
पिछले अंकों में आप ने पढ़ा:
शादीशुदा रूपमती का सूरजभान के साथ चक्कर चल रहा था. सूरजभान भी शादीशुदा था और उस ने रूपमती के पति अवध को शराब की लत लगा दी थी. जब सूरजभान की पत्नी अनुपमा को इस नाजायज संबंध का पता चला, तो उस ने अपने नौकर दारा से रूपमती को सबक सिखाने के लिए कहा.
अब पढ़िए आगे…
एक रात रूपमती ने सूरजभान से कहा, ‘‘मेरा मरद तो अब किसी काम का है नहीं. अब तो वह हमें साथ देख लेने के बाद भी चुप रहता है. वह तो शराब का गुलाम हो चुका है. उस ने शराब पीने में खेतीबारी बेच दी. तुम ने उसे जुए की लत में ऐसा उलझाया कि यह घर तक गिरवी रखवा दिया. कम से कम अब तो मुझे औलाद का सुख मिलना चाहिए. आज की रात मुझे तुम से औलाद का बीज चाहिए.’’
सूरजभान ने रूपमती की बंजर जमीन में अपने बीज डाल दिए.
सुबह सूरजभान के निकलते ही दारा शराब की बोतल ले कर वहां पहुंचा और उस ने अवध को जगाया.
‘‘तुम्हारा मालिक तो चला गया,’’ अवध ने दरवाजा खोल कर कहा.
‘‘हां, लेकिन उन्होंने तुम्हारे लिए शराब भेजी है,’’ दारा ने शराब की बोतल थमाते हुए कहा.
‘‘अरे वाह, क्या बात है तुम्हारे मालिक की,’’ कह कर अवध ने बोतल मुंह से लगा ली.
थोड़ी ही देर में शराब में मिला जहर असर दिखाने लगा. अवध को जलन से भयंकर पीड़ा होने लगी. वह कसमसाने लगा, लेकिन ज्यादा नशे के चलते उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी. वह उसी हालत में तड़पता रहा और हमेशा के लिए सो गया.
दारा ने सोचा तो यह था कि रूपमती के पति की हत्या के आरोप में सूरजभान जेल चले जाएंगे और वह मालकिन के शरीर का मालिक बनेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
दरअसल, रूपमती ने दारा को शराब की बोतल देते हुए देख लिया था. वह समझ चुकी थी कि सूरजभान का खानदान उस के पीछे लग चुका है और उस की जान को भी खतरा हो सकता है.
रूपमती ने सूरजभान को बताया, तो उस ने कहा, ‘‘तुम यहां से कहीं दूर चली जाओ और अपनी नई जिंदगी शुरू करो. मैं तुम्हें हर महीने रुपए भेजता रहूंगा. अगर तुम्हारी कोई औलाद हुई, तो उस की जिम्मेदारी भी मेरी. लेकिन ध्यान रखना कि भूल कर भी मेरा नाम नहीं आना चाहिए.’’
अपनी जान के डर से रूपमती को दूर शहर में जाना पड़ा. जाने से पहले वह अपने पति के कातिल दारा को जेल भिजवा चुकी थी. सूरजभान या उस की पत्नी अनुपमा ने उसे बचाने की कोई कोशिश नहीं की थी.
वजह, चुनाव होने वाले थे. वे दारा से मिलने या उसे बचाने की कोशिश में जनता के साथसाथ विपक्ष को भी कोई होहल्ला मचाने का मौका नहीं देना चाहते थे.
इस के बाद सूरजभान की जिंदगी में न जाने कितनी रूपमती आई होंगी. अब वह राजनीति का उभरता सितारा था. अपने पिता की विरासत को गांव की सरपंची से निकाल कर वह लोकसभा तक में कामयाबी के झंडे गाड़ चुका था. उस के काम से खुश हो कर पार्टी ने उसे मंत्री पद भी दे दिया था.
इतना लंबा सफर तय करने में कितने लोग मारे गए, कितनी बेईमानियां, कितने घोटाले, कितने दंगेफसाद, कितने झूठ, कितने पाप करने पड़े, खुद सूरजभान को भी याद नहीं.
आज सूरजभान 70 साल का बूढ़ा हो चुका था. उसे याद रहा तो सिर्फ इतना कि एक रूपमती थी. एक अवध था. वह पत्नी अनुपमा को एक बार मुख्यमंत्री के बिस्तर पर भी भेज चुका था.
राजनीति का ताज पहनने के लिए सूरजभान ने अपनी पत्नी को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया था. उस का बेटा विदेश में बस चुका था.
सूरजभान को यह भी याद था कि विधानपरिषद में मंत्री चुने जाने के बाद दूसरी बार जब वह मंत्री चुना गया था, तब वह अनुपमा के पास गया था. तब उस ने वहां दारा को देखा था. दारा ने उस के पैर छुए थे.
सूरजभान ने अनुपमा से पूछा था कि दारा यहां कैसे? तो उस ने जवाब दिया था, ‘‘मेरे कहने पर ही इस ने अवध की हत्या की थी, तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं इसे पनाह दूं.
सूरजभान कुछ नहीं बोला. वह फिर कभी अनुपमा से मिलने नहीं गया. रही सीढ़ी की बात, तो वह जानता था कि राजनीति में ऊपर उठने के लिए चाहे हजारों को सीढ़ी बना कर इस्तेमाल करो, लेकिन उतरने की जरूरत नहीं पड़ती.
सूरजभान का सब से मुश्किल भरा समय था मुमताज कांड. तब उस की काफी बदनामी हुई थी. हाईकमान ने यह कह कर फटकारा था कि या तो इस मामले को निबटाइए या इस्तीफा दे दीजिए. पार्टी की बदनामी हो रही है.
मुमताज की उम्र महज 23 साल थी. खूबसूरत, नाजुक अदाएं, लटकेझटकों से भरपूर. कालेज अध्यक्ष का चुनाव जीत कर वह खुश थी.
वह सूरजभान से मिलने आई. सूरजभान ने आशीर्वाद दिया, बधाई दी और अकेले में भोजन पर बुलाया.
भोजन के समय सूरजभान ने पूछा, ‘‘यह तो हुई तुम्हारी मेहनत की जीत. आगे बढ़ना है या बस यहीं तक?’’
‘‘नहीं सर, आगे बढ़ना है,’’
‘‘गौडफादर के बिना आगे बढ़ना मुश्किल है.’’
‘‘सर, अगर आप का आशीर्वाद रहा तो…’’
‘‘नगरनिगम के चुनाव के बाद महापौर, फिर विधायक और मंत्री पद भी.’’
‘‘क्या सर, मैं ये सब भी बन सकती हूं?’’ उस ने हैरानी से पूछा.
‘‘यह तो तुम पर है कि तुम कितना समझौता करती हो.’’
‘‘सर, मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’
‘‘कुछ भी नहीं, सबकुछ.’’
‘‘हां सर, सबकुछ.’’
‘‘तो कुछ कर के दिखाओ.’’
मुमताज समझ गई कि उसे क्या करना है. उसी रात भोजन के बाद वह सूरजभान के बिस्तर पर थी.
लेकिन, जब मुमताज को लगा कि उसे झूठे सपने दिखाए जा रहे हैं, तो उस ने शिकायत की, ‘‘मुझे विधायक का टिकट चाहिए.’’
सूरजभान ने समझाया, ‘‘देखो, तुम पहले नगरनिगम का चुनाव लड़ो. पार्टी में कई सीनियर नेता हैं. उन्हें टिकट न देने पर पार्टी में असंतोष फैलेगा. मुझे सब का ध्यान रखना पड़ता है. फिर हमें भी हाईकमान का फैसला मानना पड़ता है. सबकुछ मेरे हाथ में नहीं है.’’
वह चीख पड़ी, ‘‘सबकुछ आप के हाथ में ही है. आप चाहते ही नहीं कि मैं आगे बढूं. मैं ने अपना जिस्म आप को सौंप दिया. आप को अपना सबकुछ माना. आप पर भरोसा किया और आप मुझे धोखा दे रहे हैं.’’
‘‘इस में धोखे की क्या बात है? चाहो तो मैं तुम्हारे अकाउंट में 5-10 करोड़ रुपए जमा करवा दूं.’’
लेकिन, मुमताज को सत्ता की हवस थी. जब उस ने बारबार अपना शरीर देने की बात कही, तो सूरजभान को गुस्सा आ गया. वह चीख पड़ा, ‘‘क्या कीमत है तुम्हारे जिस्म की? मैं तुम्हें करोड़ों रुपए दे रहा हूं. बाजार में हजार भी नहीं मिलते. शादी कर के घर बसाती, तो 5-10 लाख रुपए दहेज देती, तब कहीं जा कर कोई मिडिल क्लास लड़का मिलता.’’
मुमताज ने सूरजभान की नाराजगी देख कर कहा, ‘‘मैं ने आप की रासलीला को कैमरे में कैद कर लिया है. मैं आप का राजनीतिक कैरियर तो तबाह करूंगी ही, दूसरी पार्टी से पैसे और चुनाव का टिकट भी लूंगी.’’
बस, फिर क्या था. दूसरे दिन ही मुमताज की लाश मिली. खूब हल्ला हुआ. सूरजभान पर सीबीआई का शिकंजा कसा. खूब थूथू हुई. उस के खिलाफ कोई सुबूत था नहीं, इसलिए वह बाइज्जत बरी हो गया.
एक और बात सूरजभान की यादों में बनी रही. जब वह पार्टी की एक महिला मंत्री, जिस की उम्र तकरीबन 40 साल रही होगी, के साथ अकेले डिनर पर था. उस ने पूछा था. ‘‘आप यहां तक कैसे पहुंचीं?’’
