लवोलौजी : प्यार और Romance की क्लास

Sex News in Hindi: एक ओर जहां दुनिया को कामसूत्र (Kamasutra) जैसा कामशास्त्र ग्रंथ देने वाले भारत में वर्तमान में प्यार करने वालों पर पाबंदी लगाने के प्रयास शुरू हो गए हैं, वहीं न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी (Newyork University) में प्यार की क्लास लगाई जा रही है और यह क्लास एक अंडरग्रैजुएट कोर्स (Undergraduate Course) के अंतर्गत होती है. डाक्टर मेगन पाई प्यार की इस क्लास का संचालन करती हैं. डाक्टर मेगन ने ही प्यार के इस कोर्स को तैयार किया है. आप को जान कर हैरानी होगी कि कोर्स शुरू होने के साथसाथ बेहद लोकप्रिय भी हो रहा है और सिर्फ पिछले 2 साल में ही इस कोर्स में छात्रों की संख्या तीनगुना हो गई है.

प्यार की इस क्लास का नाम लव ऐक्चुअली रखा गया है जिस में पहला सैमेस्टर मुख्य रूप से लोगों के प्यार के साथ कैसे अनुभव रहे हैं, इस के आधार पर होता है. कोर्स 2 डायरैक्शन में आगे बढ़ता है, हौरिजैंटल और वर्टिकल. हौरिजैंटल ट्रैजेक्ट्री में जहां कोर्स आप की पूरी लाइफ के दौरान होने वाले अलगअलग तरह के प्यार के रिश्तों पर बात करता है वहीं वर्टिकल ट्रैजेक्ट्री स्टूडैंट से शुरू हो कर फैमिली लव के बारे में बात करता है. कोर्स न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी के चाइल्ड ऐंड ऐडोलोसैंट मैंटल हैल्थ स्टडी डिपार्टमैंट के तहत चलाया जाता है. इस डिपार्टमैंट के तहत इस तरह के और भी कई कोर्स चलाए जाते हैं, जिन में हैप्पीनैस और स्लीप से जुड़े कोर्स भी शामिल हैं.

प्यार के अलगअलग प्रकारों के बारे में  मेगन का कहना है कि इस कोर्स के अंतर्गत हम मातापिता और नवजात के प्यार, दोस्ती, खुद से प्यार, अपने पैशन के प्रति प्यार, मैटर और स्टूडैंट के बीच प्यार के बारे में बात करते हैं.

प्यार की इस क्लास का एक बड़ा हिस्सा स्टूडैंट्स को विस्तार से बताता  है कि आखिर लव यानी प्यार का आइडिया क्या है और इस कौंसैप्ट के अंदर क्या छिपा है. यहां रोमांटिक लव को भी समय दिया जाता है.

प्यार और रोमांस की एक ऐसी ही अन्य क्लास चीन की तियानजिन यूनिवर्सिटी में भी लगती है जहां बाकायदा थ्योरी के साथ रोमांस की प्रैक्टिकल तकनीक भी बताई जाती है. थ्योरी इन लव ऐंड डेटिंग नाम से चलने वाले इस कोर्स का मकसद स्टूडैंट्स को रिलेशनशिप में स्ट्रौंग करना है. इस यूनिवर्सिटी में विषय कोई और नहीं सिर्फ और सिर्फ प्यार और रोमांस का होता है. यहां युवकों को पर्सनैलिटी अपग्रेड, युवतियों से बात करने का तरीका, रोमांस करने और क्लास में स्टूडैंट्स को अपोजिट रोमांस को अपनी तरफ आकर्षित करने और अपोजिट सैक्स के साथ कम्युनिकेशन बिल्ड करने के तरीके भी बताए जाते हैं.

प्यार और रोमांस की इस क्लास में यह भी सिखाया जाता है कि प्रपोजल ठुकराए जाने पर किस तरह का व्यवहार किया जाए. साथ ही रोमांटिक रिलेशनशिप से जुड़ी कुछ लीगल प्रौब्लम्स के बारे में जानकारी दी जाती है.

प्यार और रोमांस के इस कोर्स में इंसान को दूसरों से प्यार करने से पहले खुद से प्यार करना भी सिखाया जाता है. हिंसा और नफरत के इस दौर में प्यार पर आधारित इस क्लास की दरअसल पूरे विश्व को जरूरत है.

पीरागढ़ी कांड: मासूम किशोरी के साथ वहशीपन का नंगा नाच

Crime News in Hindi: घरों में अकेले रहना अब मासूमों के लिए ज्यादा मुफीद नहीं रहा है. चोरी के मकसद से आए चोरों ने मासूम किशोरी के साथ दर्दनाक और दिल दहला देने वाली घटना को अंजाम दिया और फरार हो गए.यह घटना दिल्ली के पीरागढ़ी( Peeragarhi Crime) इलाके में 4 अगस्त, 2020 को घटी. मांबाप तो हर रोज की तरह सुबह ही काम पर चले गए थे, वहीं बड़ी बहन भी दोपहर में काम पर चली गई थी. अनुमान है कि शाम के तकरीबन 4 बजे 12-13 साल की किशोरी कमरे में अकेली थी, तभी चोर चोरी के मकसद से घर में घुसे. अजनबी शख्स को कमरे में देख किशोरी ने शोर मचाया, पर उस की चीख कमरे में ही दब गई. चुप कराने की कोशिश में चोरों ने उस के साथ दरिंदगी की. विरोध करने पर कैंची से उस के सिर और शरीर को बुरी तरह गोद डाला.

घायल होने के बाद भी किशोरी बड़ी बहादुरी से इन चोरों से काफी देर तक जूझती रही. खून से नहाई मासूम को आखिर मरा समझ कर आरोपी फरार हो गए.

काफी देर तक वह बच्ची कमरे में बेसुध रही, उस के बाद जैसेतैसे कमरे से घिसटते हुए वह बाहर आई और पड़ोसी के दरवाजे को खटखटा कर इशारे से खुद की हालत बयां करते हुए फिर बेहोश हो गई. उस के निजी अंगों से लगातार खून बह रहा था.

किशोरी की ऐसी बुरी हालत देख पड़ोसी भी सहम गए. तुरंत ही इस की सूचना पुलिस को दी गई. साथ ही, उस के मातापिता को भी इस हादसे के बारे में बताया गया.

सूचना मिलने पर पश्चिम विहार वेस्ट थाने की पुलिस आई और बच्ची को संजय गांधी अस्पताल में भरती कराया. उस के सिर और हिप्स में किसी धारदार हथियार से कई वार किए गए थे. डाक्टरों ने फौरन ही बच्ची के सिर व कटे हुए हिस्सों में टांके लगाए और हाथोंहाथ एम्स रेफर कर दिया.

किशोरी ने जो बयान दिया, उस के आधार पर इस वारदात में 2 लड़के शामिल हैं. पुलिस के मुताबिक, 13 साल की किशोरी अपने परिवार के साथ पीरागढ़ी में किराए के मकान में रहती है. परिवार मूल रूप से बिहार का रहने वाला है. जिस कमरे में परिवार रहता है, वह बिल्डिंग तीनमंजिला है. इस बिल्डिंग में छोटेछोटे तकरीबन 2 दर्जन कमरे बने हुए हैं. ज्यादातर आसपास की फैक्टरियों में लेबर का काम करते हैं. बच्ची के परिवार में मातापिता और एक बड़ी बहन है. वे सभी एक फैक्टरी में लेबर का काम करते हैं.

तकरीबन साढ़े 5 बजे फोन के जरीए पुलिस को सूचना मिली थी. आशंका है कि बच्ची के साथ 4 बजे के आसपास वारदात हुई. शुरुआती जांच में उस मासूम किशोरी के साथ सैक्सुअल एसौल्ट की पुष्टि हुई.

पुलिस ने हत्या की कोशिश और पोक्सो एक्ट समेत कई धाराओं में केस दर्ज कर आरोपियों की तलाश में संभावित ठिकानों पर छापेमारी की. तकरीबन 36 घंटे बाद यानी 3 दिन बाद एक आरोपी को पकड़ने का पुलिस ने दावा किया.

पुलिस के मुताबिक, आरोपी ड्रग एडिक्ट है. उस पर पहले से ही चोरी के अलावा दूसरे आपराधिक मामले दर्ज हैं. इस के कारण वह जेल भी जा चुका है.

हाल ही में आरोपी जेल से बाहर आया था. जेल से छूटने के बाद पास के पार्क में ही आरोपी ठहरता था. पुलिस को आरोपी के बारे में सीसीटीवी कैमरे से सुराग हाथ लगा.

घटना को अंजाम दे कर आरोपी फरार होने के बाद आसपास की जगहों पर छिप रहा था. केस की पड़ताल में पुलिस ने क्रिमिनल अपराधियों की हिस्ट्रीशीट खंगाली. इस के अलावा जमानत पर छूट कर आए चोरउचक्कों की लोकेशन का पता किया. सीसीटीवी, पड़ोसियों और 100 से अधिक संदिग्धों से पूछताछ के बाद जांच की सूई इस आरोपी पर आ कर टिकी.

पुलिस के मुताबिक, वारदात के समय आरोपी नशे में था और चोरी के इरादे से कमरे में घुसा था. कमरे में अकेली बच्ची ने जब उसे टोका और शोर मचाने की कोशिश की तो  उस ने दबोच लिया.

