क्या गुरुघंटाल है विवेक बिंद्रा

भटके हुए यूथ को बेवकूफ बनाना आसान होता है चाहे धर्म के नाम पर हो या कैरियर के नाम पर. आजकल इन्हीं दोनों का इस्तेमाल कर सोशल मीडिया पर मोटिवेशन के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले इन्फ्लुएंसरों की फौज खड़ी हो गई है जो बड़ीबड़ी बातें कर के करोड़ों छाप रहे हैं. ऐसा ही एक मोटिवेशनल स्पीकर विवेक बिंद्रा है जो अब विवादों में है.

पैसा कमाना गलत नहीं, लेकिन गलत हो कर पैसा कमाना गलत है. यह इस बात पर भी डिपैंड करता है कि आप का मीडियम क्या है और उन मीडियमों से आप कैसे सक्सैस हासिल करते हैं. आजकल यूथ ज्यादा और जल्दी पैसा कमाना चाहते हैं. सब को बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूमना है, बड़ा घर चाहिए, नाम चाहिए, इज्जत चाहिए और ये सब मिल जाए तो एक अच्छी लड़की या लड़का किसे नहीं चाहिए भला. पर यह होगा कैसे, यह सवाल बारबार परेशान करता है. कभी यह सवाल नैया पार तो लगाता है पर बहुत बार इस से जू?ा रहा यूथ जल्दी किसी के लपेटे में भी आ जाता है.

यही कारण भी है कि इन को लपेटे में लेने के लिए सोशल मीडिया पर गुलाटियां खाने वाले मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर भरे पड़े हैं, जो खुलमखुल्ला लाखों रुपए महीने के कमाने के तरीके बताते हैं. आखिर ये शौर्टकट तरीके हैं क्या और इन की संभावनाएं कितनी हैं? क्या ये तरीके सही भी हैं?

इन्फ्लुएंसर विवेक बिंद्रा की कला

41 साल का विवेक बिंद्रा खुद को ‘डा. विवेक बिंद्रा : मोटिवेशनल स्पीकर’ के नाम से इंट्रोड्यूस करता है. इसी नाम से उस ने यूट्यूब चैनल बनाया हुआ है. इस चैनल में लगभग 2 करोड़ 13 लाख सब्सक्राइबर हैं. वहीं उस की हर वीडियो को लाखों लोग देखते हैं. सम?ा जा सकता है कि किस हद तक युवाओं के बीच इस ने पैठ बनाई है. इस के वीडियो के थंबनेल पर लिखा रहता है कि ‘फलाना अमीर कैसे बने’, ‘पैसों में खेलोगे’, ‘करोड़ों कैसे कमाएं’. यह युवा की इच्छा की नब्ज पर हाथ रखता है जिस के सपने वह युवा देखना शुरू कर देता है जिस की हलकी भूरी मूछदाढ़ी अभी आनी शुरू हुई है.

उस के बताए उदाहरण इतने लच्छेदार होते हैं कि कोई भी ट्रैप में फंस सकता है. जैसे, बिंद्रा ने एक वीडियो ‘चार्ली मुंगर’ पर बनाया है जो अमेरिकी बिसनैसमैन और इन्वैस्टर है. बिंद्रा बंदर की तरह उछलउछल कर बोलता है कि मुंगर 7 साल की उम्र में 10 घंटे ग्रौसरी की दुकान पर काम कर के पैसे कमाया करता था और वह 10 से 12 साल की उम्र तक आतेआते अपनी क्लास के बच्चों के होमवर्क, असाइनमैंट बना कर पैसे कमाया करता था.

बेसिरपैर के दावे

सवाल यह कि क्या किसी स्कूल का टीचर ऐसे तरीके बताएगा पैसे कमाने के? दूसरा, क्या कोई अपने 7 साल के बच्चे को इस उम्र में काम पर भेजेगा जब तक बड़ी मजबूरी न हो? दरअसल हकीकत यह है कि मुंगर ने अपनी टीनएज उम्र में जिस बफेट एंड सन ग्रौसरी शौप में काम किया उस का मालिक वारेन बफेट के दादा अर्नेस्ट पी बफेट थे. आगे चल कर मुंगर को वारेन बफेट की बर्कशायर हैथवे कंपनी का उपाध्यक्ष बनाया जाता है. मुंगर के दादा और पिता दोनों ही वकील थे. मुंगर का परिवार फाइनैंशियली व सोशियली रूप से पावरफुल था.

इस का प्रूफ यह कि जब चार्ली मुंगर ने अपने पिता के अल्मा मेटर,  हार्वर्ड लौ स्कूल में दाखिला लेने की कोशिश की तो डीन ने उसे ऐक्सैप्ट नहीं किया क्योंकि मुंगर ने ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी नहीं की थी लेकिन हार्वर्ड लौ के पूर्व डीन और मुंगर परिवार के मित्र रोस्को पाउंड के आपसी संबंध अच्छे थे और उन के बीच हुई बातचीत के बाद कालेज के डीन नरम पड़ गए. बिंद्रा अपने वीडियो में बातों को तोड़मरोड़ कर बताता है. यही उस की कला है.

बिंद्रा ने अपने चैनल पर दावा किया है कि वह 10 दिनों में एमबीए कराएगा. एमबीए सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं क्योंकि इस डिग्री की अहमियत जितनी है उस से ज्यादा इस की फीस है. फीस इतनी कि बाप को सड़क पर आना पड़ जाए. एमिटी और शारदा वाले तो खाल खींचे बगैर बात भी नहीं करते.

एमबीए एक प्रोफैशनल डिग्री है जिसे तभी कराया जा सकता है जब उस संस्था को यूजीसी से सर्टिफिकेशन प्राप्त हो. अगर आप किसी सरकारी यूनिवर्सिटी से भी एमबीए करने की सोचेंगे तो आप से पहले वह आप की क्वालिफिकेशन पूछेगी, आप का एग्जाम होगा और उस के बावजूद 1 प्रतिशत चांस है कि आप को पढ़ने को मिले वह भी तब जब इस की फीस दो से तीन लाख रुपए देने की आप में हिम्मत हो.

सवाल यह कि 2 साल का कोर्स 10 दिनों में औनलाइन कोई कैसे करा सकता है? कोई करा सकता है तो इस की औथेंटिसिटी क्या है? इस में क्या सिखाया जाता है और इस की कितनी वैल्यू है? सवाल यह भी कि क्या बिंद्रा कोई जादूगर है जो पलक झपकते एमबीए बना देता है?

असल में यह कोई एमबीए है ही नहीं. विवेक बिंद्रा, जो यूट्यूबर कम और एंटरप्रेन्योर ज्यादा कहलवाना पसंद करता है, का ‘बड़ा बिजनैस प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से एक कंपनी है जो गोलमोल बातें कर बिजनैस स्ट्रैटेजी सिखाता है. वह मल्टी मार्केटिंग के नाम पर कोर्स बेचता है और पैसे कमाने का तरीका बताता है. यानी, आप का हजारों रुपए इस कोर्स में फंस चुका है और अगर अपना पैसा निकालना चाहते हैं तो और लोगों को इस जाल में फंसाइए. इसे ही पिरामिड स्कीम कहा जाता है.

इसे और आसान भाषा में सम?ाना है तो आप ने यूनिवर्सिटी, कालेज, स्कूल और नुक्कड़ों के आसपास सूटबूट पहने, टाई लगाए कुछ युवाओं को कोनोंखोंपचों में कुछ खुसरफुसर करते देखा होगा. ये लोग नैटवर्किंग मार्केट वाले कहलाते हैं. लंबीचौड़ी हांकते हैं, ?ाटपट अमीर बनने के नुस्खे बांटते हैं. आज बाइक-कार, कलपरसों मकान सब 10 मिनट की बात में दिलाने के सपने दिखा देते हैं. इन का लैवल डायमंड कैटेगरी तक बनने का होता है जो सब से ऊंचा पद होता है, जो ऊपर बैठ कर मलाई खाता है.

नाकामयाबी की गिरफ्त

विवेक बिंद्रा को देखनेसुनने वाले वे नौजवान हैं जो अपनेआप को जीवन में नाकामयाब सम?ाते हैं. उन्हें यह बताया जाता है कि बिजनैस से गरीब, अनपढ़ आदमी भी इन्वैस्टमैंट कर के महीने के लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकता है, एक कामयाब एंटरप्रेन्योर बन सकता है. बल्कि, सच यह है कि इन के पास कामयाब लोगों का कोई उदाहरण नहीं दिखता और जिसे सामने लाया जाता है वह खुद इन में से ही एक होता है. इन की भाषा बिलकुल दस का बीस, बीस का पचास, पचास का सौ जैसी होती है, बिलकुल वैसी जैसे दिल्ली के लालकिले के सामने लगने वाले चोर बाजार में मुंह में गुटका दबाए 20-21 साल का लड़का अपना सामान बेचने के लिए चिल्लाता है.

फैक्ट यह है कि देश में बेरोजगारी पिछले 50 वर्षों में आज सब से अधिक है. जिस हिसाब से जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है उस के हिसाब से नौकरियों को नहीं बढ़ाया गया है. बड़ीबड़ी कंपनियां सरकारी क्षेत्र और छोटे व्यापारियों के बाजार पर नियंत्रण के लिए अपने बाजार का विस्तार करने में लगे हुए हैं.

इस का मतलब यह हुआ कि एक आदमी की कामयाबी हजारोंलाखों लोगों की बरबादी से गुजरती है. उदहारण के लिए एक कुरसी है और हजारों लोगों से पूछा जाता है आप को कितनी चाहिए. हरेक व्यक्ति एक ही बोलता है क्योंकि चाहिए उसे एक ही और वह रेस में दौड़ पड़ता है. दौड़ के बाद एक व्यक्ति को कुरसी मिलती है और बाकी लोग बाहर हो जाते हैं. बिजनैस तभी चलेगा जब बाकियों का बिजनैस कम हो या वे बरबाद हो जाएं क्योंकि दर्शक और उपभोक्ताओं की संख्या सीमित है.

बाजार के इसी नियम से कई लोग बनते हैं और करोड़ों लोग बिखरते हैं. ऐसी समस्याओं के बीच विवेक बिंद्रा जैसे लोग ठगी का जाल बुन कर सैकड़ोंकरोड़ों का मुनाफा बनाते हैं. आजकल स्टार्टअप, एंटरप्रेन्योर का शोर मचा पड़ा है. सब को रातोंरात स्टार बनाने की बात की जा रही है. वैसे ही जैसे आप इंस्टाग्राम पर अपनी तसवीर के साथ शाहरुख खान का गाना लगा कर फील करते हैं और हकीकत उस से बहुत अलग होती है.

टाटा, अंबानी, बिड़ला आदि भारत के सब से बड़े बिजनैसमेन माने जाते हैं. ये बड़े कारखाने चलाते हैं, प्रोडक्शन करते हैं, कुछ मैटीरियल तैयार करते हैं जिन्हें लोग कंज्यूम करते हैं जिस पर लोग मुनाफा कमाते हैं. बिंद्रा की कंपनी कोई प्रोडक्शन नहीं करती. वह लोगों को बिजनैस आइडिया बेच कर अपना धंधा चलाती है.

विवेक बिंद्रा आज के समय में जन्मे बेरोजगारों को भटकाने का काम करता है. यह व्यक्ति मार्केट में जोखिम उठा कर लोगों को पैसे लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, इस में गलत नहीं पर उस के बाद उन की बदहाली से अपना मुंह फेर लेना किसी धोखे से कम नहीं. आप यूट्यूब पर ऐसे कई वीडियो देख सकते हैं जिन में लोगों का रुपया वापस नहीं मिलने की बात सामने आती है. ऐसी परिस्थिति में लोग और डिप्रैशन का शिकार होते हैं.

विवेक बिंद्रा एक न्यूज चैनल में इंटरव्यू देते कहता है, ‘‘बाजार को जो चाहिए वह हमारा स्कूली सिस्टम नहीं दे पाता.’’ सही है स्कूल में हर चीज नहीं सिखाई जाती, बेशक, यह लूटमार का अड्डा नहीं बन सकता, फ्रौड करने की दुकान तो बिलकुल नहीं बनना चाहिए. स्कूलों में 10 दिनों में एमबीए बनना और बनाने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती.

धर्म के नाम पर सब बिकता है

बिंद्रा जैसे लोग अपने व्यापार में धर्म व आस्था का भरपूर इस्तेमाल करना जानते हैं जिस से लोग इन की गलत बातों का भी सही मतलब सम?ों. यह एक तरह का जस्टिफिकेशन बन जाता है जिसे लोग ऐक्सैप्ट कर लेते हैं. हकीकत में यह इन के जाल बिछाने का एक रास्ता है. धर्म के मामले में यूथ टची होने लगा है. उन्हें मूर्ख बनाना पहले से कहीं आसान हो गया है जिस का फायदा इन्फ्लुएंसर उठाने लगे हैं. (मुक्ता के दिसंबर 2023 इशू में एल्विश यादव का उदाहरण इसी संबंध में विस्तार से बताया गया).

दरअसल, पढ़नेलिखने की आदत कम होने से युवाओं की सोचनेसम?ाने की क्षमता कम होती जा रही है. वह किसी भी बेबुनियादी बात को सच मान लेते हैं खासकर तब जब उन्हें इसे धर्म के रैपर में लपेट कर दिया गया हो.

विवेक बिंद्रा वर्णव्यवस्था के संबंध में एक वायरल वीडियो में कहता है कि समाज में कुछ लोग आदेश को पालन करवाने और कुछ लोग आदेश का पालन करने में ज्यादा सक्षम होते हैं. एक तरफ आरक्षण को बिंद्रा गलत मानता है और दूसरी तरफ जाति आधारित शोषण पर अपनी चुप्पी बनाए रखता है. हकीकत में इस का जाति, गरीबी और किसी भी कारण से पिछड़े लोगों की समस्या से कोई लेनादेना नहीं है बल्कि हर साल यह अपने मुनाफे को कैसे कई गुना बढ़ा सके, यह इस की प्रायोरिटी रहती है.

घरेलू विवाद में फंसा

आज विवेक बिंद्रा अपनी निजी जिंदगी के कारण भी सुर्खियों में बना पड़ा है. 6 दिसंबर, 2023 को वह अपनी दूसरी पत्नी यानिका से विवाह करता है, जिस के अगले दिन बिंद्रा पर अपनी पत्नी से मारपीट और बदसलूकी का आरोप लगता है. एक वीडियो वायरल है जिस में यानिका बिंद्रा से उसे जाने देने की गुहार लगाती दिखाई दे रही है.

