Story In Hindi: समुद्र से सागर तक

Story In Hindi: 3 दिनों से बंद फ्लैट की साफसफाई और हर चीज व्यवस्थित कर के साक्षी लैपटौप और मोबाइल फोन ले कर बैठी तो फोन में बिना देखे तमाम मैसेज पड़े थे. लैपटौप में भी तमाम मेल थे. पिछले 3 दिनों में लैपटौप की कौन कहे, मोबाइल तक देखने को नहीं मिला था. मां को फोन भी वह तब करती थी, जब बिस्तर पर सोने के लिए लेटती थी. मां से बातें करतेकरते वह सो जाती तो मां को ही फोन बंद करना पड़ता.

पहले उस ने लैपटौप पर मेल पढ़ने शुरू किए. वह एकएक मैसेज पढ़ने लगी. ‘‘हाय, क्या कर रही हो? आज आप औनलाइन होने में देर क्यों कर रही हैं?’’

‘‘अरे कहां है आप? कल भी पूरा दिन इंतजार करता रहा, पर आप का कोई जवाब ही नहीं आया?’’

‘‘अब चिंता हो रही है. सब ठीकठाक तो है न?’’

‘‘मानता हूं काम में बिजी हो, पर एक मैसेज तो कर ही सकती हो.’’ सारे मैसेज एक ही व्यक्ति के थे.

मैसेज पढ़ कर हलकी सी मुसकान आ गई सरिता के चेहरे पर. उसे यह जान कर अच्छा लगा कि कोई तो है जो उस की राह देखता है, उस की चिंता करता है. उस ने मैसेज टाइप करना शुरू किया.

‘‘मैं अपने इस संबंध को नाम देना चाहती हूं. आखिर हम कब तक बिना नाम के संबंध में बंधे रहेंगे. आप का तो पता नहीं, पर मैं तो अब संबंध की डोर में बंध गई हूं. यही सवाल मैं ने आप से पहले भी किया था, पर न जाने क्यों आप इस सवाल का जवाब टालते रहे. जवाब देने की कौन कहे, आप बात ही करना बंद कर देते हो. आखिर क्यों.?

‘‘एक बात आप अच्छी तरह जान लीजिए. बिना किसी नाम का दिशाहीन संबंध मुझे पसंद नहीं है. हमेशा दुविधा में रहना अच्छा नहीं लगता. पिछले 3 दिनों से आप के संदेश की राह देख रही हूं. गुस्सा तो बहुत आता है पर आप पर गुस्सा करने का हक है भी या नहीं, यह मुझे पता नहीं. आखिर मैं आप के किसी काम की या आप मेरे किस काम के..?

‘‘आप के साथ भी मुझे मर्यादा तय करनी है. है कोई मर्यादा? आप को पता होना चाहिए, अब मैं दुविधा में नहीं रहना चाहती. मैं आप को किसी संबंध में बांधने के लिए जबरदस्ती मजबूर नहीं कर रही हूं. पर अगर संबंध जैसा कुछ है तो उसे एक नाम तो देना ही पड़ेगा. खूब सोचविचार कर बताइएगा.

‘‘मेरे लिए आप का जवाब महत्त्वपूर्ण है. मैं आप की कौन हूं? इतनी निकटता के बाद भी यह पूछना पड़ रहा है, जो मुझे बहुत खटक रहा है. —आप के जवाब के इंतजार में सरिता.’’

सरिता काफी देर तक लैपटौप पर नजरें गड़ाए रही. उन के बीच पहली बार ऐसा नहीं हो रहा था. इस के पहले भी सरिता ने कुछ इसी तरह की या इस से कुछ अलग तरह की बात कही थी. पर हर बार किसी न किसी बहाने बात टल जाती थी. देखा जाए तो दोनों के बीच कोई खास संबंध नहीं था. दोनों कभी मिले भी नहीं थे. एकदूसरे से न कोई वादा किया था, न कोई वचन दिया था.

बस, उन के बीच बातों का ही व्यवहार था. कभी खत्म न हो, ऐसी बातें. उस की बातें सरिता को बहुत अच्छी लगती थीं. दोनों दिनभर एकदूसरे को मेल या चैटिंग करते रहते. बीचबीच में अपना काम कर के फिर चैटिंग पर लग जाते. समयसमय पर मेल भी करते.

दोनों की जानपहचान अनायास ही हुई थी. मेल आईडी टाइप करने में हुई एक अक्षर की अदलाबदली की तरह से. ध्यान नहीं दिया और मेल सैंड हो गया. उस के रिप्लाय में आया. सौरी, सामने से फिर जवाब, करतेकरते दोनों को एकदूसरे का जवाब देने की आदत सी पड़ गई.

जल्दी ही उन की बातें एकदूसरे की जरूरत बन गईं. दोनों का परिचय हुए 3 महीने हो चुके थे, पर ऐसा लगता था, जैसे वे न जाने कब से परिचित हैं, दोनों में गहरा लगाव हो गया था, उन का स्वभाव भी अलग था और व्यवसाय भी, फिर भी दोनों नजदीक आ गए थे.

वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कालेज में हिंदी का प्रोफेसर था. साहित्य का भंडार था उस के पास. कभी वह खुद की लिखी कोई गजल या शायरी सुनाता तो कभी अपनी यूनिवर्सिटी की मजाकिया बातें कह कर हंसाता. सरिता उस की छोटी से छोटी बात ध्यान से सुनती और पढ़ती. उस के साथ के क्षणों में, उस की बातों में आसपास का सब बिसार कर खो सी जाती.

पर जब वह 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई तो मन जैसे अपनी बात कहने को विकल हो उठा. आज दिल की बात कह ही देनी है, यह निश्चय कर के वह दाहिने कान के पीछे निकल आई लट को अंगुलियों में ले कर डेस्क पर रखे लैपटौप की स्क्रीन में खो गई. जैसे वह सामने बैठा है और वह उस की आंखों में आंखें डाल कर अपनी बात कह रही है. वह मैसेज टाइप करने लगी.

‘‘हाय 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई थी. जाने का प्लान अचानक बना, इसलिए तुम्हें बता नहीं सकी, बहुत परेशान किया न तुम्हें? पर सच कहूं, 3 दिनों तक तुम से दूर रह कर मेरे मन में हिम्मत आई कि मैं अपने मन की बात तुम से खुल कर कह सकूं. क्या करूं, थोड़ी डरपोक हूं न? आज तुम्हें मैं अपने एक दूसरे मित्र से मिलवाती हूं. अभी नईनई मित्रता हुई है जानते हो किस से? जी हां, दरिया से… हां, दरिया, समुद्र, सागर…

‘‘नजर में न भरा जा सके, इतना विशाल, चाहे जितना देखो, कभी मन न भरे. इतना आकर्षक कि मन करता है हमेशा देखते रहो. मेरे लिए यह सागर हमेशा एक रहस्य ही रहा है. कहीं कलकल बहता है तो कहीं एकदम शांत तो कहीं एकदम तूफानी.

‘‘समुद्र मुझे बहुत प्यारा लगता है. घंटों उस के सान्निध्य में बैठी रहती हूं, फिर भी थकान नहीं लगती. पर मेरा यह प्यार दूरदूर से है. दूर से ही बैठ कर उस की लहरों को उछलते देखना, उस की आवाज को मन में भर लेना. इस तरह देखा जाए तो यह सागर मेरा ‘लौंग डिसटेंस फ्रेंड’ कहा जा सकता है, एकदम तुम्हारी ही तरह. हम मन भर कर बात करते हैं, कभीकभी एकदूसरे से गुस्सा भी होते हैं, पर जब नजदीकी की बात आती है तो मैं डर जाती हूं. दूर से ही नमस्कार करने लगती हूं.

‘‘पर इस सब को कहीं एक किनारे रख दो. मैं भले ही सागर के करीब न जाऊं, दूर से ही उसे देखती रहूं, पर वह किसी न किसी युक्ति से मुझे हैरान करने आ ही जाता है. दूर रहते हुए भी उस की हलकी सी हवा का झोंका मेरे शरीर में समा जाता है. मजाल है कि मैं उस के स्पर्श से खुद को बचा पाऊं. एकदम तुम्हारी ही तरह वह भी जिद्दी है.

‘‘उस की इस शरारत से कल मेरे मन में एक नटखट विचार आया. मन में आया कि क्यों न हिम्मत कर के एक कदम उस की ओर बढ़ाऊं. चप्पल उतार कर उस की ओर बढ़ी. एकदम किनारे रह कर पैर पानी में छू जाए इतना ही बढ़ी थी. वह पहले से भी ज्यादा पागल बन कर मेरी ओर बढ़ा और मुझे पूरी तरह भिगो दिया. जैसे कह रहा हो, बस मैं तुम्हारी पहल की ही राह देख रहा था, बाकी मैं तो तुम्हें कब से भिगोने को तैयार था.

‘‘मैं उस के इस अथाह प्रेम में डूबी वहीं की वहीं खड़ी रह गई. मैं ने तो केवल पैर धोने के लिए पानी मांगा था, उस ने मुझे पूरी की पूरी अपने में समा लिया था. कहीं सागर तुम्हारा रूप ले कर तो नहीं आया था? शायद नाम की वजह से दोनों का स्वभाव भी एक जैसा हो. वह समुद्र और तुम सागर. दोनों का स्थान मेरे मन में एक ही है. सच कहूं, अगर मैं एक कदम आगे बढ़ाऊं तो क्या तुम मुझे खुद में समा लोगे? —तुम्हारी बनने को आतुर सरिता’’

क्या जवाब आता है, यह जानने के लिए सरिता का दिल जोजोर से धड़कने लगा था. दिल में जो आया, वह कह दिया. अब क्या होगा, यह देखने के लिए वह एकटक स्क्रीन को ताकती रही.

सागर में उछाल मार रहे समुद्र की एक फोटो भेजी. मतलब सरिता की पहल को उस ने स्वीकार कर लिया था.

प्रकृति के नियम के अनुसार फिर एक सरिता बहती हुई अपने सागर मे मिलने का अनोखा मिलन रचने जा रही थी. Story In Hindi

Hindi Story: फंसे ऐश करने में – क्या प्रकाश और सुरेंद्र की लालसा हो पाई पूरी

Hindi Story: सुरेंद्र पहले ऐसा नहीं था. वह अपने परिवार में मस्त रहता था, पर काम करते उस के दोस्त प्रकाश ने उस की सोच बदल दी. वे दोनों सैंट्रल रेलवे मुंबई के तकनीकी विभाग में थे और बहुमंजिला इमारत में अपने फ्लैट में रहते थे.

सुरेंद्र का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था, जबकि प्रकाश का पहली मंजिल पर. सुरेंद्र तकरीबन 54 साल का था और प्रकाश भी उसी का हमउम्र था. दोनों के पत्नी व बच्चे उन के साथ ही रहते थे.एक बार उन दोनों के परिवार वाले त्योहार में शामिल होने के लिए किसी रिश्तेदारी में चले गए.

शाम को दफ्तर से लौटने पर दोनों बैठ कर जाम चढ़ाते, फिर घूमने निकल जाते. खापी कर दोनों देर रात को लौटते.  बच्चे बड़े हो गए थे. उन की पढ़ाई और कैरियर बनाने की चिंता सताने लगती. बड़ी होती बेटियों की शादी की चिंता से छुटकारा पाने के लिए दोनों बोतल खोल कर बैठ जाते. ह्विस्की के रंगीन नशे में आसपास घूमती खूबसूरत लड़कियों को पाने की लालसा उन की बातचीत का मुद्दा बनने लगीं.

बुढ़ाती पत्नियां पुरानी लगने लगीं. वे दोनों किसी जवान लड़की के आगोश में खोने के सपने देखने लगे. प्रकाश ने मौजमस्ती के लिए सुरेंद्र को राजी किया और एक कालगर्ल को ले आया. शराब और शबाब के मेल से दोनों रातें रंगीन करते रहे. बीवीबच्चों के लौट आने पर ही यह सिलसिला बंद हुआ.

दिसंबर का महीना था. मौसम खुशगवार था. प्रकाश अपने परिवार के साथ कहीं बाहर गया था. सुरेंद्र के परिवार वाले भी मुंबई में ही एक रिश्तेदारी में गए थे और उन सब का रात को वहीं रुकने का प्रोग्राम था.दफ्तर से लौटते समय रास्ते में सुरेंद्र को जूली मिल गई.

जूली को वह और प्रकाश 2-3 बार अपने फ्लैट पर ला चुके थे.जूली 35 साल के आसपास की अच्छी कदकाठी की खूबसूरत औरत थी, जो चोरीछिपे कालगर्ल का धंधा कर के चार पैसे कमा लेती थी. लटके?ाटके दिखा कर वह अपने कुछ चुने हुए ग्राहकों को संतुष्ट करने की कला बखूबी जानती थी, इसलिए उस की मांग बनी हुई थी.5 सौ रुपए और 2 बीयर की बोतलों पर सौदा पक्का हुआ.

बृहस्पतिवार का दिन था.रात को तकरीबन 9 बजे अपने वादे के मुताबिक जूली आ गई और दोनों खानेपीने और रासरंग में मस्त हो गए.रात को 2 बजे सुरेंद्र के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. पत्नी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘मैं दरवाजे पर खड़ीखड़ी कालबेल बजा रही हूं और तुम घोड़े बेच कर सो रहे हो क्या? जल्दी से दरवाजा खोलो.’यह सुन कर सुरेंद्र के बदन में डर की एक ठंडी लहर घूम गई.

पत्नी और बेटी ने अगर जूली को देख लिया तो…? पत्नी तो हंगामा खड़ा कर देगी. बेटी को तो वह मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. अड़ोसपड़ोस में जो बदनामी होगी, सो अलग.सुरेंद्र ने जूली को तुरंत पीछे बालकनी से नीचे कूद जाने को कहा.‘‘कैसे?’’ जूली घबरा कर बोली.सुरेंद्र ने डबलबैड की बैडशीट उठा कर बालकनी की रेलिंग से बांध कर लटका दी, पर वह छोटी पड़ रही थी.

उस ने पत्नी की एक साड़ी निकाल कर बैडशीट के निचले सिरे से बांध कर साड़ी लटका दी. अब उस का सिरा नीचे जमीन तक पहुंच रहा था.‘‘इसी चादर और साड़ी की रस्सी को पकड़ कर तुम लटक जाओ और धीरेधीरे उतर जाओ,’’ सुरेंद्र ने जूली को सम?ाते हुए कहा.जूली ने वैसा ही किया.

रस्सी से लटक कर वह नीचे की ओर जाने लगी.यह देख कर सुरेंद्र ने राहत की सांस ली. बालकनी का दरवाजा बंद कर के उस ने कमरे का दरवाजा खोल दिया. पत्नी और बेटी ?ाल्लाती हुईं अंदर आ गईं. थोड़ी ही देर में वे तीनों सो गए.रात के 3 बजे दरवाजे पर जोरजोर से  खटखटाने की आवाज सुन कर ?ां?ालाते हुए सुरेंद्र ने दरवाजा खोला, तो देखा सामने पुलिस खड़ी थी.

डंडा हिलाते हुए इंस्पैक्टर ने बालकनी का दरवाजा खोला और वहां से नीचे ?ांकने लगा. सुरेंद्र की पत्नी और बेटी डर के मारे इंस्पैक्टर को हैरानी से देखने लगीं.‘‘गार्ड ने बताया कि आप का नाम सुरेंद्र है और आप इसी फ्लैट में रहते हैं?’’ इंस्पैक्टर ने सवालिया नजरों से घूरते हुए पूछा. ‘‘जी हां…’’ सुरेंद्र सकपकाते हुए बोला, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आधी रात को अचानक… आखिर बात क्या है?’’‘‘बात बहुत ही गंभीर है मिस्टर सुरेंद्र. हम आप को इसी समय हिरासत में ले रहे हैं.

