केवल मुठ्ठी भर लोगों को मौका दे रहा हुनर हाट

लेखक- शाहनवाज

लौकडाउन और कोविड-19 के कारण, एक लम्बे समय के बाद दिल्ली के पीतमपुरा इलाके में जहां एक तरफ बड़ी बड़ी इमारतें और दूसरी तरफ दूरदर्शन की बड़ी सी गगनचुम्बी रेडियो और टीवी टावर के बीच मौजूद दिल्ली हाट में भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा हुनर हाट का आयोजन कर ही लिया गया. वैसे दिल्ली में यह हुनर हाट साल की शुरुआत (फरवरी)  में और अक्सर या तो इंडिया गेट के राजपथ पर लगा करता था या फिर प्रगति मैदान में.

हुनर हाट भारत के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा आयोजित मास्टर शिल्पकारों के पारंपरिक और उत्तम कौशल को प्रदर्शित करने और बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी मिशन बताया जाता है. हुनर हाट का लक्ष्य कारीगरों, शिल्पकारों और पारंपरिक खान-पान विशेषज्ञों को बाजार में निवेश और रोजगार के अवसर प्रदान करना है.

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लेकिन क्या सच में भारतीय शिल्पकारों और हस्तशिल्पियों के लिए देश भर के विभिन्न शहरों में लगने वाला हुनर हाट इन के लिए फायदे का सौदा होता है? क्या देश के दूर दराज़ वाले ग्रामीण इलाकों के शिल्पकारों और हस्तशिल्पियों को हुनर हाट मौका देता है? जो कलाकार अपने बनाए हुए सामान के साथ दिल्ली, मुंबई, इंदौर जैसे अन्य बड़े शहरों में आते हैं क्या उन के छोटे छोटे सपने इन बड़े बड़े शहरों में आ कर सच होते हैं?

इन्ही जैसे और भी महत्वपूर्ण सवालों का पता लगाने के लिए हमारी टीम ने पीतमपुरा दिल्ली हाट में लगे हुनर हाट में जा कर लोगों से बात की. हुनर हाट का आंखों देखी ब्यौरा और ग्राउंड रिपोर्ट कुछ इस प्रकार है.

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हुनर हाट: एक आदर्शवादी कल्पना

भारत सरकार की उस्ताद योजना (अपग्रेडिंग द स्किल्स एंड ट्रेनिंग इन ट्रेडिशनल आर्ट्स/क्राफ्ट्स फॉर डेवलपमेंट) के तहत हुनर हाट को स्थापित किया गया है. ये योजना राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार के साथ पारंपरिक कला/शिल्प के संबंधों को स्थापित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है. आसान शब्दों में कहें तो सरकार ने भारत के अल्पसंख्यक समुदाय के हस्तशिल्पियों और पारंपरिक दस्तकारों के हितों की रक्षा के लिए उस्ताद योजना शुरू की है. हुनर हाट इसी योजना के तहत एक अन्य प्रयास है जहां पर हस्तशिल्पी और पारंपरिक दस्तकार अपने द्वारा बनाए हुए उत्पादों को आम लोगों के सामने प्रदर्शनी के तौर पर लगाते हैं और उन्हें बेच कर वें आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहे हैं.

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सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में पारंपरिक कला और समुदाय से संबंधित हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास तथा प्रशिक्षण योजना उस्ताद योजना शुरू की है. इन कलाकारों की कुशलता को सही लोगों तक पहुंचाने के लिए और इन की द्वारा बनाए गए उत्पादों का उचित मूल्य उपलब्ध कराने के लिए उस्ताद योजना को देश के कुछ बड़े संस्थानों के साथ जोड़ा गया है, जिन में राष्‍ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्‍थान (एन.आई.एफ.टी.), राष्‍ट्रीय डिजाइन संस्‍थान (एन.आई.डी.) और भारतीय पैकेजिंग संस्‍थान (आई.आई.पी.) की सहायता ली जा रही है.

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यह सब सुन ने में कितना अच्छा लगता है लेकिन इस की हकीकत ग्राउंड लेवेल पर कुछ और ही है. इस बार हुनर हाट में स्टाल लगाने वाले शिल्पकारों से बातचीत, योजना की कुछ और ही तस्वीर बयान करती है.

हुनर हाट: क्या है हकीक़त?

भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे उस्ताद योजना के तहत हुनर हाट को हर साल देश के बड़े शहरों में आयोजित किया जाता है. वहां जा कर, पूरा दिल्ली हाट घूम कर हम ने देखा की वहां शिल्पकारों और दस्तकारों के करीब 100 या 120 के आस पास ही स्टाल्स लगे हुए हैं. यह देख कर सब से पहला सवाल तो यही उठता है की देश भर में क्या सिर्फ 120 ही दस्तकार हैं?

हर बार की तरह इस बार भी हुनर हाट में देश के बहुसंख्यक राज्यों से शिल्पकार और दस्तकार मौजूद थे. दिल्ली, राजस्थान, जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, नागालैंड, मणिपुर, झारखण्ड, और भी अन्य राज्य. हां लेकिन इस बार दक्षिण भारत के राज्यों के स्टाल नहीं लगे थे, जो की हर बार लगा करते थे. केरल, तमिलनाडु और कर्णाटक जैसे राज्यों के स्टाल्स इस बार हुनर हाट में नहीं दिखाई दिए.

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इस से पहले हुनर हाट में स्टाल्स की संख्या काफी बड़ी होती थी, लेकिन इस बार बहुत ही कम स्टाल्स देखने को मिले. शायद यही वजह है की अक्सर इंडिया गेट के राजपथ और कई बार प्रगति मैदान में लगने वाला हुनर हाट इस बार पीतमपुरा के छोटे से दिल्ली हाट में लगा. लेकिन इस की वजह कोविड के कारण लगाया जाने वाला लौकडाउन था जिस की वजह से जीवन भर अपनी कला को बेच कर अपना गुजारा करने वाले दूर दराज के शिल्पकारों को अपना परम्परागत काम छोड़ अन्य काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

बातचीत के दौरान हमारी बात मोनिका देवी जी से हुई. मोनिका झारखण्ड से हैं और कपड़ों के सुन्दर फूल बनाती हैं. इस के साथ साथ बैम्बू (बांस) पर भी वो कलाकारी करती हैं. केन एंड बैम्बू प्रोडक्ट्स के नाम से उन की स्टाल है. इस स्टाल का कोई भी शुल्क नहीं भरना होता. यह सरकार की तरफ से निःशुल्क है. उन्होंने बताया की उन के साथ  इस काम के लिए करीब 10 और परिवार जुड़े हुए हैं. परन्तु उन सब की तरफ से मोनिका जी यहां अकेले अपने छोटे बच्चे के संग आईं हैं. वे यहां पर सिर्फ अपना सामान बेचने आईं हैं. लेकिन खाली पड़े हुनर हाट में उन की यह उम्मीद अधूरी ही है.

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उन्होंने बात ही बात में बताया कि इस बार का हुनर हाट उन के जीवन का पहला हाट है, इस के बाद वें कभी इस तरह के आयोजन का हिस्सा नहीं बनेंगी. मोनिका जी ने बताया की एक तो पहले से ही उन की और उन के साथ काम करने वाले परिवारों की हालत बेहद खस्ता है, और लॉकडाउन के बाद गांव में सभी के आर्थिक हालात बहुत ही दयनीय हो चुकी है.

उन्होंने बताया कि दिल्ली में इस हाट में आने के लिए उन के पास किसी बड़े बाबू का कॉल आया था, और उन्हें यह भी बोला था कि दिल्ली में जाने के बाद जितना भी खर्चा होगा, वहां से वापिस आने पर वो सब वापिस मिल जाएगा. लेकिन सवाल तो यह था की दिल्ली जाने के लिए शुरूआती खर्चा तो खुद की जेब से ही देना था. आखिर वो कहां से आता. तो मोनिका जी ने अपने साथ काम करने वाले 10 परिवारों से पैसे उधार लिए, ताकि वो यहां आ कर अपना क्राफ्ट बेच सकें.

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इस हाट की शुरुआत से मोनिका जी ने सिर्फ 1500-2000 रूपए की कमाई की है. आलतू फालतू के खर्चे से बचने के लिए मोनिका जी रात 10 बजे (हाट के बंद होने का समय) के बाद अपने छोटे बच्चे के संग अपने स्टाल में ही रात गुजारती है. खाना खाने के लिए दिल्ली हाट के बाहर रस्ते के कोने की तरफ एक कुलचे वाला रेडी लगाता है, वो अपने बच्चे के संग वही जाती है. क्योंकि हुनर हाट के अन्दर मिलने वाला खाना बेहद महंगा है जो शायद मोनिका जी अफोर्ड नहीं कर सकती हैं. बेहद कठिन परिस्थितियों से गुजर कर मोनिका जी बस किसी तरह से आखरी के कुछ दिन और काट लेना चाहती है.

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ये तो थी मोनिका जी की कहानी. लेकिन हुनर हाट में सब की हालत मोनिका जी जैसी नहीं हैं. हाट में अन्य शिल्पकारों से जब हम ने बात कि तो हम ने पाया की मामला कुछ और ही है. हम ने बात की उत्तर प्रदेश, मोरादाबाद से आने वाले रहमत अली से. ब्रास पेंटिंग एंड वाल हैंगिंग के नाम से इन की स्टाल है. रहमत पीतल पर काम करने वाले शिल्पकार हैं और जब से हुनर हाट की शुरुआत हुई है तब से ही वें अपना स्टाल हर साल और हर बड़े शहर में लगाते हैं.

बातचीत के दौरान रहमत ने बताया की उन की इस शिल्पकारी के पीछे कुल 25-30 परिवार जुड़े हुए है, जो की उन के लिए काम करते हैं. उन्होंने बताया की उन के पिता पहले के जमाने में खुद ही इस शिल्पकारी का काम किया करते थे लेकिन समय के साथ साथ रहमत ने अपने पिता जी का काम खुद संभाल लिया और अपने नीचे बाकि लोगों को जोड़ कर उन से काम करवाने लगे. रहमत ने बताया की उन्हें इस काम से और हुनर हाट के ऐसे आयोजनों से अच्छा ख़ासा मुनाफा हो जाता है. उन्होंने बताया की पिछले साल इंडिया गेट पर लगने वाले हुनर हाट में उन्होंने इतना पैसा कमा लिया था कि लॉकडाउन के इतने कठिन दिनों में उन्हें किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा.

