पत्नी का षड्यंत्र, पति को गोली!

Crime News in Hindi: जिन आरोपियों की तलाश में पुलिस इधर-उधर भटकती रही और यहां तक की थाना प्रभारी की पिटाई तक हो गई . उस हत्या के पार्श्व मे कोई और चेहरा, विलेन  नहीं बल्कि उसी की पत्नी का कारनामा उजागर हुआ है. पत्नी मंजू बघेल (Manju Bhagel) ने अपने प्रेमी(Lover) और उसके साथियों के साथ मिलकर अपने ही पति कामता बघेल (Kamta Bhagel) की गोली मारकर हत्या की वारदात को अंजाम दिया था. छत्तीसगढ़ (Chhattishgarh) में घटित इस सनसनीखेज वारदात राष्ट्रीय स्तर पर हुई थी बलौदा बाजार भाटापारा (Balauda Bazar Bhatapara) शांत जिला कहलाता है जहां भाटापारा थाना के एक खेत में सुबह-सुबह एक शख्स को गोली मार दी जाती है पुलिस इस मामले पर सतर्क होती है और या हत्याकांड (Murder) चर्चा का बयास बन जाता है इस एक तरह से अबूझ हत्याकांड की सच्चाई आपको सोचने पर विवश कर देगी कि समाज में आज क्या क्या घटित हो जाता है और उसके दुष्परिणाम परिवार को भोगना पड़ता  है.

पति लगने लगा, जब प्रेम में रोड़ा

बलौदा बाजार भाटापारा जिला की पुलिस कप्तान नीथू कमल ने मामले का खुलासा करते हुए संवाददाता को बताया कि गोलीकांड में मृतक पति कामता बघेल की पत्नी आरोपी मंजू बघेल, आशिक यदु कुमार नवरंगे और साथी रामू यादव व राजा बाबू को गिरफ्तार किया गया है. इन चारों ने ही मिलकर हत्याकांड को अंजाम दिया था.

पुलिस द्वारा हत्या में इस्तेमाल पिस्टल को बरामद कर लिया गया है. पाठकों को बताते चलें कि कामता बघेल की हत्या भाटापारा के ग्राम सुरखी शराब भट्ठी के पास 5 अक्टूबर 2019 को की गई  थी.मृतक की पत्नी मंजू बघेल पूर्व में सब्जी मंडी भाटापारा में मजदूरी का काम करती थी.

यही उसका आलू प्याज,टमाटर बेचने वाले बिटकुली के निवासी यदू नवरंगे से प्यार हो गया था. इसकी जानकारी पति को 6 महीने पहले लगी थी. जिसके बाद पति ने पत्नी को समझाया और ताड़ना भी की.  जब समझाने का बाद भी बात नहीं बनी तो परिवार मे विवाद बढ़ने लगा, कामता बघेल का जीवन दूभर हो गया.

प्रेमी के साथ किया षड्यंत्र

कामता की पत्नी मंजू पति को छोड़कर एक दिन अपने मायके चली गई. कामता परेशान रहने लगा. कामता कोशिश करता रहा कि मंजू बघेल को सद्बुद्धि आ जाए मगर प्रेम के भंवर में फंस कर वह मानो सब कुछ भूल चुकी थी. यही कारण है कि पति को रास्ते से हटाने के लिए उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा और 1 दिन गोली मारकर कामता बघेल की हत्या कर दी गई.

पुलिस इस मामले में लगातार कांच तेज करती चली गई परिणाम स्वरूप सूचना मिलने पर आरोपी यदू कुमार नवरंगे को पूछताछ की गयी. पूछताछ में पता चला कि कामता की पत्नी का यदू कुमार नवरंगे से लगातार संपर्क था और दोनों के बीच प्रगाढ़ प्रेम संबंध भी था.

पुलिस जांच में यह भी स्पष्ट होता चला गया कि मृतक के कारण दोनों का मिल पाना संभव नहीं हो पा रहा था जिस पर मृतक की पत्नी ने यदू नवरंगे के साथ मिलकर चन्द्रकात बघेल उर्फ कामता को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया. पति को रास्ते से हटाने के बाद एक साथ आंध्र प्रदेश या अन्य किसी प्रांत भाग जाने योजना भी उन्होंने बना रखी थी.

मृतक कामता की पत्नी मंजू के खातिर षड्यंत्र कारी यदू कुमार नवरंगे अपने पत्नी एवं बच्चों को भी छोड़ने के लिए तैयार हो चुका था. सहयोगी आरोपी रामू यादव के पास पिस्तौल थी. जिससे कामता बघेल को मारने  स्वीकृति दे दी. यदू कुमार नवरंगे द्वारा अपने अन्य दो दोस्त रामू यादव और राजा बाबू के साथ मिलकर कामता को मिलने के लिए बुलाया.

शराब भट्टी सुरखी रोड के पास रामू यादव एवं यदू कुमार नवरंगे ने कामता की गोली मारकर हत्या कर दी और रामू यादव ने उपयोग किए गए पिस्तौल को सुरखी पुल के पास छुपा कर रख दिया था. पुलिस ने अब चारों आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. घटना में इस्तेमाल बाइक एवं पिस्तौल को आरोपियों के कब्जे से मेमोरेंडम के आधार पर बरामद कर लिया गया है.

मेरी पत्नी अक्सर अपने बॉयफ्रेंड से मिलती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 28 साल का हूं और फौज में काम करता हूं. शादी को 3 साल हो गए. 2 बेटियां भी हैं. बीवी मेरे घर से 600 किलोमीटर दूर अपने मायके में रहती है. अपनी छोटी बहन के दोस्त से उस के नाजायज संबंध भी हैं. वह कहती है कि मुझे छोड़ देगी, लेकिन उस नाजायज आदमी को नहीं छोड़ेगी. जरा सी बात पर हाथपैर तुड़वाने की धमकी देती है. वह न तो तलाक देती है और न ही मेरे पास आती है. मैं क्या करूं?

जवाब

फौज में होते हुए भी आप घर के मोरचे पर मुसीबतों से घिरे हुए हैं. आमतौर पर पतिपत्नी के बीच सुलह होना ही अच्छा होता है, पर हालात देखते हुए इस के आसार नहीं लगते. आप किसी रिश्तेदार के जरीए एक बार समझौते की कोशिश कर सकते हैं. पत्नी को समझाएं कि अपनी बेटियों और आने वाले वक्त की बेहतरी के लिए आवारगी छोड़ कर घर लौट आए. दूसरा रास्ता है किसी काबिल वकील के जरीए तलाक की कोशिश करना. वैसे, पति को तलाक आसानी से नहीं मिलता.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

गांव के लड़कों को शादी की परेशानी, हकीकत हैरान करने वाली

Society News in Hindi: गांव में शादियों के मामले में सरकारी नौकरी बनाम पकौड़ा रोजगार के मद्देनजर पकौड़े बेचने वाले युवाओं को लोग कम पसंद कर रहे हैं. ऐसे में खेतीकिसानी और उस से जुड़े रोजगार करने वालों को तो गांव की सही लड़की मिल भी जा रही है पर बेरोजगार (Employment) और नशेड़ी युवाओं (Drug Addicts) के लिए शादी के रिश्ते ही नहीं आ रहे हैं. गांव में शादी योग्य लड़कों की संख्या बढ़ती जा रही है. लड़कियों की जनसंख्या (Population of Girl Child) कम होने से लड़कों के सामने शादी एक समस्या बनती जा रही है. योग्य लड़कों की तलाश की वजह से दहेज (Dowry) भी बढ़ता जा रहा है. अच्छे लड़कों की गिनती में सरकारी नौकरी (Goverment Job) वाले सब से आगे हैं. गांव में रोजगार करने वाले लड़कों के लिए गांव की लड़कियों के रिश्ते भले ही आ रहे हों पर उन के लिए पढ़ीलिखी व नौकरी करने वाली शहरी लड़कियों के रिश्ते नहीं आ रहे हैं.

कानपुर में विवाह का एक कार्यक्रम था. लड़कालड़की वाले सभी रीतिरिवाजों में व्यस्त थे. शादी में शामिल होने आए नातेरिश्तेदार इस चर्चा में मशगूल थे कि गांव में लड़कों की शादियों के लिए बहुत कम रिश्ते आ रहे हैं. इस शादी में कानपुर, रायबरेली, हरदोई, उन्नाव और लखनऊ जैसे करीबी शहरों के तमाम लोग शामिल हुए थे.

हर किसी का कहना था कि उन के गांव में 20 से ले कर 50 तक की संख्या में लड़के शादीयोग्य उम्र के हैं, लेकिन उन की शादी नहीं हो पा रही है. उन की उम्र बढ़ती जा रही है. यह परेशानी केवल कानपुर की शादी में ही चर्चा का विषय नहीं थी बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में एक शादी समारोह में भी ऐसी ही चर्चा हो रही थी. यहां गोंडा, बलरामपुर, बस्ती, सुल्तानपुर और गोरखपुर के लोग इसी परेशानी की चर्चा में लगे दिखे.

सामान्यतौर पर देखें तो ऐसे हालात हर गांव में दिख रहे हैं. अगड़ी और पिछड़ी दोनों ही जातियों में यह समस्या दिख रही है. पिछड़ी जातियों में यह समस्या उन जातियों में सब से अधिक है जो पिछड़ों में अगड़ी जातियां जैसे यादव, कुर्मी, पटेल हैं. अगड़ी और पिछड़ी जातियों के मुकाबले दलितों में ऐसे हालात नहीं हैं.

