हाथ की मेहंदी और पैर के महावर का रंग फीका भी नहीं पड़ा था कि कांता ने घर का काम संभाल लिया. घर में न सास थी, न कोई ननद, जो नई दुलहन के आने पर रस्में निभाती. पड़ोस की 2-4 औरतों के साथ मिल कर उस ने खुद ही उन रस्मों को पूरा किया था. गौने में आए तकरीबन सभी मेहमान जा चुके थे. कांता की पायल से रुनझुन की उठने वाली मीठीमीठी आवाज ने सौरभ के आंगन में पिछले 3 सालों से छाई उदासी दूर कर दी थी.  जब 3 साल पहले सौरभ की मां की मौत हुई थी, तब वह जवानी की दहलीज पर पैर रख चुका था. छोटे भाई गौरव की उम्र तब केवल 7 साल की थी. मां के मरने पर वह फूटफूट कर रोया था. अब उस के लिए भैया सौरभ ही मांबाप व भाई सबकुछ था. गौरव को कई रातें थपकियां दे कर सुलाना पड़ा था. वह भैया से बारबार एक ही सवाल पूछता था, ‘‘मां कब आएगी?’’ सौरभ हर बार झूठ बोलता था, ‘‘मां बहुत जल्द वापस आ जाएगी.’’ समझनेबूझने के लिए 10 साल की उम्र कम नहीं होती. पर गौरव को समझने में दिक्कत हो रही थी कि भैया जिसे नई दुलहन के रूप में लाया है, वह मां है या कोई और…? 3 साल में मां की याद धुंधली हो चली थी, लेकिन गौरव को भैया की बात अब तक याद थी कि मां बहुत जल्द वापस आ जाएगी. जब से घर में नईनवेली दुलहन को देखने का मेला लगा था, तब भी वह सब से अलग बैठ कर भैया की बातों को याद कर रहा था.

‘क्या सचमुच मां वापस आ गई? अगर वह मां नहीं है, तो इतनी सुंदर, जवान और काले बालों वाली कैसे हो गई? लेकिन, वह पूछे तो किस से पूछे?’ उस दिन जब भाभी ने पहली बार गौरव का हाथ पकड़ कर प्यार से अपने पास बैठाया, तो वह लाज के मारे पानीपानी हो गया.  भैया आंगन से बाहर निकल रहे थे. निकलतेनिकलते वह बोलते गए, ‘‘कांता, गौरव बड़ा नटखट है. यह तुम्हें बहुत तंग करेगा… और हां, अब तक तो इसे मैं ने संभाला, अब तुम संभालो.’’ कांता ने उसे अपने सीने से लगा लिया. उस दिन देवर और भाभी के बीच काफी देर तक बातें हुईं. गौरव की झिझक मिट चुकी थी. दोनों बहुत जल्दी घुलमिल गए. ‘‘गौरव, एक बात पूछूं?’’ ‘‘पूछिए न.’’ ‘‘आप मुझे क्या कह कर पुकारेंगे?’’ इस सवाल पर गौरव चुप रह गया. क्या कहना ठीक रहेगा, उस की समझ में नहीं आया. ‘‘कुछ बोले नहीं?’’ कांता ने टोका. ‘‘हूं… मां,’’ गौरव के मुंह से बिना सोचे ही निकल गया. कांता जोर से हंस पड़ी और प्यार से गौरव का कान पकड़ कर बोली, ‘‘सिर्फ मां नहीं… भाभी मां.’’ ‘‘भाभी मां,’’ गौरव ने दोहराया.

‘‘हां…’’ कांता पूछ बैठी, ‘‘और मैं आप को क्या कह कर पुकारूंगी?’’ ‘‘गौरव.’’ ‘‘नहीं… छोटे राजा.’’ इस बात पर वे दोनों काफी देर तक हंसते रहे.  वक्त गुजरता गया. सौरभ गांव का सब से बड़ा किसान था. गौरव की पढ़ाई गांव के स्कूल में ही हो रही थी. वह भाभी मां के लाड़प्यार में कुछ ज्यादा ही चंचल हो गया था. सौरभ कभीकभी इस की शिकायत कांता से करता कि तुम ने गौरव को बिगाड़ दिया?है. कभी गुस्से में आ कर वह गौरव को मारने दौड़ता, तो गौरव भाभी मां की साड़ी पकड़ कर उस के पीछे छिप जाता. इस पर कभीकभी सौरभ व कांता में कहासुनी भी हो जाती. सौरभ चिल्ला कर कहता, ‘‘देखना कांता, यह भी मेरी तरह गंवार ही रह जाएगा. और इस में सारी गलती तुम्हारी होगी.’’ ‘‘नहीं, छोटे राजा गंवार नहीं रहेगा… खूब पढ़ेगा और साहब बनेगा,’’ कांता गौरव को अपने पीछे रख कर भैया की पिटाई से बचा लेती. गौरव पढ़नेलिखने में बहुत तेज था. लेकिन ज्यादा चंचल होने के चलते वह अकसर स्कूल से पढ़ाई छोड़ कर भाग जाया करता.  सौरभ दिनरात खेती में लगा रहता.