मुजीबुर रहमान, 22 साल के युवा हैं. मणिपुर के इम्फाल में रहते हैं. मणिपुर ट्रेडिशनल ड्रेसेस के नाम से उन की स्टाल है. उन का परिवार कपड़े पर पुरानी ट्रेडिशनल मशीनों के द्वारा मणिपुरी प्रिंट में छपाई करता है. मुजीबुर कई साल पहले ही दिल्ली में पढ़ाई के उद्देश्य से आ चुके थे. अभी वो दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी कॉलेज में पढाई करते हैं और इस के कभी फुल टाइम तो कभी पार्ट टाइम काम कर गुजारा करते हैं.

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उन्होंने बताया की कपड़े पर मणिपुरी प्रिंट करने का ये काम सिर्फ अकेला उन का परिवार ही करता है. वक्त के साथ साथ इस काम से अब उन के परिवार का भरोसा खत्म होता जा रहा है. क्योंकि उन के उत्पादों की मेकिंग कौस्ट ही इतनी जा जाती है की पूरी तरह से बन कर तैयार होने के बाद उस की कीमत थोड़ी और बढ़ जाती है. उन के स्टाल पर सब से कम कीमत की चीज फदी (गमछा) है जिस की कीमत सिर्फ 150 से शुरू है. और सब से ज्यादा कीमत फने (मणिपुर में त्यौहार में पहने जाने वाला वस्त्र) का है जिस की कीमत 4000 रूपए तक है.

हुनर हाट में ज्यादातर स्टाल लगाने वाले लोग मालिक ही है. बेशक से वो अपने आप को शिल्पकार कहते हो, कारीगर कहते हो, लेकिन सच्चाई तो यही है की उन्होंने अपने नीचे कई लोगों को काम पर रखा है. वो असली कारीगर और शिल्पकार इन के लिए काम करते हैं और कलाकार का दर्जा इन लोगों को मिल जाता है जो सिर्फ मालिक है. असली शिल्पकार न तो हमारे सामने आ पाते हैं और न ही उन की मेहनत का सही दाम उन्हें मिल पाता है.

वहां मौजूद कुछ स्टाल्स तो हम ने ऐसे भी देखें जिस में जिस के नाम से स्टाल आल्लोट किया गया है वह वहां मौजूद ही नही है, बल्कि स्टाल पर खड़े हो कर सामान बेचने के लिए 2 मजदूरों को और रखा हुआ है.

शिल्पकारों और दस्तकारो की स्थिति बेहद ख़राब

यदि हम भारत में सब से ज्यादा परेशान हालत में रहने वाले लोगों के बारे में विचार करेंगे तो शिल्पकारों और दस्तकारों का नाम उन में हमेशा से शामिल रहेगा. यह साफ़ कर देना जरुरी है की यहां पर किसी क्राफ्ट कंपनी की बात नहीं हो रही है बल्कि असली शिल्पकारो की हो बात हो रही है, जो खुद अपने हाथों से उत्पादों का निर्माण करता है. अगर आप किसी कंपनी की बात करेंगे तो जरुर आप को उन का मुनाफा होता हुआ नजर आ जाएगा, लेकिन जब व्यक्तिगत शिल्पकारों की बात होगी तो उन की हालत हमेशा से ही ख़राब ही रही है.

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2017 में वस्त्र राज्य मंत्री अजय टम्टा ने एसोचैम के एक इवेंट में कहा कि ‘भारतीय कपड़ा और हस्तशिल्प उद्योग कृषि के बाद सबसे बड़ा रोजगार जनरेटर है’. इस से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पुरे भारत में 7 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं, जिस में बड़ी संख्या में महिलाएं और समाज के कमजोर वर्ग के लोग शामिल हैं. ये उद्योग सामान्य रूप से ग्रामीण समुदायों और विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत हैं.

बेशक से सरकार ने शिल्पकारों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए हुनर हाट जैसी व्यवस्था का आयोजन करवा दिया है, लेकिन क्या सच में हुनरमंद लोग इस व्यवस्था का फायदा वें उठा पा रहे हैं? हुनर हाट में मौजूद कुछ लोगों को यदि छोड़ दिया जाए (मोनिका जी और मुजीबुर रहमान जी) तो बहुसंख्यक लोगों को देख कर ये कही से नहीं लगता है की वें देश की महिला शिल्पकारों तक और कमजोर वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हों. वहां मौजूद ज्यादातर स्टाल वाले मालिक हैं जिन्होंने सिर्फ पैसा लगाने का काम किया है और मालिक तो कोई भी हो सकता है, चाहे किसी को शिल्पकारी आती हो चाहे न आती हो.

सिर्फ यही नहीं हुनर हाट इन्ही कुछ कारणों की वजह से भारत के शहरी इलाकों में रहने वाले मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग का अड्डा बन कर रह गया है. अब जाहिर सी बात है हुनर हाट में मिलने वाले सामान, जिन की कीमत उत्पाद की तुलना में ज्यादा ही होती है, ऐसे में वो सब कौन खरीद ही पाएगा. आम लोग जो की मजदुर वर्ग या फिर निम्न मध्यम वर्ग का होगा वो तो सिर्फ घुमने के उद्देश्य से ही वहां जा पाएगा. न की कोई सामान खरीदने के उद्देश्य से.

ठीक ऐसा ही हाल हमें खान पान की जगह पर भी देखने को मिली. अगर पूरी जगह में सब से सस्ता कुछ खाने के लिए था तो वो बस एक समोसा. जो की सिर्फ एक स्टाल पर मिल रहा था और उस की कीमत भी 30 रूपए थी. कुल्हड़ वाली स्पेशल चाय 60 रूपए की. और नार्मल वाली चाय 50 की. अब भला कोई नार्मल सी चाय के लिए 50 रूपए क्यों देना चाहेगा. और कही पर भी कोई भी ट्रेडिशनल खान पान, या फिर विभिन्न राज्यों के प्रसिद्ध खान पान दिखाई नहीं दिए. सिर्फ बिरयानी, कोरमा, पनीर, नान, चाय, चाऊमीन, स्प्रिंग रोल इत्यादि जो आम जगहों पर भी मिल ही जाया करती है वही सब ही यहां भी मिल रहा था. जिन की कीमत ऐसी की जिन्हें कुछ लोग ही अफ्फोर्ड कर पाए.

इन शोर्ट अगर हुनर हाट की अब बात की जाए तो कही से भी हुनर हाट हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. न तो सरकार के इस आयोजन से समाज के बहुसंख्यक हिस्से को कोई लाभ मिल रहा है और न ही ये समाज में आम लोगों के दिमाग में शिल्पकार की कला को बसा पा रहा है. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले वें लोग जो खुद का और अपने परिवार का पेट भरने के लिए एक तरफ तो खेती करते हैं और दूसरी तरफ कुछ पैसे हाथ में आ सके इसीलिए अपनी कला को लोगों के बीच बेचते हैं, वें अपनी चीजो का दाम कभी भी इतना नहीं रखेंगे की कोई उन्हें खरीद ही न सके. अगर ऐसे लोगों को हुनर हाट अपने पास जगह देता तो शायद समाज के बहुसंख्यक हिस्से को न सिर्फ अपना सामान बेच पाते बल्कि कीमत कम होने पर बहुसंख्यक लोग उन के द्वारा बनाया हुआ सामान खरीद भी पाते.

सोनू सूद को “भगवान” बना दिया! धन्य है भारत देश

चढ़ते सूरज को यहां नमस्कार करने वालों की कमी नहीं, फिर चाहे बाद में वहां गिद्द ही क्यों नहीं मंडलाने लगे. ऐसा ही अजूबा अब फिल्म दुनिया में खलनायक के रूप में मशहूर और स्थापित हो चुके सोनू सूद के मामले में देखने को मिल रहा है.उन्हें भगवान का दर्जा देकर मंदिर बना दिया गया है. और पूजा का ढकोसला चल रहा है. यही नहीं मीडिया भी इसे लताड़ने की जगह महत्व दे रही है. सवाल है क्या हमारे यहां वैसे ही देवताओं की कमी है? या फिर यह कहे कि जितने भी देवता हैं कुछ इसी तरह धीरे-धीरे लोकमान्य होते चले गए हैं! आइए! आज इस महत्वपूर्ण ढोंग और अंधविश्वास के मसले पर विस्तार से चर्चा करते हैं-

कोरोना लॉकडाउन के समय मजदूरों और जरूरतमंदों के लिए सहायक बनकर सामने आए सोनू सूद की अब गरीबों के भगवान बन चुके हैं. तेलंगाना के गांव डुब्बा टांडा के लोगों ने 47 वर्षीय सोनू सूद के नाम पर एक मंदिर बनवाकर उसमें उनकी मूर्ति स्थापित की है. मजे की बात यह है कि श्रीमान सोनू की प्रतिमा सोनू की चिर परिचित पोशाक टी शर्ट पहने हुए है..!

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यह जानकारी मिल रही है की गांव के कुछ खब्तीयों ने इस मंदिर का सिद्दीपेट जिले के कुछ अधिकारियों की मदद से बनवाया है.मंदिर का लोकार्पण बीते रविवार को मूर्तिकार और स्थानीय लोगों की मौजूदगी में किया गया. और जैसा की नाटक होता है इस दौरान एक आरती भी गाई गई. ट्रेडिशनल ड्रेस में वहां की महिलाओं ने पारंपरिक गीत भी गाए.

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जिला परिषद के सदस्य गिरी कोंडेल का बयान सामने आया है वे कहते हैं कि सोनू सूद ने कोरोना के दौरान गरीब लोगों के लिए अच्छा काम किया है. वहीं, मंदिर निर्माण के योजनाकार संगठन में शामिल रमेश कुमार का कथन है कि सोनू ने अच्छे कामों के चलते भगवान का दर्जा हासिल कर लिया है. तो अब कुल मिलाकर हमारे देश में कोई भी कभी भी किसी के भी कामों के गुण दोष को देखकर उसे भगवान का दर्जा दे सकता है.