महिला मंत्री ने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया था, ‘‘औरत के लिए तो एक ही रास्ता रहता है. मैं जवान थी. खूबसूरत थी. पार्टी हाईकमान के बैडरूम से सफर शुरू किया और धीरेधीरे उन की जरूरत बन गई. उन की सारी कमजोरियां समझ लीं. वे मुझ पर निर्भर हो गए. लेकिन हां, कभी उन पर हावी होने की कोशिश नहीं की.
‘‘धीरेधीरे उन की नजरों में मैं चढ़ गई. एक चुनाव जीतने में उन की मदद ली, बाकी अपनी मेहनत.
‘‘हां, अब मैं जब चाहे अपनी पसंद के मर्द को बिस्तर तक लाती हूं. सब ताकत का, सत्ता का खेल है.’’
अब सूरजभान राजनीति का चाणक्य कहलाता था. वह राज्य सरकार से ले कर केंद्र सरकार में मंत्री पदों पर रह चुका था. जब उस की पार्टी की सरकार नहीं बनी, तब भी वह हजारों वोटों से चुनाव जीत कर विपक्ष का ताकतवर नेता होता था, लेकिन अब उस की उम्र ढल रही थी. नए नेता उभर कर आ रहे थे.
ऐसे में सूरजभान के पास संन्यास लेने के अलावा कोई चारा नहीं था. फिर भी पार्टी का वरिष्ठ नेता होने के चलते पार्टी उसे राष्ट्रपति का पद देने के लिए विचार कर रही थी.
तभी रूपमती ने नया धमाका किया. यह धमाका सूरजभान के लिए बड़ा सिरदर्द था. वह जानता था कि रूपमती एक चालाक औरत है. उस ने अपनी जवानी में अच्छेअच्छों को घायल किया था और बुढ़ापे में उस ने अपनी औलाद को ढाल बना कर इस्तेमाल किया.
वैसे, रूपमती के पास कहने को बहुतकुछ था. उस के पति की हत्या, सूरजभान के साथ उस के नाजायज संबंध वगैरह.
जब सूरजभान पहली बार मंत्री बना था, तो रूपमती उस से मिलने आई थी. उस ने तब डरते हुए कहा था, ‘‘अब आप के पास पैसा और ताकत दोनों हैं. आप मुझे कभी भी मरवा सकते हैं. मैं आज के बाद आप से कभी नहीं मिलूंगी. आप मुझे 5 करोड़ रुपए दे दीजिए, हर महीने का झंझट खत्म. आप का बेटा बड़ा हो रहा है. मैं शादी कर के कहीं ओर बस जाऊंगी.’’
सूरजभान ने भी सोचा कि चलो, पीछा छूट जाएगा. इस के बाद वह कभी नहीं आई.
आज जबकि पार्टी सूरजभान का नाम राष्ट्रपति पद के लिए तय कर चुकी थी, ऐसे में रूपमती का आरोप था कि उस के बेटे सुरेश का पिता सूरजभान है और वह उसे अपना बेटा स्वीकार करे.
इस में रूपमती का क्या फायदा हो सकता था? विरोधी पार्टी द्वारा मोटी रकम? क्या कोई राजनीतिक पद पाने की इच्छा? जब मीडिया में बातें होने लगीं, तो सूरजभान ने कहा, ‘‘मैं इस औरत को जानता तक नहीं. यह औरत झूठ बोल रही है.’’
रूपमती ने भी मीडिया को बताया, ‘‘इस से मेरे पुराने संबंध थे. गांव की राजनीति शुरू करने से पहले.’’
सूरजभान ने बयान दिया, ‘‘यह उस के पति का बच्चा होगा. मेरा कैसे हो सकता है?’’
‘‘नहीं, यह बच्चा सूरजभान का ही है,’’ रूपमती ने जवाब दिया.
‘‘इतने दिनों बाद सुध कैसे आई?’’
‘‘बेटे को उस का हक दिलाने के लिए.’’
मामला कोर्ट में चला गया. अनुपमा ने भी पति सूरजभान का पक्ष लिया. उन का बेटा विदेश में था. उसे इन सब बातों की खबर थी, लेकिन वह क्या कहता?
अनुपमा से पूछने पर उस ने कहा, ‘‘मेरे पति देवता हैं. उन्हें बदनाम करने की साजिश की जा रही है, ताकि वे राष्ट्रपति पद के दावेदार न रहें.’’
जब कोर्ट ने डीएनए टैस्ट कराने का आदेश दिया, तो सूरजभान समझ गया कि पुराने पाप सामने आ रहे हैं.
इतनी ऊंचाई पर पहुंचने के लिए पाप की जो सीढि़यां लगाई गई थीं, आज वही सीढि़यां ऊंचाई से उतार फेंकने के लिए कोई दूसरा लगा रहा है.
सूरजभान ने सोचा, ‘जितना पाना था, पा चुका. अब तो जिंदगी की कुरबानी भी देनी पड़ी, तो दूंगा. डीएनए टैस्ट हो गया, तो सब साफ हो जाएगा. इस से बचना मुश्किल है, क्योंकि अदालत, मीडिया तक बात जा चुकी है. विपक्ष हंगामा कर रहा है.’
सूरजभान ने बहुत सोचा, फिर एक चिट्ठी लिखी :
‘रूपमती नाम की औरत को मैं निजी तौर पर नहीं जानता. इस के बुरे दिनों में मैं ने इस के पति की कई बार पैसे से मदद की थी. एक दिन यह मुझ से मिलने आई और कहने लगी कि राष्ट्रपति के चुनाव से हट जाओ या सौ करोड़ रुपए दो. अगर मैं राष्ट्रपति पद से हटता हूं, तो यह मेरी पार्टी की बेइज्जती होगी.
‘मैं ने जिंदगीभर देश की सेवा की है. सेवक के पास सौ करोड़ रुपए कहां से आएंगे? पार्टी और जनसेवा मेरी जिंदगी का मकसद रहे हैं. मैं तो पूरे देश की जनता को अपनी औलाद मानता हूं.
‘देश के डेढ़ सौ करोड़ लोग मेरे भाई, मेरे बेटे ही तो हैं, तो इस का बेटा भी मेरा हुआ. पर मैं ब्लैकमेल होने के लिए राजी नहीं हूं. मुझे डीएनए टैस्ट कराने से भी एतराज नहीं है, लेकिन विपक्ष इस समय कई राज्यों में है. उस के लिए डीएनए रिपोर्ट बदलवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. मेरे चलते पार्र्टी की इमेज मिट्टी में मिले, यह मैं बरदाश्त नहीं कर सकता.
‘रूपमती नाम की औरत झूठी है. यह विपक्ष की चाल है. मैं इस बुढ़ापे में तमाशा नहीं बनना चाहता. सो, जनहित, पार्टी हित और इस औरत द्वारा बारबार ब्लैकमेल किए जाने से दुखी हो कर अपनी जिंदगी को खत्म कर रहा हूं. जनता और पार्टी इस औरत को माफ कर दे. प्रशासन इस के खिलाफ कोई कदम न उठाए.’
दूसरे दिन सूरजभान जहर खा चुका था और रूपमती को पुलिस ने खुदकुशी के लिए मजबूर करने के आरोप में हिरासत में ले लिया.
पार्टी में शोक की लहर थी. जनता को अपने नेता के मरने का गहरा दुख हुआ. दाह संस्कार के बाद सूरजभान के बेटे को पार्टी प्रमुख ने महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी. बेटा अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए तैयार था. जनता के सामने साफ था कि नेता के बेटे को हर हाल में चुनाव में भारी वोटों से जिताना है. यही उस की अपने महान नेता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
सहानुभूति की इस लहर में सूरजभान का बेटा भारी वोटों से चुनाव जीता. सूरजभान के नाम पर शहर में मूर्तियां लगाई गईं.
राजनीति इसी को कहते हैं कि आदमी ठीक समय पर मरे, तो महान हो जाता है.
इस बार रूपमती नाकाम हो गई. उस की चालाकी इस दफा हार गई. क्यों न हो, राजनीतिबाजों से जीतना किसी के बस की बात नहीं. उन्हें तो केवल इस्तेमाल करना आता है. सूरजभान ने तो अपनी मौत तक को इस्तेमाल कर लिया था.
पिछले अंक में आप ने पढ़ा:
रूपमती बिस्तर पर अपने प्रेमी सूरजभान के साथ थी कि उस के पति अवध ने देख लिया. खुद को फंसती देख कर रूपमती ने सूरजभान पर इज्जत लूटने का इलजाम लगाया और अवध के सामने रोते हुए बताया कि सूरजभान उस के बेहूदा फोटो से उसे ब्लैकमेल कर रहा है.
अब पढ़िए आगे…
अवध चुप रहा, तो रूपमती ने फिर कहा ‘‘देखोजी, वह बहुत बड़ा आदमी है. तुम उसे कुछ कर दोगे, तो तुम्हें जेल हो जाएगी. फिर तो पूरा गांव मुझ अकेली के साथ न जाने क्याक्या करेगा. फिर तुम क्या करोगे? माफ करना सब से बड़ा धर्म है. तुम कल मेरे साथ चलना. वह फोटो भी देगा और माफी भी मांगेगा. खत्म करो बात.’’
अवध छोटा किसान था. उस में इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वह गांव के सरपंच के बेटे का कुछ नुकसान भी कर सके. पुलिस और कोर्टकचहरी के नाम से उस की जान सूखती थी.
अवध ने कहा, ‘‘ठीक है. अगर फोटो वापस कर के वह माफी मांग लेता है, तो हम उसे माफ कर देंगे. और हम कर भी क्या सकते हैं?’’
रूपमती अवध की तरफ से निश्चिंत हो गई. उस ने सूरजभान को भी समझा दिया था कि शांति से मामला हल हो जाए, इसी में तीनों की भलाई है.
