ऑनलाइन ठगी का संजाल: सतर्कता परमो धर्म

पहला मामला- सेवानिवृत्त हो चुके पुलिस अधिकारी रघुनंदन प्रसाद कि मोबाइल में कॉल आता है- हम पुलिस मुख्यालय से बोल रहे हैं फलां फलां जानकारी दीजिए. रघुनंदन प्रसाद पुलिस मुख्यालय से जानकारी मांगने पर सब कुछ बताते चले जाते हैं और लूट जाते हैं.

दूसरा मामला- सेवानिवृत्त पुलिस कर्मचारी के पास कॉल आता है और कहां जाता है आपको कुछ जानकारी देनी है। हम  आपके विभाग से ही बोल रहे हैं.कर्मचारी जैसे ही जानकारी देता है उसके बैंक खाते से लाखों रुपए उड़ा लिया जाता है.

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वस्तुतः आज हर एक इंसान की मजबूरी है सोशल मीडिया का इस्तेमाल. और इस मजबूरी का फायदा लेते हैं चतुर ठग. जिनसे आपको बचना होगा. आज जिस तरह से ठगी का कारोबार उजागर हो रहा है उसे देखकर यही कहा जा सकता है की ऑनलाइन परमो धर्मा बन चुका है तो सतर्कता भी आपके लिए परमो धर्मा: है.

अब आपको यह तय करना है कि कैसे आप  चतुर ठगों से अपनी रात दिन की कमाई गाढ़ी कमाई को बचा सकते हैं.यह सच है कि आज के दौर में अपराध के तरीके भी आधुनिक हो गए हैं जहां तक सोशल मीडिया और ऑनलाइन ठगी के मामले की बात करें तो यह लगातार बढ़ते जा रहे हैं. ऑनलाइन ठग नए-नए तरीकों से लोगों को ठगने का  एक तरह से रिकॉर्ड बना रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में  ऑनलाइन ठगों ने सेवानिवृत पुलिसकर्मियों को अपना निशाना बनाया है. लेकिन कहते हैं ना  कानून के हाथ लंबे होते हैं  तो यह एक बार फिर  सिद्ध हो गया . इन शातिर ठगों को  पुलिस ने ढूंढ निकाला और अपनी गिरफ्त में ले, जेल के सिखचों के पीछे  पहुंचा दिया है.

और पुलिस फंस गई फेर में

हमारी इस रिपोर्ट  के केंद्र में है पुलिस .वह पुलिस जो  लोगों को सतर्क रहने का आह्वान करती है. लोगों को  ठगों से बचाती है,  लुटेरों से बचाती है.  मगर छत्तीसगढ़ में  पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी भी  शातिर ठगों के फेर में फंस गए. ऐसे में यह समझा जा सकता है कि  जब पढ़े-लिखे पुलिस अधिकारी  जो  24 घंटे  अपराधिक लोगों से दो-चार होते हैं.  लोगों को राहत देते हैं… बचाते हैं  इन सोशल मीडिया के ठगों के संजाल में फंस गए तो आम आदमी  कि  बखत क्या है.

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छत्तीसगढ़ के महासमुंद, कांकेर, राजनांदगांव, दंतेवाड़ा, रायपुर, सरगुजा, बिलासपुर सहित कुछ नगरों में सेवानिवृत्त पुलिस कर्मियों को शातिर ठगों ने कुछ  दिनों में  तकरीबन  40 लाख रुपए की ठगी की. इसी  माह 16 जुलाई को राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ चौकी थाने में सेवनिवृत्त पुलिसकर्मी भगवान सिंह सलामे ने रपट  दर्ज कराई कि एक फोन कॉल में अपने आप को पेंशन अधिकारी बताकर उनसे एक शख्स  ने एटीएम कार्ड की संपूर्ण जानकारी  ली और उनके खाते में जमा 18 लाख 33 हजार रूपये  देखते ही देखते उड़ा लिए .

छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव सहित  अन्य जिलों से भी इसी तरह  के  प्रकरण  सामने आये। राजनांदगांव  पुलिस अधीक्षक जितेंद्र शुक्ला के  तत्परता से  शातिर आरोपियों की  तलाशी की जाने लगी .

छत्तीसगढ़ राजधानी पुलिस मुख्यालय भी इन प्रकरणों को लेकर सतर्क हुआ. जांच तेजी से होने लगी. महासमुंद और दंतेवाड़ा पुलिस की एक संयुक्त टीम बनाकर आरोपियों की तलाश में लग गई.

इस  दरमियान पुलिस को कुछ सुराग मिले और पुलिस आरोपियों तक पहुंच गई. पुलिस ने सेवा निवृत्त  पुलिसकर्मियों के साथ ठगी करने वाले बिहार के लीलावरण थाना बंधवापुरूवा निवासी आरोपी बाबर अली हेम्ब्राम, मनोज कुमार, रोहित कुमार यादव, पिंटू कुमार मंडल, जितेंद्र चौधरी को गिरफ्तार किया है। राजनांदगांव पुलिस ने इस मामले का  खुलासा कर दिया.

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पुलिस की गिरफ्त में आए ये शातिर ठग सेवा निवृत्त  पुलिसकर्मियों से पेंशन अधिकारी बनकर उन्हें पेंशन राशि, पीएफ सहित अन्य मामलों में उलझाते  थे और एटीएम कार्ड पर अंकित नंबर पुछकर उनके बैंक खाते से सारे रुपए निकाल लेते थे. मजे की बात यह है कि ठगी करने वाले आज के तेजी से प्रचलन में आई सोशल मीडिया का दुरुपयोग करते रहे. यह  सेवानिवृत्ति पुलिस कर्मियों के बारे में ऑनलाइन ही जानकारी इकट्ठा करते थे.पुलिस ने सभी आरोपियों को झारखंड और बिहार के अलग-अलग स्थानों से गिरफ्तार किया है. पकड़े गए आरोपियों के पास से दर्जनों मोबाइल सिम, वहीं 2 दर्जन से अधिक मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड,  लैपटॉप, कलर प्रिंटर सहित कई फर्जी दस्तावेज बरामद हुए हैं. इस तरह छत्तीसगढ़ में पुलिस ने एक अंतर राज्य ऑनलाइन शातिर ठग गिरोह का पर्दाफाश किया है.

महंगा इनाम : भाग 4- क्या शालिनी को मिल पाया अपना इनाम

जैसे ही रूपा रेडियो स्टेशन से बाहर निकली, मैं ने अंदर जा कर सुशांत से वह टेप ले लिया, जिस पर रूपा का थैंक्स गिविंग मैसेज रिकौर्ड हो चुका था. मैं ने सुशांत को थैंक्स कहते हुए कहा, ‘‘आशा है, यह टेप सुनने के बाद रूपा सदमे से बेहोश हो जाएगी और अपना दावा वापस ले लेगी.’’

सुशांत हंसते हुए बोला, ‘‘आइंदा कभी मेरी जरूरत हो तो मैं हाजिर हूं. मैं हंगामी तौर पर काम करने में माहिर हूं.’’

‘‘नहीं, मेरे दूसरे क्लाइंटस की तरह अर्पित मेहता को हंगामे वाले अंदाज में मदद की जरूरत नहीं पड़ेगी,’’ मैं ने भी हंसते हुए कहा.

‘‘तुम उस अर्पित मेहता के लिए काम कर रही हो?’’ सुशांत के माथे पर लकीरें सी खिंच गईं, ‘‘वही जो मेहता इंटरप्राइजेज का मालिक है.’’

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‘‘हां,’’ मैं ने उसे जवाब दिया, ‘‘लेकिन तुम इतनी नागवारी से क्यों पूछ रहे हो?’’

वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘खैर, तुम तो अपने काम का मुआवजा ले रही हो. वैसे वह आदमी ठीक नहीं है, अव्वल दर्जे का बदमाश है वह.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘इस रेडियो स्टेशन का मालिक भी वही है.’’ सुशांत ने जवाब दिया.

अब मेरा रुख सुषमा के फ्लैट की ओर था. मैं सोच रही थी कि लोगों को अपना भ्रम बनाए रखने का मौका देना चाहिए. इसलिए मैं ने फैसला कर लिया कि रूपा और सुषमा को अदालत में जाने से पहले ही टेप सुना देनी चाहिए ताकि वे चाहें तो कोर्ट न जा कर अपमानित होने से बच जाएं.

मैं ने उन के फ्लैट पर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुषमा ने खोला. मुझे उसी क्षण अंदाजा हो गया कि कोई गड़बड़ थी. रूपा की आंखें लाल और सूजी हुई थीं. जैसे वह काफी रोई हो.

‘‘क्या बता है सुषमा?’’ मैं ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘बस कुछ मत पूछो,’’ वह टिश्यू पेपर से आंखें पोंछते हुए बोली. वह दमे की मरीज मालूम होती थी. फिर भी मौत की ओर अपना सफर तेज करने के लिए लगातार सिगरेट पीती रहती थी. मैं अंदर पहुंची.

चंद मिनट रोनेधोने और हांफने के बाद सुषमा ने मेरी निहायत बुद्धिमत्तापूर्वक और प्रेमभरी पूछताछ के जवाब में कहा, ‘‘हमें गरीबी की जिंदगी से निकलने का सुनहरा अवसर मिला था. मगर इस लड़की ने जरा सी गलती से उसे बर्बाद कर दिया.’’ उस ने क्रोधित नजरों से रूपा की ओर देखा, जो सिर झुकाए बैठी थी. ‘‘मैं ने कसम खाई थी कि मैं उस व्यक्ति से हिसाब बराबर करूंगी, मगर अब वह बच कर निकल जाएगा.’’

‘‘कौन आदमी?’’ मैं ने चेहरे पर मासूमियत बनाए रखते हुए पूछा.

‘‘सुषमा का बाप.’’ रूपा ने जवाब दिया.

‘‘तुम्हारा पति?’’ मैं ने बात पक्की करने के लिए पूछा. क्योंकि मैं यही समझ रही थी कि वह अर्पित मेहता की बात कर रही थी.

इस बीच रूपा ने रोना शुरू कर दिया. सुषमा हांफते हुए उसे चुप कराने का प्रयत्न करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे याद है, मैं ने तुम्हारी मां से वादा किया था. लेकिन मैं जो कर सकती थी, वह मैं ने किया.’’

अब इस केस पर काम करतेकरते कोई और ही मामला मेरे सामने खुल रहा था. मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘तुम क्या कह रही हो सुषमा, मेरा तो विचार था कि तुम ही उस की मां हो?’’

वह एक बार फिर रोनेधोने लगी. ऐसा लगता था कि उस से काम की कोई बात मालूम करना मुश्किल ही होगा. मैं रूपा के पास जा पहुंची. वह मुश्किल से 18 साल की थी. वह बेशक काफी दुबलीपतली थी और गरीबों वाले हुलिया में थी, लेकिन उस का व्यक्तित्व गौरवमयी था. मैं ने रूपा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम आज रेडियो स्टेशन पर जो कारनामा दिखा कर आई हो. उस की वजह से रो रही हो?’’

