Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

नोएडा के ककराला गांव की पुस्ता कालोनी में रात के ढाई बजे सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यों और एक घर के बाहर जमा कालोनी के लोगों की भीड़ इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि वहां कोई अनहोनी हुई है. दरअसल, 7 मई 2021 की दरमियानी रात को पुस्ता कालोनी में रामचंद्र सिंह के मकान में किराए पर रहने वाले 52 वर्षीय संतराम की घर में घुस कर कुछ बदमाशों ने हत्या कर दी थी.

जिस वक्त ये वारदात हुई, रात के करीब एक बजे का वक्त था. पुलिस घटनास्थल पर सूचना मिलने के बाद करीब ढाई बजे पहुंची. ककराला गांव गौतमबुद्ध नगर कमिश्नरेट के फेज-2 थानाक्षेत्र के अंर्तगत आता है.

फेज-2 थाने के प्रभारी सुजीत कुमार उपाध्याय उस समय कुछ सिपाहियों के साथ गश्त कर रहे थे. जब कंट्रोलरूम ने उन्हें ककराला में रहने वाले संतराम की उस के घर में हुई हत्या की खबर दी.

थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय अगले कुछ ही मिनटों में बताए गए घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर तब तक मकान में रहने वाले कुछ दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. संतराम की हत्या उस के सिर व चेहरे पर ईंटों के वार कर के की गई थी. पास ही खून से लथपथ एक ईंट इस बात की पुष्टि कर रही थी. कमरे का सारा सामान इधरउधर फैला पड़ा था.

मृतक की पत्नी सुशीला जिस की उम्र करीब 55 साल थी, पति के शव के साथ लिपटलिपट कर रो रही थी. किसी तरह पुलिस ने सुशीला को दिलासा दी तो उस ने सुबकते हुए बताया कि रात करीब साढे़ 12 बजे किसी ने हमारे कमरे का दरवाजा खटखटाया.

मैं ने जैसे ही दरवाजा खोला तो 3 लोग जबरदस्ती कमरे में घुस आए. कमरे में घुसते ही उन्होंने मुझे दबोच लिया और पूछा घर में कितने लोग हैं, जेवर और नकदी कहां रखे हैं. पूछताछ करते हुए उन्होंने मुझे एक के बाद एक साथ 3-4 थप्पड़ मारे और लातघूंसों की बारिश करते हुए मुझे जोर से जमीन पर धक्का दे दिया.

दीवार से सिर टकराने के कारण मैं उसी वक्त बेहोश हो गई. इस के बाद बदमाशों ने क्या किया, मुझे नहीं मालूम. जब कुछ देर बाद मुझे होश आया तो मैं ने अपने पति का शव इसी अवस्था में देखा जैसा इस समय आप देख रहे हैं.

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इस के बाद मैं ने शोर मचा कर अपने मकान के दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों को एकत्र किया. बाद में अपने जेठ लालूराम को फोन किया. वह गौतमबुद्ध नगर के गांव धूममानिकपुर में रहता था. वह भी एक घंटे में सूचना पा कर आ गया.

थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को घटना का निरीक्षण करने और सुशीला के बयान से साफ लग रहा था कि संभवत: कुछ बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में घुसे होंगे.

घटना का जो खाका तैयार हुआ था उस की पुष्टि के लिए थानाप्रभारी उपाध्याय ने एकएक कर उस मकान में रहने वाले सभी किराएदारों, आसपड़ोस के लोगों और संतराम के बड़े भाई लालूराम से पूछताछ की तो पता चला कि संतराम घरों का निर्माण करने वाला छोटामोटा ठेकेदार था. ठेकेदारी में वह राजमिस्त्रियों की टीम ले कर निर्माण का काम करता था.

इस काम में वहीं आसपास रहने वाले उस के जानकार उस की टीम में शामिल होते थे. संतराम के बारे में एक अहम जानकारी यह मिली कि वह बेहद सरल स्वभाव का इंसान था. आज तक उस का किसी से झगड़ा या दुश्मनी की बात भी किसी को पता नहीं चली थी.

पुलिस को पूछताछ में किसी से भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली जिस से हत्याकांड के बारे में तत्काल कोई सुराग मिल पाता.

सुशीला इस घटना की एकमात्र चश्मदीद थी, लेकिन उस ने पूछताछ में बताया कि उस ने आज से पहले कभी उन हमलावरों को नहीं देखा था, वह उन के चेहरे और हुलिए के बारे में भी कोई खास जानकारी नहीं दे सकी. अलबत्ता उस ने यह जरूर कहा कि अगर वे लोग दोबारा उस के सामने आए तो वह उन्हें पहचान सकती है.

चूंकि जिस तरह बदमाशों ने घर में घुसते ही सुशीला के ऊपर हमला किया था, उस से जाहिर तौर पर कोई भी इंसान इतना घबरा जाता है कि वह किसी के चेहरेमोहरे को देखने की जगह पहले अपना बचाव और जान बचाने की कोशिश करता है.

लेकिन 2 ऐसी बातें थीं जो अब तक की जांच व पूछताछ में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को परेशान कर रही थीं. एक तो यह बात कि सुशीला के शरीर के सभी हिस्सों  का निरीक्षण करने के बाद भी उन्हें ऐसी कोई गुम या खुली हुई चोट नहीं मिली, जिस से साबित हो कि वह बेहोश हो गई थी. मतलब उस के शरीर पर खरोंच तक के निशान नहीं थे. दूसरे वह पुलिस को घर में लूटपाट होने वाले सामान की जानकारी नहीं दे सकी.

दरअसल, जिन बदमाशों ने घर में घुस कर एक आदमी की विरोध करने पर हत्या कर दी हो, क्या वह बिना कोई लूटपाट किए चले गए होंगे. दूसरे संतराम जिस हैसियत का इंसान था और किराए के मकान में जिस तरह का सामान मौजूद था, उसे देख कर कहीं से भी नहीं लग रहा था कि उस घर में लूटपाट करने के लिए बदमाश किसी की हत्या भी कर सकते हैं.

ऐसे तमाम सवाल थे जिन के कारण सुशीला पुलिस की निगाहों में संदिग्ध हो चुकी थी. लेकिन उस के पति की हत्या हुई थी इसलिए तत्काल उस से पूछताछ करना उपाध्याय ने उचित नहीं समझा.

इस वारदात की सूचना मध्य क्षेत्र के डीसीपी हरीश चंदर व एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल व इलाके के एसीपी योगेंद्र सिंह को भी लग चुकी थी. सूचना मिलने के बाद वे भी मौके पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन व फोरैंसिक टीम के अफसर भी मौके पर पहुंच गए थे.

घटनास्थल से जरूरी साक्ष्य एकत्र किए गए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

मृतक संतराम के भाई लालूराम जो धूममानिकपुर थाना बादलपुर जिला गौतमबुद्ध नगर में रहता है, की शिकायत पर पुलिस ने 7 मई की सुबह भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया, जिस की जांच का जिम्मा खुद थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय ने अपने हाथों में ले लिया.

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डीसीपी हरीश चंदर ने एसीपी योगेंद्र सिंह की निगरानी में हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय के साथ एसएसआई राजकुमार चौहान, एसआई रामचंद्र सिंह, नीरज शर्मा, हैडकांस्टेबल फिरोज, कांस्टेबल आकाश, जुबैर, विकुल तोमर, गौरव कुमार तथा महिला कांस्टेबल नीलम को शामिल किया गया. पूरे केस में पुलिस काररवाई पर नजर रखने के लिए एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल को जिम्मेदारी सौंपी गई.

हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस ने सब से पहले संतराम के शव का पोस्टमार्टम कर शव को उस के परिजनों को सौंपा, जिन्होंने उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इस दौरान दिल्ली व आसपास रहने वाले संतराम के काफी रिश्तेदार उस के घर पहुंच चुके थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो चुकी थी कि संतराम की मौत उस के सिर व चेहरे पर लगी चोटों के कारण हुई थी.

पुलिस टीम ने सभी बिंदुओं को ध्यान में रख क र अपनी  जांच शुरू कर दी. टीम ने सुशीला, उस के पति मृतक संतराम और उन के परिवार की कुंडली को खंगालना शुरू कर दिया.

इतना ही नहीं, पुलिस ने वारदात वाली रात को घटनास्थल के आसपास सक्रिय रहे मोबाइल नंबरों का डंप डाटा भी उठा लिया और उन सभी मोबाइल नंबरों की जांचपड़ताल शुरू की जाने लगी, जो वहां सक्रिय थे.

पुलिस ने संतराम व सुशीला के फोन नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवा ली. इस के अलावा गांव में अपने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया.

संतराम पुत्र शंकर राम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के कस्बा व थाना रोजा का रहने वाला था. उस के परिवार में एक भाई लालू राम के अलावा 4 बहनें थी.

यह बात करीब 18-19 साल पहले की है. उन दिनों संतराम अपने गांव व आसपास के इलाकों में राजमिस्त्री का काम करता था. उम्र बढ़ रही थी और उस ने शादी की नहीं थी, इसलिए जो भी कमाता उसे अपने ऊपर खर्च करता था. इंसान के ऊपर जिम्मेदारियां न हों तो शराब ही अधिकांश लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन जाती है.

उसी के गांव में बालकराम भी रहता था, जो उसी की बिरादरी का होने के साथ पेशे से राजमिस्त्री का ही काम करता था. यही कारण था कि संतराम की बालकराम से खासी गहरी दोस्ती थी. संतराम का उस के घर भी आनाजाना था. बालकराम विवाहित था परिवार में पत्नी सुशीला और 5 बच्चे थे. 3 बेटे व 2 बेटियों में सब से बड़ा बेटा था.

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संतराम बालकराम के साथ उस के घर में बैठ कर शराब भी पीता था. बालकराम की पत्नी सुशीला 5 बच्चे होने के बाद भी गेहुएं रंग और छरहरे बदन की इतनी आकर्षक महिला थी कि पहली ही नजर में कोई भी उस की तरफ आकर्षित हो जाता था. सुशीला थोड़ा चंचल स्वभाव की महिला थी.

अगले भाग में पढ़ें- संतराम व सुशीला की खुली पोल

MK- पूर्व सांसद पप्पू यादव: मददगार को गुनहगार बनाने पर तुली सरकार- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

कोरोना काल में पप्पू यादव ने लोगों की मदद कर जान भी बचाई. बढ़ती महामारी कोरोना के बीच जिस समय देश में तमाम एंबुलेंस चालकरूपी गिद्ध पीडि़तों से मुंहमांगी

रकम वसूल रहे थे, सरकार भी जरूरतमंदों को जरूरी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने में विफल थी, जिस की वजह से सैकड़ों मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. उसी दौरान पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने 7 मई को सारण जिले के अमनौर कस्बे के विश्वप्रभा सामुदायिक केंद्र परिसर में स्थित एक प्रशिक्षण केंद्र पर औचक छापा मार कर तहलका मचा दिया.

