अंधविश्वास का शिकार जज परिवार : भाग 2

27 जुलाई को इस मामले में जिलाधिकारी बैतूल व जिला न्यायाधीश के आदेश पर एसपी सिमाला प्रसाद ने एक एसआईटी का गठन कर जांच का काम शुरू करवा दिया. विशेष जांच दल ने एडीशनल सेशन जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे की विषाक्त भोजन खाने से हुई मौत के मामले की जांच शुरू कर दी.

विशेष जांच दल ने घटना की शुरुआत से सारे साक्ष्यों को जोड़ने का काम शुरू कर दिया. बैतूल पुलिस को जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे के अस्पताल में भरती होने की पहली सूचना 24 जुलाई को पाढर अस्पताल बैतूल द्वारा मिली थी, जिस के बाद चौकी प्रभारी ने जज महेंद्र त्रिपाठी और उन के बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी के बयान लिए थे. दोनों ने आशंका जताई थी कि उन्हें रोटियां खाने से फूड पौइजनिंग हुई है. जिस आटे की रोटियां बनी थीं, उस में वह आटा भी शामिल था जो जज साहब को उन की एक महिला मित्र ने दिया था.

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एसआईटी ने शुरू की जांच

विशेष जांच दल ने जज साहब व उन के बेटे द्वारा दिए गए बयान चौकी प्रभारी से ले लिए. साथ ही जांच दल ने नागपुर में हुए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी अपने कब्जे में ले ली, जिस में आशंका व्यक्त की गई थी कि दोनों की मौत खाने में तीक्ष्ण जहर मिला होने की वजह से हुई थी.

विशेष जांच दल ने जज महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी भाग्य त्रिपाठी और छोटे बेटे आशीष त्रिपाठी के बयान भी कलमबद्ध किए. उन दोनों ने यही बताया कि जज साहब की एक महिला मित्र संध्या सिंह ने किसी तांत्रिक से अभिमंत्रित करा कर ये आटा दिया था, जिसे संध्या के बताए अनुसार घर के आटे में मिला कर रोटियां बनाई गई थीं ताकि घर में सुखसमृद्धि आ सके.

‘‘क्या वो आटा अभी भी आप के पास है?’’ एसपी सिमाला प्रसाद ने जज महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी से पूछा.

‘‘जी हां, उस दिन खाने के बाद से हम ने उस आटे का इस्तेमाल ही नहीं किया है. सारा आटा ज्यों का त्यों रखा है.’’ मिसेज त्रिपाठी के बताने के बाद विशेष जांच दल ने उस आटे को अपने कब्जे में ले कर उसी दिन जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिया.

इसी दौरान जांच दल को पता चला कि 21 जुलाई को जब विषाक्त खाना खाने से जज महेंद्र त्रिपाठी की तबीयत खराब हुई थी, तब उन्होंने अपने कई जानकारों से फोन पर बात की थी.

पुलिस ने महेंद्र त्रिपाठी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर उन तमाम लोगों से बातचीत की तो उन्होंने भी यही बताया कि उन की एक दोस्त संध्या सिंह ने उन्हें जो आटा दिया था, घर के आटे में उस के मिश्रण से बनी रोटियां खाने के बाद ही उन की और उन के बेटों की तबियत खराब हुई थी.

पुलिस को काल डिटेल्स में संध्या सिंह नाम की एक महिला का नंबर भी मिला, जिसे इलाज के दौरान जज साहब ने कई बार काल की थी. लेकिन किसी भी काल पर बहुत लंबी बात नहीं हुई थी.

जज त्रिपाठी के छोटे बेटे आशीष राज ने भी पुलिस को बयान दिया कि जब उन के पिता व भाई को नागपुर के अस्पताल में शिफ्ट किया जा रहा था तो पिता ने रास्ते में उसे बताया था कि वह आटा उन की परिचित महिला संध्या सिंह ने दिया था, जिसे घर के आटे में मिला कर बनी रोटियां खाने से सब की तबियत खराब हुई थी. उन्होंने बताया था कि उस आटे की पूजा किसी पंडित ने की थी.

विशेष जांच दल को अब तक इस बात के पर्याप्त सुबूत मिल चुके थे कि एडीशनल सेशन जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे की मौत विषाक्त आटे से बनी रोटियां खाने से हुई थी. अभी तक की जांच में संध्या सिंह नाम की महिला मुख्य किरदार के रूप में सामने आई थी. विशेष जांच दल ने एसपी सिमाला सिंह के निर्देश पर बैतूल के थाना गंज में 27 जुलाई, 2020 की सुबह जज त्रिपाठी व उन के बेटे की अकाल मृत्यु के मामले को अपराध क्रमांक 26 / 2020 पर दर्ज कर लिया. लेकिन जब इस मामले में साक्ष्य एकत्र हो गए तो इसे हत्या की धारा 302, 323, 307, 120बी में पंजीकृत किया गया.

इस मामले में मुख्य किरदार संध्या सिंह थी, इसलिए विशेष जांच दल ने उस की जोरशोर से तलाश शुरू कर दी. पुलिस के लिए सब से बड़ी परेशानी यह थी कि महेंद्र त्रिपाठी न्यायिक अधिकारी थे, उन का परिवार भी संध्या सिंह के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं दे रहा था, मसलन वह कौन है, कहां रहती है और उस के दिए गए आटे को उन्होंने क्यों इस्तेमाल किया.

इस के अलावा पुलिस टीम यह भी नहीं समझ पा रही थी कि जज साहब के घर में आखिर ऐसी कौन सी कलह थी जिसे दूर करने के लिए वह पंडित या तांत्रिक का मंत्रपूरित आटा घर ले आए और उन्हें उस की बनी रोटियां खाने को विवश होना पड़ा.

सवाल अनेक थे, लेकिन उन का जवाब किसी के पास नहीं था इसलिए पुलिस ने सारा ध्यान संध्या सिंह पर फोकस कर दिया क्योंकि उस से पूछताछ करने के बाद ही इन सवालों का जवाब मिल सकता था.

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पुलिस लगातार संध्या सिंह के मोबाइल की लोकेशन ट्रेस करने में लगी थी क्योंकि वही एक जरिया था, जिस के माध्यम से उस तक पहुंचा जा सकता था. संध्या सिंह का मोबाइल लगातार बंद मिल रहा था. बीचबीच में वह औन होता और फिर बंद हो जाता था. पुलिस ने जब मोबाइल की लोकेशन की जांच की तो वह हाउसिंग बोर्ड कालोनी छिंदवाड़ा स्थित एक मकान की मिली. इस के बाद पुलिस टीम उस मकान पर पहुंची, तो वहां ताला लगा मिला.

मिल गई संध्या

पुलिस टीम संध्या सिंह तक पहुंचने के लिए लगातार काम करती रही. 30 जुलाई की शाम के समय संध्या सिंह के मोबाइल की लोकेशन रीवा में मिली. छिंदवाड़ा में भटक रही पुलिस टीम को तुरंत रीवा भेजा गया, जहां संयोग से संध्या अपने कुछ साथियों के साथ मौजूद थी. पुलिस उन सभी को हिरासत में ले कर बैतूल लौट आई. संध्या सिंह की टाटा इंडिगो कार एमपी28 सीबी-3302 भी पुलिस ने जब्त कर ली थी.

संध्या सिंह की उम्र करीब 50 साल थी. पहनावे और बातचीत से वह एक आधुनिक महिला लग रही थी. शुरुआती पूछताछ में संध्या सिंह एसपी सिमाला प्रसाद से ले कर पूरे जांच दल को इधरउधर की बातें बना कर समय खराब करती रही. उस ने पुलिस को बताया कि एडीजे त्रिपाठी से उस की जानपहचान जरूर थी, लेकिन उन की मौत से उस का कोई संबध नहीं है.

