तलाक के बाद शादी- भाग 1: देव और साधना आखिर क्यों अलग हुए

न्यायाधीश ने चौथी पेशी में अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘आप दोनों का तलाक मंजूर किया जाता है.’’ देव और साधना अलग हो चुके थे. इस अलगाव में अहम भूमिका दोनों पक्षों के मातापिता, जीजा की थी.

दोनों के मातापिता इस विवाह से खफा थे. दोनों अपने बच्चों को कोसते रहे विवाह की खबर मिलने से तलाक के पहले तक. दूसरी जाति में शादी. घरपरिवार, समाज, रिश्तेदारों में नाक कटा कर रख दी. कितने लाड़प्यार से पालपोस कर बड़ा किया था. कितने सपने संजोए थे. लेकिन प्रेम में पगलाए कहां सुनते हैं किसी की. देव और साधना दोनों बालिग थे और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करते थे साथसाथ. एकदूसरे से मिलते, एकदूसरे को देखते कब प्रेम हो गया, उन्हें पता ही न चला. फिर दोनों छिपछिप कर मिलने लगे. प्रेम बढ़ा और बढ़ता ही गया. बात यहां तक आ गई कि एकदूसरे के बिना जीना मुश्किल होने लगा.

वे जानते थे कि मध्यवर्गीय परिवार में दूसरी जाति में विवाह निषेध है. बहुत सोचसमझ कर दोनों ने कोर्टमैरिज करने का फैसला किया और अपने कुछेक दोस्तों को बतौर गवाह ले कर रजिस्ट्रार औफिस पहुंच गए. शादीशुदा दोस्त तो बदला लेने के लिए सहायता करते हैं और कुंआरे दोस्त यह सोच कर मदद करते हैं मानो कोई भलाई का कार्य कर रहे हों. ठीक एक माह बाद विवाह हो गया. उन दोनों के वकील ने पतिपत्नी और गवाहों को अपना कार्ड देते हुए कहा, ‘यह मेरा कार्ड. कभी जरूरत पड़े तो याद कीजिए.’

‘क्यों?’ देव ने पूछा था.

वकील ने हंसते हुए कहा था, ‘नहीं, अकसर पड़ती है कुंआरों को भी और शादीशुदा को भी. मैं शादी और तलाक दोनों का स्पैशलिस्ट हूं.’

वकील की बात सुन कर खूब हंसे थे दोनों. लेकिन उन्हें क्या पता था कि वकील अनुभवी है. कुछ दिन हंसतेगाते बीते. फिर शुरू हुई असली शादी., जिस में एकदूसरे को एकदूसरे की जलीकटी बातें सुननी पड़ती हैं. सहना पड़ता है. एकदूसरे की कमियों की अनदेखी करनी पड़ती है. दुनिया भुला कर जैसे प्रेम किया जाता है वैसे ही विवाह को तपोभूमि मान कर पूरी निष्ठा के साथ एकदूसरे में एकाकार होना पड़ता है. प्रेम करना और बात है. लेकिन प्रेम निभाने को शादी कहते हैं. प्रेम तो कोई भी कर लेता है. लेकिन प्रेम निभाना जिम्मेदारीभरा काम है.

दोनों ने प्रेम किया. शादी की. लेकिन शादी निभा नहीं पाए. छोटीछोटी बातों को ले कर दोनों में तकरार होने लगी. साधना गुस्से में कह रही थी, ‘शादी के पहले तो चांदसितारों की सैर कराने की बात करते थे, अब बाजार से जरूरी सामान लाना तक भूल जाते हो. शादी हुई या कैद. दिनभर औफिस में खटते रहो और औफिस के बाद घर के कामों में लगे रहो. यह नहीं कि कोई मदद ही कर दो. साहब घर आते ही बिस्तर पर फैल कर टीवी देखने बैठ जाते हैं और हुक्म देना शुरू पानी लाओ, चाय लाओ, भूख लगी है. जल्दी खाना बनाओ वगैरा.’

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देव प्रतिउत्तर में कहता, ‘मैं भी तो औफिस से आ रहा हूं. घर का काम करना पत्नी की जिम्मेदारी है. तुम्हें तकलीफ हो तो नौकरी छोड़ दो.’

‘लोगों को मुश्किल से नौकरी मिलती है और मैं लगीलगाई नौकरी छोड़ दूं?’

‘तो फिर घर के कामों का रोना मुझे मत सुनाया करो.’

‘इतना भी नहीं होता कि छुट्टी के दिन कहीं घुमाने ले जाएं. सिनेमा, पार्टी, पिकनिक सब बंद हो गया है. ऐसी शादी से तो कुंआरे ही अच्छे थे.’

‘तो तलाक ले लो,’ देव के मुंह से आवेश में निकल तो गया लेकिन अपनी फिसलती जबान को कोस कर चुप हो गया.

तलाक का शब्द सुनते ही साधना को रोना आ गया. अचानक से मां का फोन और अपनी रुलाई रोकने की कोशिश करते हुए बात करने से मां भांप गईं कि बेटी सुखी नहीं है. साधना की मां दूसरे ही दिन बेटी के पास पहुंच गई. मां के आने से साधना ने अवकाश ले लिया. देव काम पर चला गया. मां ने कहा, ‘मैं तुम्हारी मां हूं. फोन पर आवाज से ही समझ गई थी. अपने हाथ से अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है तुम ने. अगर दुखी है तो अपने घर चल. अभी मातापिता जिंदा हैं तुम्हारे. दिखने में सुंदर हो, खुद कमाती हो. लड़कों की कोई कमी नहीं है जातसमाज में. अपनी बड़ी बहन को देखो, कितनी सुखी है. पति साल में 4 बार मायके ले कर आता है और आगेपीछे घूमता है. एक तुम हो. तुम्हें परिवार से अलग कर के शादी के नाम पर सिवा दुख के क्या मिला.’

पति की बेरुखी और तलाक शब्द से दुखी पत्नी को जब मां की सांत्वना मिली तो वह फूटफूट कर रोने लगी. मां ने उसे सीने से लगा कर कहा, ‘2 वर्ष से अपना मायका नहीं देखा. अपने पिता और बहन से नहीं मिली. चलो, घर चलने की तैयारी करो.’

साधना ने कहा, ‘मां, लेकिन देव को बताए बिना कैसे आ सकती हूं. शाम को जब मैं घर पर नहीं मिलूंगी तो वे क्या सोचेंगे.’

मां ने गुस्से में कहा, ‘जिस आदमी ने कभी तुम्हारी खुशी के बारे में नहीं सोचा उस के बारे में अब भी इतना सोच रही हो. पत्नी हो, गुलाम नहीं. फोन कर के बता देना.’ साधना अपनी मां के साथ मायके आ गई.

शाम को जब देव औफिस से लौटा तो घर पर ताला लगा पाया. दूसरी चाबी उस के पास रहती थी. ताला खोल कर फोन लगाया तो पता चला कि साधना अपने मायके से बोल रही है.

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देव ने गुस्से में कहा, ‘ तुम बिना बताए चली गई. तुम ने बताना भी जरूरी नहीं समझा.’

‘मां के कहने पर अचानक प्रोग्राम बन गया,’ साधना ने कहा.

देव ने गुस्से में न जाने क्याक्या कह दिया. उसे खुद ही समझ नहीं आया कहते वक्त. बस, क्रोध में बोलता गया. ‘ठीक है. वहीं रहना. अब यहां आने की जरूरत नहीं. मेरा तुम्हारा रिश्ता खत्म. आज से तुम मेरे लिए मर…’

उधर से रोते हुए साधना की आवाज आई, ‘अपने मायके ही तो आई हूं. वह भी मां के साथ. उस में…’ तभी साधना की मां ने उस से फोन झपटते हुए कहा, ‘बहुत रुला लिया मेरी लड़की को. यह मत समझना कि मेरी बेटी अकेली है. अभी उस के मातापिता जिंदा हैं. एक रिपोर्ट में सारी अकड़ भूल जाओगे.’

Manohar Kahaniya: सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

2अक्तूबर को देश भर में रस्मी तौर पर ही गांधी जयंती मनी थी. इस दिन लोगों को छुट्टी होने की खुशी ज्यादा रहती है, गांधी और उन के विचारों से कोई वास्ता नहीं रखता, जिन में से एक यह नसीहत भी है कि नशा खासतौर से युवाओं को बरबाद कर रहा है. इस दिन देश भर में ड्राई डे भी रहता है, इसलिए शराब की सभी दुकानें और ठेके बंद रहते हैं.

अगले दिन चूंकि इतवार था, इसलिए नशेडि़यों ने अपने कोटे का इंतजाम पहले से ही कर रखा था. इसी दिन देर रात मुंबई से गोवा के लिए कार्डेलिया नाम का क्रूज रवाना हुआ था जोकि एक रुटीन की बात थी.

वाटरवेज लीजर टूरिज्म प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कर्मचारियों को उम्मीद रही होगी कि वीकेंड होने के चलते क्रूज पर रोज के मुकाबले भीड़भाड़ ज्यादा रहेगी, लेकिन लगभग 1300 पैसेंजर ही आए. जबकि क्रूज की क्षमता 1800 लोगों की है.

आजकल लोग क्रूज पर पार्टियां खूब करने लगे हैं. यह तेजी से पनपता नया फैशन है, इसलिए क्रूज जैसे ही मुंबई से कुछ किलोमीटर दूर पहुंचा तो पार्टियों का दौर शुरू हो गया. एक खास पार्टी सलीके से शुरू भी नहीं हो पाई थी कि क्रूज पर हड़कंप मच गया. हुआ यह था कि कुछ युवाओं ने ड्रग्स लेनी शुरू कर दी थी.

इन पर नशा भी सलीके से नहीं चढ़ा था कि एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के कर्मचारियों, अधिकारियों ने इन की धरपकड़ शुरू कर दी.