वहां नारंगी रंग के तिरपाल के अंदर दरजनों एंबुलेंस खड़ी मिलीं. यह सारण के भाजपा के वरिष्ठ सांसद राजीव प्रताप रूड़ी का गांव है.

ये सभी एबुंलेंस सांसद राजीव प्रताप रूड़ी की देखरेख में वहां खड़ी थीं. पप्पू यादव ने सभी एंबुलेंस का वीडियो बनाया और अपने ट्वीट पर इसे पोस्ट करते हुए जोरदार सवाल उठाया कि सांसद निधि से खरीदी गई इतनी सारी एंबुलेंस यहां क्यों खड़ी हैं, इस की आधिकारिक जांच होनी चाहिए.

देखते ही देखते पप्पू यादव का यह ट्वीट बिहार सहित पूरे भारत में वायरल हो गया. देश के सभी बड़े टीवी चैनलों पर यह खबर प्रमुखता से चलने लगी. टीवी पर इसे ले कर डिबेट होने लगी. जिस ने भी यह खबर देखी, उस ने कोरोना महामारी की नाजुक घड़ी में राजीव प्रताप रूड़ी द्वारा इतने सारे एंबुलेंस को बेवजह खड़ी रखने के फैसले की निंदा की. इस के साथ ही बिहार में चल रही नीतीश कुमार की सरकार भी लोगों के निशाने पर आ गई.

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इस के बाद बिहार की जनता नीतीश सरकार की नाकामियों पर तरहतरह के तीखे सवाल खड़े करने लगी. अभी कोरोना काल चल रहा था और सरकार लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा देने में पूरी तरह असफल साबित हो रही थी. पटना समेत पूरे बिहार में एंबुलेंस औपरेटर कोरोना मरीज के परिवार वालों से मनमाफिक किराया वसूल रहे थे.

ऐसे मुश्किल समय में बिहार की मौजूदा सरकार द्वारा सारण में खड़ी धूल फांक रही इन एंबुलेंसों का उपयोग कर हजारों मरीजों को समय रहते अस्पताल पहुंचा कर उन की जान बचा सकती थी. यह सभी एंबुलेंस कुछ साल पहले बीजेपी के वरिष्ठ सांसद राजीव प्रताप रूड़ी द्वारा जनता की सेवा के लिए सांसद निधि से खरीदी गई थीं.

लेकिन कोरोना महामारी में लाचार लोगों को मरते हुए देखने के बावजूद बीजेपी के वरिष्ठ सांसद राजीव रूड़ी का खामोश रहना बिहार की जनता के प्रति उन के घोर नकारात्मक रवैए को दिखा रहा था.

एंबुलेंस के अभाव के कारण परिजनों द्वारा मरीजों को ठेलों पर लाद कर अस्पताल तक पहुंचाते देखा जा सकता था. ऐसी विकट परिस्थिति में अगर ये एंबुलेंस मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाने के काम आ जातीं तो सैकड़ों गरीब असहाय लोगों की जानें बचाई जा सकती थीं.

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वीडियो हुआ वायरल

पप्पू यादव द्वारा इस वीडियो को वायरल किए जाने के बाद सांसद राजीव प्रताप रूड़ी की तरफ से एक बेहद बचकाना सा बयान आया कि सभी एंबुलेंस ड्राइवरों के अभाव में यहां खड़ी हैं. जिस ने भी राजीव प्रताप रूड़ी का यह बयान सुना, सब ने इसे एक गैरजिम्मेदाराना बयान समझा.

बहरहाल, उन के इस बयान को सुन कर पप्पू यादव खामोश नहीं बैठे. उन्होंने जोरशोर से एंबुलेंस चालकों की तलाश शुरू की तो देखते ही देखते उन्होंने 40 कुशल चालकों की फौज खड़ी कर दी और राजीव प्रताप रूड़ी सहित नीतीश कुमार को इन्हें अपनी सेवा में लेने के लिए कहा. लेकिन सरकार ने इस मामले में एकदम चुप्पी साध ली.

बिहार सरकार का लोगों के प्रति ऐसा ढुलमुल रवैया देखने के बाद पप्पू यादव ने एक और ट्वीट करते हुए तंज कसा कि राजीव प्रताप रूड़ी इन एबुंलैंसों द्वारा नदी से बालू ढो रहे हैं. बालू ढोने के लिए उन के पास चालक हैं, लेकिन बीमारों की मदद करने के लिए उन के पास चालक नहीं हैं. प्रमाण के तौर पर उन्होंने नदी से बालू ढो रहे एंबुलेंस की फोटो भी पोस्ट की.

इस के बाद दोनों नेताओं के बीच एक तीखी बयानबाजी शुरू हुई. इस पर अमनौर थाने में पप्पू यादव के खिलाफ कोविड नियम भंग करने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में मामला दर्ज कर लिया गया. पप्पू यादव ने सांसद राजीव प्रताप रूड़ी के पीए द्वारा फोन पर गालीगलौज करने का भी आरोप लगाया.

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पप्पू यादव को भेजा जेल

पप्पू यादव द्वारा बिहार की सुशासन की कुव्यवस्था उजागर किए जाने के बाद नीतीश सरकार तिलमिला कर रह गई. सरकार के शीर्ष नेताओं ने सोचा कि अगर पप्पू यादव बिहार की जनता को इसी तरह एक के बाद एक सरकार की नाकामियां गिनाते रहे तो उन का सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए पप्पू यादव को किसी तरह गिरफ्तार करने की योजना तैयार की गई.

अत: 10 मई, 2021 को पटना के 5 थानों की पुलिस ने लौकडाउन का उल्लंघन करने, बगैर पुलिस अनुमति के बाहर घूमने और सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में पप्पू यादव को बुद्धा कालोनी स्थित उन के आवास से गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें गिरफ्तार कर पहले पटना के गांधी मैदान थाने लाया गया. फिर 32 साल पुराने अपहरण के एक पुराने मामले की जांच के लिए मधेपुरा पुलिस को सौंप दिया गया.

अगले भाग में पढ़ें-जेल में ही हो गया था इश्क

Crime: ओलिंपियन सुशील कुमार गले में मेडल, हाथ में मौत

आज सुशील कुमार जिस मुकाम पर हैं, उन का नाम एक बड़े अपराध से जुड़ना वाकई दुखद है और सवाल खड़ा करता है कि क्यों किसी नामचीन पहलवान ने ऐसी वारदात को अंजाम दिया, जो उस की जिंदगी को पूरी तरह बरबाद कर सकती है?

यह सवाल उठने की एक वजह यह भी है कि सुशील कुमार ने कुश्ती में जो कारनामे किए हैं, वह कोई हंसीखेल नहीं है, वरना साल 2008 से पहले चंद खेल प्रेमियों को छोड़ दें तो बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता था कि सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, अखिल कुमार और विजेंदर सिंह में से कौन मुक्केबाज है और कौन पहलवान.

लेकिन भारत ने साल 2008 में चीन में हुए बीजिंग ओलिंपिक खेलों में जो ऐतिहासिक प्रदर्शन किया था, उस में कुश्ती में सुशील कुमार और मुक्केबाजी में विजेंदर सिंह ने कांसे का तमगा जीता था. तब से सुशील कुमार ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और वे न केवल साल 2010 में वर्ल्ड चैंपियन बने, बल्कि साल 2012 में इंगलैंड के लंदन ओलिंपिक में कांसे के तमगे का रंग बदलते हुए उसे चांदी का कर दिया था.

देश की जनता और सरकार ने भी सुशील कुमार को प्यार और तोहफे देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. खेल जगत का हर बड़ा अवार्ड तो मिला ही, उन्हें नौकरी भी ऐसी दी गई कि वे भविष्य के पहलवानों को अपनी निगरानी में तराश सकें. इतना ही नहीं, 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों के गोल्ड मेडलिस्ट और सुशील कुमार के गुरु महाबली सतपाल ने उन्हें अपना दामाद बनाया.

एक मुलाकात में मैं ने महाबली सतपाल से पूछा था कि उन्होंने सुशील को ही अपनी बेटी सवी के लिए क्यों चुना? तब अपने चिरपरिचित अंदाज में मुसकराते हुए उन्होंने मु झ से ही सवाल कर दिया था कि क्या आज की तारीख में मेरी बेटी के लिए सुशील से योग्य वर तुम्हें कोई दूसरा दिखता है?

सवी से शादी हुई और सुशील कुमार जुड़वां बेटों के पिता बने. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने छोटे भाइयों का भी खास खयाल रखा. नजफगढ़ में उन्होंने ‘सुशील इंटरनैशनल’ नाम से एक स्कूल खोला, जिसे उन के भाई संभालते हैं.

फिर ऐसा क्या हुआ कि एक गरीब ड्राइवर के बेटे सुशील कुमार को यह तरक्की और जनता का प्यार रास नहीं आया और उन के साथ धीरेधीरे ऐसे विवाद जुड़ते गए, जो उन्हें अर्श से फर्श तक ले आए?

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जितना मैं ने सुशील कुमार को जाना और सम झा है, साल 2008 उन की जिंदगी का टर्निंग पौइंट था. बीजिंग ओलिंपिक में मेडल जीतते ही दिल्ली देहात का एक लड़का अचानक सुर्खियों में आ गया था. तब उन की उम्र 25 साल थी और उन्होंने अपनी जिंदगी के तकरीबन 12 साल उस छत्रसाल स्टेडियम में गुजार दिए थे.

पर अब चूंकि सुशील कुमार ओलिंपिक मैडल विजेता थे, तो लोग उन्हें अपने कार्यक्रमों में बतौर मुख्य अतिथि न्योता देने लगे थे. पर तब उन के सामने एक बड़ी समस्या यह आती थी कि वे अपनी बात को उतनी आसानी और रोचक ढंग से लोगों के सामने नहीं रख पाते थे. उन की यह  िझ झक बहुत दिनों के बाद दूर हो पाई थी, वरना बहुत सी बार तो उन के कोच ही मीडिया के सवालों के जवाब दे दिया करते थे.

ऐसे ही एक समारोह में मैं ने सुशील कुमार का पहली बार इंटरव्यू किया था और वह भी ठेठ हरियाणवी भाषा में. यह भाषा उन के लिए सहज थी, तो वे भी हरियाणवी में बोलना शुरू हो गए थे. मेरे सवालों का जवाब देते हुए उन के चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास दिखा था.

