BB17: विक्की जैन को भारी पड़ा मन्नारा से नजदीकियां बढ़ाना, अंकिता ने मचाया बवाल

Bigg Boss17: रिएलिटी शो बिग बॉस 17 में अंकिता लोखंडे (Ankita Lokhande) और विक्की जैन (Vicky Jain) भले ही पति-पत्नी हो लेकिन शो में उनकी लव लाइफ से ज्यादा उनके लड़ाई-झगड़े देखने को मिलते है. अब उनकी अंकिता लोखंडे और विक्की जैन की लड़ाई काफी आम सी हो गई है. वहीं, अब अंकिता को शो की बाकी लड़कियों से जलन होने लगी है. बीते कई दिनों से देखने के लिए मिल रहा है कि विक्की जैन की मन्नारा चोपड़ा से नजदीकियां बढ़ा रहे है. जो बात अंकिता लोखंडे को खल नहीं रही है और अब इसी वजह से दोनों के बीच भयंकर झगड़ा हुआ.


आपको बता दें कि अंकिता लोखंडे विक्की जैन को खरी-खोटी सुनाने का एक मौका नहीं छोड़तीं हैं. हाल ही में शो का नया प्रोमो सामने आया है, जिसमें अंकिता लोखंडे और विक्की जैन  का रिश्ता कमजोर होता दिख रहा है. प्रोमो में दिखाया जा रहा है कि विक्की और मन्नारा चोपड़ा बैठकर बातें कर रहे होते हैं, तभी वहां पर अंकिता लोखंडे भी आ जाती हैं. इस मौके पर अंकिता भड़कते हुए विक्की से बोलती हैं, ‘आज अचानक मन्नारा लाइफ में आ गई. बहुत अच्छी लगती है तुझे वो. बातों में आपको बहुत मजा आता है. करिए आप बात कीजिए.’ इस पर विक्की बोलते हैं, ‘कुछ लॉजिक बताइए. कुछ रीजन तो दीजिए ना बात करने का.’ दोनों की ये बहस पूरे दिन चलती है. अंकिता बाद में बोलती हैं, ‘तुझे मैं मन्नारा के लिए बोल रही हो तो बुरा लग रहा है. परेशानी क्या है तेरी.’ तब विक्की बोल देते हैं, ‘तू मेरे सारे दोस्तों को अपने ऑपोनियन से भगाती है.

विक्की जैन और अंकिता लोखंडे की लड़ाई किचन एरिया तक पहुंच जाती है. अंकिता गुस्से में विक्की को सामान फेंक कर मारने की बात कहती हैं. इस पर विक्की भी शांत नहीं रहते और बोलते हैं, ‘लोगों को थोड़ा पढ़ाना लिखाना चाहिए.’ ये ताना अंकिता को चुभ जाता है और वह बोलती हैं, ‘जा ढूंढ ले बहुत पढ़ी लिखी लड़की. काश में भी सोच समझकर फैसला लेती.’ इसके बाद अंकिता रोते हुए वहां से चली जाती हैं और कंबल में मुंह डालकर फूट-फूटकर रोती हैं. अंकिता बार-बार विक्की को बोलती हैं, ‘तेरा प्यार मेरे लिए खत्म हो गया है.’ विक्की का गुस्सा यहां फट जाता है और वह चिल्लाते हुए बोलते हैं, ‘शादी की है. मैं गुलाम नहीं हूं किसी का.’ अंकिता लोखंडे और विक्की जैन की इस लड़ाई में घर का एक सदस्य भी नहीं बोलता है.

ब्रेकअप की खबरों पर Malaika Arora ने तोड़ी चुप्पी, शेयर किया बॉयफ्रेंड अर्जुन कपूर का ये Video

Bollywood News in Hindi: बौलीवुड (Bollywood) की दुनिया में सिलेब्रिटी (celebrity) का पैचअप (Patchup) और ब्रेकअप (Breakup) हमेशा ही सुर्खियों बना रहता है ऐसे ही बौलीवुड के कपल मलाइका अरोड़ा (Malaika Arora) और अर्जुन कपूर (Arjun kapoor) का रिलेशन मीडिया की लाइमलाइट में बना रहता है. इन दिनों अरबाज (Arbaz) ने अपनी शादी की खबर सुना सबको हैरान कर दिया तो वही, दूसरी तरफ मलाइका ने अपने रिलेशन में ब्रेकअप की खबरों में स्टॉप लगाते हुए अर्जुन (Arjun) का एक वीडियो शेयर किया है.

 

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आपको बता दें, कि कई दिनों से ये खबरे वायरल हो रही है कि मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर का ब्रेकअप हो गया है. इन खबरों पर मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर ने कोई रिएक्शन नहीं दिया है, लेकिन दोनों की एक्टिविटी ये जरूर बया कर रही थी कि दोनों एक दूसरे से अलग हो गए है. बताया जाता है कि मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर ने अपने रिश्ते से दूरी जरूर बनाई थी लेकिन दोनों ने अपने रिलेशनशिप पर काम किया और फिर एक साथ आ गए हैं. जिसका सबूत अर्जुन कपूर का वीडियो है.

फिलहाल, मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर के ब्रेकअप को लेकर आई खबरों में कोई सच्चाई नजर नहीं आ रही है. इसी बीच मलाइका अरोड़ा ने अपने सोशल अकाउंट से एक वीडियो शेयर किया है जिसमें अर्जुन कपूर नजर आ रहे हैं. मलाइका अरोड़ा ने रविवार को अपने इंस्टाग्राम अकाउंट की स्टोरी पर एक वीडियो शेयर किया था जो तेजी से वायरल हो रहा है. इसे तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया जा रहा है.

 

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मलाइका अरोड़ा ने जो वीडियो शेयर किया है जिसमें आप देख सकते हैं कि अर्जुन कपूर अपने दोस्त रणवीर सिंह के साथ डीजे को एंजॉय करते नजर आ रहे हैं. ये दोनों स्टार्स मस्ती के फुल मूड में दिखाई दे रहे हैं. बताते चलें हाल ही में अवंतिका मलिक ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एक तस्वीर शेयर की थी. इस तस्वीर में अर्जुन कपूर और मलाइका अरोड़ा के अलावा कई और लोग नजर आए. इस तस्वीर में मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर मुस्कुराते हुए नजर आए.


बताते चले कि मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर एक दूसरे को 5 साल से ज्यादा समय से डेट कर रहे हैं. बीते दिनों आईं मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा था कि मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर ने अपने रिश्ते से छोटा सा ब्रेक लिया था. इसके पीछे की वजह शादी बताई जा रही थी. मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर में से कोई एक शादी के लिए अभी तैयार नहीं है. लेकिन उन्हें ये एहसास हो गया है कि अलग होना कोई समाधान नहीं हैं.

नेग के 11000 नहीं दिए तो किन्नरों ने ली जान

Crime News in Hindi: भारत के ज्यादातर हिस्सों में जब किसी के घर में शादीब्याह की शहनाइयां बजती हैं या किसी बच्चे का जन्म होता है तो वहां अमूमन किन्नर अपना नेग लेने पहुंच जाते हैं. बहुत से लोग उन की अच्छी खातिरदारी करते हैं और उन्हें खूब नेग भी देते हैं, पर बहुत से गरीब लोग ऐसा नहीं कर पाते हैं या जो लोग उन्हें नेग नहीं देना चाहते हैं तो किन्नर बेशर्मी पर उतर कर उन से लड़ाई-झगड़ा भी कर लेते हैं.

ऐसा ही कुछ गुजरात के सूरत में हुआ जहां कुछ किन्नरों ने ऐसी गुंडागर्दी मचाई कि एक नवजात बेटे के पिता को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. बात यह थी कि बच्चे के जन्म लेने पर किन्नरों ने मनचाहा नेग 11000 रुपए मांगे और जब वे नहीं मिले तो उन्होंने पिता को पीटपीट कर अधमरा कर दिया. घायल पिता को अस्पताल में भरती कराया गया लेकिन 2 दिन जिंदगी और मौत के बीच जूझ कर उस ने सोमवार को दम तोड़ दिया.

दरअसल, सूरत के रहने वाले गहरीलाल खटीक 2 बेटियों के पिता थे और हाल ही में उन के घर बेटे का जन्म हुआ था. लेकिन परिवार में बेटे के जन्म की खुशी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई. 3 किन्नरों के लालच ने इस खुशी को गम में बदल दिया.

वे किन्नर सूरत शहर के गोड़ादरा इलाके में बनी मानसरोवर सोसाइटी में किराए के घर में रह रहे गहरीलाल खटीक के घर नेग लेने पहुंचे थे. उन्होंने गहरीलाल खटीक से 11000 रुपए की डिमांड की थी लेकिन पेशे से मजदूर गहरीलाल ने किन्नरों को 2100 रुपए देने की बात कही. इस बात पर किन्नर भड़क गए और उन्होंने बवाल मचाना शुरू कर दिया.

इतना ही नहीं उन किन्नरों ने अपने कपड़े उतार दिए, जिस के बाद खटिक परिवार ने पड़ोसियों से 7000 रुपए उधार ले कर उन के हाथ में थमा दिए. लेकिन फिर भी किन्नर नहीं माने और उन्होंने गहरीलाल को पीटना शुरू कर दिया और उन के सिर को दीवार पर पटक दिया, जिस से उन के दिमाग की नसें फट गईं और उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया. इस बीच वे तीनों किन्नर मौके से फरार हो गए.

अब गहरीलाल खटीक की मौत हो गई है. पीड़ित परिवार ने सूरत के लिंबायत थाने में उन किन्नरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है, जिस के आधार पर पुलिस ने तीनों किन्नरों को गिरफ्तार कर लिया है.