दरअसल, यह एनसीबी की टीम की सुनियोजित मुहिम थी इसलिए टीम के सदस्य सिविल कपड़ों में साधारण यात्रियों की तरह तट से ही क्रूज पर सवार हुए थे.  इस मुहिम की अगुवाई एनसीबी के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े कर रहे थे, जो बौलीवुड के ड्रग्स कनेक्शन का भंडाफोड़ करने के लिए जाने जाते हैं. उन्हें लगातार मुखबिर खबर दे रहे थे कि इन दिनों नामी फिल्मी हस्तियां क्रूज पर रेव पार्टियां करने लगी हैं.

उन्होंने सारा प्लान बनाया और इस रात कार्डेलिया पर धावा बोल दिया. देखते ही देखते 8 नाजुक खूबसूरत युवा, जिन में एक थोड़ी उम्रदराज सहित 3 युवतियां भी थीं, उन की गिरफ्त में थे, जिन का सारा नशा एनसीबी की टीम को देख छूमंतर हो गया था.

इन लोगों की जामातलाशी में 13 ग्राम कोकीन, 21 ग्राम चरस, 5 ग्राम एमडी और एमडीएमए की 22 गोलियां बरामद हुईं. यानी सूचना गलत नहीं थी. लेकिन पकड़े गए आरोपियों में कोई नामीगिरामी फिल्मी हस्ती नहीं थी. यह तो पूछताछ के बाद उजागर हुआ कि इन में से एक अभिनेता शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी है.

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क्रूज पर तलाशी में पकड़े न जाएं, इसलिए ये युवा नशीले पदार्थ जूतों और अंडरगारमेंट्स में छिपा कर ले गए थे. जबकि लड़कियों ने इन्हें अपने पर्स में रखा था. उम्रदराज महिला तो ड्रग्स को सेनेटरी पैड में छिपा कर क्रूज पर ले गई थी.

इस वक्त आधी रात बीत चुकी थी, लेकिन सुबह जैसे ही यह पता चला कि पकडे़ गए युवाओं में से एक शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी है तो मीडिया वाले एनसीबी के दफ्तर की तरफ दौड़ लगाते नजर आए और दोपहर तक मामले को इतना हाईप्रोफाइल बना दिया कि उस दिन की दूसरी तमाम

अहम खबरें और घटनाएं इस के नीचे दब कर रह गईं. जिन में से एक मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र द्वारा 4 किसानों को कार से रौंदे जाने का भी था.

आर्यन की खबर ज्यादा बिकाऊ और चलताऊ थी, इसलिए उसे लगातार दिखाया गया और इतना भुनाया गया कि देखने वाले बिना कोई ड्रग लिए ही झूमने लगे.

ऐसा छापा कोई नई बात नहीं थी, लेकिन चूंकि इस में एक स्टार किड शामिल था इसलिए न्यूज चैनल्स को तिल का ताड़ बनाने का एक और मौका मिल गया. आर्यन के बारे में जानकारी छनछन कर बाहर आने लगी और उस के साथियों की भी जन्मकुंडली खंगाली जाने लगी.

शाहरुख खान के घर मन्नत के बाहर भी मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लग गया. अब एनसीबी क्या कर रही है और आगे क्याक्या हो सकता है, ये बातें सड़कछाप ज्योतिषी के तोते की तरह बांची गईं.

इस वक्त तक उम्मीद की जा रही थी कि आर्यन को मामूली पूछताछ के बाद छोड़ दिया जाएगा, लेकिन जैसे ही अधिकारियों की टीम सवालजवाब के लिए अंदर गई तो समझने वाले समझ गए कि ड्रामा अभी और लंबा खिंचेगा.

कच्चे खिलाडि़यों की नशेड़ी टीम

आर्यन के साथ गिरफ्तार किए गए अरबाज मर्चेंट, मुनमुन धमेचा, नूपुर सारिका, इसमीत सिंह, मोहक जसवाल, विक्रांत छोकर और गोमित चोपड़ा बहुत जानेमाने नाम नहीं हैं. मुनमुन वही उम्रदराज महिला है, जिस ने सेनेटरी नैपकिन में ड्रग्स छिपाई थी.

फैशन इंडस्ट्री से जुड़ी यह खूबसूरत महिला कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश के सागर शहर के गोपालगंज मोहल्ले में रहा करती थी. अपनी स्कूली पढ़ाई उस ने यहीं से पूरी की थी. उस का परिवार बिजनैस से ताल्लुक रखता है. भाई प्रिंस धमेचा दिल्ली में कार्यरत है.

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कुछ न होते हुए भी उस के फिल्म इंडस्ट्री में कई हस्तियों से अच्छे संबंध हैं. आर्यन कैसे उस के संपर्क में आया, यह पूरी जांच और मुकदमे के बाद साफ होगा.

पकड़ा गया दूसरा मुख्य आरोपी 25 वर्षीय अरबाज मर्चेंट मुंबई का जानामाना टिंबर कारोबारी है, जिस की 2 कंपनियां स्वदेश टिंबर और सिमला एजेंसीज हैं. यह उस का पुश्तैनी कारोबार है.

अरबाज ने बांद्रा के आर.डी. नैशनल कालेज से बैचलर इन मैनेजमेंट स्टडीज की पढ़ाई की थी. उस के पिता असलम मर्चेंट पेशे से वकील हैं. अरबाज और आर्यन की दोस्ती बहुत पुरानी है और दोनों ने देशविदेश की कई यात्राएं साथसाथ की हैं. दोनों पार्टियों में भी संग दिखते थे. मुनमुन कौन है, यह अरबाज भी नहीं जानता.

मोहक और नूपुर दोनों पेशे से फैशन डिजायनर हैं, जबकि गोमित हेयर स्टाइलिस्ट है. ये तीनों ही दिल्ली के रहने वाले हैं. नूपुर ने भी मुनमुन की तरह ड्रग्स सेनेटरी नेपकिन में छिपाई थी.

ये ड्रग्स उसे मोहक ने दी थीं, लेकिन मोहक के पास ड्रग्स कहां से आई, यह अभी पता नहीं चला है और यही सारे फसाद की जड़ है कि एनसीबी या दूसरी कोई एजेंसी ड्रग माफियाओं की जड़ तक कभी नहीं पहुंच पाती. हर बार वे फूलपत्तियां ही तोड़ती रही हैं.

इस मामले में भी छोटी मछलियां ही पकड़ाई हैं, मगरमच्छों के तो किसी को अतेपते नहीं.

जाहिर है कि ये सब के सब कच्चे और नए खिलाड़ी ड्रग्स के मायाजाल के थे, जो सिर्फ मौजमस्ती की गरज से गोवा जा रहे थे. एनसीबी के सामने इन की घिग्घी बंधी हुई थी क्योंकि हिरासत में लेते वक्त ही इन के मोबाइल फोन भी जब्त कर लिए गए थे, जिस से इन का संपर्क बाहरी दुनिया और खासतौर से उन पेरेंट्स से कट गया था, जिन के बारे में ये सोचते यह होंगे कि उन के मांबाप बहुत रईस और रसूख वाले हैं, लिहाजा इन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

अब तक ऐशोआराम में पलेबढ़े इन रईसजादों को पहली बार यह समझ आया कि कानून के सामने कोई रसूख या शोहरत नहीं चलती, जिस के कि ये आदी बचपन से ही हो चुके थे.

लंबी पूछताछ में लगता नहीं कि ये नातजुर्बेकार युवा कोई झूठ बोल पाए होंगे. एनसीबी की टीम तो इन की मानसिकता समझ रही थी, लेकिन ये लोग नहीं समझ पा रहे थे कि इस चूहेदानी से निकलना अब आसान काम नहीं.

उस वक्त ये सभी यही दुआ मांग रहे होंगे कि एनसीबी वाले पूछताछ जल्द खत्म कर हमें छोड़ दें, जिस से वे घर जा कर आराम से एयर कंडीशंड कमरों में सोएं और पार्टी की रात और बात को एक बुरे सपने की तरह भूल जाएं.

मुमकिन है इन नवोदित नशेडि़यों ने तभी कान पकड़ कर तौबा कर ली हो कि अब कभी क्रूज पार्टी तो दूर आम पार्टियों में भी ड्रग्स नहीं लेंगे.

डायरेक्टर बनाम लायर

लेकिन इन के हाथ में अब कुछ बचा नहीं था. अदालत ने पहले 3 दिनों का रिमांड दिया फिर उसे 14 दिनों तक और बढ़ा दिया तो और सनसनी और रोमांच मचने लगे. सीधेसीधे लोगों की नजरें समीर वानखेड़े और आर्यन के वकील सतीश मानशिंदे पर जा टिकीं कि इस बार कौन किस पर भारी पड़ता है.

वानखेड़े की मंशा आरोपियों को ज्यादा से ज्यादा दिन हिरासत में रखने की थी तो मानशिंदे की पूरी कोशिश अपने मुवक्किल आर्यन खान को जमानत दिलाने की थी.

समीर वानखेड़े एक सख्त और तेजतर्रार अफसर हैं जिन के खाते में कई बौलीवुड हस्तियों के खिलाफ काररवाई करने का रिकौर्ड, वह भी ड्रग्स के मामले में करने का, दर्ज है.

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विश्वासघात- भाग 2: आखिर क्यों वह विशाल से डरती थी?

शेफाली की आवाज ने नमिता को एक बार फिर विचारों के बवंडर से बाहर निकाला.

‘‘हां, बेटी, बस अभी आई,’’ कहते हुए पर्स में कुछ रुपए यह सोच कर रखे कि मैं बड़ी हूं, आखिर मेरे होते हुए पिक्चर के पैसे वे दें, उचित नहीं लगेगा.

जबरदस्ती पिक्चर के पैसे उन्हें पकड़ाए. पिक्चर अच्छी लग रही थी…कहानी के पात्रों में वह इतना डूब गईं कि समय का पता ही नहीं चला. इंटरवल होने पर उन की ध्यानावस्था भंग हुई. शशांक उठ कर बाहर गया तथा थोड़ी ही देर में पापकार्न तथा कोक ले कर आ गया, शेफाली और उसे पकड़ाते हुए यह कह कर चला गया कि कुछ पैसे बाकी हैं, ले कर आता हूं.