रूपमती पति और प्रेमी को आमनेसामने कर के देखना चाहती थी कि क्या नतीजा होता है. अगर वे दोनों अपनी मर्दानगी के घमंड में एकदूसरे पर हमला करते हैं, तो उस के हिसाब से वह अपनी कहानी आगे बढ़ाने के लिए तैयार रखेगी. पति मरता है, तो कहानी यह होगी कि सूरजभान ने उस की इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की. पति ने विरोध किया, तो सूरजभान ने उस की हत्या कर दी. बाद में भले ही वह सूरजभान से बड़ी रकम ले कर कोर्ट में उस का बचाव कर दे.
अगर प्रेमी मरता है, तो सच है कि सूरजभान ने उस के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की. पति ने पत्नी की इज्जत बचाने के लिए बलात्कारी की हत्या कर दी. अपनी तरफ से रूपमती ने सब ठीकठाक करने की कोशिश की, बाकी किस के दिल में क्या छिपा है, वह तो समय ही बताएगा.
रूपमती, उस का पति अवध और सूरजभान आमनेसामने थे. सूरजभान ने माफी मांगते हुए फोटो लौटाया और कहा, ‘‘भैया, धन्य भाग्य आप के, जो आप को ऐसी चरित्रवान और पतिव्रता पत्नी मिली.’’
अवध ने भी कह दिया, ‘‘गलती सब से हो जाती है. तुम ने गलती मान ली. हम ने माफ किया.’’
रूपमती फोटो ले कर वापस आ गई. बिगड़ी बात संभल गई. मामला खत्म. रूपमती खुश हो गई. अब वह बहुत सावधानी से सूरजभान से मिलती थी.
वैसे, रूपमती और अवध अकेले रहते थे. रूपमती की एक ननद थी, जिस की शादी काफी दूर शहर में हो चुकी थी. उस के सासससुर बहुत पहले ही नहीं रहे थे. शादी के 8 साल बाद भी उस के कोई औलाद नहीं हुई. अवध मातापिता द्वारा छोड़ी खेतीबारी देखता था. इसी से उस की गुजरबसर चलती थी.
औलाद न होने का दोष तो औरत पर ही लगता है. रूपमती अपना इलाज करा चुकी थी. डाक्टरों ने उस में कोई कमी नहीं बताई थी. जब डाक्टर ने कहा कि अपने पति का भी चैकअप कराओ, तो अवध की मर्दानगी को ठेस पहुंची. उस का कहना था कि बच्चा न होना औरतों की कमी है. आदमी तो बीज डालता है. बीज में भी कहीं दोष होता है भला. औरत जमीन है. हां, जमीन बंजर हो सकती है.
अवध शराबी था. वह रूपमती को बहुत चाहता था, लेकिन कभीकभी शराब के नशे में वह उसे बांझ कह देता और वंश चलाने के लिए दूसरी शादी करने की बात भी कर देता था.
रूपमती को यह बात बहुत बुरी लगती थी कि जिस में उस का दोष नहीं है, उस की सजा उसे क्यों मिले? फिर देहाती औरतों की सोच भी वही. जब रूपमती उन के आगे अपना दुखड़ा रोती, तो एक दिन एक औरत ने कह दिया कि वंशहीन होने से अवध की शराब की लत बढ़ती जा रही है. इस से पहले कि वह नशा कर के सब खेतीबारी बेच दे, अच्छा है कि औलाद के लिए तुम कोई सहारा खोजो.
इसी खोज में रूपमती सूरजभान से जुड़ गई. सूरजभान ने संबंध तो बना लिया, पर यह कह कर डरा भी दिया कि अगर बच्चा हमारे ऊपर गया, तो पूरे गांव में यह बात छिपी नहीं रहेगी.
सूरजभान गांव के जमींदार का बेटा था. उस के मातापिता के पास बहुत सारे खेत थे. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी अनुपमा खूबसूरत थी. एक बच्चा भी
था. सासससुर ने अपनी बड़ी हवेली में एक हिस्सा बेटे और बहू को अलग से दे रखा था.
सूरजभान का बेटा गांव के ही स्कूल में चौथी क्लास में पढ़ता था. सूरजभान का एक नौकर था दारा. वह नौकर के साथसाथ सूरजभान का खास आदमी भी था. वह अखाड़े में कुश्ती लड़ता था.
6 फुट का नौकर दारा खेतीकिसानी से ले कर घरेलू कामकाज सब देखता था. उस का पूरा खर्च सूरजभान और उस का परिवार उठाता था.
सूरजभान के पिता ने हवेली के सब से बाहर का एक कमरा नौकर दारा को दे रखा था, ताकि जब चाहे जरूरत पर उसे घर के काम के लिए बुलाया जा सके. सूरजभान गांव में कहीं भी आताजाता, तो दारा को अपने साथ सिक्योरिटी गार्ड की तरह ले जाता.
बड़े आदमी का बेटा होने के चलते सूरजभान में कुछ बुराइयां भी थीं. मसलन, वह जुआ खेलता था, शराब पीता था वगैरह.
सूरजभान ने नौकर दारा को यह काम भी सौंपा था कि अवध जब बाहर जाए, तो वह उस का पीछा करे. अवध के लौटने से पहले की सूचना भी दे, ताकि अगर वह रूपमती के साथ हो, तो संभल जाए. इस तरह दारा को भी रूपमती और सूरजभान के संबंधों की खबर थी.
एक दिन सूरजभान ने रूपमती से पूछा, ‘‘तुम्हारे पति को काबू में करने का कोई तो हल होगा?’’
‘‘है क्यों नहीं.’’
‘‘तो बताओ?’’
‘‘शराब.’’
2 नशेबाज जिगरी दोस्त से भी बढ़ कर होते हैं और शराब की लत लगने पर शराबी कुछ भी कर सकता है.
‘‘मिल गया हल,’’ सूरजभान ने खुश होते हुए कहा.
‘‘लेकिन, वह तुम्हारे साथ क्यों शराब पीएगा?’’ रूपमती ने पूछा.
‘‘शराब की लत ऐसी है कि वह सब भूल कर न केवल मेरे साथ पी लेगा, बल्कि अपने घर भी ला कर पिलाएगा, खासकर जब मैं उसे पिलाऊंगा और पिलाता ही रहूंगा.’’
रूपमती को भला क्या एतराज हो सकता था. अगर ऐसा कोई रास्ता निकलता है, तो उसे मंजूर है, जिस में पति ही उस के प्रेमी को घर लाए.
शराब की जिस दुकान पर अवध जाता था, उसी पर सूरजभान ने भी जाना शुरू कर दिया. पहलेपहले तो अवध ने उसे घूर कर देखा, कोई बात नहीं की. सूरजभान के नमस्ते करने पर अवध ने बेरुखी दिखाई, लेकिन एक दिन ऐसा हुआ कि अवध के पास पैसे नहीं थे. शराब की लत के चलते वह शराब की दुकान पर पहुंच गया. शराब की बोतल लेने के बाद उस ने कहा, ‘‘मैं यहां हमेशा आता हूं, आज उधार दे दो.’’
शराब बेचने वाले ने कहा, ‘‘यह सरकारी दुकान है. यहां उधार नहीं मिल सकता.’’
इस बात पर अवध बिगड़ गया, तभी सूरजभान ने आ कर कहा, ‘‘भैया को शराब के लिए मना मत किया करो. पैसे मैं दिए देता हूं.’’
‘‘लेकिन, तुम पैसे क्यों दोगे?’’ अवध ने पूछा.
‘‘भाई माना है. एक गांव के जो हैं,’’ सूरजभान ने कहा.
शराब की तलब मिटाने के चलते अवध पिछला सब भूल कर सूरजभान को अपना सचमुच का भाई मानने लगा.
जब शराब का नशा हावी हो जाता कि अवध से चलते नहीं बनता, तो सूरजभान उसे घर छोड़ने जाने लगा.
एक दिन सूरजभान ने घर छोड़ा, तो नशे में अवध ने कहा, ‘‘हर बार बाहर से चले जाते हो. इसे अपना ही घर समझो. चलो, कुछ खा लेते हैं.’’
सूरजभान ने कहा, ‘‘भैया, घर पहुंचने में देर हो जाएगी. रात हो रही है, फिर कभी सही.’’
‘‘नहीं, रोज यही कहते हो. देर हो जाए तो यहीं रुक जाना. मोबाइल फोन से घर पर बता दो कि अपने दोस्त के यहां रुक गए हो…’’ फिर अवध ने रूपमती को आवाज दी, ‘‘कुछ बनाओ. मेरा दोस्त, मेरा भाई आया है.’’
रूपमती को तो मनचाही मुराद मिल गई. जिस प्रेमी से छिपछिप कर मिलना पड़ता था, उसे उस का पति घर ले कर आ रहा है. खापी कर अवध तो नशे में सोता, तो सीधा अगले दिन के 10-11 बजे ही उठता. इस बीच रूपमती और सूरजभान का मधुर मिलन हो जाता और सुबह जल्दी उठ कर वह अपने घर चला जाता.
सूरजभान की पत्नी अनुपमा गुस्से की आग में जल रही थी. उस का पति महीनों से रातरात भर गायब रहता था.
ससुर से शिकायत करने पर भी अनुपमा को यही जवाब मिला कि पतिपत्नी के बीच में हम क्या बोल सकते हैं. काम पर आतेजाते उस की नजर नौकर दारा पर पड़ती रहती. उस के कसे हुए शरीर, ऊंची कदकाठी, कसरती बदन को देख कर अनुपमा के बदन में चींटियां सी रेंगने लगतीं.
एक दिन अनुपमा ने दारा को बुला कर कहा, ‘‘तुम केवल मेरे पति के नौकर नहीं हो, बल्कि इस पूरे परिवार के भरोसेमंद हो. पूरे परिवार के प्रति तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’
‘‘जी मालकिन,’’ दारा ने सिर झुका कर कहा.
‘‘तो बताओ कि तुम्हारे मालिक कहां और किस के पास आतेजाते हैं? उन की रातें कहां गुजरती हैं? क्या तुम्हें अपनी छोटी मालकिन का जरा भी खयाल नहीं है?’’ अनुपमा ने अपनेपन की मिश्री घोलते हुए कहा.