लेकिन पुलिस ने जब उस के सामने उस के खिलाफ मौजूद सारे सुबूत रखे तो उस ने कबूल कर लिया कि उसी ने सर्प विष मिला आटा एडीजे त्रिपाठी को दिया दिया था. संध्या सिंह ने बताया कि उस का इरादा पूरे त्रिपाठी परिवार को खत्म करने का था. संध्या सिंह के साथ जो 5 अन्य लोग पकड़े गए थे, वे भी हत्या की इस साजिश में शामिल थे.

संध्या सिंह कौन थी, जज साहब से उस की जानपहचान कैसे हुई तथा उस ने उन्हें परिवार के साथ मारने के लिए जहरीला आटा क्यों दिया, यह सब जानने के लिए पुलिस ने संध्या सिंह से सख्ती से पूछताछ की तो सारे सवालों का जवाब मिल गया.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

सिल्वर जुबली गिफ्ट : भाग 3- मौत में उस ने अपना मान रखा

इधर कुछ दिनों से सुगंधा को अपने दाएं स्तन में एक ठोस गांठ सी महसूस हो रही थी. जब उस ने इंद्र से स्थिति बयां की तो उस ने पूछा, ‘‘दर्द होता है क्या उस गांठ में?’’ ‘‘नहीं, दर्द तो नहीं होता,’’ सुगंधा ने जवाब दिया.

‘‘तो शायद तुम्हें मेनोपौज होने वाला है. मैं ने पढ़ा था कि मेनोपौज के दौरान कभीकभी ऐसे लक्षण पाए जाते हैं. घबराने की कोई बात नहीं, जान. कुछ नहीं होगा तुम्हें.’’

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इंसान की फितरत होती है कि वह अनिष्ट की तरफ से आंखें बंद कर के सुरक्षित होने की गलतफहमी में खुश रहने की कोशिश करता है. सुगंधा भी इस का अपवाद नहीं थी. मगर जब कुछ महीनों के बाद उस के निपल्स के आसपास की त्वचा में परतें सी निकलने लगीं और कुछ द्रव्य सा दिखने लगा तो वह घबराई. धीरेधीरे निपल्स कुछ अंदर की तरफ धंसने लगे और शुरुआत में जो एक गांठ दाएं स्तन में प्रकट हुई थी, वैसी ही गांठें अब दोनों बगलों में भी उभर आई थीं. अब झटका लगने की बारी इंद्र की थी, वह अपने हाथ लगी ट्रौफी को किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहता था. जब वह सुगंधा को फैमिली डाक्टर के पास ले कर पहुंचा तो डाक्टर ने जनरल चैकअप करने के बाद तत्काल ही मैमोग्राम कराने की सलाह दी. मैमोग्राम रिपोर्ट में स्तन कैंसर के संकेत पाए जाने पर जरूरी ब्लडटैस्ट कराए गए. स्तन से टिश्यूज ले कर टैस्ट के लिए पैथोलौजी भेजे गए. सुगंधा की सभी रिपोर्ट्स के रिजल्ट को देखते हुए अब फैमिली डाक्टर ने उसे स्तन कैंसर विशेषज्ञ औंकोलौजिस्ट के पास जाने की सलाह दी.

‘‘आप ने इन्हें यहां लाने में काफी देर कर दी है. अब तक तो कैंसरस सैल ब्रैस्ट के बाहर भी बड़े क्षेत्र में फैल चुके हैं और अब इस बीमारी को किसी भी तकनीकी सर्जरी द्वारा कंट्रोल नहीं किया जा सकता. मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है, सर, इन का कैंसर अब उस स्टेज पर पहुंच चुका है जहां कोई भी इलाज असर नहीं करता,’’ औंकोलौजिस्ट ने सारी रिपोर्ट्स का सूक्ष्म निरीक्षण और सुगंधा का पूरी तरह से चैकअप करने के बाद इंद्र से कहा. उस रात घर वापस आ कर इंद्र और सुगंधा दोनों ही न सो सके. इंद्र की नींद क्यों उड़ी हुई थी, यह तो अस्पष्ट था मगर सुगंधा एक अजब से सुकून में जागी हुई थी. उस के दिलोदिमाग में बारबार गुलजार की मशहूर गजल का शेर घूम रहा था, ‘‘दफन कर दो हमें कि सांस मिले, नब्ज कुछ देर से थमी सी है.’’ सुगंधा के लिए तो नब्ज पिछले 26 वर्षों से थमी सी थी.

उस रात सुगंधा ने निश्चय किया कि उस का तनमन उस का तनमन है, किसी नामर्द, फरेबी की मिल्कीयत नहीं. उसे खुद के सम्मान का पूरापूरा अधिकार है. जीतेजी तो वह अपना मान न रख पाई और इंद्र उस की भावनाओं से अधिकारपूर्व खेलता रहा. वह सोचता रहा उस के साथ सात फेरे ले कर सुगंधा उस की मिल्कीयत बन गई थी. मगर भूल गया था कि वह सात फेरे गृहस्थ जीवन की नींव होते हैं और वह नींव मजबूत होती है तनमन से एकदूसरे को पूर्ण समर्पित हो कर, एक दूजे का बन कर, खुशियों का आशियाना बनाने से. झूठ के जाल बिछा कर किसी के पंख काट पर उसे पिंजरे में रखने से नहीं.

सुगंधा उम्रभर चुप्पी साधे रही. जीतेजी वह इंद्र से बगावत करने का साहस नहीं कर पाई थी, मगर मौत में ही सही, वह अपना मान जरूर करेगी. वह बदला लेगी और इंद्र को दुनिया के सामने बेनकाब कर के ऐसी जिल्लत देगी जो हिंदुस्तान की किसी भी पत्नी ने अपने पति को न दी हो. ऐसी जिल्लत, जिस के बोझ से दब कर वह अपनी बाकी की जिंदगी कराहते हुए जीने को विवश हो जाएगा. वह अपने एक वार से इंद्र के अनगिनत सितम का हिसाब बराबर करेगी. वह जानती थी कि अब उस के पास ज्यादा सांसें नहीं बची हैं, इसलिए दूसरे ही दिन उस ने शहर के जानेमाने वकील सुधांशु राय को फोन लगाया, मिलने का वक्त निश्चित करने के लिए ताकि वह अपना वसीयतनामा तैयार करवा सके. वैसे भी, अभी तो उस का इंद्र को सिल्वर जुबली गिफ्ट देना भी तो बाकी था.

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यह वसीयतनामा जायदाद के लिए नहीं था, बल्कि उस के अंतिम संस्कार का था. दुनिया को बताने के लिए कि उस की शादी अमान्य थी, इंद्र तो शादी के योग्य ही नहीं था. उम्रभर वह नारीत्व के लिए तरसी थी. मातृत्व की हूक कलेजे में दबाती रही थी. वह कोई हृदयरोगी नहीं थी. एक बच्चे को जन्म देने के लिए वह पूरी तरह स्वस्थ थी. रोग तो इंद्र को था नपुंसकता का. ऐसा रोग जिस से वह विवाहपूर्व पूरी तरह परिचित था. फिर भी उसे एक पत्नी चाहिए थी, घर में ट्रौफी की तरह सजाने और दुनिया से अपनी नामर्दगी छिपाने के लिए. वह अपनी वसीयत में इंद्र को अपने अंतिम संस्कार से बेदखल कर गई थी और खुद को एक विधवा की हैसियत से सुपुर्देखाक करने की जिम्मेदारी अपने बेटे समान इकलौते भतीजे को सौंप गई थी.

सुगंधा दुनिया से जा चुकी थी अतृप्त ख्वाहिशों के साथ. उस ने उम्रभर अपनी कामनाओं का गला घोंटा, अपनी इच्छाओं की जमीन को बंजर रख कर, इंद्र के कोरे अहं के पौधे को सींचा था. 26 वर्षों तक दुनियादारी के बोझ से दबी सुगंधा मौत में इंद्र को जबरदस्त तमाचा मार कर गई थी. झूठे बंधन से मुक्त हो कर वह शांति से चिरनिद्रा में सो गई थी और छोड़ गई थी इंद्र को बेनकाब कर के.