पिक्चर शुरू भी नहीं हो पाई थी कि बच्चा रोने लगा.

‘‘आंटी, मैं अभी आती हूं,’’ कह कर शेफाली भी चली गई…आधा घंटा हुआ, 1 घंटा हुआ पर दोनों में से किसी को भी न लौटते देख कर मन आशंकित होने लगा. थोड़ीथोड़ी देर बाद मुड़ कर देखतीं पर फिर यह सोच कर रह जातीं कि शायद बच्चा चुप न हो रहा हो, इसलिए वे दोनों बाहर ही होंगे.

यही सोच कर नमिता ने पिक्चर में मन लगाने का प्रयत्न किया…अनचाहे विचारों को झटक कर वह फिर पात्रों में खो गईं….अंत सुखद था पर फिर भी आंखें भर आईं….आंखें पोंछ कर इधरउधर देखने लगीं….इस समय भी शशांक और शेफाली को न पा कर वह सहम उठीं.

बहुत दिनों से नमिता अकेले घर से निकली नहीं थीं अत: और भी डर लग रहा था. समझ में नहीं आ रहा था कि वे उन्हें अकेली छोड़ कर कहां गायब हो गए, बच्चा चुप नहीं हो रहा था तो कम से कम एक को तो अब तक उस के पास आ जाना चाहिए…धीरेधीरे हाल खाली होने लगा पर उन दोनों का कोई पता नहीं था.

घबराए मन से वह अकेली ही चल पड़ीं. हाल से बाहर आ कर अपरिचित चेहरों में उन्हें ढूंढ़ने लगीं. धीरेधीरे सब जाने लगे. वह एक ओर खड़ी हो कर सोचने लगीं, अब क्या करूं, उन का इंतजार करूं या आटो कर के चली जाऊं.

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‘‘अम्मां, यहां किस का इंतजार कर रही हो?’’ उन को अकेली खड़ी देख कर वाचमैन ने उन से पूछा.

‘‘बेटा, जिन के साथ आई थी, वह नहीं मिल रहे हैं.’’

‘‘आप के बेटाबहू थे?’’

‘‘हां,’’ कुछ और कह कर वह बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहती थीं.

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‘‘आजकल सब ऐसे ही होते हैं, बूढे़ मातापिता की तो किसी को चिंता ही नहीं रहती,’’ वह बुदबुदा उठा था.

वह शर्म से पानीपानी हो रही थीं पर और कोई चारा न देख कर तथा उस की सहानुभूति पा कर हिम्मत बटोर कर बोलीं, ‘‘बेटा, एक एहसान करोगे?’’

‘‘कहिए, मांजी.’’

‘‘मुझे एक आटोरिकशा में बिठा दो.’’

उस ने नमिता का हाथ पकड़ कर सड़क पार करवाई और आटो में बिठा दिया. घर पहुंच कर आटो से उतर कर जैसे ही उन्होंने दरवाजे पर लगे ताले को खोलने के लिए हाथ बढ़ाया तो खुला ताला देख कर हैरानी हुई…हड़बड़ा कर अंदर घुसीं तो देखा अलमारी खुली पड़ी है तथा सारा सामान जहांतहां बिखरा पड़ा है. लाखों के गहने और कैश गायब था…मन कर रहा था कि खूब जोरजोर से रोएं पर रो कर भी क्या करतीं.

नमिता को शुरू से ही गहनों का शौक था. जब भी पैसा बचता उस से वह गहने खरीद लातीं…विशाल कभी उन के इस शौक पर हंसते तो कहतीं, ‘मैं पैसा व्यर्थ नहीं गंवा रही हूं…कुछ ठोस चीज ही खरीद रही हूं, वक्त पर काम आएगा,’ पर वक्त पर काम आने के बजाय वह तो कोई और ही ले भागा.’

किटी के मिले 20 हजार रुपए उस ने अलग से रख रखे थे. घर में कुछ काम करवाया था, कुछ होना बाकी था, उस के लिए विशाल ने 40 हजार रुपए बैंक से निकलवाए थे पर निश्चित तिथि पर लेने ठेकेदार नहीं आया सो वह पैसे भी अंदर की अलमारी में रख छोडे़ थे…सब एक झटके में चला गया.

जहां कुछ देर पहले तक वह शशांक और शेफाली को ले कर परेशान थीं वहीं अब इस नई मुसीबत के कारण समझ नहीं पा रही थीं कि क्या करें, पर फिर यह सोच कर कि शायद बच्चे के कारण शशांक और शेफाली अधूरी पिक्चर छोड़ कर घर न आ गए हों, उन्हें आवाज लगाई. कोई आवाज न पा कर  वह उस ओर गईं, वहां उन का कोई सामान न पा कर अचकचा गईं…खाली घर पड़ा था…उन का दिया पलंग, एक टेबल और 2 कुरसियां पड़ी थीं.

अब पूरी तसवीर एकदम साफ नजर आ रही थी. कितना शातिर ठग था वह…किसी को शक न हो इसलिए इतनी सफाई से पूरी योजना बनाई…उसे पिक्चर दिखाने ले जाना भी उसी योजना का हिस्सा था, उसे पता था कि विशाल घर पर नहीं हैं, इतनी गरमी में कूलर की आवाज में आसपड़ोस में किसी को कुछ सुनाई नहीं देगा और वह आराम से अपना काम कर लेंगे तथा भागने के लिए भी समय मिल जाएगा.

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पिक्चर देखने का आग्रह करना, बीच में उठ कर चले आना…सबकुछ नमिता के सामने चलचित्र की भांति घूम रहा था…कहीं कोई चूक नहीं, शर्मिंदगी या डर नहीं…आश्चर्य तो इस बात का था कि इतने दिन साथ रहने के बावजूद उसे कभी उन पर शक नहीं हुआ.

उन्होंने खुद को संयत कर विशाल को फोन किया और फोन पर बतातेबताते वह रोने लगी थीं. उन्हें रोता देख कर विशाल ने सांत्वना देते हुए पड़ोसी वर्मा के घर जा कर सहायता मांगने को कहा.

वह बदहवास सी बगल में रहने वाली राधा वर्मा के पास गईं. राधा को सारी स्थिति से अवगत कराया तो वह बोलीं, ‘‘कुछ आवाजें तो आ रही थीं पर मुझे लगा शायद आप के घर में कुछ काम हो रहा है, इसलिए ध्यान नहीं दिया.’’

‘‘अब जो हो गया सो हो गया,’’ वर्मा साहब बोले, ‘‘परेशान होने या चिंता करने से कोई फायदा नहीं है. वैसे तो चोरी गया सामान मिलता नहीं है पर कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है. चलिए, एफ.आई.आर. दर्ज करा देते हैं.’’

तांक झांक- भाग 1: क्यों शालू को रणवीर की सूरत से नफरत होने लगी?

Writer- Neerja Srivastava

वह नई स्मार्ट सी पड़ोसिन तरुण को भा रही थी. उसे अपनी खिड़की से छिपछिप कर देखता. नई पड़ोसिन प्रिया भी फैशनेबल तरुण से प्रभावित हो रही थी. वह अपने सिंपल पति रणवीर को तरुण जैसा फैशनेबल बनाने की चाह रखने लगी थी.

शाम को जब प्रिया बनसंवर कर बालकनी में पड़े झले पर आ बैठती तो तरुण चोरीछिपे उस की हर बात नोटिस करता. कितनी सलीके से साड़ी पहने चाय की चुसकियां लेते हुए किसी किताब में गुम रहती है मैडम. क्या करे मियांजी का इंतजार जो करना है और मियांजी हैं जो जरा भी खयाल नहीं रखते इस बात का. बेचारी को खूबसूरत शाम अकेले काटनी पड़ती है. काश वह उस का पति होता तो सब काम छोड़ फटाफट चला आता.

तरुण का मन गाना गाने को मचलने लगता, ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए…’ कितने ही गाने हैं हसीन शाम के ‘ये शाम मस्तानी…’ ‘‘तरु कहां हो… समोसे ठंडे हो रहे हैं,’’ तभी उसे सपनों की दुनिया से वास्तविकता के धरातल पर पटकती उस की पत्नी शालू की आवाज सुनाई दी.

आ गई मेरी पत्नी की बेसुरी आवाज… इस के सामने तो बस एक ही गाना गा सकता हूं कि जब तक रहेगा समोसे में आलू तेरा रहूंगा ओ मेरी शालू…

‘‘बालकनी में हो तो वहीं ले आती हूं,’’ शालू कपों में चाय डालते हुए किचन से ही चीखी.

‘‘उफ… नहीं, मैं आया,’’ कह तरुण जल्दी यह सोचते हुए अंदर चल दिया, ‘कहां वह स्लिमट्रिम सी कैटरीना कैफ और कहां ये हमारी मोटी भैं…’

तरुण ने कदमों और विचारों को अचानक ब्रेक न लगाए होते तो चाय की ट्रे लाती शालू से टकरा गया होता.

तरुण रोज सुबह जौगिंग पर जाता तो प्रिया वहां दिख जाती. तरुण से रहा नहीं गया. जल्द ही उस ने अपना परिचय दे डाला, ‘‘माईसैल्फ तरुण… मैं आप के सामने वाले फ्लैट…’’

‘‘हांहां, मैं ने देखा है… मैं प्रिया और वे सामने जो पेपर पढ़ रहे हैं वे मेरे पति रणवीर हैं,’’ प्रिया उस की बात काटते हुए बोली.

‘‘कभी रणवीर को ले कर हमारे घर आएं.मैं और मेरी पत्नी शालू ही हैं… 2 साल ही हुएहैं हमारी शादी को,’’ तरुण बोला.

‘‘रियली? आप तो अभी बैचलर से ही दिखते हैं,’’ प्रिया ने तरुण के मजबूत बाजुओं पर उड़ती नजर डालते हुए कहा, ‘‘हमारी शादी को भी 2 ही साल हुए हैं.’’ अपनी तारीफ सुन कर तरुण उड़ने सा लगा.

‘‘रणवीर साहब अपना राउंड पूरा कर चुके?’’