‘‘मालकिन, अगर मालिक को पता चल गया कि मैं ने आप को उन के बारे में जानकारी दी है, तो वे मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे,’’ दारा ने अपनी मजबूरी जताई.
‘‘तुम निश्चिंत रहो. तुम्हारा नाम नहीं आएगा,’’ अनुपमा ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा, ‘‘इधर देखो. मैं भी औरत हूं. मेरी भी कुछ जरूरतें हैं.’’
दारा ने अपनी मालकिन को पहली बार ब्लाउज में देखा था. पेट से ले कर कमर तक बदन की दूधिया चमक से दारा का मन चकाचौंध हो रहा था. उस के शरीर में तनाव आने लगा.
‘‘सुनो दारा, मालिक वही जो मालिकन के साथ रहे. तुम भी मालिक बन सकते हो. लेकिन तुम्हें कुछ करना होगा,’’ अनुपमा ने अपने शरीर का जाल दारा पर फेंका.
‘‘आप का हुक्म सिरआंखों पर. आप जो कहेंगी, आज से दारा वही करेगा,’’ दारा ने कहा.
‘‘तो सुनो, उस कलमुंही का कुछ ऐसा इंतजाम करो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे,’’ अनुपमा ने कहा.
दारा के सामने मालकिन का दूधिया शरीर घूम रहा था. सब से पहले उस ने रूपमती के पति अवध को खत्म करने की योजना बनाई.
– क्रमश :
अचानक अवध वापस आ गया. रूपमती दरवाजा बंद करना भूल गई थी. वह बिस्तर पर अपने प्रेमी के साथ थी. वह रंगे हाथों पकड़ी गई थी. पलभर के लिए तो उसे लगा कि मौत का फरिश्ता सामने खड़ा है, लेकिन वह औरत ही क्या, जो चालबाज न हो. रूपमती चीखनेचिल्लाने लगी. प्रेमी के ऊपर से हट कर वह अपने कपड़े ले कर अवध की तरफ ऐसे दौड़ी मानो अवध की गैरहाजिरी में उस की पत्नी के साथ जबरदस्ती हो रही थी.
प्रेमी जान बचाने के लिए भागा और अवध अपनी पत्नी के साथ रेप करने वाले को मारने के लिए दौड़ा. जैसा रूपमती साबित करना चाहती थी, अवध को वैसा ही लगा. जब रूपमती ने देखा कि अवध कुल्हाड़ी उठा कर प्रेमी की तरफ दौड़ने को हुआ है, तो उस के अंदर की प्रेमिका ने प्रेमी को बचाने की सोची.
रूपमती ने अवध को रोकते हुए कहा, ‘‘मत जाओ उस के पीछे. आप की जान को खतरा हो सकता है. उस के पास तमंचा है. आप को कुछ हो गया, तो मेरा क्या होगा?’’ तमंचे का नाम सुन कर अवध रुक गया. वैसे भी वह गुस्से में दौड़ा था. कदकाठी में सामने वाला उस से दोगुना ताकतवर था और उस के पास तमंचा भी था.
रूपमती ने जल्दीजल्दी कपड़े पहने. खुद को उस ने संभाला, फिर अवध से लिपट कर कहने लगी, ‘‘अच्छा हुआ कि आप आ गए. आज अगर आप न आते, तो मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहती.’’ अवध अभी भी गुस्से में था. रूपमती उस के सीने से चिपटी हुई यह जानना चाहती थी कि वह क्या सोच रहा है? कहीं उसे उस पर शक तो नहीं हुआ है?
अवध ने कहा, ‘‘लेकिन, तुम तो उस के ऊपर थीं.’’ रूपमती घबरा गई. उसे इसी बात का डर था. लेकिन औरतें तो फरिश्तों को भी बेवकूफ बना सकती हैं, फिर उसे तो एक मर्द को, वह भी अपने पति को बेवकूफ बनाना था.
सब से पहले रूपमती ने रोना शुरू किया. औरत वही जो बातबात पर आंसू बहा सके, सिसकसिसक कर रो सके. उस के रोने से जो पिघल सके, उसी को पति कहते हैं. अवध पिघला भी. उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं ठीक समय पर आ गया और वह भाग गया. तुम्हारी इज्जत बच गई. अब रोने की क्या बात है?’’
‘‘आप मुझ पर शक तो नहीं कर रहे हैं?’’ रूपमती ने रोते हुए पूछा. ‘‘नहीं, मैं सिर्फ पूछ रहा हूं,’’ अवध ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
रूपमती समझ गई कि सिर पर हाथ फेरने का मतलब है अवध को उस पर यकीन है, लेकिन जो सीन अवध ने अपनी आंखों से देखा है, उसे झुठलाना है. पहले रूपमती ने सोचा कि कहे, ‘उस आदमी ने मुझे दबोच कर अपनी ताकत से जबरदस्ती करते हुए ऊपर किया, फिर वह मुझे नीचे करने वाला ही था कि आप आ गए.’
लेकिन जल्दी ही रूपमती ने सोचा कि अगर अवध ने ज्यादा पूछताछ की, तो वह कब तक अपने झूठ में पैबंद लगाती रहेगी. कब तक झूठ को झूठ से सिलती रहेगी. लिहाजा, उस ने रोतेसिसकते एक लंबी कहानी सुनानी शुरू की, ‘‘आज से 6 महीने पहले जब आप शहर में फसल बेचने गए थे, तब मैं कुएं से पानी लेने गई थी. दिन ढल चुका था. ‘‘मैं ने सोचा कि अंधेरे में अकेले जाना ठीक नहीं होगा, लेकिन तभी दरवाजा खुला होने से न जाने कैसे एक सूअर अंदर आ गया. मैं ने उसे भगाया और घर साफ करने के लिए घड़े का पानी डाल दिया. अब घर में एक बूंद पानी नहीं था.
‘‘मैं ने सोचा कि रात में पीने के लिए पानी की जरूरत पड़ सकती है. क्यों न एक घड़ा पानी ले आऊं. ‘‘मैं पानी लेने पनघट पहुंची. वहां पर उस समय कोई नहीं था. तभी वह
आ धमका. उस ने बताया कि मेरा नाम ठाकुर सूरजभान है और मैं गांव
के सरपंच का बेटा हूं. ‘‘वह मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा. उस ने मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे कपड़े उतार डाले. मैं दौड़ते हुए कुएं के पास पहुंच गई.
‘‘मैं ने रो कर कहा कि अगर मेरे साथ जबरदस्ती की, तो मैं कुएं में कूद कर अपनी जान दे दूंगी. उस ने डर कर कहा कि अरे, तुम तो पतिव्रता औरत हो. आज के जमाने में तुम जैसी सती औरतें भी हैं, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. ‘‘लेकिन तभी उस ने कैमरा निकाल कर मेरे फोटो खींच लिए और माफी मांग कर चला गया.
‘‘मैं डरी हुई थी. जान और इज्जत तो बच गई, पर फोटो के बारे में याद ही नहीं रहा. ‘‘दूसरे दिन मैं हिम्मत कर के उस के घर पहुंची और कहा कि तुम ने मेरे जो फोटो खींचे हैं, वे वापस कर दो, नहीं तो मैं बड़े ठाकुर और गांव वालों को बता दूंगी. थाने में रिपोर्ट लिखाऊंगी.
‘‘उस ने डरते हुए कहा कि मैं फोटो तुम्हें दे दूंगा, पर अभी तुम जाओ. वैसे भी चीखनेचिल्लाने से तुम्हारी ही बदनामी होगी और सब बिना कपड़ों की तुम्हारे फोटो देखेंगे, तो अच्छा नहीं लगेगा. मैं तुम्हारे पति की गैरहाजिरी में तुम्हें फोटो दे जाऊंगा. ‘‘आप 2 दिन की कह कर गए थे. मैं ने ही उसे खबर पहुंचाई कि मेरे पति घर पर नहीं हैं. फोटो ला कर दो.
‘‘सूरजभान फोटो ले कर आया, लेकिन मुझे अकेला देख उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस ने फिर मेरे कपड़े उतारने की कोशिश की और मुझे नीचे पटका. ‘‘मैं ने पूरी ताकत लगाई. खुद को छुड़ाने के चक्कर में मैं ने उसे धक्का दिया. वह नीचे हुआ और मैं उस के ऊपर आ गई. अभी मैं उठ कर भागने ही वाली थी कि आप आ गए…’’
रूपमती ने अवध की तरफ रोते हुए देखा. उसे लगा कि उस के ऊपर उठने वाले सवाल का जवाब अवध को मिल गया था और उस का निशाना बिलकुल सही था, क्योंकि अवध उस के सिर पर प्यार से दिलासा भरा हाथ फिरा रहा था. अवध ने कहा, ‘‘मुझे इस बात की खुशी है कि तुम ने पनघट पर अकेले बिना कपड़ों के हो कर भी जान पर खेल कर अपनी इज्जत बचाई और आज मैं आ गया. तुम्हारा दामन दागदार नहीं हुआ.’’
रूपमती ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘आप क्या सोचते हैं कि मैं उसे कामयाब होने देती? मैं ने नीचे तो गिरा ही दिया था बदमाश को. उस के बाद उठ कर कुल्हाड़ी से उस की गरदन काट देती. और अगर कहीं वह कामयाब हो जाता, तो तुम्हारी रूपमती खुदकुशी कर लेती.’’