उलझन: रश्मि का कड़वा सच

आश्चर्य में डूबी रश्मि मुझे ढूंढ़ती हुई रसोईघर में पहुंची तो उस की नाक ने उसे एक और आश्चर्य में डुबो दिया, ‘‘अरे वाह, कचौरियां, बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है. किस के लिए बना रही हो, मां?’’

‘‘तेरे पिताजी के दोस्त आ रहे हैं आज,’’ उड़ती हुई दृष्टि उस के थके, कुम्हलाए चेहरे पर डाल मैं फिर चकले पर झुक गई.

‘‘कौन से दोस्त?’’ हाथ की किताबें बरतनों की अलमारी पर रखते हुए उस ने पूछा.

‘‘कोई पुराने साथी हैं कालिज के. मुंबई में रहते हैं आजकल.’’

जितनी उत्सुकता से उस के प्रश्न आ रहे थे, मैं उतनी ही सहजता से और संक्षेप में उत्तर दिए जा रही थी. डर रही थी, झूठ बोलते कहीं पकड़ी न जाऊं.

गरमागरम कचौरी का टुकड़ा तोड़ कर मुंह में ठूंसते हुए उस ने एक और तीर छोड़ा, ‘‘इतनी बढि़या कचौरियां आप ने हमारे लिए तो कभी नहीं बनाईं.’’

उस का फूला हुआ मुंह और उस के साथ उलाहना. मैं हंस दी, ‘‘लगता है, तेरे कालिज की कैंटीन में आज तेरे लिए कुछ नहीं बचा. तभी कचौरियों में ज्यादा स्वाद आ रहा है. वरना वही हाथ हैं और वही कचौरियां.’’

‘‘अच्छा, तो पिताजी के यह दोस्त कितने दिन ठहरेंगे हमारे यहां?’’ उस ने दूसरी कचौरी तोड़ कर मुंह में ठूंस ली थी.

‘‘ठहरे तो वह रमाशंकरजी के यहां हैं. उन से रिश्तेदारी है कुछ. तुम्हारे पिताजी ने तो उन्हें आज चाय पर बुलाया है. तू हाथ तो धो ले, फिर आराम से प्लेट में ले कर खाना. जरा सब्जी में भी नमक चख ले.’’

उस ने हाथ धो कर झरना मेरे हाथ से ले लिया, ‘‘वह सब चखनावखना बाद में होगा. पहले आप बेलबेल कर देती जाइए, मैं तलती जाती हूं. आशु नहीं आया अभी तक स्कूल से?’’

‘‘अभी से कैसे आ जाएगा? कोई तेरा कालिज है क्या, जो जब मन किया कक्षा छोड़ कर भाग आए? छुट्टी होगी, बस चलेगी, तभी तो आएगा.’’

‘‘तो हम क्या करें? अर्थशास्त्र के अध्यापक पढ़ाते ही नहीं कुछ. जब खुद ही पढ़ना है तो घर में बैठ कर क्यों न पढ़ें. कक्षा में क्यों मक्खियां मारें?’’ उस ने अकसर कक्षा छोड़ कर आने की सफाई पेश कर दी.

4 हाथ लगते ही मिनटों में फूलीफूली कचौरियों से परात भर गई थी. दहीबड़े पहले ही बन चुके थे. मिठाई इन से दफ्तर से आते वक्त लाने को कह दिया था.

‘‘अच्छा, ऐसा कर रश्मि, 2-4 और बची हैं न, मैं उतार देती हूं. तू हाथमुंह धो कर जरा आराम कर ले. फिर तैयार हो कर जरा बैठक ठीक कर ले. मुझे वे फूलवूल सजाने नहीं आते तेरी तरह. समझी? तब तक तेरे पिताजी और आशु भी आ जाएंगे.’’

‘‘अरे, सब ठीक है मां. मैं पहले ही देख आई हूं. एकदम ठीक है आप की सजावट. और फिर पिताजी के दोस्त ही तो आ रहे हैं, कोई समधी थोड़े ही हैं जो इतनी परेशान हो रही हो,’’ लापरवाही से मुझे आश्वस्त कर वह अपनी किताबें उठा कर रसोई से निकल गई. दूर से गुनगुनाने की आवाज आ रही थी, ‘रजनीगंधा फूल तुम्हारे, महके यों ही जीवन में…’

मैं अवाक् रह गई. अनजाने में वह कितना बड़ा सत्य कह गई थी, वह नहीं जानती थी. सचमुच इन के कोई दोस्त नहीं वरन दफ्तर के साथी रमाशंकर की बहन और बहनोई आ रहे थे रश्मि को देखने.

लेकिन बेटे वालों के जितने नाजनखरे होते हैं, उस के हिसाब से कितनी बार यह नाटक दोहराना पड़ेगा, कौन जानता है. और लाड़दुलार में पली, पढ़ीलिखी लड़कियों का मन हर इनकार के साथ विद्रोह की जिस आग से भड़क उठता है, मैं नहीं चाहती थी, मेरी सीधीसादी सांवली सी बिटिया उस आग में झुलस कर अभी से किसी हीनभावना से ग्रस्त हो जाए.

इसी वजह से वह जितनी सहज थी, मैं उतनी ही घबरा रही थी. कहीं उसे संदेह हो गया तो…

भारतीय परंपरा के अनुरूप हमारे माननीय अतिथि पूरे डेढ़ घंटे देर से आए. प्रतीक्षा से ऊबे रश्मि और आशु अपने पिता पर अपनी खीज निकाल रहे थे, ‘‘रमाशंकर चाचाजी ने जरूर आप का अप्रैल फूल बनाया है. आप हैं भी तो भोले बाबा, कोई भी आप को आसानी से बुद्धू बना लेता है.’’

‘‘नहीं, बेटा, रमाशंकरजी अकेले होते तो ऐसा संभव था, क्योंकि वह अकसर ऐसी हरकतें किया करते हैं. पर उन के साथ जो मेहमान आ रहे हैं न, वे ऐसा नहीं करेंगे. नए शहर में पहली बार आए हैं इसलिए घूमनेघामने में देर हो गई होगी. पर वे आएंगे जरूर…’’

‘‘मान लीजिए, पिताजी, वे लोग न आए तो इतनी सारी खानेपीने की चीजों का क्या होगा?’’ रश्मि को मिठाई और मेहनत से बनाई कचौरियों की चिंता सता रही थी.

‘‘अरे बेटा, होना क्या है. इसी बहाने हमतुम बैठ कर खाएंगे और रमाशंकरजी और अपने दोस्त को दुआ देंगे.’’

बच्चों को आश्वस्त कर इन्होंने खिड़की का परदा सरका कर बाहर झांका तो एकदम हड़बड़ा गए.

‘‘अरे, रमाशंकरजी की गाड़ी तो खड़ी है बाहर. लगता है, आ गए हैं वे लोग.’’

‘‘माफ कीजिए, राजकिशोरजी, आप लोगों को इतनी देर प्रतीक्षा करनी पड़ी, जिस के लिए हम बेहद शर्मिंदा हैं,’’ क्षमायाचना के साथसाथ रमाशंकरजी ने घर में प्रवेश किया, ‘‘पर यह औरतों का मामला जहां होता है, आप तो जानते ही हैं, हमें इंडियन स्टैंडर्ड टाइम पर उतरना पड़ता है.’’

वह अपनी बहन की ओर कनखियों से देख मुसकरा रहे थे, ‘‘हां, तो मिलिए मेरी बहन नलिनीजी और इन के पति नरेशजी से, और यह इन के सुपुत्र अनुपम तथा अनुराग. और नलिनी बहन, यह हैं राजकिशोरजी और इन का हम 2, हमारे 2 वाला छोटा सा परिवार, रश्मि बिटिया और इन के युवराज आशीष.’’

‘‘रमाशंकरजी, हमारे बच्चों को यह गलतफहमी होने लगी थी कि कहीं आप भूल तो नहीं गए आज का कार्यक्रम,’’ सब को बिठा कर यह बैठते हुए बोले.

रमाशंकरजी ने गोलगोल आंख मटकाते हुए आशु की तरफ देखा, ‘‘वाह, मेरे प्यारे बच्चो, ऐसी शानदार पार्टी भी कोई भूलने की चीज होती है भला? अरे, आशु बेटा, दरवाजा बंद कर लो. कहीं ऐसा न हो कि इतनी अच्छी महक से बहक कर कोई राह चलता अपना घर भूल इधर ही घुस आए,’’ अपने चिरपरिचित हास्यमिश्रित अभिनय के साथ जिस नाटकीय अदा से रमाशंकरजी ने ये शब्द कहे उस से पूरा कमरा ठहाकों से गूंज गया.

प्रतीक्षा से बोझिल वातावरण एकाएक हलका हो गया था. बातचीत आरंभ हुई तो इतनी सहज और अनौपचारिक ढंग से कि देखतेदेखते अपरिचय और दूरियों की दीवारें ढह गईं. रमाशंकरजी का परिवार जितना सभ्य और सुशिक्षित था, उन के बहनबहनोई का परिवार उतना ही सुसंस्कृत और शालीन लगा.

चाय पी कर नलिनीजी ने पास रखी अटैची खोल कर सामान मेज पर सजा दिया. मिठाई के डब्बे, साड़ी का पैकेट, सिंदूर रखने की छोटी सी चांदी की डिबिया. फिर रश्मि को बुला कर अपने पास बिठा कर उस के हाथों में चमचमाती लाल चूडि़यां पहनाते हुए बोलीं, ‘‘यही सब खरीदने में देर हो गई. हमारे नरेशजी का क्या है, यह तो सिर्फ बातें बनाना जानते हैं. पर हम लोगों को तो सब सोचसमझ कर चलना पड़ता है न? पहलीपहली बार अपनी बहू को देखने आ रही थी तो क्या खाली हाथ झुलाती हुई चली आती?’’