‘‘अरे कहां… जबरदस्ती खींच कर लाती हूं इन्हें घर से… 1-2 राउंड भी बड़ी मुश्किल से पूरा करते हैं.’’

‘‘यहां पास ही जिम है. मैं यहां से सीधा वहीं जाता हूं 1 घंटे के लिए.’’

‘‘वंडरफुल… मैं भी जाती हूं उधर लेडीज विंग में…  ड्रौप कर के ये सीधे घर चले जाते हैं… सो बोरिंग… चलिए आप से मिलवाती हूं शायद आप को देख उन का भी दिल बौडीशौडी बनाने का करने लगे.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं? मेरी पत्नी भी कुछ इसी टाइप की है… जौगिंग क्या वाक तक के लिए भी नहीं आती… आप मिलो न उस से. शायद आप को देख कर वह भी स्लिम ऐंड फिट बनना चाहे,’’ तरुण तारीफ करने का इतना अच्छा मौका नहीं खोना चाहता था.

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‘‘कल अपनी वाइफ को भी यहीं पार्क की सैर पर लाइएगा.’’ फिर कल आप के पति से वाइफ के साथ ही मिलूंगा.

‘‘ओके बाय,’’ उस ने अपने हेयरबैंड को ठीक करते हुए बड़ी अदा से थ हिलाया.

‘‘बाय,’’ कह कर तरुण ने लंबी सांस भरी.

तरुण जानबूझ कर उलटे राउंड लगाने लगा ताकि वह प्रिया को बारबार सामने से आता देख पाएगा. पर यह क्या पास आतेआते खड़ूस से पति की बगल में बैठ गई. ‘चल देखता हूं क्या गुफ्तगू, गुटरगूं हो रही है,’ सोच वह झडि़यों के पीछे हो लिया. ऐसे जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हो… किसी को शक न हो. वह कान खड़े कर सुनने लगा…

‘‘रणवीर आप तो बिलकुल ही ढीले हो कर बैठ जाते हो. अभी 1 ही राउंड तो हुआ आप का… वह देखो सामने से आ रहा है… अरे कहां गया… कितनी फिट की हुई है उस ने बौडी… लगातार मेरे साथ 5 चक्कर तो हो ही गए उस के अभी भी… हमारे सामने वाले घर में ही तो रहता है… आप ने देखा है क्या सौलिड बौडी है उस की…’’

‘अरे, यह तो मेरे बारे में ही बात कर रही है और वह भी तारीफ… क्या बात है…. तरु तुम तो छा गए,’ बड़बड़ा कर वह सीधा हो कर पीछे हो लिया. ‘खड़ूस माना नहीं… आलसी कहीं का… बेचारी रह गई मन मार कर… चल तरु तू भी चल जिम का टाइम हो गया है’ सोच वह जौगिंग करते हुए ही जिम पहुंच गया.

प्रिया को जिम के पास उतार कर रणवीर चला गया यह कहते हुए, ‘घंटे भर बाद लेने आ जाऊंगा… यहां वक्त बरबाद नहीं कर सकता.’

‘हां मत कर खड़ूस बरबाद… तू जा घर में बैठ और मरनेकटने की खबरें पढ़.’ मन ही मन बोलते हुए तरु ने बुरा सा मुंह बनाया, ‘और अपनी शालू रानी तो घी में तर आलू के परांठे खाखा कर सुबहसुबह टीवी सीरियल से फैशन सीखने की क्लास में मस्त खुद को निखारने में जुटी होंगी.’

दूसरे दिन तरुण शालू को जबरदस्ती प्रिया जैसा ट्रैक सूट पहना कर पार्क में ले आया.1 राउंड भी शालू बड़ी मुश्किल से पूरा कर पाई. थक कर वह साइड की डस्टबिन से टकरा कर गिर गई.

‘‘कहां हो शालू? कहां गई?’’ पुकार लोगों के हंसने की आवाजें सुन तरुण पलटा. शालू की ऐसी हालत देख उस की भी हंसी छूट गई पर प्रिया को उस ओर देखता देख खिसियाई सी हंसी हंसते हुए हाथ का सहारा दे उठा दिया.

प्रिया के आगे गोल होती जा रही शालू को देख तरुण को और भी शर्मिंदगी महसूस होती. घर पर उस ने साइक्लिंग मशीन भी ला कर रख दी पर उस पर शालू 10-15 बार चलती और फिर पलंग पर फैल जाती.

‘‘बस न तरु हो गया न आज के लिए… सुबह से कुछ नहीं खाने दिया, बहुत भूख लगी है. खाने दो  पहले आलू के परांठे प्लीज.’’ खाने के नाम से उस में इतनी फुरती आ जाती कि तरुण के छिपाए परांठे फटाफट उठा लाती और फटाफट खाने लगती.

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‘‘तुम भी खा कर तो देखो मिर्च के अचार के साथ… बड़े टेस्टी लग रहे हैं… बाद में अपना घासफूस खा लेना,’’ परांठे का टुकड़ा उस की ओर बढ़ाते हुए शालू मुसकराई.

‘‘नो थैंक्स… तुम्हीं खाओ,’’ कह तरुण डाइनिंग टेबल पर रखे कौर्नफ्लैक्स दूध की ओर बढ़ गया.शालू टीवी खोल कर बैठ गई तो तरुण बाउल ले कर अपनी विंडो पर आ गया.

Crime- बुराई: ऐसे जीजा से बचियो

दिल को दहला देने वाली यह वारदात राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव पोशाल नवपुरा की है. अधेड़ हो चले यहां के एक बाशिंदे पुरखाराम की बीवी, जिस का नाम पप्पू था, की मौत कोरोना से जून महीने में हो गई थी. तब से वह परेशान और चिंतित रहता था कि अब 4-4 बेटियों की परवरिश अकेले वह कैसे करेगा? उस की सब से बड़ी बेटी की उम्र 7 साल और सब से छोटी बेटी की उम्र महज डेढ़ साल है.

बिलाशक कोरोना के कहर ने दूसरे कई लोगों की तरह पुरखाराम की जिंदगी में भी तूफान मचा दिया था, लेकिन एक मिसाल इस गांव के लोगों ने कायम की थी, जिस का जिक्र कहीं नहीं हुआ था कि उन्होंने 2 लाख रुपए का चंदा कर के उसे दिए थे, जिस से वह अपनी बेटियों की परवरिश करते हुए उन्हें पढ़ा सके और इस सदमे से उबरते ही दोबारा काम पर जा सके.

बीवी की मौत के बाद बेटियों को ननिहाल जाना पड़ गया था और तब से वे वहीं रह रही थीं. वहां मौसी नेहा (बदला हुआ नाम) के साथ रहते हुए वे अपनी मां की मौत का दुख भूलने लगी थीं, जिन्हें लोगों ने इतना बताया था कि तुम्हारी मम्मी हमेशा के लिए दूर कहीं चली गई हैं, वरना तो ये नादान बच्चियां मौत का मतलब भी नहीं सम?ाती थीं. इन्हें फौरीतौर पर जिस प्यार, ममता और हमदर्दी की जरूरत थी, वह मौसी नेहा और मामा देवा राम से भी मिल रही थी.

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हैवान बना बाप

बीती 19 सितंबर को पुरखाराम अपनी ससुराल पहुंचा और ससुराल वालों से कहा कि वे नेहा की शादी उस से कर दें, जिस से उसे और बेटियों को सहारा मिल जाएगा. सौतेली मां से अच्छी तो सगी मौसी होती है.

ससुराल वालों के मना करने के बावजूद भी वह नेहा से ही शादी करने की जिद पर अड़ गया. कोई और बात होती तो शायद वे सोचते भी, लेकिन कुछ दिन पहले ही नेहा की शादी एक अच्छा घरवर देख कर तय कर दी गई थी, इसलिए उन्होंने साफ इनकार कर दिया था.

खुद नेहा की मरजी भी अपने जीजा से शादी करने की नहीं थी, इसलिए पुरखाराम की जवान और खूबसूरत साली को बेटियों की आड़ में पाने की ख्वाहिश अधूरी रह गई.

ससुराल से बैरंग लौटे हवस के मारे इस शख्स से यह इनकार बरदाश्त नहीं हुआ, क्योंकि वह उन लोगों में से था, जो साली को आधी घरवाली सम?ाते हैं और मौका मिले तो पूरी बनाने से भी नहीं चूकते. आतेआते वह लड़?ागड़ कर अपनी चारों बेटियों को भी साथ ले आया था. उस का घर जो ससुराल से चंद मिनटों की दूरी पर ही था, वहां आ कर उस ने एक वहशियाना फैसला ले लिया.

तिलमिलाए पुरखाराम ने फूल सी अपनी चारों बेटियों को दवा पिलाने के नाम पर उन्हें कीटनाशक जहर पानी में घोल कर पिला दिया और 1-1 कर के उन्हें घर में बनी पानी की टंकी में डाल दिया. कुछ ही देर में उन मासूमों ने दम तोड़ दिया.

पुरखाराम को यह लग रहा था कि अगर ये बेटियां नहीं होतीं, तो नेहा या कोई दूसरी लड़की उस से शादी करने के लिए तैयार हो जाती, क्योंकि कुछ गांव वालों के मुताबिक, उस ने 2 लाख रुपए शादी कराने वाले दलालों को दिए थे, लेकिन उस से कोई लड़की शादी करने को राजी नहीं हो रही थी और दलाल भी पैसे डकार कर छूमंतर हो गए थे.

साफ दिख रहा था कि पुरखाराम की नीयत और मंशा सिर्फ जैसे भी हो जल्द से जल्द शादी कर लेने की थी. मासूम बेटियों की तो उसे चिंता ही नहीं थी, अगर होती तो वह इतनी बेरहमी से उन की हत्या नहीं करता.

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इस वारदात को अंजाम देने के बाद पुरखाराम को लगा कि वह पकड़ा जाएगा, तो डर के मारे उस ने भी जहर पी लिया और उसी टंकी में कूद गया, लेकिन कुछ लोगों ने उसे देख लिया और बचा लिया, पर टंकी में 4 मासूमों की लाशें देख कर गांव में कोहराम मच गया.

