देशद्रोही आफरीन- भाग 2: क्या थी उसकी कहानी

डाक्टरों ने उस लड़की की पूरी जांच करने के बाद जो बताया, उस ने आफरीन और उस नौजवान को अंदर तक हिला दिया था.

‘‘इस लड़की के साथ रेप किया गया और जब वह शोर मचाने लगी होगी तो उन दरिंदों ने न केवल उस की जीभ काट दी, बल्कि उस को इतना मारा कि उस की रीढ़ की हड्डी और पैर टूट गए. हमारे लिए इस लड़की को जिंदा रख पाना किसी चुनौती से कम नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.

रात के 3 बजे चुके थे. आफरीन अब भी अस्पताल में ही थी.

‘‘जी देखिए, अब मुझे जाना होगा और मैं आप की हिम्मत की तारीफ करता हूं, जो आप ने इस लड़की की मदद के लिए जुटाई… वैसे, मेरा यह कार्ड रख लीजिए. आप को किसी भी तरह की मदद की जरूरत पड़े, तो मुझ से बात कीजिएगा,’’ वह नौजवान बोला.

एक फीकी सी मुसकराहट से आफरीन ने उस नौजवान को शुक्रिया कहा.

आफरीन भी अस्पताल में ज्यादा देर न रुकी. लड़की के घर वाले कहां हैं? कौन हैं? यह जानने के लिए पीडि़ता का होश में आना जरूरी था, पर डाक्टरों के मुताबिक अभी उस के होश में आने में समय था.

आफरीन अगले दिन काम पर नहीं गई, मन जो उचाट था. दूसरे दिन ही अस्पताल जा पहुंची और पीडि़ता का हाल जाना. पीडि़ता की आंखों में आंसू थे, जो सिर्फ दर्द बयां कर रहे थे. वह बोल तो नहीं सकती थी, पर लिख तो सकती?है, यह खयाल आते ही आफरीन ने उसे अपना पैन और कौपी दी, जिस पर पीडि़ता ने बड़ी मुश्किल से एक मोबाइल नंबर लिखा और एक कार का नंबर.

मोबाइल नंबर उस लड़की के पिताजी का था, जिन्हें आफरीन ने सीधे अस्पताल आने को कहा और कार का नंबर उस गाड़ी का रहा होगा, जिन लोगों ने उस का रेप कर के उसे बीच रास्ते में फेंक दिया होगा.

इंटरनैट और तकनीक के दौर में कार के असली मालिक का पता लगाना कोई मुश्किल काम नहीं था. आफरीन ने गाड़ी के मालिक का पता लगाया तो उसे पता चला कि गाड़ी का मालिक और कोई नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक का बेटा है.

‘‘नाम इतना बड़ा और काम इतना नीच…’’ तिलमिला उठी थी आफरीन, ‘‘पर, ऐसे भेडि़यों को सजा दिला कर रहूंगी मैं.’’

‘‘पर, तू क्या सजा दिलाएगी उन लोगों को जिन्होंने एक लड़की पर बिलकुल भी दया नहीं दिखाई और उलटा उस की जीभ ही काट ली और फिर मत भूल कि तू इस बड़े और अजनबी शहर में अकेली रह रही है और यहां कोई भी नहीं है जो तेरा साथ दे, तेरे पास सुबूत भी क्या?है उस विधायक के बेटे के खिलाफ?’’ अपनेआप से ही सवाल किया था आफरीन ने.

आफरीन ने अपने हैंडबैग में हाथ डाला तो उस नौजवान का कार्ड हाथ में आ गया, जिस ने आफरीन की मदद की थी. उस का नाम अनुभव शर्मा था और वह उसी विधायक का सचिव था, जिस के बेटे ने रेप किया था.

‘‘तो मुझे सुबूत के लिए अनुभव से मिलना होगा,’’ ऐसा सोच कर आफरीन दिए गए पते पर चली गई और अनुभव से मुलाकात कर उस से मदद मांगी.

‘‘जी बिलकुल. मैं आप की पूरी तरह से मदद करूंगा, पर भला क्या मदद चाहिए आप को?’’

‘‘दरअसल, उस दिन आप ने इस लड़की को अस्पताल पहुंचाने में मेरी मदद की थी. मैं ने उस लड़की से जबरदस्ती करने वाले का पता लगा लिया है और मैं उन लोगों को सजा दिलाना चाहती हूं,’’ आफरीन ने कहा.

‘‘जी, ऐसे लोगों को सजा जरूर मिलनी चाहिए, पर वह कमीना है कौन और कहां रहता है?’’ अनुभव ने पूछा, तो बदले में आफरीन ने उस गाड़ी का नंबर आगे कर दिया, जिसे देख कर अनुभव को समझते देर नहीं लगी कि आफरीन क्या कहना चाह रही है.

‘‘पर आफरीनजी, मैं इन लोगों के लिए काम करता हूं और बदले में ये लोग मुझे पैसे देते हैं. भला मैं इन से गद्दारी कैसे कर सकता हूं?’’

अनुभव की बातें सुन कर आफरीन को धक्का सा लगा था. वह कुछ बोल तो न सकी, पर उस की कश्मीरी आंखों में झील सी लहरा आई थी.

‘‘आप मेरी मजबूरी को समझिए आफरीनजी,’’ अनुभव ने कहा.

‘‘जी हां, आप मर्दों की मजबूरी मैं खूब समझती हूं और आप भला क्यों मजबूर होंगे. वह लड़की आप की रिश्ते में कुछ भी तो नहीं लगती थी, पर भला तब भी आप अपनी मजबूरी इसी तरह तब जाहिर करते जब वह पीडि़ता आप की बहन या बेटी होती?’’ आफरीन गुस्से से बोली और वहां से उठ कर चली गई और अनुभव उसे देखता रह गया.

रेप की उस पीडि़ता के परिवार वालों का बुरा हाल था. खुद पीडि़ता जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही थी. पुलिस सुबूतों की कमी में खामोश थी और आफरीन के अंदर अब भी बेचैनी थी.

रात के 9 बजे अनुभव ने आफरीन को फोन कर के उस से मिलने की इच्छा जाहिर की, तो आफरीन ने बेहिचक हो कर उसे अपने फ्लैट पर बुला लिया.

‘‘आफरीन जी देखिए, उस दिन आप की बातों ने मेरे जमीर पर गहरी चोट पहुंचाई थी, पर उस दिन मैं अपनी ड्यूटी पर था और चाह कर भी आप की मदद नहीं कर सकता था. पर आज मैं उस विधायक की नौकरी को लात मार आया हूं और आप के मिशन में आप के साथ हूं. बताइए, मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘मुझे आप सिर्फ उस विधायक के बेटे के बारे में कुछ जानकारी दीजिए, मसलन, वे लोग क्या करते हैं? कैसे आदमी हैं? वगैरह…’’

‘‘वे लोग अपनी राजनीति के लिए कुछ भी कर सकते हैं. रेप और खून करना उन के लिए आम बात है और मैं तो आप से यही कहूंगा कि उन लोगों से अपना ध्यान हटा कर आप अपना काम करें तो बेहतर होगा,’’ अनुभव ने आगे बोलना शुरू किया.

देशद्रोही आफरीन- भाग 1: क्या थी उसकी कहानी

‘‘राजनीति का एक रूप यह भी हो सकता है… और वे लोग इस हद तक भी जा सकते हैं… मैं ने कभी नहीं सोचा था,’’ जेल की एक सीलन भरी कोठरी में पड़ी हुई एक लड़की बुदबुदा उठी थी.

वह लड़की, जिस का नाम आफरीन था, को देख कर कोई भी कह सकता था कि उस के चेहरे का उजलापन चांद को भी मात करता होगा, पर अब इस उजलेपन पर अमावस की छाया पड़ गई थी और उस का चेहरा बुझ सा गया था, उस की आंखों को काले गड्ढों ने आ कर दबोच लिया था.

आफरीन के शरीर में जवानी के जितने भी प्रतीक थे, वे सारे अब उस की बदहाली बतलाते थे और भला ऐसा होता भी क्यों न. बेचारी आफरीन पर देशद्रोह का आरोप जो लगा था. जी हां, देशद्रोह का.

अपने देश भारत के दुश्मन पाकिस्तान को ‘जिंदाबाद’ कहने का आरोप लगा था आफरीन पर.

पर आफरीन ही क्यों? भला कोई भी सच्चा भारतीय ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे क्यों लगाएगा?

आफरीन का जन्म कश्मीर में हुआ था. उस के अब्बू का सूखे मेवों का कारोबार था. आफरीन की नानी पाकिस्तान के लाहौर से थीं, जो बंटवारे के बाद भारत में आ गई थीं और तब से यहीं रह रही थीं.

आफरीन का बचपन लाहौर और पाकिस्तान की बातें और कहानियां सुन कर बीता था. नानी को जब भी समय मिलता, वे अपने लाहौर की मीठी यादों में खो जातीं. आफरीन को लाहौर की हर एक छोटीछोटी बातें बतातीं और अपनी यादें बांटतीं. बचपन में आफरीन को नानी की बातों से कभी यह अहसास नहीं हुआ कि पाकिस्तान एक दुश्मन देश है.

‘अगर नानी का पाकिस्तान इतना ही अच्छा है तो इन दोनों देशों में हमेशा ही जंग क्यों जारी रहती है? क्यों दोनों ही तरफ के लोग मारे जाते हैं? कितना अच्छा हुआ होता कि पाकिस्तान का जन्म ही नहीं हुआ होता, फिर तो दोनों तरफ इतनी नफरत ही न होती,’ आफरीन ऐसी बातें अकसर सोचती थी, पर भला सियासत करने वालों को इन सब जोड़ने वाली बातों से क्या सरोकार, उन्हें तो लोगों को तोड़ कर ही अपनी सियासत चमकाने में मजा आता है.

नानी की बड़ी इच्छा थी कि वे मरने से पहले एक बार लाहौर हो आएं, पर उन की यह इच्छा तब उन के साथ ही सुपुर्देखाक हो गई, जब वे एक लंबी बीमारी के बाद इस दुनिया को छोड़ कर चली गईं.

आफरीन ने दिल्ली आ कर पढ़ाई की और वकालत करने के बाद इसे ही अपना पेशा बना लिया.

एक दिन काम में काफी बिजी रहने के बाद जब रात के 10 बज गए, तो आफरीन ने एक कैब ली और रोहतास एन्क्लेव में अपने फ्लैट की ओर जाने लगी. अभी वह अपने औफिस से कुछ ही दूरी पर पहुंची थी कि उस ने देखा कि सड़क के बीचोंबीच कोई पड़ा हुआ है.

‘‘लगता है, किसी का एक्सीडैंट हुआ है… पर कमाल है कि इतनी गाडि़यां आजा रही हैं, पर इस को मदद देने का समय किसी के पास नहीं?है,’’ आफरीन बुदबुदा उठी थी.

‘‘भैया, जरा गाड़ी रोकना,’’ गाड़ी रुकवा कर आफरीन उस आदमी के पास गई.

और उस के बाद जो आफरीन ने देखा, वह देख कर उस की चीख निकल गई. वह एक लड़की थी, जो बिलकुल नंगी हालत में सड़क पर फेंक दी गई थी. देखने से ही लगता था कि उस के साथ रेप हुआ है. लड़की के मुंह से लगातार ढेर सारा खून निकल रहा था.

