साथ होना आम बात है. अनुराधा को फैलिक्स दीपक मिंज नाम के युवक से प्यार हो गया और उस ने घर और समाज वालों के विरोध और ऐतराज की कोई परवाह नहीं की और दीपक से लवमैरिज कर ली.

यहां तक अनुराधा ने कुछ गलत नहीं किया था. दीपक के साथ वह खुश थी और आने वाली जिंदगी के सपने आम लड़कियों की तरह देखने लगी थी.

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दीपक सीकर में ही शेयर ट्रेडिंग का कारोबार करता था. अब पढ़ीलिखी अनुराधा भी उस के काम में हाथ बंटाने लगी, लेकिन शेयर मार्किट में खुद के लाखों और अपने क्लाइंट्स के करोड़ों रुपए इन दोनों ने तगड़े मुनाफे की उम्मीद में लगवा दिए थे, जो नातुजर्बेकारी और जोश के चलते एक झटके में डूब गए.

लेनदारों के बढ़ते दबाव से निबटने के लिए अनुराधा ने जुर्म का रास्ता चुना, जिस ने उस की जिंदगी बदल डाली. अनुराधा की मुलाकात राजस्थान के हिस्ट्रीशीटर बलबीर बानूड़ा से हुई, जिस ने उस की मुलाकात आनंदपाल सिंह से करवा दी.

दोनों ने एकदूसरे को देखापरखा और देखते ही देखते अनुराधा की सारी परेशानियां दूर हो गईं.

आनंदपाल सिंह की दहशत राजस्थान में किसी सबूत या पहचान की मोहताज कभी नहीं रही. जिस के रसूख से सियासी गलियारे भी कांपते थे.

आनंद ने अनुराधा को जुर्म की दुनिया के गुर और उसूल सिखाए. अनुराधा ने देखा और महसूस किया कि आनंद अपने रुतबे और दहशत को कैश नहीं करा पाता और थोड़े से में ही संतुष्ट हो जाता है तो उस ने आनंद को बदलना शुरू कर दिया. देखते ही देखते आनंद का हुलिया, आदतें, रहनसहन सब बदल गया.

उधर जैसे ही दीपक को पत्नी के एक जरायमपेशा गिरोह में शामिल होने की बात पता चली तो उस ने उस से नाता तोड़ लिया.

अनुराधा अब न केवल बिनब्याही पत्नी की हैसियत से बल्कि तेजतर्रार आला दिमाग की मालकिन होने की वजह से भी आनंद के गिरोह में नंबर 2 की हैसियत रखने लगी थी, जिस ने जरूरत से कम समय में हथियार चलाना सीख लिया था. गैंग और अपराध की दुनिया से जुड़े लोग उसे मैडम मिंज भी कहने लगे थे.

अनुराधा ने सीखे अपराध के गुर

अब अनुराधा ही किए जाने वाले अपराधों की प्लानिंग करने लगी थी. आनंद एक बात अनुराधा को और अच्छे से सिखा चुका था कि अपराध की दुनिया उस कार सरीखी होती है, जिस में रिवर्स गियर नहीं होता.

अनुराधा जल्द ही पेशेवर मुजरिम बन गई थी और उस का नाम भी चलने लगा था. वह जहां से गुजरती थी वहां लोगों के सर अदब से झुकें न झुकें, खौफ से जरूर झुक जाते थे. अब वह धड़ल्ले से वारदातों को अंजाम देने लगी थी.

वह चर्चा और सुर्खियों में साल 2013 में तब आई थी, जब उस पर रंगदारी का पहला मामला दर्ज हुआ था. जिस पर पुलिस ने उस पर पहली दफा 10 हजार रुपए का ईनाम भी रखा था.

राजस्थान में बवंडर उस वक्त खड़ा हुआ, जब एक चर्चित हत्याकांड के गवाह का अपहरण हो गया. दरअसल, 27 जून, 2006 को जीवनराम गोदारा नाम के शख्स की हत्या आनंद ने दिनदहाड़े कर दी थी, जिस से पूरा राज्य हिल उठा था.

जीवनराम का भाई इंद्रचंद्र गोदारा इस हत्याकांड का गवाह था, जिस की गवाही आनंद को लंबा नपवा देती. अपने आशिक को बचाने के लिए अनुराधा ने साल 2014 में इंद्रचंद्र को अगवा कर लिया और पुणे ले गई. जहां एक फ्लैट में उसे बंधक बना कर रखा गया था.

एक दिन मौका पा कर इंद्रचंद्र ने एक परची खिड़की से नीचे फेंक दी, जिस पर लिखा था, ‘मैं किडनैप हो गया हूं और मुझे यहां पर मदद की जरूरत है.’

परची जिस ने भी पढ़ी, उस ने औरों को बताया तो फ्लैट के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई और फ्लैट को घेर लिया. तब अनुराधा और उस के गुर्गे बमुश्किल वहां से भागने में कामयाब हो पाए थे.