आरोपी ने नशे में बेरहमी से लड़की पर कैंची से ताबड़तोड़ वार किए और उसे मरा हुआ समझ कर फरार हो गया.

पुलिस ने जब आरोपी को पकड़ा, तब उस के शरीर पर खरोंच के निशान पाए गए थे. इस से खुलासा यह हुआ कि बहादुर किशोरी ने जम कर मुकाबला किया.

वहीं दूसरी ओर जांच में जुटी टीम का मानना है कि मासूम बेसुध होने तक आरोपियों से मुकाबला करती रही. कमरे में बिखरा खून और पास ही पड़ी कैंची इस ओर इशारा कर रहे थे.

कैंची खून से सनी फर्श पर पड़ी थी. पास ही में सिलाई की मशीन रखी हुई थी. उसी सिलाई मशीन पर कैंची रखी थी. माता, पिता और बड़ी बहन हर रोज की तरह काम पर चले जाते थे. घर में किशोरी के पास मोबाइल फोन रहता था, पर वह बंद था.

मासूम किशोरी का एम्स में इलाज चल रहा है और वह जिंदगी और मौत से जूझ रही है. पर, उस ने अपने ऊपर हो रहे जुल्म का डट कर विरोध किया और उन से जम कर जूझी भी. वहीं जेल से छूट कर आए अपराधियों पर पुलिस का नकेल न कस पाना ऐसे अपराधों को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है.

लगता है, समाज में ओछी यानी गिरती हुई सोच और बदली मानसिकता पर लगाम लगा पाना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है, तभी तो इनसानियत यों शर्मसार हो रही है. यही वजह है कि आएदिन मासूम बच्चियों व किशोरियों पर हमले की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं.

 

कैंची खून से सनी फर्श पर पड़ी थी. पास ही में सिलाई की मशीन रखी हुई थी. उसी सिलाई मशीन पर कैंची रखी थी. घर में किशोरी के पास मोबाइल फोन रहता था, पर वह बंद था.

एक भाई ऐसा भी

नौ शाद अपने 6 भाइयों में दूसरे नंबर पर था, जो शारीरिक रूप से तो कमजोर था ही, मानसिक रूप से भी अपने बाकी भाइयों के मुकाबले काफी कमजोर था. बचपन से ले कर बुढ़ापे तक उस ने अपना सबकुछ अपने भाइयों और उन के बच्चों पर कुरबान कर दिया, पर जब आज उस की बीवी नजमा की मौत हो गई, तो उस के भाइयों ने उसे एक वक्त का खाना भी देना गवारा न समझ. उसे ऐसे झिड़क कर भगा दिया मानो वह कोई भिखारी हो. पर नौशाद का दिल इतना बड़ा था कि उसे उन की इन बातों का बुरा नहीं लगा और वह उन के छोटेछोटे मासूम बच्चों को अपनी औलाद की तरह घुमाताफिराता, खिलाता और अपनी जमापूंजी उन पर लुटाता रहा.

नौशाद अपने भाइयों के साथ बिजनौर जिले के नगीना शहर में रहता था. घर की माली हालत काफी कमजोर थी. नौशाद की अम्मी की मौत के बाद उस के अब्बा काफी टूट गए थे. अब उन का कामकाज में मन नहीं लगता था.

नौशाद की उम्र उस समय महज 14 साल थी, जब उस ने मजदूरी कर के अपने घर का सारा खर्चा तो उठाया ही, साथ ही अपने बड़े भाई और छोटे भाइयों की पढ़ाई का भी ध्यान रखा.

वक्त गुजरता गया. नौशाद अपने भाइयों को पढ़ाता रहा. मेहनतमजदूरी कर के घर में खानेपीने का सारा इंतजाम नौशाद की कमाई से चलता रहा.

नौशाद अपने भाइयों पर जान छिड़कता था और उन सब को कामयाब इनसान बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत करता था. उस ने जैसेतैसे खुद भी इंटर पास कर लिया था.

नौशाद के बड़े भाई आरिफ का बीएएमएस में एडमिशन हो गया और वे पढ़ने के लिए जयपुर चले गए. उस से छोटा भाई जुबैर डीएमएलटी करने दिल्ली चला गया. उस से छोटा भाई शान का मन पढ़ाई में न लगा तो वह रोजगार की तलाश में मुंबई निकल गया. बाकी 2 भाई अभी नगीना में रह कर पढ़ाई कर रहे थे.

बड़े भाई आरिफ की अभी पढ़ाई पूरी भी नहीं हुई थी कि उन की शादी हो गई. कमाई का कोई जरीया नहीं था, जिस से घर में काफी दिक्कतें आ रही थीं, पर नौशाद जीतोड़ मेहनत कर के घर के खर्चे पूरे कर रहा था.

वक्त के साथसाथ बड़े भाई आरिफ डाक्टर बन गए और नौशाद से छोटा भाई जुबैर अपना कोर्स पूरा कर के मुरादाबाद में नौकरी करने लगा.

2 भाइयों के कामयाब होने के बाद नौशाद ने चैन की सांस ली और अब नौशाद ने अपना भी निकाह कर लिया. बचपन से जीतोड़ मेहनत कर के आधी खुराक में जिंदगी गुजारतेगुजारते वह काफी कमजोर हो गया था. वक्त के साथसाथ सब भाई कामयाब हो गए और सब की शादी भी हो गई. वे सब अच्छी तरह जिंदगी गुजारने लगे.

सभी भाई शादी के बाद अपनीअपनी बीवियों के साथ जिंदगी गुजार रहे थे. किसी ने भी कभी यह नहीं सोचा कि जिस भाई ने उन के लिए इतना बलिदान किया है, उस के क्या हाल हैं.

घर के ज्यादातर हिस्सों पर नौशाद के बाकी भाइयों का कब्जा था, जबकि नौशाद के हिस्से में नाममात्र के लिए एक कमरा ही था और उस में भी और भाइयों के दहेज का सामान रखा रहता या मोटरसाइकिल खड़ी रहती, जिस से नौशाद और उस की बीवी को काफी दिक्कत होती, पर वे कभी कुछ न बोलते थे.

नौशाद अब काफी कमजोर हो चुका था. वक्त की मार ने उसे वक्त से पहले ही बूढ़ा बना दिया था. जैसेतैसे वह अपना और अपनी बीवी का खर्चा उठा रहा था. कभीकभी उसे और उस की बीवी को भूखे ही रहना पड़ता था, क्योंकि कमजोरी के चलते वह अब काम भी नहीं कर पाता था.

इस गरीबी के चलते नौशाद की बीवी भी बीमार रहने लगी और जल्द ही उस ने चारपाई पकड़ ली. अब नौशाद का ज्यादा वक्त अपनी बीवी की देखभाल और घर के कामकाज में बीतने लगा.

नौशाद के अब्बा का पुश्तैनी बाग था, जो अब बेच दिया गया, पर उस का सारा पैसा नौशाद के भाइयों के हाथों में ही सिमट कर रह गया और उन्होंने उस के हिस्से के पैसे भी अपने घर और दुकान बनाने में लगा लिए.

नौशाद के हिस्से में तकरीबन 7 लाख रुपए आए, पर उसे वह पैसा मिलना तो दूर देखना भी गवारा न हुआ. जब भी नौशाद अपने भाइयों से पैसे मांगता, तो वे कोई न कोई बहाना बना कर अपना पीछा छुड़ा लेते और कहते कि ‘तुम्हें क्या पैसे की जरूरत? न तुम्हारे कोई औलाद है, न तुम्हारा कोई खर्चा है.’

भाइयों का यह जवाब सुन कर नौशाद मन मार कर रह जाता. फिर नौशाद ने जब अपने पैसे पाने के लिए अपने अब्बा से अपने भाइयों पर जोर देने को कहा, तो उन्होंने उन से बात की और नौशाद के पैसे देने के लिए कहा.

वक्त बदल चुका था. नौशाद के अब्बा अब बूढ़े हो चुके थे और औलाद काबिल बन चुकी थी. उन्होंने अपने अब्बा की कोई बात नहीं सुनी और कह दिया कि ‘अभी हमारे पास पैसा नहीं है, जब होगा, तब दे देंगे’.

नौशाद की माली हालत काफी खराब हो गई थी. उस के अब्बा ने अपनी औलादों से नौशाद का खयाल रखने और उस का पैसा देने के लिए कहा, तो वे बड़ी मुश्किल से इस बात पर राजी हुए कि ‘हम उसे इकट्ठा पैसा तो नहीं देंगे, हां 50 रुपए रोजाना दे दिया करेंगे’.

अब नौशाद को खर्चे के लिए 50 रुपए मिलने लगे. उस की बीवी की तबीयत खराब रहती थी. उन पैसों से वह घर चलाए या अपनी बीवी का इलाज कराए, उस की समझ में नहीं आ रहा था. एक भाई 50 रुपए दे रहा था, जबकि बाकी भाई बोले कि ‘जब हमारे पास होंगे दे देंगे. अभी हमारे पास पैसा नहीं है’. नौशाद घंटों उन के घर पैसे के लिए एक भिखारी की तरह पड़ा रहता.

आज अपने हिस्से के पैसे लेने के लिए नौशाद भिखारी की तरह हाथ फैलाता, पर उसे कभी पैसे मिलते, तो कभी ?िड़क कर भगा दिया जाता.