आफरीन को कुछ समझ नहीं आया. वह थोड़ा घबराई थी. उस ने देखा कि अभी उस लड़की की सांसें चल रही थीं यानी अगर अभी उसे समय रहते अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो उस की जान बच सकती है. आफरीन ने कैब वाले को मदद के लिए बुलाया.

‘‘अरे क्या मैडम, इस को अस्पताल ले जा कर क्यों लफड़े में पड़ती हो? और वैसे भी यह रेप का केस लगता है… मैं किसी तरह के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता… जो आप की मरजी हो करो. मैं यहां से जा रहा हूं,’’ इतना कह कर कैब ड्राइवर तेजी से चला गया.

हैरान हो गई थी आफरीन, ‘‘क्या वाकई इनसानियत मर गई थी… एक कैब ड्राइवर एक पीडि़ता को अस्पताल तक नहीं पहुंचा रहा है…’’

आफरीन के अगलबगल से गाडि़यां निकल रही थीं, पर कोई भी रुक कर इस लड़की का हाल तक नहीं पूछना चाह रहा है, पर कुछ भी हो जाए, मैं इस लड़की को अस्पताल तो पहुंचा कर ही रहूंगी,’’ सब से पहले तो आफरीन ने मोबाइल फोन से पुलिस को फोन लगाया, तो पुलिस ने जल्द से जल्द वहां पहुंचने का यकीन दिलाया.

‘‘अगर पुलिस को आने में देर हुई तो ज्यादा खून बहने के चलते यह लड़की मर भी सकती है,’’ यह सोच कर आफरीन ने लोगों को हाथ हिला कर मदद की गुहार लगानी शुरू की, आटोरिकशा और कैब वालों को भी रोका, पर सब बेकार रहा. तकरीबन एक घंटा हो चुका था, पुलिस का कहीं अतापता नहीं था.

इस बीच आफरीन ने लड़की के मुंह से बहता हुआ खून रोकने के लिए रूमाल लड़की के मुंह पर लगाया, तो उसे एहसास हुआ कि खून की एक धार लगातार उस के मुंह से बाहर आ रही थी. वह लड़की चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रही थी. दरिंदों ने रेप करने के बाद उस लड़की की जीभ ही काट दी थी.

‘‘शायद मैं इस लड़की को बचा नहीं पाऊंगी… कोई भी मदद को नहीं रुक रहा है… पर क्या करूं… मैं इसे छोड़ कर जा भी तो नहीं सकती… मेरा जमीर मुझे इस की इजाजत नहीं दे रहा है,’’ अपनेआप से ही बातें कर रही थी आफरीन.

तभी किसी ने रोड के किनारे अपनी लंबी सी कार रोकी. उस में से एक नौजवान निकला और फौरन आफरीन के पास पहुंचा.

‘‘जी कहिए… क्या कोई हादसा हुआ?है… उफ,’’ लड़की के नंगे शरीर और बहते खून को देख कर वह नौजवान भी परेशान हो उठा था. वह जल्दी से अपनी गाड़ी में रखा हुआ एक कपड़ा निकाल कर लाया और लड़की के शरीर को ढक दिया.

‘‘लगता है, किसी ने रेप के बाद इसे फेंक दिया है. क्या आप इसे उठाने में मेरी मदद करेंगी…?’’ उस नौजवान ने आफरीन को देखते हुए कहा.

‘‘जी जरूर,’’ इतना कह कर उन दोनों ने उस लड़की को गाड़ी में लिटा दिया और अस्पताल पहुंचा दिया.

टैस्टेड ओके- भाग 3: क्या कैरेक्टर टेस्ट में पास हुए विशाल और संजय

सिमरन ने अपना हेयर बैंड उतारते हुए संजय से कहा कि उस ने न्यूड औरत की तसवीर में औरत के उभारों को ठीक नहीं बनाया. लगता है कि उस ने अब तक किसी न्यूड औरत को देखा ही नहीं है.

संजय ने औरत के प्यार पर एक हरे रंग की नस दिखाई थी. सिमरन का मानना था कि इस तरह की नस न तो अच्छी लग रही है, न ही असलियत है. फिर उस ने अपनी टीशर्ट उतार दी और अगले ही पल अपनी ब्रा उतार कर वह पूरी तरह से टौपलैस हो गई.

सिमरन के गोल, कसे हुए, चिकने और गोरे उभारों को संजय 5 मिनट तक तो देखता ही रहा, फिर तुरंत ही अपनेआप को संभाल लिया. संजय को अभी भी कोई फर्क नहीं पड़ा था.

सिमरन ने अब जबरदस्ती संजय को थिएटर में पड़ी हुई बैंच पर लिटाने की कोशिश की, तो संजय ने साफ मना कर दिया. संजय ने सिमरन के दोनों उभारों को हथेलियों से दबाते हुए परे धकेल दिया और बोला, ‘‘मैडम, मैं किसी और को पसंद करता हूं.

सिमरन अब तक अच्छीखासी गरम हो चुकी थी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘भाड़ में गया तुम्हारा कमिटमैंट… मैं कौन सा तुम्हें अपना बौयफ्रैंड बनाना चाहती हूं. चुपचाप लेटे रहो, वरना मैं चिल्लाने लगूंगी कि तुम जबरदस्ती कर रहे थे मेरे साथ.

‘‘मैं तुम्हारी किस्मत बना सकती हूं, तो बिगाड़ भी सकती हूं. गुरुग्राम में रहना मुश्किल हो जाएगा तुम्हें,’’ यह कहते हुए सिमरन जबरदस्ती उस की पैंट उतारते हुए उस से चिपकने की कोशिश करने लगी.

संजय ने पूरी ताकत से एक बार फिर सिमरन को परे धकेल दिया.

सिमरन को यह संजय के कमिटमैंट की नहीं, बल्कि अपने पैसे और रुतबे की हार लगने लगी थी. दो कौड़ी का सड़कछाप पेंटर उस के खुले औफर को ठुकरा देगा, उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था.

सिमरन ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम जैसे लोग देश पर बोझ हैं और कभी जिंदगी में तरक्की नहीं कर सकते हैं. जिंदगी बदलने का मौका सिर्फ एक बार मिलता है.

‘‘फिर से सोच लो एक बार,’’ कहते हुए सिमरन वापस कपड़े पहन कर जाने लगी. उसे पूरा यकीन था कि संजय उसे वापस बुलाएगा, लेकिन उस ने गाड़ी स्टार्ट कर ली, तब भी अंदर से वापस आने के लिए कोई आवाज नहीं आई.

तीसरे दिन सिमरन ने विशाल को बताया कि आज रात का डिनर हम डैडी औफ टेस्ट रैस्टोरैंट में मेरी यूनिवर्सिटी के समय की दोस्त और उस के पति के साथ करेंगे.

होटल के परिसर में विशाल ने रंजना से मिलते समय ठीक वैसे ही चौंकने की ऐक्टिंग की जैसा कि संजय ने सिमरन के साथ मिल कर किया. चारों ने खाने की टेबल पर एकसाथ हनीमून पर जाने का प्लान बनाया.

रंजना ने अपने जीजाजी को किस करते हुए स्टार्टर पास किया, तो सिमरन ने अपने जीजाजी को फिर से एक किलर मुसकान देते हुए अभी भी सोच लेने का इशारा किया.

पोस्ट क्रेडिट सीन में हम देखते हैं कि अगले दिन सिमरन और रंजना के होने वाले संजय और विशाल गुरुग्राम के सैक्टर 53 के उसी बार में बैठे हुए चियर्स कर रहे थे, जिस में रंजना और सिमरन ने कहानी के पहले सीन में अपनेअपने मंगेतरों के करैक्टर को चैक करने की योजना बनाई थी.

विशाल को पहले दिन ही सिमरन की योजना के बारे में पता चल गया था. उस ने संजय को भी उस की गर्लफ्रैंड के द्वारा उस का इम्तिहान लिए जाने की जानकारी दे दी थी.

पहले दिन रंजना बार से सिमरन को घर छोड़ने आई थी, विशाल ने पोर्च से उन्हें एकसाथ देख लिया था.

विशाल की वैशाली के नाम से फेसबुक पर एक फेक आईडी थी, जिस में सिमरन, रंजना और उन की ढेर सारी फ्रैंड विशाल उर्फ वैशाली की दोस्त थीं. संजय भी उस वैशाली नाम की फेक आईडी से जुड़ा हुआ था.

संजय पहले एक बार वैशाली नाम की फेक आईडी को प्रपोज करते हुए अपना फोन नंबर, विशाल उर्फ वैशाली से शेयर कर चुका था.

इस तरह विशाल को पहले से सिमरन और रंजना के कनैक्शन के बारे में जानकारी थी.

पहली मुलाकात में सिमरन ने रंजना को कस्टमर की तरह मिलाया और दोस्ती के बारे में नहीं बताया. सिमरन ने घर जा कर टैक्नौलाजी सपोर्ट के लिए कहा, जबकि रंजना अपने लैपटौप को औफिस में भी ला सकती थी.

सारी कडि़यों को जोड़ कर विशाल तुरंत ही उन की योजना को भांप गया और समय रहते उस ने संजय को भी सचेत कर दिया.

संजय ने कहा, ‘‘थैंक्स यार, अगर तुम ने समय रहते न बताया होता तो हम इम्तिहान में फैल हो गए होते.’’

विशाल बोला, ‘‘भाई है तू मेरा. यह तो मेरी फेक आईडी की मेहरबानी थी, जिस ने हम दोनों को बचा लिया.’’

संजय बोला, ‘‘हमारी गर्लफ्रैंड सोने के अंडे देने वाली मुरगियां हैं. बहुत ही कम लोगों को ऐसी जुगाड़ मिलती हैं, जो बाकी सब भी दें और खर्च भी उठा सकें.’’

विशाल ने कहा, ‘‘अपनी तो लाइफ सैटल है भाई. कमाऊ गर्लफ्रैंड जो मिल गई है.’’

संजय बोला, ‘‘हां यार. अगर आज हमारी गर्लफ्रैंड हमें छोड़ कर चली जाएं, तो दानेदाने को मोहताज हो जाएं.’’

इस के बाद वे दोनों अपनीअपनी ऐंगेजमैंट रिंग को एकदूसरे को दिखाते हैं.

विशाल बोला, ‘‘यार मानना पड़ेगा, भाभीजी स्मार्ट हैं.’’

संजय ने कहा, ‘‘हां, मगर तुम्हारी वाली खूबसूरत है और कमाती ज्यादा है.’’

विशाल बोला, ‘‘ओके भाई. रात गई बात गई, अब से हम अपनीअपनी भाभियों को मां की तरह ही देखेंगे और समझेंगे.’’

संजय ने कहा, ‘‘पक्का.’’

यहां हमें यह पता चलता है कि संजय और विशाल दोनों जानते हैं कि उन की गर्लफ्रैंड उन के दोस्त के साथ इंटीमेट होने के लिए किस हद तक गिर चुकी थीं, लेकिन इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा. वे खुश थे कि उन की कमाऊ गर्लफ्रैंड हाथ से फिसलतेफिसलते बची थीं.

सिमरन के क्रेडिट कार्ड से पेमेंट कर के वे दोनों घर निकल जाते हैं.

टैस्टेड ओके- भाग 2: क्या कैरेक्टर टेस्ट में पास हुए विशाल और संजय

रंजना आगे की तरफ झुक कर कंप्यूटर खोलने लगी तो विशाल की नजरें रंजना के उभारों को घूरने लगीं. उसे घूरता देख कर रंजना ने चीयरलीडर की तरह अपने दोनों कूल्हों को ऊपरनीचे डुलाते हुए उस का ध्यान खींचते हुए कहा, ‘‘मिस्टर, वहां नहीं यहां देखिए, स्क्रीन पर.’’