‘‘तुम ने मुझे बताया नहीं. अकेले इतना सबकुछ सहती रही…’’ अवध ने रूपमती के माथे को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं बड़े ठाकुर, गांव वालों और पुलिस से बात करूंगा. तुम्हें डरने की जरा भी जरूरत नहीं है. जब तुम इतना सब कर सकती हो, तो मैं भी पति होने के नाते सूरजभान को सजा दिला सकता हूं. वे फोटो लाना मेरा काम है,’’ अवध ने कहा. ‘‘नहीं, ऐसा मत करना. मेरी बदनामी होगी. मैं जी नहीं पाऊंगी. आप के कुछ करने से पहले वह मेरे फोटो गांव वालों को दिखा कर मुझे बदनाम कर देगा.
‘‘पुलिस के पास जाने से क्या होगा? वह लेदे कर छूट जाएगा. इस से अच्छा तो यह है कि आप मुझे जहर ला कर दे दें. मैं मर जाऊं, फिर आप जो चाहे करें,’’ रूपमती रोतेरोते अवध के पैरों पर गिर पड़ी. ‘‘तो क्या मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं? कुछ न करूं?’’ अवध ने कहा, ‘‘तुम्हारी इज्जत, तुम्हारे फोटो लेने वाले को मैं यों ही छोड़ दूं?’’
‘‘मैं ने ऐसा कब कहा? लेकिन हमें चालाकी से काम लेना होगा. गुस्से में बात बिगड़ सकती है,’’ रूपमती ने अवध की आंखों में झांक कर कहा. ‘‘तो तुम्हीं कहो कि क्या किया जाए?’’ अवध ने हथियार डालने वाले अंदाज में पूछा.
‘‘आप सिर्फ अपनी रूपमती पर भरोसा बनाए रखिए. मुझ से उतना ही प्यार कीजिए, जितना करते आए हैं,’’ कह कर रूपमती अवध से लिपट गई. अवध ने भी उसे अपने सीने से लगा लिया. अगले दिन गांव के बाहर सुनसान हरेभरे खेत में सूरजभान और रूपमती एकदूसरे से लिपटे हुए थे.
सूरजभान ने कहा ‘‘तुम तो पूरी गिरगिट निकलीं.’’ ‘‘ऐसी हालत में और क्या करती? वह 2 दिन की कह कर गया था. मुझे क्या पता था कि वह अचानक आ जाएगा. तुम ने अंदर से कुंडी बंद करने का मौका भी नहीं दिया था…’’ रूपमती ने सूरजभान के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘मुझे कहानी बनानी पड़ी. तुम भागते हुए मेरे कुछ फोटो खींचो. कहानी के हिसाब से मुझे तुम से अपने वे फोटो हासिल करने हैं. तुम से फोटो ले कर मैं उसे दिखा कर फोटो फाड़ दूंगी, तभी मेरी कहानी पूरी होगी.’’
सूरजभान ने कैमरे से उस के कुछ फोटो लेते हुए कहा, ‘‘लेकिन आज नहीं मिल पाएंगे. 1-2 दिन लगेंगे.’’ ‘‘ठीक है, लेकिन सावधान रहना. फोटो मिलने के बाद वह मेरी इज्जत लूटने वाले के खिलाफ कुछ भी कर सकता है,’’ रूपमती ने हिदायत दी.
‘‘तुम चिंता मत करो. मैं निबट लूंगा,’’ सूरजभान ने कहा. रूपमती ने वापस जाते समय मन ही मन कहा, ‘मैं क्यों चिंता करूं. तुम मरो या वह मरे, मुझे क्या?
‘लेकिन हां, अवध को अचानक नहीं आना चाहिए था. उस के आने से मेरी मुश्किलें बढ़ गईं. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. सूरजभान को भी ध्यान रखना चाहिए था. इतनी जल्दबाजी ठीक नही. अब भुगतें दोनों. ‘मुझे तो दोनों चाहिए थे. मिल भी रहे थे, पर अब दोनों का आमनासामना हो गया है, तो कितना भी समझाओ, मानेंगे थोड़े ही.’
घर आने पर रूपमती ने अवध से कहा, ‘‘सूरजभान का कहना है कि मैं फोटो तुम्हारे पति को माफी मांग कर दूंगा. शराब के नशे में मुझ से गलती हो गई. इज्जत लूटने की कोशिश में कामयाब तो हुआ नहीं, सो चाहे वे जीजा बन कर माफ कर दें. मैं राखी बंधवाने को तैयार हूं. चाहे अपना छोटा भाई समझ कर भाई की पहली गलती को यह सोच कर माफ कर दें कि देवरभाभी के बीच मजाक चल रहा था.’’
लेखक- सुधीर शर्मा
भाग- 2
चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की चर्चा शुरू हुई, तो नवीन उत्तेजित लहजे में बोला, ‘‘चाचाजी, यह तो होना ही था.’’ रोजरोज की शराब और दौलत कमाने के जनून के चलते उन्हें दिल का दौरा कैसे न पड़ता?
‘‘और इस बीमार हालत में भी उन का घमंडी व्यवहार जरा भी नहीं बदला है. शिखा उन से मिलने पहुंची तो उसे डांट कर कमरे से बाहर निकाल दिया. उन के जैसा खुंदकी और अकड़ू इनसान शायद ही दूसरा हो.’’
‘‘बेटे, बड़ों की बातों का बुरा नहीं मानते और ऐसे कठिन समय में तो उन्हें अकेलापन मत महसूस होने दो. वह दिल का बुरा नहीं है,’’ मैं उन्हें देर तक ऐसी बातें समझाने के बाद जब वहां से उठा तो मन बड़ा भारी सा हो रहा था.
चोपड़ा ने यों तो नवीन को पूरी स्वतंत्रता से ऐश करने की छूट हमेशा दी, पर जब दोनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई तो बाप ने बेटे को दबा कर अपनी चलानी चाही थी.
जिस घटना ने नवीन के जीवन की दिशा को बदला, वह लगभग 3 साल पहले घटी थी.
उस दिन मेरे बेटे विवेक का जन्मदिन था. नवीन उसे नए मोबाइल फोन का उपहार देने के लिए अपने साथ बाजार ले गया.
वहां दौलत की अकड़ से बिगडे़ नवीन की 1 फोन पर नीयत खराब हो गई. विवेक के लिए फोन खरीदने के बाद जब दोनों बाहर निकलने के लिए आए तो शोरूम के सुरक्षा अधिकारी ने उसे रंगेहाथों पकड़ जेब से चोरी का मोबाइल बरामद कर लिया.
‘गलती से फोन जेब में रह गया है. मैं ऐसे 10 फोन खरीद सकता हूं. मुझे चोर कहने की तुम सब हिम्मत कैसे कर रहे हो,’ गुस्से से भरे नवीन ने ऐसा आक्रामक रुख अपनाया, पर वे लोग डरे नहीं.
ये भी पढ़ें- वो जलता है मुझ से: भाग 1
मामला तब ज्यादा गंभीर हो गया जब नवीन ने सुरक्षा अधिकारी पर तैश में आ कर हाथ छोड़ दिया.
उन लोगों ने पहले जम कर नवीन की पिटाई की और फिर पुलिस बुला ली. बीचबचाव करने का प्रयास कर रहे विवेक की कमीज भी इस हाथापाई में फट गई थी.
पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहीं पर चोपड़ा और मैं भी पहुंचे. मैं सारा मामला रफादफा करना चाहता था क्योंकि विवेक ने सारी सचाई मुझ से अकेले में बता दी थी, लेकिन चोपड़ा गुस्से से पागल हो रहा था. उस के मुंह से निकल रही गालियों व धमकियों के चलते मामला बिगड़ता जा रहा था.
उस शोरूम का मालिक भी रुतबेदार आदमी था. वह चोपड़ा की अमीरी से प्रभावित हुए बिना पुलिस केस बनाने पर तुल गया.
एक अच्छी बात यह थी कि थाने का इंचार्ज मुझे जानता था. उस के परिवार के लोग मेरे दवाखाने पर छोटीबड़ी बीमारियों का इलाज कराने आते थे.
उस की आंखों में मेरे लिए शर्मलिहाज के भाव न होते तो उस दिन बात बिगड़ती ही चली जाती. वह चोपड़ा जैसे घमंडी और बदतमीज इनसान को सही सबक सिखाने के लिए शोरूम के मालिक का साथ जरूर देता, पर मेरे कारण उस ने दोनों पक्षों को समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया.
हां, इतना उस ने जरूर किया कि उस के इशारे पर 2 सिपाहियों ने अकेले में नवीन की पिटाई जरूर की.
‘बाप की दौलत का तुझे ऐसा घमंड है कि पुलिस का खौफ भी तेरे मन से उठ गया है. आज चोरी की है, कल रेप और मर्डर करेगा. कम से कम इतना तो पुलिस की आवभगत का स्वाद इस बार चख जा कि कल को ज्यादा बड़ा अपराध करने से पहले तू दो बार जरूर सोचे.’
ये भी पढ़ें- मां, पराई हुई देहरी तेरी: भाग 1
मेरे बेटे की मौजूदगी में उन 2 पुलिस वालों ने नवीन के मन में पुलिस का डर पैदा करने के लिए उस की अच्छीखासी धुनाई की थी.
उस घटना के बाद नवीन एकाएक उदास और सुस्त सा हो गया था. हम सब उसे खूब समझाते, पर वह अपने पुराने रूप में नहीं लौट पाया था.
फिर एक दिन उस ने घोषणा की, ‘मैं एम.बी.ए. करने जा रहा हूं. मुझे प्रापर्टी डीलर नहीं बनना है.’
यह सुन कर चोपड़ा आगबबूला हो उठा और बोला, ‘क्या करेगा एम.बी.ए. कर के? 10-20 हजार की नौकरी?’
‘इज्जत से कमाए गए इतने रुपए भी जिंदगी चलाने को बहुत होते हैं.’
‘क्या मतलब है तेरा? क्या मैं डाका डालता हूं? धोखाधड़ी कर के दौलत कमा रहा हूं?’
‘मुझे आप के साथ काम नहीं करना है,’ यों जिद पकड़ कर नवीन ने अपने पिता की कोई दलील नहीं सुनी थी.
