बकरा : भाग 2- क्या अधीर को मिला वैवाहिक जीवन का सुख

विवाह के बाद जो सुकून मिलना चाहिए था, वह अधीर को कभी नहीं मिला. मीनू की परवरिश ही कुछ ऐसे माहौल में हुई थी कि उस के लिए अपने मांबाप, भाईबहन आदि के अलावा किसी दूसरे से तालमेल बैठा पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव सा था.

पहले अधीर मीनू के ताना मारने पर प्रतिक्रियाएं व्यक्त करता था, जिस से बात बढ़ कर बतंगड़ बन जाती थी और फिर धुआंधार बहस में माहौल इतना गरम हो जाता कि तलाक के लिए वकील का दरवाजा खटखटाने तक की नौबत आ जाती थी.

पर अधीर बड़े धीरज से काम लेता था. सो उस ने मीनू से जबानजोरी करनी छोड़ दी और उस को शांत करने के लिए सारी हिकमत अपनानी शुरू कर दी. सुबह उस से पहले उठ कर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, सुबह की चाय बनाना और लंच के लिए खाना तैयार करने में उस का हाथ बंटाना आदि.

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बहरहाल वह मीनू के स्वभाव को बदलने में हमेशा नाकामयाब रहा. मीनू सारी हदें लांघ कर अमर्यादित तरीके से बरताव करने लगी थी. बच्चों और पति को झिड़कना और डांटना तो मामूली बात थी, अब तो वह गालीगलौज करने पर आमादा हो गई थी. उसे बेलगाम विस्फोटक होने से बचाने के लिए अधीर सुबह से ही ऐसे कामों को निबटाने में जुट जाता था जिन्हें करने से मीनू जी चुराती थी.

उसे संतुष्ट करने के लिए वह अपनी नौकरी को भी दांव पर लगा बैठा था. आफिस देर से पहुंचना, पहले लौट आना और काम को गंभीरतापूर्वक न लेना उस की आदत बन गई थी. इतने पर भी मीनू को अधीर की हर बात से शिकायत थी.

कई बार अधीर को एहसास होता था कि वह घर का काम करतेकरते औरत बनता जा रहा है. उसे यह भी लगता था कि वह अपनी मां की तरह कोई 70 प्रतिशत सहनशील और अंतर्मुखी हो गया है. उसे याद है कि पापाजी की यातनाओं को मां किस खामोशी से सहन कर लेती थीं.

अधीर की तंद्रा तब टूटी जब उस के दोनों बच्चे अंकुश और अलि घर में दाखिल हुए. वे एक ही स्कूल में पढ़ते थे और एक ही बस में साथसाथ आया करते थे. बच्चों को आश्चर्य हो रहा था कि पापा आफिस जाने के बजाय आज घर पर ही हैं. दरअसल, उन्हें यह नहीं पता था कि आज पापामम्मी के बीच कुछ ज्यादा ही छिड़ गई थी. वे तो उन के बीच जंग छिड़ने से पहले ही स्कूल जा चुके थे.

अंकुश रोज की तरह सीधे किचन में गया और वहां खाना नदारद पा कर भूख से बिलबिला उठा. अधीर ने उस की पीठ थपथपाई और बोला, ‘‘मैं अभी खाने का बंदोबस्त करता हूं.’’

उस ने फोन कर के रेस्तरां से तत्काल भोजन मंगा लिया और बच्चों के हाथपैर धुलाते हुए उन का खाने की मेज पर स्वागत किया. जब दोनों बच्चे अपने कमरे में टीवी पर कार्टून फिल्म देखने में खो गए तो वह रात का खाना बनाने की तैयारी करने में जुट गया. सोच रहा था कि शायद आज मीनू का मूड ठीक हो जाए.

तभी मोबाइल की घंटी बजी. उसे यह जान कर कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ कि मीनू के मोबाइल से बिरजू की आवाज आ रही थी और वह अंकुश से बात करना चाह रहा था. मोबाइल पर मीनू ने अंकुश को बताया कि वह आज घर नहीं आएगी. अधीर को यह जान कर कोफ्त हुई और उस ने खाना बनाने का कार्यक्रम स्थगित कर के बच्चों को यह समाचार दिया कि वे आज बाहर जा कर खाना खाएंगे.

होटल से लौट कर अधीर को चैन नहीं था. उस के लिए यह बात अब छिपी नहीं रही थी कि मीनू एक तरह से बिरजू की रखैल बन चुकी है. बिरजू उस का बौस है, जो उस का यौन शोषण करता है और बदले में उस की वे सारी जरूरतें पूरी करता है जो वह नहीं कर सकता. वह ऐसी स्थिति में नहीं है कि मीनू को मोटी पाकेट मनी दे सके, विदेशी सौंदर्य प्रसाधन, कपड़े व घूमनेफिरने के लिए उसे एक लग्जरी कार मुहैया करा सके.

देर रात तक अधीर को नींद नहीं आई. वह बेहद मायूस था. उसे मीनू के साथ एक ही बिस्तर पर सोए हुए कोई साल भर तो गुजर ही गया होगा. मीनू की लानत सुनते हुए जोरजबरदस्ती कर के उस के साथ हमबिस्तर होना अब उसे रास नहीं आता था. जी करता था कि वह भी अपनी किसी आफिससहकर्मी के साथ गुलछर्रे उड़ाए, मौजमस्ती में बाकी जिंदगी को हंसीठट्ठा से गुजार दे, लेकिन वह किसी प्रकार की नाजायज हरकत कर के खुद को या अपने घर को कलंकित नहीं करना चाहता था.

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उस ने घड़ी की ओर सिर घुमाया. रात के डेढ़ बज चुके थे. तभी उसे कुछ याद कर के हंसी आ गई. कोई 2 साल पहले वह अपने साले की शादी में शामिल होने ससुराल गया था तो एक शाम सोते हुए वह अचानक जग गया था. मीनू उस के सामने खड़ी, अपने रिश्तेदारों से कह रही थी कि आओ, मैं तुम्हें बकरे का मिमियाना सुना रही हूं.

वह तो इस मजाक पर रिश्तेदारों के सामने झेंप गया था, पर मीनू ठठा कर हंस रही थी.

अधीर सोच रहा था कि अगर उस के खर्राटे को टेप कर के सुनाया जाए तो वह यह तय करना चाहेगा कि वाकई उस के खर्राटे बकरे के टेंटें जैसे ही सुनाई देते हैं.

देर रात सोने के बाद सुबह जब उस की नींद खुली तो उसे बड़ा अचंभा हो रहा था. उस ने एक लंबा सपना देखा था जिस में मीनू ने उसे जादू की छड़ी से छू कर बकरा बना कर उस के गले में एक पट्टा डाल दिया है. वह उसे डंडे से मारमार कर घर का सारा कूड़ाकचरा जबरन खिला रही है और उस के मेंमें करने पर उस पर डंडे बरसा रही है.

सुबह अधीर बच्चों को स्कूल न भेज कर उन्हें अपने साथ आफिस ले गया. उन्हें पार्क में बैठा दिया और अपनी स्टेनो को हिदायत दे दी कि वह आज उस के बच्चों का खयाल रखेगी. उस का काम वह खुद कर लेगा.

मीनू ने जैसे ही घर में अपने कदम रखे, दोनों बच्चे टेलीविजन बंद कर के अधीर के साथ बाहर निकल आए और लान में कुरसी पर बैठ गए. मीनू ने सीधे किचन में जा कर पैक्ड फूड के पैकेट को डाइनिंग टेबल पर फेंक दिया. कुछ देर तक वह अंदर ही व्यस्त रही. अधीर ने सोचा कि वह कपड़े बदल रही होगी.

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बकरा : भाग 1- क्या अधीर को मिला वैवाहिक जीवन का सुख

मीनू ने आफिस जाते वक्त मेज पर परोसी गई थाली को हाथ मार कर नीचे गिरा दिया और जातेजाते अधीर से गुर्रा गई थी, ‘‘आइंदा मेरे लिए खाना मेज पर मत लगाना, वरना…’’

हुआ यह कि सुबह मीनू ने केवल अपने लिए चाय बनाई थी. अधीर को बड़ी कोफ्त हुई कि थोड़ी सी और चाय बढ़ा कर बनाई होती तो उस का क्या चला जाता. खैर, ऐसी टुच्ची हरकत तो वह रोज ही किया करती है.

उस के बाद वह किचन में घुस गया था. बाकायदा दालचावल के साथसाथ गोभी, आलू, मटर का दोपियाजा बनाया था. सोचा था कि मीनू का मूड दोपियाजे की खुशबू से बदल जाएगा पर उस की रसोईगीरी की मशक्कत का अंजाम यह हुआ कि मीनू ने सारा खाना ही जमीन पर छितरा दिया.