अब बाकी बची उम्र सिसकियों में काटने की बारी इंद्र की थी. वह जब भी दीवार पर लटकी सुगंधा की तसवीर को देखता तो सिहर उठता. तसवीर में उस की आंखों को देख कर उसे ऐसा प्रतीत होता मानों वे आंखें उस से पूछ रही हों, ‘एक बार मुझे मेरा दोष तो बताओ, क्या किया था मैं ने ऐसा, जिस की सजा तुम मुझे जिंदगीभर देते रहे. पूरी हो कर भी मैं ने मातृत्व का सुख न जाना. तुम अपना अधूरापन जानते थे, फिर भी तुम ने मेरी जैसी स्त्री से विवाह किया. अपराध तुम्हारा था, तुम से विवाह कर के आहें मैं भरती रही. दिल मेरा जलता रहा.’ इंद्र की रातें अब बिस्तर में करवटें बदलते हुए कटती थीं. उसे याद आतीं हर सुबह सुगंधा की रोई हुई उनींदी आंखें. काश, उस ने वक्त रहते सुगंधा का दर्द, उस की तड़प महसूस की होती तो उस की बेचैनी का आज यह आलम न होता और सुगंधा उसे ऐसा सिल्वर जुबली गिफ्ट दे कर दुनिया से अलविदा न होती.

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सिल्वर जुबली गिफ्ट : भाग 2- मौत में उस ने अपना मान रखा

केक काटने की रस्म हो चुकी थी, अब बारी थी स्पीच देने की. सुगंधा ने तो उस शाम के लिए कुछ नहीं लिखा था क्योंकि सचाई पब्लिक में सुनाने लायक नहीं थी और झूठ को शब्दों का रुपहला जामा पहनाने की हिम्मत अब शिथिल होने लगी थी. मगर इंद्र ने पिछले कई महीनों से परिश्रम कर के, चिंतनमनन करकर के शब्दों का मखमली जाल बुना था और नातेरिश्तेदारों का दिल छू लेने वाली स्पीच तैयार की थी.

उस ने बड़े आत्मविश्वास के साथ स्पीच देना शुरू किया, ‘‘सुगंधा इज माई बैटरहाफ. मैं सुगंधा के बिना अपने वजूद की कल्पना भी नहीं कर सकता. सुगंधा मेरी वाइफ ही नहीं, मेरी लाइफ हैं. सुगंधा ही हैं जिन्होंने मेरे विचारों को पंख दिए हैं. सुगंधा वे हैं जो हर अच्छेबुरे वक्त में परछाईं की तरह मेरे साथ खड़ी रह कर मेरी ताकत बनी रही हैं. सुगंधा अपने नाम को पूर्ण सार्थक करते हुए मेरे जीवन के उपवन को महका कर खुशगवार बनाती रही हैं.

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‘‘जब शादी की रात सुगंधा ने डरतेडरते मुझे बताया कि उन को दिल में छेद की बीमारी है और बच्चे को जन्म देना उन के लिए खतरनाक हो सकता है तो मैं ने उन से वादा किया था कि वे जैसी हैं, मुझे स्वीकार हैं. इतना ही नहीं, उस दिन के बाद मैं ने अपने कलेजे पर पत्थर रख लिया और सुगंधा के सामने संतान की चाहत या संतान न होने का मलाल भूल कर भी नहीं जताया. मैं ने वादा किया था और जगजाहिर है कि उसे निभा कर भी दिखा दिया.

मैं ने सुगंधा को उन की हर कमी के साथ अपनाया, और अपना तनमन सबकुछ उन पर वार दिया. अब आज के इस पावन अवसर पर मेरे पास इस से ज्यादा कुछ नहीं है जो कि मैं उन्हें सिल्वर जुबली गिफ्ट के रूप में दे सकूं.’’ इंद्र ने स्पीच खत्म करते हुए सुगंधा को अपनी बांहों में भर के एक जोरदार चुंबन दे दिया, जैसे कि सिल्वर जुबली की मुहर लगा रहा हो. रिसैप्शन हौल में चीयर्स की आवाजें और तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी. सुगंधा की पलकों की कोरों से 2 आंसू उस के गालों पर लुढ़क गए, जिन्हें इंद्र ने बड़े ही प्यार से पोंछ कर उपस्थितजनों के दिमाग में खुशी के आंसुओं का खिताब दे दिया.

इस से पहले कि कोई सुगंधा की आंखों में झांक कर सचाई के दीदार कर पाता और उस के गुलाब जैसे सुंदर चेहरे पर छाती म्लानता की एक झलक भी ले पाता, इंद्र उसे अपनी आगोश में समेट कर डिनरहौल की तरफ ले गया और अपने हाथों से किसी नवविवाहित की तरह मनुहार करते हुए उसे खाना खिलाने लगा.

जिस शादी में सुगंधा की सांसें घुट रही थीं, जिंदगी ढोना मुश्किल रहा था, उस की शानदार यादगार सिल्वर जुबली मनाई जा रही थी. उस के दिल में घृणा का दरिया बह रहा था. उस की हंसी खोखली थी, मुसकराहट में दर्द की लकीरें उभर आती थीं. कोई नहीं जानता था कि सुगंधा अपनी ‘ब्यूटी विद ब्रेन’ इमेज के भीतर कितनी खोखली और कमजोर है.

इंद्र ने शादी की पहली रात को ही अपनी कमी का परदाफाश होने पर सुगंधा से स्पष्ट लहजे में कहा था, ‘किस को क्या बताओगी मेरी जान, यह हिंदुस्तान है. यहां एक बार लड़की की शादी करने में तो बाप के जूते घिस जाते हैं, फिर कोई भला तुम्हारा मुझ से तलाक करा कर क्या करेगा. माई लव, न तो तुम घर की रहोगी न घाट की. बेहतर होगा कि तुम मेरे साथ चुपचाप जिंदगी बसर कर लो. तुम क्या सोचती हो कि तुम मेरी कमजोरी का डंका दुनिया में बजाओगी और मैं चुपचाप इसे बरदाश्त कर लूंगा. अगर तुम ने यह जुर्रत की तो फिर मैं भी तुम्हारे चरित्र पर लांछन लगा कर तुम्हें सब की नजरों में गिरा दूंगा और तुम्हें कहीं का न छोड़ूंगा. अच्छे से अच्छा वकील करने की ताकत है मुझ में और उधर तुम्हारे पिताजी, वे तो तुम्हारी शादी की दावत भी ठीक से न कर पाए. फिर भला राजा भोज को गंगू तेली कैसे टक्कर दे सकता है…इसलिए माई लव, मेरी यह बेशुमार दौलत एंजौय करो और खुश रहो.

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आखिर तुम शहर के जानेमाने बिजनैसमैन की पत्नी तो बनी रहोगी.’ सुगंधा की हालत उस पंछी की तरह थी जो चोट खा कर उड़ने को फड़फड़ा रहा हो. उड़ने का हर प्रयास विफल हो कर उस के दर्द में इजाफा कर रहा था, उस के आत्मविश्वास को ध्वस्त कर के उसे और कमजोर बना रहा था. शादी होते ही उस के कुंआरे सपनों की कलियां मुकम्मल फूल बनने के पहले ही मुरझा गई थीं.

सारे रिश्तेदार सिल्वर जुबली पार्टी के दूसरे ही दिन विदा हो चुके थे. आजकल किस को फुरसत होती है किसी के सुखदुख में लंबे समय तक शरीक होने की. जाते वक्त भी कइयों के चेहरे ईर्ष्या की स्याही से पुते हुए थे. रिश्तेदारी की विवाहयोग्य युवतियों के आंखों में सुगंधा जैसी शाही जिंदगी की तमन्ना का प्रतिबिंब झिलमिला रहा था. कोई नहीं सोचना चाहता कि कभीकभी ऊपर से ठीक दिखने वाला व्यक्ति अंदर से घुटघुट कर मर रहा होता है. खुशियों का पैमाना कीमती कपड़े, महंगा पर्यटन, लक्जरी कार नहीं होती. खुशी होती है मन की शांति से, संतृप्त खुशहाल जिंदगी से, मन की सुखी, चटकती धरती पर किसी के प्यार की फुहार से मिली ठंडक से, घर में गूंजती किलकारियों से.