इस के बाद हम बहुत बार मिले. ज्यादातर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में या फिर सोनीपत के पास बहालगढ़ स्पोर्ट्स अथौरिटी औफ इंडिया के कौंप्लैक्स में, जहां वे एक अलग अंदाज में रहते थे. इन दोनों जगहों पर वे अपने साथियों के साथ जमीन पर गद्दे लगा कर सोते थे और अपना खाना खुद बनाते थे.

जहां तक मु झे याद है, साल 2008 में ओलिंपिक मैडल जीतने के बाद सुशील कुमार के बहालगढ़ वाले कमरे में पहला एयरकंडीशनर लगा था, वरना मैं ने उन्हें मई की चिलचिलाती गरमी में तंबू में बिना पंखे के घोड़े बेच कर सोते देखा है. तब वे इस कहावत को सच साबित कर देते थे कि किसी सोते हुए पहलवान को नहीं जगाना चाहिए, क्योंकि मेहनत करने के बाद जब वह सोता है तो मुरदे के समान बेसुध हो जाता है.

चूंकि दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ज्यादातर पहलवान हरियाणा या दिल्ली देहात के होते थे, तो उन का हंसीमजाक भी उसी देशीपन से भरा होता था. वे सब तूतड़ाक की भाषा बोलते थे और जो पहलवान कसरत कम कर के खाने पर ज्यादा जोर देता था, उसे दूसरे पहलवान ‘चून’ (आटा) कह कर चिढ़ाते थे.

वैसे भी कुश्ती या पहलवानी से ऐसे बच्चों का नाता ज्यादा रहता है, जो पढ़ाईलिखाई में फिसड्डी ही होते हैं. घर के लोग उन से परेशान हो कर अखाड़े में भेज देते हैं, जहां से बहुत कम ही आगे की ट्रेनिंग के लिए बड़े शहर जा पाते हैं. उन में से भी कोई विरला ही सुशील कुमार बन पाता है.

कहने का मतलब यह है कि सुशील कुमार साल 2008 के बाद अपनी कड़ी मेहनत और कुश्ती के दांवपेंच से देश की शान तो बनते जा रहे थे, पर जिस स्टेडियम वाली जिंदगी से वे प्यार करते थे, वहां खेल की बारीकियां तो सिखा दी जाती थीं, लेकिन शिष्टाचार सिखाने वाले की बेहद कमी थी.

वैसे तो आप किसी भी क्षेत्र में हों, आप का शिष्टाचारी होना अच्छे इनसान होने की निशानी है, लेकिन खिलाडि़यों से भी इसी गुण की डिमांड ज्यादा रहती है. पर अफसोस, बड़े से बड़े खिलाड़ी शिष्टाचार के मामले में मात खा जाते हैं.

दुनियाभर में बहुत से खिलाड़ी पैसे से भले ही मालामाल हुए, पर शिष्टाचार के मामले में फुस निकले. हर कोई सचिन तेंदुलकर और अभिनव बिंद्रा की तरह सौम्य और शिष्टाचारी नहीं  बन पाया.

किसी खिलाड़ी का शिष्टाचारी होना क्यों जरूरी है? क्या शिष्टाचार खिलाड़ी में संयम बनाए रखता है? सरकार और खेल फैडरेशन वाले इस तरफ ध्यान

क्यों नहीं देते हैं? क्या अब समय आ गया है कि फैडरेशन वाले खिलाडि़यों  को शिष्टाचार सिखाने के लिए टीचर बहाल करें?

इन सब सवालों के जवाब महिला फुटबाल की कप्तान रह चुकी सोना चौधरी ने दिए, जो अब मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं और कई सरकारी संस्थाओं के मुलाजिमों को जीवन जीने की कला के टिप्स देती हैं.

सोना चौधरी ने इस मुद्दे पर बताया, ‘‘हर खिलाड़ी में साहस होना चाहिए, पर साथ ही उसे होश भी नहीं खोना चाहिए. एक मुकाम पर पहुंच कर हर खिलाड़ी को यह फैसला करना होता है कि उसे समाज में कैसी इमेज बनानी है. उसी हिसाब से आप अपना रोल मौडल भी चुनते हैं, फिर जरूरी नहीं है कि वह रोल मौडल नामी खिलाड़ी ही हो.

‘‘जब मैं फुटबाल खेलती थी, तब मैं मदर टैरेसा की बहुत बड़ी फैन थी. एक बार कोलकाता में हम ने उन से मिलने का समय भी ले लिया था, पर किसी वजह से मिलना मुमकिन नहीं हो पाया था.

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‘‘कहने का मतलब है कि आप जिन गुणों को आत्मसात करना चाहते हैं, उसी मिजाज के लोगों से मिलते हैं या मिलने की कोशिश करते हैं.

‘‘जब आप किसी बड़े मुकाम पर पहुंच जाते हैं, तो आप का निजीपन खो जाता है. आप की समाज और देश के प्रति जवाबदेही बढ़ जाती है. उस रुतबे को बरकरार रखने के लिए और भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.

‘‘हर कदम सोचसोच कर रखना पड़ता है, हर शब्द सोचसोच कर बोलना पड़ता है, क्योंकि किसी सार्वजनिक प्लेटफार्म पर आप जो भी बोलते हैं, उसे बहुत से लोग सुनते हैं और अपनी जिंदगी में ढालने की कोशिश करते हैं.

‘‘खिलाड़ी को अपने शिष्टाचार का बहुत ध्यान रखना चाहिए. इस से उस की इमेज बनती है. सरकार और खेल फैडरेशन को अलगअलग फील्ड के माहिर लोगों को बुला कर खिलाड़ी की हर तरह से इमेज डवलप करानी चाहिए. इस के लिए कौंट्रैक्ट पर भी लोगों को रखा जा सकता है.

‘‘लेकिन यह एक बार की ट्रेनिंग से मुमकिन नहीं है, बल्कि यह तो बारबार होना चाहिए, 15 दिन में या महीने में जरूर. तभी कोई खिलाड़ी अच्छा इनसान भी बनता है.

‘‘याद रखिए कि कोई खिलाड़ी बड़ी मुश्किल से ऊंचे मुकाम तक पहुंच पाता है, पर अच्छा इनसान उस से भी मुश्किल से बनता है.

‘‘मेरा मानना है कि शिष्टाचार किसी को डराने की प्रेरणा नहीं देता है, बल्कि यह तो दूसरों को भी गलत राह पर जाने से रोकता है.’’

जहां तक खिलाडि़यों और अपराध के संबंध की बात है, तो रोहतक, हरियाणा के एक वकील नीरज वशिष्ठ का कहना है, ‘‘सभ्य समाज में ऐसे अपराध की कोई जगह नहीं है और जब अपराध खेल जगत में अपने दबदबे के लिए दस्तक देने लगे तो हमें जरूर सोचना चाहिए. जिस खेलकूद से हम अपने बच्चों का भविष्य जोड़ कर देखते हैं, उस में अगर ‘‘मैं ही सबकुछ’’ की जिद हावी हो जाती है तो उस से न केवल खेल, बल्कि उस में शामिल सभी का नुकसान ही होता है.

‘‘हम सब को इस आपराधिक सोच को रोकना होगा, नहीं तो खेल जगत में जो नाम हमारे देश ने हासिल किया है, उसे धूल में मिलते देर नहीं लगेगी.’’

देशदुनिया में इतना नाम मिलने के बावजूद आज अगर सुशील कुमार इस हालत में हैं, तो कानून को भी बारीकी से उन सभी पहलुओं पर गौर करना होगा, जो उन के अपराधी बनने में मददगार साबित हुईं. सागर धनखड़ को तो वापस नहीं लाया जा सकता, पर सुशील कुमार जैसे बड़े खिलाड़ी को अपराध की राह पर जाने से रोका जा सकता है.

कानून का काम केवल सजा दिलाना ही नहीं है, बल्कि अपराधी को अच्छा इनसान बनने की प्रेरणा देना भी कानून का ही फर्ज है.

बात थोड़ी फिल्मी है, पर साल 1971 में आई राजेश खन्ना की फिल्म ‘दुश्मन’ में उन के निभाए गए किरदार से शराब के नशे में गाड़ी चलाते हुए एक आदमी रामदीन की मौत हो जाती है, जिस के बाद कानून उस किरदार को रामदीन के परिवार की देखभाल करने की अनोखी सजा देता है.

लेकिन रामदीन का परिवार उस के साथ दुश्मन जैसा बरताव करता है. लेकिन राजेश खन्ना का किरदार न केवल उस परिवार के पालनपोषण की जिम्मेदारी उठाता है, बल्कि दुश्मन से दोस्त बन जाता है.

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क्या गुनाह साबित होने के बाद सुशील कुमार को भी ऐसी कोई सजा मिल सकती है, जो भारतीय समाज को फिल्म ‘दुश्मन’ जैसा ही संदेश दे जाए? ऐसी सजा जिस में किसी अपराधी को अच्छा इनसान बनने का मौका मिले और अगर वह नामचीन खिलाड़ी है, तो फिर ऐसा करना ज्यादा जरूरी हो जाता है.

सुशील कुमार की इस पैरवी की एक बड़ी वजह यह भी है कि अगर उन्हें आदतन अपराधी मान कर कड़ी सजा दी जाती है, तो यह उन नए पहलवानों का मनोबल तोड़ देगी, जो सुशील कुमार को गुरु मान कर अखाड़े में उतरे हैं.

आज सुशील कुमार को दुनिया के सामने तौलिए के पीछे मुंह छिपाने पर उन की खिल्ली उड़ाने वालों या उन्हें ‘गैंगस्टर’, ‘डौन’ कहने वालों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि इस पहलवान ने दुनिया के मंच पर तिरंगे को फख्र से लहराने का काम कई बार किया है. अब तक आगामी टोक्यो ओलिंपिक में भारत के 8 पहलवानों ने अपना टिकट पक्का कर लिया है, उन में से ज्यादातर के आदर्श सुशील कुमार ही हैं.       द्य

और भी कांड हुए हैं

* हरियाणा के रोहतक में शुक्रवार, 12 फरवरी की शाम हुए एक हत्याकांड में 5 लोगों की मौत हो गई थी. मरने वालों में 2 कोच और एक महिला पहलवान शामिल थी. इस हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप अखाड़े में ट्रेनर का काम करने वाले सुखविंदर पर लगा था.

