लेखक- विरेंदर ‘वीर’ मेहता
‘‘क्या मैं आप को आगे कहीं छोड़ सकता हूं?’’ उस ने कार ठीक उस के करीब रोक कर आवाज में भरपूर मिठास घोलते हुए अपनी बात कही.
‘‘नेकी और पूछपूछ,’’ एक पल के लिए उसे देख वह हिचकिचाई, लेकिन अगले ही पल मुसकराते हुए वह कार के खुले दरवाजे से आगे की सीट पर जा बैठी.
हाईवे नंबर एक पर ठीक फ्लाईओवर से नीचे उतरते हुए एक ओर वह अकसर खड़े अंगूठे के इशारे से लिफ्ट मांगती नजर आती थी. हालांकि उस का वास्तविक नाम कोई नहीं जानता था लेकिन उस की हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती सुंदरता और उस के नितनए आधुनिक पहनावों पर कमर तक लहराते लंबे बाल सहज ही उस में एक परी की कल्पना को साकार करते थे. शायद इसीलिए उस का नाम औफिस में परी पड़ गया था.
औफिस के ही कई साथियों के अनुसार, फ्लाईओवर पर खड़े हो कर अपने लिए नितनए साथी ढूंढ़ने का उस का यह सटीक तरीका था. हालांकि यह कहना कठिन था कि औफिस के कितने लोगों ने उस की सचाई परखी थी लेकिन आज सागर ने औफिस से निकल कर जब कार फ्लाईओवर के रास्ते पर डाली थी तभी से वह उस के बारे में सोचने लगा था.
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पतिपत्नी दोनों के कामकाजी होने के कारण अकसर औफिस से घर लौटते समय पत्नी के साथ होने की वजह से सागर चाहते हुए भी कभी उसे लिफ्ट देने की नहीं सोच पाया था. लेकिन आज इत्तफाक से पत्नी की औफिस से छुट्टी होने से वह अकेला था और वह इस अवसर को खोना नहीं चाहता था.