पुलिस आई तो बच्चियों की लाशें पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दी गईं और पुरखाराम को इलाज के लिए अस्पताल में भरती करा दिया गया.

सालियां क्या करें

नेहा ने कोई गलत फैसला नहीं लिया था, यह तो उस के जीजा की करतूत से उजागर हो ही गया, जो वहशी, जिद्दी और कमजोर भी था. हर लड़की को शादी और दूसरे निजी मामलों में फैसले लेने का हक है, लेकिन कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि मन मार कर जीजा से शादी करनी पड़ती है. कुछ मामलों में यह फैसला ठीकठाक साबित होता है, तो कइयों में गलत भी निकलता है.

विदिशा की निशा (बदला हुआ नाम) की मौत एक बीमारी के चलते हुई थी, जिस का 3 साल का बेटा था. उस के क्रियाकर्म के बाद घर और समाज वालों ने फैसला लिया कि निशा की छोटी बहन आशा (बदला हुआ नाम) को जीजा से शादी कर लेनी चाहिए. इस से बच्चा सौतेली मां की परछाईं से बचा रहेगा और खर्च भी कम होगा.

घर और समाज वालों के दबाव में आ कर आशा ने हां कर दी, क्योंकि वह अपनी बहन और उस के बेटे को बहुत चाहती थी. उस के जीजाजी भी ठीकठाक आदमी थे.

लेकिन शादी के 2 साल बाद ही बात बिगड़ने लगी, क्योंकि आशा अपनी कोख से भी बच्चे को जन्म देना चाहती थी. इस पर उस के पति यानी पहले के जीजा ने साफ इनकार कर दिया कि तुम्हारा खुद का बच्चा हो जाएगा, तो तुम मेरे बच्चे पर ध्यान नहीं दोगी और उस से सौतेला बरताव करोगी.

आशा ने पति को सम?ाने की कोशिश की कि मेरा बच्चा भी तो आप का ही होगा. इस पर वह बेरुखी से बोला कि मु?ो तो बच्चे के लिए मुफ्त की आया और खुद की सैक्स संतुष्टि के लिए एक औरत चाहिए थी, इसलिए तुम से शादी करने के लिए राजी हो गया, कोई दूसरी लाता तो दिक्कत और फसाद खड़े होते.

अब आशा को अपनी हैसियत और पति की असलियत का एहसास हुआ कि उस का तो कोई वजूद ही नहीं है, उस की भावनाओं और ख्वाहिशों के कोई माने ही नहीं हैं, वह तो एक मुफ्त की नौकरानी और किराए की मां है, जिस का काम चूल्हाचौका, घर की साफसफाई और बच्चे की परवरिश करने के अलावा रात को बिस्तर में पति को खुश करना भर है.

आशा कहती है कि अब उस के नाम के मुताबिक जिंदगी में कोई आशा ही नहीं बची है, वह तो अब चलतीफिरती लाश बन कर रह गई है.

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जीजासाली का रिश्ता बड़ा अहम और हंसीमजाक का माना जाता है, लेकिन इस में एहतियात खासतौर से सालियों को रखना जरूरी है. मसलन, ज्यादा हंसीमजाक ठीक नहीं रहता. इस के अलावा जीजा की नाजायज हरकतों को हवा देना भी महंगा पड़ता है.

कई सालियां तो जीजा से प्यार कर बैठती हैं और उन्हें अपना शरीर भी सौंप देती हैं, जो अपनी ही बहन का घर उजाड़ने और उस की खुशियों पर डाका डालने जैसी बात है. इस से साली को  भी कुछ हासिल नहीं होता और कई  बार शादी हो जाने के बाद ये नाजायज ताल्लुकात खुद का भी घर उजाड़ देते हैं.

लेकिन सिचुएशन जब नेहा और आशा जैसी हो जाए तो सालियों को अपने दिमाग से सहीगलत देखते हुए जीजा से शादी करने का फैसला लेना चाहिए, क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि जीजा एक अच्छा पति साबित होगा ही.

सत्य असत्य- भाग 4: क्या था कर्ण का असत्य

निशा सामान्य भाव से अपने बाल संवारती रही. फिर उस ने जल्दी से पर्स उठाया. मैं असमंजस में थी कि क्या उस ने पिताजी की बात नहीं सुनी? उस ने मेज पर लगा अपना नाश्ता खाया और बाहर निकल गई.

निशा के जाने के बाद पिताजी बोले, ‘‘देखो कर्ण, जिस से प्यार करते हो, जिस से दोस्ती होने का दम भरते हो, कम से कम उस के प्रति तो ईमानदार रहो. प्यार करते हो तो आगे बढ़ कर उस से कहो. दोस्त से दोस्ती निभाना चाहते हो तो अपने अहं को थोड़ा सा अलग रखना सीखो. मन में कुछ मैल आ गया है, कुछ गलत देखसुन लिया है तो झट से कह कर सचाई की तह तक जाओ. मन ही मन किसी कहानी को जन्म मत दो. अब विजय की बात ही सुन लो. मैं उस से एक बार भी नहीं मिला. तुम से झूठ ही कहता रहा और तुम उस पर क्रोध करते हुए उस से नाराज भी हो गए. अगर खुद ही बात कर ली होती तो मेरा झूठ कब का खुल गया होता. मगर नहीं, तुम तो अपनी ही अकड़ में रहे न.’’

‘‘जी,’’ भैया के साथसाथ मैं भी हैरान रह गई.

‘‘निशा से प्यार करते हो तो उसे साफसाफ सब बता दो.’’

करीब 4 बजे निशा आई. मुंहहाथ धो कर रसोई में जाने लगी, तभी पिताजी ने पूरी कहानी निशा को सुना दी, जिसे वह चुपचाप सुनती रही. हम सांस रोके उस की प्रतिक्रिया का इंतजार करते रहे. शायद सुबह उस ने सुना न हो, मैं यह खुशफहमी पाले बैठी थी.

‘‘बेटी, क्या तुम यह सब जानती थीं?’’ पिताजी उस की तटस्थता पर हैरान रह गए.

निशा ने ‘हां’ में गरदन हिला दी.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ पिताजी उठ कर उस के पास गए तो निशा एकाएक रो पड़ी, फिर संभलते हुए बोली, ‘‘उस दिन जब मैं घर की सफाई कर के लौटी थी…’’ इतना कह कर वह रोने लगी तो पिताजी उठ कर बाहर चले गए. उस के बाद किसी ने उस से कोई बात न की.

थोड़ी देर बाद मुझे निशा की आवाज सुनाई दी, ‘‘गीता, मैं सुबह अपने घर चली जाऊं?’’

मैं ने चौंक कर उस की ओर देखा तो वह बोली, ‘‘अब नौकरी मिल गई है न. और फिर जब जीना है तो अकेले रहने की आदत तो डालनी ही होगी. यहां कब तक रहूंगी?’’

शीघ्र ही उस ने अटैची और बैग तैयार कर लिया और बोली, ‘‘मैं जाती हूं. चाचाजी से मिल कर जाने की हिम्मत नहीं है. वे आएं तो बता देना.’’

मैं ने भैया को पुकारना चाहा कि उसे वे जा कर छोड़ आएं, परंतु निशा ने मना कर दिया. शायद वह भैया की सूरत भी नहीं देखना चाहती थी. रोते हुए उस ने अटैची उठाई और भारी बैग कंधे पर लादे चुपचाप चली गई. अवरुद्ध कंठ से मैं कुछ भी न कह पाई.

निशा के जाने के बाद पिताजी उदास से रहने लगे थे. मगर जो हालात बन गए थे, उन में वे कुछ नहीं कर सकते थे. उस रात मुझे नींद नहीं आई. अलमारी सहेजने लगी तो निशा के घर की दूसरी चाबी हाथ लग गई.

मैं ने वह चाबी भैया के सामने रख दी और कहा, ‘‘अभी तक सोए नहीं?’’

वे सूनीसूनी आंखों से मुझे निहारते रहे.

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‘‘जाओ, निशा को ले आओ. अधिकार से हाथ पकड़ कर, क्षमा मांग कर. जैसे भी आप को अच्छा लगे. यह उस के घर की चाबी है.’’

‘‘क्या पागल हो गई हो?’’

‘‘मैं भी साथ चलती हूं. उस से क्षमा मांग लेना. उसे अपने प्यार का विश्वास दिलाना.’’

‘‘बस गीता, बस. अब और नहीं,’’ भैया ने डबडबाई आंखों से मेरी ओर देखा.

इसी तरह 3 हफ्ते बीत गए. एक शाम मां ने भैया से कहा, ‘‘कर्ण, कहीं तुम्हारी शादी की बात चलाएं?’’

‘‘नहीं, मैं शादी नहीं करूंगा.’’

तभी पिताजी बोल उठे, ‘‘अच्छी बात है, मत करना शादी, मगर मेरा एक काम जरूर करना. अगर मुझे कुछ हो गया तो कम से कम अपनी बहन का ब्याह जरूर कर देना.’’

रात को मां की आवाज सुनाई दी. ‘‘निशा कैसी रूखी है, जब से गई है, एक बार फोन तक भी नहीं किया.’’

‘‘तो क्या तुम उस से मिलने गईं? इन दोनों में से कोई एक भी गया उसे देखने?’’ पिताजी ऊंची आवाज में बोले, ‘‘किसी दूसरे से अपेक्षा करना बहुत आसान है, कभी अपना दायित्व भी सोचा है तुम लोगों ने?’’

सुबहसुबह पिताजी के स्वर ने मुझे चौंका दिया, ‘‘गीता, कर्ण कहां है? उस की मोटरसाइकिल भी नहीं है. कहीं गया है क्या?’’

‘‘मैं हड़बड़ा कर उठी. लपक कर देखा, अलमारी में वह चाबी भी नहीं थी. मन एक आशंका से कांप उठा कि भैया कहीं निशा का कुछ अनिष्ट न कर बैठें.’’