* इसी तरह साल 2019 के नवंबर महीने में हरियाणा की रहने वाली नैशनल लैवल की ताइक्वांडो खिलाड़ी सरिता जाट को कुश्ती के एक खिलाड़ी सोमवीर जाट ने गोली मार दी थी.

सोमवीर जाट सरिता से प्यार करता था और उस से शादी करना चाहता था, पर सरिता के मना करने पर वह बहुत ज्यादा गुस्सा हो गया था और उस ने सरिता की मां के सामने ही उस की छाती में गोली ठोंक दी थी.

इस वारदात के तकरीबन एक साल बाद आरोपी सोमवीर जाट को पुलिस ने राजस्थान के दौसा इलाके से गिरफ्तार किया था.

* साल 2015 में रोहतक के कबड्डी खिलाड़ी रह चुके सन्नी देव उर्फ कुक्की के सिर भी एक खून का इलजाम लगा था. कुक्की नैशनल लैवल का कबड्डी खिलाड़ी था. विरोधी पक्ष के हत्थे जब कुक्की नहीं लगा तो उस ने कुक्की के छोटे भाई और नैशनल लैवल के कबड्डी खिलाड़ी सुखविंदर नरवाल को गोलियों से भून डाला था.

* हरियाणा के लिए क्रिकेट खेल चुका सुरजीत रंगदारी के मामले में पुलिस के हत्थे चढ़ा था. वह रंगदारी से पैसा इकट्ठा कर के फिर से क्रिकेट खेलना चाहता था, लेकिन पैसे कमाने का उस का यह तरीका उसे जुर्म की राह पर ले गया.

* दिल्ली का जितेंद्र उर्फ गोगी वौलीबाल का नैशनल लैवल का खिलाड़ी था. उस का उठनाबैठना बदमाशों के साथ हो गया और उस ने खेल छोड़ कर दिल्ली, सोनीपत, पानीपत व दूसरी कई जगहों पर वारदात करनी शुरू कर दी थी.

Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

दीपा और शौर्य की भरतपुर की सूर्या सिटी में 7 नवंबर, 2019 को मकान में स्प्रिट से आग लगा कर हत्या कर दी गई थी. दीपा और शौर्य की हत्या का आरोप डा. सुदीप, उस की पत्नी डा. सीमा और मां सुरेखा गुप्ता पर है. इस मामले में उस समय तीनों की ही गिरफ्तारी हुई थी. बाद में पिछले साल यानी 2020 में मई से अगस्त महीने के बीच अलगअलग समय पर जमानत होने पर ये तीनों जेल से बाहर आए थे.

बदला लेने की भावना से डाक्टर दंपति की हत्या किए जाने की आशंका का पता चलने पर पुलिस ने दीपा के भाईबहनों की तलाश शुरू की. इस बीच, पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज हासिल कर लिए. इन फुटेज से पता चला कि डाक्टर दंपति को गोलियां मारने वाला युवक अनुज था. अनुज दीपा का भाई था.

अनुज और उस के साथ बाइक पर आए दूसरे युवक का पता लगाने के लिए पुलिस ने दीपा की बहन राधा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. राधा ने ही डेढ़ साल पहले बहन दीपा और भांजे शौर्य की हत्या का मुकदमा पुलिस में दर्ज कराया था. राधा को फुटेज दिखाने पर पता चला कि दूसरा युवक उन का रिश्तेदार महेश है. महेश धौलपुर जिले का रहने वाला था.

दोनों हत्यारों की पहचान हो जाने पर पुलिस ने उन की तलाश शुरू कर दी. उन के भरतपुर या धौलपुर जिले के डांग इलाके में भाग जाने की संभावना थी. दोनों की तलाश में सर्च अभियान चला कर पुलिस की कई टीमें विभिन्न इलाकों में छापे मारने में जुट गईं.

भरतपुर रेंज के आईजी ने भरतपुर व धौलपुर सहित आसपास के जिलों में दोनों आरोपियों की फोटो भेज कर उन की तलाश करने के निर्देश पुलिस अधिकारियों को दिए. साइबर सेल को भी सक्रिय कर दिया गया.

भरतपुर शहर में विभिन्न मार्गों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की मौनिटरिंग वाले अभय कमांड सेंटर से तमाम कैमरों की फुटेज देखी गई, ताकि हत्यारों के भागने की सही दिशा का पता चल सके. लेकिन पुलिस को इस में कामयाबी नहीं मिली.

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दीपा के भाई अनुज का नाम सामने आने पर पुलिस ने उस की कुंडली खंगाली. पता चला कि वह भरतपुर जिले के रुदावल कस्बे में इसी साल 16 मार्च को हुई फायरिंग की घटना में भी शामिल था.

इस वारदात में बदमाशों ने 15-20 राउंड गोलियां चला कर रुदावल कस्बे मे दहशत फैलाई थी. पुलिस ने इस मामले में कुछ बदमाशों को बाद में पकड़ा था, लेकिन अनुज नहीं पकड़ा गया था. पता चला कि वह राजेश उर्फ लल्लू शूटर की गैंग का बदमाश था. राजेश का गैंग लूट और रंगदारी वसूलने के अपराध करती है. अनुज के धौलपुर के कुछ डकैतों से भी संबंध होने का पता चला.

डाक्टर दंपति की हत्या हो गई थी और उन के निजी अस्पताल में उस समय कई मरीज भरती थे. इस बात का पता चलने पर अधिकारियों ने अस्पताल के कर्मचारियों की मदद से उन सभी मरीजों को दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट कराया. डा. सुदीप के बाहर रहने वाले एकदो नजदीकी रिश्तेदारों को फोन से सूचना दी गई.

लौकडाउन के दौरान सरेआम दिनदहाड़े डाक्टर दंपति की हत्या होने से पुलिस और सरकार पर सवाल उठने लगे. सवाल उठने का दूसरा कारण यह भी था कि डाक्टर दंपति की हत्या से करीब 17 घंटे पहले ही भरतपुर सांसद रंजीता कोली की गाड़ी पर आधी रात के समय भरतपुर जिले के हलैना इलाके में हमला किया गया था.

सरकार की किरकरी होने पर दूसरे दिन 29 मई को जयपुर से चिकित्सा राज्यमंत्री डा. सुभाष गर्ग और एडीजी (कानून व्यवस्था) सुनील दत्त भरतपुर पहुंच गए. उन्होंने अधिकारियों की बैठक ली. हालात की समीक्षा कर कानून व्यवस्था की जानकारी ली.

बाद में एसपी देवेंद्र विश्नोई ने डाक्टर दंपति की हत्या के मामले में लापरवाही मानते हुए बीट कांस्टेबल और बीट प्रभारी को लाइन हाजिर कर दिया. वहीं, चिकित्सा राज्यमंत्री सुभाष गर्ग ने सुदीप और सीमा की हत्या को ले कर विवादित बात कही कि हर गलती सजा मांगती है. डाक्टर दंपति ने जो किया, उन्हें उस की सजा मिली. अब इन आरोपियों को भी मिलेगी.

दोपहर बाद पुलिस ने डा. सुदीप और डा. सीमा के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद वह घर वालों को सौंप दिए. डा. सुदीप के दोनों बच्चे नाबालिग होने और मां के कैंसर रोगी होने के कारण बाहर से आई सुदीप की बहन को शव सुपुर्द किए गए. बाद में पुलिस की मौजूदगी में दोनों शवों का एक ही चिता पर सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया.

डाक्टर दंपति के परिवार पर मंडराते खतरे को देखते हुए पुलिस ने उन के मकान और कुछ रिश्तेदारों के आवास पर पहरा लगा दिया. इस बीच, लगातार छापे मारने के बावजूद पुलिस को दूसरे दिन भी दोनों हत्यारों का सुराग नहीं मिला. पुलिस इन के रिश्तेदारों और परिचितों से पूछताछ करती रही और उन के मोबाइल ट्रेस करती रही.

तीसरे दिन 30 मई, 2021 को पुलिस ने इस मामले में भरतपुर के रहने वाले दौलत और धौलपुर जिले के रहने वाले निर्भान सिंह को गिरफ्तार कर लिया. इन में दौलत महेश का जीजा है. उसी ने महेश को वह बाइक दी थी, जिससे डाक्टर दंपति की हत्या की वारदात की गई.

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दौलत पहलवानी करता है और जमीनजायदाद या जेवर गिरवी रख कर ब्याज पर रुपए देने का काम करता है. उस के दोनों कान टूटे हुए हैं. दूसरा आरोपी निर्भान सिंह दौलत का दोस्त था.

इन से पूछताछ में पता चला कि डाक्टर दंपति की हत्या की साजिश दौलत के घर पर ही रची गई थी. इस के लिए दौलत ने महेश को कुछ दिन पहले एक बाइक दे दी थी. महेश ने यह बाइक अनुज को दे दी थी. वारदात के वक्त महेश ही बाइक चला रहा था और अनुज पीछे बैठा था.

पुलिस के लिए अनुज और महेश की गिरफ्तारी ज्यादा बड़ी बात नहीं थी. हालांकि वे दोनों बदमाश थे और अपराधियों के सारे दांवपेच के साथ पुलिस से बचने के रास्ते भी जानते थे. मुख्य बात डाक्टर दंपति की हत्या के कारण का पता लगाना था. यह बात तो सामने आ गई थी कि डा. सुदीप और डा. सीमा की हत्या बदला लेने के लिए की गई थी, लेकिन इस में तात्कालिक कारण क्या रहे?

जांचपड़ताल में डाक्टर दंपति की हत्या का कारण जनचर्चाओं के अनुसार यह उभर कर सामने आया कि डा. सुदीप की प्रेमिका दीपा और उस के बेटे शौर्य की हत्या के केस में गवाही नहीं देने या बयान से मुकरने की बात चल रही थी.

दीपा के परिवार वाले डाक्टर से एक करोड़ रुपए मांग रहे थे और डाक्टर करीब 50 लाख रुपए देने को तैयार था. इसी बात पर दोनों पक्षों में बात नहीं बन रही थी.

दीपा और उस के बेटे शौर्य की हत्या के मामले में डा. सुदीप गुप्ता की जमानत 8 मई, 2020 को और डा. सीमा गुप्ता की 5 अगस्त, 2020 को हो गई थी. डाक्टर की मां सुरेखा भी जून 2020 में जमानत होने के बाद जेल से बाहर आ गई थी. तीनों के जमानत पर छूटने के बाद इस मामले में राजीनामे की बात चल रही थी.