क्या पाया है उस ने इंद्र से? नहीं पूरा कर पाया वह उस के कुंआरे सपनों को, नहीं पूर्ण कर पाया वह उस के नारीत्व को, ऐसे नाम के पति के साथ एक बच्चे का सपना संजोना तो रेगिस्तान में दूब उगाने की सोचने जैसा था.

अपनी खामी को ढांपने के लिए शादी के शुरुआती दिनों में ही उस ने रिश्तेदारों और दोस्तों में ऐलान कर दिया कि सुगंधा को हृदयरोग है और प्रैग्नैंसी उस के लिए घातक हो सकती है. संबंधों का एकतरफा निर्वाह सुगंधा ने किया था और दुनिया में उस को हृदयरोगी बता कर त्याग की मूर्ति स्वयं इंद्र बन बैठा था. यह कैसी विडंबना थी, यह कैसा न्याय था समय का, जहां गुनाहगार किसी की जिंदगी तबाह कर के इज्जतदार बना हुआ था. इंद्र के गुनाह की शिकार सुगंधा विवाहित हो कर भी उम्रभर अतृप्ति के एहसास में गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही थी.

शादी की जाती है खुशियों के लिए, खुशियों की तिलांजलि देने के लिए नहीं. सुगंधा करवाचौथ का व्रत करती आई थी दुनियादारी की मजबूरी में बिना किसी भाव, बिना किसी श्रद्धा के. उम्र बीती थी ठंडी आहें भरने में. ऐसे संबंधों में सोच ही कुचली जाती है, समर्पण नहीं होता. अब तक सिल्वर जुबली पार्टी को भी करीबकरीब 6 महीने पूरे हो चुके थे. सुगंधा के लिए खुद को संभालना मुश्किल होता जा रहा था. मन के साथ अब तन भी टूटने लगा था. चलने में कदम डगमगाने लगे थे, हाथों के कंपन से मन की कमजोरी छिपाए न छिपती थी. उस शानदार सिल्वर जुबली की शहर में चर्चा पर अब धूल जमने लगी थी. सब के लिए जिंदगी कमज्यादा बदल रही थी, मगर सुगंधा का जीवन उसी ढर्रे पर चल रहा था, सदा की तरह तनहा दिन, लंबीकाली उदास रातें.

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जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

सिल्वर जुबली गिफ्ट : भाग 1- मौत में उस ने अपना मान रखा

दोपहर से ही मेहमानों की गहमागहमी थी. सभी दांतों तले उंगली दबाए भव्य आयोजन की चर्चा में व्यस्त थे. ‘‘कम से कम 2-3 लाख रुपए का खर्चा तो आया ही होगा,’’ एक फुसफुसाहट थी.

‘‘कैसी बात करती हो मौसी, इतने तो अब गांव की दावतों में खर्च हो जाते हैं. यह तो फाइवस्टार की दावत है और वह करीब 1,500 आदमियों की,’’ एक खनकती आवाज ने अपने समसामयिक ज्ञान को बोध कराया. ‘‘अब भइया, ये न मनाएंगे ऐसी मैरिज एनिवर्सरी तो क्या हम मनाएंगे. इन के शहर में ही तो 400 साल पहले एक बादशाह ने वक्त के माथे पर ताजमहल का अमिट तिलक लगाया था,’’ डाह से भरा कुछ फटा सा स्वर गूंजा.

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‘‘सही बात है जहां पलोबढ़ो वहां की आबोहवा का असर तो पड़ता ही है.’’ जितने मुंह उतनी ही बातें सुनाई दे रही थीं और पास ही के कमरे में अपनी सिल्वर जुबली पार्टी के लिए तैयार होती सुगंधा के कानों में भी पड़ रही थीं. उस ने सोचा, ‘ठीक ही तो कह रहे हैं सब, इंद्र मेरे अरमानों की कब्र तो शादी की पहली रात को ही खोद चुका था और पिछले 25 वर्षों से मेरी भावनाओं को लगातार पत्थर कर के उस कब्र पर मकबरा भी बना रहा है. अगर तथ्यों की बारीकियों में जाएं तो ताजमहल के हर पत्थर पर भी फरेब की ही इबारत लिखी दिखाई देगी, मुहब्बत की नहीं.’

सुगंधा के मन में पिछले 25 वर्षों से बर्फ बन कर जमी वेदना आर्द्र हो कर बाहर निकलने को व्याकुल हो रही थी. उस का मन हो रहा था कि वह इस दुख को अपनी आवाज बना ले और दुनिया को चीखचीख कर बताए कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती, यहां तक कि संसारभर में मुहब्बत का प्रतीक माने जाने वाले ताजमहल की हकीकत भी घिनौनी ही है. आज सुगंधा और इंद्र के विवाह के

25 साल पूरे हो चुके थे. सुगंधा ने ब्यूटीशियन को पेमैंट दे कर विदा किया और आदमकद दर्पण में खुद को निहारने लगी. इंद्र ने आज के दिन के लिए शहर के सब से नामी ड्रैस डिजाइनर से खासतौर पर साड़ी तैयार करवाई थी. दर्पण में खुद का रूप निहारने पर मन गर्व के सागर में गोते खाने लगा. अनायास ही वह दिन याद आ गया जब उस ने 25 साल पहले इसी तरह तैयार होने के बाद खुद को आदमकद दर्पण में निहारा था. फर्क था तो भावनाओं का, तब मन में पिया मिलन की लहरें हिलोरें ले रही थीं और आज 25 साल पहले सुहागरात को हुई उस की ख्वाहिशों की लाश का रंज टीस रहा था. थकने लगी थी वह अब यह सब बरदाश्त करतेकरते. मन करता था कि भाग जाए कहीं सब की निगाहों से दूर, कहीं बहुत दूर, किसी ऐसी दुनिया में जहां वह सुकून की सांस ले सके.

शादी से सिल्वर जुबली तक के सफर में कितने ही ज्वारभाटे आए थे. वह आज वरमाला के दिन से कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. 25 साल से रिश्ते की कड़वाहट का जहर पीती रही थी. मन इस जहर की कड़वाहट से संतृप्त हो दम तोड़ने को छटपटा रहा था. मगर तन, वह तो बेशर्म बन कर और निखरता चला गया था. तभी दरवाजे पर दस्तक की आवाज ने सुगंधा के मानसपटल पर चल रहे अतीत के चलचित्र में विघ्न डाला. ‘‘जल्दी से बाहर आओ माई लव, पार्टी शुरू होने का समय हो चुका है, अब तक तो ज्यादातर मेहमान होटल पहुंच चुके होंगे. अच्छा नहीं लगता कि हम ‘स्टार्स औफ द इवनिंग’ हो कर भी सब से बाद में वहां पहुंचें,’’ इंद्र ने कमरे में दाखिल होते हुए सुगंधा से कहा. इंद्र अपने चचेरे भाई विजय के साथ दूसरे कमरे में तैयार हो कर आया था.

‘‘लोग उम्र के साथ ढलते जाते हैं मगर भाभीजान, आप तो उम्र के साथ पुरानी शराब की तरह दिलकश होती जा रही हैं,’’ विजय भी इंद्र के पीछेपीछे चले आए और आदतानुसार उन्होंने मुगलिया अंदाज में सीधा हाथ अपने माथे पर रख कर, थोड़ा सा बाअदब मुद्रा में झुकते हुए कहा, ‘‘इस से पता चलता है कि जागीरदार ने अपनी जागीर की हिफाजत में बड़ी ही एहतियात बरती है.’’ इंद्र खुद की तारीफ करने का कोई अवसर व्यर्थ नहीं जाने देता था.