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इस घटना के बाद अधीर का मूड इतना खराब हुआ कि उस ने एक दाना भी हलक से नीचे नहीं उतारा.

उस ने छितरे खाने को बटोर कर डस्टबिन में डाला. फिर बचाखुचा खाना एक पालिथीन बैग में डाल कर नीचे पार्क के एक कोने में रख आया. महल्ले के कुत्तों को लगातार तीसरे दिन भी अच्छी दावत मिल गई थी. बहरहाल, अधीर को कुत्ते- बिल्लियों को खाना खिला कर बेहद सुकून मिलता था. कम से कम वे उस के खाने को पर्याप्त सम्मान तो देते थे.

सीढि़यां चढ़ते वक्त ही उस ने तय कर लिया कि वह आज भी दफ्तर नहीं जाएगा बल्कि घर में बैठ कर कुछ लिखेगापढ़ेगा. पिछले कई महीनों से उस ने न तो कोई कविता लिखी थी, न ही कोई कहानी. शायद कुछ लिखने के बाद उस का मूड भी ठीक हो जाए. इसलिए उस ने अपने अफसर रेड्डी को फोन कर दिया, ‘‘सर, मेरा फीवर अभी तक नहीं उतरा है, मैं आज भी…’’

रेड्डी ने उसे 1 दिन की और छुट्टी दे दी थी.

अधीर पहले से कहीं ज्यादा हताश होता जा रहा था. पहले उस के मन में उम्मीद की एक धुंधली किरण टिमटिमाती रहती थी कि एक न एक दिन मीनू के खयालात जरूर बदलेंगे और उन के गृहस्थ जीवन में रस पैदा होगा. पर आज की इस घटना ने उस की उम्मीद को और भी धुंधला किया है. मीनू जिस दिन से उस के आंगन में बहू के रूप में उतरी थी, वह हर रोज उग्र से उग्रतर होती जा रही थी. पिछले 10 सालों से संबंधों में कड़वाहट बढ़ती ही जा रही थी. इस का अन्य बातों के साथसाथ, एक मुख्य कारण यह भी था कि अधीर को जो कुछ भी दहेज में मिला था, उसे वह या तो अपने घर छोड़ आया था या अपनी छोटी बहन की शादी में दे चुका था.

शादी के 2 दिन बाद ही जब दहेज में मिला स्कूटर उस ने अपने छोटे भाई के हवाले किया तो मीनू ने पहली बार यह कह कर अपनी नाकभौं सिकोड़ी थी कि एक दिन तुम मुझे भी अपने भाइयों के हवाले कर देना.

तब वह यह सोचते हुए चुप रह गया था कि जब मीनू उस की रौ में बहेगी तो उस का सामान के प्रति प्रेम का बुखार उतर जाएगा और वह भौतिक जीवन से उचट कर उस की बौद्धिक दुनिया में कदम रखेगी, जहां सुकून है, जिंदगी का असल माने है.

शादी के बाद वह मीनू के साथ खाली हाथ ही हैदराबाद चला आया था. मीनू ने चलतेचलते कहा भी था कि तुम ने शादी का सारा सामान अपने लालची परिवार वालों के हवाले कर के अच्छा नहीं किया.

तब पहली बार अधीर उस की बात को बीच में काटते हुए झल्ला कर बोला था, ‘मीनू, मेरे घर वाले तो तुम्हारे घर वाले भी हैं. फिर उन्हें अपशब्द कह कर अपनी किस बैकग्राउंड का परिचय दे रही हो? पढ़ीलिखी लड़की हो, कम से कम कुछ तो शालीनता से पेश आओ.’

उस पल मीनू का चेहरा एकदम तमतमा गया था. अधीर को पहली बार एहसास हुआ कि वह बेइंतहा हिंसक भी हो सकती है. दोनों ने एकदूसरे की ओर पीठ किए हुए ही अपनी यात्रा पूरी की. सुबह जब टे्रन सिकंदराबाद पहुंची तो अधीर ने उठ कर उस की पीठ पर हाथ रख कर कहा था, ‘डियर, रेडी हो जाओ. हैदराबाद आने ही वाला है.’

अधीर ने तब बर्थ पर बिखरे कंबल, चादर खुद समेट कर बैग और अटैची में रखे थे. मीनू तो उठ कर आईने के सामने सिर्फ अपने मेकअप को फाइनल टच देने में मशगूल थी.

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अधीर ने अपनी नवविवाहिता पत्नी को खुश करने के लिए हैदराबाद के उस किराए के फ्लैट में सारे इंतजाम कर रखे थे. कुंआरा रहते हुए भी उस ने किचन, बेडरूम और ड्राइंगरूम को जरूरी सामान से सुसज्जित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी, लेकिन उसे आश्चर्य हो रहा था कि मीनू ने उस के सलीकेदार बंदोबस्त के बारे में एक भी तारीफ भरा लफ्ज नहीं बोला.

समय दिन, हफ्ते, महीने और साल के रास्ते सरकता चला जा रहा था. 3 साल तक कोई संतान न होने का सारा लांछन अधीर को ही झेलना पड़ा, क्योंकि मीनू हर किसी को रटारटाया उत्तर देती, ‘लगता है इन में ही कोई कमी है.’

अधीर की दबंग सास जब हैदराबाद आईं तो वह दामाद को बाकायदा यह मशविरा दे बैठीं, ‘इस हैदराबाद में हमारे रिश्ते का एक डाक्टर है, तुम उसी से अपना चेकअप करा लो. उस ने कई बेऔलादों की तकदीर बदली है.’ और जब उस डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया कि अधीर में कोई कमी नहीं है, तो मीनू और उस की सास का चेहरा गुस्से से सूज गया. मीनू का गुस्सा तब तक खत्म नहीं हुआ जब तक कि वह मेडिकल जांच और इलाज के बाद गर्भवती नहीं हो गई.

पहले बेटे के बाद दूसरी बिटिया हुई. अफसोस कि अधीर के घर वाले दोनों बच्चों के पैदा होते समय वहां नहीं आ सके. मीनू ने तो इस बात पर खूब ताने दिए. जब अधीर सफाई पेश करता तो वह और विस्फोटक हो जाती.

अधीर ने शादी केवल इसलिए की थी कि वह हैदराबाद में नौकरी करते हुए अपने एकाकीपन से बोर हो गया था. उस के लिए घर का काम निबटा कर आफिस की ड्यूटी करना भारी पड़ रहा था, वरना तो वह अपनी जिंदगी से खुश था.

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ताजमहल की नगरी में : भाग 2

अगले दिन विजय मां को आगरा ले आया. सास के आ जाने के बाद प्रेमलता का अजय से घर में मिलना संभव नहीं था. यह चिंता प्रेमलता ने अजय के सामने जाहिर की तो अजय ने कहा, ‘‘घर में न सही, हम बाहर मिल लेंगे. तुम क्यों फिक्र करती हो.’’

‘‘मुझे लग रहा है कि विजय को मुझ पर शक हो गया है. अब वह रोज रात को दारू की बोतल ले आता है. तुम तो जानते हो न गुस्से में उसे कुछ होश नहीं रहता और अगर उसे मेरे तुम्हारे रिश्ते के बारे में पता चल गया तो पता नहीं वह क्या करेगा. वैसे भी इस रिश्ते का अंत क्या है?’’ प्रेमलता बोली.

‘‘मैं क्या जानूं भाभी, मैं तो इतना जानता हूं कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मेरा चंचल मन तुम्हारे इर्दगिर्द ही मंडराता रहता है. हां, अगर तुम चाहो तो हम यहां से कहीं दूर चले जाएंगे और अपनी दुनिया बसा लेंगे.’’ अजय ने सुझाव दिया.

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‘‘लेकिन मेरे बेटे का क्या होगा? इस तरह तो दो परिवारों के बीच दुश्मनी हो जाएगी. नहीं, अभी ऐसे ही चलने दो, फिर आगे देखते हैं क्या होता है.’’ प्रेमलता ने सलाह दी.

अजय का पहले की तरह ही विजय के यहां आनाजाना लगा रहा, जो विजय की मां को अखरता था. वह बीमार जरूर थीं लेकिन उन की अनुभवी नजरों ने बहू के चालचलन को पहचान लिया. उन्होंने महसूस किया कि किसी से फोन पर बात करने के बाद बहू खरीदारी के बहाने बाहर चली जाती है. उसे लगा कि जरूर दाल में काला है.