बाद में मुझ से अकेले में उस ने अपने दिल के भावों को बताया था, ‘चाचाजी, उस दिन थाने में पुलिस वालों के हाथों बेइज्जत होने से मुझे मेरे पिताजी की दौलत नहीं बचा पाई थी. एक प्रापर्टी डीलर का बेटा होने के कारण उलटे वे मुझे बदमाश ही मान बैठे थे और मुझ पर हाथ उठाने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हो रही थी.
‘दूसरी तरफ आप के बेटे विवेक के साथ उन्होंने न गालीगलौज की, न मारपीट. क्यों उस के साथ भिन्न व्यवहार किया गया? सिर्फ आप के अच्छे नाम और इज्जत ने उस की रक्षा की थी.
‘मैं जब भी उस दिन अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को याद करता हूं, तो मन शर्म व आत्मग्लानि से भर जाता है. मैं आगे इज्जत से जीना चाहता हूं…बिलकुल आप की तरह, चाचाजी.’
अब मैं उस से क्या कहता? उस के मन को बदलने की मैं ने कोशिश नहीं की. चोपड़ा ने उसे काफी डराया- धमकाया, पर नवीन ने एम.बी.ए. में प्रवेश ले ही लिया.
इन बापबेटे के बीच टकराव की स्थिति आगे भी बनी रही. नवीन बिलकुल बदल गया था. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने में उसे बिलकुल रुचि नहीं रही थी. किसी भी तरह से बस, दौलत कमाना उस के जीवन का लक्ष्य नहीं रहा था.
फिर उसे अपने साथ पढ़ने वाली शिखा से प्यार हो गया. वह शिखा से शादी करना चाहता है, यह बात सुन कर चोपड़ा बेहद नाराज हुआ था.
ये भी पढ़ें- लिव इन की चोट: भाग 2
‘अगर इस लड़के ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर शादी की तो मैं इस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी इसे मेरी दौलत की,’ ऐसी धमकियां सुन कर मैं काफी चिंतित हो उठा था.
दूसरी तरफ नवीन शिखा का ही जीवनसाथी बनना चाहता था. उस ने प्रेमविवाह करने का फैसला किया और पिता की दौलत को ठुकरा दिया.
नवीन और शिखा ने कोर्ट मैरिज की तो मेरी पत्नी और मैं उन की शादी के गवाह बने थे. इस बात से चोपड़ा हम दोनों से नाराज हो गया पर मैं क्या करता? जिस नवीन को मैं ने गोद में खिलाया था, उसे कठिन समय में बिलकुल अकेला छोड़ देने को मेरा दिल राजी नहीं हुआ था.
नवीन और शिखा दोनों नौकरी कर रहे थे. शिखा एक सुघड़ गृहिणी निकली. अपनी गृहस्थी वह बड़े सुचारु ढंग से चलाने लगी. चोपड़ा ने अपनी नाराजगी छोड़ कर उसे अपना लिया होता तो यह लड़की उस की कोठी में हंसीखुशी की बहार निश्चित ले आती.
दूसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें… हिजाब भाग-2
मुझे एक दोस्त की बेहद जरूरत थी. नयनिका से मिलतेमिलाते सालभर होने को था. बचपन का सूत्र कहूं या हम दोनों की सोच की समानता दोनों ही एकदूसरे की दोस्ती में गहरे उतर रहे थे.
मैं जिस वक्त उस के घर गई वह अपनी पढ़ाई की तैयारी में व्यस्त थी. नयनिका कमर्शियल पायलट के लाइसैंस के लिए तैयारी कर रही थी. हम दोनों उस के बगीचे में आ गए थे. रंगबिरंगे फूलों के बीच जब हम जा बैठे तो कुछ और करीबियां हमारे पास सिमट आईं. उस की आंखों में छिपा दर्द शायद मुझे अपना हाल सुनाने को बेताब था. शायद मैं भी. बरदाश्त की वह लकीर जब तक अंगारा नहीं बन जाती, हम उसे पार करना नहीं चाहतीं, हम अपने प्रियजनों के खिलाफ जल्दी कुछ बुरा कहना-सुनना भी नहीं चाहते.
मैं ने उस से पूछा, ‘‘उदास क्यों रहती हो हमेशा? तैयारी तो अच्छी चल रही न?’’
उस ने कहा, ‘‘कारण है, तभी तो उदास हूं… कमर्शियल पायलट बनने की कामयाबी मिल भी जाए तो हजारों रुपए लगेंगे इस की ट्रेनिंग में जाने को. बड़े भैया ने तो आदेश जारी कर दिया है कि बहुत हो गया, हवा में उड़ना… अब घरगृहस्थी में मन रमाओ.’’
‘‘हूं, दिक्कत तो है… फिर कर लो शादी.’’
‘‘क्यों, तुम मान रही हो वाकर से शादी और बुटीक की बात? वह तुम्हारे
हिसाब से, तुम्हारी मरजी से अलग है… अमेरिका में हर महीने लाखों कमाने वाले खूबसूरत इंजीनियर से शादी वैसे ही मेरी मंजिल नहीं. जो मैं बनना चाहती हूं, वह बनने न देना और सब की मरजी पर कुरबान हो जाना… यह इसलिए कि एक स्त्री की स्वतंत्रता मात्र उस के सिंदूर, कंगन और घूमनेफिरने के लिए दी गई छूट या रहने को मिली छत पर ही आ कर खत्म हो जाती है.’’
‘‘वाकई तुम प्लेन उड़ा लोगी,’’
मैं मुसकराई.
वह अब भी गंभीर थी. पूछा, ‘‘क्यों? अच्छेअच्छे उड़ जाएंगे, प्लेन क्या चीज है,’’ वह उदासी में भी मुसकरा पड़ी.
‘‘क्या करना चाहती हो आगे?’’
‘‘कमर्शियल पायलट का लाइसैंस मिल जाए तो मल्टीइंजिन ट्रैनिंग के लिए न्यूजीलैंड जाना चाहती हूं. पापा किसी तरह मान भी जाएं तो भैया यह नहीं होने देंगे.’’
‘‘क्यों, उन्हें इतनी भी क्या दिक्कत?’’
‘‘वे एक सामान्य इंजीनियर मैं कमर्शियल पायलट… एक स्त्री हो कर उन से ज्यादा डेयरिंग काम करूं… रिश्तेदारों और समाज में चर्चा का विषय बनूं? बड़ा भाई क्यों पायलट नहीं बन सका? आदि सवाल न उठ खड़े हों… दूसरी बात यह है कि अमेरिका में उन का दोस्त इंजीनियर है. अगर मैं उस दोस्त से शादी कर लूं तो वह अपनी पहचान से भैया को अमेरिका में अच्छी कंपनी में जौब दिलवाने में मदद करेगा. तीसरी बात यह है कि इन की बहन को मेरे भैया पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं, जो अभी अमेरिका में ही जौब कर रही है.’’
‘‘उफ, बड़ी टेढ़ी खीर है,’’ मैं बोल पड़ी.
‘‘सब सधे लोग हैं… पक्के व्यवसायी… मैं तो उस दोस्त को पसंद भी नहीं करती और न ही वह मुझे.’’
‘‘हम ही नहीं सीख पा रहे दुनियादारी.’’
‘‘सीखना पड़ेगा चिलमन… लोग हम जैसों के सिर पर पैर रख सीढि़यां चढ़ते रहेंगे… हम आंसुओं पर लंबीलंबी शायरियां लिख उन पन्नों को रूह की आग में जलाते जाएंगे.’’
‘‘तुम्हें मिलाऊंगी अर्क से… आने ही वाला है… शाम को उस के साथ मुझे डिनर पर जाना पड़ेगा… भैया का आदेश है,’’ नयनिका उदास सी बोली जा रही थी.
मैं अब यहां से निकलने की जल्दी में थी. मेरी मोहलत भी खत्म होने को आई थी.
‘ये सख्श कौन? अर्क साहब तो नहीं? फुरसत से बनाया है बनाने वाले ने,’ मैं मन ही मन अनायास सोचती चली गई.
अर्क ही थे महाशय. 5 फुट 10 इंच लंबे, गेहुंए रंग में निखरे… वाकई खूबसूरत नौजवान. उन्हें देखते मैं पहली बार छुईमुई सी हया बन गई… न जाने क्यों उन से नजरें मिलीं नहीं कि चिलमन खुद आंखों में शरमा कर पलकों के अंदर सिमट गई.
अर्क साहब मेरे चेहरे पर नजर रख खड़े हो गए. फिर नयनिका की ओर मुखाबित हुए, ‘‘ये नई मुहतरमा कौन?’’
‘‘चिलमन, मेरी बचपन की सहेली.’’
अर्क साहब ने हाथ मिलाने को मेरी ओर हाथ बढ़ाया. मैं ने हाथ तो मिलाया, पर फिर घर वालों की याद आते ही मैं असहज हो गई. मैं ने जोर दे कर कहा, ‘‘मैं चलूंगी.’’
नयनिका समझ रही थी, बोली, ‘‘हां, तुम निकलो.’’
अर्क मुझ पर छा गए थे. मैं नयनिका से मन ही मन माफी मांग रही थी, लेकिन इस अनजाने से एहसास को जाने क्यों अब रोक पाना संभव नहीं था मेरे लिए.
कुछ दिनों बाद नयनिका ने खुशखबरी सुनाई. उस की लड़ाई कामयाब हुई थी… उसे मल्टी इंजिन ट्रेनिंग के लिए राज्य सरकार के खर्चे पर न्यूजीलैंड भेजा जाना था.
इस खुशी में उस ने मुझे रात होटल में डिनर पर बुलाया.
उस की इस खबर ने मुझ में न सिर्फ उम्मीद की किरण जगाई, बल्कि काफी हिम्मत भी दे गई. मैं ने भी आरपार की लड़ाई में उतर जाने को मन बना लिया.