‘‘बहू,’’ मैं ने सहसा चौंक कर खाने के कमरे से झांका तो देखती ही रह गई. रश्मि के गले में सोने की चेन पहनाते हुए वह कह रही थीं, ‘‘लो, बेटी, यह साड़ी पहन कर आओ तो देखें, तुम पर कैसी लगती है. तुम्हारे ससुरजी की पसंद है.’’

रश्मि के हाथों में झिलमिलाती हुई चूडि़यां, माथे पर लाल बिंदी, गले में सोने की चेन…यह सब क्या हो रहा है? हम स्वप्न देख रहे हैं अथवा सिनेमा का कोई अवास्तविक दृश्य. घोर अचरज में डूबी रश्मि भी अलग परेशान लग रही थी. उसे तो यह भी नहीं मालूम था कि उसे कोई देखने आ रहा है.

हाथ की प्लेटें जहां की तहां धर मैं सामने आ कर खड़ी हो गई, ‘‘क्षमा कीजिए, नलिनीजी, हमें भाईसाहब ने इतना ही कहा था कि आप लोग रश्मि को देखने आएंगे, पर आप का निर्णय क्या होगा, उस का तो जरा सा भी आभास नहीं था, सो हम ने कोई तैयारी भी नहीं की.’’

‘‘तो इस में इतना परेशान होने की क्या बात है, सरला बहन? बेटी तो आप की है ही, अब हम ने बेटा भी आप को दे दिया. जी भर के खातिर कर लीजिएगा शादी के मौके पर,’’ उन का चेहरा खुशी के मारे दमक रहा था, ‘‘अरे, आ गई रश्मि बिटिया. लो, रमाशंकर, देख लो साड़ी पहन कर कैसी लगती है तुम्हारी बहूरानी.’’

‘‘हम क्या बताएंगे, दीदी, आप और जीजाजी बताइए, हमारी पसंद कैसी लगी आप को? हम ने हीरा छांट कर रख दिया है आप के सामने. अरे भई, अनुपम, ऐसे गुमसुम से क्यों बैठे हो तुम? वह जेब में अंगूठी क्या वापस ले जाने के इरादे से लाए हो?’’ रमाशंकरजी चहके तो अनुपम झेंप गया.

‘‘हमारी अंगूठी के अनुपात से काफी दुबलीपतली है यह. खैर, कोई बात नहीं. अपने घर आएगी तो अपने जैसा बना लेंगे हम इसे भी,’’ नलिनीजी हंस दीं.

पर मैं अपना आश्चर्य और अविश्वास अब भी नियंत्रित नहीं कर पा रही थी, ‘‘वो…वो…नलिनीजी, ऐसा है कि आजकल लड़के वाले बीसियों लड़कियां देखते हैं…और इनकार कर देते हैं…और आप…?

‘‘हां, सरला बहन, बड़े दुख की बात है कि संसार में सब से महान संस्कृति और सभ्यता का दंभ भरने वाला हमारा देश आज बहुत नीचे गिर गया है. लोग बातें बहुत बड़ीबड़ी करते हैं, आदर्श ऊंचेऊंचे बघारते हैं, पर आचरण ठीक उस के विपरीत करते हैं.

‘‘लेकिन हमारे घर में यह सब किसी को पसंद नहीं. लड़का हो या लड़की, अपने बच्चे सब को एक समान प्यारे होते हैं. किसी का अपमान अथवा तिरस्कार करने का किसी को भी अधिकार नहीं है. हमारे अनुपम ने पहले ही कह दिया था, ‘मां, जो कुछ मालूम करना हो पहले ही कर लेना. लड़की के घर जा कर मैं उसे अस्वीकार नहीं कर सकूंगा.’

‘‘इसलिए हम रमाशंकर और भाभी से सब पूछताछ कर के ही मुंबई से आए थे कि एक बार में ही सब औपचारिकताएं पूरी कर जाएंगे और हमारी भाभी ने रश्मि बिटिया की इतनी तारीफ की थी कि हम ने और लड़की वालों के समस्त आग्रह और निमंत्रण अस्वीकार कर दिए. घरघर जा कर लड़कियों की नुमाइश करना कितना अपमानजनक लगता है, छि:.’’

उन्होंने रश्मि को स्नेह से निहार कर हौले से उस की पीठ थपथपाई, ‘‘बेटी का बहुत चाव था हमें, सो मिल गई. अब तुम्हें 2-2 मांओं को संभालना पड़ेगा एकसाथ. समझी बिटिया रानी?’’ हर्षातिरेक से वह खिलीखिली जा रही थीं.

‘‘अच्छा, बहनजी, अब आप का उठने का विचार है या अपनी लाड़ली बहूरानी को साथ ले कर जाने का ही प्रण कर के आई  हैं?’’ रमाशंकरजी अपनी चुटकियां लेने की आदत छोड़ने वाले नहीं थे, ‘‘बहुत निहार लिया अपनी बहूरानी को, अब उस बेचारी को आराम करने दीजिए. क्यों, रश्मि बिटिया, आज तुम्हारी जबान को क्या हो गया है? जब से आए हैं, तुम गूंगी बनी बैठी हो. तुम भी तो कुछ बोलो, हमारे अनुपम बाबू कैसे लगे तुम्हें? कौन से हीरो की झलक पड़ती है इन में?’’

रश्मि की आंखें उन के चेहरे तक जा कर नीचे झुक गईं तो वह हंस पड़े, ‘‘भई, आज तो तुम बिलकुल लाजवंती बन गई हो. चलो, फिर किसी दिन आ कर पूछ लेंगे.’’

तभी इन्होंने एक लिफाफा नरेशजी के हाथों में थमा दिया, ‘‘इस समय तो बस, यही सेवा कर सकते हैं आप की. पहले से मालूम होता तो कम से कम अनुपमजी के लिए एक अंगूठी और सूट का प्रबंध तो कर ही लेते. जरा सा शगुन है बस, ना मत कीजिएगा.’’

हम लोग बेहद संकोच में घिर आए थे. अतिथियों को विदा कर के आए तो लग रहा था जैसे कोई सुंदर सा सपना देख कर जागे हैं. चारों तरफ रंगबिरंगे फूलों की वादियां हैं, ठंडे पानी के झरझर झरते झरने हैं और बीच में बैठे हैं हम और हमारी रश्मि. सचमुच कितना सुखी जीवन है हमारा, जो घरबैठे लड़का आ गया था. वह भी इंजीनियर. भलाभला सा, प्यारा सा परिवार. कहते हैं, लड़की वालों को लड़का ढूंढ़ने में वर्षों लग जाते हैं. तरहतरह के अपमान के घूंट गले के भीतर उड़ेलने पड़ते हैं, तब कहीं वे कन्यादान कर पाते हैं.

क्या ऐसे भले और नेक लोग भी हैं आज के युग में?

नलिनीजी के परिवार ने लड़के वालों के प्रति हमारी तमाम मान्यताओं को उखाड़ कर उस की जगह एक नन्हा सा, प्यारा सा पौधा रोप दिया था, मानवता में विश्वास और आस्था का. और उस नन्हे से झूमतेलहराते पौधे को देखते हुए हम अभिभूत से बैठे थे.

‘‘अच्छा, जीजी, चुपकेचुपके रश्मि बिटिया की सगाई कर डाली और शहर के शहर में रहते भी हमें हवा तक नहीं लगने दी?’’ देवरानी ने घुसते ही बधाई की जगह बड़ीबड़ी आंखें मटकाते हुए तीर छोड़ा.

‘‘अरे मंजु, क्या बताएं, खुद हमें ही विश्वास नहीं हो रहा है कि कैसे रश्मि की सगाई हो गई. लग रहा है, जैसे सपना देख कर जागे हैं. उन लोगों ने देखने आने की खबर दी थी, पर आए तो पूरी सगाई की तैयारी के साथ. और हम लोग तो समझो, पानीपानी हो गए एकदम. लड़के के लिए न अंगूठी, न सूट, न शगुन का मिठाईमेवा. यह देखो, तुम्हारी बिटिया के लिए कितना सुंदर सेट और साड़ी दे गए हैं.’’

मंजु ने सामान देखा, परखा और लापरवाही से एक तरफ धर कर, फिर जैसे मैदान में उतर आई, ‘‘अरे, अब हमें मत बनाइए, जीजी. इतनी उमर हो गई शादीब्याह देखतेदेखते, आज तक ऐसा न देखा न सुना. परिवार में इतना बड़ा कारज हो जाए और सगे चाचाचाची के कान में भनक भी न पड़े.’’

‘‘मंजु, इस में बुरा मानने की क्या बात है. ये लोग बड़े हैं. जैसा ठीक समझा, किया. उन की बेटी है. हो सकता है, भैयाभाभी को डर हो, कहीं हम लोग आ कर रंग में भंग न डाल दें. इसलिए…’’

‘‘मुकुल भैया, आप भी…हम पर इतना अविश्वास? भला शुभ कार्य में अपनों से दुरावछिपाव क्यों करते?’’ छोटे भाई जैसे देवर मुकुल से मुझे ऐसी आशा नहीं थी.