रंजना विशाल को काम समझाने लगी, ‘‘मुझे अपने आउटलेट की डिटेल को इस तरह इकट्ठा करना है, ताकि देख सकूं कि कौन से नंबर, रंग, साइज, कीमत और ब्रांड के प्रोडक्ट हमारे माल में ज्यादा बिक रहे हैं.’’

इसी बीच रंजना ने नोटिस किया कि विशाल बारबार उस की पैंटी को चोरीछिपे देख रहा है, जिस से उसे यकीन हो गया कि जल्द ही वह विशाल को पिघला देगी.

थोड़ी देर बाद रंजना ब्लैक कौफी बना लाई. ब्लैक कौफी तुरंत ही सैक्स का मूड बना देती है.

कौफी को देख कर विशाल ने बुरा मुंह बनाया और बोला, ‘‘कुछ दिन पहले गुरुग्राम में एक घटना हुई थी, जिस में एक औरत ने नशीली कौफी पिला कर एक प्लंबर का रेप कर लिया था.’’

रंजना ने गुस्से से कहा, ‘‘शटअप. मैं कोई मिडिल क्लास लेडी नहीं हूं, बल्कि एक कामयाब बिजनैस वुमन हूं.’’

जितनी देर विशाल रंजना के लैपटौप में मैट्रिक्स को अरेंज करते हुए फार्मूला देता रहा, उतनी देर रंजना बराबर विशाल को क्लू देती रही. गरमी का बहाना कर उस ने शर्ट के ऊपर के 2 बटन खोल लिए. पैरों को एक के ऊपर एक विशाल के सामने ही टेबल तक फैला दिया. उस ने अपने दोनों पैर को इस तरह खोल कर फैला दिया जैसे कह रही हो कि आ जाओ, मुझ में समा जाओ राजा.

रंजना अब एक कैंडी निकाल लाई और उसे विशाल को दिखादिखा कर चूसने लगी. इतनी मेहनत के बाद भी विशाल पर जरा भी असर नहीं हुआ था.

‘‘बड़ा सख्त है,’’ बड़बड़ाते हुए रंजना ने अब जबरदस्ती विशाल के गाल को चूमना और उस के होंठ को चूसना शुरू कर दिया.

यह अब उसे विशाल की जीत नहीं, बल्कि अपनी जवानी की हार लग रही थी.

रंजना ने जबरदस्ती विशाल के हाथों से अपने उभारों को दबवाना शुरू कर दिया, लेकिन विशाल ने एक झटके में रंजना को परे धकेल दिया.

‘‘मैडम सौरी. मैं किसी और को पसंद करता हूं.’’

इस पर रंजना ने बोला, ‘‘अरे, तो कौन सा मैं तुम से सात फेरे लेना चाहती हूं. सब करते हैं, यहांवहां. थोड़ाबहुत. टेक इट ईजी यार. चलता है इतना सब. सत्यवादी बन कर कोई अवार्ड नहीं मिलने वाला तुम्हें.’’

विशाल ने कहा, ‘‘वह मैं नहीं जानता, लेकिन मेरे उसूल अलग हैं, मैं यह सब नहीं कर सकता.’’

रंजना ने कहा, ‘‘ओके.’’

तुरंत ही रंजना लिविंग रूम से बाहर चली गई और कुछ ही देर में सलवारसूट पहन कर वापस आई. 2,000 रुपए के 5 नोट विशाल के मुंह पर मारते हुए उस से चले जाने को कहा. वह बोली, ‘‘मुझे तुम्हारा काम करने का तरीका पसंद नहीं आया. मैं तुम्हें खराब फीडबैक दे दूंगी. जस्ट गैटआउट.’’

विशाल चुपचाप कपड़े ठीक कर बाहर निकल गया. रंजना को अभी भी विशाल के लौट आने का भरोसा था, लेकिन आखिर में नीचे जाती हुई लिफ्ट की आवाज उसे सुनाई दी.

दूसरी तरफ विशाल के रंजना के साथ जाते ही सिमरन शंकर चौक रोड पर बने ओबराय होटल के लिए निकल गई थी, जहां रंजना के होने वाले पति संजय की पेंटिंग एक आर्ट गैलरी में लगी हुई थी.

होटल के मैनेजर ने चोरीचोरी सिमरन की खुली जांघों को देखते हुए अपने स्टाफ से मैडम का स्वागत करने के लिए कहा.

सिमरन ने जल्द ही कोने में खड़े हुए संजय को उस का नाम लगी हुई 2 पेंटिंग से पहचान लिया.

सिमरन ने संजय की पेंटिंग की भरपूर तारीफ की. वह जानती थी कि कलाकार का दिल जीतना है तो उस की कला की तारीफ करो.

सिमरन ने बताया कि वह अपने बंगले के लिए उस की बहुत सारी पेंटिंग खरीद सकती है.

संजय ने रविवार को उस से अपने स्टूडियो में आने को कहा, जिसे सिमरन ने तुरंत ही स्वीकार कर लिया.

अगले दिन सुबह की चाय पर सिमरन ने देखा कि अखबार में संजय की पेंटिंग के साथ उस का फोटो छपा था और संजय की पेंटिंग की तारीफ में ठीक वही बातें लिखी थीं, जो सिमरन ने कही थीं.

विशाल इस बीच किसी हर्बल क्रीम से सिमरन के खुले हिस्सों की मसाज करते हुए उस के नाजुक हिस्सों पर भी छूने लगा था, जिस पर सिमरन ने उसे एक किलर स्माइल दी.

रविवार को सुबह हुड्डा लौनटैनिस कोर्ट में 2 घंटे पसीना बहाने के बाद सिमरन ठीक 8 बजे महीरा बाजार के एक शौपिंग कौंप्लैक्स के बेसमैंट में संजय के बताए पते पर पहुंच गई.

बहुत ही सस्ती जगह थी, लेकिन अंदर से संजय ने अपने थिएटर को बहुत ही आकर्षक बना रखा था. ट्यूबलाइट की रोशनी में एक न्यूड औरत की पेंटिंग बनाते हुए उसे जरा भी होश नहीं था कि सिमरन कमरे में आ चुकी थी और उसे घूर रही थी.

यह वह पल था, जब सिमरन के दिल में संजय के प्रति एक रियल फीलिंग आ गई. उसे रंजना से जलन होने लगी. वह सोचने लगी, ‘रंजना की किस्मत यूनिवर्सिटी के समय से ही अच्छी है. गोयल सर की फेवरेट स्टूडैंट थी और यहां भी उसे उस से अच्छा बौयफ्रैंड मिल गया.’

सिमरन ने खांसी की आवाज की तो चौंक कर संजय ने सिमरन को देखा.

संजय बोला, ‘‘अरे, आप आ गईं. मैं सोच रहा था कि भूल गई होंगी आप.’’

सिमरन ने अपनी चिरपरिचित किलर मुसकराहट देते हुए कहा, ‘‘आप भूलने वाली चीज नहीं हो.’’

सिमरन की मांसल जांघों को ताड़ते हुए संजय ने शर्ट पहनने की कोशिश की, तो सिमरन ने उसे रोकते हुए अपनी पेंटिंग के साथ पोज देने के लिए कहा.

सिमरन अपने आई फोन से उस के फोटो लेने के लिए तरहतरह से खड़ा करने के बहाने उसे रोक रही थी.

सिमरन जानती थी कि अपने भारीभरकम उभारों के चलते वह टैनिस स्कर्ट और टीशर्ट में बहुत ही ग्लैमरस लगती है.

कमरे के बीच में मौडल्स को पोज देने के लिए रखी गई टेबल पर सिमरन इस तरह पैर फैला कर बैठ गई कि संजय चाहे तो तुरंत ही उस में समा जाए.

सिमरन की पैंटी साफ दिखाई दे रही थी. उस पर ‘किस’ के इमोजी बने हुए थे.

टैस्टेड ओके- भाग 1: क्या कैरेक्टर टेस्ट में पास हुए विशाल और संजय

सिमरन और रंजना पूरे 3 साल बाद मिल रही थीं. बीयू से एमबीए फाइनैंस करने के बाद गुरुग्राम में अपना कैरियर सैटल करने में वे दोनों इतना बिजी रहीं कि मिलने की फुरसत ही नहीं मिली.

अब जा कर वे सैटल हुई थीं. सिमरन टैक्नोसौल्यूशन कंपनी में मैनेजर थी, जबकि रंजना मल्टी ब्रांड रिटेल चेन की मार्केटिंग मैनेजर थी.

सिमरन के बियर के गिलास को रंजना ने मना किया, तो सिमरन ने हैरानी से उसे घूरते हुए कहा, ‘‘क्या बकवास है यार… एटीट्यूड मत दिखा… गोयल सर की बर्थडे पार्टी में मैं भी थी. पता है कि तू कितनी बड़ी वाली पियक्कड़ है.’’

रंजना ने हंसते हुए गिलास थाम लिया और बोली, ‘‘वैसे भी बियर थोड़ी न शराब होती है… और सुना सिमरन, शादी, पति, बच्चे का क्या सीन चल रहा है?’’

सिमरन हंसते हुए बोली, ‘‘लिवइन रिलेशनशिप में हूं यार अपने असिस्टैंट के साथ. उम्र में 2 साल छोटा है मुझ से, डाटा ऐनालिस्ट है.’’

‘‘उम्र में 2 साल छोटा और असिस्टैंट,’’ रंजना ने यह कहते हुए सिमरन को बिग चियर्स किया.

रंजना आगे बोली, ‘‘वाह क्या बात है. तुम्हारे शौक ही निराले हैं. यूनिवर्सिटी में भी तुम्हारा जूनियर में ही इंटरैस्ट रहता था. बीकौम औनर्स का अनिकेत याद है, जिस के साथ तुम घूमने चली गई थीं और रात देर होने पर मैटर्न ने जम कर तुम्हारी बैंड बजाई थी?’’

सिमरन ने कहा, ‘‘याद है. वे भी क्या दिन थे यार… टैलीविजन बड़ा हो या छोटा, उन का रिमोट सेम साइज का होता है.’’

इस बात पर उन दोनों ने ठहाके मारते हुए एकदूसरे को ताली दी.

सिमरन ने बात को आगे बढ़ाया, ‘‘डिसाइड नहीं कर पा रही कि लिवइन रिलेशनशिप के साथ शादी करनी चाहिए या नहीं?’’

रंजना ने ड्रिंक को बीच में रोकते हुए कहा, ‘‘सेम प्रौब्लम मेरे साथ भी है. मैं एक पेंटर के साथ कोर्ट में शादी की अर्जी दाखिल कर चुकी हूं. हम साथ में रहते हैं, लेकिन अब अपने परिवार से उसे मिलाने से पहले एक बार उस के कमिटमैंट को टैस्ट करना चाहती हूं.’’

सिमरन बोली, ‘‘वाह, क्या बात है. क्यों न हम एकदूसरे के होने वाले पतियों को टैस्ट करें…’’

रंजना ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘मतलब…?’’

सिमरन बोली, ‘‘हम एकदूसरे के पतियों पर लाइन मारते हैं. अगर वे फिसल गए तो हम शादी से मना कर देंगे.’’