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सुगंधा पर उन की बातों का कोई असर हो रहा है या नहीं, इस की परवा किए बिना दोनों भाई अपनी ही बातों पर जोरजोर से कहकहे लगाने लगे. घर में आए हुए सारे रिश्तेदार भी अब तक होटल जाने के लिए निकल चुके थे. होटल और घर की दूरी सिर्फ एक किलोमीटर की थी, मगर इंद्र ने सब की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए किराए की कई कारों का इंतजाम करा रखा था. कुछ पास के शहरों में रहने वाले रिश्तेदार अपनी कारों में ही आए थे. सब से आखिर में सुगंधा, इंद्र और विजय ही घर में बचे थे. इंद्र के निर्देशानुसार विजय ने इंद्र की निजी कार को लाल गुलाब की लडि़यों से बड़ी ही खूबसूरती के साथ सजाया था और भाईभाभी के शोफर की भूमिका भी बखूबी निभाई.

होटल के रिसैप्शन हौल में घुसते ही भव्यता की रंगीन चकाचौंध ने सुगंधा की बुद्धिमत्ता का हरण करना शुरू कर दिया और वह रंगीन चकाचौंध कुछ पल के लिए उस के जीवन के काले यथार्थ पर हावी होेने लगी. सुगंधा की दशा सुंदरवन में कुलांचें मारती हिरनी सी हो गई, उसे वहम होने लगा कि उस की जिंदगी तो इतनी भव्य है, फिर वह दुखी और एकाकी कैसे हो सकती है. सचाई भव्यता का ग्रास बन कर सुगंधा की बुद्धिमत्ता को ग्रहण लगा रही थी. मित्र, परिचित, रिश्तेदार सभी बधाइयां देने स्टेज पर आ रहे थे और सुगंधा व इंद्र के सुखी वैवाहिक जीवन का राज जानने को उत्सुक थे.

कुछ चेहरों पर डाह था तो कुछ पर बढि़या दावत मिलने की संतुष्टि. कोई कहता कि एकदूसरे के लिए बने हैं. हकीकत इस के विपरीत कितनी बेनूर, बेरंग थी, इस का इल्म किसी को न था. दुनिया की नजरों में सुगंधा और इंद्र की शादी एक आदर्श मिसाल थी, मगर बंद दरवाजों के पीछे का विद्रूप सच सुगंधा अपने मन की सात परतों में छिपाए बैठी थी. इंद्र की बातों का वह एक आंसरिंग मशीन के जैसे ही जवाब देती आई थी. सामाजिकरूप से वह ब्याहता थी, मगर इंद्र को भावनात्मक तलाक तो वह बहुत पहले ही दे चुकी थी.

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जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

पुलिस की भूलभुलैया : भाग 3

हाजी गफूर ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया और उसे लाइब्रेरी में ले आए. वहां उन्होंने अपने कातिल को सिगार भी पेश किया. उन दोनों के बीच चीनी मिल के स्टौक के मामले में बातचीत होती रही. कातिल ने हाजी गफूर को कोई पेशकश की, जिसे उन्होंने क्षमा याचना के साथ नकार दिया.

ऐसी स्थिति में कातिल उठ खड़ा हुआ. वहां उस ने एक मुगरी देखी थी. वह मुगरी उठा कर हाजी साहब के पीछे जा पहुंचा और उन के सिर पर जोर से प्रहार किया. ऐसी स्थिति में उन का सिर फट गया और खून बहने लगा.

लगातार खून बहने से उन की मौत हो गई. उस के बाद कातिल ने संदूकची में से सारी रकम निकाल ली. ऐसा उस ने मात्र गलतफहमी पैदा करने के लिए किया, अन्यथा उसे करेंसी नोटों की कोई जरूरत नहीं थी.’’ कह कर इंसपेक्टर अलीम राहत अली की ओर देखने लगा. राहत अली की निगाहें उसी पर जमी हुई थीं.

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कुछ देर चुप रहने के बाद इंसपेक्टर अलीम बोला, ‘‘अब समस्या यह है राहत साहब कि मो. रऊफ यानी हाजी गफूर का भाई सिगार नहीं पीता. हाजी गफूर का सेकेट्री रफीक खान और चीनी मिल का मैनेजर मो. लतीफ कभीकभार ही सिगार पीते हैं. सलीम अहमद पाइप पीता है जबकि कातिल सिगरेट पीने वाला व्यक्ति था.’’

राहत अली ने इंसपेक्टर अलीम की बात का कोई जवाब नहीं दिया. इंसपेक्टर अलीम आगे बोला, ‘‘वस्तुत: सिगार पीने वाला व्यक्ति सिगार के एक सिरे को अपने दांतों से काटता है और फिर सावधानीपूर्वक अपने दांत सिगार के दूसरे सिरे में गड़ा देता है. ऐसी स्थिति में सिगार उस के मुंह से नहीं गिर सकता.

लेकिन सिगरेट पीने वाला व्यक्ति सिगरेट को अपने होठों से दबाता है, दांतों से नहीं. उस रात जो व्यक्ति हाजी गफूर साहब से मिलने के लिए लाइब्रेरी में आया, वो सिगरेट पीने का आदी था, इसलिए उस ने सिगार के सिरे को दांतों से नहीं दबाया था. दूसरी बात यह है कि कातिल बाएं हाथ से काम करने का आदी है.’’

‘‘अच्छा, क्या सलीम अहमद बाएं हाथ से काम करता है?’’ राहत अली ने बेचैनी से पूछा.

‘‘नहीं, सलीम अहमद बाएं हाथ से काम नहीं करता.’’ इंसपेक्टर अलीम ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘बल्कि आप बाएं हाथ से काम करते हो. दूसरी बात आप सिगार पीने के आदी भी नहीं हो, क्योंकि आप सिर्फ सिगरेट पीते हो. इसलिए आप यह बात भूल गए थे कि सिगरेट पीने का तरीका अलग है और सिगार पीने का अलग.’’

‘‘आप मुझ पर यह आरोप लगा रहे हैं कि मैं ने हाजी गफूर साहब का कत्ल किया है.’’ राहत अली गुस्से से कांपता हुआ खड़ा हो गया.

‘‘मैं माफी चाहता हूं राहत साहब.’’ इंसपेक्टर अलीम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो सारी बातें और घटनाएं बताई हैं और यह सब आप की ही ओर इशारा कर रही हैं.’’

राहत अली तेज स्वर में बोला, ‘‘सवाल यह है कि मैं हाजी गफूर साहब का कत्ल क्यों करूंगा. इस कत्ल के पीछे कोई उद्देश्य तो होना चाहिए.’’

‘‘तुम्हारे पास चीनी मिल के पैंतालिस प्रतिशत शेयर हैं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने शांत स्वर में कहा, ‘‘तुम कई साल से हाजी गफूर पर दबाव डाल रहे थे कि वह तुम्हें 50 फीसदी से ज्यादा शेयर दे दें, ताकि तुम चीनी मिल के मामले में आदेश देने की पोजीशन में आ जाओ. हाजी गफूर का भाई मो. रऊफ वैसे भी मौजमस्ती में पड़ा रहने वाला आदमी है. बाद में तुम उसे बरगला कर उस का हिस्सा भी खरीद लेते.’’ यह कह कर इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली की ओर घूर कर देखा, राहत अली ने अपना मुंह दूसरी तरफ कर लिया.

‘‘सच का सामना करो राहत अली.’’ इंसपेक्टर अलीम बोला, ‘‘इस तरह मुंह मोड़ने से कुछ नहीं होगा. जब तुम हाजी गफूर से मिलने गए तो खासतौर पर दस्ताने पहन कर गए थे.’’

‘‘मैं ने पर्स छीने जाने की सूचना दे कर कोई अपराध नहीं किया.’’ राहत अली गुस्से से बोला.