एक दिन उस ने बेटे से कहा, ‘‘मैं हफ्ते भर से यहां हूं, अब घर जाना चाहती हूं. पर यहां सब कुछ ठीक नहीं है. गांव की बात दूसरी थी पर अजय यहां भी बहू के आगेपीछे मंडराता रहता है.’’

‘‘अम्मा, अजय तो बचपन से हमारे घर आता है. प्रेमलता को भी बहुत मानता है. तुम ऐसा क्यों सोचती हो.’’ विजय ने समझाना चाहा.

‘‘अब तू ही देख ले, कल तेरे पिताजी मुझे ले जाएंगे और जब दवा खत्म हो जाएगी तो मैं तुम्हें बता दूंगी.’’

अगले दिन मुन्ना सिंह पत्नी को लिवा ले गए. मां की बातों से न न करते हुए भी विजय के दिलोदिमाग में शक का बीज अंकुरित हो गया.

पिछले हफ्ते विजय के एक साथी ने प्रेमलता को बाजार में अजय के साथ देखा था. यह बात उस ने विजय को बताई तो उसे विश्वास नहीं हुआ था कि उस की पत्नी और अजय के बीच कुछ चक्कर है.

फिर भी अगले दिन उस ने प्रेमलता से पूछा, ‘‘अजय, मेरी गैरमौजूदगी में यहां क्यों आता है?’’

‘‘अगर तुम कहो तो मैं उसे मना कर दूंगी.’’ प्रेमलता बोली.

‘‘नहींनहीं, चलो छोड़ो, मैं ने तो ऐसे ही पूछ लिया.’’

लेकिन यह ऐसे ही पूछ लेना प्रेमलता के लिए खतरे की घंटी की तरह था. इसलिए अब वह सतर्क रहने लगी.

सास के चले जाने के बाद प्रेमलता ने चैन की सांस ली. विजयपाल को कभीकभी लगता था कि उस का शक गलत भी हो सकता है, लेकिन शक से छुटकारा पाना भी आसान नहीं होता.

अजय के दिल में भी एक अजीब सी हलचल थी. अब प्रेमलता के साथ अपनी दुनिया बसाना चाहता था. वह उस की हर इच्छा पूरी करने के लिए तैयार था.

पिछले कुछ दिनों से वह रोज रात को घर चला जाता था, लेकिन 12 दिसंबर, 2019 को वह घर नहीं पहुंचा और उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था.

रामअवतार ने विजयपाल को फोन किया तो उस ने कहा कि अजय से तो उस की कई दिनों से मुलाकात नहीं हुई.

उन्होंने अपनी रिश्तेदारों और अजय के दोस्तों को फोन कर के पूछताछ की, लेकिन सभी ने बताया कि 12 दिसंबर को शाम तक अजय ट्रांसपोर्ट कंपनी में ही था फिर उस के मोबाइल पर कोई काल आई थी और वह चला गया था.

यह बात चिंताजनक थी. रामअवतार 14 दिसंबर को थाना छत्ता जीवनी मंडी आया और उस ने थानाप्रभारी उमेशचंद्र त्रिपाठी को अपने 25 वर्षीय बेटे के बारे में बता कर गुमशुदगी दर्ज करा दी. उस ने यह भी शक जताया कि अजय की गुमशुदगी में विजयपाल और उस की बीवी का कोई हाथ हो सकता है क्योंकि एक दिन विजय का उसे फोन आया था.

उस ने कहा था, ‘‘चाचा, तुम्हारा बेटा अब जवान हो गया है और उसे इधरउधर मुंह मारने की आदत हो गई है. अच्छा होगा उस की शादी कर दो.’’

रामअवतार के अनुसार उस ने जब फोन कर के अजय से पूछतछ की तो उस ने यही कहा कि विजय भैया मजाक कर रहे हैं.

थानाप्रभारी उमेशचंद्र त्रिपाठी ने रामअवतार से अजय का एक फोटो लिया और उन्हें काररवाई करने का आश्वासन दे कर घर भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने अजय के फोटोग्राफ जिले के सभी थानों में भेज दिए. लेकिन काफी पूछताछ करने के बाद भी विजय जैसे दिखने वाले किसी व्यक्ति की लाश मिलने की खबर नहीं मिली.

इस के बाद पुलिस ने ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक तथा कई मजदूरों से पूछताछ की, लेकिन किसी ने नहीं बताया कि अजय और विजय के बीच कोई झगड़ा था. इस के बाद पुलिस जीवनी मंडी स्थित विजय के घर गई. उस समय विजयपाल ट्रांसपोर्ट कंपनी में जाने को तैयार हो रहा था. पुलिस को देखते ही वह सकपका गया. लेकिन फिर हिम्मत कर के उस ने पूछा, ‘‘साहब, आप कैसे आए हैं?’’

‘‘तुम से अजय के बारे में पूछताछ करनी थी,’’ दरोगा नरेंद्र कुमार शर्मा ने कहा.

‘‘पूछिए, क्या पूछना है. अजय मेरा चचेरा भाई है. हम दोनों में बहुत प्यार है, लेकिन आप अजय के बारे में मुझ से क्यों पूछ रहे हैं? कुछ किया है क्या उस ने?’’ विजय बोला.

‘‘उस ने कुछ किया है या नहीं, यह तो पता नहीं पर उस के साथ जरूर कुछ गलत हुआ है. अब तुम बताओ कि तुम्हें अजय के बारे में क्या पता है?’’ दरोगाजी ने पूछा.

‘‘साहब, अजय अपना काम मेहनत से कर रहा है. कमाई भी ठीक है. कभीकभी हमारे घर भी आता है.’’ विजय ने कहा.

‘‘तो अब तेरी जबान से निकलवाना ही पड़ेगा.’’ एसआई नरेंद्र कुमार ने सख्ती से कहा, ‘‘और तेरी पत्नी कहां है?’’

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‘‘साहब, वह तो अपने मायके गई है. आजकल में आ जाएगी. मायके जाना भी गुनाह है क्या?’’ विजयपाल ने कहा.

पुलिस समझ गई कि विजयपाल चालाक बन रहा है. पुलिस ने अजय, विजय और प्रेमलता के मोबाल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए थे. रिपोर्ट से पता चला कि अजय की विजयपाल और प्रेमलता के साथ कई बार बात हुई थी और 12 दिसंबर, 2019 को प्रेमलता और अजय के बीच भी कई बार बात हुई थी.

पुलिस को विश्वास होने लगा था कि जरूर मामला अवैध संबंधों से जुड़ा है. पर विजय पाल कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. ऐसे में प्रेमलता की गिरफ्तारी जरूरी थी. पुलिस प्रेमलता के पीछे लग गई. 16 दिसंबर को वह वाटर वर्क्स चौराहे पर दिख गई. पुलिस उसे हिरासत में ले कर थाना छत्ता लौट आई.

प्रेमलता से पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘साहब, अजय के कत्ल में मेरा कोई हाथ नहीं है. यह ठीक है कि अजय और मेरे बीच अवैध संबंध बन गए थे और मेरे पति ने हम दोनों को एक साथ देख लिया था. विजय ने उसे रास्ते से हटाने का तय कर लिया था.’’

प्रेमलता के अनुसार उस ने पति से कहा था कि वह अजय से कभी नहीं मिलेगी, लेकिन विजय ने मारपीट कर उस से अजय को फोन करा कर अपने घर मिलने को बुलाने को कहा. पति की बात मानना मेरी मजबूरी थी, फिर न चाहते हुए भी उस ने अजय को फोन कर के बुला लिया.

विजय का गुस्सा काबू में नहीं था, जैसे ही अजय घर आया तो विजय ने तेजधार के बांके से अजय पर वार कर किए. अजय कुछ समझ नहीं पाया. लहूलुहान हो कर वह फर्श पर गिर गया, फिर विजय ने उस का गला दबा दिया.

अब लाश ठिकाने लगानी थी. दोनों ने मिल कर एक साड़ी में लाश लपेटी, फिर उसे बोरे में भरा. विजय ने उसे धमकाया कि जुबान खोलने पर उस का भी यही हाल किया करेगा. वह बुरी तरह डर गई. प्रेमी देवर मर चुका था, जिस के साथ वह दुनिया बसाना चाहती थी.

विजय और प्रेमलता लाश वाले बोरे को मोटरसाइकिल पर रख कर झरना नाला के जंगल में ले गए, जहां लाश वाला बोरा फेंक दिया और घर आ कर सारा घर भी धो दिया.

प्रेमलता के बयान के बाद विजय ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. पुलिस ने विजय की निशानदेही पर झरना नाला जंगल से अजय तोमर की लाश और आलाकत्ल बरामद कर लिया. पुलिस ने दोनों को भादंवि की धारा 364, 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

गलत काम का नतीजा गलत ही होता है. बूढ़े बाप ने अपने जवान बेटे को खो दिया. शादीशुदा प्रेमलता ने अपने जवान देवर को गुमराह किया. 2 घरों की खुशियां अंधी आशिकी ने छीन लीं और उन का बेटा अनाथ हो गया.

