Satyakatha: पुलिसवाली ने लिया जिस्म से इंतकाम- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

शीतल के इंस्टाग्राम पर पुलिस को एक मर्द का चेहरा और एक पोस्ट नजर आई, जिस का नाम धनराज यादव था. पुलिस ने शीतल के परिचितों को खंगालना शुरू किया तो जानकारी मिली कि धनराज यादव पेशे से एक बस ड्राइवर है.

शीतल की इंस्टाग्राम पर धनराज से दोस्ती हुई थी. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि शीतल ने धनराज से दोस्ती करने के 5 दिनों बाद ही उस से शादी कर ली. यह बात 2019 के आखिर की है.

यह अपने आप में हैरानी की बात जरूर थी. इंसपेक्टर लांडगे को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं धनराज यादव ने ही अपनी पत्नी के साथ हुए यौन शोषण का बदला लेने के लिए शिवाजी की सड़क हादसा कर हत्या कर दी हो. वह पेशे से ड्राइवर भी था.

पुलिस को लगने लगा कि कातिल अब उस से एक हाथ की दूरी पर है. गुपचुप तरीके से शीतल के जानकारों से पुलिस ने पता कर लिया कि धनराज तमिलनाडु का रहने वाला है. शादी के सिर्फ एक महीने बाद ही धनराज रहस्यमय तरीके से अचानक शीतल को छोड़ कर तमिलनाडु चला गया. उस के बाद धनराज को किसी ने नहीं देखा.

डीसीपी शिवराज पाटिल को केस की इस नई जानकारी का पता चलने पर एक टीम को तमिलनाडु भेज दिया गया. एक सप्ताह तक सुरागरसी करतेकरते पुलिस टीम आखिर तमिलनाडु में धनराज के घर तक पहुंच गई और उसे पकड़ कर मुंबई ले आई.

हालांकि पुलिस ने नैनो कार में बैठे जिन 2 लोगों की सीसीटीवी फुटेज हासिल की थी, उन से धनराज का चेहरा कहीं भी मेल नहीं खाता था. लेकिन फिर भी उस से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ तो नई जानकारी मिली.

उस ने कुबूल कर लिया कि उस ने इंस्टाग्राम पर कांस्टेबल शीतल से दोस्ती करने के बाद 5 दिनों में ही शादी कर ली थी, लेकिन एक महीने के बाद ही वह शीतल को छोड़ कर अपने गांव चला गया था.

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‘‘क्यों, ऐसा क्यों किया तुम ने?’’ इंसपेक्टर लांडगे ने सवाल किया.

‘‘सर, मैं बहुत डर गया था. पहले तो दोस्ती करने के बाद इतनी जल्द मेरे जैसे ड्राइवर से एक पुलिस वाली के शादी करने का राज ही मेरी समझ में नहीं आया था. लेकिन शादी के 5 दिन बाद ही जब शीतल ने मुझ से एक खतरनाक काम करने के लिए कहा तो मेरी समझ में आ गया कि उस ने अपना काम कराने के लिए मुझ से शादी की है और मुझे हथियार बनाना चाहती है.’’ धनराज ने सहमते हुए एकएक राज उगलना शुरू कर दिया.

उस ने बताया कि शीतल ने उसे शिवाजी सानप द्वारा अपने यौनशोषण की कहानी सुना कर भावुक कर दिया था. इस के बाद शीतल ने उस से कहा कि अगर वह उस से प्यार करता है तो वह अपनी पत्नी के साथ हुई नाइंसाफी का बदला ले और शिवाजी को ट्रक से कुचल कर मार दे.

यह सुन कर धनराज बहुत डर गया. क्योंकि वह मुंबई शहर में रोजीरोटी कमाने के लिए आया था. ऐसे में एक कत्ल वह भी पुलिस वाले का… ऐसा सुनते ही धनराज के रोंगटे खड़े हो गए.

उस ने शीतल को समझाया, ‘‘शीतल, जो हुआ उसे भूल जाओ. यह सब जान कर भी तुम्हारे लिए मेरा प्यार कम नहीं हुआ है. वैसे भी यह काम बहुत रिस्क वाला है मैं ने जीवन में कभी ऐसा काम नहीं किया है. सोचो मैं ने यह काम कर भी दिया तो एक न एक दिन भेद खुल जाएगा. फिर मैं और तुम दोनों ही पकड़े जाएंगे.’’

लेकिन शायद शीतल के ऊपर शिवाजी से इंतकाम लेने का जुनून इस कदर सवार था कि वह आए दिन धनराज पर दबाव डालने लगी कि चाहे जैसे भी हो, उसे शिवाजी की हत्या करनी ही होगी.

वह तो पेशे से ड्राइवर है इसलिए किसी को भी शक नहीं होगा. अगर पकड़े भी गए तो केवल लापरवाही से हुई दुर्घटना का केस चलेगा.

इसी तरह 3 सप्ताह गुजर गए. धनराज अजीब पशोपेश में था. क्योंकि वह दिल से नहीं चाहता था कि ऐसा गलत काम करे. उसे अब इस बात का भी डर सताने लगा था कि अगर वह लगातार शीतल का काम करने से मना करता रहा तो वह कहीं उसे पुलिस विभाग में अपनी तैनाती का फायदा उठा कर किसी झूठे आरोप में फंसवा कर जेल न भिजवा दें.

उस के सामने अब यह भी साफ हो गया था कि शीतल ने उस से शादी अपना यह काम करवाने के लिए ही की थी. लिहाजा एक दिन डर की वजह से धनराज अपनी नौकरी छोड़ कर सारा सामान समेट कर अपने गांव तमिलनाडु भाग गया.

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धनराज से पूछताछ के बाद पुलिस एक बार फिर अंधेरे मोड़ पर खड़ी हो गई. क्योंकि पुलिस पहले ही तसदीक कर चुकी थी कि 2019 में तमिलनाडु जाने के बाद धनराज कभी अपने राज्य से बाहर या मुंबई नहीं गया था.

‘‘अच्छा, तुम ये दोनों फोटो देख कर बताओ कि इन में से किसी को पहचानते हो? ये उस कार में बैठे लोगों की फोटो हैं जिस से शिवाजी का ऐक्सीडेंट हुआ था.’’

धनराज से पूछताछ के बाद निराश इंसपेक्टर लांडगे ने धनराज को सीसीटीवी से हासिल हुई दोनों संदिग्धों की फोटो दिखाईं तो धनराज बोला, ‘‘अरे सर, ये तो विशाल है. 2019 में शीतल से शादी के बाद मैं जिस सोसाइटी में रहता था, उसी सोसाइटी के चौकीदार बबनराव का बेटा है ये.’’

पूरी तरह से निराश हो चुके इंसपेक्टर लांडगे के चेहरे पर धनराज का जवाब सुनते ही अचानक चमक आ गई. अब उन्हें लगने लगा कि शिवाजी सानप हत्याकांड की गुत्थी सुलझ जाएगी.

धनराज की इस गवाही से जब डीसीपी पाटिल को अवगत कराया गया तो उन्होंने तत्काल पुलिस कमिश्नर को इस पूरे केस की जानकारी दे कर शीतल की गिरफ्तारी का आदेश हासिल कर लिया.

12 सितंबर की रात पुलिस ने ताबड़तोड छापेमारी कर पहले शीतल को हिरासत में लिया, उस के बाद उसी रात विशाल बबनराव जाधव को. उन दोनों से पूछताछ के बाद गणेश लक्ष्मण चव्हाण उर्फ मुदावथ को भी हिरासत में ले लिया.

इन लोगों के पास से पुलिस ने 3 मोबाइल फोन, एक कार और कुछ कपड़े बरामद किए. तीनों ने कड़ी पूछताछ में शिवाजी सानप की हत्या का गुनाह कुबूल कर लिया. शिवाजी माधवराव सानप की सड़क दुर्घटना में मौत का मामला पनवेल पुलिस ने भादंसं की धारा 302 व 201 में दर्ज कर लिया.

अगले दिन तीनों को कोर्ट में पेश करने के बाद 7 दिन की पुलिस रिमांड पर लिया गया. इस दौरान पुलिस ने घटना की एकएक कडि़यों को जोड़ कर तीनों आरोपियों के खिलाफ कड़े सबूत एकत्र करने का काम किया.

इन से की गई पूछताछ के बाद इस अपराध की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

शीतल पंचारी महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली थी. स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उसे महाराष्ट्र पुलिस में नौकरी मिल गई. 28 साल की शीतल 4 साल नौकरी के बाद जब 2018 में नेहरू नगर थाने में तैनात हुई तो उस की दोस्ती जल्द ही अपने ही थाने में तैनात हैडकांस्टेबल शिवाजी माधवराव सानप से हो गई.

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दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई और दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ता भी कायम हो गया. दोनों के बीच लंबे समय तक प्यार की कहानी चली.

उन दोनों के रिश्ते के बारे में अब विभाग में भी चर्चा होने लगी थी. शीतल के साथ काम करने वाले साथी पुलिसकर्मी भी अब उसे शिवाजी का माल कह कर चिढ़ाने लगे थे.

ऐसे में बदनामी बढ़ती देख एक दिन शीतल ने शिवाजी से कहा कि हम दोनों के संबंधों को ले कर अब लोग अंगुलियां उठाने लगे हैं, इसलिए हमें अब शादी कर लेनी चाहिए.

यह सुनते ही शिवाजी को झटका लगा. क्योंकि वह तो पहले से ही शादीशुदा था, उस के 2 बच्चे भी थे. लिहाजा शादी की बात सुनते ही शिवाजी ने शीतल को डपट दिया और बोला, ‘‘संबध रखने हैं तो रखो नहीं तो छोड़ दो. लेकिन मैं किसी भी हालत में शादी नहीं कर सकता. क्योंकि मैं अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता हूं.’’

शादी से इंकार की बात सुनते ही शीतल शिवाजी पर बिफर पड़ी. क्योंकि शिवाजी ने ऐसी कड़वी बात कह दी थी, जिस ने शीतल के तन, मन और आत्मा को बुरी तरह झुलसा दिया था.

शिवाजी ने तंज कसा था, ‘‘शादी से पहले जो औरत एक हैडकांस्टेबल के नीचे लेट सकती है वह अपना काम निकलवाने के लिए तो न जाने कितने बड़े अफसरों के नीचे लेटेगी. अपनी प्यार करने वाली बीवी को छोड़ कर ऐसी औरत से कौन शादी करेगा?’’