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जब मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कन्या विद्याधन योजना चलाई थी जिस के तहत हाईस्कूल और इंटर पास करने वाली लड़कियों को नकद पैसे मिले. इस के साथ उन्हें साइकिल भी मिली थी. इस योजना के  बाद गांवों में लड़कियों के स्कूल जाने की तादाद में तेजी से बढ़ोतरी हुई थी. अब गंवई इलाकों में ग्रेजुएट लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक हो गई है. इन इलाकों में शिक्षक के रूप में नौकरी पाने वालों में भी लड़कों के मुकाबले लड़कियां अधिक हैं.

आगे निकल रही हैं लड़कियां

एक तरफ समाज में यह कहा जा रहा है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है, दूसरी तरफ लड़कों की शादी के लिए लड़कियों के परिवारों से रिश्ते नहीं आ रहे हैं. इस स्थिति को समझने के लिए जब कई ग्रामीणों से बात की गई तो पता चला कि योग्यता के पैमाने पर लड़कियां लड़कों से आगे निकल रही हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों, जैसे देवरिया, बलिया, गोरखपुर में शादियों के रिश्ते ज्यादातर बिहार से आते हैं. बिहार  में लड़कियां शिक्षा के मामले में ज्यादा आगे निकल रही हैं. ऐसे में बिहार से शादी के लिए उत्तर प्रदेश के इन जिलों में आने वाले रिश्ते खत्म हो गए हैं. उत्तर प्रदेश के इन जिलों के गांवों में रहने वाले लड़कों के लिए अब रिश्ते नहीं आ रहे हैं. बिहार में यह परेशानी जस की तस उत्तर प्रदेश जैसी ही है.

गांव में रहने वालों में से करीब 50 फीसदी लोग अब दूरदराज के शहरों में रहने लगे हैं. ये लोग अपना परिवार सीमित रखते हैं. लड़की हो या लड़का, दोनों को पढ़ने का समान अवसर देते हैं. ऐसे में ये परिवार अपनी लड़की को शादी के लिए शहर से गांव में नहीं ले जाते हैं. उस का कारण गांव में रहने वालों की संकीर्ण विचारधारा और रूढि़वादी सोच है. गांव में भले ही लड़के के पास जमीन या रोजगार हो, वह शहर में प्राइवेट नौकरी करने वाले से अधिक पैसा कमा रहा हो पर उस की सोच वही होती है, ऐसे में पढ़ीलिखी लड़की खुद को वहां ऐडजस्ट नहीं कर पाती है. परिवारों के सीमित होने से लड़की के परिवार के पास अब लड़की की शादी में खर्च करने के लिए पैसा है और वह बेटी के भविष्य को सुखमय देखना चाहता है. ऐसे में वह नौकरी करने वाले लड़कों को प्राथमिकता देता है.

जाति और गोत्र की परेशानी

गांव में रहने वाले परिवार आज भी जाति व गोत्र की ऊंचनीच में फंसे हैं. गैरबिरादरी में शादी तो बड़ी दूर की बात है. सब से पहली इच्छा भी यही होती है कि लड़के की शादी एक गोत्र नीचे और लड़की की शादी एक गोत्र ऊपर की जाए. हालांकि, अब इस प्रथा को छोड़ने के लिए लोग तैयार हो गए हैं.

अब लोगों की इच्छा रहती है कि अपनी ही बिरादरी में शादी हो जाए. गोत्र को ले कर लोग समझौते करने लगे हैं. अभी गैरबिरादरी में वे शादी करने को तैयार नहीं होते हैं. अपनी ही जाति में योग्य लड़कों की संख्या सब से कम मिलती है. अगर मिलती भी है तो वहां दहेज अधिक देना पड़ता है. दहेज की मांग इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि योग्य लड़कों की संख्या बहुत कम है, सो, उन के लिए शादी के औफर ज्यादा हैं. योग्यता  के पैमाने के बाद पर्सनैलिटी के हिसाब से देखें तो गांव के लड़केलड़कियों से कमतर दिखते हैं.

गांव के लोगों में गैरबिरादरी में शादी का रिवाज नहीं है. ऐसा केवल अगड़ी जाति में ही नहीं है. पिछड़ी और दलित जातियों में भी अपनी जाति से बाहर शादी करने का चलन नहीं है. यही कारण है कि विवाह योग्य कुछ लोग जब अपनी शादी होते नहीं देखते तो वे दूरदराज से शादी कर के लड़की ले आते हैं. उस की जाति के बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता है और धीरेधीरे उस को सामाजिक स्वीकृति भी मिल जाती है.

हरियाणा और पंजाब में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जहां पर बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नेपाल की लड़कियां आ जाती हैं. कई लोग तो ऐसी लड़कियों को खरीद कर लाते हैं.

नशे के शिकार

गांव में खेतीकिसानी ही मुख्य पेशा होता है. हाल के कुछ सालों में किसानी बेहाल होती जा रही है. गांव के आसपास शहरों का विकास होने लगा है. गांव की जमीन महंगी होती जा रही है. गांव के आसपास सड़क बनने से सरकार ग्रामीणों से जमीन खरीद कर उन्हें अच्छाखासा मुआवजा देने लगी है. घर और रिसोर्ट बनाने वाले भी गांवों की जमीन की खरीदारी कर रहे हैं. शहरों में रहने वाले लोग भी गांव की जमीनें खरीदने लगे हैं. ऐसे में गांव के लोगों के पास जमीन बेचने से  पैसा आने लगा है.

पैसा आने के बाद ये लोग उस का उपयोग अपने ऐशोआराम में करने लगे हैं. ऐसे में नशे की प्रवृत्ति सब से अधिक बढ़ती है. गांव में रहने वाले 90 फीसदी युवा नशे के शिकार हो रहे हैं. ये शराब, भांग और गांजा सहित तंबाकू का सेवन करने लगे हैं. पढ़ाईलिखाई से दूर ऐसे बेरोजगार युवाओं से लोग अपनी लड़की की शादी नहीं करना चाहते हैं.

नशे के आदी इन युवाओं की छवि बेहद खराब है. लड़कियों को लगता है कि ये लोग शादी के बाद मारपीट और गालीगलौज अधिक करते हैं. ऐसे में इन के पास जमीनजायदाद होते हुए भी लड़कियां शादी के लिए तैयार नहीं होतीं. कई बार अगर मातापिता के दबाव में लड़की शादी करने को राजी हो भी जाए तो आखिर में शादी टूट ही जाती है. नशे और स्वभाव के चलते गंवई लड़के लड़कियों को पसंद नहीं आते. गांव के माहौल में ग्रामीण लड़कियां तो किसी तरह से अपने को ढाल भी लें पर शहरी लड़कियां ऐसा नहीं कर पाती हैं.

समाजसेवी राकेश कुमार कहते हैं, ‘‘गांव में भी अब परिवार सीमित होने लगे हैं. ऐसे में लड़कियों के मातापिता अपनी लड़की की शादी नौकरी करने वालों से करना चाहते हैं. इस के अलावा, उन की यह चाहत भी रहती है कि लड़की शहर में रहे.’’

रूढ़िवादी सोच

शहरों के मुकाबले ग्रामीणों की रूढि़वादी सोच भी यहां की शादियों में एक बड़ी परेशानी बन रही है. तमाम तरह के रीतिरिवाज पुराने ढंग से निभाए जा रहे हैं, जिन के बारे में शहरों में रह रही लड़कियां कुछ जानती भी नहीं. ऐसे में उन को वहां सामंजस्य बैठाना सरल नहीं होता. रूढि़वादी सोच के कारण लड़कियों को वहां टीकाटिप्पणी का सामना भी करना पड़ता है, जिस से नई सोच की लड़कियों को परेशानी होने लगती है.

गांव में आज भी परदा प्रथा हावी है. अभी भी वहां घूघंट निकाल कर रहना पड़ता है. किसी काम के लिए बाहर आनेजाने पर मनाही है, जिस की वजह से पढ़ीलिखी लड़कियों को लगता है कि वे गांव में शादी कर के अपने कैरियर को हाशिए पर ले जा रही हैं.

अभी भी बहुत सारे गांवों में घरों में शौचालय नहीं हैं. जिन घरों में हैं भी, वहां वे प्रयोग में नहीं हैं. ऐसे में शहरों या कसबों की लड़कियों के लिए वहां शादी करना मुश्किल हो रहा है. अब गांव के लोग भी अपनी लड़कियों की शादी शहरों में करना चाहते हैं. वे उन लड़कों को अधिक महत्त्व देते हैं जो गांव और शहर दोनों जगह रहते हैं.

सब से बड़ी शर्त सरकारी नौकरी की होने लगी है. सरकारी नौकरी वाले लड़के से अपेक्षा की जाती है कि वह गांव में रहने के साथसाथ शहर या कसबे में भी अपना घर जरूर बना लेगा. ऐसे में लड़की को गांव में ही नहीं रहना होगा. आज जिस तरह से महिलाओं के मजबूर होने की बात हो रही है उस से शादी के मामले में लड़कियों की पसंद का भी खयाल रखा जाने लगा है.

बदलती जीवनशैली

लड़कियों की बदलती जीवनशैली, पहनावा और शिक्षा भी इस के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक बन गया है. इस के अलावा लड़कियों की शादी की उम्र भी बढ़ गई है. पहले जहां 18 से 20 साल में लड़की की शादी हो जाती थी वहीं अब 20 से 25 वर्ष तक की उम्र में शादी हो रही है. लड़की कम से कम अब ग्रेजुएशन कर रही है और किसी न किसी रूप में रोजगार या नौकरी से जुड़ रही है.