पहली पत्नी गीतिका के साथ भी बिंद्रा पर मारपीट करने का आरोप लगा था जिस के बाद उस ने बिंद्रा से तलाक ले लिया था. याद रहे, बिंद्रा एक मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर है जो युवाओं को ‘मोटिवेट’ करता है. अब सम?ों पत्नी पर डोमैस्टिक वायलैंस करने वाला कैसे बड़ेबड़े सैमिनारों के स्टेज पर फर्जी बातें करता रहा होगा? बिंद्रा अपनी दोनों पत्नियों के साथ मारपीट का आरोपी है. कई लोगों ने इस पर फ्रौड करने का आरोप लगाया है.

फ्रौड करने का आरोप

महेशवरी पेरी, जो ‘360 कैरियर’ के संस्थापक हैं, बताते हैं कि बिंद्रा की कंपनी की एक साल की कमाई 172 करोड़ रुपए है और 2 साल में कंपनी ने 308 करोड़ रुपए कमाए हैं. यह एक मल्टीलैवल मार्केटिंग कंपनी है. यह लोगों से ऐसे वादे करता है जिन को पूरा नहीं किया जा सकता. यह लोगों को महीने के लाख से 20 लाख कमाने का तरीका बताता है जबकि इस के खुद के एंपलौय मात्र 20-30 हजार रुपए महीने में काम कर रहे हैं.

इन की बातों में आप को एमबीए, एंटरप्रेन्योर, इंटरनैशनल कंसल्टैंट जैसे शब्द दिखेंगे जो छोटे शहरों के युवाओं के लिए बड़े सपने जैसा है. बिंद्रा की दुकान सपने बेच कर चलती है क्योंकि उस के बिना यह चलेगी ही नहीं. सोचिए, इस की जगह अगर वह स्किल डैवलपमैंट का इस्तेमाल करता तो कोई इतना ध्यान ही न देता.

सोशल मीडिया ने रास्ता दिखाने से ज्यादा लोगों को भटकाया है. जो सोशल मीडिया हमारी ताकत हो सकता था वह आज सोसाइटी को कमजोर व खोखला कर रहा है. लोग अपने आसपास के जीवन से दूर होते जा रहे हैं. लोगों को अकेला रहना बेहतर लगने लगा है.

देश में शिक्षा की स्थिति काफी खराब है. स्कूल पूरा होने से पहले ही स्टूडैंट्स का एक बड़ा हिस्सा बाहर निकल जाता है. पढ़ेलिखे लोगों को भी अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है. कहने का मतलब एकदम साफ यह है कि देश में कोई ऐसा सिस्टम ही नहीं है जो युवाओं को रास्ता दिखा सके और इसी का फायदा बिंद्रा जैसे इन्फ्लुएंसर उठा रहे हैं.

सा कमाना गलत नहीं, लेकिन गलत हो कर पैसा कमाना गलत है. यह इस बात पर भी डिपैंड करता है कि आप का मीडियम क्या है और उन मीडियमों से आप कैसे सक्सैस हासिल करते हैं. आजकल यूथ ज्यादा और जल्दी पैसा कमाना चाहते हैं. सब को बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूमना है, बड़ा घर चाहिए, नाम चाहिए, इज्जत चाहिए और ये सब मिल जाए तो एक अच्छी लड़की या लड़का किसे नहीं चाहिए भला. पर यह होगा कैसे, यह सवाल बारबार परेशान करता है. कभी यह सवाल नैया पार तो लगाता है पर बहुत बार इस से जूझ रहा यूथ जल्दी किसी के लपेटे में भी आ जाता है.

यही कारण भी है कि इन को लपेटे में लेने के लिए सोशल मीडिया पर गुलाटियां खाने वाले मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर भरे पड़े हैं, जो खुलमखुल्ला लाखों रुपए महीने के कमाने के तरीके बताते हैं. आखिर ये शौर्टकट तरीके हैं क्या और इन की संभावनाएं कितनी हैं? क्या ये तरीके सही भी हैं?

इन्फ्लुएंसर विवेक बिंद्रा की कला

41 साल का विवेक बिंद्रा खुद को ‘डा. विवेक बिंद्रा : मोटिवेशनल स्पीकर’ के नाम से इंट्रोड्यूस करता है. इसी नाम से उस ने यूट्यूब चैनल बनाया हुआ है. इस चैनल में लगभग 2 करोड़ 13 लाख सब्सक्राइबर हैं. वहीं उस की हर वीडियो को लाखों लोग देखते हैं. समझ जा सकता है कि किस हद तक युवाओं के बीच इस ने पैठ बनाई है. इस के वीडियो के थंबनेल पर लिखा रहता है कि ‘फलाना अमीर कैसे बने’, ‘पैसों में खेलोगे’, ‘करोड़ों कैसे कमाएं’. यह युवा की इच्छा की नब्ज पर हाथ रखता है जिस के सपने वह युवा देखना शुरू कर देता है जिस की हलकी भूरी मूछदाढ़ी अभी आनी शुरू हुई है.

उस के बताए उदाहरण इतने लच्छेदार होते हैं कि कोई भी ट्रैप में फंस सकता है. जैसे, बिंद्रा ने एक वीडियो ‘चार्ली मुंगर’ पर बनाया है जो अमेरिकी बिसनैसमैन और इन्वैस्टर है. बिंद्रा बंदर की तरह उछलउछल कर बोलता है कि मुंगर 7 साल की उम्र में 10 घंटे ग्रौसरी की दुकान पर काम कर के पैसे कमाया करता था और वह 10 से 12 साल की उम्र तक आतेआते अपनी क्लास के बच्चों के होमवर्क, असाइनमैंट बना कर पैसे कमाया करता था.

बेसिरपैर के दावे

सवाल यह कि क्या किसी स्कूल का टीचर ऐसे तरीके बताएगा पैसे कमाने के? दूसरा, क्या कोई अपने 7 साल के बच्चे को इस उम्र में काम पर भेजेगा जब तक बड़ी मजबूरी न हो? दरअसल हकीकत यह है कि मुंगर ने अपनी टीनएज उम्र में जिस बफेट एंड सन ग्रौसरी शौप में काम किया उस का मालिक वारेन बफेट के दादा अर्नेस्ट पी बफेट थे. आगे चल कर मुंगर को वारेन बफेट की बर्कशायर हैथवे कंपनी का उपाध्यक्ष बनाया जाता है. मुंगर के दादा और पिता दोनों ही वकील थे. मुंगर का परिवार फाइनैंशियली व सोशियली रूप से पावरफुल था.

इस का प्रूफ यह कि जब चार्ली मुंगर ने अपने पिता के अल्मा मेटर,  हार्वर्ड लौ स्कूल में दाखिला लेने की कोशिश की तो डीन ने उसे ऐक्सैप्ट नहीं किया क्योंकि मुंगर ने ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी नहीं की थी लेकिन हार्वर्ड लौ के पूर्व डीन और मुंगर परिवार के मित्र रोस्को पाउंड के आपसी संबंध अच्छे थे और उन के बीच हुई बातचीत के बाद कालेज के डीन नरम पड़ गए. बिंद्रा अपने वीडियो में बातों को तोड़मरोड़ कर बताता है. यही उस की कला है.

बिंद्रा ने अपने चैनल पर दावा किया है कि वह 10 दिनों में एमबीए कराएगा. एमबीए सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं क्योंकि इस डिग्री की अहमियत जितनी है उस से ज्यादा इस की फीस है. फीस इतनी कि बाप को सड़क पर आना पड़ जाए. एमिटी और शारदा वाले तो खाल खींचे बगैर बात भी नहीं करते.

एमबीए एक प्रोफैशनल डिग्री है जिसे तभी कराया जा सकता है जब उस संस्था को यूजीसी से सर्टिफिकेशन प्राप्त हो. अगर आप किसी सरकारी यूनिवर्सिटी से भी एमबीए करने की सोचेंगे तो आप से पहले वह आप की क्वालिफिकेशन पूछेगी, आप का एग्जाम होगा और उस के बावजूद 1 प्रतिशत चांस है कि आप को पढ़ने को मिले वह भी तब जब इस की फीस दो से तीन लाख रुपए देने की आप में हिम्मत हो.

सवाल यह कि 2 साल का कोर्स 10 दिनों में औनलाइन कोई कैसे करा सकता है? कोई करा सकता है तो इस की औथेंटिसिटी क्या है? इस में क्या सिखाया जाता है और इस की कितनी वैल्यू है? सवाल यह भी कि क्या बिंद्रा कोई जादूगर है जो पलक झपकते एमबीए बना देता है?

असल में यह कोई एमबीए है ही नहीं. विवेक बिंद्रा, जो यूट्यूबर कम और एंटरप्रेन्योर ज्यादा कहलवाना पसंद करता है, का ‘बड़ा बिजनैस प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से एक कंपनी है जो गोलमोल बातें कर बिजनैस स्ट्रैटेजी सिखाता है. वह मल्टी मार्केटिंग के नाम पर कोर्स बेचता है और पैसे कमाने का तरीका बताता है. यानी, आप का हजारों रुपए इस कोर्स में फंस चुका है और अगर अपना पैसा निकालना चाहते हैं तो और लोगों को इस जाल में फंसाइए. इसे ही पिरामिड स्कीम कहा जाता है.

इसे और आसान भाषा में सम?ाना है तो आप ने यूनिवर्सिटी, कालेज, स्कूल और नुक्कड़ों के आसपास सूटबूट पहने, टाई लगाए कुछ युवाओं को कोनोंखोंपचों में कुछ खुसरफुसर करते देखा होगा. ये लोग नैटवर्किंग मार्केट वाले कहलाते हैं. लंबीचौड़ी हांकते हैं, झटपट अमीर बनने के नुस्खे बांटते हैं. आज बाइक-कार, कलपरसों मकान सब 10 मिनट की बात में दिलाने के सपने दिखा देते हैं. इन का लैवल डायमंड कैटेगरी तक बनने का होता है जो सब से ऊंचा पद होता है, जो ऊपर बैठ कर मलाई खाता है.

नाकामयाबी की गिरफ्त

विवेक बिंद्रा को देखनेसुनने वाले वे नौजवान हैं जो अपनेआप को जीवन में नाकामयाब सम?ाते हैं. उन्हें यह बताया जाता है कि बिजनैस से गरीब, अनपढ़ आदमी भी इन्वैस्टमैंट कर के महीने के लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकता है, एक कामयाब एंटरप्रेन्योर बन सकता है. बल्कि, सच यह है कि इन के पास कामयाब लोगों का कोई उदाहरण नहीं दिखता और जिसे सामने लाया जाता है वह खुद इन में से ही एक होता है. इन की भाषा बिलकुल दस का बीस, बीस का पचास, पचास का सौ जैसी होती है, बिलकुल वैसी जैसे दिल्ली के लालकिले के सामने लगने वाले चोर बाजार में मुंह में गुटका दबाए 20-21 साल का लड़का अपना सामान बेचने के लिए चिल्लाता है.

फैक्ट यह है कि देश में बेरोजगारी पिछले 50 वर्षों में आज सब से अधिक है. जिस हिसाब से जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है उस के हिसाब से नौकरियों को नहीं बढ़ाया गया है. बड़ीबड़ी कंपनियां सरकारी क्षेत्र और छोटे व्यापारियों के बाजार पर नियंत्रण के लिए अपने बाजार का विस्तार करने में लगे हुए हैं.

इस का मतलब यह हुआ कि एक आदमी की कामयाबी हजारोंलाखों लोगों की बरबादी से गुजरती है. उदहारण के लिए एक कुरसी है और हजारों लोगों से पूछा जाता है आप को कितनी चाहिए. हरेक व्यक्ति एक ही बोलता है क्योंकि चाहिए उसे एक ही और वह रेस में दौड़ पड़ता है. दौड़ के बाद एक व्यक्ति को कुरसी मिलती है और बाकी लोग बाहर हो जाते हैं. बिजनैस तभी चलेगा जब बाकियों का बिजनैस कम हो या वे बरबाद हो जाएं क्योंकि दर्शक और उपभोक्ताओं की संख्या सीमित है.

बाजार के इसी नियम से कई लोग बनते हैं और करोड़ों लोग बिखरते हैं. ऐसी समस्याओं के बीच विवेक बिंद्रा जैसे लोग ठगी का जाल बुन कर सैकड़ोंकरोड़ों का मुनाफा बनाते हैं. आजकल स्टार्टअप, एंटरप्रेन्योर का शोर मचा पड़ा है. सब को रातोंरात स्टार बनाने की बात की जा रही है. वैसे ही जैसे आप इंस्टाग्राम पर अपनी तसवीर के साथ शाहरुख खान का गाना लगा कर फील करते हैं और हकीकत उस से बहुत अलग होती है.

टाटा, अंबानी, बिड़ला आदि भारत के सब से बड़े बिजनैसमेन माने जाते हैं. ये बड़े कारखाने चलाते हैं, प्रोडक्शन करते हैं, कुछ मैटीरियल तैयार करते हैं जिन्हें लोग कंज्यूम करते हैं जिस पर लोग मुनाफा कमाते हैं. बिंद्रा की कंपनी कोई प्रोडक्शन नहीं करती. वह लोगों को बिजनैस आइडिया बेच कर अपना धंधा चलाती है.

विवेक बिंद्रा आज के समय में जन्मे बेरोजगारों को भटकाने का काम करता है. यह व्यक्ति मार्केट में जोखिम उठा कर लोगों को पैसे लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, इस में गलत नहीं पर उस के बाद उन की बदहाली से अपना मुंह फेर लेना किसी धोखे से कम नहीं. आप यूट्यूब पर ऐसे कई वीडियो देख सकते हैं जिन में लोगों का रुपया वापस नहीं मिलने की बात सामने आती है. ऐसी परिस्थिति में लोग और डिप्रैशन का शिकार होते हैं.

विवेक बिंद्रा एक न्यूज चैनल में इंटरव्यू देते कहता है, ‘‘बाजार को जो चाहिए वह हमारा स्कूली सिस्टम नहीं दे पाता.’’ सही है स्कूल में हर चीज नहीं सिखाई जाती, बेशक, यह लूटमार का अड्डा नहीं बन सकता, फ्रौड करने की दुकान तो बिलकुल नहीं बनना चाहिए. स्कूलों में 10 दिनों में एमबीए बनना और बनाने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती.