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ताजमहल की नगरी में : भाग 1

आगरा जिले के नगला काक निवासी अजय ने जब से होश संभाला, तभी से बड़ेबड़े सपने देखने लगा. बड़ा भाई अमित तोमर ई रिक्शा चलाता था. रामअवतार चाहता था कि उस का बेटा अमित तो पढ़लिख नहीं पाया पर अगर अजय पढ़लिख जाए तो परिवार की किस्मत संवर जाएगी.

लेकिन घर और गांव का ऐसा माहौल था कि अजय पढ़ नहीं सका और रामअवतार की इच्छा अधूरी रह गई. अजय गांव के लड़कों के साथ आवारा घूमता रहता था. रामअवतार का बड़ा भाई मुन्ना सिंह भी नगला काक में रह कर अपने परिवार का भरणपोषण कर रहा था. मुन्ना सिंह का बेटा विजयपाल जवान हुआ तो उस ने तय किया कि गांव से निकल कर वह आगरा जाएगा और वहीं कुछ काम करेगा.

अजय और विजय एकदूसरे के काफी नजदीक थे, आपस में प्यार भी था. दोनों की उम्र में भी कोई ज्यादा अंतर नहीं था. दोनों ही साथसाथ घूमते और भविष्य के सपने बुनते थे.

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विजय पाल का एक दोस्त था जो आगरा की एक मिल में काम करता था. उस के गांव से आगरा की दूरी करीब 15 किलोमीटर थी. दोस्त के कहने पर विजय आगरा चला गया और दोस्त के साथ मिल में ही काम करने लगा. विजयपाल जब कमाने लगा तो घरवालों ने उस की शादी कछनेरा निवासी प्रेमलता से कर दी. विजयपाल और प्रेमलता अपने दांपत्य जीवन से खुश थे.

शादी के कुछ दिन बाद विजयपाल आगरा चला गया. उस ने थाना छत्ता क्षेत्र की डाकखाना गली में किराए पर कमरा ले रखा था. उस ने मिल की नौकरी छोड़ कर एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी कर ली. धीरेधीरे वह ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक का खासमखास बन गया. रात हो या दिन, विजयपाल अपने मालिक के एक फोन काल पर हाजिर हो जाता था.

विजय की दुलहन प्रेमलता अब जिद करने लगी थी कि वह भी आगरा में उस के साथ रहेगी. पर प्रेमलता गर्भवती थी, इसलिए उस की सास ने कहा कि बच्चे के जन्म के बाद उसे आगरा भेज देंगे.

इधर अजय का अपने ताऊ मुन्ना सिंह के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही होने लगा था. उस का भाभी प्रेमलता से खूब हंसनाबोलना था. देवरभाभी में खूब पटती थी. घर वालों को भी उन की बातचीत पर कोई ऐतराज नहीं था. कुछ दिनों बाद प्रेमलता ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के बाद विजयपाल गांव आया तो उस ने गांव वालों को दावत दी.

अजय तोमर के पिता रामअवतार ने विजय से कहा, ‘‘बेटा, अजय दिन भर यहांवहां घूमता रहता है. तुम उसे भी अपने साथ आगरा ले जाओ. वहां कोई कामधाम करेगा तो जिम्मेदारी समझने लगेगा. कमाएगा तो उस का घर भी बस जाएगा.’’

अपने चाचा रामअवतार के कहने के बाद विजय अपने भाई अजय को भी आगरा ले गया. उस ने अजय को भी एक कंपनी में नौकरी पर लगवा दिया. नौकरी लगने के बाद अजय के हाथ में पैसा आने लगा. इस से अजय की महत्त्वाकांक्षाएं भी बढ़ने लगीं. जल्दी ही उसे महानगर की हवा लग गई. आगरा में उस ने कई दोस्त भी बना लिए.

वह विजयपाल के साथ ही रहता था. सब कुछ ठीक चल रहा था. इसी बीच विजय ने तय किया कि बारबार गांव जाने से खर्च ज्यादा होता है, इसलिए उस ने पत्नी को आगरा लाने की सोच ली.

विजय ने एक दिन अजय से कहा कि उसे अब कोई दूसरा कमरा किराए पर लेना होगा, क्योंकि अब वह अपनी पत्नी को अपने साथ ही रखना चाहता है.

प्रेमलता भाभी के आने की बात सुन कर अजय बहुत खुश हुआ. उस ने दोस्तों की मदद से वहां से कुछ ही दूरी पर दूसरा कमरा ले लिया. इस के बाद विजय पत्नी और बेटे को आगरा ले आया.

अजय का कमरा विजय के कमरे के नजदीक था, इसलिए वह जबतब भाभी से मिलने आ जाता. प्रेमलता देवर के साथ खूब हंसीमजाक करती थी. एक दिन प्रेमलता ने अजय से कहा कि उसे आगरा आए काफी समय हो गया, लेकिन वह एक छोटे से कमरे में बंध कर रह गई है. तुम्हारे भैया कमाने की धुन में रोज रात को देर से आते हैं और खाना खा कर सो जाते हैं. उन्हें तो काम से ही फुरसत नहीं है.

अजय ने भाभी की ख्वाहिश को समझ कर कहा, ‘‘भाभी, चिंता क्यों करती हो, तुम्हारा यह देवर तुम्हें आगरा की सैर कराएगा. पहले एक प्याला चाय पिलाओ फिर हम प्लान बनाते हैं.’’

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प्रेमलता ने तुरंत चाय बनाई और चाय का प्याला अजय के सामने रख दिया. चाय पी कर अजय ने कहा, ‘‘चलो भाभी, तैयार हो जाओ. आज हम तुम्हें आगरा शहर दिखाएंगे.’’

‘‘अभी…इस वक्त? तुम्हारे भैया से तो पूछा नहीं है,’’ प्रेमलता ने कहा.

‘‘ओह! अभी वह काम पर होंगे, वापस आ कर बता देंगे. चलो, तैयार हो जाओ.’’

प्रेमलता कशमकश में थी, फिर भी उस ने बेटे को तैयार किया और खुद भी कपड़े बदले और अजय के साथ बाहर आ गई.

‘‘आगरा भ्रमण का कार्यक्रम ताजमहल से शुरू करते हैं.’’ अजय ने एक आटो बुक किया और कहा, ‘‘बैठो भाभी, आज हम तुम्हें शाहजहां और मुमताज की मोहब्बत की निशानी दिखाएंगे.’’

प्रेमलता बहुत खुश थी. कुछ ही देर में दोनों ताजमहल के गेट पर पहुंच गए. अजय ताजमहल देखने के लिए 2 टिकट खरीद लाया. फिर दोनों ने ताज परिसर में प्रवेश किया. संगमरमरी ताज को देख कर प्रेमलता बहुत खुश हुई. दोनों ताज की मखमली घास पर बैठ गए. प्रेमलता ने ठंडी सांस ली तो अजय ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, कुछ परेशान हो क्या?’’

‘‘नहीं तो…बस सोच रही हूं कि पति को बीवी के दिल की बात को समझनी चाहिए.’’ प्रेमलता बोली.

‘‘अरे हम हैं, तुम परेशान क्यों हो.’’ कहते हुए अजय ने अचानक प्रेमलता का हाथ पकड़ लिया. प्रेमलता अजय के स्पर्श से कांप उठी. तभी अजय ने कहा, ‘‘भाभी, जानती हो तुम आज कितनी खूबसूरत लग रही हो?’’

प्रेमलता ने अपना हाथ छुड़ाया और बोली, ‘‘अच्छा मजाक कर लेते हो. तुम्हारे भैया ने तो यह बात मुझे आज तक नहीं बताई. मुझे लगता है कि मर्द को या तो खाना पकाने के लिए या फिर बिस्तर गर्म करने के लिए औरत की जरूरत होती है.’’ अचानक प्रेमलता का दर्द छलक उठा.

अजय के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे. वह इधरउधर की बातें करने लगा. करीब 2 घंटे बाद वे ताजमहल से निकले, तब अजय ने कहा, ‘‘भाभी, तुम्हें और मुन्ने को भूख लगी होगी.’’

इस से पहले कि प्रेमलता कुछ कहती, अजय ने मुन्ने को उठाया और सामने रेस्टोरेंट में जा पहुंचा. पीछेपीछे प्रेमलता भी चलने लगी.यह प्रेमलता के लिए एक नया तजुर्बा था. वह सोचने लगी कि काश! विजय भी उस की इच्छाओं को पूरा करता.