ऐसे में वह आसानी से समझौते नहीं करती है. उस की पसंद गांव वाली शादी नहीं होती है. वह शहर में शादी कर के रहना चाहती है. इस वजह से भी गांव में शादी करने के लिए लोग रिश्ते ले कर कम आ रहे हैं.

गांव में पहले ज्यादातर शादियां आपसी रिश्तों में तय होती थीं. अब आपसी रिश्तेदारियों में लोग शादी कर शादी के बाद होने वाली परेशानियों से बचना चाहते हैं.

ऐसे में जानकारी के बाद भी लोग शादी के बीच में नहीं पड़ना चाहते हैं. गांव के रहने वालों के सामने लड़की को तलाश करने का कोई दूसरा माध्यम नहीं है. गांव के लोगों का अभी भी वैवाहिक विज्ञापनों पर भरोसा नहीं है. ऐसे में शादी लायक युवकों के सामने परेशानी बढ़ती जा रही है.

कई बारबार ऐसे गांवों का हाल प्रमुखता से खबरों में आता है जहां पानी या सड़क की परेशानी के चलते शादियां कम होती हैं. ऐसे गांवों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है जहां पर लड़कों की शादियों के लिए रिश्ते कम आ रहे हैं. इस के अपने अलगअलग कारण हैं. परेशानी की बात यह है कि सालदरसाल वह परेशानी बढ़ती जा रही है. इस से गांव में एक अलग किस्म का बदलाव महसूस किया जा रहा है. गंवई युवा पहले से अधिक कुंठित हो कर मानसिक रोगों के शिकार होते जा रहे हैं.

जुराब पहनकर करेंगे सेक्स तो दोगुना हो जाएगा मजा

 Sex News in Hindi: जिंदगी को खुशनुमा बनाने के लिए जरूरी है सेक्स. ये तनाव (Stress) कम करता है. आपको खुश रखता है और आपके जीवन को एक जीने की वजह देता है. लेकिन ये सारी चीजें तब होती हैं जब आपको इसमें पूरी तरह से संतुष्टि मिलें और आपका पार्टनर (Partner) आपके प्रति वफादार हो. फिर भी कई बार लोग एक-दूसरे के प्रति वफादार होते हैं तब भी उन्हें सेक्सलाइफ (Sex Life) में संतुष्टि नहीं मिलती. ऐसा क्यों…? ऐसा कई कारणों से होता है और हर कारण, अलग-अलग स्थितियों पर निर्भर करते हैं. ये सारे कारण तो किसी सेक्सोलॉजिस्ट (Sexologist) से मिल कर ही हल हो सकते हैं. फिर भी अगर आपको अपनी सेक्स लाइफ में संतुष्टि चाहिए तो यहां दिया गया उपाय अपनाइए.

ये समाधान है, सोते समय जुराब मतलब मोजे पहनने का

अगर आप सोते समय कपड़ों के साथ पैरों में मोजे मतलब जुराब पहनते हैं तो ये खबर आपके लिए है. सर्दियों में तो बहुत सारे लोग मोजे पहनकर सोते हैं लेकिन इस खबर को पढ़ने के बाद आप पूरे साल मोजे पहनकर सोएंगे. हाल ही में हुए एक सर्वे में इस बात की पुष्टि हुई है कि आप मोजे पहनकर सेक्स करते हैं तो आपको चरम सुख की प्राप्ति होती है.

सर्वे में इस बात का कारण देते हुए कहा गया है कि दोनों पांवों में मोजे पहन कर सोने से शरीर में गर्माहट बनी रहती है खासकर पैरों में, जिससे पैरों की रक्त वाहिकाओं में ब्लड सर्कुलेशन बना रहता है. ब्लड सर्कुलेशन बेहतर बनने से आप सेक्स करने के दौरान ज्यादा एक्टिव रहते हैं.

यह सर्वे नीदरलैंड की गोनिन्जम यूनिवर्सिटी द्वारा करवाया गया है. इस सर्वे में शोधकर्ता ने पाया की मोजे पहनकर सेक्स करने वालों में से 80% कपल को चरम सुख की प्राप्ति हुई. वैसे हर कोई इस सर्वे से इत्तेफाक नहीं रखता है. कई एक्सपर्ट इस स्टडी को एक सिरे से खारिज भी करते हैं.

ऐसे सर्वे होते रहते हैं. सर्वे के परिणाम अधिकतर लोगों पर कारगर होते हैं इसलिए इन्हें फाइनल माना जाता है. इसका मतलब ये नहीं की ये हर किसी पर कारगर हों. पिछले दिनों ऐसा ही एक सर्वे आया था कि घर में सेक्स करने की तुलना में होटल के कमरे में सेक्स करने में ज्यादा मजा आता है. ये सर्वे 11 देशों के 2,200 लोगों पर शोध कर तैयार किया गया थी. यह सर्वे मोबाइल बुकिंग सर्विस होटल टूनाइट द्वारा किए गए सर्वेक्षण पर आधारित था. तो इसका मतलब ये नहीं की घर में मजा नहीं आता. हर किसी की अपनी पसंद होती है और हर किसी का अपना अनुभव होता है.

औलाद की खातिर : कजरी को किसने दिया यह सुख

पहली मुलाकात में ही प्रदेश के जेल मंत्री जयप्रकाश यादव बाबा सुखानंद के पांचसितारा होटल जैसे आलीशान आश्रम में जब कजरी से मिले, तो उन की लार टपकने लगी.

मंत्रीजी बाबा सुखानंद से बोल पड़े, ‘‘वाह बाबाजी, वाह, आज आप ने मेरे लिए क्या बुलबुल परोसी है. बिलकुल संगमरमर जैसी चमक रही है. यह तो रस भरी मदमस्त जवानी की मालकिन है.’’

बाबाजी ठहाका लगा कर बोले, ‘‘मंत्रीजी, आप तो जानते ही हैं कि हमारे आश्रम के बगल में एक पुराना मंदिर है. यहां हर साल मेला लगता है. इस मेले के बंदोबस्त के लिए शहर के तमाम आला अफसर मेरी इस कुटिया में पहले आ कर मु  झ से बातचीत कर के काम को आगे बढ़ाते हैं. तमाम फोर्स लगाने के बाद ही मेला शुरू होता है.

‘‘मेरे ऊपर पिछले चुनाव में हमला हो चुका है, लेकिन मैं उस हमले में बालबाल बच गया था. इस बार विपक्षी पार्टी के लोग अगर मेरे ऊपर हमला करते हैं, तो मेरे गुरगे उन को वहीं ढेर कर देंगे, क्योंकि इस बार हम ने भी पूरी तैयारी कर ली है. आप ठहरे जेल मंत्री, तो जेलर आप की मुट्ठी में है…

‘‘अब आप जाइए, कजरी आप का इंतजार कर रही है… रात के 11 भी बज चुके हैं.’’

‘‘ठीक है स्वामीजी, मुझे भी सुबह जल्दी जाना है,’’ कहते हुए मंत्रीजी वहां से कजरी के कमरे में चले गए.

कजरी को बांहों में भरते हुए जेल मंत्री बोले, ‘‘तुम तो बहुत लाजवाब चीज हो. मैं अकसर इस आश्रम में आ कर इस कमरे में शराब और शबाब का मजा लेता रहा हूं, लेकिन अब तक तुम जैसी कोई नहीं मिली…’’

कजरी भी मटकते हुए बोली, ‘‘क्या करूं मंत्रीजी, मेरा पति ही नकारा है. दिनभर सेठ के यहां काम करतेकरते थक जाता है और रातभर मैं जल बिन मछली की तरह करवटें बदल कर प्यासी ही तड़पती रहती हूं.

‘‘शादी के 4 साल बाद भी मुझे कोई बच्चा नहीं हुआ. लेकिन हां, मेरा पति कभीकभार ही हलकीफुलकी मर्दानगी दिखा पाता है.’’

‘‘कोई बात नहीं कजरी… तुम्हारे पास मोबाइल फोन है न? नहीं है, तो मैं दुकान से मंगवा देता हूं,’’ मंत्रीजी ने कहा.

‘‘हां, है न मेरे पास मोबाइल फोन. आजकल मोबाइल का जमाना है. जब बाबाजी को जरूरत पड़ती है, तो वे मु  झे मोबाइल से फोन कर के बुला लेते हैं,’’ कजरी ने कहा.

‘‘बाबा को मैं भी सवेरे फोन पर बोल देती हूं कि आज पति की नाइट ड्यूटी है. जरूरत पड़े तो याद कीजिएगा.

‘‘शाम को घूमने के बहाने मैं अपनी सहेली रमिया के साथ यहां आ जाती हूं. इस आश्रम में शाम को बहुत लोग आते हैं.’’

‘‘यह रमिया कौन है?’’ मंत्रीजी ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘वह इस समय दूसरे कमरे में बाबाजी के साथ मौजमस्ती कर रही होगी. वह यहां पर साफसफाई का काम करती है,’’ कजरी अपने कपड़े उतारते हुए बोली.

कजरी की पीठ पर हाथ फेरते हुए मंत्रीजी बोले, ‘‘कजरी, तुम कहां की रहने वाली हो?’’

‘‘मेरा घर तो जौनपुर में है. यहां इलाहाबाद में मेरा पति एक सेठ के यहां काम करता है. शादी होने के एक साल बाद ही मेरा पति मुझे यहां ले आया था. घर पर बूढ़े सासससुर, जेठजेठानी और उन के 3 बच्चे हैं.

‘‘रमिया से गहरी दोस्ती होने पर उस ने मुझे यहां पर लाना शुरू किया. मंदिर में मन्नत मांगने के बहाने रात में हम दोनों साथ आ जाती हैं और काम निबटा कर साथ ही घर चली जाती हैं.’’

