दगाबाज सहेली : चंदा और कोमल की दोस्ती क्या रंग लाई

चंदा सचमुच आसमान के चंदा जैसी खूबसूरत थी. वह सुशील, भोलीभाली, सरल स्वभाव की लड़की थी. 17 साला चंदा की एक झलक पाने को मंझावन गांव के नौजवान उस के घर के आसपास चक्कर काटते थे. उस के घर के पास ही पानकी एक गुमटी थी और वहां अकसर चहलपहल रहती थी.

चंदा अपने मातापिता की तरह सीधीसादी थी. वह रोज सुबह से ही काम पर लग जाती थी और शाम को मां के साथ खाना बनाती थी.

गांव में चंदा की एक ही सहेली थी, जिस का नाम कोमल था. उन दोनों की दोस्ती बचपन से थी. कोमल गुणरूप में चंदा के ठीक उलट मनचली और सांवले रंग की थी. पर उस के बदन में गजब का कसाव था. जब वह चलती थी, तब उस की जवानी अंगअंग से छलकती थी.

यही वजह थी कि कोमल के कई लड़कों से प्रेमसंबंध चल रहे थे, लेकिन चंदा को कोमल की इन हरकतों की कभी भनक नहीं लगी, क्योंकि वह उस पर आंख मूंद कर भरोसा करती थी.

जबजब कोमल के प्रेमी उसे लहंगाचोली, पायल, चूड़ी या झुमकी देते, तो वह उन चीजों को जरूर दिखाती थी. चंदा भी बहुत खुश होती थी. उस के पूछने पर कोमल झूठ बोल जाती थी. कभी वह कहती कि बाजार से खरीदे हैं या गंगा मेले से लाई है, तो कभी कहती कि उस की मौसी, मामी या बूआ ने दिए हैं.

वे दोनों सहेलियां अकसर कुएं पर पानी भरने जाती थीं, रसोई के लिए सूखी लकडि़यां बीनती थीं और खेतों से चारे का गट्ठर सिर पर ढो कर लाती थीं. रास्ते में अगर कोई मनचला चंदा का रास्ता रोकता या हाथ पकड़ने की कोशिश करता, तो वह गुस्से से उसे चेतावनी देती थी.

कोमल को लड़कों द्वारा की गई इस तरह की छेड़छाड़ बहुत सुहाती थी, लेकिन चंदा की खूबसूरती के आगे कोई भी लड़का उस वक्त उसे भाव नहीं देता था, जिस से कोमल को बहुत झुंझलाहट होती थी.

दरअसल, गांव की दूसरी कई लड़कियों की तरह कोमल भी चंदा की खूबसूरती से जलती थी. जहां एक तरफ गांव के ज्यादातर लड़के चंदा को पाने के लिए बेताब रहते थे, वहीं दूसरी तरफ कोमल के सिर्फ 4-5 लड़के ही आशिक थे.

चंदा का लड़कों के प्रति अक्खड़ रवैया कोमल को नागवार गुजरता था. वह चंदा से कह बैठती, ‘‘अरे यार चंदा, यही जवानी के दिन हैं. मौज कर ले, वरना कहीं उम्र बीत गई तो हालचाल पूछना छोड़, तेरी ओर कोई लड़का मुड़ कर देखेगा भी नहीं.’’

कोमल की ऐसी बातों से चंदा नाराज होती और उसे समझाती, ‘‘ब्याह से पहले यह सब सोचना भी गलत है. जब सही समय आएगा, तो हमारे मातापिता एक अच्छा सा लड़का ढूंढ़ कर ब्याह करा देंगे.’’

लेकिन चंदा के नेक विचारों का मनचली कोमल पर कहां फर्क पड़ना था. वह तो ‘आज’ में जीने वाली लड़की थी. चंदा तो कोमल को एक आंख न भाती थी.

कोमल की मां यही मानती थीं कि उन की बेटी भी चंदा की तरह अच्छी गुणों वाली है. बस, इसी बात का फायदा उठा कर कोमल चोरीछिपे लड़कों के साथ मौजमस्ती कर लेती थी.

एक दिन की बात है. गांव के नए चुने गए मुखिया का दौरा हुआ. साथ में उन का लड़का राजकुंवर उर्फ राजा भी था. 22 साल के फिल्मी हीरो जैसे बांके जवान राजा को देख ज्यादातर लड़कियों के दिल मचल उठे थे.

रंगीला राजा अपनी हीरो वाली खूबी जानता था. उस ने इस बात का भरपूर फायदा भी उठाया. कुछ ही महीनों में उस ने दर्जनभर लड़कियों से खूब मजे लूटे, फिर धीरेधीरे उसे ये सब फूल बासी लगने लगे, क्योंकि भौंरे को अब नए फूल की तलाश जो थी.

एक बार राजा पान की गुमटी पर बीड़ा चबा रहा था कि तभी उस की नजर गाय और बछड़े को चारा खिला रही चंदा पर पड़ी. उस की खूबसूरती देख वह अपनी सुधबुध खो बैठा.

पनवाड़ी से चंदा के बारे में जान कर राजा वहां से चला तो गया, लेकिन मन उसी पर ही अटका रहा. उस की याद में सारी रात करवटें बदलने में बीती.

अगली सुबह राजा को चंदा के सिवा कुछ न सूझा और फिर उस बेचैन भौंरे ने इस नए फूल को चखने की ठान ली. अब रोजाना बीड़ा खाने के बहाने वह चंदा के घर का रास्ता नापने लगा.

एक दिन मस्ती में गुनगुनाता हुआ राजा खेतों के रास्ते कहीं जा रहा था कि अचानक उसे सिर पर हरा चारा लिए हुए चंदा आती दिखी. साथ में कोमल को देखा, तो उस की कुटिल मुसकान खिल उठी और फिर बुलंद हौसले से भर कर राजा ने चंदा का रास्ता रोक कर उस की कलाई थाम ली.

राजा की इस हरकत पर चंदा ने हाथ झटक कर उसे कड़ी फटकार लगाई. जिस राजा पर लड़कियां मरती हैं, उस के साथ हमबिस्तरी के लिए तैयार रहती हैं, उस के अहम को एक साधारण सी लड़की ने ही चोट पहुंचाई थी.

राजा से यह बेइज्जती बरदाश्त न हुई और उस ने चंदा से बदला लेने का भी एक प्लान बनाया. चूंकि कोमल पहले से ही राजा के प्रेमजाल में फंसी हुई मैना थी, इसलिए उस से अपनी बात मनवाना बाएं हाथ का खेल था. अपना तनमन राजा कोसौंप चुकी कोमल आखिरकार प्रेमी के खतरनाक प्लान में शामिल हो गई. वैसे भी उसे चंदा से कोई खास लगाव नहीं था.

कुछ दिन बाद एक दोपहर को मौका पा कर कोमल चंदा को बातों में लगाए घर से दूर मुखियाजी के ट्यूबवैल वाले खेत पर ले गई. वहीं फसलों के साथ टिन से घिरे बाड़े में राजा की ऐयाशी का अड्डा था, जहां सिगरेट, शराब, परफ्यूम और जोश बढ़ाने का स्प्रे रखा था. वहां राजा कई लड़कियों के साथ रंगरलियां मना चुका था.

कोमल का इशारा पाते ही बाड़े में छिपे राजा ने पीछे से आ कर बेखबर चंदा को दबोच लिया, फिर बाड़े में बिछे गद्दे पर उसे गिरा कर वहशीपन करने लगा. चंदा के कपड़े फट गए. वह चीखी, बचाने के लिए कोमल से कई बार गुहार लगाई, लेकिन वह तो बड़ी बेशर्मी से मुसकराते हुए तमाशा देखती रही.

आखिरकार भेडि़ए राजा ने अपने शिकार मेमने को पूरी तरह खा कर ही छोड़ा.

बाड़े में अब रोती हुई चंदा और उसे झूठी दिलासा देती हुई कोमल ही रह गई थी. चंदा अपनी इस हालत का जिम्मेदार दगाबाज सहेली कोमल को मानती थी. उस ने गुस्से में कोमल को एक जोर का थप्पड़ जड़ दिया, फिर किसी तरह चुनरी से खुद को ढक कर घर चली गई.

अगली सुबह कोमल को उस की मां ने एक खबर दी, तो वह सहम गई. चंदा ने नदी में कूद कर खुदकुशी कर ली थी.

अब कोमल को यह डर सताने लगा कि कहीं चंदा ने मरने से पहले अपने घर में उस की असलियत न बता दी हो, इसलिए वह काफी दिनों तक चंदा के घर नहीं गई.

जब चंदा को मरे 3 महीने बीत गए और कोई पुलिस कार्यवाही भी नहीं हुई, तब कहीं कोमल को पूरी तरह तसल्ली मिली. अब बदनामी और कोर्टकचहरी का कोई खतरा नहीं रह गया था, लेकिन इस बीच राजा से उस के संबंध बने रहे.

कुछ महीने और मजे करने के बाद एक दिन कोमल को एहसास हुआ कि वह पेट से है, तो उस के चेहरे की रंगत उड़ गई.

अगले दिन कोमल ने ट्यूबवैल वाले अड्डे पर पहुंच कर राजा को यह बात बताई और उसे बदनामी से बचाने के लिए शादी करने को कहा.

इतना सुनते ही राजा भड़क उठा. वह कोमल को गरियाते हुए बोला, ‘‘चल भाग यहां से… न जाने किस का बच्चा लिए यहांवहां फिरती है. मुझे इस का बाप बता कर शादी का दबाव डालती है. भाग जा यहां से… दोबारा मेरे पास आई, तो तुझे मार कर नदी में फिंकवा दूंगा.’’

कोमल अपना सब ‘खजाना’ लुटा चुकी थी. अब कुछ न बचा था उस के पास. ऐयाश राजा की जानमाल की धमकी से वह सकपका गई और फिर रोते हुए घर लौट आई.

खतरनाक हो चुके राजा से मुकाबला करने की हिम्मत और हैसियत कोमल के पास नहीं थी. अब रहरह कर उसे मासूम चंदा की नेक नसीहतें याद आ रही थीं. लेकिन अब क्या फायदा… काफी देर हो चुकी थी.

वैसे भी चंदा की मौत की जिम्मेदार खुद कोमल की ही दगाबाजी थी. वह चंदा की हत्यारिन है. उस ने ही चंदा को मारा है. जब सब को उस की बदचलनी पता चलेगी, तो लोगों को क्या जवाब देगी?

यही सब सोचसोच कर कोमल गहरे तनाव में डूब गई और फिर एक रात उस ने कीटनाशक पी कर खुदकुशी कर ली.

ननकू का रेडियो और फूलमती

“दादू, क्या आप किसी अमीन सयानी को जानते हैं?” 62 साल के ननकू से जब उस की पोती राधा ने सवाल किया, तो उस की आंखों में चमक आ गई.

“क्यों… क्या हुआ?” ननकू ने राधा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

“पहले आप यह बताओ कि उन के नाम से आप को सब से पहले क्या याद आता है?”

“मुझे तो अपना बीता हुआ वह जमाना याद आ गया है, जब किसी घर में रेडियो का होना शान की बात समझा जाता था. खेत में थकाहारा किसान और सरहद पर दुश्मन से रखवाली करता जवान रेडियो को ही अपना पसंदीदा टाइमपास मानता था. हर खास और आम घरों में रेडियो बजता सुनाई दे जाता था…”

“उसी जमाने में एक आवाज ने रेडियो सुनने वालों को अपना दीवाना बना लिया था. वह कोई गायक नहीं था, कोई फिल्म हीरो भी नहीं था, पर उस की आवाज में गजब की खनक और मिठास थी.

“उस भलेमानस का नाम नाम था अमीन सयानी. ‘रेडियो सीलोन’ और फिर ‘विविध भारती’ पर‌ तकरीबन 42 सालों तक चलने वाला हिंदी गीतों का उन का कार्यक्रम ‘बिनाका गीतमाला’ इतना ज्यादा मशहूर हो गया था कि लोग हर हफ्ते उन्हें सुनने के लिए बेकरार रहा करते थे. अरे, बाद में उसी ‘बिनाका गीतमाला’ का नाम बदल कर ‘सिबाका गीतमाला’ कर दिया गया था.”

“दादू, अब वही मखमली आवाज चुप हो गई है. 91 साल की उम्र में अमीन सयानी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. मंगलवार, 20 फरवरी, 2024 की शाम को हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई. उन के बेटे राजिल सयानी ने यह दुखद खबर दी थी,” राधा ने बुझे मन से बताया.

“अरे, बाप रे. यह तो बहुत बुरा हुआ. हुआ क्या था उन्हें?” ननकू ने उदास हो कर पूछा.

“राजिल सयानी ने बताया कि अमीन‌ सयानी को मंगलवार को उन के दक्षिण मुंबई में बने घर पर शाम के 6 बजे हार्ट अटैक आया था. इस के बाद उन्हें दक्षिण मुंबई के एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में ले जाया गया, जहां पर इलाज करने के कुछ देर बाद ही डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.”