‘‘अच्छा, रानीजी, जो हो गया सो तो हो गया. अब ब्याह भी चुपके से न कर डालना. पहलीपहली भतीजी का ब्याह है. सगी बूआ को न भुला देना,’’ शीला जीजी दरवाजे की चौखट पर खड़ेखड़े तानों की बौछार कर रही थीं.

‘‘हद करती हैं आप, जीजी. क्या मैं अकेले हाथों लड़की को विदा कर सकती हूं? क्या ऐसा संभव है?’’

‘‘संभवअसंभव तो मैं जानती नहीं, बीबी रानी, पर इतना जरूर जानती हूं कि जब आधा कार्य चुपचाप कर डाला तो लड़की विदा करने में क्या धरा है. अरे, मैं पूछती हूं, रज्जू से तुम ने आज फोन करवाया. कल ही करवा देतीं तो क्या घिस जाता? पर तुम्हारे मन में तो खोट था न. दुरावछिपाव अपनों से.’’

शीला जीजी हाथ का झोला सोफे पर पटक कर स्वयं भी पसर गईं, ‘‘उफ, इन बसों का सफर तो जान सोख लेता है. पर क्या किया जाए, सुन कर बैठा भी तो नहीं गया. जैसे ही यह दफ्तर से आए, सीधे बस पकड़ कर चले आए. अपनों की मायाममता होती ही ऐसी है. भाई का जरा सा सुखदुख सुनते ही छटपटाहट सी होने लगती है. पर तुम पराए घर की लड़की, क्या जानो, हमारा भाईबहन का संबंध कितना अटूट है.’’

शीला जीजी के शब्द कांटों की तरह कलेजे को आरपार चीरे डाल रहे थे.

‘‘ला तो रश्मि, जरा दिखा तो तेरे ससुराल वालों ने क्या पहनाया तुझे? सुना है बड़े अच्छे लोग हैं…बड़े भले हैं…रज्जू ने फोन पर बताया. दूर के ढोल ऐसे ही सुहावने लगते हैं. अपने सगे तो तुम्हारे दुश्मन हैं.’’

‘‘अच्छा, मामीजी, जल्दी से पैसे निकालिए, बहन की सगाई हुई है. कम से कम मुंह तो मीठा करवा दीजिए सब का,’’ शीला जीजी के बेटे ने जैसे मुसीबतों के पहाड़ तले से खींच कर उबार लिया मुझे.

‘‘हां…हां, अरुण, एक मिनट ठहरो, मैं रुपए लाती हूं,’’ कहती हुई मैं वहां से उठ गई.

देखतेदेखते अरुण रुपयों के साथ इन का स्कूटर भी ले कर उड़ गया. लौटा तो मिठाई, नमकीन मेज पर रखते हुए बोला, ‘‘मामीजी, मिठाई वाले का उधार कर आया हूं. पैसे कम पड़ गए. आप बाद में आशु से भिजवा दीजिएगा 30 रुपए. पता लिखवा आया हूं यहां का.’’

मैं सकते में खड़ी थी. 50 का नोट भी कम पड़ गया था. कैसे? पर जब मेज पर नजर पड़ी तो कारण समझ में आ गया. एक से एक बढि़या मिठाइयां मेज पर बिखरी पड़ी थीं और शीला जीजी और मुकुल भैया अपने बच्चों सहित बड़े प्रेम से मुंह मीठा कर रहे थे. लड़की की सगाई जो हुई थी हमारी.

‘‘अच्छा, तो अकेलेअकेले बिटिया रानी की सगाई की मिठाई उड़ाई जा रही है,’’ दरवाजे पर मेरे मझले मामामामी अपने बेटेबहुओं के साथ खड़े थे, ‘‘क्यों, सरला, तेरा नाम जरूर सरला है, पर निकली तू विरला. क्यों री, तेरे एक ही तो मामा बचे हैं लेदे के और उन्हें भी तू ने समधियों से मिलवाना जरूरी नहीं समझा? अरे बेटा, हम लोग बुजुर्ग हैं, तजरबेकार हैं, शुभ काम में अच्छी ही सलाह देते. याद है, तेरे ब्याह पर मैं ने ही तुझे गोद में उठा कर मंडप में बिठाया था?’’

उफ्, किस मुसीबत में फंस गए थे हम लोग. छोटाबड़ा कोई भी हम पर विश्वास करने को तैयार नहीं था. नाहक ही सब को फोन कर के दफ्तर से खबर करवाई. कल की खुशी की मिठाई मुंह में कड़वी सी हो गई थी.

‘‘मामाजी, बात यह हुई कि हमें खुद ही पता नहीं था. वे लोग रश्मि को देखने आए थे…’’ खीजा, झुंझलाया स्वर स्वयं मुझे अपने ही कानों में अटपटा लग रहा था.

पर मामाजी ने मेरी बात बीच में ही काट दी, ‘‘अरे, हां…हां, ये सब बहाने तो हम लोग काफी देर से सुन रहे हैं. पर बेटा, बड़ों की सलाह लिए बिना तुम्हें ‘हां’ नहीं कहनी चाहिए थी. खैर, अब जो हो गया सो हो गया. अच्छाबुरा जैसा भी होगा, सब की जिम्मेदारी तुम्हीं पर होगी.

‘‘पर आश्चर्य तो इस बात का है कि राजकिशोरजी ने भी हम से दुराव रखा. आज की जगह कल फोन कर लेते तो हम समधियों से बातचीत कर लेते, उन्हें जांचपरख लेते. खैर, तुम लोग जानो, तुम्हारा काम. हम तो सिर्फ अपना फर्ज निभाते आए हैं.

‘‘पुराने लोग हैं, उसूलों पर चलने वाले. तुम लोग ठहरे नए जमाने के आधुनिक विचारों वाले. चाहो तो शादी की सूचना का कार्ड भिजवा देना, चले आएंगे. न चाहो तो कोई बात नहीं. कोई गिला- शिकवा करने नहीं आएंगे उस के लिए.’’

समझ में नहीं आ रहा था, यह क्या हो रहा है. सिर भन्ना गया था. बेटी की शादी की बधाई तथा उस के सुखमय भविष्य के लिए आशीषों की वर्षा की जगह हम पर झूठ, धोखेबाजी, दुरावछिपाव और न जाने किनकिन मिथ्या आरोपों की बौछार हो रही थी और हम इन आरोपों की बौछार तले सिर झुकाए बैठे थे…आहत, मर्माहत, निपट अकेले, निरुपाय.

सब को विदा करतेकराते रात के साढ़े 9 बज गए थे. मन के साथ तन भी एक अव्यक्त सी थकान से टूटाटूटा सा हो आया था. घर में मनहूस सी शांति पसरी पड़ी थी. मौन इन्होंने ही तोड़ा, ‘‘लगता है, रश्मि की सगाई की खबर सुन कर कोई खुश नहीं हुआ. अपनी सगी बहन…अपना भाई…’’ धीरगंभीर व्यथित स्वर.

घंटों से उमड़ताघुमड़ता अपमान और दुख आंखों की राह बह निकला.

‘‘ओफ्फोह, मां, आप भी बस, रोने से क्या वे खुश हो जाएंगे? सब के सब कुढ़ रहे थे कि दीदी का ब्याह इतनी आसानी से और इतने अच्छे घर में क्यों तय हो गया. बस, यही कुढ़न हमारे ऊपर उलटेसीधे तानों के रूप में उड़ेल गए. उंह, यह भी कोई बात हुई,’’ कुछ ही घंटों में आशु भावनाओं की काफी झलक पा गया था.

‘‘छि: बेटा, ऐसे नहीं कहते. वे हमारे बड़े हैं…अपने हैं…उन के लिए ऐसे शब्द नहीं कहने चाहिए.’’

‘‘उंह, बड़े आए अपने. 80 रुपए की मिठाइयां खा गए, ऊपर से न जाने क्या- क्या कह गए. ऐसे ही नाराज थे तो मिठाई क्यों खाई? क्यों मुंह मीठा किया? प्लेटों पर तो ऐसे टूट रहे थे जैसे मिठाई कभी देखी ही न हो. इतना गुस्सा आ रहा था कि बस, पर आप के डर से चुप रह गया कि बोलते ही सब के सामने मुझे डांट देंगी.’’

16 वर्षीय आशु भी अपना आक्रोश मुझ पर निकाल रहा था, ‘‘सब से अच्छा यही है कि दीदी की शादी में किसी को न बुलाया जाए. चुपचाप कोर्ट में जा कर शादी कर ली जाए.’’

मैं गुमसुम सी खड़ी थी. समझ नहीं आ रहा था कि क्या खून के रिश्ते इतनी आसानी से झुठलाए जा सकते हैं?

शायद नहीं…तो फिर?

आशु के तमतमाए चेहरे पर एक दृष्टि डाल, मैं मेज पर फैली बिखरी प्लेटें समेटने लगी. कैसे हैं ये मन के बंधन, जो नितांत अनजान और अपरिचितों को एक प्यार भरी सतरंगी डोर से बांध देते हैं तो अपने ही आत्मीयों को पल भर में छिटका कर परे कर देते हैं.

कैसी विडंबना है यह? जो आज की टूटतीबिखरती आस्थाओं और आशाओं को बड़े यत्न से सहेज कर मन में प्रेम और विश्वास का एक नन्हा सा पौधा रोप गए थे. वे कल तक नितांत पराए थे और आज उस नवजात पौधे को जड़मूल से उखाड़ कर अपने पैरोंतले पूरी तरह कुचल कर रौंदने वाले हमारे अपने थे. सभी आत्मीय…

इन में से किसे अपना मानें, किसे पराया, कुछ भी तो समझ में नहीं आ रहा है.