धर्म के नाम पर सब बिकता है

बिंद्रा जैसे लोग अपने व्यापार में धर्म व आस्था का भरपूर इस्तेमाल करना जानते हैं जिस से लोग इन की गलत बातों का भी सही मतलब समझें. यह एक तरह का जस्टिफिकेशन बन जाता है जिसे लोग ऐक्सैप्ट कर लेते हैं. हकीकत में यह इन के जाल बिछाने का एक रास्ता है. धर्म के मामले में यूथ टची होने लगा है. उन्हें मूर्ख बनाना पहले से कहीं आसान हो गया है जिस का फायदा इन्फ्लुएंसर उठाने लगे हैं. (मुक्ता के दिसंबर 2023 इशू में एल्विश यादव का उदाहरण इसी संबंध में विस्तार से बताया गया).

दरअसल, पढ़नेलिखने की आदत कम होने से युवाओं की सोचनेसमझने की क्षमता कम होती जा रही है. वह किसी भी बेबुनियादी बात को सच मान लेते हैं खासकर तब जब उन्हें इसे धर्म के रैपर में लपेट कर दिया गया हो.

विवेक बिंद्रा वर्णव्यवस्था के संबंध में एक वायरल वीडियो में कहता है कि समाज में कुछ लोग आदेश को पालन करवाने और कुछ लोग आदेश का पालन करने में ज्यादा सक्षम होते हैं. एक तरफ आरक्षण को बिंद्रा गलत मानता है और दूसरी तरफ जाति आधारित शोषण पर अपनी चुप्पी बनाए रखता है. हकीकत में इस का जाति, गरीबी और किसी भी कारण से पिछड़े लोगों की समस्या से कोई लेनादेना नहीं है बल्कि हर साल यह अपने मुनाफे को कैसे कई गुना बढ़ा सके, यह इस की प्रायोरिटी रहती है.

घरेलू विवाद में फंसा

आज विवेक बिंद्रा अपनी निजी जिंदगी के कारण भी सुर्खियों में बना पड़ा है. 6 दिसंबर, 2023 को वह अपनी दूसरी पत्नी यानिका से विवाह करता है, जिस के अगले दिन बिंद्रा पर अपनी पत्नी से मारपीट और बदसलूकी का आरोप लगता है. एक वीडियो वायरल है जिस में यानिका बिंद्रा से उसे जाने देने की गुहार लगाती दिखाई दे रही है.

पहली पत्नी गीतिका के साथ भी बिंद्रा पर मारपीट करने का आरोप लगा था जिस के बाद उस ने बिंद्रा से तलाक ले लिया था. याद रहे, बिंद्रा एक मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर है जो युवाओं को ‘मोटिवेट’ करता है. अब समझें पत्नी पर डोमैस्टिक वायलैंस करने वाला कैसे बड़ेबड़े सैमिनारों के स्टेज पर फर्जी बातें करता रहा होगा? बिंद्रा अपनी दोनों पत्नियों के साथ मारपीट का आरोपी है. कई लोगों ने इस पर फ्रौड करने का आरोप लगाया है.

फ्रौड करने का आरोप

महेशवरी पेरी, जो ‘360 कैरियर’ के संस्थापक हैं, बताते हैं कि बिंद्रा की कंपनी की एक साल की कमाई 172 करोड़ रुपए है और 2 साल में कंपनी ने 308 करोड़ रुपए कमाए हैं. यह एक मल्टीलैवल मार्केटिंग कंपनी है. यह लोगों से ऐसे वादे करता है जिन को पूरा नहीं किया जा सकता. यह लोगों को महीने के लाख से 20 लाख कमाने का तरीका बताता है जबकि इस के खुद के एंपलौय मात्र 20-30 हजार रुपए महीने में काम कर रहे हैं.

इन की बातों में आप को एमबीए, एंटरप्रेन्योर, इंटरनैशनल कंसल्टैंट जैसे शब्द दिखेंगे जो छोटे शहरों के युवाओं के लिए बड़े सपने जैसा है. बिंद्रा की दुकान सपने बेच कर चलती है क्योंकि उस के बिना यह चलेगी ही नहीं. सोचिए, इस की जगह अगर वह स्किल डैवलपमैंट का इस्तेमाल करता तो कोई इतना ध्यान ही न देता.

सोशल मीडिया ने रास्ता दिखाने से ज्यादा लोगों को भटकाया है. जो सोशल मीडिया हमारी ताकत हो सकता था वह आज सोसाइटी को कमजोर व खोखला कर रहा है. लोग अपने आसपास के जीवन से दूर होते जा रहे हैं. लोगों को अकेला रहना बेहतर लगने लगा है.

देश में शिक्षा की स्थिति काफी खराब है. स्कूल पूरा होने से पहले ही स्टूडैंट्स का एक बड़ा हिस्सा बाहर निकल जाता है. पढ़ेलिखे लोगों को भी अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है. कहने का मतलब एकदम साफ यह है कि देश में कोई ऐसा सिस्टम ही नहीं है जो युवाओं को रास्ता दिखा सके और इसी का फायदा बिंद्रा जैसे इन्फ्लुएंसर उठा रहे हैं.

मेरे पति को शराब पीने की लत है, कैसे इसे कंट्रोल करूं?

सवाल 

मैं 34 साल की औरत हूं और हरियाणा के फरीदाबाद इलाके में रहती हूं. मेरे पति की उम्र 38 साल है और वे एक फैक्टरी में गार्ड हैं. हमारे 3 बच्चे हैं. पिछले कुछ समय से मेरे पति को शराब पी कर घर आने की आदत पड़ गई है और वे हम सब से लड़ते भी हैं. वे बच्चों को भी नहीं बख्शते हैं. समझाने पर वे कहते हैं कि ‘मैं इस घर का मालिक हूं, जो चाहे करूंगा’.

मुझे लगता है कि उन्हें किसी बात का तनाव रहता है. पर उन की शराब पीने की आदत का बुरा असर हमारे बच्चों पर भी पड़ रहा है. इस समस्या का क्या हल हो सकता है?

जवाब

आप के पति पियक्कड़ों की संगत में फंस गए हैं. मर्दानगी दिखाने के लिए ऐसे मर्द ही शराब पी कर घर में कलह करते हैं. आप को सब्र और समझ से काम लेना होगा, क्योंकि इस का असर आप की गृहस्थी पर पड़ रहा है. रोजरोज पति को शराब पीने को ले कर रोकें और टोकें नहीं और न ही उसे ताने मारें. लड़ाई झगड़ा और कलह इस का हल नहीं है और न ही बहुत ज्यादा समझाने से कोई फायदा होगा.

कोशिश करें कि पति को अगर कोई तनाव है, तो उसे समझे और दूर करने की कोशिश करें. उसे शराब पीने के नुकसान बताएं कि इस से सेहत, इज्जत और पैसे का नुकसान है. वह राजी हो जाए तो किसी काबिल डाक्टर या नशा मुक्ति केंद्र में ले जाएं.

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सवाल

मैं 23 साल की लड़की हूं और पंजाब के एक गांव में रहती हूं. मेरा एक रिश्तेदार मुझ पर बुरी नजर रखता है. वह मम्मी की तरफ से है, तो मम्मी सब जानने के बाद भी चुप्पी साध लेती हैं. मैं बड़ी परेशान रहती हूं. मैं ऐसा क्या करूं कि मेरी इस समस्या का हल हो जाए?

जवाब

लगता है कि आप की मम्मी या तो उस रिश्तेदार के किसी एहसान से दबी हैं या उन की कोई कमजोर नस उस रिश्तेदार ने दबा रखी है. जो भी हो आप झोकें या डरें नहीं और घर के किसी दूसरे बड़े को भरोसे में ले कर बात करें.

उस रिश्तेदार से दूरी बना कर चलें और उसे साफसाफ बता दें कि आप खामोशी से किसी भी ज्यादती या जबरदस्ती को बरदाश्त नहीं करेंगी, तो वह समझ जाएगा, नहीं तो आप के डर को वह रजामंदी ही समझेगा.

सच्ची सलाह के लिए कैसी भी परेशानी टैक्स्ट या वौइस मैसेज से भेजें.

मोबाइल नंबर : 08826099608

प्यार का ऐसा नशा कि कर दी मां की हत्या

बलराम ने जल्दीजल्दी इंटरव्यू लैटर, नोट बुक, पैन आदि बैग में रख कर सोनिया को आवाज दी, ‘‘दीदी, जल्दी से मेरा नाश्ता लगा दीजिए, मुझे देर हो रही है.’’

‘‘आ कर नाश्ता कर लो, मैं ने तुम्हारा नाश्ता तैयार कर दिया है.’’ सोनिया ने रसोईघर से ही कहा.

बलराम ने जल्दीजल्दी नाश्ता किया और अपना बैग ले कर मां के पास पहुंचा. शकुंतला देवी चारपाई पर लेटी थीं. बेटे को देख कर उन्होंने कहा, ‘‘जाओ बेटा, सफल हो कर लौटो. लेकिन तुम ने यह तो बताया ही नहीं कि इंटरव्यू देने कहां जा रहे हो?’’

‘‘मां चंडीगढ़ जा रहा हूं, एक बहुत बड़ी कंपनी में. अगर यह नौकरी मिल गई तो जिंदगी सुधर जाएगी.’’

‘‘जैसी प्रभु की इच्छा.’’ शकुंतला देवी ने कहा.

मां के पैर छू कर बलराम घर से निकल गया. यह 5 जून, 2015 की बात है. इंटरव्यू देने के बाद वह शाम के 7, साढ़े 7 बजे घर लौटा तो सोनिया रात का खाना बना रही थी. बैग रख कर बलराम मां के कमरे में पहुंचा तो वहां मां नहीं थी. बाहर आ कर उस ने बहन से मां के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘शाम को कीर्तन करने की बात कह कर गई थीं, पर अभी तक लौटी नहीं हैं.’’

बलराम को पता था कि मां अकसर कीर्तन पर जाती थीं तो देर रात को लौटती थीं. पिताजी के घर छोड़ कर जाने के बाद मां ने खुद को भजनकीर्तन में लगा लिया था. मां की चिंता छोड़ कर उस ने हाथमुंह धोया तो बहन ने उस के लिए खाना परोस दिया.

खाना खा कर बलराम अपने कमरे में आराम करने चला गया. दिन भर का थका होने के कारण लेटते ही उसे नींद आ गई. रात के लगभग 1 बजे उस की आंख खुली तो उठ कर वह मां के कमरे में गया. मां वहां नहीं थी. समय देखा, रात के सवा बज रहे थे. वह बड़बड़ाया, ‘मां अभी तक नहीं आई?’

बलराम को चिंता हुई. उस के मन में बुरे विचार आने लगे. उस की चिंता यह थी कि पिताजी की तरह कहीं मां भी तो उसे छोड़ कर नहीं चली गईं?

पंजाब के जिला खन्ना के थाना जुलकां का एक गांव है मलकपुर कंबोआ. इसी गांव में लाल सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे और एक बेटी थी.

बड़ा बेटा सोहनलाल खेती करने के अलावा दूसरे राज्यों में जा कर कंबाइन मशीन से फसल काटने का काम करता था. उस से छोटी सोनिया थी, जो दसवीं तक पढ़ाई कर के अब घर में रहती थी. सब से छोटा बलराम बारहवीं पास कर के नौकरी की तलाश में था.

लाल सिंह के पास जो जमीन थी, उसी में मेहनत कर के जैसेतैसे तीनों बच्चों को पालापोसा और पढ़ायालिखाया था. बड़ा बेटा सोहन काम करने लगा तो उन्हें थोड़ी राहत मिली. अचानक न जाने ऐसा क्या हुआ कि लाल सिंह के ऊपर काफी कर्ज हो गया, जिस की वजह से उन्हें अपनी कुछ जमीन बेचनी पड़ी.

जमीन बेचने के बाद लाल सिंह गुमसुम रहने लगे. वह ना किसी से बात करते थे और ना किसी मामले में दखलंदाजी करते थे. ऐसे में ही एक दिन वह बिना किसी को कुछ बताए घर से निकले तो लौट कर नहीं आए. यह 5 साल पहले की बात है.

शकुंतला पति के इंतजार में दरवाजे की ओर टकटकी बांधे देखती रहती थी. उस दिन मां के कीर्तन से न लौटने पर बलराम चिंतित हो उठा. उस ने बहन को जगा कर कहा, ‘‘दीदी उठो, अभी तक मां लौट कर नहीं आई है.’’

‘‘क्या कहा, मां अभी तक लौट कर नहीं आई है?’’

‘‘हां दीदी, रात के 2 बज रहे हैं. इस समय कौन सा मंदिर खुला होगा, जो मां कीर्तन कर रही हैं?’’ रुआंसा हो कर बलराम बोला.

सोनिया घबरा कर उठी. उस ने चिंतित हो कर कहा, ‘‘बल्लू, इस समय हम मां को ढूंढने कहां चलेंगे?’’

बात सही भी थी. उस समय रात के 2 बज रहे थे. उतनी रात को वे कहां जाते. लेकिन मां के बारे में पता तो करना ही था. भाईबहन हिम्मत कर के घर से बाहर निकले. पूरे गांव में सन्नाटा पसरा था, सिर्फ कुत्ते भौंक रहे थे. दोनों मंदिर तक गए. वहां घुप्प अंधेरा था. गांव की हर गली में चक्कर लगाया कि शायद किसी के घर कथाकीर्तन हो रही हो, लेकिन गांव में ऐसा कुछ भी आयोजन नहीं था.

सवेरा होने पर बलराम ने मंदिर जा कर पूछा तो पता चला कि शकुंतला तो कल मंदिर आई ही नहीं थी. थोड़ी ही देर में शकुंतला के गायब होने की बात पूरे गांव में फैल गई. हर कोई अफसोस जता रहा था कि 5 साल पहले बच्चों का बाप गायब हो गया और अब मां गायब हो गई. गांव के कुछ लोग भी शकुंतला की तलाश में लग गए.

बलराम ने बड़े भाई सोहन को भी फोन कर के मां के गायब होने की बात बता दी. उस समय वह मध्य प्रदेश में कंबाइन मशीन ले कर फसल की कटाई कर रहा था. छोटे भाई को सांत्वना दे कर उस ने कहा कि वह तुरंत आ रहा है. अगले दिन दोपहर बाद सोहन घर पहुंचा तो कुछ रिश्तेदार एवं गांव वालों के साथ थाना जुलकां जा कर मां की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

शकुंतला का फोटो ले कर पुलिस ने इश्तेहार शोरेगोगा छपवा कर सभी थानों, बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों तथा प्रमुख स्थानों पर लगवा दिए, साथ ही वायरलैस द्वारा उस का हुलिया भी प्रसारित करवा दिया.