जैसेतैसे बचतेबचाते वह राजस्थान वापस आ गई और आनंद के जेल में होने के चलते खुद उस का गैंग चलाने लगी. इस दौरान उस ने कारोबारियों को अगवा कर फिरौती से खूब पैसा कमाया.

लेकिन उसे झटका तब लगा जब पुलिस ने साल 2017 में एनकाउंटर में नाटकीय तरीके से आनंद पाल सिंह को मार गिराया. जिस के बाद डरीसहमी अनुराधा फरार हो गई. जान बचाने के खौफ और गैंग के टूट जाने से अनुराधा इधरउधर भागती रही.

इसी फरारी के दौरान सहारा ढूंढती अनुराधा लारेंस बिश्नोई गैंग में शामिल हो गई. मकसद था, जैसे भी हो पुलिस से बचना.

हालांकि जुर्म की दुनिया में भी उस के खासे चर्चे और किस्से फैल चुके थे. इस नए गिरोह से उस की पटरी ज्यादा नहीं बैठी और जल्द ही वह काला जठेड़ी उर्फ संदीप के संपर्क में आई.

आनंद की मौत से आया खालीपन उसे काला जठेड़ी से भरता नजर आया तो इस की वजहें भी थीं. अनुराधा बगैर किसी एंट्रेंस एग्जाम के जठेड़ी गैंग में न केवल शामिल हो गई, बल्कि देखते ही देखते इस गैंग में भी उस ने वही जगह और रुतबा हासिल कर लिए, जो उसे आनंद के गैंग में हासिल था. दोनों ने हरिद्वार के एक मंदिर में विधिविधान से शादी भी कर ली.

किशोरावस्था से ही जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके काला पर हत्या, अपहरण लूटपाट, जमीनों पर जायजनाजायज कब्जे और फिरौती वगैरह के कोई 3 दरजन मामले दर्ज हो चुके थे. अनुराधा की आपराधिक जन्मपत्री से पूरे 36 गुण उस से मिले थे.

काला भी उस के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ था और उस के आला खुराफाती दिमाग का कायल हो गया था. काला की दहशत अपने इलाकों में ठीक वैसी ही थी, जैसी राजस्थान में आनंद की थी.

दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, कारोबारी भी जिस्मानी भी और जज्बाती भी. काला के गिरोह के मेंबर भी अनुराधा के एके 47 चलाने की स्टाइल से इतने इंप्रैस थे कि उन्होंने उसे रिवौल्वर रानी का खिताब दे दिया था.

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फिर जैसे ही सागर धनखड़ हत्याकांड में नामी पहलवान सुशील कुमार का नाम आया तो दिल्ली गरमा उठी, क्योंकि इस वारदात में गैंगस्टर नीरज बवाना और काला जठेड़ी का नाम भी आया. जेल में बंद सुशील पहलवान ने उस से अपनी जान को खतरा जताया था.

काला जठेड़ी की तलाश में जुटी स्पैशल सेल

अब पुलिस की स्पैशल सैल ने काला की तलाश को मुहिम की शक्ल दे दी तो वह अनुराधा के साथ भागता रहा. काला की तलाश में पुलिस की स्पैशल सैल जुटी तो अनुराधा फिर चिंतित हो उठी.

क्योंकि अगर आनंद की तरह काला भी किसी एनकाउंटर में मारा जाता तो वह फिर बेसहारा हो जाती. दूसरे गिरफ्तारी की तलवार अब उस के सिर पर भी लटकने लगी थी.

पुलिस को अंदेशा इन दोनों के नेपाल में होने का था, जबकि हकीकत में दोनों भारत भ्रमण करते आंध्र प्रदेश के अलावा पंजाब और मुंबई भी गए थे और बिहार के पूर्णिया में भी रुके थे. मध्य प्रदेश के इंदौर और देवास में भी इन्होंने फरारी काटी थी. हर जगह इन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया और लिखाया था.

काला को घिरता देख अनुराधा ने 70-80 के दशक के मशहूर जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के एक किरदार विमल का सहारा लिया, जिस ने पुलिस से बचने के लिए सरदार का हुलिया अपना लिया था.

 

अपनी नई पत्नी के कहने पर काला जठेड़ी विमल की तर्ज पर सरदार बन गया. उस ने अपना नया नाम पुनीत भल्ला और अनुराधा का नाम पूजा भल्ला रखा. सोशल मीडिया पर भी दोनों ने नए नामों से आईडी बना ली थी.

अनुराधा ने जठेड़ी गैंग के गुर्गों को यह हिदायत भी दी थी कि अगर उन में से कोई कभी पुलिस के हत्थे चढ़ जाए तो काला के बारे में यही बताए कि वह इन दिनों नेपाल में है और वहीं से गैंग चला रहा है. इस हिदायत का मकसद पुलिस को भटकाए और उलझाए रखना था.

आनंदपाल के गिरोह में रहते अनुराधा कई बार नेपाल भी गई थी और वहां के अड्डों से भी वाकिफ थी, इसलिए वह काला को भी 2 बार नेपाल ले गई थी. मकसद था विदेश भागने की संभावनाएं टटोलना और जमा पैसों की ट्रोल को रोकना.