खापी कर दोनों घर आ गए. अजय ने कहा, ‘‘ठीक है भाभी, मैं चलता हूं.’’

अजय के जाने के बाद वह प्रेमलता के दिलोदिमाग पर छाया रहा, जो अपने पति से संतुष्ट नहीं थी. दरअसल, महत्त्वाकांक्षाओं का मिजाज कुछ ऐसा होता है कि एक बार खड़ी होती है तो बढ़ती ही जाती है.

अजय की मजबूत कदकाठी अब प्रेमलता के दिलोदिमाग को घेरने लगी थी. कुछ अधिक पाने की चाह भी सिर उठाने लगी थी. पर ये वो दलदल थी, जिस में घुसना तो आसान था पर निकल पाना मुश्किल था. प्रेमलता ने सिर झटका, वह भी क्या सोचने लगी. अभी तो यही डर था कि कहीं विजय को पता चल गया तो वह न जाने क्या हंगामा खड़ा कर दे.

लेकिन विजय को पता नहीं चला. प्रेमलता ने राहत की सांस ली और फोन कर के अजय को बता दिया कि वह विजय से ताजमहल घूमने जाने का कोई जिक्र न करे.

अगली रात जब विजयपाल काम से लौटा तो कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और प्रेमलता नींद में थी. वह बड़ी मुश्किल से उठी और पति को खाना लगाया.

शायद ऐसा पहली बार हुआ था. विजय ने खाना खाया और इधरउधर टहलने लगा. प्रेमलता के मन में एक डर सा समाया हुआ था. पर कुछ देर तक टहलने के बाद विजय गहरी नींद में सो गया.

2-4 दिन तक जब अजय नहीं आया तो प्रेमलता ने अजय को फोन कर के कहा, ‘‘आज तुम्हारे भैया गांव जा रहे हैं, तुम यहां आ सकते हो?’’

अजय को ऐसे ही किसी निमंत्रण का इंतजार था. शाम को विजय जल्दी घर आ गया. उस ने कहा, ‘‘अम्मा की तबीयत ठीक नहीं है. मैं ने फोन कर के पापा को कह दिया है कि अम्मा को यहां मैडिकल में दिखा देंगे. अब अम्मा कुछ दिनों तक हमारे पास ही रहेंगी.’’

यह सुनते ही प्रेमलता बोली, ‘‘अम्मा को गांव के वैद्यजी की दवा से फायदा होता है. खामख्वाह यहां आ कर परेशान होंगी.’’

विजयपाल ने प्रेमलता की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और चला गया. पति के जाने के बाद प्रेमलता ने अजय को बता दिया कि रास्ता साफ है.

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अजय कुछ ही देर में आ गया और घर के एकांत में देवरभाभी का पवित्र रिश्ता पाप में डूब गया. पूरी रात दोनों एकदूसरे के आगोश में रहे.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

रिश्तों की कसौटी : भाग 3- क्या था उस डायरी में

उसी रात सुरभी को अमित साहनी का फोन आया कि वह कल साढ़े 11 बजे की फ्लाइट से मुंबई आ रहे हैं. सुरभी को मां की डायरी का हर वह पन्ना याद आ रहा था जिस में लिखा था कि काश, मृत्यु से पहले एक बार अमित उस के सवालों के जवाब दे जाता. कल का दिन मां की जिंदगी का अहम दिन बनने जा रहा था. यही सोचते हुए सुरभी की आंख लग गई.

अगले दिन उस ने नर्स से दवा आदि के बारे में समझ कर उसे भी रात को आने को बोल दिया.

करीब 1 बजे अमित साहनी उन के घर पहुंचे. सुरभी ने हाथ जोड़ कर उन का अभिवादन किया तो उन्होंने ढेरोें आशीर्वाद दे डाले.

‘‘आप यहीं बैठिए, मैं मां को बता कर आती हूं. एक विनती है, हमारी मुलाकात का मां को पता न चले. शायद बेटी के आगे वे कमजोर पड़ जाएं,’’ सुरभी ने कहा और ऊपर चली गई.

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‘‘मम्मी, आप से कोई मिलने आया है,’’ उस ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘कौन है?’’ मां ने सूप का बाउल कम्मो को पकड़ाते हुए पूछा.

‘‘कोई मिस्टर अमित साहनी नाम के सज्जन हैं. कह रहे हैं, दिल्ली से आए हैं,’’ सुरभी वैसे ही अनजान बनी रही.

‘‘क…क…कौन आया है?’’ मां के शब्दों में एक शक्ति सी आ गई थी.

‘‘ऐसा करती हूं आप यहीं रहिए. उन्हें ही ऊपर बुला लेते हैं,’’ मां के चेहरे पर आए भाव सुरभी से देखे नहीं जा रहे थे. वह जल्दी से कह कर बाहर आ गई.

मालती कुछ भी सोचने की हालत में नहीं थीं. यह वह मुलाकात थी जिस के बारे में उन्होंने हर दिन सोचा था.

थोड़ी देर में सुरभी के पीछेपीछे अमित साहनी कमरे में दाखिल हुए, मालती के पसंदीदा पीले गुलाबों के बुके के साथ. मालती का पूरा अस्तित्व कांप रहा था. फिर भी उन्होंने अमित का अभिवादन किया.

सुरभी इस समय की मां की मानसिक अवस्था को अच्छी तरह समझ रही थी. वह आज मां को खुल कर बात करने का मौका देना चाहती थी, इसलिए डा. आशुतोष के पास उन की कुछ रिपोर्ट्स लेने के बहाने वह घर से बाहर चली गई.

‘‘कितने बेशर्म हो तुम जो इस तरह से मेरे सामने आ गए?’’ न चाहते हुए भी मालती क्रोध से चीख उठीं.

‘‘कैसी हो, मालती?’’ उस की बातों पर ध्यान न देते हुए अमित ने पूछा और पास के सोफे पर बैठ गए.

‘‘अभी तक जिंदा हूं,’’ मालती का क्रोध उफान पर था. उन का मन तो कर रहा था कि जा कर अमित का मुंह नोच लें.

इस के विपरीत अमित शांत बैठे थे. शायद वे भी चाहते थे कि मालती के अंदर का भरा क्रोध आज पूरी तरह से निकल जाए.

‘‘होटल ताज में ईश्वरनाथजी से मुलाकात हुई थी. उन्हीं से तुम्हारे बारे में पता चला. तभी से मन बारबार तुम से मिलने को कर रहा था,’’ अमित ने सुरभी के सिखाए शब्द दोहरा दिए. परंतु यह स्वयं उस के दिल की बात भी थी.

‘‘मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया, अमित?’’ अपलक अमित को देख रही मालती ने उन की बातों को अनसुना कर अपनी बात रखी.

इतने में कम्मो चाय और नाश्ता रख गई.

‘‘तुम्हें याद है वह दोपहरी जब मैं ने एक तसवीर के विषय में तुम से पूछा था और तुम ने उन्हें अपनी मां बताया था?’’ अमित ने मालती को पुरानी बातें याद दिलाईं.

मालती यों ही खामोश बैठी रहीं तो अमित ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘उस तसवीर को मैं तुम सब से छिपा कर एक शक दूर करने के लिए अपने साथ दिल्ली ले गया था. मेरा शक सही निकला था. यह वृंदा यानी तुम्हारी मां वही औरत थी जो दिल्ली में अपने पार्टनर के साथ एक मशहूर ब्यूटीपार्लर और मसाज सेंटर चलाती थी. इस से पहले वह यहीं मुंबई में मौडलिंग करती थी. उस का नया नाम वैंडी था.’’

इस के बाद अमित ने अपनी चाय बनाई और मालती की भी.

उस ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘उस मसाज सेंटर की आड़ में ड्रग्स की बिक्री, वेश्यावृत्ति जैसे धंधे होते थे और समाज के उच्च तबके के लोग वहां के ग्राहक थे.’’

‘‘ओह, तो यह बात थी. पर इस में मेरी क्या गलती थी?’’ रोते हुए मालती ने पूछा.

‘‘जब मैं ने एम.बी.ए. में नयानया दाखिला लिया था तब मेरे दोस्तों में से कुछ लड़के भी वहां के ग्राहक थे. एक बार हम दोस्तों ने दक्षिण भारत घूमने का 7 दिन का कार्यक्रम बनाया और हम सभी इस बात से बहुत रोमांचित थे कि उस मसाज सेंटर से हम लोगों ने जो 2 टौप की काल गर्ल्स बुक कराई थीं उन में से एक वैंडी भी थी जिसे हाई प्रोफाइल ग्राहकों के बीच ‘पुरानी शराब’ कह कर बुलाया जाता था. उस की उम्र उस के व्यापार के आड़े नहीं आई थी,’’ अमित ने अपनी बात जारी रखी. उसे अब मालती के सवाल भी सुनाई नहीं दे रहे थे.