पिताजी ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘वह कहां गया है. तुम से कुछ कहा?’’

‘‘कहा तो नहीं, पर हो सकता है, निशा के पास…,’’ मैं ने उन से पूरी बात कह दी.

औटो से हम निशा के घर पहुंचे. वहां भैया की मोटरसाइकिल भी दिखाई न दी. धड़कते दिल से द्वार की घंटी बजा दी. हम कितनी ही देर खड़े रहे, पर द्वार नहीं खुला. पड़ोसी सुरेंद्र साहब का द्वार खटखटाया तो उन्होंने जो सुनाया, वह अप्रत्याशित था, ‘‘निशा तो महीनाभर हुआ सबकुछ छोड़छाड़़ कर चली भी गई. उस के चाचा उसे लेने आए थे.’’

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हम पितापुत्री चिंतित खड़े रह गए. फौरन घर वापस चले आए. भैया लुटेपिटे से सामने ही बैठे थे.

सोच का विस्तार- भाग 3: जब रिया ने सुनाई अपनी आपबीती

Writer- वीना त्रेहन

रात भर रिया खुद को कोस सिसकती रही और मौसी उस का सिर थपथपा तसल्ली देती रहीं. सुबह नाश्ते के बाद जारेद निधि को ले उस की डाक्टर अपौइंटमैंट पर चला गया. मौसी ने रिया को समझाया कि अच्छा होगा तुम अमन को तलाक दे नई जिंदगी की शुरुआत करो. मैं तुम्हारे मम्मीपापा से पूरी बात करूंगी. जारेद तुम्हारी पूरी मदद करेंगे.

निधि ने बेटी को जन्म दिया. नाम रखा जूली. छोटी बच्ची के आने से सब व्यस्त हो गए. इसी बीच रिया ने मम्मीपापा से बात कर उन्हें पूरी बात बता दी. सब की सलाह से तलाक के पेपर फाइल करवा दिए गए. जूली के 2 हफ्ते का होते ही आज जो व्यक्ति उन्हें घर बधाई देने आया उसे जारेद का कजन विलियम बताया गया. निधि उस से बातें करती रही. जूली नानी की गोद में सो रही थी. नाश्ते का प्रबंध रिया ने ही किया. जब जारेद बाहर से लौटे तो सब बातें करने लगे पर रिया चुप. क्या बात करे अनजाने आदमी से.

उस के जाते ही निधि ने विलियम के बारे में बताया कि पिछले साल कार ऐक्सीडैंट में पत्नी का देहांत हो गया था. अब उस की ढाई साल की बेटी की दादी, जो एक नर्स हैं, देखभाल कर रही हैं. विली यानी विलियम अकेला रहता है और आंटी उस का जल्दी ब्याह करना चाहती हैं. जारेद बीच में ही बोल पड़े कि विली बहुत अच्छा इंसान है. यदि रिया तुम उस की बेटी को अपनाने को तैयार हो तो तुम्हें उस से अच्छा साथी नहीं मिलेगा.

रिया बात पूरी सुन अपने कमरे में चली गई. क्या… 1 साल में ही शादी, तलाक, दूसरी शादी और एक बच्ची की मां. सोचतेसोचते उस का सिर घूमने लगा. चूंकि निधि भी रिया के पीछे आ गई, इसलिए उसे बेहोश होते देखा तो पकड़ कर कुरसी पर बैठा दिया. उस रात मौसी रिया के साथ सोईं.

दिखावे को रिया सो रही थी पर उस की आंखें जैसे कोई चलचित्र देख रही हों… मम्मीपापा की परेशानी, दादी की फटकार, अमन सलाखों के पीछे, विली की उस की ओर देखती आंखें, मौसी की सलाह और अचानक वह घबराहट से उठ बैठी.

मौसी ने पूछा कि क्या कोई सपना देख रही थी. सपना कहां यह तो उस की जीतीजागती कहानी है. अब रिया को स्वयं इस कहानी का अंत तलाशना है.

निधि से रिया ने 2 दिन का समय मांगा.

2 दिन बाद कठोर दिल कर उत्तर दिया कि ठीक है जैसे जारेद जीजू सोचें मुझे मंजूर है. इसी इतवार विली उस की बेटी काइरा और मां रिया से मिलने आईं. रिया किचन में नाश्ते का इंतजाम करने गई तो विली मदद करने पहुंचा. बोला कि रिया प्लीज नो प्रैशर, इफ यू ऐग्री आई प्रौमिस टू कीप यू आलवेज हैप्पी. रिया ने उस की ओर देख सिर हिलाया जैसे वह उस की कही बात से सहमत हो. उसी रात फिर फोन कर निधि के कहने पर रिया ने अपने मम्मीपापा को सहमति बताई, पर साथ ही सारी बात दादी को बताने पर जोर दिया.

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2 दिन बाद शाम को विली बेटी काइरा को ले निधि के घर पहुंचा. अकेले में रिया से मिलते हुए उस ने कहा कि वह उस के साथ इंडिया जा उस की फैमिली से मिल उन्हें पूरा विश्वास दिलाना चाहता है कि सब ठीक होगा और हां वह काइरा को भी साथ ले जाएगा.

जाने का दिन तय हुआ. जाने वाले दिन रिया को बड़ा अजीब सा लग रहा था. अभी बिना बने रिश्ते के आदमी व बच्चे के साथ यात्रा करना. प्लेन में रिया काइरा से ऐसे जुड़ गई जैसे वह उसी की बच्ची हो. उस के साथ बातें करते, खिलाते, सुलाते एक संबंध सा जुड़ गया.

एअरपोर्ट पर अकेले पापा आए. बेटी और विली को गले लगाया

और फिर बच्ची को गोद ले कर कार में बैठाया. घर पहुंच अंदर जाते ही रिया सीधी दादी के कमरे में पहुंची और उन की गोद में सिर रख सुबकसुबक कर देर तक रोती रही. दादी प्यार से सिर सहला उसे शांत रहने को कहती रहीं.

विली ने आगे बढ़ मां के चरण स्पर्श किए. वह ये सब यहां आने से पहले निधि से जान गया था. थोड़ा समय बीता तो दादी ने रिया को उसे बुलाने को कहा यानी विली से मिलना चाहा. विली ने दादी के सामने माथा टेका. यह देख रिया हैरान हुई.

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दादी ने उस के सिर पर हाथ रखते कहा कि मेरी रिया को सदा खुश रखना, सुखी रहो. दरवाजे की आड़ में काइरा को गोदी में उठाए रेखा यह देख रो पड़ीं जिस सास ने सारी उम्र छूतछात, वहमों, नियमों में अपने को बांधे रखा आज एकाएक सब भूल एक विदेशी मांसाहारी को आशीर्वाद दे रही हैं.

शायद उन की सोच का विस्तार तब हुआ था जब रिया ने फोन कर दादी को सारी बात सच बताने पर जोर दिया था. बेटे सुरेश से रिया के दुख, अमन की हरकतें, जेल जाने और अब तलाक का जान मां दुखी हो बोली थीं कि मेरी फूल सी पोती को इतनी यातना देने वाला तो राक्षस निकला. अब जेल में पड़ा सड़ता रहेगा. सुरेशजी ने मां को समझाया एक इंसान का अच्छा होना धर्मजाति पर नहीं उस के व्यवहार पर निर्भर होता है.

Satyakatha: पैसे का गुमान- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

4 साल पहले मुरादाबाद के रहने वाले नंदकिशोर से कुलदीप की मुलाकात एक वैवाहिक आयोजन के दौरान हुई थी. उस के बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे.

वैसे नंदकिशोर उर्फ नंदू चाऊ की बस्ती लाइनपार का रहने वाला था. उस के पिता मुरादाबाद रेलवे में टैक्नीशियन के पद पर थे, जो रिटायर हो चुके थे. नंदकिशोर खुद एमटेक की पढ़ाई पूरी कर एक दवा कंपनी में मैडिकल रिप्रजेंटेटिव का काम करता था. उस ने एक दवा कंपनी की फ्रैंचाइजी भी ले रखी थी और दवाओं का कारोबार शुरू किया था.

इस काम को शुरू करने के लिए उस ने 20 लाख का गोल्ड लोन ले रखा था. संयोग से लौकडाउन में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिस कारण वह लोन की किस्त नहीं जमा कर पाया था.

इस वजह से वह काफी परेशान चल रहा था. वह अपनी सारी तकलीफें कुलदीप को बताया करता था.

उस ने अपने कर्ज और किस्त नहीं जमा करने की मुसीबत भी बताई थी. उसे पता था कि कुलदीप का कारोबार अच्छी तरह से चल रहा है. इसे देखते हुए उस ने मदद के लिए उस के सामने हाथ फैला दिया.

उस से 65 हजार रुपए उधार मांगे और उसे विश्वास दिलाया कि पैसे जल्द वापस कर देगा. ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का समय लगेगा. कुलदीप ने पैसे देने से इनकार तो नहीं किया, मगर वह कई दिनों तक उसे टालता रहा.

नंदकिशोर के बारबार कहने पर कुलदीप बोला, ‘‘यार तू तो पहले से ही कर्जदार है तो मेरा 65 हजार कैसे वापस कर पाएगा? और फिर तेरी इतनी औकात अभी नहीं है.’’

यह सुन कर पहले से ही टूट चुका नंदकिशोर बहुत मायूस हो गया. उस ने केवल इतना कहा कि यदि तुम्हें नहीं देना था तो पहले दिन ही मना कर देता.

यहां तक तो ठीक था. उन की दोस्ती पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा. लेकिन कुलदीप बारबार उस के जले पर नमक छिड़कता रहा. एक दिन तो कुलदीप ने हद ही कर दी. एक पार्टी में नंदकिशोर की कई लोगों के सामने बेइज्जती कर दी.

पार्टी छोटेबड़े कारोबारियों की थी. इस में शामिल लोगों की अपनीअपनी साख थी. कौन कितनी हैसियत वाला है और कौन किस कदर भीतर से खोखला, इसे कोई नहीं जानता था. कहने का मतलब यह था कि सभी एकदूसरे की नजर में अच्छी हैसियत वाले थे.