रूपा की आंखें फैल गईं और वह शायद गैरइरादतन बोल उठी, ‘‘आप को कैसे मालूम?’’

मैं ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘पहले तुम बताओ, तुम्हारी मां इतना क्यों रो रही हैं?’’

‘‘यह मेरी मां नहीं है, मेरी मां की एक नजदीकी सहेली हैं. मेरी मां तो मर चुकी है.’’ रूपा ने बताया. उस के लहजे में सालों की नाराजगी और गुस्सा था.

‘‘तुम मुझे सब कुछ बता कर दिल का बोझ हलका कर सकती हो?’’ मैं ने कहा.

‘‘बताने को इतना ज्यादा कुछ नहीं है.’’ रूपा कंधे उचका कर बोली, ‘‘मेरी मां की पिछले साल कैंसर से मृत्यु हो चुकी है. आंटी सुषमा उन की करीबी सहेली थीं. मेरी देखभाल उन्होंने अपने जिम्मे ले ली. हमारा वक्त किसी हद तक ठीक ही गुजर रहा था, लेकिन कुछ महीनों पहले एक दुर्घटना में उन की कमर में चोट लग गई. तब से हमारे हालात खराब हो गए और हमें अपने बड़े फ्लैट को छोड़ कर इस जगह आना पड़ा. इस माहौल में हम खुशी से नहीं रह रहे हैं.’’

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‘‘लेकिन तुम्हारे पिता का क्या किस्सा है?’’

‘‘मेरे पिता ने मेरी मां से शादी नहीं की थी. मैं उन की बगैर शादी की औलाद हूं. छोटी ही थी, जब वे एकदूसरे से अलग हो गए. बहरहाल मेरी और मम्मी की गुजरबसर ठीक होती रही. मुझे कभी अपना बाप याद नहीं आया. जब मेरी मां बीमार हुई तो उसे आर्थिक हालत के बारे में फिक्र हुई.

‘‘उस ने अपनी खातिर नहीं, केवल मेरी वजह से मेरे बाप से आर्थिक मदद हासिल करने की गर्ज से कानूनी काररवाई करने का फैसला किया. मेरे बाप ने उस की खुशामद की कि अगर उस ने ऐसा किया तो वह तबाह हो जाएगा. क्योंकि तब तक वह अपनी बीवी की दौलत से तरक्की कर के बहुत दौलतमंद हो चुका था.

‘‘उस ने कहा कि अगर उस की बीवी को मालूम हो गया कि उस की कोई नाजायज औलाद भी है तो वह उस से तलाक ले लेगी. और सारी दौलत भी वापस हासिल कर लेगी. उस ने मेरी मां से कहा कि अगर वह यह लिख कर दे दे कि मैं उस की बेटी नहीं हूं तो वह मम्मी की मौत के बाद खुफिया तौर पर मेरा हरमुमकिन खयाल रखेगा. मेरी हर जरूरत पूरी करेगा.’’

रूपा की आंखों के आंसू उस के पीले गालों पर ढुलक आए. उस ने जल्दी से उसे पोंछ दिया और गहरी सांस ले कर बोली, ‘‘मम्मी की मौत के बाद पापा ने अपना इरादा बदल दिया और मेरी कोई खैरखबर नहीं ली. सुषमा आंटी ने मुझे अपनी बेटी बना लिया. तब से मैं उन्हीं के साथ रहती हूं.’’

मैं ने सुषमा की तरफ देखा तो वह सिगरेट का कश ले कर बोली, ‘‘मैं ने दुर्घटना का यह ड्रामा रचा था. मेरा विचार था कि रूपा के अमीर बाप से रकम हासिल करने का इस के सिवा और कोई तरीका हमारे लिए संभव नहीं है. यह ड्रामा रचना कोई आसान काम नहीं था. इस लड़की को 2 महीने तक मैं ने जिस तरह से चुप रखा है, मैं ही जानती हूं.’’

फिर उस ने पछतावे वाले अंदाज में सिर हिलाया, ‘‘और उस खबीस को देखो… उस ने अपने ही खून… अपनी ही बेटी को नहीं पहचाना.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है अर्पित मेहता इस लड़की का बाप है?’’ मैं ने तसदीक करनी चाही. मेरा सिर घूम रहा था.

‘‘हां,’’ सुषमा ने जवाब दिया, ‘‘लेकिन तुम्हें उस का नाम कैसे मालूम?’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और वहां से उठ कर आ गई.

अगली सुबह मैं अपने घर के सामने खड़ी थी. कूड़े का ट्रक गली में कूड़ा उठाने आया था. अर्पित से मिले पैसे से मेरे बिल तो अदा हो गए थे, लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि अगले महीने की मकान की किस्त कैसे अदा होगी और दूसरे खर्चे कैसे पूरे होंगे?

मुझे नहीं मालूम था कि रूपा के मुकदमे से संबंध रखने वाले किसी व्यक्ति ने एफएम पर उस की बातें सुनी थीं या नहीं? लेकिन मेरे हाथ में मौजूद सीडी में इस बात का एकमात्र सबूत था. इस के बगैर यह बात साबित नहीं की जा सकती थी कि सुषमा बोल सकती है.

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मैं वह सीडी अर्पित के सामने पेश कर के 5 लाख रुपए इनाम ही नहीं, इस से भी ज्यादा रकम हासिल कर सकती थी. वे 5 लाख रुपए मेरे कई महीने के विलासितापूर्ण जीवन के लिए काफी थे. लेकिन जब कूड़ा ले जाने वाला ट्रक मेरे सामने आया तो मैं ने वह सीडी उस में फेंक दी. अब किसी के पास इस बात का कोई सबूत नहीं था कि रूपा बोल सकती है?

महंगा इनाम : भाग 3- क्या शालिनी को मिल पाया अपना इनाम

वह जैसे मेरी उलझन दूर करने के लिए अपने सीने पर हाथ रख कर बोला, ‘‘मैं सुशांत पाठक हूं, मिशन हाईस्कूल में तुम्हारे साथ पढ़ता था.’’

मेरी आंखें हैरत से फैल गईं. मुझे यकीन नहीं आ रहा था कि वह मेरा हाईस्कूल का क्लासमेट सुशांत था. कुछ समय के लिए वह मेरा बेहतरीन दोस्त भी रहा था. वह क्लास का सब से मूर्ख सा दिखने वाला लड़का था. कई बार आप ने देखा होगा कि छोटीछोटी घटनाएं कुछ लोगों को अचानक मिला देती हैं. सुशांत और मेरी यह मुलाकात कुछ इसी तरह थी.

सुशांत अब पहले की तरह दुबलापतला लड़का नहीं था, बल्कि भारीभरकम था. उस की भौहें आपस में लगभग जुड़ चुकी थीं और चेहरे पर मोटी मूंछें उग आई थीं.

‘‘तुम सुशांत पाठक हो?’’ मैंने अविश्वास से कहा.

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‘‘हां.’’ वह कंधे उचका कर मुझे हैरत के दूसरे झटके से दोचार कराते हुए बोला, ‘‘और अब मुझे लोग क्रेजी सुशांत के नाम से जानते हैं. लेकिन पुराने दोस्तों के लिए मैं सुशांत ही हूं.’’

ओह माई गौड, पिछले एक महीने से मैं बाकायदा इस बेवकूफ का प्रोग्राम सुन रही थी और एसएमएस भेजभेज कर थक गई थी. मैं ने उसे अपने पास बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘तुम ने मुझे कैसे पहचाना?’’

‘‘तुम में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया है,’’ वह बोला, ‘‘और सुनाओ, तुम शौपिंग सेंटरों के सामने सोने के अलावा और क्या करती हो?’’

‘‘मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूं. यहां भी मैं काम के सिलसिले में आई हूं.’’ मैं ने कनखियों से ब्यूटीपार्लर की तरफ देखा. मैं नहीं चाहती कि जब वे मांबेटी बाहर आएं तो मैं यहां बातों में फंसी रह जाऊं.

‘‘यकीन तो नहीं आ रहा कि तुम प्राइवेट डिटेक्टिव हो.’’ ऐसा लग रहा था, जैसे वह हंसते हुए मेरी बातों का मजा ले रहा हो. लेकिन जल्दी ही शायद उस ने मेरी बेचैनी को महसूस कर लिया और अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर मुझे देते हुए बोला, ‘‘जब तुम्हें फुरसत हो, मुझे फोन कर लेना. शायद हम कहीं साथसाथ लंच वगैरह कर सकें.’’

‘‘जरूर.’’ मैं ने सिर हिलाते हुए कहा. वह वहां से चला गया. मैं भी उठ गई. तभी मैं ने देखा. मां बेटी ब्यूटीपार्लर से बाहर आ रही थीं. वे एक बार फिर शौपिंग सेंटर में घुस गईं. इस बार उन्होंने खानेपीने की कुछ चीजें खरीदीं. मैं उन की नजर में आए बिना उन पर निगाह रखे हुए थी.

यह बड़ी अजीब बात थी कि वैसे तो सुषमा की जुबान किसी और की मौजूदगी में एक पल को भी नहीं रुकती थी, लेकिन जब मांबेटी साथ होती थीं तो सुषमा बिलकुल खामोश रहती थी. बेशक रूपा जवाब नहीं दे सकती थी, लेकिन सुषमा आदत से मजबूर हो कर उस से कोई बात तो कर सकती थी.

ऐसा लगता था, जैसे वह जानबूझ कर खामोश रहती थी. मुझे लगा कि अर्पित का शक सही था. लेकिन अभी तक मेरे पास यह साबित करने के लिए कोई युक्ति नहीं थी.

मांबेटी अपना खरीदा हुआ सामान एक ट्रौली पर लाद कर बाहर जाने लगीं तो मैं उन के पीछे लग गई. शौपिंग सेंटर से निकल कर मांबेटी कार में बैठ कर रवाना हुईं और कुछ देर बाद एक पैट्रोल पंप पर जा रुकीं. यहां मुझे अपना भाग्य आजमाने का मौका मिला. सुषमा की गाड़ी के पीछे पैट्रोल लेने के लिए मुझ सहित 3-4 गाडि़यां और थीं.

उन में से एक को शायद बहुत जल्दी थी. वह हौर्न पर हौर्न बजा रहा था. सुषमा जल्दी में अपने पैट्रोल टैंक का ढक्कन छोड़ कर चल दी. मैं ने जल्दी से आगे बढ़ कर पैट्रोल पंप कर्मचारी से ढक्कन ले लिया कि मैं उन्हें रास्ते में दे दूंगी. मैं जब ढक्कन ले कर चली तो मेरे दिमाग में एक छोटी सी योजना जन्म ले रही थी.