‘‘हां तुम तंबाकू वाले स्टाल पर गए जरूर थे, ताकि लोगों को यह दिखा सको कि हाजी गफूर के कत्ल के समय तुम तंबाकू वाले के स्टाल पर थे. दूसरे तुम मेरे पास भी इसलिए आए थे, ताकि मेरा ध्यान तुम्हारी तरफ न जा सके. मेरे पास आने की एक वजह यह भी थी कि तुम हाजी गफूर के कत्ल के सिलसिले में पुलिस की कारर्रवाई से पूरी तरह बाखबर रहना चाहते थे.’’

राहत अली कुछ देर तक इंसपेक्टर अलीम को देखता रहा, फिर उस पर खांसी का दौरा पड़ गया. खांसतेखांसते राहत अली ने अपना सीना थाम लिया, तभी पल भर में उस के हाथ में पिस्तौल आ गया और उस ने इंसपेक्टर अलीम की ओर तान दिया.

फिर कुटिल शब्दों में बोला, ‘‘तुम बहुत बुद्धिमान हो इंसपेक्टर, मगर तुम्हारी यह बुद्धिमानी तुम्हें  मरने से नहीं बचा सकेगी. अपनी जगह से हिलने की कोशिश मत करना.’’

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लेकिन इंसपेक्टर अलीम ने एक अजीब हरकत की. मेज पर जिस जगह उस ने अपना एक हाथ रखा हुआ था, वहीं ऐश ट्रे भी रखी थी. उस ने पलक झपकते ही वह ऐश ट्रे उठाई और राहत अली की तरफ उछाल दी. राहत अली को हिलने का भी मौका नहीं मिल सका.

ऐश ट्रे की राख ने उसे अचानक अंधा सा कर दिया था. राहत अली ने अंधाधुंध दो फायर किए. तभी कोई वजनी चीज उस के सिर पर लगी और उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

जब राहत अली की आंख खुली तो उस ने अपने आप को हवालात में पाया. कुछ ही देर बाद इंसपेक्टर अलीम राहत अली के सामने खड़ा था.

‘‘राहत अली! तुम इतने खतरनाक होगे, यह मैं सोच भी नहीं सकता था.’’ इंसपेक्टर अलीम ने कहा, ‘‘तुम ने अपने हिसाब से बहुत अच्छी योजना बनाई थी, लेकिन कोई भी अपराधी कानून की नजर से ज्यादा देर तक नहीं बच पाता.’’

राहत अली ने इंसपेक्टर अलीम की बात का कोई जवाब नहीं दिया. इंसपेक्टर अलीम ने आगे कहा, ‘‘तुम बराबर मेरे पास आते रहे और मुझे धोखा देते रहे. तुम ने दो बार मुझ पर फायर किए. एक बार कब्रिस्तान में और दूसरी बार मेरे ही दफ्तर में… तुम बाहर से गोली चला कर अपने स्कूटर से भाग गए.’’

‘‘हां, यह सब ठीक है.’’ राहत अली उदास हो कर बोला, ‘‘लेकिन इस में उस सिगार का बड़ा रोल है. अगर वह तुम्हारे हाथ न आता, तो तुम मुझे कभी नहीं पकड़ सकते थे. मैं ने इस योजना में बड़ी सावधानी बरती थी. कहीं कोई झोल नहीं छोड़ा था. लेकिन उस सिगार ने मुझे जेल तक पहुंचा दिया.’’

‘‘मगर एक बात तुम्हें माननी पड़ेगी.’’ इंसपेक्टर अलीम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सिगार के बारे में मुझे इतना कुछ नहीं मालूम था, जितना मैं ने तुम्हें बताया. समझ लो, मैं ने अंधेरे में तीर चलाया था, जो इत्तेफाक से निशाने पर लग गया.’’

इंसपेक्टर अलीम की बात सुन कर राहत अली उसे देखता रह गया.

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पुलिस की भूलभुलैया : भाग 2

इंसपेक्टर अलीम ने जेब से रुमाल निकाला और उस की मदद से मुगरी को पकड़ कर उठाया. वह बड़े ध्यानपूर्वक उस का निरीक्षण करता रहा. फिर उस ने उसे वापस टोकरी में डाल दिया और मेज की तरफ बढ़ा. तभी थाने से उस के स्टाफ के अन्य लोग भी आ गए और अपने काम में जुट गए.

उसी समय उस की नजर ऐशट्रे में पड़े एक अधजले सिगार पर पड़ी. उस ने तत्काल उसे उठा लिया और राहत अली से पूछा, ‘‘क्या आप सिगार पीते हैं?’’ उस का सवाल अचानक था.

‘‘कभीकभार…!’’ राहत अली ने जवाब दिया.

वह 3 तलों वाला हवाना का सिगार था जो गहरे रंग का था. सिगार के नाम की पट्टी हटा दी गई थी, जबकि मेज की दराज में मौजूद सभी सिगारों पर वह पट्टी लगी थी और गोल्डन सील भी थी. हर सिगार पर साइड में एक निर्धारित ट्रेड मार्क था. जिस में ग्रेट लीगेशन लिखा था. यह एक महंगा सिगार था.

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कुछ देर बाद इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली को जाने की इजाजत दे दी. उसी रात जब इंसपेक्टर अलीम थाने के अपने बाहरी कमरे में अकेला बैठा ताश खेल रहा था तो कोई स्कूटर सवार वहां आया और उस पर गोली चला कर भाग गया लेकिन गोली इंसपेक्टर के कान को छूती हुई गुजर गई. वह बालबाल बच गया था.

उस घटना के दस दिन बाद शाम को 6 बजे इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली को फोन कर के थाने आने के लिए कहा. उस ने बताया कि छीने जाने वाले पर्स के बारे में कुछ मालूमात हासिल हुई है.

राहत अली हाजी गफूर की रायल चीनी मिल में पैंतालिस प्रतिशत का शेयर होल्डर था. उसे अखबारों और न्यूज चैनलों से यह ज्ञात हो गया था कि हाजी गफूर की हत्या की तफतीश शुरू हो गई है. किसी गुमनाम कातिल ने उन के सिर पर उसी मुगरी से जबरदस्त चोट मारी थी जिस से हाजी गफूर की तत्काल मृत्यु हो गई थी.

राहत अली जब थाना पहुंच कर इंसपेक्टर अलीम से मिला तो वह किसी केस की फाइल देख रहा था. राहत अली को देखते ही इंसपेक्टर ने अपने हवलदार को बुला कर कहा, ‘‘गब्दू को ले आओ.’’

कुछ देर बाद एक लंबाचौड़ा, बुझे चेहरे वाला आदमी कमरे के अंदर दाखिल हुआ. इंसपेक्टर अलीम ने उसे देखते ही राहत अली से पूछा, ‘‘क्या यही वह आदमी है जिस ने आप का पर्स छीना था.’’

राहत अली ने गौर से उस आदमी को देखा और ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘और यह पर्स…’’ इंसपेक्टर अलीम ने एक पुराना पर्स राहत अली के सामने रखते हुए कहा, ‘‘यह आप का है?’’

‘‘नहीं…’’ इस बार भी राहत अली ने इनकार कर दिया.

‘‘ठीक है.’’ इंसपेक्टर अलीम ने हवलदार को इशारा किया और वह उस आदमी को ले कर वापस चला गया.

‘‘हाजी गफूर के केस में मैं ने अपनी तफतीश का दायरा तंग कर दिया है.’’ इंसपेक्टर अलीम ने कहा, ‘‘अब मेरी नजर में सिर्फ 6 लोग शक के दायरे में हैं. इन में से दो अभी लाए जाने वाले हैं.’’

‘‘ठीक है.’’ राहत अली ने सहजतापूर्वक कहा.