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चाय का कप मेज पर रखते हुए अमित ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘मेरी परवरिश ने मेरे कदम जरूर बहका दिए थे मालती, पर मैं इतना भी नीचे नहीं गिरा था कि जिस स्त्री के साथ 7 दिन बिताए थे, उसी की मासूम और अनजान बेटी को पत्नी बना कर उस के साथ जिंदगी बिताता? मेरा विश्वास करो मालती, यह घटना तुम्हारे मिलने से पहले की है. मैं तुम से बहुत प्यार करता था. मुझे अपने परिवार की बदनामी का भी डर था, इसलिए तुम से बिना कुछ कहेसुने दूर हो गया,’’ कह कर अमित ने अपना सिर सोफे पर टिका दिया.

आज बरसों का बोझ उन के मन से हट गया था. मालती भी अब लेट गई थीं. वे अभी भी खामोश थीं.

थोड़ी देर बाद अमित चले गए. उन के जाने के बाद मालती बहुत देर तक रोती रहीं.

रात के खाने पर जब सुरभी ने अमित के बारे में पूछा तो उन्होंने उसे पुराना पारिवारिक मित्र बताया. लगभग 3 महीने बाद मालती चल बसीं. परंतु इतने समय उन के अंदर की खुशी को सभी ने महसूस किया था. उन के मृत चेहरे पर भी सुरभी ने गहरी संतुष्टि भरी मुसकान देखी थी.

मां की तेरहवीं वाले दिन अचानक सुरभी को उस डायरी की याद आई. उस में लिखा था : मुझे क्षमा कर देना अमित, तुम ने अपने साथसाथ मेरे परिवार की इज्जत भी रख ली थी. मैं पूर्ण रूप से तृप्त हूं. मेरी सारी प्यास बुझ गई.

पढ़ते ही सुरभी ने डायरी सीने से लगा ली. उस में उसे मां की गरमाहट महसूस हुई थी. आज उसे स्वयं पर गर्व था क्योंकि उस ने सही माने में मां के प्रति अपनी दोस्ती का फर्ज जो अदा किया था.

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ताजमहल की नगरी में

रिश्तों की कसौटी : भाग 1- क्या था उस डायरी में

‘‘अंकल, मम्मी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई क्या?’’ मां के कमरे से डाक्टर को निकलते देख सुरभी ने पूछा.

‘‘पापा से जल्दी ही लौट आने को कहो. मालतीजी को इस समय तुम सभी का साथ चाहिए,’’ डा. आशुतोष ने सुरभी की बातों को अनसुना करते हुए कहा.

डा. आशुतोष के जाने के बाद सुरभी थकीहारी सी लौन में पड़ी कुरसी पर बैठ गई.

2 साल पहले ही पता चला था कि मां को कैंसर है. डाक्टर ने एक तरह से उन के जीने की अवधि तय कर दी थी. पापा ने भी उन की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मां को ले कर 3-4 बार अमेरिका भी हो आए थे और अब वहीं के डाक्टर के निर्देशानुसार मुंबई के जानेमाने कैंसर विशेषज्ञ डा. आशुतोष की देखरेख में उन का इलाज चल रहा था. अब तो मां ने कालेज जाना भी बंद कर दिया था.

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‘‘दीदी, चाय,’’ कम्मो की आवाज से सुरभी अपने खयालों से वापस लौटी.

‘‘मम्मी के कमरे में चाय ले चलो. मैं वहीं आ रही हूं,’’ उस ने जवाब दिया और फिर आंखें मूंद लीं.

सुरभी इस समय एक अजीब सी परेशानी में फंस कर गहरे दुख में घिरी हुई थी. वह अपने पति शिवम को जरमनी के लिए विदा कर अपने सासससुर की आज्ञा ले कर मां के पास कुछ दिनों के लिए रहने आई थी.

2 दिन पहले स्टोर रूम की सफाई करवाते समय मां की एक पुरानी डायरी सुरभी के हाथ लगी थी, जिस के पन्नों ने उसे मां के दर्द से परिचित कराया.

‘‘ऊपर आ जाओ, दीदी,’’ कम्मो की आवाज ने उसे ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया.

सुरभी ने मां के साथ चाय पी और हर बार की तरह उन के साथ ढेरों बातें कीं. इस बार सुरभी के अंदर की उथलपुथल को मालती नहीं जान पाई थीं.

सुरभी चाय पीतेपीते मां के चेहरे को ध्यान से देख रही थी. उस निश्छल हंसी के पीछे वह दुख, जिसे सुरभी ने हमेशा ही मां की बीमारी का हिस्सा समझा था, उस का राज तो उसे 2 दिन पहले ही पता चला था.

थोड़ी देर बाद नर्स ने आ कर मां को इंजेक्शन लगाया और आराम करने को कहा तो सुरभी भी नीचे अपने कमरे में आ गई.

रहरह कर सुरभी का मन उसे कोस रहा था. कितना गर्व था उसे अपने व मातापिता के रिश्तों पर, जहां कुछ भी गोपनीय न था. सुरभी के बचपन से ले कर आज तक उस की सभी परेशानियों का हल उस की मां ने ही किया था. चाहे वह परीक्षाओं में पेपर की तैयारी करने की हो या किसी लड़के की दोस्ती की, सभी विषयों पर मालती ने एक अच्छे मित्र की तरह उस का मार्गदर्शन किया और जीवन को अपनी तरह से जीने की पूरी आजादी दी. उस की मित्रमंडली को उन मांबेटी के इस मैत्रिक रिश्ते से ईर्ष्या होती थी.

अपनी बीमारी का पता चलते ही मालती को सुरभी की शादी की जल्दी पड़ गई. परंतु उन्हें इस बात के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. परेश के व्यापारिक मित्र व जानेमाने उद्योगपति ईश्वरनाथ के बेटे शिवम का रिश्ता जब सुरभी के लिए आया तो मालती ने चट मंगनी पट ब्याह कर दिया. सुरभी ने शादी के बाद अपना जर्नलिज्म का कोर्स पूरा किया.

‘‘दीदी, मांजी खाने पर आप का इंतजार कर रही हैं,’’ कम्मो ने कमरे के अंदर झांकते हुए कहा.

खाना खाते समय भी सुरभी का मन मां से बारबार खुल कर बातें करने को कर रहा था, मगर वह चुप ही रही. मां को दवा दे कर सुरभी अपने कमरे में चली आई.

‘कितनी गलत थी मैं. कितना नाज था मुझे अपनी और मां की दोस्ती पर मगर दोस्ती तो हमेशा मां ने ही निभाई, मैं ने आज तक उन के लिए क्या किया? लेकिन इस में शायद थोड़ाबहुत कुसूर हमारी संस्कृति का भी है, जिस ने नवीनता की चादर ओढ़ते हुए समाज को इतनी आजादी तो दे दी थी कि मां चाहे तो अपने बच्चों की राजदार बन सकती है. मगर संतान हमेशा संतान ही रहेगी. उन्हें मातापिता के अतीत में झांकने का कोई हक नहीं है,’ आज सुरभी अपनेआप से ही सबकुछ कहसुन रही थी.

हमारी संस्कृति क्या किसी विवाहिता को यह इजाजत देती है कि वह अपनी पुरानी गोपनीय बातें या प्रेमप्रसंग की चर्चा अपने पति या बच्चों से करे. यदि ऐसा हुआ तो तुरंत ही उसे चरित्रहीन करार दे दिया जाएगा. हां, यह बात अलग है कि वह अपने पति के अतीत को जान कर भी चुप रह सकती है और बच्चों के बिगड़ते चालचलन को भी सब से छिपा कर रख सकती है. सुरभी का हृदय आज तर्क पर तर्क दे रहा था और उस का दिमाग खामोशी से सुन रहा था.

सुरभी सोचसोच कर जब बहुत परेशान हो गई तो उस ने कमरे की लाइट बंद कर दी.

मां की वह डायरी पढ़ कर सुरभी तड़प कर रह गई थी. यह सोच कर कि जिन्होंने अपनी सारी उम्र इस घर को, उस के जीवन को सजानेसंवारने में लगा दी, जो हमेशा एक अच्छी पत्नी, मां और उस से भी ऊपर एक मित्र बन कर उस के साथ रहीं, उस स्त्री के मन का एक कोना आज भी गहरे दुख और अपमान की आग में झुलस रहा था.