मंत्रीजी बोले, ‘‘ठीक है, जल्दी करो. मुझे देर हो रही है. सुबह दौरे पर भी जाना है. तुझे देख कर तो मेरा मन उतावला हो रहा है,’’ यह कह कर वे कजरी की कमर में हाथ डालते हुए उस को पलंग की तरफ ले जाने लगे.

कुछ देर बाद तूफान थम चुका था. कजरी और रमिया दोनों घर आ गईं. रमिया भी बाबा सुखानंद को दूसरे कमरे में जा कर भरपूर सुख दे कर लौटी थी.

रास्ते में दोनों ने मैडिकल स्टोर से दर्द दूर करने की दवा खरीदी और अपनीअपनी दवा खाने के बाद सोईं, तो फिर सुबह ही उन की आंख खुली.

सुबह कजरी का चेहरा खिलाखिला सा लग रहा था. अब मौका मिलते ही किसी अफसर या मंत्री से कोई खास काम करवाना रहता, तो बाबा सुखानंद कजरी को उस के आगे परोस देते. इस के लिए बाबा मनोवैज्ञानिक तरीका ही अपनाते थे.

कुछ दिन बाद कजरी के पैर भारी हो गए, तो वह बहुत खुश हुई.

सुबहसुबह उलटी करते देख कजरी का पति मनोज बोला, ‘‘क्या बात है? उलटी क्यों कर रही हो?’’

कजरी बोली, ‘‘यह तो खुशी की बात है. तुम बाप बनने वाले हो.’’ यह सुन कर मनोज बहुत खुश हुआ.

कजरी बोली, ‘‘यह बाबा सुखानंद के आशीर्वाद का नतीजा है.’’

औरत बुरी नहीं होती : कहानी सत्यभामा की

25 साल की सत्यभामा सांवले रंग की थी. जब वह हंसती थी, तो सामने वाले को अपनी गिरफ्त में ले लेती थी. सत्यभामा नौकरी के सिलसिले में राजन से मिली थी. शुरू में तो राजन ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया था, पर जैसेजैसे वह अपने कामों के लिए राजन से बारबार मिलने लगी, वैसेवैसे वह उस पर असर डालती गई थी. धीरेधीरे वे दोनों पक्के दोस्त बन गए थे.

सत्यभामा की मासूमियत, गरीबी और बदहाली के चलते राजन हमेशा उस की मदद करने के लिए तैयार रहता था. एक दिन अचानक सत्यभामा अपने भाई और एक नौजवान के साथ राजन के यहां आई. पेशे से टीचर और बूआ का बेटा कह कर सत्यभामा ने उस नौजवान का परिचय राजन से करा दिया था. राजन ने उन सब के स्वागत में कोई कसर न छोड़ी थी, पर सत्यभामा का एकाएक रूखा बरताव उसे अटपटा लगा था.

रात के खाने के बाद राजन ने सत्यभामा के भाई और बूआ के बेटे को अपने ड्राइंगरूम में सुला दिया और खुद दूसरे कमरे में सोने चला गया. सर्दी लगने पर जब राजन कंबल लेने गया, तो खिड़की से ड्राइंगरूम का नजारा देख कर ठगा सा रह गया.

गहरी नींद में सोए सगे भाई की मौजूदगी में राजन को बूआ का बेटा और सत्यभामा बिस्तर पर एकदूसरे में लिपटे नजर आए थे. यह नजारा देख कर राजन दर्द से तिलमिला गया और उलटे पैर लौट गया.

सत्यभामा के जिस्मखोर होने का पहली बार एहसास उसे भीतर तक हिला गया. मगर सुबह उस ने उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने दिया.

राजन ने दोस्ती और मर्यादा का पालन किया, पर सत्यभामा तो किसी और ही मिट्टी की निकली. राजन समझ गया कि सत्यभामा ने उसे धोखे में रख कर महज अपना उल्लू सीधा किया था.

जाते समय सत्यभामा की चालाक आंखें राजन को पहचान चुकी थीं कि वह उसे रात को देख चुका है.

राजन ने सोच लिया कि जो लड़की जिस्मानी सुख के लिए रिश्तों को बदनाम कर सकती है, वह कभी किसी की सच्ची दोस्त नहीं हो सकती.

राजन सत्यभामा से किनारा करने का मन बनाने लगा, मगर जिसे सच्चे मन से दोस्त मान लिया हो, उसे एकदम छोड़ा भी तो नहीं जा सकता.

आखिरकार राजन ने कड़ा मन कर के अपनी ओर से सत्यभामा से कोई नाता न रखा. लेकिन न चाहते हुए भी उस ने सत्यभामा के बारे में जो जानकारी हासिल की थी, वह उस के दिल को   झक  झोरने वाली थी.

राजन सैलानी बन कर जिस होटल में रुका था, रात को वहां अपनी सहेली सुकांति के साथ सत्यभामा की मौजूदगी उस का कच्चाचिट्ठा खोलने के लिए काफी थी.

इस सब के बावजूद सत्यभामा ने राजन से बराबर मेलजोल बनाए रखा और उस से मिलने के लिए बारबार जिद करने लगी. न चाहते हुए भी एक दिन राजन ने उसे बुला ही लिया.

सत्यभामा जैसे ही राजन के घर पहुंची, वह अपनेआप को संभाल न पाया और उस पर बरस पड़ा, ‘‘दोस्त बन कर मेरी भावनाओं से खेलते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई. मेरा तो तुम से नफरत करने का मन करने लगा है.

‘‘जी चाहता है कि तुम्हें अभी पीट दूं. मुझे तुम से नफरत है. लानत है तुम पर, बेगैरत, बदजात…’’ राजन अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सका.

सत्यभामा चुपचाप राजन की बातें सुनती रही. जब राजन का गुस्सा कुछ कम हुआ, तो वह बोली, ‘‘आप के तरकश में अगर और भी जहर बुझे तीर बचे हों, तो वे भी चला लीजिए.

‘‘मैं आप को लंबे समय से जानती हूं. आप पहले शख्स हैं, जिस पर आंखें बंद कर के भरोसा किया जा सकता है.

‘‘मैं जानती हूं कि आप मेरी मर्दखोरी के एक पहलू से ही वाकिफ हैं. मैं चाहती हूं कि आप इस का दूसरा पहलू भी जानें.

‘‘मैं आप को दोष नहीं दूंगी, क्योंकि यह समाज हमेशा औरत को ही दोषी मान कर सजा देता रहा है.

‘‘राजन, लगता है कि आप भी मर्दों की ओछी सोच से पीडि़त हैं. बेशक, आप मुझ से नफरत करने लगें, लेकिन मैं आप को हमेशा इज्जत और दोस्ती के नजरिए से देखूंगी.’’

‘‘मैं भी दोस्ती का मतलब जानता हूं सत्यभामा. तुम ने यह भी नहीं सोचा कि तुम्हारी हमेशा मदद करने वाला यह दोस्त भी तुम्हारे बुरे कामों से बदनाम होगा,’’ राजन ने कड़वी आवाज में कहा.

‘‘मर्द के मन से ही तो मत सोचिए राजन, औरत के लिहाज से भी तो एक बार सोच कर देखिए.

‘‘मैं जिस बदहाल समाज में जीने को मजबूर बना दी गई हूं, क्या आप जानते हैं उस समाज की असलियत? आप लोग पहाड़ के समाज और उस के दर्द को कतई नहीं जानते.’’

‘‘क्या पहाड़ का समाज हमारे समाज से अलग है?’’

‘‘हां, राजन बाबू. भूतप्रेत, देवता, गुरुचेलों और तांत्रिकों की बातें आज भी वहां पत्थर की लकीर होती हैं. पटवारी, वनरक्षक से शिक्षक तक कई महकमों के ज्यादातर मुलाजिम औरतों का जिस्मानी और दिमागी शोषण करने में शामिल होते हैं.

‘‘मांस खाने, जुआ खेलने और नशा करने के शौकीन ये लोग सैक्स और शराब पीने को मनोरंजन का जरीया मानते हैं.

‘‘औरतें खेत देखने, पशु पालने और घर संभालने में लगी रहती हैं, जबकि 90 फीसदी मर्द शराब और जुए में मस्त रहते हैं.

‘‘गुरुचेलों, पाखंड से भरे रीतिरिवाजों और कुप्रथाओं की मारी औरतें एक ही खूंटे से बंधना क्यों स्वीकार करेंगी? जो उन्हें अच्छा लगेगा, वे उस के साथ हो लेंगी.

‘‘जहां पगपग पर हर रोज प्रथाओं और रीतिरिवाजों के नाम पर औरतें सताई जाती हों, उस बदहाल समाज को धर्म और देवता की आज्ञा के नाम पर गुरु और पोंगापंथी कब बदलने देंगे?’’

सत्यभामा ने पहली बार राजन के सामने सचाई खोल कर रख दी. वह ठगा सा उस की बातें सुनने लगा था.

सत्यभामा के थोड़ा चुप होने पर राजन शांत लहजे में बोला, ‘‘क्या पढ़ेलिखे लोग भी इन कुप्रथाओं के खिलाफ मुंह नहीं खोलते?’’

‘‘पढ़ेलिखे लोग तो औरतों के और भी पक्के शोषक हैं.

‘‘एक बात जो पहाडि़यों और मैदान वालों में एक है, वह है मर्दवादी सोच. उसी सोच की आंखों से देख कर आप ने कईकई खिताब मु  झे दिए हैं. आप नहीं जानते कि खिलने से पहले ही यह ओछी सोच फूलों को किस तरह मसल कर फेंकती है. कहीं पत्ता तक नहीं हिलता.’’