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इस मामले में अदालत में ट्रायल चल रहा था. मृतका दीपा की मां ओमवती, बहन राधा उर्फ राधिका और एक कांस्टेबल की गवाही के लिए सब से पहले 8 दिसंबर, 2020 की तारीख तय थी. इस के बाद इस साल जनवरी, फिर फरवरी, मार्च और 12 मई की तारीख की तय हुई थी, लेकिन इन में से किसी भी तारीख पेशी पर तीनों में से किसी की गवाही नहीं हो सकी.

दीपा के परिवार की ओर से लगातार समझौते का दबाव बनाया जा रहा था. डाक्टर दंपति भी इस केस से किसी तरह अपना पीछा छुड़ाना चाहता था. राजीनामे की बात इस पर अटकी हुई थी कि दीपा का भाई एकमुश्त रकम मांग रहा था और डा. सुदीप हर गवाही पर रकम देना चाहता था, ताकि कोई गड़बड़ न हो.

अगले भाग में पढ़ें- डा. सीमा ने दीपा और उस के बेटे को क्यों जलाया?

Manohar Kahaniya: जब थाना प्रभारी को मिला प्यार में धोखा- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मां पद्मावती ने मौके पर मौजूद रहे लोगों से पूछताछ के बाद रूपा की हत्या करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उस के शव को पंखे से लटकाया गया था. पंखे और पलंग की दूरी काफी कम थी. शव पंखे से तो लटका था, लेकिन घुटने पलंग पर मुड़े हुए थे. गले में रस्सी के 2 निशान थे. शरीर के कुछ अंगों पर जगहजगह दाग भी थे. शव ध्यान से देखने से लग रहा था कि उस के हाथों को पकड़ा गया था. घुटने पर भी मारने के निशान थे. उस के कपड़े भी आधेअधूरे थे.

रूपा की मौत के मामले में साहिबगंज के जिरवाबाड़ी ओपी थाने के एसआई सतीश सोनी के बयान के आधार पर केस दर्ज कर लिया गया. पुलिस ने जांचपड़ताल के लिए रूपा का क्वार्टर भी सील कर दिया.

मामला एक पुलिस अधिकारी की मौत का था. दूसरे यह संदिग्ध भी था. इसलिए साहिबगंज के उपायुक्त ने कार्यपालक दंडाधिकारी संजय कुमार और परिजनों की मौजूदगी में शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने और इस की वीडियोग्राफी कराने के आदेश दिए. उपायुक्त के आदेश पर पुलिस ने 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से रूपा के शव का पोस्टमार्टम कराया.

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पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस की ओर से साहिबगंज के पुलिस लाइन मैदान में रूपा तिर्की को अंतिम विदाई दी गई. सशस्त्र पुलिस की टुकड़ी ने उन्हें सलामी दी.

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एसपी अनुरंजन किस्पोट्टा, साहिबगंज के एसडीपीओ राजेंद्र दुबे, बरहरवा के एसडीपीओ प्रमोद कुमार मिश्रा और राजमहल के एसडीपीओ अरविंद कुमार के अलावा अनेक थानाप्रभारियों तथा पुलिस जवानों ने फूलमालाएं अर्पित कर रूपा को श्रद्धांजलि दी. बाद में रूपा का शव परिवार वालों को सौंप दिया गया.

रूपा का शव 5 मई की सुबह रूपा के पैतृक गांव रातू के काठीटांड पहुंचा. उसी दिन रूपा का अंतिम संस्कार कर दिया गया. शवयात्रा में गांव के लोगों के साथ राज्यसभा सांसद समीर उरांव, विधायक बंधु तिर्की, रांची की महापौर आशा लकड़ा, महिला आयोग की आरती कुजूर, प्रमुख सुरेश मुंडा सहित अनेक जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए, लेकिन पुलिस और प्रशासन का कोई बड़ा अधिकारी वहां नहीं पहुंचा.

सीबीआई जांच की उठी मांग

बात 3 मई, 2021 की है. शाम को करीब 7 बजे का समय रहा होगा. सबइंसपेक्टर मनीषा कुमारी ड्यूटी पूरी करने के बाद अपने क्वार्टर पर पहुंची. उस का क्वार्टर अपनी बैचमेट एसआई रूपा तिर्की के क्वार्टर के सामने था. रूपा तिर्की झारखंड के साहिबगंज जिला मुख्यालय पर महिला थानाप्रभारी थीं और मनीषा साहिबगंज में ही नगर थाने में तैनात थी.

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मनीषा जब क्वार्टर पर पहुंची, तो रूपा का कमरा अंदर से बंद था. इस का मतलब था कि रूपा अपनी ड्यूटी से आ चुकी थी. रूपा का हालचाल पूछने के लिए मनीषा ने उस के रूम का दरवाजा खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला. कई बार की कोशिशों के बाद भी जब रूपा ने कमरा नहीं खोला तो मनीषा सोच में पड़ गई. वैसे भी शाम के करीब 7 ही बजे थे. इसलिए सोने का समय भी नहीं हुआ था.

मनीषा ने आसपास के लोगों को बुला कर एक बार फिर रूपा को आवाज देते हुए जोर से दरवाजा खटखटाया, लेकिन इस बार भी कमरे के अंदर से कोई हलचल नहीं  हुई. आखिर मनीषा ने दरवाजा तोड़ने का फैसला किया.

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लोगों की मदद से दरवाजा तोड़ कर मनीषा जब कमरे के अंदर घुसी तो रूपा पंखे के एंगल से एक रस्सी के सहारे लटकी हुई थी. यह देख कर मनीषा हैरान रह गई. उस ने एक पुलिस अफसर के तौर पर रूपा की नब्ज टटोल कर देखी, लेकिन उस में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए.

एकबारगी तो वह सोच में पड़ गई कि क्या करे और क्या नहीं करे? फिर उस ने सब से पहले एसपी साहब को सूचना देना उचित समझा. सूचना मिलने पर साहिबगंज एसपी अनुरंजन किस्पोट्टा, एसडीपीओ राजेंद्र दुबे और दूसरे पुलिस अफसर मौके पर पहुंच गए.

अगले भाग में पढ़ेंएसआईटी को सौंपी गई जांच

MK- पूर्व सांसद पप्पू यादव: मददगार को गुनहगार बनाने पर तुली सरकार- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इस बारे में मधेपुरा पुलिस ने कहा कि मुरलीगंज थाने में दर्ज केस संख्या 9/89 में इसी साल 22 मार्च को मधेपुरा कोर्ट ने पप्पू यादव के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया था. उन के खिलाफ इश्तहार और कुर्की का वारंट भी निकला था.

वहां पप्पू यादव को गिरफ्तार करने के बाद उन्हें स्थानीय अदालत में 12 मई की शाम को पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

दरअसल, पूर्व सांसद पप्पू यादव बिहार की जन अधिकार पार्टी के संरक्षक हैं. बिहार में उन की छवि एक दबंग बाहुबली के तौर पर रही है. लेकिन बिहार से ले कर दिल्ली की तिहाड़ में काटी गई सजा के 17 सालों ने उन्हें बाहुबली से एक रौबिनहुड के रूप में बदल दिया है. पप्पू यादव की जिंदगी का सफरनामा किसी रोमांचक फिल्मी पटकथा से कम नहीं है. इस के लिए हमें उन के अतीत में जाना होगा.

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लालू यादव ने दी शह

नब्बे के दशक में जिन दिनों लालू यादव राजनीति की दुनिया में अपना पैर जमा रहे थे और बिहार विधानसभा में विरोधी दल का नेता बनना चाहते थे. उसी समय उत्तर बिहार में अपराध की दुनिया में राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का बोलबाला था. उस दौरान लालू यादव की पप्पू यादव ने काफी मदद की थी.

लालू यादव से अपनी बढ़ती नजदीकी के कारण पप्पू खुद को उन का उत्तराधिकारी तक मानने लगे थे. उन का ऐसा सोचना भी गलत नहीं था, क्योंकि वह लालू यादव के हर काम को सफल बनाने के लिए बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे.

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लेकिन जब लालू यादव की तरफ से पप्पू यादव को मनमाफिक फायदा नहीं मिला तो उन्होंने लालू पर खुले मंच से यह आरोप लगाते हुए अपना रास्ता अलग कर लिया कि लालू यादव ने सिर्फ अपने फायदे के लिए उन का इस्तेमाल किया.

जून, 1991 में बाहुबली पप्पू की दबंगई परवान पर थी. उन के ऊपर हत्या के 3 मामले दर्ज हो चुके थे. कोसी इलाके में उन का आतंक फैला था. उन पर अपहरण और हत्या के आरोप लगे. कोसी इलाके में आतंक फैलाने को ले कर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून दर्ज हो गया और उन्हें जेल की सींखचों के पीछे भेज दिया गया.

जेल से बाहर आने के बाद वह पूर्णिया की सड़कों पर खुलेआम घूमते थे. लेकिन पुलिस वाले उन्हें हाथ लगाने से डरते थे. एक बार उन्होंने एक डीएसपी को चलती गाड़ी के आगे धकेल दिया था. इतना ही नहीं, उन्होंने बिहार पुलिस के चालक रामप्रवेश पासवान को जीप से नीचे उतार कर उसे बुरी तरह पीटा और उस की मूंछें तक उखाड़ लीं.

जेल में ही हो गया था इश्क

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जब पप्पू यादव बांकीपुर जेल में सजा काट रहे थे. तब जेल अधीक्षक के लौन में कुछ बच्चे टेनिस खेलते थे. उन में से विक्की नाम के एक बच्चे से पप्पू यादव की दोस्ती हो गई. जब पप्पू यादव की विक्की से नजदीकी ज्यादा बढ़ गई तो एक दिन विक्की ने उन्हें अपने घर का एलबम दिखाया, जिस में उस की बहन रंजीत की फोटो थी.

रंजीत को देखते ही पप्पू यादव के दिल में हलचल मच गई. उसी समय उन्होंने उसे अपने दिल में बसा लिया. इतना ही नहीं, वह उस पर मर मिटे और मन में रंजीत से शादी के मंसूबे पालने लगे. बांकीपुर जेल से रिहा होने के बाद भी पप्पू यादव ने वहां जाना नहीं छोड़ा. शुरुआत में रंजीत पप्पू यादव को जरा भी पसंद नहीं करती थी. लेकिन बाद में पप्पू रंजीत के दिल में जगह बनाने में कामयाब हो गए.

लेकिन दोनों की शादी आसान नहीं थी. रंजीत सिख धर्म से थी और पप्पू यादव परिवार से थे. काफी प्रयासों के बाद आखिर फरवरी, 1994 में पप्पू यादव की शादी रंजीत से हो गई.

