Top 10 Romantic Story in Hindi: टॉप 10 रोमांटिक कहानियां हिंदी में

Romantic Story in Hindi: ‘प्यार’ एक ऐसा अहसास है जिसे हर कोई जीना चाहता है. जब हम किसी से प्यार करते हैं तो उसमें केवल खूबियां ही नजर आती हैं, चाहे वह हमारे साथ धोखा ही क्यों न कर रहा हो. लेकिन हर प्यार के रिश्ते में ऐसा नहीं होता. कई लोग तो अपने प्यार की खातिर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. तो इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं सरस सलिल की  Top 10 Romantic Story in Hindi. प्यार और रिश्ते से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जिससे आपको बहुत कुछ जानने को मिलेगा, क्या वाकई में सच्चा प्यार मिल सकता है? तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने का शौक तो पढ़िए सरस सलिल की Top 10 Romantic Story in Hindi.

1.मुरझाया मन: जब प्यार के बदले मिला दर्द

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‘‘कोई घर अपनी शानदार सजावट खराब होने से नहीं, बल्कि अपने गिनेचुने सदस्यों के दूर चले जाने से खाली होता है,’’ मां उस को फोन करती रहीं और अहसास दिलाती रहीं, ‘‘वह घर से निकला है तो घर खालीखाली सा हो गया है.’’

‘मां, अब मैं 20 साल का हूं, आप ने कहा कि 10 दिन की छुट्टी है तो दुनिया को समझो. अब वही तो कर रहा हूं. कोई भी जीवन यों ही तो खास नहीं होता, उस को संवारना पड़ता है.’

‘‘ठीक है बेबी, तुम अपने दिल की  करो, मगर मां को मत भूल जाना.’’ ‘मां, मैं पिछले 20 साल से सिर्फ आप की ही बात मानता आया हूं. आप जो कहती हो, वही करता हूं न मां.’

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2. अटूट प्यार : यामिनी से क्यों दूर हो गया था रोहित

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‘कितने मस्ती भरे दिन थे वे…’ बीते दिनों को याद कर यामिनी की आंखें भर आईं.

कालेज में उस का पहला दिन था. कैमिस्ट्री की क्लास चल रही थी. प्रोफैसर साहब कुछ भी पूछते तो रोहित फटाफट जवाब दे देता. उस की हाजिरजवाबी और विषय की गहराई से समझ देख यामिनी के दिल में वह उतरता चला गया.

कालेज में दाखिले के बाद पहली बार क्लास शुरू हुई थी. इसीलिए सभी छात्रछात्राओं को एकदूसरे को जाननेसमझने में कुछ दिन लग गए. एक दिन यामिनी कालेज पहुंची तो रोहित कालेज के गेट पर ही मिल गया. उस ने मुसकरा कर हैलो कहा और अपना परिचय दिया. यामिनी तो उस पर पहले दिन से ही मोहित थी. उस का मिलनसार व्यवहार देख वह खुश हो गई.

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3. परख : प्यार व जनून के बीच थी मुग्धा

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मुग्धा कैंटीन में कोल्डड्रिंक और सैंडविच लेने के लिए लाइन में खड़ी थी कि अचानक कंधे पर किसी का स्पर्श पा कर यह चौंक कर पलटी तो पीछे प्रसाद खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘तुम?’’ मुग्धा के मुख से अनायास ही निकला.

‘‘हां मैं, तुम्हारा प्रसाद. पर तुम यहां क्या कर रही हो?’’ प्रसाद ने मुसकराते हुए प्रश्न किया.

‘‘जोर से भूख लगी थी, सोचा एक सैंडविच ले कर कैब में बैठ कर खाऊंगी,’’ मुग्धा हिचकिचाते हुए बोली.

‘‘चलो, मेरे साथ, कहीं बैठ कर चैन से कुछ खाएंगे,’’ प्रसाद ने बड़े अपनेपन से उस का हाथ पकड़ कर खींचा.

‘‘नहीं, मेरी कैब चली जाएगी. फिर कभी,’’ मुग्धा ने पीछा छुड़ाना चाहा.

‘‘कैब चली भी गई तो क्या? मैं छोड़ दूंगा तुम्हें,’’ प्रसाद हंसा.

‘‘नहीं, आज नहीं. मैं जरा जल्दी में हूं. मां के साथ जरूरी काम से जाना है,’’ मुग्धा अपनी बारी आने पर सैंडविच और कोल्डड्रिंक लेते हुए बोली. उसे अचानक ही कुछ याद आ गया था.

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4. लव इन मालगाड़ी: मालगाड़ी में पनपा मंजेश और ममता का प्यार

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देश में लौकडाउन का ऐलान हो गया, सारी फैक्टरियां बंद हो गईं, मजदूर घर पर बैठ गए. जाएं भी तो कहां. दिहाड़ी मजदूरों की शामत आ गई. किराए के कमरों में रहते हैं, कमरे का किराया भी देना है और राशन का इंतजाम भी करना है. फैक्टरियां बंद होने पर मजदूरी भी नहीं मिली.

मंजेश बढ़ई था. उसे एक कोठी में लकड़ी का काम मिला था. लौकडाउन में काम बंद हो गया और जो काम किया, उस की मजदूरी भी नहीं मिली.

मालिक ने बोल दिया, ‘‘लौकडाउन के बाद जब काम शुरू होगा, तभी मजदूरी मिलेगी.’’

एक हफ्ते घर बैठना पड़ा. बस, कुछ रुपए जेब में पड़े थे. उस ने गांव जाने की सोची कि फसल कटाई का समय है, वहीं मजदूरी मिल जाएगी. पर समस्या गांव पहुंचने की थी, दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के सीतापुर के पास गांव है. रेल, बस वगैरह सब बंद हैं.

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5. प्रेम का दूसरा नाम: क्या हो पाई उन दोनों की शादी

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दियाबाती कर अभी उठी ही थी कि सांझ के धुंधलके में दरवाजे पर एक छाया दिखी. इस वक्त कौन आया है यह सोच कर मैं ने जोर से आवाज दी, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैं, रोहित, आंटी,’’ कुछ गहरे स्वर में जवाब आया.

रोहित और इस वक्त? अच्छा है जो पूर्वा के पापा घर पर नहीं हैं, यदि होते तो भारी मुश्किल हो जाती, क्योंकि रोहित को देख कर तो उन की त्यौरियां ही चढ़ जाती हैं.

‘‘हां, भीतर आ जाओ बेटा. कहो, कैसे आना हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, आंटी, सिर्फ यह शादी का कार्ड देने आया था.’’

‘‘किस की शादी है?’’

‘‘मेरी ही है,’’ कुछ शरमाते हुए वह बोला, ‘‘अगले रविवार को शादी और सोमवार को रिसेप्शन है, आप और अंकल जरूर आना.’’

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6. इजहार: सीमा के लिए गुलदस्ता भेजने वाले का क्या था राज?

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मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा.

‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’

‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’

‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’

‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

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7. आहत: शालिनी के प्यार में डूबा सौरभ उसके स्वार्थी प्रेम से कैसे था अनजान

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बहुत तड़के ही शालिनी उठ कर नहाने चली गई. अभी वह ड्रैसिंगटेबल के पास पहुंची ही थी कि सौरभ ने उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बौछार कर दी.

‘‘अरे छोड़ो न, क्या करते हो? रात भर मस्ती की है, फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा,’’ शालिनी कसमसाई.

‘‘मैं तुम्हें जितना ज्यादा प्यार करता हूं, उतना ही और ज्यादा करने का मन करता है.’’

‘‘अच्छा… तो अगर मैं आज कुछ मांगूं तो दोगे?’’

‘‘जान मांगलो, पर अभी मुझे प्यार करने से न रोको.’’

‘‘उफ, इतनी बेचैनी… अच्छा सुनो मैं ने नौकरी करने का निर्णय लिया है.’’

‘‘अरे, मैं तो खुद ही कह चुका हूं तुम्हें… घर बैठ कर बोर होने से तो अच्छा ही है… अच्छा समझ गया. तुम चाहती हो मैं तुम्हारी नौकरी के लिए किसी से बात करूं.’’

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8. उज्ज्वला: क्या सुनिल ने उज्ज्वला को पत्नी के रूप में स्वीकार किया

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सुनील के जाते ही उज्ज्वला कमरे में आ गई और तकिए में मुंह गड़ा कर थकी सी लेट गई. सुनील के व्यवहार से मन का हर कोना कड़वाहट से भर गया था. जितनी बार उस ने सुनील से जुड़ने का प्रयत्न किया था उतनी बार सुनील ने उसे बेदर्दी से झटक डाला था. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जीवन में यह मोड़ भी आ सकता है. शादी से पहले कई बार उपहास भरी नजरें और फब्तियां झेली थीं, पर उस समय कभी ऐसा नहीं सोचा था कि स्वयं पति भी उस के प्रति उपेक्षा और घृणा प्रदर्शित करते रहेंगे. बचपन कितना आनंददायी था. स्कूल में बहुत सारी लड़कियां उस की सहेलियां बनने को आतुर थीं. अध्यापिकाएं भी उसे कितना प्यार करती थीं. वह हंसमुख, मिलनसार होने के साथसाथ पढ़ने में अव्वल जो थी. पर ऐसे निश्चिंत जीवन में भी मन कभीकभी कितना खिन्न हो जाया करता था.

