‘‘मुझे यह बात सम झ नहीं आती कि मैं ने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी? सच कहती हूं प्रीतो, अब मैं इस रिश्ते को और नहीं निभा सकती. दे दूंगी तलाक गिरीश को, फिर सारा  झं झट खत्म हो जाएगा मेरी जिंदगी से,’’ अपनी दोस्त प्रीतो के घर आते ही सुमेधा ने बोलना शुरू कर दिया.

‘‘हूं, लगता है तेरी सासुमां पधार चुकी है तुम्हारे घर?’’ गैसचूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाते हुए प्रीतो ने उसे कनखियों से देख कर मुसकराहट के साथ पूछा.

‘‘हां, अब तुम्हें तो सब पता ही है कि उन के यहां आते ही मैं अपने ही घर में बेगानी हो जाती हूं और दुख तो मु झे इस बात पर होता है कि गिरीश क्यों कुछ नहीं कहते? क्या उन्हें अपनी मां की गलती दिखाई नहीं देती. मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरी सास उन के कान भर चुकी होती है मेरे खिलाफ. लेकिन इंसान में अपनी अक्ल तो होनी चाहिए न, पर नहीं. अरे, शादी ही क्यों की जब उन्हें अपनी पत्नी पर विश्वास ही नहीं है तो. रहते अपनी मां के पल्लू में ही छिप कर.

‘‘जानती हो प्रीतो, मेरी सास हमेशा यह कह कर मु झे ताना मारती रहती है कि मुसलमान के घर तो वह अपना पैर भी नहीं धरना चाहती, पर बेटे के मोह से खिंची चली आती है और मैं ने उन के बेटे पर कोई काला जादू कर दिया है वगैरहवगैरह. गिरीश से कहा मैं ने कि सम झाओ अपनी मां को कि वह मु झे मुसलिम लड़की कह कर संबोधित न करे. लेकिन वह कहता है कि बोलने दो, जो उन की मरजी है. ऐसे कैसे बोलने दूं, बता तो? क्या मेरा दिल छलनी नहीं होता उन की ऐसीवैसी बातों से?’’ एक सांस में ही सुमेधा इतनाकुछ बोल गई.

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