’’‘लेकिन क्यों?’ सुरेंद्र की पत्नी और बेटी दोनों एकसाथ चिल्लाईं.बालकनी की रेलिंग से बंधी चादर व साड़ी को दिखाते हुए इंस्पैक्टर बोला, ‘‘नीचे एक औरत की लाश पाई गई है. वह इसी रस्सी के सहारे इस फ्लैट से भाग रही थी, मगर साड़ी उस का वजन न सह सकी और गांठ खुल गई, जिस से वह फर्श पर जा गिरी और सिर फट जाने से तुरंत मर गई.’’‘‘वह चोरी कर के भाग रही होगी,’’

पत्नी ने कहा.‘‘नहीं, उसे आप के पति ने आप के आने पर भगाया. वह चोर नहीं कालगर्ल थी. ‘‘मु?ो इस बिल्डिंग के गार्ड ने बताया कि आप रात को 2 बजे बाहर से आई हो. 2 बज कर, 15 मिनट पर गार्ड को किसी के गिरने व चीखने की आवाज सुनाई पड़ी. उस ने जा कर देखा और पुलिस को सूचित किया.’’रात के साढ़े 3 बजे सुरेंद्र को पुलिस गिरफ्तार कर के थाने ले गई और सुबह 10 बजे कोर्ट में पेश कर के रिमांड की मांग की. कोर्ट ने गैरइरादतन हत्या का आरोपी मानते हुए सुरेंद्र को 3 दिन की रिमांड पर पुलिस कस्टडी में दे दिया. Hindi Story

Story In Hindi: वसूली – क्या हुआ था रधिया के साथ

Story In Hindi: रधिया का पति बिकाऊ एक बड़े शहर में दिहाड़ी मजदूर था. रधिया पहले गांव में ही रहती थी, पर कुछ महीने पहले बिकाऊ उसे शहर में ले आया था. वे दोनों एक झुग्गी बस्ती में किराए की कोठरी ले कर रहते थे.

रधिया को खाना बनाने से ले कर हर काम उसी कोठरी में ही करना पड़ता था. सुबहशाम निबटने के लिए उसे बोतल ले कर सड़क के किनारे जाना पड़ता था. उसे शुरू में खुले में नहाने में बड़ी शर्म आती थी. पता नहीं कौन देख ले, पर धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई.

बिकाऊ 2 रोटी खा कर और 4-6 टिफिन में ले कर सुबह 7 बजे निकलता, तो फिर रात के 9 बजे से पहले नहीं आता था. उस की 12 घंटे की ड्यूटी थी.

जब बिकाऊ को महीने की तनख्वाह मिलती, तो रधिया बिना बताए ही समझ जाती थी, क्योंकि उस दिन वह दारू पी कर आता था. रधिया के लिए वह दोने में जलेबी लाता और रात को उस का कचूमर निकाल देता.

बिकाऊ रधिया से बहुत प्यार करता था, पर उस की तनख्वाह ही इतनी कम थी कि वह रधिया के लिए कभी साड़ी या कोई दूसरी चीज नहीं ला पाता था.

एक दिन दोपहर में रधिया अपनी कोठरी में लेटी थी कि दरवाजे पर कुछ आहट हुई. वह बाहर निकली, तो सामने एक जवान औरत को देखा.

उस औरत ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मेरा नाम मालती है. मैं बगल की झुग्गी में ही रहती हूं. तुम जब से आई हो, कभी तुम्हें बाहर निकलते नहीं देखा. मर्द तो काम पर चले जाते हैं. बाहर निकलोगी, तभी तो जानपहचान बढ़ेगी. अकेले पड़ेपड़े तो तुम परेशान हो जाओगी. चलो, मेरे कमरे पर, वहां चल कर बातें करते हैं.’’

रधिया ने कहा, ‘‘मैं यहां नई आई हूं. किसी को जानती तक नहीं.’’

‘‘अरे, कोठरी से निकलोगी, तब तो किसी को जानोगी.’’

रधिया ने अपनी कोठरी में ताला लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

जब वह मालती की झुग्गी में घुसी, तो दंग रह गई. उस की झुग्गी में

2 कोठरी थी. रंगीन टैलीविजन, फ्रिज, जिस में से पानी निकाल कर उस ने रधिया को पिलाया.

रधिया ने कभी फ्रिज नहीं देखा था, न ही उस के बारे में सुना था.

रधिया ने पूछा, ‘‘बहन, यह कैसी अलमारी है?’’

इस पर मालती मन ही मन मुसकरा दी. उस ने कहा, ‘‘यह अलमारी नहीं, फ्रिज है. इस में रखने पर खानेपीने की कोई चीज हफ्तों तक खराब नहीं होती. पानी ठंडा रहता है. बर्फ जमा सकते हैं. पिछले महीने ही तो पूरे 10 हजार रुपए में लिया है.’’

रधिया ने हैरानी से पूछा, ‘‘बहन, तुम्हारे आदमी क्या काम करते हैं?’’

मालती ने कहा, ‘‘वही जो तुम्हारे आदमी करते हैं. बगल वाली कैमिकल फैक्टरी में मजदूर हैं. पर उन की कमाई से यह सब नहीं है. मैं भी तो काम करती हूं. यहां रहने वाली ज्यादातर औरतें काम करती हैं, नहीं तो घर नहीं चले.

‘‘बहन, मैं तो कहती हूं कि तुम भी कहीं काम पकड़ लो. काम करोगी, तो मन भी बहला रहेगा और हाथ में दो पैसे भी आएंगे.’’

‘‘पर मुझे क्या काम मिलेगा? मैं तो अनपढ़ हूं.’’

‘‘तो मैं कौन सी पढ़ीलिखी हूं. किसी तरह दस्तखत कर लेती हूं. यहां अनपढ़ों के लिए भी काम की कमी नहीं है. तुम चौकाबरतन तो कर सकती हो? कपड़े तो साफ कर सकती हो? चायनाश्ता तो बना सकती हो? ऐसे काम कोठियों में खूब मिलते हैं और पैसे भी अच्छे मिलते हैं. नाश्ताचाय तो हर रोज मिलता ही है, त्योहारों पर नए कपड़े और दीवाली पर गिफ्ट.’’

‘‘आज मैं अपनी कमाई में से ही 2 बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हूं. इन की कमाई तो झुग्गी के किराए, राशन और दारू में ही खर्च हो जाती है.’’

‘‘क्या मुझे काम मिलेगा?’’ रधिया ने जल्दी से पूछा.

‘‘करना चाहोगी, तो कल से ही काम मिलेगा. जहां मैं काम करती हूं, उस के बगल में रहने वाली कोठी की मालकिन कामवाली के बारे में पूछ रही थीं. वे एक बड़े स्कूल में पढ़ाती हैं. उन के मर्द वकील हैं. 2 बच्चे हैं, जो मां के साथ ही स्कूल जाते हैं.

‘‘मैं आज शाम को ही पूछ लूंगी और पैसे की बात भी कर लूंगी. मालिकमालकिन अगर तुम्हारे काम से खुश हुए, तो तनख्वाह के अलावा ऊपरी कमाई भी हो जाती है.’’

इस बीच मालती ने प्लेट में बिसकुट और नमकीन सजा कर उस के सामने रख दिए. गैस पर चाय चढ़ा रखी थी.

चाय पीने के बाद मालती ने रधिया से कहा कि वह चाहे, तो अभी उस के साथ चली चले. मैडम 2 बजे घर आ जाती हैं. आज ही बात पक्की कर ले और कल से काम पर लग जा.

मालती ने यह भी बताया कि हर काम के अलग से पैसे मिलते हैं. अगर सफाई करानी हो, तो उस के 3 सौ रुपए. कपड़े भी धुलवाने हों, तो उस के अलग से 3 सौ रुपए. अगर सारे काम कराने हों, तो कम से कम 2 हजार रुपए.

मालती कपड़े बदलने लगी. उस ने रधिया से कहा, ‘‘चल, तू भी कपड़े बदल ले. पैसे की बात मैं करूंगी. चायनाश्ता तो बनाना जानती होगी?’’

‘‘हां दीदी, मैं सब जानती हूं. मीटमछली भी बना लेती हूं,’’ रधिया ने कहा. उस का दिल बल्लियों उछल रहा था. अगर वह महीने में 2 हजार रुपए कमाएगी, तो उस की सारी परेशानी दूर हो जाएंगी.

रधिया तेजी से अपनी झुग्गी में आई. नई साड़ी पहनी और नया ब्लाउज भी. पैरों में वही प्लास्टिक की लाल चप्पल थी. उस ने आंखों में काजल लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

रधिया थी तो सांवली, पर जोबन उस का गदराया हुआ था और नैननक्श बड़े तीखे थे. गांव में न जाने कितने मर्द उस पर मरते थे, पर उस ने किसी को हाथ नहीं लगाने दिया. इस मामले में वह बड़ी पक्की थी.

रास्ते में मालती ने कहा, ‘‘बहन, अगर तुम्हारा काम बन गया, तो मैं महीने की पहली पगार का आधा हिस्सा लूंगी. यहां यही रिवाज है.’’

मालती एक कोठी के आगे रुकी. उस ने घंटी बजाई, तो मालकिन ने दरवाजा खोला.

मालती ने उन्हें नमस्ते किया. रधिया ने भी हाथ जोड़ कर नमस्ते किया. मालती 2 साल पहले उन के घर भी काम कर चुकी थी.

गेट खोल कर अंदर जाते ही मालती ने कहा, ‘‘मैडमजी, मैं आप के लिए बाई ले कर आई हूं.’’

‘‘अच्छा, बाई तो बड़ी खूबसूरत है. पहले कहीं काम किया है?’’ मैडम ने रधिया से पूछा.

मालती ने जवाब दिया, ‘‘अभी गांव से आई है, पर हर काम जानती है. मीटमछली तो ऐसी बनाती है कि खाओ तो उंगलियां चाटती रह जाओ. मेरे इलाके की ही है, इसीलिए मैं आप के पास ले कर आई हूं. अब आप बताओ कि कितने काम कराने हैं?’’

मैडम ने कहा, ‘‘देख मालती, काम तो सारे ही कराने हैं. सुबह का नाश्ता और दिन में लंच तैयार करना होगा. रात का डिनर मैं खुद तैयार कर लूंगी. कपड़े धोने ही पड़ेंगे, साफसफाई, बरतनपोंछा… यही सारे काम हैं. सुबह जल्दी आना होगा. मैं साढ़े 7 बजे तक घर से निकल जाती हूं.’’

इस के बाद मैडम ने मोलभाव किया और पूछा, ‘‘कल से काम करोगी?’’

‘‘मैं कल से ही आ जाऊंगी. जब काम करना ही है, तो कल क्या और परसों क्या?’’ रधिया ने कहा.

रात में जब बिकाऊ घर लौटा, तो रधिया ने उसे सारी रामकहानी सुनाई.

बिकाऊ ने कहा, ‘‘यह तो ठीक है कि तू काम पर जाएगी, पर कोठियों में रहने वाले लोग बड़े घटिया होते हैं. कामवालियों पर बुरी नजर रखते हैं. यह मालती बड़ी खेलीखाई औरत है. जिन कोठियों में काम करती है, वहां मर्दों को फांस कर वह खूब पैसे ऐंठती है. ऐसे ही नहीं, इस के पास फ्रिज और महंगीमहंगी चीजें हैं.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘मुझ पर कोई हाथ ऐसे ही नहीं लगा सकता. गांव में भी मेरे पीछे कुछ छिछोरे लगे थे, पर मैं ने किसी को घास नहीं डाली.

‘‘एक दिन दोपहर में मैं कुएं से पानी भरने गई थी. जेठ की दोपहरी, रास्ता एकदम सुनसान था. तभी न जाने कहां से बाबू साहब का बड़ा लड़का आ टपका और अचानक उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं ने उसे ऐसा धक्का दिया कि कुएं में गिरतेगिरते बचा और फिर भाग ही खड़ा हुआ.

‘‘मैं दबने वाली नहीं हूं. पर मैं ने बात कर ली है. दुनिया में बुरेभले हर तरह के लोग हैं.’’

बिकाऊ ने कहा, ‘‘तू जैसा ठीक समझ. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है.’’

दूसरे दिन रधिया सुबह जल्दी उठी और मालती को साथ ले कर 6 बजे तक कोठी पर पहुंच गई. मालकिन ने उसे सारा काम समझाया.

रधिया ने जल्दी से पोंछा लगा दिया, गैस जला कर चाय भी बना दी.

‘‘तू भी समय से नाश्ता कर लेना. चाहो तो बाथरूम में नहा भी सकती हो. साहब निकल जाएं, तो कुछ कपड़े हैं, उन्हें धो लेना.’’

थोड़ी देर में रधिया साहब के लिए चाय बनाने चली गई. ‘ठक’ की आवाज कर वह कमरे में आ गई और बैड के पास रखी छोटी मेज पर टे्र को रख दिया.

साहब ने रधिया को गौर से देखा और कहा, ‘‘देखना, बाहर अखबार डाल गया होगा. जरा लेती आना.’’

रधिया बाहर से अखबार ले कर आ गई और साहब की तरफ बढ़ा दिया. इसी बीच साहब ने 5 सौ का एक नोट उस की तरफ बढ़ाया.

रधिया ने कहा, ‘‘यह क्या?’’

‘‘यह रख ले. मालती ने तुझ से 5 सौ रुपए ले लिए होंगे. पहले वह यहां काम कर चुकी है.

‘‘तुम ये 5 सौ रुपए ले लो, पर मैडम से मत कहना. तनख्वाह मिलने पर मैं अलग से 5 सौ तुझे फिर दे दूंगा. यह मुआवजा समझना.’’

लेकिन रधिया ने अपना हाथ नहीं बढ़ाया. इस पर साहब ने उसे 5 सौ के

2 नोट लेने को कहा.

रधिया ने साहब के बारबार कहने पर पैसे ले लिए और कपड़े धोने में लग गई. कपड़े धो कर जब तक उन्हें छत पर सुखाने डाला, तब तक साहब नहाधो कर तैयार थे. उस ने उन के नाश्ते के लिए आमलेट और ब्रैड तैयार किया, फिर चाय बनाई.

नाश्ता करने के बाद साहब बोले, ‘‘तू ने तो अच्छा नाश्ता तैयार किया. पर नाश्ते से ज्यादा तू अच्छी लगी.’’

चाय देते समय उस ने जानबूझ कर ब्लाउज का बटन ढीला कर दिया और ओढ़नी किनारे रख दी.

‘‘अब मैं चलता हूं. किसी चीज की जरूरत हो, तो मुझ से कहना. संकोच करने की जरूरत नहीं है.’’

साहब ने उसे टैलीविजन खोलना और बंद कर के दिखाया और अपना बैग रधिया को पकड़ा दिया.

बैग ले कर रधिया उन के पीछेपीछे कार तक गई. साहब ने उस के हाथों से बैग लिया. न जाने कैसे साहब की उंगलियां उस के हाथों से छू गईं.

रधिया भी 2 सैकंड के लिए रोमांचित हो उठी.

साहब के जाने के बाद रधिया ने गेट बंद किया. फिर वह कोठी के अंदर आई और दरवाजा बंद कर लिया.

वह नहाने के लिए बाथरूम में गई. ऐसा बाथरूम उस ने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था. तरहतरह के साबुन, तेल की शीशियां और शैंपू की शीशी, आदमकद आईना.

रधिया को लगा कि वह किसी दूसरी दुनिया में आ गई है. कपड़े उतार कर पहली बार जब से वह गांव से आई थी, उस ने जम कर साबुन लगा कर नहाया और फिर बाथरूम में टंगे तौलिए से देह पोंछ कर मैडम का दिया पुराना सूट पहन कर अपनेआप को आदमकद आईने में निहारा. उसे लगा कि वह रधिया नहीं, कोई और ही औरत है.

अपने कपड़े धो कर रधिया उन्हें भी छत पर डाल आई. फिर बचे हुए परांठे खा लिए. थोड़ी चाय बच गई थी. उसे गरम कर पी लिया, नहीं तो बरबाद ही होती.

धीरेधीरे रधिया ने उस घर के सारे तौरतरीके सीख लिए. वह सारा काम जल्दीजल्दी निबटा देती और किसी को शिकायत का मौका नहीं देती. मैडम उस के काम से काफी खुश थीं. एक महीना कब बीत गया, उसे पता ही नहीं चला. महीना पूरा होते ही मैडम ने उसे बकाया पगार दे दी.