राधा की इस खबर ने ननकू को तोड़ कर रख दिया. वह बिस्तर से उठा और अलमारी में रखे एक छोटे से संदूक को बाहर निकाल लाया. वह संदूक था ननकू की मीठी यादों का पिटारा. उस ने टूटेफूटे उस संदूक को खोला और अपनी पोती राधा को पास बुलाया.

राधा हैरान थी कि अमीन सयानी की इस दुखद खबर के बाद दादू ने यह संदूक इतने साल बाद क्यों खोला? उस संदूक में बरसों पुराना सामान रखा था और साथ में था धूल में सना एक रेडियो, जो अब चलने की हालत में नहीं दिख रहा था.

ननकू ने वह रेडियो बाहर निकाला, कांपते हाथों से उस की धूल झाड़ी और खो गया उस जमाने में, जब वह महज 12 साल का था.

आज भले ही ननकू अपने परिवार के साथ लखनऊ शहर में रहता है, पर तब वह बांदा से सटे एक गांव में रहता था. 1974 का साल था. ननकू गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ता था और अपने घर से थोड़ी दूर रहने वाली फूलमती के साथ स्कूल आताजाता था.

फूलमती भी ननकू की हमउम्र थी और पढ़ाई में तेज. पर उन दोनों को रेडियो सुनने का शौक था. हर बुधवार को रात के 8 बजे से रात के 9 बजे तक. यह एक घंटा उन दोनों के लिए अकेले मिलने का जरीया था.

दिन में स्कूल की पढ़ाई, फिर घर के काम निबटाने, थोड़ाबहुत खेतीबारी में हाथ बंटाना और फिर रात को रेडियो पर प्यारभरे नगमे सुनना.

ननकू हर रात चोरीछिपे अपना रेडियो उठाए पहुंच जाता था फूलमती के घर के पिछले हिस्से में, जहां वह अपनी खिड़की से बाहर खड़े ननकू के रेडियो पर ‘सिबाका गीतमाला’ सुनती थी.

एक रात की बात है. साल था 1974. ननकू और फूलमती में शर्त लगी थी कि इस साल ‘सिबाका गीतमाला’ में साल का टौप का गाना कौन सा रहेगा?

फूलमती ने कहा, “तुम मुझ से शर्त मत लगाया करो. पिछले साल भी हार गए थे. तब फिल्म ‘जंजीर’ का गाना ‘यारी है ईमान मेरा…’ बाजी मार गया था.”

इस पर ननकू ने कहा, “हर बार तुक्का नहीं लगता. अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. इस बार तो गाना ‘मेरा जीवन कोरा कागज, कोरा ही रह गया…’ ही सरताज बनेगा.”

इस बार वाकई ननकू का कहा सही साबित हुआ. वही गाना सरताज बना था. ननकू ने फूलमती को देख कर आंख दबा दी. वह शरमा कर खिड़की बंद करते हुए वहां से भाग गई…

“क्या हुआ दादू, आप कहां खो गए?” राधा की आवाज ने ननकू को यादों से बाहर निकाला.

“कुछ नहीं बेटी. अच्छा, यह तो बता खबर में अमीन सयानी के बारे में और क्याक्या छपा है?” झिलमिलाती आंखों से ननकू ने पूछा.

“यही कि अमीन सयानी के नाम पर 54,000 से ज्यादा रेडियो कार्यक्रम प्रोड्यूस, कंपेयर, वौइसओवर करने का रिकौर्ड दर्ज है. तकरीबन 19,000 जिंगल्स के लिए आवाज देने‌ के लिए भी उन का नाम ‘लिम्का बुक्स औफ रिकौर्ड्स’ में दर्ज है.

“अमीन सयानी ने ‘भूत बंगला’, ‘तीन देवियां’, ‘कत्ल’ जैसी फिल्मों में अनाउंसर के तौर पर भी काम किया था. रेडियो पर फिल्मी सितारों पर बना उन का शो ‘एस. कुमार का फिल्मी मुकदमा’ भी काफी मशहूर हुआ था.

“बाद में अमीन सयानी ने कई शो होस्ट किए थे, जिन में ‘फिल्मी मुलाकात’, ‘सैरिडौन के साथी’, ‘बौर्नविटा क्विज कौंटैस्ट’, ‘शालीमार सुपरलैक जोड़ी’, ‘सितारों की पसंद’, ‘चमकते सितारे’, ‘महकती बातें’ और ‘संगीत के सितारों की महफिल’ शामिल रहे थे.

“21 दिसंबर, 1932 को जनमे अमीन सयानी अपने जमाने में रेडियो की दुनिया के सुपरस्टार थे. उन का कार्यक्रम की शुरुआत में ही ‘बहनो और भाइयो’ के साथ रेडियो सुनने वालों को संबोधित करने का तरीका बड़ा फेमस हुआ था. साल 2009 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से भी नवाजा गया था…” राधा बोले जा रही थी, पर ननकू तो फिर से अपनी फूलमती और रेडियो के पास जा पहुंचा था.

रेडियो ने ननकू और फूलमती की दोस्ती गहरी कर दी थी. एक शाम को ननकू खेत से लौट रहा था. रेडियो पर उस का पसंदीदा गाना ‘हायहाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी…’ बज रहा था. इतने में उसे फूलमती दिखाई दी. ननकू ने गाने की आवाज तेज कर दी. फूलमती भी चारा काटते हुए वह गाना गुनगुनाने लगी.

“आज रात को तैयार रहना 8 बजे. बुधवार है न,” ननकू ने कहा.

“ठीक है,” फूलमती बोली. पर वे दोनों नहीं जानते थे कि उन की बातें पास ही पेड़ की आड़ में खड़ी फूलमती की मां सुन रही थीं.

मां ने घर में जाते ही फूलमती के बापू को पूरी बात बता दी. पहले तो बापू को लगा कि यह उन दोनों का बचपना है, क्योंकि वे एकसाथ जो रहते हैं, पर रात को ननकू का घर के पिछवाड़े में आ कर मिलना अखर गया.

रात के 8 बजे ननकू और फूलमती ‘सिबाका गीतमाला’ पर प्यार भरे नगमे सुन रहे थे कि अचानक फूलमती के बापू ने ननकू को दबोच लिया. बस, फिर क्या था. बापू ने ननकू की धुनाई कर दी. इधर, फूलमती की मां ने उसे ताबड़तोड़ थप्पड़ बरसाने शुरू कर दिए.

“अगर तू आज के बाद फूलमती के आसपास भी दिखा तो अच्छा नहीं होगा. गांव का लड़का है, इसलिए पहली गलती मान कर तुझे छोड़ रहा हूं,” फूलमती के बापू ने ननकू को धमकाते हुए कहा.

ननकू ने अपने कपड़े झाड़े, पास रखा रेडियो उठाया और भारी मन से वहां से चला गया. फूलमती की खिड़की बंद हो चुकी थी.

इस के बाद फूलमती का स्कूल जाना बंद हो गया. ननकू की जिंदगी दर्दभरे नगमे सी हो गई थी. उसे पहली बार अहसास हुआ था कि वह फूलमती को पसंद करता है. यही हाल फूलमती का भी था. उन दोनों को जोड़ने वाला रेडियो भी अब शांत रहने लगा था.

इस बात को 3 साल गुजर गए थे. 15 साल की होते ही फूलमती के हाथ पीले कर दिए गए. 1977 का साल था. फिल्म ‘लैला मजनू’ का गाना ‘हुस्न हाजिर है मोहब्बत की सजा पाने को…’ ‘सिबाका गीतमाला’ पर खूब बज रहा था, जो ननकू की नाकाम मोहब्बत पर फिट बैठ रहा था.

उस बुधवार की रात ननकू खूब रोया था. रात जैसेतैसे कटी थी. अगले ही दिन वह अपना रेडियो ले कर फूलमती की ससुराल जा पहुंचा और उस के घर से थोड़ी दूर बैठ कर तेज आवाज में रेडियो पर गाने सुनने लगा.

गाने की आवाज सुन कर फूलमती के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. उस ने मन ही मन कहा, ‘बस, ननकू यहां न आया हो.’

फूलमती डरतीडरती खिड़की पर आई और सामने ननकू को देख कर उस की आह निकल गई. चूंकि घर के आसपास कुछ दुकानें थीं, तो किसी को शक नहीं हुआ कि ये गाने क्यों बज रहे हैं.

यह सिलसिला कई साल चला. ननकू रोज वहां आता और एक चाय की दुकान पर बैठ कर गाने सुनता. फूलमती खिड़की से सब देखती और इशारे से ननकू को वहां से जाने की गुजारिश करती, पर ननकू तो जैसे फूलमती की एक झलक पाने के लिए यह सब कर रहा था…

“दादू, खाना खा लो. आज आप की पसंद की कटहल की सब्जी बनी है,” राधा की आवाज ने ननकू का ध्यान भंग किया.

“मन नहीं है,” ननकू ने इतना ही कहा और अपने रेडियो को ताकने लगा और फिर यादों में खो गया.

ननकू और फूलमती को दूर हुए अब 25 साल बीत चुके थे. एक दिन ननकू को पता चला कि फूलमती को कोई बड़ी बीमारी हो गई है और वह अस्पताल में आखिरी सांसें ले रही है. वह तुरंत अपना वही रेडियो ले कर अस्पताल पहुंचा.

उस समय फूलमती के कमरे में कोई नहीं था. वह आंखें बंद किए लेटी हुई थी. ननकू ने धीरे से रेडियो चला दिया. भूलेबिसरे गानों का प्रोग्राम चल रहा था. शम्मी कपूर की फिल्म ‘पगला कहीं का’ का गाना ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे…’ बज रहा था.

फूलमती ने आंखें खोल दीं और अपने सामने ननकू को देख कर उस की आंखें गीली हो गईं. ननकू ने उस का हाथ पकड़ लिया. फूलमती की हथेली पर ननकू की आंख से आंसू गिरने लगे.

यह वह आखिरी गाना था, जो उन दोनों ने साथ सुना था. फूलमती अब इस दुनिया में नहीं थी.

वह दिन है और आज का दिन, ननकू ने वह रेडियो कभी नहीं चलाया. आज बुधवार को अमीन सयानी की मौत की खबर ने ननकू और फूलमती के अधूरे प्यार को जिंदा कर दिया था.

ननकू ने वह रेडियो चलाया, पर उस में से ‘खरखर’ की आवाज ही आ रही थी, जैसे अमीन सयानी की मौत के बाद उस का गला बैठ गया हो.

आंसू खुशी के: कैसी थी इशहाक की जिंदगी

शाम हो चुकी थी. धीरेधीरे करते हुए इशहाक को पार्क में आए काफी देर हो चुकी थी. न जाने क्या बात थी, जो उसे कसक रही थी. खामोश सा कुछ वह सोचता हुआ चला जा रहा था, ‘आखिर मैं कैसे बताऊं शबाना को कि मैं उस के लायक नहीं हूं. मैं अभी तक बेकार हूं और वह मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी कर रही है.

‘मेरा परिवार गरीब और उस के पिता नामीगिरामी वकील. कहीं भी तो बराबरी नहीं…’ सोचतेसोचते उस का मन किया कि वह शहर से बाहर चला जाए, फिर वह आगे सोचने लगा, ‘अगर मैं बिना बताए बाहर निकल भी जाऊं तो अम्मी का क्या होगा… वे तो सदमे से मर जाएंगी. अब्बा चल भी नहीं पाते, उन्हें कौन सहारा देगा… रुखसार की शादी कैसे होगी… बाहर चले जाने पर भी नौकरी मिलने की कोई गारंटी नहीं है…’

तभी एक आवाज ने इशहाक को चौंका दिया, ‘‘अरे इशहाक साहब, जरा मेरी तरफ भी थोड़ा देख लीजिए, कब से मैं आप के पास खड़ी हूं,’’ यह शबाना थी, जो औफिस से लौट कर इशहाक से मिलने आई थी.

इशहाक मुसकराया और बोला, ‘‘आओ शब्बो, बैठो. तुम्हारे औफिस में आज कुछ देर से छुट्टी हुई… क्या आज काम ज्यादा था?’’

‘‘नहीं, काम तो रोज के हिसाब से था, लेकिन औफिशियल मीटिंग में देर हुई…’’ शबाना ने बैंच पर बैठते हुए कहा, ‘‘तुम्हें मेरे लिए काफी देर तक बैठना पड़ा… सौरी.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं,’’ इशहाक बोला.

शबाना गौर से इशहाक के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘कुछ ऐसा क्यों नहीं करते कि हमारा इंतजार हमेशा के लिए खत्म हो जाता…’’

इशहाक ने शबाना के चेहरे की तरफ एकबारगी देखा और खामोश ही रहा.

शबाना ने दोहराते हुए पूछा, ‘‘कोई बात है क्या? इतने चुप क्यों हो?’’

‘‘नहीं, कोई बात नहीं. और सुनाओ, आज का दिन औफिस में कैसा गुजरा?’’ इशहाक ने बात टालते हुए कहा.