दलदल : रेखा की दास्तां

रेखा और आरती बीए के दूसरे साल में पढ़ रही थीं. दोनों का संबंध साधारण परिवारों से था. अमीर लड़कियों की तरह वे दिल खोल कर पैसे खर्च करने की हालत में नहीं थीं.

‘‘काश, मेरे पापा भी रजनी के पापा की तरह पैसे वाले होते, तो मैं भी खूब ऐश करती,’’ रेखा ने रजनी को कार से उतर कर कैंटीन की तरफ जाते देख कर लंबी सांस भरते हुए कहा.

‘‘छोड़ यह सब. पहले तू यह बता कि चाय कौन पिला रहा है, मैं या तू? आरती ने पूछा, ‘‘हम जैसे हैं, वैसे ही भले. हमें रजनी की तरह नहीं बनना.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘पूरा कालेज जानता है कि वह देर तक लड़कों के साथ घूमतीफिरती है, नशा करती है,’’ आरती कैंटीन वाले को चाय लाने का इशारा करते हुए बोली.

चाय पी कर वे दोनों अपनीअपनी स्कूटी पर सवार हो कर अपने घरों की ओर चल दीं.

एक दिन रेखा ने आरती को फोन किया, ‘‘यार, तेरे साथ लंच करने का मन कर रहा है. बिल की चिंता मत करना, मैं पैसे दे दूंगी.’’

‘‘अरे वाह, लंच… वह भी तेरे साथ. मजा आ गया. जल्दी बोल, मुझे तेरे घर कब आना है?’’ आरती ने खुशी से उछलते हुए कहा.

‘‘तू डिलाइट रैस्टोरैंट पहुंच जा. मैं गेट पर तेरा इंतजार कर रही हूं,’’ रेखा ने जिस रैस्टोरैंट का पता बताया था, वह शहर के सब से महंगे रैस्टोरैंटों में गिना जाता था.

आरती ने दोबारा नाम पूछा, तो रेखा ने जो लोकेशन बताई, यह वही डिलाइट रैस्टोरैंट था.

आरती फटाफट तैयार हुई और डिलाइट रैस्टोरैंट पहुंच गई. रेखा वहीं खड़ी थी. उस ने महंगी जींस और मैचिंग का टौप पहन रखा था. इस ड्रैस में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी.

रेखा ने आरती का हाथ थामा और उसे भीतर ले गई.

आरती पहली बार शहर के सब से अच्छे रैस्टोरैंट के भीतर आई थी.

‘‘बोल, क्या खाएगी?’’ रेखा ने मीनू सामने रखते हुए पूछा.

‘‘बाप रे, यहां तो सब महंगा है. लंच छोड़ आमलेट मंगा ले, मेरे लिए वही काफी है,’’ आरती ने मीनू पर निगाह डालते हुए कहा, तो रेखा हंस दी.

‘‘माई डियर सहेली, पैसों की चिंता छोड़. तू तो बस यह बता कि खाने में तुझे क्याक्या पसंद है. मैं अभी सारी चीजें मंगाती हूं.’’

‘‘पर इतना सब तो… तेरी लौटरी लगी है या पर्स उड़ा लाई है किसी का?’’ कहते हुए आरती समझ नहीं पा रही थी कि अचानक उस की सहेली इतनी फुजूलखर्च कैसे हो गई.

‘‘सवाल मत कर. भूख के मारे मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं. तुझ से तो और्डर भी नहीं दिया जाएगा. मुझे ही बताना पड़ेगा,’’ कहते हुए उस ने वेटर को ढेर सारी चीजें लाने को कह दिया.

आरती बहुतकुछ पूछना चाहती थी, पर चुप रही. दोनों के खाने का बिल 4 हजार रुपए से भी ज्यादा का आया.

रेखा ने पर्स निकाला, तो उस के भीतर हजारहजार के कई नोट देख कर आरती की आंखें फटी की फटी रह गईं.

रेखा ने टिप में 5 सौ रुपए का नोट दिया, तो आरती का शक गहरा गया.

‘‘सचसच बता, आजकल तेरे रंगढंग बदले हुए क्यों लग रहे हैं? कहीं तू कोई उलटासीधा काम तो नहीं करने लगी?’’ आरती ने 2-3 दिन बाद रेखा से पूछ ही डाला.

‘‘छोड़ ये सब बेकार की बातें. जिंदगी मिली है, तो क्यों न मजा किया जाए. आज जिस की जेब में पैसा है, इस दुनिया में जीने का हक केवल उसी के पास है.

‘‘पैसा हो तो हर खुशी आप के कदमों में होती है,’’ रेखा अपनी रौ में बोले जा रही थी.

तभी रेखा का मोबाइल फोन बज उठा. उस के हाथ में चमचमाता महंगा फोन देख कर आरती दंग रह गई.

‘‘हां, मैं पहुंच जाऊंगी.’’

‘‘तेरा बौयफ्रैंड है क्या?’’ आरती ने पूछा, तो रेखा खिलखिला कर हंस दी, ‘‘नहीं, दोस्त है… कुछ समझ मेरी भोलीभाली सहेली?’’

आरती समझ गई कि कुछ ऐसा जरूर है, जिसे रेखा छिपा रही है. अब वह पहले वाली रेखा नहीं लगती थी, बल्कि बोल्ड, बिंदास और खिलंदड़ किस्म की लड़की नजर आने लगी थी.

‘‘कसम से सच बता, बात क्या है? मैं जानती हूं कि तू मुझ से कुछ छिपा रही है. मैं तेरी सहेली हूं. तुझे बताना ही होगा.

‘‘शीलू कह रही थी कि तू आजकल होटलों में बहुत जाती है,’’ आरती ने जिद की, तो रेखा ने सच बता दिया.

‘‘मैं अपनी मरजी से जाती हूं. एक रात के 10 हजार रुपए से 50 हजार रुपए तक वसूल करती हूं. जब जी में आता

है, बुकिंग कर लेती हूं. बुराई क्या है इस में?’’

‘‘तू कालगर्ल बन गई? शर्म नहीं आती तुझे यह सब करते हुए? पैसे के लिए तू इतना नीचे गिर जाएगी, मैं ने सोचा भी नहीं था.

‘‘मेरी मान, छोड़ दे यह सब, वरना एक दिन बहुत पछताएगी,’’ आरती ने उसे झकझोरते हुए कहा.

‘‘बंद कर अपनी भाषणबाजी. मेरे पास जिस्म की दौलत है, तो मैं उसे क्यों न भुनाऊं? हमारे कालेज की कई लड़कियां यही सब करती हैं. तू कहे तो मैं नाम बताऊं?’’

‘‘रहने दे, मुझे नहीं जानना. मैं तो कहूंगी कि तू भी इस दलदल से बाहर आ जा. दौलत की चाह में खुद को मत गिरवी रख. प्लीज, मेरी बात मान ले,’’ आरती ने बहुत समझाया, पर रेखा पर तो दौलत की शह पर ऐश की जिंदगी बिताने का भूत सवार था.

बदनामी होने लगी, तो आरती ने रेखा से दूरी बना ली. रेखा जिस राह पर चल रही थी, वहां का दलदल और गहरा होता गया. एक समय ऐसा आया कि वह चाह कर भी उस गंदगी से बाहर नहीं निकल पाई.

आरती का कालेज पूरा हो गया. उसे जज बनने का बड़ा अरमान था. उस ने दिनरात एक कर के अपना यह मुकाम हासिल भी कर लिया.

उधर रेखा अभी भी भटक रही थी. पैसे की चकाचौंध में अंधी हो कर उस ने अपने जिस्म की मंडी लगा कर पैसे की बरसात तो कर ली, पर अब उस का शरीर जवाब देने लगा था.

एक के बाद एक बुकिंग और देह के सौदागरों द्वारा नोचे जाने से रेखा एक जिंदा लाश में बदल गई थी.

अब रेखा का अपने जिस्म पर हक नहीं रह गया था. जेके नाम के एक दलाल ने उसे अपने हाथों की कठपुतली बना रखा था. वह बुकिंग करता, ग्राहकों से मोटी रकम भी वही वसूलता और रेखा के हिस्से आते चंद रुपए. कई बार तो कईकई घंटों की बुकिंग चलती थी.

2-3 बार तो पुलिस की दबिश में रेखा पकड़ी भी गई. जेल जाना पड़ा, तो वहां पहले से बंद अपराधी किस्म की औरतों के साथ रह कर उसे बहुतकुछ बुरा सीखने को मिला.

जेल से छूटी, तो फिर वही नरक सामने था. उस ने भागने की कोशिश की, तो जेके के गुंडों ने उसे खूब पीटा. मारमार कर उस की चमड़ी उधेड़ दी. नतीजा यह हुआ कि वह फिर जेके के शिकंजे में फंसने को मजबूर हो गई.

रेखा का जिस्म बीमारियों से भर चुका था. उस की ज्यादा हालत बिगड़ी, तो जेके ने उसे सरकारी अस्पताल में भरती करा दिया.

वहां थोड़े दिनों के लिए बुकिंग से छुटकारा मिला, तो उस की तबीयत थोड़ी सुधरने लगी, लेकिन ठीक होते ही जेके ने उसे फिर धंधे पर लगा दिया.

गुस्साई रेखा ने खुद पुलिस को फोन कर के जेके के सारे ठिकानों की सूचना दे दी. दबिश हुई, तो सारा भांड़ा फूट गया. रेखा जैसी कई लड़कियां ग्राहकों के साथ पकड़ी गईं.

जेके का लाखों रुपए का नुकसान करा कर रेखा मन ही मन खुश थी. पुलिस ने सब के बयान लिए और हवालात में बंद कर दिया.