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पार्टी के दरम्यान कोरोना काल में कई तरह के बिजनैस में नुकसान होने की बात छिड़ी, तब कुलदीप ने नंदकिशोर पर ही निशाना साध दिया.

पहले तो उस ने सब के सामने कह दिया कि वह लाखों का कर्जदार बना हुआ है. यह बात कुछ लोगों को ही मालूम थी. इस भारी बेइज्जती से नंदकिशोर तिलमिला गया. उस वक्त तो खून का घूंट पी कर रह गया.

ऐसा कुलदीप ने उस के साथ कई बार किया. नंदकिशोर ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पुलिस को बताया कि कुलदीप पैसे के घमंड में चूर था. बड़ेबड़े दावे करना, बेइज्ज्ती करना उस के लिए मनोरंजन का साधन बन गया था.

उस ने बताया कि इस से वह काफी तंग आ चुका था. तभी उस ने निर्णय लिया वह कुलदीप को सबक जरूर सिखाएगा. उस ने कसम खाई और योजना बना कर उस में अपने बुआ के लड़के कर्मवीर उर्फ भोलू और रणबीर उर्फ नन्हे को शामिल  कर लिया. कर्मवीर और रणबीर दोनों सगे भाई थे.

योजना के अनुसार, कुलदीप की हत्या से कुछ दिन पहले नन्हे को बताया कि कुलदीप ने हाल में ही अपनी पोलो कार बेची है. उस से मिले 4 लाख रुपए उस के पास हैं. पैसा हड़पने में मदद करने पर उसे भी हिस्सेदार बनाया जाएगा. नन्हे इस के लिए तैयार हो गया.

नंदकिशोर ने कुलदीप को अच्छी हालत में मारुति स्विफ्ट कार दिलवाने का सपना दिखाया. उसी कार को दिखाने के बहाने से वह 4 जून, 2021 को अपनी बाइक से कुलदीप को ले कर कांठ में डेंटल हौस्पिटल के सामने पहुंच गया.

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वहां पहले से ही नन्हे और भोलू एंबुलेंस ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. एंबुलेंस भोलू चलाता था. वहां उस ने कहा कि आज ही बिजनौर जा कर पेमेंट करनी होगी. कुलदीप उस की बातों में आ गया. उस के साथ एंबुलेंस में बैठ गया. रास्ते में नंदकिशोर ने शराब की एक बोतल खरीदी. आगे चल कर स्यौहारा कस्बे में गाड़ी रोक कर तीनों ने शराब पी.

कुलदीप जब शराब के नशे में धुत हो गया, तब नंदकिशोर ने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. उस से बोला, ‘‘अगर वह अपनी जिंदगी बचाना चाहता है तो 4 लाख रुपए मंगवा ले.’’

मरता क्या न करता, कुलदीप ने अपनी पत्नी सुनीता को फोन कर पैसे दुकान पर मंगवा लिए. इधर नंदकिशोर ने कर्मवीर उर्फ भोलू को भेज कर दुकान से वह पैसे मंगवा लिए.

पैसा मिल जाने पर भी नंदकिशोर ने उसे नहीं छोड़ा. एंबुलेंस में औक्सीजन सिलेंडर का मीटर खोलने वाले औजार (स्पैनर) से उस ने कुलदीप के सिर पर कई वार कर दिए.

नशे की हालत में होने के कारण कुलदीप खुद को संभाल नहीं पाया. कुछ समय में ही उस की वहीं मौत हो गई.

बाद में कुलदीप की लाश को एंबुलेंस में डाल कर धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और भी कई जगह ले कर घूमते रहे. अगले दिन 5 जून को रात के 8 बजे उन्होंने लाश को गंगाधरपुर के पर सड़क पर डाल कर दोनों मुरादाबाद वापस लौट आए.

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मुरादाबाद पुलिस ने नंदकिशोर और उस के साथी से साढ़े 3 लाख रुपए बरामद कर लिए. पूछताछ में नंदकिशोर ने इस योजना में शामिल 2 और लोगों के नाम बताए. उस के बताए सुराग से एक पकड़ा गया, लेकिन रणबीर उर्फ नन्हे 50 हजार रुपए ले कर फरार हो चुका था.

बताते हैं कि कुलदीप के गले से हनुमान का 3 तोले का लौकेट भी गायब था. मुरादाबाद पुलिस ने 7 जून, 2021 को प्रैसवार्ता कर पूरी घटना की जानकारी दी.

Manohar Kahaniya: 2 महिलाओं की बलि देकर बच्चा पाने का ऑनलाइन अनुष्ठान- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

पुलिस उन की कहानी सुन कर दंग रह गई. उन्होंने सिर पर हाथ रख लिया कि टेस्ट ट्यूब से बच्चा पैदा होने के जमाने में भी ऐसा अंधविश्वास लोगों के जेहन में भरा हुआ है.

इस अंधविश्वास के कारण हुए अपराध की कहानी की जड़ में संतान की चाहत निकली. जिस का फायदा उठाने वाले ढोंगी बाबा की भी भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण थी, जिस की वजह से एक नहीं बल्कि 2-2 महिलाओं की बलि दी गई थी.

भाभी ममता की गोद भरना चाहती थी मीरा

भावनात्मक दावपेंच और तांत्रिक अनुष्ठान के लिए अपनाए गए भयभीत करने वाले तरीके के प्रवाह में 5 लोग बह गए. उन में मीरा राजावत, उस का भाई बेटू भदौरिया, भाभी ममता, प्रेमी नीरज परिहार और तांत्रिक गिरवर था. इस में शिकार बनने वाली अनजान महिला आरती और नीरू थीं.

इस का पूरा तानाबाना मीरा द्वारा ही बुना गया था. उसी ने अपने निस्संतान भाईभौजाई को इस के लिए उकसाया था. हत्या का जुर्म स्वीकारने के बाद पछतावे में रोती हुई मीरा बोली, ‘‘साहब, भाई का घर आबाद करने की चाहत में तांत्रिक के कहने पर ही आरती और नीरू की बलि देनी पड़ी थी.’’

यह सब कैसे हुआ, उस की दिलचस्प मगर सवाल खड़ा करने के साथसाथ सावधान करने वाली कहानी इस प्रकार है—

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ग्वालियर के मोतीझील इलाके में रहने वाले मीरा के बड़े भाई बेटू भदौरिया की शादी 18 साल पहले ममता भदौरिया के साथ हुई थी. बेटू ट्रक ड्राइवर था. अभी तक वे निस्संतान थे. काफी डाक्टरी इलाज और मन्नतों के बावजूद ममता की गोद सूनी थी. एक दिन ममता ने अपनी संतानहीनता की पीड़ा मीरा को सुनाई. किसी भी तरह कहीं से कोई बच्चा गोद लेने या दूसरा उपाय करने के लिए कहा.

मीरा खुद तो अविवाहित थी, लेकिन वह संतानहीनता की पीड़ा को समझती थी. उस की जानपहचान कई तरह के लोगों से थी. ममता को उस के प्रेमी नीरज की अच्छी जानपहचान होने के बारे में भी मालूम था. इस कारण ममता ने मीरा को नीरज या किसी और के जरिए उपाय करने की गुजारिश की.

ममता के काफी अनुरोध के बाद मीरा ने इस बारे में नीरज से बात की. नीरज ने छूटते ही बताया कि वह एक ऐसे तांत्रिक को जानता है, जो कइयों की मनमानी संतान की चाहत को पूरा करवा चुका है, लेकिन इस पर वह मोटी फीस वसूलता है.

नीरज की विश्वास भरी बातें सुन कर मीरा को लगा जैसे उस के भाईभाभी की मुराद बस पूरी होने ही वाली है. उस ने तुरंत तांत्रिक से बात करने के लिए कहा.

अगले रोज ही नीरज ने मीरा को जानकारी दी कि हमें इस के लिए भैयाभाभी को तांत्रिक गिरवर यादव नाम के तांत्रिक के यहां ले कर जाना होगा. वहीं उन की जन्म कुंडलियों को देखने के बाद उपाय के बारे में सब कुछ तय किया जाएगा.

मीरा ने तुरंत यह जानकारी अपनी भाभी ममता को दी, ममता ने अपने पति बेटू को इस के लिए राजी कर लिया. इस पर आने वाले खर्च के बारे में बेटू ने जानना चाहा. मीरा कोई निश्चित राशि तो नहीं बता पाई, लेकिन इतना जरूर कहा कि नीरज के मुताबिक लाख, सवा लाख में उपाय हो जाना चाहिए.

इसी के साथ मीरा ने बेटू को 10-15 हजार रुपए साथ ले कर चलने को भी कहा, ताकि तांत्रिक की पैरपुजाई के तौर पर कुछ पेशगी दी जा सके.

तांत्रिक ने बताया संतान प्राप्ति का तरीका

चारों लोग तांत्रिक के पास गए. तांत्रिक ने बेटू और ममता की जन्मकुंडलियां देखने के बाद ध्यान लगा कर बताया कि ममता की किस्मत में औलाद सुख बहुत ही कमजोर है. थोड़ीबहुत उम्मीद की किरण बेटू में दिखती है. उसे ममता के करीब लाने के लिए एक तांत्रिक अनुष्ठान करना होगा.

तांत्रिक ने अनुष्ठान का समय भी निर्धारित कर दिया. बताया कि दोनों को औलाद सिर्फ उसी सूरत में हो सकती है, जब वे शरद पूर्णिमा की आधी रात में किसी निस्संतान महिला की बलि बगैर रक्त बहे दे दें.

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अनुष्ठान तक की बात सभी के लिए किसी उम्मीद की किरण से कम नहीं थी, लेकिन बलि की बात सुन कर सभी हैरानी में पड़ गए. जबकि तांत्रिक ने स्पष्ट कहा कि इस के बगैर वे संतान की उम्मीद छोड़ दें.

मीरा और नीरज ने इस के लिए तुरंत हामी भर दी. उस के बाद ममता और बेटू ने भी अपनी स्वीकृति दे दी. उन्होंने इस पर आने वाले खर्च और आगे की तैयारी के बारे में पूछा.