सोनू का काबिले तारीफ कार्य

निसंदेह मार्च में जब कोरोना का प्रसार और लाक डाउन की स्थिति निर्मित हुई जब सारे बड़े-बड़े नामचीन लोग घरों में घुस गए सोनू सूद ने बहादुरी का परिचय दिया मानवता और इंसानियत का परिचय दिया.

कोरोना से पहले सोनू सूद एक औसत एक्टर के तौर पर जाने जाते थे जोकि फिल्मों में खलनायक के भूमिका में दिखाई देते हैं. हालांकि कोरोना के दौरान लॉकडाउन में अपनी उदारता और शालीनता से उन्होंने लोगों के दिलों में एक अलग ही जगह बनाई राजनेताओं जोकि समाज सेवा का चोला पहने जाते हैं की असलियत भी जगजाहिर कर दी. लॉकडाउन में सोनू सूद ने छत्तीसगढ़ , उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम और केरल के करीब 25 हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाया था.

इतना ही नहीं, सोनू ने इनके खाने-पीने का भी इंतजाम किया था. छत्तीसगढ़ में बस्तर की एक बालिका को घर बनवा करके भी दिया जो की चर्चा में रहा सोनू सूद ने मानवता का जो परिचय दिया है वह निसंदेह कम ही उदाहरण बन का सामने आता है. उन्होंने अपने काम से यह दिखा दिया कि वे एक संवेदनशील व्यक्ति हैं और प्रत्येक उस व्यक्ति की जिम्मेदारी कुछ ज्यादा हो जाती है जिसके पास धन दौलत होती है. शायद यही कारण है कि उस दरमियान सोनू सूद की मीडिया में भी खूब तारीफ हुई.

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संतोषी माता और नरेंद्र मोदी भी उदाहरण

देश में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि भगवान कैसे बनते हैं? और किस तरह रातों-रात लोग उनके नाम पर मंदिर बना देते हैं.

यही हमारे देश की खासियत है और यही कमी है. अंधविश्वास के फेर पढ़कर लोग किसी को भी महान गुरु, भगवान का दर्जा दे देते हैं और बाद में धोखा खाते हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का भी एक मंदिर सुर्खियों में रहा. इसी तरह 70 के दशक में जब जय संतोषी मां मूवी रिलीज हुई तो गांव गांव में संतोषी मां के मंदिर बन गए. संतोषी मां की भजन और पूजा सामग्री तैयार होकर बिकने लगी.

सफलता के लिए पढ़ना जरूरी

लेखक-   धीरज कुमार

समय बहुत कीमती होता है. जो समय को भांप गया, सफल हो गया. समय विद्यार्थी जीवन में सफल होने का मौका हरेक को देता है.

रिचा साइंस की स्टूडैंट थी. जब उस का एडमिशन अच्छे कालेज मे हुआ तो वह लगभग रोज ही कालेज जाया करती थी. कालेज में उस की ढेर सारी फ्रैंड्स बन गई थीं. वह रोज नई ड्रैस पहन कर कालेज जाती थी. सहेलियों के साथ वह तरहतरह के वीडियोज बनाती थी, फोटोशूट करती थी, दोस्तों के साथ सैल्फी लेती थी और उन्हें एकदूसरे को शेयर करती  थी. कालेज से घर आते हुए जितने भी रैस्टोरैंट व होटल थे, सभी में वह अलगअलग दिन दोस्तों के साथ डिशेज का स्वाद लेती थी.

परीक्षा में अच्छे मार्क्स के लिए ट्यूशन भी पढ़ रही थी. ट्यूशन से आने के बाद कौपीकिताब एक तरफ रख कर आराम करती थी. इतना कुछ करने के बाद उस के पास एनर्जी नहीं बच पाती थी कि वह घर पर नियमित पढ़ाई कर सके. ट्यूशन व कालेज में पढ़ाई गई बातों को दोहराने का उसे समय नहीं मिल पाता था. थोड़ाबहुत खाली समय मिलने पर मोबाइल से गाने सुनती थी. कुछ समय अपने दोस्तों से मोबाइल पर चैटिंग करती थी. लगभग यही उस की प्रतिदिन की दिनचर्या थी.

चिंता का कारण

जैसे ही परीक्षा का समय आया. वह काफी चिंतित हो गई थी. पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी. वह टैंशन में रहने लगी थी. इसीलिए परीक्षा पास नहीं कर पाई. उस की पढ़ाई अधूरी रह गई थी. जब पढ़ने के दिन थे तो दोस्तों के साथ मौजमस्ती करती रही.  यही कारण था कि पढ़ाई में पिछड़ गई थी. सो, स्वाभाविक था कि परीक्षा में  अच्छे अंक नहीं आ पाएंगे. वह फेल हो चुकी थी.

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इस प्रकार वह 2 साल का कीमती समय बरबाद कर चुकी थी. उस की सारी दोस्त अगली कक्षा में जाने के लिए तैयार थीं. उस की कुछ दोस्त अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आगे की रणनीति बना रही थीं और उस पर काम कर रही थीं. जबकि, रिचा 2 साल व्यर्थ गए समय के बारे में अफसोस कर रही थी. कुछ दिन तो उस के अंदर इतनी हिम्मत नहीं बच पाई थी कि वह फिर से परीक्षा की तैयारी कर सके. लेकिन जब उस के मातापिता और गुरुजनों ने मार्गदर्शन किया तो वह अपनी गलती सुधारने को तैयार हो गई.

नकारात्मक सोच की उत्पत्ति

रिचा की तरह कम स्टूडैंट्स होते हैं जो असफल होने के बाद सफलता के लिए दोबारा मेहनत कर पाते हैं. कुछ स्टूडैंट्स होते हैं जो असफलता से निराश हो कर बीच में पढ़ाई छोड़ चुके होते हैं. कुछ ऐसे भी स्टूडैंट्स होते हैं जो असफलता से निराश हो कर आत्महत्या तक कर लेते हैं. जबकि, आत्महत्या करना किसी भी समस्या का निदान नहीं है.

समय के सदुपयोग के फायदे

12वीं क्लास में पढ़ने वाली श्रुति दिनरात घर पर पढ़ाई कर रही थी. स्कूल से आने के बाद वह नोट्स का घर पर प्रतिदिन रिवीजन करती थी. दिक्कत होने पर ट्यूशन में डिस्कस करती थी. उसे हर विषय में सैल्फ स्टडी के कारण सभी विषयों के कौन्सैप्ट्स क्लीयर रहते थे.

यही कारण था कि वह परीक्षा में 90 प्लस मार्क्स स्कोर कर पाई थी. वह सभी सब्जैक्ट्स को टाइम मैनेजमैंट के हिसाब से पढ़ती थी.

पढ़ाई के दौरान वह मोबाइल से दूर रहती थी. हां, मोबाइल से अपने कठिन विषयों के वीडियोज, स्पीच आदि जरूर सुनती थी और देखती थी. उस के दोस्तों की संख्या सीमित थी. वह उन्हीं दोस्तों से कनैक्ट रहती थी जिन से पढ़ाईलिखाई में मदद मिल सके. वह हंसते हुए बताती है, ‘‘मैं पढ़ाईलिखाई में रुचि नहीं रखने वाले दोस्तों से जल्द ही किनारा कर लेती हूं. मेरे मोबाइल में उन्हीं फ्रैंड्स के नंबर हैं जो पढ़ाईलिखाई में अच्छी हैं और जो मु?ो भी पढ़नेलिखने में मदद कर पाती हैं. फालतू लोगों के नंबर मैं ब्लौक कर देती हूं.’’

फालतू दोस्तों से नुकसान

एक बात तो स्पष्ट है कि पढ़ाईलिखाई के दौरान फालतू दोस्तों से बातें करना समय बरबाद करना ही है. कुछ पढ़ने वाले स्टूडैंट्स की ये शिकायतें जरूर रहती हैं कि पढ़ाईलिखाई के दौरान दोस्तों का जमावड़ा लक्ष्यप्राप्ति में बाधक होता है. पढ़ाईलिखाई के दौरान दोस्तों की संख्या सीमित होनी चाहिए. कुछ दोस्त पढ़ाईलिखाई के बजाय मौजमस्ती की ओर डायवर्ट करने की कोशिश करते रहते हैं, जिस से पढ़ाई में बाधा पहुंचती है.

अनियमित पढ़ाई से सफलता में देरी

बिहार के औरंगाबाद जिला निवासी सतीश कुमार का कहना है कि वे इंटर लैवल यानी एसएससी परीक्षा की तैयारी कई सालों से कर रहे हैं. लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है. उन का कहना है, ‘‘असफलता का मुख्य कारण है प्रतिदिन टाइम मैनेजमैंट के अनुसार पढ़ाई का अभ्यास नहीं कर पाना. मैं विगत 3 सालों से तैयारी कर रहा हूं. अपनी व्यक्तिगत परेशानियों के कारण पढ़ाईलिखाई नियमित नहीं कर पाता हूं. यही कारण है कि अभी तक मुझे सफलता नहीं मिल पाई है. किसी भी परीक्षा की तैयारी करते समय नियमित पढ़ाई करना जरूरी है. व्यक्तिगत परेशानियों में फंसे रह जाने के कारण पढ़ाईलिखाई बाधित हो जाती है, इसीलिए मुझे अभी तक सफलता नहीं मिली है.’’

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सफलता के लिए टाइम मैनेजमैंट जरूरी

यूपीएससी परीक्षा 2019 के टौपर, हरियाणा के सोनीपत जिले के तेवड़ी गांव के निवासी प्रदीप सिंह का कहना था कि वे सफलता के लिए पूरे सप्ताहभर का टाइम मैनेजमैंट तैयार करते थे. अगर किसी कारण किसी दिन तय की गई पढ़ाई पूरी नहीं कर पाता था तो अगले दिन उस को भी जरूर पूरा करता था. सप्ताह के अंत तक वे बनाए गए टारगेट को पूरा कर लेते थे. तभी उन्हें इतनी बड़ी सफलता मिली. उन्होंने इस सफलता के लिए नियमित पढ़ाई के महत्त्व को स्वीकार किया.

लक्ष्यप्राप्ति के लिए रोज पढ़ें

किसी भी परीक्षा में टाइम मैनेजमैंट का पूरा ध्यान रखना पड़ता है, इसलिए रोज पढ़ना जरूरी होता है. तभी सफलता की उम्मीद की जा सकती है. अगर आप प्रतिदिन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं तो सफलता की उम्मीद नहीं कर सकते. सफलता के लिए खुद के पैमाने पर स्टूडैंट्स खुद को तोल लेते हैं. जिस प्रकार से स्टूडैंट्स की तैयारी होती है, उस  के मुताबिक वे सफलता और असफलता का अनुमान खुद ही लगा लेते हैं.

सैल्फ स्टडी के फायदे

कंपीटिशन में सफलता के लिए लगातार अभ्यास की आवश्यकता होती है. नियमित अभ्यास से ही सफलता की उम्मीद की जा सकती है. कोचिंग क्लास में स्टूडैंट्स की प्रौब्लम्स को सौल्व किया  जाता है.

सो, वह सहायक हो सकता है, परंतु उसे सफलता की गारंटी नहीं कहा जा सकता. लेकिन अगर आप सैल्फ स्टडी लगातार कर रहे हैं, तो सफलता की उम्मीद कर सकते हैं.

नियमित पढ़ाई जरूरी

आप किसी प्रकार की पढ़ाई कर रहे हों- चाहे सामान्य डिग्री हासिल करना चाहते हों, किसी  कंपीटिशन की तैयारी कर रहे हों, कोई भाषा सीख रहे हों, कानून की पढ़ाई कर रहे हों, मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रहे हों, हर पढ़ाई में जरूरी है कि पढ़ाईलिखाई नियमित हो. नियमित पढ़ाई से ही सफलता हासिल होती है.

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पढ़ाईलिखाई में शौर्टकट नहीं

किसी प्रकार के भी कोर्स को पूरा करने के लिए प्रतिदिन पढ़ना जरूरी है. कोर्स की संरचना इस प्रकार से की जाती है कि नियमित पढ़ाई से ही कोर्स पूरा किया जा सकता है. कुछ लोग सफलता के लिए शौर्टकट फार्मूला अपनाने की नाकाम कोशिश करते हैं. जीवन के अन्य क्षेत्रों में शौर्टकट अपनाया जा सकता है किंतु पढ़ाईलिखाई में यह संभव नहीं है. शौर्टकट तरीके से सफलता हासिल नहीं की जा सकती है.

आज के विद्यार्थी प्रतियोगिता के युग में जी रहे हैं. किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता की तैयारी के लिए टफ कंपीटिशन से गुजरना पड़ता है. आज के कौंपिटिटिव एनवायरमैंट में अनियमित पढ़ाई से सफलता मिलना बहुत ही मुश्किल है. विद्यार्थियों को काफी सोचसम?ा कर और रणनीति बना कर तैयारी करने की जरूरत है. विद्यार्थियों को सफलताप्राप्ति के लिए अपना ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित करना पड़ता है. इसलिए अच्छी तैयारी के लिए अच्छी किताबें, कोचिंग सैंटर, गुरुजनों एवं मातापिता के मार्गदर्शन के साथसाथ नियमित पढ़ाई जरूरी है.

ऐसी सहेलियों से बच कर रहें

 लेखक-  धीरज कुमार

सलोनी कालेज में पढ़ती थी. वह पढ़नेलिखने में साधारण थी. कालेज में उस की कई सहेलियां बन चुकी थीं. कालेज कैंपस में भी वह अपनी सहेलियों से घिरी रहती थी.

कालेज आतेजाते 1-2 लड़कों से भी सलोनी की दोस्ती हो गई थी. समय मिलने पर वह उन लड़कों से भी बातें करती थी. उन के साथ पार्क और होटलों में घूमती थी. उस की सहेलियां यह सब देख कर जलनेभुनने लगी थीं.

सलोनी अपनी सहेलियों को सफाई दे चुकी थी कि उन लड़कों से सिर्फ दोस्ती है. उस की सहेलियां दिखावे के लिए मान गई थीं, लेकिन पीठ पीछे तरहतरह की बातें करती रहती थीं. धीरेधीरे सलोनी की सहेलियों से ये बातें उस के घर तक भी पहुंच गई थीं.

अभी जमाना इतना नहीं बदला था, इसलिए सलोनी के घर वालों ने भी उसे लड़कों से बातें करने से मना किया. जब वह नहीं मानी तो उस के कालेज जाने पर रोक लगा दी गई.

इस तरह सलोनी की पढ़ाई बीच में ही छूट गई. इसलिए वह इस तरह की बातों से काफी आहत हो गई थी. अब वह सोच रही थी कि काश, मैं इन लड़कियों से शुरू से ही दूरी बना कर रखती, तो यहां तक नौबत नहीं आती.

वहीं दूसरी तरफ रंजना कालेज में पढ़ती थी. उस के क्लास की कुछ लड़कियां उसे घमंडी कहती थीं. यही वजह थी कि उस की किसी लड़की से नहीं पटती थी. वह लड़कियों के साथ दोस्ती से बिदकती थी. वह रोज अकेले ही कालेज जाती थी. लेकिन उस के लड़के दोस्तों की तादाद बढ़ती ही जा रही थी. उस के लड़के दोस्त मौल घुमाते थे, होटल में खिलाते थे. कुछ दोस्त उस के मोबाइल में पैसे भी डलवा देते थे. कुछ दोस्त समयसमय पर गिफ्ट दिया करते थे. कुछ लड़के बाइक से उसे कालेज भी छोड़ देते थे.

इसीलिए वह कालेज जाती तो लेक्चर के बाद कालेज कैंपस में रुकती भी नहीं थी. अपने दोस्तों को अलगअलग जगहों पर मिलने के लिए समय दे रखती थी. उस के मोबाइल कान पर ही लगे रहते थे. जब मोबाइल पर बातें करती, कोई दोस्त पूछता, तुम कहां हो?

किसी भी दोस्त को सही पताठिकाना नहीं बताती. वह अगर होटल में होती, तो किसी सहेली के घर बताती. वह अपने यारदोस्तों के साथ होती, तो अपने रिश्तेदार के घर बताती.

रंजना को लड़कों को बेवकूफ बनाने में मजा आता था. वह खुद को काफी होशियार समझती थी. कुछ लड़कों से जिस्मानी संबंध भी बना चुकी थी. लेकिन पेट से न हो जाए, इस के लिए काफी सावधान रहती थी.

रंजना अपने महल्ले और घर के लोगों के बीच सीधीसादी बनी रहती थी. बाहर भले ही गुलछर्रे उड़ाती, मगर घर में अलग इमेज बना कर रखती थी.

उस का मानना है, जिंदगी के मजे लेने हैं तो दुनिया से असली रूप छुपा कर रखना जरूरी है, वरना लोगों की नजरें लगते देर नहीं लगती है.

रंजना का असली मकसद पढ़ाई करना नहीं, बल्कि जिंदगी के मजे लेना था, इसीलिए पढ़ाई कम करती थी. लेकिन जीवन का भरपूर आनंद उठा रही थी.

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सलोनी जैसी लड़कियां पढ़ाई के साथसाथ लड़कों से भी मेलजोल रखना चाहती हैं, लेकिन वे भूल जाती हैं कि आजकल की लड़कियों को खुद अगर जो चीजें नहीं मिलती हैं, तो दूसरों को देख कर वे जलनेभुनने लगती हैं, क्योंकि कुछ लड़कियों में जलन की आदत जन्मजात होती है. इस से वे पीठ पीछे तरहतरह की अफवाह फैलाने लगती हैं. उन अफवाहों से खुद का नुकसान तो नहीं होता है, लेकिन जिस के बारे में फैलाया जाता है, उस का नुकसान जरूर हो जाता है.

कोई भी मातापिता ऐसी बातों से परेशान हो जाते हैं, इसीलिए कुछ लोग आननफानन ही लड़की की पढ़ाई बंद करवा देते हैं. कुछ मातापिता अपनी लड़की को जल्दीजल्दी शादी तक करवा देते हैं.

आज कोई भी लड़कालड़कियों के साथ घूमताफिरता है, तो मातापिता को कोई परेशानी नहीं होती है. कभीकभी तो कुछ मातापिता गर्व का अनुभव भी करते हैं, लेकिन यही बात लड़की पर लागू नहीं होती है. लड़की के लिए आज भी समाज दोयम दर्जे की सोच रखता है. यही काम जब लड़की करती है, तो समाज तरहतरह की अफवाहें फैलाने लगता है. लड़की को चरित्रहीन तक कहा जाने लगता है.

लड़कियों के किरदार के बारे में झूठी बातें फैलाने में लड़कियां ही आगे रहती हैं, जबकि लड़के ऐसा कम ही कर पाते हैं, इसलिए लड़कियां सहेलियों से परहेज रखना उचित समझती हैं.

सहमति से सैक्स संबंध बनाने वाली लड़कियां सहेलियों से दूर रहने में ही अपनी भलाई सम?ाती हैं. कई बार सहेलियों के चलते उन्हें लेने के देने पड़ जाते हैं. कभीकभी उन की सहेलियां उन्हीं लड़कों पर डोरे डालने लगती हैं, जिन से इन का इश्क चल रहा होता है. ऐसे हालात में बौयफ्रैंड छिन जाने का भी डर बना रहता है.

कल तक लड़केलड़कियों के बीच जिस्मानी संबंध बनाना नैतिकता से जोड़ कर देखा जाता था, लेकिन आज नैतिकता की बातें पुरानी हो गई हैं. अब जीवन का उद्देश्य सिर्फ जिंदगी के मजे लेना रह गया है. अब लोग सम?ाने लगे हैं कि ये सब बातें दकियानूसी हैं, इसलिए विवाह के पहले जिस्मानी संबंध बनाना व अपनी मरजी से शादी के बाद दूसरों से संबंध रखना किसी अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता है, बल्कि अब यह सब आधुनिक युग की मांग बताई जाती है. लोग भागदौड़ की जिंदगी में हर कोई खुशियां तलाशने की कोशिश कर रहा है. उसी कोशिश का नतीजा है यह.

ऐसे ही एक लड़की थी नव्या. वह अपनी सहेली किरण के बौयफ्रैंड पर डोरे डाल रही थी. जब उस की सहेली को यह बात पता चली, तो वह सड़क पर ही ? झगड़ा करने लगी थी. वहां काफी भीड़ जमा हो गई. दोनों के झगड़े से लोगों को यह सम?ाते देर नहीं लगी कि यह लड़ाई एक ही बौयफ्रैंड को ले कर हो रही है. दोनों ‘तूतूमैंमैं’ करतेकरते हाथापाई पर आ गई थी, जिसे बीचबचाव करने के लिए कुछ लोगों को आना पड़ा था. दोनों एकदूसरे को खूब गंदीगंदी गालियां दे रही थीं. काफी समझाने के बाद दोनों अलग हुई थीं.

चांदनी एक बच्चे की मां थी. अपने महल्ले में ही एक आदमी से उस का इश्क चल रहा था. चांदनी अपने घर में सलीके से रहती थी. उस का पति उसे बहुत प्यार करता था. वह पति की हर बात मानती थी. लेकिन इश्क के मामले में उसे अपनेआप पर कंट्रोल नहीं था, इसलिए वह बहक जाती थी. वह अपने महल्ले में किसी भी औरत के पास नहीं बैठती थी. अपने काम से मतलब रखती थी.

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चांदनी का कहना है, ‘‘मैं कम से कम औरतों से मेलजोल रखती हूं. जितनी ज्यादा औरतों से संपर्क होगा, वे मेरे बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहेंगी. औरतों को कुछ बातें हजम नहीं होतीं. कभी गुप्त बातें निकल गईं, तो सार्वजनिक होते देर नहीं लगती है. फिर यही औरतें खापी कर रायता इधरउधर फैलाती रहेंगी. कभीकभी तो ये औरतें आपस में ? गड़ाफसाद भी करा देती हैं, इसलिए इन से दूर रहना ठीक रहता है. मैं अपने काम में बिजी रहती हूं.’’

साफ है कि ऐसी लड़कियों और औरतों से दूरी बना कर रखना ही फायदेमंद है, ताकि बेवजह के लफड़े से बचा जा सके. कभीकभी सहेलियों के चलते निजी जिंदगी में भी रुकावट आने लगाती है. कुछ लड़कियों और औरतों को दूसरों की जिंदगी में दखलअंदाजी करना ज्यादा ही रास आता है. वे अपनी तकलीफों से कम परेशान रहती हैं, बल्कि दूसरों की खुशियों से ज्यादा दुखी रहती हैं.

बैलगाड़ी में बैठ शादी करने चला एनआरआई फर्जी दूल्हा!

अगर शादी ब्याह के मामले में आंख में मूंद कर रिश्ता करेंगे तो आप धोखा खा जाएंगे. विदेश में ऊंचे पद पर ऊंची कमाई का माया जाल फैलाकर किस तरह लोगों को उनकी भावनाओं को आहत करने से लोग बाज नहीं आते. इसका सच आपको दिखाने के लिए आज हम ले चलते हैं. छत्तीसगढ़ के जिला राजनांदगांव. जहां एक युवक ने बड़े ही तामझाम के साथ छत्तीसगढ़ की संस्कृति के अनुरूप ग्यारह बैल गाड़ियों से बारात निकाली. मगर विवाह करने के बाद फर्जी पाया गया और अब जेल की हवा खा रहा है.

बैलगाड़ी पर बारात लेकर छत्तीसगढ़ में चर्चा का सबब बने दूल्हे शैलेंद्र साहू शादी के 72 घंटे बाद दुल्हन के परिवारवालों की शिकायत पर फर्जी दूल्हे के साथ उसके माता-पिता, भाई और भाभी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. वैवाहिक मामले में लोगों की भावनाओं को आहत करने का अजीबो गरीब ठगी का यह मामला छत्तीसगढ़ के जिला राजनांदगांव के डोंगरगढ़ जंगलपुर का है.

यहां एक एन आर आई की शादी काफी चर्चा में थी‌. छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक शहीद की छोटी बहन से शादी करने वाला एन आर आई बैलगाड़ी से बारात निकालकर चर्चा का सबब बन गया था. अपनी विशेष बैल गाड़ियों की निकली बारात के कारण इस एन आर आई की विवाह की चर्चा सुर्ख़ियों में थी.

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अमेरिकी मूल की लड़की से की शादी

शैलेंद्र साहू लंबे समय से अमेरिका में बसा हुआ था. इसी दरमियान अमेरिकी मूल की लड़की से ब्याह रचा लिया. जानकार बताते हैं कि इस विवाह से उसके परिजन नाखुश थे. यही कारण है कि शैलेंद्र साहू को अपने गृह ग्राम आना पड़ा और यहां उसके दोबारा विवाह की तैयारी शुरू हो गई. महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि शैलेंद्र साहू का ब्याह बड़े ही शानदार तरीके से संपन्न हो गया. मगर कहते हैं की सच्चाई कभी न कभी सामने आ ही जाती है, शैलेंद्र साहू का सच भी अंततः सामने आ गया. तब तीन दिन पश्चात दुल्हन के परिजनों ने धोखेबाजी का आरोप लगाकर अमेरिका में रह रहे एन आर आई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई और उसे माता-पिता परिजनों सहित जेल भेज दिया गया.

और ऐसे खुला फर्जी दूल्हे का फर्जीवाड़ा

एन आर आई शैलेंद्र साहू पहले से ही शादी शुदा है. उसने अमेरिकी मूल की लड़की के साथ विवाह किया है, दो बच्चे भी है. मगर उसने उसके परिजनों ने लड़की और उसके परिजनों से यह सच छुपाया. 9 दिसंबर 2020 को शैलेंद्र अपने घर से 11 बैलगाड़ियों से अपनी बारात लेकर दुल्हन (रानी बदला हुआ) नाम के घर पहुंचा. और शैलेंद्र साहू ने बड़े ही शांति पूर्ण ढंग से रीति-रिवाजों के साथ विवाह कर लिया. 2 दिन पश्चात मामले का खुलासा कुछ इस तरह हुआ जो अपने आप में चौंकाने वाला है- जंगलपुर के रहने वाले सीआरपीएफ जवान पूर्णानंद साहू कुछ महीने पहले बीजापुर में नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए थे. 21 नवंबर को शहीद की बहन से शादी के लिए अर्जुनी निवासी शैलेंद्र साहू ने प्रस्ताव भेजा था. शैलेंद्र अमेरिका में रहता है.

शादी सामाजिक रस्मो रिवाज के साथ धूमधाम से हो गई लेकिन अंततः लड़की के घरवालों को पता चला कि शैलेंद्र पहले से शादीशुदा है और उसके दो बच्चे भी है.

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युवती शहीद जवान की बहन थी. ऐसे में सीआरपीएफ के नियमों के मुताबिक शहीद के परिजनों को फोर्स की तरफ से अनुदान राशि मिलती है. इसके तहत परिवार ने लड़की की शादी के बारे में अफसरों को बताया था, अफसरों ने लड़के की सारी जानकारी मांगी थी.

सीआरपीएफ ने जब युवक के पासपोर्ट की जांच अपने स्तर पर करवाई तो वो शादीशुदा निकला, और सारा सच सामने आ गया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मगर लड़की के परिजनों ने शैलेंद्र साहू के साथ रानी के विवाह को तोड़ दिया और दूल्हे सहित उसके परिजनों को जेल की हवा खिलाई है.

बलात्कारी वर्दी का “दंश”

हमारे आसपास समाज में ऐसी अनेक घटनाएं घटित होते जाती है. दरअसल, यह कुछ ऐसा ही है जैसे बाड़ ही खेत को खा जाए. आज हम इस रिपोर्ट में इन्हीं तथ्यों पर विचार करते हुए आपको बताएंगे की किस तरह वर्दी,पावर, अपने पद के गुमान में आम लोगों और विशेषकर अबला कही जाने वाली नारी पर अपने अत्याचार के रंग दिखाती है.

प्रथम घटना-

न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर के एक पुलिस महा निरीक्षक जैसे बड़े पद पर बैठे शख्स पर एक महिला ने यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए. मामला सुर्खियों में रहा आज भी महिला आयोग में मामला लंबित है.

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दूसरी घटना-

एक पुलिस अधीक्षक आईपीएस ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कुछ युवतियों से संबंध बना लिए. मामला जब धर्मपत्नी तक पहुंचा तो उसने जहर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की.

तीसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के बस्तर के कांकेर में एक पुलिस अधिकारी ने एक आदिवासी युवती को बहला-फुसलाकर शादी करूंगा कह अपने जाल में फंसाया. युवती के माता-पिता ने उच्च अधिकारियों तक शिकायत पहुंचाई. अंततः पुलिस अधिकारी हुआ निलंबित.

यह कुछ घटनाएं सिर्फ बानगी मात्र है, जो बताती है कि किस तरह “खाकी वर्दी” पहन कर कुछ लोग पद का दुरुपयोग कर रहे है. और जब बात बढ़ती है तो खाकी वर्दी पर भी गाज गिर पड़ती है. और आगे चलकर यह लोग मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहते वहीं पद और प्रतिष्ठा भी खो देते हैं.

आरक्षकों का कारनामा

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में दो पुलिसकर्मियों ने नाबालिग एक किशोरी से डरा धमका कर दुष्कर्म किया . दोनों पुलिसकर्मी डायल 112 में कांस्टेबल हैं. अपने पद का दुरुपयोग करते हुए किशोरी को दोनों आरोपी डरा धमकाकर बुलाते और बलात्कार करते रहे. किशोरी ने अंततः परिजनों को बताया और परिजनों के संरक्षण में मामला पुलिस के उच्च अधिकारियों तक पहुंचा. शिकायत के बाद मामला जांच में सही पाया गया इसके पश्चात बिलासपुर के सरकंडा थाना पुलिस ने कार्रवाई करते हुए दो माह के लंबे समय के बाद दोनों कांस्टेबल को गिरफ्तार कर कार्रवाई की. पुलिस के उच्च अधिकारी बताते हैं कि जिले के
सीपत क्षेत्र निवासी 14 साल की किशोरी को कुछ माह पहले डायल 112 में तैनात कांस्टेबल देवानंद केंवट और वीरेंद्र राजपूत ने एक संदिग्ध युवक के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा था.

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इस पर दोनों पुलिसकर्मियों ने किशोरी का मोबाइल नंबर लिया और अपराधिक मंशा से छोड़ दिया . आरोप है कि इसके बाद ही किशोरी को दोनों सिपाही कौल करने लगे. वह डरा धमकाकर उसे बुलाते और दुष्कर्म करते रहे.परेशान होकर किशोरी ने अक्टूबर 2020 में सरकंडा थाने में रपट दर्ज करा दी. आरोपी कांस्टेबल इसी थाने के पदस्थ बताए जा रहे थे इस मामले की जांच में पुलिस को लंबा समय लग गया. जांच सही मिलने पर दिसंबर माह में पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. यहां यह भी कड़वा सच है कि पुलिस दोनों कांस्टेबल को बचाने के प्रयास में जुटी रही. इसके लिए समझौते का भी दबाव बनाया गया. मगर जब मामला नहीं बना तो पुलिस ने औपचारिकता पूरी की.

इस मामले में यह तथ्य भी सामने आया है कि एक आटो चालक मध्यस्थ था और मौका मिलते ही उसने भी किशोरी के साथ बलात्कार किया था और पकड़ा गया था. बहतराई निवासी पंचराम साहू उर्फ सोनू किशोरी को अपनी ऑटो में पुलिसकर्मियों के पास छोड़ने जाता और लाता था. इस दौरान उसने भी मौका पाकर किशोरी से दुष्कर्म किया था.

जुड़वा स्टार बहनें ‘चिंकी-मिंकी’

जुड़वा बच्चों का जीवन हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है. इस को ले कर कई फिल्में भी बनीं और उपन्यास भी लिखे गए. कह सकते हैं यह विषय हमेशा से रोचक रहा है. दिल्ली की रहने वाली ‘चिंकी- मिंकी’ ने जब टिकटौक और इंस्टाग्राम पर अपने रोचक वीडियो पोस्ट करने शुरू किए तो रातोंरात वे मशहूर हो गईं.

अपनी इस खासियत को अपना हुनर बना कर ‘चिंकी-मिंकी’ ने खुद को टीवी की दुनिया में भी स्थापित कर लिया है. अब वे फैशन, टीवी और फिल्मों की दुनिया में अपना नाम कमाना चाहती हैं. कम उम्र में ही दोनों ने दौलत और शोहरत दोनों ही हासिल कर ली है. ‘चिंकी-मिंकी’ दोनों में ही भरपूर ग्लैमर है. जिस की वजह से वे लगातार हिट हो रही हैं.

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भारत और चीन के विवाद में भले ही टिकटौक को बंद कर दिया गया हो, पर टिकटौक पर वीडियो बना कर मशहूर होने वालों की संख्या कम नहीं है. छोटे शहरों और गांव के युवा अपने वीडियो बना कर खूब मशहूर हुए हैं. ‘चिंकी-मिंकी’ उन में सब से मशहूर हैं.

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दिल्ली की रहने वाली चिंकी मिंकी जुड़वा बहनों के असली नाम सुरभि मेहरा और समृद्धि मेहरा हैं. ये दोनों टिकटौक की पापुलर स्टार्स हैं. इन दोनों के टिकटौक पर करीब 10 लाख फालोअर्स हैं. 2019 के टौप 5 वायरल वीडियो में से एक वीडियो इन दोनों का भी था.

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खास बात यह है कि दोनों सिर्फ टिकटौक पर ही नहीं, बल्कि इंस्टाग्राम पर भी बेहद मशहूर हैं. चिंकी और मिंकी का नाम इतना मशहूर हुआ कि दोनों के असली नाम सुरभि मेहरा और समृद्धि मेहरा को लोग भूल ही गए हैं.

दिल्ली की रहने वाली इन दोनों जुड़वा बहनों के जीवन में तमाम ऐसे पल मौजूद हैं, जो मुश्किल और हास्यपूर्ण भी रहे हैं. दोनों को देख कर अंदाज लगाना मुश्किल है कि किस का क्या नाम है.

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चिंकी और मिंकी दोनों केवल 60 सेकेंड के अंतर से छोटी और बड़ी बहनें हैं. चिंकी यानी सुरभि मेहरा बड़ी और मिंकी यानी समृद्धि मेहरा छोटी है. समृद्धि मेहरा की आवाज थोड़ी पतली है. इन का जन्म दिसंबर 1998 में हुआ था. चिंकी और मिंकी दोनों की पढ़ाई दिल्ली से हुई. 12वीं क्लास में चिंकी ने 92 फीसदी और मिंकी ने 89 फीसदी नंबर हासिल किए.

चिंकी और मिंकी ने स्नातक की पढ़ाई कालेज औफ वोकेशनल स्टडीज शेख सराय, नई दिल्ली से पूरी की. पढ़ाई के दौरान ही चिंकी और मिंकी टिकटोक पर वीडियो बनाने लगी. ये दोनों ही बहनें स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करना चाहती थीं. इन की तैयारी कनाडा जाने की थी. इसी बीच मशहूर हास्य टीवी सीरियल ‘द कपिल शर्मा शो’ में औडिशन के लिए इन्होंने अपना वीडियो भेजा तो उन को सिलेक्ट कर लिया गया.

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यह बात जब दोनों ने अपने पैरेंट्स को बताई तो उन्हें लगा कि दोनों मस्तीमजाक कर रही हैं. जब उन को पता चला कि यह सच बोल रही हैं तो इन को शूटिंग के लिए मुंबई बुलाया गया. वहां इन लोगों ने स्क्रिप्ट याद कर के मेहनत से अपना किरदार निभाया और इन के लिए सफलता का रास्ता खुल गया. अब चिंकी मिंकी ने जौब करने का फैसला दरकिनार कर दिया है. दोनों अलगअलग फैशन ब्रांड के लिए फोटो शूट और तमाम दूसरे तरह के काम करने लगी हैं.

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सुरभि और समृद्धि मेहरा में सब से खास बात यह है कि दोनों हुबहू एक जैसी हैं. दोनों अपने हेयरस्टाइल और गेटअप को भी एकदूसरे से पूरी तरह मैच रखती हैं. चिंकी मिंकी को देख कपिल शर्मा भी कंफ्यूज हो गए थे. चिंकी बताती है कि उन्हें खुद उन के पैरेंट्स नहीं पहचान पाते थे. ऐसे में कई बार बीमार एक होती थी और दवाई दूसरी को खिला दी जाती थी.

22 साल की उम्र में ही इन का फीगर 32-28-32 किसी अभिनेत्री को मात देता है. इस से साफ लगता है कि फिल्मों में भी ये बहुत आसानी से सफल हो सकती हैं. फैशन ब्रांड, फोटो शूट, वीडियोज और इवेंट के जरिए ये दोनों बहनें 1 से 2 लाख रुपए हर माह कमा लेती हैं. इन की अपनी सालाना कमाई 70 से 80 लाख के करीब होगी.

चिंकी मिंकी दोनों को ही घूमने का बेहद शौक  है. इन दोनों को अपने वीडियो बनाने, पबजी खेलने का भी शौक है. इन का पहला वीडियो ‘चिंकी मिंकी झाबुआ इंदौर ब्लौग’ था. इसे बहुत सफलता मिली. चिंकी मिंकी दोनों को ही अपना फीगर बनाए रखने का बेहद शौक  है.

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ऐसे में ये खानेपीने का बहुत ख्याल रखती हैं. इस के बाद भी कभीकभार चौकलेट और पिज्जा खाती हैं. टमाटर सूप इन को बेहद पसंद है. फलों में आम खाने का शौक है और पहनने में काला और पीला रंग बेहद पसंद है. चिंकी मिंकी दोनों को ही दूसरों को चौंकाने में मजा आता है. इस कारण दोनों एक जैसे कपड़े पहनती हैं और एक जैसे हावभाव प्रदर्शित करती हैं. उन की बातों से किसी को यह पता नहीं चलता कि कौन चिंकी है कौन मिंकी.

दोनों की आवाज में थोड़ा सा अंतर है. इस के अलावा हावभाव और बातचीत करने के अंदाज में अंतर है. यह अंतर वही पकड़ सकता है जो लगातार इन के साथ रहता हो, इन्हें पूरी तरह से समझता हो. सामान्य लोगों के लिए इस अंतर को पकड़ना सरल नहीं है. जिस से ये सभी को चौंकाती रहती हैं.

शर्मनाक : इलाज की कमी में ‘पर्वत पुरुष’ दशरथ मांझी की बेटी ने दम तोड़ा

लौंगिया देवी की इस दुखद मौत के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना दुख जाहिर किया. इतना ही नहीं, दाह संस्कार के दौरान कुछ कर्मचारी पदाधिकारी भी वहां हाजिर हुए.

लौंगिया देवी काफी समय से बीमार थीं. उन की कोई सुध लेने वाला नहीं था. उन के दोनों बेटे मजदूरी करने के लिए किसी दूसरी जगह चले गए. लौंगिया देवी घर में अकेली रह रही थीं. एक दिन अचानक ‘द फ्रीडम’ के संस्थापक सुधीर कुमार उन के गांव गेहलौर पहुंचे. उन्होंने 19 नवंबर को वीडियो बना कर लौंगिया देवी के बुरे हालात को दिखाया, जिसे सोशल मीडिया पर कई लोगों ने शेयर किया.

लोगों की यह आवाज गृह विभाग के मुख्य सचिव आमिर शुभानी के कानों तक पहुंची. उन्होंने तत्काल गया के डीएम को फोन किया. गया के डीएम ने एंबुलैंस भेज कर लौंगिया देवी को सदर अस्पताल में भर्ती कराया. पर उन की हालत ठीक नहीं रहने की वजह से उन्हें सदर अस्पताल से मगध मैडिकल कालेज रेफर कर दिया गया. कुछ दिनों तक वहां इलाज चला, फिर वहां से भी उन्हें पटना रेफर कर दिया गया.

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लेकिन लौंगिया देवी के परिवार वाले उन्हें पटना नहीं ले जा सके और घर ले आए. घर लाते ही 4 दिसंबर को लौंगिया देवी ने दम तोड़ दिया.

याद रहे कि अपने दम पर पहाड़ काट कर रास्ता बनाने वाले दशरथ मांझी पर केतन मेहता ने ‘मांझी : द माउंटेनमैन’ फिल्म बनाई थी और करोड़ों रुपए कमाए थे. आज उन्हीं दशरथ मांझी के परिवार के सदस्यों की हालत बहुत ज्यादा चिंताजनक है.

जिस फूस की झोंपड़ी में लौंगिया देवी रहती थीं, पिछले 3 साल से उस के फूस की मरम्मत तक नहीं हो सकी थी. ‘दशरथ मांझी महोत्सव’ का बैनर उस झोंपड़ी के ऊपर डाला हुआ है. उस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का फोटो भी साफ नजर आ रहा है, जो मुख्यमंत्री की कल्याणकारी योजनाओं का मजाक उड़ा रहा है. याद रहे कि लौंगिया देवी पहाड़ काटने में अपने पिता दशरथ मांझी की मदद करती थीं. उन्हें खानपानी भी यही लौंगिया देवी ही पहुंचाने जाती थीं.

जब दशरथ मांझी जिंदा थे, तब वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने गए थे. तब नीतीश कुमार ने अपनी कुरसी छोड़ कर उन्हें उस पर बिठा दिया था. अखबारों में प्राथमिकता के साथ पहले पेज पर यह खबर छपी थी. तब लोगों के दिल में नीतीश कुमार के प्रति भी सम्मान का भाव खूब जगा था.

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दशरथ मांझी के किरदार पर फिल्म बना कर और किताबें लिख कर लोगों ने अथाह कमाई की है, पर उस के असली हकदार उन के परिवार के सदस्य आज भी गरीबी और जलालत के बीच जिंदगी जी रहे हैं. लिहाजा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सिर्फ ट्विटर पर श्रद्धांजलि नहीं दें, इन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी कारगर होगी जब दशरथ मांझी के परिवार के हालात में सुधार होगा.

छालीवुड एक्ट्रेस : पति, प्रेमी और धोखा

प्रथम घटना-

राजधानी रायपुर के तेलीबांधा क्षेत्र में सोशल मीडिया में दोस्ती के बाद प्रिया का प्यार मनोज से हुआ, शादी हुई और बाद में पता चला मनोज तो पहले ही शादीशुदा है. प्रिया ने क्षुब्ध होकर अग्नि स्नान कर आत्महत्या कर ली.

दूसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के बलदेव बाग की एक किशोरी बबली का प्रेम रायपुर के एक युवक अशोक के साथ हुआ शारीरिक आकर्षण के फेर में पड़कर अपना सब कुछ गंवाने के बाद, जब शादी की गुहार लगाई तो अशोक ने मुंह फेर लिया. लड़की ने आत्महत्या कर ली.

तीसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के चांपा जांजगीर जिला के अकलतरा में एक लड़की ने प्यार में धोखा खाकर किरोसिन तेल उड़ेल अपनी जान दे दी.

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जब किसी अबोध लड़की के पांव बहकते हैं पति अथवा मां बाप को छोड़कर, घर के आंगन डेहरी को लांघती है तो उसे नोचने और खसोटने के लिए जाने कितने लोग सामने आ जाते हैं. ऐसा हमने अक्सर फिल्मों और कहानियों में पढ़ा है, और देखा है. ऐसा ही कुछ घटनाक्रम छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. जहां छत्तीसगढ़ के फिल्मी दुनिया अर्थात छालीवुड की एक्ट्रेस ने पति को इस महत्वकांक्षी आशाओं के फेर में छोड़ दिया कि वह फिल्मों की रंगीन दुनिया की ओर जा रही है तो दूसरी तरफ एक सह कलाकार ने मीठी चुपड़ी बातें करके उसका दैहिक शोषण कर लिया. अंततः
छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री की महिला कलाकार पुष्पा बेहरा ने आग लगाकर खुदकुशी करने की कोशिश की है और बुरी तरह जलने के पश्चात उसका अस्पताल में इलाज जारी है. 70 फिसदी जली हालत में इलाज के लिए जिला रायगढ़ अस्पताल में भर्ती कराया गया है. विगत दिनों उसका एक वीडियो “वायरल” हुआ – जिसमें उसने अपने प्रेमी पर आरोप लगाते हुए अग्नि स्नान करते हुएआत्महत्या करने की बात कही है.

वह घर की रही न घाट की!

इस प्रतिनिधि को जिला रायगढ़ के जूटमिल थाना प्रभारी अमित शुक्ला ने बताया कि पुष्पा बेहरा 70 फिसदी जल चुकी है. उनका इलाज चल रहा है, मामले में फिलहाल किसी को हिरासत में नहीं लिया गया है. पुष्पा का एक वीडियो सामने आया है जिसमें उसने खुदकुशी करने का कारण प्रेमी मोहन पटेल द्वारा धोखा देने नहीं व उसे बदनाम करने को बताया है. वीडियो में वह कह रही है कि उनका प्रेमी हादसे से एक दिन पहले उनके घर में आया और उनपर कई लांछन लगाने के साथ घर में तोड़फोड़ भी की.
महिला के जीजा अरूण साहू के अनुसार मोहन पटेल के घर में घुसकर तोड़फोड़ करने के बाद पुष्पा ने फोन पर इसकी जानकारी उसे दी.

दरअसल पुष्पा के जीवन की त्रासदी यह रहेगी अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण जहां उसने पहले अपने मां और पिता को छोड़ा और एक प्रेमी नीरज शर्मा से प्रेम विवाह कर लिया और आगे चलकर उसे भी छोड़कर मोहन पटेल की ओर आकर्षित हो गई एक फिल्मी कहानी की तरह आगे चलकर स्थिति ऐसी बनी कि नवल की रही और न घाट की. ऐसी परिस्थितियों में मानसिक रूप से परेशान होकर उसने पेट्रोल डालकर आत्महत्या करने की कोशिश की है.

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पुष्पा का “प्रेम विवाह”

संपूर्ण घटनाक्रम को देखें तो यह तथ्य सामने आ गए हैं कि पुष्पा गलत सोहबत में पड़ कर बिगड़ती चली गई. सबसे पहले उसने जवान होते ही होश संभालते ही अपना रास्ता स्वयं तय करने का निर्णय किया और लव मैरिज कर पति के साथ रहने लगी. कुछ दिनों बाद जब उसकी महत्वाकांक्षा ने उड़ान भरी तो उसने रायपुर छालीवुड की तरफ रुख किया. और वहां कथित प्रेमी से धोखा खाया. फिल्मों के आकर्षण से खींच कर रायपुर के फिल्मी संसार की ओर आकर्षित पुष्पा की कहानी यह बताती है कि आज की नारी थोड़ा भी रास्ता भटकी नहीं की उसके जीवन में अंधेरा ही अंधेरा होता है.

महिला पुष्पा बेहरा (28) आदिवासी बाहुल्य रायगढ़ जिला की लैलूंगा विकासखंड की मूल निवासी है. वह प्रेम विवाह के पश्चात रायगढ़ स्थित साहेबनगर कालोनी में किराए के मकान में पति नीरज शर्मा के साथ रहती थी. इस दरमियान वह पति को बार-बार फिल्मों के आकर्षण के बारे में बताती तो पति पुष्पा को रोकने का समझाने का प्रयास करता रहा मगर फिल्मों की दुनिया के आकर्षण ने साल भर पहले पति से विवाद के बाद दोनों अलग रहने लगे थे. पुलिस के अनुसार पुष्पा रायगढ़ थाना क्षेत्र के मिट्ठुमुड़ा इलाके में पहुंची और खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगा अग्नि स्नान करने के पश्चात बुरी तरह जल चुकी है. पुलिस उसका बयान लेकर मामले की तफ्तीश कर रही है या के दोषी कौन है?

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भ्रष्टाचार की बीमारी सरकारी योजनाओं में सेंधमारी

मसला

अमला है सरकारी जिस को एक धुन है,

लूटना, खाना ही जिस का खास गुन है.

आम जनता की कमाई भरी जिस में,

इस सड़े गोदाम में चूहे और घुन हैं.

ये लाइनें टैक्स देने वालों के पैसे के बल पर चल रही सरकारी स्कीमों में मची सेंधमारी पर मोजूं लगती हैं. आजादी के बाद से गरीबों, नौजवानों, औरतों व किसानों के नाम पर केंद्र व राज्यों की सरकारों ने बहुत सी योजनाएं चलाईं. पैसे की नहरें बहाईं, लेकिन पानी आखिरी छोर तक नहीं पहुंचा. लिहाजा, नतीजा वही ढाक के तीन पात. देश में करोड़ों लोग आज भी गरीबी की चपेट में हैं. साथ ही, बहुत सी समस्याएं बरकरार व भयंकर हैं.

कारण हैं खास

तालीम की कमी, नशा, अंधविश्वास व निकम्मापन गरीबी की सब से खास वजहें हैं, लेकिन गरीबों के लिए चल रही सरकारी योजनाओं का बेजा इस्तेमाल भी इस की एक बड़ी वजह है. नतीजतन, सरकारी अमले में गले तक रचाबसा भ्रष्टाचार का दलदल है, इसलिए ज्यादातर सरकारी स्कीमें गरीबी दूर करने में बेअसर, नाकाम व बिचौलियों के लिए चारागाह साबित हुई हैं. इन की बदौलत भ्रष्ट नेताओं, अफसरों व मुलाजिमों ने अकूत दौलत इकट्ठी की है.

जिन के कंधों पर जरूरतमंदों के लिए चल रही योजनाओं के तहत राहत पहुंचाने की जिम्मेदारी है, वे अपना फर्ज व जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा कर अपनी जेबें भरने में लगे रहते हैं. वे किसी को कानोंकान खबर नहीं देते, इसलिए बहुत कम लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी हो पाती है. सरकारी महकमे अपने दफ्तरों के बाहर चल रही योजनाओं में जनता के लिए दी जा रही छूट, कर्ज व सहूलियतों वगैरह का ब्योरा नहीं लिखवाते.

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सरकारी मुलाजिम कहीं किसी जरूरतमंद का फार्म भरवाने में मदद नहीं करते, उलटे उन्हें जराजरा से काम के लिए बारबार दफ्तरों के चक्कर कटवाते हैं. नतीजतन, बहुत से लोग या तो दलालों की शरण में जा कर अपनी जेब कटवाते हैं या थकहार कर घर बैठ जाते हैं.

ज्यादातर गरीब भोले, नावाकिफ व कम पढ़ेलिखे हैं. उन्हें अपने हकों व सरकारी स्कीमों की जानकारी नहीं है. वे सरकारी राहत व इमदाद पाने की खानापूरी भी नहीं कर पाते और उन में से ज्यादातर लोग सरकारी सहूलियतों से बेदखल रह जाते हैं. उन की जगह दूसरे लोग सांठगांठ कर के उन का हिस्सा हड़पने में कामयाब हो जाते हैं.

बिगड़ैल अमला

सरकारें हर साल अरबों रुपए बहुत सी योजनाओं में खर्च करती हैं, लेकिन उन का एक बड़ा हिस्सा वे गटक जाते हैं, जो चील, गिद्ध, कौवों की तरह ताक में लगे रहते हैं. मसलन, बहुत से लोग आज भी बेघर हैं. वे किसी तरह अपना सिर छिपाने के लिए फूंस के छप्पर, खपरैल व मिट्टी से बने कच्चे घरों में रहते हैं. ऐसे गरीब लोगों को पक्का घर मुहैया कराने की गरज से साल 2016-17 में प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की गई थी, लेकिन चालाक, मक्कार व दलाल लोग मुलाजिमों की मदद से इस में भी गड़बड़ी करने में कामयाब हो गए.

इस योजना से फायदा उठाने वालों के लिए तयशुदा शर्तें रखी गई थीं, लेकिन योजनाओं को लागू करने का जिम्मा तो सब से नीचे के मुलाजिमों पर होता है और वे अपना घर भरने के लिए मनमानी बंदरबांट करने लगते हैं. उन की नकेल कसने वाले भी अपने हिस्से के लालच में उन से मिल जाते हैं, इसलिए वे भी उन्हें चैक करने के बजाय अपनी आंखें मूंद लेते हैं.

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कुलमिला कर भ्रष्ट व निकम्मे सरकारी मुलाजिमों की मिलीभगत व मनमानी की वजह से अकसर गरीबों की जगह उन अमीरों को भी लिस्ट में शामिल कर लिया जाता है, जो असल में राहत या इमदाद पाने के हकदार नहीं होते. बाद में जब कहीं कोई शिकायत होती है, तो पोल खुलती है और जांचपड़ताल में गड़बड़ी पाई जाती है.

यही उत्तर प्रदेश के मेरठ में भी हुआ. वहां प्रधानमंत्री आवास योजना में जिले के 1,884 लोगों में 534 लोग अपात्र यानी गलत पाए गए. सिर्फ किसी एक इलाके या किसी एक योजना में ही पलीता लगाया जा रहा है, ऐसा नहीं है. अपवाद छोड़ कर सरकार की ज्यादातर योजनाओं में लूटखसोट व बंदरबांट चल रही है, इसलिए हांड़ी का एक चावल देख कर ही बाकी सब का पता लग जाता है.

घपले और घोटाले

किसान सम्मान निधि योजना में  10 करोड़ किसानों के बैंक खातों में  6-6 हजार रुपए भेजने का दावा किया जा रहा है, लेकिन इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश में 1-2 नहीं, पूरे 14,000 लोग अपात्र पाए गए हैं. इन में से 1,200 किसान अकेले गोंडा जिले के हैं. राज्य सरकार ने इस पर कड़ा कदम उठाया है.

गरीब किसानों के लिए चली इस स्कीम में जिन्होंने बेजा तरीकों से सेंधमारी कर के सरकारी पैसा हड़पा ,वे अब उस रकम को सरकारी खजाने में वापस जमा करेंगे.

खेती महकमे ने चेताया है कि जिन लोगों ने गलत तरीके से किसान सम्मान निधि का पैसा लिया है, वे फौरन उसे वापस जमा कर दें, वरना उन से जुर्माने समेत वसूली की जाएगी.

हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब व उत्तर प्रदेश में गरीब छात्रों को दिए जाने वाले वजीफे में हुए करोड़ों रुपयों की गड़बड़ी की जांच चल रही है.

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5 साल पहले उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में पिछले दिनों फर्जी छात्र व फर्जी कालेज दिखा कर सरकारी वजीफे के  6 करोड़ रुपए हड़पे गए थे. यह मामला बरसों तक माली जरायम केसों की जांच करने वाली पुलिस के पास रहा. अब कुसूरवार अफसरों पर मुकदमा कायम करने के लिए मंजूरी मांगी गई है.

इस के बाद साल 2018 में इटावा और मेरठ जिलों में स्कौलरशिप हड़पने के 109 मामले पकड़े गए थे, जिन पर एफआईआर दर्ज कराई गई थी. कमोबेश यही हाल विधवा पैंशन व बुढ़ावा पैंशन स्कीमों का है.

सरकारी योजनाओं में मिली रकम अब सीधे गरीबों के बैंक खातों में जाती है, लेकिन गड़बड़घोटाले करने वाले तरकीब व तरीके का तोड़ निकाल ही लेते हैं. इन का पूरा गिरोह मिलीभगत से काम करता है. कंप्यूटर में लाभार्थी की डिटेल फीड करते वक्त जानबूझ कर बैंक खातों का नंबर बदल दिया जाता है, इसलिए जो सरकारी सहूलियतें पाने के हकदार हैं, वे पीछे छूट जाते हैं और जो असरदार, चालबाज या छुटभैए नेता या उन के चमचे, चेलेचपाटे बेजा फायदा उठाने में कामयाब हो जाते हैं.

सरकारी योजनाओं में सारे असल गरीबों को इमदाद नहीं मिलती. यह बात यहीं खत्म नहीं होती. एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा यह कि उन के साथ चौतरफा बेजा बरताव भी होता है. सहूलियतें देने का लौलीपौप दिखा कर काम कराने के नाम पर उन से मोटी रकम वसूली जाती है और बाद में उन्हें ठेंगा दिखा दिया जाता है, इसलिए ज्यादातर गरीब बेचारे ठगे से देखते हुए रह जाते हैं.

ठगी पहले कदम से

सरकारी योजनाओं में गरीबों को लूटने का सिलसिला फार्म भरने के पहले पायदान से ही शुरू हो जाता है. कर्ज व छूट का फार्म भरवाने व बाद में मिलने वाली रकम का लालच दे कर दलाल पहले ही अपना हिस्सा झटक लेते हैं. बीते लौकडाउन के दौरान ऐसे बहुत से लोगों के कामधंधे बंद हो गए थे, जो रोज कमा कर खाते थे, इसलिए वे बेहद परेशान थे.

पिछले दिनों प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के इश्तिहार अखबारों में छपे थे. इस में ठेलेखोमचे आदि लगाने वालों को 10,000 रुपए का कर्ज मिलने का दावा किया गया था. सरकार ने मेरठ में 65,000 लोगों को इस स्कीम का फायदा देने का मकसद तय किया था. इस के उलट नगरनिगम के मुलाजिमों ने बीते 4 महीने में सिर्फ 18,745 लोगों का ही रजिस्ट्रेशन किया.

गौरतलब है कि उस में से केवल 6,815 फार्म ही बैंकों को भेजे गए. जब लीड बैंक से इस बाबत जानकारी की गई, तो पता लगा कि उन को 5,606 फार्म मिले. 209 फार्म बीच में कहां गायब हो गए, यह कोई नहीं जानता. और सुनिए, इन में से सिर्फ 1,036 फार्म ही कर्ज मंजूरी की सिफारिश करने लायक पाए गए, लेकिन कितनों को पैसा मिला, यह किसी को भी पता नहीं है.

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कड़वा सच

मेरठ में फलों की रेहड़ी लगा रहे किशनपुरा के दिनेश से जब इस लेखक ने बात की, तो उस ने बताया कि एक आदमी खुद को सरकारी मुलाजिम बता कर फार्म भरने के नाम पर उस से 200 रुपए ले गया. फिर उस के बाद क्या हुआ, यह आज तक पता नहीं चला.

इस ठगी का शिकार दिनेश अकेला नहीं है. आइसक्रीम बेच रहे मंशा, फूल बेचने वाले नंदू व जूस निकालने वाले फुरमान ने बताया कि उन्हें आज भी इंतजार है कि शायद कुछ इमदाद जरूर मिलेगी. हालांकि उन के पास कोई रसीद या फार्म भरने वाले का नामपता नहीं है. तालीम व जानकारी की कमी से बहुत

से गरीब लोग आएदिन ठगी के शिकार होते हैं.

यह है हल

सरकारी योजनाओं में पसरी लूटखसोट बंद करने के लिए जरूरी है कि योजनाओं का प्रचारप्रसार कारगर तरीकों से किया जाए. असली हकदार लोगों को छांट कर उन की पहचान लिस्ट बनाते वक्त पूरी जांचपड़ताल सही तरीके से की जाए. साथ ही, उन्हें जागरूक किया जाए. अपनी जेब भरने के लालच में गड़बड़ी करने वाले मुलाजिमों की जवाबदेही तय की जाए. घपलेघोटालों की जांच जल्दी पूरी की जाए. दोषियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए, साथ ही, उन से ब्याज व जुर्माने समेत सरकारी पैसों की वसूली की जाए.

गरीबों की स्कीमों में घुसपैठ करने वाले अमीरों पर भी तगड़ा जुर्माना लगे और उन के नाम व फोटो इश्तिहारों में सार्वजनिक किए जाएं. हर योजना का पब्लिक औडिट हो, ताकि गड़बड़ी करने वालों पर कारगर नकेल कसी जा सके, वरना सरकारी स्कीमों में गरीबों के हक पर अमीरों की सेंधमारी आगे भी इसी तरह जारी रहेगी.

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