इस पर रंजना बोली, ‘‘और अगर हमें एकदूसरे के प्रेमियों से सच्चा वाला प्यार हो गया तो…?’’

सिमरन ने कहा, ‘‘बेवकूफी भरी बातें मत करो. हम कारपोरेट हैं, हमारी कोई बात सच्ची नहीं होती. सब बिजनैस है. फायदे का सौदा जहां हो. वैसे भी सच्चा प्यार सिर्फ किस्सेकहानियों में पाया जाता है. हमारे पैसों पर ऐश करने के लिए, हमारे लग्जरी जिस्म के साथ संबंध बनाने के लिए कोई भी हमें धोखा दे सकता है.’’

रंजना बोली, ‘‘बात तो तेरी सही है. गलत आदमी से शादी हो गई, तो जिंदगी बरबाद समझो अपनी.’’

सिमरन ने कहा, ‘‘ओके डन. करते हैं ऐसा. अगर वे फिसल गए तो हमें मजा मिलेगा और नहीं फिसले तो हमें जीजाजी मिलेंगे.’’

इस बात पर वे दोनों एक बार फिर ठहाके मार कर हंस दीं.

दूसरे दिन तय योजना के मुताबिक रंजना सिमरन के औफिस में बहुत ही टाइट जींस और ढीली शर्ट पहन कर आई थी.

रंजना के बड़ेबड़े नाखून पर नेल्स आर्ट को देख कर सिमरन ने आंख मारते हुए कहा, ‘‘वाहवाह, लगता है अब तुम्हें मास्टरबेट करने की जरूरत नहीं पड़ती है.’’

सिमरन और रंजना बीयू के समता होस्टल में रूममेट रही थीं और एकदूसरे के शौक अच्छी तरह से जानती थीं.

सिमरन ने घंटी बजा कर अपने लिवइन पार्टनर विशाल को अंदर बुलाया और आदेश दिया कि आप मैडम के साथ चले जाइए और इन को रिटेल स्टोर के डैटा को फिल्टर करने में मदद कीजिए.

रंजना अपनी केटीएम मोटरसाइकिल से आई थी. पार्किंग में पहुंच कर उस ने विशाल से मोटरसाइकिल चलाने को कहा.

डीपीजी कालेज रोड पर बनी सिमरन की कंपनी से होंडा चौक, फिर सुभाष चौक होते हुए आर्चीव ड्राइव पर रंजना का फ्लैट 12 किलोमीटर दूर था. केटीएम मोटरसाइकिल को बनाया ही इसलिए गया है कि राइड के दौरान भी प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे से अच्छी तरह चिपके रहें.

रंजना कुछ ज्यादा ही खुला बरताव कर रही थी. उस ने अपनी जांघों को विशाल की जांघों से सटा रखा था. उस ने विशाल की पीठ से अपने उभारों को तकरीबन आधा दबा रखा था.

विशाल मोटरसाइकिल को 40 से ज्यादा स्पीड में नहीं चला रहा था, फिर भी रंजना ने तेज भगाने और डर लगने का बहाना बना कर अपने दोनों हाथों से क्रौस बना कर विशाल को आगे की ओर से जकड़ लिया था और अपनी हथेलियों से विशाल के चौड़े सीने को सहला रही थी.

ड्राइव के दौरान ही रंजना ने विशाल की जांघों के बीच अपने काम की तकरीबन हर एक चीज के आकारप्रकार का अंदाजा ले लिया. पैर की पिंडलियों से ले कर कंधों तक रंजना विशाल से इस कदर चिपकी हुई थी कि उन के बीच से हवा भी नहीं गुजर सकती थी.

पूरे रास्ते रंजना को बहुत मजा आया. इस तरीके का करंट उस ने संजय के साथ चिपकते हुए आज तक महसूस नहीं किया था.

महिंद्रा ल्यूमिनेयर के पार्किंग की मंद रोशनी में रंजना ने ध्यान से विशाल को देखा. लिफ्ट में विशाल ने शरमा कर आंखें नीची कर ली थीं, लेकिन रंजना उसे ही ताड़ रही थी. रंजना को सिमरन की किस्मत से जलन हो रही थी.

फ्लैट में पहुंचते ही रंजना विशाल को लिविंग रूम में बैठा कर बाथरूम चली गई. वापस आई तो जींस की जगह तौलिया लपेटे थी. विशाल कंप्यूटर टेबल पर रखा संजय और रंजना का फोटो देख रहा था.

विशाल ने पूछा, ‘‘ये आप के पति हैं?’’

रंजना बोली, ‘‘उन की चिंता छोड़ दो, तुम उन से नहीं मुझ से मिलने आए हो,’’ यह कह कर रंजना ने अपनी कमर पर लिपटे तौलिए को उतार कर फोटो को उस से ढक दिया.

रंजना के गोल, गोरे और चिकने कूल्हे और मांसल जांघें दिखाई देने लगीं, शर्ट के बीच से उस की गुलाबी डोटेड पैंटी भी साफ दिखाई दे रही थी.

चूड़ियों ने खोला हत्या का राज

सौजन्य-मनोहर कहानियां

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना निगोहां के गांव भगवानगंज के रहने वाले सरकारी नौकरी से रिटायर सत्यनारायण ने अपनी बहू रागिनी के रंगढंग से क्षुब्ध हो कर कहा, ‘‘बहू, जब तुम्हारा पति बाहर रहता है तो मायके के ऐसे लोगों को घर में न रोका करो, जो तुम्हारे करीबी न हों. देखने वालों को यह अच्छा नहीं लगता. लोग तरहतरह की बातें करते हैं.’’

सत्यनारायण की बहू रागिनी जिला रायबरेली के थाना बछरावां के गांव भक्तिनखेड़ा की रहने वाली थी. 14 जून, 2012 को सत्यनारायण के बेटे दिलीप के साथ उस की शादी हुई थी. तब से वह ससुराल में ही रहती थी. उस का मायका ससुराल के नजदीक ही था, इसलिए अकसर उस से मिलने के लिए घर के ही नहीं, गांव के लोग भी आते रहते थे. उन में से कुछ लोगों की रिश्तेदारी उस के ससुराल के गांव में थी, इसलिए जब भी उस के मायके का कोई आता, वह रागिनी से भी मिलने चला आता.

इसीलिए ससुर की बात का जवाब देते हुए रागिनी ने कहा, ‘‘पिताजी, मायके के लोग हम से मिलने पहले भी आते थे. जब पहले नहीं रोका तो अब उन्हें कैसे रोक सकते हैं. अगर किसी को आने से मना करेंगे तो लोग क्या कहेंगे. और रही बात गांव वालों की तो उन का क्या, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं.’’

दरअसल, पहले सत्यनारायण को बहू के मायके से कोई आता था तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन जब 10 महीने पहले उन की पत्नी कलावती की मौत हो गई तो घर में रागिनी अकेली ही रह गई. 61 साल के सत्यनारायण एक साल पहले ही नौकरी से रिटायर हुए थे. रागिनी के डेढ़ साल का बेटा भी था.

रागिनी का पति दिलीप उन्नाव जिले के जुनाबगंज के एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करता था. बहू के अकेली होने की वजह से सत्यनारायण को किसी से उस का मिलना अच्छा नहीं लगता था. इसीलिए वह बहू को बारबार मना करते थे कि वह अपने मायके वालों को अपने घर में न रोके.

ये भी पढ़ें- लिव इन रिलेशनशिप मे मिली मौत

उन्होंने कहा, ‘‘बहू, गांव वालों का सब से अधिक ऐतराज मोनू के आने पर है. उसी को ले कर लोग तरहतरह की बातें करते हैं. वह गांव के दूसरे लोगों के पास बैठ कर उलटीसीधी बातें करता है.’’

‘‘पिताजी, गांव वालों के पास कोई कामधाम तो होता नहीं, इसलिए वे दूसरों के घरों में झांकते रहते हैं और तरहतरह की बातें करते रहते हैं. दूसरों के बारे में बातें बनाने में उन्हें मजा आता है.’’ गुस्से से रागिनी बोली.

उस के बात करने के तरीके से सत्यनारायण समझ गए कि रागिनी उन की बात मानने वाली नहीं है. इन्हीं बातों को ले कर ससुरबहू के बीच मतभेद बढ़ने लगे. फिर दोनों में झगड़ा होने लगा. बात बढ़ी तो गांव वालों को भी पता चल गया.

सत्यनारायण ने ही नहीं, रागिनी ने भी यह बात अपने दोस्त मोनू को बताई. मोनू जिला रायबरेली की तहसील महराजगंज के गांव पारा का रहने वाला था. एक दिन फिर वह रागिनी से मिलने आया तो उस ने कहा, ‘‘मोनू, तुम्हारे आने से मेरे ससुर को परेशानी होती है. उन्हें गांव वालों से पता चला है कि मेरे और तुम्हारे बीच गलत संबंध हैं.’’

‘‘यह तो चिंता वाली बात है. अब हम कैसे मिल पाएंगे. लगता है, हमें कोई और रास्ता निकालना होगा.’’

‘‘रास्ता क्या निकालना है. हम ने उन से साफसाफ कह दिया है कि हम गलत नहीं हैं, इसलिए मैं किसी को घर आने से रोक नहीं सकती. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ रागिनी ने कहा.

25 साल की रागिनी देखने में बहुत सुंदर तो नहीं थी, पर वह मोनू के साथ लंबे समय से रह रही थी, इसलिए दोनों के बीच नाजायज रिश्ते बन गए थे. रागिनी की शादी के बाद वह उस की ससुराल भी उस से मिलने आने लगा था. रागिनी की सास की मौत हो गई तो उस का आनाजाना बढ़ गया. उस का पति दिलीप नौकरी की वजह से अधिकतर बाहर ही रहता था. वह घर में अकेली होती थी, जिस से उसे मोनू से मिलने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. जब इस खेल के बारे में सत्यनारायण को पता चला तो उन्होंने ऐतराज किया. उन्हें लगा कि बहू को समझाने से बात बन जाएगी, इसीलिए उन्होंने यह बात अपने बेटे दिलीप को भी नहीं बताई.

रागिनी ने ससुर की बात अनसुनी कर दी

ससुर के कहने पर भी रागिनी ने मोनू को घर आने से मना नहीं किया. इस बात से नाराज हो कर सत्यनारायण ने कहा, ‘‘बहू, मैं सोच रहा था कि मेरे समझाने से तुम मान जाओगी और उसे घर आने से मना कर दोगी. लेकिन मेरी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही है. लगता है, मुझे सख्ती करनी पड़ेगी. मैं चाहता हूं कि तुम मान जाओ और उसे आने से मना कर दो. यह मैं तुम से आखिरी बार कह रहा हूं.’’

ये भी पढ़ें- बीमा पौलिसी के नाम पर ठगी

‘‘पिताजी, लगता है आप के कान किसी ने भर दिए हैं. मोनू से मेरा कोई गलत संबंध नहीं है. आप को गलतफहमी हुई है.’’ रागिनी ने ससुर को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया.

बहू के तेवर देख कर सत्यनारायण सकते में आ गए. अब उन्हें अपनी ही नहीं, बेटे की भी चिंता होने लगी. दरअसल सत्यनारायण के कोई औलाद नहीं थी. वह लखनऊ के कमिश्नर औफिस में नौकरी करते थे. नातेरिश्तेदार चाहते थे कि वह किसी बच्चे को गोद ले लें क्योंकि उन्हें पता था कि सत्यनारायण सरकारी नौकरी करते हैं. उन के पास खूब पैसा है, जिसे वह गोद लेंगे, वह मौज करेगा.