उसे बचपन की वह बात आज भी कितनी अच्छी तरह याद है, जब पहली बार उस ने अपनेआप में हीनता की भावना को महसूस किया था. मां की एक सहेली ने स्नेह से गाल थपथपा कर पूछा था, ‘क्या नाम है तुम्हारा, बेटी?’ ‘जी, उज्ज्वला,’ उस ने सरलता से कहा. इस पर सहेली के होंठों पर व्यंग्यात्मक हंसी उभर आई और उस ने पास खड़ी महिला से कहा, ‘लोग न जाने क्यों इतने बेमेल नाम रख देते हैं?’ और वे दोनों हंस पड़ी थीं. वह पूरी बात समझ नहीं सकी थी. फिर भी उस ने खुद को अपमानित महसूस किया था और चुपचाप वहां से खिसक गई थी.

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9. भूलना मत: नम्रता की जिंदगी में क्या था उस फोन कौल का राज?

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नम्रता ने फोन की घंटी सुन कर करवट बदल ली. कंबल ऊपर तक खींच कर कान बंद कर लिए. सोचा कोई और उठ कर फोन उठा लेगा पर सभी सोते रहे और फोन की घंटी बज कर बंद हो गई.

‘चलो अच्छा हुआ, मुसीबत टली. पता नहीं मुंहअंधेरे फोन करने का शौक किसे चर्राया,’ नम्रता ने स्वयं से ही कहा.

पर फोन फिर से बजने लगा तो नम्रता झुंझला गई, ‘‘लगता है घर में मेरे अलावा यह घंटी किसी को सुनाई ही नहीं देती,’’ उस ने उठने का उपक्रम किया पर उस के पहले ही अपने पिता शैलेंद्र बाबू की पदचाप सुन कर वह दोबारा सो गई. पिता ने फोन उठा लिया.

‘‘क्या? क्या कह रहे हो कार्तिक? मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं होता. पूरे देश में प्रथम स्थान? नहींनहीं, तुम ने कुछ गलत देखा होगा. क्या नैट पर समाचार है?’

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10. सच्ची खुशी: क्या विशाखा को भूलकर खुश रह पाया वसंत?

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वसंत एक जनरल स्टोर के बाहर खड़ा अपने दोस्तों से बातें कर रहा था. उसे आज फिर विशाखा दिखाई दे गई. विशाखा उस के पास से निकली तो उस के दिल में आंधियां उठने लगीं. उस ने पहले भी कई बार आतेजाते विशाखा को देख कर सोचा, ‘धोखेबाज, कहती थी मेरे बिना जी नहीं सकती, अब यही सब अपने दूसरे पति से कहती होगी. बकवास करती हैं ये औरतें.’ फिर अगले ही पल उस के मन से आवाज आई कि तुम ने भी तो अपनी दूसरी पत्नी से यही सब कहा था. बेवफा तुम हो या विशाखा?

वह अपने दोस्तों से विदा ले कर अपनी गाड़ी में आ बैठा और थोड़ी दूर पर ही सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी कर के ड्राइविंग सीट पर सिर टिका कर विशाखा के बारे में सोचने लगा…

वसंत ने विशाखा से प्रेमविवाह किया था. विवाह को 2 साल ही हुए थे कि वसंत की मां उमा देवी को पोतापोती का इंतजार रहने लगा. उन्हें अब विशाखा की हर बात में कमियां दिखने लगी थीं. विशाखा सोचती क्या करे, उस के सिर पर मां का साया था नहीं और पिता अपाहिज थे. बरसों से वे बिस्तर पर पड़े थे. एक ही शहर में होने के कारण वह पिता के पास चक्कर लगाती रहती थी. उस की एक रिश्ते की बूआ और एक नौकर उस के पिता प्रेमशंकर का ध्यान रखते थे.

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‘5वां सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’, इन लोगों ने बाजी मारी

‘5वें सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में इस बार भारी संख्या में आवेदन आए थे. लेकिन जूरी द्वारा फिल्मों में ऐक्टिंग, ऐडिटिंग, संगीत, मारधाड़, कथापटकथा इत्यादि के आधार पर जिन लोगों का चयन किया गया, उस में सब से ऊपर नाम दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ और आम्रपाली दुबे का रहा, क्योंकि इन दोनों सितारों को ऐक्टिंग की ओवरआल श्रेणी में बैस्ट ऐक्टर का अवार्ड दिया गया.

दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ को जहां उन की फिल्म ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ में की गई ऐक्टिंग के लिए बैस्ट ऐक्टर का अवार्ड दिया गया, वहीं आम्रपाली दुबे को फिल्म ‘दाग एगो लांछन’ के लिए बैस्ट ऐक्ट्रैस का अवार्ड दिया गया. रजनीश मिश्र को ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ के लिए बैस्ट डायरैक्टर और बैस्ट म्यूजिक डायरैक्टर का अवार्ड मिला.

‘5वें सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में सब से ज्यादा अवार्ड निशांत उज्ज्वल को मिला. उन्हें विभिन्न कैटेगिरी में कुल 3 अवार्ड मिले, जिस में ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ को बैस्ट फिल्म का, ‘विवाह 3’ के लिए बैस्ट संपूर्ण मनोरंजन प्रदान करने वाली फिल्म और बैस्ट डिस्ट्रीब्यूटर के अवार्ड से नवाजा गया. ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ के लिए ही जनार्दन पांडेय ‘बबलू पंडित’ को बैस्ट लाइन प्रोड्यूसर, प्यारेलाल यादव ‘कविजी’ को बैस्ट गीतकार, प्रियंका सिंह को बैस्ट सिंगर, दिलीप यादव को बैस्ट ऐक्शन, कानू मुखर्जी को बैस्ट कोरियोग्राफर, ज्योति देशपांडेय को बैस्ट फिल्म निर्माता का अवार्ड दिया गया. ‘दाग एगो लांछन’ फिल्म के लिए जितेंद्र सिंह ‘जीतू’ को बैस्ट ऐडिटर, प्रेमांशु सिंह को बैस्ट डायरैक्टर भोजपुरी फैमिली वैल्यूज मूवी, मनोज कुशवाहा को ‘दाग एगो लांछन’ के लिए बैस्ट स्टोरी, विक्रांत सिंह को बैस्ट सैकंड लीड ‘दाग एगो लांछन’ के लिए प्रदान किया गया. ‘विवाह 3’ के आधार पर महेंद्र सेरला बैस्ट डीओपी रहे, वहीं ऐक्ट्रैस पाखी हेगड़े को महिला प्रधान फिल्मों में विशिष्ट योगदान के लिए अवार्ड दिया गया. saras salil award

सिनेमाघरों में लंबे समय तक चलने वाली भोजपुरी फिल्म ‘हीरा बाबू एमबीबीएस’ के हीरो विमल पांडेय को बैस्ट क्रिटिक ऐक्टर का अवार्ड प्रदान किया गया. इसी फिल्म से अखिलेश पांडेय को बैस्ट डायरैक्टर क्रिटिक अवार्ड से नवाजा गया.

इन लोगों को भी ओवरआल कैटेगिरी में मिला अवार्ड

ओवरआल कैटेगिरी में जिन्हें अवार्ड मिले, उन में संजय पांडेय को ‘संघर्ष 2’ में किए गए अभिनय के लिए बैस्ट विलेन का अवार्ड दिया गया, जबकि ‘सिंह साहब द राइजिंग’ के लिए बैस्ट ऐक्टर इन सपोर्टिंग रोल के लिए सुशील सिंह को अवार्ड प्रदान किया गया. विजय श्रीवस्तव को ‘डार्लिंग’ फिल्म के लिए बैस्ट आर्ट डायरैक्टर का अवार्ड मिला.

इस के अलावा राहुल शर्मा को फिल्म ‘डार्लिंग’ के लिए बैस्ट डैब्यू ऐक्टर, रंजन सिन्हा को बैस्ट पीआरओ, आनंद त्रिपाठी को बैस्ट फिल्म पत्रकार, सीपी भट्ट को फिल्म ‘पड़ोसन’ के लिए बैस्ट कौमेडियन, अनारा गुप्ता को फिल्म ‘सनक’ के लिए बैस्ट आइटम नंबर का अवार्ड, रवि तिवारी को फिल्म ‘आसरा’ के लिए बैस्ट असिस्टैंट डायरैक्टर का अवार्ड दिया गया. इस के अलावा फिल्म ‘दादू आई लव यू’ के लिए आर्यन बाबू को बैस्ट चाइल्ड ऐक्टर मेल, ‘अफसर बिटिया’ फिल्म के लिए आयुषी मिश्रा बैस्ट चाइल्ड ऐक्टर फीमेल, प्रमिला घोष को बैस्ट स्टेज परफौर्मेंस, विजय यादव को बैस्ट फोक डांस ‘फरूआही’ के लिए प्रदान किया गया.

राकेश त्रिपाठी और कन्हैया विश्वकर्मा को ‘अफसर बिटिया’ के लिए बैस्ट डैब्यू डायरैक्टर का अवार्ड दिया गया, जबकि ‘आसरा’ फिल्म से बैस्ट डैब्यू ऐक्ट्रैस का अवार्ड सपना चैहान को, हितेश्वर को बैस्ट भोजपुरी रैपर का अवार्ड प्रदान किया गया.

BB 17: विक्की और अंकिता में हुई फिर तकरार, मां की बेइज्जती पर भड़के विक्की जैन

बिग बौस 17 में हमेशा अंकिता लाखेंडे और विक्की जैन की तकारार देखने को मिली है. अब एक बार फिर अपकमिंग एपिसोड़ में दिखाया गया है कि दोनों के बीच फिर जंग छिडेंगी. बीते एपिसोड में शो में फैमिली वीक की शुरुआत देखी गई. इस दौरान विक्की जैन और अंकिता लोखंडे की मम्मियों ने घर में एंट्री मारी. साथ ही दोनों ने अपनी-अपनी मम्मियों के साथ दिल की खूब बातें की.