कोर्ट में चालान पेश हुआ, तो जज साहिबा ने हर लड़की से खुद सवाल किए. जब रेखा की बारी आई, तो जज साहिबा को उस की शक्ल कुछकुछ जानीपहचानी सी लगी.

‘‘ऐ लड़की, तेरा नाम क्या है?’’ जज साहिबा ने पूछा, तो वह हंस दी.

‘‘एक नाम हो तो बोलूं जज साहिबा. रीटा, मीना, लिली… न जाने कितने नाम इन दुनिया वालों ने मुझे दिए हैं. इन सब नामों में से किसी भी नाम से मुझे पुकार लीजिए,’’ रेखा ने जवाब दिया.

अब तक जज की कुरसी पर बैठी आरती कुछकुछ अपनी पुरानी सहेली रेखा को पहचान गई थी. लंच में उस ने रेखा को अपने केबिन में बुलाया.

‘‘तुम रेखा हो न?’’ आरती ने पूछा.

‘‘जिस रेखा को तुम जानती हो जज साहिबा, वह तो कब की मर चुकी है. मैं खुद नहीं जानती कि मैं कौन हूं, मेरा नाम क्या है. मैं चाहती भी नहीं कि कोई मुझे जाने या पहचाने,’’ रेखा बोली.

‘‘मैं आरती हूं… तेरी सहेली. यह क्या हाल बना रखा है तू ने रेखा?’’ आरती आगे बढ़ी, तो रेखा पीछे हट गई.

‘‘नहीं जज साहिबा, मुझे मत छूना. मैं नहीं चाहती कि आप मेरे इस दागदार जिस्म को हाथ भी लगाएं.

‘‘मुझे माफ कर दो आरती. मुझे तुम से हमदर्दी की भीख नहीं चाहिए. मुझे इंसाफ देना, बस यही कहना है,’’ कहते हुए रेखा केबिन से बाहर आ गई.

आरती उसे रोकना चाहती थी, पर ऐसा कर न सकी. लंच खत्म होने को था. अपनी आंखों में आए आंसुओं को पोंछते हुए वह इंसाफ की कुरसी पर जा बैठी.

दाढ़ी की आड़ में : क्या मिल पाया शेखू मियां को औलाद का सुख

शेखू मियां के घर पर ठहरे मौलाना ने बताया कि हर मुसलिम को शौक के साथ दाढ़ी रखना लाजिम है. यह खुदा का नूर है. इस से मोमिन की अलग पहचान होती है.

‘बात हक और सच की है,’ कहते हुए सभी ने हां में हां मिलाई.

मौलाना रोज शरीअत की बातें बताते. धीरेधीरे यह बात फैली और आसपास के लोग इकट्ठा हो कर उन की हर बात ध्यान से सुनते और उन पर अमल करते.

जब भी उन के चाहने वालों ने उन से उन का नामपता जानना चाहा, तो वे बात को टाल देते. खुद शेखू मियां को नहीं मालूम कि वे कहां से आए?

शेखू मियां के औलाद नहीं थी. गांव के आसपास के इलाकों में उन की काफी शोहरत थी. वे नौकरचाकर, खेती को देखते और 5 वक्त की नमाज करते. मौलाना की बातों से वे उन के दीवाने हो गए.

मौलाना ने कहा, ‘‘मेरा दुनिया में कोई नहीं. दो वक्त का खाना और कपड़े, सिर छिपाने के लिए छत और इबादत… इस के सिवा मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’

मौलाना की बात पर यकीन कर शेखू मियां ने उन्हें मसजिद में रख लिया.

‘‘शादाब बेटा, तुम्हें हम आलिम बनाना चाहते हैं,’’ अब्बू ने कहा.

‘‘ठीक है अब्बू, मैं मदरसे में जाने को तैयार हूं.’’

‘‘तो ठीक है,’’ अब्बा ने कहा.

2 दिन बाद शादाब के अब्बू शहर के मदरसे में उसे भरती करा आए.

‘‘देखो बेगम, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं. मैं ने खाने व रहने का बंदोबस्त मदरसे में ही कर दिया है. वहां और भी लड़के हैं, जो तालीम ले रहे हैं,’’ मौलाना ने बीवी को सम?ाया.

उन का बेटा शादाब शहर में तालीम पाने लगा. अभी उस की तालीम पूरी भी नहीं हो पाई थी कि एक सड़क हादसे में उस के अब्बूअम्मी का इंतकाल हो गया. शादाब पढ़ाई छोड़ कर घर आ गया.

घर पर उस के चाचाचाची, 2 बच्चे थे. शादाब वहीं उन के साथ रहने लगा. शादाब की चाची पढ़ीलिखी, निहायत खूबसूरत, चुस्तचालाक व आजाद खयालों की औरत थी.

वह शादाब से खूब हंसीमजाक करती, उस के आसपास मंडराती रहती. घर पर उस का ही हुक्म चलता.

‘‘सुनो शादाब मियां, जवानी में बु?ाबु?ा सा चेहरा, दाढ़ी अच्छी नहीं लगती. नए जमाने के साथ चलो. अब कौन मदरसे में पढ़ाई कर रहे हो.’’

चाची के कहने पर उस ने दाढ़ी साफ करा ली. नए फैशन के कपड़े पहनना शुरू कर दिया. वह चाची का दिल नहीं तोड़ना चाहता था, बल्कि वह चाची को मन ही मन चाहने लगा था.

चाचा को शादाब की यह हरकत बिलकुल पसंद नहीं थी कि वह उस की बीवी के पास रहे.

तभी एक दिन नौकरानी ने कहा, ‘‘अंदर जा कर देखिए… क्या तमाशा हो रहा है?’’

इधर एक कचरा उड़ कर शादाब की चाची की आंख में चला गया था.

‘‘शादाब देखना… मेरी आंख में कचरा चला गया है, जरा निकाल दो,’’ कह कर वह पलंग पर लेट गई और शादाब ?ाक कर उस की आंख से कचरा निकालने लगा.

शादाब का पूरा जिस्म चाची पर ?ाका देख कर चाचा जोर से चिल्लाया, ‘‘यह क्या हो रहा है?’’

‘‘कुछ नहीं, आंख में कचरा चला गया था. शादाब से निकालने को कहा… और क्या?’’ कह कर वह पलंग से उठ कर खड़ी हो गई.

चाचा शादाब की खोटी नीयत को पहचान गया. उस ने गांव वालों के साथ मिल कर ऐसी चाल चली कि उस की खूबसूरत बीवी शादाब की बुरी नीयत से बच जाए और शादाब की जायदाद भी हड़पी जा सके.

‘‘क्यों मियां, मदरसे में यही तालीम मिली है कि तुम मदरसा छोड़ते ही दाढ़ीमूंछ रखना भूल जाओ? कौन कहेगा तुम्हें आलिमहाफिज?’’

खोटी नीयत, नए पहनावे, बगैर दाढ़ी के पा कर पंचायत ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. पंचायत में मौजूद मुल्लामौलवी

ने शादाब को गांव से बाहर रहने का तालिबानी हुक्म सुना दिया.

शादाब भटकता हुआ शेखू मियां के गांव पहुंचा. उस ने सालभर में नमाजियों की तादाद बढ़ा ली. उस के चाहने वालों की तादाद में इजाफा होता गया. इसी बीच उस ने ऐसी शैतानी हरकत की, जिसे सुन कर इनसानियत भी शर्मसार

हो गई.

वह शेखू मियां को भाई साहब और उस की बीवी को भाभीजान कहता था.

एक दिन उस ने शेखू मियां से कहा, ‘‘भाभी बीमारी से परेशान हैं. इन्हें दवा के साथ दुआ की भी जरूरत है. भाभी जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’

‘‘वह तो ठीक है. आदमी ढूंढ़ना पड़ेगा,’’ शेखू ने कहा.

‘‘उस की जरूरत नहीं. मैं जो हूं…’’ शादाब ने कहा, ‘‘आप कहें, तो मैं कल से भाभीजान के लिए तावीज फूंकने का इंतजाम करा दूं.’’

‘‘ठीक है,’’ शेखू मियां ने कहा.

अगले दिन शादाब ने भाभीजान को तावीज दिया. इस से शेखू की बीवी को आराम लगने लगा. उन्होंने राहत की सांस ली.

अब दवा और दुआ दोनों साथसाथ चलने लगीं.

शेखू मियां की खूबसूरत बीवी के बदन पर सोने के गहने को देख कर शादाब के अंदर का शैतान जाग उठा. वह भूल गया कि मदरसे में बच्चों को तालीम देने के साथसाथ नमाज भी पढ़ता है. नमाजी परहेजी मौलाना है. लोग उस की इज्जत करते हैं.

‘‘मौलाना, आज मेरा पूरा जिस्म दर्द कर रहा है. सीने में जलन हो रही है,’’ शेखू मियां की बीवी ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं राख से ?ाड़ देता हूं,’’

और फिर हाथ में कुछ राख ले कर शादाब बुदबुदाया. फिर राख को ही बेगम की बांहों पर मलने लगा. पराए मर्द के हाथ लगाते ही उसे अजीब सा महसूस हुआ, पर उसे अच्छा लगा शादाब का जिस्म छूना.

और फिर सिलसिला चल पड़ा. दोनों करीब आते गए और उन में जिस्मानी ताल्लुकात बन गए.

दोनों के बीच सालभर रंगरलियां चलीं. धीरेधीरे उन के बीच इतनी मुहब्बत बढ़ गई कि वे दुनिया को भूल बैठे.