सत्यनारायण को लगता था कि लोग उन की संपत्ति के लालच में अपना बच्चा उन्हें गोद देना चाहते हैं, जबकि उन की पत्नी कलावती चाहती थी कि वह किसी रिश्तेदार का ही बच्चा गोद लें. लेकिन वह इस के लिए राजी नहीं थे. उन्होंने पत्नी को समझाया. इस के बाद दोनों ने मिलजुल कर फैसला लिया कि वे अनाथालय से बच्चा गोद लेंगे.

सत्यनारायण ने दिलीप को अनाथालय से गोद लिया था. उसे खूब पढ़ायालिखाया. दिलीप को काफी दिनों तक इस बात का पता नहीं था कि वह गोद लिया बच्चा है. वह अपने मांबाप को बहुत प्यार करता था. कलावती बीमार रहने लगीं तो उन्होंने दिलीप की शादी रागिनी से कर दी थी.

शादी के 3 सालों बाद रागिनी को बेटा हुआ, सब बहुत खुश हुए. लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी, क्योंकि कलावती की मौत हो गई थी. बेटेबहू के लिए उन्होंने बढि़या मकान पहले ही बनवा दिया था. पत्नी की मौत के बाद वह अकेले पड़ गए थे. बुढ़ापे में अब उन्हें बेटे और बहू का ही सहारा था.

रागिनी के व्यवहार से घर में कलह शुरू हो गई थी. वह ससुर से खुल कर लड़ने लगी थी. इस बात को ले कर सत्यनारायण को बहुत तकलीफ थी. अपनी यह तकलीफ वह गांव वालों से व्यक्त भी करने लगे थे. गांव वालों ने उन्हें समझाया तो उन्होंने कहा, ‘‘बहू मेरी हत्या भी करा सकती है.’’

गांव वालों को लगा कि बुढ़ापे की वजह से वह ऐसा सोच रहे हैं, इसलिए किसी ने उन की बात को गंभीरता से नहीं लिया.

25 सितंबर की सुबह गांव के बाहर खेत में सत्यनारायण की लाश पड़ी मिली. इस बात की सूचना उन के बेटे दिलीप और पुलिस को दी गई. घटनास्थल पर पहुंच कर दिलीप पिता की लाश से लिपट कर रोने लगा. वह बारबार यही कह रहा था कि रागिनी ने इन्हें मरवा दिया.

आखिरी रागिनी आ गई शक के घेरे में

घटना की सूचना पा कर थाना निगोहां के थानाप्रभारी चैंपियनलाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. सभी का कहना था कि बहू ने ही सत्यनारायण की हत्या कराई है. चैंपियनलाल नहीं चाहते थे कि कोई निर्दोष जेल जाए, इसलिए बिना सबूतों के वह रागिनी को जेल भेजने के पक्ष में नहीं थे. क्योंकि रागिनी खुद को निर्दोष कह रही थी.

चैंपियनलाल ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें लाश के पास से लाल रंग की चूडि़यों के टुकड़े मिले. चूडि़यों के उन टुकड़ों को देख कर उन्हें लगा कि इस हत्या में रागिनी का हाथ हो सकता है, इसलिए उन्होंने उन टुकड़ों का रागिनी के हाथ में पहनी चूडि़यों का मिलान कराया तो वे रागिनी की चूडि़यों से मिल गए.

यही नहीं, चूड़ी टूटने से रागिनी के हाथ में खरोंच के निशान भी पाए गए. इस के बाद उन्होंने रागिनी से पूछताछ शुरू की तो रागिनी ने ससुर की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर हत्या की पूरी कहानी सुना दी.

24 सितंबर को मोनू रागिनी से मिलने आया तो इस की जानकारी सत्यनारायण को हो गई. उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘अब तक मैं चुप था, लेकिन अब मुझे यह सब दिलीप से बताना ही पड़ेगा.’’

इस से रागिनी डर गई, क्योंकि अब उस का भेद पति को पता चल जाता. डर की वजह से उस ने ससुर से किसी भी तरह की बहस नहीं की. चुपचाप उन की बात सुन ली. लेकिन उस ने मन ही मन तय कर लिया कि अब यह शिकायत का सिलसिला बंद होना चाहिए. उस ने फोन कर के यह बात मोनू को बता दी.

उसी समय दोनों ने तय कर लिया कि आज रात वे शिकायतों का कांटा हमेशाहमेशा के लिए निकाल फेंकेंगे. उस रात गांव में आर्केस्ट्रा हो रहा था. सत्यनारायण उसे देखने के लिए निकले, तभी रागिनी ने दिलीप से कहा कि वह शौच के लिए बाहर जा रही है.

घर से बाहर आ कर रागिनी ने दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया इस के बाद मोनू को फोन कर के कहा कि बुड्ढा घर से निकल गया है. मोनू अपने साथी के साथ आ गया. मोनू और उस के साथी ने सत्यनारायण को पकड़ लिया. सत्यनारायण मजबूत कदकाठी के थे, इसलिए वे दोनों उन्हें काबू नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने मोनू के गले में अंगौछा डाल कर उसे गिरा दिया.

जब रागिनी को लगा कि ये दोनों बुड्ढे को काबू नहीं कर पाएंगे, तो वह भी उन के साथ लग गई. तीनों ने मिल कर सत्यनारायण को गिरा दिया और उन्हें मार डाला. लाश को वहीं छोड़ कर तीनों अपनेअपने घर चले गए. रागिनी घर आई तो दिलीप ने पिता के बारे में पूछा. रागिनी ने कहा कि वह आर्केस्ट्रा देखने गए हैं.

काफी रात बीतने पर भी सत्यनारायण घर नहीं आए तो दिलीप वहां गया, जहां आर्केस्ट्रा हो रहा था. पिता वहां नहीं मिले तो देर रात तक वह उन्हें खोजता रहा. परेशान हो कर वह घर आ गया. सुबह गांव वालों से पता चला कि पिता की हत्या हो गई है तो उस की समझ में आ गया कि रागिनी ने ही पिता को मरवाया है.

5 घंटे के अंदर ही थाना निगोहां पुलिस ने जिस तरह से सबूतों के साथ हत्या का खुलासा किया, उस से लोगों में एक भरोसा जाग गया. रागिनी और मोनू को गिरफ्तार कर के पुलिस ने जेल भेज दिया. रागिनी के जेल जाने के बाद दिलीप के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह छोटे से बच्चे का पालनपोषण कैसे करे. क्योंकि बिना मां के बच्चे का पालनपोषण करना ही परेशानी की बात है.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चाओं पर आधारित

Crime Story: प्यार में जब खेला गया अपहरण का खेल

15 सितंबर, 2016 को अपने दोनों बेटों को स्कूल भेजने के बाद परमजीत कौर घर के  जरूरी काम निपटा कर बाजार चली गई थी. बाजार से लौटने में उसे दोपहर के 2 बज गए. बाजार से लाया सामान रख कर उस ने मां से पूछा, ‘‘बीजी, अभी बच्चे स्कूल से नहीं आए क्या?’’

‘‘थकीमांदी आई हो, आराम से एक गिलास पानी पियो. बच्चे आते ही होंगे, वे कहां जाएंगे, रास्ते में खेलने लग गए होंगे.’’

‘‘बीजी, गांव के सारे बच्चे आ गए हैं, मेरे ही बेटे कहां रह गए?’’ परेशान परमजीत

कौर ने कहा, ‘‘मैं जरा देख कर आती हूं.’’

परमजीत कौर घर से निकल रही थी, तभी घर के बाहर उस के पिता पाला सिंह मिल गए. बच्चों के स्कूल से न आने की बात सुन कर वह भी परेशान हो उठे. बच्चों की तलाश में परमजीत कौर के साथ वह भी चल पड़े. पाला सिंह और परमजीत कौर ने गांव के लगभग सभी बच्चों से अपने बच्चों के बारे में पूछा, पर कोई भी बच्चा उन के बारे में नहीं बता सका.

बच्चों ने सिर्फ यही बताया था कि स्कूल की छुट्टी होने पर उन्होंने उन्हें देखा तो था, लेकिन उस के बाद वे कहां चले गए, यह किसी को पता नहीं था. बच्चों के न मिलने से परमजीत कौर का बुरा हाल था. किसी अनहोनी के बारे में सोच कर वह फूटफूट कर रो रही थी. स्कूल के अध्यापक सतपाल और प्रिंसिपल जगदीश कुमार ने भी बताया था कि छुट्टी होने तक तो दोनों बच्चे साथसाथ दिखाई दिए थे. लेकिन स्कूल से निकलने के बाद वे किधर गए, उन्हें पता नहीं था.

परमजीत कौर के मन में एक ही सवाल बारबार उठ रहा था कि आखिर उस के बच्चे कहां चले गए? रोरो कर वह सब से पूछ भी यही रही थी. शाम करीब 4 बजे गांव के ही हरप्रीत से पता चला कि उस के दोनों बेटों अंकुशदीप और जशनदीप को एक आदमी अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर ले गया था.

वह मोटरसाइकिल सवार कौन था, हरप्रीत यह नहीं बता सका था. उस ने बताया था कि वह अपने मुंह पर काला कपड़ा बांधे था, इसलिए वह उसे पहचान नहीं सका था. कोई अंजान आदमी अपनी मोटरसाइकिल पर दोनों बच्चों को बिठा कर ले गया था, इस का मतलब था कि उन का अपहरण हुआ था.

इतना जानने के बाद समय बेकार करना ठीक नहीं था, इसलिए पाला सिंह बेटी परमजीत कौर, स्कूल के प्रिंसिपल जगदीश कुमार और गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर पुलिस को सूचना देने जिला फाजिल्का के थाना बहाववालापुरा की पुलिस चौकी वजीदपुर भीमा जा पहुंचे.

चौकीप्रभारी मुंशीराम ने उन लोगों की बातें ध्यान से सुनने के बाद थानाप्रभारी तेजेंद्रपाल सिंह के अलावा उच्चाधिकारियों को भी घटना की सूचना दे दी. इस के बाद उन्हीं के निर्देश पर 8 साल के अंकुशदीप सिंह और 6 साल के जशनदीप सिंह के अपहरण का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

ये भी पढ़ें- ड्राइवर बना जान का दुश्मन

मुकदमा दर्ज होते ही चौकीप्रभारी मुंशीराम ने शहर से बाहर जाने वाले सभी प्रमुख मार्गों पर नाके लगवा दिए. छोटीबड़ी हर गाड़ी की तलाशी ली जाने लगी. पुलिस अपनी काररवाई कर ही रही थी कि चौकी वजीदपुर भीमा के मुंशी के पास एक फोन आया, जिस में फोन करने वाले ने कहा, ‘‘मैं गुरजंट सिंह बोल रहा हूं. अपने साहब से कह दो कि जिन बच्चों को वे ढूंढ रहे हैं, उन के लिए वे परेशान न हों. बच्चे मेरे पास हैं. यह हमारा आपस के लेनदेन का मामला है, इसलिए आप लोगों को बीच में पड़ने की जरूरत नहीं है.’’

यही बात परमजीत कौर को भी फोन कर के कही गई थी. फोन करने वाले ने उस से कहा था, ‘‘मैं बच्चों का अंकल बोल रहा हूं. तुम ने मुझ से जो 20 हजार रुपए लिए थे, उन्हें दे जाओ और मुझ से शादी कर लो. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो मैं तुम्हारे दोनों बेटों को छोड़ दूंगा. अगर नहीं मानी तो उन के छोटेछोटे टुकड़े कर के कहीं फेंक दूंगा.’’

