लेखक – आरती लोहानी
निम्मी अब बेफिक्र थी कि उसे मदद मिल जाएगी और वह धनी सेठ की रपट लिखा सकेगी.
शाम को देवेंद्र उस के पास आया, तो निम्मी ने सारी बात बताई और मदद मांगी.
‘‘तुम बिलकुल मत घबराओ. मैं तुम्हारी हर संभव मदद करूंगा,‘‘ पुलिस वाले ने कहा.
चाय पी कर जब देवेंद्र वहां से जाने लगा, तो अचानक बहुत तेज आंधी और बारिश होने लगी. आसमान से बिजली ऐसे कड़क रही थी, मानो सबकुछ खत्म कर के ही मानेगी. अब तो देवेंद्र को वहीं रुकना पड़ा.
छत पर सूख रहे कपड़े उतारने लिए निम्मी भागी, तो उस की साड़ी ही उड़ने लगी. देवेंद्र ने उस से कहा, ‘‘मैं ले आता हूं कपडे़. आप रहने दीजिए.‘‘
बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी. इधर देवेंद्र अपने पर काबू नहीं कर पाया और जो उस की शिकायत सुनने आया था, उसी निम्मी को दबोच बैठा, जैसे शिकारी को कोई खास शिकार हाथ लगा हो.
लगभग आधे घंटे तक तेज की बारिश होती रही और पुलिस वाला एक लाचार को अपनी जिस्म की भूख मिटाने को मसलता रहा. उस के जाने के बाद निम्मी बदहवास सी इधरउधर घूम रही थी, पर घर की दीवारें भला उसे क्या सांत्वना देती.
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वह सोच रही थी कि क्या महिला का जिस्म इतना जरूरी है कि हर कोई अपना ईमान तक गिरवी रख दे. निम्मी मर जाना चाहती थी, पर जहर भी कहां से लाए इस तालाबंदी में. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
निम्मी ने अमर को फोन करना चाहा. जैसे ही उस ने मोबाइल हाथ में लिया, तो खुद से ही सवाल करने लगी, ‘क्या कहेगी निम्मी उस से… वह परदेश में क्या करेगा, कैसे मदद को आएगा?‘
उस के बाद निम्मी ने फोन रख दिया. उसे सहसा याद आया कि बीती सुबह एक ट्रेन यहां से गुजरी थी और उस ने सुना था कि श्रमिक ट्रेन इन दिनों चल रही है. उसे अब यही एक रास्ता दिखा. किसी तरह वह रात काट लेती है और तड़के उठ कर घर से चल देती है पास में ही पटरियों की ओर.
पौ फटने का समय था और निम्मी बदहवास सी जा रही थी. सामने से आता पुजारी उसे देख लेता है और उस का पीछा करता है.
पुजारी पीपल के पेड़ को जल दे कर आ रहा था. तभी वह देखता है कि निम्मी पटरी पर लेट गई और ट्रेन की आवाज उसे सुनाई दी.
पुजारी भाग कर उसे पटरी से खींच लेता है और समझाबुझा कर घर ले आता है.
‘‘ये क्या कर रही थीं तुम… क्या करोगी इस तरह मर कर. इतनी खूबसूरत हो तुम और मुझ जैसे यौवन के पुजारी पूरी उम्र तुम्हारी पूजा करने को तैयार हैं,‘‘ पुजारी उस से कहता है.
‘‘तो और क्या करूं इस जिस्म का… कैसे इसे संभालू,‘‘ कह कर निम्मी रोने लगती है.
‘‘जरूरत ही क्या है इसे सहेज कर रखने की… ऐसा सुंदर रूप तो आज तक नहीं देखा मैं ने,‘‘ मौका पा कर पुजारी उसे सांत्वना देने के बहाने से अपने समीप ले आता है. धीरेधीरे वह उस के नशे में डूब जाता है और उसे यह भी भान नहीं रहता कि वह उस की मदद को आया था.