‘‘ईशु मियां, बात टालते हुए अरसा गुजर रहा है. अब हमें अपनी जिंदगी को जवाब देना है. आखिर कब तक हम जिंदगी के सब से अहम सवाल को यों ही टालते रहेंगे?

‘‘तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती. अब वक्त बहुत बीत गया है, इसलिए निकाह बहुत जरूरी है. तुम मेरे अब्बू से क्यों नहीं मिलते?’’ शबाना ने इशहाक को झकझोरते हुए कहा.

‘‘शब्बो, यह इतना आसान नहीं है. तुम समझने की कोशिश तो करो, मैं कैसे अब्बू से मिलूं. हजार सवाल पूछे जाएंगे. सब से बड़ा सवाल होगा कि मैं क्या करता हूं? तुम्हीं ही बताओ कि इस सवाल का मैं क्या जवाब दूं?

‘‘कैसे बताऊं कि मैं एमबीए करने के बाद भी बेकार हूं और मेरे पास रहने के लिए अपना घर तक नहीं है. तुम्हारे अब्बू किसी ऐसे आदमी से तुम्हारे निकाह के लिए कैसे हां कर सकते हैं?

‘‘मेरी बात मानो, तो मुझे भूलने की कोशिश करो. मैं तुम्हें कैसे खुश रख सकता हूं, जिस के पास न तो कोई नौकरी है और न ही रहने के लिए घर.

‘‘तुम एक बड़े घर में रहने वाली और बड़ी कंपनी में काम करने वाली खूबसूरत लड़की हो. और मैं…’’ इशहाक की आवाज कांप रही थी. उसे लग रहा था कि वह रो देगा. वह किसी तरह खुद को संभाल पा रहा था.

‘‘ईशू, यह आज क्या हो गया है तुम्हें? कैसी बातें कर रहे हो… तुम बेहद काबिल हो. आज नहीं तो कल नौकरी मिल ही जाएगी. इस तरह निराश मत हो और मुझ से ऐसी बातें मत करो.

‘‘तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी. रही बात अब्बू की, तो वे वकील हैं और उन की जिंदगी की शुरुआत बहुत ही खराब थी. उन्होंने काफी जद्दोजेहद की है और बहुत दर्द सहने के बाद आज इस मुकाम पर पहुंच सके हैं.

‘‘उन्हें धनदौलत और शोहरत वाला लड़का नहीं चाहिए, बल्कि ऐसा कोई हो, जो मुझे प्यार करे और मेरे जज्बात को तवज्जुह दे.

‘‘वे अकसर कहते हैं कि शबाना की शादी मैं ऐसे लड़के से करूंगा, जो भले ही गरीब हो, लेकिन काबिल हो सब से अहम बात कि वह शबाना से बेहद प्यार करता हो.

‘‘ईशु, तुम एक बार मिल कर बात तो करो. कल इतवार है और सब लोग घर पर ही रहेंगे. तुम कल मेरे घर आ जाओ. तुम बिलकुल मत घबराओ. मैं वहीं रहूंगी और हमेशा तुम्हारे साथ हूं,’’ शबाना ने इशहाक का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

‘‘लेकिन शब्बो, कुछ अनहोनी न हो जाए,’’ इशहाक ने घबराहट में कहा.

‘‘जोकुछ भी होगा, हमारे साथ होगा… मैं साथ रहूंगी,’’ शबाना ने बहुत आत्मविश्वास से कहा और थोड़ी देर के बाद वह चली गई.

दूसरे दिन इशहाक बड़ी हिम्मत कर के शबाना के घर पहुंचा. उस समय शबाना के अब्बू बैठक में ही बैठे थे.

‘‘अब्बू, ये इशहाक हैं और मेरे साथ पढ़े हैं. मैं इन्हें अच्छी तरह से जानती

हूं. ये आप से मिलने आए हैं,’’ शबाना

ने कहा.

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है कि तुम इन्हें जानती हो. बैठो बेटा. मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’ अब्बू ने पूछा.

‘‘मैं ने एमबीए फर्स्ट क्लास में पास किया है, पर कितनी कोशिश के बाद भी मुझे नौकरी नहीं मिली,’’ इशहाक बोला.

‘‘इस में परेशान होने की बात नहीं है बेटा, आज नहीं तो कल कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी, बस कोशिश करते रहना चाहिए.’’

‘‘अब्बू, मैं भी इन से यही कहती हूं कि कोशिश करने वाले कभी हारते नहीं,’’ शबाना ने बीच में दखल देते हुए कहा.

‘‘हां, जिंदगी में उतारचढ़ाव तो आते रहते हैं, लेकिन हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. वैसे, मेरे एक दोस्त हैं… उन का कुछ असरदार लोगों से परिचय है. मैं उन से बात करूंगा. हो सकता है कि तुम्हारा काम हो जाए. तुम कल शाम को मुझ से मिलो,’’ कहते हुए शबाना के अब्बू उठ कर बाहर चले गए.

बैठक में शबाना और इशहाक रह गए. ‘‘ईशु मियां, ऐसे तो तुम कभी अपनी बात नहीं कह पाओगे,’’ शबाना ने रूठते हुए कहा. खैर, अगले दिन शाम को फिर इशहाक शबाना के घर पहुंचा.

‘‘आओ बेटा, शबाना तुम्हारे बारे में ही बात कर रही थी,’’ शबाना के अब्बू ने कहा.

इशहाक के चेहरे पर कई तरह के भाव आए. कुछ घबराहट सी हुई कि कहीं शबाना ने सारी बात तो नहीं बता दी. वह चुपचाप बैठ गया.

‘‘मैं ने तुम्हारे बारे में बात की है. हो सकता है कि तुम्हारा काम हो जाए, लेकिन तुम्हें मैं जहां भेज रहा हूं, वहां जा कर मेरे दोस्त से मिलना होगा. और जो वे कहें, वह मानना पड़ेगा,’’ शबाना के अब्बू ने इशहाक से कहा.

‘‘जी, मैं तैयार हूं,’’ इशहाक बोला.

‘‘तो ठीक है. मेरा खत ले कर जाओ और उन से मिलो,’’ वकील साहब ने इशहाक को खत देते हुए कहा.

इशहाक खत ले कर वकील साहब के दोस्त के यहां पहुंचा. खत पढ़ कर उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है. मैं आप का काम करा दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है.’’

‘‘कैसी शर्त?’’ इशहाक ने पूछा.

‘‘शर्त यह है कि नौकरी मिलने के बाद आप को मेरी बेटी से शादी करनी होगी.’’

‘‘लेकिन, मैं यह शादी नहीं कर सकता. मैं किसी और से प्यार करता हूं और मैं ने उस से शादी का वादा किया है,’’ इशहाक ने जोर दे कर कहा.

‘‘देखो, मेरी बेटी से शादी करने के बाद ही मैं तुम्हारे लिए कुछ सोच सकता हूं, इसलिए तुम्हें एक दिन का मौका है… सोचसमझ लो और चाहो तो मेरी बेटी से मिल भी सकते हो,’’ वकील साहब के दोस्त ने कड़े लहजे में कहा.

इशहाक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वह शबाना को किसी भी हालत में छोड़ने की सोच भी नहीं सकता था और नौकरी उस के लिए बहुत जरूरी थी. प्यार के नाम पर वह कोई समझौता नहीं कर सकता था.

‘‘ठीक है अंकल, मैं कल सोच कर जवाब दूंगा,’’ कहते हुए इशहाक चला आया. घर पहुंच कर वह सोचने लगा, ‘क्या शबाना के अब्बू ने जानबूझ कर मुझे ऐसे आदमी के पास भेजा था या

मेरी मजबूरी का फायदा उठाते हुए मुझे जानबूझ कर शबाना से अलग करने की चाल है? क्या शबाना को यह सब पता है? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता,’ यह सोचते हुए उसे नींद आ गई.

अगले दिन इशहाक मन में कुछ सोच कर शबाना के अब्बू से मिलने उस के घर गया. शबाना घर पर ही मिल गई. उस ने शबाना को सारी बात बताई.

पहले तो शबाना को यकीन ही नहीं हुआ, फिर वह इशहाक का हाथ पकड़ कर बैठक में गई. वहां उस के अब्बू अपने किसी मुवक्किल से बात कर रहे थे. अचानक ऐसे शबाना के अंदर आने से वे चौंक गए.

‘‘अब्बू, यह आप ने क्या किया है… जब आप को मालूम था कि अंकल ऐसे हैं, तो आप ने इशहाक को उन के पास क्यों भेजा?’’ शबाना ने गुस्से में भर कर कहा.

शबाना के अब्बू को अंदाजा हो गया था कि शबाना और इशहाक एकदूसरे के बहुत करीब हैं, लेकिन मौजूदा हालात की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.

‘‘बेटा, पहले कमरे में चलो. वहां बात करते हैं,’’ कहते हुए वे उन दोनों को भी कमरे में ले आए.

‘‘हां, अब बताओ कि क्या बात है. और इशहाक, तुम्हारे साथ कल क्या हुआ?’’

इशहाक ने सारी बात बताई.

‘‘अब्बू बताइए कि आप ने ऐसे आदमी के पास इशहाक को क्यों भेजा?’’ शबाना ने पूछा.

‘‘बेटा, यह बात मुझे पहले से मालूम थी कि उन की लड़की ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है और मानसिक रूप विकलांग है. लेकिन यह सच नहीं है कि मैं ने इशहाक को उन के पास इसलिए भेजा कि वह नौकरी के लिए उन की लड़की से शादी कर ले. मुझे इस का अंदाजा भी नहीं था कि वे ऐसा करेंगे,’’ वकील साहब ने अपनी बात समझाने की कोशिश की.

‘‘पर अब्बू, इशहाक और मैं शादी करना चाहते हैं और आप हमें इजाजत दीजिए,’’ शबाना ने एकदम से कह दिया.

इशहाक चुपचाप खड़ा रहा. थोड़ी देर तक वहां सन्नाटा पसर गया और वकील साहब भी अवाक खड़े रह गए. फिर वे सामने कुरसी पर बैठ गए और उन दोनों को भी बैठने को कहा.

बैठने से पहले शबाना गिलास में पानी ले कर आई और अब्बू को दिया, फिर वह बोली, ‘‘अब्बू, आप ने ही सिखाया था कि मांबाप से दिल की बात साफसाफ कह देनी चाहिए. इशहाक गरीब जरूर है, लेकिन इस में आत्मसम्मान बहुत ज्यादा है. सब से खास बात तो यह है कि यह काबिल है. हम एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं और हर हाल में खुश रहेंगे,’’ शबाना ने अपने अब्बू से सबकुछ कह डाला.

‘‘अब्बू, मैं वादा करता हूं कि शबाना को हमेशा खुश रखूंगा और चाहे कैसे भी हालात हों, हम मिल कर उन का सामना करेंगे और हमेशा खुश रहेंगे,’’ इशहाक ने भी कहा.

‘‘अच्छा ठीक है. लेकिन, मैं लड़की वाला हूं, तो मुझे तो रिश्ता मांगने इशहाक के मांबाप से मिलने जाना होगा. जब तक शादी की तारीख तय न हो जाए, तब तक के लिए मुझे वक्त चाहिए.

‘‘इशहाक, तुम मेरे साथ 2 दिन बाद चलोगे, जहां तुम्हारी नौकरी की बात शबाना के मामू की कंपनी में करनी है. शादी की तारीख तक मुझे तुम्हारी नौकरी पक्की करानी है. अब तो मेरा काम बढ़ गया है. जल्दी से जल्दी शादी की तारीख निकलवाने की कोशिश करूंगा.’’

इतना कह कर वकील साहब ने शबाना और इशहाक को अपने गले से लगा लिया. शबाना की आंखों में खुशी के आंसू आ गए.

सोनी खातून : इम्तियाज से बनाएं नाजायज संबंध

रात के 2 बजे थे. अचानक सोनी खातून की बेटी शबनम, जो महज 7 साल की थी, की आंख खुली, तो उस ने देखा कि एक कंबल ऊंचा उठा हुआ था और उस में से तरहतरह की आवाजें आ रही थीं.

शबनम ने जब वह कंबल हटाया, तो देखा कि अंदर उस की मां और दूर का मामा इम्तियाज बिना कपड़ों के पड़े थे.

शबनम ने पूछा, ‘‘मां, तुम कपड़े उतार कर इम्तियाज मामा के साथ क्या कर रही हो?’’

सोनी खातून ने शबनम को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, तेरे मामा के सीने में दर्द हो रहा था, तो मैं मालिश कर रही थी.’’

अगले दिन शबनम ने अपने अब्बा ताहिर को इस घटना के बारे में फोन कर के बता दिया.

ताहिर ने घर आ कर जब सोनी से इस बारे में पूछा, तो उस ने बात को टालते हुए कहा, ‘‘शबनम ने कोई बुरा सपना देखा होगा, इसलिए वह ऐसा बोल रही है.’’