कुछ ही महीनों में उस की बीवी की तबीयत ज्यादा खराब होने की वजह से वह इस दुनिया से चल बसी.

अब नौशाद तनहा हो कर रह गया. अभी तक भाईभाभियों ने उस का साथ छोड़ा था, पर अब उस की बीवी भी उसे इस बेरहम दुनिया में अकेला छोड़ कर चली गई थी.

नौशाद खर्चे से पहले ही परेशान था और अब तो उस के भाइयों ने उसे पैसा देना बिलकुल बंद कर दिया था. वह उन से पैसे मांगता, तो वे बोलते कि ‘तुझे क्या पैसों की जरूरत? तेरे कौन से बीवीबच्चे हैं. हां, अगर तुझे खाना खाना है, तो यहां आ कर खा लेना और हमारे बच्चों का खयाल रखना.’

नौशाद अब दिनभर अपने भाइयों के बच्चों की देखभाल करता, उन्हें हर वक्त गोद मे टांगे फिरता और उन का खयाल अपने बच्चों की तरह रखता, तब जा कर उसे रूखासूखा कुछ खाने को मिलता. अगर कभी तबीयत खराब होने की वजह से वह बच्चों को नहीं ले जा पाता, तो उसे बुराभला कह कर भगा दिया जाता और उसे उस दिन भूखे ही रहना पड़ता.

नौशाद के भाई जुबैर की बीवी एक नेक औरत थी. वह जब भी गांव आती, नौशाद का खयाल रखती, उसे अच्छा खाना खिलाती और इज्जत भी करती. वैसे, जुबैर ने नौशाद का कोई हक नहीं मारा. बस वह गांव से दूर अपने परिवार के साथ रहता था. गांव आनाजाना कम था, जिस वजह से वह नौशाद की कोई खास मदद नहीं कर पाता था.

जब भी जुबैर की बीवी गांव आती, नौशाद के लिए कपड़े लाती, उसे अच्छे से अच्छा खाना खिलाती और कुछ पैसे भी दे कर जाती थी.

नौशाद का छोटा भाई शान तो मुंबई में ही शिफ्ट हो गया था. वह कभी गांव नहीं आता था. उस ने अपने भाई नौशाद का कोई पैसा नहीं खाया, पर उस की इतनी गलती तो थी ही कि कभी गांव आ कर अपने भाई के हालात नहीं देखे और न ही उस की कोई मदद की.

नौशाद ने परेशान हो कर एक दुकान पर नौकरी की. वहां से उसे इतना पैसा मिल जाता, जिस से उसे दो वक्त की रोटी मिल जाती थी.

नौशाद बड़ा ही कमअक्ल इनसान था. उसे जो पैसे मिलते, वह उन्हें अपने भाइयों के छोटेछोटे बच्चों को खिलाने मे खर्च कर देता और खुद भूखा रहता.

नौशाद की भाभी हमेशा उसे बेइज्जत करती रहती और दानेदाने को मुहताज बनने पर मजबूर करती रहती. नौशाद का दिल साफ था. वह कभी अपने ऊपर हुए ज़ुल्म को दिल में नहीं रखता था और तनमन से अपने परिवार की सेवा करता था. साथ ही, सब के बच्चों को एक आया की तरह हर वक्त देखता था.

नौशाद के भाई और भाभी उसे बेवकूफ समझ कर उस का मजाक बनाते और उस की विरासत में मिली दौलत

को लूट कर अपनेआप को अक्लमंद समझते. वे लोग क्या जानें भाई के रिश्ते को. उन्हें तो ढंग से भाई शब्द का मतलब भी नहीं मालूम.

ऐसा है एक भाई जो अपनी जानमाल से अपने परिवार वालों की खिदमत कर रहा है और उन के दुख को अपना दुख समझ कर अपनी जिंदगी उन पर कुरबान कर रहा है.

ऐसे भाई लाखों में एक होते हैं, जो परिवार के लिए अपना सबकुछ बलिदान कर देते हैं और ऐसे भाई भी लाखों हैं, जो अपने भाई का खून चूसने में पीछे नहीं हटते.

रिहाई: अनवार मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

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हवस: मर्यादा तोड़ने का खतरनाक अंजाम

जय प्रकाश दोपहर में अपनी दुकान से घर आ गया. उस ने तय कर लिया था कि आज वह हर हाल में अपनी बीवी सीमा और उस के चचेरे भाई मनोज के असली चेहरे बेनकाब कर के रहेगा.

आंगन का दरवाजा बंद था. चारदीवारी फांद कर जय प्रकाश अंदर गया. दबे पैर चल कर उस ने बैडरूम के दरवाजे पर कान लगाया, तो अंदर से उसे सीमा और मनोज की बातें सुनाई पड़ीं.

‘‘काश, तुम मेरी बीवी बन कर जिंदगीभर मेरे साथ रहतीं?’’ यह मनोज की आवाज थी.

‘‘बीवी तो मैं दूसरे की हूं, लेकिन प्रेमिका के नाते तुम्हारे साथ बीवी जैसा फर्ज तो अदा कर रही हूं,’’ सीमा बोल रही थी.

‘‘मैं तुम्हें जिंदगीभर के लिए पाना चाहता हूं,’’ मनोज ने कहा था.

‘‘ठीक है, अगर कभी मेरे पति को हमारे नाजायज रिश्ते की जानकारी हो गई और उसी ने मु?ो अपने साथ रखने से मना कर दिया, तो तुम मु?ो अपनी बीवी बना लेना.

‘‘मैं क्या अपनी खुशी से जय प्रकाश के साथ रह रही हूं. यह मैं ही जानती हूं कि मैं उस से कैसे निबाह रही हूं. यह मेरी बदकिस्मती थी कि लाख कोशिशों के बावजूद मेरी तुम से शादी नहीं हो सकी, नहीं तो मैं आज तुम्हारी ही बीवी होती. खैर, छोड़ो उन सब बातों को, अपने कपड़े तो उतारो.’’

जय प्रकाश सबकुछ सम?ा गया, मगर दरवाजे पर दस्तक देने से पहले वह अपनी आंखों से कमरे का नजारा देख कर यह पक्का कर लेना चाहता था कि उन दोनों में नाजायज रिश्ता है.

दरवाजे में कोई छेद नहीं था, इसलिए वह खिड़की की तरफ बढ़ गया. उस ने खिड़की के पाटों के बीच एक दरार में आंख लगा दी.

भीतर का नजारा देख कर जय प्रकाश हैरान था. सीमा बिस्तर पर लेटी थी. मनोज उस से सट कर बैठा था. वह सीमा के होंठों और गालों को चूम रहा था.

जय प्रकाश का खून खौल उठा. उस का मन सीमा का कत्ल कर के जेल चले जाने का हुआ, मगर उस ने यह सोच कर इस विचार को छोड़ दिया कि अगर वह जेल चला जाएगा, तो उस के 3 साल के बेटे रोहित की परवरिश कौन करेगा?

मगर जय प्रकाश सीमा और मनोज को यों ही नहीं छोड़ना चाहता था. वह उन्हें सबक सिखाना चाहता था, इसलिए उस ने दरवाजे पर दस्तक दी.

दस्तक सुन कर वे दोनों सचेत हो गए. अपने कपडे़ ठीक करते हुए सीमा बिस्तर से उठ कर आई और दरवाजा खोल दिया.

जैसे ही सीमा की नजर जय प्रकाश पर पड़ी, उस का हलक सूख गया.

सीमा को कुछ कहे बिना जय प्रकाश कमरे में आ गया और उस ने मनोज को ढूंढ़ निकाला. वह पलंग के नीचे छिप गया था.

सीमा को लातघूंसों से मारते हुए जय प्रकाश ने कहा, ‘‘बदजात औरत, तू ने तो कहा था कि मनोज तुम्हारा चचेरा भाई है. महल्ले के लोग यों ही तु?ो बदनाम करते हैं.

‘‘अब बता कि यह सब क्या है? भाई के साथ कमरा बंद कर के क्या कोई चोंच से चोंच मिलाता है?’’

सीमा ने ?ाट से जय प्रकाश के पैर पकड़ लिए और अपनी गलती के लिए माफी मांगते हुए कहा कि अब वह मनोज के साथ नाजायज संबंध नहीं रखेगी.

जय प्रकाश सीमा को एक मौका और देना चाहता था, इसलिए उस ने उसे इस शर्त पर माफ किया कि वह आइंदा मनोज से नहीं मिलेगी.

मनोज के जाने के कुछ देर बाद जय प्रकाश अपने मकान से बाहर आया, तो वहां लोगों की भीड़ लगी थी. लोग उसे ऐसे देख रहे थे, जैसे आज उन्हें पता चला हो कि उन के महल्ले में कोई नामर्द रहता है.

पड़ोस की एक औरत ने जय प्रकाश के मुंह पर कह भी दिया, ‘‘क्यों भैया, मर्द नहीं हो क्या? बीवी को दूसरे मर्द के साथ सोते देख कर भी उसे माफ कर दिया?’’

जय प्रकाश सिर ?ाका कर अपने रास्ते चला गया. भला वह उस औरत की बात का क्या जवाब देता? उसे कैसे बताता कि अपने बेटे का खयाल कर के उस ने अपनेआप से सम?ौता किया है.