इस की उसे जानकारी भी नहीं हो पाती. जब स्कूल के मास्टर इस की शिकायत करते, तो वह घर आ कर कांता पर बरस पड़ता.  तब भी कांता यह कर कर गौरव का बचाव करती, ‘‘आप बेकार ही चिंतित हो रहे हैं. अपना गौरव पढ़ने में बहुत तेज है. अच्छे डिवीजन से क्लास पास करेगा.’’ यों तो सौरभ नहीं चाहता था कि गौरव खेती में हाथ बंटाए और उस की पढ़ाई बरबाद हो. फिर भी जरूरत पड़ने पर खेत जाने की हिदायत जरूर करता.  लेकिन गौरव को खेत जाना पसंद नहीं था. वह खेत से लौट कर भाभी मां को पैर और कपड़े में लगे कीचड़ को दिखाते हुए कहता, ‘‘देखो भाभी मां, इसीलिए मैं खेत पर जाना नहीं चाहता.’’ ‘‘लेकिन, आप तो किसान के लड़के हैं. आप को खेत पर जाने में कहीं हिचकना चाहिए?’’ कांता गौरव को प्यार से समझाती.  इस पर गौरव ठुनकने लगता, तो कांता को मजबूर हो कर कहना पड़ता, ‘‘ठीक है, आइंदा आप खेत पर नहीं जाएंगे. मैं आप के भैया से कह दूंगी.’’

सौरभ को यह बात पसंद नहीं थी. गौरव ने स्कूल का इम्तिहान अच्छे नंबर से पास कर लिया. भाभी मां को मना कर के उस ने शहर के अच्छे कालेज में दाखिला ले लिया.  गौरव के बिना कांता को पूरा घर सूनासूना सा लगने लगता था. बाद में अपने बच्चे के साथ रह कर वह इस कमी को भूल गई. सौरभ ने गौरव को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. एक दिन गौरव जब गांव आया, तो आते ही भाभी मां को एक खुशखबरी सुनाई. सुन कर कांता खुशी से उछल पड़ी. घर आते ही सौरभ पूछ बैठा, ‘‘अरे कांता, आज तुम बहुत खुश हो.’’ ‘‘हां, बहुत खुश हूं,’’ कांता सौरभ के सामने दोनों हाथ पीछे कर थोड़ा झुकते हुए बोली, ‘‘जरा मैं भी तो सुनूं कि कैसी खुशी है?’’ ‘‘ऐसे नहीं, पहले वादा.’’ ‘‘कैसा वादा?’’ सौरभ मुसकराया. ‘‘यही कि इस बार फसल बिकने पर अपनी पूजा बेटी के लिए सोने का एक जोड़ा कंगन बनवा दोगे,’’ कांता ने चहकते हुए कहा. ‘‘यह भी कोई शर्त हुई? पूजा तो अभी बच्ची है, भला वह कंगन ले कर क्या करेगी?’’ सौरभ बोला. ‘‘इसलिए कि इसी बहाने उस की शादी के लिए कुछ गहने हो जाएंगे.’’ ‘‘उस की शादी की अभी से चिंता?’’ सौरभ कह कर जोर से हंस पड़ा और कांता के और नजदीक हो कर बोला, ‘‘चलो, यह शर्त मंजूर है. सिर्फ पूजा का ही नहीं… इस बार तुम्हारा भी कंगन.’’ ‘‘शर्त?’’ ‘‘हां.’’ ‘‘अपना गौरव डाक्टरी की पढ़ाई में दाखिला लेने के लिए होने वाले इम्तिहान में पास हो गया है…