जब मैं उन मांबेटी के फ्लैट पर पहुंची तो एक बार फिर पहले ही जैसा दृश्य मेरा इंतजार कर रहा था. खिड़कियों पर परदे गिरे हुए थे और एफएम पूरी आवाज से चल रहा था. मैं ने कालबैल बजाई तो दरवाजा सुषमा ने खोला. उस के एक हाथ में सिगरेट और दूसरे में बीयर का गिलास था. मैं ने ढक्कन उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह संभवत: आप का है?’’

उस ने आंखें सिकोड़ कर ढक्कन का निरीक्षण किया. फिर बोली, ‘‘हां, आप को कहां मिला?’’

‘‘आप इसे पैट्रोल पंप पर छोड़ आई थीं, मैं ने रास्ते में हौर्न बजा कर आप को ध्यान दिलाने की भी कोशिश की, लेकिन आप ने नहीं देखा. मुझे आप के पीछेपीछे यहां तक आना पड़ा.’’ मैं ने बताया.

‘‘थैंक्यू… असल में मेरे पीछे एक खबीस को पैट्रोल लेने की बहुत जल्दी थी,’’ वह आंखें मिचमिचा कर मेरा निरीक्षण करने लगी, ‘‘ऐसा लगता है, जैसे तुम्हें कहीं देखा है.’’

मैं ने मस्तिष्क पर जोर दे कर चौंकने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, ‘‘अरे हां, आप शायद पार्लर में मौजूद थीं. आप के साथ वह बच्ची भी थी, जो शायद…’’ मैं ने जल्दी से मुंह पर हाथ रख लिया.

वह हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘अगर आप उसे गूंगी कहने वाली थीं तो इस में शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं. यह बात अब कोई राज नहीं रही कि वह बोल नहीं सकती. आप अंदर आना चाहो तो आ सकती हो.’’

मैं भला क्यों इनकार करती. मैं अंदर पहुंची तो उस ने जोर से रूपा को पुकार कर एफएम की आवाज कम करने को कहा और मुझे बैठने का इशारा करते हुए बोली, ‘‘कुछ पियोगी?’’

मैं ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘सुना है, आप मांबेटी के साथ कोई दुर्घटना घट गई थी?’’

‘‘हां, एक व्यक्ति ने अंधों की तरह दिन की रोशनी में हमारी कार को पीछे से टक्कर मार दी थी. मुझे भी उस ने लगभग अपाहिज ही कर दिया था. सप्ताह में 2 दिन फिजियोथेरैपी के लिए जाती हूं, इसलिए जरा चलफिर लेती हूं.’’

‘‘आप को उस व्यक्ति पर हरजाने का दावा करना चाहिए था.’’ मैं ने कहा.

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‘‘किया हुआ है,’’ वह जल्दी से बोली, ‘‘और उसे हरजाना देना ही पड़ेगा.’’ उस का चेहरा उस समय बिलकुल लालच की तसवीर बना हुआ था. कुछ देर बाद मैं ने महसूस किया कि मेरे वहां और बैठने का कोई औचित्य नहीं था. मैं ने इजाजत मांगी. इसी बीच एफएम पर वही जानीपहचानी हंसी उभरी, जैसे किसी लकड़बग्घे को हिचकियां लगी हों.

मैं ने चौंक कर उधर देखा, जहां एफएम बज रहा था. सुषमा ने जैसे मेरी जानकारी में इजाफा करते हुए कहा, ‘‘यह क्रेजी सुशांत का प्रोग्राम है. सुशांत रोजाना लौटरी के जरिए 30 हजार रुपए का इनाम देता है. रूपा प्रोग्राम में 50-60 बार मैसेज भेज चुकी है. आज तक तो इनाम नहीं निकला. मैं उसे समझाती रहती हूं कि इस तरह के इनामों आदि के चक्करों में नहीं पड़ना चाहिए. इस दुनिया में फ्री में कुछ नहीं मिलता.’’

मैं उठ कर बाहर आ गई. बाकी बातें मेरे मस्तिष्क से निकल गईं. सुषमा ने संभवत: मुझे वह रस्सी दे दी थी, जिस से मैं उस के गले में फंदा डाल सकती थी.

मैं ने तुरंत सुशांत को फोन मिलाया. उसे अपनी योजना पर अमल करवाने के लिए राजी करना मेरी सोच से कहीं ज्यादा आसान साबित हुआ. शायद हम दोनों ही अंतर्मन से झूठे और धोखेबाजों को पसंद नहीं करते थे और उन्हें पकड़वाने के लिए अपनी भूमिका अदा करना चाहते थे.

मैं रूपा और सुषमा के फ्लैट की निगरानी कर रही थी. ठीक 3 बजे मैं ने सुषमा को गाड़ी में बैठ कर अकेली जाते देख लिया था. यकीनी तौर पर वह फिजियोथेरैपी के लिए गई थी. कुछ देर बाद मैं ने रूपा को बहुत जल्दीजल्दी में घबराई हुई सी हालत में एक टैक्सी में बैठ कर रेडियो स्टेशन की तरफ जाते देखा.

उस के कुछ देर बाद मैं ने रेडियो पर उस की मिनमिनाती हुई सी आवाज सुनी. वह क्रेजी सुशांत से 30 हजार रुपए का चैक वसूल करने के बाद थैंक्स गिविंग के तौर पर उस के प्रोग्राम के बारे में अपने अनुभव बयान कर रही थी. रूपा शायद वास्तव में मान चुकी थी कि अर्पित मेहता या उस का कोई आदमी भला यह प्रोग्राम कहां सुनता होगा.

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दूसरे उसे यह भी इत्मीनान हो गया होगा कि यह प्रोग्राम लाइव पेश होता था. इस की कोई रिकौर्डिंग नहीं होती थी. उस ने सोचा होगा कि उस की आवाज हवा की लहरों पर धूमिल हो जाएगी और बात वहीं समाप्त हो जाएगी. लेकिन उसे नहीं मालूम था कि मेरे कहने पर सुशांत ने उस की अपनी जुबान से उस के परिचय के साथ उस की आवाज रिकौर्ड करने का इंतजाम कर रखा था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

महंगा इनाम : भाग 1- क्या शालिनी को मिल पाया अपना इनाम

मैंने जासूसी उपन्यास एक ओर रख दिया और किसी नवयौवना की तरह एफएम पर ‘क्रेजी सुशांत’ का प्रोग्राम शुरू होने का इंतजार करने लगी. मुझे क्रेजी सुशांत या उस के प्रोग्राम में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मुझे तो सिर्फ उस इनाम में दिलचस्पी थी, जो वह अपने प्रोग्राम में हिस्सा लेने वाले किसी एक खुशनसीब को दिया करता था. इनाम 30 हजार रुपए था. मेरे लिए उस वक्त 30 हजार रुपए बहुत बड़ी रकम थी.

मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव थी और खुद ही अपनी बौस थी यानी मैं सैल्फ इंप्लायमेंट पर निर्भर थी. सेल्फ इंप्लायमेंट में यही सब से बड़ी खराबी है कि यह किसी भी वक्त बेरोजगारी में बदल सकता है. मेरा काम काफी दिनों से मंदा चल रहा था, बिल न जमा होने से बिजली कंपनी वाले काफी दिनों से मेरी बिजली काटने की धमकी दे रहे थे. अब आप समझ सकते हैं कि मैं क्यों बेचैनी से के्रजी सुशांत के प्रोग्राम का इंतजार कर रही थी.

अंतत: एफएम पर क्रेजी सुशांत की अजीबोगरीब आवाज उभरी. ऐसा मालूम होता था, जैसे वह नाक माइक पर रख कर बोलने का आदी था. सुशांत कह रह था, ‘क्रेजी सुशांत अपने प्रोग्राम के साथ आप की सेवा में हाजिर है. श्रोताओ, क्या मैं वास्तव में क्रेजी नहीं हूं. मेरे पागलपन का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि मैं हर रोज किसी न किसी की सेवा में 30 हजार रुपए पेश करता हूं. इस के लिए आप को सिर्फ इतना करना होगा कि एक एसएमएस भेज कर अपना नाम, पता और फोन नंबर मुझे भेज दें.’

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इतना कह कर वह अपने विशिष्ट अंदाज में हंसा. उस की हंसी कुछ ऐसी थी, जैसे किसी लकड़बग्घे को हिचकियां आ रही हों. वह गधा हर एक को कितनी आसानी से इनाम मिलने की उम्मीद दिला रहा था. मैं खुद पिछले चंद हफ्तों में एक हल्की उम्मीद के सहारे उसे सैकड़ों एसएमएस भेज चुकी थी.

वह कह रहा था, ‘‘श्रोताओ, लौटरी के जरिए मैं इस हफ्ते के खुशनसीब का नाम अपने थैले से निकालूंगा.’’

मैं अपने जिस फोन पर एफएम सुन रही थी, उसे अनायास ही कान के पास कर लिया और मुट्ठियां भींच कर बड़बड़ाई, ‘‘कमीने, आज तो मेरा नाम निकाल दे.’’

वह कह रहा था, ‘‘लीजिए श्रोताओ, मैं ने नाम की पर्ची निकाल ली है. 30 हजार रुपए जीतने वाले भाग्यशाली हैं नोएडा सेक्टर-8 के रहने वाले राहुल पांडे.’’

मैं ने गुस्से में कालीन पर घूंसा रसीद किया, जिस से हवा में मिट्टी का एक छोटा सा बादल बन गया. मेरी उम्मीद भी उसी बादल में खो गई थी. क्रेजी सुशांत इनाम पाने वाले को संबोधित कर रहा था, ‘‘डियर राहुल, तुम्हें इनाम पाने का तरीका तो मालूम ही होगा.’’

पता नहीं कि राहुल को तरीका मालूम था या नहीं, लेकिन मुझे बहुत अच्छी तरह मालूम था. इनाम की घोषणा लगभग 3 बज कर 5 मिनट पर होती थी और इनाम के हकदार को ठीक 5 बजे तक रेडियो स्टेशन पहुंच कर इनाम प्राप्त करना होता था. वह रेडियो पर संक्षिप्त में अपना अनुभव व्यक्त करता या करती थी और इनाम का चैक उस के हवाले कर दिया जाता था. अगर विजेता 5 बजे तक रेडियो स्टेशन नहीं पहुंच पाता था तो सवा 5 बजे दूसरी लौटरी निकाली जाती थी और इनाम किसी और का हो जाता था.