सीमा मुजफ्फरपुर के एक गांव की रहने वाली थी. मनोज का घर भी उसी गांव में था. वह सीमा से एक साल बड़ा था, मगर दोनों ने बीए तक एकसाथ पढ़ाई की थी.

जवानी की दहलीज पर आते ही मनोज सीमा की तरफ खिंच गया और उसे अपना दिल दे दिया.

सीमा भी मनोज को मन ही मन प्यार करती थी. दोनों का मिलनाजुलना शुरू हो गया. एक दिन मौका मिला, तो दोनों ने जिस्मों का मिलन भी कर लिया.

कुछ महीनों के बाद उन दोनों ने शादी कर के जिंदगीभर साथ रहने का फैसला किया, मगर उन की एक न चली.

दोनों एक ही गांव के थे और अलगअलग जाति के भी. उन के घर वाले जाति की दीवार तोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए.

आखिरकार सीमा की शादी जय प्रकाश से कर दी गई. वह कोलकाता का रहने वाला था. वहां उस की कपड़े की दुकान थी.

सीमा अपने पति के घर आ गई. पति से भरपूर प्यार और सासससुर का दुलार पा कर भी वह मनोज को भुला न सकी. जब भी मौका मिलता, सीमा मनोज को फोन कर लेती.

मनोज भी सीमा से मिलने के लिए कम बेचैन नहीं था.

इसी तरह 6 महीने बीत गए. मनोज अपनेआप पर काबू न रख सका. फोन पर सीमा से इजाजत ले कर एक दिन वह कोलकाता पहुंच गया.

सीमा ने पति और सासससुर से मनोज की पहचान अपने चचेरे भाई के रूप में कराई, इसलिए उन दोनों के नाजायज रिश्ते पर किसी को शक नहीं हुआ. एकदूसरे की बांहों में समा कर वे दोनों अपनी हवस शांत कर लेते.

जल्दी ही मनोज के घर वालों को पता चल गया कि वह सीमा से मिलने बारबार कोलकाता जाता है, फिर तो मनोज के पिता ने जल्दी ही उस की शादी वीणा से करा दी.

वीणा सीमा से भी ज्यादा खूबसूरत थी. लेकिन मनोज उस के रूपजाल में ज्यादा दिनों तक बंधा न रह सका.

अपनी शादी के 4 महीने बाद ही मनोज कोलकाता जा कर सीमा से मिला. उस समय वह मां बन चुकी थी. उस के बेटे का नाम रोहित था. इस के बावजूद सीमा ने मनोज से नाजायज संबंध नहीं तोड़ा.

सीमा से मिलने बारबार कोलकाता न आना पड़े, इसलिए मनोज ने वहीं रहने का फैसला किया.

कुछ कोशिश के बाद मनोज को एक कंपनी में नौकरी मिल गई. उसे सीमा के घर से कुछ ही दूरी पर किराए का मकान भी मिल गया.

जय प्रकाश रोजाना घर से सुबह 10 बजे दुकान जाता था. वहां से लौट कर वह रात के 10 बजे घर आता था. इस बीच सीमा पूरी तरह आजाद रहती थी. उस का जब भी मन होता, वह मनोज को घर बुला लेती.

मनोज की आजादी पर अंकुश उस समय लगा, जब उस की पत्नी वीणा गांव से शहर आ गई. उस की एक साल की बच्ची थी.

जल्दी ही वीणा को मनोज और सीमा के नाजायज संबंध की सारी जानकारी हो गई. फिर तो उन दोनों में सीमा को ले कर ?ागड़ा होने लगा.

मनोज किसी भी हाल में सीमा से नाजायज संबंध तोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ, तो एक दिन वीणा सीमा के घर गई.

उस ने सीमा को सम?ाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

सीमा ने उसी दिन मनोज को बुला कर बताया. मनोज को वीणा पर बहुत गुस्सा आया. उस ने घर जा कर वीणा की खूब पिटाई की और यह चेतावनी दी कि अगर उस ने फिर कभी सीमा से कुछ कहा, तो वह उसे तलाक दे देगा.

वीणा को इस बात से इतना धक्का पहुंचा कि एक दिन वह गले में साड़ी का फंदा लगा कर पंखे से ?ाल गई. खुदकुशी करने से पहले उस ने अपनी बेटी को भी जहर दे कर मार डाला था.

पत्नी और बच्ची की मौत के बाद भी मनोज नहीं सुधरा. उस ने पहले की तरह सीमा से नाजायज संबंध बनाए रखा.

सीमा ने भी इस घटना से कोई सीख नहीं ली.

वीणा ने जब अपनी बेटी को मार कर खुदकुशी की थी, तभी जय प्रकाश को किसी ने मनोज और सीमा के नाजायज संबंध के बारे में सबकुछ बता दिया था.

जय प्रकाश सीधासादा था. वह मन में छलकपट नहीं रखता था. सो, एक दिन उस ने सीमा से पूछा, ‘‘क्या यह सच है कि मनोज से तुम्हारा नाजायज रिश्ता है? तुम दोनों की वजह से ही मनोज की पत्नी ने खुदकुशी की थी?’’

पहले तो सीमा घबरा गई, मगर तुरंत उस ने अपनेआप को संभाल लिया और बोली ‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? महल्ले वालों की बातों में आ कर भाईबहन के पवित्र रिश्ते पर लांछन लगा रहे हैं? आप ही बताइए कि क्या मैं चरित्रहीन लगती हूं?’’ यह कह कर सीमा फफकफफक कर रोने लगी.

जय प्रकाश को उस की बात पर भरोसा हो गया और उस ने उसे यह कह कर चुप कराया कि अब वह उस पर शक नहीं करेगा.

इस के बाद 3 महीने और बीत गए. एक दिन जय प्रकाश के पड़ोस की मुंहबोली भाभी ने उसे मनोज और सीमा की सारी करतूतें बताते हुए कहा कि अगर उस ने जल्दी ही सीमा और मनोज के नाजायज संबंध को नहीं रोका, तो महल्ले के लोग उस की बीवी पर जिस्मफरोशी का आरोप लगा कर पुलिस के हवाले कर देंगे.

जय प्रकाश को अपनी मुंहबोली भाभी पर पूरा भरोसा था. उस ने मनोज और सीमा को रंगे हाथ पकड़ने का प्लान बना लिया.

अगले दिन ही जय प्रकाश दुकान से घर आया और उस ने सीमा को मनोज के साथ पकड़ लिया.

अपने बेटे का खयाल कर के जय प्रकाश ने सीमा को माफ कर दिया. मगर सीमा ने मनोज से नाजायज संबंध नहीं तोड़ा, वह सिर्फ सावधानी बरतने लगी.

2-3 महीने बाद जब सीमा को लगा कि महल्ले के लोग अब उस के पति के कान नहीं भरेंगे, तो उस ने फिर से मनोज को अपने घर बुलाना शुरू कर दिया.

एक दिन जय प्रकाश को एक काम से किसी रिश्तेदार के घर पटना जाना था. सीमा को 3 दिन बाद लौटने की बात कह कर वह चला गया, मगर उस की ट्रेन छूट गई और वह घर लौट आया.

उस समय शाम के 4 बज रहे थे. उस के घर के बाहर महल्ले के बहुत से लोग खड़े थे.

जय प्रकाश ने उस भीड़ में एक से पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘हम लोग यहां तमाशा देखने के लिए खड़े हैं. तुम अंदर जाओगे, तो खुद जान जाओगे कि यहां कैसा तमाशा हो रहा है.’’

जय प्रकाश उस शख्स की बात सम?ा नहीं पाया. वह चुपचाप आंगन में चला गया.

उस के बैडरूम का दरवाजा बंद था. पड़ोस में रहने वाला एक 16 साल का लड़का दरवाजे से आंख लगाए खड़ा था.

जय प्रकाश को गुस्सा आ गया.

उस ने लड़के का गरीबान पकड़ कर पूछा, ‘‘मेरे घर में ताक?ांक क्यों कर रहा है? चल, तेरे बाप को तेरी करतूत बताता हूं.’’

वह लड़का भी कोई कम नहीं था. उस ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘मेरे बाप को बाद में बताना, पहले दरवाजा खुलवा कर अपनी बीवी से पूछ कि तेरे रहते वह गैरमर्द के साथ कमरा बंद कर के क्या कर रही है?’’

जय प्रकाश के हाथों के तोते उड़ गए. लड़के ने अपना गिरेबान छुड़ाया और अपनी राह चला गया.

जय प्रकाश ने गुस्से में दरवाजा पीटना शुरू कर दिया.

जय प्रकाश को देखते ही सीमा डर गई. वह कुछ सम?ा नहीं पाई कि ऐसी हालत में उसे क्या करना चाहिए.

लेकिन जय प्रकाश सम?ा गया था कि सीमा और मनोज के दिल में हवस का तूफान है. वे दोनों सम?ाने वालों में से नहीं हैं, इसलिए उस ने छुटकारा पाने के लिए उन का कत्ल कर देना ही ठीक सम?ा.

जय प्रकाश ने बरामदे में पड़ी लोहे की छड़ उठाई और सीमा के सिर पर एक जोरदार वार किया, जिस से उस का सिर फट गया और वह चीख कर जमीन पर गिर गई.

सीमा का हश्र देख कर मनोज ने वहां से भागने की कोशिश की, मगर जय प्रकाश ने उसे भागने नहीं दिया.