उस दिन शिवाजी और शीतल में खूब लड़ाई हुई और उसी दिन से दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं.

चूंकि शीतल के शिवाजी से संबंधों की बात पूरे थाने को और विभाग के दूसरे लोगों को भी पता थी. इसलिए खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए शीतल ने पहले उस के खिलाफ उसी नेहरू नगर थाने में छेड़छाड़ की धारा 354 तथा उस के बाद कल्याण थाने में बलात्कार की धारा 376 में शिकायत दर्ज करवा दी थी.

Satyakatha- दिल्ली: शूटआउट इन रोहिणी कोर्ट- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

24सितंबर, 2021. शुक्रवार का दिन था. दोपहर के करीब एक बजे का टाइम था. दिल्ली में स्थित रोहिणी की कोर्ट में हर दिन की तरह ही काम हो रहा था. हर कोर्टरूम में अदालती काररवाई चल रही थी. कोर्ट परिसर की बिल्डिंग के अंदर और बाहर दोनों ही एरिया में वकीलों, पीडि़तों, फरियादियों, पुलिस वालों इत्यादि की भीड़ जमा थी. हर कोई अपनेअपने काम में व्यस्त था.

बिल्डिंग के अंदर कोर्ट रूम नंबर 207 के बाहर भी ऐसा ही कुछ माहौल था. दोपहर करीब सवा बजे के आसपास एडिशनल सेशन जज गगनदीप सिंह अपने कोर्टरूम में दाखिल हुए तो रूम में बैठे सभी लोग उन के सम्मान में खड़े हुए और धीमी आवाज में हो रही खुसफुसाहट एकदम से शांत हो गई.

रूम में दाखिल होते ही उन्होंने कोर्टरूम में सभी लोगों पर अपनी नजर घुमाई और ये सुनिश्चित किया कि सब ठीक तो है.

नजर घुमाने के बाद न्यायाधीश ने अपनी जगह पर बैठते हुए सभी लोगों को हाथ से बैठने का इशारा किया और अपनी कुरसी पर बैठ गए. उस समय कोर्टरूम में बाएं और दाएं दोनों ओर कठघरों के पास वकील की ड्रैस पहने 2 व्यक्ति चुपचाप खड़े थे.

कमरे के बीचोबीच नीले रंग की कमीज और काली पैंट में एक शख्स 2 पुलिस वालों के साथ खड़ा था. उस के हाथों में हथकडि़यां लगी थीं और वह ठीक न्यायमूर्ति के सामने ही खड़ा था.

यह शख्स मशहूर गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी था, जिस पर दिल्ली और हरियाणा पुलिस ने एक समय पर कुल मिला कर 6 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया हुआ था. गोगी पर जून 2018 में दिल्ली पुलिस ने मकोका एक्ट लगा दिया था, जिस की सुनवाई उस दिन होने वाली थी. गोगी इतना बड़ा और खतरनाक गैंगस्टर था कि उसे स्पैशल सेल और थर्ड बटालियन की कस्टडी में कोर्ट में लाया गया था.

करीब 2 मिनट के बाद सामने कुरसियों पर बैठे लोगों में से एक वकील अपने हाथों में एक भारीभरकम मोटी सी फाइल लिए अपनी कुरसी से उठा और अपनी फाइल में से केस का वारंट निकाल कर जज साहब की ओर आगे बढ़ा दिया.

उस का दिया वारंट अभी जज के हाथों में पहुंचा ही था कि दोनों कठघरों के पास खड़े काले कोट में वकील जैसे दिखाई देने वाले दोनों लोग अचानक से गोगी की तरफ आगे बढ़े और अपनी कमर में पीछे की ओर से पिस्तौल निकाल कर गोगी की छाती पर तान दी.

उन्होंने गोगी की छाती पर अपनी पिस्तौल तान कर गोली चला दी. वकील के काले कोट में दोनों लोगों ने एकएक कर करीब कुल मिला कर आधा दरजन गोलियां चला कर उस के शरीर को भेद दिया, जिस से वह वहीं ढेर हो कर जमीन पर गिर पड़ा.

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ये सब अचानक से और इतनी जल्दी हुआ कि किसी को संभलने का मौका तक नहीं मिला. कोर्टरूम में अचानक से अफरातफरी का माहौल बन गया. सब के दिलों में दहशत फैल गई थी. कोर्टरूम के आगे और पीछे के गेट से जितने लोग अपनी जान बचाने के लिए निकल सकते थे, वे जल्दीजल्दी निकल गए.

लेकिन कोर्टरूम में अभी भी गोलियां चलाने वाले दोनों हमलावर, पुलिस की टीम (जो गोगी को कोर्टरूम में ले कर आए थे), अन्य पुलिसकर्मी, न्यायमूर्ति गगनदीप सिंह और उन

के साथ कुछ और लोग कोर्टरूम में ही फंसे थे.

दोनों हमलावर कोर्टरूम से भाग कर निकल न सकें, इस के लिए अंदर मौजूद पुलिसकर्मियों ने कोर्टरूम के दोनों दरवाजों को बंद कर दिया. कोर्टरूम में हर कोई खुद को सुरक्षित करने के लिए जिसे जहां जगह मिली, वह उसी के पीछे या नीचे छिप कर चलने वाली गोलियों से खुद को बचाने लगा. न्यायाधीश गगनदीप सिंह भी अपनी जान बचाने के लिए अपनी डेस्क के नीचे छिप गए.

हमलावरों ने गोगी पर गोलियां चलाने के बाद भागने के लिए जब कोर्टरूम के दरवाजों पर नजर घुमाई तो देखा कि दोनों गेट बंद थे. यह देख कर वे और भी अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगे. ऐसे में रूम में मौजूद पुलिसकर्मियों ने भी जवाबी काररवाई करते हुए उन दोनों हमलावरों पर गोलियां चलाईं.

पुलिस की गोलियों से बचने के लिए दोनों हमलावरों ने अपनेअपने कोनों में कुरसियों के पीछे छिप कर पोजीशन बना और पुलिस पर गोलियां चलाने लगे थे. पुलिसकर्मी भी खुद को सुरक्षित रखते हुए और बाकी लोगों की जान बचाने के लिए जल्द से जल्द उन हमलावरों को ढेर कर देना चाहते थे.

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उधर दूसरी ओर कोर्टरूम के बाहर और पूरे अदालत परिसर में गोलियों की आवाजें गूंजने लगी थीं. लोग अपनी जेब से मोबाइल फोन निकाल कर उस घटना का वीडियो बनाने को आतुर थे. अदालत परिसर में जहांजहां तक गोलियां चलने की आवाजें पहुंच रही थीं, लोग उसे रिकौर्ड कर रहे थे.

जो रिकौर्ड नहीं कर रहे थे, वह जल्द से जल्द अदालत से बाहर निकल कर खुद की जान बचाना चाहते थे. उस समय गोलियों की धायंधायं आवाजें सुन कर जिला अदालत रोहिणी कोर्ट के हर कोने में हर व्यक्ति के दिल में दहशत फैल गई थी.

वहीं कोर्टरूम में गोलियां चलने की आवाजें थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं. हमलावर और पुलिसकर्मी दोनों ओर से एकदूसरे पर फायरिंग की जा रही थी.

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अब और नहीं- भाग 2: आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

Writer- ममता रैना

पहले भूपेश औफिस से घर जल्दी आता था तो दोनों साथ में खाना खाते, अब देर रात तक दीपमाला उस का इंतजार करती रहती और फिर अकेली ही खा कर सो जाती. कुछ दिनों से भूपेश के रंगढंग बदल गए थे. औफिस में भी सजधज कर जाता. उधर इन सब बातों से बेखबर दीपमाला नन्हें मेहमान की कल्पना में डूबी रहती. उस की दुनिया सिमट कर छोटी हो गई थी.

एक रोज धोने के लिए कपड़े निकालते वक्त उसे भूपेश की पैंट की जेब से फिल्म के 2 टिकट मिले. उसे थोड़ी हैरानी हुई. भूपेश फिल्मों का शौकीन नहीं था. कभी कोई अच्छी फिल्म लगी होती तो दीपमाला ही जबरदस्ती उसे खींच ले जाती.

उस ने भूपेश से इस बारे में पूछा. टिकट की बात सुन कर वह कुछ सकपका गया. फिर तुरंत संभल कर उस ने बताया कि औफिस के एक सहकर्मी के कहने पर वह चला गया था. बात आईगई हो गई.

इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन भूपेश के बटुए में दीपमाला को सुनार की दुकान की एक परची मिली. शंकित दीपमाला ने भूपेश के घर लौटते ही उस पर सवालों की बौछार कर दी.

उपासना को जन्मदिन में देने के लिए भूपेश ने एक गोल्ड रिंग बुक करवाई थी, लेकिन किसी शातिर अपराधी की तरह भूपेश उस दिन सफेद झूठ बोल गया. अपने होने वाले बच्चे का वास्ता दे कर.

उस ने दीपमाला को यकीन दिला दिया कि उस के दोस्त ने अपनी पत्नी को सरप्राइज देने के लिए ही परची उस के पास रखवाई है. इस घटना के बाद से भूपेश कुछ सतर्क रहने लगा. अपनी जेब में कोई सुबूत नहीं छोड़ता था.

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दीपमाला की डिलीवरी का समय नजदीक था. भूपेश ने उस के जाने का इंतजाम कर दिया. दीपमाला अपनी मां के घर चली आई. अपने मायके पहुंचने के कुछ दिन बाद ही दीपमाला ने एक बेटे को जन्म दिया. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस के दिनरात नन्हे अंशुल के साथ बीतने लगे. 4 दिन दीपमाला और बच्चे के साथ रह कर भूपेश औफिस में जरूरी काम की बात कह कर लौट आया. दीपमाला के न रहने पर वह अब बिलकुल आजाद पंछी था. उस की और उपासना की प्रेमलीला परवान चढ़ रही थी. औफिस में लोग उन के बारे में दबीछिपी बातें करने लगे थे, मगर भूपेश को अब किसी की परवाह नहीं थी. वह हर हालत में उपासना का साथ चाहता था.

कुछ महीने बीते तो दीपमाला ने भूपेश को फोन कर के बताया कि वह अब घर आना चाहती है. जवाब में भूपेश ने दीपमाला को कुछ दिन और आराम करने की बात कही. दीपमाला को भूपेश की बात कुछ जंची नहीं, मगर उस के कहने पर वह कुछ दिन और रुक गई. 3 महीने बीतने को आए, मगर भूपेश उसे लेने नहीं आया तो उस ने भूपेश को बताए बिना खुद ही आने का फैसला कर लिया.