दिन, सप्ताह, महीने बीतने लगे, शकुंतला का कुछ पता नहीं चला. धीरेधीरे साल बीत गया. उस की गुमशुदगी के रहस्य से परदा नहीं उठ सका. सोनिया और सोहन ने तो संतोष कर लिया, पर बलराम, जो मां का चहेता भी था, वह मां के गायब होने के रहस्य को जानना चाहता था. इसलिए मार्च, 2016 में उस ने मां की गुमशुदगी की एक चिट्ठी लिखी और खन्ना जा कर एसपी (डी) जसकरण सिंह तेजा से मिला. उन से उस ने हाथ जोड़ कहा, ‘‘सर, मेरी मां को ढुंढवा दीजिए.’’

जसकरण सिंह तेजा ने बलराम के निवेदन को गंभीरता से लिया और डीएसपी (देहात) हरविंदर सिंह विर्क और डीएसपी (सिटी) हरवंत कौर को बलराम द्वारा दी गई चिट्टी दे कर सख्त आदेश दिया कि जल्द से जल्द वे इस मामले का खुलासा करें.

हरविंदर सिंह और हरवंत कौर ने शकुंतला का पता लगाने के लिए थाना जुलकां के थानाप्रभारी इंसपेक्टर रणवीर सिंह को नियुक्त किया. उन की मदद के लिए इंसपेक्टर जगजीत सिंह को लगा दिया गया.

शकुंतला की गुमशुदगी की फाइल को निकाल कर फिर से जांच शुरू हुई. पुलिस अधिकारियों ने अपने मुखबिरों को भी शकुंतला की गुमशुदगी का रहस्य पता करने को लगा दिया.

शकुंतला के दोनों बेटों, बेटी तथा रिश्तेदारों से भी पूछताछ की गई. सोहन उन दिनों मध्य प्रदेश में था. उस से छोटा बलराम इंटरव्यू देने चंडीगढ़ गया था. सिर्फ बेटी सोनिया ही घर में थी. पूछताछ में पुलिस ने देखा कि सोनिया बारबार बयान बदल रही है.

रणवीर सिंह ने यह बात डीएसपी हरवंत कौर को बताई तो उन्होंने कहा कि वह अपने मुखबिर सोनिया पर नजर रखने के लिए लगा दें, साथ ही उस के बारे में पता करें.

मुखबिरों से पुलिस को पता चला कि सोनिया के गांव के ही कुलविंदर से प्रेमसंबंध थे. जब से पुलिस दोबारा इस मामले की जांच कर रही है, तब से वह काफी बेचैन और परेशान रहती है. अकसर वह गांव से बाहर खेतों में कुलविंदर से सलाहमशविरा करती दिखाई देती है.

रणवीर सिंह और जगजीत सिंह ने समय न गंवाते हुए एएसआई सुरजीत सिंह से कहा कि वह शकुंतला के घर जा कर उस के बेटों सोहन, बलराम और बेटी सोनिया तथा नजदीकी रिश्तेदारों को थाने ले आएं. अगर वे थाने आने की वजह पूछें तो उन्हें बता देना कि शकुंतला का पता चल गया है. सुरजीत सभी को थाने ले आए. जैसा रणवीर सिंह ने सोचा था वैसा ही था.

सोनिया के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. उस के पैर कांप रहे थे. उन्होंने बड़े नाटकीय ढंग से कहा, ‘‘सोहन सिंह, तुम्हारी मां का पता चल गया है. यह मेरे अलावा तुम्हारी बहन सोनिया को भी पता है कि तुम्हारी मां कहां है? इसलिए तुम उस से पूछ लो कि वह कहां हैं, वरना मैं तो तुम्हारी मां से तुम्हें मिलवा ही दूंगा.’’

रणवीर की इस बात पर सोहन सिंह ने हैरानी से बहन की ओर देखा. वह खुद हैरानी से रणवीर सिंह को देख रही थी. उस का चेहरा एकदम सफेद पड़ा हुआ था. टांगें पहले से ज्यादा कांप रही थीं. सोहन सिंह ने जब उस से पूछा कि क्या वह जानती है कि मां कहां हैं तो वह कांपती आवाज में बोली, ‘‘नहीं भैया, मुझे नहीं पता कि मां कहां है.’’

‘‘बताओ न तुम्हारी मां कहां है?’’ रणवीर सिंह ने डांट कर कहा तो सोनिया ने सिर झुका लिया. उस के दोनों भाई और साथ आए रिश्तेदार उसे हैरानी से देख रहे थे.

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि जब सोनिया को मां के बारे में पता था तो उस ने अब तक बताया क्यों नहीं. रणवीर सिंह ने जब दोबारा डांट कर पूछा तो उस ने रोते हुए अपनी मां की लगभग 11 महीने की गुमशुदगी के रहस्य से परदा उठाते हुए कहा कि उस ने अपने प्रेमी कुलविंदर के साथ मिल कर उस की हत्या कर दी है.

इस के बाद उस ने शकुंतला की गुमशुदगी के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

सोनिया और कुलविंदर कभी साथसाथ पढ़ा करते थे. दसवीं पास कर के सोनिया ने पढ़ाई छोड़ दी तो दोनों अलग हो गए. सालों बाद युवा होने पर जब उन की मुलाकात हुई तो बचपन की यादें ताजा हो उठीं. युवा होने पर उन के शरीरों में जो बदलाव आया था, वह काफी आकर्षक था.

दोनों ही खूबसूरत तो थे ही, कुलविंदर का कसरती बदन काफी लुभावना था, जिस से दोनों ही एकदूसरे के आकर्षण में बंधते गए. परिणामस्वरूप दोनों गांव के बाहर खेतों में मिलने लगे. जब इस बात की जानकारी शकुंतला को हुई तो वह परेशान हो उठी.

उस ने कुलविंदर को देखा था. वैसे तो उस में कोई कमी नहीं थी, लेकिन वह नशा करता था. इस के अलावा वह दूसरी जाति का भी था, यही वजहें थीं कि शकुंतला ने बेटी को मर्यादा में रहने को कहा.

जबकि सोनिया पर तो कुलविंदर के प्यार का ऐसा नशा चढ़ा था कि उस ने मां की एक नहीं सुनी, बल्कि वह खुश थी कि मां को उस के और कुलविंदर के प्यार के बारे में पता चल गया था.

इस के बाद वह कुलविंदर को घर बुलाने लगी. अगर शकुंतला कुछ कहती तो वह कुलविंदर को ले कर अपने कमरे में चली जाती. गायब होने से 2 दिन पहले 3 जून, 2015 को शकुंतला गांव में किसी के यहां गई थी. मां के जाते ही सोनिया ने कुलविंदर को बुला लिया था.

अचानक शकुंतला आ गई और उस ने सोनिया और कुलविंदर को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया. कुलविंदर तो डर के मारे भाग गया, बेटी को शकुंतला ने खूब खरीखोटी सुनाई. चुप रहने के बजाय सोनिया विद्रोह कर बैठी. उस ने मां को धमकाते हुए कहा, ‘‘सुन मां, अगर मेरे और कुलविंदर के बीच कोई आया तो मैं उसे छोड़ूंगी नहीं.’’

फिर उसी दिन शाम को सोनिया ने कुलविंदर के साथ मिल कर मां को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उस ने यह योजना कुलविंदर को समझा दी. 5 जून को सोनिया ने दोपहर को खाना बनाया और मां के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. खाना खाने के कुछ देर बाद ही शकुंतला गहरी नींद में सो गई थी. सोनिया ने मां को हिलाडुला कर देखा. जब देखा कि मां होश खो बैठी है तो उस ने फोन कर के कुलविंदर को बुला लिया. कुलविंदर के आने पर सोनिया ने उसे फावड़ा दे कर आंगन में गड्ढा खोदवाया और शकुंतला की गला दबा कर हत्या कर दी.

इस के बाद लाश को उसी गड्ढे में डाल कर मिट्टी भर दी. ऊपर से गोबर का लेप लगा दिया, ताकि किसी को संदेह न हो. सारे काम निपटा कर दोनों ने शकुंतला के कमरे में उसी के बिस्तर पर इच्छा पूरी की. इस के बाद क्या हुआ आप पढ़ ही चुके हैं. सोनिया के अपराध स्वीकार करने के बाद शकुंतला की गुमशुदगी को हत्या में तब्दील कर सोनिया और कुलविंदर को दोषी बनाया गया.

सोनिया की निशानदेही पर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट बहादुर सिंह, एसपी (डी) जसकरण सिंह तेजा, डीएसपी (देहात) हरविंदर सिंह विर्क, डीएसपी (सिटी) हरवंत कौर, थाना जुलकां के प्रभारी रणवीर सिंह एवं जगजीत सिंह, सोहन, बलराम और गांव के सरपंच की मौजूदगी में आंगन में गड्ढा खोद कर शकुंतला की लाश बरामद की गई, जो कंकाल बन चुकी थी.

लाश का पंचनामा तैयार कर फौरैंसिक लैब भेजा गया. इस के बाद सोनिया को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. चूंकि कुलविंदर फरार हो चुका था, इसलिए रिमांड खत्म होने पर सोनिया को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस कुलविंदर की तलाश कर रही है.

50+पुरुष डेटिंग के वक्त फिर से घर बसाने की नहीं सोचता!

55 वर्षीय राजेश की पत्नी का देहांत करीब 5 साल पहले हो गया था. राजेश के दो बच्चे हैं, दोनो की शादी हो चुकी है. दोनों वेल सेटेल्ड हैं. राजेश सरकारी कर्मचारी है. दिखने में अभी भी शरीर लम्बा-चैड़ा और सुडौल है. चूंकि राजेश बच्चों से अलग रहता है इसलिए अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए किसी महिला दोस्त की तलाश में भी रहता है और इर्दगिर्द तांकझांक भी करता है. लेकिन इस उम्र में वह शादी नहीं करना चाहता. उसे महिला दोस्त तो चाहिए, मगर जीवनसंगिनी नहीं.

कहने की बात यह है कि 50 साल पार करने के बाद महिला व पुरुष की सोच में जमीन-आसमान का अंतर आ जाता है. महिला 50 साल बाद भी यदि अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरुआत करती हैं तो वह कोशिश करती है कि किसी के साथ सेटेल हो. जबकि 50+का पुरुष मौज मस्ती और जिंदगी जीने पर यकीन रखता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि 25 वर्षीय युवा और 50 वर्षीय अधेड़ पुरुषों की सोच में अच्छा खासा पफर्क होता है. 50 साल का व्यक्ति ज्यादा समझदार, व्यवहारिक और लॉजिकल तरीके से सोचते वाला होता है. इसलिए दोनो का डेटिंग फंडा भी एक दूसरे से भिन्न होता है.

लेकिन जहां तक बात महिलाओं की है तो वह पुरुषों से बिल्कुल उलट होती हैं. महिलाएं हमेशा खुद को सामाजिक रीति रिवाजों से अलग नहीं कर पातीं. अब आप 53 वर्षीय सीमा को ही लें. सीमा बचपन से ही बहुत महत्वाकांक्षी रही हैं. नतीजतन बहुत कम उम्र में उसने सरहानीय सपफलता हासिल कर ली. लेकिन इसका घातक परिणाम उसकी निजी जिंदगी में देखने को मिला. उसकी उम्र के लड़के या तो अभी सफलता की सीढ़िया चढ़ रहे थे या फिर  प्रारंभ कर रहे थे. नतीजतन उसे कोई लड़का नहीं भाया. इसके बावजूद उसके माता-पिता ने उसकी शादी एक अधेड़  उम्र के पुरुष से कर दी जिसके साथ घूमना-फिरना, रोमांस करना उसे कतई पसंद नहीं आया.

आखिरकार उसने उससे तलाक ले लिया. जिंदगी में इतने उतार चढ़ाव के बाद 50 साल के पड़ाव से गुजरते हुए सीमा को किसी साथी की कमी बहुत खलती है. यही कारण है कि 50 साल का होने के बाद भी वह अपने लिए किसी ऐसे पार्टनर की तलाश कर रही है जो उसकी जिंदगी मंे ठहराव ला सके. सीमा अकेली ऐसी महिला नहीं है जिसे ठहराव के लिए किसी साथी की कमी न खलती हो. असल में हर महिला ऐसा ही चाहती है. पुरुष जहां इस उम्र में जिंदगी की तमाम जद्दोजहद, परेशानियों  असफल वैवाहिक आदि से तनावग्रस्त होकर फिर से शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहते, वे नए सिरे से परिवार बनाना, बच्चों की परवरिश करना, पत्नी के नाज नखरे सिर पर उठाने जैसी चीजों से ऊब हो चुके होते हैं.

वहीं महिलाएं इस उम्र में भी शुरु से शुरु करना चाहती हैं. शायद इसलिए क्योंकि महिला स्वभाव से ही केयर करने वाली होती है. वह चाहे मां की भूमिका में हो, बहन की भूमिका में हो, पत्नी की भूमिका में हो या गर्लप्रफेंड की भूमिका में. वह हर रूप में पुरुष की बच्चे की तरह देखरेख करना चाहती है. 50 वर्षीय पुरुषों को इन सब बातों से कोफ़्त  होने लगती है. मनोविदों का मानना है कि महिलाओं की ऐसी छवि के पीछे प्रमुख वजह यह है कि महिलाएं हमेशा से ही पुरुषों पर आश्रित रहती हैं. उन्हें हर कदम पर ऐसे व्यक्ति की जरुरत होती. जो उनकी दूसरों से रक्षा कर सके. जबकि पुरुषों को किसी के अंडर रहने की आवश्यकता नहीं होती.

62 वर्षीय अजय मागो के मुताबिक, ‘आज से 15 साल पहले मेरी पत्नी मुझे बिना तलाक दिये छोड़कर चली गई थी. खैर, वह मेरा गुजरा हुआ कल है. इसलिए उसे याद करके कोई फायदा नहीं है. अगर चाहता तो शायद तब शादी कर सकता था. मगर जैसे जैसे उम्र निकलती गई, मेरा इस बारे में विश्वास दृढ़ होता गया कि आप 50-55 साल के बाद नए सिरे से घर नहीं बना सकते. इसके पीछे कई वजहें हैं. पहली तो समाज इसकी इजाजत नहीं देता.