सोनी खातून की यह बात सुन कर ताहिर आगबबूला हो गया और गुस्से में उसे उलटासीधा बोलने लगा, तो सोनी खातून भी गुस्से में आ गई और बोली, ‘‘ठीक है, मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना. मैं इम्तियाज के साथ जा रही हूं.’’

सोनी खातून की यह बात सुन कर ताहिर डर गया. वह अपनी बीवी को बहुत प्यार करता था. उस ने उसे सम?ाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, तुम मुझे छोड़ कर मत जाओ. तुम्हारा जो दिल करे, वह करो, पर मुझे और मेरे बच्चों को छोड़ कर मत जाना.’’

अब सोनी खातून को हरी झंडी मिल चुकी थी और वह अपनी मरजी से घर में इम्तियाज के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगी.

यह कहानी बिहार के इसलामनगर के नवादा शहर की है, जहां ताहिर अपनी बीवी सोनी खातून और 3 बच्चों के साथ एक किराए के मकान में रहता था.

ताहिर एक ट्रक ड्राइवर था, जो ज्यादातर घर से दूर कोलकाता में रहता था.

सोनी खातून देखने मे बड़ी खूबसूरत और गदराए बदन की औरत थी. उस का खूबसूरत बदन ऐसा था कि जो भी उसे देख ले, बस देखता ही रह जाए.

ताहिर काम के सिलसिले में ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था. यही वजह थी कि सोनी खातून की जवानी मर्द का प्यार पाने के लिए बेचैन रहती थी.

एक दिन सोनी खातून की मुलाकात इम्तियाज से हुई. इम्तियाज ने उस के खूबसूरत बदन की जम कर तारीफ की. अपनी तारीफ सुन कर सोनी खातून उस की तरफ खिंचने लगी. धीरेधीरे उन दोनों में बातचीत होने लगी और यह बातचीत कब प्यार में बदल गई, उन दोनों को पता ही नहीं चला.

इम्तियाज अब ताहिर के घर में सोनी खातून का मुंहबोला भाई बन कर आनेजाने लगा. बच्चे उसे ‘मामा’ कह कर पुकारने लगे.

ठंड का महीना था. इम्तियाज सोनी खातून के घर पर आया हुआ था. हलकीहलकी बारिश हो रही थी. काफी रात होने के बाद भी बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी. सोनी खातून ने कमरे में ही इम्तियाज का बिस्तर लगा दिया.

इम्तियाज अपने बिस्तर पर लेट गया, पर उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह तो सोनी खातून को पाने की लालसा में उस के घर रुका था.

सोनी खातून का भी हाल कुछ ऐसा ही था. ठंड के महीने में उसे पति की गैरमौजूदगी सता रही थी. उस का बदन आज किसी मर्द का प्यार पाने के लिए कुछ ज्यादा ही बेताब हो रहा था.

सोनी खातून ने इम्तियाज की तरफ नजर डाली, तो देखा कि वह भी बिस्तर पर करवट बदल रहा था. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी.

थोड़ी देर में इम्तियाज उठ कर बैठ गया और ठंड के मारे कांपने लगा, तो सोनी खातून भी उठ गई और इम्तियाज के पास जा कर बोली, ‘‘क्या बात है, आप अभी तक सोए क्यों नहीं?’’

इम्तियाज ने उस की ओर आह भरते हुए कहा, ‘‘अकेले नींद नहीं आ रही और ठंड भी काफी हो रही है.’’

सोनी ने कहा, ‘‘तो मैं ठंड दूर कर दूं आप की?’’

इम्तियाज ने कहा, ‘‘मेरी ऐसी किस्मत कहां, जो आप जैसी खूबसूरत हसीना मेरी ठंड दूर करेगी.’’

सोनी खातून ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, ‘‘आप सेवा का मौका तो दो, मैं हाजिर हूं.’’

सोनी के मुंह से यह बात सुनते ही इम्तियाज ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और उस के बदन पर चुम्मों की बौछार शुरू कर दी.

इम्तियाज की छुअन पाते ही सोनी खातून का बदन कामुक हो उठा. वह भी जल्द ही इम्तियाज को चूमनेचाटने लगी और फिर उस की सिसकियों की आवाज से पूरा कमरा गूंज उठा.

सोनी खातून को इम्तियाज के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाते हुए आज एक अलग ही मजा आया था. यही वजह थी कि वह पूरी तरह से इम्तियाज की दीवानी बन गई.

अब तो उन का यह रोज का काम हो गया था. ताहिर की गैरमौजूदगी में इम्तियाज सोनी खातून के घर आ जाता और दोनों मिल कर खूब मजे करते और एकदूसरे की जिस्मानी प्यास बु?ाते.

अपनी मां को खुलेआम रंगरलियां मनाते देख उस की बेटी शबनम को बहुत गुस्सा आने लगा. वह इम्तियाज को घर आने से मना करने लगी, तो सोनी खातून उसे खूब मारतीपीटती.

एक दिन शबनम अपनी मां से बोली, ‘‘तुम चाहे मुझे जान से मार दो, पर इम्तियाज मामा को मैं घर में नहीं घुसने दूंगी और न ही तुम्हें यह गंदा काम करने दूंगी. अगर अब वे दोबारा यहां आए, तो मैं सब को बता दूंगी कि तुम इम्तियाज मामा के साथ क्याक्या करती हो.’’

शबनम की इस चेतावनी से सोनी खातून परेशान हो उठी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी देह की आग को कैसे ठंडा करे. बाद में उस ने सोचा कि अगर वह अपनी बेटी को रास्ते से हटाती भी है, तो उसे पुलिस पकड़ लेगी और जेल जाना पड़ेगा.

आखिरकार सोनी खातून ने घर से भागने का फैसला कर लिया. घर में रखे जेवर और पैसे ले कर इम्तियाज के साथ अपने पति और बच्चों को छोड़ कर चली गई.

शबनम ने अपनी मां के गायब होने की खबर जब अपने अब्बा ताहिर को दी, तो वह घबरा गया. उस ने फौरन पुलिस स्टेशन जा कर इम्तियाज पर अपनी बीवी को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप लगाया और पुलिस से उसे ढूंढ़ कर लाने की गुजारिश की.

पुलिस ने सोनी खातून को ढूंढ़ने की जांच शुरू कर दी. काफी जद्दोजेहद के बाद पुलिस ने आखिरकार इम्तियाज और सोनी खातून को ढूंढ़ निकाला.

ताहिर को पुलिस स्टेशन बुलाया गया और उस के सामने ही लगाए गए आरोप के बारे में सोनी खातून से पूछा गया, तो उस ने वहां मौजूद सब लोगों के सामने एक हैरान कर देना वाला बयान दिया, जिसे सुन कर पुलिस भी खामोश हो गई.

सोनी खातून बोली, ‘‘मैं एक औरत हूं. मेरी भी कुछ ख्वाहिशें हैं, जो एक मर्द ही पूरी कर सकता है. ताहिर तो कईकई महीने बाहर रहता है और जब घर भी आता है, तो मुझे वह जिस्मानी सुख नहीं दे पाता, जिस की मुझे जरूरत है.’’

सोनी खातून के मुंह से यह बात सुन कर ताहिर का सिर शर्म से झक गया. उस के पास अपनी बीवी के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था.

पुलिस हैरान थी कि अब सोनी खातून और इम्तियाज का क्या किया जाए. ताहिर ने जो इलजाम इम्तियाज पर लगाया था कि वह उस की बीवी को बहलाफुसला कर ले गया है, वह तो गलत निकला, क्योंकि अपने बदन की हवस और जिस्मानी जरूरत पूरी करने के लिए सोनी खातून खुद इम्तियाज के साथ गई थी.

पुलिस ने सोनी खातून और इम्तियाज को छोड़ दिया और ताहिर से कहा कि जब वह अपनी बीवी की जरूरत पूरी नहीं कर सकता और वह उस के साथ नहीं रहना चाहती, तो इस में पुलिस कुछ नहीं कर सकती.

कुछ ही दिनों में सोनी खातून ने ताहिर से अपना रिश्ता तोड़ लिया और इम्तियाज के साथ रहने लगी. ताहिर ने भी कुछ महीने बाद दूसरी शादी कर ली और अपने बच्चों के लिए एक नई मां ले आया. ताहिर और उस के बच्चे भी अब खुश थे.

लूणी घी : हुस्न के चक्कर में बनें घनचक्कर

सुबह के काम से फारिग हो कर सुरेश खिड़की पर खड़ा सब्जी वाले का इंतजार कर रहा था. वह हाथ में मोबाइल पर रील्स देखने में बिजी था कि अचानक ‘लूणी घी चाहिए, लूणी…’ की आवाज ने उसे बाहर देखने को मजबूर कर दिया. खिड़की के बाहर राजस्थानी कुरतेघाघरे में सजी, सिर पर मटकियां रखे 2 अनजान लड़कियां खड़ी पुकार लगा रही थीं.

‘‘क्या है?’’ सुरेश ने बेहद रुखाई से पूछा, लेकिन उन लड़कियों के ठेठ राजस्थानी लहजे में बोले गए शब्द उस के पल्ले नहीं पड़े थे.

‘लूणी चाहिए, लूणी घी. खारा वाला घी लूणी,’ कहते हुए वे दोनों खिड़की के और निकट सरक आईं.

‘‘नहीं चाहिए,’’ कह कर सुरेश ने उन की ओर से पीठ मोड़ ली और फिर अपने मोबाइल में ध्यान लगाना चाहा, पर वे कहां पिंड छोड़ने वाली थीं. उन की आपस में कुछ अपनी भाषा में बात करने की आवाज कानों में आती रही.

‘‘ऐ साहब, सुनो. जरा यह बता दो कि यह मोबाइल नंबर सही है क्या?’’

सुरेश ने बेरुखी से पूछा, ‘‘अब क्या चाहती हो?’’

जवाब में उन में से एक लड़की ने कुरते की जेब से एक परची निकाल कर सुरेश की ओर बढ़ा दी.

‘‘क्या करूं इस का?’’ सुरेश ने पूछा.

उसी पहली वाली लड़की ने जवाब दिया, ‘‘जरा अपने मोबाइल से बात करा दो. यह नंबर एक सरदारजी ने दिया है. साहब, हम तो यहां बिलकुल नएनए आए हैं. वे लूणी घी चाहते हैं और कहा था कि इस नंबर पर फोन कर देना, तो स्कूटर पर वे खुद लेने आ जाएंगे.’’

काफी कोशिश करने पर बड़ी मुश्किल से सुरेश उन की बात कुछकुछ समझ पा रहा था. उन दोनों में बड़ी कशिश थी. उन्होंने ओढ़नी ओढ़ी हुई थी, पर उन के ब्लाउज बेहद छोटे थे. उन्हें भी उन्होंने पीछे से ढीला छोड़ा हुआ था. उन के उभार बाहर निकल रहे थे.

सुरेश देखने से अपने को रोक नहीं सका. अपने मोबाइल से नंबर मिलाया, तो जवाब आया, ‘दिस नंबर डज नौट एग्जिस्ट.’

सुरेश ने परची उस के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘नंबर गलत है.’’

वह लड़की अनजान बनते हुए बोली, ‘‘एक सरदारजी ने पिछली बार लूणी घी लिया था. कहा था कि जब भी आऊं उन्हें दे जाऊं. ठीक है न, वह तो पूरा घी मांग रहे थे, पर कह रहे थे कि पैसे वे पेटीएम से भेजेंगे. हम यह तरीका नहीं समझाते न साहब.’’

उन के भोलेपन पर हैरान होते हुए अब तक सुरेश को भी यह जानने की उत्सुकता होने लगी थी कि आखिर यह लूणी घी क्या बला है.

दरवाजा खोल कर सुरेश बाहर निकल आया, ‘‘देखूं, क्या है तुम्हारे पास.’’

मटकियां नीचे उतार कर वे दोनों घाघरे को घुटने के ऊपर कर के बैठ गईं, ‘‘लूणी घी है हमारे पास. लो देखो, ठेठ बीकानेर म्हारा घर है.’’

फिर उन्होंने खूब चहकचहक कर अपनी भाषा में सुरेश को सम?ाया कि  वे बड़ी दूर बीकानेर की रहने वाली

हैं. काफिले के साथ वे निकली थीं. चलतेचलते यहां बिहार तक आ पहुंची हैं. नदी पार उन की गाडि़यां, भैंसें और मर्द हैं. पर अब वे घूमतेघूमते थक चुकी हैं. उन का घी बिक जाए, तो वे लौट जाएंगी.

एक लड़की की आंखों में मोटेमोटे आंसू छलछला आए, ‘‘साहब, यह घी नहीं लोगे, तो यह घी बेकार जाएगा. हम तो सरदारजी के लिए ही लाए थे.’’

उन की भोलीभाली सूरतें, गांव की पोशाक और सैक्सी बोली, बारबार गिरती ओढ़नी से सुरेश का मन ललचा उठा.