यह खबर शेखू मियां तक पहुंची, पर वह मौलाना को नेकनीयत, काबिल इनसान, नमाजीपरहेजी सम?ा कर इसे सिर्फ बदनाम करने की साजिश सम?ा बैठा और जब बात हद से ज्यादा गुजर गई, तो उस ने इस की आजमाइश करनी चाही.

‘‘सुनो बेगम, मैं एक हफ्ते के लिए बाहर जा रहा हूं. तुम घरखेती पर नजर रखना. नौकर भी मेरे साथ जा रहा है. हफ्तेभर की तो बात है,’’ शेखू ने कहा.

‘‘जी, आप बेफिक्र रहें, मैं सब संभाल लूंगी,’’ बेगम ने कहा.

‘‘देखो मौलाना, अब हम एक हफ्ते के लिए बेफिक्र हैं. तुम्हारे भाई साहब एक हफ्ते बाद लौटेंगे, तब तक हम जी भर के मिलेंगे. डर की कोई बात नहीं,’’ बेगम ने मौलाना शादाब से कहा.

अब शेखू की गैरहाजिरी में दिल खोल कर मिलनेजुलने का सिलसिला चला. तीसरे दिन शेखू मियां अचानक रात में घर आ पहुंचे.

अपनी बीवी को मौलाना की गिरफ्त में देख कर शेखू मियां का खून खौल उठा. गवाही के लिए नौकर को भी बुला कर अपनी मालकिन का नजारा दिखा दिया. फिर चुपके से वह खेत के घर में जा कर सो गए.

सुबह गांव की पंचायत शेखू के बुलावे पर जमा हुई. कानाफूसी का दौर चला.

‘‘पंचायत की कार्यवाही शुरू की जाए,’’ एक बुजुर्ग ने कहा.

‘‘अरे भई, मौलाना को तो आने दो,’’ एक सदस्य ने कहा.

‘‘उन की ही तो पंचायत है,’’ एक नौजवान ने कहा.

‘वह कैसे?’ सभी एकसाथ कह उठे.

शेखू मियां ने तफसील से बात पंचों को बताई. लोगों का शक ठीक था.

‘‘बीवी का शौहर रहते हुए पराए मर्द से हमबिस्तरी करना, दाढ़ी की आड़ में एक नमाजी का मसजिदमदरसे में तालीम के नाम पर वहशीपन करना मजहब की आड़ में घिनौनी साजिश है.’’

‘‘अनपढ़ औरतें जल्दी ही मजहब के नाम पर ढोंग, अंधविश्वास, तांत्रिक के बहकावे में तावीज, गंडे, ?ाड़नेफूंकने के नाम पर अपना सबकुछ लुटा देती हैं, इसलिए औरतमर्द का पढ़ालिखा, सम?ादार होना जरूरी है, ताकि वे धर्म के इन ठेकेदारों, शैतानों के बहकावे में न आ सकें,’’ कह कर शेखू चुप हो गए.

तभी एक बुजुर्ग ने कहा, ‘‘दोनों को पंचायत में बुलाया जाए.’’

जमात के कहने पर 2 आदमी मौलाना और शेखू की बीवी को लेने गए.

लौट के आ कर उन्होंने बताया कि मसजिद में न तो मौलाना है और न घर पर शेखू की बेगम.

 

रातोंरात नैशनल क्रश बनी तृप्ति डिमरी

Bollywood News in Hindi: तृप्ति डिमरी फिल्म ‘एनिमल’ के बाद रातोंरात इंटरनैट सैंसेशन बन गई है. वह आईएमडीबी पौपुलर रेटिंग में सब से ज्यादा पसंद की जाने वाली टौप सैलेब है. इंटरनैट की मायावी दुनिया में कौन कितना टिक पाया है, जानें.

सोशल मीडिया किसी को ऊंचाई पर उठाता है तो किसी को नीचे गिरा देता है. फिल्म ‘एनिमल’ में काम करने वाली हौट एंड क्यूट तृप्ति डिमरी आज इंटरनैट सैंसेशन बन चुकी है. वह रातोंरात नैशनल क्रश बन चुकी है, सोशल मीडिया पर छाई हुई है, उस की शौर्ट क्लिप्स, पिक्चर्स खूब वायरल हो रही हैं.

तृप्ति ने वैसे तो पहले भी कुछ फिल्मों में काम किया है लेकिन फिल्म ‘एनिमल’ में आने के बाद वह बुलंदियों पर है. फिल्म में तृप्ति ने जोया का किरदार निभाया है. फिल्म की लीड ऐक्ट्रैस रश्मिका मंदाना से कहीं ज्यादा चर्चा बहुत थोड़े समय के लिए स्क्रीन प्रेजैंस देने वाली तृप्ति डिमरी की हो रही है.

हैरानी की बात यह है कि फिल्म रिलीज होने से पहले तृप्ति का नाम प्रमोशन से ले कर ट्रेलर तक कहीं पर भी नहीं था. उन्हें ट्रेलर में मुश्किल से 2 सैकंड दिखाया गया था लेकिन फिल्म रिलीज होने के बाद वह हर जगह है. कम स्क्रीन टाइम के बावजूद ऐक्ट्रैस ने अपनी ऐक्ंिटग स्किल्स और रणबीर के साथ फिल्माए हौट सीन से लोगों के दिलों में जगह बना ली है.

कहा जा रहा है कि इस फिल्म के लिए तृप्ति ने 40 लाख रुपए के तकरीबन फीस चार्ज की थी.

तृप्ति ने इस से पहले ‘कला’, ‘लैला मजनू’ और ‘बुलबुल’ जैसी फिल्मों में काम किया है, जिन से उसे खासी पहचान मिली थी, लेकिन पौपुलेरिटी उसे ‘एनिमल’ से मिली. आईएमडीबी ने ‘पौपुलर इंडियन सैलिब्रिटीज फीचर’ का वीकली एडिशन जारी किया है. इस लिस्ट में ऐक्ट्रैस तृप्ति डिमरी का नाम टौप पर है.

कमाल की बात यह है कि उस ने शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान और जाह्नवी कपूर की बहन खुशी कपूर को पीछे छोड़ दिया है. इन दोनों ऐक्ट्रैसेस ने जोया अख्तर की फिल्म ‘आर्चीज’ से बौलीवुड में डैब्यू किया. एक तरफ जहां तृप्ति को उस के काम के लिए काफी सराहा जा रहा है वहीं इन दोनों अभिनेत्रियों को ट्रोल किया जा रहा है, कहना गलत न होगा कि तृप्ति ने दोनों से लाइमलाइट छीन ली.

तृप्ति का जन्म 23 फरवरी, 1994 को दिनेश प्रसाद डिमरी और मीनाक्षी डिमरी के घर दिल्ली में हुआ. उस का होमटाउन उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग है. उस ने अपनी प्राइमरी एजुकेशन फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश में की. फिर बाद में दिल्ली स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल में एडमिशन लिया.

तृप्ति ने अपनी हायर एजुकेशन दिल्ली विश्वविद्यालय व एफटीआईआई से की. तृप्ति डिमरी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के अरविंदो कालेज से सोशियोलौजी में ग्रेजुएशन किया. उस के बाद से वह एफटीआईआई में है. ऐक्ंिटग प्रोफैशन में हाथ आजमाने से पहले वह एक मौडल भी रह चुकी है.

नैशनल क्रश होने के बाद उस की कुछ पर्सनल पिक्चर्स भी सोशल मीडिया पर वायरल हुईं. इन पिक्चर्स में वह अपने रुमर्ड बौयफ्रैंड करनेश शर्मा के साथ नजर आई.

तृप्ति शाहरुख खान को अपना फेवरेट बौलीवुड ऐक्टर बताती है. बात करें तृप्ति डिमरी के इंस्टाग्राम फोलोअर्स की तो इंस्टैंट बौलीवुड की रिपोर्ट के मुताबिक ‘एनिमल’ की रिलीज से पहले ऐक्ट्रैस के इंस्टा फौलोअर्स की संख्या करीब 7 लाख के आसपास थी. अब 4 मिलियन यानी 40 लाख के इर्दगिर्द है. ये फौलोअर्स बहुत तेजी से बढ़े हैं.

अभिनेत्री तृप्ति डिमरी अपनी फिटनैस के लिए बेहद बैलेंस डाइट मैंटेन करती है. वह डांस करती है, हैल्दी डाइट लेती है. उस के इंस्टाग्राम पेज को देख कर लगता है वह घूमना और एक्सप्लोर करना पसंद करती है, जिन में ज्यूरिख, स्विटजरलैंड की हालिया टूर देखे जा सकते हैं. एक अखबार को दिए इंटरव्यू में उस ने अपने उत्तराखंड को रहने लायक आइडियल जगह बताया है.

आज तृप्ति नैशनल क्रश है. इंटरनैट पर उसे खूब सर्च किया जा रहा है. हालांकि, इंटरनैट किसी को भी ज्यादा समय वेटेज नहीं देता. इस से पहले भी जितने नैशनल क्रश रहे, वे आज कहां गए, कुछ पता नहीं. लाइमलाइट तभी साथ में रहती है जब उस की चमक में खोने की जगह अपने काम से बैलेंस किया जाए. इस से पहले दिशा पाटनी, सोनम बाजवा, संजना सांघी, शर्ली सेतिया, प्रिया प्रकाश वारियर भी रातोंरात फेमस हुए, लेकिन अपने काम से वे अपनी इस चमक को भुना नहीं पाए. आज कोई खास काम इन के पास नहीं है.