ऐसा सुन कर राजन का सारा गुस्सा काफूर हो गया. उस ने सत्यभामा को प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘सत्यभामा, मैं जानना चाहता हूं कि तुम केवल शौक के लिए ही इस दलदल में नहीं आई हो. आज तुम अपनी दास्तान सुना कर मेरे भीतर के गुस्से को खत्म कर दो.’’

सत्यभामा बोली, ‘‘हां राजन, अब तो मैं तुम्हें सारा सच सुनाऊंगी.’’

सत्यभामा ने सोफे पर बैठ कर पीठ टिका ली. राजन के चेहरे को गौर से देखते हुए उस ने कहना शुरू किया, ‘‘जब मैं 8वीं जमात में पढ़ती थी, तब बबलू नाम के सहपाठी ने मु  झे प्यार भरी चिट्ठी लिख दी थी. यहां तक कि उस ने अपने मांबाप भी मेरे घर भेज दिए थे.

‘‘जब मैं 9वीं जमात में थी, तो रिश्ते के शंभू चाचा ने घर से थोड़ी दूर सुनसान जगह पर मु  झे दबोच लिया था.

‘‘कुछ दिनों बाद अचानक मेरी मां चल बसी थी. बाप को शराब पीने की आदत थी और दादी को काम कराने की. मां तो थी नहीं, जो प्यार करती, रोकतीटोकती और मेरी गलतियों पर पीटती. मेरे आरामपरस्त भाई अपनी बीवियों में मस्त रहते थे.

‘‘राजन, नाग तो मेरे पति की तरह ही हो गया था. उस के साथ बने संबंधों ने तो एक भू्रण की हत्या भी करा दी थी. जानते हो कि नाग कौन था? मेरी बूआ का लड़का और मेरा भाई.

‘‘फिर आया जीजा. जीजा और साली का रिश्ता तो तारतार होता ही रहा.

भज्जी और साजू नाम के 2 ऊंची नाक वाले पड़ोसियों ने भी मु  झे उसी ओर धकेला, जिस ओर मैं कभी जाना नहीं चाहती थी.

‘‘मांगी मल्ल गांव का गुंडा था. उस ने जो डसा तो डसता ही रहा.

‘‘फिर आया रामलखन. देखने में गाय, पर था पूरा बाघ. अपने क्वार्टर में ब्लू फिल्में दिखादिखा कर वह मुझे खूब लूटता रहा. उस ने तो ठग कर अपने दोस्तों से भी मुझे रौंदवा डाला था.

‘‘मांगी मल्ल और रामलखन मुझे जबतब उठा ले जाते, मगर मैं कुछ न कर पाती थी. मैं भी धीरेधीरे उसी में सुख तलाशने लगी थी.

‘‘गांव का संथोली पटवारी और हरिमन कंपाउंडर भी मेरे पीछे लगे रहे.

‘‘फिर दीदी ने मुझे आप से मिलवाया. आप से मिल कर मैं ने खुद को बदलना चाहा था. मैं ने समाज की बदहाली के खिलाफ लड़ने की ठान ली थी. मगर मांगी मल्ल और रामलखन जैसों ने मुझे बदलने नहीं दिया.

‘‘मु  झे माफ करना राजन, आप के पास आने के बहाने बनाबना कर मैं ने न जाने कितने होटलों और अनेक कर्मचारियों के यहां रातें गुजारी हैं.

‘‘जानते हो राजन, बूआ का जमाई भी मुझे बीवी की तरह इस्तेमाल करता रहा. चंद्रमणि, लाल बूढ़ा सूद, पंपा फोटोग्राफर, संजू मिस्त्री, काले कोट वाला कुमार सब से मेरे संबंध बनते चले गए. विनय सुपरवाइजर ने भी मेरा खूब इस्तेमाल किया, पर मैं ने भी उसे निचोड़ कर ही दम लिया था.

‘‘जानते हो, आप के दोस्त होने का दम भरने वाले पत्रकार भी मेरे पीछे कुत्तों की तरह लगे रहे.

‘‘मैं ने तो अपनी सहेली की मदद की थी, जिस का कोई सुबूत इन के पास था. आज ये सारे लोग मेरी उंगली पर नाचने को मजबूर हैं.

‘‘जिस दोस्त की तारीफ करतेआप थकते न थे, जिसे भाई की तरह प्यार करते थे, वह इतना नीच था कि आप की बुराई में कभी कोई कसर न छोड़ता था.

‘‘वह तो आप को ब्लैकमेल करने के लिए हमेशा मुझे उकसाता रहा. आप के इस खास दोस्त ने अपने फायदे के लिए मु  झे बेच डाला था.

‘‘राजन, मर्दों की घटिया सोच को मैं ने बहुत करीब से देख लिया है. अब तो मैं भयानक रोग का शिकार हो चुकी हूं. मैं भेडि़यों की भड़ास और गीदड़ों की चालबाजियों को खूब पहचान गई हूं.

‘‘हां, आप से मिल कर मुझे लगा था कि पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं. मेरा कल संवारने के लिए आप ने इतना कुछ किया, शायद मैं इस काबिल न थी.

‘‘अगर सभी मर्दों में अच्छे गुण हों, तो औरतें कभी वेश्या नहीं बनेंगी.

‘‘मुझे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है. मैं आप से इतना जरूर पूछूंगी कि औरत को बेचने की चीज बनाने वाले कौन हैं?

‘‘अगर कोई मर्द एक से ज्यादा औरतों से संबंध रख सकता है, तो औरत क्यों नहीं रख सकती? सारे नियमबंधन औरतों के लिए ही क्यों हैं? आप ही बताइए?’’

राजन से कुछ भी बोलते न बना. सत्यभामा एकटक उस के चेहरे को देखती रही.

राजन का मन सत्यभामा के प्रति इज्जत से भर गया था. अब वह जान गया था कि औरत बुरी नहीं होती.

शिकार: काव्या पर क्यों टूटा दुख का पहाड़

वहीं दूसरी ओर काव्या गोरीचिट्टी, छरहरे बदन की गुडि़या सी दिखने वाली एक भोलीभाली, मासूम सी लड़की थी. मुश्किल से अभी उस ने 20वां वसंत पार किया होगा. कुछ महीने पहले दुख क्या होता है, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती तक न थी.

मांबाप के प्यार और स्नेह की शीतल छाया में काव्या बढि़या जिंदगी गुजार रही थी, पर दुख की एक तेज आंधी आई और उस के परिवार के सिर से प्यार, स्नेह और सुरक्षा की वह पिता रूपी शीतल छाया छिन गई.

अभी काव्या दुखों की इस आंधी से अपने और अपने परिवार को निकालने के लिए जद्दोजेहद कर ही रही थी कि एक नई समस्या उस के सामने आ खड़ी हुई.

उस दिन काव्या अपनी नईनई लगी नौकरी पर पहुंचने के लिए घर से थोड़ी दूर ही आई थी कि उस आदमी ने उस का रास्ता रोक लिया था.

एकबारगी तो काव्या घबरा उठी थी, फिर संभलते हुए बोली थी, ‘‘क्या है?’’

वह उसे भूखी नजरों से घूर रहा था, फिर बोला था, ‘‘तू बहुत ही खूबसूरत है.’’

‘‘क्या मतलब…?’’ उस की आंखों से झांकती भूख से डरी काव्या कांपती आवाज में बोली.

‘‘रंजन नाम है मेरा और खूबसूरत चीजें मेरी कमजोरी हैं…’’ उस की हवस भरी नजरें काव्या के खूबसूरत चेहरे और भरे जिस्म पर फिसल रही थीं, ‘‘खासकर खूबसूरत लड़कियां… मैं जब भी उन्हें देखता हूं, मेरा दिल उन्हें पाने को मचल उठता है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो…’’ अपने अंदर के डर से लड़ती काव्या कठोर आवाज में बोली, ‘‘मेरे सामने से हटो. मुझे अपने काम पर जाना है.’’

‘‘चली जाना, पर मेरे दिल की प्यास तो बुझा दो.’’

काव्या ने अपने चारों ओर निगाह डाली. इक्कादुक्का लोग आजा रहे थे. लोगों को देख कर उस के डरे हुए दिल को थोड़ी राहत मिली. उस ने हिम्मत कर के अपना रास्ता बदला और रंजन से बच कर आगे निकल गई.

आगे बढ़ते हुए भी उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था. ऐसा लगता था जैसे रंजन आगे बढ़ कर उसे पकड़ लेगा.

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस ने कुछ दूरी तय करने के बाद पीछे मुड़ कर देखा. रंजन को अपने पीछे न पा कर उस ने राहत की सांस ली.

काव्या लोकल ट्रेन पकड़ कर अपने काम पर पहुंची, पर उस दिन उस का मन पूरे दिन अपने काम में नहीं लगा. वह दिनभर रंजन के बारे में ही सोचती रही. जिस अंदाज से उस ने उस का रास्ता रोका था, उस से बातें की थीं, उस से इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि रंजन की नीयत ठीक नहीं थी.

शाम को घर पहुंचने के बाद भी काव्या थोड़ी डरी हुई थी, लेकिन फिर उस ने यह सोच कर अपने दिल को हिम्मत बंधाई कि रंजन कोई सड़कछाप बदमाश था और वक्ती तौर पर उस ने उस का रास्ता रोक लिया था.

आगे से ऐसा कुछ नहीं होने वाला. लेकिन काव्या की यह सोच गलत साबित हुई. रंजन ने आगे भी उस का रास्ता बारबार रोका. कई बार उस की इस हरकत से काव्या इतनी परेशान हुई कि उस का जी चाहा कि वह सबकुछ अपनी मां को बता दे, लेकिन यह सोच कर खामोश रही कि इस से पहले से ही दुखी उस की मां और ज्यादा परेशान हो जाएंगी. काश, आज उस के पापा जिंदा होते तो उसे इतना न सोचना पड़ता.