लोहे की उसी छड़ से उस ने मनोज के सिर पर कई वार किए. जो हश्र सीमा का हुआ, वही मनोज का भी हुआ. थोड़ी देर में दोनों की लाशें बिछ गईं.

सूचना पा कर पुलिस आई और जय प्रकाश को गिरफ्तार कर के ले गई. रोहित अनाथ हो गया.

रिहाई- भाग 3: अनवर मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

उस दिन खासतौर पर खाला बी ने शौहर के लिए बीवी के फर्ज का बयान करते हुए बताया कि इसलाम में शौहर को दूसरा दरजा दिया गया है. एक किस्सा सुनाते हुए यों बयान किया कि एक शौहर ने बीवी को पानी पिलाने का हुक्म दिया. बीवी के पानी लातेलाते शौहर को नींद आ गई. बीवी ने शौहर की नींद में खलल न डाल कर पूरी रात हाथ में पानी का गिलास लिए खड़ा रहना मुनासिब समझा. बीवी की खिदमत देख कर कुदरत ने उस को बेशकीमती इनाम दिया. यह सुन कर महिलाएं भावविभोर हो गईं. कुछ तो पल्लू से आंसू पोंछने लगीं.

बातबेबात, कसूरवार हों या न हों, आएदिन लातजूते, गालीगलौज खाने वाली औरतों ने भी शौहर की लंबी जिंदगी की दुआएं मांगीं और खुद को नेक बीवी बनाने की शपथ भी ली.

अजीजा की सुनहरी चूडि़यों की खनक में हलाला के जलालत भरे दौर से गुजरने का जरा सा भी मलाल नहीं था. कुरैशा ने हिकारत भरी निगाहों से अपनी बहन अजीजा पर उचटती नजर डाली और तमतमाया चेहरा लिए झटके से उठ कर कमरे से बाहर आ गई.

खाला बी 3 महीने बाद अपने छोटे बेटे की मंगनी के लड्डू ले कर अनवार मियां के घर पहुंचीं. घर में अजीब सा सन्नाटा खिंचा था. इतने बड़े घर में सिर्फ बैठकखाने में ही पीली रोशनी वाला एकमात्र बल्ब जल रहा था.

‘‘अम्मी कहां हैं?’’ खाला बी ने अजीजा की छोटी बेटी से पूछा.

‘‘जीजी, वे ललितपुर गई हैं फूफी के घर,’’ बेटी का खौफजदा चेहरा और आवाज की थरथराहट को खाला बी ने भांप लिया.

‘‘कब तक वापस लौटेंगी?’’

‘‘जी, कुछ पता नहीं है,’’ बेटी का स्वर हकला गया.

खाला बी को याद आ गया, एक बार अजीजा ने बताया था कि अनवार मियां और उन के बहनोई में पैसों को ले कर जबरदस्त झगड़ा हो गया था, इसलिए दोनों घरों में आनाजाना बिलकुल बंद है. फिर अचानक अजीजा का उन के घर जाना और घर में इतनी खामोशी. कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जिंदगी

को नए सिरे से शुरू करने के मधुर एहसास को अजीजा के मुंह से सुनने की बेताबी खाला बी के अंतर्मन में कुलबुला रही थी. आखिर बचपन में मदरसे में अलिफ, बे, ते, से का सबक शुरू करने से ले कर बालों में चांदी चमकने तक का दोनों का पलपल साथ रहा. दोनों ने एकदूसरे से सुखदुख, प्यारमोहब्बत, अमीरीगरीबी के एहसासों को साथसाथ दिल खोल कर बांटा है.

‘‘बस दोचार दिन में वापस आ जाएंगी अम्मी,’’ अजीजा के बड़े बेटे ने छोटी बहन को आंखों ही आंखों में अंदर जाने का इशारा करते हुए तपाक से जवाब दिया.

‘‘अच्छाअच्छा, घर में और तो सब ठीक है न. मेरा मतलब अब्बूअम्मी के बीच अब कोई तकरार…’’ किसी के घर के अंदरूनी मामले की टोह लेने जैसा अपराधबोध खाला बी को छील गया.

‘‘जी, सब ठीक है,’’ बात को एक झटके में खत्म करने की कोशिश की बेटे ने.

‘‘शुक्र है कुदरत का. अच्छा, तो मैं चलती हूं. खुदाहाफिज,’’ कह कर इत्मीनान की सांस ले कर खाला बी सीढि़यों से उतरने लगीं तो जीने के नीचे के स्टोररूम का दरवाजा हिलता दिखाई दिया. खाला बी ने मोबाइल की रोशनी से देखा तो दरवाजे की सांकल में बड़ा सा ताला लटका दिखाई पड़ा. फिर अंदर से दरवाजा कौन हिला रहा है? कहीं कोई जानवर धोखे से बंद तो नहीं हो गया कमरे में. वापस मुड़ कर अजीजा के बच्चों को वे यह बताना ही चाहती थीं कि दरवाजे से मद्धिममद्धिम नारी स्वर में अपना नाम पुकारे जाने की आवाज सुनाई पड़ी. झट सीढि़यों से नीचे उतर कर स्टोररूम के दरवाजे पर कान रख कर सुनने लगीं. नारी स्वर फिर उभरा, ‘‘आपा बी, मैं अजीजा, मुझे बाहर निकालो,’’ अजीजा की सिसकियों भरी आवाज साफ सुनाई पड़ी.

ठीक उसी वक्त ऊपर से किसी के नीचे उतरने की आहट आने लगी. खाला बी काले नकाब और स्याह अंधेरे का फायदा उठा कर जीने की नीचे वाली दीवार से चिपक गईं सांस रोके हुए. धीरेधीरे अजीजा के बड़े बेटे के कदमों की आहट मेन गेट से बाहर चली गई तो खाला बी दबे कदमों से फिर स्टोररूम के दरवाजे की झिरी पर अपने कान रख कर सुनने लगीं :

‘‘आपा बी, मुझे 8 दिनों से इस कोठरी में बंद कर रखा है, भूखाप्यासा.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ खाला बी की बेचैनी बढ़ती चली गई और वे दम साधे सुनने लगीं.

‘‘लालची व दौलत के भूखे हैं मेरे शौहर और बेटे. मेरे नाम पर यह 10 कमरों का मकान है, 8 लाख की बीमा पौलिसी अगले महीने मैच्योर होने वाली है और 5 एकड़ आम के बगीचे वाली जमीन भी मेरे नाम पर है. केस हार जाने पर इन को मेरा खानाखर्चा, मेहर और दहेज वापस देना पड़ता और पूरी जायदाद पर सिर्फ मेरा हक होता. इन के सारे अधिकार खत्म हो जाते. सब कंगाल हो जाते. इसलिए मुझे बहलाफुसला कर दोबारा निकाह करने की साजिश रची गई. मुझ पर पूरी जायदाद अनवार मियां के नाम पर करने का दबाव डाला जा रहा है. मेरे इनकार करने पर मुझे जानवरों की तरह पीटा और यहां बंद कर दिया है.’’

‘‘क्या तुम्हारे बच्चों को ये सब मालूम है?’’ खाला बी ने फुसफुसा कर पूछा.

‘‘हां, बेटियों को छोड़ कर सभी बेटे इस षड्यंत्र में शामिल हैं. मुझे बहलानेफुसलाने और जज्बाती तौर पर धोखा देने में बेटों का पूरापूरा हाथ है और शौहर ने तो निकाह के बाद एक बार भी मुझ से बात नहीं की, यह कह कर कि मैं दूसरे की जूठन को खाना तो दूर देखना भी पसंद नहीं करता. आपा बी, मुझे इन शैतानों और निहायत गिरे हुए खुदगर्ज शौहर और बेटों से बचा लीजिए.’’

अजीजा की घुटीघुटी दम तोड़ती आवाज ने खाला बी को अंदर तक कंपकंपा दिया.

इतनी गंदी और भयानक सचाई ये नमाजीपरहेजगार अनवार मियां की शातिर दिमागी और ऐसी तुरुपचाल…अफसोस, चंद रुपयों और जायदाद के लिए पत्नी के साथ इतना बड़ा विश्वासघात और घिनौना अमानवीय व्यवहार?

अजीजा की कैदियों सी हालत देख कर खाला बी का कलेजा कांप गया, रोंगटे खड़े हो गए. बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए कांटे उगे गले से बोलीं, ‘‘अजीजा, किसी भी कागज पर किसी भी सूरत में दस्तखत मत करना. बस, चंद घंटे की इस काली रात को और काट लो, हिम्मत से. मैं जल्द ही तुम्हारी रिहाई का इंतजाम करती हूं. हौसला रखना, बहन,’’

खाला बी अनवार मियां के घर की बाउंड्री से चिपकती हुई धीरेधीरे मेनगेट से बाहर निकल गईं.

दूसरे दिन तड़के ही खाला बी की रिपोर्ट पर पुलिस ने अनवार मियां की कोठी से अजीजा को जख्मी और मरणासन्न हालत में बाहर निकाला. अजीजा के बयान पर पुलिस ने अनवार मियां और उन के बेटों को हथकड़ी डाल कर पैदल ही महल्ले की गलियों से ले जाते हुए पुलिस हवालात तक पहुंचा दिया.