वायरल रील्स औफ 2023, इस रील ने तो गजब ही कर डाला

Viral Reels in Hindi: साल 2023 के दौरान तरहतरह की वीडियो रील्स वायरल हुईं, जिन को सोशल मीडिया पर देखने वालों का तांता लगा रहा. ‘मोयेमोये’ की मोह ऐसी लगी कि पूरा देश ‘मोयेमोये’ करने लगा. जी हां, इंस्टाग्राम हो या फेसबुक, अब भी हर जगह ‘मोयेमोये’ छाया हुआ है. और तो और फिल्मस्टार भी इस के मोह से बच नहीं पाए. हाल ही में बौलीवुड के हीरो आयुष्मान खुराना ने एक लाइव परफौर्मेंस के दौरान ‘मोयेमोये’ पर वीडियो बना कर सब को हैरान कर दिया.

‘क्या है सचिन में, लप्पू सा सचिन है, बोलना वापे आवे न, झींगुर सा लड़का है’. मिथिलेश गुप्ता का यह डायलौग तो आप सभी ने सुना ही होगा. कितने ही मीम्स, कितनी ही रील्स इस पर बनीं और यह सब की जबान पर छा गया. मिथिलेश गुप्ता ने ये शब्द सचिन की शारीरिक बनावट पर एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहे. यह पूरा मामला पाकिस्तान से इंडिया भाग कर आई सीमा हैदर से शुरू हुआ था.

इस साल एक नाम हर किसी की जबान पर चढ़ गया. यह नाम जसमीन कौर का है. सोशल मीडिया पर इन की एक के बाद एक कई रील वायरल हो रही हैं. इन्हीं में से एक है ‘मैं ने पहना है लड्डू पीला कलर’. इस रील ने धूम मचा दी है. जिसे देखो वह इसी औडियो पर रील बना रहा है. अगर आप ने यह वायरल वीडियो नहीं देखी, तो जल्दी से जा कर सोशल मीडिया पर देखिए.

‘पानी पानी पानी, अंकलजी, पानी पिला दो, मेरा गला सूख रहा है’. इस साल इंटरनैट पर यह वीडियो खूब वायरल हुआ. यह वीडियो वायरल होने का एक कारण यह भी था कि इस के आने के बाद दिल्ली में बाढ़ आ गई थी. इस पर लोगों ने चुटकी लेते हुए कहा था कि शायद अब बच्चे की प्यास बुझ गई होगी. इस वीडियो के वायरल होने का कारण बच्चे की इरिटेटिंग आवाज है. यह वायरल वीडियो आप को इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक व दूसरे सोशल प्लेफौर्म्स पर मिल जाएगी.

मासूमियत से भरे बच्चे ने जब कहा, “खट्टी टौफी खाई है मैं ने, मैं कुछ भी कर सकता हूं. मेरे चाचा मेरे लिए एयरप्लेन लाए थे, रीटा के लिए डौल लाए थे. मेरे पास तो एयरप्लेन है, पर मेरे एयरप्लेन में सैल खत्म हो गया है,” तो हर कोई बच्चे पर मोहित हो गया. लोगों ने बच्चे की इस वीडियो को वायरल कर दिया. अगर आप को यह वीडियो देखनी है, तो आप इसे इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब किसी पर भी देख सकते हैं.

‘बादल बरसा बिजुली सावन को पानी, चिसोचिसो मौसम छ तातो जवानी’. इंस्टाग्राम पर इस गाने की हजारों वीडियो वायरल हुईं. यह एक नेपाली गाना है, जिस पर नेपाल में रहने वाली 2 बहनों प्रिंसी खतिवडा और प्रिज्मा खतिवडा ने वीडियो बनाई. वे दोनों सनसिल्क नेपाल की ब्रैंड एंबेसडर भी हैं.

यह रील वायरल भले ही 2023 में हुई है, लेकिन यह गाना साल 2004 में आया था. यह नेपाली फिल्म ‘कर्तव्य’ का गाना है. सोशल मीडिया पर इस साल वायरल वीडियो की लिस्ट में यह वीडियो भी शामिल है. इस वीडियो पर 2 मिलियन व्यूज और 5 मिलियन लाइक थे. आप यह वीडियो इंस्टाग्राम अकांउट पर देख सकते हैं.

‘अच्छा अच्छा, ठीक है, समझ गया’, ‘बेकार है भाई, मैं तो टूट गया’, ‘झुक के रहना पड़ेगा मेरे आगे’, ‘यार, मैं इतना सुंदर क्यों हूं, पता नहीं ऐसा क्या है मुझ में’. सोशल मीडिया पर इस साल ये भी रील्स छाई रहीं. आप जान कर हैरान होंगे कि ये सभी वीडियो सिर्फ एक ही शख्स की हैं, जिस का नाम पुनीत सुपरस्टार है. यह लोगों के बीच ‘लार्ड पुनीत’ के नाम से फेमस है. उस के इंस्टाग्राम पर 2.7 मिलियन फौलोअर्स हैं. पुनीत का हर कंटैंट क्रेजी होता है.

‘हौलेहौले साजना, धीरेधीरे बालमा, ओ हो ओ हो.’ 2 क्यूट बच्चों के गाए गाने का यह वीडियो इस साल इंटरनैट पर छाया रहा. इस वीडियो पर तकरीबन 2 मिलियन व्यूज थे. वैसे यह वीडियो 3 साल पुराना है. पहले यह टिकटौक पर अपलोड किया गया था, लेकिन वायरल इस साल हुआ.

आदिवासी क्रिकेटर रौबिन मिंज की दहाड़, पिता ने कह दी हैरान कर देने वाली बात

Sports News in Hindi: आज की तारीख में रौबिन मिंज एक ऐसा नाम है, जो पूरे देश में चर्चा में है. रौबिन सिंह ने अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व करते हुए आईपीएल क्रिकेट में अपने बूते एक मुकाम बनाया है और अपनी अद्भुत प्रतिभा से जता दिया है कि ‘हम किसी से काम नहीं’.

साल 2023 में 19 दिसंबर को ‘आईपीएल 17’ के लिए दुबई में हुई नीलामी में 21 साल के विकेटकीपर और बाएं हाथ के बल्लेबाज रौबिन मिंज को गुजरात टाइटंस ने 3.60 करोड़ रुपए में खरीदा. इस के साथ ही वे आईपीएल में पहुंचने वाले पहले आदिवासी खिलाड़ी बन गए हैं.

राबिन मिंज ने मीडिया को बताया, “मैं बचपन से ही क्रिकेट टीम में शामिल होने का सपना देखता रहा और अब यह सच हो गया है. हां, इस नीलामी को ले कर मैं यह समझ रहा था कि 20 लाख में भी कोई टीम खरीद ले तो कोई बात नहीं, लेकिन राशि बढ़ती चली गई. टीम में चुने जाने के बाद जब मैं ने अपनी मां से मोबाइल पर बात की तो वे रोने लगीं. पापा भी रोने लगे.”

रौबिन मिंज झारखंड के हैं और भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके महेंद्र सिंह धौनी को अपना आदर्श मानते हैं. वे पिछले कुछ सालों से झारखंड टीम के साथ जुड़े हुए हैं. मजेदार बात यह है कि इस दौरान उन्हें कई बार महेंद्र सिंह धौनी से मुलाकात करने और उन से खेल के गुर सीखने का मौका मिला.

रौबिन मिंज कहते हैं, “धोनी सर ने हमेशा यही कहा कि दिमाग को शांत रख कर खेलो और हमेशा आगे की सोचो.”

रौबिन मिंज गुमला जिले के रायडीह ब्लौक के सिलम पांदनटोली गांव के रहने वाले हैं. यहीं से उन की प्राथमिक शिक्षा हुई और क्रिकेट के प्रति प्रेम जागा. उन के पिता फ्रांसिस जेवियर मिंज एक रिटार्यड सैनिक हैं और फिलहाल रांची एयरपोर्ट पर बतौर सिक्योरिटी गार्ड इनर सर्किल में बोर्डिंग पास चैक करते हैं.

रौबिन मिंज के पिता के मुताबिक, “आईपीएल में रौबिन का चयन सौ फीसदी होगा, इस को ले कर तो मैं तैयार ही था. मैं उतने में ही खुश था. मगर रौबिन को जो ऊंचाई मिली है, वह आनंदित करने वाली है.”

दूसरी तरफ रौबिन की मां एलिस मिंज ने कहा, “इस साल क्रिसमस का इस से बड़ा तोहफा मेरे लिए कुछ नहीं हो सकता. जब से यह खबर मिली है, मुझे तो बस रोना आ रहा है. मेरा तो बस यही सपना है कि जिस तरह धौनी ने झारखंड का नाम रोशन किया है, मेरा बेटा भी करे.”

पिता जेवियर मिंज ने कहा, “जब रौबिन 2 साल का था, तब से ही डंडा ले कर गेंद पर मारना शुरू कर दिया था. मैं खुद भी फुटबाल और हौकी का खिलाड़ी रहा हूं. मैं ने इस को जब टैनिस गेंद ला कर दी तो यह दाएं हाथ के बजाय बाएं हाथ से खेलने लगा. यही बात मेरे मन में घर कर गई, क्योंकि मेरे परिवार में कोई भी बाएं हाथ से काम करने वाला नहीं है. यह भी क्रिकेट खेलने के अलावा सब काम दाएं हाथ से ही करता है. 5 साल की उम्र में मैं ने इसे क्रिकेट कोचिंग में डाल दिया था.”

पहला आदिवासी क्रिकेटर वाली बात पर पिता जेवियर मिंज का कहना है, “हम तो यही कहते हैं कि अगर कोई इतिहास लिखने वाले हैं, तो इस बात को पहले पन्ने पर लिखना चाहिए.”

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