शो में इस दौरान अंकिता लोखंडे की सासू मां ने उनके पति विक्की जैन को पैर मारने की बात को उठाते हुए उन्हें समझाया भी. जिसके बाद अंकिता लोखंडे परेशान हो गई थीं. विक्की जैन की मां ने उन्हें बताया कि उनकी इस घटना के बाद पापा ने अंकिता की मां को फोन कर पूछा था कि क्या वो भी इस तरह से अपने पति को लात मारती थीं? इस पर अंकिता लोखंडे बैकफुट पर आ जाती हैं और उन्हें कहती हैं कि इस सबमें उनकी मां को बीच में घसीटने की क्या जरूरत है. अब आने वाले वीकेंड का वार एपिसोड में भी ये मुद्दा उठने वाला है.

बता दें कि आने वाले वीकेंड का वार स्पेशल एपिसोड में इस बार सलमान खान नहीं बल्कि फिल्ममेकर करण जौहर आने वाले हैं. करण जौहर शो में आकर बतौर होस्ट घरवालों से तीखे सवाल-जवाब करेंगे. इस दौरान वो विक्की जैन से पूछते हैं कि आखिर उन्होंने अंकिता लोखंडे से यह बात क्यों नहीं पूछी कि वो आपकी मां को सॉरी क्यों कह रही थीं. इस पर अंकिता लोखंडे विक्की को सपोर्ट करते हुए कहती हैं कि वो काफी सपोर्टिव हसबैंड हैं. एंटरटेनमेंट न्यूज में आने वाले वीकेंड का वार को लेकर काफी बज बन गया है.


करण जौहर की बातों के बाद विक्की जैन अंकिता से पूछते हैं कि क्या उनके परिवार ने कभी उनके काम में दखलंदाजी की है. क्या उनके कपड़ों पर टोका-टिप्पणी की है. क्योंकि उनके परिवार की एक खराब इमेज बाहर जा रही है. विक्की के सवालों पर अंकिता कहती हैं, ‘नहीं, आपका परिवार हमेशा काफी सपोर्टिव रहा है.’ विक्की पूछते हैं, ‘क्या मैंने कभी आपके अतीत को लेकर कुछ पूछताछ की.’ अंकिता इस पर भी पति को ही सपोर्ट करते हुए कहती हैं, ‘नहीं, आप हमेशा से बहुत सपोर्टिव और लविंग रहे हो.’ अब इस पर लोग जमकर कमेंट्स कर रहे हैं.

 

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विक्की जैन की मां रंजना जैन ने बिग बॉस 17 के बाद कई मीडिया इंटरव्यूज दिए. इन मीडिया इंटरव्यूज में अंकिता लोखंडे की सासू मां ने उन पर जमकर कटाक्ष किए हैं. जिसके बाद इंटरनेट यूजर्स ने अंकिता लोखंडे की सास को खड़ूस सास का भी टैग दे डाला. अंकिता लोखंडे की सासू मां के इंटरव्यूज जमकर वायरल हुए. जिसमें उन्होंने अंकिता लोखंडे को विक्की जैन के ‘निवेश’ वाले बयान पर रिएक्ट करते हुए कहा था, ‘हीरोइनों को पालने में बहुत पैसे खर्च होते हैं. ऐसे सरलता से तो आ नहीं जाती हैं.बहुत नखरे होते हैं. बहुत पैसा गंवाना पड़ता है.’

Crime: सोशल मीडिया : महिलाएं और झूठ के धंधे का फंदा

Crime in Hindi: आज देश में शहर से गांव गलियों तक विस्तारित सोशल मीडिया के चंगुल में महिलाएं किस तरह फंस रही हैं. यह एक सोचनीय विषय बनकर हमारे सामने आ रहा है, देश में जाने कितनी ऐसी घटनाएं घटित हो चुकी हैं जिसमें पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं सोशल मीडिया के संजाल में फंस कर अपनी अस्मत, अपने गाढ़ी कमाई के लाखों रूपए दोनों हाथों से लूटा चुकी हैं. आज प्रश्न यही है कि आमतौर पर महिलाएं सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म फेसबुक, व्हाट्सएप आदि पर अपेक्षाकृत अधिक क्यों फंसकर अपना सर्वस्व लुटा रही है. ऐसे क्या कारण है कि महिला फेसबुक में मित्रता करती है और आने वाले समय में बर्बाद हो जाती है. आखिर इस लूट का मनोविज्ञान क्या है?

क्या महिलाएं इसके लिए दोषी हैं… क्या महिलाएं इतनी भोली भाली एवं सहज हैं कि फेसबुक की सामान्य सी मित्रता में अपना सब कुछ दांव पर लगा देती हैं. आज सोचने वाला मसला यही है कि यह भयंकर दानव सदृश्य सोशल मीडिया क्यों और कैसे महिलाओं को अपना ग्रास बना रहा है. इसके लिए महिलाएं कैसे अपनी सुरक्षा करें. जैसा की सर्वविदित है फेसबुक एवं सोशल मीडिया का प्लेटफार्म सभी को अपनी और आकर्षित कर रहा है.

जहां यह मंच अपने आप में एक आकर्षण का विषय है, जहां यह हमें एक नई ऊर्जा प्रदान करता है. वहीं यह भी सच है कि छोटी सी चूक आप को बर्बाद कर सकती है इसी का उदाहरण है महिलाओं का सतत सोशल मीडिया के मंच पर शोषण एवं ठगी का शिकार बनना. आइए, आज इस गंभीर मसले पर एक विमर्श को समझे.

विदेशी ठगों की शिकार महिलाएं

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में फेसबुक के जरिए महिलाओं को फंसाकर ठगी करने वाले विदेशी को पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है. आरोपी ने पार्सल से रकम के साथ जूते, बैग भेजने की बात कहते हुए प्रार्थियों से कुल 5 लाख 10 हजार रुपए की ठगी की थी.प्रार्थिया महिला ने थाना सिविल लाइन में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि अगस्त 2019 में प्रार्थिया की दोस्ती फेसबुक के जरिए एलेक्स एंटोनी नामक व्यक्ति से हुई थी.

इसके बाद से दोनों के बीच बातचीत होती रहती थी. इसी दौरान एलेक्स एंटोनी ने प्रार्थिया को फोन पर कुछ आयटम जैसे- जूते, बैग और कुछ पैसे पार्सल करने की बात कही. इसके बाद पार्सल के क्लियरेंस के नाम पर, एंटी टेरेरिस्ट सर्टिफिकेट के नाम पर और फाइनेंस मिनिस्ट्री में टैक्स देने के नाम पर प्रार्थिया से कुल 5,10,000 की ठगी कर ली थी. इसके बाद भी रकम मांगे जाने पर प्रार्थिया को ठगी का अहसास हुआ. उसने आरोपियों के विरूद्ध थाना सिविल लाइन में अपराध पंजीबद्ध कराया.पुलिस ने धारा 420, 34 भादवि. का अपराध पंजीबद्ध मामले की जांच शुरू की.

जांच के लिए गठित पुलिस की विशेष टीम ने पूर्व में इसी तरह के घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए नाइजीरियन गिरोह पर फोकस किया. आरोपियों एवं प्रार्थिया के मध्य फेसबुक के जिस आईडी व मैसेज तथा मोबाइल नंबरों के माध्यम से बातचीत हुई थी, उसका तकनीकी विश्लेषण करने के बाद आरोपी के लोकेशन का पता लगाया और थाना डाबरी क्षेत्र में निवास करने वाले नाइजीरियन नागरिक आरोपी क्रिस्टोफर को पकड़कर कड़ाई से पूछताछ की, जिसमें उसने प्रार्थिया को अपने झांसे में लेकर प्रलोभन देकर पैसे लेने की बात स्वीकार की. पुलिस ने आरोपियों को जेल भेज दिया है. वहीं यह भी तथ्य है कि छत्तीसगढ़ में ही ऐसी अनेक घटनाएं घटी हैं. हाल ही में राजनांदगांव में में भी एक पुलिस अधिकारी की पत्नी से लगभग 45 लाख रुपए की ठगी की घटना घटित हुई है.

महिला वर्ग: सावधान

फेसबुक सोशल मीडिया के मंच पर महिलाएं जिस कदर ठगी जा रही हैं. यह एक दुश्चिंता का विषय बना हुआ है.अक्सर यह खबरें आ रही हैं कि महिलाओं को फेसबुक पर लुभावने वादे करके ठगा जा रहा है दूसरी तरफ सोशल मीडिया में मित्रता करके महिलाओं के साथ उनके दैहिक शोषण की घटनाओं में भी अचानक वृद्धि हो गई है.

इस संदर्भ में पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह कहते हैं -इसका सहज सरल कारण है महिलाओं का भोलापन, वे मीठी- मीठी बातों में पुरुषों की अपेक्षा जल्दी आ फंसती हैं. उन्होंने इस संदर्भ में सुझाव देते हुए उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया में मित्रता चैटिंग सिर्फ और सिर्फ चिर परिचित लोगों से ही किए जाने पर महिलाएं सुरक्षित रह सकती हैं. अनजान व्यक्तियों से मित्रता उन्हें धोखा देने का पूरा सबब बन सकता है.

झूठ का कारोबार ज्यादा….

राजधानी रायपुर में पदस्थ पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा ने इस मसले पर बातचीत करने पर बताया- सोशल मीडिया एक आकर्षक स्थान है जहां महिलाएं युवतियां निरंतर ठगी जा रही है और पुलिस के पास इसकी अनेक शिकायतें आती रहती हैं. अगर महिलाएं इससे बचना चाहें तो इसका सीधा सा सरल तरीका है ऐसे किसी भी मसले पर जब उन्हें आर्थिक प्रलोभन दिया जाता है वह अपने परिजनों से अवश्य चर्चा करें. इस हेतु शासन द्वारा बनाए गए परामर्श केंद्रों से भी महिलाएं परामर्श ले सकती हैं.