ये दोनों फोन एक ही नंबर से किए गए थे. पुलिस इस सोच में पड़ गई कि फोन करने वाला सनकी है या फिर बेहद चालाक? कहीं वह पुलिस को अपनी इन बातों में उलझा कर कोई नया खेल तो नहीं खेलना चाहता?

बहरहाल, बच्चों की सुरक्षा बेहद जरूरी थी. इसलिए मुंशीराम ने तुरंत उस नंबर की लोकेशन पता करवाई, जो शहर के बाहरी इलाके सीतोगुन्नो की मिली. सीतोगुन्नो जाने के लिए एक टीम तैयार की गई, जिस में थानाप्रभारी तजेंद्रपाल सिंह ने चौकीप्रभारी मुंशीराम, हैडकांस्टेबल सुखदेव सिंह, रमेश कुमार, दलजीत सिंह, कांस्टेबल सरवन, मक्खन और जगदीप सिंह को शामिल किया.

सीतोगुन्नो गांव के पास एक ऊंची पहाड़ी जैसी जगह थी, जिसे पुलिस टीम ने घेर लिया और गुरजंट की तलाश शुरू कर दी. तलाश करती पुलिस टीम जब एक टीले के पास पहुंची तो वहां झाड़ी के पास दोनों बच्चे जमीन पर अर्द्धबेहोशी की हालत में पड़े दिखाई दिए. दोनों बच्चों के हाथपैर और मुंह को बड़ी बेरहमी के साथ बांधा गया था.

मुंशीराम ने जल्दी से बच्चों के हाथपैर तथा मुंह खोला और उन्हें बहाववालापुरा के अस्पताल पहुंचाया. बाकी पुलिस टीम गुरजंट की तलाश में वहीं जमी रही. लेकिन गुरजंट भाग गया था, क्योंकि काफी तलाश के बाद भी वह वहां नहीं मिला था. इस की वजह यह थी कि वह काफी ऊंचाई पर था, जिस से उस ने पुलिस को आते देख लिया होगा.

बहरहाल, थोड़ी देखभाल के बाद दोनों बच्चे स्वस्थ हो गए थे. मुंशीराम ने अंकुशदीप और जशनदीप को सकुशल परमजीत कौर के हवाले कर दिया. अब उन्हें पता करना था कि गुरजंट कौन था और उस ने परमजीत कौर के बेटों का अपहरण क्यों किया था?

मुंशीराम ने गुरजंट की गिरफ्तारी के प्रयास तेज कर दिए. आखिर उन की मेहनत रंग लाई और पैसों की कमी से परेशान हो कर अपने किसी दोस्त से पैसे लेने बसअड्डे के पास आए गुरजंट को मुखबिर की सूचना पर उन्होंने गिरफ्तार कर लिया. उस से और परमजीत कौर तथा उस के पिता पाला सिंह से की गई पूछताछ के बाद बच्चों के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

पाला सिंह जिला फाजिल्का के थाना बहाववालापुरा के गांव हिम्मतपुरा के रहने वाले थे. खेती कर के गुजरबसर करने वाले पाला सिंह की बेटी परमजीत कौर शादी लायक हुई तो उन्होंने सन 2006 में जिला बठिंडा के थाना भुचोमंडी के गांव खुइयां कोठी के रहने वाले रेशम सिंह से उस का विवाह कर दिया. शादी के बाद परमजीत कौर 2 बेटों अंकुशदीप सिंह और जशनदीप सिंह की मां बनी.

ये भी पढ़ें- दोस्ती की कमजोर छत

भले ही परमजीत कौर की शादी हुए 8 साल हो गए थे और वह 2 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन उस की अपने पति रेशम सिंह से कभी नहीं पटी. वह कमाता तो ठीकठाक था, लेकिन न वह बीवी का खयाल रखता था और न बच्चों का. यही नहीं, शराब पी कर वह हैवान बन जाता था. छोटीछोटी बातों पर क्लेश करते हुए वह मारपीट के लिए उतारू हो जाता था.

रोज की इस क्लेशभरी जिंदगी से तंग आ कर परमजीत कौर अपने दोनों बेटों को ले कर करीब 3 साल पहले सन 2013 में पति का घर छोड़ कर पिता पाला सिंह के घर आ कर रहने लगी. मांबाप को बोझ न लगे, इस के लिए वह पास की ही एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगी. नौकरी लगने के बाद उस ने सिविल कोर्ट में तलाक का मुकदमा कर दिया था. बच्चों के भविष्य को ध्यान में रख कर उस ने गांव के सरकारी स्कूल में उन का दाखिला करा दिया था.

सुबह नौकरी पर जाने के बाद बच्चे दोपहर को घर आते थे तो उस की अनुपस्थिति में उन का खयाल उस की मां अमरजीत कौर रखती थीं. परमजीत कौर को पिता के घर रहते लगभग 3 साल हो गए थे. पिछले साल उस की मुलाकात गुरजंट सिंह से हुई, जो जल्दी ही जानपहचान में बदल गई. गुरजंट सिंह भी वहीं काम करता था, जहां परमजीत कौर करती थी. एक साथ, एक ही जगह पर काम करते हुए ही दोनों में जानपहचान हुई थी.

इस के आगे परमजीत कौर ने न कभी कुछ सोचा था और न ही कुछ सोचने की स्थिति में थी. पति से तलाक के बाद आगे क्या करना है, यह उस के पिता को सोचना था. जबकि जानपहचान होते ही गुरजंट सिंह ने परमजीत कौर को ले कर बहुत आगे की सोच ली थी. वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगा था. एक दिन उस ने यह बात परमजीत कौर से कह भी दी.

परमजीत कौर नेक, शरीफ और धैर्यवान औरत थी. उस ने गुरजंट सिंह को प्यार से समझाते हुए कहा था, ‘‘हम एक साथ काम करते हैं, उठतेबैठते हैं और खातेपीते हैं, यह तो ठीक है? लेकिन रही शादी की बात तो यह न मुझे अच्छी लगती है और न मैं इस बारे में सोचना चाहती हूं.’’

‘‘तो क्या तुम पूरी जिंदगी बिना पति के गुजार दोगी?’’

‘‘यह मेरी समस्या है और इस का समाधान ढूंढना मेरे मातापिता की जिम्मेदारी है, इसलिए तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ परमजीत कौर ने साफसाफ कह दिया.

कहने को तो परमजीत कौर ने गुरजंट को बड़े सभ्य तरीके से समझा दिया था, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आया. वह जब भी परमजीत कौर से मिलता, शादी की ही बात करता. यही नहीं, अब वह आतेजाते परमजीत कौर से छेड़छाड़ भी करने लगा था.

बात जब हद से आगे बढ़ने लगी तो एक दिन परमजीत कौर ने सारी बातें अपने पिता पाला सिंह को बता कर गांव में पंचायत बुला ली. पंचायत ने गुरजंट और उस के पिता हरपाल सिंह को बुलवा लिया.

गुरजंट सिंह जिला श्रीमुक्तसर साहिब के थाना लंबी के गांव भाटीवाला का रहने वाला था. पंचायत ने जब गुरजंट सिंह को उस के पिता के सामने बहूबेटियों को छेड़ने के आरोप में सजा देने की बात की तो उस के पिता ने हाथ जोड़ कर माफी मांगी और वचन दिया कि भविष्य में गुरजंट कभी इस गांव के आसपास भी दिखाई नहीं देगा. उसी दिन हरपाल सिंह गुरजंट को ले कर गांव चला गया. यह जुलाई, 2016 की बात है.

ये भी पढ़ें- कानून से खिलवाड़ करती हत्याएं

उस दिन के बाद गुरजंट सिंह परमजीत कौर को तो क्या, गांव के भी किसी आदमी को दिखाई नहीं दिया. 3 महीने बाद अचानक गांव आ कर उस ने बड़ी होशियारी से परमजीत कौर के दोनों बेटों का अपहरण कर लिया, ताकि उस पर दबाव डाल कर वह उस से शादी कर सके.

पूछताछ के बाद मुंशीराम ने इस मुकदमे में अपहरण के साथ षडयंत्र की धारा को जोड़ कर गुरजंट सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस के बाद गुरजंट के पिता हरपाल सिंह ने गांव में पंचायत बुला कर परमजीत कौर और गांव वालों से माफी मांगते हुए कहा कि वे एक बार फिर गुरजंट को माफ कर दें. लेकिन अब क्या हो सकता था. अब तो मामला पुलिस और न्यायालय तक पहुंच चुका था. उस ने जो किया था, उस की सजा तो उसे भोगनी ही पड़ेगी.

Crime Story: धोखाधड़ी- फ्रैंडशिप क्लब सैक्स और ठगी का धंधा

लेखक- बृहस्पति कुमार पांडेय

इन इश्तिहारों में बिना पता लिखे कुछ मोबाइल नंबर भी दिए होते हैं जिन में कुछ घंटों में ही हजारों रुपए कमाने के दावे भी किए जाते हैं.

मैं ने भी इस तरह के तमाम इश्तिहार कई बार अखबारों में देखे हैं, लेकिन एक दिन मेरी नजर उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के रेलवे स्टेशन रोड के कुछ मकानों पर चिपके पोस्टरों पर पड़ी. उन पोस्टरों पर मेरा ध्यान इसलिए चला गया क्योंकि उन में भी अखबारों में छपने वाले फ्रैंडशिप क्लब जैसा ही कुछ लिखा था.

मैं ने जब नजदीक जा कर उन पोस्टरों को देखा तो उन में ‘सौम्या फ्रैंडशिप क्लब’ के बारे में लिखा था और उन में उन बेरोजगार नौजवानों को रिझाने वाली कुछ लाइनें भी लिखी थीं जो बिना कुछ किएधरे अमीर बनने के सपने देखते हैं.

पोस्टरों में कुछ इस तरह से लिखा था कि हाई प्रोफाइल लड़कियों के साथ दोस्ती और मीटिंग कर के कुछ ही घंटों में कमाएं 1,500 से ले कर 3,500 रुपए रोजाना.

मैं ने इस क्लब की असलियत जानने के लिए अपने मोबाइल फोन का काल रिकौर्डर औन कर उन में से एक नंबर पर फोन मिला दिया. कुछ देर घंटी बजने के बाद जब उधर से फोन उठा तो एक मर्दाना आवाज आई और बोला गया कि ‘सौम्या फ्रैंडशिप क्लब’ में आप का स्वागत है. बताइए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?

मैं ने उस शख्स से कहा कि मैं ने उस के पोस्टर में से यह नंबर देख कर उसे फोन किया है और मैं भी हाई प्रोफाइल लड़कियों से दोस्ती गांठ कर ढेर सारे पैसे कमाना चाहता हूं तो उधर से उस शख्स ने बड़े ही खुले शब्दों में कहा कि मुझे इस के लिए 800 रुपए जमा करा कर इस क्लब की मैंबरशिप लेनी होगी. इस के बाद मुझे एक कोड दिया जाएगा और फिर मेरे पास बड़े घरों की लड़कियों और औरतों के फोन आने शुरू हो जाएंगे.

ये वे लड़कियां और औरतें होंगी जो अकेली रहती हैं या जिन के पति बिजनैस के सिलसिले में अकसर घर से बाहर टूर पर रहते हैं या फिर वे औरतें होंगी जो विधवा हैं.