उस दिन वह काफी खुश थी. शाम तक जब वह अपनी झुग्गी में लौटी, तो उस ने सब से पहले एक हजार रुपए जा कर मालती को दे दिए.

मालती ने उसे चाय पिलाई और हालचाल पूछा. उस ने इशारों में ही पूछा कि साहब से कोई दिक्कत तो नहीं.

रधिया ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है.’’

मालती ने कहा, ‘‘अगर तू चाहे, तो शाम को किसी और घर में लग जा. और कुछ नहीं, तो हजार रुपए वहां से भी मिल जाएंगे.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘सोचूंगी… अपने घर का भी तो काम है.’’

साहब तो अपनी चाय उसी से लेते. जब मैडम आसपास न हों, तो उसे ही देखते रहते और रधिया मजे लेती रहती.

रधिया समझ गई थी कि मालिक की निगाह उस की जवानी पर है. वे उसे पैसे देते, तो वह पहले लेने से मना करती, पर वे जबरन उसे दे ही डालते और कहते, ‘‘देख रधिया, अपने पास पैसों की कमी नहीं है. फिर हजार रुपए की आज कीमत ही क्या है? तेरे काम ने मेरा दिल जीत लिया है. कई औरतों ने इस घर में काम किया, पर तेरी सुघड़ता उन में नहीं थी.’’

रधिया चुप रह जाती. साहब कुछ हाथ मारना चाहते थे, पर समझ ही नहीं आता था.

एक दिन मैडम ने उस से कहा, ‘‘रधिया, हमारे स्कूल से टूर जा रहा है. मैं भी जा रही हूं और बच्चे भी, घर में सिर्फ साहब रहेंगे. हमें टूर से लौटने में 10 दिन लगेंगे.

‘‘आनेजाने के टाइम का तुम समझ लेना. साहब को कोई दिक्कत न हो.

‘‘पहले आमलेट बना दे… और तू ऐसा करना, लंच के साथ डिनर भी तैयार कर फ्रिज में रख देना. साहब रात में गरम कर के खा लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ रधिया ने कहा और अपने काम में लग गई.

मैडम की गए 10वां दिन था. रधिया जब ठीक समय पर चाय और पानी का गिलास ले कर साहब के कमरे में पहुंची, तो उन्होंने कहा, ‘‘आज कोर्ट नहीं जाना है. वकीलों ने हड़ताल कर दी है. फ्रिज में एक बोतल पड़ी होगी, वह ले आ. मैं थोड़ी ब्रांडी लूंगा, मुझे ठंड लग गई है.’’

रधिया रसोई में आमलेट बनाने चली गई. आमलेट बना कर उसे प्लेट में रख कर वह साहब के कमरे में गई, तो वे वहां नहीं थे. उस ने सोचा कि शायद बाथरूम गए होंगे. साहब तब तक वहां आ गए थे.

‘‘वाह रधिया, वाह, तू ने तो फटाफट काम कर दिया. तू बड़ी अच्छी है. आ चाय पी.

‘‘ये ले हजार रुपए. मनपसंद साड़ी खरीद लेना.’’

‘‘किस बात के पैसे साहब? पगार तो मैं लेती ही हूं,’’ रधिया ने कहा.

‘‘अरे, लेले. पैसे बड़े काम आते हैं. मना मत कर,’’ कहतेकहते साहब ने उस का हाथ पकड़ लिया और पैसे उस के ब्लाउज में डाल दिए.

रधिया पीछे हटी. तब तक साहब ने उस के ब्लाउज में हाथ डाल दिया था और उस के ब्लाउज के बटन टूट गए थे.

रधिया ने एक जोर का धक्का दिया. साहब बिस्तर पर गिर पड़े. इस बीच रधिया भी उन पर गिर गई.

रधिया ने एक जोरदार चुम्मा गाल पर लगाया और बोली, ‘‘साहब, 5 हजार और दो. देखो, मैडम बच्चों के साथ चली आ रही हैं.’’

साहब ने कहा, ‘‘रधिया, तू जल्दी यहां से निकल,’’ और अपना पूरा पर्स उसे पकड़ा दिया. Story In Hindi

Story In Hindi: बाबा का सच – अंधविश्वास की एक सच्ची कहानी

Story In Hindi: मेरा तबादला उज्जैन से इंदौर के एक थाने में हो गया था. मैं ने बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन आया. रेल चलने के साथ ही उज्जैन के थाने में रहते हुए वहां गुजारे दिनों की यादें ताजा होने लगीं. हुआ यह था कि एक दिन एक मुखबिर थाने में आ कर बोला, ‘‘सर, एक बाबा पास के ही एक गांव खाचरोंद में एक विधवा के घर ठहरा हुआ है. मुझे उस का बरताव कुछ गलत लग रहा है.’’

उस की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया. फिर मेरे पास उस बाबा के खिलाफ कोई ठोस सुबूत भी नहीं था. लेकिन मुखबिर से मिली सूचना को हलके में लेना भी गलत था, सो उसी रात  मैं सादा कपड़ों में उस विधवा के घर जा पहुंचा. उस औरत ने पूछा, ‘‘आप किस से मिलना चाहते हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘दीदी, मैं ने सुना है कि आप के यहां कोई चमत्कारी बाबा ठहरे हैं, इसीलिए मैं उन से मिलने आया हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, अभी तो बाबा अपने किसी भक्त के घर गए हैं.’’

‘‘अगर आप को कोई एतराज न हो, तो क्या मैं आप से उन बाबा के बारे में कुछ बातें जान सकता हूं? दरअसल, मेरी एक बेटी है, जो बचपन से ही बीमार रहती है. मैं उस का इलाज इन बाबा से कराना चाहता हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, जितनी जानकारी मेरे पास है, वह मैं आप को बता सकती हूं.

‘‘एक दिन ये बाबा अपने 2 शिष्यों के साथ रात 8 बजे मेरे घर आए थे.

‘‘बाबा बोले थे, ‘तुम्हारे पति के गुजरने के बाद से तुम तंगहाल जिंदगी जी रही हो, जबकि उस के दादाजी परिवार के लिए लाखों रुपयों का सोना इस घर में दबा कर गए हैं.

‘‘‘ऐसा कर कि तेरे बीच वाले कमरे की पूर्व दिशा वाला कोना थोड़ा खोद और फिर देख चमत्कार.’

‘‘मैं अपने बीच वाले कमरे में गई, तभी उन के दोनों शिष्य भी मेरे पीछेपीछे आ गए और बोले, ‘बहन, यह है तुम्हारे कमरे की पूर्व दिशा का कोना.’

‘‘मैं ने कोने को थोड़ा उकेरा, करीब 7-8 इंच कुरेदने के बाद मेरे हाथ में एक सिक्का लगा, जो एकदम पीला था.

‘‘उस सिक्के को अपनी हथेली पर रख कर बाबा बोले, ‘ऐसे हजारों सिक्के इस कमरे में दबे हैं. अगर तू चाहे, तो हम उन्हें निकाल कर तुझे दे सकते हैं.’

‘‘मैं ने बाबा से पूछा, ‘बाबा, ये दबे हुए सिक्के बाहर निकालने के लिए क्या करना होगा?’

‘‘वे बोले, ‘तुझे कुछ नहीं करना है. जो कुछ करेंगे, हम ही करेंगे, लेकिन तुम्हारे मकान के बीच के कमरे की खुदाई करनी होगी, वह भी रात में… चुपचाप… धीरेधीरे, क्योंकि अगर सरकार को यह मालूम पड़ गया कि तुम्हारे मकान में सोने के सिक्के गड़े हुए हैं, तो वह उस पर अपना हक जमा लेगी और तुम्हें उस में से कुछ नहीं मिलेगा.’

‘‘आगे वे बोले, ‘देखो, रात में चुपचाप खुदाई के लिए मजदूर लाने होंगे, वह भी किसी दूसरे गांव से, ताकि गांव वालों को कुछ पता न चल सके. इस खुदाई के काम में पैसा तो खर्च होगा ही. तुम्हारे पति ने तुम्हारे नाम पर डाकखाने में जो रुपया जमा कर रखा है, तुम उसे निकाल लो.’

‘‘इस के बाद बाबा ने कहा, ‘हम महीने भर बाद फिर से इस गांव में आएंगे, तब तक तुम पैसों का इंतजाम कर के रखना.’

‘‘डाकखाने में रखे 4 लाख रुपयों में से अब तक मैं बाबा को 2 लाख रुपए दे चुकी हूं.’’

‘‘दीदी, क्या मैं आप के बीच वाले कमरे को देख सकता हूं?’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, वैसे तो बाबा ने मना किया है, लेकिन इस समय वे यहां नहीं हैं, इसलिए आप देख लीजिए.’’

मैं फौरन उठा और बीच के कमरे में जा पहुंचा. मैं ने देखा कि सारा कमरा 2-2 फुट खुदा हुआ था और उस की मिट्टी एक कोने में पड़ी हुई थी. मुझे लगा कि अगर अब कानूनी कार्यवाही करने में देर हुई, तो इस औरत के पास बचे 2 लाख रुपए भी वह बाबा ले जाएगा.

मैं ने उस औरत से कहा, ‘‘दीदी, मैं इस इलाके का थानेदार हूं और मुझे उस पाखंडी बाबा के बारे में जानकारी मिली थी, इसलिए मैं यहां आया हूं.

‘‘आप मेरे साथ थाने चलिए और उस बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाइए, ताकि मैं उसे गिरफ्तार कर सकूं.’’

उस औरत को भी अपने ठगे जाने का एहसास हो गया था, इसलिए वह मेरे साथ थाने आई और उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी. चूंकि बाबा घाघ था, इसलिए उस ने उस औरत के घर के नुक्कड़ पर ही अपने एक शिष्य को नजर रखने के लिए  बैठा दिया था. इसलिए उसे यह पता चलते ही कि मैं उस औरत को ले कर उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने थाने ले गया हूं. वह बाबा उस गांव को छोड़ कर भाग गया. इस के बाद मैं ने आसपास के गांवों में मुखबिरों से जानकारी भी निकलवाई, लेकिन उस का पता नहीं चल सका.

मैं यादों की बहती नदी से बाहर आया, तब तक गाड़ी इंदौर रेलवे स्टेशन पर आ कर ठहर गई थी. जब मैं ने इंदौर का थाना जौइन किया, तब एक दिन एक फाइल पर मेरी नजर रुक गई. उसे पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए. रिपोर्ट में लिखा था, ‘गडे़ धन के लालच में एक मां ने अपने 7 साला बेटे का खून इंजैक्शन से निकाला.’ उस मां के खिलाफ लड़के के दादाजी और महल्ले वालों ने यह रिपोर्ट लिखाई थी. यह पढ़ कर मैं सोच में पड़ गया कि कहीं यह वही खाचरोंद गांव वाला बाबा ही तो नहीं है.

मैं ने सबइंस्पैक्टर मोहन से कहा, ‘‘मैं इस मामले में उस लड़के के दादाजी से बात करना चाहता हूं. उन्हें थाने आने के लिए कहिए.’’

रात के तकरीबन 10 बजे एक बुजुर्ग  मेरे क्वार्टर पर आए. मैं ने उन से उन का परिचय पूछा. तब वे बोले, ‘‘मैं ही उस लड़के का दादाजी हूं.’’

‘‘दादाजी, मैं इस केस को जानना चाहता हूं,’’ मैं ने पूछा.

वे बताने लगे, ‘‘सर, घर में गड़े धन के लालच में बहू ने अपने 7 साल के बेटे की जान की परवाह किए बगैर इंजैक्शन से उस का खून निकाला और तांत्रिक बाबा को पूजा के लिए सौंप दिया.’’

‘‘दादाजी, आप मुझे उस बाबा के बारे में कुछ बताइए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, यह बात तब शुरू हुई, जब कुछ दिनों के लिए मैं अपने गांव गया था. फसल कटने वाली थी, इसलिए मेरा गांव जाना जरूरी था. उन्हीं दिनों यह तांत्रिक बाबा हमारे घर आया और बहू से बोला कि तुम्हारे घर में गड़ा हुआ धन है. इसे निकालने से पहले थोड़ी पूजापाठ करानी पड़ेगी.’’

‘‘मेरी बहू उस के कहने में आ गई. फिर उस तांत्रिक बाबा ने रात को अपना काम करना शुरू किया. पहले दिन उस ने नीबू, अंडा, कलेजी और सिंदूर का धुआं कर उसे पूरे घर में घुमाया, फिर उस ने बीच के कमरे में अपना त्रिशूल एक जगह जमीन पर गाड़ा और कहा कि यहां खोदने पर गड़ा धन मिलेगा.

‘‘उस के शिष्यों ने एक जगह 2 फुट का गड्ढा खोदा. चूंकि रात के 12 बज चुके थे, इसलिए उन्होंने यह कहते हुए काम रोक दिया कि अब खुदाई कल करेंगे.

‘‘इसी बीच मेरी 5 साल की पोती उस कमरे में आ गई. उसे देख कर तांत्रिक गुस्से में लालपीला हो गया और बोला कि आज की पूजा का तो सत्यानाश हो गया है. यह बच्ची यहां कैसे आ गई? अब इस का कोई उपचार खोजना पड़ेगा.

‘‘अगले दिन रात के 12 बजे वह तांत्रिक अकेला ही घर आया और बहू से बोला, ‘तू गड़ा हुआ धन पाना चाहती है या नहीं?’

‘‘बहू लालची थी, इसलिए बोली, ‘हां बाबा.’

‘‘फिर बाबा तैश में आ कर बोला, ‘कल रात उस बच्ची को कमरे में नहीं आने देना चाहिए था. अब उस बच्ची को भी ‘पूजा’ में बैठा कर अकेले में तांत्रिक क्रिया करनी पड़ेगी. जाओ और उस बच्ची को ले आओ.

‘‘इस पर मेरी बहू ने कहा, ‘लेकिन बाबा, वह तो सो रही है.’

‘‘बाबा बोला, ‘ठीक है, मैं ही उसे अपनी विधि से यहां ले कर आता हूं.

‘‘अगले दिन सुबह उस बच्ची ने अपनी दादी को बताया, ‘रात को वह तांत्रिक बाबा मुझे उठा कर बीच के कमरे में ले गया और मेरे सारे कपड़े उतार कर उस ने मेरे साथ गंदा काम किया.’

‘‘जब मेरी पत्नी ने बहू से पूछा, तो वह बोली, ‘बच्ची तो नादान है. कुछ भी कहती रहती है. आप ध्यान मत दो.’

‘‘अगले दिन बाबा ने बीच का कमरा खोद दिया. लेकिन कुछ नहीं निकला. फिर वह बाबा बोला, ‘बाई, लगता है कि तुम्हारे ही पुरखे तुम्हारे वंश का खून चाहते हैं, तुम्हें अपने बेटे की ‘बलि’ देनी होगी या उस का खून निकाल कर चढ़ाना होगा.’

‘‘गड़े धन के लालच में मां ने बिना कोई परवाह किए अपने बेटे का खून ‘इंजैक्शन’ से खींचा और उस का इस्तेमाल तांत्रिक क्रिया करने के लिए बाबा को दे दिया.

‘‘यह सब देख कर मेरी पत्नी से रहा नहीं गया और उस ने फोन पर ये सब बातें मुझे बताईं. मैं तभी सारे काम छोड़ कर इंदौर आया और अपने पोते और महल्ले वालों को ले कर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई.’’

‘‘दादाजी, इस समय वह तांत्रिक बाबा कहां है?’’

‘‘सर, मेरी बहू अभी भी उस के मोहपाश में बंधी है. चूंकि उसे मालूम पड़ चुका है कि मैं ने उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है, इसलिए वह हमारे घर नहीं आ रहा है, लेकिन मैं उस पर नजर रखे हुए हूं.’’

सुबह एक मुखबिर आया और बोला, ‘‘सर, एक सूचना मिली है कि अपने इलाके की एक मलिन बस्ती में एक तांत्रिक आज ही आ कर ठहरा है.’’