मैं ने पहले से भी अधिक मद्धिम उम्मीद के सहारे सोचा कि शायद रास्ते में राहुल की गाड़ी का टायर पंक्चर हो जाए और वह रेडियो स्टेशन न पहुंच सके. क्या पता दूसरी लौटरी में मेरी किस्मत चमक जाए और…

अपने आप को हौसला देने के लिए मैं ने किचन में जा कर सैंडविच तैयार की और उसे खाते हुए उम्मीद के सहारे यह सोच कर मोबाइल की ओर देखने लगी कि हो सकता है, उस की घंटी बजे और दूसरी ओर से कोई क्लाइंट बोले. फिर मैं मम्मी को फोन करने के बारे में सोचने लगी. थोड़ी बहुत संभावना थी कि शायद वह मुझे इतनी रकम उधार दे दें कि खींच तान कर महीना गुजर जाए. लेकिन ऐसी जरूरत नहीं पड़ी.

मोबाइल की घंटी बजी और मैं ने बहुत धीरज और शांति से काम लेते हुए तीसरी घंटी पर काल रिसीव कर के बहुत ही सौम्य व गरिमापूर्ण अंदाज में कहा, ‘‘शालिनी इंवेस्टीगेशन एजेंसी.’’

‘‘शालिनी चौहान?’’ दूसरी ओर से पूछा गया. न जाने क्यों उस की आवाज सुन कर ही मुझे लगा कि वह आदमी जरूर दौलतमंद होगा.

‘‘जी हां, लेकिन आप मुझे केवल शालिनी भी कह सकते हैं.’’ मैं ने बहुत खुलेदिल का प्रदर्शन करते हुए कहा.

‘‘मेरा नाम अर्पित मेहता है. मुझे नकुल चौधरी ने तुम से बात करने की सलाह दी थी.’’ वह बोला.

नकुल चौधरी एक वकील था, जो कभीकभी मेहरबानी के तौर पर मेरे पास क्लाइंट भेज देता था.

‘‘मैं आप के लिए क्या कर सकती हूं मिस्टर अर्पित?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं किसी के बारे में तहकीकात कराने के लिए तुम्हारी सेवाएं हासिल करना चाहता हूं, शालिनी.’’ वह थोड़ा बेचैनी भरे स्वर में बोला, ‘‘इस संबंध में फोन पर बात करना मुनासिब नहीं होगा. मैं शाम साढ़े 5 बजे तक खाली हो जाऊंगा. क्या इस के बाद किसी समय मेरे औफिस में आने की तकलीफ कर सकती हो? मैं इस मामले में जरा जल्दी में हूं.’’

मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती थी? मैं ने उस के औफिस का पता पूछ कर लिख लिया. मिलने का वक्त 5 बजे तय हुआ. अब मुझे क्रेजी सुशांत के प्रोग्राम में 30 हजार रुपए का इनाम न मिलने का कोई दुख नहीं था. इनाम मिलने से केस मिलना बेहतर था. केस की बात ही कुछ और थी.

5 कब बज गए, पता ही नहीं चला. उस समय तक क्रेजी सुशांत के प्रोग्राम में लौटरी के जरिए इनाम का अधिकारी राहुल पांडे रेडियो स्टेशन पहुंच चुका था. चैक लेने से पहले उस ने प्रोग्राम के बारे में अपना अनुभव व्यक्त करते हुए सुशांत की हंसी भी उड़ाई थी.

मैं इस बीच तैयार हो चुकी थी. इनाम की घोषणा समाप्त होते ही मैं घर से निकली और अपनी पुरानी गाड़ी को उस की औकात से ज्यादा तेज रफ्तार से दौड़ाना शुरू कर दिया.

अर्पित मेहता का औफिस एक शानदार इमारत की तीसरी मंजिल पर था. उस का औफिस देख कर मेरे अनुमान की पुष्टि हो गई थी. अर्पित मेहता वाकई एक धनी आदमी था और उसे धन खर्च करने का तरीका भी आता था. उस की खूबसूरत सैके्रटरी ने मुझे उस के कमरे में पहुंचा दिया. उस का कमरा बहुत शानदार तरीके से सजाया गया था. वह एक बड़ी मेज के पीछे बैठा था. उस ने उठ कर मेरा स्वागत किया. वह व्यक्तित्व से ही कामयाब व्यक्ति नजर आ रहा था. उस की कनपटियों पर सफेदी झलक रही थी.

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हम ने बैठ कर रस्मी बातें कीं. उस ने कहा, ‘‘शालिनी, मैं नहीं चाहता कि मेरी बात सुन कर तुम मेरे बारे में कोई गलत राय कायम करो. इसलिए समस्या बताने से पहले मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं. मैं एक उसूल पसंद आदमी हूं. अगर मुझ से कोई गलती हो जाए तो मेरी यह कभी भी इच्छा या कोशिश नहीं होती कि मैं उस का नुकसान भुगतने से बचने की कोशिश करूं. मैं अपनी गलती का दंड अदा करने के लिए हर समय तैयार रहता हूं.’’

मैं ने सहमति में सिर हिलाया और अपने बैग से एक राइटिंग पैड और पेंसिल निकाल ली. एक क्षण रुकने के बाद वह बोला, ‘‘कुछ महीने पहले मेरी गाड़ी एक दूसरी गाड़ी से टकरा गई थी. बहुत मामूली सी दुर्घटना थी, जिस में मेरी गाड़ी को तो केवल चंद खरोंचें ही आई थीं.  यह अलग बात है कि वह खरोंच दूर कराने पर जितनी रकम खर्च हुई थी, उतने में छोटीमोटी गाड़ी आ जाती.’’

अमीर लोगों को मूल्यवान चीजें रखने की अधिक कीमत चुकानी पड़ती है. मैं ठंडी सांस ले कर रह गई.

अर्पित ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘दूसरी गाड़ी में एक औरत और उस की बेटी सवार थी. उस समय तो यही लग रहा था कि दुर्घटना में उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. फिर भी मैं ने नैतिकता और कानूनपसंदी का प्रदर्शन करते हुए उन्हें अपनी गाड़ी की इंश्योरेंस पौलिसी का नंबर दे दिया, जैसा कि दुर्घटना की स्थिति में किया जाता है. दुर्घटना में कोई भी जख्मी नहीं हुआ था, इसलिए मेरा विचार था कि बात वहीं समाप्त हो जाएगी. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका. उन मांबेटी ने एक वकील की सेवाएं ले कर कुछ दिनों बाद मुझ पर सौ करोड़ रुपए के हरजाने का दावा कर दिया.’’

‘‘सौ करोड़ रुपए?’’ मेरी आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘यह तो बहुत बड़ी रकम है. वे दोनों किस हद तक शारीरिक नुकसान पहुंचने का दावा कर रही थीं?’’

‘‘मां का तो अस्पताल में रीढ़ की हड्डी की चोट का इलाज हो रहा था. यहां तक तो दावा मानने योग्य था.’’ अर्पित ठंडी सांस ले कर बोला, ‘‘लेकिन उस का कहना था कि दुर्घटना में भय के कारण उस की बेटी बोलने की शक्ति खो बैठी है. दुर्घटना के बाद से अब तक वह एक शब्द भी नहीं बोली है.’’

‘‘यह तो विचित्र बात है. डाक्टर क्या कहते हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हर एक की अलगअलग राय है,’’ अर्पित ने एक और ठंडी सांस ली, ‘‘मेरा एक दोस्त जो एक मशहूर मनोवैज्ञानिक था और 20 साल से प्रैक्टिस कर रहा था, उस का कहना था कि यह हिस्टीरियाई प्रतिक्रिया हो सकती है. लड़की जिस डाक्टर से इलाज करा रही है, उस के विचार में दुर्घटना में मस्तिष्क की वे कोशिकाएं प्रभावित हुई हैं, जो जुबान की शब्द भंडारण शक्ति को सुरक्षित रखती हैं. अर्थात उस में जुबान समझने और बोलने की योग्यता नहीं रही. वह डाक्टर अभी कुछ और टेस्ट कर रहा है.’’

‘‘आप को उस पर विश्वास नहीं है.’’ मैं ने पुष्टि करनी चाही.

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं किस पर विश्वास करूं और किस पर नहीं,’’ अर्पित ने कहा, ‘‘मैं भी इस दुर्घटना में शामिल था. मेरे सिर में दर्द तक नहीं हुआ. मुझे बात कुछ जंच नहीं रही है.’’

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‘‘आप चाहते हैं कि मैं खोजबीन करूं कि लड़की झूठमूठ तो गूंगी नहीं बन रही है?’’ मैंने पूछा.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

मनीत का आत्मघाती कदम : भाग 3

जिस कमरे में वे बैठे थे, वह उन की बैठक थी. एकएक सामान औसत दर्जे वाले कमरे में अपनीअपनी जगह बड़े कायदे से सजा कर रखा हुआ था, जहां उसे होना चाहिए था.

घर में कोई हलचल होती न देख मनीत से रहा नहीं गया. उस ने संध्या से पूछा, ‘‘घर में सन्नाटा फैला है. अंकलआंटी या कोई और नहीं है क्या?’’

‘‘फिलहाल, घर में सभी हैं लेकिन इस वक्त मम्मी किसी काम से बाहर गई हैं. उन्हीं के साथ भाईबहन भी गए हैं. और मैं आप के सामने बैठी हूं.’’ संध्या ने बिंदास हो कर जवाब दी.

‘‘ओह, तभी तो घर सूनासूना लग रहा है वरना हलचल तो जरूर रहती यहां.’’

‘‘जी, हलचल की बात कर रहे हैं. घर में भूचाल मची रहती है जब छोटी बहन यहां होती है.’’

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‘‘वो कोई अफलातून है क्या?’’

‘‘नहीं, पर उस से कम भी नहीं है.’’

कुछ देर तक दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. फिर वे अपने मुद्दे पर आ गए. संध्या ने ही बात आगे बढ़ाई, ‘‘जिंदगी के दोराहे पर ला कर मुझे तुम अकेला छोड़ तो नहीं दोगे?’’

‘‘ऐसे क्यों कह रही हो संध्या. क्या मैं तुम्हें छिछोरा दिखता हूं?’’

‘‘नहीं, बात छिछोरेपन वाली नहीं है मनीत. जमाना बहुत खराब चल रहा है और फिर किसी के चेहरे पर तो कुछ लिखा नहीं है.’’ संध्या ने आशंका जताई.

‘‘ऐसी बात नहीं है संध्या. मुझे ऐसा ही करना होता तो मैं तुम्हारा इतना इंतजार नहीं करता. और न मैं ऐसावैसा हूं. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं संध्या. तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. तुम्हारे लिए जमाने से लड़ना भी पड़ा तो मैं उस में पीछे हटने वालों में से नहीं हूं. तुम्हारे लिए जमाने से भी लड़ जाऊंगा. लेकिन मुझे गलत मत समझना, प्लीज.’’ मनीत ने सफाई दी.

‘‘तुम तो बुरा मान गए.’’

‘‘इस में बुरा मानने वाली क्या बात है. जो सवाल तुम ने किया, उस क ा जवाब मैं ने दिया.’’

‘‘मेरी बातों को दिल पर मत लेना प्लीज. मेरे मन में जो आया, सो मैं ने कह दिया.’’