इसी तरह एक पुजारी भी किसी न किसी वजह से वहां आनेजाने लगा. अब तो लगभग हर रोज कोई न कोई वहां आता ही था कि तालाबंदी खत्म होने का आदेश भी जारी हो गया.
अब अमर के आने की भी उम्मीद होने लगी. इधर निम्मी अमर की राह देख रही थी, उधर निम्मी के दीवाने दुखी हो रहे थे.
निम्मी की मजबूरी का खूब फायदा उठा चुके ये लोग अभी तृप्त नहीं हुए थे. अनूप तो सोचने लगा कि अमर घर आता ही नहीं तो अच्छा था, क्योंकि उसे निम्मी के शरीर की मादक खुशबू से अभी तक मन नहीं भरा था. उस के साथ बिताया हर पल उसे याद आ रहा था.
अनूप को निम्मी की मिन्नतें, रोना और याचना करना भी याद था. उस शाम जब निम्मी चीनी लेने घर से बाहर निकली, तो वह जबरन उस के साथ अंदर आ गया. निम्मी ने उस से घर से बाहर जाने को कहा, तो उस ने मना कर दिया.
निम्मी मदद के लिए चिल्लाने लगी, तो उस ने उस का मुंह बंद कर दरवाजे की अंदर से कुंडा लगा दी. निम्मी रोती रही, पर उस की मदद को भला कौन आता. पुलिस पर भरोसा भी कैसे करे. अनूप उसे अपनी हवस की आग में जला रहा था और वह रोए जा रही थी, तभी वहां से कश्यप मास्टर गुजर रहे थे, तो उन्होंने उस की चीख सुनी तो फौरन घर की ओर मुड़े.
‘‘क्या हुआ बेटी? क्यों चीख रही हो तुम? दरवाजा खोलो बेटी.‘‘
बेटी शब्द सुनते ही निम्मी को न जाने कैसी शक्ति आ गई और उस ने अनूप के बालों को खींच कर उस के अंग पर वार कर दिया.
अनूप दर्द से चीखने लगा और मौका पा कर निम्मी ने दरवाजा खोल दिया. सामने मास्टर कश्यप खड़े थे. उन्होंने अपना अंगोछा निम्मी को ओढ़ा दिया. इस बीच अनूप भाग गया.
‘‘रो मत बेटी,‘‘ मास्टर साहब उसे सांत्वना दे रहे थे. निम्मी रोतेरोते कब मास्टर साहब की गोद में ही सो गई. मास्टर साहब ने अपनी बेटी को बुला कर निम्मी की देखभाल करने को कहा और चले गए.
अगले दिन अमर को घर आया देख वह बहुत खुश थी. अमर ने देखा कि गेहूं गोदाम में भरे हुए हैं, तो उस ने पूछा, ‘‘निम्मी, ये गेहूं किस ने काटे?‘‘
निम्मी ने उत्तर देते हुए कहा ,‘‘पुजारी और धनी सेठ ने.‘‘
अमर समझ रहा था कि निम्मी कुछ अनमनी सी है और कुछ कहने की कोशिश कर रही है, पर कुछ कह नहीं पा रही.
कुछ ही दिन बीते थे कि अमर की तबीयत खराब हो गई. उसे लोगों की मदद से अस्पताल ले जाया गया, जहां उस के टेस्ट चल रहे थे… इधर निम्मी भी एक रोज चक्कर खा कर गिर पड़ी.
पड़ोस की मिसेस सुधा उसे अस्पताल ले गई, जहां डाक्टर ने तुरंत उसे दवा दे कर कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है… कुछ कमजोरी है… उधर, अमर के टेस्ट की रिपोर्ट आ चुकी थी. उसे डाक्टर ने एचआईवी पौजिटिव की तसदीक की, तो उस के तो जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई. उसे याद नहीं आ रहा था कि उस ने ऐसा क्या किया. उस ने कभी गलत रिश्ता तो किसी से बनाया भी न था.
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अमर सोचसोच कर परेशान था. वह जैसेतैसे घर आया, तो निम्मी की तबीयत और खराब हो रही थी. उस की शुगर भी बढ़ रही थी.