‘‘लाओ, एक डब्बा दे दो. कितने का है?’’ कह कर सुरेश पैसे लेने अंदर जाने लगा व साथ में रुपए भी लेता आया, ताकि जल्द से जल्द इन से पीछा छुड़ा कर दरवाजा बंद करे. आजकल अकेले घर में किसी भी अनजान को घुसाना कोई अक्लमंदी नहीं है.

सुरेश लौटा तो वे अपने सारे के सारे डब्बे थैले से निकाल चुकी थीं. एक बोली, ‘‘बस, कोई 5 किलो है. सारा ले लो साहब. हम भी लौट जाएंगी अपने काफिले के पास.’’

‘‘नहीं, इतना घी ले कर मैं क्या करूंगा. कहीं और बेच लेना.’’

पर वे जिद करती रहीं. सुरेश को एका एक अपने दोस्त रोहन का ध्यान आया. क्यों न उसे बुला ले. वह राजस्थानका रहने वाला है. इन की भाषा भी समझ लेगा और इन्हें समझबुझ कर इन की समस्या भी शायद सुलझ दे.

सुरेश को लालच था कि कुछ देर वे ऐसे ही बैठी रहें. उन की खुली टांगें न्योता दे रही थीं.

‘‘रोहन आ जा. अच्छा माल घर आया है,’’ सुरेश ने फोन किया.

रोहन ने आते ही उन लड़कियों को ताड़ा, फिर राजस्थानी भाषा में पूछा कि वे कहां की रहने वाली हैं. अपनी भाषा सुनते ही वे दोनों ऐसी खिल गईं, मानो उन्हें कोई अपना सगा मिल गया हो. हाथमुंह मटकामटका कर उन्होंने कुछ ऐसी बातें की कि रोहन को भी लगा कि ये लड़कियां आसानी से पट जाएंगी.

मटकी में से जरा सा घी निकाल कर अपने हाथ पर रख कर दोनों ने सुरेश और रोहन के मुंह के पास अपने हाथ कर दिए. ‘‘घी तो बिलकुल शुद्ध है. लूणी घी का मतलब ही शुद्ध मक्खन से निकला हुआ घी. देखो न इस का रंग. गाय का दूध पीला होता है न, इसी से यह पीला है. किसी को भी दोगे तो बढि़या लड्डू बनेंगे. सरदारजी ने 8 किलो घी खरीद लिया है, तो जरूर बढि़या होगा,’’ रोहन बोला.

सुरेश खुश था कि ये लड़कियां उन के इतने पास बैठी हैं. ये लड़कियां उसे सैक्सी लगीं, पर वे हमेशा अपने मर्दों से घिरी रहती थीं. उन के बदन से चमेली की सी खुशबू आ रही थी. सुरेश को तो नशा सा होने लगा था.

उन लड़कियों ने मटकी से साथ लाए प्लास्टिक के डब्बों में घी भरना शुरू कर दिया था.

एक लड़की कहने लगी, ‘‘साहब, यह डब्बा एक किलो का है.’’

रोहन कहने लगा कि यह डब्बा तो बहुत बड़ा है. इस में तो डेढ़ 2 किलो घी आ जाएगा, पर वे दोनों एक नहीं मानीं.

‘‘नहींनहीं साहब, हम को बेईमानी मत सिखाओ. हम अभी कुंआरी हैं. हमारे मांबाप ने कहा है कि भूखी मर जाना, पर कभी बेईमानी न करना. हम तो पूरा डब्बा ही भरेंगी.’’

अब तो सुरेश और रोहन उन दोनों की ईमानदारी और सचाई पर कुछ इस कदर फिदा हुए कि सारा घी तुलवाने की सोच बैठे कि 600 रुपए का घी 400 रुपए के भाव में मिल रहा है. यह भी किलो का सवा या डेढ़ किलो. आपस में बांट कर अगले महीने के लिए रख लेंगे, कोई बिगड़ने वाली चीज तो है नहीं.

सुरेश और रोहन ने उन के 5 किलो के डब्बे का घी तुलवा कर रुपए उन के हाथ पर धरे तो उन के खिले हुए चेहरों की चमक देखते ही बनती थी.

सुरेश और रोहन सोच रहे थे कि उन्हें और कैसे रोका जाए, तभी एक लड़की ने जब मटकी जो आधी से कम भरी थी, सिर पर रखी तो फूट गई. घी उस पर बह गया. ??

दूसरी लड़की ने कहा, ‘‘चल, जल्दी चल. डेरे पर जा कर नहाना पड़ेगा.’’

उन दोनों के भोलेपन पर तो सुरेश और रोहन रीझ ही चुके थे. सुरेश ने कहा, ‘‘अरे, ऐसे घी में तर हो कर कहां जाओगी? चलो, यहीं नहा लो. हम कमीज दूसरी दे देंगे. ब्लाउज को घर ले जाना.’’

दोनों लड़कियों ने एकदूसरे को देखा और बोली, ‘‘साहब, आप शरीफ आदमी हैं, इसलिए हम नहा लेते हैं, वरना आज के मर्दों का क्या भरोसा.’’

उस के बाद एक लड़की ने आराम से कोने में खड़े हो कर पीठ कर के ब्लाउज उतार कर निकाल कर रखा, फिर ओढ़नी रखी. लहंगा नहीं उतारा, पर जब गुसलखाने से बाहर फेंका, तो सुरेश और रोहन की हालत बुरी थी.

अब उन दोनों की नजर उस लड़की पर टिकी थी, तो दूसरी लड़की पीछे ही खड़ी थी. थोड़ी देर में नहा कर वापस आई. सुरेश की कमीज पहने वह मौडर्न और चुस्त ही नहीं और सैक्सी लग रही थी. उन्होंने अपना सामान उठाया और चल दीं.

उन में से एक लड़की कहती गई, ‘‘साहब, हमें फोन कर देना. हम आ जाएंगी. इस फोन में रिकौर्डिंग भी है न.’’

सुरेश और रोहन को समझ नहीं आया कि वह क्या कह रही हैं. वह तो बाद में पता चला कि जब वे दोनों नहाने वाली लड़की को देख रहे थे, उन्हीं के फोन से दूसरी लड़की वीडियो बना रही थी. उस ने पीछे से पर्स, लैपटौप, फोन चार्जर अपनी थैली में डाल लिया था. उन की हिम्मत यह थी कि वे सुरेश के फोन पर ही उसे फोन करने को कह गईं.

वे दोनों जानती थीं कि सुरेश पुलिस में तो जाएगा नहीं, क्योंकि अगर वे पकड़ी भी गईं तो कपड़े उतारते हुए वीडियो से सुरेश और रोहन पर उलटा केस बना डालेंगी. लूणी घी के चक्कर में सुरेश अकेला ही नहीं, रोहन भी बुरी तरह फंस गया था.

वह लूणी घी नहीं था, किसी तरह की ग्रीस थी, जो सुरेश और रोहन को फेंकनी पड़ी थी. वे लड़कियां दिनदहाड़े धोखा दे गई थीं. ?

राज : सायरा की खूबसूरती

उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर में एक गांव है चंदनवाला, जहां पर शादाब अपने अम्मीअब्बा और एक छोटे भाई के साथ रहता था. उन की हवेली काफी बड़ी थी. वहीं नजदीक ही शादाब के चाचा अनीस भी अपने परिवार के साथ रहते थे.

दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर में आनाजाना लगा रहता था. शादाब बिजनौर में मोबाइल फोन की दुकान चलाता था. उस की अच्छीखासी कमाई थी. एक दिन उस के लिए नंदपुर गांव की सायरा का रिश्ता आया.

सायरा गजब की खूबसूरत थी, जिसे देखते ही शादाब के अब्बा फुकरान ने उसे अपने घर की बहू बनाने का फैसला कर लिया.

कुछ ही दिनों में शादाब और सायरा का निकाह हो गया. शादी की पहली रात थी. शादाब ने जैसे ही सायरा का घूंघट उठाया, उस के मुंह से खुद ब खुद निकला, ‘‘आप गजब की खूबसूरत हैं.’’

शादाब के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर सायरा शरमा गई और अपने चेहरे को हथेलियों से छिपाने लगी.

शादाब ने बड़े प्यार से सायरा के नाजुक हाथों को उस के चेहरे से हटाया और कहा, ‘‘मेरा चांद हो तुम, जिसे आज जीभर कर देखने दो.’’

सायरा शादी के सुर्ख जोड़े में वाकई कयामत ढा रही थी. उस के सुनहरे बाल, गोरेगोरे गाल, सुर्ख होंठ और बड़ीबड़ी आंखें शादाब को पागल बना रही थीं.

फिर उन दोनों ने एकदूसरे के आगोश में जिस्म की प्यास बुझाई. सुहागरात की उस पहली रात में ही शादाब सायरा का दीवाना बन गया और तनमन से उसे चाहने लगा.

शादी के कई महीनों तक शादाब सायरा के पास अपने घर पर रुका और उसे हर वह खुशी दी, जो एक बीवी को चाहिए.

फिर सायरा पेट से हो गई. यह सुन कर शादाब की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने सायरा का पूरी तरह खयाल रखा, पर उसे अपनी दुकान पर भी जाना था, जो कई महीने से अपने नौकर के भरोसे  छोड़े हुए था.

एक दिन अब्बा ने शादाब से कहा, ‘‘बेटा, अब तू अपना काम देख. सायरा की देखभाल के लिए हम सब हैं न.’’

शादाब बिजनौर में अपनी दुकान पर चला गया. वह हर महीने घर आताजाता था, ताकि सायरा खुद को अकेला महसूस न करे.

आखिरकार वह दिन भी आ गया, जब सायरा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, जिसे पा कर पूरे घर में खुशी का माहौल छा गया.

7वें दिन शादाब ने अपनी बेटी का अकीका बड़ी धूमधाम से मनाया. पूरे गांव को दावत में बुलाया गया और तरहतरह के लजीज खाने का इंतजाम किया गया.

शादाब के अम्मीअब्बा तो पोती पा कर झूम उठे. वे पहली बार दादादादी बने थे, इसलिए उन्होंने सायरा का बहुत खयाल रखा और प्यार दिया. शादाब कुछ दिन गांव में रुक कर अपनी दुकान पर चला गया.

सायरा की बेटी अब 7 महीने की हो गई थी, जिस से पूरे घर में खुशियां ही खुशियां दिखाई देती थीं.

गरमी के दिन थे. रात के 10 बजे थे. सायरा घर में अकेली थी. गरमी के मारे उस का बुरा हाल था. उस के सासससुर छत पर सोए हुए थे, पर सायरा गरमी की वजह से सो नहीं पा रही थी. उस ने अपने कपड़े बदल कर हलकी और ?ानी नाइटी पहन ली, जिस में उस की उभरी हुई गोरीगोरी छाती साफ दिखाई दे रही थी.

सायरा ने गरमी से बचने के लिए अपने कमरे का दरवाजा खोल रखा था और वह आराम से अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी कि तभी उसे अपने बदन पर किसी के हाथ फेरने का अहसास हुआ, जो उस के नाजुक पेट से होते हुए उस की मुलायम छाती को सहला रहा था.

सायरा की आंख खुल गई, पर उसे उन हाथों से जो मजा आ रहा था, वह चाह कर भी कुछ न बोल सकी और यों ही आंखें बंद किए पड़ी रही.

थोड़ी देर के बाद उस ने हलकी सी आंख खोल कर देखा तो पाया कि उस का चचेरा देवर नदीम उस के नाजुक अंगों को सहला रहा था.

सायरा को मजा आ रहा था. उस ने यह जानने के लिए कि नदीम उस के साथ और क्या करेगा, आंखें बंद कर के सोने का नाटक जारी रखा.

नदीम सायरा के बदन को सहलाते हुए उस की उभरी हुई छाती को अपने मुंह में ले कर चूमने लगा, तो सायरा भी मदमस्त हो गई. उस ने नदीम को अपने ऊपर खींच लिया.

नदीम अब सायरा की रजामंदी समझ कर उस पर भूखे भेडि़ए की तरह झपट पड़ा. उस ने सायरा की गरदन पर चुम्मों की ऐसी बौछार कर दी कि वह झूम उठी.

थोड़ी देर बाद नदीम ने सायरा के बदन के एकएक नाजुक अंग को चूमना शुरू कर दिया. जोश में आई सायरा नदीम को अपने ऊपर खींचने लगी.

नदीम ने बिना समय गंवाए सायरा के नाजुक बदन को मसलना शुरू कर दिया. फिर काफी देर तक नदीम सायरा के बदन को रौंदता रहा. संतुष्ट होने के बाद भी वह सायरा को अपनी बांहों में जकड़े हुए एक तरफ निढाल हो कर लेट गया.

सायरा ने नदीम से जो जिस्मानी सुख आज हासिल किया था, वह उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई मर्द उसे इतनी खुशी भी दे सकता है.