‘‘अब मुझे चलना चाहिए.’’ कलाई पर नजर डालते मनीत ने आगे कहा, ‘‘काफी देर हो गई है मुझे आए हुए.’’

‘‘अरे अभी तो आए हो और अभी जाने के लिए कह रहे हो. मैं अपने दिल के शहजादे को जाने के लिए कैसे कह दूं. अभी तो नजर भर आप को देखा तक नहीं.

कुछ देर और बैठो, तो मेरे दिल को सुकून मिल जाए. फिर चले जाइएगा.’’ ऐसी अनोखी अदा से संध्या ने मनीत के सामने बातों को परोसा कि मनीत चाह कर भी अपनी जगह से हिल नहीं सका.

प्यार के निवेदन पर मनीत कुछ देर और बैठा रहा. थोड़ी देर दोनों प्यार भरी बातें करते रहे फिर मनीत अपने कमरे पर लौट आया.

संध्या से विदा लेते वक्त उस ने उसे भी अपने कमरे पर आने के लिए कहा. मनीत के आग्रह पर एक दिन शाम के समय संध्या मनीत के कमरे पर उस के साथ पहुंची. उस समय कमरे पर उस के दोनों दोस्त अनिल और जमील थे. दोनों उन के प्यार के बारे में जानते थे.

कुछ देर रुकने के बाद संध्या घर लौट गई थी. इस के बाद संध्या को जब भी मौका मिलता था, वह मनीत से मिलने उस के किराए के कमरे पर आ जाती थी. इसी दौरान दोनों सामाजिक मर्यादा तोड़ कर एक हो गए थे. उन के बीच में जिस्मानी संबंध बन चुके थे.

धीरेधीरे उन का प्यार दोनों के घर वालों तक पहुंच चुका था. संध्या और मनीत दोनों के घर वालों ने उन्हें चेतावनी दे दी थी कि वे एकदूसरे से मिलना बंद कर दें.

मनीत के घर वालों ने साफ शब्दों में कह दिया था उस की शादी वहीं होगी, जहां वे लोग चाहेंगे. संध्या हरगिज इस घर की बहू नहीं बन सकती है. वह न तो हमारी जातिबिरादरी की है और न ही हमारे हैसियत की.

मनीत और संध्या के बीच के रिश्ते इतने आगे बढ़ चुके थे कि वहां से वापस लौटना नामुमकिन था. संध्या मनीत से कह चुकी थी कि वह उसे धोखा नहीं देगा. अगर उस ने धोखा देने की कोशिश की तो इस का परिणाम भयानक हो सकता है, क्योंकि वह आज की नारी है. अपने हक के लिए वह कुछ भी कर सकती है.

मनीत रिश्तों के मकड़जाल में बुरी तरह उलझ कर रह गया था. वह समझ नहीं पा रहा था कि किस ओर जाए. संध्या को अपनाता है तो उस के घर वाले नाराज होते हैं और संध्या को छोड़ता है तो वह नाराज होती है.

मनीत न तो घर वालों को नाराज करना चाहता था और न ही संध्या को. कई दिनों से वह इसी उलझन में जकड़ा हुआ था. मोहब्बत करना कोई गुनाह नहीं होता है, मोहब्बत में मर्यादा लांघना गुनाह होता है जो दोनों कर चुके थे.

संध्या मनीत पर जल्द से जल्द शादी करने के लिए दबाव बनाने लगी थी. दोनों ने जो गुनाह किया था उस का बीज संध्या की कोख में पल रहा था. सामाजिक मर्यादा को बचाने के लिए उस के पास एक ही विकल्प था जल्द से जल्द शादी कर के गुनाह को छिपा लेना.

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घर वालों के दबाव में आ कर मनीत संध्या से पीछा छुड़ाने के लिए उस से कट कर रहने लगा. संध्या मनीत के भाव समझ गई थी. संध्या ने मनीत को समझा दिया कि आसानी से पीछा छूटने वाला नहीं है.

फिर क्या था 3 जून, 2020 को संध्या ने कटघर थाने में प्रेमी मनीत के खिलाफ शादी का झांसा दे कर दुष्कर्म करने की शिकायत दर्ज करा दी. मनीत के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज होते ही हड़कंप मच गया.

संध्या के उठाए कदम से मनीत डर गया था. उस ने जैसेतैसे कर के संध्या को मना लिया. उस ने उस से अपनी शिकायत वापस लेने को कहा. वह जानता था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे जेल की हवा खानी पड़ सकती है. जिस से उस के कैरियर पर एक बड़ा धब्बा लग जाएगा.

काफी मानमनौव्वल के बाद संध्या अपनी शिकायत वापस लेने के लिए तैयार हो गई. मनीत ने उस से वादा किया कि अगले 5 जून को दोनों कोर्टमैरिज कर लेंगे.

शादी की बात सुन कर संध्या की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. वह बहुत खुश थी. 4 जून की शाम मनीत ने फोन कर के संध्या को अपने कमरे पर बुला लिया. संध्या घर वालों से यह झूठ बोल कर आई थी कि वह अपनी एक सहेली के घर जा रही है. रात वहीं रुकेगी, अगली सुबह घर वापस लौटेगी.

शाम को जब संध्या कमरे पर आई तो दोनों शहर घूमने गए. रात को घर लौटे और मैगी बना कर खाई और कोल्डड्रिंक पी. पूरी रात बातें करते रहे. रात 2 बजे के करीब मनीत ने शादी के सिलसिले में बात करने के लिए घर फोन किया था. घर वालों ने शादी करने से साफ मना कर दिया. इस बात को ले क र मनीत बुरी तरह नरवस हो गया और सरकारी कारबाइन से गोली मार कर आत्महत्या कर ली.

बहरहाल, जांचपड़ताल में यह बात सिद्ध हो गई थी कि पारिवारिक दबाव और प्रेम उलझन में परेशान हो कर मनीत प्रताप सिंह ने सरकारी कारबाइन से गोली मार कर आत्महत्या की है.

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कटघर थाने में पुलिस ने आत्महत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच की काररवाई बंद कर दी थी. संध्या की जिंदगी एक चक्रव्यूह में उलझ कर रह गई है, जिसे सुलझाने की कोशिश में वह जुटी हुई है.

– कथा में संध्या नाम और स्थान परिवर्तित किया गया है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मनीत का आत्मघाती कदम

मनीत का आत्मघाती कदम : भाग 2

मौके पर पहुंचे एसपी (सिटी) अमित आनंद और सीओ पूनम सिरोही ने दोनों सिपाहियों जमील खान, अनिल कुमार गौतम और युवती संध्या से पूछताछ करना शुरू किया.

दोनों सिपाहियों जमील और अनिल ने अधिकारियों को बताया कि रात खाना खाने के बाद दोनों छत पर सोने चले गए थे. कमरे में रात भर मनीत और संध्या ही थे. गोलियों की आवाज सुन क र नींद खुली तो उठ कर बैठ गए. मोबाइल औन किया तो उस समय रात के 2 बज रहे थे.  हम दोनों भागेभागे नीचे कमरे में आए तो देखा मनीत खून में डूबा नीचे फर्श पर पड़ा था. उस की कारबाइन बिस्तर पर पड़ी हुई थी. उस पर खून लगा था. एक किनारे दूर खड़ी बदहवास सी संध्या मनीत को देखे जा रही थी.

उस के बाद अधिकारियों ने संध्या से पूछताछ की तो उस ने भी वही बताया जो दोनों सिपाहियों ने कुछ देर पहले पुलिस अधिकारियों को बताया था.

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पूछताछ करने के बाद पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. खून से सनी कारबाइन बिस्तर पर एक ओर पड़ी थी. प्रथमदृष्टया यह मामला आत्महत्या का लग रहा था. मामला हत्या का होता तो मौके पर संघर्ष के निशान जरूर मिलते, लेकिन ऐसा नहीं था.

फिर क्या था, पुलिस अधिकारियों ने मनीत के घर वालों को बुलंदशहर फोन कर के घटना की जानकारी दी. सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. घर में रोनापीटना जारी था. परिवार का कमाऊ बेटा था मनीत. मौत की खबर से उस की मां और भाई बुरी तरह टूट गए.

खैर, सूचना मिलते ही मां और बड़ा भाई बीरू सिंह बुलंदशहर से मुरादाबाद के लिए रवाना हो गए थे. करीब 2 घंटे बाद वे मुरादाबाद की आदर्श कालोनी पहुंच गए, जहां घटना घटी थी. तब तक सुबह का उजाला फैल चुका था.

घटना की सूचना पा कर पासपड़ोस के लोग धीरेधीरे वहां एकत्र होने लगे थे. बेटे की लाश देख कर मांबेटे का कलेजा मुंह को आ गया था. मनीत द्वारा उठाए गए आत्मघाती कदम के बारे में जिस ने भी सुना अवाक रह गया. वह अपने उत्तम व्यवहार और शानदार व्यक्तित्व के लिए कालोनी में मशहूर था. अपने काम से काम रखने वाला युवक था वह.

बहरहाल, पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेजवा दिया.

बीरू सिंह भाई की आत्महत्या के लिए संध्या को दोषी ठहराने लगा कि उस ने शादी के लिए उस पर दबाव बना रखा था. वह उसे झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दे रही थी. इसी के दबाव में आ कर भाई ने आत्महत्या की है.

बीरू के बयान को पुलिस ने गंभीरता से लिया और पूछताछ के लिए संध्या को हिरासत में ले लिया. संध्या से की गई पूछताछ के आधार पर कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

24 वर्षीय मनीत प्रताप सिंह मूलरूप से बुलंदशहर के कोतवाली देहात थाना क्षेत्र के रसूलपुर का रहने वाला था. उस के परिवार में मांबाप, 2 भाई और एक बहन थी. बहन बड़ी थी. उस की शादी हो चुकी थी. दूसरे नंबर पर बीरू सिंह और सब से छोटा मनीत प्रताप सिंह था. अमूमन परिवार के सब से छोटे बच्चे मांबाप और भाईबहनों के दुलारे होते हैं, मनीत भी पूरे परिवार का दुलारा था.

कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ मनीत के साथ भी हुआ था. छरहरे बदन वाले मनीत को बचपन से ही खाकी वर्दी से बेहद प्रेम था. बालपन से ही वह मांबाप से पुलिस में जाने को कहता था. वह कहता था बड़ा हो कर पुलिस बनेगा और पीडि़तों के साथ न्याय करेगा.

ईश्वर ने उस के दिल की बात सुन ली थी. 22 साल की उम्र में पहुंचते ही मनीत की मुराद पूरी हो गई थी. साल 2018 में उस ने अपनी मेहनत और काबिलियत के चलते पुलिस की नौकरी हासिल कर ली. खुली आंखों से उस ने अपने लिए जो सपने देखे थे, वह पूरे हो गए थे. वह बेहद खुश था.