पूरे 1 महीने बाद कुरैशा ने अजीजा के सामने अनवार मियां के खिलाफ किए जाने वाले केस के कागजात रख दिए. अजीजा दस्तखत करते हुए खाला बी और कुरैशा को भीगी आंखों से देखते हुए भर्राए गले से बस इतना ही बोल पाई, ‘‘मेरी रिहाई और मेरा आत्मसम्मान लौटाने का शुक्रिया.’’

रिहाई- भाग 2: अनवर मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

घर आ कर कुरैशा छत पर जा कर बैठ गई. अभी भी गुस्से से उस के चेहरे की मांसपेशियां तनी हुई थीं. अपनी ही बहन अजीजा के प्रति उस का मन कड़वाहट से भरा था.

अभी पिछले बरस तक तो अजीजा का भरापूरा खुशियों से लहलहाता घरपरिवार था. 4 बेटे और 2 बेटियों के साथ जिंदगी मजे से कट रही थी. खिदमतगुजार अजीजा शौहर को हाकिम समझती रही. उन की हां और ना पर ही घर के फैसले लिए जाते. बहस की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती थी अजीजा कभी भी.

मगर दूसरी बेटी का रिश्ता एक धन्नासेठ के सजायाफ्ता बेटे से करने के फैसले को ले कर पतिपत्नी के बीच मनमुटाव हो गया. 22 साल की जिंदगी में पहली बार अनवार मियां ने अजीजा को अपने सामने मुंह खोल कर विरोध करते देखा. तिलमिला गए वह. मर्दाना गुरूर का सांप फन उठा कर खड़ा हो गया. 3-4 थप्पड़ जड़ दिए अजीजा के गाल पर. लेकिन बदन के निशान अजीजा को उस के फैसले से डिगा नहीं पाए. नतीजा तलाक, तलाक, तलाक. बरसों के रूहानी, जिस्मानी, सामाजिक और मजहबी रिश्ते की धज्जियां उड़ा दीं पुरुष प्रधान समाज के एक प्रतिनिधि ने अपने अहं को चूरचूर होते देख कर.

धार्मिक कानून को कट्टरता से मानते हुए अनवार मियां ने एक ही झटके में तिनकातिनका जोड़ कर घरगृहस्थी जमाने वाली, सुखदुख में बराबर शामिल रहने वाली अजीजा को घर से बेदखल कर दिया. उस दिन न आसमान कराहा, न जमीन सिसकी. सबकुछ वैसा ही चलता रहा जैसे मुसलमान औरत की यही नियति हो. तब कुरैशा ही रोतीबिलखती अजीजा की जिंदा लाश को कंधों का सहारा दे कर अपने घर ले गई थी.

महल्ले वालों व रिश्तेदारों ने सुना, लेकिन किसी ने भी सुलहसफाई की जरूरत नहीं समझी. एक तलाक का हथौड़ा और किरचियों में बदलते खुशहाल जिंदगी के शीशमहल से सपने. क्या गारंटी है रिश्तों के ताउम्र कायम रहने की? मतभेद का हलका सा जलजला आया और बहा ले गया बरसों की मेहनत के बाद खड़े किए गए आशियाने को. पानी उतरा तो दूरदूर तक, उस के अवशेष ढूंढ़ने पर भी न मिले. वक्त बहा ले गया रिश्तों की बुरादा हुई हड्डियों को.

अजीजा ने बचपन में मदरसे से उर्दू और अरबी का ज्ञान हासिल किया था. यही ज्ञान आड़े वक्त में उस के काम आया. महल्ले के बच्चों को ‘अलिफ बे पे’ पढ़ापढ़ा कर जीविका चलाने लगी.

अनवार मियां की जहालत और गुस्से की इंतेहा अखबार में पढ़ी गई, ‘तलाकनामे का हल्फिया बयान’.

‘‘अनवार मियां ने अजीजा के तलाक पर मजहबी मुहर भले ही लगा दी हो समाज के सामने, लेकिन कोर्ट का कानून अजीजा को उस के हक से महरूम न रखेगा. बहन के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ूंगी,’’ सीना ठोंक कर बोली कुरैशा.

रऊफ बीड़ी वालों ने अपने अजीज दोस्त वकील का पता दे दिया और अजीजा की तरफ से खानाखर्चा, महर और दहेज वापस लेने का दावा ठोंक दिया गया अनवार मियां पर. महल्ले के इज्जतदार और हकपसंद लोगों ने पैसे से साथ दिया. 4 महीने गुजर गए, बेटों ने मां को पलट कर नहीं देखा. हां, बेटियां जरूर चोरीछिपे आ कर मां से मिल लिया करतीं.

उस दिन कचहरी में अजीजा के सामने पड़ गए अनवार मियां. दोनों हाथ जोड़ कर भीगे स्वर में बोले, ‘‘घर आप का है. आप ही मालकिन हैं. तलाक दे कर मैं पछतावे की आग में झुलस रहा हूं. गलती हो गई मुझ से. गुस्सा हराम होता है. आप मुझे माफ कर दीजिए. इस से पहले कि हमारा आशियाना वक्त और हालात की आंधी में नेस्तनाबूद हो जाए,’’ सुन कर अजीजा चुप रही.

केस की तारीखों पर अकसर जानबूझ कर अजीजा के सामने पड़ जाते अनवार मियां और हर बार गिड़गिड़ाते हुए नई पेशकश करते, ‘‘आप जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा घर में. मैं औफिस, महल्ले और कोर्ट में सिर उठा कर चल नहीं पा रहा हूं. हर सवालिया निगाह मुझे भीतर तक छीले जा रही है. बिना मां के जवान बेटियों को कब तक संभाल सकूंगा मैं?’’

बरसों से जिस घर से अजीजा पलपल जुड़ी रही, उसे इतनी आसानी से कैसे भुला देती. बच्चों की ममता उसे बारबार खयालों में अपने घर की चौखट पर ला कर खड़ा कर देती. स्वार्थपरता से कोसों दूर भोली अजीजा अनवार मियां की तिकड़मी और चालाकी भरी बातों के पीछे छिपी चाल को समझ कर ताड़ने का विवेक कहां से लाती?

अनवार मियां पर किए गए केसों का फैसला नजदीक ही था कि एक रात अजीजा ने कुरैशा को अपना फैसला सुना कर उसे आसमान से जमीन पर गिरा दिया. कुरैशा के कानों में जहरीले सांप रेंगने लगे और वह सन्न खड़ी अजीजा के भावहीन चेहरे को एकटक देखती रह गई. कुरैशा भीतर तक मर्माहत हुई.

कुर्बान कसाई ने अनवार मियां से 50 हजार रुपए लिए थे अजीजा से निकाह कर के उसे अपने साथ एक रात सुलाने और दूसरे दिन तलाक देने के लिए. सिर्फ सिर पर एक छत की सुरक्षा और बच्चों के मोह में औरत को अपना जिस्म नुचवाना पड़े अनचाहे गैर मर्द से, यह शरीअत का कैसा कानून है? यह सोच कर कुरैशा के दिलोदिमाग में भट्ठियां सुलगने लगी थीं.

कुछ दिन बाद कुरैशा ने अनवार मियां के साथ रेशमी लिबास में लदीफंदी अजीजा को स्कूटर पर बैठ कर जाते देखा. कलेजा पकड़ कर बैठ गई, ‘‘या मेरे मालिक, क्या इसलाम में औरत को इतना कमजोर कर देने के लिए बराबरी का दरजा दिया है?’’

इस घटना के बाद, हर हफ्ते शुक्रवार के दिन महिलाओं की बैठकी में अजीजा का जिक्र किसी न किसी बहाने से निकल ही आता. नमाजरोजे की पाबंद, इसलामी कानून पर चलने वाली खाला बी ने अजीजा का हलाला के बाद अनवार मियां से दोबारा निकाह करने को नियति का फैसला करार दिया. अजीजा का यह मजबूत और सार्थक कदम मजहबपरस्ती की बेमिसाल सनद बन गया. लेकिन कुरैशा अंदर तक धधक गई. मर्दों के जुल्म को, औरतों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाली साजिशें करार देती रही और औरतों को अपने अधिकारों की जानकारी रखते हुए अपने अस्तित्व को पहचानने का मशवरा देती रही.

मजहबी कानूनों की अधकचरी जानकारी रखने वाली कट्टरपंथी खाला बी और आधुनिक विचारों वाली कुरैशा के बीच अकसर बहस छिड़ जाती और बुरकों का लबादा ओढ़े मुसलिम औरतें खाला बी के बयानों से प्रभावित होतीं व कुरैशा को मजहब के प्रति बागी और नाफरमान घोषित कर देतीं.

उस दिन हाथों में कुहनी तक मेहंदी रचाए, आंखों में सुरमा डाले, इत्र में सराबोर, मुसकान भरा चेहरा लिए अजीजा महिला सम्मेलन में आई तो वहां पर मौजूद सभी औरतों की हैरत भरी निगाहें उस पर टिक गईं. रेशमी कपड़ों की सरसराहट, बारबार सिर से ढलक जाता कामदार शिफौन का दुपट्टा, भीनीभीनी उठती इत्र की खुशबू ने अजीजा की मौजूदगी को कुछ लमहों के लिए मजहबीरूहानी एहसास को दुनियाबी, भौतिकवादी, ऐशोआरामतलबी के जज्बे से भर दिया.