सायरा और नदीम का एक बार जिस्मानी रिश्ता बना, तो अब थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. उन्हें जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे से अपने बदन की प्यास बुझाते. उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि जब शादाब को इस का पता चलेगा, तो क्या होगा. ऐसा हुआ भी. एक दिन शादाब ने दोनों को ऐसी हालत में पकड़ा कि वे अपना जुर्म न छिपा सके.

दरअसल, शादाब अपने घर आया हुआ था. घर के सभी लोग छत पर सोए हुए थे, नीचे बस सायरा अकेली सो रही थी. रात के तकरीबन 2 बजे नदीम नीचे आया और सायरा के कमरे में घुस गया.

सायरा नदीम को देख कर उस की बांहों से लिपट गई. दोनों ने बिना समय गंवाए अपने कपड़े उतारे और एकदूसरे को चूमने लगे.

उधर छत पर शादाब की नींद खुल गई. उसे गरमी की वजह से बहुत तेज प्यास लगी थी. वह पानी पीने के लिए नीचे आ गया.

शादाब अभी नल के पास पहुंचा ही था कि उसे अपने कमरे से सायरा की सिसकियों की आवाज सुनाई दी. उस ने कमरे के भीतर झांक कर देखा तो उस का खून खौल उठा.

नदीम और सायरा अपने जिस्म की भूख मिटा रहे थे. जैसे ही उन की नजर शादाब पर पड़ी, वे हड़बड़ा कर एकदूसरे से अलग हो गए. नदीम अपने कपड़े पहन कर वहां से निकल गया और सायरा अपने किए की माफी मांगने लगी, पर शादाब कुछ न बोला. उस के जिस्म का खून मानो जम चुका था. जिसे उस ने सच्चे दिल से इतना प्यार किया, उस ने उस के ही प्यार को धोखा दे दिया.

कुछ देर बाद शादाब वहां से उठा और चुपचाप जा कर छत पर लेट गया. सुबह होते ही वह बिजनौर के लिए रवाना होने लगा, तो उस के अब्बू बोले, ‘‘तू कल ही तो आया है, फिर इतनी जल्दी क्यों जा रहा है?’’

शादाब ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया और अपना रोता हुआ चेहरा उन लोगों से छिपाते हुए अपनी दुकान पर आ गया.

सायरा समझ गई थी कि शादाब को गहरा सदमा लगा है. वह घबरा रही थी कि पता नहीं, अब क्या होगा. उस ने शादाब को कई बार फोन किया, पर शादाब ने उस का फोन नहीं उठाया.

2 महीने ऐसे ही निकल गए, पर शादाब ने न तो सायरा से बात की और न अब अपने घर वापस आया.

3 महीने बाद जब सायरा ने अपने ससुर को बताया कि शादाब उस से बात नहीं कर रहा है और न घर ही आ रहा है, तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई.

अगले दिन वे बिजनौर के लिए रवाना हो गए और शादाब से बोले, ‘‘बेटा, ऐसा कौन सा काम आ पड़ा, जो तुम घर पर भी नहीं आ रहे हो और बहू का फोन भी नहीं उठा रहे हो?’’

शादाब बोला, ‘‘मुझे अब सायरा से तलाक चाहिए. मैं उस के साथ अब नहीं रह सकता.’’

यह सुन कर शादाब के अब्बा दंग रह गए और बोले, ‘‘बेटा, सायरा इतनी अच्छी बहू है, सब से कितना प्यार करती है, सब की देखभाल करती है. ऐसी

क्या कमी है उस में, जो तुम ऐसा बोल रहे हो?’’

शादाब ने कहा, ‘‘बस, मुझे उस के साथ कोई रिश्ता नहीं रखना है. मैं उसे तलाक देना चाहता हूं.’’

शादाब के अब्बा गुस्सा करते हुए बोले, ‘‘लगता है, तुम ने किसी और औरत से रिश्ता बना लिया है, जो इतने महीनों से घर नहीं आए और इतनी प्यारी बीवी को छोड़ने की बात कर रहे हो.

‘‘यह बात ध्यान रखो कि मैं अपनी पोती के बिना नहीं रह सकता और मैं तुम्हें बहू को छोड़ने भी नहीं दूंगा. तुम जिस लड़की के लिए मेरी बहू को छोड़ने की सोच रहे हो, वह सिर्फ तुम्हारी दौलत के चक्कर में होगी.’’

शादाब ने कहा, ‘‘मैं बस सायरा के साथ नहीं रह सकता. जब तक वह वहां रहेगी, तब तक मैं घर नहीं आऊंगा.’’

शादाब के अब्बा ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, पर शादाब पर कोई असर नहीं हुआ. अब्बू ने उसे जायदाद से बेदखल करने की धमकी दी, पर वह टस से मस नहीं हुआ.

सायरा के अब्बू को जब शादाब की इस हरकत का पता चला, तो वे आगबबूला हो गए और गांव के कुछ जिम्मेदार लोगों को अपने साथ ले कर शादाब के घर आ गए और उन्हें बुराभला कहने लगे.

शादाब के अब्बू ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘हम तो यही चाहते हैं कि हमारी बहू हमारे साथ रहे, पर शादाब को पता नहीं किस औरत का भूत सवार है, जो वह सायरा को रखने के लिए तैयार ही नहीं.’’

सायरा के अब्बू बोले, ‘‘ठीक है, मैं अपनी बेटी को ले जा रहा हूं. तुम कल आ कर पंचायत में मिलना और शादाब को भी साथ लाना. जब फैसला करना है, तो शादाब का होना भी जरूरी है.’’

अगले दिन शादाब भी आ गया. उस के अब्बा शादाब को ले कर उस की सुसराल पहुंचे. वहां बैठे पंचों में से एक ने शादाब से पूछा, ‘‘तुम सायरा को क्यों छोड़ना चाहते हो?’’

शादाब बोला, ‘‘मुझे इस के साथ नहीं रहना. बस, मैं इसे तलाक देना चाहता हूं.’’

दूसरे पंच ने पूछा, ‘‘अगर तुम सायरा को छोड़ोगे, तो उस मासूम बच्ची का क्या होगा? वह किस के पास रहेगी? कौन उस की जिम्मेदारी उठाएगा?’’

शादाब बोला, ‘‘जिसे आप ठीक सम?ा, बच्ची उस के पास ही रहेगी.’’

तीसरे पंच ने कहा, ‘‘बच्ची को तो मां ही अच्छी तरह पाल सकती है.’’

शादाब बोला, ‘‘जैसी आप सब की मरजी.’’

यह सुनते ही शादाब के अब्बा रोने लगे और बोले, ‘‘क्यों किसी बाजारू औरत के चक्कर में अपना घर बरबाद कर रहा है और अपने खून को ही क्यों किसी को दे रहा है… कल को सायरा शादी करेगी तो बच्ची भी उस के साथ जाएगी. क्या तुझे अच्छा लगेगा कि हमारा खून किसी और के पास जाए?’’

शादाब कुछ न बोला. वह बस सायरा को तलाक देने पर अड़ा रहा. उस ने सायरा की कोई गलती भी नहीं बताई कि वह उसे क्यों छोड़ना चाहता है.

पहले वाले पंच ने शादाब से पूछा, ‘‘ठीक है, हम तुम दोनों का तलाक करा देते हैं, पर तुम सायरा की कोई ऐसी गलती तो बताओ, जो तुम उसे छोड़ना चाहते हो?’’

शादाब बोला, ‘‘वह मेरी बीवी है. मैं उस की बुराई नहीं कर सकता. बस, मैं उस के साथ रहना नहीं चाहता.’’

दूसरे पंच ने पूछा, ‘‘क्या तलाक होने के बाद तुम उस की गलती बताओगे?’’

शादाब ने कहा, ‘‘तलाक के बाद जब वह मेरी बीवी ही नहीं रहेगी, तो मुझे उस की गलती से क्या मतलब, जो मैं उस की बुराई करूं.’’

एक पंच ने कहा, ‘‘इस का मतलब तो यही है कि तुम ने सायरा की जिंदगी से खेला है. उस के साथ इतना समय गुजार कर उसे तनहा छोड़ दिया.

सारी गलती तुम्हारी है, इसलिए तुम्हें 12 लाख रुपए सायरा को देने पड़ेंगे, ताकि वह अपनी और अपनी बच्ची की जिंदगी सही ढंग से गुजार सके और उसे किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़ें.’’

शादाब ने कहा, ‘‘मुझे मंजूर है.’’

अगले ही दिन शादाब ने 12 लाख रुपए अदा किए और सायरा से छुटकारा पा लिया. इस तरह वह सब की नजरों में तो बुरा बन गया, पर उस ने सायरा के राज को एक राज रखा कि किस तरह उस ने उस के प्यार को धोखा दे कर नदीम के साथ नाजायज रिश्ता रखा था.

बीवी एक तोहफा : शबनम का पति

शबनम और सीमा बचपन से ही साथ पढ़ी थीं. शबनम शुरू से ही सहमीसहमी सी रहती थी. वह किसी से भी ज्यादा बात नहीं करती थी. लेदे कर बस एक सीमा ही थी उस की खास सहेली, जिस से वह अपने सुखदुख की बातें कर लिया करती थी.

एक लड़का रोज शबनम का पीछा करता था और उसे छेड़ता था. शबनम को यह सब अच्छा नहीं लगता था. वह उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थी.

एक दिन शबनम स्कूल नहीं आई. सीमा उस से मिलने उस की कोठी पर गई. शबनम गुमसुम बैठी थी और किसी बात पर रोए जा रही थी.

सीमा ने शबनम की बदहवासी की वजह पूछी, तो उस ने बताया, ‘‘बबलू नाम का एक लड़का मेरे बड़े अब्बू के बेटे राज का दोस्त है, जो मुझे हर समय परेशान करता है और राज भी उसे कुछ नहीं कहता है.

‘‘मेरे अब्बू बहुत तेज मिजाज के हैं. उन्हें भनक भी हुई तो वे मेरी तालीम रुकवा देंगे. मैं क्या करूं, कुछ सम?ा नहीं पा रही हूं. अब तू ही कोई बेहतर रास्ता सुझ.’’

सीमा ने उस से कहा, ‘‘कल हम दोनों साथ ही स्कूल चलेंगी.’’

अगले दिन हम एकसाथ स्कूल गईं. वह लड़का बबलू फिर शबनम के सामने आ गया और उस का हाथ पकड़ लिया.

सीमा ने शबनम को हिम्मत दिलाई और उस ने बबलू को एक जोरदार तमाचा जड़ दिया. उस दिन के बाद से बबलू दिखाई नहीं दिया.

समय गुजरा और एक दिन शबनम का निकाह राज से तय हो गया. शबनम तैयार न थी, फिर भी घर वालों के दबाव में उस ने यह निकाह कर लिया.

सुहागरात पर एक लड़की कितने ही सपने संजोती है, आखिर अरमान तो सब के दिल में मचलते हैं. सुहाग सेज पर आने वाली नई जिंदगी के सपनों में खोई शबनम राज का इंतजार कर रही थी. पूरे कमरे में अगरबत्ती की खुशबू में मिली मोगरे और गुलाब के फूलों की खुशबू मदहोश करने वाली थी.

बिस्तर के एक तरफ की टेबल पर बादाम, काजू जैसे मेवों से भरी प्लेट और साथ में एक गिलास दूध का रखा था और दूसरी तरफ की टेबल पर एक देशी ब्रांड की शराब की बोतल के साथ कांच के 2 गिलास थे.

शबनम मन ही मन सोचने लगी, ‘जब राज आएगा तो क्या वह दूध का गिलास आधाआधा कर के पीएगा या आजकल के लोग दूध के बजाय शराब के पैग टकराना पसंद करते हैं, तो क्या राज भी ऐसा करेगा? लेकिन अगर ऐसा हुआ तो मैं ने तो कभी पी ही नहीं, तब तो मुझे जल्दी ही नशा हो जाएगा.’

इतने में अचानक हुई आहट से शबनम चौंक गई. जैसे ही दरवाजा खुला उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, पलकें शर्म से झक गईं, चेहरे पर इश्क की रंगत की लाली झलकने लगी, सांसें भी तेजी से चलने लगीं, दिल की धड़कन इतनी तेज हो गई कि उसे ‘धकधक’ सुनाई देने लगी.

आज शबनम बला की खूबसूरत लग रही थी. सुर्ख लाल जोड़े में उस का गोरा बदन और भी निखर कर आ रहा था. खूबसूरत जड़ाऊ हार उस की सुराहीदार गरदन को निखार रहा था. माथे का टीका चांद से मुखड़े को चार चांद लगा रहा था. सीना तेज सांस की वजह से ऊपरनीचे ऐसे हो रहा था, मानो कोई 2 गेंद उछाल रहा हो. आज शबनम कयामत ढा रही थी.

जैसेजैसे कदमों की आहट नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे शबनम का दिल भी उछल कर बाहर आने को बेताब हो रहा था. लेकिन उस ने खुद पर काबू रखा, अपने अरमानों को अपनी मुट्ठी में दबाए वह राज की छुअन का बेसब्री से इंतजार करने लगी. उस के अरमान मचलने लगे. मन चाहा कि राज जल्दी से आए और उसे अपनी मजबूत बांहों में कस कर बांध ले.