होटल में अर्क को देख मैं अवाक थी और नहीं भी.
हलकेफुलके खुशीभरी माहौल में नयनिका ने मुझ से कहा, ‘‘तुम दोनों को यहां साथ बुलाने का मेरा एक मकसद है. अर्क और तुम्हारी बातों से मैं समझने लगी हूं कि यकीनन तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो वरना अर्क माफी मांगते हुए तुम्हारे मोबाइल नंबर मुझ से न मांगते… चिलमन, अर्क जानते हैं मैं किस मिट्टी की बनी हूं… यह घरगृहस्थी का तामझाम मेरे बस का नहीं है… सब लोग एक ही सांचे में नहीं ढल सकते… मैं अभी न्यूजीलैंड चली जाऊंगी, फिर आते ही पायलट के काम में समर्पण. चिलमन तुम अर्क से आज ही अपने मन की बात कह दो.’’
ये भी पढ़ें- सौतेली भाग-2
अर्क खुशी से सुर्ख हो रहे थे. बोले, ‘‘अरे, ऐसा है क्या? मैं तो सोच रहा था कि मैं अकेला ही जी जला रहा हूं.’’
कुछ देर चुप रहने के बाद अर्क फिर बोले, ‘‘नयनिका के पास बड़े मकसद हैं.’’
मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘मेरे पास भी थे.’’
‘‘तो बताइए न मुझे.’’
नयनिका ने कहा, ‘‘जाओ उस कोने वाली टेबल पर और औपचारिकता छोड़ कर बातें कर लो.’’
अर्क ने पूरी सचाई के साथ मेरा हाथ थाम लिया था… विदेश जा कर मेरे कैरियर को नई ऊंचाई देने का मुझ से वादा किया.
इधर शादी के मामले में अर्क ने नयनिका के घर वालों का भी मोरचा संभाला.
अब थी मेरी बारी. अर्क का साथ मिल गया तो मुझे राह दिख गई.
घर से निकलते वक्त मन भारी जरूर था, लेकिन अब डर, बेचारगी की जंजीरों से अपने पैर छुड़ाने जरूरी हो गए थे.
कानपुर से दिल्ली की फ्लाइट पकड़ी हम ने. फिर वक्त से अमेरिकन एयरवेज में दाखिल हो गए.
साहिबा आपा को फोन से सूचना दे दी कि अर्क के साथ मैं अपनी नई जिंदगी शुरू करने अमेरिका जा रही हूं. वहां माइक्रोबायोलौजी ले कर काम करूंगी और अर्क को खुश रखूंगी.’’
साहिबा आपा जैसे आसमान से गिरी हों. हकला कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’
हमारी आजादी हिजाब हटनेभर से नहीं है आपा… हमारी आजादी में एक उड़ान होनी चाहिए.
आपा के फोन रख देने भर से हमारी आजादी की नई दास्तां शुरू हो गई थी.
ये भी पढ़ें- सोने की चिड़िया: भाग-1
जेहन में सवाल थे कि क्या क्या फायदा होता है अगर आप के घर लड़कियां शादी बाद घर से अकेले नहीं निकलें या क्या नुकसान हो जाता है अगर निकलें तो? क्या बीवी पर भरोसे की कमी है या मर्दजात पर…
खानदानी आबरू के नाम पर काले सायों से ढकी रहने वाली औरतों की इज्जत घर में कितनी महफूज है?
वाकर अली मेरे अब्बा की तरह ही कई सारे कानून मुझ पर थोप कर चला गया कि अगर राजी रहूं तो अब्बा उस से बात आगे बढ़ाएं.
अब्बा तो जैसे इस बंदे के गले में मुझे बांधने को बेताब हुए जा रहे थे. घर में 2 दिन से इस बात पर बहस छिड़ी थी कि आखिर मुझे उस आदमी से दिक्कत क्या है? एक जोरू को चाहिए क्या- अपना घरबार, दुकान इतना कमाऊ पति, गाड़ी, काम लेने को घर में 2-3 मददगार हमेशा हाजिर… क्या बताऊं, क्या नहीं चाहिए मुझे? मुझे तो ये सब चाहिए ही नहीं.
मैं ने सोचा एक बार साहिबा आपा से बात की जाए. दीदी हैं कुछ तो समझेंगी मुझे. अभी मैं सोच कर अपने बिस्तर से उठी ही थी कि साहिबा आपा मेरे कमरे का दरवाजा ठेल अंदर आ गईं. बिना किसी लागलपेट के मैं ने कहा, ‘‘आपा, मैं परेशान हूं आप से बात करने को…’’
बीच में टोक दिया आपा ने, ‘‘हम सब भी परेशान हैं… आखिर तू निकाह क्यों नहीं करना चाहती? वाकर अली किस लिहाज से बुरा है?’’
‘‘पर वही क्यों?’’
‘‘हां, वही क्योंकि वह हमारी जिन जरूरतों का खयाल रख रहा है उन का और कोई नहीं रखेगा.’’
मैं उत्सुक हो उठी थी, ‘‘क्या? कैसी मदद?’’
‘‘वह तुझे बुटीक खुलवा देगा, तू घर पर ही रह कर कारीगरों से काम करवा कर पैसा कमाएगी.’’
‘‘पर सिर्फ पैसा कमाना मेरा मकसद नहीं… मैं ने जो पढ़ा वह शौक से पढ़ा… उस डिगरी को बक्से में बंद ही रख दूं?’’
‘‘बड़ी जिद्दी है तू!’’
‘‘हां, हूं… अगर मैं कुछ काम करूंगी तो अपनी पसंद का वरना कुछ नहीं.’’
‘‘निकाह भी नहीं?’’
‘‘जब मुझे खुद कोई पसंद आएगा तब.’’
साहिबा आपा गुस्से में पैर पटकती चली गईं. मैं सोच में पड़ गई कि वाकर अली से ब्याह कराने का बस इतना ही मकसद है कि वह मुझे बुटीक खुलवा देगा. वह बुटीक न भी खुलवाए तो इन लोगों को क्या? बात कुछ हजम नहीं हो रही थी. मन बहुत उलझन में था.
बिस्तर पर करवटें बदलते मेरा ध्यान पुरानी बातों और पुराने दिनों पर चला गया.
अचानक नयनिका याद आ गई. फिर मैं उसे पुराने किसी दिन से मिलान करने की कोशिश करने लगी. अचानक जैसे घुप्प अंधेरे में रोशनी जल उठी…
अरे, यह तो 5वीं कक्षा तक साथ पढ़ी नयना लग रही है… हो न हो वही है… अलग सैक्शन में थी, लेकिन कई बार हम ने साथ खेल भी खेले. उस की दूसरी पक्की सहेलियां उसे नयना बुलाती थीं और इसीलिए हमें भी इसी नाम का पता था. वह मुझे बिलकुल भी नहीं समझ पाई थी. ठीक ही है…
16-17 साल पुरानी सूरत आसान नहीं था समझना. रात के 12 बजने को थे. सोचा उसे एक मैसेज भेज रखूं. अगर कहीं वह देख ले तो उस से बात करूं. संदेश उस ने कुछ ही देर में देख लिया और मुझे फोन किया.
बातों का सिलसिला शुरू हो कर हम ज्यों 5वीं क्लास तक पहुंचे हमारी घनिष्ठता गहरी होती गई. जल्दी मिलने का तय कर हम ने फोन रखा तो बहुत हद तक मैं शांत महसूस कर रही थी.
कुछ ही मुलाकातों में विचारों और भावनाओं के स्तर पर मैं खुद को नयनिका के करीब पा रही थी. वह सरल, सभ्य शालीन और कम बोलने वाली लड़की थी. बिना किसी ऊपरी पौलिश के एकदम सहज. उस के घर में पिता सरकारी अफसर थे और बड़ा भाई सिविल इंजीनियर. मां भी काफी पढ़ीलिखी महिला थीं, लेकिन घर की साजसंभाल में ही व्यस्त रहतीं.
नयनिका कानपुर आईआईटी से ऐरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिगरी हासिल कर के अब पायलट बनने की नई इबारत लिख रही थी.
इतनी दूर तक उस की जिंदगी भले ही समतल जमीन पर चलती दिख रही हो, लेकिन उस की जिंदगी की उठापटक से मैं भी दूर नहीं रह पा रही थी.
इधर मेरे घर पर अचानक अब्बा अब वाकर अली से निकाह के लिए जोर देने के साथसाथ बुटीक खोल लेने की बात मान लेने को ले कर मुझ से लड़ने लगे थे. साथ कभीकभार अम्मी भी बोल पड़तीं. हां, आपा सीधे तो कुछ नहीं कहतीं, लेकिन उन का मुझ से खफा रहना मैं साफ समझती थी. अब तो रियाद और शिगुफ्ता भी बुटीक की बात को ले कर मुझ से खफा रहने लगे थे. अलबत्ता निकाह की बात पर वे कुछ न कहते. मैं बड़ी हैरत में थी. दिनोदिन घर का माहौल कसैला होता जा रहा था. आखिर बात थी क्या? मुझे भी जानने की जिद ठन गई.
ये भी पढ़ें- सोने की चिड़िया: भाग-1
साहिबा आपा से पूछने की मैं सोच ही रही थी कि रात को किचन समेटते वक्त बगल के कमरे से अब्बा की किसी से बातचीत सुनाई पड़ी. अब्बा के शब्द धीरेधीरे हथौड़ा बन मेरे कानों में पड़ने लगे.
अच्छा, तो यह वाकर अली था फोन पर.
रियाद की प्राइवेट कंपनी में घाटा होने की वजह से उस के सिर पर छंटनी की तलवार लटक रही थी. इधर शिगुफ्ता को बुटीक का काम अच्छा आता था. रियाद और शिगुफ्ता के लिए एक विकल्प की तलाश थी. मुझ से बुटीक खुलवाना. लगे हाथ मेरे हाथ पीले हो जाएं… रियाद और शिगुफ्ता को मेरे नाम से बुटीक मिल जाए… मालिकाना हक रियाद और शिगुफ्ता का रहे, लेकिन मेरा नाम आगे कर के कामगारों से काम लेने का जिम्मा मेरा रहे. शिगुफ्ता को जब फुरसत मिले वह बुटीक जाए.