सबसे अहम मसला यह है कि फेसबुक को महिलाएं अंतिम सत्य मान लेती है,जबकि यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां झूठ का कारोबार ज्यादा होता है. महिला थोड़ी भी बुद्धिमानी विवेक से काम ले तो वह इस ठगी से बच सकती है हम आज इस लेख के माध्यम से महिलाओं को आगाह करते हुए कहना चाहते हैं कि किसी भी आर्थिक मसले पर एक बार अवश्य सोचें और अपने आंख कान खुले रखें ऐसी स्थिति में वे कदापि ठगी नहीं जाएंगी.

मेरी पत्नी मां बनना चाहती है लेकिन मुझे बच्चा नहीं चाहिए, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 28 साल का नौजवान हूं. मेरी शादी को 2 साल हो गए हैं. मेरी पत्नी बच्चा चाहती है, पर मैं अभी बच्चे की परवरिश का बोझ नहीं उठाना चाहता हूं, लेकिन वह मुझे ऐसा करने के लिए  मजबूर करती है. इस मुद्दे पर कभीकभार हम दोनों की बहस हो जाती है और कलह की वजह बनती है. मैं अपनी पत्नी के इस ‘बच्चा राग’ से परेशान हो गया हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

मां बनना किसी भी औरत की ख्वाहिश और हक होता है, जिसे कोई  पति अपनी पत्नी से छीन नहीं सकता. लगता है कि आप पत्नी को ढंग से सम झा नहीं पा रहे हैं. उसे बताएं कि आज के महंगाई के दौर में बच्चे की परवरिश करना बेहद खर्चीला काम हो चला है, लिहाजा यह जिम्मेदारी तभी  ली जाए जब ठीकठाक पैसा या आमदनी हो जाए.

हो सकता है कि घर में या बाहर की औरतें आप की पत्नी को ताना मारने लगी हों, इसलिए उस का बच्चा राग तेजी से बजने लगता हो. आप पत्नी को भी किसी काम से या नौकरी पर लगा दें. इस से वह बिजी भी रहेगी और घर की आमदनी भी बढ़ेगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

‘डबल इनकम नो सैक्स’ के चक्कर में आप भी तो नहीं

Sex New in Hindi: पति पत्नी का रिश्ता हर रिश्ते से खास होता है. वैसे तो हर रिश्ते में संवेदनाएं, इच्छाएं और अपेक्षाएं निहित हैं, पर इस रिश्ते का खास पहलू है सैक्स. इस के बिना यह रिश्ता दरकने लगता है. लेकिन आज के प्रतिस्पर्धा के युग में आगे बढ़ने की चाहत में युवा दंपतियों को अपने अंतरंग संबंधों की सुध नहीं रहती है. इसीलिए तो पहले ‘डबल इनकम नो किड्स’ का चलन शुरू हुआ और अब ‘डबल इनकम नो सैक्स’ का ट्रैंड बढ़ता जा रहा है.

मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत शैलेश और शुचि सुबह 8 बजे घर से औफिस निकल जाते हैं, पर घर वापसी का समय तय नहीं है. घर लौटने में रात के 9 भी बज जाते हैं. शुचि कहती है कि काम के कारण इतना थक जाते हैं कि जब आपस में बातचीत करने का भी मन नहीं करता तो सैक्स करना तो दूर की बात है. विवाह को 2 वर्ष हो गए हैं. पहला काम तो अपनी जौब को सुरक्षित रखना है और इस के लिए अच्छा आउटपुट देना जरूरी है वरना पता नहीं कब नौकरी से निकाल दिया जाए. इसलिए हमेशा वर्कस्ट्रैस बना रहता है.

इसी तरह मेघा की बात करें तो उस के विवाह को मात्र 1 साल हुआ है. वह एक फाइनैंस कंपनी में काम करती है और पति एक अन्य प्राइवेट कंपनी में. मेघा का औफिस घर से दूर है. वहां पहुंचने में उसे 1 घंटा लग जाता है. वह कहती है कि 2 घंटे आनेजाने के और 8 घंटे की ड्यूटी यानी 10 घंटे घर से बाहर रहना, फिर घर आ कर तुरंत किचन में घुसना, क्योंकि वृद्ध ससुर साथ में हैं. उन के लिए खाना तैयार करना होता है. पति रात 11 बजे तक घर में घुसते हैं. हम इतना थक जाते हैं कि कई सप्ताह तक एकदूसरे से शारीरिक रूप से नहीं मिल पाते. कभी एक तैयार है तो दूसरा थका हुआ. अब तो मानो सैक्स में रुचि ही नहीं है.

सवाल यह है कि वर्किंग कपल्स के बढ़ते चलन का सीधा असर उन की सैक्स लाइफ पर पड़ रहा है. पोर्न साइटों और फेसबुक पर सैक्स तलाशा जाता है, पर बगल में लेटे साथी को देख ठंडे पड़ जाते हैं.

नोएडा के वरिष्ठ मनोचिकित्सक और सैक्सोलौजिस्ट डा. सुनील अवाना कहते हैं कि सैक्स तो पतिपत्नी के आपसी संबंधों की रीढ़ है. यह तो उन के रिश्ते को मजबूत बनाता है. मगर आजकल मेरे क्लीनिक में कई ऐसे दंपती आ रहे हैं जिन की सैक्स में रुचि समाप्त होती जा रही है. इस के कई कारण हैं. पर मुख्य रूप से देखा जाए तो काम के प्रति बढ़ता रुझान और उस से उत्पन्न स्ट्रैस इस का प्रमुख कारण है. आइए जानें कि सैक्स के प्रति घटती रुचि के क्याक्या कारण हैं:

ईगो: शादीशुदा जिंदगी में सैक्स गायब होने का मुख्य कारण है दोनों का ईगो. पहले पति जो भी कहता था पत्नी सिर झुका कर चुपचाप सुन लेती थी, पर अब वह भी कामकाजी हो गई है, इसलिए आरोपप्रत्यारोपों की झड़ी में उस का ईगो भी सामने आ जाता है. जब पतिपत्नी के रिश्तों में अहं की दीवार बढ़ती जाती है, तो हारजीत, आशानिराशा के बीच मन और शरीर की जरूरतें शिथिल पड़ने लगती हैं और फिर धीरेधीरे सैक्स गायब होने लगता है.

महत्त्वाकांक्षी होना: आज का युवावर्ग बहुत ज्यादा महत्त्वाकांक्षी हो गया है. शादी तो करते हैं पर कुछ महीनों बाद यह सोच कर कि अभी तो जवान हैं खूब पैसा कमा लें, खुद को काम में इतना डुबो लेते हैं कि बाकी सब कुछ भूल जाते हैं. पैसा कमाना गलत बात नहीं है, पर अपने स्वास्थ्य और शारीरिक जरूरतों को नजरअंदाज करना गलत है. आज के युवा दंपती चाहते हैं कि उन के पास सभी सुखसुविधाएं हों. महंगी गाड़ी, बड़ा सा फ्लैट आदि. यही महत्त्वाकांक्षा उन्हें काम में पूरी तरह डुबो देती है, जिस का नतीजा सैक्स में घटती रुचि के रूप में सामने आ रहा है.

तनाव: कई युवा दंपती जो ज्यादातर मल्टीनैशनल कंपनियों में कार्यरत हैं उन्हें अपनी जौब को सुरक्षित रखने के लिए काम का तनाव बना रहता है. जब सफलता नहीं मिलती तो परेशान हो जाते हैं. डा. अवाना कहते हैं कि स्ट्रैस का असर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से युवा दंपती को शिथिल कर देता है. पति या पत्नी दोनों में से यदि एक भी तनाव में हो तो उस का सीधा असर सैक्स लाइफ पर पड़ता है. दोनों के बीच शारीरिक दूरी बढ़ जाती है, परिणामस्वरूप कामोत्तेजना कम होने लगती है.

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: पहले जो बीमारियां बढ़ती उम्र में होती थीं. वे अब भरी जवानी में होने लगी हैं जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, वैस्क्यूलर रोग, डिप्रैशन, मोटापा, थायराइड, हारमोन में असंतुलन आदि. उच्च रक्तचाप हो जाए तो पुरुषों में कई बार इरैक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या आ जाती है. ये सब बीमारियां सैक्स लाइफ को प्रभावित करती हैं.

खानपान: सैक्स लाइफ गलत खानपान की आदत से बहुत प्रभावित होती है. जंकफूड, असमय या जब भी भूख लगी कुछ खा लेना, थके होने पर खाना खा कर तुरंत सो जाने आदि से सैक्स लाइफ पर असर पड़ता है. अपच की समस्या भी सैक्स में रुचि घटा देती है.

डा. अवाना के अनुसार युवा दंपतियों को अपनी सैक्स लाइफ को रीचार्ज करने के लिए निम्न बातों को अपनाना चाहिए:

एकदूसरे को वक्त दें: दोनों लोग साथ बैठ कर शांत मन से सोचें कि कैसे एकदूसरे के लिए समय निकाला जा सकता है. हर समस्या का समाधान होता है. युवा दंपती प्रयास करें तो वे अपने व्यस्त जीवन में से सैक्स का पूर्ण आनंद लेने के लिए समझदारी से थोड़ा समय निकाल ही सकते हैं. जिस तरह जिंदा रहने के लिए खाना जरूरी है इसी तरह मैरिज लाइफ को सफल बनाने के लिए सैक्स भी जरूरी है.