अनुराधा के खुराफाती दिमाग का आनंद भी कायल था और अब काला भी हो गया था, जिसे अनुराधा ने सख्त हिदायत यह दे रखी थी कि वह भारत में फोन पर किसी से बात न करे जोकि आजकल पुलिस को मुजरिम तक पहुंचने का सब से आसान और सहूलियत भरा जरिया और रास्ता होता है.

अब काला को जिस से भी बात करनी होती थी तो वह विदेश में बैठे अपने किसी गुर्गें की मदद से करता था. काला और अनुराधा तक पहुंचने के लिए पुलिस की स्पैशल सेल ने लारेंस बिश्नोई को मोहरा बनाया जो जेल में बंद था.

पुलिस ने अपने मुखबिरों के जरिए बिश्नोई तक एक फोन पहुंचाया, जिस से वह अपने गुर्गों से बात करता रहा और पुलिस खामोशी से तमाशा देखती रही.

एक बार वही हुआ जो पुलिस चाहती थी कि बिश्नोई ने काला से भी बात कर डाली. उस का फोन सर्विलांस पर तो था ही जिस से उस के सहारनपुर के अमानत ढाबे पर होने की लोकेशन मिली.

पुलिस तुरंत हरकत में आई और आसानी से काला और अनुराधा को गिरफ्तार कर लिया. दोनों हतप्रभ थे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे चूहेदानी में फंस चुके हैं.

बिलाशक पुलिस की स्पैशल सेल ने दिमाग से काम लिया, जिसे उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल बिश्नोई काला से जरूर बात करेगा और ऐसा हुआ भी.

अगले भाग में पढ़ें- संतोकबेन जडेजा जिस की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘गौडमदर’

Satyakatha- दिल्ली: शूटआउट इन रोहिणी कोर्ट- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

इसी तरह से फायरिंग करते हुए करीब 9 मिनट के बाद पुलिस ने कोर्टरूम में मौजूद 2 में से एक हमलावर को ढेर कर दिया. अब सिर्फ एक ही हमलावर बचा रह गया था, जिस पर काबू पाना मुश्किल साबित हो रहा था.

वह शारीरिक रूप से काफी तगड़ा और फुरतीला भी था. उस ने किसी तरह से खुद को पुलिस की गोलियों से बचाया हुआ था.

करीब 12 मिनट के बाद भी वह हार मानने को तैयार नहीं था. लेकिन उस पर भी किसी तरह से काबू पा लिया गया, जब एक पुलिसकर्मी की गोली उस के शरीर पर लगी और वह भी ढेर हो कर गिर पड़ा.

कोर्टरूम में यह शूटआउट करीब 12 मिनट तक चलता रहा. इन 12 मिनट के शूटआउट के दौरान हर कोई यही प्रार्थना कर रहा था कि वह किसी तरह से सुरक्षित बच जाए. 12 मिनट के बाद जब दोनों हमलावर पुलिस की गोली से ढेर हो गए तो कोर्टरूम में अचानक से शांति फैल गई.

कोर्टरूम में शांति इसलिए भी फैली क्योंकि अंदर मौजूद सभी लोगों के कान गोलियों की तड़तड़ाहट से सुन्न पड़ गए थे. शूटआउट खत्म होने के बावजूद कमरे में मौजूद लोग अपनी आंखों और कानों को बंद कर के बचाव की मुद्रा में किसी भी चीज का सहारा लेते हुए जमीन पर लेटे हुए थे.

कोर्टरूम नंबर 207 में सुनवाई के लिए आए जितेंद्र गोगी और उस पर हमला करने वाले दोनों हमलावरों की लाशें पड़ी थीं. चारों और गोलियों के खाली खोखे बिखरे पड़े थे. इस पूरे 12 मिनट के शूटआउट के दौरान कमरे में मौजूद कई लोगों को मामूली खरोंचें भी आईं.

शूटआउट की समाप्ति के बाद दोपहर के 1.36 बजे गोगी की डैडबौडी को दिल्ली पुलिस पास के अस्पताल ले कर पहुंची, जिसे देख डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया.

इस के अलावा दोनों हमलावरों में एक की पहचान सोनीपत हरियाणा निवासी जगदीप उर्फ ‘जग्गा’ के रूप में की गई और दूसरा, उत्तर प्रदेश के मेरठ का रहने वाला राहुल त्यागी उर्फ ‘फफूंदी’ था. दोनों हमलावर गैंगस्टर सुनील मान उर्फ टिल्लू के गुर्गे थे.

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इस शूटआउट से यही बात सामने आई कि ये दोनों गुर्गे कुख्यात गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी को मारने आए थे.

आखिर यह गोगी है कौन और किस तरह यह अपराध की दुनिया में आ कर इतना बड़ा अपराधी बना, यह जानने के लिए हमें गोगी की जन्मकुंडली खंगालनी होगी.