शबनम के होंठ राज के होंठों को अपना रस पिलाने के लिए तड़प उठे कि अचानक उस का घूंघट उठाने के लिए एक हाथ जैसे ही बढ़ा, तो शबनम हाथ के इशारे से रोकते हुए बोली, ‘‘हाय, पहले दरवाजा तो बंद कीजिए.’’

जैसे ही शबनम ने यह कहा, तो जवाब में वह एक अनजान आवाज से चौंकी. वह आवाज बबलू की थी.

बबलू अपने हाथ पर बंधे गजरे की खुशबू सूंघते हुए बोला, ‘‘जानेमन, दरवाजा बंद हो या खुला रहे क्या फर्क पड़ता है, बाहर पहरे पर आप का शौहर राज बैठा है न.’’

शबनम घबरा कर बिस्तर से छलांग लगा कर उठी और बाहर की तरफ भागने लगी, तो बबलू ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘जा कहां रही हो? इतने सालों से जो दिल में आग लगी है, उसे तो बु?ा दो, फिर चली जाना जहां जाना हो.’’

शबनम छटपटाते हुए राज को आवाज लगाने लगी. आवाज सुन कर राज अंदर आया और बोला, ‘‘क्यों शोर मचा रखा है… बबलू अपना यार ही तो है, कोई गैर थोड़े ही है. अपना मुंह बंद रखो और चुपचाप बबलू की बात मानो.

‘‘और हां, मैं कहीं काम से जा रहा हूं, सुबह तक आ जाऊंगा. आने पर कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए,’’ ऐसा कह कर राज बाहर जाते हुए दरवाजा बंद कर गया.

यह सुन कर शबनम की आंखों से केवल आंसू नहीं निकल रहे थे, बल्कि दर्द बह रहा था. क्या करे और क्या न करे, उसे कुछ समझ नहीं आया.

बबलू ने शबनम को अपनी बांहों में जकड़ लिया. शबनम जल बिन मछली की तरह तड़प कर रह गई. उस की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे और बबलू उस के जिस्म को भूखे भेडि़ए की तरह नोंचनेखसोटने लगा था.

अचानक राज घर पर वापस किसी काम से आया, तो जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, तो शबनम दौड़ कर राज के पास आ गई.

‘‘आप ने किस गुनाह की सजा दी है मुझे? मैं ने आप का क्या बिगाड़ा था, जो आप ने इतनी घिनौनी हरकत की? क्या कोई इस तरह सुहागरात पर अपनी बीवी के साथ ऐसा सुलूक करता है, जैसा आप कर रहे हैं?’’

‘‘अरे जानेमन, इस में इतना नाराज होने की क्या बात है? तुम्हें सुहागरात ही तो मनानी थी न, तो मैं या बबलू हो, क्या फर्क पड़ता है?

‘‘बबलू अपना जिगरी यार है. अगर उसे कोई चीज पसंद आए और उसे वह हासिल न करे, ऐसा आज तक हुआ नहीं, तो भला अब कैसे होता? और उस ने मुंहमांगी कीमत भी तो दी है… देख कितने रुपए हैं. तुम ने सारी जिंदगी इतने रुपयों की शक्ल नहीं देखी होगी…’’

ऐसा कहते हुए राज नोटों के बंडल उस के सामने रखते हुए आगे बोला, ‘‘अरे, अब मैं भी परिवार वाला हो गया हूं, भला मेरी तनख्वाह से परिवार कहां से पालूंगा? इसलिए कुछ इंतजाम तो करना था. मुझे यह रास्ता बहुत बढि़या लगा. इस में कमाई अच्छी है. बस, तुम साथ देती रहना.’’

यह सुन कर शबनम के रोंगटे खड़े हो गए कि राज क्या करने की सोच रहा है. हर रात उस के जिस्म का सौदा?

इधर राज को देख बबलू को भी गुस्सा आ गया, ‘‘राज, क्या यार तू इतनी जल्दी वापस आ गया. अभी तो मजा लेना शुरू भी नहीं किया. अभी तक तो देख हम दोनों ने कपड़े पहने हुए हैं.’’

‘‘यार बबलू, माफ कर दे. तेरा मजा खराब करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. मैं रोज रात को दवा लेता हूं, तब मेरी रात कटती है. अगर मैं दवा न लेता तो सारी रात तड़पता रहता. मैं वही दवा लेना भूल गया था. बस, वही लेने आया हूं.’’

‘‘चलचल, अब जल्दी से अपनी दवा उठा और चलता बन. मुझ से अब और बरदाश्त नहीं हो रहा. मैं इस कली को मसलने के लिए कब से तड़प रहा हूं,’’ बबलू बोला.

राज जब बिस्तर की दराज में से दवा निकालने लगा, तो उस की नजर शराब की बोतल पर पड़ी, जो ज्यों की त्यों रखी थी.

‘‘यार बबलू, इस के 2 पैग लगा और इसे भी थोड़ी सी पिला दे, फिर देख कैसा मजा आएगा,’’ राज बोला.

‘‘हां यार, यह तो मैं ने देखी ही नहीं. जहां शबनम नाम की बोतल हो, वहां कोई दूसरी बोतल किसे नजर आएगी,’’ बबलू ने कहा, तो वे दोनों हंसने लगे.

राज दवा ले कर चला गया, तो बबलू ने 2 पैग बनाए.

इधर बबलू शराब के पैग बना रहा था, उधर शबनम के दिमाग में भी कुछ चल रहा था. वह सोच रही थी कि अगर आज ?ाक गई, तो राज रोज यही खेल खेलेगा उस के साथ. उसे इस जहन्नुम से निकलने के लिए कुछ न कुछ करना ही होगा.

बबलू ने 2 गिलास में शराब डाल कर एक गिलास शबनम की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आज तुम भी इस का स्वाद चख कर देखो. इस के अंदर जाते ही तुम्हें जन्नत का नजारा दिखने लगेगा.’’

जब बबलू शबनम के साथ जबरदस्ती करने लगा, तो शबनम ने चुपचाप गिलास ले कर उसे बातों में उलझ दिया और इस तरह बबलू ने गटागट 4 पैग पी लिए, मगर शबनम ने शराब को छुआ तक नहीं.

बबलू ने नशे में अपने हाथ पर बंधे गजरे की महक को सूंघा और फिर शबनम के बदन को सूंघने लगा, फिर अपने हाथ पर बंधी फूलों की वेणी उतार कर फेंकते हुए कहने लगा, ‘‘इन फूलों में वह महक कहां, जो तेरे बदन में है. तेरे सामने ये फूल सब बेमानी हैं.’’

अब बारी थी शबनम को अपने प्लान को अंजाम देने की. जैसे ही बबलू शराब के नशे में शबनम को पकड़ने लगा, वह शराब की बोतल से उस के सिर पर लगातार वार करने लगी, जिस से उस के सिर से खून की जबरदस्त धारा बहने लगी और कुछ ही पलों में बबलू का शरीर शांत हो कर लुढ़क गया.

इस के बाद शबनम ने राज को फोन कर के खुद ही बुलाया. राज बबलू की लाश और शबनम के हाथ में बोतल देख कर घबरा गया. इस से पहले वह कुछ कहता, शबनम बोल उठी, ‘‘ज्यादा तमाशा करने की जरूरत नहीं है. मैं ने जो किया है, सोचसमझ कर किया है. मैं ने पुलिस को फोन कर के बुला लिया है.’’

राज कुछ सोच कर अचानक से शबनम के कपड़ों को थोड़ा सा कहींकहीं से फाड़ने लगा और उस के बाद खुद के शरीर पर भी चोटें लगाने लगा.

‘‘राज, तुम यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘शबनम, तुम्हें जो ठीक लगा वह तुम ने किया, अब मुझे जो सही लग रहा है, वह मैं कर रहा हूं.’’

थोड़ी ही देर में पुलिस आ गई. तब तक शबनम के अब्बूअम्मी और बहुत से रिश्तेदार भी आ गए. सब को अचरज था कि नईनई ब्याहता के कमरे में किसी बाहरी आदमी की लाश पड़ी थी.

एक नए जोड़े के कमरे के हालात बेतरतीब से थे. दुलहन के अधफटे कपड़े थे और दूल्हे के शरीर पर चोटें लगी थीं. सब से अचरज वाली बात यह थी कि एक पराए मर्द की लाश सुहागरात वाले कमरे में कहां से आई?

इंस्पैक्टर के पूछने पर शबनम ने बताया, ‘‘यह आवारा मुझे पहले से ही छेड़ता था और आज पहली रात को मुझे बदनाम करने के लिए कमरे में घुस आया.

‘‘मैं ने समझ कि राज आया है. मैं राज के इंतजार में तड़प रही थी और मैं ने राज के अंदर आते ही बत्ती बुझा दी और अपने ऊपर के कपड़े उतार कर लेट गई.

‘‘इसी बीच कमरे में आया बबलू बिना कुछ बोले मेरे जिस्म के साथ खेलने लगा, तो मैं ने झट से चादर से बदन ढक कर बत्ती जला दी और फटाफट कपड़े पहनने लगी कि तभी राजू भी आ गया और बबलू से उस की लड़ाई होने लगी.

‘‘बबलू राज पर लगातार हमला कर रहा था. किसी अनहोनी के डर से न जाने मुझे क्या सूझ कि मैं ने पास पड़ी शराब की बोतल उठाई और बबलू के सिर पर वार करने लगी. इस तरह बबलू मारा गया.’’

शबनम का पुलिस को इस तरह का बयान दे कर राज को बेगुनाह साबित करना, राज को अंदर तक सालने लगा. जिस शबनम का वह सौदा कर रहा था, आज वही उसे बचा कर खुद सूली पर चढ़ रही थी.

लेकिन न तो पुलिस और न ही शबनम के अम्मीअब्बा शबनम की बात पर यकीन कर रहे थे. पुलिस दोनों को पकड़ कर ले गई.

आखिर में राज को गुनाह कबूल करना पड़ा कि उस ने खुद ही सुहागरात के लिए बबलू को बुला कर शबनम का सौदा किया था.

राज को अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई, लेकिन जातेजाते वह शबनम के लिए अदालत में ही ‘तलाक, तलाक, तलाक’ कह कर उसे इस निकाह से आजाद कर गया.

शबनम ने कुछ समय के बाद दूसरा निकाह कर लिया और अपने नए शौहर के साथ दूसरे शहर में जा बसी.

खोटी झांझरें : पंडित जी की पूजा

दालान में पंडितजी बड़े भैया को सामान लिखवा रहे थे, ‘‘ढाई मीटर कपड़ा, एक पसेरी शुद्ध घी, 5 मन लकड़ी, थोड़ी चंदन की लकड़ी, 3 लोटे, 13-13 नग, गीता, तुलसी की माला. तौलिए और खाट वगैरह तो होगी ही बड़े भैया, अगर एक शाल रामसिया की देह के ऊपर डालोगे तो अच्छा रहेगा… आखिरकार बिरादरी में चौधरी खानदान की इज्जत का सवाल है.’’ बड़े भैया ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मगर पंडितजी, इस में तो बहुत खर्च हो जाएगा. कुछ कम पैसों में सारे काम पूरे करवा दीजिए. आखिर अभी तेरहवीं का भोज भी तो करना पड़ेगा.’’

पंडितजी का चमकता चेहरा कुछ बुझने सा लगा. वे बोले, ‘‘जैसा आप ठीक समझें बड़े भैया. आप तो चौधरी घराने के बड़े बेटे ठहरे, आप को क्या कमी.’’ बड़े भैया ने कुछ मायूसी से जवाब दिया, ‘‘आप को तो पता ही है कि रामसिया मेरे मंझले चाचा का एकलौता बेटा था. पुरखों का कमाया हुआ घर में क्या कुछ नहीं था, पर वह बचपन से बिगड़ गया. ‘‘बिना बाप का बेटा मां के लाड़ और बुरी संगत में पड़ कर बचपन से ही शराब और जुए में बरबाद होता गया,

जिस से धीरेधीरे सारी जायदाद खत्म हो गई. ‘‘अब ऐसे वक्त बूढ़ी चाची से रुपया तो मांगा नहीं जा सकता. अपनी जेब से ही खर्चा करना होगा.’’ पंडितजी ऊपर से मातमी सूरत बना रहे थे, पर मन ही मन हिसाब लगाते जा रहे थे कि कहां से, किस तरह से रुपया, दान वगैरह ऐंठा जा सकता है. वे बोले, ‘‘बड़े भैया, आप कुछ भी कहें, हाथी मरता भी है तो सवा लाख का होता ही है.’’ बड़े भैया ने अपने नौकर को बुलाया और कहा, ‘‘पंडितजी को माधव शाह की दुकान पर ले जाओ.