रिहाई- भाग 1: अनवार मियां के जाल में फंसी अजीजा का क्या हुआ?

‘‘अस्सलाम अलैकुम,’’ कुरैशा ने नकाब उठा कर सलाम किया.

‘‘वालेकुम अस्सलाम,’’ कमरे में मौजूद कई औरतों ने एकसाथ जवाब दिया. वहां धार्मिक ज्ञान के आदानप्रदान के लिए औरतों की एक बैठकी होनी थी.

‘‘अजीजा नहीं आई?’’ खाला बी ने छूटते ही पूछा. सुन कर कुरैशा का चेहरा तमतमा गया. गुस्से से कुछ कहना चाहती थी लेकिन कमरे में बैठी 20-25 औरतों के चलते उस ने सख्ती से होंठ भींच कर चुप्पी साध ली.

इत्र और अगरबत्ती की खुशबू ने महिलाओं के नकाबों से उठती पसीने की बदबू को कुछ हद तक दबा दिया था.

महल्ले में सब से ज्यादा धार्मिक जानकारी रखने वाली खाला बी ने कुदरत की तारीफ करने के साथ बैठकी की शुरुआत की. रोजा व नमाज हर मर्द और औरत का फर्ज है, यह बता कर पाबंदी से उस की अदायगी के तरीके समझाए. कब और किन परिस्थितियों में औरत को नमाज नहीं पढ़नी है, यह भी बताया. किसी की बुराई करने, किसी का अधिकार छीनने पर कुदरत की मार पड़ने की जानकारी देते हुए वे देर तक मजहबी बातें बताती रहीं.

दोपहर और शाम के बीच की नमाज की अजान होते ही महिलाएं नमाज पढ़ने लगीं. उस के बाद खाला बी की तलाकशुदा बेटी ट्रे में चाय के कप ले कर हाजिर हो गई. बहुत देर से जबान बंद रखने की सजा पर सब्र किए बैठी, हमेशा बोलते रहने वाली कुदरत खाला ने बारबार फिसलते दुपट्टे को सिर पर ठीक से रखते हुए कुरैशा से पूछ ही लिया, ‘‘आप की बहन अजीजा दिखाई नहीं देती, तबीयत खराब है क्या? वह तो कभी गैरहाजिर नहीं रहती?’’

बारबार अपनी बड़ी बहन अजीजा के बारे में पूछे जाने पर कुरैशा की आंखों से चिनगारियां फूटने लगीं, तभी खाला बी बोल पड़ीं, ‘‘अल्लाह जाने, हमारे छोटे बेटे इदरीस मियां बता रहे थे कि अजीजा कल अपने शौहर अनवार मियां के साथ तांगे पर बैठ कर कहीं जा रही थी.’’

सुनते ही हलीमा खाला झनझना गईं, ‘‘तौबातौबा, जिस शौहर ने 6 महीने पहले तलाक दे कर घर से बेघर कर दिया, उसी के साथ फिर मिलनाजुलना? छीछीछी, गुनाह है गुनाह.’’

‘‘मौलाना साहब बता रहे थे कि अजीजा को तलाक दे कर अनवार मियां बहुत दुखी और शर्मिंदा हैं. अपनी बिखरी जिंदगी को फिर से संवारने के लिए…’’ कुरैशा की तरफ गहरी नजर डालते हुए बोलतेबोलते बीच में रुक गईं मौलाना साहब की बीवी.

‘‘हांहां, बताइए न, क्या चाह रहे हैं अनवार मियां? क्या बतला रहे थे मौलाना साहब?’’ नसरीन आपा की चटपटी खबर को जानने की उत्सुकता छिपाए न छिपी.

‘‘तो क्या अनवार मियां दोबारा अजीजा से निकाह करना चाहते हैं?’’ बहुत देर से चुप बैठी बिलकीस फूफी ने पान का बीड़ा मुंह में डालते हुए गंभीरता से पूछा.

मौलाना साहब की बीवी कुरता उठा कर अपने बच्चे को दूध पिलाती हुई बोलीं, ‘‘महल्ले में तो यही खबर गरम है.’’

‘‘जी, मैं ने भी कुछ ऐसा ही सुना है. फरहान के अब्बू बतला रहे थे कि अनवार मियां अपने दोस्त कुरबान कसाई से अजीजा का निकाह करवा कर दूसरे ही दिन तलाक करवा कर खुद अजीजा के साथ दोबारा निकाह कर लेंगे,’’ इशाक साइकिल वाले की बीवी ने जानकारी दी.

‘‘हलाला यानी कि  तलाक के बाद उसी औरत से दोबारा निकाह करना चाहते हैं अनवार मियां,’’ तभी हुसैना फूफी ऐसी बेफिक्री से बोलीं जैसे हलाला सिर्फ एक धार्मिक रस्म की अदायगी भर है.

‘‘तो क्या अजीजा भी अनवार मियां से दोबारा निकाह करने के लिए तैयार है?’’ सईद ठेकेदार की पत्नी ने कुरैशा की तरफ व्यंग्यात्मक नजर डालते हुए पूछा.

‘‘अगर न होती तो जाती ही क्यों तलाक देने वाले शौहर के साथ,’’ एक महिला ने कहा.

कुरैशा को लगा कि एक करारा थप्पड़ जड़ दिया किसी ने उस के गाल पर.

‘क्या हो गया अजीजा को? क्यों सरेआम अपनी और मेरी बेइज्जती करवा कर अपने ही हाथों अपनी खिल्ली उड़वा रही है,’ सोचती हुई बड़ी बहन के प्रति घृणा से भर गई कुरैशा.

‘‘बराबर के 6 बच्चों के सामने अजीजा के शौहर ने उसे तलाक दिया. कितनी बदनामी हुई समाज में, कितनी जिल्लत उठानी पड़ी. अब रहीसही इज्जत भी हलाला के तहत उसी शौहर से दोबारा निकाह करने पर मिट्टी में मिल जाएगी,’’ हिफाजत तांगे वाले की अम्मा ने चिंता जताई.

‘‘इस में इज्जत जाने वाली क्या बात है? दरअसल, यह शौहर को अपनी गलती पर पछतावा कर के फिर से नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करने का एक मौका है,’’ इकबाल टायर वाले की बीवी ने कहा.

‘‘अपनी गलती की सजा शौहर को खुद भुगतनी चाहिए, न कि दूसरे मर्द के पास बीवी को भेज कर जिंदगी भर अपनी ही नजर में गिर कर जलील होने की सजा देनी चाहिए?’’ कुरैशा भड़क उठी.

‘‘कुरैशा, जब हमारा मजहब ही मुसलमान मर्दों को अपनी गलती सुधारने का मौका देता है तो किसी को भला क्यों एतराज होगा,’’ खाला बी की दलीलों में इसलामी कानून का जिक्र आते ही सारी औरतें चुप हो गईं.

 

मजहब के इस कानून को औरतजात का शारीरिक व मानसिक शोषण मानने वाली आधुनिक सोच रखने वाली कुरैशा ने पूरी ताकत से अपनी आवाज बुलंद की, ‘‘बहनो, जरा सोचिए, छोटी सी बात को ले कर मर्द ने औरत को तलाक दे कर समाज की नजर से गिरा दिया, फिर औरत को ही अपने शौहर को दोबारा हासिल करने के लिए एक रात दूसरे मर्द के साथ जिस्मानी रिश्ते से गुजरना पड़े तो क्या यह औरतजात के डूब मरने के लिए काफी नहीं है?

मैं कहती हूं, यह जुल्म है, इंसानियत के नाम पर धब्बा है, मानवाधिकारों का हनन है, औरत के स्वाभिमान को कुचलने की साजिश है. कोई भी औरत कभी भी ऐसी शर्तों को मानने के लिए न तो दिल से तैयार होती है न ही जिस्मानी तौर पर,’’ गुस्से की उत्तेजना से कुरैशा का सांवला रंग तांबई हो गया.

‘‘लेकिन कुरैशा, मजहब के कानून में अगरमगर या बहस और शक की कोई गुंजाइश नहीं होती. इसलामी कायदेकानून में सूत बराबर भी फेरबदल करने वाला शख्स मुसलमान होने की शर्त से ही खारिज कर दिया जाता है,’’ खाला बी ने समझाने की कोशिश की.

‘‘लेकिन औरतें इस जलील समझौते के लिए तैयार क्यों हो जाती हैं? मेरी समझ में नहीं आता. क्या औरत की अपनी कोई इज्जत नहीं? उस की अपनी राय और फैसले की कोई अहमियत नहीं? क्या उस का जमीर खुद उसे झकझोरता नहीं कि वह अपने ही शौहर को हासिल करने के लिए दूसरे मर्द की बांहों में जाने के लिए मजबूर हो? भले ही एक रात के लिए. अपनी पाकीजगी पर धब्बे लगा कर औरतजात के पैदा होने को ही उस की बदनसीबी साबित कर दे.

‘‘पता नहीं अनवार मियां ने सीधीसादी, अनपढ़ अजीजा को ऐसी क्या उलटीसीधी पट्टी पढ़ा दी है कि वह उन के साथ दोबारा निकाह करने के लिए तैयार हो गई…बेवकूफ, बुजदिल कहीं की,’’ कुरैशा के अंदर का सुलगता ज्वालामुखी फट पड़ा, जिस की तपन में महफिल झुलस गई.