जितेंद्र मान उर्फ ‘गोगी’ का जन्म साल 1991 में दिल्ली के अलीपुर गांव में हुआ था. गोगी वौलीबाल का अच्छा खिलाड़ी था. उस ने अपने स्कूल के दिनों में वौलीबाल में पदक भी जीते थे. वह वौलीबाल में अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व करता था.

इस से पहले कि वह खेल को अपना कैरियर बना पाता, 17 साल की उम्र में एक दुर्घटना में उस का दाहिना कंधा घायल हो गया था, जिस के कारण वह फिर कभी नहीं खेल सका.

गोगी के बड़े भाई रविंदर टैंपो चलाते थे और टैंपो किराए पर देते थे, जबकि उन के पिता मेहर सिंह एक निजी ठेकेदार थे और अलीपुर में प्रमुख जमींदार जाट समुदाय से थे. गोगी के पिता को कैंसर हो गया था.

गोगी पढ़नेलिखने में ठीकठाक था. स्कूल की पढ़ाई के बाद उस का दाखिला दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वामी श्रद्धानंद कालेज में हो गया था. कालेज में पढ़ाई के दौरान गोगी के कई दोस्त बने. उन में से एक सुनील उर्फ ‘टिल्लू ताजपुरिया’ भी था. समय के साथसाथ जितेंद्र गोगी और टिल्लू की दोस्ती गहरी होती गई.

कालेज में हर साल होने वाले छात्रसंघ के चुनावों ने गोगी की पूरी जिंदगी ही बदल दी. चुनाव के दौरान उस ने अपने प्रतिद्वंद्वी समूह के साथ लड़ाई की और अपने सहयोगियों रवि भारद्वाज उर्फ बंटी, अरुण उर्फ कमांडो, दीपक उर्फ मोनू, कुणाल मान और सुनील मान के साथ संदीप और रविंदर पर गोलियां चला कर हमला किया था.

इस मामले में एफआईआर भी हुई थी. उस का सहयोगी रवि भारद्वाज उर्फ बंटी एक जमाने में गैंगस्टर भी रहा था, जिस की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पुलिस ने एक लाख रुपए का ईनाम भी घोषित किया था, जिसे स्पैशल सेल ने वर्ष 2014 में गिरफ्तार किया था.

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गोगी का दोस्त अरुण उर्फ कमांडो भी श्रद्धानंद कालेज में पढ़ता था और छात्रसंघ के चुनाव में अलीपुर के एक छात्र नेता का समर्थन कर रहा था. प्रत्याशी गोगी के गांव का ही रहने वाला था.

दूसरी ओर, एक छात्र एक गैंगस्टर का चचेरा भाई टिल्लू, जोकि गोगी का पक्का दोस्त था, के विपक्षी पार्टी से एक उम्मीदवार था.

छात्र संघ के चुनाव के दिनों में सुनील उर्फ टिल्लू के गुट के सदस्यों ने कुछ कारणों से अरुण उर्फ कमांडो को पीट दिया. जिस की वजह से गोगी गुट के प्रत्याशी ने उस चुनाव से नाम वापस ले लिया और टिल्लू के समूह के प्रत्याशी ने वह चुनाव जीत लिया.

लेकिन उस घटना ने दोनों के बीच रंजिश को जन्म दे दिया और यहीं से गोगी और टिल्लू दोनों के बीच दुश्मनी हो गई.

दोनों के बीच दुश्मनी का पौधा इतना गहरा हो गया था, जिसे उखाड़ फेंकना नामुमकिन था. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गोगी का मिशन टिल्लू का पूर्ण विनाश था.

पिछले 5 सालों में दोनों पक्षों के कम से कम 12 लोगों की जान जा चुकी है. यही नहीं, यह बात भी फैली कि गोगी तब तक नहीं रुकेगा जब तक वह टिल्लू को नहीं मार देता.

न्यायिक हिरासत के दौरान गोगी का एक सहयोगी सुनील मान उर्फ टिल्लू के करीब आया. जेल से छूटने के बाद गोगी और सुनील मान दबदबे के मुद्दे पर एकदूसरे के प्रतिद्वंदी बन गए.

वहीं दूसरी ओर गोगी की दूर की बहन का अफेयर दीपक उर्फ राजू से था. दीपक उस की दूर की बहन के साथ डेट करता था और इस बात को खुल कर स्वीकार करता था.

दीपक टिल्लू का करीबी दोस्त था. इस के बाद दीपक की हरकतों और अफवाहों के चलते गोगी और उस के साथियों ने दीपक की हत्या को अंजाम दिया. उस मामले में 4 आरोपी योगेश उर्फ टुंडा, कुलदीप उर्फ फज्जा, दिनेश और रोहित को गिरफ्तार किया गया और आरोपी जरनैल को स्पैशल सेल द्वारा गिरफ्तार किया गया.

इस के बाद गोगी को दीपक की हत्या के आरोप में मार्च 2016 को पानीपत पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, लेकिन जुलाई 2016 को वह बहादुरगढ़ क्षेत्र में न्यायिक हिरासत से फरार हो गया. दीपक की हत्या के प्रतिशोध में टिल्लू गिरोह के सदस्यों ने अरुण उर्फ कमांडो की हत्या को अंजाम दिया, जो गैंगस्टर गोगी का सहयोगी था.