अमर ने उसे तुरंत दवा दी, तो थोड़ा आराम हुआ. इस तरह दिन बीत रहे थे. अमर निम्मी को कैसे बताए, यह सोच रहा था, उधर निम्मी परेशान थी कि अमर को कैसे बताए कि कैसे उस के जिस्म के टुकड़ेटुकड़े हुए.
अमर ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘निम्मी, तुम मुझ पर भरोसा करती हो न?‘‘
‘‘यह पूछने की जरूरत है अमर?‘‘
‘‘तो सुनो… मेरी रिपोर्ट एचआईवी पौजिटिव आई है,‘‘ अमर ने एक ही सांस में कह दिया, ‘‘पर, यकीन मानो कि मेरा किसी से कोई संबंध नहीं है. मुझे याद आ रहा है, जब पिछली बार मैं शहर काम से गया था, तो एक सैलून में मैं ने अपनी दाढ़ी बनवाई थी, क्योंकि मुझे मीटिंग को देर हो रही थी, इसलिए मैं ने ही नाई को जल्दी शेव करने को कहा… शायद, उस ने ब्लेड को बदला नहीं था.‘‘ गहरी सांस लेते हुए अमर ने कहा.
यह सुन कर निम्मी चुप थी. बस वह आंखों से आंसू बहाए जा रही थी. कुछ देर बाद सहसा उस के चेहरे पर एक जीत की जैसी मुसकान दौड़ गई.
अमर अपनी बीमारी के कारण ही अधमरा हुआ जा रहा था और निम्मी मुसकरा रही थी. वह बोली, ‘‘अभी चलो, मुझे भी यह टेस्ट कराना है.‘‘
‘‘कल तुम्हें भी बुलाया है डाक्टर ने,’’ अमर ने कहा.
पूरी रात दोनों के लिए काटनी मुश्किल हो रही थी. निम्मी ने भी अमर को सबकुछ सच बता दिया था. दोनों बस रोए जा रहे थे.
अगले दिन निम्मी का भी टेस्ट किया गया, तो वह भी एचआईवी पौजिटिव निकली. दुखी होने के बजाय निम्मी खुश थी. पर दोनों के लिए जीना आसान न था. दोनों अपनी मजबूरियों पर रो रहे थे. जैसेतैसे संभलते हुए दोनों घर आए और एकदूजे को दिलासा दे ही रहे थे कि अनूप, देवेंद्र, धनी सेठ, पुजारी सब निम्मी के घर आए और अमर की तबीयत पूछने लगे.
इन सब को निम्मी ने ही फोन कर के बुलाया था. पहले तो अमर को बहुत गुस्सा आ रहा था, पर जैसेतैसे संभल कर उस ने सब को निम्मी का साथ देने के लिए धन्यवाद दिया और निम्मी से चाय बनाने को कहा.
‘‘आप लोगों का मैं जितना भी धन्यवाद करूं कम ही होगा,‘‘ अमर ने कहा, तो धनी सेठ ने कहा, ‘‘इस में धन्यवाद कैसा अमर साहब… हम अगर एकदूसरे के काम नहीं आएंगे, तो और कौन आएगा?‘‘
‘‘जी, कह तो आप बिलकुल सही रहे हैं… पर आप तो हमारे दुखसुख के सचमुच भागीदार हैं. इतना ही नहीं, हमारी बीमारी के भी…‘‘ एक कुटिल हंसी के साथ अमर ने कहा.
‘‘हम कुछ समझे नहीं अमर… बीमारी के भागीदार कैसे?’’ सभी ने चौंकते हुए पूछा.
अमर ने रहस्य खोला, तो सब के सब सकपका कर रह गए और एकदूसरे का मुंह ताकने लगे.
पुजारी समेत वहां मौजूद सब के चेहरे पीले पड़ गए. उधर निम्मी और अमर चैन की सांस ले रहे एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे और कुदरत के इस अजब न्याय और अन्याय को समझने की कोशिश कर रहे थे.
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