उस से कहना कि मेरे उधार खाते में हिसाब लिख कर, जो भी जरूरी सामान हो दे दे. ‘‘तुम खुद ही लेते आना, ताकि पंडितजी को कोई कष्ट न हो. तब तक मैं दूसरे इंतजाम देखता हूं.’’ बाहर वाले दालान में आदमी और अंदर वाले दालान में औरतें जमा थीं. बीच में कोठा पड़ता था, जहां से लोग आजा रहे थे. कुछ बच्चे भी वहीं बैठ कर अपनीअपनी तरह से बातें कर रहे थे.

अंदर दालान के एक ओर रामसिया की देह बर्फ की सिल्लियों पर रखी हुई थी. बहनों और बहनोइयों का इंतजार किया जा रहा था. बूढ़ी मां एक कोने में देह के सिरहाने बैठी जारजार रो रही थीं. कभीकभी बड़बड़ाना जारी कर देतीं, ‘‘अरी कुलच्छिनी, खा लिया मेरे बेटे को. अब मैं कैसे जी पाऊंगी… मेरा लाड़ला, मेरा रामसिया… रे, तू कहां चला गया.

तेरे बदले मुझे क्यों न मौत आ गई,’’ और वे सिर और छाती पीटना शुरू कर देतीं. महल्ले, बिरादरी की औरतों से भी एक मां का यह बिलखना देखा न जा रहा था. वे भी साथसाथ सुबकती जाती थीं और हमदर्दी जताती जा रही थीं. दूसरे कोने में रामसिया की पत्नी रामसुंदरी बेजान मूरत बनी बैठी थी. उस की आंखों के आंसू सूख चुके थे. जैसे सोचनेसमझने की ताकत ही बाकी न रही हो. न तो उसे रोना आ रहा था और न ही वह यह सोच पा रही थी कि वह विधवा हो चुकी है.

रामसुंदरी को बीते दिन याद आ रहे थे, जिस में उस ने सुहागिन होने का सुख जाना ही न था. बीते हुए दिन आंखों के सामने घूम रहे थे. इस घर में जब रामसुंदरी दुलहन बन कर आई थी, वह दिन उसे आज भी अच्छी तरह याद है. घूंघट के अंदर से वह आवाजें सुन रही थी. कोई औरत कह रही थी, ‘‘मझले चौधरी आज जिंदा होते तो खुशी से फूले न समाते कि कैसी हीरे की कनी सी बहू पाई है. सचमुच रामसिया तो मजनूं बन जाएगा.’’ रूपरंग में सभी बहुओं में बढ़चढ़ कर है,’’

शायद यह बड़ी चौधरानी यानी उस की बड़ी खास होगी, उस ने मन ही मन अंदाज लगाया था. सुना था, उस के 3 भाई थे. बड़े और छोटे अभी भी अच्छे ओहदों पर मुलाजिम थे. उस के अपने मंझले ससुर रियासत के दरबार में मुलाजिम थे. वे 9 साल के बेटे रामसिया और 4 बेटियों को पीछे छोड़ कर जवानी में ही चल बसे थे. मां से रामसुंदरी ने ब्याह से पहले यही सब सुन रखा था.

जब गोदभराई के वक्त उस की सास एक जोड़ी चांदी की खूबसूरत झांझरें उस के पैरों में पहनाने लगी थीं, तो वे बोली थीं, ‘‘बहू, इन झांझरों की शक्ल में मैं अपनी सास की दी हुई धरोहर तुम्हें सौंपती हूं. इन घुंघरुओं से निकलने वाली आवाज की तरह ही तुम्हारी जिंदगी में भी झंकार गूंजती रहे. मेरे लाड़ले को अपने बस में कर के बगिया हरीभरी कर देना.’’

रामसुंदरी तब सास के चरण छूने को उन के पैरों पर झुक गई थी. सांझ ढलने तक रामसुंदरी की 2 शादीशुदा और 2 कुंआरी ननदें दूसरी औरतों के साथ हंसीठिठोली करते हुए रस्में पूरी कराती रहीं. वे जब फूलों से सजे पलंग पर उसे बैठा कर चल दीं, तो अनजाने ही मन में डर के साथसाथ पति से पहले मिलन के खयाल से वह चंचल हो उठी. चूडि़यां जब झनझन बज उठतीं तो वह अपनेआप से शरमा जाती. रामसुंदरी ने गजब की देह पाई थी. जितनी वह सुंदर थी, उतनी ही मादक भी. उस के उभार देखने लायक थे. आज अपनी सुहागरात पर वह शर्म के मारे लाल हो गई थी. देह में अजीब सा रोमांच भर गया था. तभी दरवाजे पर आहट हुई. रामसुंदरी की सांसें ऊपरनीचे होने लगीं.

आज वह कली से फूल जो बनने वाली थी. घूंघट की ओट से पति को आते देखा तो और भी सिकुड़सिमट कर बैठ गई. तभी आवाज आई, ‘‘क्या गठरी सी बनी बैठी है. चल, यह दारू की बोतल पकड़ और गिलास में डाल कर मुझे पिला.’’ रामसुंदरी चौंक कर हैरानी से देखने लगी और सोचा, ‘तो क्या यही हैं चौधरी खानदान के चिराग? जो सपने मैं देख रही थी, क्या वे सब झूठे थे?’

उस रात रामसिया शराब पीता रहा और बड़बड़ाता रहा, ‘‘चल री पैर दबा मेरे. क्या नाम है तेरा? रामसुंदरी या रामप्यारी? खैर, क्या फर्क पड़ता है… मुझे तो काम से मतलब है… नाम कुछ भी हो.’’ शराब की बदबू रामसुंदरी से सहन नहीं होती थी, लेकिन वह मजबूर थी. रामसिया की याद आते ही रामसुंदरी का अल्हड़ मन कसैला हो उठता. जहां तक हो सकता, वह रामसिया की परछाईं से भी बचती रहती. इसी तरह उस की जिंदगी गुजरने लगी. जबजब दोनों ननदों के ब्याह की बात होती, तो रामसिया की बुरी आदतों के चलते रिश्ता टल जाता. कोई कहता, ‘भाई कुछ करता तो है नहीं, शराबी भाई से कैसे निभेगी?’ तो कोई कुछ कह कर टाल देता. एक जगह बात कुछ जमी, तो उन लोगों में से एक ने साफसाफ कह दिया,

‘‘भाई से तो कुछ उम्मीद नहीं है, पिता की जायदाद में बेटी का जो हिस्सा है, अंदाज से उतने जेवर उसे दे देना. हम ब्याह करने को तैयार हैं.’’ रामसुंदरी के जेठ, जिन्हें सभी बड़े भैया कहा करते थे, ने ही बात तय करवाई. यह उम्मीद ले कर कि सुंदरी बहू अपने रूप के बल पर बिगड़ैल बेटे को बांध कर रख सकेगी और बुरी आदतें छुड़वा सकेगी. रामसुंदरी को सोनेचांदी के जेवरों से मढ़ कर मंझली चाची ब्याह लाई थीं. परंतु कुछ सुधार न देख और बहू को बेटे से दूरदूर अलगअलग देख कर उन का सारा गुस्सा रामसुंदरी पर ही उतरता. बातबात में वे बहू को डांटतीं, फटकारतीं.

अब जब बेटी की शादी पर गहनों की बात आई, तो उन्होंने रामसुंदरी के 3-4 गहने उतरवा लिए. कुछ नकद जमापूंजी थी, सो वह बरातियों के स्वागतसत्कार व दूसरे खर्चों में लग गई. जब विदाई हुई, तो रामसुंदरी थकान से चूर कमरे में ही एक कोने में गठरी सी बन कर लेट गई. कुछ ही देर सोई होगी कि रामसिया शराब पी कर आ गया. रिश्तेदारों के बीच शोर मचाता हुआ वह कमरे में आ गया. तब एक ही पल में रामसुंदरी चौकन्नी हो उठी और पास में पड़ी लंबीचौड़ी दरी में लिपट कर आननफानन छिप गई, ताकि कोई यह न जान सके कि वह कहां है. रामसिया ने बहुत ढूंढ़ा. रामसुंदरी को सांस लेने में भी घुटन होने लगी. फिर भी वह बाहर नहीं निकली.

न जाने क्यों वह रामसिया की शराबी बिगड़ैल सूरत को ‘पति परमेश्वर’ का दर्जा न दे पाती थी. फिर रामसिया खर्राटे भरता पलंग पर औंधा सो गया. दबे कदमों से बाहर आते ही रामसुंदरी को देख उस की सास बुरी तरह झुंझलाई, ‘‘क्यों री, कहां छिपी बैठी थी? रामसिया की गरज नहीं सुनाई दी तुझे. यही हैं सुहागिनों के लच्छन?’’ दिन बीतते रहे, चौथी ननद के ब्याह के समय हवेली भी गिरवी रखी गई. रामसुंदरी के पैरों में बस वही झांझरें बची रहीं, बाकी सब गहने एकएक कर के शराब की भेंट चढ़ते गए. रामसुंदरी को सिर्फ लगाव था तो इन्हीं झांझरों से.

आखिर उस के ब्याह की निशानी जो थी. जब पति बिना शराब पिए घर में आता तो मानमनुहार करती और अपना फर्ज निभाती. तीजत्योहार पर अपने सुहाग की निशानी यानी झांझरें जरूर पैरों में पहनती. पहनने से पहले उन्हें खूब चमका कर साफ करती. सारा दिन हंसीखुशी से बीतता. लेकिन शाम ढले रामसिया फिर शराब पी कर आ जाता. दालान से ही उस की ऊंची आवाज सुन कर वह घबरा उठती.

झांझरें बज न उठें, इसलिए जल्दी से उन्हें उतार कर संदूकची में मलमल के कपड़े में लपेट कर रख देती और कहीं किसी कोने में छिप आती. रामसिया शोर मचाता रहता. इसी तरह उन झांझरों से जैसे उस का एक गहरा रिश्ता जुड़ गया. पिछली रात रामसिया घर से निकला तो लौटा ही नहीं. लौटी तो सिर्फ उस की देह, जो एक ट्रक से बुरी तरह कुचली हुई थी.

पुलिस के पूछने पर लोगों ने यही कहा कि शराब पी कर डगमगाता हुआ रामसिया सामने से आते हुए ट्रक के बीचोंबीच घुस गया. शायद उसे तब दीनदुनिया की खबर नहीं थी. जिस ने सुना, दौड़ा आया. सभी मातम मना रहे थे. रामसुंदरी तो जैसे रोरो कर सब से यही पूछ रही थी कि मेरा कुसूर क्या है? आज जैसे उस के लिए सभी मुजरिम थे. चाहे उस की मां हो, सास या ननदें. अपने साथ किए छल से उस का दिल फटा जा रहा था. अचानक रामसुंदरी चौंक उठी.

उस की सास दहाड़ें मारमार कर रो रही थीं, ‘‘मेरा लंबाचौड़ा गबरू जवान बेटा चला गया और यह मनहूस ज्यों की त्यों बैठी है, दो बूंद आंसू भी न बहा सकी, उस के लिए. मैं ही क्यों न चली गई तेरे साथ, ओ मेरे राजा बेटा रे…’’ तभी बड़े भैया आए और बोले, ‘‘चाची, तुम्हें तो पता ही है, मुझ पर कितनी जिम्मेदारियां हैं. जो बन सकेगा, मैं करूंगा ही… फिर भी कुछ रुपए दे देती तो ठीक रहता.’’ सुन कर रामसिया की मां दुखी आवाज में बोली, ‘‘एक वही झांझरें बची हैं बेटा,

जो बहू को गोदभराई में दी थीं, सो ले जा कर बेच दे. अब आखिरी काम में कोई कमी न रखना,’’ फिर आह भर कर वह अपनेआप से कहने लगी, ‘‘मुझ दुखियारी को यह दिन देखना था.’’ चाची का इशारा पा कर 2 औरतें उठीं. वे रामसुंदरी को उठा कर भीतर की ओर चल दीं, जहां संदूकची में झांझरें रखी थीं. रामसुंदरी ने चाबी कमर से निकाल कर संदूकची का ताला खोल दिया.

ढक्कन खोला तो देखा, संदूकची खाली पड़ी है. घबरा कर उस ने लाल मलमल का कपड़ा उठा कर हाथ में ले लिया और संदूकची पलट दी. अचानक ही कपड़े में से शराब की बदबू का भभका उठा और रामसुंदरी के सामने सारी बात साफ कर गया. कल दोपहर को जब वह सो रही थी, तब शायद रामसिया ने चाबी पार कर दी थी और झांझरें बेच कर शराब की शक्ल में मौत खरीद लाया था. तभी तो वह कल शराबखाने में आधी रात तक बैठा रहा था. रामसुंदरी की झांझरें भी आज खोटी निकल गईं. उसे लगा कि अब वह सचमुच ही अनाथ और विधवा हो गई है. रामसुंदरी दहाड़ें मारमार कर रोने लगी, ‘‘हाय रे, मैं लुट गई… बरबाद हो गई… मेरी झांझरें खोटी थीं रे

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