इस मामले में सोनू को गिरफ्तार किया गया और वर्तमान में वह न्यायिक हिरासत में है. इस के बाद दोनों गैंग के बीच कई बार वारदात को अंजाम दिया गया और दोनों के बीच की दुश्मनी बढ़ती ही चली गई.

रोहिणी कोर्ट में मारा गया जितेंद्र गोगी कितना बड़ा अपराधी था, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली पुलिस की गिरफ्तारी से पहले दिल्ली में उस पर 4 लाख रुपए का ईनाम था. इस के अलावा हरियाणा की पुलिस ने भी उस पर 2 लाख रुपए का ईनाम घोषित कर रखा था.

अगले भाग में पढ़ें- गैंगस्टरों ने इस हत्याकांड को अंजाम देने से पहले क्या किया

Satyakatha: फौजी की सनक का कहर- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

कुछ समय बाद बाथरूम से आने पर उन्होंने थाने में हलचल पाई. मालूम हुआ कि कोई आदमी अपने हाथ में रक्तरंजित गंडासा ले कर आया है और बुदबुदा रहा है, ‘मैं ने सब को मार दिया, सब खत्म कर दिया. अच्छा किया, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’

उसे 3 कांस्टेबल घेरे हुए थे. पूछ रहे थे कि उस ने क्या किया है, किसे मारा है, गंडासा कहां से लाया है, उस पर खून कैसे लगा है? इन सवालों के जवाब देने के बजाय एक ही रट लगाए हुए था, ‘मैं ने सब को मार दिया..’

थानाप्रभारी ने सभी कांस्टेबलों को हटा कर और उसे अपने सामने की कुरसी पर बिठाया. तब तक उन की चाय आ चुकी थी. उन्होंने अपनी चाय उसे पीने के लिए दे दी, लेकिन उस ने चाय लेने से इनकार कर दी. हाथ में कस कर पकड़ा हुआ गंडासा थानाप्रभारी के सामने टेबल पर रख दिया. उस पर काफी मात्रा में खून लगा हुआ था.

थाना प्रभारी ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम? यह गंडासा तुम्हें कहां से मिला?’’

‘‘साहबजी, मैं पूर्व फौजी राव राय सिंह हूं. मैं इसी थानाक्षेत्र के राजेंद्र पार्क में रहता हूं.’’ व्यक्ति बोला.

‘‘और यह गंडासा… इस पर खून कैसा?’’ थानाप्रभारी ने जिज्ञासा जताई.

‘‘यह मेरा ही गंडासा है. मैं ने इस से 5 को मार डाला है.’’ वह बोला. उस के चेहरे पर निश्चिंतता के भाव थे.

‘‘मार डाला? तुम ने मारा 5 को? किसे मारा? क्यों मारा? पूरी बात बताओ.’’ थानाप्रभारी चौंकते हुए बोले.

‘‘साहबजी, बताता हूं, सब कुछ बताता हूं. मैं ने अपने घर में ही सब को मारा है. सभी की लाशें वहीं पड़ी हैं. जाइए, पहले उन का दाह संस्कार करवाइए. मुझे जो सजा देनी है, बाद में दे दीजिएगा.’’ यह कहतेकहते उस ने अपना सिर झुका लिया.

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संभवत: उस की आंखें नम हो गई थीं. वह भावुक हो गया था. सिर झुकाए बोला, ‘‘उन को मारता नहीं तो और क्या करता साहब? वे थे ही इसी लायक. मरने वालों में एक मेरी बहू भी है. मैं ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन नहीं मानी तब ऐसा कर दिया.’’

राय सिंह की बातें ध्यान से सुनने के बाद थानाप्रभारी ने उसे तुरंत हिरासत में ले लिया. फिर अपने उच्चाधिकारियों को इस सनसनीखेज हत्याकांड की सूचना देने के बाद टीम के साथ राजेंद्र पार्क की ओर निकल पड़े.

इस के बाद गुरुग्राम थाने की पुलिस दलबल के साथ साढ़े 7 बजे राजेंद्र पार्क स्थित राय सिंह के मकान में पहुंच गई, जैसे उन्हें पहले से सब कुछ मालूम हो. जैसेजैसे राय सिंह ने बताया था, उसी के मुताबिक लाशों की बरामदगी हुई. संयोग से छोटी बच्ची की सांस चल रही थी, जिसे अस्पताल में भरती करवा दिया गया.

पुलिस लाशों का पंचनामा कर पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद आगे की काररवाई के लिए कागजी काम निपटाने में जुट गई थी.

थानाप्रभारी जघन्य हत्याकांड में लिप्त हत्यारे की तलाश को ले कर चिंता में थे. उन्होंने राजेंद्र पार्क मोहल्ले में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज मंगवाने के आदेश दे दिए थे.