विश्वास करना सीखें: विश्वास के बिना कोई रिश्ता नहीं टिक सकता. किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले पार्टनर को एक मौका दें. उस से खुल कर बात करें.

रिस्पैक्ट करें: पतिपत्नी को हमेशा एकदूसरे की रिस्पैक्ट करनी चाहिए. जिस व्यक्ति का आप सम्मान ही नहीं करोगे उस से प्यार कैसे करोगे.

ईगो से बचें: अहंकार और स्वाभिमान में बहुत फर्क होता है. इस फर्क को समझ कर अपने रिश्ते को बचाएं. अहं की तुष्टि के लिए रिश्ते को खत्म करने की कोशिश न करें. आरोप लगाने से कभी किसी रिश्ते में मजबूती नहीं आती है. वह मात्र आप के ईगो को संतुष्ट कर सकता है. कोई एक झुक जाए या माफी मांग ले तो इस में बुराई नहीं है.

कम्यूनिकेट करें: आपस में संवाद बनाए रखें. चाहत की गरमी बरकरार रखना दोनों के हाथ में है. औफिस में 5 मिनट का समय निकाल कर एकदूसरे को कौल कर के प्यार भरी बातें करें. सैक्स की शुरुआत मस्तिष्क से होती है, इसलिए इस के बारे में सोचें, बातें करें. वीकैंड पर औफिस को भूल जाएं, मूवी देखें, रोमांटिक मूड में रहें. रात को रिलैक्स हो कर एकदूसरे को पूरा समय दें.

फिटनैस पर ध्यान दें: व्यायाम की मदद से मूड को फ्रैश बनाए रखने की कोशिश करें. भावनात्मक संतुलन के लिए भी फिजिकल फिटनैस जरूरी है. सिर्फ कैरियर ही नहीं निजी जीवन में भी फिटनैस का अहम रोल है. विशेषज्ञों का मानना है कि सुबह हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज जरूर करें. यदि सुबह यह संभव न हो तो शाम को समय निकालें. ऐसा करने पर डिप्रैशन व स्ट्रैस से दूर रहा जा सकता है.

हर वीकैंड हनीमून: यदि दोनों का बिजी शैड्यूल रहता हो तो वीकैंड पर ऐसा कुछ करें कि हफ्ते भर का स्ट्रैस दूर हो जाए. एक रिसर्च से साबित हुआ है कि लंबे हनीमून के बजाय छोटेछोटे कई हनीमून आप की रिलेशनशिप के लिए बेहतर हैं. आसपास कहीं घूमने निकल जाएं. फिल्म और कैंडल लाइट डिनर का प्रोग्राम बना लें या फिर छुट्टी ले कर कहीं बाहर चले जाएं.

यदि फिर भी कुछ ठीक न हो तो मैरिज काउंसलर की मदद लें. वे मैरिटल थेरैपी के द्वारा दोनों को आमनेसामने बैठा कर, समस्याओं को सुन कर समाधान दे कर पैचअप कराते हैं.

– वरिष्ठ मनोचिकित्सक और सैक्सोलौजिस्ट डा. सुनील अवाना से नीरा कुमार द्वारा बातचीत पर आधारित.

मजारों पर लुटते लोग, क्या है यह गोरखधंधा

Society News in Hindi: उत्तर प्रदेश के शहर रामपुर के पास 4 ऐसी कब्रों की निशानदेही की गई है, जिन के बारे में कहा जा रहा है कि वे कब्रें फर्जी हैं और इस के द्वारा लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है, इसलिए लोगों को जागरूक किया जाए और उन्हें इस की सचाई बताई जाए, ताकि वे धोखा न खाएं.

यह काम कोई और नहीं, खुद बरेलवी उलेमा कर रहे हैं, जबकि ‘फायदा’ होने की खबर ने इस पूरे इलाके को गुलजार कर दिया है.

रामपुर की मजलिस फिक्र इसलामी के मुताबिक, जिला रामपुर के मिलन बिचौला नामक गांव में तकरीबन 6 महीने पहले एक शख्स ने सपने के आधार पर 4 फर्जी कब्रें बना लीं और उन्हें मजारों के तौर पर प्रचारित कर फायदे की अफवाह उड़ा दी. इस के बाद मजारों पर आने वालों का तांता लग गया.

नैनीताल हाईवे इस गांव से गुजर रहा है, जिस पर हर गुरुवार और सोमवार को रोड जाम रहता है. इस हाईवे से डेढ़ किलोमीटर की दूरी है, जिस के बाद एक किलोमीटर जंगल की ओर पोपलर के खेत में कब्रें बनाई गई हैं.

गुरुवार और सोमवार को यह पूरा डेढ़ किलोमीटर का रास्ता पैदल और दोपहिया वाहनों के लिए रहता है, जबकि चारपहिया वाहनों को पहले ही रोक दिया जाता है.

इस पूरे रास्ते में अगरबत्ती, तेल और पानी की सैकड़ों दुकानें लगी रहती हैं. किराए पर मजारों के आसपास की दुकानें नियमित रूप से लगती हैं. 2 बीघा जमीन पर साइकिल स्टैंड बना है. यहां पर 10 से 25 रुपए तक का किराया वसूला जाता है.

एक अंदाज के मुताबिक, हर गुरुवार को अकेले साइकिल स्टैंड से 20 हजार रुपए की आमदनी होती है. ये कब्रें जिस खेत में बनी हैं, वह 60 बीघे का है. इस खेत का मालिक अख्तर खां है. इसी ने सपने के आधार पर इन मजारों को बनाया था. लेकिन इस शख्स ने इन चारों मजारों का इंतजाम अपने हाथ में न ले कर 20 हजार रुपए महीने पर गांव के 3 लोगों को ठेके पर उठा दिया. उन लोगों इन कब्रों से कारोबार करना शुरू कर दिया. कुछ लोगों को फायदे की   झूठी अफवाह फैलाने के लिए किराए पर रख लिया, जो दिनभर इधरउधर घूम कर यह प्रचार करते हैं कि वहां जाने वाले की सारी मुसीबतें दूर हो जाती हैं.

साथ ही, कुछ जवान लड़कियों को भूतप्रेत का ढोंग करने और कब्रों के करीब चीखपुकार मचाने के लिए किराए पर रख लिया गया.

4 अनपढ़ मजदूर अलगअलग चारों कब्रों पर फातिहा के लिए बैठे हैं, जो हर आने वाले से कब्र के पास रखी गोलक में ज्यादा से ज्यादा रुपए डलवाते हैं. वहां 5 गोलकें रखी हुई?हैं. ठेकेदारों की इन कोशिशों का नतीजा यह हुआ कि इन कब्रों से डेढ़ से 2 लाख रुपए की आमदनी हर महीने होने लगी.

मजलिस फिक्र इसलामी के मोहम्मद नासिर रामपुरी के मुताबिक, गोलक की निगरानी करने वाले ब्रजलाल ने बताया कि शाम को पैसे मेरे सामने ही गिने जाते हैं. गुरुवार और सोमवार को हर गोलक से 9 से 10 हजार रुपए और आम दिनों में डेढ़ से 2 हजार रुपए निकलते हैं.

उस ने आगे यह भी बताया कि एक दिन एक शख्स एक गोलक ले कर भाग गया, जिस के बाद 2 सौ रुपए रोजाना की दिहाड़ी पर मु  झे निगरानी के लिए रखा गया है.

इन मजारों के करीब ही गांव का श्मशान घाट है. वहां एक समाधि भी बनी है. गांव के लोगों ने बताया कि ठेकेदार की तरफ से इन कब्रों के करीब 5वीं कब्र बनाने का ढोंग रचा गया.

एक शख्स मोटरसाइकिल से उस जगह आया और कब्रों के पास 2-4 लंबीलंबी सांसें खींच कर बोला कि 5वीं मजार यहां है. योजना के तहत वहां पर कब्र बना दी गई.

कब्र के पास मौजूद मुजाविरों ने उस पर एक चादर डाल दी और चिराग व अगरबत्ती जला दी, फिर अचानक एक लड़की कब्र के पास आई और भूतप्रेत होने का नाटक करने लगी.

मजारों पर आए कुछ लोगों को शक हुआ और उन लोगों ने ढोंगी को पकड़ कर उस की पिटाई कर दी. ऐसा देख लड़की भी खेत की ओर भाग गई.

चारों कब्रों के पास हजारों कागज के पुरजे, जिन पर मन्नतें लिखी हैं, मजार पर बैठा शख्स एक पुरजा लिखने के 25 रुपए लेता है. इस शख्स की दिहाड़ी रोजाना 2 सौ रुपए है और मन्नतों के लालहरे कपड़े बंधे हुए हैं.

ठेकेदार ने अपनी चालाकी से मजारों से आमदनी में बहुत बढ़ोतरी कर ली है, जिस के चलते जमीन मालिक ने इस को दोबारा नीलामी पर देने की बात की और नहीं मानने पर पुलिस में शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

जब जमीन के मालिक ने देखा कि हर महीने के 20 हजार रुपए गए और मजार के नाम पर जमीन भी गई, तो उस ने कब्रों को फर्जी कहना शुरू कर दिया, लेकिन अब न तो ठेकेदार सुनने को तैयार है और न ही इन मजारों पर आने वाली जनता.

मोहम्मद नासिर रामपुरी, जो इन फर्जी कब्रों के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए हैं, ने शहर के एसडीएम को एक मांगपत्र दिया है कि फर्जी कब्रें बनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए.

6 महीने से यह खुला खेल चल रहा था और इस में लोगों को भटका कर जो रकम वसूल की गई है, वह भी उन से वापस ली जाए.