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उस डायरी से ही सुरभी को पता चला कि उस की मां यानी मालती की एम.एससी. करते ही सगाई हो गई थी. मालती के पिता ने एक उद्योगपति घराने में बेटी का रिश्ता पक्का किया था. लड़के का नाम अमित साहनी था. ऊंची कद- काठी, गोरा रंग, रोबदार व्यक्तित्व का मालिक था अमित. मालती पहली ही नजर में अमित को दिल दे बैठी थीं. शादी अगले साल होनी थी. इसलिए मालती ने पीएच.डी. करने की सोची तो अमित ने भी हामी भर दी.

अमित का परिवार दिल्ली में था. फिर भी वह हर सप्ताह मालती से मिलने आगरा चला आता. मगर ठहरता गेस्ट हाउस में ही था. उन की इन मुलाकातों में परिवार की रजामंदी भी शामिल थी, इसलिए उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. पर मालती ने इस प्यार को एक सीमा रेखा में बांधे रखा, जिसे अमित ने भी कभी तोड़ने की कोशिश नहीं की.

मालती की परवरिश उन के पिता, बूआ व दादाजी ने की थी. उन की मां तो 2 साल की उम्र में ही उन्हें छोड़ कर मुंबई चली गई थीं. उस के बाद किसी ने मां की खोजखबर नहीं ली. मालती को भी मां के बारे में कुछ भी पूछने की इजाजत नहीं थी. बूआजी के प्यार ने उन्हें कभी मां की याद नहीं आने दी.

बड़ी होने पर मालती ने स्वयं से जीवनभर एक अच्छी और आदर्श पत्नी व मां बन कर रहने का वादा किया था, जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया था.

उन की शादी से पहले की दीवाली आई. मालती के ससुराल वालों की ओर से ढेरों उपहार खुद अमित ले कर आया था. अमित ने अपनी तरफ से मालती को रत्नजडि़त सोने की अंगूठी दी थी. कितना इतरा रही थीं मालती अपनेआप पर. बदले में पिताजी ने भी अमित को अपने स्नेह और शगुन से सिर से पांव तक तौल दिया.

दोपहर के खाने के बाद बूआजी के साथ घर के सामने वाले बगीचे में अमित और मालती बैठे गपशप कर रहे थे. इतने में उन के चौकीदार ने एक बड़ा सा पैकेट और रसीद ला कर बूआजी को थमा दी.

रसीद पर नजर पड़ते ही बूआ खीजती हुई बोलीं, ‘2 महीने पहले कुछ पुराने अलबम दिए थे, अब जा कर स्टूडियो वालों को इन्हें चमका कर भेजने की याद आई है,’ और पैसे लेने वे घर के अंदर चली गईं.

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‘लो अमित, तब तक हमारे घर की कुछ पुरानी यादों में तुम भी शामिल हो जाओ,’ कह कर मालती ने एक अलबम अमित की ओर बढ़ा दिया और एक खुद देखने लगीं.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

रिश्तों की कसौटी : क्या था उस डायरी में

रिश्तों की कसौटी : भाग 2- क्या था उस डायरी में

संयोग से मालती के बचपन की फोटो वाला अलबम अमित के हाथ लगा था, जिस में हर एक तसवीर को देख कर वह मालती को चिढ़ाचिढ़ा कर मजे ले रहा था. अचानक एक तसवीर पर जा कर उस की नजर ठहर गई.

‘यह कौन है, मालती, जिस की गोद में तुम बैठी हो?’ अमित जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा था.

‘यह मेरी मां हैं. तुम्हें तो पता ही है कि ये हमारे साथ नहीं रहतीं. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रहे हो? क्या तुम इन्हें जानते हो?’ मालती ने उत्सुकता से पूछा.

‘नहीं, बस ऐसे ही पूछ लिया,’ अमित ने कहा.

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‘ये हम सब को छोड़ कर वर्षों पहले ही मुंबई चली गई थीं,’ यह स्वर बूआजी का था.

बात वहीं खत्म हो गई थी. शाम को अमित सब से विदा ले कर दिल्ली चला गया.

इतना पढ़ने के बाद सुरभी ने देखा कि डायरी के कई पन्ने खाली थे. जैसे उदास हों.

फिर अचानक एक दिन अमित साहनी के पिता का माफी भरा फोन आया कि यह शादी नहीं हो सकती. सभी को जैसे सांप सूंघ गया. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. अमित 2 सप्ताह के लिए बिजनेस का बहाना कर जापान चला गया. इधरउधर की खूब बातें हुईं पर बात वहीं की वहीं रही. एक तरफ अमित के घर वाले जहां शर्मिंदा थे वहीं दूसरी तरफ मालती के घर वाले क्रोधित व अपमानित. लाख चाह कर भी मालती अमित से संपर्क न बना पाईं और न ही इस धोखे का कारण जान पाईं.

जगहंसाई ने पिता को तोड़ डाला. 5 महीने तक बिस्तर पर पड़े रहे, फिर चल बसे. मालती के लिए यह दूसरा बड़ा आघात था. उन की पढ़ाई बीच में छूट गई.

बूआजी ने फिर से मालती को अपने आंचल में समेट लिया. समय बीतता रहा. इस सदमे से उबरने में उसे 2 साल लग गए तो उन्होंने अपनी पीएच.डी. पूरी की. बूआजी ने उन्हें अपना वास्ता दे कर अमित साहनी जैसे ही मुंबई के जानेमाने उद्योगपति के बेटे परेश से उस का विवाह कर दिया.

अब मालती अपना अतीत अपने दिल के एक कोने में दबा कर वर्तमान में जीने लगीं. उन्होंने कालेज में पढ़ाना भी शुरू कर दिया. परेश ने उन्हें सबकुछ दिया. प्यार, सम्मान, धन और सुरभी.

सभी सुखों के साथ जीते हुए भी जबतब मालती अपनी उस पुरानी टीस को बूंदबूंद कर डायरी के पन्नों पर लिखती थीं. उन पन्नों में जहां अमित के लिए उस की नफरत साफ झलकती थी, वहीं परेश के लिए अपार स्नेह भी दिखता था. उन्हीं पन्नों में सुरभी ने अपना बचपन पढ़ा.

रात के 3 बजे अचानक सुरभी की आंखें खुल गईं. लेटेलेटे वे मां के बारे में सोच रही थीं. वे उन के उस दुख को बांटना चाहती थीं, पर हिचक रही थीं.

अचानक उस की नजर उस बड़ी सी पोस्टरनुमा तसवीर पर पड़ी जिस में वह अपने मम्मीपापा के साथ खड़ी थी. वह पलंग से उठ कर तसवीर के करीब आ गई. काफी देर तक मां का चेहरा यों ही निहारती रही. फिर थोड़ी देर बाद इत्मीनान से वह पलंग पर आ बैठी. उस ने एक फैसला कर लिया था.

सुबह 6 बजे ही उस ने पापा को फोन लगाया. सुन कर सुरभी आश्वस्त हो गई कि पापा के लौटने में सप्ताह भर बाकी है. वह पापा की गैरमौजूदगी में ही अपनी योजना को अंजाम देना चाहती थी.

उस दिन वह दिल्ली में रह रहे दूसरे पत्रकार मित्रों से फोन पर बातें करती रही. दोपहर तक उसे यह सूचना मिल गई कि अमित साहनी इस समय दिल्ली में अपने पुश्तैनी मकान में हैं.

शाम को मां को बताया कि दिल्ली में उस की एक पुरानी सहेली एक डाक्युमेंटरी फिल्म तैयार कर रही है और इस फिल्म निर्माण का अनुभव वह भी लेना चाहती है. मां ने हमेशा की तरह हामी भर दी. सुरभी नर्स और कम्मो को कुछ हिदायतें दे कर दिल्ली चली गई.

अब समस्या थी अमित साहनी जैसी बड़ी हस्ती से मुलाकात की. दोस्तों की मदद से उन तक पहुचंने का समय उस के पास नहीं था, इसलिए उस ने योजना के अनुसार अपने ससुर ईश्वरनाथ से अपनी ही एक दोस्त का नाम ले कर अमित साहनी से मुलाकात का समय फिक्स कराया. ईश्वरनाथ के लिए यह कोई बड़ी बात न थी.

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अगले दिन सुबह 10 बजे का वक्त सुरभी को दिया गया. आज ऐसे वक्त में पत्रकारिता का कोर्स उस के काम आ रहा था.

खैर, मां की नफरत से मिलने के लिए उस ने खुद को पूरी तरह से तैयार कर लिया.

अगले दिन पूरी जांचपड़ताल के बाद सुरभी ठीक 10 बजे अमित साहनी के सामने थी. वे इस उम्र में भी बहुत तंदुरुस्त और आकर्षक थे. पोतापोती व पत्नी भी उन के साथ थे.