‘‘मेरी लिस्ट में जो 6 लोग हैं, उन में हाजी गफूर का भाई मो. रऊफ और हाजी गफूर का सेकेट्री रफीक खान सब से ऊपर हैं. उन दोनों के अलावा मोहतरमा हिना, एक व्यापारी सलीम अहमद, चीनी मिल का मैनेजर मो. लतीफ और एक अन्य व्यक्ति मेरी लिस्ट में हैं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने आगे बताया, ‘‘हाजी गफूर और मो. रऊफ में प्राय: लड़ाई होती थी. एक हफ्ते पहले उन दोनों में अच्छाखासा विवाद हुआ था. मो. रऊफ अपने भाई हाजी गफूर पर पूरी तरह आश्रित था.’’

‘‘और रफीक खान पर शक की क्या वजह है?’’ राहत अली ने पूछा.

‘‘वह यह जानता है कि गफूर साहब उस संदूकची में विदेशों के करेंसी नोट रखते थे…’’ अभी इंसपेक्टर अलीम की बात पूरी नहीं हुई थी कि एक सिपाही कमरे में आया और उस ने इंसपेक्टर अलीम के कान में कुछ कहा तो वह झटके से उठते हुए बोला, ‘‘राहत साहब! अभी मैं ने आप को बताया था कि मुझे एक व्यापारी सलीम अहमद पर भी शक है. सलीम अभी कब्रिस्तान में नजर आया था. मुझे कुछ गड़बड़ लगती है. मैं वहां जा रहा हूं. क्या आप मेरे साथ चलना पसंद करेंगे.’’

5 मिनट बाद इंसपेक्टर अलीम और राहत अली कब्रिस्तान पहुंच गए. दोनों लोग कब्रों के बीच से होते हुए पेड़ों के साए में आगे बढ़े. वहां अंधेरा छाया था. इंसपेक्टर अलीम ने कहा, ‘‘राहत साहब, आप उधर से आगे बढ़ें और मैं इधर से जा रहा हूं. लेकिन जरा सावधान रहना.’’

राहत अली तुरंत आगे बढ़ गया. लेकिन अंधेरे में सौ गज तक आगे बढ़ने के बाद वह वापस हो गया. इस प्रकार वह एक दायरे में आ गया था. एकाएक कब्रिस्तान में फायर की आवाज सुनाई दी. राहत अली ने वहां से फौरन दौड़ लगा दी और किसी से जा टकराया. वह इंसपेक्टर अलीम था जिस पर किसी ने फायर किया था. इंसपेक्टर अलीम के बाएं हाथ में गोली लगी थी जिस में से खून बह रहा था.

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राहत अली ने पूछा, ‘‘ये क्या हुआ इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘कुछ नहीं, वह गोली मार कर भाग गया. लेकिन मैं ठीक हूं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने अपना रूमाल राहत अली को देते हुए कहा, ‘‘लो, इसे जख्म पर बांध दो.’’ थोड़ी देर बाद वे दोनों कब्रिस्तान से बाहर निकले और शीघ्र ही थाने पहुंच गए.

दूसरे दिन इंसपेक्टर अलीम के बुलावे पर राहत अली पुन: थाने पहुंच गया. इंस्पेक्टर अलीम ने उस से कहा, ‘‘कल मैं ने आप को कुछ लोगों के बारे में बताया था. अब बारी आती है मोहतरमा हिना की. वह एक सुंदर युवती है और कुछ ही समय में गफूर साहब के काफी निकट आ गई थी.’’

दरअसल, गफूर साहब ने शुरू में कुछ गलतियां की थीं, जो मोहतरमा हिना को मालूम हो गई थीं. वह उन्हीं को ले कर हाजी गफूर को ब्लैकमेल कर रही थी. लेकिन वह काफी सतर्क रहती थी.’’ यह कह कर इंसपेक्टर अलीम कुछ देर के लिए रुका. फिर आगे बोला, ‘‘गफूर साहब के सिर पर लकड़ी की मुगरी से प्रहार कर के उन्हें मारा गया है और यह काम किसी स्त्री का नहीं हो सकता. क्योंकि यह काम शक्तिशाली आदमी ही कर सकता है.’’

‘‘अच्छा…तो फिर?’’ राहत अली बोला.

‘‘मुझे चीनी मिल के मैनेजर मो. लतीफ पर शक है. वह घोड़ों पर शर्तें लगाने की वजह से तबाह हो चुका है. संभव है कि वह गफूर साहब के पास गया हो और कुछ पैसे मांगे हों, मगर इनकार करने पर उस ने…’’ इंसपेक्टर अलीम की बात सुन कर राहत अली खामोशी से बैठ गया.

‘‘अब रह जाता है सलीम अहमद.’’ इंसपेक्टर अलीम ने आगे कहा, ‘‘मेरा खयाल है कि कब्रिस्तान में उसी ने मुझ पर फायर किया था.’’

‘‘तो क्या सलीम अहमद ने ही हाजी गफूर को कत्ल किया है?’’ राहत अली ने पूछा.

‘‘नहीं, शायद मैं ऐसा ही सोचता, मगर सिगार की वजह से मुझे अपना खयाल बदलना पड़ा.’’

‘‘सिगार? क्या मतलब है आप का?’’ राहत अली ने सहजतापूर्वक कहा.

‘‘हां… ग्रेट लीगेशन का वही सिगार, जो मुझे गफूर साहब की लाइब्रेरी में मिला था.’’ इंसपेक्टर अलीम ने जवाब दिया, ‘‘वह सिगार जिस आदमी ने पिया, वही हाजी गफूर का कातिल है.’’

‘‘तब तो फौरन उस सिगार पर से उंगलियों के निशान आप को चैक कराने चाहिए.’’ राहत अली ने गंभीरतापूर्वक कहा.

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‘‘यही तो समस्या है कि सिगार पर किसी की उंगलियों के निशान नहीं मिले, क्योंकि कातिल ने दस्ताने पहन रखे थे.’’ थोड़ी देर खामोश रहने के बाद इंसपेक्टर अलीम ने आगे कहा, ‘‘6 बजे के करीब हाजी गफूर साहब लाइब्रेरी से निकल कर डाइनिंग रूम में जाने वाले थे, तभी बाग के दरवाजे पर उन्हें कातिल मिला.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पुलिस की भूलभुलैया : भाग 1

जब राहत अली थाने में दाखिल हुआ तो उसे इंसपेक्टर अलीम अपनी सीट पर अकेला बैठा दिखाई दिया. इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली की ओर देखा तो वह बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मेरा नाम राहत अली है. मैं अपने पर्स के छीने जाने की रिपोर्ट दर्ज कराने आया हूं.’’

‘‘कब और किसने छीना है आप का पर्स?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘मैं आप को पूरी बात बताता हूं,’’ राहत अली बोला, ‘‘लगभग आधे घंटे पहले मैं अलआजम स्क्वायर की मेन मार्केट की एक दुकान पर तंबाकू लेने के लिए रुका था. उस समय वहां अन्य लोग भी खड़े थे, लेकिन मैं उस गुंडे को नहीं देख सका, जो मेरे पीछे आ कर खड़ा हो गया था.

जब मैं अपना पर्स खोलने वाला था, तभी उस ने झपट्टा मार कर मेरा पर्स छीन लिया और दौड़ कर पल भर में भीड़ में गायब हो गया. मेरे पर्स में 20 हजार, 4 सौ रुपए थे.’’

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राहत अली की बात सुन कर इंसपेक्टर ने अपनी मेज की दराज से एक कागज निकाला और पेन उठा कर एक साथ कई सवाल कर डाले, ‘‘उस गुंडे का हुलिया? उस की उम्र? आप के पर्स में रुपयों के अलावा और क्या था? क्या इस राहजनी का कोई चश्मदीद गवाह है?’’

राहत अली के जवाब इंसपेक्टर अलीम ने लिखने शुरू कर दिए. अचानक उस की मेज पर रखा फोन बजने लगा. उस ने रिसीवर उठा कर कान में लगा लिया. कुछ देर तक वह दूसरी तरफ से बोलने वाले व्यक्ति की आवाज सुनता रहा, फिर बोला, ‘‘ठीक है, मैं आता हूं.’’