पापा की याद आते ही काव्या की आंखें नम हो उठीं. उन के रहते उस का परिवार कितना खुश था. मम्मीपापा और उस का एक छोटा भाई. कुल 4 सदस्यों का परिवार था उस का.

उस के पापा एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे और उन्हें जो पैसे मिलते थे, उस से उन का परिवार मजे में चल रहा था. जहां काव्या अपने पापा की दुलारी थी, वहीं उस की मां उस से बेहद प्यार करती थीं.

उस दिन काव्या के पापा अपनी कंपनी के काम के चलते मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे कि पीछे से एक कार वाले ने उन की मोटरसाइकिल को तेज टक्कर मार दी.

वे मोटरसाइकिल से उछले, फिर सिर के बल सड़क पर जा गिरे. उस से उन के सिर के पिछले हिस्से में बेहद गंभीर चोट लगी थी.

टक्कर लगने के बाद लोगों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ के दबाव के चलते कार वाले ने उस के घायल पापा को उठा कर नजदीक के एक निजी अस्पताल में भरती कराया, फिर फरार हो गया.

पापा की जेब से मिले आईकार्ड पर लिखे मोबाइल से अस्पताल वालों ने जब उन्हें फोन किया तो वे बदहवास अस्पताल पहुंचे, पर वहां पहुंच कर उन्होंने जिस हालत में उन्हें पाया, उसे देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

उस के पापा कोमा में जा चुके थे. उन की आंखें तो खुली थीं, पर वे किसी को पहचान नहीं पा रहे थे.

फिर शुरू हुआ मुश्किलों का न थमने वाला एक सिलसिला. डाक्टरों ने बताया कि पापा के सिर का आपरेशन करना होगा. इस का खर्च उन्होंने ढाई लाख रुपए बताया.

किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया गया. पापा का आपरेशन हुआ, पर इस से कोई खास फायदा न हुआ. उन्हें विभिन्न यंत्रों के सहारे एसी वार्ड में रखा गया था, जिस की एक दिन की फीस 10,000 रुपए थी.

धीरेधीरे घर का सारा पैसा खत्म होने लगा. काव्या की मां के गहने तक बिक गए, फिर नौबत यहां तक आई कि उन के पास के सारे पैसे खत्म हो गए.

बुरी तरह टूट चुकी काव्या की मां जब अपने बच्चों को यों बिलखते देखतीं तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता, पर अपने बच्चों के लिए वे अपनेआप को किसी तरह संभाले हुए थीं. कभीकभी उन्हें लगता कि पापा की हालत में सुधार हो रहा है तो उन के दिल में उम्मीद की किरण जागती, पर अगले ही दिन उन की हालत बिगड़ने लगती तो यह आस टूट जाती.

डेढ़ महीना बीत गया और अब ऐसी हालत हो गई कि वे अस्पताल के एकएक दिन की फीस चुकाने में नाकाम होने लगे. आपस में रायमशवरा कर उन्होंने पापा को सरकारी अस्पताल में भरती कराने का फैसला किया.

पापा को ले कर सरकारी अस्पताल गए, पर वहां बैड न होने के चलते उन्हें एक रात बरामदे में गुजारनी पड़ी. वही रात पापा के लिए कयामत की रात साबित हुई. काव्या के पापा की सांसों की डोर टूट गई और उस के साथ ही उम्मीद की किरण हमेशा के लिए बुझ गई.

फिर तो उन की जिंदगी दुख, पीड़ा और निराशा के अंधकार में डूबती चली गई. तब तक काव्या एमबीए का फाइनल इम्तिहान दे चुकी थी.

बुरे हालात को देखते हुए और अपने परिवार को दुख के इस भंवर से निकालने के लिए काव्या नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उसे एक प्राइवेट बैंक में 20,000 रुपए की नौकरी मिल गई और उस के परिवार की गाड़ी खिसकने लगी. तब उस के छोटे भाई की पढ़ाई का आखिरी साल था. उस ने कहा कि वह भी कोई छोटीमोटी नौकरी पकड़ लेगा, पर काव्या ने उसे सख्ती से मना कर दिया और उस से अपनी पढ़ाई पूरी करने को कहा.

20 साल की उम्र में काव्या ने अपने नाजुक कंधों पर परिवार की सारी जिम्मेदारी ले ली थी, पर इसे संभालते हुए कभीकभी वह बुरी तरह परेशान हो उठती और तब वह रोते हुए अपनी मां से कहती, ‘‘मम्मी, आखिर पापा हमें छोड़ कर इतनी दूर क्यों चले गए जहां से कोई वापस नहीं लौटता,’’ और तब उस की मां उसे बांहों में समेटते हुए खुद रो पड़तीं.

धीरेधीरे दुख का आवेग कम हुआ और फिर काव्या का परिवार जिंदगी की जद्दोजेहद में जुट गया.

समय बीतने लगा और बीतते समय के साथ सबकुछ एक ढर्रे पर चलने लगा तभी यह एक नई समस्या काव्या के सामने आ खड़ी हुई.

काव्या जानती थी कि बड़ी मुश्किल से उस की मां और छोटे भाई ने उस के पापा की मौत का गम सहा है. अगर उस के साथ कुछ हो गया तो वे यह सदमा सहन नहीं कर पाएंगे और उस का परिवार, जिसे संभालने की वह भरपूर कोशिश कर रही है, टूट कर बिखर जाएगा.

काव्या ने इस बारे में काफी सोचा, फिर इस निश्चय पर पहुंची कि उसे एक बार रंजन से गंभीरता से बात करनी होगी. उसे अपनी जिंदगी की परेशानियां बता कर उस से गुजारिश करनी होगी

कि वह उसे बख्श दे. उम्मीद तो कम थी कि वह उस की बात समझेगा, पर फिर भी उस ने एक कोशिश करने का मन बना लिया.

अगली बार जब रंजन ने काव्या का रास्ता रोका तो वह बोली, ‘‘आखिर तुम मुझ से चाहते क्या हो? क्यों बारबार मेरा रास्ता रोकते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं,’’ रंजन उस के खूबसूरत चेहरे को देखता हुआ बोला, ‘‘मेरा यकीन करो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. आंखें बंद करता हूं तो तुम्हारा खूबसूरत चेहरा सामने आ जाता है.’’

‘‘सड़क पर बात करने से क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम किसी रैस्टोरैंट में चल कर बात करें.’’

काव्या के इस प्रस्ताव पर पहले तो रंजन चौंका, फिर उस की आंखों में एक अनोखी चमक जाग उठी. वह जल्दी से बोला, ‘‘हांहां, क्यों नहीं.’’

रंजन काव्या को ले कर सड़क के किनारे बने एक रैस्टोरैंट में पहुंचा, फिर बोला, ‘‘क्या लोगी?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘कुछ तो लेना होगा.’’

‘‘तुम्हारी जो मरजी मंगवा लो.’’

रंजन ने काव्या और अपने लिए कौफी मंगवाईं और जब वे कौफी पी चुके तो वह बोला, ‘‘हां, अब कहो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘देखो, मैं उस तरह की लड़की नहीं हूं जैसा तुम समझते हो,’’ काव्या ने गंभीर लहजे में कहना शुरू किया, ‘‘मैं एक मध्यम और इज्जतदार परिवार से हूं, जहां लड़की की इज्जत को काफी अहमियत दी जाती है. अगर उस की इज्जत पर कोई आंच आई तो उस का और उस के परिवार का जीना मुश्किल हो जाता है.

‘‘वैसे भी आजकल मेरा परिवार जिस मुश्किल दौर से गुजर रहा है, उस में ऐसी कोई बात मेरे परिवार की बरबादी का कारण बन सकती है.’’

‘‘कैसी मुश्किलों का दौर?’’ रंजन ने जोर दे कर पूछा.

काव्या ने उसे सबकुछ बताया, फिर अपनी बात खत्म करते हुए बोली, ‘‘मेरी मां और भाई बड़ी मुश्किल से पापा की मौत के गम को बरदाश्त कर पाए हैं, ऐसे में अगर मेरे साथ कुछ हुआ तो मेरा परिवार टूट कर बिखर जाएगा…’’ कहतेकहते काव्या की आंखों में आंसू आ गए और उस ने उस के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘इसलिए मेरी तुम से विनती है कि तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो.’’

पलभर के लिए रंजन की आंखों में दया और हमदर्दी के भाव उभरे, फिर उस के होंठों पर एक मक्कारी भरी मुसकान फैल गई.

रंजन काव्या के जुड़े हाथ थामता हुआ बोला, ‘‘मेरी बात मान लो, तुम्हारी सारी परेशानियों का खात्मा हो जाएगा. मैं तुम्हें पैसे भी दूंगा और प्यार भी. तू रानी बन कर राज करेगी.’’

काव्या को समझते देर न लगी कि उस के सामने बैठा आदमी इनसान नहीं, बल्कि भेडि़या है. उस के सामने रोने, गिड़गिड़ाने और दया की भीख मांगने का कोई फायदा नहीं. उसे तो उसी की भाषा में समझाना होगा. वह मजबूरी भरी भाषा में बोली, ‘‘अगर मैं ने तुम्हारी बात मान ली तो क्या तुम मुझे बख्श दोगे?’’

‘‘बिलकुल,’’ रंजन की आंखों में तेज चमक जागी, ‘‘बस, एक बार मुझे अपने हुस्न के दरिया में उतरने का मौका दे दो.’’