ये भी पढ़ें- सोशल मीडिया क्राइम: नाइजीरियन ठगों ने किया कारनामा

उस आदमी ने आगे कहा कि मुझे ऐसी औरतों के फोन भी आएंगे जो एक से ज्यादा मर्दों के साथ संबंध रखती हैं. उस के बाद उधर से सैक्स से जुड़ी ऐसी बातें बताई जाने लगीं कि मेरे अंगअंग में जोश आने लगा.

मैं उस शख्स की सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था और जब वह अपने क्लब के बारे में बहुतकुछ बता चुका था तो मैं ने उस से कहा कि क्या उसे फोन पर ऐसी बातें बताते हुए पुलिस में पकड़े जाने का डर नहीं है?

यह सुन कर उस शख्स ने बिना वजह पूछे कहा कि इस में जो भी नौजवान औरतें, लड़कियां या लड़के शामिल होते हैं, वे सब अपनी मरजी से आते हैं. ऐसे में पुलिस का डर किस बात का?

मैं ने उस से कहा कि उस ने इतनी सैक्सी बातें फोन पर की हैं, क्या उसे काल रिकौर्ड होने का डर नहीं है? तो उस आदमी ने जो बताया उस से मेरा चौंकना लाजिमी था, क्योंकि उस ने कहा कि उस ने ऐसा सौफ्टवेयर लगा रखा

है कि उस के मोबाइल पर होने वाली कोई भी बातचीत रिकौर्ड नहीं की जा सकती है.

इस के बाद उस आदमी ने मुझ से कहा कि वह मैंबरशिप के लिए कुछ देर में एक बैंक अकाउंट नंबर सैंड करेगा, फिर उधर से फोन कट गया.

फोन कटने के बाद मैं ने जब अपनी रिकौर्डिंग लिस्ट देखी तो सचमुच उस नंबर से हुई बातचीत का कोई भी अंश रिकौर्ड नहीं हुआ था.

मैं ने दोबारा जांचने के लिए अपने परिचित के मोबाइल पर हालचाल लेने के बहाने फोन किया और बाद में उस काल की रिकौर्डिंग चैक की, तो उस बातचीत की रिकौर्डिंग मौजूद थी.

फैल रहा कारोबार

फ्रैंडशिप के नाम पर नौजवानों को फांसने का धंधा पूरे देश में फैला हुआ है. आप किसी भी शहर में चले जाएं वहां के लोकल अखबारों से ले कर दीवारों तक पर इन के इश्तिहार मिल जाएंगे. फ्रैंडशिप क्लब का धंधा करने वालों में औरतें और मर्द दोनों शामिल हैं.

फ्रैंडशिप के नाम पर सैक्स और ठगी का धंधा करने वाले अकसर पुलिस से बचने के लिए एक शहर से दूसरे शहर में ठिकाने बदलते रहते हैं, जिस से अगर कोई शिकायत भी करे तो फंसने के चांस कम हो जाएं.

इसी तरह के एक गिरोह का परदाफाश नागपुर पुलिस ने एक आदमी की शिकायत पर तब किया था, जब उसे इस गिरोह के लोगों ने सवा लाख रुपए का चूना लगा दिया था. इस के बाद पुलिस ने इस गिरोह के लोगों को दबिश डाल कर गिरफ्तार किया था.

इन गिरफ्तार लोगों में ‘निशा फ्रैंडशिप क्लब’ चलाने वाले गिरोह में मुखिया रितेश उर्फ भैरूलाल भगवानलाल, सुवर्णा मिनेश निकम, पल्लवी, विनायक पाटिल, शिल्पा समीर साखरे और निशा सचिन साठे शामिल थे. ये लोग महाराष्ट्र के ठाणे से राजस्थान तक अपना जाल फैलाए हुए थे. ये लोग सैकड़ों सिम रखते थे और जिस सिम से ये लोग ग्राहक को फांसते थे उसे ठगी के बाद बंद कर देते थे.

पुलिस गिरफ्त में आने के बाद इन के अलगअलग बैंकों में 20 खातों की जांच की गई तो उन में हर रोज बड़ेबड़े ट्रांजैक्शन सामने आने के बाद बीसियों खातों को सीज कर दिया गया.

दोस्ती के नाम पर ठगी

जो लोग इस तरह के गिरोह के चक्कर में पड़ते हैं उन से पहले क्लब की मैंबरशिप फीस के नाम पर अमूमन 1000 रुपए से ले कर 10,000 रुपए तक ऐंठ लिए जाते हैं. फिर इन से मैडिकल जांच और एचआईवी जांच के नाम पर 10,000 रुपए तक अलग से जमा कराए जाते हैं.

इन के चक्कर में फंसे नौजवान इस भरम में पैसे जमा करा देते हैं कि उन्हें तो हाई प्रोफाइल लोगों से दोस्ती के साथ ही कुछ घंटों के मजे के एवज में मोटी रकम हर रोज मिलनी ही है, पर जैसे

ही इन अकाउंट पैसे जमा करने की जानकारी दी जाती है उस के बाद क्लब के जिस मोबाइल नंबर से बात होती है, वह स्विच औफ हो जाता है.

इन क्लबों के शिकार नौजवान शर्मिंदगी के चलते अपने ठगे जाने की बात न तो परिवार वालों को बताते हैं और न ही पुलिस के पास जाते हैं, इसलिए इन क्लबों का यह धंधा फलताफूलता रहता है.

सैक्स और ब्लैकमेलिंग

फ्रैंडशिप क्लब में मैंबरशिप लेने के बाद क्लब की तरफ से एक कोड दिया जाता है. उस के बाद कुछ मोबाइल नंबर दिए जाते हैं.

मैंबरशिप लेने वाले को यह बताया जाता है कि ये नंबर उन के हैं जो नएनए लोगों के साथ बिस्तर गरम करने की चाहत रखते हैं. कुछ मामलों में तो फ्रैंडशिप क्लब की मैंबरशिप लेने वाले लोगों को आपस में ही फ्रैंड बना कर उन्हें सैक्स करने के लिए उकसाया जाता है और फिर जब बात संबंध बनने तक पहुंचती है तो ये लोग सैक्स के लिए महफूज जगह के नाम पर कमरे भी मुहैया कराते हैं, जहां इन के जाल में फंसे लोगों के सैक्स के दौरान के वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है.

कई बार इस गिरोह की औरतें सैक्स के शौकीन लोगों से किसी अमीर घर की औरत बन कर बातें करती हैं. जब मैंबर को पूरी तरह से यकीन हो जाता है तो वह उन के साथ बिस्तर गरम करने की इच्छा रख देता है.

ये भी पढ़ें- सुलझ ना सकी वैज्ञानिक परिवार की मर्डर मिस्ट्री

गिरोह की लड़कियां इन लोगों को ऐसी जगह पर बुलाती हैं जहां इन के साथ आसानी से वीडियो बनाया जा सके. इस के बाद ऐसे वीडियो के जरीए इस गिरोह के लोग मैंबर को लूटने लगते हैं. जब तक लुटने वाले लोगों को बात समझ में आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

कोड के जरीए धंधा

ये लोग अपने इश्तिहार के जरीए बड़े घरों की औरतों को फांसते हैं और फिर मैंबर बने नौजवानों को दिए गए कोड से उन औरतों से बात कराते हैं. फिर तय रकम में से 70 से 80 फीसदी कमीशन इस गिरोह वाले खुद ले लेते हैं, बाकी पैसा उस नौजवान को मिल जाता है.

लेकिन इस तरह के क्लबों के चक्कर में पड़ कर अकसर बड़े घरों की औरतें अपने पतियों की गाढ़ी कमाई तो लुटाती ही हैं साथ ही अपनी इज्जत भी गंवाती हैं. जो नौजवान

इन क्लबों के चक्कर में पड़ते हैं वे अपना कैरियर और अपने मांबाप के सपनों को दांव पर लगा देते हैं.

इन क्लबों की शिकार बड़े घरों की औरतें ज्यादा होती है, क्योंकि खुला जीवन जीने की चाहत इन्हें इस तरह से अपनी गिरफ्त में लेती है कि जल्दी ये उस से उबर नहीं पाती हैं. जो औरतें हिम्मत दिखाती हैं उन के चलते कई बार ऐसे गिरोह के लोग जेल भी गए हैं.

इस के साथसाथ आम लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा खासकर नौजवान तबके को, क्योंकि ऐसे क्लब उन की दुखती रग पर हाथ रखते हैं. वे जानते हैं कि नौजवान पीढ़ी को सैक्स के नाम पर भरमाया जा सकता है. मीठीमीठी बातों से उस से पैसे ऐंठे जा सकते हैं.

क्या कहते हैं जानकार

फ्रैंडशिप क्लबों द्वारा की जाने वाली ठगी से बचने के मामले को ले कर सामाजिक कार्यकर्ता विशाल पांडेय का कहना है कि आज के नौजवान शौर्टकट से अमीर बनने के सपने देखते हैं. साथ ही नईनई औरतों के साथ हमबिस्तरी की चाहत रखने वाले भी इस तरह के गिरोहों के जाल में आसानी से फंस जाते हैं, जिस के चलते ये नौजवान लंबे समय तक ब्लैकमेलिंग और ठगी के शिकार होते हैं.

शौर्टकट से पैसे कमाने के ऐसे सपने देखना सलाखों के पीछे पहुंचने की वजह बन जाता है, इसलिए अपनी काबिलीयत से पैसे कमाएं और अपने जीवनसाथी के प्रति ईमानदार रहें, नहीं तो इज्जत तो जाएगी ही, यह लत आप को कंगाल भी कर देगी.

ये भी पढ़ें- समाज की डोर पर 2 की फांसी

सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका उर्मिला वर्मा का कहना है कि अगर आप फ्रैंडशिप क्लबों के जाल में गलती से भी फंस जाएं तो हिम्मत दिखाएं और अपने परिवार वालों के साथ ही पुलिस में रिपोर्ट जरूर दर्ज कराएं. इस से दूसरे लोग ऐसे गिरोहों के चक्कर में पड़ने से बचेंगे, साथ ही इन का परदाफाश होने से लोगों में जागरूकता भी बढ़ेगी.

Crime Story: मसाज पार्लर की आड़ में देह धंधा

यह इतने पेशेवर तरीके से किया जाता है कि इस की भनक सिर्फ उन्हें ही लग पाती है जो इन पार्लरों के नियमित ग्राहक होते हैं. सख्त कानून और चुस्त प्रशासन की नाक के नीचे किए जा रहे इस धंधे में पार्लर के अंदर का नजारा बड़ा ही रंगीन होता है. किसी ग्राहक को पटाने का सिलसिला पार्लर में जाने के बाद ही शुरू हो जाता है. स्पा या मसाज पार्लर में पहले तो ग्राहक को एक चार्ट दिखाया जाता है जिस में अलगअलग मसाज और उस के दाम लिखे होते हैं जिसे ग्राहक अपने मनमुताबिक चुनता है.