थानाप्रभारी ने थाने पहुंच कर राय सिंह से दोबारा पूछताछ की. उस ने दावे के साथ हत्याकांड के बारे में पूरी बातें बताईं. उस के बाद जो कहानी सामने आई, उस के पीछे अवैध रिश्ते का होना सामने आया.

राय सिंह ने बताया कि सुनीता उन की एकलौती बहू थी, लेकिन वह अकसर अपने मायके चली जाती थी. मायके में लंबे समय तक गुजारती थी.

बात जनवरी, 2021 की है. एक दिन जब सुनीता लंबे समय के बाद अपने मायके से ससुराल लौटी तो दिनभर घर का काम करने के बाद शाम को अपनी अनामिका से मिलने चली गई. वह दूसरी मंजिल पर रहती थी, जबकि सुनीता पहली मंजिल पर और राय सिंह अपनी पत्नी के साथ ग्राउंड फ्लोर पर रहता था.

सुनीता जिस समय अनामिका से मिलने उस के कमरे में गई थी, उस समय राय सिंह पानी की टंकी की सफाई करने के लिए अपनी छत पर गया हुआ था.

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अनामिका को कमरे में न पा कर सुनीता वापस लौटने लगी, तभी किचन से कृष्णकांत ने अनामिका से पूछा, ‘‘आ गईं आप? कैसे हैं आप के मायके वाले?’’

‘‘अच्छा, तो आप किचन में हैं. खाना पका रहे हो क्या? अनामिका कहां गई है?’’

‘‘जी, वह दिल्ली में अपने रिश्तेदार के घर पर गई है. एकदो दिनों में आ जाएगी. बच्चे भी जाने की जिद कर रहे थे. बच्चे भी उसी के साथ हैं.’’ कृष्णकांत बोलतेबोलते कमरे में आ गए.

‘‘तभी कहूं कि घर में इतना सन्नाटा क्यों है? मैं तो आज ही आई हूं. आप कैसे हैं?’’ सुनीता बोली.

‘‘अरे आप खड़ी क्यों हैं, बैठिए. गजब का संयोग है, चाय बनाते समय पानी अधिक पड़ गया और आप अचानक…’’ कृष्णकांत बोलने लगे. उन की अधूरी बात को सुनीता ने पूरा किया.

‘‘…मैं अचानक आ गई हूं तब तो आप की चाय पी कर ही जाऊंगी.’’ कहती हुई वह हंसने लगी. उस समय सीढि़यों से उतरते हुए राय सिंह ने सुनीता की हंसी की आवाज सुन ली.

उसे पता था कि कृष्णकांत की बीवीबच्चे दिल्ली गए हुए हैं. उन्हें तुरंत झटका लगा कि सुनीता जरूर कृष्णकांत के साथ हंसीठिठोली कर रही है. कुछ समय के लिए वह वहीं रुक गए. वहां से कृष्णकांत का कमरा दिखता था. दरवाजे पर परदा लगा हुआ था, लेकिन उस के किनारे से अंदर की थोड़ी झलक दिख रही थी.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की. कमरे में पलंग पर पैर लटकाए सुनीता बैठी दिखी. उस समय कमरे में और कोई नहीं था. जल्द ही कृष्णकांत हाथ में 2 कप चाय लिए हुए आ गए. एक कप उस ने सुनीता को पकड़ाई फिर उस के सामने स्टूल पर बैठ गए.

परदे के किनारे से केवल सुनीता ही नजर आ रही थी. उस का खिला हुआ चेहरा साफ नजर आ रहा था. हाथ में चाय पकड़े हुए थी. पता नहीं क्या बात हुई सुनीता चाय का प्याला लिए हुए किचन में चली गई. पीछेपीछे कृष्णकांत भी चले गए.

राय सिंह समझ गया कि दोनों भीतर के दूसरे कमरे में चले गए होंगे. वे मन ही मन अपनी बहू की इस हरकत को देखते हुए खून का घूंट पी कर रह गया. उसी समय नीचे राय सिंह की पत्नी चिल्लाई, ‘‘पानी का मोटर चला दूं क्या?’’

इस आवाज से राय सिंह का ध्यान टूटा. वह कुछ सीढि़यां ऊपर चढ़ कर बोला, ‘‘हां, चला दो.’’

कुछ देर बाद राय सिंह दोबारा सीढि़यों से उतर रहा था, तब उस ने सुनीता को कृष्णकांत के कमरे से निकलते हुए देखा. वह बदहवासी की हालत में भागती हुई निकली थी. राय सिंह से टकरातेटकराते बची और दनदनाती हुई पहली मंजिल के अपने कमरे में चली गई.

अगले भाग में पढ़ें- किसने सुनीता को मारा?

Manohar Kahaniya: जब उतरा प्यार का नशा- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

भारती ने अपनी मां को फोन मिलाया. 20 सेकेंड तक रिंग बजती रही. उस की मां ने फोन रिसीव नहीं किया. ऐसा पहली बार हुआ, जब उस की मां ममता कास्ते ने फोन नहीं उठाया हो. वह चिंतित हो गई. ममता अपनी 2 बेटियों रूपाली (20 साल) और दिव्या (16 साल) के साथ मध्य प्रदेश के देवास जिले के नेमावर में अकेली रहती थी.