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मनीत की पहली पोस्टिंग मुरादाबाद में हुई थी. मनीत मुरादाबाद के कटघर थाने की आदर्श नगर कालोनी में कमल गुलशन के यहां किराए का कमरा ले कर रहता था. उस के साथ कटघर थाने के 2 और सिपाही जमील खान और अनिल कुमार गौतम भी रहते थे. तीनों एक ही कमरे में रहते थे. इन दिनों मनीत की ड्यूटी पुलिस लाइन में चल रही थी. वहीं से उस की तैनाती मुरादाबाद देहात के विधायक हाजी इकराम कुरैशी की सुरक्षा में लगाई थी.

बात घटना से करीब डेढ़ साल पहले की है. रात का खाना खा कर मनीत बिस्तर पर गया तो उसे नींद नहीं आ रही थी. सोचा थोड़ा मोबाइल चला लूं और फेसबुक वाले दोस्तों को मैसेज कर दूं. हो सकता है, नींद आ जाए.

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यही सोच कर वह फोन ले कर बिस्तर पर लेट गया और फेसबुक औन कर लिया. उस के कई दोस्तों के मैसेज आए थे. उस में कई लोगों के फ्रैंड रिक्वेस्ट भी थे. उन रिक्वेस्ट में एक नाम संध्या का भी था.

संध्या की खूबसूरत तसवीर पर मनीत की नजर पड़ी तो कुछ पल के लिए उस की नजर ठहर गई. उस की तसवीर पर से नजर हट ही नहीं रही थी. फिर क्या था. मनीत ने संध्या के रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लिया. एकदो दिनों बाद उस ने ‘हाय’ लिख कर मैसेज किया तो मनीत ने भी उस के मैसेज का जवाब दे दिया.

धीरेधीरे दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. बातचीत के जरिए मनीत ने संध्या का पता और मोबाइल नंबर लिया और अपना पता तथा मोबाइल नंबर उसे दे दिया. संध्या पुत्री सुरेंद्र कुमार मुरादाबाद के गलशहीद इलाके के रुद्रपुर में रहती थी. मध्यमवर्गीय परिवार की संध्या 3 भाईबहनों में सब से बड़ी थी.

उस के पिता दिल्ली में रह कर एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करते थे. बीचबीच में वह घर आ कर परिवार को देख जाते. वैसे भी पिता सुरेंद्र ने परिवार की देखरेख की जिम्मेदारी संध्या के कंधों पर डाल दी थी ताकि वह अपनी जिम्मेदारियों को निभा सके.

संध्या पिता के विश्वास पर पूरी तरह से खरी उतर रही थी. घर के राशन से ले कर भाईबहन के स्कूल की फीस, किताब तक का वह हिसाब रखती थी. मतलब संध्या समय से पहले समझदार और सयानी हो चुकी थी. उस के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है, सब समझती थी.

बातचीत के जरिए संध्या और मनीत के बीच दोस्ती हुई और फिर यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. आगे चल कर दोनों ने एकदूसरे से शादी करने का फैसला कर लिया था.

चूंकि संध्या और मनीत एक ही शहर में रहते थे. एक दिन संध्या ने मनीत को मिलने के लिए अपने घर बुलाया. इत्तफाक की बात यह थी कि उस दिन न तो उस की मां घर पर थी और न ही भाईबहन.

मनीत सादे कपड़ों में अनिल को साथ ले कर संध्या के घर रुद्रपुर पहुंचा. दोपहर का समय हो रहा था. प्यार होने के बाद पहली बार दोनों आमनेसामने बैठे थे.

संध्या ने दोनों का स्वागत किया. फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ. सामने बैठी संध्या को देख कर मनीत का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. वह आधुनिक विचारों वाली स्वच्छंद युवती थी. उस ने मनीत के साथ आए दूसरे युवक के बारे में पूछा तो मनीत ने उस का परिचय अपने रूम पार्टनर के रूप में दिया. फिर मनीत ने नजर उठा कर कमरे के चारों ओर दौड़ाया.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

मनीत का आत्मघाती कदम : भाग 1

4 जून, 2020 की शाम 7 बजे 24 वर्षीय सिपाही मनीत प्रताप सिंह ड्यूटी कर के जब वापस अपने कमरे पर लौटा तो वह अकेला नहीं था, बल्कि उस के साथ उस की खूबसूरत और कमसिन प्रेमिका संध्या भी थी.

उस के साथ संध्या को देख कर मनीत के दोनों दोस्त सिपाही जमील खान और सिपाही अनिल कुमार गौतम हौले से मुस्कराए तो वह भी मुसकरा दिया और संध्या को ले कर कमरे में चला गया.

वे तीनों दोस्त मुरादाबाद के कटघर थाने की आदर्श नगर कालोनी में स्थित कमल गुलशन के मकान में किराए पर रहते थे. वे तीनों रूम पार्टनर थे और एक ही कमरे में रहते थे. जिन में जमील खान और अनिल गौतम कटघर थाने में तैनात थे और मनीत पुलिस लाइन में आमद था. वैसे मनीत सिंह मूलरूप से बुलंदशहर के कोतवाली थाने के रसूलपुर का रहने वाला था. उस की जौइनिंग 2018 बैच की थी. हालफिलहाल उस की ड्यूटी मुरादाबाद (देहात) विधानसभा से विधायक हाजी इकराम कुरैशी की सुरक्षा में चल रही थी.

बहरहाल, संध्या को ले कर पहुंचे मनीत ने वर्दी बदल कर सादे कपड़े पहन लिए और दोनों दोस्तों से कहा कि वह संध्या को ले कर शहर घूमने जा रहा है. लौटने में उसे देर हो सकती है. आप दोनों अपना खाना बना कर खा लेना. हम घूम कर वापस लौटने के बाद अपना खाना बना लेंगे.

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इतना कह कर उस ने बरामदे में खड़ी बाइक बाहर निकाली और संध्या को पीछे बिठा कर निकल गया.

करीब 3 घंटे दोनों बाहर घूमे और रात 10 बजे के करीब कमरे पर लौटे. चूंकि कमरा एक ही था. वहां संध्या रुकी हुई थी इसलिए मनीत के दोनों दोस्त उन्हें कमरे में छोड़ कर छत पर सोने चले गए.

मनीत घर आ कर दुकान से 2 बड़े पैकेट मैगी और 1 लीटर वाली कोल्डड्रिंक की एक बोतल ले आया. संध्या ने मैगी बनाई और 2 कटोरियों में मैगी ले कर कमरे में आई, जहां मनीत उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. फिर मनीत ने पहले से ला कर रखी कोल्डड्रिंक स्टील के 2 खाली गिलासों में भर कर एक गिलास संध्या की ओर बढ़ा दिया और दूसरा गिलास खुद लिया.

दोनों ने मैगी खा कर कोल्डड्रिंक पी. थोड़ी भूख शांत हुई. मनीत और संध्या दोनों एकदूसरे के हाथों को थामे और आंखों में आंखें डाले नीचे फर्श पर चादर बिछा कर बैठे थे. एकदूसरे को करीब पा कर वे दोनों बेहद खुश थे. खुश होते भी क्यों नहीं, एक होने में उन के बीच में बस एक रात की दूरी थी.

अगले दिन यानी 5 जून, 2020 को दोनों कोर्टमैरिज करने वाले थे. मैरिज के बाद दोनों जनमजनम के लिए एकदूसरे के हो जाने वाले थे.

कहते हैं, आग और फूस पासपास हो, तो वहां अकसर आग लग ही जाती है. मनीत और संध्या सामाजिक मानमर्यादाओं की सीमाएं लांघते हुए जिस्मानी रिश्तों से एक हो चुके थे, इसीलिए संध्या प्रेमी मनीत पर शादी के लिए दबाव बनाए हुए थी.

दबाव में आ कर ही उस ने संध्या से शादी के लिए हामी भरी थी और उसे कमरे पर बुलाया था. खानेपीने के बाद नीचे फर्श पर बिछे चादर पर दोनों बैठे हुए थे. मनीत संध्या की हथेली थामे उस की झील सी गहरी आंखों में डूबता जा रहा था.

संध्या के मखमली स्पर्श से मनीत का रोमरोम खिल उठा था. वे दोनों मर्यादाओं में बंधे थे, भविष्य के सपनों को ले कर दोनों देर तक बातें करते रहे. इस बीच मनीत फोन पर अपने घर वालों से अपनी शादी के सिलसिले में बात भी करता रहा.

फोन पर बात करतेकरते मनीत अचानक से गंभीर हो गया और नीचे फर्श से उठ कर बैड पर बैठ गया. तो संध्या भी नीचे से उठ कर बैड पर बैठ गई और उस की गोद में अपना सिर रख कर बिस्तर पर पसर गई.

‘‘क्या हुआ? अचानक से गंभीर क्यों हो गए?’’ संध्या ने मनीत की आंखो में आंखें डाल कर सवाल किया.

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही…’’ कहतेकहते मनीत रुक गया.

‘‘मुझ से कोई भूल हो गई है क्या या मैं ने कुछ ऐसावैसा कह दिया, जिस से तुम्हें बुरा लग गया. अगर ऐसा है तो मुझे माफ कर दो. सौरी बाबा आइ एम वैरी सौरी.’’ दोनों कान पकड़ते हुए संध्या बोली.

‘‘तुम क्यों सौरी कह रही हो?’’ कान से संध्या का हाथ हटाते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है और न ही तुम ने कुछ कहा है. सौरी तो उन्हें बोलना चाहिए जो हमारे प्यार के दुश्मन हैं. माफी तो उन्हें मांगनी चाहिए, जो हमें एक होने से रोकते हैं. लेकिन संध्या तुम चिंता मत करना, हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता. चाहे हमें जमाने से ही क्यों न लड़ना पडे. हम लड़ेंगे और एक भी होंगे. मनीत ने कभी हारना नहीं सीखा है. दुश्मन चाहे हमारे अपने ही क्यों न हों, मोहब्बत की जंग हम उन से जीत के रहेंगे.’’

‘‘घर वालों से तुम्हारी बात हुई है क्या? उन्होंने तुम्हें कुछ कहा है?’’

‘‘वे हमारी शादी के खिलाफ हैं. कहते हैं ये शादी नहीं होने देंगे.’’

‘‘तो फिर क्या होगा?’’

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‘‘होगा क्या, मैं ने जो निश्चय किया है, वही होगा. मेरा निश्चय पत्थर पर खींची लकीर जैसा है, उसे कोई भी नहीं मिटा सकता.’’

कहते हुए मनीत ने बैड पर पड़ी कारबाइन दोनों हाथों से उठाई, उसे देखा. संध्या कुछ समझ पाती इस से पहले मनीत ने कारबाइन अपने सीने से सटा कर उस का ट्रिगर दबा दिया. कारबाइन से निकली गोली मनीत के दिल और फेफड़े को चीरती हुई शरीर के पार निकल गई. मनीत बिस्तर से नीचे फर्श पर धड़ाम से जा गिरा.

मनीत ने आत्महत्या कर ली थी. गोलियों की तड़तड़ाहट सुन कर मकान की छत पर सो रहे जमील और अनिल दौड़ेभागे नीचे कमरे में पहुंचे. कमरे का दृश्य देख कर दोनों हैरान रह गए. मनीत खून में डूबा बिलकुल शांत पड़ा था. उस से 2 कदम दूर खड़ी संध्या थरथर कांप रही थी. उस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था.

उस के मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहा था. जिस यार की बांहों में थोड़ी देर पहले वह झूल रही थी. जिन हाथों से अपने मांग में सिंदूर भरने के ख्वाब देख रही थी, वह सब रेत के मकान की तरह भरभरा कर ढह गया था.

बदहवास संध्या मनीत को देखे जा रही थी. जमील और अनिल कमरे के अंदर दाखिल हुए तो संध्या डर गई, ‘‘मैं ने नहीं मारा इन्हें…मैं ने नहीं मारा.’’ कहती चली गई.

‘‘ये सब कैसे हुआ संध्या?’’ अनिल ने सवाल किया.

‘‘थोड़ी देर पहले मनीत ने फोन पर अपने घर वालों से बात की. उस के बाद न जाने ऐसा क्या हुआ, वह एकदम से गंभीर हो गया. जब मैं ने पूछा कि क्या बात है, तुम अचानक से क्यों गंभीर हो गए तो उस ने बताया उस के घर वाले शादी के खिलाफ हैं, वे शादी करने पर ऐतराज जता रहे हैं. उस के बाद मैं कुछ समझ पाती कि मनीत ने खुद को गोली मार ली.’’ कह कर संध्या बिलखबिलख कर रोने लगी.

संध्या के कथनानुसार, मनीत ने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. उसी वक्त जमील ने फोन कर के थानेदार (कटघर) विकास कुमार, सीओ (कटघर) पूनम सिरोही, एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद, एसएसपी अमित पाठक और आईजी रमित शर्मा को घटना की सूचना दी थी.

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चूंकि मामला विभाग से जुड़ा हुआ था, इसलिए सूचना मिलते ही कुछ ही देर में एसओ (कटघर) विकास कुमार, सीओ (कटघर) पूनम सिरोही और एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद घटनास्थल पहुंच गए थे.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

महंगा इनाम : भाग 2- क्या शालिनी को मिल पाया अपना इनाम

वह बेचैनी से पहलू बदलते हुए बोला, ‘‘मैं बिना किसी जांच के उन मांबेटी को धोखेबाज कहना नहीं चाहता. लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वह मामले को बढ़ाचढ़ा कर पेश कर रही हों.’’

‘‘मेरे विचार में यह कुछ अधिक मुश्किल काम नहीं है,’’ मैं ने कहा, ‘‘2-4 दिनों लड़की पर नजर रखी जाए. होशियारी से उस का पीछा किया जाए तो पता चल जाएगा कि वह कहीं बोलती है या नहीं?’’

अर्पित गले को साफ करते हुए बोला, ‘‘यही तो समस्या है कि मैं तुम्हें 4 दिन तो क्या, 2 दिन का समय भी नहीं दे सकता. असल में मुझे विश्वास था कि यह मामला कोर्ट में नहीं जाएगा. इसलिए अंतिम क्षणों तक मैं ने किसी डिक्टेटिव या खोजी की तलाश शुरू नहीं की. इस बुधवार को 10 बजे अदालत में इस दावे की सुनवाई होनी है. हो सकता है पहली ही पेशी में निर्णय भी हो जाए.’’

इस का मतलब था कि मेरे पास केवल एक दिन का समय था, जिस में मुझे कोई ऐसा सबूत तलाश करना था, जिस की वजह से दावेदार अपना दावा वापस लेने पर विवश हो जाए.

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‘‘सौरी मिस्टर अर्पित, एक दिन में भला क्या हो सकता है?’’ मैं ने कहा.

‘‘इस परिस्थिति में अगर कोई समझौता हो भी जाए तो वह भी मेरे लिए जीत की तरह ही होगा,’’ अर्पित ने कहा, ‘‘मैं कह चुका हूं कि मुझे अपनी गलती की भरपाई करने पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन इतनी सी बात पर मैं अपनी कुल संपत्ति का एक चौथाई उन मांबेटी को नहीं दे सकता.’’

एक बार फिर मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई. मतलब अर्पित की कुल संपत्ति का एक चौथाई 100 करोड़ था. इस का मतलब था कि अर्पित मेरे अनुमान से कहीं अधिक धनवान था. संभवत: उन मांबेटी को अंदाजा था कि वह कितना मोटा आसामी है. तभी उन्होंने ज्यादा गहराई तक दांत गड़ाने का प्रोग्राम बनाया था.

आखिर मैं ने अपनी पूरी कोशिश करने की हामी भरते हुए उसे अपनी फीस के बारे में बताया तो उस ने कहा, ‘‘मैं केवल एक ही दिन के लिए तुम्हारी सेवाएं ले रहा हूं और इस का भुगतान पेशगी दे रहा हूं. अगर तुम कोई सबूत तलाश करने में कामयाब हो गईं तो मैं सारे खर्चों के अलावा तुम्हें 5 लाख रुपए का इनाम दूंगा. अगर तुम असफल रहीं तो मेरे कानूनी सलाहकार इस मसले से अपने हिसाब से निपटेंगे.’’

बातचीत के बाद मैं लौट आई. सब से पहले मैं ने उन मांबेटी के बारे में सूचना इकट्ठी की. बेटी का नाम रूपा सरकार था और मां का नाम सुषमा सरकार. वे द्वारका के सिंगल बैडरूम के छोटे से फ्लैट में रह रही थीं. मैं ने अपनी गाड़ी एक ऐसी जगह पार्क की, जहां से मैं उन के फ्लैट पर नजर रख सकती थी.

अर्पित मुझे उन के नाम और ठिकाने से अधिक कुछ नहीं बता सका था. मैं ने अपने तौर पर जानकारियां एकत्र करने की कोशिश की तो पता चला कि सुषमा सरकार यानी मां और रूपा सरकार किसी न किसी तरह के दावे कर के माल बटोरने में लगी रहती थीं. अगर मामला केवल उस औरत का होता तो शायद मैं उसे दे दिला कर राजी करने की कोशिश करती, लेकिन मसला उस की बेटी के अजीबोगरीब और अविश्वसनीय नुकसान का था. मैं ने उस डाक्टर से बात की, जो उस का इलाज कर रहा था. ऐसा मालूम होता था कि उस ने भी मांबेटी के दावे को सही साबित करने की बात को अपनी प्रेस्टीज का मसला बना लिया था.

9 बजे तक मैं अपनी कार में बैठेबैठे न्यूजपेपर पढ़ती रही. जब थक गई तो मैं ने गाड़ी से निकल कर हाथपांव सीधे किए और बिल्डिंग के चारों ओर एक चक्कर लगाया. मांबेटी के ग्राउंड फ्लोर स्थित फ्लैट का नंबर 7 था. उस के पीछे की तरफ एक पुरानी सी मारुति कार खड़ी थी, जिस पर लगे चंद निशानों से पता चल रहा था कि हाल ही उस का मामूली एक्सीडेंट हुआ है.

फ्लैट नंबर 7 में झांकने का मेरा प्रयास सफल नहीं हो सका. खिड़कियां बंद थीं और उन पर परदे पड़े हुए थे. अंदर तेज आवाज में म्युजिक बज रहा था. अंतत: मायूस हो कर मैं दोबारा अपनी कार में जा बैठी.

आखिर 10 बजे मांबेटी फ्लैट से बाहर निकलीं और गाड़ी में बैठ कर बाजार की ओर चल दीं. उन्होंने एकदूसरे से बिलकुल भी बात नहीं की. मैं ने उचित दूरी बना कर उन का पीछा करना शुरू कर दिया.

पहले दोनों एक बहुत अच्छे डिपार्टमेंटल स्टोर पर रुकीं और अंदर जा कर आधे घंटे तक बिना किसी मकसद के घूमती रहीं. उन्होंने महंगे फर्नीचर से ले कर मंगनी की अंगूठी तक का जायजा लिया. वे यकीनन उस दौलत को खर्च करने के तरीके सोच रही थीं, जो उन के ख्याल में उन्हें छप्पर फाड़ कर मिलने वाली थी. वे एकदम साधारण जीवन व्यतीत कर रही थीं, लेकिन उन की पसंद ऊंची लगती थी.

कुछ देर की आवारागर्दी के बाद आखिरकार वे एक ब्यूटीपार्लर में जा घुसीं. वे रिसैप्शन पर रुकीं तो मैं पीछे मुडे़ बिना सुषमा की आवाज सुन रही थी. मोटी सुषमा बाल सैट कराने के लिए एक कुरसी पर जा बैठी, जबकि दुबलीपतली रूपा वेटिंग रूम में बैठ गई. मुझे कुछ उम्मीद नजर आई कि संभवत: मुझे भाग्य आजमाने का अवसर मिलने वाला है.

मैं ने रिसैप्शन पर मौजूद लड़की से अपने बाल शैंपू और सैट कराने की बात की तो उस ने बताया कि करीब 10 मिनट बाद हेयर डे्रसर फ्री हो जाएगी.

मैं वेटिंग रूम में रूपा के सामने जा बैठी. वह सच्चे प्रेमप्रसंग प्रकाशित करने वाली एक पत्रिका के पृष्ठों पर नजरें जमाए बैठी थी. मैं ने भी मेज पर पड़ी 2-3 मैगजीनें उलटपलट कर देखने के बाद साधारण लहजे में कहा, ‘‘ऐसी जगहों पर हमेशा पुरानी मैगजीनें ही पड़ी रहती हैं.’’

रूपा ने मैगजीन से नजर हटा कर मेरी तरफ देखा, लेकिन बोली कुछ नहीं. मैं ने मुसकराते हुए मित्रवत लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें शायद कोई अच्छी मैगजीन मिल गई है.’’

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उस ने इनकार में सिर हिलाया तो मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘किसी खास ब्यूटीशियन के साथ अपाइंटमेंट है क्या?’’

उस ने कोई जवाब नहीं दिया और दोबारा उसी मैगजीन पर नजरें जमा कर बैठ गई. इतने में एक ब्यूटीशियन ने फ्री हो कर मुझे बुला लिया. जब इंसान को फास्ट सर्विस की कोई खास जरूरत नहीं होती तो उसे अनचाहे ही फास्ट सर्विस मिल जाती है.

मैं कुरसी पर जा बैठी. हेयरड्रेसर ने मेरे चारों ओर काला कपड़ा लपेटा और मैं ने शैंपू के लिए सिंक पर सिर झुका लिया. जब मेरे बाल संवारे जा रहे थे तो मैं ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘मैं ने किसी इतनी नौजवान लड़की को इतना रफटफ रहते हुए नहीं देखा.’’