ये भी पढ़ें-  बेटे ने मम्मी की बना दि ममी…

उस के बाद ग्राहक के सामने स्टाफ को बुलाया जाता है यानी वहां मसाज करने वाली लड़कियां जिन की मुसकराहट और ड्रैस को देख कर ग्राहक पहली ही नजर में उन की ओर खिंच जाता है.  फिर ग्राहक अपनी पसंद की लडक़ी को चुनता है और उस के बाद शुरू होता है मसाज के नाम पर ग्राहक को पटाने का सिलसिला.  मसाज रूम के अंदर जाने से पहले आमतौर पर ग्राहक से मसाज का पैसा पहले ही जमा करा लिया जाता है. मसाज का समय तकरीबन आधा घंटे से ले कर 1 घंटे का होता है. इसी मसाज के दौरान ही ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ दी जाती है. क्या है ‘एक्स्ट्रा सर्विस’ मसाज रूम के अंदर  30 मिनट के मसाज के बाद मसाज गर्ल ग्राहक से पूछती है, ‘‘सर, ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ लेंगे?’’ ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ एक ऐसा शब्द है जिस से मसाज पार्लर व स्पा सैंटरों का गुलाबी धंधा शुरू होता है. एक घंटे के मसाज में बंद कमरे में बहुतकुछ हो जाता है. दरअसल, इन लड़कियों को पहले से ही सिखाया जाता है कि ग्राहक को हर तरह से संतुष्ट करना है. इस के लिए चाहे कुछ भी करना हो.  बौडी मसाज के दौरान ये ग्राहक के कुछ ऐसे बौडी पौइंट को दबाती हैं कि ग्राहक खुद ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ के लिए मना नहीं कर पाता है. ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ का  रेट एक मसाज गर्ल ने बताया, ‘‘ज्यादातर मामलों में हमारा रेट इस बात पर निर्भर करता है कि ग्राहक कौन सा मसाज करवाना चाहता है.’’

ये भी पढ़ें- बीच रास्ते में दुल्हन का अपहरण…

अगर आप किसी छोटे मसाज पार्लर में जाते हैं तो वहां नौर्मल मसाज का रेट 1,000 से 2,000 रुपए होता है. अगर आप किसी बड़े?स्पा में जाते हैं तो वहां शुरुआती रेट 3,000 रुपए से शुरू होता है. ज्यादातर ग्राहक ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ के लिए ही आते हैं. ऐसे में वे दिखावे के लिए सब से सस्ता वाला ही मसाज चुनते हैं.  वह मसाज गर्ल आगे बताती है कि रूम के अंदर जब ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ की बात होती है तो आमतौर पर ग्राहक को 2,000 से 5,000 रुपए तक के रेट बताए जाते हैं. कभीकभार हम उन से कम पैसे भी ले लेते हैं. इस में सौदेबाजी भी जम कर होती?है.  सौदेबाजी के बाद ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ का एक रेट अलग से तय किया जाता है. ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ का पैसा सर्विस से पहले ही ले लिया जाता है क्योंकि कई बार सर्विस होने के बाद ग्राहक तय रकम देने से मना कर देते हैं. फंसते हैं जाल में आजजगहजगह मसाज पार्लर खोले जा रहे हैं जहां बौडी मसाज के नाम पर जिस्मफरोशी का धंधा किया जा रहा है. यहां ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ लेने वाले लोगों में सब से ज्यादा तादाद नौजवानों की होती है.  ज्यादातर नौजवान अखबारों, पत्रिकाओं या सोशल मीडिया पर इश्तिहार देख कर इन के झांसे में आते हैं. ऐसे ज्यादातर इश्तिहार तो नकली होते हैं. इन का मकसद लोगों को अपने जाल में फंसाना होता है. ये लोग ग्राहक को लूटते हैं, उन की निजी तसवीरें ले कर उन्हें ब्लैकमेल भी करते हैं. दिल्ली और उस से सटी नोएडा, गुरुग्राम वगैरह जगहों में तो इस का नैटवर्क और तेजी से फैलता जा रहा?है. एक खबर देखिए. नोएडा सैक्टर 18 में स्थित स्पा सैंटर में चल रहे देह  धंधे के रैकेट का पुलिस ने खुलासा किया है.  पुलिस के मुताबिक, यहां काम करने वाली लड़कियों को 25,000 से 30,000 रुपए के मासिक वेतन पर रखा गया था. ‘ऐक्स्ट्रा सर्विस’ करने पर ये लड़कियां महीने में 35,000 से 40,000 रुपए आसानी से कमा लेती हैं. गुरुग्राम में भी जगहजगह मसाज पार्लर खुले हुए हैं.

ये भी पढ़ें- बालिका सेवा के नाम पर…

समयसमय पर पुलिस ऐसे सैंटरों की तलाशी लेती रहती है, लेकिन वहां के पौश इलाकों में स्पा की आड़ में देह धंधा थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. गुरुग्राम के एमजी रोड, सोहना रोड पर स्थित स्पा सैंटरों में पुलिस ने छापा मार कर तकरीबन दर्जनभर लोगों को गिरफ्तार किया था, जिन में लड़कियां भी शामिल थीं. पुलिस का नहीं डर  साल 2018 में लाजपत नगर, अमर कालोनी में तकरीबन 10 से 12 स्पा सैंटर यानी मसाज पार्लर देह धंधे के सिलसिले में पकड़े गए थे जिन्हें पुलिस कार्यवाही के बाद सील कर दिया गया था, लेकिन अभी भी यह धंधा पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है. दिल्ली में ही नहीं, बल्कि बाकी बड़े शहरों में भी यह धंधा काफी फलफूल  रहा है. हाल में ही मेरठ में एंटी करप्शन के एक इंस्पैक्टर की मिलीभगत से मसाज पार्लर की आड़ में देह धंधा चल रहा था. यह मसाज पार्लर हाईप्रोफाइल लोगों को औनलाइन सर्विस देता था जिस में औन डिमांड लड़कियां सप्लाई की जाती थीं.  ग्राहकों के लिए इस में सब से बड़ा जोखिम लुट जाने का होता है. कई बार ग्राहक से अलगअलग तरीके से जबरन पैसे वसूल लिए जाते हैं या पुलिस को बुलाने की धमकी दी जाती है. बीमारियों से चाहे ग्राहक कंडोम की वजह से बच जाएं, लुटने से नहीं बच पाते हैं.

Crime Story in Hindi: बहुरुपिया- भाग 1: दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

हर्ष से मेरी मुलाकात एक आर्ट गैलरी में हुई थी. 5 मिनट की उस मुलाकात में बिजनैस कार्ड्स का आदानप्रदान भी हो गया.

‘‘मेरी खुद की वैबसाइट भी है, जिस में मैं ने अपनी सारी पेंटिंग्स की तसवीरें डाल रखी हैं, उन के विक्रय मूल्य के साथ,’’ मैं ने अपने बिजनैस कार्ड पर अपनी वैबसाइट के लिंक पर उंगली रखते हुए हर्ष से कहा.

‘‘जी, बिलकुल, मैं जरूर आप की पेंटिंग देखूंगा. फिर आप को टैक्स मैसेज भेज कर फीडबैक भी दे दूंगा. आर्ट गैलरी तो मैं अपनी जिंदगी में बहुत बार गया हूं पर आप के जैसी कलाकार से कभी नहीं मिला. योर ऐवरी पेंटिंग इज सेइंग थाउजैंड वर्ड्स,’’ हर्ष ने मेरी पेंटिंग पर गहरी नजर डालते हुए कहा.

‘‘हर्ष आप से मिल कर बड़ा हर्ष हुआ, स्टे इन टच,’’ मैं ने उस वक्त बड़े हर्ष के साथ हर्ष से कहा था. इस संक्षिप्त मुलाकात में मुझे वह कला का अद्वितीय पुजारी लगा था.

बात तो 5 मिनट ही हुई थी पर मैं आधे घंटे से दूर से उस की गतिविधियां देख रही थी. वह हर पेंटिंग के पास रुकरुक कर समय दे रहा था, साथ ही एक छोटी सी डायरी में कुछ नोट्स भी लेता जा रहा था.

‘लगता है यह कोई बड़ा कलापारखी है,’ उस वक्त उसे देख कर मैं ने सोचा था.

हर्ष से हुई इस मुलाकात को 6 महीने बीत चुके थे. इस दौरान न उस ने मुझ से कौंटैक्ट करने की कोशिश की न ही मैं ने उस से. मेरी वैबसाइट से मेरी पेंटिंग्स की बिक्री न के बराबर हो रही थी. मैं हर तरह से उन के प्रचार की कोशिश कर रही थी. मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी वैबसाइट का लिंक भेज रही थी. मुझे मतलब नहीं था कि वे मुझे ज्यादा जानते हैं या कम. मुझे तो बस एक जनून था कला जगत में एक पहचान बनाने और नाम कमाने का. इस जनून के चलते मैं ने एक टैक्स मैसेज हर्ष को भी भेज दिया.

ये भी पढ़ें- Crime Story in Hindi: अधूरी मौत- क्यों शीतल ने अनल के साथ खतरनाक खेल खेला?

‘‘क्या आज मेरे साथ कौफी पीने आ सकती हो?’’ तत्काल ही उस का जवाब आया.

मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं था. 5 मिनट की संक्षिप्त मुलाकात के बाद कोई 6 महीने तक गायब था और जब किसी वजह से मैं ने उसे एक मैसेज भेजा तो सीधे मेरे साथ कौफी पीना चाहता है.

‘अजीब दुनिया है यह,’ मैं मन ही भुनभुनाई और फिर टैक्स मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिन यों ही आने वाली कला प्रदर्शनी की तैयारी में निकल गए और बाद में भी मैं हर्ष के मैसेज को भुला कर अपने स्तर पर अपनी कला को बढ़ावा देने में जुटी रही. कुछ दिनों के बाद अचानक उस का फोन आया फिर से मेरे साथ कौफी पीने के आग्रह के साथ.

‘‘न तुम मुझे जानते हो और न ही मैं तुम्हें, फिर यह बेवजह कौफी पीने का क्या मतलब है? मैं ने तुम्हें किसी वजह से एक मैसेज भेज दिया, इस का यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि मैं फालतू में तुम्हारे साथ टाइम पास करने के लिए इच्छुक हूं,’’ मेरा दो टूक जवाब था.

‘‘मैं ने तुम्हारी कला और उस की गहराई को समझा है और उस जरीए से तुम्हें भी जाना है. मैं तुम्हारी उतनी ही इज्जत करता हूं जितनी दुनिया एमएफ हुसैन की करती है. मैं ने जब तुम्हारा नाम पहली बार अपने मोबाइल में डाला था तो उस के आगे पेंटर सफिक्स लिख कर डाला था. अभी भी तुम मानो या न मानो एक दिन तुम कला के क्षेत्र में एमएफ हुसैन को मात दे दोगी. रही बात हमारी जानपहचान की तो वह तो बढ़ाने से ही बढ़ेगी न?’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: चार आंखों का खेल

अपनी तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता? हर्ष के शब्दों का मुझ पर असर होने लगा. अपनी तारीफों के सम्मोहन में जकड़ी हुई मैं अब उस से घंटों फोन पर बातें करती. हर बार वह मेरी और मेरी कला की जम कर प्रशंसा करता. उस की बातें मेरे ख्वाबों को पंख दे रही थीं. मन में बरसों से पड़े शोहरत की चाहत के बीज में अंकुर फूटने लगा था.

‘‘मैं तुम्हारी इतनी इज्जत करता हूं, जितनी कि हिंदुस्तान के सवा करोड़ हिंदुस्तानी मिल कर भी नहीं कर सकते. महीनों हो गए तुम्हें कौफी पर आने के लिए कहतेकहते… इतने पर तो कोई पत्थर भी चला आता,’’ एक दिन हर्ष ने कहा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें