Manohar Kahaniya: वीडियो में छिपा महंत नरेंद्र गिरि की मौत का रहस्य- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

‘आनंद गिरि के द्वारा मेरे ऊपर जो आरोप लगाए गए, उस से मेरी और मठ मंदिर की बदनामी हुई. मेरे मरने की संपूर्ण जिम्मेदारी आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी जो मंदिर के पुजारी हैं और आद्या प्रसाद तिवारी के बेटे संदीप तिवारी की होगी. मैं समाज में हमेशा  शान से जीया. आनंद गिरि ने मुझे गलत तरह से बदनाम किया.

‘मुझे जान से मारने का प्रयास भी किया गया. इस से मैं बहुत दुखी हूं. प्रयागराज के सभी पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध करता हूं कि मेरी आत्महत्या के जिम्मेदार उपरोक्त लोगों पर कानूनी काररवाई की जाए. जिस से मेरी आत्मा को शांति मिले.

‘प्रिय बलवीर गिरि, मठ मंदिर की व्यवस्था का प्रयास करना. जिस तरह से मैं ने किया, इसी तरह से करना. नितीश गिरि और मणि सभी महात्मा बलवीर गिरि का सहयोग करना. परमपूज्य महंत हरिगोबिंदजी एवं सभी से निवेदन है कि मठ का महंत बलवीर गिरि को बनाना. महंत रवींद्र गिरि जी (सजावटी मढ़ी) आप ने हमेशा साथ दिया. मेरे मरने के बाद बलवीर गिरि का साथ दीजिएगा. सभी को ओम नमो नारायण.

‘मै महंत नरेंद्र गिरि 13 सितंबर को ही आत्महत्या करने जा रहा था, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया. आज हरिद्वार से सूचना मिली कि एकदो दिन में आनंद गिरि कंप्यूटर के द्वारा मोबाइल से किसी लड़की या महिला के साथ मेरी फोटो लगा कर गलत काम करते हुए फोटो वायरल कर देगा.

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‘मैं ने सोचा कहांकहां सफाई दूंगा. एक बार तो बदनाम हो जाऊंगा. मैं जिस पद पर हूं वह गरिमामयी पद है. सच्चाई तो लोगों को बाद में पता चल ही जाएगी, लेकिन मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इसलिए मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं.

‘बलवीर गिरि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के पास दी जाए. यही मेरी अंतिम इच्छा है. धनजंय विद्यार्थी मेरे कमरे की चाबी बलवीर महराज को दे देना. बलवीर गिरि एवं पंच परमेश्वर निवेदन कर रहा हूं कि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के नीचे लगा देना.

‘प्रिय बलवीर गिरि ओम नमो नारायण. मैं ने तुम्हारे नाम एक रजिस्टर्ड वसीयत की है. जिस में मेरे ब्रह्मलीन हो जाने के बाद तुम बड़े हनुमान मंदिर एवं मठ बाघंबरी गद्दी के महंत बनोगे. तुम से मेरा अनुरोध है कि मेरी सेवा में लगे विद्यार्थी जैसे मिथिलेश पांडेय, रामकृष्ण पांडेय, मनीष शुक्ला, शिवेष कुमार मिश्रा, अभिषेक कुमार मिश्रा, उज्जवल द्विवेदी, प्रज्जवल द्विवेदी, अभय द्विवेदी, निर्भय द्विवेदी, सुमित तिवारी का ध्यान देना.

‘जिस तरह से हमेशा मेरी सेवा और मठ की सेवा की है उसी तरह से बलवीर गिरि महराज और मठ मंदिर की सेवा करना. वैसे हमें सभी विद्यार्थी प्रिय हैं. लेकिन मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा मेरे अति प्रिय हैं.

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‘कोरोना काल में जब मुझे कोरोना हुआ मेरी सेवा सुमित तिवारी ने की. मंदिर में मालाफूल की दुकान मैं ने सुमित तिवारी को किरायानामा रजिस्टर किया है. मिथिलेश पांडेय को बड़े हनुमान रुद्राक्ष इंपोरियम की दुकान किराए पर दी है. मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा को लड्डू की दुकान किराए पर दी है.’

महंत की मौत का हंगामा

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत की खबर जंगल में आग की तरह पूरे देश में छा गई. सोशल मीडिया, टीवी और अखबारों में प्रमुखता के साथ इस को दिखाया जाने लगा.

महंत नरेंद्र गिरि को जानने वाले लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठा सकते थे. महंत की मौत हत्या और आत्महत्या के बीच झूलने लगी और लोग सीबीआई जांच की मांग करने लगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा नेता अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही साथ बसपा नेता मायावती, सपा नेता अखिलेश यादव आदि नेताओं के शोक संदेश ट्विटर पर आने लगे.

पुलिस ने सुसाइड नोट में लिखे नामों को आधार मान कर आनंद गिरि, आद्या तिवारी और संदीप तिवारी को हिरासत में ले लिया. इन पर धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप) लगाया गया.

यह सभी महंत नरेंद्र गिरि के करीबी थे. इधर कुछ दिनों से आपस में इन का विवाद चल रहा था. आनंद गिरि, आद्या तिवारी और संदीप तिवारी का कहना था कि महंतजी से हमारा कोई झगड़ा नहीं था. उन की मौत के बाद हमें फंसा कर दोषियों को बचाने का काम किया जा रहा है.

नरेंद्र सिंह से महंत नरेंद्र गिरि का सफर

बात 1984 की है जब प्रयाग में संगम के किनारे कुंभ का मेला लगा था. लाखोंकरोड़ों की भीड़ रोज गंगा स्नान कर रही थी. 20 साल का युवक भी इस भीड़ का हिस्सा बन कर संगम नहाने के लिए आया. संगम पर संतों की चकाचौंध को देख कर युवक के मन में यहीं बस जाने का मन करने लगा.

वह संगम किनारे निरंजनी अखाडे़ के संत कोठारी दिव्यानंद गिरि के पास आया. यहीं साथ में रह कर उन की सेवा करने लगा. कुंभ खत्म हो गया तो भी युवक अपने घर जाने को तैयार नहीं हुआ. तब दिव्यानंद उस युवक को ले कर हरिद्वार चले गए.

वहां उस का संपूर्ण भाव देख कर दिव्यानंद ने 1985 मे नरेंद्र गिरि को संन्यास की दीक्षा दी और उस का नामकरण नरेंद्र गिरि के रूप में कर दिया. इस के बाद श्रीनिरंजनी अखाड़े के महात्मा व श्रीमठ बाघंबरी गद्दी के महंत बलवंत गिरि ने गुरुदीक्षा दी.

बलवंत गिरि के न रहने के बाद नरेंद्र गिरि 2004 में श्रीमठ  बाघंबरी गद्दी के पीठाधीश्वर तथा बडे़ हनुमान मंदिर के महंत का पद संभाला. इस के बाद वह मठ और मंदिर को भव्य स्वरूप दिलाने का काम करने लगे.

2014 में उन को संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि मूलरूप से प्रयागराज के सराय ममरेज के करीब छतौना गांव के रहने वाले थे. उन के पिता का नाम भानुप्रताप सिंह था. वह आरएसएस में थे. पिता का प्रभाव नरेंद्र गिरि पर था. नरेंद्र गिरि का असली नाम नरेंद्र सिंह था.

वह 4 भाई थे. उन के भाइयों के नाम अशोक कुमार सिंह, अरविंद कुमार सिंह और आंनद सिंह थे. नरेंद्र गिरि यानी नरेंद्र सिंह ने बाबू सरजू प्रसाद इंटर कालेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी.

1980 में नरेंद्र सिंह 20 साल की उम्र में संन्यासी बन गए थे. वह प्रयाग के निरजंनी अखाडे़ में रहने लगे. अपने मधुर स्वभाव और मेहनती होने के कारण जल्द ही उन का नाम अखाड़े के प्रमुख लोगों में शामिल हो गया. अखाड़े में शामिल होने के 6 साल के अंदर ही नरेंद्र गिरि पदाधिकारी बन गए थे.

निरंजनी अखाड़े का पदाधिकारी बनने के बाद नरेंद्र गिरि ने अखाडे़ के विस्तार पर काम करना शुरू किया. बातचीत में अच्छा होने के कारण जल्द ही वह लोकप्रिय होने लगे. उन के संपर्क के बाद मठ की जायदाद और संपत्ति बढ़ने लगी, जिस की वजह से नरेंद्र गिरि का नाम केवल निरंजनी अखाड़े में ही नहीं, बाकी अखाड़ों में भी सम्मान से लिया जाने लगा.

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1998 में नरेंद्र गिरि का नाम संतों की सब से बड़ी अखाड़ा परिषद के पदाधिकारी के रूप मे लिया जाने लगा. अखाड़ा परिषद का पदाधिकारी बनने के बाद नरेंद्र गिरि की अलग पहचान बनने लगी.

साजिश दर साजिश

नरेंद्र गिरि को सब से बड़ी सफलता तब मिली, जब वर्ष 2014 में अयोध्या निवासी संत ज्ञानदास की जगह पर उन्हें संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया. उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और नरेंद्र गिरि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी हो गए.

अगले भाग में पढ़ेंदूसरे शिष्य भी खफा रहते थे आनंद गिरि से

छोटी छोटी खुशियां- भाग 6: शादी के बाद प्रताप की स्थिति क्यों बदल गई?

Writer- वीरेंद्र सिंह

सुधीरजी के जाने के बाद प्रताप अपने घर पहुंचा. सुधा बैठी टीवी पर फिल्म देख रही थी. वातावरण में निस्तब्धता थी. प्रताप ने कपड़े उतार कर पलंग पर फेंके और तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

नहा कर बाहर निकला तो दोनों होंठों को गोलगोल कर के वह कोई फिल्मी गीत गुनगुना रहा था. लेकिन कमरे में आते ही उस का गुनगुनाना बंद हो गया. सुधा पर नजर पड़ते ही वह सहम उठा. क्रैडिट सोसायटी में लोन के लिए उस ने जो फौर्म भरा था उस की रसीद लिए सुधा खड़ी थी. 80 हजार रुपए के कर्ज के लिए उस ने अर्जी दी है, यह जान कर वह गुस्से से कांप रही थी. आंखें आग उगल रही थीं. नाक फूलपचक रही थी. वह पूरी ताकत से चीख कर बोली, ‘‘यह क्या है? मैं ने तुम्हें मना किया था, फिर भी तुम नहीं माने. राजा हरिश्चंद्र बन कर घर लुटाने पर तुल गए हो?’’

प्रताप चुपचाप खड़ा था. अपनी बातों का कोई जवाब न पा कर सुधा चिढ़ गई. वह पहले से भी ज्यादा तेज आवाज में चीखी, ‘‘मैं ने जो कहा, तुम ने सुना नहीं. मैं जो पूछ रही हूं, उस का जवाब दो. उन भिखारियों को पैसा क्यों दे रहे हो?’’

‘‘क्या कहा तुम ने?’’ प्रताप ने आगे बढ़ कर कहा.

‘‘मैं ने मना किया था, फिर भी तुम अपने भिखमंगे भाई को 80 हजार रुपए दे रहे हो?’’

‘‘तड़ाक…’’ बिजली की गति से एक तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा. 4 साल में पहली बार ऐसा किया था प्रताप ने. उस का तमाचा इतना जोरदार था कि सुधा गिर पड़ी थी. प्रताप चीखा, ‘‘मेरे बड़े भाई को भिखमंगा कहते तुझे शर्म नहीं आती.’’

सुधा उठ कर बैठ गई. आंखें फाड़े वह प्रताप को एकटक ताक रही थी. फिर ने स्वयं को संभाला और बलखाती नागिन की तरह उठ खड़ी हुई. साड़ी का पल्लू खिसक गया था, बाल बिखर गए थे. आंखों के साथ चेहरा भी लाल हो गया था. दांत भींच कर वह प्रताप की ओर बढ़ी, ‘‘मवाली, हलकट… एक तो चोरीछिपे अपने घर वालों को पैसा देता है. दूसरे, जब मैं पूछती हूं तो मेरे ऊपर हाथ उठाता है,’’ सुधा ने प्रताप को मारने के लिए हाथ उठाते हुए कहा, ‘‘मुझ पर हाथ उठाने का मजा मैं अभी तुम्हें चखाए देती हूं.’’

प्रताप ने उस का हाथ बीच में ही थाम लिया और इस तरह ऐंठ दिया कि मारे दर्द के वह बिलबिला उठी. उस की आंखों में आंसू आ गए. प्रताप ने शब्दों को चबाते हुए कहा, ‘‘सुन, वह मेरा सगा भाई है. आज के बाद फिर कभी भिखारी कहा तो हड्डियां तोड़ कर रख दूंगा.’’

प्रताप ने सुधा के साथ ऐसा पहली बार किया था. उस के इस व्यवहार से सुधा एकदम से सहम उठी. प्रताप ने कहा, ‘‘ये 4 साल मैं ने किस तरह बिताए हैं, यह मैं ही जानता हूं. हर पल अपमान की आग में झुलसता रहा. तुम ने मुझे कुत्ते की तरह रखा. मेरी जिंदगी बरबाद कर दी तुम ने,’’ इतना कहतेकहते प्रताप की आवाज थोड़ी धीमी पड़ गई, ‘‘तुम्हारा बाप पैसे वाला है तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी गुलामी करूंगा. मेरी भलमनसाहत का फायदा उठा कर, तुम ने मेरे साथ क्या नहीं किया. मेरे मांबाप मेरे साथ कुछ दिन रहने के लिए आए थे, तुम ने उन्हें भगा दिया. मेरे किसी भी नातेरिश्तेदार से तुम ने कभी प्रेम से नहीं बात की. मेरी किसी भी बात में तुम्हें कोई रुचि नहीं है.’’

दो पल रुक कर उस ने आगे कहा, ‘‘तुम कान खोल कर सुन लो, तुम्हारी दादागीरी मैं ने बहुत सहन कर ली है. अब तुम्हारे दिन लद गए. आज के बाद जो करना होगा, मैं करूंगा और तुम सहोगी.’’

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सुधा एकटक प्रताप को ही देख रही थी. उस की दुबलीपतली काया क्रोध और क्षोभ से कांप रही थी. सारी देह पसीने से भीग गई थी. आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. प्रताप ने जैसे ही उस का हाथ ढीला किया, सुधा ने पलट कर प्रताप के चेहरे पर थूका, ‘‘आक थू…’’

प्रताप ने झटके से मुंह फेर लिया. इस का फायदा उठा कर सुधा ने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया. हाथ छूटते ही वह रसोई की ओर जाते हुए बोली, ‘‘नीच हरामी, मैं तुझे किसी भी हालत में नहीं छोड़ूंगी.’’

तभी हाथ बढ़ा कर प्रताप ने सुधा के खुले बाल पकड़ कर अपनी ओर इस तरह जोर से खींचे कि मारे दर्द के वह तड़प उठी. उस के मुंह से एक भयानक चीख निकली. फिर दांत भींच कर प्रताप ने 2 तमाचे सुधा के गाल पर जड़ दिए.

सुधा जोरजोर से रोते हुए दोनों हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगी. सुधा के गोरेगोरे गालों पर प्रताप की उंगलियों के लाललाल निशान स्पष्ट झलक रहे थे. सुधा की आंखों में आंखें डाल कर प्रताप ने कहा, ‘‘अब ठीक से रहना. मेरे खयाल से अब तुम ऐसा कोई काम नहीं करोगी कि मुझे तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करना पड़े.’’

सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुका कर रो रही थी. प्रताप सुधा को छोड़ कर वहीं पड़े पलंग पर बैठ गया. सुधा ने प्रताप की ओर देखा. फिर दोनों हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘आज क्या हो गया है तुम्हें?’’

प्रताप ने कोई जवाब नहीं दिया. सुधा उठी और धीरेधीरे चलती हुई कमरे से बाहर निकल गई. प्रताप ने तौलिया खींच कर पसीना पोंछा. उस ने सोचा, अब सब ठीक हो जाएगा. लेकिन सुधा इतनी जल्दी कहां हार मानने वाली थी. वह कमरे से सीधे रसोई में पहुंची. रसोई में रखा मोटा डंडा निकाला और दोनों हाथों से मजबूती से थामे वह प्रताप की ओर बढ़ी. फिर उस ने जिस तरह से प्रताप पर हमला किया, उस की प्रताप ने कभी कल्पना नहीं की थी. उस ने हाथों में थामे डंडे से पूरी ताकत के साथ प्रताप के सिर पर प्रहार कर दिया. एक ही वार में प्रताप बैड पर लेट गया. उस का सिर फट गया था. खून निकल कर बैड पर बिछी चादर को भिगोने लगा था. उस की आंखें बंद होने लगी थीं. थोड़ी ही देर में वह बेहोश हो गया था.

आईसीयू में भरती प्रताप की चारपाई के पास उस रात कोई नहीं था. अगले दिन खबर पा कर गांव से मांबाप आए तो बड़े भाई और भाभी उन के साथ अस्पताल आ गए थे. रोरो कर चारों की आंखें सूज गई थीं. दीवार का सहारा लिए बैठी सुधा अभी भी सिसक रही थी. थोड़ी दूर पर खड़े सुधा के पापा न्यूरोसर्जन से गंभीरतापूर्वक बातचीत कर रहे थे. उस दुख की घड़ी में सभी की नजरें उन्हीं पर जमी थीं. उन लोगों के लिए दिक्कत की बात यह हो गई थी कि डाक्टरों ने प्रताप के घायल होने की सूचना पुलिस को दे दी थी. डाक्टरों का कहना था कि प्रताप के सिर पर किसी भारी चीज से किसी ने प्रहार किया है. जबकि सुधा के पापा ने डाक्टरों को बताया था कि स्कूटर से गिरने की वजह से प्रताप के सिर और पैर में चोट लगी थी. उस पर डाक्टरों का तर्क था कि पैर की चोट में तो पट्टी बंधी थी जबकि सिर की चोट ताजी थी. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप का बयान लेने 2 बार अस्पताल आ चुका था. परंतु प्रताप के बेहोश होने की वजह से वह बयान नहीं ले सका था. तब उस ने कहा था कि जब इन्हें होश आ जाए, उसे तुरंत सूचना दी जाए. इन का बयान लेना बहुत जरूरी है.

सुधा के पापा नहीं चाहते थे कि इस मामले में पुलिस आए. क्योंकि यदि होश में आने पर बयान देते समय प्रताप ने असलियत बता दी तो सुधा फंस जाएगी. इसी विषय पर वे न्यूरोसर्जन से बातें कर रहे थे. परंतु न्यूरोसर्जन ने साफ कह दिया था कि अब उन के हाथ में कुछ नहीं है.

4 दिनों बाद प्रताप को होश आया. जैसे ही नर्स ने बाहर आ कर यह बात बताई. मांबाप और भाईभाभी उसे एक नजर देखने के लिए बेचैन हो उठे. सुधा भी उठ कर आईसीयू के गेट पर जा खड़ी हुई थी. डाक्टर ने प्रताप के होश में आने की सूचना पुलिस इंस्पैक्टर को भी दे दी थी. इसलिए थोड़ी ही देर में इंस्पैक्टर आ गया. इंस्पैक्टर के आने पर ही सब को आईसीयू में प्रवेश करने दिया गया. ऐसा शायद पुलिस इंस्पैक्टर के इंस्ट्रक्शन के अनुसार किया गया था. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप की चारपाई के पास पड़े स्टूल पर बैठ गया. प्रताप के मांबाप और भाईभाभी उस के पैरों की ओर खड़े एकटक उसी को ताक रहे थे. सुधा अपने पापा के साथ पुलिस इंस्पैक्टर के पीछे खड़ी थी.

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पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रताप को गौर से देखा. फिर पूछा, ‘‘आप को किस ने मारा, जिस से आप का सिर फट गया?’’

प्रताप ने सुधा की ओर देखा. सुधा उसे ही ताक रही थी. इसलिए प्रताप से उस की नजरें मिल गईं. प्रताप से नजरें मिलते ही उस की आंखों से झरझर आंसू झरने लगे. प्रताप को लगा शायद उसे अपने किए पर पश्चात्ताप है. प्रताप ने सुधा पर से नजरें हटा कर एक बार सब की ओर देखा. फिर इंस्पैक्टर की ओर देख कर बोला, ‘‘मुझे कोई क्यों मारेगा? कल की दुर्घटना में मेरे पैर में चोट लग गई थी. जिस की वजह से मैं ठीक से चल नहीं

पा रहा था. रात सीढ़ी उतरते समय पैर लड़खड़ा गया, जिस से मैं सीढि़यों पर सिर के बल गिर पड़ा. फिर क्या हुआ, मुझे कुछ पता नहीं.’’

प्रताप का इतना कहना था कि सुधा फफकफफक कर रो पड़ी. इंस्पैक्टर उठा और सब पर एक नजर डाल कर बाहर निकल गया. अब उस के वहां रुकने का कोई सवाल ही नहीं था.

इंस्पैक्टर के जाते ही सुधा आगे बढ़ी और प्रताप का हाथ थाम कर बोली, ‘‘मैं ने आप को कितना परेशान किया, यहां तक कि आप को इस स्थिति में पहुंचा दिया, फिर भी आप ने मुझे बचाने के लिए झूठ बोला.’’

दूसरे हाथ से सुधा का हाथ दबाते हुए प्रताप बोला, ‘‘यह पतिपत्नी का झगड़ा था. पतिपत्नी के झगड़े में किसी तीसरे की कोई जरूरत नहीं होती. तुम ने जो किया, आखिर उस में मेरी भी तो कुछ गलती थी.’’

‘‘लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा,’’ कह कर सुधा ने प्रताप के दोनों हाथ अपने हाथों में भींच लिए. इस बीच बाकी लोग बाहर चले गए थे.

विषबेल- भाग 2: आखिर शर्मिला हर छोटी समस्या को क्यों विकराल बना देती थी

वापस लौट कर शर्मिला ने अपनी मां को फोन मिलाया और मनाली यात्रा के संस्मरण सुनाने लगी. हैरानपरेशान सा समीर दौड़भाग में जुटी अपनी मां को देखता, तो कभी पसीनेपसीने हो रही नंदिनी मौसी को. लेकिन पलंग पर आराम फरमाती शर्मिला को किसी से सरोकार न था.

दोपहर के 2 बज चुके थे. नंदिनी मौसी चौके में लंच तैयार कर रही थीं. शर्मिला ने उठ कर खाना खाया. फिर समीर को टैक्सी बुक करने के लिए कहा.

‘कहां जाना है?’

‘मां के पास.’

‘कल चली जाना, फिलहाल सफर की थकान तो उतार लो.’

‘2-3 घंटे में आ जाऊंगी समीर, मां की बहुत याद आ रही है.’

उस ने बच्चों की तरह मचल कर कहा, तो समीर ने टैक्सी बुक कर दी.

2 घंटे को कह कर शर्मिला जब रात तक वापस नहीं लौटी तो समीर ने फोन घुमा दिया, ‘कल शाम मां और पापा मेरठ जा रहे हैं. उन के जाने से पहले लौटने की कोशिश करना.’

‘यों अचानक…?’

‘पापा के बौस ने फोन किया था, इसीलिए अचानक प्रोग्राम बन गया.’

‘तो पापा अकेले चले जाएं.’

‘काफी दिन हो गए मां को भी घर छोड़े हुए, जाना जरूरी है, पता नहीं वहां भी घर किस हाल में होगा.’

‘कुछ दिन उन के साथ रह लेती, तो अच्छा लगता,’ उस ने अतिरिक्त मीठे स्वर में समीर से कहा.

तभी, पीछे से उस की मां और बहनों का स्वर सुनाई दिया, ‘इतनी खुशामद करेगी तो सिर पर चढ़ कर बैठ जाएंगे तेरे घर वाले. जाती हैं तो जाएं.’

‘खुशामद करूंगी, तभी तो समीर पल्लू से बंधा रहेगा.’

समीर ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया. 2 दिनों बाद शर्मिला वापस लौटी तो समीर का मूड उखड़ा हुआ था. शर्मिला ने बेपरवाही से अपना सामान व्यवस्थित किया, मैले कपड़े बाहर आंगन में नल के पास रखे और रिमोट उठा कर टीवी का स्विच औन कर के अपना मनपसंद सीरियल देखने लगी. बाहर निकली तो पटरे पर धुलने के बाद निचुड़े हुए कपड़े रखे थे. उस ने पैर से उन्हें नीचे गिरा दिया.

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‘यह क्या किया बहू? सुखाने के लिए पटरे पर कपड़े रखे थे.’

‘मैं सुखाने के लिए ही अपने कपड़े छांट रही थी,’ शर्मिला ने कहा और गंदे तरीके से नंदिनी मौसी की नाराजगी की प्रतीक्षा करने लगी.

‘रहने दो बहू, मैं तुम दोनों के कपड़े सुखा दूंगी,’ मौसी ने हंस कर कहा. तो शर्मिला ने शांत सरोवर में पत्थर फेंका, ‘आप को कोई भी काम ढंग से करना आता भी है?’

‘आज तक हमारे परिवार में नंदिनी मौसी से किसी ने इस तरह से बात नहीं की. और तुम…?’

‘सीधे क्यों नहीं कहते कि मु झे इस नौकरानी की इज्जत करनी होगी.’

‘नंदिनी मौसी नौकरानी नहीं, हमारे परिवार की घनिठ हैं. उन्होंने मु झे और अरविंद को गोद में खिलाया है.’

तब तक शर्मिला थाली खिसका चुकी थी, ‘मैं ने आज तक अपनी मां की दो कौड़ी की इज्जत नहीं की, इन की इज्जत क्या खाक करूंगी. शुक्र मनाओ, इन के हाथ का बना इतना बेस्वाद खाना खा रही हूं. एक बार मेरे हाथ का खाना खा कर तो देखना, उंगलियां चाटते रह जाओगे.’

‘30 वर्ष से अधिक हो गए रसोई बनाते हुए, हर चीज पूरी तरह कहां सीख पाई हूं. बहू, तुम जैसा कहोगी, वैसा बना दूंगी,’ नंदिनी मौसी की आंखों में आंसू आ गए.

‘अरे नहीं मौसी, घर में और भी बहुत काम हैं, शर्मिला को चौका संभालने दीजिए न.’

शर्मिला ने समीर की तरफ गौर से देखा, कहीं कटाक्ष तो नहीं कर रहा, किंतु वह निश्छल था और उस की हामी की प्रतीक्षा कर रहा था. अब शर्मिला घबरा गई. नंदिनी मौसी जैसी अनुभवी महिला के सामने उस का ज्ञान तो पासंगभर भी नहीं था. असल में शर्मिला तो वाकप्रहार के लिए हर समय आतुर रहती थी. शांतिपूर्ण वार्त्ता के लिए उस के पास तर्क ही कहां थे.

अगले दिन से रसोईघर से निकलने के लिए वह नुकसान पर नुकसान करने लगी. कभी कांच का गिलास तोड़ देती, कभी नई प्लेट पटक देती. गैस चूल्हे पर कभी दूध उफन जाता, कभी दालचावल बिखर जाते. मौसी ही समेटतीं और वह बिना पूछे गर्व से सफाई देती, ‘मैं उठाऊंगी तो धूलमिट्टी से मेरा रंग मैला हो जाएगा.’

कभी वह सब्जी से भरा बरतन सावधानी से लुढ़का देती, चूल्हे पर तवा और परात में पलेथन रह जाता वगैरहवगैरह.

एक दिन समीर को दफ्तर के काम से 2 दिनों के लिए हैदराबाद जाना था. ऊपर लौफ्ट में से बैग निकाल कर उस ने सामान सैट किया. फिर ताला बंद करने के लिए जैसे ही चाबी घुमाई, बैग का ताला हाथ में आ गया. उस ने कलाई में बंधी घड़ी पर नजर डाली. कुल एक घंटे का समय शेष रह गया था फ्लाइट छूटने में.

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‘सस्ता रोए बारबार, महंगा रोए एक बार,’ शर्मिला ने हंस कर ठिठोली की.

‘ब्रैंडेड कंपनी के बैग को तुम सस्ता कह रही हो? ऐसा क्या ले आईं तुम दहेज में?’

शर्मिला ने इसे जबरदस्ती का मौका बना लिया और रोने लगी, ‘तुम मु झे दहेज न लाने का ताना मार रहे हो.’

उस का रोना निराधार था. किंतु चूजे को सींक काफी, समीर स्तब्ध रह गया. उसे सम झ में नहीं आ रहा था बैग का ताला ठीक करे या पत्नी को संभाले? इधर घड़ी की सुई अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती जा रही थी. उधर, एअरलाइंस से फोन पर फोन आ रहे थे.

उस ने उस फ्लाइट का टिकट कैंसिल कराया और अगली फ्लाइट का बुक कर लिया. उस का जाना जरूरी था, बोर्ड मीटिंग जो थी.

नया बैग खरीदने के लिए उस ने कार की चाबी निकाली ही थी कि शर्मिला अचानक उदारता दिखलाते हुए बोली, ‘मार्केट जाने और आने में काफी समय निकल जाएगा, तुम मेरा बैग ले जाओ.’’

सु झाव अच्छा था. समीर मान गया. जैसे ही उस ने सामान बैग में रखा, शर्मिला ने चोट की, ‘संभाल कर ले जाना, कहीं खोंचा न लगे. पूरे 5,000 रुपए का है.’

शर्मिला को पूरा विश्वास था, समीर सामान निकाल कर बैग फर्श पर पटक देगा. किंतु वह अपमान का घूंट पी कर भी मुसकराता रहा, ‘मैं ने हमेशा महंगा सामान ही इस्तेमाल किया है शर्मिला. चिंता मत करो, तुम्हारा बैग सहीसलामत ही वापस लाऊंगा.’

2 दिनों बाद समीर वापस लौटा, तो उपहारस्वरूप शर्मिला के लिए हैदराबाद से मोतियों का पूरा सैट ले आया. शर्मिला सैट देख कर उछल पड़ी, ‘हैदराबाद में रंगीन मोतियों की माला भी मिलती है समीर?’ उस ने दूसरा डब्बा खोलने के लिए हाथ बढ़ाया तो समीर बोला, ‘यह मां के लिए है.’

उस ने जैसे ही डब्बा खोल कर शर्मिला को दिखाया, उस का चेहरा मुर झा गया. सास के लिए मोतियों की माला उसे बरदाश्त नहीं हुई.

मां जल्दी आना- भाग 1: विनीता अपनी मां को क्यों साथ रखना चाहती थी?

औफिससे आ कर जैसे ही मैं ने घर में प्रवेश किया एक सोंधी सी महक मेरे पूरे तनमन में फैल गई. बैग को सोफे पर पटक हाथमुंह धो कर मैं सीधे किचन में जा घुसी. कड़ाही में सिक रहे समोसों को देख कर पीछे से मां के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘अरे वाह मां, आज तो आप ने समोसे बना कर मोगैंबो को खुश कर दिया. बोलिए आप को क्या चाहिए.’’

‘‘तू खुद मां बन गई है पर अभी भी बचपना नहीं गया तेरा, ले जल्दी से खा कर बता कैसे बने हैं.’’ प्लेट में 2 समोसे और धनिया की चटनी डाल कर देते हुए मां ने हलकी सी चपत मेरे गाल पर लगा दी.

‘‘मां बन गई तो क्या मैं आप की बच्ची नहीं रही,’’ कहते हुए मैं समोसे खाने लगी. सर्दियों में मां के हाथ के समोसों के हम सब दीवाने थे. मुझे याद है मां किलोकिलो मैदा के समोसे बनातीं पर हम भाईबहन खाने में प्रतियोगिता सी करते और सारे समोसों को चट कर जाते थे. मां को कुकिंग का बहुत शौक था इसीलिए शायद हम भाईबहन बहुत चटोरे हो गए थे. मैं बचपन की सुनहरी यादों में कुछ और खोती उस से पहले मेरे पतिदेव अमन ने घर में प्रवेश किया और आते ही फरमान जारी किया.

‘‘विनू, जल्दी से कड़क चाय पिला दो सिर में तेज दर्द हो रहा है.’’

‘‘बेटा तुम हाथमुंह धो कर आ जाओ मैं ने तुम्हारी पसंद के पनीर के समोसे बनाए हैं और कड़क चाय बस तैयार होने ही वाली है.’’

‘‘अरे मां, आप क्यों परेशान होती हो इतनी बार आप से कहा है कि आप बस आराम किया करिए पर नहीं आप मान नहीं सकतीं.’’

‘‘बेटा हाथपैर चलते रहेंगे तो बुढ़ापा आराम से कट जाएगा पर अगर जाम हो गए तो मेरे साथसाथ तुम लोग भी परेशान हो जाओगे. इसलिए हलकाफुलका काम तो करने ही देते रहो… जिंदगीभर तो काम में कोल्हू के बैल की तरह जुते रहे और अब तुम आराम करने को कह रहे हो तो बताओ कैसे हो पाएगा…’’ मां ने मुसकराते हुए कहा तो अमन निशब्द से हो गए.

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हमें खिला कर मां अपनी प्लेट लगा कर ले आईं और टीवी देखते हुए स्वयं भी खाने लगीं. मां की शुरू से आदत है कि जब तक घर के एकएक सदस्य को खिला नहीं लेंगी तब तक स्वयं नहीं खाएंगी.

मैं चेंज कर के कुछ देर आराम करने के उद्देश्य से बिस्तर पर लेट गई. लेटते ही मन आज से 2 वर्ष पूर्व जा पहुंचा जब एक दिन सुबहसुबह मेरे भाई अनंत का मेरे पास फोन आया. मां और बाबूजी उस समय अनंत के ही पास थे. मेरे फोन उठाते ही वह बोला, ‘‘मैं तो परेशान हो गया हूं इन दोनों से, जब भी घर में आओ तो लगता है मानो 2 जासूस बैठे हैं घर में, हमारा इन के साथ एडजस्ट करना बहुत मुश्किल हो रहा है. दीदी आप ही कोई तरीका बताओ जिस से ये दोनों यहां से चले जाएं,’’ अनंत की बातें सुन कर मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया था.

उस से उम्र में 10 वर्ष बड़ी होने के बावजूद समझ नहीं पाई कि उस के प्रश्न का क्या जवाब दूं. जिस बेटे के जन्म के लिए मांबाबूजी ने न जाने कितनी मन्नतें मांगी, कितने मंदिर मस्जिद के दरवाजे खटखटाए और जिस के जन्म होने पर लगा मानो उन के जीवन के समस्त दुखों का हरण हो गया हो वही बेटा आज उन्हें जासूस कह रहा था. अपनी संतान की प्रगति से खुश होने वाले मातापिता अपने ही बेटे के घर में जासूस कैसे हो सकते हैं. भारतीय संस्कृति में पुत्र को मोक्ष के द्वार तक पहुंचाने वाला कहा गया है.

हमारे धर्मरक्षकों ने इस पर और चाशनी चढ़ाई कि मरणोपरांत पुत्र के द्वारा दी गई मुखाग्नि से ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है अन्यथा तो मानव बस नरक में ही जाता है बस इसी मानसिकता के शिकार धर्मभीरू मांबाबूजी इस कमर तोड़ती महंगाई में भी एक के बाद एक तीन बेटियों की कतार लगाते गए. इस बीच मां के गर्भ में पल रहीं कुछ बेटियों को तो जन्म ही नहीं लेने दिया गया. खैर इंतजार का फल मीठा होता है यह कहावत हमारे घर में भी चरितार्थ हुई और अंत में जब बेटा हुआ तो लगा मानो साक्षात स्वर्ग के द्वार खुल गए हों.

मांबाबूजी को उन का वह अनमोल हीरा मिल गया था जो उन की वृद्धावस्था को तारने वाला था. अपने हीरेमोती जैसे भाई को पा कर हम बहनों की खुशी का भी कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि हर रक्षाबंधन और भाईदूज पर हमें ताऊजी के बेटों की राह देखनी पड़ती थी. अब वह औपचारिकता समाप्त हो गई थी. समय अपनी गति से बढ़ रहा था. हम तीनों बहनों की शादियां हो गईं. दोनों बड़ी बहनें अपने परिवार के साथ विदेश जा बसीं थी सो सालदोसाल में एक बार ही आ पातीं थी. न केवल भाई अनंत बल्कि हम बहनों को पढ़ाने लिखाने में भी मांबाबूजी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. अब तक अनंत भी इंजीनियरिंग कर के दिल्ली में एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी करने लगा था. मैं भी यहां मुंबई में एक बैंक में कार्यरत थी.

भारतीय समाज में लड़केकी नौकरी लगते ही उस की बोली लगनी प्रारंभ हो जाती है सो अनंत के लिए भी रिश्तों की लाइन लगी थी. जब भी किसी लड़की का फोटो आता तो मांबाबूजी की खुशी देखते ही बनती थी. अपने बुढ़ापे का सुखमय होने का सपना देख रहे मांबाबूजी को उस समय तगड़ा झटका लगा जब एक बार अनंत छुट्टियों में घर आया और मांबाबूजी की लड़की देखने की तैयारी देख कर घोषणा की.

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‘‘मां मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और उसी से विवाह करूंगा. आप लोग

नाहक परेशान न हों.’’ अनंत एक वाक्य में अपनी बात कह कर घर से बाहर निकल गया.

‘‘मांबाबूजी को काटो तो खून नहीं. मां कभी उस दरवाजे को देखतीं जहां से अभी अनंत निकल कर गया था और कभी बाबूजी को. अपने कानों सुनी बात पर वे भरोसा ही नहीं कर पा रहीं थीं. अचानक किए गए अनंत के इस विस्फोट से वे बुरी तरह घबरा गईं और फूटफूट कर रोने लगीं और बोली,’’ इसी दिन के लिए पैदा किया था इसे. इसे पता भी है कि कितने बलिदानों के बाद हम ने इसे पाया है. क्याक्या सपने संजोए थे बहू को ले कर, इस ने एक बार भी नहीं सोचा हमारे बारे में. बाबूजी शायद मामले की गंभीरता को भांप नहीं पाए थे या अपने बेटे पर अतिविश्वास को सो वे मां को दिलासा देते हुए बोले, ‘‘मैं समझाऊंगा उसे, बच्चा है, समझ जाएगा. सब ठीक हो जाएगा. यह सब क्षणिक आवेश है. मेरा बेटा है अपने पिता की बात अवश्य मानेगा.’’

मां को भी बाबूजी की बातों पर और उस से भी ज्यादा अपने बेटे पर भरोसा था. सो बोलीं, ‘‘हां तुम सही कह रहे हो मुझे लगता है मजाक कर रहा होगा. ऐसा नहीं कर सकता वह. हमारे अरमानों पर पानी नहीं फेरेगा हमारा बेटा.’’

चूंकि अगले दिन अनंत वापस दिल्ली चला गया था सो बात आईगई हो गई पर अगली बार जब अनंत आया तो बाबूजी ने एक लड़की वाले को भी आने का समय दे दिया. अनंत ने उन के सामने बड़ा ही रूखा और तटस्थ व्यवहार किया और लड़की वालों के जाते ही मांबाबूजी पर बिफर पड़ा.

‘‘ये क्या तमाशा लगा रखा है आप लोगों ने, जब मैं ने आप को बता दिया कि मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और शादी भी उसी से करूंगा फिर इन लोगों को क्यों बुलाया. वह मेरे साथ मेरे ही औफिस में काम करती है. और यह रही उस की फोटो,’’ कहते हुए अनंत ने एक पोस्टकार्ड साइज की फोटो टेबल पर पटक दी.

अपने बेटे की बातों को किंकर्त्तव्यविमूढ़ सी सुन रहीं मां ने लपक कर टेबल से फोटो उठा ली. सामान्य से नैननक्श और सांवले रंग की लड़की को देख कर उन की त्यौरियां चढ़ गईं और बोलीं, ‘‘बेटा ये तो हमारे घर में पैबंद जैसी लगेगी. तुझे इस में क्या दिखा जो लट्टू हो गया.’’

‘‘मां मेरे लिए नैननक्श और रंग नहीं बल्कि गुण और योग्यता मायने रखते हैं और यामिनी बहुत योग्य है. हां एक बात और बता दूं कि यामिनी हमारी जाति की नहीं है,’’ अनंत ने कुछ सहमते हुए कहा.

‘‘अपनी जाति की नहीं है मतलब???’’ बाबूजी गरजते स्वर में बोले.

‘‘मतलब वह जाति से वर्मा हैं’’ अनंत ने दबे से स्वर में कहा.

‘‘वर्मा!!! मतलब!! सुनार!!! यही दिन और देखने को रह गया था. ब्राह्मण परिवार में एक सुनार की बेटी बहू बन कर आएगी… वाहवाह इसी दिन के लिए तो पैदा किया था तुझे. यह सब देखने से पहले मैं मर क्यों न गया. मुझे यह शादी कतई मंजूर नहीं,’’ बाबूजी आवेश और क्रोध से कांपने लगे थे. किसी तरह मां ने उन्हें संभाला.

‘‘तो ठीक है यह नहीं तो कोई नहीं. मैं आप लोगों की खुशी के लिए आजीवन कुंआरा रहूंगा.’’ अनंत अपना फैसला सुना कर घर से बाहर चला गया था. उस दिन न घर में खाना बना और न ही किसी ने कुछ खाया. प्रतिपल हंसीखुशी से गुंजायमान रहने वाले हमारे घर में ऐसी मनहूसियत छाई कि सब के जीवन से उल्लास और खुशी ने मानो अपना मुंह ही फेर लिया हो. विवाहित होने के बावजूद हम बहनों को भी इस घटना ने कुछ कम प्रभावित नहीं किया. मांबाबूजी का दुख हम से देखा नहीं जाता था और भाई अपने पर अटल था पर शायद समय सब से बड़ा मरहम होता है. कुछ ही माह में पुत्रमोह में डूबे मांबाबूजी को समझ आ गया था कि अब उन के पास बेटे की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं है. जिस घर की बेटियों को उन की मर्जी पूछे बगैर ससुराल के लिए विदा कर दिया गया था उस घर में बेटे की इच्छा का मान रखते हुए अंतर्जातीय विवाह के लिए भी जोरशोर से तैयारियां की गईं.

Manohar Kahaniya: डिंपल का मायावी प्रेमजाल- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

डिंपल उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि अब वह कहां जाएगी. मेहताजी के चक्कर में उस की जिंदगी बरबाद हो रही है. जबकि मेहताजी से उस ने खुद को कुंवारी बता कर मौजमजे के लिए संबंध बनाने की बात कही थी. लेकिन अब पता चला कि वह शादीशुदा है.

मेहताजी, डिंपल और उस के पति के झगड़े का तमाशा देखने के लिए वहां तमाम लोग इकट्ठा हो गए थे. सभी की सहानुभूति डिंपल के कथित पति और डिंपल के प्रति थी. सभी सारा दोष मेहताजी पर मढ़ रहे थे. वहां इकट्ठा लोग भी यही कर रहे थे कि जब डिंपल का पति उसे रखने को तैयार नहीं है तो मेहताजी को उसे अपने साथ ले जाना होगा.

शोरशराबा सुन कर वहीं पास ही रहने वाले एनसीपी के नेता नटवरभाई उर्फ नटुभाई ठाकोर भी अपने शागिर्दों के साथ वहां आ गए थे. पूरी बात सुनने के बाद पहले तो उन्होंने डिंपल के कथित पति से बात की, उस के बाद डिंपल से बात की.

मेहताजी को धमकाया जाने लगा

फिर उन्होंने मेहताजी को एक किनारे बुला कर कहा, ‘‘मेहताजी, अब आप को डिंपल से शादी करनी होगी. अगर शादी नहीं करोगे तो वह तुम्हारे ऊपर रेप का मुकदमा दर्ज करा देगी. उस के बाद तुम्हारा क्या हाल होगा, शायद यह बताने की जरूरत नहीं है. और

अगर उस से छुटकारा पाना चाहते हो तो एक काम करो. उसे इतना पैसा दे दो कि वह अकेली रह कर भी अपनी गुजरबसर कर ले.’’

यह सुन कर मेहताजी के तो होश ही उड़ गए. अगर डिंपल उन पर रेप का मुकदमा कर देगी तो उन की बदनामी तो होगी, जिंदगी भी बरबाद हो जाएगी. डिंपल के पास उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने के सबूत भी थे.

उस ने दोनों के शारीरिक संबंध बनाने के कई वीडियो बना रखे थे. वे वीडियो उस ने मेहताजी को भी भेजे थे. जो वीडियो वह अभी तक मौजमजे के लिए देखते थे, अब वही उन के गले की फांस बन गए थे.

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डिंपल से वह शादी कर नहीं सकते थे. अगर वह उस से शादी करते तो घर वाले उन्हें घर से निकाल तो देते ही, समाज में भी उन की काफी बदनामी होती. इसलिए उन्होंने पैसे दे कर डिंपल से छुटकारा पाने के बारे में विचार किया.

मेहताजी का सोचना था कि लाख, 2 लाख दे कर वह डिंपल से छुटकारा पा जाएंगे इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘इस से शादी तो मैं नहीं कर सकता. क्योंकि इस ने झूठ बोल कर मुझ से संबंध बनाया है. ऐसी औरत पर कैसे भरोसा किया जा सकता है. यह जो पैसा लेगी, मैं देने को तैयार हूं.’’

पैसे के लिए ही यह सारी साजिश रची गई थी. इसलिए जैसे ही मेहता ने पैसे की बात की तो एनसीपी नेता नटुभाई ठाकोर ने कहा, ‘‘ठीक है, 50 लाख रुपए दे दो. तुम भी आजाद और डिंपल भी आजाद.’’

‘‘क्या, 50 लाख?’’ 50 लाख सुन कर मेहताजी का मुंह खुला का खुला रह गया.

35 लाख में हुआ समझौता

मेहता को हैरानपरेशान देख कर नटुभाई ने कहा, ‘‘50 लाख तुम्हें ज्यादा लग रहे हैं क्या? किसी की जिंदगी का सवाल है. डिंपल को अब इसी रकम से पूरी जिंदगी बितानी है. पति छोड़ ही चुका है. तुम से जो रकम मिलेगी, उसी से उस का खर्च चलेगा.’’

‘‘फिर भी 50 लाख बहुत होते हैं. बताओ, इतनी बड़ी रकम मैं कहां से लाऊंगा.’’ मेहताजी ने इतना पैसा देने में असमर्थता व्यक्त की.

‘‘तब फिर तुम डिंपल के साथ शादी कर लो या फिर जेल जाने की तैयारी कर लो.’’ नटुभाई ने धमकी दी.

‘‘आप बीच में इतना क्यों उछल रहे

हैं? बात हम तीनों की है. आप बीच में

कहां से आ गए?’’ मेहता ने खीझ कर कहा.

‘‘मैं बीच में अपने आप नहीं आया. मुझे इन दोनों ने यह समझौता कराने के लिए बुलाया है.’’ नटुभाई ने डिंपल और उस के तथाकथित पति की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘अगर तुम्हें विश्वास न हो तो तुम खुद ही इन से पूछ लो.’’

मेहता ने दोनों की ओर देखा तो दोनों ने एक साथ कहा, ‘‘यह ठीक कह रहे हैं. हमारी ओर से यही बात करेंगे.’’

मेहताजी समझ गए कि वह बुरी तरह फंस चुके हैं. अब तक उन की समझ में यह भी आ चुका था कि उन्हें एक साजिश के तहत फंसाया गया है. ये लोग बिना पैसा लिए उसे छोड़ेंगे नहीं और रकम भी मोटी ही लेंगे. उस ने नटुभाई से कहा, ‘‘आप बहुत ज्यादा पैसा मांग रहे हैं. इतना पैसा मेरे पास नहीं है.’’

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‘‘यह सब तो तुम्हें किसी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने के पहले सोचना चाहिए था. मजे लिए हैं तो उस की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी.’’ नटुभाई ने कहा.

मेहताजी गिड़गिड़ाते रहे, पर वे पैसे कम करने को तैयार नहीं थे. मेहता के बहुत रोनेगिड़गिड़ाने पर उस ने 15 लाख रुपए कम किए. इस तरह 35 लाख रुपए में समझौता हुआ. मेहता ने डिंपल से छुटकारा पाने के लिए 35 लाख रुपए ला कर दिए.

पैसा दे कर मेहता को लगा कि अब वह डिंपल नाम के झंझट से मुक्ति पा गए हैं. पर 10 दिन बाद ही डिंपल का फिर फोन आ गया, ‘‘यार बहुत गड़बड़ हो गई है. मुझे गर्भ ठहर गया है. यह तुम्हारा ही बच्चा है.’’

‘‘तुम यह कैसे कह सकती हो कि यह मेरा ही बच्चा है. तुम्हारा पति भी तो है. उस का भी तो हो सकता है,‘‘ मेहता ने कहा.

‘‘मेरा पति भले है, पर कई महीने से उस से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’ डिंपल बोली.

‘‘अगर ऐसी बात है तो बच्चा गिरवा दो.’’

‘‘उस में भी तो खर्च लगेगा. खर्च कौन देगा?’’ डिंपल तुनक कर बोली, ‘‘फिर आजकल गर्भपात भी कराना इतना आसान नहीं है.’’

‘‘खर्च तो मैं दे चुका हूं. उसी में से खर्च करो,’’ मेहता ने कहा.

‘‘वह मेरी जिंदगी बिताने का खर्च है. बच्चा गिरवाने या पालने के लिए नहीं है. बच्चा गिरवाने का खर्च तुम्हें ही देना होगा. और हां, सीधेसीधे दे दो तो ज्यादा अच्छा रहेगा. अगर अंगुली टेढ़ी करनी पड़ी तो बुरे फंस जाओगे.’’ डिंपल ने धमकी दी.

‘‘क्या कर लोगी तुम?’’ मेहता ने भी सख्ती दिखाई. इतना कह कर उस ने फोन काट दिया.

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उस दिन वह शाम को औफिस से निकले तो गेट के बाहर डिंपल खड़ी मिल गई. उस के साथ 4 आदमी भी थे. उन सब को देख कर मेहताजी के हाथपैर फूल गए. सभी ने मेहता को घेर लिया.

डिंपल बोली, ‘‘मेहताजी, पैसा दोगे या यहीं पर अभी शोर मचाऊं?’’

मेहताजी बुरी तरह फंस गए थे. अगर शोरशराबा या किसी तरह का लड़ाईझगड़ा होता तो उन के औफिस के सामने उन की पोल खुल जाती. मजबूरन पैसे देने के लिए उन्हें हामी भरनी पड़ी. इस बार भी मेहताजी को 11 लाख रुपए देने पड़े.

अगले भाग में पढ़ें- ठग मंडली चढ़ गई पुलिस के हत्थे

Crime- हत्या: जर जोरू और जमीन का त्रिकोण

कहते हैं किसी अपराध के पीछे जर, जोरू और जमीन निश्चित रूप से होते हैं. इस प्राचीन सच के एक बार पुनः सत्य होने के प्रमाण मिल गए. जब एक पत्नी ने अपने अधेड़ पति की हत्या कुछ ऐसे ही कारणों से करवाई और अंततः पुलिस के हाथों पकड़े जाने पर आज जेल में हवा खा रही है.

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा के थाना कटघोरा अंतर्गत वन विभाग में कार्यरत एक डिप्टी रेंजर की हत्या के मामले को आखिरकार सुलझा लिया गया. अवैध संबंधों को लेकर की गयी ये हत्या सुपारी देकर कराइ गई थी. मामले के खुलासे के बाद पुलिस ने सात आरोपियों को गिरफ्तार किया है. सनसनीखेज तथ्य यह की हत्या की ये सुपारी किसी और को नहीं बल्कि देह व्यापार करने वाली एक महिला को दी गई .

इस मामले का खुलासा करते हुए हमारे संवाददाता को एसडीओ पुलिस रामगोपाल करियारे ने बताया – डिप्टी रेंजर कंचराम पाटले कटघोरा वन मंडल में पदस्थ था और ड्यूटी के लिए तो घर से निकला, मगर वापस नहीं लौटा.

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दूसरे दिन उसकी लाश पुराने बैरियर के पास सड़क के किनारे मिली. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डॉक्टर ने मौत की वजह पॉइजनिंग और रक्तश्राव और बताया. पुलिस जांच में धीरे-धीरे जो तथ्य सामने आए वह चौक आने वाले थे.

‘चुड़िहायी” पत्नी की भूमिका

पुलिस जांच में अंततः छत्तीसगढ़ की चूड़ी प्रथा के अंतर्गत पत्नी बनाकर लाई एक महिला को संदिग्ध पाया गया.

आगे देखिए! किस तरह पत्नी की भूमिका निभा रही महिला ने डिप्टी रेंजर की संपत्ति, उसकी नौकरी यानी कुल मिलाकर पति को रास्ते से हटाने क्या क्या धत्त कर्म किया.

पुलिस को पता चला कि कंचराम पाटले को किसी का फोन आया और वह ड्यूटी पर जाने की बात कहकर निकल पड़ा. पुलिस की साइबर टीम ने पाटले को आये मोबाइल कॉल के आधार पर मृतक कंचराम पाटले की चुड़ियाही पत्नी संतोषी पाटले और उसके जीजा नरेंद्र टंडन को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की. खुलासा हुआ कि कंचराम पाटले ने अपनी पहली पत्नी की मौत के बाद संतोषी पाटले से चूडियाही विवाह कर लिया था. मगर संतोषी का अपने जीजा नरेंद्र टंडन से पूर्व में ही अवैध संबंध था जिसकी जानकारी कंचराम पाटले को हो गयी थी जिसके पश्चात घर में विवाद की स्थिति रहने लगी थी. प्रदीप जी स्वभाव और हाथ से निकलने से चिंतित संतोषी ने अपने जीजा से मिलकर एक षड्यंत्र बुना.

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कंचराम पाटले और संतोषी के दो बच्चे हुए, वहीँ उसकी पहली पत्नी से एक पुत्री हुई थी जिसकी उम्र 24 वर्ष है, उसकी मिर्गी की बीमारी को लेकर कंचराम पाटले परेशान रहा करता था. वन विभाग में नौकरी करने वाले कंचराम पाटले के पास काफी संपत्ति थी, जिस पर उसके साढ़ू नरेंद्र टंडन की नजर गड़ गई. उसने संतोषी को लालच दिलाया की अगर कंचराम पाटले को रस्ते से हटा दिया जाये तो संतोषी को पेंसन के साथ नौकरी भी मिल जाएगी.

यह बात संतोषी को जच गई और वह अपने ही पति को रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र बुनती चली गई.
पुलिस ने इस वारदात में लिप्त देह व्यापर से जुडी एक महिला पूर्णिमा साहू को सुपारी किलर का नाम दिया है, जिससे नरेंद्र टंडन के मित्र राजेश जांगड़े उर्फ़ राजू ने संपर्क किया. इसके बाद हत्या का षड्यंत्र रचा गया.महीने भर बाद पूरी कहानी तैयार करके कंचराम पाटले को संतोषी ने कटघोरा आकर फोन किया और कहा कि वह उसकी बेटी के मिर्गी के इलाज के लिए एक वैद्य लेकर आयी है. कंचराम पाटले उसके झांसे में आ गया , और उसके बताये गए जगह पर पहुँच गया. यहाँ योजना के मुताबिक कंचराम पाटले को एक कार में बिठाया गया और उसे पानी में सुहागा घोल कर पिला दिया गयाऔर उसके नाक मुंह को दबा दिया गया. बेहोश होते ही उसे सड़क के किनारे फेंक दिया गया. यहाँ उसके ऊपर टंगिये से हमला किया गया. परिणाम स्वरूप कंचराम की मौत हो गयी.

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झाड़-फूंक कर खात्मे का भरोसा!

हत्या की इस वारदात के मास्टर माइंड नरेंद्र टंडन द्वारा दो लाख पच्चास हजार रूपये में सुपारी किलर पूर्णिमा साहू से सौदा कर हत्या की योजना बनाई गई.

इसके लिए उन्होंने कोरबी बलौदा निवासी राजेश जांगड़े उर्फ राजू 42 वर्ष के जरिए सरकंडा निवासी देहव्यापार में लिप्त पूर्णिमा से संपर्क किया उसने कंचराम के संबंध में पूरी जानकारी लेकर उसे झाड़फूक के जरिए मरवाने का विश्वास दिलाया. अपने प्रेमी कमल कुमार धुरी सरकंडा, ऋषि कुमार उर्फ गुड्‌डू सरकंडा और देह व्यापार में सहयोगी रामकुमार श्रीवास कोनी को योजना में शामिल कर लिया. घटना दिवस की शाम महिला अपने तीनों साथी के साथ कार में बिलासपुर से कटघोरा पहुंची. बाइक में नरेंद्र टंडन और राजेश जांगड़े भी वहां पहुंचे थे. और वारदात को अंजाम दिया.

इस मामले में पुलिस ने मृतक की पत्नी संतोषी पाटले, राजेश कुमार उर्फ़ राजू,कमल कुमार धुरी, ऋषि कुमार उर्फ गुड्डू और रामकुमार श्रीवास को गिरफ्तार करके हत्या के आरोप में जेल भेज दिया है.

अपने हिस्से की जिंदगी- भाग 2: क्यों कनु मोबाइल फोन से चिढ़ती थी?

Writer- Er. Asha Sharma

घर में पैसा आने से जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर आने लगी थी. कनु की दादी से अब घर का कामकाज नहीं हो पाता था, इसलिए उन की इच्छा थी कि घर में जल्दी से बहू आ जाए जो घर के साथसाथ जवान होती कनु का भी खयाल रख सके. मगर सोनू चाहता था कि 2-4 साल टैक्सी चला कर कुछ बचत कर फिर खुद की टैक्सी खरीद कर अपने पैरों पर खड़ा हो तब शादी की बात सोचे. इसलिए वह देर रात तक टैक्सी चलाता था.

इन सालों में मोबाइल आम आदमी के शौक से होता हुआ उस की जरूरत बन चुका था, साथ ही उस में कई तरह के आकर्षक फीचर भी जुड़ गए थे. सोनू को भी मोबाइल का शौक शायद अपने पापा से विरासत में मिला था. वह जब रात में घर लौटता था तो कानों में इयर फोन लगा कर तेज आवाज में गाने सुनता था. रात में ट्रैफिक कम होने के कारण टैक्सी की स्पीड भी ज्यादा ही होती थी.

एक दिन मोबाइल में बजने वाले गाने का टै्रक चेंज करते समय सोनू मोड़ पर आने वाले ट्रक को देख नहीं पाया और टैक्सी ट्रक से टकरा गई. ट्रक ड्राइवर तो घबराहट में ट्रक छोड़ कर भाग गया और सोनू वहीं जख्मी हालत में तड़पता पड़ा रहा. लगभग 1 घंटे बाद पुलिस गश्ती दल की मोबाइल वैन ने गश्त के दौरान उसे घायल अवस्था में देखा तो हौस्पिटल ले गई. वक्त पर हौस्पिटल पहुंचने से उस की जान तो बच गई, मगर सिर में चोट लगने से उस के दिमाग का एक हिस्सा डैमेज हो गया और वह लकवे का शिकार हो कर हमेशा के लिए बिस्तर पर आ गया. डाक्टर्स को उस के बचने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए उन्होंने सोनू को कुछ जरूरी दवाएं घर पर ही देने की सलाह दे कर हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया.

कनु पर एक बार फिर से मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. जब तक सोनू हौस्पिटल में रहा तब तक तो उस के पापा ने इलाज के लिए पैसा दिया, मगर हौस्पिटल से घर आने के बाद फिर उन्होंने बच्चों की कोई सुध नहीं ली. घर खर्च के साथसाथ सोनू की दवाइयों के खर्च की व्यवस्था भी अब कनु को ही करनी थी.

कहते हैं कि मुसीबत कभी अकेले नहीं आती. एक दिन बूढ़ी दादी बाथरूम में फिसल गईं और रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से वे भी चलनेफिरने से लाचार हो गईं.

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घरबाहर की सारी जिम्मेदारी अब कनु की थी. वह अब तक ग्रैजुएशन कर चुकी थी. उस ने एक कौल सैंटर में पार्टटाइम जौब कर ली. सुबह 11 से शाम 5 बजे तक वह कौल सैंटर में रहती थी. इस दौरान सोनू और दादी की देखभाल करने के लिए उस ने एक नर्स की व्यवस्था कर ली थी. घर लौटने के बाद देर रात तक घर से ही औनलाइन जौब किया करती थी. घरबाहर संभालती, कभी दादी तो कभी सोनू को दवाएं देती, उन की दैनिक क्रियाएं निबटाती कनु अकेले में फूटफूट कर रोती थी. मगर अंदर से बेहद कमजोर कनु बाहर से एकदम आयरन लेडी थी. मजबूत, बहादुर और स्वाभिमानी.

यहीं कौलसैंटर में ही उसे निमेश का साथ मिला था. अपनेआप में सिमटी कनु निमेश को एक पहेली सी लगती थी. कनु ने अपने चारों तरफ कछुए सा कठोर आवरण बना रखा था और निमेश ने जैसे उसे बेधने की ठान रखी थी. पता नहीं कैसे और कहां से वह कनु के बारे में सारी जानकारी इकट्ठा कर लाया था. कनु अभी नए मोबाइल हैंडसैट को हाथ में ही लिए बैठी थी

कि उस का पुराना फोन बज उठा. देखा तो निमेश का ही फोन था. कनु ने अपने आंसू पोंछे फोन रिसीव किया.

‘‘कैसा है बर्थडे गिफ्ट?’’ निमेश ने फोन उठाते ही पूछा.

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‘‘गिफ्ट तो अच्छा ही है, मगर मेरे किसी काम का नहीं… अगर किसी और लड़की पर ट्राई किया होता तो शायद तुम्हारे पैसे वसूल हो जाते…’’ कनु ने अपनेआप को सामान्य करने की कोशिश करते हुए मजाक किया.

‘‘कोई बात नहीं… अभी शायद तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, कल बात करते हैं,’’ कह कर निमेश ने फोन काट दिया.

जरूरी हैं दूरियां पास आने के लिए- भाग 2: क्यों मिशिका को भूलना चाहता था विहान

लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी

डिनर करने के बाद, जल्द ही फिर मिलने को कह कर विहान वापस चला गया. उस रात वह विहान से कोई सवाल नहीं कर सकी थी, जितना विहान पूछता रहा, वह उतना ही जवाब देती गई. वह खोई रही, विहान को इतने दिनों बाद अपने करीब पा कर, जैसे जी उठी थी वह उस रात.

विहान एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था. 15 दिन बीत चुके थे, इन 15 दिनों में विहान और मिशी 2 ही बार मिले.

विहान का काम पूरा हो चुका था, एक दिन बाद उस को निकलना था. मिशी विहान को ले कर बहुत परेशान थी. आखिर उस ने निर्णय लिया कि विहान के जाने के पहले वह उस से बात करेगी, पूछेगी उस की बेरुखी का कारण. मिशी अभी इसी उधेड़बुन में थी, तभी मोबाइल बज उठा. विहान की कौल थी.

‘‘हैलो, मिशी औफिस के बाद तैयार रहना, बाहर चलना है, तुम्हें किसी से मिलवाना है.’’

‘‘किस से मिलवाना है, विहान?’’

‘‘शाम होने तो दो, पता चल जाएगा.’’

‘‘बताओ तो?’’

‘‘समझ लो, मेरी गर्लफ्रैंड है.’’

इतना सुनते ही मिशी चुप हो गई. 6 बजे विहान ने उसे पिक किया. मिशी बहुत उदास थी, दिल में हजारों सवाल उमड़ रहे थे. वह कहना चाहती थी कि विहान, तुम्हारी शादी पूजा दी से होने वाली है, यह क्या तमाशा है. पर नहीं कह सकी, चुपचाप बैठी रही.

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‘‘पूछोगी नहीं, कौन है? विहान ने कहा.

‘‘पूछ कर क्या करना है? मिल ही लूंगी कुछ देर में,’’ मिशी ने धीरे से कहा.

थोड़ी देर बाद वे समुद्र किनारे पहुंचे. विहान ने मिशी को एक जगह इंतजार करने को कहा, ‘‘तुम यहां रुको, मैं उस को ले कर आता हूं.’’

आसमान ?िलमिलाते तारों की सुंदर बूटियों से सजा था. समुद्र की लहरें प्रकृति का मनभावन संगीत फिजाओं में घोल रही थीं. हवा मंथर गति से बह रही थी. फिर भी मिशिका का मन उदासी के भंवर में फंसा जा रहा था.

‘विहान मुझ से दूर हो जाएगा, मेरा विहान’ सोचतेसोचते उस की उंगलिया खुदबखुद रेत पर विहान का नाम उकेरने लगीं.

‘‘विहान… मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,’’ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.

मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां है… कब आए तुम, कहां है वह?’’

मिशी की आंखें उस लड़की को  ढूंढ़ रही थीं जिस से मिलवाने विहान उसे  वहां ले कर आया था.

‘‘नाराज हो कर चली गई,’’ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.

‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?’’ मिशी ने पूछा.

‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की यदि देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,’’ विहान ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,’’ मिशी सकपका कर बोली.

‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.’’

उस ने नजरें झका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी. फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने… मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.’’

‘‘अच्छा बाबा, नहीं लिखा,’’ विहान ने  मुसकरा कर कहा.

मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि यह हो क्या रहा है.

‘‘और वह लड़की जिस से मिलवाने तुम मुझे यहां ले कर आए थे? सच बताओ न विहान.’’

‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस, वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा.

नजरें  मिलते ही मिशी नजरें चुराने लगी.

‘‘मिशी, मत छिपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो,’’ विहान बोला.

मिशी की जबान खामोश थी पर आंखों में विहान के लिए प्यार साफ नजर आ रहा था, जिसे विहान ने पहले ही महसूस कर लिया था. पर वह मिशी से जानना चाहता था.

मिशी कुछ देर चुप रही, दूर समंदर में उठती लहरों के ज्वार को देखती रही. ऐसा  ही भावनाओं का ज्वार अभी उस के दिल में मचल रहा था. फिर उस ने हिम्मत बटोर कर बोलने की कोशिश की, पर उस की आंखों में जज्बातों का समंदर तैर गया, कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘कहां चले गए थे विहान, मैं… मैं… तुम को कितना मिस कर रही थी,’’ इतना कह कर वह फिर शून्य में देखने लगी.

‘‘मिशी, आज भी चुप रहोगी? बह जाने दो अपने जज्बातों को, जो भी दिल में है कहो. तुम नहीं जानतीं मैं ने इस दिन का कितना इंतजार किया है. मिशी बताओ, प्यार करती हो मुझ से?’’

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मिशी विहान की तरफ मुड़ी. उस के मन की भावनाएं उस की आंखों में साफ नजर आ रही थीं. होंठ कंपकंपा रहे थे. ‘‘विहान, तुम जब नहीं थे, तब जाना कि मेरे जीवन में तुम क्या हो, तुम्हारे बिना जीना सिर्फ सांस लेना भर है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं किस दौर से गुजरी हूं. मेरी उदासी का थोड़ा भी खयाल नहीं आया तुम को,’’ कहतेकहते मिशी रो पड़ी.

विहान ने उस के आंसू पोंछे और  मुसकराने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मिशी, तुम ने तो सिर्फ 10 महीने इंतजार किया, मैं ने वर्षों किया है. जिस तड़प से तुम कुछ दिन गुजरीं, वह मैं ने आज तक सही है. मिशी तुम मेरे लिए तब से खास हो जब मैं प्यार का मतलब भी नहीं समझता था. बचपन में खेलने के बाद जब तुम्हारे घर जाने का समय आता था तब अकसर तुम्हारी चप्पल कहीं खो जाती थी, तुम देर तक ढूंढ़ने के बाद मुझ से ही शिकायत करतीं और हम दोनों मिल कर अपने साथियों पर ही बरस पड़ते. पर मिशी वह मैं ही होता था, हर बार जो तुम्हें रोकने के लिए यह सब करता था. तुम कभी जान ही नहीं पाईं,’’ कहतेकहते विहान यादों में खो गया.

Crime Story: आवारा प्रेमी ने तेजाब से खेला खूनी खेल

शिल्पी के आते ही राबिया अम्मी को सलाम कर उस की साइकिल पर पीछे बैठ कर स्कूल के लिए चल पड़ी थी. यह 5 सितंबर, 2016 की बात है. राबिया और शिल्पी उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की खामपार के बहरोवां गांव की रहने वाली थीं. दोनों खामपार के बखरी चौराहा स्थित सर्वोदय इंटर कालेज में 11वीं में पढ़ती थीं. दोनों घर से कुछ दूर गई थीं कि एक मोटरसाइकिल उन का पीछा करने लगी. मोटरसाइकिल पर 3 लोग सवार थे. मोटरसाइकिल चलाने वाला हेलमेट लगाए था तो उस के पीछे बैठे लोग मुंह पर गमछा बांधे थे. जैसे ही दोनों लड़कियां सुनसान जगह पर पहुंचीं, पीछे चल रही मोटरसाइकिल उन की बराबर में आई. राबिया तथा शिल्पी कुछ समझ पातीं, मोटरसाइकिल पर सवार लोगों में पीछे बैठे आदमी ने राबिया को निशाना बना कर तेजाब फेंक दिया और तेज गति से मोटरसाइकिल चला कर वहां से फरार हो गए.

तेजाब पड़ते ही राबिया जलन से बुरी तरह बिलबिला उठी. उस का चेहरा, गरदन और पीठ बुरी तरह झुलस गई थी. तेजाब के कुछ छींटे शिल्पी के बाएं हाथ और जांघ पर पड़े थे. तेजाब की जलन से साइकिल का बैलेंस बिगड़ गया था, इसलिए दोनों साइकिल सहित गिर गईं. दोनों तेजाब की जलन से चीखनेचिल्लाने लगीं तो उधर से गुजर रहे लोग उन के पास जमा हो गए.

राबिया तो बेहोश हो गई थी. शिल्पी ने जब बताया कि मोटरसाइकिल पर सवार लोग उन पर तेजाब फेंक कर भाग गए हैं तो लोग राबिया को बांहों में उठा कर चौराहे पर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए. राबिया बुरी तरह झुलसी हुई थी, इसलिए वहां के डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे जिला अस्पताल भिजवाने के साथ घटना की सूचना थाना खामपार पुलिस को दे दी.

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सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर राजेंद्र प्रताप सिंह पुलिस बल के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंच गए. मामला गंभीर था, इसलिए उन्होंने इस घटना की सूचना एसपी मोहम्मद इमरान को भी दे दी थी. इस के बाद एसपी इमरान भी एसडीएम भाट पाररानी भी पहुंच गए थे. राबिया बयान देने लायक नहीं थी, इसलिए शिल्पी से पूछताछ कर पुलिस ने राबिया और शिल्पी के घर वालों को सूचना भी दे दी थी. सूचना मिलते ही दोनों के घर वाले रोतेबिलखते प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंच गए थे.

कुछ देर बाद जब राबिया थोड़ा सामान्य हुई तो उस ने पुलिस अधिकारियों और एसडीएम भाट पाररानी को जो बताया, वह चौंकाने वाला था. राबिया के बताए अनुसार, पिछले एक महीने से उस के मोबाइल पर किसी अंजान आदमी का लगातार फोन आ रहा था, जो उसे जान से मारने की धमकी दे रहा था. परेशान हो कर घर वालों ने नंबर बदल दिए, फिर भी न जाने कहां से उसे उस का नया नंबर मिल गया और वह उसे पहले से ज्यादा धमकाने और परेशान करने लगे.

राबिया के अब्बा मोहम्मद आलम अंसारी और भाई विदेश में थे. यहां घर में राबिया और उस की अम्मी ही थीं, इसलिए मिलने वाली धमकियों से दोनों बुरी तरह डर गई थीं. राबिया ने फोन कर के यह बात अब्बा को बताई तो उन्होंने पुलिस से शिकायत करने की सलाह दी. लेकिन उस की अम्मी पुलिस के पास जाने से डर रही थीं.

राबिया के बयान से पुलिस को लगा कि इस घटना में कोई अपना शामिल है, जिस की उस के घर में अंदर तक पैठ थी. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की जांच एसडीएम भाट पाररानी को सौंप दी, क्योंकि इस तरह के मामलों की जांच एसडीएम स्तर के अधिकारी करते हैं. घटना की मौनिटरिंग आईजी (जोन) मोहित अग्रवाल कर रहे थे.

पुलिस ने राबिया के दोनों मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो उस में एक नंबर ऐसा मिला, जो दोनों नंबरों की काल डिटेल्स में था. पुलिस को उसी नंबर पर शक हुआ. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर देवरिया के पूरब लार के रहने वाले इदरीस के बेटे आजाद उर्फ डब्लू का निकला.

पुलिस ने जब राबिया की मां से आजाद के बारे में पूछा तो उस का नाम सुन कर वह हैरानी से पुलिस का मुंह ताकती रह गईं. क्योंकि वह उस का दूर का रिश्तेदार था, जिस की वजह से वह उस के घर भी आताजाता था.

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पुलिस के लिए इतनी जानकारी काफी थी. पूछताछ के लिए उसे थाने लाया गया. थाने आते ही वह इतना घबरा गया कि खुद ही अपना अपराध स्वीकार कर के शुरू से ले कर अंत तक पूरी कहानी सुना दी. उसी ने अपने साथियों के साथ राबिया पर तेजाब फेंका था. इस की वजह यह थी कि वही नहीं, उस के दोनों साथी भी राबिया से प्रेम करते थे. लेकिन राबिया ने उन्हें भाव नहीं दिया तो उन्होंने बदला लेने के लिए उस की दुर्गति कर दी थी.

आजाद की निशानदेही पर पुलिस ने उस के दोनों साथियों रति तिवारी और आनंद कुशवाहा को भी उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. आजाद को पुलिस हिरासत में देख कर रति तिवारी और आनंद कुशवाहा ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

इस के बाद एसपी मोहम्मद इमरान की उपस्थिति में पुलिस लाइन के सभागार में पत्रकारवार्ता के दौरान तीनों गिरफ्तार आरोपियों आजाद उर्फ डब्लू, रति तिवारी और अरविंद कुशवाहा ने राबिया के ऊपर तेजाब फेंकने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

22 साल का आजाद उर्फ डब्लू देवरिया जिले की लार के पूरब लार मोहल्ले का रहने वाला था. उस के पिता इदरीस सरकारी नौकरी में थे. नौकरी की वजह से वह परिवार को ज्यादा समय नहीं दे पाए, जिस की वजह से आजाद इंटरमीडिएट से आगे नहीं पढ़ सका. पढ़ाई छोड़ कर वह आवारागर्दी करने लगा था.

रति तिवारी और अरविंद कुशवाहा उस के पक्के दोस्त थे. ये दोनों भी उसी की तरह आवारागर्दी करते थे. रति तिवारी के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी. उस के पास मोटरसाइकिल थी. उसी से तीनों दिन भर बरखी चौराहे पर घूमते रहते थे और आतीजाती लड़कियों पर फब्तियां कसते रहते थे.

रिश्तेदार होने की वजह से आजाद राबिया के घर आताजाता रहता था. राबिया काफी खूबसूरत थी. घर आनेजाने में आजाद राबिया की सुंदरता पर मर मिटा. उस ने अपने दिल की बात दोनों दोस्तों को बताई तो उन का दिल भी राबिया को देखने के लिए मचल उठा. उन्होंने आजाद से राबिया से मिलवाने को कहा तो एक दिन वह दोनों को ले कर राबिया के घर पहुंच गया. घर पर राबिया और उस की अम्मी ही थीं. उस के अब्बा और भाई विदेश में रहते थे.

जब रति और अरविंद ने भी राबिया को देखा तो उन का भी दिल उस पर आ गया. वे आजाद के साथ लौट तो आए लेकिन दिल का चैन वहीं छोड़ आए. इस तरह राबिया के दीवानों की लिस्ट में 2 नाम और शामिल हो गए थे. आजाद दिल की बात राबिया से कहना चाहता, लेकिन उसे मौका नहीं मिल रहा था. संयोग से एक दिन दोपहर को राबिया के घर पहुंचा तो वह घर में अकेली थी. उस की अम्मी पड़ोस में गई थीं.

राबिया ने आजाद के लिए चाय बनाई और नमकीन के साथ सैंट्रल टेबल पर रख कर उस से बातें करने के लिए बगल वाले सोफे पर बैठ गई. इस मौके का फायदा उठाते हुए आजाद ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘राबिया, मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘अरे, यह क्या, यह गलतफहमी तुम ने कब से पाल ली  छोड़ो मेरा हाथ, आज के बाद इस तरह की हरकत फिर कभी की तो ठीक नहीं होगा.’’

‘‘प्लीज राबिया, ऐसा मत कहो. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगा. कसम से मैं तुम से बेपनाह मोहब्बत करता हूं.’’ आजाद ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

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‘‘बस आजाद, अब कुछ मत कहना. अगर इस तरह की बातें किसी ने सुन लीं तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. मैं नहीं चाहती कि मेरे घर वालों की बदनामी हो. मैं प्यारव्यार में जरा भी यकीन नहीं करती. इसलिए इस तरह की बात तुम दिमाग से निकाल दो. और तुरंत यहां से चले जाओ वरना मैं तुम्हें धक्के दे कर निकाल दूंगी.’’ राबिया ने तैश में आ कर कहा.

राबिया की खरीखोटी सुन कर आजाद हारे हुए जुआरी की तरह उस के घर से निकला. उसे राबिया के जवाब से गहरा आघात लगा था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि राबिया उसे इस तरह का जवाब देगी. इसलिए उसे उस पर काफी गुस्सा आ रहा था. उस ने यह बात अपने दोस्तों रति और अरविंद को बताई तो ऊपर से तो दोनों ने दुख व्यक्त किया लेकिन मन ही मन दोनों बहुत खुश हुए.

इस की वजह यह थी कि राबिया आजाद से प्यार नहीं करती थी तो उन का दांव लग सकता था. लेकिन राबिया ने उन दोनों को भी उन की औकात बता दी थी. राबिया की बातों से उन के भी सिर से इश्क का भूत उतर गया था.

राबिया द्वारा किए अपमान से तिलमिलाए तीनों जख्मी शेर बन गए. अपमान की आग में जल रहे तीनों ने बातचीत कर के राबिया से बदला लेने का निर्णय लिया. उन्होंने उसे फोन पर धमकाने की योजना बनाई, ताकि डर कर वह हथियार डाल दे. आजाद राबिया के घर के कोनेकोने से वाकिफ था. घर में सिर्फ मांबेटी ही रहती थीं. इसी का फायदा उठा कर उसे लगा कि वह धमकी भरे फोन करेगा तो मांबेटी डर कर मदद के लिए उसी को बुलाएंगी. उस के बाद धीरेधीरे वह उस के करीब आ जाएगी.

योजना के अनुसार, आजाद ने राबिया के घर वाले मोबाइल पर फोन कर के उसे जान से मारने की धमकी दी. इस धमकी से मांबेटी डर तो गईं लेकिन उन्हें लगा कि कोई सिरफिरा सिर्फ फोन कर के डरा रहा है. इसलिए उन्होंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उस ने दोबारा फोन कर के धमकी दी तो मांबेटी परेशान हो गईं.

आजाद बारबार फोन कर के धमकाने लगा तो राबिया की मां ने यह बात अपने पति मोहम्मद आलम अंसारी को फोन कर के बताई. उन्होंने पुलिस के पास जा कर शिकायत करने की सलाह दी, लेकिन राबिया की मां पुलिस के पास यह सोच कर नहीं गई कि इस से उन्हीं की बदनामी होगी. इस के अलावा राबिया पढ़ने जाती थी, कहीं उन बदमाशों ने कोई ऊंचनीच कर दी तो वे कहीं की नहीं रहेंगी. इसलिए पुलिस से शिकायत करने के बजाए उन्होंने फोन नंबर ही बदल दिए.

आजाद और उस के दोस्तों ने जो सोच कर यह खेल खेला था, वह पूरा नहीं हुआ. आजाद को राबिया का नया नंबर भी मिल गया, उस नंबर पर भी वह धमकियां देने लगा था. राबिया और उस की मां ने यह बात अपने तक ही सीमित रखी. मदद के लिए उन्होंने किसी को नहीं बुलाया.

बात बनती न देख आजाद और उस के दोस्तों ने दूसरे तरीके से राबिया से बदला लेने की योजना बनाई. इस बार की योजना पहले से काफी खतरनाक थी. तीनों ने राबिया पर तेजाब डाल कर उस की जिंदगी बरबाद करने की योजना बनाई. योजना बनाने के बाद आजाद ने बखरी चौक कस्बे से एक परिचित की दुकान से तेजाब की 1 लीटर की बोतल यह कह कर खरीदी कि उसे घर का शौचालय साफ करना है. दुकानदार परिचित था, इसलिए विश्वास कर के उस ने तेजाब दे दिया. तेजाब की व्यवस्था हो गई तो तीनों राबिया की दैनिक गतिविधियों पर नजर रखने लगे.

सारी जानकारी जुटा कर 5 दिसंबर, 2016 की सुबह जब राबिया शिल्पी के साथ उस की साइकिल से स्कूल जा रही थी तो तीनों ने मोटरसाइकिल से पीछा कर राबिया पर तेजाब फेंक दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आजाद, रति तिवारी और अरविंद को अदालत में पेश किया, जहां से सबूत जुटाने के लिए तीनों को पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान पुलिस ने रति के घर से उस की मोटरसाइकिल तथा तेजाब की बोतल बरामद कर ली थी. रिमांड खत्म होने पर तीनों को दोबारा अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

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बेहतर इलाज से राबिया अब स्वस्थ हो चुकी है, लेकिन राबिया और शिल्पी काफी डरी हुई हैं. दोनों चाहती हैं कि इन आशिकों को ऐसी सजा मिले कि दोबारा कोई आशिक किसी लड़की के साथ ऐसी घिनौनी हरकत करने की हिम्मत न कर सके.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तुम्हारे हिस्से में- भाग 1: पत्नी के प्यार में क्या मां को भूल गया हर्ष?

लेखक- महावीर राजी 

बाइक ‘साउथ सिटी’ मौल के सामने आ कर रुकी तो एक पल के लिए दोनों के बदन में रोमांच से गुदगुदी हुई. मौल का सम्मोहित कर देने वाला विराट प्रवेशद्वार. द्वार के दोनों ओर जटायु के विशाल डैनों की मानिंद दूर तक फैली चारदीवारी. चारदीवारी पर फ्रेस्को शैली के भित्तिचित्र. राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय उत्पादों की नुमाइश करते बड़ेबड़े आदमकद होर्डिंग्स और विंडो शोकेस. सबकुछ इतना अचरजकारी कि देख कर आंखें बरबस फटी की फटी रह जाएं.

भीतर बड़ा सा वृत्ताकार आंगन. आंगन के चारों ओर भव्यता की सारी सीमाओं को लांघते बड़ेबड़े शोरूम. बीच में थोड़ीथोड़ी दूर पर आगतों को मासूमियत के संग अपनी हथेलियों पर ले कर ऊपर की मनचाही मंजिलों तक ले जाने के लिए तत्पर एस्केलेटर.

‘‘कैसा लग रहा है, जेन?’’ नाम तो संजना था, पर हर्ष उसे प्यार से जेन पुकारता. शादी के पहले संजना मायके में ‘संजू’ थी. शादी के बाद हर्ष उसे बांहों में भरते हुए ठुनका था, ‘संजू कैसा देहाती शब्द लगता है. ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में सबकुछ ग्लोबल होना चाहिए, नाम भी. इसलिए आज से मैं तुम्हें जेन कहूंगा, माय जेन फोंडा.’

‘‘अद्भुत,’’ संजना के होंठों की लिपस्टिक में गर्वीली ठनक घुल गई. चेहरा ओस में नहाए गुलाब सा खिल गया, ‘‘लगता है, पेरिस का मिनी संस्करण ही उतर आया हो यहां.’’

‘‘एक बात जान लो. यहां हर चीज की कीमत बाहर के स्टोरों की तुलना में दोगुनी मिलेगी,’’ हर्ष चहका.

संजना खिलखिला कर हंस पड़ी तो लगा जैसे छोटीछोटी घंटियां खनखना उठी हों. होंठों की फांक के भीतर करीने से जड़े मोतियों से दांत चमक उठे. वह शरारत से आंखें नचाती बोली, ‘‘कुछ हद तक बेशक सही है तुम्हारी बात. पर जनाब, इस तरह के मौल में खरीदारी का रोमांच ही कुछ और है. इस रोमांच को हासिल करने के लिए थोड़ा त्याग भी करना पड़ जाए तो सौदा बुरा नहीं.’’

‘‘लगता है, इस क्रैडिट कार्ड का कचूमर निकाल देने का इरादा है आज,’’ हर्ष ने जेब से आयताकार क्रैडिट कार्ड निकाल कर संजना के आगे लहराते हुए कहा. संजना फिर से खिलखिला पड़ी. इस बार उस की हंसी में रातरानी सी महक घुली थी. हंसने से देह में थिरकन हुई तो बालों की एक महीन लट आंखों के पास से होती हुई होंठों तक चली आई.

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‘‘तुम औरतों में बचत की आदत तो बिल्कुल नहीं होती,’’ होंठों पर लोटते लट को मुग्ध भाव से देखता हर्ष मुसकराया.

‘‘न, ऐसा नहीं कह सकते तुम. उचित जगह पर भरपूर किफायत और बचत भी किया करती हैं हम औरतें. विश्वास करो, तुम्हारे इस क्रैडिट कार्ड पर जो भी खरोंचें लगेंगी आज, उन पर जल्द ही बचत की पौलिश भी लगा दूंगी. ठीक? पर अभी स्टेटस सिंबल…’’

दोनों एस्केलेटर की ओर बढ़ गए.

‘‘जानते हो हर्ष, पड़ोस के 402 नंबर वाले गुप्ताजी तुम से जूनियर हैं न? उन की मिसेज इसी मौल से खरीदारी कर गई हैं कल,’’ संजना हाथ नचानचा कर बता रही थी, ‘‘आज मैं खबर लूंगी उन की.’’

‘‘नारीसुलभ डाह,’’ हर्ष ने चुटकी ली.

‘‘नहीं, केवल स्टेटस सिंबल,’’ दोनों की आंखों में दुबके शरारत के नन्हे चूजे पंचम स्वर में चींचीं कर रहे थे.

पहली मंजिल. मौल का सब से मशहूर शोरूम ‘अप्सरा’. दोनों शोरूम के भीतर चले आए. अंदर का माहौल तेज रोशनी से जगमगा रहा था. चारों ओर बड़ीबड़ी शैल्फें. वस्त्र ही वस्त्र. राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय ब्रांड. फैशन व डिजाइनों के नवीनतम संग्रह. जीवंत से दिखने वाले पुतले खड़े थे, तरहतरह के डिजाइनर कपड़ों को प्रदर्शित करते हुए.

शोरूम का विनम्र व कुशल सेल्समैन उन्हें खास काउंटर पर ले आया. साडि़यां, जींसटौप, पैंटशर्ट, अंडरगार्मेंट्स…रंगों के अद्भुत शेड्स. एक से बढ़ कर एक कसीदाकारी की नवीनतम बानगी. मनपसंद को चुन लेने की प्रक्रिया 3 घंटे तक चली. आखिरकार चुने हुए वस्त्र ढेर से अलग हुए और आकर्षक भड़कीले पैकेटों में बंद हो कर आ गए. पेमेंट काउंटर पर बिल पेश हुआ, 18,500 रुपए का. क्रैडिट कार्ड पर कुछ खरोंचें लगीं और भुगतान हो गया.

संजना के चेहरे पर संतुष्टि के भाव झलक रहे थे. पैकेटों को चमगादड़ की तरह हाथों में झुलाए कैप्सूल लिफ्ट से नीचे उतरे ही थे कि संजना के पांव थम गए.

‘‘दीवाली के इस मौके पर जींसटौप का एक सैट बुलबुल के लिए भी ले लिया जाए तो कैसा रहेगा, हर्ष? जीजू की ओर से गिफ्ट पा कर तो वह नटखट बौरा ही जाएगी.’’

‘‘अरे, वंडरफुल आइडिया, यार,’’ बुलबुल के जिक्र मात्र से ही हर्ष रोमांच से भर गया.

बुलबुल संजना की इकलौती बहन थी. शोख व चंचल. रूप और लावण्य में संजना से दो कदम आगे. 12वीं कक्षा में कौमर्स की छात्रा. शादी की गहमागहमी में तो परिचय बस औपचारिक ही रहा था, पर सप्ताह भर बाद ‘पीठफेरी’ पर संजना को लिवाने हर्ष गया तो संकोचों की बालुई दीवार को ढहते देर नहीं लगी. 3 दिनों का प्रवास था. एक दिन मैथान डैम की सैर का प्रोग्राम बना. डैम देख चुकने के बाद तीनों समीप के पार्क में चले गए. अचानक संजना की नजर दूर खड़े आइसक्रीम के ठेले पर पड़ी तो वह उठ कर आइसक्रीम लाने चली गई. बरगद की ओट. रिश्ते की अल्हड़ता और बुलबुल की आंखों से झरती महुआ की मादक गंध. हर्ष ने आगे बढ़ कर बुलबुल के होंठों पर चुंबन जड़ दिया.

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हर्ष की उंगलियां अनायास ही होंठों पर चली गईं. बुलबुल के होंठों का गीलापन अभी भी कुंडली मारे बैठा था वहां. सिहरन से लरज कर हर्ष चहका, ‘‘जींसटौप के साथसाथ एक साड़ी भी ले लो. अपनी जैसी प्राइस रेंज की लेना, ठीक?’’

दोनों वापस एस्केलेटर पर सवार हो कर ऊपर की ओर बढ़ गए.

रमा सिलाई मशीन से उठ कर बाहर बरामदे में आ गई. मशीन पर लगातार 5 घंटे बैठने से पीठ और कमर अकड़ गई थी. सूई की ओर लगातार नजरें गड़ाए रखने से आंखें जल रही थीं. रात के 11 बज रहे थे. बाहर रात की काली चादर पर आधे चांद की धूसर चांदनी झर रही थी. अंधेरे के अदृश्य कोनों से झींगुरों का समवेत रुदन सन्नाटे को रहस्यमय बना रहा था.

चैन नहीं पड़ा तो वापस कोठरी में लौट आई. कोठरी के भीतर बिखरे सामान को देख कर हंसी छूट गई. मरम्मत की हुई पुरानी सिलाई मशीन. पास ही कपड़ों के ढेर, जो महाजनों के यहां से रफू के लिए आए थे. मरम्मत की हुई पुरानी खड़खड़ करती टेबल. बरतनभांडे, दीवार, छत, कपड़ेलत्ते, खाटखटोले सब के सब जैसे रफूमय हों, मरम्मत किए हुए.

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रमा ब्याह कर पहली बार आई थी यहां तो उम्र 16 साल थी. रमेसर एक एल्युमिनियम कारखाने में लेबर था. जिंदगी की गाड़ी सालभर ठीकठाक चली. उस के बाद श्रमिक संगठनों व प्रबंधन के आपसी मल्लयुद्ध में लहूलुहान हो कर एशिया का यह सब से बड़ा संयंत्र भीष्म पितामह की तरह शरशय्या पर ऐसा पड़ा कि फिर उठ नहीं सका. हजारों श्रमिक बेकारी की अंधी सुरंग में धकेल दिए गए.

रमेसर ने काम के लिए बहुत हाथपांव मारे पर कहीं भी जुगाड़ नहीं बैठ पाया. अंत में वह रिकशा चलाने लगा. पर दमे का पुराना मरीज होने के कारण कितनी सवारियां खींच पाता भला? खाने के लाले पड़ने लगे. तब बचपन में सीखा सिलाई और रफूगीरी का शौकिया हुनर काम आया. रमा ने पुरानी सिलाई मशीन का जुगाड़ किया. धैर्य रखते हुए पास के रानीगंज व आसनसोल शहर के व्यापारियों से संपर्क साधा और इस तरह सिलाई व रफूगीरी के पेशे से जिंदगी की फटी चादर पर रफू लगाने की कवायद शुरू हुई.

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