ममता के पति अपने बेटे संतोष और बड़ी बेटी भारती के साथ पीथमपुर में रहते थे. यह सब काम की तलाश में नेमावर से यहां आए थे. तीनों ही अलगअलग जगहों पर काम कर रहे थे. भारती वहीं एक फैक्ट्री में काम करती थी. अपनी मां और 2 बहनों के अलग रहने के कारण भारती दिन में एकदो बार उन का हालचाल पूछ लिया करती थी. हालांकि भारती की मौसी की एक 16 वर्षीय बेटी पूजा और 14 वर्षीय बेटा पवन भी ममता के साथ नेमावर में रहते थे.

उस रोज 13 मई, 2021 को भी भारती ने हमेशा की तरह मां से हालचाल जानने के लिए फोन किया था. लेकिन मां के फोन नहीं उठाए जाने पर भारती ने परिवार के दूसरे लोगों को भी फोन किया, उन के फोन बंद मिलने पर भारती और भी परेशान हो गई.

कारण, न तो मां उस का फोन उठा रही थी और न ही परिवार के दूसरे लोगों से बात हो पा रही थी. भारती के सामने ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई थी. घबराहट में उस का मन विचलित होने लगा था. मन में कई तरह के विचार उठने लगे थे. अनहोनी की आशंकाओं से उस का दिमाग झनझना उठा था.

आखिर भारती अपने मन को कब तक समझाती. एकदो नहीं, बल्कि 5 दिन गुजर चुके थे. भारती को उस की मां या परिवार के किसी भी सदस्य से बात नहीं हो पाई थी. वह 13 मई से लगातार अपनी मां से संपर्क करने की कोशिश करती रही.

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कोई सूचना नहीं मिलने पर वह अपने भाई संतोष के साथ 17 मई को नेमावर जाने के लिए पीथमपुर से रवाना हो गई. वह इसी आशा में थी कि नेमावर में सब कुछ ठीक होगा, लेकिन वहां पहुंच कर देखा तो पाया कि उस के मकान पर ताला लगा हुआ था.

परिवार के 5 लोग थे लापता

यह देख कर दोनों भाईबहन की परेशानियां और भी बढ़ गईं. भारती ने आसपास रहने वालों से पूछताछ की. किसी ने भी कोई जानकारी नहीं दी. घर पर ताला लगा देख घबराई भारती तुरंत नेमावर स्थित पुलिस थाने गई. टीआई अविनाश सिंह सेंगर को उस ने पूरी कहानी सुना दी.

एक ही परिवार के 5 लोग लापता थे, इसलिए मामले की गंभीरता को देखते हुए सेंगर ने तत्काल भारती की रिपोर्ट पर ममता, रूपाली, दिव्या, पवन और पूजा की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

टीआई ने इस की जानकारी एसपी डा. शिवदयाल एवं एएसपी सूर्यकांत शर्मा को भी दे दी. मामला आदिवासी समाज का था. इस कारण इसे गंभीरता से लिया जाने लगा.

लापता सभी 5 सदस्यों में से सिर्फ रूपाली का मोबाइल ही चालू था, जिस की लोकेशन लगातार बदल रही थी. रूपाली अपने मोबाइल से भारती को लगातार मैसेज कर खुद की सलामती की जानकारी दे रही थी, लेकिन उसे खोजने की कोशिश नहीं करने की भी हिदायत मिल रही थी.

ताज्जुब की बात यह थी कि वह मैसेज द्वारा बात तो कर रही थी लेकिन भारती अथवा परिवार के किसी भी सदस्य का फोन नहीं उठा रही थी.

लापता सदस्यों में 2 रूपाली की मौसी के बच्चे थे. इस की जानकारी भारती की मौसी को मिली तो वह भी भागीभागी नेमावर आ गईं. उन्होंने रूपाली पर अपने बच्चों के अपहरण का आरोप लगाना शुरू कर दिया. उन का कहना था कि रूपाली की हरकतें ठीक नहीं थीं. उसी ने हमारे बच्चों का अपहरण किया है.

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मामले को उलझता देख एसपी ने उज्जैन जोन के आईजी योगेश देशमुख से संपर्क किया. देशमुख नेमावर पहुंच कर एसपी देवास को आवश्यक निर्देश दिए. उस के मुताबिक एसपी ने मामले की जिम्मेदारी एएसपी सूर्यकांत शर्मा को सौंप कर 5 टीमों को फील्ड में उतार दिया.

इस के साथ ही टीआई (नेमावर) अविनाश सिंह सेंगर के अलावा आधा दरजन से अधिक पुलिसकर्मी जांच मे जुट गए.

मामले को सुलझाने की पहली जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए नेमावर पुलिस लापता सदस्यों के परिवार की कुंडली बनाने में जुट गई. इस के लिए मुखबिरों की मदद ली गई.