अगर मैं ऐसा करता तो निश्चित रूप से मेरे बच्चों को कापफी बुरा लगता. उनके दोस्त उन्हें ताना देते हुए अजीबोगरीब कमेंट करते. सो, मैं अपनी खुशी के लिए उन्हें दांव पर नहीं लगा सकता. इसके अलावा नए सिरे से घर की शुरुआत यानी एक और पत्नी, उसके बच्चे और उसके बच्चे की जिम्मेदारी. कुल मिलाकर बात यह हुई कि 80 साल की उम्र तक मैं बच्चों की परवरिश से जूझता रहूं. मेरे हिसाब से यह मुमकिन नहीं है. अतः मैं 50 साल के बाद नये सिरे से घर की शुरुआत करने के पक्ष में नहीं हैं.’

लब्बोलुआब यह कि महिला चाहे उम्र के किसी भी पड़ाव में क्यों न हो उसे हर वक्त सहारे की जरुरत होती है. जबकि पुरुषों की सोच 50 साल बाद बिल्कुल उलट जाती है. विशेषकर उन पुरुषों की जिनके साथ जिंदगी की असपफल दास्तानें जुड़ी हुई हैं. सो, महिलाएं ध्यान रखें अगर आप किसी 50$ पुरुष के साथ डेटिंग कर रही हैं तो उससे शादी करने का इरादा न बना लें. क्योंकि वह आपको अपनी संगिनी बनाना नहीं चाहता. वह तो सिपर्फ अपने आपको इंटरटेन कर रहा है. इसके उलट पुरुष भी इस बात का खास ख्याल रखें कि यदि 50+महिला आपके साथ डेटिंग कर रही है तो वह उस उम्र में भी आपको अपना जीवनसाथी बनाने की चाहत रखती है. 50 साल से ज्यादा उम्र का पुरुष परिपक्व होता है, माहौल से परिचित होता है, उसके लिए कोई चीज नई नहीं होती. इसलिए उनकी सोच अलग होती है, चाहत अलग होती है.

क्या इसी को प्यार कहते हैं?

कमरे के अंदर घुसते ही जगमोहन ने चुपके से दरवाजा बंद कर के रेवती को अपनी बांहों में भरा और उसे बेतहाशा चूमने लगा.

रेवती छिटकती हुई बोली, ‘‘क्या करते हो, रुको तो…’’

‘‘रेवती, अब मुझे कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि अब तो हम ने शादी भी कर ली है…’’

रेवती ने ताना कसा, ‘‘वाह जी वाह, तुम तो ऐसे बोल रहे हो, जैसे शादी के इंतजार में ही अब तक रुके हुए थे…’’

‘‘तुम हो ही ऐसी कि देख कर मेरा मन बेकाबू हो जाता है, लेकिन अब तुम बाकायदा मेरी दुलहन हो. आज से हम एकदम नए ढंग से जिंदगी शुरू करेंगे. पहले तुम सज लो…

‘‘अच्छा रुको, मैं खुद तुम्हें सजा कर दुलहन बनाऊंगा, फिर हम दोनों आज अपनी सुहागरात मनाएंगे…’’

यह सुन कर रेवती का चेहरा शर्म से लाल पड़ गया. उस ने मना करना चाहा, पर जगमोहन उस के कपडे़ उतारने लगा. ब्लाउज उतारने के बाद जगमोहन उसे अपने दहकते होंठों से चूमने लगा.

रेवती के पूरे बदन में जैसे आग सुलग उठी. वह तड़प कर जगमोहन से लिपट गई.

जगमोहन ने रेवती को उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया. इस के साथ ही रेवती ने गलबहियां डाल कर उसे भी अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अचानक दरवाजे पर आहट सुन कर जगमोहन ने चौंक कर धीमे से पूछा, ‘‘कौन आया है?’’

‘‘मैं हूं… धर्मशाला का मैनेजर,’’ बाहर से आवाज आई, ‘‘जल्दी से दरवाजा खोलो. बाहर पुलिस वाले खड़े हैं…’’

पुलिस का नाम सुनते ही रेवती एक बार तो डर के मारे पीली पड़ गई. जगमोहन का भी सारा जोश ठंडा पड़ गया. वह बुझबुझ आवाज में रेवती से बोला, ‘‘लगता है, तुम्हारे घर वालों ने थाने में रिपोर्ट कर दी है…’’

इतनी देर में रेवती भी संभल चुकी थी. झटके से उठ कर वह जल्दीजल्दी कपड़े पहनती हुई बोली, ‘‘तो तुम डरते क्यों हो? मैं तुम्हारे साथ हूं न.

‘‘हम दोनों बालिग हैं और कचहरी में शादी कर के कानूनन पतिपत्नी बन चुके हैं. हमें अब कोई नहीं अलग कर सकता…’’

लेकिन दरवाजा खोलते ही रेवती को जैसे सांप सूंघ गया. 2 पुलिस वालों के साथ अपने पिता रमाशंकर और चाचा कृपाशंकर को देखते ही उस की नजर जमीन में गड़ गई.

रेवती के पिता रमाशंकर एक प्राइवेट कंपनी में हिसाबकिताब देखा करते हैं. रेवती उन की सब से बड़ी बेटी है. उस से छोटी 3 और बेटियां थीं शांति, मालती व कांति.

रमाशंकर की पत्नी सालों से बीमार थी, इसलिए अब वे बेटे की ओर से निराश हो चुके थे और बेटियों को ही अपना बेटा सम?ा कर पालपोस रहे थे. उन की सब से छोटी बेटी कांति 8वीं जमात में पढ़ती थी. शांति और मालती इंटर में पढ़ रही थीं. रेवती ने भी घर से भागने के कुछ दिनों पहले ही बीए में दाखिला लिया था.

रमाशंकर चाहते थे कि उन की लड़कियां खूब पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. वे समाज को दिखा देना चाहते थे कि बेटियां बेटों से किसी मामले में कम नहीं होतीं और वे भी सच्चे माने में मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती हैं, इसलिए उन्होंने इंटर पास करने के बाद रेवती को आगे की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी में भेज दिया था.

बस, यही उन से चूक हो गई. वे यह भूल गए कि जवान लड़केलड़कियों का रिश्ता आग व फूस जैसा होता है और जहां ये दोनों साथ होंगे, कभी न कभी चिनगारी जरूर उठेगी.

रेवती भी जगमोहन का साथ पा कर सुलग उठी. जगमोहन उस से एक साल सीनियर था. देखने में स्मार्ट और घर से अमीर.

देखते ही देखते मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों में प्यार हो गया. रेवती सुबह के 9 बजतेबजते कालेज जाने के लिए तैयार होने लगती और शाम को अकसर लाइबे्ररी या जीरो पीरियड लगने का बहाना कर के देर से घर लौटती, लेकिन बीच का सारा समय जगमोहन के साथ घूमने में बीतता था.

ऐसे ही एकांत के क्षणों में एक दिन भावनाओं में बह कर रेवती ने अपना सबकुछ जगमोहन को सौंप दिया था. इस के बाद यह तकरीबन रोज का सिलसिला बन गया था.

एक दिन अचानक रेवती ने बताया कि वह मां बनने वाली है. यह सुन कर जगमोहन चौंका जरूर था, पर उस ने रेवती का हाथ थाम कर कहा था, ‘पहले हम अपने पैरों पर खड़े हो जाते, तो ठीक रहता. लेकिन जो भी हो, बदनामी होने के पहले ही हमें शादी कर लेनी चाहिए, क्या तुम तैयार हो?’

‘मैं तो तैयार हूं, लेकिन मेरे घर वाले इस रिश्ते को कभी नहीं मानेंगे. अब तो बस एक ही उपाय है कि तुम मुझे ले कर यहां से कहीं दूर ले चलो…’

‘यह क्या कह रही हो रेवती? इस से हमारी कितनी बदनामी होगी? हमें घर वालों को मुंह दिखाना भी मुश्किल हो जाएगा…’

‘यानी कि तुम को मुझ से ज्यादा अपने घर वालों की इज्जत प्यारी है? लेकिन एक बात याद रखो, अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं भी कम नहीं हूं, अपनी जान दे दूंगी…’

रेवती के कहने पर ही जगमोहन उसे ले कर ग्वालियर चला गया और एक महीना इधरउधर छिपता हुआ दिन काटता रहा. आखिर एक वकील की मदद से उस की अदालत में शादी हो गई, तब जा कर वह बेफिक्र हो पाया.

लेकिन पकड़े जाते ही रेवती ने अपना असली रंग दिखा दिया और पुलिस के पूछने पर वह सिसकती हुई कहने लगी, ‘‘जगमोहन कई महीनों से डराधमका कर मेरे साथ मुंह काला कर रहा था, फिर जान से मारने की धमकी दे कर वह मुझे यहां भगा लाया. आज डराधमका कर उस ने मेरे साथ कोर्ट में शादी भी कर ली.’’

यह सुनते ही जगमोहन के पैरों तले जमीन सरक गई. वह चिल्ला पड़ा, ‘‘ऐसा मत कहो रेवती, हमारे प्यार को बदनाम मत करो. तुम नहीं जानती कि तुम्हारे बयान से मेरी जिंदगी पूरी तरह से बरबाद हो जाएगी.’’

लेकिन रेवती ने आंख उठा कर उस की ओर देखा भी नहीं. पुलिस वालों के एक सवाल के जवाब में उस ने अपने पिता और चाचा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मैं अपने घर जाना चाहती हूं.’’

अदालत के आदेश पर रेवती को उस के पिता के हवाले कर दिया.

जगमोहन अपहरण और बलात्कार के आरोप में हिरासत में जेल में बंद है.

रेवती के इस बरताव ने जगमोहन को जैसे गूंगाबहरा बना दिया है. वह हरदम एक ही बात सोचता रहता है, ‘क्या इसी को प्यार कहते हैं?’

कुलदीपक : शपांडे साहब का वंश

मुंबई का एक भीड़ भरा इलाका. सुबह के तकरीबन 8 बज रहे थे. शबनम सड़क पर तेजी से चलती चली जा रही थी. रातभर जम कर हुई बारिश ने अब जरा राहत की सांस ली थी. 4 महीने धूप में तपी धरती को अब जा कर कहीं थोड़ा चैन मिला था.

आसमान में अब भी बादलों की लुकाछिपी का खेल चल रहा था. पानी अब बरसा कि तब बरसा, कुल मिला कर यही माहौल बन चला था.

शबनम शिवाजी नगर चौक तक पहुंच चुकी थी. वह अमीर लोगों की बस्ती थी. प्रोफैसर, वकील वगैरह सब के दोमंजिला मकान. शबनम उस दोमंजिला बंगले के सामने जा रुकी, जो देशपांडे का था.

बंगले के सामने खूबसूरत बगीचा था, जिस में चमेली, गेंदा, गुड़हल वगैरह के फूल खिले थे. फूलों की खुशबू का एक ?ोंका शबनम की नाक को छू गया.

शबनम ने दरवाजे की घंटी बजाई. थोड़ी देर बाद एक खूबसूरत अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला.

‘‘आप को किस से मिलना है?’’ उन्होंने शबनम से पूछा.

‘‘मैं… मैं शबनम. अम्मां बीमार हैं… इसलिए मैं काम करने आई हूं मैडम,’’ डरतेडरते शबनम एक आवाज में कह गई.

‘‘आ जा फिर भीतर… आ… क्या हुआ तेरी अम्मां को?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘बुखार है,’’ शबनम की आवाज में चिंता थी.

‘‘अरे सुनंदा, कौन है?’’ यह कहते हुए देशपांडे साहब भी अब तक बाहर के कमरे में आ गए थे.

उन्होंने शबनम की तरफ देखा, तो देखते ही रह गए. ऊंची कदकाठी, गोरी, चंपा के फूल की तरह नाक, बिल्लौरी आंखों वाली शबनम.

कुदरत का खेल भी कितना निराला होता है. कीचड़ में कमल खिलता है… शबनम नाम का वह कमल गरीबों की बस्ती में गरीबी से जूझती एक झोंपड़ी में खिला था.

देशपांडे साहब के एक ही बेटा था. वह 16 साल का था, जो मंदबुद्धि था. उस का पुणे के एक मशहूर डाक्टर के यहां इलाज चल रहा था.

पिछले 10 साल से वह वहीं उस डाक्टर की निगरानी में रह रहा था. इतने नामचीन प्रोफैसर का बेटा, बेतहाशा दौलत का मालिक… लेकिन दिमागी तौर पर विकलांग था.

बाहर अब जोरदार बारिश होने लगी थी. शबनम जल्दीजल्दी घर के काम निबटाने में लगी थी. उसे यहां से जल्दी से जल्दी निकल कर अपने घर पहुंचना था. इस बड़े बंगले में उस का दम घुट सा रहा था.

देशपांडे साहब की वह गरम नजर मानो उस के बदन पर डंक मार रही थी. इसी विचार में खोएखोए उस ने सारे काम निबटा डाले.

शबनम जब अपने घर पहुंची, तो अम्मां बैठी उस का इंतजार कर रही थीं.

‘‘अम्मां… अब कैसा लग रहा है?’’ पूछते हुए उस ने अपनी मां को खाना परोसा, फिर दवाएं खिलाईं.

‘‘अम्मां, ये गोलियां खा कर जल्दी ठीक हो जाओ. मुझेअच्छा नहीं लगता यह सब काम करना… अब मेरा कालेज भी शुरू होने वाला है.’’

‘‘क्या हुआ शबनम बेटी?’’ अम्मां को उस की चिंता खाए जा रही थी. जवान बेटी को इस तरह लोगों के घर पर काम करने के लिए भेजना उसे भी अच्छा नहीं लग रहा था, पर कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था. सच, गरीबी बहुत बुरी चीज है.

शबनम जब 2 साल की थी, तभी उस के अब्बा चल बसे थे. अम्मां ने लोगों के घरों में झाड़ूपोंछा कर के शबनम को पालापोसा, पढ़ाया था. अब वह 12वीं जमात में है. उस की पढ़नेलिखने में बेहद दिलचस्पी है और वह खूब होशियार भी है.

8 दिन हो गए आज. शबनम की अम्मां का बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. अच्छे डाक्टर के पास दिखाने के लिए पैसे चाहिए, जो उस के पास नहीं थे.