लालू यादव की तरफ से मोह भंग होने के बाद पप्पू यादव ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत विधायक बनने से की. सन 1990 में उन्होंने स्वतंत्र तौर पर चुनाव लड़ा और पहली बार में ही चुन लिए गए. इस के अगले ही साल वह दसवीं लोकसभा चुनाव में पूर्णिया से खड़े हुए और सांसद बन गए. इस के बाद उन्होंने 1996 में लोकसभा का चुनाव जीता.

100 से ज्यादा गोलियां मारी थीं सीपीआई नेता अजीत सरकार को 14 जून, 1998 को सीपीआई नेता अजीत सरकार की दिनदहाड़े उस समय हत्या कर दी गई, जब वह एक पंचायत कर के वापस पूर्णिया लौट रहे थे. एके 47 से कुछ शातिर अपराधियों ने कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अजीत सरकार, उन के कार चालक तथा कुछ लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया था.

पोस्टमार्टम में अजीत सरकार के शरीर से 107 गोलियां निकली थीं. इस हत्याकांड का आरोप बाहुबली नेता राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव पर लगा था.

इस सनसनीखेज हत्याकांड में पप्पू यादव के साथ गोरखपुर के बदमाश राजन तिवारी और अनिल यादव भी शामिल थे. इस के बाद भी पप्पू यादव पर हत्या के कई अन्य आरोप लगे थे.

मई, 1999 में पप्पू यादव को अजीत सरकार की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. इस से पहले भी पप्पू यादव के ऊपर हत्या के 3 मामलों में वारंट जारी हो चुके थे, मगर वह अग्रिम जमानत ले कर कानून की जद में आने से बचते रहे.

अगले भाग में पढ़ें- पप्पू यादव को बेउर जेल से भेजा तिहाड़

Manohar Kahaniya: पूर्व उपमुख्यमंत्री के घर हुआ खूनी तांडव, रास न आई दौलत- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक कोरबा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गांव भैंसमा. यह गांव छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री स्वर्गीय प्यारेलाल कंवर के गृहग्राम के रूप में जाना जाता है. कांग्रेस के महत्त्वपूर्ण आदिवासी क्षत्रप होने के कारण प्यारेलाल कंवर अविभाजित मध्य प्रदेश के दौरान सत्तर के दशक में पहली बार कांग्रेस सरकार में आदिम जाति कल्याण विभाग मंत्री बने. आगे राजस्व मंत्री के अलावा अस्सी के दशक में मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष और 90 के दशक में वह दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री भी रहे.

21 अप्रैल, 2021 की सुबह की बात है. कोरबा के एसपी अभिषेक सिंह मीणा अभी सोए हुए ही थे कि उन का मोबाइल फोन बारबार बजने लगा. उन्होंने फोन रिसीव किया तो देखा कोई अज्ञात नंबर था. उधर से आवाज आई, ‘‘सर, मैं गांव भैंसमा से बोल रहा हूं. यहां प्यारेलाल कंवर जी के बेटे और उन के परिवार के सदस्यों का मर्डर कर दिया गया है.’’ और फोन कट गया.

एसपी अभिषेक सिंह मीणा को कोरबा जिले में पदस्थ हुए लगभग 2 साल हो चुके थे, इसलिए वह कोरबा के राजनीतिक और सामाजिक वातावरण को भलीभांति जानतेसमझते थे.

वह जानते थे कि स्वर्गीय प्यारेलाल कंवर अविभाजित मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा नाम हुआ करते थे. उन के परिवार में हत्या की बात सुन उन्होंने मामले की गंभीरता को समझ कर अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों को फोन किया. सारी जानकारी ले कर तत्काल घटनास्थल पर पहुंचने की हिदायत देते हुए कहा कि वह स्वयं भी 15 मिनट में घटनास्थल पर पहुंच रहे हैं.

देखते ही देखते कोरबा जिले से निकल कर संपूर्ण छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश  में यह खबर आग की तरह फैल गई कि प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता प्यारेलाल कंवर के बेटे हरीश कंवर (36), उन की पत्नी सुमित्रा कंवर (32) और बेटी आशी (4 वर्ष) की अज्ञात लोगों ने नृशंस हत्या कर दी है.

पुलिस विभाग के अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. इसी समय लोगों का हुजूम घटनास्थल के मकान के बाहर लगा हुआ था और लोग बड़े ही चिंतित घटना के संदर्भ में कयास लगा रहे थे.

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सूचना मिलते ही सुबह करीब 6 बजे राजनीति में प्यारेलाल कंवर के शिष्य रहे जय सिंह अग्रवाल,जो वर्तमान में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार में राजस्व एवं आपदा कैबिनेट मंत्री हैं, घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने परिजनों से बातचीत कर के मामले की गंभीरता को समझने के बाद पुलिस अधिकारियों से बातचीत की.

एसपी अभिषेक सिंह मीणा घटनास्थल पर आ चुके थे. उन्होंने तत्काल डौग स्क्वायड टीम बुलवाई और पुलिस टीम को निर्देश दिया  कि जितनी जल्दी हो सके इस संवेदनशील हत्याकांड के दोषियों को पकड़ कर कानून के हवाले करना होगा. एडिशनल एसपी कीर्तन राठौड़ की अगुवाई में एक पुलिस टीम बनाई  गई, जो मामले की जांच में जुट गई.

मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. हत्यारों ने हरीश कंवर, उन की पत्नी सुमित्रा और बेटी आशी की हत्या किसी धारदार हथियार से की थी, इसलिए घर में खून ही खून बिखरा था.

पुलिस अधिकारियों ने हरीश कंवर के भाइयों व परिवार के अन्य सदस्यों से बात की. परिवार के सभी लोग राजनीति में ऊंची पहुंच रखते थे और समाज में उन की प्रतिष्ठा थी, इसलिए पुलिस अधिकारियों को इस बात का भी अंदेशा था कि कहीं इस घटना को ले कर लोगों का आक्रोश न फूट जाए. इसलिए पुलिस अधिकारी बड़ी ही तत्परता से इस तिहरे हत्याकांड की जांच में जुट गए.

पुलिस ने मौके की काररवाई करनी शुरू की. एसपी अभिषेक सिंह मीणा के निर्देश पर कई पुलिस टीमें अलगअलग ऐंगल से इस मामले की जांच में जुट गईं. जांच के दौरान खोजी कुत्ता घटनास्थल से करीब 100 मीटर दूर भैंसमा बाजार स्थल पर मौजूद एक पेड़ के पास जा कर ठहरा और वहां से चीतापाली की ओर जाने वाले मार्ग की ओर आगे बढ़ा.

सीसीटीवी से मिला सुराग

इस संकेत का पुलिस ने पीछा किया और कुत्ते का पीछा करते हुए पुलिस गांव ढोंगदरहा होते हुए सलिहाभाठा-नोनबिर्रा मार्ग तक पहुंची. आगे सलिहाभाठा डैम के पास जले हुए कपड़ों के अवशेष के पास जा कर कुत्ता रुक गया. पुलिस ने वह अवशेष जब्त कर लिए.

पुलिस की एक टीम घटनास्थल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों को तलाशने लगी. पड़ोसी के घर के बाहर लगे सीसीटीवी की फुटेज देखी तो उस में 2 संदिग्ध लोग हरीश कंवर के घर में घुसते दिखाई दिए.

पुलिस की दूसरी टीम को जांच में यह भी पता चला कि आज ही किसी ने डायल 112 नंबर पर फोन कर के इस मार्ग पर सड़क दुर्घटना की सूचना दी थी. मौके पर पहुंची एंबुलेंस ने परमेश्वर कंवर नामक युवक को करतला अस्पताल में भरती कराया है.

यह जानकारी मिलने पर पुलिस ने आसपास के लोगों से पूछताछ की तो पुलिस को वहां कोई सड़क हादसा न होने की जानकारी मिली.

इस के बाद पुलिस अस्पताल में भरती परमेश्वर कंवर के पास पहुंची. पमेश्वर कंवर मृतक हरीश कंवर के बड़े भाई हरभजन कंवर का साला था, जो ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहा था. जांच में पुलिस को उस की आंख और चेहरे के आसपास जख्म दिखे, जो दुर्घटना के नहीं लग रहे थे. लग रहा था जैसे वह किसी धारदार हथियार के हों.

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पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका. इस से पुलिस को उस पर शक हो गया. उस से तिहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ की तो वह पुलिस को इधरउधर की बातें कर के खुद को बचाने की कोशिश करता रहा, मगर जब कड़ी पूछताछ हुई तो उस ने सच स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि अपने दोस्त सुरेंद्र कंवर की सलाह पर रामप्रसाद के साथ मिल कर उस ने यह वारदात की. उस से पूछताछ में पता चला कि यह कांड किसी और ने नहीं बल्कि हरीश कंवर के बड़े भाई हरभजन कंवर और उस की पत्नी धनकंवर ने कराया है.

पुलिस जांच में यह स्पष्ट हो गया कि हत्या हरीश के बड़े भाई हरभजन के सहयोग से  उस के साले मुख्य अभियुक्त परमेश्वर कंवर द्वारा अंजाम दी गई है. धीरेधीरे सारे तथ्य एकदूसरे से मिलते चले गए और उसी रोज शाम होतेहोते हरीश कंवर परिवार हत्याकांड से परदा उठ गया.

परमेश्वर कंवर से पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने उसी समय मृतक के भाई हरभजन कंवर, उस की पत्नी धनकंवर व नाबालिग बेटी रंजना को भी हिरासत में ले लिया. इन सभी से पूछताछ के बाद इस तिहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

स्वर्गीय प्यारेलाल कंवर के 4 बेटे और 3 बेटियां थीं. सब से बड़े बेटे हरबंश कंवर, दूसरे हरदयाल कंवर, तीसरे हरभजन कंवर और चौथे सब से छोटे थे हरीश कंवर. एक बेटी हरेश कंवर वर्तमान में जिला पंचायत, कोरबा की अध्यक्ष हैं. बाकी 2 बड़ी बेटियां शासकीय नौकरी में हैं.

प्यारेलाल कंवर के दूसरे नंबर के पुत्र हरदयाल कंवर जो अधिवक्ता थे, का लगभग 5 साल पहले निधन हो चुका है. वर्तमान में हरवंश, हरभजन और हरीश कंवर प्यारेलाल के 3 बेटे जीवित थे. हरीश कंवर प्यारेलाल कंवर के रहते उन की विरासत को संभालते हुए कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हुए और सन 2010 में जिला पंचायत का चुनाव लड़ा मगर पराजित हो गए.

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उन्होंने प्यारेलाल कंवर के संरक्षण में राजनीति की शुरुआत की. आगे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत कुमार जोगी के साथ अपनी तालमेल बिठा ली. अजीत जोगी का हरीश को पुत्रवत स्नेह मिलता था और हरीश ने अपने रामपुर विधानसभा क्षेत्र में अजीत जोगी और उन के बेटे अमित जोगी को बुला कर कुछ राजनीतिक कार्यक्रम किए थे. उन्होंने एक बहुचर्चित लैंको पावर प्लांट के खिलाफ आंदोलन कर स्थानीय भूविस्थापितों के लिए बिगुल फूंका था.

आगे स्थितियां ऐसी बनती चली गईं कि कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर पहुंच गई थी. ऐसे में जहां अजीत जोगी ने अपना एक अलग खेमा पूरे प्रदेश में तैयार कर लिया था, वहीं उन के 36 के संबंध स्थानीय बड़े नेताओं के साथ बने हुए थे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डा. चरणदास महंत, भूपेश बघेल, जयसिंह अग्रवाल वगैरह अपने एक अलग खेमे में थे.

अगले भाग में पढ़ेंधनकंवर भाई के साथ रची साजिश

Manohar Kahaniya: जब थाना प्रभारी को मिला प्यार में धोखा- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

घटना से एकदो दिन पहले ही अस्पताल से डिस्चार्ज हुए थे. रूपा तिर्की से मुलाकात की बातें सरासर गलत हैं. पुलिस चाहे तो काल डिटेल निकलवा कर जांच करा सकती है.

भारी राजनैतिक दबाव पड़ने पर पुलिस ने मामले की तेज गति से जांच शुरू कर दी. एसपी ने इस के लिए डीएसपी (मुख्यालय) संजय कुमार के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया. एसआईटी में बरहड़वा एसडीपीओ पी.के. मिश्रा, इंसपेक्टर (राजमहल ) राजेश कुमार और 2 महिला पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया. जांच अधिकारी जिरवाबाड़ी थाने की एसआई स्नेहलता सुरीन को बनाया गया.

मौके के हालात देख कर पुलिस इसे आत्महत्या मान रही थी, लेकिन रूपा के परिवार वाले इसे हत्या बता रहे थे. सोशल मीडिया पर भी मामला बढ़ रहा था. 2 महिला सबइंसपेक्टरों और एक नेता पर लगे आरोपों को देखते हुए सभी बिंदुओं पर जांच करना जरूरी थी.

फोरैंसिक टीम ने 5 मई, 2021 को साहिबगंज पहुंच कर रूपा के क्वार्टर की जांचपड़ताल की और साक्ष्य जुटाए. मौके पर मिली पानी से भरी बोतल व गिलास से अंगुलियों के निशान लिए. कई दूसरी जगहों से भी फिंगरप्रिंट लिए.

पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी, इसी बीच एक औडियो वायरल हो गया. चर्चा रही कि इस औडियो में रूपा तिर्की के पिता और एक युवक की बातचीत थी. यह कोई और नहीं रूपा का बैचमेट एसआई शिवकुमार कनौजिया बताया गया.

यह औडियो सामने आने से पता चला कि रूपा का शिवकुमार से अफेयर चल रहा था. औडियो में रूपा के पिता उस युवक से रूपा की शादी के संबंध में बात कर रहे थे. युवक बाचतीत में रूपा को समझाने की बात कह रहा था ताकि वह कोई गलत कदम न उठा ले. औडियो सामने आने के बाद यह मामला ज्यादा उलझ गया.

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एक पुलिस एसआई की संदिग्ध मौत का मामला होने के कारण झारखंड पुलिस एसोसिएशन ने भी इस की जांच शुरू कर दी. रांची से एसोसिएशन के प्रांतीय उपाध्यक्ष अरविंद्र प्रसाद यादव, संताल परगना प्रक्षेत्र मंत्री हरेंद्र कुमार, रविंद्र कुमार, पप्पू सिंह, जिला उपाध्यक्ष सुखदेव महतो, सचिव सहमंत्री शमशाद अहमद आदि ने साहिबगंज पहुंच कर मामले की जांच की. इन पदाधिकारियों ने प्रताड़ना के आरोपों से घिरी रूपा की बैचमेट एसआई मनीषा कुमारी और ज्योत्सना से भी कई घंटे तक पूछताछ की.

सामने आया बौयफ्रैंड का नाम

पुलिस ने मामले की तह में जाने के लिए रूपा के मोबाइल फोन की जांच कर काल डिटेल्स निकलवाई और उस के वाट्सऐप मैसेज, चैटिंग, एसएमएस और वीडियो वगैरह देखे. इस में पता चला कि उस ने आखिरी बातचीत अपने बौयफ्रैंड शिवकुमार कनौजिया से की थी. रूपा ने शिवकुमार को कई मैसेज भी भेजे थे. शिवकुमार झारखंड के चाइबासा जिले में टोकलो पुलिस थाने में तैनात था.

शिवकुमार से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए एसआईटी ने उसे साहिबगंज बुलाया. इस बीच, रूपा के परिवार वालों की मांग पर जांच अधिकारी स्नेहलता सुरीन को बदल कर राजमहल इंसपेक्टर राजेश कुमार को इस मामले की जांच सौंप दी गई.

आदिवासी समाज की प्रतिभाशाली महिला पुलिस एसआई रूपा तिर्की की संदिग्ध मौत की उच्चस्तरीय जांच की मांग को ले कर पूरे झारखंड में लोग आंदोलन करने लगे. छात्र संगठन, महिला संगठन और आदिवासी संगठनों के अलावा सत्ताधारी दल कांग्रेस सहित विपक्षी दल भाजपा, जनता दल (यू) आजसू आदि ने इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग सरकार से की.

सत्ताधारी विधायकों ने कहा कि इस घटना से आदिवासी समुदाय में आक्रोश है. सोशल मीडिया पर रूपा को इंसाफ दिलाने के लिए अभियान चल रहे हैं. इस से सरकार की छवि धूमिल हो रही है. लोग हम से सवाल पूछ रहे हैं कि इस की जांच होगी या नहीं. ऐसी हालत में सरकार को सीबीआई जांच से पीछे नहीं हटना चाहिए.

झारखंड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश ने रांची के पास रातू गांव में रूपा के घर पहुंच कर पूरे मामले की जानकारी ली. बाद में उन्होंने कहा कि यह हाईप्रोफाइल मामला है. इस में मुख्यमंत्री के संरक्षण प्राप्त लोगों का हाथ है. इसलिए झारखंड पुलिस से न्याय की उम्मीद नहीं है.

रूपा होनहार लड़की थी, उसे धोखे में रख कर मार डाला गया. झारखंड में आगे किसी आदिवासी बेटी के साथ ऐसी घटना नहीं हो, इसलिए इस घटना से परदा उठना जरूरी है.

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आंदोलन बढ़ते जा रहे थे. रूपा को न्याय दिलाने के लिए महिलाएं प्रदर्शन कर रही थीं. कैंडल मार्च निकाल रही थीं. वहीं, पुलिस की जांच में नईनई बातें सामने आने से मामला उलझता जा रहा था. साहिबगंज पुलिस और झारखंड सरकार की बदनामी हो रही थी.

रूपा के बौयफ्रैंड शिवकुमार कनौजिया को 8 मई को साहिबगंज थाने बुला कर एसआईटी में शामिल अफसरों ने पूछताछ की. उस से रूपा से मुलाकात होने से ले कर अफेयर और शादी की बातों के बारे में सवाल पूछे. उस से रूपा से मुलाकातों और मोबाइल पर चैटिंग वगैरह के संबंध में भी पूछताछ की गई. करीब 8 घंटे तक पुलिस अधिकारी उस से लगातार पूछताछ करते रहे.

बौयफ्रैंड एसआई को भेजा जेल

शिवकुमार से पूछताछ के बाद एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट एसपी को सौंप दी. इस रिपोर्ट के आधार पर साहिबगंज पुलिस ने 9 मई को एसआई शिवकुमार कनौजिया को रूपा की खुदकुशी का जिम्मेदार मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.

जांच में सामने आए तथ्यों के आधार पर पुलिस ने पहले दर्ज किए केस को आत्महत्या के लिए उकसाने में परिवर्तित कर शिवकुमार कनौजिया के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. बाद में शिवकुमार को पुलिस ने उसी दिन अदालत के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया.

एसपी अनुरंजन किस्पोट्टा का कहना था कि एसआईटी ने जो जांच रिपोर्ट सौंपी, उस में कहा गया कि शिवकुमार ने रूपा की भावनाओं को आहत किया. इस कारण रूपा ने खुदकुशी की. जांच में पुलिस को एक औडियो भी मिला था. इस औडियो में रूपा तिर्की और उस के प्रेमी एसआई शिवकुमार कनौजिया के बीच बातचीत थी.

Manohar Kahaniya: चाची का आशिक- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

राजस्थान के अलवर जिले के भिवाड़ी शहर के थाना यूआईटी के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को 15 फरवरी, 2021 की सुबह फोन पर सूचना मिली कि सेक्टर  4 व 5 के बीच सड़क पर एक व्यक्ति का शव पड़ा है. सूचना पा कर थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

मौके पर उन्हें वास्तव में एक युवक का शव पड़ा मिला. उन्होंने जब शव की जांच की तो उस के दोनों पैरों के अंगूठों से चमड़ी उधड़ी हुई दिखी. प्रथमदृष्टया ऐसा लग रहा था मानो मृतक की हत्या कहीं और कर के शव यहां ला कर डाला गया हो.

पुलिस ने इस नजर से भी जांच की कि मृतक कहीं दुर्घटना का शिकार तो नहीं हो गया. मगर मौकाएवारदात और शव को देखने से ऐसा नहीं लग रहा था. शव पर और किसी जगह चोट या रगड़ के निशान या खून निकला हुआ नहीं था. मामला सीधे हत्या का लग रहा था. मामला संदिग्ध लगा तो थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार ने मामले की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

भिवाड़ी एसपी राममूर्ति जोशी के संज्ञान में मामला आया तो उन्होंने एएसपी अरुण मच्या को घटनास्थल पर जा कर मामला देखने के निर्देश दिए. एएसपी अरुण मच्या और फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने एफएसएल टीम को भी वहां बुला कर साक्ष्य इकट्ठा करवाए. पुलिस अधिकारियों ने जांचपड़ताल के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. शव की शिनाख्त नहीं हुई थी. लेकिन जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती. तब तक पुलिस हाथ पर हाथ धर कर बैठने वाली नहीं थी. पुलिस ने अज्ञात शव मिलने का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस को सुलझाने के लिए एएसपी अरुण मच्या के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित की गई. इस टीम में यूआईटी थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार के साथ फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह सोलंकी, एसआई अखिलेश, हैडकांस्टेबल मुकेश कुमार, राकेश कुमार, मोहनलाल, कर्मवीर, रामप्रकाश, राजेंद्र, संतराम, सुरेश, ओमप्रकाश व ऊषा को शामिल किया गया.

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मृतक की हुई शिनाख्त

इस पुलिस टीम ने मृतक के फोटो एवं पैंफ्लेट बना कर भिवाड़ी में सार्वजनिक स्थानों पर लगवा कर लोगों से शव की शिनाख्त की अपील की. साथ ही पुलिस टीम ने 2 दिन में लगभग 800 घरों में संपर्क कर शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की. वहीं पुलिस टीम ने सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले.

सीसीटीवी फुटेज में एक बाइक पर एक युवक और महिला किसी व्यक्ति को बीच में बैठा कर ले जाते दिखे. पुलिस ने मृतक की शिनाख्त कर ली. मृतक का नाम कमल सिंह उर्फ कमल कुमार था. मृतक कमल निवासी उमराया, छाता, जिला मथुरा का रहने वाला था और इन दिनों भिवाड़ी की प्रधान कालोनी, सेक्टर-2 में रह रहा था.

पुलिस ने मृतक कमल के घर जा कर पूछताछ की तो मृतक की बीवी जमना देवी अपने पति की हत्या की बात सुन कर रोने लगी.

पुलिस ने उसे ढांढस बंधाया और पूछताछ की. जमना देवी ने बताया कि उस का पति कमल एटीएम से रुपए निकलवाने गया था. जबकि मृतक के बड़े भाई भीम सिंह ने पुलिस को बताया कि 14 फरवरी, 2021 की रात कमल सिंह की पत्नी जमना देवी उन के घर आई थी. वह उस से बाइक की चाबी यह कह कर मांग कर लाई थी कि कमल को बल्लभगढ़ जाना है.

भीम सिंह ने तब बाइक की चाबी जमना को दे दी थी. पुलिस को लगा कि मृतक की बीवी गुमराह कर रही है. तब पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ करने के साथ ही सीसीटीवी फुटेज जमना देवी को दिखाई. सीसीटीवी फुटेज में बाइक पर बैठी महिला के कपड़े एवं जमना के पहने कपड़े एक ही थे.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि कमल की हत्या में उस की पत्नी जमना का हाथ है. तब पुलिस ने जमना से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में जमना टूट गई. उस ने कबूल कर लिया कि अपने प्रेमी और भतीजे मदनमोहन के साथ मिल कर पति की हत्या की थी.

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तब पुलिस ने मृतक कमल सिंह की बुआ के पोते 19 वर्षीय मदनमोहन को फरीदाबाद, हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने मदनमोहन को मोबाइल की लोकेशन के आधार पर साइबर सेल एक्सपर्ट की मदद से धर दबोचा था.

पुलिस गिरफ्त में आते ही मदनमोहन समझ गया कि उस का भांडा फूट गया है. इसलिए उस ने भी कमल सिंह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. इस तरह 19 फरवरी, 2021 को पुलिस ने हत्या के इस मामले से परदा हटा दिया. मदनमोहन को यूआईटी थाना पुलिस थाने ले आई.

अगले भाग में पढ़ें-  मदन ने जमना से किया प्यार का इजहार

Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

राजीनामे में आ रही अड़चनों के बीच कुछ समय पहले अनुज ने डा. सुदीप को धमकी भी दी थी. इस पर डाक्टर ने अपने परिचित कुछ अधिकारियों और कानूनविदों से सलाहमशविरा भी किया था. इस में डाक्टर ने खुद पर और परिवार पर खतरे की आशंका जताई थी.

चूंकि यह कानूनी मामला था, इसलिए सभी ने उन्हें विवाद नहीं बढ़ाने और समझाइश से मामला शांत करने को कहा था. शायद इसीलिए डा. सुदीप ने अनुज के धमकी देने की लिखित शिकायत पुलिस में नहीं की थी. लगातार दबाव बनाने के बावजूद डाक्टर से पैसा नहीं मिलने के कारण वह अपनी बहन और भांजे के जलने के दृश्य याद कर बौखला जाता था. इसी बौखलाहट में उस ने बदला लेने के लिए डा. सुदीप और उस की पत्नी डा. सीमा की हत्या कर दी.

अब आप को डेढ़ साल पहले की उस खौफनाक मंजर की कहानी बताते हैं, जिस में दीपा और उस के 6 साल के बेटे शौर्य की मौत हो गई थी.

वह 7 नवंबर, 2019 का दिन था. भरतपुर शहर में जयपुर-आगरा हाईवे पर पौश कालोनी सूर्या सिटी में उस दिन शाम करीब 4 बजे डा. सीमा गुप्ता अपनी सास सुरेखा के साथ अपने पति डा. सुदीप की प्रेमिका दीपा के मकान पर पहुंची.

घर में दीपा और उस का बेटा शौर्य था. उन की दीपा से कहासुनी हुई. इस दौरान अचानक आवेश में आई डा. सीमा ने स्प्रिट की बोतल फरनीचर पर उड़ेल कर आग लगा दी. इस के बाद घर के बाहर की कुंडी लगा कर वह चली गई.

स्प्रिट ने तुरंत भयावह रूप दिखाया. पूरा मकान आग की लपटों से घिर गया. चारों तरफ आग से घिरी दीपा ने अपना और मासूम बेटे का जीवन बचाने के लिए पहले डा. सुदीप का फोन किया. सुदीप ने तुरंत पहुंचने की बात कही. इस बीच, दीपा ने अपने छोटे भाई अनुज से भी जान बचाने की गुहार की. अनुज भरतपुर शहर में ही नीम दा गेट इलाके में रहता था.

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दीपा की गुहार सुन कर अनुज बाइक ले कर तुरंत उस के मकान पर पहुंचा. वह बिना आवताव देखे मकान के बाहर लगी कुंडी खोल कर तेज लपटों के बीच अंदर घुस गया.

इतनी हिम्मत करने के बावजूद वह जान बचाने के लिए चीखतेचिल्लाते इधरउधर छिपते फिर रही बहन और भांजे को नहीं बचा सका. उस ने दोनों को जिंदा जलता देखा. चारों तरफ आग की लपटों से घिरने के कारण अनुज भी गंभीर रूप से झुलस गया था. बड़ी मुश्किल से वह बाहर निकल सका. बाद में उसे जयपुर ले जा कर अस्पताल में भरती कराया गया. कुछ दिनों बाद वह ठीक हो गया.

यह बताना भी जरूरी है कि डा. सीमा ने दीपा और उस के बेटे को क्यों जलाया?

यह कहानी सन 2017 में शुरू हुई थी. दीपा गुर्जर ने भरतपुर में श्रीराम गुप्ता मेमोरियल अस्पताल में बतौर रिसैप्शनिस्ट नौकरी शुरू की थी. यह अस्पताल प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. सीमा गुप्ता का था. डा. सीमा के पति डा. सुदीप भरतपुर के सरकारी अस्पताल आरबीएम में फिजिशियन थे. सरकारी ड्यूटी के बाद डा. सुदीप भी पत्नी के अस्पताल में कुछ समय बैठ जाते थे. वैसे भी उन्होंने अस्पताल के ऊपरी हिस्से में ही आवास बना रखा था.

दीपा का विवाह उत्तर प्रदेश के जगनेर गांव में हुआ था, लेकिन पारिवारिक विवाद के कारण उस का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा. उस के एक बेटा हुआ, जिस का नाम शौर्य रखा गया. बाद में वह ससुराल से अलग हो कर भरतपुर में अपने पीहर आ कर रहने लगी. बेटा शौर्य उसी के साथ रहता था. पति से उस का तलाक का केस चल रहा था.

अस्पताल में नौकरी करने के दौरान दीपा का डा. सीमा के पति डा. सुदीप से प्रेम प्रसंग शुरू हो गया. दीपा अकेली थी. डा. सुदीप का प्यार मिला, तो वह उन की बांहों में चली गई. पुरानी कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. डा. सुदीप और दीपा के मामले में भी यही हुआ.

अस्पताल में दोनों के प्यार के चर्चे होने लगे. डा. सीमा को भी पता चल गया. वह बहुत गुस्सा हुई. उस ने दीपा को नौकरी से निकाल दिया और हिदायत दी कि फिर कभी उन के पति डा. सुदीप से नहीं मिलना.

दीपा क्या करती, उसे नदी का किनारा मिल रहा था, वह भी छूट गया था. वह अपने पीहर में रह कर नए सिरे से जीवन शुरू करने की सोचने लगी.

उधर, दीपा को नौकरी से निकाले जाने से डा. सुदीप बेचैन हो गया. आग दोनों तरफ लगी हुई थी. आग के शोले भड़कने लगे, तो दोनों चोरीछिपे मिलने लगे. दोनों इस बात की सावधानी रखते थे कि डा. सीमा को इस बात का पता न चले. यह सिलसिला कई महीने तक चलता रहा.

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इस बीच, डा. सुदीप ने सूर्या सिटी का अपना मकान दीपा को रहने के लिए दे दिया. दीपा इस मकान में अपने बेटे शौर्य के साथ रहने लगी. यह मकान डा. सुदीप और उस की पत्नी ने कुछ साल पहले खरीदा था. मकान खाली पड़ा था. डा. सीमा को अपने कामकाज से इतनी फुरसत नहीं थी कि वह कभी जा कर अपने मकान को देखे.

इसी का फायदा उठा कर डा. सुदीप ने पत्नी डा. सीमा से कह दिया कि उस ने यह मकान किराए पर दे दिया है. इस मकान में दीपा और डा. सुदीप मिलनेजुलने लगे. डा. सुदीप ही उस का सारा खर्च उठाता था. दीपा के बेटे शौर्य की पढ़ाई का खर्च भी उठाता था. शौर्य भरतपुर के नामी और महंगे स्कूल में पढ़ता था.

दीपा और डा. सुदीप के फिर से पनपे प्रेम संबंधों की जानकारी डा. सीमा को उस समय हुई, जब शहर में आयशा सैलून एंड स्पा सेंटर खुलने के निमंत्रण पत्र बंटे. इस निमंत्रण पत्र में डा. सुदीप का नाम भी था. सूर्या सिटी में डा. सुदीप के मकान में दीपा ने पहली नवंबर 2019 को यह स्पा सेंटर खोला.

अगले भाग में पढ़ें- डा. सीमा ने गुस्से में लगाई आग

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