पुलिस ने रूपाली के मोबाइल फोन की भी डिटेल्स निकाली, जिस से रूपाली के फोन पर कई युवकों से बात होने की जानकारी मिली. उन में एक नेमावर का रहने वाला युवक सुरेंद्र सिंह पुत्र लक्ष्मण सिंह भी था. जबकि बाकी के युवक हरदा और उस के आसपास के इलाके के थे.

सुरेंद्र रूपाली के भाई संतोष का पुराना दोस्त था, जो पड़ोस में ही रहता था. वह संतोष के साथ रूपाली और परिवार के बाकी लोगों की खोजखबर लेने के लिए हमेशा उस के साथ थाने भी आता था. पूछताछ में उस ने बताया कि संतोष उस का दोस्त है. संतोष के पीथमपुर जाने के बाद उस के परिवार का हालचाल जानने के लिए आताजाता था. उस की रूपाली के अलावा परिवार के अन्य लोगों से भी बातचीत होती रहती थी.

पुलिस को मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

रूपाली की काल डिटेल्स में कई लोगों के साथ बातचीत की भी जानकारी मिली. उन में सुरेंद्र के अलावा दूसरे लोग हरदा इलाके के रहने वाले थे. उन के साथ रूपाली की जानपहचान संदिग्ध लगने के संदर्भ में पुलिस इंसपेक्टर शिवमुराद यादव  को एक चौंकाने वाली जानकारी मालूम हुई.

वह यह कि रूपाली ने घर वालों की बिना जानकारी के हरदा में एक किराए का कमरा ले रखा था. वह अकसर उसी कमरे में ठहरती थी. वहीं सुरेंद्र भी नेमावर से हरदा जा कर उस से मिलता था. सुरेंद्र के अलावा दूसरे युवक भी रूपाली के पास आतेजाते देखे गए थे.

पुलिस को रूपाली के बारे में सब से महत्त्वपूर्ण जानकारी यह भी पता चली कि उस ने पड़ोसियों से सुरेंद्र का परिचय अपने पति के रूप में करवाया था.

इन जानकारियों के आधार पर रूपाली परिवार के लापता सदस्यों के सिलसिले में इकलौता सूत्र बन गई थी. एक तरफ जहां रूपाली की संदिग्ध गतिविधियां सामने आ चुकी थीं, वहीं उस के मोबाइल से बदले हुए लोकेशनों के साथ मैसेज भेजे जा रहे थे.

सिर्फ मैसेज आने की स्थिति में पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि रूपाली का मोबाइल कोई और इस्तेमाल कर रहा है. इस मामले में रूपाली की भूमिका महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद पुलिस उस तक नहीं पहुंच पा रही थी.

समय बीतता जा रहा था. पुलिस को केस के बारे में कोई ठोस जानकारी हाथ नहीं लग पा रही थी. सुरेंद्र से भी कई बार पूछताछ की जा चुकी थी, लेकिन उस से भी कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई थी. हां, उस ने इतना जरूर बताया था कि वह रूपाली से प्यार करता था.

पुलिस ने जब जांच का दायरा बढ़ाया तब मालूम हुआ कि 13 मई, 2021 को ममता रूपाली और दिव्या के अलावा पूजा और पवन भी शाम तक नेमावर में ही देखे गए थे. उसी दिन रूपाली और सुरेंद्र को भी गहराती शाम नर्मदा में तैरती नाव में एकदूसरे के साथ देखा गया था.

पुलिस को सुरेंद्र भी संदिग्ध लगा. दूसरे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सुरेंद्र हरदा में किराए के कमरे पर रूपाली के पास जाता था. यह बात उस ने पूछताछ में नहीं बताई थी. वहां के पड़ोसियों के अनुसार वह रूपाली का कथित पति भी था.

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सुरेंद्र और रूपाली के बीच के संबंधों का पता लगने पर पुलिस ने जांच का रुख बदल दिया. जल्द ही मालूम हो गया कि उन के बीच काफी गहरा संबंध था. ऐसे में निश्चित तौर पर रूपाली ने नेमावर से अचानक कहीं जाने से पहले इस की जानकारी सुरेंद्र को दी होगी.

पुलिस ने इस का अंदाजा लगाते हुए संदेह के आधार पर 2 बातों पर गौर किया. पहला, रूपाली के गायब हो जाने पर सुरेंद्र ने कभी उस के मोबाइल पर फोन क्यों नहीं किया? दूसरा,  रूपाली के नंबर से उस के मोबाइल पर कोई काल या मैसेज क्यों नहीं आया?

पुलिस की नजर में इस का मतलब साफ था कि मामले में कोई सुरेंद्र को दूर रखने की कोशिश कर रहा था या फिर सुरेंद्र एक साजिश के तहत पुलिस के सामने आ कर अपना और रूपाली का बचाव कर रहा था.

इस शक को ध्यान में रख कर नेमावर पुलिस सुरेंद्र को मामले का सब से बड़ा संदिग्ध मानते हुए उस पर नजर रखने लगी. उस के बारे में जानकारियां जुटाई जाने लगीं.

अगले भाग में पढ़ें- सुरेंद्र के साथ लिवइन में रहने लगी रूपाली

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