मुनाफा बिचौलियों की जेब में

सरकार गरीबों की बहुत सी चीजों जैसे खाने, खाद, इलाज, गैस, पढ़ाई की कीमत कम रखती है और लागत और वसूले पैसे का फर्क टैक्स से जमा किए पैसे से पूरा करती है. लोग शिकायत करते हैं कि इस में बहुत धांधलियां हैं. सस्ता खाना गरीबों के नाम पर ले कर इकट्ठा किया जाता है और बेच दिया जाता है अमीरों को. मुनाफा बिचौलियों की जेब में. सस्ती गैस के सिलैंडर होटलों, कारखानों को दिए जाते हैं.

इलाज किया नहीं जाता पर दवाओं और वेतन का पैसा भारीभरकम डाक्टरों, नर्सों, अर्दलियों, बिचौलियों की जेब में जाता है. खाद के मामले में तो बड़ी कंपनियों को दोहरातिहरा मुनाफा कमाने का मौका मिलता है. कंपनियां जितना माल बनाया उस से ज्यादा बनाया दिखा कर सरकारी सहायता डकार जाती हैं और कागजों पर बाजार में खाद की बिक्री दिखा जाती हैं. हर सस्ती चीज के पीछे महंगे नेताओं, सरकारी बाबुओं, बिचौलियों और रातोंरात बने धन्ना सेठों की कतारें दिखती हैं.

सरकार अब कह रही है कि बजाय गरीबों को सस्ती चीज देने के, गरीबों को पैसे दे देगी ताकि वे अपने पैसे से जो चाहे बाजार से व लागत दाम पर खरीद सकें. चूंकि अब सरकार ने करोड़ों आधार कार्ड बना डाले हैं, सरकार का कहना है कि इस से बिचौलियों के बिना पैसा सीधे गरीब के बैंक अकाउंट में जा सकता है. किसी हेरफेर की गुंजाइश ही नहीं.

हेरफेर की गुंजाइश ही नहीं का असल मतलब आप समझिए कि अब प्राइवेट बिचौलियों की जरूरत नहीं होगी. अब सारा पैसा सरकारी बाबू बिना नेता, दलाल, उद्योगपति, व्यापारी के हजम कर सकता है. अब सरकार के आकाओं को अपना खजाना लूटने के लिए दूसरों का सहारा नहीं चाहिए. अब ऐसा सिस्टम बनाया गया है कि खरबों (यानी 1 के बाद 11 जीरो) डकारे जा सकें और किसी को कमीशन भी न देना पड़े.

अब तक सस्ती चीजों को बांटने में किसानों की यूनियनें, ट्रांसपोर्टरों की सभा, नेताओं की पार्टियां, बनाने वालों के चैंबर होते थे, जो गड़बड़ में बराबरी का हिस्सा मांगने के लिए एकजुट हो कर हल्ला मचा डालते थे. वे प्रैस में जाते. अदालतों में जाते. करोड़ों की हेराफेरी दिखती. आसानी से चोर माल ले जाते दिख जाते.

अब यह पैसा सरकारी खजाने से निकलेगा हर साल हर आदमी के लिए 1000-2000 या 3000 बस. 5 करोड़ को पहुंचा या 10 करोड़ को कौन कैसे गिनती करेगा? गांव वाले कहते रहेंगे कि पैसा नहीं पहुंचा, सरकार कहती रहेगी चला गया. गरीब बेचारा अब ज्यादा महंगी चीजें खरीदेगा, और भूखा रहेगा, और नंगा रहेगा पर उस की सुनेगा कौन? नेताओं को अपना हिस्सा मिल जाएगा जो गिनती में हजारपांच सौ होंगे, पर लाखों सरकारी बाबू, बैंकर, कंप्यूटर औपरेटर अरबों बना डालेंगे.

इसे कहते हैं कंप्यूटर के जरीए टैक्नो तानाशाही. यह रिश्वतखोरी पर मोनोपोली लाएगा. जिन कुछ लाखों को पैसा मिलेगा वे वाहवाही करेंगे. बाकी की जबान ही नहीं है. सभी पार्टियां मिल कर जनता को लूटेंगी. डायरैक्ट बैनिफिट या बैंक ट्रांसफर में शिकायतें होंगी तो कंप्यूटर साहब पर चांप दो जिसे न पुलिस छू सकती, न अदालत और न प्रैस उस का इंटरव्यू ले सकता है. गरीबों को लूटने का इस से अच्छा उपाय न होगा. वाहवाह, क्या सोच है?

फौजी रामबहादुर : क्या थी कैमरे की कहानी

‘‘मेरी रानी, यह रहा तुम्हारा कैमरा. ऐसा ही चाहिए था न?’’ फौजी रामबहादुर ने बैग से कैमरा निकाल कर माया को देते हुए कहा.

‘‘अरे, वाह. मुझे ऐसा ही कैमरा चाहिए था. फौज की कैंटीन का कैमरा. लो, तुम अभी मेरी तसवीर खींच लो,’’ माया खुशी से चहकते हुए बोली.

रामबहादुर ने माया को अपनी मदमस्त नजरों से देखा. उस दिन वह बेहद खूबसूरत दिख रही थी. वह सजधज कर बाजार जाने वाली थी, तभी रामबहादुर आ गया था. उस ने माया को भींच कर अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बरसात कर दी.

‘‘रुक जाओ, कोई आ जाएगा.  दरवाजा खुला है,’’ माया ने मस्तीभरे लहजे में कहा.

‘‘दरवाजा खुला है, तो बंद हो जाएगा,’’ यह कह कर रामबहादुर ने माया से अलग हो कर फौरन दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘अरे, तुम्हारा क्या इरादा है? अभी मेरा मूड नहीं है. मैं बाजार जा रही हूं. मेरा मेकअप खराब हो जाएगा,’’ माया ने रामबहादुर को रोकते हुए कहा.

‘‘मेकअप फिर से कर लेना. तुम जितनी बार सजोगी, उतनी बार तुम्हारी छवि निखरेगी. अभी तो मुझे मत रोको,’’ यह कह कर रामबहादुर ने माया को कस कर अपनी बांहों में भींच लिया.

माया ने कोई विरोध नहीं किया.

प्यार का खेल खत्म होेने के बाद वह बोली, ‘‘रामबहादुर, मुझे छोड़ कर तुम कहीं मत जाना. तुम ने मेरी उजड़ी जिंदगी में रंग भर दिए हैं. विधवा होने के बाद मैं पूरी तरह टूट चुकी थी, लेकिन तुम ने दोबारा बहार ला दी.’’

रामबहादुर ठंडा पड़ चुका था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता, भले ही मेरी नौकरी छूट जाए.’’

माया अपने पसंदीदा कैमरे पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘मैं फिर से मेकअप कर लूं, तो तुम मेरी तसवीरें खींच देना.’’

‘‘ठीक है, तुम तैयार हो कर आओ,’’  कह कर रामबहादुर पलंग पर लेट गया.

रामबहादुर फौज में था. उस की ड्यूटी सेना की कैंटीन में थी. वह माया के घर में किराए पर रहता था. कुछ दिनों के लिए वह गांव से अपनी पत्नी को लाया था, लेकिन मां की तबीयत ठीक न रहने से वह पत्नी को गांव छोड़ आया था. इस के बाद वह माया की ओर खिंच गया था.

माया केवल फौजियों को ही मकान किराए पर देती थी. उस का कहना था कि फौजी कैंटीन से सस्ता सामान ला कर देते हैं और ज्यादा दिनों तक घर पर कब्जा भी नहीं जमाए रहते, क्योंकि उन का जल्दी ही तबादला हो जाता है. जाते समय वे काफी सामान आधे दाम पर बेच कर चले जाते हैं.

रामबहादुर ने कैंटीन का सामान दे कर माया से नजदीकी बढ़ाई. मुफ्त में सामान पा कर माया उस की तरफ खिंचती चली गई.

माया 30 साल की थी. 5 साल पहले अपने पति की एक सड़क हादसे में हुई मौत के बाद वह टूट चुकी थी. अपनी और अपने 7 साल के बेटे मुनमुन की चिंता उसे खाए जा रही थी.

माया का पति एक कंपनी में मैनेजर था. कंपनी के मालिक ने माया को क्लर्क की नौकरी दे दी थी, लेकिन उस का चालचलन ठीक न होने से बाद में उसे निकाल दिया गया.

नौकरी छूटने के बाद माया की रोजीरोटी का जरीया 10 कमरों का मकान ही था. 2 कमरों में वह खुद रहती थी और 8 कमरे किराए पर दिए हुए थे.

रामबहादुर के आने के बाद माया की सारी समस्याएं दूर हो गई थीं. वह उसे हर तरह का सुख दे रहा था.

माया अकसर उस से कैंटीन के किसी न किसी सामान की फरमाइश करती रहती थी.

बात तब की है, जब रामबहादुर माया के लिए कैमरा नहीं लाया था.

एक दिन माया ने पूछा था, ‘रामबहादुर, तुम्हारी कैंटीन में अटैची, कंबल, कैमरा भी तो मिलता होगा न?’

‘सबकुछ मिलता है. बोलो, क्या चाहिए तुम्हें?’ रामबहादुर ने कहा था.

‘फिलहाल तो कैमरा चाहिए,’ यह कह कर माया ने पूछा था, ‘ला दोगे न?’

‘हां, आज ही ला दूंगा कैमरा. ड्यूटी पर जा रहा हूं. लौटूंगा तो कैमरा साथ होगा,’ यह कह कर रामबहादुर ड्यूटी पर चला गया था.

फौजी रामबहादुर से कैमरा पा कर माया बेहद खुश थी. इस के बाद तो उस ने रामबहादुर से कंबल, अटैची और शराब भी मंगवाई.