मैं रात को साहिबा आपा के पास जा बैठी… कहीं उन का मन मेरे लिए पसीजे. मगर वे लगीं उलटा मुझे समझाने, ‘‘वाकर तो अपनी खाला का बेटा है. गैर थोड़े ही है. पहली बीवी बेचारी मर गई थी… दूसरी भी तलाक के बाद चली गई… 38 का जवान जहान लड़का… क्यों न उस का घर बस जाए? शादी तो तुझे करनी ही है… कहीं तेरी शादी से मेरे बच्चों का जरा भला न हो जाए वह तुझे फूटी आंख नहीं सुहा रहा न?’’
‘‘अब आगे इन के बच्चे होंगे, हमारा घर छोटा पड़ेगा… इन का कारोबार जम जाए तो ये फ्लैट ले लें… यहां भी जगह बने. अब्बा फिर इस घर को बड़ा करवा कर किराए पर चढ़ाएं तो हमें भी कुछ आमदनी हो.’’
‘‘घर तोड़ेंगे क्या अब्बा… किस का कमरा?’’
‘‘किस का क्या बाहर वाला?’’
‘‘पर वह तो मेरा कमरा है?’’
‘‘तो तू कौन सी घर में रह जाएगी… वाकर के घर चली तो जाएगी ही न? जरा घर वालों का भी सोच चिलमन.’’
‘‘क्या मतलब? सुबह से ले कर रात तक सब की सेवा में लगी रहती हूं… और क्या सोचूं?’’
‘‘कमाल है… तुझे बिना बुरके के आनेजाने, घूमनेफिरने की आजादी दी गई है… और क्या चाहिए तुझे?’’
हताश हो कर मैं आपा के कमरे से अपने कमरे में बिस्तर पर आ कर लेट गई… सच मैं क्या चाहती हूं? क्या चाहना चाहिए मुझे? एक औरत को खुद के बारे में कभी सोचना नहीं है, यही सीख है परिवार और समाज की?
तीसरे भाग में पढ़िए क्या बंदिशों को तोड़ पाई चिलमन?
लेखक- सुधीर शर्मा
भाग- 3
चोपड़ा ने मेरे घर आना बंद कर दिया. कभी किसी समारोह में हमारा आमनासामना हो जाता तो वह बड़ा खिंचाखिंचा सा हो जाता. मैं संबंधों को सामान्य व सहज बनाने का प्रयास शुरू करता, तो वह कोई भी बहाना बना कर मेरे पास से हट जाता.
अब उसे दिल का दौरा पड़ गया था. शराब, सिगरेट, मानसिक तनाव व बेटेबहू के साथ मनमुटाव के चलते ऐसा हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.
उसे अपने व्यवहार व मानसिकता को बदलना चाहिए, कुछ ऐसा ही समझाने के लिए मैं अगले दिन दोपहर के वक्त उस से मिलने पहुंचा था.
उस दिन चोपड़ा मुझे थकाटूटा सा नजर आया, ‘‘यार अशोक, मुझे अपनी जिंदगी बेकार सी लगने लगी है. आज किसी चीज की कमी नहीं है मेरे पास, फिर भी जीने का उत्साह क्यों नहीं महसूस करता हूं मैं अपने अंदर?’’
उस का बोलने का अंदाज ऐसा था मानो मुझ से सहानुभूति प्राप्त करने का इच्छुक हो.
‘‘इस का कारण जानना चाहता है तो मेरी बात ध्यान से सुन, दोस्त. तेरी दौलत सुखसुविधाएं तो पैदा कर सकती है, पर उस से अकेलापन दूर नहीं हो सकता.
‘‘अपनों के साथ प्रेमपूर्वक रहने से अकेलापन दूर होता है, यार. अपने बहूबेटे के साथ प्रेमपूर्ण संबंध कायम कर लेगा तो जीने का उत्साह जरूर लौट आएगा. यही तेरी उदासी और अकेलेपन का टौनिक है,’’ मैं ने भावुक हो कर उसे समझाया.
ये भी पढ़ें- मां, पराई हुई देहरी तेरी: भाग 2
कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘दिलों पर लगे कुछ जख्म आसानी से नहीं भरते हैं, डाक्टर. शिखा के साथ मेरे संबंध शुरू से ही बिगड़ गए. अपने बेटे की आंखों में झांकता हूं तो वहां अपने लिए आदर या प्यार नजर नहीं आता. अपने किए की माफी मांगने को मेरा मन तैयार नहीं. हम बापबेटे में से कोई झुकने को तैयार नहीं तो संबंध सुधरेंगे कैसे?’’
उस रात उस के इस सवाल का जवाब मुझे सूझ गया था. वह समाधान मेरी पत्नी को भी पसंद आया था.
सप्ताह भर बाद चोपड़ा को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली तो मैं उसे अपने घर ले आया. सविता भाभी भी साथ में थीं.
‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी हफ्ते भर बाद है. मेरे साथ रह कर हमारा मार्गदर्शन कर, यार,’’ ऐसी इच्छा जाहिर कर मैं उसे अपने घर लाया था.
‘‘अरे, अपने बेटे की शादी का मेरे पास कोई अनुभव होता तो मार्गदर्शन करने वाली बात समझ में आती. अपने घर में दम घुटेगा, यह सोच कर शादीब्याह वाले घर में चल रहा हूं,’’ उस का निराश, उदास सा स्वर मेरे दिल को चीरता चला गया था.
नवीन और शिखा रोज ही हमारे घर आते. मेरी सलाह पर शिखा अपने ससुर के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करने लगी. वह उन्हें खाना खिलाती. उन के कमरे की साफसफाई कर देती. दवा देने की जिम्मेदारी भी उसी को दे दी गई थी.
चोपड़ा मुंह से तो कुछ नहीं कहता, पर अपनी बहू की ऐसी देखभाल से वह खुश था लेकिन नवीन और उस के बीच खिंचाव बरकरार रहा. दोनों औपचारिक बातों के अलावा कोई अन्य बात कर ही नहीं पाते थे.
शादी के दिन तक चोपड़ा का स्वास्थ्य काफी सुधर गया था. चेहरे पर चिंता, नाराजगी व बीमारी के बजाय खुशी और मुसकराहट के भाव झलकते.
वह बरात में भी शामिल हुआ. मेरे समधी ने उस के आराम के लिए अलग से एक कमरे में इंतजाम कर दिया था. फेरों के वक्त वह पंडाल में फिर आ गया था.
ये भी पढ़ें- वो जलता है मुझ से: भाग 2
हम दोनों की नजरें जब भी मिलतीं, तो एक उदास सी मुसकान चोपड़ा के चेहरे पर उभर आती. मैं उस के मनोभावों को समझ रहा था. अपने बेटे की शादी को इन सब रीतिरिवाजों के साथ न कर पाने का अफसोस उस का दिल इस वक्त जरूर महसूस कर रहा होगा.
बहू को विदा करा कर जब हम चले, तब चोपड़ा और मैं साथसाथ अगली कार में बैठे हुए थे. सविता भाभी, मेरी पत्नी, शिखा और नवीन पहले ही चले गए थे नई बहू का स्वागत करने के लिए.
हमारी कार जब चोपड़ा की कोठी के सामने रुकी तो वह बहुत जोर से चौंका था.
सारी कोठी रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी में जगमगा रही थी. जब चोपड़ा मेरी तरफ घूमा तो उस की आंखों में एक सवाल साफ चमक रहा था, ‘यह सब क्या है, डाक्टर?’
मैं ने उस का हाथ थाम कर उस के अनबुझे सवाल का जवाब मुसकराते हुए दिया, ‘‘तेरी कोठी में भी एक नई बहू का स्वागत होना चाहिए. अब उतर कर अपनी बहू का स्वागत कर और आशीर्वाद दे. रोनेधोने का काम हम दोनों यार बाद में अकेले में कर लेंगे.’’
चोपड़ा की आंखों में सचमुच आंसू झलक रहे थे. वह भरे गले से इतना ही कह सका, ‘‘डाक्टर, बहू को यहां ला कर तू ने मुझे हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया… थैंक यू… थैंक यू वेरी मच, मेरे भाई.’’
चोपड़ा में अचानक नई जान पड़ गई थी. उसे अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करने का मौका जो मिल गया था. बडे़ उत्साह से उस ने सारी काररवाई में हिस्सा लिया.
विवेक और नई दुलहन को आशीर्वाद देने के बाद अचानक ही चोपड़ा ने नवीन और शिखा को भी एक साथ अपनी छाती से लगाया और फिर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख कर रो पड़ा था.
ऐसे भावुक अवसर पर हर किसी की आंखों से आंसू बह निकले और इन के साथ हर तरह की शिकायतें, नाराजगी, दुख, तनाव और मनमुटाव का कूड़ा बह गया.
ये भी पढ़ें- मां, पराई हुई देहरी तेरी: भाग 1
‘‘तू ने सच कहा था डाक्टर कि रिश्तों के रंगबिरंगे फूल ही जिंदगी में हंसीखुशी और सुखशांति की सुगंध पैदा करते हैं, न कि रंगीन हीरों की जगमगाहट. आज मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मुझे एकसाथ 2 बहुओं का ससुर बनने का सुअवसर मिला है. थैंक यू, भाई,’’ चोपड़ा ने हाथ फैलाए तो मैं आगे बढ़ कर उस के गले लग गया.
मेरे दोस्त के इस हृदय परिवर्तन का वहां उपस्थित हर व्यक्ति ने तालियां बजा कर स्वागत किया.