इसी सोच में डूबतीउतरती शबनम देशपांडे साहब के बंगले पर पहुंची. दरवाजे की घंटी दबाई, दरवाजा देशपांडे साहब ने खोला.

‘‘मैडम…मैडम…’’ पुकारती हुई वह भीतर चली गई.

‘‘बंटी से मिलने के लिए वह पुणे गई है,’’ देशपांडे साहब ने उसे बताया. अब देशपांडे साहब घर में अकेले ही हैं. शबनम के मन को एक अजीब से डर ने दबोच लिया.

‘आज किसी तरह जल्दी से जल्दी काम निबटा लूं, कल से नहीं आऊंगी,’ अपने मन को यह सम?ाते हुए वह काम में जुट गई.

वह रसोई में पहुंची. पीछे से देशपांडे साहब भी वहां आ गए.

‘‘शबनम, चाय लोगी?’’ पूछते हुए उन्होंने गैस स्टोव सुलगा कर दूध गरम करने रख दिया. फिर चाय बना कर एक कप शबनम को थमा दिया और एक कप खुद ले कर सुड़कने लगे.

चाय पी कर वे आराम करने के लिए बैडरूम में चले गए.

‘‘साहब, कमरा साफ करना है… आप बाहर आ जाएं,’’ शबनम ने कहा.

‘‘आ ना… आ शबनम…’’ उन्होंने अलसाई सी आवाज में कहा और फिर करवट बदल ली.

लिहाजा, शबनम बैडरूम में दाखिल हो गई. उस के भीतर आते ही साहब ने झट से उठ कर दरवाजा बंद कर लिया और उस के संग जबरदस्ती करने लगे.

उम्र के लिहाज से वह उन की बेटी की तरह थी, लेकिन इनसान की नजर में जब वासना के डोरे उतर आते हैं, तब हैवानियत के कीड़े दिमाग में घुस कर उसे पूरी तरह शैतान बना देते हैं.

बेचारी शबनम उस ताकतवर राक्षस के आगे कुम्हला कर रह गई. उस की अनमोल इज्जत लुट गई.

देशपांडे साहब ने अब उस की अम्मां को इलाज के लिए एक बड़े अस्पताल में ले जा कर दिखा दिया था. वहां उन का अच्छी तरह इलाज चल रहा था, यहां शबनम रोजाना कोल्हू के बैल की तरह पिस रही थी.

8 दिन बाद देशपांडे मैडम अपने बेटे से मिल कर लौट आईं. वे खूब दुखी लग रही थीं.

एक दिन शबनम अपनी अम्मां को फलों का जूस बना कर दे रही थी, अचानक उस का जी मिचलाने लगा. वह बाथरूम की ओर दौड़ी और उलटी कर दी.

अम्मां की अनुभवी निगाहों ने जल्दी ही यह ताड़ लिया कि ये उलटियां सादा नहीं हैं.

‘‘शबनम, क्या हुआ बेटी?’’ अम्मां ने खूब पूछापुचकारा, लेकिन शबनम के मुंह से एक भी बोल न फूटा. बेटी ने अनमोल इज्जत गवां दी, खानदान की नाक कटवा दी, भीतर ही भीतर इस बेइज्जती में घुट कर आखिरकार अम्मां ने दम तोड़ दिया.

शबनम की अम्मां को गुजरे आज 40 दिन हो गए थे. उस ने देशपांडे साहब को अपने घर बुलाया था.

‘‘शबनम, मुझे पता है कि तेरे पेट में पल रहा बच्चा मेरा ही है. मैं इस बच्चे को और तुझे अपनाने को राजी हूं. तू इसे जन्म दे, शब्बो, मुझे वंश चलाने के लिए चिराग दे, कुलदीपक दे…’’ देशपांडे साहब ने भावुक हो कर उस से कहा.

फिर जल्दी ही एक दिन उन्होंने शबनम से एक मंदिर में शादी कर ली. उसे रहने के लिए अलग से एक मकान ले कर दे दिया.

9 महीने बाद शबनम ने एक बेटे को जन्म दिया. देशपांडे साहब को वंश चलाने के लिए चिराग मिल गया था, अपना कुलदीपक.

बाबा का सच : अंधविश्वास की एक सच्ची कहानी

मेरा तबादला उज्जैन से इंदौर के एक थाने में हो गया था. मैं ने बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन आया. रेल चलने के साथ ही उज्जैन के थाने में रहते हुए वहां गुजारे दिनों की यादें ताजा होने लगीं.

हुआ यह था कि एक दिन एक मुखबिर थाने में आ कर बोला, ‘‘सर, एक बाबा पास के ही एक गांव खाचरोंद में एक विधवा के घर ठहरा हुआ है. मुझे उस का बरताव कुछ गलत लग रहा है.’’

उस की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया. फिर मेरे पास उस बाबा के खिलाफ कोई ठोस सुबूत भी नहीं था.

लेकिन मुखबिर से मिली सूचना को हलके में लेना भी गलत था, सो उसी रात  मैं सादा कपड़ों में उस विधवा के घर जा पहुंचा. उस औरत ने पूछा, ‘‘आप किस से मिलना चाहते हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘दीदी, मैं ने सुना है कि आप के यहां कोई चमत्कारी बाबा ठहरे हैं, इसीलिए मैं उन से मिलने आया हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, अभी तो बाबा अपने किसी भक्त के घर गए हैं.’’

‘‘अगर आप को कोई एतराज न हो, तो क्या मैं आप से उन बाबा के बारे में कुछ बातें जान सकता हूं? दरअसल, मेरी एक बेटी है, जो बचपन से ही बीमार रहती है. मैं उस का इलाज इन बाबा से कराना चाहता हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, जितनी जानकारी मेरे पास है, वह मैं आप को बता सकती हूं.

‘‘एक दिन ये बाबा अपने 2 शिष्यों के साथ रात 8 बजे मेरे घर आए थे.

‘‘बाबा बोले थे, ‘तुम्हारे पति के गुजरने के बाद से तुम तंगहाल जिंदगी जी रही हो, जबकि उस के दादाजी परिवार के लिए लाखों रुपयों का सोना इस घर में दबा कर गए हैं.

‘‘‘ऐसा कर कि तेरे बीच वाले कमरे की पूर्व दिशा वाला कोना थोड़ा खोद और फिर देख चमत्कार.’

‘‘मैं अपने बीच वाले कमरे में गई, तभी उन के दोनों शिष्य भी मेरे पीछेपीछे आ गए और बोले, ‘बहन, यह है तुम्हारे कमरे की पूर्व दिशा का कोना.’

‘‘मैं ने कोने को थोड़ा उकेरा, करीब 7-8 इंच कुरेदने के बाद मेरे हाथ में एक सिक्का लगा, जो एकदम पीला था.

‘‘उस सिक्के को अपनी हथेली पर रख कर बाबा बोले, ‘ऐसे हजारों सिक्के इस कमरे में दबे हैं. अगर तू चाहे, तो हम उन्हें निकाल कर तुझे दे सकते हैं.’

‘‘मैं ने बाबा से पूछा, ‘बाबा, ये दबे हुए सिक्के बाहर निकालने के लिए क्या करना होगा?’

‘‘वे बोले, ‘तुझे कुछ नहीं करना है. जो कुछ करेंगे, हम ही करेंगे, लेकिन तुम्हारे मकान के बीच के कमरे की खुदाई करनी होगी, वह भी रात में… चुपचाप… धीरेधीरे, क्योंकि अगर सरकार को यह मालूम पड़ गया कि तुम्हारे मकान में सोने के सिक्के गड़े हुए हैं, तो वह उस पर अपना हक जमा लेगी और तुम्हें उस में से कुछ नहीं मिलेगा.’

‘‘आगे वे बोले, ‘देखो, रात में चुपचाप खुदाई के लिए मजदूर लाने होंगे, वह भी किसी दूसरे गांव से, ताकि गांव वालों को कुछ पता न चल सके. इस खुदाई के काम में पैसा तो खर्च होगा ही. तुम्हारे पति ने तुम्हारे नाम पर डाकखाने में जो रुपया जमा कर रखा है, तुम उसे निकाल लो.’

‘‘इस के बाद बाबा ने कहा, ‘हम महीने भर बाद फिर से इस गांव में आएंगे, तब तक तुम पैसों का इंतजाम कर के रखना.’

‘‘डाकखाने में रखे 4 लाख रुपयों में से अब तक मैं बाबा को 2 लाख रुपए दे चुकी हूं.’’

‘‘दीदी, क्या मैं आप के बीच वाले कमरे को देख सकता हूं?’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, वैसे तो बाबा ने मना किया है, लेकिन इस समय वे यहां नहीं हैं, इसलिए आप देख लीजिए.’’

मैं फौरन उठा और बीच के कमरे में जा पहुंचा. मैं ने देखा कि सारा कमरा 2-2 फुट खुदा हुआ था और उस की मिट्टी एक कोने में पड़ी हुई थी.

मुझे लगा कि अगर अब कानूनी कार्यवाही करने में देर हुई, तो इस औरत के पास बचे 2 लाख रुपए भी वह बाबा ले जाएगा.

मैं ने उस औरत से कहा, ‘‘दीदी, मैं इस इलाके का थानेदार हूं और मुझे उस पाखंडी बाबा के बारे में जानकारी मिली थी, इसलिए मैं यहां आया हूं.

‘‘आप मेरे साथ थाने चलिए और उस बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाइए, ताकि मैं उसे गिरफ्तार कर सकूं.’’

उस औरत को भी अपने ठगे जाने का एहसास हो गया था, इसलिए वह मेरे साथ थाने आई और उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी.

चूंकि बाबा घाघ था, इसलिए उस ने उस औरत के घर के नुक्कड़ पर ही अपने एक शिष्य को नजर रखने के लिए  बैठा दिया था. इसलिए उसे यह पता चलते ही कि मैं उस औरत को ले कर उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने थाने ले गया हूं. वह बाबा उस गांव को छोड़ कर भाग गया.

इस के बाद मैं ने आसपास के गांवों में मुखबिरों से जानकारी भी निकलवाई, लेकिन उस का पता नहीं चल सका. मैं यादों की बहती नदी से बाहर आया, तब तक गाड़ी इंदौर रेलवे स्टेशन पर आ कर ठहर गई थी.

जब मैं ने इंदौर का थाना जौइन किया, तब एक दिन एक फाइल पर मेरी नजर रुक गई. उसे पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए. रिपोर्ट में लिखा था, ‘गडे़ धन के लालच में एक मां ने अपने 7 साला बेटे का खून इंजैक्शन से निकाला.’

उस मां के खिलाफ लड़के के दादाजी और महल्ले वालों ने यह रिपोर्ट लिखाई थी.

यह पढ़ कर मैं सोच में पड़ गया कि कहीं यह वही खाचरोंद गांव वाला बाबा ही तो नहीं है.

मैं ने सबइंस्पैक्टर मोहन से कहा, ‘‘मैं इस मामले में उस लड़के के दादाजी से बात करना चाहता हूं. उन्हें थाने आने के लिए कहिए.’’

रात के तकरीबन 10 बजे एक बुजुर्ग  मेरे क्वार्टर पर आए. मैं ने उन से उन का परिचय पूछा. तब वे बोले, ‘‘मैं ही उस लड़के का दादाजी हूं.’’

‘‘दादाजी, मैं इस केस को जानना चाहता हूं,’’ मैं ने पूछा.

वे बताने लगे, ‘‘सर, घर में गड़े धन के लालच में बहू ने अपने 7 साल के बेटे की जान की परवाह किए बगैर इंजैक्शन से उस का खून निकाला और तांत्रिक बाबा को पूजा के लिए सौंप दिया.’’

‘‘दादाजी, आप मुझे उस बाबा के बारे में कुछ बताइए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, यह बात तब शुरू हुई, जब कुछ दिनों के लिए मैं अपने गांव गया था. फसल कटने वाली थी, इसलिए मेरा गांव जाना जरूरी था. उन्हीं दिनों यह तांत्रिक बाबा हमारे घर आया और बहू से बोला कि तुम्हारे घर में गड़ा हुआ धन है. इसे निकालने से पहले थोड़ी पूजापाठ करानी पड़ेगी.’’

‘‘मेरी बहू उस के कहने में आ गई. फिर उस तांत्रिक बाबा ने रात को अपना काम करना शुरू किया. पहले दिन उस ने नीबू, अंडा, कलेजी और सिंदूर का धुआं कर उसे पूरे घर में घुमाया, फिर उस ने बीच के कमरे में अपना त्रिशूल एक जगह जमीन पर गाड़ा और कहा कि यहां खोदने पर गड़ा धन मिलेगा.

‘‘उस के शिष्यों ने एक जगह 2 फुट का गड्ढा खोदा. चूंकि रात के 12 बज चुके थे, इसलिए उन्होंने यह कहते हुए काम रोक दिया कि अब खुदाई कल करेंगे.

‘‘इसी बीच मेरी 5 साल की पोती उस कमरे में आ गई. उसे देख कर तांत्रिक गुस्से में लालपीला हो गया और बोला कि आज की पूजा का तो सत्यानाश हो गया है. यह बच्ची यहां कैसे आ गई? अब इस का कोई उपचार खोजना पड़ेगा.

‘‘अगले दिन रात के 12 बजे वह तांत्रिक अकेला ही घर आया और बहू से बोला, ‘तू गड़ा हुआ धन पाना चाहती है या नहीं?’

‘‘बहू लालची थी, इसलिए बोली, ‘हां बाबा.’

‘‘फिर बाबा तैश में आ कर बोला, ‘कल रात उस बच्ची को कमरे में नहीं आने देना चाहिए था. अब उस बच्ची को भी ‘पूजा’ में बैठा कर अकेले में तांत्रिक क्रिया करनी पड़ेगी. जाओ और उस बच्ची को ले आओ.

‘‘इस पर मेरी बहू ने कहा, ‘लेकिन बाबा, वह तो सो रही है.’

‘‘बाबा बोला, ‘ठीक है, मैं ही उसे अपनी विधि से यहां ले कर आता हूं.

‘‘अगले दिन सुबह उस बच्ची ने अपनी दादी को बताया, ‘रात को वह तांत्रिक बाबा मुझे उठा कर बीच के कमरे में ले गया और मेरे सारे कपड़े उतार कर उस ने मेरे साथ गंदा काम किया.’

‘‘जब मेरी पत्नी ने बहू से पूछा, तो वह बोली, ‘बच्ची तो नादान है. कुछ भी कहती रहती है. आप ध्यान मत दो.’