रामबहादुर कुछ सामान खरीद कर लाता, तो कुछ चुरा कर. उस की चोरी इसलिए नहीं पकड़ी जा रही थी, क्योंकि उस ने अपनी मीठी जबान से अफसरों का दिल जीत रखा था.

उसी कैंटीन में रामबहादुर का दोस्त श्रवण भी काम करता था. उसे शक हो गया था कि रामबहादुर माया की दीवानगी में सैनिक का फर्ज भूल कर चोरी कर रहा है.

उस ने रामबहादुर को खूब समझाया कि वह माया का साथ छोड़ दे और ईमानदारी से ड्यूटी करते हुए अपने घरपरिवार की ओर ध्यान दे.

रामबहादुर उस की बातें सुन कर ‘हांहां’ करता और फिर शराब का नशा करते ही सबकुछ भूल जाता.

एक दिन श्रवण ने रामबहादुर को कैंटीन से सामान चुराते हुए पकड़ लिया.

‘‘देखो श्रवण, तुम मेरे काम में दखल न दो, वरना यह गुस्ताखी तुम्हें बहुत महंगी पड़ेगी,’’ रामबहादुर ने धमकाते हुए कहा.

‘‘नहीं रामबहादुर, नहीं. मैं एक सच्चा फौजी हूं. अपनी मौजूदगी में मैं तुम्हें गलत काम नहीं करने दूंगा. कैंटीन का सामान केवल फौजी भाइयों और उन के परिवार के लिए है. यहां का सामान चोरी करने के लिए नहीं है,’’ यह कह कर श्रवण ने रामबहादुर के हाथ से सामान से भरा बैग छीन लिया.

‘‘तू ने यह क्या किया बे? रुक, मैं अभी तेरी शिकायत अफसर से करता हूं,’’ रामबहादुर गरजा.

‘‘तू क्या शिकायत करेगा मेरी? मैं ने तुझे गलत काम करते हुए पकड़ा है. तेरी शिकायत तो मैं करूंगा,’’ श्रवण ने फटकार लगाई.

श्रवण ने रामबहादुर की शिकायत तमाम अफसरों से की, लेकिन उस की सुनवाई कहीं नहीं हुई. उलटे अफसरों ने श्रवण को ही डांट दिया.

अफसरों के रवैए से श्रवण बेहद दुखी हुआ. उस के मन में आया कि वह सेना की नौकरी छोड़ दे, लेकिन घर की माली हालत ठीक न होने के चलते वह मन मार कर रह गया.

इधर रामबहादुर के गलत काम पर रोक नहीं लगी. वह बदस्तूर कैंटीन का सामान चुरा कर ले जाता रहा. उस पर ईमानदारी का ठप्पा जो लगा हुआ था.

माया के प्रेमजाल में फंस कर वह सैनिक का फर्ज भूल गया था. क्या वह वही रामबहादुर था, जिस ने अपने स्टडीरूम में एक बड़े अफसर की तसवीर टांग रखी थी और उसे देख कर ही वह सेना में जाने का सपना देखा करता था?

जब उस का सपना पूरा हुआ था, तो उस के मातापिता, भाईबहन और गांव के लोग कितने खुश हुए थे. गांव में उस की कितनी जरूरत है. लेकिन अगर इस घिनौनी हरकत का पता चलेगा, तो लोग क्या कहेंगे?

अब रामबहादुर को इस बात की परवाह नहीं थी. वह तो माया का दीवाना था. लेकिन कुछ दिनों बाद माया उस से तनख्वाह के पैसे भी मांगने लगी. यह भी कहने लगी कि वह अपने घर पर पैसे न भेजा करे.

रामबहादुर ने उसे काफी समझाने की कोशिश की, पर उस पर कोई असर नहीं पड़ा. उस ने कहा, ‘‘पत्नी जैसा सुख मैं तुम्हें देती हूं और तुम हो कि सारा पैसा घर भेज देते हो. आखिर तुम्हारी कमाई पर मेरा भी तो हक है.’’

रामबहादुर को यह सब पसंद नहीं था. उसे माया में दिलचस्पी कम होने लगी. उन दोनों के बीच अकसर झगड़ा होने लगा.

रामबहादुर जिस माया पर मरमिटा था, अब उस से वह अपना पिंड छुड़ाना चाहता था.

एक रात को माया ने रामबहादुर को गुंडों से पिटवा दिया.

रामबहादुर को गहरी चोट लगी थी, लेकिन बदनामी के डर से उस ने किसी को कुछ नहीं बताया.

श्रवण को जब यह मालूम हुआ, तो उस से रहा न गया. वह उस के पास गया. उस ने रामबहादुर के घर वालों को बुलाया और बराबर उस की देखरेख करता रहा.

अब रामबहादुर को अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था. उस ने श्रवण से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘श्रवण, मुझे माफ कर दे भाई.

‘‘मैं अपना फर्ज भूल गया था. उस सैनिक का फर्ज, जो देश की आन, बान और शान के लिए खुशीखुशी अपनी जान न्योछावर कर देता है. मैं अपने साथियों का हिस्सा बेच रहा था. मेरी अक्ल मारी गई थी.

‘‘जिस माया के लिए मैं चोरी करता था, उसी ने मेरे साथ मारपीट कराई. लेकिन भाई, यह बात किसी से मत कहना. अब मैं कोई गलत काम नहीं करूंगा,’’ कहते हुए रामबहादुर की आंखों में आंसू थे.

श्रवण को असलीनकली आंसुओं की पहचान थी. उसे यकीन हो गया कि रामबहादुर को अपनी करनी पर पछतावा है. वह उसे गले लगा कर बोला, ‘‘मुझे खुशी है कि तुम देर से ही सही, पर संभल गए. चलो, मैं ने तुम्हें माफ किया.

‘‘बेहतर होगा कि तुम माया का घर छोड़ दो और पुरानी बातों को भूल कर एक सच्चे सैनिक का फर्ज निभाओ.

‘‘और हां, गांव तुम्हारे चलते ही बिगड़ा है. आइंदा कभी वहां शराब मत ले जाना.’’

‘‘ठीक है भाई. मैं माया का घर छोड़ दूंगा. मुझे नहीं मालूम था कि वह इतना नीचे गिर सकती है.

‘‘हां, मैं मानता हूं कि गांव के लड़के मेरे चलते ही शराब के आदी हुए हैं. अब मैं कभी वहां शराब नहीं ले जाऊंगा और उन्हें समझाऊंगा कि वे शराब कभी न पीएं,’’ रामबहादुर ने कहा.

ठीक होने के बाद रामबहादुर ने माया का घर छोड़ दिया. माया ने कोई विरोध नहीं किया, क्योंकि वह किसी और को अपने जाल में फंसा चुकी थी.

रामबहादुर का माया से पिंड छूटा. वह दूर किराए का मकान ले कर अपनी पत्नी के साथ सुख से रहने लगा. जब कभी उसे माया की याद आती, तो उस का मन नफरत से भर उठता.

वह सोचता, ‘कहां पत्नी का प्यार और कहां माया का मायाजाल.’

थोड़ी सी बेवफाई : प्रिया के घर सरोज ने ऐसा क्या देख लिया

कपड़े सुखातेसुखाते सरोज ने एक नजर सामने वाले घर की छत पर भी डाली. उस घर में भी अकसर उसी वक्त कपड़े सुखाए जाते थे. हालांकि उस घर में रहने वाली महिला से सरोज की अधिक जानपहचान नहीं थी, फिर भी कपड़े सुखातेसुखाते रोजाना होने वाले वार्त्तालाप से ही आपसी दुखसुख की बातें हो जाती थीं.

बातों ही बातों में सरोज को पता चला कि उस महिला का नाम प्रिया है और उस के पति का नाम प्रकाश. प्रकाशजी एक बैंक औफिसर थे तथा घर के पास ही एक बैंक में कार्यरत थे. प्रकाश एवं प्रिया की एक छोटी बेटी थी- पाखी. छोटा सा खुशहाल परिवार था. छुट्टी के दिन वे अकसर घूमने जाते थे.

प्रकाशजी बहुत ही सुंदर एवं हंसमुख स्वभाव के थे, यह सरोज को भी नजर आता था पर प्रिया स्वयं भी सदा उन की तारीफों के पुल बांधा करती थी.

‘‘देखिए न भाभीजी, आज ये फिर मेरे लिए नई साड़ी ले आए. मैं ने तो मना किया था, पर माने ही नहीं. मेरा बहुत खयाल रखते हैं ये,’’ एक दिन प्रिया ने बड़े ही गर्व से बताया.

‘‘अच्छी बात है… सच में तुम्हें इतना हैंडसम, काबिल और प्यार करने वाला पति मिला है,’’ कह सरोज ने मन ही मन सोचा, काश दुनिया में सभी विवाहित जोड़े इसी प्रकार खुश रहते तो कितना अच्छा होता. एक आदर्श पतिपत्नी हैं दोनों.

सरोज और प्रिया की बातचीत का मुद्दा अकसर उन का घरपरिवार ही हुआ करता था, जिस में भी प्रिया की 80 फीसदी बातें प्रकाशजी की प्रशंसा और प्यार से जुड़ी होती थीं.

एक दिन प्रिया ने सरोज से कहा, ‘‘भाभीजी, मेरे पापा की तबीयत बहुत खराब है. अब मुझे कुछ दिन उन के पास जाना होगा. मन तो नहीं मानता कि प्रकाश को अकेले छोड़ कर जाऊं, पर क्या करूं मजबूरी है. प्लीज, आप थोड़ा इन का ध्यान रखिएगा. खानेपीने की व्यवस्था तो बैंक में ही हो जाएगी… उस की मुझे कोई चिंता नहीं है, पर हमारा घर सारा दिन सूना रहेगा… आप आतेजाते एक नजर इधर भी डाल लिया करना.’’