फोन बंद कर के इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली की ओर देखा, तो उस ने कहा, ‘‘मेरा संबंध ग्रीन बिल्डिंग से है. गफूर साहब के मार्फत कई बार आप का नाम सुन चुका हूं. रायल चीनी मिल में गफूर साहब के साथ शेयर होल्डर हूं.’’

‘‘अच्छा! गफूर साहब तो चीनी के बहुत बड़े व्यापारी हैं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘आप उन से आखिरी बार कब मिले थे?’’

‘‘बुध की शाम को…क्यों? खैरियत तो है?’’ राहत अली ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘कुछ गड़बड़ लगती है.’’ इंसपेक्टर अलीम ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘आप जरा मेरे साथ ग्रीन बिल्डिंग तक चलें.’’

हाजी गफूर रायल चीनी निर्यात कंपनी का मालिक था. उस का औफिस ग्रीन बिंल्डिग में था. उस बिल्डिंग में हाजी गफूर ने अन्य कामों के औफिस भी स्थापित कर रखे थे तथा अनेक तल किराए पर दे रखे थे.

ग्रीन बिल्डिंग के निकट ही उस का लाल टाइलों वाला 4 मंजिला मकान था. इंस्पेक्टर अलीम राहत अली को पुलिस जीप में बिठा कर हाजी गफूर के घर की ओर चल पड़ा.

आधे घंटे बाद इंसपेक्टर अलीम ने हाजी गफूर के घर के ड्राइव वे में अपनी जीप रोक दी. वे दोनों जीप से उतर कर घर में दाखिल हुए जहां हाजी गफूर का भाई मो. रऊफ इंसपेक्टर अलीम का इंतजार कर रहा था. रऊफ की उम्र पचास साल से ज्यादा थी.

उस के बोलने का अंदाज अलग था. वह बोलतेबोलते गहरी सांसें लेने लगता था. वह उन दोनों को सीधा लाइब्रेरी में ले गया. इंस्पेक्टर अलीम ने देखा वहां बिछे लाल कालीन पर एक मेज के पीछे चौड़े कंधों वाला एक आदमी पड़ा था, जिस की दाढ़ी सफेद थी. उस के जिस्म पर सफेद शलवारकमीज थी.

सिर के पिछले हिस्से पर एक बड़ा सा घाव था. सिर की हड्डी टूटी हुई थी और वहां से खून निकल कर चेहरे से टपकता हुआ लाल कालीन में समा गया था. हाजी गफूर की आंखें खुली हुई थीं. वह मर चुके थे.

‘‘ये तो हाजी गफूर साहब हैं.’’ राहत अली ने आगे बढ़ कर चौंकते हुए कहा, ‘‘ये… इन्हें किसने… कत्ल… कर दिया है?’’

उसी समय पैंटशर्ट पहने एक आदमी आगे आया. वह एक लंबे कद का सुंदर युवक था. वह धीरे से बोला, ‘‘मेरा नाम रफीक खान है और मैं गफूर साहब का सैकेट्री हूं. मैं ने ही आप को फोन किया था. हम में से किसी ने भी किसी चीज को हाथ नहीं लगाया है.’’

रफीक खान की बात सुन कर इंसपेक्टर अलीम ने सहमति में सिर हिलाया और आगे बढ़ कर हाजी गफूर की लाश का निरीक्षण करने लगा. उस ने मेज को भी गौर से देखा. फिर वह एक कुर्सी पर बैठ कर रफीक खान से बोला, ‘‘मुझे शुरू से विस्तारपूर्वक बताओ.’’

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‘‘गफूर साहब दिन के 2 बजे अपने किसी मित्र से मिल कर घर लौटे,’’ रफीक खान बताने लगा, ‘‘उन्होंने मुझ से कहा कि वे आज औफिस नहीं जाएंगे और सभी दफ्तरी फाइलें घर पर ही देखेंगे. जब वे काफी थके होते थे तो प्राय: ऐसा ही करते थे. फिर उन्होंने मुझ से तीन लैटर लिखवाए और आगे काम करने से इनकार कर दिया. दरअसल उन्हें 3 लोगों से अलगअलग व्यापार संबंधी बातें करनी थीं. जब मैं आधे घंटे बाद यहां आया तो वे मर चुके थे.’’

इंस्पेक्टर अलीम ने पूछा, ‘‘गफूर साहब किन लोगों से व्यापार संबंधी भेंट करने वाले थे.’’

‘‘मुझे सिर्फ एक मुलाकाती के बारे में मालूम है,’’ रफीक खान ने बताया, ‘‘किसी मोहतरमा हिना को 4 बजे यहां आना था.’’

इंसपेक्टर अलीम ने मुड़ कर हाजी गफूर के भाई मो. रऊफ की तरफ देखा. न जाने क्यों रऊफ के चेहरे पर अपने भाई की मौत का कोई गम नजर नहीं आ रहा था. इंसपेक्टर अलीम ने रऊफ से पूछा, ‘‘क्या हाजी गफूर साहब का कोई दुश्मन था?’’

‘‘वैसे तो कारोबारी दुनिया में सभी के दुश्मन होते हैं, मगर हाजी गफूर साहब का कोई दुश्मन नहीं था.’’ मो. रऊफ ने बताया, ‘‘मेरी और भाई साहब की मुलाकात सिर्फ खाने की मेज पर होती थी. हम दोनों के पास एकदूसरे से मिलने, बातें करने या विभिन्न समस्याओं पर बहस करने की फुरसत नहीं थी.’’

लाइब्रेरी में एक बड़ी अलमारी भी थी, जिस के ऊपर दो गोताखोरों की मूर्तियां रखी थीं. उन दोनों ने बीच में एक संदूकची पकड़ रखी थी. वह कला का एक शानदार नमूना था. इंसपेक्टर अलीम की नजरें उस पर जम कर रह गई थीं. थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर अलीम ने पुन: बड़ी बारीकी से पूरी लाइब्रेरी का निरीक्षण किया और लाश की जेबों की तलाशी ली.

एक जेब में से चाबियों का एक गुच्छा मिला. इंसपेक्टर ने सब से छोटी चाबी का चुनाव कर के उसे मूर्तियों वाली संदूकची की सूराख में दाखिल किया. जब उस ने चाबी घुमाई तो संदूकची का ताला खुलने की आवाज आई. संदूकची के अंदर साफसुथरे कागजों और दस्तावेजों को बड़े सलीके से रखा गया था.

इंसपेक्टर अलीम ने रफीक खान से पूछा, ‘‘ये क्या है मिस्टर सेकेट्री?’’

‘‘हाजी साहब हर देश के करेंसी नोट भी इस में रखते थे. एक हजार से पांच हजार डौलर मूल्य के. लेकिन अब वे नोट दिखाई नहीं दे रहे हैं. सिर्फ कागजात हैं.’’ रफीक खान ने संदूकची को गौर से देखते हुए कहा.

फिर इंसपेक्टर अलीम ने दोबारा पूरे 25 मिनट तक उस कमरे की एक कोने से दूसरे कोने तक तलाशी ली. उस ने देखा कि बिजली का पंखा अभी तक चल रहा था. उस ने किताबों की शेल्फ भी देखी.

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इंसपेक्टर अलीम ने कई किताबें निकालीं और वापस उसी जगह रख दीं. उस ने लाइब्रेरी के कोने में रखा ग्लोब भी घुमाया. वहां एक सुंदर रद्दी की टोकरी भी पड़ी थी, जो बहुत बड़ी थी. उस टोकरी में लकड़ी का एक डंडा पड़ा हुआ था जिस पर मुगरी की तरह का सिर भी था. ऐसे डंडे पोलो खेलने वाले लोग बैट के रूप में प्रयोग करते हैं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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