‘‘अगले दिन बाबा ने बीच का कमरा खोद दिया. लेकिन कुछ नहीं निकला. फिर वह बाबा बोला, ‘बाई, लगता है कि तुम्हारे ही पुरखे तुम्हारे वंश का खून चाहते हैं, तुम्हें अपने बेटे की ‘बलि’ देनी होगी या उस का खून निकाल कर चढ़ाना होगा.’

‘‘गड़े धन के लालच में मां ने बिना कोई परवाह किए अपने बेटे का खून ‘इंजैक्शन’ से खींचा और उस का इस्तेमाल तांत्रिक क्रिया करने के लिए बाबा को दे दिया.

‘‘यह सब देख कर मेरी पत्नी से रहा नहीं गया और उस ने फोन पर ये सब बातें मुझे बताईं. मैं तभी सारे काम छोड़ कर इंदौर आया और अपने पोते और महल्ले वालों को ले कर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई.’’

‘‘दादाजी, इस समय वह तांत्रिक बाबा कहां है?’’

‘‘सर, मेरी बहू अभी भी उस के मोहपाश में बंधी है. चूंकि उसे मालूम पड़ चुका है कि मैं ने उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है, इसलिए वह हमारे घर नहीं आ रहा है, लेकिन मैं उस पर नजर रखे हुए हूं.’’

सुबह एक मुखबिर आया और बोला, ‘‘सर, एक सूचना मिली है कि अपने इलाके की एक मलिन बस्ती में एक तांत्रिक आज ही आ कर ठहरा है.’’

रात के 12 बजे मैं अपने कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचा.

एक पुलिस वाले ने एक मकान से  धुआं निकलते देखा. हम ने चारों तरफ से उस मकान को घेर लिया.

जब मैं ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया, तो एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘क्या है? यहां पूजा हो रही है. आप जाइए.’’

इतना सुनते ही मैं ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया और बीच के कमरे में पहुंचा.

मुझे देखते ही वह तांत्रिक बाबा भागने की कोशिश करने लगा, तभी मेरे साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और गाड़ी में डाल कर थाने ले आए.

थाने में थर्ड डिगरी देने पर उस ने अपने सारे अपराध कबूल कर लिए, जिस में खाचरोंद गांव में की गई ठगी भी शामिल थी.

मैं थाने में बैठा सोच रहा था कि अखबारों में गड़े धन निकालने के बारे में ऐसे ठग बाबाओं की खबरें अकसर छपती ही रहती हैं, फिर भी न जाने क्यों लोग ऐसे बाबाओं के बहकावे में आ कर अपनी मेहनत की कमाई को उन के हाथों सौंप कर ठगे जाते हैं?

अपना अपना नजरिया : शुभी का क्यों था ऐसा बरताव – भाग 1

अजय कुछ दिन से चुपचुप सा है. समझ नहीं पा रही हूं कि क्या वजह है. मैं मानती हूं कि 18-20 साल की उम्र संवेदनशील होती है, मगर यही संवेदनशीलता अजय की चुप्पी का कारण होगी यह मानने को मेरा दिल नहीं मान रहा. अजय हंसमुख है, सदा मस्त रहता है फिर उस के मन में ऐसा क्या है, जो उसे गुपचुप सा बनाता जा रहा है.

‘‘क्या अकेला बच्चा स्वार्थी हो जाता है, मां?’’

‘‘क्या मतलब…मैं समझी नहीं?’’

सब्जी काटतेकाटते मेरे हाथ रुक से गए. अजय हमारी इकलौती संतान है, क्या वह अपने ही बारे में पूछ रहा है?

‘‘मैं ने मनोविज्ञान की एक किताब में पढ़ा है कि जो इनसान अपने मांबाप की इकलौती संतान होता है वह बेहद स्वार्थी होता है. उस की सोच सिर्फ अपने आसपास घूमती है. वह किसी के साथ न अपनी चीजें बांटना चाहता है न अधिकार. उस की सोच का दायरा इतना संकुचित होता है कि वह सिर्फ अपने सुखदुख के बारे में ही सोचता है…’’ कहताकहता अजय तनिक रुक गया. उस ने गौर से मेरा चेहरा देखा तो मुझे लगा मानो वह कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो.

‘‘मां, आप भी तो उस दिन कह रही थीं न कि आज का इनसान इसीलिए इतना स्वार्थी होता जा रहा है क्योंकि वह अकेला है. घर में 2 बच्चों में अकसर 1 बहन 1 भाई होने लगा है और बहन के ससुराल जाने के बाद बेटा मांबाप की हर चीज का एकमात्र अधिकारी बन जाता है.’’

‘‘बड़ी गहरी बातें करने लगा है मेरा बच्चा,’’ हंस पड़ी मैं, ‘‘हां, यह भी सत्य है, हर संस्कार बच्चा घर से ही तो ग्रहण करता है. लेनादेना भी तभी आएगा उसे जब वह इस प्रक्रिया से गुजरेगा. देने का सुख क्या होता है, यह वह कैसे जान सकता है जिस ने कभी किसी को कुछ दिया ही नहीं.’’

‘‘तो फिर दादी आप से इतनी घृणा क्यों करती हैं? क्या आप उन का अपमान करती रही हैं? जिस का फल वह आप से नफरत कर के आप को देना चाहती हैं?’’

अवाक् रह गई मैं. अजय का सवाल कहां से कहां चला आया था. कुछ दिन पहले वह अपनी दादी के साथ रहने गया था. मैं चाहती तो बेटे को वहां जाने से रोक सकती थी क्योंकि जिस औरत ने कभी मुझ से प्यार नहीं किया वह मेरे खून से प्यार कैसे करेगी? फिर भी भेज दिया था. मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा मेरे कहने पर अपना व्यवहार निर्धारित करे.

20 साल का बच्चा इतना भी छोटा या नासमझ नहीं होता कि उसे रिश्तों के बारे में उंगली पकड़ कर चलाया जाए. रिश्तों की समझ उसे उन रिश्तों के साथ जी कर ही आए तो वही ज्यादा अच्छा है. अजय जितना मेरा है उतना ही वह अपनी दादी का भी है न.

‘‘मां, दादी तुम से इतनी नफरत क्यों करती हैं?’’ अजय ने अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘तुम दादी से ही पूछ लेते, यह सवाल मुझ से क्यों पूछ रहे हो?’’

हंस पड़ी मैं, यह सोच कर कि 3-4 दिन अपनी दादी के साथ रह कर मेरा बेटा यही बटोर पाया था. अब समझी मैं कि अजय इतना चुप क्यों है.

‘‘4 दिन मैं वहां रहा था मां. दादी ने जब भी आप से संबंधित कोई बात की उन की जबान की मिठास कड़वाहट में बदलती रही. एक बार भी उन के मुंह से आप का नाम नहीं सुना मैं ने. बूआ आईं तो उन्होंने भी आप के बारे में कुछ नहीं पूछा. पिछले दिनों आप अस्पताल में रहीं, आप का इतना बड़ा आपरेशन हुआ था. आप का हालचाल ही पूछ लेतीं एक बार.’’

‘‘तुम पूछते न उन से… पूछा क्यों नहीं…तुम्हारे पापा से भी मैं अकसर पूछती हूं पर वह भी कोई उत्तर नहीं देते. मुझे तो इतना ही समझ में आता है कि तुम्हारे पापा की पत्नी होना ही मेरा सब से बड़ा दोष है.’’

‘‘क्यों? क्या तुम्हारी शादी दादी की इच्छा के खिलाफ हुई थी?’’

‘‘नहीं तो. तुम्हारी दादी खुद गई थीं मेरा रिश्ता मांगने क्योंकि तुम्हारे पापा को मैं बहुत पसंद थी.’’

‘‘क्या पापा ने अपनी मां और बहन को मजबूर किया था इस शादी के लिए?’’

‘‘यह बात तुम अपने पापा से पूछना क्योेंकि कुछ सवालों का उत्तर मेरे पास है ही नहीं. लेकिन यह सच है कि तुम्हारी दादी ने हमारे 22 साल के विवाहित जीवन में कभी मुझ से प्यार के दो मीठे बोल नहीं बोले.’’

‘‘तुम तो उन के साथ भी नहीं रहती हो जो गिलेशिकवे की गुंजाइश उठती हो. जब भी हम घर जाते हैं या दादी यहां आती हैं वह आप से ज्यादा बात नहीं करतीं. हां, इतना जरूर है कि उन के आने से पापा का व्यवहार  बहुत अटपटा सा हो जाता है…अच्छा नहीं लगता मुझे… इसीलिए इस बार मैं उन के साथ रहने चला गया था यह सोच कर कि शायद मैं अकेला जाऊं तो उन्हें अच्छा लगे.’’

‘‘तो कैसा लगा उन्हें? क्या अच्छा लगा तुम्हें उन का व्यवहार?’’

‘‘मां, उन्हें तो मैं भी अच्छा नहीं लगा. एक दिन मैं ने इतना कह दिया था कि मां आलू की सब्जी बहुत अच्छी बनाती हैं. आप भी आज वैसी ही सब्जी बना कर खिलाएं. मेरा इतना कहना था कि दादी को गुस्सा आ गया. डोंगे में पड़ी सब्जी उठा कर बाहर डस्टबिन में गिरा दी. भूखा ही उठना पड़ा मुझे. रोेटियां भी उठा कर फेंक दीं. कहने लगीं कि इतनी अच्छी लगती है मां के हाथ की रोटी तो यहां क्या लेने आया है, जा, चला जा अपनी मां के पास…’’

अवाक् रह गई थी मैं. एक 80 साल की वृद्धा में इतनी जिद. बुरा तो लगा था मुझे लेकिन मेरे लिए यह नई बात नहीं थी.

‘‘क्या मैं अपनी मां के हाथ के खाने की तारीफ भी नहीं कर सकता हूं… आप का नाम लिया उस का फल यह मिला कि मुझे पूरी रात भूखा रहना पड़ा, ऐसा क्यों, मां?’’

मैं अपने बच्चे को उस क्यों का क्या उत्तर देती. मन भर आया मेरा. मेरा बच्चा पूरी रात भूखा रहा इस बात का अफसोस हुआ मुझे, मगर इतना संतोष भी हुआ कि मेरे सिवा कोई और भी है जिसे मेरी ही तरह अपमानित कर उस वृद्धा ने घर से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया. इस का मतलब अजय इसी वजह से जल्दी वापस चला आया होगा.

‘‘मेरे साथ तो तेरी दादी का व्यवहार ऐसा ही है. डोली से निक ली थी उस पल भी उन्होंने ऐसा ही व्यवहार किया था. तुम्हारे पापा ने तुम्हारी बूआ से बस, इतना ही कहा था कि दीदी, जरा शुभा को कुछ खिला देना, उस ने रास्ते में भी कुछ नहीं खाया. पर भाई के शगुन करना तो दूर, मांबेटी ने रोनापीटना शुरू कर दिया और उन के रोनेधोने से घर आए तमाम मेहमान जमा हो गए थे.’’

वो नीली आंखों वाला : वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी – भाग 1

मधुमास के बाद लंबी प्रतीक्षा और सावनराजा के धरती पर कदम रखते ही हर जर्रा सोंधी सी सुगंध में सराबोर हो रहा है… मानो सब को सुंदर बूंदों की चुनरिया बना कर ओढ़ा दी हो. लेकिन अंबर के सीने से खुशी की फुलझड़ियां छूट रही हैं… जैसे वह अपने हृदय में उमड़ते अपार खुशी के सागर को आज ही धरती से जा आलिंगन करना चाहता है. बरखा रानी हवाई घोड़े पर सवार हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. ऐसे बरस रही हैं, जैसे अब के बाद फिर कभी उसे धरती का सीना तरबतर करने और समस्त धरा को अपने स्नेह का कोमल स्पर्श करने आना ही नहीं है. हर पत्ता, हर डाली, हर फूल खुद को वैजयंती माल समझ इतरा रहा हो और इस धरती के रैंप पर मानो कैटवाक कर रहा हो….

घर की दुछत्ती यह सारा मंजर आंखें फाड़फाड़ कर देख रही है मानो ईर्ष्या से दरार पड़ गई हो, और उस का रुदन मालिनी के दिल को भी छलनी कर रहा है, जैसे एक बहन दूसरे के दुख में पसीज रही हो.

ऐसी बारिश जबजब पड़ी, उस ने मालिनी को हर बार उन बीती यादों की सुरंग में पीछे ले जा कर धकेल दिया.

उन यादों के खूबसूरत झूलों के झोटे तनमन में स्पंदन पैदा कर देते हैं.

वह खूबसूरत सा दिखने वाला, नीलीनीली आंखों वाला, लंबा स्मार्ट (कामदेव की ट्रू कौपी) वो 12वीं क्लास वाला लड़का आंखों के आगे घूम ही जाता.

मालिनी ने जब 9वीं कक्षा में स्कूल बदला तो वहां सिर्फ एक वही था, उन सभी अजनबियों के बीच… जिस ने उस की झिझक को समझा कि किस प्रकार एक लड़की को नए वातावरण में एडजस्ट होने में वक्त तो लगता ही है. पर साथ ही साथ किसी अच्छे साथी के साथ की भी आवश्यकता होती है. उस ने हिंदी मीडियम से अंगरेजी मीडियम में प्रवेश जो लिया था, इसी कारण सारी लड़कियां मालिनी को बैकवर्ड और लो क्लास समझ भाव ही नहीं देती थीं. वह जबजब इंटरवल या असेंबली में वरुण को दिख जाती, वही उस की खोजखबर लेता रहता.

“और बताओ… ‘छोटी’, कोई परेशानी तो नहीं…?” उस ने कभी मालिनी का नाम जानने की कोशिश ही नहीं की.

एक तो वह जूनियर थी और ऊपर से कद में भी छोटी और सुंदर. वो उसे प्यार से छोटी ही पुकारता और उस के अंदर हमेशा “मैं हूं ना” कह कर उसे आतेजाते शुक्ल पक्ष के चतुर्थी के चांद सी, छोटी सी मुसकराहट से सराबोर कर जाता. मालिनी का हृदय इस मुसकराहट से तीव्र गति से स्पंदित होने लगता… लेकिन ना जाने क्यों…?