‘‘बस, एक बार?’’

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है,’’ काव्या ने धीरे से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया, ‘‘मैं तुम्हें यह मौका दूंगी.’’

‘‘कब?’’

‘‘बहुत जल्द…’’ काव्या बोली, ‘‘पर, याद रखो सिर्फ एक बार,’’ कहने के बाद काव्या उठी, फिर रैस्टोरैंट के दरवाजे की ओर चल पड़ी.

‘तुम एक बार मेरे जाल में फंसो तो सही, फिर तुम्हारे पंख ऐसे काटूंगा कि तुम उड़ने लायक ही न रहोगी,’ रंजन बुदबुदाया.

रात के 12 बजे थे. काव्या महानगर से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर एक सुनसान जगह पर एक नई बन रही इमारत की 10वीं मंजिल की छत पर खड़ी थी. छत के चारों तरफ अभी रेलिंग नहीं बनी थी और थोड़ी सी लापरवाही बरतने के चलते छत पर खड़ा कोई शख्स छत से नीचे गिर सकता था.

काव्या ने इस समय बहुत ही भड़कीले कपड़े पहन रखे थे जिस से उस की जवानी छलक रही थी. इस समय उस की आंखों में एक हिंसक चमक उभरी हुई थी और वह जंगल में शिकार के लिए निकले किसी चीते की तरह चौकन्नी थी.

अचानक काव्या को किसी के सीढि़यों पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी. उस की आंखें सीढि़यों की ओर लग गईं.

आने वाला रंजन ही था. उस की नजर जब कयामत बनी काव्या पर पड़ी, तो उस की आंखों में हवस की तेज चमक उभरी. वह तेजी से काव्या की ओर लपका. पर उस के पहले कि वह काव्या के करीब पहुंचे, काव्या के होंठों पर एक कातिलाना मुसकान उभरी और वह उस से दूर भागी.

‘‘काव्या, मेरी बांहों में आओ,’’ रंजन उस के पीछे भागता हुआ बोला.

‘‘दम है तो पकड़ लो,’’ काव्या हंसते हुए बोली.

काव्या की इस कातिल हंसी ने रंजन की पहले से ही भड़की हुई हवस को और भड़का दिया. उस ने अपनी रफ्तार तेज की, पर काव्या की रफ्तार उस से कहीं तेज थी.

थोड़ी देर बाद हालात ये थे कि काव्या छत के किनारेकिनारे तेजी से भाग रही थी और रंजन उस का पीछा कर रहा था. पर हिरनी की तरह चंचल काव्या को रंजन पकड़ नहीं पा रहा था.

रंजन की सांसें उखड़ने लगी थीं और फिर वह एक जगह रुक कर हांफने लगा.

इस समय रंजन छत के बिलकुल किनारे खड़ा था, जबकि काव्या ठीक उस के सामने खड़ी हिंसक नजरों से उसे घूर रही थी.

अचानक काव्या तेजी से रंजन की ओर दौड़ी. इस से पहले कि रंजन कुछ समझ सके, उछल कर अपने दोनों पैरों की ठोकर रंजन की छाती पर मारी.

ठोकर लगते ही रंजन के पैर उखड़े और वह छत से नीचे जा गिरा. उस की लहराती हुई चीख उस सुनसान इलाके में गूंजी, फिर ‘धड़ाम’ की एक तेज आवाज हुई. दूसरी ओर काव्या विपरीत दिशा में छत पर गिरी थी.

काव्या कई पलों तक यों ही पड़ी रही, फिर उठ कर सीढि़यों की ओर दौड़ी. जब वह नीचे पहुंची तो रंजन को अपने ही खून में नहाया जमीन पर पड़ा पाया. उस की आंखें खुली हुई थीं और उस में खौफ और हैरानी के भाव ठहर कर रह गए थे. शायद उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की मौत इतनी भयानक होगी.

काव्या ने नफरत भरी एक नजर रंजन की लाश पर डाली, फिर अंधेरे में गुम होती चली गई.

विदेशी दामाद: आखिर एक पिता अपने दामाद से क्या चाहता है?

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सिसकता शैशव : अमान का अबोध बचपन- भाग 1

जिस उम्र में बच्चे मां की गोद में लोरियां सुनसुन कर मधुर नींद में सोते हैं, कहानीकिस्से सुनते हैं, सुबहशाम पिता के साथ आंखमिचौली खेलते हैं, दादादादी के स्नेह में बड़ी मस्ती से मचलते रहते हैं, उसी नन्हीं सी उम्र में अमान ने जब होश संभाला, तो हमेशा अपने मातापिता को लड़तेझगड़ते हुए ही देखा. वह सदा सहमासहमा रहता, इसलिए खाना खाना बंद कर देता. ऐसे में उसे मार पड़ती. मांबाप दोनों का गुस्सा उसी पर उतरता. जब दादी अमान को बचाने आतीं तो उन्हें भी झिड़क कर भगा दिया जाता. मां डपट कर कहतीं, ‘‘आप हमारे बीच में मत बोला कीजिए, इस से तो बच्चा और भी बिगड़ जाएगा. आप ही के लाड़ ने तो इस का यह हाल किया है.’’

फिर उसे आया के भरोसे छोड़ कर मातापिता अपनेअपने काम पर निकल जाते. अमान अपने को असुरक्षित महसूस करता. मन ही मन वह सुबकता रहता और जब वे सामने रहते तो डराडरा रहता. परंतु उन के जाते ही अमान को चैन की सांस आती, ‘चलो, दिनभर की तो छुट्टी मिली.’

आया घर के कामों में लगी रहती या फिर गपशप मारने बाहर गेट पर जा बैठती. अमान चुपचाप जा कर दादी की गोद में घुस कर बैठ जाता. तब कहीं जा कर उस का धड़कता दिल शांत होता. दादी के साथ उन की थाली में से खाना उसे बहुत भाता था. वह शेर, भालू और राजारानी के किस्से सुनाती रहतीं और वह ढेर सारा खाना खाता चला जाता.

बीचबीच में अपनी जान बचाने को आया बुलाती, ‘‘बाबा, तुम्हारा खाना रखा है, खा लो और सो जाओ, नहीं तो मेमसाहब आ कर तुम्हें मारेंगी और मुझे डांटेंगी.’’

अमान को उस की उबली हुई सब्जियां तथा लुगदी जैसे चावल जहर समान लगते. वह आया की बात बिलकुल न सुनता और दादी से लिपट कर सो जाता. परंतु जैसेजैसे शाम निकट आने लगती, उस की घबराहट बढ़ने लगती. वह चुपचाप आया के साथ आ कर अपने कमरे में सहम कर बैठ जाता.

घर में घुसते ही मां उसे देख कर जलभुन जातीं, ‘‘अरे, इतना गंदा बैठा है, इतना इस पर खर्च करते हैं, नित नए कपड़े लाला कर देते हैं, पर हमेशा गंदा रहना ही इसे अच्छा लगता है. ऐसे हाल में मेरी सहेलियां इसे देखेंगी तो मेरी तो नाक ही कट जाएगी.’’ फिर आया को डांट पड़ती तो वह कहती, ‘‘मैं क्या करूं, अमान मानता ही नहीं.’’

फिर अमान को 2-4 थप्पड़ पड़ जाते. आया गुस्से में उसे घसीट कर स्नानघर ले जाती और गुस्से में नहलातीधुलाती.

नन्हा सा अमान भी अब इन सब बातों का अभ्यस्त हो गया था. उस पर अब मारपीट का असर नहीं होता था. वह चुपचाप सब सहता रहता. बातबात में जिद करता, रोता, फिर चुपचाप अपने कमरे में जा कर बैठ जाता क्योंकि बैठक में जाने की उस को इजाजत नहीं थी. पहली बात तो यह थी कि वहां सजावट की इतनी वस्तुएं थीं कि उन के टूटनेफूटने का डर रहता और दूसरे, मेहमान भी आते ही रहते थे. उन के सामने जाने की उसे मनाही थी.

जब मां को पता चलता कि अमान दादी के पास चला गया है तो वे उन के पास लड़ने पहुंच जातीं, ‘‘मांजी, आप के लाड़प्यार ने ही इसे बिगाड़ रखा है, जिद्दी हो गया है, किसी की बात नहीं सुनता. इस का खाना पड़ा रहता है, खाता नहीं. आप इस से दूर ही रहें, तो अच्छा है.’’

सास समझाने की कोशिश करतीं, ‘‘बहू, बच्चे तो फूल होते हैं, इन्हें तो जितने प्यार से सींचोगी उतने ही पनपेंगे, मारनेपीटने से तो इन का विकास ही रुक जाएगा. तुम दिनभर कामकाज में बाहर रहती हो तो मैं ही संभाल लेती हूं. आखिर हमारा ही तो खून है, इकलौता पोता है, हमारा भी तो इस पर कुछ अधिकार है.’’

कभी तो मां चुप  हो जातीं और कभी दादी चुपचाप सब सुन लेतीं. पिताजी रात को देर से लड़खड़ाते हुए घर लौटते और फिर वही पतिपत्नी की झड़प हो जाती.

अमान डर के मारे बिस्तर में आंख बंद किए पड़ा रहता कि कहीं मातापिता के गुस्से की चपेट में वह भी न आ जाए. उस का मन होता कि मातापिता से कहे कि वे दोनों प्यार से रहें और उसे भी खूब प्यार करें तो कितना मजा आए. वह हमेशा लाड़प्यार को तरसता रहता.