परिवार सहित उन की कुछ तसवीरें लेने के बाद सुरभी ने उन से कुछ औपचारिक प्रश्न पूछे पर असल मुद्दे पर न आ सकी, क्योंकि उन की पत्नी भी कुछ दूरी पर बैठी थीं. सुरभी इस के लिए भी तैयार हो कर आई थी. उस ने अपनी आटोग्राफ बुक अमित साहनी की ओर बढ़ा दी.

अमित साहनी ने जैसे ही चश्मा लगा कर पेन पकड़ा, उन की नजर मालती की पुरानी तसवीर पर पड़ी. उस के नीचे लिखा था, ‘‘मैं मालतीजी की बेटी हूं और मेरा आप से मिलना बहुत जरूरी है.’’

पढ़ते ही अमित का हाथ रुक गया. उन्होंने प्यार भरी एक भरपूर नजर सुरभी पर डाली और बुक में कुछ लिख कर बुक सुरभी की ओर बढ़ा दी. फिर चश्मा उतार कर पत्नी से आंख बचा कर अपनी नम आंखों को पोंछा.

सुरभी ने पढ़ा, लिखा था : ‘जीती रहो, अपना नंबर दे जाओ.’

पढ़ते ही सुरभी ने पर्स में से अपना कार्ड उन्हें थमा दिया और चली गई.

फोन से उस का पता मालूम कर तड़के साढ़े 5 बजे ही अमित साहनी सिर पर मफलर डाले सुरभी के सामने थे.

‘‘सुबह की सैर का यही 1 घंटा है जब मैं नितांत अकेला रहता हूं,’’ उन्होंने अंदर आते हुए कहा.

सुरभी उन्हें इस तरह देख आश्चर्य में तो जरूर थी, पर जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘सर, समय बहुत कम है. इसलिए सीधी बात करना चाहती हूं.’’

‘‘मुझे भी तुम से यही कहना है,’’ अमित भी उसी लहजे में बोले.

तब तक वेटर चाय रख गया.

‘‘मेरी मम्मी आप की ही जबान से कुछ जानना चाहती हैं,’’ गंभीरता से सुरभी ने कहा.

सुन कर अमित साहनी की नजरें झुक गईं.

‘‘आप मेरे साथ कब चल रहे हैं मां से मिलने?’’ बिना कुछ सोचे सुरभी ने अगला प्रश्न किया.

‘‘अगर मैं तुम्हारे साथ चलने से मना कर दूं तो?’’ अमित साहनी ने सख्ती से पूछा.

‘‘मैं इस से ज्यादा आप से उम्मीद भी नहीं करती, मगर इनसानियत के नाते ही सही, अगर आप उन का जरा सा भी सम्मान करते हैं तो उन से जरूर मिलिएगा. वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं,’’ कहतेकहते नफरत और दुख से सुरभी की आंखें भर आईं.

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‘‘क्या हुआ मालती को?’’ चाय का कप मेज पर रख कर चौंकते हुए अमित ने पूछा.

‘‘उन्हें कैंसर है और पता नहीं अब कितने दिन की हैं…’’ सुरभी भरे गले से बोल गई.

‘‘ओह, सौरी बेटा, तुम जाओ, मैं जल्दी ही मुंबई आऊंगा,’’ अमित साहनी धीरे से बोले और सुरभी से उस के घर का पता ले कर चले गए.

दोपहर को सुरभी मां के पास पहुंच गई.

‘‘कैसी रही तेरी फिल्म?’’ मां ने पूछा.

‘‘अभी पूरी नहीं हुई मम्मी, पर वहां अच्छा लगा,’’ कह कर सुरभी मां के गले लग गई.

‘‘दीदी, कल रात मांजी खुद उठ कर अपने स्टोर रूम में गई थीं. लग रहा था जैसे कुछ ढूंढ़ रही हों. काफी परेशान लग रही थीं,’’ कम्मो ने सीढि़यां उतरते हुए कहा.

थोड़ी देर बाद मां से आंख बचा कर उस ने उन की डायरी स्टोर रूम में ही रख दी.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

खुदकुशी का अनोखा मामला, जांघ पर लिखा हाल ए दिल

पति द्वारा सताए जाने की दहशत पत्नी के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी थी कि सुसाइड करने से पहले पति को सबक सिखाने के लिए क्या किया जाए के बारे में कई बार सोचा होगा. फिर अंत में पत्नी ने ऐसी जगह को चुना, जहां हर किसी की निगाह ही न जाए यानी जांघ पर सुसाइड नोट लिख कर हर किसी को हैरत में डाल दिया.

भले ही अपनी जिंदगी को खत्म करना इतना आसान नहीं होता, लेकिन फिर भी कई बार लोग सुसाइड करने पर मजबूर हो जाते हैं.

30 साला महिला अपने पति से इतनी डरी हुई थी कि उस ने सुसाइड नोट लिखने के लिए अपने शरीर का गुप्त हिस्सा जांघ चुना. यह खुलासा पोस्टमार्टम के दौरान पुलिस द्वारा बनाए जा रहे पंचनामे से हो पाया.

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जी हां, चौंकाने वाला यह अजीबोगरीब मामला राजस्थान के उदयपुर जिले के सेमारी थाना क्षेत्र के मल्लाड़ा गांव का है. पति खेमराज की प्रताड़ना से तंग हो कर रेखा मेघवाल नाम की महिला ने जहर खा लिया. जहर खाने से पहले उस ने अपनी जांघ पर सुसाइड नोट लिख कर पति को सजा देने की गुहार लगाई.

रेखा अपने पति से इस कदर डरी हुई थी कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो सुसाइड नोट कहां लिखे? जब पुलिस ने उस की जांघ पर लिखा सुसाइड नोट देखा तो हैरान रह गई.

रेखा ने साफसाफ लिखा कि अगर वह कागज पर सुसाइड नोट लिखती तो उस का पति फाड़ देता. दीवार पर लिखती तो मिटा देता. कहीं और छिपा कर रखती तो ढूंढ़ लेता. यही वजह है कि उसे जांघ से बेहतर कोई जगह नजर नहीं आई क्योंकि वहां पर उस की नजर नहीं पड़ती, इसलिए उस ने ऐसी जगह को चुना.

suicides

रेखा मेघवाल ने गुरुवार, दिनांक 27 अगस्त, 2020 की सुबह साढे़ 7 बजे जहर खा लिया था. पति और उस के घर वाले उसे तुरंत ही सलूंबर अस्पताल ले गए, लेकिन महिला को बचाया न जा सका.

पुलिस के मुताबिक, एक साल पहले खेमराज रेखा को नाता प्रथा के तहत ले आया था. रेखा के कोई औलाद नहीं थी, वहीं खेमराज की यह तीसरी शादी थी. खेमराज पहले से ही शादीशुदा था और उस के 4 बच्चे थे. एक बेटे की शादी हो चुकी है. बेटे की शादी के बाद से ही घर के सभी लोगों ने उस के साथ बुरा बरताव करना शुरू कर दिया. यहां तक कि उसे सताया जाना शुरू कर दिया. इस वजह से वह हमेशा डरी रहती थी.

मानसिक और शारीरिक परेशानी झेल रही रेखा ने अंत में आत्महत्या का रास्ता चुना. आत्महत्या का कारण सभी के सामने आए, इस के लिए उस ने सुसाइड नोट अपनी जांघ पर लिख दिया.

यह तो अच्छा हुआ कि पोस्टमार्टम के दौरान पुलिस द्वारा पंचनामा तैयार करते समय नजर चली गई और मामले का खुलासा हो गया.

साफ है कि रेखा के मन में पति द्वारा सताए जाने का खौफ मरते दम तक देखा गया. वहीं सुसाइड नोट से महिला के सताए जाने की पूरी कहानी पुलिस की समझ में आ गई.

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जहर खाने से पहले महिला ने जांघ पर 14 लाइन का सुसाइड नोट लिखा. इस में लिखा कि पति कहता था कि तेरे जैसी 17 और ले आऊंगा. लेकिन तुझे पहले खत्म कर दूंगा. वह हमेशा कहता था कि इतना मजबूर कर दूंगा कि तू सुसाइड कर ले. अगर कहीं सुसाइड लैटर किसी को लिख कर दिया तो उस को भी खत्म कर दूंगा. इसलिए मैं मजबूरी में यह लाइनें जांघ पर लिख रही हूं.

पुलिस ने पति खेमराज के खिलाफ महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया है. देखते हैं कि आने वाले समय में पति के खिलाफ पुलिस या अदालत क्या कार्यवाही करती है.

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