उस को वरुण का हर समय हिफाजत भरी नजरों से देखना… कुछकुछ महसूस कराने लगा था. किंतु क्या…? वह यह समझ ही नहीं पा रही थी. क्या यही प्रेम की पराकाष्ठा थी? या किसी बहुत करीबी के द्वारा मिलने वाला स्नेह और दुलार था…?

किंतु इस सुखद अनुभूति में लिप्त मालिनी भी अब नि:संकोच हो कर मन लगा कर पढ़ने लगी. उसे जब भी कोई समस्या होती, उसी नीली आंखों वाले लड़के से साझा करती. हालांकि इतनी कम उम्र में लड़केलड़कियों में अट्रैक्शन तो आपस में रहता ही है, चाहे वह किसी भी रूप में हो…

सिर्फ दोस्त या सिर्फ प्रेमी या एक भाई जैसा संबोधन… शायद भाई कहना गलत होगा, क्योंकि इस रिश्ते का सहारा ज्यादातर लड़केलड़कियां स्वयं को मर्यादित रखने के चक्कर में लेते हैं.

मालिनी अति रूढ़िवादी परिवार में जनमी घर की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस के 2 भाई और 2 बहनें थीं. वह देखने में अति सुंदर गोरी और पतली. सहज ही किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की काबिलीयत रखती थी.

एक दिन मालिनी स्कूल से लौटते वक्त बस स्टाप पर चुपचाप खड़ी थी. बस के आने में अभी टाइम था. खंभे से सट कर वह खड़ी हो गई, तभी वरुण वहां से साइकिल पर अपने घर जा रहा था कि उस की नजर मालिनी पर पड़ी और पास आ कर बोला, “छोटी, अभी बस नहीं आई…”

“नहीं…”

“चलो, मैं तुम्हारे साथ वेट करता हूं… बस के आने का..”

वह चुप ही रही. उस के मुंह से एक शब्द न फूटा.

सर्दियों की शाम में 4 बजे बाद ही ठंडक बढ़ने लगती है. आज बस शायद कुछ लेट थी. वह बारबार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखता, तो कभी बस के इंतजार में आंखें फैला देता.

पर, इतनी देर वह चुपचाप वहीं खड़ी रही जैसे उस के मुंह में दही जम रहा हो… टस से मस नहीं हुई…
दूर से आती बस को देख वह खुश हुआ. बोला, “चलो आ गई तुम्हारी बस. मैं भी निकलता हूं, ट्यूशन के लिए लेट हो रहा हूं.”

स्टाप पर आ कर बस रुक जाती है और सभी लड़कियां चढ़ जाती हैं, किंतु मालिनी वहीं की वहीं… यह देख वरुण आश्चर्यचकित हो अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगता है. बस आगे बढ़ जाती है.

वरुण थोड़ी देर सोचने के बाद… फौरन अपना स्वेटर उतार कर मालिनी को दे देता है. वह कहता है, “यह लो छोटी… इसे कमर पर बांध लो…

“और…”

“पर, आप… यह क्यों…”

“ज्यादा चूंचपड़ मत करो… मैं समझ सकता हूं तुम्हारी परेशानी…”

“पर, आप कैसे…?”

“मेरे घर में 2 बड़ी बहनें हैं. जब वे इस दौर से गुजरी, तभी मेरी मां ने उन दोनों को इस बारे में शिक्षित करने के साथसाथ मुझे भी इस बारे में पूरी तरह निर्देशित किया… जैसे गुलाब के साथ कांटों को भी हिदायत दी जाती है कि कभी उन्हें चुभना नहीं…

“क्योंकि मेरी मां का मानना था कि तुम्हारी बहनों को ऐसे समय में कोई लड़का छेड़ने के बजाय मदद करे, तो क्यों न इस की शुरुआत अपने घर से ही करूं…

“तो मुझे तुम्हारी स्थिति देख कर समझ आ गया था. चलो, अब जल्दी करो… और घर पहुंचो. तुम्हारी मां तुम्हारा इंतजार कर रही होंगी.”

मालिनी उस वक्त धन्यवाद के दो शब्द भी ना बोल पाई. उन्हें गले में अटका कर ही वहां से तेज कदमों से घर की ओर रवाना हुई.

फिर उसे अगले स्टाप पर घर जाने वाली दूसरी बस मिल गई.

उस के घर में दाखिल होते ही उस का हुलिया देख मां ऊपर वाले का लाखलाख धन्यवाद देने लगती है कि जिस बंदे ने आज मेरी बच्ची की यों मदद की है, उस की झोली खुशियों से भर दे. जरूर ही उस की मां देवी का रूप होगी.

हाय एंड बाय वाली बन कर न रह जाएं मेधा शंकर

सोशल मीडिया पर ‘12वीं फेल’ फिल्म को ले कर आजकल रील्स और मीम्स खूब वायरल हो रहे हैं. कोई कह रहा है, अगर सफल होना है तो गर्लफ्रैंड होना जरूरी है, सिंगल रहना आप को कहीं नहीं ले जाएगा तो कोई कह रहा है. अगर गर्लफ्रैंड लौयल हो तो लड़का आईपीएस भी बन सकता है.

 

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हर कोई अपनी गर्लफ्रैंड में फिल्म ‘12वीं फेल’ वाली श्रद्धा को ढूंढ़ रहा है. फिल्म में लीड कैरेक्टर मनोज के सपोर्ट सिस्टम का किरदार निभाने वाली हीरोइन मेधा शंकर नैशनल क्रश बन जाती हैं और उन के इस संघर्ष में उन का साथ देने वालों की भूमिका धुंधली पड़ जाती है. बेशक मेधा ने इस रोल के बाद खूब तारीफ बटोरी है लेकिन उस के किरदार को ले कर सोशल मीडिया में जो बातें चल रही हैं उन्होंने कुछ सवाल भी खड़े कर दिए हैं.

कौन है मेधा शंकर

नोएडा में रहने वाली मेधा शंकर एक महाराष्ट्रियन परिवार से हैं. डाक्टर बनने की चाह रखने वाली मेधा का इंटरैस्ट जब ग्लैमर और एंटरटेनमैंट की तरफ गया तो उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. शुरुआत में उन्होंने कई विज्ञापनों में काम किया. उस के बाद मेधा ने 2015 में आई शौर्ट फिल्म ‘विद यू फोर यू औलवेज’ से ऐक्ंिटग की दुनिया में कदम रखा.

2019 में वे ब्रिटिश सीरीज ‘बीचम हाउस’ में नजर आईं. उस के बाद 2021 में आई फिल्म ‘शादिस्थान’, टैलीविजन शो ‘बेकरार’ और डौक्यूमैंट्री सदैव ‘आप के साथ’ का भी हिस्सा रहीं. लेकिन फेम उन्हें फिल्म ‘12वीं फेल’ से मिला, जिस के बाद वे लड़कों की नैशनल क्रश बन गईं.

फिल्म में अपनी शानदार अदाकारी के चलते मेधा का नाम लगातार सुर्खियां बटोर रहा है. फिल्म रिलीज के बाद मेधा शंकर के सोशल मीडिया फौलोअर्स बड़ी तेजी से बढ़े. इस समय मेधा शंकर सोशल मीडिया क्वीन बनी हुई हैं और खूब लाइमलाइट बटोर रही हैं.

इंस्टैंट बौलीवुड के मुताबिक, ‘12वीं फेल’ की ओटीटी पर रिलीज से पहले मेधा के इंस्टाग्राम हैंडल पर 2 लाख के करीब फौलोअर्स थे जो रिलीज के बाद करीब 12 लाख हो गए हैं.

‘12वीं फेल’ सोशल आईना

फिल्म मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में स्थित एक छोटे से गांव बिलगांव में जन्मे मनोज कुमार के संघर्ष से जुड़ी है. हालांकि सुर्खियों की वजह उन का आईपीएस बनने के स्ट्रगल से ज्यादा उन के पार्टनर का अंत तक साथ देने से है.

लेकिन सोशल मीडिया में उस की गर्लफ्रैंड श्रद्धा का साथ उस के खुद के स्ट्रगल पर भारी पड़ रहा है. मनोज कुमार शर्मा ने गरीबी पर काबू पा कर आईपीएस अधिकारी का पद हासिल किया. इसे बखूबी विधु विनोद चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘12वीं फेल’ में दिखाया गया, लेकिन हर बौलीवुड फिल्म की तरह यह हकीकत से ज्यादा मनोरंजक बन गई.

फिल्म की कहानी कुछ ऐसी है, मनोज 12वीं कक्षा की परीक्षा में फेल हो जाता है. उस के बाद वह छोटीमोटी नौकरियां करता है. 16-16 घंटे काम करता है और हर रात सिर्फ 3 घंटे सोता व यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करता है. देश की सब से प्रतिष्ठित संस्था, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा को पास करना आसान नहीं है. बात पढ़ाई की हो या मजबूत इरादों की, वर्षों लग जाते हैं यूपीएससी परीक्षा पास करने में. यही सब किया मनोज कुमार शर्मा ने भी. कुछ अलग नहीं था उन अधिकतर गरीब परिवार से आने वाले एस्पिरैंट्स से, जो अपने सपनों के लिए स्ट्रगल करते हैं. फर्क बस, इतना है कि वह अलग दिक्कतों का सामना कर रहा था.

इस में अलग क्या था? सवाल गंभीर है. गंभीर इसलिए क्योंकि श्रद्धा, जोकि मनोज का अंत तक साथ देती है, नैशनल क्रश बन जाती है. लोग मनोज से ज्यादा श्रद्धा की तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते और बाकी मजबूत किरदारों को साइड कर देते हैं क्योंकि वे उसी मेल सैंट्रिक कल्चर से प्रेरित हैं कि चाहे पुरुष कैसा भी हो, किसी भी हालात में हो, महिला को यह हक नहीं बनता कि वह उसे छोड़े. यहां प्यार कोई प्रेरणा नहीं है. औरत का अपने प्यार के लिए किया गया स्ट्रगल प्रेरणा है.

वर्तमान सोसाइटी आज भी उस लड़की को प्रेरणा मानती है जो अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए, अपने परिवार के लिए सबकुछ सैक्रीफाइस करने को तैयार हो पर आप ऐसे कितने पुरुषों को जानते हैं जो अपने प्यार के लिए, अपनी गर्लफ्रैंड के लिए अपनी सुखसुविधाओं को अपने भविष्य को छोड़ने के लिए तैयार होते हैं. सम?ाते की उम्मीद तो केवल लड़कियों से ही की जाती है.

समस्या यह है कि सोशल मीडिया पर यूथ श्रद्धा के कंपैरिजन में ‘शादी में जरूर आना’ फिल्म की हीरोइन से करने लगे, जिस में उस की होने वाली सास शादी के बाद नौकरी करने के लिए उसे मना कर देती है और वह शादी के ऐन वक्त घर से भाग कर अपने कैरियर को पूरा करती है.

इस गुस्से में फिल्म के हीरो यूपीएससी पास कर आईपीएस बन जाता है वरना तो वह क्लर्क की नौकरी में भी खुश था और उस से बदला लेने में जुट जाता है. यहां वह हीरोइन नायिका होते हुए भी विलेन बन जाती है. क्यों? क्योंकि वह शादी से ज्यादा अपने सपने को महत्त्व दे बैठती है. अब बताइए उस ने गलत क्या किया था? अंधेरे भविष्य में जाने से बेहतर है कि वक्तरहते फैसले ले लिए जाएं. लड़के तो मांबाप तक को छोड़ कर भाग जाते हैं.

अगर उस की ससुराल वाले मान भी जाते तो क्या गारंटी है कि शादी के बाद वे पलटते नहीं. हमारे यहां तो वैसे भी शादी के बाद अपनी बात से पलट जाने का रिवाज रहा है. शादी से पहले कुछ और बाद में कुछ. लड़की को कहा जाता है कि वह पढ़ाई जारी रख सकती है, नौकरी कर सकती है पर शादी के पहले ही साल उस के हाथ में बच्चा थमा दिया जाता है.

प्यारमोहब्बत में पड़े कितने ही लड़के केवल अपनी मां की मरजी की लड़की से शादी करने के लिए उन का साथ छोड़ देते हैं, वे आसानी से फैमिली फर्स्ट का नारा दे कर इसे जस्टीफाई कर देते हैं.

किसी ने ट्विटर जो अब एक्स के नाम से जाना जाता है पर कहा था- ‘12वीं फेल’ को देख कर ऐसा लग रहा कि सब आईपीएस बन जाएंगे लेकिन उन को साथ देने वाली चाहिए और साथ देने वाली अगर साथ छोड़ देगी तो उस से भी ज्यादा ऊंची पोस्ट मिल जाएगी पर बिना दिल टूटे या साथ पाए, कुछ होने वाला नहीं है.

 

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अब कोचिंग इंस्टिट्यूटों की आवश्यकता नहीं है. बस, प्यारमोहब्बत सिखाया जाए. सब सैल्फ स्टडी से ही कंपीटिशन निकाल ले रहे हैं.

फिल्म दिखाती है, पेरैंट्स का स्ट्रगल, गरीबी और उन का प्यार आप को आईएएस नहीं बनाता, आप की गर्लफ्रैंड का आईलवयू आप को आईएएस बना देता है. हर लड़का श्रद्धा को ढूंढ़ना चाहता है पर श्रद्धा बनने में किसी की दिलचस्पी नहीं है. कोई किसी औरत के लिए अपने सपनों की बलि नहीं देना चाहता. उन्हें अनदेखा नहीं करना चाहता. ये जिम्मेदारियां केवल लड़कियों के हिस्से हैं. आप ने कितनी फिल्में और उदाहरण देखे हैं ऐसे?

ऐसी फिल्मों के जरिए समाज की वही घिसीपिटी बात रिपीट करने की कोशिश की जा रही है कि औरत को पुरुष का साथ देना ही चाहिए. चाहे पुरुष काबिल हो या न, चाहे औरत स्ट्रगल करने के लिए तैयार हो भी या न. अगर आप ऐसा करती हो तो आप नैशनल क्रश बनने की हकदार हो, क्योंकि अधिकतर भारतीय यही उम्मीद करते हैं, चाहे कुछ भी हो, कितना स्ट्रगल, कितने ही सपनों को आग लगानी हो.

उन को चाहिए कि वह अपने परिवार, पति और पार्टनर के लिए सब करे. कमाल की बात है. बस, कमाल की बात यही कि पिता के सपने, पति के लिए घर और बच्चों के लिए कैरियर, सब वही छोड़े, जिस पर सोशल मीडिया में लड़के मस्त हुए पड़े हैं

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