इसी प्रकार एक वर्र्ष बीत गया और अमान का स्कूल में ऐडमिशन करा दिया गया. पहले तो वह स्कूल के नाम से ही बहुत डरा, मानो किसी जेलखाने में पकड़ कर ले जाया जा रहा हो. परंतु 1-2 दिन जाने के बाद ही उसे वहां बहुत आनंद आने लगा. घर से तैयार कर, टिफिन ले कर, पिताजी उसे स्कूटर से स्कूल छोड़ने जाते. यह अमान के लिए नया अनुभव था.

स्कूल में उसे हमउम्र बच्चों के साथ खेलने में आनंद आता. क्लास में तरहतरह के खिलौने खेलने को मिलते. टीचर भी कविता, गाना सिखातीं, उस में भी अमान को आनंद आने लगा. दोपहर को आया लेने आ जाती और उस के मचलने पर टौफी, बिस्कुट इत्यादि दिला देती. घर जा कर खूब भूख लगती तो दादी के हाथ से खाना खा कर सो जाता. दिन आराम से कटने लगे.

परंतु मातापिता की लड़ाई, मारपीट बढ़ने लगी, एक दिन रात में उन की खूब जोर से लड़ाई होती रही. जब सुबह अमान उठा तो उसे आया से पता चला कि मां नहीं हैं, आधी रात में ही घर छोड़ कर कहीं चली गई हैं.

पहले तो अमान ने राहत सी महसूस की कि चलो, रोज की मारपीट  और उन के कड़े अनुशासन से तो छुट्टी मिली, परंतु फिर उसे मां की याद आने लगी और उस ने रोना शुरू कर दिया. तभी पिताजी उठे और प्यार से उसे गोदी में बैठा कर धीरेधीरे फुसलाने लगे, ‘‘हम अपने बेटे को चिडि़याघर घुमाने ले जाएंगे, खूब सारी टौफी, आइसक्रीम और खिलौने दिलाएंगे.’’

पिता की कमजोरी का लाभ उठा कर अमान ने और जोरों से ‘मां, मां,’ कह कर रोना शुरू कर दिया. उसे खातिर करवाने में बहुत मजा आ रहा था, सब उसे प्यार से समझाबुझा रहे थे. तब पिताजी उसे दादी के पास ले गए. बोले, ‘‘मांजी, अब इस बिन मां के बच्चे को आप ही संभालिए. सुबहशाम तो मैं घर में रहूंगा ही, दिन में आया आप की मदद करेगी.’’

अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें, दादी, पोता दोनों प्रसन्न हो गए.

नए प्रबंध से अमान बहुत ही खुश था. वह खूब खेलता, खाता, मस्ती करता, कोई बोलने, टोकने वाला तो था नहीं, पिताजी रोज नएनए खिलौने ला कर देते, कभीकभी छुट्टी के दिन घुमानेफिराने भी ले जाते. अब कोई उसे डांटता भी नहीं था.

स्कूल में एक दिन छुट्टी के समय उस की मां आ गईं. उन्होंने अमान को बहुत प्यार किया और बोलीं, ‘‘बेटा, आज तेरा जन्मदिन है.’’ फिर प्रिंसिपल से इजाजत ले कर उसे अपने साथ घुमाने ले गईं. उसे आइसक्रीम और केक खिलाया, टैडीबियर खिलौना भी दिया. फिर घर के बाहर छोड़ गईं.

जब अमान दोनों हाथभरे हुए हंसताकूदता घर में घुसा तो वहां कुहराम मचा हुआ था. आया को खूब डांट पड़ रही थी. पिताजी भी औफिस से आ गए थे, पुलिस में जाने की बात हो रही थी. यह सब देख अमान एकदम डर गया कि क्या हो गया.

पिताजी ने गुस्से में आगे बढ़ कर उसे 2-4 थप्पड़ जड़ दिए और गरज कर बोले, ‘‘बोल बदमाश, कहां गया था? बिना हम से पूछे उस डायन के साथ क्यों गया? वह ले कर तुझे उड़ जाती तो क्या होता?’’

दादी ने उसे छुड़ाया और गोद में छिपा लिया. हाथ का सारा सामान गिर कर बिखर गया. जब खिलौना उठाने को वह बढ़ा तो पिता फिर गरजे, ‘‘फेंक दो कूड़े में सब सामान. खबरदार, जो इसे हाथ लगाया तो…’’

वह भौचक्का सा खड़ा था. उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या? क्यों पिताजी इतने नाराज हैं?

2 दिनों बाद दादी ने रोतरोते उस का सामान और नए कपड़े अटैची में रखे. अमान ने सुना कि पिताजी के साथ वह दार्जिलिंग जा रहा है. वह रेल में बैठ कर घूमने जा रहा था, इसलिए खूब खुश था. उस ने दादी को समझाया, ‘‘क्यों रोती हो, घूमने ही तो जा रहा हूं. 3-4 दिनों में लौट आऊंगा.’’

दार्जिलिंग पहुंच कर अमान के पिता अपने मित्र रमेश के घर गए. दूसरे दिन उन्हीं के साथ वे एक स्कूल में गए. वहां अमान से कुछ सवाल पूछे गए और टैस्ट लिया गया. वह सब तो उसे आता ही था, झटझट सब बता दिया. तब वहां के एक रोबीले अंगरेज ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘बहुत अच्छे.’’ और टौफी खाने को दी.

परंतु अमान को वहां कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. वह घर चलने की जिद करने लगा. उसे महसूस हुआ कि यहां जरूर कुछ साजिश चल रही है.

उस के पिताजी कितनी देर तक न जाने क्याक्या कागजों पर लिखते रहे, फिर उन्होंने ढेर सारे रुपए निकाल कर दिए. तब एक व्यक्ति ने उन्हें स्कूल और होस्टल घुमा कर दिखाया. पर अमान का दिल वहां घबरा रहा था. उस का मन आशंकित हो उठा कि जरूर कोई गड़बड़ है. उस ने अपने पिता का हाथ जोर से पकड़ लिया और घर चलने के लिए रोने लगा.

इन फिल्मों में इंटीमेट सीन्स देकर ‘फाइटर’ में बोल्डनेस का तड़का लगाएंगी दीपिका पादुकोण

बौलीवुड स्टार दीपिका पादुकोण अपनी दमदार एक्टिंग के साथ-साथ अपनी बोल्डनेस को लेकर भी चर्चा में बनीं रहती है. एक्ट्रेस लाखों दिलों की धड़कन बन चुकी है. एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण अपनी फिल्मों में खुलकर बोल्ड सीन्स देने से भी परहेज नहीं करतीं. कई फिल्मों में दीपिका पादुकोण ने अपने बोल्ड और इंटीमेट सीन्स से फैंस के दिलों की धड़कने बढ़ा दी हैं. अब हाल ही में अदाकारा की अगली मूवी फाइटर का भी धांसू टीजर रिलीज हुआ. जिसमें एक बार फिर अदाकारा दीपिका पादुकोण ने बोल्ड बिकिनी लुक से फैंस को हैरान कर दिया. हालांकि ऐसी कई फिल्में है जिनमें दीपिका बोल्ड सीन्स कर चुकी है तो आइए जानते है कि किन फिल्मों में इंटीमेट सीन्स देकर हीट हुई है हीरोईन.


दीपिका पादुकोण और ऋतिक रोशन की अपकमिंग मूवी फाइटर के जारी हुए टीजर में दोनों सितारों के बीच एक इंटीमेट सीन फिल्माया गया है. जिसमें अदाकारा का बोल्ड बिकिनी लुक फैंस के पसीने छुड़ा गया. यही नहीं, अदाकारा दीपिका पादुकोण और फिल्म स्टार ऋतिक रोशन के बीच इस मूवी में एक जबरदस्त किसिंग सीन होगा. जिसमें एक्ट्रेस बोल्ड लुक में नजर आएंगी.

सुपरस्टार शाहरुख खान के साथ भी दीपिका पादुकोण ने भी मूवी पठान में जबरदस्त बोल्ड सीन्स दिए थे. इस मूवी में एक्ट्रेस के बोल्ड बिकिनी लुक्स ने इंटरनेट हिलाकर रख दिया था. साथ ही शाहरुख खान संग इंटीमेट सीन्स की वजह से एक्ट्रेस काफी ट्रोल भी हुईं.

दीपिका पादुकोण ने सिद्धांत चतुर्वेदी के साथ भी मूवी गहराइयां में जबरदस्त बोल्ड और इंटीमेट सीन्स दिए थे. जिसकी वजह से वो काफी ट्रोल भी हुईं. मूवी गहराइयां में दीपिका पादुकोण ने सिद्धांत चतुर्वेदी के साथ कई बोल्ड किसिंग सीन्स भी दिए थे. जिसे लेकर भी काफी बज बना था.

 

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निर्देशक अब्बास-मस्तान की सस्पेंस ड्रामा मूवी रेस 2 में भी दीपिका पादुकोण ने फिल्म स्टार सैफ अली खान के साथ कई इंटीमेट सीन्स दिए थे. ये सीन्स उस वक्त काफी चर्चा में रहे.

फिल्म स्टार दीपिका पादुकोण ने अपनी मूवी- गोलियों की रासलीला- रामलीला में एक्टर रणवीर सिंह के साथ कई इंटीमेट सीन्स दिए थे. इस मूवी में दोनों के बीच फिल्माया गया लिपलॉक सीन भी चर्चा में रहा था.

दीपिका पादुकोण और रणबीर कपूर ने अपनी फिल्म तमाशा में भी एक बेहद बोल्ड किसिंग सीन दिया था. ये मूवी दोनों सितारों ने ब्रेकअप के बाद की थी. इस वजह से भी इस किसिंग सीन ने काफी सुर्खियां बटोरीं.

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