हेयर ड्रेसर समझ गई कि मेरा इशारा किस ओर था. वह सिर घुमा कर रूपा की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मैं इस लड़की से दोस्ताना तरीके से बात करना चाहती थी. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. एक शब्द भी नहीं बोली.’’

हेयरड्रेसर मेरी ओर झुकते हुए बोली, ‘‘दरअसल, वह बेचारी बोल नहीं सकती. 2 महीने पहले एक अमीर आदमी ने अपनी कार से इन मांबेटी की कार में टक्कर मार दी थी. तब से इस बेचारी की बोलने की शक्ति चली गई है.’’

‘‘ओह… यह तो बड़ी अफसोसजनक बात है. मुझे यह बात मालूम नहीं थी?’’ मैं ने जल्दी से कहा. इस बीच सुषमा मुझ से कुछ दूर दूसरी कुरसी पर बाल सैट कराते हुए तेज रफ्तार से ब्यूटीशियन से बातें कर रही थी. ऐसा जान पड़ता था कि जैसे उसे आसपास का कुछ पता ही नहीं था.

‘‘मां की कमर में भी चोट आई थी,’’ ब्यूटीशियन ने कहा, ‘‘ये अमीर लोग समझते हैं, जो चाहे कर गुजरें, इन्हें कोई पूछने वाला नहीं.’’

इस का मतलब था कि इन लोगों की कहानी को और लोग भी जानते थे और कुछ लोगों की हमदर्दियां भी इन के साथ थीं. मेरे बाल सैट हो चुके तो मेरे पास वहां ठहरने का कोई बहाना नहीं रहा.

मैं ब्यूटीपार्लर से निकल आई और सामने सड़क किनारे एक बैंच पर बैठ गई. सड़क लगभग सुनसान थी. मैं सुबह 5 बजे की उठी थी. नींद मेरी आंखों में उतरने की कोशिश कर रही थी. मैं ने अपना सिर बैंच की बैक से टिका कर आंखें बंद कर लीं. कुछ देर में मुझे एक अजीबोगरीब सुखद अहसास हुआ. लेकिन उस अहसास का मैं ज्यादा देर आनंद नहीं उठा सकी.

‘‘शालिनी…’’ किसी की आवाज ने मुझे चौंका दिया. मैं हड़बड़ा कर सीधी हो गई.

एक घबराया हुआ सा युवक मेरे ऊपर थोड़ा सा झुका हुआ खड़ा था. उस की आंखों में शरारत साफ झलक रही थी. मुझे सड़क किनारे की एक बैंच पर ऊंघते देख कर संभवत: वह बहुत ही खुश हो रहा था.

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मुझे केवल शालिनी के नाम से संबोधित कर के शायद उसे तसल्ली नहीं हुई थी. उस ने मेरा पूरा नाम लिया, ‘‘शालिनी चौहान…?’’ लेकिन यह मेरा शादी से पहले का नाम था. अब तो मुझे अपने पति से अलग हुए भी जमाना गुजर गया था. मैं हैरान हुए बिना न रह सकी कि यह कौन है, जो इस तरह मेरा नाम ले रहा है.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

फिरौती वसूलने साथ आये पति पत्नी

‘हेलो’

‘हेलो’ फोन आने पर गोंडा जिले के रहने वाले बीड़ी कारोबारी हरी गुप्ता ने कहा.

फोन पर धमकाते हुए एक महिला की आवाज आती है “आवाज न आ रही हो तो बताओ, आवाज न आ रही हो तो बताओ, आपका लड़का किडनैप हो चुका है.”

हरी गुप्ता ‘अच्छा, तो क्या करना पड़ेगा?’

महिला : 4 करोड़ की व्यवस्था करो, हम शाम तक फोन करेंगे. ज्यादा दिमाग लगाने की कोशिश न करना. जो करोगे हमको सब पता चल जाएगा, अभी तक सब ठीक है वरना कानपुर वाला मैटर तो जानते हो न..?

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हरी गुप्ता : हां… कौन कानपुर वाला..?

महिला :  विकास दुबे वाला… जानते ही हो पुलिस किसका कितना साथ देती है… पुलिस के पास जाना चाहो तो जाओ…मै मना नहीं कर रही है.. बस आपका लड़का आपको नहीं मिलेगा.

हरी गुप्ता : हमें हमारा लड़का चाहिए बस.

महिला : आपको अपना लड़का चाहिए ? दो तीन घंटे बाद मैं फोन करूंगी… बस हां या न में जवाब देना…. और अगर आपने कुछ भी कदम उठाने की कोशिश की तो लड़के की उम्मीद छोड़ दीजिए.

हरी गुप्ता :  जी जी… नहीं हम कोई कदम नहीं उठाएंगे.

हरी गुप्ता : ‘जी ठीक है’. फोन सुनने के बाद हरी गुप्ता के पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई. बच्चे के ना मिलने से परेशान हरी गुप्ता की आंखों के सामने बच्चे के अपहरण करने का पूरा घटनाक्रम  घूम गया. किस तरह कुछ ही घण्टे पहले उनकी आंखों के सामने से 8 साल के बेटे का अपहरण हो गया था.

मास्क देने के बहाने हुआ अपहरण

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 200 किलोमीटर दूर गोंडा जिले में करनैलगंज कोतवाली क्षेत्र में गाड़ी बाजार में रहने वाले बीड़ी कारोबारी राजेश गुप्ता के घर पर गुरुवार 23 जुलाई 2020 की दोपहर अल्ट्रो कार से कुछ लोग आते है. राजेश गुप्ता के घर के सामने उनके बेटे हरि गुप्ता अपने 8 साल के बेटे आयुष उर्फ नामो के साथ खड़े थे. उन लोगो ने हरी गुप्ता से उनका मोबाइल नम्बर मंगा और खुद को स्वास्थ्य विभाग का कर्मचारी बता कर कहा कि ‘किसी को गाड़ी तक भेज दीजिये मास्क दे दे’.

यह बात सुनकर 8 साल का आयुष उनके साथ चला गया. जब कुछ देर आयुष नही वापस आया तब उसकि खोजबीन की गई. वँहा लगे सीसीटीवी में देखा गया कि आयुष को उसी मास्क देने वाली कार में बैठा कर ले जाया गया है. कुछ देर तो गाड़ी दिखती है पर फिर कच्चे रास्ते मे उतर जाती है जंहा से वो दिखना बन्द हो जाती है. शाम को करीब 4 बजे हरिगुप्ता के मोबाइल पर फोन आने के बाद पता चलता है कि आयुष का अपहरण कर लीया गया है और अपहरण करने वाले 4 करोड़ की फिरौती मांग रहे है.

एसटीएफ ने संभाली कमान

हरी गुप्ता और उनका परिवार उहापोह के बाद पूरी जानकारी करनैलगंज थाने की पुलिस को देता है. अपहरण की बात पता चलते ही राजधानी लखनऊ तक पुलिस विभाग को इसकी सूचना मिलती है. पुलिस विभाग ने अपहरण करने वालो का पता लगाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स को लगाती है. इसके बाद पुलिस 17 घण्टो की कड़ी मेहनत के बाद बच्चे को सकुशल बरामद करने में सफल हो जाती है.

यूपी एडीजी (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने बताया कि पुलिस कार्रवाई में दो बदमाश उमेश यादव और दीपू कश्यप घायल हुए हैं. सूरज पांडेय, छवि पांडेय को गिरफ्तार किया गया है. घटना में एक ऑल्टो गाड़ी बरामद की गई है. अपराधियों से पिस्टल और दो तमंचे भी बरामद हुए हैं. घायल बदमाशों का इलाज चल रहा है. पुलिस की ओर से बदमाशों का मेडिकल कराया जाएगा और आगे की कार्रवाई की जाएगी. जो अन्य लोग शामिल होंगे उनके विरुद्ध भी कार्रवाई होगी.

पति पत्नी है मुख्य आरोपी

अपहरण की इस घटना में मुख्य आरोपी के रूप में सूरज पांडये और उसकी पत्नी छवि पांडये का नाम लिया जा रहा है. पुलिस के अनुसार छवि की जिम्मेदारी फोन करके फिरौती मांगने की थीं. इस घटना में सूरज पांडे पुत्र राजेंद्र पांडे निवासी शाहपुर थाना परसपुर गोंडा, सूरज का भाई राज, उमेश यादव पुत्र रमाशंकर यादव निवासी सकरोड़ा पूर्वी थाना करनैलगंज गोंडा, दीपू कश्यप पुत्र राम नरेश कश्यप निवासी सोनवारा थाना करनैलगंज गोंडा  शामिल थे.

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अनाड़ी निकली छवि

छवि पाण्डेय सूरज पाण्डेय की पत्नी है. छवि भी इस किडनैपिंग केस में शामिल थी. उसने ही बच्चे के कारोबारी पिता को फिरौती के लिए फोन किया था. उसने फोन करके चार करोड़ रुपये की फिरौती मांगी थी.

फिरौती की कॉल रिकॉर्डिंग से पुलिस को यह पता लगा की अपराधी पेशेवर नहीं है.  बच्चे का अपहरण करने वाले बदमाशो ने जब फिरौती के लिए जब कारोबारी को फोन आया तो उन्होंने इस कॉल को अपने मोबाइल पर रिकॉर्ड कर लिया. फिरौती की कॉल रिकॉर्डिंग पुलिस को दी. पुलिस ने जब इसे सुना तो उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि किडनैपर्स कोई प्रोफेशनल नहीं हैं. छवि फोन पर कारोबारी से बात हुए अटक भी रही थी. छवि और कारोबारी के बीच हुई बातचीत के वायरल ऑडियो में छवि ने फिरौती के लिए कारोबारी को धमकी दी. अपहरणकर्ता ने कहा कि पुलिस के पास जाना चाहो तो जाओ लेकिन फिर आपका लड़का नहीं मिलेगा. उसने ये भी कहा कि फिरौती का जवाब हां या ना में ही मिलना चाहिए.

छवि का पति सूरज पांडे  राजेंद्र पांडे का पुत्र है और शाहपुर थाना परसपुर, जनपद गोंडा का रहने वाला है. जानकारी के मुताबिक छवि उन्नाव की है लेकिन उसकी शादी सूरज के साथ हुई है, तबसे वे गोंडा में ही रह रहे हैं.

तीसरे आरोपी का नाम उमेश यादव है जो रमाशंकर यादव का बेटा है और सकरोड़ा पूर्वी थाना करनैलगंज जनपद गोंडा का रहने वाला है. चौथा आरोपी दीपू कश्यप है जो राम नरेश कश्यप का बेटा है और सोनवारा, थाना करनैलगंज, जनपद गोंडा का निवासी है. पुलिस ने सभी को पकड़ लिया है.

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