दरवाजे की घंटी पर बड़ी देर तक हाथ रखने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो दीपमाला को फिक्र होने लगी. ‘आज इतवार है. औफिस नहीं गया होगा. दरवाजे पर ताला भी नहीं है. इस का मतलब कहीं बाहर भी नहीं गया है. तो फिर इतनी देर क्यों लग रही है उसे दरवाजा खोलने में?’ वह सोचने लगी.

कंधे पर बैग उठाए और एक हाथ से बच्चे को गोद में संभाले वह अनमनी सी खड़ी थी कि खटाक से दरवाजा खुला.

एक बिलकुल अनजान लड़की को अपने घर में देख दीपमाला हैरान रह गई. वह कुछ पूछ पाती उस से पहले ही उपासना बिजली की तेजी से वापस अंदर चली गई. भूपेश ने दीपमाला को यों इस तरह अचानक देखा तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उस के माथे पर पसीना आ गया.

उस का घबराया चेहरा और घर में एक पराई औरत को अपनी गैरमौजूदगी में देख दीपमाला का माथा ठनका. गुस्से में दीपमाला की त्योरियां चढ़ गईं. पूछा, ‘‘कौन है यह और यहां क्या कर रही है तुम्हारे साथ?’’

भूपेश अपने शातिर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा. उपासना उस के मातहत काम करती है, यह बताने के साथ ही उस ने दीपमाला को एक झूठी कहानी सुना डाली कि किस तरह उपासना इस शहर में नई आई है. रहने की कोई ढंग की जगह न मिलने की वजह से वह उस की मदद इंसानियत के नाते कर रहा है.

‘‘तो तुम ने यह मुझे फोन पर क्यों नहीं बताया? तुम ने मुझ से पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि हमारे साथ कोई रह सकता है या नहीं?’’

‘‘यह आज ही तो आई है और मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि तुम ने आ कर मुझे चौंका दिया. और देखो न मुझे तुम्हारी और मुन्ने की कितनी याद आ रही थी,’’ भूपेश ने उस की गोद से ले कर अंशुल को सीने से लगा लिया. दीपमाला का शक अभी भी दूर नहीं हुआ कि तभी उपासना बेहद मासूम चेहरा बना कर उस के पास आई.

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‘‘मुझे माफ कर दीजिए, मेरी वजह से आप लोगों को तकलीफ हो रही है. वैसे इस में इन की कोई गलती नहीं है. मेरी मजबूरी देख कर इन्होंने मुझे यहां रहने को कहा. मैं आज ही किसी होटल में चली जाती हूं.’’

‘‘इस शहर में बहुत से वूमन हौस्टल भी तो हैं, तुम ने वहां पता नहीं किया?’’ दीपमाला बोली.

‘‘जी, हैं तो सही, लेकिन सब जगह किसी जानपहचान वाले की गारंटी चाहिए और यहां मैं किसी को नहीं जानती.’’

भूपेश और उपासना अपनी मक्कारी से दीपमाला को शीशे में उतारने में कामयाब हो गए. दीपमाला उन दोनों की तरह चालाक नहीं थी. उपासना के अकेली औरत होने की बात से उस के दिल में थोड़ी सी हमदर्दी जाग उठी. उन का गैस्टरूम खाली था तो उस ने उपासना को कुछ दिन रहने की इजाजत दे दी.

भूपेश की तो जैसे बांछें खिल गईं. एक ही छत के नीचे पत्नी और प्रेमिका दोनों का साथ उसे मिल रहा था. वह अपने को दुनिया का सब से खुशनसीब मर्द समझने लगा.

दीपमाला के आने के बाद भूपेश और उपासना की प्रेमलीला में थोड़ी रुकावट तो आई पर दोनों अब होशियारी से मिलतेजुलते. कोशिश होती कि औफिस से भी अलगअलग समय पर निकलें ताकि किसी को शक न हो. दीपमाला के सामने दोनों ऐसे पेश आते जैसे उन का रिश्ता सिर्फ औफिस तक ही सीमित हो.

दीपमाला घर की मालकिन थी तो हर काम उस की मरजी से होता था. थोड़े ही अंतराल बाद उपासना उस की स्थिति की तुलना खुद से करने लगी थी. उस के तनमन पर भूपेश अपना हक जताता था, मगर उन का रिश्ता कानून और समाज की नजरों में नाजायज था. औफिस में वह सब के मनोरंजन का साधन थी, सब उस से चुहल भरे लहजे में बात करते, उन की आंखों में उपासना को अपने लिए इज्जत कम और हवस ज्यादा दिखती थी.

समाज में पत्नी का दर्जा क्या होता है, भूपेश और दीपमाला के साथ रहते हुए उसे इस बात का अंदाजा हो गया था. दीपमाला की जो जगह उस घर में थी वह जगह अब उपासना लेना चाहती थी. वह सोचने लगी आखिर कब तक वह भूपेश की खेलने की चीज बन कर रहेगी. कभी न कभी तो भूपेश इस खिलौने से ऊब जाएगा. उपासना को अब अपने भविष्य की चिंता होने लगी.

दो कदम तन्हा- भाग 3: अंजलि ने क्यों किया डा. दास का विश्वास

Writer- डा. पी. के. सिंह 

बालक ने नकरात्मक भाव से सिर हिलाया तो डा. दास ने पूछा, ‘‘लस्सी पीओगे?’’

‘‘नो…नथिंग,’’ बालक को नदी का दृश्य अधिक आकर्षित कर रहा था.

चाय पी कर डा. दास ने सिगरेट का पैकेट निकाला.

अंजलि ने पूछा, ‘‘सिगरेट कब से पीने लगे?’’

डा. दास ने चौंक कर अपनी उंगलियों में दबी सिगरेट की ओर देखा, मानो याद नहीं, फिर उन्होंने कहा, ‘‘इंगलैंड से लौटने के बाद.’’

अंजलि के चेहरे पर उदासी का एक साया आ कर निकल गया. उस ने निगाहें नीची कर लीं. इंगलैंड से आने के बाद तो बहुत कुछ खो गया, बहुत सी नई आदतें लग गईं.

अंजलि मुसकराई तो चेहरे पर स्वच्छ प्रकाश फैल गया. किंतु डा. दास के मन का अंधकार अतीत की गहरी परतों में छिपा था. खामोशी बोझिल हो गई तो उन्होंने पूछा, ‘‘मृणालिनी कहां है?’’

‘‘इंगलैंड में. वह तो वहीं लीवरपूल में बस गई है. अब इंडिया वापस नहीं लौटेगी. उस के पति भी डाक्टर हैं. कभीकभी 2-3 साल में कुछ दिन के लिए आती है.’’

‘‘तभी तो…’’

‘‘क्या?’’

‘‘कुछ भी नहीं, ब्रिलियंट स्टूडेंट थी. अच्छा ही हुआ.’’

मृणालिनी अंजलि की चचेरी बहन थी. उम्र में उस से बड़ी. डा. दास से वह मेडिकल कालिज में 2 साल जूनियर थी.

डा. दास फाइनल इयर में थे तो वह थर्ड इयर में थी. अंजलि उस समय बी.ए. इंगलिश आनर्स में थी.

अंजलि अकसर मृणालिनी से मिलने महिला होस्टल में आती थी और उस से मिल कर वह डा. दास के साथ घूमने निकल जाती थी. कभी कैंटीन में चाय पीने, कभी घाट पर सीढि़यों पर बैठ कर बातें करने, कभी बोटिंग करने.

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डा. दास की पहली मुलाकात अंजलि से सरस्वती पूजा के फंक्शन में ही हुई थी. वह मृणालिनी के साथ आई थी. डा. दास गंभीर छात्र थे. उन्हें किसी भी लड़की ने अपनी ओर आकर्षित नहीं किया था, लेकिन अंजलि से मिल कर उन्हें लगा था मानो सघन हरियाली के बीच ढेर सारे फूल खिल उठे हैं और उपवन में हिरनी अपनी निर्दोष आंखों से देख रही हो, जिसे देख कर आदमी सम्मोहित सा हो जाता है.

फिर दूसरी मुलाकात बैडमिंटन प्रतियोगिता के दौरान हुई और बातों की शुरुआत से मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ. वह अकसर शाम को पटना कालिज में टेनिस खेलने जाते थे. वहां मित्रों के साथ कैंटीन में बैठ कर चाय पीते थे. वहां कभीकभी अंजलि से मुलाकात हो जाती थी. जाड़ों की दोपहर में जब क्रिकेट मैच होता तो दोनों मैदान के एक कोने में पेड़ के नीचे बैठ कर बातें करते.

मृणालिनी ने दोनों की नजदीकियों को देखा था. उसे कोई आपत्ति नहीं थी. डा. दास अपनी क्लास के टापर थे, आकर्षक व्यक्तित्व था और चरित्रवान थे.

बालक के लिए अब गंगा नदी का आकर्षण समाप्त हो गया था. उसे बाजार और शादी में आए रिश्तेदारों का आकर्षण खींच रहा था. उस ने अंजलि के पास आ कर कहा, ‘‘चलो, ममी.’’

‘‘चलती हूं, बेटा,’’ अंजलि ने डा. दास की ओर देखा, ‘‘चश्मा लगाना कब से शुरू किया?’’

‘‘वही इंगलैंड से लौटने के बाद. वापस आने के कुछ महीने बाद अचानक आंखें कमजोर हो गईं तो चश्मे की जरूरत पड़ गई,’’ डा. दास गंगा की लहरों की ओर देखने लगे.

अंजलि ने अपनी दोनों आंखों को हथेलियों से मला, मानो उस की आंखें भी कमजोर हो गई हैं और स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा है.

‘‘शादी कब की? वाइफ क्या करती है?’’

डा. दास ने अंजलि की ओर देखा, कुछ जवाब नहीं दिया, उठ कर बोले, ‘‘चलो.’’

मैदान की बगल वाली सड़क पर चलते हुए गेट के पास आ कर दोनों ठिठक कर रुक गए. दोनों ने एकदूसरे की ओर देखा, अंदर से एकसाथ आवाज आई, याद है?

मैदान के अंदर लाउडस्पीकर से गाने की आवाज आ रही थी. गालिब की गजल और तलत महमूद की आवाज थी :

‘‘आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक…’’

तलत महमूद पटना आए थे.

डा. घोषाल ने रवींद्र भवन में प्रोग्राम करवाया था. उस समय रवींद्र भवन पूरा नहीं बना था. उसी को पूरा करने के लिए फंड एकत्र करने के लिए चैरिटी शो करवाया गया था. बड़ी भीड़ थी. ज्यादातर लोग खड़े हो कर सुन रहे थे. तलत ने गजलों का ऐसा समा बांधा था कि समय का पता ही नहीं चला.

डा. दास और अंजलि को भी वक्त का पता नहीं चला. रात काफी बीत गई. दोनों रिकशा पकड़ कर घबराए हुए वापस लौटे थे. डा. दास अंजलि को उस के आवास तक छोड़ने गए थे. अंजलि के मातापिता बाहर गेट के पास चिंतित हो कर इंतजार कर रहे थे. डा. दास ने देर होने के कारण माफी मांगी थी. लेकिन उस रात को पहली बार अंजलि को देर से आने के लिए डांट सुननी पड़ी थी और उस के मांबाप को यह भी पता लग गया कि वह डा. दास के साथ अकेली गई थी. मृणालिनी या उस की सहेलियां साथ में नहीं थीं.

हालांकि दूसरे दिन मृणालिनी ने उन्हें समझाया था और डा. दास के चरित्र की गवाही दी थी तब जा कर अंजलि के मांबाप का गुस्सा थोड़ा कम हुआ था किंतु अनुशासन का बंधन थोड़ा कड़ा हो गया था. मृणालिनी ने यह भी कहा था कि डा. दास से अच्छा लड़का आप लोगों को कहीं नहीं मिलेगा. जाति एक नहीं है तो क्या हुआ, अंजलि के लिए उपयुक्त मैच है. लेकिन आजाद खयाल वाले अभिभावकों ने सख्ती कम नहीं की.

बालक ने अंजलि का हाथ पकड़ कर जल्दी चलने का आग्रह किया तो उस ने डा. दास से कहा, ‘‘ठीक है, चलती हूं, फिर आऊंगी. कल तो नहीं आ सकती, शादी है, परसों आऊंगी.’’

‘‘परसों रविवार है.’’

‘‘ठीक तो है, घर पर आ जाऊंगी. दोपहर का खाना तुम्हारे साथ खाऊंगी. बहुत बातें करनी हैं. अकेली आऊंगी,’’ उस ने बेटे की ओर इशारा किया, ‘‘यह तो बोर हो जाएगा. वैसे भी वहां बच्चों में इस का खूब मन लगता है. पूरी छुट्टी है, डांटने के लिए कोई नहीं है.’’

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डा. दास ने केवल सिर हिलाया. अंजलि कुछ आगे बढ़ कर रुक गई और तेजी से वापस आई. डा. दास वहीं खड़े थे. अंजलि ने कहा, ‘‘कहां रहते हो? तुम्हारे घर का पता पूछना तो भूल ही गई?’’

‘‘ओ, हां, राजेंद्र नगर में.’’

‘‘राजेंद्र नगर में कहां?’’

‘‘रोड नंबर 3, हाउस नंबर 7.’’

‘‘ओके, बाय.’’

Manohar Kahaniya: आस्था की चोट- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज 

लेकिन अब जब अरुण हर रात को सोने अपनी फैक्ट्री चला जाता था तो आस्था को भी अरुण पर शक होने लगा था. आस्था के मन में पति के खिलाफ शक उठता कि अरुण का भी कहीं बाहर कोई चक्कर तो नहीं चल रहा.

आस्था के मन में पति के खिलाफ शक पैदा होने के बाद से बीच में कुछ समय के लिए उन दोनों के बीच झगड़े होने बंद हो गए थे. लेकिन अरुण उस के बावजूद भी रात को सोने के लिए अपनी फैक्ट्री में ही चला जाता था.

उसे फैक्ट्री में सोने, शराब पीने, सिगरेट फूंकने इत्यादि की मानो लत सी लग गई थी. उस के ऐसा करने पर आस्था के मन में अरुण के लिए और भी ज्यादा संदेह पैदा होने लगा था.

इस बीच वह अरुण को उस की संपत्ति अपने बच्चों और उस के नाम करने के लिए दबाव बनाने लगी. आस्था को लगता था कि यदि अरुण का बाहर किसी और लड़की से संबंध हुआ तो कहीं वह उसे और उस के बच्चों को बेदखल न कर दे.

दोस्त से करा दी पति की पिटाई

संपत्ति ट्रांसफर करने की बात से अरुण खीझ उठता था. वह जीते जी यह नहीं चाहता था कि उस की मेहनत से कमाई हुई संपत्ति को वह आस्था के नाम कर दे.

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इन सारी बातों को ले कर आस्था और अरुण के बीच एक बार फिर से 28 सितंबर, 2021 की रात को झगड़ा हुआ. दोनों के बीच झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि अरुण ने आस्था की पिटाई कर दी.

उसी रात डा. आस्था ने अपने उसी दोस्त को फोन कर के अरुण के साथ हुई मारपीट के बारे में सब कुछ बता दिया और वह भी अरुण के सामने.

यह देख कर अरुण पूरी तरह से अपने होश खो चुका था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. देखते ही देखते कुछ ही पलों में आस्था का प्रेमी उन के घर पहुंच गया और उस ने बच्चों के सामने आस्था पर हाथ उठाने के लिए अरुण को खूब मारापीटा.

इस घटना के बाद अरुण का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने मन ही मन आस्था को जान से मारने का फैसला कर लिया. मार खा कर वह फैक्ट्री में विकास से मिला और उसे सारी घटना बताते हुए आस्था को जान से मारने के अपने विचार के बारे में भी बताया.

विकास बेशक काम सिक्युरिटी गार्ड का करता था लेकिन वह कई कौन्ट्रैक्ट किलर्स को जानतापहचानता था, जो पैसों के लिए किसी की भी जान ले सकते थे.

विकास ने अरुण को 2 कौन्ट्रैक्ट किलर्स से मिलवाया, अशोक उर्फ टशन और पवन. दोनों से बातचीत कर अरुण ने एक लाख रुपए में पत्नी को जान से मारने का कौन्ट्रैक्ट दे दिया.

अरुण ने 60 हजार रुपए एडवांस में दे कर दिन और टाइम तय कर लिया. 13 अक्तूबर, 2021 की रात को वे चारों लोग अरुण की गाड़ी में सवार हो कर उस के घर पहुंचे.

उस के बाद अरुण ने बच्चों को डराधमका कर टीवी वाले कमरे में बंद कर के टीवी का वौल्यूम बढ़ा दिया और तीनों के साथ मिल कर पत्नी आस्था की गला दबा कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश छत के हुक से लटका दी ताकि मामला आत्महत्या का लगे.

हत्या के बाद हत्यारे अपनेअपने रास्ते निकल गए और अरुण बच्चों को ले कर घर पर ताला लगा कर अपने भाई तरुण के घर पहुंच गया. उस ने अपने बड़े भाई तरुण को आस्था की हत्या की बात बता दी और अपने बच्चों और चाबियां सौंप कर दिल्ली के लिए निकल गया.

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कौन्ट्रैक्ट किलर्स को बाकी के पैसे उसे वहीं देने थे. पैसे देने के बाद उस के पास अपने पैसे खत्म हो गए थे. वह पैसे लेने के लिए कासिमपुर आया था और विकास को फोन करने के लिए अपना फोन चालू किया, तभी उस की लोकेशन पुलिस को पता चल गई और वह पकड़ा गया.

अभी तक डा. आस्था अग्रवाल की हत्या के 4 आरोपी पकड़े जा चुके हैं. पहले तरुण अग्रवाल, फिर अरुण अग्रवाल, सिक्युरिटी गार्ड विकास और कौन्ट्रैक्ट किलर पवन. पांचवां आरोपी अशोक उर्फ टशन अभी भी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाया, वह कथा लिखे जाने तक फरार था.

Satyakatha: ऑपरेशन करोड़पति- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

वीरेंद्र कुमार (25 वर्ष) को गोवा के लोग वीरेंद्र बिहारी कहते थे. कारण वह बिहार के मधुबनी के एक गांव का रहने वाला था. उस के घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही बिगड़ी हुई थी. पढ़ाई के नाम पर वह 8वीं पास था. उसे किसी भी तरह की नौकरी मिलने की उम्मीद कतई नहीं थी. काम के नाम पर वह खेतीकिसानी जानता था. इसलिए कुछ महीने पहले ही रोजीरोटी की तलाश में वह गोवा आया था.

गोवा के उत्तरी इलाके में वह अपने कुछ परिचितों के यहां रह रहा था. उन की मदद से ही वह गाडि़यों की देखरेख के लिए एक गैरेज में लग गया था.

वीरेंद्र की सीखने की ललक थी. किसी भी काम को वह बहुत जल्द सीख लेता था. गाडि़यों की देखरेख करते हुए, गाड़ी से संबंधित वह कई तरह के काम करने में माहिर हो गया था. कुछ ही सालों में उसे गाडि़यों की अच्छी जानकारी भी हो गई थी. गाड़ी खोलना, गाड़ी चलाना आदि से ले कर इंजन की आवाज पहचान कर उस की खराबी के बारे मालूम कर लेना अच्छी तरह जान गया था.

उस ने ड्राइविंग लाइसैंस भी बनवा लिया था. उस के बाद मानो उस के सपनों को पंख लग गए थे. गैरेज का काम छोड़ कर टैंपो की ड्राइवरी करनी शुरू कर दी थी.

इस काम की वजह से उस की जानपहचान निशांत मोगन कैंडोलिम से हो गई थी. वह भी उसी की उम्र का था. वह मंगलूर का रहने वाला था. शहर के चर्चित एक शोरूम आशीर्वाद के मालिक नवीन पटेल के यहां कई सालों से काम कर रहा था.

निशांत को हमेशा माल लानेपहुंचाने के लिए टैंपो की जरूरत पड़ती थी. इसी कारण वह वीरेंद्र के संपर्क में आया. उस ने वीरेंद्र का टैंपो किराए पर लेना शुरू कर दिया. उस का काम, समय की पाबंदी और स्वभाव मालिक को पसंद आया.

इस तरह वीरेंद्र भी शोरूम या गोदाम में अकसर सामान की डिलीवरी के लिए जाने लगा. उन में गहरी दोस्ती होने का यही कारण था. जब कभी मौका मिलता तो दोनों इकट्ठे बैठते थे. खातेपीते थे. मौजमस्ती करते थे. एकदूसरे से अपनी बातें शेयर किया करते थे.

निशांत के अलावा 25 वर्षीय सुरजीत केसकर, 28 वर्षीय मंजूनाथ और 51 वर्षीय सुभाष भोसले भी कभीकभार वीरेंद्र बिहारी के टैंपो किराए पर लिया करते थे. सुभाष और सुजीत महाराष्ट्र में कोल्हापुर के रहने वाले थे.

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इन के परिवार में पुश्तैनी काश्तकारी का काम होता था, जिस से गुजरबसर करना मुश्किल हो रहा था. इस कारण वे भी कामधंधे की तलाश में गोवा आ गए थे. उन का तीसरा साथी मंजूनाथ दक्षिणी गोवा के कांदोली गांव का रहने वाला था.

उसे गोवा के चप्पेचप्पे की अच्छी जानकारी थी. दुर्गम से दुर्गम और निर्जन दूरदराज के इलाके के बारे में अच्छी तरह से जानता था. वह भी अच्छी कमाई के मकसद से गांव छोड़ कर गोवा शहर आया था.

पांचों की दोस्ती के केंद्र में वीरेंद्र बिहारी था. सभी उसे इसलिए भी पसंद करते, क्योंकि वह उन्हें पैसा कमाने के नएनए आइडिया देता था. वह खुद भी खूब पैसा कमाना चाहता था.

जब कभी पांचों मिलते तब पैसे कमाने की योजना बनाया करते थे. कोरोना के कहर से गोवा भी तबाह हो गया था. शहर की स्थिति खराब हो गई थी. शहर के अधिकतर कामधंधे और रोजगार ठप पड़ गए थे.

इस का सब से अधिक प्रभाव दिहाड़ी पर काम करने वालों पर पड़ा था. काफी लोग अपने गांव चले गए, किंतु कोरोना कम होने के बाद जब वे वापस लौटे तब उन में से कुछ को ही काम मिल पाया. काम नहीं पाने वालों में ये पांचों दोस्त भी थे.

वीरेंद्र बिहारी शातिर दिमाग का था. जब उसे कोई ढंग का काम नहीं मिला, तो उस ने वाहन की चोरियां और राहजनी का काम शुरू कर दिया, जिस से उस के खिलाफ थाने में कई शिकायतें भी दर्ज हो गई थीं.

एक के बाद एक जब कई शिकायतें उस के खिलाफ थानों में दर्ज हुईं तो वह कई बार गिरफ्तार भी हुआ. लेकिन किसी तरह जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आ गया. इस से वह समझ गया था कि किस तरह के मामले में कैसे छूटा जा सकता है और किस में कितना खर्च कर बचा जा सकता है.

वीरेंद्र बिहारी के मन में एक लंबा हाथ मारने का विचार आया. लेकिन यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था. उस की योजना के मुताबिक उसे और लोगों की जरूरत थी.

वह अपनी योजना को सही तरह से सफल बनाने के लिए एक टीम बनाना चाहता था. इस बारे में उस ने सब से पहले निशांत से बात की. उस ने उसे अपनी योजना के बारे में बताया.

पहले तो निशांत उस की योजना सुनते ही घबरा गया. उस ने इनकार कर दिया. कहा कि इस काम में उस का बनाबानाया काम छूट जाएगा.

तब वीरेंद्र ने उस से कहा, ‘‘हमें इस काम में मोटे पैसे एक बार में ही मिल जाएंगे तो कोई दूसरा काम करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.’’ यह बात निशांत की समझ में आ गई और उस ने इस काम में हामी भर दी.

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उस के बाद दोनों ने मिल कर टीम को पूरा करने का काम शुरू किया. उन्होंने बाकी के 3 दोस्तों से बात की. सभी उन की योजना सुन कर निशांत की तरह ही घबरा गए थे. लेकिन जब उन्हें समझाया गया कि इस में कानून और पुलिस से कैसे बचा जा सकता है, तब वे भी राजी हो गए. फिर उन्हें एक झटके में लाखों रुपए आने का लालच भी था.

इस तरह से पूरी योजना की तैयारी के बाद उन्हें एक ऐसी पार्टी की तलाश थी, जो मालदार हो और उन की थोड़ी सी धमकी पर ही आसानी से बात मान ले. उन की योजना किसी का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूलने की थी.

ऐसे में घूमफिर कर के उन की नजर में जिस व्यक्ति की तसवीर उभर कर सामने आई, वह निशांत के मालिक नवीन पटेल की थी.

निशांत कई सालों से उन के यहां काम कर रहा था. इसलिए उसे उन के घर, परिवार के लोगों के अलावा उन की अमीरी के बारे में अच्छी जानकारी थी.

योजना के अनुसार, उन्होंने नवीन पटेल के औफिस की अच्छी तरह से रेकी की. इस काम को निशांत ने किया. साथ में वीरेंद्र की भी मदद ली. रेकी के बाद दिन और समय तय कर वीरेंद्र बिहारी ने एक एसयूवी कार किराए पर ली

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Crime Story: पति पत्नी का परायापन

लेखक- प्रफुल्लचंद्र सिंह

पीं.इसी प्रयास में शारदा प्रसाद मिश्रा नाम के व्यक्ति से बात हुई. उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई पंकज मिश्रा का है जो नोएडा के भंगेल गांव में रहता है. पुलिस ने उसे अस्पताल बुला लिया ताकि लाश की शिनाख्त हो सके. शारदा प्रसाद अस्पताल पहुंच गया. पुलिस ने जब उसे उस युवक की लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने छोटे भाई पंकज मिश्रा के तौर पर कर दी. उस ने पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी भुवनेश कुमार को बताया कि पंकज जेपी कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था और घटना के समय अपने काम पर जा रहा था. शिनाख्त हो जाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दी गई.

इस के बाद थानाप्रभारी भुवनेश कुमार फिर से वारदात वाली जगह सेक्टर-132 पहुंचे. उन्होंने आसपास के लोगों से पूछताछ की तो कुछ लोगों ने बताया कि बाइक सवार 2 लोगों ने साइकिल सवार एक युवक को गोली मारी थी.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने शारदा प्रसाद मिश्रा की शिकायत पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ पंकज मिश्रा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. एसएसपी वैभवकृष्ण के निर्देश पर थानाप्रभारी भुवनेश कुमार टीम के साथ केस की जांच करने में जुट गए.

पुलिस ने शुरू की जांचपड़ताल

केस की गुत्थी सुलझाने के लिए उन्होंने जांचपड़ताल शुरू की. क्योंकि बदमाशों ने उस से किसी प्रकार की लूटपाट नहीं की थी, इसलिए इस संभावना को बल मिल रहा था कि शायद पंकज से किसी की कोई पुरानी रंजिश रही होगी, जिस के कारण मौका ताड़ कर उसे मौत के घाट उतार दिया गया.

पंकज भंगेल में एक किराए के मकान में रहता था. थानाप्रभारी पूछताछ के लिए उस के घर पर पहुंच गए. घर पर मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा मिली. थानाप्रभारी ने शैली मिश्रा से पंकज की दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने किसी भी व्यक्ति के साथ रंजिश से साफ इनकार कर दिया.

मृतक के भाई शरदा प्रसाद मिश्रा से भी किसी से रंजिश आदि के बारे में पूछा गया. उस ने भी ऐसी किसी दुश्मनी से अनभिज्ञता जाहिर की. यह सब देख कर पुलिस ने हत्यारों तक पहुंचने के लिए अन्य संभावित कारणों के बारे में जांचपड़ताल की.

मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा से थानाप्रभारी ने और भी कई तरह के सवाल किए तो उस के बयानों में कुछ विरोधाभास मिला. इस पर पुलिस ने पंकज और शैली मिश्रा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन जांचपड़ताल की. पता चला कि शैली मिश्रा की एक मोबाइल नंबर पर अकसर बातें होती थीं.

जब उस मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो वह सुरेश सिधवानी नाम के एक युवक का निकला जो नोएडा के सेक्टर-82 में रहता था. पुलिस ने शैली से कुछ नहीं कहा, बल्कि सुरेश सिधवानी को पूछताछ के लिए उस के घर से उठा लिया. थाने में उससे सख्ती से उस के और शैली मिश्रा के बारे में पूछा गया तो उस ने सारा सच उगल दिया.

उस ने बताया कि पिछले 2 सालों से उस के और शैली मिश्रा के बीच गहरी दोस्ती है, जो अवैध संबंधों में बदल गई थी. उस ने और शैली ने योजना बना कर पंकज को रास्ते से हटाया है.

इस के बाद पुलिस ने शैली मिश्रा को भी भंगेल स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. वहां उस ने पहले से हिरासत में लिए गए सुरेश सिधवानी को देखा तो उस के चेहरे का रंग उतर गया. अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा पूछताछ में शैली ने भी स्वीकार कर लिया कि पंकज की हत्या उसी के इशारे पर की गई थी.

दोनों से विस्तार से पूछताछ करने पर पंकज की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला अयोध्या का रहने वाला पंकज मिश्रा पिछले कई सालों से अपनी पत्नी शैली और 7 साल के बेटे के साथ नोएडा के भंगेल गांव में रह रहा था. वह जेपी कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था. वहां से उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उस से उस के परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था.

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घरगृहस्थी चलाने में आ रही दुश्वारियों से दोनों हमेशा परेशान रहते थे. शैली सुंदर होने के साथसाथ कुछ पढ़ीलिखी भी थी. उस ने सोचा कि बेटे को स्कूल छोड़ने के बाद वह दिन भर घर में अकेली पड़ीपड़ी बोर होती रहती है, इसलिए उसे कहीं पर दिन की नौकरी मिल जाए तो काफी कुछ दुश्वारियां कम हो जाएंगी.

घर से निकलने पर बहक गई शैली

उस दिन जब पंकज अपनी ड्यूटी करने के बाद घर लौटा तो शैली ने उस से अपने मन की बात कही. शैली की बात सुन कर पंकज सोच में डूब गया. उस का दिल इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि शैली घर की दहलीज लांघ कर कहीं नौकरी करने जाए.

लेकिन घर की परिस्थितियां इस बात की ओर इशारा कर रही थीं कि उस की तनख्वाह में घर बड़ी मुश्किलों से चलता है. कई बार मुश्किलें आने पर उसे अपनी जानपहचान वालों से रुपए उधार मांगने पड़ते हैं, जिन्हें बाद में चुकाना भी काफी कठिन हो जाता है.

शैली को एकटक देखते हुए उस ने कहा, ‘‘शैली, मैं चाहता तो नहीं हूं कि तुम कहीं काम करो, लेकिन हालात को देखते हुए तुम से नौकरी करने के लिए कहना पड़ रहा है. अगर तुम्हें नौकरी करनी ही है तो कहीं पास में ही नौकरी तलाश करो.’’पति को चिंतित देख शैली ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी चिंता मत करो, अपना अच्छाबुरा मैं अच्छी तरह जानती हूं.’’

इस के बाद वह अगले दिन से ही अपने लिए नौकरी की तलाश में जुट गई. थोड़ी कोशिश के बाद उसे एक बिल्डर के यहां नौकरी मिल गई. अब वह भी नौकरी पर जाने लगी. पत्नी के नौकरी करने से पंकज की आर्थिक स्थिति ठीक होने लगी. पैसे आए तो दोनों के चेहरों पर खुशी की लाली थिरकने लगी.

कुछ महीने तक तो पंकज के घर में सब कुछ ठीक था, परंतु एक साल गुजरने के बाद शैली के रंगढंग में काफी कुछ बदलाव आ गया. उस के रहनसहन और पहनावे को देख कर लगता था कि वह मौडर्न घराने से ताल्लुक रखती है.

औफिस से घर आने में वह कई बार लेट भी हो जाती थी. पंकज ने इस दौरान महसूस किया था कि शैली की चालढाल अब वैसी नहीं रही जैसी पहले थी. अब उस के पास महंगा मोबाइल फोन आ गया था, जिस पर वह हमेशा व्यस्त रहती थी. एक दिन पंकज शैली के मोबाइल का वाट्सऐप देख रहा था. उसे वहां कुछ ऐसे फोटो देखने को मिले, जिस में वह एक अपरिचित आदमी के साथ काफी खुश नजर आ रही थी. उस फोटो के बारे में पूछने के लिए पंकज ने शैली को अपने पास बुलाया तो उस के चेहरे की रंगत उड़ गई.

वह कहने लगी कि यह औफिस में ही काम करने वाला व्यक्ति है. मगर पंकज को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. इस के बाद उन दोनों के बीच किसी न किसी बात को ले कर नोकझोंक होने लगी. अब तक पंकज को पूरी तरह यकीन हो गया था कि शैली फोटो में जिस व्यक्ति के साथ है, उस से उस के अवैध संबंध होंगे.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस रात शैली देर से घर लौटी थी. पंकज ने उस पर आरोप लगाया कि वह अपने प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी, तभी घर आने में देर हो गई. पंकज ने उस समय उसे काफी भलाबुरा कहा था. शैली भी कहां चुप रहने वाली थी. उस ने भी कह दिया कि तुम मेरे ऊपर इतना शक करते हो तो मुझे तलाक दे दो. मेरी तुम्हारे साथ अब नहीं निभ सकती.

शैली की बात सुन कर पंकज सन्न रह गया. उसे उम्मीद नहीं थी कि शैली कभी उसे छोड़ कर सदा के लिए उस से दूर जाने का इरादा बना लेगी. लड़झगड़ कर उस रात दोनों सो गए. लेकिन उस दिन के बाद शैली हर 2-4 दिनों के बाद पंकज से तलाक ले कर अलग रहने पर दबाव बनाने लगी.

सुरेश सिधवानी से हो गए संबंध

दरअसल, शैली जहां नौकरी करती थी, उस की बगल में सेक्टर-82 निवासी सुरेश सिधवानी की दुकान थी. सुरेश सिधवानी मूलरूप से राजस्थान का रहने वाला था. वह शादीशुदा था लेकिन अपनी पत्नी से अधिक शैली को प्यार करता था. जब उस की पत्नी को शैली के साथ उस के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने उसे रोकने की कोशिश की.

लेकिन सुरेश सिधवानी के सिर पर शैली के इश्क का भूल चढ़ा था, इसलिए उस ने पत्नी की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी. आखिर वह सुरेश को छोड़ कर चली गई.

पत्नी के घर छोड़ चले जाने के बाद सुरेश ने शैली को अपने पति से तलाक लेने पर जोर डालना शुरू कर दिया, ताकि दोनों हमेशा के लिए एक हो कर रह सकें. लेकिन पंकज मिश्रा इस के लिए राजी नहीं हुआ. उसे अपने बेटे और खानदान की इज्जत अधिक प्यारी थी.

जब शैली को लगा कि पंकज उसे तलाक नहीं देगा तब उस ने सुरेश से कहा, ‘‘सुरेश, अगर तुम मुझे सच में प्यार करते हो और हमेशा के लिए अपना बनाना चाहते हो तो पहले पंकज को खत्म करना होगा.’’

सुरेश भी यही चाहता था, इसलिए उस ने कहा कि तुम अब परेशान मत होना, मैं इस का इंतजाम कर दूंगा.

सुरेश सिधवानी के पास नगला चरणजीतदास का रहने वाला मोटर मैकेनिक इंद्रजीत आता रहता था. वह उस का विश्वासपात्र भी था. सुरेश ने पंकज की हत्या के बारे में उस से बात की. साथ ही यह भी कहा कि इस काम के एवज में वह उसे 10 लाख रुपए देगा.

हत्या की दे दी सुपारी

इतनी बड़ी रकम के लालच में इंद्रजीत तैयार हो गया. उस ने पंकज की हत्या करने के लिए 50 हजार रुपए की पेशगी भी ले ली.

पंकज की हत्या करने की सुपारी लेने के बाद इंद्रजीत इस काम के लिए अपने दोस्त ककराला फेज-2 निवासी मोनू से मिला. उस ने मोनू से सारी बात तय कर के उसे .32 बोर की एक पिस्तौल तथा 3 गोलियां सौंप दीं.

मोनू ने गेझा, नोएडा निवासी अपने दोस्त सूरज तंवर को अपने साथ लिया. इस के बाद वे सभी पंकज की रेकी करने लगे. उन्होंने पता लगा लिया कि पंकज अपनी ड्यूटी के लिए किस रास्ते से आताजाता है. पूरी योजना बनाने के बाद 20 जून, 2019 को ये लोग पंकज का पीछा करने लगे. जैसे ही पंकज एक सुनसान जगह पर पहुंचा तो उसे रोकने के बाद गोली मार दी, जिस से घटनास्थल पर ही पंकज की मृत्यु हो गई.

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पुलिस ने उन दोनों से पूछताछ के बाद इंद्रजीत, मोनू और सूरज को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर वारदात में इस्तेमाल पिस्तौल और बिना नंबर प्लेट वाली मोटरसाइकिल भी बरामद हो गई.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने पंकज हत्याकांड के पांचों आरोपियों सुरेश सिधवानी, शैली मिश्रा, इंद्रजीत, मोनू और सूरज तंवर को गौतमबुद्धनगर की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

सूरज तंवर की उम्र 19 साल है और वह गेझा गांव के स्कूल में 12वीं का छात्र है. वह अपनी गर्लफ्रैंड की जरूरतों को पूरा करने के लालच में इस हत्याकांड में शामिल हुआ था. पंकज की हत्या और शैली मिश्रा के जेल चले जाने के बाद पंकज का 7 वर्षीय बेटा अपने चाचा के पास था.

बस एक सनम चाहिए- भाग 1: शादी के बाद भी तनु ने गैर मर्द से क्यों रखा रिश्ता

‘‘सांसों की जरूरत है जैसे जिंदगी के लिए, बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए…’’ एफएम पर बजते ‘आशिकी’ फिल्म के इस गाने ने मुझे बरबस ही तनु की याद दिला दी. वह जब भी किसी नए रिश्ते में पड़ती थी, तो यह गाना गुनगुनाती थी.मनचली… तितली… फुलझड़ी… और भी न जाने किनकिन नामों से बुलाया करते थे लोग उसे…मगर वह तो जैसे चिकना घड़ा थी. किसी भी कमैंट का कोई असर नहीं पड़ता था उस पर. अपनी शर्तों पर, अपने मनमुताबिक जीने वाली तनु लोगों को रहस्यमयी लगती थी. मगर मैं जानती थी कि वह एक खुली किताब की तरह है. बस उसे पढ़ने और समझने के लिए थोड़े धीरज की जरूरत है.

वह कहते हैं न कि अच्छे दोस्त और अच्छी किताबें जरा देर से समझ में आते हैं…तनु के बारे में भी यही कहा जा सकता है कि वह जरा देर से समझ आती है. तनु मेरी बचपन की सहेली थी. स्कूल से ले कर कालेज और उस के बाद उस के जौब करने तक… मैं उस के हर राज की हमराज थी. पता नहीं कितनी चाहतें, कितने अरमान भरे थे उस के दिल के छोटे से आसमान में कि हर बार अपनी ही उड़ान से ऊपर उड़ने की ख्वाहिशें पलती रहती थीं उस के भीतर. वह जिस मुकाम को हासिल कर लेती थी वह तुच्छ हो जाता था उस के लिए. कभीकभी तो मैं भी नहीं समझ पाती थी कि आखिर यह लड़की क्या पाना चाहती है. इस की मंजिल आखिर कहां है?

8वीं क्लास में जब पहली बार उस ने मुझे बताया कि उसे हमारे क्लासमेट रवि से प्यार हो गया है तो मेरी समझ ही नहीं आया था कि मैं कैसे रिएक्ट करूं. तनु ने बताया कि रवि के साथ बातें करना, खेलना, मस्ती करना उसे बहुत भाता है. तब तो हम शायद प्यार के माने भी ठीक ढंग से नहीं जानते थे. फिर भी न जाने किस तलाश में वह पागल लड़की उस अनजान रास्ते पर आगे बढ़ती ही जा रही थी.

एक दिन रवि का लिखा एक लव लैटर उस ने मुझे दिखाया तो मैं डर गई. बोली, ‘‘फाड़ कर फेंक दे इसे…कहीं सर के हाथ लग गया तो तुम दोनों की खैर नहीं,’’ मैं ने उसे समझाते हुए उस की सहेली होने का अपना फर्ज निभाया.

‘‘अरे, कुछ नहीं यार… लाइफ में एक जिगरी यार तो होना ही चाहिए न. बस एक सनम चाहिए. आशिकी के लिए…’’ उस ने गुनगुनाते हुए कहा. ‘‘तो क्या मैं तुम्हारी जिगरी नहीं?’’ मैं ने तुनक कर पूछा.

‘‘तुम समझी नहीं. जिगरी यार से मेरा मतलब एक ऐसे दोस्त से है जो मुझे बहुत प्यार करे. सिर्फ प्यार… तुम तो सहेली हो. यार नहीं…’’ तनु ने मुझ नासमझ को समझाया. फिर एक दिन तैश में आते हुए बोली, ‘‘आई हेट रवि.’’

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मैं ने कारण पूछा तो उस ने बताया कि आज सुबह गेम्स पीरियड में बैडमिंटन कोर्ट में रवि ने उसे किस करने की कोशिश की. मैं ने कहा, ‘‘तुम ही तो प्यार करने वाला जिगरी यार चाहती

थी न?’’ सुनते ही बिफर गई तनु. बोली, ‘‘हां, चाहती थी प्यार करने वाला. मगर तभी जब उस में मेरी मरजी शामिल हो. बिना मेरी सहमती के कोई मुझे छू नहीं सकता.’’ कहते हुए उस ने रवि के लिखे सारे लव लैटर्स फाड़ कर डस्टबिन के हवाले कर दिए और लापरवाही से हाथ झटक लिए.

‘‘उम्र मात्र 14 वर्ष और ये तेवर?’’ मैं डर गई थी. 9वीं क्लास में हम दोनों ने कोऐजुकेशन छोड़ कर गर्ल्स स्कूल में ऐडमिशन ले लिया. स्कूल हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए हम सब सहेलियां साइकिल से स्कूल जाती थीं. 10वीं कक्षा तक आतेआते एक दिन उस ने मुझ से कहा, ‘‘स्कूल जाते समय रास्ते में अकसर एक लड़का हमें क्रौस करता है और वह मुझे बहुत अच्छा लगता है. लगता है मुझे फिर से प्यार हो गया…’’

मैं ने उसे एक बार फिर आग से न खेलने की सलाह दी. मगर वह अपने दिल के सिवा कहां किसी और की सुनती थी जो मेरी सुनती. अब तो स्कूल आतेजाते अनायास ही मेरा ध्यान भी उस लड़के की तरफ जाने लगा. मैं ने नोटिस किया कि आमनेसामने क्रौस करते समय तनु उस लड़के की तरफ भरपूर निगाहों से देखती है. वह लड़का भी प्यार भरी नजरें उस पर डालता है. स्कूल के मेन गेट में घुसने से पहले एक आखिरी बार तनु पीछे मुड़ कर देखती थी और फिर वह लड़का वहां से चला जाता था.

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Satyakatha: फौजी की सनक का कहर- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

सुबहसुबह साढ़े 7 बजे के करीब गुरुग्राम के राजेंद्र पार्क इलाके में जब सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यां आईं, तब अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हुए लोग चौंक पड़े. कोई बाथरूम में फ्रैश हो रहा था, तो कोई अपनी बालकनी में ब्रश कर रहा था तो कोई अपने फूलों के गमलों की देखरेख में लगा हुआ था.

कई घरों के किचन से कुकर की सीटियां बजने लगी थीं. कोई अपने पालतू कुत्ते के साथ सैर पर था, जबकि कुछ लोग वहीं छोटे से पार्क में जौगिंग और एक्सरसाइज कर रहे थे. हर दिन की तरह ही 24 अगस्त को साफ आसमान और सूरज की चमकदार किरणों वाले दिन की शुरुआत हो चुकी थी.

सायरन की आवाज सुन कर अचानक सभी लोगों का ध्यान उस ओर चला गया. उस वक्त गली में भी कुछ लोगों का आनाजाना शुरू हो चुका था. गाडि़यां उन के बीच से गुजरती हुई एक घर के आगे रुकीं. गाडि़यों से पुलिसकर्मियों को उतरते देख आसपास के लोग धीमी आवाज में बातें करने लगे थे. कुछ लोग अपनीअपनी छतों पर या बालकनी में भी आ गए थे.

पुलिसकर्मी जब एक घर के आगे खड़े हो कर अपने हाथों में रबर के ग्लव्स पहनने शुरू किए, तब वहां मौजूद लोगों के मन में जानने की उत्सुकता बढ़ गई. जिस घर के आगे इकट्ठे हुए थे, वह घर रिटायर्ड फौजी राव राय सिंह का था.

गुरुग्राम थाने के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सुरेंदर गाड़ी से उतरे. उन्होंने भी अपने हाथों में रबर का ग्लव्स पहन लिया और 10-12 पुलिसकर्मियों का नेतृत्व करते हुए सब से पहले मकान में प्रवेश किया.

पुलिस की टीम मकान में जा कर 2 हिस्सों में बंट गई. एक ऊपर की मंजिलों पर चली गई, जबकि दूसरी इंसपेक्टर सुरेंदर के साथ ग्राउंड फ्लोर पर बनी रही. वहां कई कमरे थे, पुलिस ने सभी का एकएक कर दरवाजा खटखटाया.

अधिकतर कमरों के दरवाजे बाहर से ही बंद या भिड़े हुए थे. कहीं किसी कमरे में कुछ नहीं मिला. बस एक में बुजुर्ग महिला कुरसी पर बैठी दिखी. पास ही एक लड़की पलंग पर सोई हुई थी.

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पुलिस ने उस बुजुर्ग महिला को बाहर निकलने का इशारा किया. वह सो रही लड़की को जगा कर कुछ मिनट बाद कमरे से बाहर आई. लड़की उस की पोती थी और उस ने खुद को राव राय सिंह की पत्नी विमलेश यादव बताया.

ग्राउंड फ्लोर के साथसाथ पहली मंजिल पर भी सूचना के मुताबिक गहन छानबीन जारी थी. कुछ सेकेंड बाद टीम के एक सदस्य ने आवाज लगा कर थानाप्रभारी को पुकारा. वह तुरंत भागते हुए सीढि़यों से पहली मंजिल पर जा पहुंचे. उस कमरे में घुसे जहां से उन्हें आवाज लगाई गई थी.

कमरे में घुसते ही थानाप्रभारी कमरे का दृश्य देख कर अवाक रह गए. कमरे के फर्श पर एक महिला का शव पड़ा था. पूरे कमरे के फर्श पर खून फैल चुका था. शव पर गहरे जख्म का निशान था, उस में से खून रिस रहा था.

थानाप्रभारी अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि दूसरी मंजिल से एक अन्य पुलिसकर्मी ने चीखने जैसी आवाज लगाई. थानाप्रभारी तुरंत भागेभागे दूसरी मंजिल के उसी कमरे में जा पहुंचे, जहां से उन्हें आवाज दी गई थी.

कमरे में पहुंचते ही थानाप्रभारी हक्केबक्के रह गए. कमरे के फर्श पर एकदो नहीं, बल्कि 4 लाशें पड़ी हुई थीं. वहां का दृश्य देख कर पुलिसकर्मियों के माथे से पसीना छूटने लगा था. उन 4 लाशों में 2 छोटीछोटी बच्चियां थीं.

सभी लाशों के बारे में प्राथमिक जानकारी जुटाई गई. उस के मुताबिक पहली मंजिल के कमरे से बरामद लाश सुनीता यादव की थी. वह राव राय सिंह की बहू थी. इसी तरह दूसरी मंजिल के कमरे से मिली लाशों में एक लाश वहां रहने वाले किराएदार कृष्णकांत तिवारी (40), दूसरी तिवारी की पत्नी अनामिका तिवारी (32) और बाकी दोनों लाशें उन की बेटियों सुरभि तिवारी (9) और विधि तिवारी (6) की थी. सभी के शरीर पर एक जैसे गहरे जख्म के निशान थे.

मकान में मौजूद पुलिस की टीम ने लाशों को निकालने का काम शुरू किया. इसी क्रम में पता चला कि 6 साल की विधि की सांसें चल रही हैं. पुलिस टीम तुरंत उसे नजदीकी अस्पताल ले गई.

राव राय सिंह के घर के बाहर लाशों को देख कर लोग हैरान थे. वे समझ नहीं पर रहे थे कि आखिर इतनी लाशें कैसे और क्यों? साथ ही सभी की आंखें राव राय सिंह को भी तलाश रही थीं. वह नजर नहीं आ रहा  था.

इलाके के लोगों को पता था कि पहली मंजिल पर राय सिंह की बहू सुनीता यादव और दूसरी मंजिल पर किराएदार कृष्णकांत तिवारी अपने परिवार के साथ रहते थे. सभी लाशों को देख कर यह तो स्पष्ट हो गया था कि उन की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.

उन की हत्या कैसे और किस ने की होगी, इन सवालों के साथसाथ एक सवाल और था कि आखिर राव राय सिंह कहां है?

उसी दोरान जांच में पता चला कि इस जघन्य हत्याकांड की नींव में एक मकान मालिक और उस के किराएदार के बीच आपसी रिश्ते के मिठास और खटास के साथ उस में भर चुकी कड़वाहट की कहानी शामिल है, जो वीभत्स हत्या का मुख्य कारण बन गई.

बिहार में सीवान के रहने वाले कृष्णकांत तिवारी ने करीब ढाई साल पहले राव राय सिंह के मकान में दूसरी मंजिल पर किराए का कमरा लिया था. वह गुरुग्राम की एक कंपनी में काम करते थे.

उस से पहले वह पास में ही लक्ष्मण विहार में किराए के कमरे में रहते थे. उन्होंने बिहार से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और दिल्ली आने पर शुरुआत से ही गुरुग्राम में अपने परिवार के साथ रहते थे.

कृष्णकांत जब राव राय सिंह के मकान में आए, तब वहां बहुत जल्द मकान मालिक के सभी सदस्यों के प्रिय बन गए. इस कारण उन्हें काफी अपनापन सा महसूस होता था. उन के बच्चे छोटे थे और पत्नी अनामिका की राय सिंह की बहू सुनीता यादव के साथ अच्छी पटती थी.

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राय सिंह के एकलौते बेटे आनंद यादव, जो गुड़गांव की जिला अदालत में वकील थे, की पत्नी सुनीता यादव अलग मिजाज की औरत थी. वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी.

अपनी मरजी से अकसर मायके चली जाती थी. उस की इन्हीं आदतों से न केवल पति, बल्कि ससुर राय सिंह और सास तक परेशान रहते थे.

सुनीता और अनामिका हमउम्र होने के चलते आपस में अपनी बातें शेयर करती थीं. उन के बीच हंसीमजाक चलता रहता था. वह अनामिका के कमरे में बेधड़क आयाजाया करती थी.

इसी क्रम में वह कृष्णकांत से भी बातचीत करने में काफी खुली हुई थी.

राय सिंह की पहचान इलाके में सब से शांत व्यवहार रखने वाले लोगों में थी.

फौज से रिटायर हो जाने के बाद उन्होंने प्रौपर्टी का काम कर रखा था. उस के लिए अपने घर के नीचे ही औफिस बना लिया था.

जब एकएक कर 5 लाशें उन के घर से निकल रही थीं, उस वक्त राय सिंह दिखाई नहीं दिया. लोग सोच रहे थे कि वह अचानक कहां चला गया, जबकि उन्हें बीते दिन की शाम को लोगों ने देखा था. यहां तक कि कुछ लोगों ने उसे सुबह पार्क में भी मौर्निंग वाक करते देखा था.

दूसरी तरफ गुरुग्राम थाने की पुलिस 24 अगस्त की सुबह अलसाई हुई बैठी थी. थानाप्रभारी इस बात से निश्चिंत थे कि रात शांति से गुजरी. इलाके में किसी तरह की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. उन्होंने एक कांस्टेबल को चाय लाने के लिए कहा और खुद फ्रैश होने चले गए.

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प्रेम गली अति सांकरी: भाग 2

Writer- जसविंदर शर्मा 

मैं ने मां को बुलाया. ‘उसे’ घर के बाहर पा कर मां तो भड़क गईं. वे उस पर बुरी तरह चीखनेचिल्लाने लगीं. मां ने उसे धमकाया कि अगर ‘वह’ दोबारा इधर दिखी तो वे पुलिस को बुला लेंगी. ‘वह’ शांत बनी नीची नजर से धरती की तरफ देखती रही. उस की आंखें हमारे घर के अंदर कुछ ढूंढ़ रही थीं. उसे पता था कि मेरे पापा अंदर ही होंगे.

मां के इस प्रहार से एक मिनट के लिए तो वह घबरा गई. वह कुछ कहना चाहती थी मगर मां ने उसे मुंह खोलने का अवसर ही नहीं दिया. उस ने अपमान का कड़वा घूंट चुपचाप पी लिया.

वह चुपचाप वापस चली गई. पिछले एक सप्ताह से मां और पापा के बीच ‘उसे’ ले कर घमासान चल रहा था. पापा औफिस नहीं गए थे. मां उन्हें बाहर जाने नहीं दे रही थीं. सो, वह उन का पता करने आई थी. उस नादान उम्र में मैं साफ नहीं जान पाती थी कि बड़े लोग एकदूसरे के साथ कैसेकैसे खेल खेलते हैं. उन का व्यवहार हम बच्चों की समझ से बाहर था.

पापा की इस लंपट प्रवृत्ति के कारण हमारे घर में सदा शीतयुद्ध छिड़ा रहता था. पापा के अन्य स्त्रियों से भी अनैतिक संबंध थे और मां ने अपने विवाहित जीवन के पहले 10 वर्ष पापा की इन इश्कमिजाज पहेलियों को सुलझाने में ही होम कर दिए थे. रोमांस उन के जीवन से कोसों दूर था.

मां गोरीचिट्टी और जहीन दिमाग की भद्र महिला थीं. मगर पापा को तो तीखी व तुर्श स्त्रियां भाती थीं. पापा तो मां की सहेलियों से भी रोमांटिक संबंध बना लेते और फोन पर बतियाते रहते. मां किसकिस सौतन से उन का बचाव करतीं.

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‘वह’ पापा के रोमांस की धुरी बन कर रह गई. पापा उस से बहुत ज्यादा हद तक ‘इन्वौल्व’ थे. ‘उस के’ लिए वे मां व हम बच्चों को छोड़ देने को तैयार थे. मां ने कई बार पापा को छोड़ देने की बात की, कोशिश भी की.

पापा ने उन्हें उकसाया भी मगर 90 के दशक में एक मध्यवर्ग की औरत के लिए इतना आसान नहीं था कि वह एक आवारा भंवरेरूपी पति से छुटकारा पा सके और खासकर तब जब उस के 3 बच्चे हों.

पापा सच में शैतान का अवतार थे. उन्होंने एक ही समय में 2-2 औरतों को गर्भवती बना दिया था. मां के साथ तो चलो ठीक था, वे उन की कानूनी पत्नी थीं मगर ‘उसे’ अपनी हवस का शिकार बना कर कहीं का नहीं छोड़ा.

अपना बढ़ता हुआ पेट ले कर वह कहीं नहीं जा सकती थी. औफिस से उस ने छुट्टी ले रखी थी. आसपड़ोस में बदनामी हो रही थी. ‘उस के’ मांबाप ने उसे काफी साल पहले त्याग दिया था. वे उस की शादी अच्छी जगह करना चाहते थे मगर पापा से रोमांटिक तौर पर जुड़ने के चलते ‘उस ने’ आने वाले रिश्तों को ठुकरा दिया था.

‘उस में’ बला की हिम्मत थी और गजब का आत्मविश्वास. जब उस ने फैसला किया कि वह पापा के नाजायज बच्चे को जन्म देगी तो पापा ने उसे कितना समझाया होगा मगर वह बच्चा गिराने के पक्ष में नहीं थी. बेचारी को तब पता नहीं था कि उस का सामना कितने बड़े तूफान से होने वाला था. मगर उसे यों गुमनामी के अंधेरों में धकेला जाना अच्छा नहीं लगा. उस ने जम कर संघर्ष करना शुरू कर दिया था.

वह 25 बरस की थी और पापा 40 पार कर चुके थे. ‘उस में’ इतनी समझ तो थी ही कि ‘वह’ एक बंद गली के पार नहीं जा पाएगी मगर अब जब उस ने पापा से प्यार कर ही लिया था तो पीछे किस तरफ लौटती.

पापा अभी हम लोगों को छोड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. एक कुंआरी लड़की का मां बनने का यह साहसभरा फैसला विवाहित लोगों के लिए चुनौती ही था क्योंकि सिंगल पेरैंट बनने की यह आधुनिक संकल्पना अभी काफी दूर थी.

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पापा ने मां और हम से कड़ी बेरुखी दिखानी शुरू कर दी थी. वे अपनी मिस्ट्रैस को ज्यादा तवज्जुह देने लगे थे. जब मेरा छोटा भाई मां के पेट में था तब पापा कईकई दिन घर से बाहर रहते. जब बच्चा पैदा हुआ तब हमारे पड़ोस की आंटी मां के पास अस्पताल में थीं. मां को पता था कि पापा कहां हैं और किस के पास हैं.

बच्चा पैदा होने के 2 सप्ताह बाद पापा घर लौटे. मां ने पापा को बुलाना बंद कर दिया था. कोई वादप्रतिवाद नहीं हुआ. पापा को इस से कुछ ज्यादा ही शह मिली. अब उन्होंने अपना समय इस तरह बांट लिया था कि ज्यादा समय वे ‘उस के’ साथ बिताते.

अगर हमारे पास कुछ ज्यादा समय के लिए ठहर जाते तो उन की मिस्ट्रैस उन्हें ढूंढ़ते हुए हमारे घर पहुंच जाती. अगर पापा अपनी चहेती के घर ज्यादा दिनों तक टिके रहते तो मां कभी उन की छानबीन न करतीं. पापा घर में न होते तो घर में शांति बनी रहती.

पापा आते और सारी की सारी सैलरी मां को सौंप देते. ‘वह’ नौकरी करती थी, सो पापा का सारा खर्च वही उठाती थी. मां ने कभी पैसे की तंगी नहीं झेली. अच्छा मकान था और अच्छी आय, साथ में सारे बच्चे भी मां की तरफ ही थे.

मां ने पापा को इधरउधर मुंह मारने के लिए लंबी रस्सी थमा रखी थी और मन ही मन उन्हें पता भी था कि थकहार कर एक दिन उन का पति पूरी तरह उन के पास लौट आएगा. मां ने अगर पापा के साथ सख्त रवैया अपनाया होता तो हो सकता था कि पापा इतनी देर तक लंपट नहीं रहते. मां के ढुलमुल रवैये के कारण पापा बेलगाम होते गए.

और तभी मां के सब्र का प्याला भर गया. मां और पापा में एक दिन खूब झगड़ा हुआ. मां ने बताया कि पापा उस से जबरदस्ती करना चाहते थे. मां भड़क गईं, ‘उसे’ भलाबुरा कहने लगीं. पापा ने हाथ चला दिया तो मां ने आसमान सिर पर उठा लिया.

मैं स्कूल से घर आई तो पाया कि मां घर पर नहीं हैं. पापा मेरे छोटे भाई की नैपी बदल रहे थे. उन की हालत काफी दयनीय थी. मैं ने दबी जबान में पूछा, ‘मां कहां हैं?’

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पापा का सख्त व रूखा जवाब था, ‘चली गई है.’

मेरे पैरों तले जमीन डोल गई. कांपती आवाज में मैं ने फिर पूछा, ‘मां कहां चली गईं?’

पापा का गुस्से से भरा उत्तर था, ‘बस चली गई.’

पापा ने हम दोनों बहनों के लिए खाना बनाया जो हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगा. पिछले कितने महीनों से पापा हम से बेरुखी से बात करते थे.

घर का मालिक अपनी कमाई से परिवार के लिए सुविधाएं जुटाता है और इस के जरिए अपनी ताकत बढ़ाता है और इसी ताकत के आगे गिरवी पड़ी रहती है बच्चों की मां. हमारे लिए तो मां ही सबकुछ थीं. अब मां पता नहीं कहां होंगी. कहीं नानी के पास तो नहीं चली गईं. वहां तो जाने में ही 2 दिन लगते हैं और आने में भी समय लगता है. इतने दिनों तक हम कैसे रहेंगी? क्या पापा उन्हें मना कर लाएंगे?

अगले दिन भी मां नहीं लौटीं तो हम दोनों बहनों की चिंता बढ़ गई. पापा ने पिछले कई महीनों में हम से ढंग से बात नहीं की थी. हम तैयार हो कर स्कूल चली गईं. पापा ने घर की चाबियां पड़ोस में दीं व हमारे छोटे भाई को ले कर चले गए और रातभर नहीं लौटे.

पड़ोस की आंटी ने हमें खाना खिलाया. मां की हमें बुरी तरह याद आ रही थी. पता नहीं उन से मिलना हो पाएगा या नहीं.

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