बिचौलिए: क्यों मिला वंदना को धोखा

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बिचौलिए: क्यों मिला वंदना को धोखा- भाग 4

दिनेश साहब स्कूटर पर अपने घर की तरफ जाते ताजा देखी फिल्म का एक रोमांटिक गीत सारे रास्ते गुनगुनाते रहे. समीर और वंदना के मध्य बिचौलियों की भूमिका निभाते हुए दोनों खुद भी प्रेम की डोरी में बंध गए थे, यह बात दोनों की समझ में आ गई थी. सीमा के अनुमान के मुताबिक, वंदना और समीर के बीच खेले जा रहे नाटक का अंत हुआ जरूर पर उस अंदाज में नहीं जैसा सीमा ने सोच रखा था.

वंदना को दिनेशजी के पीछे स्कूटर पर बैठ कर लौटते देख समीर किलसता है, इस की जानकारी उस के तीनों सहयोगियों को थी. वे पूरा दिन समीर के मुंह से उन के खिलाफ निकलते अपशब्द भी सुनते रहते थे. सीमा को नहीं, पर ओमप्रकाश और महेश को समीर से कुछ सहानुभूति भी हो गई थी.

उन्हें भी अब लगता था कि वंदना और दिनेश साहब के बीच कुछ अलग तरह की खिचड़ी पक रही थी. वे उस की बातों पर कुछ ज्यादा ध्यान देते थे. गुरुवार को भोजनावकाश में दिनेशजी और वंदना साथसाथ सीमा के पास किसी कार्यवश आए, तो समीर अचानक खुद पर से नियंत्रण खो बैठा.

‘‘सर, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं,’’ अपना खाना छोड़ कर समीर उन तीनों के पास पहुंच, तन कर खड़ा हो गया.

‘‘कहो, क्या कहना चाहते हो,’’ उन्होंने गंभीर लहजे में पूछा.

ओमप्रकाश और महेश उत्सुक दर्शक की भांति समीर की तरफ देखने लगे. सीमा के चेहरे पर तनाव झलक उठा. वंदना कुछ घबराई सी नजर आ रही थी.

‘‘सर, आप जो कर रहे हैं, वह आप को शोभा नहीं देता,’’ समीर चुभते स्वर में बोला.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारी इस बात का?’’ वे गुस्सा हो उठे.

‘‘वंदना और आप की कोई जोड़ी नहीं बनती. आप को उसे फंसाने की गंदी कोशिशें छोड़नी होंगी.’’

‘‘यह क्या बकवास…’’

‘‘सर, एक मिनट आप शांत रहिए और मुझे समीर से बात करने दीजिए,’’ दिनेश साहब से विनती करने के बाद सीमा समीर की तरफ घूम कर तीखे लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें वंदना के मामले में बोलने का कोई अधिकार नहीं, समीर. वह अपना भलाबुरा खुद पहचानने की समझ रखती है.’’

‘‘मुझे पूरा अधिकार है वंदना के हित को ध्यान में रख कर बोलने का. तुम लाख वंदना को भड़का लो, पर हमें अलग नहीं कर पाओगी, मैडम सीमा.’’

‘‘अलग मैं नहीं करूंगी तुम दोनों को, मिस्टर. तुम ही उसे धोखा दोगे, इस बात को ले कर वंदना के दिमाग में कोई शक नहीं रहा है,’’ सीमा भड़क कर बोली.

‘‘यह झूठ है.’’

‘‘तुम ही राजेशजी की बेटी को देखने गए थे. फिर तुम्हारी बात पर कौन विश्वास करेगा?’’ सीमा ने मुंह बिगाड़ कर पूछा.

‘‘वह…वह मेरी गलती थी,’’ समीर वंदना की तरफ घूमा, ‘‘मुझे अपने मातापिता के दबाव में नहीं आना चाहिए था, वंदना. पर उस बात को भूल जाओ. यह सीमा तुम्हें गलत सलाह दे रही है. दिनेश साहब के साथ तुम्हारा कोई मेल नहीं बैठता.’’

‘‘तो किस के साथ बैठता है?’’ वंदना को कुछ कहने का अवसर दिए बिना सीमा ने तेज स्वर में पूछा.

‘‘म…मेरे साथ. मैं वंदना से प्यार करता हूं,’’ समीर ने अपने दिल पर हाथ रखा.

‘‘तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता, समीर.’’

‘‘मैं वंदना से शादी करूंगा.’’

‘‘तुम ऐसा करोगे, क्या प्रमाण है इस बात का?’’

‘‘प्रमाण यह है कि मेरे मातापिता हमारी शादी को राजी हो गए हैं. उन्हें मैं ने राजी कर लिया है. पर…पर मुझे लगता है कि मैं वंदना का प्यार खो बैठा हूं,’’ समीर एकाएक उदास हो गया.

‘‘कब तक कर लोगे तुम वंदना से शादी?’’ सीमा ने उस के आखिरी वाक्य को नजरअंदाज कर सख्त लहजे में पूछा.

‘‘इस महीने की 25 तारीख को.’’

‘‘यानी 10 दिन बाद?’’ सीमा ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां.’’

सीमा, वंदना और दिनेश साहब फिर इकट्ठे एकाएक मुसकराने लगे. समीर आर्श्चयभरी निगाहों से उन्हें देखने लगा.

‘‘समीर, वंदना और मेरे संबंध पर शक मत करो,’’ दिनेश साहब ने कदम बढ़ा कर दोस्ताना अंदाज में समीर के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘वंदना सिर्फ मेरी है, मेरे दिल का यह विश्वास तुम्हारी पिछले दिनों की हरकतों से डगमगाया है, वंदना,’’ समीर आहत स्वर मेें बोला.

‘‘वे सब बातें मेरे निर्देशन में हुई थीं, समीर,’’ सीमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘वह सब एक सोचीसमझी योजना थी. सर और मेरी मिलीभगत थी इस मामले में. वह सब नाटक था.’’

‘‘मैं कैसे विश्वास कर लूं तुम्हारी बातों  का, सीमा?’’ समीर अब भी परेशान व चिंतित नजर आ रहा था.

‘‘मैं कह रही हूं न कि वंदना और दिनेश साहब के बीच कोई चक्कर नहीं है,’’ सीमा खीझ भरे स्वर में बोली.

समीर फिर भी उदास खड़ा रहा. वातावरण फिर तनाव से भर उठा.

‘‘भाई, तुम्हारा विश्वास जीतने का अब एक ही तरीका मुझे समझ में आता है,’’ दिनेश साहब कुछ झिझकते हुए बोले, ‘‘मैं प्रेम करता हूं, पर वंदना से नहीं. कल शाम ही सीमा और मैं ने जीवनसाथी बनने का निर्णय लिया है,’’

‘‘सच, सीमा दीदी?’’ वंदना के इस प्रश्न के जवाब में सीमा का गोरा चेहरा शर्म से गुलाबी हो उठा.

‘‘हुर्रे,’’ एकाएक समीर जोर से चिल्ला उठा, तो सब उस की तरफ आश्चर्य से देखने लगे.

‘‘बहुत खुश हो न, वंदना को पा कर तुम, समीर,’’ दिनेश साहब हंस कर बोले, ‘‘तुम्हें सीमा का दिल से धन्यवाद करना चाहिए. वह एक समझदार बिचौलिया न बनती, तो वंदना और तुम्हारी शादी की तारीख इतनी जल्दी निश्चित न हो पाती.’’

‘‘शादी हमारी तो बहुत पहले से निश्चित है, सर. मुझे ही नहीें, हम सब को इस वक्त जो बेहद खुशी का अनुभव हो रहा है, वह इस बात का कि सीमा और आप ने जीवनसाथी बनने का निर्णय ले लिया है,’’ कहते हुए समीर अपनी मेज के पास पहुंचा और दराज में से एक कार्ड निकाल कर उस ने उन को पकड़ाया. कार्ड वंदना और समीर की शादी का था जो वाकई 25 तारीख को होने जा रही थी. कार्ड पढ़ कर सीमा और दिनेश साहब  के मुंह हैरानी से खुले रह गए. वंदना मुसकराती हुई समीर के पास आ कर खड़ी हो गई. समीर उस का हाथ अपने हाथ में ले कर प्रसन्नस्वर में बोला, ‘‘सर, वंदना और मेरी अनबन नकली थी. सीमा और आप के जीवन के एकाकीपन को समाप्त करने को पिछले कई दिनों से हम सब ने एक शानदार नाटक खेला है.

‘‘हमारी योजना में बड़े बाबू, महेशजी, वंदना और मैं ही नहीं, मेरे मातापिता, सीमा की मां, मामाजी और मामाजी के पड़ोसी राजेशजी तक शामिल थे. मेरे लड़की देखने जाने की झूठी खबर से हमारी योजना का आरंभ हुआ था. वंदना और मैं नहीं, सीमा और आप हमारे इशारों पर चल रहे थे. अब कहिए. बढि़या बिचौलिए हम रहे या आप?’’ ‘‘धन्यवाद तुम सब का,’’ दिनेशजी ने लजाती सीमा का हाथ थामा तो सभी ने तालियां बजा कर उन्हें सुखी भविष्य के लिए अपनीअपनी शुभकामनाएं देना आरंभ कर दिया.

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