वह अब डाक्टर बनेगा… डाक्टर…’’ ‘‘सच…? कहां है वह? पहले मुझे नहीं बताया. आज उस की पिटाई करूंगा…’’ कहतेकहते सौरभ खुशी से रो पड़ा. गौरव का दाखिला डाक्टरी की पढ़ाई वाले कालेज में हो गया. अब तो वह गांव से और भी दूर चला गया था. लेकिन भैया, भाभी मां और भतीजाभतीजी से मिलने वह बारबार गांव आता. भाभी मां अब उसे ‘डाक्टर साहब’ कह कर पुकारने लगी.  गौरव इस पर एतराज करता. वह कहता, ‘‘मुझे ‘छोटे राजा’ सुनने में ही अच्छा लगता है.’’ डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद गौरव किसी बड़े डाक्टर के साथ रह कर मरीजों का इलाज करने की तरकीब सीख रहा था. उस के बाद वह किसी बड़े शहर में डाक्टर की नौकरी करना चाहता था. गौरव कुछ समय के लिए गांव आया था. बातचीत के दौरान उस ने भाभी मां को भी बताया कि वह किसी बड़े शहर में नौकरी करना चाहता है. इस का कांता ने हंसते हुए विरोध किया, ‘‘अगर सभी डाक्टर शहर में ही रहना पसंद करेंगे, तो गांव के लोग कहां जाएंगे?’’ ‘‘भाभी मां, इतना पढ़लिख कर भी गांव की नौकरी? गांव में क्या रखा है? न बिजली, न सड़कें, न मन बहलाने के लिए सिनेमाघर, जबकि शहरों में सड़कें, बिजली की चकाचौंध, बड़ीबड़ी इमारतें, गाडि़यां, पढ़ेलिखे लोग.’’ कांता गौरव का मुंह देख रही.

गौरव इसी धुन में बोलता रहा, ‘‘हर कोई पैसा कमाना चाहता है. मैं भी यही चाहूंगा. गांव में सेवा तो हो सकती है, पैसे नहीं मिल सकते. गांव के लोग गरीब होते हैं, वे डाक्टर को पैसा कहां से देंगे? और शहरों में तो जितना जी चाहे पैसे वसूले जा सकते हैं.’’ ‘‘डाक्टर साहब, यह आप क्या बोल रहे हैं? गांव में जनमे, बड़े हुए, आज गांव से ही नफरत करते हैं? सारे डाक्टर ऐसा ही सोचने लगेंगे, तो गांवों का क्या होगा, जबकि देश के ज्यादातर लोग गांवों में ही रहते हैं?’’ ‘‘छोड़ो भी भाभी मां, यह सब सरकारी भाषा है. सरकार भी यही कहती है कि डाक्टरों को गांवों में अस्पताल खोलने चाहिए, लेकिन कितने डाक्टर गांव में आना चाहते हैं?’’ गौरव की इस बात ने कांता को काफी दुखी किया. गौरव तो वापस चला गया, लेकिन कांता कई दिनों तक बेचैन रही. गौरव की एकएक बात आग बन कर उस के अंदर उतर चुकी थी. हालांकि वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. फिर भी जितना वह समझ सकी, गौरव का फैसला उसे अच्छा नहीं लगा. कुछ दिनों बाद गौरव मनचाहे शहर में सरकारी डाक्टर बन गया. यह खबर पा कर सौरभ और कांता को काफी खुशी हुई. अब गौरव बहुत कम गांव आ पाता. लेकिन हर महीने भैया को रुपए भेजना नहीं भूलता. जब कभी छुट्टी मिलती, तो घर के सभी लोगों के लिए तरहतरह के तोहफे ले कर जरूर आता. इस बार जब वह घर आया, तो भाभी मां को बीमार देख कर चिंतित हो गया. उस ने भाभी मां से शहर चलने के लिए कहा, ताकि ठीक से इलाज हो सके. लेकिन कांता ने यह कह कर शहर जाने से इनकार कर दिया कि शहर में उस का दम घुटने लगता है.  देहात की ताजा हवा, साफसुथरा माहौल, दूरदूर तक फैली हरियाली, भोलेभाले लोग और मिट्टी की सोंधीसोंधी महक को छोड़ कर वह शहर में नहीं रह सकेगी. शहर में गंदी हवा, भीड़भाड़, कलकारखाने व मशीनों के चिंघाड़ने की आवाजें, चिमनियों से निकलता जहरीला धुआं उसे और ज्यादा बीमार कर देंगे. ‘‘लेकिन, आप वहां नहीं जाएंगी, तो आप की सेहत का क्या होगा?’’ गौरव ने समझाया. ‘‘छोटे राजा साहब, मुझे कुछ नहीं होगा. आप मेरी चिंता मत कीजिए. छोडि़ए भी ये बेतुकी बातें, एक जरूरी बात पूछूं?’’ कांता ने कहा. ‘‘हां, पूछिए.’’

‘‘आप ने अपने लिए कहीं पसंद की है?’’ कांता कह कर हंस पड़ी. ‘‘समझा नहीं…?’’ गौरव भाभी मां का मुंह देखने लगा. ‘‘बुद्धू,’’ कांता ठठा कर हंस पड़ी. ‘‘साफसाफ कहिए न भाभी मां.’’ ‘‘बुद्धू राजा, मेरा मतलब है कि अपने लिए कोई लड़की पसंद की है?’’ ‘‘भाभी मां, जब बाप के समान भैया और मां के समान आप हैं, तो फिर यह हिम्मत मैं कैसे कर सकता हूं?’’ ‘‘भाषणबाजी छोडि़ए,’’ कांता गंभीर होने का नाटक करने लगी. बोली, ‘‘भैया ही पूछ रहे थे. एक लड़की के बाप से बात चल रही है. सोचे, गौरव अपनी पसंद की लड़की खुद चुन लिया होगा तो बाद में दिक्कत होगी.’’ ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है भाभी मां?’’ ‘‘ठीक है, आप खुद भी उस लड़की को देख लेते,’’ कांता ने कहा.