रात के 12 बजे मैं अपने कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचा. एक पुलिस वाले ने एक मकान से  धुआं निकलते देखा. हम ने चारों तरफ से उस मकान को घेर लिया. जब मैं ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया, तो एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘क्या है? यहां पूजा हो रही है. आप जाइए.’’

इतना सुनते ही मैं ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया और बीच के कमरे में पहुंचा. मुझे देखते ही वह तांत्रिक बाबा भागने की कोशिश करने लगा, तभी मेरे साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और गाड़ी में डाल कर थाने ले आए.

थाने में थर्ड डिगरी देने पर उस ने अपने सारे अपराध कबूल कर लिए, जिस में खाचरोंद गांव में की गई ठगी भी शामिल थी. मैं थाने में बैठा सोच रहा था कि अखबारों में गड़े धन निकालने के बारे में ऐसे ठग बाबाओं की खबरें अकसर छपती ही रहती हैं, फिर भी न जाने क्यों लोग ऐसे बाबाओं के बहकावे में आ कर अपनी मेहनत की कमाई को उन के हाथों सौंप कर ठगे जाते हैं? Story In Hindi

Hindi Kahani: साहब की चतुराई – क्या था रामलाल का आइडिया?

Hindi Kahani: तबादले पर जाने वाला नौजवान अफसर विजय आने वाले नौजवान अफसर नितिन को अपने बंगले पर ला कर उसे चपरासी रामलाल के बारे में बता रहा था. नितिन ने जब चपरासी रामलाल की फिल्म हीरोइन जैसी खूबसूरत बीवी को देखा, तो वह उसे देखता ही रह गया. नितिन बोला, ‘‘यार, तुम्हारी यह चपरासी की बीवी तो कमाल की है. तुम ने तो इस के साथ खूब मजे किए होंगे?’’ ‘‘नहीं यार, ये छोटे लोग बहुत ही धर्मकर्म पर चलते हैं और इस के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं. ये लोग पद और पैसे के लिए अपनी इज्जत को नहीं बेचते हैं. मैं ने भी इसे लालच दे कर पटाने की खूब कोशिश की थी, मगर इस ने साफ मना कर दिया था.’’

यह सुन कर नितिन विजय की ओर हैरानी से देखने लगा.

नितिन को इस तरह देख विजय अपनी सफाई में बोला, ‘‘ये छोटे लोग हम लोगों की तरह नहीं होते हैं, जो अपने किसी काम को बड़े अफसर से कराने के लिए अपनी बहनबेटियों और बीवियों को भी उन के साथ सुला देते हैं. हमारी बहनबेटियों और बीवियों को भी सोने में कोई दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि वे तो अपने स्कूल और कालेज की पढ़ाई करते समय अपने कितने ही बौयफ्रैंड्स के साथ सो चुकी होती हैं.’’ इतना सुन कर नितिन मन ही मन  उस चपरासी की बीवी को पटाने की तरकीब सोचने लगा.

विजय से चार्ज लेने के बाद नितिन अपने सरकारी बंगले में रहने लग गया था. शाम को जब वह अपने बंगले पर आया, तो चपरासी रामलाल उस से बोला, ‘‘साहब, आप को शराब पीने का शौक हो तो लाऊं? पुराने साहब तो रोजाना पीने के लिए बोतल मंगवाते थे.’’

‘‘और क्याक्या मंगवाते थे तुम्हारे पुराने साहब?’’

चपरासी रामलाल बोला, ‘‘कालेज में पढ़ने वाली लड़की भी मंगवाते थे. वे पूरी रात के उसे 2 हजार रुपए देते थे.’’ ‘‘ले आना,’’ सुन कर नितिन ने उस से कहा, तो वह उन के लिए शराब की बोतल और उस लड़की को ले आया था.

उस लड़की और उस अफसर ने शराब पी कर रातभर खूब मजे किए. जाते समय नितिन ने उसे 3 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि वह चपरासी रामलाल से कहे कि तुम्हारे ये कैसे साहब हैं, जिन्होंने रातभर मेरे साथ कुछ किया ही नहीं था, बल्कि मुझे छुआ भी नहीं था, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए मुफ्त में दे दिए हैं.’’ उस लड़की ने चपरासी रामलाल से यह सब कहने की हामी भर ली. जब वह लड़की वहां से जाने लगी, तो चपरासी रामलाल से बोली, ‘‘तुम्हारे ये साहब तो बेकार ही रातभर लड़की को अपने बंगले पर रखते हैं, उस के साथ कुछ करते भी नहीं हैं, मगर फिर भी उस को पैसे देते हैं. तुम्हारे साहब का तो दिमाग ही खराब है.’’

यह सुन कर चपरासी रामलाल हैरान हो कर उस की ओर देखने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो रातभर मुझे छुआ भी नहीं, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए दे दिए हैं,’’ कह कर वह वहां से चली गई. उस लड़की की बातें सुन कर चपरासी रामलाल सोचने लगा था कि उस के अफसर का दिमाग खराब है या वे औरत के काबिल नहीं हैं, फिर भी उन्हें औरतों को अपने साथ सुला कर उन पर अपने पैसे लुटाने का शौक है. चपरासी रामलाल अपने कमरे पर आ कर बीवी सरला से बोला, ‘‘हमारे ये नए साहब तो बेकार ही अपने पैसे लड़की पर लुटाते हैं.’’ ‘‘वह कैसे?’’ सुन कर सरला ने रामलाल से पूछा, तो वह बोला, ‘‘कल रात को मैं साहब के लिए एक लड़की लाया था, लेकिन उन्होंने उस के साथ कुछ भी नहीं किया. यहां तक कि उन्होंने उसे छुआ भी नहीं, मगर फिर भी उन्होंने उसे 3 हजार रुपए दे दिए.’’

यह सुन कर उस की बीवी सरला हैरानी से उस की ओर देखने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘क्यों न अपने इस साहब से हम पैसे कमाएं?’’ ‘‘वह कैसे?’’ सरला ने उस से पूछा, तो वह बोला, ‘‘तुम इस साहब के साथ सो जाया करो. यह साहब तुम्हारे साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मुफ्त में ही हम को पैसे मिल जाएंगे. उन पैसों से हम अपने लिए नएनए गहने भी बनवा लेंगे और जरूरत का सामान भी खरीद लेंगे.

‘‘मेरा कितने दिनों से नई मोटरसाइकिल खरीदने का मन कर रहा है, मगर पैसे न होने से खरीद ही नहीं पाता हूं. जब तुम्हें नएनए गहनों में नए कपड़े पहना कर मोटरसाइकिल पर बिठा कर अपने गांव और ससुराल ले जाऊंगा, तो वे लोग हम से कितने खुश होंगे. हमारी तो वहां पर धाक ही जम जाएगी.’’ ‘‘कहीं यह तुम्हारा साहब मुझ से मजे लेने लग गया तो…’’ खूबसूरत बीवी सरला ने अपना शक जाहिर किया, तो वह उसे तसल्ली देते हुए बोला, ‘‘तुम इस बात की चिंता मत करो. वह तुम से मजे नहीं लेगा.’’

पति रामलाल की इस बात को सुन कर बीवी सरला अपने साहब के साथ सोने के लिए तैयार हो गई. शाम को अपने साहब के लिए शराब लाने के बाद रात को चपरासी रामलाल ने अपनी बीवी सरला को उन के कमरे में भेज दिया. साहब जब उस पर हावी होने लगे, तो उसे बड़ी हैरानी हो रही थी, क्योंकि उस के पति ने तो उस से कहा था कि साहब उसे छुएगा भी नहीं, मगर उस का साहब तो उस पर ऐसा हावी हुआ था कि… रातभर में साहब ने उसे इतना ज्यादा थका दिया था कि वह सो न सकी. सरला को अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन गुस्से को दबा कर मुसकराते हुए दूसरे दिन अपने पति से वह बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो मुझे छुआ भी नहीं. हम ने मुफ्त में ही उन से पैसे कमा लिए.’’ यह सुन कर उस का पति रामलाल अपनी अक्लमंदी पर खुशी से मुसकराने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘मुझे रातभर तुम्हारी याद सताती रही थी. क्यों न हम तुम्हारी बहन नीता को गांव से बुला कर तुम्हारे साहब के साथ सुला दिया करें. ‘‘तुम्हारा साहब उस के साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मिले पैसों से हम उस की शादी भी धूमधाम से कर देंगे.’’

यह सुन कर रामलाल बीवी सरला की इस बात पर सहमत हो गया. वह उस से बोला, ‘‘तुम इस बारे में नीता को समझा देना. मैं आज ही उसे फोन कर के बुलवा लूंगा.’’ शाम को जब चपरासी रामलाल की बहन नीता वहां पर आई, तो सरला उस से बोली, ‘‘ननदजी, तुम गांव के लड़कों को मुफ्त में ही मजे देती फिरती हो. किसी दिन किसी ने देख लिया, तो गांव में बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम यहीं रह कर हमारे साहब के साथ रातभर सो कर मजे भी लो और पैसे भी कमाओ.’’ यह सुन कर उस की ननद नीता खुशी से झूम उठी थी. रातभर वह साहब के साथ मौजमस्ती कर के सुबह जब उन के कमरे से निकली, तो बहुत खुश थी. साहब ने उसे 5 हजार रुपए दिए थे. कुछ ही दिनों में चपरासी रामलाल अपने लिए नई मोटरसाइकिल ले आया था और अपनी बीवी सरला और बहन नीता के लिए नएनए जेवर और कपड़े भी खरीद चुका था, क्योंकि उस के साहब अपने से बड़े अफसरों को खुश रखने के लिए उन दोनों को उन के पास भेजने लगे थे. एक दिन सरला और नीता आपस में बातें करते हुए कह रही थीं कि उन के साहब तो रातभर उन्हें इतने मजे देते हैं कि उन्हें मजा आ जाता है.

उन की इन बातों को जब चपरासी रामलाल ने सुना, तो वह अपने साहब की इस चतुराई पर हैरान हो उठा था. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. रामलाल ने सोचा कि जो हो रहा है, होने दो. उन से पैसे तो मिल ही रहे हैं. उन पैसों के चलते ही उस की अपने गांव और ससुराल में धाक जम चुकी थी, क्योंकि आजकल लोग पैसा देखते हैं, चरित्र नहीं. Hindi Kahani

Story In Hindi: शक – क्या केतकी की कम हुई सुगना के लिए जलन

Story In Hindi: रोज इसी समय वह काम से लौटती थी. उस के चारों बच्चे वहीं खेलते हुए मिलते थे. उसे ध्यान आया कि हो सकता है कि उस का पति मंगल आज बच्चों को उस की मां के घर छोड़ कर काम पर चला गया हो. वह कराहते हुए उठी और अपनेआप को घसीटते हुए मां के  घर की ओर चल पड़ी, जो उस के घर से मात्र एक फर्लांग की दूरी पर था. वहां पहुंच कर उस ने पाया कि मां अभी तक काम से नहीं लौटी थीं. उन के घर में भी ताला लगा हुआ था. निराश हो कर वह वापस लौटी और घर के सामने जमीन पर बैठ कर पति और बच्चों का इंतजार करने लगी.

वह रोज सवेरे 4 बजे सो कर उठती. घर का कामकाज निबटा कर पति व बच्चों के लिए दालभात पका कर काम पर निकल जाती थी. पति व बच्चे देर से सो कर उठते थे. मंगल बच्चों को खिलापिला कर उन्हें खेलता छोड़ कर काम पर निकल जाता. जब वह दोपहर में लौट कर आती तो उस के बच्चे घर के सामने गली के बच्चों के साथ खेलते मिलते. आज पहला मौका था कि सुगना को घर बंद मिला और बच्चे नहीं मिले. आसपास पूछताछ करने पर पता चला कि किसी ने भी मंगल व बच्चों को नहीं देखा था. ऐसा लगता था कि मंगल बच्चों को ले कर भोर होते ही कहीं चला गया था. सुगना को बाहर बैठेबैठे 2 घंटे हो गए थे. वह धीरेधीरे सुबकने लगी. आसपास औरतों व बच्चों की भीड़ जमा हो गई.

उस की पड़ोसिन केतकी, ईर्ष्यावश उस से बात नहीं करती थी पर सुगना की दयनीय स्थिति देख कर केतकी  को भी उस पर दया आ गई. उस ने उसे अपने घर के अंदर आ कर कुछ खा लेने व आराम करने को कहा पर सुगना नहीं मानी. उस ने रोतेरोते कहा कि जब तक वह मंगल व बच्चों को नहीं देख लेगी तब तक न तो वहां से कहीं जाएगी और न ही कुछ खाएगी.

केतकी का पति, बसंत अकसर सुगना को निहारा करता था, जिस के कारण वह मन ही मन उस से जलती थी और उस से बात नहीं करती थी. बसंत ही नहीं, बस्ती के सभी पुरुषों की नजरों का केंद्रबिंदु थी सुगना. वह 6 धनी परिवारों में मालिश का काम करती थी. उन घरों की मालकिनों को कुछ काम नहीं था. खाली बैठेबैठे उन के बदन में दर्द होता रहता. सुगना उन के हाथपैरों में मालिश करती. साथ ही, इधरउधर की बातें नमकमिर्च लगा कर सुना कर उन का मनोरंजन करती.

ये रईस स्त्रियां प्रसन्न हो कर सुगना को अपनी उतरी हुई पुराने फैशन की साडि़यां दे देतीं. सुगना जब जार्जेट, रेशम, शिफान, टसर व नायलोन की साडि़यां पहन कर निकलती तो बस्ती की स्त्रियों के सीनों पर सांप लोट जाते और पुरुष आहें भरने लगते. सभी उसे पाना चाहते, उस से बातें करने को लालायित रहते.

शाम घिरने लगी थी. धीरेधीरे बस्ती के पुरुष काम से लौैटने लगे थे. आते ही सभी मंगल और बच्चों की खोज में लग गए. वास्तव में उन्हें खोजने से ज्यादा उन की दिलचस्पी सुगना की कृपादृष्टि पाने में थी.

जब मंगल व बच्चों का कहीं पता नहीं चला तो सब ने सोचा कि शायद वह पास वाले गांव में अपने मातापिता के पास चला गया होगा. इस विचार के आते ही बस्ती के दारूभट्टी के नौजवान मालिक केवल सिंह ने सुगना की सहायता के लिए अपनेआप को पेश कर दिया. बस्ती के सभी पुरुषों के पास वाहन के नाम पर पुरानी घिसीपिटी साइकिलें ही थीं. केवल सिंह ही ऐसा रईस था जिस के पास एक पुरानी खटारा फटफटी थी.

केवल सिंह ने अपनी फटफटी पर एक और नौजवान को बैठाया और मंगल का पता लगाने पास वाले गांव में चला गया. केवल सिंह का सुगना के घर खूब आनाजाना था. मंगल जब दारू पी कर उस की दुकान में लुढ़क जाता तो वह उसे अपनी गाड़ी में लाद कर घर छोड़ने आता. हर रात ऐसा ही होता.

उसे मंगल से कोई लगाव नहीं था, बल्कि सुगना को आंख भर देखने तथा नशे में बेहोश मंगल की सेवा करने के बहाने सुगना के पास बैठने और उस से देर रात तक बतियाने का मौका पाने के लिए वह ऐसा करता था. मंगल का जब नशा टूटता तो वह आधी रात को सुगना को जगा कर खाना मांगता. जरा भी नानुकुर या देर होने पर वह सुगना को बुरी तरह पीटता. रात के सन्नाटे में सुगना की दर्दभरी चीखें महल्ले वाले सुनते पर क्या करते, पतिपत्नी का मामला था.

धुंधलका गहरा होने लगा था. केवल सिंह लौट आया था. मंगल सिंह अपने बच्चों के साथ अपने गांव भी नहीं गया था. इतना बड़ा ताला लगा कर आखिर गया कहां वह?  सब इस गुत्थी को सुलझाने में लगे हुए थे कि तभी किसी को घर के अंदर से बच्चों की दबीदबी सिसकियां सुनाई दीं. सब के कान खड़े हो गए. तुरंत 2 हट्टकट्टे नौजवानों ने दरवाजा तोड़ डाला.

अंदर का मंजर दिल दहलाने वाला था. मंगल का शरीर छत की मोटी बल्ली से लटका हुआ था. गले में बंधी थी सुगना की नाइलोन की साड़ी. वह मर चुका था. चारों बच्चे डरे हुए, सुबक रहे थे. देखते ही सुगना पछाड़ खा कर जमीन पर गिर कर बेहोश हो गई. स्त्रियों ने उस के ऊपर पानी डाला. होश में आते ही वह बच्चों से लिपट कर दहाड़ मार कर रोने लगी.

भीड़ में से ही किसी ने पुलिस को शिकायत कर दी. पुलिस ने आते ही जांचपड़ताल शुरू कर दी. ऐसा लगता था कि शराब के नशे में मंगल ने आत्महत्या कर ली थी. कमरे की एकमात्र खिड़की अंदर से बंद थी. बस्ती वाले मंगल की बुरी आदतों से परेशान तो थे ही. सभी ने उस के विरोध में बयान दिया. किसी पर भी शक की सुई नहीं घूम रही थी. पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि मंगल ने बाहर से ताला लगाया तथा खिड़की से कूद कर अंदर आ गया. अंदर से दरवाजा बंद कर के उस ने आत्महत्या कर ली. उस ने बच्चों को भी मारने की कोशिश की थी. पतीली में बचेखुचे दालभात की जांच से पता चला कि उस में अफीम मिलाई गई थी. मात्रा कम होने के कारण बच्चे बच गए थे.

आत्महत्या का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था. एक नशेड़ी इतने ठंडे दिमाग से योजनाबद्ध काम करेगा यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. बच्चे कुछ भी बताने में असमर्थ थे. कई दिन तक गहन पूछताछ और जांचपड़ताल के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. सभी के बयान समान थे और केवल मंगल की ओर इशारा करते थे. पुलिस ने भी इस गरीब बस्ती के एक नशेड़ी की मौत के मामले में ज्यादा  सिर खपाने की जरूरत नहीं समझी और आत्महत्या का मामला दर्ज कर तुरंत फाइल बंद कर दी.

मिसेज दिवाकर के यहां सुगना काम करती थी. उन्हें घर के अन्य नौकरों से मंगल की मौत के बारे में पता चला तो उन्हें शराब की भट्ठी के मालिक केवल सिंह पर शक हुआ, क्योंकि वही ऐसा व्यक्ति था जिस का सुगना के यहां अधिक आनाजाना था. वह उस में जरूरत से ज्यादा रुचि भी लेता था. पर उन्होंने इस मामले में अपनी टांग अड़ाना उचित नहीं समझा.

मंगल की मौत को 1 माह ही बीता था कि केवल सिंह ने सुगना को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया. एक दिन की अनुपस्थिति के बाद सुगना सजीसंवरी, नई चूडि़यां खनकाती काम पर आई तथा मिसेज दिवाकर को अपने विवाह की सूचना दी. सुनते ही मिसेज दिवाकर भड़क गईं और बोलीं, ‘‘हाय मरी, तुझे तो रोज रात की मारपीट से मुक्ति मिल गई थी. फिर से क्यों जा पड़ी नरक में उसी मुए के साथ, जिस ने तेरे मंगल को मारा?’’

अनजाने में उन के मुख से उन के अंदर का दबा हुआ शक उजागर हो गया, पर अविचलित सुगना बोली, ‘‘अपने आदमी की मार भी कोई मार होती है. इस से बस्ती में इज्जत बढ़ती है. रही शादी की बात, तो महल्ले के सब बदमाशों से बचने के लिए किसी एक का हाथ थामना अच्छा है. आप क्या जानो, एक औरत का अकेले रहना कितना मुश्किल होता है. बिना आदमी के बस्ती के मनचले दारू पी कर मेरा दरवाजा पीटते थे. रात को सोने नहीं देते थे.’’

मिसेज दिवाकर को कुछ अटपटा सा लगा कि केवल सिंह पर उन के द्वारा लगाए हत्या के इल्जाम को सुन कर भी कोई प्रतिक्रिया उस ने व्यक्त नहीं की थी.

एक वर्ष बीत गया था. सुगना के पांव भारी थे. जच्चगी के लिए अस्पताल जाने से पहले उस ने अपनी छोटी बहन फागुन को घर व बच्चों की देखभाल के लिए बुलवा लिया. जब वह अस्पताल से नवजात बेटे के साथ घर लौटी तो उसे यह देख कर जबरदस्त धक्का पहुंचा कि उस के पति केवल सिंह ने उस की अनुपस्थिति में उस की बहन को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया है.

क्रोधित हो सुगना ने फागुन को बालों से पकड़ कर घसीटा और खदेड़ कर बाहर निकाल दिया. केवल सिंह के ऊपर फागुन का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. उसे अपनी नईनवेली पत्नी का अपमान सहन नहीं हुआ. उस ने कोने में  पड़ी हुई  कुल्हाड़ी उठा कर सुगना की टांग पर दे मारी. कुल्हाड़ी मांस फाड़ कर हड्डी के अंदर तक धंस गई. सुगना बेहोश हो कर गिर पड़ी. टांग से बहते खून की धार तथा रोते हुए नवजात शिशु को देख केवल सिंह के मन में पश्चाताप होने लगा. शोरगुल सुन सब पड़ोसी इकट्ठे हो गए. जिस अस्पताल से सुगना थोड़ी देर पहले वापस आई थी फिर वहीं दोबारा भरती हो गई.

केवल सिंह बड़ी लगन से तब तक उस की सेवा करता रहा जब तक वह पूरी तरह स्वस्थ व समर्थ नहीं हो गई. सुगना उस की सेवा से खुश कम थी और दुखी ज्यादा थी क्योंकि केवल सिंह ने फागुन को घर से नहीं निकाला था.

बेचारी दुखी सुगना क्या करती. उस ने अपनी पूरी आशाएं अपने नवजात बेटे पर टिका दी थीं. उस ने निश्चय किया कि वह बेटे को सेना में भरती कराएगी. जब वह लड़ाई में मारा जाएगा तो उसे सरकार लाखों रुपया देगी और उन रुपयों से वह अपनी मालकिनों की तरह ऐशोआराम से रहेगी. इसलिए उस ने अपने बेटे का नाम कारगिल रख दिया.

सुगना की विचित्र निष्ठुर कामना सुन कर मिसेज दिवाकर के रोंगटे खड़े हो गए. बड़ा ही क्रूर लगा उन्हें नवजात शिशु को बड़ा कर उस की मौत की कल्पना करना और अपने ऐशोआराम के लिए उसे भुनाना.

थोड़े ही दिन बीते थे कि एक दिन केवल सिंह अपनी नई  पत्नी फागुन के साथ हमेशा के लिए कहीं चला गया. साथ में ले गया अपना नन्हा पुत्र कारगिल. सुगना का धनपति बनने का सपना धरा रह गया. 2 बार ब्याही सुगना फिर से अकेली रह गई थी.

वर्षा के दिन थे. सुगना की टांग का घाव भर गया था, पर दर्द की टीस अब भी उठती थी. पति और उस की सगी बहन ने मिल कर जो छल उस के साथ किया था उस ने उसे अंदर से भी घायल कर दिया था. एक दिन वर्षा में भीगती सुगना जब मिसेज दिवाकर के यहां पहुंची तो उसे तेज बुखार था. अपनी साइकिल बाहर खड़े उन के ड्राइवर को थमा बड़ी मुश्किल से वह बरामदे तक पहुंची ही थी कि गिर कर बेहोश हो गई. जब वह होश में आई तो मिसेज दिवाकर ने अपने ड्राइवर से उस को कार में ले जा कर डाक्टर गर्ग से दवा दिलवा कर घर छोड़ आने को कहा.

आगे की सीट पर बैठी सुगना का सिर निढाल हो कर ड्राइवर गोपी के कंधे पर लुढ़क गया तो उस ने उसे हटाया नहीं. उसे बड़ा भला सा लग रहा था.

डाक्टर से दवा दिलवा कर गोपी उस को घर पहुंचाने गया. वहां उस को सहारा दे कर अंदर तक ले गया. इस के बाद भी उस का मन नहीं माना. वह उसे देखने उस के घर बराबर जाता तथा यथासंभव उस की सहायता करता. 3 दिन के बुखार में गोपी और सुगना बहुत करीब आ गए थे. चौथे ही दिन गोपी ने सुगना के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. सुगना सहर्ष तैयार हो गई. गोपी ने उसे चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया.

मिसेज दिवाकर को सुगना का पुनर्विवाह तनिक भी नहीं भाया. वह गुस्से से चीखीं, ‘‘कुदरत तुझे बारबार खराब  पुरुषों से मुक्ति दिलाती है, फिर चैन से अकेले क्यों नहीं रहती? अपनी मां के साथ रहने में तुझे क्या तकलीफ है?’’

सुगना बड़ी सहजता से बोली, ‘‘अकेली औरत जात को कोई तो रखवाला चाहिए.’’

मिसेज दिवाकर ने सुगना की समस्या से अपने को अलग रखने की ठान ली.

एक दिन मिसेज दिवाकर ने सुगना से धुले कपड़ों का गट्ठर इस्तरी वाले के ठेले तक अपनी साइकिल पर रख कर पहुंचाने को कहा. गट्ठर बड़ा होने के कारण साइकिल के कैरियर पर ठीक से नहीं बैठ रहा था. यह देख कर मिसेज दिवाकर बोलीं, ‘‘सुगना, तुझे ठीक से गांठ बांधनी भी नहीं आती. कपड़े बाहर निकल रहे हैं.’’

‘‘मांजी, चिंता मत कीजिए. गांठ लगानी मुझे खूब आती है. मंगल के लिए कैसी मजबूत गांठ लगाई थी मैं ने,’’ अकस्मात सुगना के मुंह से निकला.

ऐसा कहते हुए उस ने आंखें ऊपर उठाईं. उस की आंखों में शैतानी चमक देख कर मिसेज दिवाकर सहम उठीं. अंदर दबा हुआ शक उभर कर ऊपर आ गया था. उन्होंने सोचा, ‘तो मेरा शक सही था. मंगल ने आत्महत्या नहीं की थी. सुगना ने ही उसे मारा था.’

स्तब्ध मिसेज दिवाकर अपना सिर दोनों हाथों में थाम कर सोफे पर धम्म से बैठ गईं.

‘सुगना, हत्यारिन मेरे घर में, और मुझे पता ही नहीं चला.’ सोचसोच कर वह हैरान व परेशान थीं.

उन के शरीर में भय से सिहरन दौड़ गई. अब इतने अरसे बाद किस से कहें और किस से शिकायत करें. अपराधी को अपने दुष्कर्म की सजा मिलनी ही चाहिए. पर उन के पास कोई सुबूत भी नहीं था. था केवल शक. कौन सुनेगा उन के शक को? अगर सुगना को सजा दिलवा भी दी तो उस के बच्चों का क्या होगा? सोचते सोचते उन के सिर में दर्द होने लगा.

और सुगना, अनजाने में अपना अपराध प्रकट कर बैठी थी. अपने अपराध के प्रकटीकरण से बेखबर मिसेज दिवाकर के हृदय की हलचल से अनभिज्ञ बढ़ी चली जा रही थी अपने गंतव्य की ओर. Story In Hindi

Hindi Story: विश्वास – अमित के सुखी वैवाहिक जीवन में क्यों जहर घोलना चाहती थी अंजलि?

Hindi Story: करीब 3 साल बाद अंजलि और अमित की मुलाकात शौपिंग सैंटर में हुई तो दोनों एकदूसरे का हालचाल जानने के लिए एक रेस्तरां में जा कर बैठ गए.

यह जान कर कि अमित ने पिछले साल शादी कर ली है, अंजलि उसे छेड़ने से नहीं चूकी, ‘‘मैं बिना पूछे बता सकती हूं कि वह नौकरी नहीं करती है. मेरा अंदाजा ठीक है?’’

‘‘हां, वह घर में रह कर बहुत खुश है, अंजलि,’’ अमित ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘और वह तुम से लड़तीझगड़ती भी नहीं है न, अमित?’’

‘‘ऐसा अजीब सा सवाल क्यों पूछ रही हो?’’ अमित के होंठों पर फैली मुसकराहट अचानक गायब हो गई.

‘‘तुम्हारी विचारधारा औरत को सदा दबा कर रखने वाली है, यह मैं अच्छी तरह से जानती हूं, माई डियर अमित.

‘‘अतीत के हिसाब से तो तुम शायद ठीक कह रही हो, पर अब मैं बदल गया हूं,’’ अमित ने जवाब दिया.

‘‘तुम्हारी बात पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा है.’’

‘‘तब सही बात शिखा से पूछ लेना.’’

‘‘कब मिलवा रहे हो शिखा से?’’

‘‘जब चाहो हमारे घर आ जाओ. मेरा यह कार्ड रखो. इस में घर का पता भी लिखा हुआ है,’’ अमित ने अपने पर्स में से एक विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसे पकड़ा दिया.

‘‘मैं जल्दी आती हूं उस बेचारी से मिलने.’’

‘‘उस बेचारी की चिंता छोड़ो और अब अपनी सुनाओ. तुम्हारे पति तो पायलट हैं न?’’ अंजलि ने उस की टांग खींचना बंद नहीं किया तो अमित ने बातचीत का विषय बदल दिया.

‘‘हां, ऐसे पायलट हैं जिन्हें हवाईजहाज तो अच्छी तरह से उड़ाना आता है पर घरगृहस्थी चलाने के मामले में बिलकुल जीरो हैं,’’ अंजलि का स्वर कड़वा हो गया.

‘‘क्या तुम दोनों की ढंग से पटती नहीं है?’’ अमित की आवाज में सहानुभूति के भाव उभरे.

‘‘वे अजीब किस्म के इंसान हैं, अमित. मैं पास होती हूं तो मेरी कद्र नहीं करते. जब मैं नाराज हो कर मायके चली आती हूं तो मुझे वापस बुलाने के लिए खूब गिड़गिड़ाते हैं. तुम्हें अपने दिल की एक बात सचसच बताऊं?’’

‘‘हां, बताओ?’’

‘‘मुझे मनपसंद जीवनसाथी नहीं मिला है,’’ अंजलि ने गहरी सांस छोड़ी.

‘‘मैं तो हमेशा ही कहता था कि तुम्हें मुझ से अच्छा पति कभी नहीं मिलेगा पर तुम ने तब मेरी सुनी नहीं,’’ माहौल को हलका करने के इरादे से अमित ने मजाक किया.

‘‘मैं भी मानती हूं कि वह गलती तो मुझ से हो गई,’’ जवाब में अंजलि भी मुसकरा उठी.

‘‘पर तुम्हारी गलती के कारण मेरा तो बड़ा फायदा हो गया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मुझे शिखा मिल गई. वह ऐसा हीरा है जिस ने मेरी जिंदगी को खुशहाल बना दिया है. तुम से शादी हो जाती तो आपस में लड़तेझगड़ते ही जिंदगी गुजरती,’’ अमित जोर से हंस पड़ा.

अमित की हंसी में अंजलि को अपना अपमान नजर आया. उसे लगा कि शिखा की यों तारीफ कर के वह उस की खिल्ली उड़ा रहा है.

उस ने मुंह बनाते हुए जवाब दिया, ‘‘मैं जब शिखा से मिलूंगी तभी इस बात का पता लगेगा कि वह कितनी खुश है तुम्हारे साथ. अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना तो आसान होता है.’’

‘‘मैं इतना अच्छा पति हूं कि मेरी तारीफ करतेकरते उस का गला सूख जाएगा,’’ अमित ने ठहाका लगाया तो वह अंजलि को जहर लगने लगा.

जलन और अपमान की वजह से अंजलि ज्यादा देर उस के साथ नहीं बैठी. जरूरी काम का बहाना बना उस ने कौफी पीते ही विदा ले ली.

‘अमित जैसे गुस्सैल और शक्की इंसान के साथ कोई लड़की खुश रह ही नहीं सकती. उस से शादी न करने का मेरा फैसला गलत नहीं था,’ ऐसे विचारों में उलझी अंजलि से ज्यादा इंतजार नहीं हुआ और 2 दिन बाद ही उस ने शिखा से उस के घर फोन कर बात की.

उस ने शिखा से कहा, ‘‘तुम मुझे जानतीं नहीं हो शिखा, मैं अमित के कालेज की फ्रैंड अंजलि बोल रही हूं…’’

‘‘मुझे परसों ही बताया है अमित ने आप के बारे में. क्या आप आज हमारे यहां आ रही हो?’’ शिखा का उत्साहित स्वर अंजलि को अजीब सा लगा.

‘‘तुम्हारे घर तो मैं अपने पति के साथ किसी दिन आऊंगी. लेकिन आज अगर संभव हो तो तुम मेरे साथ कौफी पीने किसी पास के रेस्तरां में आ जाओ.’’

‘‘इस वक्त तो मेरा निकलना जरा…’’

अंजलि ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘मैं तुम से कुछ ऐसी बातें करना चाहती हूं, जो तुम्हारे फायदे की साबित होंगी.’’

‘‘तब हम मिल लेते हैं पर अभी नहीं बल्कि शाम को.’’

‘‘कितने बजे और कहां?’’

‘‘जिस मौल में तुम अमित से मिली थीं, उस की बगल में जो आकाश रैस्टोरैंट है, उसी में हम सवा 5 बजे मिलते हैं.’’

‘‘शिखा, अमित को तुम हमारी होने वाली मुलाकात के बारे में अभी कुछ नहीं बताना. बाद में बताना या न बताना तुम्हारा फैसला होगा.’’

‘‘ओके.’’

‘‘तो सवा 5 बजे मिलते हैं,’’ यह कह कर अंजलि ने फोन काट दिया.

शाम को रेस्तरां में मुलाकात होने पर पहले कुछ देर दोनों ने एकदूसरे के बारे में हलकीफुलकी जानकारी ली फिर अंजलि ने अपने मुद्दे पर बात शुरू कर दी.

‘‘क्या तुम्हें अमित ने बताया कि वह मुझ से प्यार करता था और हम शादी कर के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखते थे?’’

‘‘नहीं, यह तो कभी नहीं बताया,’’ शिखा बड़े ध्यान से उस के चेहरे के हावभाव को पढ़ रही थी.

‘‘तब तो यह भी मुझे ही बताना पड़ेगा कि हमारे अलगाव का क्या कारण था.’’

‘‘बताइए.’’

‘‘शिखा, कालेज में हम दोनों सदा साथसाथ रहते थे, इसलिए हमारे बीच प्यार का रिश्ता बहुत मजबूत बना रहा. फिर मैं ने औफिस जाना शुरू किया तो परिस्थितियां बदलीं और उन के साथ बदल गया अमित का व्यवहार.’’

‘‘किस तरह का बदलाव आया उन के व्यवहार में?’’

‘‘वह बहुत ज्यादा शक्की आदमी है, क्या तुम मेरे इस कथन से सहमत हो?’’

‘‘यह तो तुम ने बिलकुल ठीक कहा,’’ शिखा हौले से मुसकरा उठी.

‘‘तब तुम समझ सकती हो कि किसी भी युवक से जरा सा खुल कर हंसनेबोलने पर अमित मुझ से कितना झगड़ता होगा. तुम्हें भी उस की इस आदत के कारण मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ी होंगी?’’

‘‘थोड़ी सी… शुरूशुरू में,’’ शिखा की मुसकराहट और गहरी हो गई.

‘‘और अब?’’

‘‘अब सब ठीक है.’’

‘‘यानी अपने स्वाभिमान को मार कर व रातदिन के झगड़ों से तंग आ कर तुम ने घुटघुट कर जीना सीख लिया है?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. हमारे बीच झगड़े नहीं होते हैं.’’

‘‘तुम मुझ से कुछ भी छिपाओ मत, क्योंकि मैं तुम्हें अमित के हाथों प्रताडि़त होने से बचने की तरकीब बता सकती हूं,’’ अपने 1-1 शब्द पर अंजलि ने बहुत जोर दिया.

‘‘तो जल्दी बताइए न,’’ शिखा किसी छोटी बच्ची की तरह खुश हो उठी.

शिखा की दिलचस्पी देख कर अंजलि ने जोशीले अंदाज में बोलना शुरू किया, ‘‘मुझे उस ने अपने शक्की स्वभाव के कारण जब बहुत ज्यादा तंग करना शुरू किया तो मैं चुप रहने के बजाय उस के साथ झगड़ा करने के साथसाथ बोलचाल भी बंद कर देती थी. तब वह एकदम से सही राह पर आ जाता था.

‘‘तुम भी उस के गुस्से से डर कर दबना बंद कर दो. वह ख्वाहमख्वाह शक करे तो अपने को अकारण अपराधबोध का शिकार मत बनाया करो. अमित को सही राह पर रखने का तरीका यही है कि जब वह तुम्हें नाजायज तरीके से दबाने की कोशिश करे तो तुम पूरी ताकत से उस के साथ भिड़ जाओ. देखना, वह एकदम से सही राह पर आ जाएगा.’’

कुछ देर खामोश रह कर शिखा सोचविचार में खोई रही और फिर पूछा, ‘‘तुम ने यही रास्ता अपनाया था और वे इस से सही राह पर आ भी जाते थे, तो फिर तुम ने उन के साथ शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मैं बारबार होने वाले झगड़ों से तंग आ गई थी. मुझे जब यह लगने लगा कि यह आदमी कभी नहीं सुधरेगा, तो मैं ने हमेशा के लिए अलग होने का फैसला कर लिया था.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि क्या तुम अपनी विवाहित जिंदगी में खुश और सुखी हो?’’

‘‘शादी के झंझटों में फंस कर कौन बहुत खुश और सुखी रह सकता है?’’

‘‘आप के पति पायलट हैं न?’’

‘‘हां.’’

‘‘उन की पगार 2-3 लाख रुपए तो होगी?’’

‘‘यह सवाल क्यों पूछ रही हो?’’

‘‘अमित अभी हर महीने 40 हजार रुपए कमाने तक पहुंचे हैं. मेरे मन में यह विचार उठ रहा है कि कहीं आर्थिक कारणों ने तब तुम्हारा मन बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका तो नहीं निभाई थी?’’

‘‘मैं तुम्हारी सहायता करने आई हूं न कि अमित से शादी न करने के कारणों का खुलासा करने,’’ अंजलि एकदम से चिढ़ उठी.

‘‘लेकिन मुझे तुम्हारी किसी भी सहायता की जरूरत नहीं है. व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर अपने जीवनसाथी से झगड़ने का तुम्हारा सुझाव मुझे बिलकुल बचकाना लगा. अमित जैसे हैं, अच्छे हैं और मैं उन के साथ बहुत खुश हूं,’’ शिखा ने अपने ऊपर से नियंत्रण नहीं खोया और शांत बनी रही.

‘‘तुम इस झूठ के साथ जीना चाहती हो तो तुम्हारी मरजी,’’ अंजलि नाराज हो कर बोली. शिखा ने अपने मोबाइल में समय देखा और बोली, ‘‘करीब 10 मिनट बाद अमित मुझे लेने यहां आ जाएंगे. तब तक हम किसी और विषय पर बात करते हैं.’’

‘‘मेरे मना करने पर भी तुम ने हमारी इस मुलाकात के बारे में उसे क्यों बताया?’’

अंजलि की आंखों में अब गुस्से के भाव नजर आ रहे थे.

‘‘मैं उन से कुछ नहीं छिपाती हूं. आज शक्की स्वभाव वाले अमित को मुझ पर पूरा विश्वास है तो उस के पीछे मेरी उन्हें सब कुछ बता देने की इस आदत से ही.’’

‘‘क्या तुम उसे हमारे बीच हुई बातों की भी सारी जानकारी दोगी?’’

‘‘हां, पर इस ढंग से नहीं कि तुम्हारी छवि खराब हो और तुम उन की नजरों में गिर जाओ.’’

‘‘थैंक यू. मुझे लग रहा है कि मैं ने तुम्हारी सहायता करने की पहल कर के शायद समझदारी नहीं दिखाई है. मैं चलती हूं,’’ अंजलि जाने को उठ खड़ी हुई.

‘‘अमित से नहीं मिलोगी?’’

‘‘नहीं. गुडबाय.’’

‘‘पत्नी को पति का दिल व विश्वास जीतने के लिए अगर पति के सामने झुक कर भी जीना पड़े, तो इस में कोई बुराई नहीं है, अंजलि.’’

‘‘मुझे ये लैक्चर क्यों दे रही हो?’’

‘‘मैं लैक्चर नहीं दे रही हूं पर इंसान को अपनी समझ में आई कोई भी अच्छी बात दूसरों से बांट लेनी चाहिए. अपने पति के साथ तुम हमारे घर जरूर आना.’’

‘‘कोशिश करूंगी,’’ रुखाई से जवाब दे कर अंजलि तेज कदमों से चल पड़ी.

अपनी बातों का जो असर वह शिखा

पर देखना चाह रही थी, वह उसे नजर नहीं आया था. शक्की अमित को उस ने कभी

यही सोच कर रिजैक्ट कर दिया था कि वह अच्छा पति साबित नहीं होगा. शिखा उस के साथ शादी कर के सुखी और संतुष्ट है, यह बात उसे हजम नहीं हो रही थी. उस के साथ अपनी तुलना कर रही अंजलि के मन में खीज व गुस्से के भाव पलपल बढ़ते ही जा रहे थे. Hindi Story

Story In Hindi: अनोखा बदला – निर्मला ने कैसे लिया बहन और प्रेमी से बदला

Story In Hindi: निर्मला से सट कर बैठा संतोष अपनी उंगली से उस की नंगी बांह पर रेखाएं खींचने लगा, तो वह कसमसा उठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी मर्द की इतनी प्यार भरी छुअन महसूस की थी.

निर्मला की इच्छा हुई कि संतोष उसे अपनी बांहों में भर कर इतनी जोर से भींचे कि…

निर्मला के मन की बात समझ कर संतोष की आंखों में चमक आ गई. उस के हाथ निर्मला की नंगी बांहों पर फिसलते हुए गले तक पहुंच गए, फिर ब्लाउज से झांकती गोलाइयों तक.

तभी बाहर से आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘दीदी, चाय बन गई है…’’

संतोष हड़बड़ा कर निर्मला से अलग हो गया, जिस का चेहरा एकदम तमतमा उठा था, लेकिन मजबूरी में वह होंठ काट कर रह गई.

नीचे वाले कमरे में छोटी बहन उषा ने नाश्ता लगा रखा था. चायनाश्ता करने के बाद संतोष ने उठते हुए कहा, ‘‘अब चलूं… इजाजत है? कल आऊंगा, तब खाना खाऊंगा… कोई बढि़या सी चीज बनाना. आज बहुत जरूरी काम है, इसलिए जाना पड़ेगा…’’

‘‘अच्छा, 5 मिनट तो रुको…’’ उषा ने बरतन समेटते हुए कहा, ‘‘मुझे अपनी एक सहेली से नोट्स लेने हैं. रास्ते में छोड़ देना. मैं बस 5 मिनट में तैयार हो कर आती हूं.’’

उषा थोड़ी देर में कपड़े बदल कर आ गई. संतोष उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर चला गया.

उधर निर्मला कमरे में बिस्तर पर गिर पड़ी और प्यास अधूरी रह जाने से तड़पने लगी.

निर्मला की आंखों के आगे एक बार फिर संतोष का चेहरा तैर उठा. उस ने झपट कर दरवाजा बंद कर दिया और बिस्तर पर गिर कर मछली की तरह छटपटाने लगी.

निर्मला को पहली बार अपनी बहन उषा और मां पर गुस्सा आया. मां चायनाश्ता बनाने में थोड़ी देर और लगा देतीं, तो उन का क्या बिगड़ जाता. उषा कुछ देर उसे और न बुलाती, तो निर्मला को वह सबकुछ जरूर मिल जाता, जिस के लिए वह कब से तरस रही थी.

जब पिता की मौत हुई थी, तब निर्मला 22 साल की थी. उस से बड़ी कोई और औलाद न होने के चलते बीमार मां और छोटी बहन उषा को पालने की जिम्मेदारी बिना कहे ही उस के कंधे पर आ पड़ी थी.

निर्मला को एक प्राइवेट फर्म में अच्छी सी नौकरी भी मिल गई थी. उस समय उषा 10वीं जमात के इम्तिहान दे चुकी थी, लेकिन उस ने धीरेधीरे आगे पढ़ कर बीए में दाखिला लेते समय निर्मला से कहा था, ‘‘दीदी, मां की दवा में बड़ा पैसा खर्च हो रहा है. तुम अकेले कितना बोझ उठाओगी…

‘‘मैं सोच रही हूं कि 2-4 ट्यूशन कर लूं, तो 2-3 हजार रुपए बड़े आराम से निकल जाएंगे, जिस से मेरी पढ़ाई के खर्च में मदद हो जाएगी.’’

‘‘तुझे पढ़ाई के खर्च की चिंता क्यों हो रही है? मैं कमा रही हूं न… बस, तू पढ़ती जा,’’ निर्मला बोली थी.

अब निर्मला 30 साल की होने वाली है. 1-2 साल में उषा भी पढ़लिख कर ससुराल चली जाएगी, तो अकेलापन पहाड़ बन जाएगा.

लेकिन एक दिन अचानक मौका हाथ आ लगा था, तो निर्मला की सोई इच्छाएं अंगड़ाई ले कर जाग उठी थीं.

उस दिन दफ्तर में काम निबटाने के बाद सब चले गए थे. निर्मला देर तक बैठी कागजों को चैक करती रही थी. संतोष उस की मदद कर रहा था. आखिरकार रात के 10 बजे फाइल समेट कर वह उठी, तो संतोष ने हंस कर कहा था, ‘‘इस समय तो आटोरिकशा या टैक्सी भी नहीं मिलेगी, इसलिए मैं आप को मोटरसाइकिल से घर तक छोड़ देता हूं.’’

निर्मला ने कहा था, ‘‘ओह… एडवांस में शुक्रिया?’’

निर्मला को उस के घर के सामने उतार कर संतोष फिर मोटरसाइकिल स्टार्ट करने लगा, तो उस ने हाथ बढ़ा कर हैंडल थाम लिया और कहने लगी, ‘‘ऐसे कैसे जाएंगे… घर तक आए हैं, तो कम से कम एक कप चाय…’’

‘‘हां, चाय चलेगी, वरना घर जा कर भूखे पेट ही सोना पड़ेगा. रात भी काफी हो गई है. मैं जिस होटल में खाना खाता हूं, अब तो वह भी बंद हो चुका होगा.’’

‘‘आप होटल में खाते हैं?’’

‘‘और कहां खाऊंगा?’’

‘‘क्यों? आप के घर वाले?’’

‘‘मेरा कोई नहीं है. मैं मांबाप की एकलौती औलाद था. वे दोनों भी बहुत कम उम्र में ही मेरा साथ छोड़ गए, तब से मैं अकेला जिंदगी काट रहा हूं.’’

संतोष ने बहुत मना किया, लेकिन निर्मला नहीं मानी थी. उस ने जबरदस्ती संतोष को घर पर ही खाना खिलाया था.

अगले दिन शाम के 5 बजे निर्मला को देख कर मोटरसाइकिल का इंजन स्टार्ट करते हुए संतोष ने कहा था, ‘‘आइए… बैठिए.’’

निर्मला ने बिना कुछ बोले ही पीछे की सीट पर बैठ कर उस के कंधे पर हाथ रख दिया था. घर पहुंच कर उस ने फिर चाय पीने की गुजारिश की, तो संतोष ने 1-2 बार मना किया, लेकिन निर्मला उसे घर के अंदर खींच कर ले गई थी.

इस के बाद रोज का यही सिलसिला हो गया. संतोष को निर्मला के घर आने या रुकने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी, खासतौर से छुट्टी वाले दिन तो वह निर्मला के घर पड़ा रहता था. सब ने उसे भी जैसे परिवार का एक सदस्य मान लिया था.

एक दिन अचानक निर्मला का सपना टूट गया. उस दिन उषा अपनी सहेली के यहां गई थी. दूसरे दिन उस का इम्तिहान था, इसलिए वह घर पर बोल गई थी कि रातभर सहेली के साथ ही पढ़ेगी, फिर सवेरे उधर से ही इम्तिहान देने यूनिवर्सिटी चली जाएगी.

उस दिन भी संतोष निर्मला के साथ ही उस के घर आया था और खाना खा कर रात के तकरीबन 10 बजे वापस चला गया था.

उस के जाने के बाद निर्मला बाहर वाला दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में लौट रही थी, तभी मां ने टोक दिया, ‘‘बेटी, तुझ से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

निर्मला का मन धड़क उठा. मां के पास बैठ कर आंखें चुराते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है मां?’’

‘‘बेटी, संतोष कैसा लड़का है. वह तेरे ही दफ्तर में काम करता है… तू तो उसे अच्छी तरह जानती होगी.’’

निर्मला एकाएक कोई जवाब नहीं दे सकी.

मां ने कांपते हाथों से निर्मला का सिर सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं तेरे मन का दुख समझती हूं बेटी, लेकिन इज्जत से बढ़ कर कुछ नहीं होता, अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है, इसलिए…’’

निर्मला एकदम तिलमिला उठी. वह घबरा कर बोली, ‘‘ऐसा क्यों कहती हो मां? क्या तुम ने कभी कुछ देखा है?’’

‘‘हां बेटी, देखा है, तभी तो कह रही हूं. कल जब तू बाजार गई थी, तब दो घड़ी के लिए संतोष आया था. वह उषा के साथ कमरे में था.

‘‘मैं भी उन के साथ बातचीत करने के लिए वहां पहुंची, लेकिन दरवाजे पर पहुंचते ही मैं ने उन दोनों को जिस हालत में देखा…’’

निर्मला चिल्ला पड़ी, ‘‘मां…’’ और वह उठ कर अपने कमरे की ओर भाग गई.

निर्मला के कानों में मां की बातें गूंज रही थीं. उसे विश्वास नहीं हुआ. मां को जरूर धोखा हो गया है. ऐसा कभी नहीं हो सकता. लेकिन यही हो रहा था.

अगले दिन निर्मला दफ्तर गई जरूर, लेकिन उस का किसी काम में मन नहीं लगा. थोड़ी देर बाद ही वह सीट से उठी. उसे जाते देख संतोष ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

निर्मला ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मेरी एक खास सहेली बीमार है. मैं उसे ही देखने जा रही हूं.’’

‘‘कितनी देर में लौटोगी?’’

‘‘मैं उधर से ही घर चली जाऊंगी.’’

बहाना बना कर निर्मला जल्दी से बाहर निकल आई. आटोरिकशा कर के वह सीधे घर पहुंची. मां दवा खा कर सो रही थीं. उषा शायद अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी. बाहर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. इस लापरवाही पर उसे गुस्सा तो आया, लेकिन बिना कुछ बोले चुपचाप दरवाजा बंद कर के वह ऊपर अपने कमरे में चली गई.

इस के आधे घंटे बाद ही बाहर मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज सुनाई पड़ी. निर्मला को समझते देर नहीं लगी कि जरूर संतोष आया होगा.

निर्मला कब तक अपने को रोकती. आखिर नहीं रहा गया, तो वह दबे पैर सीढि़यां उतर कर नीचे पहुंची. मां सो रही थीं.

वह बिना आहट किए उषा के कमरे के सामने जा कर खड़ी हो गई और दरवाजे की एक दरार से आंख सटा कर झांकने लगी. भीतर संतोष और उषा दोनों एकदूसरे में डूबे हुए थे.

उषा ने इठलाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे… कभी तो इतना प्यार दिखाते हो और कभी ऐसे बन जाते हो, जैसे मुझे पहचानते नहीं.’’

संतोष ने उषा को प्यार जताते हुए कहा, ‘‘वह तो तुम्हारी दीदी के सामने मुझे दिखावा करना पड़ता है.’’

उषा ने हंस कर कहा, ‘‘बेचारी दीदी, कितनी सीधी हैं… सोचती होंगी कि तुम उन के पीछे दीवाने हो.’’

संतोष उषा को प्यार करता हुआ बोला, ‘‘दीवाना तो हूं, लेकिन उन का नहीं तुम्हारा…’’

कुछ पल के बाद वे दोनों वासना के सागर में डूबनेउतराने लगे. निर्मला होंठों पर दांत गड़ाए अंदर का नजारा देखती रही… फिर एकाएक उस की आंखों में बदले की भावना कौंध उठी. उस ने दरवाजा थपथपाते हुए पूछा, ‘‘संतोष आए हैं क्या? चाय बनाने जा रही हूं…’’

संतोष उठने को हुआ, तो उषा ने उसे भींच लिया, ‘‘रुको संतोष… तुम्हें मेरी कसम…’’

‘‘पागल हो गई हो. दरवाजे पर तुम्हारी दीदी खड़ी हैं…’’ और संतोष जबरदस्ती उठ कर कपड़े पहनने लगा.

उस समय उषा की आंखों में प्यार का एहसास देख कर एक पल के लिए निर्मला को अपना सारा दुख याद आया.

मां के कमरे के सामने नींद की गोलियां रखी थीं. उन्हें समेट कर निर्मला रसोईघर में चली गई. चाय छानने के बाद वह एक कप में ढेर सारी नींद की गोलियां डाल कर चम्मच से हिलाती रही, फिर ट्रे में उठाए हुए बाहर निकल आई.

संतोष ने चाय पी कर उठते हुए आंखें चुरा कर कहा, ‘‘मुझे बहुत तेज नींद आ रही है. अब चलता हूं, फिर मुलाकात होगी.’’

इतना कह कर संतोष बाहर निकला और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के घर के लिए चला गया.

दूसरे दिन अखबारों में एक खबर छपी थी, ‘कल मोटरसाइकिल पेड़ से टकरा जाने से एक नौजवान की दर्दनाक मौत हो गई. उस की जेब में मिले पहचानपत्रों से पता चला कि संतोष नाम का वह नौजवान एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था’. Story In Hindi

Hindi Crime Story: न्यायदंश – क्या सुनंदा की हत्या का कातिल पकड़ा गया?

Hindi Crime Story: जेठ का महीना था. गरम लू के थपेड़ों ने आम लोगों का जीना मुहाल कर दिया था. ऐन दोपहर के वक्त लोग तभी घर से निकलते जब उन्हें जरूरत होती वरना अपने घर में बंद रहते. यही वक्त था जब 4 लोग सुनंदा के घर में घुसे. सुनंदा पीछे के कमरे में लेटी थीं. जब तक किसी की आहट पर उठतीं तब तक वे चारों कमरे में घुस आए. एक ने उन के पैर दबाए तो दूसरे ने हाथ. बाकी दोनों ने मुंह तकिए से दबा कर बेरहमी के साथ सुनंदा का गला रेत दिया. वे छटपटा भी न सकीं.

जब चारों आश्वस्त हो गए कि सुनंदा जिंदा नहीं रहीं तो इत्मीनान से अपने हाथ धोए. कपड़ों पर लगे खून के छींटे साफ किए. फ्रिज खोल कर मिठाइयां खाईं. पानी पीया और निकल गए. महल्ले में दोपहर का सन्नाटा पसरा हुआ था. इसलिए किसी को कुछ पता भी न चला.

हमेशा की तरह शाम को पारस यादव दूध ले कर आया. फाटक खोल कर अंदर घुसा, आवाज दी. कोई जवाब न पा कर बैठक में घुस गया. सुनंदा अमूमन बैठक में रहती थीं. जब वे वहां न मिलीं तो ‘दीदी, दीदी’ कहते इधरउधर देखते हुए बैडरूम में घुस गया. सामने का दृश्य देख कर वह बुरी तरह से घबरा गया. भाग कर बाहर आया. एक बार सोचा कि चिल्ला कर सब को बता दे, परंतु ऐसा न कर सका. शहर में रहते उसे इतनी समझ आ गई थी कि बिना वजह लफड़े में नहीं फंसना चाहिए. वह उलटेपांव घर लौट आया.

इस हादसे की खबर उस ने अपनी बीवी तक को न दी. रहरह कर सुनंदा का विकृत चेहरा उस के सामने तैर जाता तो वह डर से सिहर जाता. रात भर वह सो न सका. उस के दिमाग में बारबार यही सवाल उठता कि आखिर 62 वर्ष की सुनंदा को इतनी बेरहमी से किस ने मारा? किस से उन की दुश्मनी हो सकती है? पिछले 40 साल से वह उन के घर में दूध दे रहा है. हिसाबकिताब की पक्की सुनंदा बेहद पाकसाफ महिला थीं. हां, थोड़ी तेज अवश्य थीं.

पिं्रसिपल होने के नाते सुनंदा के स्वर में सख्ती व कड़की दोनों थी. वे बिना लागलपेट के अपनी बात कहतीं. उन्हें इस बात की परवा नहीं रहती कि उन के कहे का दूसरों पर क्या असर पड़ेगा. उन के तल्ख स्वभाव ने उन्हें अपने सहकर्मियों के बीच भी अप्रिय बना दिया था. अध्यापिका थीं तब भी वे अपना लंच अकेले करतीं.

वे अविवाहित थीं. बालबच्चे वाले प्रेमशंकर के साथ रहने का फैसला उन का अपना था. अपने इस निर्णय पर वे अंत तक कायम रहीं.

प्रेमशंकर ने भी आखिरी दम तक उन का साथ निभाया. उन के बीवीबच्चे जानते थे कि सुनंदा के साथ उन का क्या संबंध है, परंतु प्रतिरोध नहीं किया. इस की सब से बड़ी वजह थी, प्रेमशंकर सुनंदा पर निर्भर थे. सुनंदा अपनी तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा प्रेमशंकर के बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खर्च कर देतीं. विरोध की जगह उलटे कभीकभार आ कर अपने आत्मीय होने का परिचय प्रेमशंकर की पत्नीबच्चे दे जाते. प्रेमशंकर अकसर रात सुनंदा के पास गुजारते. जहां भी जाना होता, सुनंदा के साथ जाते. रुसवाइयों से बेखबर प्रेमशंकर सुनंदा के पास समय गुजारते.

सारा महल्ला जानता था कि प्रेमशंकर सुनंदा के लिए क्या हैं? शायद एक वजह यह भी थी सुनंदा के पासपड़ोसियों से कटने की.

सुनंदा जिस मकान में किराएदार थीं वह मकान उन के पिता के जमाने से चला आ रहा था. लगभग 75 सालों से वे मकान पर काबिज थीं. मांबाप के मरने व भाइयों के शादी कर दूसरे शहरों में बस जाने के बावजूद उन्होंने यह मकान खाली नहीं किया. चाहतीं तो अपना घर बनवा कर जा सकती थीं. लेकिन इस घर में उन के मांबाप रहे, यहीं वे पलीबढ़ीं, इसलिए इस घर से उन का भावनात्मक रिश्ता था. मकानमालिक विपिन नहीं चाहता था कि अब वे रहें. इस को ले कर अकसर दोनों में तकरार होती. आज की तारीख में वह मकान शहर के प्राइम लोकेशन पर था. खरीदार उस की मनमानी कीमत दे रहे थे, जो सुनंदा के लिए संभव न था. सुनंदा न वह मकान खरीद सकती थीं न छोड़ सकती थीं. किराया भी नाममात्र का था. सुनंदा ने मकान पर कब्जा कर लिया था और नियमानुसार मकान का किराया कचहरी में जमा करतीं. विपिन तभी से खार खाए बैठा था. इस के बावजूद उस ने हिम्मत न हारी. एक रोज आया, विनीत स्वर में बोला, ‘‘मैडम, आप अध्यापिका रह चुकी हैं. लोगों को नेकी के रास्ते पर चलने की शिक्षा देती हैं. क्या आप की शिक्षा में यही लिखा है कि किसी का हक मार लो?’’

‘‘हक तो आप ने मेरा मारा है?’’ सुनंदा बोलीं.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘पिछले 75 सालों से रह रही हूं. इतना किराया दे चुकी हूं कि इस मकान पर मालिकाना हक हमारा बनता है.’’

‘‘अरे वाह, ऐसे कैसे हक बनता है?’’ विपिन बोला, ‘‘आप किराएदार थीं न कि मकानमालिक बनने आई थीं. इतने साल मेरे घर का उपभोग किया. उपभोग की कीमत आप ने दी, न कि इस जमीन व ईंट सीमेंट के बने मकान की?’’

‘‘आप जो समझिए, मैं जीतेजी इस मकान को खाली नहीं करूंगी.’’

‘‘किसी की जमीन हड़पना आप को शोभा देता है?’’

‘‘मैं ने हड़पा कहां है, मरने के बाद आप की ही है.’’

‘‘तब तक मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं?’’

‘‘यह आप जानें,’’ सुनंदा किचन में चली गईं. विपिन को नागवार लगा.

एक दिन सुनंदा ने पुलिस को बुला लिया. उन का आरोप था कि मकानमालिक ने बिजली काट दी है. सुनंदा के साथ प्रेमशंकर भी बैठे थे.

‘‘कनैक्शन क्यों काटा?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘एक साल से ये बिजली का बिल नहीं दे रहीं,’’ मकानमालिक बोला.

‘‘क्या यह सही है, मैडम?’’ इंस्पैक्टर सुनंदा की तरफ मुखातिब हुआ.

‘‘यह सरासर झूठ बोल रहा है,’’ सुनंदा उत्तेजित हो गईं.

‘‘अभी पिछले महीने मैं ने इसे 200 रुपए बिजली के बिल के लिए दिए थे,’’ प्रेमशंकर बोले.

‘‘आप कौन हैं?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

प्रेमशंकर बगलें झांकने लगे. तब मकानमालिक बोला, ‘‘ये पिछले 30 साल से यहां आ रहे हैं.’’

‘‘क्या रिश्ता है आप का इन से?’’ इंस्पैक्टर ने प्रेमशंकर से पूछा.

‘‘आप से मतलब?’’ सुनंदा झुंझलाईं.

‘‘मतलब तो नहीं है, फिर भी पुलिस होने के नाते यह जानना मेरा पेशा है,’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘बेमतलब की बात छोडि़ए. इन से कहिए कि कनैक्शन जोड़ दें,’’ प्रेमशंकर सिगरेट की राख झटकते हुए बोले.

‘‘मैं नहीं जोड़ूंगा. पिछले साल भर का बकाया चुकता करें.’’

‘‘झूठा, बेईमान,’’ सुनंदा चिल्लाईं.

‘‘चिल्लाइए मत,’’ इंस्पैक्टर ने डंडा हिलाया.

‘‘डंडा नीचे रख कर बात कीजिए. मैं कोई चोरउचक्की नहीं,’’ सुनंदा ने आंखें तरेरीं, ‘‘एक सम्मानित स्कूल की प्रिसिंपल हूं.’’

‘‘बेहतर होगा कि आप अपनी जबान को लगाम दें.’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘मैं लगाम दूं और यह झूठ पर झूठ बोलता जाए.’’

‘‘क्या सुबूत है कि आप सच बोल रही हैं?’’ इंस्पैक्टर का स्वर तल्ख था.

‘‘सच बोलने के लिए किसी सुबूत की जरूरत नहीं होती. किसी से पूछ लीजिए, मेरे ऊपर किसी की फूटी कौड़ी भी बकाया है?’’

‘‘मकानमालिक का तो है?’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘तमीज से बात कीजिए. आप कैसे कह सकते हैं?’’ सुनंदा बोलीं.

‘‘मैं नहीं, मकानमालिक कह रहा है.’’

‘‘आप मकानमालिक की पैरवी करने आए हैं या हल निकालने?’’

‘‘हम जो कुछ करेंगे कानून के दायरे में करेंगे. जबरदस्ती बिजली कनैक्शन दिलाना हमारे दायरे में नहीं आता. बेहतर होगा, आप दूसरा मकान ढूंढ़ लें,’’ इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘आप एक समझदार महिला हैं. किसी के घर पर कब्जा करना क्या आप को शोभा देता है?’’

‘‘मैं ने कब्जा किया है? मैं किराया बराबर देती हूं.’’

‘‘न के बराबर. फिर मकानमालिक नहीं चाहता तो छोड़ दीजिए मकान.’’

‘‘अपने जीतेजी यह मकान नहीं छोड़ूंगी,’’ सुनंदा भावुक हो उठीं. प्रेमशंकर ने बात संभाली. उस ने इंस्पैक्टर को बताया कि वे मकान क्यों नहीं छोड़ना चाहतीं, जबकि शहर में उन की खुद की जमीन है. वस्तुस्थिति जानने के बाद इंस्पैक्टर को सुनंदा से सहानुभूति तो हुई फिर भी इतने भर के लिए वह किसी के मकान पर इतने सालों से काबिज हैं, यह उस की समझ से परे था.

लाखों लोग बंटवारे के बाद अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ कर भारत चले आए. अगर सब ऐसा ही सोचते तो हो चुकती सुलह. इंस्पैक्टर को सुनंदा की भावुकता बचकानी लगी. इस उम्र में भी परिपक्वता का अभाव दिखा. सुनंदा उसे घमंडी, नकचढ़ी, बदमिजाज और एक अव्यावहारिक महिला लगीं.

उस रोज कुछ नहीं हुआ. आपसी सहमति से कुछ बन पड़ता तो ठीक था, जबरदस्ती तो वह बिजली जोड़ नहीं सकता था. दूसरे जिस तरीके से सुनंदा पेश आईं, इंस्पैक्टर को वह नागवार लगा.

इंस्पैक्टर थाने लौट आया. मकानमालिक खुश था. उसे विश्वास था कि बगैर बिजली सुनंदा ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएंगी. उन लोगों के बीच प्रेमशंकर ने भले ही सुनंदा की हां में हां मिलाई, पर अंदर ही अंदर वे चाहते थे कि सुनंदा यह घर कुछ लेदे कर छोड़ दें. वैसे भी महल्ले में लोग उन्हें भेद भरी नजरों से देखते हैं तो उन्हें अच्छा नहीं लगता. लड़ाईझगड़े की स्थिति में उन की स्थिति और भी खराब हो जाती. उन से सफाई देते नहीं बन पाता कि आखिर अपने व सुनंदा के बीच के संबंधों को वे किस रूप में दर्शाएं. एक दिन क्रोध में आ कर मकानमालिक की बीवी ने कह दिया था कि आप से इन का रिश्ता क्या है जो इन की तरफ से बोलते हैं? तब प्रेमशंकर से जवाब देते न बना था. सुनंदा ने तूतूमैंमैं कर के उस का मुंह बंद कर दिया था.

प्रेमशंकर पर सुनंदा के बड़े एहसान थे. उस के घर का सारा खर्चा वही चलातीं. जमीन भी प्रेमशंकर के नाम खरीदी. बीमा की सारी पौलिसियों में नौमिनी प्रेमशंकर को बनाया था. एक दिन मौका पा कर प्रेमशंकर ने अपने मन की बात कही. सुनंदा ने दोटूक शब्दों में प्रेमशंकर की बोलती बंद कर दी, ‘‘तुम्हें दिक्कत होती है तो मत रहो मेरे साथ. मैं बाकी जिंदगी किसी तरह काट लूंगी. पर यह मकान नहीं छोड़ूंगी.’’

प्रेमशंकर एहसानफरामोश नहीं थे. जिस के साथ जवानी गुजारी उस का बुढ़ापे में साथ छोड़ना उन्हें गवारा न था.

‘‘हमारी उम्र हो चली है. तुम हर महीने कोर्ट में किराया जमा करने जाती हो. क्या कोर्टकचहरी अब संभव है?’’ प्रेमशंकर बोले.

‘‘मेरे लिए संभव है. उस ने मेरे साथ ज्यादती की है. मैं इसे नहीं भूल सकती,’’ सुनंदा जिद्दी थीं. प्रेमशंकर की उन के आगे एक न चली.

इधर, मकानमालिक इंस्पैक्टर से बोला, ‘‘सर, आप सोच सकते हैं कि वह कैसी मगरूर महिला है. जिस मकान का किराया 5 हजार रुपए होना चाहिए उस का सिर्फ 500 रुपए देती है.’’

‘‘वह तो ठीक है. औरत का मामला है, इसलिए मैं ज्यादा जोरजबरदस्ती नहीं कर सकता,’’ इंस्पैक्टर बोला. कुछ देर सोचने के बाद फिर बोला, ‘‘मकान बेच क्यों नहीं देते?’’

‘‘बापदादाओं का मकान बेचने का दिल नहीं है.’’

‘‘और कोई चारा नहीं?’’

‘‘खरीदेगा कौन? किराएदार के रहते कोई जल्दी हाथ नहीं लगाएगा.’’

‘‘किसी दबंग को बेच दो. थोड़ा कम दाम देगा मगर मुक्ति तो मिलेगी,’’ इंस्पैक्टर की राय उसे माकूल लगी. मकानमालिक ने घर आ कर अपनी पत्नी से रायमशविरा किया. पत्नी भी बेमन से तैयार हो गई.

2 करोड़ रुपए के मकान का आधे दाम में सौदा हुआ. गुड्डू सिंह ठेकेदार ने वह मकान खरीद लिया. गुड्डू सिंह ने पहले तो मिन्नतें कीं. सुनंदा जब नहीं मानीं तो थाने जा कर 5 लाख रुपए इंस्पैक्टर को दे दिए. 2 दिन बाद खबर आई कि कुछ गुंडों ने सुनंदा का गला रेत कर उन की हत्या कर दी. होहल्ला मचा. कुछ संगठनों ने विरोध में जुलूस निकाला. भाषणबाजी हुई.

संपादकों ने एक अकेली महिला की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा संपादकीय लिखा. दोचार दिन खबरें छपीं. असली हत्यारा लापता रहा. पुलिस ने प्रेमशंकर को गिरफ्तार किया क्योंकि इस हत्या से सीधेसीधे लाभ उन्हीं को मिला. बीमा की राशि मिली. जमीन तो उन के नाम थी ही. बैंक एफडी के भी वारिस प्रेमशंकर थे. अंत में न कुछ निकलना था, सो न ही निकला. इंस्पैक्टर ने नाटे यादव नामक हिस्ट्रीशीटर को इस हत्या का जिम्मेदार मान कर झूठी रिपोर्ट दर्ज कर ली, ताकि जनता व मीडिया चुप हो जाए.

नाटे यादव की खोज की खबरें रोज अखबार में आने लगीं. 1 महीना बीत जाने के बाद भी जब नाटे यादव गिरफ्तार नहीं हुआ व अखबार पुलिसिया कार्यशैली पर सवाल उठाने लगे तो एक रोज खबर छपी कि पुलिस मुठभेड़ में नाटे यादव मारा गया. उस के एनकाउंटर से भले ही जनता को संतोष हुआ हो कि सुनंदा के साथ न्याय हुआ, फिर भी यह सवाल हमेशा के लिए सवाल ही रह गया कि क्या नाटे यादव ने ही सुनंदा का कत्ल किया था? कोयला माफिया गुड्डू सिंह उस मकान को गिरवा कर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बनवाने लगा. Hindi Crime Story

Crime Story In Hindi: पतिहंत्री – क्या प्रेमी के लिए पति को मार सकी अनामिका?

Crime Story In Hindi: काश,जो बात अनामिका अब समझ रही है वह पहले ही समझ गई होती. काश, उस ने अपने पड़ोसी के बहकावे में आ कर अपने ही पति किशन की हत्या नहीं की होती. आज वह जेल के सलाखों के पीछे नहीं होती. यह ठीक है कि उस का पति साधारण व्यक्ति था. पर था तो पति ही और उसे रखता भी प्यार से ही था. उस का छोटा सा घर, छोटा सा संसार था. हां, अनावश्यक दिखावा नहीं करता था किशन.

अनावश्यक दिखावा करता था समीर, किशन का दोस्त, उसे भाभी कहने वाला व्यक्ति. वह उसे प्रभावित करने के लिए क्याक्या तिकड़म नहीं लगाता था. पर उस समय उसे यह तिकड़म न लग कर सचाई लगती थी. उस का पति किशन समीर का पड़ोसी होने के साथसाथ उस का मित्र भी था. अत: घर में आनाजाना लगा रहता था.

समीर बहुत ही सजीला और स्टाइलिश युवक था. अनामिका से वह दोस्त की पत्नी के नाते हंसीमजाक भी कर लिया करता था. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. अनामिका को किशन की तुलना में समीर ज्यादा भाने लगा. समय निकाल कर समीर अनामिका से फोन पर बातें भी करने लगा. शुरू में साधारण बातें. फिर चुटकुलों का आदानप्रदान. फिर कुछकुछ ऐसे चुटकुले जो सिर्फ काफी करीबी लोगों के बीच ही होती हैं. फिर अंतरंग बातें. किशन को संदेह न हो इसलिए वह सारे कौल डिटेल्स को डिलीट भी कर देती थी. समीर का नंबर भी उस ने समीरा के नाम से सेव किया था ताकि कोई देखे तो समझे कि किसी सखी का नंबर है. समीर ने अपने डीपी भी किसी फूल का लगा रखा था. कोई देख कर नहीं समझ सकता था कि वह किस का नंबर है.

धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि अनामिका को समीर के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगने लगा. समीर भी उस से यही कहता था कि उसे अनामिका के अलावा कोई भी अच्छा नहीं लगता. कई बार जब वह घर में अकेली होती तो समीर को कौल कर बुला लेती और दोनों जम कर मस्ती करते थे. घर के अधिकांश सदस्य निचले माले पर रहते थे अत: सागर के छत के रास्ते से आने पर किसी को भनक भी नहीं लगती थी.

न जाने कैसे किशन को भनक लग गई.

उस ने अनामिका से कहा, ‘‘तुम जो खेल खेल रही हो उस से तुम्हें भी नुकसान है, मुझे भी और समीर को भी. यह खेल अंत काल तक तो चल नहीं सकता. तुम चुपचाप अपना लक्षण सुधार लो.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो? समीर तुम्हारा दोस्त है. इस नाते मैं उस से बातें कर लेती हूं

तो इस में तुम्हें खेल नजर आ रहा है? अगर तुम नहीं चाहते तो मैं उस से बातें नहीं करूंगी,’’ अनामिका ने प्रतिरोध किया पर उस की आवाज में खोखलापन था.

बात आईगई तो हो गई, लेकिन इतना तय था कि अब अनामिका और समीर का मिलनाजुलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर हो गया था. पर अनामिका समीर के प्यार में अंधी हो चुकी थी. समीर को शायद अनामिका से प्यार तो न था पर वह उस की वासनापूर्ति का साधन थी. अत: वह अपने इस साधन को फिलहाल छोड़ना नहीं चाहता था.

एक दिन समीर ने मौका पा कर अनामिका को फोन किया.

‘‘हैलो’’

‘‘कहां हो डार्लिंग? और कब मिल रही हो?’’

‘‘अब मिलना कैसे संभव होगा? किशन को पता चल गया है.’’

‘‘किशन को अगर रास्ते से हटा दें तो?’’

‘‘इतना आसान काम है क्या? कोई फिल्मी कहानी नहीं है यह. वास्तविक जिंदगी है.’’

‘‘आसान है अगर तुम साथ दो. फिल्मी कहानी भी हकीकत के आधार पर ही बनती है. उसे रास्ते से हटा देंगे. यदि संभव हुआ तो लाश को ठिकाने लगा देंगे अन्यथा पुलिस को तुम खबर करोगी कि उस की हत्या किसी ने कर दी है. पुलिस अबला विधवा पर शक भी नहीं करेगी. फिर हम भाग चलेंगे कहीं दूर और नए सिरे से जिंदगी बिताएंगे.’’

अनामिका समीर के प्यार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उस के सोचनेसमझने की क्षमता जा चुकी थी. समीर ने जो प्लान बताया उसे सुन पहले तो वह सकपका गई पर बाद में वह इस पर अमल करने के लिए राजी हो गई.

प्लान के अनुसार उस रात अनामिका किशन को खाना खिलाने के बाद कुछ देर

उस के साथ बातें करती रही. फिर दोनों सोने चले गए. अनामिका किशन से काफी प्यार से बातें कर रही थी. दोनों बातें करतेकरते आलिंगनबद्ध हो गए. आज अनामिका काफी बढ़चढ़ कर सहयोग कर रही थी. किशन को भी यह बहुत ही अच्छा लग रहा था.

उसे महसूस हुआ कि अनामिका सुबह की भूली हुई शाम को घर आ गई है. वह भी काफी उत्साहित, उत्तेजित महसूस कर रहा था. देखतेदेखते उस के हाथ अनामिका के शरीर पर फिसलने लगे. वह उस के अंगप्रत्यंग को सहला रहा था, दबा रहा था. अनामिका भी कभी उस के बालों पर हाथ फेरती कभी उस पर चुंबन की बौछार कर देती. प्यार अपने उफान पर था. दोनों एकदूसरे में समा जाएंगे. थोड़ी देर तक दोनों एकदूसरे में समाते रहे फिर किशन निढाल हो कर हांफते हुए करवट बदल कर सो गया.

अनामिका जब निश्चिंत हो गई कि किशन सो गया है तो वह रूम से बाहर आ कर अपने मोबाइल से समीर को मैसेज किया. समीर इसी ताक में था. समीर के घर की छत किशन के घर की छत से मिला हुआ था. अत: उसे आने में कोई परेशानी नहीं होनी थी. जैसे ही उसे मैसेज मिला वह छत के रास्ते ही किशन के घर में चला आया. अनामिका उस की प्रतीक्षा कर ही रही थी. वह उसे उस रूम में ले कर गई जिस में किशन बेसुध सोया हुआ था.

सागर अपने साथ रस्सी ले कर आया था. उस ने धीरे से रस्सी को सागर के गरदन के नीचे से डाल कर फंदा बनाया और फिर जोर से दबा दिया. नींद में होने के कारण जब तक किशन समझ पाता स्थिति काबू से बाहर हो चुकी थी. तड़पते हुए किशन अपने हाथपैर फेंक रहा था. अनामिका ने उस के पैर को अपने हाथों से दबा दिया. उधर सागर ने रस्सी पर पूरी शक्ति लगा दी. मुश्किल से 5 मिनट के अंदर किशन का शरीर ढीला पड़ गया.

अब आगे क्या किया जाए यह एक मुश्किल थी. लाश को बाहर ले जाने से लोगों के जान जाने का खतरा था. सागर छत के रास्ते वापस अपने घर चला गया. अनामिका ने रोतेकलपते हुए निचले माले पर सोए घर के सदस्यों को जा कर बताया कि किसी ने किशन की हत्या कर दी है. पूरे घर में कोहराम मच गया. पुलिस को सूचना दी गई. योजना यही थी कि कुछ दिनों के बाद अनामिका सागर के साथ कहीं दूर जा कर रहने लगेगी.

पर पुलिस को एक बात नहीं पच रही थी कि पत्नी के बगल में सोए पति की कोई हत्या कर जाएगा और पत्नी को पता नहीं चलेगा. पुलिस अनामिका से तथा आसपास के अन्य लोगों से तहकीकात करती रही. किसी ने पुलिस को सागर और अनामिकाके प्रेम प्रसंग की बात बता दी. पुलिस ने सागर से भी पूछताछ की. उस का जवाब कुछ बेमेल सा लगा तो उस के मोबाइल कौल की डिटेल ली गई. स्पष्ट हो गया कि दोनों के बीच कई हफ्तों से बातें होती रही हैं. कड़ी पूछताछ हुई तो अनामिका टूट गई. उस ने सारी बातें पुलिस को बता दी. सागर और अनामिका दोनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. अब अनामिका को एहसास हुआ कि उस ने समीर के बहकावे में आ कर गलत कदम उठा लिया था.

अब उन के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं था. Crime Story In Hindi

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