तांत्रिक गिरवर यादव ने बताया कि पूरे आयोजन पर कुल डेढ़ लाख रुपए का खर्च आएगा. बलि के लिए किसी को तैयार करने का खर्च और इंतजाम उन का होगा. इस काम के लिए वह श्मशान में लगातार 3 घंटे तक मंत्रजाप  अकेले करेंगे.

तांत्रिक की शर्त पर ममता, बेटू, मीरा और नीरज ने एक साथ हामी कर दी. अनुष्ठान के लिए समय मात्र एक हफ्ते का बचा था. महत्त्वपूर्ण तैयारी किसी वैसी निस्संतान औरत के तलाश की थी, जो उन की बिरादरी की न हो. इस के लिए नीरज को लगा दिया गया.

उस ने अपने जानने वालों से गुप्त तरीके से इस पर काम करना शुरू कर दिया. उसी क्रम में उसे पहचान वाली रोशनी से मदद मिल गई. उस ने आरती के बारे में बताया.

संयोग से आरती को नीरज पहले से जानता था. जल्द ही उन के बीच बात बन गई और नीरज ने आरती को 10 हजार रुपए में धार्मिक आयोजन में सहयोग करने के लिए तैयार कर लिया. नीरज आरती को एडवांस पैसा देने के बाद 20 अक्तूबर, 2021 की शाम 8 बजे के करीब आटो में बिठा कर बेटू की पुरानी छावनी स्थित आवास पर ले गया. वहां गिनेचुने लोग ही थे. उसे मिला कर कुल 5 लोग.

एक कमरे में अनुष्ठान की तैयारी की गई थी. आरती की खातिरदारी के साथसाथ उस के लिए खरीदे गए उपहार के कपड़े और सामान दिखाए गए, जो उसे आयोजन के बाद दिए जाने थे. आरती यह सब देख कर खुश हो गई.

औनलाइन अनुष्ठान में दी गई महिला की बलि

मीरा ने आरती को आयोजन के उद्देश्य और तरीके के बारे में समझाया. उस ने कहा कि उस के सहयोग से उस के भाईभाभी के घर में किलकारी गूंज उठेगी. इस का लाभ भविष्य में हम सभी को मिलेगा, ऐसा पुजारी ने कहा है. उसे एक धार्मिक अनुष्ठान में बेटू और ममता के साथ एक अनुष्ठान करने वाले महत्त्वपूर्ण सदस्य के तौर पर बैठना है.

अनुष्ठान का सारा काम औनलाइन होगा. पुजारी दूर रह कर हवन आदि के साथ मंत्रजाप करेंगे. यहां से हमें मोबाइल पर उन की आवाज के साथ सहयोग का जयकारा लगाना होगा.

इन तैयारियों के साथ अनुष्ठान का आयोजन रात के 11 बजे शुरू हो गया. तांत्रिक ने बलि देने का समय रात के एक बजे का तय किया था. आरती को इस का जरा भी आभास नहीं हुआ कि उस की बलि दी जानी है.

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Manohar Kahaniya: बहन के प्यार का साइड इफेक्ट- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- आर. के. राजू

गगन अभी कुछ बोलता इस से पहले ही ममता बोली, ‘‘मैं हर्बल पार्क घूमने आई थी. पार्क की सुंदरता देख कर तुम्हारे साथ यहां गुजारे पुराने दिन याद आ गए. आ जाओ यहीं पार्क के रेस्तरां में एक बार फिर मिलते हैं. साथ बैठते हैं…’’

बीते दिनों की कई पुरानी बातें बता कर ममता ने गगन को काफी भावुक कर दिया था. वह ममता की बातें सुन कर पुराने दिनों के हसीन लम्हों में खो गया. ममता गगन का पहला प्यार थी.

गगन को ममता के साथ बिताए पल अचानक झिलमिलाने लगे थे. वह ममता से बोला,‘‘तुम बुलाओ और हम न आएं, ऐसा नहीं हो सकता.’’

थोड़ी देर में ही गगन हर्बल पार्क पहुंच गया. ममता जींस टौप पहने बेसब्री से उस का इंतजार कर रही थी.

गगन ने आते ही ममता को बाहों में भर लिया. ममता उस से छूटते ही बोली, ‘‘तुम अभी भी वही पुराने वाले गगन, जरा भी नहीं बदले…लेकिन अब तुम शादीशुदा हो आगे से ध्यान रखना हां. …अच्छा चलो पार्क के बाहर झाडि़यों की ओर चलते हैं. वहीं बैठ कर कुछ बातें करेंगे, आराम से.’’

गगन को झाडि़यों में ले गई ममता

गगन ने महसूस किया कि ममता में कोई बदलाव नहीं आया है, वही पहले की तरह चंचल अदाएं, कसक और अपनापन….

‘‘ थोड़ा रुको यार, बहुत दिनों बाद मिले हो तुम्हारे लिए कोल्ड ड्रिंक्स और नमकीन लाती हूं. वहीं पार्क में बैठ कर साथसाथ पीएंगे.’’

ममता के बोलने पर गगन बोला, ‘‘हांहां क्यों नहीं.’’

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‘‘ बस मैं कैंटीन गई और अभी आई.’’ बोलती हुई ममता कैंटीन की ओर जाने लगी.

तभी गगन हाथ खींचते हुआ बोला, ‘‘यह काम तुम्हारा नहीं मेरा है.’’

‘‘देखो मैं ने तुम्हें बुलाया है. समझो कि आज तुम हमारे मेहमान हो.’’ ममता कहती हुई गगन से हाथ छुड़ा कर तेजी से कैंटीन की ओर दौड़ी चली गई. गगन उसे देखता रह गया.

ममता यह सब योजना के मुताबिक कर रही थी. ममता की जिद के आगे गगन कुछ नहीं कर पाया. वह केवल ममता के साथ गुजारे पुराने लम्हों को ही याद करता रह गया.

‘‘ आओ चलें…’’ ममता बोली.

गगन एक बार फिर सपनों की दुनिया से बाहर आया. ममता के हाथ से कोल्ड ड्रिंक अपने हाथ में ले ली. ममता डिसपोजल गिलास और नमकीन का पैकेट संभालती हुई झाडि़यों की ओर बढ़ गई. कुछ पल में ही दोनों पार्क के मुख्य मार्ग से नजर नहीं आने वाली झाडि़यों के पीछे थे. गगन टायलेट का इशारा करते हुए उस ओर चला गया.

ममता के लिए इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता था. उस ने तुरंत दोनों डिसपोजल गिलास निकाले. उन में दोतिहाई कोल्ड ड्रिंक भरा और अपने साथ लाई नशीले पदार्थ की पुडि़या एक गिलास में डाल दी. गगन के आते ही उस ने अपने बाएं हाथ का गिलास उस की ओर बढ़ा दिया.

‘‘नहींनहीं, इस हाथ से नहीं दाएं हाथ वाला दो. तुम्हारी बाएं हाथ से किसी को सामन देने की आदत अभी तक गई नहीं है.’’ गगन बोला.

‘‘क्या करूं गगन, मेरा दायां हाथ चलता ही नहीं है. तुम्हारे साथ शादी हो जाती तब  शायद यह आदत छूट जाती. अच्छा लो इसे पकड़ो.’’ कहती हुई ममता ने अपने दाएं हाथ का कोल्ड ड्रिंक भरा गिलास आगे कर दिया. गगन ने गिलास हाथ में ले लिया.

उस से एक घूंट पीने के बाद ममता मंदमंद मुसकराई. उस की मुसकान में कुटिलता छिपी थी, कारण वह अपनी योजना में कामयाब हो रही थी. नशीला पदार्थ मिला कोल्ड ड्रिंक का गिलास गगन के हाथ में था और वह नमकीन के साथसाथ घूंटघूंट कर चुस्की लेने लगा था.

कुछ समय में ही गगन बोला. ‘‘ममता… म… ममता,  मुझे तुम्हारा चेहरा साफ क्यों नहीं दिख रहा.’’ गगन की आवाज में लड़खड़ाहट थी. ममता समझ गई कि उस पर नशा हावी हो रहा है.

ममता ने प्रेम भरी हमदर्दी दर्शाते हुए उस का सिर अपनी गोद में ले लिया. उस के बालों में अंगुलियां घुमाने लगी. कुछ पल में ही गगन पूरी तरह से बेहोश हो चुका था. ममता ने तुरंत थोड़ी दूर दूसरी झाड़ी के पीछे छिपे वीरू को इशारा किया.

इशारा पाते ही ताक में बैठा वीरू ममता के पास आ गया. ममता वहां से उठती हुई बोली, ‘‘शिकार को संभालो, मैं ने अपना काम कर दिया, आगे का काम तुम्हारा.’’

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उस के बाद नंदिनी और प्रदीप को भी इस की जानकारी दे दी कि उस का काम पूरा हो चुका है. हालांकि तब तक गगन के मुंह से केवल एक ही बड़बड़ाने की आवाज निकल रही थी, ‘‘ममता क्या हुआ है मुझे…’’

‘‘कुछ नहीं तुम्हें थोड़ा चक्कर आ गया है, अभी तुम्हें डाक्टर के यहां ले जाने का इंतजाम करवाती हूं.’’ ममता बोली. ममता उसे सहारा देते हुए वीरू के साथ उस की मोटरसाइकिल तक ले गई. वहां प्रदीप पहले से मौजूद था.

गगन को प्रदीप और वीरू ने पकड़ कर मोटरसाइकिल पर बिठा दिया. वीरू मोटरसाइकिल चलाने के लिए बैठ गया, जबकि प्रदीप गगन को गिरने से थामे हुए था.

वीरू और प्रदीप गगन को जयंतीपुर ले गए. वहां एक खाली प्लौट में उन दोनों ने गगन को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर गगन के गले में पड़े गमछे से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी.

अगले भाग में पढ़ें- नंदिनी भी राधा के साथ गगन को ढूंढने का नाटक करती रही

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