‘‘नहीं, आप लोग जो पसंद करेंगे, मुझे मंजूर होगा.’’ ‘‘अच्छा मेरे लाला, आप के लिए परी ही लाऊंगी. जल्दी इस की खबर मिल जाएगी,’’ कह कर कांता हंसने लगी. गौरव ने भी इस में साथ दिया. गौरव अगले दिन ही वापस चला गया. 2-3 महीने सबकुछ ठीकठाक चला. उस दिन गौरव सो कर उठा ही था कि गांव से आए रिश्ते में भाई लगने वाले अरुण को देख कर चौंक गया. एक झटके में ही उस ने अंदाजा लगाया कि शायद उस की शादी पक्की हो गई?है. यह उसी की खबर ले कर आया होगा. ‘‘अरुण गांव से आ रहे हो? सभी कुशल तो हैं?’’ गौरव ने पूछा. ‘‘अरे, तुम कुछ बोलते क्यों नहीं… भैया, भाभी मां, पूजा, राहुल, पिंकी सब कुशल तो हैं?’’ गौरव चिंतित हो गया. ‘‘अरुण,’’ गौरव उसे जोर से झकझोरते हुए चिल्लाया. वह किसी अनहोनी के डर से कांपने लगा. ‘‘कांता भाभी…’’ अरुण पूरा नहीं बोल सका.

‘‘क्या हुआ भाभी मां को?’’ गौरव पागलों की तरह चिल्लाया. ‘‘नहीं…’’ गौरव की चीख देर तक गूंजती रही. रेलगाड़ी महानगर से निकल कर खेतखलिहानों से हो कर गांव की ओर दौड़ रही थी. रात आधी बीत चुकी थी. डब्बे के लगभग सभी मुसाफिर सो चुके थे. केवल गौरव और अरुण ही ऐसे थे, जिन्हें नींद नहीं आ रही थी. गौरव तो पत्थर की मूरत की तरह बैठा था. अरुण धीरेधीरे कुछ बतिया रहा था. ‘‘गौरव.’’ ‘‘क्या?’’ ‘‘जानते हो, कांता भाभी पूरे 24 घंटे तक दर्द से तड़पती रहीं. उन की  पित्त की थैली फट गई थी. अगर कोई अच्छा डाक्टर होता तो कांता भाभी नहीं मरतीं.  ‘‘सौरभ भैया ने तो कहा था, ‘पूरी जमीन बेच दूंगा, लेकिन कांता को नहीं मरने दूंगा…’ मगर कोई डाक्टर आता तब तो… कीचड़ होने के चलते मनमानी फीस का लोभ देने पर भी कोई डाक्टर गांव नहीं आया.

भाभी की हालत शहर ले जाने की नहीं थी.’’ रेलगाड़ी पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी. गौरव दीवार से पीठ टेके छत को निहार रहा था.  अरुण अब भी धीमी आवाज में  बोल रहा था, ‘‘गांव के नीमहकीम डाक्टरों ने कांता भाभी को बचाने की पूरी कोशिश की.’’ ‘‘जानते हो गौरव, गांव वाले क्या कानाफूसी कर रहे थे?’’ अरुण कुछ देर रुक कर बोला. ‘‘क्या…?’’ ‘‘अगर तुम होते तो कांता भाभी नहीं मरतीं… और मरतीं भी तो इस तरह  24 घंटे तक तड़प कर नहीं.’’ अरुण की एकएक बात जहर बुझे तीर की तरह गौरव के दिल में उतरती चली गई. भाभी मां की याद और उन की एकएक बात टीस पैदा करने लगी. उस ने पूछा, ‘‘अरुण, सुबह होने में कितनी देर है?’’ ‘‘बस, एक घंटा.’’ ‘‘शहर लौटने के लिए कितने बजे गाड़ी है?’’ ‘‘रात को है. क्या आज ही शहर लौट जाओगे?’’ अरुण ने हैरानी से पूछा. ‘‘हां, आज ही…’’ गौरव की आवाज सख्त थी, ‘‘मैं नौकरी से इस्तीफा दे कर अब गांव में ही डाक्टरी करूंगा, ताकि और कोई भाभी मां तड़पतड़प कर न मरने पाए.’’ ‘‘गौरव…’’ अरुण की आवाज भर आई. ‘‘हां अरुण, भाभी की मौत ने मेरी आंखें खोल दी हैं.’’

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