‘‘ठीक है, तुम बेफिक्र हो कर जाओ,’’ सरोज ने कहा और फिर प्रिया के जाने के बाद वह एक पड़ोसिन की जिम्मेदारी निभाते हुए आतेजाते एक नजर उन के घर पर भी डाल लेती थी.

इन दिनों प्रकाशजी को बैंक में वर्कलोड ज्यादा था, इसलिए वे काम में काफी व्यस्त रहते थे. सरोज से उन की मुलाकात नहीं हो पाती थी.

प्रिया को गए 15 दिन से ऊपर हो गए थे, परंतु वह अभी तक लौटी नहीं थी. प्रकाशजी भी दिखाई नहीं देते थे. सरोज को चिंता होने लगी थी कि कहीं उस के पिताजी की तबीयत ज्यादा खराब तो नहीं हो गई… पूछे तो किस से…

रात के 11 बजे थे. सरोज अपने घर के मेन गेट पर ताला लगाने के लिए बाहर आई तो सामने वाले घर के आगे प्रकाशजी की गाड़ी रुकती दिखी. गाड़ी का दरवाजा खुला और उस में से एक महिला भी प्रकाशजी के साथ उतरी.

‘‘अरे लगता है प्रिया आ गई,’’ सरोज चहकी और आवाज देने ही वाली थी कि उस महिला की वेशभूषा और शारीरिक गठन देख कर रुक गई.

‘नहींनहीं यह प्रिया नहीं लगती. प्रिया कभी जींसटौप नहीं पहनती और न ही वह इतनी दुबलीपतली है. बालों का स्टाइल भी प्रिया से बिलकुल अलग है.

यह प्रिया नहीं कोई और है,’ सोच कर सरोज दरवाजे की ओट में छिप कर खड़ी हो गई. उस ने देखा कि प्रकाशजी ने उस महिला को घर के अंदर चलने का इशारा किया और फिर दोनों घर के अंदर चले गए.

हो सकता है यह प्रकाशजी के बैंक की सहकर्मचारी हो. किसी काम की वजह से आई हो, सरोज ने सोचा, ‘पर रात के 11 बजे ऐसा क्या काम है. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं,’ सरोज को बड़ा अटपटा सा लग रहा था. इसी सोच में उसे सारी रात नींद नहीं आई. सिर भारी होने के कारण वह अगले दिन सुबह जल्दी उठ गई ताकि चाय बना कर पी सके.

‘बाहर से अखबार ले आती हूं. 6 बजे तक आ ही जाता है,’ सोच कर सरोज बाहर बरामदे में निकली तो प्रकाशजी को उसी महिला के साथ घर से बाहर निकल गाड़ी की ओर बढ़ते देखा.

अचानक प्रकाशजी की नजरें सरोज की नजरों से मिली और तत्क्षण ही झुक भी गईं मानो उन की कोई चोरी पकड़ी गई हो. वे चुपचाप गाड़ी में बैठ गए, साथ में वह महिला भी. शायद वे उसे छोड़ने जा रहे थे. सरोज का भ्रम सही था.

‘बाप रे, कितना बहुरुपिया है यह आदमी… दिखाने को तो अपनी पत्नी से इतना प्रेम करता है और उस के पीछे से यह गुल खिला रहा है,’ सरोज मन ही मन बुदबुदाई.

सरोज मन ही मन सोचने लगी कि पूरी रात यह औरत प्रकाशजी के साथ घर में अकेली थी… सच इस दुनिया में किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता. अरे, इस से अच्छे तो वे पति हैं, जो भले ही अपनी बीवियों से रातदिन लड़ते रहते हों, पर दिल से प्रेम करते हैं.

ये सब सोचतेसोचते सरोज अंदर आ गई. अखबार ला कर मेज पर पटक दिया. अब न तो उस की रुचि अखबार पढ़ने में रही थी और न ही चाय पीने की इच्छा रही थी. वह चादर ओढ़ कर पलंग पर लेट गई और फिर प्रिया के बारे में सोचने लगी…

कितनी मासूम है प्रिया. बेचारी जातेजाते भी अपने पति की चिंता कर रही थी कि इतने दिन अकेले कैसे रहेंगे… पर यहां तो अलग ही मंजर है. लगता है प्रकाशजी तो इसी दिन का इंतजार कर रहे थे. आने दो प्रिया को… यदि इन बाबूजी की पोल न खोली तो मेरा नाम भी सरोज नहीं. जब प्रिया इन्हें आड़े हाथों लेगी तब पता चलेगा बच्चू को. सारी मौजमस्ती भूल जाएंगे जनाब.

ऐसे पतियों को तो सबक सिखाना ही चाहिए. पत्नियों की तो जरा सी भी गलती इन्हें बरदाश्त नहीं होती. स्वयं चाहे कुछ भी करें… अरे वाह, यह भी कोई बात हुई मर्द जात की… यह तो सरासर अन्याय है पत्नियों के साथ. यह विश्वासघात है. उन्हें इस का फल मिलना ही चाहिए, सोचतेसोचते सरोज को फिर नींद आ गई.

रविवार का दिन था. सरोज ने बालों में शैंपू किया था तथा साथ ही कुछ कपड़े भी धो लिए थे. वह बाल खुले छोड़ कर छत पर गई ताकि धूप में बाल भी सूख जाएं तथा कपड़े भी.

आदतन उस की नजर फिर सामने वाली छत पर पड़ी. आज वहां भी कपड़े सूख रहे थे, ‘यानी प्रिया आ गई है. मुझे उस से मिल कर आना चाहिए. जा कर उस के पिताजी का हालचाल भी पूछ लूं तथा उस के पीछे से उस के पति ने जो कारनामा किया है उस की भी जानकारी बातों ही बातों में उसे दे दूं ताकि वह आगे से सतर्क रहे,’ यह सोच कर सरोज प्रिया के घर चल दी.

सरोज को प्रिया बाहर ही मिल गई. नया सलवारकुरता पहन रखा था तथा हाथ में हैंडबैग था. लगता था कहीं जाने की तैयारी है.

‘‘प्रिया कब आई तुम?

कैसे हैं तुम्हारे पापा?’’ सरोज ने पूछा.

‘‘आज सुबह ही. पापा की तबीयत ठीक है, इसलिए चली आई. स्कूल भी तो मिस हो रहा था पाखी का. इधर इन के फोन पर फोन आ रहे थे कि जल्दी आओ… जल्दी आओ… तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा. सच भाभीजी, ये तो मेरे बिना रह ही नहीं सकते. इसीलिए तो cचली आई वरना कुछ दिन और रह लेती.’’

तभी प्रकाशजी भी आ गए. पाखी उन की गोद में थी और प्रकाशजी उसे बारबार चूम रहे थे. पाखी भी पापापापा कह कर उन से लिपट रही थी.

‘‘हैलो पाखी, कैसी हो? जानती हो मैं ने तुम्हें बहुत मिस किया,’’ सरोज ने प्रकाशजी की ओर देखते हुए पाखी से कहा तो प्रकाशजी ने नजरें झुका लीं और फिर संकोचवश नजरें उठा कर सरोज की ओर देखा मानो अपना अपराध स्वीकार कर रहे हों.

‘‘अरे प्रिया, तुम्हारे प्रकाशजी तो तुम्हारे दीवाने हैं… तुम्हारे बिना ऐसे हो गए थे जैसे प्राण बिना तन. एक दिन तो मुझ से कहने लगे ‘‘भाभीजी, जब बैंक से घर आता हूं तो सूनासूना घर काटने को दौड़ता है. सच, पत्नी, बच्चों के बिना घर घर नहीं लगता.’’

प्रिया के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई. उस ने शरमा कर प्रकाशजी की ओर देखा.

सरोज फिर बोली, ‘‘अरे, मैं ने भी बेवक्त तुम लोगों को किन बातों में उलझा दिया… शायद तुम लोग कहीं जा रहे हो… बहुत दिन हो गए प्रकाशजी को अकेले बोर होते हुए.’’

‘‘हां मूवी देखने जा रहे हैं… लौटते समय किसी रैस्टोरैंट में पिज्जा खाएंगे. प्रिया और पाखी को बहुत पसंद है,’’ प्रकाशजी ने गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए कहा. उन की आंखों में सरोज के प्रति कृतज्ञता झलक रही थी. प्रिया और पाखी गाड़ी में बैठ गईं तथा प्रकाशजी ने गाड़ी स्टार्ट कर दी.

आज तो सरोज प्रिया को बिना कुछ कहे घर लौट आई थी, पर अब उस ने यह निर्णय भी ले लिया था कि वह प्रिया को उस दिन के बारे में कभी कुछ नहीं बताएगी, क्योंकि उस ने महसूस किया कि यदि वह ऐसा करेगी तो यह प्रकाशजी के लिए तो अपमानजनक होगा ही, प्रिया को भी उस से आघात ही पहुंचेगा.

सरोज को लगा कि यदि प्रकाशजी की इस तनिक सी बेवफाई पर परदा ही पड़ा रहने दिया जाए तो उचित होगा. इस तरह कम से कम पतिपत्नी में प्यार का भ्रम बना रहने से एक खुशहाल परिवार तो आबाद रहेगा और शायद भविष्य में प्रकाशजी को भी अपनी भूल व नादानी समझ आ जाए और वे फिर कभी ऐसा न करें, क्योंकि कई बार अपराधी को दंड देने के बजाय माफ करना ज्यादा लाभकारी सिद्ध होता है.

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